संस्कृत से ही वाणी और हृदय का संस्कार
संस्कृत भाषा ही मानव को सचमुच संस्कृत करती
अपने अनुपम संस्कारों से सारा कल्मष हरती । ०
इसके पढ़ने से ही होता शब्दों का संस्कार,
प्रकृति और प्रत्यय का करती सम्यग् विशद विचार,
अपशब्दों के उच्चारण को इसने माना पाप,
एक वर्ण का भी है दूषित उच्चारण अभिशाप,
कौन अन्य भाषा है ऐसी शुद्ध भावना भरती ?
संस्कृत भाषा ही मानव को सचमुच संस्कृत करती । १
वाणी की ही भाँति हृदय को भी यह शुद्ध बनाती,
प्रतिदिन दूषित आचरणों से बचना यह सिखलाती,
एक सत्य ही इसके सारे शास्त्रों का है ज्ञेय,
भाव-शुद्धि ही इसकी सारी शिक्षाओं का ध्येय
जैसा इसका नाम काम भी वैसा ही है करती,
अपने अनुपम संस्कारों से सारा कल्मष हरती । २
-- रचयिता - श्री. वासुदेव द्विवेदी शास्त्री
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