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अंतर्ध्वनि

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अनुक्रमणिका
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गुरु वंदना १
गुरु बिन कौन सम्हारे । को भव सागर पार उतारे ॥ १
गुरु चरनन में ध्यान लगाऊं। ऐसी सुमति हमे दो दाता ॥ २
गुरु आज्ञा में निश दिन रहिये । जो गुरु चाहे सोयि सोयि करिये॥ ३
गुरु चरनन मे शीश झुकाले जनम सफल हो जायेगा ४
गणपति वंदना ५
शुभ दिन प्रथम गणेश मनाओ ५
जय बोलो जय बोलो गणपति बप्पा की जय बोलो। ६
"मेरे राम" ७
पायो निधि राम नाम। सकल शांति सुख निधान। ७
राम दो निज चरणों में स्थान शरणागत अपना जन जान ८
राम राम काहे ना बोले । व्याकुल मन जब इत उत डोले। ९
अब कृपा करो श्री राम नाथ दुख टारो। १०
दाता राम दिये ही जाता । ११
भज मन मेरे राम नाम तू गुरु आज्ञा सिर धार रे। १२
मेरे मन मन्दिर मे राम बिराजे। ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥ १३
राम बिराजो हृदय भवन में तुम बिन और न हो कुछ मन में १४
मेरा राम सब दुखियों का सहारा है। १५
बोले बोले रे राम चिरैया रे १६
राम हि राम बस राम हि राम १७
प्रेम मगन बन गा मेरे मन । राम राम श्री राम रे। १८
ऐसी कृपा करो हे राम १९
हारिये न हिम्मत बिसारिये न राम २०
राम राम राम राम राम राम बोलो २१
बधाई राम जनम की २२
राम अपनी कृपा से मुझे शक्ति दे २३
"मेरा तू - तेरा मैं" २४
तुझसे हमने दिल है लगाया जो कुछ है सो तू ही है। २४
नाथ तुम्हें मैं भूल न जाऊं २५
तू है करुना निधान २६
तुमने जितना प्यार किया है । कौन करेगा उतना हमको २७
तू बड़ा दयालु है रे प्रभु तू बड़ा कृपालु है २८
अब तुम बिन को मोरि राखे लाज २९
हे प्रभु दया करो । सब पर दया करो ३०
प्रभु हर लो सब अवगुन मेरे । चरण पड़े हम बालक तेरे॥ ३१
हरि बिनु तेरो मेरे मनुवा अपना कोई नहीं ३२
कृष्ण लीला ३३
श्याम हमे बांसुरी बनाओ ३३
बंसी नहीं बजाना माधव बंसी नहीं बजाना ३४
गोकुल की इक नार छबीली जमुना तट पर आई रे ३५
मधुबन में श्याम घन छाये रे ३६
कृष्ण जन्म की बधाई ३७
शंकर वन्दना ३८
शंकर शिव शम्भु साधु सन्तन सुखकारी ३८
श्री लक्ष्मी पूजन ३९
दीपावली पूजा गीत ३९
दिया जलावो जग मग जग मग ३९
हनुमान वन्दना ४०
अन्जनि सुत हे पवन दुलारे हनुमत लाल राम के प्यारे ४०
लंक में हनुमत त्राहि मचायी ४१
भक्तिमय ग़ज़ल ४२
न जाने कहाँ छुप गया कृष्ण काला ४२
नाम वाले तुझको क्या उनको खबर हो या न हो ४३
चांद निकला आप ही ग़म की सियह रातों के बाद ४४
रामभक्त बापू ४५
साबरमती से चला संत इक अहिंसा का व्रतधारी ४५

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गुरु वंदना
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गुरु बिन कौन सम्हारे । को भव सागर पार उतारे ॥

टूटी फूटी नाव हमारी पहुँच न पाई तट पर ।
जैसे कोई प्यासा राही । भटक गया पनघट पर ।
पास खड़ा गुरु मुस्काता है । दोनों बाँह पसारे।
वो भवसागर पार उतारे , गुरु बिन ...

मेरे राम मुझे शक्ति दो । मन में मेरे दृढ़ भक्ति दो ।
राम काम मैं करूँ निरंतर । राम नाम चित धारे।
को भव सागर पार उतारे ॑ गुरु बिन ...

जीवन पथ की उलझन लख कर। खड़े न हो जाना तुम थक कर।
तेरा साथी। ॐरामॐ निरंजन । हरदम साथ तुम्हारे।
वो भवसागर पार उतारे , गुरु बिन ...

हमराही तुम विकल न होना । संकट में धीरज ना खोना ।
अंधियारे में बाँह पकड़ कर । सत्गुरु राह दिखाये।
वो भवसागर पार उतारे , गुरु बिन ...

निर्दोषजी" की एक रचना पर आधारित
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गुरु चरनन में ध्यान लगाऊं। ऐसी सुमति हमे दो दाता ॥

मैं अधमाधम पतित पुरातन। किस विधि भव सागर तर पाऊं ।
ऐसी दृष्टि हमें दो दाता। खेवन हार गुरु को पाऊं ॥
गुरु चरनन में ॥॥

गुरुपद नख की दिव्य ज्योति से। निज अन्तर का तिमिर मिटाऊं ।
गुरुपद पदम पराग कणों से। अपना मन निर्मल कर पाऊं ॥
गुरु चरनन में ॥॥

शंखनाद सुन जीवन रन का धर्म युद्ध में मैं लग जाऊं ।
गुरुपद रज अंजन आँखिन भर। विश्वरुप हरि को लख पाऊं ॥
गुरु चरनन में ॥॥

भटके नहीं कहीं मन मेरा। आँख मूंद जब उनको ध्याऊं ।
पीत गुलाबी शिशु से कोमल। गुरु के चरन कमल लख पाऊं ॥
गुरु चरनन में ध्यान लगाऊं ॥

पं॰ जसराज जी द्वारा गाये राग बिलासखानी तोड़ी के एक छोटे खयाल के आधार पर
उसी राग में यू एस ए में नवम्बर २००३ में रचित
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गुरु आज्ञा में निश दिन रहिये । जो गुरु चाहे सोयि सोयि करिये॥

गुरु चरनन रज मस्तक दीजे । निज मन बुद्धि शुद्ध कर लीजे।
आँखिन ज्ञान सुअंजन दीजे । परम सत्य का दरशन करियेे॥
गुरु आज्ञा में निश दिन रहिये॥

गुरु अँगुरी दृढ़ता से धरिये । साधक नाम सुनौका च–ढिये।
खेवटिया गुरुदेव सरन में । भव सागर हँस हँस के तरिये॥
गुरु आज्ञा में निश दिन रहिये॥

गुरु की महिमा अपरम्पार । राम धाम में करत विहार।
ज्योति स्वरूप राम दरशन को । गुरु के चरन चीन्ह अनुसरिये॥
गुरु आज्ञा में निश दिन रहिये॥

पं॰ जसराज जी द्वारा गाये राग सिंधु भैरवी के छोटे खयाल पर आधारित
यह शब्द रचना बौस्टन में दिसम्बर २००३ में हुई
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गुरु चरनन मे शीश झुकाले जनम सफल हो जायेगा

गुरु चरनन मे शीश झुकाले जनम सफल हो जायेगा
गुरुदर्शन से बिन माँगे ही कृपा राम की पायेगा
जनम सफ़ल हो जायेगा
गुरु चरनन में शीश झुका ले

चहु दिश गहन अन्धेरा छाया पग पग भरमाती है माया
राम नाम की ज्योति जगेगी अन्धकार मिट जायेगा
गुरु चरनन में शीश झुका ले

गुरु आदेश मान मन मेरे ध्यान जाप चिन्तन कर ले रे
जनम जनम के पाप कटेंगे मोक्ष द्वार खुल जायेगा
गुरु चरनन में शीश झुका ले जन्म सफ़ल हो जायेगा

सूटर गंज कानपुर के अमृत वाणी सत्संग में १९८४ में
एक दिन अचानक महाराज जी के चरण कमल पर दृष्टि गयी
और ये शब्द धुन के साथ अवतरित हुए।

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गणपति वंदना
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शुभ दिन प्रथम गणेश मनाओ

कार्य सिद्धि की करो कामना । तुरत हि मन वान्छित फल पाओ

अन्तर मन हो ध्यान लगाओ । कृपा सिन्धु के दरशन पाओ

श्रद्धा भगति सहित निज मन मे । मंगल दीप जलाओ जलाओ

सेन्दुर तुलसी मेवा मिसरी । पुष्प हार नैवेद्य चढ़ाओ

मेवे मोदक भोग लगाकर । लम्बोदर का जी बहलाओ

एक दन्त अति दयावन्त हैं। उन्हें रिझावो नाचो गाओ

सर्व प्रथम गण नाथ मनाओ

एक रिकार्डिंग कम्पनी की फ़रमाइश पर श्री गणेश महोत्सव २००० पर रेकार्ड होने के लिये नोयडा दिल्ली में रचना शुरू हुई तथा सितम्बर २००१ में यू एस ए में पूर्ण हुई।
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जय बोलो जय बोलो गणपति बप्पा की जय बोलो।

सिद्ध विनायक संकट हारी विघ्नेश्वर शुभ मंगलकारी
सबके प्रिय सबके हितकारी द्वार दया का खोलो
जय बोलो जय बोलो

पारवती के राज दुलारे शिवजी की आंखों के तारे
गणपति बप्पा प्यारे प्यारे द्वार दया का खोलो
जय बोलो जय बोलो।

शंकर पूत भवानी जाये गणपति तुम सबके मन भाये
तुमने सबके कष्ट मिटाये द्वार दया का खोलो
जय बोलो जयबोलो

जो भी द्वार तुम्हारे आता खाली हाथ कभी ना जाता
तू है सबका भाग्य विधाता द्वार दया का खोलो
जय बोलो जय बोलो गणपति बप्पा की जय बोलो

यह रचना भी रेकार्डिंग के लिये जुलाई २००१ में भारत में शुरू हुई और सितम्बर २००१ में बौस्टन में पूरी हुई।

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"मेरे राम"
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पायो निधि राम नाम। सकल शांति सुख निधान।

सिमरन से पीर हरे । काम। क्रोध। मोह जरे।
आनन्द रस अजर झरे । होवे मन पूर्ण काम।
पायो निधि ...

रोम रोम बसत राम। जन जन में लखत राम ।
सर्व व्याप्त ब्रह्म राम । सर्व शक्तिमान राम।
पायो निधि ...

ज्ञान ध्यान भजन राम । पाप ताप हरन नाम।
सुविचारित तथ्य एक । आदि अंत राम नाम।
पायो निधि ...

अशरन के शरन राम। दारिद दुख हरन राम ।
अतिशय शुभ करन नाम । राम राम राम राम।
पायो निधि राम नाम ...

कानपुर में अपने प्रिय मित्र विजय भाई की एक रचना से प्रेरणा प्राप्त की तथा
श्रद्धेय बाबू जस्टिस श्री शिवदयालजी से विचार विमर्श कर कुछ संशोधन किये।
नूतन स्वरूप में वही रचना यहां प्रस्तुत है।
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राम दो निज चरणों में स्थान शरणागत अपना जन जान

अधमाधम मैं पतित पुरातन । साधन हीन निराश दुखी मन।
अंधकार में भटक रहा हूँ । राह दिखाओ अंगुली थाम।
राम दो ...

सर्वशक्तिमय ॐरामॐ जपूँ मैं । दिव्य शान्ति आनन्द छकूँ मैं।
सिमरन करूं निरंतर प्रभु मैं । राम नाम मुद मंगल धाम।
राम दो ...

केवल राम नाम ही जानूं । और धर्म। मत ना पहिचानूं ।
जो गुरु मंत्र दिया सतगुरु ने। उसमें है सबका कल्याण।
राम दो ...

हनुमत जैसा अतुलित बल दो । पर-सेवा का भाव प्रबल दो ।
बुद्धि विवेक शक्ति सम्बल दो । पूरा करूं राम का काम।
राम दो निज चरणों में स्थान

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राम राम काहे ना बोले । व्याकुल मन जब इत उत डोले।

लाख चौरासी भुगत के आया । बड़े भाग मानुष तन पाया।
अवसर मिला अमोलक तुझको। जनम जनम के अघ अब धो ले।
राम राम ...

राम जाप से धीरज आवै । मन की चंचलता मिट जावै।
परमानन्द हृदय बस जावै । यदि तू एक राम का हो ले।
राम राम ...

इधर उधर की बात छोड़ अब । राम नाम सौं प्रीति जोड़ अब।
राम धाम में बाँह पसारे श्री गुरुदेव खड़े। पट खोले।
राम राम काहे ना बोले । व्याकुल मन जब इत उत डोले।

मिश्र बंधुओं का एक भजन सुना : ल्लकृष्ण कृष्ण काहे ना बोलेह्ल हृदय ग्राही शब्द-स्वर थे। इच्छा हुई कि अपने इष्ट राम के लिये हम क्यों न कुछ ऐसा ही लिखें । गायें। जो भजन बना है सो प्रस्तुत है।
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अब कृपा करो श्री राम नाथ दुख टारो।
इस भव बंधन के भय से हमें उबारौ।

तुम कृपा सिंधु रघुनाथ। नाथ हो मेरे ।
मैं अधम पड़ा हूँ। चरण कमल पर तेरे।
हे नाथ। तनिक तो हमरी ओर निहारो।
अब कृपा करो ...

मैं पंगु। दीन हौं। हीन छीन हौं। दाता ।
अब तुम्हें छोड़ कित जाउं। तुम्हीं पितु माता ।
मैं गिर न कहीं प्रभु जाऊँ। आय सम्हारो।
अब कृपा करो ...

मन काम क्रोध मद लोभ मांहि है अटका ।
मम जीव आज लगि लाख योनि है भटका ।
अब आवागमन छुड़ाय नाथ मोहि तारो।
अब कृपा करो श्री राम नाथ दुख टारो ॥

किसी सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ से यह मधुर भजन सुना। एक एक शब्द हृदय छू गया। गाने के लिये याद करने का प्रयास किया पर असफल रहा। कुछ अपने शब्द जोड़ कर भजन पूरा किया। गाया। गद्गद हो गया ।गाने वाला। सुनने वाला। मूल रचनाकार को शत शत नमन।
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दाता राम दिये ही जाता ।
भिक्षुक मन पर नहीं अघाता।

देने की सीमा नहीं उनकी। बुझती नहीं प्यास इस मन की ।
उतनी ही बढ़ती है तृष्णा। जितना अमृत राम पिलाता।
दाता राम ...

कहो उऋण कैसे हो पाऊँ। किस मुद्रा में मोल चुकाऊँ।
केवल तेरी महिमा गाऊँ। और मुझे कुछ भी ना आता।
दाता राम ...

जब जब तेरी महिमा गाता । जाने क्या मुझको हो जाता ।
रुंधता कण्ठ। नयन भर आते । बरबस मैं गुम सुम हो जाता।
दाता राम दिये ही जाता ॥

१९९४ दिसम्बर माधव के विवाह के अवसर पर प्रिय बबलू विशाल चन्द्रा ने भजन सुनाया। तू दाता देता ही जाता। सब मन्त्र मुग्ध हुए। उसी से प्रेरणा ले कर यह भजन बना अपने शब्दों में।
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भज मन मेरे राम नाम तू गुरु आज्ञा सिर धार रे।
नाम सुनौका बैठ मुसाफि़र जा भवसागर पार रे।

राम नाम मुद मंगल कारी । विघ्न हरे सब पातक हारी।
साँस साँस श्री राम सिमर मन पथ के संकट टार रे।
भज मन मेरे ...

परम कृपालु सहायक है वो। बिनु कारन सुख दायक है वो।
केवल एक उसी के आगे। साधक बाँह पसार रे।
भज मन मेरे ...

गहन अंधेरा चहुं दिश छाया । पग पग भरमाती है माया।
जीवन पथ आलोकित कर ले । नाम - सुदीपक बार रे।
भज मन मेरे ...

परम सत्य है। परमेश्वर है । "नाम" प्रकाश पुन्य निर्झर है ।
उसी ज्योति से। ज्योति जला निज। चहुं दिश कर उजियार रे।
भज मन मेरे राम नाम तू गुरु आज्ञा सिर धार रे।
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मेरे मन मन्दिर मे राम बिराजे। ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥

अधिष्ठान मेरा मन होवे। जिसमे राम नाम छवि सोहे ।
आँख मूंदते दर्शन होव।े ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥ मेरे मन ...

सांस सांस गुरु मन्त्र उचारूं। रोमरोम से राम पुकारूं ।
आँखिन से बस तुम्हे निहारूं। ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥ मेरे मन ...

औषधि रामनाम की खाऊं। जनम मरन के दुख बिसराऊं ।
हंस हंस कर तेरे घर जाऊं। ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥ मेरे मन ...

बीते कल का शोक करूं ना। आज किसी से मोह करूं ना ।
आने वाले कल की चिन्ता। नहीं सताये हम को स्वामी ॥ मेरे मन ...

राम राम भजकर श्री राम। करेंे सभी जन उत्तम काम ।
सबके तन हो साधन धाम। ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥ मेरे मन ...

आँखे मूंद के सुनूँ सितार। राम राम सुमधुर झनकार ।
मन में हो अमृत संचार। ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥
मेरे मन मन्दिर मे राम बिराजे। ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥
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राम बिराजो हृदय भवन में तुम बिन और न हो कुछ मन में

अपना जान मुझे स्वीकारो । भ्रम भूलों से बेगि उबारो ।
मोह जनित संकट सब टारो । उलझा हूँ मैं भव बंधन में।
राम बिराजो हृदय भवन में ु

तुम जानो सब अंतरयामी । तुम बिन कुछ भाये ना स्वामी ।
प्रेम बेल उर अंतर जामी । तुम ही सार वस्तु जीवन में।
राम बिराजो हृदय भवन में ु

निज चरणों में तनिक ठौर दो । चाहे स्वामी कुछ न और दो ।
केवल अपनी कृपा कोर दो । रामामृत भर दो जीवन में।
राम बिराजो हृदय भवन में ु

मेरे भीतर आय के करिये प्रभु निवास ।
घर अपना ही समझिये। करिये नहीं निराश।

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मेरा राम सब दुखियों का सहारा है।

उसके पास दौड़ वह जाता जो आरत जन उसे बुलाता।
गीध अजामिल गज गणिका को उसने पार उतारा है।
वह सब दुखियों का सहारा है ...

देश-विदेश जहाँ जो रहता प्रभु सबकी ही रक्षा करता।
सब प्राणी हैं उसको प्यारे वह सबका रखवारा है।
वह सब दुखियों का सहारा है ...

सब पर सुख की वर्षा करता दुखियों के सारे दुख हरता।
पतित जनों को पावन करता केवल राम हमारा है।
वह सब दुखियों का सहारा है ...

सबकी नैया पार करेगा सबके सारे कष्ट हरेगा।
वह सबका उद्धार करेगा यह विश्वास हमारा है।
वह सब दुखियों का सहारा है ...
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बोले बोले रे राम चिरैया रे
बोले रे राम चिरैया।

मेरी साँसों के पिंजरे में
घड़ी घड़ी बोले।
घड़ी घड़ी बोले।
बोले बोले रे ...

ना कोई खिड़की। ना कोई डोरी।
ना कोई चोर करे जो चोरी
ऐसा मेरा है राम रमैया रे।
बोले बोले रे ...

उसी की नैया। वही खिवैया।
लहर रही उसकी लहरैया।
चाहे लाख चले पुरवैया रे।
बोले बोले रे ...
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राम हि राम बस राम हि राम
और नाहि काहू से काम। राम हि राम बस

तन में राम तेरे मन में राम । मुख में राम वचन में राम
जब बोले तब राम हि राम । और नाहि काहू से काम
राम हि राम बस रामहि राम

जागत सोवत आठहु याम । नैन लखें शोभा को धाम
ज्योति स्वरूप राम को नाम । और नाहि काहू से काम
राम हि राम बस रामहि राम

कीर्तन भजन मनन में राम । ध्यान जाप सिमरन में राम
मन के अधिष्ठान में राम । और नाहिं काहू सो काम
राम हि राम बस रामहि राम

सब दिन रात सुबह और शाम । बिहरे मन मधुबन में राम
परमानन्द शान्ति सुख धाम । और नाहि काहू से काम
राम हि राम बस रामहि राम

श्रद्धेय बाबू के निधन पर पी–डित मन से प्रिय अनिल ने सिंगापुर से फोन पर हमें राम हि राम भजन सुनाया जिसमें श्री हनुमानजी की वंदना थी। भाव भरा वह भजन सुन कर हम सब रो पड़े। उसी प्रेरणा से हनुमानजी जैसे रामभक्त अपने परमप्रिय बाबू की स्मृति में तब यह नई रचना पिट्टसबर्ग में हुई ।
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प्रेम मगन बन गा मेरे मन । राम राम श्री राम रे।

राम राम कहु राम राम कहु । राम राम शुभ नाम रे
प्रेम मगन बन ...

सर्व शक्ति मय भव भय हारी। सकल मनोरथ पूरन कारी
दीन बन्धु दुख दारिद हारी। राम राम शुभ नाम रे
प्रेम मगन बन ...

मोह निशा को दूर भगाये । माया का अन्धियार मिटाये
चहु दिशि उजियारा फैलाये । राम राम शुभ नाम रे
प्रेम मगन बन ...

सद , गुरु जी की बड़ी कृपा है । नाम सूर्य अन्तर प्रगटा है
गुरु मुख कैसी मधुर छटा है । उनको करो प्रनाम रे

प्रेम मगन बन गा मेरे मन । राम राम श्री राम रे

बौस्टन मई २००४

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ऐसी कृपा करो हे राम
पल पल निश दिन आठो याम सिमरन करूं तुम्हारा नाम
ऐसी कृपा करो हे राम ु

मेरा मन हो मन्दिर तेरा और बने तन साधन धाम
पल भर को भी तुझे न भूलूँ जपता रहूं सतत शुभ नाम।
ऐसी कृपा करो हे रामु

मन सिमरन चिन्तन रत होवे कान सुने तेरा यश गान
नाम सुरस भीनी मम रसना सदा करे तेरा गुन गान
ऐसी कृपा करो हे रामु

आंखें अपलक देखें तुम को क्षर-अक्षर में एक समान
रोम रोम झन्कृत हो सुनकर राम नाद मुद मंगल धाम।
ऐसी कृपा करो हे रामु

हार जीत। सुख दुख। सम लागें निन्दा स्तुति लगें समान
पर-दुख दुखी। सुखी पर-सुख में। दो समता का ऐसा ज्ञान।
ऐसी कृपा करो हे रामु

अप्रैल २८ २००४ बौस्टन में रचित
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हारिये न हिम्मत बिसारिये न राम

राम नाम दीपक बिना जन मन में अनधेर ।
रहे इससे हे मम मन नाम सुमाला फेर ॥

राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार ।
तुलसी भीतर बाहरेहु जो चाहसि उजियार ॥

हारिये न हिम्मत बिसारिये न राम
तू क्यों सोचे बन्दे सब की सोचे राम।

दीपक लेकर हाथ में सतगुरु राह दिखाय
पर मन मूरख बावरा आप अंधेरे जाय

पाप पुन्य और भले बुरे की वोही करता तोल
ये सौदे नहीं जगत हाट के तू क्या जाने मोल

जैसा जिसका काम पाता वैसे दाम
तू क्यों सोचे बन्दे सब की सोचे राम
हारिये न हिम्मत बिसारिये न राम

लगभग ७० वर्ष पूर्व बचपन में सुने एक गीत के आधार पर रचित
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राम राम राम राम राम राम बोलो

राम सुमिर पल भर में ।
भव के बन्ध खोलो
राम राम राम राम राम राम बोलो

भाई नाही बन्धु नाहिं ।
अपनो कोई मीत नाहि
लंक कीच बीच पर्यो ।
राम तेरो चेरो
राम राम राम राम राम राम बोलो

१९७३ में अपने पहले डबल एल पी अल्बम श्री राम गीत गुंजन के लिये बम्बई में रानी बेटी श्रीदेवी से प्रोत्साहन पाकर लिखा। लिखते समय बिजली गुल हो गई थी। माहौल लंका के अंधकारमय भविष्य के समान हो गया था। विभीषण की मन:दशा दर्शाती इस रचना को तब के उभरते पर आज के सुविख्यात गायक पंकज उदास ने बड़े भक्ति भाव से गाया। धुन हमारी थी। इस संदर्भ में एक उल्लेखनीय बात : १९७५ में मुम्बई की एक संगीत सभा में स्वर्गीय मुकेशजी ने मुझे बताया था कि जब कोलकता में उन्हें हार्ट अटैक हुआ था आई सी यू में किसी ने उनके पास सुनने के लिये हमारा श्री राम गीत गुंजन अल्बम भेजा। मुकेशजी को इस अल्बम का यह गीत विशेष रूप से अच्छा लगा। उन्होंने तो यहाँ तक कहा कि इस भजन को बार बार सुनकर उन्होंने अति शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया।
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बधाई राम जनम की

बधैया बाजे आंगने में बधैया बाजे
राम लखन शत्रुघन भरतजी । झूलें कन्चन पालने में
बधैया बाजे आंगने में ...
प्रेम मुदित मन तीनो रानी । शगुन मनावें मन ही मन में
बधैया बाजे आंगने में ...
राजा दशरथ रतन लुटावें । लाजे ना कोई मांगने में
बधैया बाजे आंगने में ...
न्यौछावर श्री राम लला की । राम लला की श्री भरत लला की
भरत लला की श्री लखन लला की। लखन लला की शत्रुघन लला की
नहि कोउ लाजत मांगने में ।
बधैया बाजे आंगने में ...
चन्द्रमुखी मृगनयनी अवध की । तोड़त ताने रागने में
बधैया बाजे आंगने में ...
राम जनम को कौतुक देखत । बीती रजनी जागने में
बधैया बाजे आंगने में ...

अवध के एक लोक गीत के आधार पर श्री राम गीत गुन्जन की रिकार्डिंग के लिये १९७३ में लिखा गया
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राम अपनी कृपा से मुझे शक्ति दे
राम अपनी कृपा से मुझेे भक्ति दे

नाम जपता रहूँ काम करता रहूँ
तन से सेवा करूँ मन से संयम करूँ

नाम जपता रहूँ काम करता रहूँ
नाम जपता रहूँ काम करता रहूँ

मनसा वाचा कर्मणा सबको सुख पहुंचाय
अपने मतलब कारणे दु:ख न दे तू काहु
यदि सुख तू नहि दे सके तो दु:ख काहु मत दे
ऐसी रहनी जो रहे सो हि आत्म रस लेय

श्री राम जय राम जय जय राम
श्री राम जय राम जय जय राम

पारम्परिक रचनाएं
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"मेरा तू - तेरा मैं"

तुझसे हमने दिल है लगाया जो कुछ है सो तू ही है।
हर दिल मे तू ही है समाया जो कुछ है सो तू ही है॥

तू धरती है तू ही अम्बर। तू पर्बत है तू ही सागर ।
कठपुतले हम। तू नटनागर। जडचेतन सब को ही नचाया।
जो कुछ है सो तू ही है ।
तुझसे हमने दिल है लगाया । जो कुछ है सो तू ही है॥

सांस सांस मे आता जाता। हर धड़कन में याद दिलाता ।
तू ही सबका जीवन दाता। रोम रोम मे तू ही समाया।
जो कुछ है सो तू ही है ।
तुझसे हमने दिल है लगाया जो कुछ है सो तू ही है॥

बजा रहा है मधुर मुरलिया। मन वृन्दाबन मे सांवरिया ।
सबको बना दिया बावरिया। स्वर मे ईश्वर दरस कराया।
जो कुछ है सो तू ही है ।
तुझसे हमने दिल है लगाया जो कुछ है सो तू ही है।
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नाथ तुम्हें मैं भूल न जाऊं
उलझ पुलझ जग जंजालों मेंं । तेरी सुधी बिसर ना जाऊं
नाथ तुम्हें मैं भूल न जाऊं ...

माया ठगनी करने को छल । घेरे हमको लेकर दल बल
डर लगता है हमको पल पल । कहीं ठगा ना जाऊं
नाथ तुम्हे मैं ...

पाप कूप में गिरा हुआ हूं । अंधियारों से घिरा हुआ हूं
बिनु गुरु कृपा। ज्ञान की ज्योती । कैसे नाथ जलाऊं
नाथ तुम्हे मैं ...

स्वार्थी मन कामी तन मेरा । किस विधि आराधन हो तेरा
असुर किये मम कण्ठ बसेरा । कैसे भजन सुनाऊं
नाथ तुम्हे मैं ...

हर अभिलाषा पूरी कर दी । बिन मांगे ही झोली भर दी
इतने सुख इतनी सुविधा दी । कैसे नाथ गिनाऊं
नाथ तुम्हे मैं भूल न जाऊं ...
बौस्टन मई २००४
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तू है करुना निधान

परम पुरुष परमेश्वर परम सत्य गुन निधान
तू है करुना निधान

दीन बन्धु कृपा सिन्धु भगतन पर मेहरबान
तू है करुना निधान

तारक तव नाम मंत्र काटत भव व्याधि तंत्र
परम शक्तिमान यंत्र बीजाक्षर राम नाम
तू है करुना निधान

दीजे निज नाम नेह मम उर कर लेहु गेह
रामामृत झरे मेह जब तव गुन करहुं गान

तू है करुना निधान

ह्यूरौन यू एस ए में १ दिसमबेर २००१ को लिखा

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तुमने जितना प्यार किया है । कौन करेगा उतना हमको
कैसे मोल चुका पाऊंगा । हे परमेश्वर इसका तुमको
तुमने जितना ...

लख चौरासी योनि घुमा कर । तूने दिया हमें ये चोला
बुद्धि विवेक ज्ञान शक्ति दे । मेरे लिये मुक्ति-पथ खोला
कैसे चल पाऊंगा इस पर । अगर छोड़ दोगे तुम हमको
तुमने जितना ...

ऐसे कुल में जनम दिया जिस पर । प्रभु तेरी दया बड़ी थी
महावीर रक्षक थे अपने । आंगन उनकी ध्वजा गड़ी थी
मैया के आंचल-सम-ध्वज तल । तुमने ही दुलराया हमको
तुमने जितना ...

काम क्रोध मद लोभ मोह में । दुर्लभ मानव जनम गंवाया
समझा नहीं वेद की वाणी । गीता का उपदेश भुलाया
तूने फिर भी माफ कर दिया । हे परमेश्वर मुझ दुर्बल को
तुमने जितना ...

मैं जब दर दर भटक रहा था । तूने समरथ गुरु मिलाया
मुझ भोले साधक को जिसने । स्वर में ईश्वर दरस कराया
इस महती करुणा की कीमत । कैसे दे पाऊंगा तुमको
तुमने जितना ...
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तू बड़ा दयालु है रे प्रभु तू बड़ा कृपालु है

याद तुम्हारी जो भी करता तू उसके सारे दुख हरता
उसके जीवन के मरुथल में तू खुशियों की वर्षा करता
तू बड़ा दयालु है रे प्रभु

सेवा बिनु सबके दुख हरता बिनु मांगे ही झोली भरता
पल में रंक बनाता राजा पंगु कृपा से परवत चढ़ता
तू बड़ा दयालु है रे प्रभु

मूक बोलने लगता बहरा सुन पाता है सबकी बातें
भोर दया की जब आती है कट जाती है दुख की रातें
तू बड़ा दयालु है रे प्रभु

ऐसी कृपा बनाये रखना भक्ति तुम्हारी हम कर पायें
झंझाओं से जूझें पर हम नाथ कभी ना तुम्हें भुलायें
तू बड़ा दयालु है रे प्रभु

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अब तुम बिन को मोरि राखे लाज
मेरे राम गरीब निवाज

मैं असहाय अधम अग्यानी पतितन को सिरताज
पतित उधारन विरदु तुम्हारो राखो मोरी लाज
अब तुम बिन को ...

मैं अपराधी हूँ बड़ा अवगुन भरा जहाज
डूबूँ ना मझधार में पार करो महाराज
अब तुम बिन को ...

जिन जिन ध्याये तिन तिन पाये अजामील गज व्याध
हमरी बारी जाय छिपे तुम किन कुन्जन में आज
अब तुम बिन को ...

धीरज दया क्षमा शुचिता दम संयम सच को ज्ञान
दो हमको ये सद् गुन सारे कृपा करो महराज
अब तुम बिन को ...

पन्डित जसराज द्वरा गायी राग पूरिया की एक रचना पर आधारित। ये शब्द बौस्टन में सितम्बर २००३ में लिखे गये।
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हे प्रभु दया करो । सब पर दया करो

युगों युगों से सब संसारी । डूब रहे भव सिंधु मंझारी
लाखों जन्म लिये पर अब तक । मिला नहीं तू संकट हारी
विपदा आन हरो । अब भव पार करो
हे प्रभु दया करो ...

सुर दुरलभ मानव तन धारी भी सहते दुख भारी भारी
डाल लोभ मद मोह जाल में । माया ने सबकी मति मारी
माया जाल हरो । विपदा आन हरो
हे प्रभु दया करो ...

अपनी बात कहूँ क्या तुमसे । सब पतितों के हूँ मैं नीचे
मेरी दशा जान कर भी प्रभु । तुम बैठे हो आँखें मीचे
अब उद्धार करो । विपदा आन हरो
हे प्रभु दया करो ...
प्रभु हर लो सब अवगुन मेरे । चरण पड़े हम बालक तेरे॥

व्यर्थ गवाँया जीवन सारा । पड़ा रहा दुरमति के फेरे ।
चिन्ता क्रोध लोभ ईर्षा वश अनुचित काम किये बहुतेरे॥
प्रभु हर लो सब दुर्गुन मेरे ...

भीख माँगता दर दर भटका । झोली लेकर डेरे डेरे ।
तेरा द्वार खुला था पर मैं पहुँचा नहीं द्वार तक तेरे॥
प्रभु हर लो सब दुर्गुन मेरे ...

ठगता रहा जन्म भर सबको । रचता रहा कुचक्र अनेरे ।
नेक चाल नहि चला । सदा ही । रहा । कुमति माया के नेरे।
प्रभु हर लो सब दुर्गुन मेरे ...

मैं अपराधी जनम जनम से । झेल रहा हूँ घने अँधेरे ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय कर । अंधकार हर लो प्रभु मेरे।
प्रभु हर लो सब दुर्गुन मेरे ...
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हरि बिनु तेरो मेरे मनुवा अपना कोई नहीं

लाखों योनि भटक कर तूने सुर दुर्लभ तन पाया
माया मोह लोभ मत्सर में बिरथा उसे गंवाया
अपना कोई नहीं ...
महल बनाया किला बनाया मेरा मेरा कह इतराया
पर यह तन भी तेरा नाहीं चार दिनो का डेरा रे
अपना कोई नहीं ...
जब पिंजरे से उड़ कर पन्छी दूर देश को जायेगा
मात पिता बान्धव सुत दारा कोई संग ना आयेगा
अपना कोई नहीं ...
बांस बिमान चढ़ेगी माटी ले चल ले चल होगी
अंगनैया में बैठी तिरिया सिर धुन धुन रोयेगी
अपना कोई नहीं ...
आया है जो वो जायेगा राजा हो या जोगी
सन्त असन्त सभी जायेंगे ये गति सब की होगी
हरि बिनु तेरो मेरे मनुआ अपना कोई नहीं ...

बहुत बचपन में रेडियो पर यह भजन सुना था। रचना बहुत अच्छी लगी। स्वयं गाने का मन किया पर शब्द नहीं जमते थे। अपने शब्द जोड़ कर १९४६-४७ में पहली बार गाया। ये शब्द बौस्टन में अप्रैल २००४ में लिखे गये।

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कृष्ण लीला
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श्याम हमे बांसुरी बनाओ

सघन कटीले बांस बनो से । काट हमे निज आंगन लाओ
कटि बांधो अपने संग राखो । शपथ लली की जिन बिलगाओ
श्याम हमे बांसुरी ...

काटो छांटो दागो जी भर । छेद करो जितने भी चाहो
छलनी भले करो तन मेरा । पर मेरे मन से मत जाओ।
श्याम हमे बांसुरी ...

मल विक्षेप आवरण हर कर । मेरा अन्तर शून्य बनाओ
करदो मन निष्काम हमारा । भक्ति सुरस इसमें सरसाओ
श्याम हमे बांसुरी बनाओ ...

गुरुदेव श्री विश्वामित्र जी महाराज द्वारा २६ जनवरी २००४ को चन्डीगढ़ में दिये प्रवचन के आधार पर ३१ जनवरी २००४ को बौस्टन यू एस ए में रचित
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बंसी नहीं बजाना माधव बंसी नहीं बजाना
हाथ जोड़ हम विनती करते हमे न और सताना
माधव बंसी नहीं बजाना ...

बंसी धुन सुनते ही माधव मेरा सुध बुध खोता
हाथ पांव पथराते मेरे काम काज नहीं होता
तन टूटा मन जग से रूठा खोजूँ कहाँ ठिकाना
माधव बंसी नहीं बजाना ...

सावन के कजरारे बादल जब अम्बर में छावें
जब पूनम का चांद देख राधाजी ध्यान लगावें
तू दरशन देता हम सब को करता नहीं बहाना
माधव बंसी नहीं बजाना ...

तू नित अंग संग है मेरे हरदम रहता घेरे
हमको वृज रज तुलसी दल में तेरी छटा लखे रे
घट अन्तर हमरे तू बैठा हमे और क्या पाना ॑
माधव बंसी नहीं बजाना ...

मई २०-२१ २००४ राम जी व माधव जी के जन्म दिवस पर बौस्टन में रचित
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गोकुल की इक नार छबीली जमुना तट पर आई रे

गोरा बदन औ पतरि कमरिया बाट चलत इठलाई रे
पायलिया की रुनक झुनक सौँ कान्हा को गोहराई रे
गोकुल की इक नार छबीली ...

कुंज कुंज में बंसी वट में कालिन्दी तट औ पनघट में
खोजत फिरी कन्हैया को वह परौ न कहूँ दिखाई रे
गोकुल की इक नार छबीली ...

साज सिंगार वृथा भये वाके नयन नीर ढ़रकाई रे
काजर रेख परी गालन पर सबको परै दिखाई रे
गोकुल की इक नार छबीली ...

पकड़ी गईं आज तुम गोरी गोकुल की ओ भोरी छोरी
दिखरावे को बैर करत हो बांधन चहौं प्रीति की डोरी
पकरीं गईं आज तुम गोरी

ढ़ीठ लंगर तुम जिन इतरावो मन माने मोदक मत खावो
वृज रज परी मोरि आँखन में सो बैरन भर आई रे
गोकुल की इक नार छबीली ...

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के एक सांस्कृतिक समारोह के लिये १९४८-४९ में लिखा। २९ सितम्बर २००४ को बौस्टन में पूरा किया।
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मधुबन में श्याम घन छाये रे
हरि को संदेसो अजहु न लाये मोर जिया घबराये रे
मधुबन में श्यामु

गोकुल वासी भये उदासी नैनन नीर बहाये रे
छाँड गये कान्हा वृज जब ते इक पल चैन न पाये रे
मधुबन में श्यामु

सीतल सुरभित पवन पुरबिया जब मथुरा सौँ आये रे
सबको मन आनन्दित होवै हरि दरसन नियराये रे
मधुबन में श्यामु

मेघा गरजे बिजुरी चमके पवन मल्हार उठाये रे
मुरलीधर की मधुर मुरलिया कोऊ ना सुन पाये रे
मधुबन में श्यामु

चहुं दिस बरसें मेघ निठुर पर बरसाने नहि आये रे
बिरहा अगन जरत राधा मन कहँ सीतलता पाये रे
मधुबन में श्यामु

पिट्टसबर्ग में १ सितम्बर २००४ को प्रारम्भ किया तथा ब्रुकलाइन में २९ सितम्बर को पूरा किया
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कृष्ण जन्म की बधाई

बधैया बाजे आँगने में बधैया बाजे
यशुदा नन्दन कृष्ण कन्हैया । झूलें कंचन पालने में
बधैया बाजे ...
नन्द लुटावें हीरे मोती । लूट मची है आंगने में
बधैया बाजे ...
न्योछावर श्री किशन लला की । कृष्ण लला की। गोविंद लला की।
गोविन्द लला की। गोपाल लला की। नहिं कोउ लाजत माँगने में
बधैया बाजे ...
ठुमुक ठुमुक गोपी जन नाचें । नूपुर बाँधे पायने में
बधैया बाजे ...
प्रेम मुदित मन यशुदा रानी । सगुन मनावैं मन ही मन में
बधैया बाजे ...
चन्द्र मुखी मृगनयनी बिरज की । तोड़त ताने रागने में
बधैया बाजे ...
कृष्ण जनम को कौतुक देखत । बीती रजनी जागने में
बधैया बाजे आँगने में बधैया बाजे

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शंकर वन्दना
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शंकर शिव शम्भु साधु सन्तन सुखकारी
सतत जपत राम नाम अतिशय सुखकारी

राम नाम मधुबन का भ्रमर बना मन शिव का
निश दिन सुमिरन करता नाम पुण्यकारी
शंकर शिव शम्भु साधु सन्तन सुखकारी

लोचन त्रय अति विशाल सोहे नव चन्द्र भाल
रुण्ड मुण्ड व्याल माल जटा गंग धारी
शंकर शिव शम्भु साधु सन्तन सुखकारी

पारवती पति सुजान प्रमथ राज वृषभ यान
सुर नर मुनि सैव्य मान त्रिविध ताप हारी
शंकर शिव शम्भु साधु सन्तन सुखकारी

औघड़ दानी महान काल कूट कियो पान
आरत हर तुम समान को है त्रिपुरारी
शंकर शिव शम्भु साधु सन्तन सुखकारी

स्टार हिन्दुस्तान रिकार्ड कम्पनी के लिये १९५८ में लिखा और तभी इस भजन से अपना पहला कोमर्शियल रिकार्ड बना। राम कृपा से रेडियो सूरिनाम डच गयाना का सिग्नेचर ट्यून बना जो हमने १९७६ में अपने ब्रिटिश गयाना प्रवास में स्वयं सुना। आश्चर्य हुआ कि मेरा भजन मुझसे पहले अमरीका पहुंच गया।

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श्री लक्ष्मी पूजन
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दीपावली पूजा गीत

दिया जलावो जग मग जग मग
दिया जलावो

लक्ष्मी पूजन की बेला है । चहुं दिश लगा हुआ मेला है
सेन्दुर कुमकुम तुलसी दल से । दीपक थाल सजावो सजावो
दिया जलावो जगमग जग मग
दिया जलावो

दीपावलि की रात आज क्यूं । तेरा मन्दिर पड़ा अन्धेरा
दीप जले चहुं ओर भला क्यूं । तुझको अंधियारों ने घेरा
सकल अमंगल नाशन हारे । मंगल दीप जलावो जलावो
दिया जलावो जगमग जग मग
दिया जलावो

बहुत पुरानी फि़ल्म तानसेन में के एल सहगल ने दीपक राग में एक गीत गाया था उसके शब्द कुछ और थे जो याद नहीं आये अपने गाने के लिये फिर ये नये शब्द मनिका बेटी की फर्माइश पर बौस्टन में जनवरी २ २००२ को लिखे ।

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हनुमान वन्दना
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अन्जनि सुत हे पवन दुलारे हनुमत लाल राम के प्यारे
अतुलित बल पूरित तव गाता असरन सरन जगत विख्याता
हम बालक हैं सरन तुम्हारे दया करो हे पवन दुलारे
अन्जनि सुत हे पवन दुलारे

संकट मोचन हे दुख भंजन धीर वीर गम्भीर निरन्जन
हरहु कृपा करि कष्ट हमारे दया करो हे पवन दुलारे
अन्जनि सुत हे पवन दुलारे

राम दूत सेवक अनुगामी विद्या बुद्धि शक्ति के दानी
शुद्ध करो सब कर्म हमारे दया करो हे पवन दुलारे
अन्जनि सुत हे पवन दुलारे

तुम बिनु को सागर तर पाता लंका जारि सिया सुधि लाता
राम लखन को धीर बंधाता कैसे सब होते सुखियारे
अन्जनि सुत हे पवन दुलारे

बड़े भैया द्वारा सूटर गन्ज कानपुर के आंगन में लगाये श्री हनुमान जी की ध्वजा से प्रेरणा मिली और यह हनुमान वन्दना १९८३ में बनी
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लंक में हनुमत त्राहि मचायी
पहले तो बाटिका उजारी मारे रक्षक भारी भारी
जाय चढ़ा फिर कनक अटारी और फूंक दी लंका सारी
सब जन चले परायी । लंक में हनुमत त्राहि मचायी

राम दूत बानर ने भैया लंका दयी जरायी
लंक में हनुमत त्राहि मचायी

हाथ जोड़ कर कहत विभीषण भाई ठान न तपसिन सों रन
सीता दे लौटायी । लंक में हनुमत त्राहि मचायी

कहत मंदोदरि सुनु प्रिय स्वामी शंकर भगत परम विग्यानी
मति तोरी भरमायी । लंक में हनुमत त्राहि मचायी

अन्त काल जब आवत नेरे मति भ्रम जात कुसंकट प्रेरे
सोइ गति रावन पायी । लंक में हनुमत त्राहि मचायी

अपने पहले डबल एल पी अल्बम श्री राम गीत गुन्जन के लिये १९७३ में लिखा

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भक्तिमय ग़ज़ल
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न जाने कहाँ छुप गया कृष्ण काला
अभी तो यहीं था यशोदा का लाला
नहीं तन का केवल वह मन का भी काला
सताता है सबको अकारण अकाला
न जाने कहाँ ु

कभी जमुना तट पर कभी वंशी वट तर
हमें वह बुलाता बहाने बनाकर
पहुँचती तुरत हम सभी बन सँवर कर
न आता नज़र पर कहीं बंसी वाला
वो नटखट सदा काम करता निराला
न जाने कहाँ छुप गया कृष्ण काला

कभी दधि चुराता घरों से हमारे
कभी चीर हरता नदी के किनारे
कभी राह में कंकड़ी तक के मारे
वो नटखट सदा काम करता निराला
सताता है सबको अकारण अकाला
न जाने कहाँ छुप गया कृष्ण काला
नाम वाले तुझको क्या उनको खबर हो या न हो
तू जपे जा नाम उन पर कुछ असर हो या न हो।

बस्तियों से दूर बाहर दौड़ के जाता है क्यूं
क्या पता दीवानापन भी कारगर हो या न हो।
नाम वाले तुझको क्या उनको खबर हो या न हो

पर्बतों पर क्या करेगा जा के तू ओ बावरे
राम है तुझ में। भले ही पर्बतों में हो न हो।
नाम वाले तुझको क्या उनको खबर हो या न हो

हो नहीं सकता तुझे वो छोड़ दें मझधार में
उनका वादा है। करेंगे पार वो। जैसे भी हो।
नाम वाले तुझको क्या उनको खबर हो या न हो

एक बहुत पुरानी फि़ल्म में मुकेश ने एक ग़ज़ल गायी थी
उसके शब्द बदल कर ये भक्ति रस भरी रचना बनी।
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चांद निकला आप ही ग़म की सियह रातों के बाद

एक दरशन दे हमें आंखों से ओझल हो गये
रह गये हम हाथ मलते उस हसीं लमहे के बाद

ना किया शिकवा फ़लक से ना कभी फ़रियाद की
चांद निकला आप ही ग़म की सियह रातों के बाद

मैं सुनाना चाहता था उनको सारी दास्ताँ
वो मगर उठ चल दिये दो चार ही बातों के बाद

कोसता है दिल मुझे मैंने न क्यूँ सच कह दिया
और कुछ भाता नहीं मुझको तुझे पाने के बाद

हम समझते थे कि अब होती रहेंगी बारिशें
छँट गये बादल फ़कत दो चार बौछरों के बाद

शब्दार्थ -
सियह –- काली। शिकवा - शिकायत। ˆ फलक - आकाश ईश्वर। फ़रियाद - प्रार्थना। लमहे - क्षण । फ़कत - केवल

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रामभक्त बापू
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साबरमती से चला संत इक अहिंसा का व्रतधारी
दुर्बल काठी हाथ में लाठी पुरुष पूर्ण अवतारी

सांची लगन लगाय राम से
वो निकला जिस जिस मुकाम से
मतवाले हो चले संग उसके
असंख्य नर नारी

जाति भेद और छुआ छूत सब मिटे
बने हरिजन अछूत सब
पारसमणि बापू ने कंचन किये
सभी तन धारी

पतित जनों को गले लगाया
अबलाओं को सबल बनाया
राम चरण रज से जैसे
तर गई अहिल्या नारी

मई १९४६ में आज के पाकिस्तान के एक गाँव में शुरू हुआ और
२ अक्तूबर १९८३ बापू के जन्मदिन पर कानपुर में पूरा हुआ।

Page last modified: October 09, 2014