श्रीभुवनेश्वरीरहस्यस्तवः

श्रीभुवनेश्वरीरहस्यस्तवः

पूर्वपीठिका- अधुना श‍ृणु देवेशि! स्तोत्रं तत्त्वनिरूपणम् । सर्वस्वं भुवनेश्वर्याः परापररहस्यकम् । यस्य कस्य न वक्तव्यं विना शिष्याय पार्वति । विनियोगः- अस्य स्तोत्रस्य देवेशि! ऋषिर्भैरव उच्यते । छन्दोऽनुष्टुप् समाख्यातं देवता भुवनेश्वरी ॥ १॥ श्रीतत्त्वरूपिणी बीजं माया ह्रैं शक्तिरुच्यते । ह्रः कीलकं समाख्यातं भुवनेश्याः महेश्वरि! धर्मार्थकाममोक्षार्थे विनियोगः प्रकीर्तितः ॥ २॥ ध्यानम्- उद्यत्सूर्यसहस्राभां शशाङ्ककृतशेखराम् । पद्मासनां स्मेरमुखीं सूर्येन्द्वग्निविलोचनाम् । रक्तवस्त्रधरां पद्मपाशाङ्कुशवरान् करैः, दधतीं भुवनेशानीं ध्यायेत् हृत्पङ्कजे शिवाम् ॥ ३॥ अथ रहस्यस्तवः । वाग्भवं तव शिवे! प्रियबीजं ध्यायते यदि नरोऽनलचेताः । तस्य त्वच्चरणपूजनमात्राज्जायते हिकमलैव तदानीम् ॥ १॥ शक्तिबीजमनघं सुधाकरं साधको यदि जपेद् हृदि भक्त्या । तस्य स्वर्गललना चरणाब्जौ रञ्जयन्ति मुकुटैर्मणियुक्तैः ॥ २॥ मायाबीजं यो जपेत् ते महेशि ! तत्त्वं मन्त्री भक्तिमान् मुक्तिकाङ्क्षी । त्वत्सादृश्यात् याति त्वद्धाम रम्यं नाकस्त्रीभिर्बीज्यमानः सुतालैः ॥ ३॥ त्वन्मन्त्रमध्ये भुवनेश्वरीति यो नाम रम्भापरिरम्भकाङ्क्षी । ध्यायेत् हृदब्जे शशिखण्डचूडे स याति रम्भां परिरभ्य नाकम् ॥ ४॥ मायाऽर्णं यः साधको ध्यायतेऽम्ब! तस्य ब्रह्मविष्णुरुद्रादयस्ते । देवाः पादौ रञ्जयन्ति स्म नित्यं मौलिस्थैस्तैरिन्द्रनीलादिरत्नैः ॥ ५॥ तत्त्वरूपिणि! भवन्मनुमध्ये यो जपेत् तव सुधाकरमाख्यम् । देवि! तस्य खलु साधकराज्ञो विश्वमेतदखिलं वशमेति ॥ ६॥ मायाबीजं देवि! मन्त्रान्तसंस्थं रात्रौ वह्निं ध्यायते यो हृदन्तः । भूमौ भूयास्तस्य पादाब्जयुग्मं रजन्ति स्वैर्मौलिरत्नांशुभिस्तैः ॥ ७॥ फलश्रुतिः । इतीदं परमं तत्त्वं तत्त्वविद्यास्तवोत्तमम् । रहस्यं भुवनेश्वर्याः सर्वस्वं मम पार्वति ॥ ८॥ सम्पूज्य भुवनेशानीं यः पठेत् साधकोत्तमः । तस्याऽष्टौ सिद्धयो देवि! करसंस्था महेश्वरि ॥ ९॥ अस्य स्तवस्य देवेशि! प्रभावं कथितं विभुः । नास्म्यहं भुवनेश्वर्याः पञ्चवक्त्रैर्न संशयः ॥ १०॥ इति श्री भुवनेश्वरीरहस्ये श्रीभुवनेश्वर्याः रहस्यस्तवः सम्पूर्णः । हिन्दी रूपान्तर श्रीभुवनेश्वरीरहस्यस्तवः । श्री भैरव बोले-- हे देवेशि! अब भुवनेश्वरी के सर्वस्व-स्वरूप तत्त्व-निरूपण करनेवाले अत्यन्त रहस्य-मय स्तोत्र को सुनो । दीक्षित न हो, ऐसे किसी व्यक्ति को इसे न बताना चाहिये । विनियोग-- इस स्तोत्र के ऋषि भैरव, छन्द अनुष्टुप्, देवता भुवनेश्वरी, बीज ``ह्रीं'' , शक्ति ``ह्रैं'' , कीलक ``ह्रः'' और विनियोग घर्मार्थ-काम-मोक्ष की सिद्धि के लिए हे । ध्यान- उदीयमान सहस्र करोडों सूर्य की कान्तिवाली, ललाट पर चन्द्रमा को धारण किए, पद्मासना, मुस्कान-युक्त मुखवाली, सूर्य-चन्द्र-अग्नि के समान तीन नेत्रोंवाली, रक्त-वस्त्रा, चार हाथों में कमल, पाश, अङ्कुश और वर-मुद्रा धारण करनेवाली भुवनेश्वरी को अपने हृदय-कमल पर विराजमान ध्यान करना चाहिये । रहस्य-स्तोत्र- हे शिवे! सन्तप्त चित्तवाला जो व्यक्ति तुम्हारे प्रिय वाग्भब बीज (ऐं) का ध्यान करता है, वह तुम्हारे चरणों का पूजन करने मात्र से शीतलता को प्राप्त करता है ॥ १॥ यदि साधक अमृत-सागर जैसे पवित्र शक्ति-बीज (क्लीं) को भक्तिपूर्वक अपने हृदय में जपता हे, तो मणि-जटित-मुकुटों से युक्त अप्सरायें उसके चरणों की सेवा करती हैं ॥ २॥ हे महेशि! जो साधक तुम्हारे तत्त्व-स्वरूप मायाबीज (ह्रीं) को भक्तिपूर्वक मोक्ष की कामना से जपता है, वह तुम्हारी कृपा प्राप्त कर अप्सराओं का सङ्गीत सुनता हुआ तुम्हारे सुन्दर धाम को जाता है ॥ ३॥ अपने हृदय-कमल में, जहाँ शिव विराजमान हैं, तुम्हारे मन्त्र के मध्य में ``भुवनेश्वरी'' नाम को जोडकर जो ध्यान करता है, वह रम्भा अप्सरा से अभिनन्दित होकर स्वर्ग को जाता है ॥ ४॥ हे अम्ब । जो माया-बीज (ह्रीं) का ध्यान करता है, उसका सम्मान ब्रह्मा, विष्णु, शिवादि सभी देवता करते हैं, और अपने मुकुट में जडे हुए इन्द्रनील आदि रत्नों से उसके पैरो को सुशोभित कर देते हैं ॥ ५॥ हे तत्त्व-स्वरूपिणि! तुम्हारे मन्त्र के मध्य में अमृत-सागर स्वरूप तुम्हारे नाम का जो जप करता है, उस साधकेश्वर के वश में यह सारा विश्व हो जाता है ॥ ६॥ हे देवि! रात्रि में जो मन्त्र के अन्त में मायाबीज (ह्रीं) और वह्नि -बीज (रं) का अपने हृदय में ध्यान करता है, उसके चरण-कमलों को पृथ्वी के शासक लोग अपने मुकुट-रत्नों के प्रकाश से सुशोभित कर देते हैं ॥ ७॥ फल-श्रुति- हे पार्वति । यह तत्त्व-विद्या से युक्त स्तोत्र अति उत्तम और गूढ तत्त्व से युक्त है । यह भुवनेश्वरी का रहस्य और मेरा सर्वस्व है ॥ ८॥ भुवनेश्वरी का पूजन कर जो उत्तम साधक इसका पाठ करता है, हे देवि, महेश्वरि! आठो सिद्धियां उसके हाथ में रहती हैं ॥ ९॥ हे देवेशि! भुवनेश्वरी के इस स्तोत्र का प्रभाव मैं अपने पाँच मुखों से भी कहने में समर्थ नहीं हूं अर्थात् यह बडा ही प्रभावशाली है ॥ १०॥ इति श्रीभुवनेश्वरीरहस्यस्तवः सम्पूर्णः । Proofread by Ganesh Kandu kanduganesh at gmail.com, NA
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% Latest update         : June 13, 2020
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