शिवमहिमा एवं स्तुतिः

शिवमहिमा एवं स्तुतिः

एको हि रुद्रो न द्वितीयाय तस्थुर्य इमाँल्लोकानीशत ईशनीभिः । जो अपनी स्वरूपभूत विविध शासन-शक्तियोंद्वारा इन सब लोकोंपर शासन करता है, वह रुद्र एक ही है, (इसीलिये विद्वान पुरुषोंने जगतूके कारणका निश्चय करते समय दूसरेका आश्रय नहीं लिया, ) प्रत्यङ् जनांस्तिष्ठति संचुकोचान्तकाले संसृज्य विश्वा भुवनानि गोपाः ॥ वह परमात्मा समस्त जीवोंके भीतर स्थित हो रहा है । सम्पूर्ण लोकोंकी रचना करके उनको रक्षा करनेवाला परमेश्वर, प्रलयकालमें इन सबको समेट लेता है । यो देवानां प्रभवश्चोद्भवश्च विश्वाधिपो रुद्रो महर्षिः । जो रुद्र इन्द्रादि देवताओंकी उत्पत्तिका हेतु और वृद्धिका हेतु है तथा (जो) सबका अधिपति (और) महान ज्ञानी (सर्वज्ञ) है, हिरण्यगर्भ जनयामास पूर्व स नो बुद्ध्या शुभया संयुनक्तु ॥ (जिसने) पहले हिरण्यगर्भको उत्पन्न किया था, वह परमदेव परमेश्वर हमलोगोंको शुभ बुद्धिसे संयुक्त करे । या ते रूद्र शिवा तनूरघोरापापकाशिनी । तया नस्तनुवा शन्तमया गिरिशन्ताभिचाकशीहि ॥ ततः परं ब्रह्मपरं बृहन्तं हे रुद्रदेव! तेरी जो भयानकतासे शून्य (सौम्य) पुण्यसे प्रकाशित होनेवाली (तथा) कल्याणमयी मूर्ति है, हे पर्वतपर रहकर सुखका विस्तार करनेवाले शिव! उस परम शान्त मूर्तिसे (तू कृपा करके) हमलोगोंको देख । यथानिकायं सर्वभूतेषु गूढम् । विश्वस्यैकं परिवेष्टितारमीशं तं ज्ञात्वामृता भवन्ति ॥ पूर्वोक्त जीव-समुदायरूप जगत्के परे (और) हिरण्यगर्भरूप ब्रह्मासे भी श्रेष्ठ, समस्त प्राणियोंमें उनके शरीरोंके अनुरूप होकर छिपे हुए (और) सम्पूर्ण विश्वको सब ओरसे घेरे हुए उस महान् सर्वत्र व्यापक एकमात्र देव परमेश्वरको जानकर (ज्ञानीजन) अमर हो जाते हैं । सर्वाननशिरोग्रीवः सर्वभूतगुहाशयः । सर्वव्यापी स भगवांस्तस्मात् सर्वगतः शिवः ॥ वह भगवान सब ओर मुख, सिर और ग्रीवावाला है । समस्त प्राणियोंके हृदयरूप गुफामें निवास करता है (और) सर्वव्यापी है, इसलिये वह कल्याणस्वरूप परमेश्वर सब जगह पहुँचा हुआ है । महान प्रभुर्वै पुरुषः सत्त्वस्यैष प्रवर्तकः । सुनिर्मलामिमां प्राप्तिमीशानो ज्योतिरव्ययः ॥ निश्चय ही यह महान समर्थ, सनपर शासन करनेवाला, अविनाशी (एवं) प्रकाशस्वरूप परमपुरुष पुरुषोत्तम अपनी प्राप्तिरूप इस अत्यन्त निर्मल लाभको ओर अन्तःकरणको प्रेरित करनेवाला है । पुरुष एवेद्ँ सर्वं यद्भूतं यच्च भव्यम् । उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ॥ जो अबसे पहले हो चुका है, जो भविष्यमें होनेवाला है और जो खाद्य पदार्थासे इस समय बढ़ रहा है, यह समस्त जगत् परम पुरुष परमात्मा ही है और (वही) अमृतस्वरूप मोक्षका स्वामी है । सर्वतः पाणिपादं तत् सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम् । सर्वतः श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति ॥ वह परम पुरुष परमात्मा सब जगह हाथ-पैरवाला, सब जगह आँख, सिर और मुखवाला (तथा) सब जगह कानोंवाला है, (वही) ब्रह्माण्डमें सबको सब ओरसे घेरकर स्थित है । सर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेन्द्रियविवर्जितम् । सर्वस्य प्रभुमीशानं सर्वस्य शरणं बृहत् ॥ (जो परम पुरुष परमात्मा) समस्त इन्द्रियोंसे रहित होनेपर भी समस्त इन्द्रियोंके विषयोंको जाननेवाला है (तथा) सबका स्वामी, सबका शासक (और) सबसे बड़ा आश्रय है । अपाणिपादो जवनो ग्रहीता पश्यत्यचक्षुः स श‍ृणोत्यकर्णः । स वेत्ति वेद्यं न च तस्यास्ति वेत्ता तमाहुरग्रयं पुरुषं महान्तम् ॥ वह परमात्मा हाथ-पैरोंसे रहित होकर भी समस्त वस्तुओंको ग्रहण करनेवाला (तथा) वेगपूर्वक सर्वत्र गमन करनेवाला है, आँखोंके बिना ही वह सब कुछ देखता है (और) कानोंके बिना ही सब कुछ सुनता है, वह जो कुछ भी जाननेमें आनेवाली वस्तुएँ हैं उन सबको जानता है परंतु उसको जाननेवाला (कोई) नहीं है, (ज्ञानी पुरुष) उसे महान आदि पुरुष कहते हैं । अणोरणीयान् महतो महीया- नात्मा गुहायां निहितोऽस्य जन्तोः । तमक्रतुं पश्यति वीतशोको धातुः प्रसादान्महिमानमीशम् ॥ (वह) सूक्ष्मसे भी अति सूक्ष्म (तथा) बड़ेसे भी बहुत बड़ा परमात्मा इस जीवकी हृदयरूप गुफामें छिपा हुआ है, सबकी रचना करनेवाले परमेश्वरको कृपासे (जो मनुष्य) उस संकल्परहित परमेश्वरको (और) उसकी महिमाको देख लेता है (वह) सब प्रकारके दुःखोंसे रहित (हो जाता है) । मायां तु प्रकृतिं विद्यान्मायिनं तु महेश्वरम् । तस्यावयवभूतैस्तु व्याप्तं सर्वमिदं जगत् ॥ माया तो प्रकृतिको समझना चाहिये और मायापति महेश्वरको समझना चाहिये, उसीके अंगभूत कारण-कार्य-समुदायसे यह सम्पूर्ण जगत् व्याप्त हो रहा है । यो योनिं योनिमधितिष्ठत्येको यस्मिन्निदं सं च वि चैति सर्वम् । तमीशानं वरदं देवमीड्यं निचाय्येमां शान्तिमत्यन्तमेति ॥ जो अकेला ही प्रत्येक योनिका अधिष्ठाता हो रहा है, जिसमें यह समस्त जगत् प्रलयकालमें विलीन हो जाता है और सृष्टिकालमें विविध रूपोमें प्रकट भी हो जाता है, उस सर्वनियन्ता वरदायक स्तुति करनेयोग्य परमदेव परमेश्वरको तत्त्वसे जानकर (मनुष्य) निरन्तर बनी रहनेवाली इस (मुक्तिरूप) परम शान्तिको प्राप्त हो जाता है । यो देवानां प्रभवश्चोद्भवश्च विश्वाधिपो रुद्रो महर्षिः । हिरण्यगर्भं पश्यत जायमानं स नो बुद्ध्या शुभया संयुनक्तु ॥ जो रुद्र इन्द्रादि देवताओंको उत्पन्न करनेवाला और बढ़ानेवाला है तथा (जो) सबका अधिपति (और) महान ज्ञानी (सर्वज्ञ) है (जिसने सबसे पहले) उत्पन्न हुए हिरण्यगर्भको देखा था, वह परमदेव परमेश्वर हमलोगोंको शुभ बुद्धिसे संयुक्त करे । सूक्ष्मातिसूक्ष्मं कलिलस्य मध्ये विश्वस्य स्रष्टारमनेकरूपम् । विश्वस्यैकं परिवेष्टितारं ज्ञात्वा शिवं शान्तिमत्यन्तमेति ॥ (जो) सूक्ष्मसे भी अत्यन्त सूक्ष्म हृदयगुहारूप गुह्यस्थानके भीतर स्थित, अखिल विश्वको रचना करनेवाला, अनेक रूप धारण करनेवाला (तथा) समस्त जगतको सब ओरसे घेर रखनेवाला है (उस) एक (अद्वितीय) कल्याणस्वरूप महेश्वरको जानकर (मनुष्य) सदा रहनेवाली शान्तिको प्राप्त होता है । घृतात् परं मण्डमिवातिसूक्ष्मं ज्ञात्वा शिवं सर्वभूतेषु गृढम् । विश्वस्यैकं परिवेष्टितारं ज्ञात्वा देवं मुच्यते सर्वपाशैः ॥ कल्याणस्वरूप एक (अद्वितीय) परमदेवको मक्खनके ऊपर रहनेवाले सारभागकी भाँति अत्यन्त सूक्ष्म (और) समस्त प्राणियोंमें छिपा हुआ जानकर (तथा) समस्त जगतूको सब ओरसे घेरकर स्थित हुआ जानकर (मनुष्य) समस्त बन्धनोंसे छूट जाता है । यदातमस्तन्न दिवा न रात्रि- र्न सन्न चासञ्छिव एव केवलः । तदक्षरं तत्सवितुर्वरेण्यं प्रज्ञा च तस्मात् प्रसृता पुराणी ॥ जब अज्ञानमय अन्धकारका सर्वथा अभाव हो जाता है, उस समय (अनुभवमें आनेवाला तत्त्व) न दिन है न रात है, न सत् है और न असत् है, एकमात्र विशुद्ध कल्याणमय शिव ही है वह सर्वथा अविनाशी है, वह सूर्याभिमानी देवताका भी उपास्य है तथा उसीसे (यह) पुराना ज्ञान फैला है । भावग्राह्ममनीडाख्यं भावाभावकरं शिवम् । कलासर्गकरं देवं ये विदुस्ते जहुस्तनुम् ॥ श्रद्धा और भक्तिके भावसे प्राप्त होनेयोग्य, आश्रयरहित कहे जानेवाले (तथा) जगतूकी उत्पत्ति और संहार करनेवाले, कल्याणस्वरूप (तथा) सोलह कलाओंकी रचना करनेवाले परमदेव परमेश्वरको जो साधक जान लेते हैं, वे शरीरको (सदाके लिये) त्याग देते हैं-जन्म-मृत्युके चक्करसे छूट जाते हैं । Proofread by Ganesh Kandu kanduganesh at gmail.com
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% Latest update         : October 1, 2018
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