केतकी
टिप्पणी केतः शब्द कित् - ज्ञाने धातु से निष्पन्न होता है । ऋग्वेद की कईं ऋचाओं में केतः शब्द आया है जिसमें क उदात्त है । इसके विपरीत, ऋग्वेद में बहुधा प्रकट होने वाले शब्द केतु में त उदात्त है । शुक्ल यजुर्वेद ११.७ में अग्निचयन के संदर्भ में दिव्यो गन्धर्व: केतपू: केतं नः पुनातु कहा गया गया है । शतपथ ब्राह्मण ६.३.१.१९ के अनुसार आदित्य दिव्य गन्धर्व है और अन्न केतः है । पुराणों में केतकी पुष्प द्वारा लिङ्ग अन्त के दर्शन के मिथ्या कथन और परिणाम स्वरूप शिव हेतु केतकी की अपवित्रता का मूल स्रोत इस मन्त्र में खोजा जा सकता है । ऋग्वेद की ऋचाओं में केतः शब्द का वास्तविक अर्थ क्या है, यह अन्वेषणीय है ।