भद्रकालीस्तुतिः

भद्रकालीस्तुतिः

ब्रह्मविष्णु ऊचतुः - नमामि त्वां विश्वकर्त्रीं परेशीं नित्यामाद्यां सत्यविज्ञानरूपाम् । वाचातीतां निर्गुणां चातिसूक्ष्मां ज्ञानातीतां शुद्धविज्ञानगम्याम् ॥ १॥ पूर्णां शुद्धां विश्वरूपां सुरूपां देवीं वन्द्यां विश्ववन्द्यामपि त्वाम् । सर्वान्तःस्थामुत्तमस्थानसंस्था- मीडे कालीं विश्वसम्पालयित्रीम् ॥ २॥ मायातीतां मायिनीं वापि मायां भीमां श्यामां भीमनेत्रां सुरेशीम् । विद्यां सिद्धां सर्वभूताशयस्था- मीडे कालीं विश्वसंहारकर्त्रीम् ॥ ३॥ नो ते रूपं वेत्ति शीलं न धाम नो वा ध्यानं नापि मन्त्रं महेशि । सत्तारूपे त्वां प्रपद्ये शरण्ये विश्वाराध्ये सर्वलोकैकहेतुम् ॥ ४॥ द्यौस्ते शीर्षं नाभिदेशो नभश्च चक्षूंषि ते चन्द्रसूर्यानलास्ते । उन्मेषास्ते सुप्रबोधो दिवा च रात्रिर्मातश्चक्षुषोस्ते निमेषम् ॥ ५॥ वाक्यं देवा भूमिरेषा नितम्बं पादौ गुल्फं जानुजङ्घस्त्वधस्ते । प्रीतिर्धर्मोऽधर्मकार्यं हि कोपः सृष्टिर्बोधः संहृतिस्ते तु निद्रा ॥ ६॥ अग्निर्जिह्वा ब्राह्मणास्ते मुखाब्जं सन्ध्ये द्वे ते भ्रूयुगं विश्वमूर्तिः । श्वासो वायुर्बाहवो लोकपालाः क्रीडा सृष्टिः संस्थितिः संहृतिस्ते ॥ ७॥ एवम्भूतां देवि विश्वात्मिकां त्वां कालीं वन्दे ब्रह्मविद्यास्वरूपाम् । मातः पूर्णे ब्रह्मविज्ञानगम्ये दुर्गेऽपारे साररूपे प्रसीद ॥ ८॥ इति श्रीमहाभागवते महापुराणे ब्रह्मविष्णुकृता भद्रकालीस्तुतिः सम्पूर्णा । हिन्दी भावार्थ - ब्रह्मा और विष्णु बोले--सर्वसृष्टिकारिणी, परमेश्वरी, सत्यविज्ञान- रूपा, नित्या, आद्याशक्ति ! आपको हम प्रणाम करते हैं । आप वाणीसे परे हैं, निर्गुण और अति सूक्ष्म हैं, ज्ञानसे परे और शुद्ध विज्ञान से प्राप्य हैं ॥ १॥ आप पूर्णा, शुद्धा, विश्वरूपा, सुरूपा वन्दनीया तथा विश्ववन्द्या हैं । आप सबके अन्तःकरणमें वास करती हैं एवं सारे संसारका पालन करती हैं । दिव्य स्थाननिवासिनी आप भगवती महाकालीको हमारा प्रणाम है ॥ २॥ महामायास्वरूपा आप मायामयी तथा मायासे अतीत हैं, आप भीषण, श्यामवर्णवाली, भयंकर नेत्रोंवाली परमेश्वरी हैं । आप सिद्धियों से सम्पन्न, विद्यास्वरूपा, समस्त प्राणियोंके हृदयप्रदेशमें निवास करनेवाली तथा सृष्टिका संहार करनेवाली हैं, आप महाकाली को हमारा नमस्कार है ॥ ३॥ महेश्वरी ! हम आपके रूप, शील, दिव्य धाम, ध्यान अथवा मन्त्रको नहीं जानते । शरण्ये ! विश्वाराध्ये! हम सारी सृष्टिकी कारणभूता और सत्तास्वरूपा आपकी शरण में हैं ॥ ४॥ मातः ! द्युलोक आपक सिर है, नभोमण्डल आपका नाभिप्रदेश है । चन्द्र, सूर्य और अग्नि आपके त्रिनेत्र हैं, आपका जगना ही सृष्टि के लिये दिन और जागरण का हेतु है और आपका आँखें मूँद लेना ही सृष्टिके लिये रात्रि है ॥ ५॥ देवता आपकी वाणि हैं, यह पृथ्वी आपका नितम्बप्रदेश तथा पाताल आदि नीचे के भाग आपके जङ्घा, जानु, गुल्फ और चरण हैं । धर्म आपकी प्रसन्नता और अधर्मकार्य आपके कोपके लिये है । आपका जागारण ही इस संसारकी सृष्टि है और आपकी निद्रा ही इसका प्रलय है ॥ ६॥ अग्नि आपकी जिह्वा है, ब्राह्मण आपके मुखकमल हैं । दोनों सन्ध्याएँ आपकी दोनों भ्रूकुटियाँ हैं, आप विश्वरूपा हैं, वायु आपका श्वास है, लोकपाल आपके बाहु हैं और इस संसारकी सृष्टि, स्थिति तथा संहार आपकी लीला है ॥ ७॥ पूर्णे! ऐसी सर्वस्वरूपा आप महाकालीको हमारा प्रणाम है । आप ब्रह्मविद्यास्वरूपा हैं । ब्रह्मविज्ञानसे ही आपकी प्राप्ति सम्भव है । सर्वसाररूपा, अनन्तस्वरूपिणी माता दुर्गे! आप हमपर प्रसन्न होम् ॥ ८॥ इस प्रकार श्रीमहाभागवतपुराण के अन्तर्गत ब्रह्मा और विष्णुद्वारा की गयी भद्रकालीस्तुति सम्पूर्ण हुई । Proofread by Aruna Narayanan narayanan.aruna at gmail.com
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% Language              : Sanskrit
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% Proofread by          : Aruna Narayanan narayanan.aruna at gmail.com
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% Latest update         : December 5, 2021
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