राघव ! पुनरवतारं धर हे !

राघव ! पुनरवतारं धर हे !

क्ष्मामव, दुर्मद-राक्षस-मथितां राघव ! पुनरवतारं धर हे ! -१- जगती-सरयूर्जनताऽयोध्या खिन्ना रक्षा काङ्क्षति; ज्ञान-दशरथो मति-कौशल्या त्वद्दर्शनमभिवाञ्छति; असुरोपद्रव-विघ्न-घनं मुनि-तपोवनं भुवि मलिनं सुख-रविरस्तं गत-इतिहेतो- निमीलितं हृन्नलिनं; समायाहि परिपाहि पुनस्स्वां धरणीं करुणाऽऽकर ! हे! क्ष्मामव, दुर्मद-राक्षस-मथितां, राघव ! पुनरवतारं धर हे ! -२- विकटाऽऽटोप-पटीयस्यास्ते कुमति-ताटका प्रोग्राः पुण्यमाश्रमं कलुषित-सत्ता मलिनीकर्तुं व्यग्रा, खरदूषण-साहाय्यादत्या चारं प्रसार्य परितः; कपट-रूपिणी स्व-वरणहेतो राष्ट्र-राघवेः पुरतः स्थिताऽस्ति; भीषण-मन- आचरणामेनां द्रुतमुद्धर हे ! क्ष्मामव, दुर्मद-राक्षस-मथितां राघव ! पुनरवतारं धर हे ! -३- विगत-विषादं पुन``र्निषादं'' विधेहि जीवन-धन्यं; सुनियतिभाजन्नु ``भरद्वाज'' कुरु धर्मज्ञमनन्यं ``शबरी'' श्रेयस्करीं सुभक्तां विमलां सपदि सनाथय; पापवर्त्मगान् खलान् विनाशय ``लक्ष्मणरेखां'' स्थापय; पुनर्दिव्यजीवन-मूल्यं संस्थापय सुधर्म-पर हे ! क्ष्मामव, दुर्मद-राक्षस-मथितां राघव! पुनरवतारं धर हे ! -४- याम्य-दिशि प्रकटितप्रभावो बिहितोत्पातस्सततं; निरीह-मानव-निवहं व्यथयन शूरम्मन्यो नियतं; सन्मति-सीतामपजहार वै, स्वार्थ-रावणो दुष्टः; तमोगुणी, दुर्णय-निपुणोऽसौ निर्घृणहृत् -परिपुष्टः; क्रन्दति सुजनो नन्दति कुजनो विभो ! विपदमपहर हे ! क्ष्मामव, दुर्मद-राक्षस-मथितां, राघव ! पुनरवतारं धर हे ! -५- भ्रष्टाचार-स्वार्थ-रूपिणं द्रुतं रावणं मारय; सन्मति-सत्कृतिरूपां सीतां तद्व्यथितामुद्धारय; स्वादर्श-प्राज्यं शुभराज्यं - -``राम राज्य''-मुद्भाव; धर्मनीतिसंस्कृति-त्रिवेणीं भारतभुवि प्रवाहय; स्नेह-समृद्धि-सौख्यमय- जीवनमनघं पुनर्वितर हे ! क्ष्मामव, दुर्मद-राक्षस-मथितां, राघव ! पुनरवतारं धर है; (रचयिता-आचार्य श्रीमधुकरशास्त्री; साहित्य-मीमांसाचार्यः, साहित्यरत्नाकरः, आशुकविः, कोटा) Encoded and proofread by Rishbha Bhagi
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% Category              : raama, sanskritgeet
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% Language              : Sanskrit
% Subject               : philosophy/hinduism/religion
% Transliterated by     : Rishbha Bhagi
% Proofread by          : Rishbha Bhagi, NA
% Description/comments  : Bharati Sanskrit Magazine November 1977
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% Latest update         : October 18, 2021
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