अमरभारतीआवाहन
हे अमरभारती आओ,
तुम एक बार आनन्द सुधा फिर इस भू पर बरसाओ । ०
तुम नाद ब्रह्म की आदिम व्याकृत वाणी,
तुम मानवकुल की मातृगिरा कल्याणी,
तुम प्रथम उषा की ज्योति विश्व-संस्कृति की,
तुम भुक्ति-मुक्ति-सोपान सुगम संसृति की,
तुम ज्ञान-कर्म की घट-घट में फिर निर्मल ज्योति जलाओ,
हे अमरभारती आओ । १
तुम भारत के स्वर्णिम अतीत की प्रतिमा,
तुम युग युग गुम्फित-ज्ञान-साधना-सुषमा,
तुम दीपशिखा निर्घूम तिमिरमय पथ की,
तुम रश्मिमालिका मानव-जीवन-रथ की,
तुम क्लान्त जगत को शान्ति-सौख्य का फिर सन्देश सुनाओ
हे अमरभारती आओ । २
-- रचयिता - श्री. वासुदेव द्विवेदी शास्त्री
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