ब्रह्माकृता रामस्तुतिः
ईश्वर उवाच -
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि ब्रह्मा देवर्षिसंयुतः ।
उवाच वचनं तत्र रामं राजीवलोचनम् ॥ १॥
मालिनी हिन्दी व्याख्या - भगवान शंकर ने पार्वती से कहा-हे देवि ब्रह्मा
आदि देवताओं ने संयुक्त होकर कमल के समान नेत्रों वाले राम से जो
कहा, वह अब मैं बताऊँगा, उसे सुनो ॥ १॥
ब्रह्मोवाच -
त्वमेव परमं ब्रह्म त्वयि सर्वं प्रतिष्ठितम् ।
दृश्यसे ग सर्वभूतेषु ब्राह्मणेषु विशेषतः ॥ २॥
दिक्षु सर्वासु गगने पर्वतेषु वनेषु च ।
अन्ते पृथिव्याः सलिले वायौ वह्नौ महोदधौ ॥ ३॥
मालिनी हिन्दी व्याख्या - ब्रह्मा ने कहा-हे राम ! आप ही परब्रह्म हो, आप में
ही सब कुछ प्रतिष्ठित है । आप सभी प्राणियों में दिखायी पड़ते हो,
विशेषकर ब्राह्मणों में (तुम्हारी प्रतिष्ठा है)। सम्पूर्ण दिशाओं में,
आकाश में, पर्वत में, वनों में, पृथ्वी के प्रत्येक छोर में, जल,
वायु, अग्नि और समुद्र में (आप सभी जगह विद्यमान हैं ।) ॥ २-३॥
अहं ते हृदयं राम जिह्वा देवी सरस्वती ।
देवा गात्रेषु रोमाणि महोदेवोप्यऽहङ्कृतिः ॥ ४॥
सप्तर्षयो वसिष्ठाद्याः देवाः साग्निपुरोगमाः ।
पशुपक्षिमृगाः कीटाः समुद्राः कुलपर्वताः ॥ ५॥
स्थावराः जङ्गमाः ये ये भुवनानि चतुर्दश ।
वृक्षौषधिलताः देव गात्रेषु तव निर्मिताः ॥ ६॥
मालिनी हिन्दी व्याख्या - हे राम ! मैं (ब्रह्मा) तुम्हारा हृदय हूँ,
देवी सरस्वती जिह्वा, आपके शरीर की रोमावलियाँ ही सम्पूर्ण देव
हैं और महादेव आपके अभिमान हैं । वशिष्ठ आदि सप्त ऋषि, आगे
चलने वाले अग्नि सदृश देवता, पशु, पक्षी, हिरण, कीट, समुद्र,
सम्पूर्ण पर्वत, स्थावर, जङ्गम और जो जो चौदह भुवनों में
अवस्थित वृष, औषधिलता और देवता हैं, आपके शरीर से ही
निर्मित हैं ॥ ४-६॥
कुक्षौ त्वदीये तिष्ठन्ति परमाणव एव ते ।
सर्वेषां जन्मनिधनं प्रापकोऽसि न संशयः ॥ ७॥
मायाश्रयत्वाज्जीवानां पिता भवसि सुव्रत ।
सर्वव्यापी सर्वसाक्षी चिन्मयस्तमसः परः ॥ ८॥
मालिनी हिन्दी व्याख्या - तुम्हारी काॅख में परमाणुओं के समान जीव
निवास करते हैं । आप ही सभी के जन्म एवं मृत्यु के कारण हैं,
इसमें कोई संशय नहीं है । हे व्रतधारी ! माया के आश्रयीभूत
उत्पन्न होने वाले आप सभी जीवों के पिता हैं । आप अन्धकार से परे,
चिन्मयस्वरूप, सर्वसाक्षी और सर्वव्यापी हैं ॥ ७-८॥
निर्विकल्पो निराभासो निश्शङ्को निरुपद्रवः ।
निर्लेपः सकलाध्यक्षो महापुरुष ईश्वरः ॥ ९॥
अहं विष्णुश्च रुद्रश्च शङ्करश्च निरञ्जनः ।
त्वत्तो नान्यः परो देवस्त्रिषु लोकेषु विद्यते ॥ १०॥
मालिनी हिन्दी व्याख्या - (हे राम ! आप ही) निर्विकल्प, निराभास, निशंक,
निरुपद्रव, निर्लेप, सकलाध्यक्ष, महापुरुष और ईश्वर हैं ।
मैं विष्णु हूँ, रुद्र हूँ, शंकर हूँ, निरञ्जन हूँ । आप से
बड़ा कोई अन्य देवता तीनों लोकों में विराजमान नहीं हैं ॥ ९-१०॥
इति स्तुत्वा दैवगणैश्चतुक्त्रोऽब्रवीत्पुनः ।
राम त्वं दुष्टनाशाय ह्यवतीर्णो रघोः कुले ॥ ११॥
अस्माभिः प्रार्थितः पूर्वं तत्सत्यं कृतवानसि ।
याहि राम गृहीत्वाश्वं यज्ञशेषं समापय ॥ १२॥
मालिनी हिन्दी व्याख्या - राम की ऐसी स्तुति करके देवगगणों से चतुर्मुख
ब्रह्मा जी ने फिर कहा कि हे राम ! दुष्टों का विनाश करने के लिए ही
आप राजा रघु के कुल में अवतीर्ण हुए । पूर्व में हम लोगों ने जो-जो
प्रार्थना की, उसे सही रूप में आपने किया । हे राम ! अश्वमेधीय
घोड़े को लेकर जाइये और अवशिष्ट यज्ञ को पूरा कीजिये ॥ ११-१२॥
कलास्तवसुरेन्द्रादीन् सन्तर्पय विधानतः ।
एकादशसहस्राणामब्दानां पालय क्षितिम् ॥ १३॥
ततः परं निजं धाम यास्यामि त्वं परात्परम् ।
इति विज्ञाप्य देवेशो ययौ देवगणैस्सहम् ॥ १४॥
मालिनी हिन्दी व्याख्या - तुम्हारी कलाओं के रूप में अवस्थित इन्द्र आदि
सम्पूर्ण देवताओं को विधि-विधान से सन्तर्पित करो और एक हजार
युगों तक पृथ्वी का पालन करो । इसके बाद हे परात्पर ! आप अपने
धाम जायेंगे । ऐसा कहकर इन्द्र अन्य देवताओं के साथ चले गये ॥ १३-१४॥
अथागमत्पुष्कराक्षो पूजामादाय सुप्रभाम् ।
रत्नसिंहासनं प्रादाद् रामायामिततेजसे ॥ १५॥
रामस्य चरणद्वन्द्वं रत्नपुष्पैरपूजत् ।
पुपूज परया भक्त्या नमस्कृत्वा पुनः पुनः ॥ १६॥
मालिनी हिन्दी व्याख्या - इसके बाद प्रातःकाल पुष्कराक्ष पूजन की साम्रगी
लेकर आया और अखण्ड तेजस्वी राम के लिए रत्नसिंहासन प्रदान किया ।
राम के दोनों चरणों को उसने रत्न रूपी पुष्पों से पूजा की । भक्ति
से पूजन करके बार-बार उन्हें प्रणाम किया ॥ १५-१६॥
रामाज्ञां च गृहीत्वाऽसौ ययौ स्वपुरीं प्रति ।
ततो रामस्तदा तत्र प्रोवाच जनसंसदि ॥ १७॥
किङ्कर्तव्यमितोऽस्माभिः यूयं वदत मामकाः ।
इत्युक्ते च तदा रामे सुग्रीवः प्राह भूमिपम् ॥ १८॥
मालिनी हिन्दी व्याख्या - और राम की आज्ञा लेकर वह पुष्कराक्ष अपनी
नगरी चित्रवती की ओर प्रस्थान किया । उसके बाद राम ने एक जनसभा
को सम्बोधित किया और कहा कि अब इसके बाद हम लोगों को क्या करना
चाहिए, आप लोग मुझे बताइये । राम के ऐसा कहने पर सुग्रीव ने राजा
राम से कहा ॥ १७-१८॥
अत्रेत्य कार्यं सर्वं वै जातं मे भावि तत्त्वतः ।
गमनं दृश्यते राजन् मेरौ हि कमलेक्षण ॥ १९॥
सुग्रीवस्य वचस्तथ्यं मत्वा रामः प्रतापवान् ।
सर्वानाज्ञाप्य गमने रामः सैन्य-समावृतः ॥ २०॥
मालिनी हिन्दी व्याख्या - यहाँ से जाने के बाद ही सभी कार्य अपने आप हो
जायेंगे; क्योंकि ऐसी भावी सूचनाएँ मिल रही हैं; क्योंकि हे राजन् !
सुमेरु पर्वत विष्णु की शरण में जा रहा है । सुग्रीव के वचनों
और तथ्यों को मानकर प्रतापी राम ने सेना सहित सभी को जाने का
आदेश दिया ॥ १९-२०॥
पुष्पकं तत्समारुह्य देवतागणपूजितः ।
आगत्य येन मार्गेण ययौ मार्गेण तेन सः ॥ २१॥
सप्तद्वीपा नतिक्रम्य हेमाद्रिं सुमपागमत् ।
तत्र देवगणान्नत्वा मेरौ स्थित्वा महाबलः ॥ २२॥
मालिनी हिन्दी व्याख्या - देवता गणों को पूजित करके सभी लोग पुष्पकविमान
पर आरूढ हुए । वह विमान जिस मार्ग से आया था, उसी मार्ग से वापस
लौटा । सप्त द्वीपों को पार करके वह विमान हेमाद्रि पहुँचा वहाँ
देवगणों को प्रणाम करके महाबली सुमेरु वहीं स्थित हो गया ॥ २१-२२॥
मेरुणा दत्तमखिलं यत्नप्राप्तः प्रगृह्य सः ।
भेरीरवैस्तूर्यघोषैर्विदारितदिगन्तरः ॥ २३॥
सर्वैः साकं मुदा रामो भ्रातृभिः सहितः प्रभुः ।
मङ्गलालङ्कृतं दिव्यमयोध्यानगरं ययौ ॥ २४॥
इति श्रीशैवरामायणे पार्वतीश्वरसंवादे एकादशोऽध्याये
ब्रह्मप्रोक्ता रामस्तुतिः समाप्ता ।
मालिनी हिन्दी व्याख्या - सुमेरु के द्वारा अपना सब कुछ (राम को)
प्रदान कर दिया गया, जो उसने यत्नपूर्वक प्राप्त किया था, तभी
भेरीरव एवं तूर्य निनाद से दिग-दिगन्तर-परिव्याप्त हो गये । सभी
के साथ प्रसन्न राम, अपने भाईयों सहित, मंगलों से अलंकृत
दिव्य अयोध्या नगरी गये ॥ २३-२४॥
इस प्रकार शिवपार्वती संवाद रूप में प्राप्त शैवरामायण का
पार्वती-ईश्वर संवाद नामक ग्यारहवाँ अध्याय समाप्त हुआ जिस में
ब्रह्माजी ने की हुई रामस्तुति पायी जाती है ।
Encoded and proofread by Mohan Chettoor