ऋतम्भरा
टिप्पणी : केवल पातञ्जल योगसूत्र समाधिपाद ४८ में ऋतम्भरा प्रज्ञा का उल्लेख आया है । स्वामी ओमानन्द कृत पातञ्जल योग प्रदीप के अध्ययन से प्रतीत होता है कि ऋतम्भरा प्रज्ञा सविकल्प समाधि की स्थिति है । इससे उच्चतर स्थिति निर्विकल्प समाधि है । निर्विकल्प समाधि के पश्चात् व्युत्थान हो तो इस प्रकार से हो कि समाधि से तारतम्य जुडा रहे , यह अभीष्ट है । तब योगी पथ भ्रष्ट नहीं होता ।