द्वादशाह

      यह 12 दिन साध्यक्रतु है, किन्तु यह छत्तीस दिन साध्य है। द्वादश दीक्षाः, द्वादश उपसदः, द्वादश सुत्याः विधान है।

      द्वादशाह क्रतु में 12 दिन दीक्षा, 12 दिन उपसदों को अनुष्ठान करके 24वाँ दिन उपसत् इष्टि को समाप्त कर अग्नीषोमीय पशुयाग का अनुष्ठान करना है। उसी दिन महारात्र में उठकर सोमाभिषव सम्बन्धी क्रियाकलाप समाप्त कर प्रातः नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर सुत्या सोमयाग सम्बन्धी बहिष्पवमान आदि क्रियाकलापों को शुरु करना है। तृतीय सवन पर्यन्त समाप्त करके पुनः यथावत् रात्रि में उठकर अभिषव आदि तृतीय सवन पर्यन्त की आवृत्ति होगी। इस प्रकार 15 दिन करके अन्त में अवभृथेष्टि है। प्रतिदिन अवभृथेष्टि नहीं है।

      द्वादशाह क्रतु में बारह दिनों की संज्ञा – नाम इस प्रकार है – प्रथम दिन का प्रायणीय नाम से व्यवहार है। अन्तिम दिन का उदयनीय नाम से व्यवहार है। आरम्भ समाप्ति उसका अर्थ है। बीच में दश दिनों को एक संघ माना गया है। द्वादशाहान्तर्गत दशाह शब्द से इनका व्यवहार है। इन दश दिनों में छः दिन षडह रथन्तर – बृहत् – वैरूप – वैराज – शाक्वर – रेवत नामक सामों से पृष्ठस्तोत्र का अनुष्ठान होने से इसका पृष्ठ्य षडह नाम से भी व्यवहार है, तदन्तर तीन दिन छन्दोम नाम से, अन्तिम दसवाँ दिन अविवाक्य नाम से व्यवहार है। इन नामों के भेद से विकृतियों में अतिदेश का निश्चय करना पडता है।

      यह द्वादशाह ग्रहों – सोमरस ग्रहण के पात्रों की अग्रता विशेष से व्यूढद्वादशाह समूढद्वादशाह नाम से भिन्न हो जाता है। अनेक ग्रहों में किस ग्रह का प्रथम ग्रहण है। यह विधि वाक्यों से जानकर ग्रहण करना पडता है। यही ग्रहाग्रता शब्द से कहा जाता है।

      बारह दिनों की संस्था – स्तोत्र आदि की पट्टिका

      दिन

      संस्था

      स्तोम संख्या

      अग्रता

      साम

      1

      अतिरात्र

      9,15,17,21

      ऐन्द्रवायव

      रथन्तर

      2

      अग्निष्टोम

      9

      ऐन्द्रवायव

      रथन्तर

      3

      उक्थ्य

      15

      शुक्राग्रता

      बृहत्

      4

      उक्थ्य

      17

      आग्रयण

      वैरूप

      5

      षोडशी

      21

      आग्रयण

      वैराज

      6

      उक्थ्य

      27

      ऐन्द्रवायव

      शाक्वर

      7

      उक्थ्य

      33

      शुक्राग्रता

      रैवत

      8

      उक्थ्य

      24

      शुक्राग्रता

      रथन्तर

      9

      उक्थ्य

      44

      आग्रयण

      बृहत्

      10

      अग्निष्टोम या अतिरात्र या उक्थ्य

      24

      ऐन्द्रवायव

      रथन्तर

      11

      अग्निष्टोम

      48

      ऐन्द्रवायव

      बृहत्

      12

      अतिरात्र

      त्रिवृदादि

      ऐन्द्रवायव

      रथन्तर



      यज्ञतत्त्वप्रकाश – छिन्नस्वामी शास्त्री, पृष्ठ 92