सूत्रम्
आ च हौ॥ ६।४।११७
काशिका-वृत्तिः
आ च हौ ६।४।११७
जहातेराकारश्च अन्तादेशो भवति इकारश्च अन्यतरस्यां हौ परतः। जहाहि, जहिहि, जहीहि।
लघु-सिद्धान्त-कौमुदी
आ च हौ ६२३, ६।४।११७
जहातेर्है परे आ स्याच्चादिदीतौ। जहाहि, जहिहि, जहीहि। अजहात्। अजहुः॥
न्यासः
आ च हौ। , ६।४।११७
चकार इत्त्वान्यतरस्यांग्रहणयोरनुकर्षणार्थः॥
तत्त्व-बोधिनी
आच हौ २८५, ६।४।११७
चादिदीताविति। अत एव भट्टिः प्रायुङ्क्त-- "जहिहि जहीहि जहाहि रामभार्या"मिति।