सङ्कटाचालीसा

सङ्कटाचालीसा

दोहा- जगत जननि जगदम्बिके, अरज सुनहु अब मोर । बन्दौं पद-जुग ना सिर, विनय करौं कर जोर । चौपाई- जय जय जय सङ्कटा भवानी । कृपा करहु मोपर महरानी ॥ हाथ खड्ग भृकुटी विकराला । अरुण नयन गल में रुण्डमाला ॥ कानन कुण्डल की छवि भारी हिय हुलसे मन होत सुखारी ॥ केहरि वाहन है तव माता । कष्ट निवारो जग-जन त्राता ॥ आयुँ शरन तिहारो अम्बे । अभय करहु मोको जगदम्बे ॥ शरन आइ जो तुमहिं पुकारा । बिन बिलम्ब तुम ताहि उबारा ॥ भीर परी भक्तन पर जब-जब । किया सहाय मातु तुम तब-तब ॥ रक्तबीज दानव तुम मारे । शुम्भ-निशुम्भ के उदर बिदारे ॥ महिषासुर नृप अति बलबीरा । मारे मरै न अति रणधीरा ॥ करि सङ्ग्राम सकल सुर हारे । अस्तुति करि तब तुमहिं पुकारे ॥ प्रकटेउ कालि रूप में माता । सेन सहित तुम ताहि निपाता ॥ तेहि के बध सब देवन हरषे । नभदुन्दुभि सुमन बहु बरषे ॥ रक्षा करहु दीन जन जानी । जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥ सब जीवन्ह की हो प्रतिपालक । जय जग-जननि दनुजकुल घालक । सकल सुरन की जीवनदाता । सङ्कट हरो हमारी माता ॥ सङ्कट नाशक नाम तुम्हारा । सुयस तुम्हार सकल संसारा ॥ सुर नर नाग असुर मुनि जेते । गावत गुणगन निशिदिन तेते ॥ योगी निशिवासर तव ध्यावहिम् । तदपि तुम्हार अन्त न पावहिम् ॥ अतुल तेज मुख पर छवि सोहै । निरखि सकल सुर नर मुनि मोहै ॥ चरण-कमल में शीश झुकाऊँ । पाहि पाहि कहि नितहि मनाऊँ ॥ नेति नेति कह वेद बखाना । शक्ति-स्वरूप तुम्हार न जाना ॥ मैं मूरख किमि कहौं बखानी । नाम तुम्हार अनेक भवानी ॥ सुमिरत नाम कटै दुःख भारी । सत्य बात यह वेद उचारी ॥ नाम तुम्हार लेत जो कोई । ताको भय सङ्कट नहिं होई ॥ सङ्कट आय परै जो कबहीम् । नाम लेत बिनसत है तबहीम् ॥ प्रेम-सहित जो जपै हमेशा । ताके तन नहिं रहे कलेशा ॥ शरणागत होइ जो जन आवैम् । मनवाञ्छित फल तुरतहिं पावैम् ॥ रणचण्डी बन असुर संहारा । बन्धन काटि कियो छुटकारा ॥ नाम सकल कलि-कलुष नसावन । सुमिरत सिद्ध होय नरपावन ॥ षोडश पूजन करै जो कोई । इच्छित फल पावै नर सोई ॥ जो नारी सिन्दूर चढ़ावै । तासु सोहाग अचल होइ जावै ॥ पुत्र हेतु जो पूजा करहीम् । सन्तति-सुख निश्चय सो लहहीम् ॥ और कामना करै जो कोई । ताके घर सुख सम्पति होई ॥ निर्धन नर जो शरन में आवै । सो निश्चय धनवान कहावै ॥ रोगी रोगमुक्त होइ जावै । तव चरणन जो ध्यान लगावै ॥ सब सुख-खानि तुम्हारी पूजा । एहि सम आन उपाय न दूजा ॥ पाठ करै सङ्कटा चालीसा । तेहि पर कृपा करहिं गौरीसा ॥ पाठ करै अरु सुनै सुनावै । वाको सब सङ्कट मिटि जावै ॥ कहँ लगि महिमा कहौं तुम्हारी । हरहु वेगि मोहिं सङ्कट भारी ॥ मम कारज सब पूरन कीजै । दीन जानि मोहिं अभय करीजै ॥ इति सङ्कटाचालीसा समाप्ता । Proofread by Rajesh Thyagarajan
% Text title            : Sankata Chalisa
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% itxtitle              : saNkaTAchAlIsA
% engtitle              : sankaTA chAlIsA
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% Language              : Hindi
% Subject               : philosophy/hinduism/religion
% Proofread by          : Rajesh Thyagarajan
% Indexextra            : (Scan)
% Latest update         : December 4, 2022
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% Site access           : https://sanskritdocuments.org

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