घरघर संस्कृत का प्रचार हो
घर-घर संस्कृत का प्रचार हो । ०
सौध-सौध में सदन-सदन में,
मठ-मन्दिर विद्यालय-वन में,
कुटी कुटी के बाल-बालिका,
वदन-वदन में, नर-नारी के
आज भोज-विक्रम के युग का
आवर्तन फिर एक बार हो । घर-घर... । १
वेदों का उद्घोष मधुर हो,
उपनिषदों का पाठ प्रचुर हो,
गीता रामायण भारत की-
वाणी ही सब ओर मुखर हो,
कालिदास की रसधारा से
पिच्छिल पथ भू का अपार हो । घर-घर... । २
-- रचयिता - श्री. वासुदेव द्विवेदी शास्त्री
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