Mantra classification is following this convention :-
{अष्टकः, अध्यायः, वर्गः, मन्त्रः}, {मण्डलम्, सूक्तम्, मन्त्रः}, {मण्डलम्, अनुवाकः, सूक्तम्, मन्त्रः}
[1] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरस अयास्य ऋषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1 | प्रण॑ऽइन्दोम॒हेतन॑ऽऊ॒र्मिंनबिभ्र॑दर्षसि | अ॒भिदे॒वाँऽअ॒यास्यः॑ || {7.1.1.1}, {9.44.1}, {9.2.20.1} |
2 | म॒तीजु॒ष्टोधि॒याहि॒तःसोमो᳚हिन्वेपरा॒वति॑ | विप्र॑स्य॒धार॑याक॒विः || {7.1.1.2}, {9.44.2}, {9.2.20.2} |
3 | अ॒यंदे॒वेषु॒जागृ॑विःसु॒तऽए᳚तिप॒वित्र॒ऽआ | सोमो᳚याति॒विच॑र्षणिः || {7.1.1.3}, {9.44.3}, {9.2.20.3} |
4 | सनः॑पवस्ववाज॒युश्च॑क्रा॒णश्चारु॑मध्व॒रम् | ब॒र्हिष्माँ॒ऽआवि॑वासति || {7.1.1.4}, {9.44.4}, {9.2.20.4} |
5 | सनो॒भगा᳚यवा॒यवे॒विप्र॑वीरःस॒दावृ॑धः | सोमो᳚दे॒वेष्वाय॑मत् || {7.1.1.5}, {9.44.5}, {9.2.20.5} |
6 | सनो᳚ऽअ॒द्यवसु॑त्तयेक्रतु॒विद्गा᳚तु॒वित्त॑मः | वाजं᳚जेषि॒श्रवो᳚बृ॒हत् || {7.1.1.6}, {9.44.6}, {9.2.20.6} |
[2] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरस अयास्य ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
7 | सप॑वस्व॒मदा᳚य॒कंनृ॒चक्षा᳚दे॒ववी᳚तये | इन्द॒विन्द्रा᳚यपी॒तये᳚ || {7.1.2.1}, {9.45.1}, {9.2.21.1} |
8 | सनो᳚ऽअर्षा॒भिदू॒त्य१॑(अ॒)अंत्वमिन्द्रा᳚यतोशसे | दे॒वान्त्सखि॑भ्य॒ऽआवर᳚म् || {7.1.2.2}, {9.45.2}, {9.2.21.2} |
9 | उ॒तत्वाम॑रु॒णंव॒यंगोभि॑रञ्ज्मो॒मदा᳚य॒कम् | विनो᳚रा॒येदुरो᳚वृधि || {7.1.2.3}, {9.45.3}, {9.2.21.3} |
10 | अत्यू᳚प॒वित्र॑मक्रमीद्वा॒जीधुरं॒नयाम॑नि | इन्दु॑र्दे॒वेषु॑पत्यते || {7.1.2.4}, {9.45.4}, {9.2.21.4} |
11 | समी॒सखा᳚योऽअस्वर॒न्वने॒क्रीळ᳚न्त॒मत्य॑विम् | इन्दुं᳚ना॒वाऽअ॑नूषत || {7.1.2.5}, {9.45.5}, {9.2.21.5} |
12 | तया᳚पवस्व॒धार॑या॒यया᳚पी॒तोवि॒चक्ष॑से | इन्दो᳚स्तो॒त्रेसु॒वीर्य᳚म् || {7.1.2.6}, {9.45.6}, {9.2.21.6} |
[3] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरस अयास्य ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
13 | असृ॑ग्रन्दे॒ववी᳚त॒येऽत्या᳚सः॒कृत्व्या᳚ऽइव | क्षर᳚न्तःपर्वता॒वृधः॑ || {7.1.3.1}, {9.46.1}, {9.2.22.1} |
14 | परि॑ष्कृतास॒ऽइन्द॑वो॒योषे᳚व॒पित्र्या᳚वती | वा॒युंसोमा᳚ऽअसृक्षत || {7.1.3.2}, {9.46.2}, {9.2.22.2} |
15 | ए॒तेसोमा᳚स॒ऽइन्द॑वः॒प्रय॑स्वन्तश्च॒मूसु॒ताः | इन्द्रं᳚वर्धन्ति॒कर्म॑भिः || {7.1.3.3}, {9.46.3}, {9.2.22.3} |
16 | आधा᳚वतासुहस्त्यःशु॒क्रागृ॑भ्णीतम॒न्थिना᳚ | गोभिः॑श्रीणीतमत्स॒रम् || {7.1.3.4}, {9.46.4}, {9.2.22.4} |
17 | सप॑वस्वधनंजयप्रय॒न्ताराध॑सोम॒हः | अ॒स्मभ्यं᳚सोमगातु॒वित् || {7.1.3.5}, {9.46.5}, {9.2.22.5} |
18 | ए॒तंमृ॑जन्ति॒मर्ज्यं॒पव॑मानं॒दश॒क्षिपः॑ | इन्द्रा᳚यमत्स॒रंमद᳚म् || {7.1.3.6}, {9.46.6}, {9.2.22.6} |
[4] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कवि ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
19 | अ॒यासोमः॑सुकृ॒त्यया᳚म॒हश्चि॑द॒भ्य॑वर्धत | म॒न्दा॒नऽउद्वृ॑षायते || {7.1.4.1}, {9.47.1}, {9.2.23.1} |
20 | कृ॒तानीद॑स्य॒कर्त्वा॒चेत᳚न्तेदस्यु॒तर्ह॑णा | ऋ॒णाच॑धृ॒ष्णुश्च॑यते || {7.1.4.2}, {9.47.2}, {9.2.23.2} |
21 | आत्सोम॑ऽइन्द्रि॒योरसो॒वज्रः॑सहस्र॒साभु॑वत् | उ॒क्थंयद॑स्य॒जाय॑ते || {7.1.4.3}, {9.47.3}, {9.2.23.3} |
22 | स्व॒यंक॒विर्वि॑ध॒र्तरि॒विप्रा᳚य॒रत्न॑मिच्छति | यदी᳚मर्मृ॒ज्यते॒धियः॑ || {7.1.4.4}, {9.47.4}, {9.2.23.4} |
23 | सि॒षा॒सतू᳚रयी॒णांवाजे॒ष्वर्व॑तामिव | भरे᳚षुजि॒ग्युषा᳚मसि || {7.1.4.5}, {9.47.5}, {9.2.23.5} |
[5] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कविषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
24 | तंत्वा᳚नृ॒म्णानि॒बिभ्र॑तंस॒धस्थे᳚षुम॒होदि॒वः | चारुं᳚सुकृ॒त्यये᳚महे || {7.1.5.1}, {9.48.1}, {9.2.24.1} |
25 | संवृ॑क्तधृष्णुमु॒क्थ्यं᳚म॒हाम॑हिव्रतं॒मद᳚म् | श॒तंपुरो᳚रुरु॒क्षणि᳚म् || {7.1.5.2}, {9.48.2}, {9.2.24.2} |
26 | अत॑स्त्वार॒यिम॒भिराजा᳚नंसुक्रतोदि॒वः | सु॒प॒र्णोऽअ᳚व्य॒थिर्भ॑रत् || {7.1.5.3}, {9.48.3}, {9.2.24.3} |
27 | विश्व॑स्मा॒ऽइत्स्व॑र्दृ॒शेसाधा᳚रणंरज॒स्तुर᳚म् | गो॒पामृ॒तस्य॒विर्भ॑रत् || {7.1.5.4}, {9.48.4}, {9.2.24.4} |
28 | अधा᳚हिन्वा॒नऽइ᳚न्द्रि॒यंज्यायो᳚महि॒त्वमा᳚नशे | अ॒भि॒ष्टि॒कृद्विच॑र्षणिः || {7.1.5.5}, {9.48.5}, {9.2.24.5} |
[6] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कविजृषिः पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
29 | पव॑स्ववृ॒ष्टिमासुनो॒ऽपामू॒र्मिंदि॒वस्परि॑ | अ॒य॒क्ष्माबृ॑ह॒तीरिषः॑ || {7.1.6.1}, {9.49.1}, {9.2.25.1} |
30 | तया᳚पवस्व॒धार॑या॒यया॒गाव॑ऽइ॒हागम॑न् | जन्या᳚स॒ऽउप॑नोगृ॒हम् || {7.1.6.2}, {9.49.2}, {9.2.25.2} |
31 | घृ॒तंप॑वस्व॒धार॑याय॒ज्ञेषु॑देव॒वीत॑मः | अ॒स्मभ्यं᳚वृ॒ष्टिमाप॑व || {7.1.6.3}, {9.49.3}, {9.2.25.3} |
32 | सन॑ऽऊ॒र्जेव्य१॑(अ॒)'व्ययं᳚प॒वित्रं᳚धाव॒धार॑या | दे॒वासः॑शृ॒णव॒न्हिक᳚म् || {7.1.6.4}, {9.49.4}, {9.2.25.4} |
33 | पव॑मानोऽअसिष्यद॒द्रक्षां᳚स्यप॒जङ्घ॑नत् | प्र॒त्न॒वद्रो॒चय॒न्रुचः॑ || {7.1.6.5}, {9.49.5}, {9.2.25.5} |
[7] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरस उचथ्य ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
34 | उत्ते॒शुष्मा᳚सऽईरते॒सिन्धो᳚रू॒र्मेरि॑वस्व॒नः | वा॒णस्य॑चोदयाप॒विम् || {7.1.7.1}, {9.50.1}, {9.2.26.1} |
35 | प्र॒स॒वेत॒ऽउदी᳚रतेति॒स्रोवाचो᳚मख॒स्युवः॑ | यदव्य॒ऽएषि॒सान॑वि || {7.1.7.2}, {9.50.2}, {9.2.26.2} |
36 | अव्यो॒वारे॒परि॑प्रि॒यंहरिं᳚हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः | पव॑मानंमधु॒श्चुत᳚म् || {7.1.7.3}, {9.50.3}, {9.2.26.3} |
37 | आप॑वस्वमदिन्तमप॒वित्रं॒धार॑याकवे | अ॒र्कस्य॒योनि॑मा॒सद᳚म् || {7.1.7.4}, {9.50.4}, {9.2.26.4} |
38 | सप॑वस्वमदिन्तम॒गोभि॑रञ्जा॒नोऽअ॒क्तुभिः॑ | इन्द॒विन्द्रा᳚यपी॒तये᳚ || {7.1.7.5}, {9.50.5}, {9.2.26.5} |
[8] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरस उचथ्य ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
39 | अध्व᳚र्यो॒ऽअद्रि॑भिःसु॒तंसोमं᳚प॒वित्र॒ऽआसृ॑ज | पु॒नी॒हीन्द्रा᳚य॒पात॑वे || {7.1.8.1}, {9.51.1}, {9.2.27.1} |
40 | दि॒वःपी॒यूष॑मुत्त॒मंसोम॒मिन्द्रा᳚यव॒ज्रिणे᳚ | सु॒नोता॒मधु॑मत्तमम् || {7.1.8.2}, {9.51.2}, {9.2.27.2} |
41 | तव॒त्यऽइ᳚न्दो॒ऽअन्ध॑सोदे॒वामधो॒र्व्य॑श्नते | पव॑मानस्यम॒रुतः॑ || {7.1.8.3}, {9.51.3}, {9.2.27.3} |
42 | त्वंहिसो᳚मव॒र्धय᳚न्त्सु॒तोमदा᳚य॒भूर्ण॑ये | वृष᳚न्त्स्तो॒तार॑मू॒तये᳚ || {7.1.8.4}, {9.51.4}, {9.2.27.4} |
43 | अ॒भ्य॑र्षविचक्षणप॒वित्रं॒धार॑यासु॒तः | अ॒भिवाज॑मु॒तश्रवः॑ || {7.1.8.5}, {9.51.5}, {9.2.27.5} |
[9] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरस उचथ्य ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
44 | परि॑द्यु॒क्षःस॒नद्र॑यि॒र्भर॒द्वाजं᳚नो॒ऽअन्ध॑सा | सु॒वा॒नोऽअ॑र्षप॒वित्र॒ऽआ || {7.1.9.1}, {9.52.1}, {9.2.28.1} |
45 | तव॑प्र॒त्नेभि॒रध्व॑भि॒रव्यो॒वारे॒परि॑प्रि॒यः | स॒हस्र॑धारोया॒त्तना᳚ || {7.1.9.2}, {9.52.2}, {9.2.28.2} |
46 | च॒रुर्नयस्तमी᳚ङ्ख॒येन्दो॒नदान॑मीङ्खय | व॒धैर्व॑धस्नवीङ्खय || {7.1.9.3}, {9.52.3}, {9.2.28.3} |
47 | निशुष्म॑मिन्दवेषां॒पुरु॑हूत॒जना᳚नाम् | योऽअ॒स्माँऽआ॒दिदे᳚शति || {7.1.9.4}, {9.52.4}, {9.2.28.4} |
48 | श॒तंन॑ऽइन्दऽऊ॒तिभिः॑स॒हस्रं᳚वा॒शुची᳚नाम् | पव॑स्वमंह॒यद्र॑यिः || {7.1.9.5}, {9.52.5}, {9.2.28.5} |
[10] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
49 | उत्ते॒शुष्मा᳚सोऽअस्थू॒रक्षो᳚भि॒न्दन्तो᳚ऽअद्रिवः | नु॒दस्व॒याःप॑रि॒स्पृधः॑ || {7.1.10.1}, {9.53.1}, {9.2.29.1} |
50 | अ॒यानि॑ज॒घ्निरोज॑सारथसं॒गेधने᳚हि॒ते | स्तवा॒ऽअबि॑भ्युषाहृ॒दा || {7.1.10.2}, {9.53.2}, {9.2.29.2} |
51 | अस्य᳚व्र॒तानि॒नाधृषे॒पव॑मानस्यदू॒ढ्या᳚ | रु॒जयस्त्वा᳚पृत॒न्यति॑ || {7.1.10.3}, {9.53.3}, {9.2.29.3} |
52 | तंहि᳚न्वन्तिमद॒च्युतं॒हरिं᳚न॒दीषु॑वा॒जिन᳚म् | इन्दु॒मिन्द्रा᳚यमत्स॒रम् || {7.1.10.4}, {9.53.4}, {9.2.29.4} |
[11] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
53 | अ॒स्यप्र॒त्नामनु॒द्युतं᳚शु॒क्रंदु॑दुह्रे॒ऽअह्र॑यः | पयः॑सहस्र॒सामृषि᳚म् || {7.1.11.1}, {9.54.1}, {9.2.30.1} |
54 | अ॒यंसूर्य॑ऽइवोप॒दृग॒यंसरां᳚सिधावति | स॒प्तप्र॒वत॒ऽआदिव᳚म् || {7.1.11.2}, {9.54.2}, {9.2.30.2} |
55 | अ॒यंविश्वा᳚नितिष्ठतिपुना॒नोभुव॑नो॒परि॑ | सोमो᳚दे॒वोनसूर्यः॑ || {7.1.11.3}, {9.54.3}, {9.2.30.3} |
56 | परि॑णोदे॒ववी᳚तये॒वाजाँ᳚ऽअर्षसि॒गोम॑तः | पु॒ना॒नऽइ᳚न्दविन्द्र॒युः || {7.1.11.4}, {9.54.4}, {9.2.30.4} |
[12] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
57 | यवं᳚यवंनो॒ऽअन्ध॑सापु॒ष्टम्पु॑ष्टं॒परि॑स्रव | सोम॒विश्वा᳚च॒सौभ॑गा || {7.1.12.1}, {9.55.1}, {9.2.31.1} |
58 | इन्दो॒यथा॒तव॒स्तवो॒यथा᳚तेजा॒तमन्ध॑सः | निब॒र्हिषि॑प्रि॒येस॑दः || {7.1.12.2}, {9.55.2}, {9.2.31.2} |
59 | उ॒तनो᳚गो॒विद॑श्व॒वित्पव॑स्वसो॒मान्ध॑सा | म॒क्षूत॑मेभि॒रह॑भिः || {7.1.12.3}, {9.55.3}, {9.2.31.3} |
60 | योजि॒नाति॒नजीय॑ते॒हन्ति॒शत्रु॑म॒भीत्य॑ | सप॑वस्वसहस्रजित् || {7.1.12.4}, {9.55.4}, {9.2.31.4} |
[13] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
61 | परि॒सोम॑ऋ॒तंबृ॒हदा॒शुःप॒वित्रे᳚ऽअर्षति | वि॒घ्नन्रक्षां᳚सिदेव॒युः || {7.1.13.1}, {9.56.1}, {9.2.32.1} |
62 | यत्सोमो॒वाज॒मर्ष॑तिश॒तंधारा᳚ऽअप॒स्युवः॑ | इन्द्र॑स्यस॒ख्यमा᳚वि॒शन् || {7.1.13.2}, {9.56.2}, {9.2.32.2} |
63 | अ॒भित्वा॒योष॑णो॒दश॑जा॒रंनक॒न्या᳚नूषत | मृ॒ज्यसे᳚सोमसा॒तये᳚ || {7.1.13.3}, {9.56.3}, {9.2.32.3} |
64 | त्वमिन्द्रा᳚य॒विष्ण॑वेस्वा॒दुरि᳚न्दो॒परि॑स्रव | नॄन्त्स्तो॒तॄन्पा॒ह्यंह॑सः || {7.1.13.4}, {9.56.4}, {9.2.32.4} |
[14] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
65 | प्रते॒धारा᳚ऽअस॒श्चतो᳚दि॒वोनय᳚न्तिवृ॒ष्टयः॑ | अच्छा॒वाजं᳚सह॒स्रिण᳚म् || {7.1.14.1}, {9.57.1}, {9.2.33.1} |
66 | अ॒भिप्रि॒याणि॒काव्या॒विश्वा॒चक्षा᳚णोऽअर्षति | हरि॑स्तुञ्जा॒नऽआयु॑धा || {7.1.14.2}, {9.57.2}, {9.2.33.2} |
67 | सम᳚र्मृजा॒नऽआ॒युभि॒रिभो॒राजे᳚वसुव्र॒तः | श्ये॒नोनवंसु॑षीदति || {7.1.14.3}, {9.57.3}, {9.2.33.3} |
68 | सनो॒विश्वा᳚दि॒वोवसू॒तोपृ॑थि॒व्याऽअधि॑ | पु॒ना॒नऽइ᳚न्द॒वाभ॑र || {7.1.14.4}, {9.57.4}, {9.2.33.4} |
[15] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
69 | तर॒त्सम॒न्दीधा᳚वति॒धारा᳚सु॒तस्यान्ध॑सः | तर॒त्सम॒न्दीधा᳚वति || {7.1.15.1}, {9.58.1}, {9.2.34.1} |
70 | उ॒स्रावे᳚द॒वसू᳚नां॒मर्त॑स्यदे॒व्यव॑सः | तर॒त्सम॒न्दीधा᳚वति || {7.1.15.2}, {9.58.2}, {9.2.34.2} |
71 | ध्व॒स्रयोः᳚पुरु॒षन्त्यो॒रास॒हस्रा᳚णिदद्महे | तर॒त्सम॒न्दीधा᳚वति || {7.1.15.3}, {9.58.3}, {9.2.34.3} |
72 | आययो᳚स्त्रिं॒शतं॒तना᳚स॒हस्रा᳚णिच॒दद्म॑हे | तर॒त्सम॒न्दीधा᳚वति || {7.1.15.4}, {9.58.4}, {9.2.34.4} |
[16] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
73 | पव॑स्वगो॒जिद॑श्व॒जिद्वि॑श्व॒जित्सो᳚मरण्य॒जित् | प्र॒जाव॒द्रत्न॒माभ॑र || {7.1.16.1}, {9.59.1}, {9.2.35.1} |
74 | पव॑स्वा॒द्भ्योऽअदा᳚भ्यः॒पव॒स्वौष॑धीभ्यः | पव॑स्वधि॒षणा᳚भ्यः || {7.1.16.2}, {9.59.2}, {9.2.35.2} |
75 | त्वंसो᳚म॒पव॑मानो॒विश्वा᳚निदुरि॒तात॑र | क॒विःसी᳚द॒निब॒र्हिषि॑ || {7.1.16.3}, {9.59.3}, {9.2.35.3} |
76 | पव॑मान॒स्व᳚र्विदो॒जाय॑मानोऽभवोम॒हान् | इन्दो॒विश्वाँ᳚ऽअ॒भीद॑सि || {7.1.16.4}, {9.59.4}, {9.2.35.4} |
[17] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | (१-२, ४) प्रथमाद्वितीययोर्ऋचोश्चतुर्थ्याश्च गायत्री, (३) तृतीयायाश्च पुर उष्णिक् छन्दसी || | |
77 | प्रगा᳚य॒त्रेण॑गायत॒पव॑मानं॒विच॑र्षणिम् | इन्दुं᳚स॒हस्र॑चक्षसम् || {7.1.17.1}, {9.60.1}, {9.2.36.1} |
78 | तंत्वा᳚स॒हस्र॑चक्षस॒मथो᳚स॒हस्र॑भर्णसम् | अति॒वार॑मपाविषुः || {7.1.17.2}, {9.60.2}, {9.2.36.2} |
79 | अति॒वारा॒न्पव॑मानोऽअसिष्यदत्क॒लशाँ᳚ऽअ॒भिधा᳚वति | इन्द्र॑स्य॒हार्द्या᳚वि॒शन् || {7.1.17.3}, {9.60.3}, {9.2.36.3} |
80 | इन्द्र॑स्यसोम॒राध॑से॒शंप॑वस्वविचर्षणे | प्र॒जाव॒द्रेत॒ऽआभ॑र || {7.1.17.4}, {9.60.4}, {9.2.36.4} |
[18] (१-३०) त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य आङ्गिरसोऽमहीया षः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
81 | अ॒यावी॒तीपरि॑स्रव॒यस्त॑ऽइन्दो॒मदे॒ष्वा | अ॒वाह᳚न्नव॒तीर्नव॑ || {7.1.18.1}, {9.61.1}, {9.3.1.1} |
82 | पुरः॑स॒द्यऽइ॒त्थाधि॑ये॒दिवो᳚दासाय॒शम्ब॑रम् | अध॒त्यंतु॒र्वशं॒यदु᳚म् || {7.1.18.2}, {9.61.2}, {9.3.1.2} |
83 | परि॑णो॒ऽअश्व॑मश्व॒विद्गोम॑दिन्दो॒हिर᳚ण्यवत् | क्षरा᳚सह॒स्रिणी॒रिषः॑ || {7.1.18.3}, {9.61.3}, {9.3.1.3} |
84 | पव॑मानस्यतेव॒यंप॒वित्र॑मभ्युन्द॒तः | स॒खि॒त्वमावृ॑णीमहे || {7.1.18.4}, {9.61.4}, {9.3.1.4} |
85 | येते᳚प॒वित्र॑मू॒र्मयो᳚ऽभि॒क्षर᳚न्ति॒धार॑या | तेभि᳚र्नःसोममृळय || {7.1.18.5}, {9.61.5}, {9.3.1.5} |
86 | सनः॑पुना॒नऽआभ॑रर॒यिंवी॒रव॑ती॒मिष᳚म् | ईशा᳚नःसोमवि॒श्वतः॑ || {7.1.19.1}, {9.61.6}, {9.3.1.6} |
87 | ए॒तमु॒त्यंदश॒क्षिपो᳚मृ॒जन्ति॒सिन्धु॑मातरम् | समा᳚दि॒त्येभि॑रख्यत || {7.1.19.2}, {9.61.7}, {9.3.1.7} |
88 | समिन्द्रे᳚णो॒तवा॒युना᳚सु॒तऽए᳚तिप॒वित्र॒ऽआ | संसूर्य॑स्यर॒श्मिभिः॑ || {7.1.19.3}, {9.61.8}, {9.3.1.8} |
89 | सनो॒भगा᳚यवा॒यवे᳚पू॒ष्णेप॑वस्व॒मधु॑मान् | चारु᳚र्मि॒त्रेवरु॑णेच || {7.1.19.4}, {9.61.9}, {9.3.1.9} |
90 | उ॒च्चाते᳚जा॒तमन्ध॑सोदि॒विषद्भूम्याद॑दे | उ॒ग्रंशर्म॒महि॒श्रवः॑ || {7.1.19.5}, {9.61.10}, {9.3.1.10} |
91 | ए॒नाविश्वा᳚न्य॒र्यऽआद्यु॒म्नानि॒मानु॑षाणाम् | सिषा᳚सन्तोवनामहे || {7.1.20.1}, {9.61.11}, {9.3.1.11} |
92 | सन॒ऽइन्द्रा᳚य॒यज्य॑वे॒वरु॑णायम॒रुद्भ्यः॑ | व॒रि॒वो॒वित्परि॑स्रव || {7.1.20.2}, {9.61.12}, {9.3.1.12} |
93 | उपो॒षुजा॒तम॒प्तुरं॒गोभि॑र्भ॒ङ्गंपरि॑ष्कृतम् | इन्दुं᳚दे॒वाऽअ॑यासिषुः || {7.1.20.3}, {9.61.13}, {9.3.1.13} |
94 | तमिद्व॑र्धन्तुनो॒गिरो᳚व॒त्संसं॒शिश्व॑रीरिव | यऽइन्द्र॑स्यहृदं॒सनिः॑ || {7.1.20.4}, {9.61.14}, {9.3.1.14} |
95 | अर्षा᳚णःसोम॒शंगवे᳚धु॒क्षस्व॑पि॒प्युषी॒मिष᳚म् | वर्धा᳚समु॒द्रमु॒क्थ्य᳚म् || {7.1.20.5}, {9.61.15}, {9.3.1.15} |
96 | पव॑मानोऽअजीजनद्दि॒वश्चि॒त्रंनत᳚न्य॒तुम् | ज्योति᳚र्वैश्वान॒रंबृ॒हत् || {7.1.21.1}, {9.61.16}, {9.3.1.16} |
97 | पव॑मानस्यते॒रसो॒मदो᳚राजन्नदुच्छु॒नः | विवार॒मव्य॑मर्षति || {7.1.21.2}, {9.61.17}, {9.3.1.17} |
98 | पव॑मान॒रस॒स्तव॒दक्षो॒विरा᳚जतिद्यु॒मान् | ज्योति॒र्विश्वं॒स्व॑र्दृ॒शे || {7.1.21.3}, {9.61.18}, {9.3.1.18} |
99 | यस्ते॒मदो॒वरे᳚ण्य॒स्तेना᳚पव॒स्वान्ध॑सा | दे॒वा॒वीर॑घशंस॒हा || {7.1.21.4}, {9.61.19}, {9.3.1.19} |
100 | जघ्नि᳚र्वृ॒त्रम॑मि॒त्रियं॒सस्नि॒र्वाजं᳚दि॒वेदि॑वे | गो॒षाऽउ॑ऽअश्व॒साऽअ॑सि || {7.1.21.5}, {9.61.20}, {9.3.1.20} |
101 | सम्मि॑श्लोऽअरु॒षोभ॑वसूप॒स्थाभि॒र्नधे॒नुभिः॑ | सीद᳚ञ्छ्ये॒नोनयोनि॒मा || {7.1.22.1}, {9.61.21}, {9.3.1.21} |
102 | सप॑वस्व॒यऽआवि॒थेन्द्रं᳚वृ॒त्राय॒हन्त॑वे | व॒व्रि॒वांसं᳚म॒हीर॒पः || {7.1.22.2}, {9.61.22}, {9.3.1.22} |
103 | सु॒वीरा᳚सोव॒यंधना॒जये᳚मसोममीढ्वः | पु॒ना॒नोव॑र्धनो॒गिरः॑ || {7.1.22.3}, {9.61.23}, {9.3.1.23} |
104 | त्वोता᳚स॒स्तवाव॑सा॒स्याम॑व॒न्वन्त॑ऽआ॒मुरः॑ | सोम᳚व्र॒तेषु॑जागृहि || {7.1.22.4}, {9.61.24}, {9.3.1.24} |
105 | अ॒प॒घ्नन्प॑वते॒मृधोऽप॒सोमो॒ऽअरा᳚व्णः | गच्छ॒न्निन्द्र॑स्यनिष्कृ॒तम् || {7.1.22.5}, {9.61.25}, {9.3.1.25} |
106 | म॒होनो᳚रा॒यऽआभ॑र॒पव॑मानज॒हीमृधः॑ | रास्वे᳚न्दोवी॒रव॒द्यशः॑ || {7.1.23.1}, {9.61.26}, {9.3.1.26} |
107 | नत्वा᳚श॒तंच॒नह्रुतो॒राधो॒दित्स᳚न्त॒मामि॑नन् | यत्पु॑ना॒नोम॑ख॒स्यसे᳚ || {7.1.23.2}, {9.61.27}, {9.3.1.27} |
108 | पव॑स्वेन्दो॒वृषा᳚सु॒तःकृ॒धीनो᳚य॒शसो॒जने᳚ | विश्वा॒ऽअप॒द्विषो᳚जहि || {7.1.23.3}, {9.61.28}, {9.3.1.28} |
109 | अस्य॑तेस॒ख्येव॒यंतवे᳚न्दोद्यु॒म्नऽउ॑त्त॒मे | सा॒स॒ह्याम॑पृतन्य॒तः || {7.1.23.4}, {9.61.29}, {9.3.1.29} |
110 | याते᳚भी॒मान्यायु॑धाति॒ग्मानि॒सन्ति॒धूर्व॑णे | रक्षा᳚समस्यनोनि॒दः || {7.1.23.5}, {9.61.30}, {9.3.1.30} |
[19] (१-३०) त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य भार्गवो जमदग्निषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
111 | ए॒तेऽअ॑सृग्र॒मिन्द॑वस्ति॒रःप॒वित्र॑मा॒शवः॑ | विश्वा᳚न्य॒भिसौभ॑गा || {7.1.24.1}, {9.62.1}, {9.3.2.1} |
112 | वि॒घ्नन्तो᳚दुरि॒तापु॒रुसु॒गातो॒काय॑वा॒जिनः॑ | तना᳚कृ॒ण्वन्तो॒ऽअर्व॑ते || {7.1.24.2}, {9.62.2}, {9.3.2.2} |
113 | कृ॒ण्वन्तो॒वरि॑वो॒गवे॒ऽभ्य॑र्षन्तिसुष्टु॒तिम् | इळा᳚म॒स्मभ्यं᳚सं॒यत᳚म् || {7.1.24.3}, {9.62.3}, {9.3.2.3} |
114 | असा᳚व्यं॒शुर्मदा᳚या॒प्सुदक्षो᳚गिरि॒ष्ठाः | श्ये॒नोनयोनि॒मास॑दत् || {7.1.24.4}, {9.62.4}, {9.3.2.4} |
115 | शु॒भ्रमन्धो᳚दे॒ववा᳚तम॒प्सुधू॒तोनृभिः॑सु॒तः | स्वद᳚न्ति॒गावः॒पयो᳚भिः || {7.1.24.5}, {9.62.5}, {9.3.2.5} |
116 | आदी॒मश्वं॒नहेता॒रोऽशू᳚शुभन्न॒मृता᳚य | मध्वो॒रसं᳚सध॒मादे᳚ || {7.1.25.1}, {9.62.6}, {9.3.2.6} |
117 | यास्ते॒धारा᳚मधु॒श्चुतोऽसृ॑ग्रमिन्दऽऊ॒तये᳚ | ताभिः॑प॒वित्र॒मास॑दः || {7.1.25.2}, {9.62.7}, {9.3.2.7} |
118 | सोऽअ॒र्षेन्द्रा᳚यपी॒तये᳚ति॒रोरोमा᳚ण्य॒व्यया᳚ | सीद॒न्योना॒वने॒ष्वा || {7.1.25.3}, {9.62.8}, {9.3.2.8} |
119 | त्वमि᳚न्दो॒परि॑स्रव॒स्वादि॑ष्ठो॒ऽअङ्गि॑रोभ्यः | व॒रि॒वो॒विद्घृ॒तंपयः॑ || {7.1.25.4}, {9.62.9}, {9.3.2.9} |
120 | अ॒यंविच॑र्षणिर्हि॒तःपव॑मानः॒सचे᳚तति | हि॒न्वा॒नऽआप्यं᳚बृ॒हत् || {7.1.25.5}, {9.62.10}, {9.3.2.10} |
121 | ए॒षवृषा॒वृष᳚व्रतः॒पव॑मानोऽअशस्ति॒हा | कर॒द्वसू᳚निदा॒शुषे᳚ || {7.1.26.1}, {9.62.11}, {9.3.2.11} |
122 | आप॑वस्वसह॒स्रिणं᳚र॒यिंगोम᳚न्तम॒श्विन᳚म् | पु॒रु॒श्च॒न्द्रंपु॑रु॒स्पृह᳚म् || {7.1.26.2}, {9.62.12}, {9.3.2.12} |
123 | ए॒षस्यपरि॑षिच्यतेमर्मृ॒ज्यमा᳚नऽआ॒युभिः॑ | उ॒रु॒गा॒यःक॒विक्र॑तुः || {7.1.26.3}, {9.62.13}, {9.3.2.13} |
124 | स॒हस्रो᳚तिःश॒ताम॑घोवि॒मानो॒रज॑सःक॒विः | इन्द्रा᳚यपवते॒मदः॑ || {7.1.26.4}, {9.62.14}, {9.3.2.14} |
125 | गि॒राजा॒तऽइ॒हस्तु॒तऽइन्दु॒रिन्द्रा᳚यधीयते | विर्योना᳚वस॒तावि॑व || {7.1.26.5}, {9.62.15}, {9.3.2.15} |
126 | पव॑मानःसु॒तोनृभिः॒सोमो॒वाज॑मिवासरत् | च॒मूषु॒शक्म॑ना॒सद᳚म् || {7.1.27.1}, {9.62.16}, {9.3.2.16} |
127 | तंत्रि॑पृ॒ष्ठेत्रि॑वन्धु॒रेरथे᳚युञ्जन्ति॒यात॑वे | ऋषी᳚णांस॒प्तधी॒तिभिः॑ || {7.1.27.2}, {9.62.17}, {9.3.2.17} |
128 | तंसो᳚तारोधन॒स्पृत॑मा॒शुंवाजा᳚य॒यात॑वे | हरिं᳚हिनोतवा॒जिन᳚म् || {7.1.27.3}, {9.62.18}, {9.3.2.18} |
129 | आ॒वि॒शन्क॒लशं᳚सु॒तोविश्वा॒ऽअर्ष᳚न्न॒भिश्रियः॑ | शूरो॒नगोषु॑तिष्ठति || {7.1.27.4}, {9.62.19}, {9.3.2.19} |
130 | आत॑ऽइन्दो॒मदा᳚य॒कंपयो᳚दुहन्त्या॒यवः॑ | दे॒वादे॒वेभ्यो॒मधु॑ || {7.1.27.5}, {9.62.20}, {9.3.2.20} |
131 | आनः॒सोमं᳚प॒वित्र॒ऽआसृ॒जता॒मधु॑मत्तमम् | दे॒वेभ्यो᳚देव॒श्रुत्त॑मम् || {7.1.28.1}, {9.62.21}, {9.3.2.21} |
132 | ए॒तेसोमा᳚ऽअसृक्षतगृणा॒नाःश्रव॑सेम॒हे | म॒दिन्त॑मस्य॒धार॑या || {7.1.28.2}, {9.62.22}, {9.3.2.22} |
133 | अ॒भिगव्या᳚निवी॒तये᳚नृ॒म्णापु॑ना॒नोऽअ॑र्षसि | स॒नद्वा᳚जः॒परि॑स्रव || {7.1.28.3}, {9.62.23}, {9.3.2.23} |
134 | उ॒तनो॒गोम॑ती॒रिषो॒विश्वा᳚ऽअर्षपरि॒ष्टुभः॑ | गृ॒णा॒नोज॒मद॑ग्निना || {7.1.28.4}, {9.62.24}, {9.3.2.24} |
135 | पव॑स्ववा॒चोऽअ॑ग्रि॒यःसोम॑चि॒त्राभि॑रू॒तिभिः॑ | अ॒भिविश्वा᳚नि॒काव्या᳚ || {7.1.28.5}, {9.62.25}, {9.3.2.25} |
136 | त्वंस॑मु॒द्रिया᳚ऽअ॒पो᳚ऽग्रि॒योवाच॑ऽई॒रय॑न् | पव॑स्वविश्वमेजय || {7.1.29.1}, {9.62.26}, {9.3.2.26} |
137 | तुभ्ये॒माभुव॑नाकवेमहि॒म्नेसो᳚मतस्थिरे | तुभ्य॑मर्षन्ति॒सिन्ध॑वः || {7.1.29.2}, {9.62.27}, {9.3.2.27} |
138 | प्रते᳚दि॒वोनवृ॒ष्टयो॒धारा᳚यन्त्यस॒श्चतः॑ | अ॒भिशु॒क्रामु॑प॒स्तिर᳚म् || {7.1.29.3}, {9.62.28}, {9.3.2.28} |
139 | इन्द्रा॒येन्दुं᳚पुनीतनो॒ग्रंदक्षा᳚य॒साध॑नम् | ई॒शा॒नंवी॒तिरा᳚धसम् || {7.1.29.4}, {9.62.29}, {9.3.2.29} |
140 | पव॑मानऋ॒तःक॒विःसोमः॑प॒वित्र॒मास॑दत् | दध॑त्स्तो॒त्रेसु॒वीर्य᳚म् || {7.1.29.5}, {9.62.30}, {9.3.2.30} |
[20] (१-३०) त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य काश्यपो निध्रविषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
141 | आप॑वस्वसह॒स्रिणं᳚र॒यिंसो᳚मसु॒वीर्य᳚म् | अ॒स्मेश्रवां᳚सिधारय || {7.1.30.1}, {9.63.1}, {9.3.3.1} |
142 | इष॒मूर्जं᳚चपिन्वस॒ऽइन्द्रा᳚यमत्स॒रिन्त॑मः | च॒मूष्वानिषी᳚दसि || {7.1.30.2}, {9.63.2}, {9.3.3.2} |
143 | सु॒तऽइन्द्रा᳚य॒विष्ण॑वे॒सोमः॑क॒लशे᳚ऽअक्षरत् | मधु॑माँऽअस्तुवा॒यवे᳚ || {7.1.30.3}, {9.63.3}, {9.3.3.3} |
144 | ए॒तेऽअ॑सृग्रमा॒शवोऽति॒ह्वरां᳚सिब॒भ्रवः॑ | सोमा᳚ऋ॒तस्य॒धार॑या || {7.1.30.4}, {9.63.4}, {9.3.3.4} |
145 | इन्द्रं॒वर्ध᳚न्तोऽअ॒प्तुरः॑कृ॒ण्वन्तो॒विश्व॒मार्य᳚म् | अ॒प॒घ्नन्तो॒ऽअरा᳚व्णः || {7.1.30.5}, {9.63.5}, {9.3.3.5} |
146 | सु॒ताऽअनु॒स्वमारजो॒ऽभ्य॑र्षन्तिब॒भ्रवः॑ | इन्द्रं॒गच्छ᳚न्त॒ऽइन्द॑वः || {7.1.31.1}, {9.63.6}, {9.3.3.6} |
147 | अ॒याप॑वस्व॒धार॑या॒यया॒सूर्य॒मरो᳚चयः | हि॒न्वा॒नोमानु॑षीर॒पः || {7.1.31.2}, {9.63.7}, {9.3.3.7} |
148 | अयु॑क्त॒सूर॒ऽएत॑शं॒पव॑मानोम॒नावधि॑ | अ॒न्तरि॑क्षेण॒यात॑वे || {7.1.31.3}, {9.63.8}, {9.3.3.8} |
149 | उ॒तत्याह॒रितो॒दश॒सूरो᳚ऽअयुक्त॒यात॑वे | इन्दु॒रिन्द्र॒ऽइति॑ब्रु॒वन् || {7.1.31.4}, {9.63.9}, {9.3.3.9} |
150 | परी॒तोवा॒यवे᳚सु॒तंगिर॒ऽइन्द्रा᳚यमत्स॒रम् | अव्यो॒वारे᳚षुसिञ्चत || {7.1.31.5}, {9.63.10}, {9.3.3.10} |
151 | पव॑मानवि॒दार॒यिम॒स्मभ्यं᳚सोमदु॒ष्टर᳚म् | योदू॒णाशो᳚वनुष्य॒ता || {7.1.32.1}, {9.63.11}, {9.3.3.11} |
152 | अ॒भ्य॑र्षसह॒स्रिणं᳚र॒यिंगोम᳚न्तम॒श्विन᳚म् | अ॒भिवाज॑मु॒तश्रवः॑ || {7.1.32.2}, {9.63.12}, {9.3.3.12} |
153 | सोमो᳚दे॒वोनसूर्योऽद्रि॑भिःपवतेसु॒तः | दधा᳚नःक॒लशे॒रस᳚म् || {7.1.32.3}, {9.63.13}, {9.3.3.13} |
154 | ए॒तेधामा॒न्यार्या᳚शु॒क्राऋ॒तस्य॒धार॑या | वाजं॒गोम᳚न्तमक्षरन् || {7.1.32.4}, {9.63.14}, {9.3.3.14} |
155 | सु॒ताऽइन्द्रा᳚यव॒ज्रिणे॒सोमा᳚सो॒दध्या᳚शिरः | प॒वित्र॒मत्य॑क्षरन् || {7.1.32.5}, {9.63.15}, {9.3.3.15} |
156 | प्रसो᳚म॒मधु॑मत्तमोरा॒येऽअ॑र्षप॒वित्र॒ऽआ | मदो॒योदे᳚व॒वीत॑मः || {7.1.33.1}, {9.63.16}, {9.3.3.16} |
157 | तमी᳚मृजन्त्या॒यवो॒हरिं᳚न॒दीषु॑वा॒जिन᳚म् | इन्दु॒मिन्द्रा᳚यमत्स॒रम् || {7.1.33.2}, {9.63.17}, {9.3.3.17} |
158 | आप॑वस्व॒हिर᳚ण्यव॒दश्वा᳚वत्सोमवी॒रव॑त् | वाजं॒गोम᳚न्त॒माभ॑र || {7.1.33.3}, {9.63.18}, {9.3.3.18} |
159 | परि॒वाजे॒नवा᳚ज॒युमव्यो॒वारे᳚षुसिञ्चत | इन्द्रा᳚य॒मधु॑मत्तमम् || {7.1.33.4}, {9.63.19}, {9.3.3.19} |
160 | क॒विंमृ॑जन्ति॒मर्ज्यं᳚धी॒भिर्विप्रा᳚ऽअव॒स्यवः॑ | वृषा॒कनि॑क्रदर्षति || {7.1.33.5}, {9.63.20}, {9.3.3.20} |
161 | वृष॑णंधी॒भिर॒प्तुरं॒सोम॑मृ॒तस्य॒धार॑या | म॒तीविप्राः॒सम॑स्वरन् || {7.1.34.1}, {9.63.21}, {9.3.3.21} |
162 | पव॑स्वदेवायु॒षगिन्द्रं᳚गच्छतुते॒मदः॑ | वा॒युमारो᳚ह॒धर्म॑णा || {7.1.34.2}, {9.63.22}, {9.3.3.22} |
163 | पव॑मान॒नितो᳚शसेर॒यिंसो᳚मश्र॒वाय्य᳚म् | प्रि॒यःस॑मु॒द्रमावि॑श || {7.1.34.3}, {9.63.23}, {9.3.3.23} |
164 | अ॒प॒घ्नन्प॑वसे॒मृधः॑क्रतु॒वित्सो᳚ममत्स॒रः | नु॒दस्वादे᳚वयुं॒जन᳚म् || {7.1.34.4}, {9.63.24}, {9.3.3.24} |
165 | पव॑मानाऽअसृक्षत॒सोमाः᳚शु॒क्रास॒ऽइन्द॑वः | अ॒भिविश्वा᳚नि॒काव्या᳚ || {7.1.34.5}, {9.63.25}, {9.3.3.25} |
166 | पव॑मानासऽआ॒शवः॑शु॒भ्राऽअ॑सृग्र॒मिन्द॑वः | घ्नन्तो॒विश्वा॒ऽअप॒द्विषः॑ || {7.1.35.1}, {9.63.26}, {9.3.3.26} |
167 | पव॑मानादि॒वस्पर्य॒न्तरि॑क्षादसृक्षत | पृ॒थि॒व्याऽअधि॒सान॑वि || {7.1.35.2}, {9.63.27}, {9.3.3.27} |
168 | पु॒ना॒नःसो᳚म॒धार॒येन्दो॒विश्वा॒ऽअप॒स्रिधः॑ | ज॒हिरक्षां᳚सिसुक्रतो || {7.1.35.3}, {9.63.28}, {9.3.3.28} |
169 | अ॒प॒घ्नन्त्सो᳚मर॒क्षसो॒ऽभ्य॑र्ष॒कनि॑क्रदत् | द्यु॒मन्तं॒शुष्म॑मुत्त॒मम् || {7.1.35.4}, {9.63.29}, {9.3.3.29} |
170 | अ॒स्मेवसू᳚निधारय॒सोम॑दि॒व्यानि॒पार्थि॑वा | इन्दो॒विश्वा᳚नि॒वार्या᳚ || {7.1.35.5}, {9.63.30}, {9.3.3.30} |
[21] (१-३०) त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य मारीचः कश्यप ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
171 | वृषा᳚सोमद्यु॒माँऽअ॑सि॒वृषा᳚देव॒वृष᳚व्रतः | वृषा॒धर्मा᳚णिदधिषे || {7.1.36.1}, {9.64.1}, {9.3.4.1} |
172 | वृष्ण॑स्ते॒वृष्ण्यं॒शवो॒वृषा॒वनं॒वृषा॒मदः॑ | स॒त्यंवृ॑ष॒न्वृषेद॑सि || {7.1.36.2}, {9.64.2}, {9.3.4.2} |
173 | अश्वो॒नच॑क्रदो॒वृषा॒संगाऽइ᳚न्दो॒समर्व॑तः | विनो᳚रा॒येदुरो᳚वृधि || {7.1.36.3}, {9.64.3}, {9.3.4.3} |
174 | असृ॑क्षत॒प्रवा॒जिनो᳚ग॒व्यासोमा᳚सोऽअश्व॒या | शु॒क्रासो᳚वीर॒याशवः॑ || {7.1.36.4}, {9.64.4}, {9.3.4.4} |
175 | शु॒म्भमा᳚नाऋता॒युभि᳚र्मृ॒ज्यमा᳚ना॒गभ॑स्त्योः | पव᳚न्ते॒वारे᳚ऽअ॒व्यये᳚ || {7.1.36.5}, {9.64.5}, {9.3.4.5} |
176 | तेविश्वा᳚दा॒शुषे॒वसु॒सोमा᳚दि॒व्यानि॒पार्थि॑वा | पव᳚न्ता॒मान्तरि॑क्ष्या || {7.1.37.1}, {9.64.6}, {9.3.4.6} |
177 | पव॑मानस्यविश्ववि॒त्प्रते॒सर्गा᳚ऽअसृक्षत | सूर्य॑स्येव॒नर॒श्मयः॑ || {7.1.37.2}, {9.64.7}, {9.3.4.7} |
178 | के॒तुंकृ॒ण्वन्दि॒वस्परि॒विश्वा᳚रू॒पाभ्य॑र्षसि | स॒मु॒द्रःसो᳚मपिन्वसे || {7.1.37.3}, {9.64.8}, {9.3.4.8} |
179 | हि॒न्वा॒नोवाच॑मिष्यसि॒पव॑मान॒विध᳚र्मणि | अक्रा᳚न्दे॒वोनसूर्यः॑ || {7.1.37.4}, {9.64.9}, {9.3.4.9} |
180 | इन्दुः॑पविष्ट॒चेत॑नःप्रि॒यःक॑वी॒नांम॒ती | सृ॒जदश्वं᳚र॒थीरि॑व || {7.1.37.5}, {9.64.10}, {9.3.4.10} |
181 | ऊ॒र्मिर्यस्ते᳚प॒वित्र॒ऽआदे᳚वा॒वीःप॒र्यक्ष॑रत् | सीद᳚न्नृ॒तस्य॒योनि॒मा || {7.1.38.1}, {9.64.11}, {9.3.4.11} |
182 | सनो᳚ऽअर्षप॒वित्र॒ऽआमदो॒योदे᳚व॒वीत॑मः | इन्द॒विन्द्रा᳚यपी॒तये᳚ || {7.1.38.2}, {9.64.12}, {9.3.4.12} |
183 | इ॒षेप॑वस्व॒धार॑यामृ॒ज्यमा᳚नोमनी॒षिभिः॑ | इन्दो᳚रु॒चाभिगाऽइ॑हि || {7.1.38.3}, {9.64.13}, {9.3.4.13} |
184 | पु॒ना॒नोवरि॑वस्कृ॒ध्यूर्जं॒जना᳚यगिर्वणः | हरे᳚सृजा॒नऽआ॒शिर᳚म् || {7.1.38.4}, {9.64.14}, {9.3.4.14} |
185 | पु॒ना॒नोदे॒ववी᳚तय॒ऽइन्द्र॑स्ययाहिनिष्कृ॒तम् | द्यु॒ता॒नोवा॒जिभि᳚र्य॒तः || {7.1.38.5}, {9.64.15}, {9.3.4.15} |
186 | प्रहि᳚न्वा॒नास॒ऽइन्द॒वोऽच्छा᳚समु॒द्रमा॒शवः॑ | धि॒याजू॒ताऽअ॑सृक्षत || {7.1.39.1}, {9.64.16}, {9.3.4.16} |
187 | म॒र्मृ॒जा॒नास॑ऽआ॒यवो॒वृथा᳚समु॒द्रमिन्द॑वः | अग्म᳚न्नृ॒तस्य॒योनि॒मा || {7.1.39.2}, {9.64.17}, {9.3.4.17} |
188 | परि॑णोयाह्यस्म॒युर्विश्वा॒वसू॒न्योज॑सा | पा॒हिनः॒शर्म॑वी॒रव॑त् || {7.1.39.3}, {9.64.18}, {9.3.4.18} |
189 | मिमा᳚ति॒वह्नि॒रेत॑शःप॒दंयु॑जा॒नऋक्व॑भिः | प्रयत्स॑मु॒द्रऽआहि॑तः || {7.1.39.4}, {9.64.19}, {9.3.4.19} |
190 | आयद्योनिं᳚हिर॒ण्यय॑मा॒शुर्ऋ॒तस्य॒सीद॑ति | जहा॒त्यप्र॑चेतसः || {7.1.39.5}, {9.64.20}, {9.3.4.20} |
191 | अ॒भिवे॒नाऽअ॑नूष॒तेय॑क्षन्ति॒प्रचे᳚तसः | मज्ज॒न्त्यवि॑चेतसः || {7.1.40.1}, {9.64.21}, {9.3.4.21} |
192 | इन्द्रा᳚येन्दोम॒रुत्व॑ते॒पव॑स्व॒मधु॑मत्तमः | ऋ॒तस्य॒योनि॑मा॒सद᳚म् || {7.1.40.2}, {9.64.22}, {9.3.4.22} |
193 | तंत्वा॒विप्रा᳚वचो॒विदः॒परि॑ष्कृण्वन्तिवे॒धसः॑ | संत्वा᳚मृजन्त्या॒यवः॑ || {7.1.40.3}, {9.64.23}, {9.3.4.23} |
194 | रसं᳚तेमि॒त्रोऽअ᳚र्य॒मापिब᳚न्ति॒वरु॑णःकवे | पव॑मानस्यम॒रुतः॑ || {7.1.40.4}, {9.64.24}, {9.3.4.24} |
195 | त्वंसो᳚मविप॒श्चितं᳚पुना॒नोवाच॑मिष्यसि | इन्दो᳚स॒हस्र॑भर्णसम् || {7.1.40.5}, {9.64.25}, {9.3.4.25} |
196 | उ॒तोस॒हस्र॑भर्णसं॒वाचं᳚सोममख॒स्युव᳚म् | पु॒ना॒नऽइ᳚न्द॒वाभ॑र || {7.1.41.1}, {9.64.26}, {9.3.4.26} |
197 | पु॒ना॒नऽइ᳚न्दवेषां॒पुरु॑हूत॒जना᳚नाम् | प्रि॒यःस॑मु॒द्रमावि॑श || {7.1.41.2}, {9.64.27}, {9.3.4.27} |
198 | दवि॑द्युतत्यारु॒चाप॑रि॒ष्टोभ᳚न्त्याकृ॒पा | सोमाः᳚शु॒क्रागवा᳚शिरः || {7.1.41.3}, {9.64.28}, {9.3.4.28} |
199 | हि॒न्वा॒नोहे॒तृभि᳚र्य॒तऽआवाजं᳚वा॒ज्य॑क्रमीत् | सीद᳚न्तोव॒नुषो᳚यथा || {7.1.41.4}, {9.64.29}, {9.3.4.29} |
200 | ऋ॒धक्सो᳚मस्व॒स्तये᳚संजग्मा॒नोदि॒वःक॒विः | पव॑स्व॒सूर्यो᳚दृ॒शे || {7.1.41.5}, {9.64.30}, {9.3.4.30} |
[22] (१-३०) त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य वारुणिभृर्ग भु गिर्वो जमदग्निर्वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
201 | हि॒न्वन्ति॒सूर॒मुस्र॑यः॒स्वसा᳚रोजा॒मय॒स्पति᳚म् | म॒हामिन्दुं᳚मही॒युवः॑ || {7.2.1.1}, {9.65.1}, {9.3.5.1} |
202 | पव॑मानरु॒चारु॑चादे॒वोदे॒वेभ्य॒स्परि॑ | विश्वा॒वसू॒न्यावि॑श || {7.2.1.2}, {9.65.2}, {9.3.5.2} |
203 | आप॑वमानसुष्टु॒तिंवृ॒ष्टिंदे॒वेभ्यो॒दुवः॑ | इ॒षेप॑वस्वसं॒यत᳚म् || {7.2.1.3}, {9.65.3}, {9.3.5.3} |
204 | वृषा॒ह्यसि॑भा॒नुना᳚द्यु॒मन्तं᳚त्वाहवामहे | पव॑मानस्वा॒ध्यः॑ || {7.2.1.4}, {9.65.4}, {9.3.5.4} |
205 | आप॑वस्वसु॒वीर्यं॒मन्द॑मानःस्वायुध | इ॒होष्वि᳚न्द॒वाग॑हि || {7.2.1.5}, {9.65.5}, {9.3.5.5} |
206 | यद॒द्भिःप॑रिषि॒च्यसे᳚मृ॒ज्यमा᳚नो॒गभ॑स्त्योः | द्रुणा᳚स॒धस्थ॑मश्नुषे || {7.2.2.1}, {9.65.6}, {9.3.5.6} |
207 | प्रसोमा᳚यव्यश्व॒वत्पव॑मानायगायत | म॒हेस॒हस्र॑चक्षसे || {7.2.2.2}, {9.65.7}, {9.3.5.7} |
208 | यस्य॒वर्णं᳚मधु॒श्चुतं॒हरिं᳚हि॒न्वन्त्यद्रि॑भिः | इन्दु॒मिन्द्रा᳚यपी॒तये᳚ || {7.2.2.3}, {9.65.8}, {9.3.5.8} |
209 | तस्य॑तेवा॒जिनो᳚व॒यंविश्वा॒धना᳚निजि॒ग्युषः॑ | स॒खि॒त्वमावृ॑णीमहे || {7.2.2.4}, {9.65.9}, {9.3.5.9} |
210 | वृषा᳚पवस्व॒धार॑याम॒रुत्व॑तेचमत्स॒रः | विश्वा॒दधा᳚न॒ऽओज॑सा || {7.2.2.5}, {9.65.10}, {9.3.5.10} |
211 | तंत्वा᳚ध॒र्तार॑मो॒ण्यो॒३॑(ओ॒)ःपव॑मानस्व॒र्दृश᳚म् | हि॒न्वेवाजे᳚षुवा॒जिन᳚म् || {7.2.3.1}, {9.65.11}, {9.3.5.11} |
212 | अ॒याचि॒त्तोवि॒पानया॒हरिः॑पवस्व॒धार॑या | युजं॒वाजे᳚षुचोदय || {7.2.3.2}, {9.65.12}, {9.3.5.12} |
213 | आन॑ऽइन्दोम॒हीमिषं॒पव॑स्ववि॒श्वद॑र्शतः | अ॒स्मभ्यं᳚सोमगातु॒वित् || {7.2.3.3}, {9.65.13}, {9.3.5.13} |
214 | आक॒लशा᳚ऽअनूष॒तेन्दो॒धारा᳚भि॒रोज॑सा | एन्द्र॑स्यपी॒तये᳚विश || {7.2.3.4}, {9.65.14}, {9.3.5.14} |
215 | यस्य॑ते॒मद्यं॒रसं᳚ती॒व्रंदु॒हन्त्यद्रि॑भिः | सप॑वस्वाभिमाति॒हा || {7.2.3.5}, {9.65.15}, {9.3.5.15} |
216 | राजा᳚मे॒धाभि॑रीयते॒पव॑मानोम॒नावधि॑ | अ॒न्तरि॑क्षेण॒यात॑वे || {7.2.4.1}, {9.65.16}, {9.3.5.16} |
217 | आन॑ऽइन्दोशत॒ग्विनं॒गवां॒पोषं॒स्वश्व्य᳚म् | वहा॒भग॑त्तिमू॒तये᳚ || {7.2.4.2}, {9.65.17}, {9.3.5.17} |
218 | आनः॑सोम॒सहो॒जुवो᳚रू॒पंनवर्च॑सेभर | सु॒ष्वा॒णोदे॒ववी᳚तये || {7.2.4.3}, {9.65.18}, {9.3.5.18} |
219 | अर्षा᳚सोमद्यु॒मत्त॑मो॒ऽभिद्रोणा᳚नि॒रोरु॑वत् | सीद᳚ञ्छ्ये॒नोनयोनि॒मा || {7.2.4.4}, {9.65.19}, {9.3.5.19} |
220 | अ॒प्साऽइन्द्रा᳚यवा॒यवे॒वरु॑णायम॒रुद्भ्यः॑ | सोमो᳚ऽअर्षति॒विष्ण॑वे || {7.2.4.5}, {9.65.20}, {9.3.5.20} |
221 | इषं᳚तो॒काय॑नो॒दध॑द॒स्मभ्यं᳚सोमवि॒श्वतः॑ | आप॑वस्वसह॒स्रिण᳚म् || {7.2.5.1}, {9.65.21}, {9.3.5.21} |
222 | येसोमा᳚सःपरा॒वति॒येऽअ᳚र्वा॒वति॑सुन्वि॒रे | येवा॒दःश᳚र्य॒णाव॑ति || {7.2.5.2}, {9.65.22}, {9.3.5.22} |
223 | यऽआ᳚र्जी॒केषु॒कृत्व॑सु॒येमध्ये᳚प॒स्त्या᳚नाम् | येवा॒जने᳚षुप॒ञ्चसु॑ || {7.2.5.3}, {9.65.23}, {9.3.5.23} |
224 | तेनो᳚वृ॒ष्टिंदि॒वस्परि॒पव᳚न्ता॒मासु॒वीर्य᳚म् | सु॒वा॒नादे॒वास॒ऽइन्द॑वः || {7.2.5.4}, {9.65.24}, {9.3.5.24} |
225 | पव॑तेहर्य॒तोहरि॑र्गृणा॒नोज॒मद॑ग्निना | हि॒न्वा॒नोगोरधि॑त्व॒चि || {7.2.5.5}, {9.65.25}, {9.3.5.25} |
226 | प्रशु॒क्रासो᳚वयो॒जुवो᳚हिन्वा॒नासो॒नसप्त॑यः | श्री॒णा॒नाऽअ॒प्सुमृ᳚ञ्जत || {7.2.6.1}, {9.65.26}, {9.3.5.26} |
227 | तंत्वा᳚सु॒तेष्वा॒भुवो᳚हिन्वि॒रेदे॒वता᳚तये | सप॑वस्वा॒नया᳚रु॒चा || {7.2.6.2}, {9.65.27}, {9.3.5.27} |
228 | आते॒दक्षं᳚मयो॒भुवं॒वह्नि॑म॒द्यावृ॑णीमहे | पान्त॒मापु॑रु॒स्पृह᳚म् || {7.2.6.3}, {9.65.28}, {9.3.5.28} |
229 | आम॒न्द्रमावरे᳚ण्य॒माविप्र॒माम॑नी॒षिण᳚म् | पान्त॒मापु॑रु॒स्पृह᳚म् || {7.2.6.4}, {9.65.29}, {9.3.5.29} |
230 | आर॒यिमासु॑चे॒तुन॒मासु॑क्रतोत॒नूष्वा | पान्त॒मापु॑रु॒स्पृह᳚म् || {7.2.6.5}, {9.65.30}, {9.3.5.30} |
[23] (१-३०) त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य शतं वैखानसा ऋषयः (१-१८, २२-३०) प्रथमाद्यष्टादशों द्वाविंश्यादिनवानाञ्च पवमानः सोमः, (१९-२१) एकोनविंश्यादितृचस्य च पवमानोऽग्निदेवते | (१-१७, १९-३०) प्रथमादिसप्तदशर्चामक नविंश्यादिद्वादशानाञ्च गायत्री, (१८) अष्टादश्याश्चानुष्टप् छन्दसी || | |
231 | पव॑स्वविश्वचर्षणे॒ऽभिविश्वा᳚नि॒काव्या᳚ | सखा॒सखि॑भ्य॒ऽईड्यः॑ || {7.2.7.1}, {9.66.1}, {9.3.6.1} |
232 | ताभ्यां॒विश्व॑स्यराजसि॒येप॑वमान॒धाम॑नी | प्र॒ती॒चीसो᳚मत॒स्थतुः॑ || {7.2.7.2}, {9.66.2}, {9.3.6.2} |
233 | परि॒धामा᳚नि॒यानि॑ते॒त्वंसो᳚मासिवि॒श्वतः॑ | पव॑मानऋ॒तुभिः॑कवे || {7.2.7.3}, {9.66.3}, {9.3.6.3} |
234 | पव॑स्वज॒नय॒न्निषो॒ऽभिविश्वा᳚नि॒वार्या᳚ | सखा॒सखि॑भ्यऽऊ॒तये᳚ || {7.2.7.4}, {9.66.4}, {9.3.6.4} |
235 | तव॑शु॒क्रासो᳚ऽअ॒र्चयो᳚दि॒वस्पृ॒ष्ठेवित᳚न्वते | प॒वित्रं᳚सोम॒धाम॑भिः || {7.2.7.5}, {9.66.5}, {9.3.6.5} |
236 | तवे॒मेस॒प्तसिन्ध॑वःप्र॒शिषं᳚सोमसिस्रते | तुभ्यं᳚धावन्तिधे॒नवः॑ || {7.2.8.1}, {9.66.6}, {9.3.6.6} |
237 | प्रसो᳚मयाहि॒धार॑यासु॒तऽइन्द्रा᳚यमत्स॒रः | दधा᳚नो॒ऽअक्षि॑ति॒श्रवः॑ || {7.2.8.2}, {9.66.7}, {9.3.6.7} |
238 | समु॑त्वाधी॒भिर॑स्वरन्हिन्व॒तीःस॒प्तजा॒मयः॑ | विप्र॑मा॒जावि॒वस्व॑तः || {7.2.8.3}, {9.66.8}, {9.3.6.8} |
239 | मृ॒जन्ति॑त्वा॒सम॒ग्रुवोऽव्ये᳚जी॒रावधि॒ष्वणि॑ | रे॒भोयद॒ज्यसे॒वने᳚ || {7.2.8.4}, {9.66.9}, {9.3.6.9} |
240 | पव॑मानस्यतेकवे॒वाजि॒न्त्सर्गा᳚ऽअसृक्षत | अर्व᳚न्तो॒नश्र॑व॒स्यवः॑ || {7.2.8.5}, {9.66.10}, {9.3.6.10} |
241 | अच्छा॒कोशं᳚मधु॒श्चुत॒मसृ॑ग्रं॒वारे᳚ऽअ॒व्यये᳚ | अवा᳚वशन्तधी॒तयः॑ || {7.2.9.1}, {9.66.11}, {9.3.6.11} |
242 | अच्छा᳚समु॒द्रमिन्द॒वोऽस्तं॒गावो॒नधे॒नवः॑ | अग्म᳚न्नृ॒तस्य॒योनि॒मा || {7.2.9.2}, {9.66.12}, {9.3.6.12} |
243 | प्रण॑ऽइन्दोम॒हेरण॒ऽआपो᳚ऽअर्षन्ति॒सिन्ध॑वः | यद्गोभि᳚र्वासयि॒ष्यसे᳚ || {7.2.9.3}, {9.66.13}, {9.3.6.13} |
244 | अस्य॑तेस॒ख्येव॒यमिय॑क्षन्त॒स्त्वोत॑यः | इन्दो᳚सखि॒त्वमु॑श्मसि || {7.2.9.4}, {9.66.14}, {9.3.6.14} |
245 | आप॑वस्व॒गवि॑ष्टयेम॒हेसो᳚मनृ॒चक्ष॑से | एन्द्र॑स्यज॒ठरे᳚विश || {7.2.9.5}, {9.66.15}, {9.3.6.15} |
246 | म॒हाँऽअ॑सिसोम॒ज्येष्ठ॑ऽउ॒ग्राणा᳚मिन्द॒ऽओजि॑ष्ठः | युध्वा॒सञ्छश्व॑ज्जिगेथ || {7.2.10.1}, {9.66.16}, {9.3.6.16} |
247 | यऽउ॒ग्रेभ्य॑श्चि॒दोजी᳚या॒ञ्छूरे᳚भ्यश्चि॒च्छूर॑तरः | भू॒रि॒दाभ्य॑श्चि॒न्मंही᳚यान् || {7.2.10.2}, {9.66.17}, {9.3.6.17} |
248 | त्वंसो᳚म॒सूर॒ऽएष॑स्तो॒कस्य॑सा॒तात॒नूना᳚म् | वृ॒णी॒महे᳚स॒ख्याय॑वृणी॒महे॒युज्या᳚य || {7.2.10.3}, {9.66.18}, {9.3.6.18} |
249 | अग्न॒ऽआयूं᳚षिपवस॒ऽआसु॒वोर्ज॒मिषं᳚चनः | आ॒रेबा᳚धस्वदु॒च्छुना᳚म् || {7.2.10.4}, {9.66.19}, {9.3.6.19} |
250 | अ॒ग्निर्ऋषिः॒पव॑मानः॒पाञ्च॑जन्यःपु॒रोहि॑तः | तमी᳚महेमहाग॒यम् || {7.2.10.5}, {9.66.20}, {9.3.6.20} |
251 | अग्ने॒पव॑स्व॒स्वपा᳚ऽअ॒स्मेवर्चः॑सु॒वीर्य᳚म् | दध॑द्र॒यिंमयि॒पोष᳚म् || {7.2.11.1}, {9.66.21}, {9.3.6.21} |
252 | पव॑मानो॒ऽअति॒स्रिधो॒ऽभ्य॑र्षतिसुष्टु॒तिम् | सूरो॒नवि॒श्वद॑र्शतः || {7.2.11.2}, {9.66.22}, {9.3.6.22} |
253 | सम᳚र्मृजा॒नऽआ॒युभिः॒प्रय॑स्वा॒न्प्रय॑सेहि॒तः | इन्दु॒रत्यो᳚विचक्ष॒णः || {7.2.11.3}, {9.66.23}, {9.3.6.23} |
254 | पव॑मानऋ॒तंबृ॒हच्छु॒क्रंज्योति॑रजीजनत् | कृ॒ष्णातमां᳚सि॒जङ्घ॑नत् || {7.2.11.4}, {9.66.24}, {9.3.6.24} |
255 | पव॑मानस्य॒जङ्घ्न॑तो॒हरे᳚श्च॒न्द्राऽअ॑सृक्षत | जी॒राऽअ॑जि॒रशो᳚चिषः || {7.2.11.5}, {9.66.25}, {9.3.6.25} |
256 | पव॑मानोर॒थीत॑मःशु॒भ्रेभिः॑शु॒भ्रश॑स्तमः | हरि॑श्चन्द्रोम॒रुद्ग॑णः || {7.2.12.1}, {9.66.26}, {9.3.6.26} |
257 | पव॑मानो॒व्य॑श्नवद्र॒श्मिभि᳚र्वाज॒सात॑मः | दध॑त्स्तो॒त्रेसु॒वीर्य᳚म् || {7.2.12.2}, {9.66.27}, {9.3.6.27} |
258 | प्रसु॑वा॒नऽइन्दु॑रक्षाःप॒वित्र॒मत्य॒व्यय᳚म् | पु॒ना॒नऽइन्दु॒रिन्द्र॒मा || {7.2.12.3}, {9.66.28}, {9.3.6.28} |
259 | ए॒षसोमो॒ऽअधि॑त्व॒चिगवां᳚क्रीळ॒त्यद्रि॑भिः | इन्द्रं॒मदा᳚य॒जोहु॑वत् || {7.2.12.4}, {9.66.29}, {9.3.6.29} |
260 | यस्य॑तेद्यु॒म्नव॒त्पयः॒पव॑मा॒नाभृ॑तंदि॒वः | तेन॑नोमृळजी॒वसे᳚ || {7.2.12.5}, {9.66.30}, {9.3.6.30} |
[24] (१-३२) द्वात्रिंशदृचस्य सूक्तस्य सप्तर्षयः-(१-३) प्रथमादितृचस्य बार्हस्पत्यो भरद्वाजः, (४-६) चतुर्थ्यादितृचस्य मारीचः कश्यपः, (७-९) सप्तम्यादितृचस्य रहूगणो गोतमः, (१०-१२) दशम्यादितृचस्य भौमोऽत्रिः, (१३-१५) त्रयोदश्यादितृचस्य गाथिनो विश्वामित्रः, (१६-१८) षोडश्यादितृचस्य भार्गवो जमदग्निः, (१९-२१) एकोनविंश्यादितृचस्य मैत्रावरुणिर्वसिष्ठः, (२२-३२) द्वाविंश्याद्येकादश ञ्चाङ्गिरसः पवित्रो वसिष्ठो वोभौ वा ऋषयः (१-९, १३-२२, २८-३०) प्रथमादिनवर्चाम् त्रयोदश्यादिदशानामष्टाविंश्यादितृचस्य च पवमानः सोमः, (१०-१२) दशम्यादितृचस्य पवमानः पूषा सोमो वा, (२३-२४) त्रयोविंशीचतुर्विंश्योः पवमानोऽग्निः, (२५) पञ्चविंश्याः पवमानोऽग्निः सविता वा, (२६) षड्विशं याः पवमानोऽग्निः पवमानाग्निसवितारो वा, (२७) सप्तविंश्याः पवमानोऽग्निर्विश्वे देवा वा, (३१-३२) एकत्रिंशीद्वात्रिंश्योश्च पावमान्यध्येतस्तुतिदेवताः | (१-१५, १९-२६, २८-२९) प्रथमादिपञ्चदशर्चामके नविंश्याद्यष्टानामष्टाविंश्येकोनत्रिंश्योश्च गायत्री, (१६-१८) षोडश्यादितृचस्य द्विपदा गायत्री, (२७, ३१-३२) सप्तविंश्येकत्रिंशीद्वात्रिंशीनामनुष्टुप्, (३०) त्रिंश्याश्च पर उष्णिक् छन्दांसि || | |
261 | त्वंसो᳚मासिधार॒युर्म॒न्द्रऽओजि॑ष्ठोऽअध्व॒रे | पव॑स्वमंह॒यद्र॑यिः || {7.2.13.1}, {9.67.1}, {9.3.7.1} |
262 | त्वंसु॒तोनृ॒माद॑नोदध॒न्वान्म॑त्स॒रिन्त॑मः | इन्द्रा᳚यसू॒रिरन्ध॑सा || {7.2.13.2}, {9.67.2}, {9.3.7.2} |
263 | त्वंसु॑ष्वा॒णोऽअद्रि॑भिर॒भ्य॑र्ष॒कनि॑क्रदत् | द्यु॒मन्तं॒शुष्म॑मुत्त॒मम् || {7.2.13.3}, {9.67.3}, {9.3.7.3} |
264 | इन्दु॑र्हिन्वा॒नोऽअ॑र्षतिति॒रोवारा᳚ण्य॒व्यया᳚ | हरि॒र्वाज॑मचिक्रदत् || {7.2.13.4}, {9.67.4}, {9.3.7.4} |
265 | इन्दो॒व्यव्य॑मर्षसि॒विश्रवां᳚सि॒विसौभ॑गा | विवाजा᳚न्त्सोम॒गोम॑तः || {7.2.13.5}, {9.67.5}, {9.3.7.5} |
266 | आन॑ऽइन्दोशत॒ग्विनं᳚र॒यिंगोम᳚न्तम॒श्विन᳚म् | भरा᳚सोमसह॒स्रिण᳚म् || {7.2.14.1}, {9.67.6}, {9.3.7.6} |
267 | पव॑मानास॒ऽइन्द॑वस्ति॒रःप॒वित्र॑मा॒शवः॑ | इन्द्रं॒यामे᳚भिराशत || {7.2.14.2}, {9.67.7}, {9.3.7.7} |
268 | क॒कु॒हःसो॒म्योरस॒ऽइन्दु॒रिन्द्रा᳚यपू॒र्व्यः | आ॒युःप॑वतऽआ॒यवे᳚ || {7.2.14.3}, {9.67.8}, {9.3.7.8} |
269 | हि॒न्वन्ति॒सूर॒मुस्र॑यः॒पव॑मानंमधु॒श्चुत᳚म् | अ॒भिगि॒रासम॑स्वरन् || {7.2.14.4}, {9.67.9}, {9.3.7.9} |
270 | अ॒वि॒तानो᳚ऽअ॒जाश्वः॑पू॒षायाम॑नियामनि | आभ॑क्षत्क॒न्या᳚सुनः || {7.2.14.5}, {9.67.10}, {9.3.7.10} |
271 | अ॒यंसोमः॑कप॒र्दिने᳚घृ॒तंनप॑वते॒मधु॑ | आभ॑क्षत्क॒न्या᳚सुनः || {7.2.15.1}, {9.67.11}, {9.3.7.11} |
272 | अ॒यंत॑ऽआघृणेसु॒तोघृ॒तंनप॑वते॒शुचि॑ | आभ॑क्षत्क॒न्या᳚सुनः || {7.2.15.2}, {9.67.12}, {9.3.7.12} |
273 | वा॒चोज॒न्तुःक॑वी॒नांपव॑स्वसोम॒धार॑या | दे॒वेषु॑रत्न॒धाऽअ॑सि || {7.2.15.3}, {9.67.13}, {9.3.7.13} |
274 | आक॒लशे᳚षुधावतिश्ये॒नोवर्म॒विगा᳚हते | अ॒भिद्रोणा॒कनि॑क्रदत् || {7.2.15.4}, {9.67.14}, {9.3.7.14} |
275 | परि॒प्रसो᳚मते॒रसोऽस॑र्जिक॒लशे᳚सु॒तः | श्ये॒नोनत॒क्तोऽअ॑र्षति || {7.2.15.5}, {9.67.15}, {9.3.7.15} |
276 | पव॑स्वसोमम॒न्दय॒न्निन्द्रा᳚य॒मधु॑मत्तमः || {7.2.16.1}, {9.67.16}, {9.3.7.16} |
277 | असृ॑ग्रन्दे॒ववी᳚तयेवाज॒यन्तो॒रथा᳚ऽइव || {7.2.16.2}, {9.67.17}, {9.3.7.17} |
278 | तेसु॒तासो᳚म॒दिन्त॑माःशु॒क्रावा॒युम॑सृक्षत || {7.2.16.3}, {9.67.18}, {9.3.7.18} |
279 | ग्राव्णा᳚तु॒न्नोऽअ॒भिष्टु॑तःप॒वित्रं᳚सोमगच्छसि | दध॑त्स्तो॒त्रेसु॒वीर्य᳚म् || {7.2.16.4}, {9.67.19}, {9.3.7.19} |
280 | ए॒षतु॒न्नोऽअ॒भिष्टु॑तःप॒वित्र॒मति॑गाहते | र॒क्षो॒हावार॑म॒व्यय᳚म् || {7.2.16.5}, {9.67.20}, {9.3.7.20} |
281 | यदन्ति॒यच्च॑दूर॒केभ॒यंवि॒न्दति॒मामि॒ह | पव॑मान॒वितज्ज॑हि || {7.2.17.1}, {9.67.21}, {9.3.7.21} |
282 | पव॑मानः॒सोऽअ॒द्यनः॑प॒वित्रे᳚ण॒विच॑र्षणिः | यःपो॒तासपु॑नातुनः || {7.2.17.2}, {9.67.22}, {9.3.7.22} |
283 | यत्ते᳚प॒वित्र॑म॒र्चिष्यग्ने॒वित॑तम॒न्तरा | ब्रह्म॒तेन॑पुनीहिनः || {7.2.17.3}, {9.67.23}, {9.3.7.23} |
284 | यत्ते᳚प॒वित्र॑मर्चि॒वदग्ने॒तेन॑पुनीहिनः | ब्र॒ह्म॒स॒वैःपु॑नीहिनः || {7.2.17.4}, {9.67.24}, {9.3.7.24} |
285 | उ॒भाभ्यां᳚देवसवितःप॒वित्रे᳚णस॒वेन॑च | मांपु॑नीहिवि॒श्वतः॑ || {7.2.17.5}, {9.67.25}, {9.3.7.25} |
286 | त्रि॒भिष्ट्वंदे᳚वसवित॒र्वर्षि॑ष्ठैःसोम॒धाम॑भिः | अग्ने॒दक्षैः᳚पुनीहिनः || {7.2.18.1}, {9.67.26}, {9.3.7.26} |
287 | पु॒नन्तु॒मांदे᳚वज॒नाःपु॒नन्तु॒वस॑वोधि॒या | विश्वे᳚देवाःपुनी॒तमा॒जात॑वेदःपुनी॒हिमा᳚ || {7.2.18.2}, {9.67.27}, {9.3.7.27} |
288 | प्रप्या᳚यस्व॒प्रस्य᳚न्दस्व॒सोम॒विश्वे᳚भिरं॒शुभिः॑ | दे॒वेभ्य॑ऽउत्त॒मंह॒विः || {7.2.18.3}, {9.67.28}, {9.3.7.28} |
289 | उप॑प्रि॒यंपनि॑प्नतं॒युवा᳚नमाहुती॒वृध᳚म् | अग᳚न्म॒बिभ्र॑तो॒नमः॑ || {7.2.18.4}, {9.67.29}, {9.3.7.29} |
290 | अ॒लाय्य॑स्यपर॒शुर्न॑नाश॒तमाप॑वस्वदेवसोम | आ॒खुंचि॑दे॒वदे᳚वसोम || {7.2.18.5}, {9.67.30}, {9.3.7.30} |
291 | यःपा᳚वमा॒नीर॒ध्येत्यृषि॑भिः॒सम्भृ॑तं॒रस᳚म् | सर्वं॒सपू॒तम॑श्नातिस्वदि॒तंमा᳚त॒रिश्व॑ना || {7.2.18.6}, {9.67.31}, {9.3.7.31} |
292 | पा॒व॒मा॒नीर्योऽअ॒ध्येत्यृषि॑भिः॒सम्भृ॑तं॒रस᳚म् | तस्मै॒सर॑स्वतीदुहेक्षी॒रंस॒र्पिर्मधू᳚द॒कम् || {7.2.18.7}, {9.67.32}, {9.3.7.32} |
[25] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य भालन्दनो वत्सप्रि ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | (१-९) प्रथमादिनवर्ऋचाम् जगती, (१०) दशम्याश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
293 | प्रदे॒वमच्छा॒मधु॑मन्त॒ऽइन्द॒वोऽसि॑ष्यदन्त॒गाव॒ऽआनधे॒नवः॑ | ब॒र्हि॒षदो᳚वच॒नाव᳚न्त॒ऽऊध॑भिःपरि॒स्रुत॑मु॒स्रिया᳚नि॒र्णिजं᳚धिरे || {7.2.19.1}, {9.68.1}, {9.4.1.1} |
294 | सरोरु॑वद॒भिपूर्वा᳚ऽअचिक्रददुपा॒रुहः॑श्र॒थय᳚न्त्स्वादते॒हरिः॑ | ति॒रःप॒वित्रं᳚परि॒यन्नु॒रुज्रयो॒निशर्या᳚णिदधतेदे॒वऽआवर᳚म् || {7.2.19.2}, {9.68.2}, {9.4.1.2} |
295 | वियोम॒मेय॒म्या᳚संय॒तीमदः॑साकं॒वृधा॒पय॑सापिन्व॒दक्षि॑ता | म॒हीऽअ॑पा॒रेरज॑सीवि॒वेवि॑ददभि॒व्रज॒न्नक्षि॑तं॒पाज॒ऽआद॑दे || {7.2.19.3}, {9.68.3}, {9.4.1.3} |
296 | समा॒तरा᳚वि॒चर᳚न्वा॒जय᳚न्न॒पःप्रमेधि॑रःस्व॒धया᳚पिन्वतेप॒दम् | अं॒शुर्यवे᳚नपिपिशेय॒तोनृभिः॒संजा॒मिभि॒र्नस॑ते॒रक्ष॑ते॒शिरः॑ || {7.2.19.4}, {9.68.4}, {9.4.1.4} |
297 | संदक्षे᳚ण॒मन॑साजायतेक॒विर्ऋ॒तस्य॒गर्भो॒निहि॑तोय॒माप॒रः | यूना᳚ह॒सन्ता᳚प्रथ॒मंविज॑ज्ञतु॒र्गुहा᳚हि॒तंजनि॑म॒नेम॒मुद्य॑तम् || {7.2.19.5}, {9.68.5}, {9.4.1.5} |
298 | म॒न्द्रस्य॑रू॒पंवि॑विदुर्मनी॒षिणः॑श्ये॒नोयदन्धो॒ऽअभ॑रत्परा॒वतः॑ | तंम॑र्जयन्तसु॒वृधं᳚न॒दीष्वाँऽउ॒शन्त॑मं॒शुंप॑रि॒यन्त॑मृ॒ग्मिय᳚म् || {7.2.20.1}, {9.68.6}, {9.4.1.6} |
299 | त्वांमृ॑जन्ति॒दश॒योष॑णःसु॒तंसोम॒ऋषि॑भिर्म॒तिभि॑र्धी॒तिभि॑र्हि॒तम् | अव्यो॒वारे᳚भिरु॒तदे॒वहू᳚तिभि॒र्नृभि᳚र्य॒तोवाज॒माद॑र्षिसा॒तये᳚ || {7.2.20.2}, {9.68.7}, {9.4.1.7} |
300 | प॒रि॒प्र॒यन्तं᳚व॒य्यं᳚सुषं॒सदं॒सोमं᳚मनी॒षाऽअ॒भ्य॑नूषत॒स्तुभः॑ | योधार॑या॒मधु॑माँऽऊ॒र्मिणा᳚दि॒वऽइय॑र्ति॒वाचं᳚रयि॒षाळम॑र्त्यः || {7.2.20.3}, {9.68.8}, {9.4.1.8} |
301 | अ॒यंदि॒वऽइ॑यर्ति॒विश्व॒मारजः॒सोमः॑पुना॒नःक॒लशे᳚षुसीदति | अ॒द्भिर्गोभि᳚र्मृज्यते॒ऽअद्रि॑भिःसु॒तःपु॑ना॒नऽइन्दु॒र्वरि॑वोविदत्प्रि॒यम् || {7.2.20.4}, {9.68.9}, {9.4.1.9} |
302 | ए॒वानः॑सोमपरिषि॒च्यमा᳚नो॒वयो॒दध॑च्चि॒त्रत॑मंपवस्व | अ॒द्वे॒षेद्यावा᳚पृथि॒वीहु॑वेम॒देवा᳚ध॒त्तर॒यिम॒स्मेसु॒वीर᳚म् || {7.2.20.5}, {9.68.10}, {9.4.1.10} |
[26] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो हिरण्यस्तूप ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | (१-८) प्रथमाद्यश्टर्चाम् जगती, (९-१०) नवमीदशम्योश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
303 | इषु॒र्नधन्व॒न्प्रति॑धीयतेम॒तिर्व॒त्सोनमा॒तुरुप॑स॒र्ज्यूध॑नि | उ॒रुधा᳚रेवदुहे॒ऽअग्र॑ऽआय॒त्यस्य᳚व्र॒तेष्वपि॒सोम॑ऽइष्यते || {7.2.21.1}, {9.69.1}, {9.4.2.1} |
304 | उपो᳚म॒तिःपृ॒च्यते᳚सि॒च्यते॒मधु॑म॒न्द्राज॑नीचोदतेऽअ॒न्तरा॒सनि॑ | पव॑मानःसंत॒निःप्र॑घ्न॒तामि॑व॒मधु॑मान्द्र॒प्सःपरि॒वार॑मर्षति || {7.2.21.2}, {9.69.2}, {9.4.2.2} |
305 | अव्ये᳚वधू॒युःप॑वते॒परि॑त्व॒चिश्र॑थ्नी॒तेन॒प्तीरदि॑तेर्ऋ॒तंय॒ते | हरि॑रक्रान्यज॒तःसं᳚य॒तोमदो᳚नृ॒म्णाशिशा᳚नोमहि॒षोनशो᳚भते || {7.2.21.3}, {9.69.3}, {9.4.2.3} |
306 | उ॒क्षामि॑माति॒प्रति॑यन्तिधे॒नवो᳚दे॒वस्य॑दे॒वीरुप॑यन्तिनिष्कृ॒तम् | अत्य॑क्रमी॒दर्जु॑नं॒वार॑म॒व्यय॒मत्कं॒ननि॒क्तंपरि॒सोमो᳚ऽअव्यत || {7.2.21.4}, {9.69.4}, {9.4.2.4} |
307 | अमृ॑क्तेन॒रुश॑ता॒वास॑सा॒हरि॒रम॑र्त्योनिर्णिजा॒नःपरि᳚व्यत | दि॒वस्पृ॒ष्ठंब॒र्हणा᳚नि॒र्णिजे᳚कृतोप॒स्तर॑णंच॒म्वो᳚र्नभ॒स्मय᳚म् || {7.2.21.5}, {9.69.5}, {9.4.2.5} |
308 | सूर्य॑स्येवर॒श्मयो᳚द्रावयि॒त्नवो᳚मत्स॒रासः॑प्र॒सुपः॑सा॒कमी᳚रते | तन्तुं᳚त॒तंपरि॒सर्गा᳚सऽआ॒शवो॒नेन्द्रा᳚दृ॒तेप॑वते॒धाम॒किंच॒न || {7.2.22.1}, {9.69.6}, {9.4.2.6} |
309 | सिन्धो᳚रिवप्रव॒णेनि॒म्नऽआ॒शवो॒वृष॑च्युता॒मदा᳚सोगा॒तुमा᳚शत | शंनो᳚निवे॒शेद्वि॒पदे॒चतु॑ष्पदे॒ऽस्मेवाजाः᳚सोमतिष्ठन्तुकृ॒ष्टयः॑ || {7.2.22.2}, {9.69.7}, {9.4.2.7} |
310 | आनः॑पवस्व॒वसु॑म॒द्धिर᳚ण्यव॒दश्वा᳚व॒द्गोम॒द्यव॑मत्सु॒वीर्य᳚म् | यू॒यंहिसो᳚मपि॒तरो॒मम॒स्थन॑दि॒वोमू॒र्धानः॒प्रस्थि॑तावय॒स्कृतः॑ || {7.2.22.3}, {9.69.8}, {9.4.2.8} |
311 | ए॒तेसोमाः॒पव॑मानास॒ऽइन्द्रं॒रथा᳚ऽइव॒प्रय॑युःसा॒तिमच्छ॑ | सु॒ताःप॒वित्र॒मति॑य॒न्त्यव्यं᳚हि॒त्वीव॒व्रिंह॒रितो᳚वृ॒ष्टिमच्छ॑ || {7.2.22.4}, {9.69.9}, {9.4.2.9} |
312 | इन्द॒विन्द्रा᳚यबृह॒तेप॑वस्वसुमृळी॒कोऽअ॑नव॒द्योरि॒शादाः᳚ | भरा᳚च॒न्द्राणि॑गृण॒तेवसू᳚निदे॒वैर्द्या᳚वापृथिवी॒प्राव॑तंनः || {7.2.22.5}, {9.69.10}, {9.4.2.10} |
[27] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य वैश्वामित्रो रेण षिः, पवमानः सोमो देवता | (१-९) प्रथमादिनवर्चाम् जगती, (१०) दशम्याश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
313 | त्रिर॑स्मैस॒प्तधे॒नवो᳚दुदुह्रेस॒त्यामा॒शिरं᳚पू॒र्व्येव्यो᳚मनि | च॒त्वार्य॒न्याभुव॑नानिनि॒र्णिजे॒चारू᳚णिचक्रे॒यदृ॒तैरव॑र्धत || {7.2.23.1}, {9.70.1}, {9.4.3.1} |
314 | सभिक्ष॑माणोऽअ॒मृत॑स्य॒चारु॑णऽउ॒भेद्यावा॒काव्ये᳚ना॒विश॑श्रथे | तेजि॑ष्ठाऽअ॒पोमं॒हना॒परि᳚व्यत॒यदी᳚दे॒वस्य॒श्रव॑सा॒सदो᳚वि॒दुः || {7.2.23.2}, {9.70.2}, {9.4.3.2} |
315 | तेऽअ॑स्यसन्तुके॒तवोऽमृ॑त्य॒वोऽदा᳚भ्यासोज॒नुषी᳚ऽउ॒भेऽअनु॑ | येभि᳚र्नृ॒म्णाच॑दे॒व्या᳚चपुन॒तऽआदिद्राजा᳚नंम॒नना᳚ऽअगृभ्णत || {7.2.23.3}, {9.70.3}, {9.4.3.3} |
316 | समृ॒ज्यमा᳚नोद॒शभिः॑सु॒कर्म॑भिः॒प्रम॑ध्य॒मासु॑मा॒तृषु॑प्र॒मेसचा᳚ | व्र॒तानि॑पा॒नोऽअ॒मृत॑स्य॒चारु॑णऽउ॒भेनृ॒चक्षा॒ऽअनु॑पश्यते॒विशौ᳚ || {7.2.23.4}, {9.70.4}, {9.4.3.4} |
317 | सम᳚र्मृजा॒नऽइ᳚न्द्रि॒याय॒धाय॑स॒ऽओभेऽअ॒न्तारोद॑सीहर्षतेहि॒तः | वृषा॒शुष्मे᳚णबाधते॒विदु᳚र्म॒तीरा॒देदि॑शानःशर्य॒हेव॑शु॒रुधः॑ || {7.2.23.5}, {9.70.5}, {9.4.3.5} |
318 | समा॒तरा॒नददृ॑शानऽउ॒स्रियो॒नान॑ददेतिम॒रुता᳚मिवस्व॒नः | जा॒नन्नृ॒तंप्र॑थ॒मंयत्स्व᳚र्णरं॒प्रश॑स्तये॒कम॑वृणीतसु॒क्रतुः॑ || {7.2.24.1}, {9.70.6}, {9.4.3.6} |
319 | रु॒वति॑भी॒मोवृ॑ष॒भस्त॑वि॒ष्यया॒शृङ्गे॒शिशा᳚नो॒हरि॑णीविचक्ष॒णः | आयोनिं॒सोमः॒सुकृ॑तं॒निषी᳚दतिग॒व्ययी॒त्वग्भ॑वतिनि॒र्णिग॒व्ययी᳚ || {7.2.24.2}, {9.70.7}, {9.4.3.7} |
320 | शुचिः॑पुना॒नस्त॒न्व॑मरे॒पस॒मव्ये॒हरि॒र्न्य॑धाविष्ट॒सान॑वि | जुष्टो᳚मि॒त्राय॒वरु॑णायवा॒यवे᳚त्रि॒धातु॒मधु॑क्रियतेसु॒कर्म॑भिः || {7.2.24.3}, {9.70.8}, {9.4.3.8} |
321 | पव॑स्वसोमदे॒ववी᳚तये॒वृषेन्द्र॑स्य॒हार्दि॑सोम॒धान॒मावि॑श | पु॒रानो᳚बा॒धाद्दु॑रि॒ताति॑पारयक्षेत्र॒विद्धिदिश॒ऽआहा᳚विपृच्छ॒ते || {7.2.24.4}, {9.70.9}, {9.4.3.9} |
322 | हि॒तोनसप्ति॑र॒भिवाज॑म॒र्षेन्द्र॑स्येन्दोज॒ठर॒माप॑वस्व | ना॒वानसिन्धु॒मति॑पर्षिवि॒द्वाञ्छूरो॒नयुध्य॒न्नव॑नोनि॒दःस्पः॑ || {7.2.24.5}, {9.70.10}, {9.4.3.10} |
[28] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य वैश्वामित्र ऋभव ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | (१-८) प्रथमाद्यश्टर्चाम् जगती, (९) नवम्याश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
323 | आदक्षि॑णासृज्यतेशु॒ष्म्या॒३॑(आ॒)सदं॒वेति॑द्रु॒होर॒क्षसः॑पाति॒जागृ॑विः | हरि॑रोप॒शंकृ॑णुते॒नभ॒स्पय॑ऽउप॒स्तिरे᳚च॒म्वो॒३॑(ओ॒)र्ब्रह्म॑नि॒र्णिजे᳚ || {7.2.25.1}, {9.71.1}, {9.4.4.1} |
324 | प्रकृ॑ष्टि॒हेव॑शू॒षऽए᳚ति॒रोरु॑वदसु॒र्य१॑(अ॒)अंवर्णं॒निरि॑णीतेऽअस्य॒तम् | जहा᳚तिव॒व्रिंपि॒तुरे᳚तिनिष्कृ॒तमु॑प॒प्रुतं᳚कृणुतेनि॒र्णिजं॒तना᳚ || {7.2.25.2}, {9.71.2}, {9.4.4.2} |
325 | अद्रि॑भिःसु॒तःप॑वते॒गभ॑स्त्योर्वृषा॒यते॒नभ॑सा॒वेप॑तेम॒ती | समो᳚दते॒नस॑ते॒साध॑तेगि॒राने᳚नि॒क्तेऽअ॒प्सुयज॑ते॒परी᳚मणि || {7.2.25.3}, {9.71.3}, {9.4.4.3} |
326 | परि॑द्यु॒क्षंसह॑सःपर्वता॒वृधं॒मध्वः॑सिञ्चन्तिह॒र्म्यस्य॑स॒क्षणि᳚म् | आयस्मि॒न्गावः॑सुहु॒ताद॒ऽऊध॑निमू॒र्धञ्छ्री॒णन्त्य॑ग्रि॒यंवरी᳚मभिः || {7.2.25.4}, {9.71.4}, {9.4.4.4} |
327 | समी॒रथं॒नभु॒रिजो᳚रहेषत॒दश॒स्वसा᳚रो॒ऽअदि॑तेरु॒पस्थ॒ऽआ | जिगा॒दुप॑ज्रयति॒गोर॑पी॒च्यं᳚प॒दंयद॑स्यम॒तुथा॒ऽअजी᳚जनन् || {7.2.25.5}, {9.71.5}, {9.4.4.5} |
328 | श्ये॒नोनयोनिं॒सद॑नंधि॒याकृ॒तंहि॑र॒ण्यय॑मा॒सदं᳚दे॒वऽएष॑ति | एरि॑णन्तिब॒र्हिषि॑प्रि॒यंगि॒राश्वो॒नदे॒वाँऽअप्ये᳚तिय॒ज्ञियः॑ || {7.2.26.1}, {9.71.6}, {9.4.4.6} |
329 | परा॒व्य॑क्तोऽअरु॒षोदि॒वःक॒विर्वृषा᳚त्रिपृ॒ष्ठोऽअ॑नविष्ट॒गाऽअ॒भि | स॒हस्र॑णीति॒र्यतिः॑परा॒यती᳚रे॒भोनपू॒र्वीरु॒षसो॒विरा᳚जति || {7.2.26.2}, {9.71.7}, {9.4.4.7} |
330 | त्वे॒षंरू॒पंकृ॑णुते॒वर्णो᳚ऽअस्य॒सयत्राश॑य॒त्समृ॑ता॒सेध॑तिस्रि॒धः | अ॒प्साया᳚तिस्व॒धया॒दैव्यं॒जनं॒संसु॑ष्टु॒तीनस॑ते॒संगोअ॑ग्रया || {7.2.26.3}, {9.71.8}, {9.4.4.8} |
331 | उ॒क्षेव॑यू॒थाप॑रि॒यन्न॑रावी॒दधि॒त्विषी᳚रधित॒सूर्य॑स्य | दि॒व्यःसु॑प॒र्णोऽव॑चक्षत॒क्षांसोमः॒परि॒क्रतु॑नापश्यते॒जाः || {7.2.26.4}, {9.71.9}, {9.4.4.9} |
[29] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो हरिमन्त ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
332 | हरिं᳚मृजन्त्यरु॒षोनयु॑ज्यते॒संधे॒नुभिः॑क॒लशे॒सोमो᳚ऽअज्यते | उद्वाच॑मी॒रय॑तिहि॒न्वते᳚म॒तीपु॑रुष्टु॒तस्य॒कति॑चित्परि॒प्रियः॑ || {7.2.27.1}, {9.72.1}, {9.4.5.1} |
333 | सा॒कंव॑दन्तिब॒हवो᳚मनी॒षिण॒ऽइन्द्र॑स्य॒सोमं᳚ज॒ठरे॒यदा᳚दु॒हुः | यदी᳚मृ॒जन्ति॒सुग॑भस्तयो॒नरः॒सनी᳚ळाभिर्द॒शभिः॒काम्यं॒मधु॑ || {7.2.27.2}, {9.72.2}, {9.4.5.2} |
334 | अर॑ममाणो॒ऽअत्ये᳚ति॒गाऽअ॒भिसूर्य॑स्यप्रि॒यंदु॑हि॒तुस्ति॒रोरव᳚म् | अन्व॑स्मै॒जोष॑मभरद्विनंगृ॒सःसंद्व॒यीभिः॒स्वसृ॑भिःक्षेतिजा॒मिभिः॑ || {7.2.27.3}, {9.72.3}, {9.4.5.3} |
335 | नृधू᳚तो॒ऽअद्रि॑षुतोब॒र्हिषि॑प्रि॒यःपति॒र्गवां᳚प्र॒दिव॒ऽइन्दु॑र्ऋ॒त्वियः॑ | पुरं᳚धिवा॒न्मनु॑षोयज्ञ॒साध॑नः॒शुचि॑र्धि॒याप॑वते॒सोम॑ऽइन्द्रते || {7.2.27.4}, {9.72.4}, {9.4.5.4} |
336 | नृबा॒हुभ्यां᳚चोदि॒तोधार॑यासु॒तो᳚ऽनुष्व॒धंप॑वते॒सोम॑ऽइन्द्रते | आप्राः॒क्रतू॒न्त्सम॑जैरध्व॒रेम॒तीर्वेर्नद्रु॒षच्च॒म्वो॒३॑(ओ॒)रास॑द॒द्धरिः॑ || {7.2.27.5}, {9.72.5}, {9.4.5.5} |
337 | अं॒शुंदु॑हन्तिस्त॒नय᳚न्त॒मक्षि॑तंक॒विंक॒वयो॒ऽपसो᳚मनी॒षिणः॑ | समी॒गावो᳚म॒तयो᳚यन्तिसं॒यत॑ऋ॒तस्य॒योना॒सद॑नेपुन॒र्भुवः॑ || {7.2.28.1}, {9.72.6}, {9.4.5.6} |
338 | नाभा᳚पृथि॒व्याध॒रुणो᳚म॒होदि॒वो॒३॑(ओ॒)ऽपामू॒र्मौसिन्धु॑ष्व॒न्तरु॑क्षि॒तः | इन्द्र॑स्य॒वज्रो᳚वृष॒भोवि॒भूव॑सुः॒सोमो᳚हृ॒देप॑वते॒चारु॑मत्स॒रः || {7.2.28.2}, {9.72.7}, {9.4.5.7} |
339 | सतूप॑वस्व॒परि॒पार्थि॑वं॒रजः॑स्तो॒त्रेशिक्ष᳚न्नाधून्व॒तेच॑सुक्रतो | मानो॒निर्भा॒ग्वसु॑नःसादन॒स्पृशो᳚र॒यिंपि॒शङ्गं᳚बहु॒लंव॑सीमहि || {7.2.28.3}, {9.72.8}, {9.4.5.8} |
340 | आतून॑ऽइन्दोश॒तदा॒त्वश्व्यं᳚स॒हस्र॑दातुपशु॒मद्धिर᳚ण्यवत् | उप॑मास्वबृह॒तीरे॒वती॒रिषोऽधि॑स्तो॒त्रस्य॑पवमाननोगहि || {7.2.28.4}, {9.72.9}, {9.4.5.9} |
[30] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः पवित्र ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
341 | स्रक्वे᳚द्र॒प्सस्य॒धम॑तः॒सम॑स्वरन्नृ॒तस्य॒योना॒सम॑रन्त॒नाभ॑यः | त्रीन्त्समू॒र्ध्नोऽअसु॑रश्चक्रऽआ॒रभे᳚स॒त्यस्य॒नावः॑सु॒कृत॑मपीपरन् || {7.2.29.1}, {9.73.1}, {9.4.6.1} |
342 | स॒म्यक्स॒म्यञ्चो᳚महि॒षाऽअ॑हेषत॒सिन्धो᳚रू॒र्मावधि॑वे॒नाऽअ॑वीविपन् | मधो॒र्धारा᳚भिर्ज॒नय᳚न्तोऽअ॒र्कमित्प्रि॒यामिन्द्र॑स्यत॒न्व॑मवीवृधन् || {7.2.29.2}, {9.73.2}, {9.4.6.2} |
343 | प॒वित्र॑वन्तः॒परि॒वाच॑मासतेपि॒तैषां᳚प्र॒त्नोऽअ॒भिर॑क्षतिव्र॒तम् | म॒हःस॑मु॒द्रंवरु॑णस्ति॒रोद॑धे॒धीरा॒ऽइच्छे᳚कुर्ध॒रुणे᳚ष्वा॒रभ᳚म् || {7.2.29.3}, {9.73.3}, {9.4.6.3} |
344 | स॒हस्र॑धा॒रेऽव॒तेसम॑स्वरन्दि॒वोनाके॒मधु॑जिह्वाऽअस॒श्चतः॑ | अस्य॒स्पशो॒ननिमि॑षन्ति॒भूर्ण॑यःप॒देप॑देपा॒शिनः॑सन्ति॒सेत॑वः || {7.2.29.4}, {9.73.4}, {9.4.6.4} |
345 | पि॒तुर्मा॒तुरध्यायेस॒मस्व॑रन्नृ॒चाशोच᳚न्तःसं॒दह᳚न्तोऽअव्र॒तान् | इन्द्र॑द्विष्टा॒मप॑धमन्तिमा॒यया॒त्वच॒मसि॑क्नीं॒भूम॑नोदि॒वस्परि॑ || {7.2.29.5}, {9.73.5}, {9.4.6.5} |
346 | प्र॒त्नान्माना॒दध्यायेस॒मस्व॑र॒ञ्छ्लोक॑यन्त्रासोरभ॒सस्य॒मन्त॑वः | अपा᳚न॒क्षासो᳚बधि॒राऽअ॑हासतऋ॒तस्य॒पन्थां॒नत॑रन्तिदु॒ष्कृतः॑ || {7.2.30.1}, {9.73.6}, {9.4.6.6} |
347 | स॒हस्र॑धारे॒वित॑तेप॒वित्र॒ऽआवाचं᳚पुनन्तिक॒वयो᳚मनी॒षिणः॑ | रु॒द्रास॑ऽएषामिषि॒रासो᳚ऽअ॒द्रुहः॒स्पशः॒स्वञ्चः॑सु॒दृशो᳚नृ॒चक्ष॑सः || {7.2.30.2}, {9.73.7}, {9.4.6.7} |
348 | ऋ॒तस्य॑गो॒पानदभा᳚यसु॒क्रतु॒स्त्रीषप॒वित्रा᳚हृ॒द्य१॑(अ॒)'न्तराद॑धे | वि॒द्वान्त्सविश्वा॒भुव॑ना॒भिप॑श्य॒त्यवाजु॑ष्टान्विध्यतिक॒र्तेऽअ᳚व्र॒तान् || {7.2.30.3}, {9.73.8}, {9.4.6.8} |
349 | ऋ॒तस्य॒तन्तु॒र्वित॑तःप॒वित्र॒ऽआजि॒ह्वाया॒ऽअग्रे॒वरु॑णस्यमा॒यया᳚ | धीरा᳚श्चि॒त्तत्स॒मिन॑क्षन्तऽआश॒तात्रा᳚क॒र्तमव॑पदा॒त्यप्र॑भुः || {7.2.30.4}, {9.73.9}, {9.4.6.9} |
[31] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य दैर्घतमसः कक्षीवान् ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | (१-७, ९) प्रथमादिसप्तर्चाम् नवम्याश्च जगती, (८) अष्टम्याश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
350 | शिशु॒र्नजा॒तोऽव॑चक्रद॒द्वने॒स्व१॑(अ॒)'र्यद्वा॒ज्य॑रु॒षःसिषा᳚सति | दि॒वोरेत॑सासचतेपयो॒वृधा॒तमी᳚महेसुम॒तीशर्म॑स॒प्रथः॑ || {7.2.31.1}, {9.74.1}, {9.4.7.1} |
351 | दि॒वोयःस्क॒म्भोध॒रुणः॒स्वा᳚तत॒ऽआपू᳚र्णोऽअं॒शुःप॒र्येति॑वि॒श्वतः॑ | सेमेम॒हीरोद॑सीयक्षदा॒वृता᳚समीची॒नेदा᳚धार॒समिषः॑क॒विः || {7.2.31.2}, {9.74.2}, {9.4.7.2} |
352 | महि॒प्सरः॒सुकृ॑तंसो॒म्यंमधू॒र्वीगव्यू᳚ति॒रदि॑तेर्ऋ॒तंय॒ते | ईशे॒योवृ॒ष्टेरि॒तऽउ॒स्रियो॒वृषा॒पांने॒तायऽइ॒तऊ᳚तिर्ऋ॒ग्मियः॑ || {7.2.31.3}, {9.74.3}, {9.4.7.3} |
353 | आ॒त्म॒न्वन्नभो᳚दुह्यतेघृ॒तंपय॑ऋ॒तस्य॒नाभि॑र॒मृतं॒विजा᳚यते | स॒मी॒ची॒नाःसु॒दान॑वःप्रीणन्ति॒तंनरो᳚हि॒तमव॑मेहन्ति॒पेर॑वः || {7.2.31.4}, {9.74.4}, {9.4.7.4} |
354 | अरा᳚वीदं॒शुःसच॑मानऽऊ॒र्मिणा᳚देवा॒व्य१॑(अ॒)अंमनु॑षेपिन्वति॒त्वच᳚म् | दधा᳚ति॒गर्भ॒मदि॑तेरु॒पस्थ॒ऽआयेन॑तो॒कंच॒तन॑यंच॒धाम॑हे || {7.2.31.5}, {9.74.5}, {9.4.7.5} |
355 | स॒हस्र॑धा॒रेऽव॒ताऽअ॑स॒श्चत॑स्तृ॒तीये᳚सन्तु॒रज॑सिप्र॒जाव॑तीः | चत॑स्रो॒नाभो॒निहि॑ताऽअ॒वोदि॒वोह॒विर्भ॑रन्त्य॒मृतं᳚घृत॒श्चुतः॑ || {7.2.32.1}, {9.74.6}, {9.4.7.6} |
356 | श्वे॒तंरू॒पंकृ॑णुते॒यत्सिषा᳚सति॒सोमो᳚मी॒ढ्वाँऽअसु॑रोवेद॒भूम॑नः | धि॒याशमी᳚सचते॒सेम॒भिप्र॒वद्दि॒वस्कव᳚न्ध॒मव॑दर्षदु॒द्रिण᳚म् || {7.2.32.2}, {9.74.7}, {9.4.7.7} |
357 | अध॑श्वे॒तंक॒लशं॒गोभि॑र॒क्तंकार्ष्म॒न्नावा॒ज्य॑क्रमीत्सस॒वान् | आहि᳚न्विरे॒मन॑सादेव॒यन्तः॑क॒क्षीव॑तेश॒तहि॑माय॒गोना᳚म् || {7.2.32.3}, {9.74.8}, {9.4.7.8} |
358 | अ॒द्भिःसो᳚मपपृचा॒नस्य॑ते॒रसोऽव्यो॒वारं॒विप॑वमानधावति | समृ॒ज्यमा᳚नःक॒विभि᳚र्मदिन्तम॒स्वद॒स्वेन्द्रा᳚यपवमानपी॒तये᳚ || {7.2.32.4}, {9.74.9}, {9.4.7.9} |
[32] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कवि (ऋषिः), पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
359 | अ॒भिप्रि॒याणि॑पवते॒चनो᳚हितो॒नामा᳚निय॒ह्वोऽअधि॒येषु॒वर्ध॑ते | आसूर्य॑स्यबृह॒तोबृ॒हन्नधि॒रथं॒विष्व᳚ञ्चमरुहद्विचक्ष॒णः || {7.2.33.1}, {9.75.1}, {9.4.8.1} |
360 | ऋ॒तस्य॑जि॒ह्वाप॑वते॒मधु॑प्रि॒यंव॒क्तापति॑र्धि॒योऽअ॒स्याऽअदा᳚भ्यः | दधा᳚तिपु॒त्रःपि॒त्रोर॑पी॒च्य१॑(अ॒)अंनाम॑तृ॒तीय॒मधि॑रोच॒नेदि॒वः || {7.2.33.2}, {9.75.2}, {9.4.8.2} |
361 | अव॑द्युता॒नःक॒लशाँ᳚ऽअचिक्रद॒न्नृभि᳚र्येमा॒नःकोश॒ऽआहि॑र॒ण्यये᳚ | अ॒भीमृ॒तस्य॑दो॒हना᳚ऽअनूष॒ताधि॑त्रिपृ॒ष्ठऽउ॒षसो॒विरा᳚जति || {7.2.33.3}, {9.75.3}, {9.4.8.3} |
362 | अद्रि॑भिःसु॒तोम॒तिभि॒श्चनो᳚हितःप्ररो॒चय॒न्रोद॑सीमा॒तरा॒शुचिः॑ | रोमा॒ण्यव्या᳚स॒मया॒विधा᳚वति॒मधो॒र्धारा॒पिन्व॑मानादि॒वेदि॑वे || {7.2.33.4}, {9.75.4}, {9.4.8.4} |
363 | परि॑सोम॒प्रध᳚न्वास्व॒स्तये॒नृभिः॑पुना॒नोऽअ॒भिवा᳚सया॒शिर᳚म् | येते॒मदा᳚ऽआह॒नसो॒विहा᳚यस॒स्तेभि॒रिन्द्रं᳚चोदय॒दात॑वेम॒घम् || {7.2.33.5}, {9.75.5}, {9.4.8.5} |
[33] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कवि ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
364 | ध॒र्तादि॒वःप॑वते॒कृत्व्यो॒रसो॒दक्षो᳚दे॒वाना᳚मनु॒माद्यो॒नृभिः॑ | हरिः॑सृजा॒नोऽअत्यो॒नसत्व॑भि॒र्वृथा॒पाजां᳚सिकृणुतेन॒दीष्वा || {7.3.1.1}, {9.76.1}, {9.4.9.1} |
365 | शूरो॒नध॑त्त॒ऽआयु॑धा॒गभ॑स्त्योः॒स्व१॑(अ॒)ःसिषा᳚सन्रथि॒रोगवि॑ष्टिषु | इन्द्र॑स्य॒शुष्म॑मी॒रय᳚न्नप॒स्युभि॒रिन्दु॑र्हिन्वा॒नोऽअ॑ज्यतेमनी॒षिभिः॑ || {7.3.1.2}, {9.76.2}, {9.4.9.2} |
366 | इन्द्र॑स्यसोम॒पव॑मानऽऊ॒र्मिणा᳚तवि॒ष्यमा᳚णोज॒ठरे॒ष्वावि॑श | प्रणः॑पिन्ववि॒द्युद॒भ्रेव॒रोद॑सीधि॒यानवाजाँ॒ऽउप॑मासि॒शश्व॑तः || {7.3.1.3}, {9.76.3}, {9.4.9.3} |
367 | विश्व॑स्य॒राजा᳚पवतेस्व॒र्दृश॑ऋ॒तस्य॑धी॒तिमृ॑षि॒षाळ॑वीवशत् | यःसूर्य॒स्यासि॑रेणमृ॒ज्यते᳚पि॒ताम॑ती॒नामस॑मष्टकाव्यः || {7.3.1.4}, {9.76.4}, {9.4.9.4} |
368 | वृषे᳚वयू॒थापरि॒कोश॑मर्षस्य॒पामु॒पस्थे᳚वृष॒भःकनि॑क्रदत् | सऽइन्द्रा᳚यपवसेमत्स॒रिन्त॑मो॒यथा॒जेषा᳚मसमि॒थेत्वोत॑यः || {7.3.1.5}, {9.76.5}, {9.4.9.5} |
[34] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कवि (ऋषिः), पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
369 | ए॒षप्रकोशे॒मधु॑माँऽअचिक्रद॒दिन्द्र॑स्य॒वज्रो॒वपु॑षो॒वपु॑ष्टरः | अ॒भीमृ॒तस्य॑सु॒दुघा᳚घृत॒श्चुतो᳚वा॒श्राऽअ॑र्षन्ति॒पय॑सेवधे॒नवः॑ || {7.3.2.1}, {9.77.1}, {9.4.10.1} |
370 | सपू॒र्व्यःप॑वते॒यंदि॒वस्परि॑श्ये॒नोम॑था॒यदि॑षि॒तस्ति॒रोरजः॑ | समध्व॒ऽआयु॑वते॒वेवि॑जान॒ऽइत्कृ॒शानो॒रस्तु॒र्मन॒साह॑बि॒भ्युषा᳚ || {7.3.2.2}, {9.77.2}, {9.4.10.2} |
371 | तेनः॒पूर्वा᳚स॒ऽउप॑रास॒ऽइन्द॑वोम॒हेवाजा᳚यधन्वन्तु॒गोम॑ते | ई॒क्षे॒ण्या᳚सोऽअ॒ह्यो॒३॑(ओ॒)नचार॑वो॒ब्रह्म॑ब्रह्म॒येजु॑जु॒षुर्ह॒विर्ह॑विः || {7.3.2.3}, {9.77.3}, {9.4.10.3} |
372 | अ॒यंनो᳚वि॒द्वान्व॑नवद्वनुष्य॒तऽइन्दुः॑स॒त्राचा॒मन॑सापुरुष्टु॒तः | इ॒नस्य॒यःसद॑ने॒गर्भ॑माद॒धेगवा᳚मुरु॒ब्जम॒भ्यर्ष॑तिव्र॒जम् || {7.3.2.4}, {9.77.4}, {9.4.10.4} |
373 | चक्रि॑र्दि॒वःप॑वते॒कृत्व्यो॒रसो᳚म॒हाँऽअद॑ब्धो॒वरु॑णोहु॒रुग्य॒ते | असा᳚विमि॒त्रोवृ॒जने᳚षुय॒ज्ञियोऽत्यो॒नयू॒थेवृ॑ष॒युःकनि॑क्रदत् || {7.3.2.5}, {9.77.5}, {9.4.10.5} |
[35] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कवि (ऋषिः), पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
374 | प्रराजा॒वाचं᳚ज॒नय᳚न्नसिष्यदद॒पोवसा᳚नोऽअ॒भिगाऽइ॑यक्षति | गृ॒भ्णाति॑रि॒प्रमवि॑रस्य॒तान्वा᳚शु॒द्धोदे॒वाना॒मुप॑यातिनिष्कृ॒तम् || {7.3.3.1}, {9.78.1}, {9.4.11.1} |
375 | इन्द्रा᳚यसोम॒परि॑षिच्यसे॒नृभि᳚र्नृ॒चक्षा᳚ऽऊ॒र्मिःक॒विर॑ज्यसे॒वने᳚ | पू॒र्वीर्हिते᳚स्रु॒तयः॒सन्ति॒यात॑वेस॒हस्र॒मश्वा॒हर॑यश्चमू॒षदः॑ || {7.3.3.2}, {9.78.2}, {9.4.11.2} |
376 | स॒मु॒द्रिया᳚ऽअप्स॒रसो᳚मनी॒षिण॒मासी᳚नाऽअ॒न्तर॒भिसोम॑मक्षरन् | ताऽईं᳚हिन्वन्तिह॒र्म्यस्य॑स॒क्षणिं॒याच᳚न्तेसु॒म्नंपव॑मान॒मक्षि॑तम् || {7.3.3.3}, {9.78.3}, {9.4.11.3} |
377 | गो॒जिन्नः॒सोमो᳚रथ॒जिद्धि॑रण्य॒जित्स्व॒र्जिद॒ब्जित्प॑वतेसहस्र॒जित् | यंदे॒वास॑श्चक्रि॒रेपी॒तये॒मदं॒स्वादि॑ष्ठंद्र॒प्सम॑रु॒णंम॑यो॒भुव᳚म् || {7.3.3.4}, {9.78.4}, {9.4.11.4} |
378 | ए॒तानि॑सोम॒पव॑मानोऽअस्म॒युःस॒त्यानि॑कृ॒ण्वन्द्रवि॑णान्यर्षसि | ज॒हिशत्रु॑मन्ति॒केदू᳚र॒केच॒यऽउ॒र्वींगव्यू᳚ति॒मभ॑यंचनस्कृधि || {7.3.3.5}, {9.78.5}, {9.4.11.5} |
[36] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कवि (ऋषिः), पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
379 | अ॒चो॒दसो᳚नोधन्व॒न्त्विन्द॑वः॒प्रसु॑वा॒नासो᳚बृ॒हद्दि॑वेषु॒हर॑यः | विच॒नश᳚न्नऽइ॒षोऽअरा᳚तयो॒ऽर्योन॑शन्त॒सनि॑षन्तनो॒धियः॑ || {7.3.4.1}, {9.79.1}, {9.4.12.1} |
380 | प्रणो᳚धन्व॒न्त्विन्द॑वोमद॒च्युतो॒धना᳚वा॒येभि॒रर्व॑तोजुनी॒मसि॑ | ति॒रोमर्त॑स्य॒कस्य॑चि॒त्परि॑ह्वृतिंव॒यंधना᳚निवि॒श्वधा᳚भरेमहि || {7.3.4.2}, {9.79.2}, {9.4.12.2} |
381 | उ॒तस्वस्या॒ऽअरा᳚त्याऽअ॒रिर्हिषऽउ॒तान्यस्या॒ऽअरा᳚त्या॒वृको॒हिषः | धन्व॒न्नतृष्णा॒सम॑रीत॒ताँऽअ॒भिसोम॑ज॒हिप॑वमानदुरा॒ध्यः॑ || {7.3.4.3}, {9.79.3}, {9.4.12.3} |
382 | दि॒विते॒नाभा᳚पर॒मोयऽआ᳚द॒देपृ॑थि॒व्यास्ते᳚रुरुहुः॒सान॑वि॒क्षिपः॑ | अद्र॑यस्त्वाबप्सति॒गोरधि॑त्व॒च्य१॑(अ॒)प्सुत्वा॒हस्तै᳚र्दुदुहुर्मनी॒षिणः॑ || {7.3.4.4}, {9.79.4}, {9.4.12.4} |
383 | ए॒वात॑ऽइन्दोसु॒भ्वं᳚सु॒पेश॑सं॒रसं᳚तुञ्जन्तिप्रथ॒माऽअ॑भि॒श्रियः॑ | निदं᳚निदंपवमान॒निता᳚रिषऽआ॒विस्ते॒शुष्मो᳚भवतुप्रि॒योमदः॑ || {7.3.4.5}, {9.79.5}, {9.4.12.5} |
[37] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भारद्वाजो वसु ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
384 | सोम॑स्य॒धारा᳚पवतेनृ॒चक्ष॑सऋ॒तेन॑दे॒वान्ह॑वतेदि॒वस्परि॑ | बृह॒स्पते᳚र॒वथे᳚ना॒विदि॑द्युतेसमु॒द्रासो॒नसव॑नानिविव्यचुः || {7.3.5.1}, {9.80.1}, {9.4.13.1} |
385 | यंत्वा᳚वाजिन्न॒घ्न्याऽअ॒भ्यनू᳚ष॒तायो᳚हतं॒योनि॒मारो᳚हसिद्यु॒मान् | म॒घोना॒मायुः॑प्रति॒रन्महि॒श्रव॒ऽइन्द्रा᳚यसोमपवसे॒वृषा॒मदः॑ || {7.3.5.2}, {9.80.2}, {9.4.13.2} |
386 | एन्द्र॑स्यकु॒क्षाप॑वतेम॒दिन्त॑म॒ऽऊर्जं॒वसा᳚नः॒श्रव॑सेसुम॒ङ्गलः॑ | प्र॒त्यङ्सविश्वा॒भुव॑ना॒भिप॑प्रथे॒क्रीळ॒न्हरि॒रत्यः॑स्यन्दते॒वृषा᳚ || {7.3.5.3}, {9.80.3}, {9.4.13.3} |
387 | तंत्वा᳚दे॒वेभ्यो॒मधु॑मत्तमं॒नरः॑स॒हस्र॑धारंदुहते॒दश॒क्षिपः॑ | नृभिः॑सोम॒प्रच्यु॑तो॒ग्राव॑भिःसु॒तोविश्वा᳚न्दे॒वाँऽआप॑वस्वासहस्रजित् || {7.3.5.4}, {9.80.4}, {9.4.13.4} |
388 | तंत्वा᳚ह॒स्तिनो॒मधु॑मन्त॒मद्रि॑भिर्दु॒हन्त्य॒प्सुवृ॑ष॒भंदश॒क्षिपः॑ | इन्द्रं᳚सोममा॒दय॒न्दैव्यं॒जनं॒सिन्धो᳚रिवो॒र्मिःपव॑मानोऽअर्षसि || {7.3.5.5}, {9.80.5}, {9.4.13.5} |
[38] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भारद्वाजो वसु ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | (१-४) प्रथमादिचतुर्ऋचामा आं जगती, (५) पञ्चम्याश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
389 | प्रसोम॑स्य॒पव॑मानस्यो॒र्मय॒ऽइन्द्र॑स्ययन्तिज॒ठरं᳚सु॒पेश॑सः | द॒ध्नायदी॒मुन्नी᳚ताय॒शसा॒गवां᳚दा॒नाय॒शूर॑मु॒दम᳚न्दिषुःसु॒ताः || {7.3.6.1}, {9.81.1}, {9.4.14.1} |
390 | अच्छा॒हिसोमः॑क॒लशाँ॒ऽअसि॑ष्यद॒दत्यो॒नवोळ्हा᳚र॒घुव॑र्तनि॒र्वृषा᳚ | अथा᳚दे॒वाना᳚मु॒भय॑स्य॒जन्म॑नोवि॒द्वाँऽअ॑श्नोत्य॒मुत॑ऽइ॒तश्च॒यत् || {7.3.6.2}, {9.81.2}, {9.4.14.2} |
391 | आनः॑सोम॒पव॑मानःकिरा॒वस्विन्दो॒भव॑म॒घवा॒राध॑सोम॒हः | शिक्षा᳚वयोधो॒वस॑वे॒सुचे॒तुना॒मानो॒गय॑मा॒रेऽअ॒स्मत्परा᳚सिचः || {7.3.6.3}, {9.81.3}, {9.4.14.3} |
392 | आनः॑पू॒षापव॑मानःसुरा॒तयो᳚मि॒त्रोग॑च्छन्तु॒वरु॑णःस॒जोष॑सः | बृह॒स्पति᳚र्म॒रुतो᳚वा॒युर॒श्विना॒त्वष्टा᳚सवि॒तासु॒यमा॒सर॑स्वती || {7.3.6.4}, {9.81.4}, {9.4.14.4} |
393 | उ॒भेद्यावा᳚पृथि॒वीवि॑श्वमि॒न्वेऽअ᳚र्य॒मादे॒वोऽअदि॑तिर्विधा॒ता | भगो॒नृशंस॑ऽउ॒र्व१॑(अ॒)'न्तरि॑क्षं॒विश्वे᳚दे॒वाःपव॑मानंजुषन्त || {7.3.6.5}, {9.81.5}, {9.4.14.5} |
[39] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भारद्वाजो वसु (ऋषिः), पवमानः सोमो देवता | (१-४) प्रथमादिचतुर्ऋचाम् जगती, (५) पञ्चम्याश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
394 | असा᳚वि॒सोमो᳚ऽअरु॒षोवृषा॒हरी॒राजे᳚वद॒स्मोऽअ॒भिगाऽअ॑चिक्रदत् | पु॒ना॒नोवारं॒पर्ये᳚त्य॒व्ययं᳚श्ये॒नोनयोनिं᳚घृ॒तव᳚न्तमा॒सद᳚म् || {7.3.7.1}, {9.82.1}, {9.4.15.1} |
395 | क॒विर्वे᳚ध॒स्यापर्ये᳚षि॒माहि॑न॒मत्यो॒नमृ॒ष्टोऽअ॒भिवाज॑मर्षसि | अ॒प॒सेध᳚न्दुरि॒तासो᳚ममृळयघृ॒तंवसा᳚नः॒परि॑यासिनि॒र्णिज᳚म् || {7.3.7.2}, {9.82.2}, {9.4.15.2} |
396 | प॒र्जन्यः॑पि॒ताम॑हि॒षस्य॑प॒र्णिनो॒नाभा᳚पृथि॒व्यागि॒रिषु॒क्षयं᳚दधे | स्वसा᳚र॒ऽआपो᳚ऽअ॒भिगाऽउ॒तास॑र॒न्त्संग्राव॑भिर्नसतेवी॒तेऽअ॑ध्व॒रे || {7.3.7.3}, {9.82.3}, {9.4.15.3} |
397 | जा॒येव॒पत्या॒वधि॒शेव॑मंहसे॒पज्रा᳚यागर्भशृणु॒हिब्रवी᳚मिते | अ॒न्तर्वाणी᳚षु॒प्रच॑रा॒सुजी॒वसे᳚ऽनि॒न्द्योवृ॒जने᳚सोमजागृहि || {7.3.7.4}, {9.82.4}, {9.4.15.4} |
398 | यथा॒पूर्वे᳚भ्यःशत॒साऽअमृ॑ध्रःसहस्र॒साःप॒र्यया॒वाज॑मिन्दो | ए॒वाप॑वस्वसुवि॒ताय॒नव्य॑से॒तव᳚व्र॒तमन्वापः॑सचन्ते || {7.3.7.5}, {9.82.5}, {9.4.15.5} |
[40] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः पवित्र ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
399 | प॒वित्रं᳚ते॒वित॑तंब्रह्मणस्पतेप्र॒भुर्गात्रा᳚णि॒पर्ये᳚षिवि॒श्वतः॑ | अत॑प्ततनू॒र्नतदा॒मोऽअ॑श्नुतेशृ॒तास॒ऽइद्वह᳚न्त॒स्तत्समा᳚शत || {7.3.8.1}, {9.83.1}, {9.4.16.1} |
400 | तपो᳚ष्प॒वित्रं॒वित॑तंदि॒वस्प॒देशोच᳚न्तोऽअस्य॒तन्त॑वो॒व्य॑स्थिरन् | अव᳚न्त्यस्यपवी॒तार॑मा॒शवो᳚दि॒वस्पृ॒ष्ठमधि॑तिष्ठन्ति॒चेत॑सा || {7.3.8.2}, {9.83.2}, {9.4.16.2} |
401 | अरू᳚रुचदु॒षसः॒पृश्नि॑रग्रि॒यऽउ॒क्षाबि॑भर्ति॒भुव॑नानिवाज॒युः | मा॒या॒विनो᳚ममिरेऽअस्यमा॒यया᳚नृ॒चक्ष॑सःपि॒तरो॒गर्भ॒माद॑धुः || {7.3.8.3}, {9.83.3}, {9.4.16.3} |
402 | ग॒न्ध॒र्वऽइ॒त्थाप॒दम॑स्यरक्षति॒पाति॑दे॒वानां॒जनि॑मा॒न्यद्भु॑तः | गृ॒भ्णाति॑रि॒पुंनि॒धया᳚नि॒धाप॑तिःसु॒कृत्त॑मा॒मधु॑नोभ॒क्षमा᳚शत || {7.3.8.4}, {9.83.4}, {9.4.16.4} |
403 | ह॒विर्ह॑विष्मो॒महि॒सद्म॒दैव्यं॒नभो॒वसा᳚नः॒परि॑यास्यध्व॒रम् | राजा᳚प॒वित्र॑रथो॒वाज॒मारु॑हःस॒हस्र॑भृष्टिर्जयसि॒श्रवो᳚बृ॒हत् || {7.3.8.5}, {9.83.5}, {9.4.16.5} |
[41] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य वाच्यः प्रजापतिषिः, पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
404 | पव॑स्वदेव॒माद॑नो॒विच॑र्षणिर॒प्साऽइन्द्रा᳚य॒वरु॑णायवा॒यवे᳚ | कृ॒धीनो᳚ऽअ॒द्यवरि॑वःस्वस्ति॒मदु॑रुक्षि॒तौगृ॑णीहि॒दैव्यं॒जन᳚म् || {7.3.9.1}, {9.84.1}, {9.4.17.1} |
405 | आयस्त॒स्थौभुव॑ना॒न्यम॑र्त्यो॒विश्वा᳚नि॒सोमः॒परि॒तान्य॑र्षति | कृ॒ण्वन्त्सं॒चृतं᳚वि॒चृत॑म॒भिष्ट॑य॒ऽइन्दुः॑सिषक्त्यु॒षसं॒नसूर्यः॑ || {7.3.9.2}, {9.84.2}, {9.4.17.2} |
406 | आयोगोभिः॑सृ॒ज्यत॒ऽओष॑धी॒ष्वादे॒वानां᳚सु॒म्नऽइ॒षय॒न्नुपा᳚वसुः | आवि॒द्युता᳚पवते॒धार॑यासु॒तऽइन्द्रं॒सोमो᳚मा॒दय॒न्दैव्यं॒जन᳚म् || {7.3.9.3}, {9.84.3}, {9.4.17.3} |
407 | ए॒षस्यसोमः॑पवतेसहस्र॒जिद्धि᳚न्वा॒नोवाच॑मिषि॒रामु॑ष॒र्बुध᳚म् | इन्दुः॑समु॒द्रमुदि॑यर्तिवा॒युभि॒रेन्द्र॑स्य॒हार्दि॑क॒लशे᳚षुसीदति || {7.3.9.4}, {9.84.4}, {9.4.17.4} |
408 | अ॒भित्यंगावः॒पय॑सापयो॒वृधं॒सोमं᳚श्रीणन्तिम॒तिभिः॑स्व॒र्विद᳚म् | ध॒नं॒ज॒यःप॑वते॒कृत्व्यो॒रसो॒विप्रः॑क॒विःकाव्ये᳚ना॒स्व॑र्चनाः || {7.3.9.5}, {9.84.5}, {9.4.17.5} |
[42] (१-१२) द्वादशर्चस्य सूक्तस्य भार्गवो वेन ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | (१-१०) प्रथमादिदश! जगती, (११-१२) एकादशीद्वादश्योश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
409 | इन्द्रा᳚यसोम॒सुषु॑तः॒परि॑स्र॒वापामी᳚वाभवतु॒रक्ष॑सास॒ह | माते॒रस॑स्यमत्सतद्वया॒विनो॒द्रवि॑णस्वन्तऽइ॒हस॒न्त्विन्द॑वः || {7.3.10.1}, {9.85.1}, {9.4.18.1} |
410 | अ॒स्मान्त्स॑म॒र्येप॑वमानचोदय॒दक्षो᳚दे॒वाना॒मसि॒हिप्रि॒योमदः॑ | ज॒हिशत्रूँ᳚र॒भ्याभ᳚न्दनाय॒तःपिबे᳚न्द्र॒सोम॒मव॑नो॒मृधो᳚जहि || {7.3.10.2}, {9.85.2}, {9.4.18.2} |
411 | अद॑ब्धऽइन्दोपवसेम॒दिन्त॑मऽआ॒त्मेन्द्र॑स्यभवसिधा॒सिरु॑त्त॒मः | अ॒भिस्व॑रन्तिब॒हवो᳚मनी॒षिणो॒राजा᳚नम॒स्यभुव॑नस्यनिंसते || {7.3.10.3}, {9.85.3}, {9.4.18.3} |
412 | स॒हस्र॑णीथःश॒तधा᳚रो॒ऽअद्भु॑त॒ऽइन्द्रा॒येन्दुः॑पवते॒काम्यं॒मधु॑ | जय॒न्क्षेत्र॑म॒भ्य॑र्षा॒जय᳚न्न॒पऽउ॒रुंनो᳚गा॒तुंकृ॑णुसोममीढ्वः || {7.3.10.4}, {9.85.4}, {9.4.18.4} |
413 | कनि॑क्रदत्क॒लशे॒गोभि॑रज्यसे॒व्य१॑(अ॒)'व्ययं᳚स॒मया॒वार॑मर्षसि | म॒र्मृ॒ज्यमा᳚नो॒ऽअत्यो॒नसा᳚न॒सिरिन्द्र॑स्यसोमज॒ठरे॒सम॑क्षरः || {7.3.10.5}, {9.85.5}, {9.4.18.5} |
414 | स्वा॒दुःप॑वस्वदि॒व्याय॒जन्म॑नेस्वा॒दुरिन्द्रा᳚यसु॒हवी᳚तुनाम्ने | स्वा॒दुर्मि॒त्राय॒वरु॑णायवा॒यवे॒बृह॒स्पत॑ये॒मधु॑माँ॒ऽअदा᳚भ्यः || {7.3.11.1}, {9.85.6}, {9.4.18.6} |
415 | अत्यं᳚मृजन्तिक॒लशे॒दश॒क्षिपः॒प्रविप्रा᳚णांम॒तयो॒वाच॑ऽईरते | पव॑मानाऽअ॒भ्य॑र्षन्तिसुष्टु॒तिमेन्द्रं᳚विशन्तिमदि॒रास॒ऽइन्द॑वः || {7.3.11.2}, {9.85.7}, {9.4.18.7} |
416 | पव॑मानोऽअ॒भ्य॑र्षासु॒वीर्य॑मु॒र्वींगव्यू᳚तिं॒महि॒शर्म॑स॒प्रथः॑ | माकि᳚र्नोऽअ॒स्यपरि॑षूतिरीश॒तेन्दो॒जये᳚म॒त्वया॒धनं᳚धनम् || {7.3.11.3}, {9.85.8}, {9.4.18.8} |
417 | अधि॒द्याम॑स्थाद्वृष॒भोवि॑चक्ष॒णोऽरू᳚रुच॒द्विदि॒वोरो᳚च॒नाक॒विः | राजा᳚प॒वित्र॒मत्ये᳚ति॒रोरु॑वद्दि॒वःपी॒यूषं᳚दुहतेनृ॒चक्ष॑सः || {7.3.11.4}, {9.85.9}, {9.4.18.9} |
418 | दि॒वोनाके॒मधु॑जिह्वाऽअस॒श्चतो᳚वे॒नादु॑हन्त्यु॒क्षणं᳚गिरि॒ष्ठाम् | अ॒प्सुद्र॒प्संवा᳚वृधा॒नंस॑मु॒द्रऽआसिन्धो᳚रू॒र्मामधु॑मन्तंप॒वित्र॒ऽआ || {7.3.11.5}, {9.85.10}, {9.4.18.10} |
419 | नाके᳚सुप॒र्णमु॑पपप्ति॒वांसं॒गिरो᳚वे॒नाना᳚मकृपन्तपू॒र्वीः | शिशुं᳚रिहन्तिम॒तयः॒पनि॑प्नतंहिर॒ण्ययं᳚शकु॒नंक्षाम॑णि॒स्थाम् || {7.3.11.6}, {9.85.11}, {9.4.18.11} |
420 | ऊ॒र्ध्वोग᳚न्ध॒र्वोऽअधि॒नाके᳚ऽअस्था॒द्विश्वा᳚रू॒पाप्र॑ति॒चक्षा᳚णोऽअस्य | भा॒नुःशु॒क्रेण॑शो॒चिषा॒व्य॑द्यौ॒त्प्रारू᳚रुच॒द्रोद॑सीमा॒तरा॒शुचिः॑ || {7.3.11.7}, {9.85.12}, {9.4.18.12} |
[43] (१-४८) अष्टचत्वारिंशदृचस्य सूक्तस्य (१-१०) प्रथमादिदशर्चामकृष्टा माषाः, (११-२०) एकादश्यादिदशानां सिकता निवावरी, (२१-३०) एकविंश्यादिदशानां पृश्नयोऽजाः, (३१-४०) एकत्रिंश्यादिदशानामत्रेयः, (४१४५) एकचत्वारिंश्यादिपञ्चानां भौमोऽत्रिः, (४६-४८) षट्चत्वारिंश्यादितृचस्य च भार्गवः शौनको गृत्समद (ऋषयः) पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
421 | प्रत॑ऽआ॒शवः॑पवमानधी॒जवो॒मदा᳚ऽअर्षन्तिरघु॒जाऽइ॑व॒त्मना᳚ | दि॒व्याःसु॑प॒र्णामधु॑मन्त॒ऽइन्द॑वोम॒दिन्त॑मासः॒परि॒कोश॑मासते || {7.3.12.1}, {9.86.1}, {9.5.1.1} |
422 | प्रते॒मदा᳚सोमदि॒रास॑ऽआ॒शवोऽसृ॑क्षत॒रथ्या᳚सो॒यथा॒पृथ॑क् | धे॒नुर्नव॒त्संपय॑सा॒भिव॒ज्रिण॒मिन्द्र॒मिन्द॑वो॒मधु॑मन्तऽऊ॒र्मयः॑ || {7.3.12.2}, {9.86.2}, {9.5.1.2} |
423 | अत्यो॒नहि॑या॒नोऽअ॒भिवाज॑मर्षस्व॒र्वित्कोशं᳚दि॒वोऽअद्रि॑मातरम् | वृषा᳚प॒वित्रे॒ऽअधि॒सानो᳚ऽअ॒व्यये॒सोमः॑पुना॒नऽइ᳚न्द्रि॒याय॒धाय॑से || {7.3.12.3}, {9.86.3}, {9.5.1.3} |
424 | प्रत॒ऽआश्वि॑नीःपवमानधी॒जुवो᳚दि॒व्याऽअ॑सृग्र॒न्पय॑सा॒धरी᳚मणि | प्रान्तर्ऋष॑यः॒स्थावि॑रीरसृक्षत॒येत्वा᳚मृ॒जन्त्यृ॑षिषाणवे॒धसः॑ || {7.3.12.4}, {9.86.4}, {9.5.1.4} |
425 | विश्वा॒धामा᳚निविश्वचक्ष॒ऋभ्व॑सःप्र॒भोस्ते᳚स॒तःपरि॑यन्तिके॒तवः॑ | व्या॒न॒शिःप॑वसेसोम॒धर्म॑भिः॒पति॒र्विश्व॑स्य॒भुव॑नस्यराजसि || {7.3.12.5}, {9.86.5}, {9.5.1.5} |
426 | उ॒भ॒यतः॒पव॑मानस्यर॒श्मयो᳚ध्रु॒वस्य॑स॒तःपरि॑यन्तिके॒तवः॑ | यदी᳚प॒वित्रे॒ऽअधि॑मृ॒ज्यते॒हरिः॒सत्ता॒नियोना᳚क॒लशे᳚षुसीदति || {7.3.13.1}, {9.86.6}, {9.5.1.6} |
427 | य॒ज्ञस्य॑के॒तुःप॑वतेस्वध्व॒रःसोमो᳚दे॒वाना॒मुप॑यातिनिष्कृ॒तम् | स॒हस्र॑धारः॒परि॒कोश॑मर्षति॒वृषा᳚प॒वित्र॒मत्ये᳚ति॒रोरु॑वत् || {7.3.13.2}, {9.86.7}, {9.5.1.7} |
428 | राजा᳚समु॒द्रंन॒द्यो॒३॑(ओ॒)विगा᳚हते॒ऽपामू॒र्मिंस॑चते॒सिन्धु॑षुश्रि॒तः | अध्य॑स्था॒त्सानु॒पव॑मानोऽअ॒व्ययं॒नाभा᳚पृथि॒व्याध॒रुणो᳚म॒होदि॒वः || {7.3.13.3}, {9.86.8}, {9.5.1.8} |
429 | दि॒वोनसानु॑स्त॒नय᳚न्नचिक्रद॒द्द्यौश्च॒यस्य॑पृथि॒वीच॒धर्म॑भिः | इन्द्र॑स्यस॒ख्यंप॑वतेवि॒वेवि॑द॒त्सोमः॑पुना॒नःक॒लशे᳚षुसीदति || {7.3.13.4}, {9.86.9}, {9.5.1.9} |
430 | ज्योति᳚र्य॒ज्ञस्य॑पवते॒मधु॑प्रि॒यंपि॒तादे॒वानां᳚जनि॒तावि॒भूव॑सुः | दधा᳚ति॒रत्नं᳚स्व॒धयो᳚रपी॒च्यं᳚म॒दिन्त॑मोमत्स॒रऽइ᳚न्द्रि॒योरसः॑ || {7.3.13.5}, {9.86.10}, {9.5.1.10} |
431 | अ॒भि॒क्रन्द᳚न्क॒लशं᳚वा॒ज्य॑र्षति॒पति॑र्दि॒वःश॒तधा᳚रोविचक्ष॒णः | हरि᳚र्मि॒त्रस्य॒सद॑नेषुसीदतिमर्मृजा॒नोऽवि॑भिः॒सिन्धु॑भि॒र्वृषा᳚ || {7.3.14.1}, {9.86.11}, {9.5.1.11} |
432 | अग्रे॒सिन्धू᳚नां॒पव॑मानोऽअर्ष॒त्यग्रे᳚वा॒चोऽअ॑ग्रि॒योगोषु॑गच्छति | अग्रे॒वाज॑स्यभजतेमहाध॒नंस्वा᳚यु॒धःसो॒तृभिः॑पूयते॒वृषा᳚ || {7.3.14.2}, {9.86.12}, {9.5.1.12} |
433 | अ॒यंम॒तवा᳚ञ्छकु॒नोयथा᳚हि॒तोऽव्ये᳚ससार॒पव॑मानऽऊ॒र्मिणा᳚ | तव॒क्रत्वा॒रोद॑सीऽअन्त॒राक॑वे॒शुचि॑र्धि॒याप॑वते॒सोम॑ऽइन्द्रते || {7.3.14.3}, {9.86.13}, {9.5.1.13} |
434 | द्रा॒पिंवसा᳚नोयज॒तोदि॑वि॒स्पृश॑मन्तरिक्ष॒प्राभुव॑ने॒ष्वर्पि॑तः | स्व॑र्जज्ञा॒नोनभ॑सा॒भ्य॑क्रमीत्प्र॒त्नम॑स्यपि॒तर॒मावि॑वासति || {7.3.14.4}, {9.86.14}, {9.5.1.14} |
435 | सोऽअ॑स्यवि॒शेमहि॒शर्म॑यच्छति॒योऽअ॑स्य॒धाम॑प्रथ॒मंव्या᳚न॒शे | प॒दंयद॑स्यपर॒मेव्यो᳚म॒न्यतो॒विश्वा᳚ऽअ॒भिसंया᳚तिसं॒यतः॑ || {7.3.14.5}, {9.86.15}, {9.5.1.15} |
436 | प्रोऽअ॑यासी॒दिन्दु॒रिन्द्र॑स्यनिष्कृ॒तंसखा॒सख्यु॒र्नप्रमि॑नातिसं॒गिर᳚म् | मर्य॑ऽइवयुव॒तिभिः॒सम॑र्षति॒सोमः॑क॒लशे᳚श॒तया᳚म्नाप॒था || {7.3.15.1}, {9.86.16}, {9.5.1.16} |
437 | प्रवो॒धियो᳚मन्द्र॒युवो᳚विप॒न्युवः॑पन॒स्युवः॑सं॒वस॑नेष्वक्रमुः | सोमं᳚मनी॒षाऽअ॒भ्य॑नूषत॒स्तुभो॒ऽभिधे॒नवः॒पय॑सेमशिश्रयुः || {7.3.15.2}, {9.86.17}, {9.5.1.17} |
438 | आनः॑सोमसं॒यतं᳚पि॒प्युषी॒मिष॒मिन्दो॒पव॑स्व॒पव॑मानोऽअ॒स्रिध᳚म् | यानो॒दोह॑ते॒त्रिरह॒न्नस॑श्चुषीक्षु॒मद्वाज॑व॒न्मधु॑मत्सु॒वीर्य᳚म् || {7.3.15.3}, {9.86.18}, {9.5.1.18} |
439 | वृषा᳚मती॒नांप॑वतेविचक्ष॒णःसोमो॒ऽअह्नः॑प्रतरी॒तोषसो᳚दि॒वः | क्रा॒णासिन्धू᳚नांक॒लशाँ᳚ऽअवीवश॒दिन्द्र॑स्य॒हार्द्या᳚वि॒शन्म॑नी॒षिभिः॑ || {7.3.15.4}, {9.86.19}, {9.5.1.19} |
440 | म॒नी॒षिभिः॑पवतेपू॒र्व्यःक॒विर्नृभि᳚र्य॒तःपरि॒कोशाँ᳚ऽअचिक्रदत् | त्रि॒तस्य॒नाम॑ज॒नय॒न्मधु॑क्षर॒दिन्द्र॑स्यवा॒योःस॒ख्याय॒कर्त॑वे || {7.3.15.5}, {9.86.20}, {9.5.1.20} |
441 | अ॒यंपु॑ना॒नऽउ॒षसो॒विरो᳚चयद॒यंसिन्धु॑भ्योऽअभवदुलोक॒कृत् | अ॒यंत्रिःस॒प्तदु॑दुहा॒नऽआ॒शिरं॒सोमो᳚हृ॒देप॑वते॒चारु॑मत्स॒रः || {7.3.16.1}, {9.86.21}, {9.5.1.21} |
442 | पव॑स्वसोमदि॒व्येषु॒धाम॑सुसृजा॒नऽइ᳚न्दोक॒लशे᳚प॒वित्र॒ऽआ | सीद॒न्निन्द्र॑स्यज॒ठरे॒कनि॑क्रद॒न्नृभि᳚र्य॒तःसूर्य॒मारो᳚हयोदि॒वि || {7.3.16.2}, {9.86.22}, {9.5.1.22} |
443 | अद्रि॑भिःसु॒तःप॑वसेप॒वित्र॒ऽआँऽइन्द॒विन्द्र॑स्यज॒ठरे᳚ष्वावि॒शन् | त्वंनृ॒चक्षा᳚ऽअभवोविचक्षण॒सोम॑गो॒त्रमङ्गि॑रोभ्योऽवृणो॒रप॑ || {7.3.16.3}, {9.86.23}, {9.5.1.23} |
444 | त्वांसो᳚म॒पव॑मानंस्वा॒ध्योऽनु॒विप्रा᳚सोऽअमदन्नव॒स्यवः॑ | त्वांसु॑प॒र्णऽआभ॑रद्दि॒वस्परीन्दो॒विश्वा᳚भिर्म॒तिभिः॒परि॑ष्कृतम् || {7.3.16.4}, {9.86.24}, {9.5.1.24} |
445 | अव्ये᳚पुना॒नंपरि॒वार॑ऽऊ॒र्मिणा॒हरिं᳚नवन्तेऽअ॒भिस॒प्तधे॒नवः॑ | अ॒पामु॒पस्थे॒ऽअध्या॒यवः॑क॒विमृ॒तस्य॒योना᳚महि॒षाऽअ॑हेषत || {7.3.16.5}, {9.86.25}, {9.5.1.25} |
446 | इन्दुः॑पुना॒नोऽअति॑गाहते॒मृधो॒विश्वा᳚निकृ॒ण्वन्त्सु॒पथा᳚नि॒यज्य॑वे | गाःकृ᳚ण्वा॒नोनि॒र्णिजं᳚हर्य॒तःक॒विरत्यो॒नक्रीळ॒न्परि॒वार॑मर्षति || {7.3.17.1}, {9.86.26}, {9.5.1.26} |
447 | अ॒स॒श्चतः॑श॒तधा᳚राऽअभि॒श्रियो॒हरिं᳚नव॒न्तेऽव॒ताऽउ॑द॒न्युवः॑ | क्षिपो᳚मृजन्ति॒परि॒गोभि॒रावृ॑तंतृ॒तीये᳚पृ॒ष्ठेऽअधि॑रोच॒नेदि॒वः || {7.3.17.2}, {9.86.27}, {9.5.1.27} |
448 | तवे॒माःप्र॒जादि॒व्यस्य॒रेत॑स॒स्त्वंविश्व॑स्य॒भुव॑नस्यराजसि | अथे॒दंविश्वं᳚पवमानते॒वशे॒त्वमि᳚न्दोप्रथ॒मोधा᳚म॒धाऽअ॑सि || {7.3.17.3}, {9.86.28}, {9.5.1.28} |
449 | त्वंस॑मु॒द्रोऽअ॑सिविश्व॒वित्क॑वे॒तवे॒माःपञ्च॑प्र॒दिशो॒विध᳚र्मणि | त्वंद्यांच॑पृथि॒वींचाति॑जभ्रिषे॒तव॒ज्योतीं᳚षिपवमान॒सूर्यः॑ || {7.3.17.4}, {9.86.29}, {9.5.1.29} |
450 | त्वंप॒वित्रे॒रज॑सो॒विध᳚र्मणिदे॒वेभ्यः॑सोमपवमानपूयसे | त्वामु॒शिजः॑प्रथ॒माऽअ॑गृभ्णत॒तुभ्ये॒माविश्वा॒भुव॑नानियेमिरे || {7.3.17.5}, {9.86.30}, {9.5.1.30} |
451 | प्ररे॒भऽए॒त्यति॒वार॑म॒व्ययं॒वृषा॒वने॒ष्वव॑चक्रद॒द्धरिः॑ | संधी॒तयो᳚वावशा॒नाऽअ॑नूषत॒शिशुं᳚रिहन्तिम॒तयः॒पनि॑प्नतम् || {7.3.18.1}, {9.86.31}, {9.5.1.31} |
452 | ससूर्य॑स्यर॒श्मिभिः॒परि᳚व्यत॒तन्तुं᳚तन्वा॒नस्त्रि॒वृतं॒यथा᳚वि॒दे | नय᳚न्नृ॒तस्य॑प्र॒शिषो॒नवी᳚यसीः॒पति॒र्जनी᳚ना॒मुप॑यातिनिष्कृ॒तम् || {7.3.18.2}, {9.86.32}, {9.5.1.32} |
453 | राजा॒सिन्धू᳚नांपवते॒पति॑र्दि॒वऋ॒तस्य॑यातिप॒थिभिः॒कनि॑क्रदत् | स॒हस्र॑धारः॒परि॑षिच्यते॒हरिः॑पुना॒नोवाचं᳚ज॒नय॒न्नुपा᳚वसुः || {7.3.18.3}, {9.86.33}, {9.5.1.33} |
454 | पव॑मान॒मह्यर्णो॒विधा᳚वसि॒सूरो॒नचि॒त्रोऽअव्य॑यानि॒पव्य॑या | गभ॑स्तिपूतो॒नृभि॒रद्रि॑भिःसु॒तोम॒हेवाजा᳚य॒धन्या᳚यधन्वसि || {7.3.18.4}, {9.86.34}, {9.5.1.34} |
455 | इष॒मूर्जं᳚पवमाना॒भ्य॑र्षसिश्ये॒नोनवंसु॑क॒लशे᳚षुसीदसि | इन्द्रा᳚य॒मद्वा॒मद्यो॒मदः॑सु॒तोदि॒वोवि॑ष्ट॒म्भऽउ॑प॒मोवि॑चक्ष॒णः || {7.3.18.5}, {9.86.35}, {9.5.1.35} |
456 | स॒प्तस्वसा᳚रोऽअ॒भिमा॒तरः॒शिशुं॒नवं᳚जज्ञा॒नंजेन्यं᳚विप॒श्चित᳚म् | अ॒पांग᳚न्ध॒र्वंदि॒व्यंनृ॒चक्ष॑सं॒सोमं॒विश्व॑स्य॒भुव॑नस्यरा॒जसे᳚ || {7.3.19.1}, {9.86.36}, {9.5.1.36} |
457 | ई॒शा॒नऽइ॒माभुव॑नानि॒वीय॑सेयुजा॒नऽइ᳚न्दोह॒रितः॑सुप॒र्ण्यः॑ | तास्ते᳚क्षरन्तु॒मधु॑मद्घृ॒तंपय॒स्तव᳚व्र॒तेसो᳚मतिष्ठन्तुकृ॒ष्टयः॑ || {7.3.19.2}, {9.86.37}, {9.5.1.37} |
458 | त्वंनृ॒चक्षा᳚ऽअसिसोमवि॒श्वतः॒पव॑मानवृषभ॒ताविधा᳚वसि | सनः॑पवस्व॒वसु॑म॒द्धिर᳚ण्यवद्व॒यंस्या᳚म॒भुव॑नेषुजी॒वसे᳚ || {7.3.19.3}, {9.86.38}, {9.5.1.38} |
459 | गो॒वित्प॑वस्ववसु॒विद्धि॑रण्य॒विद्रे᳚तो॒धाऽइ᳚न्दो॒भुव॑ने॒ष्वर्पि॑तः | त्वंसु॒वीरो᳚ऽअसिसोमविश्व॒वित्तंत्वा॒विप्रा॒ऽउप॑गि॒रेमऽआ᳚सते || {7.3.19.4}, {9.86.39}, {9.5.1.39} |
460 | उन्मध्व॑ऽऊ॒र्मिर्व॒नना᳚ऽअतिष्ठिपद॒पोवसा᳚नोमहि॒षोविगा᳚हते | राजा᳚प॒वित्र॑रथो॒वाज॒मारु॑हत्स॒हस्र॑भृष्टिर्जयति॒श्रवो᳚बृ॒हत् || {7.3.19.5}, {9.86.40}, {9.5.1.40} |
461 | सभ॒न्दना॒ऽउदि॑यर्तिप्र॒जाव॑तीर्वि॒श्वायु॒र्विश्वाः᳚सु॒भरा॒ऽअह॑र्दिवि | ब्रह्म॑प्र॒जाव॑द्र॒यिमश्व॑पस्त्यंपी॒तऽइ᳚न्द॒विन्द्र॑म॒स्मभ्यं᳚याचतात् || {7.3.20.1}, {9.86.41}, {9.5.1.41} |
462 | सोऽअग्रे॒ऽअह्नां॒हरि॑र्हर्य॒तोमदः॒प्रचेत॑साचेतयते॒ऽअनु॒द्युभिः॑ | द्वाजना᳚या॒तय᳚न्न॒न्तरी᳚यते॒नरा᳚च॒शंसं॒दैव्यं᳚चध॒र्तरि॑ || {7.3.20.2}, {9.86.42}, {9.5.1.42} |
463 | अ॒ञ्जते॒व्य᳚ञ्जते॒सम᳚ञ्जते॒क्रतुं᳚रिहन्ति॒मधु॑ना॒भ्य᳚ञ्जते | सिन्धो᳚रुच्छ्वा॒सेप॒तय᳚न्तमु॒क्षणं᳚हिरण्यपा॒वाःप॒शुमा᳚सुगृभ्णते || {7.3.20.3}, {9.86.43}, {9.5.1.43} |
464 | वि॒प॒श्चिते॒पव॑मानायगायतम॒हीनधारात्यन्धो᳚ऽअर्षति | अहि॒र्नजू॒र्णामति॑सर्पति॒त्वच॒मत्यो॒नक्रीळ᳚न्नसर॒द्वृषा॒हरिः॑ || {7.3.20.4}, {9.86.44}, {9.5.1.44} |
465 | अ॒ग्रे॒गोराजाप्य॑स्तविष्यतेवि॒मानो॒ऽअह्नां॒भुव॑ने॒ष्वर्पि॑तः | हरि॑र्घृ॒तस्नुः॑सु॒दृशी᳚कोऽअर्ण॒वोज्यो॒तीर॑थःपवतेरा॒यऽओ॒क्यः॑ || {7.3.20.5}, {9.86.45}, {9.5.1.45} |
466 | अस॑र्जिस्क॒म्भोदि॒वऽउद्य॑तो॒मदः॒परि॑त्रि॒धातु॒र्भुव॑नान्यर्षति | अं॒शुंरि॑हन्तिम॒तयः॒पनि॑प्नतंगि॒रायदि॑नि॒र्णिज॑मृ॒ग्मिणो᳚य॒युः || {7.3.21.1}, {9.86.46}, {9.5.1.46} |
467 | प्रते॒धारा॒ऽअत्यण्वा᳚निमे॒ष्यः॑पुना॒नस्य॑सं॒यतो᳚यन्ति॒रंह॑यः | यद्गोभि॑रिन्दोच॒म्वोः᳚सम॒ज्यस॒ऽआसु॑वा॒नःसो᳚मक॒लशे᳚षुसीदसि || {7.3.21.2}, {9.86.47}, {9.5.1.47} |
468 | पव॑स्वसोमक्रतु॒विन्न॑ऽउ॒क्थ्योऽव्यो॒वारे॒परि॑धाव॒मधु॑प्रि॒यम् | ज॒हिविश्वा᳚न्र॒क्षस॑ऽइन्दोऽअ॒त्रिणो᳚बृ॒हद्व॑देमवि॒दथे᳚सु॒वीराः᳚ || {7.3.21.3}, {9.86.48}, {9.5.1.48} |
[44] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काव्य उशना ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
469 | प्रतुद्र॑व॒परि॒कोशं॒निषी᳚द॒नृभिः॑पुना॒नोऽअ॒भिवाज॑मर्ष | अश्वं॒नत्वा᳚वा॒जिनं᳚म॒र्जय॒न्तोऽच्छा᳚ब॒र्हीर॑श॒नाभि᳚र्नयन्ति || {7.3.22.1}, {9.87.1}, {9.5.2.1} |
470 | स्वा॒यु॒धःप॑वतेदे॒वऽइन्दु॑रशस्ति॒हावृ॒जनं॒रक्ष॑माणः | पि॒तादे॒वानां᳚जनि॒तासु॒दक्षो᳚विष्ट॒म्भोदि॒वोध॒रुणः॑पृथि॒व्याः || {7.3.22.2}, {9.87.2}, {9.5.2.2} |
471 | ऋषि॒र्विप्रः॑पुरए॒ताजना᳚नामृ॒भुर्धीर॑ऽउ॒शना॒काव्ये᳚न | सचि॑द्विवेद॒निहि॑तं॒यदा᳚सामपी॒च्य१॑(अ॒)अंगुह्यं॒नाम॒गोना᳚म् || {7.3.22.3}, {9.87.3}, {9.5.2.3} |
472 | ए॒षस्यते॒मधु॑माँऽइन्द्र॒सोमो॒वृषा॒वृष्णे॒परि॑प॒वित्रे᳚ऽअक्षाः | स॒ह॒स्र॒साःश॑त॒साभू᳚रि॒दावा᳚शश्वत्त॒मंब॒र्हिरावा॒ज्य॑स्थात् || {7.3.22.4}, {9.87.4}, {9.5.2.4} |
473 | ए॒तेसोमा᳚ऽअ॒भिग॒व्यास॒हस्रा᳚म॒हेवाजा᳚या॒मृता᳚य॒श्रवां᳚सि | प॒वित्रे᳚भिः॒पव॑मानाऽअसृग्रञ्छ्रव॒स्यवो॒नपृ॑त॒नाजो॒ऽअत्याः᳚ || {7.3.22.5}, {9.87.5}, {9.5.2.5} |
474 | परि॒हिष्मा᳚पुरुहू॒तोजना᳚नां॒विश्वास॑र॒द्भोज॑नापू॒यमा᳚नः | अथाभ॑रश्येनभृत॒प्रयां᳚सिर॒यिंतुञ्जा᳚नोऽअ॒भिवाज॑मर्ष || {7.3.23.1}, {9.87.6}, {9.5.2.6} |
475 | ए॒षसु॑वा॒नःपरि॒सोमः॑प॒वित्रे॒सर्गो॒नसृ॒ष्टोऽअ॑दधाव॒दर्वा᳚ | ति॒ग्मेशिशा᳚नोमहि॒षोनशृङ्गे॒गाग॒व्यन्न॒भिशूरो॒नसत्वा᳚ || {7.3.23.2}, {9.87.7}, {9.5.2.7} |
476 | ए॒षाय॑यौपर॒माद॒न्तरद्रेः॒कूचि॑त्स॒तीरू॒र्वेगावि॑वेद | दि॒वोनवि॒द्युत्स्त॒नय᳚न्त्य॒भ्रैःसोम॑स्यतेपवतऽइन्द्र॒धारा᳚ || {7.3.23.3}, {9.87.8}, {9.5.2.8} |
477 | उ॒तस्म॑रा॒शिंपरि॑यासि॒गोना॒मिन्द्रे᳚णसोमस॒रथं᳚पुना॒नः | पू॒र्वीरिषो᳚बृह॒तीर्जी᳚रदानो॒शिक्षा᳚शचीव॒स्तव॒ताऽउ॑प॒ष्टुत् || {7.3.23.4}, {9.87.9}, {9.5.2.9} |
[45] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्य काव्य उशना ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
478 | अ॒यंसोम॑ऽइन्द्र॒तुभ्यं᳚सुन्वे॒तुभ्यं᳚पवते॒त्वम॑स्यपाहि | त्वंह॒यंच॑कृ॒षेत्वंव॑वृ॒षऽइन्दुं॒मदा᳚य॒युज्या᳚य॒सोम᳚म् || {7.3.24.1}, {9.88.1}, {9.5.3.1} |
479 | सऽईं॒रथो॒नभु॑रि॒षाळ॑योजिम॒हःपु॒रूणि॑सा॒तये॒वसू᳚नि | आदीं॒विश्वा᳚नहु॒ष्या᳚णिजा॒तास्व॑र्षाता॒वन॑ऽऊ॒र्ध्वान॑वन्त || {7.3.24.2}, {9.88.2}, {9.5.3.2} |
480 | वा॒युर्नयोनि॒युत्वाँ᳚ऽइ॒ष्टया᳚मा॒नास॑त्येव॒हव॒ऽआशम्भ॑विष्ठः | वि॒श्ववा᳚रोद्रविणो॒दाऽइ॑व॒त्मन्पू॒षेव॑धी॒जव॑नोऽसिसोम || {7.3.24.3}, {9.88.3}, {9.5.3.3} |
481 | इन्द्रो॒नयोम॒हाकर्मा᳚णि॒चक्रि॑र्ह॒न्तावृ॒त्राणा᳚मसिसोमपू॒र्भित् | पै॒द्वोनहित्वमहि॑नाम्नांह॒न्ताविश्व॑स्यासिसोम॒दस्योः᳚ || {7.3.24.4}, {9.88.4}, {9.5.3.4} |
482 | अ॒ग्निर्नयोवन॒ऽआसृ॒ज्यमा᳚नो॒वृथा॒पाजां᳚सिकृणुतेन॒दीषु॑ | जनो॒नयुध्वा᳚मह॒तऽउ॑प॒ब्दिरिय॑र्ति॒सोमः॒पव॑मानऽऊ॒र्मिम् || {7.3.24.5}, {9.88.5}, {9.5.3.5} |
483 | ए॒तेसोमा॒ऽअति॒वारा॒ण्यव्या᳚दि॒व्यानकोशा᳚सोऽअ॒भ्रव॑र्षाः | वृथा᳚समु॒द्रंसिन्ध॑वो॒ननीचीः᳚सु॒तासो᳚ऽअ॒भिक॒लशाँ᳚ऽअसृग्रन् || {7.3.24.6}, {9.88.6}, {9.5.3.6} |
484 | शु॒ष्मीशर्धो॒नमारु॑तंपव॒स्वान॑भिशस्तादि॒व्यायथा॒विट् | आपो॒नम॒क्षूसु॑म॒तिर्भ॑वानःस॒हस्रा᳚प्साःपृतना॒षाण्नय॒ज्ञः || {7.3.24.7}, {9.88.7}, {9.5.3.7} |
485 | राज्ञो॒नुते॒वरु॑णस्यव्र॒तानि॑बृ॒हद्ग॑भी॒रंतव॑सोम॒धाम॑ | शुचि॒ष्ट्वम॑सिप्रि॒योनमि॒त्रोद॒क्षाय्यो᳚ऽअर्य॒मेवा᳚सिसोम || {7.3.24.8}, {9.88.8}, {9.5.3.8} |
[46] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काव्य उशना ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
486 | प्रोस्यवह्निः॑प॒थ्या᳚भिरस्यान्दि॒वोनवृ॒ष्टिःपव॑मानोऽअक्षाः | स॒हस्र॑धारोऽअसद॒न्न्य१॑(अ॒)स्मेमा॒तुरु॒पस्थे॒वन॒ऽआच॒सोमः॑ || {7.3.25.1}, {9.89.1}, {9.5.4.1} |
487 | राजा॒सिन्धू᳚नामवसिष्ट॒वास॑ऋ॒तस्य॒नाव॒मारु॑ह॒द्रजि॑ष्ठाम् | अ॒प्सुद्र॒प्सोवा᳚वृधेश्ये॒नजू᳚तोदु॒हऽईं᳚पि॒तादु॒हऽईं᳚पि॒तुर्जाम् || {7.3.25.2}, {9.89.2}, {9.5.4.2} |
488 | सिं॒हंन॑सन्त॒मध्वो᳚ऽअ॒यासं॒हरि॑मरु॒षंदि॒वोऽअ॒स्यपति᳚म् | शूरो᳚यु॒त्सुप्र॑थ॒मःपृ॑च्छते॒गाऽअस्य॒चक्ष॑सा॒परि॑पात्यु॒क्षा || {7.3.25.3}, {9.89.3}, {9.5.4.3} |
489 | मधु॑पृष्ठंघो॒रम॒यास॒मश्वं॒रथे᳚युञ्जन्त्युरुच॒क्रऋ॒ष्वम् | स्वसा᳚रऽईंजा॒मयो᳚मर्जयन्ति॒सना᳚भयोवा॒जिन॑मूर्जयन्ति || {7.3.25.4}, {9.89.4}, {9.5.4.4} |
490 | चत॑स्रऽईंघृत॒दुहः॑सचन्तेसमा॒नेऽअ॒न्तर्ध॒रुणे॒निष॑त्ताः | ताऽई᳚मर्षन्ति॒नम॑सापुना॒नास्ताऽईं᳚वि॒श्वतः॒परि॑षन्तिपू॒र्वीः || {7.3.25.5}, {9.89.5}, {9.5.4.5} |
491 | वि॒ष्ट॒म्भोदि॒वोध॒रुणः॑पृथि॒व्याविश्वा᳚ऽउ॒तक्षि॒तयो॒हस्ते᳚ऽअस्य | अस॑त्त॒ऽउत्सो᳚गृण॒तेनि॒युत्वा॒न्मध्वो᳚ऽअं॒शुःप॑वतऽइन्द्रि॒याय॑ || {7.3.25.6}, {9.89.6}, {9.5.4.6} |
492 | व॒न्वन्नवा᳚तोऽअ॒भिदे॒ववी᳚ति॒मिन्द्रा᳚यसोमवृत्र॒हाप॑वस्व | श॒ग्धिम॒हःपु॑रुश्च॒न्द्रस्य॑रा॒यःसु॒वीर्य॑स्य॒पत॑यःस्याम || {7.3.25.7}, {9.89.7}, {9.5.4.7} |
[47] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य मैत्रावरणिर्वसिष्ठ ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
493 | प्रहि᳚न्वा॒नोज॑नि॒तारोद॑स्यो॒रथो॒नवाजं᳚सनि॒ष्यन्न॑यासीत् | इन्द्रं॒गच्छ॒न्नायु॑धासं॒शिशा᳚नो॒विश्वा॒वसु॒हस्त॑योरा॒दधा᳚नः || {7.3.26.1}, {9.90.1}, {9.5.5.1} |
494 | अ॒भित्रि॑पृ॒ष्ठंवृष॑णंवयो॒धामा᳚ङ्गू॒षाणा᳚मवावशन्त॒वाणीः᳚ | वना॒वसा᳚नो॒वरु॑णो॒नसिन्धू॒न्विर॑त्न॒धाद॑यते॒वार्या᳚णि || {7.3.26.2}, {9.90.2}, {9.5.5.2} |
495 | शूर॑ग्रामः॒सर्व॑वीरः॒सहा᳚वा॒ञ्जेता᳚पवस्व॒सनि॑ता॒धना᳚नि | ति॒ग्मायु॑धःक्षि॒प्रध᳚न्वास॒मत्स्वषा᳚ळ्हःसा॒ह्वान्पृत॑नासु॒शत्रू॑न् || {7.3.26.3}, {9.90.3}, {9.5.5.3} |
496 | उ॒रुग᳚व्यूति॒रभ॑यानिकृ॒ण्वन्त्स॑मीची॒नेऽआप॑वस्वा॒पुरं᳚धी | अ॒पःसिषा᳚सन्नु॒षसः॒स्व१॑(अ॒)र्गाःसंचि॑क्रदोम॒होऽअ॒स्मभ्यं॒वाजा॑न् || {7.3.26.4}, {9.90.4}, {9.5.5.4} |
497 | मत्सि॑सोम॒वरु॑णं॒मत्सि॑मि॒त्रंमत्सीन्द्र॑मिन्दोपवमान॒विष्णु᳚म् | मत्सि॒शर्धो॒मारु॑तं॒मत्सि॑दे॒वान्मत्सि॑म॒हामिन्द्र॑मिन्दो॒मदा᳚य || {7.3.26.5}, {9.90.5}, {9.5.5.5} |
498 | ए॒वाराजे᳚व॒क्रतु॑माँ॒ऽअमे᳚न॒विश्वा॒घनि॑घ्नद्दुरि॒ताप॑वस्व | इन्दो᳚सू॒क्ताय॒वच॑से॒वयो᳚धायू॒यंपा᳚तस्व॒स्तिभिः॒सदा᳚नः || {7.3.26.6}, {9.90.6}, {9.5.5.6} |
[48] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य मारीचः कश्यप ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
499 | अस॑र्जि॒वक्वा॒रथ्ये॒यथा॒जौधि॒याम॒नोता᳚प्रथ॒मोम॑नी॒षी | दश॒स्वसा᳚रो॒ऽअधि॒सानो॒ऽअव्येऽज᳚न्ति॒वह्निं॒सद॑ना॒न्यच्छ॑ || {7.4.1.1}, {9.91.1}, {9.5.6.1} |
500 | वी॒तीजन॑स्यदि॒व्यस्य॑क॒व्यैरधि॑सुवा॒नोन॑हु॒ष्ये᳚भि॒रिन्दुः॑ | प्रयोनृभि॑र॒मृतो॒मर्त्ये᳚भिर्मर्मृजा॒नोऽवि॑भि॒र्गोभि॑र॒द्भिः || {7.4.1.2}, {9.91.2}, {9.5.6.2} |
501 | वृषा॒वृष्णे॒रोरु॑वदं॒शुर॑स्मै॒पव॑मानो॒रुश॑दीर्ते॒पयो॒गोः | स॒हस्र॒मृक्वा᳚प॒थिभि᳚र्वचो॒विद॑ध्व॒स्मभिः॒सूरो॒ऽअण्वं॒विया᳚ति || {7.4.1.3}, {9.91.3}, {9.5.6.3} |
502 | रु॒जादृ॒ळ्हाचि॑द्र॒क्षसः॒सदां᳚सिपुना॒नऽइ᳚न्दऽऊर्णुहि॒विवाजा॑न् | वृ॒श्चोपरि॑ष्टात्तुज॒ताव॒धेन॒येऽअन्ति॑दू॒रादु॑पना॒यमे᳚षाम् || {7.4.1.4}, {9.91.4}, {9.5.6.4} |
503 | सप्र॑त्न॒वन्नव्य॑सेविश्ववारसू॒क्ताय॑प॒थःकृ॑णुहि॒प्राचः॑ | येदुः॒षहा᳚सोव॒नुषा᳚बृ॒हन्त॒स्ताँस्ते᳚ऽअश्यामपुरुकृत्पुरुक्षो || {7.4.1.5}, {9.91.5}, {9.5.6.5} |
504 | ए॒वापु॑ना॒नोऽअ॒पःस्व१॑(अ॒)र्गाऽअ॒स्मभ्यं᳚तो॒कातन॑यानि॒भूरि॑ | शंनः॒क्षेत्र॑मु॒रुज्योतीं᳚षिसोम॒ज्योङ्नः॒सूर्यं᳚दृ॒शये᳚रिरीहि || {7.4.1.6}, {9.91.6}, {9.5.6.6} |
[49] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य मारीचः कश्यप ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
505 | परि॑सुवा॒नोहरि॑रं॒शुःप॒वित्रे॒रथो॒नस॑र्जिस॒नये᳚हिया॒नः | आप॒च्छ्लोक॑मिन्द्रि॒यंपू॒यमा᳚नः॒प्रति॑दे॒वाँऽअ॑जुषत॒प्रयो᳚भिः || {7.4.2.1}, {9.92.1}, {9.5.7.1} |
506 | अच्छा᳚नृ॒चक्षा᳚ऽअसरत्प॒वित्रे॒नाम॒दधा᳚नःक॒विर॑स्य॒योनौ᳚ | सीद॒न्होते᳚व॒सद॑नेच॒मूषूपे᳚मग्म॒न्नृष॑यःस॒प्तविप्राः᳚ || {7.4.2.2}, {9.92.2}, {9.5.7.2} |
507 | प्रसु॑मे॒धागा᳚तु॒विद्वि॒श्वदे᳚वः॒सोमः॑पुना॒नःसद॑ऽएति॒नित्य᳚म् | भुव॒द्विश्वे᳚षु॒काव्ये᳚षु॒रन्तानु॒जना᳚न्यतते॒पञ्च॒धीरः॑ || {7.4.2.3}, {9.92.3}, {9.5.7.3} |
508 | तव॒त्येसो᳚मपवमाननि॒ण्येविश्वे᳚दे॒वास्त्रय॑ऽएकाद॒शासः॑ | दश॑स्व॒धाभि॒रधि॒सानो॒ऽअव्ये᳚मृ॒जन्ति॑त्वान॒द्यः॑स॒प्तय॒ह्वीः || {7.4.2.4}, {9.92.4}, {9.5.7.4} |
509 | तन्नुस॒त्यंपव॑मानस्यास्तु॒यत्र॒विश्वे᳚का॒रवः॑सं॒नस᳚न्त | ज्योति॒र्यदह्ने॒ऽअकृ॑णोदुलो॒कंप्राव॒न्मनुं॒दस्य॑वेकर॒भीक᳚म् || {7.4.2.5}, {9.92.5}, {9.5.7.5} |
510 | परि॒सद्मे᳚वपशु॒मान्ति॒होता॒राजा॒नस॒त्यःसमि॑तीरिया॒नः | सोमः॑पुना॒नःक॒लशाँ᳚ऽअयासी॒त्सीद᳚न्मृ॒गोनम॑हि॒षोवने᳚षु || {7.4.2.6}, {9.92.6}, {9.5.7.6} |
[50] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य गौतमो नोधा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
511 | सा॒क॒मुक्षो᳚मर्जयन्त॒स्वसा᳚रो॒दश॒धीर॑स्यधी॒तयो॒धनु॑त्रीः | हरिः॒पर्य॑द्रव॒ज्जाःसूर्य॑स्य॒द्रोणं᳚ननक्षे॒ऽअत्यो॒नवा॒जी || {7.4.3.1}, {9.93.1}, {9.5.8.1} |
512 | संमा॒तृभि॒र्नशिशु᳚र्वावशा॒नोवृषा᳚दधन्वेपुरु॒वारो᳚ऽअ॒द्भिः | मर्यो॒नयोषा᳚म॒भिनि॑ष्कृ॒तंयन्त्संग॑च्छतेक॒लश॑ऽउ॒स्रिया᳚भिः || {7.4.3.2}, {9.93.2}, {9.5.8.2} |
513 | उ॒तप्रपि॑प्य॒ऽऊध॒रघ्न्या᳚या॒ऽइन्दु॒र्धारा᳚भिःसचतेसुमे॒धाः | मू॒र्धानं॒गावः॒पय॑साच॒मूष्व॒भिश्री᳚णन्ति॒वसु॑भि॒र्ननि॒क्तैः || {7.4.3.3}, {9.93.3}, {9.5.8.3} |
514 | सनो᳚दे॒वेभिः॑पवमानर॒देन्दो᳚र॒यिम॒श्विनं᳚वावशा॒नः | र॒थि॒रा॒यता᳚मुश॒तीपुरं᳚धिरस्म॒द्र्य१॑(अ॒)गादा॒वने॒वसू᳚नाम् || {7.4.3.4}, {9.93.4}, {9.5.8.4} |
515 | नूनो᳚र॒यिमुप॑मास्वनृ॒वन्तं᳚पुना॒नोवा॒ताप्यं᳚वि॒श्वश्च᳚न्द्रम् | प्रव᳚न्दि॒तुरि᳚न्दोता॒र्यायुः॑प्रा॒तर्म॒क्षूधि॒याव॑सुर्जगम्यात् || {7.4.3.5}, {9.93.5}, {9.5.8.5} |
[51] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः कण्व ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
516 | अधि॒यद॑स्मिन्वा॒जिनी᳚व॒शुभः॒स्पर्ध᳚न्ते॒धियः॒सूर्ये॒नविशः॑ | अ॒पोवृ॑णा॒नःप॑वतेकवी॒यन्व्र॒जंनप॑शु॒वर्ध॑नाय॒मन्म॑ || {7.4.4.1}, {9.94.1}, {9.5.9.1} |
517 | द्वि॒ताव्यू॒र्ण्वन्न॒मृत॑स्य॒धाम॑स्व॒र्विदे॒भुव॑नानिप्रथन्त | धियः॑पिन्वा॒नाःस्वस॑रे॒नगाव॑ऋता॒यन्ती᳚र॒भिवा᳚वश्र॒ऽइन्दु᳚म् || {7.4.4.2}, {9.94.2}, {9.5.9.2} |
518 | परि॒यत्क॒विःकाव्या॒भर॑ते॒शूरो॒नरथो॒भुव॑नानि॒विश्वा᳚ | दे॒वेषु॒यशो॒मर्ता᳚य॒भूष॒न्दक्षा᳚यरा॒यःपु॑रु॒भूषु॒नव्यः॑ || {7.4.4.3}, {9.94.3}, {9.5.9.3} |
519 | श्रि॒येजा॒तःश्रि॒यऽआनिरि॑याय॒श्रियं॒वयो᳚जरि॒तृभ्यो᳚दधाति | श्रियं॒वसा᳚नाऽअमृत॒त्वमा᳚य॒न्भव᳚न्तिस॒त्यास॑मि॒थामि॒तद्रौ᳚ || {7.4.4.4}, {9.94.4}, {9.5.9.4} |
520 | इष॒मूर्ज॑म॒भ्य१॑(अ॒)र्षाश्वं॒गामु॒रुज्योतिः॑कृणुहि॒मत्सि॑दे॒वान् | विश्वा᳚नि॒हिसु॒षहा॒तानि॒तुभ्यं॒पव॑मान॒बाध॑सेसोम॒शत्रू॑न् || {7.4.4.5}, {9.94.5}, {9.5.9.5} |
[52] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य काण्वः प्रस्कण्व ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
521 | कनि॑क्रन्ति॒हरि॒रासृ॒ज्यमा᳚नः॒सीद॒न्वन॑स्यज॒ठरे᳚पुना॒नः | नृभि᳚र्य॒तःकृ॑णुतेनि॒र्णिजं॒गाऽअतो᳚म॒तीर्ज॑नयतस्व॒धाभिः॑ || {7.4.5.1}, {9.95.1}, {9.5.10.1} |
522 | हरिः॑सृजा॒नःप॒थ्या᳚मृ॒तस्येय॑र्ति॒वाच॑मरि॒तेव॒नाव᳚म् | दे॒वोदे॒वानां॒गुह्या᳚नि॒नामा॒विष्कृ॑णोतिब॒र्हिषि॑प्र॒वाचे᳚ || {7.4.5.2}, {9.95.2}, {9.5.10.2} |
523 | अ॒पामि॒वेदू॒र्मय॒स्तर्तु॑राणाः॒प्रम॑नी॒षाऽई᳚रते॒सोम॒मच्छ॑ | न॒म॒स्यन्ती॒रुप॑च॒यन्ति॒संचाच॑विशन्त्युश॒तीरु॒शन्त᳚म् || {7.4.5.3}, {9.95.3}, {9.5.10.3} |
524 | तंम᳚र्मृजा॒नंम॑हि॒षंनसाना᳚वं॒शुंदु॑हन्त्यु॒क्षणं᳚गिरि॒ष्ठाम् | तंवा᳚वशा॒नंम॒तयः॑सचन्तेत्रि॒तोबि॑भर्ति॒वरु॑णंसमु॒द्रे || {7.4.5.4}, {9.95.4}, {9.5.10.4} |
525 | इष्य॒न्वाच॑मुपव॒क्तेव॒होतुः॑पुना॒नऽइ᳚न्दो॒विष्या᳚मनी॒षाम् | इन्द्र॑श्च॒यत्क्षय॑थः॒सौभ॑गायसु॒वीर्य॑स्य॒पत॑यःस्याम || {7.4.5.5}, {9.95.5}, {9.5.10.5} |
[53] (१-२४) चतुर्विंशत्यृचस्य सूक्तस्य दैवोदासिः प्रतर्दन ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
526 | प्रसे᳚ना॒नीःशूरो॒ऽअग्रे॒रथा᳚नांग॒व्यन्ने᳚ति॒हर्ष॑तेऽअस्य॒सेना᳚ | भ॒द्रान्कृ॒ण्वन्नि᳚न्द्रह॒वान्त्सखि॑भ्य॒ऽआसोमो॒वस्त्रा᳚रभ॒सानि॑दत्ते || {7.4.6.1}, {9.96.1}, {9.5.11.1} |
527 | सम॑स्य॒हरिं॒हर॑योमृजन्त्यश्वह॒यैरनि॑शितं॒नमो᳚भिः | आति॑ष्ठति॒रथ॒मिन्द्र॑स्य॒सखा᳚वि॒द्वाँऽए᳚नासुम॒तिंया॒त्यच्छ॑ || {7.4.6.2}, {9.96.2}, {9.5.11.2} |
528 | सनो᳚देवदे॒वता᳚तेपवस्वम॒हेसो᳚म॒प्सर॑सऽइन्द्र॒पानः॑ | कृ॒ण्वन्न॒पोव॒र्षय॒न्द्यामु॒तेमामु॒रोरानो᳚वरिवस्यापुना॒नः || {7.4.6.3}, {9.96.3}, {9.5.11.3} |
529 | अजी᳚त॒येऽह॑तयेपवस्वस्व॒स्तये᳚स॒र्वता᳚तयेबृह॒ते | तदु॑शन्ति॒विश्व॑ऽइ॒मेसखा᳚य॒स्तद॒हंव॑श्मिपवमानसोम || {7.4.6.4}, {9.96.4}, {9.5.11.4} |
530 | सोमः॑पवतेजनि॒ताम॑ती॒नांज॑नि॒तादि॒वोज॑नि॒तापृ॑थि॒व्याः | ज॒नि॒ताग्नेर्ज॑नि॒तासूर्य॑स्यजनि॒तेन्द्र॑स्यजनि॒तोतविष्णोः᳚ || {7.4.6.5}, {9.96.5}, {9.5.11.5} |
531 | ब्र॒ह्मादे॒वानां᳚पद॒वीःक॑वी॒नामृषि॒र्विप्रा᳚णांमहि॒षोमृ॒गाणा᳚म् | श्ये॒नोगृध्रा᳚णां॒स्वधि॑ति॒र्वना᳚नां॒सोमः॑प॒वित्र॒मत्ये᳚ति॒रेभ॑न् || {7.4.7.1}, {9.96.6}, {9.5.11.6} |
532 | प्रावी᳚विपद्वा॒चऽऊ॒र्मिंनसिन्धु॒र्गिरः॒सोमः॒पव॑मानोमनी॒षाः | अ॒न्तःपश्य᳚न्वृ॒जने॒माव॑रा॒ण्याति॑ष्ठतिवृष॒भोगोषु॑जा॒नन् || {7.4.7.2}, {9.96.7}, {9.5.11.7} |
533 | सम॑त्स॒रःपृ॒त्सुव॒न्वन्नवा᳚तःस॒हस्र॑रेताऽअ॒भिवाज॑मर्ष | इन्द्रा᳚येन्दो॒पव॑मानोमनी॒ष्य१॑(अं॒)शोरू॒र्मिमी᳚रय॒गाऽइ॑ष॒ण्यन् || {7.4.7.3}, {9.96.8}, {9.5.11.8} |
534 | परि॑प्रि॒यःक॒लशे᳚दे॒ववा᳚त॒ऽइन्द्रा᳚य॒सोमो॒रण्यो॒मदा᳚य | स॒हस्र॑धारःश॒तवा᳚ज॒ऽइन्दु᳚र्वा॒जीनसप्तिः॒सम॑नाजिगाति || {7.4.7.4}, {9.96.9}, {9.5.11.9} |
535 | सपू॒र्व्योव॑सु॒विज्जाय॑मानोमृजा॒नोऽअ॒प्सुदु॑दुहा॒नोऽअद्रौ᳚ | अ॒भि॒श॒स्ति॒पाभुव॑नस्य॒राजा᳚वि॒दद्गा॒तुंब्रह्म॑णेपू॒यमा᳚नः || {7.4.7.5}, {9.96.10}, {9.5.11.10} |
536 | त्वया॒हिनः॑पि॒तरः॑सोम॒पूर्वे॒कर्मा᳚णिच॒क्रुःप॑वमान॒धीराः᳚ | व॒न्वन्नवा᳚तःपरि॒धीँरपो᳚र्णुवी॒रेभि॒रश्वै᳚र्म॒घवा᳚भवानः || {7.4.8.1}, {9.96.11}, {9.5.11.11} |
537 | यथाप॑वथा॒मन॑वेवयो॒धाऽअ॑मित्र॒हाव॑रिवो॒विद्ध॒विष्मा॑न् | ए॒वाप॑वस्व॒द्रवि॑णं॒दधा᳚न॒ऽइन्द्रे॒संति॑ष्ठज॒नयायु॑धानि || {7.4.8.2}, {9.96.12}, {9.5.11.12} |
538 | पव॑स्वसोम॒मधु॑माँऽऋ॒तावा॒पोवसा᳚नो॒ऽअधि॒सानो॒ऽअव्ये᳚ | अव॒द्रोणा᳚निघृ॒तवा᳚न्तिसीदम॒दिन्त॑मोमत्स॒रऽइ᳚न्द्र॒पानः॑ || {7.4.8.3}, {9.96.13}, {9.5.11.13} |
539 | वृ॒ष्टिंदि॒वःश॒तधा᳚रःपवस्वसहस्र॒सावा᳚ज॒युर्दे॒ववी᳚तौ | संसिन्धु॑भिःक॒लशे᳚वावशा॒नःसमु॒स्रिया᳚भिःप्रति॒रन्न॒ऽआयुः॑ || {7.4.8.4}, {9.96.14}, {9.5.11.14} |
540 | ए॒षस्यसोमो᳚म॒तिभिः॑पुना॒नोऽत्यो॒नवा॒जीतर॒तीदरा᳚तीः | पयो॒नदु॒ग्धमदि॑तेरिषि॒रमु॒र्वि॑वगा॒तुःसु॒यमो॒नवोळ्हा᳚ || {7.4.8.5}, {9.96.15}, {9.5.11.15} |
541 | स्वा॒यु॒धःसो॒तृभिः॑पू॒यमा᳚नो॒ऽभ्य॑र्ष॒गुह्यं॒चारु॒नाम॑ | अ॒भिवाजं॒सप्ति॑रिवश्रव॒स्याभिवा॒युम॒भिगादे᳚वसोम || {7.4.9.1}, {9.96.16}, {9.5.11.16} |
542 | शिशुं᳚जज्ञा॒नंह᳚र्य॒तंमृ॑जन्तिशु॒म्भन्ति॒वह्निं᳚म॒रुतो᳚ग॒णेन॑ | क॒विर्गी॒र्भिःकाव्ये᳚नाक॒विःसन्त्सोमः॑प॒वित्र॒मत्ये᳚ति॒रेभ॑न् || {7.4.9.2}, {9.96.17}, {9.5.11.17} |
543 | ऋषि॑मना॒यऋ॑षि॒कृत्स्व॒र्षाःस॒हस्र॑णीथःपद॒वीःक॑वी॒नाम् | तृ॒तीयं॒धाम॑महि॒षःसिषा᳚स॒न्त्सोमो᳚वि॒राज॒मनु॑राजति॒ष्टुप् || {7.4.9.3}, {9.96.18}, {9.5.11.18} |
544 | च॒मू॒षच्छ्ये॒नःश॑कु॒नोवि॒भृत्वा᳚गोवि॒न्दुर्द्र॒प्सऽआयु॑धानि॒बिभ्र॑त् | अ॒पामू॒र्मिंसच॑मानःसमु॒द्रंतु॒रीयं॒धाम॑महि॒षोवि॑वक्ति || {7.4.9.4}, {9.96.19}, {9.5.11.19} |
545 | मर्यो॒नशु॒भ्रस्त॒न्वं᳚मृजा॒नोऽत्यो॒नसृत्वा᳚स॒नये॒धना᳚नाम् | वृषे᳚वयू॒थापरि॒कोश॒मर्ष॒न्कनि॑क्रदच्च॒म्वो॒३॑(ओ॒)रावि॑वेश || {7.4.9.5}, {9.96.20}, {9.5.11.20} |
546 | पव॑स्वेन्दो॒पव॑मानो॒महो᳚भिः॒कनि॑क्रद॒त्परि॒वारा᳚ण्यर्ष | क्रीळ᳚ञ्च॒म्वो॒३॑(ओ॒)रावि॑शपू॒यमा᳚न॒ऽइन्द्रं᳚ते॒रसो᳚मदि॒रोम॑मत्तु || {7.4.10.1}, {9.96.21}, {9.5.11.21} |
547 | प्रास्य॒धारा᳚बृह॒तीर॑सृग्रन्न॒क्तोगोभिः॑क॒लशाँ॒ऽआवि॑वेश | साम॑कृ॒ण्वन्त्सा᳚म॒न्यो᳚विप॒श्चित्क्रन्द᳚न्नेत्य॒भिसख्यु॒र्नजा॒मिम् || {7.4.10.2}, {9.96.22}, {9.5.11.22} |
548 | अ॒प॒घ्नन्ने᳚षिपवमान॒शत्रू᳚न्प्रि॒यांनजा॒रोऽअ॒भिगी᳚त॒ऽइन्दुः॑ | सीद॒न्वने᳚षुशकु॒नोनपत्वा॒सोमः॑पुना॒नःक॒लशे᳚षु॒सत्ता᳚ || {7.4.10.3}, {9.96.23}, {9.5.11.23} |
549 | आते॒रुचः॒पव॑मानस्यसोम॒योषे᳚वयन्तिसु॒दुघाः᳚सुधा॒राः | हरि॒रानी᳚तःपुरु॒वारो᳚ऽअ॒प्स्वचि॑क्रदत्क॒लशे᳚देवयू॒नाम् || {7.4.10.4}, {9.96.24}, {9.5.11.24} |
[54] (१-५८) अष्टपञ्चाशदृचस्य सूक्तस्य (१-३) प्रथमादितृचस्य मैत्रावरणिर्वसिष्ठः, (४-६) चतुर्थ्यादितृचस्य वासिष्ठ इन्द्रप्रमतिः, (७-९) सप्तम्यादितृचस्य वासिष्ठो वृषगणः, (१०-१२) दशम्यादितृचस्य वासिष्ठो मन्युः, (१३-१५) त्रयोदश्यादितृचस्य वासिष्ठ उपमन्युः, (१६-१८) षोडश्यादितृचस्य वासिष्ठो व्याघ्रपात्, (१९-२१) एकोनविंश्यादितृचस्य वासिष्ठः शक्तिः, (२२२४) द्वाविंश्यादितृचस्य वासिष्ठः कर्णश्रतु, (२५-२७) पञ्चविंश्यादितृचस्य वासिष्ठो मृळीकः, (२८-३०) अष्टाविंश्यादितृचस्य वासिष्ठो वसुक्रः, (३१-४४) एकत्रिंश्यादिचतुर्दश चर्चाम् शाक्त्यः पराशरः, (४५-५८) पञ्चचत्वारिंश्यादिचतुर्दश नाञ्चाङ्गिरसः कुत्स (ऋषयः) पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
550 | अ॒स्यप्रे॒षाहे॒मना᳚पू॒यमा᳚नोदे॒वोदे॒वेभिः॒सम॑पृक्त॒रस᳚म् | सु॒तःप॒वित्रं॒पर्ये᳚ति॒रेभ᳚न्मि॒तेव॒सद्म॑पशु॒मान्ति॒होता᳚ || {7.4.11.1}, {9.97.1}, {9.6.1.1} |
551 | भ॒द्रावस्त्रा᳚सम॒न्या॒३॑(आ॒)वसा᳚नोम॒हान्क॒विर्नि॒वच॑नानि॒शंस॑न् | आव॑च्यस्वच॒म्वोः᳚पू॒यमा᳚नोविचक्ष॒णोजागृ॑विर्दे॒ववी᳚तौ || {7.4.11.2}, {9.97.2}, {9.6.1.2} |
552 | समु॑प्रि॒योमृ॑ज्यते॒सानो॒ऽअव्ये᳚य॒शस्त॑रोय॒शसां॒क्षैतो᳚ऽअ॒स्मे | अ॒भिस्व॑र॒धन्वा᳚पू॒यमा᳚नोयू॒यंपा᳚तस्व॒स्तिभिः॒सदा᳚नः || {7.4.11.3}, {9.97.3}, {9.6.1.3} |
553 | प्रगा᳚यता॒भ्य॑र्चामदे॒वान्त्सोमं᳚हिनोतमह॒तेधना᳚य | स्वा॒दुःप॑वाते॒ऽअति॒वार॒मव्य॒मासी᳚दातिक॒लशं᳚देव॒युर्नः॑ || {7.4.11.4}, {9.97.4}, {9.6.1.4} |
554 | इन्दु॑र्दे॒वाना॒मुप॑स॒ख्यमा॒यन्त्स॒हस्र॑धारःपवते॒मदा᳚य | नृभिः॒स्तवा᳚नो॒ऽअनु॒धाम॒पूर्व॒मग॒न्निन्द्रं᳚मह॒तेसौभ॑गाय || {7.4.11.5}, {9.97.5}, {9.6.1.5} |
555 | स्तो॒त्रेरा॒येहरि॑रर्षापुना॒नऽइन्द्रं॒मदो᳚गच्छतुते॒भरा᳚य | दे॒वैर्या᳚हिस॒रथं॒राधो॒ऽअच्छा᳚यू॒यंपा᳚तस्व॒स्तिभिः॒सदा᳚नः || {7.4.12.1}, {9.97.6}, {9.6.1.6} |
556 | प्रकाव्य॑मु॒शने᳚वब्रुवा॒णोदे॒वोदे॒वानां॒जनि॑माविवक्ति | महि᳚व्रतः॒शुचि॑बन्धुःपाव॒कःप॒दाव॑रा॒होऽअ॒भ्ये᳚ति॒रेभ॑न् || {7.4.12.2}, {9.97.7}, {9.6.1.7} |
557 | प्रहं॒सास॑स्तृ॒पलं᳚म॒न्युमच्छा॒मादस्तं॒वृष॑गणाऽअयासुः | आ॒ङ्गू॒ष्य१॑(अ॒)अंपव॑मानं॒सखा᳚योदु॒र्मर्षं᳚सा॒कंप्रव॑दन्तिवा॒णम् || {7.4.12.3}, {9.97.8}, {9.6.1.8} |
558 | सरं᳚हतऽउरुगा॒यस्य॑जू॒तिंवृथा॒क्रीळ᳚न्तंमिमते॒नगावः॑ | प॒री॒ण॒संकृ॑णुतेति॒ग्मशृ᳚ङ्गो॒दिवा॒हरि॒र्ददृ॑शे॒नक्त॑मृ॒ज्रः || {7.4.12.4}, {9.97.9}, {9.6.1.9} |
559 | इन्दु᳚र्वा॒जीप॑वते॒गोन्यो᳚घा॒ऽइन्द्रे॒सोमः॒सह॒ऽइन्व॒न्मदा᳚य | हन्ति॒रक्षो॒बाध॑ते॒पर्यरा᳚ती॒र्वरि॑वःकृ॒ण्वन्वृ॒जन॑स्य॒राजा᳚ || {7.4.12.5}, {9.97.10}, {9.6.1.10} |
560 | अध॒धार॑या॒मध्वा᳚पृचा॒नस्ति॒रोरोम॑पवते॒ऽअद्रि॑दुग्धः | इन्दु॒रिन्द्र॑स्यस॒ख्यंजु॑षा॒णोदे॒वोदे॒वस्य॑मत्स॒रोमदा᳚य || {7.4.13.1}, {9.97.11}, {9.6.1.11} |
561 | अ॒भिप्रि॒याणि॑पवतेपुना॒नोदे॒वोदे॒वान्त्स्वेन॒रसे᳚नपृ॒ञ्चन् | इन्दु॒र्धर्मा᳚ण्यृतु॒थावसा᳚नो॒दश॒क्षिपो᳚ऽअव्यत॒सानो॒ऽअव्ये᳚ || {7.4.13.2}, {9.97.12}, {9.6.1.12} |
562 | वृषा॒शोणो᳚ऽअभि॒कनि॑क्रद॒द्गान॒दय᳚न्नेतिपृथि॒वीमु॒तद्याम् | इन्द्र॑स्येवव॒ग्नुराशृ᳚ण्वऽआ॒जौप्र॑चे॒तय᳚न्नर्षति॒वाच॒मेमाम् || {7.4.13.3}, {9.97.13}, {9.6.1.13} |
563 | र॒साय्यः॒पय॑सा॒पिन्व॑मानऽई॒रय᳚न्नेषि॒मधु॑मन्तमं॒शुम् | पव॑मानःसंत॒निमे᳚षिकृ॒ण्वन्निन्द्रा᳚यसोमपरिषि॒च्यमा᳚नः || {7.4.13.4}, {9.97.14}, {9.6.1.14} |
564 | ए॒वाप॑वस्वमदि॒रोमदा᳚योदग्रा॒भस्य॑न॒मय᳚न्वध॒स्नैः | परि॒वर्णं॒भर॑माणो॒रुश᳚न्तंग॒व्युर्नो᳚ऽअर्ष॒परि॑सोमसि॒क्तः || {7.4.13.5}, {9.97.15}, {9.6.1.15} |
565 | जु॒ष्ट्वीन॑ऽइन्दोसु॒पथा᳚सु॒गान्यु॒रौप॑वस्व॒वरि॑वांसिकृ॒ण्वन् | घ॒नेव॒विष्व॑ग्दुरि॒तानि॑वि॒घ्नन्नधि॒ष्णुना᳚धन्व॒सानो॒ऽअव्ये᳚ || {7.4.14.1}, {9.97.16}, {9.6.1.16} |
566 | वृ॒ष्टिंनो᳚ऽअर्षदि॒व्यांजि॑ग॒त्नुमिळा᳚वतींशं॒गयीं᳚जी॒रदा᳚नुम् | स्तुके᳚ववी॒ताध᳚न्वाविचि॒न्वन्बन्धूँ᳚रि॒माँऽअव॑राँऽइन्दोवा॒यून् || {7.4.14.2}, {9.97.17}, {9.6.1.17} |
567 | ग्र॒न्थिंनविष्य॑ग्रथि॒तंपु॑ना॒नऋ॒जुंच॑गा॒तुंवृ॑जि॒नंच॑सोम | अत्यो॒नक्र॑दो॒हरि॒रासृ॑जा॒नोमर्यो᳚देवधन्वप॒स्त्या᳚वान् || {7.4.14.3}, {9.97.18}, {9.6.1.18} |
568 | जुष्टो॒मदा᳚यदे॒वता᳚तऽइन्दो॒परि॒ष्णुना᳚धन्व॒सानो॒ऽअव्ये᳚ | स॒हस्र॑धारःसुर॒भिरद॑ब्धः॒परि॑स्रव॒वाज॑सातौनृ॒षह्ये᳚ || {7.4.14.4}, {9.97.19}, {9.6.1.19} |
569 | अ॒र॒श्मानो॒ये᳚ऽर॒थाऽअयु॑क्ता॒ऽअत्या᳚सो॒नस॑सृजा॒नास॑ऽआ॒जौ | ए॒तेशु॒क्रासो᳚धन्वन्ति॒सोमा॒देवा᳚स॒स्ताँऽउप॑याता॒पिब॑ध्यै || {7.4.14.5}, {9.97.20}, {9.6.1.20} |
570 | ए॒वान॑ऽइन्दोऽअ॒भिदे॒ववी᳚तिं॒परि॑स्रव॒नभो॒ऽअर्ण॑श्च॒मूषु॑ | सोमो᳚ऽअ॒स्मभ्यं॒काम्यं᳚बृ॒हन्तं᳚र॒यिंद॑दातुवी॒रव᳚न्तमु॒ग्रम् || {7.4.15.1}, {9.97.21}, {9.6.1.21} |
571 | तक्ष॒द्यदी॒मन॑सो॒वेन॑तो॒वाग्ज्येष्ठ॑स्यवा॒धर्म॑णि॒क्षोरनी᳚के | आदी᳚माय॒न्वर॒मावा᳚वशा॒नाजुष्टं॒पतिं᳚क॒लशे॒गाव॒ऽइन्दु᳚म् || {7.4.15.2}, {9.97.22}, {9.6.1.22} |
572 | प्रदा᳚नु॒दोदि॒व्योदा᳚नुपि॒न्वऋ॒तमृ॒ताय॑पवतेसुमे॒धाः | ध॒र्माभु॑वद्वृज॒न्य॑स्य॒राजा॒प्रर॒श्मिभि॑र्द॒शभि॑र्भारि॒भूम॑ || {7.4.15.3}, {9.97.23}, {9.6.1.23} |
573 | प॒वित्रे᳚भिः॒पव॑मानोनृ॒चक्षा॒राजा᳚दे॒वाना᳚मु॒तमर्त्या᳚नाम् | द्वि॒ताभु॑वद्रयि॒पती᳚रयी॒णामृ॒तंभ॑र॒त्सुभृ॑तं॒चार्विन्दुः॑ || {7.4.15.4}, {9.97.24}, {9.6.1.24} |
574 | अर्वाँ᳚ऽइव॒श्रव॑सेसा॒तिमच्छेन्द्र॑स्यवा॒योर॒भिवी॒तिम॑र्ष | सनः॑स॒हस्रा᳚बृह॒तीरिषो᳚दा॒भवा᳚सोमद्रविणो॒वित्पु॑ना॒नः || {7.4.15.5}, {9.97.25}, {9.6.1.25} |
575 | दे॒वा॒व्यो᳚नःपरिषि॒च्यमा᳚नाः॒क्षयं᳚सु॒वीरं᳚धन्वन्तु॒सोमाः᳚ | आ॒य॒ज्यवः॑सुम॒तिंवि॒श्ववा᳚रा॒होता᳚रो॒नदि॑वि॒यजो᳚म॒न्द्रत॑माः || {7.4.16.1}, {9.97.26}, {9.6.1.26} |
576 | ए॒वादे᳚वदे॒वता᳚तेपवस्वम॒हेसो᳚म॒प्सर॑सेदेव॒पानः॑ | म॒हश्चि॒द्धिष्मसि॑हि॒ताःस॑म॒र्येकृ॒धिसु॑ष्ठा॒नेरोद॑सीपुना॒नः || {7.4.16.2}, {9.97.27}, {9.6.1.27} |
577 | अश्वो॒नोक्र॑दो॒वृष॑भिर्युजा॒नःसिं॒होनभी॒मोमन॑सो॒जवी᳚यान् | अ॒र्वा॒चीनैः᳚प॒थिभि॒र्येरजि॑ष्ठा॒ऽआप॑वस्वसौमन॒संन॑ऽइन्दो || {7.4.16.3}, {9.97.28}, {9.6.1.28} |
578 | श॒तंधारा᳚दे॒वजा᳚ताऽअसृग्रन्त्स॒हस्र॑मेनाःक॒वयो᳚मृजन्ति | इन्दो᳚स॒नित्रं᳚दि॒वऽआप॑वस्वपुरए॒तासि॑मह॒तोधन॑स्य || {7.4.16.4}, {9.97.29}, {9.6.1.29} |
579 | दि॒वोनसर्गा᳚ऽअससृग्र॒मह्नां॒राजा॒नमि॒त्रंप्रमि॑नाति॒धीरः॑ | पि॒तुर्नपु॒त्रःक्रतु॑भिर्यता॒नऽआप॑वस्ववि॒शेऽअ॒स्याऽअजी᳚तिम् || {7.4.16.5}, {9.97.30}, {9.6.1.30} |
580 | प्रते॒धारा॒मधु॑मतीरसृग्र॒न्वारा॒न्यत्पू॒तोऽअ॒त्येष्यव्या॑न् | पव॑मान॒पव॑से॒धाम॒गोनां᳚जज्ञा॒नःसूर्य॑मपिन्वोऽअ॒र्कैः || {7.4.17.1}, {9.97.31}, {9.6.1.31} |
581 | कनि॑क्रद॒दनु॒पन्था᳚मृ॒तस्य॑शु॒क्रोविभा᳚स्य॒मृत॑स्य॒धाम॑ | सऽइन्द्रा᳚यपवसेमत्स॒रवा᳚न्हिन्वा॒नोवाचं᳚म॒तिभिः॑कवी॒नाम् || {7.4.17.2}, {9.97.32}, {9.6.1.32} |
582 | दि॒व्यःसु॑प॒र्णोऽव॑चक्षिसोम॒पिन्व॒न्धाराः॒कर्म॑णादे॒ववी᳚तौ | एन्दो᳚विशक॒लशं᳚सोम॒धानं॒क्रन्द᳚न्निहि॒सूर्य॒स्योप॑र॒श्मिम् || {7.4.17.3}, {9.97.33}, {9.6.1.33} |
583 | ति॒स्रोवाच॑ऽईरयति॒प्रवह्नि॑र्ऋ॒तस्य॑धी॒तिंब्रह्म॑णोमनी॒षाम् | गावो᳚यन्ति॒गोप॑तिंपृ॒च्छमा᳚नाः॒सोमं᳚यन्तिम॒तयो᳚वावशा॒नाः || {7.4.17.4}, {9.97.34}, {9.6.1.34} |
584 | सोमं॒गावो᳚धे॒नवो᳚वावशा॒नाःसोमं॒विप्रा᳚म॒तिभिः॑पृ॒च्छमा᳚नाः | सोमः॑सु॒तःपू᳚यतेऽअ॒ज्यमा᳚नः॒सोमे᳚ऽअ॒र्कास्त्रि॒ष्टुभः॒संन॑वन्ते || {7.4.17.5}, {9.97.35}, {9.6.1.35} |
585 | ए॒वानः॑सोमपरिषि॒च्यमा᳚न॒ऽआप॑वस्वपू॒यमा᳚नःस्व॒स्ति | इन्द्र॒मावि॑शबृह॒तारवे᳚णव॒र्धया॒वाचं᳚ज॒नया॒पुरं᳚धिम् || {7.4.18.1}, {9.97.36}, {9.6.1.36} |
586 | आजागृ॑वि॒र्विप्र॑ऋ॒ताम॑ती॒नांसोमः॑पुना॒नोऽअ॑सदच्च॒मूषु॑ | सप᳚न्ति॒यंमि॑थु॒नासो॒निका᳚माऽअध्व॒र्यवो᳚रथि॒रासः॑सु॒हस्ताः᳚ || {7.4.18.2}, {9.97.37}, {9.6.1.37} |
587 | सपु॑ना॒नऽउप॒सूरे॒नधातोभेऽअ॑प्रा॒रोद॑सी॒विषऽआ᳚वः | प्रि॒याचि॒द्यस्य॑प्रिय॒सास॑ऽऊ॒तीसतूधनं᳚का॒रिणे॒नप्रयं᳚सत् || {7.4.18.3}, {9.97.38}, {9.6.1.38} |
588 | सव॑र्धि॒तावर्ध॑नःपू॒यमा᳚नः॒सोमो᳚मी॒ढ्वाँऽअ॒भिनो॒ज्योति॑षावीत् | येना᳚नः॒पूर्वे᳚पि॒तरः॑पद॒ज्ञाःस्व॒र्विदो᳚ऽअ॒भिगाऽअद्रि॑मु॒ष्णन् || {7.4.18.4}, {9.97.39}, {9.6.1.39} |
589 | अक्रा᳚न्त्समु॒द्रःप्र॑थ॒मेविध᳚र्मञ्ज॒नय᳚न्प्र॒जाभुव॑नस्य॒राजा᳚ | वृषा᳚प॒वित्रे॒ऽअधि॒सानो॒ऽअव्ये᳚बृ॒हत्सोमो᳚वावृधेसुवा॒नऽइन्दुः॑ || {7.4.18.5}, {9.97.40}, {9.6.1.40} |
590 | म॒हत्तत्सोमो᳚महि॒षश्च॑कारा॒पांयद्गर्भोऽवृ॑णीतदे॒वान् | अद॑धा॒दिन्द्रे॒पव॑मान॒ऽओजोऽज॑नय॒त्सूर्ये॒ज्योति॒रिन्दुः॑ || {7.4.19.1}, {9.97.41}, {9.6.1.41} |
591 | मत्सि॑वा॒युमि॒ष्टये॒राध॑सेच॒मत्सि॑मि॒त्रावरु॑णापू॒यमा᳚नः | मत्सि॒शर्धो॒मारु॑तं॒मत्सि॑दे॒वान्मत्सि॒द्यावा᳚पृथि॒वीदे᳚वसोम || {7.4.19.2}, {9.97.42}, {9.6.1.42} |
592 | ऋ॒जुःप॑वस्ववृजि॒नस्य॑ह॒न्तापामी᳚वां॒बाध॑मानो॒मृध॑श्च | अ॒भि॒श्री॒णन्पयः॒पय॑सा॒भिगोना॒मिन्द्र॑स्य॒त्वंतव॑व॒यंसखा᳚यः || {7.4.19.3}, {9.97.43}, {9.6.1.43} |
593 | मध्वः॒सूदं᳚पवस्व॒वस्व॒ऽउत्सं᳚वी॒रंच॑न॒ऽआप॑वस्वा॒भगं᳚च | स्वद॒स्वेन्द्रा᳚य॒पव॑मानऽइन्दोर॒यिंच॑न॒ऽआप॑वस्वासमु॒द्रात् || {7.4.19.4}, {9.97.44}, {9.6.1.44} |
594 | सोमः॑सु॒तोधार॒यात्यो॒नहित्वा॒सिन्धु॒र्ननि॒म्नम॒भिवा॒ज्य॑क्षाः | आयोनिं॒वन्य॑मसदत्पुना॒नःसमिन्दु॒र्गोभि॑रसर॒त्सम॒द्भिः || {7.4.19.5}, {9.97.45}, {9.6.1.45} |
595 | ए॒षस्यते᳚पवतऽइन्द्र॒सोम॑श्च॒मूषु॒धीर॑ऽउश॒तेतव॑स्वान् | स्व॑र्चक्षारथि॒रःस॒त्यशु॑ष्मः॒कामो॒नयोदे᳚वय॒तामस॑र्जि || {7.4.20.1}, {9.97.46}, {9.6.1.46} |
596 | ए॒षप्र॒त्नेन॒वय॑सापुना॒नस्ति॒रोवर्पां᳚सिदुहि॒तुर्दधा᳚नः | वसा᳚नः॒शर्म॑त्रि॒वरू᳚थम॒प्सुहोते᳚वयाति॒सम॑नेषु॒रेभ॑न् || {7.4.20.2}, {9.97.47}, {9.6.1.47} |
597 | नून॒स्त्वंर॑थि॒रोदे᳚वसोम॒परि॑स्रवच॒म्वोः᳚पू॒यमा᳚नः | अ॒प्सुस्वादि॑ष्ठो॒मधु॑माँऽऋ॒तावा᳚दे॒वोनयःस॑वि॒तास॒त्यम᳚न्मा || {7.4.20.3}, {9.97.48}, {9.6.1.48} |
598 | अ॒भिवा॒युंवी॒त्य॑र्षागृणा॒नो॒३॑(ओ॒)ऽभिमि॒त्रावरु॑णापू॒यमा᳚नः | अ॒भीनरं᳚धी॒जव॑नंरथे॒ष्ठाम॒भीन्द्रं॒वृष॑णं॒वज्र॑बाहुम् || {7.4.20.4}, {9.97.49}, {9.6.1.49} |
599 | अ॒भिवस्त्रा᳚सुवस॒नान्य॑र्षा॒भिधे॒नूःसु॒दुघाः᳚पू॒यमा᳚नः | अ॒भिच॒न्द्राभर्त॑वेनो॒हिर᳚ण्या॒भ्यश्वा᳚न्र॒थिनो᳚देवसोम || {7.4.20.5}, {9.97.50}, {9.6.1.50} |
600 | अ॒भीनो᳚ऽअर्षदि॒व्यावसू᳚न्य॒भिविश्वा॒पार्थि॑वापू॒यमा᳚नः | अ॒भियेन॒द्रवि॑णम॒श्नवा᳚मा॒भ्या᳚र्षे॒यंज॑मदग्नि॒वन्नः॑ || {7.4.21.1}, {9.97.51}, {9.6.1.51} |
601 | अ॒याप॒वाप॑वस्वै॒नावसू᳚निमाँश्च॒त्वऽइ᳚न्दो॒सर॑सि॒प्रध᳚न्व | ब्र॒ध्नश्चि॒दत्र॒वातो॒नजू॒तःपु॑रु॒मेध॑श्चि॒त्तक॑वे॒नरं᳚दात् || {7.4.21.2}, {9.97.52}, {9.6.1.52} |
602 | उ॒तन॑ऽए॒नाप॑व॒याप॑व॒स्वाधि॑श्रु॒तेश्र॒वाय्य॑स्यती॒र्थे | ष॒ष्टिंस॒हस्रा᳚नैगु॒तोवसू᳚निवृ॒क्षंनप॒क्वंधू᳚नव॒द्रणा᳚य || {7.4.21.3}, {9.97.53}, {9.6.1.53} |
603 | मही॒मेऽअ॑स्य॒वृष॒नाम॑शू॒षेमाँश्च॑त्वेवा॒पृश॑नेवा॒वध॑त्रे | अस्वा᳚पयन्नि॒गुतः॑स्ने॒हय॒च्चापा॒मित्राँ॒ऽअपा॒चितो᳚ऽअचे॒तः || {7.4.21.4}, {9.97.54}, {9.6.1.54} |
604 | संत्रीप॒वित्रा॒वित॑तान्ये॒ष्यन्वेकं᳚धावसिपू॒यमा᳚नः | असि॒भगो॒ऽअसि॑दा॒त्रस्य॑दा॒तासि॑म॒घवा᳚म॒घव॑द्भ्यऽइन्दो || {7.4.21.5}, {9.97.55}, {9.6.1.55} |
605 | ए॒षवि॑श्व॒वित्प॑वतेमनी॒षीसोमो॒विश्व॑स्य॒भुव॑नस्य॒राजा᳚ | द्र॒प्साँऽई॒रय᳚न्वि॒दथे॒ष्विन्दु॒र्विवार॒मव्यं᳚स॒मयाति॑याति || {7.4.22.1}, {9.97.56}, {9.6.1.56} |
606 | इन्दुं᳚रिहन्तिमहि॒षाऽअद॑ब्धाःप॒देरे᳚भन्तिक॒वयो॒नगृध्राः᳚ | हि॒न्वन्ति॒धीरा᳚द॒शभिः॒क्षिपा᳚भिः॒सम᳚ञ्जतेरू॒पम॒पांरसे᳚न || {7.4.22.2}, {9.97.57}, {9.6.1.57} |
607 | त्वया᳚व॒यंपव॑मानेनसोम॒भरे᳚कृ॒तंविचि॑नुयाम॒शश्व॑त् | तन्नो᳚मि॒त्रोवरु॑णोमामहन्ता॒मदि॑तिः॒सिन्धुः॑पृथि॒वीऽउ॒तद्यौः || {7.4.22.3}, {9.97.58}, {9.6.1.58} |
[55] (१-१२) द्वादशर्चस्य सूक्तस्य वार्षागिरोऽम्बरीषो भारद्वाज ऋजिश्वा च ऋषी। पवमानः सोमो देवता | (१-१०, १२) प्रथमादिदशों द्वादश्याश्चानुष्टप्, (११) एकादश्याश्च बृहती छन्दसी || | |
608 | अ॒भिनो᳚वाज॒सात॑मंर॒यिम॑र्षपुरु॒स्पृह᳚म् | इन्दो᳚स॒हस्र॑भर्णसंतुविद्यु॒म्नंवि॑भ्वा॒सह᳚म् || {7.4.23.1}, {9.98.1}, {9.6.2.1} |
609 | परि॒ष्यसु॑वा॒नोऽअ॒व्ययं॒रथे॒नवर्मा᳚व्यत | इन्दु॑र॒भिद्रुणा᳚हि॒तोहि॑या॒नोधारा᳚भिरक्षाः || {7.4.23.2}, {9.98.2}, {9.6.2.2} |
610 | परि॒ष्यसु॑वा॒नोऽअ॑क्षा॒ऽइन्दु॒रव्ये॒मद॑च्युतः | धारा॒यऽऊ॒र्ध्वोऽअ॑ध्व॒रेभ्रा॒जानैति॑गव्य॒युः || {7.4.23.3}, {9.98.3}, {9.6.2.3} |
611 | सहित्वंदे᳚व॒शश्व॑ते॒वसु॒मर्ता᳚यदा॒शुषे᳚ | इन्दो᳚सह॒स्रिणं᳚र॒यिंश॒तात्मा᳚नंविवाससि || {7.4.23.4}, {9.98.4}, {9.6.2.4} |
612 | व॒यंते᳚ऽअ॒स्यवृ॑त्रह॒न्वसो॒वस्वः॑पुरु॒स्पृहः॑ | निनेदि॑ष्ठतमाऽइ॒षःस्याम॑सु॒म्नस्या᳚ध्रिगो || {7.4.23.5}, {9.98.5}, {9.6.2.5} |
613 | द्विर्यंपञ्च॒स्वय॑शसं॒स्वसा᳚रो॒ऽअद्रि॑संहतम् | प्रि॒यमिन्द्र॑स्य॒काम्यं᳚प्रस्ना॒पय᳚न्त्यू॒र्मिण᳚म् || {7.4.23.6}, {9.98.6}, {9.6.2.6} |
614 | परि॒त्यंह᳚र्य॒तंहरिं᳚ब॒भ्रुंपु॑नन्ति॒वारे᳚ण | योदे॒वान्विश्वाँ॒ऽइत्परि॒मदे᳚नस॒हगच्छ॑ति || {7.4.24.1}, {9.98.7}, {9.6.2.7} |
615 | अ॒स्यवो॒ह्यव॑सा॒पान्तो᳚दक्ष॒साध॑नम् | यःसू॒रिषु॒श्रवो᳚बृ॒हद्द॒धेस्व१॑(अ॒)'र्णह᳚र्य॒तः || {7.4.24.2}, {9.98.8}, {9.6.2.8} |
616 | सवां᳚य॒ज्ञेषु॑मानवी॒ऽइन्दु॑र्जनिष्टरोदसी | दे॒वोदे᳚वीगिरि॒ष्ठाऽअस्रे᳚ध॒न्तंतु॑वि॒ष्वणि॑ || {7.4.24.3}, {9.98.9}, {9.6.2.9} |
617 | इन्द्रा᳚यसोम॒पात॑वेवृत्र॒घ्नेपरि॑षिच्यसे | नरे᳚च॒दक्षि॑णावतेदे॒वाय॑सदना॒सदे᳚ || {7.4.24.4}, {9.98.10}, {9.6.2.10} |
618 | तेप्र॒त्नासो॒व्यु॑ष्टिषु॒सोमाः᳚प॒वित्रे᳚ऽअक्षरन् | अ॒प॒प्रोथ᳚न्तःसनु॒तर्हु॑र॒श्चितः॑प्रा॒तस्ताँऽअप्र॑चेतसः || {7.4.24.5}, {9.98.11}, {9.6.2.11} |
619 | तंस॑खायःपुरो॒रुचं᳚यू॒यंव॒यंच॑सू॒रयः॑ | अ॒श्याम॒वाज॑गन्ध्यंस॒नेम॒वाज॑पस्त्यम् || {7.4.24.6}, {9.98.12}, {9.6.2.12} |
[56] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्य काश्यपौ रेभसूनू ऋषी, पवमानः सोमो देवता | (१) प्रथम! बृहती, (२-८) द्वितीयादिसप्तानाञ्चानुष्टप् छन्दसी || | |
620 | आह᳚र्य॒ताय॑धृ॒ष्णवे॒धनु॑स्तन्वन्ति॒पौंस्य᳚म् | शु॒क्रांव॑य॒न्त्यसु॑रायनि॒र्णिजं᳚वि॒पामग्रे᳚मही॒युवः॑ || {7.4.25.1}, {9.99.1}, {9.6.3.1} |
621 | अध॑क्ष॒पापरि॑ष्कृतो॒वाजाँ᳚ऽअ॒भिप्रगा᳚हते | यदी᳚वि॒वस्व॑तो॒धियो॒हरिं᳚हि॒न्वन्ति॒यात॑वे || {7.4.25.2}, {9.99.2}, {9.6.3.2} |
622 | तम॑स्यमर्जयामसि॒मदो॒यऽइ᳚न्द्र॒पात॑मः | यंगाव॑ऽआ॒सभि॑र्द॒धुःपु॒रानू॒नंच॑सू॒रयः॑ || {7.4.25.3}, {9.99.3}, {9.6.3.3} |
623 | तंगाथ॑यापुरा॒ण्यापु॑ना॒नम॒भ्य॑नूषत | उ॒तोकृ॑पन्तधी॒तयो᳚दे॒वानां॒नाम॒बिभ्र॑तीः || {7.4.25.4}, {9.99.4}, {9.6.3.4} |
624 | तमु॒क्षमा᳚णम॒व्यये॒वारे᳚पुनन्तिधर्ण॒सिम् | दू॒तंनपू॒र्वचि॑त्तय॒ऽआशा᳚सतेमनी॒षिणः॑ || {7.4.25.5}, {9.99.5}, {9.6.3.5} |
625 | सपु॑ना॒नोम॒दिन्त॑मः॒सोम॑श्च॒मूषु॑सीदति | प॒शौनरेत॑ऽआ॒दध॒त्पति᳚र्वचस्यतेधि॒यः || {7.4.26.1}, {9.99.6}, {9.6.3.6} |
626 | समृ॑ज्यतेसु॒कर्म॑भिर्दे॒वोदे॒वेभ्यः॑सु॒तः | वि॒देयदा᳚सुसंद॒दिर्म॒हीर॒पोविगा᳚हते || {7.4.26.2}, {9.99.7}, {9.6.3.7} |
627 | सु॒तऽइ᳚न्दोप॒वित्र॒ऽआनृभि᳚र्य॒तोविनी᳚यसे | इन्द्रा᳚यमत्स॒रिन्त॑मश्च॒मूष्वानिषी᳚दसि || {7.4.26.3}, {9.99.8}, {9.6.3.8} |
[57] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपौ रेभसून ऋषी। पवमानः सोमो देवता | अनुष्टुप् छन्दः || | |
628 | अ॒भीन॑वन्तेऽअ॒द्रुहः॑प्रि॒यमिन्द्र॑स्य॒काम्य᳚म् | व॒त्संनपूर्व॒ऽआयु॑निजा॒तंरि॑हन्तिमा॒तरः॑ || {7.4.27.1}, {9.100.1}, {9.6.4.1} |
629 | पु॒ना॒नऽइ᳚न्द॒वाभ॑र॒सोम॑द्वि॒बर्ह॑संर॒यिम् | त्वंवसू᳚निपुष्यसि॒विश्वा᳚निदा॒शुषो᳚गृ॒हे || {7.4.27.2}, {9.100.2}, {9.6.4.2} |
630 | त्वंधियं᳚मनो॒युजं᳚सृ॒जावृ॒ष्टिंनत᳚न्य॒तुः | त्वंवसू᳚नि॒पार्थि॑वादि॒व्याच॑सोमपुष्यसि || {7.4.27.3}, {9.100.3}, {9.6.4.3} |
631 | परि॑तेजि॒ग्युषो᳚यथा॒धारा᳚सु॒तस्य॑धावति | रंह॑माणा॒व्य१॑(अ॒)'व्ययं॒वारं᳚वा॒जीव॑सान॒सिः || {7.4.27.4}, {9.100.4}, {9.6.4.4} |
632 | क्रत्वे॒दक्षा᳚यनःकवे॒पव॑स्वसोम॒धार॑या | इन्द्रा᳚य॒पात॑वेसु॒तोमि॒त्राय॒वरु॑णायच || {7.4.27.5}, {9.100.5}, {9.6.4.5} |
633 | पव॑स्ववाज॒सात॑मःप॒वित्रे॒धार॑यासु॒तः | इन्द्रा᳚यसोम॒विष्ण॑वेदे॒वेभ्यो॒मधु॑मत्तमः || {7.4.28.1}, {9.100.6}, {9.6.4.6} |
634 | त्वांरि॑हन्तिमा॒तरो॒हरिं᳚प॒वित्रे᳚ऽअ॒द्रुहः॑ | व॒त्संजा॒तंनधे॒नवः॒पव॑मान॒विध᳚र्मणि || {7.4.28.2}, {9.100.7}, {9.6.4.7} |
635 | पव॑मान॒महि॒श्रव॑श्चि॒त्रेभि᳚र्यासिर॒श्मिभिः॑ | शर्ध॒न्तमां᳚सिजिघ्नसे॒विश्वा᳚निदा॒शुषो᳚गृ॒हे || {7.4.28.3}, {9.100.8}, {9.6.4.8} |
636 | त्वंद्यांच॑महिव्रतपृथि॒वींचाति॑जभ्रिषे | प्रति॑द्रा॒पिम॑मुञ्चथाः॒पव॑मानमहित्व॒ना || {7.4.28.4}, {9.100.9}, {9.6.4.9} |
[58] (१-१६) षोळशर्चस्य सूक्तस्य (१-३) प्रथमादितृचस्य श्यावाश्विरन्धीगुः, (४-६) चतुर्थ्यादितृचस्य नाहुषो ययाति, (७-९) सप्तम्यादितृचस्य राजर्षिर्मानवो नहूषः, (१०-१२) दशम्यादितृचस्य सांवरणो मनुः, (१३-१६) त्रयोदश्यादिचतुर्ऋचामा स्य च वैश्वामित्रो वाच्यो वा प्रजापतिर्(ऋषयः) पवमानः सोमो देवता | (१, ४-१६) प्रथमर्चश्चतुर्थ्यादित्रयोदशानाञ्चानुष्टप् (२-३) द्वितीयातृतीययोश्च गायत्री छन्दसी || | |
637 | पु॒रोजि॑तीवो॒ऽअन्ध॑सःसु॒ताय॑मादयि॒त्नवे᳚ | अप॒श्वानं᳚श्नथिष्टन॒सखा᳚योदीर्घजि॒ह्व्य᳚म् || {7.5.1.1}, {9.101.1}, {9.6.5.1} |
638 | योधार॑यापाव॒कया᳚परिप्र॒स्यन्द॑तेसु॒तः | इन्दु॒रश्वो॒नकृत्व्यः॑ || {7.5.1.2}, {9.101.2}, {9.6.5.2} |
639 | तंदु॒रोष॑म॒भीनरः॒सोमं᳚वि॒श्वाच्या᳚धि॒या | य॒ज्ञंहि᳚न्व॒न्त्यद्रि॑भिः || {7.5.1.3}, {9.101.3}, {9.6.5.3} |
640 | सु॒तासो॒मधु॑मत्तमाः॒सोमा॒ऽइन्द्रा᳚यम॒न्दिनः॑ | प॒वित्र॑वन्तोऽअक्षरन्दे॒वान्ग॑च्छन्तुवो॒मदाः᳚ || {7.5.1.4}, {9.101.4}, {9.6.5.4} |
641 | इन्दु॒रिन्द्रा᳚यपवत॒ऽइति॑दे॒वासो᳚ऽअब्रुवन् | वा॒चस्पति᳚र्मखस्यते॒विश्व॒स्येशा᳚न॒ऽओज॑सा || {7.5.1.5}, {9.101.5}, {9.6.5.5} |
642 | स॒हस्र॑धारःपवतेसमु॒द्रोवा᳚चमीङ्ख॒यः | सोमः॒पती᳚रयी॒णांसखेन्द्र॑स्यदि॒वेदि॑वे || {7.5.2.1}, {9.101.6}, {9.6.5.6} |
643 | अ॒यंपू॒षार॒यिर्भगः॒सोमः॑पुना॒नोऽअ॑र्षति | पति॒र्विश्व॑स्य॒भूम॑नो॒व्य॑ख्य॒द्रोद॑सीऽउ॒भे || {7.5.2.2}, {9.101.7}, {9.6.5.7} |
644 | समु॑प्रि॒याऽअ॑नूषत॒गावो॒मदा᳚य॒घृष्व॑यः | सोमा᳚सःकृण्वतेप॒थःपव॑मानास॒ऽइन्द॑वः || {7.5.2.3}, {9.101.8}, {9.6.5.8} |
645 | यऽओजि॑ष्ठ॒स्तमाभ॑र॒पव॑मानश्र॒वाय्य᳚म् | यःपञ्च॑चर्ष॒णीर॒भिर॒यिंयेन॒वना᳚महै || {7.5.2.4}, {9.101.9}, {9.6.5.9} |
646 | सोमाः᳚पवन्त॒ऽइन्द॑वो॒ऽस्मभ्यं᳚गातु॒वित्त॑माः | मि॒त्राःसु॑वा॒नाऽअ॑रे॒पसः॑स्वा॒ध्यः॑स्व॒र्विदः॑ || {7.5.2.5}, {9.101.10}, {9.6.5.10} |
647 | सु॒ष्वा॒णासो॒व्यद्रि॑भि॒श्चिता᳚ना॒गोरधि॑त्व॒चि | इष॑म॒स्मभ्य॑म॒भितः॒सम॑स्वरन्वसु॒विदः॑ || {7.5.3.1}, {9.101.11}, {9.6.5.11} |
648 | ए॒तेपू॒तावि॑प॒श्चितः॒सोमा᳚सो॒दध्या᳚शिरः | सूर्या᳚सो॒नद॑र्श॒तासो᳚जिग॒त्नवो᳚ध्रु॒वाघृ॒ते || {7.5.3.2}, {9.101.12}, {9.6.5.12} |
649 | प्रसु᳚न्वा॒नस्यान्ध॑सो॒मर्तो॒नवृ॑त॒तद्वचः॑ | अप॒श्वान॑मरा॒धसं᳚ह॒ताम॒खंनभृग॑वः || {7.5.3.3}, {9.101.13}, {9.6.5.13} |
650 | आजा॒मिरत्के᳚ऽअव्यतभु॒जेनपु॒त्रऽओ॒ण्योः᳚ | सर॑ज्जा॒रोनयोष॑णांव॒रोनयोनि॑मा॒सद᳚म् || {7.5.3.4}, {9.101.14}, {9.6.5.14} |
651 | सवी॒रोद॑क्ष॒साध॑नो॒वियस्त॒स्तम्भ॒रोद॑सी | हरिः॑प॒वित्रे᳚ऽअव्यतवे॒धानयोनि॑मा॒सद᳚म् || {7.5.3.5}, {9.101.15}, {9.6.5.15} |
652 | अव्यो॒वारे᳚भिःपवते॒सोमो॒गव्ये॒ऽअधि॑त्व॒चि | कनि॑क्रद॒द्वृषा॒हरि॒रिन्द्र॑स्या॒भ्ये᳚तिनिष्कृ॒तम् || {7.5.3.6}, {9.101.16}, {9.6.5.16} |
[59] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्याप्त्यस्त्रित ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | उष्णिक् छन्दः || | |
653 | क्रा॒णाशिशु᳚र्म॒हीनां᳚हि॒न्वन्नृ॒तस्य॒दीधि॑तिम् | विश्वा॒परि॑प्रि॒याभु॑व॒दध॑द्वि॒ता || {7.5.4.1}, {9.102.1}, {9.6.6.1} |
654 | उप॑त्रि॒तस्य॑पा॒ष्यो॒३॑(ओ॒)रभ॑क्त॒यद्गुहा᳚प॒दम् | य॒ज्ञस्य॑स॒प्तधाम॑भि॒रध॑प्रि॒यम् || {7.5.4.2}, {9.102.2}, {9.6.6.2} |
655 | त्रीणि॑त्रि॒तस्य॒धार॑यापृ॒ष्ठेष्वेर॑यार॒यिम् | मिमी᳚तेऽअस्य॒योज॑ना॒विसु॒क्रतुः॑ || {7.5.4.3}, {9.102.3}, {9.6.6.3} |
656 | ज॒ज्ञा॒नंस॒प्तमा॒तरो᳚वे॒धाम॑शासतश्रि॒ये | अ॒यंध्रु॒वोर॑यी॒णांचिके᳚त॒यत् || {7.5.4.4}, {9.102.4}, {9.6.6.4} |
657 | अ॒स्यव्र॒तेस॒जोष॑सो॒विश्वे᳚दे॒वासो᳚ऽअ॒द्रुहः॑ | स्पा॒र्हाभ॑वन्ति॒रन्त॑योजु॒षन्त॒यत् || {7.5.4.5}, {9.102.5}, {9.6.6.5} |
658 | यमी॒गर्भ॑मृता॒वृधो᳚दृ॒शेचारु॒मजी᳚जनन् | क॒विंमंहि॑ष्ठमध्व॒रेपु॑रु॒स्पृह᳚म् || {7.5.5.1}, {9.102.6}, {9.6.6.6} |
659 | स॒मी॒ची॒नेऽअ॒भित्मना᳚य॒ह्वीऋ॒तस्य॑मा॒तरा᳚ | त॒न्वा॒नाय॒ज्ञमा᳚नु॒षग्यद᳚ञ्ज॒ते || {7.5.5.2}, {9.102.7}, {9.6.6.7} |
660 | क्रत्वा᳚शु॒क्रेभि॑र॒क्षभि॑र्ऋ॒णोरप᳚व्र॒जंदि॒वः | हि॒न्वन्नृ॒तस्य॒दीधि॑तिं॒प्राध्व॒रे || {7.5.5.3}, {9.102.8}, {9.6.6.8} |
[60] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्याप्त्यस्त्रित ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | उष्णिक् छन्दः || | |
661 | प्रपु॑ना॒नाय॑वे॒धसे॒सोमा᳚य॒वच॒ऽउद्य॑तम् | भृ॒तिंनभ॑राम॒तिभि॒र्जुजो᳚षते || {7.5.6.1}, {9.103.1}, {9.6.7.1} |
662 | परि॒वारा᳚ण्य॒व्यया॒गोभि॑रञ्जा॒नोऽअ॑र्षति | त्रीष॒धस्था᳚पुना॒नःकृ॑णुते॒हरिः॑ || {7.5.6.2}, {9.103.2}, {9.6.7.2} |
663 | परि॒कोशं᳚मधु॒श्चुत॑म॒व्यये॒वारे᳚ऽअर्षति | अ॒भिवाणी॒र्ऋषी᳚णांस॒प्तनू᳚षत || {7.5.6.3}, {9.103.3}, {9.6.7.3} |
664 | परि॑णे॒ताम॑ती॒नांवि॒श्वदे᳚वो॒ऽअदा᳚भ्यः | सोमः॑पुना॒नश्च॒म्वो᳚र्विश॒द्धरिः॑ || {7.5.6.4}, {9.103.4}, {9.6.7.4} |
665 | परि॒दैवी॒रनु॑स्व॒धाऽइन्द्रे᳚णयाहिस॒रथ᳚म् | पु॒ना॒नोवा॒घद्वा॒घद्भि॒रम॑र्त्यः || {7.5.6.5}, {9.103.5}, {9.6.7.5} |
666 | परि॒सप्ति॒र्नवा᳚ज॒युर्दे॒वोदे॒वेभ्यः॑सु॒तः | व्या॒न॒शिःपव॑मानो॒विधा᳚वति || {7.5.6.6}, {9.103.6}, {9.6.7.6} |
[61] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य कारावौ पर्वतनारदौ काश्यप्यौ शिखण्डिन्यावप्सरसौ वा ऋषिके। पवमानः सोमो देवता | उष्णिक् छन्दः || | |
667 | सखा᳚य॒ऽआनिषी᳚दतपुना॒नाय॒प्रगा᳚यत | शिशुं॒नय॒ज्ञैःपरि॑भूषतश्रि॒ये || {7.5.7.1}, {9.104.1}, {9.7.1.1} |
668 | समी᳚व॒त्संनमा॒तृभिः॑सृ॒जता᳚गय॒साध॑नम् | दे॒वा॒व्य१॑(अ॒)अंमद॑म॒भिद्विश॑वसम् || {7.5.7.2}, {9.104.2}, {9.7.1.2} |
669 | पु॒नाता᳚दक्ष॒साध॑नं॒यथा॒शर्धा᳚यवी॒तये᳚ | यथा᳚मि॒त्राय॒वरु॑णाय॒शंत॑मः || {7.5.7.3}, {9.104.3}, {9.7.1.3} |
670 | अ॒स्मभ्यं᳚त्वावसु॒विद॑म॒भिवाणी᳚रनूषत | गोभि॑ष्टे॒वर्ण॑म॒भिवा᳚सयामसि || {7.5.7.4}, {9.104.4}, {9.7.1.4} |
671 | सनो᳚मदानांपत॒ऽइन्दो᳚दे॒वप्स॑राऽअसि | सखे᳚व॒सख्ये᳚गातु॒वित्त॑मोभव || {7.5.7.5}, {9.104.5}, {9.7.1.5} |
672 | सने᳚मिकृ॒ध्य१॑(अ॒)स्मदार॒क्षसं॒कंचि॑द॒त्रिण᳚म् | अपादे᳚वंद्व॒युमंहो᳚युयोधिनः || {7.5.7.6}, {9.104.6}, {9.7.1.6} |
[62] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य काण्वौ पर्वतनारदावृषी। पवमानः सोमो देवता | उष्णिक् छन्दः || | |
673 | तंवः॑सखायो॒मदा᳚यपुना॒नम॒भिगा᳚यत | शिशुं॒नय॒ज्ञैःस्व॑दयन्तगू॒र्तिभिः॑ || {7.5.8.1}, {9.105.1}, {9.7.2.1} |
674 | संव॒त्सऽइ॑वमा॒तृभि॒रिन्दु॑र्हिन्वा॒नोऽअ॑ज्यते | दे॒वा॒वीर्मदो᳚म॒तिभिः॒परि॑ष्कृतः || {7.5.8.2}, {9.105.2}, {9.7.2.2} |
675 | अ॒यंदक्षा᳚य॒साध॑नो॒ऽयंशर्धा᳚यवी॒तये᳚ | अ॒यंदे॒वेभ्यो॒मधु॑मत्तमःसु॒तः || {7.5.8.3}, {9.105.3}, {9.7.2.3} |
676 | गोम᳚न्नऽइन्दो॒ऽअश्व॑वत्सु॒तःसु॑दक्षधन्व | शुचिं᳚ते॒वर्ण॒मधि॒गोषु॑दीधरम् || {7.5.8.4}, {9.105.4}, {9.7.2.4} |
677 | सनो᳚हरीणांपत॒ऽइन्दो᳚दे॒वप्स॑रस्तमः | सखे᳚व॒सख्ये॒नर्यो᳚रु॒चेभ॑व || {7.5.8.5}, {9.105.5}, {9.7.2.5} |
678 | सने᳚मि॒त्वम॒स्मदाँऽअदे᳚वं॒कंचि॑द॒त्रिण᳚म् | सा॒ह्वाँऽइ᳚न्दो॒परि॒बाधो॒ऽअप॑द्व॒युम् || {7.5.8.6}, {9.105.6}, {9.7.2.6} |
[63] (१-१४) चतुर्दशर्चस्य सूक्तस्य (१-३, १०-१४) प्रथमादितृचस्य दशम्यादिपञ्चानाञ्च चाक्षुषोऽग्निः, (४-६) चतुर्थ्यादितृचस्य मानवश्चक्षुः, (७-९) सप्तम्यादितृचस्य चाप्सवो मनुऋर्ष यः, पवमानः सोमो देवता | उष्णिक् छन्दः || | |
679 | इन्द्र॒मच्छ॑सु॒ताऽइ॒मेवृष॑णंयन्तु॒हर॑यः | श्रु॒ष्टीजा॒तास॒ऽइन्द॑वःस्व॒र्विदः॑ || {7.5.9.1}, {9.106.1}, {9.7.3.1} |
680 | अ॒यंभरा᳚यसान॒सिरिन्द्रा᳚यपवतेसु॒तः | सोमो॒जैत्र॑स्यचेतति॒यथा᳚वि॒दे || {7.5.9.2}, {9.106.2}, {9.7.3.2} |
681 | अ॒स्येदिन्द्रो॒मदे॒ष्वाग्रा॒भंगृ॑भ्णीतसान॒सिम् | वज्रं᳚च॒वृष॑णंभर॒त्सम॑प्सु॒जित् || {7.5.9.3}, {9.106.3}, {9.7.3.3} |
682 | प्रध᳚न्वासोम॒जागृ॑वि॒रिन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव | द्यु॒मन्तं॒शुष्म॒माभ॑रास्व॒र्विद᳚म् || {7.5.9.4}, {9.106.4}, {9.7.3.4} |
683 | इन्द्रा᳚य॒वृष॑णं॒मदं॒पव॑स्ववि॒श्वद॑र्शतः | स॒हस्र॑यामापथि॒कृद्वि॑चक्ष॒णः || {7.5.9.5}, {9.106.5}, {9.7.3.5} |
684 | अ॒स्मभ्यं᳚गातु॒वित्त॑मोदे॒वेभ्यो॒मधु॑मत्तमः | स॒हस्रं᳚याहिप॒थिभिः॒कनि॑क्रदत् || {7.5.10.1}, {9.106.6}, {9.7.3.6} |
685 | पव॑स्वदे॒ववी᳚तय॒ऽइन्दो॒धारा᳚भि॒रोज॑सा | आक॒लशं॒मधु॑मान्त्सोमनःसदः || {7.5.10.2}, {9.106.7}, {9.7.3.7} |
686 | तव॑द्र॒प्साऽउ॑द॒प्रुत॒ऽइन्द्रं॒मदा᳚यवावृधुः | त्वांदे॒वासो᳚ऽअ॒मृता᳚य॒कंप॑पुः || {7.5.10.3}, {9.106.8}, {9.7.3.8} |
687 | आनः॑सुतासऽइन्दवःपुना॒नाधा᳚वतार॒यिम् | वृ॒ष्टिद्या᳚वोरीत्यापःस्व॒र्विदः॑ || {7.5.10.4}, {9.106.9}, {9.7.3.9} |
688 | सोमः॑पुना॒नऽऊ॒र्मिणाव्यो॒वारं॒विधा᳚वति | अग्रे᳚वा॒चःपव॑मानः॒कनि॑क्रदत् || {7.5.10.5}, {9.106.10}, {9.7.3.10} |
689 | धी॒भिर्हि᳚न्वन्तिवा॒जिनं॒वने॒क्रीळ᳚न्त॒मत्य॑विम् | अ॒भित्रि॑पृ॒ष्ठंम॒तयः॒सम॑स्वरन् || {7.5.11.1}, {9.106.11}, {9.7.3.11} |
690 | अस॑र्जिक॒लशाँ᳚ऽअ॒भिमी॒ळ्हेसप्ति॒र्नवा᳚ज॒युः | पु॒ना॒नोवाचं᳚ज॒नय᳚न्नसिष्यदत् || {7.5.11.2}, {9.106.12}, {9.7.3.12} |
691 | पव॑तेहर्य॒तोहरि॒रति॒ह्वरां᳚सि॒रंह्या᳚ | अ॒भ्यर्ष᳚न्त्स्तो॒तृभ्यो᳚वी॒रव॒द्यशः॑ || {7.5.11.3}, {9.106.13}, {9.7.3.13} |
692 | अ॒याप॑वस्वदेव॒युर्मधो॒र्धारा᳚ऽअसृक्षत | रेभ᳚न्प॒वित्रं॒पर्ये᳚षिवि॒श्वतः॑ || {7.5.11.4}, {9.106.14}, {9.7.3.14} |
[64] (१-२६) षड़िवशत्यृचस्य सूक्तस्य बार्हस्पत्यो भरद्वाजः, मारीचः कश्यपः, रहूगणो गोतमः, भौमोऽत्रिः, गाथिनो विश्वामित्रः, भार्गवो जमदग्निः मैत्रावरुणिर्वसिष्ठश्च सप्तर्षयः, पवमानः सोमो देवता | (१-२, ४-७, १०-१५, १७-२६) प्रथमाद्वितीययोर्ऋचोश्चतुर्थ्यादिचतसृणां दशम्यादिषण्णां सप्तदश्यादिदशानाञ्च प्रगाथः ((१, ४, ६, १०, १२, १४, १७, १९, २१, २३, २५) प्रथमाचतुर्थीषष्ठीदशमीद्वादशीचतुर्दश सप्तदश्येकोनविंश्येकविंशीत्रयोविंशीपञ्चविंशी नां बृहती, (२, ५, ७, ११, १३, १५, १८, २०, २२, २४, २६) द्वितीयापञ्चमीसप्तम्येकादशीत्रयोदशीपञ्चदश्यष्टादशीविंशीद्वाविंशीचतुर्विशीषड़िवशी नां सतोबृहती), (३) तृतीयाया भरिग्विराड़ द्विपदा (८-९) अष्टमीनवम्योबह ती, (१६) षोडश्याश्च द्विपदा विराट् छन्दांसि || | |
693 | परी॒तोषि᳚ञ्चतासु॒तंसोमो॒यऽउ॑त्त॒मंह॒विः | द॒ध॒न्वाँऽयोनर्यो᳚ऽअ॒प्स्व१॑(अ॒)'न्तरासु॒षाव॒सोम॒मद्रि॑भिः || {7.5.12.1}, {9.107.1}, {9.7.4.1} |
694 | नू॒नंपु॑ना॒नोऽवि॑भिः॒परि॑स्र॒वाद॑ब्धःसुर॒भिन्त॑रः | सु॒तेचि॑त्त्वा॒प्सुम॑दामो॒ऽअन्ध॑साश्री॒णन्तो॒गोभि॒रुत्त॑रम् || {7.5.12.2}, {9.107.2}, {9.7.4.2} |
695 | परि॑सुवा॒नश्चक्ष॑सेदेव॒माद॑नः॒क्रतु॒रिन्दु᳚र्विचक्ष॒णः || {7.5.12.3}, {9.107.3}, {9.7.4.3} |
696 | पु॒ना॒नःसो᳚म॒धार॑या॒पोवसा᳚नोऽअर्षसि | आर॑त्न॒धायोनि॑मृ॒तस्य॑सीद॒स्युत्सो᳚देवहिर॒ण्ययः॑ || {7.5.12.4}, {9.107.4}, {9.7.4.4} |
697 | दु॒हा॒नऽऊध॑र्दि॒व्यंमधु॑प्रि॒यंप्र॒त्नंस॒धस्थ॒मास॑दत् | आ॒पृच्छ्यं᳚ध॒रुणं᳚वा॒ज्य॑र्षति॒नृभि॑र्धू॒तोवि॑चक्ष॒णः || {7.5.12.5}, {9.107.5}, {9.7.4.5} |
698 | पु॒ना॒नःसो᳚म॒जागृ॑वि॒रव्यो॒वारे॒परि॑प्रि॒यः | त्वंविप्रो᳚ऽअभ॒वोऽङ्गि॑रस्तमो॒मध्वा᳚य॒ज्ञंमि॑मिक्षनः || {7.5.13.1}, {9.107.6}, {9.7.4.6} |
699 | सोमो᳚मी॒ढ्वान्प॑वतेगातु॒वित्त॑म॒ऋषि॒र्विप्रो᳚विचक्ष॒णः | त्वंक॒विर॑भवोदेव॒वीत॑म॒ऽआसूर्यं᳚रोहयोदि॒वि || {7.5.13.2}, {9.107.7}, {9.7.4.7} |
700 | सोम॑ऽउषुवा॒णःसो॒तृभि॒रधि॒ष्णुभि॒रवी᳚नाम् | अश्व॑येवह॒रिता᳚याति॒धार॑याम॒न्द्रया᳚याति॒धार॑या || {7.5.13.3}, {9.107.8}, {9.7.4.8} |
701 | अ॒नू॒पेगोमा॒न्गोभि॑रक्षाः॒सोमो᳚दु॒ग्धाभि॑रक्षाः | स॒मु॒द्रंनसं॒वर॑णान्यग्मन्म॒न्दीमदा᳚यतोशते || {7.5.13.4}, {9.107.9}, {9.7.4.9} |
702 | आसो᳚मसुवा॒नोऽअद्रि॑भिस्ति॒रोवारा᳚ण्य॒व्यया᳚ | जनो॒नपु॒रिच॒म्वो᳚र्विश॒द्धरिः॒सदो॒वने᳚षुदधिषे || {7.5.13.5}, {9.107.10}, {9.7.4.10} |
703 | समा᳚मृजेति॒रोऽअण्वा᳚निमे॒ष्यो᳚मी॒ळ्हेसप्ति॒र्नवा᳚ज॒युः | अ॒नु॒माद्यः॒पव॑मानोमनी॒षिभिः॒सोमो॒विप्रे᳚भि॒र्ऋक्व॑भिः || {7.5.14.1}, {9.107.11}, {9.7.4.11} |
704 | प्रसो᳚मदे॒ववी᳚तये॒सिन्धु॒र्नपि॑प्ये॒ऽअर्ण॑सा | अं॒शोःपय॑सामदि॒रोनजागृ॑वि॒रच्छा॒कोशं᳚मधु॒श्चुत᳚म् || {7.5.14.2}, {9.107.12}, {9.7.4.12} |
705 | आह᳚र्य॒तोऽअर्जु॑ने॒ऽअत्के᳚ऽअव्यतप्रि॒यःसू॒नुर्नमर्ज्यः॑ | तमीं᳚हिन्वन्त्य॒पसो॒यथा॒रथं᳚न॒दीष्वागभ॑स्त्योः || {7.5.14.3}, {9.107.13}, {9.7.4.13} |
706 | अ॒भिसोमा᳚सऽआ॒यवः॒पव᳚न्ते॒मद्यं॒मद᳚म् | स॒मु॒द्रस्याधि॑वि॒ष्टपि॑मनी॒षिणो᳚मत्स॒रासः॑स्व॒र्विदः॑ || {7.5.14.4}, {9.107.14}, {9.7.4.14} |
707 | तर॑त्समु॒द्रंपव॑मानऽऊ॒र्मिणा॒राजा᳚दे॒वऋ॒तंबृ॒हत् | अर्ष᳚न्मि॒त्रस्य॒वरु॑णस्य॒धर्म॑णा॒प्रहि᳚न्वा॒नऋ॒तंबृ॒हत् || {7.5.14.5}, {9.107.15}, {9.7.4.15} |
708 | नृभि᳚र्येमा॒नोह᳚र्य॒तोवि॑चक्ष॒णोराजा᳚दे॒वःस॑मु॒द्रियः॑ || {7.5.15.1}, {9.107.16}, {9.7.4.16} |
709 | इन्द्रा᳚यपवते॒मदः॒सोमो᳚म॒रुत्व॑तेसु॒तः | स॒हस्र॑धारो॒ऽअत्यव्य॑मर्षति॒तमी᳚मृजन्त्या॒यवः॑ || {7.5.15.2}, {9.107.17}, {9.7.4.17} |
710 | पु॒ना॒नश्च॒मूज॒नय᳚न्म॒तिंक॒विःसोमो᳚दे॒वेषु॑रण्यति | अ॒पोवसा᳚नः॒परि॒गोभि॒रुत्त॑रः॒सीद॒न्वने᳚ष्वव्यत || {7.5.15.3}, {9.107.18}, {9.7.4.18} |
711 | तवा॒हंसो᳚मरारणस॒ख्यऽइ᳚न्दोदि॒वेदि॑वे | पु॒रूणि॑बभ्रो॒निच॑रन्ति॒मामव॑परि॒धीँरति॒ताँऽइ॑हि || {7.5.15.4}, {9.107.19}, {9.7.4.19} |
712 | उ॒ताहंनक्त॑मु॒तसो᳚मते॒दिवा᳚स॒ख्याय॑बभ्र॒ऽऊध॑नि | घृ॒णातप᳚न्त॒मति॒सूर्यं᳚प॒रःश॑कु॒नाऽइ॑वपप्तिम || {7.5.15.5}, {9.107.20}, {9.7.4.20} |
713 | मृ॒ज्यमा᳚नःसुहस्त्यसमु॒द्रेवाच॑मिन्वसि | र॒यिंपि॒शङ्गं᳚बहु॒लंपु॑रु॒स्पृहं॒पव॑माना॒भ्य॑र्षसि || {7.5.16.1}, {9.107.21}, {9.7.4.21} |
714 | मृ॒जा॒नोवारे॒पव॑मानोऽअ॒व्यये॒वृषाव॑चक्रदो॒वने᳚ | दे॒वानां᳚सोमपवमाननिष्कृ॒तंगोभि॑रञ्जा॒नोऽअ॑र्षसि || {7.5.16.2}, {9.107.22}, {9.7.4.22} |
715 | पव॑स्व॒वाज॑सातये॒ऽभिविश्वा᳚नि॒काव्या᳚ | त्वंस॑मु॒द्रंप्र॑थ॒मोविधा᳚रयोदे॒वेभ्यः॑सोममत्स॒रः || {7.5.16.3}, {9.107.23}, {9.7.4.23} |
716 | सतूप॑वस्व॒परि॒पार्थि॑वं॒रजो᳚दि॒व्याच॑सोम॒धर्म॑भिः | त्वांविप्रा᳚सोम॒तिभि᳚र्विचक्षणशु॒भ्रंहि᳚न्वन्तिधी॒तिभिः॑ || {7.5.16.4}, {9.107.24}, {9.7.4.24} |
717 | पव॑मानाऽअसृक्षतप॒वित्र॒मति॒धार॑या | म॒रुत्व᳚न्तोमत्स॒राऽइ᳚न्द्रि॒याहया᳚मे॒धाम॒भिप्रयां᳚सिच || {7.5.16.5}, {9.107.25}, {9.7.4.25} |
718 | अ॒पोवसा᳚नः॒परि॒कोश॑मर्ष॒तीन्दु॑र्हिया॒नःसो॒तृभिः॑ | ज॒नय॒ञ्ज्योति᳚र्म॒न्दना᳚ऽअवीवश॒द्गाःकृ᳚ण्वा॒नोननि॒र्णिज᳚म् || {7.5.16.6}, {9.107.26}, {9.7.4.26} |
[65] (१-१६) षोळशर्चस्य सूक्तस्य (१-२) प्रथमाद्वितीययोर्ऋचोः शाक्त्यो गौरिवीतिः, (३, १४-१६) तृतीयायाश्चतुदर्श यादितृचस्य च वासिष्ठः शक्तिः, (४५) चतुर्थीपञ्चम्योराङ्गिरस ऊरुः, (६-७) षष्ठीसप्तम्योर्भारद्वाज ऋजिश्वा, (८-९) अष्टमीनवम्योराङ्गिरस ऊर्ध्वसपा, (१०-११) दशम्येकादश्योराङ्गिरसः कृतयशाः, (१२-१३) द्वादशीत्रयोदश्योश्च राजर्षिणञ्चय (ऋषयः) पवमानः सोमो देवता | काकभः प्रगाथः (विषमर्चाम् ककप, समर्चाम् सतोबृहती), (१३) त्रयोदश्या यवमध्या गायत्री छन्दः || | |
719 | पव॑स्व॒मधु॑मत्तम॒ऽइन्द्रा᳚यसोमक्रतु॒वित्त॑मो॒मदः॑ | महि॑द्यु॒क्षत॑मो॒मदः॑ || {7.5.17.1}, {9.108.1}, {9.7.5.1} |
720 | यस्य॑तेपी॒त्वावृ॑ष॒भोवृ॑षा॒यते॒ऽस्यपी॒तास्व॒र्विदः॑ | ससु॒प्रके᳚तोऽअ॒भ्य॑क्रमी॒दिषोऽच्छा॒वाजं॒नैत॑शः || {7.5.17.2}, {9.108.2}, {9.7.5.2} |
721 | त्वंह्य१॑(अ॒)'ङ्गदैव्या॒पव॑मान॒जनि॑मानिद्यु॒मत्त॑मः | अ॒मृ॒त॒त्वाय॑घो॒षयः॑ || {7.5.17.3}, {9.108.3}, {9.7.5.3} |
722 | येना॒नव॑ग्वोद॒ध्यङ्ङ॑पोर्णु॒तेयेन॒विप्रा᳚सऽआपि॒रे | दे॒वानां᳚सु॒म्नेऽअ॒मृत॑स्य॒चारु॑णो॒येन॒श्रवां᳚स्यान॒शुः || {7.5.17.4}, {9.108.4}, {9.7.5.4} |
723 | ए॒षस्यधार॑यासु॒तोऽव्यो॒वारे᳚भिःपवतेम॒दिन्त॑मः | क्रीळ᳚न्नू॒र्मिर॒पामि॑व || {7.5.17.5}, {9.108.5}, {9.7.5.5} |
724 | यऽउ॒स्रिया॒ऽअप्या᳚ऽअ॒न्तरश्म॑नो॒निर्गाऽअकृ᳚न्त॒दोज॑सा | अ॒भिव्र॒जंत॑त्निषे॒गव्य॒मश्व्यं᳚व॒र्मीव॑धृष्ण॒वारु॑ज || {7.5.18.1}, {9.108.6}, {9.7.5.6} |
725 | आसो᳚ता॒परि॑षिञ्च॒ताश्वं॒नस्तोम॑म॒प्तुरं᳚रज॒स्तुर᳚म् | व॒न॒क्र॒क्षमु॑द॒प्रुत᳚म् || {7.5.18.2}, {9.108.7}, {9.7.5.7} |
726 | स॒हस्र॑धारंवृष॒भंप॑यो॒वृधं᳚प्रि॒यंदे॒वाय॒जन्म॑ने | ऋ॒तेन॒यऋ॒तजा᳚तोविवावृ॒धेराजा᳚दे॒वऋ॒तंबृ॒हत् || {7.5.18.3}, {9.108.8}, {9.7.5.8} |
727 | अ॒भिद्यु॒म्नंबृ॒हद्यश॒ऽइष॑स्पतेदिदी॒हिदे᳚वदेव॒युः | विकोशं᳚मध्य॒मंयु॑व || {7.5.18.4}, {9.108.9}, {9.7.5.9} |
728 | आव॑च्यस्वसुदक्षच॒म्वोः᳚सु॒तोवि॒शांवह्नि॒र्नवि॒श्पतिः॑ | वृ॒ष्टिंदि॒वःप॑वस्वरी॒तिम॒पांजिन्वा॒गवि॑ष्टये॒धियः॑ || {7.5.18.5}, {9.108.10}, {9.7.5.10} |
729 | ए॒तमु॒त्यंम॑द॒च्युतं᳚स॒हस्र॑धारंवृष॒भंदिवो᳚दुहुः | विश्वा॒वसू᳚नि॒बिभ्र॑तम् || {7.5.19.1}, {9.108.11}, {9.7.5.11} |
730 | वृषा॒विज॑ज्ञेज॒नय॒न्नम॑र्त्यःप्र॒तप॒ञ्ज्योति॑षा॒तमः॑ | ससुष्टु॑तःक॒विभि᳚र्नि॒र्णिजं᳚दधेत्रि॒धात्व॑स्य॒दंस॑सा || {7.5.19.2}, {9.108.12}, {9.7.5.12} |
731 | ससु᳚न्वे॒योवसू᳚नां॒योरा॒यामा᳚ने॒तायऽइळा᳚नाम् | सोमो॒यःसु॑क्षिती॒नाम् || {7.5.19.3}, {9.108.13}, {9.7.5.13} |
732 | यस्य॑न॒ऽइन्द्रः॒पिबा॒द्यस्य॑म॒रुतो॒यस्य॑वार्य॒मणा॒भगः॑ | आयेन॑मि॒त्रावरु॑णा॒करा᳚मह॒ऽएन्द्र॒मव॑सेम॒हे || {7.5.19.4}, {9.108.14}, {9.7.5.14} |
733 | इन्द्रा᳚यसोम॒पात॑वे॒नृभि᳚र्य॒तःस्वा᳚यु॒धोम॒दिन्त॑मः | पव॑स्व॒मधु॑मत्तमः || {7.5.19.5}, {9.108.15}, {9.7.5.15} |
734 | इन्द्र॑स्य॒हार्दि॑सोम॒धान॒मावि॑शसमु॒द्रमि॑व॒सिन्ध॑वः | जुष्टो᳚मि॒त्राय॒वरु॑णायवा॒यवे᳚दि॒वोवि॑ष्ट॒म्भऽउ॑त्त॒मः || {7.5.19.6}, {9.108.16}, {9.7.5.16} |
[66] (१-२२) द्वाविंशत्यृचस्य सूक्तस्यैश्वरयो धिष्ण्याग्नय (ऋषयः) पवमानः सोमो देवता | द्विपदा विराट् छन्दः || | |
735 | परि॒प्रध॒न्वेन्द्रा᳚यसोमस्वा॒दुर्मि॒त्राय॑पू॒ष्णेभगा᳚य || {7.5.20.1}, {9.109.1}, {9.7.6.1} |
736 | इन्द्र॑स्तेसोमसु॒तस्य॑पेयाः॒क्रत्वे॒दक्षा᳚य॒विश्वे᳚चदे॒वाः || {7.5.20.2}, {9.109.2}, {9.7.6.2} |
737 | ए॒वामृता᳚यम॒हेक्षया᳚य॒सशु॒क्रोऽअ॑र्षदि॒व्यःपी॒यूषः॑ || {7.5.20.3}, {9.109.3}, {9.7.6.3} |
738 | पव॑स्वसोमम॒हान्त्स॑मु॒द्रःपि॒तादे॒वानां॒विश्वा॒भिधाम॑ || {7.5.20.4}, {9.109.4}, {9.7.6.4} |
739 | शु॒क्रःप॑वस्वदे॒वेभ्यः॑सोमदि॒वेपृ॑थि॒व्यैशंच॑प्र॒जायै᳚ || {7.5.20.5}, {9.109.5}, {9.7.6.5} |
740 | दि॒वोध॒र्तासि॑शु॒क्रःपी॒यूषः॑स॒त्येविध᳚र्मन्वा॒जीप॑वस्व || {7.5.20.6}, {9.109.6}, {9.7.6.6} |
741 | पव॑स्वसोमद्यु॒म्नीसु॑धा॒रोम॒हामवी᳚ना॒मनु॑पू॒र्व्यः || {7.5.20.7}, {9.109.7}, {9.7.6.7} |
742 | नृभि᳚र्येमा॒नोज॑ज्ञा॒नःपू॒तःक्षर॒द्विश्वा᳚निम॒न्द्रःस्व॒र्वित् || {7.5.20.8}, {9.109.8}, {9.7.6.8} |
743 | इन्दुः॑पुना॒नःप्र॒जामु॑रा॒णःकर॒द्विश्वा᳚नि॒द्रवि॑णानिनः || {7.5.20.9}, {9.109.9}, {9.7.6.9} |
744 | पव॑स्वसोम॒क्रत्वे॒दक्षा॒याश्वो॒ननि॒क्तोवा॒जीधना᳚य || {7.5.20.10}, {9.109.10}, {9.7.6.10} |
745 | तंते᳚सो॒तारो॒रसं॒मदा᳚यपु॒नन्ति॒सोमं᳚म॒हेद्यु॒म्नाय॑ || {7.5.21.1}, {9.109.11}, {9.7.6.11} |
746 | शिशुं᳚जज्ञा॒नंहरिं᳚मृजन्तिप॒वित्रे॒सोमं᳚दे॒वेभ्य॒ऽइन्दु᳚म् || {7.5.21.2}, {9.109.12}, {9.7.6.12} |
747 | इन्दुः॑पविष्ट॒चारु॒र्मदा᳚या॒पामु॒पस्थे᳚क॒विर्भगा᳚य || {7.5.21.3}, {9.109.13}, {9.7.6.13} |
748 | बिभ॑र्ति॒चार्विन्द्र॑स्य॒नाम॒येन॒विश्वा᳚निवृ॒त्राज॒घान॑ || {7.5.21.4}, {9.109.14}, {9.7.6.14} |
749 | पिब᳚न्त्यस्य॒विश्वे᳚दे॒वासो॒गोभिः॑श्री॒तस्य॒नृभिः॑सु॒तस्य॑ || {7.5.21.5}, {9.109.15}, {9.7.6.15} |
750 | प्रसु॑वा॒नोऽअ॑क्षाःस॒हस्र॑धारस्ति॒रःप॒वित्रं॒विवार॒मव्य᳚म् || {7.5.21.6}, {9.109.16}, {9.7.6.16} |
751 | सवा॒ज्य॑क्षाःस॒हस्र॑रेताऽअ॒द्भिर्मृ॑जा॒नोगोभिः॑श्रीणा॒नः || {7.5.21.7}, {9.109.17}, {9.7.6.17} |
752 | प्रसो᳚मया॒हीन्द्र॑स्यकु॒क्षानृभि᳚र्येमा॒नोऽअद्रि॑भिःसु॒तः || {7.5.21.8}, {9.109.18}, {9.7.6.18} |
753 | अस॑र्जिवा॒जीति॒रःप॒वित्र॒मिन्द्रा᳚य॒सोमः॑स॒हस्र॑धारः || {7.5.21.9}, {9.109.19}, {9.7.6.19} |
754 | अ॒ञ्जन्त्ये᳚नं॒मध्वो॒रसे॒नेन्द्रा᳚य॒वृष्ण॒ऽइन्दुं॒मदा᳚य || {7.5.21.10}, {9.109.20}, {9.7.6.20} |
755 | दे॒वेभ्य॑स्त्वा॒वृथा॒पाज॑से॒ऽपोवसा᳚नं॒हरिं᳚मृजन्ति || {7.5.21.11}, {9.109.21}, {9.7.6.21} |
756 | इन्दु॒रिन्द्रा᳚यतोशते॒नितो᳚शतेश्री॒णन्नु॒ग्रोरि॒णन्न॒पः || {7.5.21.12}, {9.109.22}, {9.7.6.22} |
[67] (१-१२) द्वादशर्चस्य सूक्तस्य त्रैवष्णस्यरुणः पौरुकुत्स्यस्त्रसदस्युर्षी। पवमानः सोमो देवता | (१-३) प्रथमादितृचस्य पिपीलिकमध्यानुष्टप्, (४-९) चतुर्थ्यादितृचद्वयस्योर्ध्वबह ती, (१०-१२) दशम्यादितृचस्य च विराट् छन्दांसि || | |
757 | पर्यू॒षुप्रध᳚न्व॒वाज॑सातये॒परि॑वृ॒त्राणि॑स॒क्षणिः॑ | द्वि॒षस्त॒रध्या᳚ऋण॒यान॑ऽईयसे || {7.5.22.1}, {9.110.1}, {9.7.7.1} |
758 | अनु॒हित्वा᳚सु॒तंसो᳚म॒मदा᳚मसिम॒हेस॑मर्य॒राज्ये᳚ | वाजाँ᳚ऽअ॒भिप॑वमान॒प्रगा᳚हसे || {7.5.22.2}, {9.110.2}, {9.7.7.2} |
759 | अजी᳚जनो॒हिप॑वमान॒सूर्यं᳚वि॒धारे॒शक्म॑ना॒पयः॑ | गोजी᳚रया॒रंह॑माणः॒पुरं᳚ध्या || {7.5.22.3}, {9.110.3}, {9.7.7.3} |
760 | अजी᳚जनोऽअमृत॒मर्त्ये॒ष्वाँऽऋ॒तस्य॒धर्म᳚न्न॒मृत॑स्य॒चारु॑णः | सदा᳚सरो॒वाज॒मच्छा॒सनि॑ष्यदत् || {7.5.22.4}, {9.110.4}, {9.7.7.4} |
761 | अ॒भ्य॑भि॒हिश्रव॑सात॒तर्दि॒थोत्सं॒नकंचि॑ज्जन॒पान॒मक्षि॑तम् | शर्या᳚भि॒र्नभर॑माणो॒गभ॑स्त्योः || {7.5.22.5}, {9.110.5}, {9.7.7.5} |
762 | आदीं॒केचि॒त्पश्य॑मानास॒ऽआप्यं᳚वसु॒रुचो᳚दि॒व्याऽअ॒भ्य॑नूषत | वारं॒नदे॒वःस॑वि॒ताव्यू᳚र्णुते || {7.5.22.6}, {9.110.6}, {9.7.7.6} |
763 | त्वेसो᳚मप्रथ॒मावृ॒क्तब॑र्हिषोम॒हेवाजा᳚य॒श्रव॑से॒धियं᳚दधुः | सत्वंनो᳚वीरवी॒र्या᳚यचोदय || {7.5.23.1}, {9.110.7}, {9.7.7.7} |
764 | दि॒वःपी॒यूषं᳚पू॒र्व्यंयदु॒क्थ्यं᳚म॒होगा॒हाद्दि॒वऽआनिर॑धुक्षत | इन्द्र॑म॒भिजाय॑मानं॒सम॑स्वरन् || {7.5.23.2}, {9.110.8}, {9.7.7.8} |
765 | अध॒यदि॒मेप॑वमान॒रोद॑सीऽइ॒माच॒विश्वा॒भुव॑ना॒भिम॒ज्मना᳚ | यू॒थेननि॒ष्ठावृ॑ष॒भोविति॑ष्ठसे || {7.5.23.3}, {9.110.9}, {9.7.7.9} |
766 | सोमः॑पुना॒नोऽअ॒व्यये॒वारे॒शिशु॒र्नक्रीळ॒न्पव॑मानोऽअक्षाः | स॒हस्र॑धारःश॒तवा᳚ज॒ऽइन्दुः॑ || {7.5.23.4}, {9.110.10}, {9.7.7.10} |
767 | ए॒षपु॑ना॒नोमधु॑माँऽऋ॒तावेन्द्रा॒येन्दुः॑पवतेस्वा॒दुरू॒र्मिः | वा॒ज॒सनि᳚र्वरिवो॒विद्व॑यो॒धाः || {7.5.23.5}, {9.110.11}, {9.7.7.11} |
768 | सप॑वस्व॒सह॑मानःपृत॒न्यून्त्सेध॒न्रक्षां॒स्यप॑दु॒र्गहा᳚णि | स्वा॒यु॒धःसा᳚स॒ह्वान्त्सो᳚म॒शत्रू॑न् || {7.5.23.6}, {9.110.12}, {9.7.7.12} |
[68] (१-३) तृचस्य सूक्तस्य पारुच्छेपिरनानत ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | अत्यष्टिश्छन्दः || | |
769 | अ॒यारु॒चाहरि᳚ण्यापुना॒नोविश्वा॒द्वेषां᳚सितरतिस्व॒युग्व॑भिः॒सूरो॒नस्व॒युग्व॑भिः | धारा᳚सु॒तस्य॑रोचतेपुना॒नोऽअ॑रु॒षोहरिः॑ | विश्वा॒यद्रू॒पाप॑रि॒यात्यृक्व॑भिःस॒प्तास्ये᳚भि॒र्ऋक्व॑भिः || {7.5.24.1}, {9.111.1}, {9.7.8.1} |
770 | त्वंत्यत्प॑णी॒नांवि॑दो॒वसु॒संमा॒तृभि᳚र्मर्जयसि॒स्वऽआदम॑ऋ॒तस्य॑धी॒तिभि॒र्दमे᳚ | प॒रा॒वतो॒नसाम॒तद्यत्रा॒रण᳚न्तिधी॒तयः॑ | त्रि॒धातु॑भि॒ररु॑षीभि॒र्वयो᳚दधे॒रोच॑मानो॒वयो᳚दधे || {7.5.24.2}, {9.111.2}, {9.7.8.2} |
771 | पूर्वा॒मनु॑प्र॒दिशं᳚याति॒चेकि॑त॒त्संर॒श्मिभि᳚र्यततेदर्श॒तोरथो॒दैव्यो᳚दर्श॒तोरथः॑ | अग्म᳚न्नु॒क्थानि॒पौंस्येन्द्रं॒जैत्रा᳚यहर्षयन् | वज्र॑श्च॒यद्भव॑थो॒ऽअन॑पच्युतास॒मत्स्वन॑पच्युता || {7.5.24.3}, {9.111.3}, {9.7.8.3} |
[69] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः शिशु ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | पतिश्छन्दः || | |
772 | ना॒ना॒नंवाऽउ॑नो॒धियो॒विव्र॒तानि॒जना᳚नाम् | तक्षा᳚रि॒ष्टंरु॒तंभि॒षग्ब्र॒ह्मासु॒न्वन्त॑मिच्छ॒तीन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {7.5.25.1}, {9.112.1}, {9.7.9.1} |
773 | जर॑तीभि॒रोष॑धीभिःप॒र्णेभिः॑शकु॒नाना᳚म् | का॒र्मा॒रोऽअश्म॑भि॒र्द्युभि॒र्हिर᳚ण्यवन्तमिच्छ॒तीन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {7.5.25.2}, {9.112.2}, {9.7.9.2} |
774 | का॒रुर॒हंत॒तोभि॒षगु॑पलप्र॒क्षिणी᳚न॒ना | नाना᳚धियोवसू॒यवोऽनु॒गाऽइ॑वतस्थि॒मेन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {7.5.25.3}, {9.112.3}, {9.7.9.3} |
775 | अश्वो॒वोळ्हा᳚सु॒खंरथं᳚हस॒नामु॑पम॒न्त्रिणः॑ | शेपो॒रोम᳚ण्वन्तौभे॒दौवारिन्म॒ण्डूक॑ऽइच्छ॒तीन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {7.5.25.4}, {9.112.4}, {9.7.9.4} |
[70] (१-११) एकादशर्चस्य सूक्तस्य मारीचः कश्यप ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | पतिश्छन्दः || | |
776 | श॒र्य॒णाव॑ति॒सोम॒मिन्द्रः॑पिबतुवृत्र॒हा | बलं॒दधा᳚नऽआ॒त्मनि॑करि॒ष्यन्वी॒र्यं᳚म॒हदिन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {7.5.26.1}, {9.113.1}, {9.7.10.1} |
777 | आप॑वस्वदिशांपतऽआर्जी॒कात्सो᳚ममीढ्वः | ऋ॒त॒वा॒केन॑स॒त्येन॑श्र॒द्धया॒तप॑सासु॒तऽइन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {7.5.26.2}, {9.113.2}, {9.7.10.2} |
778 | प॒र्जन्य॑वृद्धंमहि॒षंतंसूर्य॑स्यदुहि॒ताभ॑रत् | तंग᳚न्ध॒र्वाःप्रत्य॑गृभ्ण॒न्तंसोमे॒रस॒माद॑धु॒रिन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {7.5.26.3}, {9.113.3}, {9.7.10.3} |
779 | ऋ॒तंवद᳚न्नृतद्युम्नस॒त्यंवद᳚न्त्सत्यकर्मन् | श्र॒द्धांवद᳚न्त्सोमराजन्धा॒त्रासो᳚म॒परि॑ष्कृत॒ऽइन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {7.5.26.4}, {9.113.4}, {9.7.10.4} |
780 | स॒त्यमु॑ग्रस्यबृह॒तःसंस्र॑वन्तिसंस्र॒वाः | संय᳚न्तिर॒सिनो॒रसाः᳚पुना॒नोब्रह्म॑णाहर॒ऽइन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {7.5.26.5}, {9.113.5}, {9.7.10.5} |
781 | यत्र॑ब्र॒ह्माप॑वमानछन्द॒स्यां॒३॒॑वाचं॒वद॑न् | ग्राव्णा॒सोमे᳚मही॒यते॒सोमे᳚नान॒न्दंज॒नय॒न्निन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {7.5.27.1}, {9.113.6}, {9.7.10.6} |
782 | यत्र॒ज्योति॒रज॑स्रं॒यस्मिँ॑ल्लो॒केस्व॑र्हि॒तम् | तस्मि॒न्मांधे᳚हिपवमाना॒मृते᳚लो॒केऽअक्षि॑त॒ऽइन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {7.5.27.2}, {9.113.7}, {9.7.10.7} |
783 | यत्र॒राजा᳚वैवस्व॒तोयत्रा᳚व॒रोध॑नंदि॒वः | यत्रा॒मूर्य॒ह्वती॒राप॒स्तत्र॒माम॒मृतं᳚कृ॒धीन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {7.5.27.3}, {9.113.8}, {9.7.10.8} |
784 | यत्रा᳚नुका॒मंचर॑णंत्रिना॒केत्रि॑दि॒वेदि॒वः | लो॒कायत्र॒ज्योति॑ष्मन्त॒स्तत्र॒माम॒मृतं᳚कृ॒धीन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {7.5.27.4}, {9.113.9}, {9.7.10.9} |
785 | यत्र॒कामा᳚निका॒माश्च॒यत्र॑ब्र॒ध्नस्य॑वि॒ष्टप᳚म् | स्व॒धाच॒यत्र॒तृप्ति॑श्च॒तत्र॒माम॒मृतं᳚कृ॒धीन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {7.5.27.5}, {9.113.10}, {9.7.10.10} |
786 | यत्रा᳚न॒न्दाश्च॒मोदा᳚श्च॒मुदः॑प्र॒मुद॒ऽआस॑ते | काम॑स्य॒यत्रा॒प्ताःकामा॒स्तत्र॒माम॒मृतं᳚कृ॒धीन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {7.5.27.6}, {9.113.11}, {9.7.10.11} |
[71] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य मारीचः कश्यप ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | पङ्क्तिश्छन्दः || | |
787 | यऽइन्दोः॒पव॑मान॒स्यानु॒धामा॒न्यक्र॑मीत् | तमा᳚हुःसुप्र॒जाऽइति॒यस्ते᳚सो॒मावि॑ध॒न्मन॒ऽइन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {7.5.28.1}, {9.114.1}, {9.7.11.1} |
788 | ऋषे᳚मन्त्र॒कृतां॒स्तोमैः॒कश्य॑पोद्व॒र्धय॒न्गिरः॑ | सोमं᳚नमस्य॒राजा᳚नं॒योज॒ज्ञेवी॒रुधां॒पति॒रिन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {7.5.28.2}, {9.114.2}, {9.7.11.2} |
789 | स॒प्तदिशो॒नाना᳚सूर्याःस॒प्तहोता᳚रऋ॒त्विजः॑ | दे॒वाऽआ᳚दि॒त्यायेस॒प्ततेभिः॑सोमा॒भिर॑क्षन॒ऽइन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {7.5.28.3}, {9.114.3}, {9.7.11.3} |
790 | यत्ते᳚राजञ्छृ॒तंह॒विस्तेन॑सोमा॒भिर॑क्षनः | अ॒रा॒ती॒वामान॑स्तारी॒न्मोच॑नः॒किंच॒नाम॑म॒दिन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {7.5.28.4}, {9.114.4}, {9.7.11.4} |
[72] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्याप्त्यस्त्रित ऋषिः | अग्निर्देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
791 | अग्रे᳚बृ॒हन्नु॒षसा᳚मू॒र्ध्वोऽअ॑स्थान्निर्जग॒न्वान्तम॑सो॒ज्योति॒षागा᳚त् | अ॒ग्निर्भा॒नुना॒रुश॑ता॒स्वङ्ग॒ऽआजा॒तोविश्वा॒सद्मा᳚न्यप्राः || {7.5.29.1}, {10.1.1}, {10.1.1.1} |
792 | सजा॒तोगर्भो᳚ऽअसि॒रोद॑स्यो॒रग्ने॒चारु॒र्विभृ॑त॒ऽओष॑धीषु | चि॒त्रःशिशुः॒परि॒तमां᳚स्य॒क्तून्प्रमा॒तृभ्यो॒ऽअधि॒कनि॑क्रदद्गाः || {7.5.29.2}, {10.1.2}, {10.1.1.2} |
793 | विष्णु॑रि॒त्थाप॑र॒मम॑स्यवि॒द्वाञ्जा॒तोबृ॒हन्न॒भिपा᳚तितृ॒तीय᳚म् | आ॒सायद॑स्य॒पयो॒ऽअक्र॑त॒स्वंसचे᳚तसोऽअ॒भ्य॑र्च॒न्त्यत्र॑ || {7.5.29.3}, {10.1.3}, {10.1.1.3} |
794 | अत॑ऽउत्वापितु॒भृतो॒जनि॑त्रीरन्ना॒वृधं॒प्रति॑चर॒न्त्यन्नैः᳚ | ताऽईं॒प्रत्ये᳚षि॒पुन॑र॒न्यरू᳚पा॒ऽअसि॒त्वंवि॒क्षुमानु॑षीषु॒होता᳚ || {7.5.29.4}, {10.1.4}, {10.1.1.4} |
795 | होता᳚रंचि॒त्रर॑थमध्व॒रस्य॑य॒ज्ञस्य॑यज्ञस्यके॒तुंरुश᳚न्तम् | प्रत्य॑र्धिंदे॒वस्य॑देवस्यम॒ह्नाश्रि॒यात्व१॑(अ॒)ग्निमति॑थिं॒जना᳚नाम् || {7.5.29.5}, {10.1.5}, {10.1.1.5} |
796 | सतुवस्त्रा॒ण्यध॒पेश॑नानि॒वसा᳚नोऽअ॒ग्निर्नाभा᳚पृथि॒व्याः | अ॒रु॒षोजा॒तःप॒दऽइळा᳚याःपु॒रोहि॑तोराजन्यक्षी॒हदे॒वान् || {7.5.29.6}, {10.1.6}, {10.1.1.6} |
797 | आहिद्यावा᳚पृथि॒वीऽअ॑ग्नऽउ॒भेसदा᳚पु॒त्रोनमा॒तरा᳚त॒तन्थ॑ | प्रया॒ह्यच्छो᳚श॒तोय॑वि॒ष्ठाथाव॑हसहस्ये॒हदे॒वान् || {7.5.29.7}, {10.1.7}, {10.1.1.7} |
[73] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्याप्त्यस्त्रित ऋषिः | अग्निर्देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
798 | पि॒प्री॒हिदे॒वाँऽउ॑श॒तोय॑विष्ठवि॒द्वाँऽऋ॒तूँर्ऋ॑तुपतेयजे॒ह | येदैव्या᳚ऋ॒त्विज॒स्तेभि॑रग्ने॒त्वंहोतॄ᳚णाम॒स्याय॑जिष्ठः || {7.5.30.1}, {10.2.1}, {10.1.2.1} |
799 | वेषि॑हो॒त्रमु॒तपो॒त्रंजना᳚नांमन्धा॒तासि॑द्रविणो॒दाऋ॒तावा᳚ | स्वाहा᳚व॒यंकृ॒णवा᳚माह॒वींषि॑दे॒वोदे॒वान्य॑जत्व॒ग्निरर्ह॑न् || {7.5.30.2}, {10.2.2}, {10.1.2.2} |
800 | आदे॒वाना॒मपि॒पन्था᳚मगन्म॒यच्छ॒क्नवा᳚म॒तदनु॒प्रवो᳚ळ्हुम् | अ॒ग्निर्वि॒द्वान्त्सय॑जा॒त्सेदु॒होता॒सोऽअ॑ध्व॒रान्त्सऋ॒तून्क॑ल्पयाति || {7.5.30.3}, {10.2.3}, {10.1.2.3} |
801 | यद्वो᳚व॒यंप्र॑मि॒नाम᳚व्र॒तानि॑वि॒दुषां᳚देवा॒ऽअवि॑दुष्टरासः | अ॒ग्निष्टद्विश्व॒मापृ॑णातिवि॒द्वान्येभि॑र्दे॒वाँऽऋ॒तुभिः॑क॒ल्पया᳚ति || {7.5.30.4}, {10.2.4}, {10.1.2.4} |
802 | यत्पा᳚क॒त्रामन॑सादी॒नद॑क्षा॒नय॒ज्ञस्य॑मन्व॒तेमर्त्या᳚सः | अ॒ग्निष्टद्धोता᳚क्रतु॒विद्वि॑जा॒नन्यजि॑ष्ठोदे॒वाँऽऋ॑तु॒शोय॑जाति || {7.5.30.5}, {10.2.5}, {10.1.2.5} |
803 | विश्वे᳚षां॒ह्य॑ध्व॒राणा॒मनी᳚कंचि॒त्रंके॒तुंजनि॑तात्वाज॒जान॑ | सऽआय॑जस्वनृ॒वती॒रनु॒क्षाःस्पा॒र्हाऽइषः॑क्षु॒मती᳚र्वि॒श्वज᳚न्याः || {7.5.30.6}, {10.2.6}, {10.1.2.6} |
804 | यंत्वा॒द्यावा᳚पृथि॒वीयंत्वाप॒स्त्वष्टा॒यंत्वा᳚सु॒जनि॑माज॒जान॑ | पन्था॒मनु॑प्रवि॒द्वान्पि॑तृ॒याणं᳚द्यु॒मद॑ग्नेसमिधा॒नोविभा᳚हि || {7.5.30.7}, {10.2.7}, {10.1.2.7} |
[74] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्याप्त्यस्त्रित ऋषिः | अग्निर्देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
805 | इ॒नोरा᳚जन्नर॒तिःसमि॑द्धो॒रौद्रो॒दक्षा᳚यसुषु॒माँऽअ॑दर्शि | चि॒किद्विभा᳚तिभा॒साबृ॑ह॒तासि॑क्नीमेति॒रुश॑तीम॒पाज॑न् || {7.5.31.1}, {10.3.1}, {10.1.3.1} |
806 | कृ॒ष्णांयदेनी᳚म॒भिवर्प॑सा॒भूज्ज॒नय॒न्योषां᳚बृह॒तःपि॒तुर्जाम् | ऊ॒र्ध्वंभा॒नुंसूर्य॑स्यस्तभा॒यन्दि॒वोवसु॑भिरर॒तिर्विभा᳚ति || {7.5.31.2}, {10.3.2}, {10.1.3.2} |
807 | भ॒द्रोभ॒द्रया॒सच॑मान॒ऽआगा॒त्स्वसा᳚रंजा॒रोऽअ॒भ्ये᳚तिप॒श्चात् | सु॒प्र॒के॒तैर्द्युभि॑र॒ग्निर्वि॒तिष्ठ॒न्रुश॑द्भि॒र्वर्णै᳚र॒भिरा॒मम॑स्थात् || {7.5.31.3}, {10.3.3}, {10.1.3.3} |
808 | अ॒स्ययामा᳚सोबृह॒तोनव॒ग्नूनिन्धा᳚नाऽअ॒ग्नेःसख्युः॑शि॒वस्य॑ | ईड्य॑स्य॒वृष्णो᳚बृह॒तःस्वासो॒भामा᳚सो॒याम᳚न्न॒क्तव॑श्चिकित्रे || {7.5.31.4}, {10.3.4}, {10.1.3.4} |
809 | स्व॒नानयस्य॒भामा᳚सः॒पव᳚न्ते॒रोच॑मानस्यबृह॒तःसु॒दिवः॑ | ज्येष्ठे᳚भि॒र्यस्तेजि॑ष्ठैःक्रीळु॒मद्भि॒र्वर्षि॑ष्ठेभिर्भा॒नुभि॒र्नक्ष॑ति॒द्याम् || {7.5.31.5}, {10.3.5}, {10.1.3.5} |
810 | अ॒स्यशुष्मा᳚सोददृशा॒नप॑वे॒र्जेह॑मानस्यस्वनयन्नि॒युद्भिः॑ | प्र॒त्नेभि॒र्योरुश॑द्भिर्दे॒वत॑मो॒विरेभ॑द्भिरर॒तिर्भाति॒विभ्वा᳚ || {7.5.31.6}, {10.3.6}, {10.1.3.6} |
811 | सऽआव॑क्षि॒महि॑न॒ऽआच॑सत्सिदि॒वस्पृ॑थि॒व्योर॑र॒तिर्यु॑व॒त्योः | अ॒ग्निःसु॒तुकः॑सु॒तुके᳚भि॒रश्वै॒रभ॑स्वद्भी॒रभ॑स्वाँ॒ऽएहग᳚म्याः || {7.5.31.7}, {10.3.7}, {10.1.3.7} |
[75] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्याप्त्यस्त्रित ऋषिः | अग्निर्देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
812 | प्रते᳚यक्षि॒प्रत॑ऽइयर्मि॒मन्म॒भुवो॒यथा॒वन्द्यो᳚नो॒हवे᳚षु | धन्व᳚न्निवप्र॒पाऽअ॑सि॒त्वम॑ग्नऽइय॒क्षवे᳚पू॒रवे᳚प्रत्नराजन् || {7.5.32.1}, {10.4.1}, {10.1.4.1} |
813 | यंत्वा॒जना᳚सोऽअ॒भिसं॒चर᳚न्ति॒गाव॑ऽउ॒ष्णमि॑वव्र॒जंय॑विष्ठ | दू॒तोदे॒वाना᳚मसि॒मर्त्या᳚नाम॒न्तर्म॒हाँश्च॑रसिरोच॒नेन॑ || {7.5.32.2}, {10.4.2}, {10.1.4.2} |
814 | शिशुं॒नत्वा॒जेन्यं᳚व॒र्धय᳚न्तीमा॒ताबि॑भर्तिसचन॒स्यमा᳚ना | धनो॒रधि॑प्र॒वता᳚यासि॒हर्य॒ञ्जिगी᳚षसेप॒शुरि॒वाव॑सृष्टः || {7.5.32.3}, {10.4.3}, {10.1.4.3} |
815 | मू॒राऽअ॑मूर॒नव॒यंचि॑कित्वोमहि॒त्वम॑ग्ने॒त्वम॒ङ्गवि॑त्से | शये᳚व॒व्रिश्चर॑तिजि॒ह्वया॒दन्रे᳚रि॒ह्यते᳚युव॒तिंवि॒श्पतिः॒सन् || {7.5.32.4}, {10.4.4}, {10.1.4.4} |
816 | कूचि॑ज्जायते॒सन॑यासु॒नव्यो॒वने᳚तस्थौपलि॒तोधू॒मके᳚तुः | अ॒स्ना॒तापो᳚वृष॒भोनप्रवे᳚ति॒सचे᳚तसो॒यंप्र॒णय᳚न्त॒मर्ताः᳚ || {7.5.32.5}, {10.4.5}, {10.1.4.5} |
817 | त॒नू॒त्यजे᳚व॒तस्क॑रावन॒र्गूर॑श॒नाभि॑र्द॒शभि॑र॒भ्य॑धीताम् | इ॒यंते᳚ऽअग्ने॒नव्य॑सीमनी॒षायु॒क्ष्वारथं॒नशु॒चय॑द्भि॒रङ्गैः᳚ || {7.5.32.6}, {10.4.6}, {10.1.4.6} |
818 | ब्रह्म॑चतेजातवेदो॒नम॑श्चे॒यंच॒गीःसद॒मिद्वर्ध॑नीभूत् | रक्षा᳚णोऽअग्ने॒तन॑यानितो॒कारक्षो॒तन॑स्त॒न्वो॒३॑(ओ॒)अप्र॑युच्छन् || {7.5.32.7}, {10.4.7}, {10.1.4.7} |
[76] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्याप्त्यस्त्रित ऋषिः | अग्निर्देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
819 | एकः॑समु॒द्रोध॒रुणो᳚रयी॒णाम॒स्मद्धृ॒दोभूरि॑जन्मा॒विच॑ष्टे | सिष॒क्त्यूध᳚र्नि॒ण्योरु॒पस्थ॒ऽउत्स॑स्य॒मध्ये॒निहि॑तंप॒दंवेः || {7.5.33.1}, {10.5.1}, {10.1.5.1} |
820 | स॒मा॒नंनी॒ळंवृष॑णो॒वसा᳚नाः॒संज॑ग्मिरेमहि॒षाऽअर्व॑तीभिः | ऋ॒तस्य॑प॒दंक॒वयो॒निपा᳚न्ति॒गुहा॒नामा᳚निदधिरे॒परा᳚णि || {7.5.33.2}, {10.5.2}, {10.1.5.2} |
821 | ऋ॒ता॒यिनी᳚मा॒यिनी॒संद॑धातेमि॒त्वाशिशुं᳚जज्ञतुर्व॒र्धय᳚न्ती | विश्व॑स्य॒नाभिं॒चर॑तोध्रु॒वस्य॑क॒वेश्चि॒त्तन्तुं॒मन॑सावि॒यन्तः॑ || {7.5.33.3}, {10.5.3}, {10.1.5.3} |
822 | ऋ॒तस्य॒हिव॑र्त॒नयः॒सुजा᳚त॒मिषो॒वाजा᳚यप्र॒दिवः॒सच᳚न्ते | अ॒धी॒वा॒संरोद॑सीवावसा॒नेघृ॒तैरन्नै᳚र्वावृधाते॒मधू᳚नाम् || {7.5.33.4}, {10.5.4}, {10.1.5.4} |
823 | स॒प्तस्वसॄ॒ररु॑षीर्वावशा॒नोवि॒द्वान्मध्व॒ऽउज्ज॑भारादृ॒शेकम् | अ॒न्तर्ये᳚मेऽअ॒न्तरि॑क्षेपुरा॒जाऽइ॒च्छन्व॒व्रिम॑विदत्पूष॒णस्य॑ || {7.5.33.5}, {10.5.5}, {10.1.5.5} |
824 | स॒प्तम॒र्यादाः᳚क॒वय॑स्ततक्षु॒स्तासा॒मेका॒मिद॒भ्यं᳚हु॒रोगा᳚त् | आ॒योर्ह॑स्क॒म्भऽउ॑प॒मस्य॑नी॒ळेप॒थांवि॑स॒र्गेध॒रुणे᳚षुतस्थौ || {7.5.33.6}, {10.5.6}, {10.1.5.6} |
825 | अस॑च्च॒सच्च॑पर॒मेव्यो᳚म॒न्दक्ष॑स्य॒जन्म॒न्नदि॑तेरु॒पस्थे᳚ | अ॒ग्निर्ह॑नःप्रथम॒जाऋ॒तस्य॒पूर्व॒ऽआयु॑निवृष॒भश्च॑धे॒नुः || {7.5.33.7}, {10.5.7}, {10.1.5.7} |
[77] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्याप्त्यस्त्रित ऋषिः | अग्निर्देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
826 | अ॒यंसयस्य॒शर्म॒न्नवो᳚भिर॒ग्नेरेध॑तेजरि॒ताभिष्टौ᳚ | ज्येष्ठे᳚भि॒र्योभा॒नुभि॑र्ऋषू॒णांप॒र्येति॒परि॑वीतोवि॒भावा᳚ || {7.6.1.1}, {10.6.1}, {10.1.6.1} |
827 | योभा॒नुभि᳚र्वि॒भावा᳚वि॒भात्य॒ग्निर्दे॒वेभि॑र्ऋ॒तावाज॑स्रः | आयोवि॒वाय॑स॒ख्यासखि॒भ्योऽप॑रिह्वृतो॒ऽअत्यो॒नसप्तिः॑ || {7.6.1.2}, {10.6.2}, {10.1.6.2} |
828 | ईशे॒योविश्व॑स्यादे॒ववी᳚ते॒रीशे᳚वि॒श्वायु॑रु॒षसो॒व्यु॑ष्टौ | आयस्मि᳚न्म॒नाह॒वींष्य॒ग्नावरि॑ष्टरथःस्क॒भ्नाति॑शू॒षैः || {7.6.1.3}, {10.6.3}, {10.1.6.3} |
829 | शू॒षेभि᳚र्वृ॒धोजु॑षा॒णोऽअ॒र्कैर्दे॒वाँऽअच्छा᳚रघु॒पत्वा᳚जिगाति | म॒न्द्रोहोता॒सजु॒ह्वा॒३॑(आ॒)यजि॑ष्ठः॒सम्मि॑श्लोऽअ॒ग्निराजि॑घर्तिदे॒वान् || {7.6.1.4}, {10.6.4}, {10.1.6.4} |
830 | तमु॒स्रामिन्द्रं॒नरेज॑मानम॒ग्निंगी॒र्भिर्नमो᳚भि॒राकृ॑णुध्वम् | आयंविप्रा᳚सोम॒तिभि॑र्गृ॒णन्ति॑जा॒तवे᳚दसंजु॒ह्वं᳚स॒हाना᳚म् || {7.6.1.5}, {10.6.5}, {10.1.6.5} |
831 | संयस्मि॒न्विश्वा॒वसू᳚निज॒ग्मुर्वाजे॒नाश्वाः॒सप्ती᳚वन्त॒ऽएवैः᳚ | अ॒स्मेऽऊ॒तीरिन्द्र॑वाततमाऽअर्वाची॒नाऽअ॑ग्न॒ऽआकृ॑णुष्व || {7.6.1.6}, {10.6.6}, {10.1.6.6} |
832 | अधा॒ह्य॑ग्नेम॒ह्नानि॒षद्या᳚स॒द्योज॑ज्ञा॒नोहव्यो᳚ब॒भूथ॑ | तंते᳚दे॒वासो॒ऽअनु॒केत॑माय॒न्नधा᳚वर्धन्तप्रथ॒मास॒ऽऊमाः᳚ || {7.6.1.7}, {10.6.7}, {10.1.6.7} |
[78] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्याप्त्यस्त्रित ऋषिः | अग्निर्देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
833 | स्व॒स्तिनो᳚दि॒वोऽअ॑ग्नेपृथि॒व्यावि॒श्वायु॑र्धेहिय॒जथा᳚यदेव | सचे᳚महि॒तव॑दस्मप्रके॒तैरु॑रु॒ष्याण॑ऽउ॒रुभि॑र्देव॒शंसैः᳚ || {7.6.2.1}, {10.7.1}, {10.1.7.1} |
834 | इ॒माऽअ॑ग्नेम॒तय॒स्तुभ्यं᳚जा॒तागोभि॒रश्वै᳚र॒भिगृ॑णन्ति॒राधः॑ | य॒दाते॒मर्तो॒ऽअनु॒भोग॒मान॒ड्वसो॒दधा᳚नोम॒तिभिः॑सुजात || {7.6.2.2}, {10.7.2}, {10.1.7.2} |
835 | अ॒ग्निंम᳚न्येपि॒तर॑म॒ग्निमा॒पिम॒ग्निंभ्रात॑रं॒सद॒मित्सखा᳚यम् | अ॒ग्नेरनी᳚कंबृह॒तःस॑पर्यंदि॒विशु॒क्रंय॑ज॒तंसूर्य॑स्य || {7.6.2.3}, {10.7.3}, {10.1.7.3} |
836 | सि॒ध्राऽअ॑ग्ने॒धियो᳚ऽअ॒स्मेसनु॑त्री॒र्यंत्राय॑से॒दम॒ऽआनित्य॑होता | ऋ॒तावा॒सरो॒हिद॑श्वःपुरु॒क्षुर्द्युभि॑रस्मा॒ऽअह॑भिर्वा॒मम॑स्तु || {7.6.2.4}, {10.7.4}, {10.1.7.4} |
837 | द्युभि॑र्हि॒तंमि॒त्रमि॑वप्र॒योगं᳚प्र॒त्नमृ॒त्विज॑मध्व॒रस्य॑जा॒रम् | बा॒हुभ्या᳚म॒ग्निमा॒यवो᳚ऽजनन्तवि॒क्षुहोता᳚रं॒न्य॑सादयन्त || {7.6.2.5}, {10.7.5}, {10.1.7.5} |
838 | स्व॒यंय॑जस्वदि॒विदे᳚वदे॒वान्किंते॒पाकः॑कृणव॒दप्र॑चेताः | यथाय॑जऋ॒तुभि॑र्देवदे॒वाने॒वाय॑जस्वत॒न्वं᳚सुजात || {7.6.2.6}, {10.7.6}, {10.1.7.6} |
839 | भवा᳚नोऽअग्नेऽवि॒तोतगो॒पाभवा᳚वय॒स्कृदु॒तनो᳚वयो॒धाः | रास्वा᳚चनःसुमहोह॒व्यदा᳚तिं॒त्रास्वो॒तन॑स्त॒न्वो॒३॑(ओ॒)अप्र॑युच्छन् || {7.6.2.7}, {10.7.7}, {10.1.7.7} |
[79] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य त्वाष्ट्रस्त्रिशिरा ऋषिः | (१-६) प्रथमादितृचद्वयस्याग्निः, (७-९) सप्तम्यादितृचस्य चेन्द्रो देव || | |
840 | प्रके॒तुना᳚बृह॒ताया᳚त्य॒ग्निरारोद॑सीवृष॒भोरो᳚रवीति | दि॒वश्चि॒दन्ताँ᳚ऽउप॒माँऽउदा᳚नळ॒पामु॒पस्थे᳚महि॒षोव॑वर्ध || {7.6.3.1}, {10.8.1}, {10.1.8.1} |
841 | मु॒मोद॒गर्भो᳚वृष॒भःक॒कुद्मा᳚नस्रे॒माव॒त्सःशिमी᳚वाँऽअरावीत् | सदे॒वता॒त्युद्य॑तानिकृ॒ण्वन्त्स्वेषु॒क्षये᳚षुप्रथ॒मोजि॑गाति || {7.6.3.2}, {10.8.2}, {10.1.8.2} |
842 | आयोमू॒र्धानं᳚पि॒त्रोरर॑ब्ध॒न्य॑ध्व॒रेद॑धिरे॒सूरो॒ऽअर्णः॑ | अस्य॒पत्म॒न्नरु॑षी॒रश्व॑बुध्नाऋ॒तस्य॒योनौ᳚त॒न्वो᳚जुषन्त || {7.6.3.3}, {10.8.3}, {10.1.8.3} |
843 | उ॒षौ᳚षो॒हिव॑सो॒ऽअग्र॒मेषि॒त्वंय॒मयो᳚रभवोवि॒भावा᳚ | ऋ॒ताय॑स॒प्तद॑धिषेप॒दानि॑ज॒नय᳚न्मि॒त्रंत॒न्वे॒३॑(ए॒)स्वायै᳚ || {7.6.3.4}, {10.8.4}, {10.1.8.4} |
844 | भुव॒श्चक्षु᳚र्म॒हऋ॒तस्य॑गो॒पाभुवो॒वरु॑णो॒यदृ॒ताय॒वेषि॑ | भुवो᳚ऽअ॒पांनपा᳚ज्जातवेदो॒भुवो᳚दू॒तोयस्य॑ह॒व्यंजुजो᳚षः || {7.6.3.5}, {10.8.5}, {10.1.8.5} |
845 | भुवो᳚य॒ज्ञस्य॒रज॑सश्चने॒तायत्रा᳚नि॒युद्भिः॒सच॑सेशि॒वाभिः॑ | दि॒विमू॒र्धानं᳚दधिषेस्व॒र्षांजि॒ह्वाम॑ग्नेचकृषेहव्य॒वाह᳚म् || {7.6.4.1}, {10.8.6}, {10.1.8.6} |
846 | अ॒स्यत्रि॒तःक्रतु॑नाव॒व्रेऽअ॒न्तरि॒च्छन्धी॒तिंपि॒तुरेवैः॒पर॑स्य | स॒च॒स्यमा᳚नःपि॒त्रोरु॒पस्थे᳚जा॒मिब्रु॑वा॒णऽआयु॑धानिवेति || {7.6.4.2}, {10.8.7}, {10.1.8.7} |
847 | सपित्र्या॒ण्यायु॑धानिवि॒द्वानिन्द्रे᳚षितऽआ॒प्त्योऽअ॒भ्य॑युध्यत् | त्रि॒शी॒र्षाणं᳚स॒प्तर॑श्मिंजघ॒न्वान्त्वा॒ष्ट्रस्य॑चि॒न्निःस॑सृजेत्रि॒तोगाः || {7.6.4.3}, {10.8.8}, {10.1.8.8} |
848 | भूरीदिन्द्र॑ऽउ॒दिन॑क्षन्त॒मोजोऽवा᳚भिन॒त्सत्प॑ति॒र्मन्य॑मानम् | त्वा॒ष्ट्रस्य॑चिद्वि॒श्वरू᳚पस्य॒गोना᳚माचक्रा॒णस्त्रीणि॑शी॒र्षापरा᳚वर्क् || {7.6.4.4}, {10.8.9}, {10.1.8.9} |
[80] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्याम्बरीषः सिन्धद्वीपस्त्वाष्ट्रस्त्रिशिरा वा ऋषिः | आपो देवताः | (१-४, ६) प्रथमादिचतुर्ऋचामा, षष्ट्याश्च गायत्री, (५) पञ्चम्या वर्धमाना गायत्री, (७) सप्तम्याः प्रतिष्ठा गायत्री, (८-९) अष्टमीनवम्योश्चानुष्टप छन्दांसि || | |
849 | आपो॒हिष्ठाम॑यो॒भुव॒स्तान॑ऽऊ॒र्जेद॑धातन | म॒हेरणा᳚य॒चक्ष॑से || {7.6.5.1}, {10.9.1}, {10.1.9.1} |
850 | योवः॑शि॒वत॑मो॒रस॒स्तस्य॑भाजयते॒हनः॑ | उ॒श॒तीरि॑वमा॒तरः॑ || {7.6.5.2}, {10.9.2}, {10.1.9.2} |
851 | तस्मा॒ऽअरं᳚गमामवो॒यस्य॒क्षया᳚य॒जिन्व॑थ | आपो᳚ज॒नय॑थाचनः || {7.6.5.3}, {10.9.3}, {10.1.9.3} |
852 | शंनो᳚दे॒वीर॒भिष्ट॑य॒ऽआपो᳚भवन्तुपी॒तये᳚ | शंयोर॒भिस्र॑वन्तुनः || {7.6.5.4}, {10.9.4}, {10.1.9.4} |
853 | ईशा᳚ना॒वार्या᳚णां॒क्षय᳚न्तीश्चर्षणी॒नाम् | अ॒पोया᳚चामिभेष॒जम् || {7.6.5.5}, {10.9.5}, {10.1.9.5} |
854 | अ॒प्सुमे॒सोमो᳚ऽअब्रवीद॒न्तर्विश्वा᳚निभेष॒जा | अ॒ग्निंच॑वि॒श्वश᳚म्भुवम् || {7.6.5.6}, {10.9.6}, {10.1.9.6} |
855 | आपः॑पृणी॒तभे᳚ष॒जंवरू᳚थंत॒न्वे॒३॑(ए॒)मम॑ | ज्योक्च॒सूर्यं᳚दृ॒शे || {7.6.5.7}, {10.9.7}, {10.1.9.7} |
856 | इ॒दमा᳚पः॒प्रव॑हत॒यत्किंच॑दुरि॒तंमयि॑ | यद्वा॒हम॑भिदु॒द्रोह॒यद्वा᳚शे॒पऽउ॒तानृ॑तम् || {7.6.5.8}, {10.9.8}, {10.1.9.8} |
857 | आपो᳚ऽअ॒द्यान्व॑चारिषं॒रसे᳚न॒सम॑गस्महि | पय॑स्वानग्न॒ऽआग॑हि॒तंमा॒संसृ॑ज॒वर्च॑सा || {7.6.5.9}, {10.9.9}, {10.1.9.9} |
[81] (१-१४) चतुर्दशर्चस्य सूक्तस्य (१, ३, ५-७, ११, १३) प्रथमातृतीययोर्ऋचोः पञ्चम्यादितृचस्यैकादशीत्रयोदश्योश्च वैवस्वती यमी (ऋषिका) (२, ४, ८-१०, १२, १४) द्वितीयाचतुओरष्टम्यादितृचस्य द्वादशीचतुदर्श योश्च वैवस्वतो यम ऋषिः | (१, ३, ५-७, ११, १३) प्रथमातृतीययोः पञ्चम्यादितृचस्यैकादशीत्रयोदश्योश्च यमः, (२, ४, ८-१०, १२, १४) द्वितीयाचतुर्योरष्टम्यादितृचस्य द्वादशीचतुदर्श योश्च यमी देवते | (१-१२, १४) प्रथमादिद्वादशर्चाम् चतुर्दर्श्याश्च त्रिष्टुप, (१३) त्रयोदश्याश्च विराट्स्थाना छन्दसी || | |
858 | ओचि॒त्सखा᳚यंस॒ख्याव॑वृत्यांति॒रःपु॒रूचि॑दर्ण॒वंज॑ग॒न्वान् | पि॒तुर्नपा᳚त॒माद॑धीतवे॒धाऽअधि॒क्षमि॑प्रत॒रंदीध्या᳚नः || {7.6.6.1}, {10.10.1}, {10.1.10.1} |
859 | नते॒सखा᳚स॒ख्यंव॑ष्ट्ये॒तत्सल॑क्ष्मा॒यद्विषु॑रूपा॒भवा᳚ति | म॒हस्पु॒त्रासो॒ऽअसु॑रस्यवी॒रादि॒वोध॒र्तार॑ऽउर्वि॒यापरि॑ख्यन् || {7.6.6.2}, {10.10.2}, {10.1.10.2} |
860 | उ॒शन्ति॑घा॒तेऽअ॒मृता᳚सऽए॒तदेक॑स्यचित्त्य॒जसं॒मर्त्य॑स्य | निते॒मनो॒मन॑सिधाय्य॒स्मेजन्युः॒पति॑स्त॒न्व१॑(अ॒)मावि॑विश्याः || {7.6.6.3}, {10.10.3}, {10.1.10.3} |
861 | नयत्पु॒राच॑कृ॒माकद्ध॑नू॒नमृ॒तावद᳚न्तो॒ऽअनृ॑तंरपेम | ग॒न्ध॒र्वोऽअ॒प्स्वप्या᳚च॒योषा॒सानो॒नाभिः॑पर॒मंजा॒मितन्नौ᳚ || {7.6.6.4}, {10.10.4}, {10.1.10.4} |
862 | गर्भे॒नुनौ᳚जनि॒तादम्प॑तीकर्दे॒वस्त्वष्टा᳚सवि॒तावि॒श्वरू᳚पः | नकि॑रस्य॒प्रमि॑नन्तिव्र॒तानि॒वेद॑नाव॒स्यपृ॑थि॒वीऽउ॒तद्यौः || {7.6.6.5}, {10.10.5}, {10.1.10.5} |
863 | कोऽअ॒स्यवे᳚दप्रथ॒मस्याह्नः॒कऽईं᳚ददर्श॒कऽइ॒हप्रवो᳚चत् | बृ॒हन्मि॒त्रस्य॒वरु॑णस्य॒धाम॒कदु॑ब्रवऽआहनो॒वीच्या॒नॄन् || {7.6.7.1}, {10.10.6}, {10.1.10.6} |
864 | य॒मस्य॑माय॒म्य१॑(अ॒)अंकाम॒ऽआग᳚न्त्समा॒नेयोनौ᳚सह॒शेय्या᳚य | जा॒येव॒पत्ये᳚त॒न्वं᳚रिरिच्यां॒विचि॑द्वृहेव॒रथ्ये᳚वच॒क्रा || {7.6.7.2}, {10.10.7}, {10.1.10.7} |
865 | नति॑ष्ठन्ति॒ननिमि॑षन्त्ये॒तेदे॒वानां॒स्पश॑ऽइ॒हयेचर᳚न्ति | अ॒न्येन॒मदा᳚हनोयाहि॒तूयं॒तेन॒विवृ॑ह॒रथ्ये᳚वच॒क्रा || {7.6.7.3}, {10.10.8}, {10.1.10.8} |
866 | रात्री᳚भिरस्मा॒ऽअह॑भिर्दशस्ये॒त्सूर्य॑स्य॒चक्षु॒र्मुहु॒रुन्मि॑मीयात् | दि॒वापृ॑थि॒व्यामि॑थु॒नासब᳚न्धूय॒मीर्य॒मस्य॑बिभृया॒दजा᳚मि || {7.6.7.4}, {10.10.9}, {10.1.10.9} |
867 | आघा॒ताग॑च्छा॒नुत्त॑रायु॒गानि॒यत्र॑जा॒मयः॑कृ॒णव॒न्नजा᳚मि | उप॑बर्बृहिवृष॒भाय॑बा॒हुम॒न्यमि॑च्छस्वसुभगे॒पतिं॒मत् || {7.6.7.5}, {10.10.10}, {10.1.10.10} |
868 | किंभ्राता᳚स॒द्यद॑ना॒थंभवा᳚ति॒किमु॒स्वसा॒यन्निर्ऋ॑तिर्नि॒गच्छा᳚त् | काम॑मूताब॒ह्वे॒३॑(ए॒)तद्र॑पामित॒न्वा᳚मेत॒न्व१॑(अ॒)अंसंपि॑पृग्धि || {7.6.8.1}, {10.10.11}, {10.1.10.11} |
869 | नवाऽउ॑तेत॒न्वा᳚त॒न्व१॑(अ॒)अंसंप॑पृच्यांपा॒पमा᳚हु॒र्यःस्वसा᳚रंनि॒गच्छा᳚त् | अ॒न्येन॒मत्प्र॒मुदः॑कल्पयस्व॒नते॒भ्राता᳚सुभगेवष्ट्ये॒तत् || {7.6.8.2}, {10.10.12}, {10.1.10.12} |
870 | ब॒तोब॑तासियम॒नैवते॒मनो॒हृद॑यंचाविदाम | अ॒न्याकिल॒त्वांक॒क्ष्ये᳚वयु॒क्तंपरि॑ष्वजाते॒लिबु॑जेववृ॒क्षम् || {7.6.8.3}, {10.10.13}, {10.1.10.13} |
871 | अ॒न्यमू॒षुत्वंय᳚म्य॒न्यऽउ॒त्वांपरि॑ष्वजाते॒लिबु॑जेववृ॒क्षम् | तस्य॑वा॒त्वंमन॑ऽइ॒च्छासवा॒तवाधा᳚कृणुष्वसं॒विदं॒सुभ॑द्राम् || {7.6.8.4}, {10.10.14}, {10.1.10.14} |
[82] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्याङ्गिर्हविर्धान ऋषिः | अग्निर्देवता | (१-६) प्रथमादितृचद्वयस्य जगती, (७-९) सप्तम्यादितृचस्य च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
872 | वृषा॒वृष्णे᳚दुदुहे॒दोह॑सादि॒वःपयां᳚सिय॒ह्वोऽअदि॑ते॒रदा᳚भ्यः | विश्वं॒सवे᳚द॒वरु॑णो॒यथा᳚धि॒यासय॒ज्ञियो᳚यजतुय॒ज्ञियाँ᳚ऽऋ॒तून् || {7.6.9.1}, {10.11.1}, {10.1.11.1} |
873 | रप॑द्गन्ध॒र्वीरप्या᳚च॒योष॑णान॒दस्य॑ना॒देपरि॑पातुमे॒मनः॑ | इ॒ष्टस्य॒मध्ये॒ऽअदि॑ति॒र्निधा᳚तुनो॒भ्राता᳚नोज्ये॒ष्ठःप्र॑थ॒मोविवो᳚चति || {7.6.9.2}, {10.11.2}, {10.1.11.2} |
874 | सोचि॒न्नुभ॒द्राक्षु॒मती॒यश॑स्वत्यु॒षाऽउ॑वास॒मन॑वे॒स्व᳚र्वती | यदी᳚मु॒शन्त॑मुश॒तामनु॒क्रतु॑म॒ग्निंहोता᳚रंवि॒दथा᳚य॒जीज॑नन् || {7.6.9.3}, {10.11.3}, {10.1.11.3} |
875 | अध॒त्यंद्र॒प्संवि॒भ्वं᳚विचक्ष॒णंविराभ॑रदिषि॒तःश्ये॒नोऽअ॑ध्व॒रे | यदी॒विशो᳚वृ॒णते᳚द॒स्ममार्या᳚ऽअ॒ग्निंहोता᳚र॒मध॒धीर॑जायत || {7.6.9.4}, {10.11.4}, {10.1.11.4} |
876 | सदा᳚सिर॒ण्वोयव॑सेव॒पुष्य॑ते॒होत्रा᳚भिरग्ने॒मनु॑षःस्वध्व॒रः | विप्र॑स्यवा॒यच्छ॑शमा॒नऽउ॒क्थ्य१॑(अ॒)अंवाजं᳚सस॒वाँऽउ॑प॒यासि॒भूरि॑भिः || {7.6.9.5}, {10.11.5}, {10.1.11.5} |
877 | उदी᳚रयपि॒तरा᳚जा॒रऽआभग॒मिय॑क्षतिहर्य॒तोहृ॒त्तऽइ॑ष्यति | विव॑क्ति॒वह्निः॑स्वप॒स्यते᳚म॒खस्त॑वि॒ष्यते॒ऽअसु॑रो॒वेप॑तेम॒ती || {7.6.10.1}, {10.11.6}, {10.1.11.6} |
878 | यस्ते᳚ऽअग्नेसुम॒तिंमर्तो॒ऽअक्ष॒त्सह॑सःसूनो॒ऽअति॒सप्रशृ᳚ण्वे | इषं॒दधा᳚नो॒वह॑मानो॒ऽअश्वै॒रासद्यु॒माँऽअम॑वान्भूषति॒द्यून् || {7.6.10.2}, {10.11.7}, {10.1.11.7} |
879 | यद॑ग्नऽए॒षासमि॑ति॒र्भवा᳚तिदे॒वीदे॒वेषु॑यज॒ताय॑जत्र | रत्ना᳚च॒यद्वि॒भजा᳚सिस्वधावोभा॒गंनो॒ऽअत्र॒वसु॑मन्तंवीतात् || {7.6.10.3}, {10.11.8}, {10.1.11.8} |
880 | श्रु॒धीनो᳚ऽअग्ने॒सद॑नेस॒धस्थे᳚यु॒क्ष्वारथ॑म॒मृत॑स्यद्रवि॒त्नुम् | आनो᳚वह॒रोद॑सीदे॒वपु॑त्रे॒माकि॑र्दे॒वाना॒मप॑भूरि॒हस्याः᳚ || {7.6.10.4}, {10.11.9}, {10.1.11.9} |
[83] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्याङ्गिर्हविर्धान ऋषिः | अग्निर्देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
881 | द्यावा᳚ह॒क्षामा᳚प्रथ॒मेऋ॒तेना᳚भिश्रा॒वेभ॑वतःसत्य॒वाचा᳚ | दे॒वोयन्मर्ता᳚न्य॒जथा᳚यकृ॒ण्वन्त्सीद॒द्धोता᳚प्र॒त्यङ्स्वमसुं॒यन् || {7.6.11.1}, {10.12.1}, {10.1.12.1} |
882 | दे॒वोदे॒वान्प॑रि॒भूर्ऋ॒तेन॒वहा᳚नोह॒व्यंप्र॑थ॒मश्चि॑कि॒त्वान् | धू॒मके᳚तुःस॒मिधा॒भाऋ॑जीकोम॒न्द्रोहोता॒नित्यो᳚वा॒चायजी᳚यान् || {7.6.11.2}, {10.12.2}, {10.1.12.2} |
883 | स्वावृ॑ग्दे॒वस्या॒मृतं॒यदी॒गोरतो᳚जा॒तासो᳚धारयन्तऽउ॒र्वी | विश्वे᳚दे॒वाऽअनु॒तत्ते॒यजु॑र्गुर्दु॒हेयदेनी᳚दि॒व्यंघृ॒तंवाः || {7.6.11.3}, {10.12.3}, {10.1.12.3} |
884 | अर्चा᳚मिवां॒वर्धा॒यापो᳚घृतस्नू॒द्यावा᳚भूमीशृणु॒तंरो᳚दसीमे | अहा॒यद्द्यावोऽसु॑नीति॒मय॒न्मध्वा᳚नो॒ऽअत्र॑पि॒तरा᳚शिशीताम् || {7.6.11.4}, {10.12.4}, {10.1.12.4} |
885 | किंस्वि᳚न्नो॒राजा᳚जगृहे॒कद॒स्याति᳚व्र॒तंच॑कृमा॒कोविवे᳚द | मि॒त्रश्चि॒द्धिष्मा᳚जुहुरा॒णोदे॒वाञ्छ्लोको॒नया॒तामपि॒वाजो॒ऽअस्ति॑ || {7.6.11.5}, {10.12.5}, {10.1.12.5} |
886 | दु॒र्मन्त्वत्रा॒मृत॑स्य॒नाम॒सल॑क्ष्मा॒यद्विषु॑रूपा॒भवा᳚ति | य॒मस्य॒योम॒नव॑तेसु॒मन्त्वग्ने॒तमृ॑ष्वपा॒ह्यप्र॑युच्छन् || {7.6.12.1}, {10.12.6}, {10.1.12.6} |
887 | यस्मि᳚न्दे॒वावि॒दथे᳚मा॒दय᳚न्तेवि॒वस्व॑तः॒सद॑नेधा॒रय᳚न्ते | सूर्ये॒ज्योति॒रद॑धुर्मा॒स्य१॑(अ॒)क्तून्परि॑द्योत॒निंच॑रतो॒ऽअज॑स्रा || {7.6.12.2}, {10.12.7}, {10.1.12.7} |
888 | यस्मि᳚न्दे॒वामन्म॑निसं॒चर᳚न्त्यपी॒च्ये॒३॑(ए॒)नव॒यम॑स्यविद्म | मि॒त्रोनो॒ऽअत्रादि॑ति॒रना᳚गान्त्सवि॒तादे॒वोवरु॑णायवोचत् || {7.6.12.3}, {10.12.8}, {10.1.12.8} |
889 | श्रु॒धीनो᳚ऽअग्ने॒सद॑नेस॒धस्थे᳚यु॒क्ष्वारथ॑म॒मृत॑स्यद्रवि॒त्नुम् | आनो᳚वह॒रोद॑सीदे॒वपु॑त्रे॒माकि॑र्दे॒वाना॒मप॑भूरि॒हस्याः᳚ || {7.6.12.4}, {10.12.9}, {10.1.12.9} |
[84] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्यादित्यो विवस्वानाङ्गिहविर्धानो वा ऋषिः | हविर्धाने शकटे देवते | (१-४) प्रथमादिचतुर्ऋचाम् त्रिष्टुप्, (५) पञ्चम्याश्च जगती छन्दसी || | |
890 | यु॒जेवां॒ब्रह्म॑पू॒र्व्यंनमो᳚भि॒र्विश्लोक॑ऽएतुप॒थ्ये᳚वसू॒रेः | शृ॒ण्वन्तु॒विश्वे᳚ऽअ॒मृत॑स्यपु॒त्राऽआयेधामा᳚निदि॒व्यानि॑त॒स्थुः || {7.6.13.1}, {10.13.1}, {10.1.13.1} |
891 | य॒मेऽइ॑व॒यत॑माने॒यदैतं॒प्रवां᳚भर॒न्मानु॑षादेव॒यन्तः॑ | आसी᳚दतं॒स्वमु॑लो॒कंविदा᳚नेस्वास॒स्थेभ॑वत॒मिन्द॑वेनः || {7.6.13.2}, {10.13.2}, {10.1.13.2} |
892 | पञ्च॑प॒दानि॑रु॒पोऽअन्व॑रोहं॒चतु॑ष्पदी॒मन्वे᳚मिव्र॒तेन॑ | अ॒क्षरे᳚ण॒प्रति॑मिमऽए॒तामृ॒तस्य॒नाभा॒वधि॒संपु॑नामि || {7.6.13.3}, {10.13.3}, {10.1.13.3} |
893 | दे॒वेभ्यः॒कम॑वृणीतमृ॒त्युंप्र॒जायै॒कम॒मृतं॒नावृ॑णीत | बृह॒स्पतिं᳚य॒ज्ञम॑कृण्वत॒ऋषिं᳚प्रि॒यांय॒मस्त॒न्व१॑(अ॒)अंप्रारि॑रेचीत् || {7.6.13.4}, {10.13.4}, {10.1.13.4} |
894 | स॒प्तक्ष॑रन्ति॒शिश॑वेम॒रुत्व॑तेपि॒त्रेपु॒त्रासो॒ऽअप्य॑वीवतन्नृ॒तम् | उ॒भेऽइद॑स्यो॒भय॑स्यराजतऽउ॒भेय॑तेतेऽउ॒भय॑स्यपुष्यतः || {7.6.13.5}, {10.13.5}, {10.1.13.5} |
[85] (१-१६) षोळशर्चस्य सूक्तस्य वैवस्वतो यम ऋषिः | (१-५, १३-१६) प्रथमादिपञ्चर्चाम् त्रयोदश्यादिचतसृणाञ्च यमः, (६) षष्ठ्या अङ्गिरःपित्रथर्वभगृ वः, (७-९) सप्तम्यादितृचस्य लिङ्गोक्ताः पितरो वा, (१०-१२) दशम्यादितृचस्य च सारमेयौ श्वानौ देवताः | (१-१२) प्रथमादिद्वादशर्चाम् त्रिष्टुप्, (१३-१४, १६) त्रयोदशीचतुर्दशीषोडशीनामनुष्टुप्, (१५) पञ्चदश्याश्च बृहती छन्दांसि || | |
895 | प॒रे॒यि॒वांसं᳚प्र॒वतो᳚म॒हीरनु॑ब॒हुभ्यः॒पन्था᳚मनुपस्पशा॒नम् | वै॒व॒स्व॒तंसं॒गम॑नं॒जना᳚नांय॒मंराजा᳚नंह॒विषा᳚दुवस्य || {7.6.14.1}, {10.14.1}, {10.1.14.1} |
896 | य॒मोनो᳚गा॒तुंप्र॑थ॒मोवि॑वेद॒नैषागव्यू᳚ति॒रप॑भर्त॒वाऽउ॑ | यत्रा᳚नः॒पूर्वे᳚पि॒तरः॑परे॒युरे॒नाज॑ज्ञा॒नाःप॒थ्या॒३॑(आ॒)अनु॒स्वाः || {7.6.14.2}, {10.14.2}, {10.1.14.2} |
897 | मात॑लीक॒व्यैर्य॒मोऽअङ्गि॑रोभि॒र्बृह॒स्पति॒र्ऋक्व॑भिर्वावृधा॒नः | याँश्च॑दे॒वावा᳚वृ॒धुर्येच॑दे॒वान्त्स्वाहा॒न्येस्व॒धया॒न्येम॑दन्ति || {7.6.14.3}, {10.14.3}, {10.1.14.3} |
898 | इ॒मंय॑मप्रस्त॒रमाहिसीदाङ्गि॑रोभिःपि॒तृभिः॑संविदा॒नः | आत्वा॒मन्त्राः᳚कविश॒स्ताव॑हन्त्वे॒नारा᳚जन्ह॒विषा᳚मादयस्व || {7.6.14.4}, {10.14.4}, {10.1.14.4} |
899 | अङ्गि॑रोभि॒राग॑हिय॒ज्ञिये᳚भि॒र्यम॑वैरू॒पैरि॒हमा᳚दयस्व | विव॑स्वन्तंहुवे॒यःपि॒ताते॒ऽस्मिन्य॒ज्ञेब॒र्हिष्यानि॒षद्य॑ || {7.6.14.5}, {10.14.5}, {10.1.14.5} |
900 | अङ्गि॑रसोनःपि॒तरो॒नव॑ग्वा॒ऽअथ᳚र्वाणो॒भृग॑वःसो॒म्यासः॑ | तेषां᳚व॒यंसु॑म॒तौय॒ज्ञिया᳚ना॒मपि॑भ॒द्रेसौ᳚मन॒सेस्या᳚म || {7.6.15.1}, {10.14.6}, {10.1.14.6} |
901 | प्रेहि॒प्रेहि॑प॒थिभिः॑पू॒र्व्येभि॒र्यत्रा᳚नः॒पूर्वे᳚पि॒तरः॑परे॒युः | उ॒भाराजा᳚नास्व॒धया॒मद᳚न्ताय॒मंप॑श्यासि॒वरु॑णंचदे॒वम् || {7.6.15.2}, {10.14.7}, {10.1.14.7} |
902 | संग॑च्छस्वपि॒तृभिः॒संय॒मेने᳚ष्टापू॒र्तेन॑पर॒मेव्यो᳚मन् | हि॒त्वाया᳚व॒द्यंपुन॒रस्त॒मेहि॒संग॑च्छस्वत॒न्वा᳚सु॒वर्चाः᳚ || {7.6.15.3}, {10.14.8}, {10.1.14.8} |
903 | अपे᳚त॒वी᳚त॒विच॑सर्प॒तातो॒ऽस्माऽए॒तंपि॒तरो᳚लो॒कम॑क्रन् | अहो᳚भिर॒द्भिर॒क्तुभि॒र्व्य॑क्तंय॒मोद॑दात्यव॒सान॑मस्मै || {7.6.15.4}, {10.14.9}, {10.1.14.9} |
904 | अति॑द्रवसारमे॒यौश्वानौ᳚चतुर॒क्षौश॒बलौ᳚सा॒धुना᳚प॒था | अथा᳚पि॒तॄन्त्सु॑वि॒दत्राँ॒ऽउपे᳚हिय॒मेन॒येस॑ध॒मादं॒मद᳚न्ति || {7.6.15.5}, {10.14.10}, {10.1.14.10} |
905 | यौते॒श्वानौ᳚यमरक्षि॒तारौ᳚चतुर॒क्षौप॑थि॒रक्षी᳚नृ॒चक्ष॑सौ | ताभ्या᳚मेनं॒परि॑देहिराजन्त्स्व॒स्तिचा᳚स्माऽअनमी॒वंच॑धेहि || {7.6.16.1}, {10.14.11}, {10.1.14.11} |
906 | उ॒रू॒ण॒साव॑सु॒तृपा᳚ऽउदुम्ब॒लौय॒मस्य॑दू॒तौच॑रतो॒जनाँ॒ऽअनु॑ | ताव॒स्मभ्यं᳚दृ॒शये॒सूर्या᳚य॒पुन॑र्दाता॒मसु॑म॒द्येहभ॒द्रम् || {7.6.16.2}, {10.14.12}, {10.1.14.12} |
907 | य॒माय॒सोमं᳚सुनुतय॒माय॑जुहुताह॒विः | य॒मंह॑य॒ज्ञोग॑च्छत्य॒ग्निदू᳚तो॒ऽअरं᳚कृतः || {7.6.16.3}, {10.14.13}, {10.1.14.13} |
908 | य॒माय॑घृ॒तव॑द्ध॒विर्जु॒होत॒प्रच॑तिष्ठत | सनो᳚दे॒वेष्वाय॑मद्दी॒र्घमायुः॒प्रजी॒वसे᳚ || {7.6.16.4}, {10.14.14}, {10.1.14.14} |
909 | य॒माय॒मधु॑मत्तमं॒राज्ञे᳚ह॒व्यंजु॑होतन | इ॒दंनम॒ऋषि॑भ्यःपूर्व॒जेभ्यः॒पूर्वे᳚भ्यःपथि॒कृद्भ्यः॑ || {7.6.16.5}, {10.14.15}, {10.1.14.15} |
910 | त्रिक॑द्रुकेभिःपतति॒षळु॒र्वीरेक॒मिद्बृ॒हत् | त्रि॒ष्टुब्गा᳚य॒त्रीछन्दां᳚सि॒सर्वा॒ताय॒मऽआहि॑ता || {7.6.16.6}, {10.14.16}, {10.1.14.16} |
[86] (१-१४) चतुर्दशर्चस्य सूक्तस्य यामायनः शत ऋषिः | पितरो देवताः | (११०, १२-१४) प्रथमादिदशर्चाम् द्वादश्यादितृचस्य च त्रिष्टुप्, (११) एकादश्याश्च जगती छन्दसी || | |
911 | उदी᳚रता॒मव॑र॒ऽउत्परा᳚स॒ऽउन्म॑ध्य॒माःपि॒तरः॑सो॒म्यासः॑ | असुं॒यऽई॒युर॑वृ॒काऋ॑त॒ज्ञास्तेनो᳚ऽवन्तुपि॒तरो॒हवे᳚षु || {7.6.17.1}, {10.15.1}, {10.1.15.1} |
912 | इ॒दंपि॒तृभ्यो॒नमो᳚ऽअस्त्व॒द्ययेपूर्वा᳚सो॒यऽउप॑रासऽई॒युः | येपार्थि॑वे॒रज॒स्यानिष॑त्ता॒येवा᳚नू॒नंसु॑वृ॒जना᳚सुवि॒क्षु || {7.6.17.2}, {10.15.2}, {10.1.15.2} |
913 | आहंपि॒तॄन्त्सु॑वि॒दत्राँ᳚ऽअवित्सि॒नपा᳚तंचवि॒क्रम॑णंच॒विष्णोः᳚ | ब॒र्हि॒षदो॒येस्व॒धया᳚सु॒तस्य॒भज᳚न्तपि॒त्वस्तऽइ॒हाग॑मिष्ठाः || {7.6.17.3}, {10.15.3}, {10.1.15.3} |
914 | बर्हि॑षदःपितरऽऊ॒त्य१॑(अ॒)'र्वागि॒मावो᳚ह॒व्याच॑कृमाजु॒षध्व᳚म् | तऽआग॒ताव॑सा॒शंत॑मे॒नाथा᳚नः॒शंयोर॑र॒पोद॑धात || {7.6.17.4}, {10.15.4}, {10.1.15.4} |
915 | उप॑हूताःपि॒तरः॑सो॒म्यासो᳚बर्हि॒ष्ये᳚षुनि॒धिषु॑प्रि॒येषु॑ | तऽआग॑मन्तु॒तऽइ॒हश्रु॑व॒न्त्वधि॑ब्रुवन्तु॒ते᳚ऽवन्त्व॒स्मान् || {7.6.17.5}, {10.15.5}, {10.1.15.5} |
916 | आच्या॒जानु॑दक्षिण॒तोनि॒षद्ये॒मंय॒ज्ञम॒भिगृ॑णीत॒विश्वे᳚ | माहिं᳚सिष्टपितरः॒केन॑चिन्नो॒यद्व॒ऽआगः॑पुरु॒षता॒करा᳚म || {7.6.18.1}, {10.15.6}, {10.1.15.6} |
917 | आसी᳚नासोऽअरु॒णीना᳚मु॒पस्थे᳚र॒यिंध॑त्तदा॒शुषे॒मर्त्या᳚य | पु॒त्रेभ्यः॑पितर॒स्तस्य॒वस्वः॒प्रय॑च्छत॒तऽइ॒होर्जं᳚दधात || {7.6.18.2}, {10.15.7}, {10.1.15.7} |
918 | येनः॒पूर्वे᳚पि॒तरः॑सो॒म्यासो᳚ऽनूहि॒रेसो᳚मपी॒थंवसि॑ष्ठाः | तेभि᳚र्य॒मःसं᳚ररा॒णोह॒वींष्यु॒शन्नु॒शद्भिः॑प्रतिका॒मम॑त्तु || {7.6.18.3}, {10.15.8}, {10.1.15.8} |
919 | येता᳚तृ॒षुर्दे᳚व॒त्राजेह॑मानाहोत्रा॒विदः॒स्तोम॑तष्टासोऽअ॒र्कैः | आग्ने᳚याहिसुवि॒दत्रे᳚भिर॒र्वाङ्स॒त्यैःक॒व्यैःपि॒तृभि॑र्घर्म॒सद्भिः॑ || {7.6.18.4}, {10.15.9}, {10.1.15.9} |
920 | येस॒त्यासो᳚हवि॒रदो᳚हवि॒ष्पाऽइन्द्रे᳚णदे॒वैःस॒रथं॒दधा᳚नाः | आग्ने᳚याहिस॒हस्रं᳚देवव॒न्दैःपरैः॒पूर्वैः᳚पि॒तृभि॑र्घर्म॒सद्भिः॑ || {7.6.18.5}, {10.15.10}, {10.1.15.10} |
921 | अग्नि॑ष्वात्ताःपितर॒ऽएहग॑च्छत॒सदः॑सदःसदतसुप्रणीतयः | अ॒त्ताह॒वींषि॒प्रय॑तानिब॒र्हिष्यथा᳚र॒यिंसर्व॑वीरंदधातन || {7.6.19.1}, {10.15.11}, {10.1.15.11} |
922 | त्वम॑ग्नऽईळि॒तोजा᳚तवे॒दोऽवा᳚ड्ढ॒व्यानि॑सुर॒भीणि॑कृ॒त्वी | प्रादाः᳚पि॒तृभ्यः॑स्व॒धया॒तेऽअ॑क्षन्न॒द्धित्वंदे᳚व॒प्रय॑ताह॒वींषि॑ || {7.6.19.2}, {10.15.12}, {10.1.15.12} |
923 | येचे॒हपि॒तरो॒येच॒नेहयाँश्च॑वि॒द्मयाँऽउ॑च॒नप्र॑वि॒द्म | त्वंवे᳚त्थ॒यति॒तेजा᳚तवेदःस्व॒धाभि᳚र्य॒ज्ञंसुकृ॑तंजुषस्व || {7.6.19.3}, {10.15.13}, {10.1.15.13} |
924 | येऽअ॑ग्निद॒ग्धायेऽअन॑ग्निदग्धा॒मध्ये᳚दि॒वःस्व॒धया᳚मा॒दय᳚न्ते | तेभिः॑स्व॒राळसु॑नीतिमे॒तांय॑थाव॒शंत॒न्वं᳚कल्पयस्व || {7.6.19.4}, {10.15.14}, {10.1.15.14} |
[87] (१-१४) चतुर्दशर्चस्य सूक्तस्य यामायनो दमन ऋषिः | अग्निर्देवता | (११०) प्रथमादिदशर्चाम् त्रिष्टुप, (११-१४) एकादश्यादिचतसृणाञ्चानुष्टुप्, छन्दसी || | |
925 | मैन॑मग्ने॒विद॑हो॒माभिशो᳚चो॒मास्य॒त्वचं᳚चिक्षिपो॒माशरी᳚रम् | य॒दाशृ॒तंकृ॒णवो᳚जातवे॒दोऽथे᳚मेनं॒प्रहि॑णुतात्पि॒तृभ्यः॑ || {7.6.20.1}, {10.16.1}, {10.1.16.1} |
926 | शृ॒तंय॒दाकर॑सिजातवे॒दोऽथे᳚मेनं॒परि॑दत्तात्पि॒तृभ्यः॑ | य॒दागच्छा॒त्यसु॑नीतिमे॒तामथा᳚दे॒वानां᳚वश॒नीर्भ॑वाति || {7.6.20.2}, {10.16.2}, {10.1.16.2} |
927 | सूर्यं॒चक्षु॑र्गच्छतु॒वात॑मा॒त्माद्यांच॑गच्छपृथि॒वींच॒धर्म॑णा | अ॒पोवा᳚गच्छ॒यदि॒तत्र॑तेहि॒तमोष॑धीषु॒प्रति॑तिष्ठा॒शरी᳚रैः || {7.6.20.3}, {10.16.3}, {10.1.16.3} |
928 | अ॒जोभा॒गस्तप॑सा॒तंत॑पस्व॒तंते᳚शो॒चिस्त॑पतु॒तंते᳚ऽअ॒र्चिः | यास्ते᳚शि॒वास्त॒न्वो᳚जातवेद॒स्ताभि᳚र्वहैनंसु॒कृता᳚मुलो॒कम् || {7.6.20.4}, {10.16.4}, {10.1.16.4} |
929 | अव॑सृज॒पुन॑रग्नेपि॒तृभ्यो॒यस्त॒ऽआहु॑त॒श्चर॑तिस्व॒धाभिः॑ | आयु॒र्वसा᳚न॒ऽउप॑वेतु॒शेषः॒संग॑च्छतांत॒न्वा᳚जातवेदः || {7.6.20.5}, {10.16.5}, {10.1.16.5} |
930 | यत्ते᳚कृ॒ष्णःश॑कु॒नऽआ᳚तु॒तोद॑पिपी॒लःस॒र्पऽउ॒तवा॒श्वाप॑दः | अ॒ग्निष्टद्वि॒श्वाद॑ग॒दंकृ॑णोतु॒सोम॑श्च॒योब्रा᳚ह्म॒णाँऽआ᳚वि॒वेश॑ || {7.6.21.1}, {10.16.6}, {10.1.16.6} |
931 | अ॒ग्नेर्वर्म॒परि॒गोभि᳚र्व्ययस्व॒संप्रोर्णु॑ष्व॒पीव॑सा॒मेद॑साच | नेत्त्वा᳚धृ॒ष्णुर्हर॑सा॒जर्हृ॑षाणोद॒धृग्वि॑ध॒क्ष्यन्प᳚र्य॒ङ्खया᳚ते || {7.6.21.2}, {10.16.7}, {10.1.16.7} |
932 | इ॒मम॑ग्नेचम॒संमाविजि॑ह्वरःप्रि॒योदे॒वाना᳚मु॒तसो॒म्याना᳚म् | ए॒षयश्च॑म॒सोदे᳚व॒पान॒स्तस्मि᳚न्दे॒वाऽअ॒मृता᳚मादयन्ते || {7.6.21.3}, {10.16.8}, {10.1.16.8} |
933 | क्र॒व्याद॑म॒ग्निंप्रहि॑णोमिदू॒रंय॒मरा᳚ज्ञोगच्छतुरिप्रवा॒हः | इ॒हैवायमित॑रोजा॒तवे᳚दादे॒वेभ्यो᳚ह॒व्यंव॑हतुप्रजा॒नन् || {7.6.21.4}, {10.16.9}, {10.1.16.9} |
934 | योऽअ॒ग्निःक्र॒व्यात्प्र॑वि॒वेश॑वोगृ॒हमि॒मंपश्य॒न्नित॑रंजा॒तवे᳚दसम् | तंह॑रामिपितृय॒ज्ञाय॑दे॒वंसघ॒र्ममि᳚न्वात्पर॒मेस॒धस्थे᳚ || {7.6.21.5}, {10.16.10}, {10.1.16.10} |
935 | योऽअ॒ग्निःक्र᳚व्य॒वाह॑नःपि॒तॄन्यक्ष॑दृता॒वृधः॑ | प्रेदु॑ह॒व्यानि॑वोचतिदे॒वेभ्य॑श्चपि॒तृभ्य॒ऽआ || {7.6.22.1}, {10.16.11}, {10.1.16.11} |
936 | उ॒शन्त॑स्त्वा॒निधी᳚मह्यु॒शन्तः॒समि॑धीमहि | उ॒शन्नु॑श॒तऽआव॑हपि॒तॄन्ह॒विषे॒ऽअत्त॑वे || {7.6.22.2}, {10.16.12}, {10.1.16.12} |
937 | यंत्वम॑ग्नेस॒मद॑ह॒स्तमु॒निर्वा᳚पया॒पुनः॑ | कि॒याम्ब्वत्र॑रोहतुपाकदू॒र्वाव्य॑ल्कशा || {7.6.22.3}, {10.16.13}, {10.1.16.13} |
938 | शीति॑के॒शीति॑कावति॒ह्लादि॑के॒ह्लादि॑कावति | म॒ण्डू॒क्या॒३॑(आ॒)सुसंग॑मऽइ॒मंस्व१॑(अ॒)ग्निंह॑र्षय || {7.6.22.4}, {10.16.14}, {10.1.16.14} |
[88] (१-१४) चतुर्दशर्चस्य सूत्तस्य यामायनो देवश्रवा ऋषिः | (१-२) प्रथमाद्वितीययोर्ऋचोः सरण्यः, (३-६) तृतीयादिचतसृणां पूषा, (७-९) सप्तम्यादितृचस्य सरस्वती, (१०, १४) दशमीचतुदर्श योरापः, (११-१३) एकादश्यादितृचस्य च आपः सोमो वा देवताः | (१-१२) प्रथमादिद्वादशर्चाम् त्रिष्टुप, (१३) त्रयोदश्या अनुष्टः पुरस्ताद्ब्रहती वा, (१४) चतुदर्श याश्चानुष्टुप्, छन्दांसि || | |
939 | त्वष्टा᳚दुहि॒त्रेव॑ह॒तुंकृ॑णो॒तीती॒दंविश्वं॒भुव॑नं॒समे᳚ति | य॒मस्य॑मा॒ताप᳚र्यु॒ह्यमा᳚नाम॒होजा॒याविव॑स्वतोननाश || {7.6.23.1}, {10.17.1}, {10.2.1.1} |
940 | अपा᳚गूहन्न॒मृतां॒मर्त्ये᳚भ्यःकृ॒त्वीसव᳚र्णामददु॒र्विव॑स्वते | उ॒ताश्विना᳚वभर॒द्यत्तदासी॒दज॑हादु॒द्वामि॑थु॒नास॑र॒ण्यूः || {7.6.23.2}, {10.17.2}, {10.2.1.2} |
941 | पू॒षात्वे॒तश्च्या᳚वयतु॒प्रवि॒द्वानन॑ष्टपशु॒र्भुव॑नस्यगो॒पाः | सत्वै॒तेभ्यः॒परि॑ददत्पि॒तृभ्यो॒ऽग्निर्दे॒वेभ्यः॑सुविद॒त्रिये᳚भ्यः || {7.6.23.3}, {10.17.3}, {10.2.1.3} |
942 | आयु᳚र्वि॒श्वायुः॒परि॑पासतित्वापू॒षात्वा᳚पातु॒प्रप॑थेपु॒रस्ता᳚त् | यत्रास॑तेसु॒कृतो॒यत्र॒तेय॒युस्तत्र॑त्वादे॒वःस॑वि॒ताद॑धातु || {7.6.23.4}, {10.17.4}, {10.2.1.4} |
943 | पू॒षेमाऽआशा॒ऽअनु॑वेद॒सर्वाः॒सोऽअ॒स्माँऽअभ॑यतमेननेषत् | स्व॒स्ति॒दाऽआघृ॑णिः॒सर्व॑वी॒रोऽप्र॑युच्छन्पु॒रऽए᳚तुप्रजा॒नन् || {7.6.23.5}, {10.17.5}, {10.2.1.5} |
944 | प्रप॑थेप॒थाम॑जनिष्टपू॒षाप्रप॑थेदि॒वःप्रप॑थेपृथि॒व्याः | उ॒भेऽअ॒भिप्रि॒यत॑मेस॒धस्थे॒ऽआच॒परा᳚चचरतिप्रजा॒नन् || {7.6.24.1}, {10.17.6}, {10.2.1.6} |
945 | सर॑स्वतींदेव॒यन्तो᳚हवन्ते॒सर॑स्वतीमध्व॒रेता॒यमा᳚ने | सर॑स्वतींसु॒कृतो᳚ऽअह्वयन्त॒सर॑स्वतीदा॒शुषे॒वार्यं᳚दात् || {7.6.24.2}, {10.17.7}, {10.2.1.7} |
946 | सर॑स्वति॒यास॒रथं᳚य॒याथ॑स्व॒धाभि॑र्देविपि॒तृभि॒र्मद᳚न्ती | आ॒सद्या॒स्मिन्ब॒र्हिषि॑मादयस्वानमी॒वाऽइष॒ऽआधे᳚ह्य॒स्मे || {7.6.24.3}, {10.17.8}, {10.2.1.8} |
947 | सर॑स्वतीं॒यांपि॒तरो॒हव᳚न्तेदक्षि॒णाय॒ज्ञम॑भि॒नक्ष॑माणाः | स॒ह॒स्रा॒र्घमि॒ळोऽअत्र॑भा॒गंरा॒यस्पोषं॒यज॑मानेषुधेहि || {7.6.24.4}, {10.17.9}, {10.2.1.9} |
948 | आपो᳚ऽअ॒स्मान्मा॒तरः॑शुन्धयन्तुघृ॒तेन॑नोघृत॒प्वः॑पुनन्तु | विश्वं॒हिरि॒प्रंप्र॒वह᳚न्तिदे॒वीरुदिदा᳚भ्यः॒शुचि॒रापू॒तऽए᳚मि || {7.6.24.5}, {10.17.10}, {10.2.1.10} |
949 | द्र॒प्सश्च॑स्कन्दप्रथ॒माँऽअनु॒द्यूनि॒मंच॒योनि॒मनु॒यश्च॒पूर्वः॑ | स॒मा॒नंयोनि॒मनु॑सं॒चर᳚न्तंद्र॒प्संजु॑हो॒म्यनु॑स॒प्तहोत्राः᳚ || {7.6.25.1}, {10.17.11}, {10.2.1.11} |
950 | यस्ते᳚द्र॒प्सःस्कन्द॑ति॒यस्ते᳚ऽअं॒शुर्बा॒हुच्यु॑तोधि॒षणा᳚याऽउ॒पस्था᳚त् | अ॒ध्व॒र्योर्वा॒परि॑वा॒यःप॒वित्रा॒त्तंते᳚जुहोमि॒मन॑सा॒वष॑ट्कृतम् || {7.6.25.2}, {10.17.12}, {10.2.1.12} |
951 | यस्ते᳚द्र॒प्सःस्क॒न्नोयस्ते᳚ऽअं॒शुर॒वश्च॒यःप॒रःस्रु॒चा | अ॒यंदे॒वोबृह॒स्पतिः॒संतंसि᳚ञ्चतु॒राध॑से || {7.6.25.3}, {10.17.13}, {10.2.1.13} |
952 | पय॑स्वती॒रोष॑धयः॒पय॑स्वन्माम॒कंवचः॑ | अ॒पांपय॑स्व॒दित्पय॒स्तेन॑मास॒हशु᳚न्धत || {7.6.25.4}, {10.17.14}, {10.2.1.14} |
[89] (१-१४) चतुर्दशर्चस्य सूक्तस्य यामायनः संकसु क ऋषिः | (१-४) प्रथमादिचतुर्ऋचाम् मृत्युः, (५) पञ्चम्या धाता, (६) षष्ठ्यास्त्वष्टा, (७-१३) सप्तम्यादिसप्तानां पितृमधे :, (१४) चतुर्दर्श्याश्च पितृमधे : प्रजापतिर्वा देवताः | (१-१०, १२) प्रथमादिदशर्चाम् द्वादश्याश्च त्रिष्टुप् (११) एकादश्याः प्रस्तारपङ्क्तिः, (१३) त्रयोदश्या जगती, (१४) चतुदर्श याश्चानष्टप छन्दांसि || | |
953 | परं᳚मृत्यो॒ऽअनु॒परे᳚हि॒पन्थां॒यस्ते॒स्वऽइत॑रोदेव॒याना᳚त् | चक्षु॑ष्मतेशृण्व॒तेते᳚ब्रवीमि॒मानः॑प्र॒जांरी᳚रिषो॒मोतवी॒रान् || {7.6.26.1}, {10.18.1}, {10.2.2.1} |
954 | मृ॒त्योःप॒दंयो॒पय᳚न्तो॒यदैत॒द्राघी᳚य॒ऽआयुः॑प्रत॒रंदधा᳚नाः | आ॒प्याय॑मानाःप्र॒जया॒धने᳚नशु॒द्धाःपू॒ताभ॑वतयज्ञियासः || {7.6.26.2}, {10.18.2}, {10.2.2.2} |
955 | इ॒मेजी॒वाविमृ॒तैराव॑वृत्र॒न्नभू᳚द्भ॒द्रादे॒वहू᳚तिर्नोऽअ॒द्य | प्राञ्चो᳚ऽअगामनृ॒तये॒हसा᳚य॒द्राघी᳚य॒ऽआयुः॑प्रत॒रंदधा᳚नाः || {7.6.26.3}, {10.18.3}, {10.2.2.3} |
956 | इ॒मंजी॒वेभ्यः॑परि॒धिंद॑धामि॒मैषां॒नुगा॒दप॑रो॒ऽअर्थ॑मे॒तम् | श॒तंजी᳚वन्तुश॒रदः॑पुरू॒चीर॒न्तर्मृ॒त्युंद॑धतां॒पर्व॑तेन || {7.6.26.4}, {10.18.4}, {10.2.2.4} |
957 | यथाहा᳚न्यनुपू॒र्वंभव᳚न्ति॒यथ॑ऋ॒तव॑ऋ॒तुभि॒र्यन्ति॑सा॒धु | यथा॒नपूर्व॒मप॑रो॒जहा᳚त्ये॒वाधा᳚त॒रायूं᳚षिकल्पयैषाम् || {7.6.26.5}, {10.18.5}, {10.2.2.5} |
958 | आरो᳚ह॒तायु॑र्ज॒रसं᳚वृणा॒नाऽअ॑नुपू॒र्वंयत॑माना॒यति॒ष्ठ | इ॒हत्वष्टा᳚सु॒जनि॑मास॒जोषा᳚दी॒र्घमायुः॑करतिजी॒वसे᳚वः || {7.6.27.1}, {10.18.6}, {10.2.2.6} |
959 | इ॒मानारी᳚रविध॒वाःसु॒पत्नी॒राञ्ज॑नेनस॒र्पिषा॒संवि॑शन्तु | अ॒न॒श्रवो᳚ऽनमी॒वाःसु॒रत्ना॒ऽआरो᳚हन्तु॒जन॑यो॒योनि॒मग्रे᳚ || {7.6.27.2}, {10.18.7}, {10.2.2.7} |
960 | उदी᳚र्ष्वनार्य॒भिजी᳚वलो॒कंग॒तासु॑मे॒तमुप॑शेष॒ऽएहि॑ | ह॒स्त॒ग्रा॒भस्य॑दिधि॒षोस्तवे॒दंपत्यु॑र्जनि॒त्वम॒भिसंब॑भूथ || {7.6.27.3}, {10.18.8}, {10.2.2.8} |
961 | धनु॒र्हस्ता᳚दा॒ददा᳚नोमृ॒तस्या॒स्मेक्ष॒त्राय॒वर्च॑से॒बला᳚य | अत्रै॒वत्वमि॒हव॒यंसु॒वीरा॒विश्वाः॒स्पृधो᳚ऽअ॒भिमा᳚तीर्जयेम || {7.6.27.4}, {10.18.9}, {10.2.2.9} |
962 | उप॑सर्पमा॒तरं॒भूमि॑मे॒तामु॑रु॒व्यच॑संपृथि॒वींसु॒शेवा᳚म् | ऊर्ण᳚म्रदायुव॒तिर्दक्षि॑णावतऽए॒षात्वा᳚पातु॒निर्ऋ॑तेरु॒पस्था᳚त् || {7.6.27.5}, {10.18.10}, {10.2.2.10} |
963 | उच्छ्व᳚ञ्चस्वपृथिवि॒मानिबा᳚धथाःसूपाय॒नास्मै᳚भवसूपवञ्च॒ना | मा॒तापु॒त्रंयथा᳚सि॒चाभ्ये᳚नंभूमऽऊर्णुहि || {7.6.28.1}, {10.18.11}, {10.2.2.11} |
964 | उ॒च्छ्वञ्च॑मानापृथि॒वीसुति॑ष्ठतुस॒हस्रं॒मित॒ऽउप॒हिश्रय᳚न्ताम् | तेगृ॒हासो᳚घृत॒श्चुतो᳚भवन्तुवि॒श्वाहा᳚स्मैशर॒णाःस॒न्त्वत्र॑ || {7.6.28.2}, {10.18.12}, {10.2.2.12} |
965 | उत्ते᳚स्तभ्नामिपृथि॒वींत्वत्परी॒मंलो॒गंनि॒दध॒न्मोऽअ॒हंरि॑षम् | ए॒तांस्थूणां᳚पि॒तरो᳚धारयन्तु॒तेऽत्रा᳚य॒मःसाद॑नातेमिनोतु || {7.6.28.3}, {10.18.13}, {10.2.2.13} |
966 | प्र॒ती॒चीने॒मामह॒नीष्वाः᳚प॒र्णमि॒वाद॑धुः | प्र॒तीचीं᳚जग्रभा॒वाच॒मश्वं᳚रश॒नया᳚यथा || {7.6.28.4}, {10.18.14}, {10.2.2.14} |
[90] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्य यामायनो मथितो वारुणिभृर्ग व भार्गवश्चयवनो वा ऋषिः | (१, २-८) प्रथमर्चः पूर्वार्धस्य द्वितीयादिसप्तानाञ्चापो गावो वा, (१) प्रथमाया उत्तरार्धस्य चाग्नीषोमो देवताः | (१-५, ७-८) प्रथमादिपञ्चा सप्तम्यष्टम्योश्चानुष्टप्, (६) षष्ठ्याश्च गायत्री छन्दसी || | |
967 | निव॑र्तध्वं॒मानु॑गाता॒स्मान्त्सि॑षक्तरेवतीः | अग्नी᳚षोमापुनर्वसूऽअ॒स्मेधा᳚रयतंर॒यिम् || {7.7.1.1}, {10.19.1}, {10.2.3.1} |
968 | पुन॑रेना॒निव॑र्तय॒पुन॑रेना॒न्याकु॑रु | इन्द्र॑ऽएणा॒निय॑च्छत्व॒ग्निरे᳚नाऽउ॒पाज॑तु || {7.7.1.2}, {10.19.2}, {10.2.3.2} |
969 | पुन॑रे॒तानिव॑र्तन्ताम॒स्मिन्पु॑ष्यन्तु॒गोप॑तौ | इ॒हैवाग्ने॒निधा᳚रये॒हति॑ष्ठतु॒यार॒यिः || {7.7.1.3}, {10.19.3}, {10.2.3.3} |
970 | यन्नि॒यानं॒न्यय॑नंसं॒ज्ञानं॒यत्प॒राय॑णम् | आ॒वर्त॑नंनि॒वर्त॑नं॒योगो॒पाऽअपि॒तंहु॑वे || {7.7.1.4}, {10.19.4}, {10.2.3.4} |
971 | यऽउ॒दान॒ड्व्यय॑नं॒यऽउ॒दान॑ट्प॒राय॑णम् | आ॒वर्त॑नंनि॒वर्त॑न॒मपि॑गो॒पानिव॑र्तताम् || {7.7.1.5}, {10.19.5}, {10.2.3.5} |
972 | आनि॑वर्त॒निव॑र्तय॒पुन᳚र्नऽइन्द्र॒गादे᳚हि | जी॒वाभि॑र्भुनजामहै || {7.7.1.6}, {10.19.6}, {10.2.3.6} |
973 | परि॑वोवि॒श्वतो᳚दधऽऊ॒र्जाघृ॒तेन॒पय॑सा | येदे॒वाःकेच॑य॒ज्ञिया॒स्तेर॒य्यासंसृ॑जन्तुनः || {7.7.1.7}, {10.19.7}, {10.2.3.7} |
974 | आनि॑वर्तनवर्तय॒निनि॑वर्तनवर्तय | भूम्या॒श्चत॑स्रःप्र॒दिश॒स्ताभ्य॑ऽएना॒निव॑र्तय || {7.7.1.8}, {10.19.8}, {10.2.3.8} |
[91] (१-२०) दशर्चस्य सूक्तस्यैन्द्रः प्राजापत्यो वा विमदः, वासक्रो वसकृद्वा ऋषिः | अग्निर्देवता | (१) प्रथमर्च एकपदा विराट्, (२) द्वितीयाया अनुष्टुप् (३८) तृतीयादितृचद्वयस्य गायत्री, (९) नवम्या विराट्, (१०) दशम्याश्च त्रिष्टुप् छन्दः || | |
975 | भ॒द्रंनो॒ऽअपि॑वातय॒मनः॑ || {7.7.2.1}, {10.20.1}, {10.2.4.1} |
976 | अ॒ग्निमी᳚ळेभु॒जांयवि॑ष्ठंशा॒सामि॒त्रंदु॒र्धरी᳚तुम् | यस्य॒धर्म॒न्त्स्व१॑(अ॒)रेनीः᳚सप॒र्यन्ति॑मा॒तुरूधः॑ || {7.7.2.2}, {10.20.2}, {10.2.4.2} |
977 | यमा॒साकृ॒पनी᳚ळंभा॒साके᳚तुंव॒र्धय᳚न्ति | भ्राज॑ते॒श्रेणि॑दन् || {7.7.2.3}, {10.20.3}, {10.2.4.3} |
978 | अ॒र्योवि॒शांगा॒तुरे᳚ति॒प्रयदान॑ड्दि॒वोऽअन्ता॑न् | क॒विर॒भ्रंदीद्या᳚नः || {7.7.2.4}, {10.20.4}, {10.2.4.4} |
979 | जु॒षद्ध॒व्यामानु॑षस्यो॒र्ध्वस्त॑स्था॒वृभ्वा᳚य॒ज्ञे | मि॒न्वन्त्सद्म॑पु॒रऽए᳚ति || {7.7.2.5}, {10.20.5}, {10.2.4.5} |
980 | सहिक्षेमो᳚ह॒विर्य॒ज्ञःश्रु॒ष्टीद॑स्यगा॒तुरे᳚ति | अ॒ग्निंदे॒वावाशी᳚मन्तम् || {7.7.2.6}, {10.20.6}, {10.2.4.6} |
981 | य॒ज्ञा॒साहं॒दुव॑ऽइषे॒ऽग्निंपूर्व॑स्य॒शेव॑स्य | अद्रेः᳚सू॒नुमा॒युमा᳚हुः || {7.7.3.1}, {10.20.7}, {10.2.4.7} |
982 | नरो॒येकेचा॒स्मदाविश्वेत्तेवा॒मऽआस्युः॑ | अ॒ग्निंह॒विषा॒वर्ध᳚न्तः || {7.7.3.2}, {10.20.8}, {10.2.4.8} |
983 | कृ॒ष्णःश्वे॒तो᳚ऽरु॒षोयामो᳚ऽअस्यब्र॒ध्नऋ॒ज्रऽउ॒तशोणो॒यश॑स्वान् | हिर᳚ण्यरूपं॒जनि॑ताजजान || {7.7.3.3}, {10.20.9}, {10.2.4.9} |
984 | ए॒वाते᳚ऽअग्नेविम॒दोम॑नी॒षामूर्जो᳚नपाद॒मृते᳚भिःस॒जोषाः᳚ | गिर॒ऽआव॑क्षत्सुम॒तीरि॑या॒नऽइष॒मूर्जं᳚सुक्षि॒तिंविश्व॒माभाः᳚ || {7.7.3.4}, {10.20.10}, {10.2.4.10} |
[92] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्यैन्द्रः प्राजापत्यो वा विमदः, वासक्रो वसकृद्वा ऋषिः | अग्निर्देवता | प्रास्तारपतिश्छन्दः || | |
985 | आग्निंनस्ववृ॑क्तिभि॒र्होता᳚रंत्वावृणीमहे | य॒ज्ञाय॑स्ती॒र्णब॑र्हिषे॒विवो॒मदे᳚शी॒रंपा᳚व॒कशो᳚चिषं॒विव॑क्षसे || {7.7.4.1}, {10.21.1}, {10.2.5.1} |
986 | त्वामु॒तेस्वा॒भुवः॑शु॒म्भन्त्यश्व॑राधसः | वेति॒त्वामु॑प॒सेच॑नी॒विवो॒मद॒ऋजी᳚तिरग्न॒ऽआहु॑ति॒र्विव॑क्षसे || {7.7.4.2}, {10.21.2}, {10.2.5.2} |
987 | त्वेध॒र्माण॑ऽआसतेजु॒हूभिः॑सिञ्च॒तीरि॑व | कृ॒ष्णारू॒पाण्यर्जु॑ना॒विवो॒मदे॒विश्वा॒ऽअधि॒श्रियो᳚धिषे॒विव॑क्षसे || {7.7.4.3}, {10.21.3}, {10.2.5.3} |
988 | यम॑ग्ने॒मन्य॑सेर॒यिंसह॑सावन्नमर्त्य | तमानो॒वाज॑सातये॒विवो॒मदे᳚य॒ज्ञेषु॑चि॒त्रमाभ॑रा॒विव॑क्षसे || {7.7.4.4}, {10.21.4}, {10.2.5.4} |
989 | अ॒ग्निर्जा॒तोऽअथ᳚र्वणावि॒दद्विश्वा᳚नि॒काव्या᳚ | भुव॑द्दू॒तोवि॒वस्व॑तो॒विवो॒मदे᳚प्रि॒योय॒मस्य॒काम्यो॒विव॑क्षसे || {7.7.4.5}, {10.21.5}, {10.2.5.5} |
990 | त्वांय॒ज्ञेष्वी᳚ळ॒तेऽग्ने᳚प्रय॒त्य॑ध्व॒रे | त्वंवसू᳚नि॒काम्या॒विवो॒मदे॒विश्वा᳚दधासिदा॒शुषे॒विव॑क्षसे || {7.7.5.1}, {10.21.6}, {10.2.5.6} |
991 | त्वांय॒ज्ञेष्वृ॒त्विजं॒चारु॑मग्ने॒निषे᳚दिरे | घृ॒तप्र॑तीकं॒मनु॑षो॒विवो॒मदे᳚शु॒क्रंचेति॑ष्ठम॒क्षभि॒र्विव॑क्षसे || {7.7.5.2}, {10.21.7}, {10.2.5.7} |
992 | अग्ने᳚शु॒क्रेण॑शो॒चिषो॒रुप्र॑थयसेबृ॒हत् | अ॒भि॒क्रन्द᳚न्वृषायसे॒विवो॒मदे॒गर्भं᳚दधासिजा॒मिषु॒विव॑क्षसे || {7.7.5.3}, {10.21.8}, {10.2.5.8} |
[93] (१-१५) पञ्चदशर्चस्य सूक्तस्यैन्द्रः प्राजापत्यो वा विमदः, वासुक्रो वसुकृद्वा ऋषिः | इन्द्रो देवता | (१-४, ६, ८, १०-१४) प्रथमादिचतुर्ऋचामा, षष्ठ्यष्टम्योर्दशम्यादिपञ्चानाञ्च पुरस्ताद्ब्रहती, (५, ७, ९) पञ्चमीसप्तमीनवमीनामनुष्टुप्, (१५) पञ्चदश्याश्च त्रिष्टुप् छन्दांसि || | |
993 | कुह॑श्रु॒तऽइन्द्रः॒कस्मि᳚न्न॒द्यजने᳚मि॒त्रोनश्रू᳚यते | ऋषी᳚णांवा॒यःक्षये॒गुहा᳚वा॒चर्कृ॑षेगि॒रा || {7.7.6.1}, {10.22.1}, {10.2.6.1} |
994 | इ॒हश्रु॒तऽइन्द्रो᳚ऽअ॒स्मेऽअ॒द्यस्तवे᳚व॒ज्र्यृची᳚षमः | मि॒त्रोनयोजने॒ष्वायश॑श्च॒क्रेऽअसा॒म्या || {7.7.6.2}, {10.22.2}, {10.2.6.2} |
995 | म॒होयस्पतिः॒शव॑सो॒ऽअसा॒म्याम॒होनृ॒म्णस्य॑तूतु॒जिः | भ॒र्तावज्र॑स्यधृ॒ष्णोःपि॒तापु॒त्रमि॑वप्रि॒यम् || {7.7.6.3}, {10.22.3}, {10.2.6.3} |
996 | यु॒जा॒नोऽअश्वा॒वात॑स्य॒धुनी᳚दे॒वोदे॒वस्य॑वज्रिवः | स्यन्ता᳚प॒थावि॒रुक्म॑तासृजा॒नःस्तो॒ष्यध्व॑नः || {7.7.6.4}, {10.22.4}, {10.2.6.4} |
997 | त्वंत्याचि॒द्वात॒स्याश्वागा᳚ऋ॒ज्रात्मना॒वह॑ध्यै | ययो᳚र्दे॒वोनमर्त्यो᳚य॒न्तानकि᳚र्वि॒दाय्यः॑ || {7.7.6.5}, {10.22.5}, {10.2.6.5} |
998 | अध॒ग्मन्तो॒शना᳚पृच्छतेवां॒कद॑र्थान॒ऽआगृ॒हम् | आज॑ग्मथुःपरा॒काद्दि॒वश्च॒ग्मश्च॒मर्त्य᳚म् || {7.7.7.1}, {10.22.6}, {10.2.6.6} |
999 | आन॑ऽइन्द्रपृक्षसे॒ऽस्माकं॒ब्रह्मोद्य॑तम् | तत्त्वा᳚याचाम॒हेऽवः॒शुष्णं॒यद्धन्नमा᳚नुषम् || {7.7.7.2}, {10.22.7}, {10.2.6.7} |
1000 | अ॒क॒र्मादस्यु॑र॒भिनो᳚ऽअम॒न्तुर॒न्यव्र॑तो॒ऽअमा᳚नुषः | त्वंतस्या᳚मित्रह॒न्वध॑र्दा॒सस्य॑दम्भय || {7.7.7.3}, {10.22.8}, {10.2.6.8} |
1001 | त्वंन॑ऽइन्द्रशूर॒शूरै᳚रु॒तत्वोता᳚सोब॒र्हणा᳚ | पु॒रु॒त्राते॒विपू॒र्तयो॒नव᳚न्तक्षो॒णयो᳚यथा || {7.7.7.4}, {10.22.9}, {10.2.6.9} |
1002 | त्वंतान्वृ॑त्र॒हत्ये᳚चोदयो॒नॄन्का᳚र्पा॒णेशू᳚रवज्रिवः | गुहा॒यदी᳚कवी॒नांवि॒शांनक्ष॑त्रशवसाम् || {7.7.7.5}, {10.22.10}, {10.2.6.10} |
1003 | म॒क्षूतात॑ऽइन्द्रदा॒नाप्न॑सऽआक्षा॒णेशू᳚रवज्रिवः | यद्ध॒शुष्ण॑स्यद॒म्भयो᳚जा॒तंविश्वं᳚स॒याव॑भिः || {7.7.8.1}, {10.22.11}, {10.2.6.11} |
1004 | माकु॒ध्र्य॑गिन्द्रशूर॒वस्वी᳚र॒स्मेभू᳚वन्न॒भिष्ट॑यः | व॒यंव॑यंतऽआसांसु॒म्नेस्या᳚मवज्रिवः || {7.7.8.2}, {10.22.12}, {10.2.6.12} |
1005 | अ॒स्मेतात॑ऽइन्द्रसन्तुस॒त्याहिं᳚सन्तीरुप॒स्पृशः॑ | वि॒द्याम॒यासां॒भुजो᳚धेनू॒नांनव॑ज्रिवः || {7.7.8.3}, {10.22.13}, {10.2.6.13} |
1006 | अ॒ह॒स्तायद॒पदी॒वर्ध॑त॒क्षाःशची᳚भिर्वे॒द्याना᳚म् | शुष्णं॒परि॑प्रदक्षि॒णिद्वि॒श्वाय॑वे॒निशि॑श्नथः || {7.7.8.4}, {10.22.14}, {10.2.6.14} |
1007 | पिबा᳚पि॒बेदि᳚न्द्रशूर॒सोमं॒मारि॑षण्योवसवान॒वसुः॒सन् | उ॒तत्रा᳚यस्वगृण॒तोम॒घोनो᳚म॒हश्च॑रा॒योरे॒वत॑स्कृधीनः || {7.7.8.5}, {10.22.15}, {10.2.6.15} |
[94] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्यैन्द्रः प्राजापत्यो वा विमदः, वासुक्रो वसुकृद्वा ऋषिः | इन्द्रो देवता | (१, ७) प्रथमासप्तम्यो चोस्त्रिष्टुप, (२-४, ६) द्वितीयादितृचस्य षष्ठ्याश्च जगती, (५) पञ्चम्याश्चाभिसारिणी छन्दांसि || | |
1008 | यजा᳚मह॒ऽइन्द्रं॒वज्र॑दक्षिणं॒हरी᳚णांर॒थ्य१॑(अ॒)अंविव्र॑तानाम् | प्रश्मश्रु॒दोधु॑वदू॒र्ध्वथा᳚भू॒द्विसेना᳚भि॒र्दय॑मानो॒विराध॑सा || {7.7.9.1}, {10.23.1}, {10.2.7.1} |
1009 | हरी॒न्व॑स्य॒यावने᳚वि॒देवस्विन्द्रो᳚म॒घैर्म॒घवा᳚वृत्र॒हाभु॑वत् | ऋ॒भुर्वाज॑ऋभु॒क्षाःप॑त्यते॒शवोऽव॑क्ष्णौमि॒दास॑स्य॒नाम॑चित् || {7.7.9.2}, {10.23.2}, {10.2.7.2} |
1010 | य॒दावज्रं॒हिर᳚ण्य॒मिदथा॒रथं॒हरी॒यम॑स्य॒वह॑तो॒विसू॒रिभिः॑ | आति॑ष्ठतिम॒घवा॒सन॑श्रुत॒ऽइन्द्रो॒वाज॑स्यदी॒र्घश्र॑वस॒स्पतिः॑ || {7.7.9.3}, {10.23.3}, {10.2.7.3} |
1011 | सोचि॒न्नुवृ॒ष्टिर्यू॒थ्या॒३॑(आ॒)स्वासचाँ॒ऽइन्द्रः॒श्मश्रू᳚णि॒हरि॑ता॒भिप्रु॑ष्णुते | अव॑वेतिसु॒क्षयं᳚सु॒तेमधूदिद्धू᳚नोति॒वातो॒यथा॒वन᳚म् || {7.7.9.4}, {10.23.4}, {10.2.7.4} |
1012 | योवा॒चाविवा᳚चोमृ॒ध्रवा᳚चःपु॒रूस॒हस्राशि॑वाज॒घान॑ | तत्त॒दिद॑स्य॒पौंस्यं᳚गृणीमसिपि॒तेव॒यस्तवि॑षींवावृ॒धेशवः॑ || {7.7.9.5}, {10.23.5}, {10.2.7.5} |
1013 | स्तोमं᳚तऽइन्द्रविम॒दाऽअ॑जीजन॒न्नपू᳚र्व्यंपुरु॒तमं᳚सु॒दान॑वे | वि॒द्माह्य॑स्य॒भोज॑नमि॒नस्य॒यदाप॒शुंनगो॒पाःक॑रामहे || {7.7.9.6}, {10.23.6}, {10.2.7.6} |
1014 | माकि᳚र्नऽए॒नास॒ख्यावियौ᳚षु॒स्तव॑चेन्द्रविम॒दस्य॑च॒ऋषेः᳚ | वि॒द्माहिते॒प्रम॑तिंदेवजामि॒वद॒स्मेते᳚सन्तुस॒ख्याशि॒वानि॑ || {7.7.9.7}, {10.23.7}, {10.2.7.7} |
[95] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्यैन्द्रः प्राजापत्यो वा विमदः, वासुक्रो वसुकृद्वा ऋषिः | (१-३) प्रथमतृचस्येन्द्रः, (४-६) द्वितीयतृचस्य चाश्विनौ देवताः | (१-३) प्रथमतृचस्यास्तारपङ्क्तिः, (४-६) द्वितीयतृचस्य चानुष्टप् छन्दसी || | |
1015 | इन्द्र॒सोम॑मि॒मंपि॑ब॒मधु॑मन्तंच॒मूसु॒तम् | अ॒स्मेर॒यिंनिधा᳚रय॒विवो॒मदे᳚सह॒स्रिणं᳚पुरूवसो॒विव॑क्षसे || {7.7.10.1}, {10.24.1}, {10.2.8.1} |
1016 | त्वांय॒ज्ञेभि॑रु॒क्थैरुप॑ह॒व्येभि॑रीमहे | शची᳚पतेशचीनां॒विवो॒मदे॒श्रेष्ठं᳚नोधेहि॒वार्यं॒विव॑क्षसे || {7.7.10.2}, {10.24.2}, {10.2.8.2} |
1017 | यस्पति॒र्वार्या᳚णा॒मसि॑र॒ध्रस्य॑चोदि॒ता | इन्द्र॑स्तोतॄ॒णाम॑वि॒ताविवो॒मदे᳚द्वि॒षोनः॑पा॒ह्यंह॑सो॒विव॑क्षसे || {7.7.10.3}, {10.24.3}, {10.2.8.3} |
1018 | यु॒वंश॑क्रामाया॒विना᳚समी॒चीनिर॑मन्थतम् | वि॒म॒देन॒यदी᳚ळि॒तानास॑त्यानि॒रम᳚न्थतम् || {7.7.10.4}, {10.24.4}, {10.2.8.4} |
1019 | विश्वे᳚दे॒वाऽअ॑कृपन्तसमी॒च्योर्नि॒ष्पत᳚न्त्योः | नास॑त्यावब्रुवन्दे॒वाःपुन॒राव॑हता॒दिति॑ || {7.7.10.5}, {10.24.5}, {10.2.8.5} |
1020 | मधु॑मन्मेप॒राय॑णं॒मधु॑म॒त्पुन॒राय॑नम् | तानो᳚देवादे॒वत॑यायु॒वंमधु॑मतस्कृतम् || {7.7.10.6}, {10.24.6}, {10.2.8.6} |
[96] (१-११) एकादशर्चस्य सूक्तस्यैन्द्रः प्राजापत्यो वा विमदः, वासुक्रो वसुकृद्वा ऋषिः | सोमो देवता | आस्तारपङ्क्तिश्छन्दः || | |
1021 | भ॒द्रंनो॒ऽअपि॑वातय॒मनो॒दक्ष॑मु॒तक्रतु᳚म् | अधा᳚तेस॒ख्येऽअन्ध॑सो॒विवो॒मदे॒रण॒न्गावो॒नयव॑से॒विव॑क्षसे || {7.7.11.1}, {10.25.1}, {10.2.9.1} |
1022 | हृ॒दि॒स्पृश॑स्तऽआसते॒विश्वे᳚षुसोम॒धाम॑सु | अधा॒कामा᳚ऽइ॒मेमम॒विवो॒मदे॒विति॑ष्ठन्तेवसू॒यवो॒विव॑क्षसे || {7.7.11.2}, {10.25.2}, {10.2.9.2} |
1023 | उ॒तव्र॒तानि॑सोमते॒प्राहंमि॑नामिपा॒क्या᳚ | अधा᳚पि॒तेव॑सू॒नवे॒विवो॒मदे᳚मृ॒ळानो᳚ऽअ॒भिचि॑द्व॒धाद्विव॑क्षसे || {7.7.11.3}, {10.25.3}, {10.2.9.3} |
1024 | समु॒प्रय᳚न्तिधी॒तयः॒सर्गा᳚सोऽव॒ताँऽइ॑व | क्रतुं᳚नःसोमजी॒वसे॒विवो॒मदे᳚धा॒रया᳚चम॒साँऽइ॑व॒विव॑क्षसे || {7.7.11.4}, {10.25.4}, {10.2.9.4} |
1025 | तव॒त्येसो᳚म॒शक्ति॑भि॒र्निका᳚मासो॒व्यृ᳚ण्विरे | गृत्स॑स्य॒धीरा᳚स्त॒वसो॒विवो॒मदे᳚व्र॒जंगोम᳚न्तम॒श्विनं॒विव॑क्षसे || {7.7.11.5}, {10.25.5}, {10.2.9.5} |
1026 | प॒शुंनः॑सोमरक्षसिपुरु॒त्राविष्ठि॑तं॒जग॑त् | स॒माकृ॑णोषिजी॒वसे॒विवो॒मदे॒विश्वा᳚स॒म्पश्य॒न्भुव॑ना॒विव॑क्षसे || {7.7.12.1}, {10.25.6}, {10.2.9.6} |
1027 | त्वंनः॑सोमवि॒श्वतो᳚गो॒पाऽअदा᳚भ्योभव | सेध॑राज॒न्नप॒स्रिधो॒विवो॒मदे॒मानो᳚दुः॒शंस॑ऽईशता॒विव॑क्षसे || {7.7.12.2}, {10.25.7}, {10.2.9.7} |
1028 | त्वंनः॑सोमसु॒क्रतु᳚र्वयो॒धेया᳚यजागृहि | क्षे॒त्र॒वित्त॑रो॒मनु॑षो॒विवो॒मदे᳚द्रु॒होनः॑पा॒ह्यंह॑सो॒विव॑क्षसे || {7.7.12.3}, {10.25.8}, {10.2.9.8} |
1029 | त्वंनो᳚वृत्रहन्त॒मेन्द्र॑स्येन्दोशि॒वःसखा᳚ | यत्सीं॒हव᳚न्तेसमि॒थेविवो॒मदे॒युध्य॑मानास्तो॒कसा᳚तौ॒विव॑क्षसे || {7.7.12.4}, {10.25.9}, {10.2.9.9} |
1030 | अ॒यंघ॒सतु॒रोमद॒ऽइन्द्र॑स्यवर्धतप्रि॒यः | अ॒यंक॒क्षीव॑तोम॒होविवो॒मदे᳚म॒तिंविप्र॑स्यवर्धय॒द्विव॑क्षसे || {7.7.12.5}, {10.25.10}, {10.2.9.10} |
1031 | अ॒यंविप्रा᳚यदा॒शुषे॒वाजाँ᳚ऽइयर्ति॒गोम॑तः | अ॒यंस॒प्तभ्य॒ऽआवरं॒विवो॒मदे॒प्रान्धंश्रो॒णंच॑तारिष॒द्विव॑क्षसे || {7.7.12.6}, {10.25.11}, {10.2.9.11} |
[97] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्यैन्द्रः प्राजापत्यो वा विमदः, वासुक्रो वसुकृद्वा ऋषिः | पूषा देवता | (१, ४) प्रथमाचतुर्योर्चोरुष्णिक्, (२-३, ५-९) द्वितीयातृतीययोः पञ्चम्यादिपञ्चानाञ्चानुष्टुप्छन्दसी || | |
1032 | प्रह्यच्छा᳚मनी॒षास्पा॒र्हायन्ति॑नि॒युतः॑ | प्रद॒स्रानि॒युद्र॑थःपू॒षाऽअ॑विष्टु॒माहि॑नः || {7.7.13.1}, {10.26.1}, {10.2.10.1} |
1033 | यस्य॒त्यन्म॑हि॒त्वंवा॒ताप्य॑म॒यंजनः॑ | विप्र॒ऽआवं᳚सद्धी॒तिभि॒श्चिके᳚तसुष्टुती॒नाम् || {7.7.13.2}, {10.26.2}, {10.2.10.2} |
1034 | सवे᳚दसुष्टुती॒नामिन्दु॒र्नपू॒षावृषा᳚ | अ॒भिप्सुरः॑प्रुषायतिव्र॒जंन॒ऽआप्रु॑षायति || {7.7.13.3}, {10.26.3}, {10.2.10.3} |
1035 | मं॒सी॒महि॑त्वाव॒यम॒स्माकं᳚देवपूषन् | म॒ती॒नांच॒साध॑नं॒विप्रा᳚णांचाध॒वम् || {7.7.13.4}, {10.26.4}, {10.2.10.4} |
1036 | प्रत्य॑र्धिर्य॒ज्ञाना᳚मश्वह॒योरथा᳚नाम् | ऋषिः॒सयोमनु॑र्हितो॒विप्र॑स्ययावयत्स॒खः || {7.7.13.5}, {10.26.5}, {10.2.10.5} |
1037 | आ॒धीष॑माणायाः॒पतिः॑शु॒चाया᳚श्चशु॒चस्य॑च | वा॒सो॒वा॒योऽवी᳚ना॒मावासां᳚सि॒मर्मृ॑जत् || {7.7.14.1}, {10.26.6}, {10.2.10.6} |
1038 | इ॒नोवाजा᳚नां॒पति॑रि॒नःपु॑ष्टी॒नांसखा᳚ | प्रश्मश्रु॑हर्य॒तोदू᳚धो॒द्विवृथा॒योऽअदा᳚भ्यः || {7.7.14.2}, {10.26.7}, {10.2.10.7} |
1039 | आते॒रथ॑स्यपूषन्न॒जाधुरं᳚ववृत्युः | विश्व॑स्या॒र्थिनः॒सखा᳚सनो॒जाऽअन॑पच्युतः || {7.7.14.3}, {10.26.8}, {10.2.10.8} |
1040 | अ॒स्माक॑मू॒र्जारथं᳚पू॒षाऽअ॑विष्टु॒माहि॑नः | भुव॒द्वाजा᳚नांवृ॒धऽइ॒मंनः॑शृणव॒द्धव᳚म् || {7.7.14.4}, {10.26.9}, {10.2.10.9} |
[98] (१-२४) चतुर्विंशत्यृचस्य सूक्तस्यैन्द्रो वसुक्र ऋषिः | इन्द्रो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
1041 | अस॒त्सुमे᳚जरितः॒साभि॑वे॒गोयत्सु᳚न्व॒तेयज॑मानाय॒शिक्ष᳚म् | अना᳚शीर्दाम॒हम॑स्मिप्रह॒न्तास॑त्य॒ध्वृतं᳚वृजिना॒यन्त॑मा॒भुम् || {7.7.15.1}, {10.27.1}, {10.2.11.1} |
1042 | यदीद॒हंयु॒धये᳚सं॒नया॒न्यदे᳚वयून्त॒न्वा॒३॑(आ॒)शूशु॑जानान् | अ॒माते॒तुम्रं᳚वृष॒भंप॑चानिती॒व्रंसु॒तंप᳚ञ्चद॒शंनिषि᳚ञ्चम् || {7.7.15.2}, {10.27.2}, {10.2.11.2} |
1043 | नाहंतंवे᳚द॒यऽइति॒ब्रवी॒त्यदे᳚वयून्त्स॒मर॑णेजघ॒न्वान् | य॒दावाख्य॑त्स॒मर॑ण॒मृघा᳚व॒दादिद्ध॑मेवृष॒भाप्रब्रु॑वन्ति || {7.7.15.3}, {10.27.3}, {10.2.11.3} |
1044 | यदज्ञा᳚तेषुवृ॒जने॒ष्वासं॒विश्वे᳚स॒तोम॒घवा᳚नोमऽआसन् | जि॒नामि॒वेत्क्षेम॒ऽआसन्त॑मा॒भुंप्रतंक्षि॑णां॒पर्व॑तेपाद॒गृह्य॑ || {7.7.15.4}, {10.27.4}, {10.2.11.4} |
1045 | नवाऽउ॒मांवृ॒जने᳚वारयन्ते॒नपर्व॑तासो॒यद॒हंम॑न॒स्ये | मम॑स्व॒नात्कृ॑धु॒कर्णो᳚भयातऽए॒वेदनु॒द्यून्कि॒रणः॒समे᳚जात् || {7.7.15.5}, {10.27.5}, {10.2.11.5} |
1046 | दर्श॒न्न्वत्र॑शृत॒पाँऽअ॑नि॒न्द्रान्बा᳚हु॒क्षदः॒शर॑वे॒पत्य॑मानान् | घृषुं᳚वा॒येनि॑नि॒दुःसखा᳚य॒मध्यू॒न्वे᳚षुप॒वयो᳚ववृत्युः || {7.7.16.1}, {10.27.6}, {10.2.11.6} |
1047 | अभू॒र्वौक्षी॒र्व्यु१॑(उ॒)आयु॑रान॒ड्दर्ष॒न्नुपूर्वो॒ऽअप॑रो॒नुद॑र्षत् | द्वेप॒वस्ते॒परि॒तंनभू᳚तो॒योऽअ॒स्यपा॒रेरज॑सोवि॒वेष॑ || {7.7.16.2}, {10.27.7}, {10.2.11.7} |
1048 | गावो॒यवं॒प्रयु॑ताऽअ॒र्योऽअ॑क्ष॒न्ताऽअ॑पश्यंस॒हगो᳚पा॒श्चर᳚न्तीः | हवा॒ऽइद॒र्योऽअ॒भितः॒समा᳚य॒न्किय॑दासु॒स्वप॑तिश्छन्दयाते || {7.7.16.3}, {10.27.8}, {10.2.11.8} |
1049 | संयद्वयं᳚यव॒सादो॒जना᳚नाम॒हंय॒वाद॑ऽउ॒र्वज्रे᳚ऽअ॒न्तः | अत्रा᳚यु॒क्तो᳚ऽवसा॒तार॑मिच्छा॒दथो॒ऽअयु॑क्तंयुनजद्वव॒न्वान् || {7.7.16.4}, {10.27.9}, {10.2.11.9} |
1050 | अत्रेदु॑मेमंससेस॒त्यमु॒क्तंद्वि॒पाच्च॒यच्चतु॑ष्पात्संसृ॒जानि॑ | स्त्री॒भिर्योऽअत्र॒वृष॑णंपृत॒न्यादयु॑द्धोऽअस्य॒विभ॑जानि॒वेदः॑ || {7.7.16.5}, {10.27.10}, {10.2.11.10} |
1051 | यस्या᳚न॒क्षादु॑हि॒ताजात्वास॒कस्तांवि॒द्वाँऽअ॒भिम᳚न्यातेऽअ॒न्धाम् | क॒त॒रोमे॒निंप्रति॒तंमु॑चाते॒यऽईं॒वहा᳚ते॒यऽईं᳚वावरे॒यात् || {7.7.17.1}, {10.27.11}, {10.2.11.11} |
1052 | किय॑ती॒योषा᳚मर्य॒तोव॑धू॒योःपरि॑प्रीता॒पन्य॑सा॒वार्ये᳚ण | भ॒द्राव॒धूर्भ॑वति॒यत्सु॒पेशाः᳚स्व॒यंसामि॒त्रंव॑नुते॒जने᳚चित् || {7.7.17.2}, {10.27.12}, {10.2.11.12} |
1053 | प॒त्तोज॑गारप्र॒त्यञ्च॑मत्तिशी॒र्ष्णाशिरः॒प्रति॑दधौ॒वरू᳚थम् | आसी᳚नऽऊ॒र्ध्वामु॒पसि॑क्षिणाति॒न्य᳚ङ्ङुत्ता॒नामन्वे᳚ति॒भूमि᳚म् || {7.7.17.3}, {10.27.13}, {10.2.11.13} |
1054 | बृ॒हन्न॑च्छा॒योऽअ॑पला॒शोऽअर्वा᳚त॒स्थौमा॒ताविषि॑तोऽअत्ति॒गर्भः॑ | अ॒न्यस्या᳚व॒त्संरि॑ह॒तीमि॑माय॒कया᳚भु॒वानिद॑धेधे॒नुरूधः॑ || {7.7.17.4}, {10.27.14}, {10.2.11.14} |
1055 | स॒प्तवी॒रासो᳚ऽअध॒रादुदा᳚यन्न॒ष्टोत्त॒रात्ता॒त्सम॑जग्मिर॒न्ते | नव॑प॒श्चाता᳚त्स्थिवि॒मन्त॑ऽआय॒न्दश॒प्राक्सानु॒विति॑र॒न्त्यश्नः॑ || {7.7.17.5}, {10.27.15}, {10.2.11.15} |
1056 | द॒शा॒नामेकं᳚कपि॒लंस॑मा॒नंतंहि᳚न्वन्ति॒क्रत॑वे॒पार्या᳚य | गर्भं᳚मा॒तासुधि॑तंव॒क्षणा॒स्ववे᳚नन्तंतु॒षय᳚न्तीबिभर्ति || {7.7.18.1}, {10.27.16}, {10.2.11.16} |
1057 | पीवा᳚नंमे॒षम॑पचन्तवी॒रान्यु॑प्ताऽअ॒क्षाऽअनु॑दी॒वऽआ᳚सन् | द्वाधनुं᳚बृह॒तीम॒प्स्व१॑(अ॒)'न्तःप॒वित्र॑वन्ताचरतःपु॒नन्ता᳚ || {7.7.18.2}, {10.27.17}, {10.2.11.17} |
1058 | विक्रो᳚श॒नासो॒विष्व᳚ञ्चऽआय॒न्पचा᳚ति॒नेमो᳚न॒हिपक्ष॑द॒र्धः | अ॒यंमे᳚दे॒वःस॑वि॒तातदा᳚ह॒द्र्व᳚न्न॒ऽइद्व॑नवत्स॒र्पिर᳚न्नः || {7.7.18.3}, {10.27.18}, {10.2.11.18} |
1059 | अप॑श्यं॒ग्रामं॒वह॑मानमा॒राद॑च॒क्रया᳚स्व॒धया॒वर्त॑मानम् | सिष॑क्त्य॒र्यःप्रयु॒गाजना᳚नांस॒द्यःशि॒श्नाप्र॑मिना॒नोनवी᳚यान् || {7.7.18.4}, {10.27.19}, {10.2.11.19} |
1060 | ए॒तौमे॒गावौ᳚प्रम॒रस्य॑यु॒क्तौमोषुप्रसे᳚धी॒र्मुहु॒रिन्म॑मन्धि | आप॑श्चिदस्य॒विन॑श॒न्त्यर्थं॒सूर॑श्चम॒र्कऽउप॑रोबभू॒वान् || {7.7.18.5}, {10.27.20}, {10.2.11.20} |
1061 | अ॒यंयोवज्रः॑पुरु॒धाविवृ॑त्तो॒ऽवःसूर्य॑स्यबृह॒तःपुरी᳚षात् | श्रव॒ऽइदे॒नाप॒रोऽअ॒न्यद॑स्ति॒तद᳚व्य॒थीज॑रि॒माण॑स्तरन्ति || {7.7.19.1}, {10.27.21}, {10.2.11.21} |
1062 | वृ॒क्षेवृ॑क्षे॒निय॑तामीमय॒द्गौस्ततो॒वयः॒प्रप॑तान्पूरु॒षादः॑ | अथे॒दंविश्वं॒भुव॑नंभयात॒ऽइन्द्रा᳚यसु॒न्वदृष॑येच॒शिक्ष॑त् || {7.7.19.2}, {10.27.22}, {10.2.11.22} |
1063 | दे॒वानां॒माने᳚प्रथ॒माऽअ॑तिष्ठन्कृ॒न्तत्रा᳚देषा॒मुप॑रा॒ऽउदा᳚यन् | त्रय॑स्तपन्तिपृथि॒वीम॑नू॒पाद्वाबृबू᳚कंवहतः॒पुरी᳚षम् || {7.7.19.3}, {10.27.23}, {10.2.11.23} |
1064 | साते᳚जी॒वातु॑रु॒ततस्य॑विद्धि॒मास्मै᳚ता॒दृगप॑गूहःसम॒र्ये | आ॒विःस्वः॑कृणु॒तेगूह॑तेबु॒संसपा॒दुर॑स्यनि॒र्णिजो॒नमु॑च्यते || {7.7.19.4}, {10.27.24}, {10.2.11.24} |
[99] (१-१२) द्वादशर्चस्य सूक्तस्य (१) प्रथमर्च इन्द्रस्नुषा वसुक्रपत्री (ऋषिका) (२, ६, ८, १०, १२) द्वितीयाषष्ठ्यष्टमीदशमीद्वादशीनामिन्द्रः, (३-५, ७, ९, ११) तृतीयादितृचस्य सप्तमीनवम्येकादशीनाञ्चैन्द्रो वसुक्र ऋषिः | (१, ३-५, ७, ९, ११) प्रथमर्चस्तृतीयादितृचस्य सप्तमीनवम्येकादशीनाञ्चेन्द्रः, (२, ६, ८, १०, १२) द्वितीयाषष्ठ्यष्टमीदशमीद्वादशीनाञ्चैन्द्रो वसनो देवते | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
1065 | विश्वो॒ह्य१॑(अ॒)'न्योऽअ॒रिरा᳚ज॒गाम॒ममेदह॒श्वशु॑रो॒नाज॑गाम | ज॒क्षी॒याद्धा॒नाऽउ॒तसोमं᳚पपीया॒त्स्वा᳚शितः॒पुन॒रस्तं᳚जगायात् || {7.7.20.1}, {10.28.1}, {10.2.12.1} |
1066 | सरोरु॑वद्वृष॒भस्ति॒ग्मशृ᳚ङ्गो॒वर्ष्म᳚न्तस्थौ॒वरि॑म॒न्नापृ॑थि॒व्याः | विश्वे᳚ष्वेनंवृ॒जने᳚षुपामि॒योमे᳚कु॒क्षीसु॒तसो᳚मःपृ॒णाति॑ || {7.7.20.2}, {10.28.2}, {10.2.12.2} |
1067 | अद्रि॑णातेम॒न्दिन॑ऽइन्द्र॒तूया᳚न्त्सु॒न्वन्ति॒सोमा॒न्पिब॑सि॒त्वमे᳚षाम् | पच᳚न्तितेवृष॒भाँऽअत्सि॒तेषां᳚पृ॒क्षेण॒यन्म॑घवन्हू॒यमा᳚नः || {7.7.20.3}, {10.28.3}, {10.2.12.3} |
1068 | इ॒दंसुमे᳚जरित॒राचि॑किद्धिप्रती॒पंशापं᳚न॒द्यो᳚वहन्ति | लो॒पा॒शःसिं॒हंप्र॒त्यञ्च॑मत्साःक्रो॒ष्टाव॑रा॒हंनिर॑तक्त॒कक्षा᳚त् || {7.7.20.4}, {10.28.4}, {10.2.12.4} |
1069 | क॒थात॑ऽए॒तद॒हमाचि॑केतं॒गृत्स॑स्य॒पाक॑स्त॒वसो᳚मनी॒षाम् | त्वंनो᳚वि॒द्वाँऽऋ॑तु॒थाविवो᳚चो॒यमर्धं᳚तेमघवन्क्षे॒म्याधूः || {7.7.20.5}, {10.28.5}, {10.2.12.5} |
1070 | ए॒वाहिमांत॒वसं᳚व॒र्धय᳚न्तिदि॒वश्चि᳚न्मेबृह॒तऽउत्त॑रा॒धूः | पु॒रूस॒हस्रा॒निशि॑शामिसा॒कम॑श॒त्रुंहिमा॒जनि॑ताज॒जान॑ || {7.7.20.6}, {10.28.6}, {10.2.12.6} |
1071 | ए॒वाहिमांत॒वसं᳚ज॒ज्ञुरु॒ग्रंकर्म᳚न्कर्म॒न्वृष॑णमिन्द्रदे॒वाः | वधीं᳚वृ॒त्रंवज्रे᳚णमन्दसा॒नोऽप᳚व्र॒जंम॑हि॒नादा॒शुषे᳚वम् || {7.7.21.1}, {10.28.7}, {10.2.12.7} |
1072 | दे॒वास॑ऽआयन्पर॒शूँर॑बिभ्र॒न्वना᳚वृ॒श्चन्तो᳚ऽअ॒भिवि॒ड्भिरा᳚यन् | निसु॒द्र्व१॑(अ॒)अंदध॑तोव॒क्षणा᳚सु॒यत्रा॒कृपी᳚ट॒मनु॒तद्द॑हन्ति || {7.7.21.2}, {10.28.8}, {10.2.12.8} |
1073 | श॒शःक्षु॒रंप्र॒त्यञ्चं᳚जगा॒राद्रिं᳚लो॒गेन॒व्य॑भेदमा॒रात् | बृ॒हन्तं᳚चिदृह॒तेर᳚न्धयानि॒वय॑द्व॒त्सोवृ॑ष॒भंशूशु॑वानः || {7.7.21.3}, {10.28.9}, {10.2.12.9} |
1074 | सु॒प॒र्णऽइ॒त्थान॒खमासि॑षा॒याव॑रुद्धःपरि॒पदं॒नसिं॒हः | नि॒रु॒द्धश्चि᳚न्महि॒षस्त॒र्ष्यावा᳚न्गो॒धातस्मा᳚ऽअ॒यथं᳚कर्षदे॒तत् || {7.7.21.4}, {10.28.10}, {10.2.12.10} |
1075 | तेभ्यो᳚गो॒धाऽअ॒यथं᳚कर्षदे॒तद्येब्र॒ह्मणः॑प्रति॒पीय॒न्त्यन्नैः᳚ | सि॒मऽउ॒क्ष्णो᳚ऽवसृ॒ष्टाँऽअ॑दन्तिस्व॒यंबला᳚नित॒न्वः॑शृणा॒नाः || {7.7.21.5}, {10.28.11}, {10.2.12.11} |
1076 | ए॒तेशमी᳚भिःसु॒शमी᳚ऽअभूव॒न्येहि᳚न्वि॒रेत॒न्व१॑(अ॒)ःसोम॑ऽउ॒क्थैः | नृ॒वद्वद॒न्नुप॑नोमाहि॒वाजा᳚न्दि॒विश्रवो᳚दधिषे॒नाम॑वी॒रः || {7.7.21.6}, {10.28.12}, {10.2.12.12} |
[100] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्यैन्द्रो वसुक्र ऋषिः | इन्द्रो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
1077 | वने॒नवा॒योन्य॑धायिचा॒कञ्छुचि᳚र्वां॒स्तोमो᳚भुरणावजीगः | यस्येदिन्द्रः॑पुरु॒दिने᳚षु॒होता᳚नृ॒णांनर्यो॒नृत॑मःक्ष॒पावा॑न् || {7.7.22.1}, {10.29.1}, {10.2.13.1} |
1078 | प्रते᳚ऽअ॒स्याऽउ॒षसः॒प्राप॑रस्यानृ॒तौस्या᳚म॒नृत॑मस्यनृ॒णाम् | अनु॑त्रि॒शोकः॑श॒तमाव॑ह॒न्नॄन्कुत्से᳚न॒रथो॒योऽअस॑त्सस॒वान् || {7.7.22.2}, {10.29.2}, {10.2.13.2} |
1079 | कस्ते॒मद॑ऽइन्द्र॒रन्त्यो᳚भू॒द्दुरो॒गिरो᳚ऽअ॒भ्यु१॑(उ॒)ग्रोविधा᳚व | कद्वाहो᳚ऽअ॒र्वागुप॑मामनी॒षाऽआत्वा᳚शक्यामुप॒मंराधो॒ऽअन्नैः᳚ || {7.7.22.3}, {10.29.3}, {10.2.13.3} |
1080 | कदु॑द्यु॒म्नमि᳚न्द्र॒त्वाव॑तो॒नॄन्कया᳚धि॒याक॑रसे॒कन्न॒ऽआग॑न् | मि॒त्रोनस॒त्यऽउ॑रुगायभृ॒त्याऽअन्ने᳚समस्य॒यदस᳚न्मनी॒षाः || {7.7.22.4}, {10.29.4}, {10.2.13.4} |
1081 | प्रेर॑य॒सूरो॒ऽअर्थं॒नपा॒रंयेऽअ॑स्य॒कामं᳚जनि॒धाऽइ॑व॒ग्मन् | गिर॑श्च॒येते᳚तुविजातपू॒र्वीर्नर॑ऽइन्द्रप्रति॒शिक्ष॒न्त्यन्नैः᳚ || {7.7.22.5}, {10.29.5}, {10.2.13.5} |
1082 | मात्रे॒नुते॒सुमि॑तेऽइन्द्रपू॒र्वीद्यौर्म॒ज्मना᳚पृथि॒वीकाव्ये᳚न | वरा᳚यतेघृ॒तव᳚न्तःसु॒तासः॒स्वाद्म᳚न्भवन्तुपी॒तये॒मधू᳚नि || {7.7.23.1}, {10.29.6}, {10.2.13.6} |
1083 | आमध्वो᳚ऽअस्माऽअसिच॒न्नम॑त्र॒मिन्द्रा᳚यपू॒र्णंसहिस॒त्यरा᳚धाः | सवा᳚वृधे॒वरि॑म॒न्नापृ॑थि॒व्याऽअ॒भिक्रत्वा॒नर्यः॒पौंस्यै᳚श्च || {7.7.23.2}, {10.29.7}, {10.2.13.7} |
1084 | व्या᳚न॒ळिन्द्रः॒पृत॑नाः॒स्वोजा॒ऽआस्मै᳚यतन्तेस॒ख्याय॑पू॒र्वीः | आस्मा॒रथं॒नपृत॑नासुतिष्ठ॒यंभ॒द्रया᳚सुम॒त्याचो॒दया᳚से || {7.7.23.3}, {10.29.8}, {10.2.13.8} |
[101] (१-१५) पञ्चदशर्चस्य सूक्तस्यैलषू : कवष ऋषिः | आपोऽपां नपाद्वा देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
1085 | प्रदे᳚व॒त्राब्रह्म॑णेगा॒तुरे᳚त्व॒पोऽअच्छा॒मन॑सो॒नप्रयु॑क्ति | म॒हींमि॒त्रस्य॒वरु॑णस्यधा॒सिंपृ॑थु॒ज्रय॑सेरीरधासुवृ॒क्तिम् || {7.7.24.1}, {10.30.1}, {10.3.1.1} |
1086 | अध्व᳚र्यवोह॒विष्म᳚न्तो॒हिभू॒ताच्छा॒पऽइ॑तोश॒तीरु॑शन्तः | अव॒याश्चष्टे᳚ऽअरु॒णःसु॑प॒र्णस्तमास्य॑ध्वमू॒र्मिम॒द्यासु॑हस्ताः || {7.7.24.2}, {10.30.2}, {10.3.1.2} |
1087 | अध्व᳚र्यवो॒ऽपऽइ॑तासमु॒द्रम॒पांनपा᳚तंह॒विषा᳚यजध्वम् | सवो᳚दददू॒र्मिम॒द्यासुपू᳚तं॒तस्मै॒सोमं॒मधु॑मन्तंसुनोत || {7.7.24.3}, {10.30.3}, {10.3.1.3} |
1088 | योऽअ॑नि॒ध्मोदीद॑यद॒प्स्व१॑(अ॒)'न्तर्यंविप्रा᳚स॒ऽईळ॑तेऽअध्व॒रेषु॑ | अपां᳚नपा॒न्मधु॑मतीर॒पोदा॒याभि॒रिन्द्रो᳚वावृ॒धेवी॒र्या᳚य || {7.7.24.4}, {10.30.4}, {10.3.1.4} |
1089 | याभिः॒सोमो॒मोद॑ते॒हर्ष॑तेचकल्या॒णीभि᳚र्युव॒तिभि॒र्नमर्यः॑ | ताऽअ॑ध्वर्योऽअ॒पोऽअच्छा॒परे᳚हि॒यदा᳚सि॒ञ्चाऽओष॑धीभिःपुनीतात् || {7.7.24.5}, {10.30.5}, {10.3.1.5} |
1090 | ए॒वेद्यूने᳚युव॒तयो᳚नमन्त॒यदी᳚मु॒शन्नु॑श॒तीरेत्यच्छ॑ | संजा᳚नते॒मन॑सा॒संचि॑कित्रेऽध्व॒र्यवो᳚धि॒षणाप॑श्चदे॒वीः || {7.7.25.1}, {10.30.6}, {10.3.1.6} |
1091 | योवो᳚वृ॒ताभ्यो॒ऽअकृ॑णोदुलो॒कंयोवो᳚म॒ह्याऽअ॒भिश॑स्ते॒रमु᳚ञ्चत् | तस्मा॒ऽइन्द्रा᳚य॒मधु॑मन्तमू॒र्मिंदे᳚व॒माद॑नं॒प्रहि॑णोतनापः || {7.7.25.2}, {10.30.7}, {10.3.1.7} |
1092 | प्रास्मै᳚हिनोत॒मधु॑मन्तमू॒र्मिंगर्भो॒योवः॑सिन्धवो॒मध्व॒ऽउत्सः॑ | घृ॒तपृ॑ष्ठ॒मीड्य॑मध्व॒रेष्वापो᳚रेवतीःशृणु॒ताहवं᳚मे || {7.7.25.3}, {10.30.8}, {10.3.1.8} |
1093 | तंसि᳚न्धवोमत्स॒रमि᳚न्द्र॒पान॑मू॒र्मिंप्रहे᳚त॒यऽउ॒भेऽइय॑र्ति | म॒द॒च्युत॑मौशा॒नंन॑भो॒जांपरि॑त्रि॒तन्तुं᳚वि॒चर᳚न्त॒मुत्स᳚म् || {7.7.25.4}, {10.30.9}, {10.3.1.9} |
1094 | आ॒वर्वृ॑तती॒रध॒नुद्वि॒धारा᳚गोषु॒युधो॒ननि॑य॒वंचर᳚न्तीः | ऋषे॒जनि॑त्री॒र्भुव॑नस्य॒पत्नी᳚र॒पोव᳚न्दस्वस॒वृधः॒सयो᳚नीः || {7.7.25.5}, {10.30.10}, {10.3.1.10} |
1095 | हि॒नोता᳚नोऽअध्व॒रंदे᳚वय॒ज्याहि॒नोत॒ब्रह्म॑स॒नये॒धना᳚नाम् | ऋ॒तस्य॒योगे॒विष्य॑ध्व॒मूधः॑श्रुष्टी॒वरी᳚र्भूतना॒स्मभ्य॑मापः || {7.7.26.1}, {10.30.11}, {10.3.1.11} |
1096 | आपो᳚रेवतीः॒क्षय॑था॒हिवस्वः॒क्रतुं᳚चभ॒द्रंबि॑भृ॒थामृतं᳚च | रा॒यश्च॒स्थस्व॑प॒त्यस्य॒पत्नीः॒सर॑स्वती॒तद्गृ॑ण॒तेवयो᳚धात् || {7.7.26.2}, {10.30.12}, {10.3.1.12} |
1097 | प्रति॒यदापो॒ऽअदृ॑श्रमाय॒तीर्घृ॒तंपयां᳚सि॒बिभ्र॑ती॒र्मधू᳚नि | अ॒ध्व॒र्युभि॒र्मन॑सासंविदा॒नाऽइन्द्रा᳚य॒सोमं॒सुषु॑तं॒भर᳚न्तीः || {7.7.26.3}, {10.30.13}, {10.3.1.13} |
1098 | एमाऽअ॑ग्मन्रे॒वती᳚र्जी॒वध᳚न्या॒ऽअध्व᳚र्यवःसा॒दय॑तासखायः | निब॒र्हिषि॑धत्तनसोम्यासो॒ऽपांनप्त्रा᳚संविदा॒नास॑ऽएनाः || {7.7.26.4}, {10.30.14}, {10.3.1.14} |
1099 | आग्म॒न्नाप॑ऽउश॒तीर्ब॒र्हिरेदंन्य॑ध्व॒रेऽअ॑सदन्देव॒यन्तीः᳚ | अध्व᳚र्यवःसुनु॒तेन्द्रा᳚य॒सोम॒मभू᳚दुवःसु॒शका᳚देवय॒ज्या || {7.7.26.5}, {10.30.15}, {10.3.1.15} |
[102] (१-११) एकादशर्चस्य सूक्तस्यैलष : कवष ऋषिः | विश्वे देवा देवताः | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
1100 | आनो᳚दे॒वाना॒मुप॑वेतु॒शंसो॒विश्वे᳚भिस्तु॒रैरव॑से॒यज॑त्रः | तेभि᳚र्व॒यंसु॑ष॒खायो᳚भवेम॒तर᳚न्तो॒विश्वा᳚दुरि॒तास्या᳚म || {7.7.27.1}, {10.31.1}, {10.3.2.1} |
1101 | परि॑चि॒न्मर्तो॒द्रवि॑णंममन्यादृ॒तस्य॑प॒थानम॒सावि॑वासेत् | उ॒तस्वेन॒क्रतु॑ना॒संव॑देत॒श्रेयां᳚सं॒दक्षं॒मन॑साजगृभ्यात् || {7.7.27.2}, {10.31.2}, {10.3.2.2} |
1102 | अधा᳚यिधी॒तिरस॑सृग्र॒मंशा᳚स्ती॒र्थेनद॒स्ममुप॑य॒न्त्यूमाः᳚ | अ॒भ्या᳚नश्मसुवि॒तस्य॑शू॒षंनवे᳚दसोऽअ॒मृता᳚नामभूम || {7.7.27.3}, {10.31.3}, {10.3.2.3} |
1103 | नित्य॑श्चाकन्या॒त्स्वप॑ति॒र्दमू᳚ना॒यस्मा᳚ऽउदे॒वःस॑वि॒ताज॒जान॑ | भगो᳚वा॒गोभि॑रर्य॒मेम॑नज्या॒त्सोऽअ॑स्मै॒चारु॑श्छदयदु॒तस्या᳚त् || {7.7.27.4}, {10.31.4}, {10.3.2.4} |
1104 | इ॒यंसाभू᳚याऽउ॒षसा᳚मिव॒क्षायद्ध॑क्षु॒मन्तः॒शव॑सास॒माय॑न् | अ॒स्यस्तु॒तिंज॑रि॒तुर्भिक्ष॑माणा॒ऽआनः॑श॒ग्मास॒ऽउप॑यन्तु॒वाजाः᳚ || {7.7.27.5}, {10.31.5}, {10.3.2.5} |
1105 | अ॒स्येदे॒षासु॑म॒तिःप॑प्रथा॒नाभ॑वत्पू॒र्व्याभूम॑ना॒गौः | अ॒स्यसनी᳚ळा॒ऽअसु॑रस्य॒योनौ᳚समा॒नऽआभर॑णे॒बिभ्र॑माणाः || {7.7.28.1}, {10.31.6}, {10.3.2.6} |
1106 | किंस्वि॒द्वनं॒कऽउ॒सवृ॒क्षऽआ᳚स॒यतो॒द्यावा᳚पृथि॒वीनि॑ष्टत॒क्षुः | सं॒त॒स्था॒नेऽअ॒जरे᳚ऽइ॒तऊ᳚ती॒ऽअहा᳚निपू॒र्वीरु॒षसो᳚जरन्त || {7.7.28.2}, {10.31.7}, {10.3.2.7} |
1107 | नैताव॑दे॒नाप॒रोऽअ॒न्यद॑स्त्यु॒क्षासद्यावा᳚पृथि॒वीबि॑भर्ति | त्वचं᳚प॒वित्रं᳚कृणुतस्व॒धावा॒न्यदीं॒सूर्यं॒नह॒रितो॒वह᳚न्ति || {7.7.28.3}, {10.31.8}, {10.3.2.8} |
1108 | स्ते॒गोनक्षामत्ये᳚तिपृ॒थ्वींमिहं॒नवातो॒विह॑वाति॒भूम॑ | मि॒त्रोयत्र॒वरु॑णोऽअ॒ज्यमा᳚नो॒ऽग्निर्वने॒नव्यसृ॑ष्ट॒शोक᳚म् || {7.7.28.4}, {10.31.9}, {10.3.2.9} |
1109 | स्त॒रीर्यत्सूत॑स॒द्योऽअ॒ज्यमा᳚ना॒व्यथि॑रव्य॒थीःकृ॑णुत॒स्वगो᳚पा | पु॒त्रोयत्पूर्वः॑पि॒त्रोर्जनि॑ष्टश॒म्यांगौर्ज॑गार॒यद्ध॑पृ॒च्छान् || {7.7.28.5}, {10.31.10}, {10.3.2.10} |
1110 | उ॒तकण्वं᳚नृ॒षदः॑पु॒त्रमा᳚हुरु॒तश्या॒वोधन॒माद॑त्तवा॒जी | प्रकृ॒ष्णाय॒रुश॑दपिन्व॒तोध॑र्ऋ॒तमत्र॒नकि॑रस्माऽअपीपेत् || {7.7.28.6}, {10.31.11}, {10.3.2.11} |
[103] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्यैल) : कवष ऋषिः | इन्द्रो देवता | (१-५) प्रथमादिपञ्चर्चाम् जगती, (६-९) षष्ठ्यादिचतसृणाञ्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
1111 | प्रसुग्मन्ता᳚धियसा॒नस्य॑स॒क्षणि॑व॒रेभि᳚र्व॒राँऽअ॒भिषुप्र॒सीद॑तः | अ॒स्माक॒मिन्द्र॑ऽउ॒भयं᳚जुजोषति॒यत्सो॒म्यस्यान्ध॑सो॒बुबो᳚धति || {7.7.29.1}, {10.32.1}, {10.3.3.1} |
1112 | वी᳚न्द्रयासिदि॒व्यानि॑रोच॒नाविपार्थि॑वानि॒रज॑सापुरुष्टुत | येत्वा॒वह᳚न्ति॒मुहु॑रध्व॒राँऽउप॒तेसुव᳚न्वन्तुवग्व॒नाँऽअ॑रा॒धसः॑ || {7.7.29.2}, {10.32.2}, {10.3.3.2} |
1113 | तदिन्मे᳚छन्त्स॒द्वपु॑षो॒वपु॑ष्टरंपु॒त्रोयज्जानं᳚पि॒त्रोर॒धीय॑ति | जा॒यापतिं᳚वहतिव॒ग्नुना᳚सु॒मत्पुं॒सऽइद्भ॒द्रोव॑ह॒तुःपरि॑ष्कृतः || {7.7.29.3}, {10.32.3}, {10.3.3.3} |
1114 | तदित्स॒धस्थ॑म॒भिचारु॑दीधय॒गावो॒यच्छास᳚न्वह॒तुंनधे॒नवः॑ | मा॒तायन्मन्तु᳚र्यू॒थस्य॑पू॒र्व्याभिवा॒णस्य॑स॒प्तधा᳚तु॒रिज्जनः॑ || {7.7.29.4}, {10.32.4}, {10.3.3.4} |
1115 | प्रवोऽच्छा᳚रिरिचेदेव॒युष्प॒दमेको᳚रु॒द्रेभि᳚र्यातितु॒र्वणिः॑ | ज॒रावा॒येष्व॒मृते᳚षुदा॒वने॒परि॑व॒ऽऊमे᳚भ्यःसिञ्चता॒मधु॑ || {7.7.29.5}, {10.32.5}, {10.3.3.5} |
1116 | नि॒धी॒यमा᳚न॒मप॑गूळ्हम॒प्सुप्रमे᳚दे॒वानां᳚व्रत॒पाऽउ॑वाच | इन्द्रो᳚वि॒द्वाँऽअनु॒हित्वा᳚च॒चक्ष॒तेना॒हम॑ग्ने॒ऽअनु॑शिष्ट॒ऽआगा᳚म् || {7.7.30.1}, {10.32.6}, {10.3.3.6} |
1117 | अक्षे᳚त्रवित्क्षेत्र॒विदं॒ह्यप्रा॒ट्सप्रैति॑क्षेत्र॒विदानु॑शिष्टः | ए॒तद्वैभ॒द्रम॑नु॒शास॑नस्यो॒तस्रु॒तिंवि᳚न्दत्यञ्ज॒सीना᳚म् || {7.7.30.2}, {10.32.7}, {10.3.3.7} |
1118 | अ॒द्येदु॒प्राणी॒दम॑मन्नि॒माहापी᳚वृतोऽअधयन्मा॒तुरूधः॑ | एमे᳚नमापजरि॒मायुवा᳚न॒महे᳚ळ॒न्वसुः॑सु॒मना᳚बभूव || {7.7.30.3}, {10.32.8}, {10.3.3.8} |
1119 | ए॒तानि॑भ॒द्राक॑लशक्रियाम॒कुरु॑श्रवण॒दद॑तोम॒घानि॑ | दा॒नऽइद्वो᳚मघवानः॒सोऽअ॑स्त्व॒यंच॒सोमो᳚हृ॒दियंबिभ᳚र्मि || {7.7.30.4}, {10.32.9}, {10.3.3.9} |
[104] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्यैल) : कवष ऋषिः | (१) प्रथम] विश्वे देवाः, (२-३) द्वितीयातृतीययोरिन्द्रः, (४-५) चतुर्थीपञ्चम्योस्त्रासदस्यवस्य कुरुश्रवणस्य दानस्तुतिः, (६-९) षष्ठ्यादिचतसृणाञ्च मैत्रातिथिरुपमश्रवा देवताः | (१) प्रथमर्चस्त्रिष्टुप, (२-३) द्वितीयातृतीययोः प्रगाथः (द्वितीयाया बृहती, तृतीयायाः सतोबृहती), (४-९) चतुर्थ्यादितृचद्वयस्य च गायत्री छन्दांसि || | |
1120 | प्रमा᳚युयुज्रेप्र॒युजो॒जना᳚नां॒वहा᳚मिस्मपू॒षण॒मन्त॑रेण | विश्वे᳚दे॒वासो॒ऽअध॒माम॑रक्षन्दुः॒शासु॒रागा॒दिति॒घोष॑ऽआसीत् || {7.8.1.1}, {10.33.1}, {10.3.4.1} |
1121 | संमा᳚तपन्त्य॒भितः॑स॒पत्नी᳚रिव॒पर्श॑वः | निबा᳚धते॒ऽअम॑तिर्न॒ग्नता॒जसु॒र्वेर्नवे᳚वीयतेम॒तिः || {7.8.1.2}, {10.33.2}, {10.3.4.2} |
1122 | मूषो॒नशि॒श्नाव्य॑दन्तिमा॒ध्यः॑स्तो॒तारं᳚तेशतक्रतो | स॒कृत्सुनो᳚मघवन्निन्द्रमृळ॒याधा᳚पि॒तेव॑नोभव || {7.8.1.3}, {10.33.3}, {10.3.4.3} |
1123 | कु॒रु॒श्रव॑णमावृणि॒राजा᳚नं॒त्रास॑दस्यवम् | मंहि॑ष्ठंवा॒घता॒मृषिः॑ || {7.8.1.4}, {10.33.4}, {10.3.4.4} |
1124 | यस्य॑माह॒रितो॒रथे᳚ति॒स्रोवह᳚न्तिसाधु॒या | स्तवै᳚स॒हस्र॑दक्षिणे || {7.8.1.5}, {10.33.5}, {10.3.4.5} |
1125 | यस्य॒प्रस्वा᳚दसो॒गिर॑ऽउप॒मश्र॑वसःपि॒तुः | क्षेत्रं॒नर॒ण्वमू॒चुषे᳚ || {7.8.2.1}, {10.33.6}, {10.3.4.6} |
1126 | अधि॑पुत्रोपमश्रवो॒नपा᳚न्मित्रातिथेरिहि | पि॒तुष्टे᳚ऽअस्मिवन्दि॒ता || {7.8.2.2}, {10.33.7}, {10.3.4.7} |
1127 | यदीशी᳚या॒मृता᳚नामु॒तवा॒मर्त्या᳚नाम् | जीवे॒दिन्म॒घवा॒मम॑ || {7.8.2.3}, {10.33.8}, {10.3.4.8} |
1128 | नदे॒वाना॒मति᳚व्र॒तंश॒तात्मा᳚च॒नजी᳚वति | तथा᳚यु॒जाविवा᳚वृते || {7.8.2.4}, {10.33.9}, {10.3.4.9} |
[105] (१-१४) चतुर्दशर्चस्य सूक्तस्यैलषू : कवषो मौजवानक्षो वा ऋषिः | (१, ७, ९, १२) प्रथमासप्तमीनवमीद्वादशीनामृचामक्षाः, (२-६, ८, १०-११, १४) द्वितीयादिपञ्चानामष्टमीदशम्येकादशीचतुर्दशीनाञ्चाक्षकितवनिन्दा, (१३) त्रयोदश्याश्च कृषिदेवताः | (१-६, ८-१४) प्रथमादिषडचामष्टम्यादिसप्तानाञ्च त्रिष्टुप्, (७) सप्तम्याश्च जगती छन्दसी || | |
1129 | प्रा॒वे॒पामा᳚बृह॒तोमा᳚दयन्तिप्रवाते॒जाऽइरि॑णे॒वर्वृ॑तानाः | सोम॑स्येवमौजव॒तस्य॑भ॒क्षोवि॒भीद॑को॒जागृ॑वि॒र्मह्य॑मच्छान् || {7.8.3.1}, {10.34.1}, {10.3.5.1} |
1130 | नमा᳚मिमेथ॒नजि॑हीळऽए॒षाशि॒वासखि॑भ्यऽउ॒तमह्य॑मासीत् | अ॒क्षस्या॒हमे᳚कप॒रस्य॑हे॒तोरनु᳚व्रता॒मप॑जा॒याम॑रोधम् || {7.8.3.2}, {10.34.2}, {10.3.5.2} |
1131 | द्वेष्टि॑श्व॒श्रूरप॑जा॒यारु॑णद्धि॒नना᳚थि॒तोवि᳚न्दतेमर्डि॒तार᳚म् | अश्व॑स्येव॒जर॑तो॒वस्न्य॑स्य॒नाहंवि᳚न्दामिकित॒वस्य॒भोग᳚म् || {7.8.3.3}, {10.34.3}, {10.3.5.3} |
1132 | अ॒न्येजा॒यांपरि॑मृशन्त्यस्य॒यस्यागृ॑ध॒द्वेद॑नेवा॒ज्य१॑(अ॒)क्षः | पि॒तामा॒ताभ्रात॑रऽएनमाहु॒र्नजा᳚नीमो॒नय॑ताब॒द्धमे॒तम् || {7.8.3.4}, {10.34.4}, {10.3.5.4} |
1133 | यदा॒दीध्ये॒नद॑विषाण्येभिःपरा॒यद्भ्योऽव॑हीये॒सखि॑भ्यः | न्यु॑प्ताश्चब॒भ्रवो॒वाच॒मक्र॑तँ॒ऽएमीदे᳚षांनिष्कृ॒तंजा॒रिणी᳚व || {7.8.3.5}, {10.34.5}, {10.3.5.5} |
1134 | स॒भामे᳚तिकित॒वःपृ॒च्छमा᳚नोजे॒ष्यामीति॑त॒न्वा॒३॑(आ॒)शूशु॑जानः | अ॒क्षासो᳚ऽअस्य॒विति॑रन्ति॒कामं᳚प्रति॒दीव्ने॒दध॑त॒ऽआकृ॒तानि॑ || {7.8.4.1}, {10.34.6}, {10.3.5.6} |
1135 | अ॒क्षास॒ऽइद᳚ङ्कु॒शिनो᳚नितो॒दिनो᳚नि॒कृत्वा᳚न॒स्तप॑नास्तापयि॒ष्णवः॑ | कु॒मा॒रदे᳚ष्णा॒जय॑तःपुन॒र्हणो॒मध्वा॒सम्पृ॑क्ताःकित॒वस्य॑ब॒र्हणा᳚ || {7.8.4.2}, {10.34.7}, {10.3.5.7} |
1136 | त्रि॒प॒ञ्चा॒शःक्री᳚ळति॒व्रात॑ऽएषांदे॒वऽइ॑वसवि॒तास॒त्यध᳚र्मा | उ॒ग्रस्य॑चिन्म॒न्यवे॒नान॑मन्ते॒राजा᳚चिदेभ्यो॒नम॒ऽइत्कृ॑णोति || {7.8.4.3}, {10.34.8}, {10.3.5.8} |
1137 | नी॒चाव॑र्तन्तऽउ॒परि॑स्फुरन्त्यह॒स्तासो॒हस्त॑वन्तंसहन्ते | दि॒व्याऽअङ्गा᳚रा॒ऽइरि॑णे॒न्यु॑प्ताःशी॒ताःसन्तो॒हृद॑यं॒निर्द॑हन्ति || {7.8.4.4}, {10.34.9}, {10.3.5.9} |
1138 | जा॒यात॑प्यतेकित॒वस्य॑ही॒नामा॒तापु॒त्रस्य॒चर॑तः॒क्व॑स्वित् | ऋ॒णा॒वाबिभ्य॒द्धन॑मि॒च्छमा᳚नो॒ऽन्येषा॒मस्त॒मुप॒नक्त॑मेति || {7.8.4.5}, {10.34.10}, {10.3.5.10} |
1139 | स्त्रियं᳚दृ॒ष्ट्वाय॑कित॒वंत॑तापा॒न्येषां᳚जा॒यांसुकृ॑तंच॒योनि᳚म् | पू॒र्वा॒ह्णेऽअश्वा᳚न्युयु॒जेहिब॒भ्रून्त्सोऽअ॒ग्नेरन्ते᳚वृष॒लःप॑पाद || {7.8.5.1}, {10.34.11}, {10.3.5.11} |
1140 | योवः॑सेना॒नीर्म॑ह॒तोग॒णस्य॒राजा॒व्रात॑स्यप्रथ॒मोब॒भूव॑ | तस्मै᳚कृणोमि॒नधना᳚रुणध्मि॒दशा॒हंप्राची॒स्तदृ॒तंव॑दामि || {7.8.5.2}, {10.34.12}, {10.3.5.12} |
1141 | अ॒क्षैर्मादी᳚व्यःकृ॒षिमित्कृ॑षस्ववि॒त्तेर॑मस्वब॒हुमन्य॑मानः | तत्र॒गावः॑कितव॒तत्र॑जा॒यातन्मे॒विच॑ष्टेसवि॒तायम॒र्यः || {7.8.5.3}, {10.34.13}, {10.3.5.13} |
1142 | मि॒त्रंकृ॑णुध्वं॒खलु॑मृ॒ळता᳚नो॒मानो᳚घो॒रेण॑चरता॒भिधृ॒ष्णु | निवो॒नुम॒न्युर्वि॑शता॒मरा᳚तिर॒न्योब॑भ्रू॒णांप्रसि॑तौ॒न्व॑स्तु || {7.8.5.4}, {10.34.14}, {10.3.5.14} |
[106] (१-१४) चतुर्दशर्चस्य सूक्तस्य धानाको लुश ऋषिः | विश्वे देवा देवताः | (१-१२) प्रथमादिद्वादश! जगती, (१३-१४) त्रयोदशीचतुर्दश्योश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
1143 | अबु॑ध्रमु॒त्यऽइन्द्र॑वन्तोऽअ॒ग्नयो॒ज्योति॒र्भर᳚न्तऽउ॒षसो॒व्यु॑ष्टिषु | म॒हीद्यावा᳚पृथि॒वीचे᳚तता॒मपो॒ऽद्यादे॒वाना॒मव॒ऽआवृ॑णीमहे || {7.8.6.1}, {10.35.1}, {10.3.6.1} |
1144 | दि॒वस्पृ॑थि॒व्योरव॒ऽआवृ॑णीमहेमा॒तॄन्त्सिन्धू॒न्पर्व॑ताञ्छर्य॒णाव॑तः | अ॒ना॒गा॒स्त्वंसूर्य॑मु॒षास॑मीमहेभ॒द्रंसोमः॑सुवा॒नोऽअ॒द्याकृ॑णोतुनः || {7.8.6.2}, {10.35.2}, {10.3.6.2} |
1145 | द्यावा᳚नोऽअ॒द्यपृ॑थि॒वीऽअना᳚गसोम॒हीत्रा᳚येतांसुवि॒ताय॑मा॒तरा᳚ | उ॒षाऽउ॒च्छन्त्यप॑बाधताम॒घंस्व॒स्त्य१॑(अ॒)ग्निंस॑मिधा॒नमी᳚महे || {7.8.6.3}, {10.35.3}, {10.3.6.3} |
1146 | इ॒यंन॑ऽउ॒स्राप्र॑थ॒मासु॑दे॒व्यं᳚रे॒वत्स॒निभ्यो᳚रे॒वती॒व्यु॑च्छतु | आ॒रेम॒न्युंदु᳚र्वि॒दत्र॑स्यधीमहिस्व॒स्त्य१॑(अ॒)ग्निंस॑मिधा॒नमी᳚महे || {7.8.6.4}, {10.35.4}, {10.3.6.4} |
1147 | प्रयाःसिस्र॑ते॒सूर्य॑स्यर॒श्मिभि॒र्ज्योति॒र्भर᳚न्तीरु॒षसो॒व्यु॑ष्टिषु | भ॒द्रानो᳚ऽअ॒द्यश्रव॑से॒व्यु॑च्छतस्व॒स्त्य१॑(अ॒)ग्निंस॑मिधा॒नमी᳚महे || {7.8.6.5}, {10.35.5}, {10.3.6.5} |
1148 | अ॒न॒मी॒वाऽउ॒षस॒ऽआच॑रन्तुन॒ऽउद॒ग्नयो᳚जिहतां॒ज्योति॑षाबृ॒हत् | आयु॑क्षाताम॒श्विना॒तूतु॑जिं॒रथं᳚स्व॒स्त्य१॑(अ॒)ग्निंस॑मिधा॒नमी᳚महे || {7.8.7.1}, {10.35.6}, {10.3.6.6} |
1149 | श्रेष्ठं᳚नोऽअ॒द्यस॑वित॒र्वरे᳚ण्यंभा॒गमासु॑व॒सहिर॑त्न॒धाऽअसि॑ | रा॒योजनि॑त्रींधि॒षणा॒मुप॑ब्रुवेस्व॒स्त्य१॑(अ॒)ग्निंस॑मिधा॒नमी᳚महे || {7.8.7.2}, {10.35.7}, {10.3.6.7} |
1150 | पिप॑र्तुमा॒तदृ॒तस्य॑प्र॒वाच॑नंदे॒वानां॒यन्म॑नु॒ष्या॒३॑(आ॒)अम᳚न्महि | विश्वा॒ऽइदु॒स्राःस्पळुदे᳚ति॒सूर्यः॑स्व॒स्त्य१॑(अ॒)ग्निंस॑मिधा॒नमी᳚महे || {7.8.7.3}, {10.35.8}, {10.3.6.8} |
1151 | अ॒द्वे॒षोऽअ॒द्यब॒र्हिषः॒स्तरी᳚मणि॒ग्राव्णां॒योगे॒मन्म॑नः॒साध॑ऽईमहे | आ॒दि॒त्यानां॒शर्म॑णि॒स्थाभु॑रण्यसिस्व॒स्त्य१॑(अ॒)ग्निंस॑मिधा॒नमी᳚महे || {7.8.7.4}, {10.35.9}, {10.3.6.9} |
1152 | आनो᳚ब॒र्हिःस॑ध॒मादे᳚बृ॒हद्दि॒विदे॒वाँऽई᳚ळेसा॒दया᳚स॒प्तहोतॄ॑न् | इन्द्रं᳚मि॒त्रंवरु॑णंसा॒तये॒भगं᳚स्व॒स्त्य१॑(अ॒)ग्निंस॑मिधा॒नमी᳚महे || {7.8.7.5}, {10.35.10}, {10.3.6.10} |
1153 | तऽआ᳚दित्या॒ऽआग॑तास॒र्वता᳚तयेवृ॒धेनो᳚य॒ज्ञम॑वतासजोषसः | बृह॒स्पतिं᳚पू॒षण॑म॒श्विना॒भगं᳚स्व॒स्त्य१॑(अ॒)ग्निंस॑मिधा॒नमी᳚महे || {7.8.8.1}, {10.35.11}, {10.3.6.11} |
1154 | तन्नो᳚देवायच्छतसुप्रवाच॒नंछ॒र्दिरा᳚दित्याःसु॒भरं᳚नृ॒पाय्य᳚म् | पश्वे᳚तो॒काय॒तन॑यायजी॒वसे᳚स्व॒स्त्य१॑(अ॒)ग्निंस॑मिधा॒नमी᳚महे || {7.8.8.2}, {10.35.12}, {10.3.6.12} |
1155 | विश्वे᳚ऽअ॒द्यम॒रुतो॒विश्व॑ऽऊ॒तीविश्वे᳚भवन्त्व॒ग्नयः॒समि॑द्धाः | विश्वे᳚नोदे॒वाऽअव॒साग॑मन्तु॒विश्व॑मस्तु॒द्रवि॑णं॒वाजो᳚ऽअ॒स्मे || {7.8.8.3}, {10.35.13}, {10.3.6.13} |
1156 | यंदे᳚वा॒सोऽव॑थ॒वाज॑सातौ॒यंत्राय॑ध्वे॒यंपि॑पृ॒थात्यंहः॑ | योवो᳚गोपी॒थेनभ॒यस्य॒वेद॒तेस्या᳚मदे॒ववी᳚तयेतुरासः || {7.8.8.4}, {10.35.14}, {10.3.6.14} |
[107] (१-१४) चतुर्दशर्चस्य सूक्तस्य धानाको लुश ऋषिः | विश्वे देवा देवताः | (१-१२) प्रथमादिद्वादशर्चाम् जगती, (१३-१४) त्रयोदशीचतुर्दश्योश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
1157 | उ॒षासा॒नक्ता᳚बृह॒तीसु॒पेश॑सा॒द्यावा॒क्षामा॒वरु॑णोमि॒त्रोऽअ᳚र्य॒मा | इन्द्रं᳚हुवेम॒रुतः॒पर्व॑ताँऽअ॒पऽआ᳚दि॒त्यान्द्यावा᳚पृथि॒वीऽअ॒पःस्वः॑ || {7.8.9.1}, {10.36.1}, {10.3.7.1} |
1158 | द्यौश्च॑नःपृथि॒वीच॒प्रचे᳚तसऋ॒ताव॑रीरक्षता॒मंह॑सोरि॒षः | मादु᳚र्वि॒दत्रा॒निर्ऋ॑तिर्नऽईशत॒तद्दे॒वाना॒मवो᳚ऽअ॒द्यावृ॑णीमहे || {7.8.9.2}, {10.36.2}, {10.3.7.2} |
1159 | विश्व॑स्मान्नो॒ऽअदि॑तिःपा॒त्वंह॑सोमा॒तामि॒त्रस्य॒वरु॑णस्यरे॒वतः॑ | स्व᳚र्व॒ज्ज्योति॑रवृ॒कंन॑शीमहि॒तद्दे॒वाना॒मवो᳚ऽअ॒द्यावृ॑णीमहे || {7.8.9.3}, {10.36.3}, {10.3.7.3} |
1160 | ग्रावा॒वद॒न्नप॒रक्षां᳚सिसेधतुदु॒ष्ष्वप्न्यं॒निर्ऋ॑तिं॒विश्व॑म॒त्रिण᳚म् | आ॒दि॒त्यंशर्म॑म॒रुता᳚मशीमहि॒तद्दे॒वाना॒मवो᳚ऽअ॒द्यावृ॑णीमहे || {7.8.9.4}, {10.36.4}, {10.3.7.4} |
1161 | एन्द्रो᳚ब॒र्हिःसीद॑तु॒पिन्व॑ता॒मिळा॒बृह॒स्पतिः॒साम॑भिर्ऋ॒क्वोऽअ॑र्चतु | सु॒प्र॒के॒तंजी॒वसे॒मन्म॑धीमहि॒तद्दे॒वाना॒मवो᳚ऽअ॒द्यावृ॑णीमहे || {7.8.9.5}, {10.36.5}, {10.3.7.5} |
1162 | दि॒वि॒स्पृशं᳚य॒ज्ञम॒स्माक॑मश्विनाजी॒राध्व॑रंकृणुतंसु॒म्नमि॒ष्टये᳚ | प्रा॒चीन॑रश्मि॒माहु॑तंघृ॒तेन॒तद्दे॒वाना॒मवो᳚ऽअ॒द्यावृ॑णीमहे || {7.8.10.1}, {10.36.6}, {10.3.7.6} |
1163 | उप॑ह्वयेसु॒हवं॒मारु॑तंग॒णंपा᳚व॒कमृ॒ष्वंस॒ख्याय॑श॒म्भुव᳚म् | रा॒यस्पोषं᳚सौश्रव॒साय॑धीमहि॒तद्दे॒वाना॒मवो᳚ऽअ॒द्यावृ॑णीमहे || {7.8.10.2}, {10.36.7}, {10.3.7.7} |
1164 | अ॒पांपेरुं᳚जी॒वध᳚न्यंभरामहेदेवा॒व्यं᳚सु॒हव॑मध्वर॒श्रिय᳚म् | सु॒र॒श्मिंसोम॑मिन्द्रि॒यंय॑मीमहि॒तद्दे॒वाना॒मवो᳚ऽअ॒द्यावृ॑णीमहे || {7.8.10.3}, {10.36.8}, {10.3.7.8} |
1165 | स॒नेम॒तत्सु॑स॒निता᳚स॒नित्व॑भिर्व॒यंजी॒वाजी॒वपु॑त्रा॒ऽअना᳚गसः | ब्र॒ह्म॒द्विषो॒विष्व॒गेनो᳚भरेरत॒तद्दे॒वाना॒मवो᳚ऽअ॒द्यावृ॑णीमहे || {7.8.10.4}, {10.36.9}, {10.3.7.9} |
1166 | येस्थामनो᳚र्य॒ज्ञिया॒स्तेशृ॑णोतन॒यद्वो᳚देवा॒ऽईम॑हे॒तद्द॑दातन | जैत्रं॒क्रतुं᳚रयि॒मद्वी॒रव॒द्यश॒स्तद्दे॒वाना॒मवो᳚ऽअ॒द्यावृ॑णीमहे || {7.8.10.5}, {10.36.10}, {10.3.7.10} |
1167 | म॒हद॒द्यम॑ह॒तामावृ॑णीम॒हेऽवो᳚दे॒वानां᳚बृह॒ताम॑न॒र्वणा᳚म् | यथा॒वसु॑वी॒रजा᳚तं॒नशा᳚महै॒तद्दे॒वाना॒मवो᳚ऽअ॒द्यावृ॑णीमहे || {7.8.11.1}, {10.36.11}, {10.3.7.11} |
1168 | म॒होऽअ॒ग्नेःस॑मिधा॒नस्य॒शर्म॒ण्यना᳚गामि॒त्रेवरु॑णेस्व॒स्तये᳚ | श्रेष्ठे᳚स्यामसवि॒तुःसवी᳚मनि॒तद्दे॒वाना॒मवो᳚ऽअ॒द्यावृ॑णीमहे || {7.8.11.2}, {10.36.12}, {10.3.7.12} |
1169 | येस॑वि॒तुःस॒त्यस॑वस्य॒विश्वे᳚मि॒त्रस्य᳚व्र॒तेवरु॑णस्यदे॒वाः | तेसौभ॑गंवी॒रव॒द्गोम॒दप्नो॒दधा᳚तन॒द्रवि॑णंचि॒त्रम॒स्मे || {7.8.11.3}, {10.36.13}, {10.3.7.13} |
1170 | स॒वि॒ताप॒श्चाता᳚त्सवि॒तापु॒रस्ता᳚त्सवि॒तोत्त॒रात्ता᳚त्सवि॒ताध॒रात्ता᳚त् | स॒वि॒तानः॑सुवतुस॒र्वता᳚तिंसवि॒तानो᳚रासतांदी॒र्घमायुः॑ || {7.8.11.4}, {10.36.14}, {10.3.7.14} |
[108] (१-१२) द्वादशर्चस्य सूक्तस्य सौर्योऽभितपा ऋषिः | सूर्यो देवता | (१-९, ११-१२) प्रथमादिनवर्चामक दशीद्वादश्योश्च जगती, (१०) दशम्याश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
1171 | नमो᳚मि॒त्रस्य॒वरु॑णस्य॒चक्ष॑सेम॒होदे॒वाय॒तदृ॒तंस॑पर्यत | दू॒रे॒दृशे᳚दे॒वजा᳚तायके॒तवे᳚दि॒वस्पु॒त्राय॒सूर्या᳚यशंसत || {7.8.12.1}, {10.37.1}, {10.3.8.1} |
1172 | सामा᳚स॒त्योक्तिः॒परि॑पातुवि॒श्वतो॒द्यावा᳚च॒यत्र॑त॒तन॒न्नहा᳚निच | विश्व॑म॒न्यन्निवि॑शते॒यदेज॑तिवि॒श्वाहापो᳚वि॒श्वाहोदे᳚ति॒सूर्यः॑ || {7.8.12.2}, {10.37.2}, {10.3.8.2} |
1173 | नते॒ऽअदे᳚वःप्र॒दिवो॒निवा᳚सते॒यदे᳚त॒शेभिः॑पत॒रैर॑थ॒र्यसि॑ | प्रा॒चीन॑म॒न्यदनु॑वर्तते॒रज॒ऽउद॒न्येन॒ज्योति॑षायासिसूर्य || {7.8.12.3}, {10.37.3}, {10.3.8.3} |
1174 | येन॑सूर्य॒ज्योति॑षा॒बाध॑से॒तमो॒जग॑च्च॒विश्व॑मुदि॒यर्षि॑भा॒नुना᳚ | तेना॒स्मद्विश्वा॒मनि॑रा॒मना᳚हुति॒मपामी᳚वा॒मप॑दु॒ष्ष्वप्न्यं᳚सुव || {7.8.12.4}, {10.37.4}, {10.3.8.4} |
1175 | विश्व॑स्य॒हिप्रेषि॑तो॒रक्ष॑सिव्र॒तमहे᳚ळयन्नु॒च्चर॑सिस्व॒धाऽअनु॑ | यद॒द्यत्वा᳚सूर्योप॒ब्रवा᳚महै॒तंनो᳚दे॒वाऽअनु॑मंसीरत॒क्रतु᳚म् || {7.8.12.5}, {10.37.5}, {10.3.8.5} |
1176 | तंनो॒द्यावा᳚पृथि॒वीतन्न॒ऽआप॒ऽइन्द्रः॑शृण्वन्तुम॒रुतो॒हवं॒वचः॑ | माशूने᳚भूम॒सूर्य॑स्यसं॒दृशि॑भ॒द्रंजीव᳚न्तोजर॒णाम॑शीमहि || {7.8.12.6}, {10.37.6}, {10.3.8.6} |
1177 | वि॒श्वाहा᳚त्वासु॒मन॑सःसु॒चक्ष॑सःप्र॒जाव᳚न्तोऽअनमी॒वाऽअना᳚गसः | उ॒द्यन्तं᳚त्वामित्रमहोदि॒वेदि॑वे॒ज्योग्जी॒वाःप्रति॑पश्येमसूर्य || {7.8.13.1}, {10.37.7}, {10.3.8.7} |
1178 | महि॒ज्योति॒र्बिभ्र॑तंत्वाविचक्षण॒भास्व᳚न्तं॒चक्षु॑षेचक्षुषे॒मयः॑ | आ॒रोह᳚न्तंबृह॒तःपाज॑स॒स्परि॑व॒यंजी॒वाःप्रति॑पश्येमसूर्य || {7.8.13.2}, {10.37.8}, {10.3.8.8} |
1179 | यस्य॑ते॒विश्वा॒भुव॑नानिके॒तुना॒प्रचेर॑ते॒निच॑वि॒शन्ते᳚ऽअ॒क्तुभिः॑ | अ॒ना॒गा॒स्त्वेन॑हरिकेशसू॒र्याह्ना᳚ह्नानो॒वस्य॑सावस्य॒सोदि॑हि || {7.8.13.3}, {10.37.9}, {10.3.8.9} |
1180 | शंनो᳚भव॒चक्ष॑सा॒शंनो॒ऽअह्ना॒शंभा॒नुना॒शंहि॒माशंघृ॒णेन॑ | यथा॒शमध्व॒ञ्छमस॑द्दुरो॒णेतत्सू᳚र्य॒द्रवि॑णंधेहिचि॒त्रम् || {7.8.13.4}, {10.37.10}, {10.3.8.10} |
1181 | अ॒स्माकं᳚देवाऽउ॒भया᳚य॒जन्म॑ने॒शर्म॑यच्छतद्वि॒पदे॒चतु॑ष्पदे | अ॒दत्पिब॑दू॒र्जय॑मान॒माशि॑तं॒तद॒स्मेशंयोर॑र॒पोद॑धातन || {7.8.13.5}, {10.37.11}, {10.3.8.11} |
1182 | यद्वो᳚देवाश्चकृ॒मजि॒ह्वया᳚गु॒रुमन॑सोवा॒प्रयु॑तीदेव॒हेळ॑नम् | अरा᳚वा॒योनो᳚ऽअ॒भिदु॑च्छुना॒यते॒तस्मि॒न्तदेनो᳚वसवो॒निधे᳚तन || {7.8.13.6}, {10.37.12}, {10.3.8.12} |
[109] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य मुष्कवानिन्द्र ऋषिः | इन्द्रो देवता | जगती छन्दः || | |
1183 | अ॒स्मिन्न॑ऽइन्द्रपृत्सु॒तौयश॑स्वति॒शिमी᳚वति॒क्रन्द॑सि॒प्राव॑सा॒तये᳚ | यत्र॒गोषा᳚ताधृषि॒तेषु॑खा॒दिषु॒विष्व॒क्पत᳚न्तिदि॒द्यवो᳚नृ॒षाह्ये᳚ || {7.8.14.1}, {10.38.1}, {10.3.9.1} |
1184 | सनः॑क्षु॒मन्तं॒सद॑ने॒व्यू᳚र्णुहि॒गोअ᳚र्णसंर॒यिमि᳚न्द्रश्र॒वाय्य᳚म् | स्याम॑ते॒जय॑तःशक्रमे॒दिनो॒यथा᳚व॒यमु॒श्मसि॒तद्व॑सोकृधि || {7.8.14.2}, {10.38.2}, {10.3.9.2} |
1185 | योनो॒दास॒ऽआर्यो᳚वापुरुष्टु॒तादे᳚वऽइन्द्रयु॒धये॒चिके᳚तति | अ॒स्माभि॑ष्टेसु॒षहाः᳚सन्तु॒शत्र॑व॒स्त्वया᳚व॒यंतान्व॑नुयामसंग॒मे || {7.8.14.3}, {10.38.3}, {10.3.9.3} |
1186 | योद॒भ्रेभि॒र्हव्यो॒यश्च॒भूरि॑भि॒र्योऽअ॒भीके᳚वरिवो॒विन्नृ॒षाह्ये᳚ | तंवि॑खा॒देसस्नि॑म॒द्यश्रु॒तंनर॑म॒र्वाञ्च॒मिन्द्र॒मव॑सेकरामहे || {7.8.14.4}, {10.38.4}, {10.3.9.4} |
1187 | स्व॒वृजं॒हित्वाम॒हमि᳚न्द्रशु॒श्रवा᳚नानु॒दंवृ॑षभरध्र॒चोद॑नम् | प्रमु᳚ञ्चस्व॒परि॒कुत्सा᳚दि॒हाग॑हि॒किमु॒त्वावा᳚न्मु॒ष्कयो᳚र्ब॒द्धऽआ᳚सते || {7.8.14.5}, {10.38.5}, {10.3.9.5} |
[110] (१-१४) चतुर्दशर्चस्य सूक्तस्य काक्षीवती घोषा (ऋषिका) अश्विनौ देवते | (१-१३) प्रथमादित्रयोदशों जगती, (१४) चतुर्दर्श्याश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
1188 | योवां॒परि॑ज्मासु॒वृद॑श्विना॒रथो᳚दो॒षामु॒षासो॒हव्यो᳚ह॒विष्म॑ता | श॒श्व॒त्त॒मास॒स्तमु॑वामि॒दंव॒यंपि॒तुर्ननाम॑सु॒हवं᳚हवामहे || {7.8.15.1}, {10.39.1}, {10.3.10.1} |
1189 | चो॒दय॑तंसू॒नृताः॒पिन्व॑तं॒धिय॒ऽउत्पुरं᳚धीरीरयतं॒तदु॑श्मसि | य॒शसं᳚भा॒गंकृ॑णुतंनोऽअश्विना॒सोमं॒नचारुं᳚म॒घव॑त्सुनस्कृतम् || {7.8.15.2}, {10.39.2}, {10.3.10.2} |
1190 | अ॒मा॒जुर॑श्चिद्भवथोयु॒वंभगो᳚ऽना॒शोश्चि॑दवि॒तारा᳚प॒मस्य॑चित् | अ॒न्धस्य॑चिन्नासत्याकृ॒शस्य॑चिद्यु॒वामिदा᳚हुर्भि॒षजा᳚रु॒तस्य॑चित् || {7.8.15.3}, {10.39.3}, {10.3.10.3} |
1191 | यु॒वंच्यवा᳚नंस॒नयं॒यथा॒रथं॒पुन॒र्युवा᳚नंच॒रथा᳚यतक्षथुः | निष्टौ॒ग्र्यमू᳚हथुर॒द्भ्यस्परि॒विश्वेत्तावां॒सव॑नेषुप्र॒वाच्या᳚ || {7.8.15.4}, {10.39.4}, {10.3.10.4} |
1192 | पु॒रा॒णावां᳚वी॒र्या॒३॑(आ॒)प्रब्र॑वा॒जनेऽथो᳚हासथुर्भि॒षजा᳚मयो॒भुवा᳚ | तावां॒नुनव्या॒वव॑सेकरामहे॒ऽयंना᳚सत्या॒श्रद॒रिर्यथा॒दध॑त् || {7.8.15.5}, {10.39.5}, {10.3.10.5} |
1193 | इ॒यंवा᳚मह्वेशृणु॒तंमे᳚ऽअश्विनापु॒त्राये᳚वपि॒तरा॒मह्यं᳚शिक्षतम् | अना᳚पि॒रज्ञा᳚ऽअसजा॒त्याम॑तिःपु॒रातस्या᳚ऽअ॒भिश॑स्ते॒रव॑स्पृतम् || {7.8.16.1}, {10.39.6}, {10.3.10.6} |
1194 | यु॒वंरथे᳚नविम॒दाय॑शु॒न्ध्युवं॒न्यू᳚हथुःपुरुमि॒त्रस्य॒योष॑णाम् | यु॒वंहवं᳚वध्रिम॒त्याऽअ॑गच्छतंयु॒वंसुषु॑तिंचक्रथुः॒पुरं᳚धये || {7.8.16.2}, {10.39.7}, {10.3.10.7} |
1195 | यु॒वंविप्र॑स्यजर॒णामु॑पे॒युषः॒पुनः॑क॒लेर॑कृणुतं॒युव॒द्वयः॑ | यु॒वंवन्द॑नमृश्य॒दादुदू᳚पथुर्यु॒वंस॒द्योवि॒श्पला॒मेत॑वेकृथः || {7.8.16.3}, {10.39.8}, {10.3.10.8} |
1196 | यु॒वंह॑रे॒भंवृ॑षणा॒गुहा᳚हि॒तमुदै᳚रयतंममृ॒वांस॑मश्विना | यु॒वमृ॒बीस॑मु॒तत॒प्तमत्र॑य॒ऽओम᳚न्वन्तंचक्रथुःस॒प्तव॑ध्रये || {7.8.16.4}, {10.39.9}, {10.3.10.9} |
1197 | यु॒वंश्वे॒तंपे॒दवे᳚ऽश्वि॒नाश्वं᳚न॒वभि॒र्वाजै᳚र्नव॒तीच॑वा॒जिन᳚म् | च॒र्कृत्यं᳚ददथुर्द्राव॒यत्स॑खं॒भगं॒ननृभ्यो॒हव्यं᳚मयो॒भुव᳚म् || {7.8.16.5}, {10.39.10}, {10.3.10.10} |
1198 | नतंरा᳚जानावदिते॒कुत॑श्च॒ननांहो᳚ऽअश्नोतिदुरि॒तंनकि॑र्भ॒यम् | यम॑श्विनासुहवारुद्रवर्तनीपुरोर॒थंकृ॑णु॒थःपत्न्या᳚स॒ह || {7.8.17.1}, {10.39.11}, {10.3.10.11} |
1199 | आतेन॑यातं॒मन॑सो॒जवी᳚यसा॒रथं॒यंवा᳚मृ॒भव॑श्च॒क्रुर॑श्विना | यस्य॒योगे᳚दुहि॒ताजाय॑तेदि॒वऽउ॒भेऽअह॑नीसु॒दिने᳚वि॒वस्व॑तः || {7.8.17.2}, {10.39.12}, {10.3.10.12} |
1200 | ताव॒र्तिर्या᳚तंज॒युषा॒विपर्व॑त॒मपि᳚न्वतंश॒यवे᳚धे॒नुम॑श्विना | वृक॑स्यचि॒द्वर्ति॑काम॒न्तरा॒स्या᳚द्यु॒वंशची᳚भिर्ग्रसि॒ताम॑मुञ्चतम् || {7.8.17.3}, {10.39.13}, {10.3.10.13} |
1201 | ए॒तंवां॒स्तोम॑मश्विनावक॒र्मात॑क्षाम॒भृग॑वो॒नरथ᳚म् | न्य॑मृक्षाम॒योष॑णां॒नमर्ये॒नित्यं॒नसू॒नुंतन॑यं॒दधा᳚नाः || {7.8.17.4}, {10.39.14}, {10.3.10.14} |
[111] (१-१४) चतुदर्श चस्य सूक्तस्य काक्षीवती घोषा (ऋषिका) अश्विनौ देवते | जगती छन्दः || | |
1202 | रथं॒यान्तं॒कुह॒कोह॑वांनरा॒प्रति॑द्यु॒मन्तं᳚सुवि॒ताय॑भूषति | प्रा॒त॒र्यावा᳚णंवि॒भ्वं᳚वि॒शेवि॑शे॒वस्तो᳚र्वस्तो॒र्वह॑मानंधि॒याशमि॑ || {7.8.18.1}, {10.40.1}, {10.3.11.1} |
1203 | कुह॑स्विद्दो॒षाकुह॒वस्तो᳚र॒श्विना॒कुहा᳚भिपि॒त्वंक॑रतः॒कुहो᳚षतुः | कोवां᳚शयु॒त्रावि॒धवे᳚वदे॒वरं॒मर्यं॒नयोषा᳚कृणुतेस॒धस्थ॒ऽआ || {7.8.18.2}, {10.40.2}, {10.3.11.2} |
1204 | प्रा॒तर्ज॑रेथेजर॒णेव॒काप॑या॒वस्तो᳚र्वस्तोर्यज॒ताग॑च्छथोगृ॒हम् | कस्य॑ध्व॒स्राभ॑वथः॒कस्य॑वानराराजपु॒त्रेव॒सव॒नाव॑गच्छथः || {7.8.18.3}, {10.40.3}, {10.3.11.3} |
1205 | यु॒वांमृ॒गेव॑वार॒णामृ॑ग॒ण्यवो᳚दो॒षावस्तो᳚र्ह॒विषा॒निह्व॑यामहे | यु॒वंहोत्रा᳚मृतु॒थाजुह्व॑तेन॒रेषं॒जना᳚यवहथःशुभस्पती || {7.8.18.4}, {10.40.4}, {10.3.11.4} |
1206 | यु॒वांह॒घोषा॒पर्य॑श्विनाय॒तीराज्ञ॑ऽऊचेदुहि॒तापृ॒च्छेवां᳚नरा | भू॒तंमे॒ऽअह्न॑ऽउ॒तभू᳚तम॒क्तवेऽश्वा᳚वतेर॒थिने᳚शक्त॒मर्व॑ते || {7.8.18.5}, {10.40.5}, {10.3.11.5} |
1207 | यु॒वंक॒वीष्ठः॒पर्य॑श्विना॒रथं॒विशो॒नकुत्सो᳚जरि॒तुर्न॑शायथः | यु॒वोर्ह॒मक्षा॒पर्य॑श्विना॒मध्वा॒साभ॑रतनिष्कृ॒तंनयोष॑णा || {7.8.19.1}, {10.40.6}, {10.3.11.6} |
1208 | यु॒वंह॑भु॒ज्युंयु॒वम॑श्विना॒वशं᳚यु॒वंशि॒ञ्जार॑मु॒शना॒मुपा᳚रथुः | यु॒वोररा᳚वा॒परि॑स॒ख्यमा᳚सतेयु॒वोर॒हमव॑सासु॒म्नमाच॑के || {7.8.19.2}, {10.40.7}, {10.3.11.7} |
1209 | यु॒वंह॑कृ॒शंयु॒वम॑श्विनाश॒युंयु॒वंवि॒धन्तं᳚वि॒धवा᳚मुरुष्यथः | यु॒वंस॒निभ्यः॑स्त॒नय᳚न्तमश्वि॒नाप᳚व्र॒जमू᳚र्णुथःस॒प्तास्य᳚म् || {7.8.19.3}, {10.40.8}, {10.3.11.8} |
1210 | जनि॑ष्ट॒योषा᳚प॒तय॑त्कनीन॒कोविचारु॑हन्वी॒रुधो᳚दं॒सना॒ऽअनु॑ | आस्मै᳚रीयन्तेनिव॒नेव॒सिन्ध॑वो॒ऽस्माऽअह्ने᳚भवति॒तत्प॑तित्व॒नम् || {7.8.19.4}, {10.40.9}, {10.3.11.9} |
1211 | जी॒वंरु॑दन्ति॒विम॑यन्तेऽअध्व॒रेदी॒र्घामनु॒प्रसि॑तिंदीधियु॒र्नरः॑ | वा॒मंपि॒तृभ्यो॒यऽइ॒दंस॑मेरि॒रेमयः॒पति॑भ्यो॒जन॑यःपरि॒ष्वजे᳚ || {7.8.19.5}, {10.40.10}, {10.3.11.10} |
1212 | नतस्य॑विद्म॒तदु॒षुप्रवो᳚चत॒युवा᳚ह॒यद्यु॑व॒त्याःक्षेति॒योनि॑षु | प्रि॒योस्रि॑यस्यवृष॒भस्य॑रे॒तिनो᳚गृ॒हंग॑मेमाश्विना॒तदु॑श्मसि || {7.8.20.1}, {10.40.11}, {10.3.11.11} |
1213 | आवा᳚मगन्त्सुम॒तिर्वा᳚जिनीवसू॒न्य॑श्विनाहृ॒त्सुकामा᳚ऽअयंसत | अभू᳚तंगो॒पामि॑थु॒नाशु॑भस्पतीप्रि॒याऽअ᳚र्य॒म्णोदुर्याँ᳚ऽअशीमहि || {7.8.20.2}, {10.40.12}, {10.3.11.12} |
1214 | ताम᳚न्दसा॒नामनु॑षोदुरो॒णऽआध॒त्तंर॒यिंस॒हवी᳚रंवच॒स्यवे᳚ | कृ॒तंती॒र्थंसु॑प्रपा॒णंशु॑भस्पतीस्था॒णुंप॑थे॒ष्ठामप॑दुर्म॒तिंह॑तम् || {7.8.20.3}, {10.40.13}, {10.3.11.13} |
1215 | क्व॑स्विद॒द्यक॑त॒मास्व॒श्विना᳚वि॒क्षुद॒स्रामा᳚दयेतेशु॒भस्पती᳚ | कऽईं॒निये᳚मेकत॒मस्य॑जग्मतु॒र्विप्र॑स्यवा॒यज॑मानस्यवागृ॒हम् || {7.8.20.4}, {10.40.14}, {10.3.11.14} |
[112] (१-३) तृचस्य सूक्तस्य घौषेयः सुहस्त्य ऋषिः | अश्विनौ देवते | जगती छन्दः || | |
1216 | स॒मा॒नमु॒त्यंपु॑रुहू॒तमु॒क्थ्य१॑(अ॒)अंरथं᳚त्रिच॒क्रंसव॑ना॒गनि॑ग्मतम् | परि॑ज्मानंविद॒थ्यं᳚सुवृ॒क्तिभि᳚र्व॒यंव्यु॑ष्टाऽउ॒षसो᳚हवामहे || {7.8.21.1}, {10.41.1}, {10.3.12.1} |
1217 | प्रा॒त॒र्युजं᳚नास॒त्याधि॑तिष्ठथःप्रात॒र्यावा᳚णंमधु॒वाह॑नं॒रथ᳚म् | विशो॒येन॒गच्छ॑थो॒यज्व॑रीर्नराकी॒रेश्चि॑द्य॒ज्ञंहोतृ॑मन्तमश्विना || {7.8.21.2}, {10.41.2}, {10.3.12.2} |
1218 | अ॒ध्व॒र्युंवा॒मधु॑पाणिंसु॒हस्त्य॑म॒ग्निधं᳚वाधृ॒तद॑क्षं॒दमू᳚नसम् | विप्र॑स्यवा॒यत्सव॑नानि॒गच्छ॒थोऽत॒ऽआया᳚तंमधु॒पेय॑मश्विना || {7.8.21.3}, {10.41.3}, {10.3.12.3} |
[113] (१-११) एकादशर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः कृष्ण ऋषिः | इन्द्रो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
1219 | अस्ते᳚व॒सुप्र॑त॒रंलाय॒मस्य॒न्भूष᳚न्निव॒प्रभ॑रा॒स्तोम॑मस्मै | वा॒चावि॑प्रास्तरत॒वाच॑म॒र्योनिरा᳚मयजरितः॒सोम॒ऽइन्द्र᳚म् || {7.8.22.1}, {10.42.1}, {10.3.13.1} |
1220 | दोहे᳚न॒गामुप॑शिक्षा॒सखा᳚यं॒प्रबो᳚धयजरितर्जा॒रमिन्द्र᳚म् | कोशं॒नपू॒र्णंवसु॑ना॒न्यृ॑ष्ट॒माच्या᳚वयमघ॒देया᳚य॒शूर᳚म् || {7.8.22.2}, {10.42.2}, {10.3.13.2} |
1221 | किम॒ङ्गत्वा᳚मघवन्भो॒जमा᳚हुःशिशी॒हिमा᳚शिश॒यंत्वा᳚शृणोमि | अप्न॑स्वती॒मम॒धीर॑स्तुशक्रवसु॒विदं॒भग॑मि॒न्द्राभ॑रानः || {7.8.22.3}, {10.42.3}, {10.3.13.3} |
1222 | त्वांजना᳚ममस॒त्येष्वि᳚न्द्रसंतस्था॒नाविह्व॑यन्तेसमी॒के | अत्रा॒युजं᳚कृणुते॒योह॒विष्मा॒न्नासु᳚न्वतास॒ख्यंव॑ष्टि॒शूरः॑ || {7.8.22.4}, {10.42.4}, {10.3.13.4} |
1223 | धनं॒नस्य॒न्द्रंब॑हु॒लंयोऽअ॑स्मैती॒व्रान्त्सोमाँ᳚ऽआसु॒नोति॒प्रय॑स्वान् | तस्मै॒शत्रू᳚न्त्सु॒तुका᳚न्प्रा॒तरह्नो॒निस्वष्ट्रा᳚न्यु॒वति॒हन्ति॑वृ॒त्रम् || {7.8.22.5}, {10.42.5}, {10.3.13.5} |
1224 | यस्मि᳚न्व॒यंद॑धि॒माशंस॒मिन्द्रे॒यःशि॒श्राय॑म॒घवा॒काम॑म॒स्मे | आ॒राच्चि॒त्सन्भ॑यतामस्य॒शत्रु॒र्न्य॑स्मैद्यु॒म्नाजन्या᳚नमन्ताम् || {7.8.23.1}, {10.42.6}, {10.3.13.6} |
1225 | आ॒राच्छत्रु॒मप॑बाधस्वदू॒रमु॒ग्रोयःशम्बः॑पुरुहूत॒तेन॑ | अ॒स्मेधे᳚हि॒यव॑म॒द्गोम॑दिन्द्रकृ॒धीधियं᳚जरि॒त्रेवाज॑रत्नाम् || {7.8.23.2}, {10.42.7}, {10.3.13.7} |
1226 | प्रयम॒न्तर्वृ॑षस॒वासो॒ऽअग्म᳚न्ती॒व्राःसोमा᳚बहु॒लान्ता᳚स॒ऽइन्द्र᳚म् | नाह॑दा॒मानं᳚म॒घवा॒नियं᳚स॒न्निसु᳚न्व॒तेव॑हति॒भूरि॑वा॒मम् || {7.8.23.3}, {10.42.8}, {10.3.13.8} |
1227 | उ॒तप्र॒हाम॑ति॒दीव्या᳚जयातिकृ॒तंयच्छ्व॒घ्नीवि॑चि॒नोति॑का॒ले | योदे॒वका᳚मो॒नधना᳚रुणद्धि॒समित्तंरा॒यासृ॑जतिस्व॒धावा॑न् || {7.8.23.4}, {10.42.9}, {10.3.13.9} |
1228 | गोभि॑ष्टरे॒माम॑तिंदु॒रेवां॒यवे᳚न॒क्षुधं᳚पुरुहूत॒विश्वा᳚म् | व॒यंराज॑भिःप्रथ॒माधना᳚न्य॒स्माके᳚नवृ॒जने᳚नाजयेम || {7.8.23.5}, {10.42.10}, {10.3.13.10} |
1229 | बृह॒स्पति᳚र्नः॒परि॑पातुप॒श्चादु॒तोत्त॑रस्मा॒दध॑रादघा॒योः | इन्द्रः॑पु॒रस्ता᳚दु॒तम॑ध्य॒तोनः॒सखा॒सखि॑भ्यो॒वरि॑वःकृणोतु || {7.8.23.6}, {10.42.11}, {10.3.13.11} |
[114] (१-११) एकादशर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः कृष्ण ऋषिः | इन्द्रो देवता | (१-९) प्रथमादिनवर्चाम् जगती, (१०-११) दशम्येकादश्योश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
1230 | अच्छा᳚म॒ऽइन्द्रं᳚म॒तयः॑स्व॒र्विदः॑स॒ध्रीची॒र्विश्वा᳚ऽउश॒तीर॑नूषत | परि॑ष्वजन्ते॒जन॑यो॒यथा॒पतिं॒मर्यं॒नशु॒न्ध्युंम॒घवा᳚नमू॒तये᳚ || {7.8.24.1}, {10.43.1}, {10.4.1.1} |
1231 | नघा᳚त्व॒द्रिगप॑वेतिमे॒मन॒स्त्वेऽइत्कामं᳚पुरुहूतशिश्रय | राजे᳚वदस्म॒निष॒दोऽधि॑ब॒र्हिष्य॒स्मिन्त्सुसोमे᳚ऽव॒पान॑मस्तुते || {7.8.24.2}, {10.43.2}, {10.4.1.2} |
1232 | वि॒षू॒वृदिन्द्रो॒ऽअम॑तेरु॒तक्षु॒धःसऽइद्रा॒योम॒घवा॒वस्व॑ऽईशते | तस्येदि॒मेप्र॑व॒णेस॒प्तसिन्ध॑वो॒वयो᳚वर्धन्तिवृष॒भस्य॑शु॒ष्मिणः॑ || {7.8.24.3}, {10.43.3}, {10.4.1.3} |
1233 | वयो॒नवृ॒क्षंसु॑पला॒शमास॑द॒न्त्सोमा᳚स॒ऽइन्द्रं᳚म॒न्दिन॑श्चमू॒षदः॑ | प्रैषा॒मनी᳚कं॒शव॑सा॒दवि॑द्युतद्वि॒दत्स्व१॑(अ॒)'र्मन॑वे॒ज्योति॒रार्य᳚म् || {7.8.24.4}, {10.43.4}, {10.4.1.4} |
1234 | कृ॒तंनश्व॒घ्नीविचि॑नोति॒देव॑नेसं॒वर्गं॒यन्म॒घवा॒सूर्यं॒जय॑त् | नतत्ते᳚ऽअ॒न्योऽअनु॑वी॒र्यं᳚शक॒न्नपु॑रा॒णोम॑घव॒न्नोतनूत॑नः || {7.8.24.5}, {10.43.5}, {10.4.1.5} |
1235 | विशं᳚विशंम॒घवा॒पर्य॑शायत॒जना᳚नां॒धेना᳚ऽअव॒चाक॑श॒द्वृषा᳚ | यस्याह॑श॒क्रःसव॑नेषु॒रण्य॑ति॒सती॒व्रैःसोमैः᳚सहतेपृतन्य॒तः || {7.8.25.1}, {10.43.6}, {10.4.1.6} |
1236 | आपो॒नसिन्धु॑म॒भियत्स॒मक्ष॑र॒न्त्सोमा᳚स॒ऽइन्द्रं᳚कु॒ल्याऽइ॑वह्र॒दम् | वर्ध᳚न्ति॒विप्रा॒महो᳚ऽअस्य॒साद॑ने॒यवं॒नवृ॒ष्टिर्दि॒व्येन॒दानु॑ना || {7.8.25.2}, {10.43.7}, {10.4.1.7} |
1237 | वृषा॒नक्रु॒द्धःप॑तय॒द्रज॒स्स्वायोऽअ॒र्यप॑त्नी॒रकृ॑णोदि॒माऽअ॒पः | ससु᳚न्व॒तेम॒घवा᳚जी॒रदा᳚न॒वेऽवि᳚न्द॒ज्ज्योति॒र्मन॑वेह॒विष्म॑ते || {7.8.25.3}, {10.43.8}, {10.4.1.8} |
1238 | उज्जा᳚यतांपर॒शुर्ज्योति॑षास॒हभू॒याऋ॒तस्य॑सु॒दुघा᳚पुराण॒वत् | विरो᳚चतामरु॒षोभा॒नुना॒शुचिः॒स्व१॑(अ॒)'र्णशु॒क्रंशु॑शुचीत॒सत्प॑तिः || {7.8.25.4}, {10.43.9}, {10.4.1.9} |
1239 | गोभि॑ष्टरे॒माम॑तिंदु॒रेवां॒यवे᳚न॒क्षुधं᳚पुरुहूत॒विश्वा᳚म् | व॒यंराज॑भिःप्रथ॒माधना᳚न्य॒स्माके᳚नवृ॒जने᳚नाजयेम || {7.8.25.5}, {10.43.10}, {10.4.1.10} |
1240 | बृह॒स्पति᳚र्नः॒परि॑पातुप॒श्चादु॒तोत्त॑रस्मा॒दध॑रादघा॒योः | इन्द्रः॑पु॒रस्ता᳚दु॒तम॑ध्य॒तोनः॒सखा॒सखि॑भ्यो॒वरि॑वःकृणोतु || {7.8.25.6}, {10.43.11}, {10.4.1.11} |
[115] (१-११) एकादशर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः कृष्ण ऋषिः | इन्द्रो देवता | (१-३, १०-११) प्रथमादितृचस्य दशम्येकादश्यो[चोश्च त्रिष्टुप, (४-९) चतुर्थ्यादितृचद्वयस्य च जगती छन्दसी || | |
1241 | आया॒त्विन्द्रः॒स्वप॑ति॒र्मदा᳚य॒योधर्म॑णातूतुजा॒नस्तुवि॑ष्मान् | प्र॒त्व॒क्षा॒णोऽअति॒विश्वा॒सहां᳚स्यपा॒रेण॑मह॒तावृष्ण्ये᳚न || {7.8.26.1}, {10.44.1}, {10.4.2.1} |
1242 | सु॒ष्ठामा॒रथः॑सु॒यमा॒हरी᳚तेमि॒म्यक्ष॒वज्रो᳚नृपते॒गभ॑स्तौ | शीभं᳚राजन्त्सु॒पथाया᳚ह्य॒र्वाङ्वर्धा᳚मतेप॒पुषो॒वृष्ण्या᳚नि || {7.8.26.2}, {10.44.2}, {10.4.2.2} |
1243 | एन्द्र॒वाहो᳚नृ॒पतिं॒वज्र॑बाहुमु॒ग्रमु॒ग्रास॑स्तवि॒षास॑ऽएनम् | प्रत्व॑क्षसंवृष॒भंस॒त्यशु॑ष्म॒मेम॑स्म॒त्रास॑ध॒मादो᳚वहन्तु || {7.8.26.3}, {10.44.3}, {10.4.2.3} |
1244 | ए॒वापतिं᳚द्रोण॒साचं॒सचे᳚तसमू॒र्जःस्क॒म्भंध॒रुण॒ऽआवृ॑षायसे | ओजः॑कृष्व॒संगृ॑भाय॒त्वेऽअप्यसो॒यथा᳚केनि॒पाना᳚मि॒नोवृ॒धे || {7.8.26.4}, {10.44.4}, {10.4.2.4} |
1245 | गम᳚न्न॒स्मेवसू॒न्याहिशंसि॑षंस्वा॒शिषं॒भर॒माया᳚हिसो॒मिनः॑ | त्वमी᳚शिषे॒सास्मिन्नास॑त्सिब॒र्हिष्य॑नाधृ॒ष्यातव॒पात्रा᳚णि॒धर्म॑णा || {7.8.26.5}, {10.44.5}, {10.4.2.5} |
1246 | पृथ॒क्प्राय᳚न्प्रथ॒मादे॒वहू᳚त॒योऽकृ᳚ण्वतश्रव॒स्या᳚निदु॒ष्टरा᳚ | नयेशे॒कुर्य॒ज्ञियां॒नाव॑मा॒रुह॑मी॒र्मैवतेन्य॑विशन्त॒केप॑यः || {7.8.27.1}, {10.44.6}, {10.4.2.6} |
1247 | ए॒वैवापा॒गप॑रेसन्तुदू॒ढ्योऽश्वा॒येषां᳚दु॒र्युज॑ऽआयुयु॒ज्रे | इ॒त्थायेप्रागुप॑रे॒सन्ति॑दा॒वने᳚पु॒रूणि॒यत्र॑व॒युना᳚नि॒भोज॑ना || {7.8.27.2}, {10.44.7}, {10.4.2.7} |
1248 | गि॒रीँरज्रा॒न्रेज॑मानाँऽअधारय॒द्द्यौःक्र᳚न्दद॒न्तरि॑क्षाणिकोपयत् | स॒मी॒ची॒नेधि॒षणे॒विष्क॑भायति॒वृष्णः॑पी॒त्वामद॑ऽउ॒क्थानि॑शंसति || {7.8.27.3}, {10.44.8}, {10.4.2.8} |
1249 | इ॒मंबि॑भर्मि॒सुकृ॑तंतेऽअङ्कु॒शंयेना᳚रु॒जासि॑मघवञ्छफा॒रुजः॑ | अ॒स्मिन्त्सुते॒सव॑नेऽअस्त्वो॒क्यं᳚सु॒तऽइ॒ष्टौम॑घवन्बो॒ध्याभ॑गः || {7.8.27.4}, {10.44.9}, {10.4.2.9} |
1250 | गोभि॑ष्टरे॒माम॑तिंदु॒रेवां॒यवे᳚न॒क्षुधं᳚पुरुहूत॒विश्वा᳚म् | व॒यंराज॑भिःप्रथ॒माधना᳚न्य॒स्माके᳚नवृ॒जने᳚नाजयेम || {7.8.27.5}, {10.44.10}, {10.4.2.10} |
1251 | बृह॒स्पति᳚र्नः॒परि॑पातुप॒श्चादु॒तोत्त॑रस्मा॒दध॑रादघा॒योः | इन्द्रः॑पु॒रस्ता᳚दु॒तम॑ध्य॒तोनः॒सखा॒सखि॑भ्यो॒वरि॑वःकृणोतु || {7.8.27.6}, {10.44.11}, {10.4.2.11} |
[116] (१-१२) द्वादशर्चस्य सूक्तस्य भालन्दनो वत्सप्रि ऋषिः | अग्निर्देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
1252 | दि॒वस्परि॑प्रथ॒मंज॑ज्ञेऽअ॒ग्निर॒स्मद्द्वि॒तीयं॒परि॑जा॒तवे᳚दाः | तृ॒तीय॑म॒प्सुनृ॒मणा॒ऽअज॑स्र॒मिन्धा᳚नऽएनंजरतेस्वा॒धीः || {7.8.28.1}, {10.45.1}, {10.4.3.1} |
1253 | वि॒द्माते᳚ऽअग्नेत्रे॒धात्र॒याणि॑वि॒द्माते॒धाम॒विभृ॑तापुरु॒त्रा | वि॒द्माते॒नाम॑पर॒मंगुहा॒यद्वि॒द्मातमुत्सं॒यत॑ऽआज॒गन्थ॑ || {7.8.28.2}, {10.45.2}, {10.4.3.2} |
1254 | स॒मु॒द्रेत्वा᳚नृ॒मणा᳚ऽअ॒प्स्व१॑(अ॒)'न्तर्नृ॒चक्षा᳚ऽईधेदि॒वोऽअ॑ग्न॒ऽऊध॑न् | तृ॒तीये᳚त्वा॒रज॑सितस्थि॒वांस॑म॒पामु॒पस्थे᳚महि॒षाऽअ॑वर्धन् || {7.8.28.3}, {10.45.3}, {10.4.3.3} |
1255 | अक्र᳚न्दद॒ग्निःस्त॒नय᳚न्निव॒द्यौःक्षामा॒रेरि॑हद्वी॒रुधः॑सम॒ञ्जन् | स॒द्योज॑ज्ञा॒नोविहीमि॒द्धोऽअख्य॒दारोद॑सीभा॒नुना᳚भात्य॒न्तः || {7.8.28.4}, {10.45.4}, {10.4.3.4} |
1256 | श्री॒णामु॑दा॒रोध॒रुणो᳚रयी॒णांम॑नी॒षाणां॒प्रार्प॑णः॒सोम॑गोपाः | वसुः॑सू॒नुःसह॑सोऽअ॒प्सुराजा॒विभा॒त्यग्र॑ऽउ॒षसा᳚मिधा॒नः || {7.8.28.5}, {10.45.5}, {10.4.3.5} |
1257 | विश्व॑स्यके॒तुर्भुव॑नस्य॒गर्भ॒ऽआरोद॑सीऽअपृणा॒ज्जाय॑मानः | वी॒ळुंचि॒दद्रि॑मभिनत्परा॒यञ्जना॒यद॒ग्निमय॑जन्त॒पञ्च॑ || {7.8.28.6}, {10.45.6}, {10.4.3.6} |
1258 | उ॒शिक्पा᳚व॒कोऽअ॑र॒तिःसु॑मे॒धामर्ते᳚ष्व॒ग्निर॒मृतो॒निधा᳚यि | इय॑र्तिधू॒मम॑रु॒षंभरि॑भ्र॒दुच्छु॒क्रेण॑शो॒चिषा॒द्यामिन॑क्षन् || {7.8.29.1}, {10.45.7}, {10.4.3.7} |
1259 | दृ॒शा॒नोरु॒क्मऽउ᳚र्वि॒याव्य॑द्यौद्दु॒र्मर्ष॒मायुः॑श्रि॒येरु॑चा॒नः | अ॒ग्निर॒मृतो᳚ऽअभव॒द्वयो᳚भि॒र्यदे᳚नं॒द्यौर्ज॒नय॑त्सु॒रेताः᳚ || {7.8.29.2}, {10.45.8}, {10.4.3.8} |
1260 | यस्ते᳚ऽअ॒द्यकृ॒णव॑द्भद्रशोचेऽपू॒पंदे᳚वघृ॒तव᳚न्तमग्ने | प्रतंन॑यप्रत॒रंवस्यो॒ऽअच्छा॒भिसु॒म्नंदे॒वभ॑क्तंयविष्ठ || {7.8.29.3}, {10.45.9}, {10.4.3.9} |
1261 | आतंभ॑जसौश्रव॒सेष्व॑ग्नऽउ॒क्थौ᳚क्थ॒ऽआभ॑जश॒स्यमा᳚ने | प्रि॒यःसूर्ये᳚प्रि॒योऽअ॒ग्नाभ॑वा॒त्युज्जा॒तेन॑भि॒नद॒दुज्जनि॑त्वैः || {7.8.29.4}, {10.45.10}, {10.4.3.10} |
1262 | त्वाम॑ग्ने॒यज॑माना॒ऽअनु॒द्यून्विश्वा॒वसु॑दधिरे॒वार्या᳚णि | त्वया᳚स॒हद्रवि॑णमि॒च्छमा᳚नाव्र॒जंगोम᳚न्तमु॒शिजो॒विव᳚व्रुः || {7.8.29.5}, {10.45.11}, {10.4.3.11} |
1263 | अस्ता᳚व्य॒ग्निर्न॒रांसु॒शेवो᳚वैश्वान॒रऋषि॑भिः॒सोम॑गोपाः | अ॒द्वे॒षेद्यावा᳚पृथि॒वीहु॑वेम॒देवा᳚ध॒त्तर॒यिम॒स्मेसु॒वीर᳚म् || {7.8.29.6}, {10.45.12}, {10.4.3.12} |