कीर्तनानि सदाशिवब्रह्मेन्द्रविरचितम्

कीर्तनानि सदाशिवब्रह्मेन्द्रविरचितम्

पिबरे राम रसं

रागं-- यमुनाकल्याणि ताळं-- आदि पल्लवि पिबरे रामरसं रसने पिबरे राम रसं चरणं दूरीकृतपातकसंसर्गं पूरितनानाविधफलवर्गम् ॥ १॥ जननमरणभयशोकविदूरं सकलशास्त्रनिगमागमसारम् ॥ २॥ परिपालित सरसिज गर्भाण्डं परमपवित्रीकृतपाषाण्डम् ॥ ३॥ शुद्धपरमहंसाश्रितगीतं शुकशौनककौशिकमुखपीतम् ॥ ४॥

खेलति मम हृदये

रागं-- अठाणा ताळं-- आदि पल्लवि खेलति मम हृदये रामः खेलति मम हृदये अनुपल्लवि मोहमहार्णवतारककारी रागद्वेषमुखासुरमारी चरणं शान्तिविदेहसुतासहचारी दहरायोध्यानगरविहारी परमहंससाम्राज्योद्धारी सत्यज्ञानानन्दशरीरी

चेतः श्रीरामं

रागं-- सुरटि ताळं-- आदि पल्लवि चेतः श्री रामं चिन्तय जीमूत श्यामं चरणं अंगीकृततुंबुरुसंगीतं हनुमद्गवयगवाक्षसमेतम् ॥ १॥ नवरत्नस्थापितकोटीरं नवतुलसीदळकल्पितहारम् ॥ २॥ परमहंसहृद्गोपुरदीपं चरणदलितमुनितरुणीशापम् ॥ ३॥

भज रे रघुवीरं

रागं-- कल्याणि ताळं-- मिश्र चापु पल्लवि भज रे रघुवीरं मानस भज रे बहुधीरं अनुपल्लवि अंबुदडिंभविडंबनगात्रं अंबुदवाहननन्दनदात्रं चरणं कुशिकसुतार्पितकार्मुकवेदं वशिहृदयांबुजभास्करपादं कुण्डलमण्डनमण्डितकर्णं कुण्डलिमञ्जकमद्भुतवर्णम् ॥ १॥ दण्डितसुन्दसुतादिकवीरं मण्डितमनुकुलमाश्रयशौरिं परमहंसमखिलागमवेद्यं परमवेदमकुटीप्रतिपाद्यम् ॥ २॥

भज रे गोपालं

रागं-- हिन्दोळं ताळं -- आदि पल्लवि भज रे गोपालं मानस भज रे गोपालं चरणं भज गोपालं भजितकुचेलं त्रिजगन्मूलं दितिसुतकालम् ॥ १॥ आगमसारं योगविचारं भोगशरीरं भुवनाधारम् ॥ २॥ कदनकठोरं कलुष्विदूरं मदनकुमारं मधुसंहारम् ॥ ३॥ नतमन्दारं नन्दकिशोरं हतचाणूरं हंसविहारम् ॥ ४॥

स्मर वारं वारं

रागं-- कापि ताळं-- आदि पल्लवि स्मर वारं वारं चेतः स्मर नन्दकुमारं चरणं घोषकुटीरपयोघृतचोरं गोकुलवृन्दावनसञ्चारम् ॥ १॥ वेणुरवामृतपानकठोरं विश्वस्थितिलयहेतुविहारम् ॥ २॥ परमहंसहृत्पञ्चरकीरं पटुतरधेनुकबकसंहारम् ॥ ३॥

ब्रूहि मुकुन्देति

रागं-- कुरञ्चि ताळं-- आदि पल्लवि ब्रूहि मुकुन्देति रसने ब्रूहि मुकुन्देति चरणं केशवमाधवगोविन्देति कृष्णानन्दसदानन्देति ॥ १॥ राधारमणहरेरामेति राजीवाक्षघनश्यामेति ॥ २॥ गरुडगमननन्दकहस्तेति खण्डितदशकन्धरमस्तेति ॥ ३॥ अक्रूरप्रियचक्रधरेति हंसनिरञ्जनकंसहरेति ॥ ४॥

मानस सञ्चर रे

रागं-- साम ताळं-- आदि पल्लवि मानस सञ्चर रे ब्रह्मणि मानस सञ्चर रे अनुपल्लवि मदशिखिपिञ्छालङ्कृतचिकुरे महनीयकपोलविजितमुकरे चरणं श्रीरमणीकुचदुर्गविहारे सेवकजनमन्दिरमन्दारे ॥ १॥ परमहंसमुखचन्द्रचकोरे परिपूरितमुरळीरवधारे ॥ २॥

गायति वनमाली

रागं-- मिश्र कापि ताळं-- आदि पल्लवि गायति वनमाली मधुरं गायति वनमाली चरणं पुष्पसुगन्धिसुमलयसमीरे मुनिजनसेवितयमुनातीरे ॥ १॥ कूजितशुकपिकमुखखगकुञ्जे कुटिलालकबहुनीरदपुञ्जे ॥ २॥ तुलसीदामविभूषणहारी जलजभवस्तुतसद्गुणशौरी ॥ ३॥ परमहंसहृदयोत्सवकारी परिपूरितमुरळीरवधारी ॥ ४॥

क्रीडति वनमाली

रागं-- सिन्धुभैरवि ताळं-- आदि पल्लवि क्रीडति वनमाली गोष्ठे क्रीडति वनमाली चरणं प्रह्ळादपराशरपरिपाली पवनात्मजजांबवदनुकूली ॥ १॥ पद्माकुचपरिरंभणशाली पटुशरशासितमालिसुमाली ॥ २॥ परमहंसवरकुसुमसुमाली प्रणवपयोरुहगर्भकपाली ॥ ३॥

भज रे यदुनाथं

रागं-- पीलू ताळं-- आदि पल्लवि भज रे यदुनाथं मानस भज रे यदुनाथं चरणं गोपवधूपरिरंभणलोलं गोपकिशोरकमद्भुतलीलम् ॥ १॥ कपटांगीकृतमानुषवेषं कपटनाट्यकृतकृत्स्नसुवेषम् ॥ २॥ परमहंसहृत्तत्वस्वरूपं प्रणवपयोधरप्रणवस्वरूपम् ॥ ३॥

प्रतिवारं वारं

रागं-- कांभोजि ताळं-- मिश्रचापु पल्लवि प्रतिवारं वारं मानस भज रे रघुवीरं अनुपल्लवि कालांभोधरकन्तशरीरं कौशिकशुकशौनकपरिवारं चरणं कौसल्यादशरथसुकुमारं कलिकल्मषभयगहनकुठारम् ॥ १॥ परमहंसहृत्पद्मविहारं प्रतिहतदशमुखबलविस्तारम् ॥ २॥

खेलति ब्रह्माण्डे

रागं-- सिन्धुभैरवि ताळं-- आदि पल्लवि खेलति ब्रह्माण्डे भगवान् खेलति ब्रह्माण्डे चरणं हंसः सोऽहं हंसः सोऽहं हंसः सोऽहं सोऽहमिति ॥ १॥ परमात्मोऽहं परिपूर्णोऽहं ब्रह्मैवाहमहं ब्रह्मेति ॥ २॥ त्वक्चक्षुः श्रुतिजिह्वाघ्राणे पञ्चविधप्राणोपस्थाने ॥ ३॥ शब्दस्पर्शरसादिकमात्रे सात्विकराजसतामसमित्रे ॥ ४॥ बुद्धिमनश्चित्ताहङ्कारे भूजलतेजोगगनसमीरे ॥ ५॥ परमहंसरूपेण विहर्ता ब्रह्मविष्णुरुद्रादिककर्ता ॥ ६॥

स्थिरता नहि नहि रे

रागं-- पुन्नागवराळि ताळं-- आदि पल्लवि स्थिरता नहि नहि रे मानस स्थिरता नहि नहि रे चरणं तापत्रयसागरमग्नानां दर्पाहङ्कारविलग्नानाम् ॥ १॥ विषयपाशवेष्टितचितानां विपरीतज्ञानविमतानाम् ॥ २॥ परमहंसयोगविरुद्धानां बहुचञ्चलतरसुखसिद्धानाम् ॥ ३॥

नहि रे नहि रे शङ्का काचित्

रागं-- मोहनं ताळं-- आदि पल्लवि नहि रे नहि रे शङ्का काचित् नहि रे नहि रे शङ्का चरणं अजमक्षरमद्वैतमनन्तं ध्यायामि ब्रह्म परं शान्तम् ॥ १॥ ये त्यजन्ति बहुतरपरितापं ये भजन्ति सच्चित्सुखरूपम् ॥ २॥ परमहंसगुरुभणितं गीतं ये पठन्ति निगमार्थसमेतम् ॥ ३॥

चिन्ता नास्ति किल

रागं-- नवरोज् ताळं-- आदि पल्लवि चिन्ता नास्ति किल तेषां चिन्ता नास्ति किल चरणं समदमकरुणासम्पूर्णानां साधुसमागमसङ्कीर्णानाम् ॥ १॥ कालत्रयजितकन्दर्पाणां खण्डितसर्वेन्द्रियदर्पाणाम् ॥ २॥ परमहंसगुरुपदचित्तानां ब्रह्मानन्दामृतमत्तानाम् ॥ ३॥

ब्रह्मैवाहं किल

रागं-- नाथनामक्रिया ताळं-- आदि पल्लवि ब्रह्मैवाहं किल सद्गुरुकृपया ब्रह्मैवाहं किल चरणं ब्रह्मैवाहं किल गुरुकृपया चिन्मयबोधानन्दघनं तत् ॥ १॥ श्रुत्यन्तैकनिरूपितमतुलं सत्यसुखांबुधिसमरसमनघम् ॥ २॥ कर्माकर्मविकर्मविदूरं निर्मलसंविदखण्डमपारम् ॥ ३॥ निरवधिसत्तास्पदपदमजरं निरुपममहिमनि निहितमनीहम् ॥ ४॥ आशापाशविनाशनचतुरं कोशपञ्चकातीतमनन्तम् ॥ ५॥ कारणकारणमेकमनेकं कालकालकलिदोषविहीनम् ॥ ६॥ अप्रमेयपदमखिलाधारं निष्प्ररपञ्चनिजनिष्क्रियरूपम् ॥ ७॥ स्वप्रकाशशिवमद्वयमभयं निष् प्रतर्क्यमनपायमकायम् ॥ ८॥

सर्वं ब्रह्ममयं

रागं-- चेञ्चुरुट्टि ताळं-- आदि पल्लवि सर्वं ब्रह्ममयं रे रे सर्वं ब्रह्ममयं चरणं किं वचनीयं किमवचनीयं किं रचनीयं किमरचनीयम् ॥ १॥ किं पठनीयं किमपठनीयं किं भजनीयं किमभजनीयम् ॥ २॥ किं बोद्धव्यं किमबोद्धव्यं किं भोक्तव्यं किमभोक्तव्यम् ॥ ३॥ सर्वत्र सदा हंसध्यानं कर्तव्यं भो मुक्तिनिदानम् ॥ ४॥

तद्वज्जीवत्वं ब्रह्मणि

रागं-- कीरवाणि ताळं-- आदि पल्लवि तद्वज्जीवत्वं ब्रह्मणि तद्वज्जीवत्वं अनुपल्लवि यद्वत् तोये चन्द्रद्वित्वं यद्वन्मुकुरे प्रतिबिंबत्वं चरणं स्थाणौ यद्वन्नररूपत्वं भानुकरे यद्वत् तोयत्वम् ॥ १॥ शुक्तौ यद्वत् रजतमयत्वं रज्जौ यद्वत् फणिदेहत्वम् ॥ २॥ परमहंसगुरुणाऽद्वयविद्या भणति धिक्कृतमायाविद्या ॥ ३॥

पूर्ण बोधोहं

रागं-- पूर्विकल्याणि ताळं-- आदि पल्लवि पूर्णबोधोऽहं सदानन्द पूर्णबोधोऽहं अनुपल्लवि वर्णाश्रमाचारकर्मादिदूरोऽहं स्वर्णवदखिलविकारगतोऽहं चरणं प्रत्यगात्माऽहं प्रविततसत्यघनोऽहं श्रुत्यन्तशतकोटिप्रकटितब्रह्माहं नित्योऽहमभयोऽहमद्वितीयोऽहम् ॥ १॥ साक्षिमात्रोऽहं प्रगलितपक्षपातोऽहं मोक्षस्वरूपोऽहमोङ्कारगम्योऽहं सूक्ष्मोऽहमनघोऽहमद्भुतात्माऽहम् ॥ २॥ स्वप्रकाशोऽहं विभुरहं निष् प्रपञ्चोऽहं अप्रमेयोऽहमचलोऽहमकलोऽहं निष्प्रतर्क्याखण्डैकरसोऽहम् ॥ ३॥ अजनिर्मितोऽहं बुधजनभजनीयोऽहं अजरोऽहममरोऽहममृतस्वरूपोऽहं निजपूर्णमहिमनि निहितमहितोऽहम् ॥ ४॥ निरवयवोऽहं निरुपमनिष्कळङ्कोऽहं परमशिवेन्द्र श्रीगुरुसोमसमुदित - निरवधिनिर्वाणसुखसागरोऽहम् ॥ ५॥

आनन्दपूर्ण बोधोहं (१)

रागं-- मध्यमावति ताळं -- खण्ड चापु (झम्प) पल्लवि आनन्दपूर्णबोधोऽहं सतत - मानन्दपूर्णबोधोऽहजरोहं चरणं प्रत्यगद्वैतसारोऽहं सकल श्रुत्यन्ततन्त्रविदितोऽहं अमृतोऽहं अत्यनन्तरभावितोऽहं विदित - नित्यनिष्कलरूपनिर्गुणपदोऽहम् ॥ १॥ साक्षिचिन्मात्रगात्रोऽहं परम - मोक्षसाम्राज्याधिपोऽहममृतोऽहं पक्षपातातिदूरोऽहं अधिक - सूक्ष्मोऽहमनवधिकसुखसागरोऽहम् ॥ २॥ स्वप्रकाशैकसारोऽहं सदह - मप्रपञ्चात्मभावोऽहमभयोऽहं निष्प्रतर्क्योऽहं अमरोऽहं चिदह - मप्रमेयाख्यमूर्तिरेवाहम् ॥ ३॥

आनन्दपूर्णबोधोहं (२)

रागं-- शङ्कराभरणं ताळं -- मिश्र चापु पल्लवि आनन्दपूर्णबोधोऽहं सच्चि - दानन्दपूर्णबोधोऽहं शिवोऽहं चरणं सर्वात्मचरोऽहं परि - निर्वाणनिर्गुणनिखिलात्मकोऽहं गीर्वाणवर्यानतोऽहं काम - गर्वनिर्वापणधीरतरोऽहम् ॥ १॥ सत्यस्वरूपापरोऽहं वर - श्रुत्यन्तबोधितसुखसागरोऽहं प्रत्यगभिन्नपरोऽहं शुद्ध - मन्तरहितमायातीतोऽहम् ॥ २॥ अवबोधरससागरोऽहं व्योम - पवनादिपञ्चभूतातिदूरोऽहं कविवरसंसेव्योऽहं घोर - भवसिन्धुतारकपरमसूक्ष्मोऽहम् ॥ ३॥ बाधितगुणकलनोऽहं बुद्ध - शोधितसमरसपरमात्माऽहं साधनजातातीतोऽहं निरु - पाधिकनिःसीमभूमानन्दोऽहम् ॥ ४॥ निरवयवोऽहमजोऽहं निरुपममहिमनि निहितमहितोऽहं निरवधिसत्वघनोऽहं धीर - परमशिवेन्द्र श्रीगुरुबोधितोऽहम् ॥ ५॥

कृष्ण पाहि

रागं-- मध्यमावति ताळं-- आदि पल्लवि कृष्ण पाहि जितकृशानो पाहि कृष्ण वृष्णिकुलदीप विष्णो पाहि चरणं अत्यन्तसुकुमार साधुशील वर श्रुत्यन्तखेलन गोपाल लील ॥ १॥ वृन्दारक मुनिवृन्दवन्द्यपाद वृन्दावनचर वेणुरसविनोद ॥ २॥ सत्यभामा कुचकुङ्कुमाङ्कितांग सत्यकाम सनकनुत पाद गंग ॥ ३॥ परमहंसमानस विलास हंस परम पावन नाम भावित हंस ॥ ४॥

तुंग तरंगे गंगे

रागं-- कुन्तळवराळि ताळं-- आदि पल्लवि तुंगतरंगे गंगे जय तुंगतरंगे गंगे अनुपल्लवि कमलभवाण्डकरण्डपवित्रे बहुविधबन्धच्छेदलवित्रे चरणं दूरीकृतजनपापसमूहे पूरितकच्छपगुच्छग्राहे परमहंसगुरुभणितचरित्रे ब्रह्मविष्णुशङ्करनुतिपात्रे Encoded and proofread by P. P. Narayanaswami swami at mun.ca
% Text title            : Kirtanas composed by Sadashivabrahmendra
% File name             : kIrtanAnisadAshivabrahmendra.itx
% itxtitle              : kIrtanAni (sadAshivabrahmendravirachitam)
% engtitle              : Kirtanas composed by Sadashivabrahmendra
% Category              : deities_misc, sadAshivabrahmendra, kRitI
% Location              : doc_deities_misc
% Sublocation           : deities_misc
% Author                : Sadashivabrahmendra
% Language              : Sanskrit
% Subject               : philosophy/hinduism/religion
% Transliterated by     : P. P. Narayanaswami swami at mun.ca
% Proofread by          : P. P. Narayanaswami swami at mun.ca
% Indexextra            : (Meaning, blog)
% Latest update         : June 18, 2016
% Send corrections to   : (sanskrit at cheerful dot c om)
% Site access           : https://sanskritdocuments.org

This text is prepared by volunteers and is to be used for personal study and research. The file is not to be copied or reposted for promotion of any website or individuals or for commercial purpose without permission. Please help to maintain respect for volunteer spirit.

BACK TO TOP
sanskritdocuments.org