श्रीअन्नपूर्णास्तोत्रम् अपरनाम अन्नपूर्णाष्टकम्

श्रीअन्नपूर्णास्तोत्रम् अपरनाम अन्नपूर्णाष्टकम्

नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी निर्धूताखिलघोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी । var घोरपापनिकरी प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ १॥ नानारत्नविचित्रभूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी मुक्ताहारविलम्बमान विलसत् वक्षोजकुम्भान्तरी । काश्मीरागरुवासिता रुचिकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ २॥ योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मार्थनिष्ठाकरी चन्द्रार्कानलभासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी । सर्वैश्वर्यसमस्तवाञ्छितकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ ३॥ कैलासाचलकन्दरालयकरी गौरी उमा शङ्करी कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओङ्कारबीजाक्षरी । मोक्षद्वारकपाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ ४॥ दृश्यादृश्य विभूतिवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपाङ्कुरी । श्रीविश्वेशमनः प्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ ५॥ उर्वी सर्वजनेश्वरी भगवती माताऽन्नपूर्णेश्वरी वेणीनीलसमानकुन्तलधरी नित्यान्नदानेश्वरी । सर्वानन्दकरी सदाशुभकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ ६॥ आदिक्षान्तसमस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी काश्मीरा त्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्याङ्कुरा शर्वरी । कामाकाङ्क्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ ७॥ देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुन्दरी वामे स्वादुपयोधरा प्रियकरी सौभाग्य माहेश्वरी । भक्ताभीष्टकरी सदाशुभकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ ८॥ चन्द्रार्कानलकोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी चन्द्रार्काग्निसमानकुण्डलधरी चन्द्रार्कवर्णेश्वरी । मालापुस्तकपाशसाङ्कुशधरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ ९॥ क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी साक्षान्मोक्षकरी सदा शिवकरी विश्वेश्वरी श्रीधरी । दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ १०॥ अन्नपूर्णे सदापूर्णे शङ्करप्राणवल्लभे । ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति ॥ ११॥ माता मे पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः । बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ॥ १२॥ ॥ इति श्रीशङ्करभगवतः कृतौ अन्नपूर्णास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥ There are multiple variations of this popular stotra . The more common version is given above. Following three verses are inserted after verse number 10 in some printed editions. These are taken from annadA kalpa tantra ShoDasha paTalam भगवति भवरोगात्पीडितं दुष्कृतोत्वात् सुतदुहितृकलत्रोपद्रवेणानुयातम् । विलसदमृतदृष्ट्या वीक्ष्य विभ्रान्तचित्तं सकलभुवनमातस्त्राहि मामो नमस्ते ॥ ११॥ माहेश्वरीमाश्रितकल्पवल्लीमहम्भवोच्छेदकरी भवानीम् । क्षुधार्तजायातनयाद्युपेतस्त्वामन्नपूर्णे शरणं प्रपद्ये ॥ १२॥ दारिद्र्यदावानलदह्यमानं पाह्यन्नपूर्णे गिरिराजकन्ये । कृपाम्बुधौ मज्जय मां त्वदीये त्वत्पादपद्मार्पितचित्तवृत्तिम् ॥ १३॥ Encoded by Kapila Shankaran and Sunder Hattangadi
% Text title            : annapurnaastotram 1
% File name             : annapurna.itx
% itxtitle              : annapUrNAstotram 1 annapUrNAShTakam (nityAnandakarI varAbhayakarI)
% engtitle              : annapUrNAstotram 1
% Category              : devii, pArvatI, stotra, shankarAchArya, annapUrNA, devI, aShTaka
% Location              : doc_devii
% Sublocation           : devii
% SubDeity              : pArvatI
% Texttype              : stotra
% Author                : Shankaracharya
% Language              : Sanskrit
% Subject               : philosophy/hinduism/
% Transliterated by     : Sunder Hattangadi
% Proofread by          : Sunder Hattangadi
% Description-comments  : Last three verses are from Annada Kalpa Tantra paTala 16
% Source                : Complete Works of Shankaracharya
% Indexextra            : (English 1, 2, Marathi)
% Latest update         : August  9, 2000, December 11, 2015
% Send corrections to   : sanskrit at cheerful dot c om
% Site access           : https://sanskritdocuments.org

This text is prepared by volunteers and is to be used for personal study and research. The file is not to be copied or reposted for promotion of any website or individuals or for commercial purpose without permission. Please help to maintain respect for volunteer spirit.

BACK TO TOP
sanskritdocuments.org