श्रीशाकंभरी चालिसा १ आरती सहित

श्रीशाकंभरी चालिसा १ आरती सहित

॥ दोहा ॥ बन्दउ माँ शाकम्भरी चरणगुरू का धरकर ध्यान, शाकम्भरी माँ चालीसा का करे प्रख्यान ॥ आनंदमयी जगदम्बिका अनन्तरूप भण्डार, माँ शाकम्भरी की कृपा बनी रहे हर बार ॥ ॥ चालीसा ॥ शाकम्भरी माँ अति सुखकारी, पूर्ण ब्रह्म सदा दुःखहारी ॥ कारण करण जगत की दाता, आंनद चेतन विश्वविधाता ॥ अमर जोत है मात तुम्हारी, तुम ही सदा भगतन हितकारी ॥ महिमा अमित अथाह अपर्णा, ब्रह्म हरी हर मात अपर्णा ॥ ज्ञान राशि हो दीन दयाली, शरणागत घर भरती खुशहाली ॥ नारायणी तुम ब्रह्म प्रकाशी, जल-थल-नभ हो अविनाशी ॥ कमल कान्तिमय शान्ति अनपा, जोतमन मर्यादा जोत स्वरूपा ॥ जब जब भक्तों ने है ध्याई, जोत अपनी प्रकट हो आई ॥ प्यारी बहन के संग विराजे, मात शताक्षि संग ही साजे ॥ भीम भयंकर रूप कराली, तीसरी बहन की जोत निराली ॥ चौथी बहन भ्रामरी तेरी, अद्भुत चंचल चित्त चितेरी ॥ सम्मुख भैरव वीर खड़ा है, दानव दल से खूब लड़ा है ॥ शिव शंकर प्रभु भोले भण्डारी, सदा रहे सन्तन हितकारी ॥ हनुमत माता लौकड़ा तेरा, सदा शाकम्भरी माँ का चेरा ॥ हाथ ध्वजा हनुमान विराजे, युद्ध भूमि में माँ संग साजे ॥ कालरात्रि धारे कराली, बहिन मात की अति विकराली ॥ दश विद्या नव दुर्गा आदि, ध्याते तुम्हें परमार्थ वादि ॥ अष्ट सिद्धि गणपति जी दाता, बाल रूप शरणागत माता ॥ माँ भंडारे के रखवारी, प्रथम पूजने की अधिकारी ॥ जग की एक भ्रमण की कारण, शिव शक्ति हो दुष्ट विदारण ॥ भूरा देव लौकडा दूजा, जिसकी होती पहली पूजा ॥ बली बजरंगी तेरा चेरा, चले संग यश गाता तेरा ॥ पांच कोस की खोल तुम्हारी, तेरी लीला अति विस्तारी ॥ रक्त दन्तिका तुम्हीं बनी हो, रक्त पान कर असुर हनी हो ॥ रक्तबीज का नाश किया था, छिन्न मस्तिका रूप लिया था ॥ सिद्ध योगिनी सहस्या राजे, सात कुण्ड में आप विराजे ॥ रूप मराल का तुमने धारा, भोजन दे दे जन जन तारा ॥ शोक पात से मुनि जन तारे, शोक पात जन दुःख निवारे ॥ भद्र काली कमलेश्वर आई, कान्त शिवा भगतन सुखदाई ॥ भोग भण्डार हलवा पूरी, ध्वजा नारियल तिलक सिंदूरी ॥ लाल चुनरी लगती प्यारी, ये ही भेंट ले दुःख निवारी ॥ अंधे को तुम नयन दिखाती, कोढ़ी काया सफल बनाती ॥ बाँझन के घर बाल खिलाती, निर्धन को धन खूब दिलाती ॥ सुख दे दे भगत को तारे, साधु सज्जन काज संवारे ॥ भूमण्डल से जोत प्रकाशी, शाकम्भरी माँ दुःख की नाशी ॥ मधुर मधुर मुस्कान तुम्हारी, जन्म जन्म पहचान हमारी ॥ चरण कमल तेरे बलिहारी, जै जै जै जग जननी तुम्हारी ॥ कांता चालीसा अति सुखकारी, संकट दुःख दुविधा टारी ॥ जो कोई जन चालीसा गावे, मात कृपा अति सुख पावे ॥ कान्ता प्रसाद जगाधरी वासी, भाव शाकम्भरी तत्त्व प्रकाशी ॥ बार बार कहें कर जोरी, विनिती सुन शाकम्भरी मोरी ॥ मैं सेवक हूँ दास तुम्हारा, जननी करना भव निस्तारा ॥ यह सौ बार पाठ करे कोई, मातु कृपा अधिकारी सोई ॥ संकट कष्ट को मात निवारे, शोक मोह शत्रुन संहारे ॥ निर्धन धन सुख संपत्ति पावे, श्रद्धा भक्ति से चालीसा गावे ॥ नौ रात्रों तक दीप जगावे, सपरिवार मगन हो गावे ॥ प्रेम से पाठ करे मन लाई, कान्त शाकम्भरी अति सुखदाई ॥ ॥ दोहा ॥ दुर्गासुर संहारणी करणि जग के काज, शाकम्भरी जननि शिवे रखना मेरी लाज ॥ युग युग तक व्रत तेरा करे भक्त उद्धार, वो ही तेरा लाड़ला आवे तेरे द्वार ॥ जय शाकंभरी माँ की जय । Shri Shakambhari Ji Ki Arti श्री शाकंभरी जी की अरती शाकम्भर अम्बाजी की आरती कीजो ॥ ऐसा अदभुत रूप हृदय धर लीजो, शताक्षी दयालु की आरती कीजो ॥ तुम परिपूर्ण आदि भवानी माँ, सब घट तुम आप बखानी माँ ॥ तुम्ही हो शाकम्भर, तुम ही हो शताक्षी माँ ॥ शिवमूर्ति माया, तुम ही हो प्रकाशी माँ ॥ नित जो नर नारी अम्बे आरती गावे, माँ ॥ इच्छा पूरण कीजो, शाकम्भर दर्शन पावे, माँ ॥ जो नर आरती पढे पढावे माँ ॥ जो नर आरती सुने सुनावे माँ ॥ बसे बैकुण्ठ शाकम्भर दर्शन पावे ॥ जय शाकंभरी मात की जय । NA
% Text title            : Shakambhari Chalisa 1 with Arati
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% itxtitle              : shAkambharI chAlisA 1 AratI sahita (Hindi)
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% Category              : devii, shAkambharI, chAlisA, devI, hindi
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% SubDeity              : shAkambharI
% Language              : Hindi
% Subject               : philosophy/hinduism/religion
% Proofread by          : NA
% Indexextra            : (Text 1, 2)
% Latest update         : August 18, 2018
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