श्रीयमुनाष्टकम् ८

श्रीयमुनाष्टकम् ८

व्रजाधिराज-नन्दनाम्बुदाभ-गात्र-वन्दना- नुलेप-गन्ध-वाहिनीं भवाब्धि-बीज-दाहिनीम् । जगत्त्रये यशस्विनीं लसत्सुधी-पयस्विनीं भजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्तमोहमञ्जरीम् ॥ १॥ रसैक-सीम-राधिका-पदाब्ज-भक्ति-साधिकां तदङ्ग-राग-पिञ्जर-प्रभात-पुञ्ज-मञ्जुलाम् । स्वरोचिषाति-मञ्जुलां कृताजनाधिगञ्जनां भजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्तमोहमञ्जरीम् ॥ २॥ व्रजेन्द्र-सूनु-राधिका-हृदि प्रपूर्ण-मानयो- र्महा-रसाब्धि-पूरयोरिवातितीव्र-वेगतः । बहिः समुच्छलन्-नव-प्रवाह-रूपिणीमहं भजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्तमोहमञ्जरीम् ॥ ३॥ विचित्र-रत्न-बद्ध-सत्तट-द्वय-श्रियोज्ज्वलां विचित्र-हंस-सारसाद्य्-अनन्त-पक्षि-सङ्कुलाम् । विचित्र-हैम-मेखलां कृतातिदीन-पालनां भजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्तमोहमञ्जरीम् ॥ ४॥ वहन्तिकां प्रियां हरेर्महा-कृपा-स्वरूपिणीं विशुद्ध-भक्तिमुज्ज्वलां परे रसात्मिकां विदुः । सुधा-स्रुतिं त्वलौकिकीं परेश-वर्ण-रूपिणीं भजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्तमोहमञ्जरीम् ॥ ५॥ सुरेन्द्र-वृन्द-वन्द्यया रसादधिष्ठते वने सदोपलब्धि-माधवाद्भुतौक-सद्रसोन्मदाम् । अतीव विह्वलामिवोच्चलत्तरङ्ग-दोर्लतां भजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्तमोहमञ्जरीम् ॥ ६॥ प्रफुल्ल-पङ्कजाननां लसन्-नवोत्पलेक्षणां रथाङ्ग-नाम-युग्मक-स्तनीमुदार-हंसकाम् । नितम्ब-चारु-रोधसं हरेः प्रियां रसोज्ज्वलां भजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्तमोहमञ्जरीम् ॥ ७॥ समस्त-वेद-मस्तकैरगम्य-वैभवां सदा महा-मुनीन्द्र-नारदादिभिः सदैव भाविताम् । अतुल्य-पामरैरपि श्रितां पुमर्थ-सारदां भजे कलिन्दनन्दिनीं दुरन्तमोहमञ्जरीम् ॥ ८॥ य एतदष्टकं बुधस्त्रिकालमाद्रितः पठेत् कलिन्द-नन्दिनीं हृदा विचिन्त्य विश्व-वन्दिताम् । इहैव राधिका-पतेः पदाब्ज-भक्तिमुत्तमाम् अवाप्य स ध्रुवं भवेत्परत्र तुष्टयानुगः ॥ इति श्रीमद्धित-हरिवंश-चन्द्र-गोस्वामिना विरचितं यमुनाष्टकं सम्पूर्णम् ।
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% Author                : hitaharivaMshachandragosvAmi
% Language              : Sanskrit
% Subject               : philosophy/hinduism/religion
% Proofread by          : NA
% Latest update         : January 15, 2019
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