Mantra classification is following this convention :-
{अष्टकः, अध्यायः, वर्गः, मन्त्रः}, {मण्डलम्, सूक्तम्, मन्त्रः}, {मण्डलम्, अनुवाकः, सूक्तम्, मन्त्रः}
[1] (१-३३) त्रयस्त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य काण्वः पर्वत ऋषिः, इन्द्रो देवता | उष्णिक् छन्दः || | |
1 | यऽइ᳚न्द्रसोम॒पात॑मो॒मदः॑शविष्ठ॒चेत॑ति | येना॒हंसि॒न्य१॑(अ॒)त्रिणं॒तमी᳚महे || {6.1.1.1}, {8.12.1}, {8.2.7.1} |
2 | येना॒दश॑ग्व॒मध्रि॑गुंवे॒पय᳚न्तं॒स्व᳚र्णरम् | येना᳚समु॒द्रमावि॑था॒तमी᳚महे || {6.1.1.2}, {8.12.2}, {8.2.7.2} |
3 | येन॒सिन्धुं᳚म॒हीर॒पोरथाँ᳚ऽइवप्रचो॒दयः॑ | पन्था᳚मृ॒तस्य॒यात॑वे॒तमी᳚महे || {6.1.1.3}, {8.12.3}, {8.2.7.3} |
4 | इ॒मंस्तोम॑म॒भिष्ट॑येघृ॒तंनपू॒तम॑द्रिवः | येना॒नुस॒द्यऽओज॑साव॒वक्षि॑थ || {6.1.1.4}, {8.12.4}, {8.2.7.4} |
5 | इ॒मंजु॑षस्वगिर्वणःसमु॒द्रऽइ॑वपिन्वते | इन्द्र॒विश्वा᳚भिरू॒तिभि᳚र्व॒वक्षि॑थ || {6.1.1.5}, {8.12.5}, {8.2.7.5} |
6 | योनो᳚दे॒वःप॑रा॒वतः॑सखित्व॒नाय॑माम॒हे | दि॒वोनवृ॒ष्टिंप्र॒थय᳚न्व॒वक्षि॑थ || {6.1.2.1}, {8.12.6}, {8.2.7.6} |
7 | व॒व॒क्षुर॑स्यके॒तवो᳚ऽउ॒तवज्रो॒गभ॑स्त्योः | यत्सूर्यो॒नरोद॑सी॒ऽअव॑र्धयत् || {6.1.2.2}, {8.12.7}, {8.2.7.7} |
8 | यदि॑प्रवृद्धसत्पतेस॒हस्रं᳚महि॒षाँऽअघः॑ | आदित्त॑ऽइन्द्रि॒यंमहि॒प्रवा᳚वृधे || {6.1.2.3}, {8.12.8}, {8.2.7.8} |
9 | इन्द्रः॒सूर्य॑स्यर॒श्मिभि॒र्न्य॑र्शसा॒नमो᳚षति | अ॒ग्निर्वने᳚वसास॒हिःप्रवा᳚वृधे || {6.1.2.4}, {8.12.9}, {8.2.7.9} |
10 | इ॒यंत॑ऋ॒त्विया᳚वतीधी॒तिरे᳚ति॒नवी᳚यसी | स॒प॒र्यन्ती᳚पुरुप्रि॒यामिमी᳚त॒ऽइत् || {6.1.2.5}, {8.12.10}, {8.2.7.10} |
11 | गर्भो᳚य॒ज्ञस्य॑देव॒युःक्रतुं᳚पुनीतऽआनु॒षक् | स्तोमै॒रिन्द्र॑स्यवावृधे॒मिमी᳚त॒ऽइत् || {6.1.3.1}, {8.12.11}, {8.2.7.11} |
12 | स॒निर्मि॒त्रस्य॑पप्रथ॒ऽइन्द्रः॒सोम॑स्यपी॒तये᳚ | प्राची॒वाशी᳚वसुन्व॒तेमिमी᳚त॒ऽइत् || {6.1.3.2}, {8.12.12}, {8.2.7.12} |
13 | यंविप्रा᳚ऽउ॒क्थवा᳚हसोऽभिप्रम॒न्दुरा॒यवः॑ | घृ॒तंनपि॑प्यऽआ॒सन्यृ॒तस्य॒यत् || {6.1.3.3}, {8.12.13}, {8.2.7.13} |
14 | उ॒तस्व॒राजे॒ऽअदि॑तिः॒स्तोम॒मिन्द्रा᳚यजीजनत् | पु॒रु॒प्र॒श॒स्तमू॒तय॑ऋ॒तस्य॒यत् || {6.1.3.4}, {8.12.14}, {8.2.7.14} |
15 | अ॒भिवह्न॑यऽऊ॒तयेऽनू᳚षत॒प्रश॑स्तये | नदे᳚व॒विव्र॑ता॒हरी᳚ऋ॒तस्य॒यत् || {6.1.3.5}, {8.12.15}, {8.2.7.15} |
16 | यत्सोम॑मिन्द्र॒विष्ण॑वि॒यद्वा᳚घत्रि॒तऽआ॒प्त्ये | यद्वा᳚म॒रुत्सु॒मन्द॑से॒समिन्दु॑भिः || {6.1.4.1}, {8.12.16}, {8.2.7.16} |
17 | यद्वा᳚शक्रपरा॒वति॑समु॒द्रेऽअधि॒मन्द॑से | अ॒स्माक॒मित्सु॒तेर॑णा॒समिन्दु॑भिः || {6.1.4.2}, {8.12.17}, {8.2.7.17} |
18 | यद्वासि॑सुन्व॒तोवृ॒धोयज॑मानस्यसत्पते | उ॒क्थेवा॒यस्य॒रण्य॑सि॒समिन्दु॑भिः || {6.1.4.3}, {8.12.18}, {8.2.7.18} |
19 | दे॒वंदे᳚वं॒वोऽव॑स॒ऽइन्द्र॑मिन्द्रंगृणी॒षणि॑ | अधा᳚य॒ज्ञाय॑तु॒र्वणे॒व्या᳚नशुः || {6.1.4.4}, {8.12.19}, {8.2.7.19} |
20 | य॒ज्ञेभि᳚र्य॒ज्ञवा᳚हसं॒सोमे᳚भिःसोम॒पात॑मम् | होत्रा᳚भि॒रिन्द्रं᳚वावृधु॒र्व्या᳚नशुः || {6.1.4.5}, {8.12.20}, {8.2.7.20} |
21 | म॒हीर॑स्य॒प्रणी᳚तयःपू॒र्वीरु॒तप्रश॑स्तयः | विश्वा॒वसू᳚निदा॒शुषे॒व्या᳚नशुः || {6.1.5.1}, {8.12.21}, {8.2.7.21} |
22 | इन्द्रं᳚वृ॒त्राय॒हन्त॑वेदे॒वासो᳚दधिरेपु॒रः | इन्द्रं॒वाणी᳚रनूषता॒समोज॑से || {6.1.5.2}, {8.12.22}, {8.2.7.22} |
23 | म॒हान्तं᳚महि॒नाव॒यंस्तोमे᳚भिर्हवन॒श्रुत᳚म् | अ॒र्कैर॒भिप्रणो᳚नुमः॒समोज॑से || {6.1.5.3}, {8.12.23}, {8.2.7.23} |
24 | नयंवि॑वि॒क्तोरोद॑सी॒नान्तरि॑क्षाणिव॒ज्रिण᳚म् | अमा॒दिद॑स्यतित्विषे॒समोज॑सः || {6.1.5.4}, {8.12.24}, {8.2.7.24} |
25 | यदि᳚न्द्रपृत॒नाज्ये᳚दे॒वास्त्वा᳚दधि॒रेपु॒रः | आदित्ते᳚हर्य॒ताहरी᳚ववक्षतुः || {6.1.5.5}, {8.12.25}, {8.2.7.25} |
26 | य॒दावृ॒त्रंन॑दी॒वृतं॒शव॑सावज्रि॒न्नव॑धीः | आदित्ते᳚हर्य॒ताहरी᳚ववक्षतुः || {6.1.6.1}, {8.12.26}, {8.2.7.26} |
27 | य॒दाते॒विष्णु॒रोज॑सा॒त्रीणि॑प॒दावि॑चक्र॒मे | आदित्ते᳚हर्य॒ताहरी᳚ववक्षतुः || {6.1.6.2}, {8.12.27}, {8.2.7.27} |
28 | य॒दाते᳚हर्य॒ताहरी᳚वावृ॒धाते᳚दि॒वेदि॑वे | आदित्ते॒विश्वा॒भुव॑नानियेमिरे || {6.1.6.3}, {8.12.28}, {8.2.7.28} |
29 | य॒दाते॒मारु॑ती॒र्विश॒स्तुभ्य॑मिन्द्रनियेमि॒रे | आदित्ते॒विश्वा॒भुव॑नानियेमिरे || {6.1.6.4}, {8.12.29}, {8.2.7.29} |
30 | य॒दासूर्य॑म॒मुंदि॒विशु॒क्रंज्योति॒रधा᳚रयः | आदित्ते॒विश्वा॒भुव॑नानियेमिरे || {6.1.6.5}, {8.12.30}, {8.2.7.30} |
31 | इ॒मांत॑ऽइन्द्रसुष्टु॒तिंविप्र॑ऽइयर्तिधी॒तिभिः॑ | जा॒मिंप॒देव॒पिप्र॑तीं॒प्राध्व॒रे || {6.1.6.6}, {8.12.31}, {8.2.7.31} |
32 | यद॑स्य॒धाम॑निप्रि॒येस॑मीची॒नासो॒ऽअस्व॑रन् | नाभा᳚य॒ज्ञस्य॑दो॒हना॒प्राध्व॒रे || {6.1.6.7}, {8.12.32}, {8.2.7.32} |
33 | सु॒वीर्यं॒स्वश्व्यं᳚सु॒गव्य॑मिन्द्रदद्धिनः | होते᳚वपू॒र्वचि॑त्तये॒प्राध्व॒रे || {6.1.6.8}, {8.12.33}, {8.2.7.33} |
[2] (१-३३) त्रयस्त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य काण्वो नारद ऋषिः | इन्द्रो देवता | उष्णिक् छन्दः || | |
34 | इन्द्रः॑सु॒तेषु॒सोमे᳚षु॒क्रतुं᳚पुनीतऽउ॒क्थ्य᳚म् | वि॒देवृ॒धस्य॒दक्ष॑सोम॒हान्हिषः || {6.1.7.1}, {8.13.1}, {8.3.1.1} |
35 | सप्र॑थ॒मेव्यो᳚मनिदे॒वानां॒सद॑नेवृ॒धः | सु॒पा॒रःसु॒श्रव॑स्तमः॒सम॑प्सु॒जित् || {6.1.7.2}, {8.13.2}, {8.3.1.2} |
36 | तम॑ह्वे॒वाज॑सातय॒ऽइन्द्रं॒भरा᳚यशु॒ष्मिण᳚म् | भवा᳚नःसु॒म्नेऽअन्त॑मः॒सखा᳚वृ॒धे || {6.1.7.3}, {8.13.3}, {8.3.1.3} |
37 | इ॒यंत॑ऽइन्द्रगिर्वणोरा॒तिःक्ष॑रतिसुन्व॒तः | म॒न्दा॒नोऽअ॒स्यब॒र्हिषो॒विरा᳚जसि || {6.1.7.4}, {8.13.4}, {8.3.1.4} |
38 | नू॒नंतदि᳚न्द्रदद्धिनो॒यत्त्वा᳚सु॒न्वन्त॒ऽईम॑हे | र॒यिंन॑श्चि॒त्रमाभ॑रास्व॒र्विद᳚म् || {6.1.7.5}, {8.13.5}, {8.3.1.5} |
39 | स्तो॒तायत्ते॒विच॑र्षणिरतिप्रश॒र्धय॒द्गिरः॑ | व॒याऽइ॒वानु॑रोहतेजु॒षन्त॒यत् || {6.1.8.1}, {8.13.6}, {8.3.1.6} |
40 | प्र॒त्न॒वज्ज॑नया॒गिरः॑शृणु॒धीज॑रि॒तुर्हव᳚म् | मदे᳚मदेववक्षिथासु॒कृत्व॑ने || {6.1.8.2}, {8.13.7}, {8.3.1.7} |
41 | क्रीळ᳚न्त्यस्यसू॒नृता॒ऽआपो॒नप्र॒वता᳚य॒तीः | अ॒याधि॒यायऽउ॒च्यते॒पति॑र्दि॒वः || {6.1.8.3}, {8.13.8}, {8.3.1.8} |
42 | उ॒तोपति॒र्यऽउ॒च्यते᳚कृष्टी॒नामेक॒ऽइद्व॒शी | न॒मो॒वृ॒धैर॑व॒स्युभिः॑सु॒तेर॑ण || {6.1.8.4}, {8.13.9}, {8.3.1.9} |
43 | स्तु॒हिश्रु॒तंवि॑प॒श्चितं॒हरी॒यस्य॑प्रस॒क्षिणा᳚ | गन्ता᳚रादा॒शुषो᳚गृ॒हंन॑म॒स्विनः॑ || {6.1.8.5}, {8.13.10}, {8.3.1.10} |
44 | तू॒तु॒जा॒नोम॑हेम॒तेऽश्वे᳚भिःप्रुषि॒तप्सु॑भिः | आया᳚हिय॒ज्ञमा॒शुभिः॒शमिद्धिते᳚ || {6.1.9.1}, {8.13.11}, {8.3.1.11} |
45 | इन्द्र॑शविष्ठसत्पतेर॒यिंगृ॒णत्सु॑धारय | श्रवः॑सू॒रिभ्यो᳚ऽअ॒मृतं᳚वसुत्व॒नम् || {6.1.9.2}, {8.13.12}, {8.3.1.12} |
46 | हवे᳚त्वा॒सूर॒ऽउदि॑ते॒हवे᳚म॒ध्यंदि॑नेदि॒वः | जु॒षा॒णऽइ᳚न्द्र॒सप्ति॑भिर्न॒ऽआग॑हि || {6.1.9.3}, {8.13.13}, {8.3.1.13} |
47 | आतूग॑हि॒प्रतुद्र॑व॒मत्स्वा᳚सु॒तस्य॒गोम॑तः | तन्तुं᳚तनुष्वपू॒र्व्यंयथा᳚वि॒दे || {6.1.9.4}, {8.13.14}, {8.3.1.14} |
48 | यच्छ॒क्रासि॑परा॒वति॒यद᳚र्वा॒वति॑वृत्रहन् | यद्वा᳚समु॒द्रेऽअन्ध॑सोऽवि॒तेद॑सि || {6.1.9.5}, {8.13.15}, {8.3.1.15} |
49 | इन्द्रं᳚वर्धन्तुनो॒गिर॒ऽइन्द्रं᳚सु॒तास॒ऽइन्द॑वः | इन्द्रे᳚ह॒विष्म॑ती॒र्विशो᳚ऽअराणिषुः || {6.1.10.1}, {8.13.16}, {8.3.1.16} |
50 | तमिद्विप्रा᳚ऽअव॒स्यवः॑प्र॒वत्व॑तीभिरू॒तिभिः॑ | इन्द्रं᳚क्षो॒णीर॑वर्धयन्व॒याऽइ॑व || {6.1.10.2}, {8.13.17}, {8.3.1.17} |
51 | त्रिक॑द्रुकेषु॒चेत॑नंदे॒वासो᳚य॒ज्ञम॑त्नत | तमिद्व॑र्धन्तुनो॒गिरः॑स॒दावृ॑धम् || {6.1.10.3}, {8.13.18}, {8.3.1.18} |
52 | स्तो॒तायत्ते॒ऽअनु᳚व्रतऽउ॒क्थान्यृ॑तु॒थाद॒धे | शुचिः॑पाव॒कऽउ॑च्यते॒सोऽअद्भु॑तः || {6.1.10.4}, {8.13.19}, {8.3.1.19} |
53 | तदिद्रु॒द्रस्य॑चेततिय॒ह्वंप्र॒त्नेषु॒धाम॑सु | मनो॒यत्रा॒वितद्द॒धुर्विचे᳚तसः || {6.1.10.5}, {8.13.20}, {8.3.1.20} |
54 | यदि॑मेस॒ख्यमा॒वर॑ऽइ॒मस्य॑पा॒ह्यन्ध॑सः | येन॒विश्वा॒ऽअति॒द्विषो॒ऽअता᳚रिम || {6.1.11.1}, {8.13.21}, {8.3.1.21} |
55 | क॒दात॑ऽइन्द्रगिर्वणःस्तो॒ताभ॑वाति॒शंत॑मः | क॒दानो॒गव्ये॒ऽअश्व्ये॒वसौ᳚दधः || {6.1.11.2}, {8.13.22}, {8.3.1.22} |
56 | उ॒तते॒सुष्टु॑ता॒हरी॒वृष॑णावहतो॒रथ᳚म् | अ॒जु॒र्यस्य॑म॒दिन्त॑मं॒यमीम॑हे || {6.1.11.3}, {8.13.23}, {8.3.1.23} |
57 | तमी᳚महेपुरुष्टु॒तंय॒ह्वंप्र॒त्नाभि॑रू॒तिभिः॑ | निब॒र्हिषि॑प्रि॒येस॑द॒दध॑द्वि॒ता || {6.1.11.4}, {8.13.24}, {8.3.1.24} |
58 | वर्ध॑स्वा॒सुपु॑रुष्टुत॒ऋषि॑ष्टुताभिरू॒तिभिः॑ | धु॒क्षस्व॑पि॒प्युषी॒मिष॒मवा᳚चनः || {6.1.11.5}, {8.13.25}, {8.3.1.25} |
59 | इन्द्र॒त्वम॑वि॒तेद॑सी॒त्थास्तु॑व॒तोऽअ॑द्रिवः | ऋ॒तादि॑यर्मिते॒धियं᳚मनो॒युज᳚म् || {6.1.12.1}, {8.13.26}, {8.3.1.26} |
60 | इ॒हत्यास॑ध॒माद्या᳚युजा॒नःसोम॑पीतये | हरी᳚ऽइन्द्रप्र॒तद्व॑सूऽअ॒भिस्व॑र || {6.1.12.2}, {8.13.27}, {8.3.1.27} |
61 | अ॒भिस्व॑रन्तु॒येतव॑रु॒द्रासः॑सक्षत॒श्रिय᳚म् | उ॒तोम॒रुत्व॑ती॒र्विशो᳚ऽअ॒भिप्रयः॑ || {6.1.12.3}, {8.13.28}, {8.3.1.28} |
62 | इ॒माऽअ॑स्य॒प्रतू᳚र्तयःप॒दंजु॑षन्त॒यद्दि॒वि | नाभा᳚य॒ज्ञस्य॒संद॑धु॒र्यथा᳚वि॒दे || {6.1.12.4}, {8.13.29}, {8.3.1.29} |
63 | अ॒यंदी॒र्घाय॒चक्ष॑से॒प्राचि॑प्रय॒त्य॑ध्व॒रे | मिमी᳚तेय॒ज्ञमा᳚नु॒षग्वि॒चक्ष्य॑ || {6.1.12.5}, {8.13.30}, {8.3.1.30} |
64 | वृषा॒यमि᳚न्द्रते॒रथ॑ऽउ॒तोते॒वृष॑णा॒हरी᳚ | वृषा॒त्वंश॑तक्रतो॒वृषा॒हवः॑ || {6.1.13.1}, {8.13.31}, {8.3.1.31} |
65 | वृषा॒ग्रावा॒वृषा॒मदो॒वृषा॒सोमो᳚ऽअ॒यंसु॒तः | वृषा᳚य॒ज्ञोयमिन्व॑सि॒वृषा॒हवः॑ || {6.1.13.2}, {8.13.32}, {8.3.1.32} |
66 | वृषा᳚त्वा॒वृष॑णंहुवे॒वज्रि᳚ञ्चि॒त्राभि॑रू॒तिभिः॑ | वा॒वन्थ॒हिप्रति॑ष्टुतिं॒वृषा॒हवः॑ || {6.1.13.3}, {8.13.33}, {8.3.1.33} |
[3] (१-१५) पञ्चदशर्चस्य सूक्तस्य काण्वायनौ गोषूक्त्यश्वसूक्तिनावृषी, इन्द्रो देवता | गायत्री छन्दः || | |
67 | यदि᳚न्द्रा॒हंयथा॒त्वमीशी᳚य॒वस्व॒ऽएक॒ऽइत् | स्तो॒तामे॒गोष॑खास्यात् || {6.1.14.1}, {8.14.1}, {8.3.2.1} |
68 | शिक्षे᳚यमस्मै॒दित्से᳚यं॒शची᳚पतेमनी॒षिणे᳚ | यद॒हंगोप॑तिः॒स्याम् || {6.1.14.2}, {8.14.2}, {8.3.2.2} |
69 | धे॒नुष्ट॑ऽइन्द्रसू॒नृता॒यज॑मानायसुन्व॒ते | गामश्वं᳚पि॒प्युषी᳚दुहे || {6.1.14.3}, {8.14.3}, {8.3.2.3} |
70 | नते᳚व॒र्तास्ति॒राध॑स॒ऽइन्द्र॑दे॒वोनमर्त्यः॑ | यद्दित्स॑सिस्तु॒तोम॒घम् || {6.1.14.4}, {8.14.4}, {8.3.2.4} |
71 | य॒ज्ञऽइन्द्र॑मवर्धय॒द्यद्भूमिं॒व्यव॑र्तयत् | च॒क्रा॒णऽओ᳚प॒शंदि॒वि || {6.1.14.5}, {8.14.5}, {8.3.2.5} |
72 | वा॒वृ॒धा॒नस्य॑तेव॒यंविश्वा॒धना᳚निजि॒ग्युषः॑ | ऊ॒तिमि॒न्द्रावृ॑णीमहे || {6.1.15.1}, {8.14.6}, {8.3.2.6} |
73 | व्य१॑(अ॒)'न्तरि॑क्षमतिर॒न्मदे॒सोम॑स्यरोच॒ना | इन्द्रो॒यदभि॑नद्व॒लम् || {6.1.15.2}, {8.14.7}, {8.3.2.7} |
74 | उद्गाऽआ᳚ज॒दङ्गि॑रोभ्यऽआ॒विष्कृ॒ण्वन्गुहा᳚स॒तीः | अ॒र्वाञ्चं᳚नुनुदेव॒लम् || {6.1.15.3}, {8.14.8}, {8.3.2.8} |
75 | इन्द्रे᳚णरोच॒नादि॒वोदृ॒ळ्हानि॑दृंहि॒तानि॑च | स्थि॒राणि॒नप॑रा॒णुदे᳚ || {6.1.15.4}, {8.14.9}, {8.3.2.9} |
76 | अ॒पामू॒र्मिर्मद᳚न्निव॒स्तोम॑ऽइन्द्राजिरायते | विते॒मदा᳚ऽअराजिषुः || {6.1.15.5}, {8.14.10}, {8.3.2.10} |
77 | त्वंहिस्तो᳚म॒वर्ध॑न॒ऽइन्द्रास्यु॑क्थ॒वर्ध॑नः | स्तो॒तॄ॒णामु॒तभ॑द्र॒कृत् || {6.1.16.1}, {8.14.11}, {8.3.2.11} |
78 | इन्द्र॒मित्के॒शिना॒हरी᳚सोम॒पेया᳚यवक्षतः | उप॑य॒ज्ञंसु॒राध॑सम् || {6.1.16.2}, {8.14.12}, {8.3.2.12} |
79 | अ॒पांफेने᳚न॒नमु॑चेः॒शिर॑ऽइ॒न्द्रोद॑वर्तयः | विश्वा॒यदज॑यः॒स्पृधः॑ || {6.1.16.3}, {8.14.13}, {8.3.2.13} |
80 | मा॒याभि॑रु॒त्सिसृ॑प्सत॒ऽइन्द्र॒द्यामा॒रुरु॑क्षतः | अव॒दस्यूँ᳚रधूनुथाः || {6.1.16.4}, {8.14.14}, {8.3.2.14} |
81 | अ॒सु॒न्वामि᳚न्द्रसं॒सदं॒विषू᳚चीं॒व्य॑नाशयः | सो॒म॒पाऽउत्त॑रो॒भव॑न् || {6.1.16.5}, {8.14.15}, {8.3.2.15} |
[4] (१-१३) त्रयोदशर्चस्य सूक्तस्य काण्वायनौ गोषूक्त्यश्वसूक्तिनावृषी, इन्द्रो देवता | उष्णिक् छन्दः || | |
82 | तम्व॒भिप्रगा᳚यतपुरुहू॒तंपु॑रुष्टु॒तम् | इन्द्रं᳚गी॒र्भिस्त॑वि॒षमावि॑वासत || {6.1.17.1}, {8.15.1}, {8.3.3.1} |
83 | यस्य॑द्वि॒बर्ह॑सोबृ॒हत्सहो᳚दा॒धार॒रोद॑सी | गि॒रीँरज्राँ᳚ऽअ॒पःस्व᳚र्वृषत्व॒ना || {6.1.17.2}, {8.15.2}, {8.3.3.2} |
84 | सरा᳚जसिपुरुष्टुतँ॒ऽएको᳚वृ॒त्राणि॑जिघ्नसे | इन्द्र॒जैत्रा᳚श्रव॒स्या᳚च॒यन्त॑वे || {6.1.17.3}, {8.15.3}, {8.3.3.3} |
85 | तंते॒मदं᳚गृणीमसि॒वृष॑णंपृ॒त्सुसा᳚स॒हिम् | उ॒लो॒क॒कृ॒त्नुम॑द्रिवोहरि॒श्रिय᳚म् || {6.1.17.4}, {8.15.4}, {8.3.3.4} |
86 | येन॒ज्योतीं᳚ष्या॒यवे॒मन॑वेचवि॒वेदि॑थ | म॒न्दा॒नोऽअ॒स्यब॒र्हिषो॒विरा᳚जसि || {6.1.17.5}, {8.15.5}, {8.3.3.5} |
87 | तद॒द्याचि॑त्तऽउ॒क्थिनोऽनु॑ष्टुवन्तिपू॒र्वथा᳚ | वृष॑पत्नीर॒पोज॑यादि॒वेदि॑वे || {6.1.18.1}, {8.15.6}, {8.3.3.6} |
88 | तव॒त्यदि᳚न्द्रि॒यंबृ॒हत्तव॒शुष्म॑मु॒तक्रतु᳚म् | वज्रं᳚शिशातिधि॒षणा॒वरे᳚ण्यम् || {6.1.18.2}, {8.15.7}, {8.3.3.7} |
89 | तव॒द्यौरि᳚न्द्र॒पौंस्यं᳚पृथि॒वीव॑र्धति॒श्रवः॑ | त्वामापः॒पर्व॑तासश्चहिन्विरे || {6.1.18.3}, {8.15.8}, {8.3.3.8} |
90 | त्वांविष्णु॑र्बृ॒हन्क्षयो᳚मि॒त्रोगृ॑णाति॒वरु॑णः | त्वांशर्धो᳚मद॒त्यनु॒मारु॑तम् || {6.1.18.4}, {8.15.9}, {8.3.3.9} |
91 | त्वंवृषा॒जना᳚नां॒मंहि॑ष्ठऽइन्द्रजज्ञिषे | स॒त्राविश्वा᳚स्वप॒त्यानि॑दधिषे || {6.1.18.5}, {8.15.10}, {8.3.3.10} |
92 | स॒त्रात्वंपु॑रुष्टुतँ॒ऽएको᳚वृ॒त्राणि॑तोशसे | नान्यऽइन्द्रा॒त्कर॑णं॒भूय॑ऽइन्वति || {6.1.19.1}, {8.15.11}, {8.3.3.11} |
93 | यदि᳚न्द्रमन्म॒शस्त्वा॒नाना॒हव᳚न्तऽऊ॒तये᳚ | अ॒स्माके᳚भि॒र्नृभि॒रत्रा॒स्व॑र्जय || {6.1.19.2}, {8.15.12}, {8.3.3.12} |
94 | अरं॒क्षया᳚यनोम॒हेविश्वा᳚रू॒पाण्या᳚वि॒शन् | इन्द्रं॒जैत्रा᳚यहर्षया॒शची॒पति᳚म् || {6.1.19.3}, {8.15.13}, {8.3.3.13} |
[5] (१-१२) द्वादशर्चस्य सूक्तस्य काण्व इरिम्बिठिषिः, इन्द्रो देवता | गायत्री छन्दः || | |
95 | प्रस॒म्राजं᳚चर्षणी॒नामिन्द्रं᳚स्तोता॒नव्यं᳚गी॒र्भिः | नरं᳚नृ॒षाहं॒मंहि॑ष्ठम् || {6.1.20.1}, {8.16.1}, {8.3.4.1} |
96 | यस्मि᳚न्नु॒क्थानि॒रण्य᳚न्ति॒विश्वा᳚निचश्रव॒स्या᳚ | अ॒पामवो॒नस॑मु॒द्रे || {6.1.20.2}, {8.16.2}, {8.3.4.2} |
97 | तंसु॑ष्टु॒त्यावि॑वासेज्येष्ठ॒राजं॒भरे᳚कृ॒त्नुम् | म॒होवा॒जिनं᳚स॒निभ्यः॑ || {6.1.20.3}, {8.16.3}, {8.3.4.3} |
98 | यस्यानू᳚नागभी॒रामदा᳚ऽउ॒रव॒स्तरु॑त्राः | ह॒र्षु॒मन्तः॒शूर॑सातौ || {6.1.20.4}, {8.16.4}, {8.3.4.4} |
99 | तमिद्धने᳚षुहि॒तेष्व॑धिवा॒काय॑हवन्ते | येषा॒मिन्द्र॒स्तेज॑यन्ति || {6.1.20.5}, {8.16.5}, {8.3.4.5} |
100 | तमिच्च्यौ॒त्नैरार्य᳚न्ति॒तंकृ॒तेभि॑श्चर्ष॒णयः॑ | ए॒षऽइन्द्रो᳚वरिव॒स्कृत् || {6.1.20.6}, {8.16.6}, {8.3.4.6} |
101 | इन्द्रो᳚ब्र॒ह्मेन्द्र॒ऋषि॒रिन्द्रः॑पु॒रूपु॑रुहू॒तः | म॒हान्म॒हीभिः॒शची᳚भिः || {6.1.21.1}, {8.16.7}, {8.3.4.7} |
102 | सस्तोम्यः॒सहव्यः॑स॒त्यःसत्वा᳚तुविकू॒र्मिः | एक॑श्चि॒त्सन्न॒भिभू᳚तिः || {6.1.21.2}, {8.16.8}, {8.3.4.8} |
103 | तम॒र्केभि॒स्तंसाम॑भि॒स्तंगा᳚य॒त्रैश्च॑र्ष॒णयः॑ | इन्द्रं᳚वर्धन्तिक्षि॒तयः॑ || {6.1.21.3}, {8.16.9}, {8.3.4.9} |
104 | प्र॒णे॒तारं॒वस्यो॒ऽअच्छा॒कर्ता᳚रं॒ज्योतिः॑स॒मत्सु॑ | सा॒स॒ह्वांसं᳚यु॒धामित्रा॑न् || {6.1.21.4}, {8.16.10}, {8.3.4.10} |
105 | सनः॒पप्रिः॑पारयातिस्व॒स्तिना॒वापु॑रुहू॒तः | इन्द्रो॒विश्वा॒ऽअति॒द्विषः॑ || {6.1.21.5}, {8.16.11}, {8.3.4.11} |
106 | सत्वंन॑ऽइन्द्र॒वाजे᳚भिर्दश॒स्याच॑गातु॒याच॑ | अच्छा᳚चनःसु॒म्नंने᳚षि || {6.1.21.6}, {8.16.12}, {8.3.4.12} |
[6] (१-१५) पञ्चदशर्चस्य सूक्तस्य काण्व इरिम्बिठिषिः (१-१३, १५) प्रथमादित्रयोदशों पञ्चदश्याश्चेन्द्रः, (१४) चतुदर्श याश्चेन्द्रो वास्तोष्पतिर्वा देवता | (१-१३) प्रथमादित्रयोदशक़ गायत्री, (१४-१५) चतुर्दशीपञ्चदश्योश्च प्रगाथः (चतुदर्श या बृहती, पञ्चदश्याः सतोबृहती) छन्दसी || | |
107 | आया᳚हिसुषु॒माहित॒ऽइन्द्र॒सोमं॒पिबा᳚ऽइ॒मम् | एदंब॒र्हिःस॑दो॒मम॑ || {6.1.22.1}, {8.17.1}, {8.3.5.1} |
108 | आत्वा᳚ब्रह्म॒युजा॒हरी॒वह॑तामिन्द्रके॒शिना᳚ | उप॒ब्रह्मा᳚णिनःशृणु || {6.1.22.2}, {8.17.2}, {8.3.5.2} |
109 | ब्र॒ह्माण॑स्त्वाव॒यंयु॒जासो᳚म॒पामि᳚न्द्रसो॒मिनः॑ | सु॒ताव᳚न्तोहवामहे || {6.1.22.3}, {8.17.3}, {8.3.5.3} |
110 | आनो᳚याहिसु॒ताव॑तो॒ऽस्माकं᳚सुष्टु॒तीरुप॑ | पिबा॒सुशि॑प्रि॒न्नन्ध॑सः || {6.1.22.4}, {8.17.4}, {8.3.5.4} |
111 | आते᳚सिञ्चामिकु॒क्ष्योरनु॒गात्रा॒विधा᳚वतु | गृ॒भा॒यजि॒ह्वया॒मधु॑ || {6.1.22.5}, {8.17.5}, {8.3.5.5} |
112 | स्वा॒दुष्टे᳚ऽअस्तुसं॒सुदे॒मधु॑मान्त॒न्वे॒३॑(ए॒)तव॑ | सोमः॒शम॑स्तुतेहृ॒दे || {6.1.23.1}, {8.17.6}, {8.3.5.6} |
113 | अ॒यमु॑त्वाविचर्षणे॒जनी᳚रिवा॒भिसंवृ॑तः | प्रसोम॑ऽइन्द्रसर्पतु || {6.1.23.2}, {8.17.7}, {8.3.5.7} |
114 | तु॒वि॒ग्रीवो᳚व॒पोद॑रःसुबा॒हुरन्ध॑सो॒मदे᳚ | इन्द्रो᳚वृ॒त्राणि॑जिघ्नते || {6.1.23.3}, {8.17.8}, {8.3.5.8} |
115 | इन्द्र॒प्रेहि॑पु॒रस्त्वंविश्व॒स्येशा᳚न॒ऽओज॑सा | वृ॒त्राणि॑वृत्रहञ्जहि || {6.1.23.4}, {8.17.9}, {8.3.5.9} |
116 | दी॒र्घस्ते᳚ऽअस्त्वङ्कु॒शोयेना॒वसु॑प्र॒यच्छ॑सि | यज॑मानायसुन्व॒ते || {6.1.23.5}, {8.17.10}, {8.3.5.10} |
117 | अ॒यंत॑ऽइन्द्र॒सोमो॒निपू᳚तो॒ऽअधि॑ब॒र्हिषि॑ | एही᳚म॒स्यद्रवा॒पिब॑ || {6.1.24.1}, {8.17.11}, {8.3.5.11} |
118 | शाचि॑गो॒शाचि॑पूजना॒यंरणा᳚यतेसु॒तः | आख॑ण्डल॒प्रहू᳚यसे || {6.1.24.2}, {8.17.12}, {8.3.5.12} |
119 | यस्ते᳚शृङ्गवृषोनपा॒त्प्रण॑पात्कुण्ड॒पाय्यः॑ | न्य॑स्मिन्दध्र॒ऽआमनः॑ || {6.1.24.3}, {8.17.13}, {8.3.5.13} |
120 | वास्तो᳚ष्पतेध्रु॒वास्थूणांस॑त्रंसो॒म्याना᳚म् | द्र॒प्सोभे॒त्तापु॒रांशश्व॑तीना॒मिन्द्रो॒मुनी᳚नां॒सखा᳚ || {6.1.24.4}, {8.17.14}, {8.3.5.14} |
121 | पृदा᳚कुसानुर्यज॒तोग॒वेष॑ण॒ऽएकः॒सन्न॒भिभूय॑सः | भूर्णि॒मश्वं᳚नयत्तु॒जापु॒रोगृ॒भेन्द्रं॒सोम॑स्यपी॒तये᳚ || {6.1.24.5}, {8.17.15}, {8.3.5.15} |
[7] (१-२२) द्वाविंशत्यृचस्य सूक्तस्य काण्व इरिम्बिठि ऋषिः | (१-३, ५, १०२२) प्रथमादितृचस्य पञ्चम्या चो दशम्यादित्रयोदशानाञ्चादित्याः, (४, ६-७) चतुर्थीषष्ठीसप्तमीनामदितिः, (८) अष्टम्या अश्विनौ, (९) नवम्याश्चाग्निसूर्यानिला देवताः | उष्णिक् छन्दः || | |
122 | इ॒दंह॑नू॒नमे᳚षांसु॒म्नंभि॑क्षेत॒मर्त्यः॑ | आ॒दि॒त्याना॒मपू᳚र्व्यं॒सवी᳚मनि || {6.1.25.1}, {8.18.1}, {8.3.6.1} |
123 | अ॒न॒र्वाणो॒ह्ये᳚षां॒पन्था᳚ऽआदि॒त्याना᳚म् | अद॑ब्धाः॒सन्ति॑पा॒यवः॑सुगे॒वृधः॑ || {6.1.25.2}, {8.18.2}, {8.3.6.2} |
124 | तत्सुनः॑सवि॒ताभगो॒वरु॑णोमि॒त्रोऽअ᳚र्य॒मा | शर्म॑यच्छन्तुस॒प्रथो॒यदीम॑हे || {6.1.25.3}, {8.18.3}, {8.3.6.3} |
125 | दे॒वेभि॑र्देव्यदि॒तेऽरि॑ष्टभर्म॒न्नाग॑हि | स्मत्सू॒रिभिः॑पुरुप्रियेसु॒शर्म॑भिः || {6.1.25.4}, {8.18.4}, {8.3.6.4} |
126 | तेहिपु॒त्रासो॒ऽअदि॑तेर्वि॒दुर्द्वेषां᳚सि॒योत॑वे | अं॒होश्चि॑दुरु॒चक्र॑योऽने॒हसः॑ || {6.1.25.5}, {8.18.5}, {8.3.6.5} |
127 | अदि॑तिर्नो॒दिवा᳚प॒शुमदि॑ति॒र्नक्त॒मद्व॑याः | अदि॑तिःपा॒त्वंह॑सःस॒दावृ॑धा || {6.1.26.1}, {8.18.6}, {8.3.6.6} |
128 | उ॒तस्यानो॒दिवा᳚म॒तिरदि॑तिरू॒त्याग॑मत् | साशंता᳚ति॒मय॑स्कर॒दप॒स्रिधः॑ || {6.1.26.2}, {8.18.7}, {8.3.6.7} |
129 | उ॒तत्यादैव्या᳚भि॒षजा॒शंनः॑करतोऽअ॒श्विना᳚ | यु॒यु॒याता᳚मि॒तोरपो॒ऽअप॒स्रिधः॑ || {6.1.26.3}, {8.18.8}, {8.3.6.8} |
130 | शम॒ग्निर॒ग्निभिः॑कर॒च्छंन॑स्तपतु॒सूर्यः॑ | शंवातो᳚वात्वर॒पाऽअप॒स्रिधः॑ || {6.1.26.4}, {8.18.9}, {8.3.6.9} |
131 | अपामी᳚वा॒मप॒स्रिध॒मप॑सेधतदुर्म॒तिम् | आदि॑त्यासोयु॒योत॑नानो॒ऽअंह॑सः || {6.1.26.5}, {8.18.10}, {8.3.6.10} |
132 | यु॒योता॒शरु॑म॒स्मदाँऽआदि॑त्यासऽउ॒ताम॑तिम् | ऋध॒ग्द्वेषः॑कृणुतविश्ववेदसः || {6.1.27.1}, {8.18.11}, {8.3.6.11} |
133 | तत्सुनः॒शर्म॑यच्छ॒तादि॑त्या॒यन्मुमो᳚चति | एन॑स्वन्तंचि॒देन॑सःसुदानवः || {6.1.27.2}, {8.18.12}, {8.3.6.12} |
134 | योनः॒कश्चि॒द्रिरि॑क्षतिरक्ष॒स्त्वेन॒मर्त्यः॑ | स्वैःषऽएवै᳚रिरिषीष्ट॒युर्जनः॑ || {6.1.27.3}, {8.18.13}, {8.3.6.13} |
135 | समित्तम॒घम॑श्नवद्दुः॒शंसं॒मर्त्यं᳚रि॒पुम् | योऽअ॑स्म॒त्रादु॒र्हणा᳚वाँ॒ऽउप॑द्व॒युः || {6.1.27.4}, {8.18.14}, {8.3.6.14} |
136 | पा॒क॒त्रास्थ॑नदेवाहृ॒त्सुजा᳚नीथ॒मर्त्य᳚म् | उप॑द्व॒युंचाद्व॑युंचवसवः || {6.1.27.5}, {8.18.15}, {8.3.6.15} |
137 | आशर्म॒पर्व॑ताना॒मोतापांवृ॑णीमहे | द्यावा᳚क्षामा॒रेऽअ॒स्मद्रप॑स्कृतम् || {6.1.28.1}, {8.18.16}, {8.3.6.16} |
138 | तेनो᳚भ॒द्रेण॒शर्म॑णायु॒ष्माकं᳚ना॒वाव॑सवः | अति॒विश्वा᳚निदुरि॒तापि॑पर्तन || {6.1.28.2}, {8.18.17}, {8.3.6.17} |
139 | तु॒चेतना᳚य॒तत्सुनो॒द्राघी᳚य॒ऽआयु॑र्जी॒वसे᳚ | आदि॑त्यासःसुमहसःकृ॒णोत॑न || {6.1.28.3}, {8.18.18}, {8.3.6.18} |
140 | य॒ज्ञोही॒ळोवो॒ऽअन्त॑र॒ऽआदि॑त्या॒ऽअस्ति॑मृ॒ळत॑ | यु॒ष्मेऽइद्वो॒ऽअपि॑ष्मसिसजा॒त्ये᳚ || {6.1.28.4}, {8.18.19}, {8.3.6.19} |
141 | बृ॒हद्वरू᳚थंम॒रुतां᳚दे॒वंत्रा॒तार॑म॒श्विना᳚ | मि॒त्रमी᳚महे॒वरु॑णंस्व॒स्तये᳚ || {6.1.28.5}, {8.18.20}, {8.3.6.20} |
142 | अ॒ने॒होमि॑त्रार्यमन्नृ॒वद्व॑रुण॒शंस्य᳚म् | त्रि॒वरू᳚थंमरुतोयन्तनश्छ॒र्दिः || {6.1.28.6}, {8.18.21}, {8.3.6.21} |
143 | येचि॒द्धिमृ॒त्युब᳚न्धव॒ऽआदि॑त्या॒मन॑वः॒स्मसि॑ | प्रसून॒ऽआयु॑र्जी॒वसे᳚तिरेतन || {6.1.28.7}, {8.18.22}, {8.3.6.22} |
[8] (१-३७) सप्तत्रिंशदृचस्य सूक्तस्य काण्वः सोभरि ऋषिः | (१-३३) प्रथमादित्रयस्त्रिंशदृचामग्निः, (३४-३५) चतुस्त्रिंशीपञ्चत्रिंश्योरादित्याः, (३६३७) षट्त्रिशसप्तत्रिंश्योश्च पौरुकृत्स्य त्रसदस्योर्दानस्तुतिदेवताः | (१-२६,२८-३३) प्रथमादिषड़िवशत्यूचामष्टाविंश्यादिषण्णाञ्च प्रगाथः (विषमर्चाम् ककप, समर्चाम् सतोबृहती), (२७) सप्तविंश्या द्विपदा विराट्, (३४) चतस्त्रिंश्या उष्णिक्, (३५) पञ्चत्रिंश्याः सतोबृहती, (३६) षट्विशं याः ककप, (३७) सप्तत्रिंश्याश्च पतिश्छन्दांसि || | |
144 | तंगू᳚र्धया॒स्व᳚र्णरंदे॒वासो᳚दे॒वम॑र॒तिंद॑धन्विरे | दे॒व॒त्राह॒व्यमोहि॑रे || {6.1.29.1}, {8.19.1}, {8.3.7.1} |
145 | विभू᳚तरातिंविप्रचि॒त्रशो᳚चिषम॒ग्निमी᳚ळिष्वय॒न्तुर᳚म् | अ॒स्यमेध॑स्यसो॒म्यस्य॑सोभरे॒प्रेम॑ध्व॒राय॒पूर्व्य᳚म् || {6.1.29.2}, {8.19.2}, {8.3.7.2} |
146 | यजि॑ष्ठंत्वाववृमहेदे॒वंदे᳚व॒त्राहोता᳚र॒मम॑र्त्यम् | अ॒स्यय॒ज्ञस्य॑सु॒क्रतु᳚म् || {6.1.29.3}, {8.19.3}, {8.3.7.3} |
147 | ऊ॒र्जोनपा᳚तंसु॒भगं᳚सु॒दीदि॑तिम॒ग्निंश्रेष्ठ॑शोचिषम् | सनो᳚मि॒त्रस्य॒वरु॑णस्य॒सोऽअ॒पामासु॒म्नंय॑क्षतेदि॒वि || {6.1.29.4}, {8.19.4}, {8.3.7.4} |
148 | यःस॒मिधा॒यऽआहु॑ती॒योवेदे᳚नद॒दाश॒मर्तो᳚ऽअ॒ग्नये᳚ | योनम॑सास्वध्व॒रः || {6.1.29.5}, {8.19.5}, {8.3.7.5} |
149 | तस्येदर्व᳚न्तोरंहयन्तऽआ॒शव॒स्तस्य॑द्यु॒म्नित॑मं॒यशः॑ | नतमंहो᳚दे॒वकृ॑तं॒कुत॑श्च॒ननमर्त्य॑कृतंनशत् || {6.1.30.1}, {8.19.6}, {8.3.7.6} |
150 | स्व॒ग्नयो᳚वोऽअ॒ग्निभिः॒स्याम॑सूनोसहसऽऊर्जांपते | सु॒वीर॒स्त्वम॑स्म॒युः || {6.1.30.2}, {8.19.7}, {8.3.7.7} |
151 | प्र॒शंस॑मानो॒ऽअति॑थि॒र्नमि॒त्रियो॒ऽग्नीरथो॒नवेद्यः॑ | त्वेक्षेमा᳚सो॒ऽअपि॑सन्तिसा॒धव॒स्त्वंराजा᳚रयी॒णाम् || {6.1.30.3}, {8.19.8}, {8.3.7.8} |
152 | सोऽअ॒द्धादा॒श्व॑ध्व॒रोऽग्ने॒मर्तः॑सुभग॒सप्र॒शंस्यः॑ | सधी॒भिर॑स्तु॒सनि॑ता || {6.1.30.4}, {8.19.9}, {8.3.7.9} |
153 | यस्य॒त्वमू॒र्ध्वोऽअ॑ध्व॒राय॒तिष्ठ॑सिक्ष॒यद्वी᳚रः॒ससा᳚धते | सोऽअर्व॑द्भिः॒सनि॑ता॒सवि॑प॒न्युभिः॒सशूरैः॒सनि॑ताकृ॒तम् || {6.1.30.5}, {8.19.10}, {8.3.7.10} |
154 | यस्या॒ग्निर्वपु॑र्गृ॒हेस्तोमं॒चनो॒दधी᳚तवि॒श्ववा᳚र्यः | ह॒व्यावा॒वेवि॑ष॒द्विषः॑ || {6.1.31.1}, {8.19.11}, {8.3.7.11} |
155 | विप्र॑स्यवास्तुव॒तःस॑हसोयहोम॒क्षूत॑मस्यरा॒तिषु॑ | अ॒वोदे᳚वमु॒परि॑मर्त्यंकृधि॒वसो᳚विवि॒दुषो॒वचः॑ || {6.1.31.2}, {8.19.12}, {8.3.7.12} |
156 | योऽअ॒ग्निंह॒व्यदा᳚तिभि॒र्नमो᳚भिर्वासु॒दक्ष॑मा॒विवा᳚सति | गि॒रावा᳚जि॒रशो᳚चिषम् || {6.1.31.3}, {8.19.13}, {8.3.7.13} |
157 | स॒मिधा॒योनिशि॑ती॒दाश॒ददि॑तिं॒धाम॑भिरस्य॒मर्त्यः॑ | विश्वेत्सधी॒भिःसु॒भगो॒जनाँ॒ऽअति॑द्यु॒म्नैरु॒द्नऽइ॑वतारिषत् || {6.1.31.4}, {8.19.14}, {8.3.7.14} |
158 | तद॑ग्नेद्यु॒म्नमाभ॑र॒यत्सा॒सह॒त्सद॑ने॒कंचि॑द॒त्रिण᳚म् | म॒न्युंजन॑स्यदू॒ढ्यः॑ || {6.1.31.5}, {8.19.15}, {8.3.7.15} |
159 | येन॒चष्टे॒वरु॑णोमि॒त्रोऽअ᳚र्य॒मायेन॒नास॑त्या॒भगः॑ | व॒यंतत्ते॒शव॑सागातु॒वित्त॑मा॒ऽइन्द्र॑त्वोताविधेमहि || {6.1.32.1}, {8.19.16}, {8.3.7.16} |
160 | तेघेद॑ग्नेस्वा॒ध्यो॒३॑(ओ॒)येत्वा᳚विप्रनिदधि॒रेनृ॒चक्ष॑सम् | विप्रा᳚सोदेवसु॒क्रतु᳚म् || {6.1.32.2}, {8.19.17}, {8.3.7.17} |
161 | तऽइद्वेदिं᳚सुभग॒तऽआहु॑तिं॒तेसोतुं᳚चक्रिरेदि॒वि | तऽइद्वाजे᳚भिर्जिग्युर्म॒हद्धनं॒येत्वेकामं᳚न्येरि॒रे || {6.1.32.3}, {8.19.18}, {8.3.7.18} |
162 | भ॒द्रोनो᳚ऽअ॒ग्निराहु॑तोभ॒द्रारा॒तिःसु॑भगभ॒द्रोऽअ॑ध्व॒रः | भ॒द्राऽउ॒तप्रश॑स्तयः || {6.1.32.4}, {8.19.19}, {8.3.7.19} |
163 | भ॒द्रंमनः॑कृणुष्ववृत्र॒तूर्ये॒येना᳚स॒मत्सु॑सा॒सहः॑ | अव॑स्थि॒रात॑नुहि॒भूरि॒शर्ध॑तांव॒नेमा᳚तेऽअ॒भिष्टि॑भिः || {6.1.32.5}, {8.19.20}, {8.3.7.20} |
164 | ईळे᳚गि॒रामनु॑र्हितं॒यंदे॒वादू॒तम॑र॒तिंन्ये᳚रि॒रे | यजि॑ष्ठंहव्य॒वाह॑नम् || {6.1.33.1}, {8.19.21}, {8.3.7.21} |
165 | ति॒ग्मज᳚म्भाय॒तरु॑णाय॒राज॑ते॒प्रयो᳚गायस्य॒ग्नये᳚ | यःपिं॒शते᳚सू॒नृता᳚भिःसु॒वीर्य॑म॒ग्निर्घृ॒तेभि॒राहु॑तः || {6.1.33.2}, {8.19.22}, {8.3.7.22} |
166 | यदी᳚घृ॒तेभि॒राहु॑तो॒वाशी᳚म॒ग्निर्भर॑त॒ऽउच्चाव॑च | असु॑रऽइवनि॒र्णिज᳚म् || {6.1.33.3}, {8.19.23}, {8.3.7.23} |
167 | योह॒व्यान्यैर॑यता॒मनु॑र्हितोदे॒वऽआ॒सासु॑ग॒न्धिना᳚ | विवा᳚सते॒वार्या᳚णिस्वध्व॒रोहोता᳚दे॒वोऽअम॑र्त्यः || {6.1.33.4}, {8.19.24}, {8.3.7.24} |
168 | यद॑ग्ने॒मर्त्य॒स्त्वंस्याम॒हंमि॑त्रमहो॒ऽअम॑र्त्यः | सह॑सःसूनवाहुत || {6.1.33.5}, {8.19.25}, {8.3.7.25} |
169 | नत्वा᳚रासीया॒भिश॑स्तयेवसो॒नपा᳚प॒त्वाय॑सन्त्य | नमे᳚स्तो॒ताम॑ती॒वानदुर्हि॑तः॒स्याद॑ग्ने॒नपा॒पया᳚ || {6.1.34.1}, {8.19.26}, {8.3.7.26} |
170 | पि॒तुर्नपु॒त्रःसुभृ॑तोदुरो॒णऽआदे॒वाँऽए᳚तु॒प्रणो᳚ह॒विः || {6.1.34.2}, {8.19.27}, {8.3.7.27} |
171 | तवा॒हम॑ग्नऽऊ॒तिभि॒र्नेदि॑ष्ठाभिःसचेय॒जोष॒माव॑सो | सदा᳚दे॒वस्य॒मर्त्यः॑ || {6.1.34.3}, {8.19.28}, {8.3.7.28} |
172 | तव॒क्रत्वा᳚सनेयं॒तव॑रा॒तिभि॒रग्ने॒तव॒प्रश॑स्तिभिः | त्वामिदा᳚हुः॒प्रम॑तिंवसो॒ममाग्ने॒हर्ष॑स्व॒दात॑वे || {6.1.34.4}, {8.19.29}, {8.3.7.29} |
173 | प्रसोऽअ॑ग्ने॒तवो॒तिभिः॑सु॒वीरा᳚भिस्तिरते॒वाज॑भर्मभिः | यस्य॒त्वंस॒ख्यमा॒वरः॑ || {6.1.34.5}, {8.19.30}, {8.3.7.30} |
174 | तव॑द्र॒प्सोनील॑वान्वा॒शऋ॒त्विय॒ऽइन्धा᳚नःसिष्ण॒वाद॑दे | त्वंम॑ही॒नामु॒षसा᳚मसिप्रि॒यःक्ष॒पोवस्तु॑षुराजसि || {6.1.35.1}, {8.19.31}, {8.3.7.31} |
175 | तमाग᳚न्म॒सोभ॑रयःस॒हस्र॑मुष्कंस्वभि॒ष्टिमव॑से | स॒म्राजं॒त्रास॑दस्यवम् || {6.1.35.2}, {8.19.32}, {8.3.7.32} |
176 | यस्य॑तेऽअग्नेऽअ॒न्येऽअ॒ग्नय॑ऽउप॒क्षितो᳚व॒याऽइ॑व | विपो॒नद्यु॒म्नानियु॑वे॒जना᳚नां॒तव॑क्ष॒त्राणि॑व॒र्धय॑न् || {6.1.35.3}, {8.19.33}, {8.3.7.33} |
177 | यमा᳚दित्यासोऽअद्रुहःपा॒रंनय॑थ॒मर्त्य᳚म् | म॒घोनां॒विश्वे᳚षांसुदानवः || {6.1.35.4}, {8.19.34}, {8.3.7.34} |
178 | यू॒यंरा᳚जानः॒कंचि॑च्चर्षणीसहः॒क्षय᳚न्तं॒मानु॑षाँ॒ऽअनु॑ | व॒यंतेवो॒वरु॑ण॒मित्रार्य॑म॒न्त्स्यामेदृ॒तस्य॑र॒थ्यः॑ || {6.1.35.5}, {8.19.35}, {8.3.7.35} |
179 | अदा᳚न्मेपौरुकु॒त्स्यःप᳚ञ्चा॒शतं᳚त्र॒सद॑स्युर्व॒धूना᳚म् | मंहि॑ष्ठोऽअ॒र्यःसत्प॑तिः || {6.1.35.6}, {8.19.36}, {8.3.7.36} |
180 | उ॒तमे᳚प्र॒यियो᳚र्व॒यियोः᳚सु॒वास्त्वा॒ऽअधि॒तुग्व॑नि | ति॒सॄ॒णांस॑प्तती॒नांश्या॒वःप्र॑णे॒ताभु॑व॒द्वसु॒र्दिया᳚नां॒पतिः॑ || {6.1.35.7}, {8.19.37}, {8.3.7.37} |
[9] (१-२६) षड्विंशत्यृचस्य सूक्तस्य काण्वः सोभरि ऋषिः | मरुतो देवताः | प्रगाथः (विषमर्चाम् ककुप, समर्चाम् सतोबृहती) छन्दः || | |
181 | आग᳚न्ता॒मारि॑षण्यत॒प्रस्था᳚वानो॒माप॑स्थातासमन्यवः | स्थि॒राचि᳚न्नमयिष्णवः || {6.1.36.1}, {8.20.1}, {8.3.8.1} |
182 | वी॒ळु॒प॒विभि᳚र्मरुतऋभुक्षण॒ऽआरु॑द्रासःसुदी॒तिभिः॑ | इ॒षानो᳚ऽअ॒द्याग॑तापुरुस्पृहोय॒ज्ञमासो᳚भरी॒यवः॑ || {6.1.36.2}, {8.20.2}, {8.3.8.2} |
183 | वि॒द्माहिरु॒द्रिया᳚णां॒शुष्म॑मु॒ग्रंम॒रुतां॒शिमी᳚वताम् | विष्णो᳚रे॒षस्य॑मी॒ळ्हुषा᳚म् || {6.1.36.3}, {8.20.3}, {8.3.8.3} |
184 | विद्वी॒पानि॒पाप॑त॒न्तिष्ठ॑द्दु॒च्छुनो॒भेयु॑जन्त॒रोद॑सी | प्रधन्वा᳚न्यैरतशुभ्रखादयो॒यदेज॑थस्वभानवः || {6.1.36.4}, {8.20.4}, {8.3.8.4} |
185 | अच्यु॑ताचिद्वो॒ऽअज्म॒न्नानान॑दति॒पर्व॑तासो॒वन॒स्पतिः॑ | भूमि॒र्यामे᳚षुरेजते || {6.1.36.5}, {8.20.5}, {8.3.8.5} |
186 | अमा᳚यवोमरुतो॒यात॑वे॒द्यौर्जिही᳚त॒ऽउत्त॑राबृ॒हत् | यत्रा॒नरो॒देदि॑शतेत॒नूष्वात्वक्षां᳚सिबा॒ह्वो᳚जसः || {6.1.37.1}, {8.20.6}, {8.3.8.6} |
187 | स्व॒धामनु॒श्रियं॒नरो॒महि॑त्वे॒षाऽअम॑वन्तो॒वृष॑प्सवः | वह᳚न्ते॒ऽअह्रु॑तप्सवः || {6.1.37.2}, {8.20.7}, {8.3.8.7} |
188 | गोभि᳚र्वा॒णोऽअ॑ज्यते॒सोभ॑रीणां॒रथे॒कोशे᳚हिर॒ण्यये᳚ | गोब᳚न्धवःसुजा॒तास॑ऽइ॒षेभु॒जेम॒हान्तो᳚नः॒स्पर॑से॒नु || {6.1.37.3}, {8.20.8}, {8.3.8.8} |
189 | प्रति॑वोवृषदञ्जयो॒वृष्णे॒शर्धा᳚य॒मारु॑तायभरध्वम् | ह॒व्यावृष॑प्रयाव्णे || {6.1.37.4}, {8.20.9}, {8.3.8.9} |
190 | वृ॒ष॒ण॒श्वेन॑मरुतो॒वृष॑प्सुना॒रथे᳚न॒वृष॑नाभिना | आश्ये॒नासो॒नप॒क्षिणो॒वृथा᳚नरोह॒व्यानो᳚वी॒तये᳚गत || {6.1.37.5}, {8.20.10}, {8.3.8.10} |
191 | स॒मा॒नम॒ञ्ज्ये᳚षां॒विभ्रा᳚जन्तेरु॒क्मासो॒ऽअधि॑बा॒हुषु॑ | दवि॑द्युतत्यृ॒ष्टयः॑ || {6.1.38.1}, {8.20.11}, {8.3.8.11} |
192 | तऽउ॒ग्रासो॒वृष॑णऽउ॒ग्रबा᳚हवो॒नकि॑ष्ट॒नूषु॑येतिरे | स्थि॒राधन्वा॒न्यायु॑धा॒रथे᳚षु॒वोऽनी᳚के॒ष्वधि॒श्रियः॑ || {6.1.38.2}, {8.20.12}, {8.3.8.12} |
193 | येषा॒मर्णो॒नस॒प्रथो॒नाम॑त्वे॒षंशश्व॑ता॒मेक॒मिद्भु॒जे | वयो॒नपित्र्यं॒सहः॑ || {6.1.38.3}, {8.20.13}, {8.3.8.13} |
194 | तान्व᳚न्दस्वम॒रुत॒स्ताँऽउप॑स्तुहि॒तेषां॒हिधुनी᳚नाम् | अ॒राणां॒नच॑र॒मस्तदे᳚षांदा॒नाम॒ह्नातदे᳚षाम् || {6.1.38.4}, {8.20.14}, {8.3.8.14} |
195 | सु॒भगः॒सव॑ऽऊ॒तिष्वास॒पूर्वा᳚सुमरुतो॒व्यु॑ष्टिषु | योवा᳚नू॒नमु॒तास॑ति || {6.1.38.5}, {8.20.15}, {8.3.8.15} |
196 | यस्य॑वायू॒यंप्रति॑वा॒जिनो᳚नर॒ऽआह॒व्यावी॒तये᳚ग॒थ | अ॒भिषद्यु॒म्नैरु॒तवाज॑सातिभिःसु॒म्नावो᳚धूतयोनशत् || {6.1.39.1}, {8.20.16}, {8.3.8.16} |
197 | यथा᳚रु॒द्रस्य॑सू॒नवो᳚दि॒वोवश॒न्त्यसु॑रस्यवे॒धसः॑ | युवा᳚न॒स्तथेद॑सत् || {6.1.39.2}, {8.20.17}, {8.3.8.17} |
198 | येचार्ह᳚न्तिम॒रुतः॑सु॒दान॑वः॒स्मन्मी॒ळ्हुष॒श्चर᳚न्ति॒ये | अत॑श्चि॒दान॒ऽउप॒वस्य॑साहृ॒दायुवा᳚न॒ऽआव॑वृध्वम् || {6.1.39.3}, {8.20.18}, {8.3.8.18} |
199 | यून॑ऽऊ॒षुनवि॑ष्ठया॒वृष्णः॑पाव॒काँऽअ॒भिसो᳚भरेगि॒रा | गाय॒गाऽइ॑व॒चर्कृ॑षत् || {6.1.39.4}, {8.20.19}, {8.3.8.19} |
200 | सा॒हायेसन्ति॑मुष्टि॒हेव॒हव्यो॒विश्वा᳚सुपृ॒त्सुहोतृ॑षु | वृष्ण॑श्च॒न्द्रान्नसु॒श्रव॑स्तमान्गि॒रावन्द॑स्वम॒रुतो॒ऽअह॑ || {6.1.39.5}, {8.20.20}, {8.3.8.20} |
201 | गाव॑श्चिद्घासमन्यवःसजा॒त्ये᳚नमरुतः॒सब᳚न्धवः | रि॒ह॒तेक॒कुभो᳚मि॒थः || {6.1.40.1}, {8.20.21}, {8.3.8.21} |
202 | मर्त॑श्चिद्वोनृतवोरुक्मवक्षस॒ऽउप॑भ्रातृ॒त्वमाय॑ति | अधि॑नोगातमरुतः॒सदा॒हिव॑ऽआपि॒त्वमस्ति॒निध्रु॑वि || {6.1.40.2}, {8.20.22}, {8.3.8.22} |
203 | मरु॑तो॒मारु॑तस्यन॒ऽआभे᳚ष॒जस्य॑वहतासुदानवः | यू॒यंस॑खायःसप्तयः || {6.1.40.3}, {8.20.23}, {8.3.8.23} |
204 | याभिः॒सिन्धु॒मव॑थ॒याभि॒स्तूर्व॑थ॒याभि॑र्दश॒स्यथा॒क्रिवि᳚म् | मयो᳚नोभूतो॒तिभि᳚र्मयोभुवःशि॒वाभि॑रसचद्विषः || {6.1.40.4}, {8.20.24}, {8.3.8.24} |
205 | यत्सिन्धौ॒यदसि॑क्न्यां॒यत्स॑मु॒द्रेषु॑मरुतःसुबर्हिषः | यत्पर्व॑तेषुभेष॒जम् || {6.1.40.5}, {8.20.25}, {8.3.8.25} |
206 | विश्वं॒पश्य᳚न्तोबिभृथात॒नूष्वातेना᳚नो॒ऽअधि॑वोचत | क्ष॒मारपो᳚मरुत॒ऽआतु॑रस्यन॒ऽइष्क॑र्ता॒विह्रु॑तं॒पुनः॑ || {6.1.40.6}, {8.20.26}, {8.3.8.26} |
[10] (१-१८) अष्टादशर्चस्य सूक्तस्य काण्वः सोभरिषिः (१-१६) प्रथमादिषोडशर्चामिन्द्रः, (१७-१८) सप्तदश्यष्टादश्योश्च चित्रस्य दानस्तुतिदेवते | प्रगाथः (विषमर्चाम् ककप, समर्चाम् सतोबृहती) छन्दः || | |
207 | व॒यमु॒त्वाम॑पूर्व्यस्थू॒रंनकच्चि॒द्भर᳚न्तोऽव॒स्यवः॑ | वाजे᳚चि॒त्रंह॑वामहे || {6.2.1.1}, {8.21.1}, {8.4.1.1} |
208 | उप॑त्वा॒कर्म᳚न्नू॒तये॒सनो॒युवो॒ग्रश्च॑क्राम॒योधृ॒षत् | त्वामिद्ध्य॑वि॒तारं᳚ववृ॒महे॒सखा᳚यऽइन्द्रसान॒सिम् || {6.2.1.2}, {8.21.2}, {8.4.1.2} |
209 | आया᳚ही॒मऽइन्द॒वोऽश्व॑पते॒गोप॑त॒ऽउर्व॑रापते | सोमं᳚सोमपतेपिब || {6.2.1.3}, {8.21.3}, {8.4.1.3} |
210 | व॒यंहित्वा॒बन्धु॑मन्तमब॒न्धवो॒विप्रा᳚सऽइन्द्रयेमि॒म | याते॒धामा᳚निवृषभ॒तेभि॒राग॑हि॒विश्वे᳚भिः॒सोम॑पीतये || {6.2.1.4}, {8.21.4}, {8.4.1.4} |
211 | सीद᳚न्तस्ते॒वयो᳚यथा॒गोश्री᳚ते॒मधौ᳚मदि॒रेवि॒वक्ष॑णे | अ॒भित्वामि᳚न्द्रनोनुमः || {6.2.1.5}, {8.21.5}, {8.4.1.5} |
212 | अच्छा᳚चत्वै॒नानम॑सा॒वदा᳚मसि॒किंमुहु॑श्चि॒द्विदी᳚धयः | सन्ति॒कामा᳚सोहरिवोद॒दिष्ट्वंस्मोव॒यंसन्ति॑नो॒धियः॑ || {6.2.2.1}, {8.21.6}, {8.4.1.6} |
213 | नूत्ना॒ऽइदि᳚न्द्रतेव॒यमू॒तीऽअ॑भूमन॒हिनूते᳚ऽअद्रिवः | वि॒द्मापु॒रापरी᳚णसः || {6.2.2.2}, {8.21.7}, {8.4.1.7} |
214 | वि॒द्मास॑खि॒त्वमु॒तशू᳚रभो॒ज्य१॑(अ॒)माते॒ताव॑ज्रिन्नीमहे | उ॒तोस॑मस्मि॒न्नाशि॑शीहिनोवसो॒वाजे᳚सुशिप्र॒गोम॑ति || {6.2.2.3}, {8.21.8}, {8.4.1.8} |
215 | योन॑ऽइ॒दमि॑दंपु॒राप्रवस्य॑ऽआनि॒नाय॒तमु॑वःस्तुषे | सखा᳚य॒ऽइन्द्र॑मू॒तये᳚ || {6.2.2.4}, {8.21.9}, {8.4.1.9} |
216 | हर्य॑श्वं॒सत्प॑तिंचर्षणी॒सहं॒सहिष्मा॒योऽअम᳚न्दत | आतुनः॒सव॑यति॒गव्य॒मश्व्यं᳚स्तो॒तृभ्यो᳚म॒घवा᳚श॒तम् || {6.2.2.5}, {8.21.10}, {8.4.1.10} |
217 | त्वया᳚हस्विद्यु॒जाव॒यंप्रति॑श्व॒सन्तं᳚वृषभब्रुवीमहि | सं॒स्थेजन॑स्य॒गोम॑तः || {6.2.3.1}, {8.21.11}, {8.4.1.11} |
218 | जये᳚मका॒रेपु॑रुहूतका॒रिणो॒ऽभिति॑ष्ठेमदू॒ढ्यः॑ | नृभि᳚र्वृ॒त्रंह॒न्याम॑शूशु॒याम॒चावे᳚रिन्द्र॒प्रणो॒धियः॑ || {6.2.3.2}, {8.21.12}, {8.4.1.12} |
219 | अ॒भ्रा॒तृ॒व्योऽअ॒नात्वमना᳚पिरिन्द्रज॒नुषा᳚स॒नाद॑सि | यु॒धेदा᳚पि॒त्वमि॑च्छसे || {6.2.3.3}, {8.21.13}, {8.4.1.13} |
220 | नकी᳚रे॒वन्तं᳚स॒ख्याय॑विन्दसे॒पीय᳚न्तितेसुरा॒श्वः॑ | य॒दाकृ॒णोषि॑नद॒नुंसमू᳚ह॒स्यादित्पि॒तेव॑हूयसे || {6.2.3.4}, {8.21.14}, {8.4.1.14} |
221 | माते᳚ऽअमा॒जुरो᳚यथामू॒रास॑ऽइन्द्रस॒ख्येत्वाव॑तः | निष॑दाम॒सचा᳚सु॒ते || {6.2.3.5}, {8.21.15}, {8.4.1.15} |
222 | माते᳚गोदत्र॒निर॑राम॒राध॑स॒ऽइन्द्र॒माते᳚गृहामहि | दृ॒ळ्हाचि॑द॒र्यःप्रमृ॑शा॒भ्याभ॑र॒नते᳚दा॒मान॑ऽआ॒दभे᳚ || {6.2.4.1}, {8.21.16}, {8.4.1.16} |
223 | इन्द्रो᳚वा॒घेदिय᳚न्म॒घंसर॑स्वतीवासु॒भगा᳚द॒दिर्वसु॑ | त्वंवा᳚चित्रदा॒शुषे᳚ || {6.2.4.2}, {8.21.17}, {8.4.1.17} |
224 | चित्र॒ऽइद्राजा᳚राज॒काऽइद᳚न्य॒केय॒केसर॑स्वती॒मनु॑ | प॒र्जन्य॑ऽइवत॒तन॒द्धिवृ॒ष्ट्यास॒हस्र॑म॒युता॒दद॑त् || {6.2.4.3}, {8.21.18}, {8.4.1.18} |
[11] (१-१८) अष्टादशर्चस्य सूक्तस्य काण्वः सोभरिषिः, अश्विनौ देवते | (१६) प्रथमादिषण्णां प्रगाथः (विषमा बृहती, समर्चाम् सतोबृहती), (७) सप्तम्या बृहती, (८) अष्टम्या अनुष्टुप्, (९-१०, १३-१८) नवमीदशम्योस्त्रयोदश्यादिषराणाञ्च काकभः प्रगाथः (विषमर्चाम् ककप, समर्चाम् सतोबृहती), (११) एकादश्याः ककप, (१२) द्वादश्याश्च मध्येज्योतिस्त्रिष्टुप् छन्दांसि || | |
225 | ओत्यम॑ह्व॒ऽआरथ॑म॒द्यादंसि॑ष्ठमू॒तये᳚ | यम॑श्विनासुहवारुद्रवर्तनी॒ऽआसू॒र्यायै᳚त॒स्थथुः॑ || {6.2.5.1}, {8.22.1}, {8.4.2.1} |
226 | पू॒र्वा॒युषं᳚सु॒हवं᳚पुरु॒स्पृहं᳚भु॒ज्युंवाजे᳚षु॒पूर्व्य᳚म् | स॒च॒नाव᳚न्तंसुम॒तिभिः॑सोभरे॒विद्वे᳚षसमने॒हस᳚म् || {6.2.5.2}, {8.22.2}, {8.4.2.2} |
227 | इ॒हत्यापु॑रु॒भूत॑मादे॒वानमो᳚भिर॒श्विना᳚ | अ॒र्वा॒ची॒नास्वव॑सेकरामहे॒गन्ता᳚रादा॒शुषो᳚गृ॒हम् || {6.2.5.3}, {8.22.3}, {8.4.2.3} |
228 | यु॒वोरथ॑स्य॒परि॑च॒क्रमी᳚यतऽई॒र्मान्यद्वा᳚मिषण्यति | अ॒स्माँऽअच्छा᳚सुम॒तिर्वां᳚शुभस्पती॒ऽआधे॒नुरि॑वधावतु || {6.2.5.4}, {8.22.4}, {8.4.2.4} |
229 | रथो॒योवां᳚त्रिवन्धु॒रोहिर᳚ण्याभीशुरश्विना | परि॒द्यावा᳚पृथि॒वीभूष॑तिश्रु॒तस्तेन॑नास॒त्याग॑तम् || {6.2.5.5}, {8.22.5}, {8.4.2.5} |
230 | द॒श॒स्यन्ता॒मन॑वेपू॒र्व्यंदि॒वियवं॒वृके᳚णकर्षथः | तावा᳚म॒द्यसु॑म॒तिभिः॑शुभस्पती॒ऽअश्वि॑ना॒प्रस्तु॑वीमहि || {6.2.6.1}, {8.22.6}, {8.4.2.6} |
231 | उप॑नोवाजिनीवसूया॒तमृ॒तस्य॑प॒थिभिः॑ | येभि॑स्तृ॒क्षिंवृ॑षणात्रासदस्य॒वंम॒हेक्ष॒त्राय॒जिन्व॑थः || {6.2.6.2}, {8.22.7}, {8.4.2.7} |
232 | अ॒यंवा॒मद्रि॑भिःसु॒तःसोमो᳚नरावृषण्वसू | आया᳚तं॒सोम॑पीतये॒पिब॑तंदा॒शुषो᳚गृ॒हे || {6.2.6.3}, {8.22.8}, {8.4.2.8} |
233 | आहिरु॒हत॑मश्विना॒रथे॒कोशे᳚हिर॒ण्यये᳚वृषण्वसू | यु॒ञ्जाथां॒पीव॑री॒रिषः॑ || {6.2.6.4}, {8.22.9}, {8.4.2.9} |
234 | याभिः॑प॒क्थमव॑थो॒याभि॒रध्रि॑गुं॒याभि॑र्ब॒भ्रुंविजो᳚षसम् | ताभि᳚र्नोम॒क्षूतूय॑मश्वि॒नाग॑तंभिष॒ज्यतं॒यदातु॑रम् || {6.2.6.5}, {8.22.10}, {8.4.2.10} |
235 | यदध्रि॑गावो॒ऽअध्रि॑गूऽइ॒दाचि॒दह्नो᳚ऽअ॒श्विना॒हवा᳚महे | व॒यंगी॒र्भिर्वि॑प॒न्यवः॑ || {6.2.7.1}, {8.22.11}, {8.4.2.11} |
236 | ताभि॒राया᳚तंवृष॒णोप॑मे॒हवं᳚वि॒श्वप्सुं᳚वि॒श्ववा᳚र्यम् | इ॒षामंहि॑ष्ठापुरु॒भूत॑मानरा॒याभिः॒क्रिविं᳚वावृ॒धुस्ताभि॒राग॑तम् || {6.2.7.2}, {8.22.12}, {8.4.2.12} |
237 | तावि॒दाचि॒दहा᳚नां॒ताव॒श्विना॒वन्द॑मान॒ऽउप॑ब्रुवे | ताऽउ॒नमो᳚भिरीमहे || {6.2.7.3}, {8.22.13}, {8.4.2.13} |
238 | ताविद्दो॒षाताऽउ॒षसि॑शु॒भस्पती॒तायाम᳚न्रु॒द्रव॑र्तनी | मानो॒मर्ता᳚यरि॒पवे᳚वाजिनीवसूप॒रोरु॑द्रा॒वति॑ख्यतम् || {6.2.7.4}, {8.22.14}, {8.4.2.14} |
239 | आसुग्म्या᳚य॒सुग्म्यं᳚प्रा॒तारथे᳚ना॒श्विना᳚वास॒क्षणी᳚ | हु॒वेपि॒तेव॒सोभ॑री || {6.2.7.5}, {8.22.15}, {8.4.2.15} |
240 | मनो᳚जवसावृषणामदच्युतामक्षुंग॒माभि॑रू॒तिभिः॑ | आ॒रात्ता᳚च्चिद्भूतम॒स्मेऽअव॑सेपू॒र्वीभिः॑पुरुभोजसा || {6.2.8.1}, {8.22.16}, {8.4.2.16} |
241 | आनो॒ऽअश्वा᳚वदश्विनाव॒र्तिर्या᳚सिष्टंमधुपातमानरा | गोम॑द्दस्रा॒हिर᳚ण्यवत् || {6.2.8.2}, {8.22.17}, {8.4.2.17} |
242 | सु॒प्रा॒व॒र्गंसु॒वीर्यं᳚सु॒ष्ठुवार्य॒मना᳚धृष्टंरक्ष॒स्विना᳚ | अ॒स्मिन्नावा᳚मा॒याने᳚वाजिनीवसू॒विश्वा᳚वा॒मानि॑धीमहि || {6.2.8.3}, {8.22.18}, {8.4.2.18} |
[12] (१-३०) त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य वैयश्वो विश्वमना ऋषिः | अग्निर्देवता | , उष्णिक् छन्दः || | |
243 | ईळि॑ष्वा॒हिप्र॑ती॒व्य१॑(अ॒)अंयज॑स्वजा॒तवे᳚दसम् | च॒रि॒ष्णुधू᳚म॒मगृ॑भीतशोचिषम् || {6.2.9.1}, {8.23.1}, {8.4.3.1} |
244 | दा॒मानं᳚विश्वचर्षणे॒ऽग्निंवि॑श्वमनोगि॒रा | उ॒तस्तु॑षे॒विष्प॑र्धसो॒रथा᳚नाम् || {6.2.9.2}, {8.23.2}, {8.4.3.2} |
245 | येषा᳚माबा॒धऋ॒ग्मिय॑ऽइ॒षःपृ॒क्षश्च॑नि॒ग्रभे᳚ | उ॒प॒विदा॒वह्नि᳚र्विन्दते॒वसु॑ || {6.2.9.3}, {8.23.3}, {8.4.3.3} |
246 | उद॑स्यशो॒चिर॑स्थाद्दीदि॒युषो॒व्य१॑(अ॒)जर᳚म् | तपु॑र्जम्भस्यसु॒द्युतो᳚गण॒श्रियः॑ || {6.2.9.4}, {8.23.4}, {8.4.3.4} |
247 | उदु॑तिष्ठस्वध्वर॒स्तवा᳚नोदे॒व्याकृ॒पा | अ॒भि॒ख्याभा॒साबृ॑ह॒ताशु॑शु॒क्वनिः॑ || {6.2.9.5}, {8.23.5}, {8.4.3.5} |
248 | अग्ने᳚या॒हिसु॑श॒स्तिभि॑र्ह॒व्याजुह्वा᳚नऽआनु॒षक् | यथा᳚दू॒तोब॒भूथ॑हव्य॒वाह॑नः || {6.2.10.1}, {8.23.6}, {8.4.3.6} |
249 | अ॒ग्निंवः॑पू॒र्व्यंहु॑वे॒होता᳚रंचर्षणी॒नाम् | तम॒यावा॒चागृ॑णे॒तमु॑वःस्तुषे || {6.2.10.2}, {8.23.7}, {8.4.3.7} |
250 | य॒ज्ञेभि॒रद्भु॑तक्रतुं॒यंकृ॒पासू॒दय᳚न्त॒ऽइत् | मि॒त्रंनजने॒सुधि॑तमृ॒ताव॑नि || {6.2.10.3}, {8.23.8}, {8.4.3.8} |
251 | ऋ॒तावा᳚नमृतायवोय॒ज्ञस्य॒साध॑नंगि॒रा | उपो᳚ऽएनंजुजुषु॒र्नम॑सस्प॒दे || {6.2.10.4}, {8.23.9}, {8.4.3.9} |
252 | अच्छा᳚नो॒ऽअङ्गि॑रस्तमंय॒ज्ञासो᳚यन्तुसं॒यतः॑ | होता॒योऽअस्ति॑वि॒क्ष्वाय॒शस्त॑मः || {6.2.10.5}, {8.23.10}, {8.4.3.10} |
253 | अग्ने॒तव॒त्येऽअ॑ज॒रेन्धा᳚नासोबृ॒हद्भाः | अश्वा᳚ऽइव॒वृष॑णस्तविषी॒यवः॑ || {6.2.11.1}, {8.23.11}, {8.4.3.11} |
254 | सत्वंन॑ऽऊर्जांपतेर॒यिंरा᳚स्वसु॒वीर्य᳚म् | प्राव॑नस्तो॒केतन॑येस॒मत्स्वा || {6.2.11.2}, {8.23.12}, {8.4.3.12} |
255 | यद्वाऽउ॑वि॒श्पतिः॑शि॒तःसुप्री᳚तो॒मनु॑षोवि॒शि | विश्वेद॒ग्निःप्रति॒रक्षां᳚सिसेधति || {6.2.11.3}, {8.23.13}, {8.4.3.13} |
256 | श्रु॒ष्ट्य॑ग्ने॒नव॑स्यमे॒स्तोम॑स्यवीरविश्पते | निमा॒यिन॒स्तपु॑षार॒क्षसो᳚दह || {6.2.11.4}, {8.23.14}, {8.4.3.14} |
257 | नतस्य॑मा॒यया᳚च॒नरि॒पुरी᳚शीत॒मर्त्यः॑ | योऽअ॒ग्नये᳚द॒दाश॑ह॒व्यदा᳚तिभिः || {6.2.11.5}, {8.23.15}, {8.4.3.15} |
258 | व्य॑श्वस्त्वावसु॒विद॑मुक्ष॒ण्युर॑प्रीणा॒दृषिः॑ | म॒होरा॒येतमु॑त्वा॒समि॑धीमहि || {6.2.12.1}, {8.23.16}, {8.4.3.16} |
259 | उ॒शना᳚का॒व्यस्त्वा॒निहोता᳚रमसादयत् | आ॒य॒जिंत्वा॒मन॑वेजा॒तवे᳚दसम् || {6.2.12.2}, {8.23.17}, {8.4.3.17} |
260 | विश्वे॒हित्वा᳚स॒जोष॑सोदे॒वासो᳚दू॒तमक्र॑त | श्रु॒ष्टीदे᳚वप्रथ॒मोय॒ज्ञियो᳚भुवः || {6.2.12.3}, {8.23.18}, {8.4.3.18} |
261 | इ॒मंघा᳚वी॒रोऽअ॒मृतं᳚दू॒तंकृ᳚ण्वीत॒मर्त्यः॑ | पा॒व॒कंकृ॒ष्णव॑र्तनिं॒विहा᳚यसम् || {6.2.12.4}, {8.23.19}, {8.4.3.19} |
262 | तंहु॑वेमय॒तस्रु॑चःसु॒भासं᳚शु॒क्रशो᳚चिषम् | वि॒शाम॒ग्निम॒जरं᳚प्र॒त्नमीड्य᳚म् || {6.2.12.5}, {8.23.20}, {8.4.3.20} |
263 | योऽअ॑स्मैह॒व्यदा᳚तिभि॒राहु॑तिं॒मर्तोऽवि॑धत् | भूरि॒पोषं॒सध॑त्तेवी॒रव॒द्यशः॑ || {6.2.13.1}, {8.23.21}, {8.4.3.21} |
264 | प्र॒थ॒मंजा॒तवे᳚दसम॒ग्निंय॒ज्ञेषु॑पू॒र्व्यम् | प्रति॒स्रुगे᳚ति॒नम॑साह॒विष्म॑ती || {6.2.13.2}, {8.23.22}, {8.4.3.22} |
265 | आभि᳚र्विधेमा॒ग्नये॒ज्येष्ठा᳚भिर्व्यश्व॒वत् | मंहि॑ष्ठाभिर्म॒तिभिः॑शु॒क्रशो᳚चिषे || {6.2.13.3}, {8.23.23}, {8.4.3.23} |
266 | नू॒नम॑र्च॒विहा᳚यसे॒स्तोमे᳚भिःस्थूरयूप॒वत् | ऋषे᳚वैयश्व॒दम्या᳚या॒ग्नये᳚ || {6.2.13.4}, {8.23.24}, {8.4.3.24} |
267 | अति॑थिं॒मानु॑षाणांसू॒नुंवन॒स्पती᳚नाम् | विप्रा᳚ऽअ॒ग्निमव॑सेप्र॒त्नमी᳚ळते || {6.2.13.5}, {8.23.25}, {8.4.3.25} |
268 | म॒होविश्वाँ᳚ऽअ॒भिष॒तो॒३॑(ओ॒)ऽभिह॒व्यानि॒मानु॑षा | अग्ने॒निष॑त्सि॒नम॒साधि॑ब॒र्हिषि॑ || {6.2.14.1}, {8.23.26}, {8.4.3.26} |
269 | वंस्वा᳚नो॒वार्या᳚पु॒रुवंस्व॑रा॒यःपु॑रु॒स्पृहः॑ | सु॒वीर्य॑स्यप्र॒जाव॑तो॒यश॑स्वतः || {6.2.14.2}, {8.23.27}, {8.4.3.27} |
270 | त्वंव॑रोसु॒षाम्णेऽग्ने॒जना᳚यचोदय | सदा᳚वसोरा॒तिंय॑विष्ठ॒शश्व॑ते || {6.2.14.3}, {8.23.28}, {8.4.3.28} |
271 | त्वंहिसु॑प्र॒तूरसि॒त्वंनो॒गोम॑ती॒रिषः॑ | म॒होरा॒यःसा॒तिम॑ग्ने॒ऽअपा᳚वृधि || {6.2.14.4}, {8.23.29}, {8.4.3.29} |
272 | अग्ने॒त्वंय॒शाऽअ॒स्यामि॒त्रावरु॑णावह | ऋ॒तावा᳚नास॒म्राजा᳚पू॒तद॑क्षसा || {6.2.14.5}, {8.23.30}, {8.4.3.30} |
[13] (१-३०) त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य वैयश्वो विश्वमना ऋषिः | (१-२७) प्रथमादिसप्तविंशत्र्यचामिन्द्रः, (२८-३०) अष्टाविंश्यादितृचस्य च सौषाम्णस्य वरोर्दानस्तुतिदेवते | (१-२९) प्रथमायेकोनत्रिंशदृचामष्णिक्, (३०) त्रिंश्याश्चानष्टप छन्दसी || | |
273 | सखा᳚य॒ऽआशि॑षामहि॒ब्रह्मेन्द्रा᳚यव॒ज्रिणे᳚ | स्तु॒षऽऊ॒षुवो॒नृत॑मायधृ॒ष्णवे᳚ || {6.2.15.1}, {8.24.1}, {8.4.4.1} |
274 | शव॑सा॒ह्यसि॑श्रु॒तोवृ॑त्र॒हत्ये᳚नवृत्र॒हा | म॒घैर्म॒घोनो॒ऽअति॑शूरदाशसि || {6.2.15.2}, {8.24.2}, {8.4.4.2} |
275 | सनः॒स्तवा᳚न॒ऽआभ॑रर॒यिंचि॒त्रश्र॑वस्तमम् | नि॒रे॒केचि॒द्योह॑रिवो॒वसु॑र्द॒दिः || {6.2.15.3}, {8.24.3}, {8.4.4.3} |
276 | आनि॑रे॒कमु॒तप्रि॒यमिन्द्र॒दर्षि॒जना᳚नाम् | धृ॒ष॒ताधृ॑ष्णो॒स्तव॑मान॒ऽआभ॑र || {6.2.15.4}, {8.24.4}, {8.4.4.4} |
277 | नते᳚स॒व्यंनदक्षि॑णं॒हस्तं᳚वरन्तऽआ॒मुरः॑ | नप॑रि॒बाधो᳚हरिवो॒गवि॑ष्टिषु || {6.2.15.5}, {8.24.5}, {8.4.4.5} |
278 | आत्वा॒गोभि॑रिवव्र॒जंगी॒र्भिर्ऋ॑णोम्यद्रिवः | आस्मा॒कामं᳚जरि॒तुरामनः॑पृण || {6.2.16.1}, {8.24.6}, {8.4.4.6} |
279 | विश्वा᳚निवि॒श्वम॑नसोधि॒यानो᳚वृत्रहन्तम | उग्र॑प्रणेत॒रधि॒षूव॑सोगहि || {6.2.16.2}, {8.24.7}, {8.4.4.7} |
280 | व॒यंते᳚ऽअ॒स्यवृ॑त्रहन्वि॒द्याम॑शूर॒नव्य॑सः | वसोः᳚स्पा॒र्हस्य॑पुरुहूत॒राध॑सः || {6.2.16.3}, {8.24.8}, {8.4.4.8} |
281 | इन्द्र॒यथा॒ह्यस्ति॒तेऽप॑रीतंनृतो॒शवः॑ | अमृ॑क्तारा॒तिःपु॑रुहूतदा॒शुषे᳚ || {6.2.16.4}, {8.24.9}, {8.4.4.9} |
282 | आवृ॑षस्वमहामहम॒हेनृ॑तम॒राध॑से | दृ॒ळ्हश्चि॑द्दृह्यमघवन्म॒घत्त॑ये || {6.2.16.5}, {8.24.10}, {8.4.4.10} |
283 | नूऽअ॒न्यत्रा᳚चिदद्रिव॒स्त्वन्नो᳚जग्मुरा॒शसः॑ | मघ॑वञ्छ॒ग्धितव॒तन्न॑ऽऊ॒तिभिः॑ || {6.2.17.1}, {8.24.11}, {8.4.4.11} |
284 | न॒ह्य१॑(अ॒)'ङ्गनृ॑तो॒त्वद॒न्यंवि॒न्दामि॒राध॑से | रा॒येद्यु॒म्नाय॒शव॑सेचगिर्वणः || {6.2.17.2}, {8.24.12}, {8.4.4.12} |
285 | एन्दु॒मिन्द्रा᳚यसिञ्चत॒पिबा᳚तिसो॒म्यंमधु॑ | प्रराध॑साचोदयातेमहित्व॒ना || {6.2.17.3}, {8.24.13}, {8.4.4.13} |
286 | उपो॒हरी᳚णां॒पतिं॒दक्षं᳚पृ॒ञ्चन्त॑मब्रवम् | नू॒नंश्रु॑धिस्तुव॒तोऽअ॒श्व्यस्य॑ || {6.2.17.4}, {8.24.14}, {8.4.4.14} |
287 | न॒ह्य१॑(अ॒)'ङ्गपु॒राच॒नज॒ज्ञेवी॒रत॑र॒स्त्वत् | नकी᳚रा॒यानैवथा॒नभ॒न्दना᳚ || {6.2.17.5}, {8.24.15}, {8.4.4.15} |
288 | एदु॒मध्वो᳚म॒दिन्त॑रंसि॒ञ्चवा᳚ध्वर्यो॒ऽअन्ध॑सः | ए॒वाहिवी॒रःस्तव॑तेस॒दावृ॑धः || {6.2.18.1}, {8.24.16}, {8.4.4.16} |
289 | इन्द्र॑स्थातर्हरीणां॒नकि॑ष्टेपू॒र्व्यस्तु॑तिम् | उदा᳚नंश॒शव॑सा॒नभ॒न्दना᳚ || {6.2.18.2}, {8.24.17}, {8.4.4.17} |
290 | तंवो॒वाजा᳚नां॒पति॒महू᳚महिश्रव॒स्यवः॑ | अप्रा᳚युभिर्य॒ज्ञेभि᳚र्वावृ॒धेन्य᳚म् || {6.2.18.3}, {8.24.18}, {8.4.4.18} |
291 | एतो॒न्विन्द्रं॒स्तवा᳚म॒सखा᳚यः॒स्तोम्यं॒नर᳚म् | कृ॒ष्टीर्योविश्वा᳚ऽअ॒भ्यस्त्येक॒ऽइत् || {6.2.18.4}, {8.24.19}, {8.4.4.19} |
292 | अगो᳚रुधायग॒विषे᳚द्यु॒क्षाय॒दस्म्यं॒वचः॑ | घृ॒तात्स्वादी᳚यो॒मधु॑नश्चवोचत || {6.2.18.5}, {8.24.20}, {8.4.4.20} |
293 | यस्यामि॑तानिवी॒र्या॒३॑(आ॒)नराधः॒पर्ये᳚तवे | ज्योति॒र्नविश्व॑म॒भ्यस्ति॒दक्षि॑णा || {6.2.19.1}, {8.24.21}, {8.4.4.21} |
294 | स्तु॒हीन्द्रं᳚व्यश्व॒वदनू᳚र्मिंवा॒जिनं॒यम᳚म् | अ॒र्योगयं॒मंह॑मानं॒विदा॒शुषे᳚ || {6.2.19.2}, {8.24.22}, {8.4.4.22} |
295 | ए॒वानू॒नमुप॑स्तुहि॒वैय॑श्वदश॒मंनव᳚म् | सुवि॑द्वांसंच॒र्कृत्यं᳚च॒रणी᳚नाम् || {6.2.19.3}, {8.24.23}, {8.4.4.23} |
296 | वेत्था॒हिनिर्ऋ॑तीनां॒वज्र॑हस्तपरि॒वृज᳚म् | अह॑रहःशु॒न्ध्युःप॑रि॒पदा᳚मिव || {6.2.19.4}, {8.24.24}, {8.4.4.24} |
297 | तदि॒न्द्राव॒ऽआभ॑र॒येना᳚दंसिष्ठ॒कृत्व॑ने | द्वि॒ताकुत्सा᳚यशिश्नथो॒निचो᳚दय || {6.2.19.5}, {8.24.25}, {8.4.4.25} |
298 | तमु॑त्वानू॒नमी᳚महे॒नव्यं᳚दंसिष्ठ॒सन्य॑से | सत्वंनो॒विश्वा᳚ऽअ॒भिमा᳚तीःस॒क्षणिः॑ || {6.2.20.1}, {8.24.26}, {8.4.4.26} |
299 | यऋक्षा॒दंह॑सोमु॒चद्योवार्या᳚त्स॒प्तसिन्धु॑षु | वध॑र्दा॒सस्य॑तुविनृम्णनीनमः || {6.2.20.2}, {8.24.27}, {8.4.4.27} |
300 | यथा᳚वरोसु॒षाम्णे᳚स॒निभ्य॒ऽआव॑होर॒यिम् | व्य॑श्वेभ्यःसुभगेवाजिनीवति || {6.2.20.3}, {8.24.28}, {8.4.4.28} |
301 | आना॒र्यस्य॒दक्षि॑णा॒व्य॑श्वाँऽएतुसो॒मिनः॑ | स्थू॒रंच॒राधः॑श॒तव॑त्स॒हस्र॑वत् || {6.2.20.4}, {8.24.29}, {8.4.4.29} |
302 | यत्त्वा᳚पृ॒च्छादी᳚जा॒नःकु॑ह॒याकु॑हयाकृते | ए॒षोऽअप॑श्रितोव॒लोगो᳚म॒तीमव॑तिष्ठति || {6.2.20.5}, {8.24.30}, {8.4.4.30} |
[14] (१-२४) चतुर्विंशत्यृचस्य सूक्तस्य वैयश्वो विश्वमना ऋषिः | (१-९, १३-२४) प्रथमादिनवर्चाम् त्रयोदश्यादिद्वादशानाञ्च मित्रावरुणौ, (१०-१२) दशम्यादितृचस्य च विश्वे देवा देवताः | (१-२२, २४) प्रथमादिद्वाविंशत्र्यचां चतर्विश्याश्चोष्णिक्, (२३) त्रयोविंश्याश्चोष्णिग्गर्भा छन्दसी || | |
303 | तावां॒विश्व॑स्यगो॒पादे॒वादे॒वेषु॑य॒ज्ञिया᳚ | ऋ॒तावा᳚नायजसेपू॒तद॑क्षसा || {6.2.21.1}, {8.25.1}, {8.4.5.1} |
304 | मि॒त्रातना॒नर॒थ्या॒३॑(आ॒)वरु॑णो॒यश्च॑सु॒क्रतुः॑ | स॒नात्सु॑जा॒तातन॑याधृ॒तव्र॑ता || {6.2.21.2}, {8.25.2}, {8.4.5.2} |
305 | तामा॒तावि॒श्ववे᳚दसासु॒र्या᳚य॒प्रम॑हसा | म॒हीज॑जा॒नादि॑तिर्ऋ॒ताव॑री || {6.2.21.3}, {8.25.3}, {8.4.5.3} |
306 | म॒हान्ता᳚मि॒त्रावरु॑णास॒म्राजा᳚दे॒वावसु॑रा | ऋ॒तावा᳚नावृ॒तमाघो᳚षतोबृ॒हत् || {6.2.21.4}, {8.25.4}, {8.4.5.4} |
307 | नपा᳚ता॒शव॑सोम॒हःसू॒नूदक्ष॑स्यसु॒क्रतू᳚ | सृ॒प्रदा᳚नूऽइ॒षोवास्त्वधि॑क्षितः || {6.2.21.5}, {8.25.5}, {8.4.5.5} |
308 | संयादानू᳚निये॒मथु॑र्दि॒व्याःपार्थि॑वी॒रिषः॑ | नभ॑स्वती॒रावां᳚चरन्तुवृ॒ष्टयः॑ || {6.2.22.1}, {8.25.6}, {8.4.5.6} |
309 | अधि॒याबृ॑ह॒तोदि॒वो॒३॑(ओ॒)ऽभियू॒थेव॒पश्य॑तः | ऋ॒तावा᳚नास॒म्राजा॒नम॑सेहि॒ता || {6.2.22.2}, {8.25.7}, {8.4.5.7} |
310 | ऋ॒तावा᳚ना॒निषे᳚दतुः॒साम्रा᳚ज्यायसु॒क्रतू᳚ | धृ॒तव्र॑ताक्ष॒त्रिया᳚क्ष॒त्रमा᳚शतुः || {6.2.22.3}, {8.25.8}, {8.4.5.8} |
311 | अ॒क्ष्णश्चि॑द्गातु॒वित्त॑रानुल्ब॒णेन॒चक्ष॑सा | निचि᳚न्मि॒षन्ता᳚निचि॒रानिचि॑क्यतुः || {6.2.22.4}, {8.25.9}, {8.4.5.9} |
312 | उ॒तनो᳚दे॒व्यदि॑तिरुरु॒ष्यतां॒नास॑त्या | उ॒रु॒ष्यन्तु॑म॒रुतो᳚वृ॒द्धश॑वसः || {6.2.22.5}, {8.25.10}, {8.4.5.10} |
313 | तेनो᳚ना॒वमु॑रुष्यत॒दिवा॒नक्तं᳚सुदानवः | अरि॑ष्यन्तो॒निपा॒युभिः॑सचेमहि || {6.2.23.1}, {8.25.11}, {8.4.5.11} |
314 | अघ्न॑ते॒विष्ण॑वेव॒यमरि॑ष्यन्तःसु॒दान॑वे | श्रु॒धिस्व॑यावन्त्सिन्धोपू॒र्वचि॑त्तये || {6.2.23.2}, {8.25.12}, {8.4.5.12} |
315 | तद्वार्यं᳚वृणीमहे॒वरि॑ष्ठंगोप॒यत्य᳚म् | मि॒त्रोयत्पान्ति॒वरु॑णो॒यद᳚र्य॒मा || {6.2.23.3}, {8.25.13}, {8.4.5.13} |
316 | उ॒तनः॒सिन्धु॑र॒पांतन्म॒रुत॒स्तद॒श्विना᳚ | इन्द्रो॒विष्णु᳚र्मी॒ढ्वांसः॑स॒जोष॑सः || {6.2.23.4}, {8.25.14}, {8.4.5.14} |
317 | तेहिष्मा᳚व॒नुषो॒नरो॒ऽभिमा᳚तिं॒कय॑स्यचित् | ति॒ग्मंनक्षोदः॑प्रति॒घ्नन्ति॒भूर्ण॑यः || {6.2.23.5}, {8.25.15}, {8.4.5.15} |
318 | अ॒यमेक॑ऽइ॒त्थापु॒रूरुच॑ष्टे॒विवि॒श्पतिः॑ | तस्य᳚व्र॒तान्यनु॑वश्चरामसि || {6.2.24.1}, {8.25.16}, {8.4.5.16} |
319 | अनु॒पूर्वा᳚ण्यो॒क्या᳚साम्रा॒ज्यस्य॑सश्चिम | मि॒त्रस्य᳚व्र॒तावरु॑णस्यदीर्घ॒श्रुत् || {6.2.24.2}, {8.25.17}, {8.4.5.17} |
320 | परि॒योर॒श्मिना᳚दि॒वोऽन्ता᳚न्म॒मेपृ॑थि॒व्याः | उ॒भेऽआप॑प्रौ॒रोद॑सीमहि॒त्वा || {6.2.24.3}, {8.25.18}, {8.4.5.18} |
321 | उदु॒ष्यश॑र॒णेदि॒वोज्योति॑रयंस्त॒सूर्यः॑ | अ॒ग्निर्नशु॒क्रःस॑मिधा॒नऽआहु॑तः || {6.2.24.4}, {8.25.19}, {8.4.5.19} |
322 | वचो᳚दी॒र्घप्र॑सद्म॒नीशे॒वाज॑स्य॒गोम॑तः | ईशे॒हिपि॒त्वो᳚ऽवि॒षस्य॑दा॒वने᳚ || {6.2.24.5}, {8.25.20}, {8.4.5.20} |
323 | तत्सूर्यं॒रोद॑सीऽउ॒भेदो॒षावस्तो॒रुप॑ब्रुवे | भो॒जेष्व॒स्माँऽअ॒भ्युच्च॑रा॒सदा᳚ || {6.2.25.1}, {8.25.21}, {8.4.5.21} |
324 | ऋ॒ज्रमु॑क्ष॒ण्याय॑नेरज॒तंहर॑याणे | रथं᳚यु॒क्तम॑सनामसु॒षाम॑णि || {6.2.25.2}, {8.25.22}, {8.4.5.22} |
325 | तामे॒ऽअश्व्या᳚नां॒हरी᳚णांनि॒तोश॑ना | उ॒तोनुकृत्व्या᳚नांनृ॒वाह॑सा || {6.2.25.3}, {8.25.23}, {8.4.5.23} |
326 | स्मद॑भीशू॒कशा᳚वन्ता॒विप्रा॒नवि॑ष्ठयाम॒ती | म॒होवा॒जिना॒वर्व᳚न्ता॒सचा᳚सनम् || {6.2.25.4}, {8.25.24}, {8.4.5.24} |
[15] (१-२५) पञ्चविंशत्यृचस्य सूक्तस्य वैयश्वो विश्वमना आङ्गिरसो व्यश्वो वा ऋषिः | (१-१९) प्रथमायेकोनविंशत्र्यचामश्विनौ, (२०-२५) विंश्यादिषराणाञ्च वायुदर्वेताः | (१-१५, २२-२४) प्रथमादिपञ्चदशों द्वाविंश्यादितृचस्य चोष्णिक्, (१६-१९, २१, २५) षोडश्यादिचतसृणामेकविंशीपञ्चविंश्योश्च गायत्री, (२०) विंश्याश्चानुष्टप छन्दांसि || | |
327 | यु॒वोरु॒षूरथं᳚हुवेस॒धस्तु॑त्यायसू॒रिषु॑ | अतू᳚र्तदक्षावृषणावृषण्वसू || {6.2.26.1}, {8.26.1}, {8.4.6.1} |
328 | यु॒वंव॑रोसु॒षाम्णे᳚म॒हेतने᳚नासत्या | अवो᳚भिर्याथोवृषणावृषण्वसू || {6.2.26.2}, {8.26.2}, {8.4.6.2} |
329 | तावा᳚म॒द्यह॑वामहेह॒व्येभि᳚र्वाजिनीवसू | पू॒र्वीरि॒षऽइ॒षय᳚न्ता॒वति॑क्ष॒पः || {6.2.26.3}, {8.26.3}, {8.4.6.3} |
330 | आवां॒वाहि॑ष्ठोऽअश्विना॒रथो᳚यातुश्रु॒तोन॑रा | उप॒स्तोमा᳚न्तु॒रस्य॑दर्शथःश्रि॒ये || {6.2.26.4}, {8.26.4}, {8.4.6.4} |
331 | जु॒हु॒रा॒णाचि॑दश्वि॒नाम᳚न्येथांवृषण्वसू | यु॒वंहिरु॑द्रा॒पर्ष॑थो॒ऽअति॒द्विषः॑ || {6.2.26.5}, {8.26.5}, {8.4.6.5} |
332 | द॒स्राहिविश्व॑मानु॒षङ्म॒क्षूभिः॑परि॒दीय॑थः | धि॒यं॒जि॒न्वामधु॑वर्णाशु॒भस्पती᳚ || {6.2.27.1}, {8.26.6}, {8.4.6.6} |
333 | उप॑नोयातमश्विनारा॒यावि॑श्व॒पुषा᳚स॒ह | म॒घवा᳚नासु॒वीरा॒वन॑पच्युता || {6.2.27.2}, {8.26.7}, {8.4.6.7} |
334 | आमे᳚ऽअ॒स्यप्र॑ती॒व्य१॑(अ॒)मिन्द्र॑नासत्यागतम् | दे॒वादे॒वेभि॑र॒द्यस॒चन॑स्तमा || {6.2.27.3}, {8.26.8}, {8.4.6.8} |
335 | व॒यंहिवां॒हवा᳚महऽउक्ष॒ण्यन्तो᳚व्यश्व॒वत् | सु॒म॒तिभि॒रुप॑विप्रावि॒हाग॑तम् || {6.2.27.4}, {8.26.9}, {8.4.6.9} |
336 | अ॒श्विना॒स्वृ॑षेस्तुहिकु॒वित्ते॒श्रव॑तो॒हव᳚म् | नेदी᳚यसःकूळयातःप॒णीँरु॒त || {6.2.27.5}, {8.26.10}, {8.4.6.10} |
337 | वै॒य॒श्वस्य॑श्रुतंनरो॒तोमे᳚ऽअ॒स्यवे᳚दथः | स॒जोष॑सा॒वरु॑णोमि॒त्रोऽअ᳚र्य॒मा || {6.2.28.1}, {8.26.11}, {8.4.6.11} |
338 | यु॒वाद॑त्तस्यधिष्ण्यायु॒वानी᳚तस्यसू॒रिभिः॑ | अह॑रहर्वृषण॒मह्यं᳚शिक्षतम् || {6.2.28.2}, {8.26.12}, {8.4.6.12} |
339 | योवां᳚य॒ज्ञेभि॒रावृ॒तोऽधि॑वस्त्राव॒धूरि॑व | स॒प॒र्यन्ता᳚शु॒भेच॑क्रातेऽअ॒श्विना᳚ || {6.2.28.3}, {8.26.13}, {8.4.6.13} |
340 | योवा᳚मुरु॒व्यच॑स्तमं॒चिके᳚ततिनृ॒पाय्य᳚म् | व॒र्तिर॑श्विना॒परि॑यातमस्म॒यू || {6.2.28.4}, {8.26.14}, {8.4.6.14} |
341 | अ॒स्मभ्यं॒सुवृ॑षण्वसूया॒तंव॒र्तिर्नृ॒पाय्य᳚म् | वि॒षु॒द्रुहे᳚वय॒ज्ञमू᳚हथुर्गि॒रा || {6.2.28.5}, {8.26.15}, {8.4.6.15} |
342 | वाहि॑ष्ठोवां॒हवा᳚नां॒स्तोमो᳚दू॒तोहु॑वन्नरा | यु॒वाभ्यां᳚भूत्वश्विना || {6.2.29.1}, {8.26.16}, {8.4.6.16} |
343 | यद॒दोदि॒वोऽअ᳚र्ण॒वऽइ॒षोवा॒मद॑थोगृ॒हे | श्रु॒तमिन्मे᳚ऽअमर्त्या || {6.2.29.2}, {8.26.17}, {8.4.6.17} |
344 | उ॒तस्याश्वे᳚त॒याव॑री॒वाहि॑ष्ठावांन॒दीना᳚म् | सिन्धु॒र्हिर᳚ण्यवर्तनिः || {6.2.29.3}, {8.26.18}, {8.4.6.18} |
345 | स्मदे॒तया᳚सुकी॒र्त्याश्वि॑नाश्वे॒तया᳚धि॒या | वहे᳚थेशुभ्रयावाना || {6.2.29.4}, {8.26.19}, {8.4.6.19} |
346 | यु॒क्ष्वाहित्वंर॑था॒सहा᳚यु॒वस्व॒पोष्या᳚वसो | आन्नो᳚वायो॒मधु॑पिबा॒स्माकं॒सव॒नाग॑हि || {6.2.29.5}, {8.26.20}, {8.4.6.20} |
347 | तव॑वायवृतस्पते॒त्वष्टु॑र्जामातरद्भुत | अवां॒स्यावृ॑णीमहे || {6.2.30.1}, {8.26.21}, {8.4.6.21} |
348 | त्वष्टु॒र्जामा᳚तरंव॒यमीशा᳚नंरा॒यऽई᳚महे | सु॒ताव᳚न्तोवा॒युंद्यु॒म्नाजना᳚सः || {6.2.30.2}, {8.26.22}, {8.4.6.22} |
349 | वायो᳚या॒हिशि॒वादि॒वोवह॑स्वा॒सुस्वश्व्य᳚म् | वह॑स्वम॒हःपृ॑थु॒पक्ष॑सा॒रथे᳚ || {6.2.30.3}, {8.26.23}, {8.4.6.23} |
350 | त्वांहिसु॒प्सर॑स्तमंनृ॒षद॑नेषुहू॒महे᳚ | ग्रावा᳚णं॒नाश्व॑पृष्ठंमं॒हना᳚ || {6.2.30.4}, {8.26.24}, {8.4.6.24} |
351 | सत्वंनो᳚देव॒मन॑सा॒वायो᳚मन्दा॒नोऽअ॑ग्रि॒यः | कृ॒धिवाजाँ᳚ऽअ॒पोधियः॑ || {6.2.30.5}, {8.26.25}, {8.4.6.25} |
[16] (१-२२) द्वाविंशत्यृचस्य सूक्तस्य वैवस्वतो मनुषिः, विश्वे देवा देवताः | प्रगाथः (विषमर्चाम् बृहती, समर्चाम् सतोबृहती) छन्दः || | |
352 | अ॒ग्निरु॒क्थेपु॒रोहि॑तो॒ग्रावा᳚णोब॒र्हिर॑ध्व॒रे | ऋ॒चाया᳚मिम॒रुतो॒ब्रह्म॑ण॒स्पतिं᳚दे॒वाँऽअवो॒वरे᳚ण्यम् || {6.2.31.1}, {8.27.1}, {8.4.7.1} |
353 | आप॒शुंगा᳚सिपृथि॒वींवन॒स्पती᳚नु॒षासा॒नक्त॒मोष॑धीः | विश्वे᳚चनोवसवोविश्ववेदसोधी॒नांभू᳚तप्रावि॒तारः॑ || {6.2.31.2}, {8.27.2}, {8.4.7.2} |
354 | प्रसून॑ऽएत्वध्व॒रो॒३॑(ओ॒)ऽग्नादे॒वेषु॑पू॒र्व्यः | आ॒दि॒त्येषु॒प्रवरु॑णेधृ॒तव्र॑तेम॒रुत्सु॑वि॒श्वभा᳚नुषु || {6.2.31.3}, {8.27.3}, {8.4.7.3} |
355 | विश्वे॒हिष्मा॒मन॑वेवि॒श्ववे᳚दसो॒भुव᳚न्वृ॒धेरि॒शाद॑सः | अरि॑ष्टेभिःपा॒युभि᳚र्विश्ववेदसो॒यन्ता᳚नोऽवृ॒कंछ॒र्दिः || {6.2.31.4}, {8.27.4}, {8.4.7.4} |
356 | आनो᳚ऽअ॒द्यसम॑नसो॒गन्ता॒विश्वे᳚स॒जोष॑सः | ऋ॒चागि॒रामरु॑तो॒देव्यदि॑ते॒सद॑ने॒पस्त्ये᳚महि || {6.2.31.5}, {8.27.5}, {8.4.7.5} |
357 | अ॒भिप्रि॒याम॑रुतो॒यावो॒ऽअश्व्या᳚ह॒व्यामि॑त्रप्रया॒थन॑ | आब॒र्हिरिन्द्रो॒वरु॑णस्तु॒रानर॑ऽआदि॒त्यासः॑सदन्तुनः || {6.2.32.1}, {8.27.6}, {8.4.7.6} |
358 | व॒यंवो᳚वृ॒क्तब॑र्हिषोहि॒तप्र॑यसऽआनु॒षक् | सु॒तसो᳚मासोवरुणहवामहेमनु॒ष्वदि॒द्धाग्न॑यः || {6.2.32.2}, {8.27.7}, {8.4.7.7} |
359 | आप्रया᳚त॒मरु॑तो॒विष्णो॒ऽअश्वि॑ना॒पूष॒न्माकी᳚नयाधि॒या | इन्द्र॒ऽआया᳚तुप्रथ॒मःस॑नि॒ष्युभि॒र्वृषा॒योवृ॑त्र॒हागृ॒णे || {6.2.32.3}, {8.27.8}, {8.4.7.8} |
360 | विनो᳚देवासोऽअद्रु॒होऽच्छि॑द्रं॒शर्म॑यच्छत | नयद्दू॒राद्व॑सवो॒नूचि॒दन्ति॑तो॒वरू᳚थमाद॒धर्ष॑ति || {6.2.32.4}, {8.27.9}, {8.4.7.9} |
361 | अस्ति॒हिवः॑सजा॒त्यं᳚रिशादसो॒देवा᳚सो॒ऽअस्त्याप्य᳚म् | प्रणः॒पूर्व॑स्मैसुवि॒ताय॑वोचतम॒क्षूसु॒म्नाय॒नव्य॑से || {6.2.32.5}, {8.27.10}, {8.4.7.10} |
362 | इ॒दाहिव॒ऽउप॑स्तुतिमि॒दावा॒मस्य॑भ॒क्तये᳚ | उप॑वोविश्ववेदसोनम॒स्युराँऽअसृ॒क्ष्यन्या᳚मिव || {6.2.33.1}, {8.27.11}, {8.4.7.11} |
363 | उदु॒ष्यवः॑सवि॒तासु॑प्रणीत॒योऽस्था᳚दू॒र्ध्वोवरे᳚ण्यः | निद्वि॒पाद॒श्चतु॑ष्पादोऽअ॒र्थिनोऽवि॑श्रन्पतयि॒ष्णवः॑ || {6.2.33.2}, {8.27.12}, {8.4.7.12} |
364 | दे॒वंदे᳚वं॒वोऽव॑सेदे॒वंदे᳚वम॒भिष्ट॑ये | दे॒वंदे᳚वंहुवेम॒वाज॑सातयेगृ॒णन्तो᳚दे॒व्याधि॒या || {6.2.33.3}, {8.27.13}, {8.4.7.13} |
365 | दे॒वासो॒हिष्मा॒मन॑वे॒सम᳚न्यवो॒विश्वे᳚सा॒कंसरा᳚तयः | तेनो᳚ऽअ॒द्यतेऽअ॑प॒रंतु॒चेतुनो॒भव᳚न्तुवरिवो॒विदः॑ || {6.2.33.4}, {8.27.14}, {8.4.7.14} |
366 | प्रवः॑शंसाम्यद्रुहःसं॒स्थऽउप॑स्तुतीनाम् | नतंधू॒र्तिर्व॑रुणमित्र॒मर्त्यं॒योवो॒धाम॒भ्योऽवि॑धत् || {6.2.33.5}, {8.27.15}, {8.4.7.15} |
367 | प्रसक्षयं᳚तिरते॒विम॒हीरिषो॒योवो॒वरा᳚य॒दाश॑ति | प्रप्र॒जाभि॑र्जायते॒धर्म॑ण॒स्पर्यरि॑ष्टः॒सर्व॑ऽएधते || {6.2.33.6}, {8.27.16}, {8.4.7.16} |
368 | ऋ॒तेसवि᳚न्दतेयु॒धःसु॒गेभि᳚र्या॒त्यध्व॑नः | अ॒र्य॒मामि॒त्रोवरु॑णः॒सरा᳚तयो॒यंत्राय᳚न्तेस॒जोष॑सः || {6.2.34.1}, {8.27.17}, {8.4.7.17} |
369 | अज्रे᳚चिदस्मैकृणुथा॒न्यञ्च॑नंदु॒र्गेचि॒दासु॑सर॒णम् | ए॒षाचि॑दस्माद॒शनिः॑प॒रोनुसास्रे᳚धन्ती॒विन॑श्यतु || {6.2.34.2}, {8.27.18}, {8.4.7.18} |
370 | यद॒द्यसूर्य॑ऽउद्य॒तिप्रिय॑क्षत्राऋ॒तंद॒ध | यन्नि॒म्रुचि॑प्र॒बुधि॑विश्ववेदसो॒यद्वा᳚म॒ध्यंदि॑नेदि॒वः || {6.2.34.3}, {8.27.19}, {8.4.7.19} |
371 | यद्वा᳚भिपि॒त्वेऽअ॑सुराऋ॒तंय॒तेछ॒र्दिर्ये॒मविदा॒शुषे᳚ | व॒यंतद्वो᳚वसवोविश्ववेदस॒ऽउप॑स्थेयाम॒मध्य॒ऽआ || {6.2.34.4}, {8.27.20}, {8.4.7.20} |
372 | यद॒द्यसूर॒ऽउदि॑ते॒यन्म॒ध्यंदि॑नऽआ॒तुचि॑ | वा॒मंध॒त्थमन॑वेविश्ववेदसो॒जुह्वा᳚नाय॒प्रचे᳚तसे || {6.2.34.5}, {8.27.21}, {8.4.7.21} |
373 | व॒यंतद्वः॑सम्राज॒ऽआवृ॑णीमहेपु॒त्रोनब॑हु॒पाय्य᳚म् | अ॒श्याम॒तदा᳚दित्या॒जुह्व॑तोह॒विर्येन॒वस्यो॒ऽनशा᳚महै || {6.2.34.6}, {8.27.22}, {8.4.7.22} |
[17] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य वैवस्वतो मनु ऋषिः | विश्वे देवा देवताः | (१-३, ५) प्रथमादितृचस्य पञ्चम्याऋचश्च गायत्री, (४) चतुर्थ्याश्च पुर उष्णिक् छन्दसी || | |
374 | येत्रिं॒शति॒त्रय॑स्प॒रोदे॒वासो᳚ब॒र्हिरास॑दन् | वि॒दन्नह॑द्वि॒तास॑नन् || {6.2.35.1}, {8.28.1}, {8.4.8.1} |
375 | वरु॑णोमि॒त्रोऽअ᳚र्य॒मास्मद्रा᳚तिषाचोऽअ॒ग्नयः॑ | पत्नी᳚वन्तो॒वष॑ट्कृताः || {6.2.35.2}, {8.28.2}, {8.4.8.2} |
376 | तेनो᳚गो॒पाऽअ॑पा॒च्यास्तऽउद॒क्तऽइ॒त्थान्य॑क् | पु॒रस्ता॒त्सर्व॑यावि॒शा || {6.2.35.3}, {8.28.3}, {8.4.8.3} |
377 | यथा॒वश᳚न्तिदे॒वास्तथेद॑स॒त्तदे᳚षां॒नकि॒रामि॑नत् | अरा᳚वाच॒नमर्त्यः॑ || {6.2.35.4}, {8.28.4}, {8.4.8.4} |
378 | स॒प्ता॒नांस॒प्तऋ॒ष्टयः॑स॒प्तद्यु॒म्नान्ये᳚षाम् | स॒प्तोऽअधि॒श्रियो᳚धिरे || {6.2.35.5}, {8.28.5}, {8.4.8.5} |
[18] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य वैवस्वतो मनमर्ररीचः कश्यपो वा ऋषिः | विश्वे देवा देवताः | द्विपदा विराट् छन्दः || | |
379 | ब॒भ्रुरेको॒विषु॑णःसू॒नरो॒युवा॒ञ्ज्य᳚ङ्क्तेहिर॒ण्यय᳚म् || {6.2.36.1}, {8.29.1}, {8.4.9.1} |
380 | योनि॒मेक॒ऽआस॑साद॒द्योत॑नो॒ऽन्तर्दे॒वेषु॒मेधि॑रः || {6.2.36.2}, {8.29.2}, {8.4.9.2} |
381 | वाशी॒मेको᳚बिभर्ति॒हस्त॑ऽआय॒सीम॒न्तर्दे॒वेषु॒निध्रु॑विः || {6.2.36.3}, {8.29.3}, {8.4.9.3} |
382 | वज्र॒मेको᳚बिभर्ति॒हस्त॒ऽआहि॑तं॒तेन॑वृ॒त्राणि॑जिघ्नते || {6.2.36.4}, {8.29.4}, {8.4.9.4} |
383 | ति॒ग्ममेको᳚बिभर्ति॒हस्त॒ऽआयु॑धं॒शुचि॑रु॒ग्रोजला᳚षभेषजः || {6.2.36.5}, {8.29.5}, {8.4.9.5} |
384 | प॒थऽएकः॑पीपाय॒तस्क॑रोयथाँऽए॒षवे᳚दनिधी॒नाम् || {6.2.36.6}, {8.29.6}, {8.4.9.6} |
385 | त्रीण्येक॑ऽउरुगा॒योविच॑क्रमे॒यत्र॑दे॒वासो॒मद᳚न्ति || {6.2.36.7}, {8.29.7}, {8.4.9.7} |
386 | विभि॒र्द्वाच॑रत॒ऽएक॑यास॒हप्रप्र॑वा॒सेव॑वसतः || {6.2.36.8}, {8.29.8}, {8.4.9.8} |
387 | सदो॒द्वाच॑क्रातेऽउप॒मादि॒विस॒म्राजा᳚स॒र्पिरा᳚सुती || {6.2.36.9}, {8.29.9}, {8.4.9.9} |
388 | अर्च᳚न्त॒ऽएके॒महि॒साम॑मन्वत॒तेन॒सूर्य॑मरोचयन् || {6.2.36.10}, {8.29.10}, {8.4.9.10} |
[19] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य वैवस्वतो मनुषिः, विश्वे देवा देवताः | (१) प्रथम! गायत्री, (२) द्वितीयायाः पुर उष्णिक्, (३) तृतीयाया बृहती, (४) चतुर्थ्याश्चानुष्टप् छन्दांसि || | |
389 | न॒हिवो॒ऽअस्त्य॑र्भ॒कोदेवा᳚सो॒नकु॑मार॒कः | विश्वे᳚स॒तोम॑हान्त॒ऽइत् || {6.2.37.1}, {8.30.1}, {8.4.10.1} |
390 | इति॑स्तु॒तासो᳚ऽअसथारिशादसो॒येस्थत्रय॑श्चत्रिं॒शच्च॑ | मनो᳚र्देवायज्ञियासः || {6.2.37.2}, {8.30.2}, {8.4.10.2} |
391 | तेन॑स्त्राध्वं॒ते᳚ऽवत॒तऽउ॑नो॒ऽअधि॑वोचत | मानः॑प॒थःपित्र्या᳚न्मान॒वादधि॑दू॒रंनै᳚ष्टपरा॒वतः॑ || {6.2.37.3}, {8.30.3}, {8.4.10.3} |
392 | येदे᳚वासऽइ॒हस्थन॒विश्वे᳚वैश्वान॒राऽउ॒त | अ॒स्मभ्यं॒शर्म॑स॒प्रथो॒गवेऽश्वा᳚ययच्छत || {6.2.37.4}, {8.30.4}, {8.4.10.4} |
[20] (१-१८) अष्टादशर्चस्य सूक्तस्य वैवस्वतो मनु ऋषिः | (१-४) प्रथमादिचतुर्ऋचामा यज्ञो यजमानश्च, (५-९) पञ्चम्यादिपञ्चानां दम्पती, (१०-१८) दशम्यादिनवानाञ्च दम्पत्याशिपो देवताः | (१-८, ११-१३) प्रथमाद्यष्टर्चामक दिश्यादितृचस्य च गायत्री, (९, १४) नवमीचतुदर्श योरनुष्टुप्, (१०) दशम्याः पादनिघृत, (१५-१८) पञ्चदश्यादिचतसृणाञ्च पतिश्छन्दांसि || | |
393 | योयजा᳚ति॒यजा᳚त॒ऽइत्सु॒नव॑च्च॒पचा᳚तिच | ब्र॒ह्मेदिन्द्र॑स्यचाकनत् || {6.2.38.1}, {8.31.1}, {8.5.1.1} |
394 | पु॒रो॒ळाशं॒योऽअ॑स्मै॒सोमं॒रर॑तऽआ॒शिर᳚म् | पादित्तंश॒क्रोऽअंह॑सः || {6.2.38.2}, {8.31.2}, {8.5.1.2} |
395 | तस्य॑द्यु॒माँऽअ॑स॒द्रथो᳚दे॒वजू᳚तः॒सशू᳚शुवत् | विश्वा᳚व॒न्वन्न॑मि॒त्रिया᳚ || {6.2.38.3}, {8.31.3}, {8.5.1.3} |
396 | अस्य॑प्र॒जाव॑तीगृ॒हेऽस॑श्चन्तीदि॒वेदि॑वे | इळा᳚धेनु॒मती᳚दुहे || {6.2.38.4}, {8.31.4}, {8.5.1.4} |
397 | यादम्प॑ती॒सम॑नसासुनु॒तऽआच॒धाव॑तः | देवा᳚सो॒नित्य॑या॒शिरा᳚ || {6.2.38.5}, {8.31.5}, {8.5.1.5} |
398 | प्रति॑प्राश॒व्याँ᳚ऽइतःस॒म्यञ्चा᳚ब॒र्हिरा᳚शाते | नतावाजे᳚षुवायतः || {6.2.39.1}, {8.31.6}, {8.5.1.6} |
399 | नदे॒वाना॒मपि॑ह्नुतःसुम॒तिंनजु॑गुक्षतः | श्रवो᳚बृ॒हद्वि॑वासतः || {6.2.39.2}, {8.31.7}, {8.5.1.7} |
400 | पु॒त्रिणा॒ताकु॑मा॒रिणा॒विश्व॒मायु॒र्व्य॑श्नुतः | उ॒भाहिर᳚ण्यपेशसा || {6.2.39.3}, {8.31.8}, {8.5.1.8} |
401 | वी॒तिहो᳚त्राकृ॒तद्व॑सूदश॒स्यन्ता॒मृता᳚य॒कम् | समूधो᳚रोम॒शंह॑तोदे॒वेषु॑कृणुतो॒दुवः॑ || {6.2.39.4}, {8.31.9}, {8.5.1.9} |
402 | आशर्म॒पर्व॑तानांवृणी॒महे᳚न॒दीना᳚म् | आविष्णोः᳚सचा॒भुवः॑ || {6.2.39.5}, {8.31.10}, {8.5.1.10} |
403 | ऐतु॑पू॒षार॒यिर्भगः॑स्व॒स्तिस᳚र्व॒धात॑मः | उ॒रुरध्वा᳚स्व॒स्तये᳚ || {6.2.40.1}, {8.31.11}, {8.5.1.11} |
404 | अ॒रम॑तिरन॒र्वणो॒विश्वो᳚दे॒वस्य॒मन॑सा | आ॒दि॒त्याना᳚मने॒हऽइत् || {6.2.40.2}, {8.31.12}, {8.5.1.12} |
405 | यथा᳚नोमि॒त्रोऽअ᳚र्य॒मावरु॑णः॒सन्ति॑गो॒पाः | सु॒गाऋ॒तस्य॒पन्थाः᳚ || {6.2.40.3}, {8.31.13}, {8.5.1.13} |
406 | अ॒ग्निंवः॑पू॒र्व्यंगि॒रादे॒वमी᳚ळे॒वसू᳚नाम् | स॒प॒र्यन्तः॑पुरुप्रि॒यंमि॒त्रंनक्षे᳚त्र॒साध॑सम् || {6.2.40.4}, {8.31.14}, {8.5.1.14} |
407 | म॒क्षूदे॒वव॑तो॒रथः॒शूरो᳚वापृ॒त्सुकासु॑चित् | दे॒वानां॒यऽइन्मनो॒यज॑मान॒ऽइय॑क्षत्य॒भीदय॑ज्वनोभुवत् || {6.2.40.5}, {8.31.15}, {8.5.1.15} |
408 | नय॑जमानरिष्यसि॒नसु᳚न्वान॒नदे᳚वयो | दे॒वानां॒यऽइन्मनो॒यज॑मान॒ऽइय॑क्षत्य॒भीदय॑ज्वनोभुवत् || {6.2.40.6}, {8.31.16}, {8.5.1.16} |
409 | नकि॒ष्टंकर्म॑णानश॒न्नप्रयो᳚ष॒न्नयो᳚षति | दे॒वानां॒यऽइन्मनो॒यज॑मान॒ऽइय॑क्षत्य॒भीदय॑ज्वनोभुवत् || {6.2.40.7}, {8.31.17}, {8.5.1.17} |
410 | अस॒दत्र॑सु॒वीर्य॑मु॒तत्यदा॒श्वश्व्य᳚म् | दे॒वानां॒यऽइन्मनो॒यज॑मान॒ऽइय॑क्षत्य॒भीदय॑ज्वनोभुवत् || {6.2.40.8}, {8.31.18}, {8.5.1.18} |
[21] (१-३०) त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य काण्वो मेधातिथि ऋषिः | इन्द्रो देवता | गायत्री छन्दः || | |
411 | प्रकृ॒तान्यृ॑जी॒षिणः॒कण्वा॒ऽइन्द्र॑स्य॒गाथ॑या | मदे॒सोम॑स्यवोचत || {6.3.1.1}, {8.32.1}, {8.5.2.1} |
412 | यःसृबि᳚न्द॒मन॑र्शनिं॒पिप्रुं᳚दा॒सम॑ही॒शुव᳚म् | वधी᳚दु॒ग्रोरि॒णन्न॒पः || {6.3.1.2}, {8.32.2}, {8.5.2.2} |
413 | न्यर्बु॑दस्यवि॒ष्टपं᳚व॒र्ष्माणं᳚बृह॒तस्ति॑र | कृ॒षेतदि᳚न्द्र॒पौंस्य᳚म् || {6.3.1.3}, {8.32.3}, {8.5.2.3} |
414 | प्रति॑श्रु॒ताय॑वोधृ॒षत्तूर्णा᳚शं॒नगि॒रेरधि॑ | हु॒वेसु॑शि॒प्रमू॒तये᳚ || {6.3.1.4}, {8.32.4}, {8.5.2.4} |
415 | सगोरश्व॑स्य॒विव्र॒जंम᳚न्दा॒नःसो॒म्येभ्यः॑ | पुरं॒नशू᳚रदर्षसि || {6.3.1.5}, {8.32.5}, {8.5.2.5} |
416 | यदि॑मेरा॒रणः॑सु॒तऽउ॒क्थेवा॒दध॑से॒चनः॑ | आ॒रादुप॑स्व॒धाग॑हि || {6.3.2.1}, {8.32.6}, {8.5.2.6} |
417 | व॒यंघा᳚ते॒ऽअपि॑ष्मसिस्तो॒तार॑ऽइन्द्रगिर्वणः | त्वंनो᳚जिन्वसोमपाः || {6.3.2.2}, {8.32.7}, {8.5.2.7} |
418 | उ॒तनः॑पि॒तुमाभ॑रसंररा॒णोऽअवि॑क्षितम् | मघ॑व॒न्भूरि॑ते॒वसु॑ || {6.3.2.3}, {8.32.8}, {8.5.2.8} |
419 | उ॒तनो॒गोम॑तस्कृधि॒हिर᳚ण्यवतोऽअ॒श्विनः॑ | इळा᳚भिः॒संर॑भेमहि || {6.3.2.4}, {8.32.9}, {8.5.2.9} |
420 | बृ॒बदु॑क्थंहवामहेसृ॒प्रक॑रस्नमू॒तये᳚ | साधु॑कृ॒ण्वन्त॒मव॑से || {6.3.2.5}, {8.32.10}, {8.5.2.10} |
421 | यःसं॒स्थेचि॑च्छ॒तक्र॑तु॒रादीं᳚कृ॒णोति॑वृत्र॒हा | ज॒रि॒तृभ्यः॑पुरू॒वसुः॑ || {6.3.3.1}, {8.32.11}, {8.5.2.11} |
422 | सनः॑श॒क्रश्चि॒दाश॑क॒द्दान॑वाँऽअन्तराभ॒रः | इन्द्रो॒विश्वा᳚भिरू॒तिभिः॑ || {6.3.3.2}, {8.32.12}, {8.5.2.12} |
423 | योरा॒यो॒३॑(ओ॒)ऽवनि᳚र्म॒हान्त्सु॑पा॒रःसु᳚न्व॒तःसखा᳚ | तमिन्द्र॑म॒भिगा᳚यत || {6.3.3.3}, {8.32.13}, {8.5.2.13} |
424 | आ॒य॒न्तारं॒महि॑स्थि॒रंपृत॑नासुश्रवो॒जित᳚म् | भूरे॒रीशा᳚न॒मोज॑सा || {6.3.3.4}, {8.32.14}, {8.5.2.14} |
425 | नकि॑रस्य॒शची᳚नांनिय॒न्तासू॒नृता᳚नाम् | नकि᳚र्व॒क्तानदा॒दिति॑ || {6.3.3.5}, {8.32.15}, {8.5.2.15} |
426 | ननू॒नंब्र॒ह्मणा᳚मृ॒णंप्रा᳚शू॒नाम॑स्तिसुन्व॒ताम् | नसोमो᳚ऽअप्र॒ताप॑पे || {6.3.4.1}, {8.32.16}, {8.5.2.16} |
427 | पन्य॒ऽइदुप॑गायत॒पन्य॑ऽउ॒क्थानि॑शंसत | ब्रह्मा᳚कृणोत॒पन्य॒ऽइत् || {6.3.4.2}, {8.32.17}, {8.5.2.17} |
428 | पन्य॒ऽआद॑र्दिरच्छ॒तास॒हस्रा᳚वा॒ज्यवृ॑तः | इन्द्रो॒योयज्व॑नोवृ॒धः || {6.3.4.3}, {8.32.18}, {8.5.2.18} |
429 | विषूच॑रस्व॒धाऽअनु॑कृष्टी॒नामन्वा॒हुवः॑ | इन्द्र॒पिब॑सु॒ताना᳚म् || {6.3.4.4}, {8.32.19}, {8.5.2.19} |
430 | पिब॒स्वधै᳚नवानामु॒तयस्तुग्र्ये॒सचा᳚ | उ॒तायमि᳚न्द्र॒यस्तव॑ || {6.3.4.5}, {8.32.20}, {8.5.2.20} |
431 | अती᳚हिमन्युषा॒विणं᳚सुषु॒वांस॑मु॒पार॑णे | इ॒मंरा॒तंसु॒तंपि॑ब || {6.3.5.1}, {8.32.21}, {8.5.2.21} |
432 | इ॒हिति॒स्रःप॑रा॒वत॑ऽइ॒हिपञ्च॒जनाँ॒ऽअति॑ | धेना᳚ऽइन्द्राव॒चाक॑शत् || {6.3.5.2}, {8.32.22}, {8.5.2.22} |
433 | सूर्यो᳚र॒श्मिंयथा᳚सृ॒जात्वा᳚यच्छन्तुमे॒गिरः॑ | नि॒म्नमापो॒नस॒ध्र्य॑क् || {6.3.5.3}, {8.32.23}, {8.5.2.23} |
434 | अध्व᳚र्य॒वातुहिषि॒ञ्चसोमं᳚वी॒राय॑शि॒प्रिणे᳚ | भरा᳚सु॒तस्य॑पी॒तये᳚ || {6.3.5.4}, {8.32.24}, {8.5.2.24} |
435 | यऽउ॒द्नःफ॑लि॒गंभि॒नन्न्य१॑(अ॒)क्सिन्धूँ᳚र॒वासृ॑जत् | योगोषु॑प॒क्वंधा॒रय॑त् || {6.3.5.5}, {8.32.25}, {8.5.2.25} |
436 | अह᳚न्वृ॒त्रमृची᳚षमऽऔर्णवा॒भम॑ही॒शुव᳚म् | हि॒मेना᳚विध्य॒दर्बु॑दम् || {6.3.6.1}, {8.32.26}, {8.5.2.26} |
437 | प्रव॑ऽउ॒ग्राय॑नि॒ष्टुरेऽषा᳚ळ्हायप्रस॒क्षिणे᳚ | दे॒वत्तं॒ब्रह्म॑गायत || {6.3.6.2}, {8.32.27}, {8.5.2.27} |
438 | योविश्वा᳚न्य॒भिव्र॒तासोम॑स्य॒मदे॒ऽअन्ध॑सः | इन्द्रो᳚दे॒वेषु॒चेत॑ति || {6.3.6.3}, {8.32.28}, {8.5.2.28} |
439 | इ॒हत्यास॑ध॒माद्या॒हरी॒हिर᳚ण्यकेश्या | वो॒ळ्हाम॒भिप्रयो᳚हि॒तम् || {6.3.6.4}, {8.32.29}, {8.5.2.29} |
440 | अ॒र्वाञ्चं᳚त्वापुरुष्टुतप्रि॒यमे᳚धस्तुता॒हरी᳚ | सो॒म॒पेया᳚यवक्षतः || {6.3.6.5}, {8.32.30}, {8.5.2.30} |
[22] (१-१९) एकोनविंशत्यृचस्य सूक्तस्य काण्वो मेध्यातिथिषिः, इन्द्रो देवता | (१-१५) प्रथमादिपञ्चदशर्चाम् बृहती, (१३-१८) षोडश्यादितृचस्य गायत्री, (१९) एकोनविंश्याश्चानष्टप छन्दांसि || | |
441 | व॒यंघ॑त्वासु॒ताव᳚न्त॒ऽआपो॒नवृ॒क्तब॑र्हिषः | प॒वित्र॑स्यप्र॒स्रव॑णेषुवृत्रह॒न्परि॑स्तो॒तार॑ऽआसते || {6.3.7.1}, {8.33.1}, {8.5.3.1} |
442 | स्वर᳚न्तित्वासु॒तेनरो॒वसो᳚निरे॒कऽउ॒क्थिनः॑ | क॒दासु॒तंतृ॑षा॒णऽओक॒ऽआग॑म॒ऽइन्द्र॑स्व॒ब्दीव॒वंस॑गः || {6.3.7.2}, {8.33.2}, {8.5.3.2} |
443 | कण्वे᳚भिर्धृष्ण॒वाधृ॒षद्वाजं᳚दर्षिसह॒स्रिण᳚म् | पि॒शङ्ग॑रूपंमघवन्विचर्षणेम॒क्षूगोम᳚न्तमीमहे || {6.3.7.3}, {8.33.3}, {8.5.3.3} |
444 | पा॒हिगायान्ध॑सो॒मद॒ऽइन्द्रा᳚यमेध्यातिथे | यःसम्मि॑श्लो॒हर्यो॒र्यःसु॒तेसचा᳚व॒ज्रीरथो᳚हिर॒ण्ययः॑ || {6.3.7.4}, {8.33.4}, {8.5.3.4} |
445 | यःसु॑ष॒व्यःसु॒दक्षि॑णऽइ॒नोयःसु॒क्रतु॑र्गृ॒णे | यऽआ᳚क॒रःस॒हस्रा॒यःश॒ताम॑घ॒ऽइन्द्रो॒यःपू॒र्भिदा᳚रि॒तः || {6.3.7.5}, {8.33.5}, {8.5.3.5} |
446 | योधृ॑षि॒तोयोऽवृ॑तो॒योऽअस्ति॒श्मश्रु॑षुश्रि॒तः | विभू᳚तद्युम्न॒श्च्यव॑नःपुरुष्टु॒तःक्रत्वा॒गौरि॑वशाकि॒नः || {6.3.8.1}, {8.33.6}, {8.5.3.6} |
447 | कऽईं᳚वेदसु॒तेसचा॒पिब᳚न्तं॒कद्वयो᳚दधे | अ॒यंयःपुरो᳚विभि॒नत्त्योज॑सामन्दा॒नःशि॒प्र्यन्ध॑सः || {6.3.8.2}, {8.33.7}, {8.5.3.7} |
448 | दा॒नामृ॒गोनवा᳚र॒णःपु॑रु॒त्राच॒रथं᳚दधे | नकि॑ष्ट्वा॒निय॑म॒दासु॒तेग॑मोम॒हाँश्च॑र॒स्योज॑सा || {6.3.8.3}, {8.33.8}, {8.5.3.8} |
449 | यऽउ॒ग्रःसन्ननि॑ष्टृतःस्थि॒रोरणा᳚य॒संस्कृ॑तः | यदि॑स्तो॒तुर्म॒घवा᳚शृ॒णव॒द्धवं॒नेन्द्रो᳚योष॒त्याग॑मत् || {6.3.8.4}, {8.33.9}, {8.5.3.9} |
450 | स॒त्यमि॒त्थावृषेद॑सि॒वृष॑जूति॒र्नोऽवृ॑तः | वृषा॒ह्यु॑ग्रशृण्वि॒षेप॑रा॒वति॒वृषो᳚ऽअर्वा॒वति॑श्रु॒तः || {6.3.8.5}, {8.33.10}, {8.5.3.10} |
451 | वृष॑णस्तेऽअ॒भीश॑वो॒वृषा॒कशा᳚हिर॒ण्ययी᳚ | वृषा॒रथो᳚मघव॒न्वृष॑णा॒हरी॒वृषा॒त्वंश॑तक्रतो || {6.3.9.1}, {8.33.11}, {8.5.3.11} |
452 | वृषा॒सोता᳚सुनोतुते॒वृष᳚न्नृजीपि॒न्नाभ॑र | वृषा᳚दधन्वे॒वृष॑णंन॒दीष्वातुभ्यं᳚स्थातर्हरीणाम् || {6.3.9.2}, {8.33.12}, {8.5.3.12} |
453 | एन्द्र॑याहिपी॒तये॒मधु॑शविष्ठसो॒म्यम् | नायमच्छा᳚म॒घवा᳚शृ॒णव॒द्गिरो॒ब्रह्मो॒क्थाच॑सु॒क्रतुः॑ || {6.3.9.3}, {8.33.13}, {8.5.3.13} |
454 | वह᳚न्तुत्वारथे॒ष्ठामाहर॑योरथ॒युजः॑ | ति॒रश्चि॑द॒र्यंसव॑नानिवृत्रहन्न॒न्येषां॒याश॑तक्रतो || {6.3.9.4}, {8.33.14}, {8.5.3.14} |
455 | अ॒स्माक॑म॒द्यान्त॑मं॒स्तोमं᳚धिष्वमहामह | अ॒स्माकं᳚ते॒सव॑नासन्तु॒शंत॑मा॒मदा᳚यद्युक्षसोमपाः || {6.3.9.5}, {8.33.15}, {8.5.3.15} |
456 | न॒हिषस्तव॒नोमम॑शा॒स्त्रेऽअ॒न्यस्य॒रण्य॑ति | योऽअ॒स्मान्वी॒रऽआन॑यत् || {6.3.10.1}, {8.33.16}, {8.5.3.16} |
457 | इन्द्र॑श्चिद्घा॒तद॑ब्रवीत्स्त्रि॒याऽअ॑शा॒स्यंमनः॑ | उ॒तोऽअह॒क्रतुं᳚र॒घुम् || {6.3.10.2}, {8.33.17}, {8.5.3.17} |
458 | सप्ती᳚चिद्घामद॒च्युता᳚मिथु॒नाव॑हतो॒रथ᳚म् | ए॒वेद्धूर्वृष्ण॒ऽउत्त॑रा || {6.3.10.3}, {8.33.18}, {8.5.3.18} |
459 | अ॒धःप॑श्यस्व॒मोपरि॑संत॒रांपा᳚द॒कौह॑र | माते᳚कशप्ल॒कौदृ॑श॒न्त्स्त्रीहिब्र॒ह्माब॒भूवि॑थ || {6.3.10.4}, {8.33.19}, {8.5.3.19} |
[23] (१-१८) अष्टादशर्चस्य सूक्तस्य (१-१५) प्रथमादिपञ्चदशों काण्वो नीपातिथिः, (१६-१८) षोडश्यादितृचस्य चाङ्गिरसाः सहस्रं वसुरोचिष (ऋषयः) इन्द्रो देवता | (१-१५) प्रथमादिपञ्चदशर्चामनुष्टुप्, (१६-१८) षोडश्यादितृचस्य च गायत्री छन्दसी || | |
460 | एन्द्र॑याहि॒हरि॑भि॒रुप॒कण्व॑स्यसुष्टु॒तिम् | दि॒वोऽअ॒मुष्य॒शास॑तो॒दिवं᳚य॒यदि॑वावसो || {6.3.11.1}, {8.34.1}, {8.5.4.1} |
461 | आत्वा॒ग्रावा॒वद᳚न्नि॒हसो॒मीघोषे᳚णयच्छतु | दि॒वोऽअ॒मुष्य॒शास॑तो॒दिवं᳚य॒यदि॑वावसो || {6.3.11.2}, {8.34.2}, {8.5.4.2} |
462 | अत्रा॒विने॒मिरे᳚षा॒मुरां॒नधू᳚नुते॒वृकः॑ | दि॒वोऽअ॒मुष्य॒शास॑तो॒दिवं᳚य॒यदि॑वावसो || {6.3.11.3}, {8.34.3}, {8.5.4.3} |
463 | आत्वा॒कण्वा᳚ऽइ॒हाव॑से॒हव᳚न्ते॒वाज॑सातये | दि॒वोऽअ॒मुष्य॒शास॑तो॒दिवं᳚य॒यदि॑वावसो || {6.3.11.4}, {8.34.4}, {8.5.4.4} |
464 | दधा᳚मितेसु॒तानां॒वृष्णे॒नपू᳚र्व॒पाय्य᳚म् | दि॒वोऽअ॒मुष्य॒शास॑तो॒दिवं᳚य॒यदि॑वावसो || {6.3.11.5}, {8.34.5}, {8.5.4.5} |
465 | स्मत्पु॑रंधिर्न॒ऽआग॑हिवि॒श्वतो᳚धीर्नऽऊ॒तये᳚ | दि॒वोऽअ॒मुष्य॒शास॑तो॒दिवं᳚य॒यदि॑वावसो || {6.3.12.1}, {8.34.6}, {8.5.4.6} |
466 | आनो᳚याहिमहेमते॒सह॑स्रोते॒शता᳚मघ | दि॒वोऽअ॒मुष्य॒शास॑तो॒दिवं᳚य॒यदि॑वावसो || {6.3.12.2}, {8.34.7}, {8.5.4.7} |
467 | आत्वा॒होता॒मनु॑र्हितोदेव॒त्राव॑क्ष॒दीड्यः॑ | दि॒वोऽअ॒मुष्य॒शास॑तो॒दिवं᳚य॒यदि॑वावसो || {6.3.12.3}, {8.34.8}, {8.5.4.8} |
468 | आत्वा᳚मद॒च्युता॒हरी᳚श्ये॒नंप॒क्षेव॑वक्षतः | दि॒वोऽअ॒मुष्य॒शास॑तो॒दिवं᳚य॒यदि॑वावसो || {6.3.12.4}, {8.34.9}, {8.5.4.9} |
469 | आया᳚ह्य॒र्यऽआपरि॒स्वाहा॒सोम॑स्यपी॒तये᳚ | दि॒वोऽअ॒मुष्य॒शास॑तो॒दिवं᳚य॒यदि॑वावसो || {6.3.12.5}, {8.34.10}, {8.5.4.10} |
470 | आनो᳚या॒ह्युप॑श्रुत्यु॒क्थेषु॑रणयाऽइ॒ह | दि॒वोऽअ॒मुष्य॒शास॑तो॒दिवं᳚य॒यदि॑वावसो || {6.3.13.1}, {8.34.11}, {8.5.4.11} |
471 | सरू᳚पै॒रासुनो᳚गहि॒सम्भृ॑तैः॒सम्भृ॑ताश्वः | दि॒वोऽअ॒मुष्य॒शास॑तो॒दिवं᳚य॒यदि॑वावसो || {6.3.13.2}, {8.34.12}, {8.5.4.12} |
472 | आया᳚हि॒पर्व॑तेभ्यःसमु॒द्रस्याधि॑वि॒ष्टपः॑ | दि॒वोऽअ॒मुष्य॒शास॑तो॒दिवं᳚य॒यदि॑वावसो || {6.3.13.3}, {8.34.13}, {8.5.4.13} |
473 | आनो॒गव्या॒न्यश्व्या᳚स॒हस्रा᳚शूरदर्दृहि | दि॒वोऽअ॒मुष्य॒शास॑तो॒दिवं᳚य॒यदि॑वावसो || {6.3.13.4}, {8.34.14}, {8.5.4.14} |
474 | आनः॑सहस्र॒शोभ॑रा॒युता᳚निश॒तानि॑च | दि॒वोऽअ॒मुष्य॒शास॑तो॒दिवं᳚य॒यदि॑वावसो || {6.3.13.5}, {8.34.15}, {8.5.4.15} |
475 | आयदिन्द्र॑श्च॒दद्व॑हेस॒हस्रं॒वसु॑रोचिषः | ओजि॑ष्ठ॒मश्व्यं᳚प॒शुम् || {6.3.13.6}, {8.34.16}, {8.5.4.16} |
476 | यऋ॒ज्रावात॑रंहसोऽरु॒षासो᳚रघु॒ष्यदः॑ | भ्राज᳚न्ते॒सूर्या᳚ऽइव || {6.3.13.7}, {8.34.17}, {8.5.4.17} |
477 | पारा᳚वतस्यरा॒तिषु॑द्र॒वच्च॑क्रेष्वा॒शुषु॑ | तिष्ठं॒वन॑स्य॒मध्य॒ऽआ || {6.3.13.8}, {8.34.18}, {8.5.4.18} |
[24] (१-२४) चतुर्विंशत्यृचस्य सूक्तस्य आत्रेयः श्यावाश्व ऋषिः | अश्विनौ देवते | (१-२१) प्रथमाद्येकविंशत्र्यचामुपरिष्टाजयोतिः, (२२, २४) द्वाविंशीचतुर्विंश्योः पङ्क्ति, (२३) त्रयोविंश्याश्च महाबृहती छन्दांसि || | |
478 | अ॒ग्निनेन्द्रे᳚ण॒वरु॑णेन॒विष्णु॑नादि॒त्यैरु॒द्रैर्वसु॑भिःसचा॒भुवा᳚ | स॒जोष॑साऽउ॒षसा॒सूर्ये᳚णच॒सोमं᳚पिबतमश्विना || {6.3.14.1}, {8.35.1}, {8.5.5.1} |
479 | विश्वा᳚भिर्धी॒भिर्भुव॑नेनवाजिनादि॒वापृ॑थि॒व्याद्रि॑भिःसचा॒भुवा᳚ | स॒जोष॑साऽउ॒षसा॒सूर्ये᳚णच॒सोमं᳚पिबतमश्विना || {6.3.14.2}, {8.35.2}, {8.5.5.2} |
480 | विश्वै᳚र्दे॒वैस्त्रि॒भिरे᳚काद॒शैरि॒हाद्भिर्म॒रुद्भि॒र्भृगु॑भिःसचा॒भुवा᳚ | स॒जोष॑साऽउ॒षसा॒सूर्ये᳚णच॒सोमं᳚पिबतमश्विना || {6.3.14.3}, {8.35.3}, {8.5.5.3} |
481 | जु॒षेथां᳚य॒ज्ञंबोध॑तं॒हव॑स्यमे॒विश्वे॒हदे᳚वौ॒सव॒नाव॑गच्छतम् | स॒जोष॑साऽउ॒षसा॒सूर्ये᳚ण॒चेषं᳚नोवोळ्हमश्विना || {6.3.14.4}, {8.35.4}, {8.5.5.4} |
482 | स्तोमं᳚जुषेथांयुव॒शेव॑क॒न्यनां॒विश्वे॒हदे᳚वौ॒सव॒नाव॑गच्छतम् | स॒जोष॑साऽउ॒षसा॒सूर्ये᳚ण॒चेषं᳚नोवोळ्हमश्विना || {6.3.14.5}, {8.35.5}, {8.5.5.5} |
483 | गिरो᳚जुषेथामध्व॒रंजु॑षेथां॒विश्वे॒हदे᳚वौ॒सव॒नाव॑गच्छतम् | स॒जोष॑साऽउ॒षसा॒सूर्ये᳚ण॒चेषं᳚नोवोळ्हमश्विना || {6.3.14.6}, {8.35.6}, {8.5.5.6} |
484 | हा॒रि॒द्र॒वेव॑पतथो॒वनेदुप॒सोमं᳚सु॒तंम॑हि॒षेवाव॑गच्छथः | स॒जोष॑साऽउ॒षसा॒सूर्ये᳚णच॒त्रिर्व॒र्तिर्या᳚तमश्विना || {6.3.15.1}, {8.35.7}, {8.5.5.7} |
485 | हं॒सावि॑वपतथोऽअध्व॒गावि॑व॒सोमं᳚सु॒तंम॑हि॒षेवाव॑गच्छथः | स॒जोष॑साऽउ॒षसा॒सूर्ये᳚णच॒त्रिर्व॒र्तिर्या᳚तमश्विना || {6.3.15.2}, {8.35.8}, {8.5.5.8} |
486 | श्ये॒नावि॑वपतथोह॒व्यदा᳚तये॒सोमं᳚सु॒तंम॑हि॒षेवाव॑गच्छथः | स॒जोष॑साऽउ॒षसा॒सूर्ये᳚णच॒त्रिर्व॒र्तिर्या᳚तमश्विना || {6.3.15.3}, {8.35.9}, {8.5.5.9} |
487 | पिब॑तंचतृप्णु॒तंचाच॑गच्छतंप्र॒जांच॑ध॒त्तंद्रवि॑णंचधत्तम् | स॒जोष॑साऽउ॒षसा॒सूर्ये᳚ण॒चोर्जं᳚नोधत्तमश्विना || {6.3.15.4}, {8.35.10}, {8.5.5.10} |
488 | जय॑तंच॒प्रस्तु॑तंच॒प्रचा᳚वतंप्र॒जांच॑ध॒त्तंद्रवि॑णंचधत्तम् | स॒जोष॑साऽउ॒षसा॒सूर्ये᳚ण॒चोर्जं᳚नोधत्तमश्विना || {6.3.15.5}, {8.35.11}, {8.5.5.11} |
489 | ह॒तंच॒शत्रू॒न्यत॑तंचमि॒त्रिणः॑प्र॒जांच॑ध॒त्तंद्रवि॑णंचधत्तम् | स॒जोष॑साऽउ॒षसा॒सूर्ये᳚ण॒चोर्जं᳚नोधत्तमश्विना || {6.3.15.6}, {8.35.12}, {8.5.5.12} |
490 | मि॒त्रावरु॑णवन्ताऽउ॒तधर्म॑वन्ताम॒रुत्व᳚न्ताजरि॒तुर्ग॑च्छथो॒हव᳚म् | स॒जोष॑साऽउ॒षसा॒सूर्ये᳚णचादि॒त्यैर्या᳚तमश्विना || {6.3.16.1}, {8.35.13}, {8.5.5.13} |
491 | अङ्गि॑रस्वन्ताऽउ॒तविष्णु॑वन्ताम॒रुत्व᳚न्ताजरि॒तुर्ग॑च्छथो॒हव᳚म् | स॒जोष॑साऽउ॒षसा॒सूर्ये᳚णचादि॒त्यैर्या᳚तमश्विना || {6.3.16.2}, {8.35.14}, {8.5.5.14} |
492 | ऋ॒भु॒मन्ता᳚वृषणा॒वाज॑वन्ताम॒रुत्व᳚न्ताजरि॒तुर्ग॑च्छथो॒हव᳚म् | स॒जोष॑साऽउ॒षसा॒सूर्ये᳚णचादि॒त्यैर्या᳚तमश्विना || {6.3.16.3}, {8.35.15}, {8.5.5.15} |
493 | ब्रह्म॑जिन्वतमु॒तजि᳚न्वतं॒धियो᳚ह॒तंरक्षां᳚सि॒सेध॑त॒ममी᳚वाः | स॒जोष॑साऽउ॒षसा॒सूर्ये᳚णच॒सोमं᳚सुन्व॒तोऽअ॑श्विना || {6.3.16.4}, {8.35.16}, {8.5.5.16} |
494 | क्ष॒त्रंजि᳚न्वतमु॒तजि᳚न्वतं॒नॄन्ह॒तंरक्षां᳚सि॒सेध॑त॒ममी᳚वाः | स॒जोष॑साऽउ॒षसा॒सूर्ये᳚णच॒सोमं᳚सुन्व॒तोऽअ॑श्विना || {6.3.16.5}, {8.35.17}, {8.5.5.17} |
495 | धे॒नूर्जि᳚न्वतमु॒तजि᳚न्वतं॒विशो᳚ह॒तंरक्षां᳚सि॒सेध॑त॒ममी᳚वाः | स॒जोष॑साऽउ॒षसा॒सूर्ये᳚णच॒सोमं᳚सुन्व॒तोऽअ॑श्विना || {6.3.16.6}, {8.35.18}, {8.5.5.18} |
496 | अत्रे᳚रिवशृणुतंपू॒र्व्यस्तु॑तिंश्या॒वाश्व॑स्यसुन्व॒तोम॑दच्युता | स॒जोष॑साऽउ॒षसा॒सूर्ये᳚ण॒चाश्वि॑नाति॒रोअ᳚ह्न्यम् || {6.3.17.1}, {8.35.19}, {8.5.5.19} |
497 | सर्गाँ᳚ऽइवसृजतंसुष्टु॒तीरुप॑श्या॒वाश्व॑स्यसुन्व॒तोम॑दच्युता | स॒जोष॑साऽउ॒षसा॒सूर्ये᳚ण॒चाश्वि॑नाति॒रोअ᳚ह्न्यम् || {6.3.17.2}, {8.35.20}, {8.5.5.20} |
498 | र॒श्मीँरि॑वयच्छतमध्व॒राँऽउप॑श्या॒वाश्व॑स्यसुन्व॒तोम॑दच्युता | स॒जोष॑साऽउ॒षसा॒सूर्ये᳚ण॒चाश्वि॑नाति॒रोअ᳚ह्न्यम् || {6.3.17.3}, {8.35.21}, {8.5.5.21} |
499 | अ॒र्वाग्रथं॒निय॑च्छतं॒पिब॑तंसो॒म्यंमधु॑ | आया᳚तमश्वि॒नाग॑तमव॒स्युर्वा᳚म॒हंहु॑वेध॒त्तंरत्ना᳚निदा॒शुषे᳚ || {6.3.17.4}, {8.35.22}, {8.5.5.22} |
500 | न॒मो॒वा॒केप्रस्थि॑तेऽअध्व॒रेन॑रावि॒वक्ष॑णस्यपी॒तये᳚ | आया᳚तमश्वि॒नाग॑तमव॒स्युर्वा᳚म॒हंहु॑वेध॒त्तंरत्ना᳚निदा॒शुषे᳚ || {6.3.17.5}, {8.35.23}, {8.5.5.23} |
501 | स्वाहा᳚कृतस्यतृम्पतंसु॒तस्य॑देवा॒वन्ध॑सः | आया᳚तमश्वि॒नाग॑तमव॒स्युर्वा᳚म॒हंहु॑वेध॒त्तंरत्ना᳚निदा॒शुषे᳚ || {6.3.17.6}, {8.35.24}, {8.5.5.24} |
[25] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य आत्रेयः श्यावाश्व ऋषिः | इन्द्रो देवता | (१-६) प्रथमादिषण्णां शक्वरी, (७) सप्तम्याश्च महापङ्क्तिश्छन्दसी || | |
502 | अ॒वि॒तासि॑सुन्व॒तोवृ॒क्तब॑र्हिषः॒पिबा॒सोमं॒मदा᳚य॒कंश॑तक्रतो | यंते᳚भा॒गमधा᳚रय॒न्विश्वाः᳚सेहा॒नःपृत॑नाऽउ॒रुज्रयः॒सम॑प्सु॒जिन्म॒रुत्वाँ᳚ऽइन्द्रसत्पते || {6.3.18.1}, {8.36.1}, {8.5.6.1} |
503 | प्राव॑स्तो॒तारं᳚मघव॒न्नव॒त्वांपिबा॒सोमं॒मदा᳚य॒कंश॑तक्रतो | यंते᳚भा॒गमधा᳚रय॒न्विश्वाः᳚सेहा॒नःपृत॑नाऽउ॒रुज्रयः॒सम॑प्सु॒जिन्म॒रुत्वाँ᳚ऽइन्द्रसत्पते || {6.3.18.2}, {8.36.2}, {8.5.6.2} |
504 | ऊ॒र्जादे॒वाँऽअव॒स्योज॑सा॒त्वांपिबा॒सोमं॒मदा᳚य॒कंश॑तक्रतो | यंते᳚भा॒गमधा᳚रय॒न्विश्वाः᳚सेहा॒नःपृत॑नाऽउ॒रुज्रयः॒सम॑प्सु॒जिन्म॒रुत्वाँ᳚ऽइन्द्रसत्पते || {6.3.18.3}, {8.36.3}, {8.5.6.3} |
505 | ज॒नि॒तादि॒वोज॑नि॒तापृ॑थि॒व्याःपिबा॒सोमं॒मदा᳚य॒कंश॑तक्रतो | यंते᳚भा॒गमधा᳚रय॒न्विश्वाः᳚सेहा॒नःपृत॑नाऽउ॒रुज्रयः॒सम॑प्सु॒जिन्म॒रुत्वाँ᳚ऽइन्द्रसत्पते || {6.3.18.4}, {8.36.4}, {8.5.6.4} |
506 | ज॒नि॒ताश्वा᳚नांजनि॒तागवा᳚मसि॒पिबा॒सोमं॒मदा᳚य॒कंश॑तक्रतो | यंते᳚भा॒गमधा᳚रय॒न्विश्वाः᳚सेहा॒नःपृत॑नाऽउ॒रुज्रयः॒सम॑प्सु॒जिन्म॒रुत्वाँ᳚ऽइन्द्रसत्पते || {6.3.18.5}, {8.36.5}, {8.5.6.5} |
507 | अत्री᳚णां॒स्तोम॑मद्रिवोम॒हस्कृ॑धि॒पिबा॒सोमं॒मदा᳚य॒कंश॑तक्रतो | यंते᳚भा॒गमधा᳚रय॒न्विश्वाः᳚सेहा॒नःपृत॑नाऽउ॒रुज्रयः॒सम॑प्सु॒जिन्म॒रुत्वाँ᳚ऽइन्द्रसत्पते || {6.3.18.6}, {8.36.6}, {8.5.6.6} |
508 | श्या॒वाश्व॑स्यसुन्व॒तस्तथा᳚शृणु॒यथाशृ॑णो॒रत्रेः॒कर्मा᳚णिकृण्व॒तः | प्रत्र॒सद॑स्युमाविथ॒त्वमेक॒ऽइन्नृ॒षाह्य॒ऽइन्द्र॒ब्रह्मा᳚णिव॒र्धय॑न् || {6.3.18.7}, {8.36.7}, {8.5.6.7} |
[26] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य आत्रेयः श्यावाश्व ऋषिः | इन्द्रो देवता | (१) प्रथमर्चोऽतिजगती, (२-७) द्वितीयादिषण्णाञ्च महापङ्क्तिश्छन्दसी || | |
509 | प्रेदंब्रह्म॑वृत्र॒तूर्ये᳚ष्वाविथ॒प्रसु᳚न्व॒तःश॑चीपत॒ऽइन्द्र॒विश्वा᳚भिरू॒तिभिः॑ | माध्यं᳚दिनस्य॒सव॑नस्यवृत्रहन्ननेद्य॒पिबा॒सोम॑स्यवज्रिवः || {6.3.19.1}, {8.37.1}, {8.5.7.1} |
510 | से॒हा॒नऽउ॑ग्र॒पृत॑नाऽअ॒भिद्रुहः॑शचीपत॒ऽइन्द्र॒विश्वा᳚भिरू॒तिभिः॑ | माध्यं᳚दिनस्य॒सव॑नस्यवृत्रहन्ननेद्य॒पिबा॒सोम॑स्यवज्रिवः || {6.3.19.2}, {8.37.2}, {8.5.7.2} |
511 | ए॒क॒राळ॒स्यभुव॑नस्यराजसिशचीपत॒ऽइन्द्र॒विश्वा᳚भिरू॒तिभिः॑ | माध्यं᳚दिनस्य॒सव॑नस्यवृत्रहन्ननेद्य॒पिबा॒सोम॑स्यवज्रिवः || {6.3.19.3}, {8.37.3}, {8.5.7.3} |
512 | स॒स्थावा᳚नायवयसि॒त्वमेक॒ऽइच्छ॑चीपत॒ऽइन्द्र॒विश्वा᳚भिरू॒तिभिः॑ | माध्यं᳚दिनस्य॒सव॑नस्यवृत्रहन्ननेद्य॒पिबा॒सोम॑स्यवज्रिवः || {6.3.19.4}, {8.37.4}, {8.5.7.4} |
513 | क्षेम॑स्यचप्र॒युज॑श्च॒त्वमी᳚शिषेशचीपत॒ऽइन्द्र॒विश्वा᳚भिरू॒तिभिः॑ | माध्यं᳚दिनस्य॒सव॑नस्यवृत्रहन्ननेद्य॒पिबा॒सोम॑स्यवज्रिवः || {6.3.19.5}, {8.37.5}, {8.5.7.5} |
514 | क्ष॒त्राय॑त्व॒मव॑सि॒नत्व॑माविथशचीपत॒ऽइन्द्र॒विश्वा᳚भिरू॒तिभिः॑ | माध्यं᳚दिनस्य॒सव॑नस्यवृत्रहन्ननेद्य॒पिबा॒सोम॑स्यवज्रिवः || {6.3.19.6}, {8.37.6}, {8.5.7.6} |
515 | श्या॒वाश्व॑स्य॒रेभ॑त॒स्तथा᳚शृणु॒यथाशृ॑णो॒रत्रेः॒कर्मा᳚णिकृण्व॒तः | प्रत्र॒सद॑स्युमाविथ॒त्वमेक॒ऽइन्नृ॒षाह्य॒ऽइन्द्र॑क्ष॒त्राणि॑व॒र्धय॑न् || {6.3.19.7}, {8.37.7}, {8.5.7.7} |
[27] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य आत्रेयः श्यावाश्व ऋषिः | इन्द्राग्नी देवते | गायत्री छन्दः || | |
516 | य॒ज्ञस्य॒हिस्थऋ॒त्विजा॒सस्नी॒वाजे᳚षु॒कर्म॑सु | इन्द्रा᳚ग्नी॒तस्य॑बोधतम् || {6.3.20.1}, {8.38.1}, {8.5.8.1} |
517 | तो॒शासा᳚रथ॒यावा᳚नावृत्र॒हणाप॑राजिता | इन्द्रा᳚ग्नी॒तस्य॑बोधतम् || {6.3.20.2}, {8.38.2}, {8.5.8.2} |
518 | इ॒दंवां᳚मदि॒रंमध्वधु॑क्ष॒न्नद्रि॑भि॒र्नरः॑ | इन्द्रा᳚ग्नी॒तस्य॑बोधतम् || {6.3.20.3}, {8.38.3}, {8.5.8.3} |
519 | जु॒षेथां᳚य॒ज्ञमि॒ष्टये᳚सु॒तंसोमं᳚सधस्तुती | इन्द्रा᳚ग्नी॒ऽआग॑तंनरा || {6.3.20.4}, {8.38.4}, {8.5.8.4} |
520 | इ॒माजु॑षेथां॒सव॑ना॒येभि॑र्ह॒व्यान्यू॒हथुः॑ | इन्द्रा᳚ग्नी॒ऽआग॑तंनरा || {6.3.20.5}, {8.38.5}, {8.5.8.5} |
521 | इ॒मांगा᳚य॒त्रव॑र्तनिंजु॒षेथां᳚सुष्टु॒तिंमम॑ | इन्द्रा᳚ग्नी॒ऽआग॑तंनरा || {6.3.20.6}, {8.38.6}, {8.5.8.6} |
522 | प्रा॒त॒र्याव॑भि॒राग॑तंदे॒वेभि॑र्जेन्यावसू | इन्द्रा᳚ग्नी॒सोम॑पीतये || {6.3.21.1}, {8.38.7}, {8.5.8.7} |
523 | श्या॒वाश्व॑स्यसुन्व॒तोऽत्री᳚णांशृणुतं॒हव᳚म् | इन्द्रा᳚ग्नी॒सोम॑पीतये || {6.3.21.2}, {8.38.8}, {8.5.8.8} |
524 | ए॒वावा᳚मह्वऽऊ॒तये॒यथाहु॑वन्त॒मेधि॑राः | इन्द्रा᳚ग्नी॒सोम॑पीतये || {6.3.21.3}, {8.38.9}, {8.5.8.9} |
525 | आहंसर॑स्वतीवतोरिन्द्रा॒ग्न्योरवो᳚वृणे | याभ्यां᳚गाय॒त्रमृ॒च्यते᳚ || {6.3.21.4}, {8.38.10}, {8.5.8.10} |
[28] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य काण्वो नाभाक ऋषिः | अग्निर्देवता | महापङ्क्तिश्छन्दः || | |
526 | अ॒ग्निम॑स्तोष्यृ॒ग्मिय॑म॒ग्निमी॒ळाय॒जध्यै᳚ | अ॒ग्निर्दे॒वाँऽअ॑नक्तुनऽउ॒भेहिवि॒दथे᳚क॒विर॒न्तश्चर॑तिदू॒त्य१॑(अ॒)अंनभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.22.1}, {8.39.1}, {8.5.9.1} |
527 | न्य॑ग्ने॒नव्य॑सा॒वच॑स्त॒नूषु॒शंस॑मेषाम् | न्यरा᳚ती॒ररा᳚व्णां॒विश्वा᳚ऽअ॒र्योऽअरा᳚तीरि॒तोयु॑च्छन्त्वा॒मुरो॒नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.22.2}, {8.39.2}, {8.5.9.2} |
528 | अग्ने॒मन्मा᳚नि॒तुभ्यं॒कंघृ॒तंनजु॑ह्वऽआ॒सनि॑ | सदे॒वेषु॒प्रचि॑किद्धि॒त्वंह्यसि॑पू॒र्व्यःशि॒वोदू॒तोवि॒वस्व॑तो॒नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.22.3}, {8.39.3}, {8.5.9.3} |
529 | तत्त॑द॒ग्निर्वयो᳚दधे॒यथा᳚यथाकृप॒ण्यति॑ | ऊ॒र्जाहु॑ति॒र्वसू᳚नां॒शंच॒योश्च॒मयो᳚दधे॒विश्व॑स्यैदे॒वहू᳚त्यै॒नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.22.4}, {8.39.4}, {8.5.9.4} |
530 | सचि॑केत॒सही᳚यसा॒ग्निश्चि॒त्रेण॒कर्म॑णा | सहोता॒शश्व॑तीनां॒दक्षि॑णाभिर॒भीवृ॑तऽइ॒नोति॑चप्रती॒व्य१॑(अ॒)अंनभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.22.5}, {8.39.5}, {8.5.9.5} |
531 | अ॒ग्निर्जा॒तादे॒वाना᳚म॒ग्निर्वे᳚द॒मर्ता᳚नामपी॒च्य᳚म् | अ॒ग्निःसद्र॑विणो॒दाऽअ॒ग्निर्द्वारा॒व्यू᳚र्णुते॒स्वा᳚हुतो॒नवी᳚यसा॒नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.23.1}, {8.39.6}, {8.5.9.6} |
532 | अ॒ग्निर्दे॒वेषु॒संव॑सुः॒सवि॒क्षुय॒ज्ञिया॒स्वा | समु॒दाकाव्या᳚पु॒रुविश्वं॒भूमे᳚वपुष्यतिदे॒वोदे॒वेषु॑य॒ज्ञियो॒नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.23.2}, {8.39.7}, {8.5.9.7} |
533 | योऽअ॒ग्निःस॒प्तमा᳚नुषःश्रि॒तोविश्वे᳚षु॒सिन्धु॑षु | तमाग᳚न्मत्रिप॒स्त्यंम᳚न्धा॒तुर्द॑स्यु॒हन्त॑मम॒ग्निंय॒ज्ञेषु॑पू॒र्व्यंनभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.23.3}, {8.39.8}, {8.5.9.8} |
534 | अ॒ग्निस्त्रीणि॑त्रि॒धातू॒न्याक्षे᳚तिवि॒दथा᳚क॒विः | सत्रीँरे᳚काद॒शाँऽइ॒हयक्ष॑च्चपि॒प्रय॑च्चनो॒विप्रो᳚दू॒तःपरि॑ष्कृतो॒नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.23.4}, {8.39.9}, {8.5.9.9} |
535 | त्वंनो᳚ऽअग्नऽआ॒युषु॒त्वंदे॒वेषु॑पूर्व्य॒वस्व॒ऽएक॑ऽइरज्यसि | त्वामापः॑परि॒स्रुतः॒परि॑यन्ति॒स्वसे᳚तवो॒नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.23.5}, {8.39.10}, {8.5.9.10} |
[29] (१-१२) द्वादशर्चस्य सूक्तस्य काण्वो नाभाक ऋषिः | इन्द्राग्नी देवते | (१, ३-११) प्रथमर्चस्तृतीयादिनवानाञ्च महापङ्क्तिः, (२) द्वितीयायाः शक्वरी, (१२) द्वादश्याश्च त्रिष्टुप् छन्दांसि || | |
536 | इन्द्रा᳚ग्नीयु॒वंसुनः॒सह᳚न्ता॒दास॑थोर॒यिम् | येन॑दृ॒ळ्हास॒मत्स्वावी॒ळुचि॑त्साहिषी॒मह्य॒ग्निर्वने᳚व॒वात॒ऽइन्नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.24.1}, {8.40.1}, {8.5.10.1} |
537 | न॒हिवां᳚व॒व्रया᳚म॒हेऽथेन्द्र॒मिद्य॑जामहे॒शवि॑ष्ठंनृ॒णांनर᳚म् | सनः॑क॒दाचि॒दर्व॑ता॒गम॒दावाज॑सातये॒गम॒दामे॒धसा᳚तये॒नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.24.2}, {8.40.2}, {8.5.10.2} |
538 | ताहिमध्यं॒भरा᳚णामिन्द्रा॒ग्नीऽअ॑धिक्षि॒तः | ताऽउ॑कवित्व॒नाक॒वीपृ॒च्छ्यमा᳚नासखीय॒तेसंधी॒तम॑श्नुतंनरा॒नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.24.3}, {8.40.3}, {8.5.10.3} |
539 | अ॒भ्य॑र्चनभाक॒वदि᳚न्द्रा॒ग्नीय॒जसा᳚गि॒रा | ययो॒र्विश्व॑मि॒दंजग॑दि॒यंद्यौःपृ॑थि॒वीम॒ह्यु१॑(उ॒)पस्थे᳚बिभृ॒तोवसु॒नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.24.4}, {8.40.4}, {8.5.10.4} |
540 | प्रब्रह्मा᳚णिनभाक॒वदि᳚न्द्रा॒ग्निभ्या᳚मिरज्यत | यास॒प्तबु॑ध्नमर्ण॒वंजि॒ह्मबा᳚रमपोर्णु॒तऽइन्द्र॒ऽईशा᳚न॒ऽओज॑सा॒नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.24.5}, {8.40.5}, {8.5.10.5} |
541 | अपि॑वृश्चपुराण॒वद्व्र॒तते᳚रिवगुष्पि॒तमोजो᳚दा॒सस्य॑दम्भय | व॒यंतद॑स्य॒सम्भृ॑तं॒वस्विन्द्रे᳚ण॒विभ॑जेमहि॒नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.24.6}, {8.40.6}, {8.5.10.6} |
542 | यदि᳚न्द्रा॒ग्नीजना᳚ऽइ॒मेवि॒ह्वय᳚न्ते॒तना᳚गि॒रा | अ॒स्माके᳚भि॒र्नृभि᳚र्व॒यंसा᳚स॒ह्याम॑पृतन्य॒तोव॑नु॒याम॑वनुष्य॒तोनभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.25.1}, {8.40.7}, {8.5.10.7} |
543 | यानुश्वे॒ताव॒वोदि॒वऽउ॒च्चरा᳚त॒ऽउप॒द्युभिः॑ | इ॒न्द्रा॒ग्न्योरनु᳚व्र॒तमुहा᳚नायन्ति॒सिन्ध॑वो॒यान्त्सीं᳚ब॒न्धादमु᳚ञ्चतां॒नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.25.2}, {8.40.8}, {8.5.10.8} |
544 | पू॒र्वीष्ट॑ऽइ॒न्द्रोप॑मातयःपू॒र्वीरु॒तप्रश॑स्तयः॒सूनो᳚हि॒न्वस्य॑हरिवः | वस्वो᳚वी॒रस्या॒पृचो॒यानुसाध᳚न्तनो॒धियो॒नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.25.3}, {8.40.9}, {8.5.10.9} |
545 | तंशि॑शीतासुवृ॒क्तिभि॑स्त्वे॒षंसत्वा᳚नमृ॒ग्मिय᳚म् | उ॒तोनुचि॒द्यऽओज॑सा॒शुष्ण॑स्या॒ण्डानि॒भेद॑ति॒जेष॒त्स्व᳚र्वतीर॒पोनभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.25.4}, {8.40.10}, {8.5.10.10} |
546 | तंशि॑शीतास्वध्व॒रंस॒त्यंसत्वा᳚नमृ॒त्विय᳚म् | उ॒तोनुचि॒द्यऽओह॑तऽआ॒ण्डाशुष्ण॑स्य॒भेद॒त्यजैः॒स्व᳚र्वतीर॒पोनभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.25.5}, {8.40.11}, {8.5.10.11} |
547 | ए॒वेन्द्रा॒ग्निभ्यां᳚पितृ॒वन्नवी᳚योमन्धातृ॒वद᳚ङ्गिर॒स्वद॑वाचि | त्रि॒धातु॑ना॒शर्म॑णापातम॒स्मान्व॒यंस्या᳚म॒पत॑योरयी॒णाम् || {6.3.25.6}, {8.40.12}, {8.5.10.12} |
[30] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य काण्वो नाभाक ऋषिः | वरुणो देवता | महापतिश्छन्दः || | |
548 | अ॒स्माऽऊ॒षुप्रभू᳚तये॒वरु॑णायम॒रुद्भ्योऽर्चा᳚वि॒दुष्ट॑रेभ्यः | योधी॒तामानु॑षाणांप॒श्वोगाऽइ॑व॒रक्ष॑ति॒नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.26.1}, {8.41.1}, {8.5.11.1} |
549 | तमू॒षुस॑म॒नागि॒रापि॑तॄ॒णांच॒मन्म॑भिः | ना॒भा॒कस्य॒प्रश॑स्तिभि॒र्यःसिन्धू᳚ना॒मुपो᳚द॒येस॒प्तस्व॑सा॒सम॑ध्य॒मोनभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.26.2}, {8.41.2}, {8.5.11.2} |
550 | सक्षपः॒परि॑षस्वजे॒न्यु१॑(उ॒)स्रोमा॒यया᳚दधे॒सविश्वं॒परि॑दर्श॒तः | तस्य॒वेनी॒रनु᳚व्र॒तमु॒षस्ति॒स्रोऽअ॑वर्धय॒न्नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.26.3}, {8.41.3}, {8.5.11.3} |
551 | यःक॒कुभो᳚निधार॒यःपृ॑थि॒व्यामधि॑दर्श॒तः | समाता᳚पू॒र्व्यंप॒दंतद्वरु॑णस्य॒सप्त्यं॒सहिगो॒पाऽइ॒वेर्यो॒नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.26.4}, {8.41.4}, {8.5.11.4} |
552 | योध॒र्ताभुव॑नानां॒यऽउ॒स्राणा᳚मपी॒च्या॒३॑(आ॒)वेद॒नामा᳚नि॒गुह्या᳚ | सक॒विःकाव्या᳚पु॒रुरू॒पंद्यौरि॑वपुष्यति॒नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.26.5}, {8.41.5}, {8.5.11.5} |
553 | यस्मि॒न्विश्वा᳚नि॒काव्या᳚च॒क्रेनाभि॑रिवश्रि॒ता | त्रि॒तंजू॒तीस॑पर्यतव्र॒जेगावो॒नसं॒युजे᳚यु॒जेऽअश्वाँ᳚ऽअयुक्षत॒नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.27.1}, {8.41.6}, {8.5.11.6} |
554 | यऽआ॒स्वत्क॑ऽआ॒शये॒विश्वा᳚जा॒तान्ये᳚षाम् | परि॒धामा᳚नि॒मर्मृ॑श॒द्वरु॑णस्यपु॒रोगये॒विश्वे᳚दे॒वाऽअनु᳚व्र॒तंनभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.27.2}, {8.41.7}, {8.5.11.7} |
555 | सस॑मु॒द्रोऽअ॑पी॒च्य॑स्तु॒रोद्यामि॑वरोहति॒नियदा᳚सु॒यजु॑र्द॒धे | समा॒याऽअ॒र्चिना᳚प॒दास्तृ॑णा॒न्नाक॒मारु॑ह॒न्नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.27.3}, {8.41.8}, {8.5.11.8} |
556 | यस्य॑श्वे॒तावि॑चक्ष॒णाति॒स्रोभूमी᳚रधिक्षि॒तः | त्रिरुत्त॑राणिप॒प्रतु॒र्वरु॑णस्यध्रु॒वंसदः॒सस॑प्ता॒नामि॑रज्यति॒नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.27.4}, {8.41.9}, {8.5.11.9} |
557 | यःश्वे॒ताँऽअधि॑निर्णिजश्च॒क्रेकृ॒ष्णाँऽअनु᳚व्र॒ता | सधाम॑पू॒र्व्यंम॑मे॒यःस्क॒म्भेन॒विरोद॑सीऽअ॒जोनद्यामधा᳚रय॒न्नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.27.5}, {8.41.10}, {8.5.11.10} |
[31] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य काण्वो नाभाक आत्रेयोऽर्चनाना वा ऋषिः | (१-३) प्रथमतृचस्य वरुणः, (४-६) द्वितीयतृचस्य चाश्विनौ देवताः | (१-३) प्रथमतृचस्य त्रिष्टुप, (४-६) द्वितीयतृचस्य चानुष्टप् छन्दसी || | |
558 | अस्त॑भ्ना॒द्द्यामसु॑रोवि॒श्ववे᳚दा॒ऽअमि॑मीतवरि॒माणं᳚पृथि॒व्याः | आसी᳚द॒द्विश्वा॒भुव॑नानिस॒म्राड्विश्वेत्तानि॒वरु॑णस्यव्र॒तानि॑ || {6.3.28.1}, {8.42.1}, {8.5.12.1} |
559 | ए॒वाव᳚न्दस्व॒वरु॑णंबृ॒हन्तं᳚नम॒स्याधीर॑म॒मृत॑स्यगो॒पाम् | सनः॒शर्म॑त्रि॒वरू᳚थं॒वियं᳚सत्पा॒तंनो᳚द्यावापृथिवीऽउ॒पस्थे᳚ || {6.3.28.2}, {8.42.2}, {8.5.12.2} |
560 | इ॒मांधियं॒शिक्ष॑माणस्यदेव॒क्रतुं॒दक्षं᳚वरुण॒संशि॑शाधि | ययाति॒विश्वा᳚दुरि॒तातरे᳚मसु॒तर्मा᳚ण॒मधि॒नावं᳚रुहेम || {6.3.28.3}, {8.42.3}, {8.5.12.3} |
561 | आवां॒ग्रावा᳚णोऽअश्विनाधी॒भिर्विप्रा᳚ऽअचुच्यवुः | नास॑त्या॒सोम॑पीतये॒नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.28.4}, {8.42.4}, {8.5.12.4} |
562 | यथा᳚वा॒मत्रि॑रश्विनागी॒र्भिर्विप्रो॒ऽअजो᳚हवीत् | नास॑त्या॒सोम॑पीतये॒नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.28.5}, {8.42.5}, {8.5.12.5} |
563 | ए॒वावा᳚मह्वऽऊ॒तये॒यथाहु॑वन्त॒मेधि॑राः | नास॑त्या॒सोम॑पीतये॒नभ᳚न्तामन्य॒केस॑मे || {6.3.28.6}, {8.42.6}, {8.5.12.6} |
[32] (१-३३) त्रयस्त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो विरूप ऋषिः | अग्निर्देवता | गायत्री छन्दः || | |
564 | इ॒मेविप्र॑स्यवे॒धसो॒ऽग्नेरस्तृ॑तयज्वनः | गिरः॒स्तोमा᳚सऽईरते || {6.3.29.1}, {8.43.1}, {8.6.1.1} |
565 | अस्मै᳚तेप्रति॒हर्य॑ते॒जात॑वेदो॒विच॑र्षणे | अग्ने॒जना᳚मिसुष्टु॒तिम् || {6.3.29.2}, {8.43.2}, {8.6.1.2} |
566 | आ॒रो॒काऽइ॑व॒घेदह॑ति॒ग्माऽअ॑ग्ने॒तव॒त्विषः॑ | द॒द्भिर्वना᳚निबप्सति || {6.3.29.3}, {8.43.3}, {8.6.1.3} |
567 | हर॑योधू॒मके᳚तवो॒वात॑जूता॒ऽउप॒द्यवि॑ | यत᳚न्ते॒वृथ॑ग॒ग्नयः॑ || {6.3.29.4}, {8.43.4}, {8.6.1.4} |
568 | ए॒तेत्येवृथ॑ग॒ग्नय॑ऽइ॒द्धासः॒सम॑दृक्षत | उ॒षसा᳚मिवके॒तवः॑ || {6.3.29.5}, {8.43.5}, {8.6.1.5} |
569 | कृ॒ष्णारजां᳚सिपत्सु॒तःप्र॒याणे᳚जा॒तवे᳚दसः | अ॒ग्निर्यद्रोध॑ति॒क्षमि॑ || {6.3.30.1}, {8.43.6}, {8.6.1.6} |
570 | धा॒सिंकृ᳚ण्वा॒नऽओष॑धी॒र्बप्स॑द॒ग्निर्नवा᳚यति | पुन॒र्यन्तरु॑णी॒रपि॑ || {6.3.30.2}, {8.43.7}, {8.6.1.7} |
571 | जि॒ह्वाभि॒रह॒नन्न॑मद॒र्चिषा᳚जञ्जणा॒भव॑न् | अ॒ग्निर्वने᳚षुरोचते || {6.3.30.3}, {8.43.8}, {8.6.1.8} |
572 | अ॒प्स्व॑ग्ने॒सधि॒ष्टव॒सौष॑धी॒रनु॑रुध्यसे | गर्भे॒सञ्जा᳚यसे॒पुनः॑ || {6.3.30.4}, {8.43.9}, {8.6.1.9} |
573 | उद॑ग्ने॒तव॒तद्घृ॒ताद॒र्चीरो᳚चत॒ऽआहु॑तम् | निंसा᳚नंजु॒ह्वो॒३॑(ओ॒)मुखे᳚ || {6.3.30.5}, {8.43.10}, {8.6.1.10} |
574 | उ॒क्षान्ना᳚यव॒शान्ना᳚य॒सोम॑पृष्ठायवे॒धसे᳚ | स्तोमै᳚र्विधेमा॒ग्नये᳚ || {6.3.31.1}, {8.43.11}, {8.6.1.11} |
575 | उ॒तत्वा॒नम॑साव॒यंहोत॒र्वरे᳚ण्यक्रतो | अग्ने᳚स॒मिद्भि॑रीमहे || {6.3.31.2}, {8.43.12}, {8.6.1.12} |
576 | उ॒तत्वा᳚भृगु॒वच्छु॑चेमनु॒ष्वद॑ग्नऽआहुत | अ॒ङ्गि॒र॒स्वद्ध॑वामहे || {6.3.31.3}, {8.43.13}, {8.6.1.13} |
577 | त्वंह्य॑ग्नेऽअ॒ग्निना॒विप्रो॒विप्रे᳚ण॒सन्त्स॒ता | सखा॒सख्या᳚समि॒ध्यसे᳚ || {6.3.31.4}, {8.43.14}, {8.6.1.14} |
578 | सत्वंविप्रा᳚यदा॒शुषे᳚र॒यिंदे᳚हिसह॒स्रिण᳚म् | अग्ने᳚वी॒रव॑ती॒मिष᳚म् || {6.3.31.5}, {8.43.15}, {8.6.1.15} |
579 | अग्ने॒भ्रातः॒सह॑स्कृत॒रोहि॑दश्व॒शुचि᳚व्रत | इ॒मंस्तोमं᳚जुषस्वमे || {6.3.32.1}, {8.43.16}, {8.6.1.16} |
580 | उ॒तत्वा᳚ग्ने॒मम॒स्तुतो᳚वा॒श्राय॑प्रति॒हर्य॑ते | गो॒ष्ठंगाव॑ऽइवाशत || {6.3.32.2}, {8.43.17}, {8.6.1.17} |
581 | तुभ्यं॒ताऽअ᳚ङ्गिरस्तम॒विश्वाः᳚सुक्षि॒तयः॒पृथ॑क् | अग्ने॒कामा᳚ययेमिरे || {6.3.32.3}, {8.43.18}, {8.6.1.18} |
582 | अ॒ग्निंधी॒भिर्म॑नी॒षिणो॒मेधि॑रासोविप॒श्चितः॑ | अ॒द्म॒सद्या᳚यहिन्विरे || {6.3.32.4}, {8.43.19}, {8.6.1.19} |
583 | तंत्वामज्मे᳚षुवा॒जिनं᳚तन्वा॒नाऽअ॑ग्नेऽअध्व॒रम् | वह्निं॒होता᳚रमीळते || {6.3.32.5}, {8.43.20}, {8.6.1.20} |
584 | पु॒रु॒त्राहिस॒दृङ्ङसि॒विशो॒विश्वा॒ऽअनु॑प्र॒भुः | स॒मत्सु॑त्वाहवामहे || {6.3.33.1}, {8.43.21}, {8.6.1.21} |
585 | तमी᳚ळिष्व॒यऽआहु॑तो॒ऽग्निर्वि॒भ्राज॑तेघृ॒तैः | इ॒मंनः॑शृणव॒द्धव᳚म् || {6.3.33.2}, {8.43.22}, {8.6.1.22} |
586 | तंत्वा᳚व॒यंह॑वामहेशृ॒ण्वन्तं᳚जा॒तवे᳚दसम् | अग्ने॒घ्नन्त॒मप॒द्विषः॑ || {6.3.33.3}, {8.43.23}, {8.6.1.23} |
587 | वि॒शांराजा᳚न॒मद्भु॑त॒मध्य॑क्षं॒धर्म॑णामि॒मम् | अ॒ग्निमी᳚ळे॒सऽउ॑श्रवत् || {6.3.33.4}, {8.43.24}, {8.6.1.24} |
588 | अ॒ग्निंवि॒श्वायु॑वेपसं॒मर्यं॒नवा॒जिनं᳚हि॒तम् | सप्तिं॒नवा᳚जयामसि || {6.3.33.5}, {8.43.25}, {8.6.1.25} |
589 | घ्नन्मृ॒ध्राण्यप॒द्विषो॒दह॒न्रक्षां᳚सिवि॒श्वहा᳚ | अग्ने᳚ति॒ग्मेन॑दीदिहि || {6.3.34.1}, {8.43.26}, {8.6.1.26} |
590 | यंत्वा॒जना᳚सऽइन्ध॒तेम॑नु॒ष्वद᳚ङ्गिरस्तम | अग्ने॒सबो᳚धिमे॒वचः॑ || {6.3.34.2}, {8.43.27}, {8.6.1.27} |
591 | यद॑ग्नेदिवि॒जाऽअस्य॑प्सु॒जावा᳚सहस्कृत | तंत्वा᳚गी॒र्भिर्ह॑वामहे || {6.3.34.3}, {8.43.28}, {8.6.1.28} |
592 | तुभ्यं॒घेत्तेजना᳚ऽइ॒मेविश्वाः᳚सुक्षि॒तयः॒पृथ॑क् | धा॒सिंहि᳚न्व॒न्त्यत्त॑वे || {6.3.34.4}, {8.43.29}, {8.6.1.29} |
593 | तेघेद॑ग्नेस्वा॒ध्योऽहा॒विश्वा᳚नृ॒चक्ष॑सः | तर᳚न्तःस्यामदु॒र्गहा᳚ || {6.3.34.5}, {8.43.30}, {8.6.1.30} |
594 | अ॒ग्निंम॒न्द्रंपु॑रुप्रि॒यंशी॒रंपा᳚व॒कशो᳚चिषम् | हृ॒द्भिर्म॒न्द्रेभि॑रीमहे || {6.3.35.1}, {8.43.31}, {8.6.1.31} |
595 | सत्वम॑ग्नेवि॒भाव॑सुःसृ॒जन्त्सूर्यो॒नर॒श्मिभिः॑ | शर्ध॒न्तमां᳚सिजिघ्नसे || {6.3.35.2}, {8.43.32}, {8.6.1.32} |
596 | तत्ते᳚सहस्वऽईमहेदा॒त्रंयन्नोप॒दस्य॑ति | त्वद॑ग्ने॒वार्यं॒वसु॑ || {6.3.35.3}, {8.43.33}, {8.6.1.33} |
[33] (१-३०) त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो विरूप ऋषिः | अग्निर्देवता | गायत्री छन्दः || | |
597 | स॒मिधा॒ग्निंदु॑वस्यतघृ॒तैर्बो᳚धय॒ताति॑थिम् | आस्मि॑न्ह॒व्याजु॑होतन || {6.3.36.1}, {8.44.1}, {8.6.2.1} |
598 | अग्ने॒स्तोमं᳚जुषस्वमे॒वर्ध॑स्वा॒नेन॒मन्म॑ना | प्रति॑सू॒क्तानि॑हर्यनः || {6.3.36.2}, {8.44.2}, {8.6.2.2} |
599 | अ॒ग्निंदू॒तंपु॒रोद॑धेहव्य॒वाह॒मुप॑ब्रुवे | दे॒वाँऽआसा᳚दयादि॒ह || {6.3.36.3}, {8.44.3}, {8.6.2.3} |
600 | उत्ते᳚बृ॒हन्तो᳚ऽअ॒र्चयः॑समिधा॒नस्य॑दीदिवः | अग्ने᳚शु॒क्रास॑ऽईरते || {6.3.36.4}, {8.44.4}, {8.6.2.4} |
601 | उप॑त्वाजु॒ह्वो॒३॑(ओ॒)मम॑घृ॒ताची᳚र्यन्तुहर्यत | अग्ने᳚ह॒व्याजु॑षस्वनः || {6.3.36.5}, {8.44.5}, {8.6.2.5} |
602 | म॒न्द्रंहोता᳚रमृ॒त्विजं᳚चि॒त्रभा᳚नुंवि॒भाव॑सुम् | अ॒ग्निमी᳚ळे॒सऽउ॑श्रवत् || {6.3.37.1}, {8.44.6}, {8.6.2.6} |
603 | प्र॒त्नंहोता᳚र॒मीड्यं॒जुष्ट॑म॒ग्निंक॒विक्र॑तुम् | अ॒ध्व॒राणा᳚मभि॒श्रिय᳚म् || {6.3.37.2}, {8.44.7}, {8.6.2.7} |
604 | जु॒षा॒णोऽअ᳚ङ्गिरस्तमे॒माह॒व्यान्या᳚नु॒षक् | अग्ने᳚य॒ज्ञंन॑यऋतु॒था || {6.3.37.3}, {8.44.8}, {8.6.2.8} |
605 | स॒मि॒धा॒नऽउ॑सन्त्य॒शुक्र॑शोचऽइ॒हाव॑ह | चि॒कि॒त्वान्दैव्यं॒जन᳚म् || {6.3.37.4}, {8.44.9}, {8.6.2.9} |
606 | विप्रं॒होता᳚रम॒द्रुहं᳚धू॒मके᳚तुंवि॒भाव॑सुम् | य॒ज्ञानां᳚के॒तुमी᳚महे || {6.3.37.5}, {8.44.10}, {8.6.2.10} |
607 | अग्ने॒निपा᳚हिन॒स्त्वंप्रति॑ष्मदेव॒रीष॑तः | भि॒न्धिद्वेषः॑सहस्कृत || {6.3.38.1}, {8.44.11}, {8.6.2.11} |
608 | अ॒ग्निःप्र॒त्नेन॒मन्म॑ना॒शुम्भा᳚नस्त॒न्व१॑(अ॒)अंस्वाम् | क॒विर्विप्रे᳚णवावृधे || {6.3.38.2}, {8.44.12}, {8.6.2.12} |
609 | ऊ॒र्जोनपा᳚त॒माहु॑वे॒ऽग्निंपा᳚व॒कशो᳚चिषम् | अ॒स्मिन्य॒ज्ञेस्व॑ध्व॒रे || {6.3.38.3}, {8.44.13}, {8.6.2.13} |
610 | सनो᳚मित्रमह॒स्त्वमग्ने᳚शु॒क्रेण॑शो॒चिषा᳚ | दे॒वैरास॑त्सिब॒र्हिषि॑ || {6.3.38.4}, {8.44.14}, {8.6.2.14} |
611 | योऽअ॒ग्निंत॒न्वो॒३॑(ओ॒)दमे᳚दे॒वंमर्तः॑सप॒र्यति॑ | तस्मा॒ऽइद्दी᳚दय॒द्वसु॑ || {6.3.38.5}, {8.44.15}, {8.6.2.15} |
612 | अ॒ग्निर्मू॒र्धादि॒वःक॒कुत्पतिः॑पृथि॒व्याऽअ॒यम् | अ॒पांरेतां᳚सिजिन्वति || {6.3.39.1}, {8.44.16}, {8.6.2.16} |
613 | उद॑ग्ने॒शुच॑य॒स्तव॑शु॒क्राभ्राज᳚न्तऽईरते | तव॒ज्योतीं᳚ष्य॒र्चयः॑ || {6.3.39.2}, {8.44.17}, {8.6.2.17} |
614 | ईशि॑षे॒वार्य॑स्य॒हिदा॒त्रस्या᳚ग्ने॒स्व॑र्पतिः | स्तो॒तास्यां॒तव॒शर्म॑णि || {6.3.39.3}, {8.44.18}, {8.6.2.18} |
615 | त्वाम॑ग्नेमनी॒षिण॒स्त्वांहि᳚न्वन्ति॒चित्ति॑भिः | त्वांव॑र्धन्तुनो॒गिरः॑ || {6.3.39.4}, {8.44.19}, {8.6.2.19} |
616 | अद॑ब्धस्यस्व॒धाव॑तोदू॒तस्य॒रेभ॑तः॒सदा᳚ | अ॒ग्नेःस॒ख्यंवृ॑णीमहे || {6.3.39.5}, {8.44.20}, {8.6.2.20} |
617 | अ॒ग्निःशुचि᳚व्रततमः॒शुचि॒र्विप्रः॒शुचिः॑क॒विः | शुची᳚रोचत॒ऽआहु॑तः || {6.3.40.1}, {8.44.21}, {8.6.2.21} |
618 | उ॒तत्वा᳚धी॒तयो॒मम॒गिरो᳚वर्धन्तुवि॒श्वहा᳚ | अग्ने᳚स॒ख्यस्य॑बोधिनः || {6.3.40.2}, {8.44.22}, {8.6.2.22} |
619 | यद॑ग्ने॒स्याम॒हंत्वंत्वंवा᳚घा॒स्याऽअ॒हम् | स्युष्टे᳚स॒त्याऽइ॒हाशिषः॑ || {6.3.40.3}, {8.44.23}, {8.6.2.23} |
620 | वसु॒र्वसु॑पति॒र्हिक॒मस्य॑ग्नेवि॒भाव॑सुः | स्याम॑तेसुम॒तावपि॑ || {6.3.40.4}, {8.44.24}, {8.6.2.24} |
621 | अग्ने᳚धृ॒तव्र॑तायतेसमु॒द्राये᳚व॒सिन्ध॑वः | गिरो᳚वा॒श्रास॑ऽईरते || {6.3.40.5}, {8.44.25}, {8.6.2.25} |
622 | युवा᳚नंवि॒श्पतिं᳚क॒विंवि॒श्वादं᳚पुरु॒वेप॑सम् | अ॒ग्निंशु᳚म्भामि॒मन्म॑भिः || {6.3.41.1}, {8.44.26}, {8.6.2.26} |
623 | य॒ज्ञानां᳚र॒थ्ये᳚व॒यंति॒ग्मज᳚म्भायवी॒ळवे᳚ | स्तोमै᳚रिषेमा॒ग्नये᳚ || {6.3.41.2}, {8.44.27}, {8.6.2.27} |
624 | अ॒यम॑ग्ने॒त्वेऽअपि॑जरि॒ताभू᳚तुसन्त्य | तस्मै᳚पावकमृळय || {6.3.41.3}, {8.44.28}, {8.6.2.28} |
625 | धीरो॒ह्यस्य॑द्म॒सद्विप्रो॒नजागृ॑विः॒सदा᳚ | अग्ने᳚दी॒दय॑सि॒द्यवि॑ || {6.3.41.4}, {8.44.29}, {8.6.2.29} |
626 | पु॒राग्ने᳚दुरि॒तेभ्यः॑पु॒रामृ॒ध्रेभ्यः॑कवे | प्रण॒ऽआयु᳚र्वसोतिर || {6.3.41.5}, {8.44.30}, {8.6.2.30} |
[34] (१-४२) द्विचत्वारिंशदृचस्य सूक्तस्य काण्वस्त्रिशोक ऋषिः | (१) प्रथमर्चोऽग्नीन्द्रौ, (२-४२) द्वितीयाद्येकचत्वारिंशदृचाञ्चेन्द्रो देवते | गायत्री छन्दः || | |
627 | आघा॒येऽअ॒ग्निमि᳚न्ध॒तेस्तृ॒णन्ति॑ब॒र्हिरा᳚नु॒षक् | येषा॒मिन्द्रो॒युवा॒सखा᳚ || {6.3.42.1}, {8.45.1}, {8.6.3.1} |
628 | बृ॒हन्निदि॒ध्मऽए᳚षां॒भूरि॑श॒स्तंपृ॒थुःस्वरुः॑ | येषा॒मिन्द्रो॒युवा॒सखा᳚ || {6.3.42.2}, {8.45.2}, {8.6.3.2} |
629 | अयु॑द्ध॒ऽइद्यु॒धावृतं॒शूर॒ऽआज॑ति॒सत्व॑भिः | येषा॒मिन्द्रो॒युवा॒सखा᳚ || {6.3.42.3}, {8.45.3}, {8.6.3.3} |
630 | आबु॒न्दंवृ॑त्र॒हाद॑देजा॒तःपृ॑च्छ॒द्विमा॒तर᳚म् | कऽउ॒ग्राःकेह॑शृण्विरे || {6.3.42.4}, {8.45.4}, {8.6.3.4} |
631 | प्रति॑त्वाशव॒सीव॑दद्गि॒रावप्सो॒नयो᳚धिषत् | यस्ते᳚शत्रु॒त्वमा᳚च॒के || {6.3.42.5}, {8.45.5}, {8.6.3.5} |
632 | उ॒तत्वंम॑घवञ्छृणु॒यस्ते॒वष्टि॑व॒वक्षि॒तत् | यद्वी॒ळया᳚सिवी॒ळुतत् || {6.3.43.1}, {8.45.6}, {8.6.3.6} |
633 | यदा॒जिंयात्या᳚जि॒कृदिन्द्रः॑स्वश्व॒युरुप॑ | र॒थीत॑मोर॒थीना᳚म् || {6.3.43.2}, {8.45.7}, {8.6.3.7} |
634 | विषुविश्वा᳚ऽअभि॒युजो॒वज्रि॒न्विष्व॒ग्यथा᳚वृह | भवा᳚नःसु॒श्रव॑स्तमः || {6.3.43.3}, {8.45.8}, {8.6.3.8} |
635 | अ॒स्माकं॒सुरथं᳚पु॒रऽइन्द्रः॑कृणोतुसा॒तये᳚ | नयंधूर्व᳚न्तिधू॒र्तयः॑ || {6.3.43.4}, {8.45.9}, {8.6.3.9} |
636 | वृ॒ज्याम॑ते॒परि॒द्विषोऽरं᳚तेशक्रदा॒वने᳚ | ग॒मेमेदि᳚न्द्र॒गोम॑तः || {6.3.43.5}, {8.45.10}, {8.6.3.10} |
637 | शनै᳚श्चि॒द्यन्तो᳚ऽअद्रि॒वोऽश्वा᳚वन्तःशत॒ग्विनः॑ | वि॒वक्ष॑णाऽअने॒हसः॑ || {6.3.44.1}, {8.45.11}, {8.6.3.11} |
638 | ऊ॒र्ध्वाहिते᳚दि॒वेदि॑वेस॒हस्रा᳚सू॒नृता᳚श॒ता | ज॒रि॒तृभ्यो᳚वि॒मंह॑ते || {6.3.44.2}, {8.45.12}, {8.6.3.12} |
639 | वि॒द्माहित्वा᳚धनंज॒यमिन्द्र॑दृ॒ळ्हाचि॑दारु॒जम् | आ॒दा॒रिणं॒यथा॒गय᳚म् || {6.3.44.3}, {8.45.13}, {8.6.3.13} |
640 | क॒कु॒हंचि॑त्त्वाकवे॒मन्द᳚न्तुधृष्ण॒विन्द॑वः | आत्वा᳚प॒णिंयदीम॑हे || {6.3.44.4}, {8.45.14}, {8.6.3.14} |
641 | यस्ते᳚रे॒वाँऽअदा᳚शुरिःप्रम॒मर्ष॑म॒घत्त॑ये | तस्य॑नो॒वेद॒ऽआभ॑र || {6.3.44.5}, {8.45.15}, {8.6.3.15} |
642 | इ॒मऽउ॑त्वा॒विच॑क्षते॒सखा᳚यऽइन्द्रसो॒मिनः॑ | पु॒ष्टाव᳚न्तो॒यथा᳚प॒शुम् || {6.3.45.1}, {8.45.16}, {8.6.3.16} |
643 | उ॒तत्वाब॑धिरंव॒यंश्रुत्क᳚र्णं॒सन्त॑मू॒तये᳚ | दू॒रादि॒हह॑वामहे || {6.3.45.2}, {8.45.17}, {8.6.3.17} |
644 | यच्छु॑श्रू॒याऽइ॒मंहवं᳚दु॒र्मर्षं᳚चक्रियाऽउ॒त | भवे᳚रा॒पिर्नो॒ऽअन्त॑मः || {6.3.45.3}, {8.45.18}, {8.6.3.18} |
645 | यच्चि॒द्धिते॒ऽअपि॒व्यथि॑र्जग॒न्वांसो॒ऽअम᳚न्महि | गो॒दाऽइदि᳚न्द्रबोधिनः || {6.3.45.4}, {8.45.19}, {8.6.3.19} |
646 | आत्वा᳚र॒म्भंनजिव्र॑योरर॒भ्माश॑वसस्पते | उ॒श्मसि॑त्वास॒धस्थ॒ऽआ || {6.3.45.5}, {8.45.20}, {8.6.3.20} |
647 | स्तो॒त्रमिन्द्रा᳚यगायतपुरुनृ॒म्णाय॒सत्व॑ने | नकि॒र्यंवृ᳚ण्व॒तेयु॒धि || {6.3.46.1}, {8.45.21}, {8.6.3.21} |
648 | अ॒भित्वा᳚वृषभासु॒तेसु॒तंसृ॑जामिपी॒तये᳚ | तृ॒म्पाव्य॑श्नुही॒मद᳚म् || {6.3.46.2}, {8.45.22}, {8.6.3.22} |
649 | मात्वा᳚मू॒राऽअ॑वि॒ष्यवो॒मोप॒हस्वा᳚न॒ऽआद॑भन् | माकीं᳚ब्रह्म॒द्विषो᳚वनः || {6.3.46.3}, {8.45.23}, {8.6.3.23} |
650 | इ॒हत्वा॒गोप॑रीणसाम॒हेम᳚न्दन्तु॒राध॑से | सरो᳚गौ॒रोयथा᳚पिब || {6.3.46.4}, {8.45.24}, {8.6.3.24} |
651 | यावृ॑त्र॒हाप॑रा॒वति॒सना॒नवा᳚चचुच्यु॒वे | तासं॒सत्सु॒प्रवो᳚चत || {6.3.46.5}, {8.45.25}, {8.6.3.25} |
652 | अपि॑बत्क॒द्रुवः॑सु॒तमिन्द्रः॑स॒हस्र॑बाह्वे | अत्रा᳚देदिष्ट॒पौंस्य᳚म् || {6.3.47.1}, {8.45.26}, {8.6.3.26} |
653 | स॒त्यंतत्तु॒र्वशे॒यदौ॒विदा᳚नोऽअह्नवा॒य्यम् | व्या᳚नट्तु॒र्वणे॒शमि॑ || {6.3.47.2}, {8.45.27}, {8.6.3.27} |
654 | त॒रणिं᳚वो॒जना᳚नांत्र॒दंवाज॑स्य॒गोम॑तः | स॒मा॒नमु॒प्रशं᳚सिषम् || {6.3.47.3}, {8.45.28}, {8.6.3.28} |
655 | ऋ॒भु॒क्षणं॒नवर्त॑वऽउ॒क्थेषु॑तुग्र्या॒वृध᳚म् | इन्द्रं॒सोमे॒सचा᳚सु॒ते || {6.3.47.4}, {8.45.29}, {8.6.3.29} |
656 | यःकृ॒न्तदिद्वियो॒न्यंत्रि॒शोका᳚यगि॒रिंपृ॒थुम् | गोभ्यो᳚गा॒तुंनिरे᳚तवे || {6.3.47.5}, {8.45.30}, {8.6.3.30} |
657 | यद्द॑धि॒षेम॑न॒स्यसि॑मन्दा॒नःप्रेदिय॑क्षसि | मातत्क॑रिन्द्रमृ॒ळय॑ || {6.3.48.1}, {8.45.31}, {8.6.3.31} |
658 | द॒भ्रंचि॒द्धित्वाव॑तःकृ॒तंशृ॒ण्वेऽअधि॒क्षमि॑ | जिगा᳚त्विन्द्रते॒मनः॑ || {6.3.48.2}, {8.45.32}, {8.6.3.32} |
659 | तवेदु॒ताःसु॑की॒र्तयोऽस᳚न्नु॒तप्रश॑स्तयः | यदि᳚न्द्रमृ॒ळया᳚सिनः || {6.3.48.3}, {8.45.33}, {8.6.3.33} |
660 | मान॒ऽएक॑स्मि॒न्नाग॑सि॒माद्वयो᳚रु॒तत्रि॒षु | वधी॒र्माशू᳚र॒भूरि॑षु || {6.3.48.4}, {8.45.34}, {8.6.3.34} |
661 | बि॒भया॒हित्वाव॑तऽउ॒ग्राद॑भिप्रभ॒ङ्गिणः॑ | द॒स्माद॒हमृ॑ती॒षहः॑ || {6.3.48.5}, {8.45.35}, {8.6.3.35} |
662 | मासख्युः॒शून॒मावि॑दे॒मापु॒त्रस्य॑प्रभूवसो | आ॒वृत्व॑द्भूतुते॒मनः॑ || {6.3.49.1}, {8.45.36}, {8.6.3.36} |
663 | कोनुम᳚र्या॒ऽअमि॑थितः॒सखा॒सखा᳚यमब्रवीत् | ज॒हाकोऽअ॒स्मदी᳚षते || {6.3.49.2}, {8.45.37}, {8.6.3.37} |
664 | ए॒वारे᳚वृषभासु॒तेऽसि᳚न्व॒न्भूर्या᳚वयः | श्व॒घ्नीव॑नि॒वता॒चर॑न् || {6.3.49.3}, {8.45.38}, {8.6.3.38} |
665 | आत॑ऽए॒ताव॑चो॒युजा॒हरी᳚गृभ्णेसु॒मद्र॑था | यदीं᳚ब्र॒ह्मभ्य॒ऽइद्ददः॑ || {6.3.49.4}, {8.45.39}, {8.6.3.39} |
666 | भि॒न्धिविश्वा॒ऽअप॒द्विषः॒परि॒बाधो᳚ज॒हीमृधः॑ | वसु॑स्पा॒र्हंतदाभ॑र || {6.3.49.5}, {8.45.40}, {8.6.3.40} |
667 | यद्वी॒ळावि᳚न्द्र॒यत्स्थि॒रेयत्पर्शा᳚ने॒परा᳚भृतम् | वसु॑स्पा॒र्हंतदाभ॑र || {6.3.49.6}, {8.45.41}, {8.6.3.41} |
668 | यस्य॑तेवि॒श्वमा᳚नुषो॒भूरे᳚र्द॒त्तस्य॒वेद॑ति | वसु॑स्पा॒र्हंतदाभ॑र || {6.3.49.7}, {8.45.42}, {8.6.3.42} |
[35] (१-३३) त्रयस्त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य आश्व्यो वश ऋषिः | (१-१०, २९-३१, ३३) प्रथमादिविंशत्र्यचामेकोनत्रिंश्यादितृचस्य त्रयस्त्रिंश्याश्चेन्द्रः, (२१-२४) एकविंश्यादिचतसृणां कानीतस्य पृथश्रु वसो दानस्तुतिः, (२५-२८, ३२) पञ्चविंश्यादिचतसृणां द्वात्रिंश्याश्च वायुदर्वेताः | (१) प्रथमर्चः पादनिच्रत् (२४, ६, १०, २३, २९, ३३) द्वितीयादितृचस्य षष्ठीदशमीत्रयोविंश्येकोनविंशीत्रयस्त्रिंशीनाञ्च गायत्री, (५) पञ्चम्याः ककप, (७, १९) सप्तम्येकोनविंश्योबृह ती, (८) अष्टम्या अनुष्टुप् (९) नवम्याः सतोबृहती, (११-१२) एकादशीद्वादश्योर्विपरीतोत्तरः प्रगाथः (एकादश्या बृहती, द्वाडश्या विपरीता सतोबृहती), (१३) त्रयोदश्या द्विपदा जगती, (१४) चतुदर्श या पिपीलिकमध्या बृहती, (१५) पञ्चदश्याः ककुम्नयाशिरा, (१६) षोडश्या विराट्, (१७) सप्तदश्या जगती, (१८) अष्टादश्या उपरिष्टाद्ब्रहती, (२०) विंश्या विषमपदा बृहती, (२१-२२, २४, ३२) एकविंशीद्वाविंशीचतुर्विशीद्वात्रिंशीनां पङ्क्ति (२५-२८) पञ्चविंश्यादिचतसृणां प्रगाथः ((२५, २७) पञ्चविंशीसप्तविंश्योबृहं ती, (२६, २८) षड़िवशं यष्टाविंश्योः सतोबृहती), (३०) त्रिंश्या द्विपदा विराट्, (३१) एकत्रिंश्याश्चोष्णिक् छन्दांसि || | |
669 | त्वाव॑तःपुरूवसोव॒यमि᳚न्द्रप्रणेतः | स्मसि॑स्थातर्हरीणाम् || {6.4.1.1}, {8.46.1}, {8.6.4.1} |
670 | त्वांहिस॒त्यम॑द्रिवोवि॒द्मदा॒तार॑मि॒षाम् | वि॒द्मदा॒तारं᳚रयी॒णाम् || {6.4.1.2}, {8.46.2}, {8.6.4.2} |
671 | आयस्य॑तेमहि॒मानं॒शत॑मूते॒शत॑क्रतो | गी॒र्भिर्गृ॒णन्ति॑का॒रवः॑ || {6.4.1.3}, {8.46.3}, {8.6.4.3} |
672 | सु॒नी॒थोघा॒समर्त्यो॒यंम॒रुतो॒यम᳚र्य॒मा | मि॒त्रःपान्त्य॒द्रुहः॑ || {6.4.1.4}, {8.46.4}, {8.6.4.4} |
673 | दधा᳚नो॒गोम॒दश्व॑वत्सु॒वीर्य॑मादि॒त्यजू᳚तऽएधते | सदा᳚रा॒यापु॑रु॒स्पृहा᳚ || {6.4.1.5}, {8.46.5}, {8.6.4.5} |
674 | तमिन्द्रं॒दान॑मीमहेशवसा॒नमभी᳚र्वम् | ईशा᳚नंरा॒यऽई᳚महे || {6.4.2.1}, {8.46.6}, {8.6.4.6} |
675 | तस्मि॒न्हिसन्त्यू॒तयो॒विश्वा॒ऽअभी᳚रवः॒सचा᳚ | तमाव॑हन्तु॒सप्त॑यःपुरू॒वसुं॒मदा᳚य॒हर॑यःसु॒तम् || {6.4.2.2}, {8.46.7}, {8.6.4.7} |
676 | यस्ते॒मदो॒वरे᳚ण्यो॒यऽइ᳚न्द्रवृत्र॒हन्त॑मः | यऽआ᳚द॒दिःस्व१॑(अ॒)'र्नृभि॒र्यःपृत॑नासुदु॒ष्टरः॑ || {6.4.2.3}, {8.46.8}, {8.6.4.8} |
677 | योदु॒ष्टरो᳚विश्ववारश्र॒वाय्यो॒वाजे॒ष्वस्ति॑तरु॒ता | सनः॑शविष्ठ॒सव॒नाव॑सोगहिग॒मेम॒गोम॑तिव्र॒जे || {6.4.2.4}, {8.46.9}, {8.6.4.9} |
678 | ग॒व्योषुणो॒यथा᳚पु॒राश्व॒योतर॑थ॒या | व॒रि॒व॒स्यम॑हामह || {6.4.2.5}, {8.46.10}, {8.6.4.10} |
679 | न॒हिते᳚शूर॒राध॒सोऽन्तं᳚वि॒न्दामि॑स॒त्रा | द॒श॒स्यानो᳚मघव॒न्नूचि॑दद्रिवो॒धियो॒वाजे᳚भिराविथ || {6.4.3.1}, {8.46.11}, {8.6.4.11} |
680 | यऋ॒ष्वःश्रा᳚व॒यत्स॑खा॒विश्वेत्सवे᳚द॒जनि॑मापुरुष्टु॒तः | तंविश्वे॒मानु॑षायु॒गेन्द्रं᳚हवन्तेतवि॒षंय॒तस्रु॑चः || {6.4.3.2}, {8.46.12}, {8.6.4.12} |
681 | सनो॒वाजे᳚ष्ववि॒तापु॑रू॒वसुः॑पुरःस्था॒ताम॒घवा᳚वृत्र॒हाभु॑वत् || {6.4.3.3}, {8.46.13}, {8.6.4.13} |
682 | अ॒भिवो᳚वी॒रमन्ध॑सो॒मदे᳚षुगायगि॒राम॒हाविचे᳚तसम् | इन्द्रं॒नाम॒श्रुत्यं᳚शा॒किनं॒वचो॒यथा᳚ || {6.4.3.4}, {8.46.14}, {8.6.4.14} |
683 | द॒दीरेक्ण॑स्त॒न्वे᳚द॒दिर्वसु॑द॒दिर्वाजे᳚षुपुरुहूतवा॒जिन᳚म् | नू॒नमथ॑ || {6.4.3.5}, {8.46.15}, {8.6.4.15} |
684 | विश्वे᳚षामिर॒ज्यन्तं॒वसू᳚नांसास॒ह्वांसं᳚चिद॒स्यवर्प॑सः | कृ॒प॒य॒तोनू॒नमत्यथ॑ || {6.4.4.1}, {8.46.16}, {8.6.4.16} |
685 | म॒हःसुवो॒ऽअर॑मिषे॒स्तवा᳚महेमी॒ळ्हुषे᳚ऽअरंग॒माय॒जग्म॑ये | य॒ज्ञेभि॑र्गी॒र्भिर्वि॒श्वम॑नुषांम॒रुता᳚मियक्षसि॒गाये᳚त्वा॒नम॑सागि॒रा || {6.4.4.2}, {8.46.17}, {8.6.4.17} |
686 | येपा॒तय᳚न्ते॒ऽअज्म॑भिर्गिरी॒णांस्नुभि॑रेषाम् | य॒ज्ञंम॑हि॒ष्वणी᳚नांसु॒म्नंतु॑वि॒ष्वणी᳚नां॒प्राध्व॒रे || {6.4.4.3}, {8.46.18}, {8.6.4.18} |
687 | प्र॒भ॒ङ्गंदु᳚र्मती॒नामिन्द्र॑शवि॒ष्ठाभ॑र | र॒यिम॒स्मभ्यं॒युज्यं᳚चोदयन्मते॒ज्येष्ठं᳚चोदयन्मते || {6.4.4.4}, {8.46.19}, {8.6.4.19} |
688 | सनि॑तः॒सुस॑नित॒रुग्र॒चित्र॒चेति॑ष्ठ॒सूनृ॑त | प्रा॒सहा᳚सम्रा॒ट्सहु॑रिं॒सह᳚न्तंभु॒ज्युंवाजे᳚षु॒पूर्व्य᳚म् || {6.4.4.5}, {8.46.20}, {8.6.4.20} |
689 | आसऽए᳚तु॒यऽईव॒दाँऽअदे᳚वःपू॒र्तमा᳚द॒दे | यथा᳚चि॒द्वशो᳚ऽअ॒श्व्यःपृ॑थु॒श्रव॑सिकानी॒ते॒३॑(ए॒)ऽस्याव्युष्या᳚द॒दे || {6.4.5.1}, {8.46.21}, {8.6.4.21} |
690 | ष॒ष्टिंस॒हस्राश्व्य॑स्या॒युता᳚सन॒मुष्ट्रा᳚नांविंश॒तिंश॒ता | दश॒श्यावी᳚नांश॒तादश॒त्र्य॑रुषीणां॒दश॒गवां᳚स॒हस्रा᳚ || {6.4.5.2}, {8.46.22}, {8.6.4.22} |
691 | दश॑श्या॒वाऋ॒धद्र॑योवी॒तवा᳚रासऽआ॒शवः॑ | म॒थ्राने॒मिंनिवा᳚वृतुः || {6.4.5.3}, {8.46.23}, {8.6.4.23} |
692 | दाना᳚सःपृथु॒श्रव॑सःकानी॒तस्य॑सु॒राध॑सः | रथं᳚हिर॒ण्ययं॒दद॒न्मंहि॑ष्ठःसू॒रिर॑भू॒द्वर्षि॑ष्ठमकृत॒श्रवः॑ || {6.4.5.4}, {8.46.24}, {8.6.4.24} |
693 | आनो᳚वायोम॒हेतने᳚या॒हिम॒खाय॒पाज॑से | व॒यंहिते᳚चकृ॒माभूरि॑दा॒वने᳚स॒द्यश्चि॒न्महि॑दा॒वने᳚ || {6.4.5.5}, {8.46.25}, {8.6.4.25} |
694 | योऽअश्वे᳚भि॒र्वह॑ते॒वस्त॑ऽउ॒स्रास्त्रिःस॒प्तस॑प्तती॒नाम् | ए॒भिःसोमे᳚भिःसोम॒सुद्भिः॑सोमपादा॒नाय॑शुक्रपूतपाः || {6.4.6.1}, {8.46.26}, {8.6.4.26} |
695 | योम॑ऽइ॒मंचि॑दु॒त्मनाम᳚न्दच्चि॒त्रंदा॒वने᳚ | अ॒र॒ट्वेऽअक्षे॒नहु॑षेसु॒कृत्व॑निसु॒कृत्त॑रायसु॒क्रतुः॑ || {6.4.6.2}, {8.46.27}, {8.6.4.27} |
696 | उ॒च॒थ्ये॒३॑(ए॒)वपु॑षि॒यःस्व॒राळु॒तवा᳚योघृत॒स्नाः | अश्वे᳚षितं॒रजे᳚षितं॒शुने᳚षितं॒प्राज्म॒तदि॒दंनुतत् || {6.4.6.3}, {8.46.28}, {8.6.4.28} |
697 | अध॑प्रि॒यमि॑षि॒राय॑ष॒ष्टिंस॒हस्रा᳚सनम् | अश्वा᳚ना॒मिन्नवृष्णा᳚म् || {6.4.6.4}, {8.46.29}, {8.6.4.29} |
698 | गावो॒नयू॒थमुप॑यन्ति॒वध्र॑य॒ऽउप॒माय᳚न्ति॒वध्र॑यः || {6.4.6.5}, {8.46.30}, {8.6.4.30} |
699 | अध॒यच्चार॑थेग॒णेश॒तमुष्ट्राँ॒ऽअचि॑क्रदत् | अध॒श्वित्ने᳚षुविंश॒तिंश॒ता || {6.4.6.6}, {8.46.31}, {8.6.4.31} |
700 | श॒तंदा॒सेब॑ल्बू॒थेविप्र॒स्तरु॑क्ष॒ऽआद॑दे | तेते᳚वायवि॒मेजना॒मद॒न्तीन्द्र॑गोपा॒मद᳚न्तिदे॒वगो᳚पाः || {6.4.6.7}, {8.46.32}, {8.6.4.32} |
701 | अध॒स्यायोष॑णाम॒हीप्र॑ती॒चीवश॑म॒श्व्यम् | अधि॑रुक्मा॒विनी᳚यते || {6.4.6.8}, {8.46.33}, {8.6.4.33} |
[36] (१-१८) अष्टादशर्चस्य सूक्तस्याप्त्यस्त्रित ऋषिः | (१-१३) प्रथमादित्रयोदशर्चामादित्याः, (१४-१८) चतुदर्श यादिपञ्चानाञ्चादित्योषसो देवताः | महापतिश्छन्दः || | |
702 | महि॑वोमह॒तामवो॒वरु॑ण॒मित्र॑दा॒शुषे᳚ | यमा᳚दित्याऽअ॒भिद्रु॒होरक्ष॑था॒नेम॒घंन॑शदने॒हसो᳚वऽऊ॒तयः॑सुऊ॒तयो᳚वऽऊ॒तयः॑ || {6.4.7.1}, {8.47.1}, {8.6.5.1} |
703 | वि॒दादे᳚वाऽअ॒घाना॒मादि॑त्यासोऽअ॒पाकृ॑तिम् | प॒क्षावयो॒यथो॒परि॒व्य१॑(अ॒)स्मेशर्म॑यच्छताने॒हसो᳚वऽऊ॒तयः॑सुऊ॒तयो᳚वऽऊ॒तयः॑ || {6.4.7.2}, {8.47.2}, {8.6.5.2} |
704 | व्य१॑(अ॒)स्मेऽअधि॒शर्म॒तत्प॒क्षावयो॒नय᳚न्तन | विश्वा᳚निविश्ववेदसोवरू॒थ्या᳚मनामहेऽने॒हसो᳚वऽऊ॒तयः॑सुऊ॒तयो᳚वऽऊ॒तयः॑ || {6.4.7.3}, {8.47.3}, {8.6.5.3} |
705 | यस्मा॒ऽअरा᳚सत॒क्षयं᳚जी॒वातुं᳚च॒प्रचे᳚तसः | मनो॒र्विश्व॑स्य॒घेदि॒मऽआ᳚दि॒त्यारा॒यऽई᳚शतेऽने॒हसो᳚वऽऊ॒तयः॑सुऊ॒तयो᳚वऽऊ॒तयः॑ || {6.4.7.4}, {8.47.4}, {8.6.5.4} |
706 | परि॑णोवृणजन्न॒घादु॒र्गाणि॑र॒थ्यो᳚यथा | स्यामेदिन्द्र॑स्य॒शर्म᳚ण्यादि॒त्याना᳚मु॒ताव॑स्यने॒हसो᳚वऽऊ॒तयः॑सुऊ॒तयो᳚वऽऊ॒तयः॑ || {6.4.7.5}, {8.47.5}, {8.6.5.5} |
707 | प॒रि॒ह्वृ॒तेद॒नाजनो᳚यु॒ष्माद॑त्तस्यवायति | देवा॒ऽअद॑भ्रमाशवो॒यमा᳚दित्या॒ऽअहे᳚तनाने॒हसो᳚वऽऊ॒तयः॑सुऊ॒तयो᳚वऽऊ॒तयः॑ || {6.4.8.1}, {8.47.6}, {8.6.5.6} |
708 | नतंति॒ग्मंच॒नत्यजो॒नद्रा᳚सद॒भितंगु॒रु | यस्मा᳚ऽउ॒शर्म॑स॒प्रथ॒ऽआदि॑त्यासो॒ऽअरा᳚ध्वमने॒हसो᳚वऽऊ॒तयः॑सुऊ॒तयो᳚वऽऊ॒तयः॑ || {6.4.8.2}, {8.47.7}, {8.6.5.7} |
709 | यु॒ष्मेदे᳚वा॒ऽअपि॑ष्मसि॒युध्य᳚न्तऽइव॒वर्म॑सु | यू॒यंम॒होन॒ऽएन॑सोयू॒यमर्भा᳚दुरुष्यताने॒हसो᳚वऽऊ॒तयः॑सुऊ॒तयो᳚वऽऊ॒तयः॑ || {6.4.8.3}, {8.47.8}, {8.6.5.8} |
710 | अदि॑तिर्नऽउरुष्य॒त्वदि॑तिः॒शर्म॑यच्छतु | मा॒तामि॒त्रस्य॑रे॒वतो᳚ऽर्य॒म्णोवरु॑णस्यचाने॒हसो᳚वऽऊ॒तयः॑सुऊ॒तयो᳚वऽऊ॒तयः॑ || {6.4.8.4}, {8.47.9}, {8.6.5.9} |
711 | यद्दे᳚वाः॒शर्म॑शर॒णंयद्भ॒द्रंयद॑नातु॒रम् | त्रि॒धातु॒यद्व॑रू॒थ्य१॑(अ॒)अंतद॒स्मासु॒विय᳚न्तनाने॒हसो᳚वऽऊ॒तयः॑सुऊ॒तयो᳚वऽऊ॒तयः॑ || {6.4.8.5}, {8.47.10}, {8.6.5.10} |
712 | आदि॑त्या॒ऽअव॒हिख्यताधि॒कूला᳚दिव॒स्पशः॑ | सु॒ती॒र्थमर्व॑तोय॒थानु॑नोनेषथासु॒गम॑ने॒हसो᳚वऽऊ॒तयः॑सुऊ॒तयो᳚वऽऊ॒तयः॑ || {6.4.9.1}, {8.47.11}, {8.6.5.11} |
713 | नेहभ॒द्रंर॑क्ष॒स्विने॒नाव॒यैनोप॒याऽउ॒त | गवे᳚चभ॒द्रंधे॒नवे᳚वी॒राय॑चश्रवस्य॒ते᳚ऽने॒हसो᳚वऽऊ॒तयः॑सुऊ॒तयो᳚वऽऊ॒तयः॑ || {6.4.9.2}, {8.47.12}, {8.6.5.12} |
714 | यदा॒विर्यद॑पी॒च्य१॑(अ॒)अंदेवा᳚सो॒ऽअस्ति॑दुष्कृ॒तम् | त्रि॒तेतद्विश्व॑मा॒प्त्यऽआ॒रेऽअ॒स्मद्द॑धातनाने॒हसो᳚वऽऊ॒तयः॑सुऊ॒तयो᳚वऽऊ॒तयः॑ || {6.4.9.3}, {8.47.13}, {8.6.5.13} |
715 | यच्च॒गोषु॑दु॒ष्ष्वप्न्यं॒यच्चा॒स्मेदु॑हितर्दिवः | त्रि॒ताय॒तद्वि॑भावर्या॒प्त्याय॒परा᳚वहाने॒हसो᳚वऽऊ॒तयः॑सुऊ॒तयो᳚वऽऊ॒तयः॑ || {6.4.9.4}, {8.47.14}, {8.6.5.14} |
716 | नि॒ष्कंवा᳚घाकृ॒णव॑ते॒स्रजं᳚वादुहितर्दिवः | त्रि॒तेदु॒ष्ष्वप्न्यं॒सर्व॑मा॒प्त्येपरि॑दद्मस्यने॒हसो᳚वऽऊ॒तयः॑सुऊ॒तयो᳚वऽऊ॒तयः॑ || {6.4.9.5}, {8.47.15}, {8.6.5.15} |
717 | तद᳚न्नाय॒तद॑पसे॒तंभा॒गमु॑पसे॒दुषे᳚ | त्रि॒ताय॑चद्वि॒ताय॒चोषो᳚दु॒ष्ष्वप्न्यं᳚वहाने॒हसो᳚वऽऊ॒तयः॑सुऊ॒तयो᳚वऽऊ॒तयः॑ || {6.4.10.1}, {8.47.16}, {8.6.5.16} |
718 | यथा᳚क॒लांयथा᳚श॒फंयथ॑ऋ॒णंसं॒नया᳚मसि | ए॒वादु॒ष्ष्वप्न्यं॒सर्व॑मा॒प्त्येसंन॑यामस्यने॒हसो᳚वऽऊ॒तयः॑सुऊ॒तयो᳚वऽऊ॒तयः॑ || {6.4.10.2}, {8.47.17}, {8.6.5.17} |
719 | अजै᳚ष्मा॒द्यास॑नाम॒चाभू॒माना᳚गसोव॒यम् | उषो॒यस्मा᳚द्दु॒ष्ष्वप्न्या॒दभै॒ष्माप॒तदु॑च्छत्वने॒हसो᳚वऽऊ॒तयः॑सुऊ॒तयो᳚वऽऊ॒तयः॑ || {6.4.10.3}, {8.47.18}, {8.6.5.18} |
[37] (१-१५) पञ्चदशर्चस्य सूक्तस्य घौरः काण्वः प्रगाथ ऋषिः | सोमो देवता | (१-४, ६-१५) प्रथमादिचतुऋर्च इषष्ठ्यादिदशानाञ्च त्रिष्टुप, (५) पञ्चम्याश्च जगती छन्दसी || | |
720 | स्वा॒दोर॑भक्षि॒वय॑सःसुमे॒धाःस्वा॒ध्यो᳚वरिवो॒वित्त॑रस्य | विश्वे॒यंदे॒वाऽउ॒तमर्त्या᳚सो॒मधु॑ब्रु॒वन्तो᳚ऽअ॒भिसं॒चर᳚न्ति || {6.4.11.1}, {8.48.1}, {8.6.6.1} |
721 | अ॒न्तश्च॒प्रागा॒ऽअदि॑तिर्भवास्यवया॒ताहर॑सो॒दैव्य॑स्य | इन्द॒विन्द्र॑स्यस॒ख्यंजु॑षा॒णःश्रौष्टी᳚व॒धुर॒मनु॑रा॒यऋ॑ध्याः || {6.4.11.2}, {8.48.2}, {8.6.6.2} |
722 | अपा᳚म॒सोम॑म॒मृता᳚ऽअभू॒माग᳚न्म॒ज्योति॒रवि॑दामदे॒वान् | किंनू॒नम॒स्मान्कृ॑णव॒दरा᳚तिः॒किमु॑धू॒र्तिर॑मृत॒मर्त्य॑स्य || {6.4.11.3}, {8.48.3}, {8.6.6.3} |
723 | शंनो᳚भवहृ॒दऽआपी॒तऽइ᳚न्दोपि॒तेव॑सोमसू॒नवे᳚सु॒शेवः॑ | सखे᳚व॒सख्य॑ऽउरुशंस॒धीरः॒प्रण॒ऽआयु॑र्जी॒वसे᳚सोमतारीः || {6.4.11.4}, {8.48.4}, {8.6.6.4} |
724 | इ॒मेमा᳚पी॒ताय॒शस॑ऽउरु॒ष्यवो॒रथं॒नगावः॒सम॑नाह॒पर्व॑सु | तेमा᳚रक्षन्तुवि॒स्रस॑श्च॒रित्रा᳚दु॒तमा॒स्रामा᳚द्यवय॒न्त्विन्द॑वः || {6.4.11.5}, {8.48.5}, {8.6.6.5} |
725 | अ॒ग्निंनमा᳚मथि॒तंसंदि॑दीपः॒प्रच॑क्षयकृणु॒हिवस्य॑सोनः | अथा॒हिते॒मद॒ऽआसो᳚म॒मन्ये᳚रे॒वाँऽइ॑व॒प्रच॑रापु॒ष्टिमच्छ॑ || {6.4.12.1}, {8.48.6}, {8.6.6.6} |
726 | इ॒षि॒रेण॑ते॒मन॑सासु॒तस्य॑भक्षी॒महि॒पित्र्य॑स्येवरा॒यः | सोम॑राज॒न्प्रण॒ऽआयूं᳚षितारी॒रहा᳚नीव॒सूर्यो᳚वास॒राणि॑ || {6.4.12.2}, {8.48.7}, {8.6.6.7} |
727 | सोम॑राजन्मृ॒ळया᳚नःस्व॒स्तितव॑स्मसिव्र॒त्या॒३॑(आ॒)स्तस्य॑विद्धि | अल॑र्ति॒दक्ष॑ऽउ॒तम॒न्युरि᳚न्दो॒मानो᳚ऽअ॒र्योऽअ॑नुका॒मंपरा᳚दाः || {6.4.12.3}, {8.48.8}, {8.6.6.8} |
728 | त्वंहिन॑स्त॒न्वः॑सोमगो॒पागात्रे᳚गात्रेनिष॒सत्था᳚नृ॒चक्षाः᳚ | यत्ते᳚व॒यंप्र॑मि॒नाम᳚व्र॒तानि॒सनो᳚मृळसुष॒खादे᳚व॒वस्यः॑ || {6.4.12.4}, {8.48.9}, {8.6.6.9} |
729 | ऋ॒दू॒दरे᳚ण॒सख्या᳚सचेय॒योमा॒नरिष्ये᳚द्धर्यश्वपी॒तः | अ॒यंयःसोमो॒न्यधा᳚य्य॒स्मेतस्मा॒ऽइन्द्रं᳚प्र॒तिर॑मे॒म्यायुः॑ || {6.4.12.5}, {8.48.10}, {8.6.6.10} |
730 | अप॒त्याऽअ॑स्थु॒रनि॑रा॒ऽअमी᳚वा॒निर॑त्रस॒न्तमि॑षीची॒रभै᳚षुः | आसोमो᳚ऽअ॒स्माँऽअ॑रुह॒द्विहा᳚या॒ऽअग᳚न्म॒यत्र॑प्रति॒रन्त॒ऽआयुः॑ || {6.4.13.1}, {8.48.11}, {8.6.6.11} |
731 | योन॒ऽइन्दुः॑पितरोहृ॒त्सुपी॒तोऽम॑र्त्यो॒मर्त्याँ᳚ऽआवि॒वेश॑ | तस्मै॒सोमा᳚यह॒विषा᳚विधेममृळी॒केऽअ॑स्यसुम॒तौस्या᳚म || {6.4.13.2}, {8.48.12}, {8.6.6.12} |
732 | त्वंसो᳚मपि॒तृभिः॑संविदा॒नोऽनु॒द्यावा᳚पृथि॒वीऽआत॑तन्थ | तस्मै᳚तऽइन्दोह॒विषा᳚विधेमव॒यंस्या᳚म॒पत॑योरयी॒णाम् || {6.4.13.3}, {8.48.13}, {8.6.6.13} |
733 | त्राता᳚रोदेवा॒ऽअधि॑वोचतानो॒मानो᳚नि॒द्राऽई᳚शत॒मोतजल्पिः॑ | व॒यंसोम॑स्यवि॒श्वह॑प्रि॒यासः॑सु॒वीरा᳚सोवि॒दथ॒माव॑देम || {6.4.13.4}, {8.48.14}, {8.6.6.14} |
734 | त्वंनः॑सोमवि॒श्वतो᳚वयो॒धास्त्वंस्व॒र्विदावि॑शानृ॒चक्षाः᳚ | त्वंन॑ऽइन्दऽऊ॒तिभिः॑स॒जोषाः᳚पा॒हिप॒श्चाता᳚दु॒तवा᳚पु॒रस्ता᳚त् || {6.4.13.5}, {8.48.15}, {8.6.6.15} |
[38] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य काण्वः प्रस्कण्व ऋषिः | इन्द्रो देवता | प्रगाथः (विषमर्चाम् बृहती, समर्चाम् सतोबृहती) छन्दः || | |
735 | अ॒भिप्रवः॑सु॒राध॑स॒मिन्द्र॑मर्च॒यथा᳚वि॒दे | योज॑रि॒तृभ्यो᳚म॒घवा᳚पुरू॒वसुः॑स॒हस्रे᳚णेव॒शिक्ष॑ति || {6.4.14.1}, {8.49.1}, {8.6.7.1} |
736 | श॒तानी᳚केव॒प्रजि॑गातिधृष्णु॒याहन्ति॑वृ॒त्राणि॑दा॒शुषे᳚ | गि॒रेरि॑व॒प्ररसा᳚ऽअस्यपिन्विरे॒दत्रा᳚णिपुरु॒भोज॑सः || {6.4.14.2}, {8.49.2}, {8.6.7.2} |
737 | आत्वा᳚सु॒तास॒ऽइन्द॑वो॒मदा॒यऽइ᳚न्द्रगिर्वणः | आपो॒नव॑ज्रि॒न्नन्वो॒क्य१॑(अ॒)अंसरः॑पृ॒णन्ति॑शूर॒राध॑से || {6.4.14.3}, {8.49.3}, {8.6.7.3} |
738 | अ॒ने॒हसं᳚प्र॒तर॑णंवि॒वक्ष॑णं॒मध्वः॒स्वादि॑ष्ठमींपिब | आयथा᳚मन्दसा॒नःकि॒रासि॑नः॒प्रक्षु॒द्रेव॒त्मना᳚धृ॒षत् || {6.4.14.4}, {8.49.4}, {8.6.7.4} |
739 | आनः॒स्तोम॒मुप॑द्र॒वद्धि॑या॒नोऽअश्वो॒नसोतृ॑भिः | यंते᳚स्वधावन्त्स्व॒दय᳚न्तिधे॒नव॒ऽइन्द्र॒कण्वे᳚षुरा॒तयः॑ || {6.4.14.5}, {8.49.5}, {8.6.7.5} |
740 | उ॒ग्रंनवी॒रंनम॒सोप॑सेदिम॒विभू᳚ति॒मक्षि॑तावसुम् | उ॒द्रीव॑वज्रिन्नव॒तोनसि᳚ञ्च॒तेक्षर᳚न्तीन्द्रधी॒तयः॑ || {6.4.15.1}, {8.49.6}, {8.6.7.6} |
741 | यद्ध॑नू॒नंयद्वा᳚य॒ज्ञेयद्वा᳚पृथि॒व्यामधि॑ | अतो᳚नोय॒ज्ञमा॒शुभि᳚र्महेमतऽउ॒ग्रऽउ॒ग्रेभि॒राग॑हि || {6.4.15.2}, {8.49.7}, {8.6.7.7} |
742 | अ॒जि॒रासो॒हर॑यो॒येत॑ऽआ॒शवो॒वाता᳚ऽइवप्रस॒क्षिणः॑ | येभि॒रप॑त्यं॒मनु॑षःप॒रीय॑से॒येभि॒र्विश्वं॒स्व॑र्दृ॒शे || {6.4.15.3}, {8.49.8}, {8.6.7.8} |
743 | ए॒ताव॑तस्तऽईमह॒ऽइन्द्र॑सु॒म्नस्य॒गोम॑तः | यथा॒प्रावो᳚मघव॒न्मेध्या᳚तिथिं॒यथा॒नीपा᳚तिथिं॒धने᳚ || {6.4.15.4}, {8.49.9}, {8.6.7.9} |
744 | यथा॒कण्वे᳚मघवन्त्र॒सद॑स्यवि॒यथा᳚प॒क्थेदश᳚व्रजे | यथा॒गोश᳚र्ये॒ऽअस॑नोर्ऋ॒जिश्व॒नीन्द्र॒गोम॒द्धिर᳚ण्यवत् || {6.4.15.5}, {8.49.10}, {8.6.7.10} |
[39] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य काण्वः पुष्टिगु ऋषिः | इन्द्रो देवता | प्रगाथः (विषमर्चाम् बृहती, समर्चाम् सतोबृहती) छन्दः || | |
745 | प्रसुश्रु॒तंसु॒राध॑स॒मर्चा᳚श॒क्रम॒भिष्ट॑ये | यःसु᳚न्व॒तेस्तु॑व॒तेकाम्यं॒वसु॑स॒हस्रे᳚णेव॒मंह॑ते || {6.4.16.1}, {8.50.1}, {8.6.8.1} |
746 | श॒तानी᳚काहे॒तयो᳚ऽअस्यदु॒ष्टरा॒ऽइन्द्र॑स्यस॒मिषो᳚म॒हीः | गि॒रिर्नभु॒ज्माम॒घव॑त्सुपिन्वते॒यदीं᳚सु॒ताऽअम᳚न्दिषुः || {6.4.16.2}, {8.50.2}, {8.6.8.2} |
747 | यदीं᳚सु॒तास॒ऽइन्द॑वो॒ऽभिप्रि॒यमम᳚न्दिषुः | आपो॒नधा᳚यि॒सव॑नंम॒ऽआव॑सो॒दुघा᳚ऽइ॒वोप॑दा॒शुषे᳚ || {6.4.16.3}, {8.50.3}, {8.6.8.3} |
748 | अ॒ने॒हसं᳚वो॒हव॑मानमू॒तये॒मध्वः॑क्षरन्तिधी॒तयः॑ | आत्वा᳚वसो॒हव॑मानास॒ऽइन्द॑व॒ऽउप॑स्तो॒त्रेषु॑दधिरे || {6.4.16.4}, {8.50.4}, {8.6.8.4} |
749 | आनः॒सोमे᳚स्वध्व॒रऽइ॑या॒नोऽअत्यो॒नतो᳚शते | यंते᳚स्वदाव॒न्त्स्वद᳚न्तिगू॒र्तयः॑पौ॒रेछ᳚न्दयसे॒हव᳚म् || {6.4.16.5}, {8.50.5}, {8.6.8.5} |
750 | प्रवी॒रमु॒ग्रंविवि॑चिंधन॒स्पृतं॒विभू᳚तिं॒राध॑सोम॒हः | उ॒द्रीव॑वज्रिन्नव॒तोव॑सुत्व॒नासदा᳚पीपेथदा॒शुषे᳚ || {6.4.17.1}, {8.50.6}, {8.6.8.6} |
751 | यद्ध॑नू॒नंप॑रा॒वति॒यद्वा᳚पृथि॒व्यांदि॒वि | यु॒जा॒नऽइ᳚न्द्र॒हरि॑भिर्महेमतऋ॒ष्वऋ॒ष्वेभि॒राग॑हि || {6.4.17.2}, {8.50.7}, {8.6.8.7} |
752 | र॒थि॒रासो॒हर॑यो॒येते᳚ऽअ॒स्रिध॒ऽओजो॒वात॑स्य॒पिप्र॑ति | येभि॒र्निदस्युं॒मनु॑षोनि॒घोष॑यो॒येभिः॒स्वः॑प॒रीय॑से || {6.4.17.3}, {8.50.8}, {8.6.8.8} |
753 | ए॒ताव॑तस्तेवसोवि॒द्याम॑शूर॒नव्य॑सः | यथा॒प्राव॒ऽएत॑शं॒कृत्व्ये॒धने॒यथा॒वशं॒दश᳚व्रजे || {6.4.17.4}, {8.50.9}, {8.6.8.9} |
754 | यथा॒कण्वे᳚मघव॒न्मेधे᳚ऽअध्व॒रेदी॒र्घनी᳚थे॒दमू᳚नसि | यथा॒गोश᳚र्ये॒ऽअसि॑षासोऽअद्रिवो॒मयि॑गो॒त्रंह॑रि॒श्रिय᳚म् || {6.4.17.5}, {8.50.10}, {8.6.8.10} |
[40] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य काण्वः श्रृष्टिग ऋषिः | इन्द्रो देवता | प्रगाथः (विषमर्चाम् बृहती, समर्चाम् सतोबृहती) छन्दः || | |
755 | यथा॒मनौ॒सांव॑रणौ॒सोम॑मि॒न्द्रापि॑बःसु॒तम् | नीपा᳚तिथौमघव॒न्मेध्या᳚तिथौ॒पुष्टि॑गौ॒श्रुष्टि॑गौ॒सचा᳚ || {6.4.18.1}, {8.51.1}, {8.6.9.1} |
756 | पा॒र्ष॒द्वा॒णःप्रस्क᳚ण्वं॒सम॑सादय॒च्छया᳚नं॒जिव्रि॒मुद्धि॑तम् | स॒हस्रा᳚ण्यसिषास॒द्गवा॒मृषि॒स्त्वोतो॒दस्य॑वे॒वृकः॑ || {6.4.18.2}, {8.51.2}, {8.6.9.2} |
757 | यऽउ॒क्थेभि॒र्नवि॒न्धते᳚चि॒किद्यऋ॑षि॒चोद॑नः | इन्द्रं॒तमच्छा᳚वद॒नव्य॑स्याम॒त्यरि॑ष्यन्तं॒नभोज॑से || {6.4.18.3}, {8.51.3}, {8.6.9.3} |
758 | यस्मा᳚ऽअ॒र्कंस॒प्तशी᳚र्षाणमानृ॒चुस्त्रि॒धातु॑मुत्त॒मेप॒दे | सत्वि१॑(इ॒)माविश्वा॒भुव॑नानिचिक्रद॒दादिज्ज॑निष्ट॒पौंस्य᳚म् || {6.4.18.4}, {8.51.4}, {8.6.9.4} |
759 | योनो᳚दा॒तावसू᳚ना॒मिन्द्रं॒तंहू᳚महेव॒यम् | वि॒द्माह्य॑स्यसुम॒तिंनवी᳚यसींग॒मेम॒गोम॑तिव्र॒जे || {6.4.18.5}, {8.51.5}, {8.6.9.5} |
760 | यस्मै॒त्वंव॑सोदा॒नाय॒शिक्ष॑सि॒सरा॒यस्पोष॑मश्नुते | तंत्वा᳚व॒यंम॑घवन्निन्द्रगिर्वणःसु॒ताव᳚न्तोहवामहे || {6.4.19.1}, {8.51.6}, {8.6.9.6} |
761 | क॒दाच॒नस्त॒रीर॑सि॒नेन्द्र॑सश्चसिदा॒शुषे᳚ | उपो॒पेन्नुम॑घव॒न्भूय॒ऽइन्नुते॒दानं᳚दे॒वस्य॑पृच्यते || {6.4.19.2}, {8.51.7}, {8.6.9.7} |
762 | प्रयोन॑न॒क्षेऽअ॒भ्योज॑सा॒क्रिविं᳚व॒धैःशुष्णं᳚निघो॒षय॑न् | य॒देदस्त᳚म्भीत्प्र॒थय᳚न्न॒मूंदिव॒मादिज्ज॑निष्ट॒पार्थि॑वः || {6.4.19.3}, {8.51.8}, {8.6.9.8} |
763 | यस्या॒यंविश्व॒ऽआर्यो॒दासः॑शेवधि॒पाऽअ॒रिः | ति॒रश्चि॑द॒र्येरुश॑मे॒परी᳚रवि॒तुभ्येत्सोऽअ॑ज्यतेर॒यिः || {6.4.19.4}, {8.51.9}, {8.6.9.9} |
764 | तु॒र॒ण्यवो॒मधु॑मन्तंघृत॒श्चुतं॒विप्रा᳚सोऽअ॒र्कमा᳚नृचुः | अ॒स्मेर॒यिःप॑प्रथे॒वृष्ण्यं॒शवो॒ऽस्मेसु॑वा॒नास॒ऽइन्द॑वः || {6.4.19.5}, {8.51.10}, {8.6.9.10} |
[41] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य काण्व अआयु ऋषिः | इन्द्रो देवता | प्रगाथः (विषमर्चाम् बृहती, समर्चाम् सतोबृहती) छन्दः || | |
765 | यथा॒मनौ॒विव॑स्वति॒सोमं᳚श॒क्रापि॑बःसु॒तम् | यथा᳚त्रि॒तेछन्द॑ऽइन्द्र॒जुजो᳚षस्या॒यौमा᳚दयसे॒सचा᳚ || {6.4.20.1}, {8.52.1}, {8.6.10.1} |
766 | पृष॑ध्रे॒मेध्ये᳚मात॒रिश्व॒नीन्द्र॑सुवा॒नेऽअम᳚न्दथाः | यथा॒सोमं॒दश॑शिप्रे॒दशो᳚ण्ये॒स्यूम॑रश्मा॒वृजू᳚नसि || {6.4.20.2}, {8.52.2}, {8.6.10.2} |
767 | यऽउ॒क्थाकेव॑लाद॒धेयःसोमं᳚धृषि॒तापि॑बत् | यस्मै॒विष्णु॒स्त्रीणि॑प॒दावि॑चक्र॒मऽउप॑मि॒त्रस्य॒धर्म॑भिः || {6.4.20.3}, {8.52.3}, {8.6.10.3} |
768 | यस्य॒त्वमि᳚न्द्र॒स्तोमे᳚षुचा॒कनो॒वाजे᳚वाजिञ्छतक्रतो | तंत्वा᳚व॒यंसु॒दुघा᳚मिवगो॒दुहो᳚जुहू॒मसि॑श्रव॒स्यवः॑ || {6.4.20.4}, {8.52.4}, {8.6.10.4} |
769 | योनो᳚दा॒तासनः॑पि॒ताम॒हाँऽउ॒ग्रऽई᳚शान॒कृत् | अया᳚मन्नु॒ग्रोम॒घवा᳚पुरू॒वसु॒र्गोरश्व॑स्य॒प्रदा᳚तुनः || {6.4.20.5}, {8.52.5}, {8.6.10.5} |
770 | यस्मै॒त्वंव॑सोदा॒नाय॒मंह॑से॒सरा॒यस्पोष॑मिन्वति | व॒सू॒यवो॒वसु॑पतिंश॒तक्र॑तुं॒स्तोमै॒रिन्द्रं᳚हवामहे || {6.4.21.1}, {8.52.6}, {8.6.10.6} |
771 | क॒दाच॒नप्रयु॑च्छस्यु॒भेनिपा᳚सि॒जन्म॑नी | तुरी᳚यादित्य॒हव॑नंतऽइन्द्रि॒यमात॑स्थाव॒मृतं᳚दि॒वि || {6.4.21.2}, {8.52.7}, {8.6.10.7} |
772 | यस्मै॒त्वंम॑घवन्निन्द्रगिर्वणः॒शिक्षो॒शिक्ष॑सिदा॒शुषे᳚ | अ॒स्माकं॒गिर॑ऽउ॒तसु॑ष्टु॒तिंव॑सोकण्व॒वच्छृ॑णुधी॒हव᳚म् || {6.4.21.3}, {8.52.8}, {8.6.10.8} |
773 | अस्ता᳚वि॒मन्म॑पू॒र्व्यंब्रह्मेन्द्रा᳚यवोचत | पू॒र्वीर्ऋ॒तस्य॑बृह॒तीर॑नूषतस्तो॒तुर्मे॒धाऽअ॑सृक्षत || {6.4.21.4}, {8.52.9}, {8.6.10.9} |
774 | समिन्द्रो॒रायो᳚बृह॒तीर॑धूनुत॒संक्षो॒णीसमु॒सूर्य᳚म् | संशु॒क्रासः॒शुच॑यः॒संगवा᳚शिरः॒सोमा॒ऽइन्द्र॑ममन्दिषुः || {6.4.21.5}, {8.52.10}, {8.6.10.10} |
[42] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्य काण्वो मेध्य ऋषिः | इन्द्रो देवता | प्रगाथः (विषमर्चाम् बृहती, समर्चाम् सतोबृहती) छन्दः || | |
775 | उ॒प॒मंत्वा᳚म॒घोनां॒ज्येष्ठं᳚चवृष॒भाणा᳚म् | पू॒र्भित्त॑मंमघवन्निन्द्रगो॒विद॒मीशा᳚नंरा॒यऽई᳚महे || {6.4.22.1}, {8.53.1}, {8.6.11.1} |
776 | यऽआ॒युंकुत्स॑मतिथि॒ग्वमर्द॑योवावृधा॒नोदि॒वेदि॑वे | तंत्वा᳚व॒यंहर्य॑श्वंश॒तक्र॑तुंवाज॒यन्तो᳚हवामहे || {6.4.22.2}, {8.53.2}, {8.6.11.2} |
777 | आनो॒विश्वे᳚षां॒रसं॒मध्वः॑सिञ्च॒न्त्वद्र॑यः | येप॑रा॒वति॑सुन्वि॒रेजने॒ष्वायेऽअ᳚र्वा॒वतीन्द॑वः || {6.4.22.3}, {8.53.3}, {8.6.11.3} |
778 | विश्वा॒द्वेषां᳚सिज॒हिचाव॒चाकृ॑धि॒विश्वे᳚सन्व॒न्त्वावसु॑ | शीष्टे᳚षुचित्तेमदि॒रासो᳚ऽअं॒शवो॒यत्रा॒सोम॑स्यतृ॒म्पसि॑ || {6.4.22.4}, {8.53.4}, {8.6.11.4} |
779 | इन्द्र॒नेदी᳚य॒ऽएदि॑हिमि॒तमे᳚धाभिरू॒तिभिः॑ | आशं᳚तम॒शंत॑माभिर॒भिष्टि॑भि॒रास्वा᳚पेस्वा॒पिभिः॑ || {6.4.23.1}, {8.53.5}, {8.6.11.5} |
780 | आ॒जि॒तुरं॒सत्प॑तिंवि॒श्वच॑र्षणिंकृ॒धिप्र॒जास्वाभ॑गम् | प्रसूति॑रा॒शची᳚भि॒र्येत॑ऽउ॒क्थिनः॒क्रतुं᳚पुन॒तऽआ᳚नु॒षक् || {6.4.23.2}, {8.53.6}, {8.6.11.6} |
781 | यस्ते॒साधि॒ष्ठोऽव॑से॒तेस्या᳚म॒भरे᳚षुते | व॒यंहोत्रा᳚भिरु॒तदे॒वहू᳚तिभिःसस॒वांसो᳚मनामहे || {6.4.23.3}, {8.53.7}, {8.6.11.7} |
782 | अ॒हंहिते᳚हरिवो॒ब्रह्म॑वाज॒युरा॒जिंयामि॒सदो॒तिभिः॑ | त्वामिदे॒वतममे॒सम॑श्व॒युर्ग॒व्युरग्रे᳚मथी॒नाम् || {6.4.23.4}, {8.53.8}, {8.6.11.8} |
[43] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्य काण्वो मातरिश्वा ऋषिः | (१-२, ५-८) प्रथमाद्वितीययोर्ऋचोः पञ्चम्यादिचतसृणाञ्चेन्द्रः, (३-४) तृतीयाचतोश्च विश्वे देवा देवताः | प्रगाथः (विषमर्चाम् बृहती, समर्चाम् सतोबृहती) छन्दः || | |
783 | ए॒तत्त॑ऽइन्द्रवी॒र्यं᳚गी॒र्भिर्गृ॒णन्ति॑का॒रवः॑ | तेस्तोभ᳚न्त॒ऽऊर्ज॑मावन्घृत॒श्चुतं᳚पौ॒रासो᳚नक्षन्धी॒तिभिः॑ || {6.4.24.1}, {8.54.1}, {8.6.12.1} |
784 | नक्ष᳚न्त॒ऽइन्द्र॒मव॑सेसुकृ॒त्यया॒येषां᳚सु॒तेषु॒मन्द॑से | यथा᳚संव॒र्तेऽअम॑दो॒यथा᳚कृ॒शऽए॒वास्मेऽइ᳚न्द्रमत्स्व || {6.4.24.2}, {8.54.2}, {8.6.12.2} |
785 | आनो॒विश्वे᳚स॒जोष॑सो॒देवा᳚सो॒गन्त॒नोप॑नः | वस॑वोरु॒द्राऽअव॑सेन॒ऽआग॑मञ्छृ॒ण्वन्तु॑म॒रुतो॒हव᳚म् || {6.4.24.3}, {8.54.3}, {8.6.12.3} |
786 | पू॒षाविष्णु॒र्हव॑नंमे॒सर॑स्व॒त्यव᳚न्तुस॒प्तसिन्ध॑वः | आपो॒वातः॒पर्व॑तासो॒वन॒स्पतिः॑शृ॒णोतु॑पृथि॒वीहव᳚म् || {6.4.24.4}, {8.54.4}, {8.6.12.4} |
787 | यदि᳚न्द्र॒राधो॒ऽअस्ति॑ते॒माघो᳚नंमघवत्तम | तेन॑नोबोधिसध॒माद्यो᳚वृ॒धेभगो᳚दा॒नाय॑वृत्रहन् || {6.4.25.1}, {8.54.5}, {8.6.12.5} |
788 | आजि॑पतेनृपते॒त्वमिद्धिनो॒वाज॒ऽआव॑क्षिसुक्रतो | वी॒तीहोत्रा᳚भिरु॒तदे॒ववी᳚तिभिःसस॒वांसो॒विशृ᳚ण्विरे || {6.4.25.2}, {8.54.6}, {8.6.12.6} |
789 | सन्ति॒ह्य१॑(अ॒)'र्यऽआ॒शिष॒ऽइन्द्र॒ऽआयु॒र्जना᳚नाम् | अ॒स्मान्न॑क्षस्वमघव॒न्नुपाव॑सेधु॒क्षस्व॑पि॒प्युषी॒मिष᳚म् || {6.4.25.3}, {8.54.7}, {8.6.12.7} |
790 | व॒यंत॑ऽइन्द्र॒स्तोमे᳚भिर्विधेम॒त्वम॒स्माकं᳚शतक्रतो | महि॑स्थू॒रंश॑श॒यंराधो॒ऽअह्र॑यं॒प्रस्क᳚ण्वाय॒नितो᳚शय || {6.4.25.4}, {8.54.8}, {8.6.12.8} |
[44] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य काण्वः कृश ऋषिः | इन्द्रः प्रस्कण्वस्य दानस्तुतिश्च देवते | (१-२, ४) प्रथमाद्वितीययोजृचोश्चतुर्थ्याश्च गायत्री, (३, ५) तृतीयापञ्चम्योश्चानुष्टप् छन्दसी || | |
791 | भूरीदिन्द्र॑स्यवी॒र्य१॑(अं॒)'व्यख्य॑म॒भ्याय॑ति | राध॑स्तेदस्यवेवृक || {6.4.26.1}, {8.55.1}, {8.6.13.1} |
792 | श॒तंश्वे॒तास॑ऽउ॒क्षणो᳚दि॒वितारो॒नरो᳚चन्ते | म॒ह्नादिवं॒नत॑स्तभुः || {6.4.26.2}, {8.55.2}, {8.6.13.2} |
793 | श॒तंवे॒णूञ्छ॒तंशुनः॑श॒तंचर्मा᳚णिम्ला॒तानि॑ | श॒तंमे᳚बल्बजस्तु॒काऽअरु॑षीणां॒चतुः॑शतम् || {6.4.26.3}, {8.55.3}, {8.6.13.3} |
794 | सु॒दे॒वाःस्थ॑काण्वायना॒वयो᳚वयोविच॒रन्तः॑ | अश्वा᳚सो॒नच᳚ङ्क्रमत || {6.4.26.4}, {8.55.4}, {8.6.13.4} |
795 | आदित्सा॒प्तस्य॑चर्किर॒न्नानू᳚नस्य॒महि॒श्रवः॑ | श्यावी᳚रतिध्व॒सन्प॒थश्चक्षु॑षाच॒नसं॒नशे᳚ || {6.4.26.5}, {8.55.5}, {8.6.13.5} |
[45] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य काण्वः पृषध्र ऋषिः | (१-४) प्रथमादिचतुर्ऋचामिन्द्रः प्रस्कण्वस्य दानस्तुतिश्च, (५) पञ्चम्याश्चाग्निसूयॊ देवताः | (१-४) प्रथमादिचतुर्ऋचामा, गायत्री, (५) पञ्चम्याश्च पतिश्छन्दसी || | |
796 | प्रति॑तेदस्यवेवृक॒राधो᳚ऽअद॒र्श्यह्र॑यम् | द्यौर्नप्र॑थि॒नाशवः॑ || {6.4.27.1}, {8.56.1}, {8.6.14.1} |
797 | दश॒मह्यं᳚पौतक्र॒तःस॒हस्रा॒दस्य॑वे॒वृकः॑ | नित्या᳚द्रा॒योऽअ॑मंहत || {6.4.27.2}, {8.56.2}, {8.6.14.2} |
798 | श॒तंमे᳚गर्द॒भानां᳚श॒तमूर्णा᳚वतीनाम् | श॒तंदा॒साँऽअति॒स्रजः॑ || {6.4.27.3}, {8.56.3}, {8.6.14.3} |
799 | तत्रो॒ऽअपि॒प्राणी᳚यतपू॒तक्र॑तायै॒व्य॑क्ता | अश्वा᳚ना॒मिन्नयू॒थ्या᳚म् || {6.4.27.4}, {8.56.4}, {8.6.14.4} |
800 | अचे᳚त्य॒ग्निश्चि॑कि॒तुर्ह᳚व्य॒वाट्ससु॒मद्र॑थः | अ॒ग्निःशु॒क्रेण॑शो॒चिषा᳚बृ॒हत्सूरो᳚ऽअरोचतदि॒विसूर्यो᳚ऽअरोचत || {6.4.27.5}, {8.56.5}, {8.6.14.5} |
[46] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काण्वो मेध्य ऋषिः | अश्विनौ देवते | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
801 | यु॒वंदे᳚वा॒क्रतु॑नापू॒र्व्येण॑यु॒क्तारथे᳚नतवि॒षंय॑जत्रा | आग॑च्छतंनासत्या॒शची᳚भिरि॒दंतृ॒तीयं॒सव॑नंपिबाथः || {6.4.28.1}, {8.57.1}, {8.6.15.1} |
802 | यु॒वांदे॒वास्त्रय॑ऽएकाद॒शासः॑स॒त्याःस॒त्यस्य॑ददृशेपु॒रस्ता᳚त् | अ॒स्माकं᳚य॒ज्ञंसव॑नंजुषा॒णापा॒तंसोम॑मश्विना॒दीद्य॑ग्नी || {6.4.28.2}, {8.57.2}, {8.6.15.2} |
803 | प॒नाय्यं॒तद॑श्विनाकृ॒तंवां᳚वृष॒भोदि॒वोरज॑सःपृथि॒व्याः | स॒हस्रं॒शंसा᳚ऽउ॒तयेगवि॑ष्टौ॒सर्वाँ॒ऽइत्ताँऽउप॑याता॒पिब॑ध्यै || {6.4.28.3}, {8.57.3}, {8.6.15.3} |
804 | अ॒यंवां᳚भा॒गोनिहि॑तोयजत्रे॒मागिरो᳚नास॒त्योप॑यातम् | पिब॑तं॒सोमं॒मधु॑मन्तम॒स्मेप्रदा॒श्वांस॑मवतं॒शची᳚भिः || {6.4.28.4}, {8.57.4}, {8.6.15.4} |
[47] (१-३) तृचस्य सूक्तस्य काण्वो मेध्य ऋषिः | (१) प्रथम] विश्वे देवा ऋत्विजो वा, (२-३) द्वितीयातृतीययोश्च विश्वे देवा देवताः | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
805 | यमृ॒त्विजो᳚बहु॒धाक॒ल्पय᳚न्तः॒सचे᳚तसोय॒ज्ञमि॒मंवह᳚न्ति | योऽअ॑नूचा॒नोब्रा᳚ह्म॒णोयु॒क्तऽआ᳚सी॒त्कास्वि॒त्तत्र॒यज॑मानस्यसं॒वित् || {6.4.29.1}, {8.58.1}, {8.6.16.1} |
806 | एक॑ऽए॒वाग्निर्ब॑हु॒धासमि॑द्ध॒ऽएकः॒सूर्यो॒विश्व॒मनु॒प्रभू᳚तः | एकै॒वोषाःसर्व॑मि॒दंविभा॒त्येकं॒वाऽइ॒दंविब॑भूव॒सर्व᳚म् || {6.4.29.2}, {8.58.2}, {8.6.16.2} |
807 | ज्योति॑ष्मन्तंकेतु॒मन्तं᳚त्रिच॒क्रंसु॒खंरथं᳚सु॒षदं॒भूरि॑वारम् | चि॒त्राम॑घा॒यस्य॒योगे᳚ऽधिजज्ञे॒तंवां᳚हु॒वेऽअति॑रिक्तं॒पिब॑ध्यै || {6.4.29.3}, {8.58.3}, {8.6.16.3} |
[48] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काण्वः सुपर्ण ऋषिः | इन्द्रावरुणौ देवते | जगती छन्दः || | |
808 | इ॒मानि॑वांभाग॒धेया᳚निसिस्रत॒ऽइन्द्रा᳚वरुणा॒प्रम॒हेसु॒तेषु॑वाम् | य॒ज्ञेय॑ज्ञेह॒सव॑नाभुर॒ण्यथो॒यत्सु᳚न्व॒तेयज॑मानाय॒शिक्ष॑थः || {6.4.30.1}, {8.59.1}, {8.6.17.1} |
809 | नि॒ष्षिध्व॑री॒रोष॑धी॒राप॑ऽआस्ता॒मिन्द्रा᳚वरुणामहि॒मान॒माश॑त | यासिस्र॑तू॒रज॑सःपा॒रेऽअध्व॑नो॒ययोः॒शत्रु॒र्नकि॒रादे᳚व॒ऽओह॑ते || {6.4.30.2}, {8.59.2}, {8.6.17.2} |
810 | स॒त्यंतदि᳚न्द्रावरुणाकृ॒शस्य॑वां॒मध्व॑ऽऊ॒र्मिंदु॑हतेस॒प्तवाणीः᳚ | ताभि॑र्दा॒श्वांस॑मवतंशुभस्पती॒योवा॒मद॑ब्धोऽअ॒भिपाति॒चित्ति॑भिः || {6.4.30.3}, {8.59.3}, {8.6.17.3} |
811 | घृ॒त॒प्रुषः॒सौम्या᳚जी॒रदा᳚नवःस॒प्तस्वसा᳚रः॒सद॑नऋ॒तस्य॑ | याह॑वामिन्द्रावरुणाघृत॒श्चुत॒स्ताभि॑र्धत्तं॒यज॑मानायशिक्षतम् || {6.4.30.4}, {8.59.4}, {8.6.17.4} |
812 | अवो᳚चाममह॒तेसौभ॑गायस॒त्यंत्वे॒षाभ्यां᳚महि॒मान॑मिन्द्रि॒यम् | अ॒स्मान्त्स्वि᳚न्द्रावरुणाघृत॒श्चुत॒स्त्रिभिः॑सा॒प्तेभि॑रवतंशुभस्पती || {6.4.31.1}, {8.59.5}, {8.6.17.5} |
813 | इन्द्रा᳚वरुणा॒यदृ॒षिभ्यो᳚मनी॒षांवा॒चोम॒तिंश्रु॒तम॑दत्त॒मग्रे᳚ | यानि॒स्थाना᳚न्यसृजन्त॒धीरा᳚य॒ज्ञंत᳚न्वा॒नास्तप॑सा॒भ्य॑पश्यम् || {6.4.31.2}, {8.59.6}, {8.6.17.6} |
814 | इन्द्रा᳚वरुणासौमन॒समदृ॑प्तंरा॒यस्पोषं॒यज॑मानेषुधत्तम् | प्र॒जांपु॒ष्टिंभू᳚तिम॒स्मासु॑धत्तंदीर्घायु॒त्वाय॒प्रति॑रतंन॒ऽआयुः॑ || {6.4.31.3}, {8.59.7}, {8.6.17.7} |
[49] (१-२०) विंशत्यृचस्य सूक्तस्य प्रागाथो भर्ग ऋषिः | अग्निर्देवता | प्रगाथः (विषमर्चाम् बृहती, समर्चाम् सतोबृहती) छन्दः || | |
815 | अग्न॒ऽआया᳚ह्य॒ग्निभि॒र्होता᳚रंत्वावृणीमहे | आत्वाम॑नक्तु॒प्रय॑ताह॒विष्म॑ती॒यजि॑ष्ठंब॒र्हिरा॒सदे᳚ || {6.4.32.1}, {8.60.1}, {8.7.1.1} |
816 | अच्छा॒हित्वा᳚सहसःसूनोऽअङ्गिरः॒स्रुच॒श्चर᳚न्त्यध्व॒रे | ऊ॒र्जोनपा᳚तंघृ॒तके᳚शमीमहे॒ऽग्निंय॒ज्ञेषु॑पू॒र्व्यम् || {6.4.32.2}, {8.60.2}, {8.7.1.2} |
817 | अग्ने᳚क॒विर्वे॒धाऽअ॑सि॒होता᳚पावक॒यक्ष्यः॑ | म॒न्द्रोयजि॑ष्ठोऽअध्व॒रेष्वीड्यो॒विप्रे᳚भिःशुक्र॒मन्म॑भिः || {6.4.32.3}, {8.60.3}, {8.7.1.3} |
818 | अद्रो᳚घ॒माव॑होश॒तोय॑विष्ठ्यदे॒वाँऽअ॑जस्रवी॒तये᳚ | अ॒भिप्रयां᳚सि॒सुधि॒ताव॑सोगहि॒मन्द॑स्वधी॒तिभि॑र्हि॒तः || {6.4.32.4}, {8.60.4}, {8.7.1.4} |
819 | त्वमित्स॒प्रथा᳚ऽअ॒स्यग्ने᳚त्रातर्ऋ॒तस्क॒विः | त्वांविप्रा᳚सःसमिधानदीदिव॒ऽआवि॑वासन्तिवे॒धसः॑ || {6.4.32.5}, {8.60.5}, {8.7.1.5} |
820 | शोचा᳚शोचिष्ठदीदि॒हिवि॒शेमयो॒रास्व॑स्तो॒त्रेम॒हाँऽअ॑सि | दे॒वानां॒शर्म॒न्मम॑सन्तुसू॒रयः॑शत्रू॒षाहः॑स्व॒ग्नयः॑ || {6.4.33.1}, {8.60.6}, {8.7.1.6} |
821 | यथा᳚चिद्वृ॒द्धम॑त॒समग्ने᳚सं॒जूर्व॑सि॒क्षमि॑ | ए॒वाद॑हमित्रमहो॒योऽअ॑स्म॒ध्रुग्दु॒र्मन्मा॒कश्च॒वेन॑ति || {6.4.33.2}, {8.60.7}, {8.7.1.7} |
822 | मानो॒मर्ता᳚यरि॒पवे᳚रक्ष॒स्विने॒माघशं᳚सायरीरधः | अस्रे᳚धद्भिस्त॒रणि॑भिर्यविष्ठ्यशि॒वेभिः॑पाहिपा॒युभिः॑ || {6.4.33.3}, {8.60.8}, {8.7.1.8} |
823 | पा॒हिनो᳚ऽअग्न॒ऽएक॑यापा॒ह्यु१॑(उ॒)तद्वि॒तीय॑या | पा॒हिगी॒र्भिस्ति॒सृभि॑रूर्जांपतेपा॒हिच॑त॒सृभि᳚र्वसो || {6.4.33.4}, {8.60.9}, {8.7.1.9} |
824 | पा॒हिविश्व॑स्माद्र॒क्षसो॒ऽअरा᳚व्णः॒प्रस्म॒वाजे᳚षुनोऽव | त्वामिद्धिनेदि॑ष्ठंदे॒वता᳚तयऽआ॒पिंनक्षा᳚महेवृ॒धे || {6.4.33.5}, {8.60.10}, {8.7.1.10} |
825 | आनो᳚ऽअग्नेवयो॒वृधं᳚र॒यिंपा᳚वक॒शंस्य᳚म् | रास्वा᳚चनऽउपमातेपुरु॒स्पृहं॒सुनी᳚ती॒स्वय॑शस्तरम् || {6.4.34.1}, {8.60.11}, {8.7.1.11} |
826 | येन॒वंसा᳚म॒पृत॑नासु॒शर्ध॑त॒स्तर᳚न्तोऽअ॒र्यऽआ॒दिशः॑ | सत्वंनो᳚वर्ध॒प्रय॑साशचीवसो॒जिन्वा॒धियो᳚वसु॒विदः॑ || {6.4.34.2}, {8.60.12}, {8.7.1.12} |
827 | शिशा᳚नोवृष॒भोय॑था॒ग्निःशृङ्गे॒दवि॑ध्वत् | ति॒ग्माऽअ॑स्य॒हन॑वो॒नप्र॑ति॒धृषे᳚सु॒जम्भः॒सह॑सोय॒हुः || {6.4.34.3}, {8.60.13}, {8.7.1.13} |
828 | न॒हिते᳚ऽअग्नेवृषभप्रति॒धृषे॒जम्भा᳚सो॒यद्वि॒तिष्ठ॑से | सत्वंनो᳚होतः॒सुहु॑तंह॒विष्कृ॑धि॒वंस्वा᳚नो॒वार्या᳚पु॒रु || {6.4.34.4}, {8.60.14}, {8.7.1.14} |
829 | शेषे॒वने᳚षुमा॒त्रोःसंत्वा॒मर्ता᳚सऽइन्धते | अत᳚न्द्रोह॒व्याव॑हसिहवि॒ष्कृत॒ऽआदिद्दे॒वेषु॑राजसि || {6.4.34.5}, {8.60.15}, {8.7.1.15} |
830 | स॒प्तहोता᳚र॒स्तमिदी᳚ळते॒त्वाग्ने᳚सु॒त्यज॒मह्र॑यम् | भि॒नत्स्यद्रिं॒तप॑सा॒विशो॒चिषा॒प्राग्ने᳚तिष्ठ॒जनाँ॒ऽअति॑ || {6.4.35.1}, {8.60.16}, {8.7.1.16} |
831 | अ॒ग्निम॑ग्निंवो॒ऽअध्रि॑गुंहु॒वेम॑वृ॒क्तब॑र्हिषः | अ॒ग्निंहि॒तप्र॑यसःशश्व॒तीष्वाहोता᳚रंचर्षणी॒नाम् || {6.4.35.2}, {8.60.17}, {8.7.1.17} |
832 | केते᳚न॒शर्म᳚न्त्सचतेसुषा॒मण्यग्ने॒तुभ्यं᳚चिकि॒त्वना᳚ | इ॒ष॒ण्यया᳚नःपुरु॒रूप॒माभ॑र॒वाजं॒नेदि॑ष्ठमू॒तये᳚ || {6.4.35.3}, {8.60.18}, {8.7.1.18} |
833 | अग्ने॒जरि॑तर्वि॒श्पति॑स्तेपा॒नोदे᳚वर॒क्षसः॑ | अप्रो᳚षिवान्गृ॒हप॑तिर्म॒हाँऽअ॑सिदि॒वस्पा॒युर्दु॑रोण॒युः || {6.4.35.4}, {8.60.19}, {8.7.1.19} |
834 | मानो॒रक्ष॒ऽआवे᳚शीदाघृणीवसो॒माया॒तुर्या᳚तु॒माव॑ताम् | प॒रो॒ग॒व्यू॒त्यनि॑रा॒मप॒क्षुध॒मग्ने॒सेध॑रक्ष॒स्विनः॑ || {6.4.35.5}, {8.60.20}, {8.7.1.20} |
[50] (१-१८) अष्टादशर्चस्य सूक्तस्य प्रागाथो भर्ग ऋषिः | इन्द्रो देवता | प्रगाथः (विषमा बृहती, समर्चाम् सतोबृहती) छन्दः || | |
835 | उ॒भयं᳚शृ॒णव॑च्चन॒ऽइन्द्रो᳚ऽअ॒र्वागि॒दंवचः॑ | स॒त्राच्या᳚म॒घवा॒सोम॑पीतयेधि॒याशवि॑ष्ठ॒ऽआग॑मत् || {6.4.36.1}, {8.61.1}, {8.7.2.1} |
836 | तंहिस्व॒राजं᳚वृष॒भंतमोज॑सेधि॒षणे᳚निष्टत॒क्षतुः॑ | उ॒तोप॒मानां᳚प्रथ॒मोनिषी᳚दसि॒सोम॑कामं॒हिते॒मनः॑ || {6.4.36.2}, {8.61.2}, {8.7.2.2} |
837 | आवृ॑षस्वपुरूवसोसु॒तस्ये॒न्द्रान्ध॑सः | वि॒द्माहित्वा᳚हरिवःपृ॒त्सुसा᳚स॒हिमधृ॑ष्टंचिद्दधृ॒ष्वणि᳚म् || {6.4.36.3}, {8.61.3}, {8.7.2.3} |
838 | अप्रा᳚मिसत्यमघव॒न्तथेद॑स॒दिन्द्र॒क्रत्वा॒यथा॒वशः॑ | स॒नेम॒वाजं॒तव॑शिप्रि॒न्नव॑साम॒क्षूचि॒द्यन्तो᳚ऽअद्रिवः || {6.4.36.4}, {8.61.4}, {8.7.2.4} |
839 | श॒ग्ध्यू॒३॑(ऊ॒)षुश॑चीपत॒ऽइन्द्र॒विश्वा᳚भिरू॒तिभिः॑ | भगं॒नहित्वा᳚य॒शसं᳚वसु॒विद॒मनु॑शूर॒चरा᳚मसि || {6.4.36.5}, {8.61.5}, {8.7.2.5} |
840 | पौ॒रोऽअश्व॑स्यपुरु॒कृद्गवा᳚म॒स्युत्सो᳚देवहिर॒ण्ययः॑ | नकि॒र्हिदानं᳚परि॒मर्धि॑ष॒त्त्वेयद्य॒द्यामि॒तदाभ॑र || {6.4.37.1}, {8.61.6}, {8.7.2.6} |
841 | त्वंह्येहि॒चेर॑वेवि॒दाभगं॒वसु॑त्तये | उद्वा᳚वृषस्वमघव॒न्गवि॑ष्टय॒ऽउदि॒न्द्राश्व॑मिष्टये || {6.4.37.2}, {8.61.7}, {8.7.2.7} |
842 | त्वंपु॒रूस॒हस्रा᳚णिश॒तानि॑चयू॒थादा॒नाय॑मंहसे | आपु॑रंद॒रंच॑कृम॒विप्र॑वचस॒ऽइन्द्रं॒गाय॒न्तोऽव॑से || {6.4.37.3}, {8.61.8}, {8.7.2.8} |
843 | अ॒वि॒प्रोवा॒यदवि॑ध॒द्विप्रो᳚वेन्द्रते॒वचः॑ | सप्रम॑मन्दत्त्वा॒याश॑तक्रतो॒प्राचा᳚मन्यो॒ऽअहं᳚सन || {6.4.37.4}, {8.61.9}, {8.7.2.9} |
844 | उ॒ग्रबा᳚हुर्म्रक्ष॒कृत्वा᳚पुरंद॒रोयदि॑मेशृ॒णव॒द्धव᳚म् | व॒सू॒यवो॒वसु॑पतिंश॒तक्र॑तुं॒स्तोमै॒रिन्द्रं᳚हवामहे || {6.4.37.5}, {8.61.10}, {8.7.2.10} |
845 | नपा॒पासो᳚मनामहे॒नारा᳚यासो॒नजळ्ह॑वः | यदिन्न्विन्द्रं॒वृष॑णं॒सचा᳚सु॒तेसखा᳚यंकृ॒णवा᳚महै || {6.4.38.1}, {8.61.11}, {8.7.2.11} |
846 | उ॒ग्रंयु॑युज्म॒पृत॑नासुसास॒हिमृ॒णका᳚ति॒मदा᳚भ्यम् | वेदा᳚भृ॒मंचि॒त्सनि॑तार॒थीत॑मोवा॒जिनं॒यमिदू॒नश॑त् || {6.4.38.2}, {8.61.12}, {8.7.2.12} |
847 | यत॑ऽइन्द्र॒भया᳚महे॒ततो᳚नो॒ऽअभ॑यंकृधि | मघ॑वञ्छ॒ग्धितव॒तन्न॑ऽऊ॒तिभि॒र्विद्विषो॒विमृधो᳚जहि || {6.4.38.3}, {8.61.13}, {8.7.2.13} |
848 | त्वंहिरा᳚धस्पते॒राध॑सोम॒हःक्षय॒स्यासि॑विध॒तः | तंत्वा᳚व॒यंम॑घवन्निन्द्रगिर्वणःसु॒ताव᳚न्तोहवामहे || {6.4.38.4}, {8.61.14}, {8.7.2.14} |
849 | इन्द्रः॒स्पळु॒तवृ॑त्र॒हाप॑र॒स्पानो॒वरे᳚ण्यः | सनो᳚रक्षिषच्चर॒मंसम॑ध्य॒मंसप॒श्चात्पा᳚तुनःपु॒रः || {6.4.38.5}, {8.61.15}, {8.7.2.15} |
850 | त्वंनः॑प॒श्चाद॑ध॒रादु॑त्त॒रात्पु॒रऽइन्द्र॒निपा᳚हिवि॒श्वतः॑ | आ॒रेऽअ॒स्मत्कृ॑णुहि॒दैव्यं᳚भ॒यमा॒रेहे॒तीरदे᳚वीः || {6.4.39.1}, {8.61.16}, {8.7.2.16} |
851 | अ॒द्याद्या॒श्वःश्व॒ऽइन्द्र॒त्रास्व॑प॒रेच॑नः | विश्वा᳚चनोजरि॒तॄन्त्स॑त्पते॒ऽअहा॒दिवा॒नक्तं᳚चरक्षिषः || {6.4.39.2}, {8.61.17}, {8.7.2.17} |
852 | प्र॒भ॒ङ्गीशूरो᳚म॒घवा᳚तु॒वीम॑घः॒सम्मि॑श्लोवि॒र्या᳚य॒कम् | उ॒भाते᳚बा॒हूवृष॑णाशतक्रतो॒नियावज्रं᳚मिमि॒क्षतुः॑ || {6.4.39.3}, {8.61.18}, {8.7.2.18} |
[51] (१-१२) द्वादशर्चस्य सूक्तस्य काण्वो घौरः प्रगाथ ऋषिः | इन्द्रो देवता | (१-६, १०-१२) प्रथमादितृचद्वयस्य दशम्यादितृचस्य च पङ्क्ति, (७-९) सप्तम्यादितृचस्य च बृहती छन्दसी || | |
853 | प्रोऽअ॑स्मा॒ऽउप॑स्तुतिं॒भर॑ता॒यज्जुजो᳚षति | उ॒क्थैरिन्द्र॑स्य॒माहि॑नं॒वयो᳚वर्धन्तिसो॒मिनो᳚भ॒द्राऽइन्द्र॑स्यरा॒तयः॑ || {6.4.40.1}, {8.62.1}, {8.7.3.1} |
854 | अ॒यु॒जोऽअस॑मो॒नृभि॒रेकः॑कृ॒ष्टीर॒यास्यः॑ | पू॒र्वीरति॒प्रवा᳚वृधे॒विश्वा᳚जा॒तान्योज॑साभ॒द्राऽइन्द्र॑स्यरा॒तयः॑ || {6.4.40.2}, {8.62.2}, {8.7.3.2} |
855 | अहि॑तेनचि॒दर्व॑ताजी॒रदा᳚नुःसिषासति | प्र॒वाच्य॑मिन्द्र॒तत्तव॑वी॒र्या᳚णिकरिष्य॒तोभ॒द्राऽइन्द्र॑स्यरा॒तयः॑ || {6.4.40.3}, {8.62.3}, {8.7.3.3} |
856 | आया᳚हिकृ॒णवा᳚मत॒ऽइन्द्र॒ब्रह्मा᳚णि॒वर्ध॑ना | येभिः॑शविष्ठचा॒कनो᳚भ॒द्रमि॒हश्र॑वस्य॒तेभ॒द्राऽइन्द्र॑स्यरा॒तयः॑ || {6.4.40.4}, {8.62.4}, {8.7.3.4} |
857 | धृ॒ष॒तश्चि॑द्धृ॒षन्मनः॑कृ॒णोषी᳚न्द्र॒यत्त्वम् | ती॒व्रैःसोमैः᳚सपर्य॒तोनमो᳚भिःप्रति॒भूष॑तोभ॒द्राऽइन्द्र॑स्यरा॒तयः॑ || {6.4.40.5}, {8.62.5}, {8.7.3.5} |
858 | अव॑चष्ट॒ऋची᳚षमोऽव॒ताँऽइ॑व॒मानु॑षः | जु॒ष्ट्वीदक्ष॑स्यसो॒मिनः॒सखा᳚यंकृणुते॒युजं᳚भ॒द्राऽइन्द्र॑स्यरा॒तयः॑ || {6.4.40.6}, {8.62.6}, {8.7.3.6} |
859 | विश्वे᳚तऽइन्द्रवी॒र्यं᳚दे॒वाऽअनु॒क्रतुं᳚ददुः | भुवो॒विश्व॑स्य॒गोप॑तिःपुरुष्टुतभ॒द्राऽइन्द्र॑स्यरा॒तयः॑ || {6.4.41.1}, {8.62.7}, {8.7.3.7} |
860 | गृ॒णेतदि᳚न्द्रते॒शव॑ऽउप॒मंदे॒वता᳚तये | यद्धंसि॑वृ॒त्रमोज॑साशचीपतेभ॒द्राऽइन्द्र॑स्यरा॒तयः॑ || {6.4.41.2}, {8.62.8}, {8.7.3.8} |
861 | सम॑नेववपुष्य॒तःकृ॒णव॒न्मानु॑षायु॒गा | वि॒देतदिन्द्र॒श्चेत॑न॒मध॑श्रु॒तोभ॒द्राऽइन्द्र॑स्यरा॒तयः॑ || {6.4.41.3}, {8.62.9}, {8.7.3.9} |
862 | उज्जा॒तमि᳚न्द्रते॒शव॒ऽउत्त्वामुत्तव॒क्रतु᳚म् | भूरि॑गो॒भूरि॑वावृधु॒र्मघ॑व॒न्तव॒शर्म॑णिभ॒द्राऽइन्द्र॑स्यरा॒तयः॑ || {6.4.41.4}, {8.62.10}, {8.7.3.10} |
863 | अ॒हंच॒त्वंच॑वृत्रह॒न्त्संयु॑ज्यावस॒निभ्य॒ऽआ | अ॒रा॒ती॒वाचि॑दद्रि॒वोऽनु॑नौशूरमंसतेभ॒द्राऽइन्द्र॑स्यरा॒तयः॑ || {6.4.41.5}, {8.62.11}, {8.7.3.11} |
864 | स॒त्यमिद्वाऽउ॒तंव॒यमिन्द्रं᳚स्तवाम॒नानृ॑तम् | म॒हाँऽअसु᳚न्वतोव॒धोभूरि॒ज्योतीं᳚षिसुन्व॒तोभ॒द्राऽइन्द्र॑स्यरा॒तयः॑ || {6.4.41.6}, {8.62.12}, {8.7.3.12} |
[52] (१-१२) द्वादशर्चस्य सूक्तस्य काण्वः प्रगाथ ऋषिः | (१-११) प्रथमाद्येकादशचामिन्द्रः, (१२) द्वादश्याश्च देवा देवताः | (१, ४-५, ७) प्रथमर्चश्चतुर्थीपञ्चमीसप्तमीनाञ्चानुष्टप् (२-३, ६, ८-११) द्वितीयातृतीयाषष्ठीनामष्टम्यादिचतसृणाञ्च गायत्री, (१२) द्वादश्याश्च त्रिष्टुप् छन्दांसि || | |
865 | सपू॒र्व्योम॒हानां᳚वे॒नःक्रतु॑भिरानजे | यस्य॒द्वारा॒मनु॑ष्पि॒तादे॒वेषु॒धिय॑ऽआन॒जे || {6.4.42.1}, {8.63.1}, {8.7.4.1} |
866 | दि॒वोमानं॒नोत्स॑द॒न्त्सोम॑पृष्ठासो॒ऽअद्र॑यः | उ॒क्थाब्रह्म॑च॒शंस्या᳚ || {6.4.42.2}, {8.63.2}, {8.7.4.2} |
867 | सवि॒द्वाँऽअङ्गि॑रोभ्य॒ऽइन्द्रो॒गाऽअ॑वृणो॒दप॑ | स्तु॒षेतद॑स्य॒पौंस्य᳚म् || {6.4.42.3}, {8.63.3}, {8.7.4.3} |
868 | सप्र॒त्नथा᳚कविवृ॒धऽइन्द्रो᳚वा॒कस्य॑व॒क्षणिः॑ | शि॒वोऽअ॒र्कस्य॒होम᳚न्यस्म॒त्राग॒न्त्वव॑से || {6.4.42.4}, {8.63.4}, {8.7.4.4} |
869 | आदू॒नुते॒ऽअनु॒क्रतुं॒स्वाहा॒वर॑स्य॒यज्य॑वः | श्वा॒त्रम॒र्काऽअ॑नूष॒तेन्द्र॑गो॒त्रस्य॑दा॒वने᳚ || {6.4.42.5}, {8.63.5}, {8.7.4.5} |
870 | इन्द्रे॒विश्वा᳚निवी॒र्या᳚कृ॒तानि॒कर्त्वा᳚निच | यम॒र्काऽअ॑ध्व॒रंवि॒दुः || {6.4.42.6}, {8.63.6}, {8.7.4.6} |
871 | यत्पाञ्च॑जन्ययावि॒शेन्द्रे॒घोषा॒ऽअसृ॑क्षत | अस्तृ॑णाद्ब॒र्हणा᳚वि॒पो॒३॑(ओ॒)ऽर्योमान॑स्य॒सक्षयः॑ || {6.4.43.1}, {8.63.7}, {8.7.4.7} |
872 | इ॒यमु॑ते॒ऽअनु॑ष्टुतिश्चकृ॒षेतानि॒पौंस्या᳚ | प्राव॑श्च॒क्रस्य॑वर्त॒निम् || {6.4.43.2}, {8.63.8}, {8.7.4.8} |
873 | अ॒स्यवृष्णो॒व्योद॑नऽउ॒रुक्र॑मिष्टजी॒वसे᳚ | यवं॒नप॒श्वऽआद॑दे || {6.4.43.3}, {8.63.9}, {8.7.4.9} |
874 | तद्दधा᳚नाऽअव॒स्यवो᳚यु॒ष्माभि॒र्दक्ष॑पितरः | स्याम॑म॒रुत्व॑तोवृ॒धे || {6.4.43.4}, {8.63.10}, {8.7.4.10} |
875 | बळृ॒त्विया᳚य॒धाम्न॒ऋक्व॑भिःशूरनोनुमः | जेषा᳚मेन्द्र॒त्वया᳚यु॒जा || {6.4.43.5}, {8.63.11}, {8.7.4.11} |
876 | अ॒स्मेरु॒द्रामे॒हना॒पर्व॑तासोवृत्र॒हत्ये॒भर॑हूतौस॒जोषाः᳚ | यःशंस॑तेस्तुव॒तेधायि॑प॒ज्रऽइन्द्र॑ज्येष्ठाऽअ॒स्माँऽअ॑वन्तुदे॒वाः || {6.4.43.6}, {8.63.12}, {8.7.4.12} |
[53] (१-१२) द्वादशर्चस्य सूक्तस्य काण्वः प्रगाथ ऋषिः | इन्द्रो देवता | गायत्री छन्दः || | |
877 | उत्त्वा᳚मन्दन्तु॒स्तोमाः᳚कृणु॒ष्वराधो᳚ऽअद्रिवः | अव॑ब्रह्म॒द्विषो᳚जहि || {6.4.44.1}, {8.64.1}, {8.7.5.1} |
878 | प॒दाप॒णीँर॑रा॒धसो॒निबा᳚धस्वम॒हाँऽअ॑सि | न॒हित्वा॒कश्च॒नप्रति॑ || {6.4.44.2}, {8.64.2}, {8.7.5.2} |
879 | त्वमी᳚शिषेसु॒ताना॒मिन्द्र॒त्वमसु॑तानाम् | त्वंराजा॒जना᳚नाम् || {6.4.44.3}, {8.64.3}, {8.7.5.3} |
880 | एहि॒प्रेहि॒क्षयो᳚दि॒व्या॒३॑(आ॒)घोष᳚ञ्चर्षणी॒नाम् | ओभेपृ॑णासि॒रोद॑सी || {6.4.44.4}, {8.64.4}, {8.7.5.4} |
881 | त्यंचि॒त्पर्व॑तंगि॒रिंश॒तव᳚न्तंसह॒स्रिण᳚म् | विस्तो॒तृभ्यो᳚रुरोजिथ || {6.4.44.5}, {8.64.5}, {8.7.5.5} |
882 | व॒यमु॑त्वा॒दिवा᳚सु॒तेव॒यंनक्तं᳚हवामहे | अ॒स्माकं॒काम॒मापृ॑ण || {6.4.44.6}, {8.64.6}, {8.7.5.6} |
883 | क्व१॑(अ॒)स्यवृ॑ष॒भोयुवा᳚तुवि॒ग्रीवो॒ऽअना᳚नतः | ब्र॒ह्माकस्तंस॑पर्यति || {6.4.45.1}, {8.64.7}, {8.7.5.7} |
884 | कस्य॑स्वि॒त्सव॑नं॒वृषा᳚जुजु॒ष्वाँऽअव॑गच्छति | इन्द्रं॒कऽउ॑स्वि॒दाच॑के || {6.4.45.2}, {8.64.8}, {8.7.5.8} |
885 | कंते᳚दा॒नाऽअ॑सक्षत॒वृत्र॑ह॒न्कंसु॒वीर्या᳚ | उ॒क्थेकऽउ॑स्वि॒दन्त॑मः || {6.4.45.3}, {8.64.9}, {8.7.5.9} |
886 | अ॒यंते॒मानु॑षे॒जने॒सोमः॑पू॒रुषु॑सूयते | तस्येहि॒प्रद्र॑वा॒पिब॑ || {6.4.45.4}, {8.64.10}, {8.7.5.10} |
887 | अ॒यंते᳚शर्य॒णाव॑तिसु॒षोमा᳚या॒मधि॑प्रि॒यः | आ॒र्जी॒कीये᳚म॒दिन्त॑मः || {6.4.45.5}, {8.64.11}, {8.7.5.11} |
888 | तम॒द्यराध॑सेम॒हेचारुं॒मदा᳚य॒घृष्व॑ये | एही᳚मिन्द्र॒द्रवा॒पिब॑ || {6.4.45.6}, {8.64.12}, {8.7.5.12} |
[54] (१-१२) द्वादशर्चस्य सूक्तस्य काण्वः प्रगाथ ऋषिः | इन्द्रो देवता | गायत्री छन्दः || | |
889 | यदि᳚न्द्र॒प्रागपा॒गुद॒ङ्न्य॑ग्वाहू॒यसे॒नृभिः॑ | आया᳚हि॒तूय॑मा॒शुभिः॑ || {6.4.46.1}, {8.65.1}, {8.7.6.1} |
890 | यद्वा᳚प्र॒स्रव॑णेदि॒वोमा॒दया᳚से॒स्व᳚र्णरे | यद्वा᳚समु॒द्रेऽअन्ध॑सः || {6.4.46.2}, {8.65.2}, {8.7.6.2} |
891 | आत्वा᳚गी॒र्भिर्म॒हामु॒रुंहु॒वेगामि॑व॒भोज॑से | इन्द्र॒सोम॑स्यपी॒तये᳚ || {6.4.46.3}, {8.65.3}, {8.7.6.3} |
892 | आत॑ऽइन्द्रमहि॒मानं॒हर॑योदेवते॒महः॑ | रथे᳚वहन्तु॒बिभ्र॑तः || {6.4.46.4}, {8.65.4}, {8.7.6.4} |
893 | इन्द्र॑गृणी॒षऽउ॑स्तु॒षेम॒हाँऽउ॒ग्रऽई᳚शान॒कृत् | एहि॑नःसु॒तंपिब॑ || {6.4.46.5}, {8.65.5}, {8.7.6.5} |
894 | सु॒ताव᳚न्तस्त्वाव॒यंप्रय॑स्वन्तोहवामहे | इ॒दंनो᳚ब॒र्हिरा॒सदे᳚ || {6.4.46.6}, {8.65.6}, {8.7.6.6} |
895 | यच्चि॒द्धिशश्व॑ता॒मसीन्द्र॒साधा᳚रण॒स्त्वम् | तंत्वा᳚व॒यंह॑वामहे || {6.4.47.1}, {8.65.7}, {8.7.6.7} |
896 | इ॒दंते᳚सो॒म्यंमध्वधु॑क्ष॒न्नद्रि॑भि॒र्नरः॑ | जु॒षा॒णऽइ᳚न्द्र॒तत्पि॑ब || {6.4.47.2}, {8.65.8}, {8.7.6.8} |
897 | विश्वाँ᳚ऽअ॒र्योवि॑प॒श्चितोऽति॑ख्य॒स्तूय॒माग॑हि | अ॒स्मेधे᳚हि॒श्रवो᳚बृ॒हत् || {6.4.47.3}, {8.65.9}, {8.7.6.9} |
898 | दा॒तामे॒पृष॑तीनां॒राजा᳚हिरण्य॒वीना᳚म् | मादे᳚वाम॒घवा᳚रिषत् || {6.4.47.4}, {8.65.10}, {8.7.6.10} |
899 | स॒हस्रे॒पृष॑तीना॒मधि॑श्च॒न्द्रंबृ॒हत्पृ॒थु | शु॒क्रंहिर᳚ण्य॒माद॑दे || {6.4.47.5}, {8.65.11}, {8.7.6.11} |
900 | नपा᳚तोदु॒र्गह॑स्यमेस॒हस्रे᳚णसु॒राध॑सः | श्रवो᳚दे॒वेष्व॑क्रत || {6.4.47.6}, {8.65.12}, {8.7.6.12} |
[55] (१-१५) पञ्चदशर्चस्य सूक्तस्य प्रागाथः कलिषिः, इन्द्रो देवता | (१-१४) प्रथमादिचतुर्दश ! प्रगाथः (विषमर्चाम् बृहती, समर्चाम् सतोबृहती), १५ पञ्चदश्याश्चानुष्टप् छन्दसी || | |
901 | तरो᳚भिर्वोवि॒दद्व॑सु॒मिन्द्रं᳚स॒बाध॑ऽऊ॒तये᳚ | बृ॒हद्गाय᳚न्तःसु॒तसो᳚मेऽअध्व॒रेहु॒वेभरं॒नका॒रिण᳚म् || {6.4.48.1}, {8.66.1}, {8.7.7.1} |
902 | नयंदु॒ध्रावर᳚न्ते॒नस्थि॒रामुरो॒मदे᳚सुशि॒प्रमन्ध॑सः | यऽआ॒दृत्या᳚शशमा॒नाय॑सुन्व॒तेदाता᳚जरि॒त्रऽउ॒क्थ्य᳚म् || {6.4.48.2}, {8.66.2}, {8.7.7.2} |
903 | यःश॒क्रोमृ॒क्षोऽअश्व्यो॒योवा॒कीजो᳚हिर॒ण्ययः॑ | सऽऊ॒र्वस्य॑रेजय॒त्यपा᳚वृति॒मिन्द्रो॒गव्य॑स्यवृत्र॒हा || {6.4.48.3}, {8.66.3}, {8.7.7.3} |
904 | निखा᳚तंचि॒द्यःपु॑रुसम्भृ॒तंवसूदिद्वप॑तिदा॒शुषे᳚ | व॒ज्रीसु॑शि॒प्रोहर्य॑श्व॒ऽइत्क॑र॒दिन्द्रः॒क्रत्वा॒यथा॒वश॑त् || {6.4.48.4}, {8.66.4}, {8.7.7.4} |
905 | यद्वा॒वन्थ॑पुरुष्टुतपु॒राचि॑च्छूरनृ॒णाम् | व॒यंतत्त॑ऽइन्द्र॒संभ॑रामसिय॒ज्ञमु॒क्थंतु॒रंवचः॑ || {6.4.48.5}, {8.66.5}, {8.7.7.5} |
906 | सचा॒सोमे᳚षुपुरुहूतवज्रिवो॒मदा᳚यद्युक्षसोमपाः | त्वमिद्धिब्र᳚ह्म॒कृते॒काम्यं॒वसु॒देष्ठः॑सुन्व॒तेभुवः॑ || {6.4.49.1}, {8.66.6}, {8.7.7.6} |
907 | व॒यमे᳚नमि॒दाह्योऽपी᳚पेमे॒हव॒ज्रिण᳚म् | तस्मा᳚ऽउऽअ॒द्यस॑म॒नासु॒तंभ॒रानू॒नंभू᳚षतश्रु॒ते || {6.4.49.2}, {8.66.7}, {8.7.7.7} |
908 | वृक॑श्चिदस्यवार॒णऽउ॑रा॒मथि॒राव॒युने᳚षुभूषति | सेमंनः॒स्तोमं᳚जुजुषा॒णऽआग॒हीन्द्र॒प्रचि॒त्रया᳚धि॒या || {6.4.49.3}, {8.66.8}, {8.7.7.8} |
909 | कदू॒न्व१॑(अ॒)स्याकृ॑त॒मिन्द्र॑स्यास्ति॒पौंस्य᳚म् | केनो॒नुकं॒श्रोम॑तेन॒नशु॑श्रुवेज॒नुषः॒परि॑वृत्र॒हा || {6.4.49.4}, {8.66.9}, {8.7.7.9} |
910 | कदू᳚म॒हीरधृ॑ष्टाऽअस्य॒तवि॑षीः॒कदु॑वृत्र॒घ्नोऽअस्तृ॑तम् | इन्द्रो॒विश्वा᳚न्बेक॒नाटाँ᳚ऽअह॒र्दृश॑ऽउ॒तक्रत्वा᳚प॒णीँर॒भि || {6.4.49.5}, {8.66.10}, {8.7.7.10} |
911 | व॒यंघा᳚ते॒ऽअपू॒र्व्येन्द्र॒ब्रह्मा᳚णिवृत्रहन् | पु॒रू॒तमा᳚सःपुरुहूतवज्रिवोभृ॒तिंनप्रभ॑रामसि || {6.4.50.1}, {8.66.11}, {8.7.7.11} |
912 | पू॒र्वीश्चि॒द्धित्वेतु॑विकूर्मिन्ना॒शसो॒हव᳚न्तऽइन्द्रो॒तयः॑ | ति॒रश्चि॑द॒र्यःसव॒नाव॑सोगहि॒शवि॑ष्ठश्रु॒धिमे॒हव᳚म् || {6.4.50.2}, {8.66.12}, {8.7.7.12} |
913 | व॒यंघा᳚ते॒त्वेऽइद्विन्द्र॒विप्रा॒ऽअपि॑ष्मसि | न॒हित्वद॒न्यःपु॑रुहूत॒कश्च॒नमघ॑व॒न्नस्ति॑मर्डि॒ता || {6.4.50.3}, {8.66.13}, {8.7.7.13} |
914 | त्वंनो᳚ऽअ॒स्याऽअम॑तेरु॒तक्षु॒धो॒३॑(ओ॒)ऽभिश॑स्ते॒रव॑स्पृधि | त्वंन॑ऽऊ॒तीतव॑चि॒त्रया᳚धि॒याशिक्षा᳚शचिष्ठगातु॒वित् || {6.4.50.4}, {8.66.14}, {8.7.7.14} |
915 | सोम॒ऽइद्वः॑सु॒तोऽअ॑स्तु॒कल॑यो॒माबि॑भीतन | अपेदे॒षध्व॒स्माय॑तिस्व॒यंघै॒षोऽअपा᳚यति || {6.4.50.5}, {8.66.15}, {8.7.7.15} |
[56] (१-२१) एकविंशत्यृचस्य सूक्तस्य साम्मदो मत्स्यो मैत्रावरुणिर्मान्यो वा जालनद्धा बहवो मत्स्या वा (ऋषयः) आदित्या देवताः | गायत्री छन्दः || | |
916 | त्यान्नुक्ष॒त्रियाँ॒ऽअव॑ऽआदि॒त्यान्या᳚चिषामहे | सु॒मृ॒ळी॒काँऽअ॒भिष्ट॑ये || {6.4.51.1}, {8.67.1}, {8.7.8.1} |
917 | मि॒त्रोनो॒ऽअत्यं᳚ह॒तिंवरु॑णःपर्षदर्य॒मा | आ॒दि॒त्यासो॒यथा᳚वि॒दुः || {6.4.51.2}, {8.67.2}, {8.7.8.2} |
918 | तेषां॒हिचि॒त्रमु॒क्थ्य१॑(अ॒)अंवरू᳚थ॒मस्ति॑दा॒शुषे᳚ | आ॒दि॒त्याना᳚मरं॒कृते᳚ || {6.4.51.3}, {8.67.3}, {8.7.8.3} |
919 | महि॑वोमह॒तामवो॒वरु॑ण॒मित्रार्य॑मन् | अवां॒स्यावृ॑णीमहे || {6.4.51.4}, {8.67.4}, {8.7.8.4} |
920 | जी॒वान्नो᳚ऽअ॒भिधे᳚त॒नादि॑त्यासःपु॒राहथा᳚त् | कद्ध॑स्थहवनश्रुतः || {6.4.51.5}, {8.67.5}, {8.7.8.5} |
921 | यद्वः॑श्रा॒न्ताय॑सुन्व॒तेवरू᳚थ॒मस्ति॒यच्छ॒र्दिः | तेना᳚नो॒ऽअधि॑वोचत || {6.4.52.1}, {8.67.6}, {8.7.8.6} |
922 | अस्ति॑देवाऽअं॒होरु॒र्वस्ति॒रत्न॒मना᳚गसः | आदि॑त्या॒ऽअद्भु॑तैनसः || {6.4.52.2}, {8.67.7}, {8.7.8.7} |
923 | मानः॒सेतुः॑सिषेद॒यंम॒हेवृ॑णक्तुन॒स्परि॑ | इन्द्र॒ऽइद्धिश्रु॒तोव॒शी || {6.4.52.3}, {8.67.8}, {8.7.8.8} |
924 | मानो᳚मृ॒चारि॑पू॒णांवृ॑जि॒नाना᳚मविष्यवः | देवा᳚ऽअ॒भिप्रमृ॑क्षत || {6.4.52.4}, {8.67.9}, {8.7.8.9} |
925 | उ॒तत्वाम॑दितेमह्य॒हंदे॒व्युप॑ब्रुवे | सु॒मृ॒ळी॒काम॒भिष्ट॑ये || {6.4.52.5}, {8.67.10}, {8.7.8.10} |
926 | पर्षि॑दी॒नेग॑भी॒रऽआँऽउग्र॑पुत्रे॒जिघां᳚सतः | माकि॑स्तो॒कस्य॑नोरिषत् || {6.4.53.1}, {8.67.11}, {8.7.8.11} |
927 | अ॒ने॒होन॑ऽउरुव्रज॒ऽउरू᳚चि॒विप्रस॑र्तवे | कृ॒धितो॒काय॑जी॒वसे᳚ || {6.4.53.2}, {8.67.12}, {8.7.8.12} |
928 | येमू॒र्धानः॑क्षिती॒नामद॑ब्धासः॒स्वय॑शसः | व्र॒तारक्ष᳚न्तेऽअ॒द्रुहः॑ || {6.4.53.3}, {8.67.13}, {8.7.8.13} |
929 | तेन॑ऽआ॒स्नोवृका᳚णा॒मादि॑त्यासोमु॒मोच॑त | स्ते॒नंब॒द्धमि॑वादिते || {6.4.53.4}, {8.67.14}, {8.7.8.14} |
930 | अपो॒षुण॑ऽइ॒यंशरु॒रादि॑त्या॒ऽअप॑दुर्म॒तिः | अ॒स्मदे॒त्वज॑घ्नुषी || {6.4.53.5}, {8.67.15}, {8.7.8.15} |
931 | शश्व॒द्धिवः॑सुदानव॒ऽआदि॑त्याऽऊ॒तिभि᳚र्व॒यम् | पु॒रानू॒नंबु॑भु॒ज्महे᳚ || {6.4.54.1}, {8.67.16}, {8.7.8.16} |
932 | शश्व᳚न्तं॒हिप्र॑चेतसःप्रति॒यन्तं᳚चि॒देन॑सः | देवाः᳚कृणु॒थजी॒वसे᳚ || {6.4.54.2}, {8.67.17}, {8.7.8.17} |
933 | तत्सुनो॒नव्यं॒सन्य॑स॒ऽआदि॑त्या॒यन्मुमो᳚चति | ब॒न्धाद्ब॒द्धमि॑वादिते || {6.4.54.3}, {8.67.18}, {8.7.8.18} |
934 | नास्माक॑मस्ति॒तत्तर॒ऽआदि॑त्यासोऽअति॒ष्कदे᳚ | यू॒यम॒स्मभ्यं᳚मृळत || {6.4.54.4}, {8.67.19}, {8.7.8.19} |
935 | मानो᳚हे॒तिर्वि॒वस्व॑त॒ऽआदि॑त्याःकृ॒त्रिमा॒शरुः॑ | पु॒रानुज॒रसो᳚वधीत् || {6.4.54.5}, {8.67.20}, {8.7.8.20} |
936 | विषुद्वेषो॒व्यं᳚ह॒तिमादि॑त्यासो॒विसंहि॑तम् | विष्व॒ग्विवृ॑हता॒रपः॑ || {6.4.54.6}, {8.67.21}, {8.7.8.21} |
[57] (१-१९) एकोनविंशत्यृचस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः प्रियमेध ऋषिः | (१-१३) प्रथमादित्रयोदशचामिन्द्रः, (१४-१९) चतुदर्श यादितृचद्यस्य च ऋक्षाश्वमेधयोर्दानस्तुतिदेवताः | (१-१२) प्रथमादिद्वादशर्चामानुष्टभु : प्रगाथः ((१, ४, ७, १०) प्रथमाचतुर्थीसप्तमीदशमीनामनुष्टुप् (२-३, ५-६, ८-९, १११२) द्वितीयातृतीयापञ्चमीषष्ठ्यष्टमीनवम्येकादशीद्वादशीनाञ्च गायत्री), (१३-१९) त्रयोदश्यादिसप्तानाञ्च गायत्री छन्दसी || | |
937 | आत्वा॒रथं॒यथो॒तये᳚सु॒म्नाय॑वर्तयामसि | तु॒वि॒कू॒र्मिमृ॑ती॒षह॒मिन्द्र॒शवि॑ष्ठ॒सत्प॑ते || {6.5.1.1}, {8.68.1}, {8.7.9.1} |
938 | तुवि॑शुष्म॒तुवि॑क्रतो॒शची᳚वो॒विश्व॑यामते | आप॑प्राथमहित्व॒ना || {6.5.1.2}, {8.68.2}, {8.7.9.2} |
939 | यस्य॑तेमहि॒नाम॒हःपरि॑ज्मा॒यन्त॑मी॒यतुः॑ | हस्ता॒वज्रं᳚हिर॒ण्यय᳚म् || {6.5.1.3}, {8.68.3}, {8.7.9.3} |
940 | वि॒श्वान॑रस्यव॒स्पति॒मना᳚नतस्य॒शव॑सः | एवै᳚श्चचर्षणी॒नामू॒तीहु॑वे॒रथा᳚नाम् || {6.5.1.4}, {8.68.4}, {8.7.9.4} |
941 | अ॒भिष्ट॑येस॒दावृ॑धं॒स्व᳚र्मीळ्हेषु॒यंनरः॑ | नाना॒हव᳚न्तऽऊ॒तये᳚ || {6.5.1.5}, {8.68.5}, {8.7.9.5} |
942 | प॒रोमा᳚त्र॒मृची᳚षम॒मिन्द्र॑मु॒ग्रंसु॒राध॑सम् | ईशा᳚नंचि॒द्वसू᳚नाम् || {6.5.2.1}, {8.68.6}, {8.7.9.6} |
943 | तंत॒मिद्राध॑सेम॒हऽइन्द्रं᳚चोदामिपी॒तये᳚ | यःपू॒र्व्यामनु॑ष्टुति॒मीशे᳚कृष्टी॒नांनृ॒तुः || {6.5.2.2}, {8.68.7}, {8.7.9.7} |
944 | नयस्य॑तेशवसानस॒ख्यमा॒नंश॒मर्त्यः॑ | नकिः॒शवां᳚सितेनशत् || {6.5.2.3}, {8.68.8}, {8.7.9.8} |
945 | त्वोता᳚स॒स्त्वायु॒जाप्सुसूर्ये᳚म॒हद्धन᳚म् | जये᳚मपृ॒त्सुव॑ज्रिवः || {6.5.2.4}, {8.68.9}, {8.7.9.9} |
946 | तंत्वा᳚य॒ज्ञेभि॑रीमहे॒तंगी॒र्भिर्गि᳚र्वणस्तम | इन्द्र॒यथा᳚चि॒दावि॑थ॒वाजे᳚षुपुरु॒माय्य᳚म् || {6.5.2.5}, {8.68.10}, {8.7.9.10} |
947 | यस्य॑तेस्वा॒दुस॒ख्यंस्वा॒द्वीप्रणी᳚तिरद्रिवः | य॒ज्ञोवि॑तन्त॒साय्यः॑ || {6.5.3.1}, {8.68.11}, {8.7.9.11} |
948 | उ॒रुण॑स्त॒न्वे॒३॑(ए॒)तन॑ऽउ॒रुक्षया᳚यनस्कृधि | उ॒रुणो᳚यन्धिजी॒वसे᳚ || {6.5.3.2}, {8.68.12}, {8.7.9.12} |
949 | उ॒रुंनृभ्य॑ऽउ॒रुंगव॑ऽउ॒रुंरथा᳚य॒पन्था᳚म् | दे॒ववी᳚तिंमनामहे || {6.5.3.3}, {8.68.13}, {8.7.9.13} |
950 | उप॑मा॒षड्द्वाद्वा॒नरः॒सोम॑स्य॒हर्ष्या᳚ | तिष्ठ᳚न्तिस्वादुरा॒तयः॑ || {6.5.3.4}, {8.68.14}, {8.7.9.14} |
951 | ऋ॒ज्रावि᳚न्द्रो॒तऽआद॑दे॒हरी॒ऋक्ष॑स्यसू॒नवि॑ | आ॒श्व॒मे॒धस्य॒रोहि॑ता || {6.5.3.5}, {8.68.15}, {8.7.9.15} |
952 | सु॒रथाँ᳚ऽआतिथि॒ग्वेस्व॑भी॒शूँरा॒र्क्षे | आ॒श्व॒मे॒धेसु॒पेश॑सः || {6.5.4.1}, {8.68.16}, {8.7.9.16} |
953 | षळश्वाँ᳚ऽआतिथि॒ग्वऽइ᳚न्द्रो॒तेव॒धूम॑तः | सचा᳚पू॒तक्र॑तौसनम् || {6.5.4.2}, {8.68.17}, {8.7.9.17} |
954 | ऐषु॑चेत॒द्वृष᳚ण्वत्य॒न्तर्ऋ॒ज्रेष्वरु॑षी | स्व॒भी॒शुःकशा᳚वती || {6.5.4.3}, {8.68.18}, {8.7.9.18} |
955 | नयु॒ष्मेवा᳚जबन्धवोनिनि॒त्सुश्च॒नमर्त्यः॑ | अ॒व॒द्यमधि॑दीधरत् || {6.5.4.4}, {8.68.19}, {8.7.9.19} |
[58] (१-१८) अष्टादशर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः प्रियमेध ऋषिः | (१-१०, १३-१८) प्रथमादिदशर्चाम् त्रयोदश्यादिषराणाञ्चेन्द्रः, (११) एकादश्या पूर्वाधर्सय विश्वे देवाः, (११-१२) एकादश्या उत्तरार्धस्य द्वादश १२१५) प्रथमर्चस्तृतीयायाः सप्तम्यादिचतसृणां द्वादश्यादिचतसृणाञ्चानष्टप (२) द्वितीयाया उष्णिक्, (४-६) चतुर्थ्यादितृचस्य गायत्री, (११, १६) एकादशीषोडश्योः पङ्क्तिः, (१७-१८) सप्तदश्यष्टादश्योश्च बृहती छन्दांसि || | |
956 | प्रप्र॑वस्त्रि॒ष्टुभ॒मिषं᳚म॒न्दद्वी᳚रा॒येन्द॑वे | धि॒यावो᳚मे॒धसा᳚तये॒पुरं॒ध्यावि॑वासति || {6.5.5.1}, {8.69.1}, {8.7.10.1} |
957 | न॒दंव॒ऽओद॑तीनांन॒दंयोयु॑वतीनाम् | पतिं᳚वो॒ऽअघ्न्या᳚नांधेनू॒नामि॑षुध्यसि || {6.5.5.2}, {8.69.2}, {8.7.10.2} |
958 | ताऽअ॑स्य॒सूद॑दोहसः॒सोमं᳚श्रीणन्ति॒पृश्न॑यः | जन्म᳚न्दे॒वानां॒विश॑स्त्रि॒ष्वारो᳚च॒नेदि॒वः || {6.5.5.3}, {8.69.3}, {8.7.10.3} |
959 | अ॒भिप्रगोप॑तिंगि॒रेन्द्र॑मर्च॒यथा᳚वि॒दे | सू॒नुंस॒त्यस्य॒सत्प॑तिम् || {6.5.5.4}, {8.69.4}, {8.7.10.4} |
960 | आहर॑यःससृज्रि॒रेऽरु॑षी॒रधि॑ब॒र्हिषि॑ | यत्रा॒भिसं॒नवा᳚महे || {6.5.5.5}, {8.69.5}, {8.7.10.5} |
961 | इन्द्रा᳚य॒गाव॑ऽआ॒शिरं᳚दुदु॒ह्रेव॒ज्रिणे॒मधु॑ | यत्सी᳚मुपह्व॒रेवि॒दत् || {6.5.6.1}, {8.69.6}, {8.7.10.6} |
962 | उद्यद्ब्र॒ध्नस्य॑वि॒ष्टपं᳚गृ॒हमिन्द्र॑श्च॒गन्व॑हि | मध्वः॑पी॒त्वास॑चेवहि॒त्रिःस॒प्तसख्युः॑प॒दे || {6.5.6.2}, {8.69.7}, {8.7.10.7} |
963 | अर्च॑त॒प्रार्च॑त॒प्रिय॑मेधासो॒ऽअर्च॑त | अर्च᳚न्तुपुत्र॒काऽउ॒तपुरं॒नधृ॒ष्ण्व॑र्चत || {6.5.6.3}, {8.69.8}, {8.7.10.8} |
964 | अव॑स्वराति॒गर्ग॑रोगो॒धापरि॑सनिष्वणत् | पिङ्गा॒परि॑चनिष्कद॒दिन्द्रा᳚य॒ब्रह्मोद्य॑तम् || {6.5.6.4}, {8.69.9}, {8.7.10.9} |
965 | आयत्पत᳚न्त्ये॒न्यः॑सु॒दुघा॒ऽअन॑पस्फुरः | अ॒प॒स्फुरं᳚गृभायत॒सोम॒मिन्द्रा᳚य॒पात॑वे || {6.5.6.5}, {8.69.10}, {8.7.10.10} |
966 | अपा॒दिन्द्रो॒ऽअपा᳚द॒ग्निर्विश्वे᳚दे॒वाऽअ॑मत्सत | वरु॑ण॒ऽइदि॒हक्ष॑य॒त्तमापो᳚ऽअ॒भ्य॑नूषतव॒त्संसं॒शिश्व॑रीरिव || {6.5.7.1}, {8.69.11}, {8.7.10.11} |
967 | सु॒दे॒वोऽअ॑सिवरुण॒यस्य॑तेस॒प्तसिन्ध॑वः | अ॒नु॒क्षर᳚न्तिका॒कुदं᳚सू॒र्म्यं᳚सुषि॒रामि॑व || {6.5.7.2}, {8.69.12}, {8.7.10.12} |
968 | योव्यतीँ॒रफा᳚णय॒त्सुयु॑क्ताँ॒ऽउप॑दा॒शुषे᳚ | त॒क्वोने॒तातदिद्वपु॑रुप॒मायोऽअमु॑च्यत || {6.5.7.3}, {8.69.13}, {8.7.10.13} |
969 | अतीदु॑श॒क्रऽओ᳚हत॒ऽइन्द्रो॒विश्वा॒ऽअति॒द्विषः॑ | भि॒नत्क॒नीन॑ऽओद॒नंप॒च्यमा᳚नंप॒रोगि॒रा || {6.5.7.4}, {8.69.14}, {8.7.10.14} |
970 | अ॒र्भ॒कोनकु॑मार॒कोऽधि॑तिष्ठ॒न्नवं॒रथ᳚म् | सप॑क्षन्महि॒षंमृ॒गंपि॒त्रेमा॒त्रेवि॑भु॒क्रतु᳚म् || {6.5.7.5}, {8.69.15}, {8.7.10.15} |
971 | आतूसु॑शिप्रदम्पते॒रथं᳚तिष्ठाहिर॒ण्यय᳚म् | अध॑द्यु॒क्षंस॑चेवहिस॒हस्र॑पादमरु॒षंस्व॑स्ति॒गाम॑ने॒हस᳚म् || {6.5.7.6}, {8.69.16}, {8.7.10.16} |
972 | तंघे᳚मि॒त्थान॑म॒स्विन॒ऽउप॑स्व॒राज॑मासते | अर्थं᳚चिदस्य॒सुधि॑तं॒यदेत॑वऽआव॒र्तय᳚न्तिदा॒वने᳚ || {6.5.7.7}, {8.69.17}, {8.7.10.17} |
973 | अनु॑प्र॒त्नस्यौक॑सःप्रि॒यमे᳚धासऽएषाम् | पूर्वा॒मनु॒प्रय॑तिंवृ॒क्तब॑र्हिषोहि॒तप्र॑यसऽआशत || {6.5.7.8}, {8.69.18}, {8.7.10.18} |
[59] (१-१५) पञ्चदशर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः पुरुहन्मा ऋषिः | इन्द्रो देवता | (१६) प्रथमादितृचद्वयस्य प्रगाथः (विषमर्चाम् बृहती, समर्चाम् सतोबृहती), (७-१२) सप्तम्यादिषण्णां बृहती, (१३) त्रयोदश्या उष्णिक्, (१४) चतुदर्श या अनुष्टुप्, (१५) पञ्चदश्याश्च पुर उष्णिक् छन्दांसि || | |
974 | योराजा᳚चर्षणी॒नांयाता॒रथे᳚भि॒रध्रि॑गुः | विश्वा᳚सांतरु॒तापृत॑नानां॒ज्येष्ठो॒योवृ॑त्र॒हागृ॒णे || {6.5.8.1}, {8.70.1}, {8.8.1.1} |
975 | इन्द्रं॒तंशु᳚म्भपुरुहन्म॒न्नव॑से॒यस्य॑द्वि॒तावि॑ध॒र्तरि॑ | हस्ता᳚य॒वज्रः॒प्रति॑धायिदर्श॒तोम॒होदि॒वेनसूर्यः॑ || {6.5.8.2}, {8.70.2}, {8.8.1.2} |
976 | नकि॒ष्टंकर्म॑णानश॒द्यश्च॒कार॑स॒दावृ॑धम् | इन्द्रं॒नय॒ज्ञैर्वि॒श्वगू᳚र्त॒मृभ्व॑स॒मधृ॑ष्टंधृ॒ष्ण्वो᳚जसम् || {6.5.8.3}, {8.70.3}, {8.8.1.3} |
977 | अषा᳚ळ्हमु॒ग्रंपृत॑नासुसास॒हिंयस्मि᳚न्म॒हीरु॑रु॒ज्रयः॑ | संधे॒नवो॒जाय॑मानेऽअनोनवु॒र्द्यावः॒क्षामो᳚ऽअनोनवुः || {6.5.8.4}, {8.70.4}, {8.8.1.4} |
978 | यद्द्याव॑ऽइन्द्रतेश॒तंश॒तंभूमी᳚रु॒तस्युः | नत्वा᳚वज्रिन्त्स॒हस्रं॒सूर्या॒ऽअनु॒नजा॒तम॑ष्ट॒रोद॑सी || {6.5.8.5}, {8.70.5}, {8.8.1.5} |
979 | आप॑प्राथमहि॒नावृष्ण्या᳚वृष॒न्विश्वा᳚शविष्ठ॒शव॑सा | अ॒स्माँऽअ॑वमघव॒न्गोम॑तिव्र॒जेवज्रि᳚ञ्चि॒त्राभि॑रू॒तिभिः॑ || {6.5.9.1}, {8.70.6}, {8.8.1.6} |
980 | नसी॒मदे᳚वऽआप॒दिषं᳚दीर्घायो॒मर्त्यः॑ | एत॑ग्वाचि॒द्यऽएत॑शायु॒योज॑ते॒हरी॒ऽइन्द्रो᳚यु॒योज॑ते || {6.5.9.2}, {8.70.7}, {8.8.1.7} |
981 | तंवो᳚म॒होम॒हाय्य॒मिन्द्रं᳚दा॒नाय॑स॒क्षणि᳚म् | योगा॒धेषु॒यऽआर॑णेषु॒हव्यो॒वाजे॒ष्वस्ति॒हव्यः॑ || {6.5.9.3}, {8.70.8}, {8.8.1.8} |
982 | उदू॒षुणो᳚वसोम॒हेमृ॒शस्व॑शूर॒राध॑से | उदू॒षुम॒ह्यैम॑घवन्म॒घत्त॑य॒ऽउदि᳚न्द्र॒श्रव॑सेम॒हे || {6.5.9.4}, {8.70.9}, {8.8.1.9} |
983 | त्वंन॑ऽइन्द्रऋत॒युस्त्वा॒निदो॒नितृ᳚म्पसि | मध्ये᳚वसिष्वतुविनृम्णो॒र्वोर्निदा॒संशि॑श्नथो॒हथैः᳚ || {6.5.9.5}, {8.70.10}, {8.8.1.10} |
984 | अ॒न्यव्र॑त॒ममा᳚नुष॒मय॑ज्वान॒मदे᳚वयुम् | अव॒स्वःसखा᳚दुधुवीत॒पर्व॑तःसु॒घ्नाय॒दस्युं॒पर्व॑तः || {6.5.10.1}, {8.70.11}, {8.8.1.11} |
985 | त्वंन॑ऽइन्द्रासां॒हस्ते᳚शविष्ठदा॒वने᳚ | धा॒नानां॒नसंगृ॑भायास्म॒युर्द्विःसंगृ॑भायास्म॒युः || {6.5.10.2}, {8.70.12}, {8.8.1.12} |
986 | सखा᳚यः॒क्रतु॑मिच्छतक॒थारा᳚धामश॒रस्य॑ | उप॑स्तुतिंभो॒जःसू॒रिर्योऽअह्र॑यः || {6.5.10.3}, {8.70.13}, {8.8.1.13} |
987 | भूरि॑भिःसमह॒ऋषि॑भिर्ब॒र्हिष्म॑द्भिःस्तविष्यसे | यदि॒त्थमेक॑मेक॒मिच्छर॑व॒त्सान्प॑रा॒ददः॑ || {6.5.10.4}, {8.70.14}, {8.8.1.14} |
988 | क॒र्ण॒गृह्या᳚म॒घवा᳚शौरदे॒व्योव॒त्संन॑स्त्रि॒भ्यऽआन॑यत् | अ॒जांसू॒रिर्नधात॑वे || {6.5.10.5}, {8.70.15}, {8.8.1.15} |
[60] (१-१५) पञ्चदशर्चस्य सूक्तस्या ङ्गिरसौ सदीतिपुरुमी हौ तयोरन्यतरो वा ऋषिः | अग्निर्देवता | (१-९) प्रथमादिनवों गायत्री, (१०-१५) दशम्यादिषण्णाञ्च प्रगाथः (विषमर्चाम् बृहती, समर्चाम् सतोबृहती) छन्दसी || | |
989 | त्वंनो᳚ऽअग्ने॒महो᳚भिःपा॒हिविश्व॑स्या॒ऽअरा᳚तेः | उ॒तद्वि॒षोमर्त्य॑स्य || {6.5.11.1}, {8.71.1}, {8.8.2.1} |
990 | न॒हिम॒न्युःपौरु॑षेय॒ऽईशे॒हिवः॑प्रियजात | त्वमिद॑सि॒क्षपा᳚वान् || {6.5.11.2}, {8.71.2}, {8.8.2.2} |
991 | सनो॒विश्वे᳚भिर्दे॒वेभि॒रूर्जो᳚नपा॒द्भद्र॑शोचे | र॒यिंदे᳚हिवि॒श्ववा᳚रम् || {6.5.11.3}, {8.71.3}, {8.8.2.3} |
992 | नतम॑ग्ने॒ऽअरा᳚तयो॒मर्तं᳚युवन्तरा॒यः | यंत्राय॑सेदा॒श्वांस᳚म् || {6.5.11.4}, {8.71.4}, {8.8.2.4} |
993 | यंत्वंवि॑प्रमे॒धसा᳚ता॒वग्ने᳚हि॒नोषि॒धना᳚य | सतवो॒तीगोषु॒गन्ता᳚ || {6.5.11.5}, {8.71.5}, {8.8.2.5} |
994 | त्वंर॒यिंपु॑रु॒वीर॒मग्ने᳚दा॒शुषे॒मर्ता᳚य | प्रणो᳚नय॒वस्यो॒ऽअच्छ॑ || {6.5.12.1}, {8.71.6}, {8.8.2.6} |
995 | उ॒रु॒ष्याणो॒मापरा᳚दाऽअघाय॒तेजा᳚तवेदः | दु॒रा॒ध्ये॒३॑(ए॒)मर्ता᳚य || {6.5.12.2}, {8.71.7}, {8.8.2.7} |
996 | अग्ने॒माकि॑ष्टेदे॒वस्य॑रा॒तिमदे᳚वोयुयोत | त्वमी᳚शिषे॒वसू᳚नाम् || {6.5.12.3}, {8.71.8}, {8.8.2.8} |
997 | सनो॒वस्व॒ऽउप॑मा॒स्यूर्जो᳚नपा॒न्माहि॑नस्य | सखे᳚वसोजरि॒तृभ्यः॑ || {6.5.12.4}, {8.71.9}, {8.8.2.9} |
998 | अच्छा᳚नःशी॒रशो᳚चिषं॒गिरो᳚यन्तुदर्श॒तम् | अच्छा᳚य॒ज्ञासो॒नम॑सापुरू॒वसुं᳚पुरुप्रश॒स्तमू॒तये᳚ || {6.5.12.5}, {8.71.10}, {8.8.2.10} |
999 | अ॒ग्निंसू॒नुंसह॑सोजा॒तवे᳚दसंदा॒नाय॒वार्या᳚णाम् | द्वि॒तायोभूद॒मृतो॒मर्त्ये॒ष्वाहोता᳚म॒न्द्रत॑मोवि॒शि || {6.5.13.1}, {8.71.11}, {8.8.2.11} |
1000 | अ॒ग्निंवो᳚देवय॒ज्यया॒ग्निंप्र॑य॒त्य॑ध्व॒रे | अ॒ग्निंधी॒षुप्र॑थ॒मम॒ग्निमर्व॑त्य॒ग्निंक्षैत्रा᳚य॒साध॑से || {6.5.13.2}, {8.71.12}, {8.8.2.12} |
1001 | अ॒ग्निरि॒षांस॒ख्येद॑दातुन॒ऽईशे॒योवार्या᳚णाम् | अ॒ग्निंतो॒केतन॑ये॒शश्व॑दीमहे॒वसुं॒सन्तं᳚तनू॒पाम् || {6.5.13.3}, {8.71.13}, {8.8.2.13} |
1002 | अ॒ग्निमी᳚ळि॒ष्वाव॑से॒गाथा᳚भिःशी॒रशो᳚चिषम् | अ॒ग्निंरा॒येपु॑रुमीळ्हश्रु॒तंनरो॒ऽग्निंसु॑दी॒तये᳚छ॒र्दिः || {6.5.13.4}, {8.71.14}, {8.8.2.14} |
1003 | अ॒ग्निंद्वेषो॒योत॒वैनो᳚गृणीमस्य॒ग्निंशंयोश्च॒दात॑वे | विश्वा᳚सुवि॒क्ष्व॑वि॒तेव॒हव्यो॒भुव॒द्वस्तु॑र्ऋषू॒णाम् || {6.5.13.5}, {8.71.15}, {8.8.2.15} |
[61] (१-१८) अष्टादशर्चस्य सूक्तस्य प्रागाथो हर्यत ऋषिः | अग्निर्हवींषि वा देवताः | गायत्री छन्दः || | |
1004 | ह॒विष्कृ॑णुध्व॒माग॑मदध्व॒र्युर्व॑नते॒पुनः॑ | वि॒द्वाँऽअ॑स्यप्र॒शास॑नम् || {6.5.14.1}, {8.72.1}, {8.8.3.1} |
1005 | निति॒ग्मम॒भ्य१॑(अं॒)शुंसीद॒द्धोता᳚म॒नावधि॑ | जु॒षा॒णोऽअ॑स्यस॒ख्यम् || {6.5.14.2}, {8.72.2}, {8.8.3.2} |
1006 | अ॒न्तरि॑च्छन्ति॒तंजने᳚रु॒द्रंप॒रोम॑नी॒षया᳚ | गृ॒भ्णन्ति॑जि॒ह्वया᳚स॒सम् || {6.5.14.3}, {8.72.3}, {8.8.3.3} |
1007 | जा॒म्य॑तीतपे॒धनु᳚र्वयो॒धाऽअ॑रुह॒द्वन᳚म् | दृ॒षदं᳚जि॒ह्वयाव॑धीत् || {6.5.14.4}, {8.72.4}, {8.8.3.4} |
1008 | चर᳚न्व॒त्सोरुश᳚न्नि॒हनि॑दा॒तारं॒नवि᳚न्दते | वेति॒स्तोत॑वऽअ॒म्ब्य᳚म् || {6.5.14.5}, {8.72.5}, {8.8.3.5} |
1009 | उ॒तोन्व॑स्य॒यन्म॒हदश्वा᳚व॒द्योज॑नंबृ॒हद् | दा॒मारथ॑स्य॒ददृ॑शे || {6.5.15.1}, {8.72.6}, {8.8.3.6} |
1010 | दु॒हन्ति॑स॒प्तैका॒मुप॒द्वापञ्च॑सृजतः | ती॒र्थेसिन्धो॒रधि॑स्व॒रे || {6.5.15.2}, {8.72.7}, {8.8.3.7} |
1011 | आद॒शभि᳚र्वि॒वस्व॑त॒ऽइन्द्रः॒कोश॑मचुच्यवीत् | खेद॑यात्रि॒वृता᳚दि॒वः || {6.5.15.3}, {8.72.8}, {8.8.3.8} |
1012 | परि॑त्रि॒धातु॑रध्व॒रंजू॒र्णिरे᳚ति॒नवी᳚यसी | मध्वा॒होता᳚रोऽअञ्जते || {6.5.15.4}, {8.72.9}, {8.8.3.9} |
1013 | सि॒ञ्चन्ति॒नम॑साव॒तमु॒च्चाच॑क्रं॒परि॑ज्मानम् | नी॒चीन॑बार॒मक्षि॑तम् || {6.5.15.5}, {8.72.10}, {8.8.3.10} |
1014 | अ॒भ्यार॒मिदद्र॑यो॒निषि॑क्तं॒पुष्क॑रे॒मधु॑ | अ॒व॒तस्य॑वि॒सर्ज॑ने || {6.5.16.1}, {8.72.11}, {8.8.3.11} |
1015 | गाव॒ऽउपा᳚वताव॒तंम॒हीय॒ज्ञस्य॑र॒प्सुदा᳚ | उ॒भाकर्णा᳚हिर॒ण्यया᳚ || {6.5.16.2}, {8.72.12}, {8.8.3.12} |
1016 | आसु॒तेसि᳚ञ्चत॒श्रियं॒रोद॑स्योरभि॒श्रिय᳚म् | र॒साद॑धीतवृष॒भम् || {6.5.16.3}, {8.72.13}, {8.8.3.13} |
1017 | तेजा᳚नत॒स्वमो॒क्य१॑(अ॒)अंसंव॒त्सासो॒नमा॒तृभिः॑ | मि॒थोन॑सन्तजा॒मिभिः॑ || {6.5.16.4}, {8.72.14}, {8.8.3.14} |
1018 | उप॒स्रक्वे᳚षु॒बप्स॑तःकृण्व॒तेध॒रुणं᳚दि॒वि | इन्द्रे᳚ऽअ॒ग्नानमः॒स्वः॑ || {6.5.16.5}, {8.72.15}, {8.8.3.15} |
1019 | अधु॑क्षत्पि॒प्युषी॒मिष॒मूर्जं᳚स॒प्तप॑दीम॒रिः | सूर्य॑स्यस॒प्तर॒श्मिभिः॑ || {6.5.17.1}, {8.72.16}, {8.8.3.16} |
1020 | सोम॑स्यमित्रावरु॒णोदि॑ता॒सूर॒ऽआद॑दे | तदातु॑रस्यभेष॒जम् || {6.5.17.2}, {8.72.17}, {8.8.3.17} |
1021 | उ॒तोन्व॑स्य॒यत्प॒दंह᳚र्य॒तस्य॑निधा॒न्य᳚म् | परि॒द्यांजि॒ह्वया᳚तनत् || {6.5.17.3}, {8.72.18}, {8.8.3.18} |
[62] (१-१८) अष्टादशर्चस्य सूक्तस्य आत्रेयो गोपवनः सप्तवध्रिर्वा ऋषिः | अश्विनौ देवते | गायत्री छन्दः || | |
1022 | उदी᳚राथामृताय॒तेयु॒ञ्जाथा᳚मश्विना॒रथ᳚म् | अन्ति॒षद्भू᳚तुवा॒मवः॑ || {6.5.18.1}, {8.73.1}, {8.8.4.1} |
1023 | नि॒मिष॑श्चि॒ज्जवी᳚यसा॒रथे॒नाया᳚तमश्विना | अन्ति॒षद्भू᳚तुवा॒मवः॑ || {6.5.18.2}, {8.73.2}, {8.8.4.2} |
1024 | उप॑स्तृणीत॒मत्र॑येहि॒मेन॑घ॒र्मम॑श्विना | अन्ति॒षद्भू᳚तुवा॒मवः॑ || {6.5.18.3}, {8.73.3}, {8.8.4.3} |
1025 | कुह॑स्थः॒कुह॑जग्मथुः॒कुह॑श्ये॒नेव॑पेतथुः | अन्ति॒षद्भू᳚तुवा॒मवः॑ || {6.5.18.4}, {8.73.4}, {8.8.4.4} |
1026 | यद॒द्यकर्हि॒कर्हि॑चिच्छुश्रू॒यात॑मि॒मंहव᳚म् | अन्ति॒षद्भू᳚तुवा॒मवः॑ || {6.5.18.5}, {8.73.5}, {8.8.4.5} |
1027 | अ॒श्विना᳚याम॒हूत॑मा॒नेदि॑ष्ठंया॒म्याप्य᳚म् | अन्ति॒षद्भू᳚तुवा॒मवः॑ || {6.5.19.1}, {8.73.6}, {8.8.4.6} |
1028 | अव᳚न्त॒मत्र॑येगृ॒हंकृ॑णु॒तंयु॒वम॑श्विना | अन्ति॒षद्भू᳚तुवा॒मवः॑ || {6.5.19.2}, {8.73.7}, {8.8.4.7} |
1029 | वरे᳚थेऽअ॒ग्निमा॒तपो॒वद॑तेव॒ल्ग्वत्र॑ये | अन्ति॒षद्भू᳚तुवा॒मवः॑ || {6.5.19.3}, {8.73.8}, {8.8.4.8} |
1030 | प्रस॒प्तव॑ध्रिरा॒शसा॒धारा᳚म॒ग्नेर॑शायत | अन्ति॒षद्भू᳚तुवा॒मवः॑ || {6.5.19.4}, {8.73.9}, {8.8.4.9} |
1031 | इ॒हाग॑तंवृषण्वसूशृणु॒तंम॑ऽइ॒मंहव᳚म् | अन्ति॒षद्भू᳚तुवा॒मवः॑ || {6.5.19.5}, {8.73.10}, {8.8.4.10} |
1032 | किमि॒दंवां᳚पुराण॒वज्जर॑तोरिवशस्यते | अन्ति॒षद्भू᳚तुवा॒मवः॑ || {6.5.20.1}, {8.73.11}, {8.8.4.11} |
1033 | स॒मा॒नंवां᳚सजा॒त्यं᳚समा॒नोबन्धु॑रश्विना | अन्ति॒षद्भू᳚तुवा॒मवः॑ || {6.5.20.2}, {8.73.12}, {8.8.4.12} |
1034 | योवां॒रजां᳚स्यश्विना॒रथो᳚वि॒याति॒रोद॑सी | अन्ति॒षद्भू᳚तुवा॒मवः॑ || {6.5.20.3}, {8.73.13}, {8.8.4.13} |
1035 | आनो॒गव्ये᳚भि॒रश्व्यैः᳚स॒हस्रै॒रुप॑गच्छतम् | अन्ति॒षद्भू᳚तुवा॒मवः॑ || {6.5.20.4}, {8.73.14}, {8.8.4.14} |
1036 | मानो॒गव्ये᳚भि॒रश्व्यैः᳚स॒हस्रे᳚भि॒रति॑ख्यतम् | अन्ति॒षद्भू᳚तुवा॒मवः॑ || {6.5.20.5}, {8.73.15}, {8.8.4.15} |
1037 | अ॒रु॒णप्सु॑रु॒षाऽअ॑भू॒दक॒र्ज्योति॑र्ऋ॒ताव॑री | अन्ति॒षद्भू᳚तुवा॒मवः॑ || {6.5.20.6}, {8.73.16}, {8.8.4.16} |
1038 | अ॒श्विना॒सुवि॒चाक॑शद्वृ॒क्षंप॑रशु॒माँऽइ॑व | अन्ति॒षद्भू᳚तुवा॒मवः॑ || {6.5.20.7}, {8.73.17}, {8.8.4.17} |
1039 | पुरं॒नधृ॑ष्ण॒वारु॑जकृ॒ष्णया᳚बाधि॒तोवि॒शा | अन्ति॒षद्भू᳚तुवा॒मवः॑ || {6.5.20.8}, {8.73.18}, {8.8.4.18} |
[63] (१-१५) पञ्चदशर्चस्य सूक्तस्य आत्रेयो गोपवन ऋषिः | (१-१२) प्रथमादिद्वादशर्चामग्निः, (१३-१५) त्रयोदश्यादितृचस्य चाक्षस्य श्रुतर्वणो दानस्तुतिदेवते | (१-१२) प्रथमादिद्वादशर्चामानुष्टभु : प्रगाथः ((१, ४, ७, १०) प्रथमाचतुर्थीसप्तमीदशमीनामनुष्टुप् (२-३, ५-६, ८-९, ११-१२) द्वितीयातृतीयापञ्चमीषष्ठ्यष्टमीनवम्येकादशीद्वादशीनाञ्च गायत्री), (१३-१५) त्रयोदश्यादितृचस्य चानुष्टप् छन्दसी || | |
1040 | वि॒शोवि॑शोवो॒ऽअति॑थिंवाज॒यन्तः॑पुरुप्रि॒यम् | अ॒ग्निंवो॒दुर्यं॒वचः॑स्तु॒षेशू॒षस्य॒मन्म॑भिः || {6.5.21.1}, {8.74.1}, {8.8.5.1} |
1041 | यंजना᳚सोह॒विष्म᳚न्तोमि॒त्रंनस॒र्पिरा᳚सुतिम् | प्र॒शंस᳚न्ति॒प्रश॑स्तिभिः || {6.5.21.2}, {8.74.2}, {8.8.5.2} |
1042 | पन्यां᳚संजा॒तवे᳚दसं॒योदे॒वता॒त्युद्य॑ता | ह॒व्यान्यैर॑यद्दि॒वि || {6.5.21.3}, {8.74.3}, {8.8.5.3} |
1043 | आग᳚न्मवृत्र॒हन्त॑मं॒ज्येष्ठ॑म॒ग्निमान॑वम् | यस्य॑श्रु॒तर्वा᳚बृ॒हन्ना॒र्क्षोऽअनी᳚क॒ऽएध॑ते || {6.5.21.4}, {8.74.4}, {8.8.5.4} |
1044 | अ॒मृतं᳚जा॒तवे᳚दसंति॒रस्तमां᳚सिदर्श॒तम् | घृ॒ताह॑वन॒मीड्य᳚म् || {6.5.21.5}, {8.74.5}, {8.8.5.5} |
1045 | स॒बाधो॒यंजना᳚ऽइ॒मे॒३॑(ए॒)ऽग्निंह॒व्येभि॒रीळ॑ते | जुह्वा᳚नासोय॒तस्रु॑चः || {6.5.22.1}, {8.74.6}, {8.8.5.6} |
1046 | इ॒यंते॒नव्य॑सीम॒तिरग्ने॒ऽअधा᳚य्य॒स्मदा | मन्द्र॒सुजा᳚त॒सुक्र॒तोऽमू᳚र॒दस्माति॑थे || {6.5.22.2}, {8.74.7}, {8.8.5.7} |
1047 | साते᳚ऽअग्ने॒शंत॑मा॒चनि॑ष्ठाभवतुप्रि॒या | तया᳚वर्धस्व॒सुष्टु॑तः || {6.5.22.3}, {8.74.8}, {8.8.5.8} |
1048 | साद्यु॒म्नैर्द्यु॒म्निनी᳚बृ॒हदुपो᳚प॒श्रव॑सि॒श्रवः॑ | दधी᳚तवृत्र॒तूर्ये᳚ || {6.5.22.4}, {8.74.9}, {8.8.5.9} |
1049 | अश्व॒मिद्गांर॑थ॒प्रांत्वे॒षमिन्द्रं॒नसत्प॑तिम् | यस्य॒श्रवां᳚सि॒तूर्व॑थ॒पन्य᳚म्पन्यंचकृ॒ष्टयः॑ || {6.5.22.5}, {8.74.10}, {8.8.5.10} |
1050 | यंत्वा᳚गो॒पव॑नोगि॒राचनि॑ष्ठदग्नेऽअङ्गिरः | सपा᳚वकश्रुधी॒हव᳚म् || {6.5.23.1}, {8.74.11}, {8.8.5.11} |
1051 | यंत्वा॒जना᳚स॒ऽईळ॑तेस॒बाधो॒वाज॑सातये | सबो᳚धिवृत्र॒तूर्ये᳚ || {6.5.23.2}, {8.74.12}, {8.8.5.12} |
1052 | अ॒हंहु॑वा॒नऽआ॒र्क्षेश्रु॒तर्व॑णिमद॒च्युति॑ | शर्धां᳚सीवस्तुका॒विनां᳚मृ॒क्षाशी॒र्षाच॑तु॒र्णाम् || {6.5.23.3}, {8.74.13}, {8.8.5.13} |
1053 | मांच॒त्वार॑ऽआ॒शवः॒शवि॑ष्ठस्यद्रवि॒त्नवः॑ | सु॒रथा᳚सोऽअ॒भिप्रयो॒वक्ष॒न्वयो॒नतुग्र्य᳚म् || {6.5.23.4}, {8.74.14}, {8.8.5.14} |
1054 | स॒त्यमित्त्वा᳚महेनदि॒परु॒ष्ण्यव॑देदिशम् | नेमा᳚पोऽअश्व॒दात॑रः॒शवि॑ष्ठादस्ति॒मर्त्यः॑ || {6.5.23.5}, {8.74.15}, {8.8.5.15} |
[64] (१-१६) षोळशर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो विरूप ऋषिः | अग्निर्देवता | गायत्री छन्दः || | |
1055 | यु॒क्ष्वाहिदे᳚व॒हूत॑माँ॒ऽअश्वाँ᳚ऽअग्नेर॒थीरि॑व | निहोता᳚पू॒र्व्यःस॑दः || {6.5.24.1}, {8.75.1}, {8.8.6.1} |
1056 | उ॒तनो᳚देवदे॒वाँऽअच्छा᳚वोचोवि॒दुष्ट॑रः | श्रद्विश्वा॒वार्या᳚कृधि || {6.5.24.2}, {8.75.2}, {8.8.6.2} |
1057 | त्वंह॒यद्य॑विष्ठ्य॒सह॑सःसूनवाहुत | ऋ॒तावा᳚य॒ज्ञियो॒भुवः॑ || {6.5.24.3}, {8.75.3}, {8.8.6.3} |
1058 | अ॒यम॒ग्निःस॑ह॒स्रिणो॒वाज॑स्यश॒तिन॒स्पतिः॑ | मू॒र्धाक॒वीर॑यी॒णाम् || {6.5.24.4}, {8.75.4}, {8.8.6.4} |
1059 | तंने॒मिमृ॒भवो᳚य॒थान॑मस्व॒सहू᳚तिभिः | नेदी᳚योय॒ज्ञम᳚ङ्गिरः || {6.5.24.5}, {8.75.5}, {8.8.6.5} |
1060 | तस्मै᳚नू॒नम॒भिद्य॑वेवा॒चावि॑रूप॒नित्य॑या | वृष्णे᳚चोदस्वसुष्टु॒तिम् || {6.5.25.1}, {8.75.6}, {8.8.6.6} |
1061 | कमु॑ष्विदस्य॒सेन॑या॒ग्नेरपा᳚कचक्षसः | प॒णिंगोषु॑स्तरामहे || {6.5.25.2}, {8.75.7}, {8.8.6.7} |
1062 | मानो᳚दे॒वानां॒विशः॑प्रस्ना॒तीरि॑वो॒स्राः | कृ॒शंनहा᳚सु॒रघ्न्याः᳚ || {6.5.25.3}, {8.75.8}, {8.8.6.8} |
1063 | मानः॑समस्यदू॒ढ्य१॑(अ॒)ःपरि॑द्वेषसोऽअंह॒तिः | ऊ॒र्मिर्ननाव॒माव॑धीत् || {6.5.25.4}, {8.75.9}, {8.8.6.9} |
1064 | नम॑स्तेऽअग्न॒ऽओज॑सेगृ॒णन्ति॑देवकृ॒ष्टयः॑ | अमै᳚र॒मित्र॑मर्दय || {6.5.25.5}, {8.75.10}, {8.8.6.10} |
1065 | कु॒वित्सुनो॒गवि॑ष्ट॒येऽग्ने᳚सं॒वेषि॑षोर॒यिम् | उरु॑कृदु॒रुण॑स्कृधि || {6.5.26.1}, {8.75.11}, {8.8.6.11} |
1066 | मानो᳚ऽअ॒स्मिन्म॑हाध॒नेपरा᳚वर्ग्भार॒भृद्य॑था | सं॒वर्गं॒संर॒यिंज॑य || {6.5.26.2}, {8.75.12}, {8.8.6.12} |
1067 | अ॒न्यम॒स्मद्भि॒याऽइ॒यमग्ने॒सिष॑क्तुदु॒च्छुना᳚ | वर्धा᳚नो॒ऽअम॑व॒च्छवः॑ || {6.5.26.3}, {8.75.13}, {8.8.6.13} |
1068 | यस्याजु॑षन्नम॒स्विनः॒शमी॒मदु᳚र्मखस्यवा | तंघेद॒ग्निर्वृ॒धाव॑ति || {6.5.26.4}, {8.75.14}, {8.8.6.14} |
1069 | पर॑स्या॒ऽअधि॑सं॒वतोऽव॑राँऽअ॒भ्यात॑र | यत्रा॒हमस्मि॒ताँऽअ॑व || {6.5.26.5}, {8.75.15}, {8.8.6.15} |
1070 | वि॒द्माहिते᳚पु॒राव॒यमग्ने᳚पि॒तुर्यथाव॑सः | अधा᳚तेसु॒म्नमी᳚महे || {6.5.26.6}, {8.75.16}, {8.8.6.16} |
[65] (१-१२) द्वादशर्चस्य सूक्तस्य काण्वः कुरुसुति ऋषिः | इन्द्रो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1071 | इ॒मंनुमा॒यिनं᳚हुव॒ऽइन्द्र॒मीशा᳚न॒मोज॑सा | म॒रुत्व᳚न्तं॒नवृ॒ञ्जसे᳚ || {6.5.27.1}, {8.76.1}, {8.8.7.1} |
1072 | अ॒यमिन्द्रो᳚म॒रुत्स॑खा॒विवृ॒त्रस्या᳚भिन॒च्छिरः॑ | वज्रे᳚णश॒तप᳚र्वणा || {6.5.27.2}, {8.76.2}, {8.8.7.2} |
1073 | वा॒वृ॒धा॒नोम॒रुत्स॒खेन्द्रो॒विवृ॒त्रमै᳚रयत् | सृ॒जन्त्स॑मु॒द्रिया᳚ऽअ॒पः || {6.5.27.3}, {8.76.3}, {8.8.7.3} |
1074 | अ॒यंह॒येन॒वाऽइ॒दंस्व᳚र्म॒रुत्व॑ताजि॒तम् | इन्द्रे᳚ण॒सोम॑पीतये || {6.5.27.4}, {8.76.4}, {8.8.7.4} |
1075 | म॒रुत्व᳚न्तमृजी॒षिण॒मोज॑स्वन्तंविर॒प्शिन᳚म् | इन्द्रं᳚गी॒र्भिर्ह॑वामहे || {6.5.27.5}, {8.76.5}, {8.8.7.5} |
1076 | इन्द्रं᳚प्र॒त्नेन॒मन्म॑नाम॒रुत्व᳚न्तंहवामहे | अ॒स्यसोम॑स्यपी॒तये᳚ || {6.5.27.6}, {8.76.6}, {8.8.7.6} |
1077 | म॒रुत्वाँ᳚ऽइन्द्रमीढ्वः॒पिबा॒सोमं᳚शतक्रतो | अ॒स्मिन्य॒ज्ञेपु॑रुष्टुत || {6.5.28.1}, {8.76.7}, {8.8.7.7} |
1078 | तुभ्येदि᳚न्द्रम॒रुत्व॑तेसु॒ताःसोमा᳚सोऽअद्रिवः | हृ॒दाहू᳚यन्तऽउ॒क्थिनः॑ || {6.5.28.2}, {8.76.8}, {8.8.7.8} |
1079 | पिबेदि᳚न्द्रम॒रुत्स॑खासु॒तंसोमं॒दिवि॑ष्टिषु | वज्रं॒शिशा᳚न॒ऽओज॑सा || {6.5.28.3}, {8.76.9}, {8.8.7.9} |
1080 | उ॒त्तिष्ठ॒न्नोज॑सास॒हपी॒त्वीशिप्रे᳚ऽअवेपयः | सोम॑मिन्द्रच॒मूसु॒तम् || {6.5.28.4}, {8.76.10}, {8.8.7.10} |
1081 | अनु॑त्वा॒रोद॑सीऽउ॒भेक्रक्ष॑माणमकृपेताम् | इन्द्र॒यद्द॑स्यु॒हाभ॑वः || {6.5.28.5}, {8.76.11}, {8.8.7.11} |
1082 | वाच॑म॒ष्टाप॑दीम॒हंनव॑स्रक्तिमृत॒स्पृश᳚म् | इन्द्रा॒त्परि॑त॒न्वं᳚ममे || {6.5.28.6}, {8.76.12}, {8.8.7.12} |
[66] (१-११) एकादशर्चस्य सूक्तस्य काण्वः कुरुसुति ऋषिः | इन्द्रो देवता | (१-९) प्रथमादिनवों गायत्री, (१०-११) दशम्येकादश्योश्च प्रगाथः (दशम्या बृहती, एकादश्याः सतोबृहती) छन्दसी || | |
1083 | ज॒ज्ञा॒नोनुश॒तक्र॑तु॒र्विपृ॑च्छ॒दिति॑मा॒तर᳚म् | कऽउ॒ग्राःकेह॑शृण्विरे || {6.5.29.1}, {8.77.1}, {8.8.8.1} |
1084 | आदीं᳚शव॒स्य॑ब्रवीदौर्णवा॒भम॑ही॒शुव᳚म् | तेपु॑त्रसन्तुनि॒ष्टुरः॑ || {6.5.29.2}, {8.77.2}, {8.8.8.2} |
1085 | समित्तान्वृ॑त्र॒हाखि॑द॒त्खेऽअ॒राँऽइ॑व॒खेद॑या | प्रवृ॑द्धोदस्यु॒हाभ॑वत् || {6.5.29.3}, {8.77.3}, {8.8.8.3} |
1086 | एक॑याप्रति॒धापि॑बत्सा॒कंसरां᳚सित्रिं॒शत᳚म् | इन्द्रः॒सोम॑स्यकाणु॒का || {6.5.29.4}, {8.77.4}, {8.8.8.4} |
1087 | अ॒भिग᳚न्ध॒र्वम॑तृणदबु॒ध्नेषु॒रज॒स्स्वा | इन्द्रो᳚ब्र॒ह्मभ्य॒ऽइद्वृ॒धे || {6.5.29.5}, {8.77.5}, {8.8.8.5} |
1088 | निरा᳚विध्यद्गि॒रिभ्य॒ऽआधा॒रय॑त्प॒क्वमो᳚द॒नम् | इन्द्रो᳚बु॒न्दंस्वा᳚ततम् || {6.5.30.1}, {8.77.6}, {8.8.8.6} |
1089 | श॒तब्र॑ध्न॒ऽइषु॒स्तव॑स॒हस्र॑पर्ण॒ऽएक॒ऽइत् | यमि᳚न्द्रचकृ॒षेयुज᳚म् || {6.5.30.2}, {8.77.7}, {8.8.8.7} |
1090 | तेन॑स्तो॒तृभ्य॒ऽआभ॑र॒नृभ्यो॒नारि॑भ्यो॒ऽअत्त॑वे | स॒द्योजा॒तऋ॑भुष्ठिर || {6.5.30.3}, {8.77.8}, {8.8.8.8} |
1091 | ए॒ताच्यौ॒त्नानि॑तेकृ॒तावर्षि॑ष्ठानि॒परी᳚णसा | हृ॒दावी॒ड्व॑धारयः || {6.5.30.4}, {8.77.9}, {8.8.8.9} |
1092 | विश्वेत्ताविष्णु॒राभ॑रदुरुक्र॒मस्त्वेषि॑तः | श॒तंम॑हि॒षान्क्षी᳚रपा॒कमो᳚द॒नंव॑रा॒हमिन्द्र॑ऽएमु॒षम् || {6.5.30.5}, {8.77.10}, {8.8.8.10} |
1093 | तु॒वि॒क्षंते॒सुकृ॑तंसू॒मयं॒धनुः॑सा॒धुर्बु॒न्दोहि॑र॒ण्ययः॑ | उ॒भाते᳚बा॒हूरण्या॒सुसं᳚स्कृतऋदू॒पेचि॑दृदू॒वृधा᳚ || {6.5.30.6}, {8.77.11}, {8.8.8.11} |
[67] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य काण्वः कुरुसुति ऋषिः | इन्द्रो देवता | (१-९) प्रथमादिनवों गायत्री, (१०) दशम्याश्च बृहती छन्दसी || | |
1094 | पु॒रो॒ळाशं᳚नो॒ऽअन्ध॑स॒ऽइन्द्र॑स॒हस्र॒माभ॑र | श॒ताच॑शूर॒गोना᳚म् || {6.5.31.1}, {8.78.1}, {8.8.9.1} |
1095 | आनो᳚भर॒व्यञ्ज॑नं॒गामश्व॑म॒भ्यञ्ज॑नम् | सचा᳚म॒नाहि॑र॒ण्यया᳚ || {6.5.31.2}, {8.78.2}, {8.8.9.2} |
1096 | उ॒तनः॑कर्ण॒शोभ॑नापु॒रूणि॑धृष्ण॒वाभ॑र | त्वंहिशृ᳚ण्वि॒षेव॑सो || {6.5.31.3}, {8.78.3}, {8.8.9.3} |
1097 | नकीं᳚वृधी॒कऽइ᳚न्द्रते॒नसु॒षानसु॒दाऽउ॒त | नान्यस्त्वच्छू᳚रवा॒घतः॑ || {6.5.31.4}, {8.78.4}, {8.8.9.4} |
1098 | नकी॒मिन्द्रो॒निक॑र्तवे॒नश॒क्रःपरि॑शक्तवे | विश्वं᳚शृणोति॒पश्य॑ति || {6.5.31.5}, {8.78.5}, {8.8.9.5} |
1099 | सम॒न्युंमर्त्या᳚ना॒मद॑ब्धो॒निचि॑कीषते | पु॒रानि॒दश्चि॑कीषते || {6.5.32.1}, {8.78.6}, {8.8.9.6} |
1100 | क्रत्व॒ऽइत्पू॒र्णमु॒दरं᳚तु॒रस्या᳚स्तिविध॒तः | वृ॒त्र॒घ्नःसो᳚म॒पाव्नः॑ || {6.5.32.2}, {8.78.7}, {8.8.9.7} |
1101 | त्वेवसू᳚नि॒संग॑ता॒विश्वा᳚चसोम॒सौभ॑गा | सु॒दात्वप॑रिह्वृता || {6.5.32.3}, {8.78.8}, {8.8.9.8} |
1102 | त्वामिद्य॑व॒युर्मम॒कामो᳚ग॒व्युर्हि॑रण्य॒युः | त्वाम॑श्व॒युरेष॑ते || {6.5.32.4}, {8.78.9}, {8.8.9.9} |
1103 | तवेदि᳚न्द्रा॒हमा॒शसा॒हस्ते॒दात्रं᳚च॒नाद॑दे | दि॒नस्य॑वामघव॒न्त्सम्भृ॑तस्यवापू॒र्धियव॑स्यका॒शिना᳚ || {6.5.32.5}, {8.78.10}, {8.8.9.10} |
[68] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कृत्रुषिः, सोमो देवता | (१-८) प्रथमाद्यश्टर्चाम् गायत्री, (९) नवम्याश्चानुष्टप् छन्दसी || | |
1104 | अ॒यंकृ॒त्नुरगृ॑भीतोविश्व॒जिदु॒द्भिदित्सोमः॑ | ऋषि॒र्विप्रः॒काव्ये᳚न || {6.5.33.1}, {8.79.1}, {8.8.10.1} |
1105 | अ॒भ्यू᳚र्णोति॒यन्न॒ग्नंभि॒षक्ति॒विश्वं॒यत्तु॒रम् | प्रेम॒न्धःख्य॒न्निःश्रो॒णोभू᳚त् || {6.5.33.2}, {8.79.2}, {8.8.10.2} |
1106 | त्वंसो᳚मतनू॒कृद्भ्यो॒द्वेषो᳚भ्यो॒ऽन्यकृ॑तेभ्यः | उ॒रुय॒न्तासि॒वरू᳚थम् || {6.5.33.3}, {8.79.3}, {8.8.10.3} |
1107 | त्वंचि॒त्तीतव॒दक्षै᳚र्दि॒वऽआपृ॑थि॒व्याऋ॑जीषिन् | यावी᳚र॒घस्य॑चि॒द्द्वेषः॑ || {6.5.33.4}, {8.79.4}, {8.8.10.4} |
1108 | अ॒र्थिनो॒यन्ति॒चेदर्थं॒गच्छा॒निद्द॒दुषो᳚रा॒तिम् | व॒वृ॒ज्युस्तृष्य॑तः॒काम᳚म् || {6.5.33.5}, {8.79.5}, {8.8.10.5} |
1109 | वि॒दद्यत्पू॒र्व्यंन॒ष्टमुदी᳚मृता॒युमी᳚रयत् | प्रेमायु॑स्तारी॒दती᳚र्णम् || {6.5.34.1}, {8.79.6}, {8.8.10.6} |
1110 | सु॒शेवो᳚नोमृळ॒याकु॒रदृ॑प्तक्रतुरवा॒तः | भवा᳚नःसोम॒शंहृ॒दे || {6.5.34.2}, {8.79.7}, {8.8.10.7} |
1111 | मानः॑सोम॒संवी᳚विजो॒माविबी᳚भिषथाराजन् | मानो॒हार्दि॑त्वि॒षाव॑धीः || {6.5.34.3}, {8.79.8}, {8.8.10.8} |
1112 | अव॒यत्स्वेस॒धस्थे᳚दे॒वानां᳚दुर्म॒तीरीक्षे᳚ | राज॒न्नप॒द्विषः॑सेध॒मीढ्वो॒ऽअप॒स्रिधः॑सेध || {6.5.34.4}, {8.79.9}, {8.8.10.9} |
[69] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य नौधस एक ऋषिः | (१-९) प्रथमादिनवर्चामिन्द्रः, (१०) दशम्याश्च देवा देवताः | (१-९) प्रथमादिनवों गायत्री, (१०) दशम्याश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
1113 | न॒ह्य१॑(अ॒)'न्यंब॒ळाक॑रंमर्डि॒तारं᳚शतक्रतो | त्वंन॑ऽइन्द्रमृळय || {6.5.35.1}, {8.80.1}, {8.8.11.1} |
1114 | योनः॒शश्व॑त्पु॒रावि॒थामृ॑ध्रो॒वाज॑सातये | सत्वंन॑ऽइन्द्रमृळय || {6.5.35.2}, {8.80.2}, {8.8.11.2} |
1115 | किम॒ङ्गर॑ध्र॒चोद॑नःसुन्वा॒नस्या᳚वि॒तेद॑सि | कु॒वित्स्वि᳚न्द्रणः॒शकः॑ || {6.5.35.3}, {8.80.3}, {8.8.11.3} |
1116 | इन्द्र॒प्रणो॒रथ॑मवप॒श्चाच्चि॒त्सन्त॑मद्रिवः | पु॒रस्ता᳚देनंमेकृधि || {6.5.35.4}, {8.80.4}, {8.8.11.4} |
1117 | हन्तो॒नुकिमा᳚ससेप्रथ॒मंनो॒रथं᳚कृधि | उ॒प॒मंवा᳚ज॒युश्रवः॑ || {6.5.35.5}, {8.80.5}, {8.8.11.5} |
1118 | अवा᳚नोवाज॒युंरथं᳚सु॒करं᳚ते॒किमित्परि॑ | अ॒स्मान्त्सुजि॒ग्युष॑स्कृधि || {6.5.36.1}, {8.80.6}, {8.8.11.6} |
1119 | इन्द्र॒दृह्य॑स्व॒पूर॑सिभ॒द्रात॑ऽएतिनिष्कृ॒तम् | इ॒यंधीर्ऋ॒त्विया᳚वती || {6.5.36.2}, {8.80.7}, {8.8.11.7} |
1120 | मासी᳚मव॒द्यऽआभा᳚गु॒र्वीकाष्ठा᳚हि॒तंधन᳚म् | अ॒पावृ॑क्ताऽअर॒त्नयः॑ || {6.5.36.3}, {8.80.8}, {8.8.11.8} |
1121 | तु॒रीयं॒नाम॑य॒ज्ञियं᳚य॒दाकर॒स्तदु॑श्मसि | आदित्पति᳚र्नऽओहसे || {6.5.36.4}, {8.80.9}, {8.8.11.9} |
1122 | अवी᳚वृधद्वोऽअमृता॒ऽअम᳚न्दीदेक॒द्यूर्दे᳚वाऽउ॒तयाश्च॑देवीः | तस्मा᳚ऽउ॒राधः॑कृणुतप्रश॒स्तंप्रा॒तर्म॒क्षूधि॒याव॑सुर्जगम्यात् || {6.5.36.5}, {8.80.10}, {8.8.11.10} |
[70] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काण्वः कुसीदी ऋषिः | इन्द्रो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1123 | आतून॑ऽइन्द्रक्षु॒मन्तं᳚चि॒त्रंग्रा॒भंसंगृ॑भाय | म॒हा॒ह॒स्तीदक्षि॑णेन || {6.5.37.1}, {8.81.1}, {8.9.1.1} |
1124 | वि॒द्माहित्वा᳚तुविकू॒र्मिंतु॒विदे᳚ष्णंतु॒वीम॑घम् | तु॒वि॒मा॒त्रमवो᳚भिः || {6.5.37.2}, {8.81.2}, {8.9.1.2} |
1125 | न॒हित्वा᳚शूरदे॒वानमर्ता᳚सो॒दित्स᳚न्तम् | भी॒मंनगांवा॒रय᳚न्ते || {6.5.37.3}, {8.81.3}, {8.9.1.3} |
1126 | एतो॒न्विन्द्रं॒स्तवा॒मेशा᳚नं॒वस्वः॑स्व॒राज᳚म् | नराध॑सामर्धिषन्नः || {6.5.37.4}, {8.81.4}, {8.9.1.4} |
1127 | प्रस्तो᳚ष॒दुप॑गासिष॒च्छ्रव॒त्साम॑गी॒यमा᳚नम् | अ॒भिराध॑साजुगुरत् || {6.5.37.5}, {8.81.5}, {8.9.1.5} |
1128 | आनो᳚भर॒दक्षि॑णेना॒भिस॒व्येन॒प्रमृ॑श | इन्द्र॒मानो॒वसो॒र्निर्भा᳚क् || {6.5.38.1}, {8.81.6}, {8.9.1.6} |
1129 | उप॑क्रम॒स्वाभ॑रधृष॒ताधृ॑ष्णो॒जना᳚नाम् | अदा᳚शूष्टरस्य॒वेदः॑ || {6.5.38.2}, {8.81.7}, {8.9.1.7} |
1130 | इन्द्र॒यऽउ॒नुते॒ऽअस्ति॒वाजो॒विप्रे᳚भिः॒सनि॑त्वः | अ॒स्माभिः॒सुतंस॑नुहि || {6.5.38.3}, {8.81.8}, {8.9.1.8} |
1131 | स॒द्यो॒जुव॑स्ते॒वाजा᳚ऽअ॒स्मभ्यं᳚वि॒श्वश्च᳚न्द्राः | वशै᳚श्चम॒क्षूज॑रन्ते || {6.5.38.4}, {8.81.9}, {8.9.1.9} |
[71] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काण्वः कुसीदी ऋषिः | इन्द्रो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1132 | आप्रद्र॑वपरा॒वतो᳚ऽर्वा॒वत॑श्चवृत्रहन् | मध्वः॒प्रति॒प्रभ᳚र्मणि || {6.6.1.1}, {8.82.1}, {8.9.2.1} |
1133 | ती॒व्राःसोमा᳚स॒ऽआग॑हिसु॒तासो᳚मादयि॒ष्णवः॑ | पिबा᳚द॒धृग्यथो᳚चि॒षे || {6.6.1.2}, {8.82.2}, {8.9.2.2} |
1134 | इ॒षाम᳚न्द॒स्वादु॒तेऽरं॒वरा᳚यम॒न्यवे᳚ | भुव॑त्तऽइन्द्र॒शंहृ॒दे || {6.6.1.3}, {8.82.3}, {8.9.2.3} |
1135 | आत्व॑शत्र॒वाग॑हि॒न्यु१॑(उ॒)क्थानि॑चहूयसे | उ॒प॒मेरो᳚च॒नेदि॒वः || {6.6.1.4}, {8.82.4}, {8.9.2.4} |
1136 | तुभ्या॒यमद्रि॑भिःसु॒तोगोभिः॑श्री॒तोमदा᳚य॒कम् | प्रसोम॑ऽइन्द्रहूयते || {6.6.1.5}, {8.82.5}, {8.9.2.5} |
1137 | इन्द्र॑श्रु॒धिसुमे॒हव॑म॒स्मेसु॒तस्य॒गोम॑तः | विपी॒तिंतृ॒प्तिम॑श्नुहि || {6.6.2.1}, {8.82.6}, {8.9.2.6} |
1138 | यऽइ᳚न्द्रचम॒सेष्वासोम॑श्च॒मूषु॑तेसु॒तः | पिबेद॑स्य॒त्वमी᳚शिषे || {6.6.2.2}, {8.82.7}, {8.9.2.7} |
1139 | योऽअ॒प्सुच॒न्द्रमा᳚ऽइव॒सोम॑श्च॒मूषु॒ददृ॑शे | पिबेद॑स्य॒त्वमी᳚शिषे || {6.6.2.3}, {8.82.8}, {8.9.2.8} |
1140 | यंते᳚श्ये॒नःप॒दाभ॑रत्ति॒रोरजां॒स्यस्पृ॑तम् | पिबेद॑स्य॒त्वमी᳚शिषे || {6.6.2.4}, {8.82.9}, {8.9.2.9} |
[72] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काण्वः कुसीदी ऋषिः | विश्वे देवा देवताः | गायत्री छन्दः || | |
1141 | दे॒वाना॒मिदवो᳚म॒हत्तदावृ॑णीमहेव॒यम् | वृष्णा᳚म॒स्मभ्य॑मू॒तये᳚ || {6.6.3.1}, {8.83.1}, {8.9.3.1} |
1142 | तेनः॑सन्तु॒युजः॒सदा॒वरु॑णोमि॒त्रोऽअ᳚र्य॒मा | वृ॒धास॑श्च॒प्रचे᳚तसः || {6.6.3.2}, {8.83.2}, {8.9.3.2} |
1143 | अति॑नोविष्पि॒तापु॒रुनौ॒भिर॒पोनप॑र्षथ | यू॒यमृ॒तस्य॑रथ्यः || {6.6.3.3}, {8.83.3}, {8.9.3.3} |
1144 | वा॒मंनो᳚ऽअस्त्वर्यमन्वा॒मंव॑रुण॒शंस्य᳚म् | वा॒मंह्या᳚वृणी॒महे᳚ || {6.6.3.4}, {8.83.4}, {8.9.3.4} |
1145 | वा॒मस्य॒हिप्र॑चेतस॒ऽईशा᳚नाशोरिशादसः | नेमा᳚दित्याऽअ॒घस्य॒यत् || {6.6.3.5}, {8.83.5}, {8.9.3.5} |
1146 | व॒यमिद्वः॑सुदानवःक्षि॒यन्तो॒यान्तो॒ऽअध्व॒न्ना | देवा᳚वृ॒धाय॑हूमहे || {6.6.4.1}, {8.83.6}, {8.9.3.6} |
1147 | अधि॑नऽइन्द्रैषां॒विष्णो᳚सजा॒त्या᳚नाम् | इ॒तामरु॑तो॒ऽअश्वि॑ना || {6.6.4.2}, {8.83.7}, {8.9.3.7} |
1148 | प्रभ्रा᳚तृ॒त्वंसु॑दान॒वोऽध॑द्वि॒तास॑मा॒न्या | मा॒तुर्गर्भे᳚भरामहे || {6.6.4.3}, {8.83.8}, {8.9.3.8} |
1149 | यू॒यंहिष्ठासु॑दानव॒ऽइन्द्र॑ज्येष्ठाऽअ॒भिद्य॑वः | अधा᳚चिद्वऽउ॒तब्रु॑वे || {6.6.4.4}, {8.83.9}, {8.9.3.9} |
[73] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काव्य उशना ऋषिः | अग्निर्देवता | गायत्री छन्दः || | |
1150 | प्रेष्ठं᳚वो॒ऽअति॑थिंस्तु॒षेमि॒त्रमि॑वप्रि॒यम् | अ॒ग्निंरथं॒नवेद्य᳚म् || {6.6.5.1}, {8.84.1}, {8.9.4.1} |
1151 | क॒विमि॑व॒प्रचे᳚तसं॒यंदे॒वासो॒ऽअध॑द्वि॒ता | निमर्त्ये᳚ष्वाद॒धुः || {6.6.5.2}, {8.84.2}, {8.9.4.2} |
1152 | त्वंय॑विष्ठदा॒शुषो॒नॄँःपा᳚हिशृणु॒धीगिरः॑ | रक्षा᳚तो॒कमु॒तत्मना᳚ || {6.6.5.3}, {8.84.3}, {8.9.4.3} |
1153 | कया᳚तेऽअग्नेऽअङ्गिर॒ऽऊर्जो᳚नपा॒दुप॑स्तुतिम् | वरा᳚यदेवम॒न्यवे᳚ || {6.6.5.4}, {8.84.4}, {8.9.4.4} |
1154 | दाशे᳚म॒कस्य॒मन॑साय॒ज्ञस्य॑सहसोयहो | कदु॑वोचऽइ॒दंनमः॑ || {6.6.5.5}, {8.84.5}, {8.9.4.5} |
1155 | अधा॒त्वंहिन॒स्करो॒विश्वा᳚ऽअ॒स्मभ्यं᳚सुक्षि॒तीः | वाज॑द्रविणसो॒गिरः॑ || {6.6.6.1}, {8.84.6}, {8.9.4.6} |
1156 | कस्य॑नू॒नंपरी᳚णसो॒धियो᳚जिन्वसिदम्पते | गोषा᳚ता॒यस्य॑ते॒गिरः॑ || {6.6.6.2}, {8.84.7}, {8.9.4.7} |
1157 | तंम॑र्जयन्तसु॒क्रतुं᳚पुरो॒यावा᳚नमा॒जिषु॑ | स्वेषु॒क्षये᳚षुवा॒जिन᳚म् || {6.6.6.3}, {8.84.8}, {8.9.4.8} |
1158 | क्षेति॒क्षेमे᳚भिःसा॒धुभि॒र्नकि॒र्यंघ्नन्ति॒हन्ति॒यः | अग्ने᳚सु॒वीर॑ऽएधते || {6.6.6.4}, {8.84.9}, {8.9.4.9} |
[74] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः कृष्ण ऋषिः | अश्विनौ देवते | गायत्री छन्दः || | |
1159 | आमे॒हवं᳚नास॒त्याश्वि॑ना॒गच्छ॑तंयु॒वम् | मध्वः॒सोम॑स्यपी॒तये᳚ || {6.6.7.1}, {8.85.1}, {8.9.5.1} |
1160 | इ॒मंमे॒स्तोम॑मश्विने॒मंमे᳚शृणुतं॒हव᳚म् | मध्वः॒सोम॑स्यपी॒तये᳚ || {6.6.7.2}, {8.85.2}, {8.9.5.2} |
1161 | अ॒यंवां॒कृष्णो᳚ऽअश्विना॒हव॑तेवाजिनीवसू | मध्वः॒सोम॑स्यपी॒तये᳚ || {6.6.7.3}, {8.85.3}, {8.9.5.3} |
1162 | शृ॒णु॒तंज॑रि॒तुर्हवं॒कृष्ण॑स्यस्तुव॒तोन॑रा | मध्वः॒सोम॑स्यपी॒तये᳚ || {6.6.7.4}, {8.85.4}, {8.9.5.4} |
1163 | छ॒र्दिर्य᳚न्त॒मदा᳚भ्यं॒विप्रा᳚यस्तुव॒तेन॑रा | मध्वः॒सोम॑स्यपी॒तये᳚ || {6.6.7.5}, {8.85.5}, {8.9.5.5} |
1164 | गच्छ॑तंदा॒शुषो᳚गृ॒हमि॒त्थास्तु॑व॒तोऽअ॑श्विना | मध्वः॒सोम॑स्यपी॒तये᳚ || {6.6.8.1}, {8.85.6}, {8.9.5.6} |
1165 | यु॒ञ्जाथां॒रास॑भं॒रथे᳚वी॒ड्व᳚ङ्गेवृषण्वसू | मध्वः॒सोम॑स्यपी॒तये᳚ || {6.6.8.2}, {8.85.7}, {8.9.5.7} |
1166 | त्रि॒व॒न्धु॒रेण॑त्रि॒वृता॒रथे॒नाया᳚तमश्विना | मध्वः॒सोम॑स्यपी॒तये᳚ || {6.6.8.3}, {8.85.8}, {8.9.5.8} |
1167 | नूमे॒गिरो᳚नास॒त्याश्वि॑ना॒प्राव॑तंयु॒वम् | मध्वः॒सोम॑स्यपी॒तये᳚ || {6.6.8.4}, {8.85.9}, {8.9.5.9} |
[75] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः कृष्णः कार्पोइर्विश्वको वा ऋषिः | अश्विनौ देवते | जगती छन्दः || | |
1168 | उ॒भाहिद॒स्राभि॒षजा᳚मयो॒भुवो॒भादक्ष॑स्य॒वच॑सोबभू॒वथुः॑ | तावां॒विश्व॑कोहवतेतनूकृ॒थेमानो॒वियौ᳚ष्टंस॒ख्यामु॒मोच॑तम् || {6.6.9.1}, {8.86.1}, {8.9.6.1} |
1169 | क॒थानू॒नंवां॒विम॑ना॒ऽउप॑स्तवद्यु॒वंधियं᳚ददथु॒र्वस्य॑इष्टये | तावां॒विश्व॑कोहवतेतनूकृ॒थेमानो॒वियौ᳚ष्टंस॒ख्यामु॒मोच॑तम् || {6.6.9.2}, {8.86.2}, {8.9.6.2} |
1170 | यु॒वंहिष्मा᳚पुरुभुजे॒ममे᳚ध॒तुंवि॑ष्णा॒प्वे᳚द॒दथु॒र्वस्य॑इष्टये | तावां॒विश्व॑कोहवतेतनूकृ॒थेमानो॒वियौ᳚ष्टंस॒ख्यामु॒मोच॑तम् || {6.6.9.3}, {8.86.3}, {8.9.6.3} |
1171 | उ॒तत्यंवी॒रंध॑न॒सामृ॑जी॒षिणं᳚दू॒रेचि॒त्सन्त॒मव॑सेहवामहे | यस्य॒स्वादि॑ष्ठासुम॒तिःपि॒तुर्य॑था॒मानो॒वियौ᳚ष्टंस॒ख्यामु॒मोच॑तम् || {6.6.9.4}, {8.86.4}, {8.9.6.4} |
1172 | ऋ॒तेन॑दे॒वःस॑वि॒ताश॑मायतऋ॒तस्य॒शृङ्ग॑मुर्वि॒याविप॑प्रथे | ऋ॒तंसा᳚साह॒महि॑चित्पृतन्य॒तोमानो॒वियौ᳚ष्टंस॒ख्यामु॒मोच॑तम् || {6.6.9.5}, {8.86.5}, {8.9.6.5} |
[76] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य वासिष्ठो द्युम्नीक आङ्गिरसः प्रियमेधो वाङ्गिरसः कृष्णो वा ऋषिः | अश्विनौ देवते | प्रगाथः (विषमर्चाम् बृहती, समर्चाम् सतोबृहती) छन्दः || | |
1173 | द्यु॒म्नीवां॒स्तोमो᳚ऽअश्विना॒क्रिवि॒र्नसेक॒ऽआग॑तम् | मध्वः॑सु॒तस्य॒सदि॒विप्रि॒योन॑रापा॒तंगौ॒रावि॒वेरि॑णे || {6.6.10.1}, {8.87.1}, {8.9.7.1} |
1174 | पिब॑तंघ॒र्मंमधु॑मन्तमश्वि॒नाब॒र्हिःसी᳚दतंनरा | ताम᳚न्दसा॒नामनु॑षोदुरो॒णऽआनिपा᳚तं॒वेद॑सा॒वयः॑ || {6.6.10.2}, {8.87.2}, {8.9.7.2} |
1175 | आवां॒विश्वा᳚भिरू॒तिभिः॑प्रि॒यमे᳚धाऽअहूषत | ताव॒र्तिर्या᳚त॒मुप॑वृ॒क्तब॑र्हिषो॒जुष्टं᳚य॒ज्ञंदिवि॑ष्टिषु || {6.6.10.3}, {8.87.3}, {8.9.7.3} |
1176 | पिब॑तं॒सोमं॒मधु॑मन्तमश्वि॒नाब॒र्हिःसी᳚दतंसु॒मत् | तावा᳚वृधा॒नाऽउप॑सुष्टु॒तिंदि॒वोग॒न्तंगौ॒रावि॒वेरि॑णम् || {6.6.10.4}, {8.87.4}, {8.9.7.4} |
1177 | आनू॒नंया᳚तमश्वि॒नाश्वे᳚भिःप्रुषि॒तप्सु॑भिः | दस्रा॒हिर᳚ण्यवर्तनीशुभस्पतीपा॒तंसोम॑मृतावृधा || {6.6.10.5}, {8.87.5}, {8.9.7.5} |
1178 | व॒यंहिवां॒हवा᳚महेविप॒न्यवो॒विप्रा᳚सो॒वाज॑सातये | ताव॒ल्गूद॒स्रापु॑रु॒दंस॑साधि॒याश्वि॑नाश्रु॒ष्ट्याग॑तम् || {6.6.10.6}, {8.87.6}, {8.9.7.6} |
[77] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य गौतमो नोधा ऋषिः | इन्द्रो देवता | प्रगाथः (विषमर्चाम् बृहती, समर्चाम् सतोबृहती) छन्दः || | |
1179 | तंवो᳚द॒स्ममृ॑ती॒षहं॒वसो᳚र्मन्दा॒नमन्ध॑सः | अ॒भिव॒त्संनस्वस॑रेषुधे॒नव॒ऽइन्द्रं᳚गी॒र्भिर्न॑वामहे || {6.6.11.1}, {8.88.1}, {8.9.8.1} |
1180 | द्यु॒क्षंसु॒दानुं॒तवि॑षीभि॒रावृ॑तंगि॒रिंनपु॑रु॒भोज॑सम् | क्षु॒मन्तं॒वाजं᳚श॒तिनं᳚सह॒स्रिणं᳚म॒क्षूगोम᳚न्तमीमहे || {6.6.11.2}, {8.88.2}, {8.9.8.2} |
1181 | नत्वा᳚बृ॒हन्तो॒ऽअद्र॑यो॒वर᳚न्तऽइन्द्रवी॒ळवः॑ | यद्दित्स॑सिस्तुव॒तेमाव॑ते॒वसु॒नकि॒ष्टदामि॑नातिते || {6.6.11.3}, {8.88.3}, {8.9.8.3} |
1182 | योद्धा᳚सि॒क्रत्वा॒शव॑सो॒तदं॒सना॒विश्वा᳚जा॒ताभिम॒ज्मना᳚ | आत्वा॒यम॒र्कऽऊ॒तये᳚ववर्तति॒यंगोत॑मा॒ऽअजी᳚जनन् || {6.6.11.4}, {8.88.4}, {8.9.8.4} |
1183 | प्रहिरि॑रि॒क्षऽओज॑सादि॒वोऽअन्ते᳚भ्य॒स्परि॑ | नत्वा᳚विव्याच॒रज॑ऽइन्द्र॒पार्थि॑व॒मनु॑स्व॒धांव॑वक्षिथ || {6.6.11.5}, {8.88.5}, {8.9.8.5} |
1184 | नकिः॒परि॑ष्टिर्मघवन्म॒घस्य॑ते॒यद्दा॒शुषे᳚दश॒स्यसि॑ | अ॒स्माकं᳚बोध्यु॒चथ॑स्यचोदि॒तामंहि॑ष्ठो॒वाज॑सातये || {6.6.11.6}, {8.88.6}, {8.9.8.6} |
[78] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसौ नृमधे पुरुमेधावृषी। इन्द्रो देवता | (१-४) प्रथमादिचतुर्ऋचामा। प्रगाथः (विषमर्चाम् बृहती, समर्चाम् सतोबृहती), (५-६) पञ्चमीषष्ठ्योरनुष्टप् (७) सप्तम्याश्च बृहती छन्दांसि || | |
1185 | बृ॒हदिन्द्रा᳚यगायत॒मरु॑तोवृत्र॒हन्त॑मम् | येन॒ज्योति॒रज॑नयन्नृता॒वृधो᳚दे॒वंदे॒वाय॒जागृ॑वि || {6.6.12.1}, {8.89.1}, {8.9.9.1} |
1186 | अपा᳚धमद॒भिश॑स्तीरशस्ति॒हाथेन्द्रो᳚द्यु॒म्न्याभ॑वत् | दे॒वास्त॑ऽइन्द्रस॒ख्याय॑येमिरे॒बृह॑द्भानो॒मरु॑द्गण || {6.6.12.2}, {8.89.2}, {8.9.9.2} |
1187 | प्रव॒ऽइन्द्रा᳚यबृह॒तेमरु॑तो॒ब्रह्मा᳚र्चत | वृ॒त्रंह॑नतिवृत्र॒हाश॒तक्र॑तु॒र्वज्रे᳚णश॒तप᳚र्वणा || {6.6.12.3}, {8.89.3}, {8.9.9.3} |
1188 | अ॒भिप्रभ॑रधृष॒ताधृ॑षन्मनः॒श्रव॑श्चित्तेऽअसद्बृ॒हत् | अर्ष॒न्त्वापो॒जव॑सा॒विमा॒तरो॒हनो᳚वृ॒त्रंजया॒स्वः॑ || {6.6.12.4}, {8.89.4}, {8.9.9.4} |
1189 | यज्जाय॑थाऽअपूर्व्य॒मघ॑वन्वृत्र॒हत्या᳚य | तत्पृ॑थि॒वीम॑प्रथय॒स्तद॑स्तभ्नाऽउ॒तद्याम् || {6.6.12.5}, {8.89.5}, {8.9.9.5} |
1190 | तत्ते᳚य॒ज्ञोऽअ॑जायत॒तद॒र्कऽउ॒तहस्कृ॑तिः | तद्विश्व॑मभि॒भूर॑सि॒यज्जा॒तंयच्च॒जन्त्व᳚म् || {6.6.12.6}, {8.89.6}, {8.9.9.6} |
1191 | आ॒मासु॑प॒क्वमैर॑य॒ऽआसूर्यं᳚रोहयोदि॒वि | घ॒र्मंनसाम᳚न्तपतासुवृ॒क्तिभि॒र्जुष्टं॒गिर्व॑णसेबृ॒हत् || {6.6.12.7}, {8.89.7}, {8.9.9.7} |
[79] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसौ नृमधे पुरुमेधावृषी, इन्द्रो देवता | प्रगाथः (विषमर्चाम् बृहती, समर्चाम् सतोबृहती) छन्दः || | |
1192 | आनो॒विश्वा᳚सु॒हव्य॒ऽइन्द्रः॑स॒मत्सु॑भूषतु | उप॒ब्रह्मा᳚णि॒सव॑नानिवृत्र॒हाप॑रम॒ज्याऋची᳚षमः || {6.6.13.1}, {8.90.1}, {8.9.10.1} |
1193 | त्वंदा॒ताप्र॑थ॒मोराध॑साम॒स्यसि॑स॒त्यऽई᳚शान॒कृत् | तु॒वि॒द्यु॒म्नस्य॒युज्यावृ॑णीमहेपु॒त्रस्य॒शव॑सोम॒हः || {6.6.13.2}, {8.90.2}, {8.9.10.2} |
1194 | ब्रह्मा᳚तऽइन्द्रगिर्वणःक्रि॒यन्ते॒ऽअन॑तिद्भुता | इ॒माजु॑षस्वहर्यश्व॒योज॒नेन्द्र॒याते॒ऽअम᳚न्महि || {6.6.13.3}, {8.90.3}, {8.9.10.3} |
1195 | त्वंहिस॒त्योम॑घव॒न्नना᳚नतोवृ॒त्राभूरि॑न्यृ॒ञ्जसे᳚ | सत्वंश॑विष्ठवज्रहस्तदा॒शुषे॒ऽर्वाञ्चं᳚र॒यिमाकृ॑धि || {6.6.13.4}, {8.90.4}, {8.9.10.4} |
1196 | त्वमि᳚न्द्रय॒शाऽअ॑स्यृजी॒षीश॑वसस्पते | त्वंवृ॒त्राणि॑हंस्यप्र॒तीन्येक॒ऽइदनु॑त्ताचर्षणी॒धृता᳚ || {6.6.13.5}, {8.90.5}, {8.9.10.5} |
1197 | तमु॑त्वानू॒नम॑सुर॒प्रचे᳚तसं॒राधो᳚भा॒गमि॑वेमहे | म॒हीव॒कृत्तिः॑शर॒णात॑ऽइन्द्र॒प्रते᳚सु॒म्नानो᳚ऽअश्नवन् || {6.6.13.6}, {8.90.6}, {8.9.10.6} |
[80] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्यात्रेय्यपाला (ऋषिका) इन्द्रो देवता | (१-२) प्रथमाद्वितीययो,चोः पङ्क्ति, (३-७) तृतीयादिपञ्चानाञ्चानष्टप छन्दसी || | |
1198 | क॒न्या॒३॑(आ॒)वार॑वाय॒तीसोम॒मपि॑स्रु॒तावि॑दत् | अस्तं॒भर᳚न्त्यब्रवी॒दिन्द्रा᳚यसुनवैत्वाश॒क्राय॑सुनवैत्वा || {6.6.14.1}, {8.91.1}, {8.9.11.1} |
1199 | अ॒सौयऽएषि॑वीर॒कोगृ॒हंगृ॑हंवि॒चाक॑शद् | इ॒मंजम्भ॑सुतंपिबधा॒नाव᳚न्तंकर॒म्भिण॑मपू॒पव᳚न्तमु॒क्थिन᳚म् || {6.6.14.2}, {8.91.2}, {8.9.11.2} |
1200 | आच॒नत्वा᳚चिकित्सा॒मोऽधि॑च॒नत्वा॒नेम॑सि | शनै᳚रिवशन॒कैरि॒वेन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {6.6.14.3}, {8.91.3}, {8.9.11.3} |
1201 | कु॒विच्छक॑त्कु॒वित्कर॑त्कु॒विन्नो॒वस्य॑स॒स्कर॑त् | कु॒वित्प॑ति॒द्विषो᳚य॒तीरिन्द्रे᳚णसं॒गमा᳚महै || {6.6.14.4}, {8.91.4}, {8.9.11.4} |
1202 | इ॒मानि॒त्रीणि॑वि॒ष्टपा॒तानी᳚न्द्र॒विरो᳚हय | शिर॑स्त॒तस्यो॒र्वरा॒मादि॒दंम॒ऽउपो॒दरे᳚ || {6.6.14.5}, {8.91.5}, {8.9.11.5} |
1203 | अ॒सौच॒यान॑ऽउ॒र्वरादि॒मांत॒न्व१॑(अ॒)अंमम॑ | अथो᳚त॒तस्य॒यच्छिरः॒सर्वा॒तारो᳚म॒शाकृ॑धि || {6.6.14.6}, {8.91.6}, {8.9.11.6} |
1204 | खेरथ॑स्य॒खेऽन॑सः॒खेयु॒गस्य॑शतक्रतो | अ॒पा॒लामि᳚न्द्र॒त्रिष्पू॒त्व्यकृ॑णोः॒सूर्य॑त्वचम् || {6.6.14.7}, {8.91.7}, {8.9.11.7} |
[81] (१-३३) त्रयस्त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः श्रुतकक्षः सुकक्षो वा ऋषिः | इन्द्रो देवता | (१) प्रथमर्चोऽनुष्टुप् (२-३३) द्वितीयादिद्वात्रिंशदृचाञ्च गायत्री छन्दसी || | |
1205 | पान्त॒मावो॒ऽअन्ध॑स॒ऽइन्द्र॑म॒भिप्रगा᳚यत | वि॒श्वा॒साहं᳚श॒तक्र॑तुं॒मंहि॑ष्ठंचर्षणी॒नाम् || {6.6.15.1}, {8.92.1}, {8.9.12.1} |
1206 | पु॒रु॒हू॒तंपु॑रुष्टु॒तंगा᳚था॒न्य१॑(अ॒)अंसन॑श्रुतम् | इन्द्र॒ऽइति॑ब्रवीतन || {6.6.15.2}, {8.92.2}, {8.9.12.2} |
1207 | इन्द्र॒ऽइन्नो᳚म॒हानां᳚दा॒तावाजा᳚नांनृ॒तुः | म॒हाँऽअ॑भि॒ज्ञ्वाय॑मत् || {6.6.15.3}, {8.92.3}, {8.9.12.3} |
1208 | अपा᳚दुशि॒प्र्यन्ध॑सःसु॒दक्ष॑स्यप्रहो॒षिणः॑ | इन्दो॒रिन्द्रो॒यवा᳚शिरः || {6.6.15.4}, {8.92.4}, {8.9.12.4} |
1209 | तम्व॒भिप्रार्च॒तेन्द्रं॒सोम॑स्यपी॒तये᳚ | तदिद्ध्य॑स्य॒वर्ध॑नम् || {6.6.15.5}, {8.92.5}, {8.9.12.5} |
1210 | अ॒स्यपी॒त्वामदा᳚नांदे॒वोदे॒वस्यौज॑सा | विश्वा॒भिभुव॑नाभुवत् || {6.6.16.1}, {8.92.6}, {8.9.12.6} |
1211 | त्यमु॑वःसत्रा॒साहं॒विश्वा᳚सुगी॒र्ष्वाय॑तम् | आच्या᳚वयस्यू॒तये᳚ || {6.6.16.2}, {8.92.7}, {8.9.12.7} |
1212 | यु॒ध्मंसन्त॑मन॒र्वाणं᳚सोम॒पामन॑पच्युतम् | नर॑मवा॒र्यक्र॑तुम् || {6.6.16.3}, {8.92.8}, {8.9.12.8} |
1213 | शिक्षा᳚णऽइन्द्ररा॒यऽआपु॒रुवि॒द्वाँऽऋ॑चीषम | अवा᳚नः॒पार्ये॒धने᳚ || {6.6.16.4}, {8.92.9}, {8.9.12.9} |
1214 | अत॑श्चिदिन्द्रण॒ऽउपाया᳚हिश॒तवा᳚जया | इ॒षास॒हस्र॑वाजया || {6.6.16.5}, {8.92.10}, {8.9.12.10} |
1215 | अया᳚म॒धीव॑तो॒धियोऽर्व॑द्भिःशक्रगोदरे | जये᳚मपृ॒त्सुव॑ज्रिवः || {6.6.17.1}, {8.92.11}, {8.9.12.11} |
1216 | व॒यमु॑त्वाशतक्रतो॒गावो॒नयव॑से॒ष्वा | उ॒क्थेषु॑रणयामसि || {6.6.17.2}, {8.92.12}, {8.9.12.12} |
1217 | विश्वा॒हिम॑र्त्यत्व॒नानु॑का॒माश॑तक्रतो | अग᳚न्मवज्रिन्ना॒शसः॑ || {6.6.17.3}, {8.92.13}, {8.9.12.13} |
1218 | त्वेसुपु॑त्रशव॒सोऽवृ॑त्र॒न्काम॑कातयः | नत्वामि॒न्द्राति॑रिच्यते || {6.6.17.4}, {8.92.14}, {8.9.12.14} |
1219 | सनो᳚वृष॒न्त्सनि॑ष्ठया॒संघो॒रया᳚द्रवि॒त्न्वा | धि॒यावि॑ड्ढि॒पुरं᳚ध्या || {6.6.17.5}, {8.92.15}, {8.9.12.15} |
1220 | यस्ते᳚नू॒नंश॑तक्रत॒विन्द्र॑द्यु॒म्नित॑मो॒मदः॑ | तेन॑नू॒नंमदे᳚मदेः || {6.6.18.1}, {8.92.16}, {8.9.12.16} |
1221 | यस्ते᳚चि॒त्रश्र॑वस्तमो॒यऽइ᳚न्द्रवृत्र॒हन्त॑मः | यऽओ᳚जो॒दात॑मो॒मदः॑ || {6.6.18.2}, {8.92.17}, {8.9.12.17} |
1222 | वि॒द्माहियस्ते᳚ऽअद्रिव॒स्त्वाद॑त्तःसत्यसोमपाः | विश्वा᳚सुदस्मकृ॒ष्टिषु॑ || {6.6.18.3}, {8.92.18}, {8.9.12.18} |
1223 | इन्द्रा᳚य॒मद्व॑नेसु॒तंपरि॑ष्टोभन्तुनो॒गिरः॑ | अ॒र्कम॑र्चन्तुका॒रवः॑ || {6.6.18.4}, {8.92.19}, {8.9.12.19} |
1224 | यस्मि॒न्विश्वा॒ऽअधि॒श्रियो॒रण᳚न्तिस॒प्तसं॒सदः॑ | इन्द्रं᳚सु॒तेह॑वामहे || {6.6.18.5}, {8.92.20}, {8.9.12.20} |
1225 | त्रिक॑द्रुकेषु॒चेत॑नंदे॒वासो᳚य॒ज्ञम॑त्नत | तमिद्व॑र्धन्तुनो॒गिरः॑ || {6.6.19.1}, {8.92.21}, {8.9.12.21} |
1226 | आत्वा᳚विश॒न्त्विन्द॑वःसमु॒द्रमि॑व॒सिन्ध॑वः | नत्वामि॒न्द्राति॑रिच्यते || {6.6.19.2}, {8.92.22}, {8.9.12.22} |
1227 | वि॒व्यक्थ॑महि॒नावृ॑षन्भ॒क्षंसोम॑स्यजागृवे | यऽइ᳚न्द्रज॒ठरे᳚षुते || {6.6.19.3}, {8.92.23}, {8.9.12.23} |
1228 | अरं᳚तऽइन्द्रकु॒क्षये॒सोमो᳚भवतुवृत्रहन् | अरं॒धाम॑भ्य॒ऽइन्द॑वः || {6.6.19.4}, {8.92.24}, {8.9.12.24} |
1229 | अर॒मश्वा᳚यगायतिश्रु॒तक॑क्षो॒ऽअरं॒गवे᳚ | अर॒मिन्द्र॑स्य॒धाम्ने᳚ || {6.6.19.5}, {8.92.25}, {8.9.12.25} |
1230 | अरं॒हिष्म॑सु॒तेषु॑णः॒सोमे᳚ष्विन्द्र॒भूष॑सि | अरं᳚तेशक्रदा॒वने᳚ || {6.6.19.6}, {8.92.26}, {8.9.12.26} |
1231 | प॒रा॒कात्ता᳚च्चिदद्रिव॒स्त्वांन॑क्षन्तनो॒गिरः॑ | अरं᳚गमामतेव॒यम् || {6.6.20.1}, {8.92.27}, {8.9.12.27} |
1232 | ए॒वाह्यसि॑वीर॒युरे॒वाशूर॑ऽउ॒तस्थि॒रः | ए॒वाते॒राध्यं॒मनः॑ || {6.6.20.2}, {8.92.28}, {8.9.12.28} |
1233 | ए॒वारा॒तिस्तु॑वीमघ॒विश्वे᳚भिर्धायिधा॒तृभिः॑ | अधा᳚चिदिन्द्रमे॒सचा᳚ || {6.6.20.3}, {8.92.29}, {8.9.12.29} |
1234 | मोषुब्र॒ह्मेव॑तन्द्र॒युर्भुवो᳚वाजानांपते | मत्स्वा᳚सु॒तस्य॒गोम॑तः || {6.6.20.4}, {8.92.30}, {8.9.12.30} |
1235 | मान॑ऽइन्द्रा॒भ्या॒३॑(आ॒)दिशः॒सूरो᳚ऽअ॒क्तुष्वाय॑मन् | त्वायु॒जाव॑नेम॒तत् || {6.6.20.5}, {8.92.31}, {8.9.12.31} |
1236 | त्वयेदि᳚न्द्रयु॒जाव॒यंप्रति॑ब्रुवीमहि॒स्पृधः॑ | त्वम॒स्माकं॒तव॑स्मसि || {6.6.20.6}, {8.92.32}, {8.9.12.32} |
1237 | त्वामिद्धित्वा॒यवो᳚ऽनु॒नोनु॑वत॒श्चरा॑न् | सखा᳚यऽइन्द्रका॒रवः॑ || {6.6.20.7}, {8.92.33}, {8.9.12.33} |
[82] (१-३४) चतुस्त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः सुकक्ष ऋषिः | (१-३३) प्रथमादित्रयस्त्रिंशदृचामिन्द्रः (३४) चतुस्त्रिंश्याश्चेन्द्र ऋभवश्च देवताः | गायत्री छन्दः || | |
1238 | उद्घेद॒भिश्रु॒ताम॑घंवृष॒भंनर्या᳚पसम् | अस्ता᳚रमेषिसूर्य || {6.6.21.1}, {8.93.1}, {8.9.13.1} |
1239 | नव॒योन॑व॒तिंपुरो᳚बि॒भेद॑बा॒ह्वो᳚जसा | अहिं᳚चवृत्र॒हाव॑धीत् || {6.6.21.2}, {8.93.2}, {8.9.13.2} |
1240 | सन॒ऽइन्द्रः॑शि॒वःसखाश्वा᳚व॒द्गोम॒द्यव॑मत् | उ॒रुधा᳚रेवदोहते || {6.6.21.3}, {8.93.3}, {8.9.13.3} |
1241 | यद॒द्यकच्च॑वृत्रहन्नु॒दगा᳚ऽअ॒भिसू᳚र्य | सर्वं॒तदि᳚न्द्रते॒वशे᳚ || {6.6.21.4}, {8.93.4}, {8.9.13.4} |
1242 | यद्वा᳚प्रवृद्धसत्पते॒नम॑रा॒ऽइति॒मन्य॑से | उ॒तोतत्स॒त्यमित्तव॑ || {6.6.21.5}, {8.93.5}, {8.9.13.5} |
1243 | येसोमा᳚सःपरा॒वति॒येऽअ᳚र्वा॒वति॑सुन्वि॒रे | सर्वाँ॒स्ताँऽइ᳚न्द्रगच्छसि || {6.6.22.1}, {8.93.6}, {8.9.13.6} |
1244 | तमिन्द्रं᳚वाजयामसिम॒हेवृ॒त्राय॒हन्त॑वे | सवृषा᳚वृष॒भोभु॑वत् || {6.6.22.2}, {8.93.7}, {8.9.13.7} |
1245 | इन्द्रः॒सदाम॑नेकृ॒तऽओजि॑ष्ठः॒समदे᳚हि॒तः | द्यु॒म्नीश्लो॒कीससो॒म्यः || {6.6.22.3}, {8.93.8}, {8.9.13.8} |
1246 | गि॒रावज्रो॒नसम्भृ॑तः॒सब॑लो॒ऽअन॑पच्युतः | व॒व॒क्षऋ॒ष्वोऽअस्तृ॑तः || {6.6.22.4}, {8.93.9}, {8.9.13.9} |
1247 | दु॒र्गेचि᳚न्नःसु॒गंकृ॑धिगृणा॒नऽइ᳚न्द्रगिर्वणः | त्वंच॑मघव॒न्वशः॑ || {6.6.22.5}, {8.93.10}, {8.9.13.10} |
1248 | यस्य॑ते॒नूचि॑दा॒दिशं॒नमि॒नन्ति॑स्व॒राज्य᳚म् | नदे॒वोनाध्रि॑गु॒र्जनः॑ || {6.6.23.1}, {8.93.11}, {8.9.13.11} |
1249 | अधा᳚ते॒ऽअप्र॑तिष्कुतंदे॒वीशुष्मं᳚सपर्यतः | उ॒भेसु॑शिप्र॒रोद॑सी || {6.6.23.2}, {8.93.12}, {8.9.13.12} |
1250 | त्वमे॒तद॑धारयःकृ॒ष्णासु॒रोहि॑णीषुच | परु॑ष्णीषु॒रुश॒त्पयः॑ || {6.6.23.3}, {8.93.13}, {8.9.13.13} |
1251 | वियदहे॒रध॑त्वि॒षोविश्वे᳚दे॒वासो॒ऽअक्र॑मुः | वि॒दन्मृ॒गस्य॒ताँऽअमः॑ || {6.6.23.4}, {8.93.14}, {8.9.13.14} |
1252 | आदु॑मेनिव॒रोभु॑वद्वृत्र॒हादि॑ष्ट॒पौंस्य᳚म् | अजा᳚तशत्रु॒रस्तृ॑तः || {6.6.23.5}, {8.93.15}, {8.9.13.15} |
1253 | श्रु॒तंवो᳚वृत्र॒हन्त॑मं॒प्रशर्धं᳚चर्षणी॒नाम् | आशु॑षे॒राध॑सेम॒हे || {6.6.24.1}, {8.93.16}, {8.9.13.16} |
1254 | अ॒याधि॒याच॑गव्य॒यापुरु॑णाम॒न्पुरु॑ष्टुत | यत्सोमे᳚सोम॒ऽआभ॑वः || {6.6.24.2}, {8.93.17}, {8.9.13.17} |
1255 | बो॒धिन्म॑ना॒ऽइद॑स्तुनोवृत्र॒हाभूर्या᳚सुतिः | शृ॒णोतु॑श॒क्रऽआ॒शिष᳚म् || {6.6.24.3}, {8.93.18}, {8.9.13.18} |
1256 | कया॒त्वंन॑ऽऊ॒त्याभिप्रम᳚न्दसेवृषन् | कया᳚स्तो॒तृभ्य॒ऽआभ॑र || {6.6.24.4}, {8.93.19}, {8.9.13.19} |
1257 | कस्य॒वृषा᳚सु॒तेसचा᳚नि॒युत्वा᳚न्वृष॒भोर॑णत् | वृ॒त्र॒हासोम॑पीतये || {6.6.24.5}, {8.93.20}, {8.9.13.20} |
1258 | अ॒भीषुण॒स्त्वंर॒यिंम᳚न्दसा॒नःस॑ह॒स्रिण᳚म् | प्र॒य॒न्ताबो᳚धिदा॒शुषे᳚ || {6.6.25.1}, {8.93.21}, {8.9.13.21} |
1259 | पत्नी᳚वन्तःसु॒ताऽइ॒मऽउ॒शन्तो᳚यन्तिवी॒तये᳚ | अ॒पांजग्मि᳚र्निचुम्पु॒णः || {6.6.25.2}, {8.93.22}, {8.9.13.22} |
1260 | इ॒ष्टाहोत्रा᳚ऽअसृक्ष॒तेन्द्रं᳚वृ॒धासो᳚ऽअध्व॒रे | अच्छा᳚वभृ॒थमोज॑सा || {6.6.25.3}, {8.93.23}, {8.9.13.23} |
1261 | इ॒हत्यास॑ध॒माद्या॒हरी॒हिर᳚ण्यकेश्या | वो॒ळ्हाम॒भिप्रयो᳚हि॒तम् || {6.6.25.4}, {8.93.24}, {8.9.13.24} |
1262 | तुभ्यं॒सोमाः᳚सु॒ताऽइ॒मेस्ती॒र्णंब॒र्हिर्वि॑भावसो | स्तो॒तृभ्य॒ऽइन्द्र॒माव॑ह || {6.6.25.5}, {8.93.25}, {8.9.13.25} |
1263 | आते॒दक्षं॒विरो᳚च॒नादध॒द्रत्ना॒विदा॒शुषे᳚ | स्तो॒तृभ्य॒ऽइन्द्र॑मर्चत || {6.6.26.1}, {8.93.26}, {8.9.13.26} |
1264 | आते᳚दधामीन्द्रि॒यमु॒क्थाविश्वा᳚शतक्रतो | स्तो॒तृभ्य॑ऽइन्द्रमृळय || {6.6.26.2}, {8.93.27}, {8.9.13.27} |
1265 | भ॒द्रम्भ॑द्रंन॒ऽआभ॒रेष॒मूर्जं᳚शतक्रतो | यदि᳚न्द्रमृ॒ळया᳚सिनः || {6.6.26.3}, {8.93.28}, {8.9.13.28} |
1266 | सनो॒विश्वा॒न्याभ॑रसुवि॒तानि॑शतक्रतो | यदि᳚न्द्रमृ॒ळया᳚सिनः || {6.6.26.4}, {8.93.29}, {8.9.13.29} |
1267 | त्वामिद्वृ॑त्रहन्तमसु॒ताव᳚न्तोहवामहे | यदि᳚न्द्रमृ॒ळया᳚सिनः || {6.6.26.5}, {8.93.30}, {8.9.13.30} |
1268 | उप॑नो॒हरि॑भिःसु॒तंया॒हिम॑दानांपते | उप॑नो॒हरि॑भिःसु॒तम् || {6.6.27.1}, {8.93.31}, {8.9.13.31} |
1269 | द्वि॒तायोवृ॑त्र॒हन्त॑मोवि॒दऽइन्द्रः॑श॒तक्र॑तुः | उप॑नो॒हरि॑भिःसु॒तम् || {6.6.27.2}, {8.93.32}, {8.9.13.32} |
1270 | त्वंहिवृ॑त्रहन्नेषांपा॒तासोमा᳚ना॒मसि॑ | उप॑नो॒हरि॑भिःसु॒तम् || {6.6.27.3}, {8.93.33}, {8.9.13.33} |
1271 | इन्द्र॑ऽइ॒षेद॑दातुनऋभु॒क्षण॑मृ॒भुंर॒यिम् | वा॒जीद॑दातुवा॒जिन᳚म् || {6.6.27.4}, {8.93.34}, {8.9.13.34} |
[83] (१-१२) द्वादशर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो बिन्दुः पूतदक्षो वा ऋषिः | मरुतो देवताः | गायत्री छन्दः || | |
1272 | गौर्ध॑यतिम॒रुतां᳚श्रव॒स्युर्मा॒ताम॒घोना᳚म् | यु॒क्तावह्नी॒रथा᳚नाम् || {6.6.28.1}, {8.94.1}, {8.10.1.1} |
1273 | यस्या᳚दे॒वाऽउ॒पस्थे᳚व्र॒ताविश्वे᳚धा॒रय᳚न्ते | सूर्या॒मासा᳚दृ॒शेकम् || {6.6.28.2}, {8.94.2}, {8.10.1.2} |
1274 | तत्सुनो॒विश्वे᳚ऽअ॒र्यऽआसदा᳚गृणन्तिका॒रवः॑ | म॒रुतः॒सोम॑पीतये || {6.6.28.3}, {8.94.3}, {8.10.1.3} |
1275 | अस्ति॒सोमो᳚ऽअ॒यंसु॒तःपिब᳚न्त्यस्यम॒रुतः॑ | उ॒तस्व॒राजो᳚ऽअ॒श्विना᳚ || {6.6.28.4}, {8.94.4}, {8.10.1.4} |
1276 | पिब᳚न्तिमि॒त्रोऽअ᳚र्य॒मातना᳚पू॒तस्य॒वरु॑णः | त्रि॒ष॒ध॒स्थस्य॒जाव॑तः || {6.6.28.5}, {8.94.5}, {8.10.1.5} |
1277 | उ॒तोन्व॑स्य॒जोष॒माँऽइन्द्रः॑सु॒तस्य॒गोम॑तः | प्रा॒तर्होते᳚वमत्सति || {6.6.28.6}, {8.94.6}, {8.10.1.6} |
1278 | कद॑त्विषन्तसू॒रय॑स्ति॒रऽआप॑ऽइव॒स्रिधः॑ | अर्ष᳚न्तिपू॒तद॑क्षसः || {6.6.29.1}, {8.94.7}, {8.10.1.7} |
1279 | कद्वो᳚ऽअ॒द्यम॒हानां᳚दे॒वाना॒मवो᳚वृणे | त्मना᳚चद॒स्मव॑र्चसाम् || {6.6.29.2}, {8.94.8}, {8.10.1.8} |
1280 | आयेविश्वा॒पार्थि॑वानिप॒प्रथ᳚न्रोच॒नादि॒वः | म॒रुतः॒सोम॑पीतये || {6.6.29.3}, {8.94.9}, {8.10.1.9} |
1281 | त्यान्नुपू॒तद॑क्षसोदि॒वोवो᳚मरुतोहुवे | अ॒स्यसोम॑स्यपी॒तये᳚ || {6.6.29.4}, {8.94.10}, {8.10.1.10} |
1282 | त्यान्नुयेविरोद॑सीतस्त॒भुर्म॒रुतो᳚हुवे | अ॒स्यसोम॑स्यपी॒तये᳚ || {6.6.29.5}, {8.94.11}, {8.10.1.11} |
1283 | त्यंनुमारु॑तंग॒णंगि॑रि॒ष्ठांवृष॑णंहुवे | अ॒स्यसोम॑स्यपी॒तये᳚ || {6.6.29.6}, {8.94.12}, {8.10.1.12} |
[84] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसस्तिरश्चीषिः, इन्द्रो देवता | अनुष्टुप् छन्दः || | |
1284 | आत्वा॒गिरो᳚र॒थीरि॒वास्थुः॑सु॒तेषु॑गिर्वणः | अ॒भित्वा॒सम॑नूष॒तेन्द्र॑व॒त्संनमा॒तरः॑ || {6.6.30.1}, {8.95.1}, {8.10.2.1} |
1285 | आत्वा᳚शु॒क्राऽअ॑चुच्यवुःसु॒तास॑ऽइन्द्रगिर्वणः | पिबा॒त्व१॑(अ॒)स्यान्ध॑स॒ऽइन्द्र॒विश्वा᳚सुतेहि॒तम् || {6.6.30.2}, {8.95.2}, {8.10.2.2} |
1286 | पिबा॒सोमं॒मदा᳚य॒कमिन्द्र॑श्ये॒नाभृ॑तंसु॒तम् | त्वंहिशश्व॑तीनां॒पती॒राजा᳚वि॒शामसि॑ || {6.6.30.3}, {8.95.3}, {8.10.2.3} |
1287 | श्रु॒धीहवं᳚तिर॒श्च्याऽइन्द्र॒यस्त्वा᳚सप॒र्यति॑ | सु॒वीर्य॑स्य॒गोम॑तोरा॒यस्पू᳚र्धिम॒हाँऽअ॑सि || {6.6.30.4}, {8.95.4}, {8.10.2.4} |
1288 | इन्द्र॒यस्ते॒नवी᳚यसीं॒गिरं᳚म॒न्द्रामजी᳚जनत् | चि॒कि॒त्विन्म॑नसं॒धियं᳚प्र॒त्नामृ॒तस्य॑पि॒प्युषी᳚म् || {6.6.30.5}, {8.95.5}, {8.10.2.5} |
1289 | तमु॑ष्टवाम॒यंगिर॒ऽइन्द्र॑मु॒क्थानि॑वावृ॒धुः | पु॒रूण्य॑स्य॒पौंस्या॒सिषा᳚सन्तोवनामहे || {6.6.31.1}, {8.95.6}, {8.10.2.6} |
1290 | एतो॒न्विन्द्रं॒स्तवा᳚मशु॒द्धंशु॒द्धेन॒साम्ना᳚ | शु॒द्धैरु॒क्थैर्वा᳚वृ॒ध्वांसं᳚शु॒द्धऽआ॒शीर्वा᳚न्ममत्तु || {6.6.31.2}, {8.95.7}, {8.10.2.7} |
1291 | इन्द्र॑शु॒द्धोन॒ऽआग॑हिशु॒द्धःशु॒द्धाभि॑रू॒तिभिः॑ | शु॒द्धोर॒यिंनिधा᳚रयशु॒द्धोम॑मद्धिसो॒म्यः || {6.6.31.3}, {8.95.8}, {8.10.2.8} |
1292 | इन्द्र॑शु॒द्धोहिनो᳚र॒यिंशु॒द्धोरत्ना᳚निदा॒शुषे᳚ | शु॒द्धोवृ॒त्राणि॑जिघ्नसेशु॒द्धोवाजं᳚सिषाससि || {6.6.31.4}, {8.95.9}, {8.10.2.9} |
[85] (१-२१) एकविंशत्यृचस्य सूक्तस्य मारुतो द्युतान प्राङ्गिरसस्तिरश्चीर्वा ऋषिः | (१-१३, १४, १६-२१) प्रथमादित्रयोदशर्चाम् चतुदर्श याः पादत्रयस्य षोडश्यादिषण्णाञ्चेन्द्रः, (१४) चतुदर्श यास्तुरीयपादस्य मरुतः, (१५) पञ्चदश्याश्चेन्द्राबृहस्पती देवताः | (१-३, ५-२०) प्रथमादितृचस्य पञ्चम्यादिषोडशर्चाञ्च त्रिष्टुप्, (४) चतुर्थ्या विराट्, (२१) एकविंश्याश्च पुरस्ताज्जयोतिस्त्रिष्टुप् छन्दांसि || | |
1293 | अ॒स्माऽउ॒षास॒ऽआति॑रन्त॒याम॒मिन्द्रा᳚य॒नक्त॒मूर्म्याः᳚सु॒वाचः॑ | अ॒स्माऽआपो᳚मा॒तरः॑स॒प्तत॑स्थु॒र्नृभ्य॒स्तरा᳚य॒सिन्ध॑वःसुपा॒राः || {6.6.32.1}, {8.96.1}, {8.10.3.1} |
1294 | अति॑विद्धाविथु॒रेणा᳚चि॒दस्त्रा॒त्रिःस॒प्तसानु॒संहि॑तागिरी॒णाम् | नतद्दे॒वोनमर्त्य॑स्तुतुर्या॒द्यानि॒प्रवृ॑द्धोवृष॒भश्च॒कार॑ || {6.6.32.2}, {8.96.2}, {8.10.3.2} |
1295 | इन्द्र॑स्य॒वज्र॑ऽआय॒सोनिमि॑श्ल॒ऽइन्द्र॑स्यबा॒ह्वोर्भूयि॑ष्ठ॒मोजः॑ | शी॒र्षन्निन्द्र॑स्य॒क्रत॑वोनिरे॒कऽआ॒सन्नेष᳚न्त॒श्रुत्या᳚ऽउपा॒के || {6.6.32.3}, {8.96.3}, {8.10.3.3} |
1296 | मन्ये᳚त्वाय॒ज्ञियं᳚य॒ज्ञिया᳚नां॒मन्ये᳚त्वा॒च्यव॑न॒मच्यु॑तानाम् | मन्ये᳚त्वा॒सत्व॑नामिन्द्रके॒तुंमन्ये᳚त्वावृष॒भंच॑र्षणी॒नाम् || {6.6.32.4}, {8.96.4}, {8.10.3.4} |
1297 | आयद्वज्रं᳚बा॒ह्वोरि᳚न्द्र॒धत्से᳚मद॒च्युत॒मह॑ये॒हन्त॒वाऽउ॑ | प्रपर्व॑ता॒ऽअन॑वन्त॒प्रगावः॒प्रब्र॒ह्माणो᳚ऽअभि॒नक्ष᳚न्त॒ऽइन्द्र᳚म् || {6.6.32.5}, {8.96.5}, {8.10.3.5} |
1298 | तमु॑ष्टवाम॒यऽइ॒माज॒जान॒विश्वा᳚जा॒तान्यव॑राण्यस्मात् | इन्द्रे᳚णमि॒त्रंदि॑धिषेमगी॒र्भिरुपो॒नमो᳚भिर्वृष॒भंवि॑शेम || {6.6.33.1}, {8.96.6}, {8.10.3.6} |
1299 | वृ॒त्रस्य॑त्वाश्व॒सथा॒दीष॑माणा॒विश्वे᳚दे॒वाऽअ॑जहु॒र्येसखा᳚यः | म॒रुद्भि॑रिन्द्रस॒ख्यंते᳚ऽअ॒स्त्वथे॒माविश्वाः॒पृत॑नाजयासि || {6.6.33.2}, {8.96.7}, {8.10.3.7} |
1300 | त्रिःष॒ष्टिस्त्वा᳚म॒रुतो᳚वावृधा॒नाऽउ॒स्राऽइ॑वरा॒शयो᳚य॒ज्ञिया᳚सः | उप॒त्वेमः॑कृ॒धिनो᳚भाग॒धेयं॒शुष्मं᳚तऽए॒नाह॒विषा᳚विधेम || {6.6.33.3}, {8.96.8}, {8.10.3.8} |
1301 | ति॒ग्ममायु॑धंम॒रुता॒मनी᳚कं॒कस्त॑ऽइन्द्र॒प्रति॒वज्रं᳚दधर्ष | अ॒ना॒यु॒धासो॒ऽअसु॑राऽअदे॒वाश्च॒क्रेण॒ताँऽअप॑वपऋजीषिन् || {6.6.33.4}, {8.96.9}, {8.10.3.9} |
1302 | म॒हऽउ॒ग्राय॑त॒वसे᳚सुवृ॒क्तिंप्रेर॑यशि॒वत॑मायप॒श्वः | गिर्वा᳚हसे॒गिर॒ऽइन्द्रा᳚यपू॒र्वीर्धे॒हित॒न्वे᳚कु॒विद॒ङ्गवेद॑त् || {6.6.33.5}, {8.96.10}, {8.10.3.10} |
1303 | उ॒क्थवा᳚हसेवि॒भ्वे᳚मनी॒षांद्रुणा॒नपा॒रमी᳚रयान॒दीना᳚म् | निस्पृ॑शधि॒यात॒न्वि॑श्रु॒तस्य॒जुष्ट॑तरस्यकु॒विद॒ङ्गवेद॑त् || {6.6.34.1}, {8.96.11}, {8.10.3.11} |
1304 | तद्वि॑विड्ढि॒यत्त॒ऽइन्द्रो॒जुजो᳚षत्स्तु॒हिसु॑ष्टु॒तिंनम॒सावि॑वास | उप॑भूषजरित॒र्मारु॑वण्यःश्रा॒वया॒वाचं᳚कु॒विद॒ङ्गवेद॑त् || {6.6.34.2}, {8.96.12}, {8.10.3.12} |
1305 | अव॑द्र॒प्सोऽअं᳚शु॒मती᳚मतिष्ठदिया॒नःकृ॒ष्णोद॒शभिः॑स॒हस्रैः᳚ | आव॒त्तमिन्द्रः॒शच्या॒धम᳚न्त॒मप॒स्नेहि॑तीर्नृ॒मणा᳚ऽअधत्त || {6.6.34.3}, {8.96.13}, {8.10.3.13} |
1306 | द्र॒प्सम॑पश्यं॒विषु॑णे॒चर᳚न्तमुपह्व॒रेन॒द्यो᳚ऽअंशु॒मत्याः᳚ | नभो॒नकृ॒ष्णम॑वतस्थि॒वांस॒मिष्या᳚मिवोवृषणो॒युध्य॑ता॒जौ || {6.6.34.4}, {8.96.14}, {8.10.3.14} |
1307 | अध॑द्र॒प्सोऽअं᳚शु॒मत्या᳚ऽउ॒पस्थेऽधा᳚रयत्त॒न्वं᳚तित्विषा॒णः | विशो॒ऽअदे᳚वीर॒भ्या॒३॑(आ॒)चर᳚न्ती॒र्बृह॒स्पति॑नायु॒जेन्द्रः॑ससाहे || {6.6.34.5}, {8.96.15}, {8.10.3.15} |
1308 | त्वंह॒त्यत्स॒प्तभ्यो॒जाय॑मानोऽश॒त्रुभ्यो᳚ऽअभवः॒शत्रु॑रिन्द्र | गू॒ळ्हेद्यावा᳚पृथि॒वीऽअन्व॑विन्दोविभु॒मद्भ्यो॒भुव॑नेभ्यो॒रणं᳚धाः || {6.6.35.1}, {8.96.16}, {8.10.3.16} |
1309 | त्वंह॒त्यद॑प्रतिमा॒नमोजो॒वज्रे᳚णवज्रिन्धृषि॒तोज॑घन्थ | त्वंशुष्ण॒स्यावा᳚तिरो॒वध॑त्रै॒स्त्वंगाऽइ᳚न्द्र॒शच्येद॑विन्दः || {6.6.35.2}, {8.96.17}, {8.10.3.17} |
1310 | त्वंह॒त्यद्वृ॑षभचर्षणी॒नांघ॒नोवृ॒त्राणां᳚तवि॒षोब॑भूथ | त्वंसिन्धूँ᳚रसृजस्तस्तभा॒नान्त्वम॒पोऽअ॑जयोदा॒सप॑त्नीः || {6.6.35.3}, {8.96.18}, {8.10.3.18} |
1311 | ससु॒क्रतू॒रणि॑ता॒यःसु॒तेष्वनु॑त्तमन्यु॒र्योऽअहे᳚वरे॒वान् | यऽएक॒ऽइन्नर्यपां᳚सि॒कर्ता॒सवृ॑त्र॒हाप्रतीद॒न्यमा᳚हुः || {6.6.35.4}, {8.96.19}, {8.10.3.19} |
1312 | सवृ॑त्र॒हेन्द्र॑श्चर्षणी॒धृत्तंसु॑ष्टु॒त्याहव्यं᳚हुवेम | सप्रा᳚वि॒ताम॒घवा᳚नोऽधिव॒क्तासवाज॑स्यश्रव॒स्य॑स्यदा॒ता || {6.6.35.5}, {8.96.20}, {8.10.3.20} |
1313 | सवृ॑त्र॒हेन्द्र॑ऋभु॒क्षाःस॒द्योज॑ज्ञा॒नोहव्यो᳚बभूव | कृ॒ण्वन्नपां᳚सि॒नर्या᳚पु॒रूणि॒सोमो॒नपी॒तोहव्यः॒सखि॑भ्यः || {6.6.35.6}, {8.96.21}, {8.10.3.21} |
[86] (१-१५) पञ्चदशर्चस्य सूक्तस्य काश्यपो रेभ ऋषिः | इन्द्रो देवता | (१-९) प्रथमादिनवर्चाम् बृहती, (१०, १३) दशमीत्रयोदश्योरतिजगती, (११-१२) एकादशीद्वादश्योरुपरिष्टाद्हती, (१४) चतुदर्श यास्त्रिष्टुप्, (१५) पञ्चदश्याश्च जगती छन्दांसि || | |
1314 | याऽइ᳚न्द्र॒भुज॒ऽआभ॑रः॒स्व᳚र्वाँ॒ऽअसु॑रेभ्यः | स्तो॒तार॒मिन्म॑घवन्नस्यवर्धय॒येच॒त्वेवृ॒क्तब॑र्हिषः || {6.6.36.1}, {8.97.1}, {8.10.4.1} |
1315 | यमि᳚न्द्रदधि॒षेत्वमश्वं॒गांभा॒गमव्य॑यम् | यज॑मानेसुन्व॒तिदक्षि॑णावति॒तस्मि॒न्तंधे᳚हि॒माप॒णौ || {6.6.36.2}, {8.97.2}, {8.10.4.2} |
1316 | यऽइ᳚न्द्र॒सस्त्य᳚व्र॒तो᳚ऽनु॒ष्वाप॒मदे᳚वयुः | स्वैःषऽएवै᳚र्मुमुर॒त्पोष्यं᳚र॒यिंस॑नु॒तर्धे᳚हि॒तंततः॑ || {6.6.36.3}, {8.97.3}, {8.10.4.3} |
1317 | यच्छ॒क्रासि॑परा॒वति॒यद᳚र्वा॒वति॑वृत्रहन् | अत॑स्त्वागी॒र्भिर्द्यु॒गदि᳚न्द्रके॒शिभिः॑सु॒तावाँ॒ऽआवि॑वासति || {6.6.36.4}, {8.97.4}, {8.10.4.4} |
1318 | यद्वासि॑रोच॒नेदि॒वःस॑मु॒द्रस्याधि॑वि॒ष्टपि॑ | यत्पार्थि॑वे॒सद॑नेवृत्रहन्तम॒यद॒न्तरि॑क्ष॒ऽआग॑हि || {6.6.36.5}, {8.97.5}, {8.10.4.5} |
1319 | सनः॒सोमे᳚षुसोमपाःसु॒तेषु॑शवसस्पते | मा॒दय॑स्व॒राध॑सासू॒नृता᳚व॒तेन्द्र॑रा॒यापरी᳚णसा || {6.6.37.1}, {8.97.6}, {8.10.4.6} |
1320 | मान॑ऽइन्द्र॒परा᳚वृण॒ग्भवा᳚नःसध॒माद्यः॑ | त्वंन॑ऽऊ॒तीत्वमिन्न॒ऽआप्यं॒मान॑ऽइन्द्र॒परा᳚वृणक् || {6.6.37.2}, {8.97.7}, {8.10.4.7} |
1321 | अ॒स्मेऽइ᳚न्द्र॒सचा᳚सु॒तेनिष॑दापी॒तये॒मधु॑ | कृ॒धीज॑रि॒त्रेम॑घव॒न्नवो᳚म॒हद॒स्मेऽइ᳚न्द्र॒सचा᳚सु॒ते || {6.6.37.3}, {8.97.8}, {8.10.4.8} |
1322 | नत्वा᳚दे॒वास॑ऽआशत॒नमर्त्या᳚सोऽअद्रिवः | विश्वा᳚जा॒तानि॒शव॑साभि॒भूर॑सि॒नत्वा᳚दे॒वास॑ऽआशत || {6.6.37.4}, {8.97.9}, {8.10.4.9} |
1323 | विश्वाः॒पृत॑नाऽअभि॒भूत॑रं॒नरं᳚स॒जूस्त॑तक्षु॒रिन्द्रं᳚जज॒नुश्च॑रा॒जसे᳚ | क्रत्वा॒वरि॑ष्ठं॒वर॑ऽआ॒मुरि॑मु॒तोग्रमोजि॑ष्ठंत॒वसं᳚तर॒स्विन᳚म् || {6.6.37.5}, {8.97.10}, {8.10.4.10} |
1324 | समीं᳚रे॒भासो᳚ऽअस्वर॒न्निन्द्रं॒सोम॑स्यपी॒तये᳚ | स्व॑र्पतिं॒यदीं᳚वृ॒धेधृ॒तव्र॑तो॒ह्योज॑सा॒समू॒तिभिः॑ || {6.6.38.1}, {8.97.11}, {8.10.4.11} |
1325 | ने॒मिंन॑मन्ति॒चक्ष॑सामे॒षंविप्रा᳚ऽअभि॒स्वरा᳚ | सु॒दी॒तयो᳚वोऽअ॒द्रुहोऽपि॒कर्णे᳚तर॒स्विनः॒समृक्व॑भिः || {6.6.38.2}, {8.97.12}, {8.10.4.12} |
1326 | तमिन्द्रं᳚जोहवीमिम॒घवा᳚नमु॒ग्रंस॒त्रादधा᳚न॒मप्र॑तिष्कुतं॒शवां᳚सि | मंहि॑ष्ठोगी॒र्भिराच॑य॒ज्ञियो᳚व॒वर्त॑द्रा॒येनो॒विश्वा᳚सु॒पथा᳚कृणोतुव॒ज्री || {6.6.38.3}, {8.97.13}, {8.10.4.13} |
1327 | त्वंपुर॑ऽइन्द्रचि॒किदे᳚ना॒व्योज॑साशविष्ठशक्रनाश॒यध्यै᳚ | त्वद्विश्वा᳚नि॒भुव॑नानिवज्रि॒न्द्यावा᳚रेजेतेपृथि॒वीच॑भी॒षा || {6.6.38.4}, {8.97.14}, {8.10.4.14} |
1328 | तन्म॑ऋ॒तमि᳚न्द्रशूरचित्रपात्व॒पोनव॑ज्रिन्दुरि॒ताति॑पर्षि॒भूरि॑ | क॒दान॑ऽइन्द्ररा॒यऽआद॑शस्येर्वि॒श्वप्स्न्य॑स्यस्पृह॒याय्य॑स्यराजन् || {6.6.38.5}, {8.97.15}, {8.10.4.15} |
[87] (१-१२) द्वादशर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो नृमधे ऋषिः | इन्द्रो देवता | (१-६, ८) प्रथमादितृचद्वयस्याष्टम्या ऋचश्चोष्णिक्, (७, १०-११) सप्तमीदशम्येकादशीनां ककप, (९, १२) नवमीद्वादश्योश्च पुर उष्णिक् छन्दांसि || | |
1329 | इन्द्रा᳚य॒साम॑गायत॒विप्रा᳚यबृह॒तेबृ॒हत् | ध॒र्म॒कृते᳚विप॒श्चिते᳚पन॒स्यवे᳚ || {6.7.1.1}, {8.98.1}, {8.10.5.1} |
1330 | त्वमि᳚न्द्राभि॒भूर॑सि॒त्वंसूर्य॑मरोचयः | वि॒श्वक᳚र्मावि॒श्वदे᳚वोम॒हाँऽअ॑सि || {6.7.1.2}, {8.98.2}, {8.10.5.2} |
1331 | वि॒भ्राज॒ञ्ज्योति॑षा॒स्व१॑(अ॒)रग॑च्छोरोच॒नंदि॒वः | दे॒वास्त॑ऽइन्द्रस॒ख्याय॑येमिरे || {6.7.1.3}, {8.98.3}, {8.10.5.3} |
1332 | एन्द्र॑नोगधिप्रि॒यःस॑त्रा॒जिदगो᳚ह्यः | गि॒रिर्नवि॒श्वत॑स्पृ॒थुःपति॑र्दि॒वः || {6.7.1.4}, {8.98.4}, {8.10.5.4} |
1333 | अ॒भिहिस॑त्यसोमपाऽउ॒भेब॒भूथ॒रोद॑सी | इन्द्रासि॑सुन्व॒तोवृ॒धःपति॑र्दि॒वः || {6.7.1.5}, {8.98.5}, {8.10.5.5} |
1334 | त्वंहिशश्व॑तीना॒मिन्द्र॑द॒र्तापु॒रामसि॑ | ह॒न्तादस्यो॒र्मनो᳚र्वृ॒धःपति॑र्दि॒वः || {6.7.1.6}, {8.98.6}, {8.10.5.6} |
1335 | अधा॒ही᳚न्द्रगिर्वण॒ऽउप॑त्वा॒कामा᳚न्म॒हःस॑सृ॒ज्महे᳚ | उ॒देव॒यन्त॑ऽउ॒दभिः॑ || {6.7.2.1}, {8.98.7}, {8.10.5.7} |
1336 | वार्णत्वा᳚य॒व्याभि॒र्वर्ध᳚न्तिशूर॒ब्रह्मा᳚णि | वा॒वृ॒ध्वांसं᳚चिदद्रिवोदि॒वेदि॑वे || {6.7.2.2}, {8.98.8}, {8.10.5.8} |
1337 | यु॒ञ्जन्ति॒हरी᳚ऽइषि॒रस्य॒गाथ॑यो॒रौरथ॑ऽउ॒रुयु॑गे | इ॒न्द्र॒वाहा᳚वचो॒युजा᳚ || {6.7.2.3}, {8.98.9}, {8.10.5.9} |
1338 | त्वंन॑ऽइ॒न्द्राभ॑रँ॒ऽओजो᳚नृ॒म्णंश॑तक्रतोविचर्षणे | आवी॒रंपृ॑तना॒षह᳚म् || {6.7.2.4}, {8.98.10}, {8.10.5.10} |
1339 | त्वंहिनः॑पि॒ताव॑सो॒त्वंमा॒ताश॑तक्रतोब॒भूवि॑थ | अधा᳚तेसु॒म्नमी᳚महे || {6.7.2.5}, {8.98.11}, {8.10.5.11} |
1340 | त्वांशु॑ष्मिन्पुरुहूतवाज॒यन्त॒मुप॑ब्रुवेशतक्रतो | सनो᳚रास्वसु॒वीर्य᳚म् || {6.7.2.6}, {8.98.12}, {8.10.5.12} |
[88] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो नृमधे ऋषिः | इन्द्रो देवता | प्रगाथः (विषमर्चाम् बृहती, समर्चाम् सतोबृहती) छन्दः || | |
1341 | त्वामि॒दाह्योनरोऽपी᳚प्यन्वज्रि॒न्भूर्ण॑यः | सऽइ᳚न्द्र॒स्तोम॑वाहसामि॒हश्रु॒ध्युप॒स्वस॑र॒माग॑हि || {6.7.3.1}, {8.99.1}, {8.10.6.1} |
1342 | मत्स्वा᳚सुशिप्रहरिव॒स्तदी᳚महे॒त्वेऽआभू᳚षन्तिवे॒धसः॑ | तव॒श्रवां᳚स्युप॒मान्यु॒क्थ्या᳚सु॒तेष्वि᳚न्द्रगिर्वणः || {6.7.3.2}, {8.99.2}, {8.10.6.2} |
1343 | श्राय᳚न्तऽइव॒सूर्यं॒विश्वेदिन्द्र॑स्यभक्षत | वसू᳚निजा॒तेजन॑मान॒ऽओज॑सा॒प्रति॑भा॒गंनदी᳚धिम || {6.7.3.3}, {8.99.3}, {8.10.6.3} |
1344 | अन॑र्शरातिंवसु॒दामुप॑स्तुहिभ॒द्राऽइन्द्र॑स्यरा॒तयः॑ | सोऽअ॑स्य॒कामं᳚विध॒तोनरो᳚षति॒मनो᳚दा॒नाय॑चो॒दय॑न् || {6.7.3.4}, {8.99.4}, {8.10.6.4} |
1345 | त्वमि᳚न्द्र॒प्रतू᳚र्तिष्व॒भिविश्वा᳚ऽअसि॒स्पृधः॑ | अ॒श॒स्ति॒हाज॑नि॒तावि॑श्व॒तूर॑सि॒त्वंतू᳚र्यतरुष्य॒तः || {6.7.3.5}, {8.99.5}, {8.10.6.5} |
1346 | अनु॑ते॒शुष्मं᳚तु॒रय᳚न्तमीयतुःक्षो॒णीशिशुं॒नमा॒तरा᳚ | विश्वा᳚स्ते॒स्पृधः॑श्नथयन्तम॒न्यवे᳚वृ॒त्रंयदि᳚न्द्र॒तूर्व॑सि || {6.7.3.6}, {8.99.6}, {8.10.6.6} |
1347 | इ॒तऽऊ॒तीवो᳚ऽअ॒जरं᳚प्रहे॒तार॒मप्र॑हितम् | आ॒शुंजेता᳚रं॒हेता᳚रंर॒थीत॑म॒मतू᳚र्तंतुग्र्या॒वृध᳚म् || {6.7.3.7}, {8.99.7}, {8.10.6.7} |
1348 | इ॒ष्क॒र्तार॒मनि॑ष्कृतं॒सह॑स्कृतंश॒तमू᳚तिंश॒तक्र॑तुम् | स॒मा॒नमिन्द्र॒मव॑सेहवामहे॒वस॑वानंवसू॒जुव᳚म् || {6.7.3.8}, {8.99.8}, {8.10.6.8} |
[89] (१-१२) द्वादशर्चस्य सूक्तस्य (१-३, ६-१२) प्रथमादितृचस्य षष्ठ्यादिसप्तानामृचां भार्गवो नेमः, (४-५) चतुर्थीपञ्चम्योश्चेन्द्र ऋषी (१-७, १२) प्रथमादिसप्तर्चाम् द्वादश्याश्चेन्द्रः, (८) अष्टम्याः सुपर्ण इन्द्रो वा, (९) नवम्या वजो इन्द्रो वा, (१०-११) दशम्येकादश्योश्च वाग्देवताः | (१-५, १०-१२) प्रथमादिपञ्चरों दशम्यादितृचस्य च त्रिष्टुप, (६) षष्ठ्या जगती, (७-९) सप्तम्यादितृचस्य चानुष्टुप्, छन्दांसि || | |
1349 | अ॒यंत॑ऽएमित॒न्वा᳚पु॒रस्ता॒द्विश्वे᳚दे॒वाऽअ॒भिमा᳚यन्तिप॒श्चात् | य॒दामह्यं॒दीध॑रोभा॒गमि॒न्द्रादिन्मया᳚कृणवोवी॒र्या᳚णि || {6.7.4.1}, {8.100.1}, {8.10.7.1} |
1350 | दधा᳚मिते॒मधु॑नोभ॒क्षमग्रे᳚हि॒तस्ते᳚भा॒गःसु॒तोऽअ॑स्तु॒सोमः॑ | अस॑श्च॒त्वंद॑क्षिण॒तःसखा॒मेऽधा᳚वृ॒त्राणि॑जङ्घनाव॒भूरि॑ || {6.7.4.2}, {8.100.2}, {8.10.7.2} |
1351 | प्रसुस्तोमं᳚भरतवाज॒यन्त॒ऽइन्द्रा᳚यस॒त्यंयदि॑स॒त्यमस्ति॑ | नेन्द्रो᳚ऽअ॒स्तीति॒नेम॑ऽउत्वऽआह॒कऽईं᳚ददर्श॒कम॒भिष्ट॑वाम || {6.7.4.3}, {8.100.3}, {8.10.7.3} |
1352 | अ॒यम॑स्मिजरितः॒पश्य॑मे॒हविश्वा᳚जा॒तान्य॒भ्य॑स्मिम॒ह्ना | ऋ॒तस्य॑माप्र॒दिशो᳚वर्धयन्त्यादर्दि॒रोभुव॑नादर्दरीमि || {6.7.4.4}, {8.100.4}, {8.10.7.4} |
1353 | आयन्मा᳚वे॒नाऽअरु॑हन्नृ॒तस्यँ॒ऽएक॒मासी᳚नंहर्य॒तस्य॑पृ॒ष्ठे | मन॑श्चिन्मेहृ॒दऽआप्रत्य॑वोच॒दचि॑क्रद॒ञ्छिशु॑मन्तः॒सखा᳚यः || {6.7.4.5}, {8.100.5}, {8.10.7.5} |
1354 | विश्वेत्ताते॒सव॑नेषुप्र॒वाच्या॒याच॒कर्थ॑मघवन्निन्द्रसुन्व॒ते | पारा᳚वतं॒यत्पु॑रुसम्भृ॒तंवस्व॒पावृ॑णोःशर॒भाय॒ऋषि॑बन्धवे || {6.7.4.6}, {8.100.6}, {8.10.7.6} |
1355 | प्रनू॒नंधा᳚वता॒पृथ॒ङ्नेहयोवो॒ऽअवा᳚वरीत् | निषीं᳚वृ॒त्रस्य॒मर्म॑णि॒वज्र॒मिन्द्रो᳚ऽअपीपतत् || {6.7.5.1}, {8.100.7}, {8.10.7.7} |
1356 | मनो᳚जवा॒ऽअय॑मानऽआय॒सीम॑तर॒त्पुर᳚म् | दिवं᳚सुप॒र्णोग॒त्वाय॒सोमं᳚व॒ज्रिण॒ऽआभ॑रत् || {6.7.5.2}, {8.100.8}, {8.10.7.8} |
1357 | स॒मु॒द्रेऽअ॒न्तःश॑यतऽउ॒द्नावज्रो᳚ऽअ॒भीवृ॑तः | भर᳚न्त्यस्मैसं॒यतः॑पु॒रःप्र॑स्रवणाब॒लिम् || {6.7.5.3}, {8.100.9}, {8.10.7.9} |
1358 | यद्वाग्वद᳚न्त्यविचेत॒नानि॒राष्ट्री᳚दे॒वानां᳚निष॒साद॑म॒न्द्रा | चत॑स्र॒ऽऊर्जं᳚दुदुहे॒पयां᳚सि॒क्व॑स्विदस्याःपर॒मंज॑गाम || {6.7.5.4}, {8.100.10}, {8.10.7.10} |
1359 | दे॒वींवाच॑मजनयन्तदे॒वास्तांवि॒श्वरू᳚पाःप॒शवो᳚वदन्ति | सानो᳚म॒न्द्रेष॒मूर्जं॒दुहा᳚नाधे॒नुर्वाग॒स्मानुप॒सुष्टु॒तैतु॑ || {6.7.5.5}, {8.100.11}, {8.10.7.11} |
1360 | सखे᳚विष्णोवित॒रंविक्र॑मस्व॒द्यौर्दे॒हिलो॒कंवज्रा᳚यवि॒ष्कभे᳚ | हना᳚ववृ॒त्रंरि॒णचा᳚व॒सिन्धू॒निन्द्र॑स्ययन्तुप्रस॒वेविसृ॑ष्टाः || {6.7.5.6}, {8.100.12}, {8.10.7.12} |
[90] (१-१६) षोळशर्चस्य सूक्तस्य भार्गवो जमदग्निषिः (१-४, ५) प्रथमादिचतुअतुर्ऋचाम् पञ्चम्याः पादत्रयस्य च मित्रावरुणौ, (५-६) पञ्चम्यास्तृतीयपादस्य षष्ठ्याश्चादित्याः, (७-८) सप्तम्यष्टम्योरश्विनौ, (९-१०) नवमीदशम्योर्वायः (११-१२) एकादशीद्वादश्योः सूयः (१३) त्रयोदश्या उषाः सूयर्प भ्रा वा, (१४) चतुदर्श याः पवमानः, (१५-१६) पञ्चदशीषोडश्योश्च गौदेर्वताः | (१-२, ५-१२) प्रथमाद्वितीययोर्ऋचोः पञ्चम्याद्यष्टानाञ्च प्रगाथः (विषमर्चाम् बृहती, समाँ सतोबृहती), (३) तृतीयाया गायत्री, (४) चतुर्थ्याः सतोबृहती, (१३) त्रयोदश्या बृहती, (१४-१६) चतुदर्श यादितृचस्य च त्रिष्टुप् छन्दांसि || | |
1361 | ऋध॑गि॒त्थासमर्त्यः॑शश॒मेदे॒वता᳚तये | योनू॒नंमि॒त्रावरु॑णाव॒भिष्ट॑यऽआच॒क्रेह॒व्यदा᳚तये || {6.7.6.1}, {8.101.1}, {8.10.8.1} |
1362 | वर्षि॑ष्ठक्षत्राऽउरु॒चक्ष॑सा॒नरा॒राजा᳚नादीर्घ॒श्रुत्त॑मा | ताबा॒हुता॒नदं॒सना᳚रथर्यतःसा॒कंसूर्य॑स्यर॒श्मिभिः॑ || {6.7.6.2}, {8.101.2}, {8.10.8.2} |
1363 | प्रयोवां᳚मित्रावरुणाजि॒रोदू॒तोऽअद्र॑वत् | अयः॑शीर्षा॒मदे᳚रघुः || {6.7.6.3}, {8.101.3}, {8.10.8.3} |
1364 | नयःस॒म्पृच्छे॒नपुन॒र्हवी᳚तवे॒नसं᳚वा॒दाय॒रम॑ते | तस्मा᳚न्नोऽअ॒द्यसमृ॑तेरुरुष्यतंबा॒हुभ्यां᳚नऽउरुष्यतम् || {6.7.6.4}, {8.101.4}, {8.10.8.4} |
1365 | प्रमि॒त्राय॒प्रार्य॒म्णेस॑च॒थ्य॑मृतावसो | व॒रू॒थ्य१॑(अ॒)अंवरु॑णे॒छन्द्यं॒वचः॑स्तो॒त्रंराज॑सुगायत || {6.7.6.5}, {8.101.5}, {8.10.8.5} |
1366 | तेहि᳚न्विरेऽअरु॒णंजेन्यं॒वस्वेकं᳚पु॒त्रंति॑सॄ॒णाम् | तेधामा᳚न्य॒मृता॒मर्त्या᳚ना॒मद॑ब्धाऽअ॒भिच॑क्षते || {6.7.7.1}, {8.101.6}, {8.10.8.6} |
1367 | आमे॒वचां॒स्युद्य॑ताद्यु॒मत्त॑मानि॒कर्त्वा᳚ | उ॒भाया᳚तंनासत्यास॒जोष॑सा॒प्रति॑ह॒व्यानि॑वी॒तये᳚ || {6.7.7.2}, {8.101.7}, {8.10.8.7} |
1368 | रा॒तिंयद्वा᳚मर॒क्षसं॒हवा᳚महेयु॒वाभ्यां᳚वाजिनीवसू | प्राचीं॒होत्रां᳚प्रति॒रन्ता᳚वितंनरागृणा॒नाज॒मद॑ग्निना || {6.7.7.3}, {8.101.8}, {8.10.8.8} |
1369 | आनो᳚य॒ज्ञंदि॑वि॒स्पृशं॒वायो᳚या॒हिसु॒मन्म॑भिः | अ॒न्तःप॒वित्र॑ऽउ॒परि॑श्रीणा॒नो॒३॑(ओ॒)ऽयंशु॒क्रोऽअ॑यामिते || {6.7.7.4}, {8.101.9}, {8.10.8.9} |
1370 | वेत्य॑ध्व॒र्युःप॒थिभी॒रजि॑ष्ठैः॒प्रति॑ह॒व्यानि॑वी॒तये᳚ | अधा᳚नियुत्वऽउ॒भय॑स्यनःपिब॒शुचिं॒सोमं॒गवा᳚शिरम् || {6.7.7.5}, {8.101.10}, {8.10.8.10} |
1371 | बण्म॒हाँऽअ॑सिसूर्य॒बळा᳚दित्यम॒हाँऽअ॑सि | म॒हस्ते᳚स॒तोम॑हि॒माप॑नस्यते॒ऽद्धादे᳚वम॒हाँऽअ॑सि || {6.7.8.1}, {8.101.11}, {8.10.8.11} |
1372 | बट्सू᳚र्य॒श्रव॑साम॒हाँऽअ॑सिस॒त्रादे᳚वम॒हाँऽअ॑सि | म॒ह्नादे॒वाना᳚मसु॒र्यः॑पु॒रोहि॑तोवि॒भुज्योति॒रदा᳚भ्यम् || {6.7.8.2}, {8.101.12}, {8.10.8.12} |
1373 | इ॒यंयानीच्य॒र्किणी᳚रू॒पारोहि᳚ण्याकृ॒ता | चि॒त्रेव॒प्रत्य॑दर्श्याय॒त्य१॑(अ॒)'न्तर्द॒शसु॑बा॒हुषु॑ || {6.7.8.3}, {8.101.13}, {8.10.8.13} |
1374 | प्र॒जाह॑ति॒स्रोऽअ॒त्याय॑मीयु॒र्न्य१॑(अ॒)'न्याऽअ॒र्कम॒भितो᳚विविश्रे | बृ॒हद्ध॑तस्थौ॒भुव॑नेष्व॒न्तःपव॑मानोह॒रित॒ऽआवि॑वेश || {6.7.8.4}, {8.101.14}, {8.10.8.14} |
1375 | मा॒तारु॒द्राणां᳚दुहि॒तावसू᳚नां॒स्वसा᳚दि॒त्याना᳚म॒मृत॑स्य॒नाभिः॑ | प्रनुवो᳚चंचिकि॒तुषे॒जना᳚य॒मागामना᳚गा॒मदि॑तिंवधिष्ट || {6.7.8.5}, {8.101.15}, {8.10.8.15} |
1376 | व॒चो॒विदं॒वाच॑मुदी॒रय᳚न्तीं॒विश्वा᳚भिर्धी॒भिरु॑प॒तिष्ठ॑मानाम् | दे॒वींदे॒वेभ्यः॒पर्ये॒युषीं॒गामामा᳚वृक्त॒मर्त्यो᳚द॒भ्रचे᳚ताः || {6.7.8.6}, {8.101.16}, {8.10.8.16} |
[91] (१-२२) द्वाविंशत्यृचस्य सूक्तस्य भार्गवः प्रयोगो बार्हस्पत्यः पावको वाग्निर्वा, सहर : सुतौ गृहपतियविष्ठौ वा तयोरन्यतरो वा ऋषिः | अग्निर्देवता | गायत्री छन्दः || | |
1377 | त्वम॑ग्नेबृ॒हद्वयो॒दधा᳚सिदेवदा॒शुषे᳚ | क॒विर्गृ॒हप॑ति॒र्युवा᳚ || {6.7.9.1}, {8.102.1}, {8.10.9.1} |
1378 | सन॒ऽईळा᳚नयास॒हदे॒वाँऽअ॑ग्नेदुव॒स्युवा᳚ | चि॒किद्वि॑भान॒वाव॑ह || {6.7.9.2}, {8.102.2}, {8.10.9.2} |
1379 | त्वया᳚हस्विद्यु॒जाव॒यंचोदि॑ष्ठेनयविष्ठ्य | अ॒भिष्मो॒वाज॑सातये || {6.7.9.3}, {8.102.3}, {8.10.9.3} |
1380 | औ॒र्व॒भृ॒गु॒वच्छुचि॑मप्नवान॒वदाहु॑वे | अ॒ग्निंस॑मु॒द्रवा᳚ससम् || {6.7.9.4}, {8.102.4}, {8.10.9.4} |
1381 | हु॒वेवात॑स्वनंक॒विंप॒र्जन्य॑क्रन्द्यं॒सहः॑ | अ॒ग्निंस॑मु॒द्रवा᳚ससम् || {6.7.9.5}, {8.102.5}, {8.10.9.5} |
1382 | आस॒वंस॑वि॒तुर्य॑था॒भग॑स्येवभु॒जिंहु॑वे | अ॒ग्निंस॑मु॒द्रवा᳚ससम् || {6.7.10.1}, {8.102.6}, {8.10.9.6} |
1383 | अ॒ग्निंवो᳚वृ॒धन्त॑मध्व॒राणां᳚पुरू॒तम᳚म् | अच्छा॒नप्त्रे॒सह॑स्वते || {6.7.10.2}, {8.102.7}, {8.10.9.7} |
1384 | अ॒यंयथा᳚नऽआ॒भुव॒त्त्वष्टा᳚रू॒पेव॒तक्ष्या᳚ | अ॒स्यक्रत्वा॒यश॑स्वतः || {6.7.10.3}, {8.102.8}, {8.10.9.8} |
1385 | अ॒यंविश्वा᳚ऽअ॒भिश्रियो॒ऽग्निर्दे॒वेषु॑पत्यते | आवाजै॒रुप॑नोगमत् || {6.7.10.4}, {8.102.9}, {8.10.9.9} |
1386 | विश्वे᳚षामि॒हस्तु॑हि॒होतॄ᳚णांय॒शस्त॑मम् | अ॒ग्निंय॒ज्ञेषु॑पू॒र्व्यम् || {6.7.10.5}, {8.102.10}, {8.10.9.10} |
1387 | शी॒रंपा᳚व॒कशो᳚चिषं॒ज्येष्ठो॒योदमे॒ष्वा | दी॒दाय॑दीर्घ॒श्रुत्त॑मः || {6.7.11.1}, {8.102.11}, {8.10.9.11} |
1388 | तमर्व᳚न्तं॒नसा᳚न॒सिंगृ॑णी॒हिवि॑प्रशु॒ष्मिण᳚म् | मि॒त्रंनया᳚त॒यज्ज॑नम् || {6.7.11.2}, {8.102.12}, {8.10.9.12} |
1389 | उप॑त्वाजा॒मयो॒गिरो॒देदि॑शतीर्हवि॒ष्कृतः॑ | वा॒योरनी᳚केऽअस्थिरन् || {6.7.11.3}, {8.102.13}, {8.10.9.13} |
1390 | यस्य॑त्रि॒धात्ववृ॑तंब॒र्हिस्त॒स्थावसं᳚दिनम् | आप॑श्चि॒न्निद॑धाप॒दम् || {6.7.11.4}, {8.102.14}, {8.10.9.14} |
1391 | प॒दंदे॒वस्य॑मी॒ळ्हुषोऽना᳚धृष्टाभिरू॒तिभिः॑ | भ॒द्रासूर्य॑ऽइवोप॒दृक् || {6.7.11.5}, {8.102.15}, {8.10.9.15} |
1392 | अग्ने᳚घृ॒तस्य॑धी॒तिभि॑स्तेपा॒नोदे᳚वशो॒चिषा᳚ | आदे॒वान्व॑क्षि॒यक्षि॑च || {6.7.12.1}, {8.102.16}, {8.10.9.16} |
1393 | तंत्वा᳚जनन्तमा॒तरः॑क॒विंदे॒वासो᳚ऽअङ्गिरः | ह॒व्य॒वाह॒मम॑र्त्यम् || {6.7.12.2}, {8.102.17}, {8.10.9.17} |
1394 | प्रचे᳚तसंत्वाक॒वेऽग्ने᳚दू॒तंवरे᳚ण्यम् | ह॒व्य॒वाहं॒निषे᳚दिरे || {6.7.12.3}, {8.102.18}, {8.10.9.18} |
1395 | न॒हिमे॒ऽअस्त्यघ्न्या॒नस्वधि॑ति॒र्वन᳚न्वति | अथै᳚ता॒दृग्भ॑रामिते || {6.7.12.4}, {8.102.19}, {8.10.9.19} |
1396 | यद॑ग्ने॒कानि॒कानि॑चि॒दाते॒दारू᳚णिद॒ध्मसि॑ | ताजु॑षस्वयविष्ठ्य || {6.7.12.5}, {8.102.20}, {8.10.9.20} |
1397 | यदत्त्यु॑प॒जिह्वि॑का॒यद्व॒म्रोऽअ॑ति॒सर्प॑ति | सर्वं॒तद॑स्तुतेघृ॒तम् || {6.7.12.6}, {8.102.21}, {8.10.9.21} |
1398 | अ॒ग्निमिन्धा᳚नो॒मन॑सा॒धियं᳚सचेत॒मर्त्यः॑ | अ॒ग्निमी᳚धेवि॒वस्व॑भिः || {6.7.12.7}, {8.102.22}, {8.10.9.22} |
[92] (१-१४) चतुर्दशर्चस्य सूक्तस्य काण्वः सोभरि ऋषिः | (१-१३) प्रथमादित्रयोदशर्चामग्निः, (१४) चतुदर्श याश्चाग्नामरुतो देवताः | (१-४, ६) प्रथमादिचतुर्ऋचामा, षष्ठ्याश्च बृहती, (५) पञ्चम्या विराड्रूपा, (७, ९, ११, १३) सप्तमीनवम्येकादशीत्रयोदशीनां सतोबृहती, (८, १२) अष्टमीद्वादश्योः ककप, (१०) दशम्या ह्रसीयसी गायत्री, (१४) चतुदर्श याश्चानुष्टप छन्दांसि || | |
1399 | अद॑र्शिगातु॒वित्त॑मो॒यस्मि᳚न्व्र॒तान्या᳚द॒धुः | उपो॒षुजा॒तमार्य॑स्य॒वर्ध॑नम॒ग्निंन॑क्षन्तनो॒गिरः॑ || {6.7.13.1}, {8.103.1}, {8.10.10.1} |
1400 | प्रदैवो᳚दासोऽअ॒ग्निर्दे॒वाँऽअच्छा॒नम॒ज्मना᳚ | अनु॑मा॒तरं᳚पृथि॒वींविवा᳚वृतेत॒स्थौनाक॑स्य॒सान॑वि || {6.7.13.2}, {8.103.2}, {8.10.10.2} |
1401 | यस्मा॒द्रेज᳚न्तकृ॒ष्टय॑श्च॒र्कृत्या᳚निकृण्व॒तः | स॒ह॒स्र॒सांमे॒धसा᳚ताविव॒त्मना॒ग्निंधी॒भिःस॑पर्यत || {6.7.13.3}, {8.103.3}, {8.10.10.3} |
1402 | प्रयंरा॒येनिनी᳚षसि॒मर्तो॒यस्ते᳚वसो॒दाश॑त् | सवी॒रंध॑त्तेऽअग्नऽउक्थशं॒सिनं॒त्मना᳚सहस्रपो॒षिण᳚म् || {6.7.13.4}, {8.103.4}, {8.10.10.4} |
1403 | सदृ॒ळ्हेचि॑द॒भितृ॑णत्ति॒वाज॒मर्व॑ता॒सध॑त्ते॒ऽअक्षि॑ति॒श्रवः॑ | त्वेदे᳚व॒त्रासदा᳚पुरूवसो॒विश्वा᳚वा॒मानि॑धीमहि || {6.7.13.5}, {8.103.5}, {8.10.10.5} |
1404 | योविश्वा॒दय॑ते॒वसु॒होता᳚म॒न्द्रोजना᳚नाम् | मधो॒र्नपात्रा᳚प्रथ॒मान्य॑स्मै॒प्रस्तोमा᳚यन्त्य॒ग्नये᳚ || {6.7.14.1}, {8.103.6}, {8.10.10.6} |
1405 | अश्वं॒नगी॒र्भीर॒थ्यं᳚सु॒दान॑वोमर्मृ॒ज्यन्ते᳚देव॒यवः॑ | उ॒भेतो॒केतन॑येदस्मविश्पते॒पर्षि॒राधो᳚म॒घोना᳚म् || {6.7.14.2}, {8.103.7}, {8.10.10.7} |
1406 | प्रमंहि॑ष्ठायगायतऋ॒ताव्ने᳚बृह॒तेशु॒क्रशो᳚चिषे | उप॑स्तुतासोऽअ॒ग्नये᳚ || {6.7.14.3}, {8.103.8}, {8.10.10.8} |
1407 | आवं᳚सतेम॒घवा᳚वी॒रव॒द्यशः॒समि॑द्धोद्यु॒म्न्याहु॑तः | कु॒विन्नो᳚ऽअस्यसुम॒तिर्नवी᳚य॒स्यच्छा॒वाजे᳚भिरा॒गम॑त् || {6.7.14.4}, {8.103.9}, {8.10.10.9} |
1408 | प्रेष्ठ॑मुप्रि॒याणां᳚स्तु॒ह्या᳚सा॒वाति॑थिम् | अ॒ग्निंरथा᳚नां॒यम᳚म् || {6.7.14.5}, {8.103.10}, {8.10.10.10} |
1409 | उदि॑ता॒योनिदि॑ता॒वेदि॑ता॒वस्वाय॒ज्ञियो᳚व॒वर्त॑ति | दु॒ष्टरा॒यस्य॑प्रव॒णेनोर्मयो᳚धि॒यावाजं॒सिषा᳚सतः || {6.7.15.1}, {8.103.11}, {8.10.10.11} |
1410 | मानो᳚हृणीता॒मति॑थि॒र्वसु॑र॒ग्निःपु॑रुप्रश॒स्तऽए॒षः | यःसु॒होता᳚स्वध्व॒रः || {6.7.15.2}, {8.103.12}, {8.10.10.12} |
1411 | मोतेरि॑ष॒न्येऽअच्छो᳚क्तिभिर्व॒सोऽग्ने॒केभि॑श्चि॒देवैः᳚ | की॒रिश्चि॒द्धित्वामीट्टे᳚दू॒त्या᳚यरा॒तह᳚व्यःस्वध्व॒रः || {6.7.15.3}, {8.103.13}, {8.10.10.13} |
1412 | आग्ने᳚याहिम॒रुत्स॑खारु॒द्रेभिः॒सोम॑पीतये | सोभ᳚र्या॒ऽउप॑सुष्टु॒तिंमा॒दय॑स्व॒स्व᳚र्णरे || {6.7.15.4}, {8.103.14}, {8.10.10.14} |
[93] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य वैश्वामित्रो मधुच्छन्दा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1413 | स्वादि॑ष्ठया॒मदि॑ष्ठया॒पव॑स्वसोम॒धार॑या | इन्द्रा᳚य॒पात॑वेसु॒तः || {6.7.16.1}, {9.1.1}, {9.1.1.1} |
1414 | र॒क्षो॒हावि॒श्वच॑र्षणिर॒भियोनि॒मयो᳚हतम् | द्रुणा᳚स॒धस्थ॒मास॑दत् || {6.7.16.2}, {9.1.2}, {9.1.1.2} |
1415 | व॒रि॒वो॒धात॑मोभव॒मंहि॑ष्ठोवृत्र॒हन्त॑मः | पर्षि॒राधो᳚म॒घोना᳚म् || {6.7.16.3}, {9.1.3}, {9.1.1.3} |
1416 | अ॒भ्य॑र्षम॒हानां᳚दे॒वानां᳚वी॒तिमन्ध॑सा | अ॒भिवाज॑मु॒तश्रवः॑ || {6.7.16.4}, {9.1.4}, {9.1.1.4} |
1417 | त्वामच्छा᳚चरामसि॒तदिदर्थं᳚दि॒वेदि॑वे | इन्दो॒त्वेन॑ऽआ॒शसः॑ || {6.7.16.5}, {9.1.5}, {9.1.1.5} |
1418 | पु॒नाति॑तेपरि॒स्रुतं॒सोमं॒सूर्य॑स्यदुहि॒ता | वारे᳚ण॒शश्व॑ता॒तना᳚ || {6.7.17.1}, {9.1.6}, {9.1.1.6} |
1419 | तमी॒मण्वीः᳚सम॒र्यऽआगृ॒भ्णन्ति॒योष॑णो॒दश॑ | स्वसा᳚रः॒पार्ये᳚दि॒वि || {6.7.17.2}, {9.1.7}, {9.1.1.7} |
1420 | तमीं᳚हिन्वन्त्य॒ग्रुवो॒धम᳚न्तिबाकु॒रंदृति᳚म् | त्रि॒धातु॑वार॒णंमधु॑ || {6.7.17.3}, {9.1.8}, {9.1.1.8} |
1421 | अ॒भी॒३॑(ई॒)ममघ्न्या᳚ऽउ॒तश्री॒णन्ति॑धे॒नवः॒शिशु᳚म् | सोम॒मिन्द्रा᳚य॒पात॑वे || {6.7.17.4}, {9.1.9}, {9.1.1.9} |
1422 | अ॒स्येदिन्द्रो॒मदे॒ष्वाविश्वा᳚वृ॒त्राणि॑जिघ्नते | शूरो᳚म॒घाच॑मंहते || {6.7.17.5}, {9.1.10}, {9.1.1.10} |
[94] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य काण्वो मेधातिथिब्रषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1423 | पव॑स्वदेव॒वीरति॑प॒वित्रं᳚सोम॒रंह्या᳚ | इन्द्र॑मिन्दो॒वृषावि॑श || {6.7.18.1}, {9.2.1}, {9.1.2.1} |
1424 | आव॑च्यस्व॒महि॒प्सरो॒वृषे᳚न्दोद्यु॒म्नव॑त्तमः | आयोनिं᳚धर्ण॒सिःस॑दः || {6.7.18.2}, {9.2.2}, {9.1.2.2} |
1425 | अधु॑क्षतप्रि॒यंमधु॒धारा᳚सु॒तस्य॑वे॒धसः॑ | अ॒पोव॑सिष्टसु॒क्रतुः॑ || {6.7.18.3}, {9.2.3}, {9.1.2.3} |
1426 | म॒हान्तं᳚त्वाम॒हीरन्वापो᳚ऽअर्षन्ति॒सिन्ध॑वः | यद्गोभि᳚र्वासयि॒ष्यसे᳚ || {6.7.18.4}, {9.2.4}, {9.1.2.4} |
1427 | स॒मु॒द्रोऽअ॒प्सुमा᳚मृजेविष्ट॒म्भोध॒रुणो᳚दि॒वः | सोमः॑प॒वित्रे᳚ऽअस्म॒युः || {6.7.18.5}, {9.2.5}, {9.1.2.5} |
1428 | अचि॑क्रद॒द्वृषा॒हरि᳚र्म॒हान्मि॒त्रोनद॑र्श॒तः | संसूर्ये᳚णरोचते || {6.7.19.1}, {9.2.6}, {9.1.2.6} |
1429 | गिर॑स्तऽइन्द॒ऽओज॑सामर्मृ॒ज्यन्ते᳚ऽअप॒स्युवः॑ | याभि॒र्मदा᳚य॒शुम्भ॑से || {6.7.19.2}, {9.2.7}, {9.1.2.7} |
1430 | तंत्वा॒मदा᳚य॒घृष्व॑यऽउलोककृ॒त्नुमी᳚महे | तव॒प्रश॑स्तयोम॒हीः || {6.7.19.3}, {9.2.8}, {9.1.2.8} |
1431 | अ॒स्मभ्य॑मिन्दविन्द्र॒युर्मध्वः॑पवस्व॒धार॑या | प॒र्जन्यो᳚वृष्टि॒माँऽइ॑व || {6.7.19.4}, {9.2.9}, {9.1.2.9} |
1432 | गो॒षाऽइ᳚न्दोनृ॒षाऽअ॑स्यश्व॒सावा᳚ज॒साऽउ॒त | आ॒त्माय॒ज्ञस्य॑पू॒र्व्यः || {6.7.19.5}, {9.2.10}, {9.1.2.10} |
[95] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य आजीगर्तिः शुनःशेपः (कृत्रिमो वैश्वामित्रो देवरातः) ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1433 | ए॒षदे॒वोऽअम॑र्त्यःपर्ण॒वीरि॑वदीयति | अ॒भिद्रोणा᳚न्या॒सद᳚म् || {6.7.20.1}, {9.3.1}, {9.1.3.1} |
1434 | ए॒षदे॒वोवि॒पाकृ॒तोऽति॒ह्वरां᳚सिधावति | पव॑मानो॒ऽअदा᳚भ्यः || {6.7.20.2}, {9.3.2}, {9.1.3.2} |
1435 | ए॒षदे॒वोवि॑प॒न्युभिः॒पव॑मानऋता॒युभिः॑ | हरि॒र्वाजा᳚यमृज्यते || {6.7.20.3}, {9.3.3}, {9.1.3.3} |
1436 | ए॒षविश्वा᳚नि॒वार्या॒शूरो॒यन्नि॑व॒सत्व॑भिः | पव॑मानःसिषासति || {6.7.20.4}, {9.3.4}, {9.1.3.4} |
1437 | ए॒षदे॒वोर॑थर्यति॒पव॑मानोदशस्यति | आ॒विष्कृ॑णोतिवग्व॒नुम् || {6.7.20.5}, {9.3.5}, {9.1.3.5} |
1438 | ए॒षविप्रै᳚र॒भिष्टु॑तो॒ऽपोदे॒वोविगा᳚हते | दध॒द्रत्ना᳚निदा॒शुषे᳚ || {6.7.21.1}, {9.3.6}, {9.1.3.6} |
1439 | ए॒षदिवं॒विधा᳚वतिति॒रोरजां᳚सि॒धार॑या | पव॑मानः॒कनि॑क्रदत् || {6.7.21.2}, {9.3.7}, {9.1.3.7} |
1440 | ए॒षदिवं॒व्यास॑रत्ति॒रोरजां॒स्यस्पृ॑तः | पव॑मानःस्वध्व॒रः || {6.7.21.3}, {9.3.8}, {9.1.3.8} |
1441 | ए॒षप्र॒त्नेन॒जन्म॑नादे॒वोदे॒वेभ्यः॑सु॒तः | हरिः॑प॒वित्रे᳚ऽअर्षति || {6.7.21.4}, {9.3.9}, {9.1.3.9} |
1442 | ए॒षऽउ॒स्यपु॑रुव्र॒तोज॑ज्ञा॒नोज॒नय॒न्निषः॑ | धार॑यापवतेसु॒तः || {6.7.21.5}, {9.3.10}, {9.1.3.10} |
[96] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो हिरण्यस्तूप ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1443 | सना᳚चसोम॒जेषि॑च॒पव॑मान॒महि॒श्रवः॑ | अथा᳚नो॒वस्य॑सस्कृधि || {6.7.22.1}, {9.4.1}, {9.1.4.1} |
1444 | सना॒ज्योतिः॒सना॒स्व१॑(अ॒)'र्विश्वा᳚चसोम॒सौभ॑गा | अथा᳚नो॒वस्य॑सस्कृधि || {6.7.22.2}, {9.4.2}, {9.1.4.2} |
1445 | सना॒दक्ष॑मु॒तक्रतु॒मप॑सोम॒मृधो᳚जहि | अथा᳚नो॒वस्य॑सस्कृधि || {6.7.22.3}, {9.4.3}, {9.1.4.3} |
1446 | पवी᳚तारःपुनी॒तन॒सोम॒मिन्द्रा᳚य॒पात॑वे | अथा᳚नो॒वस्य॑सस्कृधि || {6.7.22.4}, {9.4.4}, {9.1.4.4} |
1447 | त्वंसूर्ये᳚न॒ऽआभ॑ज॒तव॒क्रत्वा॒तवो॒तिभिः॑ | अथा᳚नो॒वस्य॑सस्कृधि || {6.7.22.5}, {9.4.5}, {9.1.4.5} |
1448 | तव॒क्रत्वा॒तवो॒तिभि॒र्ज्योक्प॑श्येम॒सूर्य᳚म् | अथा᳚नो॒वस्य॑सस्कृधि || {6.7.23.1}, {9.4.6}, {9.1.4.6} |
1449 | अ॒भ्य॑र्षस्वायुध॒सोम॑द्वि॒बर्ह॑संर॒यिम् | अथा᳚नो॒वस्य॑सस्कृधि || {6.7.23.2}, {9.4.7}, {9.1.4.7} |
1450 | अ॒भ्य१॑(अ॒)र्षान॑पच्युतोर॒यिंस॒मत्सु॑सास॒हिः | अथा᳚नो॒वस्य॑सस्कृधि || {6.7.23.3}, {9.4.8}, {9.1.4.8} |
1451 | त्वांय॒ज्ञैर॑वीवृध॒न्पव॑मान॒विध᳚र्मणि | अथा᳚नो॒वस्य॑सस्कृधि || {6.7.23.4}, {9.4.9}, {9.1.4.9} |
1452 | र॒यिंन॑श्चि॒त्रम॒श्विन॒मिन्दो᳚वि॒श्वायु॒माभ॑र | अथा᳚नो॒वस्य॑सस्कृधि || {6.7.23.5}, {9.4.10}, {9.1.4.10} |
[97] (१-११) एकादशर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | (१) प्रथमर्च इध्मः समिद्धो वाग्निः, (२) द्वितीयायास्तनूनपात्, (३) तृतीयाया इळः, (४) चतुर्थ्या बर्हिः, (५) पञ्चम्या देवीर्द्वारः, (६) षष्ठ्या उषासानक्ता, (७) सप्तम्या दैव्यौ होतारौ प्रचेतसौ, (८) अष्टम्यास्तिस्रो देव्यः सरस्वतीळाभारत्यः, (९) नवम्यास्त्वष्टा, (१०) दशम्या वनस्पतिः, (११) एकादश्याश्च स्वाहाकृतयो देवताः | (१-७) प्रथमादिसप्तर्षों गायत्री, (८-११) अष्टम्यादिचतसृणाञ्चानष्टप छन्दसी || | |
1453 | समि॑द्धोवि॒श्वत॒स्पतिः॒पव॑मानो॒विरा᳚जति | प्री॒णन्वृषा॒कनि॑क्रदत् || {6.7.24.1}, {9.5.1}, {9.1.5.1} |
1454 | तनू॒नपा॒त्पव॑मानः॒शृङ्गे॒शिशा᳚नोऽअर्षति | अ॒न्तरि॑क्षेण॒रार॑जत् || {6.7.24.2}, {9.5.2}, {9.1.5.2} |
1455 | ई॒ळेन्यः॒पव॑मानोर॒यिर्विरा᳚जतिद्यु॒मान् | मधो॒र्धारा᳚भि॒रोज॑सा || {6.7.24.3}, {9.5.3}, {9.1.5.3} |
1456 | ब॒र्हिःप्रा॒चीन॒मोज॑सा॒पव॑मानःस्तृ॒णन्हरिः॑ | दे॒वेषु॑दे॒वऽई᳚यते || {6.7.24.4}, {9.5.4}, {9.1.5.4} |
1457 | उदातै᳚र्जिहतेबृ॒हद्द्वारो᳚दे॒वीर्हि॑र॒ण्ययीः᳚ | पव॑मानेन॒सुष्टु॑ताः || {6.7.24.5}, {9.5.5}, {9.1.5.5} |
1458 | सु॒शि॒ल्पेबृ॑ह॒तीम॒हीपव॑मानोवृषण्यति | नक्तो॒षासा॒नद॑र्श॒ते || {6.7.25.1}, {9.5.6}, {9.1.5.6} |
1459 | उ॒भादे॒वानृ॒चक्ष॑सा॒होता᳚रा॒दैव्या᳚हुवे | पव॑मान॒ऽइन्द्रो॒वृषा᳚ || {6.7.25.2}, {9.5.7}, {9.1.5.7} |
1460 | भार॑ती॒पव॑मानस्य॒सर॑स्व॒तीळा᳚म॒ही | इ॒मंनो᳚य॒ज्ञमाग॑मन्ति॒स्रोदे॒वीःसु॒पेश॑सः || {6.7.25.3}, {9.5.8}, {9.1.5.8} |
1461 | त्वष्टा᳚रमग्र॒जांगो॒पांपु॑रो॒यावा᳚न॒माहु॑वे | इन्दु॒रिन्द्रो॒वृषा॒हरिः॒पव॑मानःप्र॒जाप॑तिः || {6.7.25.4}, {9.5.9}, {9.1.5.9} |
1462 | वन॒स्पतिं᳚पवमान॒मध्वा॒सम᳚ङ्ग्धि॒धार॑या | स॒हस्र॑वल्शं॒हरि॑तं॒भ्राज॑मानंहिर॒ण्यय᳚म् || {6.7.25.5}, {9.5.10}, {9.1.5.10} |
1463 | विश्वे᳚देवाः॒स्वाहा᳚कृतिं॒पव॑मान॒स्याग॑त | वा॒युर्बृह॒स्पतिः॒सूर्यो॒ऽग्निरिन्द्रः॑स॒जोष॑सः || {6.7.25.6}, {9.5.11}, {9.1.5.11} |
[98] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1464 | म॒न्द्रया᳚सोम॒धार॑या॒वृषा᳚पवस्वदेव॒युः | अव्यो॒वारे᳚ष्वस्म॒युः || {6.7.26.1}, {9.6.1}, {9.1.6.1} |
1465 | अ॒भित्यंमद्यं॒मद॒मिन्द॒विन्द्र॒ऽइति॑क्षर | अ॒भिवा॒जिनो॒ऽअर्व॑तः || {6.7.26.2}, {9.6.2}, {9.1.6.2} |
1466 | अ॒भित्यंपू॒र्व्यंमदं᳚सुवा॒नोऽअ॑र्षप॒वित्र॒ऽआ | अ॒भिवाज॑मु॒तश्रवः॑ || {6.7.26.3}, {9.6.3}, {9.1.6.3} |
1467 | अनु॑द्र॒प्सास॒ऽइन्द॑व॒ऽआपो॒नप्र॒वता᳚सरन् | पु॒ना॒नाऽइन्द्र॑माशत || {6.7.26.4}, {9.6.4}, {9.1.6.4} |
1468 | यमत्य॑मिववा॒जिनं᳚मृ॒जन्ति॒योष॑णो॒दश॑ | वने॒क्रीळ᳚न्त॒मत्य॑विम् || {6.7.26.5}, {9.6.5}, {9.1.6.5} |
1469 | तंगोभि॒र्वृष॑णं॒रसं॒मदा᳚यदे॒ववी᳚तये | सु॒तंभरा᳚य॒संसृ॑ज || {6.7.27.1}, {9.6.6}, {9.1.6.6} |
1470 | दे॒वोदे॒वाय॒धार॒येन्द्रा᳚यपवतेसु॒तः | पयो॒यद॑स्यपी॒पय॑त् || {6.7.27.2}, {9.6.7}, {9.1.6.7} |
1471 | आ॒त्माय॒ज्ञस्य॒रंह्या᳚सुष्वा॒णःप॑वतेसु॒तः | प्र॒त्नंनिपा᳚ति॒काव्य᳚म् || {6.7.27.3}, {9.6.8}, {9.1.6.8} |
1472 | ए॒वापु॑ना॒नऽइ᳚न्द्र॒युर्मदं᳚मदिष्ठवी॒तये᳚ | गुहा᳚चिद्दधिषे॒गिरः॑ || {6.7.27.4}, {9.6.9}, {9.1.6.9} |
[99] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1473 | असृ॑ग्र॒मिन्द॑वःप॒थाधर्म᳚न्नृ॒तस्य॑सु॒श्रियः॑ | वि॒दा॒नाऽअ॑स्य॒योज॑नम् || {6.7.28.1}, {9.7.1}, {9.1.7.1} |
1474 | प्रधारा॒मध्वो᳚ऽअग्रि॒योम॒हीर॒पोविगा᳚हते | ह॒विर्ह॒विष्षु॒वन्द्यः॑ || {6.7.28.2}, {9.7.2}, {9.1.7.2} |
1475 | प्रयु॒जोवा॒चोऽअ॑ग्रि॒योवृषाव॑चक्रद॒द्वने᳚ | सद्मा॒भिस॒त्योऽअ॑ध्व॒रः || {6.7.28.3}, {9.7.3}, {9.1.7.3} |
1476 | परि॒यत्काव्या᳚क॒विर्नृ॒म्णावसा᳚नो॒ऽअर्ष॑ति | स्व᳚र्वा॒जीसि॑षासति || {6.7.28.4}, {9.7.4}, {9.1.7.4} |
1477 | पव॑मानोऽअ॒भिस्पृधो॒विशो॒राजे᳚वसीदति | यदी᳚मृ॒ण्वन्ति॑वे॒धसः॑ || {6.7.28.5}, {9.7.5}, {9.1.7.5} |
1478 | अव्यो॒वारे॒परि॑प्रि॒योहरि॒र्वने᳚षुसीदति | रे॒भोव॑नुष्यतेम॒ती || {6.7.29.1}, {9.7.6}, {9.1.7.6} |
1479 | सवा॒युमिन्द्र॑म॒श्विना᳚सा॒कंमदे᳚नगच्छति | रणा॒योऽअ॑स्य॒धर्म॑भिः || {6.7.29.2}, {9.7.7}, {9.1.7.7} |
1480 | आमि॒त्रावरु॑णा॒भगं॒मध्वः॑पवन्तऽऊ॒र्मयः॑ | वि॒दा॒नाऽअ॑स्य॒शक्म॑भिः || {6.7.29.3}, {9.7.8}, {9.1.7.8} |
1481 | अ॒स्मभ्यं᳚रोदसीर॒यिंमध्वो॒वाज॑स्यसा॒तये᳚ | श्रवो॒वसू᳚नि॒संजि॑तम् || {6.7.29.4}, {9.7.9}, {9.1.7.9} |
[100] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1482 | ए॒तेसोमा᳚ऽअ॒भिप्रि॒यमिन्द्र॑स्य॒काम॑मक्षरन् | वर्ध᳚न्तोऽअस्यवी॒र्य᳚म् || {6.7.30.1}, {9.8.1}, {9.1.8.1} |
1483 | पु॒ना॒नास॑श्चमू॒षदो॒गच्छ᳚न्तोवा॒युम॒श्विना᳚ | तेनो᳚धान्तुसु॒वीर्य᳚म् || {6.7.30.2}, {9.8.2}, {9.1.8.2} |
1484 | इन्द्र॑स्यसोम॒राध॑सेपुना॒नोहार्दि॑चोदय | ऋ॒तस्य॒योनि॑मा॒सद᳚म् || {6.7.30.3}, {9.8.3}, {9.1.8.3} |
1485 | मृ॒जन्ति॑त्वा॒दश॒क्षिपो᳚हि॒न्वन्ति॑स॒प्तधी॒तयः॑ | अनु॒विप्रा᳚ऽअमादिषुः || {6.7.30.4}, {9.8.4}, {9.1.8.4} |
1486 | दे॒वेभ्य॑स्त्वा॒मदा᳚य॒कंसृ॑जा॒नमति॑मे॒ष्यः॑ | संगोभि᳚र्वासयामसि || {6.7.30.5}, {9.8.5}, {9.1.8.5} |
1487 | पु॒ना॒नःक॒लशे॒ष्वावस्त्रा᳚ण्यरु॒षोहरिः॑ | परि॒गव्या᳚न्यव्यत || {6.7.31.1}, {9.8.6}, {9.1.8.6} |
1488 | म॒घोन॒ऽआप॑वस्वनोज॒हिविश्वा॒ऽअप॒द्विषः॑ | इन्दो॒सखा᳚य॒मावि॑श || {6.7.31.2}, {9.8.7}, {9.1.8.7} |
1489 | वृ॒ष्टिंदि॒वःपरि॑स्रवद्यु॒म्नंपृ॑थि॒व्याऽअधि॑ | सहो᳚नःसोमपृ॒त्सुधाः᳚ || {6.7.31.3}, {9.8.8}, {9.1.8.8} |
1490 | नृ॒चक्ष॑संत्वाव॒यमिन्द्र॑पीतंस्व॒र्विद᳚म् | भ॒क्षी॒महि॑प्र॒जामिष᳚म् || {6.7.31.4}, {9.8.9}, {9.1.8.9} |
[101] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1491 | परि॑प्रि॒यादि॒वःक॒विर्वयां᳚सिन॒प्त्यो᳚र्हि॒तः | सु॒वा॒नोया᳚तिक॒विक्र॑तुः || {6.7.32.1}, {9.9.1}, {9.1.9.1} |
1492 | प्रप्र॒क्षया᳚य॒पन्य॑से॒जना᳚य॒जुष्टो᳚ऽअ॒द्रुहे᳚ | वी॒त्य॑र्ष॒चनि॑ष्ठया || {6.7.32.2}, {9.9.2}, {9.1.9.2} |
1493 | ससू॒नुर्मा॒तरा॒शुचि॑र्जा॒तोजा॒तेऽअ॑रोचयत् | म॒हान्म॒हीऋ॑ता॒वृधा᳚ || {6.7.32.3}, {9.9.3}, {9.1.9.3} |
1494 | सस॒प्तधी॒तिभि॑र्हि॒तोन॒द्यो᳚ऽअजिन्वद॒द्रुहः॑ | याऽएक॒मक्षि॑वावृ॒धुः || {6.7.32.4}, {9.9.4}, {9.1.9.4} |
1495 | ताऽअ॒भिसन्त॒मस्तृ॑तंम॒हेयुवा᳚न॒माद॑धुः | इन्दु॑मिन्द्र॒तव᳚व्र॒ते || {6.7.32.5}, {9.9.5}, {9.1.9.5} |
1496 | अ॒भिवह्नि॒रम॑र्त्यःस॒प्तप॑श्यति॒वाव॑हिः | क्रिवि॑र्दे॒वीर॑तर्पयत् || {6.7.33.1}, {9.9.6}, {9.1.9.6} |
1497 | अवा॒कल्पे᳚षुनःपुम॒स्तमां᳚सिसोम॒योध्या᳚ | तानि॑पुनानजङ्घनः || {6.7.33.2}, {9.9.7}, {9.1.9.7} |
1498 | नूनव्य॑से॒नवी᳚यसेसू॒क्ताय॑साधयाप॒थः | प्र॒त्न॒वद्रो᳚चया॒रुचः॑ || {6.7.33.3}, {9.9.8}, {9.1.9.8} |
1499 | पव॑मान॒महि॒श्रवो॒गामश्वं᳚रासिवी॒रव॑त् | सना᳚मे॒धांसना॒स्वः॑ || {6.7.33.4}, {9.9.9}, {9.1.9.9} |
[102] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1500 | प्रस्वा॒नासो॒रथा᳚ऽइ॒वार्व᳚न्तो॒नश्र॑व॒स्यवः॑ | सोमा᳚सोरा॒येऽअ॑क्रमुः || {6.7.34.1}, {9.10.1}, {9.1.10.1} |
1501 | हि॒न्वा॒नासो॒रथा᳚ऽइवदधन्वि॒रेगभ॑स्त्योः | भरा᳚सःका॒रिणा᳚मिव || {6.7.34.2}, {9.10.2}, {9.1.10.2} |
1502 | राजा᳚नो॒नप्रश॑स्तिभिः॒सोमा᳚सो॒गोभि॑रञ्जते | य॒ज्ञोनस॒प्तधा॒तृभिः॑ || {6.7.34.3}, {9.10.3}, {9.1.10.3} |
1503 | परि॑सुवा॒नास॒ऽइन्द॑वो॒मदा᳚यब॒र्हणा᳚गि॒रा | सु॒ताऽअ॑र्षन्ति॒धार॑या || {6.7.34.4}, {9.10.4}, {9.1.10.4} |
1504 | आ॒पा॒नासो᳚वि॒वस्व॑तो॒जन᳚न्तऽउ॒षसो॒भग᳚म् | सूरा॒ऽअण्वं॒वित᳚न्वते || {6.7.34.5}, {9.10.5}, {9.1.10.5} |
1505 | अप॒द्वारा᳚मती॒नांप्र॒त्नाऋ᳚ण्वन्तिका॒रवः॑ | वृष्णो॒हर॑सऽआ॒यवः॑ || {6.7.35.1}, {9.10.6}, {9.1.10.6} |
1506 | स॒मी॒ची॒नास॑ऽआसते॒होता᳚रःस॒प्तजा᳚मयः | प॒दमेक॑स्य॒पिप्र॑तः || {6.7.35.2}, {9.10.7}, {9.1.10.7} |
1507 | नाभा॒नाभिं᳚न॒ऽआद॑दे॒चक्षु॑श्चि॒त्सूर्ये॒सचा᳚ | क॒वेरप॑त्य॒मादु॑हे || {6.7.35.3}, {9.10.8}, {9.1.10.8} |
1508 | अ॒भिप्रि॒यादि॒वस्प॒दम॑ध्व॒र्युभि॒र्गुहा᳚हि॒तम् | सूरः॑पश्यति॒चक्ष॑सा || {6.7.35.4}, {9.10.9}, {9.1.10.9} |
[103] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1509 | उपा᳚स्मैगायतानरः॒पव॑माना॒येन्द॑वे | अ॒भिदे॒वाँऽइय॑क्षते || {6.7.36.1}, {9.11.1}, {9.1.11.1} |
1510 | अ॒भिते॒मधु॑ना॒पयोऽथ᳚र्वाणोऽअशिश्रयुः | दे॒वंदे॒वाय॑देव॒यु || {6.7.36.2}, {9.11.2}, {9.1.11.2} |
1511 | सनः॑पवस्व॒शंगवे॒शंजना᳚य॒शमर्व॑ते | शंरा᳚ज॒न्नोष॑धीभ्यः || {6.7.36.3}, {9.11.3}, {9.1.11.3} |
1512 | ब॒भ्रवे॒नुस्वत॑वसेऽरु॒णाय॑दिवि॒स्पृशे᳚ | सोमा᳚यगा॒थम॑र्चत || {6.7.36.4}, {9.11.4}, {9.1.11.4} |
1513 | हस्त॑च्युतेभि॒रद्रि॑भिःसु॒तंसोमं᳚पुनीतन | मधा॒वाधा᳚वता॒मधु॑ || {6.7.36.5}, {9.11.5}, {9.1.11.5} |
1514 | नम॒सेदुप॑सीदतद॒ध्नेद॒भिश्री᳚णीतन | इन्दु॒मिन्द्रे᳚दधातन || {6.7.37.1}, {9.11.6}, {9.1.11.6} |
1515 | अ॒मि॒त्र॒हाविच॑र्षणिः॒पव॑स्वसोम॒शंगवे᳚ | दे॒वेभ्यो᳚ऽअनुकाम॒कृत् || {6.7.37.2}, {9.11.7}, {9.1.11.7} |
1516 | इन्द्रा᳚यसोम॒पात॑वे॒मदा᳚य॒परि॑षिच्यसे | म॒न॒श्चिन्मन॑स॒स्पतिः॑ || {6.7.37.3}, {9.11.8}, {9.1.11.8} |
1517 | पव॑मानसु॒वीर्यं᳚र॒यिंसो᳚मरिरीहिनः | इन्द॒विन्द्रे᳚णनोयु॒जा || {6.7.37.4}, {9.11.9}, {9.1.11.9} |
[104] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1518 | सोमा᳚ऽअसृग्र॒मिन्द॑वःसु॒ताऋ॒तस्य॒साद॑ने | इन्द्रा᳚य॒मधु॑मत्तमाः || {6.7.38.1}, {9.12.1}, {9.1.12.1} |
1519 | अ॒भिविप्रा᳚ऽअनूषत॒गावो᳚व॒त्संनमा॒तरः॑ | इन्द्रं॒सोम॑स्यपी॒तये᳚ || {6.7.38.2}, {9.12.2}, {9.1.12.2} |
1520 | म॒द॒च्युत्क्षे᳚ति॒साद॑ने॒सिन्धो᳚रू॒र्मावि॑प॒श्चित् | सोमो᳚गौ॒रीऽअधि॑श्रि॒तः || {6.7.38.3}, {9.12.3}, {9.1.12.3} |
1521 | दि॒वोनाभा᳚विचक्ष॒णोऽव्यो॒वारे᳚महीयते | सोमो॒यःसु॒क्रतुः॑क॒विः || {6.7.38.4}, {9.12.4}, {9.1.12.4} |
1522 | यःसोमः॑क॒लशे॒ष्वाँऽअ॒न्तःप॒वित्र॒ऽआहि॑तः | तमिन्दुः॒परि॑षस्वजे || {6.7.38.5}, {9.12.5}, {9.1.12.5} |
1523 | प्रवाच॒मिन्दु॑रिष्यतिसमु॒द्रस्याधि॑वि॒ष्टपि॑ | जिन्व॒न्कोशं᳚मधु॒श्चुत᳚म् || {6.7.39.1}, {9.12.6}, {9.1.12.6} |
1524 | नित्य॑स्तोत्रो॒वन॒स्पति॑र्धी॒नाम॒न्तःस॑ब॒र्दुघः॑ | हि॒न्वा॒नोमानु॑षायु॒गा || {6.7.39.2}, {9.12.7}, {9.1.12.7} |
1525 | अ॒भिप्रि॒यादि॒वस्प॒दासोमो᳚हिन्वा॒नोऽअ॑र्षति | विप्र॑स्य॒धार॑याक॒विः || {6.7.39.3}, {9.12.8}, {9.1.12.8} |
1526 | आप॑वमानधारयर॒यिंस॒हस्र॑वर्चसम् | अ॒स्मेऽइ᳚न्दोस्वा॒भुव᳚म् || {6.7.39.4}, {9.12.9}, {9.1.12.9} |
[105] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1527 | सोमः॑पुना॒नोऽअ॑र्षतिस॒हस्र॑धारो॒ऽअत्य॑विः | वा॒योरिन्द्र॑स्यनिष्कृ॒तम् || {6.8.1.1}, {9.13.1}, {9.1.13.1} |
1528 | पव॑मानमवस्यवो॒विप्र॑म॒भिप्रगा᳚यत | सु॒ष्वा॒णंदे॒ववी᳚तये || {6.8.1.2}, {9.13.2}, {9.1.13.2} |
1529 | पव᳚न्ते॒वाज॑सातये॒सोमाः᳚स॒हस्र॑पाजसः | गृ॒णा॒नादे॒ववी᳚तये || {6.8.1.3}, {9.13.3}, {9.1.13.3} |
1530 | उ॒तनो॒वाज॑सातये॒पव॑स्वबृह॒तीरिषः॑ | द्यु॒मदि᳚न्दोसु॒वीर्य᳚म् || {6.8.1.4}, {9.13.4}, {9.1.13.4} |
1531 | तेनः॑सह॒स्रिणं᳚र॒यिंपव᳚न्ता॒मासु॒वीर्य᳚म् | सु॒वा॒नादे॒वास॒ऽइन्द॑वः || {6.8.1.5}, {9.13.5}, {9.1.13.5} |
1532 | अत्या᳚हिया॒नानहे॒तृभि॒रसृ॑ग्रं॒वाज॑सातये | विवार॒मव्य॑मा॒शवः॑ || {6.8.2.1}, {9.13.6}, {9.1.13.6} |
1533 | वा॒श्राऽअ॑र्ष॒न्तीन्द॑वो॒ऽभिव॒त्संनधे॒नवः॑ | द॒ध॒न्वि॒रेगभ॑स्त्योः || {6.8.2.2}, {9.13.7}, {9.1.13.7} |
1534 | जुष्ट॒ऽइन्द्रा᳚यमत्स॒रःपव॑मान॒कनि॑क्रदत् | विश्वा॒ऽअप॒द्विषो᳚जहि || {6.8.2.3}, {9.13.8}, {9.1.13.8} |
1535 | अ॒प॒घ्नन्तो॒ऽअरा᳚व्णः॒पव॑मानाःस्व॒र्दृशः॑ | योना᳚वृ॒तस्य॑सीदत || {6.8.2.4}, {9.13.9}, {9.1.13.9} |
[106] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1536 | परि॒प्रासि॑ष्यदत्क॒विःसिन्धो᳚रू॒र्मावधि॑श्रि॒तः | का॒रंबिभ्र॑त्पुरु॒स्पृह᳚म् || {6.8.3.1}, {9.14.1}, {9.1.14.1} |
1537 | गि॒रायदी॒सब᳚न्धवः॒पञ्च॒व्राता᳚ऽअप॒स्यवः॑ | प॒रि॒ष्कृ॒ण्वन्ति॑धर्ण॒सिम् || {6.8.3.2}, {9.14.2}, {9.1.14.2} |
1538 | आद॑स्यशु॒ष्मिणो॒रसे॒विश्वे᳚दे॒वाऽअ॑मत्सत | यदी॒गोभि᳚र्वसा॒यते᳚ || {6.8.3.3}, {9.14.3}, {9.1.14.3} |
1539 | नि॒रि॒णा॒नोविधा᳚वति॒जह॒च्छर्या᳚णि॒तान्वा᳚ | अत्रा॒संजि॑घ्नतेयु॒जा || {6.8.3.4}, {9.14.4}, {9.1.14.4} |
1540 | न॒प्तीभि॒र्योवि॒वस्व॑तःशु॒भ्रोनमा᳚मृ॒जेयुवा᳚ | गाःकृ᳚ण्वा॒नोननि॒र्णिज᳚म् || {6.8.3.5}, {9.14.5}, {9.1.14.5} |
1541 | अति॑श्रि॒तीति॑र॒श्चता᳚ग॒व्याजि॑गा॒त्यण्व्या᳚ | व॒ग्नुमि॑यर्ति॒यंवि॒दे || {6.8.4.1}, {9.14.6}, {9.1.14.6} |
1542 | अ॒भिक्षिपः॒सम॑ग्मतम॒र्जय᳚न्तीरि॒षस्पति᳚म् | पृ॒ष्ठागृ॑भ्णतवा॒जिनः॑ || {6.8.4.2}, {9.14.7}, {9.1.14.7} |
1543 | परि॑दि॒व्यानि॒मर्मृ॑श॒द्विश्वा᳚निसोम॒पार्थि॑वा | वसू᳚नियाह्यस्म॒युः || {6.8.4.3}, {9.14.8}, {9.1.14.8} |
[107] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1544 | ए॒षधि॒याया॒त्यण्व्या॒शूरो॒रथे᳚भिरा॒शुभिः॑ | गच्छ॒न्निन्द्र॑स्यनिष्कृ॒तम् || {6.8.5.1}, {9.15.1}, {9.1.15.1} |
1545 | ए॒षपु॒रूधि॑यायतेबृह॒तेदे॒वता᳚तये | यत्रा॒मृता᳚स॒ऽआस॑ते || {6.8.5.2}, {9.15.2}, {9.1.15.2} |
1546 | ए॒षहि॒तोविनी᳚यते॒ऽन्तःशु॒भ्राव॑ताप॒था | यदी᳚तु॒ञ्जन्ति॒भूर्ण॑यः || {6.8.5.3}, {9.15.3}, {9.1.15.3} |
1547 | ए॒षशृङ्गा᳚णि॒दोधु॑व॒च्छिशी᳚तेयू॒थ्यो॒३॑(ओ॒)वृषा᳚ | नृ॒म्णादधा᳚न॒ऽओज॑सा || {6.8.5.4}, {9.15.4}, {9.1.15.4} |
1548 | ए॒षरु॒क्मिभि॑रीयतेवा॒जीशु॒भ्रेभि॑रं॒शुभिः॑ | पतिः॒सिन्धू᳚नां॒भव॑न् || {6.8.5.5}, {9.15.5}, {9.1.15.5} |
1549 | ए॒षवसू᳚निपिब्द॒नापरु॑षाययि॒वाँऽअति॑ | अव॒शादे᳚षुगच्छति || {6.8.5.6}, {9.15.6}, {9.1.15.6} |
1550 | ए॒तंमृ॑जन्ति॒मर्ज्य॒मुप॒द्रोणे᳚ष्वा॒यवः॑ | प्र॒च॒क्रा॒णंम॒हीरिषः॑ || {6.8.5.7}, {9.15.7}, {9.1.15.7} |
1551 | ए॒तमु॒त्यंदश॒क्षिपो᳚मृ॒जन्ति॑स॒प्तधी॒तयः॑ | स्वा॒यु॒धंम॒दिन्त॑मम् || {6.8.5.8}, {9.15.8}, {9.1.15.8} |
[108] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1552 | प्रते᳚सो॒तार॑ऽओ॒ण्यो॒३॑(ओ॒)रसं॒मदा᳚य॒घृष्व॑ये | सर्गो॒नत॒क्त्येत॑शः || {6.8.6.1}, {9.16.1}, {9.1.16.1} |
1553 | क्रत्वा॒दक्ष॑स्यर॒थ्य॑म॒पोवसा᳚न॒मन्ध॑सा | गो॒षामण्वे᳚षुसश्चिम || {6.8.6.2}, {9.16.2}, {9.1.16.2} |
1554 | अन॑प्तम॒प्सुदु॒ष्टरं॒सोमं᳚प॒वित्र॒ऽआसृ॑ज | पु॒नी॒हीन्द्रा᳚य॒पात॑वे || {6.8.6.3}, {9.16.3}, {9.1.16.3} |
1555 | प्रपु॑ना॒नस्य॒चेत॑सा॒सोमः॑प॒वित्रे᳚ऽअर्षति | क्रत्वा᳚स॒धस्थ॒मास॑दत् || {6.8.6.4}, {9.16.4}, {9.1.16.4} |
1556 | प्रत्वा॒नमो᳚भि॒रिन्द॑व॒ऽइन्द्र॒सोमा᳚ऽअसृक्षत | म॒हेभरा᳚यका॒रिणः॑ || {6.8.6.5}, {9.16.5}, {9.1.16.5} |
1557 | पु॒ना॒नोरू॒पेऽअ॒व्यये॒विश्वा॒ऽअर्ष᳚न्न॒भिश्रियः॑ | शूरो॒नगोषु॑तिष्ठति || {6.8.6.6}, {9.16.6}, {9.1.16.6} |
1558 | दि॒वोनसानु॑पि॒प्युषी॒धारा᳚सु॒तस्य॑वे॒धसः॑ | वृथा᳚प॒वित्रे᳚ऽअर्षति || {6.8.6.7}, {9.16.7}, {9.1.16.7} |
1559 | त्वंसो᳚मविप॒श्चितं॒तना᳚पुना॒नऽआ॒युषु॑ | अव्यो॒वारं॒विधा᳚वसि || {6.8.6.8}, {9.16.8}, {9.1.16.8} |
[109] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1560 | प्रनि॒म्नेने᳚व॒सिन्ध॑वो॒घ्नन्तो᳚वृ॒त्राणि॒भूर्ण॑यः | सोमा᳚ऽअसृग्रमा॒शवः॑ || {6.8.7.1}, {9.17.1}, {9.1.17.1} |
1561 | अ॒भिसु॑वा॒नास॒ऽइन्द॑वोवृ॒ष्टयः॑पृथि॒वीमि॑व | इन्द्रं॒सोमा᳚सोऽअक्षरन् || {6.8.7.2}, {9.17.2}, {9.1.17.2} |
1562 | अत्यू᳚र्मिर्मत्स॒रोमदः॒सोमः॑प॒वित्रे᳚ऽअर्षति | वि॒घ्नन्रक्षां᳚सिदेव॒युः || {6.8.7.3}, {9.17.3}, {9.1.17.3} |
1563 | आक॒लशे᳚षुधावतिप॒वित्रे॒परि॑षिच्यते | उ॒क्थैर्य॒ज्ञेषु॑वर्धते || {6.8.7.4}, {9.17.4}, {9.1.17.4} |
1564 | अति॒त्रीसो᳚मरोच॒नारोह॒न्नभ्रा᳚जसे॒दिव᳚म् | इ॒ष्णन्त्सूर्यं॒नचो᳚दयः || {6.8.7.5}, {9.17.5}, {9.1.17.5} |
1565 | अ॒भिविप्रा᳚ऽअनूषतमू॒र्धन्य॒ज्ञस्य॑का॒रवः॑ | दधा᳚ना॒श्चक्ष॑सिप्रि॒यम् || {6.8.7.6}, {9.17.6}, {9.1.17.6} |
1566 | तमु॑त्वावा॒जिनं॒नरो᳚धी॒भिर्विप्रा᳚ऽअव॒स्यवः॑ | मृ॒जन्ति॑दे॒वता᳚तये || {6.8.7.7}, {9.17.7}, {9.1.17.7} |
1567 | मधो॒र्धारा॒मनु॑क्षरती॒व्रःस॒धस्थ॒मास॑दः | चारु॑र्ऋ॒ताय॑पी॒तये᳚ || {6.8.7.8}, {9.17.8}, {9.1.17.8} |
[110] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1568 | परि॑सुवा॒नोगि॑रि॒ष्ठाःप॒वित्रे॒सोमो᳚ऽअक्षाः | मदे᳚षुसर्व॒धाऽअ॑सि || {6.8.8.1}, {9.18.1}, {9.1.18.1} |
1569 | त्वंविप्र॒स्त्वंक॒विर्मधु॒प्रजा॒तमन्ध॑सः | मदे᳚षुसर्व॒धाऽअ॑सि || {6.8.8.2}, {9.18.2}, {9.1.18.2} |
1570 | तव॒विश्वे᳚स॒जोष॑सोदे॒वासः॑पी॒तिमा᳚शत | मदे᳚षुसर्व॒धाऽअ॑सि || {6.8.8.3}, {9.18.3}, {9.1.18.3} |
1571 | आयोविश्वा᳚नि॒वार्या॒वसू᳚नि॒हस्त॑योर्द॒धे | मदे᳚षुसर्व॒धाऽअ॑सि || {6.8.8.4}, {9.18.4}, {9.1.18.4} |
1572 | यऽइ॒मेरोद॑सीम॒हीसंमा॒तरे᳚व॒दोह॑ते | मदे᳚षुसर्व॒धाऽअ॑सि || {6.8.8.5}, {9.18.5}, {9.1.18.5} |
1573 | परि॒योरोद॑सीऽउ॒भेस॒द्योवाजे᳚भि॒रर्ष॑ति | मदे᳚षुसर्व॒धाऽअ॑सि || {6.8.8.6}, {9.18.6}, {9.1.18.6} |
1574 | सशु॒ष्मीक॒लशे॒ष्वापु॑ना॒नोऽअ॑चिक्रदत् | मदे᳚षुसर्व॒धाऽअ॑सि || {6.8.8.7}, {9.18.7}, {9.1.18.7} |
[111] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1575 | यत्सो᳚मचि॒त्रमु॒क्थ्यं᳚दि॒व्यंपार्थि॑वं॒वसु॑ | तन्नः॑पुना॒नऽआभ॑र || {6.8.9.1}, {9.19.1}, {9.1.19.1} |
1576 | यु॒वंहिस्थःस्व॑र्पती॒ऽइन्द्र॑श्चसोम॒गोप॑ती | ई॒शा॒नापि॑प्यतं॒धियः॑ || {6.8.9.2}, {9.19.2}, {9.1.19.2} |
1577 | वृषा᳚पुना॒नऽआ॒युषु॑स्त॒नय॒न्नधि॑ब॒र्हिषि॑ | हरिः॒सन्योनि॒मास॑दत् || {6.8.9.3}, {9.19.3}, {9.1.19.3} |
1578 | अवा᳚वशन्तधी॒तयो᳚वृष॒भस्याधि॒रेत॑सि | सू॒नोर्व॒त्सस्य॑मा॒तरः॑ || {6.8.9.4}, {9.19.4}, {9.1.19.4} |
1579 | कु॒विद्वृ॑ष॒ण्यन्ती᳚भ्यःपुना॒नोगर्भ॑मा॒दध॑त् | याःशु॒क्रंदु॑ह॒तेपयः॑ || {6.8.9.5}, {9.19.5}, {9.1.19.5} |
1580 | उप॑शिक्षापत॒स्थुषो᳚भि॒यस॒माधे᳚हि॒शत्रु॑षु | पव॑मानवि॒दार॒यिम् || {6.8.9.6}, {9.19.6}, {9.1.19.6} |
1581 | निशत्रोः᳚सोम॒वृष्ण्यं॒निशुष्मं॒निवय॑स्तिर | दू॒रेवा᳚स॒तोऽअन्ति॑वा || {6.8.9.7}, {9.19.7}, {9.1.19.7} |
[112] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1582 | प्रक॒विर्दे॒ववी᳚त॒येऽव्यो॒वारे᳚भिरर्षति | सा॒ह्वान्विश्वा᳚ऽअ॒भिस्पृधः॑ || {6.8.10.1}, {9.20.1}, {9.1.20.1} |
1583 | सहिष्मा᳚जरि॒तृभ्य॒ऽआवाजं॒गोम᳚न्त॒मिन्व॑ति | पव॑मानःसह॒स्रिण᳚म् || {6.8.10.2}, {9.20.2}, {9.1.20.2} |
1584 | परि॒विश्वा᳚नि॒चेत॑सामृ॒शसे॒पव॑सेम॒ती | सनः॑सोम॒श्रवो᳚विदः || {6.8.10.3}, {9.20.3}, {9.1.20.3} |
1585 | अ॒भ्य॑र्षबृ॒हद्यशो᳚म॒घव॑द्भ्योध्रु॒वंर॒यिम् | इषं᳚स्तो॒तृभ्य॒ऽआभ॑र || {6.8.10.4}, {9.20.4}, {9.1.20.4} |
1586 | त्वंराजे᳚वसुव्र॒तोगिरः॑सो॒मावि॑वेशिथ | पु॒ना॒नोव᳚ह्नेऽअद्भुत || {6.8.10.5}, {9.20.5}, {9.1.20.5} |
1587 | सवह्नि॑र॒प्सुदु॒ष्टरो᳚मृ॒ज्यमा᳚नो॒गभ॑स्त्योः | सोम॑श्च॒मूषु॑सीदति || {6.8.10.6}, {9.20.6}, {9.1.20.6} |
1588 | क्री॒ळुर्म॒खोनमं᳚ह॒युःप॒वित्रं᳚सोमगच्छसि | दध॑त्स्तो॒त्रेसु॒वीर्य᳚म् || {6.8.10.7}, {9.20.7}, {9.1.20.7} |
[113] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1589 | ए॒तेधा᳚व॒न्तीन्द॑वः॒सोमा॒ऽइन्द्रा᳚य॒घृष्व॑यः | म॒त्स॒रासः॑स्व॒र्विदः॑ || {6.8.11.1}, {9.21.1}, {9.1.21.1} |
1590 | प्र॒वृ॒ण्वन्तो᳚ऽअभि॒युजः॒सुष्व॑येवरिवो॒विदः॑ | स्व॒यंस्तो॒त्रेव॑य॒स्कृतः॑ || {6.8.11.2}, {9.21.2}, {9.1.21.2} |
1591 | वृथा॒क्रीळ᳚न्त॒ऽइन्द॑वःस॒धस्थ॑म॒भ्येक॒मित् | सिन्धो᳚रू॒र्माव्य॑क्षरन् || {6.8.11.3}, {9.21.3}, {9.1.21.3} |
1592 | ए॒तेविश्वा᳚नि॒वार्या॒पव॑मानासऽआशत | हि॒तानसप्त॑यो॒रथे᳚ || {6.8.11.4}, {9.21.4}, {9.1.21.4} |
1593 | आस्मि᳚न्पि॒शङ्ग॑मिन्दवो॒दधा᳚तावे॒नमा॒दिशे᳚ | योऽअ॒स्मभ्य॒मरा᳚वा || {6.8.11.5}, {9.21.5}, {9.1.21.5} |
1594 | ऋ॒भुर्नरथ्यं॒नवं॒दधा᳚ता॒केत॑मा॒दिशे᳚ | शु॒क्राःप॑वध्व॒मर्ण॑सा || {6.8.11.6}, {9.21.6}, {9.1.21.6} |
1595 | ए॒तऽउ॒त्येऽअ॑वीवश॒न्काष्ठां᳚वा॒जिनो᳚ऽअक्रत | स॒तःप्रासा᳚विषुर्म॒तिम् || {6.8.11.7}, {9.21.7}, {9.1.21.7} |
[114] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1596 | ए॒तेसोमा᳚सऽआ॒शवो॒रथा᳚ऽइव॒प्रवा॒जिनः॑ | सर्गाः᳚सृ॒ष्टाऽअ॑हेषत || {6.8.12.1}, {9.22.1}, {9.1.22.1} |
1597 | ए॒तेवाता᳚ऽइवो॒रवः॑प॒र्जन्य॑स्येववृ॒ष्टयः॑ | अ॒ग्नेरि॑वभ्र॒मावृथा᳚ || {6.8.12.2}, {9.22.2}, {9.1.22.2} |
1598 | ए॒तेपू॒तावि॑प॒श्चितः॒सोमा᳚सो॒दध्या᳚शिरः | वि॒पाव्या᳚नशु॒र्धियः॑ || {6.8.12.3}, {9.22.3}, {9.1.22.3} |
1599 | ए॒तेमृ॒ष्टाऽअम॑र्त्याःससृ॒वांसो॒नश॑श्रमुः | इय॑क्षन्तःप॒थोरजः॑ || {6.8.12.4}, {9.22.4}, {9.1.22.4} |
1600 | ए॒तेपृ॒ष्ठानि॒रोद॑सोर्विप्र॒यन्तो॒व्या᳚नशुः | उ॒तेदमु॑त्त॒मंरजः॑ || {6.8.12.5}, {9.22.5}, {9.1.22.5} |
1601 | तन्तुं᳚तन्वा॒नमु॑त्त॒ममनु॑प्र॒वत॑ऽआशत | उ॒तेदमु॑त्त॒माय्य᳚म् || {6.8.12.6}, {9.22.6}, {9.1.22.6} |
1602 | त्वंसो᳚मप॒णिभ्य॒ऽआवसु॒गव्या᳚निधारयः | त॒तंतन्तु॑मचिक्रदः || {6.8.12.7}, {9.22.7}, {9.1.22.7} |
[115] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1603 | सोमा᳚ऽअसृग्रमा॒शवो॒मधो॒र्मद॑स्य॒धार॑या | अ॒भिविश्वा᳚नि॒काव्या᳚ || {6.8.13.1}, {9.23.1}, {9.1.23.1} |
1604 | अनु॑प्र॒त्नास॑ऽआ॒यवः॑प॒दंनवी᳚योऽअक्रमुः | रु॒चेज॑नन्त॒सूर्य᳚म् || {6.8.13.2}, {9.23.2}, {9.1.23.2} |
1605 | आप॑वमाननोभरा॒र्योऽअदा᳚शुषो॒गय᳚म् | कृ॒धिप्र॒जाव॑ती॒रिषः॑ || {6.8.13.3}, {9.23.3}, {9.1.23.3} |
1606 | अ॒भिसोमा᳚सऽआ॒यवः॒पव᳚न्ते॒मद्यं॒मद᳚म् | अ॒भिकोशं᳚मधु॒श्चुत᳚म् || {6.8.13.4}, {9.23.4}, {9.1.23.4} |
1607 | सोमो᳚ऽअर्षतिधर्ण॒सिर्दधा᳚नऽइन्द्रि॒यंरस᳚म् | सु॒वीरो᳚ऽअभिशस्ति॒पाः || {6.8.13.5}, {9.23.5}, {9.1.23.5} |
1608 | इन्द्रा᳚यसोमपवसेदे॒वेभ्यः॑सध॒माद्यः॑ | इन्दो॒वाजं᳚सिषाससि || {6.8.13.6}, {9.23.6}, {9.1.23.6} |
1609 | अ॒स्यपी॒त्वामदा᳚ना॒मिन्द्रो᳚वृ॒त्राण्य॑प्र॒ति | ज॒घान॑ज॒घन॑च्च॒नु || {6.8.13.7}, {9.23.7}, {9.1.23.7} |
[116] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1610 | प्रसोमा᳚सोऽअधन्विषुः॒पव॑मानास॒ऽइन्द॑वः | श्री॒णा॒नाऽअ॒प्सुमृ᳚ञ्जत || {6.8.14.1}, {9.24.1}, {9.1.24.1} |
1611 | अ॒भिगावो᳚ऽअधन्विषु॒रापो॒नप्र॒वता᳚य॒तीः | पु॒ना॒नाऽइन्द्र॑माशत || {6.8.14.2}, {9.24.2}, {9.1.24.2} |
1612 | प्रप॑वमानधन्वसि॒सोमेन्द्रा᳚य॒पात॑वे | नृभि᳚र्य॒तोविनी᳚यसे || {6.8.14.3}, {9.24.3}, {9.1.24.3} |
1613 | त्वंसो᳚मनृ॒माद॑नः॒पव॑स्वचर्षणी॒सहे᳚ | सस्नि॒र्योऽअ॑नु॒माद्यः॑ || {6.8.14.4}, {9.24.4}, {9.1.24.4} |
1614 | इन्दो॒यदद्रि॑भिःसु॒तःप॒वित्रं᳚परि॒धाव॑सि | अर॒मिन्द्र॑स्य॒धाम्ने᳚ || {6.8.14.5}, {9.24.5}, {9.1.24.5} |
1615 | पव॑स्ववृत्रहन्तमो॒क्थेभि॑रनु॒माद्यः॑ | शुचिः॑पाव॒कोऽअद्भु॑तः || {6.8.14.6}, {9.24.6}, {9.1.24.6} |
1616 | शुचिः॑पाव॒कऽउ॑च्यते॒सोमः॑सु॒तस्य॒मध्वः॑ | दे॒वा॒वीर॑घशंस॒हा || {6.8.14.7}, {9.24.7}, {9.1.24.7} |
[117] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्यागस्त्यो दृ हच्युत गृषिः पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1617 | पव॑स्वदक्ष॒साध॑नोदे॒वेभ्यः॑पी॒तये᳚हरे | म॒रुद्भ्यो᳚वा॒यवे॒मदः॑ || {6.8.15.1}, {9.25.1}, {9.2.1.1} |
1618 | पव॑मानधि॒याहि॒तो॒३॑(ओ॒)ऽभियोनिं॒कनि॑क्रदत् | धर्म॑णावा॒युमावि॑श || {6.8.15.2}, {9.25.2}, {9.2.1.2} |
1619 | संदे॒वैःशो᳚भते॒वृषा᳚क॒विर्योना॒वधि॑प्रि॒यः | वृ॒त्र॒हादे᳚व॒वीत॑मः || {6.8.15.3}, {9.25.3}, {9.2.1.3} |
1620 | विश्वा᳚रू॒पाण्या᳚वि॒शन्पु॑ना॒नोया᳚तिहर्य॒तः | यत्रा॒मृता᳚स॒ऽआस॑ते || {6.8.15.4}, {9.25.4}, {9.2.1.4} |
1621 | अ॒रु॒षोज॒नय॒न्गिरः॒सोमः॑पवतऽआयु॒षक् | इन्द्रं॒गच्छ᳚न्क॒विक्र॑तुः || {6.8.15.5}, {9.25.5}, {9.2.1.5} |
1622 | आप॑वस्वमदिन्तमप॒वित्रं॒धार॑याकवे | अ॒र्कस्य॒योनि॑मा॒सद᳚म् || {6.8.15.6}, {9.25.6}, {9.2.1.6} |
[118] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य दार्हच्युत इध्मवाह ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1623 | तम॑मृक्षन्तवा॒जिन॑मु॒पस्थे॒ऽअदि॑ते॒रधि॑ | विप्रा᳚सो॒ऽअण्व्या᳚धि॒या || {6.8.16.1}, {9.26.1}, {9.2.2.1} |
1624 | तंगावो᳚ऽअ॒भ्य॑नूषतस॒हस्र॑धार॒मक्षि॑तम् | इन्दुं᳚ध॒र्तार॒मादि॒वः || {6.8.16.2}, {9.26.2}, {9.2.2.2} |
1625 | तंवे॒धांमे॒धया᳚ह्य॒न्पव॑मान॒मधि॒द्यवि॑ | ध॒र्ण॒सिंभूरि॑धायसम् || {6.8.16.3}, {9.26.3}, {9.2.2.3} |
1626 | तम॑ह्यन्भु॒रिजो᳚र्धि॒यासं॒वसा᳚नंवि॒वस्व॑तः | पतिं᳚वा॒चोऽअदा᳚भ्यम् || {6.8.16.4}, {9.26.4}, {9.2.2.4} |
1627 | तंसाना॒वधि॑जा॒मयो॒हरिं᳚हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः | ह॒र्य॒तंभूरि॑चक्षसम् || {6.8.16.5}, {9.26.5}, {9.2.2.5} |
1628 | तंत्वा᳚हिन्वन्तिवे॒धसः॒पव॑मानगिरा॒वृध᳚म् | इन्द॒विन्द्रा᳚यमत्स॒रम् || {6.8.16.6}, {9.26.6}, {9.2.2.6} |
[119] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो नृमधे ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1629 | ए॒षक॒विर॒भिष्टु॑तःप॒वित्रे॒ऽअधि॑तोशते | पु॒ना॒नोघ्नन्नप॒स्रिधः॑ || {6.8.17.1}, {9.27.1}, {9.2.3.1} |
1630 | ए॒षऽइन्द्रा᳚यवा॒यवे᳚स्व॒र्जित्परि॑षिच्यते | प॒वित्रे᳚दक्ष॒साध॑नः || {6.8.17.2}, {9.27.2}, {9.2.3.2} |
1631 | ए॒षनृभि॒र्विनी᳚यतेदि॒वोमू॒र्धावृषा᳚सु॒तः | सोमो॒वने᳚षुविश्व॒वित् || {6.8.17.3}, {9.27.3}, {9.2.3.3} |
1632 | ए॒षग॒व्युर॑चिक्रद॒त्पव॑मानोहिरण्य॒युः | इन्दुः॑सत्रा॒जिदस्तृ॑तः || {6.8.17.4}, {9.27.4}, {9.2.3.4} |
1633 | ए॒षसूर्ये᳚णहासते॒पव॑मानो॒ऽअधि॒द्यवि॑ | प॒वित्रे᳚मत्स॒रोमदः॑ || {6.8.17.5}, {9.27.5}, {9.2.3.5} |
1634 | ए॒षशु॒ष्म्य॑सिष्यदद॒न्तरि॑क्षे॒वृषा॒हरिः॑ | पु॒ना॒नऽइन्दु॒रिन्द्र॒मा || {6.8.17.6}, {9.27.6}, {9.2.3.6} |
[120] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः प्रियमेध ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1635 | ए॒षवा॒जीहि॒तोनृभि᳚र्विश्व॒विन्मन॑स॒स्पतिः॑ | अव्यो॒वारं॒विधा᳚वति || {6.8.18.1}, {9.28.1}, {9.2.4.1} |
1636 | ए॒षप॒वित्रे᳚ऽअक्षर॒त्सोमो᳚दे॒वेभ्यः॑सु॒तः | विश्वा॒धामा᳚न्यावि॒शन् || {6.8.18.2}, {9.28.2}, {9.2.4.2} |
1637 | ए॒षदे॒वःशु॑भाय॒तेऽधि॒योना॒वम॑र्त्यः | वृ॒त्र॒हादे᳚व॒वीत॑मः || {6.8.18.3}, {9.28.3}, {9.2.4.3} |
1638 | ए॒षवृषा॒कनि॑क्रदद्द॒शभि॑र्जा॒मिभि᳚र्य॒तः | अ॒भिद्रोणा᳚निधावति || {6.8.18.4}, {9.28.4}, {9.2.4.4} |
1639 | ए॒षसूर्य॑मरोचय॒त्पव॑मानो॒विच॑र्षणिः | विश्वा॒धामा᳚निविश्व॒वित् || {6.8.18.5}, {9.28.5}, {9.2.4.5} |
1640 | ए॒षशु॒ष्म्यदा᳚भ्यः॒सोमः॑पुना॒नोऽअ॑र्षति | दे॒वा॒वीर॑घशंस॒हा || {6.8.18.6}, {9.28.6}, {9.2.4.6} |
[121] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो नृमधे ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1641 | प्रास्य॒धारा᳚ऽअक्षर॒न्वृष्णः॑सु॒तस्यौज॑सा | दे॒वाँऽअनु॑प्र॒भूष॑तः || {6.8.19.1}, {9.29.1}, {9.2.5.1} |
1642 | सप्तिं᳚मृजन्तिवे॒धसो᳚गृ॒णन्तः॑का॒रवो᳚गि॒रा | ज्योति॑र्जज्ञा॒नमु॒क्थ्य᳚म् || {6.8.19.2}, {9.29.2}, {9.2.5.2} |
1643 | सु॒षहा᳚सोम॒तानि॑तेपुना॒नाय॑प्रभूवसो | वर्धा᳚समु॒द्रमु॒क्थ्य᳚म् || {6.8.19.3}, {9.29.3}, {9.2.5.3} |
1644 | विश्वा॒वसू᳚निसं॒जय॒न्पव॑स्वसोम॒धार॑या | इ॒नुद्वेषां᳚सिस॒ध्र्य॑क् || {6.8.19.4}, {9.29.4}, {9.2.5.4} |
1645 | रक्षा॒सुनो॒ऽअर॑रुषःस्व॒नात्स॑मस्य॒कस्य॑चित् | नि॒दोयत्र॑मुमु॒च्महे᳚ || {6.8.19.5}, {9.29.5}, {9.2.5.5} |
1646 | एन्दो॒पार्थि॑वंर॒यिंदि॒व्यंप॑वस्व॒धार॑या | द्यु॒मन्तं॒शुष्म॒माभ॑र || {6.8.19.6}, {9.29.6}, {9.2.5.6} |
[122] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो बिन्दुषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1647 | प्रधारा᳚ऽअस्यशु॒ष्मिणो॒वृथा᳚प॒वित्रे᳚ऽअक्षरन् | पु॒ना॒नोवाच॑मिष्यति || {6.8.20.1}, {9.30.1}, {9.2.6.1} |
1648 | इन्दु॑र्हिया॒नःसो॒तृभि᳚र्मृ॒ज्यमा᳚नः॒कनि॑क्रदत् | इय॑र्तिव॒ग्नुमि᳚न्द्रि॒यम् || {6.8.20.2}, {9.30.2}, {9.2.6.2} |
1649 | आनः॒शुष्मं᳚नृ॒षाह्यं᳚वी॒रव᳚न्तंपुरु॒स्पृह᳚म् | पव॑स्वसोम॒धार॑या || {6.8.20.3}, {9.30.3}, {9.2.6.3} |
1650 | प्रसोमो॒ऽअति॒धार॑या॒पव॑मानोऽअसिष्यदत् | अ॒भिद्रोणा᳚न्या॒सद᳚म् || {6.8.20.4}, {9.30.4}, {9.2.6.4} |
1651 | अ॒प्सुत्वा॒मधु॑मत्तमं॒हरिं᳚हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः | इन्द॒विन्द्रा᳚यपी॒तये᳚ || {6.8.20.5}, {9.30.5}, {9.2.6.5} |
1652 | सु॒नोता॒मधु॑मत्तमं॒सोम॒मिन्द्रा᳚यव॒ज्रिणे᳚ | चारुं॒शर्धा᳚यमत्स॒रम् || {6.8.20.6}, {9.30.6}, {9.2.6.6} |
[123] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य रहूगणो गोतम ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1653 | प्रसोमा᳚सःस्वा॒ध्य१॑(अ॒)ःपव॑मानासोऽअक्रमुः | र॒यिंकृ᳚ण्वन्ति॒चेत॑नम् || {6.8.21.1}, {9.31.1}, {9.2.7.1} |
1654 | दि॒वस्पृ॑थि॒व्याऽअधि॒भवे᳚न्दोद्युम्न॒वर्ध॑नः | भवा॒वाजा᳚नां॒पतिः॑ || {6.8.21.2}, {9.31.2}, {9.2.7.2} |
1655 | तुभ्यं॒वाता᳚ऽअभि॒प्रिय॒स्तुभ्य॑मर्षन्ति॒सिन्ध॑वः | सोम॒वर्ध᳚न्तिते॒महः॑ || {6.8.21.3}, {9.31.3}, {9.2.7.3} |
1656 | आप्या᳚यस्व॒समे᳚तुतेवि॒श्वतः॑सोम॒वृष्ण्य᳚म् | भवा॒वाज॑स्यसंग॒थे || {6.8.21.4}, {9.31.4}, {9.2.7.4} |
1657 | तुभ्यं॒गावो᳚घृ॒तंपयो॒बभ्रो᳚दुदु॒ह्रेऽअक्षि॑तम् | वर्षि॑ष्ठे॒ऽअधि॒सान॑वि || {6.8.21.5}, {9.31.5}, {9.2.7.5} |
1658 | स्वा॒यु॒धस्य॑तेस॒तोभुव॑नस्यपतेव॒यम् | इन्दो᳚सखि॒त्वमु॑श्मसि || {6.8.21.6}, {9.31.6}, {9.2.7.6} |
[124] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आत्रेयः श्यावाश्व ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1659 | प्रसोमा᳚सोमद॒च्युतः॒श्रव॑सेनोम॒घोनः॑ | सु॒तावि॒दथे᳚ऽअक्रमुः || {6.8.22.1}, {9.32.1}, {9.2.8.1} |
1660 | आदीं᳚त्रि॒तस्य॒योष॑णो॒हरिं᳚हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः | इन्दु॒मिन्द्रा᳚यपी॒तये᳚ || {6.8.22.2}, {9.32.2}, {9.2.8.2} |
1661 | आदीं᳚हं॒सोयथा᳚ग॒णंविश्व॑स्यावीवशन्म॒तिम् | अत्यो॒नगोभि॑रज्यते || {6.8.22.3}, {9.32.3}, {9.2.8.3} |
1662 | उ॒भेसो᳚माव॒चाक॑शन्मृ॒गोनत॒क्तोऽअ॑र्षसि | सीद᳚न्नृ॒तस्य॒योनि॒मा || {6.8.22.4}, {9.32.4}, {9.2.8.4} |
1663 | अ॒भिगावो᳚ऽअनूषत॒योषा᳚जा॒रमि॑वप्रि॒यम् | अग᳚न्ना॒जिंयथा᳚हि॒तम् || {6.8.22.5}, {9.32.5}, {9.2.8.5} |
1664 | अ॒स्मेधे᳚हिद्यु॒मद्यशो᳚म॒घव॑द्भ्यश्च॒मह्यं᳚च | स॒निंमे॒धामु॒तश्रवः॑ || {6.8.22.6}, {9.32.6}, {9.2.8.6} |
[125] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्याप्त्यस्त्रित ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1665 | प्रसोमा᳚सोविप॒श्चितो॒ऽपांनय᳚न्त्यू॒र्मयः॑ | वना᳚निमहि॒षाऽइ॑व || {6.8.23.1}, {9.33.1}, {9.2.9.1} |
1666 | अ॒भिद्रोणा᳚निब॒भ्रवः॑शु॒क्राऋ॒तस्य॒धार॑या | वाजं॒गोम᳚न्तमक्षरन् || {6.8.23.2}, {9.33.2}, {9.2.9.2} |
1667 | सु॒ताऽइन्द्रा᳚यवा॒यवे॒वरु॑णायम॒रुद्भ्यः॑ | सोमा᳚ऽअर्षन्ति॒विष्ण॑वे || {6.8.23.3}, {9.33.3}, {9.2.9.3} |
1668 | ति॒स्रोवाच॒ऽउदी᳚रते॒गावो᳚मिमन्तिधे॒नवः॑ | हरि॑रेति॒कनि॑क्रदत् || {6.8.23.4}, {9.33.4}, {9.2.9.4} |
1669 | अ॒भिब्रह्मी᳚रनूषतय॒ह्वीर्ऋ॒तस्य॑मा॒तरः॑ | म॒र्मृ॒ज्यन्ते᳚दि॒वःशिशु᳚म् || {6.8.23.5}, {9.33.5}, {9.2.9.5} |
1670 | रा॒यःस॑मु॒द्राँश्च॒तुरो॒ऽस्मभ्यं᳚सोमवि॒श्वतः॑ | आप॑वस्वसह॒स्रिणः॑ || {6.8.23.6}, {9.33.6}, {9.2.9.6} |
[126] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्याप्त्यस्त्रित ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1671 | प्रसु॑वा॒नोधार॑या॒तनेन्दु॑र्हिन्वा॒नोऽअ॑र्षति | रु॒जद्दृ॒ळ्हाव्योज॑सा || {6.8.24.1}, {9.34.1}, {9.2.10.1} |
1672 | सु॒तऽइन्द्रा᳚यवा॒यवे॒वरु॑णायम॒रुद्भ्यः॑ | सोमो᳚ऽअर्षति॒विष्ण॑वे || {6.8.24.2}, {9.34.2}, {9.2.10.2} |
1673 | वृषा᳚णं॒वृष॑भिर्य॒तंसु॒न्वन्ति॒सोम॒मद्रि॑भिः | दु॒हन्ति॒शक्म॑ना॒पयः॑ || {6.8.24.3}, {9.34.3}, {9.2.10.3} |
1674 | भुव॑त्त्रि॒तस्य॒मर्ज्यो॒भुव॒दिन्द्रा᳚यमत्स॒रः | संरू॒पैर॑ज्यते॒हरिः॑ || {6.8.24.4}, {9.34.4}, {9.2.10.4} |
1675 | अ॒भीमृ॒तस्य॑वि॒ष्टपं᳚दुह॒तेपृश्नि॑मातरः | चारु॑प्रि॒यत॑मंह॒विः || {6.8.24.5}, {9.34.5}, {9.2.10.5} |
1676 | समे᳚न॒मह्रु॑ताऽइ॒मागिरो᳚ऽअर्षन्तिस॒स्रुतः॑ | धे॒नूर्वा॒श्रोऽअ॑वीवशत् || {6.8.24.6}, {9.34.6}, {9.2.10.6} |
[127] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः प्रभवू सु ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1677 | आनः॑पवस्व॒धार॑या॒पव॑मानर॒यिंपृ॒थुम् | यया॒ज्योति᳚र्वि॒दासि॑नः || {6.8.25.1}, {9.35.1}, {9.2.11.1} |
1678 | इन्दो᳚समुद्रमीङ्खय॒पव॑स्वविश्वमेजय | रा॒योध॒र्तान॒ऽओज॑सा || {6.8.25.2}, {9.35.2}, {9.2.11.2} |
1679 | त्वया᳚वी॒रेण॑वीरवो॒ऽभिष्या᳚मपृतन्य॒तः | क्षरा᳚णोऽअ॒भिवार्य᳚म् || {6.8.25.3}, {9.35.3}, {9.2.11.3} |
1680 | प्रवाज॒मिन्दु॑रिष्यति॒सिषा᳚सन्वाज॒साऋषिः॑ | व्र॒तावि॑दा॒नऽआयु॑धा || {6.8.25.4}, {9.35.4}, {9.2.11.4} |
1681 | तंगी॒र्भिर्वा᳚चमीङ्ख॒यंपु॑ना॒नंवा᳚सयामसि | सोमं॒जन॑स्य॒गोप॑तिम् || {6.8.25.5}, {9.35.5}, {9.2.11.5} |
1682 | विश्वो॒यस्य᳚व्र॒तेजनो᳚दा॒धार॒धर्म॑ण॒स्पतेः᳚ | पु॒ना॒नस्य॑प्र॒भूव॑सोः || {6.8.25.6}, {9.35.6}, {9.2.11.6} |
[128] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः प्रभवू सु ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1683 | अस॑र्जि॒रथ्यो᳚यथाप॒वित्रे᳚च॒म्वोः᳚सु॒तः | कार्ष्म᳚न्वा॒जीन्य॑क्रमीत् || {6.8.26.1}, {9.36.1}, {9.2.12.1} |
1684 | सवह्निः॑सोम॒जागृ॑विः॒पव॑स्वदेव॒वीरति॑ | अ॒भिकोशं᳚मधु॒श्चुत᳚म् || {6.8.26.2}, {9.36.2}, {9.2.12.2} |
1685 | सनो॒ज्योतीं᳚षिपूर्व्य॒पव॑मान॒विरो᳚चय | क्रत्वे॒दक्षा᳚यनोहिनु || {6.8.26.3}, {9.36.3}, {9.2.12.3} |
1686 | शु॒म्भमा᳚नऋता॒युभि᳚र्मृ॒ज्यमा᳚नो॒गभ॑स्त्योः | पव॑ते॒वारे᳚ऽअ॒व्यये᳚ || {6.8.26.4}, {9.36.4}, {9.2.12.4} |
1687 | सविश्वा᳚दा॒शुषे॒वसु॒सोमो᳚दि॒व्यानि॒पार्थि॑वा | पव॑ता॒मान्तरि॑क्ष्या || {6.8.26.5}, {9.36.5}, {9.2.12.5} |
1688 | आदि॒वस्पृ॒ष्ठम॑श्व॒युर्ग᳚व्य॒युःसो᳚मरोहसि | वी॒र॒युःश॑वसस्पते || {6.8.26.6}, {9.36.6}, {9.2.12.6} |
[129] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो रहूगण ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1689 | ससु॒तःपी॒तये॒वृषा॒सोमः॑प॒वित्रे᳚ऽअर्षति | वि॒घ्नन्रक्षां᳚सिदेव॒युः || {6.8.27.1}, {9.37.1}, {9.2.13.1} |
1690 | सप॒वित्रे᳚विचक्ष॒णोहरि॑रर्षतिधर्ण॒सिः | अ॒भियोनिं॒कनि॑क्रदत् || {6.8.27.2}, {9.37.2}, {9.2.13.2} |
1691 | सवा॒जीरो᳚च॒नादि॒वःपव॑मानो॒विधा᳚वति | र॒क्षो॒हावार॑म॒व्यय᳚म् || {6.8.27.3}, {9.37.3}, {9.2.13.3} |
1692 | सत्रि॒तस्याधि॒सान॑वि॒पव॑मानोऽअरोचयत् | जा॒मिभिः॒सूर्यं᳚स॒ह || {6.8.27.4}, {9.37.4}, {9.2.13.4} |
1693 | सवृ॑त्र॒हावृषा᳚सु॒तोव॑रिवो॒विददा᳚भ्यः | सोमो॒वाज॑मिवासरत् || {6.8.27.5}, {9.37.5}, {9.2.13.5} |
1694 | सदे॒वःक॒विने᳚षि॒तो॒३॑(ओ॒)ऽभिद्रोणा᳚निधावति | इन्दु॒रिन्द्रा᳚यमं॒हना᳚ || {6.8.27.6}, {9.37.6}, {9.2.13.6} |
[130] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो रहूगण ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1695 | ए॒षऽउ॒स्यवृषा॒रथोऽव्यो॒वारे᳚भिरर्षति | गच्छ॒न्वाजं᳚सह॒स्रिण᳚म् || {6.8.28.1}, {9.38.1}, {9.2.14.1} |
1696 | ए॒तंत्रि॒तस्य॒योष॑णो॒हरिं᳚हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः | इन्दु॒मिन्द्रा᳚यपी॒तये᳚ || {6.8.28.2}, {9.38.2}, {9.2.14.2} |
1697 | ए॒तंत्यंह॒रितो॒दश॑मर्मृ॒ज्यन्ते᳚ऽअप॒स्युवः॑ | याभि॒र्मदा᳚य॒शुम्भ॑ते || {6.8.28.3}, {9.38.3}, {9.2.14.3} |
1698 | ए॒षस्यमानु॑षी॒ष्वाश्ये॒नोनवि॒क्षुसी᳚दति | गच्छ᳚ञ्जा॒रोनयो॒षित᳚म् || {6.8.28.4}, {9.38.4}, {9.2.14.4} |
1699 | ए॒षस्यमद्यो॒रसोऽव॑चष्टेदि॒वःशिशुः॑ | यऽइन्दु॒र्वार॒मावि॑शत् || {6.8.28.5}, {9.38.5}, {9.2.14.5} |
1700 | ए॒षस्यपी॒तये᳚सु॒तोहरि॑रर्षतिधर्ण॒सिः | क्रन्द॒न्योनि॑म॒भिप्रि॒यम् || {6.8.28.6}, {9.38.6}, {9.2.14.6} |
[131] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो बृहन्मतिषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1701 | आ॒शुर॑र्षबृहन्मते॒परि॑प्रि॒येण॒धाम्ना᳚ | यत्र॑दे॒वाऽइति॒ब्रव॑न् || {6.8.29.1}, {9.39.1}, {9.2.15.1} |
1702 | प॒रि॒ष्कृ॒ण्वन्ननि॑ष्कृतं॒जना᳚यया॒तय॒न्निषः॑ | वृ॒ष्टिंदि॒वःपरि॑स्रव || {6.8.29.2}, {9.39.2}, {9.2.15.2} |
1703 | सु॒तऽए᳚तिप॒वित्र॒ऽआत्विषिं॒दधा᳚न॒ऽओज॑सा | वि॒चक्षा᳚णोविरो॒चय॑न् || {6.8.29.3}, {9.39.3}, {9.2.15.3} |
1704 | अ॒यंसयोदि॒वस्परि॑रघु॒यामा᳚प॒वित्र॒ऽआ | सिन्धो᳚रू॒र्माव्यक्ष॑रत् || {6.8.29.4}, {9.39.4}, {9.2.15.4} |
1705 | आ॒विवा᳚सन्परा॒वतो॒ऽअथो᳚ऽअर्वा॒वतः॑सु॒तः | इन्द्रा᳚यसिच्यते॒मधु॑ || {6.8.29.5}, {9.39.5}, {9.2.15.5} |
1706 | स॒मी॒ची॒नाऽअ॑नूषत॒हरिं᳚हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः | योना᳚वृ॒तस्य॑सीदत || {6.8.29.6}, {9.39.6}, {9.2.15.6} |
[132] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो बृहन्मतिषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1707 | पु॒ना॒नोऽअ॑क्रमीद॒भिविश्वा॒मृधो॒विच॑र्षणिः | शु॒म्भन्ति॒विप्रं᳚धी॒तिभिः॑ || {6.8.30.1}, {9.40.1}, {9.2.16.1} |
1708 | आयोनि॑मरु॒णोरु॑ह॒द्गम॒दिन्द्रं॒वृषा᳚सु॒तः | ध्रु॒वेसद॑सिसीदति || {6.8.30.2}, {9.40.2}, {9.2.16.2} |
1709 | नूनो᳚र॒यिंम॒हामि᳚न्दो॒ऽस्मभ्यं᳚सोमवि॒श्वतः॑ | आप॑वस्वसह॒स्रिण᳚म् || {6.8.30.3}, {9.40.3}, {9.2.16.3} |
1710 | विश्वा᳚सोमपवमानद्यु॒म्नानी᳚न्द॒वाभ॑र | वि॒दाःस॑ह॒स्रिणी॒रिषः॑ || {6.8.30.4}, {9.40.4}, {9.2.16.4} |
1711 | सनः॑पुना॒नऽआभ॑रर॒यिंस्तो॒त्रेसु॒वीर्य᳚म् | ज॒रि॒तुर्व॑र्धया॒गिरः॑ || {6.8.30.5}, {9.40.5}, {9.2.16.5} |
1712 | पु॒ना॒नऽइ᳚न्द॒वाभ॑र॒सोम॑द्वि॒बर्ह॑संर॒यिम् | वृष᳚न्निन्दोनऽउ॒क्थ्य᳚म् || {6.8.30.6}, {9.40.6}, {9.2.16.6} |
[133] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य काण्वो मेध्यातिथि षिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1713 | प्रयेगावो॒नभूर्ण॑यस्त्वे॒षाऽअ॒यासो॒ऽअक्र॑मुः | घ्नन्तः॑कृ॒ष्णामप॒त्वच᳚म् || {6.8.31.1}, {9.41.1}, {9.2.17.1} |
1714 | सु॒वि॒तस्य॑मनाम॒हेऽति॒सेतुं᳚दुरा॒व्य᳚म् | सा॒ह्वांसो॒दस्यु॑मव्र॒तम् || {6.8.31.2}, {9.41.2}, {9.2.17.2} |
1715 | शृ॒ण्वेवृ॒ष्टेरि॑वस्व॒नःपव॑मानस्यशु॒ष्मिणः॑ | चर᳚न्तिवि॒द्युतो᳚दि॒वि || {6.8.31.3}, {9.41.3}, {9.2.17.3} |
1716 | आप॑वस्वम॒हीमिषं॒गोम॑दिन्दो॒हिर᳚ण्यवत् | अश्वा᳚व॒द्वाज॑वत्सु॒तः || {6.8.31.4}, {9.41.4}, {9.2.17.4} |
1717 | सप॑वस्वविचर्षण॒ऽआम॒हीरोद॑सीपृण | उ॒षाःसूर्यो॒नर॒श्मिभिः॑ || {6.8.31.5}, {9.41.5}, {9.2.17.5} |
1718 | परि॑णःशर्म॒यन्त्या॒धार॑यासोमवि॒श्वतः॑ | सरा᳚र॒सेव॑वि॒ष्टप᳚म् || {6.8.31.6}, {9.41.6}, {9.2.17.6} |
[134] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य काण्वो मेध्यातिथि ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1719 | ज॒नय᳚न्रोच॒नादि॒वोज॒नय᳚न्न॒प्सुसूर्य᳚म् | वसा᳚नो॒गाऽअ॒पोहरिः॑ || {6.8.32.1}, {9.42.1}, {9.2.18.1} |
1720 | ए॒षप्र॒त्नेन॒मन्म॑नादे॒वोदे॒वेभ्य॒स्परि॑ | धार॑यापवतेसु॒तः || {6.8.32.2}, {9.42.2}, {9.2.18.2} |
1721 | वा॒वृ॒धा॒नाय॒तूर्व॑ये॒पव᳚न्ते॒वाज॑सातये | सोमाः᳚स॒हस्र॑पाजसः || {6.8.32.3}, {9.42.3}, {9.2.18.3} |
1722 | दु॒हा॒नःप्र॒त्नमित्पयः॑प॒वित्रे॒परि॑षिच्यते | क्रन्द᳚न्दे॒वाँऽअ॑जीजनत् || {6.8.32.4}, {9.42.4}, {9.2.18.4} |
1723 | अ॒भिविश्वा᳚नि॒वार्या॒भिदे॒वाँऽऋ॑ता॒वृधः॑ | सोमः॑पुना॒नोऽअ॑र्षति || {6.8.32.5}, {9.42.5}, {9.2.18.5} |
1724 | गोम᳚न्नःसोमवी॒रव॒दश्वा᳚व॒द्वाज॑वत्सु॒तः | पव॑स्वबृह॒तीरिषः॑ || {6.8.32.6}, {9.42.6}, {9.2.18.6} |
[135] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य काण्वो मेध्यातिथि ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1725 | योऽअत्य॑ऽइवमृ॒ज्यते॒गोभि॒र्मदा᳚यहर्य॒तः | तंगी॒र्भिर्वा᳚सयामसि || {6.8.33.1}, {9.43.1}, {9.2.19.1} |
1726 | तंनो॒विश्वा᳚ऽअव॒स्युवो॒गिरः॑शुम्भन्तिपू॒र्वथा᳚ | इन्दु॒मिन्द्रा᳚यपी॒तये᳚ || {6.8.33.2}, {9.43.2}, {9.2.19.2} |
1727 | पु॒ना॒नोया᳚तिहर्य॒तःसोमो᳚गी॒र्भिःपरि॑ष्कृतः | विप्र॑स्य॒मेध्या᳚तिथेः || {6.8.33.3}, {9.43.3}, {9.2.19.3} |
1728 | पव॑मानवि॒दार॒यिम॒स्मभ्यं᳚सोमसु॒श्रिय᳚म् | इन्दो᳚स॒हस्र॑वर्चसम् || {6.8.33.4}, {9.43.4}, {9.2.19.4} |
1729 | इन्दु॒रत्यो॒नवा᳚ज॒सृत्कनि॑क्रन्तिप॒वित्र॒ऽआ | यदक्षा॒रति॑देव॒युः || {6.8.33.5}, {9.43.5}, {9.2.19.5} |
1730 | पव॑स्व॒वाज॑सातये॒विप्र॑स्यगृण॒तोवृ॒धे | सोम॒रास्व॑सु॒वीर्य᳚म् || {6.8.33.6}, {9.43.6}, {9.2.19.6} |