उग्रा
टिप्पणी : ऋग्वेद १०.१०४.३ में अभिषुत सोम की उग्रा पीति का उल्लेख है जिसे इन्द्र को प्रस्तुत किया जाता है जिसे पीकर इन्द्र की वाक् शक्ति जाग्रत हो जाती है (? ) । ऋग्वेद १०.१५९.२ में शची को उग्रा विवाचनी कहा गया है तथा ऋग्वेद १०.१२१.५ में द्यौ को उग्रा कहा गया है । तैत्तिरीय ब्राह्मण २.७.१७.१ में दीक्षा को उग्रा कहा गया है । तैत्तिरीय ब्राह्मण १.७.७.२ में उग्रा ( दक्षिण ? ) दिशा का उल्लेख है जिससे इन्द्रियों को वश में किया जाता है । अथर्ववेद २.२५.१ में पृश्निपर्णी नामक ओषधि को उग्रा कहा गया है । अथर्ववेद ८.७.४ तथा ८.७.१० में उग्रा ओषधियों का उल्लेख है । अथर्ववेद २०.७०.१० में उग्र इन्द्र की उग्रा ऊतियों का उल्लेख है । आश्वलायन श्रौत सूत्र ४.१३.२ में वाक् देवी सरस्वती को उग्रा कहा गया है ।