श्रीशैलपतिदशकम्
जय भस्मविभूषणविग्रह हे
अहिबन्धक नग्नक अम्बक हे ।
जटिमण्डलमण्डित षण्डपते
प्रणमामि पदे तव शैलपते ॥ १॥
हर शङ्कर ईश्वर शूलधर
तटिनीधर धीधर योगिवर ।
शशिशेखर शाश्वतकीर्त्तिरते
प्रणमामि पदे तव शैलपते ॥ २॥
अनलेक्षण भीषण नीलगल
विमलास्थिविराजित कालकल ।
वरदायक भैरव देवपते
प्रणमामि पदे तव शैलपते ॥ ३॥
गिरिराजसुतासुखसाधक हे
गणनाथषडाननलालक हे ।
सुरसुन्दर निन्दितकामपते
प्रणमामि पदे तव शैलपते ॥ ४॥
गणपालकधारकनायक हे
रिपुशासकशोषकनाशक हे ।
विषभक्षक रक्षक लोकततेः
प्रणमामि पदे तव शैलपते ॥ ५॥
स्मरसुन्दरविग्रहनिग्रह हे
त्रिपुरासुरमारक तारक हे ।
मखपावकनाशक चण्डपते
प्रणमामि पदे तव शैलपते ॥ ६॥
करुणावरुणालय शोभन हे
जनजीवनतारणकारण हे ।
दरदण्डितखण्डितभक्तपते
प्रणमामि पदे तव शैलपते ॥ ७॥
जनलालनपालनकारक हे
सुखदायक पोषक तोषक हे ।
भववारणवारणदावपते
प्रणमामि पदे तव शैलपते ॥ ८॥
मतिवर्द्धक भर्त्तक दर्पक हे
भयकर्त्तक सार्थकनर्त्तक हे ।
मृतिहारक पारक भूतपते
प्रणमामि पदे तव शैलपते ॥ ९॥
मनुजासुरनिर्जरपूजित हे
भजकाखिलपातकघातक हे ।
शुभकर्मद धर्मद विश्वपते
प्रणमामि पदे तव शैलपते ॥ १०॥
इति व्रजकिशोरविरचितं श्रीशैलपतिदशकं सम्पूर्णम् ।
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