अयोमुख

      टिप्पणी : पैप्पलाद संहिता १९.३७.१४ में दिव्य सुपर्ण को अयोमुख वाला कहा गया है। तैत्तिरीय आरण्यक ४.३३.१ में हिरण्य अक्ष व अयोमुख वाले राक्षसों के दूत उलूक का उल्लेख है। अथर्ववेद ११.१२.३ में अयोमुख व सूचीमुख वाले अमित्रों को नाश करने का उल्लेख है।

      प्रथम प्रकाशन : १९९४ ई.


      अयोमुखी राक्षसी और लक्ष्मण द्वारा उसके नाक-कान-स्तन का छेदन

      • राधा गुप्ता

      कथा का संक्षिप्त स्वरूप

      कथा में कहा गया है कि राम और लक्ष्मण दण्डकारण्य में जब सीता की खोज कर रहे थे, तब पाताल के समान गहरी गुफा के समीप उन्होंने अयोमुखी नामक एक राक्षसी को देखा। राक्षसी ने लक्ष्मण के साथ रमण करने के लिए उन्हें अपनी भुजाओं में कस लिया। परन्तु लक्ष्मण ने तलवार से उस राक्षसी के नाक, कान और स्तन काट डाले, जिससे वह राक्षसी चिल्लाती हुई वहाँ से भाग गई(वाल्मीकि रामायण, अरण्यकाण्ड, अध्याय 69, श्लोक 10-18)।

      कथा का तात्पर्य

      मनुष्य के चित्त/अवचेतन मन के भीतर अनेक प्रकार की विषैली वृत्तियां विद्यमान हैं। उन वृत्तियों में से एक है – गलत कार्य को करके भी उसे यह कहकर सही ठहराना कि अमुक – अमुक के लिए मुझे ऐसा करना पडा। वास्तविकता यह है कि प्रबल संस्कार के रूप में विद्यमान अपने ही देहाभिमान के कारण मनुष्य की अपनी पवित्रता का हरण होता है। परन्तु मनुष्य उस प्रबल संस्कार रूप देहाभिमान को तो देख नहीं पाता, प्रत्युत अपनी ही पवित्रता के हरण से दुखी होकर जब उस पवित्रता को पुनः प्राप्त करने का प्रयत्न करता है, तब –तब उपर्युक्त वर्णित अयोमुखी वृत्ति मनुष्य की मनःशक्ति को पकड लेती है अर्थात् मनुष्य गलत कार्य करके भी अपने मन को यह तर्क देता है कि अमुक के लिए मुझे ऐसा करना पडा। कथा संकेत करती है कि चित्त/अवचेतन मन से बाहर निकलकर मनःशक्ति को घेर लेने वाली इस राक्षसी वृत्ति से केवल वही मनुष्य बच पाता है जो अपने विचारों का निर्माता और नियन्ता होकर ज्ञान की तलवार से उसे प्रभावहीन कर दे।

      कथा का प्रतीकात्मक स्वरूप

      अयोमुखी शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। अयो अर्थात् अयस् तथा मुखी। अयस् का अर्थ है – लोहा। अध्यात्म के क्षेत्र में मनुष्य के स्थूल शरीर को अयस् का पुर कहा जाता है। मुखी का अर्थ है – लक्ष्य वाली। अतः अयोमुखी राक्षसी का अर्थ हुआ – वह विषैली वृत्ति जो स्थूल शरीर की सुख-सुविधा को ध्यान में रखकर किए जाने वाले गलत कार्य को भी करना पडा कहकर सही ठहराती है।

      *अयोमुखी राक्षसी द्वारा लक्ष्मण को अपनी भुजाओं में कसने का अर्थ हुआ – विषैली वृत्ति का आत्मस्थ मनुष्य की मनःशक्ति को भी अपने चंगुल में फंसाने की सामर्थ्य

      *पाताल के समान गहरी गुफा के समीप राक्षसी के रहने का अर्थ है – मन की गहराई/चित्त में रहने वाली वृत्ति।

      *लक्ष्मण द्वारा तलवार से राक्षसी के नाक-कान आदि काटने का अर्थ है – आत्मस्थ मनुष्य की मनःशक्ति का ज्ञान की सहायता से विषैली वृत्ति को अपने ऊपर हावी न होने देना। वृत्ति को अपने ऊपर हावी न होने देना ही उसे कमजोर बना देना है।

      प्रथम लेखन – 9-3-2014ई.(फाल्गुन शुक्ल नवमी, विक्रम संवत् 2070)