संस्कृत और राष्ट्रीय प्रगति
सत्य अहिंसा आदि जगत के जो धारक हैं तत्त्व,
उनको ही सर्वोपरि संस्कृत ने है दिया महत्त्व ।
नहीं अनर्गल अर्थ-काम का यह करती सम्मान,
उच्छृङ्खल अभिलाषाओं का नहीं यहाँ पर स्थान ।
संस्कृत ही हमको उन्नति का सच्चा राह बताती,
यही प्रगति के तुङ्ग शिखर पर सबको है पहुँचाती । १
प्रगतिवाद का आज सुनाई देता जो कोलाहल,
इसमें भरा भयङ्कर, समझें, दुर्गंति का हालाहल ।
एकमात्र अधिभूतवाद ही इस तरु का है मूल
और युद्ध संघर्ष, वासना मत्सर ही फल-फूल ।
इस विनाश से संस्कृत शिक्षा ही है हमें बचाती,
सही प्रगति के पथ पर सबको केवल यही चलाती । २
-- रचयिता - श्री. वासुदेव द्विवेदी शास्त्री
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