Mantra classification is following this convention :-
{मण्डलम्, सूक्तम्, मन्त्रः}, {मण्डलम्, अनुवाकः, सूक्तम्, मन्त्रः}, {अष्टकः, अध्यायः, वर्गः, मन्त्रः}
[1] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य वैश्वामित्रो मधुच्छन्दा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1 | स्वादि॑ष्ठया॒ मदि॑ष्ठया॒ पव॑स्व सोम॒ धार॑या | इन्द्रा᳚य॒ पात॑वे सु॒तः ||{9.1.1}, {9.1.1.1}, {6.7.16.1} |
2 | र॒क्षो॒हा वि॒श्वच॑र्षणिर॒भि योनि॒मयो᳚हतम् | द्रुणा᳚ स॒धस्थ॒मास॑दत् ||{9.1.2}, {9.1.1.2}, {6.7.16.2} |
3 | व॒रि॒वो॒धात॑मो भव॒ मंहि॑ष्ठो वृत्र॒हन्त॑मः | पर्षि॒ राधो᳚ म॒घोना᳚म् ||{9.1.3}, {9.1.1.3}, {6.7.16.3} |
4 | अ॒भ्य॑र्ष म॒हानां᳚ दे॒वानां᳚ वी॒तिमन्ध॑सा | अ॒भि वाज॑मु॒त श्रवः॑ ||{9.1.4}, {9.1.1.4}, {6.7.16.4} |
5 | त्वामच्छा᳚ चरामसि॒ तदिदर्थं᳚ दि॒वेदि॑वे | इन्दो॒ त्वे न॑ आ॒शसः॑ ||{9.1.5}, {9.1.1.5}, {6.7.16.5} |
6 | पु॒नाति॑ ते परि॒स्रुतं॒ सोमं॒ सूर्य॑स्य दुहि॒ता | वारे᳚ण॒ शश्व॑ता॒ तना᳚ ||{9.1.6}, {9.1.1.6}, {6.7.17.1} |
7 | तमी॒मण्वीः᳚ सम॒र्य आ गृ॒भ्णन्ति॒ योष॑णो॒ दश॑ | स्वसा᳚रः॒ पार्ये᳚ दि॒वि ||{9.1.7}, {9.1.1.7}, {6.7.17.2} |
8 | तमीं᳚ हिन्वन्त्य॒ग्रुवो॒ धम᳚न्ति बाकु॒रं दृति᳚म् | त्रि॒धातु॑ वार॒णं मधु॑ ||{9.1.8}, {9.1.1.8}, {6.7.17.3} |
9 | अ॒भी॒३॑(ई॒)ममघ्न्या᳚ उ॒त श्री॒णन्ति॑ धे॒नवः॒ शिशु᳚म् | सोम॒मिन्द्रा᳚य॒ पात॑वे ||{9.1.9}, {9.1.1.9}, {6.7.17.4} |
10 | अ॒स्येदिन्द्रो॒ मदे॒ष्वा विश्वा᳚ वृ॒त्राणि॑ जिघ्नते | शूरो᳚ म॒घा च॑ मंहते ||{9.1.10}, {9.1.1.10}, {6.7.17.5} |
[2] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य काण्वो मेधातिथिब्रषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
11 | पव॑स्व देव॒वीरति॑ प॒वित्रं᳚ सोम॒ रंह्या᳚ | इन्द्र॑मिन्दो॒ वृषा वि॑श ||{9.2.1}, {9.1.2.1}, {6.7.18.1} |
12 | आ व॑च्यस्व॒ महि॒ प्सरो॒ वृषे᳚न्दो द्यु॒म्नव॑त्तमः | आ योनिं᳚ धर्ण॒सिः स॑दः ||{9.2.2}, {9.1.2.2}, {6.7.18.2} |
13 | अधु॑क्षत प्रि॒यं मधु॒ धारा᳚ सु॒तस्य॑ वे॒धसः॑ | अ॒पो व॑सिष्ट सु॒क्रतुः॑ ||{9.2.3}, {9.1.2.3}, {6.7.18.3} |
14 | म॒हान्तं᳚ त्वा म॒हीरन्वापो᳚ अर्षन्ति॒ सिन्ध॑वः | यद्गोभि᳚र्वासयि॒ष्यसे᳚ ||{9.2.4}, {9.1.2.4}, {6.7.18.4} |
15 | स॒मु॒द्रो अ॒प्सु मा᳚मृजे विष्ट॒म्भो ध॒रुणो᳚ दि॒वः | सोमः॑ प॒वित्रे᳚ अस्म॒युः ||{9.2.5}, {9.1.2.5}, {6.7.18.5} |
16 | अचि॑क्रद॒द्वृषा॒ हरि᳚र्म॒हान्मि॒त्रो न द॑र्श॒तः | सं सूर्ये᳚ण रोचते ||{9.2.6}, {9.1.2.6}, {6.7.19.1} |
17 | गिर॑स्त इन्द॒ ओज॑सा मर्मृ॒ज्यन्ते᳚ अप॒स्युवः॑ | याभि॒र्मदा᳚य॒ शुम्भ॑से ||{9.2.7}, {9.1.2.7}, {6.7.19.2} |
18 | तं त्वा॒ मदा᳚य॒ घृष्व॑य उ लोककृ॒त्नुमी᳚महे | तव॒ प्रश॑स्तयो म॒हीः ||{9.2.8}, {9.1.2.8}, {6.7.19.3} |
19 | अ॒स्मभ्य॑मिन्दविन्द्र॒युर्मध्वः॑ पवस्व॒ धार॑या | प॒र्जन्यो᳚ वृष्टि॒माँ इ॑व ||{9.2.9}, {9.1.2.9}, {6.7.19.4} |
20 | गो॒षा इ᳚न्दो नृ॒षा अ॑स्यश्व॒सा वा᳚ज॒सा उ॒त | आ॒त्मा य॒ज्ञस्य॑ पू॒र्व्यः ||{9.2.10}, {9.1.2.10}, {6.7.19.5} |
[3] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य आजीगर्तिः शुनःशेपः (कृत्रिमो वैश्वामित्रो देवरातः) ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
21 | ए॒ष दे॒वो अम॑र्त्यः पर्ण॒वीरि॑व दीयति | अ॒भि द्रोणा᳚न्या॒सद᳚म् ||{9.3.1}, {9.1.3.1}, {6.7.20.1} |
22 | ए॒ष दे॒वो वि॒पा कृ॒तोऽति॒ ह्वरां᳚सि धावति | पव॑मानो॒ अदा᳚भ्यः ||{9.3.2}, {9.1.3.2}, {6.7.20.2} |
23 | ए॒ष दे॒वो वि॑प॒न्युभिः॒ पव॑मान ऋता॒युभिः॑ | हरि॒र्वाजा᳚य मृज्यते ||{9.3.3}, {9.1.3.3}, {6.7.20.3} |
24 | ए॒ष विश्वा᳚नि॒ वार्या॒ शूरो॒ यन्नि॑व॒ सत्व॑भिः | पव॑मानः सिषासति ||{9.3.4}, {9.1.3.4}, {6.7.20.4} |
25 | ए॒ष दे॒वो र॑थर्यति॒ पव॑मानो दशस्यति | आ॒विष्कृ॑णोति वग्व॒नुम् ||{9.3.5}, {9.1.3.5}, {6.7.20.5} |
26 | ए॒ष विप्रै᳚र॒भिष्टु॑तो॒ऽपो दे॒वो वि गा᳚हते | दध॒द्रत्ना᳚नि दा॒शुषे᳚ ||{9.3.6}, {9.1.3.6}, {6.7.21.1} |
27 | ए॒ष दिवं॒ वि धा᳚वति ति॒रो रजां᳚सि॒ धार॑या | पव॑मानः॒ कनि॑क्रदत् ||{9.3.7}, {9.1.3.7}, {6.7.21.2} |
28 | ए॒ष दिवं॒ व्यास॑रत्ति॒रो रजां॒स्यस्पृ॑तः | पव॑मानः स्वध्व॒रः ||{9.3.8}, {9.1.3.8}, {6.7.21.3} |
29 | ए॒ष प्र॒त्नेन॒ जन्म॑ना दे॒वो दे॒वेभ्यः॑ सु॒तः | हरिः॑ प॒वित्रे᳚ अर्षति ||{9.3.9}, {9.1.3.9}, {6.7.21.4} |
30 | ए॒ष उ॒ स्य पु॑रुव्र॒तो ज॑ज्ञा॒नो ज॒नय॒न्निषः॑ | धार॑या पवते सु॒तः ||{9.3.10}, {9.1.3.10}, {6.7.21.5} |
[4] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो हिरण्यस्तूप ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
31 | सना᳚ च सोम॒ जेषि॑ च॒ पव॑मान॒ महि॒ श्रवः॑ | अथा᳚ नो॒ वस्य॑सस्कृधि ||{9.4.1}, {9.1.4.1}, {6.7.22.1} |
32 | सना॒ ज्योतिः॒ सना॒ स्व१॑(अ॒)'र्विश्वा᳚ च सोम॒ सौभ॑गा | अथा᳚ नो॒ वस्य॑सस्कृधि ||{9.4.2}, {9.1.4.2}, {6.7.22.2} |
33 | सना॒ दक्ष॑मु॒त क्रतु॒मप॑ सोम॒ मृधो᳚ जहि | अथा᳚ नो॒ वस्य॑सस्कृधि ||{9.4.3}, {9.1.4.3}, {6.7.22.3} |
34 | पवी᳚तारः पुनी॒तन॒ सोम॒मिन्द्रा᳚य॒ पात॑वे | अथा᳚ नो॒ वस्य॑सस्कृधि ||{9.4.4}, {9.1.4.4}, {6.7.22.4} |
35 | त्वं सूर्ये᳚ न॒ आ भ॑ज॒ तव॒ क्रत्वा॒ तवो॒तिभिः॑ | अथा᳚ नो॒ वस्य॑सस्कृधि ||{9.4.5}, {9.1.4.5}, {6.7.22.5} |
36 | तव॒ क्रत्वा॒ तवो॒तिभि॒र्ज्योक्प॑श्येम॒ सूर्य᳚म् | अथा᳚ नो॒ वस्य॑सस्कृधि ||{9.4.6}, {9.1.4.6}, {6.7.23.1} |
37 | अ॒भ्य॑र्ष स्वायुध॒ सोम॑ द्वि॒बर्ह॑सं र॒यिम् | अथा᳚ नो॒ वस्य॑सस्कृधि ||{9.4.7}, {9.1.4.7}, {6.7.23.2} |
38 | अ॒भ्य१॑(अ॒)र्षान॑पच्युतो र॒यिं स॒मत्सु॑ सास॒हिः | अथा᳚ नो॒ वस्य॑सस्कृधि ||{9.4.8}, {9.1.4.8}, {6.7.23.3} |
39 | त्वां य॒ज्ञैर॑वीवृध॒न्पव॑मान॒ विध᳚र्मणि | अथा᳚ नो॒ वस्य॑सस्कृधि ||{9.4.9}, {9.1.4.9}, {6.7.23.4} |
40 | र॒यिं न॑श्चि॒त्रम॒श्विन॒मिन्दो᳚ वि॒श्वायु॒मा भ॑र | अथा᳚ नो॒ वस्य॑सस्कृधि ||{9.4.10}, {9.1.4.10}, {6.7.23.5} |
[5] (१-११) एकादशर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | (१) प्रथमर्च इध्मः समिद्धो वाग्निः, (२) द्वितीयायास्तनूनपात्, (३) तृतीयाया इळः, (४) चतुर्थ्या बर्हिः, (५) पञ्चम्या देवीर्द्वारः, (६) षष्ठ्या उषासानक्ता, (७) सप्तम्या दैव्यौ होतारौ प्रचेतसौ, (८) अष्टम्यास्तिस्रो देव्यः सरस्वतीळाभारत्यः, (९) नवम्यास्त्वष्टा, (१०) दशम्या वनस्पतिः, (११) एकादश्याश्च स्वाहाकृतयो देवताः | (१-७) प्रथमादिसप्तर्षों गायत्री, (८-११) अष्टम्यादिचतसृणाञ्चानष्टप छन्दसी || | |
41 | समि॑द्धो वि॒श्वत॒स्पतिः॒ पव॑मानो॒ वि रा᳚जति | प्री॒णन्वृषा॒ कनि॑क्रदत् ||{9.5.1}, {9.1.5.1}, {6.7.24.1} |
42 | तनू॒नपा॒त्पव॑मानः॒ शृङ्गे॒ शिशा᳚नो अर्षति | अ॒न्तरि॑क्षेण॒ रार॑जत् ||{9.5.2}, {9.1.5.2}, {6.7.24.2} |
43 | ई॒ळेन्यः॒ पव॑मानो र॒यिर्वि रा᳚जति द्यु॒मान् | मधो॒र्धारा᳚भि॒रोज॑सा ||{9.5.3}, {9.1.5.3}, {6.7.24.3} |
44 | ब॒र्हिः प्रा॒चीन॒मोज॑सा॒ पव॑मानः स्तृ॒णन्हरिः॑ | दे॒वेषु॑ दे॒व ई᳚यते ||{9.5.4}, {9.1.5.4}, {6.7.24.4} |
45 | उदातै᳚र्जिहते बृ॒हद्द्वारो᳚ दे॒वीर्हि॑र॒ण्ययीः᳚ | पव॑मानेन॒ सुष्टु॑ताः ||{9.5.5}, {9.1.5.5}, {6.7.24.5} |
46 | सु॒शि॒ल्पे बृ॑ह॒ती म॒ही पव॑मानो वृषण्यति | नक्तो॒षासा॒ न द॑र्श॒ते ||{9.5.6}, {9.1.5.6}, {6.7.25.1} |
47 | उ॒भा दे॒वा नृ॒चक्ष॑सा॒ होता᳚रा॒ दैव्या᳚ हुवे | पव॑मान॒ इन्द्रो॒ वृषा᳚ ||{9.5.7}, {9.1.5.7}, {6.7.25.2} |
48 | भार॑ती॒ पव॑मानस्य॒ सर॑स्व॒तीळा᳚ म॒ही | इ॒मं नो᳚ य॒ज्ञमा ग॑मन्ति॒स्रो दे॒वीः सु॒पेश॑सः ||{9.5.8}, {9.1.5.8}, {6.7.25.3} |
49 | त्वष्टा᳚रमग्र॒जां गो॒पां पु॑रो॒यावा᳚न॒मा हु॑वे | इन्दु॒रिन्द्रो॒ वृषा॒ हरिः॒ पव॑मानः प्र॒जाप॑तिः ||{9.5.9}, {9.1.5.9}, {6.7.25.4} |
50 | वन॒स्पतिं᳚ पवमान॒ मध्वा॒ सम᳚ङ्ग्धि॒ धार॑या | स॒हस्र॑वल्शं॒ हरि॑तं॒ भ्राज॑मानं हिर॒ण्यय᳚म् ||{9.5.10}, {9.1.5.10}, {6.7.25.5} |
51 | विश्वे᳚ देवाः॒ स्वाहा᳚कृतिं॒ पव॑मान॒स्या ग॑त | वा॒युर्बृह॒स्पतिः॒ सूर्यो॒ऽग्निरिन्द्रः॑ स॒जोष॑सः ||{9.5.11}, {9.1.5.11}, {6.7.25.6} |
[6] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
52 | म॒न्द्रया᳚ सोम॒ धार॑या॒ वृषा᳚ पवस्व देव॒युः | अव्यो॒ वारे᳚ष्वस्म॒युः ||{9.6.1}, {9.1.6.1}, {6.7.26.1} |
53 | अ॒भि त्यं मद्यं॒ मद॒मिन्द॒विन्द्र॒ इति॑ क्षर | अ॒भि वा॒जिनो॒ अर्व॑तः ||{9.6.2}, {9.1.6.2}, {6.7.26.2} |
54 | अ॒भि त्यं पू॒र्व्यं मदं᳚ सुवा॒नो अ॑र्ष प॒वित्र॒ आ | अ॒भि वाज॑मु॒त श्रवः॑ ||{9.6.3}, {9.1.6.3}, {6.7.26.3} |
55 | अनु॑ द्र॒प्सास॒ इन्द॑व॒ आपो॒ न प्र॒वता᳚सरन् | पु॒ना॒ना इन्द्र॑माशत ||{9.6.4}, {9.1.6.4}, {6.7.26.4} |
56 | यमत्य॑मिव वा॒जिनं᳚ मृ॒जन्ति॒ योष॑णो॒ दश॑ | वने॒ क्रीळ᳚न्त॒मत्य॑विम् ||{9.6.5}, {9.1.6.5}, {6.7.26.5} |
57 | तं गोभि॒र्वृष॑णं॒ रसं॒ मदा᳚य दे॒ववी᳚तये | सु॒तं भरा᳚य॒ सं सृ॑ज ||{9.6.6}, {9.1.6.6}, {6.7.27.1} |
58 | दे॒वो दे॒वाय॒ धार॒येन्द्रा᳚य पवते सु॒तः | पयो॒ यद॑स्य पी॒पय॑त् ||{9.6.7}, {9.1.6.7}, {6.7.27.2} |
59 | आ॒त्मा य॒ज्ञस्य॒ रंह्या᳚ सुष्वा॒णः प॑वते सु॒तः | प्र॒त्नं नि पा᳚ति॒ काव्य᳚म् ||{9.6.8}, {9.1.6.8}, {6.7.27.3} |
60 | ए॒वा पु॑ना॒न इ᳚न्द्र॒युर्मदं᳚ मदिष्ठ वी॒तये᳚ | गुहा᳚ चिद्दधिषे॒ गिरः॑ ||{9.6.9}, {9.1.6.9}, {6.7.27.4} |
[7] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
61 | असृ॑ग्र॒मिन्द॑वः प॒था धर्म᳚न्नृ॒तस्य॑ सु॒श्रियः॑ | वि॒दा॒ना अ॑स्य॒ योज॑नम् ||{9.7.1}, {9.1.7.1}, {6.7.28.1} |
62 | प्र धारा॒ मध्वो᳚ अग्रि॒यो म॒हीर॒पो वि गा᳚हते | ह॒विर्ह॒विष्षु॒ वन्द्यः॑ ||{9.7.2}, {9.1.7.2}, {6.7.28.2} |
63 | प्र यु॒जो वा॒चो अ॑ग्रि॒यो वृषाव॑ चक्रद॒द्वने᳚ | सद्मा॒भि स॒त्यो अ॑ध्व॒रः ||{9.7.3}, {9.1.7.3}, {6.7.28.3} |
64 | परि॒ यत्काव्या᳚ क॒विर्नृ॒म्णा वसा᳚नो॒ अर्ष॑ति | स्व᳚र्वा॒जी सि॑षासति ||{9.7.4}, {9.1.7.4}, {6.7.28.4} |
65 | पव॑मानो अ॒भि स्पृधो॒ विशो॒ राजे᳚व सीदति | यदी᳚मृ॒ण्वन्ति॑ वे॒धसः॑ ||{9.7.5}, {9.1.7.5}, {6.7.28.5} |
66 | अव्यो॒ वारे॒ परि॑ प्रि॒यो हरि॒र्वने᳚षु सीदति | रे॒भो व॑नुष्यते म॒ती ||{9.7.6}, {9.1.7.6}, {6.7.29.1} |
67 | स वा॒युमिन्द्र॑म॒श्विना᳚ सा॒कं मदे᳚न गच्छति | रणा॒ यो अ॑स्य॒ धर्म॑भिः ||{9.7.7}, {9.1.7.7}, {6.7.29.2} |
68 | आ मि॒त्रावरु॑णा॒ भगं॒ मध्वः॑ पवन्त ऊ॒र्मयः॑ | वि॒दा॒ना अ॑स्य॒ शक्म॑भिः ||{9.7.8}, {9.1.7.8}, {6.7.29.3} |
69 | अ॒स्मभ्यं᳚ रोदसी र॒यिं मध्वो॒ वाज॑स्य सा॒तये᳚ | श्रवो॒ वसू᳚नि॒ सं जि॑तम् ||{9.7.9}, {9.1.7.9}, {6.7.29.4} |
[8] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
70 | ए॒ते सोमा᳚ अ॒भि प्रि॒यमिन्द्र॑स्य॒ काम॑मक्षरन् | वर्ध᳚न्तो अस्य वी॒र्य᳚म् ||{9.8.1}, {9.1.8.1}, {6.7.30.1} |
71 | पु॒ना॒नास॑श्चमू॒षदो॒ गच्छ᳚न्तो वा॒युम॒श्विना᳚ | ते नो᳚ धान्तु सु॒वीर्य᳚म् ||{9.8.2}, {9.1.8.2}, {6.7.30.2} |
72 | इन्द्र॑स्य सोम॒ राध॑से पुना॒नो हार्दि॑ चोदय | ऋ॒तस्य॒ योनि॑मा॒सद᳚म् ||{9.8.3}, {9.1.8.3}, {6.7.30.3} |
73 | मृ॒जन्ति॑ त्वा॒ दश॒ क्षिपो᳚ हि॒न्वन्ति॑ स॒प्त धी॒तयः॑ | अनु॒ विप्रा᳚ अमादिषुः ||{9.8.4}, {9.1.8.4}, {6.7.30.4} |
74 | दे॒वेभ्य॑स्त्वा॒ मदा᳚य॒ कं सृ॑जा॒नमति॑ मे॒ष्यः॑ | सं गोभि᳚र्वासयामसि ||{9.8.5}, {9.1.8.5}, {6.7.30.5} |
75 | पु॒ना॒नः क॒लशे॒ष्वा वस्त्रा᳚ण्यरु॒षो हरिः॑ | परि॒ गव्या᳚न्यव्यत ||{9.8.6}, {9.1.8.6}, {6.7.31.1} |
76 | म॒घोन॒ आ प॑वस्व नो ज॒हि विश्वा॒ अप॒ द्विषः॑ | इन्दो॒ सखा᳚य॒मा वि॑श ||{9.8.7}, {9.1.8.7}, {6.7.31.2} |
77 | वृ॒ष्टिं दि॒वः परि॑ स्रव द्यु॒म्नं पृ॑थि॒व्या अधि॑ | सहो᳚ नः सोम पृ॒त्सु धाः᳚ ||{9.8.8}, {9.1.8.8}, {6.7.31.3} |
78 | नृ॒चक्ष॑सं त्वा व॒यमिन्द्र॑पीतं स्व॒र्विद᳚म् | भ॒क्षी॒महि॑ प्र॒जामिष᳚म् ||{9.8.9}, {9.1.8.9}, {6.7.31.4} |
[9] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
79 | परि॑ प्रि॒या दि॒वः क॒विर्वयां᳚सि न॒प्त्यो᳚र्हि॒तः | सु॒वा॒नो या᳚ति क॒विक्र॑तुः ||{9.9.1}, {9.1.9.1}, {6.7.32.1} |
80 | प्रप्र॒ क्षया᳚य॒ पन्य॑से॒ जना᳚य॒ जुष्टो᳚ अ॒द्रुहे᳚ | वी॒त्य॑र्ष॒ चनि॑ष्ठया ||{9.9.2}, {9.1.9.2}, {6.7.32.2} |
81 | स सू॒नुर्मा॒तरा॒ शुचि॑र्जा॒तो जा॒ते अ॑रोचयत् | म॒हान्म॒ही ऋ॑ता॒वृधा᳚ ||{9.9.3}, {9.1.9.3}, {6.7.32.3} |
82 | स स॒प्त धी॒तिभि॑र्हि॒तो न॒द्यो᳚ अजिन्वद॒द्रुहः॑ | या एक॒मक्षि॑ वावृ॒धुः ||{9.9.4}, {9.1.9.4}, {6.7.32.4} |
83 | ता अ॒भि सन्त॒मस्तृ॑तं म॒हे युवा᳚न॒मा द॑धुः | इन्दु॑मिन्द्र॒ तव᳚ व्र॒ते ||{9.9.5}, {9.1.9.5}, {6.7.32.5} |
84 | अ॒भि वह्नि॒रम॑र्त्यः स॒प्त प॑श्यति॒ वाव॑हिः | क्रिवि॑र्दे॒वीर॑तर्पयत् ||{9.9.6}, {9.1.9.6}, {6.7.33.1} |
85 | अवा॒ कल्पे᳚षु नः पुम॒स्तमां᳚सि सोम॒ योध्या᳚ | तानि॑ पुनान जङ्घनः ||{9.9.7}, {9.1.9.7}, {6.7.33.2} |
86 | नू नव्य॑से॒ नवी᳚यसे सू॒क्ताय॑ साधया प॒थः | प्र॒त्न॒वद्रो᳚चया॒ रुचः॑ ||{9.9.8}, {9.1.9.8}, {6.7.33.3} |
87 | पव॑मान॒ महि॒ श्रवो॒ गामश्वं᳚ रासि वी॒रव॑त् | सना᳚ मे॒धां सना॒ स्वः॑ ||{9.9.9}, {9.1.9.9}, {6.7.33.4} |
[10] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
88 | प्र स्वा॒नासो॒ रथा᳚ इ॒वार्व᳚न्तो॒ न श्र॑व॒स्यवः॑ | सोमा᳚सो रा॒ये अ॑क्रमुः ||{9.10.1}, {9.1.10.1}, {6.7.34.1} |
89 | हि॒न्वा॒नासो॒ रथा᳚ इव दधन्वि॒रे गभ॑स्त्योः | भरा᳚सः का॒रिणा᳚मिव ||{9.10.2}, {9.1.10.2}, {6.7.34.2} |
90 | राजा᳚नो॒ न प्रश॑स्तिभिः॒ सोमा᳚सो॒ गोभि॑रञ्जते | य॒ज्ञो न स॒प्त धा॒तृभिः॑ ||{9.10.3}, {9.1.10.3}, {6.7.34.3} |
91 | परि॑ सुवा॒नास॒ इन्द॑वो॒ मदा᳚य ब॒र्हणा᳚ गि॒रा | सु॒ता अ॑र्षन्ति॒ धार॑या ||{9.10.4}, {9.1.10.4}, {6.7.34.4} |
92 | आ॒पा॒नासो᳚ वि॒वस्व॑तो॒ जन᳚न्त उ॒षसो॒ भग᳚म् | सूरा॒ अण्वं॒ वि त᳚न्वते ||{9.10.5}, {9.1.10.5}, {6.7.34.5} |
93 | अप॒ द्वारा᳚ मती॒नां प्र॒त्ना ऋ᳚ण्वन्ति का॒रवः॑ | वृष्णो॒ हर॑स आ॒यवः॑ ||{9.10.6}, {9.1.10.6}, {6.7.35.1} |
94 | स॒मी॒ची॒नास॑ आसते॒ होता᳚रः स॒प्तजा᳚मयः | प॒दमेक॑स्य॒ पिप्र॑तः ||{9.10.7}, {9.1.10.7}, {6.7.35.2} |
95 | नाभा॒ नाभिं᳚ न॒ आ द॑दे॒ चक्षु॑श्चि॒त्सूर्ये॒ सचा᳚ | क॒वेरप॑त्य॒मा दु॑हे ||{9.10.8}, {9.1.10.8}, {6.7.35.3} |
96 | अ॒भि प्रि॒या दि॒वस्प॒दम॑ध्व॒र्युभि॒र्गुहा᳚ हि॒तम् | सूरः॑ पश्यति॒ चक्ष॑सा ||{9.10.9}, {9.1.10.9}, {6.7.35.4} |
[11] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
97 | उपा᳚स्मै गायता नरः॒ पव॑माना॒येन्द॑वे | अ॒भि दे॒वाँ इय॑क्षते ||{9.11.1}, {9.1.11.1}, {6.7.36.1} |
98 | अ॒भि ते॒ मधु॑ना॒ पयोऽथ᳚र्वाणो अशिश्रयुः | दे॒वं दे॒वाय॑ देव॒यु ||{9.11.2}, {9.1.11.2}, {6.7.36.2} |
99 | स नः॑ पवस्व॒ शं गवे॒ शं जना᳚य॒ शमर्व॑ते | शं रा᳚ज॒न्नोष॑धीभ्यः ||{9.11.3}, {9.1.11.3}, {6.7.36.3} |
100 | ब॒भ्रवे॒ नु स्वत॑वसेऽरु॒णाय॑ दिवि॒स्पृशे᳚ | सोमा᳚य गा॒थम॑र्चत ||{9.11.4}, {9.1.11.4}, {6.7.36.4} |
101 | हस्त॑च्युतेभि॒रद्रि॑भिः सु॒तं सोमं᳚ पुनीतन | मधा॒वा धा᳚वता॒ मधु॑ ||{9.11.5}, {9.1.11.5}, {6.7.36.5} |
102 | नम॒सेदुप॑ सीदत द॒ध्नेद॒भि श्री᳚णीतन | इन्दु॒मिन्द्रे᳚ दधातन ||{9.11.6}, {9.1.11.6}, {6.7.37.1} |
103 | अ॒मि॒त्र॒हा विच॑र्षणिः॒ पव॑स्व सोम॒ शं गवे᳚ | दे॒वेभ्यो᳚ अनुकाम॒कृत् ||{9.11.7}, {9.1.11.7}, {6.7.37.2} |
104 | इन्द्रा᳚य सोम॒ पात॑वे॒ मदा᳚य॒ परि॑ षिच्यसे | म॒न॒श्चिन्मन॑स॒स्पतिः॑ ||{9.11.8}, {9.1.11.8}, {6.7.37.3} |
105 | पव॑मान सु॒वीर्यं᳚ र॒यिं सो᳚म रिरीहि नः | इन्द॒विन्द्रे᳚ण नो यु॒जा ||{9.11.9}, {9.1.11.9}, {6.7.37.4} |
[12] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
106 | सोमा᳚ असृग्र॒मिन्द॑वः सु॒ता ऋ॒तस्य॒ साद॑ने | इन्द्रा᳚य॒ मधु॑मत्तमाः ||{9.12.1}, {9.1.12.1}, {6.7.38.1} |
107 | अ॒भि विप्रा᳚ अनूषत॒ गावो᳚ व॒त्सं न मा॒तरः॑ | इन्द्रं॒ सोम॑स्य पी॒तये᳚ ||{9.12.2}, {9.1.12.2}, {6.7.38.2} |
108 | म॒द॒च्युत्क्षे᳚ति॒ साद॑ने॒ सिन्धो᳚रू॒र्मा वि॑प॒श्चित् | सोमो᳚ गौ॒री अधि॑ श्रि॒तः ||{9.12.3}, {9.1.12.3}, {6.7.38.3} |
109 | दि॒वो नाभा᳚ विचक्ष॒णोऽव्यो॒ वारे᳚ महीयते | सोमो॒ यः सु॒क्रतुः॑ क॒विः ||{9.12.4}, {9.1.12.4}, {6.7.38.4} |
110 | यः सोमः॑ क॒लशे॒ष्वाँ अ॒न्तः प॒वित्र॒ आहि॑तः | तमिन्दुः॒ परि॑ षस्वजे ||{9.12.5}, {9.1.12.5}, {6.7.38.5} |
111 | प्र वाच॒मिन्दु॑रिष्यति समु॒द्रस्याधि॑ वि॒ष्टपि॑ | जिन्व॒न्कोशं᳚ मधु॒श्चुत᳚म् ||{9.12.6}, {9.1.12.6}, {6.7.39.1} |
112 | नित्य॑स्तोत्रो॒ वन॒स्पति॑र्धी॒नाम॒न्तः स॑ब॒र्दुघः॑ | हि॒न्वा॒नो मानु॑षा यु॒गा ||{9.12.7}, {9.1.12.7}, {6.7.39.2} |
113 | अ॒भि प्रि॒या दि॒वस्प॒दा सोमो᳚ हिन्वा॒नो अ॑र्षति | विप्र॑स्य॒ धार॑या क॒विः ||{9.12.8}, {9.1.12.8}, {6.7.39.3} |
114 | आ प॑वमान धारय र॒यिं स॒हस्र॑वर्चसम् | अ॒स्मे इ᳚न्दो स्वा॒भुव᳚म् ||{9.12.9}, {9.1.12.9}, {6.7.39.4} |
[13] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
115 | सोमः॑ पुना॒नो अ॑र्षति स॒हस्र॑धारो॒ अत्य॑विः | वा॒योरिन्द्र॑स्य निष्कृ॒तम् ||{9.13.1}, {9.1.13.1}, {6.8.1.1} |
116 | पव॑मानमवस्यवो॒ विप्र॑म॒भि प्र गा᳚यत | सु॒ष्वा॒णं दे॒ववी᳚तये ||{9.13.2}, {9.1.13.2}, {6.8.1.2} |
117 | पव᳚न्ते॒ वाज॑सातये॒ सोमाः᳚ स॒हस्र॑पाजसः | गृ॒णा॒ना दे॒ववी᳚तये ||{9.13.3}, {9.1.13.3}, {6.8.1.3} |
118 | उ॒त नो॒ वाज॑सातये॒ पव॑स्व बृह॒तीरिषः॑ | द्यु॒मदि᳚न्दो सु॒वीर्य᳚म् ||{9.13.4}, {9.1.13.4}, {6.8.1.4} |
119 | ते नः॑ सह॒स्रिणं᳚ र॒यिं पव᳚न्ता॒मा सु॒वीर्य᳚म् | सु॒वा॒ना दे॒वास॒ इन्द॑वः ||{9.13.5}, {9.1.13.5}, {6.8.1.5} |
120 | अत्या᳚ हिया॒ना न हे॒तृभि॒रसृ॑ग्रं॒ वाज॑सातये | वि वार॒मव्य॑मा॒शवः॑ ||{9.13.6}, {9.1.13.6}, {6.8.2.1} |
121 | वा॒श्रा अ॑र्ष॒न्तीन्द॑वो॒ऽभि व॒त्सं न धे॒नवः॑ | द॒ध॒न्वि॒रे गभ॑स्त्योः ||{9.13.7}, {9.1.13.7}, {6.8.2.2} |
122 | जुष्ट॒ इन्द्रा᳚य मत्स॒रः पव॑मान॒ कनि॑क्रदत् | विश्वा॒ अप॒ द्विषो᳚ जहि ||{9.13.8}, {9.1.13.8}, {6.8.2.3} |
123 | अ॒प॒घ्नन्तो॒ अरा᳚व्णः॒ पव॑मानाः स्व॒र्दृशः॑ | योना᳚वृ॒तस्य॑ सीदत ||{9.13.9}, {9.1.13.9}, {6.8.2.4} |
[14] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
124 | परि॒ प्रासि॑ष्यदत्क॒विः सिन्धो᳚रू॒र्मावधि॑ श्रि॒तः | का॒रं बिभ्र॑त्पुरु॒स्पृह᳚म् ||{9.14.1}, {9.1.14.1}, {6.8.3.1} |
125 | गि॒रा यदी॒ सब᳚न्धवः॒ पञ्च॒ व्राता᳚ अप॒स्यवः॑ | प॒रि॒ष्कृ॒ण्वन्ति॑ धर्ण॒सिम् ||{9.14.2}, {9.1.14.2}, {6.8.3.2} |
126 | आद॑स्य शु॒ष्मिणो॒ रसे॒ विश्वे᳚ दे॒वा अ॑मत्सत | यदी॒ गोभि᳚र्वसा॒यते᳚ ||{9.14.3}, {9.1.14.3}, {6.8.3.3} |
127 | नि॒रि॒णा॒नो वि धा᳚वति॒ जह॒च्छर्या᳚णि॒ तान्वा᳚ | अत्रा॒ सं जि॑घ्नते यु॒जा ||{9.14.4}, {9.1.14.4}, {6.8.3.4} |
128 | न॒प्तीभि॒र्यो वि॒वस्व॑तः शु॒भ्रो न मा᳚मृ॒जे युवा᳚ | गाः कृ᳚ण्वा॒नो न नि॒र्णिज᳚म् ||{9.14.5}, {9.1.14.5}, {6.8.3.5} |
129 | अति॑ श्रि॒ती ति॑र॒श्चता᳚ ग॒व्या जि॑गा॒त्यण्व्या᳚ | व॒ग्नुमि॑यर्ति॒ यं वि॒दे ||{9.14.6}, {9.1.14.6}, {6.8.4.1} |
130 | अ॒भि क्षिपः॒ सम॑ग्मत म॒र्जय᳚न्तीरि॒षस्पति᳚म् | पृ॒ष्ठा गृ॑भ्णत वा॒जिनः॑ ||{9.14.7}, {9.1.14.7}, {6.8.4.2} |
131 | परि॑ दि॒व्यानि॒ मर्मृ॑श॒द्विश्वा᳚नि सोम॒ पार्थि॑वा | वसू᳚नि याह्यस्म॒युः ||{9.14.8}, {9.1.14.8}, {6.8.4.3} |
[15] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
132 | ए॒ष धि॒या या॒त्यण्व्या॒ शूरो॒ रथे᳚भिरा॒शुभिः॑ | गच्छ॒न्निन्द्र॑स्य निष्कृ॒तम् ||{9.15.1}, {9.1.15.1}, {6.8.5.1} |
133 | ए॒ष पु॒रू धि॑यायते बृह॒ते दे॒वता᳚तये | यत्रा॒मृता᳚स॒ आस॑ते ||{9.15.2}, {9.1.15.2}, {6.8.5.2} |
134 | ए॒ष हि॒तो वि नी᳚यते॒ऽन्तः शु॒भ्राव॑ता प॒था | यदी᳚ तु॒ञ्जन्ति॒ भूर्ण॑यः ||{9.15.3}, {9.1.15.3}, {6.8.5.3} |
135 | ए॒ष शृङ्गा᳚णि॒ दोधु॑व॒च्छिशी᳚ते यू॒थ्यो॒३॑(ओ॒) वृषा᳚ | नृ॒म्णा दधा᳚न॒ ओज॑सा ||{9.15.4}, {9.1.15.4}, {6.8.5.4} |
136 | ए॒ष रु॒क्मिभि॑रीयते वा॒जी शु॒भ्रेभि॑रं॒शुभिः॑ | पतिः॒ सिन्धू᳚नां॒ भव॑न् ||{9.15.5}, {9.1.15.5}, {6.8.5.5} |
137 | ए॒ष वसू᳚नि पिब्द॒ना परु॑षा ययि॒वाँ अति॑ | अव॒ शादे᳚षु गच्छति ||{9.15.6}, {9.1.15.6}, {6.8.5.6} |
138 | ए॒तं मृ॑जन्ति॒ मर्ज्य॒मुप॒ द्रोणे᳚ष्वा॒यवः॑ | प्र॒च॒क्रा॒णं म॒हीरिषः॑ ||{9.15.7}, {9.1.15.7}, {6.8.5.7} |
139 | ए॒तमु॒ त्यं दश॒ क्षिपो᳚ मृ॒जन्ति॑ स॒प्त धी॒तयः॑ | स्वा॒यु॒धं म॒दिन्त॑मम् ||{9.15.8}, {9.1.15.8}, {6.8.5.8} |
[16] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
140 | प्र ते᳚ सो॒तार॑ ओ॒ण्यो॒३॑(ओ॒) रसं॒ मदा᳚य॒ घृष्व॑ये | सर्गो॒ न त॒क्त्येत॑शः ||{9.16.1}, {9.1.16.1}, {6.8.6.1} |
141 | क्रत्वा॒ दक्ष॑स्य र॒थ्य॑म॒पो वसा᳚न॒मन्ध॑सा | गो॒षामण्वे᳚षु सश्चिम ||{9.16.2}, {9.1.16.2}, {6.8.6.2} |
142 | अन॑प्तम॒प्सु दु॒ष्टरं॒ सोमं᳚ प॒वित्र॒ आ सृ॑ज | पु॒नी॒हीन्द्रा᳚य॒ पात॑वे ||{9.16.3}, {9.1.16.3}, {6.8.6.3} |
143 | प्र पु॑ना॒नस्य॒ चेत॑सा॒ सोमः॑ प॒वित्रे᳚ अर्षति | क्रत्वा᳚ स॒धस्थ॒मास॑दत् ||{9.16.4}, {9.1.16.4}, {6.8.6.4} |
144 | प्र त्वा॒ नमो᳚भि॒रिन्द॑व॒ इन्द्र॒ सोमा᳚ असृक्षत | म॒हे भरा᳚य का॒रिणः॑ ||{9.16.5}, {9.1.16.5}, {6.8.6.5} |
145 | पु॒ना॒नो रू॒पे अ॒व्यये॒ विश्वा॒ अर्ष᳚न्न॒भि श्रियः॑ | शूरो॒ न गोषु॑ तिष्ठति ||{9.16.6}, {9.1.16.6}, {6.8.6.6} |
146 | दि॒वो न सानु॑ पि॒प्युषी॒ धारा᳚ सु॒तस्य॑ वे॒धसः॑ | वृथा᳚ प॒वित्रे᳚ अर्षति ||{9.16.7}, {9.1.16.7}, {6.8.6.7} |
147 | त्वं सो᳚म विप॒श्चितं॒ तना᳚ पुना॒न आ॒युषु॑ | अव्यो॒ वारं॒ वि धा᳚वसि ||{9.16.8}, {9.1.16.8}, {6.8.6.8} |
[17] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
148 | प्र नि॒म्नेने᳚व॒ सिन्ध॑वो॒ घ्नन्तो᳚ वृ॒त्राणि॒ भूर्ण॑यः | सोमा᳚ असृग्रमा॒शवः॑ ||{9.17.1}, {9.1.17.1}, {6.8.7.1} |
149 | अ॒भि सु॑वा॒नास॒ इन्द॑वो वृ॒ष्टयः॑ पृथि॒वीमि॑व | इन्द्रं॒ सोमा᳚सो अक्षरन् ||{9.17.2}, {9.1.17.2}, {6.8.7.2} |
150 | अत्यू᳚र्मिर्मत्स॒रो मदः॒ सोमः॑ प॒वित्रे᳚ अर्षति | वि॒घ्नन्रक्षां᳚सि देव॒युः ||{9.17.3}, {9.1.17.3}, {6.8.7.3} |
151 | आ क॒लशे᳚षु धावति प॒वित्रे॒ परि॑ षिच्यते | उ॒क्थैर्य॒ज्ञेषु॑ वर्धते ||{9.17.4}, {9.1.17.4}, {6.8.7.4} |
152 | अति॒ त्री सो᳚म रोच॒ना रोह॒न्न भ्रा᳚जसे॒ दिव᳚म् | इ॒ष्णन्सूर्यं॒ न चो᳚दयः ||{9.17.5}, {9.1.17.5}, {6.8.7.5} |
153 | अ॒भि विप्रा᳚ अनूषत मू॒र्धन्य॒ज्ञस्य॑ का॒रवः॑ | दधा᳚ना॒श्चक्ष॑सि प्रि॒यम् ||{9.17.6}, {9.1.17.6}, {6.8.7.6} |
154 | तमु॑ त्वा वा॒जिनं॒ नरो᳚ धी॒भिर्विप्रा᳚ अव॒स्यवः॑ | मृ॒जन्ति॑ दे॒वता᳚तये ||{9.17.7}, {9.1.17.7}, {6.8.7.7} |
155 | मधो॒र्धारा॒मनु॑ क्षर ती॒व्रः स॒धस्थ॒मास॑दः | चारु॑रृ॒ताय॑ पी॒तये᳚ ||{9.17.8}, {9.1.17.8}, {6.8.7.8} |
[18] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
156 | परि॑ सुवा॒नो गि॑रि॒ष्ठाः प॒वित्रे॒ सोमो᳚ अक्षाः | मदे᳚षु सर्व॒धा अ॑सि ||{9.18.1}, {9.1.18.1}, {6.8.8.1} |
157 | त्वं विप्र॒स्त्वं क॒विर्मधु॒ प्र जा॒तमन्ध॑सः | मदे᳚षु सर्व॒धा अ॑सि ||{9.18.2}, {9.1.18.2}, {6.8.8.2} |
158 | तव॒ विश्वे᳚ स॒जोष॑सो दे॒वासः॑ पी॒तिमा᳚शत | मदे᳚षु सर्व॒धा अ॑सि ||{9.18.3}, {9.1.18.3}, {6.8.8.3} |
159 | आ यो विश्वा᳚नि॒ वार्या॒ वसू᳚नि॒ हस्त॑योर्द॒धे | मदे᳚षु सर्व॒धा अ॑सि ||{9.18.4}, {9.1.18.4}, {6.8.8.4} |
160 | य इ॒मे रोद॑सी म॒ही सं मा॒तरे᳚व॒ दोह॑ते | मदे᳚षु सर्व॒धा अ॑सि ||{9.18.5}, {9.1.18.5}, {6.8.8.5} |
161 | परि॒ यो रोद॑सी उ॒भे स॒द्यो वाजे᳚भि॒रर्ष॑ति | मदे᳚षु सर्व॒धा अ॑सि ||{9.18.6}, {9.1.18.6}, {6.8.8.6} |
162 | स शु॒ष्मी क॒लशे॒ष्वा पु॑ना॒नो अ॑चिक्रदत् | मदे᳚षु सर्व॒धा अ॑सि ||{9.18.7}, {9.1.18.7}, {6.8.8.7} |
[19] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
163 | यत्सो᳚म चि॒त्रमु॒क्थ्यं᳚ दि॒व्यं पार्थि॑वं॒ वसु॑ | तन्नः॑ पुना॒न आ भ॑र ||{9.19.1}, {9.1.19.1}, {6.8.9.1} |
164 | यु॒वं हि स्थः स्व॑र्पती॒ इन्द्र॑श्च सोम॒ गोप॑ती | ई॒शा॒ना पि॑प्यतं॒ धियः॑ ||{9.19.2}, {9.1.19.2}, {6.8.9.2} |
165 | वृषा᳚ पुना॒न आ॒युषु॑ स्त॒नय॒न्नधि॑ ब॒र्हिषि॑ | हरिः॒ सन्योनि॒मास॑दत् ||{9.19.3}, {9.1.19.3}, {6.8.9.3} |
166 | अवा᳚वशन्त धी॒तयो᳚ वृष॒भस्याधि॒ रेत॑सि | सू॒नोर्व॒त्सस्य॑ मा॒तरः॑ ||{9.19.4}, {9.1.19.4}, {6.8.9.4} |
167 | कु॒विद्वृ॑ष॒ण्यन्ती᳚भ्यः पुना॒नो गर्भ॑मा॒दध॑त् | याः शु॒क्रं दु॑ह॒ते पयः॑ ||{9.19.5}, {9.1.19.5}, {6.8.9.5} |
168 | उप॑ शिक्षापत॒स्थुषो᳚ भि॒यस॒मा धे᳚हि॒ शत्रु॑षु | पव॑मान वि॒दा र॒यिम् ||{9.19.6}, {9.1.19.6}, {6.8.9.6} |
169 | नि शत्रोः᳚ सोम॒ वृष्ण्यं॒ नि शुष्मं॒ नि वय॑स्तिर | दू॒रे वा᳚ स॒तो अन्ति॑ वा ||{9.19.7}, {9.1.19.7}, {6.8.9.7} |
[20] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
170 | प्र क॒विर्दे॒ववी᳚त॒येऽव्यो॒ वारे᳚भिरर्षति | सा॒ह्वान्विश्वा᳚ अ॒भि स्पृधः॑ ||{9.20.1}, {9.1.20.1}, {6.8.10.1} |
171 | स हि ष्मा᳚ जरि॒तृभ्य॒ आ वाजं॒ गोम᳚न्त॒मिन्व॑ति | पव॑मानः सह॒स्रिण᳚म् ||{9.20.2}, {9.1.20.2}, {6.8.10.2} |
172 | परि॒ विश्वा᳚नि॒ चेत॑सा मृ॒शसे॒ पव॑से म॒ती | स नः॑ सोम॒ श्रवो᳚ विदः ||{9.20.3}, {9.1.20.3}, {6.8.10.3} |
173 | अ॒भ्य॑र्ष बृ॒हद्यशो᳚ म॒घव॑द्भ्यो ध्रु॒वं र॒यिम् | इषं᳚ स्तो॒तृभ्य॒ आ भ॑र ||{9.20.4}, {9.1.20.4}, {6.8.10.4} |
174 | त्वं राजे᳚व सुव्र॒तो गिरः॑ सो॒मा वि॑वेशिथ | पु॒ना॒नो व᳚ह्ने अद्भुत ||{9.20.5}, {9.1.20.5}, {6.8.10.5} |
175 | स वह्नि॑र॒प्सु दु॒ष्टरो᳚ मृ॒ज्यमा᳚नो॒ गभ॑स्त्योः | सोम॑श्च॒मूषु॑ सीदति ||{9.20.6}, {9.1.20.6}, {6.8.10.6} |
176 | क्री॒ळुर्म॒खो न मं᳚ह॒युः प॒वित्रं᳚ सोम गच्छसि | दध॑त्स्तो॒त्रे सु॒वीर्य᳚म् ||{9.20.7}, {9.1.20.7}, {6.8.10.7} |
[21] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
177 | ए॒ते धा᳚व॒न्तीन्द॑वः॒ सोमा॒ इन्द्रा᳚य॒ घृष्व॑यः | म॒त्स॒रासः॑ स्व॒र्विदः॑ ||{9.21.1}, {9.1.21.1}, {6.8.11.1} |
178 | प्र॒वृ॒ण्वन्तो᳚ अभि॒युजः॒ सुष्व॑ये वरिवो॒विदः॑ | स्व॒यं स्तो॒त्रे व॑य॒स्कृतः॑ ||{9.21.2}, {9.1.21.2}, {6.8.11.2} |
179 | वृथा॒ क्रीळ᳚न्त॒ इन्द॑वः स॒धस्थ॑म॒भ्येक॒मित् | सिन्धो᳚रू॒र्मा व्य॑क्षरन् ||{9.21.3}, {9.1.21.3}, {6.8.11.3} |
180 | ए॒ते विश्वा᳚नि॒ वार्या॒ पव॑मानास आशत | हि॒ता न सप्त॑यो॒ रथे᳚ ||{9.21.4}, {9.1.21.4}, {6.8.11.4} |
181 | आस्मि᳚न्पि॒शङ्ग॑मिन्दवो॒ दधा᳚ता वे॒नमा॒दिशे᳚ | यो अ॒स्मभ्य॒मरा᳚वा ||{9.21.5}, {9.1.21.5}, {6.8.11.5} |
182 | ऋ॒भुर्न रथ्यं॒ नवं॒ दधा᳚ता॒ केत॑मा॒दिशे᳚ | शु॒क्राः प॑वध्व॒मर्ण॑सा ||{9.21.6}, {9.1.21.6}, {6.8.11.6} |
183 | ए॒त उ॒ त्ये अ॑वीवश॒न्काष्ठां᳚ वा॒जिनो᳚ अक्रत | स॒तः प्रासा᳚विषुर्म॒तिम् ||{9.21.7}, {9.1.21.7}, {6.8.11.7} |
[22] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
184 | ए॒ते सोमा᳚स आ॒शवो॒ रथा᳚ इव॒ प्र वा॒जिनः॑ | सर्गाः᳚ सृ॒ष्टा अ॑हेषत ||{9.22.1}, {9.1.22.1}, {6.8.12.1} |
185 | ए॒ते वाता᳚ इवो॒रवः॑ प॒र्जन्य॑स्येव वृ॒ष्टयः॑ | अ॒ग्नेरि॑व भ्र॒मा वृथा᳚ ||{9.22.2}, {9.1.22.2}, {6.8.12.2} |
186 | ए॒ते पू॒ता वि॑प॒श्चितः॒ सोमा᳚सो॒ दध्या᳚शिरः | वि॒पा व्या᳚नशु॒र्धियः॑ ||{9.22.3}, {9.1.22.3}, {6.8.12.3} |
187 | ए॒ते मृ॒ष्टा अम॑र्त्याः ससृ॒वांसो॒ न श॑श्रमुः | इय॑क्षन्तः प॒थो रजः॑ ||{9.22.4}, {9.1.22.4}, {6.8.12.4} |
188 | ए॒ते पृ॒ष्ठानि॒ रोद॑सोर्विप्र॒यन्तो॒ व्या᳚नशुः | उ॒तेदमु॑त्त॒मं रजः॑ ||{9.22.5}, {9.1.22.5}, {6.8.12.5} |
189 | तन्तुं᳚ तन्वा॒नमु॑त्त॒ममनु॑ प्र॒वत॑ आशत | उ॒तेदमु॑त्त॒माय्य᳚म् ||{9.22.6}, {9.1.22.6}, {6.8.12.6} |
190 | त्वं सो᳚म प॒णिभ्य॒ आ वसु॒ गव्या᳚नि धारयः | त॒तं तन्तु॑मचिक्रदः ||{9.22.7}, {9.1.22.7}, {6.8.12.7} |
[23] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
191 | सोमा᳚ असृग्रमा॒शवो॒ मधो॒र्मद॑स्य॒ धार॑या | अ॒भि विश्वा᳚नि॒ काव्या᳚ ||{9.23.1}, {9.1.23.1}, {6.8.13.1} |
192 | अनु॑ प्र॒त्नास॑ आ॒यवः॑ प॒दं नवी᳚यो अक्रमुः | रु॒चे ज॑नन्त॒ सूर्य᳚म् ||{9.23.2}, {9.1.23.2}, {6.8.13.2} |
193 | आ प॑वमान नो भरा॒र्यो अदा᳚शुषो॒ गय᳚म् | कृ॒धि प्र॒जाव॑ती॒रिषः॑ ||{9.23.3}, {9.1.23.3}, {6.8.13.3} |
194 | अ॒भि सोमा᳚स आ॒यवः॒ पव᳚न्ते॒ मद्यं॒ मद᳚म् | अ॒भि कोशं᳚ मधु॒श्चुत᳚म् ||{9.23.4}, {9.1.23.4}, {6.8.13.4} |
195 | सोमो᳚ अर्षति धर्ण॒सिर्दधा᳚न इन्द्रि॒यं रस᳚म् | सु॒वीरो᳚ अभिशस्ति॒पाः ||{9.23.5}, {9.1.23.5}, {6.8.13.5} |
196 | इन्द्रा᳚य सोम पवसे दे॒वेभ्यः॑ सध॒माद्यः॑ | इन्दो॒ वाजं᳚ सिषाससि ||{9.23.6}, {9.1.23.6}, {6.8.13.6} |
197 | अ॒स्य पी॒त्वा मदा᳚ना॒मिन्द्रो᳚ वृ॒त्राण्य॑प्र॒ति | ज॒घान॑ ज॒घन॑च्च॒ नु ||{9.23.7}, {9.1.23.7}, {6.8.13.7} |
[24] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
198 | प्र सोमा᳚सो अधन्विषुः॒ पव॑मानास॒ इन्द॑वः | श्री॒णा॒ना अ॒प्सु मृ᳚ञ्जत ||{9.24.1}, {9.1.24.1}, {6.8.14.1} |
199 | अ॒भि गावो᳚ अधन्विषु॒रापो॒ न प्र॒वता᳚ य॒तीः | पु॒ना॒ना इन्द्र॑माशत ||{9.24.2}, {9.1.24.2}, {6.8.14.2} |
200 | प्र प॑वमान धन्वसि॒ सोमेन्द्रा᳚य॒ पात॑वे | नृभि᳚र्य॒तो वि नी᳚यसे ||{9.24.3}, {9.1.24.3}, {6.8.14.3} |
201 | त्वं सो᳚म नृ॒माद॑नः॒ पव॑स्व चर्षणी॒सहे᳚ | सस्नि॒र्यो अ॑नु॒माद्यः॑ ||{9.24.4}, {9.1.24.4}, {6.8.14.4} |
202 | इन्दो॒ यदद्रि॑भिः सु॒तः प॒वित्रं᳚ परि॒धाव॑सि | अर॒मिन्द्र॑स्य॒ धाम्ने᳚ ||{9.24.5}, {9.1.24.5}, {6.8.14.5} |
203 | पव॑स्व वृत्रहन्तमो॒क्थेभि॑रनु॒माद्यः॑ | शुचिः॑ पाव॒को अद्भु॑तः ||{9.24.6}, {9.1.24.6}, {6.8.14.6} |
204 | शुचिः॑ पाव॒क उ॑च्यते॒ सोमः॑ सु॒तस्य॒ मध्वः॑ | दे॒वा॒वीर॑घशंस॒हा ||{9.24.7}, {9.1.24.7}, {6.8.14.7} |
[25] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्यागस्त्यो दृ हच्युत गृषिः पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
205 | पव॑स्व दक्ष॒साध॑नो दे॒वेभ्यः॑ पी॒तये᳚ हरे | म॒रुद्भ्यो᳚ वा॒यवे॒ मदः॑ ||{9.25.1}, {9.2.1.1}, {6.8.15.1} |
206 | पव॑मान धि॒या हि॒तो॒३॑(ओ॒)ऽभि योनिं॒ कनि॑क्रदत् | धर्म॑णा वा॒युमा वि॑श ||{9.25.2}, {9.2.1.2}, {6.8.15.2} |
207 | सं दे॒वैः शो᳚भते॒ वृषा᳚ क॒विर्योना॒वधि॑ प्रि॒यः | वृ॒त्र॒हा दे᳚व॒वीत॑मः ||{9.25.3}, {9.2.1.3}, {6.8.15.3} |
208 | विश्वा᳚ रू॒पाण्या᳚वि॒शन्पु॑ना॒नो या᳚ति हर्य॒तः | यत्रा॒मृता᳚स॒ आस॑ते ||{9.25.4}, {9.2.1.4}, {6.8.15.4} |
209 | अ॒रु॒षो ज॒नय॒न्गिरः॒ सोमः॑ पवत आयु॒षक् | इन्द्रं॒ गच्छ᳚न्क॒विक्र॑तुः ||{9.25.5}, {9.2.1.5}, {6.8.15.5} |
210 | आ प॑वस्व मदिन्तम प॒वित्रं॒ धार॑या कवे | अ॒र्कस्य॒ योनि॑मा॒सद᳚म् ||{9.25.6}, {9.2.1.6}, {6.8.15.6} |
[26] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य दार्हच्युत इध्मवाह ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
211 | तम॑मृक्षन्त वा॒जिन॑मु॒पस्थे॒ अदि॑ते॒रधि॑ | विप्रा᳚सो॒ अण्व्या᳚ धि॒या ||{9.26.1}, {9.2.2.1}, {6.8.16.1} |
212 | तं गावो᳚ अ॒भ्य॑नूषत स॒हस्र॑धार॒मक्षि॑तम् | इन्दुं᳚ ध॒र्तार॒मा दि॒वः ||{9.26.2}, {9.2.2.2}, {6.8.16.2} |
213 | तं वे॒धां मे॒धया᳚ह्य॒न्पव॑मान॒मधि॒ द्यवि॑ | ध॒र्ण॒सिं भूरि॑धायसम् ||{9.26.3}, {9.2.2.3}, {6.8.16.3} |
214 | तम॑ह्यन्भु॒रिजो᳚र्धि॒या सं॒वसा᳚नं वि॒वस्व॑तः | पतिं᳚ वा॒चो अदा᳚भ्यम् ||{9.26.4}, {9.2.2.4}, {6.8.16.4} |
215 | तं साना॒वधि॑ जा॒मयो॒ हरिं᳚ हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः | ह॒र्य॒तं भूरि॑चक्षसम् ||{9.26.5}, {9.2.2.5}, {6.8.16.5} |
216 | तं त्वा᳚ हिन्वन्ति वे॒धसः॒ पव॑मान गिरा॒वृध᳚म् | इन्द॒विन्द्रा᳚य मत्स॒रम् ||{9.26.6}, {9.2.2.6}, {6.8.16.6} |
[27] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो नृमधे ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
217 | ए॒ष क॒विर॒भिष्टु॑तः प॒वित्रे॒ अधि॑ तोशते | पु॒ना॒नो घ्नन्नप॒ स्रिधः॑ ||{9.27.1}, {9.2.3.1}, {6.8.17.1} |
218 | ए॒ष इन्द्रा᳚य वा॒यवे᳚ स्व॒र्जित्परि॑ षिच्यते | प॒वित्रे᳚ दक्ष॒साध॑नः ||{9.27.2}, {9.2.3.2}, {6.8.17.2} |
219 | ए॒ष नृभि॒र्वि नी᳚यते दि॒वो मू॒र्धा वृषा᳚ सु॒तः | सोमो॒ वने᳚षु विश्व॒वित् ||{9.27.3}, {9.2.3.3}, {6.8.17.3} |
220 | ए॒ष ग॒व्युर॑चिक्रद॒त्पव॑मानो हिरण्य॒युः | इन्दुः॑ सत्रा॒जिदस्तृ॑तः ||{9.27.4}, {9.2.3.4}, {6.8.17.4} |
221 | ए॒ष सूर्ये᳚ण हासते॒ पव॑मानो॒ अधि॒ द्यवि॑ | प॒वित्रे᳚ मत्स॒रो मदः॑ ||{9.27.5}, {9.2.3.5}, {6.8.17.5} |
222 | ए॒ष शु॒ष्म्य॑सिष्यदद॒न्तरि॑क्षे॒ वृषा॒ हरिः॑ | पु॒ना॒न इन्दु॒रिन्द्र॒मा ||{9.27.6}, {9.2.3.6}, {6.8.17.6} |
[28] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः प्रियमेध ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
223 | ए॒ष वा॒जी हि॒तो नृभि᳚र्विश्व॒विन्मन॑स॒स्पतिः॑ | अव्यो॒ वारं॒ वि धा᳚वति ||{9.28.1}, {9.2.4.1}, {6.8.18.1} |
224 | ए॒ष प॒वित्रे᳚ अक्षर॒त्सोमो᳚ दे॒वेभ्यः॑ सु॒तः | विश्वा॒ धामा᳚न्यावि॒शन् ||{9.28.2}, {9.2.4.2}, {6.8.18.2} |
225 | ए॒ष दे॒वः शु॑भाय॒तेऽधि॒ योना॒वम॑र्त्यः | वृ॒त्र॒हा दे᳚व॒वीत॑मः ||{9.28.3}, {9.2.4.3}, {6.8.18.3} |
226 | ए॒ष वृषा॒ कनि॑क्रदद्द॒शभि॑र्जा॒मिभि᳚र्य॒तः | अ॒भि द्रोणा᳚नि धावति ||{9.28.4}, {9.2.4.4}, {6.8.18.4} |
227 | ए॒ष सूर्य॑मरोचय॒त्पव॑मानो॒ विच॑र्षणिः | विश्वा॒ धामा᳚नि विश्व॒वित् ||{9.28.5}, {9.2.4.5}, {6.8.18.5} |
228 | ए॒ष शु॒ष्म्यदा᳚भ्यः॒ सोमः॑ पुना॒नो अ॑र्षति | दे॒वा॒वीर॑घशंस॒हा ||{9.28.6}, {9.2.4.6}, {6.8.18.6} |
[29] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो नृमधे ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
229 | प्रास्य॒ धारा᳚ अक्षर॒न्वृष्णः॑ सु॒तस्यौज॑सा | दे॒वाँ अनु॑ प्र॒भूष॑तः ||{9.29.1}, {9.2.5.1}, {6.8.19.1} |
230 | सप्तिं᳚ मृजन्ति वे॒धसो᳚ गृ॒णन्तः॑ का॒रवो᳚ गि॒रा | ज्योति॑र्जज्ञा॒नमु॒क्थ्य᳚म् ||{9.29.2}, {9.2.5.2}, {6.8.19.2} |
231 | सु॒षहा᳚ सोम॒ तानि॑ ते पुना॒नाय॑ प्रभूवसो | वर्धा᳚ समु॒द्रमु॒क्थ्य᳚म् ||{9.29.3}, {9.2.5.3}, {6.8.19.3} |
232 | विश्वा॒ वसू᳚नि सं॒जय॒न्पव॑स्व सोम॒ धार॑या | इ॒नु द्वेषां᳚सि स॒ध्र्य॑क् ||{9.29.4}, {9.2.5.4}, {6.8.19.4} |
233 | रक्षा॒ सु नो॒ अर॑रुषः स्व॒नात्स॑मस्य॒ कस्य॑ चित् | नि॒दो यत्र॑ मुमु॒च्महे᳚ ||{9.29.5}, {9.2.5.5}, {6.8.19.5} |
234 | एन्दो॒ पार्थि॑वं र॒यिं दि॒व्यं प॑वस्व॒ धार॑या | द्यु॒मन्तं॒ शुष्म॒मा भ॑र ||{9.29.6}, {9.2.5.6}, {6.8.19.6} |
[30] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो बिन्दुषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
235 | प्र धारा᳚ अस्य शु॒ष्मिणो॒ वृथा᳚ प॒वित्रे᳚ अक्षरन् | पु॒ना॒नो वाच॑मिष्यति ||{9.30.1}, {9.2.6.1}, {6.8.20.1} |
236 | इन्दु॑र्हिया॒नः सो॒तृभि᳚र्मृ॒ज्यमा᳚नः॒ कनि॑क्रदत् | इय॑र्ति व॒ग्नुमि᳚न्द्रि॒यम् ||{9.30.2}, {9.2.6.2}, {6.8.20.2} |
237 | आ नः॒ शुष्मं᳚ नृ॒षाह्यं᳚ वी॒रव᳚न्तं पुरु॒स्पृह᳚म् | पव॑स्व सोम॒ धार॑या ||{9.30.3}, {9.2.6.3}, {6.8.20.3} |
238 | प्र सोमो॒ अति॒ धार॑या॒ पव॑मानो असिष्यदत् | अ॒भि द्रोणा᳚न्या॒सद᳚म् ||{9.30.4}, {9.2.6.4}, {6.8.20.4} |
239 | अ॒प्सु त्वा॒ मधु॑मत्तमं॒ हरिं᳚ हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः | इन्द॒विन्द्रा᳚य पी॒तये᳚ ||{9.30.5}, {9.2.6.5}, {6.8.20.5} |
240 | सु॒नोता॒ मधु॑मत्तमं॒ सोम॒मिन्द्रा᳚य व॒ज्रिणे᳚ | चारुं॒ शर्धा᳚य मत्स॒रम् ||{9.30.6}, {9.2.6.6}, {6.8.20.6} |
[31] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य रहूगणो गोतम ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
241 | प्र सोमा᳚सः स्वा॒ध्य१॑(अ॒)ः पव॑मानासो अक्रमुः | र॒यिं कृ᳚ण्वन्ति॒ चेत॑नम् ||{9.31.1}, {9.2.7.1}, {6.8.21.1} |
242 | दि॒वस्पृ॑थि॒व्या अधि॒ भवे᳚न्दो द्युम्न॒वर्ध॑नः | भवा॒ वाजा᳚नां॒ पतिः॑ ||{9.31.2}, {9.2.7.2}, {6.8.21.2} |
243 | तुभ्यं॒ वाता᳚ अभि॒प्रिय॒स्तुभ्य॑मर्षन्ति॒ सिन्ध॑वः | सोम॒ वर्ध᳚न्ति ते॒ महः॑ ||{9.31.3}, {9.2.7.3}, {6.8.21.3} |
244 | आ प्या᳚यस्व॒ समे᳚तु ते वि॒श्वतः॑ सोम॒ वृष्ण्य᳚म् | भवा॒ वाज॑स्य संग॒थे ||{9.31.4}, {9.2.7.4}, {6.8.21.4} |
245 | तुभ्यं॒ गावो᳚ घृ॒तं पयो॒ बभ्रो᳚ दुदु॒ह्रे अक्षि॑तम् | वर्षि॑ष्ठे॒ अधि॒ सान॑वि ||{9.31.5}, {9.2.7.5}, {6.8.21.5} |
246 | स्वा॒यु॒धस्य॑ ते स॒तो भुव॑नस्य पते व॒यम् | इन्दो᳚ सखि॒त्वमु॑श्मसि ||{9.31.6}, {9.2.7.6}, {6.8.21.6} |
[32] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आत्रेयः श्यावाश्व ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
247 | प्र सोमा᳚सो मद॒च्युतः॒ श्रव॑से नो म॒घोनः॑ | सु॒ता वि॒दथे᳚ अक्रमुः ||{9.32.1}, {9.2.8.1}, {6.8.22.1} |
248 | आदीं᳚ त्रि॒तस्य॒ योष॑णो॒ हरिं᳚ हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः | इन्दु॒मिन्द्रा᳚य पी॒तये᳚ ||{9.32.2}, {9.2.8.2}, {6.8.22.2} |
249 | आदीं᳚ हं॒सो यथा᳚ ग॒णं विश्व॑स्यावीवशन्म॒तिम् | अत्यो॒ न गोभि॑रज्यते ||{9.32.3}, {9.2.8.3}, {6.8.22.3} |
250 | उ॒भे सो᳚माव॒चाक॑शन्मृ॒गो न त॒क्तो अ॑र्षसि | सीद᳚न्नृ॒तस्य॒ योनि॒मा ||{9.32.4}, {9.2.8.4}, {6.8.22.4} |
251 | अ॒भि गावो᳚ अनूषत॒ योषा᳚ जा॒रमि॑व प्रि॒यम् | अग᳚न्ना॒जिं यथा᳚ हि॒तम् ||{9.32.5}, {9.2.8.5}, {6.8.22.5} |
252 | अ॒स्मे धे᳚हि द्यु॒मद्यशो᳚ म॒घव॑द्भ्यश्च॒ मह्यं᳚ च | स॒निं मे॒धामु॒त श्रवः॑ ||{9.32.6}, {9.2.8.6}, {6.8.22.6} |
[33] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्याप्त्यस्त्रित ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
253 | प्र सोमा᳚सो विप॒श्चितो॒ऽपां न य᳚न्त्यू॒र्मयः॑ | वना᳚नि महि॒षा इ॑व ||{9.33.1}, {9.2.9.1}, {6.8.23.1} |
254 | अ॒भि द्रोणा᳚नि ब॒भ्रवः॑ शु॒क्रा ऋ॒तस्य॒ धार॑या | वाजं॒ गोम᳚न्तमक्षरन् ||{9.33.2}, {9.2.9.2}, {6.8.23.2} |
255 | सु॒ता इन्द्रा᳚य वा॒यवे॒ वरु॑णाय म॒रुद्भ्यः॑ | सोमा᳚ अर्षन्ति॒ विष्ण॑वे ||{9.33.3}, {9.2.9.3}, {6.8.23.3} |
256 | ति॒स्रो वाच॒ उदी᳚रते॒ गावो᳚ मिमन्ति धे॒नवः॑ | हरि॑रेति॒ कनि॑क्रदत् ||{9.33.4}, {9.2.9.4}, {6.8.23.4} |
257 | अ॒भि ब्रह्मी᳚रनूषत य॒ह्वीरृ॒तस्य॑ मा॒तरः॑ | म॒र्मृ॒ज्यन्ते᳚ दि॒वः शिशु᳚म् ||{9.33.5}, {9.2.9.5}, {6.8.23.5} |
258 | रा॒यः स॑मु॒द्राँश्च॒तुरो॒ऽस्मभ्यं᳚ सोम वि॒श्वतः॑ | आ प॑वस्व सह॒स्रिणः॑ ||{9.33.6}, {9.2.9.6}, {6.8.23.6} |
[34] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्याप्त्यस्त्रित ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
259 | प्र सु॑वा॒नो धार॑या॒ तनेन्दु॑र्हिन्वा॒नो अ॑र्षति | रु॒जद्दृ॒ळ्हा व्योज॑सा ||{9.34.1}, {9.2.10.1}, {6.8.24.1} |
260 | सु॒त इन्द्रा᳚य वा॒यवे॒ वरु॑णाय म॒रुद्भ्यः॑ | सोमो᳚ अर्षति॒ विष्ण॑वे ||{9.34.2}, {9.2.10.2}, {6.8.24.2} |
261 | वृषा᳚णं॒ वृष॑भिर्य॒तं सु॒न्वन्ति॒ सोम॒मद्रि॑भिः | दु॒हन्ति॒ शक्म॑ना॒ पयः॑ ||{9.34.3}, {9.2.10.3}, {6.8.24.3} |
262 | भुव॑त्त्रि॒तस्य॒ मर्ज्यो॒ भुव॒दिन्द्रा᳚य मत्स॒रः | सं रू॒पैर॑ज्यते॒ हरिः॑ ||{9.34.4}, {9.2.10.4}, {6.8.24.4} |
263 | अ॒भीमृ॒तस्य॑ वि॒ष्टपं᳚ दुह॒ते पृश्नि॑मातरः | चारु॑ प्रि॒यत॑मं ह॒विः ||{9.34.5}, {9.2.10.5}, {6.8.24.5} |
264 | समे᳚न॒मह्रु॑ता इ॒मा गिरो᳚ अर्षन्ति स॒स्रुतः॑ | धे॒नूर्वा॒श्रो अ॑वीवशत् ||{9.34.6}, {9.2.10.6}, {6.8.24.6} |
[35] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः प्रभवू सु ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
265 | आ नः॑ पवस्व॒ धार॑या॒ पव॑मान र॒यिं पृ॒थुम् | यया॒ ज्योति᳚र्वि॒दासि॑ नः ||{9.35.1}, {9.2.11.1}, {6.8.25.1} |
266 | इन्दो᳚ समुद्रमीङ्खय॒ पव॑स्व विश्वमेजय | रा॒यो ध॒र्ता न॒ ओज॑सा ||{9.35.2}, {9.2.11.2}, {6.8.25.2} |
267 | त्वया᳚ वी॒रेण॑ वीरवो॒ऽभि ष्या᳚म पृतन्य॒तः | क्षरा᳚ णो अ॒भि वार्य᳚म् ||{9.35.3}, {9.2.11.3}, {6.8.25.3} |
268 | प्र वाज॒मिन्दु॑रिष्यति॒ सिषा᳚सन्वाज॒सा ऋषिः॑ | व्र॒ता वि॑दा॒न आयु॑धा ||{9.35.4}, {9.2.11.4}, {6.8.25.4} |
269 | तं गी॒र्भिर्वा᳚चमीङ्ख॒यं पु॑ना॒नं वा᳚सयामसि | सोमं॒ जन॑स्य॒ गोप॑तिम् ||{9.35.5}, {9.2.11.5}, {6.8.25.5} |
270 | विश्वो॒ यस्य᳚ व्र॒ते जनो᳚ दा॒धार॒ धर्म॑ण॒स्पतेः᳚ | पु॒ना॒नस्य॑ प्र॒भूव॑सोः ||{9.35.6}, {9.2.11.6}, {6.8.25.6} |
[36] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः प्रभवू सु ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
271 | अस॑र्जि॒ रथ्यो᳚ यथा प॒वित्रे᳚ च॒म्वोः᳚ सु॒तः | कार्ष्म᳚न्वा॒जी न्य॑क्रमीत् ||{9.36.1}, {9.2.12.1}, {6.8.26.1} |
272 | स वह्निः॑ सोम॒ जागृ॑विः॒ पव॑स्व देव॒वीरति॑ | अ॒भि कोशं᳚ मधु॒श्चुत᳚म् ||{9.36.2}, {9.2.12.2}, {6.8.26.2} |
273 | स नो॒ ज्योतीं᳚षि पूर्व्य॒ पव॑मान॒ वि रो᳚चय | क्रत्वे॒ दक्षा᳚य नो हिनु ||{9.36.3}, {9.2.12.3}, {6.8.26.3} |
274 | शु॒म्भमा᳚न ऋता॒युभि᳚र्मृ॒ज्यमा᳚नो॒ गभ॑स्त्योः | पव॑ते॒ वारे᳚ अ॒व्यये᳚ ||{9.36.4}, {9.2.12.4}, {6.8.26.4} |
275 | स विश्वा᳚ दा॒शुषे॒ वसु॒ सोमो᳚ दि॒व्यानि॒ पार्थि॑वा | पव॑ता॒मान्तरि॑क्ष्या ||{9.36.5}, {9.2.12.5}, {6.8.26.5} |
276 | आ दि॒वस्पृ॒ष्ठम॑श्व॒युर्ग᳚व्य॒युः सो᳚म रोहसि | वी॒र॒युः श॑वसस्पते ||{9.36.6}, {9.2.12.6}, {6.8.26.6} |
[37] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो रहूगण ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
277 | स सु॒तः पी॒तये॒ वृषा॒ सोमः॑ प॒वित्रे᳚ अर्षति | वि॒घ्नन्रक्षां᳚सि देव॒युः ||{9.37.1}, {9.2.13.1}, {6.8.27.1} |
278 | स प॒वित्रे᳚ विचक्ष॒णो हरि॑रर्षति धर्ण॒सिः | अ॒भि योनिं॒ कनि॑क्रदत् ||{9.37.2}, {9.2.13.2}, {6.8.27.2} |
279 | स वा॒जी रो᳚च॒ना दि॒वः पव॑मानो॒ वि धा᳚वति | र॒क्षो॒हा वार॑म॒व्यय᳚म् ||{9.37.3}, {9.2.13.3}, {6.8.27.3} |
280 | स त्रि॒तस्याधि॒ सान॑वि॒ पव॑मानो अरोचयत् | जा॒मिभिः॒ सूर्यं᳚ स॒ह ||{9.37.4}, {9.2.13.4}, {6.8.27.4} |
281 | स वृ॑त्र॒हा वृषा᳚ सु॒तो व॑रिवो॒विददा᳚भ्यः | सोमो॒ वाज॑मिवासरत् ||{9.37.5}, {9.2.13.5}, {6.8.27.5} |
282 | स दे॒वः क॒विने᳚षि॒तो॒३॑(ओ॒)ऽभि द्रोणा᳚नि धावति | इन्दु॒रिन्द्रा᳚य मं॒हना᳚ ||{9.37.6}, {9.2.13.6}, {6.8.27.6} |
[38] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो रहूगण ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
283 | ए॒ष उ॒ स्य वृषा॒ रथोऽव्यो॒ वारे᳚भिरर्षति | गच्छ॒न्वाजं᳚ सह॒स्रिण᳚म् ||{9.38.1}, {9.2.14.1}, {6.8.28.1} |
284 | ए॒तं त्रि॒तस्य॒ योष॑णो॒ हरिं᳚ हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः | इन्दु॒मिन्द्रा᳚य पी॒तये᳚ ||{9.38.2}, {9.2.14.2}, {6.8.28.2} |
285 | ए॒तं त्यं ह॒रितो॒ दश॑ मर्मृ॒ज्यन्ते᳚ अप॒स्युवः॑ | याभि॒र्मदा᳚य॒ शुम्भ॑ते ||{9.38.3}, {9.2.14.3}, {6.8.28.3} |
286 | ए॒ष स्य मानु॑षी॒ष्वा श्ये॒नो न वि॒क्षु सी᳚दति | गच्छ᳚ञ्जा॒रो न यो॒षित᳚म् ||{9.38.4}, {9.2.14.4}, {6.8.28.4} |
287 | ए॒ष स्य मद्यो॒ रसोऽव॑ चष्टे दि॒वः शिशुः॑ | य इन्दु॒र्वार॒मावि॑शत् ||{9.38.5}, {9.2.14.5}, {6.8.28.5} |
288 | ए॒ष स्य पी॒तये᳚ सु॒तो हरि॑रर्षति धर्ण॒सिः | क्रन्द॒न्योनि॑म॒भि प्रि॒यम् ||{9.38.6}, {9.2.14.6}, {6.8.28.6} |
[39] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो बृहन्मतिषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
289 | आ॒शुर॑र्ष बृहन्मते॒ परि॑ प्रि॒येण॒ धाम्ना᳚ | यत्र॑ दे॒वा इति॒ ब्रव॑न् ||{9.39.1}, {9.2.15.1}, {6.8.29.1} |
290 | प॒रि॒ष्कृ॒ण्वन्ननि॑ष्कृतं॒ जना᳚य या॒तय॒न्निषः॑ | वृ॒ष्टिं दि॒वः परि॑ स्रव ||{9.39.2}, {9.2.15.2}, {6.8.29.2} |
291 | सु॒त ए᳚ति प॒वित्र॒ आ त्विषिं॒ दधा᳚न॒ ओज॑सा | वि॒चक्षा᳚णो विरो॒चय॑न् ||{9.39.3}, {9.2.15.3}, {6.8.29.3} |
292 | अ॒यं स यो दि॒वस्परि॑ रघु॒यामा᳚ प॒वित्र॒ आ | सिन्धो᳚रू॒र्मा व्यक्ष॑रत् ||{9.39.4}, {9.2.15.4}, {6.8.29.4} |
293 | आ॒विवा᳚सन्परा॒वतो॒ अथो᳚ अर्वा॒वतः॑ सु॒तः | इन्द्रा᳚य सिच्यते॒ मधु॑ ||{9.39.5}, {9.2.15.5}, {6.8.29.5} |
294 | स॒मी॒ची॒ना अ॑नूषत॒ हरिं᳚ हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः | योना᳚वृ॒तस्य॑ सीदत ||{9.39.6}, {9.2.15.6}, {6.8.29.6} |
[40] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो बृहन्मतिषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
295 | पु॒ना॒नो अ॑क्रमीद॒भि विश्वा॒ मृधो॒ विच॑र्षणिः | शु॒म्भन्ति॒ विप्रं᳚ धी॒तिभिः॑ ||{9.40.1}, {9.2.16.1}, {6.8.30.1} |
296 | आ योनि॑मरु॒णो रु॑ह॒द्गम॒दिन्द्रं॒ वृषा᳚ सु॒तः | ध्रु॒वे सद॑सि सीदति ||{9.40.2}, {9.2.16.2}, {6.8.30.2} |
297 | नू नो᳚ र॒यिं म॒हामि᳚न्दो॒ऽस्मभ्यं᳚ सोम वि॒श्वतः॑ | आ प॑वस्व सह॒स्रिण᳚म् ||{9.40.3}, {9.2.16.3}, {6.8.30.3} |
298 | विश्वा᳚ सोम पवमान द्यु॒म्नानी᳚न्द॒वा भ॑र | वि॒दाः स॑ह॒स्रिणी॒रिषः॑ ||{9.40.4}, {9.2.16.4}, {6.8.30.4} |
299 | स नः॑ पुना॒न आ भ॑र र॒यिं स्तो॒त्रे सु॒वीर्य᳚म् | ज॒रि॒तुर्व॑र्धया॒ गिरः॑ ||{9.40.5}, {9.2.16.5}, {6.8.30.5} |
300 | पु॒ना॒न इ᳚न्द॒वा भ॑र॒ सोम॑ द्वि॒बर्ह॑सं र॒यिम् | वृष᳚न्निन्दो न उ॒क्थ्य᳚म् ||{9.40.6}, {9.2.16.6}, {6.8.30.6} |
[41] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य काण्वो मेध्यातिथि षिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
301 | प्र ये गावो॒ न भूर्ण॑यस्त्वे॒षा अ॒यासो॒ अक्र॑मुः | घ्नन्तः॑ कृ॒ष्णामप॒ त्वच᳚म् ||{9.41.1}, {9.2.17.1}, {6.8.31.1} |
302 | सु॒वि॒तस्य॑ मनाम॒हेऽति॒ सेतुं᳚ दुरा॒व्य᳚म् | सा॒ह्वांसो॒ दस्यु॑मव्र॒तम् ||{9.41.2}, {9.2.17.2}, {6.8.31.2} |
303 | शृ॒ण्वे वृ॒ष्टेरि॑व स्व॒नः पव॑मानस्य शु॒ष्मिणः॑ | चर᳚न्ति वि॒द्युतो᳚ दि॒वि ||{9.41.3}, {9.2.17.3}, {6.8.31.3} |
304 | आ प॑वस्व म॒हीमिषं॒ गोम॑दिन्दो॒ हिर᳚ण्यवत् | अश्वा᳚व॒द्वाज॑वत्सु॒तः ||{9.41.4}, {9.2.17.4}, {6.8.31.4} |
305 | स प॑वस्व विचर्षण॒ आ म॒ही रोद॑सी पृण | उ॒षाः सूर्यो॒ न र॒श्मिभिः॑ ||{9.41.5}, {9.2.17.5}, {6.8.31.5} |
306 | परि॑ णः शर्म॒यन्त्या॒ धार॑या सोम वि॒श्वतः॑ | सरा᳚ र॒सेव॑ वि॒ष्टप᳚म् ||{9.41.6}, {9.2.17.6}, {6.8.31.6} |
[42] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य काण्वो मेध्यातिथि ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
307 | ज॒नय᳚न्रोच॒ना दि॒वो ज॒नय᳚न्न॒प्सु सूर्य᳚म् | वसा᳚नो॒ गा अ॒पो हरिः॑ ||{9.42.1}, {9.2.18.1}, {6.8.32.1} |
308 | ए॒ष प्र॒त्नेन॒ मन्म॑ना दे॒वो दे॒वेभ्य॒स्परि॑ | धार॑या पवते सु॒तः ||{9.42.2}, {9.2.18.2}, {6.8.32.2} |
309 | वा॒वृ॒धा॒नाय॒ तूर्व॑ये॒ पव᳚न्ते॒ वाज॑सातये | सोमाः᳚ स॒हस्र॑पाजसः ||{9.42.3}, {9.2.18.3}, {6.8.32.3} |
310 | दु॒हा॒नः प्र॒त्नमित्पयः॑ प॒वित्रे॒ परि॑ षिच्यते | क्रन्द᳚न्दे॒वाँ अ॑जीजनत् ||{9.42.4}, {9.2.18.4}, {6.8.32.4} |
311 | अ॒भि विश्वा᳚नि॒ वार्या॒भि दे॒वाँ ऋ॑ता॒वृधः॑ | सोमः॑ पुना॒नो अ॑र्षति ||{9.42.5}, {9.2.18.5}, {6.8.32.5} |
312 | गोम᳚न्नः सोम वी॒रव॒दश्वा᳚व॒द्वाज॑वत्सु॒तः | पव॑स्व बृह॒तीरिषः॑ ||{9.42.6}, {9.2.18.6}, {6.8.32.6} |
[43] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य काण्वो मेध्यातिथि ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
313 | यो अत्य॑ इव मृ॒ज्यते॒ गोभि॒र्मदा᳚य हर्य॒तः | तं गी॒र्भिर्वा᳚सयामसि ||{9.43.1}, {9.2.19.1}, {6.8.33.1} |
314 | तं नो॒ विश्वा᳚ अव॒स्युवो॒ गिरः॑ शुम्भन्ति पू॒र्वथा᳚ | इन्दु॒मिन्द्रा᳚य पी॒तये᳚ ||{9.43.2}, {9.2.19.2}, {6.8.33.2} |
315 | पु॒ना॒नो या᳚ति हर्य॒तः सोमो᳚ गी॒र्भिः परि॑ष्कृतः | विप्र॑स्य॒ मेध्या᳚तिथेः ||{9.43.3}, {9.2.19.3}, {6.8.33.3} |
316 | पव॑मान वि॒दा र॒यिम॒स्मभ्यं᳚ सोम सु॒श्रिय᳚म् | इन्दो᳚ स॒हस्र॑वर्चसम् ||{9.43.4}, {9.2.19.4}, {6.8.33.4} |
317 | इन्दु॒रत्यो॒ न वा᳚ज॒सृत्कनि॑क्रन्ति प॒वित्र॒ आ | यदक्षा॒रति॑ देव॒युः ||{9.43.5}, {9.2.19.5}, {6.8.33.5} |
318 | पव॑स्व॒ वाज॑सातये॒ विप्र॑स्य गृण॒तो वृ॒धे | सोम॒ रास्व॑ सु॒वीर्य᳚म् ||{9.43.6}, {9.2.19.6}, {6.8.33.6} |
[44] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरस अयास्य ऋषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
319 | प्र ण॑ इन्दो म॒हे तन॑ ऊ॒र्मिं न बिभ्र॑दर्षसि | अ॒भि दे॒वाँ अ॒यास्यः॑ ||{9.44.1}, {9.2.20.1}, {7.1.1.1} |
320 | म॒ती जु॒ष्टो धि॒या हि॒तः सोमो᳚ हिन्वे परा॒वति॑ | विप्र॑स्य॒ धार॑या क॒विः ||{9.44.2}, {9.2.20.2}, {7.1.1.2} |
321 | अ॒यं दे॒वेषु॒ जागृ॑विः सु॒त ए᳚ति प॒वित्र॒ आ | सोमो᳚ याति॒ विच॑र्षणिः ||{9.44.3}, {9.2.20.3}, {7.1.1.3} |
322 | स नः॑ पवस्व वाज॒युश्च॑क्रा॒णश्चारु॑मध्व॒रम् | ब॒र्हिष्माँ॒ आ वि॑वासति ||{9.44.4}, {9.2.20.4}, {7.1.1.4} |
323 | स नो॒ भगा᳚य वा॒यवे॒ विप्र॑वीरः स॒दावृ॑धः | सोमो᳚ दे॒वेष्वा य॑मत् ||{9.44.5}, {9.2.20.5}, {7.1.1.5} |
324 | स नो᳚ अ॒द्य वसु॑त्तये क्रतु॒विद्गा᳚तु॒वित्त॑मः | वाजं᳚ जेषि॒ श्रवो᳚ बृ॒हत् ||{9.44.6}, {9.2.20.6}, {7.1.1.6} |
[45] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरस अयास्य ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
325 | स प॑वस्व॒ मदा᳚य॒ कं नृ॒चक्षा᳚ दे॒ववी᳚तये | इन्द॒विन्द्रा᳚य पी॒तये᳚ ||{9.45.1}, {9.2.21.1}, {7.1.2.1} |
326 | स नो᳚ अर्षा॒भि दू॒त्य१॑(अ॒) अंत्वमिन्द्रा᳚य तोशसे | दे॒वान्सखि॑भ्य॒ आ वर᳚म् ||{9.45.2}, {9.2.21.2}, {7.1.2.2} |
327 | उ॒त त्वाम॑रु॒णं व॒यं गोभि॑रञ्ज्मो॒ मदा᳚य॒ कम् | वि नो᳚ रा॒ये दुरो᳚ वृधि ||{9.45.3}, {9.2.21.3}, {7.1.2.3} |
328 | अत्यू᳚ प॒वित्र॑मक्रमीद्वा॒जी धुरं॒ न याम॑नि | इन्दु॑र्दे॒वेषु॑ पत्यते ||{9.45.4}, {9.2.21.4}, {7.1.2.4} |
329 | समी॒ सखा᳚यो अस्वर॒न्वने॒ क्रीळ᳚न्त॒मत्य॑विम् | इन्दुं᳚ ना॒वा अ॑नूषत ||{9.45.5}, {9.2.21.5}, {7.1.2.5} |
330 | तया᳚ पवस्व॒ धार॑या॒ यया᳚ पी॒तो वि॒चक्ष॑से | इन्दो᳚ स्तो॒त्रे सु॒वीर्य᳚म् ||{9.45.6}, {9.2.21.6}, {7.1.2.6} |
[46] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरस अयास्य ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
331 | असृ॑ग्रन्दे॒ववी᳚त॒येऽत्या᳚सः॒ कृत्व्या᳚ इव | क्षर᳚न्तः पर्वता॒वृधः॑ ||{9.46.1}, {9.2.22.1}, {7.1.3.1} |
332 | परि॑ष्कृतास॒ इन्द॑वो॒ योषे᳚व॒ पित्र्या᳚वती | वा॒युं सोमा᳚ असृक्षत ||{9.46.2}, {9.2.22.2}, {7.1.3.2} |
333 | ए॒ते सोमा᳚स॒ इन्द॑वः॒ प्रय॑स्वन्तश्च॒मू सु॒ताः | इन्द्रं᳚ वर्धन्ति॒ कर्म॑भिः ||{9.46.3}, {9.2.22.3}, {7.1.3.3} |
334 | आ धा᳚वता सुहस्त्यः शु॒क्रा गृ॑भ्णीत म॒न्थिना᳚ | गोभिः॑ श्रीणीत मत्स॒रम् ||{9.46.4}, {9.2.22.4}, {7.1.3.4} |
335 | स प॑वस्व धनंजय प्रय॒न्ता राध॑सो म॒हः | अ॒स्मभ्यं᳚ सोम गातु॒वित् ||{9.46.5}, {9.2.22.5}, {7.1.3.5} |
336 | ए॒तं मृ॑जन्ति॒ मर्ज्यं॒ पव॑मानं॒ दश॒ क्षिपः॑ | इन्द्रा᳚य मत्स॒रं मद᳚म् ||{9.46.6}, {9.2.22.6}, {7.1.3.6} |
[47] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कवि ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
337 | अ॒या सोमः॑ सुकृ॒त्यया᳚ म॒हश्चि॑द॒भ्य॑वर्धत | म॒न्दा॒न उद्वृ॑षायते ||{9.47.1}, {9.2.23.1}, {7.1.4.1} |
338 | कृ॒तानीद॑स्य॒ कर्त्वा॒ चेत᳚न्ते दस्यु॒तर्ह॑णा | ऋ॒णा च॑ धृ॒ष्णुश्च॑यते ||{9.47.2}, {9.2.23.2}, {7.1.4.2} |
339 | आत्सोम॑ इन्द्रि॒यो रसो॒ वज्रः॑ सहस्र॒सा भु॑वत् | उ॒क्थं यद॑स्य॒ जाय॑ते ||{9.47.3}, {9.2.23.3}, {7.1.4.3} |
340 | स्व॒यं क॒विर्वि॑ध॒र्तरि॒ विप्रा᳚य॒ रत्न॑मिच्छति | यदी᳚ मर्मृ॒ज्यते॒ धियः॑ ||{9.47.4}, {9.2.23.4}, {7.1.4.4} |
341 | सि॒षा॒सतू᳚ रयी॒णां वाजे॒ष्वर्व॑तामिव | भरे᳚षु जि॒ग्युषा᳚मसि ||{9.47.5}, {9.2.23.5}, {7.1.4.5} |
[48] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कविषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
342 | तं त्वा᳚ नृ॒म्णानि॒ बिभ्र॑तं स॒धस्थे᳚षु म॒हो दि॒वः | चारुं᳚ सुकृ॒त्यये᳚महे ||{9.48.1}, {9.2.24.1}, {7.1.5.1} |
343 | संवृ॑क्तधृष्णुमु॒क्थ्यं᳚ म॒हाम॑हिव्रतं॒ मद᳚म् | श॒तं पुरो᳚ रुरु॒क्षणि᳚म् ||{9.48.2}, {9.2.24.2}, {7.1.5.2} |
344 | अत॑स्त्वा र॒यिम॒भि राजा᳚नं सुक्रतो दि॒वः | सु॒प॒र्णो अ᳚व्य॒थिर्भ॑रत् ||{9.48.3}, {9.2.24.3}, {7.1.5.3} |
345 | विश्व॑स्मा॒ इत्स्व॑र्दृ॒शे साधा᳚रणं रज॒स्तुर᳚म् | गो॒पामृ॒तस्य॒ विर्भ॑रत् ||{9.48.4}, {9.2.24.4}, {7.1.5.4} |
346 | अधा᳚ हिन्वा॒न इ᳚न्द्रि॒यं ज्यायो᳚ महि॒त्वमा᳚नशे | अ॒भि॒ष्टि॒कृद्विच॑र्षणिः ||{9.48.5}, {9.2.24.5}, {7.1.5.5} |
[49] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कविजृषिः पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
347 | पव॑स्व वृ॒ष्टिमा सु नो॒ऽपामू॒र्मिं दि॒वस्परि॑ | अ॒य॒क्ष्मा बृ॑ह॒तीरिषः॑ ||{9.49.1}, {9.2.25.1}, {7.1.6.1} |
348 | तया᳚ पवस्व॒ धार॑या॒ यया॒ गाव॑ इ॒हागम॑न् | जन्या᳚स॒ उप॑ नो गृ॒हम् ||{9.49.2}, {9.2.25.2}, {7.1.6.2} |
349 | घृ॒तं प॑वस्व॒ धार॑या य॒ज्ञेषु॑ देव॒वीत॑मः | अ॒स्मभ्यं᳚ वृ॒ष्टिमा प॑व ||{9.49.3}, {9.2.25.3}, {7.1.6.3} |
350 | स न॑ ऊ॒र्जे व्य१॑(अ॒)'व्ययं᳚ प॒वित्रं᳚ धाव॒ धार॑या | दे॒वासः॑ शृ॒णव॒न्हि क᳚म् ||{9.49.4}, {9.2.25.4}, {7.1.6.4} |
351 | पव॑मानो असिष्यद॒द्रक्षां᳚स्यप॒जङ्घ॑नत् | प्र॒त्न॒वद्रो॒चय॒न्रुचः॑ ||{9.49.5}, {9.2.25.5}, {7.1.6.5} |
[50] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरस उचथ्य ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
352 | उत्ते॒ शुष्मा᳚स ईरते॒ सिन्धो᳚रू॒र्मेरि॑व स्व॒नः | वा॒णस्य॑ चोदया प॒विम् ||{9.50.1}, {9.2.26.1}, {7.1.7.1} |
353 | प्र॒स॒वे त॒ उदी᳚रते ति॒स्रो वाचो᳚ मख॒स्युवः॑ | यदव्य॒ एषि॒ सान॑वि ||{9.50.2}, {9.2.26.2}, {7.1.7.2} |
354 | अव्यो॒ वारे॒ परि॑ प्रि॒यं हरिं᳚ हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः | पव॑मानं मधु॒श्चुत᳚म् ||{9.50.3}, {9.2.26.3}, {7.1.7.3} |
355 | आ प॑वस्व मदिन्तम प॒वित्रं॒ धार॑या कवे | अ॒र्कस्य॒ योनि॑मा॒सद᳚म् ||{9.50.4}, {9.2.26.4}, {7.1.7.4} |
356 | स प॑वस्व मदिन्तम॒ गोभि॑रञ्जा॒नो अ॒क्तुभिः॑ | इन्द॒विन्द्रा᳚य पी॒तये᳚ ||{9.50.5}, {9.2.26.5}, {7.1.7.5} |
[51] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरस उचथ्य ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
357 | अध्व᳚र्यो॒ अद्रि॑भिः सु॒तं सोमं᳚ प॒वित्र॒ आ सृ॑ज | पु॒नी॒हीन्द्रा᳚य॒ पात॑वे ||{9.51.1}, {9.2.27.1}, {7.1.8.1} |
358 | दि॒वः पी॒यूष॑मुत्त॒मं सोम॒मिन्द्रा᳚य व॒ज्रिणे᳚ | सु॒नोता॒ मधु॑मत्तमम् ||{9.51.2}, {9.2.27.2}, {7.1.8.2} |
359 | तव॒ त्य इ᳚न्दो॒ अन्ध॑सो दे॒वा मधो॒र्व्य॑श्नते | पव॑मानस्य म॒रुतः॑ ||{9.51.3}, {9.2.27.3}, {7.1.8.3} |
360 | त्वं हि सो᳚म व॒र्धय᳚न्सु॒तो मदा᳚य॒ भूर्ण॑ये | वृष᳚न्स्तो॒तार॑मू॒तये᳚ ||{9.51.4}, {9.2.27.4}, {7.1.8.4} |
361 | अ॒भ्य॑र्ष विचक्षण प॒वित्रं॒ धार॑या सु॒तः | अ॒भि वाज॑मु॒त श्रवः॑ ||{9.51.5}, {9.2.27.5}, {7.1.8.5} |
[52] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरस उचथ्य ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
362 | परि॑ द्यु॒क्षः स॒नद्र॑यि॒र्भर॒द्वाजं᳚ नो॒ अन्ध॑सा | सु॒वा॒नो अ॑र्ष प॒वित्र॒ आ ||{9.52.1}, {9.2.28.1}, {7.1.9.1} |
363 | तव॑ प्र॒त्नेभि॒रध्व॑भि॒रव्यो॒ वारे॒ परि॑ प्रि॒यः | स॒हस्र॑धारो या॒त्तना᳚ ||{9.52.2}, {9.2.28.2}, {7.1.9.2} |
364 | च॒रुर्न यस्तमी᳚ङ्ख॒येन्दो॒ न दान॑मीङ्खय | व॒धैर्व॑धस्नवीङ्खय ||{9.52.3}, {9.2.28.3}, {7.1.9.3} |
365 | नि शुष्म॑मिन्दवेषां॒ पुरु॑हूत॒ जना᳚नाम् | यो अ॒स्माँ आ॒दिदे᳚शति ||{9.52.4}, {9.2.28.4}, {7.1.9.4} |
366 | श॒तं न॑ इन्द ऊ॒तिभिः॑ स॒हस्रं᳚ वा॒ शुची᳚नाम् | पव॑स्व मंह॒यद्र॑यिः ||{9.52.5}, {9.2.28.5}, {7.1.9.5} |
[53] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
367 | उत्ते॒ शुष्मा᳚सो अस्थू॒ रक्षो᳚ भि॒न्दन्तो᳚ अद्रिवः | नु॒दस्व॒ याः प॑रि॒स्पृधः॑ ||{9.53.1}, {9.2.29.1}, {7.1.10.1} |
368 | अ॒या नि॑ज॒घ्निरोज॑सा रथसं॒गे धने᳚ हि॒ते | स्तवा॒ अबि॑भ्युषा हृ॒दा ||{9.53.2}, {9.2.29.2}, {7.1.10.2} |
369 | अस्य᳚ व्र॒तानि॒ नाधृषे॒ पव॑मानस्य दू॒ढ्या᳚ | रु॒ज यस्त्वा᳚ पृत॒न्यति॑ ||{9.53.3}, {9.2.29.3}, {7.1.10.3} |
370 | तं हि᳚न्वन्ति मद॒च्युतं॒ हरिं᳚ न॒दीषु॑ वा॒जिन᳚म् | इन्दु॒मिन्द्रा᳚य मत्स॒रम् ||{9.53.4}, {9.2.29.4}, {7.1.10.4} |
[54] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
371 | अ॒स्य प्र॒त्नामनु॒ द्युतं᳚ शु॒क्रं दु॑दुह्रे॒ अह्र॑यः | पयः॑ सहस्र॒सामृषि᳚म् ||{9.54.1}, {9.2.30.1}, {7.1.11.1} |
372 | अ॒यं सूर्य॑ इवोप॒दृग॒यं सरां᳚सि धावति | स॒प्त प्र॒वत॒ आ दिव᳚म् ||{9.54.2}, {9.2.30.2}, {7.1.11.2} |
373 | अ॒यं विश्वा᳚नि तिष्ठति पुना॒नो भुव॑नो॒परि॑ | सोमो᳚ दे॒वो न सूर्यः॑ ||{9.54.3}, {9.2.30.3}, {7.1.11.3} |
374 | परि॑ णो दे॒ववी᳚तये॒ वाजाँ᳚ अर्षसि॒ गोम॑तः | पु॒ना॒न इ᳚न्दविन्द्र॒युः ||{9.54.4}, {9.2.30.4}, {7.1.11.4} |
[55] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
375 | यवं᳚यवं नो॒ अन्ध॑सा पु॒ष्टम्पु॑ष्टं॒ परि॑ स्रव | सोम॒ विश्वा᳚ च॒ सौभ॑गा ||{9.55.1}, {9.2.31.1}, {7.1.12.1} |
376 | इन्दो॒ यथा॒ तव॒ स्तवो॒ यथा᳚ ते जा॒तमन्ध॑सः | नि ब॒र्हिषि॑ प्रि॒ये स॑दः ||{9.55.2}, {9.2.31.2}, {7.1.12.2} |
377 | उ॒त नो᳚ गो॒विद॑श्व॒वित्पव॑स्व सो॒मान्ध॑सा | म॒क्षूत॑मेभि॒रह॑भिः ||{9.55.3}, {9.2.31.3}, {7.1.12.3} |
378 | यो जि॒नाति॒ न जीय॑ते॒ हन्ति॒ शत्रु॑म॒भीत्य॑ | स प॑वस्व सहस्रजित् ||{9.55.4}, {9.2.31.4}, {7.1.12.4} |
[56] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
379 | परि॒ सोम॑ ऋ॒तं बृ॒हदा॒शुः प॒वित्रे᳚ अर्षति | वि॒घ्नन्रक्षां᳚सि देव॒युः ||{9.56.1}, {9.2.32.1}, {7.1.13.1} |
380 | यत्सोमो॒ वाज॒मर्ष॑ति श॒तं धारा᳚ अप॒स्युवः॑ | इन्द्र॑स्य स॒ख्यमा᳚वि॒शन् ||{9.56.2}, {9.2.32.2}, {7.1.13.2} |
381 | अ॒भि त्वा॒ योष॑णो॒ दश॑ जा॒रं न क॒न्या᳚नूषत | मृ॒ज्यसे᳚ सोम सा॒तये᳚ ||{9.56.3}, {9.2.32.3}, {7.1.13.3} |
382 | त्वमिन्द्रा᳚य॒ विष्ण॑वे स्वा॒दुरि᳚न्दो॒ परि॑ स्रव | नॄन्स्तो॒तॄन्पा॒ह्यंह॑सः ||{9.56.4}, {9.2.32.4}, {7.1.13.4} |
[57] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
383 | प्र ते॒ धारा᳚ अस॒श्चतो᳚ दि॒वो न य᳚न्ति वृ॒ष्टयः॑ | अच्छा॒ वाजं᳚ सह॒स्रिण᳚म् ||{9.57.1}, {9.2.33.1}, {7.1.14.1} |
384 | अ॒भि प्रि॒याणि॒ काव्या॒ विश्वा॒ चक्षा᳚णो अर्षति | हरि॑स्तुञ्जा॒न आयु॑धा ||{9.57.2}, {9.2.33.2}, {7.1.14.2} |
385 | स म᳚र्मृजा॒न आ॒युभि॒रिभो॒ राजे᳚व सुव्र॒तः | श्ये॒नो न वंसु॑ षीदति ||{9.57.3}, {9.2.33.3}, {7.1.14.3} |
386 | स नो॒ विश्वा᳚ दि॒वो वसू॒तो पृ॑थि॒व्या अधि॑ | पु॒ना॒न इ᳚न्द॒वा भ॑र ||{9.57.4}, {9.2.33.4}, {7.1.14.4} |
[58] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
387 | तर॒त्स म॒न्दी धा᳚वति॒ धारा᳚ सु॒तस्यान्ध॑सः | तर॒त्स म॒न्दी धा᳚वति ||{9.58.1}, {9.2.34.1}, {7.1.15.1} |
388 | उ॒स्रा वे᳚द॒ वसू᳚नां॒ मर्त॑स्य दे॒व्यव॑सः | तर॒त्स म॒न्दी धा᳚वति ||{9.58.2}, {9.2.34.2}, {7.1.15.2} |
389 | ध्व॒स्रयोः᳚ पुरु॒षन्त्यो॒रा स॒हस्रा᳚णि दद्महे | तर॒त्स म॒न्दी धा᳚वति ||{9.58.3}, {9.2.34.3}, {7.1.15.3} |
390 | आ ययो᳚स्त्रिं॒शतं॒ तना᳚ स॒हस्रा᳚णि च॒ दद्म॑हे | तर॒त्स म॒न्दी धा᳚वति ||{9.58.4}, {9.2.34.4}, {7.1.15.4} |
[59] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
391 | पव॑स्व गो॒जिद॑श्व॒जिद्वि॑श्व॒जित्सो᳚म रण्य॒जित् | प्र॒जाव॒द्रत्न॒मा भ॑र ||{9.59.1}, {9.2.35.1}, {7.1.16.1} |
392 | पव॑स्वा॒द्भ्यो अदा᳚भ्यः॒ पव॒स्वौष॑धीभ्यः | पव॑स्व धि॒षणा᳚भ्यः ||{9.59.2}, {9.2.35.2}, {7.1.16.2} |
393 | त्वं सो᳚म॒ पव॑मानो॒ विश्वा᳚नि दुरि॒ता त॑र | क॒विः सी᳚द॒ नि ब॒र्हिषि॑ ||{9.59.3}, {9.2.35.3}, {7.1.16.3} |
394 | पव॑मान॒ स्व᳚र्विदो॒ जाय॑मानोऽभवो म॒हान् | इन्दो॒ विश्वाँ᳚ अ॒भीद॑सि ||{9.59.4}, {9.2.35.4}, {7.1.16.4} |
[60] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | (१-२, ४) प्रथमाद्वितीययोर्ऋचोश्चतुर्थ्याश्च गायत्री, (३) तृतीयायाश्च पुर उष्णिक् छन्दसी || | |
395 | प्र गा᳚य॒त्रेण॑ गायत॒ पव॑मानं॒ विच॑र्षणिम् | इन्दुं᳚ स॒हस्र॑चक्षसम् ||{9.60.1}, {9.2.36.1}, {7.1.17.1} |
396 | तं त्वा᳚ स॒हस्र॑चक्षस॒मथो᳚ स॒हस्र॑भर्णसम् | अति॒ वार॑मपाविषुः ||{9.60.2}, {9.2.36.2}, {7.1.17.2} |
397 | अति॒ वारा॒न्पव॑मानो असिष्यदत्क॒लशाँ᳚ अ॒भि धा᳚वति | इन्द्र॑स्य॒ हार्द्या᳚वि॒शन् ||{9.60.3}, {9.2.36.3}, {7.1.17.3} |
398 | इन्द्र॑स्य सोम॒ राध॑से॒ शं प॑वस्व विचर्षणे | प्र॒जाव॒द्रेत॒ आ भ॑र ||{9.60.4}, {9.2.36.4}, {7.1.17.4} |
[61] (१-३०) त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य आङ्गिरसोऽमहीया षः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
399 | अ॒या वी॒ती परि॑ स्रव॒ यस्त॑ इन्दो॒ मदे॒ष्वा | अ॒वाह᳚न्नव॒तीर्नव॑ ||{9.61.1}, {9.3.1.1}, {7.1.18.1} |
400 | पुरः॑ स॒द्य इ॒त्थाधि॑ये॒ दिवो᳚दासाय॒ शम्ब॑रम् | अध॒ त्यं तु॒र्वशं॒ यदु᳚म् ||{9.61.2}, {9.3.1.2}, {7.1.18.2} |
401 | परि॑ णो॒ अश्व॑मश्व॒विद्गोम॑दिन्दो॒ हिर᳚ण्यवत् | क्षरा᳚ सह॒स्रिणी॒रिषः॑ ||{9.61.3}, {9.3.1.3}, {7.1.18.3} |
402 | पव॑मानस्य ते व॒यं प॒वित्र॑मभ्युन्द॒तः | स॒खि॒त्वमा वृ॑णीमहे ||{9.61.4}, {9.3.1.4}, {7.1.18.4} |
403 | ये ते᳚ प॒वित्र॑मू॒र्मयो᳚ऽभि॒क्षर᳚न्ति॒ धार॑या | तेभि᳚र्नः सोम मृळय ||{9.61.5}, {9.3.1.5}, {7.1.18.5} |
404 | स नः॑ पुना॒न आ भ॑र र॒यिं वी॒रव॑ती॒मिष᳚म् | ईशा᳚नः सोम वि॒श्वतः॑ ||{9.61.6}, {9.3.1.6}, {7.1.19.1} |
405 | ए॒तमु॒ त्यं दश॒ क्षिपो᳚ मृ॒जन्ति॒ सिन्धु॑मातरम् | समा᳚दि॒त्येभि॑रख्यत ||{9.61.7}, {9.3.1.7}, {7.1.19.2} |
406 | समिन्द्रे᳚णो॒त वा॒युना᳚ सु॒त ए᳚ति प॒वित्र॒ आ | सं सूर्य॑स्य र॒श्मिभिः॑ ||{9.61.8}, {9.3.1.8}, {7.1.19.3} |
407 | स नो॒ भगा᳚य वा॒यवे᳚ पू॒ष्णे प॑वस्व॒ मधु॑मान् | चारु᳚र्मि॒त्रे वरु॑णे च ||{9.61.9}, {9.3.1.9}, {7.1.19.4} |
408 | उ॒च्चा ते᳚ जा॒तमन्ध॑सो दि॒वि षद्भूम्या द॑दे | उ॒ग्रं शर्म॒ महि॒ श्रवः॑ ||{9.61.10}, {9.3.1.10}, {7.1.19.5} |
409 | ए॒ना विश्वा᳚न्य॒र्य आ द्यु॒म्नानि॒ मानु॑षाणाम् | सिषा᳚सन्तो वनामहे ||{9.61.11}, {9.3.1.11}, {7.1.20.1} |
410 | स न॒ इन्द्रा᳚य॒ यज्य॑वे॒ वरु॑णाय म॒रुद्भ्यः॑ | व॒रि॒वो॒वित्परि॑ स्रव ||{9.61.12}, {9.3.1.12}, {7.1.20.2} |
411 | उपो॒ षु जा॒तम॒प्तुरं॒ गोभि॑र्भ॒ङ्गं परि॑ष्कृतम् | इन्दुं᳚ दे॒वा अ॑यासिषुः ||{9.61.13}, {9.3.1.13}, {7.1.20.3} |
412 | तमिद्व॑र्धन्तु नो॒ गिरो᳚ व॒त्सं सं॒शिश्व॑रीरिव | य इन्द्र॑स्य हृदं॒सनिः॑ ||{9.61.14}, {9.3.1.14}, {7.1.20.4} |
413 | अर्षा᳚ णः सोम॒ शं गवे᳚ धु॒क्षस्व॑ पि॒प्युषी॒मिष᳚म् | वर्धा᳚ समु॒द्रमु॒क्थ्य᳚म् ||{9.61.15}, {9.3.1.15}, {7.1.20.5} |
414 | पव॑मानो अजीजनद्दि॒वश्चि॒त्रं न त᳚न्य॒तुम् | ज्योति᳚र्वैश्वान॒रं बृ॒हत् ||{9.61.16}, {9.3.1.16}, {7.1.21.1} |
415 | पव॑मानस्य ते॒ रसो॒ मदो᳚ राजन्नदुच्छु॒नः | वि वार॒मव्य॑मर्षति ||{9.61.17}, {9.3.1.17}, {7.1.21.2} |
416 | पव॑मान॒ रस॒स्तव॒ दक्षो॒ वि रा᳚जति द्यु॒मान् | ज्योति॒र्विश्वं॒ स्व॑र्दृ॒शे ||{9.61.18}, {9.3.1.18}, {7.1.21.3} |
417 | यस्ते॒ मदो॒ वरे᳚ण्य॒स्तेना᳚ पव॒स्वान्ध॑सा | दे॒वा॒वीर॑घशंस॒हा ||{9.61.19}, {9.3.1.19}, {7.1.21.4} |
418 | जघ्नि᳚र्वृ॒त्रम॑मि॒त्रियं॒ सस्नि॒र्वाजं᳚ दि॒वेदि॑वे | गो॒षा उ॑ अश्व॒सा अ॑सि ||{9.61.20}, {9.3.1.20}, {7.1.21.5} |
419 | सम्मि॑श्लो अरु॒षो भ॑व सूप॒स्थाभि॒र्न धे॒नुभिः॑ | सीद᳚ञ्छ्ये॒नो न योनि॒मा ||{9.61.21}, {9.3.1.21}, {7.1.22.1} |
420 | स प॑वस्व॒ य आवि॒थेन्द्रं᳚ वृ॒त्राय॒ हन्त॑वे | व॒व्रि॒वांसं᳚ म॒हीर॒पः ||{9.61.22}, {9.3.1.22}, {7.1.22.2} |
421 | सु॒वीरा᳚सो व॒यं धना॒ जये᳚म सोम मीढ्वः | पु॒ना॒नो व॑र्ध नो॒ गिरः॑ ||{9.61.23}, {9.3.1.23}, {7.1.22.3} |
422 | त्वोता᳚स॒स्तवाव॑सा॒ स्याम॑ व॒न्वन्त॑ आ॒मुरः॑ | सोम᳚ व्र॒तेषु॑ जागृहि ||{9.61.24}, {9.3.1.24}, {7.1.22.4} |
423 | अ॒प॒घ्नन्प॑वते॒ मृधोऽप॒ सोमो॒ अरा᳚व्णः | गच्छ॒न्निन्द्र॑स्य निष्कृ॒तम् ||{9.61.25}, {9.3.1.25}, {7.1.22.5} |
424 | म॒हो नो᳚ रा॒य आ भ॑र॒ पव॑मान ज॒ही मृधः॑ | रास्वे᳚न्दो वी॒रव॒द्यशः॑ ||{9.61.26}, {9.3.1.26}, {7.1.23.1} |
425 | न त्वा᳚ श॒तं च॒न ह्रुतो॒ राधो॒ दित्स᳚न्त॒मा मि॑नन् | यत्पु॑ना॒नो म॑ख॒स्यसे᳚ ||{9.61.27}, {9.3.1.27}, {7.1.23.2} |
426 | पव॑स्वेन्दो॒ वृषा᳚ सु॒तः कृ॒धी नो᳚ य॒शसो॒ जने᳚ | विश्वा॒ अप॒ द्विषो᳚ जहि ||{9.61.28}, {9.3.1.28}, {7.1.23.3} |
427 | अस्य॑ ते स॒ख्ये व॒यं तवे᳚न्दो द्यु॒म्न उ॑त्त॒मे | सा॒स॒ह्याम॑ पृतन्य॒तः ||{9.61.29}, {9.3.1.29}, {7.1.23.4} |
428 | या ते᳚ भी॒मान्यायु॑धा ति॒ग्मानि॒ सन्ति॒ धूर्व॑णे | रक्षा᳚ समस्य नो नि॒दः ||{9.61.30}, {9.3.1.30}, {7.1.23.5} |
[62] (१-३०) त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य भार्गवो जमदग्निषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
429 | ए॒ते अ॑सृग्र॒मिन्द॑वस्ति॒रः प॒वित्र॑मा॒शवः॑ | विश्वा᳚न्य॒भि सौभ॑गा ||{9.62.1}, {9.3.2.1}, {7.1.24.1} |
430 | वि॒घ्नन्तो᳚ दुरि॒ता पु॒रु सु॒गा तो॒काय॑ वा॒जिनः॑ | तना᳚ कृ॒ण्वन्तो॒ अर्व॑ते ||{9.62.2}, {9.3.2.2}, {7.1.24.2} |
431 | कृ॒ण्वन्तो॒ वरि॑वो॒ गवे॒ऽभ्य॑र्षन्ति सुष्टु॒तिम् | इळा᳚म॒स्मभ्यं᳚ सं॒यत᳚म् ||{9.62.3}, {9.3.2.3}, {7.1.24.3} |
432 | असा᳚व्यं॒शुर्मदा᳚या॒प्सु दक्षो᳚ गिरि॒ष्ठाः | श्ये॒नो न योनि॒मास॑दत् ||{9.62.4}, {9.3.2.4}, {7.1.24.4} |
433 | शु॒भ्रमन्धो᳚ दे॒ववा᳚तम॒प्सु धू॒तो नृभिः॑ सु॒तः | स्वद᳚न्ति॒ गावः॒ पयो᳚भिः ||{9.62.5}, {9.3.2.5}, {7.1.24.5} |
434 | आदी॒मश्वं॒ न हेता॒रोऽशू᳚शुभन्न॒मृता᳚य | मध्वो॒ रसं᳚ सध॒मादे᳚ ||{9.62.6}, {9.3.2.6}, {7.1.25.1} |
435 | यास्ते॒ धारा᳚ मधु॒श्चुतोऽसृ॑ग्रमिन्द ऊ॒तये᳚ | ताभिः॑ प॒वित्र॒मास॑दः ||{9.62.7}, {9.3.2.7}, {7.1.25.2} |
436 | सो अ॒र्षेन्द्रा᳚य पी॒तये᳚ ति॒रो रोमा᳚ण्य॒व्यया᳚ | सीद॒न्योना॒ वने॒ष्वा ||{9.62.8}, {9.3.2.8}, {7.1.25.3} |
437 | त्वमि᳚न्दो॒ परि॑ स्रव॒ स्वादि॑ष्ठो॒ अङ्गि॑रोभ्यः | व॒रि॒वो॒विद्घृ॒तं पयः॑ ||{9.62.9}, {9.3.2.9}, {7.1.25.4} |
438 | अ॒यं विच॑र्षणिर्हि॒तः पव॑मानः॒ स चे᳚तति | हि॒न्वा॒न आप्यं᳚ बृ॒हत् ||{9.62.10}, {9.3.2.10}, {7.1.25.5} |
439 | ए॒ष वृषा॒ वृष᳚व्रतः॒ पव॑मानो अशस्ति॒हा | कर॒द्वसू᳚नि दा॒शुषे᳚ ||{9.62.11}, {9.3.2.11}, {7.1.26.1} |
440 | आ प॑वस्व सह॒स्रिणं᳚ र॒यिं गोम᳚न्तम॒श्विन᳚म् | पु॒रु॒श्च॒न्द्रं पु॑रु॒स्पृह᳚म् ||{9.62.12}, {9.3.2.12}, {7.1.26.2} |
441 | ए॒ष स्य परि॑ षिच्यते मर्मृ॒ज्यमा᳚न आ॒युभिः॑ | उ॒रु॒गा॒यः क॒विक्र॑तुः ||{9.62.13}, {9.3.2.13}, {7.1.26.3} |
442 | स॒हस्रो᳚तिः श॒ताम॑घो वि॒मानो॒ रज॑सः क॒विः | इन्द्रा᳚य पवते॒ मदः॑ ||{9.62.14}, {9.3.2.14}, {7.1.26.4} |
443 | गि॒रा जा॒त इ॒ह स्तु॒त इन्दु॒रिन्द्रा᳚य धीयते | विर्योना᳚ वस॒तावि॑व ||{9.62.15}, {9.3.2.15}, {7.1.26.5} |
444 | पव॑मानः सु॒तो नृभिः॒ सोमो॒ वाज॑मिवासरत् | च॒मूषु॒ शक्म॑ना॒सद᳚म् ||{9.62.16}, {9.3.2.16}, {7.1.27.1} |
445 | तं त्रि॑पृ॒ष्ठे त्रि॑वन्धु॒रे रथे᳚ युञ्जन्ति॒ यात॑वे | ऋषी᳚णां स॒प्त धी॒तिभिः॑ ||{9.62.17}, {9.3.2.17}, {7.1.27.2} |
446 | तं सो᳚तारो धन॒स्पृत॑मा॒शुं वाजा᳚य॒ यात॑वे | हरिं᳚ हिनोत वा॒जिन᳚म् ||{9.62.18}, {9.3.2.18}, {7.1.27.3} |
447 | आ॒वि॒शन्क॒लशं᳚ सु॒तो विश्वा॒ अर्ष᳚न्न॒भि श्रियः॑ | शूरो॒ न गोषु॑ तिष्ठति ||{9.62.19}, {9.3.2.19}, {7.1.27.4} |
448 | आ त॑ इन्दो॒ मदा᳚य॒ कं पयो᳚ दुहन्त्या॒यवः॑ | दे॒वा दे॒वेभ्यो॒ मधु॑ ||{9.62.20}, {9.3.2.20}, {7.1.27.5} |
449 | आ नः॒ सोमं᳚ प॒वित्र॒ आ सृ॒जता॒ मधु॑मत्तमम् | दे॒वेभ्यो᳚ देव॒श्रुत्त॑मम् ||{9.62.21}, {9.3.2.21}, {7.1.28.1} |
450 | ए॒ते सोमा᳚ असृक्षत गृणा॒नाः श्रव॑से म॒हे | म॒दिन्त॑मस्य॒ धार॑या ||{9.62.22}, {9.3.2.22}, {7.1.28.2} |
451 | अ॒भि गव्या᳚नि वी॒तये᳚ नृ॒म्णा पु॑ना॒नो अ॑र्षसि | स॒नद्वा᳚जः॒ परि॑ स्रव ||{9.62.23}, {9.3.2.23}, {7.1.28.3} |
452 | उ॒त नो॒ गोम॑ती॒रिषो॒ विश्वा᳚ अर्ष परि॒ष्टुभः॑ | गृ॒णा॒नो ज॒मद॑ग्निना ||{9.62.24}, {9.3.2.24}, {7.1.28.4} |
453 | पव॑स्व वा॒चो अ॑ग्रि॒यः सोम॑ चि॒त्राभि॑रू॒तिभिः॑ | अ॒भि विश्वा᳚नि॒ काव्या᳚ ||{9.62.25}, {9.3.2.25}, {7.1.28.5} |
454 | त्वं स॑मु॒द्रिया᳚ अ॒पो᳚ऽग्रि॒यो वाच॑ ई॒रय॑न् | पव॑स्व विश्वमेजय ||{9.62.26}, {9.3.2.26}, {7.1.29.1} |
455 | तुभ्ये॒मा भुव॑ना कवे महि॒म्ने सो᳚म तस्थिरे | तुभ्य॑मर्षन्ति॒ सिन्ध॑वः ||{9.62.27}, {9.3.2.27}, {7.1.29.2} |
456 | प्र ते᳚ दि॒वो न वृ॒ष्टयो॒ धारा᳚ यन्त्यस॒श्चतः॑ | अ॒भि शु॒क्रामु॑प॒स्तिर᳚म् ||{9.62.28}, {9.3.2.28}, {7.1.29.3} |
457 | इन्द्रा॒येन्दुं᳚ पुनीतनो॒ग्रं दक्षा᳚य॒ साध॑नम् | ई॒शा॒नं वी॒तिरा᳚धसम् ||{9.62.29}, {9.3.2.29}, {7.1.29.4} |
458 | पव॑मान ऋ॒तः क॒विः सोमः॑ प॒वित्र॒मास॑दत् | दध॑त्स्तो॒त्रे सु॒वीर्य᳚म् ||{9.62.30}, {9.3.2.30}, {7.1.29.5} |
[63] (१-३०) त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य काश्यपो निध्रविषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
459 | आ प॑वस्व सह॒स्रिणं᳚ र॒यिं सो᳚म सु॒वीर्य᳚म् | अ॒स्मे श्रवां᳚सि धारय ||{9.63.1}, {9.3.3.1}, {7.1.30.1} |
460 | इष॒मूर्जं᳚ च पिन्वस॒ इन्द्रा᳚य मत्स॒रिन्त॑मः | च॒मूष्वा नि षी᳚दसि ||{9.63.2}, {9.3.3.2}, {7.1.30.2} |
461 | सु॒त इन्द्रा᳚य॒ विष्ण॑वे॒ सोमः॑ क॒लशे᳚ अक्षरत् | मधु॑माँ अस्तु वा॒यवे᳚ ||{9.63.3}, {9.3.3.3}, {7.1.30.3} |
462 | ए॒ते अ॑सृग्रमा॒शवोऽति॒ ह्वरां᳚सि ब॒भ्रवः॑ | सोमा᳚ ऋ॒तस्य॒ धार॑या ||{9.63.4}, {9.3.3.4}, {7.1.30.4} |
463 | इन्द्रं॒ वर्ध᳚न्तो अ॒प्तुरः॑ कृ॒ण्वन्तो॒ विश्व॒मार्य᳚म् | अ॒प॒घ्नन्तो॒ अरा᳚व्णः ||{9.63.5}, {9.3.3.5}, {7.1.30.5} |
464 | सु॒ता अनु॒ स्वमा रजो॒ऽभ्य॑र्षन्ति ब॒भ्रवः॑ | इन्द्रं॒ गच्छ᳚न्त॒ इन्द॑वः ||{9.63.6}, {9.3.3.6}, {7.1.31.1} |
465 | अ॒या प॑वस्व॒ धार॑या॒ यया॒ सूर्य॒मरो᳚चयः | हि॒न्वा॒नो मानु॑षीर॒पः ||{9.63.7}, {9.3.3.7}, {7.1.31.2} |
466 | अयु॑क्त॒ सूर॒ एत॑शं॒ पव॑मानो म॒नावधि॑ | अ॒न्तरि॑क्षेण॒ यात॑वे ||{9.63.8}, {9.3.3.8}, {7.1.31.3} |
467 | उ॒त त्या ह॒रितो॒ दश॒ सूरो᳚ अयुक्त॒ यात॑वे | इन्दु॒रिन्द्र॒ इति॑ ब्रु॒वन् ||{9.63.9}, {9.3.3.9}, {7.1.31.4} |
468 | परी॒तो वा॒यवे᳚ सु॒तं गिर॒ इन्द्रा᳚य मत्स॒रम् | अव्यो॒ वारे᳚षु सिञ्चत ||{9.63.10}, {9.3.3.10}, {7.1.31.5} |
469 | पव॑मान वि॒दा र॒यिम॒स्मभ्यं᳚ सोम दु॒ष्टर᳚म् | यो दू॒णाशो᳚ वनुष्य॒ता ||{9.63.11}, {9.3.3.11}, {7.1.32.1} |
470 | अ॒भ्य॑र्ष सह॒स्रिणं᳚ र॒यिं गोम᳚न्तम॒श्विन᳚म् | अ॒भि वाज॑मु॒त श्रवः॑ ||{9.63.12}, {9.3.3.12}, {7.1.32.2} |
471 | सोमो᳚ दे॒वो न सूर्योऽद्रि॑भिः पवते सु॒तः | दधा᳚नः क॒लशे॒ रस᳚म् ||{9.63.13}, {9.3.3.13}, {7.1.32.3} |
472 | ए॒ते धामा॒न्यार्या᳚ शु॒क्रा ऋ॒तस्य॒ धार॑या | वाजं॒ गोम᳚न्तमक्षरन् ||{9.63.14}, {9.3.3.14}, {7.1.32.4} |
473 | सु॒ता इन्द्रा᳚य व॒ज्रिणे॒ सोमा᳚सो॒ दध्या᳚शिरः | प॒वित्र॒मत्य॑क्षरन् ||{9.63.15}, {9.3.3.15}, {7.1.32.5} |
474 | प्र सो᳚म॒ मधु॑मत्तमो रा॒ये अ॑र्ष प॒वित्र॒ आ | मदो॒ यो दे᳚व॒वीत॑मः ||{9.63.16}, {9.3.3.16}, {7.1.33.1} |
475 | तमी᳚ मृजन्त्या॒यवो॒ हरिं᳚ न॒दीषु॑ वा॒जिन᳚म् | इन्दु॒मिन्द्रा᳚य मत्स॒रम् ||{9.63.17}, {9.3.3.17}, {7.1.33.2} |
476 | आ प॑वस्व॒ हिर᳚ण्यव॒दश्वा᳚वत्सोम वी॒रव॑त् | वाजं॒ गोम᳚न्त॒मा भ॑र ||{9.63.18}, {9.3.3.18}, {7.1.33.3} |
477 | परि॒ वाजे॒ न वा᳚ज॒युमव्यो॒ वारे᳚षु सिञ्चत | इन्द्रा᳚य॒ मधु॑मत्तमम् ||{9.63.19}, {9.3.3.19}, {7.1.33.4} |
478 | क॒विं मृ॑जन्ति॒ मर्ज्यं᳚ धी॒भिर्विप्रा᳚ अव॒स्यवः॑ | वृषा॒ कनि॑क्रदर्षति ||{9.63.20}, {9.3.3.20}, {7.1.33.5} |
479 | वृष॑णं धी॒भिर॒प्तुरं॒ सोम॑मृ॒तस्य॒ धार॑या | म॒ती विप्राः॒ सम॑स्वरन् ||{9.63.21}, {9.3.3.21}, {7.1.34.1} |
480 | पव॑स्व देवायु॒षगिन्द्रं᳚ गच्छतु ते॒ मदः॑ | वा॒युमा रो᳚ह॒ धर्म॑णा ||{9.63.22}, {9.3.3.22}, {7.1.34.2} |
481 | पव॑मान॒ नि तो᳚शसे र॒यिं सो᳚म श्र॒वाय्य᳚म् | प्रि॒यः स॑मु॒द्रमा वि॑श ||{9.63.23}, {9.3.3.23}, {7.1.34.3} |
482 | अ॒प॒घ्नन्प॑वसे॒ मृधः॑ क्रतु॒वित्सो᳚म मत्स॒रः | नु॒दस्वादे᳚वयुं॒ जन᳚म् ||{9.63.24}, {9.3.3.24}, {7.1.34.4} |
483 | पव॑माना असृक्षत॒ सोमाः᳚ शु॒क्रास॒ इन्द॑वः | अ॒भि विश्वा᳚नि॒ काव्या᳚ ||{9.63.25}, {9.3.3.25}, {7.1.34.5} |
484 | पव॑मानास आ॒शवः॑ शु॒भ्रा अ॑सृग्र॒मिन्द॑वः | घ्नन्तो॒ विश्वा॒ अप॒ द्विषः॑ ||{9.63.26}, {9.3.3.26}, {7.1.35.1} |
485 | पव॑माना दि॒वस्पर्य॒न्तरि॑क्षादसृक्षत | पृ॒थि॒व्या अधि॒ सान॑वि ||{9.63.27}, {9.3.3.27}, {7.1.35.2} |
486 | पु॒ना॒नः सो᳚म॒ धार॒येन्दो॒ विश्वा॒ अप॒ स्रिधः॑ | ज॒हि रक्षां᳚सि सुक्रतो ||{9.63.28}, {9.3.3.28}, {7.1.35.3} |
487 | अ॒प॒घ्नन्सो᳚म र॒क्षसो॒ऽभ्य॑र्ष॒ कनि॑क्रदत् | द्यु॒मन्तं॒ शुष्म॑मुत्त॒मम् ||{9.63.29}, {9.3.3.29}, {7.1.35.4} |
488 | अ॒स्मे वसू᳚नि धारय॒ सोम॑ दि॒व्यानि॒ पार्थि॑वा | इन्दो॒ विश्वा᳚नि॒ वार्या᳚ ||{9.63.30}, {9.3.3.30}, {7.1.35.5} |
[64] (१-३०) त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य मारीचः कश्यप ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
489 | वृषा᳚ सोम द्यु॒माँ अ॑सि॒ वृषा᳚ देव॒ वृष᳚व्रतः | वृषा॒ धर्मा᳚णि दधिषे ||{9.64.1}, {9.3.4.1}, {7.1.36.1} |
490 | वृष्ण॑स्ते॒ वृष्ण्यं॒ शवो॒ वृषा॒ वनं॒ वृषा॒ मदः॑ | स॒त्यं वृ॑ष॒न्वृषेद॑सि ||{9.64.2}, {9.3.4.2}, {7.1.36.2} |
491 | अश्वो॒ न च॑क्रदो॒ वृषा॒ सं गा इ᳚न्दो॒ समर्व॑तः | वि नो᳚ रा॒ये दुरो᳚ वृधि ||{9.64.3}, {9.3.4.3}, {7.1.36.3} |
492 | असृ॑क्षत॒ प्र वा॒जिनो᳚ ग॒व्या सोमा᳚सो अश्व॒या | शु॒क्रासो᳚ वीर॒याशवः॑ ||{9.64.4}, {9.3.4.4}, {7.1.36.4} |
493 | शु॒म्भमा᳚ना ऋता॒युभि᳚र्मृ॒ज्यमा᳚ना॒ गभ॑स्त्योः | पव᳚न्ते॒ वारे᳚ अ॒व्यये᳚ ||{9.64.5}, {9.3.4.5}, {7.1.36.5} |
494 | ते विश्वा᳚ दा॒शुषे॒ वसु॒ सोमा᳚ दि॒व्यानि॒ पार्थि॑वा | पव᳚न्ता॒मान्तरि॑क्ष्या ||{9.64.6}, {9.3.4.6}, {7.1.37.1} |
495 | पव॑मानस्य विश्ववि॒त्प्र ते॒ सर्गा᳚ असृक्षत | सूर्य॑स्येव॒ न र॒श्मयः॑ ||{9.64.7}, {9.3.4.7}, {7.1.37.2} |
496 | के॒तुं कृ॒ण्वन्दि॒वस्परि॒ विश्वा᳚ रू॒पाभ्य॑र्षसि | स॒मु॒द्रः सो᳚म पिन्वसे ||{9.64.8}, {9.3.4.8}, {7.1.37.3} |
497 | हि॒न्वा॒नो वाच॑मिष्यसि॒ पव॑मान॒ विध᳚र्मणि | अक्रा᳚न्दे॒वो न सूर्यः॑ ||{9.64.9}, {9.3.4.9}, {7.1.37.4} |
498 | इन्दुः॑ पविष्ट॒ चेत॑नः प्रि॒यः क॑वी॒नां म॒ती | सृ॒जदश्वं᳚ र॒थीरि॑व ||{9.64.10}, {9.3.4.10}, {7.1.37.5} |
499 | ऊ॒र्मिर्यस्ते᳚ प॒वित्र॒ आ दे᳚वा॒वीः प॒र्यक्ष॑रत् | सीद᳚न्नृ॒तस्य॒ योनि॒मा ||{9.64.11}, {9.3.4.11}, {7.1.38.1} |
500 | स नो᳚ अर्ष प॒वित्र॒ आ मदो॒ यो दे᳚व॒वीत॑मः | इन्द॒विन्द्रा᳚य पी॒तये᳚ ||{9.64.12}, {9.3.4.12}, {7.1.38.2} |
501 | इ॒षे प॑वस्व॒ धार॑या मृ॒ज्यमा᳚नो मनी॒षिभिः॑ | इन्दो᳚ रु॒चाभि गा इ॑हि ||{9.64.13}, {9.3.4.13}, {7.1.38.3} |
502 | पु॒ना॒नो वरि॑वस्कृ॒ध्यूर्जं॒ जना᳚य गिर्वणः | हरे᳚ सृजा॒न आ॒शिर᳚म् ||{9.64.14}, {9.3.4.14}, {7.1.38.4} |
503 | पु॒ना॒नो दे॒ववी᳚तय॒ इन्द्र॑स्य याहि निष्कृ॒तम् | द्यु॒ता॒नो वा॒जिभि᳚र्य॒तः ||{9.64.15}, {9.3.4.15}, {7.1.38.5} |
504 | प्र हि᳚न्वा॒नास॒ इन्द॒वोऽच्छा᳚ समु॒द्रमा॒शवः॑ | धि॒या जू॒ता अ॑सृक्षत ||{9.64.16}, {9.3.4.16}, {7.1.39.1} |
505 | म॒र्मृ॒जा॒नास॑ आ॒यवो॒ वृथा᳚ समु॒द्रमिन्द॑वः | अग्म᳚न्नृ॒तस्य॒ योनि॒मा ||{9.64.17}, {9.3.4.17}, {7.1.39.2} |
506 | परि॑ णो याह्यस्म॒युर्विश्वा॒ वसू॒न्योज॑सा | पा॒हि नः॒ शर्म॑ वी॒रव॑त् ||{9.64.18}, {9.3.4.18}, {7.1.39.3} |
507 | मिमा᳚ति॒ वह्नि॒रेत॑शः प॒दं यु॑जा॒न ऋक्व॑भिः | प्र यत्स॑मु॒द्र आहि॑तः ||{9.64.19}, {9.3.4.19}, {7.1.39.4} |
508 | आ यद्योनिं᳚ हिर॒ण्यय॑मा॒शुरृ॒तस्य॒ सीद॑ति | जहा॒त्यप्र॑चेतसः ||{9.64.20}, {9.3.4.20}, {7.1.39.5} |
509 | अ॒भि वे॒ना अ॑नूष॒तेय॑क्षन्ति॒ प्रचे᳚तसः | मज्ज॒न्त्यवि॑चेतसः ||{9.64.21}, {9.3.4.21}, {7.1.40.1} |
510 | इन्द्रा᳚येन्दो म॒रुत्व॑ते॒ पव॑स्व॒ मधु॑मत्तमः | ऋ॒तस्य॒ योनि॑मा॒सद᳚म् ||{9.64.22}, {9.3.4.22}, {7.1.40.2} |
511 | तं त्वा॒ विप्रा᳚ वचो॒विदः॒ परि॑ ष्कृण्वन्ति वे॒धसः॑ | सं त्वा᳚ मृजन्त्या॒यवः॑ ||{9.64.23}, {9.3.4.23}, {7.1.40.3} |
512 | रसं᳚ ते मि॒त्रो अ᳚र्य॒मा पिब᳚न्ति॒ वरु॑णः कवे | पव॑मानस्य म॒रुतः॑ ||{9.64.24}, {9.3.4.24}, {7.1.40.4} |
513 | त्वं सो᳚म विप॒श्चितं᳚ पुना॒नो वाच॑मिष्यसि | इन्दो᳚ स॒हस्र॑भर्णसम् ||{9.64.25}, {9.3.4.25}, {7.1.40.5} |
514 | उ॒तो स॒हस्र॑भर्णसं॒ वाचं᳚ सोम मख॒स्युव᳚म् | पु॒ना॒न इ᳚न्द॒वा भ॑र ||{9.64.26}, {9.3.4.26}, {7.1.41.1} |
515 | पु॒ना॒न इ᳚न्दवेषां॒ पुरु॑हूत॒ जना᳚नाम् | प्रि॒यः स॑मु॒द्रमा वि॑श ||{9.64.27}, {9.3.4.27}, {7.1.41.2} |
516 | दवि॑द्युतत्या रु॒चा प॑रि॒ष्टोभ᳚न्त्या कृ॒पा | सोमाः᳚ शु॒क्रा गवा᳚शिरः ||{9.64.28}, {9.3.4.28}, {7.1.41.3} |
517 | हि॒न्वा॒नो हे॒तृभि᳚र्य॒त आ वाजं᳚ वा॒ज्य॑क्रमीत् | सीद᳚न्तो व॒नुषो᳚ यथा ||{9.64.29}, {9.3.4.29}, {7.1.41.4} |
518 | ऋ॒धक्सो᳚म स्व॒स्तये᳚ संजग्मा॒नो दि॒वः क॒विः | पव॑स्व॒ सूर्यो᳚ दृ॒शे ||{9.64.30}, {9.3.4.30}, {7.1.41.5} |
[65] (१-३०) त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य वारुणिभृर्ग भु गिर्वो जमदग्निर्वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
519 | हि॒न्वन्ति॒ सूर॒मुस्र॑यः॒ स्वसा᳚रो जा॒मय॒स्पति᳚म् | म॒हामिन्दुं᳚ मही॒युवः॑ ||{9.65.1}, {9.3.5.1}, {7.2.1.1} |
520 | पव॑मान रु॒चारु॑चा दे॒वो दे॒वेभ्य॒स्परि॑ | विश्वा॒ वसू॒न्या वि॑श ||{9.65.2}, {9.3.5.2}, {7.2.1.2} |
521 | आ प॑वमान सुष्टु॒तिं वृ॒ष्टिं दे॒वेभ्यो॒ दुवः॑ | इ॒षे प॑वस्व सं॒यत᳚म् ||{9.65.3}, {9.3.5.3}, {7.2.1.3} |
522 | वृषा॒ ह्यसि॑ भा॒नुना᳚ द्यु॒मन्तं᳚ त्वा हवामहे | पव॑मान स्वा॒ध्यः॑ ||{9.65.4}, {9.3.5.4}, {7.2.1.4} |
523 | आ प॑वस्व सु॒वीर्यं॒ मन्द॑मानः स्वायुध | इ॒हो ष्वि᳚न्द॒वा ग॑हि ||{9.65.5}, {9.3.5.5}, {7.2.1.5} |
524 | यद॒द्भिः प॑रिषि॒च्यसे᳚ मृ॒ज्यमा᳚नो॒ गभ॑स्त्योः | द्रुणा᳚ स॒धस्थ॑मश्नुषे ||{9.65.6}, {9.3.5.6}, {7.2.2.1} |
525 | प्र सोमा᳚य व्यश्व॒वत्पव॑मानाय गायत | म॒हे स॒हस्र॑चक्षसे ||{9.65.7}, {9.3.5.7}, {7.2.2.2} |
526 | यस्य॒ वर्णं᳚ मधु॒श्चुतं॒ हरिं᳚ हि॒न्वन्त्यद्रि॑भिः | इन्दु॒मिन्द्रा᳚य पी॒तये᳚ ||{9.65.8}, {9.3.5.8}, {7.2.2.3} |
527 | तस्य॑ ते वा॒जिनो᳚ व॒यं विश्वा॒ धना᳚नि जि॒ग्युषः॑ | स॒खि॒त्वमा वृ॑णीमहे ||{9.65.9}, {9.3.5.9}, {7.2.2.4} |
528 | वृषा᳚ पवस्व॒ धार॑या म॒रुत्व॑ते च मत्स॒रः | विश्वा॒ दधा᳚न॒ ओज॑सा ||{9.65.10}, {9.3.5.10}, {7.2.2.5} |
529 | तं त्वा᳚ ध॒र्तार॑मो॒ण्यो॒३॑(ओ॒)ः पव॑मान स्व॒र्दृश᳚म् | हि॒न्वे वाजे᳚षु वा॒जिन᳚म् ||{9.65.11}, {9.3.5.11}, {7.2.3.1} |
530 | अ॒या चि॒त्तो वि॒पानया॒ हरिः॑ पवस्व॒ धार॑या | युजं॒ वाजे᳚षु चोदय ||{9.65.12}, {9.3.5.12}, {7.2.3.2} |
531 | आ न॑ इन्दो म॒हीमिषं॒ पव॑स्व वि॒श्वद॑र्शतः | अ॒स्मभ्यं᳚ सोम गातु॒वित् ||{9.65.13}, {9.3.5.13}, {7.2.3.3} |
532 | आ क॒लशा᳚ अनूष॒तेन्दो॒ धारा᳚भि॒रोज॑सा | एन्द्र॑स्य पी॒तये᳚ विश ||{9.65.14}, {9.3.5.14}, {7.2.3.4} |
533 | यस्य॑ ते॒ मद्यं॒ रसं᳚ ती॒व्रं दु॒हन्त्यद्रि॑भिः | स प॑वस्वाभिमाति॒हा ||{9.65.15}, {9.3.5.15}, {7.2.3.5} |
534 | राजा᳚ मे॒धाभि॑रीयते॒ पव॑मानो म॒नावधि॑ | अ॒न्तरि॑क्षेण॒ यात॑वे ||{9.65.16}, {9.3.5.16}, {7.2.4.1} |
535 | आ न॑ इन्दो शत॒ग्विनं॒ गवां॒ पोषं॒ स्वश्व्य᳚म् | वहा॒ भग॑त्तिमू॒तये᳚ ||{9.65.17}, {9.3.5.17}, {7.2.4.2} |
536 | आ नः॑ सोम॒ सहो॒ जुवो᳚ रू॒पं न वर्च॑से भर | सु॒ष्वा॒णो दे॒ववी᳚तये ||{9.65.18}, {9.3.5.18}, {7.2.4.3} |
537 | अर्षा᳚ सोम द्यु॒मत्त॑मो॒ऽभि द्रोणा᳚नि॒ रोरु॑वत् | सीद᳚ञ्छ्ये॒नो न योनि॒मा ||{9.65.19}, {9.3.5.19}, {7.2.4.4} |
538 | अ॒प्सा इन्द्रा᳚य वा॒यवे॒ वरु॑णाय म॒रुद्भ्यः॑ | सोमो᳚ अर्षति॒ विष्ण॑वे ||{9.65.20}, {9.3.5.20}, {7.2.4.5} |
539 | इषं᳚ तो॒काय॑ नो॒ दध॑द॒स्मभ्यं᳚ सोम वि॒श्वतः॑ | आ प॑वस्व सह॒स्रिण᳚म् ||{9.65.21}, {9.3.5.21}, {7.2.5.1} |
540 | ये सोमा᳚सः परा॒वति॒ ये अ᳚र्वा॒वति॑ सुन्वि॒रे | ये वा॒दः श᳚र्य॒णाव॑ति ||{9.65.22}, {9.3.5.22}, {7.2.5.2} |
541 | य आ᳚र्जी॒केषु॒ कृत्व॑सु॒ ये मध्ये᳚ प॒स्त्या᳚नाम् | ये वा॒ जने᳚षु प॒ञ्चसु॑ ||{9.65.23}, {9.3.5.23}, {7.2.5.3} |
542 | ते नो᳚ वृ॒ष्टिं दि॒वस्परि॒ पव᳚न्ता॒मा सु॒वीर्य᳚म् | सु॒वा॒ना दे॒वास॒ इन्द॑वः ||{9.65.24}, {9.3.5.24}, {7.2.5.4} |
543 | पव॑ते हर्य॒तो हरि॑र्गृणा॒नो ज॒मद॑ग्निना | हि॒न्वा॒नो गोरधि॑ त्व॒चि ||{9.65.25}, {9.3.5.25}, {7.2.5.5} |
544 | प्र शु॒क्रासो᳚ वयो॒जुवो᳚ हिन्वा॒नासो॒ न सप्त॑यः | श्री॒णा॒ना अ॒प्सु मृ᳚ञ्जत ||{9.65.26}, {9.3.5.26}, {7.2.6.1} |
545 | तं त्वा᳚ सु॒तेष्वा॒भुवो᳚ हिन्वि॒रे दे॒वता᳚तये | स प॑वस्वा॒नया᳚ रु॒चा ||{9.65.27}, {9.3.5.27}, {7.2.6.2} |
546 | आ ते॒ दक्षं᳚ मयो॒भुवं॒ वह्नि॑म॒द्या वृ॑णीमहे | पान्त॒मा पु॑रु॒स्पृह᳚म् ||{9.65.28}, {9.3.5.28}, {7.2.6.3} |
547 | आ म॒न्द्रमा वरे᳚ण्य॒मा विप्र॒मा म॑नी॒षिण᳚म् | पान्त॒मा पु॑रु॒स्पृह᳚म् ||{9.65.29}, {9.3.5.29}, {7.2.6.4} |
548 | आ र॒यिमा सु॑चे॒तुन॒मा सु॑क्रतो त॒नूष्वा | पान्त॒मा पु॑रु॒स्पृह᳚म् ||{9.65.30}, {9.3.5.30}, {7.2.6.5} |
[66] (१-३०) त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य शतं वैखानसा ऋषयः (१-१८, २२-३०) प्रथमाद्यष्टादशों द्वाविंश्यादिनवानाञ्च पवमानः सोमः, (१९-२१) एकोनविंश्यादितृचस्य च पवमानोऽग्निदेवते | (१-१७, १९-३०) प्रथमादिसप्तदशर्चामक नविंश्यादिद्वादशानाञ्च गायत्री, (१८) अष्टादश्याश्चानुष्टप् छन्दसी || | |
549 | पव॑स्व विश्वचर्षणे॒ऽभि विश्वा᳚नि॒ काव्या᳚ | सखा॒ सखि॑भ्य॒ ईड्यः॑ ||{9.66.1}, {9.3.6.1}, {7.2.7.1} |
550 | ताभ्यां॒ विश्व॑स्य राजसि॒ ये प॑वमान॒ धाम॑नी | प्र॒ती॒ची सो᳚म त॒स्थतुः॑ ||{9.66.2}, {9.3.6.2}, {7.2.7.2} |
551 | परि॒ धामा᳚नि॒ यानि॑ ते॒ त्वं सो᳚मासि वि॒श्वतः॑ | पव॑मान ऋ॒तुभिः॑ कवे ||{9.66.3}, {9.3.6.3}, {7.2.7.3} |
552 | पव॑स्व ज॒नय॒न्निषो॒ऽभि विश्वा᳚नि॒ वार्या᳚ | सखा॒ सखि॑भ्य ऊ॒तये᳚ ||{9.66.4}, {9.3.6.4}, {7.2.7.4} |
553 | तव॑ शु॒क्रासो᳚ अ॒र्चयो᳚ दि॒वस्पृ॒ष्ठे वि त᳚न्वते | प॒वित्रं᳚ सोम॒ धाम॑भिः ||{9.66.5}, {9.3.6.5}, {7.2.7.5} |
554 | तवे॒मे स॒प्त सिन्ध॑वः प्र॒शिषं᳚ सोम सिस्रते | तुभ्यं᳚ धावन्ति धे॒नवः॑ ||{9.66.6}, {9.3.6.6}, {7.2.8.1} |
555 | प्र सो᳚म याहि॒ धार॑या सु॒त इन्द्रा᳚य मत्स॒रः | दधा᳚नो॒ अक्षि॑ति॒ श्रवः॑ ||{9.66.7}, {9.3.6.7}, {7.2.8.2} |
556 | समु॑ त्वा धी॒भिर॑स्वरन्हिन्व॒तीः स॒प्त जा॒मयः॑ | विप्र॑मा॒जा वि॒वस्व॑तः ||{9.66.8}, {9.3.6.8}, {7.2.8.3} |
557 | मृ॒जन्ति॑ त्वा॒ सम॒ग्रुवोऽव्ये᳚ जी॒रावधि॒ ष्वणि॑ | रे॒भो यद॒ज्यसे॒ वने᳚ ||{9.66.9}, {9.3.6.9}, {7.2.8.4} |
558 | पव॑मानस्य ते कवे॒ वाजि॒न्सर्गा᳚ असृक्षत | अर्व᳚न्तो॒ न श्र॑व॒स्यवः॑ ||{9.66.10}, {9.3.6.10}, {7.2.8.5} |
559 | अच्छा॒ कोशं᳚ मधु॒श्चुत॒मसृ॑ग्रं॒ वारे᳚ अ॒व्यये᳚ | अवा᳚वशन्त धी॒तयः॑ ||{9.66.11}, {9.3.6.11}, {7.2.9.1} |
560 | अच्छा᳚ समु॒द्रमिन्द॒वोऽस्तं॒ गावो॒ न धे॒नवः॑ | अग्म᳚न्नृ॒तस्य॒ योनि॒मा ||{9.66.12}, {9.3.6.12}, {7.2.9.2} |
561 | प्र ण॑ इन्दो म॒हे रण॒ आपो᳚ अर्षन्ति॒ सिन्ध॑वः | यद्गोभि᳚र्वासयि॒ष्यसे᳚ ||{9.66.13}, {9.3.6.13}, {7.2.9.3} |
562 | अस्य॑ ते स॒ख्ये व॒यमिय॑क्षन्त॒स्त्वोत॑यः | इन्दो᳚ सखि॒त्वमु॑श्मसि ||{9.66.14}, {9.3.6.14}, {7.2.9.4} |
563 | आ प॑वस्व॒ गवि॑ष्टये म॒हे सो᳚म नृ॒चक्ष॑से | एन्द्र॑स्य ज॒ठरे᳚ विश ||{9.66.15}, {9.3.6.15}, {7.2.9.5} |
564 | म॒हाँ अ॑सि सोम॒ ज्येष्ठ॑ उ॒ग्राणा᳚मिन्द॒ ओजि॑ष्ठः | युध्वा॒ सञ्छश्व॑ज्जिगेथ ||{9.66.16}, {9.3.6.16}, {7.2.10.1} |
565 | य उ॒ग्रेभ्य॑श्चि॒दोजी᳚या॒ञ्छूरे᳚भ्यश्चि॒च्छूर॑तरः | भू॒रि॒दाभ्य॑श्चि॒न्मंही᳚यान् ||{9.66.17}, {9.3.6.17}, {7.2.10.2} |
566 | त्वं सो᳚म॒ सूर॒ एष॑स्तो॒कस्य॑ सा॒ता त॒नूना᳚म् | वृ॒णी॒महे᳚ स॒ख्याय॑ वृणी॒महे॒ युज्या᳚य ||{9.66.18}, {9.3.6.18}, {7.2.10.3} |
567 | अग्न॒ आयूं᳚षि पवस॒ आ सु॒वोर्ज॒मिषं᳚ च नः | आ॒रे बा᳚धस्व दु॒च्छुना᳚म् ||{9.66.19}, {9.3.6.19}, {7.2.10.4} |
568 | अ॒ग्निरृषिः॒ पव॑मानः॒ पाञ्च॑जन्यः पु॒रोहि॑तः | तमी᳚महे महाग॒यम् ||{9.66.20}, {9.3.6.20}, {7.2.10.5} |
569 | अग्ने॒ पव॑स्व॒ स्वपा᳚ अ॒स्मे वर्चः॑ सु॒वीर्य᳚म् | दध॑द्र॒यिं मयि॒ पोष᳚म् ||{9.66.21}, {9.3.6.21}, {7.2.11.1} |
570 | पव॑मानो॒ अति॒ स्रिधो॒ऽभ्य॑र्षति सुष्टु॒तिम् | सूरो॒ न वि॒श्वद॑र्शतः ||{9.66.22}, {9.3.6.22}, {7.2.11.2} |
571 | स म᳚र्मृजा॒न आ॒युभिः॒ प्रय॑स्वा॒न्प्रय॑से हि॒तः | इन्दु॒रत्यो᳚ विचक्ष॒णः ||{9.66.23}, {9.3.6.23}, {7.2.11.3} |
572 | पव॑मान ऋ॒तं बृ॒हच्छु॒क्रं ज्योति॑रजीजनत् | कृ॒ष्णा तमां᳚सि॒ जङ्घ॑नत् ||{9.66.24}, {9.3.6.24}, {7.2.11.4} |
573 | पव॑मानस्य॒ जङ्घ्न॑तो॒ हरे᳚श्च॒न्द्रा अ॑सृक्षत | जी॒रा अ॑जि॒रशो᳚चिषः ||{9.66.25}, {9.3.6.25}, {7.2.11.5} |
574 | पव॑मानो र॒थीत॑मः शु॒भ्रेभिः॑ शु॒भ्रश॑स्तमः | हरि॑श्चन्द्रो म॒रुद्ग॑णः ||{9.66.26}, {9.3.6.26}, {7.2.12.1} |
575 | पव॑मानो॒ व्य॑श्नवद्र॒श्मिभि᳚र्वाज॒सात॑मः | दध॑त्स्तो॒त्रे सु॒वीर्य᳚म् ||{9.66.27}, {9.3.6.27}, {7.2.12.2} |
576 | प्र सु॑वा॒न इन्दु॑रक्षाः प॒वित्र॒मत्य॒व्यय᳚म् | पु॒ना॒न इन्दु॒रिन्द्र॒मा ||{9.66.28}, {9.3.6.28}, {7.2.12.3} |
577 | ए॒ष सोमो॒ अधि॑ त्व॒चि गवां᳚ क्रीळ॒त्यद्रि॑भिः | इन्द्रं॒ मदा᳚य॒ जोहु॑वत् ||{9.66.29}, {9.3.6.29}, {7.2.12.4} |
578 | यस्य॑ ते द्यु॒म्नव॒त्पयः॒ पव॑मा॒नाभृ॑तं दि॒वः | तेन॑ नो मृळ जी॒वसे᳚ ||{9.66.30}, {9.3.6.30}, {7.2.12.5} |
[67] (१-३२) द्वात्रिंशदृचस्य सूक्तस्य सप्तर्षयः-(१-३) प्रथमादितृचस्य बार्हस्पत्यो भरद्वाजः, (४-६) चतुर्थ्यादितृचस्य मारीचः कश्यपः, (७-९) सप्तम्यादितृचस्य रहूगणो गोतमः, (१०-१२) दशम्यादितृचस्य भौमोऽत्रिः, (१३-१५) त्रयोदश्यादितृचस्य गाथिनो विश्वामित्रः, (१६-१८) षोडश्यादितृचस्य भार्गवो जमदग्निः, (१९-२१) एकोनविंश्यादितृचस्य मैत्रावरुणिर्वसिष्ठः, (२२-३२) द्वाविंश्याद्येकादश ञ्चाङ्गिरसः पवित्रो वसिष्ठो वोभौ वा ऋषयः (१-९, १३-२२, २८-३०) प्रथमादिनवर्चाम् त्रयोदश्यादिदशानामष्टाविंश्यादितृचस्य च पवमानः सोमः, (१०-१२) दशम्यादितृचस्य पवमानः पूषा सोमो वा, (२३-२४) त्रयोविंशीचतुर्विंश्योः पवमानोऽग्निः, (२५) पञ्चविंश्याः पवमानोऽग्निः सविता वा, (२६) षड्विशं याः पवमानोऽग्निः पवमानाग्निसवितारो वा, (२७) सप्तविंश्याः पवमानोऽग्निर्विश्वे देवा वा, (३१-३२) एकत्रिंशीद्वात्रिंश्योश्च पावमान्यध्येतस्तुतिदेवताः | (१-१५, १९-२६, २८-२९) प्रथमादिपञ्चदशर्चामके नविंश्याद्यष्टानामष्टाविंश्येकोनत्रिंश्योश्च गायत्री, (१६-१८) षोडश्यादितृचस्य द्विपदा गायत्री, (२७, ३१-३२) सप्तविंश्येकत्रिंशीद्वात्रिंशीनामनुष्टुप्, (३०) त्रिंश्याश्च पर उष्णिक् छन्दांसि || | |
579 | त्वं सो᳚मासि धार॒युर्म॒न्द्र ओजि॑ष्ठो अध्व॒रे | पव॑स्व मंह॒यद्र॑यिः ||{9.67.1}, {9.3.7.1}, {7.2.13.1} |
580 | त्वं सु॒तो नृ॒माद॑नो दध॒न्वान्म॑त्स॒रिन्त॑मः | इन्द्रा᳚य सू॒रिरन्ध॑सा ||{9.67.2}, {9.3.7.2}, {7.2.13.2} |
581 | त्वं सु॑ष्वा॒णो अद्रि॑भिर॒भ्य॑र्ष॒ कनि॑क्रदत् | द्यु॒मन्तं॒ शुष्म॑मुत्त॒मम् ||{9.67.3}, {9.3.7.3}, {7.2.13.3} |
582 | इन्दु॑र्हिन्वा॒नो अ॑र्षति ति॒रो वारा᳚ण्य॒व्यया᳚ | हरि॒र्वाज॑मचिक्रदत् ||{9.67.4}, {9.3.7.4}, {7.2.13.4} |
583 | इन्दो॒ व्यव्य॑मर्षसि॒ वि श्रवां᳚सि॒ वि सौभ॑गा | वि वाजा᳚न्सोम॒ गोम॑तः ||{9.67.5}, {9.3.7.5}, {7.2.13.5} |
584 | आ न॑ इन्दो शत॒ग्विनं᳚ र॒यिं गोम᳚न्तम॒श्विन᳚म् | भरा᳚ सोम सह॒स्रिण᳚म् ||{9.67.6}, {9.3.7.6}, {7.2.14.1} |
585 | पव॑मानास॒ इन्द॑वस्ति॒रः प॒वित्र॑मा॒शवः॑ | इन्द्रं॒ यामे᳚भिराशत ||{9.67.7}, {9.3.7.7}, {7.2.14.2} |
586 | क॒कु॒हः सो॒म्यो रस॒ इन्दु॒रिन्द्रा᳚य पू॒र्व्यः | आ॒युः प॑वत आ॒यवे᳚ ||{9.67.8}, {9.3.7.8}, {7.2.14.3} |
587 | हि॒न्वन्ति॒ सूर॒मुस्र॑यः॒ पव॑मानं मधु॒श्चुत᳚म् | अ॒भि गि॒रा सम॑स्वरन् ||{9.67.9}, {9.3.7.9}, {7.2.14.4} |
588 | अ॒वि॒ता नो᳚ अ॒जाश्वः॑ पू॒षा याम॑नियामनि | आ भ॑क्षत्क॒न्या᳚सु नः ||{9.67.10}, {9.3.7.10}, {7.2.14.5} |
589 | अ॒यं सोमः॑ कप॒र्दिने᳚ घृ॒तं न प॑वते॒ मधु॑ | आ भ॑क्षत्क॒न्या᳚सु नः ||{9.67.11}, {9.3.7.11}, {7.2.15.1} |
590 | अ॒यं त॑ आघृणे सु॒तो घृ॒तं न प॑वते॒ शुचि॑ | आ भ॑क्षत्क॒न्या᳚सु नः ||{9.67.12}, {9.3.7.12}, {7.2.15.2} |
591 | वा॒चो ज॒न्तुः क॑वी॒नां पव॑स्व सोम॒ धार॑या | दे॒वेषु॑ रत्न॒धा अ॑सि ||{9.67.13}, {9.3.7.13}, {7.2.15.3} |
592 | आ क॒लशे᳚षु धावति श्ये॒नो वर्म॒ वि गा᳚हते | अ॒भि द्रोणा॒ कनि॑क्रदत् ||{9.67.14}, {9.3.7.14}, {7.2.15.4} |
593 | परि॒ प्र सो᳚म ते॒ रसोऽस॑र्जि क॒लशे᳚ सु॒तः | श्ये॒नो न त॒क्तो अ॑र्षति ||{9.67.15}, {9.3.7.15}, {7.2.15.5} |
594 | पव॑स्व सोम म॒न्दय॒न्निन्द्रा᳚य॒ मधु॑मत्तमः ||{9.67.16}, {9.3.7.16}, {7.2.16.1} |
595 | असृ॑ग्रन्दे॒ववी᳚तये वाज॒यन्तो॒ रथा᳚ इव ||{9.67.17}, {9.3.7.17}, {7.2.16.2} |
596 | ते सु॒तासो᳚ म॒दिन्त॑माः शु॒क्रा वा॒युम॑सृक्षत ||{9.67.18}, {9.3.7.18}, {7.2.16.3} |
597 | ग्राव्णा᳚ तु॒न्नो अ॒भिष्टु॑तः प॒वित्रं᳚ सोम गच्छसि | दध॑त्स्तो॒त्रे सु॒वीर्य᳚म् ||{9.67.19}, {9.3.7.19}, {7.2.16.4} |
598 | ए॒ष तु॒न्नो अ॒भिष्टु॑तः प॒वित्र॒मति॑ गाहते | र॒क्षो॒हा वार॑म॒व्यय᳚म् ||{9.67.20}, {9.3.7.20}, {7.2.16.5} |
599 | यदन्ति॒ यच्च॑ दूर॒के भ॒यं वि॒न्दति॒ मामि॒ह | पव॑मान॒ वि तज्ज॑हि ||{9.67.21}, {9.3.7.21}, {7.2.17.1} |
600 | पव॑मानः॒ सो अ॒द्य नः॑ प॒वित्रे᳚ण॒ विच॑र्षणिः | यः पो॒ता स पु॑नातु नः ||{9.67.22}, {9.3.7.22}, {7.2.17.2} |
601 | यत्ते᳚ प॒वित्र॑म॒र्चिष्यग्ने॒ वित॑तम॒न्तरा | ब्रह्म॒ तेन॑ पुनीहि नः ||{9.67.23}, {9.3.7.23}, {7.2.17.3} |
602 | यत्ते᳚ प॒वित्र॑मर्चि॒वदग्ने॒ तेन॑ पुनीहि नः | ब्र॒ह्म॒स॒वैः पु॑नीहि नः ||{9.67.24}, {9.3.7.24}, {7.2.17.4} |
603 | उ॒भाभ्यां᳚ देव सवितः प॒वित्रे᳚ण स॒वेन॑ च | मां पु॑नीहि वि॒श्वतः॑ ||{9.67.25}, {9.3.7.25}, {7.2.17.5} |
604 | त्रि॒भिष्ट्वं दे᳚व सवित॒र्वर्षि॑ष्ठैः सोम॒ धाम॑भिः | अग्ने॒ दक्षैः᳚ पुनीहि नः ||{9.67.26}, {9.3.7.26}, {7.2.18.1} |
605 | पु॒नन्तु॒ मां दे᳚वज॒नाः पु॒नन्तु॒ वस॑वो धि॒या | विश्वे᳚ देवाः पुनी॒त मा॒ जात॑वेदः पुनी॒हि मा᳚ ||{9.67.27}, {9.3.7.27}, {7.2.18.2} |
606 | प्र प्या᳚यस्व॒ प्र स्य᳚न्दस्व॒ सोम॒ विश्वे᳚भिरं॒शुभिः॑ | दे॒वेभ्य॑ उत्त॒मं ह॒विः ||{9.67.28}, {9.3.7.28}, {7.2.18.3} |
607 | उप॑ प्रि॒यं पनि॑प्नतं॒ युवा᳚नमाहुती॒वृध᳚म् | अग᳚न्म॒ बिभ्र॑तो॒ नमः॑ ||{9.67.29}, {9.3.7.29}, {7.2.18.4} |
608 | अ॒लाय्य॑स्य पर॒शुर्न॑नाश॒ तमा प॑वस्व देव सोम | आ॒खुं चि॑दे॒व दे᳚व सोम ||{9.67.30}, {9.3.7.30}, {7.2.18.5} |
609 | यः पा᳚वमा॒नीर॒ध्येत्यृषि॑भिः॒ सम्भृ॑तं॒ रस᳚म् | सर्वं॒ स पू॒तम॑श्नाति स्वदि॒तं मा᳚त॒रिश्व॑ना ||{9.67.31}, {9.3.7.31}, {7.2.18.6} |
610 | पा॒व॒मा॒नीर्यो अ॒ध्येत्यृषि॑भिः॒ सम्भृ॑तं॒ रस᳚म् | तस्मै॒ सर॑स्वती दुहे क्षी॒रं स॒र्पिर्मधू᳚द॒कम् ||{9.67.32}, {9.3.7.32}, {7.2.18.7} |
[68] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य भालन्दनो वत्सप्रि ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | (१-९) प्रथमादिनवर्ऋचाम् जगती, (१०) दशम्याश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
611 | प्र दे॒वमच्छा॒ मधु॑मन्त॒ इन्द॒वोऽसि॑ष्यदन्त॒ गाव॒ आ न धे॒नवः॑ | ब॒र्हि॒षदो᳚ वच॒नाव᳚न्त॒ ऊध॑भिः परि॒स्रुत॑मु॒स्रिया᳚ नि॒र्णिजं᳚ धिरे ||{9.68.1}, {9.4.1.1}, {7.2.19.1} |
612 | स रोरु॑वद॒भि पूर्वा᳚ अचिक्रददुपा॒रुहः॑ श्र॒थय᳚न्स्वादते॒ हरिः॑ | ति॒रः प॒वित्रं᳚ परि॒यन्नु॒रु ज्रयो॒ नि शर्या᳚णि दधते दे॒व आ वर᳚म् ||{9.68.2}, {9.4.1.2}, {7.2.19.2} |
613 | वि यो म॒मे य॒म्या᳚ संय॒ती मदः॑ साकं॒वृधा॒ पय॑सा पिन्व॒दक्षि॑ता | म॒ही अ॑पा॒रे रज॑सी वि॒वेवि॑ददभि॒व्रज॒न्नक्षि॑तं॒ पाज॒ आ द॑दे ||{9.68.3}, {9.4.1.3}, {7.2.19.3} |
614 | स मा॒तरा᳚ वि॒चर᳚न्वा॒जय᳚न्न॒पः प्र मेधि॑रः स्व॒धया᳚ पिन्वते प॒दम् | अं॒शुर्यवे᳚न पिपिशे य॒तो नृभिः॒ सं जा॒मिभि॒र्नस॑ते॒ रक्ष॑ते॒ शिरः॑ ||{9.68.4}, {9.4.1.4}, {7.2.19.4} |
615 | सं दक्षे᳚ण॒ मन॑सा जायते क॒विरृ॒तस्य॒ गर्भो॒ निहि॑तो य॒मा प॒रः | यूना᳚ ह॒ सन्ता᳚ प्रथ॒मं वि ज॑ज्ञतु॒र्गुहा᳚ हि॒तं जनि॑म॒ नेम॒मुद्य॑तम् ||{9.68.5}, {9.4.1.5}, {7.2.19.5} |
616 | म॒न्द्रस्य॑ रू॒पं वि॑विदुर्मनी॒षिणः॑ श्ये॒नो यदन्धो॒ अभ॑रत्परा॒वतः॑ | तं म॑र्जयन्त सु॒वृधं᳚ न॒दीष्वाँ उ॒शन्त॑मं॒शुं प॑रि॒यन्त॑मृ॒ग्मिय᳚म् ||{9.68.6}, {9.4.1.6}, {7.2.20.1} |
617 | त्वां मृ॑जन्ति॒ दश॒ योष॑णः सु॒तं सोम॒ ऋषि॑भिर्म॒तिभि॑र्धी॒तिभि॑र्हि॒तम् | अव्यो॒ वारे᳚भिरु॒त दे॒वहू᳚तिभि॒र्नृभि᳚र्य॒तो वाज॒मा द॑र्षि सा॒तये᳚ ||{9.68.7}, {9.4.1.7}, {7.2.20.2} |
618 | प॒रि॒प्र॒यन्तं᳚ व॒य्यं᳚ सुषं॒सदं॒ सोमं᳚ मनी॒षा अ॒भ्य॑नूषत॒ स्तुभः॑ | यो धार॑या॒ मधु॑माँ ऊ॒र्मिणा᳚ दि॒व इय॑र्ति॒ वाचं᳚ रयि॒षाळम॑र्त्यः ||{9.68.8}, {9.4.1.8}, {7.2.20.3} |
619 | अ॒यं दि॒व इ॑यर्ति॒ विश्व॒मा रजः॒ सोमः॑ पुना॒नः क॒लशे᳚षु सीदति | अ॒द्भिर्गोभि᳚र्मृज्यते॒ अद्रि॑भिः सु॒तः पु॑ना॒न इन्दु॒र्वरि॑वो विदत्प्रि॒यम् ||{9.68.9}, {9.4.1.9}, {7.2.20.4} |
620 | ए॒वा नः॑ सोम परिषि॒च्यमा᳚नो॒ वयो॒ दध॑च्चि॒त्रत॑मं पवस्व | अ॒द्वे॒षे द्यावा᳚पृथि॒वी हु॑वेम॒ देवा᳚ ध॒त्त र॒यिम॒स्मे सु॒वीर᳚म् ||{9.68.10}, {9.4.1.10}, {7.2.20.5} |
[69] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो हिरण्यस्तूप ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | (१-८) प्रथमाद्यश्टर्चाम् जगती, (९-१०) नवमीदशम्योश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
621 | इषु॒र्न धन्व॒न्प्रति॑ धीयते म॒तिर्व॒त्सो न मा॒तुरुप॑ स॒र्ज्यूध॑नि | उ॒रुधा᳚रेव दुहे॒ अग्र॑ आय॒त्यस्य᳚ व्र॒तेष्वपि॒ सोम॑ इष्यते ||{9.69.1}, {9.4.2.1}, {7.2.21.1} |
622 | उपो᳚ म॒तिः पृ॒च्यते᳚ सि॒च्यते॒ मधु॑ म॒न्द्राज॑नी चोदते अ॒न्तरा॒सनि॑ | पव॑मानः संत॒निः प्र॑घ्न॒तामि॑व॒ मधु॑मान्द्र॒प्सः परि॒ वार॑मर्षति ||{9.69.2}, {9.4.2.2}, {7.2.21.2} |
623 | अव्ये᳚ वधू॒युः प॑वते॒ परि॑ त्व॒चि श्र॑थ्नी॒ते न॒प्तीरदि॑तेरृ॒तं य॒ते | हरि॑रक्रान्यज॒तः सं᳚य॒तो मदो᳚ नृ॒म्णा शिशा᳚नो महि॒षो न शो᳚भते ||{9.69.3}, {9.4.2.3}, {7.2.21.3} |
624 | उ॒क्षा मि॑माति॒ प्रति॑ यन्ति धे॒नवो᳚ दे॒वस्य॑ दे॒वीरुप॑ यन्ति निष्कृ॒तम् | अत्य॑क्रमी॒दर्जु॑नं॒ वार॑म॒व्यय॒मत्कं॒ न नि॒क्तं परि॒ सोमो᳚ अव्यत ||{9.69.4}, {9.4.2.4}, {7.2.21.4} |
625 | अमृ॑क्तेन॒ रुश॑ता॒ वास॑सा॒ हरि॒रम॑र्त्यो निर्णिजा॒नः परि᳚ व्यत | दि॒वस्पृ॒ष्ठं ब॒र्हणा᳚ नि॒र्णिजे᳚ कृतोप॒स्तर॑णं च॒म्वो᳚र्नभ॒स्मय᳚म् ||{9.69.5}, {9.4.2.5}, {7.2.21.5} |
626 | सूर्य॑स्येव र॒श्मयो᳚ द्रावयि॒त्नवो᳚ मत्स॒रासः॑ प्र॒सुपः॑ सा॒कमी᳚रते | तन्तुं᳚ त॒तं परि॒ सर्गा᳚स आ॒शवो॒ नेन्द्रा᳚दृ॒ते प॑वते॒ धाम॒ किं च॒न ||{9.69.6}, {9.4.2.6}, {7.2.22.1} |
627 | सिन्धो᳚रिव प्रव॒णे नि॒म्न आ॒शवो॒ वृष॑च्युता॒ मदा᳚सो गा॒तुमा᳚शत | शं नो᳚ निवे॒शे द्वि॒पदे॒ चतु॑ष्पदे॒ऽस्मे वाजाः᳚ सोम तिष्ठन्तु कृ॒ष्टयः॑ ||{9.69.7}, {9.4.2.7}, {7.2.22.2} |
628 | आ नः॑ पवस्व॒ वसु॑म॒द्धिर᳚ण्यव॒दश्वा᳚व॒द्गोम॒द्यव॑मत्सु॒वीर्य᳚म् | यू॒यं हि सो᳚म पि॒तरो॒ मम॒ स्थन॑ दि॒वो मू॒र्धानः॒ प्रस्थि॑ता वय॒स्कृतः॑ ||{9.69.8}, {9.4.2.8}, {7.2.22.3} |
629 | ए॒ते सोमाः॒ पव॑मानास॒ इन्द्रं॒ रथा᳚ इव॒ प्र य॑युः सा॒तिमच्छ॑ | सु॒ताः प॒वित्र॒मति॑ य॒न्त्यव्यं᳚ हि॒त्वी व॒व्रिं ह॒रितो᳚ वृ॒ष्टिमच्छ॑ ||{9.69.9}, {9.4.2.9}, {7.2.22.4} |
630 | इन्द॒विन्द्रा᳚य बृह॒ते प॑वस्व सुमृळी॒को अ॑नव॒द्यो रि॒शादाः᳚ | भरा᳚ च॒न्द्राणि॑ गृण॒ते वसू᳚नि दे॒वैर्द्या᳚वापृथिवी॒ प्राव॑तं नः ||{9.69.10}, {9.4.2.10}, {7.2.22.5} |
[70] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य वैश्वामित्रो रेण षिः, पवमानः सोमो देवता | (१-९) प्रथमादिनवर्चाम् जगती, (१०) दशम्याश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
631 | त्रिर॑स्मै स॒प्त धे॒नवो᳚ दुदुह्रे स॒त्यामा॒शिरं᳚ पू॒र्व्ये व्यो᳚मनि | च॒त्वार्य॒न्या भुव॑नानि नि॒र्णिजे॒ चारू᳚णि चक्रे॒ यदृ॒तैरव॑र्धत ||{9.70.1}, {9.4.3.1}, {7.2.23.1} |
632 | स भिक्ष॑माणो अ॒मृत॑स्य॒ चारु॑ण उ॒भे द्यावा॒ काव्ये᳚ना॒ वि श॑श्रथे | तेजि॑ष्ठा अ॒पो मं॒हना॒ परि᳚ व्यत॒ यदी᳚ दे॒वस्य॒ श्रव॑सा॒ सदो᳚ वि॒दुः ||{9.70.2}, {9.4.3.2}, {7.2.23.2} |
633 | ते अ॑स्य सन्तु के॒तवोऽमृ॑त्य॒वोऽदा᳚भ्यासो ज॒नुषी᳚ उ॒भे अनु॑ | येभि᳚र्नृ॒म्णा च॑ दे॒व्या᳚ च पुन॒त आदिद्राजा᳚नं म॒नना᳚ अगृभ्णत ||{9.70.3}, {9.4.3.3}, {7.2.23.3} |
634 | स मृ॒ज्यमा᳚नो द॒शभिः॑ सु॒कर्म॑भिः॒ प्र म॑ध्य॒मासु॑ मा॒तृषु॑ प्र॒मे सचा᳚ | व्र॒तानि॑ पा॒नो अ॒मृत॑स्य॒ चारु॑ण उ॒भे नृ॒चक्षा॒ अनु॑ पश्यते॒ विशौ᳚ ||{9.70.4}, {9.4.3.4}, {7.2.23.4} |
635 | स म᳚र्मृजा॒न इ᳚न्द्रि॒याय॒ धाय॑स॒ ओभे अ॒न्ता रोद॑सी हर्षते हि॒तः | वृषा॒ शुष्मे᳚ण बाधते॒ वि दु᳚र्म॒तीरा॒देदि॑शानः शर्य॒हेव॑ शु॒रुधः॑ ||{9.70.5}, {9.4.3.5}, {7.2.23.5} |
636 | स मा॒तरा॒ न ददृ॑शान उ॒स्रियो॒ नान॑ददेति म॒रुता᳚मिव स्व॒नः | जा॒नन्नृ॒तं प्र॑थ॒मं यत्स्व᳚र्णरं॒ प्रश॑स्तये॒ कम॑वृणीत सु॒क्रतुः॑ ||{9.70.6}, {9.4.3.6}, {7.2.24.1} |
637 | रु॒वति॑ भी॒मो वृ॑ष॒भस्त॑वि॒ष्यया॒ शृङ्गे॒ शिशा᳚नो॒ हरि॑णी विचक्ष॒णः | आ योनिं॒ सोमः॒ सुकृ॑तं॒ नि षी᳚दति ग॒व्ययी॒ त्वग्भ॑वति नि॒र्णिग॒व्ययी᳚ ||{9.70.7}, {9.4.3.7}, {7.2.24.2} |
638 | शुचिः॑ पुना॒नस्त॒न्व॑मरे॒पस॒मव्ये॒ हरि॒र्न्य॑धाविष्ट॒ सान॑वि | जुष्टो᳚ मि॒त्राय॒ वरु॑णाय वा॒यवे᳚ त्रि॒धातु॒ मधु॑ क्रियते सु॒कर्म॑भिः ||{9.70.8}, {9.4.3.8}, {7.2.24.3} |
639 | पव॑स्व सोम दे॒ववी᳚तये॒ वृषेन्द्र॑स्य॒ हार्दि॑ सोम॒धान॒मा वि॑श | पु॒रा नो᳚ बा॒धाद्दु॑रि॒ताति॑ पारय क्षेत्र॒विद्धि दिश॒ आहा᳚ विपृच्छ॒ते ||{9.70.9}, {9.4.3.9}, {7.2.24.4} |
640 | हि॒तो न सप्ति॑र॒भि वाज॑म॒र्षेन्द्र॑स्येन्दो ज॒ठर॒मा प॑वस्व | ना॒वा न सिन्धु॒मति॑ पर्षि वि॒द्वाञ्छूरो॒ न युध्य॒न्नव॑ नो नि॒दः स्पः॑ ||{9.70.10}, {9.4.3.10}, {7.2.24.5} |
[71] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य वैश्वामित्र ऋभव ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | (१-८) प्रथमाद्यश्टर्चाम् जगती, (९) नवम्याश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
641 | आ दक्षि॑णा सृज्यते शु॒ष्म्या॒३॑(आ॒)सदं॒ वेति॑ द्रु॒हो र॒क्षसः॑ पाति॒ जागृ॑विः | हरि॑रोप॒शं कृ॑णुते॒ नभ॒स्पय॑ उप॒स्तिरे᳚ च॒म्वो॒३॑(ओ॒)र्ब्रह्म॑ नि॒र्णिजे᳚ ||{9.71.1}, {9.4.4.1}, {7.2.25.1} |
642 | प्र कृ॑ष्टि॒हेव॑ शू॒ष ए᳚ति॒ रोरु॑वदसु॒र्य१॑(अ॒) अंवर्णं॒ नि रि॑णीते अस्य॒ तम् | जहा᳚ति व॒व्रिं पि॒तुरे᳚ति निष्कृ॒तमु॑प॒प्रुतं᳚ कृणुते नि॒र्णिजं॒ तना᳚ ||{9.71.2}, {9.4.4.2}, {7.2.25.2} |
643 | अद्रि॑भिः सु॒तः प॑वते॒ गभ॑स्त्योर्वृषा॒यते॒ नभ॑सा॒ वेप॑ते म॒ती | स मो᳚दते॒ नस॑ते॒ साध॑ते गि॒रा ने᳚नि॒क्ते अ॒प्सु यज॑ते॒ परी᳚मणि ||{9.71.3}, {9.4.4.3}, {7.2.25.3} |
644 | परि॑ द्यु॒क्षं सह॑सः पर्वता॒वृधं॒ मध्वः॑ सिञ्चन्ति ह॒र्म्यस्य॑ स॒क्षणि᳚म् | आ यस्मि॒न्गावः॑ सुहु॒ताद॒ ऊध॑नि मू॒र्धञ्छ्री॒णन्त्य॑ग्रि॒यं वरी᳚मभिः ||{9.71.4}, {9.4.4.4}, {7.2.25.4} |
645 | समी॒ रथं॒ न भु॒रिजो᳚रहेषत॒ दश॒ स्वसा᳚रो॒ अदि॑तेरु॒पस्थ॒ आ | जिगा॒दुप॑ ज्रयति॒ गोर॑पी॒च्यं᳚ प॒दं यद॑स्य म॒तुथा॒ अजी᳚जनन् ||{9.71.5}, {9.4.4.5}, {7.2.25.5} |
646 | श्ये॒नो न योनिं॒ सद॑नं धि॒या कृ॒तं हि॑र॒ण्यय॑मा॒सदं᳚ दे॒व एष॑ति | ए रि॑णन्ति ब॒र्हिषि॑ प्रि॒यं गि॒राश्वो॒ न दे॒वाँ अप्ये᳚ति य॒ज्ञियः॑ ||{9.71.6}, {9.4.4.6}, {7.2.26.1} |
647 | परा॒ व्य॑क्तो अरु॒षो दि॒वः क॒विर्वृषा᳚ त्रिपृ॒ष्ठो अ॑नविष्ट॒ गा अ॒भि | स॒हस्र॑णीति॒र्यतिः॑ परा॒यती᳚ रे॒भो न पू॒र्वीरु॒षसो॒ वि रा᳚जति ||{9.71.7}, {9.4.4.7}, {7.2.26.2} |
648 | त्वे॒षं रू॒पं कृ॑णुते॒ वर्णो᳚ अस्य॒ स यत्राश॑य॒त्समृ॑ता॒ सेध॑ति स्रि॒धः | अ॒प्सा या᳚ति स्व॒धया॒ दैव्यं॒ जनं॒ सं सु॑ष्टु॒ती नस॑ते॒ सं गोअ॑ग्रया ||{9.71.8}, {9.4.4.8}, {7.2.26.3} |
649 | उ॒क्षेव॑ यू॒था प॑रि॒यन्न॑रावी॒दधि॒ त्विषी᳚रधित॒ सूर्य॑स्य | दि॒व्यः सु॑प॒र्णोऽव॑ चक्षत॒ क्षां सोमः॒ परि॒ क्रतु॑ना पश्यते॒ जाः ||{9.71.9}, {9.4.4.9}, {7.2.26.4} |
[72] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो हरिमन्त ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
650 | हरिं᳚ मृजन्त्यरु॒षो न यु॑ज्यते॒ सं धे॒नुभिः॑ क॒लशे॒ सोमो᳚ अज्यते | उद्वाच॑मी॒रय॑ति हि॒न्वते᳚ म॒ती पु॑रुष्टु॒तस्य॒ कति॑ चित्परि॒प्रियः॑ ||{9.72.1}, {9.4.5.1}, {7.2.27.1} |
651 | सा॒कं व॑दन्ति ब॒हवो᳚ मनी॒षिण॒ इन्द्र॑स्य॒ सोमं᳚ ज॒ठरे॒ यदा᳚दु॒हुः | यदी᳚ मृ॒जन्ति॒ सुग॑भस्तयो॒ नरः॒ सनी᳚ळाभिर्द॒शभिः॒ काम्यं॒ मधु॑ ||{9.72.2}, {9.4.5.2}, {7.2.27.2} |
652 | अर॑ममाणो॒ अत्ये᳚ति॒ गा अ॒भि सूर्य॑स्य प्रि॒यं दु॑हि॒तुस्ति॒रो रव᳚म् | अन्व॑स्मै॒ जोष॑मभरद्विनंगृ॒सः सं द्व॒यीभिः॒ स्वसृ॑भिः क्षेति जा॒मिभिः॑ ||{9.72.3}, {9.4.5.3}, {7.2.27.3} |
653 | नृधू᳚तो॒ अद्रि॑षुतो ब॒र्हिषि॑ प्रि॒यः पति॒र्गवां᳚ प्र॒दिव॒ इन्दु॑रृ॒त्वियः॑ | पुरं᳚धिवा॒न्मनु॑षो यज्ञ॒साध॑नः॒ शुचि॑र्धि॒या प॑वते॒ सोम॑ इन्द्र ते ||{9.72.4}, {9.4.5.4}, {7.2.27.4} |
654 | नृबा॒हुभ्यां᳚ चोदि॒तो धार॑या सु॒तो᳚ऽनुष्व॒धं प॑वते॒ सोम॑ इन्द्र ते | आप्राः॒ क्रतू॒न्सम॑जैरध्व॒रे म॒तीर्वेर्न द्रु॒षच्च॒म्वो॒३॑(ओ॒)रास॑द॒द्धरिः॑ ||{9.72.5}, {9.4.5.5}, {7.2.27.5} |
655 | अं॒शुं दु॑हन्ति स्त॒नय᳚न्त॒मक्षि॑तं क॒विं क॒वयो॒ऽपसो᳚ मनी॒षिणः॑ | समी॒ गावो᳚ म॒तयो᳚ यन्ति सं॒यत॑ ऋ॒तस्य॒ योना॒ सद॑ने पुन॒र्भुवः॑ ||{9.72.6}, {9.4.5.6}, {7.2.28.1} |
656 | नाभा᳚ पृथि॒व्या ध॒रुणो᳚ म॒हो दि॒वो॒३॑(ओ॒)ऽपामू॒र्मौ सिन्धु॑ष्व॒न्तरु॑क्षि॒तः | इन्द्र॑स्य॒ वज्रो᳚ वृष॒भो वि॒भूव॑सुः॒ सोमो᳚ हृ॒दे प॑वते॒ चारु॑ मत्स॒रः ||{9.72.7}, {9.4.5.7}, {7.2.28.2} |
657 | स तू प॑वस्व॒ परि॒ पार्थि॑वं॒ रजः॑ स्तो॒त्रे शिक्ष᳚न्नाधून्व॒ते च॑ सुक्रतो | मा नो॒ निर्भा॒ग्वसु॑नः सादन॒स्पृशो᳚ र॒यिं पि॒शङ्गं᳚ बहु॒लं व॑सीमहि ||{9.72.8}, {9.4.5.8}, {7.2.28.3} |
658 | आ तू न॑ इन्दो श॒तदा॒त्वश्व्यं᳚ स॒हस्र॑दातु पशु॒मद्धिर᳚ण्यवत् | उप॑ मास्व बृह॒ती रे॒वती॒रिषोऽधि॑ स्तो॒त्रस्य॑ पवमान नो गहि ||{9.72.9}, {9.4.5.9}, {7.2.28.4} |
[73] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः पवित्र ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
659 | स्रक्वे᳚ द्र॒प्सस्य॒ धम॑तः॒ सम॑स्वरन्नृ॒तस्य॒ योना॒ सम॑रन्त॒ नाभ॑यः | त्रीन्स मू॒र्ध्नो असु॑रश्चक्र आ॒रभे᳚ स॒त्यस्य॒ नावः॑ सु॒कृत॑मपीपरन् ||{9.73.1}, {9.4.6.1}, {7.2.29.1} |
660 | स॒म्यक्स॒म्यञ्चो᳚ महि॒षा अ॑हेषत॒ सिन्धो᳚रू॒र्मावधि॑ वे॒ना अ॑वीविपन् | मधो॒र्धारा᳚भिर्ज॒नय᳚न्तो अ॒र्कमित्प्रि॒यामिन्द्र॑स्य त॒न्व॑मवीवृधन् ||{9.73.2}, {9.4.6.2}, {7.2.29.2} |
661 | प॒वित्र॑वन्तः॒ परि॒ वाच॑मासते पि॒तैषां᳚ प्र॒त्नो अ॒भि र॑क्षति व्र॒तम् | म॒हः स॑मु॒द्रं वरु॑णस्ति॒रो द॑धे॒ धीरा॒ इच्छे᳚कुर्ध॒रुणे᳚ष्वा॒रभ᳚म् ||{9.73.3}, {9.4.6.3}, {7.2.29.3} |
662 | स॒हस्र॑धा॒रेऽव॒ ते सम॑स्वरन्दि॒वो नाके॒ मधु॑जिह्वा अस॒श्चतः॑ | अस्य॒ स्पशो॒ न नि मि॑षन्ति॒ भूर्ण॑यः प॒देप॑दे पा॒शिनः॑ सन्ति॒ सेत॑वः ||{9.73.4}, {9.4.6.4}, {7.2.29.4} |
663 | पि॒तुर्मा॒तुरध्या ये स॒मस्व॑रन्नृ॒चा शोच᳚न्तः सं॒दह᳚न्तो अव्र॒तान् | इन्द्र॑द्विष्टा॒मप॑ धमन्ति मा॒यया॒ त्वच॒मसि॑क्नीं॒ भूम॑नो दि॒वस्परि॑ ||{9.73.5}, {9.4.6.5}, {7.2.29.5} |
664 | प्र॒त्नान्माना॒दध्या ये स॒मस्व॑र॒ञ्छ्लोक॑यन्त्रासो रभ॒सस्य॒ मन्त॑वः | अपा᳚न॒क्षासो᳚ बधि॒रा अ॑हासत ऋ॒तस्य॒ पन्थां॒ न त॑रन्ति दु॒ष्कृतः॑ ||{9.73.6}, {9.4.6.6}, {7.2.30.1} |
665 | स॒हस्र॑धारे॒ वित॑ते प॒वित्र॒ आ वाचं᳚ पुनन्ति क॒वयो᳚ मनी॒षिणः॑ | रु॒द्रास॑ एषामिषि॒रासो᳚ अ॒द्रुहः॒ स्पशः॒ स्वञ्चः॑ सु॒दृशो᳚ नृ॒चक्ष॑सः ||{9.73.7}, {9.4.6.7}, {7.2.30.2} |
666 | ऋ॒तस्य॑ गो॒पा न दभा᳚य सु॒क्रतु॒स्त्री ष प॒वित्रा᳚ हृ॒द्य१॑(अ॒)'न्तरा द॑धे | वि॒द्वान्स विश्वा॒ भुव॑ना॒भि प॑श्य॒त्यवाजु॑ष्टान्विध्यति क॒र्ते अ᳚व्र॒तान् ||{9.73.8}, {9.4.6.8}, {7.2.30.3} |
667 | ऋ॒तस्य॒ तन्तु॒र्वित॑तः प॒वित्र॒ आ जि॒ह्वाया॒ अग्रे॒ वरु॑णस्य मा॒यया᳚ | धीरा᳚श्चि॒त्तत्स॒मिन॑क्षन्त आश॒तात्रा᳚ क॒र्तमव॑ पदा॒त्यप्र॑भुः ||{9.73.9}, {9.4.6.9}, {7.2.30.4} |
[74] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य दैर्घतमसः कक्षीवान् ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | (१-७, ९) प्रथमादिसप्तर्चाम् नवम्याश्च जगती, (८) अष्टम्याश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
668 | शिशु॒र्न जा॒तोऽव॑ चक्रद॒द्वने॒ स्व१॑(अ॒)'र्यद्वा॒ज्य॑रु॒षः सिषा᳚सति | दि॒वो रेत॑सा सचते पयो॒वृधा॒ तमी᳚महे सुम॒ती शर्म॑ स॒प्रथः॑ ||{9.74.1}, {9.4.7.1}, {7.2.31.1} |
669 | दि॒वो यः स्क॒म्भो ध॒रुणः॒ स्वा᳚तत॒ आपू᳚र्णो अं॒शुः प॒र्येति॑ वि॒श्वतः॑ | सेमे म॒ही रोद॑सी यक्षदा॒वृता᳚ समीची॒ने दा᳚धार॒ समिषः॑ क॒विः ||{9.74.2}, {9.4.7.2}, {7.2.31.2} |
670 | महि॒ प्सरः॒ सुकृ॑तं सो॒म्यं मधू॒र्वी गव्यू᳚ति॒रदि॑तेरृ॒तं य॒ते | ईशे॒ यो वृ॒ष्टेरि॒त उ॒स्रियो॒ वृषा॒पां ने॒ता य इ॒तऊ᳚तिरृ॒ग्मियः॑ ||{9.74.3}, {9.4.7.3}, {7.2.31.3} |
671 | आ॒त्म॒न्वन्नभो᳚ दुह्यते घृ॒तं पय॑ ऋ॒तस्य॒ नाभि॑र॒मृतं॒ वि जा᳚यते | स॒मी॒ची॒नाः सु॒दान॑वः प्रीणन्ति॒ तं नरो᳚ हि॒तमव॑ मेहन्ति॒ पेर॑वः ||{9.74.4}, {9.4.7.4}, {7.2.31.4} |
672 | अरा᳚वीदं॒शुः सच॑मान ऊ॒र्मिणा᳚ देवा॒व्य१॑(अ॒) अंमनु॑षे पिन्वति॒ त्वच᳚म् | दधा᳚ति॒ गर्भ॒मदि॑तेरु॒पस्थ॒ आ येन॑ तो॒कं च॒ तन॑यं च॒ धाम॑हे ||{9.74.5}, {9.4.7.5}, {7.2.31.5} |
673 | स॒हस्र॑धा॒रेऽव॒ ता अ॑स॒श्चत॑स्तृ॒तीये᳚ सन्तु॒ रज॑सि प्र॒जाव॑तीः | चत॑स्रो॒ नाभो॒ निहि॑ता अ॒वो दि॒वो ह॒विर्भ॑रन्त्य॒मृतं᳚ घृत॒श्चुतः॑ ||{9.74.6}, {9.4.7.6}, {7.2.32.1} |
674 | श्वे॒तं रू॒पं कृ॑णुते॒ यत्सिषा᳚सति॒ सोमो᳚ मी॒ढ्वाँ असु॑रो वेद॒ भूम॑नः | धि॒या शमी᳚ सचते॒ सेम॒भि प्र॒वद्दि॒वस्कव᳚न्ध॒मव॑ दर्षदु॒द्रिण᳚म् ||{9.74.7}, {9.4.7.7}, {7.2.32.2} |
675 | अध॑ श्वे॒तं क॒लशं॒ गोभि॑र॒क्तं कार्ष्म॒न्ना वा॒ज्य॑क्रमीत्सस॒वान् | आ हि᳚न्विरे॒ मन॑सा देव॒यन्तः॑ क॒क्षीव॑ते श॒तहि॑माय॒ गोना᳚म् ||{9.74.8}, {9.4.7.8}, {7.2.32.3} |
676 | अ॒द्भिः सो᳚म पपृचा॒नस्य॑ ते॒ रसोऽव्यो॒ वारं॒ वि प॑वमान धावति | स मृ॒ज्यमा᳚नः क॒विभि᳚र्मदिन्तम॒ स्वद॒स्वेन्द्रा᳚य पवमान पी॒तये᳚ ||{9.74.9}, {9.4.7.9}, {7.2.32.4} |
[75] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कवि (ऋषिः), पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
677 | अ॒भि प्रि॒याणि॑ पवते॒ चनो᳚हितो॒ नामा᳚नि य॒ह्वो अधि॒ येषु॒ वर्ध॑ते | आ सूर्य॑स्य बृह॒तो बृ॒हन्नधि॒ रथं॒ विष्व᳚ञ्चमरुहद्विचक्ष॒णः ||{9.75.1}, {9.4.8.1}, {7.2.33.1} |
678 | ऋ॒तस्य॑ जि॒ह्वा प॑वते॒ मधु॑ प्रि॒यं व॒क्ता पति॑र्धि॒यो अ॒स्या अदा᳚भ्यः | दधा᳚ति पु॒त्रः पि॒त्रोर॑पी॒च्य१॑(अ॒) अंनाम॑ तृ॒तीय॒मधि॑ रोच॒ने दि॒वः ||{9.75.2}, {9.4.8.2}, {7.2.33.2} |
679 | अव॑ द्युता॒नः क॒लशाँ᳚ अचिक्रद॒न्नृभि᳚र्येमा॒नः कोश॒ आ हि॑र॒ण्यये᳚ | अ॒भीमृ॒तस्य॑ दो॒हना᳚ अनूष॒ताधि॑ त्रिपृ॒ष्ठ उ॒षसो॒ वि रा᳚जति ||{9.75.3}, {9.4.8.3}, {7.2.33.3} |
680 | अद्रि॑भिः सु॒तो म॒तिभि॒श्चनो᳚हितः प्ररो॒चय॒न्रोद॑सी मा॒तरा॒ शुचिः॑ | रोमा॒ण्यव्या᳚ स॒मया॒ वि धा᳚वति॒ मधो॒र्धारा॒ पिन्व॑माना दि॒वेदि॑वे ||{9.75.4}, {9.4.8.4}, {7.2.33.4} |
681 | परि॑ सोम॒ प्र ध᳚न्वा स्व॒स्तये॒ नृभिः॑ पुना॒नो अ॒भि वा᳚सया॒शिर᳚म् | ये ते॒ मदा᳚ आह॒नसो॒ विहा᳚यस॒स्तेभि॒रिन्द्रं᳚ चोदय॒ दात॑वे म॒घम् ||{9.75.5}, {9.4.8.5}, {7.2.33.5} |
[76] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कवि ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
682 | ध॒र्ता दि॒वः प॑वते॒ कृत्व्यो॒ रसो॒ दक्षो᳚ दे॒वाना᳚मनु॒माद्यो॒ नृभिः॑ | हरिः॑ सृजा॒नो अत्यो॒ न सत्व॑भि॒र्वृथा॒ पाजां᳚सि कृणुते न॒दीष्वा ||{9.76.1}, {9.4.9.1}, {7.3.1.1} |
683 | शूरो॒ न ध॑त्त॒ आयु॑धा॒ गभ॑स्त्योः॒ स्व१॑(अ॒)ः सिषा᳚सन्रथि॒रो गवि॑ष्टिषु | इन्द्र॑स्य॒ शुष्म॑मी॒रय᳚न्नप॒स्युभि॒रिन्दु॑र्हिन्वा॒नो अ॑ज्यते मनी॒षिभिः॑ ||{9.76.2}, {9.4.9.2}, {7.3.1.2} |
684 | इन्द्र॑स्य सोम॒ पव॑मान ऊ॒र्मिणा᳚ तवि॒ष्यमा᳚णो ज॒ठरे॒ष्वा वि॑श | प्र णः॑ पिन्व वि॒द्युद॒भ्रेव॒ रोद॑सी धि॒या न वाजाँ॒ उप॑ मासि॒ शश्व॑तः ||{9.76.3}, {9.4.9.3}, {7.3.1.3} |
685 | विश्व॑स्य॒ राजा᳚ पवते स्व॒र्दृश॑ ऋ॒तस्य॑ धी॒तिमृ॑षि॒षाळ॑वीवशत् | यः सूर्य॒स्यासि॑रेण मृ॒ज्यते᳚ पि॒ता म॑ती॒नामस॑मष्टकाव्यः ||{9.76.4}, {9.4.9.4}, {7.3.1.4} |
686 | वृषे᳚व यू॒था परि॒ कोश॑मर्षस्य॒पामु॒पस्थे᳚ वृष॒भः कनि॑क्रदत् | स इन्द्रा᳚य पवसे मत्स॒रिन्त॑मो॒ यथा॒ जेषा᳚म समि॒थे त्वोत॑यः ||{9.76.5}, {9.4.9.5}, {7.3.1.5} |
[77] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कवि (ऋषिः), पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
687 | ए॒ष प्र कोशे॒ मधु॑माँ अचिक्रद॒दिन्द्र॑स्य॒ वज्रो॒ वपु॑षो॒ वपु॑ष्टरः | अ॒भीमृ॒तस्य॑ सु॒दुघा᳚ घृत॒श्चुतो᳚ वा॒श्रा अ॑र्षन्ति॒ पय॑सेव धे॒नवः॑ ||{9.77.1}, {9.4.10.1}, {7.3.2.1} |
688 | स पू॒र्व्यः प॑वते॒ यं दि॒वस्परि॑ श्ये॒नो म॑था॒यदि॑षि॒तस्ति॒रो रजः॑ | स मध्व॒ आ यु॑वते॒ वेवि॑जान॒ इत्कृ॒शानो॒रस्तु॒र्मन॒साह॑ बि॒भ्युषा᳚ ||{9.77.2}, {9.4.10.2}, {7.3.2.2} |
689 | ते नः॒ पूर्वा᳚स॒ उप॑रास॒ इन्द॑वो म॒हे वाजा᳚य धन्वन्तु॒ गोम॑ते | ई॒क्षे॒ण्या᳚सो अ॒ह्यो॒३॑(ओ॒) न चार॑वो॒ ब्रह्म॑ब्रह्म॒ ये जु॑जु॒षुर्ह॒विर्ह॑विः ||{9.77.3}, {9.4.10.3}, {7.3.2.3} |
690 | अ॒यं नो᳚ वि॒द्वान्व॑नवद्वनुष्य॒त इन्दुः॑ स॒त्राचा॒ मन॑सा पुरुष्टु॒तः | इ॒नस्य॒ यः सद॑ने॒ गर्भ॑माद॒धे गवा᳚मुरु॒ब्जम॒भ्यर्ष॑ति व्र॒जम् ||{9.77.4}, {9.4.10.4}, {7.3.2.4} |
691 | चक्रि॑र्दि॒वः प॑वते॒ कृत्व्यो॒ रसो᳚ म॒हाँ अद॑ब्धो॒ वरु॑णो हु॒रुग्य॒ते | असा᳚वि मि॒त्रो वृ॒जने᳚षु य॒ज्ञियोऽत्यो॒ न यू॒थे वृ॑ष॒युः कनि॑क्रदत् ||{9.77.5}, {9.4.10.5}, {7.3.2.5} |
[78] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कवि (ऋषिः), पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
692 | प्र राजा॒ वाचं᳚ ज॒नय᳚न्नसिष्यदद॒पो वसा᳚नो अ॒भि गा इ॑यक्षति | गृ॒भ्णाति॑ रि॒प्रमवि॑रस्य॒ तान्वा᳚ शु॒द्धो दे॒वाना॒मुप॑ याति निष्कृ॒तम् ||{9.78.1}, {9.4.11.1}, {7.3.3.1} |
693 | इन्द्रा᳚य सोम॒ परि॑ षिच्यसे॒ नृभि᳚र्नृ॒चक्षा᳚ ऊ॒र्मिः क॒विर॑ज्यसे॒ वने᳚ | पू॒र्वीर्हि ते᳚ स्रु॒तयः॒ सन्ति॒ यात॑वे स॒हस्र॒मश्वा॒ हर॑यश्चमू॒षदः॑ ||{9.78.2}, {9.4.11.2}, {7.3.3.2} |
694 | स॒मु॒द्रिया᳚ अप्स॒रसो᳚ मनी॒षिण॒मासी᳚ना अ॒न्तर॒भि सोम॑मक्षरन् | ता ईं᳚ हिन्वन्ति ह॒र्म्यस्य॑ स॒क्षणिं॒ याच᳚न्ते सु॒म्नं पव॑मान॒मक्षि॑तम् ||{9.78.3}, {9.4.11.3}, {7.3.3.3} |
695 | गो॒जिन्नः॒ सोमो᳚ रथ॒जिद्धि॑रण्य॒जित्स्व॒र्जिद॒ब्जित्प॑वते सहस्र॒जित् | यं दे॒वास॑श्चक्रि॒रे पी॒तये॒ मदं॒ स्वादि॑ष्ठं द्र॒प्सम॑रु॒णं म॑यो॒भुव᳚म् ||{9.78.4}, {9.4.11.4}, {7.3.3.4} |
696 | ए॒तानि॑ सोम॒ पव॑मानो अस्म॒युः स॒त्यानि॑ कृ॒ण्वन्द्रवि॑णान्यर्षसि | ज॒हि शत्रु॑मन्ति॒के दू᳚र॒के च॒ य उ॒र्वीं गव्यू᳚ति॒मभ॑यं च नस्कृधि ||{9.78.5}, {9.4.11.5}, {7.3.3.5} |
[79] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कवि (ऋषिः), पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
697 | अ॒चो॒दसो᳚ नो धन्व॒न्त्विन्द॑वः॒ प्र सु॑वा॒नासो᳚ बृ॒हद्दि॑वेषु॒ हर॑यः | वि च॒ नश᳚न्न इ॒षो अरा᳚तयो॒ऽर्यो न॑शन्त॒ सनि॑षन्त नो॒ धियः॑ ||{9.79.1}, {9.4.12.1}, {7.3.4.1} |
698 | प्र णो᳚ धन्व॒न्त्विन्द॑वो मद॒च्युतो॒ धना᳚ वा॒ येभि॒रर्व॑तो जुनी॒मसि॑ | ति॒रो मर्त॑स्य॒ कस्य॑ चि॒त्परि॑ह्वृतिं व॒यं धना᳚नि वि॒श्वधा᳚ भरेमहि ||{9.79.2}, {9.4.12.2}, {7.3.4.2} |
699 | उ॒त स्वस्या॒ अरा᳚त्या अ॒रिर्हि ष उ॒तान्यस्या॒ अरा᳚त्या॒ वृको॒ हि षः | धन्व॒न्न तृष्णा॒ सम॑रीत॒ ताँ अ॒भि सोम॑ ज॒हि प॑वमान दुरा॒ध्यः॑ ||{9.79.3}, {9.4.12.3}, {7.3.4.3} |
700 | दि॒वि ते॒ नाभा᳚ पर॒मो य आ᳚द॒दे पृ॑थि॒व्यास्ते᳚ रुरुहुः॒ सान॑वि॒ क्षिपः॑ | अद्र॑यस्त्वा बप्सति॒ गोरधि॑ त्व॒च्य१॑(अ॒)प्सु त्वा॒ हस्तै᳚र्दुदुहुर्मनी॒षिणः॑ ||{9.79.4}, {9.4.12.4}, {7.3.4.4} |
701 | ए॒वा त॑ इन्दो सु॒भ्वं᳚ सु॒पेश॑सं॒ रसं᳚ तुञ्जन्ति प्रथ॒मा अ॑भि॒श्रियः॑ | निदं᳚निदं पवमान॒ नि ता᳚रिष आ॒विस्ते॒ शुष्मो᳚ भवतु प्रि॒यो मदः॑ ||{9.79.5}, {9.4.12.5}, {7.3.4.5} |
[80] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भारद्वाजो वसु ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
702 | सोम॑स्य॒ धारा᳚ पवते नृ॒चक्ष॑स ऋ॒तेन॑ दे॒वान्ह॑वते दि॒वस्परि॑ | बृह॒स्पते᳚ र॒वथे᳚ना॒ वि दि॑द्युते समु॒द्रासो॒ न सव॑नानि विव्यचुः ||{9.80.1}, {9.4.13.1}, {7.3.5.1} |
703 | यं त्वा᳚ वाजिन्न॒घ्न्या अ॒भ्यनू᳚ष॒तायो᳚हतं॒ योनि॒मा रो᳚हसि द्यु॒मान् | म॒घोना॒मायुः॑ प्रति॒रन्महि॒ श्रव॒ इन्द्रा᳚य सोम पवसे॒ वृषा॒ मदः॑ ||{9.80.2}, {9.4.13.2}, {7.3.5.2} |
704 | एन्द्र॑स्य कु॒क्षा प॑वते म॒दिन्त॑म॒ ऊर्जं॒ वसा᳚नः॒ श्रव॑से सुम॒ङ्गलः॑ | प्र॒त्यङ्स विश्वा॒ भुव॑ना॒भि प॑प्रथे॒ क्रीळ॒न्हरि॒रत्यः॑ स्यन्दते॒ वृषा᳚ ||{9.80.3}, {9.4.13.3}, {7.3.5.3} |
705 | तं त्वा᳚ दे॒वेभ्यो॒ मधु॑मत्तमं॒ नरः॑ स॒हस्र॑धारं दुहते॒ दश॒ क्षिपः॑ | नृभिः॑ सोम॒ प्रच्यु॑तो॒ ग्राव॑भिः सु॒तो विश्वा᳚न्दे॒वाँ आ प॑वस्वा सहस्रजित् ||{9.80.4}, {9.4.13.4}, {7.3.5.4} |
706 | तं त्वा᳚ ह॒स्तिनो॒ मधु॑मन्त॒मद्रि॑भिर्दु॒हन्त्य॒प्सु वृ॑ष॒भं दश॒ क्षिपः॑ | इन्द्रं᳚ सोम मा॒दय॒न्दैव्यं॒ जनं॒ सिन्धो᳚रिवो॒र्मिः पव॑मानो अर्षसि ||{9.80.5}, {9.4.13.5}, {7.3.5.5} |
[81] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भारद्वाजो वसु ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | (१-४) प्रथमादिचतुर्ऋचामा आं जगती, (५) पञ्चम्याश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
707 | प्र सोम॑स्य॒ पव॑मानस्यो॒र्मय॒ इन्द्र॑स्य यन्ति ज॒ठरं᳚ सु॒पेश॑सः | द॒ध्ना यदी॒मुन्नी᳚ता य॒शसा॒ गवां᳚ दा॒नाय॒ शूर॑मु॒दम᳚न्दिषुः सु॒ताः ||{9.81.1}, {9.4.14.1}, {7.3.6.1} |
708 | अच्छा॒ हि सोमः॑ क॒लशाँ॒ असि॑ष्यद॒दत्यो॒ न वोळ्हा᳚ र॒घुव॑र्तनि॒र्वृषा᳚ | अथा᳚ दे॒वाना᳚मु॒भय॑स्य॒ जन्म॑नो वि॒द्वाँ अ॑श्नोत्य॒मुत॑ इ॒तश्च॒ यत् ||{9.81.2}, {9.4.14.2}, {7.3.6.2} |
709 | आ नः॑ सोम॒ पव॑मानः किरा॒ वस्विन्दो॒ भव॑ म॒घवा॒ राध॑सो म॒हः | शिक्षा᳚ वयोधो॒ वस॑वे॒ सु चे॒तुना॒ मा नो॒ गय॑मा॒रे अ॒स्मत्परा᳚ सिचः ||{9.81.3}, {9.4.14.3}, {7.3.6.3} |
710 | आ नः॑ पू॒षा पव॑मानः सुरा॒तयो᳚ मि॒त्रो ग॑च्छन्तु॒ वरु॑णः स॒जोष॑सः | बृह॒स्पति᳚र्म॒रुतो᳚ वा॒युर॒श्विना॒ त्वष्टा᳚ सवि॒ता सु॒यमा॒ सर॑स्वती ||{9.81.4}, {9.4.14.4}, {7.3.6.4} |
711 | उ॒भे द्यावा᳚पृथि॒वी वि॑श्वमि॒न्वे अ᳚र्य॒मा दे॒वो अदि॑तिर्विधा॒ता | भगो॒ नृशंस॑ उ॒र्व१॑(अ॒)'न्तरि॑क्षं॒ विश्वे᳚ दे॒वाः पव॑मानं जुषन्त ||{9.81.5}, {9.4.14.5}, {7.3.6.5} |
[82] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भारद्वाजो वसु (ऋषिः), पवमानः सोमो देवता | (१-४) प्रथमादिचतुर्ऋचाम् जगती, (५) पञ्चम्याश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
712 | असा᳚वि॒ सोमो᳚ अरु॒षो वृषा॒ हरी॒ राजे᳚व द॒स्मो अ॒भि गा अ॑चिक्रदत् | पु॒ना॒नो वारं॒ पर्ये᳚त्य॒व्ययं᳚ श्ये॒नो न योनिं᳚ घृ॒तव᳚न्तमा॒सद᳚म् ||{9.82.1}, {9.4.15.1}, {7.3.7.1} |
713 | क॒विर्वे᳚ध॒स्या पर्ये᳚षि॒ माहि॑न॒मत्यो॒ न मृ॒ष्टो अ॒भि वाज॑मर्षसि | अ॒प॒सेध᳚न्दुरि॒ता सो᳚म मृळय घृ॒तं वसा᳚नः॒ परि॑ यासि नि॒र्णिज᳚म् ||{9.82.2}, {9.4.15.2}, {7.3.7.2} |
714 | प॒र्जन्यः॑ पि॒ता म॑हि॒षस्य॑ प॒र्णिनो॒ नाभा᳚ पृथि॒व्या गि॒रिषु॒ क्षयं᳚ दधे | स्वसा᳚र॒ आपो᳚ अ॒भि गा उ॒तास॑र॒न्सं ग्राव॑भिर्नसते वी॒ते अ॑ध्व॒रे ||{9.82.3}, {9.4.15.3}, {7.3.7.3} |
715 | जा॒येव॒ पत्या॒वधि॒ शेव॑ मंहसे॒ पज्रा᳚या गर्भ शृणु॒हि ब्रवी᳚मि ते | अ॒न्तर्वाणी᳚षु॒ प्र च॑रा॒ सु जी॒वसे᳚ऽनि॒न्द्यो वृ॒जने᳚ सोम जागृहि ||{9.82.4}, {9.4.15.4}, {7.3.7.4} |
716 | यथा॒ पूर्वे᳚भ्यः शत॒सा अमृ॑ध्रः सहस्र॒साः प॒र्यया॒ वाज॑मिन्दो | ए॒वा प॑वस्व सुवि॒ताय॒ नव्य॑से॒ तव᳚ व्र॒तमन्वापः॑ सचन्ते ||{9.82.5}, {9.4.15.5}, {7.3.7.5} |
[83] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः पवित्र ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
717 | प॒वित्रं᳚ ते॒ वित॑तं ब्रह्मणस्पते प्र॒भुर्गात्रा᳚णि॒ पर्ये᳚षि वि॒श्वतः॑ | अत॑प्ततनू॒र्न तदा॒मो अ॑श्नुते शृ॒तास॒ इद्वह᳚न्त॒स्तत्समा᳚शत ||{9.83.1}, {9.4.16.1}, {7.3.8.1} |
718 | तपो᳚ष्प॒वित्रं॒ वित॑तं दि॒वस्प॒दे शोच᳚न्तो अस्य॒ तन्त॑वो॒ व्य॑स्थिरन् | अव᳚न्त्यस्य पवी॒तार॑मा॒शवो᳚ दि॒वस्पृ॒ष्ठमधि॑ तिष्ठन्ति॒ चेत॑सा ||{9.83.2}, {9.4.16.2}, {7.3.8.2} |
719 | अरू᳚रुचदु॒षसः॒ पृश्नि॑रग्रि॒य उ॒क्षा बि॑भर्ति॒ भुव॑नानि वाज॒युः | मा॒या॒विनो᳚ ममिरे अस्य मा॒यया᳚ नृ॒चक्ष॑सः पि॒तरो॒ गर्भ॒मा द॑धुः ||{9.83.3}, {9.4.16.3}, {7.3.8.3} |
720 | ग॒न्ध॒र्व इ॒त्था प॒दम॑स्य रक्षति॒ पाति॑ दे॒वानां॒ जनि॑मा॒न्यद्भु॑तः | गृ॒भ्णाति॑ रि॒पुं नि॒धया᳚ नि॒धाप॑तिः सु॒कृत्त॑मा॒ मधु॑नो भ॒क्षमा᳚शत ||{9.83.4}, {9.4.16.4}, {7.3.8.4} |
721 | ह॒विर्ह॑विष्मो॒ महि॒ सद्म॒ दैव्यं॒ नभो॒ वसा᳚नः॒ परि॑ यास्यध्व॒रम् | राजा᳚ प॒वित्र॑रथो॒ वाज॒मारु॑हः स॒हस्र॑भृष्टिर्जयसि॒ श्रवो᳚ बृ॒हत् ||{9.83.5}, {9.4.16.5}, {7.3.8.5} |
[84] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य वाच्यः प्रजापतिषिः, पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
722 | पव॑स्व देव॒माद॑नो॒ विच॑र्षणिर॒प्सा इन्द्रा᳚य॒ वरु॑णाय वा॒यवे᳚ | कृ॒धी नो᳚ अ॒द्य वरि॑वः स्वस्ति॒मदु॑रुक्षि॒तौ गृ॑णीहि॒ दैव्यं॒ जन᳚म् ||{9.84.1}, {9.4.17.1}, {7.3.9.1} |
723 | आ यस्त॒स्थौ भुव॑ना॒न्यम॑र्त्यो॒ विश्वा᳚नि॒ सोमः॒ परि॒ तान्य॑र्षति | कृ॒ण्वन्सं॒चृतं᳚ वि॒चृत॑म॒भिष्ट॑य॒ इन्दुः॑ सिषक्त्यु॒षसं॒ न सूर्यः॑ ||{9.84.2}, {9.4.17.2}, {7.3.9.2} |
724 | आ यो गोभिः॑ सृ॒ज्यत॒ ओष॑धी॒ष्वा दे॒वानां᳚ सु॒म्न इ॒षय॒न्नुपा᳚वसुः | आ वि॒द्युता᳚ पवते॒ धार॑या सु॒त इन्द्रं॒ सोमो᳚ मा॒दय॒न्दैव्यं॒ जन᳚म् ||{9.84.3}, {9.4.17.3}, {7.3.9.3} |
725 | ए॒ष स्य सोमः॑ पवते सहस्र॒जिद्धि᳚न्वा॒नो वाच॑मिषि॒रामु॑ष॒र्बुध᳚म् | इन्दुः॑ समु॒द्रमुदि॑यर्ति वा॒युभि॒रेन्द्र॑स्य॒ हार्दि॑ क॒लशे᳚षु सीदति ||{9.84.4}, {9.4.17.4}, {7.3.9.4} |
726 | अ॒भि त्यं गावः॒ पय॑सा पयो॒वृधं॒ सोमं᳚ श्रीणन्ति म॒तिभिः॑ स्व॒र्विद᳚म् | ध॒नं॒ज॒यः प॑वते॒ कृत्व्यो॒ रसो॒ विप्रः॑ क॒विः काव्ये᳚ना॒ स्व॑र्चनाः ||{9.84.5}, {9.4.17.5}, {7.3.9.5} |
[85] (१-१२) द्वादशर्चस्य सूक्तस्य भार्गवो वेन ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | (१-१०) प्रथमादिदश! जगती, (११-१२) एकादशीद्वादश्योश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
727 | इन्द्रा᳚य सोम॒ सुषु॑तः॒ परि॑ स्र॒वापामी᳚वा भवतु॒ रक्ष॑सा स॒ह | मा ते॒ रस॑स्य मत्सत द्वया॒विनो॒ द्रवि॑णस्वन्त इ॒ह स॒न्त्विन्द॑वः ||{9.85.1}, {9.4.18.1}, {7.3.10.1} |
728 | अ॒स्मान्स॑म॒र्ये प॑वमान चोदय॒ दक्षो᳚ दे॒वाना॒मसि॒ हि प्रि॒यो मदः॑ | ज॒हि शत्रूँ᳚र॒भ्या भ᳚न्दनाय॒तः पिबे᳚न्द्र॒ सोम॒मव॑ नो॒ मृधो᳚ जहि ||{9.85.2}, {9.4.18.2}, {7.3.10.2} |
729 | अद॑ब्ध इन्दो पवसे म॒दिन्त॑म आ॒त्मेन्द्र॑स्य भवसि धा॒सिरु॑त्त॒मः | अ॒भि स्व॑रन्ति ब॒हवो᳚ मनी॒षिणो॒ राजा᳚नम॒स्य भुव॑नस्य निंसते ||{9.85.3}, {9.4.18.3}, {7.3.10.3} |
730 | स॒हस्र॑णीथः श॒तधा᳚रो॒ अद्भु॑त॒ इन्द्रा॒येन्दुः॑ पवते॒ काम्यं॒ मधु॑ | जय॒न्क्षेत्र॑म॒भ्य॑र्षा॒ जय᳚न्न॒प उ॒रुं नो᳚ गा॒तुं कृ॑णु सोम मीढ्वः ||{9.85.4}, {9.4.18.4}, {7.3.10.4} |
731 | कनि॑क्रदत्क॒लशे॒ गोभि॑रज्यसे॒ व्य१॑(अ॒)'व्ययं᳚ स॒मया॒ वार॑मर्षसि | म॒र्मृ॒ज्यमा᳚नो॒ अत्यो॒ न सा᳚न॒सिरिन्द्र॑स्य सोम ज॒ठरे॒ सम॑क्षरः ||{9.85.5}, {9.4.18.5}, {7.3.10.5} |
732 | स्वा॒दुः प॑वस्व दि॒व्याय॒ जन्म॑ने स्वा॒दुरिन्द्रा᳚य सु॒हवी᳚तुनाम्ने | स्वा॒दुर्मि॒त्राय॒ वरु॑णाय वा॒यवे॒ बृह॒स्पत॑ये॒ मधु॑माँ॒ अदा᳚भ्यः ||{9.85.6}, {9.4.18.6}, {7.3.11.1} |
733 | अत्यं᳚ मृजन्ति क॒लशे॒ दश॒ क्षिपः॒ प्र विप्रा᳚णां म॒तयो॒ वाच॑ ईरते | पव॑माना अ॒भ्य॑र्षन्ति सुष्टु॒तिमेन्द्रं᳚ विशन्ति मदि॒रास॒ इन्द॑वः ||{9.85.7}, {9.4.18.7}, {7.3.11.2} |
734 | पव॑मानो अ॒भ्य॑र्षा सु॒वीर्य॑मु॒र्वीं गव्यू᳚तिं॒ महि॒ शर्म॑ स॒प्रथः॑ | माकि᳚र्नो अ॒स्य परि॑षूतिरीश॒तेन्दो॒ जये᳚म॒ त्वया॒ धनं᳚धनम् ||{9.85.8}, {9.4.18.8}, {7.3.11.3} |
735 | अधि॒ द्याम॑स्थाद्वृष॒भो वि॑चक्ष॒णोऽरू᳚रुच॒द्वि दि॒वो रो᳚च॒ना क॒विः | राजा᳚ प॒वित्र॒मत्ये᳚ति॒ रोरु॑वद्दि॒वः पी॒यूषं᳚ दुहते नृ॒चक्ष॑सः ||{9.85.9}, {9.4.18.9}, {7.3.11.4} |
736 | दि॒वो नाके॒ मधु॑जिह्वा अस॒श्चतो᳚ वे॒ना दु॑हन्त्यु॒क्षणं᳚ गिरि॒ष्ठाम् | अ॒प्सु द्र॒प्सं वा᳚वृधा॒नं स॑मु॒द्र आ सिन्धो᳚रू॒र्मा मधु॑मन्तं प॒वित्र॒ आ ||{9.85.10}, {9.4.18.10}, {7.3.11.5} |
737 | नाके᳚ सुप॒र्णमु॑पपप्ति॒वांसं॒ गिरो᳚ वे॒नाना᳚मकृपन्त पू॒र्वीः | शिशुं᳚ रिहन्ति म॒तयः॒ पनि॑प्नतं हिर॒ण्ययं᳚ शकु॒नं क्षाम॑णि॒ स्थाम् ||{9.85.11}, {9.4.18.11}, {7.3.11.6} |
738 | ऊ॒र्ध्वो ग᳚न्ध॒र्वो अधि॒ नाके᳚ अस्था॒द्विश्वा᳚ रू॒पा प्र॑ति॒चक्षा᳚णो अस्य | भा॒नुः शु॒क्रेण॑ शो॒चिषा॒ व्य॑द्यौ॒त्प्रारू᳚रुच॒द्रोद॑सी मा॒तरा॒ शुचिः॑ ||{9.85.12}, {9.4.18.12}, {7.3.11.7} |
[86] (१-४८) अष्टचत्वारिंशदृचस्य सूक्तस्य (१-१०) प्रथमादिदशर्चामकृष्टा माषाः, (११-२०) एकादश्यादिदशानां सिकता निवावरी, (२१-३०) एकविंश्यादिदशानां पृश्नयोऽजाः, (३१-४०) एकत्रिंश्यादिदशानामत्रेयः, (४१४५) एकचत्वारिंश्यादिपञ्चानां भौमोऽत्रिः, (४६-४८) षट्चत्वारिंश्यादितृचस्य च भार्गवः शौनको गृत्समद (ऋषयः) पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
739 | प्र त॑ आ॒शवः॑ पवमान धी॒जवो॒ मदा᳚ अर्षन्ति रघु॒जा इ॑व॒ त्मना᳚ | दि॒व्याः सु॑प॒र्णा मधु॑मन्त॒ इन्द॑वो म॒दिन्त॑मासः॒ परि॒ कोश॑मासते ||{9.86.1}, {9.5.1.1}, {7.3.12.1} |
740 | प्र ते॒ मदा᳚सो मदि॒रास॑ आ॒शवोऽसृ॑क्षत॒ रथ्या᳚सो॒ यथा॒ पृथ॑क् | धे॒नुर्न व॒त्सं पय॑सा॒भि व॒ज्रिण॒मिन्द्र॒मिन्द॑वो॒ मधु॑मन्त ऊ॒र्मयः॑ ||{9.86.2}, {9.5.1.2}, {7.3.12.2} |
741 | अत्यो॒ न हि॑या॒नो अ॒भि वाज॑मर्ष स्व॒र्वित्कोशं᳚ दि॒वो अद्रि॑मातरम् | वृषा᳚ प॒वित्रे॒ अधि॒ सानो᳚ अ॒व्यये॒ सोमः॑ पुना॒न इ᳚न्द्रि॒याय॒ धाय॑से ||{9.86.3}, {9.5.1.3}, {7.3.12.3} |
742 | प्र त॒ आश्वि॑नीः पवमान धी॒जुवो᳚ दि॒व्या अ॑सृग्र॒न्पय॑सा॒ धरी᳚मणि | प्रान्तरृष॑यः॒ स्थावि॑रीरसृक्षत॒ ये त्वा᳚ मृ॒जन्त्यृ॑षिषाण वे॒धसः॑ ||{9.86.4}, {9.5.1.4}, {7.3.12.4} |
743 | विश्वा॒ धामा᳚नि विश्वचक्ष॒ ऋभ्व॑सः प्र॒भोस्ते᳚ स॒तः परि॑ यन्ति के॒तवः॑ | व्या॒न॒शिः प॑वसे सोम॒ धर्म॑भिः॒ पति॒र्विश्व॑स्य॒ भुव॑नस्य राजसि ||{9.86.5}, {9.5.1.5}, {7.3.12.5} |
744 | उ॒भ॒यतः॒ पव॑मानस्य र॒श्मयो᳚ ध्रु॒वस्य॑ स॒तः परि॑ यन्ति के॒तवः॑ | यदी᳚ प॒वित्रे॒ अधि॑ मृ॒ज्यते॒ हरिः॒ सत्ता॒ नि योना᳚ क॒लशे᳚षु सीदति ||{9.86.6}, {9.5.1.6}, {7.3.13.1} |
745 | य॒ज्ञस्य॑ के॒तुः प॑वते स्वध्व॒रः सोमो᳚ दे॒वाना॒मुप॑ याति निष्कृ॒तम् | स॒हस्र॑धारः॒ परि॒ कोश॑मर्षति॒ वृषा᳚ प॒वित्र॒मत्ये᳚ति॒ रोरु॑वत् ||{9.86.7}, {9.5.1.7}, {7.3.13.2} |
746 | राजा᳚ समु॒द्रं न॒द्यो॒३॑(ओ॒) वि गा᳚हते॒ऽपामू॒र्मिं स॑चते॒ सिन्धु॑षु श्रि॒तः | अध्य॑स्था॒त्सानु॒ पव॑मानो अ॒व्ययं॒ नाभा᳚ पृथि॒व्या ध॒रुणो᳚ म॒हो दि॒वः ||{9.86.8}, {9.5.1.8}, {7.3.13.3} |
747 | दि॒वो न सानु॑ स्त॒नय᳚न्नचिक्रद॒द्द्यौश्च॒ यस्य॑ पृथि॒वी च॒ धर्म॑भिः | इन्द्र॑स्य स॒ख्यं प॑वते वि॒वेवि॑द॒त्सोमः॑ पुना॒नः क॒लशे᳚षु सीदति ||{9.86.9}, {9.5.1.9}, {7.3.13.4} |
748 | ज्योति᳚र्य॒ज्ञस्य॑ पवते॒ मधु॑ प्रि॒यं पि॒ता दे॒वानां᳚ जनि॒ता वि॒भूव॑सुः | दधा᳚ति॒ रत्नं᳚ स्व॒धयो᳚रपी॒च्यं᳚ म॒दिन्त॑मो मत्स॒र इ᳚न्द्रि॒यो रसः॑ ||{9.86.10}, {9.5.1.10}, {7.3.13.5} |
749 | अ॒भि॒क्रन्द᳚न्क॒लशं᳚ वा॒ज्य॑र्षति॒ पति॑र्दि॒वः श॒तधा᳚रो विचक्ष॒णः | हरि᳚र्मि॒त्रस्य॒ सद॑नेषु सीदति मर्मृजा॒नोऽवि॑भिः॒ सिन्धु॑भि॒र्वृषा᳚ ||{9.86.11}, {9.5.1.11}, {7.3.14.1} |
750 | अग्रे॒ सिन्धू᳚नां॒ पव॑मानो अर्ष॒त्यग्रे᳚ वा॒चो अ॑ग्रि॒यो गोषु॑ गच्छति | अग्रे॒ वाज॑स्य भजते महाध॒नं स्वा᳚यु॒धः सो॒तृभिः॑ पूयते॒ वृषा᳚ ||{9.86.12}, {9.5.1.12}, {7.3.14.2} |
751 | अ॒यं म॒तवा᳚ञ्छकु॒नो यथा᳚ हि॒तोऽव्ये᳚ ससार॒ पव॑मान ऊ॒र्मिणा᳚ | तव॒ क्रत्वा॒ रोद॑सी अन्त॒रा क॑वे॒ शुचि॑र्धि॒या प॑वते॒ सोम॑ इन्द्र ते ||{9.86.13}, {9.5.1.13}, {7.3.14.3} |
752 | द्रा॒पिं वसा᳚नो यज॒तो दि॑वि॒स्पृश॑मन्तरिक्ष॒प्रा भुव॑ने॒ष्वर्पि॑तः | स्व॑र्जज्ञा॒नो नभ॑सा॒भ्य॑क्रमीत्प्र॒त्नम॑स्य पि॒तर॒मा वि॑वासति ||{9.86.14}, {9.5.1.14}, {7.3.14.4} |
753 | सो अ॑स्य वि॒शे महि॒ शर्म॑ यच्छति॒ यो अ॑स्य॒ धाम॑ प्रथ॒मं व्या᳚न॒शे | प॒दं यद॑स्य पर॒मे व्यो᳚म॒न्यतो॒ विश्वा᳚ अ॒भि सं या᳚ति सं॒यतः॑ ||{9.86.15}, {9.5.1.15}, {7.3.14.5} |
754 | प्रो अ॑यासी॒दिन्दु॒रिन्द्र॑स्य निष्कृ॒तं सखा॒ सख्यु॒र्न प्र मि॑नाति सं॒गिर᳚म् | मर्य॑ इव युव॒तिभिः॒ सम॑र्षति॒ सोमः॑ क॒लशे᳚ श॒तया᳚म्ना प॒था ||{9.86.16}, {9.5.1.16}, {7.3.15.1} |
755 | प्र वो॒ धियो᳚ मन्द्र॒युवो᳚ विप॒न्युवः॑ पन॒स्युवः॑ सं॒वस॑नेष्वक्रमुः | सोमं᳚ मनी॒षा अ॒भ्य॑नूषत॒ स्तुभो॒ऽभि धे॒नवः॒ पय॑सेमशिश्रयुः ||{9.86.17}, {9.5.1.17}, {7.3.15.2} |
756 | आ नः॑ सोम सं॒यतं᳚ पि॒प्युषी॒मिष॒मिन्दो॒ पव॑स्व॒ पव॑मानो अ॒स्रिध᳚म् | या नो॒ दोह॑ते॒ त्रिरह॒न्नस॑श्चुषी क्षु॒मद्वाज॑व॒न्मधु॑मत्सु॒वीर्य᳚म् ||{9.86.18}, {9.5.1.18}, {7.3.15.3} |
757 | वृषा᳚ मती॒नां प॑वते विचक्ष॒णः सोमो॒ अह्नः॑ प्रतरी॒तोषसो᳚ दि॒वः | क्रा॒णा सिन्धू᳚नां क॒लशाँ᳚ अवीवश॒दिन्द्र॑स्य॒ हार्द्या᳚वि॒शन्म॑नी॒षिभिः॑ ||{9.86.19}, {9.5.1.19}, {7.3.15.4} |
758 | म॒नी॒षिभिः॑ पवते पू॒र्व्यः क॒विर्नृभि᳚र्य॒तः परि॒ कोशाँ᳚ अचिक्रदत् | त्रि॒तस्य॒ नाम॑ ज॒नय॒न्मधु॑ क्षर॒दिन्द्र॑स्य वा॒योः स॒ख्याय॒ कर्त॑वे ||{9.86.20}, {9.5.1.20}, {7.3.15.5} |
759 | अ॒यं पु॑ना॒न उ॒षसो॒ वि रो᳚चयद॒यं सिन्धु॑भ्यो अभवदु लोक॒कृत् | अ॒यं त्रिः स॒प्त दु॑दुहा॒न आ॒शिरं॒ सोमो᳚ हृ॒दे प॑वते॒ चारु॑ मत्स॒रः ||{9.86.21}, {9.5.1.21}, {7.3.16.1} |
760 | पव॑स्व सोम दि॒व्येषु॒ धाम॑सु सृजा॒न इ᳚न्दो क॒लशे᳚ प॒वित्र॒ आ | सीद॒न्निन्द्र॑स्य ज॒ठरे॒ कनि॑क्रद॒न्नृभि᳚र्य॒तः सूर्य॒मारो᳚हयो दि॒वि ||{9.86.22}, {9.5.1.22}, {7.3.16.2} |
761 | अद्रि॑भिः सु॒तः प॑वसे प॒वित्र॒ आँ इन्द॒विन्द्र॑स्य ज॒ठरे᳚ष्वावि॒शन् | त्वं नृ॒चक्षा᳚ अभवो विचक्षण॒ सोम॑ गो॒त्रमङ्गि॑रोभ्योऽवृणो॒रप॑ ||{9.86.23}, {9.5.1.23}, {7.3.16.3} |
762 | त्वां सो᳚म॒ पव॑मानं स्वा॒ध्योऽनु॒ विप्रा᳚सो अमदन्नव॒स्यवः॑ | त्वां सु॑प॒र्ण आभ॑रद्दि॒वस्परीन्दो॒ विश्वा᳚भिर्म॒तिभिः॒ परि॑ष्कृतम् ||{9.86.24}, {9.5.1.24}, {7.3.16.4} |
763 | अव्ये᳚ पुना॒नं परि॒ वार॑ ऊ॒र्मिणा॒ हरिं᳚ नवन्ते अ॒भि स॒प्त धे॒नवः॑ | अ॒पामु॒पस्थे॒ अध्या॒यवः॑ क॒विमृ॒तस्य॒ योना᳚ महि॒षा अ॑हेषत ||{9.86.25}, {9.5.1.25}, {7.3.16.5} |
764 | इन्दुः॑ पुना॒नो अति॑ गाहते॒ मृधो॒ विश्वा᳚नि कृ॒ण्वन्सु॒पथा᳚नि॒ यज्य॑वे | गाः कृ᳚ण्वा॒नो नि॒र्णिजं᳚ हर्य॒तः क॒विरत्यो॒ न क्रीळ॒न्परि॒ वार॑मर्षति ||{9.86.26}, {9.5.1.26}, {7.3.17.1} |
765 | अ॒स॒श्चतः॑ श॒तधा᳚रा अभि॒श्रियो॒ हरिं᳚ नव॒न्तेऽव॒ ता उ॑द॒न्युवः॑ | क्षिपो᳚ मृजन्ति॒ परि॒ गोभि॒रावृ॑तं तृ॒तीये᳚ पृ॒ष्ठे अधि॑ रोच॒ने दि॒वः ||{9.86.27}, {9.5.1.27}, {7.3.17.2} |
766 | तवे॒माः प्र॒जा दि॒व्यस्य॒ रेत॑स॒स्त्वं विश्व॑स्य॒ भुव॑नस्य राजसि | अथे॒दं विश्वं᳚ पवमान ते॒ वशे॒ त्वमि᳚न्दो प्रथ॒मो धा᳚म॒धा अ॑सि ||{9.86.28}, {9.5.1.28}, {7.3.17.3} |
767 | त्वं स॑मु॒द्रो अ॑सि विश्व॒वित्क॑वे॒ तवे॒माः पञ्च॑ प्र॒दिशो॒ विध᳚र्मणि | त्वं द्यां च॑ पृथि॒वीं चाति॑ जभ्रिषे॒ तव॒ ज्योतीं᳚षि पवमान॒ सूर्यः॑ ||{9.86.29}, {9.5.1.29}, {7.3.17.4} |
768 | त्वं प॒वित्रे॒ रज॑सो॒ विध᳚र्मणि दे॒वेभ्यः॑ सोम पवमान पूयसे | त्वामु॒शिजः॑ प्रथ॒मा अ॑गृभ्णत॒ तुभ्ये॒मा विश्वा॒ भुव॑नानि येमिरे ||{9.86.30}, {9.5.1.30}, {7.3.17.5} |
769 | प्र रे॒भ ए॒त्यति॒ वार॑म॒व्ययं॒ वृषा॒ वने॒ष्वव॑ चक्रद॒द्धरिः॑ | सं धी॒तयो᳚ वावशा॒ना अ॑नूषत॒ शिशुं᳚ रिहन्ति म॒तयः॒ पनि॑प्नतम् ||{9.86.31}, {9.5.1.31}, {7.3.18.1} |
770 | स सूर्य॑स्य र॒श्मिभिः॒ परि᳚ व्यत॒ तन्तुं᳚ तन्वा॒नस्त्रि॒वृतं॒ यथा᳚ वि॒दे | नय᳚न्नृ॒तस्य॑ प्र॒शिषो॒ नवी᳚यसीः॒ पति॒र्जनी᳚ना॒मुप॑ याति निष्कृ॒तम् ||{9.86.32}, {9.5.1.32}, {7.3.18.2} |
771 | राजा॒ सिन्धू᳚नां पवते॒ पति॑र्दि॒व ऋ॒तस्य॑ याति प॒थिभिः॒ कनि॑क्रदत् | स॒हस्र॑धारः॒ परि॑ षिच्यते॒ हरिः॑ पुना॒नो वाचं᳚ ज॒नय॒न्नुपा᳚वसुः ||{9.86.33}, {9.5.1.33}, {7.3.18.3} |
772 | पव॑मान॒ मह्यर्णो॒ वि धा᳚वसि॒ सूरो॒ न चि॒त्रो अव्य॑यानि॒ पव्य॑या | गभ॑स्तिपूतो॒ नृभि॒रद्रि॑भिः सु॒तो म॒हे वाजा᳚य॒ धन्या᳚य धन्वसि ||{9.86.34}, {9.5.1.34}, {7.3.18.4} |
773 | इष॒मूर्जं᳚ पवमाना॒भ्य॑र्षसि श्ये॒नो न वंसु॑ क॒लशे᳚षु सीदसि | इन्द्रा᳚य॒ मद्वा॒ मद्यो॒ मदः॑ सु॒तो दि॒वो वि॑ष्ट॒म्भ उ॑प॒मो वि॑चक्ष॒णः ||{9.86.35}, {9.5.1.35}, {7.3.18.5} |
774 | स॒प्त स्वसा᳚रो अ॒भि मा॒तरः॒ शिशुं॒ नवं᳚ जज्ञा॒नं जेन्यं᳚ विप॒श्चित᳚म् | अ॒पां ग᳚न्ध॒र्वं दि॒व्यं नृ॒चक्ष॑सं॒ सोमं॒ विश्व॑स्य॒ भुव॑नस्य रा॒जसे᳚ ||{9.86.36}, {9.5.1.36}, {7.3.19.1} |
775 | ई॒शा॒न इ॒मा भुव॑नानि॒ वीय॑से युजा॒न इ᳚न्दो ह॒रितः॑ सुप॒र्ण्यः॑ | तास्ते᳚ क्षरन्तु॒ मधु॑मद्घृ॒तं पय॒स्तव᳚ व्र॒ते सो᳚म तिष्ठन्तु कृ॒ष्टयः॑ ||{9.86.37}, {9.5.1.37}, {7.3.19.2} |
776 | त्वं नृ॒चक्षा᳚ असि सोम वि॒श्वतः॒ पव॑मान वृषभ॒ ता वि धा᳚वसि | स नः॑ पवस्व॒ वसु॑म॒द्धिर᳚ण्यवद्व॒यं स्या᳚म॒ भुव॑नेषु जी॒वसे᳚ ||{9.86.38}, {9.5.1.38}, {7.3.19.3} |
777 | गो॒वित्प॑वस्व वसु॒विद्धि॑रण्य॒विद्रे᳚तो॒धा इ᳚न्दो॒ भुव॑ने॒ष्वर्पि॑तः | त्वं सु॒वीरो᳚ असि सोम विश्व॒वित्तं त्वा॒ विप्रा॒ उप॑ गि॒रेम आ᳚सते ||{9.86.39}, {9.5.1.39}, {7.3.19.4} |
778 | उन्मध्व॑ ऊ॒र्मिर्व॒नना᳚ अतिष्ठिपद॒पो वसा᳚नो महि॒षो वि गा᳚हते | राजा᳚ प॒वित्र॑रथो॒ वाज॒मारु॑हत्स॒हस्र॑भृष्टिर्जयति॒ श्रवो᳚ बृ॒हत् ||{9.86.40}, {9.5.1.40}, {7.3.19.5} |
779 | स भ॒न्दना॒ उदि॑यर्ति प्र॒जाव॑तीर्वि॒श्वायु॒र्विश्वाः᳚ सु॒भरा॒ अह॑र्दिवि | ब्रह्म॑ प्र॒जाव॑द्र॒यिमश्व॑पस्त्यं पी॒त इ᳚न्द॒विन्द्र॑म॒स्मभ्यं᳚ याचतात् ||{9.86.41}, {9.5.1.41}, {7.3.20.1} |
780 | सो अग्रे॒ अह्नां॒ हरि॑र्हर्य॒तो मदः॒ प्र चेत॑सा चेतयते॒ अनु॒ द्युभिः॑ | द्वा जना᳚ या॒तय᳚न्न॒न्तरी᳚यते॒ नरा᳚ च॒ शंसं॒ दैव्यं᳚ च ध॒र्तरि॑ ||{9.86.42}, {9.5.1.42}, {7.3.20.2} |
781 | अ॒ञ्जते॒ व्य᳚ञ्जते॒ सम᳚ञ्जते॒ क्रतुं᳚ रिहन्ति॒ मधु॑ना॒भ्य᳚ञ्जते | सिन्धो᳚रुच्छ्वा॒से प॒तय᳚न्तमु॒क्षणं᳚ हिरण्यपा॒वाः प॒शुमा᳚सु गृभ्णते ||{9.86.43}, {9.5.1.43}, {7.3.20.3} |
782 | वि॒प॒श्चिते॒ पव॑मानाय गायत म॒ही न धारात्यन्धो᳚ अर्षति | अहि॒र्न जू॒र्णामति॑ सर्पति॒ त्वच॒मत्यो॒ न क्रीळ᳚न्नसर॒द्वृषा॒ हरिः॑ ||{9.86.44}, {9.5.1.44}, {7.3.20.4} |
783 | अ॒ग्रे॒गो राजाप्य॑स्तविष्यते वि॒मानो॒ अह्नां॒ भुव॑ने॒ष्वर्पि॑तः | हरि॑र्घृ॒तस्नुः॑ सु॒दृशी᳚को अर्ण॒वो ज्यो॒तीर॑थः पवते रा॒य ओ॒क्यः॑ ||{9.86.45}, {9.5.1.45}, {7.3.20.5} |
784 | अस॑र्जि स्क॒म्भो दि॒व उद्य॑तो॒ मदः॒ परि॑ त्रि॒धातु॒र्भुव॑नान्यर्षति | अं॒शुं रि॑हन्ति म॒तयः॒ पनि॑प्नतं गि॒रा यदि॑ नि॒र्णिज॑मृ॒ग्मिणो᳚ य॒युः ||{9.86.46}, {9.5.1.46}, {7.3.21.1} |
785 | प्र ते॒ धारा॒ अत्यण्वा᳚नि मे॒ष्यः॑ पुना॒नस्य॑ सं॒यतो᳚ यन्ति॒ रंह॑यः | यद्गोभि॑रिन्दो च॒म्वोः᳚ सम॒ज्यस॒ आ सु॑वा॒नः सो᳚म क॒लशे᳚षु सीदसि ||{9.86.47}, {9.5.1.47}, {7.3.21.2} |
786 | पव॑स्व सोम क्रतु॒विन्न॑ उ॒क्थ्योऽव्यो॒ वारे॒ परि॑ धाव॒ मधु॑ प्रि॒यम् | ज॒हि विश्वा᳚न्र॒क्षस॑ इन्दो अ॒त्रिणो᳚ बृ॒हद्व॑देम वि॒दथे᳚ सु॒वीराः᳚ ||{9.86.48}, {9.5.1.48}, {7.3.21.3} |
[87] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काव्य उशना ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
787 | प्र तु द्र॑व॒ परि॒ कोशं॒ नि षी᳚द॒ नृभिः॑ पुना॒नो अ॒भि वाज॑मर्ष | अश्वं॒ न त्वा᳚ वा॒जिनं᳚ म॒र्जय॒न्तोऽच्छा᳚ ब॒र्ही र॑श॒नाभि᳚र्नयन्ति ||{9.87.1}, {9.5.2.1}, {7.3.22.1} |
788 | स्वा॒यु॒धः प॑वते दे॒व इन्दु॑रशस्ति॒हा वृ॒जनं॒ रक्ष॑माणः | पि॒ता दे॒वानां᳚ जनि॒ता सु॒दक्षो᳚ विष्ट॒म्भो दि॒वो ध॒रुणः॑ पृथि॒व्याः ||{9.87.2}, {9.5.2.2}, {7.3.22.2} |
789 | ऋषि॒र्विप्रः॑ पुरए॒ता जना᳚नामृ॒भुर्धीर॑ उ॒शना॒ काव्ये᳚न | स चि॑द्विवेद॒ निहि॑तं॒ यदा᳚सामपी॒च्य१॑(अ॒) अंगुह्यं॒ नाम॒ गोना᳚म् ||{9.87.3}, {9.5.2.3}, {7.3.22.3} |
790 | ए॒ष स्य ते॒ मधु॑माँ इन्द्र॒ सोमो॒ वृषा॒ वृष्णे॒ परि॑ प॒वित्रे᳚ अक्षाः | स॒ह॒स्र॒साः श॑त॒सा भू᳚रि॒दावा᳚ शश्वत्त॒मं ब॒र्हिरा वा॒ज्य॑स्थात् ||{9.87.4}, {9.5.2.4}, {7.3.22.4} |
791 | ए॒ते सोमा᳚ अ॒भि ग॒व्या स॒हस्रा᳚ म॒हे वाजा᳚या॒मृता᳚य॒ श्रवां᳚सि | प॒वित्रे᳚भिः॒ पव॑माना असृग्रञ्छ्रव॒स्यवो॒ न पृ॑त॒नाजो॒ अत्याः᳚ ||{9.87.5}, {9.5.2.5}, {7.3.22.5} |
792 | परि॒ हि ष्मा᳚ पुरुहू॒तो जना᳚नां॒ विश्वास॑र॒द्भोज॑ना पू॒यमा᳚नः | अथा भ॑र श्येनभृत॒ प्रयां᳚सि र॒यिं तुञ्जा᳚नो अ॒भि वाज॑मर्ष ||{9.87.6}, {9.5.2.6}, {7.3.23.1} |
793 | ए॒ष सु॑वा॒नः परि॒ सोमः॑ प॒वित्रे॒ सर्गो॒ न सृ॒ष्टो अ॑दधाव॒दर्वा᳚ | ति॒ग्मे शिशा᳚नो महि॒षो न शृङ्गे॒ गा ग॒व्यन्न॒भि शूरो॒ न सत्वा᳚ ||{9.87.7}, {9.5.2.7}, {7.3.23.2} |
794 | ए॒षा य॑यौ पर॒माद॒न्तरद्रेः॒ कूचि॑त्स॒तीरू॒र्वे गा वि॑वेद | दि॒वो न वि॒द्युत्स्त॒नय᳚न्त्य॒भ्रैः सोम॑स्य ते पवत इन्द्र॒ धारा᳚ ||{9.87.8}, {9.5.2.8}, {7.3.23.3} |
795 | उ॒त स्म॑ रा॒शिं परि॑ यासि॒ गोना॒मिन्द्रे᳚ण सोम स॒रथं᳚ पुना॒नः | पू॒र्वीरिषो᳚ बृह॒तीर्जी᳚रदानो॒ शिक्षा᳚ शचीव॒स्तव॒ ता उ॑प॒ष्टुत् ||{9.87.9}, {9.5.2.9}, {7.3.23.4} |
[88] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्य काव्य उशना ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
796 | अ॒यं सोम॑ इन्द्र॒ तुभ्यं᳚ सुन्वे॒ तुभ्यं᳚ पवते॒ त्वम॑स्य पाहि | त्वं ह॒ यं च॑कृ॒षे त्वं व॑वृ॒ष इन्दुं॒ मदा᳚य॒ युज्या᳚य॒ सोम᳚म् ||{9.88.1}, {9.5.3.1}, {7.3.24.1} |
797 | स ईं॒ रथो॒ न भु॑रि॒षाळ॑योजि म॒हः पु॒रूणि॑ सा॒तये॒ वसू᳚नि | आदीं॒ विश्वा᳚ नहु॒ष्या᳚णि जा॒ता स्व॑र्षाता॒ वन॑ ऊ॒र्ध्वा न॑वन्त ||{9.88.2}, {9.5.3.2}, {7.3.24.2} |
798 | वा॒युर्न यो नि॒युत्वाँ᳚ इ॒ष्टया᳚मा॒ नास॑त्येव॒ हव॒ आ शम्भ॑विष्ठः | वि॒श्ववा᳚रो द्रविणो॒दा इ॑व॒ त्मन्पू॒षेव॑ धी॒जव॑नोऽसि सोम ||{9.88.3}, {9.5.3.3}, {7.3.24.3} |
799 | इन्द्रो॒ न यो म॒हा कर्मा᳚णि॒ चक्रि॑र्ह॒न्ता वृ॒त्राणा᳚मसि सोम पू॒र्भित् | पै॒द्वो न हि त्वमहि॑नाम्नां ह॒न्ता विश्व॑स्यासि सोम॒ दस्योः᳚ ||{9.88.4}, {9.5.3.4}, {7.3.24.4} |
800 | अ॒ग्निर्न यो वन॒ आ सृ॒ज्यमा᳚नो॒ वृथा॒ पाजां᳚सि कृणुते न॒दीषु॑ | जनो॒ न युध्वा᳚ मह॒त उ॑प॒ब्दिरिय॑र्ति॒ सोमः॒ पव॑मान ऊ॒र्मिम् ||{9.88.5}, {9.5.3.5}, {7.3.24.5} |
801 | ए॒ते सोमा॒ अति॒ वारा॒ण्यव्या᳚ दि॒व्या न कोशा᳚सो अ॒भ्रव॑र्षाः | वृथा᳚ समु॒द्रं सिन्ध॑वो॒ न नीचीः᳚ सु॒तासो᳚ अ॒भि क॒लशाँ᳚ असृग्रन् ||{9.88.6}, {9.5.3.6}, {7.3.24.6} |
802 | शु॒ष्मी शर्धो॒ न मारु॑तं पव॒स्वान॑भिशस्ता दि॒व्या यथा॒ विट् | आपो॒ न म॒क्षू सु॑म॒तिर्भ॑वा नः स॒हस्रा᳚प्साः पृतना॒षाण्न य॒ज्ञः ||{9.88.7}, {9.5.3.7}, {7.3.24.7} |
803 | राज्ञो॒ नु ते॒ वरु॑णस्य व्र॒तानि॑ बृ॒हद्ग॑भी॒रं तव॑ सोम॒ धाम॑ | शुचि॒ष्ट्वम॑सि प्रि॒यो न मि॒त्रो द॒क्षाय्यो᳚ अर्य॒मेवा᳚सि सोम ||{9.88.8}, {9.5.3.8}, {7.3.24.8} |
[89] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काव्य उशना ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
804 | प्रो स्य वह्निः॑ प॒थ्या᳚भिरस्यान्दि॒वो न वृ॒ष्टिः पव॑मानो अक्षाः | स॒हस्र॑धारो असद॒न्न्य१॑(अ॒)स्मे मा॒तुरु॒पस्थे॒ वन॒ आ च॒ सोमः॑ ||{9.89.1}, {9.5.4.1}, {7.3.25.1} |
805 | राजा॒ सिन्धू᳚नामवसिष्ट॒ वास॑ ऋ॒तस्य॒ नाव॒मारु॑ह॒द्रजि॑ष्ठाम् | अ॒प्सु द्र॒प्सो वा᳚वृधे श्ये॒नजू᳚तो दु॒ह ईं᳚ पि॒ता दु॒ह ईं᳚ पि॒तुर्जाम् ||{9.89.2}, {9.5.4.2}, {7.3.25.2} |
806 | सिं॒हं न॑सन्त॒ मध्वो᳚ अ॒यासं॒ हरि॑मरु॒षं दि॒वो अ॒स्य पति᳚म् | शूरो᳚ यु॒त्सु प्र॑थ॒मः पृ॑च्छते॒ गा अस्य॒ चक्ष॑सा॒ परि॑ पात्यु॒क्षा ||{9.89.3}, {9.5.4.3}, {7.3.25.3} |
807 | मधु॑पृष्ठं घो॒रम॒यास॒मश्वं॒ रथे᳚ युञ्जन्त्युरुच॒क्र ऋ॒ष्वम् | स्वसा᳚र ईं जा॒मयो᳚ मर्जयन्ति॒ सना᳚भयो वा॒जिन॑मूर्जयन्ति ||{9.89.4}, {9.5.4.4}, {7.3.25.4} |
808 | चत॑स्र ईं घृत॒दुहः॑ सचन्ते समा॒ने अ॒न्तर्ध॒रुणे॒ निष॑त्ताः | ता ई᳚मर्षन्ति॒ नम॑सा पुना॒नास्ता ईं᳚ वि॒श्वतः॒ परि॑ षन्ति पू॒र्वीः ||{9.89.5}, {9.5.4.5}, {7.3.25.5} |
809 | वि॒ष्ट॒म्भो दि॒वो ध॒रुणः॑ पृथि॒व्या विश्वा᳚ उ॒त क्षि॒तयो॒ हस्ते᳚ अस्य | अस॑त्त॒ उत्सो᳚ गृण॒ते नि॒युत्वा॒न्मध्वो᳚ अं॒शुः प॑वत इन्द्रि॒याय॑ ||{9.89.6}, {9.5.4.6}, {7.3.25.6} |
810 | व॒न्वन्नवा᳚तो अ॒भि दे॒ववी᳚ति॒मिन्द्रा᳚य सोम वृत्र॒हा प॑वस्व | श॒ग्धि म॒हः पु॑रुश्च॒न्द्रस्य॑ रा॒यः सु॒वीर्य॑स्य॒ पत॑यः स्याम ||{9.89.7}, {9.5.4.7}, {7.3.25.7} |
[90] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य मैत्रावरणिर्वसिष्ठ ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
811 | प्र हि᳚न्वा॒नो ज॑नि॒ता रोद॑स्यो॒ रथो॒ न वाजं᳚ सनि॒ष्यन्न॑यासीत् | इन्द्रं॒ गच्छ॒न्नायु॑धा सं॒शिशा᳚नो॒ विश्वा॒ वसु॒ हस्त॑योरा॒दधा᳚नः ||{9.90.1}, {9.5.5.1}, {7.3.26.1} |
812 | अ॒भि त्रि॑पृ॒ष्ठं वृष॑णं वयो॒धामा᳚ङ्गू॒षाणा᳚मवावशन्त॒ वाणीः᳚ | वना॒ वसा᳚नो॒ वरु॑णो॒ न सिन्धू॒न्वि र॑त्न॒धा द॑यते॒ वार्या᳚णि ||{9.90.2}, {9.5.5.2}, {7.3.26.2} |
813 | शूर॑ग्रामः॒ सर्व॑वीरः॒ सहा᳚वा॒ञ्जेता᳚ पवस्व॒ सनि॑ता॒ धना᳚नि | ति॒ग्मायु॑धः क्षि॒प्रध᳚न्वा स॒मत्स्वषा᳚ळ्हः सा॒ह्वान्पृत॑नासु॒ शत्रू॑न् ||{9.90.3}, {9.5.5.3}, {7.3.26.3} |
814 | उ॒रुग᳚व्यूति॒रभ॑यानि कृ॒ण्वन्स॑मीची॒ने आ प॑वस्वा॒ पुरं᳚धी | अ॒पः सिषा᳚सन्नु॒षसः॒ स्व१॑(अ॒)र्गाः सं चि॑क्रदो म॒हो अ॒स्मभ्यं॒ वाजा॑न् ||{9.90.4}, {9.5.5.4}, {7.3.26.4} |
815 | मत्सि॑ सोम॒ वरु॑णं॒ मत्सि॑ मि॒त्रं मत्सीन्द्र॑मिन्दो पवमान॒ विष्णु᳚म् | मत्सि॒ शर्धो॒ मारु॑तं॒ मत्सि॑ दे॒वान्मत्सि॑ म॒हामिन्द्र॑मिन्दो॒ मदा᳚य ||{9.90.5}, {9.5.5.5}, {7.3.26.5} |
816 | ए॒वा राजे᳚व॒ क्रतु॑माँ॒ अमे᳚न॒ विश्वा॒ घनि॑घ्नद्दुरि॒ता प॑वस्व | इन्दो᳚ सू॒क्ताय॒ वच॑से॒ वयो᳚ धा यू॒यं पा᳚त स्व॒स्तिभिः॒ सदा᳚ नः ||{9.90.6}, {9.5.5.6}, {7.3.26.6} |
[91] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य मारीचः कश्यप ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
817 | अस॑र्जि॒ वक्वा॒ रथ्ये॒ यथा॒जौ धि॒या म॒नोता᳚ प्रथ॒मो म॑नी॒षी | दश॒ स्वसा᳚रो॒ अधि॒ सानो॒ अव्येऽज᳚न्ति॒ वह्निं॒ सद॑ना॒न्यच्छ॑ ||{9.91.1}, {9.5.6.1}, {7.4.1.1} |
818 | वी॒ती जन॑स्य दि॒व्यस्य॑ क॒व्यैरधि॑ सुवा॒नो न॑हु॒ष्ये᳚भि॒रिन्दुः॑ | प्र यो नृभि॑र॒मृतो॒ मर्त्ये᳚भिर्मर्मृजा॒नोऽवि॑भि॒र्गोभि॑र॒द्भिः ||{9.91.2}, {9.5.6.2}, {7.4.1.2} |
819 | वृषा॒ वृष्णे॒ रोरु॑वदं॒शुर॑स्मै॒ पव॑मानो॒ रुश॑दीर्ते॒ पयो॒ गोः | स॒हस्र॒मृक्वा᳚ प॒थिभि᳚र्वचो॒विद॑ध्व॒स्मभिः॒ सूरो॒ अण्वं॒ वि या᳚ति ||{9.91.3}, {9.5.6.3}, {7.4.1.3} |
820 | रु॒जा दृ॒ळ्हा चि॑द्र॒क्षसः॒ सदां᳚सि पुना॒न इ᳚न्द ऊर्णुहि॒ वि वाजा॑न् | वृ॒श्चोपरि॑ष्टात्तुज॒ता व॒धेन॒ ये अन्ति॑ दू॒रादु॑पना॒यमे᳚षाम् ||{9.91.4}, {9.5.6.4}, {7.4.1.4} |
821 | स प्र॑त्न॒वन्नव्य॑से विश्ववार सू॒क्ताय॑ प॒थः कृ॑णुहि॒ प्राचः॑ | ये दुः॒षहा᳚सो व॒नुषा᳚ बृ॒हन्त॒स्ताँस्ते᳚ अश्याम पुरुकृत्पुरुक्षो ||{9.91.5}, {9.5.6.5}, {7.4.1.5} |
822 | ए॒वा पु॑ना॒नो अ॒पः स्व१॑(अ॒)र्गा अ॒स्मभ्यं᳚ तो॒का तन॑यानि॒ भूरि॑ | शं नः॒ क्षेत्र॑मु॒रु ज्योतीं᳚षि सोम॒ ज्योङ्नः॒ सूर्यं᳚ दृ॒शये᳚ रिरीहि ||{9.91.6}, {9.5.6.6}, {7.4.1.6} |
[92] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य मारीचः कश्यप ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
823 | परि॑ सुवा॒नो हरि॑रं॒शुः प॒वित्रे॒ रथो॒ न स॑र्जि स॒नये᳚ हिया॒नः | आप॒च्छ्लोक॑मिन्द्रि॒यं पू॒यमा᳚नः॒ प्रति॑ दे॒वाँ अ॑जुषत॒ प्रयो᳚भिः ||{9.92.1}, {9.5.7.1}, {7.4.2.1} |
824 | अच्छा᳚ नृ॒चक्षा᳚ असरत्प॒वित्रे॒ नाम॒ दधा᳚नः क॒विर॑स्य॒ योनौ᳚ | सीद॒न्होते᳚व॒ सद॑ने च॒मूषूपे᳚मग्म॒न्नृष॑यः स॒प्त विप्राः᳚ ||{9.92.2}, {9.5.7.2}, {7.4.2.2} |
825 | प्र सु॑मे॒धा गा᳚तु॒विद्वि॒श्वदे᳚वः॒ सोमः॑ पुना॒नः सद॑ एति॒ नित्य᳚म् | भुव॒द्विश्वे᳚षु॒ काव्ये᳚षु॒ रन्तानु॒ जना᳚न्यतते॒ पञ्च॒ धीरः॑ ||{9.92.3}, {9.5.7.3}, {7.4.2.3} |
826 | तव॒ त्ये सो᳚म पवमान नि॒ण्ये विश्वे᳚ दे॒वास्त्रय॑ एकाद॒शासः॑ | दश॑ स्व॒धाभि॒रधि॒ सानो॒ अव्ये᳚ मृ॒जन्ति॑ त्वा न॒द्यः॑ स॒प्त य॒ह्वीः ||{9.92.4}, {9.5.7.4}, {7.4.2.4} |
827 | तन्नु स॒त्यं पव॑मानस्यास्तु॒ यत्र॒ विश्वे᳚ का॒रवः॑ सं॒नस᳚न्त | ज्योति॒र्यदह्ने॒ अकृ॑णोदु लो॒कं प्राव॒न्मनुं॒ दस्य॑वे कर॒भीक᳚म् ||{9.92.5}, {9.5.7.5}, {7.4.2.5} |
828 | परि॒ सद्मे᳚व पशु॒मान्ति॒ होता॒ राजा॒ न स॒त्यः समि॑तीरिया॒नः | सोमः॑ पुना॒नः क॒लशाँ᳚ अयासी॒त्सीद᳚न्मृ॒गो न म॑हि॒षो वने᳚षु ||{9.92.6}, {9.5.7.6}, {7.4.2.6} |
[93] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य गौतमो नोधा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
829 | सा॒क॒मुक्षो᳚ मर्जयन्त॒ स्वसा᳚रो॒ दश॒ धीर॑स्य धी॒तयो॒ धनु॑त्रीः | हरिः॒ पर्य॑द्रव॒ज्जाः सूर्य॑स्य॒ द्रोणं᳚ ननक्षे॒ अत्यो॒ न वा॒जी ||{9.93.1}, {9.5.8.1}, {7.4.3.1} |
830 | सं मा॒तृभि॒र्न शिशु᳚र्वावशा॒नो वृषा᳚ दधन्वे पुरु॒वारो᳚ अ॒द्भिः | मर्यो॒ न योषा᳚म॒भि नि॑ष्कृ॒तं यन्सं ग॑च्छते क॒लश॑ उ॒स्रिया᳚भिः ||{9.93.2}, {9.5.8.2}, {7.4.3.2} |
831 | उ॒त प्र पि॑प्य॒ ऊध॒रघ्न्या᳚या॒ इन्दु॒र्धारा᳚भिः सचते सुमे॒धाः | मू॒र्धानं॒ गावः॒ पय॑सा च॒मूष्व॒भि श्री᳚णन्ति॒ वसु॑भि॒र्न नि॒क्तैः ||{9.93.3}, {9.5.8.3}, {7.4.3.3} |
832 | स नो᳚ दे॒वेभिः॑ पवमान र॒देन्दो᳚ र॒यिम॒श्विनं᳚ वावशा॒नः | र॒थि॒रा॒यता᳚मुश॒ती पुरं᳚धिरस्म॒द्र्य१॑(अ॒)गा दा॒वने॒ वसू᳚नाम् ||{9.93.4}, {9.5.8.4}, {7.4.3.4} |
833 | नू नो᳚ र॒यिमुप॑ मास्व नृ॒वन्तं᳚ पुना॒नो वा॒ताप्यं᳚ वि॒श्वश्च᳚न्द्रम् | प्र व᳚न्दि॒तुरि᳚न्दो ता॒र्यायुः॑ प्रा॒तर्म॒क्षू धि॒याव॑सुर्जगम्यात् ||{9.93.5}, {9.5.8.5}, {7.4.3.5} |
[94] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः कण्व ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
834 | अधि॒ यद॑स्मिन्वा॒जिनी᳚व॒ शुभः॒ स्पर्ध᳚न्ते॒ धियः॒ सूर्ये॒ न विशः॑ | अ॒पो वृ॑णा॒नः प॑वते कवी॒यन्व्र॒जं न प॑शु॒वर्ध॑नाय॒ मन्म॑ ||{9.94.1}, {9.5.9.1}, {7.4.4.1} |
835 | द्वि॒ता व्यू॒र्ण्वन्न॒मृत॑स्य॒ धाम॑ स्व॒र्विदे॒ भुव॑नानि प्रथन्त | धियः॑ पिन्वा॒नाः स्वस॑रे॒ न गाव॑ ऋता॒यन्ती᳚र॒भि वा᳚वश्र॒ इन्दु᳚म् ||{9.94.2}, {9.5.9.2}, {7.4.4.2} |
836 | परि॒ यत्क॒विः काव्या॒ भर॑ते॒ शूरो॒ न रथो॒ भुव॑नानि॒ विश्वा᳚ | दे॒वेषु॒ यशो॒ मर्ता᳚य॒ भूष॒न्दक्षा᳚य रा॒यः पु॑रु॒भूषु॒ नव्यः॑ ||{9.94.3}, {9.5.9.3}, {7.4.4.3} |
837 | श्रि॒ये जा॒तः श्रि॒य आ निरि॑याय॒ श्रियं॒ वयो᳚ जरि॒तृभ्यो᳚ दधाति | श्रियं॒ वसा᳚ना अमृत॒त्वमा᳚य॒न्भव᳚न्ति स॒त्या स॑मि॒था मि॒तद्रौ᳚ ||{9.94.4}, {9.5.9.4}, {7.4.4.4} |
838 | इष॒मूर्ज॑म॒भ्य१॑(अ॒)र्षाश्वं॒ गामु॒रु ज्योतिः॑ कृणुहि॒ मत्सि॑ दे॒वान् | विश्वा᳚नि॒ हि सु॒षहा॒ तानि॒ तुभ्यं॒ पव॑मान॒ बाध॑से सोम॒ शत्रू॑न् ||{9.94.5}, {9.5.9.5}, {7.4.4.5} |
[95] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य काण्वः प्रस्कण्व ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
839 | कनि॑क्रन्ति॒ हरि॒रा सृ॒ज्यमा᳚नः॒ सीद॒न्वन॑स्य ज॒ठरे᳚ पुना॒नः | नृभि᳚र्य॒तः कृ॑णुते नि॒र्णिजं॒ गा अतो᳚ म॒तीर्ज॑नयत स्व॒धाभिः॑ ||{9.95.1}, {9.5.10.1}, {7.4.5.1} |
840 | हरिः॑ सृजा॒नः प॒थ्या᳚मृ॒तस्येय॑र्ति॒ वाच॑मरि॒तेव॒ नाव᳚म् | दे॒वो दे॒वानां॒ गुह्या᳚नि॒ नामा॒विष्कृ॑णोति ब॒र्हिषि॑ प्र॒वाचे᳚ ||{9.95.2}, {9.5.10.2}, {7.4.5.2} |
841 | अ॒पामि॒वेदू॒र्मय॒स्तर्तु॑राणाः॒ प्र म॑नी॒षा ई᳚रते॒ सोम॒मच्छ॑ | न॒म॒स्यन्ती॒रुप॑ च॒ यन्ति॒ सं चा च॑ विशन्त्युश॒तीरु॒शन्त᳚म् ||{9.95.3}, {9.5.10.3}, {7.4.5.3} |
842 | तं म᳚र्मृजा॒नं म॑हि॒षं न साना᳚वं॒शुं दु॑हन्त्यु॒क्षणं᳚ गिरि॒ष्ठाम् | तं वा᳚वशा॒नं म॒तयः॑ सचन्ते त्रि॒तो बि॑भर्ति॒ वरु॑णं समु॒द्रे ||{9.95.4}, {9.5.10.4}, {7.4.5.4} |
843 | इष्य॒न्वाच॑मुपव॒क्तेव॒ होतुः॑ पुना॒न इ᳚न्दो॒ वि ष्या᳚ मनी॒षाम् | इन्द्र॑श्च॒ यत्क्षय॑थः॒ सौभ॑गाय सु॒वीर्य॑स्य॒ पत॑यः स्याम ||{9.95.5}, {9.5.10.5}, {7.4.5.5} |
[96] (१-२४) चतुर्विंशत्यृचस्य सूक्तस्य दैवोदासिः प्रतर्दन ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
844 | प्र से᳚ना॒नीः शूरो॒ अग्रे॒ रथा᳚नां ग॒व्यन्ने᳚ति॒ हर्ष॑ते अस्य॒ सेना᳚ | भ॒द्रान्कृ॒ण्वन्नि᳚न्द्रह॒वान्सखि॑भ्य॒ आ सोमो॒ वस्त्रा᳚ रभ॒सानि॑ दत्ते ||{9.96.1}, {9.5.11.1}, {7.4.6.1} |
845 | सम॑स्य॒ हरिं॒ हर॑यो मृजन्त्यश्वह॒यैरनि॑शितं॒ नमो᳚भिः | आ ति॑ष्ठति॒ रथ॒मिन्द्र॑स्य॒ सखा᳚ वि॒द्वाँ ए᳚ना सुम॒तिं या॒त्यच्छ॑ ||{9.96.2}, {9.5.11.2}, {7.4.6.2} |
846 | स नो᳚ देव दे॒वता᳚ते पवस्व म॒हे सो᳚म॒ प्सर॑स इन्द्र॒पानः॑ | कृ॒ण्वन्न॒पो व॒र्षय॒न्द्यामु॒तेमामु॒रोरा नो᳚ वरिवस्या पुना॒नः ||{9.96.3}, {9.5.11.3}, {7.4.6.3} |
847 | अजी᳚त॒येऽह॑तये पवस्व स्व॒स्तये᳚ स॒र्वता᳚तये बृह॒ते | तदु॑शन्ति॒ विश्व॑ इ॒मे सखा᳚य॒स्तद॒हं व॑श्मि पवमान सोम ||{9.96.4}, {9.5.11.4}, {7.4.6.4} |
848 | सोमः॑ पवते जनि॒ता म॑ती॒नां ज॑नि॒ता दि॒वो ज॑नि॒ता पृ॑थि॒व्याः | ज॒नि॒ताग्नेर्ज॑नि॒ता सूर्य॑स्य जनि॒तेन्द्र॑स्य जनि॒तोत विष्णोः᳚ ||{9.96.5}, {9.5.11.5}, {7.4.6.5} |
849 | ब्र॒ह्मा दे॒वानां᳚ पद॒वीः क॑वी॒नामृषि॒र्विप्रा᳚णां महि॒षो मृ॒गाणा᳚म् | श्ये॒नो गृध्रा᳚णां॒ स्वधि॑ति॒र्वना᳚नां॒ सोमः॑ प॒वित्र॒मत्ये᳚ति॒ रेभ॑न् ||{9.96.6}, {9.5.11.6}, {7.4.7.1} |
850 | प्रावी᳚विपद्वा॒च ऊ॒र्मिं न सिन्धु॒र्गिरः॒ सोमः॒ पव॑मानो मनी॒षाः | अ॒न्तः पश्य᳚न्वृ॒जने॒माव॑रा॒ण्या ति॑ष्ठति वृष॒भो गोषु॑ जा॒नन् ||{9.96.7}, {9.5.11.7}, {7.4.7.2} |
851 | स म॑त्स॒रः पृ॒त्सु व॒न्वन्नवा᳚तः स॒हस्र॑रेता अ॒भि वाज॑मर्ष | इन्द्रा᳚येन्दो॒ पव॑मानो मनी॒ष्य१॑(अं॒)शोरू॒र्मिमी᳚रय॒ गा इ॑ष॒ण्यन् ||{9.96.8}, {9.5.11.8}, {7.4.7.3} |
852 | परि॑ प्रि॒यः क॒लशे᳚ दे॒ववा᳚त॒ इन्द्रा᳚य॒ सोमो॒ रण्यो॒ मदा᳚य | स॒हस्र॑धारः श॒तवा᳚ज॒ इन्दु᳚र्वा॒जी न सप्तिः॒ सम॑ना जिगाति ||{9.96.9}, {9.5.11.9}, {7.4.7.4} |
853 | स पू॒र्व्यो व॑सु॒विज्जाय॑मानो मृजा॒नो अ॒प्सु दु॑दुहा॒नो अद्रौ᳚ | अ॒भि॒श॒स्ति॒पा भुव॑नस्य॒ राजा᳚ वि॒दद्गा॒तुं ब्रह्म॑णे पू॒यमा᳚नः ||{9.96.10}, {9.5.11.10}, {7.4.7.5} |
854 | त्वया॒ हि नः॑ पि॒तरः॑ सोम॒ पूर्वे॒ कर्मा᳚णि च॒क्रुः प॑वमान॒ धीराः᳚ | व॒न्वन्नवा᳚तः परि॒धीँरपो᳚र्णु वी॒रेभि॒रश्वै᳚र्म॒घवा᳚ भवा नः ||{9.96.11}, {9.5.11.11}, {7.4.8.1} |
855 | यथाप॑वथा॒ मन॑वे वयो॒धा अ॑मित्र॒हा व॑रिवो॒विद्ध॒विष्मा॑न् | ए॒वा प॑वस्व॒ द्रवि॑णं॒ दधा᳚न॒ इन्द्रे॒ सं ति॑ष्ठ ज॒नयायु॑धानि ||{9.96.12}, {9.5.11.12}, {7.4.8.2} |
856 | पव॑स्व सोम॒ मधु॑माँ ऋ॒तावा॒पो वसा᳚नो॒ अधि॒ सानो॒ अव्ये᳚ | अव॒ द्रोणा᳚नि घृ॒तवा᳚न्ति सीद म॒दिन्त॑मो मत्स॒र इ᳚न्द्र॒पानः॑ ||{9.96.13}, {9.5.11.13}, {7.4.8.3} |
857 | वृ॒ष्टिं दि॒वः श॒तधा᳚रः पवस्व सहस्र॒सा वा᳚ज॒युर्दे॒ववी᳚तौ | सं सिन्धु॑भिः क॒लशे᳚ वावशा॒नः समु॒स्रिया᳚भिः प्रति॒रन्न॒ आयुः॑ ||{9.96.14}, {9.5.11.14}, {7.4.8.4} |
858 | ए॒ष स्य सोमो᳚ म॒तिभिः॑ पुना॒नोऽत्यो॒ न वा॒जी तर॒तीदरा᳚तीः | पयो॒ न दु॒ग्धमदि॑तेरिषि॒रमु॒र्वि॑व गा॒तुः सु॒यमो॒ न वोळ्हा᳚ ||{9.96.15}, {9.5.11.15}, {7.4.8.5} |
859 | स्वा॒यु॒धः सो॒तृभिः॑ पू॒यमा᳚नो॒ऽभ्य॑र्ष॒ गुह्यं॒ चारु॒ नाम॑ | अ॒भि वाजं॒ सप्ति॑रिव श्रव॒स्याभि वा॒युम॒भि गा दे᳚व सोम ||{9.96.16}, {9.5.11.16}, {7.4.9.1} |
860 | शिशुं᳚ जज्ञा॒नं ह᳚र्य॒तं मृ॑जन्ति शु॒म्भन्ति॒ वह्निं᳚ म॒रुतो᳚ ग॒णेन॑ | क॒विर्गी॒र्भिः काव्ये᳚ना क॒विः सन्सोमः॑ प॒वित्र॒मत्ये᳚ति॒ रेभ॑न् ||{9.96.17}, {9.5.11.17}, {7.4.9.2} |
861 | ऋषि॑मना॒ य ऋ॑षि॒कृत्स्व॒र्षाः स॒हस्र॑णीथः पद॒वीः क॑वी॒नाम् | तृ॒तीयं॒ धाम॑ महि॒षः सिषा᳚स॒न्सोमो᳚ वि॒राज॒मनु॑ राजति॒ ष्टुप् ||{9.96.18}, {9.5.11.18}, {7.4.9.3} |
862 | च॒मू॒षच्छ्ये॒नः श॑कु॒नो वि॒भृत्वा᳚ गोवि॒न्दुर्द्र॒प्स आयु॑धानि॒ बिभ्र॑त् | अ॒पामू॒र्मिं सच॑मानः समु॒द्रं तु॒रीयं॒ धाम॑ महि॒षो वि॑वक्ति ||{9.96.19}, {9.5.11.19}, {7.4.9.4} |
863 | मर्यो॒ न शु॒भ्रस्त॒न्वं᳚ मृजा॒नोऽत्यो॒ न सृत्वा᳚ स॒नये॒ धना᳚नाम् | वृषे᳚व यू॒था परि॒ कोश॒मर्ष॒न्कनि॑क्रदच्च॒म्वो॒३॑(ओ॒)रा वि॑वेश ||{9.96.20}, {9.5.11.20}, {7.4.9.5} |
864 | पव॑स्वेन्दो॒ पव॑मानो॒ महो᳚भिः॒ कनि॑क्रद॒त्परि॒ वारा᳚ण्यर्ष | क्रीळ᳚ञ्च॒म्वो॒३॑(ओ॒)रा वि॑श पू॒यमा᳚न॒ इन्द्रं᳚ ते॒ रसो᳚ मदि॒रो म॑मत्तु ||{9.96.21}, {9.5.11.21}, {7.4.10.1} |
865 | प्रास्य॒ धारा᳚ बृह॒तीर॑सृग्रन्न॒क्तो गोभिः॑ क॒लशाँ॒ आ वि॑वेश | साम॑ कृ॒ण्वन्सा᳚म॒न्यो᳚ विप॒श्चित्क्रन्द᳚न्नेत्य॒भि सख्यु॒र्न जा॒मिम् ||{9.96.22}, {9.5.11.22}, {7.4.10.2} |
866 | अ॒प॒घ्नन्ने᳚षि पवमान॒ शत्रू᳚न्प्रि॒यां न जा॒रो अ॒भिगी᳚त॒ इन्दुः॑ | सीद॒न्वने᳚षु शकु॒नो न पत्वा॒ सोमः॑ पुना॒नः क॒लशे᳚षु॒ सत्ता᳚ ||{9.96.23}, {9.5.11.23}, {7.4.10.3} |
867 | आ ते॒ रुचः॒ पव॑मानस्य सोम॒ योषे᳚व यन्ति सु॒दुघाः᳚ सुधा॒राः | हरि॒रानी᳚तः पुरु॒वारो᳚ अ॒प्स्वचि॑क्रदत्क॒लशे᳚ देवयू॒नाम् ||{9.96.24}, {9.5.11.24}, {7.4.10.4} |
[97] (१-५८) अष्टपञ्चाशदृचस्य सूक्तस्य (१-३) प्रथमादितृचस्य मैत्रावरणिर्वसिष्ठः, (४-६) चतुर्थ्यादितृचस्य वासिष्ठ इन्द्रप्रमतिः, (७-९) सप्तम्यादितृचस्य वासिष्ठो वृषगणः, (१०-१२) दशम्यादितृचस्य वासिष्ठो मन्युः, (१३-१५) त्रयोदश्यादितृचस्य वासिष्ठ उपमन्युः, (१६-१८) षोडश्यादितृचस्य वासिष्ठो व्याघ्रपात्, (१९-२१) एकोनविंश्यादितृचस्य वासिष्ठः शक्तिः, (२२२४) द्वाविंश्यादितृचस्य वासिष्ठः कर्णश्रतु, (२५-२७) पञ्चविंश्यादितृचस्य वासिष्ठो मृळीकः, (२८-३०) अष्टाविंश्यादितृचस्य वासिष्ठो वसुक्रः, (३१-४४) एकत्रिंश्यादिचतुर्दश चर्चाम् शाक्त्यः पराशरः, (४५-५८) पञ्चचत्वारिंश्यादिचतुर्दश नाञ्चाङ्गिरसः कुत्स (ऋषयः) पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
868 | अ॒स्य प्रे॒षा हे॒मना᳚ पू॒यमा᳚नो दे॒वो दे॒वेभिः॒ सम॑पृक्त॒ रस᳚म् | सु॒तः प॒वित्रं॒ पर्ये᳚ति॒ रेभ᳚न्मि॒तेव॒ सद्म॑ पशु॒मान्ति॒ होता᳚ ||{9.97.1}, {9.6.1.1}, {7.4.11.1} |
869 | भ॒द्रा वस्त्रा᳚ सम॒न्या॒३॑(आ॒) वसा᳚नो म॒हान्क॒विर्नि॒वच॑नानि॒ शंस॑न् | आ व॑च्यस्व च॒म्वोः᳚ पू॒यमा᳚नो विचक्ष॒णो जागृ॑विर्दे॒ववी᳚तौ ||{9.97.2}, {9.6.1.2}, {7.4.11.2} |
870 | समु॑ प्रि॒यो मृ॑ज्यते॒ सानो॒ अव्ये᳚ य॒शस्त॑रो य॒शसां॒ क्षैतो᳚ अ॒स्मे | अ॒भि स्व॑र॒ धन्वा᳚ पू॒यमा᳚नो यू॒यं पा᳚त स्व॒स्तिभिः॒ सदा᳚ नः ||{9.97.3}, {9.6.1.3}, {7.4.11.3} |
871 | प्र गा᳚यता॒भ्य॑र्चाम दे॒वान्सोमं᳚ हिनोत मह॒ते धना᳚य | स्वा॒दुः प॑वाते॒ अति॒ वार॒मव्य॒मा सी᳚दाति क॒लशं᳚ देव॒युर्नः॑ ||{9.97.4}, {9.6.1.4}, {7.4.11.4} |
872 | इन्दु॑र्दे॒वाना॒मुप॑ स॒ख्यमा॒यन्स॒हस्र॑धारः पवते॒ मदा᳚य | नृभिः॒ स्तवा᳚नो॒ अनु॒ धाम॒ पूर्व॒मग॒न्निन्द्रं᳚ मह॒ते सौभ॑गाय ||{9.97.5}, {9.6.1.5}, {7.4.11.5} |
873 | स्तो॒त्रे रा॒ये हरि॑रर्षा पुना॒न इन्द्रं॒ मदो᳚ गच्छतु ते॒ भरा᳚य | दे॒वैर्या᳚हि स॒रथं॒ राधो॒ अच्छा᳚ यू॒यं पा᳚त स्व॒स्तिभिः॒ सदा᳚ नः ||{9.97.6}, {9.6.1.6}, {7.4.12.1} |
874 | प्र काव्य॑मु॒शने᳚व ब्रुवा॒णो दे॒वो दे॒वानां॒ जनि॑मा विवक्ति | महि᳚व्रतः॒ शुचि॑बन्धुः पाव॒कः प॒दा व॑रा॒हो अ॒भ्ये᳚ति॒ रेभ॑न् ||{9.97.7}, {9.6.1.7}, {7.4.12.2} |
875 | प्र हं॒सास॑स्तृ॒पलं᳚ म॒न्युमच्छा॒मादस्तं॒ वृष॑गणा अयासुः | आ॒ङ्गू॒ष्य१॑(अ॒) अंपव॑मानं॒ सखा᳚यो दु॒र्मर्षं᳚ सा॒कं प्र व॑दन्ति वा॒णम् ||{9.97.8}, {9.6.1.8}, {7.4.12.3} |
876 | स रं᳚हत उरुगा॒यस्य॑ जू॒तिं वृथा॒ क्रीळ᳚न्तं मिमते॒ न गावः॑ | प॒री॒ण॒सं कृ॑णुते ति॒ग्मशृ᳚ङ्गो॒ दिवा॒ हरि॒र्ददृ॑शे॒ नक्त॑मृ॒ज्रः ||{9.97.9}, {9.6.1.9}, {7.4.12.4} |
877 | इन्दु᳚र्वा॒जी प॑वते॒ गोन्यो᳚घा॒ इन्द्रे॒ सोमः॒ सह॒ इन्व॒न्मदा᳚य | हन्ति॒ रक्षो॒ बाध॑ते॒ पर्यरा᳚ती॒र्वरि॑वः कृ॒ण्वन्वृ॒जन॑स्य॒ राजा᳚ ||{9.97.10}, {9.6.1.10}, {7.4.12.5} |
878 | अध॒ धार॑या॒ मध्वा᳚ पृचा॒नस्ति॒रो रोम॑ पवते॒ अद्रि॑दुग्धः | इन्दु॒रिन्द्र॑स्य स॒ख्यं जु॑षा॒णो दे॒वो दे॒वस्य॑ मत्स॒रो मदा᳚य ||{9.97.11}, {9.6.1.11}, {7.4.13.1} |
879 | अ॒भि प्रि॒याणि॑ पवते पुना॒नो दे॒वो दे॒वान्स्वेन॒ रसे᳚न पृ॒ञ्चन् | इन्दु॒र्धर्मा᳚ण्यृतु॒था वसा᳚नो॒ दश॒ क्षिपो᳚ अव्यत॒ सानो॒ अव्ये᳚ ||{9.97.12}, {9.6.1.12}, {7.4.13.2} |
880 | वृषा॒ शोणो᳚ अभि॒कनि॑क्रद॒द्गा न॒दय᳚न्नेति पृथि॒वीमु॒त द्याम् | इन्द्र॑स्येव व॒ग्नुरा शृ᳚ण्व आ॒जौ प्र॑चे॒तय᳚न्नर्षति॒ वाच॒मेमाम् ||{9.97.13}, {9.6.1.13}, {7.4.13.3} |
881 | र॒साय्यः॒ पय॑सा॒ पिन्व॑मान ई॒रय᳚न्नेषि॒ मधु॑मन्तमं॒शुम् | पव॑मानः संत॒निमे᳚षि कृ॒ण्वन्निन्द्रा᳚य सोम परिषि॒च्यमा᳚नः ||{9.97.14}, {9.6.1.14}, {7.4.13.4} |
882 | ए॒वा प॑वस्व मदि॒रो मदा᳚योदग्रा॒भस्य॑ न॒मय᳚न्वध॒स्नैः | परि॒ वर्णं॒ भर॑माणो॒ रुश᳚न्तं ग॒व्युर्नो᳚ अर्ष॒ परि॑ सोम सि॒क्तः ||{9.97.15}, {9.6.1.15}, {7.4.13.5} |
883 | जु॒ष्ट्वी न॑ इन्दो सु॒पथा᳚ सु॒गान्यु॒रौ प॑वस्व॒ वरि॑वांसि कृ॒ण्वन् | घ॒नेव॒ विष्व॑ग्दुरि॒तानि॑ वि॒घ्नन्नधि॒ ष्णुना᳚ धन्व॒ सानो॒ अव्ये᳚ ||{9.97.16}, {9.6.1.16}, {7.4.14.1} |
884 | वृ॒ष्टिं नो᳚ अर्ष दि॒व्यां जि॑ग॒त्नुमिळा᳚वतीं शं॒गयीं᳚ जी॒रदा᳚नुम् | स्तुके᳚व वी॒ता ध᳚न्वा विचि॒न्वन्बन्धूँ᳚रि॒माँ अव॑राँ इन्दो वा॒यून् ||{9.97.17}, {9.6.1.17}, {7.4.14.2} |
885 | ग्र॒न्थिं न वि ष्य॑ ग्रथि॒तं पु॑ना॒न ऋ॒जुं च॑ गा॒तुं वृ॑जि॒नं च॑ सोम | अत्यो॒ न क्र॑दो॒ हरि॒रा सृ॑जा॒नो मर्यो᳚ देव धन्व प॒स्त्या᳚वान् ||{9.97.18}, {9.6.1.18}, {7.4.14.3} |
886 | जुष्टो॒ मदा᳚य दे॒वता᳚त इन्दो॒ परि॒ ष्णुना᳚ धन्व॒ सानो॒ अव्ये᳚ | स॒हस्र॑धारः सुर॒भिरद॑ब्धः॒ परि॑ स्रव॒ वाज॑सातौ नृ॒षह्ये᳚ ||{9.97.19}, {9.6.1.19}, {7.4.14.4} |
887 | अ॒र॒श्मानो॒ ये᳚ऽर॒था अयु॑क्ता॒ अत्या᳚सो॒ न स॑सृजा॒नास॑ आ॒जौ | ए॒ते शु॒क्रासो᳚ धन्वन्ति॒ सोमा॒ देवा᳚स॒स्ताँ उप॑ याता॒ पिब॑ध्यै ||{9.97.20}, {9.6.1.20}, {7.4.14.5} |
888 | ए॒वा न॑ इन्दो अ॒भि दे॒ववी᳚तिं॒ परि॑ स्रव॒ नभो॒ अर्ण॑श्च॒मूषु॑ | सोमो᳚ अ॒स्मभ्यं॒ काम्यं᳚ बृ॒हन्तं᳚ र॒यिं द॑दातु वी॒रव᳚न्तमु॒ग्रम् ||{9.97.21}, {9.6.1.21}, {7.4.15.1} |
889 | तक्ष॒द्यदी॒ मन॑सो॒ वेन॑तो॒ वाग्ज्येष्ठ॑स्य वा॒ धर्म॑णि॒ क्षोरनी᳚के | आदी᳚माय॒न्वर॒मा वा᳚वशा॒ना जुष्टं॒ पतिं᳚ क॒लशे॒ गाव॒ इन्दु᳚म् ||{9.97.22}, {9.6.1.22}, {7.4.15.2} |
890 | प्र दा᳚नु॒दो दि॒व्यो दा᳚नुपि॒न्व ऋ॒तमृ॒ताय॑ पवते सुमे॒धाः | ध॒र्मा भु॑वद्वृज॒न्य॑स्य॒ राजा॒ प्र र॒श्मिभि॑र्द॒शभि॑र्भारि॒ भूम॑ ||{9.97.23}, {9.6.1.23}, {7.4.15.3} |
891 | प॒वित्रे᳚भिः॒ पव॑मानो नृ॒चक्षा॒ राजा᳚ दे॒वाना᳚मु॒त मर्त्या᳚नाम् | द्वि॒ता भु॑वद्रयि॒पती᳚ रयी॒णामृ॒तं भ॑र॒त्सुभृ॑तं॒ चार्विन्दुः॑ ||{9.97.24}, {9.6.1.24}, {7.4.15.4} |
892 | अर्वाँ᳚ इव॒ श्रव॑से सा॒तिमच्छेन्द्र॑स्य वा॒योर॒भि वी॒तिम॑र्ष | स नः॑ स॒हस्रा᳚ बृह॒तीरिषो᳚ दा॒ भवा᳚ सोम द्रविणो॒वित्पु॑ना॒नः ||{9.97.25}, {9.6.1.25}, {7.4.15.5} |
893 | दे॒वा॒व्यो᳚ नः परिषि॒च्यमा᳚नाः॒ क्षयं᳚ सु॒वीरं᳚ धन्वन्तु॒ सोमाः᳚ | आ॒य॒ज्यवः॑ सुम॒तिं वि॒श्ववा᳚रा॒ होता᳚रो॒ न दि॑वि॒यजो᳚ म॒न्द्रत॑माः ||{9.97.26}, {9.6.1.26}, {7.4.16.1} |
894 | ए॒वा दे᳚व दे॒वता᳚ते पवस्व म॒हे सो᳚म॒ प्सर॑से देव॒पानः॑ | म॒हश्चि॒द्धि ष्मसि॑ हि॒ताः स॑म॒र्ये कृ॒धि सु॑ष्ठा॒ने रोद॑सी पुना॒नः ||{9.97.27}, {9.6.1.27}, {7.4.16.2} |
895 | अश्वो॒ नो क्र॑दो॒ वृष॑भिर्युजा॒नः सिं॒हो न भी॒मो मन॑सो॒ जवी᳚यान् | अ॒र्वा॒चीनैः᳚ प॒थिभि॒र्ये रजि॑ष्ठा॒ आ प॑वस्व सौमन॒सं न॑ इन्दो ||{9.97.28}, {9.6.1.28}, {7.4.16.3} |
896 | श॒तं धारा᳚ दे॒वजा᳚ता असृग्रन्स॒हस्र॑मेनाः क॒वयो᳚ मृजन्ति | इन्दो᳚ स॒नित्रं᳚ दि॒व आ प॑वस्व पुरए॒तासि॑ मह॒तो धन॑स्य ||{9.97.29}, {9.6.1.29}, {7.4.16.4} |
897 | दि॒वो न सर्गा᳚ अससृग्र॒मह्नां॒ राजा॒ न मि॒त्रं प्र मि॑नाति॒ धीरः॑ | पि॒तुर्न पु॒त्रः क्रतु॑भिर्यता॒न आ प॑वस्व वि॒शे अ॒स्या अजी᳚तिम् ||{9.97.30}, {9.6.1.30}, {7.4.16.5} |
898 | प्र ते॒ धारा॒ मधु॑मतीरसृग्र॒न्वारा॒न्यत्पू॒तो अ॒त्येष्यव्या॑न् | पव॑मान॒ पव॑से॒ धाम॒ गोनां᳚ जज्ञा॒नः सूर्य॑मपिन्वो अ॒र्कैः ||{9.97.31}, {9.6.1.31}, {7.4.17.1} |
899 | कनि॑क्रद॒दनु॒ पन्था᳚मृ॒तस्य॑ शु॒क्रो वि भा᳚स्य॒मृत॑स्य॒ धाम॑ | स इन्द्रा᳚य पवसे मत्स॒रवा᳚न्हिन्वा॒नो वाचं᳚ म॒तिभिः॑ कवी॒नाम् ||{9.97.32}, {9.6.1.32}, {7.4.17.2} |
900 | दि॒व्यः सु॑प॒र्णोऽव॑ चक्षि सोम॒ पिन्व॒न्धाराः॒ कर्म॑णा दे॒ववी᳚तौ | एन्दो᳚ विश क॒लशं᳚ सोम॒धानं॒ क्रन्द᳚न्निहि॒ सूर्य॒स्योप॑ र॒श्मिम् ||{9.97.33}, {9.6.1.33}, {7.4.17.3} |
901 | ति॒स्रो वाच॑ ईरयति॒ प्र वह्नि॑रृ॒तस्य॑ धी॒तिं ब्रह्म॑णो मनी॒षाम् | गावो᳚ यन्ति॒ गोप॑तिं पृ॒च्छमा᳚नाः॒ सोमं᳚ यन्ति म॒तयो᳚ वावशा॒नाः ||{9.97.34}, {9.6.1.34}, {7.4.17.4} |
902 | सोमं॒ गावो᳚ धे॒नवो᳚ वावशा॒नाः सोमं॒ विप्रा᳚ म॒तिभिः॑ पृ॒च्छमा᳚नाः | सोमः॑ सु॒तः पू᳚यते अ॒ज्यमा᳚नः॒ सोमे᳚ अ॒र्कास्त्रि॒ष्टुभः॒ सं न॑वन्ते ||{9.97.35}, {9.6.1.35}, {7.4.17.5} |
903 | ए॒वा नः॑ सोम परिषि॒च्यमा᳚न॒ आ प॑वस्व पू॒यमा᳚नः स्व॒स्ति | इन्द्र॒मा वि॑श बृह॒ता रवे᳚ण व॒र्धया॒ वाचं᳚ ज॒नया॒ पुरं᳚धिम् ||{9.97.36}, {9.6.1.36}, {7.4.18.1} |
904 | आ जागृ॑वि॒र्विप्र॑ ऋ॒ता म॑ती॒नां सोमः॑ पुना॒नो अ॑सदच्च॒मूषु॑ | सप᳚न्ति॒ यं मि॑थु॒नासो॒ निका᳚मा अध्व॒र्यवो᳚ रथि॒रासः॑ सु॒हस्ताः᳚ ||{9.97.37}, {9.6.1.37}, {7.4.18.2} |
905 | स पु॑ना॒न उप॒ सूरे॒ न धातोभे अ॑प्रा॒ रोद॑सी॒ वि ष आ᳚वः | प्रि॒या चि॒द्यस्य॑ प्रिय॒सास॑ ऊ॒ती स तू धनं᳚ का॒रिणे॒ न प्र यं᳚सत् ||{9.97.38}, {9.6.1.38}, {7.4.18.3} |
906 | स व॑र्धि॒ता वर्ध॑नः पू॒यमा᳚नः॒ सोमो᳚ मी॒ढ्वाँ अ॒भि नो॒ ज्योति॑षावीत् | येना᳚ नः॒ पूर्वे᳚ पि॒तरः॑ पद॒ज्ञाः स्व॒र्विदो᳚ अ॒भि गा अद्रि॑मु॒ष्णन् ||{9.97.39}, {9.6.1.39}, {7.4.18.4} |
907 | अक्रा᳚न्समु॒द्रः प्र॑थ॒मे विध᳚र्मञ्ज॒नय᳚न्प्र॒जा भुव॑नस्य॒ राजा᳚ | वृषा᳚ प॒वित्रे॒ अधि॒ सानो॒ अव्ये᳚ बृ॒हत्सोमो᳚ वावृधे सुवा॒न इन्दुः॑ ||{9.97.40}, {9.6.1.40}, {7.4.18.5} |
908 | म॒हत्तत्सोमो᳚ महि॒षश्च॑कारा॒पां यद्गर्भोऽवृ॑णीत दे॒वान् | अद॑धा॒दिन्द्रे॒ पव॑मान॒ ओजोऽज॑नय॒त्सूर्ये॒ ज्योति॒रिन्दुः॑ ||{9.97.41}, {9.6.1.41}, {7.4.19.1} |
909 | मत्सि॑ वा॒युमि॒ष्टये॒ राध॑से च॒ मत्सि॑ मि॒त्रावरु॑णा पू॒यमा᳚नः | मत्सि॒ शर्धो॒ मारु॑तं॒ मत्सि॑ दे॒वान्मत्सि॒ द्यावा᳚पृथि॒वी दे᳚व सोम ||{9.97.42}, {9.6.1.42}, {7.4.19.2} |
910 | ऋ॒जुः प॑वस्व वृजि॒नस्य॑ ह॒न्तापामी᳚वां॒ बाध॑मानो॒ मृध॑श्च | अ॒भि॒श्री॒णन्पयः॒ पय॑सा॒भि गोना॒मिन्द्र॑स्य॒ त्वं तव॑ व॒यं सखा᳚यः ||{9.97.43}, {9.6.1.43}, {7.4.19.3} |
911 | मध्वः॒ सूदं᳚ पवस्व॒ वस्व॒ उत्सं᳚ वी॒रं च॑ न॒ आ प॑वस्वा॒ भगं᳚ च | स्वद॒स्वेन्द्रा᳚य॒ पव॑मान इन्दो र॒यिं च॑ न॒ आ प॑वस्वा समु॒द्रात् ||{9.97.44}, {9.6.1.44}, {7.4.19.4} |
912 | सोमः॑ सु॒तो धार॒यात्यो॒ न हित्वा॒ सिन्धु॒र्न नि॒म्नम॒भि वा॒ज्य॑क्षाः | आ योनिं॒ वन्य॑मसदत्पुना॒नः समिन्दु॒र्गोभि॑रसर॒त्सम॒द्भिः ||{9.97.45}, {9.6.1.45}, {7.4.19.5} |
913 | ए॒ष स्य ते᳚ पवत इन्द्र॒ सोम॑श्च॒मूषु॒ धीर॑ उश॒ते तव॑स्वान् | स्व॑र्चक्षा रथि॒रः स॒त्यशु॑ष्मः॒ कामो॒ न यो दे᳚वय॒तामस॑र्जि ||{9.97.46}, {9.6.1.46}, {7.4.20.1} |
914 | ए॒ष प्र॒त्नेन॒ वय॑सा पुना॒नस्ति॒रो वर्पां᳚सि दुहि॒तुर्दधा᳚नः | वसा᳚नः॒ शर्म॑ त्रि॒वरू᳚थम॒प्सु होते᳚व याति॒ सम॑नेषु॒ रेभ॑न् ||{9.97.47}, {9.6.1.47}, {7.4.20.2} |
915 | नू न॒स्त्वं र॑थि॒रो दे᳚व सोम॒ परि॑ स्रव च॒म्वोः᳚ पू॒यमा᳚नः | अ॒प्सु स्वादि॑ष्ठो॒ मधु॑माँ ऋ॒तावा᳚ दे॒वो न यः स॑वि॒ता स॒त्यम᳚न्मा ||{9.97.48}, {9.6.1.48}, {7.4.20.3} |
916 | अ॒भि वा॒युं वी॒त्य॑र्षा गृणा॒नो॒३॑(ओ॒)ऽभि मि॒त्रावरु॑णा पू॒यमा᳚नः | अ॒भी नरं᳚ धी॒जव॑नं रथे॒ष्ठाम॒भीन्द्रं॒ वृष॑णं॒ वज्र॑बाहुम् ||{9.97.49}, {9.6.1.49}, {7.4.20.4} |
917 | अ॒भि वस्त्रा᳚ सुवस॒नान्य॑र्षा॒भि धे॒नूः सु॒दुघाः᳚ पू॒यमा᳚नः | अ॒भि च॒न्द्रा भर्त॑वे नो॒ हिर᳚ण्या॒भ्यश्वा᳚न्र॒थिनो᳚ देव सोम ||{9.97.50}, {9.6.1.50}, {7.4.20.5} |
918 | अ॒भी नो᳚ अर्ष दि॒व्या वसू᳚न्य॒भि विश्वा॒ पार्थि॑वा पू॒यमा᳚नः | अ॒भि येन॒ द्रवि॑णम॒श्नवा᳚मा॒भ्या᳚र्षे॒यं ज॑मदग्नि॒वन्नः॑ ||{9.97.51}, {9.6.1.51}, {7.4.21.1} |
919 | अ॒या प॒वा प॑वस्वै॒ना वसू᳚नि माँश्च॒त्व इ᳚न्दो॒ सर॑सि॒ प्र ध᳚न्व | ब्र॒ध्नश्चि॒दत्र॒ वातो॒ न जू॒तः पु॑रु॒मेध॑श्चि॒त्तक॑वे॒ नरं᳚ दात् ||{9.97.52}, {9.6.1.52}, {7.4.21.2} |
920 | उ॒त न॑ ए॒ना प॑व॒या प॑व॒स्वाधि॑ श्रु॒ते श्र॒वाय्य॑स्य ती॒र्थे | ष॒ष्टिं स॒हस्रा᳚ नैगु॒तो वसू᳚नि वृ॒क्षं न प॒क्वं धू᳚नव॒द्रणा᳚य ||{9.97.53}, {9.6.1.53}, {7.4.21.3} |
921 | मही॒मे अ॑स्य॒ वृष॒नाम॑ शू॒षे माँश्च॑त्वे वा॒ पृश॑ने वा॒ वध॑त्रे | अस्वा᳚पयन्नि॒गुतः॑ स्ने॒हय॒च्चापा॒मित्राँ॒ अपा॒चितो᳚ अचे॒तः ||{9.97.54}, {9.6.1.54}, {7.4.21.4} |
922 | सं त्री प॒वित्रा॒ वित॑तान्ये॒ष्यन्वेकं᳚ धावसि पू॒यमा᳚नः | असि॒ भगो॒ असि॑ दा॒त्रस्य॑ दा॒तासि॑ म॒घवा᳚ म॒घव॑द्भ्य इन्दो ||{9.97.55}, {9.6.1.55}, {7.4.21.5} |
923 | ए॒ष वि॑श्व॒वित्प॑वते मनी॒षी सोमो॒ विश्व॑स्य॒ भुव॑नस्य॒ राजा᳚ | द्र॒प्साँ ई॒रय᳚न्वि॒दथे॒ष्विन्दु॒र्वि वार॒मव्यं᳚ स॒मयाति॑ याति ||{9.97.56}, {9.6.1.56}, {7.4.22.1} |
924 | इन्दुं᳚ रिहन्ति महि॒षा अद॑ब्धाः प॒दे रे᳚भन्ति क॒वयो॒ न गृध्राः᳚ | हि॒न्वन्ति॒ धीरा᳚ द॒शभिः॒ क्षिपा᳚भिः॒ सम᳚ञ्जते रू॒पम॒पां रसे᳚न ||{9.97.57}, {9.6.1.57}, {7.4.22.2} |
925 | त्वया᳚ व॒यं पव॑मानेन सोम॒ भरे᳚ कृ॒तं वि चि॑नुयाम॒ शश्व॑त् | तन्नो᳚ मि॒त्रो वरु॑णो मामहन्ता॒मदि॑तिः॒ सिन्धुः॑ पृथि॒वी उ॒त द्यौः ||{9.97.58}, {9.6.1.58}, {7.4.22.3} |
[98] (१-१२) द्वादशर्चस्य सूक्तस्य वार्षागिरोऽम्बरीषो भारद्वाज ऋजिश्वा च ऋषी। पवमानः सोमो देवता | (१-१०, १२) प्रथमादिदशों द्वादश्याश्चानुष्टप्, (११) एकादश्याश्च बृहती छन्दसी || | |
926 | अ॒भि नो᳚ वाज॒सात॑मं र॒यिम॑र्ष पुरु॒स्पृह᳚म् | इन्दो᳚ स॒हस्र॑भर्णसं तुविद्यु॒म्नं वि॑भ्वा॒सह᳚म् ||{9.98.1}, {9.6.2.1}, {7.4.23.1} |
927 | परि॒ ष्य सु॑वा॒नो अ॒व्ययं॒ रथे॒ न वर्मा᳚व्यत | इन्दु॑र॒भि द्रुणा᳚ हि॒तो हि॑या॒नो धारा᳚भिरक्षाः ||{9.98.2}, {9.6.2.2}, {7.4.23.2} |
928 | परि॒ ष्य सु॑वा॒नो अ॑क्षा॒ इन्दु॒रव्ये॒ मद॑च्युतः | धारा॒ य ऊ॒र्ध्वो अ॑ध्व॒रे भ्रा॒जा नैति॑ गव्य॒युः ||{9.98.3}, {9.6.2.3}, {7.4.23.3} |
929 | स हि त्वं दे᳚व॒ शश्व॑ते॒ वसु॒ मर्ता᳚य दा॒शुषे᳚ | इन्दो᳚ सह॒स्रिणं᳚ र॒यिं श॒तात्मा᳚नं विवाससि ||{9.98.4}, {9.6.2.4}, {7.4.23.4} |
930 | व॒यं ते᳚ अ॒स्य वृ॑त्रह॒न्वसो॒ वस्वः॑ पुरु॒स्पृहः॑ | नि नेदि॑ष्ठतमा इ॒षः स्याम॑ सु॒म्नस्या᳚ध्रिगो ||{9.98.5}, {9.6.2.5}, {7.4.23.5} |
931 | द्विर्यं पञ्च॒ स्वय॑शसं॒ स्वसा᳚रो॒ अद्रि॑संहतम् | प्रि॒यमिन्द्र॑स्य॒ काम्यं᳚ प्रस्ना॒पय᳚न्त्यू॒र्मिण᳚म् ||{9.98.6}, {9.6.2.6}, {7.4.23.6} |
932 | परि॒ त्यं ह᳚र्य॒तं हरिं᳚ ब॒भ्रुं पु॑नन्ति॒ वारे᳚ण | यो दे॒वान्विश्वाँ॒ इत्परि॒ मदे᳚न स॒ह गच्छ॑ति ||{9.98.7}, {9.6.2.7}, {7.4.24.1} |
933 | अ॒स्य वो॒ ह्यव॑सा॒ पान्तो᳚ दक्ष॒साध॑नम् | यः सू॒रिषु॒ श्रवो᳚ बृ॒हद्द॒धे स्व१॑(अ॒)'र्ण ह᳚र्य॒तः ||{9.98.8}, {9.6.2.8}, {7.4.24.2} |
934 | स वां᳚ य॒ज्ञेषु॑ मानवी॒ इन्दु॑र्जनिष्ट रोदसी | दे॒वो दे᳚वी गिरि॒ष्ठा अस्रे᳚ध॒न्तं तु॑वि॒ष्वणि॑ ||{9.98.9}, {9.6.2.9}, {7.4.24.3} |
935 | इन्द्रा᳚य सोम॒ पात॑वे वृत्र॒घ्ने परि॑ षिच्यसे | नरे᳚ च॒ दक्षि॑णावते दे॒वाय॑ सदना॒सदे᳚ ||{9.98.10}, {9.6.2.10}, {7.4.24.4} |
936 | ते प्र॒त्नासो॒ व्यु॑ष्टिषु॒ सोमाः᳚ प॒वित्रे᳚ अक्षरन् | अ॒प॒प्रोथ᳚न्तः सनु॒तर्हु॑र॒श्चितः॑ प्रा॒तस्ताँ अप्र॑चेतसः ||{9.98.11}, {9.6.2.11}, {7.4.24.5} |
937 | तं स॑खायः पुरो॒रुचं᳚ यू॒यं व॒यं च॑ सू॒रयः॑ | अ॒श्याम॒ वाज॑गन्ध्यं स॒नेम॒ वाज॑पस्त्यम् ||{9.98.12}, {9.6.2.12}, {7.4.24.6} |
[99] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्य काश्यपौ रेभसूनू ऋषी, पवमानः सोमो देवता | (१) प्रथम! बृहती, (२-८) द्वितीयादिसप्तानाञ्चानुष्टप् छन्दसी || | |
938 | आ ह᳚र्य॒ताय॑ धृ॒ष्णवे॒ धनु॑स्तन्वन्ति॒ पौंस्य᳚म् | शु॒क्रां व॑य॒न्त्यसु॑राय नि॒र्णिजं᳚ वि॒पामग्रे᳚ मही॒युवः॑ ||{9.99.1}, {9.6.3.1}, {7.4.25.1} |
939 | अध॑ क्ष॒पा परि॑ष्कृतो॒ वाजाँ᳚ अ॒भि प्र गा᳚हते | यदी᳚ वि॒वस्व॑तो॒ धियो॒ हरिं᳚ हि॒न्वन्ति॒ यात॑वे ||{9.99.2}, {9.6.3.2}, {7.4.25.2} |
940 | तम॑स्य मर्जयामसि॒ मदो॒ य इ᳚न्द्र॒पात॑मः | यं गाव॑ आ॒सभि॑र्द॒धुः पु॒रा नू॒नं च॑ सू॒रयः॑ ||{9.99.3}, {9.6.3.3}, {7.4.25.3} |
941 | तं गाथ॑या पुरा॒ण्या पु॑ना॒नम॒भ्य॑नूषत | उ॒तो कृ॑पन्त धी॒तयो᳚ दे॒वानां॒ नाम॒ बिभ्र॑तीः ||{9.99.4}, {9.6.3.4}, {7.4.25.4} |
942 | तमु॒क्षमा᳚णम॒व्यये॒ वारे᳚ पुनन्ति धर्ण॒सिम् | दू॒तं न पू॒र्वचि॑त्तय॒ आ शा᳚सते मनी॒षिणः॑ ||{9.99.5}, {9.6.3.5}, {7.4.25.5} |
943 | स पु॑ना॒नो म॒दिन्त॑मः॒ सोम॑श्च॒मूषु॑ सीदति | प॒शौ न रेत॑ आ॒दध॒त्पति᳚र्वचस्यते धि॒यः ||{9.99.6}, {9.6.3.6}, {7.4.26.1} |
944 | स मृ॑ज्यते सु॒कर्म॑भिर्दे॒वो दे॒वेभ्यः॑ सु॒तः | वि॒दे यदा᳚सु संद॒दिर्म॒हीर॒पो वि गा᳚हते ||{9.99.7}, {9.6.3.7}, {7.4.26.2} |
945 | सु॒त इ᳚न्दो प॒वित्र॒ आ नृभि᳚र्य॒तो वि नी᳚यसे | इन्द्रा᳚य मत्स॒रिन्त॑मश्च॒मूष्वा नि षी᳚दसि ||{9.99.8}, {9.6.3.8}, {7.4.26.3} |
[100] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपौ रेभसून ऋषी। पवमानः सोमो देवता | अनुष्टुप् छन्दः || | |
946 | अ॒भी न॑वन्ते अ॒द्रुहः॑ प्रि॒यमिन्द्र॑स्य॒ काम्य᳚म् | व॒त्सं न पूर्व॒ आयु॑नि जा॒तं रि॑हन्ति मा॒तरः॑ ||{9.100.1}, {9.6.4.1}, {7.4.27.1} |
947 | पु॒ना॒न इ᳚न्द॒वा भ॑र॒ सोम॑ द्वि॒बर्ह॑सं र॒यिम् | त्वं वसू᳚नि पुष्यसि॒ विश्वा᳚नि दा॒शुषो᳚ गृ॒हे ||{9.100.2}, {9.6.4.2}, {7.4.27.2} |
948 | त्वं धियं᳚ मनो॒युजं᳚ सृ॒जा वृ॒ष्टिं न त᳚न्य॒तुः | त्वं वसू᳚नि॒ पार्थि॑वा दि॒व्या च॑ सोम पुष्यसि ||{9.100.3}, {9.6.4.3}, {7.4.27.3} |
949 | परि॑ ते जि॒ग्युषो᳚ यथा॒ धारा᳚ सु॒तस्य॑ धावति | रंह॑माणा॒ व्य१॑(अ॒)'व्ययं॒ वारं᳚ वा॒जीव॑ सान॒सिः ||{9.100.4}, {9.6.4.4}, {7.4.27.4} |
950 | क्रत्वे॒ दक्षा᳚य नः कवे॒ पव॑स्व सोम॒ धार॑या | इन्द्रा᳚य॒ पात॑वे सु॒तो मि॒त्राय॒ वरु॑णाय च ||{9.100.5}, {9.6.4.5}, {7.4.27.5} |
951 | पव॑स्व वाज॒सात॑मः प॒वित्रे॒ धार॑या सु॒तः | इन्द्रा᳚य सोम॒ विष्ण॑वे दे॒वेभ्यो॒ मधु॑मत्तमः ||{9.100.6}, {9.6.4.6}, {7.4.28.1} |
952 | त्वां रि॑हन्ति मा॒तरो॒ हरिं᳚ प॒वित्रे᳚ अ॒द्रुहः॑ | व॒त्सं जा॒तं न धे॒नवः॒ पव॑मान॒ विध᳚र्मणि ||{9.100.7}, {9.6.4.7}, {7.4.28.2} |
953 | पव॑मान॒ महि॒ श्रव॑श्चि॒त्रेभि᳚र्यासि र॒श्मिभिः॑ | शर्ध॒न्तमां᳚सि जिघ्नसे॒ विश्वा᳚नि दा॒शुषो᳚ गृ॒हे ||{9.100.8}, {9.6.4.8}, {7.4.28.3} |
954 | त्वं द्यां च॑ महिव्रत पृथि॒वीं चाति॑ जभ्रिषे | प्रति॑ द्रा॒पिम॑मुञ्चथाः॒ पव॑मान महित्व॒ना ||{9.100.9}, {9.6.4.9}, {7.4.28.4} |
[101] (१-१६) षोळशर्चस्य सूक्तस्य (१-३) प्रथमादितृचस्य श्यावाश्विरन्धीगुः, (४-६) चतुर्थ्यादितृचस्य नाहुषो ययाति, (७-९) सप्तम्यादितृचस्य राजर्षिर्मानवो नहूषः, (१०-१२) दशम्यादितृचस्य सांवरणो मनुः, (१३-१६) त्रयोदश्यादिचतुर्ऋचामा स्य च वैश्वामित्रो वाच्यो वा प्रजापतिर्(ऋषयः) पवमानः सोमो देवता | (१, ४-१६) प्रथमर्चश्चतुर्थ्यादित्रयोदशानाञ्चानुष्टप् (२-३) द्वितीयातृतीययोश्च गायत्री छन्दसी || | |
955 | पु॒रोजि॑ती वो॒ अन्ध॑सः सु॒ताय॑ मादयि॒त्नवे᳚ | अप॒ श्वानं᳚ श्नथिष्टन॒ सखा᳚यो दीर्घजि॒ह्व्य᳚म् ||{9.101.1}, {9.6.5.1}, {7.5.1.1} |
956 | यो धार॑या पाव॒कया᳚ परिप्र॒स्यन्द॑ते सु॒तः | इन्दु॒रश्वो॒ न कृत्व्यः॑ ||{9.101.2}, {9.6.5.2}, {7.5.1.2} |
957 | तं दु॒रोष॑म॒भी नरः॒ सोमं᳚ वि॒श्वाच्या᳚ धि॒या | य॒ज्ञं हि᳚न्व॒न्त्यद्रि॑भिः ||{9.101.3}, {9.6.5.3}, {7.5.1.3} |
958 | सु॒तासो॒ मधु॑मत्तमाः॒ सोमा॒ इन्द्रा᳚य म॒न्दिनः॑ | प॒वित्र॑वन्तो अक्षरन्दे॒वान्ग॑च्छन्तु वो॒ मदाः᳚ ||{9.101.4}, {9.6.5.4}, {7.5.1.4} |
959 | इन्दु॒रिन्द्रा᳚य पवत॒ इति॑ दे॒वासो᳚ अब्रुवन् | वा॒चस्पति᳚र्मखस्यते॒ विश्व॒स्येशा᳚न॒ ओज॑सा ||{9.101.5}, {9.6.5.5}, {7.5.1.5} |
960 | स॒हस्र॑धारः पवते समु॒द्रो वा᳚चमीङ्ख॒यः | सोमः॒ पती᳚ रयी॒णां सखेन्द्र॑स्य दि॒वेदि॑वे ||{9.101.6}, {9.6.5.6}, {7.5.2.1} |
961 | अ॒यं पू॒षा र॒यिर्भगः॒ सोमः॑ पुना॒नो अ॑र्षति | पति॒र्विश्व॑स्य॒ भूम॑नो॒ व्य॑ख्य॒द्रोद॑सी उ॒भे ||{9.101.7}, {9.6.5.7}, {7.5.2.2} |
962 | समु॑ प्रि॒या अ॑नूषत॒ गावो॒ मदा᳚य॒ घृष्व॑यः | सोमा᳚सः कृण्वते प॒थः पव॑मानास॒ इन्द॑वः ||{9.101.8}, {9.6.5.8}, {7.5.2.3} |
963 | य ओजि॑ष्ठ॒स्तमा भ॑र॒ पव॑मान श्र॒वाय्य᳚म् | यः पञ्च॑ चर्ष॒णीर॒भि र॒यिं येन॒ वना᳚महै ||{9.101.9}, {9.6.5.9}, {7.5.2.4} |
964 | सोमाः᳚ पवन्त॒ इन्द॑वो॒ऽस्मभ्यं᳚ गातु॒वित्त॑माः | मि॒त्राः सु॑वा॒ना अ॑रे॒पसः॑ स्वा॒ध्यः॑ स्व॒र्विदः॑ ||{9.101.10}, {9.6.5.10}, {7.5.2.5} |
965 | सु॒ष्वा॒णासो॒ व्यद्रि॑भि॒श्चिता᳚ना॒ गोरधि॑ त्व॒चि | इष॑म॒स्मभ्य॑म॒भितः॒ सम॑स्वरन्वसु॒विदः॑ ||{9.101.11}, {9.6.5.11}, {7.5.3.1} |
966 | ए॒ते पू॒ता वि॑प॒श्चितः॒ सोमा᳚सो॒ दध्या᳚शिरः | सूर्या᳚सो॒ न द॑र्श॒तासो᳚ जिग॒त्नवो᳚ ध्रु॒वा घृ॒ते ||{9.101.12}, {9.6.5.12}, {7.5.3.2} |
967 | प्र सु᳚न्वा॒नस्यान्ध॑सो॒ मर्तो॒ न वृ॑त॒ तद्वचः॑ | अप॒ श्वान॑मरा॒धसं᳚ ह॒ता म॒खं न भृग॑वः ||{9.101.13}, {9.6.5.13}, {7.5.3.3} |
968 | आ जा॒मिरत्के᳚ अव्यत भु॒जे न पु॒त्र ओ॒ण्योः᳚ | सर॑ज्जा॒रो न योष॑णां व॒रो न योनि॑मा॒सद᳚म् ||{9.101.14}, {9.6.5.14}, {7.5.3.4} |
969 | स वी॒रो द॑क्ष॒साध॑नो॒ वि यस्त॒स्तम्भ॒ रोद॑सी | हरिः॑ प॒वित्रे᳚ अव्यत वे॒धा न योनि॑मा॒सद᳚म् ||{9.101.15}, {9.6.5.15}, {7.5.3.5} |
970 | अव्यो॒ वारे᳚भिः पवते॒ सोमो॒ गव्ये॒ अधि॑ त्व॒चि | कनि॑क्रद॒द्वृषा॒ हरि॒रिन्द्र॑स्या॒भ्ये᳚ति निष्कृ॒तम् ||{9.101.16}, {9.6.5.16}, {7.5.3.6} |
[102] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्याप्त्यस्त्रित ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | उष्णिक् छन्दः || | |
971 | क्रा॒णा शिशु᳚र्म॒हीनां᳚ हि॒न्वन्नृ॒तस्य॒ दीधि॑तिम् | विश्वा॒ परि॑ प्रि॒या भु॑व॒दध॑ द्वि॒ता ||{9.102.1}, {9.6.6.1}, {7.5.4.1} |
972 | उप॑ त्रि॒तस्य॑ पा॒ष्यो॒३॑(ओ॒)रभ॑क्त॒ यद्गुहा᳚ प॒दम् | य॒ज्ञस्य॑ स॒प्त धाम॑भि॒रध॑ प्रि॒यम् ||{9.102.2}, {9.6.6.2}, {7.5.4.2} |
973 | त्रीणि॑ त्रि॒तस्य॒ धार॑या पृ॒ष्ठेष्वेर॑या र॒यिम् | मिमी᳚ते अस्य॒ योज॑ना॒ वि सु॒क्रतुः॑ ||{9.102.3}, {9.6.6.3}, {7.5.4.3} |
974 | ज॒ज्ञा॒नं स॒प्त मा॒तरो᳚ वे॒धाम॑शासत श्रि॒ये | अ॒यं ध्रु॒वो र॑यी॒णां चिके᳚त॒ यत् ||{9.102.4}, {9.6.6.4}, {7.5.4.4} |
975 | अ॒स्य व्र॒ते स॒जोष॑सो॒ विश्वे᳚ दे॒वासो᳚ अ॒द्रुहः॑ | स्पा॒र्हा भ॑वन्ति॒ रन्त॑यो जु॒षन्त॒ यत् ||{9.102.5}, {9.6.6.5}, {7.5.4.5} |
976 | यमी॒ गर्भ॑मृता॒वृधो᳚ दृ॒शे चारु॒मजी᳚जनन् | क॒विं मंहि॑ष्ठमध्व॒रे पु॑रु॒स्पृह᳚म् ||{9.102.6}, {9.6.6.6}, {7.5.5.1} |
977 | स॒मी॒ची॒ने अ॒भि त्मना᳚ य॒ह्वी ऋ॒तस्य॑ मा॒तरा᳚ | त॒न्वा॒ना य॒ज्ञमा᳚नु॒षग्यद᳚ञ्ज॒ते ||{9.102.7}, {9.6.6.7}, {7.5.5.2} |
978 | क्रत्वा᳚ शु॒क्रेभि॑र॒क्षभि॑रृ॒णोरप᳚ व्र॒जं दि॒वः | हि॒न्वन्नृ॒तस्य॒ दीधि॑तिं॒ प्राध्व॒रे ||{9.102.8}, {9.6.6.8}, {7.5.5.3} |
[103] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्याप्त्यस्त्रित ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | उष्णिक् छन्दः || | |
979 | प्र पु॑ना॒नाय॑ वे॒धसे॒ सोमा᳚य॒ वच॒ उद्य॑तम् | भृ॒तिं न भ॑रा म॒तिभि॒र्जुजो᳚षते ||{9.103.1}, {9.6.7.1}, {7.5.6.1} |
980 | परि॒ वारा᳚ण्य॒व्यया॒ गोभि॑रञ्जा॒नो अ॑र्षति | त्री ष॒धस्था᳚ पुना॒नः कृ॑णुते॒ हरिः॑ ||{9.103.2}, {9.6.7.2}, {7.5.6.2} |
981 | परि॒ कोशं᳚ मधु॒श्चुत॑म॒व्यये॒ वारे᳚ अर्षति | अ॒भि वाणी॒रृषी᳚णां स॒प्त नू᳚षत ||{9.103.3}, {9.6.7.3}, {7.5.6.3} |
982 | परि॑ णे॒ता म॑ती॒नां वि॒श्वदे᳚वो॒ अदा᳚भ्यः | सोमः॑ पुना॒नश्च॒म्वो᳚र्विश॒द्धरिः॑ ||{9.103.4}, {9.6.7.4}, {7.5.6.4} |
983 | परि॒ दैवी॒रनु॑ स्व॒धा इन्द्रे᳚ण याहि स॒रथ᳚म् | पु॒ना॒नो वा॒घद्वा॒घद्भि॒रम॑र्त्यः ||{9.103.5}, {9.6.7.5}, {7.5.6.5} |
984 | परि॒ सप्ति॒र्न वा᳚ज॒युर्दे॒वो दे॒वेभ्यः॑ सु॒तः | व्या॒न॒शिः पव॑मानो॒ वि धा᳚वति ||{9.103.6}, {9.6.7.6}, {7.5.6.6} |
[104] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य कारावौ पर्वतनारदौ काश्यप्यौ शिखण्डिन्यावप्सरसौ वा ऋषिके। पवमानः सोमो देवता | उष्णिक् छन्दः || | |
985 | सखा᳚य॒ आ नि षी᳚दत पुना॒नाय॒ प्र गा᳚यत | शिशुं॒ न य॒ज्ञैः परि॑ भूषत श्रि॒ये ||{9.104.1}, {9.7.1.1}, {7.5.7.1} |
986 | समी᳚ व॒त्सं न मा॒तृभिः॑ सृ॒जता᳚ गय॒साध॑नम् | दे॒वा॒व्य१॑(अ॒) अंमद॑म॒भि द्विश॑वसम् ||{9.104.2}, {9.7.1.2}, {7.5.7.2} |
987 | पु॒नाता᳚ दक्ष॒साध॑नं॒ यथा॒ शर्धा᳚य वी॒तये᳚ | यथा᳚ मि॒त्राय॒ वरु॑णाय॒ शंत॑मः ||{9.104.3}, {9.7.1.3}, {7.5.7.3} |
988 | अ॒स्मभ्यं᳚ त्वा वसु॒विद॑म॒भि वाणी᳚रनूषत | गोभि॑ष्टे॒ वर्ण॑म॒भि वा᳚सयामसि ||{9.104.4}, {9.7.1.4}, {7.5.7.4} |
989 | स नो᳚ मदानां पत॒ इन्दो᳚ दे॒वप्स॑रा असि | सखे᳚व॒ सख्ये᳚ गातु॒वित्त॑मो भव ||{9.104.5}, {9.7.1.5}, {7.5.7.5} |
990 | सने᳚मि कृ॒ध्य१॑(अ॒)स्मदा र॒क्षसं॒ कं चि॑द॒त्रिण᳚म् | अपादे᳚वं द्व॒युमंहो᳚ युयोधि नः ||{9.104.6}, {9.7.1.6}, {7.5.7.6} |
[105] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य काण्वौ पर्वतनारदावृषी। पवमानः सोमो देवता | उष्णिक् छन्दः || | |
991 | तं वः॑ सखायो॒ मदा᳚य पुना॒नम॒भि गा᳚यत | शिशुं॒ न य॒ज्ञैः स्व॑दयन्त गू॒र्तिभिः॑ ||{9.105.1}, {9.7.2.1}, {7.5.8.1} |
992 | सं व॒त्स इ॑व मा॒तृभि॒रिन्दु॑र्हिन्वा॒नो अ॑ज्यते | दे॒वा॒वीर्मदो᳚ म॒तिभिः॒ परि॑ष्कृतः ||{9.105.2}, {9.7.2.2}, {7.5.8.2} |
993 | अ॒यं दक्षा᳚य॒ साध॑नो॒ऽयं शर्धा᳚य वी॒तये᳚ | अ॒यं दे॒वेभ्यो॒ मधु॑मत्तमः सु॒तः ||{9.105.3}, {9.7.2.3}, {7.5.8.3} |
994 | गोम᳚न्न इन्दो॒ अश्व॑वत्सु॒तः सु॑दक्ष धन्व | शुचिं᳚ ते॒ वर्ण॒मधि॒ गोषु॑ दीधरम् ||{9.105.4}, {9.7.2.4}, {7.5.8.4} |
995 | स नो᳚ हरीणां पत॒ इन्दो᳚ दे॒वप्स॑रस्तमः | सखे᳚व॒ सख्ये॒ नर्यो᳚ रु॒चे भ॑व ||{9.105.5}, {9.7.2.5}, {7.5.8.5} |
996 | सने᳚मि॒ त्वम॒स्मदाँ अदे᳚वं॒ कं चि॑द॒त्रिण᳚म् | सा॒ह्वाँ इ᳚न्दो॒ परि॒ बाधो॒ अप॑ द्व॒युम् ||{9.105.6}, {9.7.2.6}, {7.5.8.6} |
[106] (१-१४) चतुर्दशर्चस्य सूक्तस्य (१-३, १०-१४) प्रथमादितृचस्य दशम्यादिपञ्चानाञ्च चाक्षुषोऽग्निः, (४-६) चतुर्थ्यादितृचस्य मानवश्चक्षुः, (७-९) सप्तम्यादितृचस्य चाप्सवो मनुऋर्ष यः, पवमानः सोमो देवता | उष्णिक् छन्दः || | |
997 | इन्द्र॒मच्छ॑ सु॒ता इ॒मे वृष॑णं यन्तु॒ हर॑यः | श्रु॒ष्टी जा॒तास॒ इन्द॑वः स्व॒र्विदः॑ ||{9.106.1}, {9.7.3.1}, {7.5.9.1} |
998 | अ॒यं भरा᳚य सान॒सिरिन्द्रा᳚य पवते सु॒तः | सोमो॒ जैत्र॑स्य चेतति॒ यथा᳚ वि॒दे ||{9.106.2}, {9.7.3.2}, {7.5.9.2} |
999 | अ॒स्येदिन्द्रो॒ मदे॒ष्वा ग्रा॒भं गृ॑भ्णीत सान॒सिम् | वज्रं᳚ च॒ वृष॑णं भर॒त्सम॑प्सु॒जित् ||{9.106.3}, {9.7.3.3}, {7.5.9.3} |
1000 | प्र ध᳚न्वा सोम॒ जागृ॑वि॒रिन्द्रा᳚येन्दो॒ परि॑ स्रव | द्यु॒मन्तं॒ शुष्म॒मा भ॑रा स्व॒र्विद᳚म् ||{9.106.4}, {9.7.3.4}, {7.5.9.4} |
1001 | इन्द्रा᳚य॒ वृष॑णं॒ मदं॒ पव॑स्व वि॒श्वद॑र्शतः | स॒हस्र॑यामा पथि॒कृद्वि॑चक्ष॒णः ||{9.106.5}, {9.7.3.5}, {7.5.9.5} |
1002 | अ॒स्मभ्यं᳚ गातु॒वित्त॑मो दे॒वेभ्यो॒ मधु॑मत्तमः | स॒हस्रं᳚ याहि प॒थिभिः॒ कनि॑क्रदत् ||{9.106.6}, {9.7.3.6}, {7.5.10.1} |
1003 | पव॑स्व दे॒ववी᳚तय॒ इन्दो॒ धारा᳚भि॒रोज॑सा | आ क॒लशं॒ मधु॑मान्सोम नः सदः ||{9.106.7}, {9.7.3.7}, {7.5.10.2} |
1004 | तव॑ द्र॒प्सा उ॑द॒प्रुत॒ इन्द्रं॒ मदा᳚य वावृधुः | त्वां दे॒वासो᳚ अ॒मृता᳚य॒ कं प॑पुः ||{9.106.8}, {9.7.3.8}, {7.5.10.3} |
1005 | आ नः॑ सुतास इन्दवः पुना॒ना धा᳚वता र॒यिम् | वृ॒ष्टिद्या᳚वो रीत्यापः स्व॒र्विदः॑ ||{9.106.9}, {9.7.3.9}, {7.5.10.4} |
1006 | सोमः॑ पुना॒न ऊ॒र्मिणाव्यो॒ वारं॒ वि धा᳚वति | अग्रे᳚ वा॒चः पव॑मानः॒ कनि॑क्रदत् ||{9.106.10}, {9.7.3.10}, {7.5.10.5} |
1007 | धी॒भिर्हि᳚न्वन्ति वा॒जिनं॒ वने॒ क्रीळ᳚न्त॒मत्य॑विम् | अ॒भि त्रि॑पृ॒ष्ठं म॒तयः॒ सम॑स्वरन् ||{9.106.11}, {9.7.3.11}, {7.5.11.1} |
1008 | अस॑र्जि क॒लशाँ᳚ अ॒भि मी॒ळ्हे सप्ति॒र्न वा᳚ज॒युः | पु॒ना॒नो वाचं᳚ ज॒नय᳚न्नसिष्यदत् ||{9.106.12}, {9.7.3.12}, {7.5.11.2} |
1009 | पव॑ते हर्य॒तो हरि॒रति॒ ह्वरां᳚सि॒ रंह्या᳚ | अ॒भ्यर्ष᳚न्स्तो॒तृभ्यो᳚ वी॒रव॒द्यशः॑ ||{9.106.13}, {9.7.3.13}, {7.5.11.3} |
1010 | अ॒या प॑वस्व देव॒युर्मधो॒र्धारा᳚ असृक्षत | रेभ᳚न्प॒वित्रं॒ पर्ये᳚षि वि॒श्वतः॑ ||{9.106.14}, {9.7.3.14}, {7.5.11.4} |
[107] (१-२६) षड़िवशत्यृचस्य सूक्तस्य बार्हस्पत्यो भरद्वाजः, मारीचः कश्यपः, रहूगणो गोतमः, भौमोऽत्रिः, गाथिनो विश्वामित्रः, भार्गवो जमदग्निः मैत्रावरुणिर्वसिष्ठश्च सप्तर्षयः, पवमानः सोमो देवता | (१-२, ४-७, १०-१५, १७-२६) प्रथमाद्वितीययोर्ऋचोश्चतुर्थ्यादिचतसृणां दशम्यादिषण्णां सप्तदश्यादिदशानाञ्च प्रगाथः ((१, ४, ६, १०, १२, १४, १७, १९, २१, २३, २५) प्रथमाचतुर्थीषष्ठीदशमीद्वादशीचतुर्दश सप्तदश्येकोनविंश्येकविंशीत्रयोविंशीपञ्चविंशी नां बृहती, (२, ५, ७, ११, १३, १५, १८, २०, २२, २४, २६) द्वितीयापञ्चमीसप्तम्येकादशीत्रयोदशीपञ्चदश्यष्टादशीविंशीद्वाविंशीचतुर्विशीषड़िवशी नां सतोबृहती), (३) तृतीयाया भरिग्विराड़ द्विपदा (८-९) अष्टमीनवम्योबह ती, (१६) षोडश्याश्च द्विपदा विराट् छन्दांसि || | |
1011 | परी॒तो षि᳚ञ्चता सु॒तं सोमो॒ य उ॑त्त॒मं ह॒विः | द॒ध॒न्वाँ यो नर्यो᳚ अ॒प्स्व१॑(अ॒)'न्तरा सु॒षाव॒ सोम॒मद्रि॑भिः ||{9.107.1}, {9.7.4.1}, {7.5.12.1} |
1012 | नू॒नं पु॑ना॒नोऽवि॑भिः॒ परि॑ स्र॒वाद॑ब्धः सुर॒भिन्त॑रः | सु॒ते चि॑त्त्वा॒प्सु म॑दामो॒ अन्ध॑सा श्री॒णन्तो॒ गोभि॒रुत्त॑रम् ||{9.107.2}, {9.7.4.2}, {7.5.12.2} |
1013 | परि॑ सुवा॒नश्चक्ष॑से देव॒माद॑नः॒ क्रतु॒रिन्दु᳚र्विचक्ष॒णः ||{9.107.3}, {9.7.4.3}, {7.5.12.3} |
1014 | पु॒ना॒नः सो᳚म॒ धार॑या॒पो वसा᳚नो अर्षसि | आ र॑त्न॒धा योनि॑मृ॒तस्य॑ सीद॒स्युत्सो᳚ देव हिर॒ण्ययः॑ ||{9.107.4}, {9.7.4.4}, {7.5.12.4} |
1015 | दु॒हा॒न ऊध॑र्दि॒व्यं मधु॑ प्रि॒यं प्र॒त्नं स॒धस्थ॒मास॑दत् | आ॒पृच्छ्यं᳚ ध॒रुणं᳚ वा॒ज्य॑र्षति॒ नृभि॑र्धू॒तो वि॑चक्ष॒णः ||{9.107.5}, {9.7.4.5}, {7.5.12.5} |
1016 | पु॒ना॒नः सो᳚म॒ जागृ॑वि॒रव्यो॒ वारे॒ परि॑ प्रि॒यः | त्वं विप्रो᳚ अभ॒वोऽङ्गि॑रस्तमो॒ मध्वा᳚ य॒ज्ञं मि॑मिक्ष नः ||{9.107.6}, {9.7.4.6}, {7.5.13.1} |
1017 | सोमो᳚ मी॒ढ्वान्प॑वते गातु॒वित्त॑म॒ ऋषि॒र्विप्रो᳚ विचक्ष॒णः | त्वं क॒विर॑भवो देव॒वीत॑म॒ आ सूर्यं᳚ रोहयो दि॒वि ||{9.107.7}, {9.7.4.7}, {7.5.13.2} |
1018 | सोम॑ उ षुवा॒णः सो॒तृभि॒रधि॒ ष्णुभि॒रवी᳚नाम् | अश्व॑येव ह॒रिता᳚ याति॒ धार॑या म॒न्द्रया᳚ याति॒ धार॑या ||{9.107.8}, {9.7.4.8}, {7.5.13.3} |
1019 | अ॒नू॒पे गोमा॒न्गोभि॑रक्षाः॒ सोमो᳚ दु॒ग्धाभि॑रक्षाः | स॒मु॒द्रं न सं॒वर॑णान्यग्मन्म॒न्दी मदा᳚य तोशते ||{9.107.9}, {9.7.4.9}, {7.5.13.4} |
1020 | आ सो᳚म सुवा॒नो अद्रि॑भिस्ति॒रो वारा᳚ण्य॒व्यया᳚ | जनो॒ न पु॒रि च॒म्वो᳚र्विश॒द्धरिः॒ सदो॒ वने᳚षु दधिषे ||{9.107.10}, {9.7.4.10}, {7.5.13.5} |
1021 | स मा᳚मृजे ति॒रो अण्वा᳚नि मे॒ष्यो᳚ मी॒ळ्हे सप्ति॒र्न वा᳚ज॒युः | अ॒नु॒माद्यः॒ पव॑मानो मनी॒षिभिः॒ सोमो॒ विप्रे᳚भि॒रृक्व॑भिः ||{9.107.11}, {9.7.4.11}, {7.5.14.1} |
1022 | प्र सो᳚म दे॒ववी᳚तये॒ सिन्धु॒र्न पि॑प्ये॒ अर्ण॑सा | अं॒शोः पय॑सा मदि॒रो न जागृ॑वि॒रच्छा॒ कोशं᳚ मधु॒श्चुत᳚म् ||{9.107.12}, {9.7.4.12}, {7.5.14.2} |
1023 | आ ह᳚र्य॒तो अर्जु॑ने॒ अत्के᳚ अव्यत प्रि॒यः सू॒नुर्न मर्ज्यः॑ | तमीं᳚ हिन्वन्त्य॒पसो॒ यथा॒ रथं᳚ न॒दीष्वा गभ॑स्त्योः ||{9.107.13}, {9.7.4.13}, {7.5.14.3} |
1024 | अ॒भि सोमा᳚स आ॒यवः॒ पव᳚न्ते॒ मद्यं॒ मद᳚म् | स॒मु॒द्रस्याधि॑ वि॒ष्टपि॑ मनी॒षिणो᳚ मत्स॒रासः॑ स्व॒र्विदः॑ ||{9.107.14}, {9.7.4.14}, {7.5.14.4} |
1025 | तर॑त्समु॒द्रं पव॑मान ऊ॒र्मिणा॒ राजा᳚ दे॒व ऋ॒तं बृ॒हत् | अर्ष᳚न्मि॒त्रस्य॒ वरु॑णस्य॒ धर्म॑णा॒ प्र हि᳚न्वा॒न ऋ॒तं बृ॒हत् ||{9.107.15}, {9.7.4.15}, {7.5.14.5} |
1026 | नृभि᳚र्येमा॒नो ह᳚र्य॒तो वि॑चक्ष॒णो राजा᳚ दे॒वः स॑मु॒द्रियः॑ ||{9.107.16}, {9.7.4.16}, {7.5.15.1} |
1027 | इन्द्रा᳚य पवते॒ मदः॒ सोमो᳚ म॒रुत्व॑ते सु॒तः | स॒हस्र॑धारो॒ अत्यव्य॑मर्षति॒ तमी᳚ मृजन्त्या॒यवः॑ ||{9.107.17}, {9.7.4.17}, {7.5.15.2} |
1028 | पु॒ना॒नश्च॒मू ज॒नय᳚न्म॒तिं क॒विः सोमो᳚ दे॒वेषु॑ रण्यति | अ॒पो वसा᳚नः॒ परि॒ गोभि॒रुत्त॑रः॒ सीद॒न्वने᳚ष्वव्यत ||{9.107.18}, {9.7.4.18}, {7.5.15.3} |
1029 | तवा॒हं सो᳚म रारण स॒ख्य इ᳚न्दो दि॒वेदि॑वे | पु॒रूणि॑ बभ्रो॒ नि च॑रन्ति॒ मामव॑ परि॒धीँरति॒ ताँ इ॑हि ||{9.107.19}, {9.7.4.19}, {7.5.15.4} |
1030 | उ॒ताहं नक्त॑मु॒त सो᳚म ते॒ दिवा᳚ स॒ख्याय॑ बभ्र॒ ऊध॑नि | घृ॒णा तप᳚न्त॒मति॒ सूर्यं᳚ प॒रः श॑कु॒ना इ॑व पप्तिम ||{9.107.20}, {9.7.4.20}, {7.5.15.5} |
1031 | मृ॒ज्यमा᳚नः सुहस्त्य समु॒द्रे वाच॑मिन्वसि | र॒यिं पि॒शङ्गं᳚ बहु॒लं पु॑रु॒स्पृहं॒ पव॑माना॒भ्य॑र्षसि ||{9.107.21}, {9.7.4.21}, {7.5.16.1} |
1032 | मृ॒जा॒नो वारे॒ पव॑मानो अ॒व्यये॒ वृषाव॑ चक्रदो॒ वने᳚ | दे॒वानां᳚ सोम पवमान निष्कृ॒तं गोभि॑रञ्जा॒नो अ॑र्षसि ||{9.107.22}, {9.7.4.22}, {7.5.16.2} |
1033 | पव॑स्व॒ वाज॑सातये॒ऽभि विश्वा᳚नि॒ काव्या᳚ | त्वं स॑मु॒द्रं प्र॑थ॒मो वि धा᳚रयो दे॒वेभ्यः॑ सोम मत्स॒रः ||{9.107.23}, {9.7.4.23}, {7.5.16.3} |
1034 | स तू प॑वस्व॒ परि॒ पार्थि॑वं॒ रजो᳚ दि॒व्या च॑ सोम॒ धर्म॑भिः | त्वां विप्रा᳚सो म॒तिभि᳚र्विचक्षण शु॒भ्रं हि᳚न्वन्ति धी॒तिभिः॑ ||{9.107.24}, {9.7.4.24}, {7.5.16.4} |
1035 | पव॑माना असृक्षत प॒वित्र॒मति॒ धार॑या | म॒रुत्व᳚न्तो मत्स॒रा इ᳚न्द्रि॒या हया᳚ मे॒धाम॒भि प्रयां᳚सि च ||{9.107.25}, {9.7.4.25}, {7.5.16.5} |
1036 | अ॒पो वसा᳚नः॒ परि॒ कोश॑मर्ष॒तीन्दु॑र्हिया॒नः सो॒तृभिः॑ | ज॒नय॒ञ्ज्योति᳚र्म॒न्दना᳚ अवीवश॒द्गाः कृ᳚ण्वा॒नो न नि॒र्णिज᳚म् ||{9.107.26}, {9.7.4.26}, {7.5.16.6} |
[108] (१-१६) षोळशर्चस्य सूक्तस्य (१-२) प्रथमाद्वितीययोर्ऋचोः शाक्त्यो गौरिवीतिः, (३, १४-१६) तृतीयायाश्चतुदर्श यादितृचस्य च वासिष्ठः शक्तिः, (४५) चतुर्थीपञ्चम्योराङ्गिरस ऊरुः, (६-७) षष्ठीसप्तम्योर्भारद्वाज ऋजिश्वा, (८-९) अष्टमीनवम्योराङ्गिरस ऊर्ध्वसपा, (१०-११) दशम्येकादश्योराङ्गिरसः कृतयशाः, (१२-१३) द्वादशीत्रयोदश्योश्च राजर्षिणञ्चय (ऋषयः) पवमानः सोमो देवता | काकभः प्रगाथः (विषमर्चाम् ककप, समर्चाम् सतोबृहती), (१३) त्रयोदश्या यवमध्या गायत्री छन्दः || | |
1037 | पव॑स्व॒ मधु॑मत्तम॒ इन्द्रा᳚य सोम क्रतु॒वित्त॑मो॒ मदः॑ | महि॑ द्यु॒क्षत॑मो॒ मदः॑ ||{9.108.1}, {9.7.5.1}, {7.5.17.1} |
1038 | यस्य॑ ते पी॒त्वा वृ॑ष॒भो वृ॑षा॒यते॒ऽस्य पी॒ता स्व॒र्विदः॑ | स सु॒प्रके᳚तो अ॒भ्य॑क्रमी॒दिषोऽच्छा॒ वाजं॒ नैत॑शः ||{9.108.2}, {9.7.5.2}, {7.5.17.2} |
1039 | त्वं ह्य१॑(अ॒)'ङ्ग दैव्या॒ पव॑मान॒ जनि॑मानि द्यु॒मत्त॑मः | अ॒मृ॒त॒त्वाय॑ घो॒षयः॑ ||{9.108.3}, {9.7.5.3}, {7.5.17.3} |
1040 | येना॒ नव॑ग्वो द॒ध्यङ्ङ॑पोर्णु॒ते येन॒ विप्रा᳚स आपि॒रे | दे॒वानां᳚ सु॒म्ने अ॒मृत॑स्य॒ चारु॑णो॒ येन॒ श्रवां᳚स्यान॒शुः ||{9.108.4}, {9.7.5.4}, {7.5.17.4} |
1041 | ए॒ष स्य धार॑या सु॒तोऽव्यो॒ वारे᳚भिः पवते म॒दिन्त॑मः | क्रीळ᳚न्नू॒र्मिर॒पामि॑व ||{9.108.5}, {9.7.5.5}, {7.5.17.5} |
1042 | य उ॒स्रिया॒ अप्या᳚ अ॒न्तरश्म॑नो॒ निर्गा अकृ᳚न्त॒दोज॑सा | अ॒भि व्र॒जं त॑त्निषे॒ गव्य॒मश्व्यं᳚ व॒र्मीव॑ धृष्ण॒वा रु॑ज ||{9.108.6}, {9.7.5.6}, {7.5.18.1} |
1043 | आ सो᳚ता॒ परि॑ षिञ्च॒ताश्वं॒ न स्तोम॑म॒प्तुरं᳚ रज॒स्तुर᳚म् | व॒न॒क्र॒क्षमु॑द॒प्रुत᳚म् ||{9.108.7}, {9.7.5.7}, {7.5.18.2} |
1044 | स॒हस्र॑धारं वृष॒भं प॑यो॒वृधं᳚ प्रि॒यं दे॒वाय॒ जन्म॑ने | ऋ॒तेन॒ य ऋ॒तजा᳚तो विवावृ॒धे राजा᳚ दे॒व ऋ॒तं बृ॒हत् ||{9.108.8}, {9.7.5.8}, {7.5.18.3} |
1045 | अ॒भि द्यु॒म्नं बृ॒हद्यश॒ इष॑स्पते दिदी॒हि दे᳚व देव॒युः | वि कोशं᳚ मध्य॒मं यु॑व ||{9.108.9}, {9.7.5.9}, {7.5.18.4} |
1046 | आ व॑च्यस्व सुदक्ष च॒म्वोः᳚ सु॒तो वि॒शां वह्नि॒र्न वि॒श्पतिः॑ | वृ॒ष्टिं दि॒वः प॑वस्व री॒तिम॒पां जिन्वा॒ गवि॑ष्टये॒ धियः॑ ||{9.108.10}, {9.7.5.10}, {7.5.18.5} |
1047 | ए॒तमु॒ त्यं म॑द॒च्युतं᳚ स॒हस्र॑धारं वृष॒भं दिवो᳚ दुहुः | विश्वा॒ वसू᳚नि॒ बिभ्र॑तम् ||{9.108.11}, {9.7.5.11}, {7.5.19.1} |
1048 | वृषा॒ वि ज॑ज्ञे ज॒नय॒न्नम॑र्त्यः प्र॒तप॒ञ्ज्योति॑षा॒ तमः॑ | स सुष्टु॑तः क॒विभि᳚र्नि॒र्णिजं᳚ दधे त्रि॒धात्व॑स्य॒ दंस॑सा ||{9.108.12}, {9.7.5.12}, {7.5.19.2} |
1049 | स सु᳚न्वे॒ यो वसू᳚नां॒ यो रा॒यामा᳚ने॒ता य इळा᳚नाम् | सोमो॒ यः सु॑क्षिती॒नाम् ||{9.108.13}, {9.7.5.13}, {7.5.19.3} |
1050 | यस्य॑ न॒ इन्द्रः॒ पिबा॒द्यस्य॑ म॒रुतो॒ यस्य॑ वार्य॒मणा॒ भगः॑ | आ येन॑ मि॒त्रावरु॑णा॒ करा᳚मह॒ एन्द्र॒मव॑से म॒हे ||{9.108.14}, {9.7.5.14}, {7.5.19.4} |
1051 | इन्द्रा᳚य सोम॒ पात॑वे॒ नृभि᳚र्य॒तः स्वा᳚यु॒धो म॒दिन्त॑मः | पव॑स्व॒ मधु॑मत्तमः ||{9.108.15}, {9.7.5.15}, {7.5.19.5} |
1052 | इन्द्र॑स्य॒ हार्दि॑ सोम॒धान॒मा वि॑श समु॒द्रमि॑व॒ सिन्ध॑वः | जुष्टो᳚ मि॒त्राय॒ वरु॑णाय वा॒यवे᳚ दि॒वो वि॑ष्ट॒म्भ उ॑त्त॒मः ||{9.108.16}, {9.7.5.16}, {7.5.19.6} |
[109] (१-२२) द्वाविंशत्यृचस्य सूक्तस्यैश्वरयो धिष्ण्याग्नय (ऋषयः) पवमानः सोमो देवता | द्विपदा विराट् छन्दः || | |
1053 | परि॒ प्र ध॒न्वेन्द्रा᳚य सोम स्वा॒दुर्मि॒त्राय॑ पू॒ष्णे भगा᳚य ||{9.109.1}, {9.7.6.1}, {7.5.20.1} |
1054 | इन्द्र॑स्ते सोम सु॒तस्य॑ पेयाः॒ क्रत्वे॒ दक्षा᳚य॒ विश्वे᳚ च दे॒वाः ||{9.109.2}, {9.7.6.2}, {7.5.20.2} |
1055 | ए॒वामृता᳚य म॒हे क्षया᳚य॒ स शु॒क्रो अ॑र्ष दि॒व्यः पी॒यूषः॑ ||{9.109.3}, {9.7.6.3}, {7.5.20.3} |
1056 | पव॑स्व सोम म॒हान्स॑मु॒द्रः पि॒ता दे॒वानां॒ विश्वा॒भि धाम॑ ||{9.109.4}, {9.7.6.4}, {7.5.20.4} |
1057 | शु॒क्रः प॑वस्व दे॒वेभ्यः॑ सोम दि॒वे पृ॑थि॒व्यै शं च॑ प्र॒जायै᳚ ||{9.109.5}, {9.7.6.5}, {7.5.20.5} |
1058 | दि॒वो ध॒र्तासि॑ शु॒क्रः पी॒यूषः॑ स॒त्ये विध᳚र्मन्वा॒जी प॑वस्व ||{9.109.6}, {9.7.6.6}, {7.5.20.6} |
1059 | पव॑स्व सोम द्यु॒म्नी सु॑धा॒रो म॒हामवी᳚ना॒मनु॑ पू॒र्व्यः ||{9.109.7}, {9.7.6.7}, {7.5.20.7} |
1060 | नृभि᳚र्येमा॒नो ज॑ज्ञा॒नः पू॒तः क्षर॒द्विश्वा᳚नि म॒न्द्रः स्व॒र्वित् ||{9.109.8}, {9.7.6.8}, {7.5.20.8} |
1061 | इन्दुः॑ पुना॒नः प्र॒जामु॑रा॒णः कर॒द्विश्वा᳚नि॒ द्रवि॑णानि नः ||{9.109.9}, {9.7.6.9}, {7.5.20.9} |
1062 | पव॑स्व सोम॒ क्रत्वे॒ दक्षा॒याश्वो॒ न नि॒क्तो वा॒जी धना᳚य ||{9.109.10}, {9.7.6.10}, {7.5.20.10} |
1063 | तं ते᳚ सो॒तारो॒ रसं॒ मदा᳚य पु॒नन्ति॒ सोमं᳚ म॒हे द्यु॒म्नाय॑ ||{9.109.11}, {9.7.6.11}, {7.5.21.1} |
1064 | शिशुं᳚ जज्ञा॒नं हरिं᳚ मृजन्ति प॒वित्रे॒ सोमं᳚ दे॒वेभ्य॒ इन्दु᳚म् ||{9.109.12}, {9.7.6.12}, {7.5.21.2} |
1065 | इन्दुः॑ पविष्ट॒ चारु॒र्मदा᳚या॒पामु॒पस्थे᳚ क॒विर्भगा᳚य ||{9.109.13}, {9.7.6.13}, {7.5.21.3} |
1066 | बिभ॑र्ति॒ चार्विन्द्र॑स्य॒ नाम॒ येन॒ विश्वा᳚नि वृ॒त्रा ज॒घान॑ ||{9.109.14}, {9.7.6.14}, {7.5.21.4} |
1067 | पिब᳚न्त्यस्य॒ विश्वे᳚ दे॒वासो॒ गोभिः॑ श्री॒तस्य॒ नृभिः॑ सु॒तस्य॑ ||{9.109.15}, {9.7.6.15}, {7.5.21.5} |
1068 | प्र सु॑वा॒नो अ॑क्षाः स॒हस्र॑धारस्ति॒रः प॒वित्रं॒ वि वार॒मव्य᳚म् ||{9.109.16}, {9.7.6.16}, {7.5.21.6} |
1069 | स वा॒ज्य॑क्षाः स॒हस्र॑रेता अ॒द्भिर्मृ॑जा॒नो गोभिः॑ श्रीणा॒नः ||{9.109.17}, {9.7.6.17}, {7.5.21.7} |
1070 | प्र सो᳚म या॒हीन्द्र॑स्य कु॒क्षा नृभि᳚र्येमा॒नो अद्रि॑भिः सु॒तः ||{9.109.18}, {9.7.6.18}, {7.5.21.8} |
1071 | अस॑र्जि वा॒जी ति॒रः प॒वित्र॒मिन्द्रा᳚य॒ सोमः॑ स॒हस्र॑धारः ||{9.109.19}, {9.7.6.19}, {7.5.21.9} |
1072 | अ॒ञ्जन्त्ये᳚नं॒ मध्वो॒ रसे॒नेन्द्रा᳚य॒ वृष्ण॒ इन्दुं॒ मदा᳚य ||{9.109.20}, {9.7.6.20}, {7.5.21.10} |
1073 | दे॒वेभ्य॑स्त्वा॒ वृथा॒ पाज॑से॒ऽपो वसा᳚नं॒ हरिं᳚ मृजन्ति ||{9.109.21}, {9.7.6.21}, {7.5.21.11} |
1074 | इन्दु॒रिन्द्रा᳚य तोशते॒ नि तो᳚शते श्री॒णन्नु॒ग्रो रि॒णन्न॒पः ||{9.109.22}, {9.7.6.22}, {7.5.21.12} |
[110] (१-१२) द्वादशर्चस्य सूक्तस्य त्रैवष्णस्यरुणः पौरुकुत्स्यस्त्रसदस्युर्षी। पवमानः सोमो देवता | (१-३) प्रथमादितृचस्य पिपीलिकमध्यानुष्टप्, (४-९) चतुर्थ्यादितृचद्वयस्योर्ध्वबह ती, (१०-१२) दशम्यादितृचस्य च विराट् छन्दांसि || | |
1075 | पर्यू॒ षु प्र ध᳚न्व॒ वाज॑सातये॒ परि॑ वृ॒त्राणि॑ स॒क्षणिः॑ | द्वि॒षस्त॒रध्या᳚ ऋण॒या न॑ ईयसे ||{9.110.1}, {9.7.7.1}, {7.5.22.1} |
1076 | अनु॒ हि त्वा᳚ सु॒तं सो᳚म॒ मदा᳚मसि म॒हे स॑मर्य॒राज्ये᳚ | वाजाँ᳚ अ॒भि प॑वमान॒ प्र गा᳚हसे ||{9.110.2}, {9.7.7.2}, {7.5.22.2} |
1077 | अजी᳚जनो॒ हि प॑वमान॒ सूर्यं᳚ वि॒धारे॒ शक्म॑ना॒ पयः॑ | गोजी᳚रया॒ रंह॑माणः॒ पुरं᳚ध्या ||{9.110.3}, {9.7.7.3}, {7.5.22.3} |
1078 | अजी᳚जनो अमृत॒ मर्त्ये॒ष्वाँ ऋ॒तस्य॒ धर्म᳚न्न॒मृत॑स्य॒ चारु॑णः | सदा᳚सरो॒ वाज॒मच्छा॒ सनि॑ष्यदत् ||{9.110.4}, {9.7.7.4}, {7.5.22.4} |
1079 | अ॒भ्य॑भि॒ हि श्रव॑सा त॒तर्दि॒थोत्सं॒ न कं चि॑ज्जन॒पान॒मक्षि॑तम् | शर्या᳚भि॒र्न भर॑माणो॒ गभ॑स्त्योः ||{9.110.5}, {9.7.7.5}, {7.5.22.5} |
1080 | आदीं॒ के चि॒त्पश्य॑मानास॒ आप्यं᳚ वसु॒रुचो᳚ दि॒व्या अ॒भ्य॑नूषत | वारं॒ न दे॒वः स॑वि॒ता व्यू᳚र्णुते ||{9.110.6}, {9.7.7.6}, {7.5.22.6} |
1081 | त्वे सो᳚म प्रथ॒मा वृ॒क्तब॑र्हिषो म॒हे वाजा᳚य॒ श्रव॑से॒ धियं᳚ दधुः | स त्वं नो᳚ वीर वी॒र्या᳚य चोदय ||{9.110.7}, {9.7.7.7}, {7.5.23.1} |
1082 | दि॒वः पी॒यूषं᳚ पू॒र्व्यं यदु॒क्थ्यं᳚ म॒हो गा॒हाद्दि॒व आ निर॑धुक्षत | इन्द्र॑म॒भि जाय॑मानं॒ सम॑स्वरन् ||{9.110.8}, {9.7.7.8}, {7.5.23.2} |
1083 | अध॒ यदि॒मे प॑वमान॒ रोद॑सी इ॒मा च॒ विश्वा॒ भुव॑ना॒भि म॒ज्मना᳚ | यू॒थे न नि॒ष्ठा वृ॑ष॒भो वि ति॑ष्ठसे ||{9.110.9}, {9.7.7.9}, {7.5.23.3} |
1084 | सोमः॑ पुना॒नो अ॒व्यये॒ वारे॒ शिशु॒र्न क्रीळ॒न्पव॑मानो अक्षाः | स॒हस्र॑धारः श॒तवा᳚ज॒ इन्दुः॑ ||{9.110.10}, {9.7.7.10}, {7.5.23.4} |
1085 | ए॒ष पु॑ना॒नो मधु॑माँ ऋ॒तावेन्द्रा॒येन्दुः॑ पवते स्वा॒दुरू॒र्मिः | वा॒ज॒सनि᳚र्वरिवो॒विद्व॑यो॒धाः ||{9.110.11}, {9.7.7.11}, {7.5.23.5} |
1086 | स प॑वस्व॒ सह॑मानः पृत॒न्यून्सेध॒न्रक्षां॒स्यप॑ दु॒र्गहा᳚णि | स्वा॒यु॒धः सा᳚स॒ह्वान्सो᳚म॒ शत्रू॑न् ||{9.110.12}, {9.7.7.12}, {7.5.23.6} |
[111] (१-३) तृचस्य सूक्तस्य पारुच्छेपिरनानत ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | अत्यष्टिश्छन्दः || | |
1087 | अ॒या रु॒चा हरि᳚ण्या पुना॒नो विश्वा॒ द्वेषां᳚सि तरति स्व॒युग्व॑भिः॒ सूरो॒ न स्व॒युग्व॑भिः | धारा᳚ सु॒तस्य॑ रोचते पुना॒नो अ॑रु॒षो हरिः॑ | विश्वा॒ यद्रू॒पा प॑रि॒यात्यृक्व॑भिः स॒प्तास्ये᳚भि॒रृक्व॑भिः ||{9.111.1}, {9.7.8.1}, {7.5.24.1} |
1088 | त्वं त्यत्प॑णी॒नां वि॑दो॒ वसु॒ सं मा॒तृभि᳚र्मर्जयसि॒ स्व आ दम॑ ऋ॒तस्य॑ धी॒तिभि॒र्दमे᳚ | प॒रा॒वतो॒ न साम॒ तद्यत्रा॒ रण᳚न्ति धी॒तयः॑ | त्रि॒धातु॑भि॒ररु॑षीभि॒र्वयो᳚ दधे॒ रोच॑मानो॒ वयो᳚ दधे ||{9.111.2}, {9.7.8.2}, {7.5.24.2} |
1089 | पूर्वा॒मनु॑ प्र॒दिशं᳚ याति॒ चेकि॑त॒त्सं र॒श्मिभि᳚र्यतते दर्श॒तो रथो॒ दैव्यो᳚ दर्श॒तो रथः॑ | अग्म᳚न्नु॒क्थानि॒ पौंस्येन्द्रं॒ जैत्रा᳚य हर्षयन् | वज्र॑श्च॒ यद्भव॑थो॒ अन॑पच्युता स॒मत्स्वन॑पच्युता ||{9.111.3}, {9.7.8.3}, {7.5.24.3} |
[112] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः शिशु ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | पतिश्छन्दः || | |
1090 | ना॒ना॒नं वा उ॑ नो॒ धियो॒ वि व्र॒तानि॒ जना᳚नाम् | तक्षा᳚ रि॒ष्टं रु॒तं भि॒षग्ब्र॒ह्मा सु॒न्वन्त॑मिच्छ॒तीन्द्रा᳚येन्दो॒ परि॑ स्रव ||{9.112.1}, {9.7.9.1}, {7.5.25.1} |
1091 | जर॑तीभि॒रोष॑धीभिः प॒र्णेभिः॑ शकु॒नाना᳚म् | का॒र्मा॒रो अश्म॑भि॒र्द्युभि॒र्हिर᳚ण्यवन्तमिच्छ॒तीन्द्रा᳚येन्दो॒ परि॑ स्रव ||{9.112.2}, {9.7.9.2}, {7.5.25.2} |
1092 | का॒रुर॒हं त॒तो भि॒षगु॑पलप्र॒क्षिणी᳚ न॒ना | नाना᳚धियो वसू॒यवोऽनु॒ गा इ॑व तस्थि॒मेन्द्रा᳚येन्दो॒ परि॑ स्रव ||{9.112.3}, {9.7.9.3}, {7.5.25.3} |
1093 | अश्वो॒ वोळ्हा᳚ सु॒खं रथं᳚ हस॒नामु॑पम॒न्त्रिणः॑ | शेपो॒ रोम᳚ण्वन्तौ भे॒दौ वारिन्म॒ण्डूक॑ इच्छ॒तीन्द्रा᳚येन्दो॒ परि॑ स्रव ||{9.112.4}, {9.7.9.4}, {7.5.25.4} |
[113] (१-११) एकादशर्चस्य सूक्तस्य मारीचः कश्यप ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | पतिश्छन्दः || | |
1094 | श॒र्य॒णाव॑ति॒ सोम॒मिन्द्रः॑ पिबतु वृत्र॒हा | बलं॒ दधा᳚न आ॒त्मनि॑ करि॒ष्यन्वी॒र्यं᳚ म॒हदिन्द्रा᳚येन्दो॒ परि॑ स्रव ||{9.113.1}, {9.7.10.1}, {7.5.26.1} |
1095 | आ प॑वस्व दिशां पत आर्जी॒कात्सो᳚म मीढ्वः | ऋ॒त॒वा॒केन॑ स॒त्येन॑ श्र॒द्धया॒ तप॑सा सु॒त इन्द्रा᳚येन्दो॒ परि॑ स्रव ||{9.113.2}, {9.7.10.2}, {7.5.26.2} |
1096 | प॒र्जन्य॑वृद्धं महि॒षं तं सूर्य॑स्य दुहि॒ताभ॑रत् | तं ग᳚न्ध॒र्वाः प्रत्य॑गृभ्ण॒न्तं सोमे॒ रस॒माद॑धु॒रिन्द्रा᳚येन्दो॒ परि॑ स्रव ||{9.113.3}, {9.7.10.3}, {7.5.26.3} |
1097 | ऋ॒तं वद᳚न्नृतद्युम्न स॒त्यं वद᳚न्सत्यकर्मन् | श्र॒द्धां वद᳚न्सोम राजन्धा॒त्रा सो᳚म॒ परि॑ष्कृत॒ इन्द्रा᳚येन्दो॒ परि॑ स्रव ||{9.113.4}, {9.7.10.4}, {7.5.26.4} |
1098 | स॒त्यमु॑ग्रस्य बृह॒तः सं स्र॑वन्ति संस्र॒वाः | सं य᳚न्ति र॒सिनो॒ रसाः᳚ पुना॒नो ब्रह्म॑णा हर॒ इन्द्रा᳚येन्दो॒ परि॑ स्रव ||{9.113.5}, {9.7.10.5}, {7.5.26.5} |
1099 | यत्र॑ ब्र॒ह्मा प॑वमान छन्द॒स्यां॒३॒॑ वाचं॒ वद॑न् | ग्राव्णा॒ सोमे᳚ मही॒यते॒ सोमे᳚नान॒न्दं ज॒नय॒न्निन्द्रा᳚येन्दो॒ परि॑ स्रव ||{9.113.6}, {9.7.10.6}, {7.5.27.1} |
1100 | यत्र॒ ज्योति॒रज॑स्रं॒ यस्मिँ॑ल्लो॒के स्व॑र्हि॒तम् | तस्मि॒न्मां धे᳚हि पवमाना॒मृते᳚ लो॒के अक्षि॑त॒ इन्द्रा᳚येन्दो॒ परि॑ स्रव ||{9.113.7}, {9.7.10.7}, {7.5.27.2} |
1101 | यत्र॒ राजा᳚ वैवस्व॒तो यत्रा᳚व॒रोध॑नं दि॒वः | यत्रा॒मूर्य॒ह्वती॒राप॒स्तत्र॒ माम॒मृतं᳚ कृ॒धीन्द्रा᳚येन्दो॒ परि॑ स्रव ||{9.113.8}, {9.7.10.8}, {7.5.27.3} |
1102 | यत्रा᳚नुका॒मं चर॑णं त्रिना॒के त्रि॑दि॒वे दि॒वः | लो॒का यत्र॒ ज्योति॑ष्मन्त॒स्तत्र॒ माम॒मृतं᳚ कृ॒धीन्द्रा᳚येन्दो॒ परि॑ स्रव ||{9.113.9}, {9.7.10.9}, {7.5.27.4} |
1103 | यत्र॒ कामा᳚ निका॒माश्च॒ यत्र॑ ब्र॒ध्नस्य॑ वि॒ष्टप᳚म् | स्व॒धा च॒ यत्र॒ तृप्ति॑श्च॒ तत्र॒ माम॒मृतं᳚ कृ॒धीन्द्रा᳚येन्दो॒ परि॑ स्रव ||{9.113.10}, {9.7.10.10}, {7.5.27.5} |
1104 | यत्रा᳚न॒न्दाश्च॒ मोदा᳚श्च॒ मुदः॑ प्र॒मुद॒ आस॑ते | काम॑स्य॒ यत्रा॒प्ताः कामा॒स्तत्र॒ माम॒मृतं᳚ कृ॒धीन्द्रा᳚येन्दो॒ परि॑ स्रव ||{9.113.11}, {9.7.10.11}, {7.5.27.6} |
[114] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य मारीचः कश्यप ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | पङ्क्तिश्छन्दः || | |
1105 | य इन्दोः॒ पव॑मान॒स्यानु॒ धामा॒न्यक्र॑मीत् | तमा᳚हुः सुप्र॒जा इति॒ यस्ते᳚ सो॒मावि॑ध॒न्मन॒ इन्द्रा᳚येन्दो॒ परि॑ स्रव ||{9.114.1}, {9.7.11.1}, {7.5.28.1} |
1106 | ऋषे᳚ मन्त्र॒कृतां॒ स्तोमैः॒ कश्य॑पोद्व॒र्धय॒न्गिरः॑ | सोमं᳚ नमस्य॒ राजा᳚नं॒ यो ज॒ज्ञे वी॒रुधां॒ पति॒रिन्द्रा᳚येन्दो॒ परि॑ स्रव ||{9.114.2}, {9.7.11.2}, {7.5.28.2} |
1107 | स॒प्त दिशो॒ नाना᳚सूर्याः स॒प्त होता᳚र ऋ॒त्विजः॑ | दे॒वा आ᳚दि॒त्या ये स॒प्त तेभिः॑ सोमा॒भि र॑क्ष न॒ इन्द्रा᳚येन्दो॒ परि॑ स्रव ||{9.114.3}, {9.7.11.3}, {7.5.28.3} |
1108 | यत्ते᳚ राजञ्छृ॒तं ह॒विस्तेन॑ सोमा॒भि र॑क्ष नः | अ॒रा॒ती॒वा मा न॑स्तारी॒न्मो च॑ नः॒ किं च॒नाम॑म॒दिन्द्रा᳚येन्दो॒ परि॑ स्रव ||{9.114.4}, {9.7.11.4}, {7.5.28.4} |