स्वामिवश्यकरी शत्रुविध्वंसिनी स्तोत्रम्

स्वामिवश्यकरी शत्रुविध्वंसिनी स्तोत्रम्

भगवती वैष्णवी स्तोत्रम् विनियोगः - ॐ अस्य श्री स्वामिवश्यकरी शत्रुविध्वंसिनी स्तोत्रमन्त्रस्य पिप्पलायन ऋषि अनुष्टप् छन्दः श्रीरामचन्द्रो देवता मम स्वामिप्रीत्यर्थ मत् सकाशात् शत्रोः पिशाचवत् पलायनार्थे जपे विनियोगः । षडङ्गन्यास - ॐ रां अनुष्ठाभ्यां नमः । ॐ रीं तर्जनीभ्यां नमः । ॐ रूं मध्यमाभ्यां नमः । ॐ रैं अनामिकाभ्यां नमः । ॐ रौं कनिष्ठिकाभ्या नमः । ॐ रः अस्त्राय फट् ॥ ध्यानम् । ॐ कालाम्भोघर कान्तिकायमनसं वीरासनाध्यासितं मुद्रां ज्ञानमयी दधानमपरां हस्ताम्बुजे जानुनी । सीतां पार्श्वगतां शिरोरूहकरां विद्युन्निमं राघवं पश्यन्तीं मुकुटं गदादिविविधं कल्पोज्ज्वलाङ्गीं भजे ॥ विभीषण उवाच । ॐ स्वामिवश्यकरी देवी प्रीतिवृद्धिकरी मम । शत्रुविध्वंसिनी रौद्री त्रिशिरा सा विलोचनी ॥ १॥ अग्निर्ज्वाला रौद्रमुखी घोरदंष्ट्रा त्रिशूलिनी । दिगम्बरी मुक्तकेशी रणपाणिर्महोदरी ॥ २॥ एकराड् वैष्णवी घोरे शत्रुमुद्दिश्य ते विषम् । प्रभुमुद्दिश्य पीयूषं प्रसादादस्तु ते सदा ॥ ३॥ मन्त्रमेतज्जपेन्नित्यं विजयं शत्रुनाशनम् । स्वामिप्रीत्यभिवृद्धिहिं जपात्तस्य न संशयः ॥ ४॥ सहस्रं त्रितयं कृत्वा कार्यसिद्धिर्भविष्यति । जपाद्दशांशतो होमः सर्षपैस्तन्दुलैः घृतैः ॥ ५॥ पञ्चखाद्ययुतैर्हुत्वा स्वामिवश्यकरी तथा । ब्राह्मणान् भोजयेत् पश्चादात्माभीष्ट फलप्रदः ॥ ६॥ ॥ इति स्वामिवश्यकरी शत्रुविध्वंसिनी अथवा भगवती वैष्णवी स्तोत्रम् ॥ यदि स्वामी क्रोधी, दुष्ट, दुराचारी व लोभी होवे, दुर्विचार वाला हो उसको दण्ड देकर अपने अनुकूल करने के लिये भगवती वैष्णवी के इस स्तोत्र का जप करना चाहिये । सहस्रावृत्ति हेतु श्लोक १ से ३ की आवृत्तियां करे । श्लोक ४ से ६ श्लोक महात्म खण्ड के है जो अन्तिम बार पढे । विभीषण द्वारा की गई भगवती की यह स्तुति श्रीराम की भक्ति करने तथा उनकी अनुकम्पा प्राप्त करने के लिये की गई थी । Encoded and proofread by Mohan Chettoor
% Text title            : svAmivashyakarI shatruvidhvaMsinI bhagavatI vaiShNavI stotram
% File name             : shatruvidhvaMsinIstotram.itx
% itxtitle              : svAmivashyakarI shatruvidhvaMsinI bhagavatI vaiShNavI stotram
% engtitle              : svAmivashyakarI shatruvidhvaMsinI bhagavatI vaiShNavI stotram
% Category              : devii, durgA
% Location              : doc_devii
% Sublocation           : devii
% SubDeity              : durgA
% Language              : Sanskrit
% Subject               : philosophy/hinduism/religion
% Transliterated by     : Mohan Chettoor
% Proofread by          : Mohan Chettoor
% Indexextra            : (Scan)
% Latest update         : July 4, 2022
% Send corrections to   : (sanskrit at cheerful dot c om)
% Site access           : https://sanskritdocuments.org

This text is prepared by volunteers and is to be used for personal study and research. The file is not to be copied or reposted for promotion of any website or individuals or for commercial purpose without permission. Please help to maintain respect for volunteer spirit.

BACK TO TOP
sanskritdocuments.org