ऋता
टिप्पणी :ऋग्वेद १.४६.१४, १.६७.८, १.१६१.९, ६.१५.१४, ६.६७.४, ९.९७.३७, १०.१०.४, १०.१०६.५ में ऋता शब्द प्रकट हुआ है । ऋग्वेद में अन्य स्थानों पर ऋतावृध:, ऋतावाना, ऋतावरी आदि शब्द प्रकट हुए हैं जिनका पद पाठ ऋतऽवृध: , ऋतऽवाना, ऋतऽवरी आदि रूपों में किया गया है । वैदिक साहित्य में अन्य किसी स्थान पर ऋता की व्याख्या उपलब्ध नहीं होती । यह अन्वेषणीय है कि क्या ऋतम्भरा प्रज्ञा और ऋतध्वज - पत्नी मदालसा को ऋता से जोडा जा सकता है ? ऋग्वेद १.४६.१४ की ऋचा में ऋता का सायण भाष्य यज्ञगत हवियां किया गया है ।