संस्कृत एक दैवी उपहार
देवभाषा, विश्ववाणी का सुभग शृङ्गार है यह,
शारदा की मञ्जुवीणा का मधुर भंकार है यह ।
देखकर जिसको विदेशी भी चमत्कृत-चित्त होते,
चारु-चित्रण-चातुरी का चित्रमय संसार है यह ।
एक दिन भी देश का जिसके विना जीवन असम्भव,
वह हमारे धर्म-संस्कृति का परम आधार है यह ।
है नहीं जिसकी विपुलता की कहीं कोई इयत्ता,
रत्न-राशि-मरीचि-माला पुञ्ज पारावार है यह ।
तप्त, पीड़ित, मूर्च्छनामय, शोकहत मानव हृदय का,
स्निग्ध, शीतल, शान्तिमय विश्राम का आगार है यह ।
या, अधिक कहना निरर्थक, एक ही यह बात सच्ची,
मानवों को देवताओं से मिला उपहार है यह ।
-- रचयिता - श्री. वासुदेव द्विवेदी शास्त्री
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