श्रीरामनामदशश्लोकी
(श्रीसीतारामस्तवादर्शः)
राम-रामेति रामेति यश्च रटति सर्वदा ।
स प्राप्नोति हरेर्धाम तत्र न कोऽपि संशयः ॥ १॥
योऽनिशं सद्धया राम-नामानि जपति क्षितौ ।
रामकृपामवाप्नोति लभते च परं सुखम् ॥ २॥
रामस्मरणमात्रेण क्षीयन्तेऽघानि पूर्णतः ।
विमुच्य संसृतेश्चक्रं शाश्वतं मोक्षमश्नुते ॥ ३॥
किमर्थमटति व्यर्थं लोकेऽस्मिन्तापपूरिते ।
भज निरन्तरं रामं प्रपन्नाऽघनिवारकम् ॥ ४॥
भवचक्रं महावक्रं क्लेशकर्दमसंयुतम् ।
यदि चित्ते स्वके रामो न भीतिः क्लेशकर्दमे ॥ ५॥
कथं व्यर्थं व्रजेल्लोके दुःखपङ्कमहालये ।
सीतारामं सदा स्वान्ते संस्थापय सुखं लभेत् ॥ ६॥
वरीयः परमं कार्यं वरीयः श्रेष्ठजीवनम् ।
रसनाऽग्रे सदा रामः परं श्रेयः सुनिश्चितम् ॥ ७॥
अहोऽत्र मनुजा व्यर्थमटन्ति भवकर्मणि ।
चेद्भजेद्राघवं नित्यं सुखमाप्नोति शाश्वतम् ॥ ८॥
इतस्ततो भ्रमेद्यश्च यापयेत्समयं सदा ।
सम्प्राप्नोति भवक्लेशमतो रामं स्मर प्रियम् ॥ ९॥
यो विधाति हृदि ध्यात्वा सीतारामसुकीर्तनम् ।
कष्टं विहाय सानन्दं सान्निध्यं लभते हरेः ॥ १०॥
सीतारामदशश्लोकी सीतारामकृपाप्रदा ।
राधासर्वेश्वराद्येन शरणान्तेन निर्मिता ॥ ११॥
हिन्दी भावार्थ -
जो भगवान् श्रीराम का महामङ्गल स्वरूप राम-राम नाम का सर्वदा रटन पूर्वक जाप करता है, वह श्रीहरि के नित्य दिव्य धाम को अवश्य प्राप्त कर लेता है, इसमें किसी प्रकार का सन्देह नहीं है ॥ १॥
जो भावुक भक्त इस भूतल पर श्रद्धापूर्वक भगवान् श्रीराम के मङ्गलमय नाम का अनवरत जप करता है, वह कृपामय श्रीराम की दिव्य कृपा की प्राप्ति करता है और परम सुख को प्राप्त करता है ॥ २॥
भगवान् श्रीराम के स्मरण मात्र से समग्र पापराशि पूर्ण रूप से विनष्ट हो जाती है और इस संसार के दुष्चक्र से सर्वदा के लिये छुटकारा पाकर परम शाश्वत मोक्ष को प्राप्त करता है ॥ ३॥
त्रिविध तापों से परिपूर्ण इस संसार में व्यर्थ ही इधर-उधर भटकते हैं, क्यों? नहीं उन शरणागत भक्तों के समस्त पापराशि का निवारण करने वाले भगवान् श्रीराम को भजते अर्थात् उन्हीं सर्वेश्वर का पावन भजन, स्मरण करना मानव जीवन का परम अभीष्ट कार्य है ॥ ४॥
यह संसार चक्र बड़ा ही वक्र अर्थात् टेडा है, दुःख रूप कीच से भरा हुआ है । यदि अपने चित्त में भगवान् श्रीराम निरन्तर विराजित हैं तो यह क्लेशकर्दम अर्थात् कष्टप्रद कीच किसी प्रकार बाधक नहीं हो सकता ॥ ५॥
इस दुःखरूप कीच के आधार स्वरूप इस जगत् में निरर्थक जहाँ-तहाँ घूमते हो, भगवान् श्रीसीताराम को सदा अपने मन में विराजमान करें तो स्वतः सुन्दर शाश्वत सुख का सञ्चार होगा ॥ ६॥
वही उत्तम कार्य है, वही उत्तम जीवन है जिसकी जिह्वा पर सदा भगवान् श्रीराम का निवास अर्थात् समुच्चारण है, उसका सर्वविध मङ्गलमय कल्याण सुनिश्चित है ॥ ७॥
अनेक अज्ञ मानव रातदिन वृथा ही जगत् के विनश्वर कार्यों के करने में लगे रहते हैं, यदि वे कृपार्णव भगवान् श्रीराघवेन्द्र का प्रतिपल भजन करें तो उनको परम शाश्वत सुख प्राप्त होगा ॥ ८॥
इधर-उधर घूम-घूम कर जो अमूल्य दुर्लभ समय को व्यतीत करते हैं तो उनको जागतिक नाना क्लेशों से सन्ताप का अनुभव होता है, अतः नयनाभिराम श्रीराम प्रभु का वे स्मरण करें जिससे जीवन आनन्दमय बने ॥ ९॥
जो श्रद्धालु भावुक भक्त अपने हृदय में ध्यान करके उन अपार करुणासिन्धु भगवान् श्रीसीताराम के मङ्गलमय नाम का सङ्कीर्तन करता है, वह सांसारिक कष्टों से रहित होकर उन परम कृपामय श्रीहरि का दिव्य सान्निध्य प्राप्त कर लेता है ॥ १०॥
भगवान् श्रीसीताराम की दिव्य कृपा प्रदायिनी यह श्रीसीता-राम-दशश्लोकी की शुभ रचना उन्हीं की प्रेरणानुसार जिस विधा हुई, यह भक्तों के लिये प्रस्तुत है ॥ ११॥
इति श्रीरामनामदशश्लोकी समाप्ता ।
Proofread by Mohan Chettoor