उग्रवक्त्र
टिप्पणी : अथर्ववेद ५.१३.१ , ५.१३.३ , ५.२३.२ में उग्र वचन द्वारा सर्प विष आदि के नाश करने का उल्लेख है । शतपथ ब्राह्मण ३.४.४.२३ में अग्निष्टोम यज्ञ में उपसद होम के संदर्भ में अग्नि के अयःशया , रज:शया व हरिशया तनुओं का उग्र वाक् द्वारा नाश करने का उल्लेख है । तैत्तिरीय ब्राह्मण १.५.९.५ में उपसद होम के संदर्भ में अशना - पिपासा को उग्र वाक् कहा गया है । आश्वलायन श्रौत सूत्र ४.१३.२ में सुत्य अह के संदर्भ में आहवनीय अग्नि पर वाक् के अग्र और उग्र रूपों द्वारा आहुति देने का उल्लेख है ।
उग्रदर्शन के संदर्भ में अथर्ववेद ६.११८.१ तथा ६.११८.२ में उग्रंपश्या व उग्रजिता अप्सराओं का उल्लेख आता है जिनकी सहायता से अक्षों में किए गए पाप तथा ऋण से मुक्ति प्राप्त की जाती है । अथर्ववेद ७.११४.६ में भी उग्रंपश्य अक्षों का उल्लेख आया है ।