Mantra classification is following this convention :-
{मण्डलम्, सूक्तम्, मन्त्रः}, {मण्डलम्, अनुवाकः, सूक्तम्, मन्त्रः}, {अष्टकः, अध्यायः, वर्गः, मन्त्रः}
[1] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य वैश्वामित्रो मधुच्छन्दा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
1 | स्वादि॑ष्ठया॒मदि॑ष्ठया॒पव॑स्वसोम॒धार॑या | इन्द्रा᳚य॒पात॑वेसु॒तः || {9.1.1}, {9.1.1.1}, {6.7.16.1} |
2 | र॒क्षो॒हावि॒श्वच॑र्षणिर॒भियोनि॒मयो᳚हतम् | द्रुणा᳚स॒धस्थ॒मास॑दत् || {9.1.2}, {9.1.1.2}, {6.7.16.2} |
3 | व॒रि॒वो॒धात॑मोभव॒मंहि॑ष्ठोवृत्र॒हन्त॑मः | पर्षि॒राधो᳚म॒घोना᳚म् || {9.1.3}, {9.1.1.3}, {6.7.16.3} |
4 | अ॒भ्य॑र्षम॒हानां᳚दे॒वानां᳚वी॒तिमन्ध॑सा | अ॒भिवाज॑मु॒तश्रवः॑ || {9.1.4}, {9.1.1.4}, {6.7.16.4} |
5 | त्वामच्छा᳚चरामसि॒तदिदर्थं᳚दि॒वेदि॑वे | इन्दो॒त्वेन॑ऽआ॒शसः॑ || {9.1.5}, {9.1.1.5}, {6.7.16.5} |
6 | पु॒नाति॑तेपरि॒स्रुतं॒सोमं॒सूर्य॑स्यदुहि॒ता | वारे᳚ण॒शश्व॑ता॒तना᳚ || {9.1.6}, {9.1.1.6}, {6.7.17.1} |
7 | तमी॒मण्वीः᳚सम॒र्यऽआगृ॒भ्णन्ति॒योष॑णो॒दश॑ | स्वसा᳚रः॒पार्ये᳚दि॒वि || {9.1.7}, {9.1.1.7}, {6.7.17.2} |
8 | तमीं᳚हिन्वन्त्य॒ग्रुवो॒धम᳚न्तिबाकु॒रंदृति᳚म् | त्रि॒धातु॑वार॒णंमधु॑ || {9.1.8}, {9.1.1.8}, {6.7.17.3} |
9 | अ॒भी॒३॑(ई॒)ममघ्न्या᳚ऽउ॒तश्री॒णन्ति॑धे॒नवः॒शिशु᳚म् | सोम॒मिन्द्रा᳚य॒पात॑वे || {9.1.9}, {9.1.1.9}, {6.7.17.4} |
10 | अ॒स्येदिन्द्रो॒मदे॒ष्वाविश्वा᳚वृ॒त्राणि॑जिघ्नते | शूरो᳚म॒घाच॑मंहते || {9.1.10}, {9.1.1.10}, {6.7.17.5} |
[2] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य काण्वो मेधातिथिब्रषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
11 | पव॑स्वदेव॒वीरति॑प॒वित्रं᳚सोम॒रंह्या᳚ | इन्द्र॑मिन्दो॒वृषावि॑श || {9.2.1}, {9.1.2.1}, {6.7.18.1} |
12 | आव॑च्यस्व॒महि॒प्सरो॒वृषे᳚न्दोद्यु॒म्नव॑त्तमः | आयोनिं᳚धर्ण॒सिःस॑दः || {9.2.2}, {9.1.2.2}, {6.7.18.2} |
13 | अधु॑क्षतप्रि॒यंमधु॒धारा᳚सु॒तस्य॑वे॒धसः॑ | अ॒पोव॑सिष्टसु॒क्रतुः॑ || {9.2.3}, {9.1.2.3}, {6.7.18.3} |
14 | म॒हान्तं᳚त्वाम॒हीरन्वापो᳚ऽअर्षन्ति॒सिन्ध॑वः | यद्गोभि᳚र्वासयि॒ष्यसे᳚ || {9.2.4}, {9.1.2.4}, {6.7.18.4} |
15 | स॒मु॒द्रोऽअ॒प्सुमा᳚मृजेविष्ट॒म्भोध॒रुणो᳚दि॒वः | सोमः॑प॒वित्रे᳚ऽअस्म॒युः || {9.2.5}, {9.1.2.5}, {6.7.18.5} |
16 | अचि॑क्रद॒द्वृषा॒हरि᳚र्म॒हान्मि॒त्रोनद॑र्श॒तः | संसूर्ये᳚णरोचते || {9.2.6}, {9.1.2.6}, {6.7.19.1} |
17 | गिर॑स्तऽइन्द॒ऽओज॑सामर्मृ॒ज्यन्ते᳚ऽअप॒स्युवः॑ | याभि॒र्मदा᳚य॒शुम्भ॑से || {9.2.7}, {9.1.2.7}, {6.7.19.2} |
18 | तंत्वा॒मदा᳚य॒घृष्व॑यऽउलोककृ॒त्नुमी᳚महे | तव॒प्रश॑स्तयोम॒हीः || {9.2.8}, {9.1.2.8}, {6.7.19.3} |
19 | अ॒स्मभ्य॑मिन्दविन्द्र॒युर्मध्वः॑पवस्व॒धार॑या | प॒र्जन्यो᳚वृष्टि॒माँऽइ॑व || {9.2.9}, {9.1.2.9}, {6.7.19.4} |
20 | गो॒षाऽइ᳚न्दोनृ॒षाऽअ॑स्यश्व॒सावा᳚ज॒साऽउ॒त | आ॒त्माय॒ज्ञस्य॑पू॒र्व्यः || {9.2.10}, {9.1.2.10}, {6.7.19.5} |
[3] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य आजीगर्तिः शुनःशेपः (कृत्रिमो वैश्वामित्रो देवरातः) ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
21 | ए॒षदे॒वोऽअम॑र्त्यःपर्ण॒वीरि॑वदीयति | अ॒भिद्रोणा᳚न्या॒सद᳚म् || {9.3.1}, {9.1.3.1}, {6.7.20.1} |
22 | ए॒षदे॒वोवि॒पाकृ॒तोऽति॒ह्वरां᳚सिधावति | पव॑मानो॒ऽअदा᳚भ्यः || {9.3.2}, {9.1.3.2}, {6.7.20.2} |
23 | ए॒षदे॒वोवि॑प॒न्युभिः॒पव॑मानऋता॒युभिः॑ | हरि॒र्वाजा᳚यमृज्यते || {9.3.3}, {9.1.3.3}, {6.7.20.3} |
24 | ए॒षविश्वा᳚नि॒वार्या॒शूरो॒यन्नि॑व॒सत्व॑भिः | पव॑मानःसिषासति || {9.3.4}, {9.1.3.4}, {6.7.20.4} |
25 | ए॒षदे॒वोर॑थर्यति॒पव॑मानोदशस्यति | आ॒विष्कृ॑णोतिवग्व॒नुम् || {9.3.5}, {9.1.3.5}, {6.7.20.5} |
26 | ए॒षविप्रै᳚र॒भिष्टु॑तो॒ऽपोदे॒वोविगा᳚हते | दध॒द्रत्ना᳚निदा॒शुषे᳚ || {9.3.6}, {9.1.3.6}, {6.7.21.1} |
27 | ए॒षदिवं॒विधा᳚वतिति॒रोरजां᳚सि॒धार॑या | पव॑मानः॒कनि॑क्रदत् || {9.3.7}, {9.1.3.7}, {6.7.21.2} |
28 | ए॒षदिवं॒व्यास॑रत्ति॒रोरजां॒स्यस्पृ॑तः | पव॑मानःस्वध्व॒रः || {9.3.8}, {9.1.3.8}, {6.7.21.3} |
29 | ए॒षप्र॒त्नेन॒जन्म॑नादे॒वोदे॒वेभ्यः॑सु॒तः | हरिः॑प॒वित्रे᳚ऽअर्षति || {9.3.9}, {9.1.3.9}, {6.7.21.4} |
30 | ए॒षऽउ॒स्यपु॑रुव्र॒तोज॑ज्ञा॒नोज॒नय॒न्निषः॑ | धार॑यापवतेसु॒तः || {9.3.10}, {9.1.3.10}, {6.7.21.5} |
[4] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो हिरण्यस्तूप ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
31 | सना᳚चसोम॒जेषि॑च॒पव॑मान॒महि॒श्रवः॑ | अथा᳚नो॒वस्य॑सस्कृधि || {9.4.1}, {9.1.4.1}, {6.7.22.1} |
32 | सना॒ज्योतिः॒सना॒स्व१॑(अ॒)'र्विश्वा᳚चसोम॒सौभ॑गा | अथा᳚नो॒वस्य॑सस्कृधि || {9.4.2}, {9.1.4.2}, {6.7.22.2} |
33 | सना॒दक्ष॑मु॒तक्रतु॒मप॑सोम॒मृधो᳚जहि | अथा᳚नो॒वस्य॑सस्कृधि || {9.4.3}, {9.1.4.3}, {6.7.22.3} |
34 | पवी᳚तारःपुनी॒तन॒सोम॒मिन्द्रा᳚य॒पात॑वे | अथा᳚नो॒वस्य॑सस्कृधि || {9.4.4}, {9.1.4.4}, {6.7.22.4} |
35 | त्वंसूर्ये᳚न॒ऽआभ॑ज॒तव॒क्रत्वा॒तवो॒तिभिः॑ | अथा᳚नो॒वस्य॑सस्कृधि || {9.4.5}, {9.1.4.5}, {6.7.22.5} |
36 | तव॒क्रत्वा॒तवो॒तिभि॒र्ज्योक्प॑श्येम॒सूर्य᳚म् | अथा᳚नो॒वस्य॑सस्कृधि || {9.4.6}, {9.1.4.6}, {6.7.23.1} |
37 | अ॒भ्य॑र्षस्वायुध॒सोम॑द्वि॒बर्ह॑संर॒यिम् | अथा᳚नो॒वस्य॑सस्कृधि || {9.4.7}, {9.1.4.7}, {6.7.23.2} |
38 | अ॒भ्य१॑(अ॒)र्षान॑पच्युतोर॒यिंस॒मत्सु॑सास॒हिः | अथा᳚नो॒वस्य॑सस्कृधि || {9.4.8}, {9.1.4.8}, {6.7.23.3} |
39 | त्वांय॒ज्ञैर॑वीवृध॒न्पव॑मान॒विध᳚र्मणि | अथा᳚नो॒वस्य॑सस्कृधि || {9.4.9}, {9.1.4.9}, {6.7.23.4} |
40 | र॒यिंन॑श्चि॒त्रम॒श्विन॒मिन्दो᳚वि॒श्वायु॒माभ॑र | अथा᳚नो॒वस्य॑सस्कृधि || {9.4.10}, {9.1.4.10}, {6.7.23.5} |
[5] (१-११) एकादशर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | (१) प्रथमर्च इध्मः समिद्धो वाग्निः, (२) द्वितीयायास्तनूनपात्, (३) तृतीयाया इळः, (४) चतुर्थ्या बर्हिः, (५) पञ्चम्या देवीर्द्वारः, (६) षष्ठ्या उषासानक्ता, (७) सप्तम्या दैव्यौ होतारौ प्रचेतसौ, (८) अष्टम्यास्तिस्रो देव्यः सरस्वतीळाभारत्यः, (९) नवम्यास्त्वष्टा, (१०) दशम्या वनस्पतिः, (११) एकादश्याश्च स्वाहाकृतयो देवताः | (१-७) प्रथमादिसप्तर्षों गायत्री, (८-११) अष्टम्यादिचतसृणाञ्चानष्टप छन्दसी || | |
41 | समि॑द्धोवि॒श्वत॒स्पतिः॒पव॑मानो॒विरा᳚जति | प्री॒णन्वृषा॒कनि॑क्रदत् || {9.5.1}, {9.1.5.1}, {6.7.24.1} |
42 | तनू॒नपा॒त्पव॑मानः॒शृङ्गे॒शिशा᳚नोऽअर्षति | अ॒न्तरि॑क्षेण॒रार॑जत् || {9.5.2}, {9.1.5.2}, {6.7.24.2} |
43 | ई॒ळेन्यः॒पव॑मानोर॒यिर्विरा᳚जतिद्यु॒मान् | मधो॒र्धारा᳚भि॒रोज॑सा || {9.5.3}, {9.1.5.3}, {6.7.24.3} |
44 | ब॒र्हिःप्रा॒चीन॒मोज॑सा॒पव॑मानःस्तृ॒णन्हरिः॑ | दे॒वेषु॑दे॒वऽई᳚यते || {9.5.4}, {9.1.5.4}, {6.7.24.4} |
45 | उदातै᳚र्जिहतेबृ॒हद्द्वारो᳚दे॒वीर्हि॑र॒ण्ययीः᳚ | पव॑मानेन॒सुष्टु॑ताः || {9.5.5}, {9.1.5.5}, {6.7.24.5} |
46 | सु॒शि॒ल्पेबृ॑ह॒तीम॒हीपव॑मानोवृषण्यति | नक्तो॒षासा॒नद॑र्श॒ते || {9.5.6}, {9.1.5.6}, {6.7.25.1} |
47 | उ॒भादे॒वानृ॒चक्ष॑सा॒होता᳚रा॒दैव्या᳚हुवे | पव॑मान॒ऽइन्द्रो॒वृषा᳚ || {9.5.7}, {9.1.5.7}, {6.7.25.2} |
48 | भार॑ती॒पव॑मानस्य॒सर॑स्व॒तीळा᳚म॒ही | इ॒मंनो᳚य॒ज्ञमाग॑मन्ति॒स्रोदे॒वीःसु॒पेश॑सः || {9.5.8}, {9.1.5.8}, {6.7.25.3} |
49 | त्वष्टा᳚रमग्र॒जांगो॒पांपु॑रो॒यावा᳚न॒माहु॑वे | इन्दु॒रिन्द्रो॒वृषा॒हरिः॒पव॑मानःप्र॒जाप॑तिः || {9.5.9}, {9.1.5.9}, {6.7.25.4} |
50 | वन॒स्पतिं᳚पवमान॒मध्वा॒सम᳚ङ्ग्धि॒धार॑या | स॒हस्र॑वल्शं॒हरि॑तं॒भ्राज॑मानंहिर॒ण्यय᳚म् || {9.5.10}, {9.1.5.10}, {6.7.25.5} |
51 | विश्वे᳚देवाः॒स्वाहा᳚कृतिं॒पव॑मान॒स्याग॑त | वा॒युर्बृह॒स्पतिः॒सूर्यो॒ऽग्निरिन्द्रः॑स॒जोष॑सः || {9.5.11}, {9.1.5.11}, {6.7.25.6} |
[6] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
52 | म॒न्द्रया᳚सोम॒धार॑या॒वृषा᳚पवस्वदेव॒युः | अव्यो॒वारे᳚ष्वस्म॒युः || {9.6.1}, {9.1.6.1}, {6.7.26.1} |
53 | अ॒भित्यंमद्यं॒मद॒मिन्द॒विन्द्र॒ऽइति॑क्षर | अ॒भिवा॒जिनो॒ऽअर्व॑तः || {9.6.2}, {9.1.6.2}, {6.7.26.2} |
54 | अ॒भित्यंपू॒र्व्यंमदं᳚सुवा॒नोऽअ॑र्षप॒वित्र॒ऽआ | अ॒भिवाज॑मु॒तश्रवः॑ || {9.6.3}, {9.1.6.3}, {6.7.26.3} |
55 | अनु॑द्र॒प्सास॒ऽइन्द॑व॒ऽआपो॒नप्र॒वता᳚सरन् | पु॒ना॒नाऽइन्द्र॑माशत || {9.6.4}, {9.1.6.4}, {6.7.26.4} |
56 | यमत्य॑मिववा॒जिनं᳚मृ॒जन्ति॒योष॑णो॒दश॑ | वने॒क्रीळ᳚न्त॒मत्य॑विम् || {9.6.5}, {9.1.6.5}, {6.7.26.5} |
57 | तंगोभि॒र्वृष॑णं॒रसं॒मदा᳚यदे॒ववी᳚तये | सु॒तंभरा᳚य॒संसृ॑ज || {9.6.6}, {9.1.6.6}, {6.7.27.1} |
58 | दे॒वोदे॒वाय॒धार॒येन्द्रा᳚यपवतेसु॒तः | पयो॒यद॑स्यपी॒पय॑त् || {9.6.7}, {9.1.6.7}, {6.7.27.2} |
59 | आ॒त्माय॒ज्ञस्य॒रंह्या᳚सुष्वा॒णःप॑वतेसु॒तः | प्र॒त्नंनिपा᳚ति॒काव्य᳚म् || {9.6.8}, {9.1.6.8}, {6.7.27.3} |
60 | ए॒वापु॑ना॒नऽइ᳚न्द्र॒युर्मदं᳚मदिष्ठवी॒तये᳚ | गुहा᳚चिद्दधिषे॒गिरः॑ || {9.6.9}, {9.1.6.9}, {6.7.27.4} |
[7] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
61 | असृ॑ग्र॒मिन्द॑वःप॒थाधर्म᳚न्नृ॒तस्य॑सु॒श्रियः॑ | वि॒दा॒नाऽअ॑स्य॒योज॑नम् || {9.7.1}, {9.1.7.1}, {6.7.28.1} |
62 | प्रधारा॒मध्वो᳚ऽअग्रि॒योम॒हीर॒पोविगा᳚हते | ह॒विर्ह॒विष्षु॒वन्द्यः॑ || {9.7.2}, {9.1.7.2}, {6.7.28.2} |
63 | प्रयु॒जोवा॒चोऽअ॑ग्रि॒योवृषाव॑चक्रद॒द्वने᳚ | सद्मा॒भिस॒त्योऽअ॑ध्व॒रः || {9.7.3}, {9.1.7.3}, {6.7.28.3} |
64 | परि॒यत्काव्या᳚क॒विर्नृ॒म्णावसा᳚नो॒ऽअर्ष॑ति | स्व᳚र्वा॒जीसि॑षासति || {9.7.4}, {9.1.7.4}, {6.7.28.4} |
65 | पव॑मानोऽअ॒भिस्पृधो॒विशो॒राजे᳚वसीदति | यदी᳚मृ॒ण्वन्ति॑वे॒धसः॑ || {9.7.5}, {9.1.7.5}, {6.7.28.5} |
66 | अव्यो॒वारे॒परि॑प्रि॒योहरि॒र्वने᳚षुसीदति | रे॒भोव॑नुष्यतेम॒ती || {9.7.6}, {9.1.7.6}, {6.7.29.1} |
67 | सवा॒युमिन्द्र॑म॒श्विना᳚सा॒कंमदे᳚नगच्छति | रणा॒योऽअ॑स्य॒धर्म॑भिः || {9.7.7}, {9.1.7.7}, {6.7.29.2} |
68 | आमि॒त्रावरु॑णा॒भगं॒मध्वः॑पवन्तऽऊ॒र्मयः॑ | वि॒दा॒नाऽअ॑स्य॒शक्म॑भिः || {9.7.8}, {9.1.7.8}, {6.7.29.3} |
69 | अ॒स्मभ्यं᳚रोदसीर॒यिंमध्वो॒वाज॑स्यसा॒तये᳚ | श्रवो॒वसू᳚नि॒संजि॑तम् || {9.7.9}, {9.1.7.9}, {6.7.29.4} |
[8] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
70 | ए॒तेसोमा᳚ऽअ॒भिप्रि॒यमिन्द्र॑स्य॒काम॑मक्षरन् | वर्ध᳚न्तोऽअस्यवी॒र्य᳚म् || {9.8.1}, {9.1.8.1}, {6.7.30.1} |
71 | पु॒ना॒नास॑श्चमू॒षदो॒गच्छ᳚न्तोवा॒युम॒श्विना᳚ | तेनो᳚धान्तुसु॒वीर्य᳚म् || {9.8.2}, {9.1.8.2}, {6.7.30.2} |
72 | इन्द्र॑स्यसोम॒राध॑सेपुना॒नोहार्दि॑चोदय | ऋ॒तस्य॒योनि॑मा॒सद᳚म् || {9.8.3}, {9.1.8.3}, {6.7.30.3} |
73 | मृ॒जन्ति॑त्वा॒दश॒क्षिपो᳚हि॒न्वन्ति॑स॒प्तधी॒तयः॑ | अनु॒विप्रा᳚ऽअमादिषुः || {9.8.4}, {9.1.8.4}, {6.7.30.4} |
74 | दे॒वेभ्य॑स्त्वा॒मदा᳚य॒कंसृ॑जा॒नमति॑मे॒ष्यः॑ | संगोभि᳚र्वासयामसि || {9.8.5}, {9.1.8.5}, {6.7.30.5} |
75 | पु॒ना॒नःक॒लशे॒ष्वावस्त्रा᳚ण्यरु॒षोहरिः॑ | परि॒गव्या᳚न्यव्यत || {9.8.6}, {9.1.8.6}, {6.7.31.1} |
76 | म॒घोन॒ऽआप॑वस्वनोज॒हिविश्वा॒ऽअप॒द्विषः॑ | इन्दो॒सखा᳚य॒मावि॑श || {9.8.7}, {9.1.8.7}, {6.7.31.2} |
77 | वृ॒ष्टिंदि॒वःपरि॑स्रवद्यु॒म्नंपृ॑थि॒व्याऽअधि॑ | सहो᳚नःसोमपृ॒त्सुधाः᳚ || {9.8.8}, {9.1.8.8}, {6.7.31.3} |
78 | नृ॒चक्ष॑संत्वाव॒यमिन्द्र॑पीतंस्व॒र्विद᳚म् | भ॒क्षी॒महि॑प्र॒जामिष᳚म् || {9.8.9}, {9.1.8.9}, {6.7.31.4} |
[9] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
79 | परि॑प्रि॒यादि॒वःक॒विर्वयां᳚सिन॒प्त्यो᳚र्हि॒तः | सु॒वा॒नोया᳚तिक॒विक्र॑तुः || {9.9.1}, {9.1.9.1}, {6.7.32.1} |
80 | प्रप्र॒क्षया᳚य॒पन्य॑से॒जना᳚य॒जुष्टो᳚ऽअ॒द्रुहे᳚ | वी॒त्य॑र्ष॒चनि॑ष्ठया || {9.9.2}, {9.1.9.2}, {6.7.32.2} |
81 | ससू॒नुर्मा॒तरा॒शुचि॑र्जा॒तोजा॒तेऽअ॑रोचयत् | म॒हान्म॒हीऋ॑ता॒वृधा᳚ || {9.9.3}, {9.1.9.3}, {6.7.32.3} |
82 | सस॒प्तधी॒तिभि॑र्हि॒तोन॒द्यो᳚ऽअजिन्वद॒द्रुहः॑ | याऽएक॒मक्षि॑वावृ॒धुः || {9.9.4}, {9.1.9.4}, {6.7.32.4} |
83 | ताऽअ॒भिसन्त॒मस्तृ॑तंम॒हेयुवा᳚न॒माद॑धुः | इन्दु॑मिन्द्र॒तव᳚व्र॒ते || {9.9.5}, {9.1.9.5}, {6.7.32.5} |
84 | अ॒भिवह्नि॒रम॑र्त्यःस॒प्तप॑श्यति॒वाव॑हिः | क्रिवि॑र्दे॒वीर॑तर्पयत् || {9.9.6}, {9.1.9.6}, {6.7.33.1} |
85 | अवा॒कल्पे᳚षुनःपुम॒स्तमां᳚सिसोम॒योध्या᳚ | तानि॑पुनानजङ्घनः || {9.9.7}, {9.1.9.7}, {6.7.33.2} |
86 | नूनव्य॑से॒नवी᳚यसेसू॒क्ताय॑साधयाप॒थः | प्र॒त्न॒वद्रो᳚चया॒रुचः॑ || {9.9.8}, {9.1.9.8}, {6.7.33.3} |
87 | पव॑मान॒महि॒श्रवो॒गामश्वं᳚रासिवी॒रव॑त् | सना᳚मे॒धांसना॒स्वः॑ || {9.9.9}, {9.1.9.9}, {6.7.33.4} |
[10] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
88 | प्रस्वा॒नासो॒रथा᳚ऽइ॒वार्व᳚न्तो॒नश्र॑व॒स्यवः॑ | सोमा᳚सोरा॒येऽअ॑क्रमुः || {9.10.1}, {9.1.10.1}, {6.7.34.1} |
89 | हि॒न्वा॒नासो॒रथा᳚ऽइवदधन्वि॒रेगभ॑स्त्योः | भरा᳚सःका॒रिणा᳚मिव || {9.10.2}, {9.1.10.2}, {6.7.34.2} |
90 | राजा᳚नो॒नप्रश॑स्तिभिः॒सोमा᳚सो॒गोभि॑रञ्जते | य॒ज्ञोनस॒प्तधा॒तृभिः॑ || {9.10.3}, {9.1.10.3}, {6.7.34.3} |
91 | परि॑सुवा॒नास॒ऽइन्द॑वो॒मदा᳚यब॒र्हणा᳚गि॒रा | सु॒ताऽअ॑र्षन्ति॒धार॑या || {9.10.4}, {9.1.10.4}, {6.7.34.4} |
92 | आ॒पा॒नासो᳚वि॒वस्व॑तो॒जन᳚न्तऽउ॒षसो॒भग᳚म् | सूरा॒ऽअण्वं॒वित᳚न्वते || {9.10.5}, {9.1.10.5}, {6.7.34.5} |
93 | अप॒द्वारा᳚मती॒नांप्र॒त्नाऋ᳚ण्वन्तिका॒रवः॑ | वृष्णो॒हर॑सऽआ॒यवः॑ || {9.10.6}, {9.1.10.6}, {6.7.35.1} |
94 | स॒मी॒ची॒नास॑ऽआसते॒होता᳚रःस॒प्तजा᳚मयः | प॒दमेक॑स्य॒पिप्र॑तः || {9.10.7}, {9.1.10.7}, {6.7.35.2} |
95 | नाभा॒नाभिं᳚न॒ऽआद॑दे॒चक्षु॑श्चि॒त्सूर्ये॒सचा᳚ | क॒वेरप॑त्य॒मादु॑हे || {9.10.8}, {9.1.10.8}, {6.7.35.3} |
96 | अ॒भिप्रि॒यादि॒वस्प॒दम॑ध्व॒र्युभि॒र्गुहा᳚हि॒तम् | सूरः॑पश्यति॒चक्ष॑सा || {9.10.9}, {9.1.10.9}, {6.7.35.4} |
[11] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
97 | उपा᳚स्मैगायतानरः॒पव॑माना॒येन्द॑वे | अ॒भिदे॒वाँऽइय॑क्षते || {9.11.1}, {9.1.11.1}, {6.7.36.1} |
98 | अ॒भिते॒मधु॑ना॒पयोऽथ᳚र्वाणोऽअशिश्रयुः | दे॒वंदे॒वाय॑देव॒यु || {9.11.2}, {9.1.11.2}, {6.7.36.2} |
99 | सनः॑पवस्व॒शंगवे॒शंजना᳚य॒शमर्व॑ते | शंरा᳚ज॒न्नोष॑धीभ्यः || {9.11.3}, {9.1.11.3}, {6.7.36.3} |
100 | ब॒भ्रवे॒नुस्वत॑वसेऽरु॒णाय॑दिवि॒स्पृशे᳚ | सोमा᳚यगा॒थम॑र्चत || {9.11.4}, {9.1.11.4}, {6.7.36.4} |
101 | हस्त॑च्युतेभि॒रद्रि॑भिःसु॒तंसोमं᳚पुनीतन | मधा॒वाधा᳚वता॒मधु॑ || {9.11.5}, {9.1.11.5}, {6.7.36.5} |
102 | नम॒सेदुप॑सीदतद॒ध्नेद॒भिश्री᳚णीतन | इन्दु॒मिन्द्रे᳚दधातन || {9.11.6}, {9.1.11.6}, {6.7.37.1} |
103 | अ॒मि॒त्र॒हाविच॑र्षणिः॒पव॑स्वसोम॒शंगवे᳚ | दे॒वेभ्यो᳚ऽअनुकाम॒कृत् || {9.11.7}, {9.1.11.7}, {6.7.37.2} |
104 | इन्द्रा᳚यसोम॒पात॑वे॒मदा᳚य॒परि॑षिच्यसे | म॒न॒श्चिन्मन॑स॒स्पतिः॑ || {9.11.8}, {9.1.11.8}, {6.7.37.3} |
105 | पव॑मानसु॒वीर्यं᳚र॒यिंसो᳚मरिरीहिनः | इन्द॒विन्द्रे᳚णनोयु॒जा || {9.11.9}, {9.1.11.9}, {6.7.37.4} |
[12] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
106 | सोमा᳚ऽअसृग्र॒मिन्द॑वःसु॒ताऋ॒तस्य॒साद॑ने | इन्द्रा᳚य॒मधु॑मत्तमाः || {9.12.1}, {9.1.12.1}, {6.7.38.1} |
107 | अ॒भिविप्रा᳚ऽअनूषत॒गावो᳚व॒त्संनमा॒तरः॑ | इन्द्रं॒सोम॑स्यपी॒तये᳚ || {9.12.2}, {9.1.12.2}, {6.7.38.2} |
108 | म॒द॒च्युत्क्षे᳚ति॒साद॑ने॒सिन्धो᳚रू॒र्मावि॑प॒श्चित् | सोमो᳚गौ॒रीऽअधि॑श्रि॒तः || {9.12.3}, {9.1.12.3}, {6.7.38.3} |
109 | दि॒वोनाभा᳚विचक्ष॒णोऽव्यो॒वारे᳚महीयते | सोमो॒यःसु॒क्रतुः॑क॒विः || {9.12.4}, {9.1.12.4}, {6.7.38.4} |
110 | यःसोमः॑क॒लशे॒ष्वाँऽअ॒न्तःप॒वित्र॒ऽआहि॑तः | तमिन्दुः॒परि॑षस्वजे || {9.12.5}, {9.1.12.5}, {6.7.38.5} |
111 | प्रवाच॒मिन्दु॑रिष्यतिसमु॒द्रस्याधि॑वि॒ष्टपि॑ | जिन्व॒न्कोशं᳚मधु॒श्चुत᳚म् || {9.12.6}, {9.1.12.6}, {6.7.39.1} |
112 | नित्य॑स्तोत्रो॒वन॒स्पति॑र्धी॒नाम॒न्तःस॑ब॒र्दुघः॑ | हि॒न्वा॒नोमानु॑षायु॒गा || {9.12.7}, {9.1.12.7}, {6.7.39.2} |
113 | अ॒भिप्रि॒यादि॒वस्प॒दासोमो᳚हिन्वा॒नोऽअ॑र्षति | विप्र॑स्य॒धार॑याक॒विः || {9.12.8}, {9.1.12.8}, {6.7.39.3} |
114 | आप॑वमानधारयर॒यिंस॒हस्र॑वर्चसम् | अ॒स्मेऽइ᳚न्दोस्वा॒भुव᳚म् || {9.12.9}, {9.1.12.9}, {6.7.39.4} |
[13] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
115 | सोमः॑पुना॒नोऽअ॑र्षतिस॒हस्र॑धारो॒ऽअत्य॑विः | वा॒योरिन्द्र॑स्यनिष्कृ॒तम् || {9.13.1}, {9.1.13.1}, {6.8.1.1} |
116 | पव॑मानमवस्यवो॒विप्र॑म॒भिप्रगा᳚यत | सु॒ष्वा॒णंदे॒ववी᳚तये || {9.13.2}, {9.1.13.2}, {6.8.1.2} |
117 | पव᳚न्ते॒वाज॑सातये॒सोमाः᳚स॒हस्र॑पाजसः | गृ॒णा॒नादे॒ववी᳚तये || {9.13.3}, {9.1.13.3}, {6.8.1.3} |
118 | उ॒तनो॒वाज॑सातये॒पव॑स्वबृह॒तीरिषः॑ | द्यु॒मदि᳚न्दोसु॒वीर्य᳚म् || {9.13.4}, {9.1.13.4}, {6.8.1.4} |
119 | तेनः॑सह॒स्रिणं᳚र॒यिंपव᳚न्ता॒मासु॒वीर्य᳚म् | सु॒वा॒नादे॒वास॒ऽइन्द॑वः || {9.13.5}, {9.1.13.5}, {6.8.1.5} |
120 | अत्या᳚हिया॒नानहे॒तृभि॒रसृ॑ग्रं॒वाज॑सातये | विवार॒मव्य॑मा॒शवः॑ || {9.13.6}, {9.1.13.6}, {6.8.2.1} |
121 | वा॒श्राऽअ॑र्ष॒न्तीन्द॑वो॒ऽभिव॒त्संनधे॒नवः॑ | द॒ध॒न्वि॒रेगभ॑स्त्योः || {9.13.7}, {9.1.13.7}, {6.8.2.2} |
122 | जुष्ट॒ऽइन्द्रा᳚यमत्स॒रःपव॑मान॒कनि॑क्रदत् | विश्वा॒ऽअप॒द्विषो᳚जहि || {9.13.8}, {9.1.13.8}, {6.8.2.3} |
123 | अ॒प॒घ्नन्तो॒ऽअरा᳚व्णः॒पव॑मानाःस्व॒र्दृशः॑ | योना᳚वृ॒तस्य॑सीदत || {9.13.9}, {9.1.13.9}, {6.8.2.4} |
[14] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
124 | परि॒प्रासि॑ष्यदत्क॒विःसिन्धो᳚रू॒र्मावधि॑श्रि॒तः | का॒रंबिभ्र॑त्पुरु॒स्पृह᳚म् || {9.14.1}, {9.1.14.1}, {6.8.3.1} |
125 | गि॒रायदी॒सब᳚न्धवः॒पञ्च॒व्राता᳚ऽअप॒स्यवः॑ | प॒रि॒ष्कृ॒ण्वन्ति॑धर्ण॒सिम् || {9.14.2}, {9.1.14.2}, {6.8.3.2} |
126 | आद॑स्यशु॒ष्मिणो॒रसे॒विश्वे᳚दे॒वाऽअ॑मत्सत | यदी॒गोभि᳚र्वसा॒यते᳚ || {9.14.3}, {9.1.14.3}, {6.8.3.3} |
127 | नि॒रि॒णा॒नोविधा᳚वति॒जह॒च्छर्या᳚णि॒तान्वा᳚ | अत्रा॒संजि॑घ्नतेयु॒जा || {9.14.4}, {9.1.14.4}, {6.8.3.4} |
128 | न॒प्तीभि॒र्योवि॒वस्व॑तःशु॒भ्रोनमा᳚मृ॒जेयुवा᳚ | गाःकृ᳚ण्वा॒नोननि॒र्णिज᳚म् || {9.14.5}, {9.1.14.5}, {6.8.3.5} |
129 | अति॑श्रि॒तीति॑र॒श्चता᳚ग॒व्याजि॑गा॒त्यण्व्या᳚ | व॒ग्नुमि॑यर्ति॒यंवि॒दे || {9.14.6}, {9.1.14.6}, {6.8.4.1} |
130 | अ॒भिक्षिपः॒सम॑ग्मतम॒र्जय᳚न्तीरि॒षस्पति᳚म् | पृ॒ष्ठागृ॑भ्णतवा॒जिनः॑ || {9.14.7}, {9.1.14.7}, {6.8.4.2} |
131 | परि॑दि॒व्यानि॒मर्मृ॑श॒द्विश्वा᳚निसोम॒पार्थि॑वा | वसू᳚नियाह्यस्म॒युः || {9.14.8}, {9.1.14.8}, {6.8.4.3} |
[15] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
132 | ए॒षधि॒याया॒त्यण्व्या॒शूरो॒रथे᳚भिरा॒शुभिः॑ | गच्छ॒न्निन्द्र॑स्यनिष्कृ॒तम् || {9.15.1}, {9.1.15.1}, {6.8.5.1} |
133 | ए॒षपु॒रूधि॑यायतेबृह॒तेदे॒वता᳚तये | यत्रा॒मृता᳚स॒ऽआस॑ते || {9.15.2}, {9.1.15.2}, {6.8.5.2} |
134 | ए॒षहि॒तोविनी᳚यते॒ऽन्तःशु॒भ्राव॑ताप॒था | यदी᳚तु॒ञ्जन्ति॒भूर्ण॑यः || {9.15.3}, {9.1.15.3}, {6.8.5.3} |
135 | ए॒षशृङ्गा᳚णि॒दोधु॑व॒च्छिशी᳚तेयू॒थ्यो॒३॑(ओ॒)वृषा᳚ | नृ॒म्णादधा᳚न॒ऽओज॑सा || {9.15.4}, {9.1.15.4}, {6.8.5.4} |
136 | ए॒षरु॒क्मिभि॑रीयतेवा॒जीशु॒भ्रेभि॑रं॒शुभिः॑ | पतिः॒सिन्धू᳚नां॒भव॑न् || {9.15.5}, {9.1.15.5}, {6.8.5.5} |
137 | ए॒षवसू᳚निपिब्द॒नापरु॑षाययि॒वाँऽअति॑ | अव॒शादे᳚षुगच्छति || {9.15.6}, {9.1.15.6}, {6.8.5.6} |
138 | ए॒तंमृ॑जन्ति॒मर्ज्य॒मुप॒द्रोणे᳚ष्वा॒यवः॑ | प्र॒च॒क्रा॒णंम॒हीरिषः॑ || {9.15.7}, {9.1.15.7}, {6.8.5.7} |
139 | ए॒तमु॒त्यंदश॒क्षिपो᳚मृ॒जन्ति॑स॒प्तधी॒तयः॑ | स्वा॒यु॒धंम॒दिन्त॑मम् || {9.15.8}, {9.1.15.8}, {6.8.5.8} |
[16] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
140 | प्रते᳚सो॒तार॑ऽओ॒ण्यो॒३॑(ओ॒)रसं॒मदा᳚य॒घृष्व॑ये | सर्गो॒नत॒क्त्येत॑शः || {9.16.1}, {9.1.16.1}, {6.8.6.1} |
141 | क्रत्वा॒दक्ष॑स्यर॒थ्य॑म॒पोवसा᳚न॒मन्ध॑सा | गो॒षामण्वे᳚षुसश्चिम || {9.16.2}, {9.1.16.2}, {6.8.6.2} |
142 | अन॑प्तम॒प्सुदु॒ष्टरं॒सोमं᳚प॒वित्र॒ऽआसृ॑ज | पु॒नी॒हीन्द्रा᳚य॒पात॑वे || {9.16.3}, {9.1.16.3}, {6.8.6.3} |
143 | प्रपु॑ना॒नस्य॒चेत॑सा॒सोमः॑प॒वित्रे᳚ऽअर्षति | क्रत्वा᳚स॒धस्थ॒मास॑दत् || {9.16.4}, {9.1.16.4}, {6.8.6.4} |
144 | प्रत्वा॒नमो᳚भि॒रिन्द॑व॒ऽइन्द्र॒सोमा᳚ऽअसृक्षत | म॒हेभरा᳚यका॒रिणः॑ || {9.16.5}, {9.1.16.5}, {6.8.6.5} |
145 | पु॒ना॒नोरू॒पेऽअ॒व्यये॒विश्वा॒ऽअर्ष᳚न्न॒भिश्रियः॑ | शूरो॒नगोषु॑तिष्ठति || {9.16.6}, {9.1.16.6}, {6.8.6.6} |
146 | दि॒वोनसानु॑पि॒प्युषी॒धारा᳚सु॒तस्य॑वे॒धसः॑ | वृथा᳚प॒वित्रे᳚ऽअर्षति || {9.16.7}, {9.1.16.7}, {6.8.6.7} |
147 | त्वंसो᳚मविप॒श्चितं॒तना᳚पुना॒नऽआ॒युषु॑ | अव्यो॒वारं॒विधा᳚वसि || {9.16.8}, {9.1.16.8}, {6.8.6.8} |
[17] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
148 | प्रनि॒म्नेने᳚व॒सिन्ध॑वो॒घ्नन्तो᳚वृ॒त्राणि॒भूर्ण॑यः | सोमा᳚ऽअसृग्रमा॒शवः॑ || {9.17.1}, {9.1.17.1}, {6.8.7.1} |
149 | अ॒भिसु॑वा॒नास॒ऽइन्द॑वोवृ॒ष्टयः॑पृथि॒वीमि॑व | इन्द्रं॒सोमा᳚सोऽअक्षरन् || {9.17.2}, {9.1.17.2}, {6.8.7.2} |
150 | अत्यू᳚र्मिर्मत्स॒रोमदः॒सोमः॑प॒वित्रे᳚ऽअर्षति | वि॒घ्नन्रक्षां᳚सिदेव॒युः || {9.17.3}, {9.1.17.3}, {6.8.7.3} |
151 | आक॒लशे᳚षुधावतिप॒वित्रे॒परि॑षिच्यते | उ॒क्थैर्य॒ज्ञेषु॑वर्धते || {9.17.4}, {9.1.17.4}, {6.8.7.4} |
152 | अति॒त्रीसो᳚मरोच॒नारोह॒न्नभ्रा᳚जसे॒दिव᳚म् | इ॒ष्णन्त्सूर्यं॒नचो᳚दयः || {9.17.5}, {9.1.17.5}, {6.8.7.5} |
153 | अ॒भिविप्रा᳚ऽअनूषतमू॒र्धन्य॒ज्ञस्य॑का॒रवः॑ | दधा᳚ना॒श्चक्ष॑सिप्रि॒यम् || {9.17.6}, {9.1.17.6}, {6.8.7.6} |
154 | तमु॑त्वावा॒जिनं॒नरो᳚धी॒भिर्विप्रा᳚ऽअव॒स्यवः॑ | मृ॒जन्ति॑दे॒वता᳚तये || {9.17.7}, {9.1.17.7}, {6.8.7.7} |
155 | मधो॒र्धारा॒मनु॑क्षरती॒व्रःस॒धस्थ॒मास॑दः | चारु॑र्ऋ॒ताय॑पी॒तये᳚ || {9.17.8}, {9.1.17.8}, {6.8.7.8} |
[18] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
156 | परि॑सुवा॒नोगि॑रि॒ष्ठाःप॒वित्रे॒सोमो᳚ऽअक्षाः | मदे᳚षुसर्व॒धाऽअ॑सि || {9.18.1}, {9.1.18.1}, {6.8.8.1} |
157 | त्वंविप्र॒स्त्वंक॒विर्मधु॒प्रजा॒तमन्ध॑सः | मदे᳚षुसर्व॒धाऽअ॑सि || {9.18.2}, {9.1.18.2}, {6.8.8.2} |
158 | तव॒विश्वे᳚स॒जोष॑सोदे॒वासः॑पी॒तिमा᳚शत | मदे᳚षुसर्व॒धाऽअ॑सि || {9.18.3}, {9.1.18.3}, {6.8.8.3} |
159 | आयोविश्वा᳚नि॒वार्या॒वसू᳚नि॒हस्त॑योर्द॒धे | मदे᳚षुसर्व॒धाऽअ॑सि || {9.18.4}, {9.1.18.4}, {6.8.8.4} |
160 | यऽइ॒मेरोद॑सीम॒हीसंमा॒तरे᳚व॒दोह॑ते | मदे᳚षुसर्व॒धाऽअ॑सि || {9.18.5}, {9.1.18.5}, {6.8.8.5} |
161 | परि॒योरोद॑सीऽउ॒भेस॒द्योवाजे᳚भि॒रर्ष॑ति | मदे᳚षुसर्व॒धाऽअ॑सि || {9.18.6}, {9.1.18.6}, {6.8.8.6} |
162 | सशु॒ष्मीक॒लशे॒ष्वापु॑ना॒नोऽअ॑चिक्रदत् | मदे᳚षुसर्व॒धाऽअ॑सि || {9.18.7}, {9.1.18.7}, {6.8.8.7} |
[19] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
163 | यत्सो᳚मचि॒त्रमु॒क्थ्यं᳚दि॒व्यंपार्थि॑वं॒वसु॑ | तन्नः॑पुना॒नऽआभ॑र || {9.19.1}, {9.1.19.1}, {6.8.9.1} |
164 | यु॒वंहिस्थःस्व॑र्पती॒ऽइन्द्र॑श्चसोम॒गोप॑ती | ई॒शा॒नापि॑प्यतं॒धियः॑ || {9.19.2}, {9.1.19.2}, {6.8.9.2} |
165 | वृषा᳚पुना॒नऽआ॒युषु॑स्त॒नय॒न्नधि॑ब॒र्हिषि॑ | हरिः॒सन्योनि॒मास॑दत् || {9.19.3}, {9.1.19.3}, {6.8.9.3} |
166 | अवा᳚वशन्तधी॒तयो᳚वृष॒भस्याधि॒रेत॑सि | सू॒नोर्व॒त्सस्य॑मा॒तरः॑ || {9.19.4}, {9.1.19.4}, {6.8.9.4} |
167 | कु॒विद्वृ॑ष॒ण्यन्ती᳚भ्यःपुना॒नोगर्भ॑मा॒दध॑त् | याःशु॒क्रंदु॑ह॒तेपयः॑ || {9.19.5}, {9.1.19.5}, {6.8.9.5} |
168 | उप॑शिक्षापत॒स्थुषो᳚भि॒यस॒माधे᳚हि॒शत्रु॑षु | पव॑मानवि॒दार॒यिम् || {9.19.6}, {9.1.19.6}, {6.8.9.6} |
169 | निशत्रोः᳚सोम॒वृष्ण्यं॒निशुष्मं॒निवय॑स्तिर | दू॒रेवा᳚स॒तोऽअन्ति॑वा || {9.19.7}, {9.1.19.7}, {6.8.9.7} |
[20] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
170 | प्रक॒विर्दे॒ववी᳚त॒येऽव्यो॒वारे᳚भिरर्षति | सा॒ह्वान्विश्वा᳚ऽअ॒भिस्पृधः॑ || {9.20.1}, {9.1.20.1}, {6.8.10.1} |
171 | सहिष्मा᳚जरि॒तृभ्य॒ऽआवाजं॒गोम᳚न्त॒मिन्व॑ति | पव॑मानःसह॒स्रिण᳚म् || {9.20.2}, {9.1.20.2}, {6.8.10.2} |
172 | परि॒विश्वा᳚नि॒चेत॑सामृ॒शसे॒पव॑सेम॒ती | सनः॑सोम॒श्रवो᳚विदः || {9.20.3}, {9.1.20.3}, {6.8.10.3} |
173 | अ॒भ्य॑र्षबृ॒हद्यशो᳚म॒घव॑द्भ्योध्रु॒वंर॒यिम् | इषं᳚स्तो॒तृभ्य॒ऽआभ॑र || {9.20.4}, {9.1.20.4}, {6.8.10.4} |
174 | त्वंराजे᳚वसुव्र॒तोगिरः॑सो॒मावि॑वेशिथ | पु॒ना॒नोव᳚ह्नेऽअद्भुत || {9.20.5}, {9.1.20.5}, {6.8.10.5} |
175 | सवह्नि॑र॒प्सुदु॒ष्टरो᳚मृ॒ज्यमा᳚नो॒गभ॑स्त्योः | सोम॑श्च॒मूषु॑सीदति || {9.20.6}, {9.1.20.6}, {6.8.10.6} |
176 | क्री॒ळुर्म॒खोनमं᳚ह॒युःप॒वित्रं᳚सोमगच्छसि | दध॑त्स्तो॒त्रेसु॒वीर्य᳚म् || {9.20.7}, {9.1.20.7}, {6.8.10.7} |
[21] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
177 | ए॒तेधा᳚व॒न्तीन्द॑वः॒सोमा॒ऽइन्द्रा᳚य॒घृष्व॑यः | म॒त्स॒रासः॑स्व॒र्विदः॑ || {9.21.1}, {9.1.21.1}, {6.8.11.1} |
178 | प्र॒वृ॒ण्वन्तो᳚ऽअभि॒युजः॒सुष्व॑येवरिवो॒विदः॑ | स्व॒यंस्तो॒त्रेव॑य॒स्कृतः॑ || {9.21.2}, {9.1.21.2}, {6.8.11.2} |
179 | वृथा॒क्रीळ᳚न्त॒ऽइन्द॑वःस॒धस्थ॑म॒भ्येक॒मित् | सिन्धो᳚रू॒र्माव्य॑क्षरन् || {9.21.3}, {9.1.21.3}, {6.8.11.3} |
180 | ए॒तेविश्वा᳚नि॒वार्या॒पव॑मानासऽआशत | हि॒तानसप्त॑यो॒रथे᳚ || {9.21.4}, {9.1.21.4}, {6.8.11.4} |
181 | आस्मि᳚न्पि॒शङ्ग॑मिन्दवो॒दधा᳚तावे॒नमा॒दिशे᳚ | योऽअ॒स्मभ्य॒मरा᳚वा || {9.21.5}, {9.1.21.5}, {6.8.11.5} |
182 | ऋ॒भुर्नरथ्यं॒नवं॒दधा᳚ता॒केत॑मा॒दिशे᳚ | शु॒क्राःप॑वध्व॒मर्ण॑सा || {9.21.6}, {9.1.21.6}, {6.8.11.6} |
183 | ए॒तऽउ॒त्येऽअ॑वीवश॒न्काष्ठां᳚वा॒जिनो᳚ऽअक्रत | स॒तःप्रासा᳚विषुर्म॒तिम् || {9.21.7}, {9.1.21.7}, {6.8.11.7} |
[22] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
184 | ए॒तेसोमा᳚सऽआ॒शवो॒रथा᳚ऽइव॒प्रवा॒जिनः॑ | सर्गाः᳚सृ॒ष्टाऽअ॑हेषत || {9.22.1}, {9.1.22.1}, {6.8.12.1} |
185 | ए॒तेवाता᳚ऽइवो॒रवः॑प॒र्जन्य॑स्येववृ॒ष्टयः॑ | अ॒ग्नेरि॑वभ्र॒मावृथा᳚ || {9.22.2}, {9.1.22.2}, {6.8.12.2} |
186 | ए॒तेपू॒तावि॑प॒श्चितः॒सोमा᳚सो॒दध्या᳚शिरः | वि॒पाव्या᳚नशु॒र्धियः॑ || {9.22.3}, {9.1.22.3}, {6.8.12.3} |
187 | ए॒तेमृ॒ष्टाऽअम॑र्त्याःससृ॒वांसो॒नश॑श्रमुः | इय॑क्षन्तःप॒थोरजः॑ || {9.22.4}, {9.1.22.4}, {6.8.12.4} |
188 | ए॒तेपृ॒ष्ठानि॒रोद॑सोर्विप्र॒यन्तो॒व्या᳚नशुः | उ॒तेदमु॑त्त॒मंरजः॑ || {9.22.5}, {9.1.22.5}, {6.8.12.5} |
189 | तन्तुं᳚तन्वा॒नमु॑त्त॒ममनु॑प्र॒वत॑ऽआशत | उ॒तेदमु॑त्त॒माय्य᳚म् || {9.22.6}, {9.1.22.6}, {6.8.12.6} |
190 | त्वंसो᳚मप॒णिभ्य॒ऽआवसु॒गव्या᳚निधारयः | त॒तंतन्तु॑मचिक्रदः || {9.22.7}, {9.1.22.7}, {6.8.12.7} |
[23] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
191 | सोमा᳚ऽअसृग्रमा॒शवो॒मधो॒र्मद॑स्य॒धार॑या | अ॒भिविश्वा᳚नि॒काव्या᳚ || {9.23.1}, {9.1.23.1}, {6.8.13.1} |
192 | अनु॑प्र॒त्नास॑ऽआ॒यवः॑प॒दंनवी᳚योऽअक्रमुः | रु॒चेज॑नन्त॒सूर्य᳚म् || {9.23.2}, {9.1.23.2}, {6.8.13.2} |
193 | आप॑वमाननोभरा॒र्योऽअदा᳚शुषो॒गय᳚म् | कृ॒धिप्र॒जाव॑ती॒रिषः॑ || {9.23.3}, {9.1.23.3}, {6.8.13.3} |
194 | अ॒भिसोमा᳚सऽआ॒यवः॒पव᳚न्ते॒मद्यं॒मद᳚म् | अ॒भिकोशं᳚मधु॒श्चुत᳚म् || {9.23.4}, {9.1.23.4}, {6.8.13.4} |
195 | सोमो᳚ऽअर्षतिधर्ण॒सिर्दधा᳚नऽइन्द्रि॒यंरस᳚म् | सु॒वीरो᳚ऽअभिशस्ति॒पाः || {9.23.5}, {9.1.23.5}, {6.8.13.5} |
196 | इन्द्रा᳚यसोमपवसेदे॒वेभ्यः॑सध॒माद्यः॑ | इन्दो॒वाजं᳚सिषाससि || {9.23.6}, {9.1.23.6}, {6.8.13.6} |
197 | अ॒स्यपी॒त्वामदा᳚ना॒मिन्द्रो᳚वृ॒त्राण्य॑प्र॒ति | ज॒घान॑ज॒घन॑च्च॒नु || {9.23.7}, {9.1.23.7}, {6.8.13.7} |
[24] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काश्यपोऽसितो देवलो वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
198 | प्रसोमा᳚सोऽअधन्विषुः॒पव॑मानास॒ऽइन्द॑वः | श्री॒णा॒नाऽअ॒प्सुमृ᳚ञ्जत || {9.24.1}, {9.1.24.1}, {6.8.14.1} |
199 | अ॒भिगावो᳚ऽअधन्विषु॒रापो॒नप्र॒वता᳚य॒तीः | पु॒ना॒नाऽइन्द्र॑माशत || {9.24.2}, {9.1.24.2}, {6.8.14.2} |
200 | प्रप॑वमानधन्वसि॒सोमेन्द्रा᳚य॒पात॑वे | नृभि᳚र्य॒तोविनी᳚यसे || {9.24.3}, {9.1.24.3}, {6.8.14.3} |
201 | त्वंसो᳚मनृ॒माद॑नः॒पव॑स्वचर्षणी॒सहे᳚ | सस्नि॒र्योऽअ॑नु॒माद्यः॑ || {9.24.4}, {9.1.24.4}, {6.8.14.4} |
202 | इन्दो॒यदद्रि॑भिःसु॒तःप॒वित्रं᳚परि॒धाव॑सि | अर॒मिन्द्र॑स्य॒धाम्ने᳚ || {9.24.5}, {9.1.24.5}, {6.8.14.5} |
203 | पव॑स्ववृत्रहन्तमो॒क्थेभि॑रनु॒माद्यः॑ | शुचिः॑पाव॒कोऽअद्भु॑तः || {9.24.6}, {9.1.24.6}, {6.8.14.6} |
204 | शुचिः॑पाव॒कऽउ॑च्यते॒सोमः॑सु॒तस्य॒मध्वः॑ | दे॒वा॒वीर॑घशंस॒हा || {9.24.7}, {9.1.24.7}, {6.8.14.7} |
[25] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्यागस्त्यो दृ हच्युत गृषिः पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
205 | पव॑स्वदक्ष॒साध॑नोदे॒वेभ्यः॑पी॒तये᳚हरे | म॒रुद्भ्यो᳚वा॒यवे॒मदः॑ || {9.25.1}, {9.2.1.1}, {6.8.15.1} |
206 | पव॑मानधि॒याहि॒तो॒३॑(ओ॒)ऽभियोनिं॒कनि॑क्रदत् | धर्म॑णावा॒युमावि॑श || {9.25.2}, {9.2.1.2}, {6.8.15.2} |
207 | संदे॒वैःशो᳚भते॒वृषा᳚क॒विर्योना॒वधि॑प्रि॒यः | वृ॒त्र॒हादे᳚व॒वीत॑मः || {9.25.3}, {9.2.1.3}, {6.8.15.3} |
208 | विश्वा᳚रू॒पाण्या᳚वि॒शन्पु॑ना॒नोया᳚तिहर्य॒तः | यत्रा॒मृता᳚स॒ऽआस॑ते || {9.25.4}, {9.2.1.4}, {6.8.15.4} |
209 | अ॒रु॒षोज॒नय॒न्गिरः॒सोमः॑पवतऽआयु॒षक् | इन्द्रं॒गच्छ᳚न्क॒विक्र॑तुः || {9.25.5}, {9.2.1.5}, {6.8.15.5} |
210 | आप॑वस्वमदिन्तमप॒वित्रं॒धार॑याकवे | अ॒र्कस्य॒योनि॑मा॒सद᳚म् || {9.25.6}, {9.2.1.6}, {6.8.15.6} |
[26] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य दार्हच्युत इध्मवाह ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
211 | तम॑मृक्षन्तवा॒जिन॑मु॒पस्थे॒ऽअदि॑ते॒रधि॑ | विप्रा᳚सो॒ऽअण्व्या᳚धि॒या || {9.26.1}, {9.2.2.1}, {6.8.16.1} |
212 | तंगावो᳚ऽअ॒भ्य॑नूषतस॒हस्र॑धार॒मक्षि॑तम् | इन्दुं᳚ध॒र्तार॒मादि॒वः || {9.26.2}, {9.2.2.2}, {6.8.16.2} |
213 | तंवे॒धांमे॒धया᳚ह्य॒न्पव॑मान॒मधि॒द्यवि॑ | ध॒र्ण॒सिंभूरि॑धायसम् || {9.26.3}, {9.2.2.3}, {6.8.16.3} |
214 | तम॑ह्यन्भु॒रिजो᳚र्धि॒यासं॒वसा᳚नंवि॒वस्व॑तः | पतिं᳚वा॒चोऽअदा᳚भ्यम् || {9.26.4}, {9.2.2.4}, {6.8.16.4} |
215 | तंसाना॒वधि॑जा॒मयो॒हरिं᳚हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः | ह॒र्य॒तंभूरि॑चक्षसम् || {9.26.5}, {9.2.2.5}, {6.8.16.5} |
216 | तंत्वा᳚हिन्वन्तिवे॒धसः॒पव॑मानगिरा॒वृध᳚म् | इन्द॒विन्द्रा᳚यमत्स॒रम् || {9.26.6}, {9.2.2.6}, {6.8.16.6} |
[27] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो नृमधे ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
217 | ए॒षक॒विर॒भिष्टु॑तःप॒वित्रे॒ऽअधि॑तोशते | पु॒ना॒नोघ्नन्नप॒स्रिधः॑ || {9.27.1}, {9.2.3.1}, {6.8.17.1} |
218 | ए॒षऽइन्द्रा᳚यवा॒यवे᳚स्व॒र्जित्परि॑षिच्यते | प॒वित्रे᳚दक्ष॒साध॑नः || {9.27.2}, {9.2.3.2}, {6.8.17.2} |
219 | ए॒षनृभि॒र्विनी᳚यतेदि॒वोमू॒र्धावृषा᳚सु॒तः | सोमो॒वने᳚षुविश्व॒वित् || {9.27.3}, {9.2.3.3}, {6.8.17.3} |
220 | ए॒षग॒व्युर॑चिक्रद॒त्पव॑मानोहिरण्य॒युः | इन्दुः॑सत्रा॒जिदस्तृ॑तः || {9.27.4}, {9.2.3.4}, {6.8.17.4} |
221 | ए॒षसूर्ये᳚णहासते॒पव॑मानो॒ऽअधि॒द्यवि॑ | प॒वित्रे᳚मत्स॒रोमदः॑ || {9.27.5}, {9.2.3.5}, {6.8.17.5} |
222 | ए॒षशु॒ष्म्य॑सिष्यदद॒न्तरि॑क्षे॒वृषा॒हरिः॑ | पु॒ना॒नऽइन्दु॒रिन्द्र॒मा || {9.27.6}, {9.2.3.6}, {6.8.17.6} |
[28] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः प्रियमेध ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
223 | ए॒षवा॒जीहि॒तोनृभि᳚र्विश्व॒विन्मन॑स॒स्पतिः॑ | अव्यो॒वारं॒विधा᳚वति || {9.28.1}, {9.2.4.1}, {6.8.18.1} |
224 | ए॒षप॒वित्रे᳚ऽअक्षर॒त्सोमो᳚दे॒वेभ्यः॑सु॒तः | विश्वा॒धामा᳚न्यावि॒शन् || {9.28.2}, {9.2.4.2}, {6.8.18.2} |
225 | ए॒षदे॒वःशु॑भाय॒तेऽधि॒योना॒वम॑र्त्यः | वृ॒त्र॒हादे᳚व॒वीत॑मः || {9.28.3}, {9.2.4.3}, {6.8.18.3} |
226 | ए॒षवृषा॒कनि॑क्रदद्द॒शभि॑र्जा॒मिभि᳚र्य॒तः | अ॒भिद्रोणा᳚निधावति || {9.28.4}, {9.2.4.4}, {6.8.18.4} |
227 | ए॒षसूर्य॑मरोचय॒त्पव॑मानो॒विच॑र्षणिः | विश्वा॒धामा᳚निविश्व॒वित् || {9.28.5}, {9.2.4.5}, {6.8.18.5} |
228 | ए॒षशु॒ष्म्यदा᳚भ्यः॒सोमः॑पुना॒नोऽअ॑र्षति | दे॒वा॒वीर॑घशंस॒हा || {9.28.6}, {9.2.4.6}, {6.8.18.6} |
[29] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो नृमधे ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
229 | प्रास्य॒धारा᳚ऽअक्षर॒न्वृष्णः॑सु॒तस्यौज॑सा | दे॒वाँऽअनु॑प्र॒भूष॑तः || {9.29.1}, {9.2.5.1}, {6.8.19.1} |
230 | सप्तिं᳚मृजन्तिवे॒धसो᳚गृ॒णन्तः॑का॒रवो᳚गि॒रा | ज्योति॑र्जज्ञा॒नमु॒क्थ्य᳚म् || {9.29.2}, {9.2.5.2}, {6.8.19.2} |
231 | सु॒षहा᳚सोम॒तानि॑तेपुना॒नाय॑प्रभूवसो | वर्धा᳚समु॒द्रमु॒क्थ्य᳚म् || {9.29.3}, {9.2.5.3}, {6.8.19.3} |
232 | विश्वा॒वसू᳚निसं॒जय॒न्पव॑स्वसोम॒धार॑या | इ॒नुद्वेषां᳚सिस॒ध्र्य॑क् || {9.29.4}, {9.2.5.4}, {6.8.19.4} |
233 | रक्षा॒सुनो॒ऽअर॑रुषःस्व॒नात्स॑मस्य॒कस्य॑चित् | नि॒दोयत्र॑मुमु॒च्महे᳚ || {9.29.5}, {9.2.5.5}, {6.8.19.5} |
234 | एन्दो॒पार्थि॑वंर॒यिंदि॒व्यंप॑वस्व॒धार॑या | द्यु॒मन्तं॒शुष्म॒माभ॑र || {9.29.6}, {9.2.5.6}, {6.8.19.6} |
[30] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो बिन्दुषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
235 | प्रधारा᳚ऽअस्यशु॒ष्मिणो॒वृथा᳚प॒वित्रे᳚ऽअक्षरन् | पु॒ना॒नोवाच॑मिष्यति || {9.30.1}, {9.2.6.1}, {6.8.20.1} |
236 | इन्दु॑र्हिया॒नःसो॒तृभि᳚र्मृ॒ज्यमा᳚नः॒कनि॑क्रदत् | इय॑र्तिव॒ग्नुमि᳚न्द्रि॒यम् || {9.30.2}, {9.2.6.2}, {6.8.20.2} |
237 | आनः॒शुष्मं᳚नृ॒षाह्यं᳚वी॒रव᳚न्तंपुरु॒स्पृह᳚म् | पव॑स्वसोम॒धार॑या || {9.30.3}, {9.2.6.3}, {6.8.20.3} |
238 | प्रसोमो॒ऽअति॒धार॑या॒पव॑मानोऽअसिष्यदत् | अ॒भिद्रोणा᳚न्या॒सद᳚म् || {9.30.4}, {9.2.6.4}, {6.8.20.4} |
239 | अ॒प्सुत्वा॒मधु॑मत्तमं॒हरिं᳚हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः | इन्द॒विन्द्रा᳚यपी॒तये᳚ || {9.30.5}, {9.2.6.5}, {6.8.20.5} |
240 | सु॒नोता॒मधु॑मत्तमं॒सोम॒मिन्द्रा᳚यव॒ज्रिणे᳚ | चारुं॒शर्धा᳚यमत्स॒रम् || {9.30.6}, {9.2.6.6}, {6.8.20.6} |
[31] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य रहूगणो गोतम ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
241 | प्रसोमा᳚सःस्वा॒ध्य१॑(अ॒)ःपव॑मानासोऽअक्रमुः | र॒यिंकृ᳚ण्वन्ति॒चेत॑नम् || {9.31.1}, {9.2.7.1}, {6.8.21.1} |
242 | दि॒वस्पृ॑थि॒व्याऽअधि॒भवे᳚न्दोद्युम्न॒वर्ध॑नः | भवा॒वाजा᳚नां॒पतिः॑ || {9.31.2}, {9.2.7.2}, {6.8.21.2} |
243 | तुभ्यं॒वाता᳚ऽअभि॒प्रिय॒स्तुभ्य॑मर्षन्ति॒सिन्ध॑वः | सोम॒वर्ध᳚न्तिते॒महः॑ || {9.31.3}, {9.2.7.3}, {6.8.21.3} |
244 | आप्या᳚यस्व॒समे᳚तुतेवि॒श्वतः॑सोम॒वृष्ण्य᳚म् | भवा॒वाज॑स्यसंग॒थे || {9.31.4}, {9.2.7.4}, {6.8.21.4} |
245 | तुभ्यं॒गावो᳚घृ॒तंपयो॒बभ्रो᳚दुदु॒ह्रेऽअक्षि॑तम् | वर्षि॑ष्ठे॒ऽअधि॒सान॑वि || {9.31.5}, {9.2.7.5}, {6.8.21.5} |
246 | स्वा॒यु॒धस्य॑तेस॒तोभुव॑नस्यपतेव॒यम् | इन्दो᳚सखि॒त्वमु॑श्मसि || {9.31.6}, {9.2.7.6}, {6.8.21.6} |
[32] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आत्रेयः श्यावाश्व ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
247 | प्रसोमा᳚सोमद॒च्युतः॒श्रव॑सेनोम॒घोनः॑ | सु॒तावि॒दथे᳚ऽअक्रमुः || {9.32.1}, {9.2.8.1}, {6.8.22.1} |
248 | आदीं᳚त्रि॒तस्य॒योष॑णो॒हरिं᳚हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः | इन्दु॒मिन्द्रा᳚यपी॒तये᳚ || {9.32.2}, {9.2.8.2}, {6.8.22.2} |
249 | आदीं᳚हं॒सोयथा᳚ग॒णंविश्व॑स्यावीवशन्म॒तिम् | अत्यो॒नगोभि॑रज्यते || {9.32.3}, {9.2.8.3}, {6.8.22.3} |
250 | उ॒भेसो᳚माव॒चाक॑शन्मृ॒गोनत॒क्तोऽअ॑र्षसि | सीद᳚न्नृ॒तस्य॒योनि॒मा || {9.32.4}, {9.2.8.4}, {6.8.22.4} |
251 | अ॒भिगावो᳚ऽअनूषत॒योषा᳚जा॒रमि॑वप्रि॒यम् | अग᳚न्ना॒जिंयथा᳚हि॒तम् || {9.32.5}, {9.2.8.5}, {6.8.22.5} |
252 | अ॒स्मेधे᳚हिद्यु॒मद्यशो᳚म॒घव॑द्भ्यश्च॒मह्यं᳚च | स॒निंमे॒धामु॒तश्रवः॑ || {9.32.6}, {9.2.8.6}, {6.8.22.6} |
[33] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्याप्त्यस्त्रित ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
253 | प्रसोमा᳚सोविप॒श्चितो॒ऽपांनय᳚न्त्यू॒र्मयः॑ | वना᳚निमहि॒षाऽइ॑व || {9.33.1}, {9.2.9.1}, {6.8.23.1} |
254 | अ॒भिद्रोणा᳚निब॒भ्रवः॑शु॒क्राऋ॒तस्य॒धार॑या | वाजं॒गोम᳚न्तमक्षरन् || {9.33.2}, {9.2.9.2}, {6.8.23.2} |
255 | सु॒ताऽइन्द्रा᳚यवा॒यवे॒वरु॑णायम॒रुद्भ्यः॑ | सोमा᳚ऽअर्षन्ति॒विष्ण॑वे || {9.33.3}, {9.2.9.3}, {6.8.23.3} |
256 | ति॒स्रोवाच॒ऽउदी᳚रते॒गावो᳚मिमन्तिधे॒नवः॑ | हरि॑रेति॒कनि॑क्रदत् || {9.33.4}, {9.2.9.4}, {6.8.23.4} |
257 | अ॒भिब्रह्मी᳚रनूषतय॒ह्वीर्ऋ॒तस्य॑मा॒तरः॑ | म॒र्मृ॒ज्यन्ते᳚दि॒वःशिशु᳚म् || {9.33.5}, {9.2.9.5}, {6.8.23.5} |
258 | रा॒यःस॑मु॒द्राँश्च॒तुरो॒ऽस्मभ्यं᳚सोमवि॒श्वतः॑ | आप॑वस्वसह॒स्रिणः॑ || {9.33.6}, {9.2.9.6}, {6.8.23.6} |
[34] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्याप्त्यस्त्रित ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
259 | प्रसु॑वा॒नोधार॑या॒तनेन्दु॑र्हिन्वा॒नोऽअ॑र्षति | रु॒जद्दृ॒ळ्हाव्योज॑सा || {9.34.1}, {9.2.10.1}, {6.8.24.1} |
260 | सु॒तऽइन्द्रा᳚यवा॒यवे॒वरु॑णायम॒रुद्भ्यः॑ | सोमो᳚ऽअर्षति॒विष्ण॑वे || {9.34.2}, {9.2.10.2}, {6.8.24.2} |
261 | वृषा᳚णं॒वृष॑भिर्य॒तंसु॒न्वन्ति॒सोम॒मद्रि॑भिः | दु॒हन्ति॒शक्म॑ना॒पयः॑ || {9.34.3}, {9.2.10.3}, {6.8.24.3} |
262 | भुव॑त्त्रि॒तस्य॒मर्ज्यो॒भुव॒दिन्द्रा᳚यमत्स॒रः | संरू॒पैर॑ज्यते॒हरिः॑ || {9.34.4}, {9.2.10.4}, {6.8.24.4} |
263 | अ॒भीमृ॒तस्य॑वि॒ष्टपं᳚दुह॒तेपृश्नि॑मातरः | चारु॑प्रि॒यत॑मंह॒विः || {9.34.5}, {9.2.10.5}, {6.8.24.5} |
264 | समे᳚न॒मह्रु॑ताऽइ॒मागिरो᳚ऽअर्षन्तिस॒स्रुतः॑ | धे॒नूर्वा॒श्रोऽअ॑वीवशत् || {9.34.6}, {9.2.10.6}, {6.8.24.6} |
[35] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः प्रभवू सु ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
265 | आनः॑पवस्व॒धार॑या॒पव॑मानर॒यिंपृ॒थुम् | यया॒ज्योति᳚र्वि॒दासि॑नः || {9.35.1}, {9.2.11.1}, {6.8.25.1} |
266 | इन्दो᳚समुद्रमीङ्खय॒पव॑स्वविश्वमेजय | रा॒योध॒र्तान॒ऽओज॑सा || {9.35.2}, {9.2.11.2}, {6.8.25.2} |
267 | त्वया᳚वी॒रेण॑वीरवो॒ऽभिष्या᳚मपृतन्य॒तः | क्षरा᳚णोऽअ॒भिवार्य᳚म् || {9.35.3}, {9.2.11.3}, {6.8.25.3} |
268 | प्रवाज॒मिन्दु॑रिष्यति॒सिषा᳚सन्वाज॒साऋषिः॑ | व्र॒तावि॑दा॒नऽआयु॑धा || {9.35.4}, {9.2.11.4}, {6.8.25.4} |
269 | तंगी॒र्भिर्वा᳚चमीङ्ख॒यंपु॑ना॒नंवा᳚सयामसि | सोमं॒जन॑स्य॒गोप॑तिम् || {9.35.5}, {9.2.11.5}, {6.8.25.5} |
270 | विश्वो॒यस्य᳚व्र॒तेजनो᳚दा॒धार॒धर्म॑ण॒स्पतेः᳚ | पु॒ना॒नस्य॑प्र॒भूव॑सोः || {9.35.6}, {9.2.11.6}, {6.8.25.6} |
[36] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः प्रभवू सु ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
271 | अस॑र्जि॒रथ्यो᳚यथाप॒वित्रे᳚च॒म्वोः᳚सु॒तः | कार्ष्म᳚न्वा॒जीन्य॑क्रमीत् || {9.36.1}, {9.2.12.1}, {6.8.26.1} |
272 | सवह्निः॑सोम॒जागृ॑विः॒पव॑स्वदेव॒वीरति॑ | अ॒भिकोशं᳚मधु॒श्चुत᳚म् || {9.36.2}, {9.2.12.2}, {6.8.26.2} |
273 | सनो॒ज्योतीं᳚षिपूर्व्य॒पव॑मान॒विरो᳚चय | क्रत्वे॒दक्षा᳚यनोहिनु || {9.36.3}, {9.2.12.3}, {6.8.26.3} |
274 | शु॒म्भमा᳚नऋता॒युभि᳚र्मृ॒ज्यमा᳚नो॒गभ॑स्त्योः | पव॑ते॒वारे᳚ऽअ॒व्यये᳚ || {9.36.4}, {9.2.12.4}, {6.8.26.4} |
275 | सविश्वा᳚दा॒शुषे॒वसु॒सोमो᳚दि॒व्यानि॒पार्थि॑वा | पव॑ता॒मान्तरि॑क्ष्या || {9.36.5}, {9.2.12.5}, {6.8.26.5} |
276 | आदि॒वस्पृ॒ष्ठम॑श्व॒युर्ग᳚व्य॒युःसो᳚मरोहसि | वी॒र॒युःश॑वसस्पते || {9.36.6}, {9.2.12.6}, {6.8.26.6} |
[37] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो रहूगण ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
277 | ससु॒तःपी॒तये॒वृषा॒सोमः॑प॒वित्रे᳚ऽअर्षति | वि॒घ्नन्रक्षां᳚सिदेव॒युः || {9.37.1}, {9.2.13.1}, {6.8.27.1} |
278 | सप॒वित्रे᳚विचक्ष॒णोहरि॑रर्षतिधर्ण॒सिः | अ॒भियोनिं॒कनि॑क्रदत् || {9.37.2}, {9.2.13.2}, {6.8.27.2} |
279 | सवा॒जीरो᳚च॒नादि॒वःपव॑मानो॒विधा᳚वति | र॒क्षो॒हावार॑म॒व्यय᳚म् || {9.37.3}, {9.2.13.3}, {6.8.27.3} |
280 | सत्रि॒तस्याधि॒सान॑वि॒पव॑मानोऽअरोचयत् | जा॒मिभिः॒सूर्यं᳚स॒ह || {9.37.4}, {9.2.13.4}, {6.8.27.4} |
281 | सवृ॑त्र॒हावृषा᳚सु॒तोव॑रिवो॒विददा᳚भ्यः | सोमो॒वाज॑मिवासरत् || {9.37.5}, {9.2.13.5}, {6.8.27.5} |
282 | सदे॒वःक॒विने᳚षि॒तो॒३॑(ओ॒)ऽभिद्रोणा᳚निधावति | इन्दु॒रिन्द्रा᳚यमं॒हना᳚ || {9.37.6}, {9.2.13.6}, {6.8.27.6} |
[38] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो रहूगण ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
283 | ए॒षऽउ॒स्यवृषा॒रथोऽव्यो॒वारे᳚भिरर्षति | गच्छ॒न्वाजं᳚सह॒स्रिण᳚म् || {9.38.1}, {9.2.14.1}, {6.8.28.1} |
284 | ए॒तंत्रि॒तस्य॒योष॑णो॒हरिं᳚हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः | इन्दु॒मिन्द्रा᳚यपी॒तये᳚ || {9.38.2}, {9.2.14.2}, {6.8.28.2} |
285 | ए॒तंत्यंह॒रितो॒दश॑मर्मृ॒ज्यन्ते᳚ऽअप॒स्युवः॑ | याभि॒र्मदा᳚य॒शुम्भ॑ते || {9.38.3}, {9.2.14.3}, {6.8.28.3} |
286 | ए॒षस्यमानु॑षी॒ष्वाश्ये॒नोनवि॒क्षुसी᳚दति | गच्छ᳚ञ्जा॒रोनयो॒षित᳚म् || {9.38.4}, {9.2.14.4}, {6.8.28.4} |
287 | ए॒षस्यमद्यो॒रसोऽव॑चष्टेदि॒वःशिशुः॑ | यऽइन्दु॒र्वार॒मावि॑शत् || {9.38.5}, {9.2.14.5}, {6.8.28.5} |
288 | ए॒षस्यपी॒तये᳚सु॒तोहरि॑रर्षतिधर्ण॒सिः | क्रन्द॒न्योनि॑म॒भिप्रि॒यम् || {9.38.6}, {9.2.14.6}, {6.8.28.6} |
[39] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो बृहन्मतिषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
289 | आ॒शुर॑र्षबृहन्मते॒परि॑प्रि॒येण॒धाम्ना᳚ | यत्र॑दे॒वाऽइति॒ब्रव॑न् || {9.39.1}, {9.2.15.1}, {6.8.29.1} |
290 | प॒रि॒ष्कृ॒ण्वन्ननि॑ष्कृतं॒जना᳚यया॒तय॒न्निषः॑ | वृ॒ष्टिंदि॒वःपरि॑स्रव || {9.39.2}, {9.2.15.2}, {6.8.29.2} |
291 | सु॒तऽए᳚तिप॒वित्र॒ऽआत्विषिं॒दधा᳚न॒ऽओज॑सा | वि॒चक्षा᳚णोविरो॒चय॑न् || {9.39.3}, {9.2.15.3}, {6.8.29.3} |
292 | अ॒यंसयोदि॒वस्परि॑रघु॒यामा᳚प॒वित्र॒ऽआ | सिन्धो᳚रू॒र्माव्यक्ष॑रत् || {9.39.4}, {9.2.15.4}, {6.8.29.4} |
293 | आ॒विवा᳚सन्परा॒वतो॒ऽअथो᳚ऽअर्वा॒वतः॑सु॒तः | इन्द्रा᳚यसिच्यते॒मधु॑ || {9.39.5}, {9.2.15.5}, {6.8.29.5} |
294 | स॒मी॒ची॒नाऽअ॑नूषत॒हरिं᳚हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः | योना᳚वृ॒तस्य॑सीदत || {9.39.6}, {9.2.15.6}, {6.8.29.6} |
[40] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो बृहन्मतिषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
295 | पु॒ना॒नोऽअ॑क्रमीद॒भिविश्वा॒मृधो॒विच॑र्षणिः | शु॒म्भन्ति॒विप्रं᳚धी॒तिभिः॑ || {9.40.1}, {9.2.16.1}, {6.8.30.1} |
296 | आयोनि॑मरु॒णोरु॑ह॒द्गम॒दिन्द्रं॒वृषा᳚सु॒तः | ध्रु॒वेसद॑सिसीदति || {9.40.2}, {9.2.16.2}, {6.8.30.2} |
297 | नूनो᳚र॒यिंम॒हामि᳚न्दो॒ऽस्मभ्यं᳚सोमवि॒श्वतः॑ | आप॑वस्वसह॒स्रिण᳚म् || {9.40.3}, {9.2.16.3}, {6.8.30.3} |
298 | विश्वा᳚सोमपवमानद्यु॒म्नानी᳚न्द॒वाभ॑र | वि॒दाःस॑ह॒स्रिणी॒रिषः॑ || {9.40.4}, {9.2.16.4}, {6.8.30.4} |
299 | सनः॑पुना॒नऽआभ॑रर॒यिंस्तो॒त्रेसु॒वीर्य᳚म् | ज॒रि॒तुर्व॑र्धया॒गिरः॑ || {9.40.5}, {9.2.16.5}, {6.8.30.5} |
300 | पु॒ना॒नऽइ᳚न्द॒वाभ॑र॒सोम॑द्वि॒बर्ह॑संर॒यिम् | वृष᳚न्निन्दोनऽउ॒क्थ्य᳚म् || {9.40.6}, {9.2.16.6}, {6.8.30.6} |
[41] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य काण्वो मेध्यातिथि षिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
301 | प्रयेगावो॒नभूर्ण॑यस्त्वे॒षाऽअ॒यासो॒ऽअक्र॑मुः | घ्नन्तः॑कृ॒ष्णामप॒त्वच᳚म् || {9.41.1}, {9.2.17.1}, {6.8.31.1} |
302 | सु॒वि॒तस्य॑मनाम॒हेऽति॒सेतुं᳚दुरा॒व्य᳚म् | सा॒ह्वांसो॒दस्यु॑मव्र॒तम् || {9.41.2}, {9.2.17.2}, {6.8.31.2} |
303 | शृ॒ण्वेवृ॒ष्टेरि॑वस्व॒नःपव॑मानस्यशु॒ष्मिणः॑ | चर᳚न्तिवि॒द्युतो᳚दि॒वि || {9.41.3}, {9.2.17.3}, {6.8.31.3} |
304 | आप॑वस्वम॒हीमिषं॒गोम॑दिन्दो॒हिर᳚ण्यवत् | अश्वा᳚व॒द्वाज॑वत्सु॒तः || {9.41.4}, {9.2.17.4}, {6.8.31.4} |
305 | सप॑वस्वविचर्षण॒ऽआम॒हीरोद॑सीपृण | उ॒षाःसूर्यो॒नर॒श्मिभिः॑ || {9.41.5}, {9.2.17.5}, {6.8.31.5} |
306 | परि॑णःशर्म॒यन्त्या॒धार॑यासोमवि॒श्वतः॑ | सरा᳚र॒सेव॑वि॒ष्टप᳚म् || {9.41.6}, {9.2.17.6}, {6.8.31.6} |
[42] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य काण्वो मेध्यातिथि ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
307 | ज॒नय᳚न्रोच॒नादि॒वोज॒नय᳚न्न॒प्सुसूर्य᳚म् | वसा᳚नो॒गाऽअ॒पोहरिः॑ || {9.42.1}, {9.2.18.1}, {6.8.32.1} |
308 | ए॒षप्र॒त्नेन॒मन्म॑नादे॒वोदे॒वेभ्य॒स्परि॑ | धार॑यापवतेसु॒तः || {9.42.2}, {9.2.18.2}, {6.8.32.2} |
309 | वा॒वृ॒धा॒नाय॒तूर्व॑ये॒पव᳚न्ते॒वाज॑सातये | सोमाः᳚स॒हस्र॑पाजसः || {9.42.3}, {9.2.18.3}, {6.8.32.3} |
310 | दु॒हा॒नःप्र॒त्नमित्पयः॑प॒वित्रे॒परि॑षिच्यते | क्रन्द᳚न्दे॒वाँऽअ॑जीजनत् || {9.42.4}, {9.2.18.4}, {6.8.32.4} |
311 | अ॒भिविश्वा᳚नि॒वार्या॒भिदे॒वाँऽऋ॑ता॒वृधः॑ | सोमः॑पुना॒नोऽअ॑र्षति || {9.42.5}, {9.2.18.5}, {6.8.32.5} |
312 | गोम᳚न्नःसोमवी॒रव॒दश्वा᳚व॒द्वाज॑वत्सु॒तः | पव॑स्वबृह॒तीरिषः॑ || {9.42.6}, {9.2.18.6}, {6.8.32.6} |
[43] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य काण्वो मेध्यातिथि ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
313 | योऽअत्य॑ऽइवमृ॒ज्यते॒गोभि॒र्मदा᳚यहर्य॒तः | तंगी॒र्भिर्वा᳚सयामसि || {9.43.1}, {9.2.19.1}, {6.8.33.1} |
314 | तंनो॒विश्वा᳚ऽअव॒स्युवो॒गिरः॑शुम्भन्तिपू॒र्वथा᳚ | इन्दु॒मिन्द्रा᳚यपी॒तये᳚ || {9.43.2}, {9.2.19.2}, {6.8.33.2} |
315 | पु॒ना॒नोया᳚तिहर्य॒तःसोमो᳚गी॒र्भिःपरि॑ष्कृतः | विप्र॑स्य॒मेध्या᳚तिथेः || {9.43.3}, {9.2.19.3}, {6.8.33.3} |
316 | पव॑मानवि॒दार॒यिम॒स्मभ्यं᳚सोमसु॒श्रिय᳚म् | इन्दो᳚स॒हस्र॑वर्चसम् || {9.43.4}, {9.2.19.4}, {6.8.33.4} |
317 | इन्दु॒रत्यो॒नवा᳚ज॒सृत्कनि॑क्रन्तिप॒वित्र॒ऽआ | यदक्षा॒रति॑देव॒युः || {9.43.5}, {9.2.19.5}, {6.8.33.5} |
318 | पव॑स्व॒वाज॑सातये॒विप्र॑स्यगृण॒तोवृ॒धे | सोम॒रास्व॑सु॒वीर्य᳚म् || {9.43.6}, {9.2.19.6}, {6.8.33.6} |
[44] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरस अयास्य ऋषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
319 | प्रण॑ऽइन्दोम॒हेतन॑ऽऊ॒र्मिंनबिभ्र॑दर्षसि | अ॒भिदे॒वाँऽअ॒यास्यः॑ || {9.44.1}, {9.2.20.1}, {7.1.1.1} |
320 | म॒तीजु॒ष्टोधि॒याहि॒तःसोमो᳚हिन्वेपरा॒वति॑ | विप्र॑स्य॒धार॑याक॒विः || {9.44.2}, {9.2.20.2}, {7.1.1.2} |
321 | अ॒यंदे॒वेषु॒जागृ॑विःसु॒तऽए᳚तिप॒वित्र॒ऽआ | सोमो᳚याति॒विच॑र्षणिः || {9.44.3}, {9.2.20.3}, {7.1.1.3} |
322 | सनः॑पवस्ववाज॒युश्च॑क्रा॒णश्चारु॑मध्व॒रम् | ब॒र्हिष्माँ॒ऽआवि॑वासति || {9.44.4}, {9.2.20.4}, {7.1.1.4} |
323 | सनो॒भगा᳚यवा॒यवे॒विप्र॑वीरःस॒दावृ॑धः | सोमो᳚दे॒वेष्वाय॑मत् || {9.44.5}, {9.2.20.5}, {7.1.1.5} |
324 | सनो᳚ऽअ॒द्यवसु॑त्तयेक्रतु॒विद्गा᳚तु॒वित्त॑मः | वाजं᳚जेषि॒श्रवो᳚बृ॒हत् || {9.44.6}, {9.2.20.6}, {7.1.1.6} |
[45] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरस अयास्य ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
325 | सप॑वस्व॒मदा᳚य॒कंनृ॒चक्षा᳚दे॒ववी᳚तये | इन्द॒विन्द्रा᳚यपी॒तये᳚ || {9.45.1}, {9.2.21.1}, {7.1.2.1} |
326 | सनो᳚ऽअर्षा॒भिदू॒त्य१॑(अ॒)अंत्वमिन्द्रा᳚यतोशसे | दे॒वान्त्सखि॑भ्य॒ऽआवर᳚म् || {9.45.2}, {9.2.21.2}, {7.1.2.2} |
327 | उ॒तत्वाम॑रु॒णंव॒यंगोभि॑रञ्ज्मो॒मदा᳚य॒कम् | विनो᳚रा॒येदुरो᳚वृधि || {9.45.3}, {9.2.21.3}, {7.1.2.3} |
328 | अत्यू᳚प॒वित्र॑मक्रमीद्वा॒जीधुरं॒नयाम॑नि | इन्दु॑र्दे॒वेषु॑पत्यते || {9.45.4}, {9.2.21.4}, {7.1.2.4} |
329 | समी॒सखा᳚योऽअस्वर॒न्वने॒क्रीळ᳚न्त॒मत्य॑विम् | इन्दुं᳚ना॒वाऽअ॑नूषत || {9.45.5}, {9.2.21.5}, {7.1.2.5} |
330 | तया᳚पवस्व॒धार॑या॒यया᳚पी॒तोवि॒चक्ष॑से | इन्दो᳚स्तो॒त्रेसु॒वीर्य᳚म् || {9.45.6}, {9.2.21.6}, {7.1.2.6} |
[46] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरस अयास्य ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
331 | असृ॑ग्रन्दे॒ववी᳚त॒येऽत्या᳚सः॒कृत्व्या᳚ऽइव | क्षर᳚न्तःपर्वता॒वृधः॑ || {9.46.1}, {9.2.22.1}, {7.1.3.1} |
332 | परि॑ष्कृतास॒ऽइन्द॑वो॒योषे᳚व॒पित्र्या᳚वती | वा॒युंसोमा᳚ऽअसृक्षत || {9.46.2}, {9.2.22.2}, {7.1.3.2} |
333 | ए॒तेसोमा᳚स॒ऽइन्द॑वः॒प्रय॑स्वन्तश्च॒मूसु॒ताः | इन्द्रं᳚वर्धन्ति॒कर्म॑भिः || {9.46.3}, {9.2.22.3}, {7.1.3.3} |
334 | आधा᳚वतासुहस्त्यःशु॒क्रागृ॑भ्णीतम॒न्थिना᳚ | गोभिः॑श्रीणीतमत्स॒रम् || {9.46.4}, {9.2.22.4}, {7.1.3.4} |
335 | सप॑वस्वधनंजयप्रय॒न्ताराध॑सोम॒हः | अ॒स्मभ्यं᳚सोमगातु॒वित् || {9.46.5}, {9.2.22.5}, {7.1.3.5} |
336 | ए॒तंमृ॑जन्ति॒मर्ज्यं॒पव॑मानं॒दश॒क्षिपः॑ | इन्द्रा᳚यमत्स॒रंमद᳚म् || {9.46.6}, {9.2.22.6}, {7.1.3.6} |
[47] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कवि ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
337 | अ॒यासोमः॑सुकृ॒त्यया᳚म॒हश्चि॑द॒भ्य॑वर्धत | म॒न्दा॒नऽउद्वृ॑षायते || {9.47.1}, {9.2.23.1}, {7.1.4.1} |
338 | कृ॒तानीद॑स्य॒कर्त्वा॒चेत᳚न्तेदस्यु॒तर्ह॑णा | ऋ॒णाच॑धृ॒ष्णुश्च॑यते || {9.47.2}, {9.2.23.2}, {7.1.4.2} |
339 | आत्सोम॑ऽइन्द्रि॒योरसो॒वज्रः॑सहस्र॒साभु॑वत् | उ॒क्थंयद॑स्य॒जाय॑ते || {9.47.3}, {9.2.23.3}, {7.1.4.3} |
340 | स्व॒यंक॒विर्वि॑ध॒र्तरि॒विप्रा᳚य॒रत्न॑मिच्छति | यदी᳚मर्मृ॒ज्यते॒धियः॑ || {9.47.4}, {9.2.23.4}, {7.1.4.4} |
341 | सि॒षा॒सतू᳚रयी॒णांवाजे॒ष्वर्व॑तामिव | भरे᳚षुजि॒ग्युषा᳚मसि || {9.47.5}, {9.2.23.5}, {7.1.4.5} |
[48] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कविषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
342 | तंत्वा᳚नृ॒म्णानि॒बिभ्र॑तंस॒धस्थे᳚षुम॒होदि॒वः | चारुं᳚सुकृ॒त्यये᳚महे || {9.48.1}, {9.2.24.1}, {7.1.5.1} |
343 | संवृ॑क्तधृष्णुमु॒क्थ्यं᳚म॒हाम॑हिव्रतं॒मद᳚म् | श॒तंपुरो᳚रुरु॒क्षणि᳚म् || {9.48.2}, {9.2.24.2}, {7.1.5.2} |
344 | अत॑स्त्वार॒यिम॒भिराजा᳚नंसुक्रतोदि॒वः | सु॒प॒र्णोऽअ᳚व्य॒थिर्भ॑रत् || {9.48.3}, {9.2.24.3}, {7.1.5.3} |
345 | विश्व॑स्मा॒ऽइत्स्व॑र्दृ॒शेसाधा᳚रणंरज॒स्तुर᳚म् | गो॒पामृ॒तस्य॒विर्भ॑रत् || {9.48.4}, {9.2.24.4}, {7.1.5.4} |
346 | अधा᳚हिन्वा॒नऽइ᳚न्द्रि॒यंज्यायो᳚महि॒त्वमा᳚नशे | अ॒भि॒ष्टि॒कृद्विच॑र्षणिः || {9.48.5}, {9.2.24.5}, {7.1.5.5} |
[49] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कविजृषिः पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
347 | पव॑स्ववृ॒ष्टिमासुनो॒ऽपामू॒र्मिंदि॒वस्परि॑ | अ॒य॒क्ष्माबृ॑ह॒तीरिषः॑ || {9.49.1}, {9.2.25.1}, {7.1.6.1} |
348 | तया᳚पवस्व॒धार॑या॒यया॒गाव॑ऽइ॒हागम॑न् | जन्या᳚स॒ऽउप॑नोगृ॒हम् || {9.49.2}, {9.2.25.2}, {7.1.6.2} |
349 | घृ॒तंप॑वस्व॒धार॑याय॒ज्ञेषु॑देव॒वीत॑मः | अ॒स्मभ्यं᳚वृ॒ष्टिमाप॑व || {9.49.3}, {9.2.25.3}, {7.1.6.3} |
350 | सन॑ऽऊ॒र्जेव्य१॑(अ॒)'व्ययं᳚प॒वित्रं᳚धाव॒धार॑या | दे॒वासः॑शृ॒णव॒न्हिक᳚म् || {9.49.4}, {9.2.25.4}, {7.1.6.4} |
351 | पव॑मानोऽअसिष्यद॒द्रक्षां᳚स्यप॒जङ्घ॑नत् | प्र॒त्न॒वद्रो॒चय॒न्रुचः॑ || {9.49.5}, {9.2.25.5}, {7.1.6.5} |
[50] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरस उचथ्य ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
352 | उत्ते॒शुष्मा᳚सऽईरते॒सिन्धो᳚रू॒र्मेरि॑वस्व॒नः | वा॒णस्य॑चोदयाप॒विम् || {9.50.1}, {9.2.26.1}, {7.1.7.1} |
353 | प्र॒स॒वेत॒ऽउदी᳚रतेति॒स्रोवाचो᳚मख॒स्युवः॑ | यदव्य॒ऽएषि॒सान॑वि || {9.50.2}, {9.2.26.2}, {7.1.7.2} |
354 | अव्यो॒वारे॒परि॑प्रि॒यंहरिं᳚हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः | पव॑मानंमधु॒श्चुत᳚म् || {9.50.3}, {9.2.26.3}, {7.1.7.3} |
355 | आप॑वस्वमदिन्तमप॒वित्रं॒धार॑याकवे | अ॒र्कस्य॒योनि॑मा॒सद᳚म् || {9.50.4}, {9.2.26.4}, {7.1.7.4} |
356 | सप॑वस्वमदिन्तम॒गोभि॑रञ्जा॒नोऽअ॒क्तुभिः॑ | इन्द॒विन्द्रा᳚यपी॒तये᳚ || {9.50.5}, {9.2.26.5}, {7.1.7.5} |
[51] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरस उचथ्य ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
357 | अध्व᳚र्यो॒ऽअद्रि॑भिःसु॒तंसोमं᳚प॒वित्र॒ऽआसृ॑ज | पु॒नी॒हीन्द्रा᳚य॒पात॑वे || {9.51.1}, {9.2.27.1}, {7.1.8.1} |
358 | दि॒वःपी॒यूष॑मुत्त॒मंसोम॒मिन्द्रा᳚यव॒ज्रिणे᳚ | सु॒नोता॒मधु॑मत्तमम् || {9.51.2}, {9.2.27.2}, {7.1.8.2} |
359 | तव॒त्यऽइ᳚न्दो॒ऽअन्ध॑सोदे॒वामधो॒र्व्य॑श्नते | पव॑मानस्यम॒रुतः॑ || {9.51.3}, {9.2.27.3}, {7.1.8.3} |
360 | त्वंहिसो᳚मव॒र्धय᳚न्त्सु॒तोमदा᳚य॒भूर्ण॑ये | वृष᳚न्त्स्तो॒तार॑मू॒तये᳚ || {9.51.4}, {9.2.27.4}, {7.1.8.4} |
361 | अ॒भ्य॑र्षविचक्षणप॒वित्रं॒धार॑यासु॒तः | अ॒भिवाज॑मु॒तश्रवः॑ || {9.51.5}, {9.2.27.5}, {7.1.8.5} |
[52] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरस उचथ्य ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
362 | परि॑द्यु॒क्षःस॒नद्र॑यि॒र्भर॒द्वाजं᳚नो॒ऽअन्ध॑सा | सु॒वा॒नोऽअ॑र्षप॒वित्र॒ऽआ || {9.52.1}, {9.2.28.1}, {7.1.9.1} |
363 | तव॑प्र॒त्नेभि॒रध्व॑भि॒रव्यो॒वारे॒परि॑प्रि॒यः | स॒हस्र॑धारोया॒त्तना᳚ || {9.52.2}, {9.2.28.2}, {7.1.9.2} |
364 | च॒रुर्नयस्तमी᳚ङ्ख॒येन्दो॒नदान॑मीङ्खय | व॒धैर्व॑धस्नवीङ्खय || {9.52.3}, {9.2.28.3}, {7.1.9.3} |
365 | निशुष्म॑मिन्दवेषां॒पुरु॑हूत॒जना᳚नाम् | योऽअ॒स्माँऽआ॒दिदे᳚शति || {9.52.4}, {9.2.28.4}, {7.1.9.4} |
366 | श॒तंन॑ऽइन्दऽऊ॒तिभिः॑स॒हस्रं᳚वा॒शुची᳚नाम् | पव॑स्वमंह॒यद्र॑यिः || {9.52.5}, {9.2.28.5}, {7.1.9.5} |
[53] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
367 | उत्ते॒शुष्मा᳚सोऽअस्थू॒रक्षो᳚भि॒न्दन्तो᳚ऽअद्रिवः | नु॒दस्व॒याःप॑रि॒स्पृधः॑ || {9.53.1}, {9.2.29.1}, {7.1.10.1} |
368 | अ॒यानि॑ज॒घ्निरोज॑सारथसं॒गेधने᳚हि॒ते | स्तवा॒ऽअबि॑भ्युषाहृ॒दा || {9.53.2}, {9.2.29.2}, {7.1.10.2} |
369 | अस्य᳚व्र॒तानि॒नाधृषे॒पव॑मानस्यदू॒ढ्या᳚ | रु॒जयस्त्वा᳚पृत॒न्यति॑ || {9.53.3}, {9.2.29.3}, {7.1.10.3} |
370 | तंहि᳚न्वन्तिमद॒च्युतं॒हरिं᳚न॒दीषु॑वा॒जिन᳚म् | इन्दु॒मिन्द्रा᳚यमत्स॒रम् || {9.53.4}, {9.2.29.4}, {7.1.10.4} |
[54] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
371 | अ॒स्यप्र॒त्नामनु॒द्युतं᳚शु॒क्रंदु॑दुह्रे॒ऽअह्र॑यः | पयः॑सहस्र॒सामृषि᳚म् || {9.54.1}, {9.2.30.1}, {7.1.11.1} |
372 | अ॒यंसूर्य॑ऽइवोप॒दृग॒यंसरां᳚सिधावति | स॒प्तप्र॒वत॒ऽआदिव᳚म् || {9.54.2}, {9.2.30.2}, {7.1.11.2} |
373 | अ॒यंविश्वा᳚नितिष्ठतिपुना॒नोभुव॑नो॒परि॑ | सोमो᳚दे॒वोनसूर्यः॑ || {9.54.3}, {9.2.30.3}, {7.1.11.3} |
374 | परि॑णोदे॒ववी᳚तये॒वाजाँ᳚ऽअर्षसि॒गोम॑तः | पु॒ना॒नऽइ᳚न्दविन्द्र॒युः || {9.54.4}, {9.2.30.4}, {7.1.11.4} |
[55] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
375 | यवं᳚यवंनो॒ऽअन्ध॑सापु॒ष्टम्पु॑ष्टं॒परि॑स्रव | सोम॒विश्वा᳚च॒सौभ॑गा || {9.55.1}, {9.2.31.1}, {7.1.12.1} |
376 | इन्दो॒यथा॒तव॒स्तवो॒यथा᳚तेजा॒तमन्ध॑सः | निब॒र्हिषि॑प्रि॒येस॑दः || {9.55.2}, {9.2.31.2}, {7.1.12.2} |
377 | उ॒तनो᳚गो॒विद॑श्व॒वित्पव॑स्वसो॒मान्ध॑सा | म॒क्षूत॑मेभि॒रह॑भिः || {9.55.3}, {9.2.31.3}, {7.1.12.3} |
378 | योजि॒नाति॒नजीय॑ते॒हन्ति॒शत्रु॑म॒भीत्य॑ | सप॑वस्वसहस्रजित् || {9.55.4}, {9.2.31.4}, {7.1.12.4} |
[56] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
379 | परि॒सोम॑ऋ॒तंबृ॒हदा॒शुःप॒वित्रे᳚ऽअर्षति | वि॒घ्नन्रक्षां᳚सिदेव॒युः || {9.56.1}, {9.2.32.1}, {7.1.13.1} |
380 | यत्सोमो॒वाज॒मर्ष॑तिश॒तंधारा᳚ऽअप॒स्युवः॑ | इन्द्र॑स्यस॒ख्यमा᳚वि॒शन् || {9.56.2}, {9.2.32.2}, {7.1.13.2} |
381 | अ॒भित्वा॒योष॑णो॒दश॑जा॒रंनक॒न्या᳚नूषत | मृ॒ज्यसे᳚सोमसा॒तये᳚ || {9.56.3}, {9.2.32.3}, {7.1.13.3} |
382 | त्वमिन्द्रा᳚य॒विष्ण॑वेस्वा॒दुरि᳚न्दो॒परि॑स्रव | नॄन्त्स्तो॒तॄन्पा॒ह्यंह॑सः || {9.56.4}, {9.2.32.4}, {7.1.13.4} |
[57] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
383 | प्रते॒धारा᳚ऽअस॒श्चतो᳚दि॒वोनय᳚न्तिवृ॒ष्टयः॑ | अच्छा॒वाजं᳚सह॒स्रिण᳚म् || {9.57.1}, {9.2.33.1}, {7.1.14.1} |
384 | अ॒भिप्रि॒याणि॒काव्या॒विश्वा॒चक्षा᳚णोऽअर्षति | हरि॑स्तुञ्जा॒नऽआयु॑धा || {9.57.2}, {9.2.33.2}, {7.1.14.2} |
385 | सम᳚र्मृजा॒नऽआ॒युभि॒रिभो॒राजे᳚वसुव्र॒तः | श्ये॒नोनवंसु॑षीदति || {9.57.3}, {9.2.33.3}, {7.1.14.3} |
386 | सनो॒विश्वा᳚दि॒वोवसू॒तोपृ॑थि॒व्याऽअधि॑ | पु॒ना॒नऽइ᳚न्द॒वाभ॑र || {9.57.4}, {9.2.33.4}, {7.1.14.4} |
[58] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
387 | तर॒त्सम॒न्दीधा᳚वति॒धारा᳚सु॒तस्यान्ध॑सः | तर॒त्सम॒न्दीधा᳚वति || {9.58.1}, {9.2.34.1}, {7.1.15.1} |
388 | उ॒स्रावे᳚द॒वसू᳚नां॒मर्त॑स्यदे॒व्यव॑सः | तर॒त्सम॒न्दीधा᳚वति || {9.58.2}, {9.2.34.2}, {7.1.15.2} |
389 | ध्व॒स्रयोः᳚पुरु॒षन्त्यो॒रास॒हस्रा᳚णिदद्महे | तर॒त्सम॒न्दीधा᳚वति || {9.58.3}, {9.2.34.3}, {7.1.15.3} |
390 | आययो᳚स्त्रिं॒शतं॒तना᳚स॒हस्रा᳚णिच॒दद्म॑हे | तर॒त्सम॒न्दीधा᳚वति || {9.58.4}, {9.2.34.4}, {7.1.15.4} |
[59] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
391 | पव॑स्वगो॒जिद॑श्व॒जिद्वि॑श्व॒जित्सो᳚मरण्य॒जित् | प्र॒जाव॒द्रत्न॒माभ॑र || {9.59.1}, {9.2.35.1}, {7.1.16.1} |
392 | पव॑स्वा॒द्भ्योऽअदा᳚भ्यः॒पव॒स्वौष॑धीभ्यः | पव॑स्वधि॒षणा᳚भ्यः || {9.59.2}, {9.2.35.2}, {7.1.16.2} |
393 | त्वंसो᳚म॒पव॑मानो॒विश्वा᳚निदुरि॒तात॑र | क॒विःसी᳚द॒निब॒र्हिषि॑ || {9.59.3}, {9.2.35.3}, {7.1.16.3} |
394 | पव॑मान॒स्व᳚र्विदो॒जाय॑मानोऽभवोम॒हान् | इन्दो॒विश्वाँ᳚ऽअ॒भीद॑सि || {9.59.4}, {9.2.35.4}, {7.1.16.4} |
[60] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य काश्यपोऽवत्सार ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | (१-२, ४) प्रथमाद्वितीययोर्ऋचोश्चतुर्थ्याश्च गायत्री, (३) तृतीयायाश्च पुर उष्णिक् छन्दसी || | |
395 | प्रगा᳚य॒त्रेण॑गायत॒पव॑मानं॒विच॑र्षणिम् | इन्दुं᳚स॒हस्र॑चक्षसम् || {9.60.1}, {9.2.36.1}, {7.1.17.1} |
396 | तंत्वा᳚स॒हस्र॑चक्षस॒मथो᳚स॒हस्र॑भर्णसम् | अति॒वार॑मपाविषुः || {9.60.2}, {9.2.36.2}, {7.1.17.2} |
397 | अति॒वारा॒न्पव॑मानोऽअसिष्यदत्क॒लशाँ᳚ऽअ॒भिधा᳚वति | इन्द्र॑स्य॒हार्द्या᳚वि॒शन् || {9.60.3}, {9.2.36.3}, {7.1.17.3} |
398 | इन्द्र॑स्यसोम॒राध॑से॒शंप॑वस्वविचर्षणे | प्र॒जाव॒द्रेत॒ऽआभ॑र || {9.60.4}, {9.2.36.4}, {7.1.17.4} |
[61] (१-३०) त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य आङ्गिरसोऽमहीया षः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
399 | अ॒यावी॒तीपरि॑स्रव॒यस्त॑ऽइन्दो॒मदे॒ष्वा | अ॒वाह᳚न्नव॒तीर्नव॑ || {9.61.1}, {9.3.1.1}, {7.1.18.1} |
400 | पुरः॑स॒द्यऽइ॒त्थाधि॑ये॒दिवो᳚दासाय॒शम्ब॑रम् | अध॒त्यंतु॒र्वशं॒यदु᳚म् || {9.61.2}, {9.3.1.2}, {7.1.18.2} |
401 | परि॑णो॒ऽअश्व॑मश्व॒विद्गोम॑दिन्दो॒हिर᳚ण्यवत् | क्षरा᳚सह॒स्रिणी॒रिषः॑ || {9.61.3}, {9.3.1.3}, {7.1.18.3} |
402 | पव॑मानस्यतेव॒यंप॒वित्र॑मभ्युन्द॒तः | स॒खि॒त्वमावृ॑णीमहे || {9.61.4}, {9.3.1.4}, {7.1.18.4} |
403 | येते᳚प॒वित्र॑मू॒र्मयो᳚ऽभि॒क्षर᳚न्ति॒धार॑या | तेभि᳚र्नःसोममृळय || {9.61.5}, {9.3.1.5}, {7.1.18.5} |
404 | सनः॑पुना॒नऽआभ॑रर॒यिंवी॒रव॑ती॒मिष᳚म् | ईशा᳚नःसोमवि॒श्वतः॑ || {9.61.6}, {9.3.1.6}, {7.1.19.1} |
405 | ए॒तमु॒त्यंदश॒क्षिपो᳚मृ॒जन्ति॒सिन्धु॑मातरम् | समा᳚दि॒त्येभि॑रख्यत || {9.61.7}, {9.3.1.7}, {7.1.19.2} |
406 | समिन्द्रे᳚णो॒तवा॒युना᳚सु॒तऽए᳚तिप॒वित्र॒ऽआ | संसूर्य॑स्यर॒श्मिभिः॑ || {9.61.8}, {9.3.1.8}, {7.1.19.3} |
407 | सनो॒भगा᳚यवा॒यवे᳚पू॒ष्णेप॑वस्व॒मधु॑मान् | चारु᳚र्मि॒त्रेवरु॑णेच || {9.61.9}, {9.3.1.9}, {7.1.19.4} |
408 | उ॒च्चाते᳚जा॒तमन्ध॑सोदि॒विषद्भूम्याद॑दे | उ॒ग्रंशर्म॒महि॒श्रवः॑ || {9.61.10}, {9.3.1.10}, {7.1.19.5} |
409 | ए॒नाविश्वा᳚न्य॒र्यऽआद्यु॒म्नानि॒मानु॑षाणाम् | सिषा᳚सन्तोवनामहे || {9.61.11}, {9.3.1.11}, {7.1.20.1} |
410 | सन॒ऽइन्द्रा᳚य॒यज्य॑वे॒वरु॑णायम॒रुद्भ्यः॑ | व॒रि॒वो॒वित्परि॑स्रव || {9.61.12}, {9.3.1.12}, {7.1.20.2} |
411 | उपो॒षुजा॒तम॒प्तुरं॒गोभि॑र्भ॒ङ्गंपरि॑ष्कृतम् | इन्दुं᳚दे॒वाऽअ॑यासिषुः || {9.61.13}, {9.3.1.13}, {7.1.20.3} |
412 | तमिद्व॑र्धन्तुनो॒गिरो᳚व॒त्संसं॒शिश्व॑रीरिव | यऽइन्द्र॑स्यहृदं॒सनिः॑ || {9.61.14}, {9.3.1.14}, {7.1.20.4} |
413 | अर्षा᳚णःसोम॒शंगवे᳚धु॒क्षस्व॑पि॒प्युषी॒मिष᳚म् | वर्धा᳚समु॒द्रमु॒क्थ्य᳚म् || {9.61.15}, {9.3.1.15}, {7.1.20.5} |
414 | पव॑मानोऽअजीजनद्दि॒वश्चि॒त्रंनत᳚न्य॒तुम् | ज्योति᳚र्वैश्वान॒रंबृ॒हत् || {9.61.16}, {9.3.1.16}, {7.1.21.1} |
415 | पव॑मानस्यते॒रसो॒मदो᳚राजन्नदुच्छु॒नः | विवार॒मव्य॑मर्षति || {9.61.17}, {9.3.1.17}, {7.1.21.2} |
416 | पव॑मान॒रस॒स्तव॒दक्षो॒विरा᳚जतिद्यु॒मान् | ज्योति॒र्विश्वं॒स्व॑र्दृ॒शे || {9.61.18}, {9.3.1.18}, {7.1.21.3} |
417 | यस्ते॒मदो॒वरे᳚ण्य॒स्तेना᳚पव॒स्वान्ध॑सा | दे॒वा॒वीर॑घशंस॒हा || {9.61.19}, {9.3.1.19}, {7.1.21.4} |
418 | जघ्नि᳚र्वृ॒त्रम॑मि॒त्रियं॒सस्नि॒र्वाजं᳚दि॒वेदि॑वे | गो॒षाऽउ॑ऽअश्व॒साऽअ॑सि || {9.61.20}, {9.3.1.20}, {7.1.21.5} |
419 | सम्मि॑श्लोऽअरु॒षोभ॑वसूप॒स्थाभि॒र्नधे॒नुभिः॑ | सीद᳚ञ्छ्ये॒नोनयोनि॒मा || {9.61.21}, {9.3.1.21}, {7.1.22.1} |
420 | सप॑वस्व॒यऽआवि॒थेन्द्रं᳚वृ॒त्राय॒हन्त॑वे | व॒व्रि॒वांसं᳚म॒हीर॒पः || {9.61.22}, {9.3.1.22}, {7.1.22.2} |
421 | सु॒वीरा᳚सोव॒यंधना॒जये᳚मसोममीढ्वः | पु॒ना॒नोव॑र्धनो॒गिरः॑ || {9.61.23}, {9.3.1.23}, {7.1.22.3} |
422 | त्वोता᳚स॒स्तवाव॑सा॒स्याम॑व॒न्वन्त॑ऽआ॒मुरः॑ | सोम᳚व्र॒तेषु॑जागृहि || {9.61.24}, {9.3.1.24}, {7.1.22.4} |
423 | अ॒प॒घ्नन्प॑वते॒मृधोऽप॒सोमो॒ऽअरा᳚व्णः | गच्छ॒न्निन्द्र॑स्यनिष्कृ॒तम् || {9.61.25}, {9.3.1.25}, {7.1.22.5} |
424 | म॒होनो᳚रा॒यऽआभ॑र॒पव॑मानज॒हीमृधः॑ | रास्वे᳚न्दोवी॒रव॒द्यशः॑ || {9.61.26}, {9.3.1.26}, {7.1.23.1} |
425 | नत्वा᳚श॒तंच॒नह्रुतो॒राधो॒दित्स᳚न्त॒मामि॑नन् | यत्पु॑ना॒नोम॑ख॒स्यसे᳚ || {9.61.27}, {9.3.1.27}, {7.1.23.2} |
426 | पव॑स्वेन्दो॒वृषा᳚सु॒तःकृ॒धीनो᳚य॒शसो॒जने᳚ | विश्वा॒ऽअप॒द्विषो᳚जहि || {9.61.28}, {9.3.1.28}, {7.1.23.3} |
427 | अस्य॑तेस॒ख्येव॒यंतवे᳚न्दोद्यु॒म्नऽउ॑त्त॒मे | सा॒स॒ह्याम॑पृतन्य॒तः || {9.61.29}, {9.3.1.29}, {7.1.23.4} |
428 | याते᳚भी॒मान्यायु॑धाति॒ग्मानि॒सन्ति॒धूर्व॑णे | रक्षा᳚समस्यनोनि॒दः || {9.61.30}, {9.3.1.30}, {7.1.23.5} |
[62] (१-३०) त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य भार्गवो जमदग्निषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
429 | ए॒तेऽअ॑सृग्र॒मिन्द॑वस्ति॒रःप॒वित्र॑मा॒शवः॑ | विश्वा᳚न्य॒भिसौभ॑गा || {9.62.1}, {9.3.2.1}, {7.1.24.1} |
430 | वि॒घ्नन्तो᳚दुरि॒तापु॒रुसु॒गातो॒काय॑वा॒जिनः॑ | तना᳚कृ॒ण्वन्तो॒ऽअर्व॑ते || {9.62.2}, {9.3.2.2}, {7.1.24.2} |
431 | कृ॒ण्वन्तो॒वरि॑वो॒गवे॒ऽभ्य॑र्षन्तिसुष्टु॒तिम् | इळा᳚म॒स्मभ्यं᳚सं॒यत᳚म् || {9.62.3}, {9.3.2.3}, {7.1.24.3} |
432 | असा᳚व्यं॒शुर्मदा᳚या॒प्सुदक्षो᳚गिरि॒ष्ठाः | श्ये॒नोनयोनि॒मास॑दत् || {9.62.4}, {9.3.2.4}, {7.1.24.4} |
433 | शु॒भ्रमन्धो᳚दे॒ववा᳚तम॒प्सुधू॒तोनृभिः॑सु॒तः | स्वद᳚न्ति॒गावः॒पयो᳚भिः || {9.62.5}, {9.3.2.5}, {7.1.24.5} |
434 | आदी॒मश्वं॒नहेता॒रोऽशू᳚शुभन्न॒मृता᳚य | मध्वो॒रसं᳚सध॒मादे᳚ || {9.62.6}, {9.3.2.6}, {7.1.25.1} |
435 | यास्ते॒धारा᳚मधु॒श्चुतोऽसृ॑ग्रमिन्दऽऊ॒तये᳚ | ताभिः॑प॒वित्र॒मास॑दः || {9.62.7}, {9.3.2.7}, {7.1.25.2} |
436 | सोऽअ॒र्षेन्द्रा᳚यपी॒तये᳚ति॒रोरोमा᳚ण्य॒व्यया᳚ | सीद॒न्योना॒वने॒ष्वा || {9.62.8}, {9.3.2.8}, {7.1.25.3} |
437 | त्वमि᳚न्दो॒परि॑स्रव॒स्वादि॑ष्ठो॒ऽअङ्गि॑रोभ्यः | व॒रि॒वो॒विद्घृ॒तंपयः॑ || {9.62.9}, {9.3.2.9}, {7.1.25.4} |
438 | अ॒यंविच॑र्षणिर्हि॒तःपव॑मानः॒सचे᳚तति | हि॒न्वा॒नऽआप्यं᳚बृ॒हत् || {9.62.10}, {9.3.2.10}, {7.1.25.5} |
439 | ए॒षवृषा॒वृष᳚व्रतः॒पव॑मानोऽअशस्ति॒हा | कर॒द्वसू᳚निदा॒शुषे᳚ || {9.62.11}, {9.3.2.11}, {7.1.26.1} |
440 | आप॑वस्वसह॒स्रिणं᳚र॒यिंगोम᳚न्तम॒श्विन᳚म् | पु॒रु॒श्च॒न्द्रंपु॑रु॒स्पृह᳚म् || {9.62.12}, {9.3.2.12}, {7.1.26.2} |
441 | ए॒षस्यपरि॑षिच्यतेमर्मृ॒ज्यमा᳚नऽआ॒युभिः॑ | उ॒रु॒गा॒यःक॒विक्र॑तुः || {9.62.13}, {9.3.2.13}, {7.1.26.3} |
442 | स॒हस्रो᳚तिःश॒ताम॑घोवि॒मानो॒रज॑सःक॒विः | इन्द्रा᳚यपवते॒मदः॑ || {9.62.14}, {9.3.2.14}, {7.1.26.4} |
443 | गि॒राजा॒तऽइ॒हस्तु॒तऽइन्दु॒रिन्द्रा᳚यधीयते | विर्योना᳚वस॒तावि॑व || {9.62.15}, {9.3.2.15}, {7.1.26.5} |
444 | पव॑मानःसु॒तोनृभिः॒सोमो॒वाज॑मिवासरत् | च॒मूषु॒शक्म॑ना॒सद᳚म् || {9.62.16}, {9.3.2.16}, {7.1.27.1} |
445 | तंत्रि॑पृ॒ष्ठेत्रि॑वन्धु॒रेरथे᳚युञ्जन्ति॒यात॑वे | ऋषी᳚णांस॒प्तधी॒तिभिः॑ || {9.62.17}, {9.3.2.17}, {7.1.27.2} |
446 | तंसो᳚तारोधन॒स्पृत॑मा॒शुंवाजा᳚य॒यात॑वे | हरिं᳚हिनोतवा॒जिन᳚म् || {9.62.18}, {9.3.2.18}, {7.1.27.3} |
447 | आ॒वि॒शन्क॒लशं᳚सु॒तोविश्वा॒ऽअर्ष᳚न्न॒भिश्रियः॑ | शूरो॒नगोषु॑तिष्ठति || {9.62.19}, {9.3.2.19}, {7.1.27.4} |
448 | आत॑ऽइन्दो॒मदा᳚य॒कंपयो᳚दुहन्त्या॒यवः॑ | दे॒वादे॒वेभ्यो॒मधु॑ || {9.62.20}, {9.3.2.20}, {7.1.27.5} |
449 | आनः॒सोमं᳚प॒वित्र॒ऽआसृ॒जता॒मधु॑मत्तमम् | दे॒वेभ्यो᳚देव॒श्रुत्त॑मम् || {9.62.21}, {9.3.2.21}, {7.1.28.1} |
450 | ए॒तेसोमा᳚ऽअसृक्षतगृणा॒नाःश्रव॑सेम॒हे | म॒दिन्त॑मस्य॒धार॑या || {9.62.22}, {9.3.2.22}, {7.1.28.2} |
451 | अ॒भिगव्या᳚निवी॒तये᳚नृ॒म्णापु॑ना॒नोऽअ॑र्षसि | स॒नद्वा᳚जः॒परि॑स्रव || {9.62.23}, {9.3.2.23}, {7.1.28.3} |
452 | उ॒तनो॒गोम॑ती॒रिषो॒विश्वा᳚ऽअर्षपरि॒ष्टुभः॑ | गृ॒णा॒नोज॒मद॑ग्निना || {9.62.24}, {9.3.2.24}, {7.1.28.4} |
453 | पव॑स्ववा॒चोऽअ॑ग्रि॒यःसोम॑चि॒त्राभि॑रू॒तिभिः॑ | अ॒भिविश्वा᳚नि॒काव्या᳚ || {9.62.25}, {9.3.2.25}, {7.1.28.5} |
454 | त्वंस॑मु॒द्रिया᳚ऽअ॒पो᳚ऽग्रि॒योवाच॑ऽई॒रय॑न् | पव॑स्वविश्वमेजय || {9.62.26}, {9.3.2.26}, {7.1.29.1} |
455 | तुभ्ये॒माभुव॑नाकवेमहि॒म्नेसो᳚मतस्थिरे | तुभ्य॑मर्षन्ति॒सिन्ध॑वः || {9.62.27}, {9.3.2.27}, {7.1.29.2} |
456 | प्रते᳚दि॒वोनवृ॒ष्टयो॒धारा᳚यन्त्यस॒श्चतः॑ | अ॒भिशु॒क्रामु॑प॒स्तिर᳚म् || {9.62.28}, {9.3.2.28}, {7.1.29.3} |
457 | इन्द्रा॒येन्दुं᳚पुनीतनो॒ग्रंदक्षा᳚य॒साध॑नम् | ई॒शा॒नंवी॒तिरा᳚धसम् || {9.62.29}, {9.3.2.29}, {7.1.29.4} |
458 | पव॑मानऋ॒तःक॒विःसोमः॑प॒वित्र॒मास॑दत् | दध॑त्स्तो॒त्रेसु॒वीर्य᳚म् || {9.62.30}, {9.3.2.30}, {7.1.29.5} |
[63] (१-३०) त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य काश्यपो निध्रविषिः, पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
459 | आप॑वस्वसह॒स्रिणं᳚र॒यिंसो᳚मसु॒वीर्य᳚म् | अ॒स्मेश्रवां᳚सिधारय || {9.63.1}, {9.3.3.1}, {7.1.30.1} |
460 | इष॒मूर्जं᳚चपिन्वस॒ऽइन्द्रा᳚यमत्स॒रिन्त॑मः | च॒मूष्वानिषी᳚दसि || {9.63.2}, {9.3.3.2}, {7.1.30.2} |
461 | सु॒तऽइन्द्रा᳚य॒विष्ण॑वे॒सोमः॑क॒लशे᳚ऽअक्षरत् | मधु॑माँऽअस्तुवा॒यवे᳚ || {9.63.3}, {9.3.3.3}, {7.1.30.3} |
462 | ए॒तेऽअ॑सृग्रमा॒शवोऽति॒ह्वरां᳚सिब॒भ्रवः॑ | सोमा᳚ऋ॒तस्य॒धार॑या || {9.63.4}, {9.3.3.4}, {7.1.30.4} |
463 | इन्द्रं॒वर्ध᳚न्तोऽअ॒प्तुरः॑कृ॒ण्वन्तो॒विश्व॒मार्य᳚म् | अ॒प॒घ्नन्तो॒ऽअरा᳚व्णः || {9.63.5}, {9.3.3.5}, {7.1.30.5} |
464 | सु॒ताऽअनु॒स्वमारजो॒ऽभ्य॑र्षन्तिब॒भ्रवः॑ | इन्द्रं॒गच्छ᳚न्त॒ऽइन्द॑वः || {9.63.6}, {9.3.3.6}, {7.1.31.1} |
465 | अ॒याप॑वस्व॒धार॑या॒यया॒सूर्य॒मरो᳚चयः | हि॒न्वा॒नोमानु॑षीर॒पः || {9.63.7}, {9.3.3.7}, {7.1.31.2} |
466 | अयु॑क्त॒सूर॒ऽएत॑शं॒पव॑मानोम॒नावधि॑ | अ॒न्तरि॑क्षेण॒यात॑वे || {9.63.8}, {9.3.3.8}, {7.1.31.3} |
467 | उ॒तत्याह॒रितो॒दश॒सूरो᳚ऽअयुक्त॒यात॑वे | इन्दु॒रिन्द्र॒ऽइति॑ब्रु॒वन् || {9.63.9}, {9.3.3.9}, {7.1.31.4} |
468 | परी॒तोवा॒यवे᳚सु॒तंगिर॒ऽइन्द्रा᳚यमत्स॒रम् | अव्यो॒वारे᳚षुसिञ्चत || {9.63.10}, {9.3.3.10}, {7.1.31.5} |
469 | पव॑मानवि॒दार॒यिम॒स्मभ्यं᳚सोमदु॒ष्टर᳚म् | योदू॒णाशो᳚वनुष्य॒ता || {9.63.11}, {9.3.3.11}, {7.1.32.1} |
470 | अ॒भ्य॑र्षसह॒स्रिणं᳚र॒यिंगोम᳚न्तम॒श्विन᳚म् | अ॒भिवाज॑मु॒तश्रवः॑ || {9.63.12}, {9.3.3.12}, {7.1.32.2} |
471 | सोमो᳚दे॒वोनसूर्योऽद्रि॑भिःपवतेसु॒तः | दधा᳚नःक॒लशे॒रस᳚म् || {9.63.13}, {9.3.3.13}, {7.1.32.3} |
472 | ए॒तेधामा॒न्यार्या᳚शु॒क्राऋ॒तस्य॒धार॑या | वाजं॒गोम᳚न्तमक्षरन् || {9.63.14}, {9.3.3.14}, {7.1.32.4} |
473 | सु॒ताऽइन्द्रा᳚यव॒ज्रिणे॒सोमा᳚सो॒दध्या᳚शिरः | प॒वित्र॒मत्य॑क्षरन् || {9.63.15}, {9.3.3.15}, {7.1.32.5} |
474 | प्रसो᳚म॒मधु॑मत्तमोरा॒येऽअ॑र्षप॒वित्र॒ऽआ | मदो॒योदे᳚व॒वीत॑मः || {9.63.16}, {9.3.3.16}, {7.1.33.1} |
475 | तमी᳚मृजन्त्या॒यवो॒हरिं᳚न॒दीषु॑वा॒जिन᳚म् | इन्दु॒मिन्द्रा᳚यमत्स॒रम् || {9.63.17}, {9.3.3.17}, {7.1.33.2} |
476 | आप॑वस्व॒हिर᳚ण्यव॒दश्वा᳚वत्सोमवी॒रव॑त् | वाजं॒गोम᳚न्त॒माभ॑र || {9.63.18}, {9.3.3.18}, {7.1.33.3} |
477 | परि॒वाजे॒नवा᳚ज॒युमव्यो॒वारे᳚षुसिञ्चत | इन्द्रा᳚य॒मधु॑मत्तमम् || {9.63.19}, {9.3.3.19}, {7.1.33.4} |
478 | क॒विंमृ॑जन्ति॒मर्ज्यं᳚धी॒भिर्विप्रा᳚ऽअव॒स्यवः॑ | वृषा॒कनि॑क्रदर्षति || {9.63.20}, {9.3.3.20}, {7.1.33.5} |
479 | वृष॑णंधी॒भिर॒प्तुरं॒सोम॑मृ॒तस्य॒धार॑या | म॒तीविप्राः॒सम॑स्वरन् || {9.63.21}, {9.3.3.21}, {7.1.34.1} |
480 | पव॑स्वदेवायु॒षगिन्द्रं᳚गच्छतुते॒मदः॑ | वा॒युमारो᳚ह॒धर्म॑णा || {9.63.22}, {9.3.3.22}, {7.1.34.2} |
481 | पव॑मान॒नितो᳚शसेर॒यिंसो᳚मश्र॒वाय्य᳚म् | प्रि॒यःस॑मु॒द्रमावि॑श || {9.63.23}, {9.3.3.23}, {7.1.34.3} |
482 | अ॒प॒घ्नन्प॑वसे॒मृधः॑क्रतु॒वित्सो᳚ममत्स॒रः | नु॒दस्वादे᳚वयुं॒जन᳚म् || {9.63.24}, {9.3.3.24}, {7.1.34.4} |
483 | पव॑मानाऽअसृक्षत॒सोमाः᳚शु॒क्रास॒ऽइन्द॑वः | अ॒भिविश्वा᳚नि॒काव्या᳚ || {9.63.25}, {9.3.3.25}, {7.1.34.5} |
484 | पव॑मानासऽआ॒शवः॑शु॒भ्राऽअ॑सृग्र॒मिन्द॑वः | घ्नन्तो॒विश्वा॒ऽअप॒द्विषः॑ || {9.63.26}, {9.3.3.26}, {7.1.35.1} |
485 | पव॑मानादि॒वस्पर्य॒न्तरि॑क्षादसृक्षत | पृ॒थि॒व्याऽअधि॒सान॑वि || {9.63.27}, {9.3.3.27}, {7.1.35.2} |
486 | पु॒ना॒नःसो᳚म॒धार॒येन्दो॒विश्वा॒ऽअप॒स्रिधः॑ | ज॒हिरक्षां᳚सिसुक्रतो || {9.63.28}, {9.3.3.28}, {7.1.35.3} |
487 | अ॒प॒घ्नन्त्सो᳚मर॒क्षसो॒ऽभ्य॑र्ष॒कनि॑क्रदत् | द्यु॒मन्तं॒शुष्म॑मुत्त॒मम् || {9.63.29}, {9.3.3.29}, {7.1.35.4} |
488 | अ॒स्मेवसू᳚निधारय॒सोम॑दि॒व्यानि॒पार्थि॑वा | इन्दो॒विश्वा᳚नि॒वार्या᳚ || {9.63.30}, {9.3.3.30}, {7.1.35.5} |
[64] (१-३०) त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य मारीचः कश्यप ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
489 | वृषा᳚सोमद्यु॒माँऽअ॑सि॒वृषा᳚देव॒वृष᳚व्रतः | वृषा॒धर्मा᳚णिदधिषे || {9.64.1}, {9.3.4.1}, {7.1.36.1} |
490 | वृष्ण॑स्ते॒वृष्ण्यं॒शवो॒वृषा॒वनं॒वृषा॒मदः॑ | स॒त्यंवृ॑ष॒न्वृषेद॑सि || {9.64.2}, {9.3.4.2}, {7.1.36.2} |
491 | अश्वो॒नच॑क्रदो॒वृषा॒संगाऽइ᳚न्दो॒समर्व॑तः | विनो᳚रा॒येदुरो᳚वृधि || {9.64.3}, {9.3.4.3}, {7.1.36.3} |
492 | असृ॑क्षत॒प्रवा॒जिनो᳚ग॒व्यासोमा᳚सोऽअश्व॒या | शु॒क्रासो᳚वीर॒याशवः॑ || {9.64.4}, {9.3.4.4}, {7.1.36.4} |
493 | शु॒म्भमा᳚नाऋता॒युभि᳚र्मृ॒ज्यमा᳚ना॒गभ॑स्त्योः | पव᳚न्ते॒वारे᳚ऽअ॒व्यये᳚ || {9.64.5}, {9.3.4.5}, {7.1.36.5} |
494 | तेविश्वा᳚दा॒शुषे॒वसु॒सोमा᳚दि॒व्यानि॒पार्थि॑वा | पव᳚न्ता॒मान्तरि॑क्ष्या || {9.64.6}, {9.3.4.6}, {7.1.37.1} |
495 | पव॑मानस्यविश्ववि॒त्प्रते॒सर्गा᳚ऽअसृक्षत | सूर्य॑स्येव॒नर॒श्मयः॑ || {9.64.7}, {9.3.4.7}, {7.1.37.2} |
496 | के॒तुंकृ॒ण्वन्दि॒वस्परि॒विश्वा᳚रू॒पाभ्य॑र्षसि | स॒मु॒द्रःसो᳚मपिन्वसे || {9.64.8}, {9.3.4.8}, {7.1.37.3} |
497 | हि॒न्वा॒नोवाच॑मिष्यसि॒पव॑मान॒विध᳚र्मणि | अक्रा᳚न्दे॒वोनसूर्यः॑ || {9.64.9}, {9.3.4.9}, {7.1.37.4} |
498 | इन्दुः॑पविष्ट॒चेत॑नःप्रि॒यःक॑वी॒नांम॒ती | सृ॒जदश्वं᳚र॒थीरि॑व || {9.64.10}, {9.3.4.10}, {7.1.37.5} |
499 | ऊ॒र्मिर्यस्ते᳚प॒वित्र॒ऽआदे᳚वा॒वीःप॒र्यक्ष॑रत् | सीद᳚न्नृ॒तस्य॒योनि॒मा || {9.64.11}, {9.3.4.11}, {7.1.38.1} |
500 | सनो᳚ऽअर्षप॒वित्र॒ऽआमदो॒योदे᳚व॒वीत॑मः | इन्द॒विन्द्रा᳚यपी॒तये᳚ || {9.64.12}, {9.3.4.12}, {7.1.38.2} |
501 | इ॒षेप॑वस्व॒धार॑यामृ॒ज्यमा᳚नोमनी॒षिभिः॑ | इन्दो᳚रु॒चाभिगाऽइ॑हि || {9.64.13}, {9.3.4.13}, {7.1.38.3} |
502 | पु॒ना॒नोवरि॑वस्कृ॒ध्यूर्जं॒जना᳚यगिर्वणः | हरे᳚सृजा॒नऽआ॒शिर᳚म् || {9.64.14}, {9.3.4.14}, {7.1.38.4} |
503 | पु॒ना॒नोदे॒ववी᳚तय॒ऽइन्द्र॑स्ययाहिनिष्कृ॒तम् | द्यु॒ता॒नोवा॒जिभि᳚र्य॒तः || {9.64.15}, {9.3.4.15}, {7.1.38.5} |
504 | प्रहि᳚न्वा॒नास॒ऽइन्द॒वोऽच्छा᳚समु॒द्रमा॒शवः॑ | धि॒याजू॒ताऽअ॑सृक्षत || {9.64.16}, {9.3.4.16}, {7.1.39.1} |
505 | म॒र्मृ॒जा॒नास॑ऽआ॒यवो॒वृथा᳚समु॒द्रमिन्द॑वः | अग्म᳚न्नृ॒तस्य॒योनि॒मा || {9.64.17}, {9.3.4.17}, {7.1.39.2} |
506 | परि॑णोयाह्यस्म॒युर्विश्वा॒वसू॒न्योज॑सा | पा॒हिनः॒शर्म॑वी॒रव॑त् || {9.64.18}, {9.3.4.18}, {7.1.39.3} |
507 | मिमा᳚ति॒वह्नि॒रेत॑शःप॒दंयु॑जा॒नऋक्व॑भिः | प्रयत्स॑मु॒द्रऽआहि॑तः || {9.64.19}, {9.3.4.19}, {7.1.39.4} |
508 | आयद्योनिं᳚हिर॒ण्यय॑मा॒शुर्ऋ॒तस्य॒सीद॑ति | जहा॒त्यप्र॑चेतसः || {9.64.20}, {9.3.4.20}, {7.1.39.5} |
509 | अ॒भिवे॒नाऽअ॑नूष॒तेय॑क्षन्ति॒प्रचे᳚तसः | मज्ज॒न्त्यवि॑चेतसः || {9.64.21}, {9.3.4.21}, {7.1.40.1} |
510 | इन्द्रा᳚येन्दोम॒रुत्व॑ते॒पव॑स्व॒मधु॑मत्तमः | ऋ॒तस्य॒योनि॑मा॒सद᳚म् || {9.64.22}, {9.3.4.22}, {7.1.40.2} |
511 | तंत्वा॒विप्रा᳚वचो॒विदः॒परि॑ष्कृण्वन्तिवे॒धसः॑ | संत्वा᳚मृजन्त्या॒यवः॑ || {9.64.23}, {9.3.4.23}, {7.1.40.3} |
512 | रसं᳚तेमि॒त्रोऽअ᳚र्य॒मापिब᳚न्ति॒वरु॑णःकवे | पव॑मानस्यम॒रुतः॑ || {9.64.24}, {9.3.4.24}, {7.1.40.4} |
513 | त्वंसो᳚मविप॒श्चितं᳚पुना॒नोवाच॑मिष्यसि | इन्दो᳚स॒हस्र॑भर्णसम् || {9.64.25}, {9.3.4.25}, {7.1.40.5} |
514 | उ॒तोस॒हस्र॑भर्णसं॒वाचं᳚सोममख॒स्युव᳚म् | पु॒ना॒नऽइ᳚न्द॒वाभ॑र || {9.64.26}, {9.3.4.26}, {7.1.41.1} |
515 | पु॒ना॒नऽइ᳚न्दवेषां॒पुरु॑हूत॒जना᳚नाम् | प्रि॒यःस॑मु॒द्रमावि॑श || {9.64.27}, {9.3.4.27}, {7.1.41.2} |
516 | दवि॑द्युतत्यारु॒चाप॑रि॒ष्टोभ᳚न्त्याकृ॒पा | सोमाः᳚शु॒क्रागवा᳚शिरः || {9.64.28}, {9.3.4.28}, {7.1.41.3} |
517 | हि॒न्वा॒नोहे॒तृभि᳚र्य॒तऽआवाजं᳚वा॒ज्य॑क्रमीत् | सीद᳚न्तोव॒नुषो᳚यथा || {9.64.29}, {9.3.4.29}, {7.1.41.4} |
518 | ऋ॒धक्सो᳚मस्व॒स्तये᳚संजग्मा॒नोदि॒वःक॒विः | पव॑स्व॒सूर्यो᳚दृ॒शे || {9.64.30}, {9.3.4.30}, {7.1.41.5} |
[65] (१-३०) त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य वारुणिभृर्ग भु गिर्वो जमदग्निर्वा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | गायत्री छन्दः || | |
519 | हि॒न्वन्ति॒सूर॒मुस्र॑यः॒स्वसा᳚रोजा॒मय॒स्पति᳚म् | म॒हामिन्दुं᳚मही॒युवः॑ || {9.65.1}, {9.3.5.1}, {7.2.1.1} |
520 | पव॑मानरु॒चारु॑चादे॒वोदे॒वेभ्य॒स्परि॑ | विश्वा॒वसू॒न्यावि॑श || {9.65.2}, {9.3.5.2}, {7.2.1.2} |
521 | आप॑वमानसुष्टु॒तिंवृ॒ष्टिंदे॒वेभ्यो॒दुवः॑ | इ॒षेप॑वस्वसं॒यत᳚म् || {9.65.3}, {9.3.5.3}, {7.2.1.3} |
522 | वृषा॒ह्यसि॑भा॒नुना᳚द्यु॒मन्तं᳚त्वाहवामहे | पव॑मानस्वा॒ध्यः॑ || {9.65.4}, {9.3.5.4}, {7.2.1.4} |
523 | आप॑वस्वसु॒वीर्यं॒मन्द॑मानःस्वायुध | इ॒होष्वि᳚न्द॒वाग॑हि || {9.65.5}, {9.3.5.5}, {7.2.1.5} |
524 | यद॒द्भिःप॑रिषि॒च्यसे᳚मृ॒ज्यमा᳚नो॒गभ॑स्त्योः | द्रुणा᳚स॒धस्थ॑मश्नुषे || {9.65.6}, {9.3.5.6}, {7.2.2.1} |
525 | प्रसोमा᳚यव्यश्व॒वत्पव॑मानायगायत | म॒हेस॒हस्र॑चक्षसे || {9.65.7}, {9.3.5.7}, {7.2.2.2} |
526 | यस्य॒वर्णं᳚मधु॒श्चुतं॒हरिं᳚हि॒न्वन्त्यद्रि॑भिः | इन्दु॒मिन्द्रा᳚यपी॒तये᳚ || {9.65.8}, {9.3.5.8}, {7.2.2.3} |
527 | तस्य॑तेवा॒जिनो᳚व॒यंविश्वा॒धना᳚निजि॒ग्युषः॑ | स॒खि॒त्वमावृ॑णीमहे || {9.65.9}, {9.3.5.9}, {7.2.2.4} |
528 | वृषा᳚पवस्व॒धार॑याम॒रुत्व॑तेचमत्स॒रः | विश्वा॒दधा᳚न॒ऽओज॑सा || {9.65.10}, {9.3.5.10}, {7.2.2.5} |
529 | तंत्वा᳚ध॒र्तार॑मो॒ण्यो॒३॑(ओ॒)ःपव॑मानस्व॒र्दृश᳚म् | हि॒न्वेवाजे᳚षुवा॒जिन᳚म् || {9.65.11}, {9.3.5.11}, {7.2.3.1} |
530 | अ॒याचि॒त्तोवि॒पानया॒हरिः॑पवस्व॒धार॑या | युजं॒वाजे᳚षुचोदय || {9.65.12}, {9.3.5.12}, {7.2.3.2} |
531 | आन॑ऽइन्दोम॒हीमिषं॒पव॑स्ववि॒श्वद॑र्शतः | अ॒स्मभ्यं᳚सोमगातु॒वित् || {9.65.13}, {9.3.5.13}, {7.2.3.3} |
532 | आक॒लशा᳚ऽअनूष॒तेन्दो॒धारा᳚भि॒रोज॑सा | एन्द्र॑स्यपी॒तये᳚विश || {9.65.14}, {9.3.5.14}, {7.2.3.4} |
533 | यस्य॑ते॒मद्यं॒रसं᳚ती॒व्रंदु॒हन्त्यद्रि॑भिः | सप॑वस्वाभिमाति॒हा || {9.65.15}, {9.3.5.15}, {7.2.3.5} |
534 | राजा᳚मे॒धाभि॑रीयते॒पव॑मानोम॒नावधि॑ | अ॒न्तरि॑क्षेण॒यात॑वे || {9.65.16}, {9.3.5.16}, {7.2.4.1} |
535 | आन॑ऽइन्दोशत॒ग्विनं॒गवां॒पोषं॒स्वश्व्य᳚म् | वहा॒भग॑त्तिमू॒तये᳚ || {9.65.17}, {9.3.5.17}, {7.2.4.2} |
536 | आनः॑सोम॒सहो॒जुवो᳚रू॒पंनवर्च॑सेभर | सु॒ष्वा॒णोदे॒ववी᳚तये || {9.65.18}, {9.3.5.18}, {7.2.4.3} |
537 | अर्षा᳚सोमद्यु॒मत्त॑मो॒ऽभिद्रोणा᳚नि॒रोरु॑वत् | सीद᳚ञ्छ्ये॒नोनयोनि॒मा || {9.65.19}, {9.3.5.19}, {7.2.4.4} |
538 | अ॒प्साऽइन्द्रा᳚यवा॒यवे॒वरु॑णायम॒रुद्भ्यः॑ | सोमो᳚ऽअर्षति॒विष्ण॑वे || {9.65.20}, {9.3.5.20}, {7.2.4.5} |
539 | इषं᳚तो॒काय॑नो॒दध॑द॒स्मभ्यं᳚सोमवि॒श्वतः॑ | आप॑वस्वसह॒स्रिण᳚म् || {9.65.21}, {9.3.5.21}, {7.2.5.1} |
540 | येसोमा᳚सःपरा॒वति॒येऽअ᳚र्वा॒वति॑सुन्वि॒रे | येवा॒दःश᳚र्य॒णाव॑ति || {9.65.22}, {9.3.5.22}, {7.2.5.2} |
541 | यऽआ᳚र्जी॒केषु॒कृत्व॑सु॒येमध्ये᳚प॒स्त्या᳚नाम् | येवा॒जने᳚षुप॒ञ्चसु॑ || {9.65.23}, {9.3.5.23}, {7.2.5.3} |
542 | तेनो᳚वृ॒ष्टिंदि॒वस्परि॒पव᳚न्ता॒मासु॒वीर्य᳚म् | सु॒वा॒नादे॒वास॒ऽइन्द॑वः || {9.65.24}, {9.3.5.24}, {7.2.5.4} |
543 | पव॑तेहर्य॒तोहरि॑र्गृणा॒नोज॒मद॑ग्निना | हि॒न्वा॒नोगोरधि॑त्व॒चि || {9.65.25}, {9.3.5.25}, {7.2.5.5} |
544 | प्रशु॒क्रासो᳚वयो॒जुवो᳚हिन्वा॒नासो॒नसप्त॑यः | श्री॒णा॒नाऽअ॒प्सुमृ᳚ञ्जत || {9.65.26}, {9.3.5.26}, {7.2.6.1} |
545 | तंत्वा᳚सु॒तेष्वा॒भुवो᳚हिन्वि॒रेदे॒वता᳚तये | सप॑वस्वा॒नया᳚रु॒चा || {9.65.27}, {9.3.5.27}, {7.2.6.2} |
546 | आते॒दक्षं᳚मयो॒भुवं॒वह्नि॑म॒द्यावृ॑णीमहे | पान्त॒मापु॑रु॒स्पृह᳚म् || {9.65.28}, {9.3.5.28}, {7.2.6.3} |
547 | आम॒न्द्रमावरे᳚ण्य॒माविप्र॒माम॑नी॒षिण᳚म् | पान्त॒मापु॑रु॒स्पृह᳚म् || {9.65.29}, {9.3.5.29}, {7.2.6.4} |
548 | आर॒यिमासु॑चे॒तुन॒मासु॑क्रतोत॒नूष्वा | पान्त॒मापु॑रु॒स्पृह᳚म् || {9.65.30}, {9.3.5.30}, {7.2.6.5} |
[66] (१-३०) त्रिंशदृचस्य सूक्तस्य शतं वैखानसा ऋषयः (१-१८, २२-३०) प्रथमाद्यष्टादशों द्वाविंश्यादिनवानाञ्च पवमानः सोमः, (१९-२१) एकोनविंश्यादितृचस्य च पवमानोऽग्निदेवते | (१-१७, १९-३०) प्रथमादिसप्तदशर्चामक नविंश्यादिद्वादशानाञ्च गायत्री, (१८) अष्टादश्याश्चानुष्टप् छन्दसी || | |
549 | पव॑स्वविश्वचर्षणे॒ऽभिविश्वा᳚नि॒काव्या᳚ | सखा॒सखि॑भ्य॒ऽईड्यः॑ || {9.66.1}, {9.3.6.1}, {7.2.7.1} |
550 | ताभ्यां॒विश्व॑स्यराजसि॒येप॑वमान॒धाम॑नी | प्र॒ती॒चीसो᳚मत॒स्थतुः॑ || {9.66.2}, {9.3.6.2}, {7.2.7.2} |
551 | परि॒धामा᳚नि॒यानि॑ते॒त्वंसो᳚मासिवि॒श्वतः॑ | पव॑मानऋ॒तुभिः॑कवे || {9.66.3}, {9.3.6.3}, {7.2.7.3} |
552 | पव॑स्वज॒नय॒न्निषो॒ऽभिविश्वा᳚नि॒वार्या᳚ | सखा॒सखि॑भ्यऽऊ॒तये᳚ || {9.66.4}, {9.3.6.4}, {7.2.7.4} |
553 | तव॑शु॒क्रासो᳚ऽअ॒र्चयो᳚दि॒वस्पृ॒ष्ठेवित᳚न्वते | प॒वित्रं᳚सोम॒धाम॑भिः || {9.66.5}, {9.3.6.5}, {7.2.7.5} |
554 | तवे॒मेस॒प्तसिन्ध॑वःप्र॒शिषं᳚सोमसिस्रते | तुभ्यं᳚धावन्तिधे॒नवः॑ || {9.66.6}, {9.3.6.6}, {7.2.8.1} |
555 | प्रसो᳚मयाहि॒धार॑यासु॒तऽइन्द्रा᳚यमत्स॒रः | दधा᳚नो॒ऽअक्षि॑ति॒श्रवः॑ || {9.66.7}, {9.3.6.7}, {7.2.8.2} |
556 | समु॑त्वाधी॒भिर॑स्वरन्हिन्व॒तीःस॒प्तजा॒मयः॑ | विप्र॑मा॒जावि॒वस्व॑तः || {9.66.8}, {9.3.6.8}, {7.2.8.3} |
557 | मृ॒जन्ति॑त्वा॒सम॒ग्रुवोऽव्ये᳚जी॒रावधि॒ष्वणि॑ | रे॒भोयद॒ज्यसे॒वने᳚ || {9.66.9}, {9.3.6.9}, {7.2.8.4} |
558 | पव॑मानस्यतेकवे॒वाजि॒न्त्सर्गा᳚ऽअसृक्षत | अर्व᳚न्तो॒नश्र॑व॒स्यवः॑ || {9.66.10}, {9.3.6.10}, {7.2.8.5} |
559 | अच्छा॒कोशं᳚मधु॒श्चुत॒मसृ॑ग्रं॒वारे᳚ऽअ॒व्यये᳚ | अवा᳚वशन्तधी॒तयः॑ || {9.66.11}, {9.3.6.11}, {7.2.9.1} |
560 | अच्छा᳚समु॒द्रमिन्द॒वोऽस्तं॒गावो॒नधे॒नवः॑ | अग्म᳚न्नृ॒तस्य॒योनि॒मा || {9.66.12}, {9.3.6.12}, {7.2.9.2} |
561 | प्रण॑ऽइन्दोम॒हेरण॒ऽआपो᳚ऽअर्षन्ति॒सिन्ध॑वः | यद्गोभि᳚र्वासयि॒ष्यसे᳚ || {9.66.13}, {9.3.6.13}, {7.2.9.3} |
562 | अस्य॑तेस॒ख्येव॒यमिय॑क्षन्त॒स्त्वोत॑यः | इन्दो᳚सखि॒त्वमु॑श्मसि || {9.66.14}, {9.3.6.14}, {7.2.9.4} |
563 | आप॑वस्व॒गवि॑ष्टयेम॒हेसो᳚मनृ॒चक्ष॑से | एन्द्र॑स्यज॒ठरे᳚विश || {9.66.15}, {9.3.6.15}, {7.2.9.5} |
564 | म॒हाँऽअ॑सिसोम॒ज्येष्ठ॑ऽउ॒ग्राणा᳚मिन्द॒ऽओजि॑ष्ठः | युध्वा॒सञ्छश्व॑ज्जिगेथ || {9.66.16}, {9.3.6.16}, {7.2.10.1} |
565 | यऽउ॒ग्रेभ्य॑श्चि॒दोजी᳚या॒ञ्छूरे᳚भ्यश्चि॒च्छूर॑तरः | भू॒रि॒दाभ्य॑श्चि॒न्मंही᳚यान् || {9.66.17}, {9.3.6.17}, {7.2.10.2} |
566 | त्वंसो᳚म॒सूर॒ऽएष॑स्तो॒कस्य॑सा॒तात॒नूना᳚म् | वृ॒णी॒महे᳚स॒ख्याय॑वृणी॒महे॒युज्या᳚य || {9.66.18}, {9.3.6.18}, {7.2.10.3} |
567 | अग्न॒ऽआयूं᳚षिपवस॒ऽआसु॒वोर्ज॒मिषं᳚चनः | आ॒रेबा᳚धस्वदु॒च्छुना᳚म् || {9.66.19}, {9.3.6.19}, {7.2.10.4} |
568 | अ॒ग्निर्ऋषिः॒पव॑मानः॒पाञ्च॑जन्यःपु॒रोहि॑तः | तमी᳚महेमहाग॒यम् || {9.66.20}, {9.3.6.20}, {7.2.10.5} |
569 | अग्ने॒पव॑स्व॒स्वपा᳚ऽअ॒स्मेवर्चः॑सु॒वीर्य᳚म् | दध॑द्र॒यिंमयि॒पोष᳚म् || {9.66.21}, {9.3.6.21}, {7.2.11.1} |
570 | पव॑मानो॒ऽअति॒स्रिधो॒ऽभ्य॑र्षतिसुष्टु॒तिम् | सूरो॒नवि॒श्वद॑र्शतः || {9.66.22}, {9.3.6.22}, {7.2.11.2} |
571 | सम᳚र्मृजा॒नऽआ॒युभिः॒प्रय॑स्वा॒न्प्रय॑सेहि॒तः | इन्दु॒रत्यो᳚विचक्ष॒णः || {9.66.23}, {9.3.6.23}, {7.2.11.3} |
572 | पव॑मानऋ॒तंबृ॒हच्छु॒क्रंज्योति॑रजीजनत् | कृ॒ष्णातमां᳚सि॒जङ्घ॑नत् || {9.66.24}, {9.3.6.24}, {7.2.11.4} |
573 | पव॑मानस्य॒जङ्घ्न॑तो॒हरे᳚श्च॒न्द्राऽअ॑सृक्षत | जी॒राऽअ॑जि॒रशो᳚चिषः || {9.66.25}, {9.3.6.25}, {7.2.11.5} |
574 | पव॑मानोर॒थीत॑मःशु॒भ्रेभिः॑शु॒भ्रश॑स्तमः | हरि॑श्चन्द्रोम॒रुद्ग॑णः || {9.66.26}, {9.3.6.26}, {7.2.12.1} |
575 | पव॑मानो॒व्य॑श्नवद्र॒श्मिभि᳚र्वाज॒सात॑मः | दध॑त्स्तो॒त्रेसु॒वीर्य᳚म् || {9.66.27}, {9.3.6.27}, {7.2.12.2} |
576 | प्रसु॑वा॒नऽइन्दु॑रक्षाःप॒वित्र॒मत्य॒व्यय᳚म् | पु॒ना॒नऽइन्दु॒रिन्द्र॒मा || {9.66.28}, {9.3.6.28}, {7.2.12.3} |
577 | ए॒षसोमो॒ऽअधि॑त्व॒चिगवां᳚क्रीळ॒त्यद्रि॑भिः | इन्द्रं॒मदा᳚य॒जोहु॑वत् || {9.66.29}, {9.3.6.29}, {7.2.12.4} |
578 | यस्य॑तेद्यु॒म्नव॒त्पयः॒पव॑मा॒नाभृ॑तंदि॒वः | तेन॑नोमृळजी॒वसे᳚ || {9.66.30}, {9.3.6.30}, {7.2.12.5} |
[67] (१-३२) द्वात्रिंशदृचस्य सूक्तस्य सप्तर्षयः-(१-३) प्रथमादितृचस्य बार्हस्पत्यो भरद्वाजः, (४-६) चतुर्थ्यादितृचस्य मारीचः कश्यपः, (७-९) सप्तम्यादितृचस्य रहूगणो गोतमः, (१०-१२) दशम्यादितृचस्य भौमोऽत्रिः, (१३-१५) त्रयोदश्यादितृचस्य गाथिनो विश्वामित्रः, (१६-१८) षोडश्यादितृचस्य भार्गवो जमदग्निः, (१९-२१) एकोनविंश्यादितृचस्य मैत्रावरुणिर्वसिष्ठः, (२२-३२) द्वाविंश्याद्येकादश ञ्चाङ्गिरसः पवित्रो वसिष्ठो वोभौ वा ऋषयः (१-९, १३-२२, २८-३०) प्रथमादिनवर्चाम् त्रयोदश्यादिदशानामष्टाविंश्यादितृचस्य च पवमानः सोमः, (१०-१२) दशम्यादितृचस्य पवमानः पूषा सोमो वा, (२३-२४) त्रयोविंशीचतुर्विंश्योः पवमानोऽग्निः, (२५) पञ्चविंश्याः पवमानोऽग्निः सविता वा, (२६) षड्विशं याः पवमानोऽग्निः पवमानाग्निसवितारो वा, (२७) सप्तविंश्याः पवमानोऽग्निर्विश्वे देवा वा, (३१-३२) एकत्रिंशीद्वात्रिंश्योश्च पावमान्यध्येतस्तुतिदेवताः | (१-१५, १९-२६, २८-२९) प्रथमादिपञ्चदशर्चामके नविंश्याद्यष्टानामष्टाविंश्येकोनत्रिंश्योश्च गायत्री, (१६-१८) षोडश्यादितृचस्य द्विपदा गायत्री, (२७, ३१-३२) सप्तविंश्येकत्रिंशीद्वात्रिंशीनामनुष्टुप्, (३०) त्रिंश्याश्च पर उष्णिक् छन्दांसि || | |
579 | त्वंसो᳚मासिधार॒युर्म॒न्द्रऽओजि॑ष्ठोऽअध्व॒रे | पव॑स्वमंह॒यद्र॑यिः || {9.67.1}, {9.3.7.1}, {7.2.13.1} |
580 | त्वंसु॒तोनृ॒माद॑नोदध॒न्वान्म॑त्स॒रिन्त॑मः | इन्द्रा᳚यसू॒रिरन्ध॑सा || {9.67.2}, {9.3.7.2}, {7.2.13.2} |
581 | त्वंसु॑ष्वा॒णोऽअद्रि॑भिर॒भ्य॑र्ष॒कनि॑क्रदत् | द्यु॒मन्तं॒शुष्म॑मुत्त॒मम् || {9.67.3}, {9.3.7.3}, {7.2.13.3} |
582 | इन्दु॑र्हिन्वा॒नोऽअ॑र्षतिति॒रोवारा᳚ण्य॒व्यया᳚ | हरि॒र्वाज॑मचिक्रदत् || {9.67.4}, {9.3.7.4}, {7.2.13.4} |
583 | इन्दो॒व्यव्य॑मर्षसि॒विश्रवां᳚सि॒विसौभ॑गा | विवाजा᳚न्त्सोम॒गोम॑तः || {9.67.5}, {9.3.7.5}, {7.2.13.5} |
584 | आन॑ऽइन्दोशत॒ग्विनं᳚र॒यिंगोम᳚न्तम॒श्विन᳚म् | भरा᳚सोमसह॒स्रिण᳚म् || {9.67.6}, {9.3.7.6}, {7.2.14.1} |
585 | पव॑मानास॒ऽइन्द॑वस्ति॒रःप॒वित्र॑मा॒शवः॑ | इन्द्रं॒यामे᳚भिराशत || {9.67.7}, {9.3.7.7}, {7.2.14.2} |
586 | क॒कु॒हःसो॒म्योरस॒ऽइन्दु॒रिन्द्रा᳚यपू॒र्व्यः | आ॒युःप॑वतऽआ॒यवे᳚ || {9.67.8}, {9.3.7.8}, {7.2.14.3} |
587 | हि॒न्वन्ति॒सूर॒मुस्र॑यः॒पव॑मानंमधु॒श्चुत᳚म् | अ॒भिगि॒रासम॑स्वरन् || {9.67.9}, {9.3.7.9}, {7.2.14.4} |
588 | अ॒वि॒तानो᳚ऽअ॒जाश्वः॑पू॒षायाम॑नियामनि | आभ॑क्षत्क॒न्या᳚सुनः || {9.67.10}, {9.3.7.10}, {7.2.14.5} |
589 | अ॒यंसोमः॑कप॒र्दिने᳚घृ॒तंनप॑वते॒मधु॑ | आभ॑क्षत्क॒न्या᳚सुनः || {9.67.11}, {9.3.7.11}, {7.2.15.1} |
590 | अ॒यंत॑ऽआघृणेसु॒तोघृ॒तंनप॑वते॒शुचि॑ | आभ॑क्षत्क॒न्या᳚सुनः || {9.67.12}, {9.3.7.12}, {7.2.15.2} |
591 | वा॒चोज॒न्तुःक॑वी॒नांपव॑स्वसोम॒धार॑या | दे॒वेषु॑रत्न॒धाऽअ॑सि || {9.67.13}, {9.3.7.13}, {7.2.15.3} |
592 | आक॒लशे᳚षुधावतिश्ये॒नोवर्म॒विगा᳚हते | अ॒भिद्रोणा॒कनि॑क्रदत् || {9.67.14}, {9.3.7.14}, {7.2.15.4} |
593 | परि॒प्रसो᳚मते॒रसोऽस॑र्जिक॒लशे᳚सु॒तः | श्ये॒नोनत॒क्तोऽअ॑र्षति || {9.67.15}, {9.3.7.15}, {7.2.15.5} |
594 | पव॑स्वसोमम॒न्दय॒न्निन्द्रा᳚य॒मधु॑मत्तमः || {9.67.16}, {9.3.7.16}, {7.2.16.1} |
595 | असृ॑ग्रन्दे॒ववी᳚तयेवाज॒यन्तो॒रथा᳚ऽइव || {9.67.17}, {9.3.7.17}, {7.2.16.2} |
596 | तेसु॒तासो᳚म॒दिन्त॑माःशु॒क्रावा॒युम॑सृक्षत || {9.67.18}, {9.3.7.18}, {7.2.16.3} |
597 | ग्राव्णा᳚तु॒न्नोऽअ॒भिष्टु॑तःप॒वित्रं᳚सोमगच्छसि | दध॑त्स्तो॒त्रेसु॒वीर्य᳚म् || {9.67.19}, {9.3.7.19}, {7.2.16.4} |
598 | ए॒षतु॒न्नोऽअ॒भिष्टु॑तःप॒वित्र॒मति॑गाहते | र॒क्षो॒हावार॑म॒व्यय᳚म् || {9.67.20}, {9.3.7.20}, {7.2.16.5} |
599 | यदन्ति॒यच्च॑दूर॒केभ॒यंवि॒न्दति॒मामि॒ह | पव॑मान॒वितज्ज॑हि || {9.67.21}, {9.3.7.21}, {7.2.17.1} |
600 | पव॑मानः॒सोऽअ॒द्यनः॑प॒वित्रे᳚ण॒विच॑र्षणिः | यःपो॒तासपु॑नातुनः || {9.67.22}, {9.3.7.22}, {7.2.17.2} |
601 | यत्ते᳚प॒वित्र॑म॒र्चिष्यग्ने॒वित॑तम॒न्तरा | ब्रह्म॒तेन॑पुनीहिनः || {9.67.23}, {9.3.7.23}, {7.2.17.3} |
602 | यत्ते᳚प॒वित्र॑मर्चि॒वदग्ने॒तेन॑पुनीहिनः | ब्र॒ह्म॒स॒वैःपु॑नीहिनः || {9.67.24}, {9.3.7.24}, {7.2.17.4} |
603 | उ॒भाभ्यां᳚देवसवितःप॒वित्रे᳚णस॒वेन॑च | मांपु॑नीहिवि॒श्वतः॑ || {9.67.25}, {9.3.7.25}, {7.2.17.5} |
604 | त्रि॒भिष्ट्वंदे᳚वसवित॒र्वर्षि॑ष्ठैःसोम॒धाम॑भिः | अग्ने॒दक्षैः᳚पुनीहिनः || {9.67.26}, {9.3.7.26}, {7.2.18.1} |
605 | पु॒नन्तु॒मांदे᳚वज॒नाःपु॒नन्तु॒वस॑वोधि॒या | विश्वे᳚देवाःपुनी॒तमा॒जात॑वेदःपुनी॒हिमा᳚ || {9.67.27}, {9.3.7.27}, {7.2.18.2} |
606 | प्रप्या᳚यस्व॒प्रस्य᳚न्दस्व॒सोम॒विश्वे᳚भिरं॒शुभिः॑ | दे॒वेभ्य॑ऽउत्त॒मंह॒विः || {9.67.28}, {9.3.7.28}, {7.2.18.3} |
607 | उप॑प्रि॒यंपनि॑प्नतं॒युवा᳚नमाहुती॒वृध᳚म् | अग᳚न्म॒बिभ्र॑तो॒नमः॑ || {9.67.29}, {9.3.7.29}, {7.2.18.4} |
608 | अ॒लाय्य॑स्यपर॒शुर्न॑नाश॒तमाप॑वस्वदेवसोम | आ॒खुंचि॑दे॒वदे᳚वसोम || {9.67.30}, {9.3.7.30}, {7.2.18.5} |
609 | यःपा᳚वमा॒नीर॒ध्येत्यृषि॑भिः॒सम्भृ॑तं॒रस᳚म् | सर्वं॒सपू॒तम॑श्नातिस्वदि॒तंमा᳚त॒रिश्व॑ना || {9.67.31}, {9.3.7.31}, {7.2.18.6} |
610 | पा॒व॒मा॒नीर्योऽअ॒ध्येत्यृषि॑भिः॒सम्भृ॑तं॒रस᳚म् | तस्मै॒सर॑स्वतीदुहेक्षी॒रंस॒र्पिर्मधू᳚द॒कम् || {9.67.32}, {9.3.7.32}, {7.2.18.7} |
[68] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य भालन्दनो वत्सप्रि ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | (१-९) प्रथमादिनवर्ऋचाम् जगती, (१०) दशम्याश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
611 | प्रदे॒वमच्छा॒मधु॑मन्त॒ऽइन्द॒वोऽसि॑ष्यदन्त॒गाव॒ऽआनधे॒नवः॑ | ब॒र्हि॒षदो᳚वच॒नाव᳚न्त॒ऽऊध॑भिःपरि॒स्रुत॑मु॒स्रिया᳚नि॒र्णिजं᳚धिरे || {9.68.1}, {9.4.1.1}, {7.2.19.1} |
612 | सरोरु॑वद॒भिपूर्वा᳚ऽअचिक्रददुपा॒रुहः॑श्र॒थय᳚न्त्स्वादते॒हरिः॑ | ति॒रःप॒वित्रं᳚परि॒यन्नु॒रुज्रयो॒निशर्या᳚णिदधतेदे॒वऽआवर᳚म् || {9.68.2}, {9.4.1.2}, {7.2.19.2} |
613 | वियोम॒मेय॒म्या᳚संय॒तीमदः॑साकं॒वृधा॒पय॑सापिन्व॒दक्षि॑ता | म॒हीऽअ॑पा॒रेरज॑सीवि॒वेवि॑ददभि॒व्रज॒न्नक्षि॑तं॒पाज॒ऽआद॑दे || {9.68.3}, {9.4.1.3}, {7.2.19.3} |
614 | समा॒तरा᳚वि॒चर᳚न्वा॒जय᳚न्न॒पःप्रमेधि॑रःस्व॒धया᳚पिन्वतेप॒दम् | अं॒शुर्यवे᳚नपिपिशेय॒तोनृभिः॒संजा॒मिभि॒र्नस॑ते॒रक्ष॑ते॒शिरः॑ || {9.68.4}, {9.4.1.4}, {7.2.19.4} |
615 | संदक्षे᳚ण॒मन॑साजायतेक॒विर्ऋ॒तस्य॒गर्भो॒निहि॑तोय॒माप॒रः | यूना᳚ह॒सन्ता᳚प्रथ॒मंविज॑ज्ञतु॒र्गुहा᳚हि॒तंजनि॑म॒नेम॒मुद्य॑तम् || {9.68.5}, {9.4.1.5}, {7.2.19.5} |
616 | म॒न्द्रस्य॑रू॒पंवि॑विदुर्मनी॒षिणः॑श्ये॒नोयदन्धो॒ऽअभ॑रत्परा॒वतः॑ | तंम॑र्जयन्तसु॒वृधं᳚न॒दीष्वाँऽउ॒शन्त॑मं॒शुंप॑रि॒यन्त॑मृ॒ग्मिय᳚म् || {9.68.6}, {9.4.1.6}, {7.2.20.1} |
617 | त्वांमृ॑जन्ति॒दश॒योष॑णःसु॒तंसोम॒ऋषि॑भिर्म॒तिभि॑र्धी॒तिभि॑र्हि॒तम् | अव्यो॒वारे᳚भिरु॒तदे॒वहू᳚तिभि॒र्नृभि᳚र्य॒तोवाज॒माद॑र्षिसा॒तये᳚ || {9.68.7}, {9.4.1.7}, {7.2.20.2} |
618 | प॒रि॒प्र॒यन्तं᳚व॒य्यं᳚सुषं॒सदं॒सोमं᳚मनी॒षाऽअ॒भ्य॑नूषत॒स्तुभः॑ | योधार॑या॒मधु॑माँऽऊ॒र्मिणा᳚दि॒वऽइय॑र्ति॒वाचं᳚रयि॒षाळम॑र्त्यः || {9.68.8}, {9.4.1.8}, {7.2.20.3} |
619 | अ॒यंदि॒वऽइ॑यर्ति॒विश्व॒मारजः॒सोमः॑पुना॒नःक॒लशे᳚षुसीदति | अ॒द्भिर्गोभि᳚र्मृज्यते॒ऽअद्रि॑भिःसु॒तःपु॑ना॒नऽइन्दु॒र्वरि॑वोविदत्प्रि॒यम् || {9.68.9}, {9.4.1.9}, {7.2.20.4} |
620 | ए॒वानः॑सोमपरिषि॒च्यमा᳚नो॒वयो॒दध॑च्चि॒त्रत॑मंपवस्व | अ॒द्वे॒षेद्यावा᳚पृथि॒वीहु॑वेम॒देवा᳚ध॒त्तर॒यिम॒स्मेसु॒वीर᳚म् || {9.68.10}, {9.4.1.10}, {7.2.20.5} |
[69] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो हिरण्यस्तूप ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | (१-८) प्रथमाद्यश्टर्चाम् जगती, (९-१०) नवमीदशम्योश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
621 | इषु॒र्नधन्व॒न्प्रति॑धीयतेम॒तिर्व॒त्सोनमा॒तुरुप॑स॒र्ज्यूध॑नि | उ॒रुधा᳚रेवदुहे॒ऽअग्र॑ऽआय॒त्यस्य᳚व्र॒तेष्वपि॒सोम॑ऽइष्यते || {9.69.1}, {9.4.2.1}, {7.2.21.1} |
622 | उपो᳚म॒तिःपृ॒च्यते᳚सि॒च्यते॒मधु॑म॒न्द्राज॑नीचोदतेऽअ॒न्तरा॒सनि॑ | पव॑मानःसंत॒निःप्र॑घ्न॒तामि॑व॒मधु॑मान्द्र॒प्सःपरि॒वार॑मर्षति || {9.69.2}, {9.4.2.2}, {7.2.21.2} |
623 | अव्ये᳚वधू॒युःप॑वते॒परि॑त्व॒चिश्र॑थ्नी॒तेन॒प्तीरदि॑तेर्ऋ॒तंय॒ते | हरि॑रक्रान्यज॒तःसं᳚य॒तोमदो᳚नृ॒म्णाशिशा᳚नोमहि॒षोनशो᳚भते || {9.69.3}, {9.4.2.3}, {7.2.21.3} |
624 | उ॒क्षामि॑माति॒प्रति॑यन्तिधे॒नवो᳚दे॒वस्य॑दे॒वीरुप॑यन्तिनिष्कृ॒तम् | अत्य॑क्रमी॒दर्जु॑नं॒वार॑म॒व्यय॒मत्कं॒ननि॒क्तंपरि॒सोमो᳚ऽअव्यत || {9.69.4}, {9.4.2.4}, {7.2.21.4} |
625 | अमृ॑क्तेन॒रुश॑ता॒वास॑सा॒हरि॒रम॑र्त्योनिर्णिजा॒नःपरि᳚व्यत | दि॒वस्पृ॒ष्ठंब॒र्हणा᳚नि॒र्णिजे᳚कृतोप॒स्तर॑णंच॒म्वो᳚र्नभ॒स्मय᳚म् || {9.69.5}, {9.4.2.5}, {7.2.21.5} |
626 | सूर्य॑स्येवर॒श्मयो᳚द्रावयि॒त्नवो᳚मत्स॒रासः॑प्र॒सुपः॑सा॒कमी᳚रते | तन्तुं᳚त॒तंपरि॒सर्गा᳚सऽआ॒शवो॒नेन्द्रा᳚दृ॒तेप॑वते॒धाम॒किंच॒न || {9.69.6}, {9.4.2.6}, {7.2.22.1} |
627 | सिन्धो᳚रिवप्रव॒णेनि॒म्नऽआ॒शवो॒वृष॑च्युता॒मदा᳚सोगा॒तुमा᳚शत | शंनो᳚निवे॒शेद्वि॒पदे॒चतु॑ष्पदे॒ऽस्मेवाजाः᳚सोमतिष्ठन्तुकृ॒ष्टयः॑ || {9.69.7}, {9.4.2.7}, {7.2.22.2} |
628 | आनः॑पवस्व॒वसु॑म॒द्धिर᳚ण्यव॒दश्वा᳚व॒द्गोम॒द्यव॑मत्सु॒वीर्य᳚म् | यू॒यंहिसो᳚मपि॒तरो॒मम॒स्थन॑दि॒वोमू॒र्धानः॒प्रस्थि॑तावय॒स्कृतः॑ || {9.69.8}, {9.4.2.8}, {7.2.22.3} |
629 | ए॒तेसोमाः॒पव॑मानास॒ऽइन्द्रं॒रथा᳚ऽइव॒प्रय॑युःसा॒तिमच्छ॑ | सु॒ताःप॒वित्र॒मति॑य॒न्त्यव्यं᳚हि॒त्वीव॒व्रिंह॒रितो᳚वृ॒ष्टिमच्छ॑ || {9.69.9}, {9.4.2.9}, {7.2.22.4} |
630 | इन्द॒विन्द्रा᳚यबृह॒तेप॑वस्वसुमृळी॒कोऽअ॑नव॒द्योरि॒शादाः᳚ | भरा᳚च॒न्द्राणि॑गृण॒तेवसू᳚निदे॒वैर्द्या᳚वापृथिवी॒प्राव॑तंनः || {9.69.10}, {9.4.2.10}, {7.2.22.5} |
[70] (१-१०) दशर्चस्य सूक्तस्य वैश्वामित्रो रेण षिः, पवमानः सोमो देवता | (१-९) प्रथमादिनवर्चाम् जगती, (१०) दशम्याश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
631 | त्रिर॑स्मैस॒प्तधे॒नवो᳚दुदुह्रेस॒त्यामा॒शिरं᳚पू॒र्व्येव्यो᳚मनि | च॒त्वार्य॒न्याभुव॑नानिनि॒र्णिजे॒चारू᳚णिचक्रे॒यदृ॒तैरव॑र्धत || {9.70.1}, {9.4.3.1}, {7.2.23.1} |
632 | सभिक्ष॑माणोऽअ॒मृत॑स्य॒चारु॑णऽउ॒भेद्यावा॒काव्ये᳚ना॒विश॑श्रथे | तेजि॑ष्ठाऽअ॒पोमं॒हना॒परि᳚व्यत॒यदी᳚दे॒वस्य॒श्रव॑सा॒सदो᳚वि॒दुः || {9.70.2}, {9.4.3.2}, {7.2.23.2} |
633 | तेऽअ॑स्यसन्तुके॒तवोऽमृ॑त्य॒वोऽदा᳚भ्यासोज॒नुषी᳚ऽउ॒भेऽअनु॑ | येभि᳚र्नृ॒म्णाच॑दे॒व्या᳚चपुन॒तऽआदिद्राजा᳚नंम॒नना᳚ऽअगृभ्णत || {9.70.3}, {9.4.3.3}, {7.2.23.3} |
634 | समृ॒ज्यमा᳚नोद॒शभिः॑सु॒कर्म॑भिः॒प्रम॑ध्य॒मासु॑मा॒तृषु॑प्र॒मेसचा᳚ | व्र॒तानि॑पा॒नोऽअ॒मृत॑स्य॒चारु॑णऽउ॒भेनृ॒चक्षा॒ऽअनु॑पश्यते॒विशौ᳚ || {9.70.4}, {9.4.3.4}, {7.2.23.4} |
635 | सम᳚र्मृजा॒नऽइ᳚न्द्रि॒याय॒धाय॑स॒ऽओभेऽअ॒न्तारोद॑सीहर्षतेहि॒तः | वृषा॒शुष्मे᳚णबाधते॒विदु᳚र्म॒तीरा॒देदि॑शानःशर्य॒हेव॑शु॒रुधः॑ || {9.70.5}, {9.4.3.5}, {7.2.23.5} |
636 | समा॒तरा॒नददृ॑शानऽउ॒स्रियो॒नान॑ददेतिम॒रुता᳚मिवस्व॒नः | जा॒नन्नृ॒तंप्र॑थ॒मंयत्स्व᳚र्णरं॒प्रश॑स्तये॒कम॑वृणीतसु॒क्रतुः॑ || {9.70.6}, {9.4.3.6}, {7.2.24.1} |
637 | रु॒वति॑भी॒मोवृ॑ष॒भस्त॑वि॒ष्यया॒शृङ्गे॒शिशा᳚नो॒हरि॑णीविचक्ष॒णः | आयोनिं॒सोमः॒सुकृ॑तं॒निषी᳚दतिग॒व्ययी॒त्वग्भ॑वतिनि॒र्णिग॒व्ययी᳚ || {9.70.7}, {9.4.3.7}, {7.2.24.2} |
638 | शुचिः॑पुना॒नस्त॒न्व॑मरे॒पस॒मव्ये॒हरि॒र्न्य॑धाविष्ट॒सान॑वि | जुष्टो᳚मि॒त्राय॒वरु॑णायवा॒यवे᳚त्रि॒धातु॒मधु॑क्रियतेसु॒कर्म॑भिः || {9.70.8}, {9.4.3.8}, {7.2.24.3} |
639 | पव॑स्वसोमदे॒ववी᳚तये॒वृषेन्द्र॑स्य॒हार्दि॑सोम॒धान॒मावि॑श | पु॒रानो᳚बा॒धाद्दु॑रि॒ताति॑पारयक्षेत्र॒विद्धिदिश॒ऽआहा᳚विपृच्छ॒ते || {9.70.9}, {9.4.3.9}, {7.2.24.4} |
640 | हि॒तोनसप्ति॑र॒भिवाज॑म॒र्षेन्द्र॑स्येन्दोज॒ठर॒माप॑वस्व | ना॒वानसिन्धु॒मति॑पर्षिवि॒द्वाञ्छूरो॒नयुध्य॒न्नव॑नोनि॒दःस्पः॑ || {9.70.10}, {9.4.3.10}, {7.2.24.5} |
[71] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य वैश्वामित्र ऋभव ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | (१-८) प्रथमाद्यश्टर्चाम् जगती, (९) नवम्याश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
641 | आदक्षि॑णासृज्यतेशु॒ष्म्या॒३॑(आ॒)सदं॒वेति॑द्रु॒होर॒क्षसः॑पाति॒जागृ॑विः | हरि॑रोप॒शंकृ॑णुते॒नभ॒स्पय॑ऽउप॒स्तिरे᳚च॒म्वो॒३॑(ओ॒)र्ब्रह्म॑नि॒र्णिजे᳚ || {9.71.1}, {9.4.4.1}, {7.2.25.1} |
642 | प्रकृ॑ष्टि॒हेव॑शू॒षऽए᳚ति॒रोरु॑वदसु॒र्य१॑(अ॒)अंवर्णं॒निरि॑णीतेऽअस्य॒तम् | जहा᳚तिव॒व्रिंपि॒तुरे᳚तिनिष्कृ॒तमु॑प॒प्रुतं᳚कृणुतेनि॒र्णिजं॒तना᳚ || {9.71.2}, {9.4.4.2}, {7.2.25.2} |
643 | अद्रि॑भिःसु॒तःप॑वते॒गभ॑स्त्योर्वृषा॒यते॒नभ॑सा॒वेप॑तेम॒ती | समो᳚दते॒नस॑ते॒साध॑तेगि॒राने᳚नि॒क्तेऽअ॒प्सुयज॑ते॒परी᳚मणि || {9.71.3}, {9.4.4.3}, {7.2.25.3} |
644 | परि॑द्यु॒क्षंसह॑सःपर्वता॒वृधं॒मध्वः॑सिञ्चन्तिह॒र्म्यस्य॑स॒क्षणि᳚म् | आयस्मि॒न्गावः॑सुहु॒ताद॒ऽऊध॑निमू॒र्धञ्छ्री॒णन्त्य॑ग्रि॒यंवरी᳚मभिः || {9.71.4}, {9.4.4.4}, {7.2.25.4} |
645 | समी॒रथं॒नभु॒रिजो᳚रहेषत॒दश॒स्वसा᳚रो॒ऽअदि॑तेरु॒पस्थ॒ऽआ | जिगा॒दुप॑ज्रयति॒गोर॑पी॒च्यं᳚प॒दंयद॑स्यम॒तुथा॒ऽअजी᳚जनन् || {9.71.5}, {9.4.4.5}, {7.2.25.5} |
646 | श्ये॒नोनयोनिं॒सद॑नंधि॒याकृ॒तंहि॑र॒ण्यय॑मा॒सदं᳚दे॒वऽएष॑ति | एरि॑णन्तिब॒र्हिषि॑प्रि॒यंगि॒राश्वो॒नदे॒वाँऽअप्ये᳚तिय॒ज्ञियः॑ || {9.71.6}, {9.4.4.6}, {7.2.26.1} |
647 | परा॒व्य॑क्तोऽअरु॒षोदि॒वःक॒विर्वृषा᳚त्रिपृ॒ष्ठोऽअ॑नविष्ट॒गाऽअ॒भि | स॒हस्र॑णीति॒र्यतिः॑परा॒यती᳚रे॒भोनपू॒र्वीरु॒षसो॒विरा᳚जति || {9.71.7}, {9.4.4.7}, {7.2.26.2} |
648 | त्वे॒षंरू॒पंकृ॑णुते॒वर्णो᳚ऽअस्य॒सयत्राश॑य॒त्समृ॑ता॒सेध॑तिस्रि॒धः | अ॒प्साया᳚तिस्व॒धया॒दैव्यं॒जनं॒संसु॑ष्टु॒तीनस॑ते॒संगोअ॑ग्रया || {9.71.8}, {9.4.4.8}, {7.2.26.3} |
649 | उ॒क्षेव॑यू॒थाप॑रि॒यन्न॑रावी॒दधि॒त्विषी᳚रधित॒सूर्य॑स्य | दि॒व्यःसु॑प॒र्णोऽव॑चक्षत॒क्षांसोमः॒परि॒क्रतु॑नापश्यते॒जाः || {9.71.9}, {9.4.4.9}, {7.2.26.4} |
[72] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसो हरिमन्त ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
650 | हरिं᳚मृजन्त्यरु॒षोनयु॑ज्यते॒संधे॒नुभिः॑क॒लशे॒सोमो᳚ऽअज्यते | उद्वाच॑मी॒रय॑तिहि॒न्वते᳚म॒तीपु॑रुष्टु॒तस्य॒कति॑चित्परि॒प्रियः॑ || {9.72.1}, {9.4.5.1}, {7.2.27.1} |
651 | सा॒कंव॑दन्तिब॒हवो᳚मनी॒षिण॒ऽइन्द्र॑स्य॒सोमं᳚ज॒ठरे॒यदा᳚दु॒हुः | यदी᳚मृ॒जन्ति॒सुग॑भस्तयो॒नरः॒सनी᳚ळाभिर्द॒शभिः॒काम्यं॒मधु॑ || {9.72.2}, {9.4.5.2}, {7.2.27.2} |
652 | अर॑ममाणो॒ऽअत्ये᳚ति॒गाऽअ॒भिसूर्य॑स्यप्रि॒यंदु॑हि॒तुस्ति॒रोरव᳚म् | अन्व॑स्मै॒जोष॑मभरद्विनंगृ॒सःसंद्व॒यीभिः॒स्वसृ॑भिःक्षेतिजा॒मिभिः॑ || {9.72.3}, {9.4.5.3}, {7.2.27.3} |
653 | नृधू᳚तो॒ऽअद्रि॑षुतोब॒र्हिषि॑प्रि॒यःपति॒र्गवां᳚प्र॒दिव॒ऽइन्दु॑र्ऋ॒त्वियः॑ | पुरं᳚धिवा॒न्मनु॑षोयज्ञ॒साध॑नः॒शुचि॑र्धि॒याप॑वते॒सोम॑ऽइन्द्रते || {9.72.4}, {9.4.5.4}, {7.2.27.4} |
654 | नृबा॒हुभ्यां᳚चोदि॒तोधार॑यासु॒तो᳚ऽनुष्व॒धंप॑वते॒सोम॑ऽइन्द्रते | आप्राः॒क्रतू॒न्त्सम॑जैरध्व॒रेम॒तीर्वेर्नद्रु॒षच्च॒म्वो॒३॑(ओ॒)रास॑द॒द्धरिः॑ || {9.72.5}, {9.4.5.5}, {7.2.27.5} |
655 | अं॒शुंदु॑हन्तिस्त॒नय᳚न्त॒मक्षि॑तंक॒विंक॒वयो॒ऽपसो᳚मनी॒षिणः॑ | समी॒गावो᳚म॒तयो᳚यन्तिसं॒यत॑ऋ॒तस्य॒योना॒सद॑नेपुन॒र्भुवः॑ || {9.72.6}, {9.4.5.6}, {7.2.28.1} |
656 | नाभा᳚पृथि॒व्याध॒रुणो᳚म॒होदि॒वो॒३॑(ओ॒)ऽपामू॒र्मौसिन्धु॑ष्व॒न्तरु॑क्षि॒तः | इन्द्र॑स्य॒वज्रो᳚वृष॒भोवि॒भूव॑सुः॒सोमो᳚हृ॒देप॑वते॒चारु॑मत्स॒रः || {9.72.7}, {9.4.5.7}, {7.2.28.2} |
657 | सतूप॑वस्व॒परि॒पार्थि॑वं॒रजः॑स्तो॒त्रेशिक्ष᳚न्नाधून्व॒तेच॑सुक्रतो | मानो॒निर्भा॒ग्वसु॑नःसादन॒स्पृशो᳚र॒यिंपि॒शङ्गं᳚बहु॒लंव॑सीमहि || {9.72.8}, {9.4.5.8}, {7.2.28.3} |
658 | आतून॑ऽइन्दोश॒तदा॒त्वश्व्यं᳚स॒हस्र॑दातुपशु॒मद्धिर᳚ण्यवत् | उप॑मास्वबृह॒तीरे॒वती॒रिषोऽधि॑स्तो॒त्रस्य॑पवमाननोगहि || {9.72.9}, {9.4.5.9}, {7.2.28.4} |
[73] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः पवित्र ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
659 | स्रक्वे᳚द्र॒प्सस्य॒धम॑तः॒सम॑स्वरन्नृ॒तस्य॒योना॒सम॑रन्त॒नाभ॑यः | त्रीन्त्समू॒र्ध्नोऽअसु॑रश्चक्रऽआ॒रभे᳚स॒त्यस्य॒नावः॑सु॒कृत॑मपीपरन् || {9.73.1}, {9.4.6.1}, {7.2.29.1} |
660 | स॒म्यक्स॒म्यञ्चो᳚महि॒षाऽअ॑हेषत॒सिन्धो᳚रू॒र्मावधि॑वे॒नाऽअ॑वीविपन् | मधो॒र्धारा᳚भिर्ज॒नय᳚न्तोऽअ॒र्कमित्प्रि॒यामिन्द्र॑स्यत॒न्व॑मवीवृधन् || {9.73.2}, {9.4.6.2}, {7.2.29.2} |
661 | प॒वित्र॑वन्तः॒परि॒वाच॑मासतेपि॒तैषां᳚प्र॒त्नोऽअ॒भिर॑क्षतिव्र॒तम् | म॒हःस॑मु॒द्रंवरु॑णस्ति॒रोद॑धे॒धीरा॒ऽइच्छे᳚कुर्ध॒रुणे᳚ष्वा॒रभ᳚म् || {9.73.3}, {9.4.6.3}, {7.2.29.3} |
662 | स॒हस्र॑धा॒रेऽव॒तेसम॑स्वरन्दि॒वोनाके॒मधु॑जिह्वाऽअस॒श्चतः॑ | अस्य॒स्पशो॒ननिमि॑षन्ति॒भूर्ण॑यःप॒देप॑देपा॒शिनः॑सन्ति॒सेत॑वः || {9.73.4}, {9.4.6.4}, {7.2.29.4} |
663 | पि॒तुर्मा॒तुरध्यायेस॒मस्व॑रन्नृ॒चाशोच᳚न्तःसं॒दह᳚न्तोऽअव्र॒तान् | इन्द्र॑द्विष्टा॒मप॑धमन्तिमा॒यया॒त्वच॒मसि॑क्नीं॒भूम॑नोदि॒वस्परि॑ || {9.73.5}, {9.4.6.5}, {7.2.29.5} |
664 | प्र॒त्नान्माना॒दध्यायेस॒मस्व॑र॒ञ्छ्लोक॑यन्त्रासोरभ॒सस्य॒मन्त॑वः | अपा᳚न॒क्षासो᳚बधि॒राऽअ॑हासतऋ॒तस्य॒पन्थां॒नत॑रन्तिदु॒ष्कृतः॑ || {9.73.6}, {9.4.6.6}, {7.2.30.1} |
665 | स॒हस्र॑धारे॒वित॑तेप॒वित्र॒ऽआवाचं᳚पुनन्तिक॒वयो᳚मनी॒षिणः॑ | रु॒द्रास॑ऽएषामिषि॒रासो᳚ऽअ॒द्रुहः॒स्पशः॒स्वञ्चः॑सु॒दृशो᳚नृ॒चक्ष॑सः || {9.73.7}, {9.4.6.7}, {7.2.30.2} |
666 | ऋ॒तस्य॑गो॒पानदभा᳚यसु॒क्रतु॒स्त्रीषप॒वित्रा᳚हृ॒द्य१॑(अ॒)'न्तराद॑धे | वि॒द्वान्त्सविश्वा॒भुव॑ना॒भिप॑श्य॒त्यवाजु॑ष्टान्विध्यतिक॒र्तेऽअ᳚व्र॒तान् || {9.73.8}, {9.4.6.8}, {7.2.30.3} |
667 | ऋ॒तस्य॒तन्तु॒र्वित॑तःप॒वित्र॒ऽआजि॒ह्वाया॒ऽअग्रे॒वरु॑णस्यमा॒यया᳚ | धीरा᳚श्चि॒त्तत्स॒मिन॑क्षन्तऽआश॒तात्रा᳚क॒र्तमव॑पदा॒त्यप्र॑भुः || {9.73.9}, {9.4.6.9}, {7.2.30.4} |
[74] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य दैर्घतमसः कक्षीवान् ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | (१-७, ९) प्रथमादिसप्तर्चाम् नवम्याश्च जगती, (८) अष्टम्याश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
668 | शिशु॒र्नजा॒तोऽव॑चक्रद॒द्वने॒स्व१॑(अ॒)'र्यद्वा॒ज्य॑रु॒षःसिषा᳚सति | दि॒वोरेत॑सासचतेपयो॒वृधा॒तमी᳚महेसुम॒तीशर्म॑स॒प्रथः॑ || {9.74.1}, {9.4.7.1}, {7.2.31.1} |
669 | दि॒वोयःस्क॒म्भोध॒रुणः॒स्वा᳚तत॒ऽआपू᳚र्णोऽअं॒शुःप॒र्येति॑वि॒श्वतः॑ | सेमेम॒हीरोद॑सीयक्षदा॒वृता᳚समीची॒नेदा᳚धार॒समिषः॑क॒विः || {9.74.2}, {9.4.7.2}, {7.2.31.2} |
670 | महि॒प्सरः॒सुकृ॑तंसो॒म्यंमधू॒र्वीगव्यू᳚ति॒रदि॑तेर्ऋ॒तंय॒ते | ईशे॒योवृ॒ष्टेरि॒तऽउ॒स्रियो॒वृषा॒पांने॒तायऽइ॒तऊ᳚तिर्ऋ॒ग्मियः॑ || {9.74.3}, {9.4.7.3}, {7.2.31.3} |
671 | आ॒त्म॒न्वन्नभो᳚दुह्यतेघृ॒तंपय॑ऋ॒तस्य॒नाभि॑र॒मृतं॒विजा᳚यते | स॒मी॒ची॒नाःसु॒दान॑वःप्रीणन्ति॒तंनरो᳚हि॒तमव॑मेहन्ति॒पेर॑वः || {9.74.4}, {9.4.7.4}, {7.2.31.4} |
672 | अरा᳚वीदं॒शुःसच॑मानऽऊ॒र्मिणा᳚देवा॒व्य१॑(अ॒)अंमनु॑षेपिन्वति॒त्वच᳚म् | दधा᳚ति॒गर्भ॒मदि॑तेरु॒पस्थ॒ऽआयेन॑तो॒कंच॒तन॑यंच॒धाम॑हे || {9.74.5}, {9.4.7.5}, {7.2.31.5} |
673 | स॒हस्र॑धा॒रेऽव॒ताऽअ॑स॒श्चत॑स्तृ॒तीये᳚सन्तु॒रज॑सिप्र॒जाव॑तीः | चत॑स्रो॒नाभो॒निहि॑ताऽअ॒वोदि॒वोह॒विर्भ॑रन्त्य॒मृतं᳚घृत॒श्चुतः॑ || {9.74.6}, {9.4.7.6}, {7.2.32.1} |
674 | श्वे॒तंरू॒पंकृ॑णुते॒यत्सिषा᳚सति॒सोमो᳚मी॒ढ्वाँऽअसु॑रोवेद॒भूम॑नः | धि॒याशमी᳚सचते॒सेम॒भिप्र॒वद्दि॒वस्कव᳚न्ध॒मव॑दर्षदु॒द्रिण᳚म् || {9.74.7}, {9.4.7.7}, {7.2.32.2} |
675 | अध॑श्वे॒तंक॒लशं॒गोभि॑र॒क्तंकार्ष्म॒न्नावा॒ज्य॑क्रमीत्सस॒वान् | आहि᳚न्विरे॒मन॑सादेव॒यन्तः॑क॒क्षीव॑तेश॒तहि॑माय॒गोना᳚म् || {9.74.8}, {9.4.7.8}, {7.2.32.3} |
676 | अ॒द्भिःसो᳚मपपृचा॒नस्य॑ते॒रसोऽव्यो॒वारं॒विप॑वमानधावति | समृ॒ज्यमा᳚नःक॒विभि᳚र्मदिन्तम॒स्वद॒स्वेन्द्रा᳚यपवमानपी॒तये᳚ || {9.74.9}, {9.4.7.9}, {7.2.32.4} |
[75] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कवि (ऋषिः), पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
677 | अ॒भिप्रि॒याणि॑पवते॒चनो᳚हितो॒नामा᳚निय॒ह्वोऽअधि॒येषु॒वर्ध॑ते | आसूर्य॑स्यबृह॒तोबृ॒हन्नधि॒रथं॒विष्व᳚ञ्चमरुहद्विचक्ष॒णः || {9.75.1}, {9.4.8.1}, {7.2.33.1} |
678 | ऋ॒तस्य॑जि॒ह्वाप॑वते॒मधु॑प्रि॒यंव॒क्तापति॑र्धि॒योऽअ॒स्याऽअदा᳚भ्यः | दधा᳚तिपु॒त्रःपि॒त्रोर॑पी॒च्य१॑(अ॒)अंनाम॑तृ॒तीय॒मधि॑रोच॒नेदि॒वः || {9.75.2}, {9.4.8.2}, {7.2.33.2} |
679 | अव॑द्युता॒नःक॒लशाँ᳚ऽअचिक्रद॒न्नृभि᳚र्येमा॒नःकोश॒ऽआहि॑र॒ण्यये᳚ | अ॒भीमृ॒तस्य॑दो॒हना᳚ऽअनूष॒ताधि॑त्रिपृ॒ष्ठऽउ॒षसो॒विरा᳚जति || {9.75.3}, {9.4.8.3}, {7.2.33.3} |
680 | अद्रि॑भिःसु॒तोम॒तिभि॒श्चनो᳚हितःप्ररो॒चय॒न्रोद॑सीमा॒तरा॒शुचिः॑ | रोमा॒ण्यव्या᳚स॒मया॒विधा᳚वति॒मधो॒र्धारा॒पिन्व॑मानादि॒वेदि॑वे || {9.75.4}, {9.4.8.4}, {7.2.33.4} |
681 | परि॑सोम॒प्रध᳚न्वास्व॒स्तये॒नृभिः॑पुना॒नोऽअ॒भिवा᳚सया॒शिर᳚म् | येते॒मदा᳚ऽआह॒नसो॒विहा᳚यस॒स्तेभि॒रिन्द्रं᳚चोदय॒दात॑वेम॒घम् || {9.75.5}, {9.4.8.5}, {7.2.33.5} |
[76] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कवि ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
682 | ध॒र्तादि॒वःप॑वते॒कृत्व्यो॒रसो॒दक्षो᳚दे॒वाना᳚मनु॒माद्यो॒नृभिः॑ | हरिः॑सृजा॒नोऽअत्यो॒नसत्व॑भि॒र्वृथा॒पाजां᳚सिकृणुतेन॒दीष्वा || {9.76.1}, {9.4.9.1}, {7.3.1.1} |
683 | शूरो॒नध॑त्त॒ऽआयु॑धा॒गभ॑स्त्योः॒स्व१॑(अ॒)ःसिषा᳚सन्रथि॒रोगवि॑ष्टिषु | इन्द्र॑स्य॒शुष्म॑मी॒रय᳚न्नप॒स्युभि॒रिन्दु॑र्हिन्वा॒नोऽअ॑ज्यतेमनी॒षिभिः॑ || {9.76.2}, {9.4.9.2}, {7.3.1.2} |
684 | इन्द्र॑स्यसोम॒पव॑मानऽऊ॒र्मिणा᳚तवि॒ष्यमा᳚णोज॒ठरे॒ष्वावि॑श | प्रणः॑पिन्ववि॒द्युद॒भ्रेव॒रोद॑सीधि॒यानवाजाँ॒ऽउप॑मासि॒शश्व॑तः || {9.76.3}, {9.4.9.3}, {7.3.1.3} |
685 | विश्व॑स्य॒राजा᳚पवतेस्व॒र्दृश॑ऋ॒तस्य॑धी॒तिमृ॑षि॒षाळ॑वीवशत् | यःसूर्य॒स्यासि॑रेणमृ॒ज्यते᳚पि॒ताम॑ती॒नामस॑मष्टकाव्यः || {9.76.4}, {9.4.9.4}, {7.3.1.4} |
686 | वृषे᳚वयू॒थापरि॒कोश॑मर्षस्य॒पामु॒पस्थे᳚वृष॒भःकनि॑क्रदत् | सऽइन्द्रा᳚यपवसेमत्स॒रिन्त॑मो॒यथा॒जेषा᳚मसमि॒थेत्वोत॑यः || {9.76.5}, {9.4.9.5}, {7.3.1.5} |
[77] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कवि (ऋषिः), पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
687 | ए॒षप्रकोशे॒मधु॑माँऽअचिक्रद॒दिन्द्र॑स्य॒वज्रो॒वपु॑षो॒वपु॑ष्टरः | अ॒भीमृ॒तस्य॑सु॒दुघा᳚घृत॒श्चुतो᳚वा॒श्राऽअ॑र्षन्ति॒पय॑सेवधे॒नवः॑ || {9.77.1}, {9.4.10.1}, {7.3.2.1} |
688 | सपू॒र्व्यःप॑वते॒यंदि॒वस्परि॑श्ये॒नोम॑था॒यदि॑षि॒तस्ति॒रोरजः॑ | समध्व॒ऽआयु॑वते॒वेवि॑जान॒ऽइत्कृ॒शानो॒रस्तु॒र्मन॒साह॑बि॒भ्युषा᳚ || {9.77.2}, {9.4.10.2}, {7.3.2.2} |
689 | तेनः॒पूर्वा᳚स॒ऽउप॑रास॒ऽइन्द॑वोम॒हेवाजा᳚यधन्वन्तु॒गोम॑ते | ई॒क्षे॒ण्या᳚सोऽअ॒ह्यो॒३॑(ओ॒)नचार॑वो॒ब्रह्म॑ब्रह्म॒येजु॑जु॒षुर्ह॒विर्ह॑विः || {9.77.3}, {9.4.10.3}, {7.3.2.3} |
690 | अ॒यंनो᳚वि॒द्वान्व॑नवद्वनुष्य॒तऽइन्दुः॑स॒त्राचा॒मन॑सापुरुष्टु॒तः | इ॒नस्य॒यःसद॑ने॒गर्भ॑माद॒धेगवा᳚मुरु॒ब्जम॒भ्यर्ष॑तिव्र॒जम् || {9.77.4}, {9.4.10.4}, {7.3.2.4} |
691 | चक्रि॑र्दि॒वःप॑वते॒कृत्व्यो॒रसो᳚म॒हाँऽअद॑ब्धो॒वरु॑णोहु॒रुग्य॒ते | असा᳚विमि॒त्रोवृ॒जने᳚षुय॒ज्ञियोऽत्यो॒नयू॒थेवृ॑ष॒युःकनि॑क्रदत् || {9.77.5}, {9.4.10.5}, {7.3.2.5} |
[78] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कवि (ऋषिः), पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
692 | प्रराजा॒वाचं᳚ज॒नय᳚न्नसिष्यदद॒पोवसा᳚नोऽअ॒भिगाऽइ॑यक्षति | गृ॒भ्णाति॑रि॒प्रमवि॑रस्य॒तान्वा᳚शु॒द्धोदे॒वाना॒मुप॑यातिनिष्कृ॒तम् || {9.78.1}, {9.4.11.1}, {7.3.3.1} |
693 | इन्द्रा᳚यसोम॒परि॑षिच्यसे॒नृभि᳚र्नृ॒चक्षा᳚ऽऊ॒र्मिःक॒विर॑ज्यसे॒वने᳚ | पू॒र्वीर्हिते᳚स्रु॒तयः॒सन्ति॒यात॑वेस॒हस्र॒मश्वा॒हर॑यश्चमू॒षदः॑ || {9.78.2}, {9.4.11.2}, {7.3.3.2} |
694 | स॒मु॒द्रिया᳚ऽअप्स॒रसो᳚मनी॒षिण॒मासी᳚नाऽअ॒न्तर॒भिसोम॑मक्षरन् | ताऽईं᳚हिन्वन्तिह॒र्म्यस्य॑स॒क्षणिं॒याच᳚न्तेसु॒म्नंपव॑मान॒मक्षि॑तम् || {9.78.3}, {9.4.11.3}, {7.3.3.3} |
695 | गो॒जिन्नः॒सोमो᳚रथ॒जिद्धि॑रण्य॒जित्स्व॒र्जिद॒ब्जित्प॑वतेसहस्र॒जित् | यंदे॒वास॑श्चक्रि॒रेपी॒तये॒मदं॒स्वादि॑ष्ठंद्र॒प्सम॑रु॒णंम॑यो॒भुव᳚म् || {9.78.4}, {9.4.11.4}, {7.3.3.4} |
696 | ए॒तानि॑सोम॒पव॑मानोऽअस्म॒युःस॒त्यानि॑कृ॒ण्वन्द्रवि॑णान्यर्षसि | ज॒हिशत्रु॑मन्ति॒केदू᳚र॒केच॒यऽउ॒र्वींगव्यू᳚ति॒मभ॑यंचनस्कृधि || {9.78.5}, {9.4.11.5}, {7.3.3.5} |
[79] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भार्गवः कवि (ऋषिः), पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
697 | अ॒चो॒दसो᳚नोधन्व॒न्त्विन्द॑वः॒प्रसु॑वा॒नासो᳚बृ॒हद्दि॑वेषु॒हर॑यः | विच॒नश᳚न्नऽइ॒षोऽअरा᳚तयो॒ऽर्योन॑शन्त॒सनि॑षन्तनो॒धियः॑ || {9.79.1}, {9.4.12.1}, {7.3.4.1} |
698 | प्रणो᳚धन्व॒न्त्विन्द॑वोमद॒च्युतो॒धना᳚वा॒येभि॒रर्व॑तोजुनी॒मसि॑ | ति॒रोमर्त॑स्य॒कस्य॑चि॒त्परि॑ह्वृतिंव॒यंधना᳚निवि॒श्वधा᳚भरेमहि || {9.79.2}, {9.4.12.2}, {7.3.4.2} |
699 | उ॒तस्वस्या॒ऽअरा᳚त्याऽअ॒रिर्हिषऽउ॒तान्यस्या॒ऽअरा᳚त्या॒वृको॒हिषः | धन्व॒न्नतृष्णा॒सम॑रीत॒ताँऽअ॒भिसोम॑ज॒हिप॑वमानदुरा॒ध्यः॑ || {9.79.3}, {9.4.12.3}, {7.3.4.3} |
700 | दि॒विते॒नाभा᳚पर॒मोयऽआ᳚द॒देपृ॑थि॒व्यास्ते᳚रुरुहुः॒सान॑वि॒क्षिपः॑ | अद्र॑यस्त्वाबप्सति॒गोरधि॑त्व॒च्य१॑(अ॒)प्सुत्वा॒हस्तै᳚र्दुदुहुर्मनी॒षिणः॑ || {9.79.4}, {9.4.12.4}, {7.3.4.4} |
701 | ए॒वात॑ऽइन्दोसु॒भ्वं᳚सु॒पेश॑सं॒रसं᳚तुञ्जन्तिप्रथ॒माऽअ॑भि॒श्रियः॑ | निदं᳚निदंपवमान॒निता᳚रिषऽआ॒विस्ते॒शुष्मो᳚भवतुप्रि॒योमदः॑ || {9.79.5}, {9.4.12.5}, {7.3.4.5} |
[80] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भारद्वाजो वसु ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
702 | सोम॑स्य॒धारा᳚पवतेनृ॒चक्ष॑सऋ॒तेन॑दे॒वान्ह॑वतेदि॒वस्परि॑ | बृह॒स्पते᳚र॒वथे᳚ना॒विदि॑द्युतेसमु॒द्रासो॒नसव॑नानिविव्यचुः || {9.80.1}, {9.4.13.1}, {7.3.5.1} |
703 | यंत्वा᳚वाजिन्न॒घ्न्याऽअ॒भ्यनू᳚ष॒तायो᳚हतं॒योनि॒मारो᳚हसिद्यु॒मान् | म॒घोना॒मायुः॑प्रति॒रन्महि॒श्रव॒ऽइन्द्रा᳚यसोमपवसे॒वृषा॒मदः॑ || {9.80.2}, {9.4.13.2}, {7.3.5.2} |
704 | एन्द्र॑स्यकु॒क्षाप॑वतेम॒दिन्त॑म॒ऽऊर्जं॒वसा᳚नः॒श्रव॑सेसुम॒ङ्गलः॑ | प्र॒त्यङ्सविश्वा॒भुव॑ना॒भिप॑प्रथे॒क्रीळ॒न्हरि॒रत्यः॑स्यन्दते॒वृषा᳚ || {9.80.3}, {9.4.13.3}, {7.3.5.3} |
705 | तंत्वा᳚दे॒वेभ्यो॒मधु॑मत्तमं॒नरः॑स॒हस्र॑धारंदुहते॒दश॒क्षिपः॑ | नृभिः॑सोम॒प्रच्यु॑तो॒ग्राव॑भिःसु॒तोविश्वा᳚न्दे॒वाँऽआप॑वस्वासहस्रजित् || {9.80.4}, {9.4.13.4}, {7.3.5.4} |
706 | तंत्वा᳚ह॒स्तिनो॒मधु॑मन्त॒मद्रि॑भिर्दु॒हन्त्य॒प्सुवृ॑ष॒भंदश॒क्षिपः॑ | इन्द्रं᳚सोममा॒दय॒न्दैव्यं॒जनं॒सिन्धो᳚रिवो॒र्मिःपव॑मानोऽअर्षसि || {9.80.5}, {9.4.13.5}, {7.3.5.5} |
[81] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भारद्वाजो वसु ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | (१-४) प्रथमादिचतुर्ऋचामा आं जगती, (५) पञ्चम्याश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
707 | प्रसोम॑स्य॒पव॑मानस्यो॒र्मय॒ऽइन्द्र॑स्ययन्तिज॒ठरं᳚सु॒पेश॑सः | द॒ध्नायदी॒मुन्नी᳚ताय॒शसा॒गवां᳚दा॒नाय॒शूर॑मु॒दम᳚न्दिषुःसु॒ताः || {9.81.1}, {9.4.14.1}, {7.3.6.1} |
708 | अच्छा॒हिसोमः॑क॒लशाँ॒ऽअसि॑ष्यद॒दत्यो॒नवोळ्हा᳚र॒घुव॑र्तनि॒र्वृषा᳚ | अथा᳚दे॒वाना᳚मु॒भय॑स्य॒जन्म॑नोवि॒द्वाँऽअ॑श्नोत्य॒मुत॑ऽइ॒तश्च॒यत् || {9.81.2}, {9.4.14.2}, {7.3.6.2} |
709 | आनः॑सोम॒पव॑मानःकिरा॒वस्विन्दो॒भव॑म॒घवा॒राध॑सोम॒हः | शिक्षा᳚वयोधो॒वस॑वे॒सुचे॒तुना॒मानो॒गय॑मा॒रेऽअ॒स्मत्परा᳚सिचः || {9.81.3}, {9.4.14.3}, {7.3.6.3} |
710 | आनः॑पू॒षापव॑मानःसुरा॒तयो᳚मि॒त्रोग॑च्छन्तु॒वरु॑णःस॒जोष॑सः | बृह॒स्पति᳚र्म॒रुतो᳚वा॒युर॒श्विना॒त्वष्टा᳚सवि॒तासु॒यमा॒सर॑स्वती || {9.81.4}, {9.4.14.4}, {7.3.6.4} |
711 | उ॒भेद्यावा᳚पृथि॒वीवि॑श्वमि॒न्वेऽअ᳚र्य॒मादे॒वोऽअदि॑तिर्विधा॒ता | भगो॒नृशंस॑ऽउ॒र्व१॑(अ॒)'न्तरि॑क्षं॒विश्वे᳚दे॒वाःपव॑मानंजुषन्त || {9.81.5}, {9.4.14.5}, {7.3.6.5} |
[82] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य भारद्वाजो वसु (ऋषिः), पवमानः सोमो देवता | (१-४) प्रथमादिचतुर्ऋचाम् जगती, (५) पञ्चम्याश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
712 | असा᳚वि॒सोमो᳚ऽअरु॒षोवृषा॒हरी॒राजे᳚वद॒स्मोऽअ॒भिगाऽअ॑चिक्रदत् | पु॒ना॒नोवारं॒पर्ये᳚त्य॒व्ययं᳚श्ये॒नोनयोनिं᳚घृ॒तव᳚न्तमा॒सद᳚म् || {9.82.1}, {9.4.15.1}, {7.3.7.1} |
713 | क॒विर्वे᳚ध॒स्यापर्ये᳚षि॒माहि॑न॒मत्यो॒नमृ॒ष्टोऽअ॒भिवाज॑मर्षसि | अ॒प॒सेध᳚न्दुरि॒तासो᳚ममृळयघृ॒तंवसा᳚नः॒परि॑यासिनि॒र्णिज᳚म् || {9.82.2}, {9.4.15.2}, {7.3.7.2} |
714 | प॒र्जन्यः॑पि॒ताम॑हि॒षस्य॑प॒र्णिनो॒नाभा᳚पृथि॒व्यागि॒रिषु॒क्षयं᳚दधे | स्वसा᳚र॒ऽआपो᳚ऽअ॒भिगाऽउ॒तास॑र॒न्त्संग्राव॑भिर्नसतेवी॒तेऽअ॑ध्व॒रे || {9.82.3}, {9.4.15.3}, {7.3.7.3} |
715 | जा॒येव॒पत्या॒वधि॒शेव॑मंहसे॒पज्रा᳚यागर्भशृणु॒हिब्रवी᳚मिते | अ॒न्तर्वाणी᳚षु॒प्रच॑रा॒सुजी॒वसे᳚ऽनि॒न्द्योवृ॒जने᳚सोमजागृहि || {9.82.4}, {9.4.15.4}, {7.3.7.4} |
716 | यथा॒पूर्वे᳚भ्यःशत॒साऽअमृ॑ध्रःसहस्र॒साःप॒र्यया॒वाज॑मिन्दो | ए॒वाप॑वस्वसुवि॒ताय॒नव्य॑से॒तव᳚व्र॒तमन्वापः॑सचन्ते || {9.82.5}, {9.4.15.5}, {7.3.7.5} |
[83] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः पवित्र ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
717 | प॒वित्रं᳚ते॒वित॑तंब्रह्मणस्पतेप्र॒भुर्गात्रा᳚णि॒पर्ये᳚षिवि॒श्वतः॑ | अत॑प्ततनू॒र्नतदा॒मोऽअ॑श्नुतेशृ॒तास॒ऽइद्वह᳚न्त॒स्तत्समा᳚शत || {9.83.1}, {9.4.16.1}, {7.3.8.1} |
718 | तपो᳚ष्प॒वित्रं॒वित॑तंदि॒वस्प॒देशोच᳚न्तोऽअस्य॒तन्त॑वो॒व्य॑स्थिरन् | अव᳚न्त्यस्यपवी॒तार॑मा॒शवो᳚दि॒वस्पृ॒ष्ठमधि॑तिष्ठन्ति॒चेत॑सा || {9.83.2}, {9.4.16.2}, {7.3.8.2} |
719 | अरू᳚रुचदु॒षसः॒पृश्नि॑रग्रि॒यऽउ॒क्षाबि॑भर्ति॒भुव॑नानिवाज॒युः | मा॒या॒विनो᳚ममिरेऽअस्यमा॒यया᳚नृ॒चक्ष॑सःपि॒तरो॒गर्भ॒माद॑धुः || {9.83.3}, {9.4.16.3}, {7.3.8.3} |
720 | ग॒न्ध॒र्वऽइ॒त्थाप॒दम॑स्यरक्षति॒पाति॑दे॒वानां॒जनि॑मा॒न्यद्भु॑तः | गृ॒भ्णाति॑रि॒पुंनि॒धया᳚नि॒धाप॑तिःसु॒कृत्त॑मा॒मधु॑नोभ॒क्षमा᳚शत || {9.83.4}, {9.4.16.4}, {7.3.8.4} |
721 | ह॒विर्ह॑विष्मो॒महि॒सद्म॒दैव्यं॒नभो॒वसा᳚नः॒परि॑यास्यध्व॒रम् | राजा᳚प॒वित्र॑रथो॒वाज॒मारु॑हःस॒हस्र॑भृष्टिर्जयसि॒श्रवो᳚बृ॒हत् || {9.83.5}, {9.4.16.5}, {7.3.8.5} |
[84] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य वाच्यः प्रजापतिषिः, पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
722 | पव॑स्वदेव॒माद॑नो॒विच॑र्षणिर॒प्साऽइन्द्रा᳚य॒वरु॑णायवा॒यवे᳚ | कृ॒धीनो᳚ऽअ॒द्यवरि॑वःस्वस्ति॒मदु॑रुक्षि॒तौगृ॑णीहि॒दैव्यं॒जन᳚म् || {9.84.1}, {9.4.17.1}, {7.3.9.1} |
723 | आयस्त॒स्थौभुव॑ना॒न्यम॑र्त्यो॒विश्वा᳚नि॒सोमः॒परि॒तान्य॑र्षति | कृ॒ण्वन्त्सं॒चृतं᳚वि॒चृत॑म॒भिष्ट॑य॒ऽइन्दुः॑सिषक्त्यु॒षसं॒नसूर्यः॑ || {9.84.2}, {9.4.17.2}, {7.3.9.2} |
724 | आयोगोभिः॑सृ॒ज्यत॒ऽओष॑धी॒ष्वादे॒वानां᳚सु॒म्नऽइ॒षय॒न्नुपा᳚वसुः | आवि॒द्युता᳚पवते॒धार॑यासु॒तऽइन्द्रं॒सोमो᳚मा॒दय॒न्दैव्यं॒जन᳚म् || {9.84.3}, {9.4.17.3}, {7.3.9.3} |
725 | ए॒षस्यसोमः॑पवतेसहस्र॒जिद्धि᳚न्वा॒नोवाच॑मिषि॒रामु॑ष॒र्बुध᳚म् | इन्दुः॑समु॒द्रमुदि॑यर्तिवा॒युभि॒रेन्द्र॑स्य॒हार्दि॑क॒लशे᳚षुसीदति || {9.84.4}, {9.4.17.4}, {7.3.9.4} |
726 | अ॒भित्यंगावः॒पय॑सापयो॒वृधं॒सोमं᳚श्रीणन्तिम॒तिभिः॑स्व॒र्विद᳚म् | ध॒नं॒ज॒यःप॑वते॒कृत्व्यो॒रसो॒विप्रः॑क॒विःकाव्ये᳚ना॒स्व॑र्चनाः || {9.84.5}, {9.4.17.5}, {7.3.9.5} |
[85] (१-१२) द्वादशर्चस्य सूक्तस्य भार्गवो वेन ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | (१-१०) प्रथमादिदश! जगती, (११-१२) एकादशीद्वादश्योश्च त्रिष्टुप् छन्दसी || | |
727 | इन्द्रा᳚यसोम॒सुषु॑तः॒परि॑स्र॒वापामी᳚वाभवतु॒रक्ष॑सास॒ह | माते॒रस॑स्यमत्सतद्वया॒विनो॒द्रवि॑णस्वन्तऽइ॒हस॒न्त्विन्द॑वः || {9.85.1}, {9.4.18.1}, {7.3.10.1} |
728 | अ॒स्मान्त्स॑म॒र्येप॑वमानचोदय॒दक्षो᳚दे॒वाना॒मसि॒हिप्रि॒योमदः॑ | ज॒हिशत्रूँ᳚र॒भ्याभ᳚न्दनाय॒तःपिबे᳚न्द्र॒सोम॒मव॑नो॒मृधो᳚जहि || {9.85.2}, {9.4.18.2}, {7.3.10.2} |
729 | अद॑ब्धऽइन्दोपवसेम॒दिन्त॑मऽआ॒त्मेन्द्र॑स्यभवसिधा॒सिरु॑त्त॒मः | अ॒भिस्व॑रन्तिब॒हवो᳚मनी॒षिणो॒राजा᳚नम॒स्यभुव॑नस्यनिंसते || {9.85.3}, {9.4.18.3}, {7.3.10.3} |
730 | स॒हस्र॑णीथःश॒तधा᳚रो॒ऽअद्भु॑त॒ऽइन्द्रा॒येन्दुः॑पवते॒काम्यं॒मधु॑ | जय॒न्क्षेत्र॑म॒भ्य॑र्षा॒जय᳚न्न॒पऽउ॒रुंनो᳚गा॒तुंकृ॑णुसोममीढ्वः || {9.85.4}, {9.4.18.4}, {7.3.10.4} |
731 | कनि॑क्रदत्क॒लशे॒गोभि॑रज्यसे॒व्य१॑(अ॒)'व्ययं᳚स॒मया॒वार॑मर्षसि | म॒र्मृ॒ज्यमा᳚नो॒ऽअत्यो॒नसा᳚न॒सिरिन्द्र॑स्यसोमज॒ठरे॒सम॑क्षरः || {9.85.5}, {9.4.18.5}, {7.3.10.5} |
732 | स्वा॒दुःप॑वस्वदि॒व्याय॒जन्म॑नेस्वा॒दुरिन्द्रा᳚यसु॒हवी᳚तुनाम्ने | स्वा॒दुर्मि॒त्राय॒वरु॑णायवा॒यवे॒बृह॒स्पत॑ये॒मधु॑माँ॒ऽअदा᳚भ्यः || {9.85.6}, {9.4.18.6}, {7.3.11.1} |
733 | अत्यं᳚मृजन्तिक॒लशे॒दश॒क्षिपः॒प्रविप्रा᳚णांम॒तयो॒वाच॑ऽईरते | पव॑मानाऽअ॒भ्य॑र्षन्तिसुष्टु॒तिमेन्द्रं᳚विशन्तिमदि॒रास॒ऽइन्द॑वः || {9.85.7}, {9.4.18.7}, {7.3.11.2} |
734 | पव॑मानोऽअ॒भ्य॑र्षासु॒वीर्य॑मु॒र्वींगव्यू᳚तिं॒महि॒शर्म॑स॒प्रथः॑ | माकि᳚र्नोऽअ॒स्यपरि॑षूतिरीश॒तेन्दो॒जये᳚म॒त्वया॒धनं᳚धनम् || {9.85.8}, {9.4.18.8}, {7.3.11.3} |
735 | अधि॒द्याम॑स्थाद्वृष॒भोवि॑चक्ष॒णोऽरू᳚रुच॒द्विदि॒वोरो᳚च॒नाक॒विः | राजा᳚प॒वित्र॒मत्ये᳚ति॒रोरु॑वद्दि॒वःपी॒यूषं᳚दुहतेनृ॒चक्ष॑सः || {9.85.9}, {9.4.18.9}, {7.3.11.4} |
736 | दि॒वोनाके॒मधु॑जिह्वाऽअस॒श्चतो᳚वे॒नादु॑हन्त्यु॒क्षणं᳚गिरि॒ष्ठाम् | अ॒प्सुद्र॒प्संवा᳚वृधा॒नंस॑मु॒द्रऽआसिन्धो᳚रू॒र्मामधु॑मन्तंप॒वित्र॒ऽआ || {9.85.10}, {9.4.18.10}, {7.3.11.5} |
737 | नाके᳚सुप॒र्णमु॑पपप्ति॒वांसं॒गिरो᳚वे॒नाना᳚मकृपन्तपू॒र्वीः | शिशुं᳚रिहन्तिम॒तयः॒पनि॑प्नतंहिर॒ण्ययं᳚शकु॒नंक्षाम॑णि॒स्थाम् || {9.85.11}, {9.4.18.11}, {7.3.11.6} |
738 | ऊ॒र्ध्वोग᳚न्ध॒र्वोऽअधि॒नाके᳚ऽअस्था॒द्विश्वा᳚रू॒पाप्र॑ति॒चक्षा᳚णोऽअस्य | भा॒नुःशु॒क्रेण॑शो॒चिषा॒व्य॑द्यौ॒त्प्रारू᳚रुच॒द्रोद॑सीमा॒तरा॒शुचिः॑ || {9.85.12}, {9.4.18.12}, {7.3.11.7} |
[86] (१-४८) अष्टचत्वारिंशदृचस्य सूक्तस्य (१-१०) प्रथमादिदशर्चामकृष्टा माषाः, (११-२०) एकादश्यादिदशानां सिकता निवावरी, (२१-३०) एकविंश्यादिदशानां पृश्नयोऽजाः, (३१-४०) एकत्रिंश्यादिदशानामत्रेयः, (४१४५) एकचत्वारिंश्यादिपञ्चानां भौमोऽत्रिः, (४६-४८) षट्चत्वारिंश्यादितृचस्य च भार्गवः शौनको गृत्समद (ऋषयः) पवमानः सोमो देवता | जगती छन्दः || | |
739 | प्रत॑ऽआ॒शवः॑पवमानधी॒जवो॒मदा᳚ऽअर्षन्तिरघु॒जाऽइ॑व॒त्मना᳚ | दि॒व्याःसु॑प॒र्णामधु॑मन्त॒ऽइन्द॑वोम॒दिन्त॑मासः॒परि॒कोश॑मासते || {9.86.1}, {9.5.1.1}, {7.3.12.1} |
740 | प्रते॒मदा᳚सोमदि॒रास॑ऽआ॒शवोऽसृ॑क्षत॒रथ्या᳚सो॒यथा॒पृथ॑क् | धे॒नुर्नव॒त्संपय॑सा॒भिव॒ज्रिण॒मिन्द्र॒मिन्द॑वो॒मधु॑मन्तऽऊ॒र्मयः॑ || {9.86.2}, {9.5.1.2}, {7.3.12.2} |
741 | अत्यो॒नहि॑या॒नोऽअ॒भिवाज॑मर्षस्व॒र्वित्कोशं᳚दि॒वोऽअद्रि॑मातरम् | वृषा᳚प॒वित्रे॒ऽअधि॒सानो᳚ऽअ॒व्यये॒सोमः॑पुना॒नऽइ᳚न्द्रि॒याय॒धाय॑से || {9.86.3}, {9.5.1.3}, {7.3.12.3} |
742 | प्रत॒ऽआश्वि॑नीःपवमानधी॒जुवो᳚दि॒व्याऽअ॑सृग्र॒न्पय॑सा॒धरी᳚मणि | प्रान्तर्ऋष॑यः॒स्थावि॑रीरसृक्षत॒येत्वा᳚मृ॒जन्त्यृ॑षिषाणवे॒धसः॑ || {9.86.4}, {9.5.1.4}, {7.3.12.4} |
743 | विश्वा॒धामा᳚निविश्वचक्ष॒ऋभ्व॑सःप्र॒भोस्ते᳚स॒तःपरि॑यन्तिके॒तवः॑ | व्या॒न॒शिःप॑वसेसोम॒धर्म॑भिः॒पति॒र्विश्व॑स्य॒भुव॑नस्यराजसि || {9.86.5}, {9.5.1.5}, {7.3.12.5} |
744 | उ॒भ॒यतः॒पव॑मानस्यर॒श्मयो᳚ध्रु॒वस्य॑स॒तःपरि॑यन्तिके॒तवः॑ | यदी᳚प॒वित्रे॒ऽअधि॑मृ॒ज्यते॒हरिः॒सत्ता॒नियोना᳚क॒लशे᳚षुसीदति || {9.86.6}, {9.5.1.6}, {7.3.13.1} |
745 | य॒ज्ञस्य॑के॒तुःप॑वतेस्वध्व॒रःसोमो᳚दे॒वाना॒मुप॑यातिनिष्कृ॒तम् | स॒हस्र॑धारः॒परि॒कोश॑मर्षति॒वृषा᳚प॒वित्र॒मत्ये᳚ति॒रोरु॑वत् || {9.86.7}, {9.5.1.7}, {7.3.13.2} |
746 | राजा᳚समु॒द्रंन॒द्यो॒३॑(ओ॒)विगा᳚हते॒ऽपामू॒र्मिंस॑चते॒सिन्धु॑षुश्रि॒तः | अध्य॑स्था॒त्सानु॒पव॑मानोऽअ॒व्ययं॒नाभा᳚पृथि॒व्याध॒रुणो᳚म॒होदि॒वः || {9.86.8}, {9.5.1.8}, {7.3.13.3} |
747 | दि॒वोनसानु॑स्त॒नय᳚न्नचिक्रद॒द्द्यौश्च॒यस्य॑पृथि॒वीच॒धर्म॑भिः | इन्द्र॑स्यस॒ख्यंप॑वतेवि॒वेवि॑द॒त्सोमः॑पुना॒नःक॒लशे᳚षुसीदति || {9.86.9}, {9.5.1.9}, {7.3.13.4} |
748 | ज्योति᳚र्य॒ज्ञस्य॑पवते॒मधु॑प्रि॒यंपि॒तादे॒वानां᳚जनि॒तावि॒भूव॑सुः | दधा᳚ति॒रत्नं᳚स्व॒धयो᳚रपी॒च्यं᳚म॒दिन्त॑मोमत्स॒रऽइ᳚न्द्रि॒योरसः॑ || {9.86.10}, {9.5.1.10}, {7.3.13.5} |
749 | अ॒भि॒क्रन्द᳚न्क॒लशं᳚वा॒ज्य॑र्षति॒पति॑र्दि॒वःश॒तधा᳚रोविचक्ष॒णः | हरि᳚र्मि॒त्रस्य॒सद॑नेषुसीदतिमर्मृजा॒नोऽवि॑भिः॒सिन्धु॑भि॒र्वृषा᳚ || {9.86.11}, {9.5.1.11}, {7.3.14.1} |
750 | अग्रे॒सिन्धू᳚नां॒पव॑मानोऽअर्ष॒त्यग्रे᳚वा॒चोऽअ॑ग्रि॒योगोषु॑गच्छति | अग्रे॒वाज॑स्यभजतेमहाध॒नंस्वा᳚यु॒धःसो॒तृभिः॑पूयते॒वृषा᳚ || {9.86.12}, {9.5.1.12}, {7.3.14.2} |
751 | अ॒यंम॒तवा᳚ञ्छकु॒नोयथा᳚हि॒तोऽव्ये᳚ससार॒पव॑मानऽऊ॒र्मिणा᳚ | तव॒क्रत्वा॒रोद॑सीऽअन्त॒राक॑वे॒शुचि॑र्धि॒याप॑वते॒सोम॑ऽइन्द्रते || {9.86.13}, {9.5.1.13}, {7.3.14.3} |
752 | द्रा॒पिंवसा᳚नोयज॒तोदि॑वि॒स्पृश॑मन्तरिक्ष॒प्राभुव॑ने॒ष्वर्पि॑तः | स्व॑र्जज्ञा॒नोनभ॑सा॒भ्य॑क्रमीत्प्र॒त्नम॑स्यपि॒तर॒मावि॑वासति || {9.86.14}, {9.5.1.14}, {7.3.14.4} |
753 | सोऽअ॑स्यवि॒शेमहि॒शर्म॑यच्छति॒योऽअ॑स्य॒धाम॑प्रथ॒मंव्या᳚न॒शे | प॒दंयद॑स्यपर॒मेव्यो᳚म॒न्यतो॒विश्वा᳚ऽअ॒भिसंया᳚तिसं॒यतः॑ || {9.86.15}, {9.5.1.15}, {7.3.14.5} |
754 | प्रोऽअ॑यासी॒दिन्दु॒रिन्द्र॑स्यनिष्कृ॒तंसखा॒सख्यु॒र्नप्रमि॑नातिसं॒गिर᳚म् | मर्य॑ऽइवयुव॒तिभिः॒सम॑र्षति॒सोमः॑क॒लशे᳚श॒तया᳚म्नाप॒था || {9.86.16}, {9.5.1.16}, {7.3.15.1} |
755 | प्रवो॒धियो᳚मन्द्र॒युवो᳚विप॒न्युवः॑पन॒स्युवः॑सं॒वस॑नेष्वक्रमुः | सोमं᳚मनी॒षाऽअ॒भ्य॑नूषत॒स्तुभो॒ऽभिधे॒नवः॒पय॑सेमशिश्रयुः || {9.86.17}, {9.5.1.17}, {7.3.15.2} |
756 | आनः॑सोमसं॒यतं᳚पि॒प्युषी॒मिष॒मिन्दो॒पव॑स्व॒पव॑मानोऽअ॒स्रिध᳚म् | यानो॒दोह॑ते॒त्रिरह॒न्नस॑श्चुषीक्षु॒मद्वाज॑व॒न्मधु॑मत्सु॒वीर्य᳚म् || {9.86.18}, {9.5.1.18}, {7.3.15.3} |
757 | वृषा᳚मती॒नांप॑वतेविचक्ष॒णःसोमो॒ऽअह्नः॑प्रतरी॒तोषसो᳚दि॒वः | क्रा॒णासिन्धू᳚नांक॒लशाँ᳚ऽअवीवश॒दिन्द्र॑स्य॒हार्द्या᳚वि॒शन्म॑नी॒षिभिः॑ || {9.86.19}, {9.5.1.19}, {7.3.15.4} |
758 | म॒नी॒षिभिः॑पवतेपू॒र्व्यःक॒विर्नृभि᳚र्य॒तःपरि॒कोशाँ᳚ऽअचिक्रदत् | त्रि॒तस्य॒नाम॑ज॒नय॒न्मधु॑क्षर॒दिन्द्र॑स्यवा॒योःस॒ख्याय॒कर्त॑वे || {9.86.20}, {9.5.1.20}, {7.3.15.5} |
759 | अ॒यंपु॑ना॒नऽउ॒षसो॒विरो᳚चयद॒यंसिन्धु॑भ्योऽअभवदुलोक॒कृत् | अ॒यंत्रिःस॒प्तदु॑दुहा॒नऽआ॒शिरं॒सोमो᳚हृ॒देप॑वते॒चारु॑मत्स॒रः || {9.86.21}, {9.5.1.21}, {7.3.16.1} |
760 | पव॑स्वसोमदि॒व्येषु॒धाम॑सुसृजा॒नऽइ᳚न्दोक॒लशे᳚प॒वित्र॒ऽआ | सीद॒न्निन्द्र॑स्यज॒ठरे॒कनि॑क्रद॒न्नृभि᳚र्य॒तःसूर्य॒मारो᳚हयोदि॒वि || {9.86.22}, {9.5.1.22}, {7.3.16.2} |
761 | अद्रि॑भिःसु॒तःप॑वसेप॒वित्र॒ऽआँऽइन्द॒विन्द्र॑स्यज॒ठरे᳚ष्वावि॒शन् | त्वंनृ॒चक्षा᳚ऽअभवोविचक्षण॒सोम॑गो॒त्रमङ्गि॑रोभ्योऽवृणो॒रप॑ || {9.86.23}, {9.5.1.23}, {7.3.16.3} |
762 | त्वांसो᳚म॒पव॑मानंस्वा॒ध्योऽनु॒विप्रा᳚सोऽअमदन्नव॒स्यवः॑ | त्वांसु॑प॒र्णऽआभ॑रद्दि॒वस्परीन्दो॒विश्वा᳚भिर्म॒तिभिः॒परि॑ष्कृतम् || {9.86.24}, {9.5.1.24}, {7.3.16.4} |
763 | अव्ये᳚पुना॒नंपरि॒वार॑ऽऊ॒र्मिणा॒हरिं᳚नवन्तेऽअ॒भिस॒प्तधे॒नवः॑ | अ॒पामु॒पस्थे॒ऽअध्या॒यवः॑क॒विमृ॒तस्य॒योना᳚महि॒षाऽअ॑हेषत || {9.86.25}, {9.5.1.25}, {7.3.16.5} |
764 | इन्दुः॑पुना॒नोऽअति॑गाहते॒मृधो॒विश्वा᳚निकृ॒ण्वन्त्सु॒पथा᳚नि॒यज्य॑वे | गाःकृ᳚ण्वा॒नोनि॒र्णिजं᳚हर्य॒तःक॒विरत्यो॒नक्रीळ॒न्परि॒वार॑मर्षति || {9.86.26}, {9.5.1.26}, {7.3.17.1} |
765 | अ॒स॒श्चतः॑श॒तधा᳚राऽअभि॒श्रियो॒हरिं᳚नव॒न्तेऽव॒ताऽउ॑द॒न्युवः॑ | क्षिपो᳚मृजन्ति॒परि॒गोभि॒रावृ॑तंतृ॒तीये᳚पृ॒ष्ठेऽअधि॑रोच॒नेदि॒वः || {9.86.27}, {9.5.1.27}, {7.3.17.2} |
766 | तवे॒माःप्र॒जादि॒व्यस्य॒रेत॑स॒स्त्वंविश्व॑स्य॒भुव॑नस्यराजसि | अथे॒दंविश्वं᳚पवमानते॒वशे॒त्वमि᳚न्दोप्रथ॒मोधा᳚म॒धाऽअ॑सि || {9.86.28}, {9.5.1.28}, {7.3.17.3} |
767 | त्वंस॑मु॒द्रोऽअ॑सिविश्व॒वित्क॑वे॒तवे॒माःपञ्च॑प्र॒दिशो॒विध᳚र्मणि | त्वंद्यांच॑पृथि॒वींचाति॑जभ्रिषे॒तव॒ज्योतीं᳚षिपवमान॒सूर्यः॑ || {9.86.29}, {9.5.1.29}, {7.3.17.4} |
768 | त्वंप॒वित्रे॒रज॑सो॒विध᳚र्मणिदे॒वेभ्यः॑सोमपवमानपूयसे | त्वामु॒शिजः॑प्रथ॒माऽअ॑गृभ्णत॒तुभ्ये॒माविश्वा॒भुव॑नानियेमिरे || {9.86.30}, {9.5.1.30}, {7.3.17.5} |
769 | प्ररे॒भऽए॒त्यति॒वार॑म॒व्ययं॒वृषा॒वने॒ष्वव॑चक्रद॒द्धरिः॑ | संधी॒तयो᳚वावशा॒नाऽअ॑नूषत॒शिशुं᳚रिहन्तिम॒तयः॒पनि॑प्नतम् || {9.86.31}, {9.5.1.31}, {7.3.18.1} |
770 | ससूर्य॑स्यर॒श्मिभिः॒परि᳚व्यत॒तन्तुं᳚तन्वा॒नस्त्रि॒वृतं॒यथा᳚वि॒दे | नय᳚न्नृ॒तस्य॑प्र॒शिषो॒नवी᳚यसीः॒पति॒र्जनी᳚ना॒मुप॑यातिनिष्कृ॒तम् || {9.86.32}, {9.5.1.32}, {7.3.18.2} |
771 | राजा॒सिन्धू᳚नांपवते॒पति॑र्दि॒वऋ॒तस्य॑यातिप॒थिभिः॒कनि॑क्रदत् | स॒हस्र॑धारः॒परि॑षिच्यते॒हरिः॑पुना॒नोवाचं᳚ज॒नय॒न्नुपा᳚वसुः || {9.86.33}, {9.5.1.33}, {7.3.18.3} |
772 | पव॑मान॒मह्यर्णो॒विधा᳚वसि॒सूरो॒नचि॒त्रोऽअव्य॑यानि॒पव्य॑या | गभ॑स्तिपूतो॒नृभि॒रद्रि॑भिःसु॒तोम॒हेवाजा᳚य॒धन्या᳚यधन्वसि || {9.86.34}, {9.5.1.34}, {7.3.18.4} |
773 | इष॒मूर्जं᳚पवमाना॒भ्य॑र्षसिश्ये॒नोनवंसु॑क॒लशे᳚षुसीदसि | इन्द्रा᳚य॒मद्वा॒मद्यो॒मदः॑सु॒तोदि॒वोवि॑ष्ट॒म्भऽउ॑प॒मोवि॑चक्ष॒णः || {9.86.35}, {9.5.1.35}, {7.3.18.5} |
774 | स॒प्तस्वसा᳚रोऽअ॒भिमा॒तरः॒शिशुं॒नवं᳚जज्ञा॒नंजेन्यं᳚विप॒श्चित᳚म् | अ॒पांग᳚न्ध॒र्वंदि॒व्यंनृ॒चक्ष॑सं॒सोमं॒विश्व॑स्य॒भुव॑नस्यरा॒जसे᳚ || {9.86.36}, {9.5.1.36}, {7.3.19.1} |
775 | ई॒शा॒नऽइ॒माभुव॑नानि॒वीय॑सेयुजा॒नऽइ᳚न्दोह॒रितः॑सुप॒र्ण्यः॑ | तास्ते᳚क्षरन्तु॒मधु॑मद्घृ॒तंपय॒स्तव᳚व्र॒तेसो᳚मतिष्ठन्तुकृ॒ष्टयः॑ || {9.86.37}, {9.5.1.37}, {7.3.19.2} |
776 | त्वंनृ॒चक्षा᳚ऽअसिसोमवि॒श्वतः॒पव॑मानवृषभ॒ताविधा᳚वसि | सनः॑पवस्व॒वसु॑म॒द्धिर᳚ण्यवद्व॒यंस्या᳚म॒भुव॑नेषुजी॒वसे᳚ || {9.86.38}, {9.5.1.38}, {7.3.19.3} |
777 | गो॒वित्प॑वस्ववसु॒विद्धि॑रण्य॒विद्रे᳚तो॒धाऽइ᳚न्दो॒भुव॑ने॒ष्वर्पि॑तः | त्वंसु॒वीरो᳚ऽअसिसोमविश्व॒वित्तंत्वा॒विप्रा॒ऽउप॑गि॒रेमऽआ᳚सते || {9.86.39}, {9.5.1.39}, {7.3.19.4} |
778 | उन्मध्व॑ऽऊ॒र्मिर्व॒नना᳚ऽअतिष्ठिपद॒पोवसा᳚नोमहि॒षोविगा᳚हते | राजा᳚प॒वित्र॑रथो॒वाज॒मारु॑हत्स॒हस्र॑भृष्टिर्जयति॒श्रवो᳚बृ॒हत् || {9.86.40}, {9.5.1.40}, {7.3.19.5} |
779 | सभ॒न्दना॒ऽउदि॑यर्तिप्र॒जाव॑तीर्वि॒श्वायु॒र्विश्वाः᳚सु॒भरा॒ऽअह॑र्दिवि | ब्रह्म॑प्र॒जाव॑द्र॒यिमश्व॑पस्त्यंपी॒तऽइ᳚न्द॒विन्द्र॑म॒स्मभ्यं᳚याचतात् || {9.86.41}, {9.5.1.41}, {7.3.20.1} |
780 | सोऽअग्रे॒ऽअह्नां॒हरि॑र्हर्य॒तोमदः॒प्रचेत॑साचेतयते॒ऽअनु॒द्युभिः॑ | द्वाजना᳚या॒तय᳚न्न॒न्तरी᳚यते॒नरा᳚च॒शंसं॒दैव्यं᳚चध॒र्तरि॑ || {9.86.42}, {9.5.1.42}, {7.3.20.2} |
781 | अ॒ञ्जते॒व्य᳚ञ्जते॒सम᳚ञ्जते॒क्रतुं᳚रिहन्ति॒मधु॑ना॒भ्य᳚ञ्जते | सिन्धो᳚रुच्छ्वा॒सेप॒तय᳚न्तमु॒क्षणं᳚हिरण्यपा॒वाःप॒शुमा᳚सुगृभ्णते || {9.86.43}, {9.5.1.43}, {7.3.20.3} |
782 | वि॒प॒श्चिते॒पव॑मानायगायतम॒हीनधारात्यन्धो᳚ऽअर्षति | अहि॒र्नजू॒र्णामति॑सर्पति॒त्वच॒मत्यो॒नक्रीळ᳚न्नसर॒द्वृषा॒हरिः॑ || {9.86.44}, {9.5.1.44}, {7.3.20.4} |
783 | अ॒ग्रे॒गोराजाप्य॑स्तविष्यतेवि॒मानो॒ऽअह्नां॒भुव॑ने॒ष्वर्पि॑तः | हरि॑र्घृ॒तस्नुः॑सु॒दृशी᳚कोऽअर्ण॒वोज्यो॒तीर॑थःपवतेरा॒यऽओ॒क्यः॑ || {9.86.45}, {9.5.1.45}, {7.3.20.5} |
784 | अस॑र्जिस्क॒म्भोदि॒वऽउद्य॑तो॒मदः॒परि॑त्रि॒धातु॒र्भुव॑नान्यर्षति | अं॒शुंरि॑हन्तिम॒तयः॒पनि॑प्नतंगि॒रायदि॑नि॒र्णिज॑मृ॒ग्मिणो᳚य॒युः || {9.86.46}, {9.5.1.46}, {7.3.21.1} |
785 | प्रते॒धारा॒ऽअत्यण्वा᳚निमे॒ष्यः॑पुना॒नस्य॑सं॒यतो᳚यन्ति॒रंह॑यः | यद्गोभि॑रिन्दोच॒म्वोः᳚सम॒ज्यस॒ऽआसु॑वा॒नःसो᳚मक॒लशे᳚षुसीदसि || {9.86.47}, {9.5.1.47}, {7.3.21.2} |
786 | पव॑स्वसोमक्रतु॒विन्न॑ऽउ॒क्थ्योऽव्यो॒वारे॒परि॑धाव॒मधु॑प्रि॒यम् | ज॒हिविश्वा᳚न्र॒क्षस॑ऽइन्दोऽअ॒त्रिणो᳚बृ॒हद्व॑देमवि॒दथे᳚सु॒वीराः᳚ || {9.86.48}, {9.5.1.48}, {7.3.21.3} |
[87] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काव्य उशना ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
787 | प्रतुद्र॑व॒परि॒कोशं॒निषी᳚द॒नृभिः॑पुना॒नोऽअ॒भिवाज॑मर्ष | अश्वं॒नत्वा᳚वा॒जिनं᳚म॒र्जय॒न्तोऽच्छा᳚ब॒र्हीर॑श॒नाभि᳚र्नयन्ति || {9.87.1}, {9.5.2.1}, {7.3.22.1} |
788 | स्वा॒यु॒धःप॑वतेदे॒वऽइन्दु॑रशस्ति॒हावृ॒जनं॒रक्ष॑माणः | पि॒तादे॒वानां᳚जनि॒तासु॒दक्षो᳚विष्ट॒म्भोदि॒वोध॒रुणः॑पृथि॒व्याः || {9.87.2}, {9.5.2.2}, {7.3.22.2} |
789 | ऋषि॒र्विप्रः॑पुरए॒ताजना᳚नामृ॒भुर्धीर॑ऽउ॒शना॒काव्ये᳚न | सचि॑द्विवेद॒निहि॑तं॒यदा᳚सामपी॒च्य१॑(अ॒)अंगुह्यं॒नाम॒गोना᳚म् || {9.87.3}, {9.5.2.3}, {7.3.22.3} |
790 | ए॒षस्यते॒मधु॑माँऽइन्द्र॒सोमो॒वृषा॒वृष्णे॒परि॑प॒वित्रे᳚ऽअक्षाः | स॒ह॒स्र॒साःश॑त॒साभू᳚रि॒दावा᳚शश्वत्त॒मंब॒र्हिरावा॒ज्य॑स्थात् || {9.87.4}, {9.5.2.4}, {7.3.22.4} |
791 | ए॒तेसोमा᳚ऽअ॒भिग॒व्यास॒हस्रा᳚म॒हेवाजा᳚या॒मृता᳚य॒श्रवां᳚सि | प॒वित्रे᳚भिः॒पव॑मानाऽअसृग्रञ्छ्रव॒स्यवो॒नपृ॑त॒नाजो॒ऽअत्याः᳚ || {9.87.5}, {9.5.2.5}, {7.3.22.5} |
792 | परि॒हिष्मा᳚पुरुहू॒तोजना᳚नां॒विश्वास॑र॒द्भोज॑नापू॒यमा᳚नः | अथाभ॑रश्येनभृत॒प्रयां᳚सिर॒यिंतुञ्जा᳚नोऽअ॒भिवाज॑मर्ष || {9.87.6}, {9.5.2.6}, {7.3.23.1} |
793 | ए॒षसु॑वा॒नःपरि॒सोमः॑प॒वित्रे॒सर्गो॒नसृ॒ष्टोऽअ॑दधाव॒दर्वा᳚ | ति॒ग्मेशिशा᳚नोमहि॒षोनशृङ्गे॒गाग॒व्यन्न॒भिशूरो॒नसत्वा᳚ || {9.87.7}, {9.5.2.7}, {7.3.23.2} |
794 | ए॒षाय॑यौपर॒माद॒न्तरद्रेः॒कूचि॑त्स॒तीरू॒र्वेगावि॑वेद | दि॒वोनवि॒द्युत्स्त॒नय᳚न्त्य॒भ्रैःसोम॑स्यतेपवतऽइन्द्र॒धारा᳚ || {9.87.8}, {9.5.2.8}, {7.3.23.3} |
795 | उ॒तस्म॑रा॒शिंपरि॑यासि॒गोना॒मिन्द्रे᳚णसोमस॒रथं᳚पुना॒नः | पू॒र्वीरिषो᳚बृह॒तीर्जी᳚रदानो॒शिक्षा᳚शचीव॒स्तव॒ताऽउ॑प॒ष्टुत् || {9.87.9}, {9.5.2.9}, {7.3.23.4} |
[88] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्य काव्य उशना ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
796 | अ॒यंसोम॑ऽइन्द्र॒तुभ्यं᳚सुन्वे॒तुभ्यं᳚पवते॒त्वम॑स्यपाहि | त्वंह॒यंच॑कृ॒षेत्वंव॑वृ॒षऽइन्दुं॒मदा᳚य॒युज्या᳚य॒सोम᳚म् || {9.88.1}, {9.5.3.1}, {7.3.24.1} |
797 | सऽईं॒रथो॒नभु॑रि॒षाळ॑योजिम॒हःपु॒रूणि॑सा॒तये॒वसू᳚नि | आदीं॒विश्वा᳚नहु॒ष्या᳚णिजा॒तास्व॑र्षाता॒वन॑ऽऊ॒र्ध्वान॑वन्त || {9.88.2}, {9.5.3.2}, {7.3.24.2} |
798 | वा॒युर्नयोनि॒युत्वाँ᳚ऽइ॒ष्टया᳚मा॒नास॑त्येव॒हव॒ऽआशम्भ॑विष्ठः | वि॒श्ववा᳚रोद्रविणो॒दाऽइ॑व॒त्मन्पू॒षेव॑धी॒जव॑नोऽसिसोम || {9.88.3}, {9.5.3.3}, {7.3.24.3} |
799 | इन्द्रो॒नयोम॒हाकर्मा᳚णि॒चक्रि॑र्ह॒न्तावृ॒त्राणा᳚मसिसोमपू॒र्भित् | पै॒द्वोनहित्वमहि॑नाम्नांह॒न्ताविश्व॑स्यासिसोम॒दस्योः᳚ || {9.88.4}, {9.5.3.4}, {7.3.24.4} |
800 | अ॒ग्निर्नयोवन॒ऽआसृ॒ज्यमा᳚नो॒वृथा॒पाजां᳚सिकृणुतेन॒दीषु॑ | जनो॒नयुध्वा᳚मह॒तऽउ॑प॒ब्दिरिय॑र्ति॒सोमः॒पव॑मानऽऊ॒र्मिम् || {9.88.5}, {9.5.3.5}, {7.3.24.5} |
801 | ए॒तेसोमा॒ऽअति॒वारा॒ण्यव्या᳚दि॒व्यानकोशा᳚सोऽअ॒भ्रव॑र्षाः | वृथा᳚समु॒द्रंसिन्ध॑वो॒ननीचीः᳚सु॒तासो᳚ऽअ॒भिक॒लशाँ᳚ऽअसृग्रन् || {9.88.6}, {9.5.3.6}, {7.3.24.6} |
802 | शु॒ष्मीशर्धो॒नमारु॑तंपव॒स्वान॑भिशस्तादि॒व्यायथा॒विट् | आपो॒नम॒क्षूसु॑म॒तिर्भ॑वानःस॒हस्रा᳚प्साःपृतना॒षाण्नय॒ज्ञः || {9.88.7}, {9.5.3.7}, {7.3.24.7} |
803 | राज्ञो॒नुते॒वरु॑णस्यव्र॒तानि॑बृ॒हद्ग॑भी॒रंतव॑सोम॒धाम॑ | शुचि॒ष्ट्वम॑सिप्रि॒योनमि॒त्रोद॒क्षाय्यो᳚ऽअर्य॒मेवा᳚सिसोम || {9.88.8}, {9.5.3.8}, {7.3.24.8} |
[89] (१-७) सप्तर्चस्य सूक्तस्य काव्य उशना ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
804 | प्रोस्यवह्निः॑प॒थ्या᳚भिरस्यान्दि॒वोनवृ॒ष्टिःपव॑मानोऽअक्षाः | स॒हस्र॑धारोऽअसद॒न्न्य१॑(अ॒)स्मेमा॒तुरु॒पस्थे॒वन॒ऽआच॒सोमः॑ || {9.89.1}, {9.5.4.1}, {7.3.25.1} |
805 | राजा॒सिन्धू᳚नामवसिष्ट॒वास॑ऋ॒तस्य॒नाव॒मारु॑ह॒द्रजि॑ष्ठाम् | अ॒प्सुद्र॒प्सोवा᳚वृधेश्ये॒नजू᳚तोदु॒हऽईं᳚पि॒तादु॒हऽईं᳚पि॒तुर्जाम् || {9.89.2}, {9.5.4.2}, {7.3.25.2} |
806 | सिं॒हंन॑सन्त॒मध्वो᳚ऽअ॒यासं॒हरि॑मरु॒षंदि॒वोऽअ॒स्यपति᳚म् | शूरो᳚यु॒त्सुप्र॑थ॒मःपृ॑च्छते॒गाऽअस्य॒चक्ष॑सा॒परि॑पात्यु॒क्षा || {9.89.3}, {9.5.4.3}, {7.3.25.3} |
807 | मधु॑पृष्ठंघो॒रम॒यास॒मश्वं॒रथे᳚युञ्जन्त्युरुच॒क्रऋ॒ष्वम् | स्वसा᳚रऽईंजा॒मयो᳚मर्जयन्ति॒सना᳚भयोवा॒जिन॑मूर्जयन्ति || {9.89.4}, {9.5.4.4}, {7.3.25.4} |
808 | चत॑स्रऽईंघृत॒दुहः॑सचन्तेसमा॒नेऽअ॒न्तर्ध॒रुणे॒निष॑त्ताः | ताऽई᳚मर्षन्ति॒नम॑सापुना॒नास्ताऽईं᳚वि॒श्वतः॒परि॑षन्तिपू॒र्वीः || {9.89.5}, {9.5.4.5}, {7.3.25.5} |
809 | वि॒ष्ट॒म्भोदि॒वोध॒रुणः॑पृथि॒व्याविश्वा᳚ऽउ॒तक्षि॒तयो॒हस्ते᳚ऽअस्य | अस॑त्त॒ऽउत्सो᳚गृण॒तेनि॒युत्वा॒न्मध्वो᳚ऽअं॒शुःप॑वतऽइन्द्रि॒याय॑ || {9.89.6}, {9.5.4.6}, {7.3.25.6} |
810 | व॒न्वन्नवा᳚तोऽअ॒भिदे॒ववी᳚ति॒मिन्द्रा᳚यसोमवृत्र॒हाप॑वस्व | श॒ग्धिम॒हःपु॑रुश्च॒न्द्रस्य॑रा॒यःसु॒वीर्य॑स्य॒पत॑यःस्याम || {9.89.7}, {9.5.4.7}, {7.3.25.7} |
[90] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य मैत्रावरणिर्वसिष्ठ ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
811 | प्रहि᳚न्वा॒नोज॑नि॒तारोद॑स्यो॒रथो॒नवाजं᳚सनि॒ष्यन्न॑यासीत् | इन्द्रं॒गच्छ॒न्नायु॑धासं॒शिशा᳚नो॒विश्वा॒वसु॒हस्त॑योरा॒दधा᳚नः || {9.90.1}, {9.5.5.1}, {7.3.26.1} |
812 | अ॒भित्रि॑पृ॒ष्ठंवृष॑णंवयो॒धामा᳚ङ्गू॒षाणा᳚मवावशन्त॒वाणीः᳚ | वना॒वसा᳚नो॒वरु॑णो॒नसिन्धू॒न्विर॑त्न॒धाद॑यते॒वार्या᳚णि || {9.90.2}, {9.5.5.2}, {7.3.26.2} |
813 | शूर॑ग्रामः॒सर्व॑वीरः॒सहा᳚वा॒ञ्जेता᳚पवस्व॒सनि॑ता॒धना᳚नि | ति॒ग्मायु॑धःक्षि॒प्रध᳚न्वास॒मत्स्वषा᳚ळ्हःसा॒ह्वान्पृत॑नासु॒शत्रू॑न् || {9.90.3}, {9.5.5.3}, {7.3.26.3} |
814 | उ॒रुग᳚व्यूति॒रभ॑यानिकृ॒ण्वन्त्स॑मीची॒नेऽआप॑वस्वा॒पुरं᳚धी | अ॒पःसिषा᳚सन्नु॒षसः॒स्व१॑(अ॒)र्गाःसंचि॑क्रदोम॒होऽअ॒स्मभ्यं॒वाजा॑न् || {9.90.4}, {9.5.5.4}, {7.3.26.4} |
815 | मत्सि॑सोम॒वरु॑णं॒मत्सि॑मि॒त्रंमत्सीन्द्र॑मिन्दोपवमान॒विष्णु᳚म् | मत्सि॒शर्धो॒मारु॑तं॒मत्सि॑दे॒वान्मत्सि॑म॒हामिन्द्र॑मिन्दो॒मदा᳚य || {9.90.5}, {9.5.5.5}, {7.3.26.5} |
816 | ए॒वाराजे᳚व॒क्रतु॑माँ॒ऽअमे᳚न॒विश्वा॒घनि॑घ्नद्दुरि॒ताप॑वस्व | इन्दो᳚सू॒क्ताय॒वच॑से॒वयो᳚धायू॒यंपा᳚तस्व॒स्तिभिः॒सदा᳚नः || {9.90.6}, {9.5.5.6}, {7.3.26.6} |
[91] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य मारीचः कश्यप ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
817 | अस॑र्जि॒वक्वा॒रथ्ये॒यथा॒जौधि॒याम॒नोता᳚प्रथ॒मोम॑नी॒षी | दश॒स्वसा᳚रो॒ऽअधि॒सानो॒ऽअव्येऽज᳚न्ति॒वह्निं॒सद॑ना॒न्यच्छ॑ || {9.91.1}, {9.5.6.1}, {7.4.1.1} |
818 | वी॒तीजन॑स्यदि॒व्यस्य॑क॒व्यैरधि॑सुवा॒नोन॑हु॒ष्ये᳚भि॒रिन्दुः॑ | प्रयोनृभि॑र॒मृतो॒मर्त्ये᳚भिर्मर्मृजा॒नोऽवि॑भि॒र्गोभि॑र॒द्भिः || {9.91.2}, {9.5.6.2}, {7.4.1.2} |
819 | वृषा॒वृष्णे॒रोरु॑वदं॒शुर॑स्मै॒पव॑मानो॒रुश॑दीर्ते॒पयो॒गोः | स॒हस्र॒मृक्वा᳚प॒थिभि᳚र्वचो॒विद॑ध्व॒स्मभिः॒सूरो॒ऽअण्वं॒विया᳚ति || {9.91.3}, {9.5.6.3}, {7.4.1.3} |
820 | रु॒जादृ॒ळ्हाचि॑द्र॒क्षसः॒सदां᳚सिपुना॒नऽइ᳚न्दऽऊर्णुहि॒विवाजा॑न् | वृ॒श्चोपरि॑ष्टात्तुज॒ताव॒धेन॒येऽअन्ति॑दू॒रादु॑पना॒यमे᳚षाम् || {9.91.4}, {9.5.6.4}, {7.4.1.4} |
821 | सप्र॑त्न॒वन्नव्य॑सेविश्ववारसू॒क्ताय॑प॒थःकृ॑णुहि॒प्राचः॑ | येदुः॒षहा᳚सोव॒नुषा᳚बृ॒हन्त॒स्ताँस्ते᳚ऽअश्यामपुरुकृत्पुरुक्षो || {9.91.5}, {9.5.6.5}, {7.4.1.5} |
822 | ए॒वापु॑ना॒नोऽअ॒पःस्व१॑(अ॒)र्गाऽअ॒स्मभ्यं᳚तो॒कातन॑यानि॒भूरि॑ | शंनः॒क्षेत्र॑मु॒रुज्योतीं᳚षिसोम॒ज्योङ्नः॒सूर्यं᳚दृ॒शये᳚रिरीहि || {9.91.6}, {9.5.6.6}, {7.4.1.6} |
[92] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य मारीचः कश्यप ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
823 | परि॑सुवा॒नोहरि॑रं॒शुःप॒वित्रे॒रथो॒नस॑र्जिस॒नये᳚हिया॒नः | आप॒च्छ्लोक॑मिन्द्रि॒यंपू॒यमा᳚नः॒प्रति॑दे॒वाँऽअ॑जुषत॒प्रयो᳚भिः || {9.92.1}, {9.5.7.1}, {7.4.2.1} |
824 | अच्छा᳚नृ॒चक्षा᳚ऽअसरत्प॒वित्रे॒नाम॒दधा᳚नःक॒विर॑स्य॒योनौ᳚ | सीद॒न्होते᳚व॒सद॑नेच॒मूषूपे᳚मग्म॒न्नृष॑यःस॒प्तविप्राः᳚ || {9.92.2}, {9.5.7.2}, {7.4.2.2} |
825 | प्रसु॑मे॒धागा᳚तु॒विद्वि॒श्वदे᳚वः॒सोमः॑पुना॒नःसद॑ऽएति॒नित्य᳚म् | भुव॒द्विश्वे᳚षु॒काव्ये᳚षु॒रन्तानु॒जना᳚न्यतते॒पञ्च॒धीरः॑ || {9.92.3}, {9.5.7.3}, {7.4.2.3} |
826 | तव॒त्येसो᳚मपवमाननि॒ण्येविश्वे᳚दे॒वास्त्रय॑ऽएकाद॒शासः॑ | दश॑स्व॒धाभि॒रधि॒सानो॒ऽअव्ये᳚मृ॒जन्ति॑त्वान॒द्यः॑स॒प्तय॒ह्वीः || {9.92.4}, {9.5.7.4}, {7.4.2.4} |
827 | तन्नुस॒त्यंपव॑मानस्यास्तु॒यत्र॒विश्वे᳚का॒रवः॑सं॒नस᳚न्त | ज्योति॒र्यदह्ने॒ऽअकृ॑णोदुलो॒कंप्राव॒न्मनुं॒दस्य॑वेकर॒भीक᳚म् || {9.92.5}, {9.5.7.5}, {7.4.2.5} |
828 | परि॒सद्मे᳚वपशु॒मान्ति॒होता॒राजा॒नस॒त्यःसमि॑तीरिया॒नः | सोमः॑पुना॒नःक॒लशाँ᳚ऽअयासी॒त्सीद᳚न्मृ॒गोनम॑हि॒षोवने᳚षु || {9.92.6}, {9.5.7.6}, {7.4.2.6} |
[93] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य गौतमो नोधा ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
829 | सा॒क॒मुक्षो᳚मर्जयन्त॒स्वसा᳚रो॒दश॒धीर॑स्यधी॒तयो॒धनु॑त्रीः | हरिः॒पर्य॑द्रव॒ज्जाःसूर्य॑स्य॒द्रोणं᳚ननक्षे॒ऽअत्यो॒नवा॒जी || {9.93.1}, {9.5.8.1}, {7.4.3.1} |
830 | संमा॒तृभि॒र्नशिशु᳚र्वावशा॒नोवृषा᳚दधन्वेपुरु॒वारो᳚ऽअ॒द्भिः | मर्यो॒नयोषा᳚म॒भिनि॑ष्कृ॒तंयन्त्संग॑च्छतेक॒लश॑ऽउ॒स्रिया᳚भिः || {9.93.2}, {9.5.8.2}, {7.4.3.2} |
831 | उ॒तप्रपि॑प्य॒ऽऊध॒रघ्न्या᳚या॒ऽइन्दु॒र्धारा᳚भिःसचतेसुमे॒धाः | मू॒र्धानं॒गावः॒पय॑साच॒मूष्व॒भिश्री᳚णन्ति॒वसु॑भि॒र्ननि॒क्तैः || {9.93.3}, {9.5.8.3}, {7.4.3.3} |
832 | सनो᳚दे॒वेभिः॑पवमानर॒देन्दो᳚र॒यिम॒श्विनं᳚वावशा॒नः | र॒थि॒रा॒यता᳚मुश॒तीपुरं᳚धिरस्म॒द्र्य१॑(अ॒)गादा॒वने॒वसू᳚नाम् || {9.93.4}, {9.5.8.4}, {7.4.3.4} |
833 | नूनो᳚र॒यिमुप॑मास्वनृ॒वन्तं᳚पुना॒नोवा॒ताप्यं᳚वि॒श्वश्च᳚न्द्रम् | प्रव᳚न्दि॒तुरि᳚न्दोता॒र्यायुः॑प्रा॒तर्म॒क्षूधि॒याव॑सुर्जगम्यात् || {9.93.5}, {9.5.8.5}, {7.4.3.5} |
[94] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः कण्व ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
834 | अधि॒यद॑स्मिन्वा॒जिनी᳚व॒शुभः॒स्पर्ध᳚न्ते॒धियः॒सूर्ये॒नविशः॑ | अ॒पोवृ॑णा॒नःप॑वतेकवी॒यन्व्र॒जंनप॑शु॒वर्ध॑नाय॒मन्म॑ || {9.94.1}, {9.5.9.1}, {7.4.4.1} |
835 | द्वि॒ताव्यू॒र्ण्वन्न॒मृत॑स्य॒धाम॑स्व॒र्विदे॒भुव॑नानिप्रथन्त | धियः॑पिन्वा॒नाःस्वस॑रे॒नगाव॑ऋता॒यन्ती᳚र॒भिवा᳚वश्र॒ऽइन्दु᳚म् || {9.94.2}, {9.5.9.2}, {7.4.4.2} |
836 | परि॒यत्क॒विःकाव्या॒भर॑ते॒शूरो॒नरथो॒भुव॑नानि॒विश्वा᳚ | दे॒वेषु॒यशो॒मर्ता᳚य॒भूष॒न्दक्षा᳚यरा॒यःपु॑रु॒भूषु॒नव्यः॑ || {9.94.3}, {9.5.9.3}, {7.4.4.3} |
837 | श्रि॒येजा॒तःश्रि॒यऽआनिरि॑याय॒श्रियं॒वयो᳚जरि॒तृभ्यो᳚दधाति | श्रियं॒वसा᳚नाऽअमृत॒त्वमा᳚य॒न्भव᳚न्तिस॒त्यास॑मि॒थामि॒तद्रौ᳚ || {9.94.4}, {9.5.9.4}, {7.4.4.4} |
838 | इष॒मूर्ज॑म॒भ्य१॑(अ॒)र्षाश्वं॒गामु॒रुज्योतिः॑कृणुहि॒मत्सि॑दे॒वान् | विश्वा᳚नि॒हिसु॒षहा॒तानि॒तुभ्यं॒पव॑मान॒बाध॑सेसोम॒शत्रू॑न् || {9.94.5}, {9.5.9.5}, {7.4.4.5} |
[95] (१-५) पञ्चर्चस्य सूक्तस्य काण्वः प्रस्कण्व ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
839 | कनि॑क्रन्ति॒हरि॒रासृ॒ज्यमा᳚नः॒सीद॒न्वन॑स्यज॒ठरे᳚पुना॒नः | नृभि᳚र्य॒तःकृ॑णुतेनि॒र्णिजं॒गाऽअतो᳚म॒तीर्ज॑नयतस्व॒धाभिः॑ || {9.95.1}, {9.5.10.1}, {7.4.5.1} |
840 | हरिः॑सृजा॒नःप॒थ्या᳚मृ॒तस्येय॑र्ति॒वाच॑मरि॒तेव॒नाव᳚म् | दे॒वोदे॒वानां॒गुह्या᳚नि॒नामा॒विष्कृ॑णोतिब॒र्हिषि॑प्र॒वाचे᳚ || {9.95.2}, {9.5.10.2}, {7.4.5.2} |
841 | अ॒पामि॒वेदू॒र्मय॒स्तर्तु॑राणाः॒प्रम॑नी॒षाऽई᳚रते॒सोम॒मच्छ॑ | न॒म॒स्यन्ती॒रुप॑च॒यन्ति॒संचाच॑विशन्त्युश॒तीरु॒शन्त᳚म् || {9.95.3}, {9.5.10.3}, {7.4.5.3} |
842 | तंम᳚र्मृजा॒नंम॑हि॒षंनसाना᳚वं॒शुंदु॑हन्त्यु॒क्षणं᳚गिरि॒ष्ठाम् | तंवा᳚वशा॒नंम॒तयः॑सचन्तेत्रि॒तोबि॑भर्ति॒वरु॑णंसमु॒द्रे || {9.95.4}, {9.5.10.4}, {7.4.5.4} |
843 | इष्य॒न्वाच॑मुपव॒क्तेव॒होतुः॑पुना॒नऽइ᳚न्दो॒विष्या᳚मनी॒षाम् | इन्द्र॑श्च॒यत्क्षय॑थः॒सौभ॑गायसु॒वीर्य॑स्य॒पत॑यःस्याम || {9.95.5}, {9.5.10.5}, {7.4.5.5} |
[96] (१-२४) चतुर्विंशत्यृचस्य सूक्तस्य दैवोदासिः प्रतर्दन ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
844 | प्रसे᳚ना॒नीःशूरो॒ऽअग्रे॒रथा᳚नांग॒व्यन्ने᳚ति॒हर्ष॑तेऽअस्य॒सेना᳚ | भ॒द्रान्कृ॒ण्वन्नि᳚न्द्रह॒वान्त्सखि॑भ्य॒ऽआसोमो॒वस्त्रा᳚रभ॒सानि॑दत्ते || {9.96.1}, {9.5.11.1}, {7.4.6.1} |
845 | सम॑स्य॒हरिं॒हर॑योमृजन्त्यश्वह॒यैरनि॑शितं॒नमो᳚भिः | आति॑ष्ठति॒रथ॒मिन्द्र॑स्य॒सखा᳚वि॒द्वाँऽए᳚नासुम॒तिंया॒त्यच्छ॑ || {9.96.2}, {9.5.11.2}, {7.4.6.2} |
846 | सनो᳚देवदे॒वता᳚तेपवस्वम॒हेसो᳚म॒प्सर॑सऽइन्द्र॒पानः॑ | कृ॒ण्वन्न॒पोव॒र्षय॒न्द्यामु॒तेमामु॒रोरानो᳚वरिवस्यापुना॒नः || {9.96.3}, {9.5.11.3}, {7.4.6.3} |
847 | अजी᳚त॒येऽह॑तयेपवस्वस्व॒स्तये᳚स॒र्वता᳚तयेबृह॒ते | तदु॑शन्ति॒विश्व॑ऽइ॒मेसखा᳚य॒स्तद॒हंव॑श्मिपवमानसोम || {9.96.4}, {9.5.11.4}, {7.4.6.4} |
848 | सोमः॑पवतेजनि॒ताम॑ती॒नांज॑नि॒तादि॒वोज॑नि॒तापृ॑थि॒व्याः | ज॒नि॒ताग्नेर्ज॑नि॒तासूर्य॑स्यजनि॒तेन्द्र॑स्यजनि॒तोतविष्णोः᳚ || {9.96.5}, {9.5.11.5}, {7.4.6.5} |
849 | ब्र॒ह्मादे॒वानां᳚पद॒वीःक॑वी॒नामृषि॒र्विप्रा᳚णांमहि॒षोमृ॒गाणा᳚म् | श्ये॒नोगृध्रा᳚णां॒स्वधि॑ति॒र्वना᳚नां॒सोमः॑प॒वित्र॒मत्ये᳚ति॒रेभ॑न् || {9.96.6}, {9.5.11.6}, {7.4.7.1} |
850 | प्रावी᳚विपद्वा॒चऽऊ॒र्मिंनसिन्धु॒र्गिरः॒सोमः॒पव॑मानोमनी॒षाः | अ॒न्तःपश्य᳚न्वृ॒जने॒माव॑रा॒ण्याति॑ष्ठतिवृष॒भोगोषु॑जा॒नन् || {9.96.7}, {9.5.11.7}, {7.4.7.2} |
851 | सम॑त्स॒रःपृ॒त्सुव॒न्वन्नवा᳚तःस॒हस्र॑रेताऽअ॒भिवाज॑मर्ष | इन्द्रा᳚येन्दो॒पव॑मानोमनी॒ष्य१॑(अं॒)शोरू॒र्मिमी᳚रय॒गाऽइ॑ष॒ण्यन् || {9.96.8}, {9.5.11.8}, {7.4.7.3} |
852 | परि॑प्रि॒यःक॒लशे᳚दे॒ववा᳚त॒ऽइन्द्रा᳚य॒सोमो॒रण्यो॒मदा᳚य | स॒हस्र॑धारःश॒तवा᳚ज॒ऽइन्दु᳚र्वा॒जीनसप्तिः॒सम॑नाजिगाति || {9.96.9}, {9.5.11.9}, {7.4.7.4} |
853 | सपू॒र्व्योव॑सु॒विज्जाय॑मानोमृजा॒नोऽअ॒प्सुदु॑दुहा॒नोऽअद्रौ᳚ | अ॒भि॒श॒स्ति॒पाभुव॑नस्य॒राजा᳚वि॒दद्गा॒तुंब्रह्म॑णेपू॒यमा᳚नः || {9.96.10}, {9.5.11.10}, {7.4.7.5} |
854 | त्वया॒हिनः॑पि॒तरः॑सोम॒पूर्वे॒कर्मा᳚णिच॒क्रुःप॑वमान॒धीराः᳚ | व॒न्वन्नवा᳚तःपरि॒धीँरपो᳚र्णुवी॒रेभि॒रश्वै᳚र्म॒घवा᳚भवानः || {9.96.11}, {9.5.11.11}, {7.4.8.1} |
855 | यथाप॑वथा॒मन॑वेवयो॒धाऽअ॑मित्र॒हाव॑रिवो॒विद्ध॒विष्मा॑न् | ए॒वाप॑वस्व॒द्रवि॑णं॒दधा᳚न॒ऽइन्द्रे॒संति॑ष्ठज॒नयायु॑धानि || {9.96.12}, {9.5.11.12}, {7.4.8.2} |
856 | पव॑स्वसोम॒मधु॑माँऽऋ॒तावा॒पोवसा᳚नो॒ऽअधि॒सानो॒ऽअव्ये᳚ | अव॒द्रोणा᳚निघृ॒तवा᳚न्तिसीदम॒दिन्त॑मोमत्स॒रऽइ᳚न्द्र॒पानः॑ || {9.96.13}, {9.5.11.13}, {7.4.8.3} |
857 | वृ॒ष्टिंदि॒वःश॒तधा᳚रःपवस्वसहस्र॒सावा᳚ज॒युर्दे॒ववी᳚तौ | संसिन्धु॑भिःक॒लशे᳚वावशा॒नःसमु॒स्रिया᳚भिःप्रति॒रन्न॒ऽआयुः॑ || {9.96.14}, {9.5.11.14}, {7.4.8.4} |
858 | ए॒षस्यसोमो᳚म॒तिभिः॑पुना॒नोऽत्यो॒नवा॒जीतर॒तीदरा᳚तीः | पयो॒नदु॒ग्धमदि॑तेरिषि॒रमु॒र्वि॑वगा॒तुःसु॒यमो॒नवोळ्हा᳚ || {9.96.15}, {9.5.11.15}, {7.4.8.5} |
859 | स्वा॒यु॒धःसो॒तृभिः॑पू॒यमा᳚नो॒ऽभ्य॑र्ष॒गुह्यं॒चारु॒नाम॑ | अ॒भिवाजं॒सप्ति॑रिवश्रव॒स्याभिवा॒युम॒भिगादे᳚वसोम || {9.96.16}, {9.5.11.16}, {7.4.9.1} |
860 | शिशुं᳚जज्ञा॒नंह᳚र्य॒तंमृ॑जन्तिशु॒म्भन्ति॒वह्निं᳚म॒रुतो᳚ग॒णेन॑ | क॒विर्गी॒र्भिःकाव्ये᳚नाक॒विःसन्त्सोमः॑प॒वित्र॒मत्ये᳚ति॒रेभ॑न् || {9.96.17}, {9.5.11.17}, {7.4.9.2} |
861 | ऋषि॑मना॒यऋ॑षि॒कृत्स्व॒र्षाःस॒हस्र॑णीथःपद॒वीःक॑वी॒नाम् | तृ॒तीयं॒धाम॑महि॒षःसिषा᳚स॒न्त्सोमो᳚वि॒राज॒मनु॑राजति॒ष्टुप् || {9.96.18}, {9.5.11.18}, {7.4.9.3} |
862 | च॒मू॒षच्छ्ये॒नःश॑कु॒नोवि॒भृत्वा᳚गोवि॒न्दुर्द्र॒प्सऽआयु॑धानि॒बिभ्र॑त् | अ॒पामू॒र्मिंसच॑मानःसमु॒द्रंतु॒रीयं॒धाम॑महि॒षोवि॑वक्ति || {9.96.19}, {9.5.11.19}, {7.4.9.4} |
863 | मर्यो॒नशु॒भ्रस्त॒न्वं᳚मृजा॒नोऽत्यो॒नसृत्वा᳚स॒नये॒धना᳚नाम् | वृषे᳚वयू॒थापरि॒कोश॒मर्ष॒न्कनि॑क्रदच्च॒म्वो॒३॑(ओ॒)रावि॑वेश || {9.96.20}, {9.5.11.20}, {7.4.9.5} |
864 | पव॑स्वेन्दो॒पव॑मानो॒महो᳚भिः॒कनि॑क्रद॒त्परि॒वारा᳚ण्यर्ष | क्रीळ᳚ञ्च॒म्वो॒३॑(ओ॒)रावि॑शपू॒यमा᳚न॒ऽइन्द्रं᳚ते॒रसो᳚मदि॒रोम॑मत्तु || {9.96.21}, {9.5.11.21}, {7.4.10.1} |
865 | प्रास्य॒धारा᳚बृह॒तीर॑सृग्रन्न॒क्तोगोभिः॑क॒लशाँ॒ऽआवि॑वेश | साम॑कृ॒ण्वन्त्सा᳚म॒न्यो᳚विप॒श्चित्क्रन्द᳚न्नेत्य॒भिसख्यु॒र्नजा॒मिम् || {9.96.22}, {9.5.11.22}, {7.4.10.2} |
866 | अ॒प॒घ्नन्ने᳚षिपवमान॒शत्रू᳚न्प्रि॒यांनजा॒रोऽअ॒भिगी᳚त॒ऽइन्दुः॑ | सीद॒न्वने᳚षुशकु॒नोनपत्वा॒सोमः॑पुना॒नःक॒लशे᳚षु॒सत्ता᳚ || {9.96.23}, {9.5.11.23}, {7.4.10.3} |
867 | आते॒रुचः॒पव॑मानस्यसोम॒योषे᳚वयन्तिसु॒दुघाः᳚सुधा॒राः | हरि॒रानी᳚तःपुरु॒वारो᳚ऽअ॒प्स्वचि॑क्रदत्क॒लशे᳚देवयू॒नाम् || {9.96.24}, {9.5.11.24}, {7.4.10.4} |
[97] (१-५८) अष्टपञ्चाशदृचस्य सूक्तस्य (१-३) प्रथमादितृचस्य मैत्रावरणिर्वसिष्ठः, (४-६) चतुर्थ्यादितृचस्य वासिष्ठ इन्द्रप्रमतिः, (७-९) सप्तम्यादितृचस्य वासिष्ठो वृषगणः, (१०-१२) दशम्यादितृचस्य वासिष्ठो मन्युः, (१३-१५) त्रयोदश्यादितृचस्य वासिष्ठ उपमन्युः, (१६-१८) षोडश्यादितृचस्य वासिष्ठो व्याघ्रपात्, (१९-२१) एकोनविंश्यादितृचस्य वासिष्ठः शक्तिः, (२२२४) द्वाविंश्यादितृचस्य वासिष्ठः कर्णश्रतु, (२५-२७) पञ्चविंश्यादितृचस्य वासिष्ठो मृळीकः, (२८-३०) अष्टाविंश्यादितृचस्य वासिष्ठो वसुक्रः, (३१-४४) एकत्रिंश्यादिचतुर्दश चर्चाम् शाक्त्यः पराशरः, (४५-५८) पञ्चचत्वारिंश्यादिचतुर्दश नाञ्चाङ्गिरसः कुत्स (ऋषयः) पवमानः सोमो देवता | त्रिष्टुप् छन्दः || | |
868 | अ॒स्यप्रे॒षाहे॒मना᳚पू॒यमा᳚नोदे॒वोदे॒वेभिः॒सम॑पृक्त॒रस᳚म् | सु॒तःप॒वित्रं॒पर्ये᳚ति॒रेभ᳚न्मि॒तेव॒सद्म॑पशु॒मान्ति॒होता᳚ || {9.97.1}, {9.6.1.1}, {7.4.11.1} |
869 | भ॒द्रावस्त्रा᳚सम॒न्या॒३॑(आ॒)वसा᳚नोम॒हान्क॒विर्नि॒वच॑नानि॒शंस॑न् | आव॑च्यस्वच॒म्वोः᳚पू॒यमा᳚नोविचक्ष॒णोजागृ॑विर्दे॒ववी᳚तौ || {9.97.2}, {9.6.1.2}, {7.4.11.2} |
870 | समु॑प्रि॒योमृ॑ज्यते॒सानो॒ऽअव्ये᳚य॒शस्त॑रोय॒शसां॒क्षैतो᳚ऽअ॒स्मे | अ॒भिस्व॑र॒धन्वा᳚पू॒यमा᳚नोयू॒यंपा᳚तस्व॒स्तिभिः॒सदा᳚नः || {9.97.3}, {9.6.1.3}, {7.4.11.3} |
871 | प्रगा᳚यता॒भ्य॑र्चामदे॒वान्त्सोमं᳚हिनोतमह॒तेधना᳚य | स्वा॒दुःप॑वाते॒ऽअति॒वार॒मव्य॒मासी᳚दातिक॒लशं᳚देव॒युर्नः॑ || {9.97.4}, {9.6.1.4}, {7.4.11.4} |
872 | इन्दु॑र्दे॒वाना॒मुप॑स॒ख्यमा॒यन्त्स॒हस्र॑धारःपवते॒मदा᳚य | नृभिः॒स्तवा᳚नो॒ऽअनु॒धाम॒पूर्व॒मग॒न्निन्द्रं᳚मह॒तेसौभ॑गाय || {9.97.5}, {9.6.1.5}, {7.4.11.5} |
873 | स्तो॒त्रेरा॒येहरि॑रर्षापुना॒नऽइन्द्रं॒मदो᳚गच्छतुते॒भरा᳚य | दे॒वैर्या᳚हिस॒रथं॒राधो॒ऽअच्छा᳚यू॒यंपा᳚तस्व॒स्तिभिः॒सदा᳚नः || {9.97.6}, {9.6.1.6}, {7.4.12.1} |
874 | प्रकाव्य॑मु॒शने᳚वब्रुवा॒णोदे॒वोदे॒वानां॒जनि॑माविवक्ति | महि᳚व्रतः॒शुचि॑बन्धुःपाव॒कःप॒दाव॑रा॒होऽअ॒भ्ये᳚ति॒रेभ॑न् || {9.97.7}, {9.6.1.7}, {7.4.12.2} |
875 | प्रहं॒सास॑स्तृ॒पलं᳚म॒न्युमच्छा॒मादस्तं॒वृष॑गणाऽअयासुः | आ॒ङ्गू॒ष्य१॑(अ॒)अंपव॑मानं॒सखा᳚योदु॒र्मर्षं᳚सा॒कंप्रव॑दन्तिवा॒णम् || {9.97.8}, {9.6.1.8}, {7.4.12.3} |
876 | सरं᳚हतऽउरुगा॒यस्य॑जू॒तिंवृथा॒क्रीळ᳚न्तंमिमते॒नगावः॑ | प॒री॒ण॒संकृ॑णुतेति॒ग्मशृ᳚ङ्गो॒दिवा॒हरि॒र्ददृ॑शे॒नक्त॑मृ॒ज्रः || {9.97.9}, {9.6.1.9}, {7.4.12.4} |
877 | इन्दु᳚र्वा॒जीप॑वते॒गोन्यो᳚घा॒ऽइन्द्रे॒सोमः॒सह॒ऽइन्व॒न्मदा᳚य | हन्ति॒रक्षो॒बाध॑ते॒पर्यरा᳚ती॒र्वरि॑वःकृ॒ण्वन्वृ॒जन॑स्य॒राजा᳚ || {9.97.10}, {9.6.1.10}, {7.4.12.5} |
878 | अध॒धार॑या॒मध्वा᳚पृचा॒नस्ति॒रोरोम॑पवते॒ऽअद्रि॑दुग्धः | इन्दु॒रिन्द्र॑स्यस॒ख्यंजु॑षा॒णोदे॒वोदे॒वस्य॑मत्स॒रोमदा᳚य || {9.97.11}, {9.6.1.11}, {7.4.13.1} |
879 | अ॒भिप्रि॒याणि॑पवतेपुना॒नोदे॒वोदे॒वान्त्स्वेन॒रसे᳚नपृ॒ञ्चन् | इन्दु॒र्धर्मा᳚ण्यृतु॒थावसा᳚नो॒दश॒क्षिपो᳚ऽअव्यत॒सानो॒ऽअव्ये᳚ || {9.97.12}, {9.6.1.12}, {7.4.13.2} |
880 | वृषा॒शोणो᳚ऽअभि॒कनि॑क्रद॒द्गान॒दय᳚न्नेतिपृथि॒वीमु॒तद्याम् | इन्द्र॑स्येवव॒ग्नुराशृ᳚ण्वऽआ॒जौप्र॑चे॒तय᳚न्नर्षति॒वाच॒मेमाम् || {9.97.13}, {9.6.1.13}, {7.4.13.3} |
881 | र॒साय्यः॒पय॑सा॒पिन्व॑मानऽई॒रय᳚न्नेषि॒मधु॑मन्तमं॒शुम् | पव॑मानःसंत॒निमे᳚षिकृ॒ण्वन्निन्द्रा᳚यसोमपरिषि॒च्यमा᳚नः || {9.97.14}, {9.6.1.14}, {7.4.13.4} |
882 | ए॒वाप॑वस्वमदि॒रोमदा᳚योदग्रा॒भस्य॑न॒मय᳚न्वध॒स्नैः | परि॒वर्णं॒भर॑माणो॒रुश᳚न्तंग॒व्युर्नो᳚ऽअर्ष॒परि॑सोमसि॒क्तः || {9.97.15}, {9.6.1.15}, {7.4.13.5} |
883 | जु॒ष्ट्वीन॑ऽइन्दोसु॒पथा᳚सु॒गान्यु॒रौप॑वस्व॒वरि॑वांसिकृ॒ण्वन् | घ॒नेव॒विष्व॑ग्दुरि॒तानि॑वि॒घ्नन्नधि॒ष्णुना᳚धन्व॒सानो॒ऽअव्ये᳚ || {9.97.16}, {9.6.1.16}, {7.4.14.1} |
884 | वृ॒ष्टिंनो᳚ऽअर्षदि॒व्यांजि॑ग॒त्नुमिळा᳚वतींशं॒गयीं᳚जी॒रदा᳚नुम् | स्तुके᳚ववी॒ताध᳚न्वाविचि॒न्वन्बन्धूँ᳚रि॒माँऽअव॑राँऽइन्दोवा॒यून् || {9.97.17}, {9.6.1.17}, {7.4.14.2} |
885 | ग्र॒न्थिंनविष्य॑ग्रथि॒तंपु॑ना॒नऋ॒जुंच॑गा॒तुंवृ॑जि॒नंच॑सोम | अत्यो॒नक्र॑दो॒हरि॒रासृ॑जा॒नोमर्यो᳚देवधन्वप॒स्त्या᳚वान् || {9.97.18}, {9.6.1.18}, {7.4.14.3} |
886 | जुष्टो॒मदा᳚यदे॒वता᳚तऽइन्दो॒परि॒ष्णुना᳚धन्व॒सानो॒ऽअव्ये᳚ | स॒हस्र॑धारःसुर॒भिरद॑ब्धः॒परि॑स्रव॒वाज॑सातौनृ॒षह्ये᳚ || {9.97.19}, {9.6.1.19}, {7.4.14.4} |
887 | अ॒र॒श्मानो॒ये᳚ऽर॒थाऽअयु॑क्ता॒ऽअत्या᳚सो॒नस॑सृजा॒नास॑ऽआ॒जौ | ए॒तेशु॒क्रासो᳚धन्वन्ति॒सोमा॒देवा᳚स॒स्ताँऽउप॑याता॒पिब॑ध्यै || {9.97.20}, {9.6.1.20}, {7.4.14.5} |
888 | ए॒वान॑ऽइन्दोऽअ॒भिदे॒ववी᳚तिं॒परि॑स्रव॒नभो॒ऽअर्ण॑श्च॒मूषु॑ | सोमो᳚ऽअ॒स्मभ्यं॒काम्यं᳚बृ॒हन्तं᳚र॒यिंद॑दातुवी॒रव᳚न्तमु॒ग्रम् || {9.97.21}, {9.6.1.21}, {7.4.15.1} |
889 | तक्ष॒द्यदी॒मन॑सो॒वेन॑तो॒वाग्ज्येष्ठ॑स्यवा॒धर्म॑णि॒क्षोरनी᳚के | आदी᳚माय॒न्वर॒मावा᳚वशा॒नाजुष्टं॒पतिं᳚क॒लशे॒गाव॒ऽइन्दु᳚म् || {9.97.22}, {9.6.1.22}, {7.4.15.2} |
890 | प्रदा᳚नु॒दोदि॒व्योदा᳚नुपि॒न्वऋ॒तमृ॒ताय॑पवतेसुमे॒धाः | ध॒र्माभु॑वद्वृज॒न्य॑स्य॒राजा॒प्रर॒श्मिभि॑र्द॒शभि॑र्भारि॒भूम॑ || {9.97.23}, {9.6.1.23}, {7.4.15.3} |
891 | प॒वित्रे᳚भिः॒पव॑मानोनृ॒चक्षा॒राजा᳚दे॒वाना᳚मु॒तमर्त्या᳚नाम् | द्वि॒ताभु॑वद्रयि॒पती᳚रयी॒णामृ॒तंभ॑र॒त्सुभृ॑तं॒चार्विन्दुः॑ || {9.97.24}, {9.6.1.24}, {7.4.15.4} |
892 | अर्वाँ᳚ऽइव॒श्रव॑सेसा॒तिमच्छेन्द्र॑स्यवा॒योर॒भिवी॒तिम॑र्ष | सनः॑स॒हस्रा᳚बृह॒तीरिषो᳚दा॒भवा᳚सोमद्रविणो॒वित्पु॑ना॒नः || {9.97.25}, {9.6.1.25}, {7.4.15.5} |
893 | दे॒वा॒व्यो᳚नःपरिषि॒च्यमा᳚नाः॒क्षयं᳚सु॒वीरं᳚धन्वन्तु॒सोमाः᳚ | आ॒य॒ज्यवः॑सुम॒तिंवि॒श्ववा᳚रा॒होता᳚रो॒नदि॑वि॒यजो᳚म॒न्द्रत॑माः || {9.97.26}, {9.6.1.26}, {7.4.16.1} |
894 | ए॒वादे᳚वदे॒वता᳚तेपवस्वम॒हेसो᳚म॒प्सर॑सेदेव॒पानः॑ | म॒हश्चि॒द्धिष्मसि॑हि॒ताःस॑म॒र्येकृ॒धिसु॑ष्ठा॒नेरोद॑सीपुना॒नः || {9.97.27}, {9.6.1.27}, {7.4.16.2} |
895 | अश्वो॒नोक्र॑दो॒वृष॑भिर्युजा॒नःसिं॒होनभी॒मोमन॑सो॒जवी᳚यान् | अ॒र्वा॒चीनैः᳚प॒थिभि॒र्येरजि॑ष्ठा॒ऽआप॑वस्वसौमन॒संन॑ऽइन्दो || {9.97.28}, {9.6.1.28}, {7.4.16.3} |
896 | श॒तंधारा᳚दे॒वजा᳚ताऽअसृग्रन्त्स॒हस्र॑मेनाःक॒वयो᳚मृजन्ति | इन्दो᳚स॒नित्रं᳚दि॒वऽआप॑वस्वपुरए॒तासि॑मह॒तोधन॑स्य || {9.97.29}, {9.6.1.29}, {7.4.16.4} |
897 | दि॒वोनसर्गा᳚ऽअससृग्र॒मह्नां॒राजा॒नमि॒त्रंप्रमि॑नाति॒धीरः॑ | पि॒तुर्नपु॒त्रःक्रतु॑भिर्यता॒नऽआप॑वस्ववि॒शेऽअ॒स्याऽअजी᳚तिम् || {9.97.30}, {9.6.1.30}, {7.4.16.5} |
898 | प्रते॒धारा॒मधु॑मतीरसृग्र॒न्वारा॒न्यत्पू॒तोऽअ॒त्येष्यव्या॑न् | पव॑मान॒पव॑से॒धाम॒गोनां᳚जज्ञा॒नःसूर्य॑मपिन्वोऽअ॒र्कैः || {9.97.31}, {9.6.1.31}, {7.4.17.1} |
899 | कनि॑क्रद॒दनु॒पन्था᳚मृ॒तस्य॑शु॒क्रोविभा᳚स्य॒मृत॑स्य॒धाम॑ | सऽइन्द्रा᳚यपवसेमत्स॒रवा᳚न्हिन्वा॒नोवाचं᳚म॒तिभिः॑कवी॒नाम् || {9.97.32}, {9.6.1.32}, {7.4.17.2} |
900 | दि॒व्यःसु॑प॒र्णोऽव॑चक्षिसोम॒पिन्व॒न्धाराः॒कर्म॑णादे॒ववी᳚तौ | एन्दो᳚विशक॒लशं᳚सोम॒धानं॒क्रन्द᳚न्निहि॒सूर्य॒स्योप॑र॒श्मिम् || {9.97.33}, {9.6.1.33}, {7.4.17.3} |
901 | ति॒स्रोवाच॑ऽईरयति॒प्रवह्नि॑र्ऋ॒तस्य॑धी॒तिंब्रह्म॑णोमनी॒षाम् | गावो᳚यन्ति॒गोप॑तिंपृ॒च्छमा᳚नाः॒सोमं᳚यन्तिम॒तयो᳚वावशा॒नाः || {9.97.34}, {9.6.1.34}, {7.4.17.4} |
902 | सोमं॒गावो᳚धे॒नवो᳚वावशा॒नाःसोमं॒विप्रा᳚म॒तिभिः॑पृ॒च्छमा᳚नाः | सोमः॑सु॒तःपू᳚यतेऽअ॒ज्यमा᳚नः॒सोमे᳚ऽअ॒र्कास्त्रि॒ष्टुभः॒संन॑वन्ते || {9.97.35}, {9.6.1.35}, {7.4.17.5} |
903 | ए॒वानः॑सोमपरिषि॒च्यमा᳚न॒ऽआप॑वस्वपू॒यमा᳚नःस्व॒स्ति | इन्द्र॒मावि॑शबृह॒तारवे᳚णव॒र्धया॒वाचं᳚ज॒नया॒पुरं᳚धिम् || {9.97.36}, {9.6.1.36}, {7.4.18.1} |
904 | आजागृ॑वि॒र्विप्र॑ऋ॒ताम॑ती॒नांसोमः॑पुना॒नोऽअ॑सदच्च॒मूषु॑ | सप᳚न्ति॒यंमि॑थु॒नासो॒निका᳚माऽअध्व॒र्यवो᳚रथि॒रासः॑सु॒हस्ताः᳚ || {9.97.37}, {9.6.1.37}, {7.4.18.2} |
905 | सपु॑ना॒नऽउप॒सूरे॒नधातोभेऽअ॑प्रा॒रोद॑सी॒विषऽआ᳚वः | प्रि॒याचि॒द्यस्य॑प्रिय॒सास॑ऽऊ॒तीसतूधनं᳚का॒रिणे॒नप्रयं᳚सत् || {9.97.38}, {9.6.1.38}, {7.4.18.3} |
906 | सव॑र्धि॒तावर्ध॑नःपू॒यमा᳚नः॒सोमो᳚मी॒ढ्वाँऽअ॒भिनो॒ज्योति॑षावीत् | येना᳚नः॒पूर्वे᳚पि॒तरः॑पद॒ज्ञाःस्व॒र्विदो᳚ऽअ॒भिगाऽअद्रि॑मु॒ष्णन् || {9.97.39}, {9.6.1.39}, {7.4.18.4} |
907 | अक्रा᳚न्त्समु॒द्रःप्र॑थ॒मेविध᳚र्मञ्ज॒नय᳚न्प्र॒जाभुव॑नस्य॒राजा᳚ | वृषा᳚प॒वित्रे॒ऽअधि॒सानो॒ऽअव्ये᳚बृ॒हत्सोमो᳚वावृधेसुवा॒नऽइन्दुः॑ || {9.97.40}, {9.6.1.40}, {7.4.18.5} |
908 | म॒हत्तत्सोमो᳚महि॒षश्च॑कारा॒पांयद्गर्भोऽवृ॑णीतदे॒वान् | अद॑धा॒दिन्द्रे॒पव॑मान॒ऽओजोऽज॑नय॒त्सूर्ये॒ज्योति॒रिन्दुः॑ || {9.97.41}, {9.6.1.41}, {7.4.19.1} |
909 | मत्सि॑वा॒युमि॒ष्टये॒राध॑सेच॒मत्सि॑मि॒त्रावरु॑णापू॒यमा᳚नः | मत्सि॒शर्धो॒मारु॑तं॒मत्सि॑दे॒वान्मत्सि॒द्यावा᳚पृथि॒वीदे᳚वसोम || {9.97.42}, {9.6.1.42}, {7.4.19.2} |
910 | ऋ॒जुःप॑वस्ववृजि॒नस्य॑ह॒न्तापामी᳚वां॒बाध॑मानो॒मृध॑श्च | अ॒भि॒श्री॒णन्पयः॒पय॑सा॒भिगोना॒मिन्द्र॑स्य॒त्वंतव॑व॒यंसखा᳚यः || {9.97.43}, {9.6.1.43}, {7.4.19.3} |
911 | मध्वः॒सूदं᳚पवस्व॒वस्व॒ऽउत्सं᳚वी॒रंच॑न॒ऽआप॑वस्वा॒भगं᳚च | स्वद॒स्वेन्द्रा᳚य॒पव॑मानऽइन्दोर॒यिंच॑न॒ऽआप॑वस्वासमु॒द्रात् || {9.97.44}, {9.6.1.44}, {7.4.19.4} |
912 | सोमः॑सु॒तोधार॒यात्यो॒नहित्वा॒सिन्धु॒र्ननि॒म्नम॒भिवा॒ज्य॑क्षाः | आयोनिं॒वन्य॑मसदत्पुना॒नःसमिन्दु॒र्गोभि॑रसर॒त्सम॒द्भिः || {9.97.45}, {9.6.1.45}, {7.4.19.5} |
913 | ए॒षस्यते᳚पवतऽइन्द्र॒सोम॑श्च॒मूषु॒धीर॑ऽउश॒तेतव॑स्वान् | स्व॑र्चक्षारथि॒रःस॒त्यशु॑ष्मः॒कामो॒नयोदे᳚वय॒तामस॑र्जि || {9.97.46}, {9.6.1.46}, {7.4.20.1} |
914 | ए॒षप्र॒त्नेन॒वय॑सापुना॒नस्ति॒रोवर्पां᳚सिदुहि॒तुर्दधा᳚नः | वसा᳚नः॒शर्म॑त्रि॒वरू᳚थम॒प्सुहोते᳚वयाति॒सम॑नेषु॒रेभ॑न् || {9.97.47}, {9.6.1.47}, {7.4.20.2} |
915 | नून॒स्त्वंर॑थि॒रोदे᳚वसोम॒परि॑स्रवच॒म्वोः᳚पू॒यमा᳚नः | अ॒प्सुस्वादि॑ष्ठो॒मधु॑माँऽऋ॒तावा᳚दे॒वोनयःस॑वि॒तास॒त्यम᳚न्मा || {9.97.48}, {9.6.1.48}, {7.4.20.3} |
916 | अ॒भिवा॒युंवी॒त्य॑र्षागृणा॒नो॒३॑(ओ॒)ऽभिमि॒त्रावरु॑णापू॒यमा᳚नः | अ॒भीनरं᳚धी॒जव॑नंरथे॒ष्ठाम॒भीन्द्रं॒वृष॑णं॒वज्र॑बाहुम् || {9.97.49}, {9.6.1.49}, {7.4.20.4} |
917 | अ॒भिवस्त्रा᳚सुवस॒नान्य॑र्षा॒भिधे॒नूःसु॒दुघाः᳚पू॒यमा᳚नः | अ॒भिच॒न्द्राभर्त॑वेनो॒हिर᳚ण्या॒भ्यश्वा᳚न्र॒थिनो᳚देवसोम || {9.97.50}, {9.6.1.50}, {7.4.20.5} |
918 | अ॒भीनो᳚ऽअर्षदि॒व्यावसू᳚न्य॒भिविश्वा॒पार्थि॑वापू॒यमा᳚नः | अ॒भियेन॒द्रवि॑णम॒श्नवा᳚मा॒भ्या᳚र्षे॒यंज॑मदग्नि॒वन्नः॑ || {9.97.51}, {9.6.1.51}, {7.4.21.1} |
919 | अ॒याप॒वाप॑वस्वै॒नावसू᳚निमाँश्च॒त्वऽइ᳚न्दो॒सर॑सि॒प्रध᳚न्व | ब्र॒ध्नश्चि॒दत्र॒वातो॒नजू॒तःपु॑रु॒मेध॑श्चि॒त्तक॑वे॒नरं᳚दात् || {9.97.52}, {9.6.1.52}, {7.4.21.2} |
920 | उ॒तन॑ऽए॒नाप॑व॒याप॑व॒स्वाधि॑श्रु॒तेश्र॒वाय्य॑स्यती॒र्थे | ष॒ष्टिंस॒हस्रा᳚नैगु॒तोवसू᳚निवृ॒क्षंनप॒क्वंधू᳚नव॒द्रणा᳚य || {9.97.53}, {9.6.1.53}, {7.4.21.3} |
921 | मही॒मेऽअ॑स्य॒वृष॒नाम॑शू॒षेमाँश्च॑त्वेवा॒पृश॑नेवा॒वध॑त्रे | अस्वा᳚पयन्नि॒गुतः॑स्ने॒हय॒च्चापा॒मित्राँ॒ऽअपा॒चितो᳚ऽअचे॒तः || {9.97.54}, {9.6.1.54}, {7.4.21.4} |
922 | संत्रीप॒वित्रा॒वित॑तान्ये॒ष्यन्वेकं᳚धावसिपू॒यमा᳚नः | असि॒भगो॒ऽअसि॑दा॒त्रस्य॑दा॒तासि॑म॒घवा᳚म॒घव॑द्भ्यऽइन्दो || {9.97.55}, {9.6.1.55}, {7.4.21.5} |
923 | ए॒षवि॑श्व॒वित्प॑वतेमनी॒षीसोमो॒विश्व॑स्य॒भुव॑नस्य॒राजा᳚ | द्र॒प्साँऽई॒रय᳚न्वि॒दथे॒ष्विन्दु॒र्विवार॒मव्यं᳚स॒मयाति॑याति || {9.97.56}, {9.6.1.56}, {7.4.22.1} |
924 | इन्दुं᳚रिहन्तिमहि॒षाऽअद॑ब्धाःप॒देरे᳚भन्तिक॒वयो॒नगृध्राः᳚ | हि॒न्वन्ति॒धीरा᳚द॒शभिः॒क्षिपा᳚भिः॒सम᳚ञ्जतेरू॒पम॒पांरसे᳚न || {9.97.57}, {9.6.1.57}, {7.4.22.2} |
925 | त्वया᳚व॒यंपव॑मानेनसोम॒भरे᳚कृ॒तंविचि॑नुयाम॒शश्व॑त् | तन्नो᳚मि॒त्रोवरु॑णोमामहन्ता॒मदि॑तिः॒सिन्धुः॑पृथि॒वीऽउ॒तद्यौः || {9.97.58}, {9.6.1.58}, {7.4.22.3} |
[98] (१-१२) द्वादशर्चस्य सूक्तस्य वार्षागिरोऽम्बरीषो भारद्वाज ऋजिश्वा च ऋषी। पवमानः सोमो देवता | (१-१०, १२) प्रथमादिदशों द्वादश्याश्चानुष्टप्, (११) एकादश्याश्च बृहती छन्दसी || | |
926 | अ॒भिनो᳚वाज॒सात॑मंर॒यिम॑र्षपुरु॒स्पृह᳚म् | इन्दो᳚स॒हस्र॑भर्णसंतुविद्यु॒म्नंवि॑भ्वा॒सह᳚म् || {9.98.1}, {9.6.2.1}, {7.4.23.1} |
927 | परि॒ष्यसु॑वा॒नोऽअ॒व्ययं॒रथे॒नवर्मा᳚व्यत | इन्दु॑र॒भिद्रुणा᳚हि॒तोहि॑या॒नोधारा᳚भिरक्षाः || {9.98.2}, {9.6.2.2}, {7.4.23.2} |
928 | परि॒ष्यसु॑वा॒नोऽअ॑क्षा॒ऽइन्दु॒रव्ये॒मद॑च्युतः | धारा॒यऽऊ॒र्ध्वोऽअ॑ध्व॒रेभ्रा॒जानैति॑गव्य॒युः || {9.98.3}, {9.6.2.3}, {7.4.23.3} |
929 | सहित्वंदे᳚व॒शश्व॑ते॒वसु॒मर्ता᳚यदा॒शुषे᳚ | इन्दो᳚सह॒स्रिणं᳚र॒यिंश॒तात्मा᳚नंविवाससि || {9.98.4}, {9.6.2.4}, {7.4.23.4} |
930 | व॒यंते᳚ऽअ॒स्यवृ॑त्रह॒न्वसो॒वस्वः॑पुरु॒स्पृहः॑ | निनेदि॑ष्ठतमाऽइ॒षःस्याम॑सु॒म्नस्या᳚ध्रिगो || {9.98.5}, {9.6.2.5}, {7.4.23.5} |
931 | द्विर्यंपञ्च॒स्वय॑शसं॒स्वसा᳚रो॒ऽअद्रि॑संहतम् | प्रि॒यमिन्द्र॑स्य॒काम्यं᳚प्रस्ना॒पय᳚न्त्यू॒र्मिण᳚म् || {9.98.6}, {9.6.2.6}, {7.4.23.6} |
932 | परि॒त्यंह᳚र्य॒तंहरिं᳚ब॒भ्रुंपु॑नन्ति॒वारे᳚ण | योदे॒वान्विश्वाँ॒ऽइत्परि॒मदे᳚नस॒हगच्छ॑ति || {9.98.7}, {9.6.2.7}, {7.4.24.1} |
933 | अ॒स्यवो॒ह्यव॑सा॒पान्तो᳚दक्ष॒साध॑नम् | यःसू॒रिषु॒श्रवो᳚बृ॒हद्द॒धेस्व१॑(अ॒)'र्णह᳚र्य॒तः || {9.98.8}, {9.6.2.8}, {7.4.24.2} |
934 | सवां᳚य॒ज्ञेषु॑मानवी॒ऽइन्दु॑र्जनिष्टरोदसी | दे॒वोदे᳚वीगिरि॒ष्ठाऽअस्रे᳚ध॒न्तंतु॑वि॒ष्वणि॑ || {9.98.9}, {9.6.2.9}, {7.4.24.3} |
935 | इन्द्रा᳚यसोम॒पात॑वेवृत्र॒घ्नेपरि॑षिच्यसे | नरे᳚च॒दक्षि॑णावतेदे॒वाय॑सदना॒सदे᳚ || {9.98.10}, {9.6.2.10}, {7.4.24.4} |
936 | तेप्र॒त्नासो॒व्यु॑ष्टिषु॒सोमाः᳚प॒वित्रे᳚ऽअक्षरन् | अ॒प॒प्रोथ᳚न्तःसनु॒तर्हु॑र॒श्चितः॑प्रा॒तस्ताँऽअप्र॑चेतसः || {9.98.11}, {9.6.2.11}, {7.4.24.5} |
937 | तंस॑खायःपुरो॒रुचं᳚यू॒यंव॒यंच॑सू॒रयः॑ | अ॒श्याम॒वाज॑गन्ध्यंस॒नेम॒वाज॑पस्त्यम् || {9.98.12}, {9.6.2.12}, {7.4.24.6} |
[99] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्य काश्यपौ रेभसूनू ऋषी, पवमानः सोमो देवता | (१) प्रथम! बृहती, (२-८) द्वितीयादिसप्तानाञ्चानुष्टप् छन्दसी || | |
938 | आह᳚र्य॒ताय॑धृ॒ष्णवे॒धनु॑स्तन्वन्ति॒पौंस्य᳚म् | शु॒क्रांव॑य॒न्त्यसु॑रायनि॒र्णिजं᳚वि॒पामग्रे᳚मही॒युवः॑ || {9.99.1}, {9.6.3.1}, {7.4.25.1} |
939 | अध॑क्ष॒पापरि॑ष्कृतो॒वाजाँ᳚ऽअ॒भिप्रगा᳚हते | यदी᳚वि॒वस्व॑तो॒धियो॒हरिं᳚हि॒न्वन्ति॒यात॑वे || {9.99.2}, {9.6.3.2}, {7.4.25.2} |
940 | तम॑स्यमर्जयामसि॒मदो॒यऽइ᳚न्द्र॒पात॑मः | यंगाव॑ऽआ॒सभि॑र्द॒धुःपु॒रानू॒नंच॑सू॒रयः॑ || {9.99.3}, {9.6.3.3}, {7.4.25.3} |
941 | तंगाथ॑यापुरा॒ण्यापु॑ना॒नम॒भ्य॑नूषत | उ॒तोकृ॑पन्तधी॒तयो᳚दे॒वानां॒नाम॒बिभ्र॑तीः || {9.99.4}, {9.6.3.4}, {7.4.25.4} |
942 | तमु॒क्षमा᳚णम॒व्यये॒वारे᳚पुनन्तिधर्ण॒सिम् | दू॒तंनपू॒र्वचि॑त्तय॒ऽआशा᳚सतेमनी॒षिणः॑ || {9.99.5}, {9.6.3.5}, {7.4.25.5} |
943 | सपु॑ना॒नोम॒दिन्त॑मः॒सोम॑श्च॒मूषु॑सीदति | प॒शौनरेत॑ऽआ॒दध॒त्पति᳚र्वचस्यतेधि॒यः || {9.99.6}, {9.6.3.6}, {7.4.26.1} |
944 | समृ॑ज्यतेसु॒कर्म॑भिर्दे॒वोदे॒वेभ्यः॑सु॒तः | वि॒देयदा᳚सुसंद॒दिर्म॒हीर॒पोविगा᳚हते || {9.99.7}, {9.6.3.7}, {7.4.26.2} |
945 | सु॒तऽइ᳚न्दोप॒वित्र॒ऽआनृभि᳚र्य॒तोविनी᳚यसे | इन्द्रा᳚यमत्स॒रिन्त॑मश्च॒मूष्वानिषी᳚दसि || {9.99.8}, {9.6.3.8}, {7.4.26.3} |
[100] (१-९) नवर्चस्य सूक्तस्य काश्यपौ रेभसून ऋषी। पवमानः सोमो देवता | अनुष्टुप् छन्दः || | |
946 | अ॒भीन॑वन्तेऽअ॒द्रुहः॑प्रि॒यमिन्द्र॑स्य॒काम्य᳚म् | व॒त्संनपूर्व॒ऽआयु॑निजा॒तंरि॑हन्तिमा॒तरः॑ || {9.100.1}, {9.6.4.1}, {7.4.27.1} |
947 | पु॒ना॒नऽइ᳚न्द॒वाभ॑र॒सोम॑द्वि॒बर्ह॑संर॒यिम् | त्वंवसू᳚निपुष्यसि॒विश्वा᳚निदा॒शुषो᳚गृ॒हे || {9.100.2}, {9.6.4.2}, {7.4.27.2} |
948 | त्वंधियं᳚मनो॒युजं᳚सृ॒जावृ॒ष्टिंनत᳚न्य॒तुः | त्वंवसू᳚नि॒पार्थि॑वादि॒व्याच॑सोमपुष्यसि || {9.100.3}, {9.6.4.3}, {7.4.27.3} |
949 | परि॑तेजि॒ग्युषो᳚यथा॒धारा᳚सु॒तस्य॑धावति | रंह॑माणा॒व्य१॑(अ॒)'व्ययं॒वारं᳚वा॒जीव॑सान॒सिः || {9.100.4}, {9.6.4.4}, {7.4.27.4} |
950 | क्रत्वे॒दक्षा᳚यनःकवे॒पव॑स्वसोम॒धार॑या | इन्द्रा᳚य॒पात॑वेसु॒तोमि॒त्राय॒वरु॑णायच || {9.100.5}, {9.6.4.5}, {7.4.27.5} |
951 | पव॑स्ववाज॒सात॑मःप॒वित्रे॒धार॑यासु॒तः | इन्द्रा᳚यसोम॒विष्ण॑वेदे॒वेभ्यो॒मधु॑मत्तमः || {9.100.6}, {9.6.4.6}, {7.4.28.1} |
952 | त्वांरि॑हन्तिमा॒तरो॒हरिं᳚प॒वित्रे᳚ऽअ॒द्रुहः॑ | व॒त्संजा॒तंनधे॒नवः॒पव॑मान॒विध᳚र्मणि || {9.100.7}, {9.6.4.7}, {7.4.28.2} |
953 | पव॑मान॒महि॒श्रव॑श्चि॒त्रेभि᳚र्यासिर॒श्मिभिः॑ | शर्ध॒न्तमां᳚सिजिघ्नसे॒विश्वा᳚निदा॒शुषो᳚गृ॒हे || {9.100.8}, {9.6.4.8}, {7.4.28.3} |
954 | त्वंद्यांच॑महिव्रतपृथि॒वींचाति॑जभ्रिषे | प्रति॑द्रा॒पिम॑मुञ्चथाः॒पव॑मानमहित्व॒ना || {9.100.9}, {9.6.4.9}, {7.4.28.4} |
[101] (१-१६) षोळशर्चस्य सूक्तस्य (१-३) प्रथमादितृचस्य श्यावाश्विरन्धीगुः, (४-६) चतुर्थ्यादितृचस्य नाहुषो ययाति, (७-९) सप्तम्यादितृचस्य राजर्षिर्मानवो नहूषः, (१०-१२) दशम्यादितृचस्य सांवरणो मनुः, (१३-१६) त्रयोदश्यादिचतुर्ऋचामा स्य च वैश्वामित्रो वाच्यो वा प्रजापतिर्(ऋषयः) पवमानः सोमो देवता | (१, ४-१६) प्रथमर्चश्चतुर्थ्यादित्रयोदशानाञ्चानुष्टप् (२-३) द्वितीयातृतीययोश्च गायत्री छन्दसी || | |
955 | पु॒रोजि॑तीवो॒ऽअन्ध॑सःसु॒ताय॑मादयि॒त्नवे᳚ | अप॒श्वानं᳚श्नथिष्टन॒सखा᳚योदीर्घजि॒ह्व्य᳚म् || {9.101.1}, {9.6.5.1}, {7.5.1.1} |
956 | योधार॑यापाव॒कया᳚परिप्र॒स्यन्द॑तेसु॒तः | इन्दु॒रश्वो॒नकृत्व्यः॑ || {9.101.2}, {9.6.5.2}, {7.5.1.2} |
957 | तंदु॒रोष॑म॒भीनरः॒सोमं᳚वि॒श्वाच्या᳚धि॒या | य॒ज्ञंहि᳚न्व॒न्त्यद्रि॑भिः || {9.101.3}, {9.6.5.3}, {7.5.1.3} |
958 | सु॒तासो॒मधु॑मत्तमाः॒सोमा॒ऽइन्द्रा᳚यम॒न्दिनः॑ | प॒वित्र॑वन्तोऽअक्षरन्दे॒वान्ग॑च्छन्तुवो॒मदाः᳚ || {9.101.4}, {9.6.5.4}, {7.5.1.4} |
959 | इन्दु॒रिन्द्रा᳚यपवत॒ऽइति॑दे॒वासो᳚ऽअब्रुवन् | वा॒चस्पति᳚र्मखस्यते॒विश्व॒स्येशा᳚न॒ऽओज॑सा || {9.101.5}, {9.6.5.5}, {7.5.1.5} |
960 | स॒हस्र॑धारःपवतेसमु॒द्रोवा᳚चमीङ्ख॒यः | सोमः॒पती᳚रयी॒णांसखेन्द्र॑स्यदि॒वेदि॑वे || {9.101.6}, {9.6.5.6}, {7.5.2.1} |
961 | अ॒यंपू॒षार॒यिर्भगः॒सोमः॑पुना॒नोऽअ॑र्षति | पति॒र्विश्व॑स्य॒भूम॑नो॒व्य॑ख्य॒द्रोद॑सीऽउ॒भे || {9.101.7}, {9.6.5.7}, {7.5.2.2} |
962 | समु॑प्रि॒याऽअ॑नूषत॒गावो॒मदा᳚य॒घृष्व॑यः | सोमा᳚सःकृण्वतेप॒थःपव॑मानास॒ऽइन्द॑वः || {9.101.8}, {9.6.5.8}, {7.5.2.3} |
963 | यऽओजि॑ष्ठ॒स्तमाभ॑र॒पव॑मानश्र॒वाय्य᳚म् | यःपञ्च॑चर्ष॒णीर॒भिर॒यिंयेन॒वना᳚महै || {9.101.9}, {9.6.5.9}, {7.5.2.4} |
964 | सोमाः᳚पवन्त॒ऽइन्द॑वो॒ऽस्मभ्यं᳚गातु॒वित्त॑माः | मि॒त्राःसु॑वा॒नाऽअ॑रे॒पसः॑स्वा॒ध्यः॑स्व॒र्विदः॑ || {9.101.10}, {9.6.5.10}, {7.5.2.5} |
965 | सु॒ष्वा॒णासो॒व्यद्रि॑भि॒श्चिता᳚ना॒गोरधि॑त्व॒चि | इष॑म॒स्मभ्य॑म॒भितः॒सम॑स्वरन्वसु॒विदः॑ || {9.101.11}, {9.6.5.11}, {7.5.3.1} |
966 | ए॒तेपू॒तावि॑प॒श्चितः॒सोमा᳚सो॒दध्या᳚शिरः | सूर्या᳚सो॒नद॑र्श॒तासो᳚जिग॒त्नवो᳚ध्रु॒वाघृ॒ते || {9.101.12}, {9.6.5.12}, {7.5.3.2} |
967 | प्रसु᳚न्वा॒नस्यान्ध॑सो॒मर्तो॒नवृ॑त॒तद्वचः॑ | अप॒श्वान॑मरा॒धसं᳚ह॒ताम॒खंनभृग॑वः || {9.101.13}, {9.6.5.13}, {7.5.3.3} |
968 | आजा॒मिरत्के᳚ऽअव्यतभु॒जेनपु॒त्रऽओ॒ण्योः᳚ | सर॑ज्जा॒रोनयोष॑णांव॒रोनयोनि॑मा॒सद᳚म् || {9.101.14}, {9.6.5.14}, {7.5.3.4} |
969 | सवी॒रोद॑क्ष॒साध॑नो॒वियस्त॒स्तम्भ॒रोद॑सी | हरिः॑प॒वित्रे᳚ऽअव्यतवे॒धानयोनि॑मा॒सद᳚म् || {9.101.15}, {9.6.5.15}, {7.5.3.5} |
970 | अव्यो॒वारे᳚भिःपवते॒सोमो॒गव्ये॒ऽअधि॑त्व॒चि | कनि॑क्रद॒द्वृषा॒हरि॒रिन्द्र॑स्या॒भ्ये᳚तिनिष्कृ॒तम् || {9.101.16}, {9.6.5.16}, {7.5.3.6} |
[102] (१-८) अष्टर्चस्य सूक्तस्याप्त्यस्त्रित ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | उष्णिक् छन्दः || | |
971 | क्रा॒णाशिशु᳚र्म॒हीनां᳚हि॒न्वन्नृ॒तस्य॒दीधि॑तिम् | विश्वा॒परि॑प्रि॒याभु॑व॒दध॑द्वि॒ता || {9.102.1}, {9.6.6.1}, {7.5.4.1} |
972 | उप॑त्रि॒तस्य॑पा॒ष्यो॒३॑(ओ॒)रभ॑क्त॒यद्गुहा᳚प॒दम् | य॒ज्ञस्य॑स॒प्तधाम॑भि॒रध॑प्रि॒यम् || {9.102.2}, {9.6.6.2}, {7.5.4.2} |
973 | त्रीणि॑त्रि॒तस्य॒धार॑यापृ॒ष्ठेष्वेर॑यार॒यिम् | मिमी᳚तेऽअस्य॒योज॑ना॒विसु॒क्रतुः॑ || {9.102.3}, {9.6.6.3}, {7.5.4.3} |
974 | ज॒ज्ञा॒नंस॒प्तमा॒तरो᳚वे॒धाम॑शासतश्रि॒ये | अ॒यंध्रु॒वोर॑यी॒णांचिके᳚त॒यत् || {9.102.4}, {9.6.6.4}, {7.5.4.4} |
975 | अ॒स्यव्र॒तेस॒जोष॑सो॒विश्वे᳚दे॒वासो᳚ऽअ॒द्रुहः॑ | स्पा॒र्हाभ॑वन्ति॒रन्त॑योजु॒षन्त॒यत् || {9.102.5}, {9.6.6.5}, {7.5.4.5} |
976 | यमी॒गर्भ॑मृता॒वृधो᳚दृ॒शेचारु॒मजी᳚जनन् | क॒विंमंहि॑ष्ठमध्व॒रेपु॑रु॒स्पृह᳚म् || {9.102.6}, {9.6.6.6}, {7.5.5.1} |
977 | स॒मी॒ची॒नेऽअ॒भित्मना᳚य॒ह्वीऋ॒तस्य॑मा॒तरा᳚ | त॒न्वा॒नाय॒ज्ञमा᳚नु॒षग्यद᳚ञ्ज॒ते || {9.102.7}, {9.6.6.7}, {7.5.5.2} |
978 | क्रत्वा᳚शु॒क्रेभि॑र॒क्षभि॑र्ऋ॒णोरप᳚व्र॒जंदि॒वः | हि॒न्वन्नृ॒तस्य॒दीधि॑तिं॒प्राध्व॒रे || {9.102.8}, {9.6.6.8}, {7.5.5.3} |
[103] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्याप्त्यस्त्रित ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | उष्णिक् छन्दः || | |
979 | प्रपु॑ना॒नाय॑वे॒धसे॒सोमा᳚य॒वच॒ऽउद्य॑तम् | भृ॒तिंनभ॑राम॒तिभि॒र्जुजो᳚षते || {9.103.1}, {9.6.7.1}, {7.5.6.1} |
980 | परि॒वारा᳚ण्य॒व्यया॒गोभि॑रञ्जा॒नोऽअ॑र्षति | त्रीष॒धस्था᳚पुना॒नःकृ॑णुते॒हरिः॑ || {9.103.2}, {9.6.7.2}, {7.5.6.2} |
981 | परि॒कोशं᳚मधु॒श्चुत॑म॒व्यये॒वारे᳚ऽअर्षति | अ॒भिवाणी॒र्ऋषी᳚णांस॒प्तनू᳚षत || {9.103.3}, {9.6.7.3}, {7.5.6.3} |
982 | परि॑णे॒ताम॑ती॒नांवि॒श्वदे᳚वो॒ऽअदा᳚भ्यः | सोमः॑पुना॒नश्च॒म्वो᳚र्विश॒द्धरिः॑ || {9.103.4}, {9.6.7.4}, {7.5.6.4} |
983 | परि॒दैवी॒रनु॑स्व॒धाऽइन्द्रे᳚णयाहिस॒रथ᳚म् | पु॒ना॒नोवा॒घद्वा॒घद्भि॒रम॑र्त्यः || {9.103.5}, {9.6.7.5}, {7.5.6.5} |
984 | परि॒सप्ति॒र्नवा᳚ज॒युर्दे॒वोदे॒वेभ्यः॑सु॒तः | व्या॒न॒शिःपव॑मानो॒विधा᳚वति || {9.103.6}, {9.6.7.6}, {7.5.6.6} |
[104] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य कारावौ पर्वतनारदौ काश्यप्यौ शिखण्डिन्यावप्सरसौ वा ऋषिके। पवमानः सोमो देवता | उष्णिक् छन्दः || | |
985 | सखा᳚य॒ऽआनिषी᳚दतपुना॒नाय॒प्रगा᳚यत | शिशुं॒नय॒ज्ञैःपरि॑भूषतश्रि॒ये || {9.104.1}, {9.7.1.1}, {7.5.7.1} |
986 | समी᳚व॒त्संनमा॒तृभिः॑सृ॒जता᳚गय॒साध॑नम् | दे॒वा॒व्य१॑(अ॒)अंमद॑म॒भिद्विश॑वसम् || {9.104.2}, {9.7.1.2}, {7.5.7.2} |
987 | पु॒नाता᳚दक्ष॒साध॑नं॒यथा॒शर्धा᳚यवी॒तये᳚ | यथा᳚मि॒त्राय॒वरु॑णाय॒शंत॑मः || {9.104.3}, {9.7.1.3}, {7.5.7.3} |
988 | अ॒स्मभ्यं᳚त्वावसु॒विद॑म॒भिवाणी᳚रनूषत | गोभि॑ष्टे॒वर्ण॑म॒भिवा᳚सयामसि || {9.104.4}, {9.7.1.4}, {7.5.7.4} |
989 | सनो᳚मदानांपत॒ऽइन्दो᳚दे॒वप्स॑राऽअसि | सखे᳚व॒सख्ये᳚गातु॒वित्त॑मोभव || {9.104.5}, {9.7.1.5}, {7.5.7.5} |
990 | सने᳚मिकृ॒ध्य१॑(अ॒)स्मदार॒क्षसं॒कंचि॑द॒त्रिण᳚म् | अपादे᳚वंद्व॒युमंहो᳚युयोधिनः || {9.104.6}, {9.7.1.6}, {7.5.7.6} |
[105] (१-६) षळृर्चस्य सूक्तस्य काण्वौ पर्वतनारदावृषी। पवमानः सोमो देवता | उष्णिक् छन्दः || | |
991 | तंवः॑सखायो॒मदा᳚यपुना॒नम॒भिगा᳚यत | शिशुं॒नय॒ज्ञैःस्व॑दयन्तगू॒र्तिभिः॑ || {9.105.1}, {9.7.2.1}, {7.5.8.1} |
992 | संव॒त्सऽइ॑वमा॒तृभि॒रिन्दु॑र्हिन्वा॒नोऽअ॑ज्यते | दे॒वा॒वीर्मदो᳚म॒तिभिः॒परि॑ष्कृतः || {9.105.2}, {9.7.2.2}, {7.5.8.2} |
993 | अ॒यंदक्षा᳚य॒साध॑नो॒ऽयंशर्धा᳚यवी॒तये᳚ | अ॒यंदे॒वेभ्यो॒मधु॑मत्तमःसु॒तः || {9.105.3}, {9.7.2.3}, {7.5.8.3} |
994 | गोम᳚न्नऽइन्दो॒ऽअश्व॑वत्सु॒तःसु॑दक्षधन्व | शुचिं᳚ते॒वर्ण॒मधि॒गोषु॑दीधरम् || {9.105.4}, {9.7.2.4}, {7.5.8.4} |
995 | सनो᳚हरीणांपत॒ऽइन्दो᳚दे॒वप्स॑रस्तमः | सखे᳚व॒सख्ये॒नर्यो᳚रु॒चेभ॑व || {9.105.5}, {9.7.2.5}, {7.5.8.5} |
996 | सने᳚मि॒त्वम॒स्मदाँऽअदे᳚वं॒कंचि॑द॒त्रिण᳚म् | सा॒ह्वाँऽइ᳚न्दो॒परि॒बाधो॒ऽअप॑द्व॒युम् || {9.105.6}, {9.7.2.6}, {7.5.8.6} |
[106] (१-१४) चतुर्दशर्चस्य सूक्तस्य (१-३, १०-१४) प्रथमादितृचस्य दशम्यादिपञ्चानाञ्च चाक्षुषोऽग्निः, (४-६) चतुर्थ्यादितृचस्य मानवश्चक्षुः, (७-९) सप्तम्यादितृचस्य चाप्सवो मनुऋर्ष यः, पवमानः सोमो देवता | उष्णिक् छन्दः || | |
997 | इन्द्र॒मच्छ॑सु॒ताऽइ॒मेवृष॑णंयन्तु॒हर॑यः | श्रु॒ष्टीजा॒तास॒ऽइन्द॑वःस्व॒र्विदः॑ || {9.106.1}, {9.7.3.1}, {7.5.9.1} |
998 | अ॒यंभरा᳚यसान॒सिरिन्द्रा᳚यपवतेसु॒तः | सोमो॒जैत्र॑स्यचेतति॒यथा᳚वि॒दे || {9.106.2}, {9.7.3.2}, {7.5.9.2} |
999 | अ॒स्येदिन्द्रो॒मदे॒ष्वाग्रा॒भंगृ॑भ्णीतसान॒सिम् | वज्रं᳚च॒वृष॑णंभर॒त्सम॑प्सु॒जित् || {9.106.3}, {9.7.3.3}, {7.5.9.3} |
1000 | प्रध᳚न्वासोम॒जागृ॑वि॒रिन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव | द्यु॒मन्तं॒शुष्म॒माभ॑रास्व॒र्विद᳚म् || {9.106.4}, {9.7.3.4}, {7.5.9.4} |
1001 | इन्द्रा᳚य॒वृष॑णं॒मदं॒पव॑स्ववि॒श्वद॑र्शतः | स॒हस्र॑यामापथि॒कृद्वि॑चक्ष॒णः || {9.106.5}, {9.7.3.5}, {7.5.9.5} |
1002 | अ॒स्मभ्यं᳚गातु॒वित्त॑मोदे॒वेभ्यो॒मधु॑मत्तमः | स॒हस्रं᳚याहिप॒थिभिः॒कनि॑क्रदत् || {9.106.6}, {9.7.3.6}, {7.5.10.1} |
1003 | पव॑स्वदे॒ववी᳚तय॒ऽइन्दो॒धारा᳚भि॒रोज॑सा | आक॒लशं॒मधु॑मान्त्सोमनःसदः || {9.106.7}, {9.7.3.7}, {7.5.10.2} |
1004 | तव॑द्र॒प्साऽउ॑द॒प्रुत॒ऽइन्द्रं॒मदा᳚यवावृधुः | त्वांदे॒वासो᳚ऽअ॒मृता᳚य॒कंप॑पुः || {9.106.8}, {9.7.3.8}, {7.5.10.3} |
1005 | आनः॑सुतासऽइन्दवःपुना॒नाधा᳚वतार॒यिम् | वृ॒ष्टिद्या᳚वोरीत्यापःस्व॒र्विदः॑ || {9.106.9}, {9.7.3.9}, {7.5.10.4} |
1006 | सोमः॑पुना॒नऽऊ॒र्मिणाव्यो॒वारं॒विधा᳚वति | अग्रे᳚वा॒चःपव॑मानः॒कनि॑क्रदत् || {9.106.10}, {9.7.3.10}, {7.5.10.5} |
1007 | धी॒भिर्हि᳚न्वन्तिवा॒जिनं॒वने॒क्रीळ᳚न्त॒मत्य॑विम् | अ॒भित्रि॑पृ॒ष्ठंम॒तयः॒सम॑स्वरन् || {9.106.11}, {9.7.3.11}, {7.5.11.1} |
1008 | अस॑र्जिक॒लशाँ᳚ऽअ॒भिमी॒ळ्हेसप्ति॒र्नवा᳚ज॒युः | पु॒ना॒नोवाचं᳚ज॒नय᳚न्नसिष्यदत् || {9.106.12}, {9.7.3.12}, {7.5.11.2} |
1009 | पव॑तेहर्य॒तोहरि॒रति॒ह्वरां᳚सि॒रंह्या᳚ | अ॒भ्यर्ष᳚न्त्स्तो॒तृभ्यो᳚वी॒रव॒द्यशः॑ || {9.106.13}, {9.7.3.13}, {7.5.11.3} |
1010 | अ॒याप॑वस्वदेव॒युर्मधो॒र्धारा᳚ऽअसृक्षत | रेभ᳚न्प॒वित्रं॒पर्ये᳚षिवि॒श्वतः॑ || {9.106.14}, {9.7.3.14}, {7.5.11.4} |
[107] (१-२६) षड़िवशत्यृचस्य सूक्तस्य बार्हस्पत्यो भरद्वाजः, मारीचः कश्यपः, रहूगणो गोतमः, भौमोऽत्रिः, गाथिनो विश्वामित्रः, भार्गवो जमदग्निः मैत्रावरुणिर्वसिष्ठश्च सप्तर्षयः, पवमानः सोमो देवता | (१-२, ४-७, १०-१५, १७-२६) प्रथमाद्वितीययोर्ऋचोश्चतुर्थ्यादिचतसृणां दशम्यादिषण्णां सप्तदश्यादिदशानाञ्च प्रगाथः ((१, ४, ६, १०, १२, १४, १७, १९, २१, २३, २५) प्रथमाचतुर्थीषष्ठीदशमीद्वादशीचतुर्दश सप्तदश्येकोनविंश्येकविंशीत्रयोविंशीपञ्चविंशी नां बृहती, (२, ५, ७, ११, १३, १५, १८, २०, २२, २४, २६) द्वितीयापञ्चमीसप्तम्येकादशीत्रयोदशीपञ्चदश्यष्टादशीविंशीद्वाविंशीचतुर्विशीषड़िवशी नां सतोबृहती), (३) तृतीयाया भरिग्विराड़ द्विपदा (८-९) अष्टमीनवम्योबह ती, (१६) षोडश्याश्च द्विपदा विराट् छन्दांसि || | |
1011 | परी॒तोषि᳚ञ्चतासु॒तंसोमो॒यऽउ॑त्त॒मंह॒विः | द॒ध॒न्वाँऽयोनर्यो᳚ऽअ॒प्स्व१॑(अ॒)'न्तरासु॒षाव॒सोम॒मद्रि॑भिः || {9.107.1}, {9.7.4.1}, {7.5.12.1} |
1012 | नू॒नंपु॑ना॒नोऽवि॑भिः॒परि॑स्र॒वाद॑ब्धःसुर॒भिन्त॑रः | सु॒तेचि॑त्त्वा॒प्सुम॑दामो॒ऽअन्ध॑साश्री॒णन्तो॒गोभि॒रुत्त॑रम् || {9.107.2}, {9.7.4.2}, {7.5.12.2} |
1013 | परि॑सुवा॒नश्चक्ष॑सेदेव॒माद॑नः॒क्रतु॒रिन्दु᳚र्विचक्ष॒णः || {9.107.3}, {9.7.4.3}, {7.5.12.3} |
1014 | पु॒ना॒नःसो᳚म॒धार॑या॒पोवसा᳚नोऽअर्षसि | आर॑त्न॒धायोनि॑मृ॒तस्य॑सीद॒स्युत्सो᳚देवहिर॒ण्ययः॑ || {9.107.4}, {9.7.4.4}, {7.5.12.4} |
1015 | दु॒हा॒नऽऊध॑र्दि॒व्यंमधु॑प्रि॒यंप्र॒त्नंस॒धस्थ॒मास॑दत् | आ॒पृच्छ्यं᳚ध॒रुणं᳚वा॒ज्य॑र्षति॒नृभि॑र्धू॒तोवि॑चक्ष॒णः || {9.107.5}, {9.7.4.5}, {7.5.12.5} |
1016 | पु॒ना॒नःसो᳚म॒जागृ॑वि॒रव्यो॒वारे॒परि॑प्रि॒यः | त्वंविप्रो᳚ऽअभ॒वोऽङ्गि॑रस्तमो॒मध्वा᳚य॒ज्ञंमि॑मिक्षनः || {9.107.6}, {9.7.4.6}, {7.5.13.1} |
1017 | सोमो᳚मी॒ढ्वान्प॑वतेगातु॒वित्त॑म॒ऋषि॒र्विप्रो᳚विचक्ष॒णः | त्वंक॒विर॑भवोदेव॒वीत॑म॒ऽआसूर्यं᳚रोहयोदि॒वि || {9.107.7}, {9.7.4.7}, {7.5.13.2} |
1018 | सोम॑ऽउषुवा॒णःसो॒तृभि॒रधि॒ष्णुभि॒रवी᳚नाम् | अश्व॑येवह॒रिता᳚याति॒धार॑याम॒न्द्रया᳚याति॒धार॑या || {9.107.8}, {9.7.4.8}, {7.5.13.3} |
1019 | अ॒नू॒पेगोमा॒न्गोभि॑रक्षाः॒सोमो᳚दु॒ग्धाभि॑रक्षाः | स॒मु॒द्रंनसं॒वर॑णान्यग्मन्म॒न्दीमदा᳚यतोशते || {9.107.9}, {9.7.4.9}, {7.5.13.4} |
1020 | आसो᳚मसुवा॒नोऽअद्रि॑भिस्ति॒रोवारा᳚ण्य॒व्यया᳚ | जनो॒नपु॒रिच॒म्वो᳚र्विश॒द्धरिः॒सदो॒वने᳚षुदधिषे || {9.107.10}, {9.7.4.10}, {7.5.13.5} |
1021 | समा᳚मृजेति॒रोऽअण्वा᳚निमे॒ष्यो᳚मी॒ळ्हेसप्ति॒र्नवा᳚ज॒युः | अ॒नु॒माद्यः॒पव॑मानोमनी॒षिभिः॒सोमो॒विप्रे᳚भि॒र्ऋक्व॑भिः || {9.107.11}, {9.7.4.11}, {7.5.14.1} |
1022 | प्रसो᳚मदे॒ववी᳚तये॒सिन्धु॒र्नपि॑प्ये॒ऽअर्ण॑सा | अं॒शोःपय॑सामदि॒रोनजागृ॑वि॒रच्छा॒कोशं᳚मधु॒श्चुत᳚म् || {9.107.12}, {9.7.4.12}, {7.5.14.2} |
1023 | आह᳚र्य॒तोऽअर्जु॑ने॒ऽअत्के᳚ऽअव्यतप्रि॒यःसू॒नुर्नमर्ज्यः॑ | तमीं᳚हिन्वन्त्य॒पसो॒यथा॒रथं᳚न॒दीष्वागभ॑स्त्योः || {9.107.13}, {9.7.4.13}, {7.5.14.3} |
1024 | अ॒भिसोमा᳚सऽआ॒यवः॒पव᳚न्ते॒मद्यं॒मद᳚म् | स॒मु॒द्रस्याधि॑वि॒ष्टपि॑मनी॒षिणो᳚मत्स॒रासः॑स्व॒र्विदः॑ || {9.107.14}, {9.7.4.14}, {7.5.14.4} |
1025 | तर॑त्समु॒द्रंपव॑मानऽऊ॒र्मिणा॒राजा᳚दे॒वऋ॒तंबृ॒हत् | अर्ष᳚न्मि॒त्रस्य॒वरु॑णस्य॒धर्म॑णा॒प्रहि᳚न्वा॒नऋ॒तंबृ॒हत् || {9.107.15}, {9.7.4.15}, {7.5.14.5} |
1026 | नृभि᳚र्येमा॒नोह᳚र्य॒तोवि॑चक्ष॒णोराजा᳚दे॒वःस॑मु॒द्रियः॑ || {9.107.16}, {9.7.4.16}, {7.5.15.1} |
1027 | इन्द्रा᳚यपवते॒मदः॒सोमो᳚म॒रुत्व॑तेसु॒तः | स॒हस्र॑धारो॒ऽअत्यव्य॑मर्षति॒तमी᳚मृजन्त्या॒यवः॑ || {9.107.17}, {9.7.4.17}, {7.5.15.2} |
1028 | पु॒ना॒नश्च॒मूज॒नय᳚न्म॒तिंक॒विःसोमो᳚दे॒वेषु॑रण्यति | अ॒पोवसा᳚नः॒परि॒गोभि॒रुत्त॑रः॒सीद॒न्वने᳚ष्वव्यत || {9.107.18}, {9.7.4.18}, {7.5.15.3} |
1029 | तवा॒हंसो᳚मरारणस॒ख्यऽइ᳚न्दोदि॒वेदि॑वे | पु॒रूणि॑बभ्रो॒निच॑रन्ति॒मामव॑परि॒धीँरति॒ताँऽइ॑हि || {9.107.19}, {9.7.4.19}, {7.5.15.4} |
1030 | उ॒ताहंनक्त॑मु॒तसो᳚मते॒दिवा᳚स॒ख्याय॑बभ्र॒ऽऊध॑नि | घृ॒णातप᳚न्त॒मति॒सूर्यं᳚प॒रःश॑कु॒नाऽइ॑वपप्तिम || {9.107.20}, {9.7.4.20}, {7.5.15.5} |
1031 | मृ॒ज्यमा᳚नःसुहस्त्यसमु॒द्रेवाच॑मिन्वसि | र॒यिंपि॒शङ्गं᳚बहु॒लंपु॑रु॒स्पृहं॒पव॑माना॒भ्य॑र्षसि || {9.107.21}, {9.7.4.21}, {7.5.16.1} |
1032 | मृ॒जा॒नोवारे॒पव॑मानोऽअ॒व्यये॒वृषाव॑चक्रदो॒वने᳚ | दे॒वानां᳚सोमपवमाननिष्कृ॒तंगोभि॑रञ्जा॒नोऽअ॑र्षसि || {9.107.22}, {9.7.4.22}, {7.5.16.2} |
1033 | पव॑स्व॒वाज॑सातये॒ऽभिविश्वा᳚नि॒काव्या᳚ | त्वंस॑मु॒द्रंप्र॑थ॒मोविधा᳚रयोदे॒वेभ्यः॑सोममत्स॒रः || {9.107.23}, {9.7.4.23}, {7.5.16.3} |
1034 | सतूप॑वस्व॒परि॒पार्थि॑वं॒रजो᳚दि॒व्याच॑सोम॒धर्म॑भिः | त्वांविप्रा᳚सोम॒तिभि᳚र्विचक्षणशु॒भ्रंहि᳚न्वन्तिधी॒तिभिः॑ || {9.107.24}, {9.7.4.24}, {7.5.16.4} |
1035 | पव॑मानाऽअसृक्षतप॒वित्र॒मति॒धार॑या | म॒रुत्व᳚न्तोमत्स॒राऽइ᳚न्द्रि॒याहया᳚मे॒धाम॒भिप्रयां᳚सिच || {9.107.25}, {9.7.4.25}, {7.5.16.5} |
1036 | अ॒पोवसा᳚नः॒परि॒कोश॑मर्ष॒तीन्दु॑र्हिया॒नःसो॒तृभिः॑ | ज॒नय॒ञ्ज्योति᳚र्म॒न्दना᳚ऽअवीवश॒द्गाःकृ᳚ण्वा॒नोननि॒र्णिज᳚म् || {9.107.26}, {9.7.4.26}, {7.5.16.6} |
[108] (१-१६) षोळशर्चस्य सूक्तस्य (१-२) प्रथमाद्वितीययोर्ऋचोः शाक्त्यो गौरिवीतिः, (३, १४-१६) तृतीयायाश्चतुदर्श यादितृचस्य च वासिष्ठः शक्तिः, (४५) चतुर्थीपञ्चम्योराङ्गिरस ऊरुः, (६-७) षष्ठीसप्तम्योर्भारद्वाज ऋजिश्वा, (८-९) अष्टमीनवम्योराङ्गिरस ऊर्ध्वसपा, (१०-११) दशम्येकादश्योराङ्गिरसः कृतयशाः, (१२-१३) द्वादशीत्रयोदश्योश्च राजर्षिणञ्चय (ऋषयः) पवमानः सोमो देवता | काकभः प्रगाथः (विषमर्चाम् ककप, समर्चाम् सतोबृहती), (१३) त्रयोदश्या यवमध्या गायत्री छन्दः || | |
1037 | पव॑स्व॒मधु॑मत्तम॒ऽइन्द्रा᳚यसोमक्रतु॒वित्त॑मो॒मदः॑ | महि॑द्यु॒क्षत॑मो॒मदः॑ || {9.108.1}, {9.7.5.1}, {7.5.17.1} |
1038 | यस्य॑तेपी॒त्वावृ॑ष॒भोवृ॑षा॒यते॒ऽस्यपी॒तास्व॒र्विदः॑ | ससु॒प्रके᳚तोऽअ॒भ्य॑क्रमी॒दिषोऽच्छा॒वाजं॒नैत॑शः || {9.108.2}, {9.7.5.2}, {7.5.17.2} |
1039 | त्वंह्य१॑(अ॒)'ङ्गदैव्या॒पव॑मान॒जनि॑मानिद्यु॒मत्त॑मः | अ॒मृ॒त॒त्वाय॑घो॒षयः॑ || {9.108.3}, {9.7.5.3}, {7.5.17.3} |
1040 | येना॒नव॑ग्वोद॒ध्यङ्ङ॑पोर्णु॒तेयेन॒विप्रा᳚सऽआपि॒रे | दे॒वानां᳚सु॒म्नेऽअ॒मृत॑स्य॒चारु॑णो॒येन॒श्रवां᳚स्यान॒शुः || {9.108.4}, {9.7.5.4}, {7.5.17.4} |
1041 | ए॒षस्यधार॑यासु॒तोऽव्यो॒वारे᳚भिःपवतेम॒दिन्त॑मः | क्रीळ᳚न्नू॒र्मिर॒पामि॑व || {9.108.5}, {9.7.5.5}, {7.5.17.5} |
1042 | यऽउ॒स्रिया॒ऽअप्या᳚ऽअ॒न्तरश्म॑नो॒निर्गाऽअकृ᳚न्त॒दोज॑सा | अ॒भिव्र॒जंत॑त्निषे॒गव्य॒मश्व्यं᳚व॒र्मीव॑धृष्ण॒वारु॑ज || {9.108.6}, {9.7.5.6}, {7.5.18.1} |
1043 | आसो᳚ता॒परि॑षिञ्च॒ताश्वं॒नस्तोम॑म॒प्तुरं᳚रज॒स्तुर᳚म् | व॒न॒क्र॒क्षमु॑द॒प्रुत᳚म् || {9.108.7}, {9.7.5.7}, {7.5.18.2} |
1044 | स॒हस्र॑धारंवृष॒भंप॑यो॒वृधं᳚प्रि॒यंदे॒वाय॒जन्म॑ने | ऋ॒तेन॒यऋ॒तजा᳚तोविवावृ॒धेराजा᳚दे॒वऋ॒तंबृ॒हत् || {9.108.8}, {9.7.5.8}, {7.5.18.3} |
1045 | अ॒भिद्यु॒म्नंबृ॒हद्यश॒ऽइष॑स्पतेदिदी॒हिदे᳚वदेव॒युः | विकोशं᳚मध्य॒मंयु॑व || {9.108.9}, {9.7.5.9}, {7.5.18.4} |
1046 | आव॑च्यस्वसुदक्षच॒म्वोः᳚सु॒तोवि॒शांवह्नि॒र्नवि॒श्पतिः॑ | वृ॒ष्टिंदि॒वःप॑वस्वरी॒तिम॒पांजिन्वा॒गवि॑ष्टये॒धियः॑ || {9.108.10}, {9.7.5.10}, {7.5.18.5} |
1047 | ए॒तमु॒त्यंम॑द॒च्युतं᳚स॒हस्र॑धारंवृष॒भंदिवो᳚दुहुः | विश्वा॒वसू᳚नि॒बिभ्र॑तम् || {9.108.11}, {9.7.5.11}, {7.5.19.1} |
1048 | वृषा॒विज॑ज्ञेज॒नय॒न्नम॑र्त्यःप्र॒तप॒ञ्ज्योति॑षा॒तमः॑ | ससुष्टु॑तःक॒विभि᳚र्नि॒र्णिजं᳚दधेत्रि॒धात्व॑स्य॒दंस॑सा || {9.108.12}, {9.7.5.12}, {7.5.19.2} |
1049 | ससु᳚न्वे॒योवसू᳚नां॒योरा॒यामा᳚ने॒तायऽइळा᳚नाम् | सोमो॒यःसु॑क्षिती॒नाम् || {9.108.13}, {9.7.5.13}, {7.5.19.3} |
1050 | यस्य॑न॒ऽइन्द्रः॒पिबा॒द्यस्य॑म॒रुतो॒यस्य॑वार्य॒मणा॒भगः॑ | आयेन॑मि॒त्रावरु॑णा॒करा᳚मह॒ऽएन्द्र॒मव॑सेम॒हे || {9.108.14}, {9.7.5.14}, {7.5.19.4} |
1051 | इन्द्रा᳚यसोम॒पात॑वे॒नृभि᳚र्य॒तःस्वा᳚यु॒धोम॒दिन्त॑मः | पव॑स्व॒मधु॑मत्तमः || {9.108.15}, {9.7.5.15}, {7.5.19.5} |
1052 | इन्द्र॑स्य॒हार्दि॑सोम॒धान॒मावि॑शसमु॒द्रमि॑व॒सिन्ध॑वः | जुष्टो᳚मि॒त्राय॒वरु॑णायवा॒यवे᳚दि॒वोवि॑ष्ट॒म्भऽउ॑त्त॒मः || {9.108.16}, {9.7.5.16}, {7.5.19.6} |
[109] (१-२२) द्वाविंशत्यृचस्य सूक्तस्यैश्वरयो धिष्ण्याग्नय (ऋषयः) पवमानः सोमो देवता | द्विपदा विराट् छन्दः || | |
1053 | परि॒प्रध॒न्वेन्द्रा᳚यसोमस्वा॒दुर्मि॒त्राय॑पू॒ष्णेभगा᳚य || {9.109.1}, {9.7.6.1}, {7.5.20.1} |
1054 | इन्द्र॑स्तेसोमसु॒तस्य॑पेयाः॒क्रत्वे॒दक्षा᳚य॒विश्वे᳚चदे॒वाः || {9.109.2}, {9.7.6.2}, {7.5.20.2} |
1055 | ए॒वामृता᳚यम॒हेक्षया᳚य॒सशु॒क्रोऽअ॑र्षदि॒व्यःपी॒यूषः॑ || {9.109.3}, {9.7.6.3}, {7.5.20.3} |
1056 | पव॑स्वसोमम॒हान्त्स॑मु॒द्रःपि॒तादे॒वानां॒विश्वा॒भिधाम॑ || {9.109.4}, {9.7.6.4}, {7.5.20.4} |
1057 | शु॒क्रःप॑वस्वदे॒वेभ्यः॑सोमदि॒वेपृ॑थि॒व्यैशंच॑प्र॒जायै᳚ || {9.109.5}, {9.7.6.5}, {7.5.20.5} |
1058 | दि॒वोध॒र्तासि॑शु॒क्रःपी॒यूषः॑स॒त्येविध᳚र्मन्वा॒जीप॑वस्व || {9.109.6}, {9.7.6.6}, {7.5.20.6} |
1059 | पव॑स्वसोमद्यु॒म्नीसु॑धा॒रोम॒हामवी᳚ना॒मनु॑पू॒र्व्यः || {9.109.7}, {9.7.6.7}, {7.5.20.7} |
1060 | नृभि᳚र्येमा॒नोज॑ज्ञा॒नःपू॒तःक्षर॒द्विश्वा᳚निम॒न्द्रःस्व॒र्वित् || {9.109.8}, {9.7.6.8}, {7.5.20.8} |
1061 | इन्दुः॑पुना॒नःप्र॒जामु॑रा॒णःकर॒द्विश्वा᳚नि॒द्रवि॑णानिनः || {9.109.9}, {9.7.6.9}, {7.5.20.9} |
1062 | पव॑स्वसोम॒क्रत्वे॒दक्षा॒याश्वो॒ननि॒क्तोवा॒जीधना᳚य || {9.109.10}, {9.7.6.10}, {7.5.20.10} |
1063 | तंते᳚सो॒तारो॒रसं॒मदा᳚यपु॒नन्ति॒सोमं᳚म॒हेद्यु॒म्नाय॑ || {9.109.11}, {9.7.6.11}, {7.5.21.1} |
1064 | शिशुं᳚जज्ञा॒नंहरिं᳚मृजन्तिप॒वित्रे॒सोमं᳚दे॒वेभ्य॒ऽइन्दु᳚म् || {9.109.12}, {9.7.6.12}, {7.5.21.2} |
1065 | इन्दुः॑पविष्ट॒चारु॒र्मदा᳚या॒पामु॒पस्थे᳚क॒विर्भगा᳚य || {9.109.13}, {9.7.6.13}, {7.5.21.3} |
1066 | बिभ॑र्ति॒चार्विन्द्र॑स्य॒नाम॒येन॒विश्वा᳚निवृ॒त्राज॒घान॑ || {9.109.14}, {9.7.6.14}, {7.5.21.4} |
1067 | पिब᳚न्त्यस्य॒विश्वे᳚दे॒वासो॒गोभिः॑श्री॒तस्य॒नृभिः॑सु॒तस्य॑ || {9.109.15}, {9.7.6.15}, {7.5.21.5} |
1068 | प्रसु॑वा॒नोऽअ॑क्षाःस॒हस्र॑धारस्ति॒रःप॒वित्रं॒विवार॒मव्य᳚म् || {9.109.16}, {9.7.6.16}, {7.5.21.6} |
1069 | सवा॒ज्य॑क्षाःस॒हस्र॑रेताऽअ॒द्भिर्मृ॑जा॒नोगोभिः॑श्रीणा॒नः || {9.109.17}, {9.7.6.17}, {7.5.21.7} |
1070 | प्रसो᳚मया॒हीन्द्र॑स्यकु॒क्षानृभि᳚र्येमा॒नोऽअद्रि॑भिःसु॒तः || {9.109.18}, {9.7.6.18}, {7.5.21.8} |
1071 | अस॑र्जिवा॒जीति॒रःप॒वित्र॒मिन्द्रा᳚य॒सोमः॑स॒हस्र॑धारः || {9.109.19}, {9.7.6.19}, {7.5.21.9} |
1072 | अ॒ञ्जन्त्ये᳚नं॒मध्वो॒रसे॒नेन्द्रा᳚य॒वृष्ण॒ऽइन्दुं॒मदा᳚य || {9.109.20}, {9.7.6.20}, {7.5.21.10} |
1073 | दे॒वेभ्य॑स्त्वा॒वृथा॒पाज॑से॒ऽपोवसा᳚नं॒हरिं᳚मृजन्ति || {9.109.21}, {9.7.6.21}, {7.5.21.11} |
1074 | इन्दु॒रिन्द्रा᳚यतोशते॒नितो᳚शतेश्री॒णन्नु॒ग्रोरि॒णन्न॒पः || {9.109.22}, {9.7.6.22}, {7.5.21.12} |
[110] (१-१२) द्वादशर्चस्य सूक्तस्य त्रैवष्णस्यरुणः पौरुकुत्स्यस्त्रसदस्युर्षी। पवमानः सोमो देवता | (१-३) प्रथमादितृचस्य पिपीलिकमध्यानुष्टप्, (४-९) चतुर्थ्यादितृचद्वयस्योर्ध्वबह ती, (१०-१२) दशम्यादितृचस्य च विराट् छन्दांसि || | |
1075 | पर्यू॒षुप्रध᳚न्व॒वाज॑सातये॒परि॑वृ॒त्राणि॑स॒क्षणिः॑ | द्वि॒षस्त॒रध्या᳚ऋण॒यान॑ऽईयसे || {9.110.1}, {9.7.7.1}, {7.5.22.1} |
1076 | अनु॒हित्वा᳚सु॒तंसो᳚म॒मदा᳚मसिम॒हेस॑मर्य॒राज्ये᳚ | वाजाँ᳚ऽअ॒भिप॑वमान॒प्रगा᳚हसे || {9.110.2}, {9.7.7.2}, {7.5.22.2} |
1077 | अजी᳚जनो॒हिप॑वमान॒सूर्यं᳚वि॒धारे॒शक्म॑ना॒पयः॑ | गोजी᳚रया॒रंह॑माणः॒पुरं᳚ध्या || {9.110.3}, {9.7.7.3}, {7.5.22.3} |
1078 | अजी᳚जनोऽअमृत॒मर्त्ये॒ष्वाँऽऋ॒तस्य॒धर्म᳚न्न॒मृत॑स्य॒चारु॑णः | सदा᳚सरो॒वाज॒मच्छा॒सनि॑ष्यदत् || {9.110.4}, {9.7.7.4}, {7.5.22.4} |
1079 | अ॒भ्य॑भि॒हिश्रव॑सात॒तर्दि॒थोत्सं॒नकंचि॑ज्जन॒पान॒मक्षि॑तम् | शर्या᳚भि॒र्नभर॑माणो॒गभ॑स्त्योः || {9.110.5}, {9.7.7.5}, {7.5.22.5} |
1080 | आदीं॒केचि॒त्पश्य॑मानास॒ऽआप्यं᳚वसु॒रुचो᳚दि॒व्याऽअ॒भ्य॑नूषत | वारं॒नदे॒वःस॑वि॒ताव्यू᳚र्णुते || {9.110.6}, {9.7.7.6}, {7.5.22.6} |
1081 | त्वेसो᳚मप्रथ॒मावृ॒क्तब॑र्हिषोम॒हेवाजा᳚य॒श्रव॑से॒धियं᳚दधुः | सत्वंनो᳚वीरवी॒र्या᳚यचोदय || {9.110.7}, {9.7.7.7}, {7.5.23.1} |
1082 | दि॒वःपी॒यूषं᳚पू॒र्व्यंयदु॒क्थ्यं᳚म॒होगा॒हाद्दि॒वऽआनिर॑धुक्षत | इन्द्र॑म॒भिजाय॑मानं॒सम॑स्वरन् || {9.110.8}, {9.7.7.8}, {7.5.23.2} |
1083 | अध॒यदि॒मेप॑वमान॒रोद॑सीऽइ॒माच॒विश्वा॒भुव॑ना॒भिम॒ज्मना᳚ | यू॒थेननि॒ष्ठावृ॑ष॒भोविति॑ष्ठसे || {9.110.9}, {9.7.7.9}, {7.5.23.3} |
1084 | सोमः॑पुना॒नोऽअ॒व्यये॒वारे॒शिशु॒र्नक्रीळ॒न्पव॑मानोऽअक्षाः | स॒हस्र॑धारःश॒तवा᳚ज॒ऽइन्दुः॑ || {9.110.10}, {9.7.7.10}, {7.5.23.4} |
1085 | ए॒षपु॑ना॒नोमधु॑माँऽऋ॒तावेन्द्रा॒येन्दुः॑पवतेस्वा॒दुरू॒र्मिः | वा॒ज॒सनि᳚र्वरिवो॒विद्व॑यो॒धाः || {9.110.11}, {9.7.7.11}, {7.5.23.5} |
1086 | सप॑वस्व॒सह॑मानःपृत॒न्यून्त्सेध॒न्रक्षां॒स्यप॑दु॒र्गहा᳚णि | स्वा॒यु॒धःसा᳚स॒ह्वान्त्सो᳚म॒शत्रू॑न् || {9.110.12}, {9.7.7.12}, {7.5.23.6} |
[111] (१-३) तृचस्य सूक्तस्य पारुच्छेपिरनानत ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | अत्यष्टिश्छन्दः || | |
1087 | अ॒यारु॒चाहरि᳚ण्यापुना॒नोविश्वा॒द्वेषां᳚सितरतिस्व॒युग्व॑भिः॒सूरो॒नस्व॒युग्व॑भिः | धारा᳚सु॒तस्य॑रोचतेपुना॒नोऽअ॑रु॒षोहरिः॑ | विश्वा॒यद्रू॒पाप॑रि॒यात्यृक्व॑भिःस॒प्तास्ये᳚भि॒र्ऋक्व॑भिः || {9.111.1}, {9.7.8.1}, {7.5.24.1} |
1088 | त्वंत्यत्प॑णी॒नांवि॑दो॒वसु॒संमा॒तृभि᳚र्मर्जयसि॒स्वऽआदम॑ऋ॒तस्य॑धी॒तिभि॒र्दमे᳚ | प॒रा॒वतो॒नसाम॒तद्यत्रा॒रण᳚न्तिधी॒तयः॑ | त्रि॒धातु॑भि॒ररु॑षीभि॒र्वयो᳚दधे॒रोच॑मानो॒वयो᳚दधे || {9.111.2}, {9.7.8.2}, {7.5.24.2} |
1089 | पूर्वा॒मनु॑प्र॒दिशं᳚याति॒चेकि॑त॒त्संर॒श्मिभि᳚र्यततेदर्श॒तोरथो॒दैव्यो᳚दर्श॒तोरथः॑ | अग्म᳚न्नु॒क्थानि॒पौंस्येन्द्रं॒जैत्रा᳚यहर्षयन् | वज्र॑श्च॒यद्भव॑थो॒ऽअन॑पच्युतास॒मत्स्वन॑पच्युता || {9.111.3}, {9.7.8.3}, {7.5.24.3} |
[112] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य आङ्गिरसः शिशु ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | पतिश्छन्दः || | |
1090 | ना॒ना॒नंवाऽउ॑नो॒धियो॒विव्र॒तानि॒जना᳚नाम् | तक्षा᳚रि॒ष्टंरु॒तंभि॒षग्ब्र॒ह्मासु॒न्वन्त॑मिच्छ॒तीन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {9.112.1}, {9.7.9.1}, {7.5.25.1} |
1091 | जर॑तीभि॒रोष॑धीभिःप॒र्णेभिः॑शकु॒नाना᳚म् | का॒र्मा॒रोऽअश्म॑भि॒र्द्युभि॒र्हिर᳚ण्यवन्तमिच्छ॒तीन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {9.112.2}, {9.7.9.2}, {7.5.25.2} |
1092 | का॒रुर॒हंत॒तोभि॒षगु॑पलप्र॒क्षिणी᳚न॒ना | नाना᳚धियोवसू॒यवोऽनु॒गाऽइ॑वतस्थि॒मेन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {9.112.3}, {9.7.9.3}, {7.5.25.3} |
1093 | अश्वो॒वोळ्हा᳚सु॒खंरथं᳚हस॒नामु॑पम॒न्त्रिणः॑ | शेपो॒रोम᳚ण्वन्तौभे॒दौवारिन्म॒ण्डूक॑ऽइच्छ॒तीन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {9.112.4}, {9.7.9.4}, {7.5.25.4} |
[113] (१-११) एकादशर्चस्य सूक्तस्य मारीचः कश्यप ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | पतिश्छन्दः || | |
1094 | श॒र्य॒णाव॑ति॒सोम॒मिन्द्रः॑पिबतुवृत्र॒हा | बलं॒दधा᳚नऽआ॒त्मनि॑करि॒ष्यन्वी॒र्यं᳚म॒हदिन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {9.113.1}, {9.7.10.1}, {7.5.26.1} |
1095 | आप॑वस्वदिशांपतऽआर्जी॒कात्सो᳚ममीढ्वः | ऋ॒त॒वा॒केन॑स॒त्येन॑श्र॒द्धया॒तप॑सासु॒तऽइन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {9.113.2}, {9.7.10.2}, {7.5.26.2} |
1096 | प॒र्जन्य॑वृद्धंमहि॒षंतंसूर्य॑स्यदुहि॒ताभ॑रत् | तंग᳚न्ध॒र्वाःप्रत्य॑गृभ्ण॒न्तंसोमे॒रस॒माद॑धु॒रिन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {9.113.3}, {9.7.10.3}, {7.5.26.3} |
1097 | ऋ॒तंवद᳚न्नृतद्युम्नस॒त्यंवद᳚न्त्सत्यकर्मन् | श्र॒द्धांवद᳚न्त्सोमराजन्धा॒त्रासो᳚म॒परि॑ष्कृत॒ऽइन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {9.113.4}, {9.7.10.4}, {7.5.26.4} |
1098 | स॒त्यमु॑ग्रस्यबृह॒तःसंस्र॑वन्तिसंस्र॒वाः | संय᳚न्तिर॒सिनो॒रसाः᳚पुना॒नोब्रह्म॑णाहर॒ऽइन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {9.113.5}, {9.7.10.5}, {7.5.26.5} |
1099 | यत्र॑ब्र॒ह्माप॑वमानछन्द॒स्यां॒३॒॑वाचं॒वद॑न् | ग्राव्णा॒सोमे᳚मही॒यते॒सोमे᳚नान॒न्दंज॒नय॒न्निन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {9.113.6}, {9.7.10.6}, {7.5.27.1} |
1100 | यत्र॒ज्योति॒रज॑स्रं॒यस्मिँ॑ल्लो॒केस्व॑र्हि॒तम् | तस्मि॒न्मांधे᳚हिपवमाना॒मृते᳚लो॒केऽअक्षि॑त॒ऽइन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {9.113.7}, {9.7.10.7}, {7.5.27.2} |
1101 | यत्र॒राजा᳚वैवस्व॒तोयत्रा᳚व॒रोध॑नंदि॒वः | यत्रा॒मूर्य॒ह्वती॒राप॒स्तत्र॒माम॒मृतं᳚कृ॒धीन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {9.113.8}, {9.7.10.8}, {7.5.27.3} |
1102 | यत्रा᳚नुका॒मंचर॑णंत्रिना॒केत्रि॑दि॒वेदि॒वः | लो॒कायत्र॒ज्योति॑ष्मन्त॒स्तत्र॒माम॒मृतं᳚कृ॒धीन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {9.113.9}, {9.7.10.9}, {7.5.27.4} |
1103 | यत्र॒कामा᳚निका॒माश्च॒यत्र॑ब्र॒ध्नस्य॑वि॒ष्टप᳚म् | स्व॒धाच॒यत्र॒तृप्ति॑श्च॒तत्र॒माम॒मृतं᳚कृ॒धीन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {9.113.10}, {9.7.10.10}, {7.5.27.5} |
1104 | यत्रा᳚न॒न्दाश्च॒मोदा᳚श्च॒मुदः॑प्र॒मुद॒ऽआस॑ते | काम॑स्य॒यत्रा॒प्ताःकामा॒स्तत्र॒माम॒मृतं᳚कृ॒धीन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {9.113.11}, {9.7.10.11}, {7.5.27.6} |
[114] (१-४) चतुरृचस्य सूक्तस्य मारीचः कश्यप ऋषिः | पवमानः सोमो देवता | पङ्क्तिश्छन्दः || | |
1105 | यऽइन्दोः॒पव॑मान॒स्यानु॒धामा॒न्यक्र॑मीत् | तमा᳚हुःसुप्र॒जाऽइति॒यस्ते᳚सो॒मावि॑ध॒न्मन॒ऽइन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {9.114.1}, {9.7.11.1}, {7.5.28.1} |
1106 | ऋषे᳚मन्त्र॒कृतां॒स्तोमैः॒कश्य॑पोद्व॒र्धय॒न्गिरः॑ | सोमं᳚नमस्य॒राजा᳚नं॒योज॒ज्ञेवी॒रुधां॒पति॒रिन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {9.114.2}, {9.7.11.2}, {7.5.28.2} |
1107 | स॒प्तदिशो॒नाना᳚सूर्याःस॒प्तहोता᳚रऋ॒त्विजः॑ | दे॒वाऽआ᳚दि॒त्यायेस॒प्ततेभिः॑सोमा॒भिर॑क्षन॒ऽइन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {9.114.3}, {9.7.11.3}, {7.5.28.3} |
1108 | यत्ते᳚राजञ्छृ॒तंह॒विस्तेन॑सोमा॒भिर॑क्षनः | अ॒रा॒ती॒वामान॑स्तारी॒न्मोच॑नः॒किंच॒नाम॑म॒दिन्द्रा᳚येन्दो॒परि॑स्रव || {9.114.4}, {9.7.11.4}, {7.5.28.4} |