श्रीदत्तमालामन्त्रः

श्रीदत्तमालामन्त्रः

श्री गणेशाय नमः । पार्वत्युवाच - मालामन्त्रं मम ब्रूहि प्रियायस्मादहं तव । ईश्वर उवाच - श‍ृणु देवि प्रवक्ष्यामि मालामन्त्रमनुत्तमम् ॥ ॐ नमो भगवते दत्तात्रेयाय, स्मरणमात्रसन्तुष्टाय, महाभयनिवारणाय महाज्ञानप्रदाय, चिदानन्दात्मने, बालोन्मत्तपिशाचवेषाय, महायोगिने, अवधूताय, अनघाय, अनसूयानन्दवर्धनाय अत्रिपुत्राय, सर्वकामफलप्रदाय, ॐ भवबन्धविमोचनाय, आं असाध्यसाधनाय, ह्रीं सर्वविभूतिदाय, क्रौं असाध्याकर्षणाय, ऐं वाक्प्रदाय, क्लीं जगत्रयवशीकरणाय, सौः सर्वमनःक्षोभणाय, श्रीं महासम्पत्प्रदाय, ग्लौं भूमंडलाधिपत्यप्रदाय, द्रां चिरंजीविने, वषट्वशीकुरु वशीकुरु, वौषट् आकर्षय आकर्षय, हुं विद्वेषय विद्वेषय, फट् उच्चाटय उच्चाटय, ठः ठः स्तंभय स्तंभय, खें खें मारय मारय, नमः सम्पन्नय सम्पन्नय, स्वाहा पोषय पोषय, परमन्त्रपरयन्त्रपरतन्त्राणि छिंधि छिंधि, ग्रहान्निवारय निवारय, व्याधीन् विनाशय विनाशय, दुःखं हर हर, दारिद्र्यं विद्रावय विद्रावय, देहं पोषय पोषय, चित्तं तोषय तोषय, सर्वमन्त्रस्वरूपाय, सर्वयन्त्रस्वरूपाय, सर्वतन्त्रस्वरूपाय, सर्वपल्लवस्वरूपाय, ॐ नमो महासिद्धाय स्वाहा । इति दत्तात्रेयोपनिशदी श्रीदत्तमाला मन्त्रः सम्पूर्णः ।

गुजराथी शब्दार्थसहितः

ऋग्वेदीय ऋचाः । इ॒दं विष्णु॒र्वि च॑क्रमे त्रे॒धा नि द॑धे प॒दम् . समू॑ळ्हमस्य पांसु॒रे ॥ १।०२२।१७ त्रीणि॑ प॒दा वि च॑क्रमे॒ विष्णु॑र्गो॒पा अदा॑भ्यः . अतो॒ धर्मा॑णि धा॒रय॑न् ॥ १।०२२।१८ विष्णोः॒ कर्मा॑णि पश्यत॒ यतो॑ व्र॒तानि॑ पस्प॒शे . इन्द्र॑स्य॒ युज्यः॒ सखा॑ ॥ १।०२२।१९ तद्विष्णोः॑ पर॒मं प॒दं सदा॑ पश्यन्ति सू॒रयः॑ . दि॒वी॑व॒ चक्षु॒रात॑तम् ॥ १।०२२।२० (विष्णुः) विष्णुए (ईद) आ (जगतने) (विचक्रमे) ओळंग्युं. (स:) तेणे (त्रेधा) त्रण प्रकारे (पदम्) पगलां (निदधे) मूक्यां. (अस्य) एनुं (आ पगलुं) (पांसुरे) धूळवाळा स्थळमां (समूढम्) सारी रीते संतायेलुं छे. (ते विष्णुने) (स्वाहा) आहुति होमीए छीए ॥ १ (अदाभ्यः) कोईथी हणाय नहि एवा (गोपाः) रक्षण करनार (विष्णुः) विष्णुए (त्रीणि) त्रण (पदा -पदानि) डगलांमां (आ जगत) (विचक्रमे) ओळंग्युं. (अतः) आनाथी (आ त्रण डगलां वडे) (धर्माणि) (ते) धर्मोने (धारयन) धारण करे छे ॥ २ (दिवि) आकाशमां (आततं) विस्तरेली -पहोळी (यक्षुः) आंख (ईव) जेवा (विष्णोः) विष्णुना (तत्) ते परमं पदं) परम पदने (स्थानने) (सूरयः) ॠषिओ-विद्वानो (सदा) हंमेशां (पश्यन्ति) जुए छे ॥ ३ ॐ नमो भगवते दत्तात्रेयाय = (ओं ) ओंकार स्वरूप, (भगवते) ऐश्वर्य संपन्न, (दत्तात्रेयाय) दत्तात्रेयने (नमः) नमस्कार. स्मरणमात्र -सन्तुष्टाय = स्मरणमात्रथी संतुष्ट थाय एवा. महाभय-निवारणाय = (जन्म मरणरूपी) महाभयने दूर करनार (मोक्ष आपनार) महाज्ञान-प्रदाय = महाज्ञान (तत्त्वमसिनुं अपरोक्ष ज्ञान) आपनार. चिदानंदात्मने = सच्चिदानंदस्वरूपवाळा. बालोन्मत्त-पिशाचवेषाय = (बाल) बाळक (उन्मत्त) पागल (पिशाच-वेषाय) अने पिशाय जेवा वेष वाळा. महायोगिने = महायोगी अवधूताय = अवधूतने (संन्यासीओनी छेल्ली कक्षा पांचमी कक्षा वाळाने) (फुटीचक, बहूदक, हंस अने परमहंसथी पण उपर) अनसूयानंदवर्धनाय = (माता) अनसूयाना (आनंद) आनंदने (वर्धनाय) वधारनार. अत्रिपुत्राय = अत्रि (ऋषि) ना पुत्र. ॐ भवबन्ध-विमोचनाय = ओं स्वरूपना ध्यान द्वारा संसारनां बंधनमांथी छोडावनार. आं असाध्य-साधनाय = आं बीजरूपथी असाध्य वस्तुने साध्य बनावनार. ह्रीं सर्वविभूतिदाय = ह्रीं बीजनी उपासनाथी तमाम प्रकारना वैभवने आपनार. क्रौं असाध्याकर्षणाय = क्रौं बीज द्वारा असाध्य वस्तुने खेंची लावनार. ऐं वाक्प्रदाय = एं बीजथी वाणी (कवित्व शक्ति) आपनार. क्लीं जगत्त्रयवशीकरणाय = क्लीं बीज द्वारा त्रणेय जगतने वश करनार. सौः सर्वमनःक्षोभणाय = सौ बीज द्वारा बधाना मनमां क्षोभ पेदा करनार. श्रीं महासम्पत्प्रदाय = श्री बीजथी मोटी संपत्ति आपनार. ग्लौं भूमण्डलाधिपत्य-प्रदाय = ग्लौं बीज द्वारा समस्त भूमंडळनुं आधिपत्य आपनार. द्रां चिरंजीविने = द्रां बीज जापथी दीर्घ आयुष्य आपनार. वषट् वशीकुरु वशीकरु = वषट् बीजथी बधाने मारा वशमां लावो, वशमां लावो. वौषट् आकर्षय आकर्षय = वौषट् बीजथी आकर्षो, आकर्षो. हुं विद्वेषय विद्वेषय = हुं बीजथी परस्पर द्वेष करावो, द्वेष करावो. फट् उच्चाटय उच्चाटय = फट् बीजथी उच्चाटन (स्थान भ्रष्ट) करो, उच्चाटन करो. ठः ठः स्तम्भय स्तम्भय = ठं ठंः बीजथी स्तंभन करो, स्तंभन करो. खें खें मारय मारय = खें खें बीजथी (बधाने) मारो, मारो. नमः सम्पन्नय सम्पन्नय = नमः बीजथी (मारां) कार्योने सारी रीते संपन्न करो, संपन्न करो. स्वाहा पोषय पोषय = स्वाहा बीजथी पोषण अर्पो, पोषण अर्पो. परमन्त्र-परयन्त्र-परतन्त्राणि = शत्रुए प्रयोजेल मंत्र, यंत्र अने तंत्रने च्छिन्धि च्छिन्धि = छेदी नांखो, छेदी नांखो। (निष्फळ बनावो।) ग्रहान् निवारय निवारय = ग्रहपीडा दूर करो, दूर करो. व्याधीन् विनाशय विनाशय = रोगोनो नाश करो, नाश करो. दुःखं हर हर = दुःखने दूर करो, दूर करो. दारिद्रयं विद्रावय विद्रावय = गरीबाईने भगाडी मूको, भगाडी मूको. देहं पोषय पोषय = देहनुं पोषण करो, पोषण करो. चित्तं तोषय तोषय = चित्तने संतुष्ट करो, संतुष्ट करो. सर्वमन्त्रस्वरूपाय सर्वयन्त्रस्वरूपायसर्वमंत्र, यंत्र, तंत्र अने पल्लव सर्वतन्त्रस्वरूपायस्वरूपवाळा महासिद्ध एवा आपने नमस्कार सर्वपल्लवस्वरूपाय ॐ नमो महासिद्धाय स्वाहा For the Gujarati meaning, read the text in Gujarati fonts. It can be then translated using Google Translate. From Dattatreya upanishad
% Text title            : Shri Dattamala Mantra with Gujarati meaning by Ranga Avadhuta Swami
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% Transliterated by     : Mandar Kulkarni
% Proofread by          : Mandar Kulkarni
% Translated by         : Shri Ranga Avadhuta Swami
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% Latest update         : July 10, 2024
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