जयतु जयतु मे भारतदेश
(गीतिका)
जयतु जयतु मे भारतदेश
जयतु गुणाब्धित-गौरव-वेश ।
वीर-प्रसू सुषमाढ्य- मनोज्ञ,
वीर वृन्द-परिपालित-देश ॥ जयतु०॥ १
शस्य-श्यामलो नव-रस-पूर्णं,
खग-रव-शोभित-द्रुम-दल-पूर्णम् ।
नाना-नद-सरिता रवतूर्णं
सुखद-मुदागति-गति-रय-पूर्णम् ॥ जयतु०॥ २
हिमगिरि-शोभित-मन्जु किरीट
विन्ध्य-मेखला-मणिमय-मध्य ।
सागर-पूजित-पद-युग-रम्य
शान्ति-सुधा-रस-गौरव-हृद्य ॥ जयतु ॥ ३
विश्ववन्द्य-कविवृन्द-समिद्धः
ज्ञान-दीप्ति-श्रित-भूति-समृद्धः ।
तत्त्वज्ञान-गरिमाञ्चित शुद्धः
शौर्य-धैर्य-बल-बुद्धि-प्रबुद्धः ॥ जयतु०॥ ४
मति-रति-भक्ति-विरक्ति गुणाढय,
कृति-तति शक्ति-समन्वित-काय ।
ज्ञान-भानु-कर हृत-मल-शुद्ध
ऋद्धि-सिद्धि-सुषमा-सुसमृद्ध ॥ जयतु०॥ ५
सर्वकाल-सुषमा-परमाढय,
कुसुम-समृद्धि-समेधित-शोभ ।
शाद्वल-शोभित-सुरभित-क्षेत्र,
ज्ञान-भक्ति-कृति-रम्य-त्रिनेत्र ॥ जयतु ॥ ६
कालिदास-कपिलादि-प्रसिद्ध,
माघ-हर्ष-भवभूति-समृद्ध ।
गौतम-जैमिनि-दर्शन-सिद्ध,
उमा-रमा-गुण-गौरव-शुद्ध ॥ जयतु०॥ ७
ज्ञानामृत-परितोषित-लोक,
तत्त्वज्ञान-परिशोषित-शोक ।
शान्ति-सुधा-रस-हृत-कलि-पाप,
कर्मयोग-हृत-मानस-ताप ॥ जयतु०॥ ८
गाङ्घि-सुभाष-गुणावलि वन्द्य,
कवि-अरविन्द-रवीन्द्र-सुनन्द्य ।
भक्तसिंह-तिलकाञ्चित-भाल
स्वामि-दयानन्दार्चित-पाद ॥ जयतु०॥ ९
शान्ति-क्रान्ति-समवाय-समिद्ध
शक्ति-भक्ति-नय-सिद्धि-समृद्ध ।
निखिल-विश्व-सुख शान्ति-प्रणुन्न,
भवतु भवे गुण-कीर्ति-प्रसिद्ध ॥ जयतु०॥ १०
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