विश्वकर्माष्टोत्तरशतनामावलिः
विश्वकर्मा नामसङ्ग्रह ।
१. अधिकर्मिक - अन्यों के द्वारा किए हुए कार्यों का निरीक्षण करने वाला ।
२. अतुल - जिसकी किसी से तुलना न हो सके ।
३. अज - अर्थात् जिसका जन्म न हो । जैसे ब्रह्म, ब्रह्मा, शिव जन्म-मरण से रहित ।
४. आनन्त्य - जो अनन्त और असीम हो ।
५. अर्चनीय - जो सभी के द्वारा पूजा के योग्य हो, जो सर्वाधिक सम्माननीय हो ।
६. अभिक्षक - सुरक्षा में सदैव तत्पर रहने वाला ।
७. अधिष्ठाता - निरीक्षक, स्वामी तथा वह पुरुष जिसमें दूसरों को वश में रखने की क्षमता हो ।
८. अधिनायक - सबको अपने अधीन रखने में समर्थ ।
९. अभिनन्द्य - प्रशंसा या वन्दना करने योग्य ।
१०. आदिकर - सृष्टि को आरम्भ करने वाला, सृष्टिकता ।
११. अधीश्वर - नेता, स्वामी, प्रभाव वाला विशिष्ट पुरुष ।
१२. अभिधेय - सर्वसार, निष्कर्ष, अविकल अर्थ याला ।
१३. अभ्युदयकारी - समृद्धि एवं वैभव से सम्पन्न करने वाला ।
१४. आध्ंयकर - अत्यन्त सम्पत्ति प्राप्त करने वाला ।
१५. अमन्द - जो अपने कार्य में सुस्त न हो । क्रियाशील तथा कार्यकुशल हो ।
१६. आराधनीय - जो सब प्रकार से आराधना और पूजा करने के योग्य हो ।
१७. आनन्दन - सुखरूप, उपकारी, हितैषी । जो अपने गुण, कर्म, प्रभाव से सभी को प्रसन्न करे ।
१८. आयःशूलिक - कार्य-कुशल, चतुर तथा अपने उद्देश्य की पूर्ति में निरन्तर तत्पर रहने वाला ।
१९. इरेश - विष्णु, वरुण, गणेश्वर, अधीश्वर आदि ।
२०. ईश्वर - सर्व वैभवों से सम्पन्न सभी का तथा सब प्रकार से समर्थ ।
२१. ईक्षक - सवको देखने वाला या समदर्शी पुरुष ।
२२. उद्यमी - सद प्रकार के उद्यमों में चतुर, परिश्रम से कभी पीछे नहीं हटने वाला, निरालस्य ।
२३. उत्पादक - उत्पन्न करने वाला, कार्यों को पूर्ण करने वाला ।
२४. उच्चण्ड - स्फूर्तिवान्, अत्यन्त शीघ्रतापूर्वक कार्यों को सम्पन्न करने वाला ।
२५. उत्तम श्लोक - आदर्श पुरुष, प्रतिष्ठित, सबसे बडा एवं यशस्वी ।
२६. एकान्त - एक ही वस्तु को लक्ष्य में रखने वाला ।
२७. एकाक्षर - प्रणवस्वरूप परमात्मा, एक ही ऐसा जो कभी क्षरण को प्राप्त न हो ।
२८. ऐश्वर्यवन्त - ऐश्वर्यशाली, वैभवशाली ।
२९. ऐकात्म्य - परमात्मा तुल्य, परमात्मास्वरूप ।
३०. औपमिक - तुलना के योग्य ।
३१. ओजस्वी - ओज से सम्पत्र, अत्यन्त शक्तिशाली ।
३२. क - यह व्यापक शब्द है । इसके अनेक अर्थ हैं, रचयिता, ब्रह्मा, विष्णु विश्वकर्मा, वायु, अग्नि कामदेव, यम, सूर्य, जीवात्मा आदि ।
३३. कल्याणक - शुभदायक, समृद्धिशाली, मङ्गलकारी ।
३४. कष्टक विशोधक - सभी बाधाओं को दूर करने वाला ।
३५. काला - काल का ज्ञाता ।
३६. कार्मुक - सभी कर्मों को सुचारू रूप से करने वाला ।
३७. कालाध्यक्ष - काल को अपनी इच्छानुसार चलाने वाला ।
३८. कीर्तिकीय - जो सुन्दर कीर्ति वाला हो ।
३९. कुशाग्रबुद्धि - जो अत्यन्त बुद्धिमान हो ।
४०. कृतायास - जो सभी प्रकार के प्रयलों में सफल हो ।
४१. कृताभरण - सब प्रकार से सुसज्जित, विभूषित ।
४२. कृतकार्य - जो सब कार्यों को पूर्ण करने में समर्थ हो ।
४३. कृतागम - योग्य कार्यकुशल, परमात्मा ।
४४. कृतहस्त - समस्त विधाओं और कलाओं में निपुण हो ।
४५. कृतधी - स्थिर बुद्धि वाला, निश्चय करें उसे पूरा करे ।
४६. कृत सङ्कल्प - जो विचारे उसे पूरा अवश्य करे ।
४७. कृतप्रतिज्ञ - जो प्रतिज्ञा कर ले, उसको पूर्ण किये बिना न रहे ।
४८. कृतलक्षण - जो अपने गुणों के कारण प्रसिद्धि प्राप्त हो ।
४९. कृपालु - उदार हृदय वाला, सभी पर कृपा करने वाला ।
५०. कृती - सभी कामों को करने में दक्ष ।
५१. कृत्नु - सब प्रकार से योग्य ।
५२. केलिमुख - कार्यों को क्रीड् के समान प्रसन्नतापूर्वक करने वाला ।
५३. केतक - नगर, भवन आदि का निर्माण करने वाला, सङ्कल्पमय ।
५४. कौतुकप्रिय - विश्व-निर्माण के कार्य को प्रसन्नतापूर्वक करने वाला ।
५५. क्रतुपति - विश्व रचना को पूर्ण करने में समर्थ ।
५६. क्रतुप्रिय - सर्गरूप यज्ञ करने में प्रसन्न होने वाला ।
५७. क्रियापट - विश्व की समस्त क्रियाओं में सब प्रकार से निपुण ।
५८. क्वाचित्क - असामान्य, विशिष्ट, दुर्लभ, प्रयत्नों से कभी-कभी मिलने वाला ।
५९. क्षिप्रकारी - शीघ्रता से कार्य करने वाला। स्फूर्तिवान, शीघ्रगामी ।
६०. क्षिन्ता - धैर्यवान, सहनशील, साहसी, शान्त स्वभाव वाला ।
६१. ख्यातिप्राप्त - अत्यन्त प्रसिद्ध, कीर्तिमान स्थापित करने वाला, प्रशंसनीय ।
६२. गमनीय - समझने के योग्य जिसका बोध किया जा सके ।
६३. गणितज्ञ - सब प्रकार के गणितों का ज्ञान रखने वाला ।
६४. गण्डकघ्न - सब प्रकार की बाधाओं व आड्चनों को दूर करने वाला ।
६५. गुणी - सर्वगुणों से सम्पन्न ।
६६. चक्री - कुम्हार, राजा या संराट, मदारी के तुल्य नचाने वाला ।
६७. चक्रवर्ती - सभी का स्वामी, अधीश्वर, सर्वोच्च शासक शासन समर्य ।
६८. चण्ड विक्रम - अत्यन्त पराक्रमी ।
६९. चण्ड - स्फूर्तिवान, कर्मठ ।
७०. चञ्चुर - सब प्रकार से कार्य कुशल ।
७१. चारक - चालाक, नायक, नेता ।
७२. चिन्मय - विशुद्ध ज्ञानस्वरूप ईश्वर ।
७३. चित्रकार - विश्व-दृश्य का ईश्वर ।
७४. छत्वरक - उद्यान, भवनादि का निर्माता व विशेषज्ञ ।
७५. जनप्रिय - प्राणियों का आश्रय स्थल ।
७६. जगदीश्वर - संसार का स्वामी ।
७७. जगत्सष्टा - विश्व का रचयिता ।
७८. जागरूकय - स्वकार्य के प्रति सदैव सतर्क रहने वाला ।
७९. जिष्णु - विजयी, परमात्मा परब्रह्म, विष्णु, इन्द्र, सूर्य, विश्वकर्मा आदि देवता ।
८०. तक्ष्णिकर्मी - प्रतिदान या प्रतिफल की आशा का त्याग करने वाला ।
८१. तक्षक - सूत्रधार, देवताओं का कारीगर ।
८२. तितिक्षु - सहनशील, दयालु ।
८३. त्यागी - प्रतिदान या प्रतिफल की आशा का त्याग करने वाला ।
८४. त्वष्टा (त्वष्ट्र) - तीनों लोक की रचना में समर्थ, विश्वकर्मा ।
८५. त्रिकालविद् - तीनों काल (भूत, भविष्यत्, वर्तमान)का ज्ञाता ।
८६. दाता - सब कुछ देने में समर्थ, दानशील स्वभाव वाला ।
८७. दक्ष - तत्काल कार्य करने में कुशल, समर्थ एवं सशक्त ।
८८. विष्णु - दाता ।
८९. दिव्य - अलौकिक, चमकदार, सुन्दर मनोहर ।
९०. दृप्त - तेजोमय, प्रकाशवान् ।
९१. देवशिल्पी - देवताओं का रचयिता विश्वकर्मा ।
९२. देववर्धकि - देवताओं के लिए श्रेष्ठ ।
९३. घृतात्मा - सुदृढ़् सङ्कल्प वाला, प्राणपालक ।
९४. नमस्य - सम्माननीय, प्रार्थनीय अथवा वन्दनीय ।
९५. नन्दक - सुख प्रदान करने वाला ।
९६. निरज - कार्य करने में प्रसन्न रहने वाला ।
९७. नित्य - सदैव विद्यमान रहने वाला ।
९८. निपुण - अपने कार्य में कुशल ।
९९. नियामक - सब पर शासन करने वाला ।
१००. परावर - दूर भी, पास भी सर्वत्र निवास करने वाला ।
१०१. पटु - कार्य में कुशल ।
१०२. पृथु - महान, विस्तृत, कार्य-कुशल, चतुर, दक्ष ।
१०३. पारङ्गत - जो किसी विधा विशेष का पूर्ण ज्ञाता हो ।
१०४. विश्वकर्मा - समस्त लोकों का निर्माण करने वाला ।
१०५. ब्रह्मवत् - ब्रह्म के समान शक्तिशाली ।
१०६. विश्वात्मा - जो समस्त जीवों में आत्मारूप हो ।
१०७. सृष्टिकर्ता - सृष्टि को रचने वाला ।
१०८. सर्वेश्वर - सब देवताओं में सर्वमान्य देवता ।
इति