पञ्चदशाक्षरीगुप्तिनर्तनलीलास्तुतिः

पञ्चदशाक्षरीगुप्तिनर्तनलीलास्तुतिः

श्रीगणेशाय नमः । ॐ क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं श्रीं । राजराजेश्वरी राक्षसघ्नि स्फुतराकेन्दु मण्डल राजन्मुखि । राज्याधि भारादि सम्पत्प्रदायिनि राजत्किरीटिनि पालय माम् ॥ इन्दुराजत्किरीटिनि पालय माम् ॥ १॥ कल्याणरूप मनोहराङ्गि बहुकल्यंश सम्भव दोषहरे । कल्याण शैल धनुर्धर नायिके कल्याणमाशु विधेहि मम ॥ नित्यकल्याणमाशु विधेहि मम ॥ २॥ एणीविशाल दृगम्बुरुहे निजवेणीसितेतर कुण्डलिनी । वाणीविलास महावर दायिनी पाणिं प्रदायैवोद्धारय माम् ॥ तव पाणि प्रदायैवोद्धारय माम् ॥ ३॥ ईशान पूर्वक ब्रह्ममयि द्रुतमीप्सिता शेष महार्थप्रदे । ईशान वामाङ्क वासमहारसे ईहामिहाशु विमोचय मे ॥ परमीहामिहाशु विमोचय मे ॥ ४॥ लक्ष्मी सरखत्यु मादियुते सर्वलक्षण प्रोल्लसि ताङ्गयुते । लक्षकोट्यण्ड समूह विधायिनि लक्ष्यार्थवस्तु प्रदर्शय मे ॥ तत्वलक्ष्यार्थवस्तु प्रदर्शय मे ॥ ५॥ ह्रीङ्कार पञ्जरमध्ये शुकेश्वरी ह्रीङ्कार जाप प्रसादकरे । ह्रीम्पद लक्ष्यार्थ वस्तुस्वरूपिणि ह्रीरस्तु मेऽनात्म वस्तुसुखे ॥ महाह्रीरस्तु मेऽनात्म वस्तुसुखे ॥ ६॥ हर्यब्ज जन्म त्रिदृग्जननी क्षित्री हर्यश्व पूर्वा मरार्चिताङ्घ्रे । हर्षिणि श्रीहरि सोदरि शाम्भवि हर्षप्रदा भव मे सततम् ॥ महाहर्षप्रदा भव मे सततम् ॥ ७॥ सर्व चराचर जन्तुद्भव स्थिति संहार कर्तुस्सहायभूते । संसार चक्र परिभ्रमणादिषु साहाय्यमाशु विधेहि मम ॥ नित्यसाहाय्यमाशु विधेहि मम ॥ ८॥ कल्प लतोपम बाहुयुगे महाकल्पान्त कालैक साक्षिभूते । कल्पित मिथ्या प्रपञ्च विलासिनि कल्पय मे गति मात्मम यीम् ॥ परिकल्पय मे गति मात्मम यीम् ॥ ९॥ हव्यवहादि कलामयि सज्जनहर्म्य महान्दोलि कादिप्रदे । हस्ति कुम्भोन्नत वक्षोज शोभिते हत्यादि पाप मिहोच्चाटय ॥ ब्रह्महत्यादि पाप मिहोच्चाटय ॥ १०॥ लब्धमहा भक्ति योगैक साधने लक्ष्य षडध्वाति क्रान्तरूपे । लक्ष्मण पूर्वज मुख्यप्रपूजिते लक्ष्मीकुरुष्व माँ त्वं कृपया ॥ महालक्ष्मीकुरुष्व माँ त्वं कृपया ॥ ११॥ ह्रीङ्कार रङ्गस्थलान्तर्महानटि ह्रीङ्कारोद्यानक केकिनीशे । ह्रींसरसी कलहंसिनि शङ्करि ह्रीम्पद लक्ष्यार्थमाविष्कुरु ॥ तव ह्रीम्पद लक्ष्यार्थमाविष्कुरु ॥ १२॥ सर्गस्थिति प्रलयादि विनिर्मुक्त सच्चिदानन्दैक ब्रह्ममयि । सत्सम्प्रदायात्म विद्यास्वरूपिणि सद्वस्तुद्योतय मे सततम् ॥ हृदि सद्वस्तुद्योतय मे सततम् ॥ १३॥ कर्तृत्व भोक्तृत्व धर्मादि दुरगकूटस्थ चैतन्य साक्षिभूते । कल्पित वस्त्वधिष्ठानस्वरूपिणि कर्मादिबन्धद्विमोचय माम् ॥ कामकर्मादिबन्धद्विमोचय माम् ॥ १४॥ लम्बोदरप्रसवित्रि षडाननलब्धपयः पान वक्षोरुहे । लज्जान्विते शिवशय्यागृहाङ्गणे लक्ष्यं ममास्तु ते पादयुगम् ॥ ध्यानलक्ष्यं ममास्तु ते पादयुगम् ॥ १५॥ ह्रीङ्कार कल्पमहाद्रुम मञ्जरि ह्रीङ्कार दुग्ध पयोधि सुधे । ह्रीङ्कार गेहमहारत्न दीपिके ह्रीङ्कार जापेऽस्तु मे रसना ॥ तव ह्रीङ्कार जापेऽस्तु मे रसना ॥ १६॥ पूर्णविद्येश्वरी श्रीमन्महागुरुपूर्णमहाकरुणासुधया । पूर्णाद्य गुप्तिः श्री पञ्चदशाक्षरी पूर्णप्रसादं करोतु मम ॥ अतुलपूर्णप्रसादं करोतु मम ॥ १७॥ पञ्च मुखेशादि देवप्रतोषकपञ्चदशाक्षर गुप्तिमिमम् । पञ्चाक्षरादि वदुच्चरतामिह पञ्चत्व सम्भवभीतिर्नहि ॥ क्वापि पञ्चत्व सम्भवभीतिर्नहि ॥ १८॥ गुप्तिनर्तनलीलेयं राजताळसमन्विता । देवतोत्सववेलायां कारयामास सूरिभिः ॥ १९॥ अन्योऽन्यं पादतलेनाघटनं प्रदक्षिणनर्तनं गुप्तिः । कुम्मिः इति द्राविडभाषायाम् । इति श्री पदवाक्यादिपारट्टश्वनो ब्रह्मीभूतकैलासनाथशास्त्रिणः कृतिषु पञ्चदशाक्षरीगुप्तीस्तुतिः सम्पूर्णा ॥ Proofread by Rajesh Thyagarajan
% Text title            : Panchadashakshariguptinartanalila Stuti
% File name             : panchadashAkSharIguptinartanalIlAstutiH.itx
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% engtitle              : panchadashAkSharIguptinartanalIlAstutiH
% Category              : devii, devI, dashamahAvidyA, panchadashI
% Location              : doc_devii
% Sublocation           : devii
% SubDeity              : dashamahAvidyA
% Author                : Kailasanatha Shastri
% Language              : Sanskrit
% Subject               : philosophy/hinduism/religion
% Proofread by          : Rajesh Thyagarajan
% Description/comments  : panchadashIstavarAjamAlikA compiled by Lalitha Ramani
% Indexextra            : (Scan)
% Latest update         : December 27, 2022
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% Site access           : https://sanskritdocuments.org

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