पुरुष अग्नि १९६.१( नक्षत्र पुरुष के अङ्गों में नक्षत्रों का न्यास ), २१४.३१( देह में हृदय में ब्रह्मा, कण्ठ में विष्णु, तालु मध्य में रुद्र तथा कण्ठ में महेश्वर की स्थिति का उल्लेख ), २४३.१( पुरुष के शुभाशुभ सामुद्रिक लक्षणों का कथन ), गरुड १.६३( पुरुष के शरीर के लक्षण ), १.६५( सामुद्रिक लक्षणों का कथन ), २.३०.४४/२.४०.४४( प्रेत कार्य हेतु पुरुष की पुत्तलिका ), देवीभागवत ५.८.६२( विभिन्न देवों के तेजों से देवी के अङ्गों के निर्माण का कथन ), ७.३३.२३( देवी के विराट् रूप में देवी के विभिन्न अङ्गों का ब्रह्माण्ड के पिण्डों से साम्य ), ११.८.१( भूतशुद्धि के संदर्भ में शरीर में नाडीचक्रों के चतुष्कोण आदि रूपों का कथन ), पद्म १.३.१०५( ब्रह्मा द्वारा शरीर के अङ्गों से विभिन्न प्रकार के जीवों की सृष्टि का वर्णन ), १.२१.२७( विशोक द्वादशी व्रत के अन्तर्गत विष्णु का देह में विभिन्न नामों से न्यास ), १.२३.१११( वेश्या व्रत के अन्तर्गत अनङ्ग रूप विष्णु का देह में न्यास ), ३.३६.१०( पक्षवर्द्धिनी एकादशी के संदर्भ में विष्णु का विभिन्न अङ्गों में विभिन्न नामों से न्यास ), ३.३५.५१( उन्मीलिनी एकादशी के संदर्भ में विष्णु का देह के अङ्गों में विभिन्न नामों से न्यास ), ३.५३.५५( ओङ्कार के संदर्भ में काल के प्रधान पुरुष होने का उल्लेख ), ३.६२.२( पुराणों की विष्णु के अङ्गों के रूप में कल्पना ), ६.४५.४८( आमलकी एकादशी के संदर्भ में परशुराम/जामदग्न्य का विभिन्न नामों से देह में न्यास ), ६.६६.४६( कृष्ण पक्ष एकादशियों में वैतरणी व्रत के संदर्भ में विष्णु का विभिन्न नामों से देह में न्यास ), ६.७८.१७( पाप नाश हेतु विष्णु का विभिन्न नामों से देह में न्यास ), ६.१८३.३६( चन्द्रशर्मा द्वारा कालपुरुष का दान, कालपुरुष से चाण्डाल व चाण्डाली का प्राकट्य, गीता के नवम अध्याय के जप से रक्षा ), ब्रह्म २.९१.६( अव्यक्त, अक्षर पर पुरुष से सावयय पुरुष, पुरुष से आप: आदि के उत्पन्न होने का वर्णन, पुरुष सूक्त ), ब्रह्माण्ड १.१.४( पुरुष का चतुर्व्यूह रूप ), १.२.९.३६( शतरूपा द्वारा तप से पूर्व पुरुष मनु को पति रूप में प्राप्त करने तथा ब्रह्मा द्वारा सृष्ट विराट् पुरुष के मनु बनने का कथन ), १.२.२३( पौरुषेय : राक्षस, सूर्य रथ में वास ), २.३.५.९७( ६ठे गण के मरुतों में से एक ), २.३.६.१६( दनु के पुत्र दानवों में से एक ), २.३.७.३४३( अञ्जन व अञ्जनावती के २ पुत्रों में से एक ), ३.४.२८.३८( सम्पदीशा देवी का पुरुष दानव से युद्ध ), भविष्य १.२२.१६(शिर कर्तन पर ब्रह्मा से श्वेतकुण्डली, कवची पुरुष का प्राकट्य, रक्तकुण्डली पुरुष से युद्ध ), १.२५ (पुरुष देह के शुभाशुभ लक्षणों का वर्णन), १.१६०.३०( सूर्य का विराट् स्वरूप ), ३.४.५.८(ब्रह्मा द्वारा मुख, बाहु आदि से सृष्टि का कथन ), ३.४.८.९९( सत्यव्रत राजा द्वारा दरिद्र पुरुष की प्रतिमा के क्रय की कथा ), ४.१०९.६( शिव रूपी नक्षत्र पुरुष का अङ्गों में न्यास ), ४.१८१.९( काल पुरुष दान की विधि ), भागवत १.३.१( लोक सृष्टि की इच्छा से भगवान् द्वारा महत् आदि द्वारा १६ कलाओं वाले पुरुष रूप धारण का कथन, पुरुष की नाभि से ब्रह्मा के प्राकट्य का कथन ), २.१.२५( धारणा योग्य वैराज पुरुष के स्वरूप का कथन ), २.२.८( हृदयावकाश में प्रादेश मात्र पुरुष की धारणा का कथन ), २.५.३५+ ( ब्रह्माण्ड रूप अण्ड से पुरुष के प्राकट्य तथा पुरुष के अङ्गों में ब्रह्माण्ड की स्थिति का वर्णन ), २.६.४१( पुरुष के पर का प्रथम अवतार होने का कथन ), २.१०.८( आध्यात्मिक, आधिभौतिक व आधिदैविक पुरुष के त्रैत की अनिवार्यता सम्बन्धी कथन ), ३.२६.१६( काल के पौरुष प्रभाव होने का उल्लेख ), ३.२६.१८( अन्दर पुरुष रूप और बाहर काल रूप होकर भगवान् द्वारा सत्त्वों का समन्वय करने का कथन, समाधि से व्युत्थान का वर्णन ), ४.२९.२( पुरञ्जनोपाख्यान के तात्पर्य रूप में पुरुष/जीव की पुरञ्जन से उपमा, पुरञ्जन के पुर के रूप में पुरुष के अङ्गों का वर्णन ), ५.२०.२२( क्रौञ्च द्वीप के निवासियों के ४ वर्णों में से एक ), ७.१२.२३( अन्तिम समय में पुरुष द्वारा अनशन करके प्राण त्याग के संकल्प पर इन्द्रियों को उनके कारणों में लीन करने का वर्णन ), ८.५.३८( परम पुरुष के विभिन्न अङ्गों से उत्पन्न सृष्टि का कथन ), १०.३८.१५( प्रधान व पुरुष के रूप में कृष्ण व बलराम का उल्लेख ), १०.३८.३२( वही), ११.४.३( पुरुष संज्ञक आदिदेव नारायण से रज, सत्त्व व तमो गुण रूपी ब्रह्मा, विष्णु व महेश की उत्पत्ति का कथन ), ११.२२.१०( तत्त्वों के संख्यामानों में भेद के संदर्भ में पुरुष व ईश्वर में भेद का प्रश्न ), १२.११.४ ( विष्णु की विभूति के वर्णन में विराट् विष्णु के अङ्गों, उपाङ्गों आदि के प्रतीकों का वर्णन ), १२.११.१९( त्रिवृत् वेद रूपी सुपर्ण द्वारा यज्ञ पुरुष के वहन का उल्लेख ), मत्स्य ५४( नक्षत्र पुरुष व्रत की विधि ), १६७.५( यज्ञपुरुष के अङ्गों से ऋत्विजों की सृष्टि ), मार्कण्डेय ८२, लिङ्ग १.७५( परमेष्ठी का दिव्य पुरुष रूप ), १.८८.२८( अणु की व्यापक अवस्था का पुरुष नाम ), वराह ७३.३( अङ्गुष्ठ पुरुष के ध्यान पर नारायण का प्राकट्य ), वायु ४.४४/१.४.४१( पुरुष शब्द की निरुक्ति : पुरीशयत्व ), १.५.१८( पुरुष की पर और प्रकृति की परा संज्ञा का उल्लेख ), १.५.२७ (स्वयम्भु की तीन अवस्थाओं ब्रह्मा, काल व पुरुष का सत्त्व –रज-तमो गुणानुसार विवेचन), ७.६१/१.७.५६( ब्रह्मा का सहस्रशीर्षा सहस्रपात् पुरुष के रूप में उल्लेख ), ८.३६( ब्रह्मा द्वारा स्व शरीर के अङ्गों से मैथुनी सृष्टि का कथन ), ५९.६( पुरुष का उत्सेध मान ), १.५९.७६( पुरुष शब्द की निरुक्ति व विवेचना ), ६६.१०३/२.५.९९( स्वयंभु के ३ तनुओं में एक पौरुषी तनु के सात्त्विक आदि ३ प्रकारों का कथन ), ६७.१२८/२.७.१२८( ४९ मरुतों में से एक ), १०२.११९/२.४०.११७( पुरुष का निरूपण ), विष्णु १.२.१५( पर ब्रह्म से पुरुष, व्यक्त, अव्यक्त आदि की उत्पत्ति का वर्णन ; व्यक्त के विष्णु तथा अव्यक्त पुरुष के काल होने का उल्लेख ; आरम्भ में प्रधान पुरुष की स्थिति का कथन ), ६.४.४६( पुरुषोत्तम विष्णु में प्रकृति व पुरुष के लय का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर १.८७( नक्षत्र, ग्रह अनुसार पुरुष को पीडा, चार वर्णों के विशिष्ट नक्षत्र ), १.२३९( शरीर में देवों का न्यास, रावण द्वारा दर्शन ), २.८.१( पुरुषों के उच्छ्राय आदि लक्षणों का वर्णन ), २.८.३०( पुरुष शरीर के नृत्त शास्त्र के अनुसार शुभाशुभ लक्षण ), २.६६(दैव, पौरुष, व काल की विवेचना ), ३.३५.८( पुरुष की हंस, रुचक आदि ५ प्रकार की प्रकृति के अनुसार पुरुष के आयाम, उच्छ्राय आदि का वर्णन ), ३.९५( वास्तु पुरुष की देह पर देवों की स्थिति का वर्णन ), शिव २.१.८.३२( वर्णमाला के अक्षरों का शिव पुरुष के अङ्गों से साम्य ), ५.२१.१( पुरुष के मुखादि से उत्पन्न ४ वर्णों के कर्मानुसार जन्मान्तर में उच्च - नीच वर्ण में रूपान्तरित होने का वर्णन ), ५.२८.२( छाया पुरुष के दर्शन से शुभाशुभ ज्ञान का कथन ), ५.२९.२२( प्रधान पुरुष के अङ्गों से देवों/पितरों, मनुष्यों आदि की उत्पत्ति का कथन ), ५.३३.१७( अरिष्ट पुरुष : ७ मरुतों में से एक ), ६.१२.१७( सदाशिव के स्वरूप में तत्पुरुष आदि शिव के मुख आदि रूप होने का उल्लेख ), ६.१३.२७( पुरुष के ५ तत्त्वात्मक प्रकृति के भोक्ता होने का कथन ), ७.१.९.९( प्रकृति के अचेतन तथा पुरुष के अज्ञ होने का कथन ; प्रधान के परिणाम तथा पुरुष की प्रवृत्ति के महादेव के शासन से चालित होने का कथन ), ७.२.३.१२( शिव की ईशान आदि ५ मूर्तियों में से एक, पुरुष/तत्पुरुष मूर्ति के स्वरूप का कथन ), स्कन्द १.२.५०.१( शरीर लक्षण वर्णन के अन्तर्गत शरीर के विभिन्न अङ्गों का ब्रह्माण्ड के लोकों आदि से एक्य का वर्णन ), ७.१.८.१३( मूक, शिव, प्रकाश आदि ६ पौरुषेयों के नाम ), हरिवंश ३.१७.५०( यज्ञ पुरुष में वेदों की स्थिति ), ३.२६.४९( मधुहन्ता हयग्रीव विष्णु की देह में देवताओं की स्थिति ), ३.३६.१( जगत् की सृष्टि की कामना वाले पुराण पुरुष के मुख से पुरुष का प्राकट्य, पुराण पुरुष द्वारा पुरुष/प्रजापति को सृष्टि का आदेश, पुरुष से जगत् की सृष्टि का वर्णन ), महाभारत वन ५७.२४( दमयन्ती द्वारा देवों व पुरुषों के लिङ्गों/लक्षणों का अभिज्ञान ), भीष्म ६५.५९( परम पुरुष के विराट् स्वरूप का कथन ), शान्ति २८०.२१( परम पुरुष के विराट् स्वरूप का कथन ), ३०५( गुणों से युक्त प्रकृति व पुरुष के संयोग से ऊपर उठकर निर्गुण, अलिङ्ग परम पुरुष का वर्णन ), ३०७.९( पुरुष/पचीसवें तत्त्व द्वारा निर्गुणता को प्राप्त होने पर ही गुणात्मक प्रकृति को जानने का वर्णन ), ३१५( पुरुष को प्रकृति के गुणों से पृथक् करने का निर्देश ), योगवासिष्ठ ६.२.१९९( मुक्त पुरुषों की संसार में स्थिति संज्ञक सर्ग ), लक्ष्मीनारायण १.३२५.८३( पुरुष के दिव्य लक्षणों का कथन ), २.६०.३४( श्रीकृष्ण द्वारा उदय नृप को अपने विराट् स्वरूप के दर्शन कराना ), २.७७.६२( कृष्ण पुरुष दान से बालहत्या आदि पाप के नष्ट होने का कथन ), २.१५७.७२( पुरुषसूक्त का न्यास ), २.१५८.५२( प्रासाद की पुरुषाकारता का कथन ), ४.४५.४५( सहस्रशीर्षा पुरुष के पिप्पल/प्लक्ष में स्थित होने का कथन ), द्र. किम्पुरुष, चन्द्रपुरुष, तत्पुरुष, यज्ञपुरुष purusha



      पुरुष - प्रकृति भागवत २.५.३५( अण्ड से सहस्रशीर्षा पुरुष की उत्पत्ति का वर्णन ), २.५.३६( पुरुष के विभिन्न अङ्गों में पाताल आदि १४ लोकों की स्थिति ), ११.२४.४( प्रकृति के अर्थ व पुरुष के ज्ञान होने का कथन, पुरुष व प्रकृति से सृष्टि का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर १.४१.३( विभिन्न देवों व उनकी शक्तियों/पत्नियों का पुरुष - प्रकृति रूप में कथन ), शिव १.१८.४३( शिव लिङ्गों के पौरुष व प्राकृत भेदों का कथन ), महाभारत शान्ति ३१८.३९(प्रकृति के अव्यक्त तथा पुरुष के निर्गुण होने का उल्लेख), purusha - prakriti



      पुरुषमेध भागवत ९.७.२३(हरिश्चन्द्र द्वारा पुरुषमेध यज्ञ, ऋत्विजों के नाम),



      पुरुषसूक्त कूर्म १.७.५४( वैदिक पुरुष सूक्त का पौराणिक रूप : ब्रह्मा के अङ्गों से सृष्टि ), नारद १.७०.१००( पुरुष सूक्त के मन्त्रों से न्यास का कथन ), पद्म १.१४.१४३( वेद के पुरुष सूक्त के पौराणिक रूप का कथन ), ६.२२६.६४( पुरुष सूक्त की व्याख्या ), ब्रह्म २.९१.२८( ब्रह्मा द्वारा सृष्टि के लिए पुरुष सूक्त के प्रयोग का वर्णन ), भागवत २.५.३५( अण्ड से उत्पन्न विराट् पुरुष की देह में लोकों, चार वर्णों, पातालों आदि की कल्पना ), २.६.१( विराट् पुरुष के अन्य अङ्गों से अग्नि, छन्द, आदि - आदि की सृष्टि का वर्णन ), ८.५.३२( विष्णु के विराट् रूप से ब्रह्माण्ड के प्राकट्य का वर्णन ), विष्णु १.५.४८( ब्रह्मा के अङ्गों से सृष्टि ), १.१२.५६( ध्रुव द्वारा विष्णु की स्तुति ), शिव ५.२९.२२( ब्रह्मा के मुख से देवों, वक्ष से पितरों आदि के उत्पन्न होने का कथन ), स्कन्द २.२.२४.६( देवों द्वारा पठित पुरुष सूक्त), ६.२३९.१०( चातुर्मास में पुरुषसूक्त की ऋचाओं के अनुसार विष्णु की षोडशोपचार पूजा का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण २.१५७.७२( पुरुषसूक्त का न्यास ), purushasookta/purushasuukta/ purushasukta

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      पुरुषार्थ पद्म ६.७.३१( विष्णु द्वारा पुरुषार्थों को रथ के हय/अश्व बनाकर जालन्धर से युद्ध के लिए गमन का उल्लेख ), मत्स्य २२१( दैव से पुरुषार्थ की श्रेष्ठता का प्रश्न ), विष्णु १.१८.२१( धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की पुरुषार्थ चतुष्टय संज्ञा का कथन ), ६.८.३( विष्णु पुराण के पुरुषार्थोपपादक होने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर २.६६( दैव व पुरुषार्थ में श्रेष्ठता का विवेचन तथा वृष्टि व कृषि द्वारा देव व पुरुषार्थ का प्रतिपादन ), स्कन्द ४.१.३६.७७( पुरुषार्थ चतुष्टय का कथन : माता - पिता आदि की सेवा ), योगवासिष्ठ २.४+ ( पुरुषार्थ की प्रशंसा, दैव से पुरुषार्थ की श्रेष्ठता ), महाभारत वन १७९.२७( दैव के आगे पुरुषार्थ की निरर्थकता का उल्लेख ), सौप्तिक २.२( कृपाचार्य - अश्वत्थामा संवाद में दैव व पुरुषार्थ द्वारा परस्पर सहयोग करने पर ही कार्य सिद्ध होने का कथन ), अनुशासन ६.७( दैव के बीज व पुरुषार्थ के क्षेत्र होने का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.२०८.२५( धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष रूपी चतु:स्रोत पुरुषार्थ तीर्थ का कथन ), २.१८९.४९( पुरुषार्थ व दैव दोनों के सहयोग से ही सिद्धि होने का उल्लेख ) purushaartha



      पुरुषोत्तम गरुड १.२९( त्रैलोक्य मोहन मन्त्र ), नारद २.५२( पुरुषोत्तम क्षेत्र की ब्रह्माण्ड की श्रेष्ठतम वस्तुओं से उपमा, राजा इन्द्रद्युम्न की उत्कल में पुरुषोत्तम क्षेत्र की यात्रा आदि का वृत्तान्त ), पद्म ६.१२०.७१( पुरुषोत्तम से सम्बन्धित शालग्राम शिला के लक्षणों का कथन ), ७.१८( पुरुषोत्तम क्षेत्र का माहात्म्य, कृष्ण, बलराम , सुभद्रा की महिमा ), ब्रह्म १.४२+ ( पुरुषोत्तम क्षेत्र का वर्णन , इन्द्रद्युम्न की कथा ), १.६६( पुरुषोत्तम का माहात्म्य ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१२.२२( पुरुषोत्तम से नितम्ब की रक्षा की प्रार्थना ), मत्स्य १३.३५( पुरुषोत्तम क्षेत्र में सती की विमला नाम से स्थिति का उल्लेख ), वराह ८.४२( धर्मव्याध द्वारा पुरुषोत्तम क्षेत्र में तप, स्तोत्र पाठ, पुरुषोत्तम का दर्शन ), वामन ९०.२४( मन्त्रों में विष्णु का पुरुषोत्तम नाम ), विष्णु १.१५.५२( अप्सरा द्वारा तप भङ्ग होने पर कण्डु मुनि द्वारा पुरुषोत्तम क्षेत्र में ब्रह्मपार स्तोत्र के जप का कथन ), १.२०.८( समुद्र से उद्धार होने पर प्रह्लाद द्वारा पुरुषोत्तम की स्तुति ), स्कन्द २.२.०+ ( पुरुषोत्तम क्षेत्र का माहात्म्य ), २.२.३६( चातुर्मास में पुरुषोत्तम क्षेत्र में शयनोत्सव मनाने की विधि व महत्त्व ), ४.२.६१.२२४( पुरुषोत्तम की मूर्ति के लक्षण ), ५.१.६०.१७( पुरुषोत्तम मास का माहात्म्य, अधिमास व्रत की विधि ), ५.३.१९५.४( दिवि में पुरुषोत्तम के परम तीर्थ होने का उल्लेख ), ५.३.१९८.७२( पुरुषोत्तम क्षेत्र में देवी की मङ्गला नाम से स्थिति का उल्लेख ), ७.१.८१.१९( षष्ठम कल्प में विष्णु अवतार का नाम ), लक्ष्मीनारायण १.२६३( पुरुषोत्तम मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का माहात्म्य : शाकटायन विप्र द्वारा कमला से धनदायक मणि की प्राप्ति का वृत्तान्त ), १.२६४(पुरुषोत्तम मास शुक्ल पक्ष धामदा एकादशी का माहात्म्य – पुण्डरीक राजा की पत्नी कुमुद्वती का उद्धार), १.२६५.१२( पुरुषोत्तम की शक्ति नन्दा का उल्लेख ),२.८७.३२( पुरुषोत्तम की निरुक्ति ), २.२२८.२७( आश्विन् कृष्ण सप्तमी को पुरुषोत्तम की पूजा से पौण्डरीक फल की प्राप्ति का उल्लेख ), २.२७०.४२( ब्रह्मस्तम्ब ऋषि द्वारा पुरुषोत्तम तीर्थ की स्थापना का वृत्तान्त ), ३.६४.१७( अधिका तिथि की पुरुषोत्तम संज्ञा का उल्लेख ), ३.१११.६५( यम द्वारा दीर्घशील विप्र को पुरुषोत्तम साम जप का निर्देश, पुरुषोत्तम साम का महत्त्व ) purushottama



      पुरुहूत ब्रह्माण्ड २.३.७२.२३( इन्द्र की पुरुहूत संज्ञा ), मत्स्य १३.३०( पुष्कर तीर्थ में सती की पुरुहूता नाम से स्थिति का उल्लेख ), १७४.३( इन्द्र की पुरुहूत संज्ञा), वायु ९७.२४/२.३५.२४( वही), स्कन्द ५.३.१९८.६७( पुष्कर में देवी की पुरुहूता नाम से स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.४८४.३१( पुरुहूता : सुपर्ण ऋषि की पत्नी पुरुहूता द्वारा पति से पर्वकाल में ऋतुदान की मांग, रस संदर्भ में विप्र व विप्र - पत्नी के चाण्डाल होने का वृत्तान्त ) puruhoota/ puruhuuta/ puruhuta



      पुरूरवा अग्नि २७४.१२( सोम वंश वर्णन के अन्तर्गत उर्वशी व पुरूरवा से उत्पन्न आयु के वंश का वर्णन ), गरुड ३.५.३८(१० विश्वेदेवों में से एक), देवीभागवत ०.३.२९( स्त्री रूप धारी सुद्युम्न व बुध से पुरूरवा के जन्म का उल्लेख ), १.१०.३६( व्यास द्वारा घृताची अप्सरा का दर्शन करने पर उर्वशी - पुरूरवा आख्यान का स्मरण ), १.१२.२९( इला द्वारा बुध से पुरूरवा पुत्र को जन्म देने की कथा ), १.१३( पुरूरवा व उर्वशी की संक्षिप्त कथा ), पद्म १.१२.६६( पुरूरवा द्वारा केशि दानव से उर्वशी और चित्रलेखा की रक्षा, इन्द्र से मैत्री ), ब्रह्म १.८.३३( बुध व इला से पुरूरवा की उत्पत्ति, संक्षिप्त चरित्र ), २.३१.१( पुरूरवा का सरस्वती के साथ रमण, ब्रह्मा द्वारा सरस्वती को शाप ), २.३८.७६( पुरूरवा नाम का शब्दार्थ, माता इला की स्त्रीत्व से मुक्ति के लिए पुरूरवा द्वारा गौतमी तट पर शिव व पार्वती की आराधना ), २.८१.३( उर्वशी से वियोग होने पर पुरूरवा द्वारा यज्ञ के प्रभाव से उर्वशी की प्राप्ति, निम्नभेद तीर्थ का माहात्म्य ), ब्रह्माण्ड १.१.२.१४( नैमिषारण्य में हिरण्य से निर्मित यज्ञशाला देखकर पुरूरवा में लोभ की उत्पत्ति, ऋषियों द्वारा पुरूरवा का वध ), १.२.२८.५( पुरूरवा द्वारा अमावास्या को सुधा से पितृ तर्पण के संदर्भ में पितरों के सुधा द्वारा तृप्त होने का वर्णन ), १.२.३३( सामगान के आचार्य ), २.३.६६.१( पुरूरवा व उर्वशी की कथा ), भागवत ९.१४( उरूरवा व उर्वशी का आख्यान ), ११.२६( उर्वशी से भोग उपरान्त पुरूरवा की वैराग्य उक्ति ), मत्स्य १२.१४( इल - पुत्र पुरूरवा के वंश वर्धक होने का उल्लेख ), २४.१०( बुध व इला से पुरूरवा का जन्म, चरित्र महिमा, धर्म, अर्थ व काम द्वारा पुरूरवा की परीक्षा व शाप ), ११५+ ( मद्र देश का राजा, पूर्व जन्म का वृत्तान्त, रूप प्राप्ति हेतु अत्रि आश्रम में गमन ), १४१( पुरूरवा द्वारा स्वर्ग में जाकर अमावास्या काल में पितर श्राद्ध का वर्णन ), वामन ७९( पूर्व जन्मों में वणिक् व ब्राह्मण, नक्षत्र पूजा द्वारा रूप प्राप्ति, प्रेत - वणिक् संवाद ), वायु २.२०( नैमिषारण्य में हिरण्य निर्मित यज्ञशाला पर पुरूरवा की आसक्ति, ऋषियों द्वारा पुरूरवा का वध ), ५६.५( पुरूरवा द्वारा अमावास्या को पितरों के तर्पण का उद्योग ), ९१.१/२.२९.१( पुरूरवा व उर्वशी की कथा ), ९१.५१/२.२९.४६( पुरूरवा के वंश का वर्णन ), विष्णु ४.६.३४( पुरूरवा चरित्र : उर्वशी व पुरूरवा की कथा ), ४.७( पुरूरवा के वंश का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर १.१३०+ ( उर्वशी व पुरूरवा की कथा ), १.१४८+ ( पुरूरवा के कुरूप होने के कारण के रूप में पुरूरवा के पूर्व जन्म का वृत्तान्त, मद्र - अधिपति, तप के लिए गमन ), १.१५४+ ( अत्रि ऋषि द्वारा रूप प्राप्ति के लिए पुरूरवा को रूप सत्र के अनुष्ठान का उपदेश, रूप सत्र के रूप में देह के अङ्गों में नक्षत्रों का न्यास ), १.१५६( पुरूरवा द्वारा रूप प्राप्ति के पश्चात् जन्मान्तर में बुध - पुत्र बनना ), स्कन्द १.२.१३( शतरुद्रिय प्रसंग में पुरूरवा द्वारा अन्नमय लिङ्ग की पूजा का उल्लेख ), ३.१.२८( साध्यामृत तीर्थ के माहात्म्य के संदर्भ में पुरूरवा द्वारा उर्वशी से पुत्र की उत्पत्ति, अग्निस्थाली प्रसंग, वियोग व पुन: मिलन ), ४.२.६६.२७( पुरूरवेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), हरिवंश १.१०( इला से पुरूरवा की उत्पत्ति का प्रसंग ), १.२६( पुरूरवा - उर्वशी प्रसंग ), लक्ष्मीनारायण १.७९( पुरूरवा व उर्वशी की कथा ), १.२५५.२१( पुरूरवा राजा के अपत्यहीन होने के संदर्भ में लोमश द्वारा पुरूरवा के पूर्व जन्म के वृत्तान्त का वर्णन : वर्धमान वैश्य द्वारा तृषित गौ के ताडन पर गौ के शाप से अपत्यहीन होना, श्रावण शुक्ल पुत्रदा एकादशी व्रत से पुत्रवान् होना ), १.२५६.६०( पितरों के उद्धार हेतु पुरूरवा द्वारा उदय पर्वत पर स्थित नर्मदा नदी के ऋक्ष पर्वत पर अवतारण का उद्योग ), १.५५६.६०( पुरूरवा द्वारा पितरों के उद्धार हेतु ऋक्ष पर्वत पर नर्मदा नदी के अवतारण का वर्णन ), कथासरित् ३.३.४( पुरूरवा द्वारा रम्भा अप्सरा के गुरु तुम्बुरु पर आक्षेप, तुम्बुरु द्वारा पुरूरवा को शाप की संक्षिप्त कथा ) purooravaa/ puruuravaa / pururava



      पुरोजव भागवत ५.२०.२५( शाक द्वीप के अधिपति मेधातिथि के ७ पुत्रों में से एक ), ६.६.१२( प्राण वसु व ऊर्जस्वती के ६ पुत्रों में से एक ), मत्स्य २०३.७( अनिल वसु - पुत्र )

      पुरोडाश ब्रह्म २.६३.३( भरद्वाज के यज्ञ में पुरोडाश श्रपण पर धूम से उत्पन्न कृष्ण राक्षस की कथा ), ब्रह्माण्ड १.२.९.५( पुरोडाश के त्रिकपाल व त्र्यम्बक नामों का कारण ), १.२.१३.१४७( पुरोडाश के त्र्यम्बक नाम के कारण का कथन ), भविष्य १.१४६.२८(ब्राह्मणानां पुरोडाशो यथा कायविशोधनः ।), विष्णु १.८.२०( आज्याहुति - पति ), स्कन्द ३.१.२३.३८(प्राशित्र नामक पुरोडाश भाग की तीव्रता), महाभारत शान्ति २६३.४२( सब पशुओं के पुरोडाश के मेध्य होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३८२.२१( विष्णु के पुरोडाश व लक्ष्मी के आज्याहुति होने का उल्लेख ), २.२४५.१६( सोमयाग के प्रवर्ग्य कर्म में रौहिण नामक पुरोडाश की आहुति का कथन ) purodaasha/ purodasha



      पुरोधा पद्म १.१५.३१७( पुरोधा के ऋषिलोक का स्वामी होने का उल्लेख ),



      पुरोहित अग्नि २१८.३( राजा द्वारा संवत्सर ? रूप पुरोहित के वरण का निर्देश ), पद्म ६.१२९.१७६( सारस - वानर संवाद में सारस द्वारा पौरोहित्य की निन्दा ), भागवत ६.७.३४( पुरोहित बनने की देवों की प्रार्थना पर विश्वरूप के पौरोहित्य सम्बन्धी उद्गार ), मत्स्य २५.९( देवों द्वारा आङ्गिरस तथा असुरों द्वारा काव्य उशना का पुरोहित रूप में वरण करने का उल्लेख ), २७.९( शर्मिष्ठा द्वारा देवयानी - पिता शुक्राचार्य के संदर्भ में पौरोहित्य की निन्दा ), ४७.२३८( विभिन्न अवतारों के समय में यज्ञ में पुरोहितों के नाम ), विष्णुधर्मोत्तर २.५( राजा के पुरोहित के अपेक्षित लक्षणों का कथन ), महाभारत आदि १७३(गन्धर्व द्वारा अर्जुन को पुरोहित वरण हेतु प्रेरणा देना), १८२(गन्धर्व द्वारा पाण्डवों को धौम्य को पुरोहित बनाने का सुझाव), शान्ति ७३( राजा के लिए पुरोहित की आवश्यकता का कारण ) purohita

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      पुलक गरुड १.७७( पुलक मणि की उत्पत्ति व महिमा ), मत्स्य २७२.१( पुलक द्वारा स्वामी की हत्या कर स्व पुत्र का अभिषेक करने का कथन ), स्कन्द १.३.१.१३.१३( पुलक दैत्य द्वारा तप से परम सुगन्ध वर की प्राप्ति, शिव द्वारा पुलक की देह से मृगमद को धारण करना व पार्वती को देना ), लक्ष्मीनारायण ३.१६३.९६( बलासुर के नख रस से उत्पन्न पुलक मणि के श्रेष्ठ व निकृष्ट रूपों व महत्त्व का कथन ) pulaka



      पुलस्त्य कूर्म १.२०.३६( पुलस्त्य द्वारा वसुमना राजा को मुक्ति के उपाय का कथन ), गरुड ३.७.५६(पुलस्त्य द्वारा हरि की स्तुति), गर्ग २.२.१७( पुलस्त्य द्वारा द्रोण पर्वत से पुत्र गोवर्धन पर्वत की याचना, काशी में स्थापना हेतु हाथ पर पर्वत को ढोना, मार्ग में पर्वत को भूमि पर रखने पर पर्वत का व्रज में स्थित होना, पुलस्त्य द्वारा पर्वत को शाप ), नारद १.४९.३६( पुलस्त्य - पुत्र निदाघ व ब्रह्मा - पुत्र ऋभु के वार्तालाप का वर्णन ), पद्म १.२.४६( पुलस्त्य द्वारा ब्रह्मा से पद्म पुराण का ज्ञान प्राप्त करके भीष्म को उपदेश का उल्लेख), १.१६.९८( ब्रह्मा के यज्ञ में पुलस्त्य के अध्वर्यु होने का उल्लेख ), १.३४.१६( ब्रह्मा के यज्ञ में पुलस्त्य के अध्वर्यु होने का उल्लेख ), २.४६.१५( रङ्गविद्याधर नामक गन्धर्व के गायन से पुलस्त्य ऋषि के तप में विघ्न होने पर पुलस्त्य द्वारा स्थानान्तरण करना, गन्धर्व द्वारा शूकर रूप धारण करके ऋषि को त्रास देने पर पुलस्त्य द्वारा शूकर होने का शाप, शाप मोचन के उपाय का कथन ), ब्रह्म २.२७.१३( पुलस्त्य द्वारा निराश्रित पौत्र कुबेर को गौतमी गङ्गा में जाकर माहेश्वर की आराधना का निर्देश ), ब्रह्मवैवर्त्त १.२२.१४( पुलस्त्य की निरुक्ति : पूर्व जन्म में तप का समूह ), २.५१.१०( सुयज्ञ नृप द्वारा अतिथि के तिरस्कार पर पुलस्त्य की प्रतिक्रिया ), ब्रह्माण्ड १.१.५.७५( पुलस्त्य का ब्रह्मा के उदान से प्राकट्य ), २.३.१.४५( पुलस्त्य की ब्रह्मा के शुक्र के होम से उत्पत्ति, पुलस्त्य नाम का कारण ), ३.१.१.४५( शुक्र की आहुति से पुलस्त्य का जनन ), भविष्य ४.७४.३( पुलस्त्य द्वारा दमयन्ती - पिता भीम को माघ शुक्ल द्वादशी व्रत के महत्त्व तथा विधि का वर्णन ), ४.१७५.७( पुलस्त्य द्वारा राजा प्रियव्रत को तुलापुरुष दान के महत्त्व का कथन ), ४.१९१.५३( पुलस्त्य द्वारा राजा रजि को उसके वैभव के कारण का कथन, रजि द्वारा पूर्व जन्म में भुवन प्रतिष्ठा ), भागवत ३.१२.२४( पुलस्त्य की ब्रह्मा के कर्ण से उत्पत्ति का उल्लेख ), ३.२४.२२( कर्दम - कन्या हविर्भू के पुलस्त्य - भार्या बनने का उल्लेख ), ४.१.३६( पुलस्त्य व हविर्भू से अगस्त्य के जन्म और विश्रवा के जन्म का उल्लेख ), मत्स्य १५.४( पुलस्त्य - पुत्रों द्वारा बर्हिषद् पितरों की उपासना करने का उल्लेख ), २०२( पुलस्त्य वंश ), वराह २१.१६( दक्ष यज्ञ में पुलस्त्य के होता बनने का उल्लेख ), वामन १.२(पुलस्त्य द्वारा नारद को वामन पुराण का वाचन ), १+ ( पुलस्त्य द्वारा नारद को वामन सम्बन्धी उत्तर ), ३०.३७( पुलस्त्य द्वारा वामन को पीत वस्त्र देने का उल्लेख ), ८९.४५( पुलस्त्य द्वारा वामन को सित वास देने का उल्लेख ), वायु ९.१०२/१.९.९४( ब्रह्मा के उदान से पुलस्त्य की उत्पत्ति का उल्लेख ), ९.११२/१.१०.३०( दक्ष द्वारा प्रीति कन्या को पुलस्त्य को भार्या रूप में देने का उल्लेख ), २८.२१( पुलस्त्य व प्रीति - पुत्र दत्तोलि/अगस्त्य का संदर्भ ), ६५.४५/२.४.४५( ब्रह्मा द्वारा शुक्र की आहुति से पुलस्त्य की उत्पत्ति व नाम निरुक्ति : निचित केशों से उत्पत्ति ), ६९.१९५/२.८.१८९( राक्षसों के तीन गणों आगस्त्य, पौलस्त्य व वैश्वामित्र का उल्लेख ), विष्णु १.११.४६( सप्तर्षियों में से एक, ध्रुव को परब्रह्म की आराधना का निर्देश ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२२०- ( पुलस्त्य का दाल्भ्य से संवाद ), शिव २.२.३.५७( पुलस्त्य से आज्यप पितरों की उत्पत्ति का कथन ), ७.२.४.५१( चन्द्र मौलि शिव का रूप ), स्कन्द १.२.५८.१४( पुलस्त्य द्वारा श्रेष्ठतम तीर्थ के लिए अर्घ लाने की समस्या ), ४.१.१८.१९( पुलस्त्य द्वारा स्थापित पुलस्त्येश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.१.१९.११२( पुलस्त्य द्वारा ध्रुव को परमपद प्राप्ति हेतु विष्णु की आराधना का निर्देश ), ६.५( त्रिशङ्कु के यज्ञ में ब्राह्मणाच्छंसी ), ६.१८०.३३( ब्रह्मा के यज्ञ में अध्वर्यु बनने का उल्लेख ), ६.१८७.११( सोमयाग के चतुर्थ दिवस पर पुलस्त्य - पुत्र विश्वावसु द्वारा पशु की गुदा के भक्षण से शाप प्राप्ति का वृत्तान्त ), ७.१.२०.१७( इलविला - पति पुलस्त्य के वंश का कथन ), ७.१.२०९( पुलस्त्येश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), ७.१.२१०( पुलस्त्येश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), हरिवंश १.१८.४८( बर्हिषद् संज्ञक पितरों के पुलस्त्य - पुत्र होने का उल्लेख ), वा.रामायण ५२३, ७.२.७( पुलस्त्य द्वारा तृणबिन्दु के आश्रम में तप, तृणबिन्दु - कन्या के गर्भवती होने का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण १.२६३.१०७( पुलस्त्य द्वारा धन उत्पन्न करने वाली मणि को शाकटायन ऋषि से भिक्षा में प्राप्त कर कुबेर को देने का उल्लेख ), १.५११.५०( ब्रह्मा के अग्निष्टोम यज्ञ में पुलस्त्य - पुत्र विश्वावसु द्वारा होम भक्षण करने पर राक्षस होने का वृत्तान्त), २.८४.३( पुलस्त्य द्वारा भार्या ऐलविला हेतु चार युगों में धर्म - अधर्म की स्थिति का वर्णन ), २.८४.१००६( ऐलविला द्वारा पुलस्त्य से पौत्रों के रूप में चारों युगों को देखने के वरदान की प्राप्ति ), २.८६.३८( पुलस्त्य - पुत्र विश्रवा की ४ पत्नियों से उत्पन्न रावणादि पुत्रों के रूप में ४ युगों का प्रकट होना ), कथासरित् १०.३.५५( पुलस्त्य द्वारा शुक को उसके पूर्व जन्म का वृत्तान्त सुनाना, शुक की मुक्ति ), द्र. पौलस्त्य pulastya



      पुलह कूर्म १.२०.३७( पुलह द्वारा वसुमना राजा को मुक्ति के उपाय का कथन ), २.११.१२७( पुलह द्वारा सनन्दन से ज्ञान प्राप्ति, गौतम को ज्ञान दान ), गरुड ३.७.५९(पुलह द्वारा हरि स्तुति), देवीभागवत १०.९.२( पुलह द्वारा चाक्षुष मनु को देवी के वाग्भव बीज के जप का निर्देश ), पद्म १.३४.१४( ब्रह्मा के यज्ञ में पुलह के प्रस्तोता / प्रत्युद्गाता होने का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त १.८.२४( ब्रह्मा के वाम कर्ण से पुलह की उत्पत्ति ), १.२२.१३( पुलह की निरुक्ति : वर्तमान?/स्फुट में तप का समूह ), २.५१.१२( सुयज्ञ नृप द्वारा अतिथि तिरस्कार पर पुलह की प्रतिक्रिया ), ब्रह्माण्ड १.१.५.७५( पुलह का ब्रह्मा के व्यान से प्राकट्य ), १.२.९.२४( पुलह की ब्रह्मा के व्यान से उत्पत्ति का उल्लेख ), १.२.९.५५( क्षमा - पति ), १.२.११.३०( क्षमा व पुलह? के ४ पुत्रों व १ कन्या के नाम ), १.२.३६.१८( पुलह - पुत्र अर्वरीवान् का उल्लेख ), २.३.१.४५( ब्रह्मा के शुक्र के होम से पुलह की उत्पत्ति, पुलह नाम का कारण ), २.३.७.१७१( पुलह की पत्नियों व पुत्रों के नाम ), २.३.७.४४५( पुलह व ताम्रा से उत्पन्न संतति का कथन ), २.३.८.७१(भूत : पुलह की प्रजाओं में से एक), ३.४.१.६४( पुलह - पुत्र सुतपा का संदर्भ ), ३.४.१.८०( पुलह - पुत्र अतितेजा का संदर्भ ), भागवत ३.१२.२४( ब्रह्मा की नाभि से पुलह की उत्पत्ति का उल्लेख ), ३.२४.२३( पुलह द्वारा भार्या रूप में कर्दम - कन्या गति की प्राप्ति का उल्लेख ), ४.१.३८( पुलह व गति से उत्पन्न ३ पुत्रों के नाम ), ५.७.८( भरत द्वारा चक्र नदी से युक्त पुलहाश्रम में तप करने का कथन, पुलहाश्रम की महिमा ), १२.११.३४( माधव/वैशाख मास में सूर्य रथ पर पुलह ऋषि की स्थिति का उल्लेख ), मत्स्य १५.२१( पुलह - पुत्रों तथा वैश्यों द्वारा सुस्वधा/आज्यप पितरों की उपासना करने का उल्लेख ), १७१.२७( पितामह ब्रह्मा द्वारा सृष्ट महर्षियों में से एक ), १९५.१०( ब्रह्मा के प्रलम्ब केश से पुलह की उत्पत्ति का उल्लेख ), २०२.१०( अपनी प्रजा से असंतुष्ट पुलह द्वारा अगस्त्य - पुत्र दृढास्य को पुत्र रूप में स्वीकार करने का उल्लेख ), २४५.८७( पुलह द्वारा वामन को अक्षसूत्र प्रदान करने का उल्लेख ), वराह २१.१६( दक्ष यज्ञ में पुलह के उद्गाता बनने का उल्लेख ), वामन ३०.३७( पुलह द्वारा वामन को आसन देने का उल्लेख ), ८९.४५( पुलह द्वारा वामन को यज्ञोपवीत देने का उल्लेख ), वायु ९.१०२/१.९.९४( पुलह की ब्रह्मा के व्यान से उत्पत्ति का उल्लेख ), ९.९४( पुलह की ब्रह्मा के व्यान से उत्पत्ति का उल्लेख ), ९.११२/१.१०.३०( दक्ष द्वारा क्षमा कन्या को पुलह को भार्या रूप में देने का उल्लेख ), ६१.८४( पुलह के कर्दम - पिता होने का उल्लेख ), ६५.४६/ २.४.४६( ब्रह्मा द्वारा शुक्र की आहुति से पुलह की उत्पत्ति व नाम निरुक्ति : लम्ब केशों द्वारा उत्पत्ति ), ६९.२०४/२.८.१९८( पुलह की मृगी, मृगमन्दा आदि १२ भार्याओं से उत्पन्न हरिण आदि प्रजा का वर्णन ), ७०.६४( पुलह द्वारा ध्रुव को परमपद प्राप्ति के उपाय का कथन ), ७२८६, ७३.४३/२.११.८६( आज्यप पितरों के राजा ऋषभ द्वारा पुलहाश्रम में तप करने का उल्लेख ), विष्णु १.१०.१०( पुलह व क्षमा के ३ पुत्रों के नाम ), २.१.२९( ऋषभ द्वारा पुलहाश्रम में तप करने का कथन ), २.१०.५( माधव/वैशाख मास में सूर्य रथ पर पुलह ऋषि की स्थिति का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.११८.९( अपत्यहीन पुलह द्वारा अगस्त्य - पुत्र दृढस्यु को पुत्र तिरश्च? रूप में स्वीकार करने का कथन ), १.२२२.८( नन्दी द्वारा रावण को पुलह के वंश में उत्पन्न वानरों द्वारा रावण का क्षय करने का शाप ), १.२४८.१( कश्यप व क्रोधा की १० कन्याओं का पुलह की भार्याएं बनकर मृग आदियों को उत्पन्न करने का कथन ), शिव ७.२.४.५१( त्रिपुरध्वंसी शिव का रूप ), स्कन्द १.१.२२.४(शिव द्वारा कर्कोटक व पुलह नागों को कङ्कण रूप में धारण करने का उल्लेख), ४.१.१८.१९( पुलह द्वारा काशी में स्थापित पुलहेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.१.१९.११३( पुलह द्वारा ध्रुव को परमपद की प्राप्ति हेतु परमब्रह्म की आराधना का निर्देश ), ५.१.६३.१०३( विष्णु सहस्रनामों में से एक ), ७.१.२०.३७( पुलह के मृग, व्याल, भूत, पिशाच, सर्प, शूकर, हस्ती आदि पुत्र होने का उल्लेख ), ७.१.२३.९६( चन्द्रमा के यज्ञ में सदस्य ), ७.१.७५.२( त्रेता युग में पुलहेश्वर नाम से प्रसिद्ध लिङ्ग के अन्य युगों में कलकलेश्वर आदि नाम व महत्त्व ), ७.१.२११.१( पुलहेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ७.४.१४.४८( पञ्चनद तीर्थ में पुलह के पावनार्थ कुशावती नदी के आगमन का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३८२.१८३(क्षमा-पति, पुत्रों के नाम), द्र. पौलह pulaha



      पुलिन्द गर्ग ४.१०( पुलिन्द - कन्याओं द्वारा कृष्ण की पति रूप में प्राप्ति की कथा ), ५.१७.३४( पुलिन्दी गोपियों द्वारा कृष्ण विरह पर व्यक्त प्रतिक्रिया ), नारद १.५६.७४३( पुलिन्द देश के कूर्म के पादमण्डल होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.५८( दक्षिण के जनपदों में से एक ), २.३.७४.१५३( पुलिन्दव : भद्र - पुत्र, घोष - पिता ), २.३.७४.१९०( विश्वस्फटणि द्वारा पुलिन्द आदि वर्णों की प्रतिष्ठा करने का उल्लेख ), भागवत १२.१.१७( भद्रक - पुत्र, घोष - पिता ), १२.१.३६( विश्वस्फूर्जि पुरञ्जय द्वारा पुलिन्द आदि अपर वर्णों की प्रतिष्ठा करने का उल्लेख ), मत्स्य २७२.२९( अन्तक - पुत्र, वज्रमित्र - पिता ), वामन ७६.२५( मनोहरा में स्नान से इन्द्र के भ्रूणहत्या पाप के पुलिन्दों के रूप में जन्म होने का कथन ), विष्णु ४.२४.३५( उदङ्क - पुत्र, घोषवसु -- पिता, शुङ्ग वंश ), ४.२४.४७( पुलिन्दसेन : पललक - पुत्र, सुन्दर - पिता ), ४.२४.६२( विश्वस्फटिक द्वारा पुलिन्द आदि वर्णों की प्रतिष्ठा करने का उल्लेख ), स्कन्द २.१.६.२८( भूत - भविष्य बताने वाली पुलिन्दिनी का धरणी को उसकी पुत्री के प्रेम के विषय में बताना ), कथासरित् २.४.४५( यौगन्धरायण के वत्सराज - मित्र पुलिन्दकाधिपति के गृह आगमन का उल्लेख ), ४.२.६४( शबरराज पुलिन्दक द्वारा वसुदत्त वैश्य के बदले स्वयं को देवी को अर्पण करने तथा वसुदत्त व दैवी कन्या के मिलन में माध्यम बनने का वृत्तान्त ), १२.३४.२९७( पुलिन्द राजा विन्ध्यकेतु के गणों द्वारा देवी के उपहारार्थ राजपुत्र सुन्दरसेन का बन्धन, विन्ध्यकेतु द्वारा राजपुत्र का मोचन आदि ) pulinda



      पुलोम पद्म १.६.५३( शची के पुलोम - कन्या होने का उल्लेख ), मत्स्य ६.२१( शची के पुलोम - कन्या होने का उल्लेख ), ६९.६०( भीम द्वादशी व्रत के प्रभाव से वैश्य कुलोत्पन्न पुलोम कन्या के पुरुहूत/इन्द्र - पत्नी बनने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.१९९( भृगु आदि को कन्या दान, भृगु द्वारा पुलोम को भस्म करना ), स्कन्द ४.२.८०.१२( पुलोम - कन्या द्वारा मनोरथ तृतीया व्रत के चीर्णन से इन्द्र - पत्नी बनने का वृत्तान्त ), द्र वंश दनु puloma



      पुलोमा गणेश १.५.२८( भृगु - पत्नी, च्यवन - माता ), गरुड ३.२८.५५(मन्त्रद्युम्न-भार्या, शची का अंश), देवीभागवत २.८.४१( भृगु - भार्या, च्यवन - माता ), पद्म १.६.५२( दनु - पुत्रों में से एक ), ब्रह्माण्ड २.३.६.७( दनु व कश्यप के प्रधान पुत्रों में से एक ), २.३.६.२३( पुलोमा की तीन कन्याओं शची, उपदानवी व सदस्या का उल्लेख ), २.३.६.२४( वैश्वानर असुर की कन्या - द्वय पुलोमा व कालिका का उल्लेख, मारीच से पौलोम संज्ञक दानवों को जन्म देने का उल्लेख ), २.३.७.९१( प्रहेति - पुत्र ), २.३.७४.१६९( पुलामारि : शातकर्णी - पुत्र, ७ वर्ष राज्य करने का उल्लेख ), भागवत ६.६.३१( दनु के ६१ पुत्रों में से एक ), ६.६.३३( वैश्वानर की ४ कन्याओं में से एक, कश्यप व पुलोमा से पौलोमों की उत्पत्ति का उल्लेख ), ८.१०.३१( पुलोमा का वायु/अनिल से युद्ध ), मत्स्य ६.२०( दनु व कश्यप के पुत्रों में से एक, शची - पिता ), ६.२२( वैश्वानर की २ पुत्रियों में से एक, मारीच काश्यप - पत्नी, पौलोमों की माता ), २७३.१३( गौतमीपुत्र - पुत्र, शिवश्री - पिता, २८ वर्ष राज्य करने का उल्लेख ), २७३.१६( शान्तिकर्ण - पुत्र, ७ वर्ष राज्य करने का उल्लेख ), वायु ३८.१६( ताम्रवर्ण व पतङ्ग शैलों के मध्य में स्थित विद्याधर पुरी में विद्याधरराज पुलोमा के वास का कथन ; पुलोमा के स्वरूप का कथन ), ६५.७३/२.४.७३( पुलोम की पुत्री पौलोमी का उल्लेख ; पौलोमी से च्यवन के जन्म का कथन ), ६८.७/२.७.७( दनु के प्रधान असुर पुत्रों में से एक ), ६९.२/२.८.२( १६ मौनेय संज्ञक देवगन्धर्वों में से एक ), ६९.१२९/२.८.१२४( प्रहेति - पुत्र ), विष्णु १.२१.८( वैश्वानर की २ कन्याओं में से एक, मारीच कश्यप - पत्नी, पौलोम - माता ), विष्णुधर्मोत्तर १.१९९( भृगु - पत्नी, पुलोम - पुत्री, च्यवन को जन्म देना ), स्कन्द ५.२.६५.२( ब्रह्मा द्वारा पुलोमा दैत्य के विनाश के लिए ब्रह्मेश्वर लिङ्ग की पूजा, पुलोमा का स्वारोचिष मनु बनना? ), हरिवंश १.३.८४( दनु व कश्यप के १०० पुत्रों में से एक ), १.३.९१( पुलोमा की उपदानवी आदि ३ कन्याओं के नाम ), १.३.९२( वैश्वानर की २ कन्याओं में से एक, मारीच कश्यप - भार्या, पौलोम दानवों की माता ), १.२०.१३३( जामाता इन्द्र द्वारा श्वसुर पुलोमा को मार डालने का उल्लेख ), ३.५०.१( बलि - सेनानी, पुलोमा के रथ का वर्णन ), ३.५३.९( पुलोमा का वायु से युद्ध ), ३.५५.५४( पुलोमा की वायु से युद्ध में पराजय का वर्णन ), वा.रामायण ७.२८.१९( मेघनाद व जयन्त के युद्ध में पुलोमा द्वारा स्वदौहित्र जयन्त को लेकर समुद्र में अदृश्य होने का कथन ) pulomaa



      पुल्कस ब्रह्माण्ड ३.४.२१.७९( भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में से एक ), भागवत ९.२१.१०( पुल्कस द्वारा रन्तिदेव से शेष पानी की प्राप्ति का कथन ) pulkasa



      पुष्कर अग्नि १०९.५( पुष्कर तीर्थ का माहात्म्य – पुष्करतीर्थ के अन्तर्वर्ती तीर्थ), १२१.५७( त्रिपुष्कर योग विचार - त्रिपादेषु च ऋक्षेषु यदा भद्रा तिथिर्भवेत् ॥
      भौमादित्यशनैश्चारि विज्ञेयं तत्त्रिपुष्करं । ), २११.८(ज्येष्ठ पुष्कर में वृषभ दान का महत्त्व), २१८ - २३७ ( पुष्कर द्वारा परशुराम को राजधर्म का वर्णन ), ३८३.१८( ज्येष्ठ पुष्कर में सौ कपिला दान का फल अग्नि पुराण पठन के बराबर होने का उल्लेख - कपिलानां शते दत्ते यद् भवेज्ज्येष्ठपुष्करे । तदाग्नेयं पुराणं हि पठित्वा फलमाप्नुयात् ।। ), कूर्म १.३७.३७( पुष्कर तीर्थ की त्रेता युग में विशिष्टता - कृते तु नैमिषं तीर्थं त्रेतायां पुष्करं परम् । द्वापरे तु कुरुक्षेत्रं कलौ गङ्गां विशिष्यते ।।  ), १.५०.१( पुष्कर द्वीप का वर्णन ), गरुड १.९०( वरुण - पुत्र, प्रम्लोचा से मानिनी कन्या की उत्पत्ति - अतीवरूपिणी कन्या मत्प्रसाद्वराङ्गना ॥
      जाता वरुणपुत्रेण पुष्करेण महात्मना ॥ ), २.६.११८(पुष्कर में वृषोत्सर्ग का निर्देश - अतस्त्वं पुष्करं गत्वा वृषोत्सर्गं विधाय च ॥), २.२२.६०( पुष्कर द्वीप की शरीर में नखों में स्थिति, अन्य अवयवों में अन्य द्वीपों की स्थिति ), २.२२.६०चौखम्बा/२.३२.११४नाग( नखों में पुष्कर द्वीप की स्थिति का उल्लेख - त्वचायां शाल्मलिर्द्वीपो प्लक्षः रोम्णां च सञ्चये । नखस्थः पुष्करद्वीपः सागरास्तदनन्तरम् ॥ ), ३.१३.५२(कर्म तत्त्वाभिमानी - पर्जन्यानन्तरं ब्रह्मा दशवर्षादनन्तरम् । पुष्करं जनयामास कर्मतत्त्वाभिमानिनम् ॥), ३.२२.२८(पुष्कर के ९ लक्षणों से युक्त होने का उल्लेख - शनिस्तु दशसंख्याकैः पुष्करो नवभिर्युतः ॥), ३.२९.३६(पुष्कर का कर्मात्मा रूप में उल्लेख, शनि से साम्य - कर्मात्मा पुष्करो ज्ञेयः शनेरथ यमो मतः ।), गर्ग ७.२०.३१( प्रद्युम्न - सेनानी, लक्ष्मण से युद्ध ), देवीभागवत ७.३८.२०( पुष्कराक्ष तीर्थ में देवी पुरुहूता के वास का उल्लेख - पुरुहूता पुष्कराक्षे आषाढौ च रतिस्तथा ॥ ), ८.४.२६( शुद्धोदक सिन्धु से परिवेष्टित पुष्कर द्वीप के राजा वीतिहोत्र द्वारा स्वकन्या ऊर्जस्वती उशना को प्रदान करने का कथन - पुष्करद्वीपके शुद्धोदकसिन्धुसमाकुले । वीतिहोत्रो बभूवासौ राजा जनकसम्मतः ॥ ), ८.१३.२७( पुष्कर द्वीप की महिमा का वर्णन - पुष्करद्वीपनामायं शाकद्वीपद्विसंगुणः । स्वसमानेन स्वादूदकेनायं परिवेष्टितः ॥ ), नारद २.७१.१९( पुष्कर तीर्थ का माहात्म्य, वसु व मोहिनी संवाद का प्रसंग - ज्येष्ठे तु पुष्करे स्नात्वा गां च दत्त्वा द्विजातये ।। भुक्त्वेह भोगानखिलान्ब्रह्मलोके महीयते ।। ....), पद्म १.१५.२०( ब्रह्मा द्वारा स्वयं की उत्पत्ति के स्थान पुष्कर वन में प्रवेश, पुष्कर वन के पादपों को वरदान - अहं यत्र समुत्पन्नः पद्मं तद्विष्णुनाभिजम् । पुष्करं प्रोच्यते तीर्थमृषिभिर्वेदपाठकैः॥ ), १.१५.६३( ब्रह्मा द्वारा पुष्कर का भूमि पर क्षेपण, पुष्कर तीर्थ की उत्पत्ति, पुष्कर में दान आदि का महत्त्व - स्थित्वा वर्ष सहस्रं तु पुष्करं प्रक्षिपद्भुवि। क्षितिर्निपतिता तेन व्यकंपत रसातलम् ॥), १.१५.१५१( ज्येष्ठ पुष्कर के ब्रह्म दैवत्य, मध्यम के विष्णु व कनिष्ठ के रुद्र दैवत्य होने का उल्लेख - ज्येष्ठं तु प्रथमं ज्ञेयं तीर्थं त्रैलोक्यपावनम्। ख्यातं तद्ब्रह्मदैवत्यं मध्यमं वैष्णवं तथा॥ कनिष्ठं रुद्रदैवत्यं ब्रह्मपूर्वमकारयत्।), १.१५.१५९( पुष्कर में निवास की विधि का वर्णन : भक्ति के प्रकार, सांख्य, योग का कथन, पुष्कर में वास का महत्त्व ), १.१६( पुष्कर में ब्रह्मा के यज्ञ का वर्णन ), १.१९.१२( ज्येष्ठ पुष्कर के महत्त्व का वर्णन ), १.१९.५७( पुष्कर में अगस्त्य द्वारा आश्रम की स्थापना का वर्णन ), १.२०.२( कनिष्ठ पुष्कर के माहात्म्य के संदर्भ में राजा पुष्पवाहन के पूर्वजन्म का वृत्तान्त : चाण्डाल द्वारा द्वादशी को विष्णु पूजा हेतु कमल अर्पित करने से जन्मान्तर में राजा बनना ), १.२०.४०( ज्येष्ठ पुष्कर में गौ, मध्यम में भूमि तथा कनिष्ठ में काञ्चन दान का निर्देश - ज्येष्ठे गावः प्रदातव्या मध्यमे भूमिरुत्तमा। कनिष्ठे कांचनं देयमित्येषा दक्षिणा स्मृता), १.२०.४१( ज्येष्ठ पुष्कर के ब्रह्मदैवत्य, मध्यम के वैष्णव तथा कनिष्ठ के रुद्र दैवत्य होने का उल्लेख - प्रथमं ब्रह्मदैवत्यं द्वितीयं वैष्णवं तथा ॥ तृतीयं रुद्रदैवत्यं त्रयो देवास्त्रिषु स्थिताः। ), १.३२( पुष्कर तीर्थ की महिमा, पुष्कर तीर्थ के अन्तर्गत सरस्वती की महिमा ), १.३२.१३( पृथु ब्राह्मण द्वारा पुष्कर में स्नान के पश्चात् पांच प्रेतों के दर्शन, संभाषण व प्रेतों के उद्धार का वृत्तान्त ), १.३२.७४( ग्रह - नक्षत्र योग का नाम -- विशाखासु यदा भानुः कृत्तिकासु च चंद्रमाः। स योगः पुष्करो नाम पुष्करेष्वतिदुर्लभः॥ ), १.३२.११२( ज्येष्ठ व मध्यम पुष्कर के मध्य पश्चिमोन्मुखी सरस्वती तथा उदङ्गमुखी गङ्गा के सङ्गम का महत्त्व - ज्येष्ठमध्यमयोर्मध्ये संगमो लोकविश्रुतः॥ पश्चान्मुखी ब्रह्मसुता जाह्नवी तु उदङ्मुखी ), १.३४.५( ब्रह्मा के पुष्कर में आयोजित यज्ञ के ऋत्विजों के नाम व सूक्ष्म कार्य, यज्ञ में लक्ष्मी, गौरी आदि द्वारा सावित्री को लाने का उद्योग ), १.३४.१३१( पुष्कर में ब्रह्मा की सुरश्रेष्ठ नाम से स्थिति का उल्लेख - पुष्करेहं सुरश्रेष्ठो गयायां च चतुर्मुखः। कान्यकुब्जे देवगर्भो भृगुकक्षे पितामहः ॥), १.३४.१७४( पुष्कर में सन्ध्या के महत्त्व का कथन - यैः कृत्वा पुष्करे संध्यां सावित्री समुपासिता। स्वपत्नीहस्तदत्तेन पौष्करेण जलेन तु॥), १.३४.२२५( पुष्कर की प्रशंसा - कृते युगे पुष्कराणि त्रेतायां नैमिषं स्मृतम्। द्वापरे च कुरुक्षेत्रं कलौ गंगां समाश्रयेत्॥), १.४०.९३( विश्वेदेव गण में से एक का नाम - दक्षश्चैव महाबाहुः पुष्करस्तम एव च। चाक्षुषश्च ततोत्रिश्च तथा भद्रमहोरगौ॥ ), २.२७.२२( ब्रह्मा द्वारा वरुण - पुत्र पुष्कर का पश्चिम् दिशा के दिक्पाल पद पर अभिषेक का उल्लेख - पश्चिमायां तथा ब्रह्मा वरुणस्य प्रजापतेः। पुत्रं च पुष्करं नाम सोऽभ्यषिंचत्प्रजापतिः ॥), ३.११.२०( पुष्कर तीर्थ का महत्त्व ), ६.२१८.३५( ज्येष्ठ भ्राता के धन का अपहरण करने वाले दुराचारी भरत द्वारा पुष्कर तीर्थ में मृत्यु से सद्गति प्राप्ति का वृत्तान्त ), ६.२१९.३२( विष्णु द्वारा माघ स्नान के अन्त में पुण्डरीक द्विज को इन्द्रप्रस्थ में पुष्कर तीर्थ में स्नान कराने का वृत्तान्त - उत्तिष्ठ जाह्नवीतोय माघे स्नानं कुरु द्विज। माघांते स्नापयामि त्वां पूर्णिमायां तु पुष्करे॥), ब्रह्मवैवर्त्त २.७.११० (लक्ष्मी के तप का स्थान), ब्रह्माण्ड १.२.१४.१४( पुष्कर द्वीप के जनपदों व वर्षों के नाम - पुष्कराधिपतिं चैव सवनं कृतवान्प्रभुः ।।
      पुष्करे सवनस्याथ महावीतः सुतोऽभवत् ।।), १.२.१८.४५( सीता नदी द्वारा प्लावित जनपदों में से एक - पुष्कराश्च कुलिन्दांश्च अचोंलद्विचराश्च ये ।। कृत्वा त्रिधा सिंहवंतं सीताऽगात्पश्चिमोदधिम् ।। ), १.२.१९.१०८( पुष्कर द्वीप का वर्णन - पुष्करं सप्तमं द्वीपं प्रवक्ष्यामि निबोधत ।। पुष्करेण तु द्वीपेन वृतः क्षीरोदको बहिः ।।... ), २.३.५.७( पुष्कर में कश्यप के अश्वमेध यज्ञ में हिरण्यकशिपु के प्राकट्य का कथन ), २.३.७.२६७( रावण को जीतने के पश्चात् वाली द्वारा पुष्कर में बहुत से यज्ञ करने का कथन - वाली विजित्य बलवान् पुष्करे राक्षसेश्वरम्। आजहार बहून्यज्ञानन्नपानसमावृतान् ॥  ), २.३.३४( मध्य पुष्कर में परशुराम द्वारा मृग - मृगी संवाद का श्रवण ), २.३.३५.३९(परशुराम का कनिष्ठ पुष्कर में अगस्त्य के पास गमन), भविष्य २.२.८.१२८( पुष्कर में महाकार्तिकी पूर्णिमा के विशेष फल का उल्लेख - महाभाद्री बदर्यां च कुजोऽपि स्यान्नरस्तथा ।। महाकार्त्तिकी पुष्करे च कान्यकुब्जे तथोत्तरं ।। ), ३.४.२४.७८( द्वापर के आद्य पद में पुष्कर द्वीप के नरों से पूर्ण होने का उल्लेख - द्वापराद्यपदे पूर्णे भवेद्द्वीपः स पुष्कर ।), ३.४.२५.१७७( ब्रह्मा के पद्म के उत्पत्ति स्थान की पुष्कर क्षेत्र संज्ञा का कथन - यतो जातं विधेः पद्मं तद्वै पद्मसरोवरम् । प्रसिद्धं पुष्करक्षेत्रं तत्पद्मसरसं सुराः । । ), भागवत ५.१.३२( प्रियव्रत के रथ की नेमि से बने ७ द्वीपों में से एक, पुष्कर द्वीप के स्वामी आदि का कथन - जम्बूप्लक्षशाल्मलिकुशक्रौञ्चशाकपुष्करसंज्ञा ), ५.२०.२९( ब्रह्मा के आसन रूप पुष्कर द्वीप की महिमा का वर्णन - यस्मिन्बृहत्पुष्करं ज्वलनशिखामलकनकपत्रायुतायुतं भगवतः कमलासनस्याध्यासनं परिकल्पितम्), ९.१२.१२( सुनक्षत्र - पुत्र, अन्तरिक्ष - पिता, कुश वंश - भविता मरुदेवोऽथ सुनक्षत्रोऽथ पुष्करः । तस्यान्तरिक्षः तत्पुत्रः सुतपास्तद् अमित्रजित् ॥), ९.२१.२०( पुष्करारुणि : दुरितक्षय के ब्राह्मण गति को प्राप्त ३ पुत्रों में से एक - दुरितक्षयो महावीर्यात् तस्य त्रय्यारुणिः कविः ॥ पुष्करारुणिरित्यत्र ये ब्राह्मणगतिं गताः । ), ९.२४.४३( वृक व दुर्वाक्षी के पुत्रों में से एक - तक्षपुष्करशालादीन्दुर्वाक्ष्यां वृक आदधे ॥ ), १०.९०.३४( कृष्ण के १८ महारथी पुत्रों में से एक - .... पुष्करो वेदबाहुश्च श्रुतदेवः सुनन्दनः । ), मत्स्य १३.३०( पुष्कर में देवी की पुरुहूता नाम से स्थिति का उल्लेख - पुष्करे पुरुहूतेति केदारे मार्गदायिनी। ), ४९.३९( पुष्करि : उरुक्षव व विशाला के ब्राह्मणत्व को प्राप्त ३ पुत्रों में से एक - त्र्युषणं पुष्करिं चैव कविं चैव महायशाः।। उरुक्षवाः स्मृता ह्येते सर्वे ब्राह्मणताङ्गताः। ), १००.४( राजा पुष्पवाहन द्वारा शासित पुष्कर द्वीप के पुष्कर नाम का कारण - कल्पादौ सप्तमं द्वीपं तस्य पुष्करवासिनः। लोके च पूजितं यस्मात् पुष्करद्वीपमुच्यते।।  ), १०९.३( पृथिवी पर नैमिष व अन्तरिक्ष में पुष्कर तीर्थों के पुण्य होने का उल्लेख - पृथिव्यां नैमिषं पुण्यमन्तरिक्षे च पुष्करम्। त्रयाणामपि लोकानां कुरुक्षेत्रं विशिष्यते।। ), १२३.१२( पुष्कर द्वीप का वर्णन ), १२५.१२( पर्वतों के पक्षों का नाम, इन्द्र द्वारा छेदन - शक्रेण पक्षाश्छिन्ना वै पर्वतानां महौजसा। कामगानां समृद्धानां भूतानां नाशमिच्छताम्।। पुष्करा नाम ते पक्षा बृहन्तस्तोयधारिणः। ), २०१.३५( ५ कृष्ण पराशरों में से एक - पुष्करः पञ्चमश्चैषां कृष्णाज्ञेयाः पराशराः ।।  ), २४८.१३( भगवान् की देह से पुष्कर द्वीप के उत्थित होने का उल्लेख - तव देहाज्जगज्जातं पुष्करद्वीपमुत्थितम्। ब्रह्माणमिह लोकानां भूतानां शाश्वतं विदुः ।। ), मार्कण्डेय ९८.३/९५.३( प्रम्लोचा व वरुण - पुत्र पुष्कर से उत्पन्न कन्या मालिनी का संदर्भ - जाता वरुणपुत्रेण पुष्करेण महात्मना । । ), वराह ८९.४( इक्षु रस के समुद्र को आवृत करने वाले पुष्कर द्वीप पर मानस पर्वत की स्थिति का उल्लेख - समुद्रश्चेक्षुरसस्तद्द्विगुणेन पुष्करेणावृतः। तत्र च पुष्कराख्ये मानसो नाम पर्वतः। ), वामन ११.४६( पुष्कर द्वीप में स्थित नरकों के नाम ; पुष्कर द्वीप के निवासियों के पैशाच धर्म में रत होने का कथन - किमर्थं पुष्करद्वीपो भवद्भिः समुदाहृतः। दुर्दर्शः शौचरहितो घोरः कर्मान्तनाशकृत्।। ), २२.१९( पुष्कर के वेदियों में प्रतीची वेदी होने का उल्लेख - प्रतीची पुष्करा वेदिस्त्रिभिः कुण्डैरलंकृता। समन्तपञ्चका चोक्ता वेदिरेवोत्तराऽव्यया।।), ५७.९०( अजिशिरा द्वारा स्कन्द को प्रदत्त गणों में से एक ), ६५.१९( गालव द्वारा मध्यम पुष्कर में स्नान के समय मत्स्य - प्रोक्त प्रबोधन का श्रवण कर जल से बाहर न निकलने का वृत्तान्त ), ७२.१७( सात मुनि - पत्नियों द्वारा राजा के पुष्कर पर गिरे हुए शुक्र के पान से ७ मरुतों को जन्म देने का वृत्तान्त - तद् दृष्ट्वा पुष्करे न्यस्तं प्रत्यैच्छन्त तपोधन। मन्यमानास्तदमृतं सदा यौवनलिप्सया।।  ), ९०.१४( पुष्कर में विष्णु का अब्जगन्ध नाम से वास - स्वयंभुवं मधुवते अयोगन्धिं च पुष्करे।।), ९०.४३( पुष्कर द्वीप में विष्णु का वामन नाम - सहस्रांशुः स्थितः शाके धर्मराट् पुष्करे स्थितः।। ), वायु ३३.१४( प्रियव्रत - पुत्र सवन को पुष्कर द्वीप का अधिपति नियुक्त करने का उल्लेख - पुष्कराधिपतिञ्चापि सवनं कृतवान् प्रभुः। पुष्करे सवनस्यापि महावीतः सुतोऽभवत्। ), ४२.६९( अलकनन्दा नदी के शतशतङ्ग पर्वत से निकल कर पुष्कर में तथा पुष्कर से निकल कर द्विराज पर्वत पर गिरने का उल्लेख - शतश्रृङ्गान्महाशैलं पुष्करं पुष्पमण्डितम् ।। पुष्कराच्च महाशैलं द्विराजं सुमहाबलम् । ), ४९.१०४( पुष्कर द्वीप के अन्तर्वर्ती पर्वतों का वर्णन - पुष्करे पर्वतः श्रीमान् एक एव महाशिलः। चित्रै र्मणिमयैः शीलैः शिखरैस्तु समुच्छ्रितैः ।। ), ५०.११९( भास्कर का पुष्कर मध्य से सर्पण सम्बन्धी कथन - एवं पुष्करमध्येन यदा सर्पति भास्करः। त्रिंशांशकन्तु मेदिन्या मुहूर्तेनैव गच्छति ॥ ), ५१.३७( पक्षधारी पुष्कर मेघों की महिमा - पुष्करावर्त्तका नाम ये मेघाः पक्षसम्भवाः ।। शक्रेण पक्षाश्छिन्ना ये पर्वतानां महोजसाम्। ), ६७.५३( पुष्कर में कश्यप के अश्वमेध यज्ञ में हिरण्यकशिपु के प्राकट्य का वृत्तान्त - कश्यपस्याश्वमेधोऽभूत् पुण्यो वै पुष्करे पुरा। ), ७७.४०( श्राद्धोपयुक्त स्थानों में से एक - पुष्करेष्वक्षयं श्राद्धं तपश्चैव महाफलम्। ), ८८.१९०/२.२६.१८९( भरत - पुत्र पुष्कर की पुरी पुष्करावती का उल्लेख - तक्षस्य दिक्षु विख्याता रम्या तक्षशिला पुरी। पुष्करस्यापि वीरस्य विख्याता पुष्करावती ।। ), ९९.१६३/२.३७.१५९( पुष्करि : उभक्षय व विशाला के ३ पुत्रों में से एक - तस्य भार्या विशाला तु सुषुवे वै सुतांस्त्रयः ।।
      त्रय्यारुणिं पुष्करिणं तृतीयं सुषुवे कपिम्। ), विष्णु २.४.५३( क्रौञ्च द्वीप में ब्राह्मण जाति का नाम - पुष्कराः पुष्कला धन्यास्तिष्याख्याश्च महामुने । ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः शूद्राश्चानुक्रमोदिताः ॥ ), २.४.७३( क्षीराब्धि के पुष्कर द्वीप से आवृत्त होने तथा पुष्कर में सवन - पुत्र महावीर के राजा? होने का उल्लेख ; पुष्कर के वर्ष पर्वतों के नाम - क्षीराब्धिः सर्वतो ब्रह्मन्पुष्कराख्येन वेष्टितः । ), २.४.८५( पुष्कर द्वीप में न्यग्रोध के ब्रह्मा का स्थान होने का उल्लेख : पुष्कर द्वीप के स्वादूदक उदधि से परिवेष्टित होने का उल्लेख - न्यग्रोधः पुष्करद्वीपे ब्रह्मणः स्थानमुत्तमम् । ), विष्णुधर्मोत्तर १.१०९.२( पुष्कर तीर्थ में पृथु का अभिषेक - आजग्मुः पुष्करं तीर्थमभिषेक्तुं तदा पृथुम् ।।
      तं चाभिसिषिचुर्देवा रत्नचित्रवरासने ।। ), १.२२३.७( वरुण - पुत्र, ज्योत्स्ना - पति, रावण से युद्ध - पुष्करः प्रददौ युद्धं रावणस्य दुरात्मनः ।। वरुणस्य सुतः श्रीमाञ्जामाता बलिनस्तथा ।। सोमपुत्र्या महाराज ज्योत्स्नया यः स्वयं वृतः ।।), २.१+ ( पुष्कर द्वारा परशुराम को राजधर्म का कथन - राष्ट्रस्य कृत्यं धर्मज्ञ राज्ञ एवाभिषेचनम् ।। अनिन्द्रमबलं राष्ट्रं दस्यवोऽभिभवन्त्युत ।। ), ३.७३.१०( पुष्कर की मूर्ति का रूप - पुष्करश्च तथा कार्यः पद्मपत्रसमप्रभः ।।खड्गं च पुस्तकं चोभौ करयोस्तस्य कारयेत ।।), ३.२२१.३९( पञ्चमी तिथि को पुष्कर की अर्चना से सोमयज्ञ फल प्राप्ति का उल्लेख - वारुणैः पुष्करस्यार्चां पञ्चम्यां यः समाचरेत् ।। सर्वकामसमृद्धस्य सोमयज्ञफलं भवेत् ।। ), शिव २.५.८.९( शिव के रथ में पुष्कर का अन्तरिक्ष बनना - ऋतवो नेमयः षट् च तयोर्वै विप्रपुंगव ।। पुष्करं चांतरिक्षं वै रथनीडश्च मंदरः ।। ), ५.१८.५९( क्षीराब्धि को परिवेष्टित करने वाले तथा स्वादूदक अब्धि से आवृत पुष्कर द्वीप पर स्थित मानस वर्ष तथा न्यग्रोध वृक्ष का कथन - क्षीराब्धिस्सर्वतो व्यास पुष्कराख्येन संवृतः ।। द्विगुणेन महावर्षस्तत्र ख्यातोऽत्र मानसः।। ), स्कन्द २.३.७.१( बदरी क्षेत्र की नैर्ऋत् दिशा में स्थित प्रभास, पुष्कर आदि ५ धाराओं का माहात्म्य - प्रभासं पुष्करं चैव गयां नैमिषमेव च ।।
      कुरुक्षेत्रं विजानीहि द्रवरूपं षडानन ।। ), २.४.२.२६( कार्तिक मास में पुष्कर स्मरण का निर्देश - प्रयागो माघमासे तु पुष्करं कार्तिके तथा ।। अवन्ती माधवे मासि हन्यात्पापं युगार्जितम् ।।), २.४.२.३२टीका( पापी व पुण्यात्मा पुष्कर पुरुष , नाम स्मरण का माहात्म्य ), ५.२.६५.३५( ब्रह्मेश्वर शिव के दर्शन का पुष्कर में तप करने से अधिक फल का उल्लेख - यः पुष्करं नरो गत्वा तपो वर्षशतं चरेत् ।।
      अन्यो ब्रह्मेश्वरं पश्येत्तस्य पुण्यं ततोऽधिकम् ।।  ), ५.३.५९( पुष्करिणी में आदित्य तीर्थ का माहात्म्य - कुरुक्षेत्रे यथा वृद्धिर्दानस्य जगतीपते । पुष्करिण्यां तथा दानं वर्धते नात्र संशयः ॥ ), ५.३.१३९.१०( इन्द्रियग्राम का संनिरोध करने पर वहीं पुष्कर आदि तीर्थों के स्थित हो जाने का उल्लेख - संनिरुध्येन्द्रियग्रामं यत्रयत्र वसेन्मुनिः ।तत्रतत्र कुरुक्षेत्रं नैमिषं पुष्कराणि च ॥ ), ५.३.१९५.४( पृथिवी पर कुरुक्षेत्र, अन्तरिक्ष में त्रिपुष्कर तथा द्युलोक में पुरुषोत्तम तीर्थों के परम तीर्थ होने का उल्लेख - कुरुक्षेत्रं भुवि परमन्तरिक्षे त्रिपुष्करम् । पुरुषोत्तमं दिवि परं देवतीर्थं परात्परम् ॥), ५.३.१९८.६७( पुष्कर में देवी की पुरुहूता नाम से स्थिति का उल्लेख - पुष्करे पुरुहूता च केदारे मार्गदायिनी ॥), ५.३.१९८.८१( प्रभास तीर्थ में देवी की पुष्करावती नाम से स्थिति का उल्लेख - सोमेश्वरे वरारोहा प्रभासे पुष्करावती । वेदमाता सरस्वत्यां पारा पारातटे मुने ॥ ), ६.४५( त्रिपुष्कर का माहात्म्य, विश्वामित्र द्वारा ज्येष्ठ, मध्यम व कनिष्ठ पुष्कर के दर्शन, पद्मों की स्थितियों द्वारा पुष्करों का अभिज्ञान, बृहद्बल राजा का वृत्तान्त - तत्रोर्ध्वास्यैः सरोजैश्च विज्ञेयं ज्येष्ठपुष्करम् ॥ पार्श्ववक्त्रैर्द्विजश्रेष्ठ मध्यमं परिकीर्तितम् ॥अधोवक्त्रैस्तथा ज्ञेयं कनिष्ठं पुष्करं क्षितौ ॥), ६.४५.३७( कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुष्कर स्नान का माहात्म्य, कार्तिक पूर्णिमा को ज्येष्ठ पुष्कर में कमल में अङ्गुष्ठ मात्र पुरुष के दर्शन होने का वृत्तान्त - तदा निष्क्रामति श्रेष्ठं कमलं जलमध्यतः ॥ तन्मध्येंऽगुष्ठमात्रस्तु पुरुषो दृश्यते जनैः ॥), ६.१७९.३७( ब्रह्मा के पद्म क्षेप से तीन पुष्करों की उत्पत्ति , ब्रह्मा का यज्ञ - पत त्वं पद्म भूपृष्ठे कलिर्यत्र न विद्यते ॥ येनानयामि तत्रैव पुष्करं तीर्थमात्मनः ॥ ), ७.१.१०.८(पुष्कर तीर्थ का वर्गीकरण – तेज - अमरेशं प्रभासं च नैमिषं पुष्करं तथा ॥….आदि गुह्याष्टकं ह्येतत्तेजस्तत्त्वे प्रतिष्ठितम् ॥), ७.१.११५( पुष्करेश्वर का माहात्म्य, सनत्कुमार द्वारा पूजित पुष्कर का संक्षिप्त माहात्म्य ), ७.१.१३४.१( पुष्करावर्त तीर्थ व नदी का माहात्म्य, ब्रह्मा द्वारा सन्ध्या कार्य हेतु प्रभास में पुष्कर का आह्वान - यावत्स्थास्याम्यहं मर्त्ये कस्मिंश्चित्कारणांतरे ॥ तावत्संध्यात्रयं वंद्यं नित्यमेव त्रिपुष्करे ॥ ), ७.१.१४४( तृतीय पुष्कर में पुष्कर कुण्ड का माहात्म्य ), ७.१.१७३( पुष्करेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य - कुशकेश्वरनामेति लिंगं वै प्रथमं स्मृतम् ॥ गर्गेश्वरं द्वितीयं तु तृतीयं पुष्करेश्वरम् ॥ ), ७.१.२९४.१( कैवर्त द्वारा पुष्कर में अजोगन्ध शिव के मन्दिर पर जाल व ध्वजा फहराने से जन्मान्तर में राजा बनने का वृत्तान्त - गव्यूतिपंचके देवि पुष्करंनाम नामतः ॥ यत्र सिद्धो महादेवि कैवर्तो मत्स्यघातकः ॥ ), ७.३.५४( अर्बुद पर्वत पर त्रिपुष्कर का माहात्म्य ), हरिवंश ३.१२०.१६( कृष्ण और हंस - डिम्भक में युद्ध का स्थल ), महाभारत अनुशासन ९४.८( अगस्त्य द्वारा प्राप्त पुष्करों की चोरी पर ऋषियों व राजर्षियों के शपथ वचन ), योगवासिष्ठ १.२५.२१( नियति के हाथ में डमरु रूपी पुष्कर मेघ - प्रमत्तपुष्करावर्तडमरोड्डामरारवैः ), ३.४०.५३( संसार वन में चित्त रूपी पुष्कर - चित्तपुष्करबीजान्तर्निलीनानुभवाङ्कुरः ।।), वा.रामायण १.६१.१( विश्वामित्र द्वारा दक्षिण दिशा में विघ्नों को देखकर पश्चिम दिशा में ज्येष्ठ पुष्कर में गमन, शुनःशेप की रक्षा), १.६२.२(विश्वामित्र द्वारा ज्येष्ठ पुष्कर में शुनःशेप की रक्षा, मेनका का विघ्न), ७.२३.२८( वरुण - पुत्र पुष्कर आदि की रावण से युद्ध में पराजय ), लक्ष्मीनारायण १.२०९.२७( श्रीहरि द्वारा बदरी क्षेत्र में निर्मित दण्डपुष्करिणी तीर्थ के महत्त्व का कथन - दण्डेन च भुवं हत्वा क्रीडापुष्करिणी कृता ।। ), १.३८०.१( मध्यम पुष्कर में उत्पन्न मृगी के पातिव्रत्य का वृत्तान्त, परशुराम के दर्शन से जातिज्ञान होना आदि ), १.४९५.२८( विश्वामित्र के भय से अग्नि का पुष्कर में जल में छिपने तथा मत्स्य द्वारा देवों को अग्नि की स्थिति की सूचना देने का कथन ), १.४९८.१०( मकर सङ्क्रान्ति को पुष्कर दान के महत्त्व का कथन, रानी दमयन्ती द्वारा दान की कथा ), २.३०.८२( प्रतीची वेदी के रूप में पुष्कर का उल्लेख - प्राग्वेदिका गयावेदिर्विरजा दक्षिणा तु वै ।। प्रतीची पुष्करा वेदिस्त्रिभिः कुण्डैरलंकृता ।), २.२५०.६४( पुष्कर अरण्य में दरिद्र विप्र विशालिक द्वारा लोमश की कृपा से धन प्राप्ति तथा धन की व्यर्थता के दर्शन का वृत्तान्त ), ३.५१.३३( च्यवन की कृपा से कृष्णता दूर करने वाले हंस रूप धारी तीर्थों में से एक - त्रयश्चान्ये तु हंसास्ते रेवा गोदा च पुष्करम् । ), ३.१३९.७७( विशोक द्वादशी को पुष्कर दान से लुब्धक व उसकी पत्नी का जन्मान्तर में राजा पुष्करवाहन व उसकी रानी बनने का वृत्तान्त ), ४.८०.१६( नागविक्रम राजा के सर्वमेध यज्ञ में पौष्कर विप्रों के हवनार्थी होने का उल्लेख - जापकाश्चार्बुदा विप्राः पौष्करा हवनार्थिनः । यामुनेया द्विजाश्चासन् दिक्पाला वैष्णवोत्तमाः ।। ), कथासरित् ६.२.११३( पुष्करावती के राजा गूढसेन के पुत्र द्वारा स्वयंवर में भाग लेने हेतु गमन तथा मार्ग में शाप प्राप्ति का वृत्तान्त - अनाख्याय कथां सुप्तः पापोऽयं तच्छपाम्यहम् । परिद्रक्ष्यत्यसौ हारं प्रातस्तं चेद्ग्रहीष्यति ।। ), ७.३.२२( प्रालेय शैलाग्र पर पुष्करावती नगरी की विद्याधरी अनुरागपरा का वृत्तान्त ), ८.२.८३( काल नामक द्विज द्वारा पुष्कर तीर्थ में जप सिद्धि का कथन ), ९.६.२९४( नल - दमयन्ती आख्यान के अन्तर्गत पुष्कर द्वारा अग्रज नल को द्यूत में हराने का कथन ) pushkara

      पुष्कर १) क्षेत्र । तीर्थगुरु ( आदि० २२० । १४) । अर्जुन ने अपने वनवास का शेष समय यहीं व्यतीत किया था ( आदि० २२० । १४) । पुलस्त्यजी द्वारा इसका विशेष वर्णन ( वन० ८२ । २०--४०) - दुष्करं पुष्करं गन्तुं दुष्करं पुष्करे तपः।
      दुष्करं पुष्करे दानं वस्तुं चैव सुदुष्करम् ।।  । धौम्य द्वारा इसके माहात्म्य का वर्णन ( वन० ८९ । १६- १८) । पुष्कर में जाकर मृत्यु ने घोर तप किया था( द्रोण० ५४ । २६) । यहाँ ब्रह्माजी का यज्ञ हुआ था, जिसमें सरस्वती सुप्रभा नाम से प्रकट हुई थी ( शल्य० ३८ । ५-१४) - पितामहेन यजता आहूता पुष्करेषु वै। सुप्रभा नाम राजेन्द्र नाम्ना तत्र सरस्वती।।। पुष्कर में जाकर दान देना, भोगों का त्याग करना, शान्त भाव से रहना, तपस्या और तीर्थ के जल से तनमन को पवित्र करना चाहिये ( शान्ति० २९७ । ३७) । यहाँ स्नान करने से मनुष्य विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में जाता है और अप्सराएँ स्तुति करती हुई जगाती हैं ( अनु० २५ । ९) । ( २) वरुणदेव के प्रिय पुत्र, इनके नेत्र विकसित कमल के समान दर्शनीय हैं; इसीलिये सोम की पुत्री ने इनका पतिरूपसे वरण किया है ( उद्योग० ९८ । १२)- रूपवान्दर्शनीयश्च सोमपुत्र्या वृतः पतिः ।। ज्योत्स्नाकालीति यामाहुर्द्वितीयां रूपतः श्रियम् । । ( ३) ये राजा नल के छोटे भाई थे ( वन० ५२ । ५६) । इन्हें कलियुग का राजा नल के साथ जूआ खेलने के लिये आदेश देना - गत्वा पुष्करमाहेदमेहि दीव्य नलेन वै ।। अक्षद्यूते नलं जेता भवान्हि सहितो मया। ( वन० ५९ । ४) । इनका राजा नल के साथ जूआ खेलना ( वन ०५९ । ९) । पुष्कर ने राजा नल का सर्वस्व जीत लिया था ( वन० ६१ । १) । इनका राजा नल के साथ पुनः जूआ खेलना और सर्वस्व हारना ( वन० ७८ । ४-२०) - द्वयोरेकतरे बुद्धिः क्रियतामद्य पुष्कर । कैतवेनाक्षवत्यां वा युद्धे वा नम्यतां धनुः ।।। नल से क्षमा माँगकर इनका अपनी राजधानी को लौट जाना (वन० ७८ । २७-२९) । ( ४) एक द्वीप, इसका विशेषरूप से वर्णन ( भीष्म० १२ । २४-३७) - पुष्करे पुष्करो नाम पर्वतो मणिरत्नवान् ।। तत्र नित्यं प्रभवति स्वयं देवः प्रजापतिः । । ( ५) पुष्करद्वीप का एक पर्वत, जो मणियों तथा रत्नों से भरा-पूरा है ( भीष्म० १२ । २४-२५) ।


      पुष्करधारिणी- ये विदर्भनिवासी उच्छवृत्तिधारी तथा अहिंसापरायण सत्य नामक ब्राह्मण की धर्मचारिणी पत्नी थीं ( शान्ति० २७२ । ३-६) ।


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      पुष्करद्वीप विष्णु २.४.७३( क्षीराब्धि के पुष्कर द्वीप से आवृत्त होने तथा पुष्कर में सवन - पुत्र महावीर के राजा? होने का उल्लेख ), २.४.८५( पुष्कर द्वीप में न्यग्रोध के ब्रह्मा का स्थान होने का उल्लेख ; पुष्कर द्वीप के स्वादूदक उदधि से परिवेष्टित होने का उल्लेख - धातकीखण्डसंज्ञेऽथ महावीरे च वै मुने ॥ न्यग्रोधः पुष्करद्वीपे ब्रह्मणः स्थानमुत्तमम् । ), द्र. पुष्कर



      पुष्कराक्ष ब्रह्मवैवर्त्त ३.३८.१( पिता सुचन्द्र की युद्ध में मृत्यु के पश्चात् पुत्र पुष्कराक्ष का परशुराम से युद्ध के लिए आगमन ), ३.३८.२३( पुष्कराक्ष के वध में असफलता पर नारायण द्वारा परशुराम को पुष्कराक्ष के वध की युक्ति बताना, विप्र रूपधारी नारायण द्वारा पुष्कराक्ष से महालक्ष्मी कवच को भिक्षा रूप में प्राप्त करना ), ब्रह्माण्ड २.३.४०.१( सुचन्द्र - पुत्र, परशुराम से युद्ध व मृत्यु ), कथासरित् १२.२.८४( भद्राक्ष - पुत्र पुष्कराक्ष के पुष्कराक्ष नाम का कारण, पुष्कराक्ष के पूर्व जन्मों का वृत्तान्त, पुष्कराक्ष द्वारा पूर्व जन्म की भार्या को पुन: भार्या रूप में प्राप्त करना - हृत्पुष्करप्रसादेन जातोऽयमिति तं च सः । पुष्कराक्षं नृपश्चक्रे नाम्ना पुत्रं सुलक्षणम् ।। ) pushkaraaksha/ pushkaraksha



      पुष्करावर्त्त ब्रह्माण्ड १.२.२२.४०( तृतीय वायु के आश्रित पुष्करावर्त्त मेघ के गुणों का कथन ), ३.४.२८.६३( पुष्कलावर्तक मेघों द्वारा वर्षा किए गए अमृत रूप जल के गुणों का कथन ), मत्स्य १२४.११( पक्ष वाले पुष्करावर्त्त मेघों के नाम का कारण व गुणों का वर्णन ), वायु ५१.३७( वही), योगवासिष्ठ ६.२.७६( पुष्करावर्त डम्बर वर्णन नामक सर्ग में कल्पान्त में अग्नि, वायु, पुष्करावर्त मेघों के उपद्रवों का वर्णन ), ६.२.७७( पुष्करावर्त वृष्टि विसंष्ठुल जगत् वर्णन नामक सर्ग ) pushkaraavarta/ pushkaravarta



      पुष्करिणी ब्रह्माण्ड १.२.३६.१०२( वारुणी/वीरिणी? पुष्करिणी द्वारा चाक्षुष मनु को जन्म देने का उल्लेख ), भविष्य २.३.४.३०( पुष्करिणी प्रतिष्ठा विधि ), ४.९४.५०( अनन्त व्रत कथा में कौण्डिन्य द्वारा पुष्करिणी - द्वय से अनन्त के विषय में पृच्छा, पुष्करिणियों के धर्माधर्म व्यवस्थान होने का उल्लेख, दान रहित ब्राह्मणियों के पुष्करिणी बनने का कथन ), भागवत ४.१३.१४( व्युष्ट - पत्नी, सर्वतेजा - माता ), ४.१३.१७( उल्मुक व पुष्करिणी से उत्पन्न ६ पुत्रों के नाम ), मत्स्य १९०.१६( पुष्करिणी तीर्थ में स्नान का संक्षिप्त माहात्म्य ), विष्णु १.१३.३( वारुणी/वीरिणी? पुष्करिणी द्वारा चाक्षुष मनु को जन्म देने का उल्लेख ), स्कन्द २.४.३६.१( कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी आदि तीन तिथियों की अतिपुष्करिणी संज्ञा ), ३.१.३.४९( धर्म पुष्करिणी का माहात्म्य : धर्म द्वारा तप से शिव का वाहन बनना, गालव के तप का स्थान, चक्र द्वारा तपोरत गालव की रक्षा ), ४.१.२६.५२( विष्णु द्वारा काशी में निर्मित चक्र पुष्करिणी का माहात्म्य, विष्णु द्वारा पुष्करिणी तट पर तप, पुष्करिणी द्वारा मणिकर्णिका नाम प्राप्ति का कारण ), ५.३.५९( रेवा के उत्तर तट पर स्थित पुष्करिणी तीर्थ का माहात्म्य, आदित्य - पूजा ), लक्ष्मीनारायण १.२०९.२७( श्रीहरि द्वारा बदरी क्षेत्र में निर्मित दण्डपुष्करिणी क्षेत्र के महत्त्व का कथन ), १.३११.३५( समित्पीयूष नृप की २७ पत्नियों में से एक, कृष्ण को कुण्डल अर्पित करना, नक्षत्र बनना ), द्र वंश ध्रुव pushkarinee/ pushkarini

      पुष्करिणी-सम्राट् भरत की पुत्रवधू तथा भुमन्यु की पत्नी । इनके गर्भ से सुहोत्र, दिविरथ, सुहोता, सुहवि, सुयजु और ऋचीक नामक छः पुत्र हुए थे ( आदि० ९४ । २३-२५) ।





      पुष्कल पद्म ५.११.४( भरत - पुत्र, यज्ञीय अश्व रक्षा प्रसंग में शत्रुघ्न के पृष्ठ रक्षक ), ५.४१.१०( हय रक्षक पुष्कल का रुक्माङ्गद से युद्ध ), ५.४२( पुष्कल का राजा वीरमणि से युद्ध, पुष्कल की जय ), ५.४३.२१( वीरभद्र द्वारा युद्ध में पुष्कल का वध, अमृत संजीवनी द्वारा पुन: संजीवन ), ५.४५.२२( हनुमान द्वारा पुष्कल को जीवित करने हेतु द्रोण पर्वत से ओषधि के आहरण का वृत्तान्त - एवमुक्त्वा भेषजं तत्पुष्कलस्य महोरसि। शिरः कायेन संधाय जगाद वचनं शुभम्॥ ), ५.६७.३७( कान्तिमती - पति ), वायु ४४.२०( पुष्कला : केतुमाल देश की नदियों में से एक ), विष्णु २.४.५३( क्रौञ्च द्वीप में क्षत्रिय जाति की पुष्कल संज्ञा का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.२०९.१( पुष्कली तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : अश्वमेध फल की प्राप्ति ), वा.रामायण ७.१००.१६( भरत - पुत्रों तक्ष व पुष्कल द्वारा भरत के साथ गन्धर्व नगर पर आक्रमण के लिए प्रस्थान ), ७.१०१.११( पुष्कल का गान्धार देश में पुष्कलावत नगर का राजा बनने का उल्लेख ) pushkala

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      पुष्कस शिव ४.२०.१३( कर्कटी राक्षसी की माता के रूप में पुष्कसी का उल्लेख ; कर्कट - भार्या ), लक्ष्मीनारायण ३.१०२.९२( भारुण्ड नामक पुष्कस का मृत्यु - पश्चात् नरक में जाना, पुष्कस की पत्नी द्वारा गोदान से पापों का गौ में प्रवेश करना व प्रेत की मुक्ति ), ३.२१०.२२( यज्ञराध नामक भक्त पुष्कस द्वारा ब्रह्मायन ऋषि के समागम से मोक्ष की प्राप्ति ; देह के पुष्कस तथा आत्मा के निर्मल होने का उल्लेख ) pushkasa



      पुष्टि अग्नि २७४.४( पुष्टि द्वारा पति धाता को त्याग कर सोम की सेवा में जाने का उल्लेख ), देवीभागवत ९.१.१०१( गणपति - पत्नी ), नारद १.६६.८७( गोविन्द की शक्ति ), १.६६.१२५( विनायक की शक्ति पुष्टि का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.१०५( पुष्टि के गणपति की पत्नी होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.१.५.६१( देवों में ब्रह्मा द्वारा पुष्टि रूप में प्रवेश ), १.२.३५.५२( सामगाचार्य कृत के २४ शिष्यों में से एक ),२.३.६५.२६( सोम की सेवा करने वाली ९ देवियों में से एक ), २.३.७१.१७२( वसुदेव व मदिरा के पुत्रों में से एक ), ३.४.१.७९( ११वें सावर्णि मन्वन्तर में सप्तर्षियों में एक पुष्टि आङ्गिरस का उल्लेख ), ३.४.१.८६( रोहित नामक देवगण के १० देवों में से एक ), ३.४.३५.९४( ब्रह्मा की कलाओं में से एक ), ३.४.४४.७१( ५१ वर्णों की शक्तियों में तीसरे वर्ण की शक्ति पुष्टि का उल्लेख ), वायु ६२.८२/२.१.८२( ध्रुव व भूमि के २ पुत्रों में से एक पुष्टि द्वारा स्व छाया रूपी नारी से ५ पुत्रों को उत्पन्न करने का कथन ), ९०.२५/२.२८.२५( सोम की सेवा करने वाली ९ देवियों में से एक ), ९६.१७०/२.३४.१७०( वसुदेव व मदिरा के पुत्रों में से एक ), विष्णु १.७.२३( दक्ष व प्रसूति की कन्याओं में से एक, धर्म की १३ पत्नियों में से एक, लोभ - माता ), स्कन्द ५.३.१९८.८४( देवदारु वन में देवी के पुष्टि नाम से वास का उल्लेख ), ५.३.१९८.८५( वस्त्रेश्वर पीठ में देवी की पुष्टि नाम से स्थिति का उल्लेख ) pushti



      पुष्प अग्नि २०२.१६( देव पूजा के योग्य व अयोग्य पुष्पों का वर्णन, अहिंसा आदि आठ आध्यात्मिक भाव पुष्पों का कथन, महाभूत रूप आठ पुष्पिकाओं का कथन ), २४८.१( विष्णु अर्चन हेतु ग्राह्य व अग्राह्य पुष्पों के नाम ), गणेश १.६९.३७( गणेश को पुष्पाञ्जलि अर्पित करने का मन्त्र : यज्ञेनेति ), गरुड ३.२९.६६(पुष्प छेदन काल में कपिल के ध्यान का निर्देश), नारद १.६७.६१( विभिन्न देवों की पूजा में वर्ज्य - अवर्ज्य पुष्पों का कथन ), १.६७.१२०( हृदय रूपी सरोवर में सुषुम्ना द्वारा( ? ) उत्पन्न पुष्प का उल्लेख ), १.८७.८१( विभिन्न पुष्पों के होमों से विभिन्न प्रकार के वशीकरणों की प्राप्ति होने का वर्णन ), १.८७.१४६( विभिन्न पुष्पों के होमों से विभिन्न प्रकार के वशीकरण व कार्यसिद्धियों का कथन ), १.९०.६९( विभिन्न पुष्पों से प्राप्य सिद्धियों का कथन ), पद्म १.२२.८५( मास अनुसार गौरी पूजार्थ पुष्प ), ५.८४.५७( अहिंसा आदि ८ आध्यात्मिक पुष्प ), ६.८७( मास अनुसार पुष्पों द्वारा हरि पूजा ), ६.९२.२४( विष्णु, शिव आदि देवों की पूजा में वर्जित पुष्पों के नाम ), ६.१२१.१४( केतकी व मुनि पुष्पों द्वारा केशवार्चन का महत्त्व ), ब्रह्माण्ड १.१.५.१०१( ब्रह्मवृक्ष में धर्म - अधर्म पुष्प ), १.२.१६.२२( भारतवर्ष के पर्वतों में से एक ), १.२.१६.३६( पुष्पजाति : मलय पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक ), २.३.७.२४३( पुष्पध्वंस : प्रधान हरियों/वानरों में से एक ), २.३.६१.२०९( हिरण्यनाभ - पुत्र, ध्रुवसन्धि - पिता ), भविष्य १.४७.३५( करवीर पुष्प ), १.६८( सूर्य हेतु पुष्प ), १.११५.२३( भास्कर पूजा में प्रशस्त व वर्जित पुष्पों के नाम ), १.१६३.५६( रवि पूजा में पुष्पों की आपेक्षिक श्रेष्ठता का कथन ), १.१९७.१( विभिन्न पुष्पों से सूर्य की पूजा के फलों का कथन ), ४.२५.३३(संवत्सर की तृतीया तिथियों को ललिता/उमा की पूजार्थ पुष्पों के नाम ), ४.२६.२२( विभिन्न मासों की शुक्ल तृतीया तिथियों में गौरी पूजार्थ पुष्पों के नाम ), ४.२०६.१७( चन्द्रमा की मासानुसार पूजा हेतु पुष्पों के नाम ), भागवत ५.२०.१०( पुष्पवर्ष : शाल्मलि द्वीप के ७ वर्ष पर्वतों में से एक ), मत्स्य १९.११( श्राद्ध में श्रद्धा पुष्प का निरूपण : प्रदत्त का विभिन्न योनियों में वितरण ), ६२.२२( ललिता पूजा हेतु मास अनुसार पुष्प ), ९५.२४( शिव पूजा हेतु मास अनुसार पुष्प ), ११४.३०( पुष्पजा : मलय पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक ), १९६.१४( पुष्पान्वेषी : प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक ), वराह १५७.१९( मथुरा के अन्तर्गत पुष्पस्थल क्षेत्र का माहात्म्य ), वायु ४५.९२( भारतवर्ष के पर्वतों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर १.९७( ग्रह, नक्षत्रों के लिए देय पुष्पों के नाम ), १.१६८.२( अरण्य से आहृत पुष्प आदि से केशवार्चन के महत्त्व का कथन ), २.९१.६( देवताओं को देय - अदेय पुष्पों के लक्षण ), शिव १.७.१९( केतकी पुष्प : ब्रह्मा द्वारा स्तम्भ के अन्त की खोज के संदर्भ में केतकी द्वारा मिथ्या साक्ष्य पर शिव का शाप ), १.८.१४( मिथ्या साक्षी के कारण शिव द्वारा केतकी को शाप ), २.१.१४.१( विभिन्न कामनाओं की पूर्त्ति के लिए विभिन्न पुष्पों से शिव की अर्चना का वर्णन ), ४.३४.१८( विष्णु द्वारा सहस्रकमलों द्वारा शिव की सहस्रनामों से अर्चना करते समय शिव द्वारा एक कमल चुरा लेने पर विष्णु द्वारा नेत्र को कमल रूप में अर्पित करने का वृत्तान्त ), ५.१२.१९( पुष्पों से सुरगणों, फलों से पितरों तथा छाया से अतिथियों की पूजा का निर्देश ), ५.५१.४८( पार्वती को तुलसी के अतिरिक्त सभी कुसुम प्रिय होने का उल्लेख ), स्कन्द १.१.१७.२५०( प्रात:, माध्यन्दिन व सायं सवनों में लिङ्ग अर्चना हेतु पुष्पों के नाम ), २.२.४४.४( सांवत्सर व्रत में १२ पूर्णिमाओं में श्रीहरि को अर्पणीय १२ पुष्पों के नाम ), २.५.७.१( विष्णु पूजा में पुष्प के महत्त्व का कथन ), २.५.७.१७( विष्णु पूजा में विभिन्न पुष्पों का आपेक्षिक महत्त्व ), ५.१.३१.७६( अवन्तिका में पुष्पकरण्ड तीर्थ में स्नान के फल का उल्लेख : पुष्पक विमान से स्वर्ग की यात्रा ), ५.३.५१.३०( आठ आध्यात्मिक पुष्प व भौतिक प्रकार ), ५.३.५६.१०३( आराम, अरण्य आदि ४ प्रकार से प्राप्त पुष्पों के आपेक्षिक महत्त्व का कथन ), ६.१५५+ ( पुष्पादित्य का माहात्म्य, मणिभद्र क्षत्रिय द्वारा अपमान के प्रतिशोध के लिए पुष्प ब्राह्मण द्वारा स्थापना ),६.१५६+ ( मणिभद्र द्वारा पुष्प ब्राह्मण का अपमान, पुष्प द्वारा सूर्य आराधना से मणिभद्र रूप धारण करके उसकी पत्नी पर अधिकार ), ६.२३९.३८( चातुर्मास में लक्ष्मी की पुष्प पूजा के महत्त्व का कथन ), ७.१.१७.१११( सूर्य पूजार्थ पुष्प का महत्त्व ), ७.१.२४.४३( सोमनाथ पूजा में पुष्पों का आपेक्षिक महत्त्व ), हरिवंश २.६५.१४( कृष्ण द्वारा नारद से प्राप्त पारिजात पुष्प रुक्मिणी को देना, पारिजात पुष्प के महत्त्व का वर्णन ), २.८०.४८( गात्र को सुन्दर बनाने के लिए पुष्प/रजोदर्शन काल में पति को देवता बनाने का निर्देश ), २.८६.४४(नारद द्वारा अन्धकासुर को मन्दार व सन्तान पुष्पों के महत्त्व का वर्णन ), महाभारत अनुशासन ९८.२०( सुमन की परिभाषा व देवों को सुमन अर्पण का महत्त्व ), ९८.२८( देवों, गन्धर्वों आदि के लिए उपयुक्त पुष्पों का कथन ), आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृ. ६३४१( माधव को प्रिय व अप्रिय पुष्पों के नाम, पुष्पों की आपेक्षिक प्रियता ), योगवासिष्ठ १.१७.२४( संसार जङ्गल में जरा रूपी पुष्प ), ६.१.२९.१२९( बोध, साम्य?, शम पुष्पों का उल्लेख ), महाभारत अनुशासन ९८.२०( सुमन की निरुक्ति : मन को ह्लाद देने वाले ), लक्ष्मीनारायण १.४०१.१२८( भीम नामक कुलाल द्वारा श्रीहरि को मृन्मय तुलसी पुष्प अर्पित करने का उल्लेख ), १.४५१.७५( इन्द्रिय पुष्प, वपु धूप - अगुरु, हृदय सुप्रदीप, प्राण हवि, करण अक्षत होने का उल्लेख ), १.५६८.६३( विभिन्न मासों की द्वादशी तिथियों में अर्पणीय पुष्पों का कथन ), १.५७४.८९( वारिज, सौम्य आदि ८, अहिंसा, इन्द्रिय निग्रह आदि ८, राधा, लक्ष्मी आदि ८ पुष्पों का कथन ), कथासरित् १२.३.९१( वृष व गर्दभ द्वारा जालपाशों को स्वविष्ठा से सुपुष्प व विषपुष्प युक्त बनाने का कथन ), द्र. जातिपुष्प, मन्दारपुष्प, मेघपुष्प pushpa



      पुष्पक अग्नि १०४.११( प्रासाद का एक प्रकार ), गणेश १.३७.३२( गृत्समद द्वारा गणेश अर्चना स्थल की पुष्पक पुर नाम से ख्याति ), १.३७.४२( त्रेता व द्वापर में पुष्पक नगर की मणिपूर व भानक नामों से प्रसिद्धि ), ब्रह्म १.६७.३६( रावण द्वारा इन्द्र से छीनी गई वासुदेव प्रतिमा को पुष्पक विमान से लङ्का में लाने का उल्लेख ), मत्स्य १९३.१०( अङ्गारक पूजा से पुष्पक विमान से शैव पद प्राप्ति का कथन ), २६८.१५( वास्तुमण्डल में सुग्रीव देवता हेतु पुष्पक देने का निर्देश ), २७०.६( ६४ स्तम्भों वाले मण्डप के पुष्पक नाम का उल्लेख ), वायु १.३९.६२( पुष्पक पर्वत पर मुनियों, यम, सोम, वायु आदि के वास का उल्लेख ), ३६.३२( महाभद्र सरोवर के उत्तर में स्थित पर्वतों में से एक ), ३८.७१( पुष्पक शैल व महामेघ के बीच स्थित भूमि के गुणों का कथन ), ३९.६२( पुष्पक शैल पर मुनिगणों के निवास का उल्लेख ), ४१.६( कुबेर की विपुला नामक सभा में पुष्पक विमान की स्थिति तथा महिमा का कथन ), शिव ५.११.७( पुष्पाराम का निर्माण करने वालों द्वारा पुष्पक यान से यात्रा करने का उल्लेख ), वा.रामायण ५.८.८( हनुमान द्वारा लङ्का में रावण के विमान रूप भवन के मध्य में स्थित पुष्पक का दर्शन, पुष्पक की दिव्यता का वर्णन ), ६.१२१.२३( पुष्पक विमान की शोभा का वर्णन, राम का पुष्पक विमान द्वारा अयोध्या प्रत्यागमन ), ७.३.१९( ब्रह्मा द्वारा वैश्रवण कुबेर को पुष्पक विमान प्रदान करने का उल्लेख ), ७.४१( राम द्वारा पुष्पक विमान को स्मरण करने पर प्रकट होने का निर्देश तथा यथेच्छ विचरण का आदेश आदि ) pushpaka



      पुष्पकरण्ड स्कन्द ५.१.३१( पुष्पकरण्ड तीर्थ का माहात्म्य ), कथासरित् १२.२६.३३( मृगाङ्कदत्त द्वारा पुष्पकरण्ड उद्यान में अपनी प्रेयसी शशाङ्कवती के दर्शन का वृत्तान्त ),



      पुष्पकेतु लिङ्ग १.५०.१५( पुष्पकेतु पर्वत पर यम, सोम, वायु व शेष का वास )



      पुष्पचूड देवीभागवत ८.१४.१०( लोकालोक पर्वत पर स्थित ४ दिग्गजों में से एक )



      पुष्पदत्त कथासरित् १.१.५७( शिव गण, जया - पति, पार्वती द्वारा मनुष्य बनने का शाप ),



      पुष्पदन्त अग्नि १०५.७( ८१ पदों वाले वास्तुमण्डल में पश्चिम् दिशा के देवताओं में से एक ), गणेश १.१७.२१( शिव द्वारा पुष्पदन्त को गानरत विष्णु के पास भेजना ), १.४३.२( त्रिपुर व शिव के युद्ध में पुष्पदन्त के भीमकाय से युद्ध का उल्लेख ), २.११०.१०( सिन्धु दैत्य के पास भेजने के लिए पुष्पदन्त की अनुपयुक्तता का कथन - पुष्पदन्तं महाबुद्धिं नीतिशास्त्रविशारदम् । प्रेष्यतां सिन्धुनिकटे देवमोचनहेतवे ), २.११४.१५( गणेश व सिन्धु के युद्ध में पुष्पदन्त का ध्वजासुर से युद्ध - ध्वजासुरपुष्पदन्तौ शस्त्रास्त्रेर्बाणसंचयैः । ), २.११५.१५( सिन्धु द्वारा पुष्पदन्त के उदर के भेदन का उल्लेख - पुष्पदन्तस्योदरं च बिभेद बलवत्तरम् । ), २.११८.१८( पुष्पदन्त का विकल से युद्ध - विकलस्य पुष्पदन्तो धनुश्चिच्छेद सायकैः । ततस्तौ मल्लयुद्धेन परस्परमयुध्यताम् ।), देवीभागवत ९.२०.२३( शिव दूत बनकर पुष्पदन्त का शङ्खचूड के पास जाना, पुष्पदन्त के अन्य नाम चित्ररथ का उल्लेख ), पद्म ६.१२.३( पुष्पदन्त का जालन्धर - सेनानी शैलरोमा से युद्ध - पुष्पदंतं शैलरोमा माल्यवंतं महाबलः। ), ६.४३.१२( पुष्पदन्त के पुत्र माल्यवान् तथा चित्रसेन गन्धर्व की कन्या पुष्पदन्ती का परस्पर आसक्ति से इन्द्र के शाप से पिशाच - पिशाची होने का वृत्तान्त ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१७.३( शिव द्वारा पुष्पदन्त गन्धर्व को दूत बनाकर शङ्खचूड असुर के पास भेजना - राजेन्द्र शिवदूतोऽहं पुष्पदन्ताभिधः प्रभो ।। यदुक्तं शङ्करेणैव तद्ब्रवीमि निशामय ।।  ),ब्रह्माण्ड २.३.७.३५( पुष्पदंष्ट्र : कद्रू के नाग पुत्रों में से एक ), २.३.७.१२८( देवजनी व मणिवर के यक्ष - गुह्यक पुत्रों में से एक ), २.३.७.३३७( पुष्पदन्त हस्ती की बृहत्साम से उत्पत्ति, षड्दन्त ), भविष्य ३.४.१७.५२( ८ दिग्गजों में से एक, ध्रुव व नभो दिशा - पुत्र ), ४.१८०.२९( ८ दिग्गजों में से एक - कुमुदैरावणौ पद्मः पुष्पदंतोऽथ वामनः ।। सुप्रतीकोंजनः सार्वभौमोऽष्टौ देवयोनयः ।। ), मत्स्य २५३.२६( ८१ पदीय वास्तुमण्डल के देवताओं में से एक ), २५५.९( वास्तुमण्डल में पश्चिम द्वार पर पुष्पदन्त के प्रशस्त होने का उल्लेख - पश्चिमे पुष्पदन्तं च वारुणञ्च प्रशस्यते। उत्तरेण तु भल्लाटं सौम्यं तु शुभदम्भवेत् ।।), २६८.१५( वास्तुमण्डल में पुष्पदन्त हेतु पायस बलि देने का निर्देश ), वामन ५७.६९( अम्बिका द्वारा कुमार को प्रदत्त गण ), ५८.५५( पुष्पदन्त द्वारा तलवार व ढाल की सहायता से असुरों का संहार - खड्गचर्मधरो वीरः पुष्पदन्तो गणेश्वरः। ), वायु ६९.७१/२.८.६८( कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक ), ६९.२२१/२.८.२१५( पुष्पदन्त नाग / हस्ती के बृहत्सामा, ६ दन्त व पुष्पवान् दन्त वाले होने का उल्लेख, ताम्रवर्ण – पिता- पुष्पदन्तो बृहत्सामा षड्दन्तो दन्त पुष्पवान्। ताम्रवर्णश्च तत्पुत्रः सहचारिविषाणितः ॥ ), १०८.४८/२.४६.५१( वादित्र पर्वत पर पुष्पदन्त आदि गन्धर्वों द्वारा गान का उल्लेख - पर्वतो नारदध्यानी सङ्गीती पुष्पदन्तकः। ), स्कन्द ३.१.५.७४( विधूम वसु का भृत्य, रुमण्वान् रूप में अवतरण - विप्रतीकस्य तनयः पुष्पदन्तो बभूव ह ।।
      रुमण्वानिति विख्यातः परसैन्यविमर्दनः ।।  ), ५.२.७७.२९( पुष्पदन्तेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, शिनि द्विज की पुत्रता अस्वीकार करने पर शिव द्वारा पुष्पदन्त गण को शाप, पुष्पदन्त द्वारा पुष्पदन्तेश्वर लिङ्ग की पूजा से मुक्ति ), ७.१.१८०( पुष्पदन्तेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ७.४.१७.२६( पुष्पदन्त विनायक : द्वारका के पश्चिम् द्वार के रक्षकों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.३३६.२( पुष्पदन्त गन्धर्व का शिव का दूत बनकर शङ्खचूड असुर के पास जाना ), कथासरित् १.१.४९( पुष्पदन्त गण द्वारा अलक्षित होकर शिव - पार्वती के वार्तालाप का श्रवण तथा स्वपत्नी जया को सुनाना, पार्वती द्वारा मर्त्यलोक में जन्म का शाप, पुष्पदन्त का वररुचि रूप में जन्म ), १.१.६४( पुष्पदन्त का वररुचि रूप में जन्म ), १.२.१( वररुचि या कात्यायन उपनामों वाले पुष्पदन्त द्वारा काणभूति पिशाच को स्ववृत्तान्त सुनाना ), १.७.६९( देवदत्त द्वारा पुष्पदन्त नाम प्राप्ति के कारण का वर्णन, शिव - गण पुष्पदन्त बनना ), १.७.१०६( शिव गण पुष्पदन्त के पुष्पदन्त नाम का कारण, जया - पति ) pushpadanta



      पुष्पदा भविष्य ३.२.८.१७( पुष्पदन्त गन्धर्व - कन्या, शाप से नर भोग करी, चिरंदेव से भोग, राजा गुणाधिप से संवाद )



      पुष्पबटु स्कन्द ४.२.७४.७४( पुष्पबटु की कन्या माधवी के ओङ्कारेश्वर लिङ्ग में लीन होने का वृत्तान्त ),



      पुष्पभद्र/पुष्पभद्रा देवीभागवत ९.२१.१६( पुष्पभद्रा नदी की महिमा का वर्णन, शिव का वास, शङ्खचूड की शिव से भेंट ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१७.२( शङ्खचूड असुर के वध का निश्चय करके शिव का चन्द्रभागा तट पर वटमूल में स्थित होने का उल्लेख ), २.१८.१६( पुष्पभद्रा तट पर अक्षयवट क्षेत्र की महिमा का कथन ; पुष्पभद्रा नदी के महत्त्व का कथन ), ३.१२.११( विष्णु द्वारा पुष्पभद्रा तट पर वन में सुप्त गज के शिर को काट कर गणेश से योजित करने का कथन ), भागवत ३.२३.४०( कर्दम व देवहूति द्वारा पुष्पभद्र आदि वनों में विहार का उल्लेख ), १२.८.१७( मार्कण्डेय आश्रम में पुष्पभद्रा नदी की स्थिति का उल्लेख ),१२.९.१०( पुष्पभद्रा तट पर तपोरत मार्कण्डेय मुनि के समक्ष प्रलय का प्रकट होना, मार्कण्डेय द्वारा दिव्य शिशु के दर्शन आदि ), मत्स्य २७०.७( ६२ स्तम्भों वाले मण्डप की पुष्पभद्र संज्ञा का उल्लेख ), शिव २.५.३४.२०( शङ्खचूड व शिव के युद्ध के संदर्भ में पुष्पभद्रा नदी की महिमा का कथन ; लवणोदधि - भार्या ), लक्ष्मीनारायण १.६४.४३( पुष्पभद्रा नदी तट पर प्रेतपुरी का शम्बल अधिपति ) pushpabhadra



      पुष्पमित्र ब्रह्माण्ड २.३.७४.१५०( पुष्पमित्र सेनापति द्वारा बृहद्रथ राजा को पदच्युत कर राज्य करने का उल्लेख ), २.३.७४.१८७( ६ पुष्पमित्र राजाओं का उल्लेख ), भागवत १२.१.३४( भविष्य के राजाओं में से एक, दुर्मित्र - पिता ), वायु ९९.३३७/२.३७.३३१( पुष्पमित्र सेनापति द्वारा बृहद्रथ राजा को पदच्युत कर राज्य करने का उल्लेख ), ९९.३७४/२.३७.३६८( १३? पुष्पमित्र राजाओं का उल्लेख ) pushpamitra



      पुष्पराग गरुड १.७४( पुष्पराग मणि की बल असुर की त्वचा से उत्पत्ति, पुष्पराग मणि की परीक्षा ), देवीभागवत १२.१०.७१( मणिद्वीप के परित: स्थित शालाओं में से एक पुष्पराग शाला की महिमा का वर्णन ), १२.११.१( पुष्परागमय शाला का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण ३.१६३.७३( वलासुर के त्वक् रूपी बीजों से उत्पन्न पुष्पराग मणियों के वर्ण, नाम तथा महत्त्व का कथन ) pushparaaga



      पुष्पवती भविष्य ३.३.२१.१८( पुष्पवती की यज्ञ/अग्नि से उत्पत्ति, मयूरध्वज - सुत उदयसिंह पर आसक्ति की कथा ), ३.३.२२.१८( कृष्णांश - पत्नी, पूर्व जन्मों में चन्द्रकान्ता वेश्या , बाण - पुत्री उषा, जम्बुक - पुत्री ), लक्ष्मीनारायण १.२४३.४४( चित्रसेन - भार्या पुष्पवती की माल्यवान् पर आसक्ति, इन्द्र के शाप से पिशाच युगल बनना, जया एकादशी के प्रभाव से मुक्त होना ) pushpavatee/ pushpavati



      पुष्पवान् ब्रह्माण्ड १.२.१९.५५( कुश द्वीप के ७ पर्वतों में से एक, पुष्पवान् पर्वत के लवण वर्ष का उल्लेख ), भागवत ९.२२.७( सत्यहित - पुत्र, जहु - पिता, दिवोदास वंश ), वायु ४९.४९( कुश द्वीप के ७ पर्वतों में से एक ), ६९.१५९/२.८.१५४( देवजनी व मणिवर के यक्ष व गुह्यक पुत्रों में से एक ), ९९.२२४/२.३७.२१९( ऋषभ - पुत्र, विक्रान्त - पिता, कुरु वंश ), विष्णु ४.१९.८२( वृषभ - पुत्र, सत्यहित - पिता, कुरु वंश ) pushpavaan



      पुष्पवाहन पद्म १.२०.१( लावण्यवती - पति, तप द्वारा ब्रह्मा से काञ्चन कमल व वाहन की प्राप्ति, प्रचेता ऋषि द्वारा पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन : पूर्व जन्म में लुब्धक ), भविष्य ४.८५.१९( राजा, लावण्यवती - पति, प्राचेतस से संवाद, पूर्व जन्म में लुब्धक, कमल अर्पण से विभूति प्राप्ति ), मत्स्य १००.१( राजा, लावण्यवती - पति, पूर्व जन्म में लुब्धक, विभूति द्वादशी व्रत से राजा बनना ) pushpavaahana/ pushpavahana



      पुष्पस्थल वराह १५७.१९( मथुरा में पुष्पस्थल क्षेत्र में स्नान का संक्षिप्त महत्त्व )



      पुष्पार्ण भागवत ४.१३.१२( वत्सर व स्वर्वीथि के ६ पुत्रों में से एक, प्रभा व दोषा - पति, प्रात: आदि ६ पुत्रों के नाम ), द्र. वंश ध्रुव pushpaarna



      पुष्पा लक्ष्मीनारायण ४.१०१.९५( कृष्ण की ११२ मुख्य रानियों में से एक, पराग व सरघा - माता )



      पुष्पावती भविष्य ३.२.१४.१( पुष्पावती नगरी के राजा सुविचार की कन्या चन्द्रावली का वृत्तान्त )



      पुष्पिका गणेश २.१३०.३८( पुष्पिका द्वारा तप करके गजानन की पुत्र रूप में प्राप्ति का वृत्तान्त ),



      पुष्पेषु पद्म ६.२०६( काम्पिल्य में पुष्पेषु ब्रह्मचारी के रूप पर स्त्रियों की आसक्ति की कथा, स्त्रियों का मृत्यु - पश्चात् पिशाची बनना ) pushpeshu



      पुष्पोत्कटा ब्रह्माण्ड २.३.८.३९( माली की कन्याओं में से एक, विश्रवा - पत्नी ), २.३.८.५५( पुष्पोत्कटा की सन्तानों के नाम ), वायु ७०.३४/२.९.३४( माल्यवान् की पुत्रियों में से एक ), ७०.४९/२.९.४९( महोदर, प्रहस्त, खर, कुम्भीनसी आदि की माता ), वा.रामायण ७.५.४१( सुमाली की ४ कन्याओं में से एक ), लक्ष्मीनारायण २.८६.३९( विश्रवा की ४ पत्नियों में से एक, महोदर, प्रहस्त आदि राक्षसों की माता ) pushpotkataa



      पुष्पोदक वराह १९६.१३( पुष्पोदका : यमपुरी में स्थित पुष्पोदका नदी की शोभा का वर्णन )



      पुष्य भागवत ५.२३.६( पुनर्वसु व पुष्य नक्षत्रों की शिशुमार की दक्षिण व वाम श्रोणियों में स्थिति का उल्लेख ), १२.११.४२( पुष्य/पौष मास में सूर्य रथ पर स्थित राक्षस, गन्धर्व आदि के नाम ), मत्स्य १२९.३१( पुष्य नक्षत्र के योग में मय द्वारा त्रिपुर के निर्माण का कथन ), १४४.३०( पुष्य/कलियुग में प्रजा के स्वभाव का कथन ), वामन ७२.१५( पुष्यती : राजा के शुक्र का पान करने वाली ७ मुनि - पत्नियों में से एक ), वायु ६६.४८/२.५.४८( ऐरावती वीथि के ३ नक्षत्रों में से एक ), ८८.२०९/२.२६.२०८( हिरण्यनाभ? - पुत्र, ध्रुवसन्धि - पिता, कुश वंश ), विष्णु ४.४.१०८( हिरण्यनाभ - पुत्र, ध्रुवसन्धि - पिता, कुश वंश ), स्कन्द २.२.४१.१( पौष मास की पूर्णिमा को पुष्य स्नान उत्सव की विधि), लक्ष्मीनारायण २.१७५.५(पुष्याश्विन्यभिजिद्धस्तं लघु क्षिप्रमुदाहृतम् । तत्र भूषौषधज्ञानं गमनं शिल्पिता रतिः ), ३.१७६.२३(रोहिण्यार्द्रा तथा पुष्या धनिष्ठा चोत्तरात्रयम् ।।२३।।

      शतभीषा श्रवणं च नव तूर्ध्वमुखा मताः ।) द्र. पौष्यञ्जि pushya



      पुष्यमित्र भविष्य ३.४.२३.२३( पुष्यमित्र राजा के जन्म की विशेषता का कथन, विष्णु का अंश, कलि गन्धर्व से मित्रता का वृत्तान्त )



      पुस्तक अग्नि ६३.१३( पुस्तक प्रतिष्ठा विधि ), भविष्य १.२१६.५४( पुस्तक के सूत्र, पत्रों, अक्षरों आदि के देवत्व का कथन ), २.१.७.५४( त्रिदेव रूप पुस्तक के सूत्र, पत्रों, अक्षरों आदि के देवत्व का कथन ), स्कन्द ५.३.१५९.१७( पुस्तक हरण से जन्मान्ध होने का उल्लेख ) pustaka



      पूग स्कन्द ५.१.६०.५७( ताम्बूल में ४ अवयवों में से एक पूग द्वारा उमा सहित ईश के प्रसन्न होने का उल्लेख ), ६.२५२.२४( चातुर्मास में पूग वृक्ष में मारुत की स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८६( वृक्ष रूप धारी कृष्ण के दर्शन हेतु मारुत द्वारा पूग वृक्ष बनने का उल्लेख ) pooga/ puuga/ puga



      पूजनीय हरिवंश १.२०.७७( पूजनीया पक्षिणी का ब्रह्मदत्त के प्रासाद में निवास, ब्रह्मदत्त - पुत्र के चक्षु भञ्जन का प्रसंग ),



      पूजा अग्नि २१.१( विष्णु, शिव, सूर्य आदि देवों की परिवार सहित सामान्य पूजा का कथन ), २३( द्वारपाल पूजा ), २३( विष्णु पूजा ), ३०( सर्वतोभद्र मण्डल पूजा विधान ), ३३.४३( पवित्रारोहण विधि के संदर्भ में श्रीधर विष्णु की आवरण पूजा का कथन ), ४०( वास्तुमण्डलवर्ती देव पूजा ), ४७( शालिग्राम शिला की मण्डल पूजा प्रकार का कथन ), ५२.१२( भैरव पूजा विधि ), ५८( देव स्नपन विधि के संदर्भ में स्नान के विभिन्न चरणों में विनियुक्त वैदिक मन्त्रों का कथन ), ६२( देवी पूजा, आचार्य पूजा ), ७३( शिव पूजा विधि ), ७४( शिव पूजा ), ७६( चण्ड पूजा विधि ), ७७( कपिला गौ की पूजा का विधान ), ७८+ ( पवित्रारोहण के संदर्भ में शिव पूजा विधि ), ९३( वास्तु पूजा विधि ), १३८( दुर्गा पूजा ), १४३+ ( युद्ध जयार्णव में कुब्जिका पूजा विधान ), १४७( युद्धजयार्णव में त्वरितादि पूजा नामक अध्याय में गुह्य कुब्जिका पूजा विधि ), १४८( सङ्ग्राम विजय पूजा के अन्तर्गत सूर्य, सूर्यसोमाग्नि मण्डल की शक्तियों की पूजा का कथन ), १४८( दीप्ता, अमोघा, विद्युता पूजा ), १९१( अमराधीश पूजा ), २०४( विष्णु पूजा ), २०६( अगस्त्य को अर्घ्य दान की विधि ), २३६( त्रिविक्रम पूजा ), २४८( विष्णु पूजा में प्रशस्त और वर्जित पुष्पों के नाम ), २६४( उत्पात शान्ति हेतु उपचारों सहित विष्णु पूजा की विधि ), २६८.४( भाद्रपद शुक्ल द्वादशी को शक्रध्वज के संदर्भ में इन्द्र की स्तुति का कथन ), २६८.५( इन्द्र पूजा विधि ), २६८.१३( आश्विन् शुक्ल अष्टमी को भद्रकाली पूजा की विधि ), ३०१( सूर्यार्चन विधि), ३०३( अङ्ग अक्षरार्चन ), ३०७( त्रैलोक्य मोहन विष्णु पूजा मन्त्र ), ३०८( लक्ष्मी पूजा ), ३०८.१( त्रैलोक्य लक्ष्मी की मण्डल पूजा विधि व फल ), ३०८.१७( दुर्गा हृदय मन्त्र सहित दुर्गा पूजा विधि ), ३१८( गणपति पूजा ), ३१९( वागीश्वरी पूजा विधान ), ३२६( गौरी पूजा विधान ), ३७२.३५( भगवत्पूजा का माहात्म्य ), कूर्म २.२६.३७( कामना अनुसार देव पूजा ), गरुड १.३४( हयग्रीव पूजा ), १.३८( दुर्गा /चामुण्डा पूजा ), गर्ग ९.८+ ( राधा - कृष्ण पूजा विधि, पूजा द्रव्य, उपचार ), देवीभागवत ५.३४( सुमेधा ऋषि - प्रोक्त देवी पूजा की विधि ), ७.३९+ ( देवी पूजा के प्रकार व विधि ), ८.२४( देवी पूजा में तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण, मास अनुसार नैवेद्य ), ९.२६( पराशर प्रोक्त सावित्री पूजा विधान ), ९.४२( महालक्ष्मी की षोडशोपचार पूजा ), ९.४५( दक्षिणा देवी की पूजा ), ११.१७( देवी पूजा हेतु द्रव्य, पूजा विधि ), नारद १.६७.१( विभिन्न मुद्राओं, उपचारों आदि सहित देवपूजा निरूपण ), १.६७.६१( विभिन्न देवों की पूजा में वर्ज्य - अवर्ज्य पूजा द्रव्य व पुष्प ), १.६७.१२५( आतुरी, सौतिकी, त्रासी, साधन - भाविनी तथा दौर्बाधी नामक पञ्चविध पूजाओं की व्याख्या ), १.६७( षोडशोपचार व आवरणों सहित देवपूजा की विधि ), १.६९( ग्रहों की मण्डलों सहित आराधना विधि ), १.७०( महाविष्णु पूजा विधि ), १.७१( न्यासों सहित नृसिंह आराधना विधि ), १.७२( हयग्रीव आराधना विधि ), २.५७.१( पुरुषोत्तम क्षेत्र माहात्म्य के संदर्भ में नारयण की षोडशोपचार पूजा विधि ), पद्म ५.७८.९( पूजा के अभिगमन, उपादान आदि ५ भेदों तथा इन भेदों के सार्ष्टि, सामीप्य आदि से साम्य का कथन ), ५.८०.१४( श्रीहरि पूजा हेतु मूर्ति के पादों में चक्र, कमल आदि की कल्पना का कथन ), ५.८०.२१( विभिन्न मासों में विष्णु की विशिष्ट प्रकार की पूजाओं का वर्णन ), ५.९५.६८( माधवार्चन हेतु वैदिक, तान्त्रिक व मिश्र पूजा प्रकारों का वर्णन ), ५.९८.३( माधव/वैशाख मास में देवपूजा विधि तथा माहात्म्य ), ५.११४.२८( गौतम - कृत आवरणों सहित शिव पूजा विधि का वर्णन ), , ६.८७( विभिन्न मासों में श्रीहरि की पूजा हेतु विभिन्न पुष्पों के नाम तथा उनका महत्त्व ), ६.२५३.२६(चतुर्वर्ण द्वारा विष्णु इज्या की विधि तथा पञ्चरात्र विधान से पूजा विधि का वर्णन ), ६.२५३.१४६( मधु, माधव आदि मासों में विष्णु पूजा हेतु पुष्पों के नाम आदि ), ७.१०( माघ मास में विष्णु पूजा की विधि, विष्णु हेतु चम्पक पुष्प अर्पित करने के माहात्म्य के संदर्भ में राजा सुवर्ण का वृत्तान्त ), ७.११( सर्वकालों में नित्य विष्णु पूजा की विधि व महत्त्व का वर्णन ), ७.१२.१( फाल्गुन मास में श्रीहरि को अर्पणीय द्रव्यों के नाम तथा अर्पण का महत्त्व ), ७.१२.१६( चैत्र मास में अर्पणीय द्रव्य तथा महत्त्व ), ७.१२.२७( वैशाख मास में विष्णु को अर्पणीय द्रव्य तथा अश्वत्थ रूपी विष्णु पूजा के महत्त्व के संदर्भ में ब्राह्मण द्वारा अश्वत्थ वृक्ष के छेदन की कथा ), ७.१३+ ( ज्येष्ठ आदि मासों में विष्णु पूजा हेतु द्रव्यों व उनके महत्त्व का वर्णन ), ब्रह्म १.५८.२४( पुरुषोत्तम क्षेत्र के माहात्म्य के संदर्भ में हृदय पद्म में पुरुषोत्तम पूजा विधि व मन्त्र ), ब्रह्मवैवर्त्त २.४.३१( कवच व उपचारों सहित सरस्वती पूजा विधान ), २.८.४६( पृथिवी पूजा विधि ), २.२२.१( तुलसी पूजा विधान व स्तोत्र ), २.३९( महालक्ष्मी पूजा विधि ), २.४३.२( षष्ठी देवी की पूजा का इतिहास, ध्यान, पूजा विधान, स्तोत्र ), २.५५( राधा पूजा विधान व स्तोत्र ), २.६४( राजा सुरथ कृत दुर्गा पूजा की विधि ), ३.३१+ ( शिव द्वारा परशुराम को प्रदत्त कृष्ण कवच व स्तोत्र ), ३.३२( शिव प्रोक्त कृष्ण - पूजा ), ४.८( षोडशोपचार सहित श्रीहरि पूजा ), ४.२१.१( नन्द द्वारा इन्द्र यष्टि पूजा का वृत्तान्त ), ४.१२३( राधा द्वारा गणेश पूजा ), ब्रह्माण्ड ३.४.४३.१( देवी दर्शन के संदर्भ में अपेक्षित दीक्षा विधि तथा त्रिपुरा अम्बिका देवी की उपचारों सहित अर्चना का वर्णन ), भविष्य १.१७.१( प्रतिपदा तिथि को ब्रह्मा की पूजा का विधान ), १.२३.१३( शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश पूजा की विधि ), १.२९+ ( गणपति आराधना विधि व महत्त्व ), १.३९( षष्ठी तिथि को कार्तिकेय पूजा विधि ), १.६४( सूर्य पूजा के महत्त्व का कथन ; सप्तमी तिथि को सूर्य पूजा की विधि ), १.१०३+ ( विभिन्न मासों की सप्तमी तिथियों में सूर्य आराधना की विधि व महत्त्व ), १.१५०( अष्ट मण्डल युक्त चक्र द्वारा सूर्य पूजा की विधि ), १.१६१+ ( सूर्य पूजा ), १.१६३.१( विभिन्न द्रव्यों से निर्मित जल से सूर्य को स्नान कराने, अष्टाङ्ग अर्घ्य दान, विभिन्न पुष्पों से सूर्य अर्चना, विभिन्न धूपों से सूर्य अर्चना आदि का वर्णन ), १.१९६.१६( सप्तमी तिथियों में सूर्य पूजा हेतु विभिन्न धूप द्रव्यों के महत्त्व का कथन ), १.१९७.१( सप्तमी तिथियों में सूर्य पूजा हेतु विभिन्न पुष्पों के महत्त्व का कथन ), १.२००( सूर्य पूजा हेतु शरीर में अस्त्र बीजों, कवच आदि का विन्यास ), १.२०१+ ( सूर्य की वैदिक मन्त्रों सहित मण्डल पूजा विधि ), १.२०३( सूर्य के अष्टशृङ्ग व्योम पूजा विधि ), १.२०४( रत्न व्योम प्रतिष्ठा के संदर्भ में वैदिक मन्त्रों सहित भानु पूजा विधि ), १.२०५( महादेव रूपी सूर्य के हृदय आदि अङ्गों के पूजन की विधि ), २.२.११( वास्तुमण्डल के पदों के देवताओं की पूजा के संदर्भ में पदों के देवताओं के स्वरूप, पूजा हेतु वैदिक मन्त्रों आदि का वर्णन ), ४.७६( विजया एकादशी व्रत के संदर्भ में वामन की उपचारों सहित पूजा विधि ), ४.१२०( शुक्र व बृहस्पति पूजा, अर्घ पूजा विधान), भागवत ११.२७( पूजा विधि ), मत्स्य ७३( यात्रारम्भ आदि अवसरों पर शुक्र व गुरु पूजा विधि), लिङ्ग १.७३( ब्रह्मा - प्रोक्त शिव पूजा विधि ), २.१९( शिव पूजा विधि ), वराह ५६.२( धन्यव्रत के संदर्भ में अग्नि का विभिन्न नामों से देह में न्यास ), ११८.१(दन्तधावन से आरम्भ करके देव के विभिन्न उपचारों की विधियों का वर्णन ), १२४.४०( वसन्त व ग्रीष्म में वराह पूजा ), १२८.६७( विष्णु/वराह पूजा में विभिन्न उपचारों का वर्णन ), १२९.१( विष्णु को तिलक, धूप, सुमन आदि अर्पित करने के मन्त्र ), १७४.७१( श्रावण द्वादशी व्रत के संदर्भ में विभिन्न उपचारों सहित वामन पूजा विधि ), वामन ८०( नक्षत्र पूजा ), ९४( पुष्प द्वारा विष्णु पूजा ), विष्णुधर्मोत्तर १.६१+ ( अभिगमन, उपादान, इज्या आदि ५ कालों के करणीय कृत्यों का वर्णन ), १.९०( ग्रह व नक्षत्र हेतु मण्डल पूजा विधि ), १.९३( ग्रहों की मण्डल पूजा में विनियुक्त वैदिक मन्त्र ), २.३१.२१( देवगृह में विभिन्न उपाचरों के फल), २.३५( स्त्री द्वारा पूजनीय देवताओं का वर्णन ), २.९०( देव पूजा में विभिन्न उपाचारों हेतु प्रयुक्त वैदिक मन्त्र ), २.१५८( आश्विन् शुक्ल नवमी को भद्रकाली की पूजा की संक्षिप्त विधि ), ३.११८( कामना अनुसार पूजनीय देवताओं के नाम ), ३.११९( विभिन्न कार्यों के आरम्भ में पूजनीय देवों के नाम ), ३.१२०( ऋतु, तिथि, नक्षत्रों आदि के अनुसार पूजनीय देवताओं के नाम ), ३.१२१( देश के अनुसार देव पूजा ), ३.१२७( त्रिमूर्ति व्रत के संदर्भ में त्रिदेवों की आराधना विधि का कथन ), ३.१२८( विष्णु रूपी पुरुष की पूजा विधि का कथन ), ३.१३०( चैत्र शुक्ल द्वितीया को नासत्य पूजा की विधि ), ३.१६९( चैत्र शुक्ल सप्तमी को अष्ट दल कमल में भास्कर पूजा की विधि का कथन ), ३.१७१( सप्तमी तिथि को सूर्य पूजा की प्रशंसा ), ३.१७५( शुक्ल नवमी तिथियों में भद्रकाली की पूजा का फल ), ३.१७६( दशमी तिथि को विश्वेदेव पूजा का निर्देश ), ३.२२१.११( विभिन्न तिथियों में पूजनीय देवों के नाम तथा पूजाओं के फल ) ३.२८९.७( गृहस्थ द्वारा अतिथि पूजन के महत्त्व का कथन ), ३.३५२( नारायण पूजा वर्णन के अन्तर्गत कमल की कर्णिका व दलों में विभिन्न देवों व अक्षरों का न्यास ), शिव १.१५.१३( तपोनिष्ठा आदि पूजा के तीन पात्रों का उल्लेख ), १.१६.१( पार्थिव प्रतिमा पूजन विधान के अन्तर्गत प्रतिमा के अभिषेक, गन्ध, नैवेद्य अर्पण, धूप, दीप, ताम्बूल आदि के विशिष्ट महत्त्व का कथन ), १.२०.१(वैदिक मन्त्रों सहित पार्थिव लिङ्ग की पूजा विधि का वर्णन ), १.२१( कामना के अनुसार पूजा में लिङ्ग संख्या ), २.१.१३.२७( नित्य क्रिया के पश्चात् गृह में शिव लिङ्ग पूजन विधि ), २.१.१४.१( विभिन्न पुष्पों से शिव की अर्चना के फलों का वर्णन ), ४.१३.५५( शिव पूजा में बटुक पूजा के महत्त्व का वर्णन ; दधीचि - पुत्र सुदर्शन के वटुक बनने की कथा ), ६.७.१( शिव ध्यान पूजन वर्णन नामक अध्याय ), ६.८.१( शिव पूजा हेतु आवरण पञ्चक का ), ६.९.३२( लिङ्ग पूजा विधि ), ७.२.२१.२२( सूर्य पूजा से पूर्व और पश्चात् करणीय कृत्यों का वर्णन ), ७.२.२३.६( पूजा में ध्यान हेतु शिव व शिवा के स्वरूप का कथन ), ७.२.२४.१( शास्त्रोक्त शिव पूजन विधि नामक अध्याय में पूजा के विभिन्न उपचारों का वर्णन ), ७.२.२५.२( शिव पूजा हेतु आवरण देवताओं की पूजा हेतु उपचारों का स्वरूप ), ७.२.२६( सांगोपांग पूजा विधान वर्णन नामक अध्याय में शिव परिवार के अनुचरों को बलि देने का कथन ), ७.२.३०.१( शिव पूजा से पूर्व पञ्चावरणों के देवताओं के पूजन की विधि का वर्णन ), ७.२.३१( शिव पूजा हेतु पञ्चावरण देवता पूजा का वर्णन ), ७.२.३२.१( ऐहिक फलों की प्राप्ति हेतु शिव पूजा के उपचारों का वर्णन ), स्कन्द १.१.११.१( चतुर्थी तिथि को गणेश पूजा की विधि ), १.२.४१.८०( शिव पूजा विधान के संदर्भ में करन्धम – महाकाल संवाद ), १.२.४३( सूर्य पूजा विधि ), २.२.२८( दारु देवता की पूजा ), २.२.३०( ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को नारायण पूजा विधि ), २.२.३२( कृष्ण, बलभद्र, सुभद्रा, नृसिंह पूजा ), २.२.३८( देव पूजा विधि ), २.४.१०.२२( कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गौ व गोवर्धन पूजा मन्त्रों का कथन ), २.४.१०.३९( कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा की रात्रि को बलि पूजा की विधि व महत्त्व ), २.५.५( शङ्ख पूजा ), २.५.६( पूजा में घण्टा नाद, चन्दन, पुष्प, तुलसीदल, धूप, दीप का माहात्म्य ), २.५.१५( पूजा में फल, पुष्प दान ), २.८.३.६४( चन्द्रमा की पूजा ), २.८.८( रति - कन्दर्प पूजा ), ५.३.१५७.१३( पूजा से रुद्र, जप - होम से दिवाकर व प्रणिपात से विष्णु के तुष्ट होने का उल्लेख ), ५.३.२०९.१२६( शिव रात्रि में ४ यामों में पूजा चतुष्टय विधान का कथन ), ६.१६२.४१( पुरश्चरण व्रत के संदर्भ में आदित्य पूजा में मासानुसार पूजा द्रव्य ), ६.१७८.३२( उमा - महेश्वर पूजा के संदर्भ में लक्ष्मी - दुर्वासा संवाद ), ६.२३९( चातुर्मास में पुरुष सूक्त की १६ ऋचाओं के अनुसार विष्णु की षोडशोपचार पूजा का वर्णन ), ७.१.१०७( बाल रूप ब्रह्मा की पूजा का विधान ; विभिन्न पीठोंx में ब्रह्मा के नाम ), हरिवंश २.१६.४( पूजनीय देवता के प्रश्न के संदर्भ में कृष्ण के उद्गार ; कृष्ण व गोपों द्वारा गौ पूजा ), २.७४.१९( कृष्ण द्वारा बिल्वोदकेश्वर शिव की स्तोत्र सहित पूजा ), योगवासिष्ठ ३.८३( कन्दरा पूजा ), ६.१.३०( शिव पूजा ), ६.१.३८( बाह्य पूजा ), लक्ष्मीनारायण १.३१( पूजा द्रव्यों की श्रीहरि से उत्पत्ति का वर्णन ), २.११४( भक्त द्वारा अपने सम्पूर्ण व्यक्तित्व को श्रीहरि की सेवा में अर्पित करने का वर्णन ), २.१४८.५२( मण्डप की विभिन्न दिशाओं में १६ स्तम्भों के देवताओं के पूजन की विधि का वर्णन ), २.१४९.४( मण्डप की विभिन्न दिशाओं में तोरण पूजन की विधि का वर्णन ), २.१४९.७३( मण्डप के द्वारों पर कलश पूजा विधि का वर्णन ), ४.८०.१७( राजा नागविक्रम के यज्ञ में सौराष्ट्रीय द्विजों के पूजक होने का उल्लेख ) poojaa/ puujaa/puja



      पूतना अग्नि ९३.२७( वास्तुमण्डल के पदों के देवताओं में से एक पूतना को पित्त व रुधिर देने का निर्देश ), १०५.१३( वास्तु मण्डल के ८१ पदों के देवताओं में से एक ), २९९.१९( बालतन्त्र के अन्तर्गत मास भर के वत्स को पूतना ग्रही द्वारा गृहीत करने पर बालक के लक्षणों व उपाय का कथन ), गर्ग १.६.६२( बकासुर - भगिनी, कंस के बकासुर से युद्ध के संदर्भ में कंस की भगिनी/सखी बनने का कथन ), १.१३( बलि - पुत्री रत्नमाला का अंश, कृष्ण द्वारा उद्धार ), देवीभागवत ४.२२.४६( बलि - पुत्री का अंश ), नारद १.६६.११४( मन की शक्ति पूतना का उल्लेख ), ब्रह्म १.७५( कृष्ण द्वारा पूतना के स्तनों को प्राण सहित पीकर पूतना के वध का वृत्तान्त ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१०( कृष्ण द्वारा पूतना के मोक्ष का वृत्तान्त ), ४.११५.९१( बल - कन्या, वामन पर आसक्ति से पूतना बनना ), ब्रह्माण्ड २.३.५.४३( बलि असुर की २ कन्याओं में से एक ), २.३.७.१५८( बालग्रहों/स्कन्दग्रहों में से एक ), २.३.५९.१२( भद्रम की २ पत्नियों में से एक, पूतना के पुत्रों की नैर्ऋत नाम से ख्याति का उल्लेख ), ३.४.४४.५९( वर्णों की शक्तियों में से एक पूतना का उल्लेख ), भविष्य ३.४.२५.१६८( तामसिक अंश ), भागवत ३.२.२३( बृकी द्वारा स्तनों में कालकूट लगाकर कृष्ण को स्तनपान कराने का उल्लेख ), १०.६( कृष्ण द्वारा पूतना का उद्धार, पूतना की चिता से सुगन्ध की उत्पत्ति का उल्लेख ), मत्स्य १७१.५४( पूतनानुग ), वामन ७२.२८( पूतना अप्सरा द्वारा क्रतुध्वज - पुत्रों के तप में विघ्न ), वायु ८४.१२/२.२२.१२( सद्रम - पत्नी के रूप में तामसी पूतना का उल्लेख ), विष्णु ५.५( कृष्ण द्वारा पूतना के वध की कथा ), स्कन्द ५.१.६४.८( महामारी आदि ९ मातृकाओं में से एक ), हरिवंश २.६( कृष्ण द्वारा पूतना का वध ), योगवासिष्ठ ३.४९.२४( अपर नाम रूपिका, राजा विदूरथ द्वारा प्रयुक्त पूतना अस्त्र का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण २.३२.३१( शीतपूतना द्वारा मनुष्यों के गर्भों के हरण का उल्लेख ), २.१४६.१४१( वास्तुमण्डल के देवताओं में से एक, नैर्ऋत् कोण में स्थिति ), २.१५७.२३( पूतनादि का देवमूर्ति के नखों में न्यास का उल्लेख ) pootanaa/ puutanaa/putana



      पूतात्मा स्कन्द ४.१.१३.३( कश्यप - पुत्र पूतात्मा द्वारा पवनेश्वर लिङ्ग की स्थापना, दिक्पाल पद प्राप्ति, तप से गन्धवती पुरी पर आधिपत्य की प्राप्ति ),),



      पूति ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८९( भण्डासुर के सेनापति पुत्रों के रूप में पूतिनासिक, पूतिदन्त आदि नामों का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.८९.१( पूतिकेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : जाम्बवान् द्वारा प्रसेनजित् के वक्ष से मणि लेने पर व्रण दोष से मुक्ति ) pooti/ puti



      पण्य ब्रह्माण्ड ३.४.२.१६४( पण्यवह नामक नरक को प्राप्त होने वालों के कर्मों का कथन ), भागवत ५.२६.७( पण्योद : २८ नरकों में से एक ), ५.२६.२३( पण्योद नरक को प्राप्त होने वाले मनुष्यों के कर्मों का कथन ), वायु १०१.१६२/२.३९.१६२( पण्यवह नामक नरक को प्राप्त होने वालों के कर्मों का कथन ), विष्णु २.६.१८( पण्यवह नरक को प्राप्त होने वालों के कर्मों का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.३७०.८८( नरक में पण्य कुण्ड प्रापक कर्म का उल्लेख ), २.५.८८( ब्रह्मकूर्च असुर की अनिष्ट धातुओं से उत्पन्न पुत्रों में से एक ) Panya



      पूरण ब्रह्माण्ड १.२.३२.११८( १३ कुशिक श्रेष्ठों में से एक ), २.३.६६.६९( विश्वामित्र के पुत्रों में से एक ), २.३.७.३८१( पिशाचों/कूष्माण्डों के १६ कुलों में से एक ), २.३.७.३९७( पूरण पिशाचों का स्वरूप ), २.३.७४.१८३( पूरिका नगरी के नृप शिशिक का उल्लेख ), मत्स्य १९८.११५( त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक ), वायु ६९.२६३/२.८.२५७( पूरिण : कूष्माण्डों/पिशाचों के १६ कुलों में से एक ), ९१.९०/२.२९.९३( विश्वामित्र के पुत्रों में से एक ) poorana/ purana



      पूरु अग्नि २७८.१( जनमेजय - पिता पुरु के वंश का वर्णन ), पद्म २.७८+ ( पूरु द्वारा ययाति से जरा ग्रहण का प्रसंग ), ब्रह्म २.७६( पूरु द्वारा पिता ययाति से जरा ग्रहण, कालान्तर में गङ्गा तट पर तप से जरा से मुक्ति व पूरु द्वारा भ्राताओं की शाप से मुक्ति का उद्योग ), भागवत ४.२७.२०( राजर्षि पूरु द्वारा काल - कन्या जरा/दुर्भगा के वरण का उल्लेख ), ८.५.७( चाक्षुष मनु के पुत्रों में से एक ), ९.१५.३( जह्नु - पुत्र, बलाक - पिता, पुरूरवा वंश ), ९.१८.३३( शर्मिष्ठा व ययाति के ३ पुत्रों में से एक, पिता की जरा को स्वीकार करने का कथन ), ९.१९.२१( ययाति द्वारा पूरू से जरा वापस लेने व सारे भूमण्डल का अधिपति बनाने का कथन ), ९.२०( पूरु वंश का वर्णन ), मत्स्य ४.४१( चाक्षुष मनु व नड्वला के १० पुत्रों में से एक ), २४.५४( ययाति - पुत्र पूरु द्वारा पिता की जरा स्वीकार करने तथा पूरु वंश का वर्णन ), ३३+ ( ययाति व शर्मिष्ठा - पुत्र, पिता से जरा ग्रहण की स्वीकृति, राज्य व वर प्राप्ति ), ३६( ययाति द्वारा पूरु को अभिषेकोत्तर उपदेश ), ४९.१( पूरु वंश का वर्णन ), वायु ९३.६१/२.३१.६१( पूरु द्वारा ययाति से जरा प्राप्ति की कथा ), विष्णु ३.१.२९( चाक्षुष मनु के पुत्रों में से एक ), ४.१०.१५( पूरु द्वारा पिता की जरा स्वीकार करने तथा पिता द्वारा जरा को वापस लेकर पूरु का राज्याभिषेक करने का वृत्तान्त ), ४.१८.३०+ ( पूरु वंश का वर्णन ), ४.१९( पूरु/पुरु वंश का वर्णन ), वा.रामायण ७.५९( पूरु द्वारा पिता ययाति की जरा को ग्रहण करना ) pooru/puuru/ puru



      पूर्ण नारद १.५०.४४( गान की दशविध गुणवृत्तियों में से एक पूर्ण की व्याख्या ), ब्रह्म २.५२( धन्वन्तरि का तप से इन्द्र बनना, खण्ड धर्म दोष से इन्द्र का राज्य भ्रष्ट होना, पूर्ण तीर्थ का माहात्म्य, सुकृतों की पूर्णता हेतु इन्द्र द्वारा गोदावरी की स्तुति ), ब्रह्माण्ड २.३.६.३८( क्रोधा से उत्पन्न १० देवगन्धर्वों में से एक ), ३.४.४४.५५( पूर्णोदरी : १६ स्वर शक्तियों में से एक ), भविष्य २.१.२०.१( होमों के अन्त में पूर्णा दर्वीति इत्यादि मन्त्रों द्वारा पूर्ण होम विधि व महत्त्व ), मत्स्य २६२.७-१७( पीठिका के १० भेदों में से एक पूर्णचन्द्रा पीठिका के स्वरूप का कथन ), २७३.३( पूर्णोत्सङ्ग : मल्लकर्णि - पुत्र, शान्तकर्णि - पिता, १८ वर्ष राज्य करने का उल्लेख ), वायु ४५.१२१( पूर्णदर्व : भारत के उत्तर के देशों में से एक ), ५९.१०४( पूर्णातिथि : आत्रेय मन्त्रकार ऋषियों में से एक ), विष्णु ४.२४.४५( शान्तकर्णि - पुत्र, शातकर्णि - पिता ) poorna/ puurna/ purna



      पूर्णकला स्कन्द ६.१३४( हारीत -पत्नी, काम से रति, हारीत शाप से खण्ड शिला बनना, कण्डशिला की पूजा करने का महत्त्व ), लक्ष्मीनारायण १.५०२.१( हारीत - पत्नी पूर्णकला पर काम की आसक्ति से पूर्णकला का खण्डशिला बनना, रवि द्वारा शिला का स्पर्श करने से शिला का पूर्वरूप में आना ) poornakalaa/ purnakala



      पूर्णगिरि वायु १०४.७९/२.४२.७९( पूर्णगिरि पीठ की ललाट में स्थिति )



      पूर्णभद्र मत्स्य ४८.९८( चम्प राजा द्वारा पूर्णभद्र की कृपा से हर्यङ्ग पुत्र प्राप्त करने का उल्लेख ), १८०, वायु ६९.१५८/२.८.१५३( देवजननी व मणिवर यक्ष के यक्ष - गुह्यक पुत्रों में से एक ), स्कन्द ४.१.३२.८( यक्ष, रत्नभद्र - पुत्र, कनककुण्डला - पति, शिव भक्ति से हरिकेश पुत्र की प्राप्ति, पुत्र हरिकेश की शिव भक्ति का वृत्तान्त ), हरिवंश १.३१.४९( चम्प राजा द्वारा पूर्णभद्र की कृपा से हर्यङ पुत्र को प्राप्त करने का उल्लेख ) poornabhadra/ purnabhadra



      पूर्णमास गर्ग ७.२८.२६( कृष्ण व कालिन्दी - पुत्र, प्रद्युम्न - सेनानी , वीरधन्वा को पराजित करना ), ब्रह्माण्ड १.२.११.११( मरीचि व सम्भूति की सन्तानों में से एक, पूर्णमास द्वारा सरस्वती से उत्पन्न २ पुत्रों के नाम ), २.३.७.१३०( देवजननी व मणिवर के यक्ष - गुह्यक पुत्रों में से एक ), भागवत १०.६१.१४( कृष्ण व कालिन्दी के १० पुत्रों में से एक ), वायु २८.८( मरीचि व सम्भूति की सन्तानों में से एक, पूर्णमास द्वारा सरस्वती से उत्पन्न २ पुत्रों के नाम ), ६९.१६१/२.८.१५६( देवजननी व मणिवर के यक्ष - गुह्यक पुत्रों में से एक ), द्र. दर्शपूर्णमास poornamaasa/ purnamasa



      पूर्णमुख वराह १२६.४२(कुब्जाम्रक तीर्थ के अन्तर्गत पूर्णमुख तीर्थ के महत्त्व का कथन )



      पूर्णा अग्नि ६५.१८( सभागृह स्थापन के संदर्भ में अङ्गिरस - पुत्री पूर्णा से पूर्णकाम करने की प्रार्थना का उल्लेख ), ब्रह्म २.५२.१( गौतमी गङ्गा के उत्तर तट पर पूर्ण तीर्थ में स्नान आदि के माहात्म्य के संदर्भ में इन्द्र द्वारा पूर्ण तीर्थ में अभिषेक से सुकृतों को पूर्ण करने का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड ३.४.३५.९२( चन्द्रमा की कलाओं के नामों में पूर्णा व पूर्णामृता का उल्लेख ) poornaa/ puurnaa/ purna



      पूर्णामल भविष्य ३.३.३१.१३६( पट्टन पुर का राजा, वसुओं की आराधना से १० पुत्र व एक कन्या की प्राप्ति ), ३.३.३२.४३( कलियुग में कौरवों का पूर्णामल - पुत्रों के रूप में उत्पन्न होना, पुत्रों के नाम ), ३.३.३२.१६३( पूर्णामल का पृथ्वीराज - सेनानी मूलवर्मा से युद्ध व मृत्यु ) poornaamala/ purnamala



      पूर्णासन लक्ष्मीनारायण २.२१५.१५( राजा कालमण्डली के साथ पूर्णासन ऋषि का उल्लेख ), २.२१६.१९( वही)



      पूर्णाहुति नारद १.५१.४७( पूर्णाहुति के पुरुष रूपी अग्नि के श्रोत्र रूप होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.१७१.८( पूर्णाहुति विधि )



      पूर्णिमा अग्नि १२१.६२( महाज्येष्ठी पूर्णिमा काल का विचार ), १९४( विभिन्न मासों में पूर्णिमा व्रतों के नाम ), २९०( आश्विन् शुक्ल पूर्णिमा : अश्व शान्ति कर्म ), गणेश १.४८.३( बहुला पूर्णिमा को त्रिपुर का वध ), गरुड १.१२१( आषाढ पूर्णिमा : चातुर्मास्य व्रत ), गर्ग २.१६.२६( पूर्णिमा को तुलसी सेवन व्रत ), ५.२०.२८( कार्तिक पूर्णिमा को राधा - कृष्ण रासोत्सव ), ६.१४.२( वैशाख पूर्णिमा : समुद्र की पूजा ), १०.७.४२( चैत्र पूर्णिमा को अश्वमेधीय हय का मोचन ), देवीभागवत ९.१२.२०( कार्तिक पूर्णिमा को गङ्गा के जन्म का कथन ), ९.२५.३४( कार्तिक पूर्णिमा को तुलसी जन्म का उल्लेख ), ९.५०.४२( कार्तिक पूर्णिमा को राधा जन्मोत्सव का निर्देश ), नारद १.१८( मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत व उद्यापन विधि ), १.१२४( पूर्णिमा तिथियों में व्रत विशेषों का वर्णन ), २.२३.७०( पूर्णिमा को आज्य का वर्जन ), २.४३.२९( वैशाख पूर्णिमा : शिव पूजा विधि ), २.५६.२३( ज्येष्ठ पूर्णिमा को पुरुषोत्तम तीर्थ की यात्रा के फल का कथन ), २.६०.८( ज्येष्ठ पूर्णिमा को पुरुषोत्तम क्षेत्र की यात्रा, कृष्ण, बलराम व सुभद्रा का अभिषेक उत्सव ), २.७१.२८( कार्तिक पूर्णिमा को भरणी, कृत्तिका आदि नक्षत्रों की स्थिति के अनुसार आकाश पुष्कर, मध्य पुष्कर, कनिष्ठ पुष्कर आदि में स्नान के नियम का कथन ), पद्म १.७.८( दिति द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु चीर्णित ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा व्रत की विधि का वर्णन ), १.१८.२१२( कार्तिक तथा वैशाख पूर्णिमा ? को मध्यम व कनिष्ठ पुष्कर में स्नान आदि के महत्त्व का कथन ), ४.१६.२२( आश्विन् पूर्णिमा का माहात्म्य : आश्विन् पूर्णिमा को सर्प द्वारा श्रीहरि को लाजा, वराटिका प्रस्तुत करने पर सर्प की मुक्ति का वृत्तान्त ), ५.९.४( वैशाख पूर्णिमा को राम के हयमेध अश्व के मोचन का कथन ), ५.३६.३२( मार्गशीर्ष पूर्णिमा : हनुमान के लङ्का से पुनरागमन का उल्लेख ), ६.८५.१( वैशाख पूर्णिमा से जलशायी विष्णु महोत्सव का आरम्भ ), ६.२१९.३२( माघ पूर्णिमा को विष्णु द्वारा पुण्डरीक द्विज को इन्द्रप्रस्थ में स्थित पुष्कर में स्नान कराने का वृत्तान्त ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१०.११६(कार्तिक पूर्णिमा को गङ्गा की उत्पत्ति का उल्लेख), २.२७.८९( कार्तिक पूर्णिमा को गोप - गोपी रास का माहात्म्य ), ब्रह्माण्ड १.२.२८.३८( चन्द्र व सूर्य की स्थितियों के अनुसार राका व अनुमति पूर्णिमाओं के काल का निर्धारण ), ३.४.३१.१२( षोडश पत्राब्ज पर स्थित शक्तियों में से एक ), भविष्य २.२.८.११६( विभिन्न मासों में महापूर्णिमा कालों का निर्धारण, विभिन्न तीर्थों में विभिन्न पूर्णिमाओं के विशेष फलों का कथन ), ३.४.८.५२( भाद्रपद पूर्णिमा को सूर्य का विष्णुशर्मा द्विज रूप में जन्म लेना ), ४.९९.२( पूर्णिमा को सोम का देवों के साथ जय नामक सङ्ग्राम होने का उल्लेख ), ४.९९.४८( पूर्णिमा को चन्द्रमा द्वारा बुध पुत्र की प्राप्ति ; पूर्णिमा को सोम पूजा की विधि ), ४.१००( वैशाख, कार्तिक, माघ पूर्णिमाओं को स्नान, तर्पण, दान का कथन, भरत द्वारा निर्दोषता की शपथ ), ४.१०४( पूर्णमनोरथ व्रत के अन्तर्गत विभिन्न मासों की पूर्णिमाओं को विष्णु रूपी चन्द्रमा की विभिन्न नामों से अर्चना का निर्देश ; प्रतिमास कायशुद्धि हेतु प्राशन द्रव्य का उल्लेख ), ४.१०५( धरणी द्वारा फाल्गुन आदि पूर्णिमाओं को चीर्णित अशोक पूर्णिमा व्रत की विधि ), ४.१२१.३१( पूर्णिमा व्रत की संक्षिप्त विधि ), ४.१३२( फाल्गुन उत्सव, रघु के नगर को ढोण्ढा राक्षसी से त्रास व उपाय ), ४.१३७.१०( श्रावण पूर्णिमा को रक्षाबन्धन विधि ), भागवत ४.१.१३( मरीचि व कला - पुत्र, विरज आदि सन्तान ), मत्स्य ५३.३( वैशाख पूर्णिमा को ब्रह्मपुराण दान का निर्देश ), ५३.१५( ज्येष्ठ पूर्णिमा को पद्म पुराण के दान का निर्देश ), ५३.१७( आषाढ पूर्णिमा को विष्णु पुराण दान का निर्देश ), ५३.१९( श्रावण पूर्णिमा को वायु पुराण दान का निर्देश ), ५३.२२( भाद्रपद पूर्णिमा को भागवत पुराण दान का निर्देश ), ५३.२४( आश्विन् पूर्णिमा को नारद पुराण दान का निर्देश ), ५३.२७( कार्तिक पूर्णिमा को मार्कण्डेय पुराण दान का निर्देश ), ५३.३५( माघ पूर्णिमा को ब्रह्मवैवर्त्त पुराण दान का निर्देश ), ५३.३७( फाल्गुन पूर्णिमा को लिङ्ग पुराण दान का निर्देश ), ५३.४०( चैत्र पूर्णिमा को वराह पुराण आदि के दान का निर्देश), १२०.४२( फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा : पुरूरवा द्वारा स्वप्न दर्शन, अत्रि से भेंट ), १४१.३८( राका व अनुमति पूर्णिमा का अर्थ), १४१.५५( पूर्णिमा के चन्द्रमा में षोडशी कला का अभाव होने के कारण चन्द्रमा के क्षय होने का कथन ), १९५.२८ (पूर्णिमागतिक : भार्गव कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक ), वराह ३५.१६( सोम को ब्रह्मा से पौर्णमासी तिथि प्राप्त होने का उल्लेख ), वायु २१.५६( २७वें भाव कल्प की देवी पूर्णमासी व ब्रह्मा के मिथुन से सूर्य देव की मण्डल सहित उत्पत्ति ; पूर्णमासी के नाम के कारण का कथन : ब्रह्मा परमेष्ठी का मन से पूर्ण होना ), ५६.३६( पूर्णिमा काल का निरूपण ), ५६.३८( पूर्णिमा के राका, अनुमति नाम का कारण ), ५६.४१( चन्द्र व अर्क के परस्पर ईक्षण से पूर्णिमा घटित होने का कथन ?), विष्णुधर्मोत्तर १.६०.१७( महत्पूर्वा नामक पूर्णिमा के साल व महत्त्व का कथन), ३.१९२( मास नक्षत्र पौर्णमासी व्रत की विधि व माहात्म्य ), ३.१९३( कार्तिक पूर्णिमा व्रत की विधि ), ३.१९५( भाद्रपद पूर्णिमा से आरम्भ होने वाले वरुण व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य ), ३.१९६( आश्विन् पूर्णिमा को शक्र व्रत की विधि व माहात्म्य ), ३.१९७( पूर्णिमा को ब्रह्मकूर्च व्रत की विधि ), ३.२१६( सुगति पौर्णमासी कल्प के अन्तर्गत विभिन्न मासों की पूर्णिमा व्रत की विधि व प्राशन/भोजन विधान ), ३.३१९( पूर्णिमा को दान द्रव्य ), शिव ४.१५.१८( पूर्णिमा को पार्वती व अमावास्या को शिव का क्रौञ्च पर्वत पर स्कन्द के दर्शन हेतु जाने का उल्लेख ), स्कन्द १.३.२.२०.२६+( कार्तिक पूर्णिमा को पार्वती द्वारा द्रष्ट शोणाद्रीश पूजा का माहात्म्य ), २.२.४४.१( फाल्गुन पूर्णिमा को सांवत्सर व्रत विधान ), २.७.२५.१(वैशाख की पूर्णिमान्त तीन तिथियों में स्नानादि का माहात्म्य ), २.८.३.४१( ज्येष्ठ पूर्णिमा को चन्द्र हरि व्रत का वर्णन ), ५.१.१०.५( आश्विन् पूर्णिमा को शिव के पट्टबन्ध के दर्शन से विपाप्मा होने का उल्लेख ), ५.१.४८.५१( वैशाख पूर्णिमा को शिव को शिप्रा में स्नान कराने के सत्फल का कथन ),५.३.५१.५( आषाढ पूर्णिमा आदि के मन्वन्तरादि तिथियां होने तथा अनन्त फलदा होने का उल्लेख ), ६.४५.५( कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुष्कर स्नान का माहात्म्य, कार्तिक पूर्णिमा को ज्येष्ठ पुष्कर में कमल में अङ्गुष्ठ मात्र पुरुष के दर्शन होने का वृत्तान्त ), ६.९२.३( कार्तिक पूर्णिमा को भीष्म पञ्चक व्रत का चीर्णन करके ब्रह्मकुण्ड में स्नान का माहात्म्य : पशुपाल शूद्र का जन्मान्तर में ब्राह्मण बनना ), ६.१११.२५( कार्तिक पूर्णिमा को दमयन्ती द्वारा दान, ब्राह्मणों के शाप से शिला बनना ), ६.१५५.१६( आश्विन् पूर्णिमा : अश्विनौ की पूजा का कथन ), ७.१.१३१.२०( आश्विन् पूर्णिमा : ध्रुवेश्वर लिङ्ग की पूजा के फल का उल्लेख), ७.१.१६५.१७१( ज्येष्ठ पूर्णिमा : सावित्री स्थल के निकट ब्रह्मसूक्त पठन का निर्देश ), ७.१.१६६.७१( ज्येष्ठ पूर्णिमा को सावित्री द्वारा चीर्णित व्रत की विधि का वर्णन ), ७.१.१७०( श्रावण पूर्णिमा : मातृगण की पूजा का उल्लेख ), ७.१.१७१( कार्तिक पूर्णिमा को दशरथेश्वर लिङ्ग की पूजा के महत्त्व का कथन ), ७.१.१७२( कार्तिक पूर्णिमा को भरतेश्वर लिङ्ग की पूजा के महत्त्व का कथन ), ७.१.१७४( कार्तिक पूर्णिमा को कुन्तीश्वर लिङ्ग की पूजा के माहात्म्य का कथन ), ७.१.१७७( कार्तिक पूर्णिमा को लकुलीश की पूजा के महत्त्व का कथन ), ७.१.२३२.१९( ज्येष्ठ पूर्णिमा : पाण्डव कूप में स्नान, श्राद्ध आदि के माहात्म्य का कथन ), ७.१.२८३.१३( आश्विन् पूर्णिमा : च्यवनेश्वर लिङ्ग की पूजा, सुकन्या - अश्विनौ आख्यान ), ७.३.६.१३( श्रावण पूर्णिमा : वसिष्ठ ऋषि के तर्पण आदि का निर्देश ), ७.३.४९( कार्तिक पूर्णिमा : परशुराम तीर्थ में स्नान, श्राद्ध आदि के फल का कथन ), ७.३.५४.९( कार्तिक पूर्णिमा : त्रिपुष्कर में स्नान व दान का फल ), योगवासिष्ठ ६.१.८१.११५टीका(सूर्य द्वारा षोडशी कला को ग्रस्त करने के क्षण बद्धपद होने का कथन, प्राण व अपान के रूप में पूर्णिमा – अमावास्या की व्याख्या), ६.१.१२६.५८( चित्त में पूर्ण ज्ञानोदय की पूर्णचन्द्रोदय से उपमा ), लक्ष्मीनारायण १.२८०.११९(पूर्णिमाओं का कथन, विधि, कार्तिक पूर्णिमा को दीपोत्सव विधि तथा त्रिपुरारि पूजन, मनु, भक्ति, स्कन्द आदि की पूजा का कथन ), २.११.४१( चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को कृष्ण का अन्न प्राशन संस्कार ), २.११७.९९( फाल्गुन पूर्णिमा को पवमान अग्नि की यज्ञभूमि आदि में प्रतिष्ठा का कथन ), २.१६२.१०२( माघ पूर्णिमा के माहात्म्य के संदर्भ में माघ पूर्णिमा को शतोढु के मूक पुत्र वोढु द्वारा कपिल से ज्ञान व सरस्वती से वाणी प्राप्त करने का वृत्तान्त ), २.२३३.२६( आश्विन् पूर्णिमा को श्रीकृष्ण के गोपियों के साथ रासोत्सव का वर्णन ), ३.१०३.९( पूर्णिमा को दान से चमत्कारी होने का उल्लेख ), ४.५६.८०( फाल्गुन पूर्णिमा को कृष्ण द्वारा कुट्टनी अनङ्गवल्ली तथा उसकी सखियों को मोक्षार्थ ले जाने का उल्लेख ), ४.१०१.११०( कृष्ण की ११२ पत्नियों में से एक, सुधाकर व चन्द्रकला - माता ) poornimaa/ puurnimaa/ purnima

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      पूर्तगण्ड लक्ष्मीनारायण २.१६६.३३( गङ्गा व कृष्ण के ६० अपत्यों में से एक ), २.१६७.३१( पूर्तगण्ड ऋषि का गण्डक नृप के साथ यज्ञ में आगमन का उल्लेख ), २.१९०.९१( श्रीहरि का पूर्तगण्ड ऋषि के साथ गण्ड नृप के नगर लीशवन में आने का कथन ),



      पूर्ति गरुड ३.२९.६८(कर्म पूर्ति काल में वासुदेव के ध्यान का निर्देश),



      पूर्व ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८३( भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में पूर्वमारक का उल्लेख ), ३.४.२६.४८( वही), मत्स्य १४५.१०८( पूर्वातिथि : मन्त्रकार ६ आत्रेय ऋषियों में से एक ), २२७.४( याचित वस्तु के न लौटाने पर पूर्वसाहस नामक दण्ड का निर्देश ), वायु ६१.५८( पूर्वसंहिता के रूप में सामिका का कथन ), वा.रामायण ७.१, लक्ष्मीनारायण ४.८०.१८( राजा नागविक्रम के यज्ञ में पूर्वज विप्रों के सभासद बनने का उल्लेख ) poorva/purva



      पूर्वचित्ति ब्रह्माण्ड १.२.२३.१८( पूर्वचित्ति अप्सरा की सूर्य रथ में स्थिति का कथन ), भागवत ५.२.३( राजा आग्नीध्र के पूर्वचित्ति अप्सरा पर आकृष्ट होने व उससे ९ पुत्र उत्पन्न करने का वर्णन ), ११.१६.३३( भगवान् के अप्सराओं में पूर्वचित्ति होने का उल्लेख ), द्र रथ सूर्य , विप्रचित्ति poorvachitti/ purvachitti



      पूर्वाषाढा भागवत ५.२३.६( शिशुमार के लोचन में पूर्वाषाढा नक्षत्र की स्थिति का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर २.८३( पूर्वाषाढा स्नान वर्णन नामक अध्याय में वाणिज्य शुद्धि व बहु कृषि प्राप्ति के उपायों का कथन ) poorvaashaadhaa/ purvashadha



      पूषा अग्नि ८६.८( सुषुप्ति/विद्या कला की २ नाडियों में से एक - मन्त्रो घोरामरौ वीजे नाड्यौ द्वे तत्र ते यथा। पूषा च हस्तिजिह्वा च व्याननागौ प्रभञ्जनौ ।। ), ९३.११( वास्तु मण्डल के देवताओं में से एक ), कूर्म १.४३.१९( फाल्गुन मास में सूर्य का नाम व रश्मि संख्या का उल्लेख, माघ मास में वरुण - वरुणो माघमासे तु सूर्यः पूषा तु फल्गुने ।), गर्ग १.५.२७( पूषा के पाण्डु रूप में अंशावतरण का उल्लेख - पाण्डुः पूषा सतां श्रेष्ठो धर्मो राजा युधिष्ठिरः ॥ ), ब्रह्म २.९०.८ ( पूषा के नमुचि से युद्ध का उल्लेख? ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.१९.२६( पूषा सूर्य से जङ्घा की रक्षा की प्रार्थना - मिहिरश्च सदा स्कन्धे जंघे पूषा सदाऽवतु ।। ), ब्रह्माण्ड २.३.३.४२( रात्रि के १५ मुहूर्त्तों में से एक ), २.३.३.६८( कश्यप के पुत्र १२ आदित्यों में से एक ), ३.४.३५.९२( पूष्णा : चन्द्रमा की कलाओं में से एक ), भविष्य ३.४.८.११५( मार्गशीर्ष मास के सूर्य के माहात्म्य के संदर्भ में पूषा सूर्य के ज्योतिषी रूप में जन्म लेकर ज्योतिष का उद्धार करने का वृत्तान्त - पूषा नाम ततो जातं मार्गशीर्षे शुभे दिने ।।
      स तु सूर्यं समाराध्य ज्योतिःशास्त्रपरः सुतः ।। ), ३.४.१८.१८( संज्ञा विवाह प्रकरण में पूषा के प्रलम्ब से युद्ध का उल्लेख ), भागवत ४.५.१७( दक्ष यज्ञ में चण्डेश द्वारा पूषा के बन्धन का उल्लेख ), ४.५.२१( वीरभद्र द्वारा दक्ष यज्ञ में हंसने वाले पूषा के दांत तोडने का उल्लेख ), ४.७.४( दक्ष यज्ञ की पूर्ति के संदर्भ में पूषा द्वारा यजमान के दांतों से पिष्ट भक्षण का उल्लेख ), मत्स्य ६.४( १२ आदित्यों में से एक ), २४६.५८( वामन के विराट रूप में त्वष्टा व पूषा की भ्रुवों पर स्थिति का उल्लेख ), २५३.२५( ८१ पदीय वास्तुमण्डल के देवताओं में से एक ), २६८.१३( ८१ पदीय वास्तुमण्डल में पूषा देवता को लाजा देने का निर्देश ), वामन ५७.६६( पूषा द्वारा स्कन्द को प्रदत्त २ गणों के नाम – पाणित्यज व कालक ), वायु ५२.१२( शरद ऋतु में सूर्य रथ पर पर्जन्य व पूषा आदित्यों की स्थिति का उल्लेख ), ६६.४३/२.५.४३( रात्रि के १५ मुहूर्त्तों में से एक ), ६६.६६/२.५.६६( कश्यप के १२ आदित्य पुत्रों में से एक ), विष्णु २.१०.११( आश्वयुज मास में सूर्य रथ में पूषा नामक आदित्य की स्थिति - पूषा च सुरुचिर्वातो गौतमोथ धनञ्जयः। सुषेणोऽन्यो घृताची च वसन्त्याश्वयुजे रवौ ॥), विष्णुधर्मोत्तर १.२३४.३( रुद्र द्वारा दक्ष यज्ञ में पूषा के दन्त नाश करने का उल्लेख ), शिव २.२.३७.५४( दक्ष यज्ञ में चण्ड द्वारा पूषा के दन्त तोडने का उल्लेख ), २.२.४१.४९( रुद्र से पूषा के दन्तों के रोहण करने की प्रार्थना ), स्कन्द ५.३.१९१.१५( प्रलय काल में पूषा सूर्य द्वारा अधो दिशा में शोषण का उल्लेख- ऊर्ध्वतश्चैव सविता ह्यधः पूषा विशोषयन् । ), हरिवंश ३.५३.१०( पूषा का हयग्रीव असुर से युद्ध ), ३.५५.८८( देवासुर संग्राम में हयग्रीव दैत्य के पूषा देव से युद्ध व पूषा की पराजय का कथन ), महाभारत शल्य ४५.४३(पूषा द्वारा स्कन्द को दो पार्षद पाणीतक व कालिक प्रदान करने का उल्लेख), शान्ति १५.१९( पूषा आदि की अर्चना न होने का कारण ), अनुशासन ६५.७ (घृतदान से तुष्ट होने वाले देवों में एक ), कथासरित् ८.५.९६( वेत्रवान् : पूषा का अवतार, श्रुतशर्मा के ४ महारथियों में से एक ) pooshaa/pusha



      पृच्छा स्कन्द ५.२.१७.१६( महाकालवन में पृच्छा देवी के लिङ्ग के समीप अप्सरेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), योगवासिष्ठ ३.१०९.११( इन्द्रजाल के अन्तर्गत राजा लवण व चण्डाल - कन्या से उत्पन्न पुत्र पृच्छक द्वारा पिता का मांस खाने की तत्परता का कथन ) prichchhaa



      पृथा ब्रह्माण्ड २.३.७१.१५०( शूर - पुत्र पृथा के कुन्ती नाम का कारण, देवों के अंश रूप ३ पुत्रों को उत्पन्न करने का कथन ), भागवत १.८.१७( उत्तरा के गर्भ की अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से रक्षा करने पर पृथा/कुन्ती द्वारा कृष्ण की स्तुति ), ९.२४.३१( शूर की ५ कन्याओं में से एक पृथा का कुन्तिभोज की दत्तक पुत्री बनने व दुर्वासा की कृपा से देवहूति विद्या प्राप्त करने व कर्ण को जन्म देने का वृत्तान्त ), १०.५८.८( कृष्ण से मिलने पर पृथा की प्रतिक्रिया ), मत्स्य ४६.४( शूर की ५ पुत्रियों में से एक पृथा के कुन्ति की दत्तक पुत्री बनने, पाण्डु से विवाह व पुत्रों को जन्म देने का कथन ), वायु ९६.१४९/२.३४.१४९( शूर की ५ पुत्रियों में से एक पृथा के कुन्ति की दत्तक पुत्री बनने, पाण्डु से विवाह व पुत्रों को जन्म देने का कथन ), विष्णु ४.१४.३१( शूर की ५ पुत्रियों में से एक पृथा के कुन्ति की दत्तक पुत्री बनने, पाण्डु से विवाह व पुत्रों को जन्म देने का कथन ) prithaa



      पृथिवी अग्नि ४१.१९( पृथिवी पूजा की विधि ), २१३( पृथिवी कल्पन व दान की महिमा ), गरुड १.९८.९( प्रसूतकाला गौ का रूप ), गर्ग १.१५.१७( स्त्रियों द्वारा पृथिवी दोहन पर मन:पात्र, मनोरथ दुग्ध का उल्लेख ), ७.२.२७( पृथिवी द्वारा प्रद्युम्न को पादुका भेंट का उल्लेख ), देवीभागवत ४.१८.२( २८वें कलि के भार से पीडित होकर पृथिवी का गो रूप धारण कर इन्द्र, ब्रह्मा, विष्णु आदि के पास जाना ), ८.१०.६( पृथिवी द्वारा उत्तरकुरु वर्ष में वराह की आराधना ), ९.९( मधु -कैटभ के मेद से पृथिवी की उत्पत्ति, वराह -कृत पृथिवी की पूजा विधि,पृथिवी हेतु स्तोत्र ), १२.६.१०६( पृथ्वी : गायत्री सहस्रनामों में से एक ), पद्म १.३.३१( जल से उद्धार हेतु पृथिवी द्वारा वराह की स्तुति ), १.८.१२( पृथु द्वारा पृथिवी का दोहन, दोग्धा व वत्स आदि का कथन ), १.४०.२( हिरण्मय पद्म रूपी पृथिवी का वर्णन ), २.२८.९३( पृथिवी द्वारा बीजों के ग्रसन पर पृथु द्वारा पृथिवी का पीछा, पृथिवी द्वारा कुञ्जर, महिष आदि रूपों का ग्रहण, अन्त में गौ रूप धारण का वृत्तान्त ), २.२९( पृथु द्वारा पृथिवी के दोहन का आख्यान ), ४.२४.२( पृथिवी दान का माहात्म्य ), ६.३२.४( गौ व भूमि दान के महत्त्व का वर्णन ), ६.२४९.१( पृथिवी का सत्यभामा रूप में अवतरण ), ब्रह्म १.२.७०( पृथिवी रूपी गौ दोहन में वत्स, पात्र, दोग्धा आदि ), ब्रह्मवैवर्त्त २.८( मधु - कैटभ के मेद से वसुधा के जन्म तथा वाराह द्वारा पृथिवी पूजा की विधि का वर्णन ), ४.४.१४( पृथिवी को पीडित करने वाले पापियों के पाप रूप भारों का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.१९९( पृथु द्वारा पृथिवी दोहन की कथा , दोहन में वत्स, दोग्धा आदि ), १.२.३७.१( पृथिवी के वसुधा, मेदिनी आदि नामों के कारण का कथन ; विभिन्न मन्वन्तरों में पृथिवी के दोहन के संदर्भ में दोग्धा व मनु रूपी वत्सों के नाम ), भविष्य ४.१५८.२( प्रसूयमाना द्विमुखी गौ के पृथ्वी का प्रतीक होने का कथन ), ४.१६१.५०( वही), भागवत १.१६( पृथिवी द्वारा एक पाद वाले वृषभ रूपी धर्म से स्व व्यथा का वर्णन ), ४.१७+ ( पृथु द्वारा पृथिवी का पीछा, देवों व असुरों द्वारा पृथिवी के दोहन का वर्णन ), ६.९( पृथिवी द्वारा इन्द्र से ब्रह्महत्या के अंश के ग्रहण का कथन ), १०.५९( नरकासुर की मृत्यु पर पृथिवी द्वारा कृष्ण की स्तुति, नरक -- पुत्र भगदत्त को कृष्ण को अर्पण करना ), ११.७.३७( दत्तात्रेय द्वारा पृथिवी से क्षमा की शिक्षा प्राप्त करने का कथन ), मत्स्य १०.१२( पृथु द्वारा पृथिवी का निग्रह, विभिन्न सर्गों व प्राणियों द्वारा पृथिवी का दोहन ), १२४.११( पृथिवी के विस्तार व परिमाण का कथन), १६९( रसा/पद्मा नामक पृथिवी के पद्म केसर, दल आदि अङ्गों का कथन, नाभिकमल में स्थिति ), २८४( हेमधरा दान विधि, पृथिवी के विभिन्न नाम ), मार्कण्डेय ४९.६३/४६.६३( त्रेतायुग में प्रजा द्वारा ओषधियों पर जीवन यापन करने पर पृथिवी द्वारा ओषधियों का ग्रसन, ब्रह्मा द्वारा सुमेरु को वत्स बनाकर पृथिवी से ग्राम्य व आरण्यक ओषधियों के बीजों का दोहन ), वराह १.१६( पृथिवी द्वारा वराह के उदर में ब्रह्माण्ड का दर्शन, स्तुति तथा न्यास ), ११२.३०( पृथिवी रूपी उभयतोमुखी कपिला गौ के दान की विधि व महत्त्व का वर्णन ), वामन ६९.१३०( इन्द्र के भूमि पर गिरने से पृथिवी के कम्पन, शमीक - भार्या के एक पुत्र के द्विगुणित होने तथा कम्पन के कारण उत्पन्न पुत्र के इन्द्र - सारथि मातलि बनने का वृत्तान्त ), वायु ५०.६४( पृथिवी के विस्तार का कथन ), ६२.१७५/२.१.१७५( पृथु द्वारा पृथिवी दोहन के संदर्भ में वत्स, दोग्धा आदि ), ६३.१/२.२.१( पृथिवी के मेदिनी, वसुधा आदि नामों का कारण ), विष्णु १.४( यज्ञवराह द्वारा रसातल से पृथिवी का उद्धार, पृथिवी द्वारा वराह की स्तुति, वराह द्वारा पृथिवी को समुद्र पर स्थापित करना ), १.१३.७३( पृथु द्वारा पृथिवी का निग्रह ), ४.२४.१२७( पृथिवी द्वारा राजा जनक से पृथिवी/आत्म जय की व्यर्थता का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर १.१०९.२१( पृथु द्वारा गौ रूपी पृथिवी को दोहन योग्य बनाने तथा विभिन्न वत्सों के लिए पृथिवी को दोहन का वृत्तान्त ), २.१३२.१२( पार्थिवी शान्ति के मयूराभ वर्ण का उल्लेख ), शिव २.४.१९.१८( गणेश व कार्तिकेय द्वारा विवाह हेतु पृथ्वी की परिक्रमा, गणेश द्वारा माता - पिता को पृथ्वी मान कर परिक्रमा कर विजयी होने का वृत्तान्त ), स्कन्द १.२.१३.१८९( शतरुद्रिय प्रसंग में पृथिवी द्वारा मेरु लिङ्ग की द्वितनु नाम से पूजा का उल्लेख ), २.१.३१.१८( शिव विवाह में पृथिवी का असमान होना, अगस्त्य के दक्षिण दिशा में गमन से पृथिवी को समानता की प्राप्ति ), २.१.३६.१( यज्ञवराह द्वारा पृथिवी के उद्धार के संदर्भ में यज्ञवराह के स्वरूप का कथन), ५.२.७४.२३( राजा रिपुञ्जय के शासन में पृथिवी के पर्वतों, द्वीपों आदि से रहित अकृष्टपच्या होने का कथन ), ५.३.२०.४७( पृथिवी द्वारा प्रलय काल में मार्कण्डेय को स्तन पान कराना ), ५.३.५१.५६( प्रसूतकाला गौ की पृथिवी संज्ञा का कथन ), ६.२.६८( चक्रवर्तित्व हेतु पृथिवी दान का माहात्म्य ), ७.१.११.६२( सूर्य - पत्नी निक्षुभा के अपर नाम पृथिवी का उल्लेख ), ७.१.९८.३( दैत्यभार से पीडित पृथिवी द्वारा स्थापित पृथिवीश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, लिङ्ग की चन्द्रेश्वर लिङ्ग से समानता ), हरिवंश १.६( पृथु द्वारा पृथिवी का दोहन, विभिन्न दोग्धा व वत्स ), १.५२.४०( पृथ्वी के मेदिनी नाम का कारण, पृथ्वी द्वारा पूर्व काल में स्वभार हरण करने वाली घटनाओं का कथन, द्वापर में भार हरण करने की प्रार्थना ), ३.३४( हिरण्मय अण्ड से स्रवित द्रव के भार से पृथिवी को पीडा, पृथिवी का भार हरण करने के लिए यज्ञवराह का अवतार ), ३.३५( वराह द्वारा पृथिवी पर पर्वतों व नदियों की सृष्टि ), महाभारत कर्ण ९०.१०३, शल्य ९.१९, स्त्री ८.२२( पृथिवी का ब्रह्मलोक में जाना, विष्णु द्वारा दुर्योधन के माध्यम से पृथिवी के भार हरण का आश्वासन ), वा.रामायण १.४०.११( अश्वमेधीय अश्व की खोज के लिए सगर द्वारा पुत्रों को पृथिवी खनन का निर्देश, सगर - पुत्रों द्वारा विभिन्न दिशाओं में दिग्गजों से वार्तालाप ), लक्ष्मीनारायण १.५०.७( ब्रह्मा द्वारा प्रजा की प्रतिष्ठा के लिए नारायण से जल प्लावित पृथिवी को पृथुल रूप देने की प्रार्थना, वराह द्वारा जल से पृथिवी का उद्धार तथा पृथु द्वारा पृथिवी को समतल बनाने का वृत्तान्त ), १.१०७( विवाह हेतु कार्तिकेय व गणेश में पृथिवी परिक्रमा की प्रतिस्पर्द्धा, गणेश द्वारा माता, पिता व गौ की परिक्रमा कर विजयी होना ), १.१३२.६४( हिरण्याक्ष द्वारा जलान्त:स्थित पृथिवी का भोग करने व वराह द्वारा पृथिवी के उद्धार का कथन ), १.१३४( हिरण्याण द्वारा विशाल रूप धारण कर पृथिवी को जल में ले जाने का वृत्तान्त, वराह द्वारा हिरण्याक्ष का वध व पृथिवी का उद्धार ), १.३०२, १.३९८.१०( धरणी/पृथिवी का भगवान् वराह से मिलन, धरणी द्वारा वेदवती की छाया पद्मिनी का दर्शन ), १.३९८.४७( धरणी का वियद्राज की पत्नी बनकर क्षेत्रकर्षण से प्राप्त कन्या की पालिता माता बनना ), १.३९८.७७( धरणी द्वारा वसुदान पुत्र को जन्म देना ), २.२.९७( हिरण्याण्ड असुर पर संकर्षण की गदा के प्रहार से मेरु के खण्डों का आकाश आदि में उडकर ग्रह आदि बनना, लवण समुद्र वाले पृथिवी के भाग के पृथिवी से अलग हो जाने का कथन, हिरण्याण्ड व हिरण्यकूर्च असुरों की मृत्यु पर मेरु तथा लोकालोक पर्वत की पृथिवियों का कांचनमयी होना ), २.१०.२१( पाताल पाद आदि के रूप में पृथिवी के स्वरूप का कथन ), २.१४०.५२( पृथिवीतिलक प्रासाद के लक्षण ), २.१७७.५२( गृहारम्भ हेतु पृथिवी की जाग्रती, कलिप्रदा आदि संज्ञाओं की परीक्षा विधि का कथन ), २.२४६.३१( मातृ व मातुलवर्ग के पृथिवीश होने का उल्लेख ), ३.३२.३१( अनलाद असुर के हननार्थ वह्निनारायण के प्राकट्य पर लक्ष्मी का पृथ्वी - पुत्री पार्थिवी श्री के रूप में जन्म लेने का कथन ), कथासरित् ९.३.११४( वीरवर द्वारा स्त्री वेश धारी भूमि के कथन पर राजा विक्रमतुङ्ग की मृत्यु से रक्षा हेतु स्वपुत्र की बलि देने का वृत्तान्त ), १४.२.१५२( पृथिवी द्वारा स्वपुत्र मानसवेग को जामाता नरवाहनदत्त की हत्या से रोकना ) prithivee/ prithivi



      पृथु अग्नि १८.१२( वेन के दक्षिण पाणि के मन्थन से उत्पन्न पृथु के संक्षिप्त जीवन वृत्त का कीर्तन ), १०७.१५( विभु - पुत्र?, नक्त - पिता ), देवीभागवत ७.९.३१( अनेना - पुत्र, ककुत्स्थ - पौत्र, विश्वरन्धि - पिता ), पद्म १.७.७९( सुवर्म, शङ्खपद आदि ४ दिक्पालों द्वारा पृथु के पृथिवी के राजा पद पर अभिषेक का कथन ), १.८.१०( वेन से पृथु का जन्म, पृथु द्वारा पृथिवी के दोहन का वृत्तान्त ), १.३२.५( पृथु नामक ब्राह्मण का पर्युषित आदि ५ प्रेतों से संवाद, पृथु द्वारा प्रेतों की मुक्ति का उद्योग ), २.२८+ ( पृथु की वेन से उत्पत्ति, पृथु द्वारा पृथिवी का दोहन ), ६.९०( पृथु द्वारा नारद से कार्तिक माहात्म्य का विस्तार से श्रवण ), ब्रह्म १.२.४९( वेन की बाहु के मन्थन से पृथु की उत्पत्ति, पृथु द्वारा वसुधा का दोहन ), २.७१.१०( वेन की दक्षिण बाहु के मन्थन से पृथु के जन्म तथा पृथु द्वारा गौ रूपा पृथ्वी के दोहन का संक्षिप्त वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.१४६( पृथु की वेन से उत्पत्ति व पृथु द्वारा पृथिवी दोहन का आख्यान ), १.२.३७.२२( अन्तर्धान व पावन - पिता, वंश का कथन ), २.३.१.७९( पृथुरश्मि : वरत्री के ४ पुत्रों में से एक ), २.३.७०.२२( शशबिन्दु के ६ प्रधान पुत्रों के पृथुश्रवा, पृथुयशा, पृथुकर्मा आदि नामों का उल्लेख ), २.३.७०.२९( पृथुरुक्म ; रुक्मकवच के ५ पुत्रों में से एक, स्वभ्राता राजा रुक्मेषु का अनुगामी ), भागवत ४.१५( वेन की देह के मन्थन से पृथु की उत्पत्ति, राज्याभिषेक ), ४.१९( पृथु द्वारा अश्वमेध यज्ञ के अनुष्ठान का वर्णन ), ४.२०+ ( पृथु की यज्ञशाला में विष्णु का प्रादुर्भाव, पृथु द्वारा स्तुति, विष्णु द्वारा प्रजा को उपदेश, सनकादि का पृथु को उपदेश, पृथु का तप व परलोक गमन ), ४.२२.५३( अर्चि - पति, विजिताश्व आदि पुत्रों के नाम ), ८.१.२७( तामस मनु के १० पुत्रों में से एक ), ९.६.२०( अनेना - पुत्र, विश्वरन्धि - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), ९.२३.३५( रुचक के ५ पुत्रों में से एक, यदु वंश ), ९.२४.१८( चित्ररथ के पुत्रों में से एक, वृष्णि वंश ), मत्स्य ९.१५( तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), १०.१०( पृथु की उत्पत्ति, पृथु द्वारा पृथिवी के दोहन का वृत्तान्त ), ४४.२१( शशबिन्दु के ६ प्रधान पुत्रों के पृथुश्रवा, पृथुयशा, पृथुकर्मा आदि नामों का उल्लेख ), ४४.२८( पृथुरुक्म : रुक्मकवच के ५ पुत्रों में से एक, स्वभ्राता राजा रुक्मेषु का अनुगामी ), ४५.३२( अक्रूर व अश्विनी के पुत्रों में से एक ), ४८.१९( पृथुदर्भ : शिबि के ४ पुत्रों में से एक ), ४९.५५( पार - पुत्र, सुकृत - पिता, नीप/भरद्वाज वंश ), ५०.२( पुरुजानु - पुत्र, भद्राश्व - पिता, अजमीढ/पूरु वंश ), १४५.१००( १९ मन्त्रकार भार्गव ऋषियों में से एक ), वामन ४७.२१( वेन से पृथु के जन्म का प्रसंग, पृथु द्वारा पिता के म्लेच्छ योनि से उद्धार का उद्योग ), वायु ३३.५७( विभु - पुत्र, नक्त - पिता, भरत वंश ), ५९.९७( १९ मन्त्रवादी ऋषियों में से एक ), ६२.१०७( पृथु की वेन से उत्पत्ति, पृथु द्वारा पृथिवी के दोहन की कथा ), ६३.२२( पृथु वंशानुकीर्तन ), ६५.७९/२.४.७८( पृथुरश्मि : वरूत्री के ४ पुत्रों में से एक ), ८८.२५/२.२६.२५( पृथुरोमा : अनेना - पुत्र, वृषदश्व - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), ९५.२२/२.३३.२२( शशबिन्दु के ६ प्रधान पुत्रों के पृथुश्रवा, पृथुयशा, पृथुकर्मा आदि नामों का उल्लेख ), ९६.११३/२.३४.११३( चित्रक के पुत्रों में से एक ), १००.१०९/२.३८.१०९( पृथ : रौच्य मनु के १० पुत्रों में से एक ), विष्णु १.१३.३८( पृथु चरित्र ), १.१४.१( पृथु के वंश का कथन ), १.२२.१( पृथु के राज्याभिषेक के पश्चात् ब्रह्मा द्वारा नक्षत्रों, ग्रहों, विप्रों आदि के अधिपतियों की नियुक्ति का वृत्तान्त ), २.१.३७( विभु - पुत्र, नक्त - पिता, भरत वंश ), ३.१.१८( तामस मनु के काल में सप्तर्षियों में से एक, तामस मनु - पुत्र ), ४.२.३४( अनेना - पुत्र, विष्टराश्व - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), ४.१२.६( शशिबिन्दु के ६ प्रधान पुत्रों के पृथुश्रवा, पृथुकर्मा, पृथुकीर्ति, पृथुयशा, पृथुजय, पृथुदान नामों का उल्लेख ), ४.१२.११( रुक्मकवच के ५ पुत्रों में से एक, यदु वंश ), ४.१४.११( चित्रक के पुत्रों में से एक, वृष्णि वंश ), ४.१९.४२( सुपार - पुत्र, सुकृति - पिता, भरद्वाज/भरत वंश ), ५.३७.४६( एरका रूपी वज्र से पृथु, विपृथु आदि यादवों की मृत्यु का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.१०८.६४( वेन के दक्षिण पाणि के मन्थन से पृथु की उत्पत्ति का कथन ), १.१०९( पृथु का अभिषेक, पृथु द्वारा पृथिवी का दोहन ), स्कन्द १.२.१३.१८८( शतरुद्रिय प्रसंग में पृथु द्वारा तार्क्ष्य लिङ्ग की सहस्रचरण नाम से पूजा का उल्लेख ), ३.१२१.७( पाञ्चाल देश में पृथु की पूजा का निर्देश ), ४.२.८३.७४( पृथु तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.२.४९( पृथु द्वारा स्थापित पृथुकेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : पृथु द्वारा स्त्री रूपी पृथिवी की हत्या से मुक्ति हेतु स्थापना ), ७.१.३३६.९३( पृथु के पृथु नाम का कारण ), ७.१.३३६.१७६( पृथु द्वारा गोष्पद तीर्थ में पिता वेन के पापों का क्षालन, पृथिवी दोहन की कथा ), हरिवंश १.५( पृथु के जन्म व चरित्र का वृत्तान्त ), ३.३०.३( त्रेतायुग के आरम्भ में प्रजा द्वारा पृथु का राज्याभिषेक करने तथा देवों व दानवों द्वारा समुद्र मन्थन करने का कथन ), वा.रामायण १.७०.२४( अनरण्य - पुत्र, त्रिशङ्कु - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), लक्ष्मीनारायण १.५०.४२( यज्ञवाराह द्वारा जल से उद्धृत पृथिवी को समतल करने का कथन ), २.१७७.६४( श्रीहरि का राजा पृथु की नगरी कृपास्थली में आगमन तथा राजा पृथु के पूर्व जन्म का वर्णन : राजा पृथु का पूर्व जन्म में आरण्यक मुनि होने का कथन ), कथासरित् ६.२.१९१( पृथु द्वारा स्वपुत्री हेतु सुरभि को स्वर्ग से लाने का कथन ), द्र. मन्वन्तर, विपृथु prithu

      Esoteric Aspect of Prithu



      पृथुक ब्रह्माण्ड १.२.३६.६६( चाक्षुष मन्वन्तर में ८ देवों के पृथुक गण का उल्लेख ), भागवत १०.८०.१४( सुदामा द्वारा कृष्ण को भेंट देने के लिए ४ मुट्ठी पृथुक तण्डुल लेने का उल्लेख ), १०.८१.५( कृष्ण द्वारा सुदामा द्वारा लाए गए पृथुकों को मुट्ठी भर कर खाना, रुक्मिणी द्वारा निषेध ), वायु ६२.५७/२.१.५७( चाक्षुष मन्वन्तर के ५ देवगण में से एक गण ), ६२.६२/२.१.६२( पृथुक गण के देवों के नाम ) prithuka



      पृथुलाक्ष भागवत ९.२३.१०( चतुरङ्ग - पुत्र पृथुलाक्ष के ३ पुत्रों के नाम, अङ्ग वंश ), मत्स्य ४८.९६( चतुरङ्ग - पुत्र, चम्प - पिता, अङ्ग वंश ), विष्णु ४.१८.१९( वही)



      पृथुश्रवा ब्रह्म २.२९.२( कक्षीवान् का ज्येष्ठ पुत्र, अविवाहित रहने की इच्छा पर गौतमी में स्नान से पितृ ऋण से मुक्ति ), ब्रह्माण्ड २.३.७०.२२( शशबिन्दु के ६ प्रधान पुत्रों में से एक, धर्म - पिता, यदु वंश ), ३.४.१.६५( प्रथम सावर्णि मनु के ९ पुत्रों में से एक ), भागवत ९.२३.३३( शशबिन्दु के ६ प्रधान पुत्रों में से एक, धर्म - पिता, यदु वंश ), वायु ९५.२२/२.३३.२२( वही), विष्णु ३.२.२४( नवम मनु दक्ष सावर्णि के पुत्रों में से एक ) prithushravaa



      पृथुसेन भागवत ५.१५.६( पृथुषेण : विभु व रति - पुत्र, आकूति - पति, नक्त - पिता, भरत वंश ), ९.२१.२४( पार - पुत्र, वितथ वंश ), मत्स्य ४८.१०२( वृषसेन - पुत्र, अङ्ग वंश ), ४९.५२( रुचिराश्व - पुत्र, पौर - पिता, वितथ वंश ), विष्णु ४.१९.३७( रुचिराश्व - पुत्र, पार - पिता, वितथ वंश ) prithusena



      पृथूदक पद्म ३.२७.३२( पृथूदक तीर्थ का माहात्म्य ), भागवत १०.७८.१९( सरस्वती तट पर स्थित तीर्थों में से एक ), वामन २१.२१( श्रीहरि द्वारा देवों को विजय हेतु कुरुक्षेत्र में महातिथि में पृथूदक तीर्थ में पितरों की पूजा का निर्देश ), २२.४४( कुरुक्षेत्र में पृथूदक सरोवर की महिमा व विस्तार ), ५०.१( पृथूदक के पृथूदक नाम का कारण, कुरुक्षेत्र में पृथूदक तीर्थ में पितर श्राद्ध का महत्त्व ), ५७.८८( पृथूदक द्वारा स्कन्द को प्रदत्त ६ गणों के नाम ), ५८.११४( पृथूदक तीर्थ में स्कन्द की क्रौञ्च वध के पाप से मुक्ति ) prithoodaka/ prithudaka/ prithuudaka



      पृथूदर कथासरित् १२.६.३१( पृथूदर यक्ष की कन्या सौदामिनी का वृत्तान्त )



      पृथ्वीधर मत्स्य २६८.२३( वास्तुमण्डल के ८१ देवताओं में से एक पृथ्वीधर के लिए मांस व कूष्माण्ड दान का निर्देश ), लक्ष्मीनारायण ३.१८२( कर्णपुर का राजा, मधुविन्दा - पति, पुत्र की अन्धता निवारण के लिए तप का वृत्तान्त ) prithveedhara/ prithvidhara



      पृथ्वीपति कथासरित् १०.१०.११०( धूर्त्त द्वारा राजा पृथ्वीपति को माध्यम बनाकर धन एकत्र करने का वृत्तान्त )



      पृथ्वीराज भविष्य ३.३.१.२८ ( पृथ्वीराज के धृतराष्ट्र का कलियुग में अंशावतार होने का उल्लेख, वेला कन्या - पिता ), ३.३.५.१०( देवपाल व कीर्तिमालिनी - पुत्र, महावती नगरी को त्याग कर देहली नगरी की स्थापना ), ३.३.६.१३( संयोगिनी द्वारा स्वयंवर में पृथ्वीराज की मूर्ति का वरण, पृथ्वीराज द्वारा जयचन्द्र की सेना से युद्ध ), ३.३.२७.७४( परिमल राजा से पृथ्वीराज की पराजय व क्षमा याचना ), ३.३.३२.२१४( पृथ्वीराज द्वारा रुद्र - प्रदत्त अस्त्र से परिमल, धान्यपाल, तालन व लक्षण का वध ), ३.३.३२.२३४( आह्लाद द्वारा पृथ्वीराज की आंखें नीली करने पर शिव द्वारा पृथ्वीराज का त्याग ), ३.३.३२.२४६( बलि - सेनानी सहोड्डीन/शहाबुद्दीन गौरी द्वारा युद्ध में पृथ्वीराज के वध का प्रयत्न, पृथ्वीराज का बन्धनग्रस्त होना, मन्त्री चन्द्रभट्ट द्वारा नृपाज्ञा से स्वामी का वध ) prithveeraaja/ prithviraja



      पृश्नि गर्ग १.११.३७( सुतपा प्रजापति व उनकी पत्नी पृश्नि द्वारा सन्तान हेतु तप, जन्मान्तरों में कश्यप व अदिति आदि के रूप में जन्म लेकर भगवान् को पुत्र रूप में प्राप्त करने की कथा ), भागवत ६.१८.१( सविता - पत्नी पृश्नि से उत्पन्न सावित्री आदि ८ सन्तानों के नाम -- पृश्निस्तु पत्नी सवितुः सावित्रीं व्याहृतिं त्रयीम्।
      अग्निहोत्रं पशुं सोमं चातुर्मास्यं महामखान्॥  ), वायु ७३.६१/२.११.१०१( पृश्निज : पितरों हेतु श्राद्ध करने वाले गणों में से एक - विश्वे च सिकताश्चैव पृश्निजाः श्रृङ्गिणस्तथा ।। ), ९६.१०१/२.३४.१०१( पृश्नि के पुत्र - द्वय श्वफल्क व चित्रक का उल्लेख - जज्ञाते तनयौ पृश्नेः श्वफल्कश्चित्रकश्च यः ।। ), महाभारत शान्ति २६.७ (अजाश्च पृश्नयश्चैव सिकताश्चैव भारत। अरुणाः केतवश्चैव स्वाध्यायेन दिवं गताः।।) ३४१.४५ (पृश्निरित्युच्यते चान्नं वेदा आपोऽमृतं तथा), prishni



      पृश्निगर्भ भागवत १०.३.४१( पृश्नि व सुतपा के तप से विष्णु का पृश्निगर्भ नाम से उनके पुत्र बनने का वृत्तान्त ), १०.६.२५( पृश्निगर्भ से बुद्धि की रक्षा की प्रार्थना ) prishnigarbha



      पृषत् ब्रह्माण्ड ३.४.१.१००( सुत्रामाणः प्रयाज देवों के आज्याशिनः तथा सुकर्माणः अनुयाज्य देवों के पृषदाज्याशिनः होने का कथन ), भागवत ९.२२.२( सोमक के १०० पुत्रों में कनिष्ठतम, द्रुपद - पिता, दिवोदास वंश ), विष्णु ४.१९.७३( सोमक के १०० पुत्रों में कनिष्ठतम, द्रुपद - पिता, दिवोदास वंश ), हरिवंश १.२०.७२( द्रुपद - पिता पृषत् द्वारा काम्पिल्य पर पुन: अधिकार करने का उल्लेख ) prishat



      पृषदश्व भागवत ९.६.१( विरूप - पुत्र, रथीतर - पिता ), मत्स्य १४५.१०३( मन्त्रकार ३३ आङ्गिरसों में से एक ), वायु ८८.६/२.२६.६( विरूप - पुत्र, रथीतर - पिता ), ८८.२६/२.२६.२६( वृषदश्व : पृथु - पुत्र, अन्ध्र - पिता ), विष्णु ४.२.८( विरूप - पुत्र, रथीतर - पिता ), ४.३.१८( अनरण्य - पुत्र, हर्यश्व - पिता, मान्धाता वंश ) prishadashva



      पृषध्र देवीभागवत १०.१३( वैवस्वत मनु - पुत्र, भ्रामरी देवी की उपासना से मेरु सावर्णि मनु बनना ), भागवत ८.१३.३( वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक ), ९.१.१२( श्राद्धदेव मनु व श्रद्धा के १० पुत्रों में से एक ), ९.२.३( मनु के १० पुत्रों में से एक, गौ हत्या के कारण पृषध्र द्वारा वसिष्ठ से शूद्र होने के शाप की प्राप्ति, अग्नि में भस्म होकर ब्रह्म को प्राप्त होना ), मत्स्य ११.४२( वैवस्वत मनु के १० दिव्य मानुष पुत्रों में से एक ), १२.२५( पृषध्र द्वारा गोवध के कारण गुरु के शाप से शूद्र होने का उल्लेख ), मार्कण्डेय ११२/१०९( मनु - पुत्र पृषध्र द्वारा होमधेनु की हत्या पर शूद्र होने के शाप की प्राप्ति की कथा ) prishadhra



      पृष विष्णु ३.१.११( पृषभ : स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), ३.२.३०( ११वें धर्मसावर्णि मन्वन्तर में पृषा नामक इन्द्र का उल्लेख ), ४.१८.१०( पृषदर्भ : शिबि के ४ पुत्रों में से एक, अनु वंश ),



      पृष्ट ब्रह्माण्ड ३.४.१.८८( सुकर्मा नामक देवगण के देवों में से एक ), वायु २८.८( पृष्टि : मरीचि व सम्भूति की कन्याओं में से एक ), १००.९२/२.३८.९२( सुकर्मा नामक देवगण के देवों में से एक ),



      पृष्ठ भागवत ३.१२.२५( ब्रह्मा के पृष्ठ से अधर्म की उत्पत्ति का उल्लेख, स्तन से धर्म ), स्कन्द ३.२.६.६( वेदमयी गौ के ऋग्वेद पृष्ठ होने का उल्लेख, स्तन साम), ५.३.८३.१०७( गौ के पृष्ठ पर शुभाशुभनिरीक्षक यम की स्थिति का उल्लेख, प्रस्राव में गङ्गा ), ५.३.९२.२२( महिषी दान के संदर्भ में महिषी के ताम्रपृष्ठों के निर्माण का निर्देश, खुर आयस ), महाभारत आश्वमेधिक दाक्षिणात्य पृ. ६३४८( कपिला गौ के पृष्ठ में नक्षत्रगणों की स्थिति का उल्लेख, मूत्र में जाह्नवी आदि ), लक्ष्मीनारायण २.२७.१०५( वासुकि - पृष्ठ पर दूर्वा की उत्पत्ति ), कथासरित् १८.४.९६( गज के पृष्ठ का स्पर्श करने से चर्म/ढाल में रूपान्तरित होना ), द्र. कालपृष्ठ, घृतपृष्ठ prishtha



      पेगन् लक्ष्मीनारायण २.५७.४८( पेगन् व असीरक दैत्यों के यम - अनुचरों अग्निमाल व वधीरक से युद्ध व मृत्यु का कथन ),



      पेय लक्ष्मीनारायण २.२१८( श्रीहरि के पेयिस्था नगरी में आगमन व उपदेश का वर्णन ) peya



      पेश भागवत ४.२५.५४( पेशस्कृत् : राजा पुरञ्जन के नगर के २ अन्धे नागरिकों में से एक, पुरञ्जन का अग्रगामी ), ४.२९.१५( हस्त - पादों का अन्धे नागरिकों के रूप में कथन ), ११.१६.३०( विभूति वर्णन के संदर्भ में भगवान् के सुपेशों में पद्मकोश होने का उल्लेख ) pesha



      पेषणी अग्नि ७७.१६( पेषणी पूजा विधि ) peshanee/ peshani



      पैजवन भागवत १२.६.५८( पैज : जातूकर्ण्य के ४ शिष्यों में से एक ), स्कन्द ६.२४३+ ( सत्शूद्र, गालव द्वारा शालिग्राम शिला पूजन का परामर्श, शालग्राम के भेद, उत्पत्ति ; पैजवनोपाख्यान का आरम्भ ) paijavana



      पैठीनसी स्कन्द २.७.१४.३४( दुर्वासा - शिष्य सत्यनिष्ठ के पैठीनसी पुरी में गमन व छिन्नकर्ण पिशाच की मुक्ति की कथा ),



      पैल देवीभागवत ३.१०.२१( देवदत्त के पुत्रेष्टि यज्ञ में पैल के प्रस्तोता बनने का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१६.२१( १६ वेदाङ्ग वेदज्ञों में से एक, निदान शास्त्र का प्रवर्तन करने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.३४.१३( द्वैपायन व्यास के ५ शिष्यों में से एक, व्यास से ऋग्वेद ग्रहण करने का उल्लेख ), १.२.३४.२४( पैल द्वारा संहिता के २ भाग करके शिष्यों बाष्कल व इन्द्रप्रमति को देने का उल्लेख ), भागवत १.४.२१( व्यास के शिष्यों में से एक पैल के ऋग्वेद का आचार्य होने का उल्लेख ), ९.२२.२२( व्यास द्वारा स्वशिष्यों पैलादि को भागवत पुराण की शिक्षा न देने के कारण का उल्लेख ), १०.७४.८( युधिष्ठिर द्वारा राजसूय यज्ञ के लिए वरण किए गए ऋत्विजों में से एक ), १२.६.५२( व्यास द्वारा पैल को बह्वृच नामक संहिता प्रदान करने तथा पैल द्वारा स्वशिष्यों इन्द्रप्रमति व बाष्कल को प्रदान करने का कथन ), वायु ६०.१४( ऋग्वेद श्रावक, पैल की शिष्य परम्परा ), विष्णु ३.४.१६( पैल द्वारा व्यास से ऋग्वेद रूप पादप ग्रहण करके स्वशिष्यों इन्द्रप्रमति व बाष्कल को देने का उल्लेख ) paila



      पैलूष ब्रह्म २.६९( कवष - पुत्र, ज्ञान खड्ग से क्रोध लोभादि का हनन, सर्व खड्ग तीर्थ की उत्पत्ति )



      पैशुन्य महाभारत वन ३१३.९९( पर दूषण के पैशुन्य होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद )



      पोता पद्म १.३४.१४ (देवगर्भ : ब्रह्मा के यज्ञ में पोता), ब्रह्माण्ड १.२.१२.३०(पोता की धिष्ण्य का उशिगसि कवि विशेषण), ३.४.२०.२४( दण्डनायिका देवी का पोत्रिणी विशेषण ), मत्स्य १६७.९( यज्ञ पुरुष के उदर से प्रतिहर्त्ता व पोता की उत्पत्ति का उल्लेख ), वायु २९.२७( पौत्रेय : शंस्य अग्नि के ८ धिष्ण्य पुत्रों में से एक, अन्य नाम हव्यवाहन ), कथासरित् ११.१.६( पोतक : रुचिरदेव व पोतक भ्राता द्वय में हस्तिनी व तुरगद्वय के वेगकारी होने की शर्त का वृत्तान्त ), १५.२.३५( पोत्रराज : पोत्रराज - कन्या अम्बरप्रभा के नरवाहनदत्त की भार्या बनने का वृत्तान्त ) potaa



      पोत्रिणी ब्रह्माण्ड ३.४.१७.६( ललिता देवी के पोत्रीमुखी/पोत्रिणी नामक क्रूर स्वरूप का कथन ), ३.४.२०.५( किरिचक्ररथेन्द्र के द्वितीय पर्व पर स्थित देवियों में से एक )



      पोषण वायु ७५.२०/२.१३.२०( देवों व पितरों हेतु अपेक्षित ३ कृत्यों में से एक )



      पोष्टा ब्रह्माण्ड ३.४.१.१७( अमिताभ देव गण के २० देवों में से एक )



      पौण्डरीक पद्म २.३७.३५( पुण्डरीक यज्ञ में गज हनन का उल्लेख ), मत्स्य १८८.८९( अमरकण्टक पर्वत की परिक्रमा से पौण्डरीक यज्ञ के फल की प्राप्ति का उल्लेख ), महाभारत अनुशासन १०२.५४(रथन्तर व बृहत् दोनों साम गाये जाने वाले, जहां वेदी पर पुण्डरीक फैलाये जाते हैं, उस याग का कथन), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१( संगीत में मध्यम ग्रामिकों के २० प्रकारों में से एक ), स्कन्द ७.१.७५.१०(नारद कृत पौण्डरीक नामक यज्ञ का कथन), द्र. पुण्डरीक paundareeka/ paundarika



      पौण्ड्र गर्ग २.२२.१७( मत्स्य रूप धारी असुर पौण्ड्र द्वारा तपोरत हंस मुनि का निगरण, कृष्ण द्वारा चक्र से पौण्ड्र का वध ), नारद १.५६.७४२( पौण्ड्र देश के कूर्म के पादमण्डल में से एक होने का उल्लेख ), पद्म ६.१३३.२६( देवदारु वन में पौण्ड्र तीर्थ में विष्णु के निवास का उल्लेख ), विष्णु ४.१८.१३( बलि के ५ क्षेत्रज पुत्रों में से एक ), स्कन्द ३.१.४४.१९(राम-रावण युद्ध में पौण्ड्र के नल से युद्ध का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.२४७.५५( नागपुर के पौण्ड्र संज्ञक गन्धर्वराज पुण्डरीक द्वारा ललित गन्धर्व को राक्षस होने के शाप का वृत्तान्त ) paundra

      पौण्ड्रक गर्ग २.२२.१८ ( मत्स्य रूप धारी पौण्ड्र असुर द्वारा तपोरत हंस मुनि को निगलने तथा कृष्ण द्वारा चक्र से पौण्ड्र का हनन करके हंस मुनि की रक्षा का कथन ), ७.१८.१३( कारूष - अधिपति, प्रद्युम्न की पूजा का उल्लेख ), पद्म ६.२५१.१( काशिराज पौण्ड्रक वासुदेव द्वारा शिव की आराधना से वासुदेव कृष्ण के समान चिह्नों की प्राप्ति, नारद के उकसाने पर कृष्ण को पराजित करने के लिए द्वारका पर आक्रमण, कृष्ण द्वारा पौण्ड्रक का वध, पौण्ड्रक - पुत्र दण्डपाणि का वृत्तान्त ), ब्रह्म १.९८( कृष्ण द्वारा काशिराज सहित पौण्ड्रक के वध का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड ३.४.१.८१( तृतीय सावर्णि मनु के ९ पुत्रों में से एक ), भागवत १०.६६.१( करूषाधिपति पौण्ड्रक द्वारा स्वयं को वासुदेव घोषित करना, कृष्ण द्वारा पौण्ड्रक व उसके मित्र काशिराज के युद्ध में वध का वृत्तान्त ), ११.५.४८( कृष्ण से वैर करके सारूप्य मुक्ति पाने वालों में से एक ), वामन २२.२३(राजा कुरु द्वारा यम के पौण्ड्र संज्ञक महिष की सीरकर्षक रूप में प्राप्ति का उल्लेख), ५५.६९( चण्डमारी देवी द्वारा यम के पौण्ड्र नामक महिष के सर्पाकार विषाण /सींग उखाड कर युद्ध में प्रयोग करने का उल्लेख ), वायु १००.८४/२.३८.८४( तृतीय सावर्णि मनु के ९ पुत्रों में से एक ), विष्णु ५.३४.४( पौण्ड्रक वासुदेव द्वारा स्वयं को वासुदेव अवतार मानकर कृष्ण को चुनौती, कृष्ण द्वारा पौण्ड्रक - मित्र काशिराज सहित पौण्ड्रक के वध का वृत्तान्त ), स्कन्द ६.५८.६( शूद्र बालक, गङ्गा में मिथ्या शपथ से कुष्ठ प्राप्ति ), ७.१.९९.४( काशी के पौण्ड्र वासुदेव द्वारा स्वयं को विष्णु - अवतार वासुदेव मानकर चक्रादि चिह्न धारण करने तथा वासुदेव कृष्ण द्वारा चक्र से पौण्ड्र वासुदेव का वध ), हरिवंश २.१०३.२६ (वसुदेव व सुतनु – पुत्र), ३.७४( नरकासुर - सखा, द्रोण - शिष्य, पौण्ड्रक के प्रभाव का वर्णन ), ३.९१+ ( स्वघोषित वासुदेव, नारद से संवाद, द्वारका पर आक्रमण, सात्यकि से युद्ध, कृष्ण से संवाद, कृष्ण द्वारा वध ), ३.९७.६ ( पौण्ड्रक का सात्यकि से युद्ध), लक्ष्मीनारायण १.२४७.५५( नागपुर के पौण्ड्र संज्ञक गन्धर्वराज पुण्डरीक द्वारा ललित गन्धर्व को राक्षस होने के शाप का वृत्तान्त ), २.८०.२( पौण्ड्रक नगर के राजा बलेशवर्मा द्वारा अतिथि हेतु पुत्र पुण्ड्र का हृदय भोजन रूप में देने आदि का वृत्तान्त ), ३.१६.५०( रुद्र के ओज से उत्पन्न पौण्ड्रक नामक कृष्ण वर्ण के महिष के यमराज का वाहन होने का उल्लेख ) paundraka





      पौण्ड्रवर्धन ब्रह्माण्ड ३.४.४४.९३( ५१ पीठों में से एक ), वायु १०४.७९/२.४२.७९( पौण्ड्रवर्धन तीर्थ की नयनों में स्थिति का उल्लेख ), कथासरित् ३.४.२५४( विदूषक द्वारा पौण्ड्रवर्धन नगर में ब्राह्मणी के एकमात्र पुत्र की प्राणरक्षा का वृत्तान्त ), ३.५.१७( पाटलिपुत्र - निवासी द्यूतासक्त देवदास वणिक् - पुत्र द्वारा पौण्ड्रवर्धन नगर में जाकर स्वगृह में स्थित धन का रहस्य जानने का वृत्तान्त ) paundravardhana



      पौतिमाष्य लक्ष्मीनारायण ३.२१९.५( लुब्धक द्वारा मृग रूप धारी पौतिमाष्य ऋषि व उनकी पत्नी सामकृषि के दर्शन, ऋषि के उपदेश से लुब्धक की मुक्ति का वृत्तान्त )



      पौर ब्रह्माण्ड १.२.३२.१०८( पौरकुत्स : ३३ मन्त्रकार आङ्गिरस ऋषियों में से एक ), २.३.८.९५( पराशरों के ८ पक्षों में से एक ), मत्स्य ४९.५२( पृथुसेन - पुत्र, नीप - पिता, भरद्वाज/वितथ वंश ), १५९.२०( भार्गव गोत्रकार ऋषियों में से एक ), कथासरित् १४.४.३( चक्रवर्ती राजा नरवाहनदत्त के समक्ष दिव्य प्रतीहार पौररुचिदेव के प्रकट होने का कथन ) paura



      पौरव मत्स्य २४.७०( पूरु के वंश की पौरव नाम से ख्याति का उल्लेख ), ४९.७२( महापौरव : सार्वभौम - पुत्र, रुक्मरथ - पिता ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१( पौरवी : ७ मध्यम ग्रामिणियों में से एक ), कथासरित् ८.१.४५( लावाणक के राजा पौरव की कन्या सुलोचना के सूर्यप्रभ विद्याधर की प्रेयसी होने का उल्लेख ) paurava



      पौरवी ब्रह्माण्ड २.३.७१.१६१( वसुदेव की १३ पत्नियों में से एक, बाह्लीक - अनुजा ), भागवत ९.२२.३०( युधिष्ठिर - पत्नी, देवक - माता ), ९.२४.४५-४७( वसुदेव की पत्नियों में से एक, १२ पुत्रों की माता ), वायु ९६.१६०/२.३४.१६०( वसुदेव की पत्नियों में से एक, वल्मीक - पुत्री ) pauravee/ pauravi



      पौरुष योगवासिष्ठ २.६( दैव निराकरण नामक सर्ग ), २.७( पौरुष प्राधान्य समर्थन नामक सर्ग ), २.८( दैव का निराकरण नामक सर्ग ), २.९( कर्म की सिद्धि - असिद्धि में दैव की अपेक्षा वासना/मन/पुरुष को ही कारण बताना ) paurusha



      पौरुषेय ब्रह्माण्ड १.२.२३.६( शुक्र - शुचि मासों में सूर्य रथ पर पौरुषेय व वध राक्षसों की स्थिति का उल्लेख ), २.३.७.८९( यातुधान के १० राक्षस पुत्रों में से एक ), २.३.७.९३( पौरुषेय के ५ पुत्रों के नाम ), भागवत १२.११.३५( शुक्र/ज्येष्ठ मास में सूर्य के रथ पर पौरुषेय राक्षस की स्थिति का उल्लेख ) paurusheya



      पौर्णमास ब्रह्माण्ड २.३.३.६( ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न जय देव गण में से एक, ब्रह्मा के शाप से अन्य मन्वन्तरों में जन्म ), भागवत १२.१.२३( श्री शान्तकर्ण - पुत्र, लम्बोदर - पिता, कलियुग में अन्ध्र जातीय राजाओं में से एक ), वायु ६६.६/२.५.६( ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न जय देव गण में से एक, ब्रह्मा के शाप से अन्य मन्वन्तरों में जन्म ), ६७.५/२.६.५( वही), विष्णु १.१०.६( मरीचि व संभूति - पुत्र, विरज व पर्वत - पिता ), शिव ७.१.१७.२२( मरीचि व संभूति की सन्तानों में से एक ), द्र. वंश मरीचि paurnamaasa



      पौल ब्रह्माण्ड २ .३.७४.२६८( १०० पौल राजाओं के अस्तित्व का उल्लेख ), मत्स्य १९६.२२( पौलिकायनि : पञ्चार्षेय प्रवरों में से एक ), २००.६( पौलि : एकार्षेय महर्षियों के प्रवरों में से एक ) paula



      पौलस्त्य : वायु ६२.१६/२.१.१६( स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में पौलस्त्य दत्तालि का उल्लेख ), ६२.४२/२.१.४२( तामस मन्वन्तर में सप्तर्षियों में चैत्र पौलस्त्य का उल्लेख ), ६२.५३/२.१.५३( रैवत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में पौलस्त्य वेदबाहु का उल्लेख ), द्र. पुलस्त्य paulastya



      पौलह वायु ६२.१६/२.१.१६( स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में पौलह धावां का उल्लेख ), ६२.४२/२.१.४२( तामस मन्वन्तर में सप्तर्षियों में से एक पौलह वनपीठ का उल्लेख ), ६२.५३/२.१.५३( रैवत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में पर्जन्य पौलह का उल्लेख ), १००.८३/२.३८.८३( ११वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में पौलह अग्नितेजा का उल्लेख ), १००.९७/२.३८.९७( १२वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में पौलह तपोरति का उल्लेख ), १००.१०७/२.३८.१०७( १३वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में पौलह तत्त्वदर्शी का उल्लेख ), द्र. पुलह paulaha



      पौलोम भागवत ८.१०.३४( देवासुर संग्राम में पौलोमों का विश्वेदेवों से युद्ध ), मत्स्य ६.२४( पुलोमा व मारीच कश्यप? से पौलोम दानवों की उत्पत्ति का कथन ), २७३.३६( पौलोमों व आन्ध्र जातीय राजाओं व परीक्षित के बीच काल की गणना ), विष्णु १.२१.९( पौलोमों के मारीच व पुलोमा - पुत्र होने का उल्लेख ), स्कन्द ७.१.१२५( पौलोमीश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, तारक भय से त्रस्त शक्र की भार्या पौलोमी द्वारा लिङ्ग की पूजा ),



      पौलोमी ब्रह्माण्ड २.३.१.७५( पुलोम - कन्या पौलोमी द्वारा भृगु से शुक्राचार्य पुत्र को जन्म देने का कथन ), २.३.१.९१( पौलोमी द्वारा च्यवन/प्रचेता को जन्म देने का कथन ), मत्स्य १९५.११( भृगु द्वारा पुलोमा की दिव्य सुता से १२ याज्ञिक देव उत्पन्न करने का कथन ), १९५.१४( भृगु व पुलोमा से देवों से हीन कोटि के पुत्रों च्यवन व आप्नुवान् की उत्पत्ति का उल्लेख ), वायु ६५.७३/२.४.७३( पुलोम - कन्या पौलोमी द्वारा भृगु से शुक्राचार्य पुत्र को जन्म देने का कथन ), स्कन्द ७.१.१२५.२( तारक भय से त्रस्त शक्र की भार्या पौलोमी द्वारा पूजित पौलोमीश्वर लिङ्ग के माहात्म्य का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.४७३.५२( पौलोमी शची द्वारा कृष्ण की पूजा, कथा श्रवण से शिव द्वारा पौलोमी को अभीष्ट प्राप्ति हेतु मनोरथ तृतीया व्रत के चीर्णन का निर्देश, व्रत की विधि ) paulomee/ paulomi



      पौष भविष्य ३.४.९.१५( पौष मास के सूर्य का माहात्म्य )pausha



      पौष्क पद्म ६.१३३.२६( काश्मीर मण्डल में पौष्क तीर्थ में विष्णु के वास का उल्लेख )



      पौष्यञ्जि ब्रह्माण्ड १.२.३३.७( सामवेद के श्रुतर्षियों में से एक ), भागवत १२.७.७७( सुकर्म - शिष्य पौष्यञ्जि के ५ शिष्यों के नाम आदि ), वायु ६१.३३( साम आचार्य सुकर्मा के २ दिव्य शिष्यों में से एक ; पौष्यञ्जी के सामग शिष्यों के भेदों का कथन ), ६१.४८( सामवेद के २ श्रेष्ठतम आचार्यों में से एक ) paushyanji



      प्रकम्पन कथासरित् ८.२.२२४( प्रह्लाद के अनुयायी मुख्य असुरों में से एक ), ८.४.७९( कालकम्पन द्वारा प्रकम्पन के वध का उल्लेख ), ८.७.३४( प्रकम्पन द्वारा तेज:प्रभ के वध का उल्लेख, अश्विनौ से युद्ध ) prakampana



      प्रकाश ब्रह्माण्ड ३.४.३५.४६( महाप्रकाशा : मार्तण्ड भैरव की ३ शक्तियों में से एक ), मत्स्य ९.२१( प्रकाशक : रैवत मनु के १० पुत्रों में से एक ), लक्ष्मीनारायण २.५२.७६( विश्वावसु गन्धर्व द्वारा स्वयंप्रकाश ऋषि को ३०० कन्याएं प्रदान करने का प्रस्ताव, ऋषि द्वारा स्वदेह पालन में भी कठिनाई बताकर अस्वीकृति ), २.२२०.४१( स्वीयप्रकाश ऋषि द्वारा नारद को स्वयं के सर्वदा सुखी होने के कारण का वर्णन ), २.२६९.५२( राजा अभयाक्ष द्वारा स्वत:प्रकाश ऋषि से त्यागि दीक्षा ग्रहण करने का कथन ) prakaasha



      प्रकृति गणेश २.१४७.१( दैवी, आसुरी व राक्षसी प्रकृतियों के चिह्नों का कथन ), गरुड ३.१०.५०(प्राकृत-वैकृत सृष्टि का कथन), ३.११.५(श्रुति स्वरूपा प्रकृति द्वारा निद्रासीन हरि की स्तुति), ३.११.६(निद्रागत विष्णु के संदर्भ में अजा के परा-अपरा प्रकृति होने का विवेचन), देवीभागवत ९.१+ ( प्रकृति की निरुक्ति, विस्तृत विवेचन ), ९.१.८( प्रकृति की निरुक्ति, ५ मूल प्रकृतियों का वृत्तान्त ), पद्म १.६२.८९( परा प्रकृति के सात/पांच रूपों गायत्री, स्वर्लक्ष्मी आदि द्वारा प्रकृति की अभिव्यक्ति का कथन ), ६.२२७.५८(प्रकृति के त्रिपाद् विभूति रूप का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त १.३.७०( परमात्मा कृष्ण की बुद्धि से प्रकट मूल प्रकृति के स्वरूप का कथन ; प्रकृति देवी द्वारा कृष्ण की स्तुति ), १.३०.१३( नारायण द्वारा नारद को नारायणी/प्रकृति शक्ति के ज्ञान के लिए विवाह का निर्देश, एक मूल प्रकृति के सृष्टि में पञ्चविध विभक्त होने का कथन ), २.१.५( प्रकृति शब्द की निरुक्तियां, ब्रह्मवैवर्त्त पुराण के प्रकृति खण्ड का आरम्भ ; विभिन्न देवताओं की शक्तियों के नाम ), २.४.४( पञ्चविध प्रकृति गौरी, दुर्गा, राधा आदि का उल्लेख ), २.६३( राजा सुरथ व समाधि वैश्य के मेधा ऋषि से संवाद के संदर्भ में प्रकृति देवी द्वारा समाधि वैश्य को परम ब्रह्म की प्राप्ति के उपाय का वर्णन ), २.६४.१( राजा सुरथ द्वारा किए गए प्रकृति के ध्यान के स्वरूप व पूजा विधि का वर्णन ), २.६५.१३( राजा सुरथ की भक्ति से प्रसन्न होकर प्रकृति द्वारा स्वयं व कृष्ण के विषय में सुरथ को प्रदत्त ज्ञान का वर्णन ), २.६६.६( प्रकृति के स्तोत्र का वर्णन ), २.६७.९( प्रकृति/दुर्गा के कवच का कथन ), ३.७.६२( श्रीनारायण द्वारा प्रकृति के महत्त्व का वर्णन ), ४.४३.७४( शिव द्वारा प्रकृति हेतु स्तोत्र पाठ, प्रकृति द्वारा शिव को हिमवान् - पुत्री के रूप में जन्म लेकर पत्नी बनने का वरदान ), ४.९४.१०७( प्रकृति के बुद्धिरूपा होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.१९५( सात प्रकृतियों द्वारा परस्पर धारण का कथन ; ७ संख्या का विस्तार ), ३.४.३.३७( राजा की प्रजा के अर्थ में बहुवचन में प्रकृति का उल्लेख ), भविष्य ३.४.२०.१४( प्रकृति के परा व अपरा नामक २ भेद व तन्मात्राओं के अनुसार ८ भेदों का कथन ), भागवत ७.७.२२( ८ प्रकृतियों के ३ गुणों व १६ विकारों तथा उनसे निर्मित देह का कथन, द्र. गीताप्रेस गोरखपुर का हिन्दी अनुवाद), ११.२२.१( कृष्ण उद्धव संवाद में पुरुष व प्रकृति के सम्बन्ध पर विभिन्न दृष्टिकोणों से विचार करने पर तत्त्वों की संख्या में परिवर्तन का विवेचन ), ११.२२.२६( कृष्ण द्वारा उद्धव हेतु प्रकृति व पुरुष में भेद - अभेद की विवेचना ), १२.४.५( प्राकृतिक प्रलय में प्रलय काल में ७ प्रकृतियों के लय का उल्लेख ), मत्स्य ३.१४( सत्त्व, रज व तम नामक गुणत्रय की साम्यावस्था का प्रकृति नाम होने का उल्लेख ; प्रकृति के गुणों में क्षोभ से सृष्टि का वर्णन ), ३४.२६( राजा की प्रजा के अर्थ में बहुवचन में प्रकृति का उल्लेख ), २२६.६( राजा की प्रजा के अर्थ में बहुवचन में प्रकृति का उल्लेख ), वायु ४.९०/१.४.८०( प्राकृत सर्ग का निरूपण ), १.६.५६/६.६०( ३ प्राकृत, ५ वैकृत तथा एक प्राकृत - वैकृत सर्गों का कथन ), ४९.१८५( सात प्रकृतियों द्वारा परस्पर धारण का कथन ; ७ संख्या का विस्तार ), १०१.१२/२.३९.१२( ७ अकृत लोकों की प्राकृत संज्ञा ), १०२.५९( प्राकृत : ३ प्रकार के बन्धों में से एक ), विष्णु ६.३.१( प्राकृत प्रलय का निरूपण ), विष्णुधर्मोत्तर १.४१.२( समुद्र मन्थन से उत्पन्न लक्ष्मी रूपी प्रकृति के संदर्भ में विश्व की शक्तियों के नाम तथा उनके लक्ष्मी का ही स्वरूप होने का कथन ), शिव २.१.६.५४( आरम्भ में प्रकृति व पुरुष की सत्ता का उल्लेख ; प्रकृति से उत्पन्न महान्, अहंकार आदि २५ तत्त्वों के पुरुष के बिना जड होने का कथन ), २.५.२६.१६( माया नाश हेतु मूल प्रकृति का तीन गुणों के रूप में तीन देवियों के रूप में प्राकट्य ), ६.९.९( परा प्रकृति के २३ तत्त्वात्मक होने का उल्लेख, पुरुष के २५ होने का उल्लेख ), स्कन्द १.२.४६.५४( अनादि, अजर, अमर प्रकृति से कालान्तर में सत्त्व, रज, तम नामक त्रिगुणात्मक प्रकृति के उद्भव का कथन ), १.२.४६.९०( स्ववर्णोदित कर्मों के द्वारा प्रकृति के शोधन का निर्देश ), १.२.६५.१०( भीम द्वारा प्रकृति/शक्ति की निन्दा ), ६.२४२.३२( शूद्रों की १८ प्रकृतियों का कथन, शिल्पी, नर्तक आदि १८ प्रकृतियों के नाम ), महाभारत शान्ति ३०४( अज्ञानी के प्रकृति की १६ कलाओं में जन्म लेने तथा १६वीं कला के सूक्ष्म व सोम होने का कथन ), ३०५( २४ तत्त्वों से युक्त गुणात्मक प्रकृति तथा २५वें निर्गुण तत्त्व पुरुष का कथन ), ३०७.११( प्रकृति व पुरुष के क्षर तथा अक्षर दोनों होने के कारणों का निरूपण ), ३०७.१६( क्षेत्रज्ञ को क्षेत्र में लीन करने अथवा गुणों को गुणों में लीन करने पर प्रकृति के क्षर बनने का कथन ), ३१५, ३४०.३५( ८ प्रकृतियों का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ६.२.८५( प्रकृति - पुरुष क्रम वर्णन नामक सर्ग में प्रकृति द्वारा पुरुष को प्राप्त कर लेने पर शान्त होने का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.२०५.५१( मूल प्रकृति के राधा, लक्ष्मी, विवाहिता कन्या आदि ६ स्वरूपों का कथन ), ४.१०१.१२४( कृष्ण की ११२ पत्नियों में से एक, कृतिमान व यत्नेश्वरी - माता ), द्र. पुरुष – प्रकृति prakriti



      प्रकृति - पुरुष अग्नि १७.२( ब्रह्मा द्वारा अव्यक्त प्रकृति, पुरुष व विष्णु में प्रवेश कर क्षोभ उत्पन्न करने व सृष्टि उत्पन्न करने का कथन ), गरुड ३.३.२२(प्रकृति-पुरुष के संदर्भ में हरि-श्री का विवेचन), भागवत ३.२७( प्रकृति व पुरुष के विवेक से मोक्ष प्राप्ति : देवहूति - कपिल संवाद ), ११.२२.१( कृष्ण - उद्धव संवाद में पुरुष - प्रकृति के सम्बन्ध पर विभिन्न दृष्टिकोणों से विचार करने पर तत्त्वों की संख्या में परिवर्तन का विवेचन ), ११.२२.२६( कृष्ण द्वारा उद्धव हेतु प्रकृति व पुरुष में भेद - अभेद की विवेचना ), मार्कण्डेय ४३.४/४६.४( अव्यक्त स्थिति में प्रकृति व पुरुष के साधर्म्य या समत्व से स्थित होने का कथन ), ४३.९/४६.९( जगत्पति के प्रकृति व पुरुष में प्रवेश कर क्षोभ उत्पन्न कर सृष्टि उत्पन्न करने का कथन ), वराह ७२( प्रकृति - पुरुष निर्णय नामक अध्याय में ब्रह्मा - विष्णु - महेश का वर्णन ), शिव २.१.६.५८( प्रकृति से उत्पन्न २५ महत् आदि तत्त्वों के पुरुष के बिना जड होने का कथन ), ४.२२.४( निर्गुण शिव से प्रकृति व पुरुष की उत्पत्ति तथा तप का वृत्तान्त ), महाभारत शान्ति ३१८.३९( मित्र के पुरुष व वरुण के प्रकृति होने का वर्णन ), योगवासिष्ठ ६.२.८५.१९( प्रकृति के पुरुष से योग होने की स्थिति का कथन, पुरुष से सम्पर्क होने पर घोर प्रकृति का सौम्य प्रकृति में रूपान्तरण होने का वर्णन ) prakriti - purusha



      प्रघस ब्रह्माण्ड १.२.३६.७५( प्रघास : लेखा संज्ञक देवगण में से एक ), मत्स्य २४५.३२( बलि के सेनापति दैत्यों में से एक ), वराह ९३.९( महिषासुर - मन्त्री, वैष्णवी देवी के संदर्भ में मन्त्रणा ), वामन ५७.६९( घस : वायु द्वारा कुमार को प्रदत्त गण ), स्कन्द १.१.१३.२८( प्रघस का निर्ऋति से युद्ध ), वा.रामायण ५.४६.३५( प्रघस राक्षस का प्रमदावन में हनुमान से युद्ध व मृत्यु ), ६.४१.४१( प्रघस वानर द्वारा लङ्का के पश्चिम् द्वार पर हनुमान की सहायता ), ६.४३.१०( रावण - सेनानी, सुग्रीव से युद्ध ), ७.५.४१( सुमाली व केतुमती - पुत्र ), ५.२४.४१( प्रघसा राक्षसी द्वारा अशोकवाटिका में सीता को भय दिखाना ) praghasa



      प्रघोष गर्ग ७.३०.११( कृष्ण व लक्ष्मणा - पुत्र, प्रद्युम्न - सेनानी, कलङ्क राक्षस पर विजय ), १०.६१.१५( कृष्ण व माद्री/लक्ष्मणा के पुत्रों में से एक ) praghosha



      प्रचण्ड गणेश १.४३.१( त्रिपुर व शिव के युद्ध में प्रचण्ड के षण्मुख से युद्ध का उल्लेख ), २.७६.१२( सिन्धु व गणेश के युद्ध में प्रचण्ड का वरुण से युद्ध ), गर्ग १०.२४.२१( अनुशाल्व के मन्त्री प्रचण्ड द्वारा यादव वीर भानु को पराजित करना, साम्ब द्वारा प्रचण्ड का वध ), मत्स्य १३.४३( छागलाण्ड तीर्थ में सती के प्रचण्डा नाम से वास का उल्लेख ), स्कन्द ५.१.१९.२( चण्ड व प्रचण्ड द्वारा गौरी के हरण के प्रयत्न पर चण्डी द्वारा शिव की आज्ञा से दानव - द्वय के वध का कथन ), ५.३.१९८.८०( छागलिङ्ग तीर्थ में उमा देवी की प्रचण्डा नाम से तथा अमरकण्टक में चण्डिका नाम से स्थिति का उल्लेख ) prachanda



      प्रचेता अग्नि १८.२२( प्राचीनबर्हि व सवर्णा सामुद्री से उत्पन्न प्रचेता संज्ञक १० पुत्रों द्वारा प्रजापतित्व पद की प्राप्ति, मारिषा से विवाह आदि का वृत्तान्त ), गरुड १.१३५.५( एकादशी को पूजनीय ९ ऋषियों में से एक प्रचेता का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त १.९.३( प्रचेता के मन से गौतम की उत्पत्ति का उल्लेख ), १.२२.३( धाता के चेतस् से उत्पत्ति के कारण प्रचेता नामकरण का उल्लेख ), २.५१.१९( सुयज्ञ नृप द्वारा अतिथि के तिरस्कार पर प्रचेताओं द्वारा व्यक्त प्रतिक्रिया ), ४.३०.५२( प्रचेता द्वारा ब्रह्मा से प्राप्त शिव स्तोत्र को पुत्र असित को देने का उल्लेख ; असित द्वारा स्तोत्र से शिव को प्रसन्न करने तथा पुत्र प्राप्त करने का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड १.२.१२.२९( ८ विहरणीय संज्ञक धिष्ण्य अग्नियों में से एक, अन्य नाम प्रशान्त ), १.२.१३.३९( १० प्रचेतागण के सवर्णा व प्राचीनबर्हि पुत्र होने तथा स्वायम्भुव दक्ष के प्रचेताओं का पुत्र बनने का वृत्तान्त ), १.२.३२.१०४( १३ मन्त्रवादी भार्गव ऋषियों में से एक ), १.२.३६.१३( पारावत देवगण के १२ देवों में से एक ), १.२.३६.७०( प्रसूत संज्ञक देवगण के अन्तर्गत प्रचेता व सुप्रचेता नामक देवों का उल्लेख ), १.२.३६.७५( लेखा संज्ञक देवगण में से एक ), १.२.३७.२७( सवर्णा व प्राचीनबर्हि के प्रचेतस संज्ञक १० पुत्रों के तप का वृत्तान्त, मारिषा से दक्ष पुत्र को उत्पन्न करने का वृत्तान्त ), २.३.१.५४( प्रजापतियों में से एक ), २.३.७४.११( दुर्दम - पुत्र, १०० म्लेच्छ राष्ट} अधिपतियों के पिता, द्रुह्यु वंश ), भविष्य ३.३.२०.१८( वरुण का नाम ), ३.४.१६.३( ब्रह्मा द्वारा १० प्रचेतागण का स्थापन ), ३.४.२५.२८( ब्रह्मा की उत्तर बाहु से प्रचेता व प्रचेता से कर्मकल्प की उत्पत्ति का उल्लेख ), ३.४.२५.१४०( अव्यक्त की प्रधान मह से उत्पत्ति ), ४.८५.२६( वाल्मीकि का उपनाम?, पुष्पवाहन से संवाद, विभूति द्वादशी महिमा का वर्णन, प्रचेता मुनि द्वारा राजा पुष्पवाहन व उसकी रानी को पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन ),भागवत ४.२४.१३( प्राचीनबर्हि व शतद्रुति - पुत्र, पश्चिम् दिशा में तप तथा रुद्र द्वारा विष्णु स्तोत्र का उपदेश ), ४.३०( प्रचेताओं द्वारा जल में तप, विष्णु द्वारा वरदान, प्रचेताओं द्वारा विष्णु की स्तुति, मारिषा से परिणय, दक्ष पुत्र का जन्म ), ४.३१( नारद द्वारा प्रचेताओं को उपदेश, प्रचेताओं द्वारा परमपद का लाभ ), ६.४.४( प्रचेताओं द्वारा क्रोध से वृक्षों को जलाना, चन्द्रमा द्वारा शान्ति वचन, मारिषा से विवाह, दक्ष का जन्म ), ९.२३.१५( दुर्मना - पुत्र, म्लेच्छों के अधिपति १०० पुत्रों के पिता, द्रुह्यु वंश ), मत्स्य ३.७( ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक ), ४.४७( प्राचीनबर्हि व सवर्णा सामुद्री से प्रकट १० प्रचेता पुत्रों के तप, विवाह आदि का संक्षिप्त कथन ), १३.१५( दक्ष - पुत्री सती द्वारा दक्ष को जन्मान्तर में दश पिताओं का एकमात्र पुत्र बनने का शाप ), ४८.८( घृत - पुत्र, १०० म्लेच्छ राष्ट्राधिपों का पिता, द्रुह्यु वंश ), ५१.२५( प्रचेता अग्नि का संसहायक उपनाम ), १००.७( प्राचेतस मुनि द्वारा राजा पुष्पवाहन को उसके पूर्वजन्म के वृत्तान्त का कथन, पूर्व जन्म के वृत्तान्त के रूप में विभूति द्वादशी व्रत की महिमा का वर्णन ), १०२.१९( तर्पण प्राप्त करने योग्य ऋषियों में से एक ), १४५.९८( १३ मन्त्रकार भार्गव ऋषियों में से एक ), वराह २१.१७( दक्ष यज्ञ में प्रचेता के प्रतिहर्ता बनने का उल्लेख ), वायु ३०.६०, ३०.७४( चाक्षुष मन्वन्तर में दक्ष के १० प्रचेता - पुत्रों के रूप में जन्म लेने तथा नष्ट होने का कथन ), ६३.२६/२.२.२६( प्रचेताओं द्वारा वृक्षों को जलाने व मारिषा से विवाह की कथा ), ६९.११/२.८.११( प्रचेता व सुयशा से उत्पन्न यक्ष पुत्रों व अप्सराओं के नाम ), विष्णु १.१४.६( प्रचेतागण : प्राचीनबर्हि व सवर्णा - पुत्र, प्रजा वृद्धि हेतु तप, गोविन्द की स्तुति ), १.१५.१( प्रचेताओं द्वारा वृक्षों को जलाना, मारिषा से विवाह, दक्ष पुत्र की उत्पत्ति ), विष्णुधर्मोत्तर १.११०.२( प्राचीनबर्हि व सुवर्णा से उत्पन्न १० प्राचेतसों द्वारा तप करने, मुखाग्नि से वृक्षों को जलाने तथा सोम - कन्या मारिषा से विवाह कर दक्ष प्रजापति को जन्म देने का कथन ), ३.३२१.७( तीर्थ यात्रा से प्रचेताओं के लोक की प्राप्ति का उल्लेख ), शिव ७.१.१७.५६( प्राचीनबर्हि व सवर्णा के १०० पुत्रों का कथन ), हरिवंश १.२.३५( प्राचीनबर्हि व सवर्णा - पुत्र, वृक्षों को जलाना, मारिषा से परिणय ), वा.रामायण ७.९६.१९( वाल्मीकि का प्रचेतस/वरुण? के १०वें पुत्र के रूप में उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३९.२०( सावर्णि व सामुद्री के १० प्रचेतस पुत्रों की प्राचीनबर्हि संज्ञा, दक्ष - पिता ), १.३१८.८४( रुद्र व सती - पुत्री वम्री का वृक्षों की कन्याओं के रूप में दशधा उत्पन्न होकर १० प्रचेताओं की पत्नियां बनने का वृत्तान्त ) prachetaa



      प्रचेष्ट पद्म ७.५.१५८( माधव राजकुमार के भृत्य प्रचेष्ट द्वारा माधव - प्रिया सुलोचना का हरण, सुलोचना का पलायन ), ७.६.४७( प्रचेष्ट द्वारा प्राण त्याग हेतु गङ्गासागर सङ्गम पर आगमन, पुरुष वेश धारी सुलोचना द्वारा प्रचेष्ट को कारागृह में भेजना ) pracheshta



      प्रजङ्घ वा.रामायण ६.४३.७( रावण - सेनानी प्रजङ्घ का सम्पाती वानर से युद्ध ), ६.७६.२७( अङ्गद द्वारा प्रजङ्घ का वध ) prajangha

      प्रजन मत्स्य ५०.२३( कुरु के ४ पुत्रों में से एक ), १६१.८१( हिरण्यकशिपु की सभा में आसीन असुरों में से एक ), वायु ८६.४/२.२४.४( प्रजानि : प्रांशु - पुत्र, खनित्र - पिता, इक्ष्वाकु वंश ) prajana



      प्रजा देवीभागवत ६.११.११( चतुर्युगों में युग विशेष के धर्म, अर्थ व काम के अनुसार प्रजा की स्थिति का वर्णन ), पद्म ७.१३.९६( प्रजा ब्राह्मण द्वारा शिव की स्तुति, जाति ज्ञान की प्राप्ति, पूर्व जन्म में दण्डपाणि शबर, ब्राह्मण को पद्म दान से ब्राह्मण जन्म की प्राप्ति ), ब्रह्माण्ड १.२.३२.३( ४ युगों में अङ्गुलि परिमाण व उच्छ्राय ), १.२.३३.१६( प्रजादर्प : मध्यमाध्वर्युओं में से एक ), १.२.३७.२४( प्रज : हविर्धान व आग्नेयी धिषणा के ६ पुत्रों में से एक ), २.३.१२.३२( पिण्ड दान के संदर्भ में प्रजार्थी को मध्यम पिण्ड अग्नि में देने का निर्देश ), भागवत ४.२१.२१( पृथु द्वारा प्रजा को उपदेश ), वामन ९०.२८( प्रजामुख में विष्णु का वासुदेव नाम ), विष्णु १.७.१३( प्रजा की वृद्धि न होने पर ब्रह्मा द्वारा अर्धनारी वपु वाले रुद्र को उत्पन्न करना, अशान्त भाग के स्त्री रूप होने का उल्लेख ), १.७.३७( दक्ष, मरीचि, अत्रि आदि के नित्य सर्ग के प्रजेश्वर होने का उल्लेख ), स्कन्द ५.१.४३.१७( ब्राह्मणों के प्रजाओं का मूल तथा वेदों के ब्राह्मणों का मूल होने का उल्लेख ), ५.३.५६.११८( तिल दान से इष्ट प्रजा की प्राप्ति का उल्लेख ), महाभारत अनुशासन १४.२३३( सारी प्रजा के पार्वती के भग व शिव के लिङ्ग चिह्नों से युक्त होने का कथन ), ४०.५( प्रजा के मोहनार्थ ब्रह्मा द्वारा स्त्री, काम व क्रोध की सृष्टि का कथन ) prajaa



      प्रजाति मार्कण्डेय ११४.७/११७.७( प्रांशु - पुत्र प्रजाति के यज्ञ की प्रशंसा, प्रजाति - पुत्र खनित्र का वृत्तान्त ), वायु ३१.६( याम संज्ञक १२ देवों में से एक ),



      प्रजापति अग्नि २४.४९( द्यावापृथिवी रूपी शकल के मध्य प्रजापति के जन्म का उल्लेख ), देवीभागवत ५.८.६८( प्रजापति के तेज से देवी के दन्तों की उत्पत्ति का उल्लेख ), पद्म १.४०.५९( ब्रह्मा द्वारा भू, भुव:, स्व नामक तीन पुत्रों तथा धर्म व सप्तर्षियों आदि प्रजापतियों को उत्पन्न करने का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त १.२२( ब्रह्म की देह के विभिन्न अङ्गों से नारद, प्रचेता आदि की सृष्टि का वर्णन ), ब्रह्माण्ड १.२.७.१६५( ब्राह्मणों को प्राजापत्य स्थान प्राप्त होने का उल्लेख, क्षत्रियों को ऐन्द्र आदि ), भविष्य २.१.१७.६( वास्तु याग आदि में अग्नि का नाम ), भागवत २.३.२( प्रजाकामी के लिए प्रजापतियों की आराधना का निर्देश ), २.६.७( विराट् पुरुष का शिश्न पर्जन्य? प्रजापति का होने का उल्लेख ), ५.२३.५( शिशुमार की लाङ्गूल/पुच्छ - मध्य में प्रजापति आदि की स्थिति का उल्लेख ), ७.८.४९( हिरण्यकशिपु के वध पर प्रजापतियों द्वारा नृसिंह की स्तुति का श्लोक ), ७.१२.२६( रति व उपस्थ को प्रजापति में लीन करने का निर्देश ), मत्स्य ४.८( भारती व प्रजापति के युगल का उल्लेख ), ८.४( पृथु द्वारा दक्ष को प्रजापतियों का अधिपति नियुक्त करने का उल्लेख ), १०१.६६( प्राजापत्य व्रत की संक्षिप्त विधि ), १०४.५( प्रयाग में प्रतिष्ठान से लेकर वासुकि ह्रद तक प्रजापति क्षेत्र की स्थिति का उल्लेख ), १६३.८८( हिरण्यकशिपु के कारण प्रजापति गिरि के कम्पन का उल्लेख ), वायु २१.५३/१.२१.४८( २३वें चिन्तक संज्ञक कल्प में प्रजापति - पुत्र चिति का कथन ), ६५.५२/२.४.५२( कर्दम, कश्यप आदि १२ प्रजापतियों के नाम ), विष्णु ४.१.२३( प्रांशु - पुत्र, खनित्र - पिता, अन्य पुराणों में नाम प्रजानि, प्रजाति ), शिव ७.२.३८.३६( प्राजापत्य ऐश्वर्य के अन्तर्गत सिद्धियों के नाम ), स्कन्द ५.३.१३.४२( २१ कल्पों में द्वितीय कल्प के रूप में प्राजापत्य कल्प का उल्लेख ), ५.३.५१.३४( पुष्पों के ७ प्रकारों में प्राजापत्य पुष्प के रूप में पाठाद्य का उल्लेख ), ६.२५२.२०( चातुर्मास में प्रजापतियों की चूत वृक्ष में स्थिति का उल्लेख ), हरिवंश १.४, ३.३६.६( हिरण्यगर्भ प्रजापति / ब्रह्मा से क्रमश: ओम्, वषट्कार, व्याहृतियों, सावित्री आदि के प्रकट होने का वर्णन ), ३.७१.५०( वामन के विराट् रूप में प्रजापति के वृषण - द्वय बनने का उल्लेख ), महाभारत शान्ति २०८.७( प्राचेतस - पुत्र दक्ष, मरीचि - पुत्र कश्यप, शशबिन्दु आदि का प्रजापतियों के रूप में कथन ), अनुशासन १०२.४०( प्राजापत्य लोक को प्राप्त करने वाले मनुष्य के लक्षण ), वा.रामायण ३.१४.७( कर्दम से लेकर कश्यप तक १७ प्रजापतियों के नाम, कश्यप प्रजापति की सन्तानों का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.१०८.२( विश्वरूप प्रजापति द्वारा स्व कन्याओं सिद्धि व बुद्धि को गणेश को प्रदान करने का कथन ), ३.४५.१७( प्रजापति याजकों द्वारा दक्ष आदि प्रजापतियों के लोक की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१०१.७२( अनड्वाह या महा उक्षा के दान से प्रजापति के लोक की प्राप्ति का उल्लेख ), prajaapati/prajapati



      प्रजापाल वराह १६+ ( श्रुतकीर्ति - पुत्र, सुप्रभ नाम, महातपा ऋषि से मोक्ष विषयक संवाद ), ३६( प्रजापाल राजा द्वारा गोविन्द की स्तुति, ब्रह्म में लय ), लक्ष्मीनारायण १.५३३.२( चिन्तामणि से उत्पन्न तथा प्रजापाल उपनाम वाले राजा सुप्रभ को महातपा मुनि द्वारा शरीर के तत्त्वों के दिव्य रूपों का वर्णन ) prajaapaala





      प्रज्ञप्ति कथासरित् ५.२.२५८( प्रज्ञप्तिकौशिक नामक गुरु द्वारा अशोकदत्त व विजयदत्त भ्राताद्वय को उनके विद्याधरत्व का बोध कराना तथा विद्या प्रदान करना ), ९.१.४५( प्रज्ञप्ति नामक विद्या द्वारा अलंकारवती कन्या के पति के विषय में भविष्यवाणी ), १६.१.५२( नरवाहनदत्त द्वारा प्रज्ञप्ति विद्या से स्वप्न के फल की पृच्छा ) prajnapti



      प्रज्ञा पद्म २.८.६०( प्रज्ञा की परिभाषा, प्रज्ञा की माता संज्ञा का उल्लेख ), २.१२.९५( दुर्वासा के समक्ष प्रकट प्रज्ञा का रूप ), २.५६.३१( प्रज्ञा द्वारा शकुनी रूप धारण करके कृकल - पत्नी सुकला को शकुन रूप में पति के आगमन की सूचना देना ), २.९७.९९( राजा सुबाहु को स्वमांस भक्षण करते देख प्रज्ञा व श्रद्धा के हास्य का कथन ), ब्रह्म १.११७.४४( उमा - महेश्वर संवाद के अन्तर्गत प्रज्ञा प्रापक कर्मों का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.५३( प्रज्ञ : अमिताभ संज्ञक देवों के गण में से एक ), २.३.१२.३३( प्रज्ञार्थी को पिण्ड जल में देने का निर्देश ), लिङ्ग १.७०.२१( प्रज्ञा की निरुक्ति ), वायु ४.३६/१.४.३४( प्रज्ञा की परिभाषा : ग्रहों को जन्म देने वाली ), स्कन्द ४.१.२९.११०( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), महाभारत शान्ति २३७.३( प्रज्ञा द्वारा धर्म के प्रवृत्ति लक्षण अथवा निवृत्ति लक्षणात्मक होने का निश्चय ), २७३.१३( प्रज्ञा द्वारा कुशल धर्म को प्राप्त करने का कथन ), २९७.२१( प्रज्ञावान् के द्विजों से श्रेष्ठ होने व आत्मसम्बुद्धों से हीन होने का कथन ), ३०१.६५( दुःख रूपी जल में व्याधि, मृत्यु रूप ग्राह, तम: कूर्म व रजो मीन आदि को प्रज्ञा से तरने का कथन ), आश्वमेधिक २७.१५( प्रज्ञा वृक्ष पर मोक्ष फल लगने का कथन ), ४३.३४( प्रज्ञा द्वारा मन के ग्रहण का उल्लेख ), महाप्रस्थानिक २.१०(सहदेव द्वारा स्वयं को प्राज्ञ मानने के कारण सहेदव का स्वर्ग से पूर्व पतन), योगवासिष्ठ ३.२३+ ( प्रज्ञा का आकाशगमन ), ५.१२.३४( प्रज्ञा का चिन्तामणि के रूप में उल्लेख ), ६.१.१२०.१( प्रज्ञा वृद्धि : योग की प्रथम भूमिका ), लक्ष्मीनारायण २.२२१( बालकृष्ण द्वारा अन्त:प्राग~ नगरी की प्रजा को प्रज्ञा के महत्त्व का उपदेश ), २.२२४.३६( प्रज्ञा पुराणी द्वारा शोधन के महत्त्व का कथन ), २.२४५.४९( जीव रथ में प्रज्ञा को मार्ग बनाने का निर्देश ), ३.७.७९( राजा थुरानन्द के गर्व के खण्डन के लिए श्रीहरि का सम्प्रज्ञान द्विज के पुत्र रूप में जन्म लेने का वर्णन ), ३.८.१( लक्ष्मी की अवतार ज्योत्स्ना कुमारिका द्वारा स्वयंवर में द्विज प्राज्ञ नारायण का वरण, द्विज का अन्य राजाओं से युद्ध आदि ), ३.१२.५२( प्राज्ञायन ऋषि का भक्ति व धर्मव्रत विप्र के पुत्र के रूप में जन्म ), ३.१३.१+ ( प्रज्ञात नामक वत्सर में पृथिवी पर ब्रह्मचर्य की पराकाष्ठा का वर्णन, सती सुदर्शनी द्वारा ब्रह्मचर्य में विघ्नकारकों को शाप से स्त्री बनाना, श्रीहरि द्वारा स्त्रीपुं नारायण अवतार लेकर पुरुषों को स्त्रीत्व से मुक्त करना ), ३.१४.४३( अप्रज्ञात वत्सर में मानवों को माकरासुर के कोप से त्राण देने के लिए श्रीहरि के जल नारायण रूप में प्राकट्य का वर्णन ), ३.५१.१२१( राजा सुबाहु द्वारा स्वर्ग में स्वशव भक्षण पर श्रद्धा व प्रज्ञा स्त्रियों द्वारा राजा के उपहास का कथन ), कथासरित् ८.२.२४४( सूर्यप्रभ के सचिव प्रज्ञाढ्य द्वारा सूर्यप्रभ को राज्ञी के आगमन की सूचना देने का वृत्तान्त ), ८.२.३७७( वातापि दैत्य के प्रज्ञाढ्य मन्त्री रूप में उत्पन्न होने का उल्लेख ), ८.७.२२( प्रज्ञाढ्य द्वारा युद्ध में चन्द्रगुप्त के वध व चन्द्रमा से युद्ध का कथन ), १२.५.३१९( प्रज्ञा पारमिता के द्रष्टान्त के रूप में सिंहविक्रम चोर द्वारा काल के वंचन की कथा ), १२.२२.४( मन्त्री प्रज्ञासागर के पुत्र के स्त्री रूप धारी द्विज - पुत्र से विवाह का वृत्तान्त ), १२.३५.१३४( मृगाङ्कदत्त राजा के मन्त्री प्रज्ञाकोष द्वारा स्वामी का संदेश राजा कर्मसेन तक पहुंचाना ), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.२१टीका(सरस्वती प्रज्ञारूपा, सावित्री मेधारूपा), द्र. सुप्राज्ञ prajnaa



      प्रणद्ब्रह्म लक्ष्मीनारायण ३.९५.७९( साधु सेवा के महत्त्व के संदर्भ में कश्यप व अदिति द्वारा प्रणद्ब्रह्म ऋषि की सेवा का वृत्तान्त, प्रणद्ब्रह्म ऋषि के वरदान से कश्यप व अदिति का देवों के माता - पिता बनना ) pranadbrahma



      प्रणव मत्स्य ८५.६( प्रणव के सब मन्त्रों में प्रवण होने का उल्लेख ), शिव १.१७.५( प्रणव की निरुक्ति : प्रकर्षेण नयति इति तथा अन्य निरुक्तियां ; प्रणव के स्थूल व सूक्ष्म भेद ), स्कन्द ४.२.५७.७७(गंगा के पश्चिम तट पर प्रणव गणपति का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.८४.३८( प्रणव तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ) pranava



      प्रणाम गरुड ३.२९.६७(प्रणाम काल में शेषांतस्थ विष्णु के ध्यान का निर्देश), स्कन्द ५.३.१५७.१३( पूजा से रुद्र, जप व होम से दिवाकर तथा प्रणिपात से शङ्खचक्र गदा पाणि के तुष्ट होने का उल्लेख )



      प्रणिधि पद्म ७.४.२१( प्रयाग माहात्म्य के प्रसंग में श्वपच द्वारा पद्मावती - पति प्रणिधि वैश्य का रूप धारण, स्वर्ग गमन ), स्कन्द ४.१.२९.१११( गङ्गा सहस्रनामों में से एक )



      प्रणीता अग्नि ३०९.३२( प्रणीता आदि ५ मुद्राओं का कथन - मुद्रा वक्ष्ये प्र्णीताद्याः प्रणीताः पञ्चधा स्मृताः । ग्रथितौ तु करौ कृत्वा मध्येऽङ्गुष्ठौ निपातयेत् ।।  ), नारद १.५१.२८( यज्ञ के प्रणीता नामक पात्र को तीर्थों, सरिताओं व समुद्रों के जल से पूरित करने का निर्देश - यानि कानि च तीर्थानि समुद्राः सरितस्तथा। प्रणीतायां समासन्नात्तस्मात्तां पूरयेज्जलैः। ), ब्रह्म २.९१.५९( ब्रह्मा के यज्ञ में प्रणीता पात्र जल से प्रणीता नदी की उत्पत्ति - प्रणीतायाः प्रणयनं मन्त्रैश्चाकरवं ततः। प्रणीतोदकमप्येतत्प्रणीतेति नदी शुभा।। ), ब्रह्माण्ड ३.४.१.५८( प्रणीत : मरीचि संज्ञक देवगण के १२ देवों में से एक - दधिक्रावा विपक्वश्च प्रणीतो विजयो मधुः ॥ उतथ्योत्तमकौ द्वौ तु द्वादशैते मरीचयः । ) praneetaa/ pranitaa



      प्रतपन वा.रामायण ६.४३.१३( रावण - सेनानी, नल से युद्ध )



      प्रतर्दन ब्रह्म १.९.४९( दिवोदास व दृषद्वती - पुत्र, वत्स व भर्ग - पिता, प्रतर्दन द्वारा शत्रुओं से वाराणसी की पुन: प्राप्ति का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.२७( औत्तम मन्वन्तर के देवों के ५ गणों में से एक ), मत्स्य ४१.१३( प्रतर्दन द्वारा ययाति को स्वपुण्य दान का प्रस्ताव, शिबि, अष्टक आदि से स्वर्ग गमन की प्रतिस्पर्द्धा का कथन ), वराह ११.९४( राजा दुर्जय की सेना से युद्ध करने वाले १५ दैत्य सेनानायकों में से एक ), ११.९७( सुमुख/सुवेद के प्रतर्दन से युद्ध का उल्लेख ), वायु ६२.२४/२.१.२४( औत्तम मन्वन्तर के देवों के ५ गणों में से एक ), ६२.२८/ २.१.२८( प्रतर्दन/प्रमर्दन गण के १२ देवों के नाम ), ९२.६४/२.३०.६४( दृषद्वती व दिवोदास - पुत्र, वत्स व गर्ग - पिता, वंश का वर्णन ), विष्णु ३.१.१४( औत्तम मन्वन्तर के देवों के ५ गणों में से एक ), ४.८.११( धन्वन्तरि - पुत्र, अन्य नाम वत्स, शत्रुजित्, ऋतध्वज, कुवलयाश्व ), स्कन्द १.२.२.७३( प्रतर्दन द्वारा ब्राह्मण को नयन दान का उल्लेख ), १.२.१३.१७९( शतरुद्रिय प्रसंग में प्रतर्दन द्वारा बाण लिङ्ग की हिरण्यभुज नाम से पूजा ), हरिवंश १.२९.७२( दिवोदास व दृषद्वती - पुत्र, वत्स व भार्ग-पिता, वंश वर्णन ), वा.रामायण ७.३८.१६(राम द्वारा काशिराज प्रतर्दन को विदाई ), लक्ष्मीनारायण २.२४४.७१( प्रतर्दन द्वारा द्विज हेतु नेत्र दान का उल्लेख ), ३.७४.५५( काशिराज प्रतर्दन द्वारा ब्रह्मिष्ठ को तनु दान से अतुल कीर्ति व मोक्ष प्राप्ति का उल्लेख ), ३.९२.४( प्रतर्दन द्वारा भृगु से हैहय क्षत्रियों को सौंपने की मांग पर भृगु द्वारा क्षत्रियों को विप्रों में बदलने का कथन ) pratardana



      प्रताप मत्स्य २४५.३२( प्रताप : बलि के सेनापति दैत्यों में से एक ), स्कन्द ३.१.९( प्रतापमुकुट नृप द्वारा अशोकदत्त के पराक्रम से तुष्ट होकर मदनलेखा कन्या का विवाह ), कथासरित् ५.२.२६८( प्रतापमुकुट : अशोकदत्त का श्वसुर ), १०.२.५( प्रतापादित्य : राजा विक्रमसिंह को घेरने वाले ५ राजाओं में से एक ), १२.८.६१( राजा प्रतापमुकुट के पुत्र वज्रमुकुट का वृत्तान्त ) prataapa/ pratap



      प्रतापसेन कथासरित् ९.४.२२७( राजा चमरवाल द्वारा राजा प्रतापसेन को जीतने का वृत्तान्त ), १०.१०.१६९( प्रतासेन द्वारा तप से २ विद्याधर पुत्र प्राप्त करने का कथन ),



      प्रतापाग्र्य पद्म ५.२३.२( राजा, शत्रुघ्न - सेनानी, दमन से युद्ध में मृत्यु ), ५.६७.४०( प्रतीति - पति )



      प्रतापी देवीभागवत २.८.४३( प्रमति - भार्या, रुरु - माता )



      प्रति भागवत ९.१७.१६( कुश - पुत्र, सञ्जय - पिता, क्षत्रवृद्ध/आयु वंश ), वायु ६७.१२७/२.६.१२७( प्रतिकृत् : चौथे गण के मरुतों में से एक ), ६७.१२८/२.६.१२८( प्रतिदृक्ष : पांचवें/सातवें? गण के मरुतों में से एक ), विष्णु ४.५.२७( प्रतिक : मनु - पुत्र, कृतरथ - पिता, निमि/जनक वंश ) prati



      प्रतिक्षत्र ब्रह्माण्ड २.३.७१.१३९( शमी - पुत्र, स्वयंभोज - पिता, सत्यक वंश ), मत्स्य ४४.८०( शमी - पुत्र, प्रतिक्षेत्र? - पिता ), विष्णु ४.९.२५( क्षत्रवृद्ध - पुत्र, सञ्जय - पिता ), ४.१४.२३( शमी - पुत्र, स्वयंभोज - पिता, अनमित्र/सत्यक वंश ) pratikshatra



      प्रतिग्रह पद्म १.१९.२६१( हेमपूर्ण उदुम्बर ग्रहण की कथा के संदर्भ में प्रतिग्रह के विषय में जमदग्नि की प्रतिक्रिया का कथन ), १.३६.२७( राम का अगस्त्य आश्रम में गमन, अगस्त्य द्वारा राम से हस्ताभरण के प्रतिग्रहण का आग्रह आदि, हस्ताभरण प्राप्ति के संदर्भ में अगस्त्य द्वारा राजा श्वेत से आभरण की प्रतिग्रह रूप में प्राप्ति की कथा ), ६.१२७.१३६( तीर्थों में प्रतिग्रह दोष से द्विज का राक्षस आदि योनियों में जन्म ), भागवत ११.१७.४०( एकमात्र ब्राह्मण की वृत्ति के रूप में प्रतिग्रह का उल्लेख, प्रतिग्रह के दोषों का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३०१( विभिन्न द्रव्यों के प्रतिग्रह की विधि ), महाभारत शान्ति २९२.३( प्रतिग्रह की अपेक्षा दान की श्रेष्ठता का कथन ) pratigraha



      प्रतिज्ञा पद्म ४.२६( प्रतिज्ञा/शपथ पालन तथा न पालन करने के फल, वीरविक्रम शूद्र द्वारा कन्या विवाह में प्रतिज्ञा पालन से कृष्ण के लोक की प्राप्ति का वृत्तान्त ), विष्णुधर्मोत्तर ३.११९.८( प्रतिज्ञा पारण में परशुराम या राम की पूजा ), स्कन्द १.२.३३.५०( कुमार द्वारा स्थापित प्रतिज्ञेश्वर लिङ्ग के माहात्म्य का कथन ) pratijnaa



      प्रतिद्वन्द्वी महाभारत उद्योग ५७.१२( महाभारत युद्ध में कौरव व पाण्डव पक्ष के परस्पर प्रतिद्वन्दी योद्धाओं के नाम ), भीष्म ४५( परस्पर युद्ध करने वाले कौरव व पाण्डव पक्ष के योद्धाओं के नाम ),



      प्रतिपदा अग्नि १७६( चैत्र, आश्विन्, कार्तिक, मार्गशीर्ष में प्रतिप्रदा व्रत में ब्रह्मा व अग्नि की पूजा ), गरुड १.११६.३( प्रतिपदा को वैश्वानर, कुबेर, ब्रह्मा, श्री, अश्विनौ की पूजा - वैश्वानरः प्रतिपदि कुबेरः पूजितोऽर्थदः । पोष्य ब्रह्मो प्रतिपद्यर्चितः श्रीस्तथाश्विनी ॥  ), १.१२९.१( प्रतिपदा को शिखि व्रत की संक्षिप्त विधि ), नारद १.११०.५( चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ब्रह्मा द्वारा जगत की सृष्टि, ब्रह्मा की पूजा, सौरि व्रत, विद्या व्रत ), १.११०.१४( ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा को करवीर वृक्ष की पूजा ), १.११०.१९( नभः/आषाढ शुक्ल प्रतिपदा को व्रत, शिव पूजा ), १.११०.२३( भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदा को महत्तम/ मौन व्रत, शिव पूजा ), १.११०.२७( आश्विन् शुक्ल प्रतिपदा को अशोक वृक्ष की पूजा, नवरात्र का आरम्भ ), १.११०.३५( कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को नवरात्र, अन्नकूट कर्म), १.११०.३८( मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा को धन व्रत, विष्णु पूजा, अग्नि की प्रतिमा का दान ), १.११०.४०( पौष शुक्ल प्रतिपदा को सूर्य पूजा ), १.११०.४१( माघ शुक्ल प्रतिपदा को अग्नि रूपी महेश्वर की पूजा ), १.११०.४२( फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा को दिगम्बर शिव की पूजा ), १.११०.४४( वैशाख शुक्ल प्रतिपदा को विष्णु की पूजा ), १.११०.४५( आषाढ शुक्ल प्रतिपदा को ब्रह्मा व विष्णु की पूजा ), पद्म ६.१२२.२८( कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को अलक्ष्मी का निष्कासन, गोवर्धन पूजा, मार्गपाली, बलि पूजा, कौमुदी उत्सव आदि कृत्य ), ब्रह्माण्ड १.२.२८.३७( प्रतिपदा के सब सन्धियों में आदि होने का उल्लेख - अन्वाधानक्रिया यस्मात्क्रियते पर्वसंधिषु ।।तस्मात्तु पर्वणामादौ प्रतिपत्सर्वसंधिषु ।। ), भविष्य १.१७+ ( कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को ब्रह्मा की पूजा ), ४.१०( ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा को करवीर व्रत ), मत्स्य १४१.३५( पूर्णमास व व्यतीपात द्वारा परस्पर दर्शन से प्रतिपदा के घटित होने का कथन? - पूर्णमासव्यतीपातौ यदा पश्येत्परस्परम्। तौ तु वै प्रतिपद्यावत् तस्मिन्‌ काले व्यवस्थितौ।। ), वराह ५६ (मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा को धन्य व्रत की विधि व माहात्म्य – अग्निरूप विष्णु का न्यास), विष्णुधर्मोत्तर ३.२२१.११( चैत्र प्रतिपदा को ब्रह्मा तथा काल के अवयवों की पूजा का निर्देश ), स्कन्द २.४.१०( द्यूत प्रतिपदा, बलि राज्य प्रतिपदा, गौ प्रतिपदा के कृत्य ), ४.२.५२.८७( ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा को दशाश्वमेध तीर्थ में स्नान - ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे प्राप्य प्रतिपदं तिथिम् ।।दशाश्वमेधिके स्नात्वा मुच्यते जन्मपातकैः ।। ), ५.३.२६.१०२( प्रतिपदा को नारी द्वारा ब्राह्मण को इन्धन दान का फल - प्रतिपत्सु च या नारी पूर्वाह्णे च शुचिव्रता ॥ इन्धनं ब्राह्मणे दद्यात्प्रीयतां मे हुताशनः । ), ६.६०.११( कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को नरादित्य की पूजा ), वा.रामायण ०.२( कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को रामायण का नवाह पारायण, सुदास की राक्षसत्व से मुक्ति ), ०.३( माघ शुक्ल प्रतिपदा को रामायण श्रवण से मालती शूद्र का राजा बनना ), ०.४( चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को रामायण का नवाह पारायण, कलिक व्याध की मुक्ति ), लक्ष्मीनारायण १.२६६( १२ मासों की शुक्ल प्रतिपदाओं में करणीय व्रतों का वर्णन ), १.३०८( अधिक मास द्वितीय पक्ष प्रतिपदा को व्रतादि से सहस्राक्ष राजा द्वारा वैराज पद प्राप्ति तथा ब्रह्मा के मूल नाभि कमल बनने का वृत्तान्त ), २.२५.१( फाल्गुन/माघ शुक्ल प्रतिपदा को दोला महोत्सव ), २.१९७.७४+ ( भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदा? को श्रीहरि द्वारा काष्ठयान नृप की नगरी तुन्नवाया में आगमन, उपदेश आदि का वृत्तान्त ), २.२१७.१०१( आश्विन् कृष्ण प्रतिपदा को श्रीहरि द्वारा कोटीश्वर नृप के एकद्वार राष्ट्र में गमन तथा उपदेशादि का वृत्तान्त ), २.२३२.१( आश्विन् शुक्ल प्रतिपदा को श्रीहरि के राजा रायनृप की नगरी लापलात्री पुरी में आगमन आदि का वृत्तान्त ), ३.६४.२( प्रतिपदा तिथि को धनद/कुबेर रूपी कृष्ण की पूजा का निर्देश - प्रतिपद्धनदस्योक्ता तत्र पूज्योऽहमेव ह । कुबेरमूर्तिरूपो वै धनदोऽहं भवामि हि ।। ), ३.१०३.२( शुक्ल प्रतिपदा को दान से सुभगप्रिय की प्राप्ति का उल्लेख - दत्वा दानानि प्रथमे दिने शुक्लस्य पद्मजे । श्राद्धभोजनयुक्तानि प्राप्नुयात् सुभगाः प्रियाः ।। ), ४.६०.५६( चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को व्याधों की मुक्ति का वृत्तान्त ) pratipadaa

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      प्रतिप्रस्थाता मत्स्य १६७.८ ( विष्णु के पृष्ठ से प्रतिप्रस्तार ऋत्विज की उत्पत्ति का उल्लेख ), द्र. ऋत्विज pratiprasthaataa



      प्रतिबाहु गर्ग ११.२( प्रतिबाहु राजा द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु शाण्डिल्य से गर्ग संहिता का श्रवण ), भागवत ९.२४.१७( श्वफल्क व गान्दिनी की १४ सन्तानों में से एक, सत्यक वंश ), १०.९०.३८( वज्र - पुत्र, सुबाहु - पिता, अनिरुद्ध वंश ), वायु ९६.२५१/२.३४.२५१( वज्र - पुत्र, सुचारु - पिता ), विष्णु ४.१५.४१( वज्र - पुत्र, सुचारु - पिता, अनिरुद्ध वंश ), स्कन्द २.६.३.६६( वज्र द्वारा प्रतिबाहु को राज्य पर प्रतिष्ठित कर स्वयं को भागवत श्रवण में लीन करने का उल्लेख ) pratibaahu



      प्रतिबिम्ब गरुड ३.२.१२(विष्णु व जीव के संदर्भ में बिम्ब-प्रतिबिम्ब का विवेचन)



      प्रतिभा कथासरित् १.४.३२( पाणिनि - भार्या उपकोशा द्वारा स्व प्रतिभा से पातिव्रत्य भङ्ग करने वाले पुरुषों की पराभव करने का वृत्तान्त )



      प्रतिभानु भागवत १०.६१.११( कृष्ण व सत्यभामा के १० पुत्रों में से एक )



      प्रतिम ब्रह्माण्ड ३.४.१.७०( अप्रतिम : दशम मन्वन्तर के सप्तर्षियों में पौलस्त्य अप्रतिम का उल्लेख )



      प्रतिमा अग्नि ४३.११( प्रतिमा हेतु द्रव्य व विधि ), ४४( प्रतिमा के अवयवों के मान/लक्षण ), ४८( विष्णु के नारायण, माधव आदि २४ विग्रहों के लक्षण ), ४९( विष्णु के १० अवतारों की प्रतिमाओं के लक्षण ), ५०( चण्डी, दुर्गा, लक्ष्मी, नवदुर्गाओं, क्षमा आदि की प्रतिमाओं के लक्षण ), ५१( देव प्रतिमाओं के लक्षण, ग्रहों की प्रतिमाएं ), ५२( ६४ योगिनियों की प्रतिमाएं ), ५५+ ( प्रतिमा हेतु पिण्डिका लक्षण व महत्त्व ), ५८( प्रतिमा स्नान व शयन विधि आदि उपचार ), ६०( प्रतिमा स्थापना विधि ), ६७( प्रतिमा जीर्णोद्धार विधि ), ९६( प्रतिमा प्रतिष्ठा हेतु अधिवासन व याग विधि ), १९१( शिव प्रतिमा ), नारद १.५६.७४६( प्रतिमा विकार/अपशकुन विचार ), २.५४.२१( विष्णु द्वारा राजा इन्द्रद्युम्न को अश्वत्थ वृक्ष से प्रतिमा निर्माण का आदेश ), पद्म ५.९५.७६( प्रतिमा के शैल आदि ८ प्रकारों के नाम ), ब्रह्म १.४७.९( विष्णु द्वारा राजा इन्द्रद्युम्न को अश्वत्थ वृक्ष से प्रतिमा निर्माण का आदेश ), भविष्य १.११४( आदित्य प्रतिमा स्नापन योग का वर्णन ), १.१२९( विश्वकर्मा द्वारा तेज के कर्तन से निर्मित सूर्य प्रतिमा की साम्ब द्वारा प्राप्ति ), १.१३१( सूर्य प्रतिमा हेतु दारु परीक्षा विधि ), १.१३२( सर्व देव प्रतिमाओं के लक्षण ), २.१.१२( देव प्रतिमा निर्माण विधि व प्रतिमाओं के लक्षण ), भागवत ११.२७.१२( शैली, दारुमयी आदि ८ प्रकार की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा व अर्चन विधि ), मत्स्य २५८( देव प्रतिमा के परिमाण का निरूपण ), २५९( प्रतिमा के लक्षण, मान आदि ), २६०( देव प्रतिमा ), २६१( प्रतिमा प्रतिष्ठा, पूजा आदि ), २६४( प्रतिमा प्रतिष्ठा विधि व काल ), २६५( प्रतिमा अधिवासन आदि की विधि ), २६६( प्रतिमा प्रतिष्ठा की विधि ), २६७( प्रतिमा के अभिषेक की विधि ), वराह १८१( मधूक काष्ठ से निर्मित प्रतिमा प्रतिष्ठापन की विधि ), १८२( शैल प्रतिमा प्रतिष्ठापन विधि ), १८३( मृदा से निर्मित प्रतिमा प्रतिष्ठा की विधि ), १८४( ताम्र से निर्मित प्रतिमा प्रतिष्ठा की विधि ), १८५( कांस्य से निर्मित प्रतिमा प्रतिष्ठा की विधि ), १८६( रौप्य व सुवर्ण से निर्मित प्रतिमा प्रतिष्ठा की विधि ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३८( प्रतिमा निर्माण हेतु प्रतिमा के शुभ - अशुभ लक्षण ), ३.९६( ज्योतिष काल अनुसार प्रतिमा प्रतिष्ठा का फल ), ३.९७( प्रतिमा प्रतिष्ठा हेतु यजमान दीक्षा विधि ), लक्ष्मीनारायण २.११३.३७( कृष्ण की प्रतिमा तथा उसकी पूजा पद्धति के स्वरूप का वर्णन ), २.१४१.७१( प्रतिमा के दारु आदि प्रकार तथा उनके अङ्गों के मानों का वर्णन ), २.१४२.१( ४ वेदों तथा देवों की प्रतिमाओं के लक्षण ) pratimaa



      प्रतिमेधा ब्रह्माण्ड १.२.३६.६०( सुमेधा संज्ञक देवगण में से एक )

      प्रतिरथ वायु २.३७.१२५(रन्तिनार व सरस्वती – पुत्र, धुर्य-पिता)

      प्रतिरूपा भागवत ५.२.२३( मेरु - कन्या, किम्पुरुष - पत्नी )



      प्रतिलोक योगवासिष्ठ ६.२.६३.३०( प्रत्याकाश, प्रतिसंसार, प्रतिलोक आदि का वर्णन ),



      प्रतिलोम कथासरित् १२.७.१३३( गङ्गा द्वारा भीमभट को प्रदत्त प्रतिलोम - अनुलोम विद्या की प्रकृति का कथन ),



      प्रतिवाह ब्रह्माण्ड २.३.७१.११२( श्वफल्क व गान्दिनी के पुत्रों में से एक ), भागवत ९.२४.१७( प्रतिबाहु : श्वफल्क व गान्दिनी के अक्रूर - प्रमुख पुत्रों में से एक ), वायु ९६.१११/२.३४.१११( श्वफल्क व गान्दिनी के पुत्रों में से एक ), विष्णु ४.१४.९( उपमद्गु के पुत्रों में से एक, अनमित्र वंश ) prativaaha



      प्रतिविन्ध्य भागवत ९.२२.२९( युधिष्ठिर व द्रौपदी - पुत्र ), मत्स्य ५०.५१( युधिष्ठिर व द्रौपदी - पुत्र ), वायु ९९.२४६/२.३७.२४२( श्रुतिविद्ध : युधिष्ठिर व द्रौपदी - पुत्र ) prativindhya



      प्रतिव्यूह वायु ९९.२८२/२.३७.२७८( वत्सव्यूह - पुत्र, दिवाकर - पिता, इक्ष्वाकु वंश ) prativyuuha



      प्रतिव्योम भागवत ९.१२.१०( वत्सवृद्ध - पुत्र, भानु - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक, बृहद्बल वंश ), मत्स्य २७१.५( वत्सद्रोह - पुत्र, दिवाकर - पिता, बृहद्बल वंश ), विष्णु ४.२२.३( वत्सव्यूह - पुत्र, दिवाकर - पिता, वृहद्बल वंश ) prativyoma



      प्रतिश्रव ब्रह्माण्ड ३.४.३४.३३( बारहवें आवरण के २६ रुद्रों में से एक ) pratishrava



      प्रतिश्रुत भागवत ९.२४.५०( वसुदेव व शान्तिदेवा के पुत्रों में से एक )



      प्रतिष्ठा अग्नि ६०( वासुदेवादि की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा हेतु सार्वत्रिक प्रतिष्ठा विधि ), ६१( द्वार प्रतिष्ठा, प्रासाद प्रतिष्ठा विधि ), ६२( श्रीसूक्त द्वारा लक्ष्मी प्रतिष्ठा विधि ), ६३( सुदर्शन चक्र व पुस्तक प्रतिष्ठा विधि ), ६४( कूप, वापी, तडाग आदि की प्रतिष्ठा विधि ), ६५( सभा/शाला स्थापना विधि ), ६६( देवादि समुदाय की प्रतिष्ठा विधि ), ८५.१( प्रतिष्ठा कला शोधन विधि ), ९२( शिव, विष्णु प्रासाद आदि के विग्रहों के ५ प्रतिष्ठा भेद, वास्तु प्रतिष्ठा विधि ), ९५( लिङ्ग प्रतिष्ठा हेतु तिथि, नक्षत्र, ग्रह, लग्न विचार ), ९५.३३( प्रतिमा प्रतिष्ठा हेतु संग्रहणीय द्रव्य ), ९७( शिव प्रतिष्ठा विधि ), ९८( गौरी प्रतिष्ठा विधान ), ९९( सूर्य प्रतिष्ठा विधान ), १००( द्वार प्रतिष्ठा विधान ), १०१( प्रासाद प्रतिष्ठा विधान ), १६६( ग्रहों की प्रतिष्ठा ), गरुड १.२१.६, १.४८( देव प्रतिष्ठा विधि ), देवीभागवत ९.१.१०७( पुण्य - पत्नी ), नारद १.५६.५२४( देव प्रतिष्ठा हेतु काल विचार ), १.९१.६९( तत्पुरुष शिव की तृतीय कला ), पद्म १.२७( तटाक, आराम, कूप आदि की प्रतिष्ठा की विधि ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.११३( पुण्य - पत्नी ), भविष्य १.१३३( सूर्य प्रतिमा की प्रतिष्ठा के संदर्भ में प्रतिमा के अङ्गों में विश्वरूप की स्थिति का वर्णन ), १.१३७( सूर्य प्रतिष्ठा वर्णन के अन्तर्गत विशिष्ट कृत्यों का निर्देश ), २.२.१७( देव प्रतिष्ठा से पूर्व दिवस के कृत्यों का वर्णन ), २.२.१९( देवादि प्रतिष्ठा हेतु शुभ काल का विचार तथा विधि ), २.२.२०( गृह वास्तु, जलाशय प्रतिष्ठा ), २.३.१( आरामादि प्रतिष्ठा विधि ), २.३.४( अश्वत्थ, पुष्करिणी, जलाशय प्रतिष्ठा ), २.३.५( वापी, ह्रद प्रतिष्ठा ), २.३.६+ ( वृक्ष प्रतिष्ठा ), २.३.१२+ ( मण्डप, यूप प्रतिष्ठा ), २.३.१४( पुष्पाराम प्रतिष्ठा ), २.३.१५( तुलसी प्रतिष्ठा, प्रतिष्ठायोग्य-अयोग्य वृक्षों के नाम), २.३.१८( एकाह साध्य प्रतिष्ठा ), २.३.१९( काली आदि महाशक्तियों की प्रतिष्ठा ), ४.१९१( भुवन प्रतिष्ठा की विधि व माहात्म्य ), भागवत ११.२७.१३( ८ प्रकार की प्रतिमाओं की जीव मन्दिर में चल व अचल प्रतिष्ठा विषयक कथन ), मत्स्य ५८( तडाग, आराम, कूप, देवमन्दिर आदि की प्रतिष्ठा की विधि ), लिङ्ग २.४६+ ( लिङ्ग प्रतिष्ठा का माहात्म्य व विधि ), विष्णुधर्मोत्तर ३.९७( प्रतिमा प्रतिष्ठा की विधि ), शिव ६.१५.२८( स्थिति/प्रतिष्ठा चक्र में वासुदेवादि चतुर्व्यूह आदि का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.१४१.१( प्रतिमा प्रतिष्ठा हेतु देवालेयों के प्रकारों का वर्णन ), २.१४२.३०( मण्डप में प्रतिमा प्रतिष्ठा हेतु मण्डप प्रमाण, वेदिका प्रमाण, ७ दिशाओं में ध्वजाओं के लक्षण, कुण्ड विधि का वर्णन ), २.१४३( प्रतिष्ठा उत्सव के अन्तर्गत वास्तु पुरुष का वर्णन ), २.१४४- १६०( मूर्ति प्रतिष्ठा उत्सव का विस्तृत वर्णन ), द्र. सुप्रतिष्ठित pratishthaa



      प्रतिष्ठानपुर पद्म ६.१८०.२( प्रतिष्ठानपुर की शोभा का वर्णन, प्रतिष्ठानपुर के राजा ज्ञानश्रुति द्वारा रैक्य ऋषि से गीता के षष्ठम् अध्याय के महत्त्व को जानने का वृत्तान्त ), ब्रह्म २.४२.२३( शिव के स्वेद बिन्दुओं से उत्पन्न मातृकाओं की प्रतिष्ठा का स्थान ), मत्स्य १२.१८( सुद्युम्न/इल द्वारा पुत्र पुरूरवा को प्रतिष्ठानपुर के राज्य पर अभिषिक्त करके इलावृत को जाने का उल्लेख ), वामन २१.३९( राजा संवारण द्वारा तपती कन्या के दर्शन के पश्चात् प्रतिष्ठानपुर को जाने का उल्लेख ), वा.रामायण ७.९०.२३( पुरुषत्व प्राप्ति के पश्चात् इल द्वारा प्रतिष्ठानपुर की स्थापना ), कथासरित् १.६.८( प्रतिष्ठानपुर में श्रुतार्था व नागकुमार कीर्तिसेन से गुणाढ्य नामक पुत्र की उत्पत्ति का वृत्तान्त ), १.७.५८( देवदत्त द्वारा प्रतिष्ठानपुर में सुशर्मा राजा की कन्या को प्राप्त करने का वृत्तान्त ), ७.४.५( राजा विक्रमादित्य का प्रतिष्ठानपुर के राजा नरसिंह से युद्ध ), ७.६.१३( प्रतिष्ठानपुर के द्विज तपोदत्त द्वारा तपस्या से विद्या प्राप्ति का प्रयत्न तथा इन्द्र द्वारा शिक्षा ), ९.१.११७( प्रतिष्ठान नगर के रूपवान् राजा पृथ्वीरूप द्वारा चित्रकारों की सहायता से मुक्तिपुर की रूपवती राजकुमारी रूपलता को प्राप्त करने का वृत्तान्त ), १२.६.४१७( प्रतिष्ठानपुर के द्विज कमलगर्भ व उसकी २ भार्याओं के जन्म - जन्म में पति - पत्नियां बनने का वृत्तान्त ), १२.८.२१( प्रतिष्ठानपुर के राजा त्रिविक्रमसेन द्वारा भिक्षु स रत्नयुक्त फल प्राप्त करने तथा वृक्ष से शव रूपी वेताल को लाने का वृत्तान्त ), द्र. प्रयाग pratishthaanapura/ pratishthanpur



      प्रतिसञ्चर ब्रह्माण्ड ३.४.३.७( प्रतिसञ्चर काल में तन्मात्राओं के क्रमिक लय का कथन ), वायु १००.१३२/२.३८.१३२( प्रतिसञ्चर प्रलय के ३ भेद ), विष्णु १.२.२५( प्राकृत प्रतिसञ्चर का निरूपण ), ६.३.१( नैमित्तिक आदि ३ प्रकार के प्रतिसञ्चरों का निरूपण ), ६.४.७( नैमित्तिक प्रतिसञ्चर का निरूपण ), ६.८.१( तृतीय प्रतिसञ्चर का कथन ) pratisanchara



      प्रतिसन्धि वायु ७.२, ६१.१४५( मन्वन्तरों की प्रतिसन्धि के रूप में चतुर्युगों का कथन )



      प्रतिसर्ग अग्नि १९( प्रतिसर्ग वर्णन नामक अध्याय में दैत्यों की सृष्टि आदि का वर्णन ), ब्रह्माण्ड ३.४.३.११३( ३ प्रकार के प्रतिसर्गों का उल्लेख ), भागवत ४.८.५( प्रतिसर्ग के कथन में अधर्म के वंश का कथन ), मत्स्य ५३.६४( पुराणों के ५ लक्षणों में से एक ), वायु १००.१३३( प्रतिसर्ग के समय भूतों की प्रलय का वर्णन ), १०२.४६/२.४०.४६( स्वयम्भु के प्राकृत प्रतिसर्ग का कथन ), विष्णु ६.८.२( पुराण के लक्षणों के रूप में सर्ग आदि लक्षणों के नाम ) pratisarga



      प्रतिहर्त्ता अग्नि १०७.१४( प्रतीहार - पुत्र, भुव - पिता, नाभि वंश ), ब्रह्माण्ड १.२.१४.६६( प्रतीहार - पुत्र, उन्नेता - पिता, भरत वंश ), २.३.५.९७( छठें गण के मरुतों में से एक ), भागवत ५.१५.५( प्रतीह व सुवर्चला के ३ पुत्रों में से एक, स्तुति - पति, अज व भूमा - पिता, ऋषभ वंश ), मत्स्य १६७.९( विष्णु के उदर से प्रतिहर्त्ता व पोता ऋत्विजों की उत्पत्ति का उल्लेख ), वराह २१.१७( दक्ष यज्ञ में प्रचेता के प्रतिहर्ता बनने का उल्लेख ), वायु ३३.५६( प्रतीहार - पुत्र, उन्नेता - पिता ), विष्णु २.१.३६( प्रतिहार - पुत्र, भव - पिता ) pratihartaa



      प्रतिहार स्कन्द ५.२.२०( प्रतिहारेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, अग्नि द्वारा शिव - पार्वती की रति में विघ्न करने पर प्रतिहार नन्दी को शिव का शाप, प्रतिहारेश्वर लिङ्ग की स्थापना ) pratihaara



      प्रतिहोता मत्स्य ४५.३०( अक्रूर व रत्ना से उत्पन्न ११ प्रतिहोता संज्ञक पुत्रों के नाम ),



      प्रतीक भागवत ९.२.१८( वसु - पुत्र, ओघवान् - पिता, नृग वंश ), ९.१२.११( प्रतीकाश्व : भानुमान् - पुत्र, सुप्रतीक - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक, बृहद्बल वंश ), मत्स्य २२.५८( प्रतीक के भय से भिन्न गोदावरी के स्थान का महत्त्व ), वायु ९९.२८४/२.३७.२८०( प्रतीताश्व : भानुरथ - पुत्र, सुप्रतीत - पिता ), द्र. सुप्रतीक prateeka/ pratika



      प्रतीची भागवत ११.५.४०( द्रविड देश की नदियों में से एक ), हरिवंश ३.३५.२७( वराह द्वारा प्रतीची दिशा में निर्मित शैलों व नदियों का कथन ),



      प्रतीति पद्म ५.६७.४०( प्रतापाग्र्य - पत्नी )



      प्रतीप देवीभागवत २.३.२४( राजा महाभिष द्वारा प्रतीप - पुत्र शन्तनु के रूप में जन्म लेने का वृत्तान्त - स नृपश्चिंतयित्वाऽथ भूलोके धर्मतत्परान् ।। प्रतीपं चिंतयामास पितरं पुरुवंशजम् ।। ), भागवत ९.१३.१६( प्रतीपक : मरु - पुत्र, कृतिरथ - पिता, निमि वंश -  मरोः प्रतीपकस्तस्मात् जातः कृतरथो यतः । ), ९.२२.११( दिलीप - पुत्र प्रतीप के वंश का कथन - ऋष्यस्तस्य दिलीपोऽभूत् प्रतीपस्तस्य चात्मजः ॥  देवापिः शान्तनुस्तस्य बाह्लीक इति चात्मजाः । ), मत्स्य ४७.७५(देवों को हराने हेतु शुक्राचार्य द्वारा महादेव से अप्रतीप मन्त्र प्राप्ति का उद्योग - अप्रतीपांस्ततो मन्त्रान्देवात्प्राप्य महेश्वरात्। युध्यामहे पुनर्देवांस्ततः प्राप्स्यथ वै जयम्॥), ५०.३८( दिलीप - पुत्र, देवापि आदि के पिता - दिलीपस्य प्रतीरस्तु तस्य पुत्रास्त्रयः स्मृताः।। देवापिः शन्तनुश्चैव बाह्लीकश्चैव ते त्रयः। ), २७१.७( ध्रुवाश्व - पुत्र, सुप्रतीप - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक, बृहद्बल वंश ), महाभारत आदि ९५.४४(तस्यामस्य जज्ञे पर्यश्रवाः । यमाहुः प्रतीपं नाम ।प्रतीपः खलु शैब्यामुपयेमे सुनन्दां नाम । तस्यां पुत्रानुत्पादयामास देवापिं शन्तनुं बाह्लीकं चेति ।), वायु ९९.२३४/२.३७.२२९( प्रतिप : दिलीप - पुत्र प्रतिप के ३ पुत्रों व कुल का कथन - दिलीपसूनुः प्रतिपस्तस्य पुत्रास्त्रयः स्मृताः। देवापिः शन्तनुश्चैव बाह्लीकश्चैव ते त्रयः ।। ), ९९.४१८/ २.३७.४१२( भविष्य के राजाओं के काल में सप्तर्षियों के प्रतीप नक्षत्र? में होने का उल्लेख - सप्तर्षयस्तदा प्राहुः प्रतीपे राज्ञि वै शतम्। ), विष्णु २.८.१९(ब्रह्म सभा से सूर्य की मरीचियों के प्रतीप गमन का उल्लेख - येये मरीचयोर्कस्य प्रयान्ति ब्रह्मणः सभाम्। तेते निरस्तास्तद्भासा प्रतीपमुपयान्ति वै), स्कन्द १.२.७.६०( बालक बक द्वारा मारकत लिङ्ग को अनायास घृतकुम्भ में डालने से शिव गण प्रतीपपालक बनने तथा प्रतीपपालक का गालव के शाप से बकासुर बनने का वृत्तान्त - इत्युक्त्वा मां शिवो भद्र गणकोटीश्वरं व्यधात्॥प्रतीपपालकंनाम संस्थितं शिवशासनम्॥ ) prateepa/ pratipa



      प्रतीह भागवत ५.१५.३( परमेष्ठी व सुवर्चला - पुत्र प्रतीह के चरित्र की प्रशंसा, सुवर्चला - पति, प्रतिहर्ता आदि ३ पुत्रों के पिता ), द्र. वंश भरत



      प्रतीहार अग्नि १०७.१४( परमेष्ठी - पुत्र, प्रतिहर्त्ता - पिता, ऋषभ/नाभि वंश ), ब्रह्माण्ड १.२.१४.६५( वही),



      प्रतोद लक्ष्मीनारायण २.२४५.५०( जीव रथ में शम प्रतोद बनाने आदि का निर्देश ),



      प्रत्यग्र भागवत ९.२२.६( उपरिचर वसु के पुत्रों में से एक ), विष्णु ४.१९.८१( उपरिचर वसु के ७ पुत्रों में से एक )



      प्रत्यङ्गिरा ब्रह्माण्ड २.३.१.२६( अथर्ववेद/ब्रह्मवेद के यज्ञ में प्रत्यङ्गिरस ऋचाओं के साथ आने का उल्लेख ), विष्णु १.१५.१३६( प्रत्यङ्गिरसों से ऋचाओं( या:/यां कल्पयन्ती इति, खिल ४.५.१) की उत्पत्ति का उल्लेख ), हरिवंश १.३.६५( प्रत्यङ्गिरसजा ऋचाओं के राजर्षि कृशाश्व से प्रकट होने का उल्लेख ) pratyangiraa



      प्रत्याहार अग्नि ३४९.२( व्याकरण के संदर्भ में अइउण~ आदि प्रत्याहारों के नाम ), ब्रह्माण्ड ३.४.३.१( तन्मात्राओं के क्षय रूपी प्रत्याहार का वर्णन ), ३.४.२.२९३( पृथिवी, जल, तेज आदि आवरणों के प्रत्याहार का वर्णन ), वायु १०.७६/१.१०.७१( ५ सनातन धमो‰ में से एक ), १०.९३/१.१०.८८( प्रत्याहार द्वारा विषयों के दहन का निर्देश ), ११.१८( प्रत्याहार के महत्त्व का कथन ), १०२.१/२.४०.१( महाभूत प्रलय रूपी प्रत्याहार का वर्णन ), १०४.२४/ २.४२.२४( योग के ८ अङ्गों में से एक ), विष्णु ६.७.४५( प्रत्याहार द्वारा इन्द्रियों को वश में करने का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२८१( प्रत्याहार के महत्त्व का कथन ), स्कन्द ५.२.१३.३०( शिव द्वारा देहस्थ काम का प्रत्याहार द्वारा दहन करने के निश्चय का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.८.७८( प्रत्याहार वत्सर में वीर नारायण और शार्दूलश्री के प्राकट्य का वृत्तान्त ), द्र योग pratyaahaara/ pratyahara



      प्रत्युत्पन्नमति महाभारत शान्ति १३७.१०( अनागतविधाता, प्रत्युत्पन्नमति आदि ३ मत्स्यों की धीवर के जाल के प्रति प्रतिक्रिया ), कथासरित् १०.४.१७९( प्रत्युत्पन्नमति, अनागतविधाता आदि ३ मत्स्यों द्वारा धीवर के जाल के प्रति प्रतिक्रिया का कथन ) pratyutpannamati



      प्रत्युदक पद्म ६.१८८.४१( गीता के १४वें अध्याय के माहात्म्य के संदर्भ में प्रत्युदकपुर के विप्र तथा उसकी स्वैरिणी स्त्री के जन्मान्तर में शश व शुनी बनने का वृत्तान्त ),



      प्रत्यूष ब्रह्माण्ड १.२.३५.९४( प्रत्यूष - पुत्र दल का उल्लेख ), २.३.३.२१( वसु के वसु संज्ञक ८ पुत्रों में से एक ), २.३.३.२७( देवल - पिता ), ३.४.३२.१०( कालचक्र के पञ्चकोण पर प्रत्यूष आदि ५ कालशक्तियों की स्थिति का उल्लेख ), भविष्य ३.४.१७.८१(सप्तम वसु, दुर्वासा का अंश), ३.४.१७.८८( सप्तम वसु, नानक रूप में अवतरण ), ३.४.१८.७( प्रत्यूष के १३ प्रकार ), मत्स्य ५.२७( प्रत्यूष वसु के पुत्र विभु/देवल का उल्लेख ), २०३.७( प्रत्यूष वसु के पुत्र देवल का उल्लेख ), वायु ६१.८४( प्रत्यूष - पुत्र अचल का उल्लेख ), ६६.२६/२.५.२६( ८ वसुओं में से एक, देवल - पिता ), विष्णु १.१५.११७( ८ वसुओं में से एक, देवल - पिता ), स्कन्द ७.१.१०८( प्रत्यूष वसु द्वारा स्थापित प्रत्यूषेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), द्र वसुगण pratyuusha/ pratyusha

      प्रत्यूष ब्रह्माण्ड १.२.३५.९४( प्रत्यूष - पुत्र दल का उल्लेख ), २.३.३.२१( वसु के वसु संज्ञक ८ पुत्रों में से एक ), २.३.३.२७( देवल - पिता ), ३.४.३२.१०( कालचक्र के पञ्चकोण पर प्रत्यूष आदि ५ कालशक्तियों की स्थिति का उल्लेख ), भविष्य ३.४.१७.८१(सप्तम वसु, दुर्वासा का अंश), ३.४.१७.८८( सप्तम वसु, नानक रूप में अवतरण ), ३.४.१८.७( प्रत्यूष के १३ प्रकार ), मत्स्य ५.२७( प्रत्यूष वसु के पुत्र विभु/देवल का उल्लेख ), २०३.७( प्रत्यूष वसु के पुत्र देवल का उल्लेख ), वायु ६१.८४( प्रत्यूष - पुत्र अचल का उल्लेख ), ६६.२६/२.५.२६( ८ वसुओं में से एक, देवल - पिता ), विष्णु १.१५.११७( ८ वसुओं में से एक, देवल - पिता ), स्कन्द ७.१.१०८( प्रत्यूष वसु द्वारा स्थापित प्रत्यूषेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), द्र वसुगण pratyuusha/ pratyusha



      प्रथ द्र. ब्रह्मप्रथ, हरिप्रथ



      प्रथम ब्रह्माण्ड १.२.२०.२१( सुतल नामक द्वितीय तल में स्थित राक्षसों के पुरों में प्रथम नामक राक्षस के पुर का उल्लेख ), मत्स्य २२७.६६( राजा द्वारा देय प्रथम साहस दण्ड का उल्लेख ), २२७.१७८( प्रथम, मध्यम व उत्तम दण्डों का उल्लेख ), वायु ५०.२०( द्वितीय तल में स्थित राक्षसों के पुरों में प्रथम राक्षस के पुर का उल्लेख ), कथासरित् ७.८.८४( इन्दीवर व अनिच्छासेन राजकुमार - द्वय के मातामह तथा प्रज्ञासहायक के रूप में प्रथमसङ्गम का उल्लेख ) prathama



      प्रदक्षिणा गरुड ३.२९.६६(प्रदक्षिणा काल में गरुडान्तर्गत हरि के ध्यान का निर्देश), वराह १५९+ ( मथुरा प्रदक्षिणा का महत्त्व तथा विधि ), १६४( अन्नकूट परिक्रमा का महत्त्व व विधि ), स्कन्द १.३.१.९.६७( प्रदक्षिणा के ४ अक्षरों का तात्पर्य ), ५.३.१५६.३९( शुक्ल तीर्थ की प्रदक्षिणा से पृथ्वी की प्रदक्षिणा के फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ७.१.१७.१३६( सूर्य प्रदक्षिणा मन्त्र ) pradakshinaa



      प्रदीप विष्णु १.८.३०( ज्योत्स्ना - पति ), कथासरित् १२.६.४२०( कमलगर्भ द्विज का प्रदीप्ताक्ष यक्ष के पुत्र दीप्तशिख के रूप में जन्म तथा उसकी २ भार्याओं का अन्य यक्षिणियों के रूप में जन्म ) pradeepa/ pradipa



      प्रदेश लक्ष्मीनारायण ४.८०.१६( राजा नागविक्रम के सर्वमेध यज्ञ में विभिन्न प्रदेशों के निवासियों द्वारा विभिन्न कृत्यों का सम्पादन ) pradesha



      प्रदोष देवीभागवत ७.३८.३९( प्रदोष व्रत की संक्षिप्त विधि ), भागवत ४.१३.१४( पुष्पार्ण व दोषा के ३ पुत्रों में से एक, ध्रुव वंश ), स्कन्द १.१.१७.२०८( इन्द्र द्वारा प्रदोष व्रत के प्रभाव से तथा वृद्वा के प्रदोष काल में निद्रा ग्रहण से इन्द्र के वृद्वा की हत्या में सफल होने का कथन ), ३.३.६.५( त्रयोदशी तिथि को सायंकाल का समय, प्रदोष काल में शिव पूजा का महत्त्व, सत्यरथ नृप का वृत्तान्त ), द्र वंश ध्रुव pradosha



      प्रद्युम्न गरुड ३.१६.७(कृति-पति), ३.२२.७९(वैश्यों में श्रीहरि की प्रद्युम्न नाम से स्थिति), ३.२९.६३(ताम्बूल काल में प्रद्युम्न के ध्यान का निर्देश), गर्ग ७.२+ ( उग्रसेन के राजसूय हेतु प्रद्युम्न द्वारा दिग्विजय का संकल्प व उद्योग, राजाओं से भेंट प्राप्ति ), ७.२९.१३( प्रद्युम्न के मीनध्वज का उल्लेख ), ७.३०.३०( मानव पर्वत पर प्रद्युम्न की मनु से भेंट, मनु द्वारा प्रद्युम्न की स्तुति ), ७.३८+ ( प्रद्युम्न का हिरण्याक्ष - पुत्र शकुनि से युद्ध ), देवीभागवत ४.२२.३९( सनत्कुमार का अंश ), नारद १.६६.९०( प्रद्युम्न की शक्ति प्रीति का उल्लेख ), पद्म ६.१२०.५४( प्रद्युम्न से सम्बन्धित शालग्राम शिला के लक्षणों का कथन ), ब्रह्म १.९१( शम्बर द्वारा प्रद्युम्न के हरण का प्रसंग ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.११२( शंकर हरण आख्यान ), ब्रह्माण्ड २.३.६४.१९( भानुमान् - पुत्र, मुनि - पिता, मैथिल वंश ), भविष्य ३.४.१४.४९( भगवान् के मुख के तेज से प्रद्युम्न/काम की उत्पत्ति, काम द्वारा ब्रह्माण्ड व शिव का मोहन, शिव के तेज से भस्म होने आदि का वर्णन ), भागवत ४.१३.१६( चाक्षुष मनु व नड्वला के पुत्रों में से एक ), १०.५५( प्रद्युम्न का जन्म, शम्बर द्वारा हरण, शम्बर वध की कथा ), १०.६३( प्रद्युम्न का कार्तिकेय से युद्ध ), ११.३०( प्रद्युम्न का साम्ब से युद्ध ), वराह ११.८४( गौरमुख ऋषि की मणि से उत्पन्न १५ महाशूरों में से एक ), वायु ८९.१९/२.२७.१९( भानुमान् - पुत्र, मुनि - पिता, मैथिल वंश ), विष्णु ५.२७( षष्ठम् दिवस पर शम्बर द्वारा प्रद्युम्न का हरण, मायावती द्वारा पालन, प्रद्युम्न द्वारा शम्बर के वध की कथा ), विष्णुधर्मोत्तर १.२०८.२१( राम भ्राता भरत के प्रद्युम्नांश तथा प्रद्युम्न रूप होने का उल्लेख ), १.२३७.५( प्रद्युम्न से घ्राण की रक्षा की प्रार्थना ), ३.५२.१३( प्रद्युम्न का वरुण से साम्य? ), ३.१०६.१९( प्रद्युम्न आवाहन मन्त्र ), ३.११९.४( प्रद्युम्न की विवाह काल में पूजा ), ३.१२१.६( दक्षिणापथ में प्रद्युम्न की पूजा का निर्देश ), शिव २.३.१९.४०( काम को भस्म करने के पश्चात् शिव द्वारा काम के कृष्ण व रुक्मिणी - पुत्र के रूप में जन्म लेने का पूर्वकथन ), स्कन्द २.२.३०.७९( प्रद्युम्न से पश्चिम दिशा की रक्षा की प्रार्थना ), २.७.९.१४( शिव द्वारा काम को दग्ध करने पर आकाशवाणी द्वारा काम के प्रद्युम्न रूप में रति को प्राप्त होने का उल्लेख ), ४.२.६१.२२१( प्रद्युम्न की मूर्ति के लक्षण व महिमा ), हरिवंश २.६१.५( प्रद्युम्न द्वारा रुक्मी - पुत्री शुभाङ्गी का वरण ), २.७३.२४( पारिजात हरण प्रसंग में प्रद्युम्न का जयन्त से युद्ध ), २.९०.१२( प्रद्युम्न द्वारा भानुमती की निकुम्भ दानव से रक्षा ), २.९२( हंसी द्वारा वज्रनाभ असुर की पुत्री प्रभावती से प्रद्युम्न के रूप की प्रशंसा, प्रद्युम्न का नट वेश में वज्रपुर में आगमन ), २.९३.२९( प्रद्युम्न द्वारा नलकूबृर रूप धारण ), २.९४.१( प्रद्युम्न का प्रभावती से गान्धर्व विवाह ), २.१०४.२( सनत्कुमार का रूप ), २.१०४( शम्बर द्वारा प्रद्युम्न के हरण का प्रसंग ), महाभारत शान्ति ३३९.३८( चतुर्व्यूह के अन्तर्गत प्रद्युम्न के मन होने का कथन ), योगवासिष्ठ ४.३२.१२( कश्मीर में अधिष्ठान पर्वत के प्रद्युम्न शिखर पर व्याल दानव के कलविङ्क बनने व मुक्ति का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.१८५.१५७( शिव द्वारा कामदाह के पश्चात् काम के हिरण्या - पुत्र प्रद्युम्न के रूप में जन्म लेने तथा शम्बर द्वारा प्रद्युम्न के हरण आदि का वृत्तान्त ), १.२६५.१२( प्रद्युम्न की शक्ति धी का उल्लेख ), ३.७१.४५( प्रद्युम्न के जगत की पालक शक्ति होने का कथन ), कथासरित् १२.६.१०९( पाताल में अनिरुद्ध की रक्षा हेतु प्रद्युम्न द्वारा शारिका देवी की स्तुति करने का कथन ), १२.३०.५( शोभावती पुरी के राजा प्रद्युम्न के राज्य में मृत द्विज बालक के शरीर में योगी के प्रवेश का वृत्तान्त ), द्र. वंश ध्रुव pradyumna



      प्रद्योत ब्रह्माण्ड २.३.७.१२४( मणिभद्र यक्ष व पुण्यजनी के २४ पुत्रों में से एक ), भविष्य ३.१.३.९६+ ( क्षेमक - पुत्र प्रद्योत द्वारा पितृहन्ता म्लेच्छों के नाश के लिए यज्ञ का वर्णन ), ३.३.५.१३( राजा अनङ्गपाल - पुत्र, जयचन्द्र - सेनानी ), ३.३.६.४५( पृथ्वीराज - अग्रज धुन्धुकार द्वारा वध ), भागवत १२.१.३( मन्त्री शुनक द्वारा स्वामी पुरञ्जय को मार कर स्वपुत्र प्रद्योत को राजा बनाने का उल्लेख, पालक - पिता ), वायु ६९.१५६/२.८.१५१( मणिभद्र यक्ष व पुण्यजनी के २४ पुत्रों में से एक ), ९९.३१०/२.३७.३०४( मुनिक द्वारा स्वामी की हत्या कर स्वपुत्र प्रद्योत को राजा बनाने का कथन, पालक - पिता ), विष्णु ४.२४.२( मुनिक मन्त्री द्वारा स्वामी रिपुञ्जय की हत्या कर स्वपुत्र प्रद्योत को राजा बनाने का उल्लेख, बलाक - पिता, प्रद्योत राजाओं द्वारा राज्य का उल्लेख ), कथासरित् ३.१.१९( मगधराज प्रद्योत की कन्या पद्मावती को वत्सराज हेतु प्राप्त करने का उद्योग ) pradyota



      प्रद्वेषी लक्ष्मीनारायण २.३१.८५( दीर्घतमा - पत्नी प्रद्वेषी द्वारा पति के त्याग आदि का कथन )



      प्रधा मार्कण्डेय १०४.९/१०१.९( दक्ष की १३ पुत्रियों में से एक, कश्यप - भार्या, यादसगणों/पतङ्गों की माता) pradhaa



      प्रधान गर्ग १.१६.२५( काल की शक्ति प्रधान का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.१.३.९( सर्ग से पूर्व अव्यक्त कारण सदसदात्मक प्रधान व प्रकृति का कथन, सर्ग काल में प्रधान के गुण भाव से भासमान होने आदि का कथन ), १.१.४.१( विकारों के समाप्त होने पर तथा गुणों की साम्यावस्था पर प्रधान व पुरुष की साधर्म्य रूप में प्रतिष्ठा का उल्लेख ), १.१.५.१०३( प्रधान के प्रकृति माया होने का उल्लेख ), १.२.२१.२८( प्रधान अव्ययात्मा से महान् के आवृत होने आदि का कथन ), २.३.४३.४( प्रधान के विशेषण ), ३.४.४.१५( सृष्टि से पूर्व सब कार्य बुद्धि पूर्व प्रधान द्वारा होने का कथन ), ३.४.४.२०( सृष्टि के पश्चात् प्रधान के योगदान का कथन ), भागवत १०.३८.१५( प्रधान व पुरुष के रूप में कृष्ण व बलराम का उल्लेख ), १०.३८.३२( वही), मत्स्य ३.१५( गुणों की साम्यावस्था के प्रकृति, प्रधान, अव्यक्त आदि नाम ), वायु ५.११( महेश्वर द्वारा प्रधान व पुरुष रूपी अण्ड में प्रवेश करके क्षोभ उत्पन्न करने तथा उससे रजोगुण की उत्पत्ति का कथन ), १०२.१३३/२.४०.१३३( प्रधानिकी सृष्टि का निरूपण ), १०३.१४/२.४१.१४( प्रधान के सब कार्य बुद्धिपूर्व होने तथा क्षेत्रज्ञ द्वारा अबुद्धिपूर्व उन गुणों को नियन्त्रित करने का कथन ),१०३.३६/२.४३.३६(अव्यक्त कारण से प्रधान व पुरुष से महेश्वर के जन्म का कथन), शिव ७.१.९.१८( प्रलय के पश्चात् तमोरूप प्रधान व सत्त्व रूप पुरुष के समत्व में स्थित होने का कथन ), लक्ष्मीनारायण ३.७१.२६( प्रधान पुरुष की उत्पत्ति तथा प्रधान पुरुष से अहंकार की उत्पत्ति का कथन ) pradhaana/ pradhana



      प्रधिमि शिव ३.५.२४( १९वें द्वापर में शिव अवतार जटीमाली के पुत्रों में से एक ),



      प्रपञ्चबुद्धि कथासरित् ७.४.४३( राजा विक्रमादित्य द्वारा भिक्षु प्रपञ्चबुद्धि के वध का वृत्तान्त )



      प्रपा भविष्य २.१.१७.६( प्रपा कर्म में अग्नि का नाम नाग ), ४.१७२( प्रपा/पौंसला दान विधि ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३२१.११( प्रपा रक्षण से नैर्ऋत लोक की प्राप्ति ) prapaa



      प्रपितामह ब्रह्माण्ड १.२.२८.१७( पितरों में पञ्चाब्द रूप के प्रपितामह तथा देव होने का उल्लेख ), वायु ३१.३३( कालात्मा प्रपितामह के विशेषणों का कथन ), ३१.३८( भास्कर के पितामह तथा चन्द्र के प्रपितामह होने का कथन ), ३१.४५( वायु के लोकात्मा प्रपितामह होने का कथन ), ३१.५३( भव/रुद्र के भूतात्मा प्रपितामह होने का कथन ), १०६.५६/२.४४.५६( गया में शिला को स्थिर करने के लिए प्रपितामह का शिला पर ५ रूपों में स्थित होने का कथन ) prapitaamaha/ prapitamaha



      प्रबल भागवत २.९.१४( विष्णु के पार्षदों में से एक ), ८.२१.१६( विष्णु के पार्षदों में से एक, असुरों की सेना का संहार ), १०.६१.१५( कृष्ण व माद्री/लक्ष्मणा के पुत्रों में से एक ), कथासरित् ८.२.३७९( प्रभास असुर के प्रबल नामक दैत्य का अवतार होने का उल्लेख ), ८.३.२३६( नमुचि असुर के प्रबल और प्रभास रूप में जन्म लेने का कथन ), ८.७.४६( वही), prabala



      प्रबुद्ध भागवत ५.४.११( ऋषभ के भागवत धर्म का दर्शन करने वाले ९ पुत्रों में से एक ), ११.३.१८( ऋषभ - पुत्र प्रबुद्ध द्वारा निमि को कर्म सम्बन्धी उपदेश ) prabuddha



      प्रबोधन नारद १.१२०.५१( प्रबोधिनी एकादशी व्रत विधि ), भागवत १०.८७.१२( शायित परमात्मा का श्रुतियों द्वारा प्रबोधन ), स्कन्द २.४.३३.१( कार्तिक शुक्ल प्रबोधिनी एकादशी का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण २.२६८( राजा अमोहाक्ष द्वारा प्रबोध गुरु की सेवा, गुरु द्वारा चतुर्भुज रूप का दर्शन देना तथा उपदेश का वर्णन ) prabodhana



      प्रभञ्जन गणेश २.१०.३३( वायु द्वारा महोत्कट गणेश का प्रभञ्जन नामकरण ), पद्म १.१८.२५८( मृगी के शाप से प्रभञ्जन का व्याघ्र| बनना, नन्दा गौ से संवाद पर मुक्ति ), ब्रह्माण्ड २.३.७.२३३( वाली के सहायक प्रमुख वानरों में से एक ), वायु ४४.१८( प्रभञ्जना : केतुमाल देश की प्रमुख नदियों में से एक ), स्कन्द २.४.४टीका ( मृगी के शाप से प्रभञ्जन का व्याघ्र| बनना, नन्दा गौ से संवाद से मुक्ति ), ६.११३.३०( आनर्त अधिपति का पूर्व जन्म में नाम, प्रभञ्जन - पुत्र का अनिष्ट ग्रहों में उत्पन्न होना, शान्ति कर्म हेतु अग्नि कुण्ड की स्थापना आदि का वृत्तान्त ) prabhanjana



      प्रभव ब्रह्माण्ड २.३.१.९०( भृगु व दिव्या के १२ भृगु देव पुत्रों में से एक , मत्स्य १७१.४३( धर्म व साध्या के पुत्रों में से एक ), १९५.१३( भृगु व दिव्या के १२ भृगु देव पुत्रों में से एक ), वराह १०.७९( दुर्जय व सुकेशी - पुत्र ), वायु ६६.३२/२.५.३२( प्रभवान् : धर्म व विश्वा के विश्वेदेव संज्ञक १० पुत्रों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.५३२.१५( सुकेशी व दुर्जय - पुत्र ) prabhava



      प्रभविष्णु भागवत २.४.१८( विष्णु की संज्ञाओं में से एक )



      प्रभा अग्नि २७३.३( सूर्य की ३ पत्नियों में से एक, रेवन्त व प्रभात - माता ), गणेश २.३२.१३( प्रियव्रत - भार्या, पद्मनाभि - माता ), २.३३.२०( कालक्रम से प्रभा का निष्प्रभ आदि होना, सपत्ना के पुत्र को विष पिलाना ), देवीभागवत ९.१.१२०( तेज की २ भार्याओं में से एक ), नारद १.६६.९२( शार्ङ्गी विष्णु की शक्ति प्रभा का उल्लेख ), १.९१.८५( सद्योजात शिव की सप्तम कला ), पद्म १.८.३७( विवस्वान् की ३ पत्नियों में से एक, प्रभात - माता ), १.२०.१०६( प्रभा व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य ), ब्रह्मवैवर्त्त २.११.५८( प्रभा गोपी का राधा के भय से सूर्य मण्डल में अदृश्य होना, प्रभा के तेज का ब्रह्माण्ड में वितरण ), ब्रह्माण्ड २.३.६.२३( स्वर्भानु - कन्या, नहुष - माता ), २.३.६७.१( आयु व स्वर्भानु - कन्या प्रभा से उत्पन्न नहुष आदि ५ पुत्रों के नाम ), भविष्य १.७९.१८( सूर्य - पत्नी संज्ञा के ३ नामों में से एक ), भागवत ४.१३.१३( पुष्पार्ण - पत्नी, प्रात: आदि ३ पुत्रों की माता ), मत्स्य ६.२१( स्वर्भानु असुर - कन्या ), ११.२( विवस्वान् की ३ पत्नियों में से एक, प्रभात - माता ), १२.३९( सगर की २ भार्याओं में से एक, षष्टि सहस्र पुत्रों की माता, पुत्रों के भस्म होने का वृत्तान्त ), १३.५२( सूर्यबिम्ब में सती की प्रभा नाम से स्थिति का उल्लेख ), २३.२५( स्वपतियों को त्याग चन्द्रमा की सेवा में जाने वाली ९ देवियों में से एक ), १०१.५४( प्रभा व्रत ), २८४.१५( सूर्य के समक्ष पृथ्वी के प्रभा नाम का उल्लेख ), वायु ५०.११२( सौरी प्रभा के रात्रि में सूर्य से निकल कर अग्नि में प्रवेश करने का कथन ), ६८.२२/२.७.२२( स्वर्भानु - कन्या, नहुष - माता ), ७०.७१/२.९.७१( स्वर्भानु द्वारा सूर्य को ग्रस लेने पर सोम द्वारा लोक में प्रभा फैलाने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२१( वक्ष में प्रभा की स्थिति का उल्लेख ), स्कन्द १.२.६३.४२( बर्बरीक द्वारा बहुप्रभा नगरी में दैत्यों के निग्रह का कथन ), ४.२.५३.१२५( काशी में प्रभामयेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ),५.३.९८.३( सूर्य - पत्नी, दुर्भगा, प्रभासेश लिङ्ग की स्थापना से सौभाग्य प्राप्ति ), ५.३.१५९.४५( हिता नामक नाडियों के मध्य शशिप्रभा का उल्लेख ), ५.३.१९८.९०( सूर्य बिम्ब में देवी की प्रभा नाम से स्थिति होने का उल्लेख ), हरिवंश १.३.९१( स्वर्भानु असुर - कन्या ), १.२८.१( स्वर्भानु - पुत्री, आयु - पत्नी, नहुष, रजि आदि की माता ), ३.७१.५१( वामन के विराट् रूप में ज्योतियों/नक्षत्रों के प्रभाएं होने का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ६.१.८१.१०६( अग्नि द्वारा चित् देह की चिर प्रभा सोम को प्रकट करने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३०५.९( ब्रह्मा द्वारा सनत्कुमारादि पुत्रों के लिए प्रभा आदि कन्याओं को उत्पन्न करना, सनत्कुमारादि की अस्वीकृति पर प्रभा आदि द्वारा अधिक मास त्रयोदशी व्रत के चीर्णन से दिव्य लोक की प्राप्ति ), १.३८५.३०(प्रभा का कार्य – रत्नमाला देना), १.४४६.५२( चन्द्रमा द्वारा अपहृत छाया तारा के प्रभा बनने का कथन ), २.५९.५४( दान के अभाव में प्रभानाथ विप्र का प्रेत बनना, प्रेत द्वारा वणिक् को प्रसन्न करना, वणिक् द्वारा प्रेत की मुक्ति का उद्योग ), २.१६१.७०( प्रभा के सूर्य की दासी होने का उल्लेख ), ३.१२२.१०८( सूर्य द्वारा पुत्री व्रत के चीर्णन से प्रभा पुत्री की प्राप्ति का उल्लेख ), ४.८०.२( कृष्ण द्वारा स्वपत्नियों पारवती व प्रभा सहित राजा नागविक्रम के यज्ञ में गमन का उल्लेख ), कथासरित् ३.६.३३( फलभूति विप्र द्वारा आदित्यप्रभ राजा से धन प्राप्ति का वृत्तान्त ), ३.६.४८( राजा आदित्यप्रभ की रानी कुवलयावली द्वारा राजा को विनायक आदि की पूजा के महत्त्व का वर्णन तथा स्वयं को कालरात्रि की शिष्या बताना ), ३.६.१८६( कुवलयावली द्वारा राजा को फलभूति का मांस खाने को प्रेरित करना, भूल से स्वपुत्र के मांस का भक्षण करने का वृत्तान्त ), १०.३.८७( पद्मकूट विद्याधर की पुत्री मनोरथप्रभा द्वारा सोमप्रभ को स्ववृत्तान्त का वर्णन ), द्र. अग्निप्रभा, कनकप्रभा, गौरप्रभा, चन्द्रप्रभा, देवप्रभा, बिल्वप्रभा, रत्नप्रभा, वज्रप्रभा, विद्युत्प्रभा, शशिप्रभा, शङ्खप्रभा, सुप्रभा, सोमप्रभा, स्वयंप्रभा, हेमप्रभा, हरिहरप्रभा prabhaa



      प्रभाकर ब्रह्मवैवर्त्त ३.१९.२८( प्रभाकर सूर्य से पादों की रक्षा की प्रार्थना ), ब्रह्माण्ड १.२.१४.२८( कुश द्वीप में ज्योतिष्मान् के ७ पुत्रों में से एक, प्रभाकर वर्ष का अधिपति), १.२.१९.५६(हरि पर्वत के प्रभाकर वर्ष का उल्लेख), १.२.१९.५८( कुश द्वीप के ७ वर्षों में से एक ), ३.४.१.१४( सुतपा गण के २० देवों में से एक ), मत्स्य २३.२५( प्रभा द्वारा प्रभाकर को त्याग सोम की सेवा में जाने का उल्लेख ), २६१.१( प्रभाकर की प्रतिमा का स्वरूप ), वायु ३३.२४( कुशद्वीप में ज्योतिष्मान् के ७ पुत्रों में से एक, प्रभाकर वर्ष का अधिपति ), ७०.७०/२.९.७०( प्रभाकर की भद्राश्व व घृताची से उत्पन्न भद्रा आदि १० अप्सरा पत्नियों के नाम ), ९९.१२७/२.३७.१२३( रौद्राश्व व घृताची से उत्पन्न १० अप्सराओं के पति के रूप में आत्रेय प्रभाकर का उल्लेख ), १००.१४/२.३८.१४( सुतपा गण के २० देवों में से एक ), विष्णु २.४.३६( कुश द्वीप में ज्योतिष्मान् के ७ पुत्रों में से एक, प्रभाकर वर्ष का अधिपति ), स्कन्द ७.१.२०.४१( सूर्य का नाम, कारण, अत्रि द्वारा सूर्य की पतन से रक्षा, १० पत्नियों के पिता ), कथासरित् ९.६.८१( विमल - पुत्र प्रभाकर द्वारा स्थूलशिरा यक्ष से पुंस्त्व प्राप्ति का वृत्तान्त ), द्र भूगोल prabhaakara/ prabhakara



      प्रभात अग्नि २७३.३( रवि व प्रभा - पुत्र, रेवन्त - भ्राता ), मत्स्य ११.३( विवस्वान् व प्रभा - पुत्र ), वामन १४.२१( सुप्रभातम् स्तोत्र ) द्र. सुप्रभात prabhaata/ prabhata



      प्रभाव वा.रामायण ४.३१.४३( सुग्रीव के २ मन्त्रियों में से एक, सुग्रीव को लक्ष्मण के आगमन का समाचार देना ) prabhaava/ prabhava



      प्रभावती पद्म ६.६.३१( बल दैत्य की पत्नी, पति मरण पर शोक, नदी बनना ), वराह १८०.१ (ध्रुव तीर्थ में श्राद्ध से प्रभावती की दासी के मशक वेष्टित पितरों की मुक्ति), विष्णुधर्मोत्तर १.१७०.३२( भीमवेग - पुत्री, मान्धाता - भार्या ), स्कन्द ४.२.७६.३६( पद्मनाभ - पत्नी ), ४.२.७६.११६( पद्म नाग की कन्या, रत्नावली - सखी, पूर्व जन्म में चारण्य - पुत्री व नारायण ब्राह्मण - पत्नी ), हरिवंश २.९१( वज्रनाभ - पुत्री, हंसों द्वारा प्रद्युम्न के प्रति आकृष्ट करना ), २.९४( प्रभावती का प्रद्युम्न से विवाह ), लक्ष्मीनारायण १.४७२.६५( नागकन्या रत्नावली की २ सखियों में से एक, पूर्व जन्म का वृत्तान्त, परिमलालय विद्याधर की पत्नियां बनना ), ३.१७.८२( कृष्णयश विप्र - भार्या, चतुर्मुख नारायण को जन्म देने का कथन ), ३.२३२.२६( ज्वाला प्रसाद शूद्र की पत्नी प्रभावती द्वारा कार्तिक शुक्ल एकादशी व्रत से पति सहित मोक्ष प्राप्ति ), ४.१०१.१०२( कृष्ण की ११२ पत्नियों में से एक, दृश्यादेवी व गोचर - माता ), कथासरित् १४.२.७४( पिङ्गलगान्धार - कन्या प्रभावती द्वारा नरवाहनदत्त का उसकी भार्या मदनमञ्चुका से मिलन कराने का वृत्तान्त ) prabhaavatee/ prabhavati



      प्रभास गर्ग ६.१३.१( प्रभास तीर्थ का माहात्म्य ), देवीभागवत ७.३८.१९( प्रभास क्षेत्र में पुष्करेक्षिणी देवी के वास का उल्लेख ), नारद २.७०( प्रभास क्षेत्र का माहात्म्य व अन्तर्वर्ती तीर्थों का माहात्म्य, वसु - मोहिनी संवाद प्रसंग ), ब्रह्माण्ड ३.४.१.१४( सुतपा संज्ञक गण के २० देवों में से एक ), भविष्य ३.४.१७.८८( अष्टम वसु प्रभास के नित्यानन्द रूप में अवतरण का उल्लेख ), ३.४.१८.७( प्रभास के ३६० भेद ), भागवत १.१५.४९( विदुर द्वारा प्रभास में देह त्याग का उल्लेख ), १०.४५.३७( सान्दीपनी के पुत्र के प्रभास में समुद्र में डूब कर मरने का उल्लेख, कृष्ण व बलराम का प्रभास गमन व समुद्र से वार्तालाप ), ११.६.३५( कृष्ण व यादवों का द्वारका से प्रभास गमन ), ११.३०.६( प्रभास में प्रत्यक् सरस्वती की स्थिति का उल्लेख, यादवों का प्रभास गमन तथा परस्पर युद्ध में मृत्यु का वर्णन ), वराह १५.८( गौरमुख द्वारा प्रभास क्षेत्र में दशावतार स्तोत्र द्वारा परमात्मा की स्तुति करने का कथन ), १४९.३०( द्वारका में प्रभास तीर्थ का माहात्म्य ), वामन ५७.९१( प्रभास द्वारा स्कन्द को गण प्रदान ), ७८.५७( धुन्धु असुर के निग्रह हेतु विष्णु द्वारा प्रभास ब्राह्मण - पुत्र वामन/गतिभास का रूप धारण करने का वृत्तान्त ), ९०.२०( प्रभास तीर्थ में विष्णु का कपर्दी नाम से वास ), वायु २३.२१५/१.२३.२०३( २७वें द्वापर में सोमशर्मा द्विज के प्रभास तीर्थ में आने का उल्लेख ), ७७.४०/२.१५.४०( श्राद्ध हेतु उपयुक्त तीर्थों में से एक ),१०४.७८/२.४२.७८( प्रभास की हनु - ग्रीवा मध्य में स्थिति ), १०८.१३/२.४६.१३( प्रभास पर्वत की गयासुर के ऊपर स्थिति, शिला का आच्छादन ), १०८.१३/२.४६.१३( गया में स्थित प्रभास पर्वत के प्रभास नाम का कारण, प्रभास की शिला पाद पर स्थिति, शिला अङ्गुष्ठ द्वारा प्रभास के भेदन आदि का कथन ), १०९.१४/२.४७.१४( गया में शिला के संदर्भ में प्रभास का उल्लेख ), विष्णु १.१५.११८( आठ वसुओं में से एक, बृहस्पति - भगिनी वरस्त्री - पति, विश्वकर्मा - पिता ), ५.२१.२५( सान्दीपनी के प्रभास में लवण समुद्र में मृत पुत्र को प्राप्त करने के लिए कृष्ण व बलराम का उद्योग ), ५.३७.३०( यादवों का द्वारका को त्याग प्रभास में गमन व परस्पर युद्ध में मरण का वृत्तान्त ), स्कन्द २.३.७.१( पापियों के पाप से मलिन प्रभास, पुष्कर आदि ५ तीर्थों के बदरिकाश्रम में ५ धाराओं के रूप में स्थित होने का कथन ), ४.२.८३.९५( प्रभास तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.३.१३.४२( ७वें कल्प का नाम ), ५.३.९८.३( प्रभास तीर्थ का माहात्म्य, सूर्य - पत्नी प्रभा द्वारा पति सौभाग्य की प्राप्ति ), ५.३.१९०.२०( चन्द्रप्रभास/चन्द्रहास तीर्थ की उत्पत्ति व चन्द्रप्रभास तीर्थ में स्नानादि का महत्त्व ), ५.३.१९८.८१( प्रभास क्षेत्र में देवी की पुष्करावती नाम से स्थिति का उल्लेख ), ७.१.१+ ( स्कन्द पुराण के प्रभास खण्ड का आरम्भ ), ७.१.३.११८( प्रभास क्षेत्र का माहात्म्य ), ७.१.४( प्रभास के ३ भेद, क्षेत्रपालों के नाम ), ७.१.१०.८(प्रभास तीर्थ का वर्गीकरण – तेज), ७.१.११.४४(प्रभास नाम के कारणों का कथन), ७.१.११.१९७( प्रभास की सूर्य के ऋग्मय तेज से उत्पत्ति ), ७.१.११०( प्रभास वसु द्वारा स्थापित प्रभासेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, विश्वकर्मा पुत्र प्राप्ति ), ७.१.१८७( प्रभास पञ्चक का माहात्म्य, वृद्ध प्रभास, जल प्रभास, कृतस्मर प्रभास, श्मशान प्रभास नाम, ब्राह्मणों के शाप से कामुक शिव के लिङ्ग का पतन, देवों द्वारा प्रभास में स्थापना ), ७.१.१९५( वृद्ध प्रभासेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, तपोरत ऋषियों का वृद्ध होना ), ७.१.१९६( जल प्रभास का माहात्म्य, परशुराम की घृणा से निवृत्ति ), ७.१.१९८( महाप्रभासेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, त्रेता युग में स्पर्श लिङ्ग नाम ), महाभारत वन १२.१४(प्रभास में कृष्ण द्वारा एकपद पर स्थित होकर तप करने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३११.४०( , १.५३६.२५( प्रभास की निरुक्तियां व माहात्म्य ), १.५३९+ ( प्रभास क्षेत्र के तीर्थों तथा उनकी उत्पत्ति का वर्णन ), १.५४८.९०( प्रभास में हर के बाल रूप का उल्लेख ), ४.१०१.८५( कृष्ण व मङ्गला - पुत्र, भास्वरा - भ्राता ), कथासरित् ८.२.१७८( प्रभास वसु की सुता कीर्तिमती के सुनीथ की भार्या बनने का उल्लेख ), ८.२.३७९( प्रभास दैत्य के प्रबल के रूप में जन्म लेने का उल्लेख ), ८.३.२०९(प्रभास द्वारा गुफा में प्रवेश करके ७दिव्य ओषधियों का ग्रहण), ८.३.२४०( नमुचि दानव के प्रबल व प्रभास रूप में अवतरण का उल्लेख ), ८.५.३( सूर्यप्रभ के सेनानी प्रभास द्वारा वज्रव्यूह की रचना व प्रतिपक्ष के व्यूह का भेदन करने का कथन ), ८.५.३३( प्रभास के कालकम्पन आदि से युद्ध का वर्णन ), ८.७.४१( प्रभास का दामोदर आदि से युद्ध, प्रभास के नमुचि असुर का अवतार होने का कथन, प्रभास द्वारा पाशुपत अस्त्र का प्रयोग ), द्र. वसुगण prabhaasa/ prabhasa

      प्रभास गर्ग ६.१३.१( प्रभास तीर्थ का माहात्म्य ), देवीभागवत ७.३८.१९( प्रभास क्षेत्र में पुष्करेक्षिणी देवी के वास का उल्लेख ), नारद २.७०( प्रभास क्षेत्र का माहात्म्य व अन्तर्वर्ती तीर्थों का माहात्म्य, वसु - मोहिनी संवाद प्रसंग ), ब्रह्माण्ड ३.४.१.१४( सुतपा संज्ञक गण के २० देवों में से एक ), भविष्य ३.४.१७.८८( अष्टम वसु प्रभास के नित्यानन्द रूप में अवतरण का उल्लेख ), ३.४.१८.७( प्रभास के ३६० भेद ), भागवत १.१५.४९( विदुर द्वारा प्रभास में देह त्याग का उल्लेख ), १०.४५.३७( सान्दीपनी के पुत्र के प्रभास में समुद्र में डूब कर मरने का उल्लेख, कृष्ण व बलराम का प्रभास गमन व समुद्र से वार्तालाप ), ११.६.३५( कृष्ण व यादवों का द्वारका से प्रभास गमन ), ११.३०.६( प्रभास में प्रत्यक् सरस्वती की स्थिति का उल्लेख, यादवों का प्रभास गमन तथा परस्पर युद्ध में मृत्यु का वर्णन ), वराह १५.८( गौरमुख द्वारा प्रभास क्षेत्र में दशावतार स्तोत्र द्वारा परमात्मा की स्तुति करने का कथन ), १४९.३०( द्वारका में प्रभास तीर्थ का माहात्म्य ), वामन ५७.९१( प्रभास द्वारा स्कन्द को गण प्रदान ), ७८.५७( धुन्धु असुर के निग्रह हेतु विष्णु द्वारा प्रभास ब्राह्मण - पुत्र वामन/गतिभास का रूप धारण करने का वृत्तान्त ), ९०.२०( प्रभास तीर्थ में विष्णु का कपर्दी नाम से वास ), वायु २३.२१५/१.२३.२०३( २७वें द्वापर में सोमशर्मा द्विज के प्रभास तीर्थ में आने का उल्लेख ), ७७.४०/२.१५.४०( श्राद्ध हेतु उपयुक्त तीर्थों में से एक ),१०४.७८/२.४२.७८( प्रभास की हनु - ग्रीवा मध्य में स्थिति ), १०८.१३/२.४६.१३( प्रभास पर्वत की गयासुर के ऊपर स्थिति, शिला का आच्छादन ), १०८.१३/२.४६.१३( गया में स्थित प्रभास पर्वत के प्रभास नाम का कारण, प्रभास की शिला पाद पर स्थिति, शिला अङ्गुष्ठ द्वारा प्रभास के भेदन आदि का कथन ), १०९.१४/२.४७.१४( गया में शिला के संदर्भ में प्रभास का उल्लेख ), विष्णु १.१५.११८( आठ वसुओं में से एक, बृहस्पति - भगिनी वरस्त्री - पति, विश्वकर्मा - पिता ), ५.२१.२५( सान्दीपनी के प्रभास में लवण समुद्र में मृत पुत्र को प्राप्त करने के लिए कृष्ण व बलराम का उद्योग ), ५.३७.३०( यादवों का द्वारका को त्याग प्रभास में गमन व परस्पर युद्ध में मरण का वृत्तान्त ), स्कन्द २.३.७.१( पापियों के पाप से मलिन प्रभास, पुष्कर आदि ५ तीर्थों के बदरिकाश्रम में ५ धाराओं के रूप में स्थित होने का कथन ), ४.२.८३.९५( प्रभास तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.३.१३.४२( ७वें कल्प का नाम ), ५.३.९८.३( प्रभास तीर्थ का माहात्म्य, सूर्य - पत्नी प्रभा द्वारा पति सौभाग्य की प्राप्ति ), ५.३.१९०.२०( चन्द्रप्रभास/चन्द्रहास तीर्थ की उत्पत्ति व चन्द्रप्रभास तीर्थ में स्नानादि का महत्त्व ), ५.३.१९८.८१( प्रभास क्षेत्र में देवी की पुष्करावती नाम से स्थिति का उल्लेख ), ७.१.१+ ( स्कन्द पुराण के प्रभास खण्ड का आरम्भ ), ७.१.३.११८( प्रभास क्षेत्र का माहात्म्य ), ७.१.४( प्रभास के ३ भेद, क्षेत्रपालों के नाम ), ७.१.१०.८(प्रभास तीर्थ का वर्गीकरण – तेज), ७.१.११.४४(प्रभास नाम के कारणों का कथन), ७.१.११.१९७( प्रभास की सूर्य के ऋग्मय तेज से उत्पत्ति ), ७.१.११०( प्रभास वसु द्वारा स्थापित प्रभासेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, विश्वकर्मा पुत्र प्राप्ति ), ७.१.१८७( प्रभास पञ्चक का माहात्म्य, वृद्ध प्रभास, जल प्रभास, कृतस्मर प्रभास, श्मशान प्रभास नाम, ब्राह्मणों के शाप से कामुक शिव के लिङ्ग का पतन, देवों द्वारा प्रभास में स्थापना ), ७.१.१९५( वृद्ध प्रभासेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, तपोरत ऋषियों का वृद्ध होना ), ७.१.१९६( जल प्रभास का माहात्म्य, परशुराम की घृणा से निवृत्ति ), ७.१.१९८( महाप्रभासेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, त्रेता युग में स्पर्श लिङ्ग नाम ), महाभारत वन १२.१४(प्रभास में कृष्ण द्वारा एकपद पर स्थित होकर तप करने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३११.४०( , १.५३६.२५( प्रभास की निरुक्तियां व माहात्म्य ), १.५३९+ ( प्रभास क्षेत्र के तीर्थों तथा उनकी उत्पत्ति का वर्णन ), १.५४८.९०( प्रभास में हर के बाल रूप का उल्लेख ), ४.१०१.८५( कृष्ण व मङ्गला - पुत्र, भास्वरा - भ्राता ), कथासरित् ८.२.१७८( प्रभास वसु की सुता कीर्तिमती के सुनीथ की भार्या बनने का उल्लेख ), ८.२.३७९( प्रभास दैत्य के प्रबल के रूप में जन्म लेने का उल्लेख ), ८.३.२०९(प्रभास द्वारा गुफा में प्रवेश करके ७दिव्य ओषधियों का ग्रहण), ८.३.२४०( नमुचि दानव के प्रबल व प्रभास रूप में अवतरण का उल्लेख ), ८.५.३( सूर्यप्रभ के सेनानी प्रभास द्वारा वज्रव्यूह की रचना व प्रतिपक्ष के व्यूह का भेदन करने का कथन ), ८.५.३३( प्रभास के कालकम्पन आदि से युद्ध का वर्णन ), ८.७.४१( प्रभास का दामोदर आदि से युद्ध, प्रभास के नमुचि असुर का अवतार होने का कथन, प्रभास द्वारा पाशुपत अस्त्र का प्रयोग ), द्र. वसुगण prabhaasa/ prabhasa



      प्रभु ब्रह्माण्ड २.३.३.१७( १२ साध्य देवों में से एक ), २.३.८.९३( पीवरी व शुक की ६ सन्तानों में से एक ), ३.४.१.१६( अमिताभ गण के २० देवों में से एक ), भागवत ६.१८.२( भग व सिद्धि के ३ पुत्रों में से एक ), मत्स्य १५.१०( पीवरी व शुक के ४ पुत्रों में से एक ), २०३.१२( धर्म व साध्या के साध्य संज्ञक १२ देव पुत्रों में से एक ), वायु ७०.८५/२.९.८५( पीवरी व शुक के ६ पुत्रों में से एक ), १००.१६/२.३८.१६( अमिताभ गण के २० देवों में से एक ) prabhu



      प्रभूता लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१०८( कृष्ण की पत्नियों में से एक, विपञ्चिका व प्रणादन - माता ),



      प्रभेदक वराह ८१.६( प्रभेदक गिरि की महिमा का कथन ),



      प्रमति देवीभागवत २.८.४३( च्यवन व सुकन्या - पुत्र प्रमति की पत्नी प्रतापी से रुरु पुत्र के जन्म का कथन ), २.९.३( प्रमति द्वारा पुत्र रुरु के लिए स्थूलकेश मुनि की कन्या प्रमद्वरा को प्राप्त करने का प्रयत्न ), ब्रह्म २.१०१( प्रमति द्वारा अक्ष क्रीडा में इन्द्र व विश्वावसु को पराजित करना, चित्रसेन गन्धर्व से प्रमति की पराजय, पाशबद्ध होना, पुत्र सुमति द्वारा मुक्ति का उद्योग ), ब्रह्माण्ड १.२.३१.७६( चन्द्रमा के गोत्र में उत्पन्न तथा माधव के अवतार प्रमति द्वारा म्लेच्छों आदि के नाश का कथन ), २.३.६१.१७( जनमेजय - पुत्र ), ३.४.१.१६( अमिताभ गण के २० देवों में से एक ), भागवत ९.२.२४( प्रांशु - पुत्र, खनित्र - पिता, भलन्दन वंश ), मत्स्य १४४.५०( कलियुग में धर्म की स्थापना करने वाले राजा, पूर्व जन्मों में विष्णु का अंश, चन्द्रमा - पुत्र ), मार्कण्डेय ११०.३५/१०७.३५( भानु भक्ति के संदर्भ में प्रमति भार्गव की गाथा का कथन ), ११४.३१/१११.३१( च्यवन - जामाता प्रमति की पत्नी का बलात् ग्रहण करने पर प्रमति द्वारा राजपुत्र सुदेव के सखा नल को भस्म करना, सुदेव को वैश्य होने का शाप आदि ), वायु ५८.८५( कलियुग के अन्त में विष्णु अवतार ), १००.१६/२.३८.१६( अमिताभ गण के २० देवों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर १.७४.१२( शूर द्विज - पुत्र, कृतयुग के अन्त में क्षत्रियों पर विजय का कथन ), वा.रामायण ६.३७.७( विभीषण - मन्त्री, लङ्का की रक्षा व्यवस्था का दर्शन ), द्र. प्रमिति pramati



      प्रमथ ब्रह्माण्ड २.३.४२.३३( विनायक के प्रमथों का अधिपति होने का उल्लेख ), भागवत १.१५.९( जरासन्ध द्वारा प्रमथनाथ मख में बलि देने के लिए राजाओं को कैद करने का उल्लेख ), ५.५.२१( मनुष्यों से प्रमथों के व प्रमथों से गन्धर्वों के श्रेष्ठ होने का उल्लेख ), ५.१५.१५( प्रमन्थु : वीरव्रत व भोजा के २ पुत्रों में से एक ), मत्स्य १३५.३३( प्रमथों के सिंहाक्ष स्वरूप होने का उल्लेख ), १३६.३४( नन्दी द्वारा रक्षित प्रमथों की सेना के तारक के सेनापतित्व वाली दानव सेना से युद्ध का वर्णन ), मार्कण्डेय ११९.१३/११६.१३( राजा क्षुप व उसकी पत्नी प्रमथा के वीर पुत्र का उल्लेख ), वामन ६९.८( शुक्राचार्य द्वारा प्रमथों से युद्ध में मृत असुरों को सञ्जीवनी विद्या द्वारा जीवित करने का उल्लेख ), ६९.२३( असुरों व प्रमथों के युद्ध का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर ३.४२.१२( प्रमथों के रूप का कथन : महीभुज ), स्कन्द ३.३.१२.२२( व्रजन्त/भ्रमण स्थिति में प्रमथनाथ से रक्षा की प्रार्थना ), ४.२.५३.६४( प्रमथ गण - चतुष्टय के नाम, शिव द्वारा प्रमथों का दिवोदास - पालित अयोध्या में प्रेषण ), हरिवंश २.११९.११५( बाणासुर द्वारा प्रमथगण को अनिरुद्ध का निग्रह करने का निर्देश, अनिरुद्ध का प्रमथगण से युद्ध ) pramatha



      प्रमद ब्रह्माण्ड २.३.६.१०( दनु व कश्यप के प्रधान पुत्रों में से एक ), भागवत ८.१.२४( तृतीय उत्तम मन्वन्तर में वसिष्ठ के सप्तर्षि पुत्रों में से एक ),



      प्रमदा गणेश २.२७.२२( दुर्धर्ष - पत्नी, कैवर्त से जारज पुत्र उत्पन्न करना ), ब्रह्म २.६४.४( ऋषियों के यज्ञ की रक्षा के लिए ब्रह्मा द्वारा मायामयी प्रमदा की उत्पत्ति, प्रमदा के लिए वैदिक ऋचा अजामेकां इत्यादि का विनियोग, शम्बर द्वारा प्रमदा का भक्षण ), भविष्य ३.३.३१.४५( मायावर्म नृप - पत्नी, कौरवांश १० पुत्रों के नाम ), वा.रामायण ५.४१.२०( अशोकवाटिका उपनाम वाले प्रमदा वन का हनुमान द्वारा विध्वंस ) pramadaa



      प्रमद्वरा देवीभागवत २.८.४७+ ( स्थूलकेश मुनि द्वारा विश्वावसु मुनि व मेनका से उत्पन्न कन्या प्रमद्वरा का पालन, सर्प द्वारा प्रमद्वरा का दंशन, रुरु पति द्वारा आधी आयु दान से प्रमद्वरा का जीवित होना ), कथासरित् २.६.७८( मेनका से उत्पन्न तथा स्थूलकेश मुनि द्वारा पालित कन्या प्रमद्वरा के रुरु से विवाह तथा सर्प द्वारा दंष्टन का वृत्तान्त ) pramadvaraa



      प्रमर भविष्य ३.१.६.४६( कान्यकुब्ज द्विज द्वारा वेदमन्त्र प्रभाव से प्राप्त ४ क्षत्रिय पुत्रों में से एक, अम्बावती पुरी में वास आदि ),



      प्रमर्दन ब्रह्माण्ड २.३.७.२३९( वाली के प्रधान वानर सेनापतियों में से एक ), २.३.७.३३५( पुण्डरीक के २ पुत्रों में से एक, रथन्तर साम से उत्पत्ति, स्वरूप ), वायु ६९.२१९/२.८.२१३( पुण्डरीक के २ पुत्रों में से एक, रथन्तर साम से उत्पत्ति, स्वरूप ), हरिवंश २.१०५.८१( शम्बर - सेनानी, प्रद्युम्न द्वारा वध ) pramardana



      प्रमा लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१०३( प्रमापति : कृष्ण व सुरसा - पुत्र ), ४.१०१.१०६( प्रमेश्वरी : कृष्ण व वितस्त्या - पुत्री ) pramaa



      प्रमाण भागवत ११.१९.१७( दृश्य प्रपञ्च को श्रुति आदि ४ प्रमाणों की कसौटी पर कस कर देखने का निर्देश ), कथासरित् ९.४.१७( प्रमाणसिद्धि आदि ४ पुरुषों द्वारा नरवाहनदत्त को श्वेत द्वीप ले जाना ) pramaana/ pramana



      प्रमाथ वा.रामायण ३.२३.३३( दूषण राक्षस के ४ सेनापतियों में से एक ), कथासरित् ८.४.७३( चक्रवाल नृप द्वारा युद्ध में प्रमाथ नृप के वध का उल्लेख ) pramaatha



      प्रमाथी ब्रह्माण्ड २.३.७.३४३( अञ्जनावती व अञ्जन हस्ती से अञ्जन साम द्वारा उत्पन्न २ पुत्रों में से एक ), ३.४.१९.७४( प्रमाथिनी : गीतिचक्ररथेन्द्र के पञ्चम पर्व में स्थित षोडश शक्तियों में से एक ), वा.रामायण ३.२६.१९( खर - सेनानी, राम द्वारा वध ), ६.२७.३०( सारण द्वारा रावण को राम के वानर - सेनानी प्रमाथी का परिचय ), ६.४१.४१( प्रमाथी द्वारा लङ्का के पश्चिम् द्वार पर हनुमान की सहायता ) pramaathee/ pramathi



      प्रमिति वायु ५८.७६( कल्कि अवतार के पूर्व जन्म में प्रमिति नाम का कथन ), ९८.११०/२.३६.११०( कल्कि अवतार के पूर्व जन्म में प्रमिति नाम का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर १.७४.१२( शूर - पुत्र, प्रमति, क्षत्रियों को जीतने वाले द्विज, विष्णु अवतार ), द्र. प्रमति



      प्रमिला गर्ग १०.१७?, ? pramilaa



      प्रमीड गर्ग २.४( मुर - पुत्र, वसिष्ठ की कामधेनु पर आसक्ति के कारण वत्सासुर बनना ), ब्रह्माण्ड ३.४.२७.३८( प्रमीलिका : विशुक्र असुर द्वारा निर्मित जयविघ्न यन्त्र में स्थित ८ शक्तियों में से एक ) prameeda/ pramida



      प्रमुच देवीभागवत ०.४.३३( रेवती नक्षत्र की कन्या का पालन करने वाले मुनि ), मार्कण्डेय ७५.२५/७२.२५( प्रमुच ऋषि द्वारा पतित रेवती नक्षत्र से उत्पन्न कन्या का पालन ), स्कन्द ७.२.१७.१५१( प्रमुञ्च मुनि द्वारा रेवती कन्या का पालन व दुर्दम राजा से विवाह, विवाहार्थ रेवती नक्षत्र की चन्द्र पथ में स्थापना ) pramucha



      प्रमेधा गर्ग ७.२९.२५( मनु - पुत्र प्रमेधा द्वारा गौ की हत्या के कारण कुष्ठ रोग की प्राप्ति, चन्द्रकान्ता नदी में स्नान से रोग से मुक्ति )



      प्रमोद गणेश २.५१.१२( गणेश द्वारा प्रमोद व आमोद गणों को काशीराज को लाने हेतु भेजना ), २.८५.२८( प्रमोद गणेश से पृष्ठत: रक्षा की प्रार्थना ), नारद १.६६.१३१( प्रमोद गणेश की शक्ति सिता का उल्लेख ), पद्म ३.२२.१०( प्रमोहिनी : शुकसंगीति गन्धर्व - कन्या, ब्राह्मण पुत्र पर आसक्ति, शाप - प्रतिशाप, लोमश द्वारा पिशाचत्व से मुक्ति ), ६.१२८.२०+ ( प्रमोदिनी : सुख संगीति गन्धर्व - कन्या, अग्निप मुनि के शाप से पिशाची बनना, लोमश द्वारा मुक्ति का उद्योग, अग्निप से विवाह ), ब्रह्माण्ड ३.४.२७.८१( भण्डासुर के सेनानियों से युद्ध करने वाले ६ विघ्ननायकों में से एक ), ३.४.४४.६८( वर्णों के ५१ गणेशों में से एक ), मत्स्य ३.११( प्रमोद की प्रजापति के कण्ठ से उत्पत्ति का उल्लेख ), १२.३३( दृढाश्व - पुत्र, हर्यश्व - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), १७९.२७( प्रमोदा : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक ), वायु ६८.१०/२.७.१०( प्रमोदाह : दनु व कश्यप के प्रधान पुत्रों में से एक ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.११८( कृष्ण व कुमुदा के पुत्र - पुत्रियों के रूप में प्रमोदकृत् व प्रमोदिनी का उल्लेख ) pramoda



      प्रमोहिनी पद्म ३.२२.१०( शुकसंगीति गन्धर्व - कन्या, ब्राह्मण पुत्र पर आसक्ति, शाप - प्रतिशाप, लोमश द्वारा पिशाचत्व से मुक्ति ),



      प्रम्लोचा अग्नि १८.२६( सोम द्वारा प्राचेतस गण को प्रम्लोचा व कण्डु मुनि से उत्पन्न कन्या मारिषा प्रदान करने का कथन ), गरुड १.९०.१( प्रम्लोचा अप्सरा द्वारा रुचि मुनि को पुष्कर व प्रम्लोचा से उत्पन्न कन्या मानिनी को भार्या रूप में स्वीकार करने के लिए कहना ), ब्रह्म १.६९.१८( प्रम्लोचा द्वारा कण्डु मुनि के तप में विघ्न, रमण, मारिषा कन्या की उत्पत्ति ), ब्रह्माण्ड १.२.२३.१०( प्रम्लोचा अप्सरा की सूर्य रथ में स्थिति ), भागवत ४.३०.१३( विष्णु द्वारा प्रचेताओं को कण्डु व प्रम्लोचा से उत्पन्न कन्या से विवाह का निर्देश ), ६.४.१६( वृक्षों द्वारा पालित कन्या के प्रम्लोचा - पुत्री होने का परोक्ष उल्लेख ), मार्कण्डेय ९८.१/९५.१( प्रम्लोचा द्वारा रुचि मुनि को प्रम्लोचा व पुष्कर से उत्पन्न कन्या मालिनी भार्या रूप में देना ), वराह १४६( प्रम्लोचा व देवदत्त के संयोग से रुरु कन्या का जन्म ), विष्णु १.१५( प्रम्लोचा का कण्डु मुनि से रमण, मारिषा पुत्री का जन्म ) pramlochaa

      प्रयाग अग्नि १११ ( प्रयाग का माहात्म्य ), कूर्म १.३६ ( मार्कण्डेय द्वारा युधिष्ठिर को प्रयाग के माहात्म्य का वर्णन- षष्टिसहस्र धनुओं द्वारा जाह्नवी की रक्षा आदि ), गर्ग २.१.१३ ( प्रयाग का तीर्थों का अधिपति बनना, मथुरा मण्डल की प्रयाग से श्रेष्ठता ), नारद १.६.९ ( गङ्गा - यमुना के सङ्गम स्थान प्रयाग का माहात्म्य – प्रयाग व काशी की तुलना, पुराणवक्ता में भक्ति प्रयागसम आदि ), २.६३ ( प्रयाग का माहात्म्य : मकर राशि में विभिन्न तीर्थों में स्नान की तुलना, केशवपन का निर्देश, विभिन्न अन्तर्वर्ती तीर्थों का माहात्म्य ), पद्म ३.३९.६६( प्रयाग का माहात्म्य, प्रयाग के अन्तर्वर्ती तीर्थ, प्रयाग की उपस्थ से उपमा ), ३.४१-४९ ( मार्कण्डेय द्वारा युधिष्ठिर को किल्बिष नाशार्थ प्रयाग के माहात्म्य का वर्णन ), ६.२२.२४( प्रयाग स्तोत्र ), ६.२४( प्रयाग माहात्म्य ), ६.९१.९( प्रयाग में ऋषियों द्वारा जल में विशीर्ण वेदों को एकत्र करके विष्णु को प्रस्तुत करना, ब्रह्मा द्वारा प्रयाग में अश्वमेध करना, प्रयाग की महिमा ), ६.१२७( मकर राशि में माघ मास में प्रयाग में स्नान का माहात्म्य, प्रयाग स्नान से वेश्या का काञ्चनमालिनी अप्सरा बनना, इन्द्र की अगम्या गमन पाप से मुक्ति, प्रयाग स्नान के पुण्य दान से राक्षस की मुक्ति ), ६.१२९.६३( माघ मास में प्रयाग में स्नान के माहात्म्य के संदर्भ में पिशाचों की मुक्ति का वृत्तान्त ), ६.१९५.३८(द्वादशात्मा प्रयागश्च कालः संवत्सरात्मकः), ६.२२०.४२( प्रयाग का माहात्म्य, मोहिनी वेश्या, हेमाङ्गी व वीरवर्मा का उद्धार ), ७.४( प्रयाग का माहात्म्य, प्रणिधि वैश्य का वृत्तान्त, प्रयाग में प्राणत्याग से श्वपच द्वारा प्रणिधि वैश्य का रूप धारण करना ), भविष्य २.२.८.१२९( प्रयाग में महामाघी पूर्णिमा के विशेष फल का उल्लेख ), मत्स्य १०४-११२ ( मार्कण्डेय द्वारा युधिष्ठिर को वर्णित प्रयाग का माहात्म्य, प्रयाग के अन्तर्वर्ती तीर्थ ), वराह १५२.३९( मथुरा में स्थित प्रयाग तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), वामन २२.१८( वेदियों में प्रयाग के ब्रह्मा की मध्यम वेदी होने का उल्लेख ), ५७.९९( प्रयाग द्वारा स्कन्द को गण प्रदान ), ९०.१४( प्रयाग तीर्थ में विष्णु का योगशायी नाम से वास ), ९०.२३( प्रयाग में विष्णु का वटेश्वर नाम ), वायु १०४.७६( प्रयाग की प्राण देश में स्थिति ? ), स्कन्द १.१.७.३१( प्रयाग में ललितेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख ), २.४.१३.३८( प्रयाग में ब्रह्मा द्वारा लुप्त वेदों की पुन: प्राप्ति ), ४.१.७.४५( शिवशर्मा की तीर्थयात्रा के प्रसंग में प्रयाग का वर्णन ), ४.१.२२.५८( प्रयाग की तीर्थों में श्रेष्ठता का वर्णन, निरुक्ति, प्रयाग की महिमा ), ४.२.८३.८९( प्रयाग तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.९७.१७( प्रयागेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ),५.२.५८(प्रयागेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, सावित्री दर्शन से नारद को वेदों की विस्मृति, प्रयाग में तप, महाकालस्थित प्रयागेश्वर लिङ्ग पूजा से वेदों का ज्ञान ), ५.२.७१( प्रयागेश्वर का माहात्म्य, शन्तनु - पत्नी गङ्गा द्वारा मनुष्य योनि से मुक्ति हेतु प्रयागेश्वर की पूजा ), ५.३.१९८.६४( प्रयाग में देवी की ललिता नाम से उपस्थिति ), ७.१.२९८( गुप्त प्रयाग का माहात्म्य, ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र कुण्डों की उपस्थिति ), वा.रामायण २.५४-५५( राम का भरद्वाज आश्रम में आगमन, भरद्वाज द्वारा राम को चित्रकूट में वास का परामर्श ), २.९०( भरद्वाज द्वारा देवों के आवाहन द्वारा भरत का दिव्य सत्कार, राम वन गमन प्रसंग ), २.९१(भरद्वाज द्वारा अग्निहोत्र विद्या से भरत-सेना का सत्कार), ६.१२४( रावण वध के पश्चात् राम का भरद्वाज के आश्रम में आगमन, भरद्वाज द्वारा राम को वर, अयोध्या के मार्ग के वृक्षों का फलयुक्त होना ), लक्ष्मीनारायण १.४२१( भरत के प्रयाग आगमन पर भरद्वाज - पत्नी त्रिवेणी द्वारा आतिथ्य हेतु नवीन स्वर्ग की सृष्टि का वर्णन ), २.३०.८१( मध्यम ब्रह्मवेदी के रूप में प्रयाग का उल्लेख ), ३.५१.३२(prayaaga/ prayaga

      Comments on Prayaaga

      Vedic contexts on Prayaaga/Prayaaja



      प्रयाज ब्रह्माण्ड ३.४.१.९९( देवों के गणों में से एक ) prayaaja



      प्रलम्ब गरुड १.८७.१२( स्वशान्ति इन्द्र के शत्रु प्रलम्ब का मत्स्य रूप धारी विष्णु द्वारा वध ), गर्ग ४.१०.५( पुलिन्दों व विन्ध्य देश के राजा के युद्ध में प्रलम्ब दैत्य द्वारा पुलिन्दों की सहायता करने का वर्णन ), ४.२०.२४( भाण्डीर वन में गोप रूप प्रलम्ब का बलराम द्वारा वध, पूर्व जन्म में हू हू गन्धर्व - पुत्र विजय ), देवीभागवत ४.२२.४४( लम्ब का अंश ), ब्रह्म १.७८.२२( प्रलम्ब द्वारा बलराम के हरण तथा बलराम द्वारा प्रलम्ब के हनन का वृत्तान्त ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१६.१५( कृष्ण द्वारा प्रलम्ब का वध ), भविष्य ३.४.१८.१८( संज्ञा विवाह प्रसंग में प्रलम्ब का पूषा से युद्ध ), भागवत १०.१८.१७( बलराम द्वारा प्रलम्ब का उद्धार ), मत्स्य २००.११( प्रलम्बायन संज्ञक ऋषियों के गण का ऋषियों के प्रवरों के अन्तर्गत उल्लेख ), लिङ्ग १.२४.५४(११वें द्वापर में उग्र - शिष्य ), विष्णु ५.९.९( प्रलम्ब दैत्य द्वारा गोप रूप धारण, बलराम द्वारा वध ), विष्णुधर्मोत्तर १.१७८.६( उत्तम मन्वन्तर में शक्र पीडक प्रलम्ब का मत्स्य रूपी विष्णु द्वारा वध ), शिव २.४.११.२०( कुमार द्वारा प्रलम्ब का वध ), ३.५.९( प्रलम्बक : ११वें द्वापर में कलि नामक शिव अवतार के ४ पुत्रों में से एक ), स्कन्द १.२.३६.१२( स्कन्द द्वारा शक्ति से प्रलम्ब का वध ), हरिवंश १.५४.७४(लम्ब नामक दैत्य का प्रलम्ब नाम से उत्पन्न होकर भाण्डीर वट पर निवास), २.१४.१४( भाण्डीर वट पर प्रलम्ब द्वारा गोप वेश धारण कर बलराम का हरण, बलराम द्वारा वध ), लक्ष्मीनारायण ३.१६४.१६( तृतीय उत्तम मन्वन्तर में प्रलम्ब दानव के उपद्रव व मत्स्य अवतार द्वारा प्रलम्ब के वध का कथन ), कथासरित् ८.४.१२( सुनीथ के सेनानियों में से एक ), ८.४.६०( अट्टहास द्वारा प्रलम्ब का वध ) pralamba



      प्रलम्बबाहु कथासरित् ९.२.६९( प्रलम्बभुज विद्याधर द्वारा स्वपुत्र स्थूलभुज को शाप ), ९.३.८१(प्रलम्बबाहु नामक वीर द्विज द्वारा नरवाहनदत्त से सेवावृत्ति का अनुरोध ), ९.४.४( प्रलम्बबाहु द्वारा नरवाहनदत्त की सहायता करने का उल्लेख )



      प्रलय अग्नि ३६८( नित्य, नैमित्तिक व प्राकृत प्रलय का वर्णन ), ३६९( आत्यन्तिक प्रलय का वर्णन ), कूर्म २.४५.५( कूर्म - प्रोक्त ४ प्रकार की प्रलयों का वर्णन ), गरुड १.२१६( नैमित्तिक प्रलय का वर्णन ), पद्म १.४०( प्रलय के लक्षण, मार्कण्डेय द्वारा बालमुकुन्द के दर्शन ), ब्रह्म १.४९+ ( मार्कण्डेय द्वारा द्रष्ट प्रलय का वर्णन ), १.१२४+ ( प्रलय का स्वरूप, नैमित्तिक व प्राकृत प्रलय ), ब्रह्माण्ड १.१.४.३( गुण साम्य होने पर लय तथा गुणाधिक्य पर सृष्टि होने का कथन ), ३.४.२( प्रलय में प्राणि मात्र की स्थिति ), भागवत ११.२४.२१( सांख्य की दृष्टि से तन्मात्रा आदि की प्रलय ), १२.४( ४ प्रकार की प्रलयों का वर्णन तथा उनके आध्यात्मिक अर्थ ), १२.७.१७( प्रलय के नैमित्तिक आदि ४ भेद ), मत्स्य २.३( चाक्षुष मन्वन्तर के अन्त में प्रलय का वर्णन ), १६५.२०+ ( कलियुग के अन्त में प्रलय का वर्णन ), १६६( महाप्रलय का वर्णन ), वायु १००.१३/२.३८.१३६( सूर्य रश्मियों द्वारा प्रलय का वर्णन ), १०१.८/२.३९.८( प्रलय कोप से सुरक्षित लोकों का वर्णन ), विष्णु ६.३.१( नैमित्तिक आदि प्रलय के ३ प्रकारों का निरूपण ), ६.४( नैमित्तिक प्रलय का अर्थ, प्राकृत प्रलय का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर १.७७( मन, बुद्धि आदि द्वारा प्रलय ), शिव २.१.६( नारद द्वारा प्रलय का दर्शन ), स्कन्द ५.३.१४( कल्पानुकथन में कालरात्रिकृत जगत्संहरण का वर्णन ), हरिवंश ३.९( नारायण के एकार्णव में शयन पर अग्नि द्वारा इन्द्रियों व उनके विषयों का कर्षण शान्त करने का वर्णन ), महाभारत शान्ति २३३( प्रलय काल में भूमि, आप: आदि तत्त्वों के गन्ध आदि गुणों के नष्ट होने का वर्णन ), ३३९.२९( पृथिवी, आप:, ज्योति आदि की क्रमिक प्रलय का कथन ) pralaya



      प्रवर ब्रह्म २.३६( प्रवरा नदी का अमृता उपनाम, राहु की देह से नि:सृत रस से प्रवरा की उत्पत्ति ), भविष्य १.१२४.११( प्रवर शब्द की निरुक्ति, देवों का सूर्य की रक्षा हेतु सूर्य के प्रावरण बनने का वृत्तान्त ), २.२.९.१( विभिन्न ऋषियों के प्रवरों के नाम ), मत्स्य १९६.१०( मरीचि - तनया सुरूपा से उत्पन्न ऋषियों के प्रवरों का कथन ), हरिवंश २.७३.३०( पारिजात हरण प्रसंग में इन्द्र - सखा प्रवर का सात्यकि से युद्ध, प्रवर चरित्र का कथन ), २.७६.३२( कृष्ण द्वारा दानवों के निग्रह में प्रवर को साथ रखने का उल्लेख ; प्रवर के मनुष्य देव होने का उल्लेख ), २.८५.१६( प्रवर का निकुम्भ से युद्ध ), २.९६.५४( प्रवर द्वारा साम्ब के ऐरावत का संचालन ), लक्ष्मीनारायण १.४४०.१४( भारद्वाज, वत्स, कौशिक आदि के प्रवरों के नाम ) pravara



      प्रवर्ग्य ब्रह्माण्ड १.१.५.१८( यज्ञवराह के प्रवर्ग्य आवर्तभूषा होने का उल्लेख ), भागवत ५.३.२( नाभि के यज्ञ में प्रवर्ग्यों में भगवान् का प्राकट्य), मत्स्य ५१.३९( अर्क अग्नि के ८ पुत्रों में से एक ), स्कन्द ७.१.३५३.२३( यज्ञ वराह के संदर्भ में प्रवर्ग्य के आवर्तभूषण होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.२४५.२८( सोमयाग के द्वितीय दिवस के कृत्यों के अन्तर्गत प्रवर्ग्य कृत्य विधि तथा प्रवर्ग्य कृत्य का हेतु ) pravargya



      प्रवर्षण गर्ग ६.२( कृष्ण व बलराम द्वारा प्रवर्षण गिरि में अदृश्य होने पर जरासन्ध द्वारा गिरि को जलाना ), भागवत १०.५२.१०( जरासन्ध द्वारा प्रवर्षण पर्वत को जलाना ) pravarshana



      प्रवह गरुड २.२.२४(तुलसी, ब्राह्मण, गौ, विष्णु, एकादशी का पांच प्रवहों के रूप में कथन), ३.५.३५(?), ३.८.१२(प्रवाही द्वारा हरि स्तुति), ३.१३.२८(ब्रह्मा द्वारा कनिष्ठा अङ्गुलि से प्रवह व प्रवाही की सृष्टि), ३.२२.२६(प्रवाहा के २० लक्षणों से युक्त होने का उल्लेख), ३.२८.५७(प्रवह वायु की निरुक्ति, कोणाधिप), ब्रह्माण्ड १.२.२२.३९( द्वितीय प्रवह वायु के आधीन मेघों के नाम व गुणों का कथन ), २.३.५.८३( मरुतों के ७ स्कन्धों में द्वितीय स्कन्ध प्रवह की मेघों से लेकर सूर्य तक स्थिति का उल्लेख ), मत्स्य १६३.३२( ७ मरुत स्कन्धों में से एक, हिरण्यकशिपु के क्रोध से क्षुब्ध होना ), वायु ६७.११५/२.६.११५( मरुतों के ७ स्कन्धों में द्वितीय स्कन्ध प्रवह की मेघों से लेकर सूर्य तक स्थिति का उल्लेख ) pravaha



      प्रवहण ब्रह्माण्ड १.२.१२.२०( विभु प्रवाहण : विहरणीय संज्ञक धिष्ण्य अग्नियों में से एक ), मत्स्य ९.१४( तृतीय औत्तम मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), कथासरित् ८.५.२५( प्रवहण के दुष्टदमन से युद्ध का उल्लेख ), ८.५.१११( प्रवहण द्वारा ३ विद्याधरों का वध, सुरोह व विरोह द्वारा प्रवहण का वध ) pravahana



      प्रवाल गणेश १.७३.२१( कार्तवीर्य द्वारा हस्त - पाद प्राप्ति पर गणेश की प्रवाल - निर्मित मूर्ति की स्थापना ), १.९०.५६( प्रवाल नगर में गणेश की धरणीधर नाम से ख्याति का उल्लेख ), पद्म ६.६.२६( बल असुर की जिह्वा से प्रवाल की उत्पत्ति का उल्लेख ), ६.६.२९( बल असुर के मांस से प्रवाल की उत्पत्ति का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त १.९.३२( पृथिवी द्वारा उपेन्द्र के वीर्य का प्रवाल समूह में त्याग करने से मङ्गल ग्रह की उत्पत्ति का कथन ), शिव २.१.१२.३४( नागों द्वारा प्रवालमय लिङ्ग की पूजा ), स्कन्द १.३.२.१८.४६( शोणगिरि के प्रवालचल नामक पाद में गौतम द्वारा तप का उल्लेख ) pravaala



      प्रवास महाभारत ३१३.६३( प्रवास में मित्र का प्रश्न : सार्थ के प्रवासी मित्र होने का उल्लेख, युधिष्ठिर - यक्ष संवाद )



      प्रवाह नारद २.६५.११७(चतुष्प्रवाह तीर्थ का माहात्म्य), वायु ६८.३७/२.७.३७( प्रवाही व कश्यप से उत्पन्न देवगन्धर्वों के नाम ), स्कन्द १.२.६२.३५( निर्झरों में प्रवाह नामक क्षेत्रपाल की स्थिति का उल्लेख ) pravaaha



      प्रवाहक शिव ३.५.३८( २५वें द्वापर में दण्डी - मुण्डीश्वर शिव के ४ शिष्यों में से एक )



      प्रवीर देवीभागवत ७.२३.८( हरिश्चन्द्र का क्रय करने वाले चाण्डाल का नाम ), ब्रह्माण्ड २.३.७४.१८४( विन्ध्यशक्ति - पुत्र प्रवीर द्वारा ६० वर्ष राज्य करने व वाजपेय आदि यज्ञ करने का कथन ), भागवत ९.२०.२( प्रचिन्वान् - पुत्र, नमस्यु - पिता, पूरु वंश ), १२.१.३३( प्रवीरक : भविष्य के राजाओं में से एक ), मत्स्य ४९.१०( उपदानवी व इलिना - पुत्र के ४ पुत्रों में से एक ), वायु ९९.१३३/ २.३७.१२९( त्रसु के पुत्रों में से एक, दुष्यन्त - भ्राता ), ९९.३७१/२.३७.३६५( विन्ध्यशक्ति - पुत्र प्रवीर द्वारा ६० वर्ष राज्य करने व वाजपेय आदि यज्ञ करने का कथन ), विष्णु ४.१९.१( प्रचिन्वान् - पुत्र, मनस्यु - पिता, पूरु वंश ), ४.२४.५६( भविष्य के यवन राजाओं में से एक ) praveera/ pravira



      प्रवृत्ति - निवृत्ति ब्रह्माण्ड ३.४.८.२७( प्रवृत्ति मार्ग का अनुसरण करके ही मुक्ति पाने का उपाय ), भविष्य २.१.२८?, ३.४.७.२०( मन की २ भार्याओं प्रवृत्ति - निवृत्ति में से प्रवृत्ति के रात्रिरूपा व निवृत्ति के दिनरूपा होने का उल्लेख ), वराह २.४५(सनकादि के निवृत्ति मार्ग तथा मरीच्यादि के प्रवृत्ति मार्ग में गमन का कथन), शिव १.१७.१६, महाभारत शान्ति १९६.१२( सत्य आदि प्रवर्तक व जप आदि निवर्तक यज्ञों का कथन ), २१७.२( नारायण ऋषि द्वारा प्रवृत्ति मार्ग के उपदेश का कथन ), २३७.३( प्रज्ञा द्वारा धर्म के प्रवृत्ति लक्षणात्मक या निवृत्ति लक्षणात्मक होने का निश्चय ), ३४०.५०( प्रवृत्तिपरक कर्म के रूप में यज्ञ का निरूपण ), ३४०.७०( प्रवृत्तिपरक ऋषियों के रूप में मरीचि आदि ७ नाम ), ३४०.७२( निवृत्तिपरक ऋषियों के रूप में सन: आदि ७ ऋषियों के नाम ), योगवासिष्ठ ४.११( संसार प्रवृत्ति दर्शन नामक अध्याय में संकल्प की शक्ति का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण ३.३७.६९( ब्रह्मा के ५२वें वत्सर के संदर्भ में प्रवृत्ति व निवृत्ति परक कर्मों के फलों का विवेचन ), द्र. निवृत्ति – प्रवृत्ति pravritti - nivritti



      प्रवृद्ध वा.रामायण १.७०.३९( रघु - पुत्र, कल्माषपाद उपनाम, शङ्खण - पिता ) pravriddha



      प्रशस्त कथासरित् ८.४.८३( ४ रथियों में से एक, कालकम्पन द्वारा वध )



      प्रशास्ता महाभारत आश्वमेधिक २५.१५( ऋत के प्रशास्ता ऋत्विज का शस्त्र होने का उल्लेख )prashaastaa



      प्रश्न योगवासिष्ठ ३.११? ( प्रश्नकर्त्ता के गुण ), ३.७९+ ( राक्षसी द्वारा राजा व मन्त्री से प्रश्न पूछना, मन्त्री व राजा द्वारा उत्तर ), ६.२.२०७( महाप्रश्न नामक अध्याय के अन्तर्गत जगत की संकल्परूपता का वर्णन ) prashna



      प्रसङ्ग कथासरित् ९.५.१४( सेवावृत्ति प्राप्त न होने पर प्रसङ्ग सेवक द्वारा राजा को अवसर अनुकूल वचन )



      प्रसन्न नारद १.५०.४४( गान के १० गुणों में से एक ), स्कन्द ४.२.९७.३१( प्रसन्न कुण्ड का संक्षिप्त माहात्म्य ),



      प्रसव मत्स्य २३५( विकृत प्रसव व शान्ति का कथन ), वायु ६५.८७/२.४.८७( भृगु/काव्य व देवी के भृगु देव संज्ञक १२ पुत्रों में से एक ), महाभारत ३१३.५५( प्रसवोत्पादन करने वालों के लिए पुत्र के श्रेष्ठ होने का उल्लेख ; युधिष्ठिर - यक्ष संवाद ) prasava



      प्रसविष्णु लक्ष्मीनारायण ३.२५.२९( प्रसविष्णु द्वारा चिक्लीत आदि ५ योगियों से लक्ष्मी को भिक्षा में प्राप्त करना, लक्ष्मी से रमण हेतु काम, रति आदि को प्राप्त करना, लक्ष्मी द्वारा कामादि को भस्म करना ),



      प्रसह्य लक्ष्मीनारायण १.३१९.८( ब्रह्मा व जोष्ट्री सेविका से उत्पन्न प्रसह्य पुत्री के दानवों द्वारा ग्रहण का उल्लेख )



      प्रसाद भागवत ४.१.५०( धर्म व मैत्री - पुत्र ), वामन ५७.८३( सुप्रसाद : सुवेणु द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण ), वायु ११.४( प्राणायाम के ४ प्रयोजनों में से एक ), ११.१०( प्रसाद का तत्त्वार्थ ), स्कन्द २.२.३८.३( जगन्नाथ से प्राप्त नैवेद्य/प्रसाद को ग्रहण करने का महत्त्व, प्रसाद ग्रहण न करने पर द्विज के व्याधिग्रस्त होने का दृष्टान्त ), लक्ष्मीनारायण १.५१६.५९( लिङ्ग से प्राप्त प्रसाद के अग्राह्य होने तथा प्रतिमा से प्राप्त प्रसाद के ग्राह्य होने का वर्णन ) prasaada/ prasad



      प्रसूत वायु ६२.६०/२.१.६०( प्रसूत गण के देवों के नाम ), विष्णु ३.१.२७( ६ठे मन्वन्तर के देवों के ५? गणों में से एक ),



      प्रसूति गरुड ३.७.४१(प्रसूति द्वारा हरि स्तुति), ३.७.४३(भृगु-भार्या), देवीभागवत ८.३.११( स्वायंभुव मनु की तीन कन्याओं में से एक, दक्ष - पत्नी ), ब्रह्माण्ड १.२.९.४२( स्वायम्भुव मनु - कन्या, दक्ष - पत्नी ), २.३.७.३५४( दिग्नागों व प्रसूति कन्या से विभिन्न गजों की उत्पत्ति का उल्लेख ), भागवत ३.१२.५५( मनु व शतरूपा की ३ कन्याओं में से एक, दक्ष - पत्नी ), ४.१.१( वही), ४.१.११( स्वायम्भुव मनु की कन्या, दक्ष - पत्नी ), ४.१.४७( प्रसूति व दक्ष से उत्पन्न १६ कन्याओं का वृत्तान्त ), विष्णु १.७.८( ब्रह्मा द्वारा सृष्ट कन्याओं में से एक ), १.७.१८( स्वायम्भुव मनु व शतरूपा की सन्तानों में से एक, दक्ष - पत्नी, दक्ष व प्रसूति की २४ कन्याओं का वृत्तान्त ) prasooti/prasuuti/ prasuti



      प्रसेन देवीभागवत ०.२.११( स्यमन्तक मणि के प्रसंग में सिंह द्वारा मणि धारण करने वाले सत्राजित् - भ्राता प्रसेन की हत्या का कथन ), भागवत ९.२४.१३( निम्न के २ पुत्रों में से एक, वृष्णि वंश ), १०.५६.१३( प्रसेन द्वारा मणि धारण करके मृगया को जाने व सिंह द्वारा प्रसेन की हत्या का वृत्तान्त ), मत्स्य ४५.३( निघ्न - पुत्र, स्यमन्तक मणि धारण करना, ऋक्ष द्वारा वध ), वायु ९६.२०/२.३४.२०( सिंह द्वारा प्रसेन के वध का आख्यान ), विष्णु ४.१३.२९(प्रसेन द्वारा स्यमन्तक मणि धारण करने से मृत्यु को प्राप्त होने का कारण ), हरिवंश १.३९.१०( स्यमन्तक मणि के संदर्भ में सिंह द्वारा प्रसेन को मारने का उल्लेख मात्र) prasena



      प्रसेनजित् देवीभागवत ७.९.३९( कृशाश्व - पुत्र, यौवनाश्व - पिता, ककुत्स्थ वंश ), भागवत ९.१२.८( विश्वसाह्व - पुत्र, तक्षक - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), ९.१२.१४( लाङ्गल - पुत्र, क्षुद्रक - पिता, भविष्य के नृपों में से एक ), वायु ८८.६४/ २.२६.६४( कृशाश्व व हैमवती - पुत्र, युवनाश्व - पिता ), ९९.२८९/ २.३७.२८५( राहुल - पुत्र, क्षुद्रक - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), लक्ष्मीनारायण २.२४४.८७( प्रसेनजित् की विशेषता में द्विजों को गौ दान का उल्लेख ), कथासरित् ६.४.२३( पिता द्वारा कलिङ्गसेना का विवाह श्रावस्ती के नृप प्रसेनजित् से करने का निश्चय, कलिङ्गसेना की वत्सराज उदयन पर आसक्ति ), ६.५.४०( कलिङ्गसेना द्वारा वृद्ध प्रसेनजित् का दर्शन ), ६.७.१३३( राजा प्रसेनजित् द्वारा द्विज के अपहृत धन को युक्तिपूर्वक पुन: प्राप्त करने का वृत्तान्त ), १६.२.८९( अग्नि के पुत्र चण्डालकुमार द्वारा राजा प्रसेनजित् की सुता कुरङ्गी को भार्या रूप में प्राप्त करने का वृत्तान्त ) prasenajit



      प्रस्कण्व भागवत ९.२०.७( मेधातिथि - पुत्र, कण्व - पौत्र )



      प्रस्तार अग्नि १०७.१५( उद्गीथ - पुत्र, विभु - पिता, सुमति? - वंश ), हरिवंश ३.५४.१६(प्रस्तार की गदा से उपमा)



      प्रस्ताव अग्नि ३१२.६( मन्त्रों में प्रस्ताव के भेदन से सिद्धि का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.१४.६७(प्रस्तावि : उद्गीथ - पुत्र, विभु - पिता, भरत/नाभि वंश ), भागवत ५.१५.६( उद्गीथ व देवकुल्या - पुत्र, नियुत्सा - पति, विभु - पिता, भरत वंश ), वायु ३३.५६( प्रतावि : उद्गीथ - पुत्र, विभु - पिता ) prastaava/ prastava



      प्रस्तोता मत्स्य १६७.८( यज्ञ पुरुष के ब्रह्म से प्रस्तोता ऋत्विज की उत्पत्ति का उल्लेख ), वराह २१.१६( दक्ष यज्ञ में क्रतु के प्रस्तोता बनने का उल्लेख ), द्र. वंश भरत prastotaa



      प्रस्थल ब्रह्माण्ड १.२.१६.५०( उत्तर के देशों में से एक ), १.२.३६.४९( तामस मनु के पुत्रों में से एक ), वायु ४५.११९( उत्तर के देशों में से एक )



      प्रस्रवण स्कन्द ५.३.१५९.२१( जल प्रस्रवण के भेदन से मत्स्य योनि प्राप्ति का उल्लेख ), वा.रामायण ४.२७( प्रस्रवण पर्वत पर किष्किन्धा गिरि पर राम का आगमन, शोभा वर्णन ), ५.३७.२३( हनुमान द्वारा सीता को प्रस्रवण गिरि पर स्थित राम के पास पंहुचाने का प्रस्ताव, सीता की अस्वीकृति ),



      प्रस्राव स्कन्द ५.३.८३.१०८( गौ के प्रस्राव में गङ्गा की स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.१५.२९( गौ के प्रस्राव में जाह्नवी नदी की स्थिति का उल्लेख ), ३.२५.८६( प्रस्रव/प्रसविष्णु असुर द्वारा विष्णु से भिक्षा रूप में लक्ष्मी की प्राप्ति, लक्ष्मी को स्पर्श करने का प्रयत्न करने पर भस्म होना, लक्ष्मी की कृपा से पुन: जीवित होना ) prasraava



      प्रहर भागवत ३.११.८( काल के अवयव के रूप में प्रहर का मान ), १०.६१.१७( प्रहरण : कृष्ण व भद्रा के पुत्रों में से एक ) prahara







      प्रस्वापन विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१( संगीत में १४ षड्ज ग्रामिकों में से एक ),



      प्रहसन स्कन्द ४.२.९७.१६७( प्रहसितेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ) prahasana



      प्रहस्त वायु ७०.४९( पुष्पोत्कटा - पुत्र ), विष्णुधर्मोत्तर १.२२०.३१( रावण द्वारा कुबेर को प्रेषित दूत ), स्कन्द ७.१.१२३.५( प्रभास क्षेत्र में रावण के पुष्पक विमान के स्तब्ध होने पर रावण द्वारा कारण जानने हेतु प्रहस्त का प्रेषण ), वा.रामायण ५.४४( हनुमान द्वारा लङ्का में प्रहस्त - पुत्र जम्बुमाली का वध ), ५.५०( रावण के निर्देश पर मन्त्री प्रहस्त द्वारा हनुमान से लङ्का में आने का कारण पूछना ), ६.१४( प्रहस्त द्वारा रावण के समक्ष आत्मश्लाघा, विभीषण द्वारा भर्त्सना ), ६.१९.११( रावण - सेनानी, कुबेर - सेनापति मणिभद्र को पराजित करना ), ६.३१.२४( मायामय राम का शिर काटने वाले रावण - सहायक ), ६.३६.१७( लङ्का के पूर्व द्वार का रक्षक ), ६.५७( रावण - सेनानी, नील द्वारा वध ), ७.५.४०( सुमाली व केतुमती - पुत्र ), ७.११.३०( रावण - दूत के रूप में कुबेर को लङ्का त्याग का आदेश ), लक्ष्मीनारायण २.८६.४१( विश्रवा व पुष्पोत्कटा के पुत्रों में से एक ), कथासरित् ८.१.५१( सूर्यप्रभ के मन्त्री प्रहस्त का उल्लेख ), ८.१.५५, ८.२.३७६( शम्बर असुर के प्रहस्त रूप में जन्म लेने का उल्लेख ), ८.३.१३४( प्रहस्त के दौत्य गुणों की प्रशंसा, सूर्यप्रभ द्वारा प्रहस्त को दूत बनाकर श्रुतशर्मा के पास भेजना ), ८.५.२७( प्रहस्त के दोहन से युद्ध का उल्लेख ), ८.७.१७( प्रहस्त द्वारा युद्ध में ब्रह्मगुप्त के वध का प्रयास, ब्रह्मा द्वारा रोकना ) prahasta



      प्रहास वा.रामायण ७.२३.५०(वरुण-मन्त्री)



      प्रहृष्टरोमा कथासरित् ८.५.२५( प्रहृष्टरोमा के रोषावरोहण के साथ युद्ध का उल्लेख )

      प्रहेति ब्रह्माण्ड १.२.१८.१६( प्रहेति - पुत्र ब्रह्मापेत राक्षस की वैभ्राज वन में स्थिति का उल्लेख ), १.२.२३.४( हेति व प्रहेति यातुधानों की मधु - माधव मासों में सूर्य रथ पर स्थिति का उल्लेख ), २.३.७.८९( यातुधान के १० पुत्रों में से एक, पुलोमा - पिता ), भागवत ८.१०.२८( देवासुर सङ्ग्राम में प्रहेति के मित्र से युद्ध का उल्लेख ), १२.११.३४( माधव/वैशाख मास में प्रहेति की सूर्य रथ पर स्थिति का उल्लेख ), वराह १०.६०( स्वायम्भुव मनु पुत्र - द्वय हेति व प्रहेति द्वारा देवों को त्रास, हेति व प्रहेति द्वारा स्वकन्याएं राजा दुर्जय को प्रदान करना ), वायु ४७.१६( प्रहेतृ - तनय ब्रह्मपात राक्षस के वैभ्राज वन में वास का उल्लेख ), ५२.५( हेति व प्रहेति यातुधानों की मधु - माधव मासों में सूर्य रथ पर स्थिति का उल्लेख ), ६९.१२७/२.८.१२२( यातुधान के १० राक्षस पुत्रों में से एक ), विष्णु २.१०.५( माधव/वैशाख मास में प्रहेति की सूर्य के रथ पर स्थिति का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.१९९( प्रहेति - पुत्र पुलोमा का वृत्तान्त ), वा.रामायण ७.४.१५( हेति - भ्राता सदाचारी प्रहेति द्वारा तप ) praheti



      प्रहेलिका विष्णुधर्मोत्तर ३.१६( प्रहेलिका के लक्षण/भेद )



      प्रह्लाद कूर्म १.१६( प्रह्लाद - नृसिंह - हिरण्यकशिपु की कथा का रूप भेद ), गर्ग १.५.२६( प्रह्लाद के सात्यकि रूप में अवतरण का उल्लेख ), देवीभागवत ४.८.८( पृथिवी पर स्थित तीर्थों के सम्बन्ध में प्रह्लाद व च्यवन का वार्तालाप ), ४.९( च्यवन की प्रेरणा से प्रह्लाद का पाताल से नैमिषारण्य गमन, नर - नारायण से युद्ध ), ४.२२.४२( प्रह्लाद का शल्य रूप में अवतरण ), ८.९( प्रह्लाद द्वारा हरिवर्ष में नृसिंह की आराधना ), पद्म २.५( हिरण्यकशिपु व कमला - पुत्र, वासुदेव से युद्ध में मृत्यु, पुन: हिरण्यकशिपु- पुत्र प्रह्लाद बनना ), ६.१७४( नृसिंह द्वारा प्रह्लाद के पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन, पूर्व जन्म में वसुदेव ), ६.२३८( हिरण्यकशिपु व कल्याणी - पुत्र, हिरण्यकशिपु की यातनाओं से प्रह्लाद की रक्षा होना ), ब्रह्म १.२८.३७(दशमी तस्य या मूर्तिरंशुमानिति विश्रुता। वायौ प्रतिष्ठिता सा तु प्रह्लादयति वै प्रजाः॥), ब्रह्माण्ड २.३.७.३६( कद्रू व कश्यप के प्रधान नाग पुत्रों में से एक ), भागवत ४.१८.१६( दैत्यों द्वारा पृथिवी दोहन में प्रह्लाद के वत्स बनने का उल्लेख ), ६.१८.१३( हिरण्यकशिपु व कयाधु के ४ पुत्रों में से एक ), ७.४( प्रह्लाद के भक्तिपूर्ण गुणों का वर्णन ), ७.५( हिरण्यकशिपु द्वारा प्रह्लाद के वध का प्रयत्न ), ७.६+ ( प्रह्लाद द्वारा सहपाठियों को ज्ञान का उपदेश ), ७.९( प्रह्लाद द्वारा नृसिंह की स्तुति ), ७.१३( प्रह्लाद द्वारा दत्तात्रेय से यति धर्म विषयक उपदेश की प्राप्ति ), मत्स्य ६.८( हिरण्यकशिपु के ४ पुत्रों में एक प्रह्लाद के वंश का कथन ), वामन ७( प्रह्लाद का च्यवन से संवाद, नर - नारायण से संवाद व युद्ध ), २९( प्रह्लाद द्वारा बलि को विष्णु की महिमा का कथन ), ६६( प्रह्लाद द्वारा अन्धक को पार्वती प्राप्ति के यत्न से विरत करने हेतु अरजा व दण्डक आख्यान सुनाना, अन्धक द्वारा प्रह्लाद के उपदेश की उपेक्षा ), ७४( प्रह्लाद द्वारा बलि को उपदेश ), ७८( प्रह्लाद की तीर्थ यात्रा ), वायु ६७.७०/२.६.७०( हिरण्यकशिपु के ४ पुत्रों में से एक ), विष्णु १.१५.१४२( प्रह्लाद के चरित्र की महिमा ), १.१७( प्रह्लाद के चरित्र का वर्णन ), १.१८.३३( पुरोहित गण द्वारा उत्पन्न कृत्या से पुरोहित गण की रक्षा के लिए प्रह्लाद द्वारा विष्णु की स्तुति ), विष्णुधर्मोत्तर १.४३.२( प्रह्लाद की निश्चल पर्वत से उपमा ), शिव २.५.४३.३०( प्रह्लाद द्वारा स्वपिता को नृसिंह की शरण में जाने का परामर्श, हिरण्यकशिपु द्वारा परामर्श की उपेक्षा ), ५.२.६( हिरण्यकशिपु- पुत्र नन्दन/प्रह्लाद? के इन्द्र से युद्ध का कथन ), स्कन्द ४.२.८४.१५( प्रह्लाद तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ६.२२८.१८( हिरण्यकशिपु- पुत्र, अन्धक - भ्राता, राजा बनने की अनिच्छा पर अन्धक को राज्य की प्राप्ति ), ७.१.११.६९( सूर्य - पत्नी संज्ञा के प्रह्लाद वंशी होने का कथन ), ७.१.२०.९( बलि के राज्य करने के काल तक देवों द्वारा प्रह्लाद को निगृहीत करने का उल्लेख ), ७.२.१८.८८( प्रह्लाद का स्व गुरु से हरिभक्ति विषयक संवाद ), ७.४.१+ ( प्रह्लाद द्वारा ऋषियों को कलियुग में भगवान की स्थिति विषयक प्रश्न का उत्तर देना, द्वारका माहात्म्य का वर्णन ), हरिवंश ३.४३( प्रह्लाद द्वारा नृसिंह विग्रह में त्रिलोकी के दर्शन ), ३.५०.१३( त्रिलोकी विजय के लिए उद्धत बलि के सेनानी के रूप में तालध्वज रथ वाले प्रह्लाद के चरित्र की प्रशंसा ), ३.५३.२२( प्रह्लाद का काल से युद्ध ), ३.५९.२४( प्रह्लाद के काल से युद्ध का वर्णन ), योगवासिष्ठ ५.३१.३८( प्रह्लाद द्वारा नारायण की विभूतियों का स्वदेह में न्यास ), ५.३२.१( प्रह्लाद द्वारा विष्णु की मानसी पूजा का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.१३७+ ( प्रह्लाद चरित्र : हिरण्यकशिपु द्वारा मारण का उपाय ), २.२२( प्रह्लाद का तीर्थों के दर्शन हेतु च्यवन के साथ रसातल से भूमि पर आगमन, बदरी क्षेत्र में नर - नारायण के दर्शन व उनसे युद्ध, अन्त में प्रह्लाद द्वारा भक्ति से नर - नारायण को जीतने का वृत्तान्त ), २.१५७.२०( देवमूर्ति में न्यासों के संदर्भ में दक्षस्तन में प्रह्लाद व वामस्तन में विश्वकर्मा का न्यास ), २.२०९.८६( शील के महत्त्व के संदर्भ में प्रह्लाद द्वारा बृहस्पति को शील दान पर श्री आदि अन्य गुणों का प्रह्लाद से निष्क्रमण ), कथासरित् ८.२.१६५( नारद द्वारा प्रह्लाद आदि को इन्द्र का संदेश देना, प्रह्लाद के चतुर्थ पाताल में निवास का उल्लेख ), ८.२.३१०( प्रह्लाद द्वारा स्व सुता महल्लिका सूर्यप्रभ को देना ), ८.३.२२( प्रह्लाद द्वारा सूर्यप्रभ को यामिनी नामक कन्या प्रदान का उल्लेख ) prahlaada/ prahlada



      प्राकाम्य ब्रह्माण्ड ३.४.१९.५( १० सिद्धि देवियों में से एक, स्वरूप ), ३.४.३६.५१( १० सिद्धियों में से एक ), ३.४.४४.८( १० सिद्धियों में से एक ), द्र. सिद्धि



      प्राकारकर्ण स्कन्द १.२.८.१५( दीर्घजीवी प्राकारकर्ण उलूक की इन्द्रद्युम्न से वार्ता ), ६.२७१.१३७( प्राकारकर्ण उलूक के पूर्व जन्म का वृत्तान्त : पूर्व जन्म में घंटक नामक विप्र, भार्गव - पुत्री सुदर्शना से बलात्कार के कारण शाप प्राप्ति ), कथासरित् १०.६.९९(उलूकराज द्वारा काक-शरणागति के विषय में मन्त्री प्राकारकर्ण के विचार जानना) praakaarakarna/ prakarakarna



      प्राकृत वायु १.६.५६/६.६०( तीन प्राकृत, ५ वैकृत तथा एक प्राकृत - वैकृत सर्गों का कथन ), द्र. प्रकृति praakrita/ prakrita



      प्राक्चयन लक्ष्मीनारायण २.११०.७५( प्राक्चयन भूमि की शिव व विनायकों द्वारा रक्षा का उल्लेख ),



      प्राग्ज्योतिषपुर गर्ग ७.२५.५६( प्रद्युम्न द्वारा प्राग्ज्योतिषपुर में नील से भेंट प्राप्ति व द्विविद वानर को पराजित करना - भौमासुरसुतो नीलो धर्षितस्तस्य तेजसा ॥
      सद्यस्तस्मै बलिं प्रादात्प्रद्युम्नाय महात्मने ॥ ), ब्रह्म १.९३.८( कृष्ण द्वारा प्राग्ज्योतिषपुर के राजा नरक आदि के नाश का वृत्तान्त ), भागवत १०.५९.२( कृष्ण द्वारा प्राग्ज्योतिषपुर में मुर व भौमासुर के वध आदि का वर्णन ), मत्स्य ११४.४५( प्राच्य जनपदों में से एक ), विष्णु ५.२९.८( नरकासुर की नगरी प्राग्ज्योतिषपुर में कृष्ण का आगमन तथा नरक, मुर आदि का वध ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१२१.६( प्राग्ज्योतिषपुर में अनिरुद्ध की पूजा का निर्देश - प्राग्ज्योतिषेऽनिरुद्धं च प्रद्युम्नं दक्षिणापथे ।। तथा भार्गवरामं च मलये यदुनन्दनम् ।।  ), स्कन्द १.२.६०.१( प्राग्ज्योतिषपुर में स्थित मुर - पुत्री कामकटङ्कटा के साथ घटोत्कच के संवाद का वृत्तान्त ), हरिवंश २.६३( कृष्ण द्वारा प्राग्ज्योतिषपुर में निवास करने वाले नरकासुर का उसके सहायकों सहित वध का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.३१६.१६( प्राग्ज्योतिषपुर के राजा द्युमेरुजित्/ शतमख व रानी द्युवर्णा का वृत्तान्त - कल्पवल्ल्योऽभवंस्तस्या राज्ये प्राग्ज्योतिषाह्वये ॥  एवं शतमखो राजा राज्ञी द्युवर्णिका तथा । ) praagjyotishapura/ pragjyotishapura



      प्राग्वंश ब्रह्माण्ड १.१.५.१७( यज्ञवराह की प्राग्वंश काया का उल्लेख ), मत्स्य २४८.७२(यज्ञवराह के प्राग्वंश काय होने का उल्लेख), विष्णु १.८.२१( लक्ष्मी की पत्नीशाला व मधुसूदन की प्राग्वंश से उपमा ), ७.१.३५३.२२( यज्ञवराह के संदर्भ में प्राग्वंश के काया होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३८२.२२( विष्णु के प्राग्वंश व लक्ष्मी के पत्नीशाला होने का उल्लेख ) praagvamsha/praagvansha/ pragvansha



      प्राची भागवत ६.८.४०( चित्ररथ गन्धर्व द्वारा ब्राह्मण की अस्थियों को प्राची सरस्वती में प्रवाहित कर स्नान करने का उल्लेख ), हरिवंश ३.३५.५( वराह द्वारा पृथिवी के जल से उद्धार के पश्चात् प्राची आदि दिशाओं में पर्वतों, नदियों के निर्माण का वर्णन ), द्र. दिशाएं praachee/ prachi



      प्राचीन वामन ९०.६/८९.६( प्राचीन तीर्थ में विष्णु का कामपाल नाम से वास ), लक्ष्मीनारायण २.२९७.९३( प्राचीनी पत्नियों के गृह में स्नान के पश्चात् तैल मर्दन, भूषा धारण करते कृष्ण के दर्शन का उल्लेख ) praacheena/ prachina



      प्राचीनगर्भ ब्रह्माण्ड १.२.३६.९८( सृष्टि व छाया के पांच पुत्रों में से एक, सुवर्चा - पति, उदारधी - पिता ), वायु ६२.८४( छाया व पुष्टि के ५ पुत्रों में से एक, भूवर्चा - पति, उदारधी - पिता ) praacheenagarbha/ prachinagarbha



      प्राचीनबर्हि अग्नि १८.२०( हविर्धान व धिषणा - पुत्र, सवर्णा - पति, प्राचेतस गण - पिता, यज्ञों के कारण पृथिवी का कुशों से आच्छादन ), गर्ग १.५.२५( प्राचीनबर्हि का गद रूप में अवतरण ), ब्रह्म २.८३( भव की कृपा से प्राचीनबर्हि को महिमा नामक पुत्र की प्राप्ति ), भागवत ४.२४.९( बर्हिषद के प्राचीनबर्हि नाम का कारण, शतद्रुति से १० प्रचेताओं को उत्पन्न करना ), ४.२५( नारद द्वारा प्राचीनबर्हि को पुरञ्जनोपाख्यान का वर्णन ), मत्स्य ४.४५( हविर्धान व आग्नेयी के ६ पुत्रों में से एक, सवर्णा से १० प्राचेतस गण को उत्पन्न करना ),वायु ६३.२३/२.२.२३( हविर्धान व आग्नेयी धिषणा के ६ पुत्रों में से एक, नाम की निरुक्ति, सवर्णा - पति, प्राचीनबर्हि के प्राचेतस संज्ञक पुत्रों का वृत्तान्त ), विष्णु १.१४.२( हविर्धान व आग्नेयी धिषणा के ६ पुत्रों में से एक, सवर्णा - पति प्राचीनबर्हि के प्राचेतस संज्ञक १० पुत्रों का वृत्तान्त ), विष्णुधर्मोत्तर १.११०.१( हविर्धान - पुत्र, सुवर्णा से प्राचेतस संज्ञक १० पुत्रों को उत्पन्न करने का कथन ), शिव ७.१.१७.५५( सवर्णा - पति, १० प्राचेतसों के पिता ), हरिवंश १.२.३३( हविर्धान व धिषणा - पुत्र, सवर्णा - पति, प्रचेता गणों का पिता ), लक्ष्मीनारायण १.३९.२०( सावर्णि व सामुद्री के १० प्रचेतस पुत्रों की प्राचीनबर्हि संज्ञा, दक्ष - पिता ), २.२९७.९३( प्राचीनबर्हि नारियों के साथ कृष्ण का व्यवहार ), द्र. वंश पृथु praacheenabarhi/ prachinabarhi



      प्राचीनयोग ब्रह्माण्ड १.२.३५.४५( शृङ्गिपुत्र के ३ शिष्यों में से एक, संहिताकार ), १.२.३५.४६( प्राचीनयोग पुत्र के कौथुम के शिष्यों में से एक होने का उल्लेख ), वायु ६१.४०( शृङ्गिपुत्र के ३ शिष्यों में से एक, संहिता प्रवर्तक ), ६१.४२( प्राचीनयोग पुत्र के कौथुम के शिष्यों में से एक होने का उल्लेख ),



      प्राचेतस द्र. प्रचेता



      प्राच्य ब्रह्माण्ड २.३.६३.२०७( प्राच्यसामगों में पौष्यञ्जि नाम का उल्लेख? ), भागवत ९.२१.२८( हिरण्यनाभ - शिष्य कृति द्वारा प्राच्यसाम संहिताएं बनाने का उल्लेख ), मत्स्य ४९.७६( सामगाचार्य कृत के २४ शिष्यों की प्राच्यसाम संज्ञा ), वायु ९९.१९१/२.३७.१८६( सामगाचार्य कृत के २४ शिष्यों की प्राच्य संज्ञा ), विष्णु ३.६.५( सामगाचार्य हिरण्यनाभ के उदीच्य सामग व प्राच्यसामग शिष्यों का उल्लेख ), ४.१९.५२( हिरण्यनाभ - शिष्य कृत द्वारा २४ प्राच्यसाम संहिताएं बनाने का उल्लेख ) praachya/ prachya



      प्राजापत्य ब्रह्माण्ड २.३.३.४०( दिन व रात्रि के मुहूर्त्तों में प्राजापत्य मुहूर्त्तों का उल्लेख ), भागवत १.१५.३९( युधिष्ठिर द्वारा वज्र का राज्याभिषेक करने के पश्चात् प्राजापत्य इष्टि करने का उल्लेख ), ३.१२.४२( ब्रह्मचारी? की ४ वृत्तियों में से एक, द्र. टीका ), वायु ६१.७५( प्राजापत्य श्रुति के नित्य होने तथा अन्य श्रुतियों के प्राजापत्य श्रुति का विकल्प होने का उल्लेख ), ६६.४१/२.५.४१( दिन के मुहूर्तों में से एक ), ६६.४३/२.५.४३( रात्रि के १५ मुहूर्त्तों में से एक ), ८१.३/२.१९.३( अष्टका श्राद्ध के ३ प्रकारों में से एक प्राजापत्य प्रकार का कथन ), ८६.४३/२.२४.४३( गान्धार ग्रामिकों में से एक ), विष्णु ४.१०.२४( विवाह के ८ प्रकारों में से एक ) praajaapatya/ prajapatya



      प्राड~विवाक् गर्ग ८.१+ ( दुर्योधन के गुरु मुनि प्राड~विपाक द्वारा बलराम की महिमा का वर्णन ), मत्स्य २२७.१६१( अन्यायी प्राड~विवाक्/न्यायाधीश? को निर्वासन का दण्ड देने का उल्लेख ) praadvipaaka/ pradvipaka



      प्राज्ञ नारद १.९१.८५( प्राज्ञा : सद्योजात शिव की ६ठी कला ), लक्ष्मीनारायण ३.७.७९( दशम वत्सर में श्रीहरि द्वारा सम्प्रज्ञान द्विज की पत्नी विशोका के पुत्र रूप में जन्म लेकर ज्योत्स्नाकुमारी के रूप में लक्ष्मी का वरण करना ), ३.८.७४( दशम वत्सर में प्राज्ञ नारायण द्वारा थुरानन्द - पुत्री ज्योत्स्नाकुमारी का स्वयंवर में वरण तथा राजा थुरानन्द को युद्ध में स्व - आधीन बनाना ), ३.१२.५२( समाधि वत्सर के संदर्भ में धर्मव्रत के शिष्य प्राज्ञायन का जन्मान्तर में धर्मव्रत विप्र के पुत्र रूप में जन्म लेकर अल्पावस्था में ही स्वर्ग प्राप्ति का वृत्तान्त ), ३.२११.८( वानर द्वारा चाण्डाल को उसके पूर्व जन्म से अवगत कराना : पूर्व जन्म में प्राज्ञेश्वर विप्र, वेश्या संग से चाण्डाल रूप में जन्म ) praajna/ prajna



      प्राण अग्नि २०.१०( धाता व विधाता के २ पुत्रों में से एक ), ५९.१०( जीव से संयुक्त प्राण की वृत्तिमान संज्ञा ), ५९.१७( भकार के प्राणतत्त्व व बकार के बुद्धि, फकार अहंकार, पकार मन होने का उल्लेख ), २१४.८( प्राण वायु के शरीर में कार्यों का कथन, प्राण की निरुक्ति ), कूर्म १.१२.२१( माया की ज्ञान, क्रिया व प्राण संज्ञक ३ शक्तियों का उल्लेख ), गरुड २.३१.२६(मृत्यु पर प्राण निर्गम के स्थान तथा निष्क्रमण करने वाले गुण), ३.२८.३६(अहंकार, गरुड का अंश), ३.२९.५१(प्राण आदि पञ्च होम में अनिरुद्धादि के स्मरण का निर्देश), गर्ग १.५.२३( प्राण नामक वसु के शूरसेन रूप में अवतरण का उल्लेख ), देवीभागवत ११.२२( प्राणाग्निहोत्र विधि ), ११.२२.३१(वाक् होता, प्राण उद्गाता, चक्षु अध्वर्यु, मन ब्रह्मा), नारद १.४३.७९( मन को प्राण द्वारा व प्राण को ब्रह्म द्वारा धारण करने का निर्देश ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.९४.१०७( विष्णु के प्राण रूप तथा ब्रह्मा के मन रूप होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.११.३९( पुण्डरीका - पति, द्युतिमान् - पिता ), १.२.२९.७६( राजा के ७ प्राणहीन और ७ प्राणयुक्त रत्नों के नाम ), भविष्य ४.१७५.१९( बहिश्चर प्राणों के द्रविण होने का उल्लेख ; प्राणों को आत्मा से जोडने का निर्देश ), भागवत ४.१.४५( विधाता व नियति - पुत्र, वेदशिरा - पिता ), ६.६.११( द्रोण आदि ८ वसुओं में द्वितीय,वसु व धर्म - पुत्र), ६.६.१२( प्राण व ऊर्जस्वती के ३ पुत्रों के नाम ), ११.१५.१९(आकाशत्मा प्राण में मन के द्वारा घोष उत्पन्न करते हुए भूतों की वाक् सुनने का उल्लेख), ११.२१.३९(आकाश से घोषवान् प्राण द्वारा स्पर्शरूपी मन द्वारा छन्दोमय, ओंकारव्यञ्जित, स्पर्श, स्वर, ऊष्म, अन्तःस्थ वर्णों से विभूषित वाणी को प्रकट करने का कथन), मत्स्य ५.२४( धर वसु व मनोहरा के ३ पुत्रों में से एक ), ९.८( स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), १९६.२( सुरूपा व अङ्गिरस के आङ्गिरस संज्ञक १० पुत्रों में से एक ), २०३.११( १२ साध्य देवों में से एक ), वायु ५७.६९( राजा के ७ प्राणहीन और ७ प्राणयुक्त रत्नों के नाम ), ६७.३४/२.६.३४( अजिता व रुचि के अजित संज्ञक १२ पुत्रों में से एक ), विष्णु १.१०.५( धाता/विधाता - पुत्र, द्युतिमान्/कृतिमान् - पिता ), १.१५.११३( धर्म वसु व मनोहरा के पुत्रों में से एक ), ३.१.११( स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), शिव ५.२५.४१( इडादि नाडियों में प्राण के प्रवाह के काल से शेष आयु का निर्णय ), ६.३.१४( प्रणव का रूप ), ७.१.१२.३०( रुद्रों का प्राणों से साम्य ), स्कन्द १.२.४.७८( उत्तम दान द्रव्यों में से एक ), २.७.१९.२०( देवों में श्रेष्ठता की प्रतिस्पर्द्धा की कथा, प्राण द्वारा हल से कण्व ऋषि को कष्ट पहुंचाना, शाप दान - प्रतिदान, प्राण के गुरु से श्रेष्ठ व इन्द्र से अवर होने का उल्लेख - सप्तर्षिभ्यो वरो ह्यग्निरग्नेः सूर्यादयस्तथा । सूर्याद्गुरुर्गुरोः प्राणः प्राणादिंद्रो महाबलः ।। ), २.७.१९.२१( प्राण के बुद्धि से श्रेष्ठ होने का उल्लेख; प्राण की प्रशंसा ), ७.१.१०५.४६(३० कल्पों में षष्ठम्), योगवासिष्ठ ५.१३.८७( मन द्वारा स्पन्द/प्राण शक्ति व चित् शक्ति के बीच सम्बन्ध स्थापित करने का कथन ), ६.१.२४.९( प्राण चिन्ता विचारणा के अन्तर्गत हृदय में प्रविष्ट प्राणों द्वारा देह के सञ्चालन का कथन ), ६.१.६९( प्राण - मन संयोग नामक सर्ग में मन को प्राणों के बन्धन से मुक्त करने के उपाय का वर्णन ), ६.१.१२८.९( प्राण का वायु में न्यास ), ६.२.१३७.१२( प्राण की वाजी संज्ञा ), ६.२.१३९.१३( प्राण व मन के एक दूसरे के रथ - सारथि होने का कथन ), ३१३.५४(प्राण के यज्ञिय साम व मन के यज्ञिय यजु होने का उल्लेख), शान्ति ३१७.१( देह के विभिन्न अङ्गों से प्राणों का उत्क्रमण होने पर विभिन्न देवों के लोकों की प्राप्ति का कथन ), महाप्रस्थानिक २.२५(भीम द्वारा स्वयं को प्राण में अधिक मानने(प्राणेन विकत्थसे) से स्वर्ग से पूर्व पतन), लक्ष्मीनारायण १.४५१.७५( प्राणों को हवियों के रूप में शिव को अर्पित करने का निर्देश – प्राणा हवींषि सन्तु मे ), २.२४५.४९( जीव रूपी रथ में प्राण के युग रूप होने का उल्लेख ), २.२५५.४४( प्राण के जीवन व भ्रामण नामक २ भावों का कथन ), ३.१११.२६( प्राणदान के महत्त्व का कथन तथा प्राणों के प्रकार ), द्र. ओंकार praana/ prana



      प्राण-अपान आदि अग्नि ८४.२८( निवृत्ति कला/जाग्रत के २ प्राण ), २१४( १० वायुओं के विशिष्ट कार्य ), कूर्म १.७.३८( प्राण, अपान आदि से ऋषियों की सृष्टि ), गरुड ३.५.४३(स्पर्श तत्त्वाभिमानी अपान, रूपाभिमानी व्यान आदि), देवीभागवत ३.१२.४८( प्राण, अपान आदि का गार्हपत्य आदि अग्नियों से तादात्म्य ), ११.२२. ११.२२.३४( प्राण, अपान आदि के ऋषियों व मन्त्रों का वर्णन ), नारद १.४२.७९( प्राण, अपान आदि के विशिष्ट कर्मों का कथन ), १.६०.१४( समान, उदान आदि वायुओं की उत्पत्ति का कथन, देह में प्राण के कर्मों का कथन ), ब्रह्म १.७०.५७( गर्भ के वर्धन में प्राण - अपान आदि के कार्यों का कथन ), ब्रह्माण्ड १.१.५.७५( प्राण, अपान आदि से ऋषियों का प्राकट्य ), १.२.९.२२( ब्रह्मा द्वारा प्राण आदि से दक्ष आदि को उत्पन्न करने का कथन ), लिङ्ग १.७०.१८६( प्राण, अपान आदि से ऋषियों की सृष्टि ), वायु ९.१००/१.९.९२( ब्रह्मा के प्राण, अपान, व्यान आदि से दक्ष, क्रतु, पुलह आदि की उत्पत्ति का कथन ), १५.११( प्राण के अन्तरात्मा व अपान के बाह्य आत्मा आदि होने का कथन ), २१.४७( २१वें कल्प का नाम ), ६६.१९( तुषित देवगणों के नाम ), ९७.५३( प्राण, अपान आदि का शरीर में कार्य - अपानः पश्चिमं कायमुदानोर्द्ध्वशरीरगः। व्यानो व्यानस्यते येन समानः सर्व्वसन्धिषु ।। ), महाभारत आश्वमेधिक २०.१६( सोए हुए पुरुष को प्राणापान द्वारा न त्यागने का कारण ), २१.२६( वाक् के प्राण द्वारा शरीर में प्रकट होने, फिर क्रमश: अपान, उदान व व्यान को प्राप्त होने का कथन ), २३( प्राण, अपान आदि में श्रेष्ठता का विवाद ), २४.४( प्राणद्वन्द्वों का कथन ), २५.१४( प्राण के स्तोत्र व अपान के शस्त्र होने का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ३.७०.७०( प्राण - अपान आदि में सूचिका/कर्कटी की गति व स्वभाव का वर्णन ), ६.१.८१.११५टीका( प्राण की स्थिति हृदय में तथा अपान की हृदय से बाहर मानकर प्राण - अपान की सन्धि की नई व्याख्या ), लक्ष्मीनारायण ३.१७४.३( गर्भ धारण में प्राणादि पांच वायुओं के विशिष्ट कार्यों का कथन ), कथासरित् ७.९.२३( प्राणधर नामक तक्षा द्वारा यन्त्र हंस की सहायता से राजकोष चुराने का वृत्तान्त ), ७.९.२२१( नरवाहन द्वारा अन्य नगर में जाने के लिए प्राणधर तक्षा द्वारा निर्मित विमान का प्रयोग ) praana – apaana/ prana - apana

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      प्राणरोध भागवत ४.८.८०( ध्रुव के तप के कारण देवों के प्राणरोध का कथन ), ५.२६.७( २८ नरकों में से एक ), वायु १०४.२४/२.४२.२४( प्राणायाम का अपर नाम, अष्टाङ्ग योग के ८ अङ्गों में से एक ),



      प्राणायाम अग्नि १६१.२१( प्राणायाम के सगर्भक व अगर्भक भेदों का कथन ), गणेश २.१४१.२६( प्राणायाम के प्रकारों का वर्णन ), नारद १.३३.११८( प्राणायाम के सगर्भक व अगर्भक भेदों का कथन ), भागवत ४.८.४४( प्राणायाम के त्रिवृत होने का उल्लेख ), ४.२३.८( पृथु द्वारा प्राणायामों से संनिरोध व छिन्न बन्धन होने का उल्लेख ), ९.१९.३९(प्राणायाम के परम बल होने का उल्लेख), ११.१९.३९( प्राणायाम के परम बल होने का उल्लेख ), वायु १०.७८( उत्तम, मध्यम आदि प्राणायाम के प्रकार व महिमा ), ११.४( प्राणायाम के ४ प्रयोजनों शान्ति आदि का कथन ), ११.३८( प्राणायाम से उत्पन्न दोषों की चिकित्सा ), १८.१४( यति द्वारा ब्रह्मचर्य की पुष्टि हेतु प्राणायाम धारण का निर्देश ), विष्णु ६.७.४०( प्राणायाम के सबीज व अबीज भेदों का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२८०( प्राणायाम का वर्णन ), स्कन्द ७.२.१८.७( वामन द्विज द्वारा रेचक - पूरक आदि प्राणायाम के संदर्भ में योगी द्वारा २५ तत्त्वों को जानने का महत्त्व ), लक्ष्मीनारायण ३.७.४५( प्राणरोधन नामक दशम वत्सर में प्राज्ञनारायण कृष्ण द्वारा थुरानन्द - कन्या ज्योत्स्नाकुमारी से विवाह का वृत्तान्त ), द्र. योग praanaayaama/ pranayama



      प्राणी ब्रह्माण्ड ३.७.४२१( मनुष्य के स्वेद आदि से उत्पन्न जन्तुओं के नाम ), विष्णुधर्मोत्तर २.११३.३( प्राणियों में केवल मनुष्य द्वारा ही कर्म के फल का भोग करने का कथन ), द्र. जन्तु praanee/ prani



      प्रात: देवीभागवत ११.२.५( प्रात:काल का निर्धारण ), भागवत ४.१३.१३( प्रभा व पुष्पार्ण के ३ पुत्रों में से एक, ध्रुव वंश ), ६.१८.३( धाता व राका - पुत्र ), वायु ५०.१७०( प्रातस्तन काल का निरूपण ), ५२.१०( नभ व नभस्य मासों में सूर्य रथ पर प्रात: की स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.५७०.६२( भगवान् के प्रात: गर्भ रूप, सायं सृष्टि रूप और रात्रि में प्रलय रूप होने का उल्लेख ), द्र. वंश ध्रुव praatah/ pratah



      प्रातिथेयी ब्रह्म २.४०.६०( दधीचि - भार्या गभस्तिनी का उपनाम ? )



      प्रातिमेधी ब्रह्माण्ड १.२.३३.१९( ब्रह्मवादिनी अप्सराओं में से एक )



      प्रादेश ब्रह्माण्ड १.२.७.९६( प्रादेश दैर्ध्य मान का निरूपण ), वायु ८.१०५/१.८.९८( प्रादेश दैर्ध्य मान का निरूपण ), द्र. दैर्ध्य, मान



      प्रान्त ब्रह्माण्ड ३.४.१६.१८( प्रान्त देश के अश्वों की प्रशंसा ), वराह २१५.१०३( प्रान्तकपानीय तीर्थ का माहात्म्य ) praanta/ pranta



      प्रापण ब्रह्माण्ड २.३.६.७( दनु व कश्यप के प्रधान पुत्रों में से एक ), वराह १४३.१७( प्रापण गिरि पर स्नान कुण्ड का महत्त्व ), विष्णुधर्मोत्तर १.६३.४९( प्रापणक की निरुक्ति : दुःख वर्जित स्थान में ले जाना )



      प्राप्ति गर्ग १.६.१५( जरासन्ध - कन्या, कंस - भार्या ), पद्म १.२०.१०७( प्राप्ति व्रत का माहात्म्य व संक्षिप्त विधि ), ब्रह्म १.८७.१( कंस द्वारा जरासन्ध की कन्याओं अस्ति व प्राप्ति की भार्या रूप में प्राप्ति का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.१९.४( १० सिद्धि देवियों में से एक ), ३.४.४४.१०८( दस सिद्धि देवियों में से एक ), भविष्य ४.७७.१( सम्प्राप्ति द्वादशी व्रत की विधि, कामनापूरक ), मत्स्य १०१.५५( प्राप्ति व्रत ), वायु १००.९४/२.३८.९४( सुपार गण के १० देवों में से एक ), विष्णु ५.२२.१( जरासन्ध की २ कन्याओं में से एक, कंस - भार्या ), स्कन्द ६.१२५.४५( राजा सत्यसन्ध का कन्या कर्णोत्पला सहित ब्रह्मलोक से प्राप्तिपुर में अवतरण ), हरिवंश २.३४.५( जरासन्ध - कन्या, कंस - भार्या ), वा.रामायण १.१३.२६( दशरथ के अश्वमेध यज्ञ में मगध के अधिपति प्राप्तिज्ञ के आगमन का उल्लेख ) praapti/ prapti



      प्रायश्चित्त अग्नि १६८- १७२( अभक्ष्य भक्षण आदि विभिन्न पातकों के लिए प्रायश्चित्त विधान ), कूर्म २.३०( ब्रह्महत्या के प्रायश्चित्त की विधि ), २.३२+ ( प्रायश्चित्त विधि ), गरुड १.५२( प्रायश्चित्त विधि ), १.१०५( पापों का प्रायश्चित्त ), १.२१४( विभिन्न अशुभ कर्मों के लिए प्रायश्चित्त ), ३.२१.२(प्रायश्चित्त की निरुक्ति – तप+चित्तनिग्रह), नारद १.१४( विभिन्न पापों के लिए प्रायश्चित्त ), १.३०( पाप प्रायश्चित्त विधान ), पद्म ४.१८( अगम्यागमन के प्रायश्चित्तों का कथन ), ४.१९( अभक्ष्य भक्षण के प्रायश्चित्तों का कथन ), ब्रह्माण्ड ३.४.६.३६, ३.४.८.१( अगम्यागमन आदि का प्रायश्चित्त ), भविष्य २.१.१७.५( प्रायश्चित्त में अग्नि का नाम हुताशन ), लिङ्ग १.९०( यति हेतु प्रायश्चित्त ), वराह १३०( राजा के अन्न भक्षण पर प्रायश्चित्त ), १३१( दन्त काष्ठ अचर्वण पर प्रायश्चित्त ), १३२( शव स्पर्श, रजस्वला स्पर्श पर प्रायश्चित्त ), १३३+ ( पूजा समय में गुद रव आदि का प्रायश्चित्त ), १३४( अविधि भगवत्स्पर्श, उपासना का प्रायश्चित्त ), १३५( अनुपयुक्त वस्त्र धारण से उपासना, भोजन सम्बन्धी प्रायश्चित्त ), १७९( ३२ अपराधों का प्रायश्चित्त ), वायु १८( यति हेतु प्रायश्चित्त ), विष्णुधर्मोत्तर २.७३( पापों के प्रायश्चित्तों का वर्णन ), २.१२३( प्रायश्चित्त हेतु विभिन्न कृच्छ्र कर्मों की विधि व फल ), ३.२३४( विभिन्न गर्हित कर्मों के लिए प्रायश्चित्त कर्मों का वर्णन ), स्कन्द १.३.२.६( विविध पापों का प्रायश्चित्त ), ५.३.२२७.३३( प्रायश्चित्त हेतु तीर्थों में करणीय कृत्यों की विधि ), महाभारत सभा ३८ दाक्षिणात्य पृष्ठ७८४( यज्ञवराह के प्रायश्चित्त नख होने का उल्लेख ), शान्ति ३५( विभिन्न पापों के प्रायश्चित्तों का वर्णन ), ३६.१६( क्रोध व मोह के वशीभूत किए गए अशुभ कार्यों के प्रायश्चित्त का कथन ), १६५.३४( विभिन्न पापों का प्रायश्चित्त ) praayashchitta/ prayashchitta



      प्रारब्ध महाभारत शान्ति २२७( बलि द्वारा स्व अपकर्ष में काल को ही कारण बताना ), सौप्तिक २( दैव और पुरुषार्थ के विषय में कृपाचार्य के उद्गार ). द्र. दैव, पुरुषार्थ praarabdha/ prarabdha



      प्रालेय मत्स्य २५.५७( कच द्वारा शुक्राचार्य की कुक्षि का भेदन कर प्रकट होने की पूर्णिमा को प्रालेयाद्रि से चन्द्रमा के प्रकट होने से उपमा ), स्कन्द १.२.४८.२( ऊर्जयन्त व प्रालेय विप्र - द्वय की प्रभास हेतु तीर्थ यात्रा, मार्ग के कष्ट से मूर्च्छित होना, सोमनाथ लिङ्ग का प्राकट्य ), लक्ष्मीनारायण ४.८४.६३( नन्दिभिल्ल राजा का सेनापति, युद्ध में कुवर द्वारा वध का वर्णन ) praaleya/ praleya



      प्रावरण पद्म ५.११४.३०( शिव के परित: १० प्रावरणों का वर्णन ), वायु ४९.६६( प्रावरक : क्रौञ्च द्वीप के ७ वर्षों/देशों में से एक ), लक्ष्मीनारायण २.१८६.१( श्रीहरि का राजा जयकृष्णव द्वारा प्रशासित प्रावरणा नगरी में आगमन व प्रजा को उपदेश आदि ) praavarana/ pravarana



      प्राशित्र स्कन्द ३.१.२३.३८( सविता का प्राशित्र नामक पुरोडाश भाग के स्पर्श से छिन्नपाणि होना ) praashitra/ prashitra



      प्रासाद अग्नि ४२+ ( प्रासादों के लक्षण व निर्माण का वर्णन ), ६१.५( प्रासाद प्रतिष्ठा विधि ), ६१.१७( प्रासाद के अवयवों के प्रतीकार्थ ), ९२( प्रासाद प्रतिष्ठा हेतु भूमि परीक्षा ), १०१( प्रासाद प्रतिष्ठा विधि ), १०४( प्रासादों के प्रकार व उपप्रकार ), २१४.३३( प्रासाद प्रकार के नाद के भेदों का कथन ), गणेश १.८.३१( दुष्ट कामन्द द्वारा कान्त प्रासाद के निर्माण से नृप सोमकान्त बनना ), गरुड १.४७( प्रासादों के लक्षणों का वर्णन ), पद्म १.५९.४२( विष्णु या शिव हेतु प्रासाद निर्माण का महत्त्व ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.५( राधा का प्रासाद, १६ द्वारपाल ), भविष्य २.१.९+ ( प्रासाद का प्रमाण, भूमि परीक्षा ), मत्स्य २५४( प्रासादों के नाम व भेद, चतुर्वर्ण के लिए प्रासाद निर्माण की विधि ), २६९( प्रासादों के भेद व निर्माण विधि ), २७०( प्रासाद निर्माण ), विष्णुधर्मोत्तर ३.८६(प्रासाद के लक्षण ), ३.८७( सर्वतोभद्र प्रासाद ), ३.८८( सामान्य प्रासाद ), स्कन्द १.२.४.७८( उत्तम दान द्रव्यों में से एक ), २.२.२०.४०+ ( इन्द्रद्युम्न द्वारा भगवत् प्रासाद का निर्माण ), ४.२.७९.४८( काशी में शिव के मोक्ष लक्ष्मी प्रासाद का वर्णन ), ६.८७( अम्बरीष, धुन्धुमार व इक्ष्वाकु द्वारा निर्मित सोम के प्रासाद का माहात्म्य ), ७.१.२४.५६( प्रभास क्षेत्र में यक्ष्मा से मुक्त होने पर चन्द्रमा द्वारा निर्मित प्रासाद तथा अन्य प्रासाद ), लक्ष्मीनारायण २.१३६+ ( प्रासाद रूप मन्दिर निर्माण हेतु प्रासाद के विभिन्न अङ्गों के कल्पन का विस्तृत वर्णन ), २.१५८.५२( प्रासाद के विभिन्न अङ्गों का नर के अङ्गों के रूप में कल्पन ) praasaada/ prasada



      प्रांशु ब्रह्माण्ड २.३.६०.३( वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक ), २.३.६१.४( भलन्दन - पुत्र, प्रांशु के पुत्र को संवर्त द्वारा स्वर्ग ले जाने का उल्लेख ), भविष्य ३.४.८.३१( प्रांशुशर्मा द्वारा कलियुग का वञ्चन, कलि द्वारा प्रांशुशर्मा का बन्धन, प्रांशुशर्मा द्वारा सूर्य की उपासना, जन्मान्तर में विष्णुस्वामी ), ३.४.१८.१७( संज्ञा विवाह प्रकरण में प्रांशु आदित्य का शकटासुर से युद्ध ), भागवत ९.२.२४( वत्सप्रीति - पुत्र, प्रमति - पिता, दिष्ट वंश ), मार्कण्डेय ११७.१/११४.१( वत्सप्री व सुनन्दा के ज्येष्ठ पुत्र प्रांशु के चरित्र की प्रशंसा, प्रजाति - पिता ), वायु ३५.१०( मेरु पर्वत की प्रांशु संज्ञा ? ), ८५.४/२.२३.४( वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक ), ८६.३/२.२४.३( भलन्दन - पुत्र, प्रजानि - पिता ), विष्णु ४.१.२१( वत्सप्रीति - पुत्र, प्रजापति - पिता, दिष्ट वंश ) praamshu/ praanshu/ pranshu



      प्रिय गणेश २.१०.२६( वरुण द्वारा महोत्कट गणेश का सर्वप्रिय नामकरण - सर्वप्रियेति नामास्य दत्त्वा पाशमपां पतिः । शृण्वत्सु सुरसंघेषु चकार शंकरोऽपि च ।।), ब्रह्म २.९०.२२( देवागम पर्वत के प्रिय नाम होने का उल्लेख - देवागमः पर्वतोऽसौ प्रिय इत्यपि कथ्यते। ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.४९( प्रियभृत्य : तामस मनु के पुत्रों में से एक ), भागवत ९.२१.२१( प्रियमेध : अजमीढ के वंशजों में एक, द्विजोपेत क्षत्रिय -  अजमीढस्य वंश्याः स्युः प्रियमेधादयो द्विजाः ॥ ), वायु १.१२२/१.१.१११( दक्ष - पुत्री प्रिया का उल्लेख - दक्षस्य चापि दौहित्राः प्रियाया दुहितुः सुताः ।। ), ६२.४३/२.१.४३( प्रियभृत्य : तामस मनु के पुत्रों में से एक ), ६९.४/२.८.४ प्रियमुखी : ३४ मौनेया अप्सराओं में से एक), विष्णुधर्मोत्तर ३.२९४( प्रियंवदता की प्रशंसा- मित्रतां यांति रिपवो नराणां प्रियभाषिणाम् ।। ), हरिवंश २.७५.३१( प्रियसङ्गमन स्थान पर कश्यप - अदिति के वास तथा इन्द्र व कृष्ण के मिलन का उल्लेख ), महाभारत वन ३१३.७७( मान को छोडने पर प्रिय होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद - मानं हित्वा प्रियो भवति क्रोधं हित्वा न शोचति।), लक्ष्मीनारायण १.२८३.३८( पत्नी के प्रियों में अनन्यतम होने का उल्लेख - नास्ति ब्रह्मसमं पात्रं नास्ति पत्नीसमं प्रियम् ।।), कथासरित् ८.७.२४( युद्ध में प्रियङ्कर के विरथ होने का उल्लेख ), ९.५.२८( वासुकि नाग के पुत्र प्रियदर्शन व यशोधरा से उत्पन्न पुत्र का वृत्तान्त ) priya



      प्रियङ्गु अग्नि ८१.५१( सर्व जीव सत्त्व वशीकरण हेतु होम द्रव्य - दूर्वा व्याधिविनाशाय सर्वसत्त्ववशीकृते । प्रियङ्गुपाटलीपुष्पं चूतपत्रं ज्वरान्तकं ॥ ), भविष्य १.१९३.११( प्रियङ्गु दन्तकाष्ठ की महिमा - प्रियंगुं सेव्यमानस्य सौभाग्यं परमं भवेत् ।।), स्कन्द ७.१.१७.१२( प्रियङ्गु दन्तकाष्ठ का महत्त्व : सौभाग्य प्राप्ति - प्रियंगुं सेवमानस्य सौभाग्यं परमं भवेत् ॥), लक्ष्मीनारायण २.१६०.७१( कुबेर के लिए प्रियङ्गु से निर्मित ओदन बलि का निर्देश - प्रैयंगवं कुबेराय ईशानाय तु पायसम् ।। ) priyangu



      प्रियव्रत अग्नि १०७.१( प्रियव्रत द्वारा अपने १० पुत्रों को जम्बूद्वीप आदि देने का कथन ), गणेश २.३२.६( कीर्ति व प्रभा - पति, पद्मनाभि - पिता ), देवीभागवत ८.४( बर्हिष्मती - पति, १० अग्नि संज्ञक पुत्रों के नाम, उत्तम, तामस, रैवत पुत्रों की उत्पत्ति, चरित्र महिमा, पृथिवी को सात द्वीपों में विभाजित करना ), ९.४६( मालिनी - पति, मृत पुत्र का षष्ठी देवी द्वारा सञ्जीवन ), ब्रह्म २.३३.२( प्रियव्रत के अश्वमेध के पश्चात् हिरण्यक दानव का आगमन, देवों का शमी आदि में प्रवेश करना ), ब्रह्मवैवर्त्त २.४३.८( षष्ठी देवी के माहात्म्य के संदर्भ में षष्ठी देवी द्वारा राजा प्रियव्रत के मृत पुत्र को जीवित करने का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.६९( आद्य संज्ञक गण के ८ देवों में से एक ), भागवत ३.१२.५५( स्वायम्भुव मनु व शतरूपा की ५ सन्तानों में से एक ), ४.८.७( उत्तानपाद व प्रियव्रत भ्राताद्वय के वासुदेव की कला होने का कथन - प्रियव्रतोत्तानपादौ शतरूपापतेः सुतौ । वासुदेवस्य कलया रक्षायां जगतः स्थितौ ॥ ), ५.१( ब्रह्मा द्वारा प्रियव्रत को राज्यशासन का आदेश, बर्हिष्मती - पति, पुत्रादि के नाम ), ५.१.३१( प्रियव्रत द्वारा रथ से पृथिवी के सात विभाग करना तथा उनका पुत्रों में विभाजन - ..तदनभिनन्दन्समजवेन रथेन ज्योतिर्मयेन रजनीमपि दिनं करिष्यामीति सप्त कृत्वस्तरणिमनुपर्यक्रामद्द्वितीय इव पतङ्गः ), ११.२.१५( प्रियव्रत - पुत्र आग्नीध्र के वंश का वर्णन ), वराह २.५६+ ( राजा प्रियव्रत द्वारा नारद से आश्चर्य के बारे में पृच्छा, नारद द्वारा सावित्री के दर्शन से वेदों की विस्मृति का आश्चर्य सुनाना ), ७४.७( प्रियव्रत द्वारा आग्नीध्र आदि १० पुत्रों को जम्बू आदि द्वीपों के अधिपति बनाने का कथन ), वामन ७२.४( स्वायम्भुव मनु - पुत्र प्रियव्रत के पुत्र सवन से ७ मरुतों की उत्पत्ति का वृत्तान्त ), वायु २८.२८( प्रियव्रत - भार्या कर्दम - पुत्री काम्या का उल्लेख - काम्या प्रियव्रताल्लेभे स्वायम्भुवसमान् सुतान्। ), ३३.७(प्रियव्रतात् प्रजावन्तः वीरात् कन्या व्यजायत। कन्या सा तु महाभागा कर्द्दमस्य प्रजापतेः ।। ), ५७.५७(प्रियव्रत और उत्तानपाद के प्रथम नृप होने का उल्लेख ), विष्णु २.१.३( प्रियव्रत के वंश का वर्णन ), ६.८.४३( प्रियव्रत द्वारा ऋभु से विष्णु पुराण सुनकर भागुरि को सुनाने का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.३३.१५९( प्रियव्रतेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य – सब जन्तुओं में प्रिय बनना ), ४.१.४७.३( काशी में प्रियव्रत विप्र का कन्या के विवाह की चिन्ता में मरण ), ५.२.३१.२०( भद्राश्व के प्रियव्रत - पुत्र होने का उल्लेख ), ५.२.५८.२( नारद द्वारा प्रियव्रत को श्वेत द्वीप में द्रष्ट आश्चर्य का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.५३.२२( स्वायंभुव मनु - पुत्र प्रियव्रत के पुत्र रैवत का वृत्तान्त ) priyavrata

      Vedic view of Priyavrata



      Esoteric Aspect of Priyavrata

      प्रियाल स्कन्द ६.२५२.३४( चातुर्मास में वसुओं द्वारा प्रियाल वृक्ष का ग्रहण - वसुभिः स्वीकृतो नित्यं प्रियालश्च महानगः ॥ ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८८( वृक्ष रूप धारी श्रीहरि के दर्शन हेतु वसुओं के प्रियाल वृक्ष बनने का उल्लेख - प्रियाला वसवो जाता आदित्यास्तु जपाद्रुमाः । ) priyaala



      प्रीति नारद १.६६.९०( प्रद्युम्न की शक्ति प्रीति का उल्लेख ), पद्म १.२०.५०( प्रीति व्रत की विधि व माहात्म्य ), ब्रह्माण्ड १.२.९.५५( दक्ष व प्रसूति - कन्या प्रीति के पुलस्त्य की भार्या होने का उल्लेख ), १.२.११.२६( प्रीति व पुलस्त्य की सन्तानों का कथन ), ३.४.३५.९२( चन्द्रमा की १६ कलाओं में से एक ), ३.४.३५.९५( श्रीहरि की कलाओं में से एक ), मत्स्य १००( काम - पत्नी, रति - सपत्ना, पूर्व जन्म में अनङ्गवती वेश्या ), १०१.६( प्रीति व्रत ), वायु १०.३०( दक्ष की कन्याओं में से एक, पुलस्त्य - भार्या ), २८.२१( प्रीति व पुलस्त्य की सन्तानों का कथन ), विष्णु १.१०.९( प्रीति व पुलस्त्य की सन्तानों का कथन ), स्कन्द २.१.८( प्रीति देवी द्वारा नारायण को तैल मर्दन ), ६.१२७.३०( कर्णोत्पला नामक कन्या द्वारा तप से काम की द्वितीय पत्नी प्रीति बनने का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण १.५००.१७( सत्यसन्ध नृप की कन्या कर्णोत्पला द्वारा तप से कामदेव की द्वितीय भार्या प्रीति बनने का वृत्तान्त ), ४.१०१.९८( कृष्ण की भार्याओं में से एक, सुमेलार्य व प्रोन्मीलनी - माता ), द्र. दक्ष - कन्याएं, वंश पुलस्त्य preeti/ priti



      प्रेङ्खा लक्ष्मीनारायण २.७( कृष्ण के नामकरण दिवस पर बालकृष्ण हेतु प्राप्त दिव्य प्रेङ्खों का वर्णन, तलाजा/लाजा राक्षसी के दिव्य प्रेङ्खा बनने का वृत्तान्त ), द्र. दोला prenkhaa



      प्रेत अग्नि ११५.६०( प्रेत की मुक्ति के लिए गया में पिण्डदान का महत्त्व ), १३४.१( त्रैलोक्य विजया विद्या के प्रेत वाहन का उल्लेख ), १३५.१( सङ्ग्राम विजया विद्या के महाप्रेत वाहन का उल्लेख ), गणेश २.१२४.३१( प्रेत का शेष वराह होना ? ), गरुड २.१+ ( प्रेत कल्प का वर्णन ), २.५.३९ ( प्रेतत्व से मुक्ति हेतु वृषोत्सर्ग ), २.७.१५(सन्तप्तक ब्राह्मण द्वारा पर्युषित आदि ५ प्रेतों का दर्शन, प्रेतों के उद्धार की कथा, प्रेतों के नाम के कारण), २.९.५७(प्रेत पीडा के स्वरूप), २.१०( प्रेत - प्रदत्त पीडा के प्रकार ), २.१०.७(प्रेत का भोजन रुधिर होने का उल्लेख), २.१०.२७(श्राद्ध में विप्र भोक्ता के उदर में पिता, वाम पार्श्व में पितामह तथा दक्षिण पार्श्व में प्रपितामह की स्थिति का कथन), २.१२( मृतक के प्रेत बनने के कारण व मुक्ति के उपाय ), २.१२( सन्तप्तक ब्राह्मण द्वारा पर्युषित आदि ५ प्रेतों से वार्तालाप ), २.१२.५१( प्रेतों के आहार का कथन ), २.१५.६९(पिण्डदान से प्रेत की देह की क्रमिक उत्पत्ति का कथन), २.१७( प्रेत का बभ्रुवाहन राजा से वार्तालाप, प्रेत मुक्ति के उपाय का कथन ), २.२०.१९(प्रेत पीडा के स्वरूप), २.२२.३०(पांच प्रेतों का वृत्तान्त), देवीभागवत ७.४०.१०( ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र आदि ५ महाप्रेतों के देवी के पादमूल में स्थित होने का उल्लेख ), नारद २.४७.७०( प्रेतकूट की गया में शिला के वाम पाद पर स्थिति, महिमा ), पद्म १.२८.२६( बिभीतक रोपण से प्रेतत्व प्राप्ति का उल्लेख ), १.३२.१४( पर्युषित आदि पांच प्रेतों का पृथु ब्राह्मण से संवाद व मुक्ति ), १.६०.५०( प्रेत योनि प्रापक - अप्रापक कर्म ), ३.३५.१४( पिशाचमोचन कुण्ड में स्नान से प्रेत के उद्धार का वृत्तान्त ), ५.९४.१५(मुनिशर्मा द्वारा पांच भयानक पुरुषों का दर्शन, संवाद, मुक्ति), ५.९४.६३( पर्युषित, शीघ्रग आदि ८ प्रेतों का मुनिशर्मा से संवाद, प्रेत भोजन के स्थान ), ५.९८.४५( धनशर्मा द्वारा कृतघ्न आदि ३ प्रेतों का उद्धार ), ६.६९.२२( श्रवण द्वादशी व्रत से वणिक् द्वारा प्रेतों का उद्धार ), ६.१२९.८९( प्रेत, पिशाच, राक्षस आदि योनि प्रापक कर्मों का कथन, प्रयाग माहात्म्य के संदर्भ में वसु ब्राह्मण के प्रेत बनने, सारस व वानर के संवाद श्रवण से बोध को प्राप्त करने तथा गङ्गा जल पान से मुक्ति प्राप्ति का वर्णन ), ब्रह्माण्ड ३.४.२४.५२( करालाक्ष दैत्य द्वारा प्रेत वाहन सिद्ध करने का कथन ), भविष्य ३.४.२३.७१( कलियुग में नैषध के राजा कालमाली द्वारा प्रेतपूजा का प्रचलन करने तथा विश्वस्फूर्जि द्वारा प्रेतपूजा का प्रचलन समाप्त करने का कथन ), ४.७५.२८( श्रवण द्वादशी व्रत के माहात्म्य के संदर्भ में मरुस्थल में तृषार्त वणिक् की प्रेत द्वारा तुष्टि, वणिक् द्वारा गया में प्रेतों के नाम - गोत्र के उच्चारण से प्रेतों की मुक्ति का वृत्तान्त ), भागवत ०.५+ ( धुन्धुकारी द्वारा प्रेत योनि की प्राप्ति, भागवत श्रवण से मुक्ति ), मत्स्य १०.२३( प्रेतों व राक्षसों द्वारा पृथिवी रूपी गौ से रुधिर धारा रूपी दुग्ध दोहन का कथन ), १९.९( प्रेत का भोजन रुधिर होने का उल्लेख ), १४१.६५( प्रेत बनने की दशाएं तथा प्रेतों की तृप्ति हेतु पिण्डदान का कथन ), १४८.९५( निर्ऋति/राक्षसेश के ध्वज पर प्रेत चिह्न ), वराह १७४( पर्युषित, सूचीमुख आदि ५ प्रेतों का महानाम ब्राह्मण से संवाद, प्रेतों की मुक्ति, पिशाच तीर्थ ), १८८.३७( मृत्यु पर प्रेत के लिए उपानह, छत्र आदि दान ), वामन ७९.१२( प्रेत का वणिक् से संवाद, श्राद्ध द्वारा प्रेत की मुक्ति ), वायु १०८.६७/२.४६.७०( प्रेत पर्वत की गया में शिला के वाम पाद पर स्थिति, माहात्म्य ), विष्णु ३.१३.७( प्रेत/मृतक कर्म क्रियाविधि का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर १.१६२( श्रवण द्वादशी को श्राद्ध से प्रेत की मुक्ति ), २.७७(प्रेत की मृत्यु - कालीन क्रिया ), २.११३.१५( मृत्यु पश्चात् प्रेत देह की प्राप्ति से पूर्व तथा पश्चात् की अवस्थाओं का कथन ), २.११६.३५(प्रेत लोक में दिवस काल मनुष्यों के तुल्य तथा पितृलोक में मास तुल्य होने का कथन), स्कन्द २.४.११टीका( पितर ), ४.१.४५.३९( प्रेतवाहना : ६४योगिनियों में से एक ), ४.२.५४.५( प्रेत द्वारा द्विज व वणिक् का अनुगमन, काशी में प्रेत के प्रवेश का वर्जन, वाल्मीकि मुनि के निर्देश पालन से प्रेत की मुक्ति का वर्णन ), ६.१८.११( प्रेत योनि प्रापक कर्म, प्रेत योनि के गुण - अवगुण ), ६.१८( तीन प्रेतों मांसाद, विदैवत व कृतघ्न का विदूरथ से संवाद, श्राद्ध से मुक्ति ), ६.२०४.२१( युद्ध से पराङ्मुख जनों, आत्मघातियों आदि के मृत्यु - पश्चात् प्रेत बनने तथा श्राद्ध से प्रेतों की मुक्ति का कथन, सूर्य के कन्या राशि में होने पर श्राद्ध का महत्त्व ), ६.२२६.९( प्रेत शब्द की निरुक्ति ), ७.१.२२३.१७( प्रेत तीर्थ का माहात्म्य, गौतम द्वारा पांच प्रेतों लेखक, रोहक आदि के लिए श्राद्ध, प्रेतों की मुक्ति ), लक्ष्मीनारायण १.६४( मृत्यु - पश्चात् प्रेत की यमलोक यात्रा का वर्णन ), १.७१( मृत्यु के पश्चात् बने प्रेत की तात्कालिक स्थिति, प्रेत द्वारा स्वबान्धवों को पीडा/दोष का वर्णन, प्रेत जनित स्वप्न ), १.७२( प्रेत बनने के हेतुभूत विविध कर्मों का कथन, लोक में जीवित प्रेतों का ), १.७२.६३( याम्य, वायव्य व मानवीय, तीन प्रकार के प्रेतों का उल्लेख ), १.७३( आयु अनुसार मृतक के और्ध्वदेहिक कर्म का विधान, आसन्न मृत्यु स्थिति में देय दानादि ), १.७४.१( मृत हेतु विभिन्न दानों के फल ), १.३४८.३५( सुशील वैश्य के मृत्यु - पश्चात् प्रेत बनने तथा मथुरा में चतु:सामुद्रिक कूप में स्नान आदि के पुण्य से प्रेत की मुक्ति का वृत्तान्त ), १.३५१.१६( पुष्कर में गोकर्ण द्वारा पर्युषित, सूचीमुख आदि ५ प्रेतों से वार्तालाप, प्रेत योनि वर्जक कर्मों का कथन, मथुरा सङ्गम तीर्थ में स्नान तथा वामन पूजा आदि के पुण्य दान से प्रेतों की मुक्ति ), १.४२४( धर्मदत्त विप्र द्वारा प्रेत बनी भिक्षु - पत्नी कलहा के उद्धार का वृत्तान्त ), १.५७३.६१( राजा से प्राप्त प्रतिग्रह का सम्यक् उपयोग न करने से विप्रों को प्रेत योनि की प्राप्ति, ब्रह्मदत्त के यज्ञ में गमन से प्रेतों का उद्धार ), २.१८.४३( प्रेत पितरों की कन्याओं द्वारा श्रीहरि को ताम्बूल अर्पण का उल्लेख ), २.१८.११०( २० प्रेतों का स्वरूप तथा प्रेतत्व प्राप्ति के कारणों का वृत्तान्त, लोमश द्वारा प्रेतों की मुक्ति ), २.५९( दान के अभाव में प्रभानाथ विप्र का प्रेत बनना, प्रेत द्वारा अतिथि वणिक् का सत्कार, वणिक् द्वारा प्रेत की मुक्ति का उद्योग ), ३.१०१.१( प्रेत की मुक्ति हेतु गोदान का कथन ), ३.१०२.६६( प्रेत की मुक्ति हेतु अज, मेष, अश्व, गौ, भूमि आदि दान का कथन ), ३.१०३.८३( प्रेत की मुक्ति हेतु विविध दानों का कथन ), ३.१८८.३४( अपजापक नामक मन्त्री के प्रेत बनने , प्रेत व प्रेतत्व से मुक्ति का वृत्तान्त ) preta



      प्रेम लक्ष्मीनारायण ३.८१.९९( प्रेमायन : शतानन्द व विनोदिनी के साधु परायण ५०० पुत्रों में से एक ) prema



      प्रेयसी लक्ष्मीनारायण १.३०७( भक्ति व धर्म की कन्या - द्वय प्रेयसी व श्रेयसी द्वारा माता - पिता की सेवा से क्रमश: भुक्ति व मुक्ति नामों की प्राप्ति, अधिक मास में कृष्ण की पूजा से मोक्ष का वृत्तान्त ), १.३८५.४७(प्रेयसी का कार्य – स्तनों में चन्दन),



      प्रोक्षणी गरुड १.१०७.३४( मृतक के श्रोत्र में प्रोक्षणी देने का निर्देश ), नारद १.५१.२६( प्रोक्षणी के चतुरङ्गुला मान की होने का उल्लेख ),



      प्रौष्ठपद मत्स्य ५३.२२( प्रौष्ठपदी पूर्णिमा को भागवत पुराण दान का माहात्म्य ), वा.रामायण ७.१५.१६( कुबेर के मन्त्रियों में से एक ) praushthapada



      प्लक्ष अग्नि ११९.१( प्लक्ष द्वीप का वर्णन ), कूर्म १.४९.१( प्लक्ष द्वीप का वर्णन ), गरुड १.५६(प्लक्ष द्वीप पर मेधातिथि व उसके ७ पुत्रों का आधिपत्य ), देवीभागवत ८.१२( प्लक्ष द्वीप का वर्णन, महिमा ), पद्म १.२८.२५( प्लक्ष के यज्ञ फल दाता होने का उल्लेख ), २.८५.४९( प्लक्ष द्वीप में राजा दिवोदास की कन्या दिव्यादेवी के पतियों के मरण का आश्चर्य ), ६.१२८+ ( प्लक्ष प्रस्रवण तीर्थ में देवद्युति विप्र द्वारा तप, विष्णु के दर्शन, पिशाचों का उद्धार ), ७.५.५७( प्लक्ष द्वीप में गुणाकर राजा की पुत्री सुलोचना पर माधव, विद्याधर आदि की आसक्ति की कथा ), ब्रह्माण्ड १.२.१४.३५( प्लक्ष द्वीप के जनपदों व वर्षों के नाम ), १.२.१९.६( प्लक्ष द्वीप का वर्णन ), २.३.११.३६( बलि पात्रों के संदर्भ में प्लक्ष पात्र के सर्वभूताधिपत्य गुण का उल्लेख ), २.३.१३.६९( त्रिप्लक्ष : श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थों में से एक ), भागवत ५.१.३२( प्रियव्रत द्वारा रथ से पृथिवी की परिक्रमा के कारण बने ७ द्वीपों में से एक ), ५.२०.७( इक्षु समुद्र से आवृत प्लक्ष द्वीप का कथन ), मत्स्य १०.२८( वृक्षों द्वारा पृथिवी के दोहन में प्लक्ष के वत्स बनने का उल्लेख ), ५६.७( दन्तकाष्ठ हेतु उपयुक्त वृक्षों में से एक ), ५८.१०( मण्डप के द्वारों हेतु योग्य ४ वृक्षों में से एक ), ११४.६५( किम्पुरुष वर्ष में वृक्ष ), लिङ्ग १.५३.२( प्लक्ष द्वीप के पर्वतों के नाम ), वराह १४९.२७( द्वारका में पञ्चसर क्षेत्र में स्थित प्लक्ष का महत्त्व ), वामन ९०.२५( प्लक्षावतरण में विष्णु की विश्व/श्रीनिवास नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख ), ९०.४२( प्लक्ष द्वीप में विष्णु का गरुडवाहन नाम ), वायु २३.१९६/१.२३.१८४( २१वें द्वापर में विष्णु - अवतार दारुक के पुत्रों में से एक ), ३३.१२( प्रियव्रत द्वारा स्वपुत्र मेधातिथि को प्लक्ष द्वीप का अधिपति बनाने का उल्लेख ), ४६.७( किम्पुरुष वर्ष में प्लक्ष वृक्ष की महिमा ), ४९.१( प्लक्ष द्वीप का वर्णन, प्लक्ष द्वीप के अन्तर्वर्ती पर्वतों व नदियों के नाम ), ४९.६( प्लक्ष द्वीप के ७ पर्वतों, उनके वर्षों आदि का विवरण ), ९१.३२/२.२९.३०( पुरूरवा द्वारा कुरुक्षेत्र में प्लक्ष तीर्थ में उर्वशी के दर्शन व वार्तालाप ), विष्णु १.२२.९१( प्लक्ष का वनस्पतियों के राजा के रूप में अभिषेक का उल्लेख ), २.४.१( प्लक्ष द्वीप का वर्णन ), शिव ३.५.२९( २१वें द्वापर में शिव के पुत्रों में से एक ), स्कन्द ७.१.१७.१२( प्लक्ष दन्तकाष्ठ की महिमा : अभीप्सितार्थ सिद्धि ), ७.१.१०७.९५(प्लक्षपुर में ब्रह्मा का महादेव नाम), ७.१.१०७.९६(प्लक्ष पादक में ब्रह्मा के गौतम नाम से वास का उल्लेख), ७.४.१७.३५( द्वारका के उत्तर द्वार पर विभिन्न क्षेत्रपालों सहित प्लक्ष वृक्ष की पूजा का निर्देश ), हरिवंश १.६.४३( पृथिवी दोहन में प्लक्ष का वत्स बनना ), वा.रामायण ४.३१.४३( सुग्रीव - मन्त्री प्लक्ष द्वारा लक्ष्मण के आगमन की सूचना देना ), लक्ष्मीनारायण १.५३७.४५( दधीचि व सुभद्रा से उत्पन्न सुप्लक्षक की ऊरु से उत्पन्न और्व अग्नि का वृत्तान्त ), ३.२१.६०( अनङ्ग नामक २६वें वत्सर में तप या भक्ति के श्रेय:प्रद होने का प्रश्न, साधना के पाक पर भगवान् का प्लक्षनारायण रूप में प्राकट्य ), ३.२१.८९ ( २६वें वत्सर में भक्ति द्वारा प्लक्ष नारायण के प्राकट्य का वृत्तान्त ), ४.४५.५४( कृष्ण द्वारा नारायण सरोवर तट पर विष्णु की सहस्रशीर्ष प्लक्ष नाम से पिप्पल में प्रतिष्ठा करने का कथन ) plaksha

      References on Plaksha



      प्लक्षप्रस्रवण पद्म ६.१२८+ ( देवद्युति विप्र द्वारा प्लक्षप्रस्रवण तीर्थ में तप, विष्णु के दर्शन, पिशाचों का उद्धार ), ब्रह्माण्ड २.३.१३.६९( श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थों में से एक ) plakshaprasravana



      प्लवन ब्रह्माण्ड १.२.१६.५३( प्लवग : प्राच्य जनपदों में से एक ), मत्स्य ६.३२( प्लवों के ताम्रा व मारीच कश्यप - पुत्री शुचि के पुत्र होने का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.४१.११८( जल की प्लावनी धारणा का उल्लेख ), वा.रामायण ४.६५( समुद्र लङ्घन के संदर्भ में विभिन्न वानरों द्वारा अपनी - अपनी प्लवन शक्तियों का कथन ) plavana



      प्लुत लिङ्ग १.९०.५८( ओङ्कार की ३ मात्राओं में प्लुत का महत्त्व ) pluta