श्रीधन्वन्तरिकृपाष्टकम्
समुद्रमन्थनारम्भे सुधाकलशहस्तकम् ।
जातं धन्वन्तरिं देवं भगवन्तं सदा भजे ॥ १॥
समुद्र के मन्थन के प्रारम्भ में अमृत कलश को अपने
कर कमलों में लिए भगवद्रूप श्रीधन्वन्तरि प्रगट हुए उनका सदा सर्वदा भजन करते हैं ॥ १॥
शास्त्रेषु वर्णितं रूपं दिव्यौषधिकराम्बुजम् ।
नित्यशः प्रणमामीशं धन्वन्तरिं कृपाऽर्णवम् ॥ २॥
पुराणादि शास्त्रों में जिनके स्वरूप का परिवर्णन है, और परम दिव्य औषधियों को अपने हस्तारविन्द में धारण किये हुए कृपा के सागर श्रीधन्वन्तरिजी को प्रतिदिन प्रणाम करते हैं ॥ २॥
शङ्खचक्रकराम्भोजं मङ्गलदण्डधारिणम् ।
धन्वन्तरिं हृदा वन्दे प्रचुरगुणसागरम् ॥ ३॥
शङ्ख-चक्र एवं मङ्गल-स्वरूप दण्ड को अपने कर कमलों में धारण किये हुए अनन्त गुण सागर श्रीधन्वन्तरिजी को मनसा-वाचा-कर्मणा अभिवन्दन करते हैं ॥ ३॥
इन्द्रादिसुरवृन्दैश्च गन्धर्वादिप्रपूजितम् ।
असीमकरुणासिन्धुं धन्वन्तरिं समाश्रये ॥ ४॥
इन्द्र-गन्धर्व इत्यादि देवगणों के द्वारा जिनकी अर्चना की जाती है, ऐसे अपार करुणा के सागर श्रीधन्वन्तरिजी का आश्रय लेते हैं ॥ ४॥
वन्दारुवृन्दगेयञ्च ध्येयं सद्भिः सुधीवरैः ।
एवं धन्वन्तरिं वन्दे चारुदर्शनरूपिणम् ॥ ५॥
बन्दीजनों के द्वारा जिनका गान किया जाता हैं एवं सन्त-महात्माओं विद्वज्जनों द्वारा जिनका ध्यान किया जाता है ऐसे दिव्य दर्शनीय जिनका स्वरूप हैं उन श्रीधन्वन्तरि का अभिवन्दन करते हैं ॥ ५॥
सर्वदा सर्वसम्पूज्यं निगमागमवर्णितम् ।
आनन्दसमधिष्ठानं धन्वन्तरिं भजे प्रियम् ॥ ६॥
वेद-पुराणादि शास्त्रों में जिनका वर्णन किया गया है ऐसे सभी द्वारा सर्वप्रकार से जिनकी अर्चना की जाती है आनन्द के एकमात्र जिनका स्वरूप वर्णित है, ऐसे परम श्रेष्ठ श्रीधन्वन्तरिजी का भजन करते हैं ॥ ६॥
ज्ञान-विज्ञानकेन्द्रञ्च जगच्चारुहितास्पदम् ।
औषधिदानसद्धेतुं नौमि धन्वन्तरिं मुदा ॥ ७॥
ज्ञान-विज्ञान के परम ज्ञाता जगत् कल्याण के लिए सर्वदा तत्पर तथा विभिन्न प्रकार की दिव्य ओषधियों को प्रदान करने वाले श्रीधन्वन्तरिजी का प्रसन्नता पूर्वक अभिनमन करते हैं ॥ ७॥
श्रेयस्करं दयासिन्धुं दीनबन्धुं नमाम्यहम् ।
धन्वन्तरिं महाभागं महामङ्गलरूपकम् ॥ ८॥
सबका कल्याण चाहने वाले दया के अपार सागर जो दीनबन्धु हैं, ऐसे महामङ्गल रूप महाभाग श्रीधन्वन्तरिजी का हम नमन करते हैं ॥ ८॥
आरोग्यदानदातारं धन्वन्तरिकृपाष्टकम् ।
राधासर्वेश्वराद्येन शरणान्तेन निर्मितम् ॥ ९॥
रोगादिकों का निवारण करने वाला यह श्रीधन्वन्तरि कृपाष्टकम जिसकी रचना उन्हीं के कृपाजन्य यहाँ प्रस्तुत है ॥ ९॥
इति श्रीधन्वन्तरि कृपाष्टकं सम्पूर्णम् ।
Proofread by Mohan Chettoor