आनन्दाष्टकम्
सानन्दमानन्दमयि ! त्वमारात्
कारुण्यवारान्निधिसन्निधानात् ।
स्नेहस्रवत्पूरमपूर्वमुद्यद्-
हृद्यं दयावारि दृशाऽभिसिञ्च ॥ १॥
हे माता आनन्दमयी! तुम मुझमें, करुणासागर की समीपता से, गिरते स्नेह धार वाले, अपूर्व, उदीयमान हृद्य दयावारि को दृष्टिपात द्वारा सीञ्चो ॥ १॥
आनन्दकन्दोद्गतसाधानाम्भः-
सिक्तोदितामन्दसुरद्रुवल्ली ।
सानन्दमानन्दमयीतिनाम्ना
लोकाश्रयाऽमोघफलं प्रसूते ॥ २॥
आनन्द की कन्दली से उद्भूत, साधना रूपी जल से सिञ्चित, निकली हुई विकसित देववृक्ष की लता, आनन्दपूर्वक ``आनन्दमयी'' इस नाम से संसार का आश्रय होकर अमोघ फल उत्पन्न करती है ॥ २॥
आनन्दसम्भूतसुधाब्धिमध्यात्
सञ्जातपूर्णप्रसरत्प्रकाशा ।
सेव्या सदानन्दसुधांशुशुभ्राऽऽ-
नन्दप्रदाऽऽनन्दमयी कला सा ॥ ३॥
आनन्द से उत्पन्न सुधासागर के मध्य से, पूर्ण प्रसरणशील प्रकाश वाली, सदैव आनन्द देने वाली, आनन्दचन्द्र की धवल कला, वह आनन्दमयी निरन्तर सेवनीय है ॥ ३॥
आनन्दपूर्वाद्रिशिरोऽवभासी
भास्वद्विभानन्दसुखैकराशिः ।
सानन्दग्रार्घ्यसहस्ररश्मिः
साऽऽनन्दमूर्तिर्जननी प्रणम्या ॥ ४॥
आनन्दपूर्ण पूर्व दिशा में उदयपर्वतशिखर पर भासमान, देदीप्यमान प्रभा से आनन्द और सुख की अनुपम राशि, आनन्दपूर्वक अग्रिम पूज्य सहस्ररश्मि (सूर्य), आनन्द की मूर्ति वह माता आनन्दमयी वारम्वार प्रणाम के योग्य हैं ॥ ४॥
आनन्दचिद्ब्रह्मपरात्मशक्ति-
रानन्दवृत्तिप्रतिभासमाना ।
साकारमानन्दवपुर्दधाना
साऽऽनन्दमाता विबुधैरुपास्या ॥ ५॥
आनन्द के चिद्ब्रह्म की परात्म शक्ति, आनन्दपूर्ण व्यवहार से प्रतिभासित होती हुई, साकार आनन्दशरीर को धारण करने वाली वह आनन्दमयी माँ विद्वानों के द्वारा उपास्य (पूजनीय) है ॥ ५॥
आनन्दपाथोधितरङ्गसङ्गा-
दानन्दपूरप्रसरं सिसृक्षुः ।
दिक्षु स्रवत्स्वच्छदयाम्बुबिन्दुः
साऽऽनन्दसिन्धुः सुजनैर्निषेव्या ॥ ६॥
आनन्दसमुद्र के तरङ्गों के संसर्ग से, आनन्दप्रवाह के प्रसार की सृजनाभिलाषिणी सारी दिशाओं में गिरते हुए निर्मल दया की जल बिन्दुओं वाली वह आनन्द की सरिता, सज्जनों के द्वारा सेवनीय है ॥ ६॥
आनन्दकाव्यध्वनिलक्षणाध्व-
शब्दार्थसालङ्कृतिसद्गुणाढ्या ।
सानन्दमास्वाद्यरसप्रशस्या
साऽऽनन्दसंवित्कविवृन्दवन्द्या ॥ ७॥
आनन्दपूर्ण काव्य के ध्वनि लक्षण मार्ग पर अथवा ``आनन्दवर्धन'' वर्णित काव्यात्मा ध्वनिलक्षण मार्ग शब्दार्थ, अलङ्कार एवं गुणों से परिपूर्ण (कविता को) आनन्दपूर्वक आस्वादित करके, रसों से प्रशंसनीय वह आनन्द की संवित् (संवेदना) कविवृन्द के द्वारा वन्दनीय है ॥ ७॥
आनन्दसौन्दर्यलहर्यमोघा-
नन्दच्छटाऽऽनन्दघना चिदेका ।
आनन्दकान्तारजुषां समेषां
सानन्दमानन्दमयी पराम्बा ॥ ८॥
आनन्द सौन्दर्य की लहरी, अमोघ आनन्द की छटा, सघन आनन्द वाली अद्वितीय चैतन्यस्वरूपिणी आनन्दवन के निवासी समस्त जनों को वह पराम्बा आनन्दमयी आनन्दित कर देने वाली है ॥ ८॥
मुदाधीतमिदं सद्भिर्हदाऽऽनन्दाष्टकं शुभम् ।
सदाऽऽनन्दमयीमातुः प्रसादाय प्रकल्पते ॥ ९॥
सज्जनों के द्वारा मोदपूर्ण हृदय से पठित यह शुभप्रद आनन्दाष्टक, निरन्तर श्री माता आनन्दमयी के प्रसाद (प्रसन्नता) के लिये अनुकूल होता है ॥ ९॥
आनन्दजाष्टकमथाष्टकपद्यबद्धं
काशीस्थितेन कविना शिवजीतिनाम्ना ।
हृद्यप्रणीतशतकान्तसुमाञ्जलीव
सानन्दमातृचरणार्पितमाविभातु ॥ १०॥
हृद्य (सुन्दर) प्रणीत शतक के सुमनों की अञ्जलि की भाँति, काशीस्थित कवि शिव जी के द्वारा रचित अष्ट पद्यबद्ध यह आनन्द-जाष्टक आनन्दपूर्वक श्री माता के चरणों में अर्पित होकर सुशोभित हो ॥ १०॥
इति श्रीशिवजी उपाध्यायविरचितं आनन्दाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
Hymn for Mata Anandamayi
Encoded and proofread by Saritha Sangameswaran