कुरुत वीराः कर्मधीरा
कुरुत वीराः कर्मधीरा मातृपदयुगवन्दनम् ।
मातृवन्दनतो नितान्तं आप्यतां परमं पदम् ॥ ध्रुवम् ॥
किन्नु वो मृदु मञ्जुवदने दीनतापरिलाञ्छनम् ।
स्मरत यूयं वीरमुनिकुलसम्भवा नवपल्लवाः ॥ १॥
त्यजत दैन्यविषादभावं सर्वश्रेयोहारकम् ।
हरत सर्वजनान्तरङ्गं स्वीयविक्रमकर्मणा ॥ २॥
चरत धर्मपथेन पूर्वजदर्शितेन सदा मुदा ।
नयत विश्वगुरुत्वमचिरात् आर्षभारतमातरम् ॥ ३॥
--- रणजित