मांस कूर्म २.२०.४०(श्राद्ध में विभिन्न मांसों की प्रशस्तता), गरुड २.२२.५९/२.३२.११३(मांस में कुश द्वीप की स्थिति - कुशद्वीपः स्थितो मांसे क्रौञ्चद्वीपः शिरास्थितः ॥), २.३०.५१(मृतक के मांस में यवपिष्ट देने का उल्लेख), पद्म १.९.१५३(श्राद्ध में मांस से पितरों की तृप्ति), ६.६.२९(बल असुर के मांस से प्रवाल की उत्पत्ति का उल्लेख - मेदसः स्फटिकं जातं प्रवालं मांससंभवम्), ब्रह्म १.१११/२२०.२४(मांस द्वारा पितरों की तृप्ति-मासद्वयं मत्स्यमांसैस्तृप्तिं यान्ति पितामहाः। त्रीन्मासान्हारिणं मांसं विज्ञेयं पितृतृप्तये।। ), ब्रह्माण्ड २.३.१९.३(श्राद्ध में मांस दान का फल), २.३.६३.१२(श्राद्ध से पूर्व शश मांस भक्षण के कारण वसिष्ठ की आज्ञा से इक्ष्वाकु राजा द्वारा स्वपुत्र विकुक्षि का त्याग), भविष्य १.१८६.२९(मांस भक्षण में दोषरहित परिस्थितियों का कथन), मत्स्य १७.३१(श्राद्ध में विभिन्न प्रकार के मांसों से पितरों की तृप्ति - द्वौ मासौ मत्स्यमांसेन त्रीन्मासान् हारिणेन तु। औरभ्रमेणाथ चतुरः शाकुनेनाथ पञ्च वै।। ), मार्कण्डेय ३२(पशुओं आदि के मांस से श्राद्ध में तृप्ति), वायु ८२.४/२.२१.४(विभिन्न मांसों द्वारा पितरों की तृप्ति का काल - मत्स्यैः प्रीणन्ति द्वौ मासौ त्रीन्मासान्हारिणेन तु। शाशन्तु चतुरो मासान् पञ्च प्रीणाति शाकुनम् ।।), विष्णु ३.१६.१(श्राद्ध में मांस से पितरों की तृप्ति का कथन), ४.४.४७(सौदास नृप द्वारा वधित मृगों का राक्षस होकर यज्ञ में व्यवधान, राक्षस का वसिष्ठ रूप धारण कर मनुष्य मांस से निर्मित भोजन करने का आदेश, वसिष्ठ द्वारा शाप दान का वृत्तान्त), विष्णुधर्मोत्तर १.१४१(श्राद्ध में पशुमांस), स्कन्द ३.१.९.४४(अशोकदत्त द्वारा श्मशान में महामांस का विक्रय), ५.१.५०.४१(वायस द्वारा आहृत दमनक राजा के शरीर के मांस के क्षिप्रा में गिरने से दमनक को शिवलोक प्राप्ति - दमनस्य शरीरस्य मांसं शिप्रासमागतम् । तेन पुण्यप्रभावेन शिवरूपधरोऽभवत् ।। ), ५.३.१५९.२६(पर मांस भोजी के रोगयुक्त होने का उल्लेख), ६.१८(जिह्वा लौल्य के फलस्वरूप मांसाद का प्रेत बनना, विदूरथ से संवाद), ६.२९.२२७(मांस भक्षण के दोष), ६.२२०.५(श्राद्ध निमित्त खड्ग मांस का प्रश्न), ६.२२१(भिन्न - भिन्न प्रकार के मांसों से पितरों के श्राद्ध का कथन), ७.४.१७.१५(मांसाद : भगवत्परिचारक वर्ग के अन्तर्गत आग्नेयी दिशा के रक्षकों में से एक), महाभारत अनुशासन ११४+ (मांस भक्षण की निन्दा), ११६.९(मांस की सम्भूति शुक्र से होने का कथन - शुक्राच्च तात सम्भूतिर्मांसस्येह न संशयः। भक्षणे तु महान्दोषो मलेन स हि कल्प्यते।।), ११६.२५(मांस शब्द की निरुक्ति - मां स भक्षयते यस्माद्भक्षयिष्ये तमप्यहम्। एतन्मांसस्य मांसत्वमनुबुद्ध्यस्व भारत।।), कथासरित् ५.२.१८२(रानी के नूपुर को लाने हेतु अशोकदत्त का श्मशान में महामांस बेचने का उद्योग), १०.५.२८२(मांस के बदले मांस देने वाले राजा की कथा ), द्र. पशुमांस maansa/maamsa/ mansa
माकन्दिका कथासरित् ३.१.३०(माकन्दिका नगरी वासी धूर्त्त साधु की कथा )
माकोट स्कन्द ५.३.१९८.७०(माकोट में देवी का मुकुटेश्वरी नाम से वास ), ७.१.१०.५(माकोट तीर्थ का वर्गीकरण – पृथिवी)
मागध पद्म २.२८.७४(राजा पृथु के स्तवन हेतु सूत - मागधों की सृष्टि - ब्रह्माचारपरो नित्यं संबंधं ब्राह्मणैः सह। एवं स मागधो जज्ञे वेदाध्ययनवर्जितः), ब्रह्माण्ड १.२.१६.४२(मध्यदेशीय जनपदों में से एक), १.२.३६.११३(पृथु के स्तवनार्थ सूत व मागध की उत्पत्ति का उल्लेख), १.२.३६.१५९(यज्ञ में साम गान के समय मागध की उत्पत्ति का कथन, मागध नाम का कारण - सामगेषु च गायत्सु शुभांडे वैश्वदेविके ।। समागते समुत्पन्नस्तस्मान्मागध उच्यते ।।), १.२.३६.१७२(पृथु द्वारा मगध राज्य मागध को देने का उल्लेख), ३.४.१.११२(१४वें मन्वन्तर के ऋषियों में से एक), भविष्य ३.४.२१.१९(पृथु व राजन्या से मागधों की उत्पत्ति), भागवत ४.१५.२०(पृथु द्वारा स्तुति को उत्सुक सूत, मागध आदि को असत्य स्तुति से रोकना), ८.१३.३४(१४वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक),१०.२.२(जरासन्ध की मागध संज्ञा का प्रयोग), १०.८३.२३(लक्ष्मणा के स्वयंवर में मागध आदि वीरों द्वारा धनुष को ज्या युक्त कर लेने मात्र का उल्लेख), वायु ६२.९५/२.१.९५(पृथु की स्तुति के लिए सूत व मागध की उत्पत्ति का उल्लेख), ६२.१३५/२.१.१३५ (पितामह के यज्ञ में सूत व मागध की उत्पत्ति, पृथु की स्तुति कार्य में नियोजन तथा पृथु से मगध राज्य की प्राप्ति का कथन), ६९.२६/२.८.२६(गन्धर्वों में से एक), ९९.२२८/२.३७.२२३(सोमाधि- पुत्र श्रुतश्रवा की मागध संज्ञा), विष्णु २.४.६९(शाकद्वीप के क्षत्रिय), स्कन्द ५.३.२१८.२४(जमदग्नि की धेनुओं की गुदा से मागधों की उत्पत्ति), हरिवंश १.५.४२(मागधों की उत्पत्ति का प्रसंग, मागधों द्वारा पृथु की स्तुति), लक्ष्मीनारायण ४.७५.१(हर्षनयन नामक भक्त मागध द्वारा श्रीहरि के वंशानुकीर्तन से मोक्ष प्राप्ति का वृत्तान्त ), द्र. मन्वन्तर maagadha
माघ नारद १.१२२.७३(माघ त्रयोदशी व्रत का महत्त्व - माघशुक्लत्रयोदश्यां समारभ्य दिनत्रयम् ।।माघस्नानव्रतं विप्र नानाकामफलावहम् ।।), २.३१(काष्ठीला द्वारा सन्ध्यावली को माघ मास व द्वादशी तिथि की महिमा का वर्णन), २.६३.२४(माघ मास में विभिन्न तीर्थों में स्नान का फल), पद्म ३.३१.१६(तत्संगेन त्वया स्नातं माघमासद्वयं तथा।। कालिंदी पुण्यपानीये सर्वपापहरे वरे।तत्तीर्थे लोकविख्याते नाम्ना पापप्रणाशने।। एकेन सर्वपापेभ्यो विमुक्तस्त्वं विशांपते। द्वितीयमाघपुण्येन प्राप्तः स्वर्गस्त्वयानघ ।।), ६.११९.२(माघ स्नान की महिमा - चक्रतीर्थे हरिं दृष्ट्वा मथुरायां च केशवम्। यत्फलं लभते मर्त्यो माघस्नानेन तत्फलम्), ६.१२५+ (माघ मास के माहात्म्य का आरम्भ), ६.१२७(माघ स्नान की विधि, माघ स्नान के पुण्य फल से राक्षस की मुक्ति), ६.१२८.१३४(विभिन्न तीर्थों में माघस्नान का फल), ६.१२९.६१(देवद्युति द्वारा पिशाचत्व से मुक्ति हेतु प्रयाग स्नान के माहात्म्य का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त २.१३.१३(माघ में सरस्वती पूजा का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.२४.१४१(मासों में माघ के आदि होने का उल्लेख - वर्षाणां चापि पंचानामाद्यः संवत्सरः स्मृतः ।। ऋतूनां शिशिरश्चापि मासानां माघ एव च ।। ), भविष्य २.२.८.१२९(प्रयाग में महामाघी पूर्णिमा के विशेष फल का उल्लेख- महती मार्गशीर्षे स्यादयोध्यायां तथोत्तरे । महापौषी पुण्यतमा महामाघी प्रयागतः।।), ३.४.९.२४(माघ मास के सूर्य का माहात्म्य : हेली द्विज का सूर्य बनना, सूर्य का जयदेव भक्त के रूप में अवतार, जयदेव के हाथ - पैर कटने का वृत्तान्त), मत्स्य १७.४(माघ पञ्चदशी : युगादि तिथियों में से एक - पञ्चदशी च माघस्य नभस्ये च त्रयोदशी।। युगादयः स्मृता ह्येता दत्तस्याक्षय्यकारिकाः।), १७.७(माघ सप्तमी : मन्वन्तरादि तिथियों में से एक), ५३.३६(माघ पूर्णिमा को ब्रह्मवैवर्त्त पुराण दान का निर्देश), ५६.२(माघ कृष्ण अष्टमी को महेश्वर की अर्चना का निर्देश - शङ्करं मार्गशिरसि शम्भुं पौषेऽभिपूजयेत्। माघे महेश्वरं देवं महादेवञ्च फाल्गुने।।), ६०.३६(माघ में कृष्ण तिल प्राशन का निर्देश), वायु ५०.१२२(माघ में सूर्य के दक्षिण काष्ठान्त आने का कथन), ५३.११३(माघ के मासों में आदि होने का उल्लेख), स्कन्द ३.२.१.१०५(माघ मास में स्नान से समस्त पापों से मुक्ति का उल्लेख - मासानामुत्तमो माघः स्नानदानादिके तथा । तस्मिन्माघे च यः स्नाति सर्वपापैः प्रमुच्यते।। ) maagha/ magha
माठर ब्रह्माण्ड १.२.३३.३(८६ श्रुतर्षियों में से एक),२.३.१३.३३(माठर वन : श्राद्ध हेतु पवित्र स्थलों में से एक), वायु ७७.३३/२.१५.३३(वही)
माणिकी लक्ष्मीनारायण १.३८५.३१(माणिकी का कार्य), २.२८३.५७(माणिकी द्वारा बालकृष्ण के पदों में अलक्तक देने का उल्लेख), २.२९७.८३(,
माणिक्य पद्म ६.६.२५(बल असुर की श्रुतियों से माणिक्य की उत्पत्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३०६(कल्पद्रुम - कन्या श्री, दिव्यविभूति - पुत्री माणिक्या तथा क्षीराब्धि - पुत्री लक्ष्मी द्वारा पुरुषोत्तम मास की चतुर्दशी व्रत के प्रभाव से कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने का वृत्तान्त), २.२७९.८(मण्डप में माणिक्य स्तम्भ की स्थापना का महत्त्व), ४.२६.५७(माणिकीश कृष्ण द्वारा काम से रक्षा), ४.३३(माणिक्य पत्तन निवासी हेमसुधा भक्ता द्वारा दुर्भिक्ष में जनों को दिव्य अन्न से तृप्त करने का वृत्तान्त ) maanikya/ manikya
माण्टि स्कन्द १.२.४०(ऋषि, चरक - पति, महाकाल पुत्र )
माण्डकर्णि वा.रामायण ३.११.११(माण्डकर्णि मुनि द्वारा पञ्चाप्सरस तीर्थ का निर्माण )
माण्डलिक स्कन्द ३.२.३१.५८(धर्मारण्य की यात्रा के अन्तर्गत राम का एक रात्रि में माण्डलिक पुर में निवास का उल्लेख )
माण्डवी अग्नि ५.१३(कुशध्वज - कन्या, श्रुतकीर्ति - भगिनी, भरत - भार्या), देवीभागवत ७.३०.७२(माण्डव्य पीठ में देवी का माण्डवी नाम से वास), पद्म ५.६७.३७(भरत - पत्नी), मत्स्य १३.४२(माण्डव्य तीर्थ में देवी का माण्डवी नाम से वास), वा.रामायण १.७३.३२(भरत द्वारा माण्डवी का पाणिग्रहण ) maandavee/ mandavi
माण्डव्य गरुड १.५५.१६(उत्तर - पश्चिम में देश), देवीभागवत ७.३०.७२(माण्डव्य पीठ में देवी का माण्डवी नाम से वास ) पद्म १.५१(शैब्या - पति से कष्ट प्राप्ति पर माण्डव्य द्वारा शाप, पूर्व जन्म का वृत्तान्त), ६.१४१(सोमचन्द्र राजकुमार के अश्व की चोरी पर माण्डव्य का शूलारोपण, माण्डव्य द्वारा धर्म को शाप), ब्रह्म २.२६(माण्डव्य द्वारा इन्द्र के अभिषेक पर आपत्ति), ब्रह्माण्ड १.२.२७.२६(धर्म द्वारा माण्डव्य से शाप प्राप्ति का उल्लेख), भागवत ३.५.२०(माण्डव्य के शाप से यम के विदुर रूप में जन्म लेने का कथन), मत्स्य १९५.२१(भार्गव गोत्रकार ऋषियों में से एक), स्कन्द २.८.९.२१(माण्डव्य तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य, माण्डव्य मुनि के तप का स्थान), ३.२.९.३७(माण्डव्य गोत्र के ऋषियों के पांच प्रवर व गुण), ४.२.६५.३(माण्डव्येश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.१७०+ (श्येन रूपी शम्बर द्वारा राजकन्या का अपहरण, आश्रम में आभूषणों की उपलब्धि पर माण्डव्य का शूल पर आरोपण, शाण्डिल्य द्वारा शूल का कम्पन, शाप - प्रतिशाप), ५.३.१७२.१८(कामप्रमोदिनी का माण्डव्य की पत्नी बनने का उल्लेख), ५.३.१९८(माण्डव्य का शूल से अवरोहण, शूल मूल व अग्र का लिङ्गों में रूपान्तरण, शूलेश्वरी देवी का प्राकट्य, तीर्थ अनुसार देवी के १०८ नाम), ५.३.१९८.८०(माण्डव्य में देवी का माण्डुकि नाम से वास), ५.३.२३१.२४(माण्डव्येश्वर नामक तीर्थ का उल्लेख, पिप्पलेश्वर तीर्थ का अपर नाम?), ६.१३५+ (माण्डव्य द्वारा दीर्घिका - पति को शाप तथा यम को शूद्र योनि प्राप्ति का शाप, शूल प्राप्ति का कारण), ७.१.१७९(माण्डव्येश्वर लिङ्ग की पूजा), योगवासिष्ठ ५.५८.२१(माण्डव्य द्वारा राजा सुरघु को चित्त की महत्ता प्राप्त करने तथा सर्वभूतों में आत्मा के ही दर्शन करने का उपदेश), लक्ष्मीनारायण १.१७४.१८१(दक्ष यज्ञ से बहिर्गमन करने वाले शैव ऋषियों में से एक), १.३९१.४९(कौशिक ब्राह्मण द्वारा शूलारोपित माण्डव्य ऋषि को कष्ट पहुंचाने पर माण्डव्य द्वारा कौशिक विप्र को शाप, पतिव्रता द्वारा सूर्योदय का रोधन, माण्डव्य द्वारा धर्म को शाप), १.५०२.५८(माण्डूक्य ब्राह्मण द्वारा माण्डव्य ऋषि की निद्रा भङ्ग करना, माण्डव्य द्वारा सूर्योदय से पूर्व मृत्यु का शाप आदि ) maandavya/ mandavya
माण्डूकि ब्रह्माण्ड १.२.३२.३(८६ श्रुतर्षियों में से एक), १.२.३४.२८(इन्द्रप्रमति द्वारा माण्डूकेय को तथा माण्डूकेय द्वारा पुत्र सत्यस्रवा को संहिता अध्यापन का उल्लेख), १.२.३५.५१(माण्डुक : कृत के २४ सामग शिष्यों में से एक), भागवत १२.६.५६(इन्द्रप्रमिति द्वारा माण्डूकेय को स्वसंहिता अध्यापन कराने का उल्लेख, देवमित्र - गुरु), मत्स्य १९५.२१(माण्डूक : भार्गव गोत्रकार ऋषियों में से एक), विष्णु ३.४.१९(इन्द्रप्रमिति द्वारा स्व पुत्र माण्डुकेय को संहिता अध्यापन कराने का उल्लेख), स्कन्द १.२.४२.२९(हारीत वंशोद्भव द्विज, इतरा - पति, ऐतरेय - पिता), लक्ष्मीनारायण १.५०२.५७(माण्डव्य द्वारा दीर्घिका के कुष्ठी पति माण्डूक्य को सूर्योदय से पूर्व मरण का शाप, दीर्घिका द्वारा रक्षा ) maandooki/maanduuki/ manduki
मातङ्ग ब्रह्माण्ड २.३.७.१३४(खशा व कश्यप के राक्षस पुत्रों में से एक), ३.४.३१.८८(मतङ्ग मुनि के पुत्र मातङ्ग द्वारा मन्त्रिणी/श्यामा देवी की उपासना से वर प्राप्ति, मातङ्गी - पिता), मत्स्य १४८.९६(इन्द्र के ध्वज पर हेम मातङ्ग चिह्न का उल्लेख), वराह १४०.५९(मातङ्ग तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), वायु ६९.१६५/२.८.१५९(खशा व कश्यप के राक्षस पुत्रों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१(संगीत के अन्तर्गत १५ गान्धारों में से एक), शिव ३.१७.१०(शङ्कर का नवम अवतार ) maatanga/ matanga
मातङ्गी नारद १.८७.१०१(दुर्गा - अवतार, मातङ्गी के मन्त्र विधान का कथन), ब्रह्माण्ड ३.४.३१.१०४(मन्त्रिणी देवी के वरदान स्वरूप मातङ्ग व सिद्धिमती को पुत्रियों की प्राप्ति, मातङ्गी नामकरण), मत्स्य १७९.२७(अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), विष्णुधर्मोत्तर २.१३२.१०(मातङ्गिनी शान्ति के शुक्ल वर्ण का उल्लेख), शिव ३.१७.१०(शिव के नवम मातङ्ग नामक अवतार की शक्ति का नाम), स्कन्द ३.२.१८(मातङ्गी की उत्पत्ति, कर्णाटक दैत्य से युद्ध, पूजा विधि), वा.रामायण ३.१४.२२(कश्यप व क्रोधवशा की १० सन्तानों में से एक, मातङ्ग/हस्ती - माता), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१२६(मञ्जुला व कृष्ण की कन्या मातङ्गिनी व पुत्र महेश्वर का उल्लेख), कथासरित् १४.४.१०१(नरवाहनदत्त का पत्नियों, मन्त्रियों सहित मातङ्गपुर नामक नगर में गमन, धनवती द्वारा आदर - सत्कार), १६.२.८०(आनन्दवर्धन नामक राजकुमार की उत्पलहस्त नामक मातङ्ग की कन्या सुरतमञ्जरी पर आसक्ति ) maatangee/ matangi
मातरिश्वा वायु १०१.२९/२.३९.२९(मातरिश्वा आदि गण की अन्तरिक्ष में भुवर्लोक में स्थिति का उल्लेख), १०३.५८/२.४१.५८(ब्रह्मा द्वारा ब्रह्माण्ड पुराण को मातरिश्वा को प्रदान करने व मातरिश्वा द्वारा उशना को प्रदान करने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.२४८.३३(गरुड कुल के पक्षियों में से एक ) maatarishvaa/ matarishva
मातलि पद्म २.६४+ (मातलि द्वारा ययाति से स्वर्ग गमन का अनुरोध, पृथिवी के दुःख का वर्णन, ययाति द्वारा अस्वीकृति), २.७२(इन्द्र के सारथि मातलि द्वारा ययाति से स्वर्ग गमन का अनुरोध, ययाति द्वारा अस्वीकृति), भागवत ८.११.१६(जम्भ से युद्ध में इन्द्र द्वारा ऐरावत वाहन को त्याग कर मातलि द्वारा संचालित रथ पर आरूढ होने का कथन, जम्भ द्वारा मातलि पर प्रहार), ९.१०.२१(राम - रावण युद्ध में मातलि द्वारा राम के लिए रथ प्रस्तुत करने का कथन), वामन ६९.१३२(शीला व शमीक - पुत्र, इन्द्र का सारथी बनना), विष्णुधर्मोत्तर ३.३४३(इन्द्र - सारथि, गुणकाशी - पिता), स्कन्द ५.३.३६.४( मातलि – पुत्र का पिता के शाप से पृथिवी पर दारु सूत के रूप में जन्म),
वा.रामायण ७.२८.२३(जयन्त के प्रणाश तथा देवों के पलायन को देखकर इन्द्र द्वारा सारथि मातलि को रथ आनयन की आज्ञा, मातलि का युद्ध भूमि में पदार्पण), कथासरित् २.१.१३(इन्द्र द्वारा अपने सारथि मातलि का दूत रूप में शतानीक के पास सहायतार्थ प्रेषण), १०.३.६५(इन्द्र द्वारा मातलि के माध्यम से सोमप्रभ हेतु उच्चैःश्रवा - पुत्र आशुश्रवा का प्रेषण ) maatali/ matali
माता देवीभागवत ७.३०.७८ (कायावरोहण तीर्थ में देवी की माता नाम से स्थिति का उल्लेख), १२.६.१२२(गायत्री सहस्रनामों में से एक), पद्म १.१५(माता के भूलोक की स्वामिनी होने का उल्लेख), १.५०(माता के तीर्थों का रूप होने का उल्लेख), २.८.५९(पर का ज्ञान देने वाली प्रज्ञा व सुमति की संज्ञा), ब्रह्मवैवर्त्त ३.८.४६(गुरु - पत्नी आदि विविध माताओं का कथन), भविष्य १.१८५.३(मातृ श्राद्ध की विधि), ३.४.१८.२७(विष्णु द्वारा स्वमाता को पत्नी? रूप में स्वीकार करने से श्रेष्ठता प्राप्ति का उल्लेख), भागवत ६.७.२९(माता के पृथिवी की मूर्ति होने का उल्लेख), मत्स्य १०.८(वेन के शरीर के माता के अंश के मन्थन से कृष्ण वर्ण वाली म्लेच्छ जातियों के उत्पन्न होने का उल्लेख), १३.४४(सरस्वती में देवी की देवमाता नाम से स्थिति का उल्लेख), १३.४६(सिद्धपुर पीठ में देवी की माता नाम से स्थिति का उल्लेख), ९३.५३(धर्म की पत्नियों कीर्ति, लक्ष्मी आदि का माताओं के रूप में उल्लेख), २००.१२(मातेय : वसिष्ठ वंश के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), २११.२६(दक्षिणाग्नि व पृथिवी का रूप), वायु ६९.२९१/२.८.२८५ (ऋषा की ५ कन्याओं में से एक, ग्राह, निष्क, शिशुमार आदि की जननी), विष्णुधर्मोत्तर १.६३.५१(माता शब्द की निरुक्ति : घोर भय से त्राण देने वाली), २.३७.५६(माता के दक्षिणाग्नि होने का उल्लेख), शिव १.१६.९१(बिन्दु रूपा माता, नाद रूपी पिता), स्कन्द १.२.६.९७(मेधातिथि गौतम का चिरकारी पुत्र को स्व माता के वध का आदेश, चिरकारी द्वारा विलम्ब से माता की रक्षा, मेधातिथि द्वारा पश्चात्ताप का वृत्तान्त), ४.१.३६.७६(माता की भक्ति से भूलोक पर विजय होने का उल्लेख ), ५.१.८.१७(पृष्ठमाता तीर्थ के दर्शन से पाप से मुक्ति), ५.१.७०.४१(महाकालवन में आठ माताओं, ६ कृत्तिकाओं, चर्पटमाताओं और वट माताओं के वास का उल्लेख), ५.२.७६.२०(विनता द्वारा समयपूर्व अण्ड भेदन से अरुण नामक विकलाङ्ग पुत्र का जन्म, क्रुद्ध अरुण द्वारा माता को शाप, पश्चात् पश्चात्ताप पूर्वक माता के महत्त्व का कथन), ५.३.१५.२(संवर्त समय में सहस्रों रौद्ररूपा मातृ शक्तियों द्वारा त्रिलोकी का संहार), ५.३.१९८.८५(कायावरोहण तीर्थ में उमा की माता नाम से स्थिति का उल्लेख), महाभारत वन ३१३.६०(माता के भूमि से भी गुरुतर होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद), लक्ष्मीनारायण १.१०१.३१(८ प्रकार की माताओं का कथन), १.२८३.३६(माता के गुरुओं में अनन्यतम होने का उल्लेख), १.२८३.३७(क्षमा के माताओं में अनन्यतम होने का उल्लेख), २.४५.७८(झांझीवर दैत्य व मां अजा के पुत्र द्वारा माता व पत्नी का ताडन करने से मात्रागस्कर संज्ञा की प्राप्ति का वृत्तान्त), २.१००.७२(चक्रवाकी रूपी उर्वशी द्वारा पुत्री के संदर्भ में माता के महत्त्व का वर्णन ), द्र. श्रीमाता maataa/ mata
माता - पिता पद्म १.५०(माता - पिता की सेवा का महत्त्व, नरोत्तम ब्राह्मण व मूक चाण्डाल की कथा), २.६३(माता - पिता तीर्थ का माहात्म्य), भविष्य २.१.६.२१(पिता के प्रजापति की तथा माता के पृथिवी की मूर्ति होने का उल्लेख), महाभारत शान्ति १०८.७(पिता के गार्हपत्य अग्नि व माता के दक्षिणाग्नि होने का उल्लेख), १०८.२५(पिता के प्रसन्न होने से प्रजापति व माता के प्रसन्न होने से पृथिवी की पूजा का उल्लेख ) maataa – pita/ mata-pita
मातुल गर्ग १.१७.११(गोपियों द्वारा यशोदा से कृष्ण के ऊपर के दो दांतों का पहले निकलना मातुल हेतु दोष कारक बताना, मातुल न होने से विघ्न शान्ति हेतु दान प्रभृति की कर्त्तव्यता का कथन), मत्स्य ३३.८(ययाति द्वारा पुत्र यदु को मातुल सम्बन्ध से दुष्प्रजा उत्पन्न करने का शाप), लक्ष्मीनारायण २.२४६.३१ (मातृमातुल वर्ग के पृथिवी होने का उल्लेख ) maatula/ matula
मातुलुङ्ग नारद १.६७.६२(मातुलिङ्ग पुष्प को रवि को अर्पण करने का निषेध), वायु ३८.४२(२ शैलों के बीच स्थित मातुलुङ्ग स्थली की शोभा व उस में बृहस्पति के वास का कथन), कथासरित् ९.३.४०(राजा द्वारा कार्पटिक को रत्न पूरित मातुलुङ्ग/नींबू भेंट करने की कथा ) maatulunga/ matulunga
मातृ- मत्स्य १७९.१२(मातृनन्दा : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक )
मातृका अग्नि १२५.७(शरीर के वायु चक्रों में स्थित मातृकाओं के नाम), १४५(वर्ण मातृका न्यास का वर्णन), २९३.३७(वर्ण मातृका न्यास की विधि), २९९.५०(बालपीडाकारक बालग्रहों की शान्ति हेतु सर्वमातृका मन्त्र), ३१३.८(ब्राह्मी प्रभृति ८ मातृकाओं की अर्चन विधि), गरुड १.२२३(नृसिंह स्वरूप द्वारा घोर मातृकाओं का संहरण), देवीभागवत ५.२८(शुम्भ - सेनानी रक्तबीज से युद्ध हेतु मातृकाओं का आगमन, देवता अनुसार मातृकाओं के नाम), ९.४६.५(मातृकाओं में विख्यात देवसेना की उत्पत्ति तथा चरित्र का कथन, अपर नाम स्कन्द - भार्या, प्रकृति का षष्ठांश), १२.६.१२८(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.६६.८६(वैष्णव, शैव, कला व गाणपत्य वर्ण मातृकाओं के नाम व न्यास), १.८८(वर्ण मातृका), १.११८.५(मातृका नवमी व्रत), पद्म ३.२६.५५(मातृ तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ब्रह्म २.४२(मातृ तीर्थ : शिव के स्वेद बिन्दुओं से मातृकाओं की उत्पत्ति, मातृकाओं द्वारा असुरों का भक्षण, मातृकाओं की प्रतिष्ठानपुर में प्रतिष्ठा), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.५९(प्रकृति देवी के अंश, कलांश तथा कलांशांश भेद से अनेक मातृका रूपों का वर्णन), २.३४(मातृकाओं में विख्यात देवसेना का आख्यान), ब्रह्माण्ड १.२.२५.६९(मातृणां पति : शिव के नामों में से एक), ३.४.७.७३(मधु द्वारा पूजन योग्य माताओं के नाम), ३.४.३७(वर्ण मातृका), ३.४.४४.९(८ मातृकाओं का देह में न्यास), भविष्य १.५७.७(मातृकाओं हेतु मांसान्न भक्त सूप बलि का उल्लेख), १.५७.१९(मातृकाओं हेतु अक्षत बलि का उल्लेख), १.१७७.१७(अरुण द्वारा आकाश माताओं, लोकमाताओं, भूतमाताओं, पितृमाताओं, मातृमाताओं प्रभृति सभी माताओं से शान्ति प्रदान करने की प्रार्थना), २.१.८.३७(३५ लिपिमातृकाओं? के देवताओं का निर्धारण), ३.४.३.५४(वेणु व कन्यावती की शीतला, पार्वती, कन्या, पुष्पवती, गोवर्धनी, सिंदूरा तथा काली नामक सात पुत्रियां ब्राह्मी प्रभृति सात मातृकाओं का रूप), ३.४.१४.७१(अम्बा का मातृभूता होने का उल्लेख), ४.२९(आनन्तर्य व्रत के अन्तर्गत भिन्न भिन्न मासों में भिन्न - भिन्न मातृकाओं का पूजन व फल), भागवत ६.६.२४(अदिति, दिति प्रभृति कश्यप - पत्नियों के लोकमाताएं होने का उल्लेख), ६.६.४२(अर्यमा - पत्नी, चर्षणियों की माता), ८.१०.३३(देवासुर सङ्ग्राम में मातृकाओं का उत्कल से युद्ध), मत्स्य १७९(अन्धक के रक्त पान हेतु शिव द्वारा मातृकाओं की सृष्टि, मातृकाओं के नाम, मातृकाओं द्वारा विध्वंस का विष्णु द्वारा निर्मित देवियों द्वारा अवरोध), मार्कण्डेय ८८.३८/८५.१२(वैष्णवी, ब्रह्माणी, कौमारी, वाराही, नारसिंही आदि मातृकाओं का आविर्भाव, असुरों के साथ युद्ध), ८९(मातृकाओं द्वारा निशुम्भ का वध), ८९.३५/८६.३५(मातृकाओं द्वारा विभिन्न प्रकार से असुरों का नाश), ९१.२(शुम्भ वध से प्रसन्न देवी द्वारा जगन्माता देवी की स्तुति), वराह २७.३०(अन्धक वध हेतु अष्ट देवों से अष्ट मातृकाओं की उत्पत्ति), वामन ५६(मातृकाओं की चण्डिका से उत्पत्ति, देवों की स्तुति), विष्णुधर्मोत्तर १.२२६(अन्धक के रक्त पानार्थ मातृकाओं की सृष्टि), १.२२७(मातृका शान्ति हेतु उपाय), २.३७.५१(मातृका के पृथिवी की मूर्ति होने का उल्लेख), ३.७३(मातृकाओं की मूर्ति का रूप), शिव ५.५०.१३(बालकों के अपराध को सहन करने वाली), ५.५०.२९(दुर्ग दैत्य विनाशार्थ देवी के शरीर से मातृकाओं की उत्पत्ति), ७.२.२२.२४(वर्ण मातृका न्यास का वर्णन), स्कन्द १.१.२८.२०(स्कन्द द्वारा मातृगण की स्वर्ग में स्थापना), १.२.५.२२(नारद द्वारा मातृका विषयक प्रश्न, सुतनु नामक ब्राह्मण बालक द्वारा मातृका के ५२ अक्षरों का अर्थ, भावार्थ, तत्त्वार्थ प्रतिपादन), १.३.२.१९(महिषासुर वधार्थ दुर्गा द्वारा मातृकाओं की उत्पत्ति), ३.२.९.१११(ब्राह्मणों की गोत्रों की रक्षक, मातृकाओं के नाम), ३.२.१६(मातृकाओं के नाम व वर्णन), ४.१.४२.१४(नेत्रों में मातृमण्डल होने का उल्लेख), ४.२.७२.१(मातृकाओं के नाम), ४.२.८३(विकटा आदि मातृकाओं द्वारा वीरेश्वर के पालन की कथा), ५.१.९(कपाल से मातृकाओं की उत्पत्ति, हालाहल दैत्य का भक्षण), ५.१.३४.८०(स्कन्द की रक्षार्थ वट मातृका, चर्पट मातृका, पौल मातृका), ५.१.३५(तैल मातृका), ५.१.३७(वट मातृका की उत्पत्ति), ५.१.३७(देवों द्वारा मातृकाओं की उत्पत्ति), ५.१.३८.३७(शिव द्वारा अवन्ती में चामुण्डा आदि माताओं की स्थापना), ५.१.६४.९(भैरव द्वारा मातृकाओं का वशीकरण), ५१६६, ५.१.७०(अष्ट मातृकाओं के नाम, योगिनी मातृका), ५.३.६६(मातृ तीर्थ का माहात्म्य), ६.८८(कालयवनों के वध के लिए अम्बा - वृद्धा के होम कुण्ड से मातृकाओं की उत्पत्ति, मातृकाओं की विचित्र मुखाकृतियां, अम्बा - वृद्धा द्वारा पादुकाओं से मातृकाओं का अनुशासन), ६.१८८(ब्रह्मा के यज्ञ में अष्टषष्टि मातृकाओं द्वारा स्थान पाना, सावित्री द्वारा मातृकाओं को शाप, औदुम्बरी द्वारा उत्शाप), ७.१.१६.२३(सुनन्दा प्रभृति मातृगणों द्वारा श्रीमुख नामक द्वार की रक्षा), ७.१.१६७(भूत मातृकाओं की शिव - पार्वती से उत्पत्ति, उत्सव), ७.१.१७०(मातृगण की पूजा का माहात्म्य), ७.१.१८२(मातृगण की पूजा का माहात्म्य), ७.१.१८५(देवमाता का माहात्म्य व पूजा विधि), ७.१.२२८(भैरवेश नामक मातृस्थान का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.३.२२(श्रीमाता का माहात्म्य : देवी द्वारा कलिङ्ग दानव से देवों की रक्षा), महाभारत शल्य ४६, योगवासिष्ठ ६.१.१८.१६(जया, विजया, अलम्बुषा आदि अष्ट मातृकाओं का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.२७.४१(सा†ध्वयों के माता नाम की निरुक्ति : मुक्त को मान प्रदान करने वाली), १.५११.१०५+ (ब्रह्मा के सोमयाग में उदुम्बरी को स्थान प्राप्त होने पर ६८ मातृकाओं को भी स्थान की प्राप्ति होना तथा सावित्री द्वारा मातृकाओं को शाप), १.५३९.५५(पार्वती के स्नान से उत्पन्न जल कर्दम से भूतमातृकाओं तथा शंकर के स्नान से भूतों की उत्पत्ति, शिव द्वारा भूतों और मातृकाओं के लिए आहार और वास का प्रबन्ध करना), २.१५३.८८(देवायतन के संदर्भ में मातृका होम का कथन), २.१५६.९६(देवायतन के संदर्भ में वर्ण मातृका न्यास), २.२०६.२९(स्थल, जल, जीव मातृकाओं के नाम), २.२७९.४५(मातृकाओं के प्रकार व मातृका स्थापन का महत्त्व), ३.६४.१०(नवमी तिथि को वंश रक्षाकर्त्री मातृकाओं की पूजा का निर्देश), कथासरित् ६.७.७१(वैश्य - कन्या मातृदत्ता द्वारा श्रुतसेन से विवाह, श्रुतसेन की मृत्यु पर आत्मदाह), ६.७.१५१(मातृदत्त नामक वैश्य के रोगी होने पर वैद्य द्वारा ओषधि प्रदान), ९.६.७६(नारायणी के साथ आए हुए मातृचक्र द्वारा भैरव का सत्कार ), द्र. भूतमातृका maatrikaa/ matrika
मात्रा विष्णुधर्मोत्तर १.६३.४९(मात्रा की निरुक्ति : भय से त्राण करने वाली), स्कन्द १.२.५.१०९(मात्र: ब्राह्मणों के ८ भेदों में से एक, लक्षण), लक्ष्मीनारायण १.५३३.१२०(शब्दादि मात्राओं के गजवक्त्र बनने का उल्लेख ), द्र. तन्मात्रा maatraa/ matra
मात्सर्य वराह १४८.४(नारायण देव में मात्सर्य का अभाव )
मात्स्य द्र. मत्स्य
मादन द्र. गन्धमादन
माद्री देवीभागवत ४.२२.४०(धृति का अंश), भागवत ९.२२.२८(पाण्डु व माद्री के पुत्रों नकुल व सहदेव का उल्लेख), १०.६१.१५(कृष्ण व माद्री/लक्ष्मणा के पुत्रों के नाम), मत्स्य ४५.१(वृष्णि की २ पत्नियों में से एक, युधाजित् आदि ५ पुत्रों के नाम), ४६.१०(पाण्डु - पत्नी माद्री से अश्विनौ के अंशों नकुल व सहदेव के जन्म का उल्लेख), ४७.१४(कृष्ण की पत्नियों में से एक), ५०.५५(सहदेव - पत्नी, सुहोत्र - माता), वायु ९६.१७/२.३४.१७(वृष्णि की २ भार्याओं में से एक, युधाजित् आदि पुत्रों के नाम), स्कन्द ४.२.६५.९(माद्रीश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), हरिवंश १.३४.२(क्रोष्टा - भार्या, युधाजित् आदि पुत्रों की माता), कथासरित् १६.३.३२(युवराज तारावलोक को माद्री के गर्भ से जुडवां पुत्रों की प्राप्ति, पुत्रों का पितामह द्वारा राम, लक्ष्मण नामकरण ) maadree/ madri
माधव गरुड ३.२९.४१(मुख प्रक्षालन काल में माधव के स्मरण का निर्देश), गर्ग १०.६१.२४(माधवाचार्य : ब्रह्मा के अंश), देवीभागवत ७.३०.६८(माधव वन में सुगन्धा देवी के वास का उल्लेख), नारद १.६६.८७(माधव की शक्ति तुष्टि का उल्लेख), २.५६.३(पुरुषोत्तम क्षेत्र में श्वेत माधव व मत्स्य माधव के दर्शन की महिमा), पद्म १.७२(मधु द्वारा हर रूप धारण कर विष्णु से युद्ध, विष्णु/माधव द्वारा मधु का वध), ५.९१.१३(मधुसूदन को प्रिय मास का माधव नाम), ५.९१(नारद द्वारा माधव मास के माहात्म्य का कथन), ५.९८(माधव मास में विष्णु पूजा की विधि – तुलसी का महत्त्व), ६.३४.२५(माधव द्वारा जाह्नवी को पाप निवृत्ति हेतु त्रिस्पृशा एकादशी व्रत के माहात्म्य एवं विधान का कथन), ६.१३२.६(चातक द्वारा माधव की अभीप्सा का उल्लेख), ६.१३३(श्री शैल में तीर्थ का नाम), ६.१८३(माधव ब्राह्मण द्वारा यज्ञ में अज की बलि की चेष्टा, अज द्वारा स्वयं के पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन, गीता के नवम अध्याय के माहात्म्य का कथन), ७.५+ (राजा विक्रम व हारावती - पुत्र, चन्द्रकला के दर्शन, प्लक्ष द्वीप में सुलोचना की प्राप्ति, भोगों से विरति पर मोक्ष की प्राप्ति), ब्रह्म १.५६(श्वेत राजा द्वारा स्थापित श्वेत माधव), ब्रह्मवैवर्त्त १.१९.३३(माधव से आग्नेयी दिशा में रक्षा की प्रार्थना), ३.३१.३९(माधव से लोमों की रक्षा की प्रार्थना), ३.३१.४५(माधव से स्वप्न व जागरण में रक्षा की प्रार्थना), ४.१२.१९(माधव से कर्ण, कण्ठ व कपाल की रक्षा की प्रार्थना), भविष्य ३.४.८.१०(द्विज, मध्वाचार्य - पिता), ३.४.१७.६०(माधव ब्राह्मण का जन्मान्तर में ध्रुव बनना), ३.४.२२.१६, २१(मुकुन्द - शिष्य, जन्मान्तर में वैजवाक्), भागवत ६.८.२१(माधव से सायंकाल में रक्षा की प्रार्थना - देवोऽपराह्णे मधुहोग्रधन्वा सायं त्रिधामावतु माधवो माम्), ९.२३.३०(वीतिहोत्र - पुत्र मधु के वंश की माधव/वृष्णि संज्ञा), १०.६.२५ (माधव से शयन समय में रक्षा की प्रार्थना), १२.११.३४(माधव/वैशाख मास में अर्यमा सूर्य के रथ पर स्थित गणों के नाम), मत्स्य ९.१२(औत्तम मनु के मास संज्ञाओं वाले १० पुत्रों में से एक), १३.३७(माधव वन में देवी की सुगन्धा नाम से स्थिति का उल्लेख), २२.९(प्रयाग में वटेश्वर की माधव सहित स्थिति का उल्लेख), ६१.२२(वसन्त ऋतु की माधव संज्ञा), २४८.५८(माधवीय स्तोत्र के अन्तर्गत पृथिवी द्वारा यज्ञवराह की स्तुति, माधवीय स्तोत्र का महत्त्व), २६०.२२ (शिवनारायण की प्रतिमा में वामार्ध में माधव की स्थिति का उल्लेख), २८५.१६(विश्वचक्र के वासुदेव में स्थित होने तथा विश्वचक्र के मध्य माधव की स्थिति का उल्लेख), वराह १.२५(माधव से कटि की रक्षा की प्रार्थना - माधवो मे कटिं पातु गोविन्दो गुह्यमेव च), ८८.३(क्रौञ्च द्वीप के वर्षों में से एक, अपर नाम कुशल), वामन ९०.३(केदार तीर्थ में विष्णु का माधव नाम), वायु ५२.५(मधु - माधव मास के सूर्य रथ की स्थिति का कथन), स्कन्द २.२.३७.५६(भगवत्कृपा से श्वेत राजा की श्वेतमाधव नाम से प्रसिद्धि), ४.२.६१.२१(माधव नाम से काशी के तीर्थों का माहात्म्य), ४.२.६१.८४(विष्णु की वैकुण्ठ माधव, वीर माधव, काल माधव मूर्तियों का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.६१.२२३(माधव की मूर्ति के लक्षण व महिमा), ४.२.८४.२७(शङ्ख माधव तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.१४९.९(भिन्न - भिन्न मासों में भिन्न - भिन्न नामों से देवाराधन के अन्तर्गत माघ मास में माधव, वैशाख में मधुहन्ता नाम से अर्चन), ७.१.२९९(शुक्ल एकादशी को माधव का माहात्म्य), हरिवंश २.३८.२(यदु व नागकन्या - पुत्र, यदु के राज्य का पालन), लक्ष्मीनारायण १.२६५.९(माधव की पत्नी नित्या का उल्लेख), २.६.१२(माधव की निरुक्ति), ३.६४.१३ (द्वादशी तिथि को माधव पूजा से मधु व रस प्राप्ति का उल्लेख), ४.४५.१३(कच्छ प्रदेश के राजा माधवराय द्वारा श्रीहरि को अपने नगर भुजङ्ग नगर ले जाना, श्रीहरि द्वारा राजा माधवराय के परिवार को शबलाश्वों व हर्यश्वों से दीक्षा प्राप्त करने का निर्देश), कथासरित् ५.१.८१(रत्नपुर नगर वासी शिव और माधव नामक दो धूर्त्तों की कथा), ६.१.८७(राजा धर्मदत्त की पत्नी नागश्री का पूर्वजन्म में माधव नामक ब्राह्मण की दासी होने का उल्लेख ), द्र. बिन्दुमाधव maadhava/ madhava
माधवी गर्ग ४.१९.१६(यमुना सहस्रनामों में से एक), देवीभागवत ७.१९.५१ (हरिश्चन्द्र - भार्या, रोहित - माता), ९.१७.१(धर्मध्वज - भार्या, तुलसी को जन्म), नारद १.६६.११७(पिनाकी की शक्ति माधवी का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.१५(धर्मध्वज - पत्नी, तुलसी को जन्म देना), ४.९४(राधा - सखी माधवी द्वारा राधा को सांत्वना), भागवत १०.२.१२(यशोदा के गर्भ से जन्म लेने वाली योगमाया के नामों में से एक), १०.८४.१(सुभद्रा की माधवी संज्ञा), मत्स्य १३.३१(श्रीशैल तीर्थ में देवी का माधवी नाम से वास), २४८.५८(माधवीय स्तोत्र के अन्तर्गत पृथिवी द्वारा यज्ञवराह की स्तुति, माधवीय स्तोत्र का महत्त्व), वामन ५७.९३(सप्तसारस्वत तीर्थ द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण), ५७.९६(बदरिकाश्रम द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण), वायु ४७.७१(माध्वी : रुद्राजया नामक १२ सरोवरों से नि:सृत २ नदियों में से एक), ९१.१०३(माधवी का दृषद्वती से साम्य ?), विष्णु १.४.२०(पृथिवी का नाम), स्कन्द ४.१.२९.१३४(गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ४.२.७४.७४(पुष्पवटु - सुता, पूर्व जन्म में भेकी, ओंकारेश्वर लिङ्ग की पूजा व माधवीश्वर लिङ्ग में लीन होना), ५.३.१९८.६९(श्रीशैल क्षेत्र में देवी का माधवी नाम से वास), ६.८१(गरुड के मित्र ब्राह्मण की कन्या, पति अन्वेषण के संदर्भ में विष्णु से मिलन, लक्ष्मी द्वारा अश्वमुखी होने का शाप, जन्मान्तर में कृष्ण - भगिनी सुभद्रा बनना), योगवासिष्ठ ५.३४.८७(पुष्पमयता के माधवी शक्ति होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.२६५.९(मधुसूदन की पत्नी माधवी का उल्लेख), १.४९२.३(लक्ष्मी की छाया रूप विप्र - कन्या माधवी द्वारा गरुड पर आरूढ होकर पति की खोज, विष्णु का पति रूप में वरण, लक्ष्मी के शाप से वृद्धा शाण्डिली बनना, ज्ञानवृद्धा आदि गुण), १.४९३.२(विष्णु के वाम व दक्ष पाद सेवन पर लक्ष्मी से विवाद, क्रमशः अश्वमुखी व गजमुखी बनना), १.४९८.५१(विप्रों के शाप से रानी दमयन्ती का शिला बनना, माधवी द्वारा शिला के उद्धार का कथन), १.५०१.७१(शाण्डिल्य - कन्या माधवी द्वारा तृतीया व्रत से जैमिनि को पति रूप में प्राप्त करने का वृत्तान्त), ३.३६.३०(मधुभक्ष दैत्य के नाशार्थ मधुनारायण तथा माधवीश्री के प्राकट्य का वृत्तान्त), ४.२६.५७(माधवी - पति कृष्ण की शरण से काम से मुक्ति का उल्लेख), ४.१०१.९७(कृष्ण की पत्नियों में से एक, मधुकृत् व मधुकी युगल की माता ) maadhavee/ madhavi
माध्यन्दिन भागवत १२.६.७४(कण्व व माध्यन्दिन आदि ऋषियों द्वारा याज्ञवल्क्य से यजुर्वेद की शाखाओं की प्राप्ति का कथन), मत्स्य २००.१५(मध्यन्दिन : त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वराह १७७.४९(सूर्य द्वारा साम्ब युक्त होकर याज्ञवल्क्य को माध्यन्दिन यज्ञ की शिक्षा देने का उल्लेख ), द्र. वंश ध्रुव maadhyandina/ madhyandina
मान ब्रह्माण्ड १.२.३६.१४(महामान : परावत गण के देवों में से एक), भविष्य ३.४.२२.४१(पूर्व जन्म में मुकुन्द - शिष्य मानकार का जन्मान्तर में मीरा भक्त रूप में जन्म), ४.४६.८(मानमानिका : पुरोहित - पत्नी, व्रत भङ्ग से कुक्कुटी बनना), वायु ५०.१८८(मान के ४ प्रकारों सौर, सौम्य, नक्षत्र व सावन का उल्लेख), ७०.६९/२.९.६९(मानरसा : भद्राश्व व घृताची की १० अप्सरा कन्याओं में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.५६.३५(मान की गुह्यों में श्रेष्ठता का उल्लेख), ३.२४३(मान के दोष व फल), स्कन्द ५.३.१५५.८९(मानकूट, तुलाकूट व कूटक बोलने वाले को अन्धतामिस्र नरक की प्राप्ति), महाभारत वन ३१३.७८(मान के त्याग से प्रिय होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद), ३१३.९३(आत्माभिमानता के मान होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद), लक्ष्मीनारायण ३.११.१(मान नामक वत्सर में कोशस्तेन राक्षस द्वारा बीज हरण का वृत्तान्त), कथासरित् ७.९.६८(मानपरा : अर्थलोभ नामक वणिक् की पत्नी ), द्र. कालमान, कीर्तिमान, केतुमान्, पशुमान, मणिमान maana
मानव मत्स्य १९६.५०(पञ्चार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), २९०.८(२०वें कल्प का नाम), स्कन्द ७.१.२१८(मानवेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, मनु की सुत हत्या पाप से मुक्ति), लक्ष्मीनारायण ३.२६.१(मानव वत्सर में हल्लक असुर द्वारा शिव के शिर: छेदन और विष्णु द्वारा शिव के पुनरुज्जीवन का वृत्तान्त), ३.२३३.३(मन्त्री द्वारा श्री नगर के अकर्मण्य राजा मानवेश को च्युत करने का वृत्तान्त ) maanava/ manava
मानस अग्नि ११५ (गया के अन्तर्गत उत्तर व दक्षिण मानस तीर्थों का कथन), पद्म ३.२१.८(मानस तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ब्रह्माण्ड १.२.१९.४५(महिष पर्वत के मानस वर्ष का उल्लेख), १.२.१९.११२(मानसोत्तर : पुष्कर द्वीप का एकमात्र पर्वत), मत्स्य १३.२७(मानस पीठ में देवी की कुमुदा नाम से स्थिति का उल्लेख), १५.१२(वसिष्ठ के पुत्र रूप पितरों की मानस संज्ञा), १५.२५(मानस लोकों में सोमप पितरों की स्थिति का उल्लेख), १०७.२(प्रयाग में मानस तीर्थ के माहात्म्य का कथन), १२३.१६(पुष्कर द्वीप के पश्चिम में मानस गिरि की स्थिति का कथन), १९४.८(नर्मदा तटवर्ती मानस तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : रुद्र लोक की प्राप्ति), वराह ८९.४(मानस पर्वत की पुष्कर खण्ड में स्थिति), १२६.३१(मानस तीर्थ का वर्णन), १४१.३६(मानसोद्भेद तीर्थ का माहात्म्य), १५४.२७(मानस तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), वामन ५७.९५(मानस ह्रद द्वारा स्कन्द को गण प्रदान का उल्लेख), ९०.१(मानस ह्रद में विष्णु के मत्स्य रूप का उल्लेख), वायु ९.१७(ब्रह्मा द्वारा मानस पुत्रों की सृष्टि), ३३.३०(शाल्मलि द्वीप के स्वामी वपुष्मान् के ७ पुत्रों में से एक तथा वर्ष नाम), ४९.३९(शाल्मलि द्वीप के महिष पर्वत के वर्ष रूप में मानस का उल्लेख), ४९.१०७(पुष्कर द्वीप के परित: मानस पर्वत की स्थिति का कथन), ५०.८७(मेरु की विभिन्न दिशाओं में मानस की मूर्द्धा पर इन्द्र, यम, वरुण आदि के पुरों की स्थिति का कथन), ७३.४७/२.११.९०(वसिष्ठ प्रजापति के सुकाल नामक पितरों की मानस लोकों में स्थिति का उल्लेख), १०१.४४/२.३९.४४(महर्लोक निवासियों द्वारा प्राप्त मानसी सिद्धि के ५ लक्षणों का कथन), १११.२/२.४९.२(उत्तर मानस का माहात्म्य), विष्णु २.४.६९(शाकद्वीप के वैश्यों की संज्ञा), स्कन्द २.३.६.४८(बदरी क्षेत्र में मानसोद्भेद तीर्थ का माहात्म्य), २.८.१०.४३(पांच आध्यात्मिक मानस तीर्थों के नाम), ४.१.६.२६(मानस तीर्थों के अगस्त्य - प्रोक्त आध्यात्मिक नाम), ५.३.१९८.६५(मानस तीर्थ में देवी का कुमुदा नाम से वास), वा.रामायण १.२४.९(सरयू नदी के कैलास पर्वत पर स्थित मानस सरोवर से नि:सृत होने का उल्लेख), ७.१२.२५(शैलूष गन्धर्व की कन्या सरमा का मानस तट पर जन्म, सरमा नाम धारण के हेतु का कथन), लक्ष्मीनारायण २.१४०.८३(मानसतुष्टि नामक प्रासाद के लक्षण), २.१७६.२७(ज्योतिष के योगों में से एक), ४.१०१.८५(मानसा : कृष्ण की पत्नियों में से एक, सम्मानेश व सुधोदरी युगल की माता), कथासरित् ७.५.३८(उत्तर मानस : राजा वीरभुज द्वारा रनिवास अध्यक्ष सुरक्षित को तीर्थयात्रा हेतु उत्तरमानस आदि स्थलों में भेजना), ८.३.८७(सूर्यप्रभ आदि द्वारा मानस सरोवर की शोभा का दर्शन, सरोवर से नि:सृत मेघ से सूर्यप्रभ को धनुष की सिद्धि ), द्र. भूगोल, मन्वन्तर maanasa/ manasa
मानसरोवर मत्स्य २०.१७+ (कौशिक - पुत्रों द्वारा जन्मान्तर में मानस में चक्रवाक रूप में जन्म लेने पर नाम व कर्म का वृत्तान्त), ७०.२०(मानसरोवर में क्रीडारत अप्सराओं द्वारा नारद से शाप व वरदान प्राप्ति का वृत्तान्त), ११३.४६(मेरु के परित: स्थित ४ सरोवरों में से एक), १२१.१६(वैद्युत गिरि के पाद में स्थित मानस सरोवर से सरयू नदी के प्रसूत होने का कथन), वायु ३६.१६(मेरु के पश्चिम में मानस सरोवर की स्थिति का उल्लेख), ३६.२१(मानस सर के दक्षिण में स्थित पर्वतों के नाम), ४२.२७(गङ्गा द्वारा गन्धमादन पर्वत से मानस नामक उत्तर सर में प्रवेश करने व मानस से त्रिशिखर गिरि पर जाने का उल्लेख), ४७.१४(वैद्युत गिरि के पाद में स्थित मानसरोवर से सरयू नदी के नि:सरण का कथन), ७७.११०/२.१५.११०(मानस सरोवर पर द्युलोक से पतित गङ्गा के अद्भुत दर्शन का कथन), १११.४/२.४९.४(मानसरोवर से आगे उत्तरमानस की स्थिति का कथन), स्कन्द १.२.१०.४(प्राकारकर्ण उलूक के कथनानुसार इन्द्रद्युम्न, मार्कण्डेय, गृध्र, बक तथा उलूक का मानसरोवर स्थित मन्थरक नामक कूर्म के समीप गमन), ६.२७१.२४५(वही), लक्ष्मीनारायण १.५२०(मानसरोवरस्थ कच्छप द्वारा राजा इन्द्रद्युम्न को अपने पूर्व जन्म का वृत्तान्त सुनाना), १.५४१.६(मानसरोवर पर अङ्गुष्ठ पुरुष युक्त पद्म को ग्रहण करने की चेष्टा से राजा नन्द के कृष्ण वर्ण होने का वृत्तान्त ) maanasarovara/ manasarovara
मानसवेग कथासरित् १४.१.१६(मानसवेग विद्याधर द्वारा कलिङ्गसेना से मदनमञ्चुका की याचना), १४.२.१२९(मदनमञ्चुका द्वारा नरवाहनदत्त से मानसवेग द्वारा स्वहरण तथा मुक्ति के वृत्तान्त का कथन), १७.१.६(नरवाहनदत्त द्वारा मुनियों से मानसवेग द्वारा मदनमञ्चुका के हरण की कथा ) maanasavega/ manasavega
मानसिंह भविष्य ३.४.२२.२३(अकबर - सेनापति, पूर्व जन्म में सोमपा), कथासरित् १८.५.१९८(श्रीकामरूप के राजा),
मानसोत्तर भागवत ५.२०.३०(पुष्कर द्वीप के मध्य में स्थित मानसोत्तर पर्वत पर ४ लोकपालों की पुरियों की स्थिति तथा सूर्य रथ के संवत्सर चक्र के भ्रमण का कथन), ५.२१.१३(सूर्य के संवत्सर चक्र के मानसोत्तर पर भ्रमण का कथन ) maanasottara/ manasottara
मानस्तोक मत्स्य २३९.९(ग्रह याग में मानस्तोक मन्त्रों के विनियोग का उल्लेख )
मानिनी गरुड १.९०.५(प्रम्लोचा व पुष्कर - कन्या, रुचि प्रजापति से विवाह, रौच्य पुत्र की माता), मार्कण्डेय १०९.१०/१०६.१०(राजा राज्यवर्द्धन की पत्नी मानिनी द्वारा राजा के श्वेत केश देखकर आंसू बहाना, प्रजाजनों द्वारा राजा की आयु वृद्धि के लिए तप, राजा व पत्नी मानिनी द्वारा प्रजाजनों की आयु वृद्धि हेतु तप), हरिवंश ३.१.७(श्वेतकर्ण - भार्या मानिनी द्वारा अपने नवजात शिशु अजपार्श्व को त्याग पति का ही अनुगमन करने का वृत्तान्त ) maaninee/ manini
मानुष पद्म ३.२६.६१(मानुष तीर्थ का माहात्म्य), वायु ६.६४/१.६.५८(सप्तम अर्वाक् स्रोत सर्ग की मानुष संज्ञा), ४४.२२(मानुषी : केतुमाल देश की नदियों में से एक ) maanusha/ manusha
मान्धाता गर्ग ४.१५+ (मान्धाता द्वारा स्व - जामाता सौभरि से सिद्धि सम्पन्न राज्य प्राप्ति के उपाय की पृच्छा, सौभरि से यमुना पञ्चाङ्ग का श्रवण), ६.२.१४(मुचुकुन्द - पिता, मुचुकुन्द द्वारा कालयवन को भस्म करने का प्रसंग), देवीभागवत ७.९.४०(यौवनाश्व की पुत्रेष्टि से मान्धाता की उत्पत्ति की कथा), ७.१०.४(बिन्दुमती - पति, त्रसद्दस्यु उपनाम, पुरुकुत्स व मुचुकुन्द - पिता), नारद २.१(पाप दहन हेतु मान्धाता द्वारा वसिष्ठ से एकादशी के माहात्म्य का श्रवण), पद्म ६.४५+ (मान्धाता की वसिष्ठ से एकादशी व्रत के सम्बन्ध में जिज्ञासा), ६.४६(मान्धाता के पूछने पर लोमश द्वारा पापमोचिनी एकादशी के माहात्म्य का वर्णन), ६.५७(राज्य में वृष्टि हेतु मान्धाता द्वारा पद्मा एकादशी व्रत), ब्रह्म १.५.९२(युवनाश्व - पुत्र, चैत्ररथी - पति, पुरुकुत्स व मुचुकुन्द - पिता), ब्रह्माण्ड २.३.६६.८६(तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले क्षत्रोपेत द्विजातियों में से एक), भविष्य ३.४.२२.४०(मान्धाता का जन्मान्तर में भूपति कायस्थ बनना), ४.८३.१४०(कार्तिक द्वादशी में करणीय धरणी व्रत के अनुष्ठान से युवनाश्व को मान्धाता नामक पुत्र की प्राप्ति), भागवत ९.६.३०(युवनाश्व से मान्धाता के जन्म की कथा, बिन्दुमती - पति, अम्बरीष व मुचुकुन्द आदि के पिता, त्रसद्दस्यु आदि उपनाम), ९.७.१(अम्बरीष - पिता, मान्धातृ प्रवरों के नाम), १०.५१.१४(मान्धाता - पुत्र मुचुकुन्द का वृत्तान्त), मत्स्य १२.३४(युवनाश्व - पुत्र, पुरुकुत्स, धर्मसेन तथा मुचुकुन्द - पिता), ४७.२४३(उत्तङ्क पुरोहित के साथ मान्धाता अवतार का कथन), ४९.८(रन्तिनार - कन्या गौरी के मान्धाता - जननी होने का उल्लेख), १४५.१०२(३३ मन्त्रकृत् अङ्गिरसों में से एक), वायु ५९.९९(३३ मन्त्रकृत् अङ्गिरसों में से एक), ८८.६८/२.२६.६८(युवनाश्व व गौरी - पुत्र मान्धाता के सूर्योदय से सूर्यास्त तक क्षेत्र होने का कथन, बिन्दुमती पत्नी से उत्पन्न ३ पुत्रों के नाम), ९१.११५/२.२९.१११(तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले क्षत्रोपेतों में से एक), ९८.९०/२.३६.८९(त्रेतायुग में उतथ्य/तथ्य के साथ चक्रवर्ती मान्धाता अवतार का उल्लेख), ९९.१३०/२.३७.१२६(मान्धाता - जननी के रूप में गौरी का उल्लेख), विष्णु ४.२.१७(युवनाश्व से मान्धाता के जन्म की कथा, मान्धाता - कन्याओं के सौभरि ऋषि से विवाह की कथा), ४.३(मान्धाता की सन्तति का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर १.१७०(युवनाश्व की कुक्षि से मान्धाता के जन्म का प्रसंग, पूर्व जन्म में शूद्र, प्रभावती भार्या), १.२००.६(लवणासुर द्वारा शूल से मान्धाता का वध), स्कन्द १.२.१३.१८६(शतरुद्रिय प्रसंग में मान्धाता द्वारा शर्करा लिङ्ग की बाहुयुग नाम से पूजा का उल्लेख), ४.२.८३.७२(मान्धातृ तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.५६.८(रेवा, चर्मण्वती, क्षाता नदियों के परस्पर रमण का क्षेत्र), हरिवंश १.१२.६(युवनाश्व - पुत्र व बिन्दुमती - पति मान्धाता के वंश का वर्णन), १.३२.८७(मान्धाता द्वारा अङ्गारसेतु का वध), वा.रामायण ७.६७(लवणासुर द्वारा शूल से मान्धाता का वध), लक्ष्मीनारायण १.२५७.६१(मान्धाता के राज्य में शूद्र द्वारा तप करने के कारण वर्षा न होना, मान्धाता द्वारा भाद्र शुक्ल पद्मा एकादशी व्रत के प्रभाव से वर्षा कराने का वृत्तान्त ) maandhaataa/ mandhata
मामु स्कन्द ७.३.३५(मामु ह्रद की उत्पत्ति, स्वर्ग न जाने के लिए मुद्गल द्वारा देवदूत व इन्द्र का स्तम्भन),
माय ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८१(भण्डासुर के सेनापति पुत्रों के रूप में महामाय, अतिमाय, बृहन्माय, उपमाय का उल्लेख )
माया गरुड १.२१.५(अघोर शिव की ८ कलाओं में से एक), ३.१६.६(वासुदेव-भार्या), गर्ग ५.१७.१७(उद्धव से कृष्ण का संदेश सुनकर माया यूथ की गोपियों के उद्गार), देवीभागवत ४.४.२४(त्रिगुणात्मिका माया द्वारा विश्व का निर्माण), ५.६.७(महिषासुर द्वारा युद्ध में शम्बर माया का प्रयोग, सुदर्शन चक्र से माया का नष्ट होना), ६.२८(नारद द्वारा माया दर्शन की उत्सुकता पर तालध्वज की स्त्री बनकर संसार की माया का दर्शन), ७.३२+ (माया की महिमा), १२.६.१२२(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.११८.२८(पौष शुक्ल नवमी को महामाया की पूजा), पद्म १.४०.१३९(माया रूपी विशाल वृक्ष का वर्णन), ६.२२७.५२(अविद्या व योगमायाओं का कथन), ६.२२८.७५(महामाया द्वारा ईश्वर की स्तुति), ब्रह्म १.७३(जगद्धात्री, योगनिद्रा, योगमाया आदि नाम, माया द्वारा देवकी के गर्भ से सप्तम गर्भ का कर्षण कर रोहिणी के गर्भ में स्थापन, यशोदा के उदर में माया का प्रवेश, कंस द्वारा बालिका रूप धारी माया का ताडन करने पर बालिका का स्व स्वरूप धारण कर आकाश में गमन, कंस की भर्त्सना), १.१२१(सुतपा ऋषि द्वारा माया दर्शन की इच्छा, नारद द्वारा माया दर्शन का वृत्तान्त), २.६४(ऋषियों के सत्र की रक्षा के लिए ब्रह्मा द्वारा प्रमदा रूपी माया का निर्माण, शम्बर द्वारा माया का भक्षण), ब्रह्मवैवर्त्त ३.६.८३(नारायणी माया सबकी माता तथा कृष्ण भक्ति प्रदाता, अपर नाम मूल प्रकृति तथा ईश्वरी), ३.३७.१९(आद्या माया से अधोदिशा की रक्षा की प्रार्थना), ३.३९.१५(महामाया से प्राची दिशा की रक्षा की प्रार्थना), ३६८२, ब्रह्माण्ड ३.४.२३(सर्पिणी माया), भविष्य ३.३.१३.११४(हरानन्द द्वारा शाम्बरी माया का प्रयोग करके शत्रुओं को पाषाण बनाना), ४.३(वैष्णवी माया, नारद द्वारा स्त्री रूप धारण करके वैष्णवी माया का दर्शन), ब्रह्माण्ड १.१.५.१९(यज्ञवराह के माया - पति होने का उल्लेख), ३.४.२३.१६(भण्डासुर के सेनापतियों द्वारा युद्ध में ललिता देवी की शक्तियों के विरुद्ध सर्पिणी माया का प्रयोग, नकुली देवी द्वारा गरुड पर आरूढ होकर सर्पिणी माया का नाश), भागवत १.२.३०(निर्गुण भगवान् द्वारा आत्ममाया से गुणात्मक सृष्टि करने का कथन), २.३.३(श्रीकामी द्वारा देवी माया की अर्चना का निर्देश), ३.५.२६(माया का दृश्य - द्रष्टा से सम्बन्ध, पुरुष द्वारा काल वृत्ति से माया में वीर्य आधान करके सृष्टि रचना का कथन), ४.८.२(अधर्म व मृषा - कन्या, निकृति/शठता - माता), ५.२४.८(अतल आदि अध:लोकों में मायाविनोदों के निवास का उल्लेख), ६.५.८, १६(उभयतोवाहा नदी के रूप में माया का कथन), ६.५.१६(सृष्टि और प्रलय करने वाली), ८.१२(वैष्णवी माया द्वारा मोहिनी रूप में शंकर का मोहन), ११.११.१(गुणों के मायामूलक होने तथा माया द्वारा मोक्ष बन्धनकारी विद्या - अविद्या की सृष्टि करने का कथन), मत्स्य १०.२१(असुरों द्वारा पृथिवी रूपा गौ से माया दोहन का कथन), १३.३४(मायापुरी तीर्थ में देवी का कुमारी नाम से वास), १९.९(दानवों का भोजन माया होने का उल्लेख), १७५(मय द्वारा और्वी माया का प्रयोग, माया की उत्पत्ति के प्रसंग में ऊर्व ऋषि से माया की उत्पत्ति), १७६(मय द्वारा प्रकट शैल माया का अग्नि व वायु द्वारा शमन), २२२.२(राजाओं द्वारा प्रयोग हेतु उपायों में से एक), मार्कण्डेय ८३.२९(महिषासुर द्वारा महिष रूप को त्याग माया से सिंह, पुरु, व महिष रूप धारण), वराह १७.४४(शरीरस्थ माया की दुर्गारूपता का उल्लेख), १२५.५(वराह/विष्णु द्वारा पृथिवी को संसार में माया से हो रही घटनाओं के उदाहरणों का वर्णन), १२५.५८(सोमशर्मा ब्राह्मण द्वारा माया के रहस्य को जानने की इच्छा, निषादी स्त्री बनना, पुन: ब्राह्मण बनना, मायापुरी का माहात्म्य), वामन २.१०(अमाया : भरद्वाज - भार्या), वायु १०.३९(निकृति व अनृत से भय, नरक, माया व वेदना की उत्पत्ति तथा भय व माया से मृत्यु की उत्पत्ति का कथन), ६९.३३६/२.८.३३६ (दनु के मायाशीला होने का उल्लेख), ९४.१५/२.३२.१५(युद्ध काल में कार्त्तवीर्य अर्जुन को माया द्वारा सहस्र बाहु, रथ, ध्वज आदि प्राप्त होने का उल्लेख), १०१.२१८/२.३९.२१८(महेश्वर द्वारा माया से परम मायामय स्थान की सृष्टि का कथन), १०४.४१/२.४२.४१(माया चित्रकारी द्वारा जीव में ब्रह्माण्ड को भित्ति रूप में निर्मित करने का उल्लेख), १०४.७५/२.४२.७५(अधरोष्ठ? में माया तीर्थ की स्थिति का उल्लेख), विष्णु ३.१७.४१(दैत्यों की पराभव हेतु विष्णु द्वारा मायामोह की उत्पत्ति, देवों को प्रदान), ३.१८(मायामोह द्वारा दैत्यों का मोहन, दैत्यों द्वारा वेदमार्ग का त्याग), ५.२७.१९(प्रद्युम्न द्वारा शम्बर वध के लिए सात मायाओं को त्याग अष्टमी माया का प्रयोग), शिव ५.४.१५ (शिव माया के प्रभाव का वर्णन), स्कन्द ५.१.२०.१५(सनातनी महामाया को परम भक्ति से देखने वाले के विष्णुमाया से मुक्त होकर परम पद प्राप्त करने का उल्लेख), ५.२.४.१६(देवी से युद्ध करते हुए वज्रासुर द्वारा तामसी माया का सृजन), ५.३.९७.५३(तामसी माया से अभिभूत पराशर द्वारा कैवर्त्त कन्या का आलिङ्गन, व्यास के जन्म का वृत्तान्त), ५.३.१०३.६८(वैष्णवी माया का एरण्डी नाम से वास, एरण्डी तीर्थ का माहात्म्य), हरिवंश १.४५.१८(मय द्वारा रचित और्व माया), १.४६.२४(मय द्वारा प्रयुक्त पार्वती माया), १.५०.२७(विष्णु के शरीर से प्रकट हुई निद्रारूप तमोमयी माया का वर्णन), २.१०६.२९(शम्बर द्वारा प्रद्युम्न से युद्ध में प्रयुक्त मायाओं के नाम, मायाओं को नष्ट करने वाले अस्त्रों के नाम, शम्बर द्वारा पन्नगी माया का प्रयोग, प्रद्युम्न द्वारा सौपर्णी माया से पन्नगी माया को नष्ट करना), महाभारत आश्वमेधिक ८०.४५(उलूपी द्वारा अर्जुन की मृत्यु रूपी मोहनी माया का प्रदर्शन), योगवासिष्ठ ५.३४.८८(मायामयता के याक्षी शक्ति होने का उल्लेख), ५.४८.४०(गाधि द्वारा भगवान् की महती माया का दर्शन, माया के महत्त्व का कथन), ६.२.८.१०(संसार रूपी माया मण्डप के स्वरूप का निरूपण), ६.२.६०.११(वसिष्ठ द्वारा जगन्मयी माया के दर्शन), लक्ष्मीनारायण १.२३२.६(मायानन्द विप्र द्वारा काशी में पाप कर्म करने से वज्रलेप संज्ञक पाप की प्राप्ति, मृत्यु पश्चात् विभिन्न योनियों की प्राप्ति, द्वारका यात्रा के पुण्य की प्राप्ति से मुक्ति), १.५४३.७२, १.५७०(संसार में दृष्ट माया के उदाहरणों का वर्णन, माया तीर्थ के माहात्म्य के संदर्भ में सोमशर्मा विप्र के निषादी रूप में जन्म लेकर माया के दर्शन करने का वृत्तान्त), २.११७(महामाया में श्रीहरि के तेज/ वह्नि के प्रवेश से क्षोभ होने और वैराज आदि की उत्पत्ति का कथन), ३.३९.६१(दिव्य रूपा माया के जीव के कर्मों के अनुसार सात्विक, राजस व तामस भेदों का कथन), ३.७१.१०(महामाया प्रकृति द्वारा कृष्ण की स्तुति तथा सृष्टि हेतु प्रार्थना, सृष्टि हेतु वासुदेव का अनिरुद्ध, प्रद्युम्न व संकर्षण रूप में त्रिपाद् रूप होना), ३.१७२.९(श्रीहरि के आत्मा में निवास से माया की निवृत्ति होने का दृष्टान्तों सहित कथन), ४.२६.५३(श्रीपति गोपाल की शरण से माया से मुक्ति का उल्लेख), ४.१०५+ (कामरूप देश के नास्तिक राजा मायापाल द्वारा यमयातनाओं का भोग, सनत्कुमार द्वारा यमयातनाओं से मुक्ति दिलाना), कथासरित् ३.३.१८(असुरराज मायाधर की इन्द्र के साथ युद्ध में मृत्यु), गोपालोत्तरतापिन्युपनिषद १७(आद्या माया शार्ङ्ग होने का उल्लेख ), द्र. अमाया, योगमाया maayaa/ maya
मायापुरी देवीभागवत ७.३०.६४(मायापुरी में कुमारी देवी के वास का उल्लेख), पद्म ६.८८.३५(मायापुरी निवासी देवशर्मा ब्राह्मण की कन्या गुणवती का कृष्ण - भार्या सत्यभामा बनना, कृष्ण द्वारा सत्यभामा के पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन), मत्स्य १३.३४(मायापुरी में सती देवी की कुमारी नाम से स्थिति का उल्लेख), २२.१०(श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थों में से एक), वराह १२५.७६(सोमशर्मा विप्र द्वारा भगवान् की माया के दर्शन की इच्छा, कुब्जाम्रक में निषादी स्त्री के रूप में जन्म लेकर माया के दर्शन का वृत्तान्त, तत्पश्चात् माया तीर्थ में तप करने से मुक्ति प्राप्ति की कथा), वायु १०४.७५/२.४२.७५(माया पुरी की आधार में स्थिति का उल्लेख), स्कन्द ४.१.७(शिवशर्मा की मायापुरी यात्रा, देहान्त, मुक्ति), ४.१.२४.६३(शिवशर्मा द्विज की मायापुरी में मृत्यु से स्वर्ग प्राप्ति, पुन: पृथ्वी तल पर राजा होकर काशी में मोक्ष प्राप्ति का वृत्तान्त), ५.३.१९८.७१(मायापुरी में देवी का कुमारी नाम से वास), लक्ष्मीनारायण ४.१०५(कामरूप के दुष्ट राजा मायापाल का वृत्तान्त, यमदूतों द्वारा मायापाल का पीडन, सनत्कुमार द्वारा मायापाल पर कृपा), कथासरित् १८.४.५५(शबरराज एकाकिकेसरी का पूर्वजन्म में मायापुरी नगरी में चन्द्रस्वामी नामक ब्राह्मण होने का वृत्तान्त ) maayaapuree /mayapuriङ
मायाबटु कथासरित् १२.४.४(भिल्लराज मायाबटु की मृगाङ्कदत्त द्वारा जलमानवों से रक्षा), १२.३५.२७(श्रुतधि द्वारा मृगाङ्कदत्त की सहायतार्थ पुलिन्दराज मायाबटु को बुलाने का परामर्श )
मायावती ब्रह्मवैवर्त्त ४.११२(प्रद्युम्न जन्म का आख्यान, मायावती द्वारा प्रद्युम्न का पालन), ४.११५.७९(मायावती के रति की छाया होने का उल्लेख), भागवत १०.५५(शम्बर - दासी, रति का रूप, प्रद्युम्न का पालन), विष्णु ५.२७(मायावती रूपी रति द्वारा शम्बर के अन्त:पुर में प्रद्युम्न का पालन), स्कन्द १.१.२१.११२(शम्बर द्वारा रति का अपहरण करके मायावती नाम रखना), हरिवंश २.१०४(शम्बर - भार्या, प्रद्युम्न का पालन व प्रद्युम्न से संवाद), २.१०८.२६(प्रद्युम्न - भार्या), कथासरित् २.५.३५(विद्याधरी, शाप से हस्तिनी रूप धारण ) maayaavatee/ mayavati,
मायावर्मा भविष्य ३.३.३१.४३(अङ्ग देश का राजा, प्रमदा - पति, मत्त आदि १० पुत्रों का पिता, पुत्री पर कितव दैत्य की आसक्ति पर दैत्य वध का उद्योग), ३.३.३२.१०१(पृथ्वीराज - सेनानी, जगन्नायक से युद्ध )mayavarma/ maayaavarmaa
मायावी ब्रह्माण्ड २.३.६.२९(मय व रम्भा के ६ पुत्रों में से एक, मन्दोदरी - भ्राता), वायु ६८.२८/२.७.२८(मय के पुत्रों में से एक), वा.रामायण ४.९.४(मय - पुत्र, दुन्दुभि - भ्राता, बाली से युद्ध), ७.१२.१३(मयासुर व हेमा - पुत्र, दुन्दुभी व मन्दोदरी - भ्राता ) maayaavee/ mayavi,
मायी भविष्य ३.४.१२.१७(मय - पुत्र, त्रिपुर का निर्माण, शिव द्वारा त्रिपुर का ध्वंस),
मारिषा अग्नि १८.२६(कण्डु मुनि के अंश व प्रम्लोचा अप्सरा के गर्भ से मारिषा का प्राकट्य, सोम द्वारा प्रचेताओं को प्रदान, मारिषा से दक्ष की उत्पत्ति), ब्रह्म १.६९.९९(प्रम्लोचा के स्वेद और कण्डु के वीर्य से मारिषा के जन्म का वृत्तान्त, वृक्षों द्वारा पालन), ब्रह्मवैवर्त्त ४.७.५(देवमीढ - पत्नी, वसुदेव - माता), ब्रह्माण्ड १.२.३७.३७(वृक्षों की पुत्री, १० प्रचेताओं से विवाह, दक्ष प्रजापति को जन्म), भागवत ४.३०(मारिषा का प्रम्लोचा से जन्म, चन्द्रमा द्वारा पालन, प्रचेताओं से विवाह), ४.३१.१(विवेक होने पर प्रचेताओं द्वारा भार्या मारिषा को पुत्र के पास छोडकर गृह से निष्क्रमण का उल्लेख), ९.२४.२७(शूर व मारिषा से उत्पन्न वसुदेव आदि १० पुत्रों के नाम), मत्स्य ४.४९(सोम - कन्या, प्रचेताओं से विवाह, दक्ष को जन्म), वायु ३०.६१(शिव के शाप से दक्ष का मारिषा/माषाद व प्रचेतस - पुत्र के रूप में जन्म लेने का कथन), ६३.३४/२.२.३४(वृक्षों व पृथिवी से उत्पन्न कन्या मारिषा व प्रचेताओं से दक्ष के जन्म का कथन), विष्णु १.१५(प्रम्लोचा से मारिषा के जन्म की कथा, वृक्ष - कन्या, प्रचेतागण से विवाह, दक्ष पुत्र की उत्पत्ति, पूर्व जन्म का वृत्तान्त), ४.१४.२६(शूरसेन - पत्नी, वसुदेव आदि की माता), विष्णुधर्मोत्तर १.११०(वृक्षों की पुत्री, प्रचेतागण से विवाह, दक्ष को जन्म देना), हरिवंश १.२.४१(प्रचेतागण की भार्या, दक्ष - माता), लक्ष्मीनारायण १.३१८.८४(सती व शिव की मानसी पुत्री वम्री का दस प्रकार के वृक्षों की पुत्रियों के रूप में जन्म लेकर दस प्रचेताओं की पत्नी बनना ) maarishaa/marisha
मारीच पद्म ५.११२(मारीच राक्षस द्वारा शोण मुनि का रूप धारण करके मुनि की पत्नी कला से बलात्कार की चेष्टा), ब्रह्मवैवर्त २.४.५४(मारीच द्वारा चन्द्रपर्व में वाक्पति को सरस्वती मन्त्र प्रदान का कथन, अन्य पर्वों में अन्य ऋषियों का कथन), ब्रह्माण्ड १.२.११.१९(मारीची : पर्जन्य व मारीची से हिरण्यरोमा पुत्र के जन्म का उल्लेख), २.३.१.५०(पितरों के गण में से एक), २.३.५.३५(सुन्द व ताडका - पुत्र, राघव द्वारा वध), २.३.७.६(मारीची : २४ मौनेया अप्सराओं में से एक), भागवत ४.१.१३(मरीचि व कला से कश्यप प्रजापति व पूर्णिमा के जन्म का उल्लेख), ९.१०.१०(राम द्वारा हरिण वेश धारी मारीच के वध का उल्लेख, मारीच वध की दक्ष वध से उपमा), मत्स्य ४.४५(अन्तर्धान व शिखण्डिनी - पुत्र, पृथु वंश), ६.१८(मारीचि : दनु व कश्यप के १०० पुत्रों में से एक), ६.२३(मारीच से पौलोम, कालकेय आदि षष्टि सहस्र दानवों की उत्पत्ति का कथन), १४.१(मारीच नन्दन देवपितरों के सोम पथ लोकों में वास का कथन), २३.२५(मारीच कश्यप - पत्नी वसु द्वारा पति को त्याग सोम की सेवा में जाने का उल्लेख), १९९.९(मरीचि कश्यप कुल के गोत्रकार ऋषियों के कुल में एक), वायु २८.१५(पर्जन्य व मारीची के हिरण्यरोमा पुत्र के जन्म का उल्लेख), ३०.७२(मारीच कश्यप की पतिव्रता पत्नी अदिति का उल्लेख), ६५.१०९/ २.४.१०९(मारीच वंश के अन्तर्गत मरीचि व सुरुचि दिति से अरिष्टनेमि कश्यप प्रजापति की उत्पत्ति का कथन), ६७.४३/२.६.४३(मारीच कश्यप व अदिति से १२ आदित्यों के जन्म का उल्लेख), ६९.५(मारीची : ३४ मौनेया अप्सराओं में से एक), १००.२०/२.३८.२०(वैवस्वत मन्वन्तर में मारीच कश्यप के पुत्रों के सावर्णि मन्वन्तर में ? देवगण बनने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.११५.१(मारीच कश्यप कुल के गोत्रकार ऋषियों के नाम), हरिवंश १.३.१०२(सुन्द व ताडका - पुत्र), वा.रामायण १.१८.५(मारीच व सुबाहु राक्षसों द्वारा वेदि पर रुधिर व मांस की वर्षा करने का उल्लेख), १.२४.२७(ताटका - पुत्र, ताटका वन में वास, प्रजा को त्रास प्रदान), १.३०.१२(ताटका - पुत्र, राम द्वारा मानवास्त्र से निग्रह), ३.३१.३६(मारीच द्वारा रावण को सीता हरण न करने का परामर्श), ३.३८+ (रावण से वार्तालाप में मारीच द्वारा विश्वामित्र के यज्ञ में स्व पराभव का कथन), ३.४२(मारीच द्वारा मृग का रूप धारण, मृग की शोभा का वर्णन), ३.४४(राम द्वारा मृग रूप धारी मारीच का वध), ४.४२.३(सुग्रीव द्वारा अर्चिष्मान् नामक मरीचि - पुत्र मारीच तथा अर्चिमाल्यान् नामक मरीचि - पुत्रों मारीचों/वानरों को सीता अन्वेषण हेतु पश्चिम दिशा में भेजना), ७.१४.२१(यक्ष – रावण युद्ध में मारीच का सुयोधकण्टक से युद्ध. सुयोधकण्टक द्वारा चक्र से मारीच पर प्रहार), लक्ष्मीनारायण २.१८३.४२(राक्षसों के राजा मारीच द्वारा युद्ध में माया मन्त्रों के प्रयोग से शलभों आदि की सृष्टि करना, श्रीहरि द्वारा सुदर्शन चक्र से मारीच का वध ) maareecha/ maricha, द्र. मरीचि
मारीश लक्ष्मीनारायण २.१८२.१०३(मारीशा नगरी के राक्षसों का मानव राजा की सेनाओं के विरुद्ध युद्ध हेतु उद्योग), २.२१०.३१(श्रीहरि द्वारा ऋद्धीशा नगरी के राजा रायमारीश को आशा त्याग आदि का उपदेश),
मारुत ब्रह्माण्ड ३.४.३३.६९(ललिता देवी की उपासना करने वाले श्री मारुतेश्वर की ३ शक्तियों आदि का कथन), ३.४.४४.९६(मारुतेश्वर : ५१ वर्णों हेतु ५१ पीठों में से एक), मत्स्य ५०.४९(मारुत देव से पाण्डु - पुत्र वृकोदर के जन्म का उल्लेख), ६१.३(अग्नि व मारुत द्वारा समुद्र नाश की इन्द्र की आज्ञा की अवहेलना, शाप से अगस्त्य मुनि रूप में जन्म का वृत्तान्त), १९१.८६(मारुतालय तीर्थ का माहात्म्य), १९५.३१(भार्गव वंश के प्रवरों में से एक), १९६.१९ (गोत्रप्रवर्तक ऋषियों में से एक), २२६.१२(राजाओं हेतु मारुत व्रत का कथन ) maaruta/ maruta
मारुति स्कन्द ३.२.३६+ (कुमारपाल द्वारा द्विजों की वृत्ति हरण पर द्विजों द्वारा रामेश्वर सेतुबन्ध से मारुति को लाने का उद्योग, मारुति द्वारा द्विजों की रक्षा का वृत्तान्त ) maaruti/ maruti
मार्कण्डेय कूर्म १.३६+(शोकग्रस्त युधिष्ठिर को मार्कण्डेय द्वारा प्रयाग माहात्म्य का कथन), गरुड १.२२५/२३३(मृत्यु अष्टक स्तोत्र कथन से मार्कण्डेय द्वारा मृत्यु पर विजय), नारद १.५.६(मृकण्डु - पुत्र, विष्णु का अंश, एकार्णव में विष्णु की स्तुति), २.५५.१५(मार्कण्डेय द्वारा स्थापित शिव की पूजा विधि), पद्म १.३३.१(मार्कण्डेय के दीर्घायु होने की कथा : ब्रह्मा के वरदान से अल्पायु मार्कण्डेय को दीर्घायु प्राप्ति, तप हेतु पुष्कर गमन, राम से मिलन आदि), १.३९.८५(एकार्णव में प्रसुप्त भगवान् के मुख में प्रविष्ट मार्कण्डेय मुनि द्वारा भगवान् की कुक्षि में अनेकविध प्रपञ्चों के दर्शन, भगवान् के साथ संवाद), ३.४९.४(युधिष्ठिर के अभिषेक के समय मार्कण्डेय द्वारा स्वस्तिवाचन का उल्लेख), ६.५२(हेममाली यक्ष के १८ कुष्ठों से मुक्त्यर्थ मार्कण्डेय द्वारा योगिनीएकादशी व्रत का कथन), ७.१७.४१(वेश्या के उपदेश से वैराग्य उत्पन्न होने पर भद्रतनु ब्राह्मण का मार्कण्डेय मुनि की शरण में गमन, मार्कण्डेय द्वारा भद्रतनु का दान्त के समीप प्रेषण), ब्रह्म १.४९+ (प्रलयकाल में मार्कण्डेय द्वारा पुरुषेशसंज्ञक वटमूल की शरण लेना), १.५०( मार्कण्डेय द्वारा बालमुकुन्द के दर्शन, उदर में ब्रह्माण्ड के दर्शन), २.७५(मार्कण्डेय आदि ऋषियों का ब्रह्मा के साथ ज्ञान कर्म विषयक संवाद, संवाद स्थल की मार्कण्डेय तीर्थ रूप में परिणति), ब्रह्मवैवर्त्त १.५.१०(मार्कण्डेय के सप्तकल्पान्तजीवी होने का उल्लेख), २.५१.७०(मार्कण्डेय द्वारा सुयज्ञ नृप से कृतघ्नता दोष का निरूपण – नरकयातनाप्राप्ति आदि), ब्रह्माण्ड १.२.११.७(मनस्विनी व मृकण्ड - पुत्र), १.२.११.८(वेदशिरा व पीवरी से मार्कण्डेय संज्ञक ऋषि पुत्रों की उत्पत्ति का उल्लेख), १.२.११.४२(मार्कण्डेयी : केतुमान् प्रजापति की माता), २.३.४७.४९(परशुराम के अश्वमेध में ब्रह्मा), भागवत ४.१.४५(मृकण्ड - पुत्र), १२.८(मार्कण्डेय द्वारा तप, मार्कण्डेय के आश्रम का वर्णन, काम द्वारा मार्कण्डेय के तप में विघ्न, मार्कण्डेय द्वारा नर - नारायण के दर्शन व स्तुति), १२.९(मार्कण्डेय द्वारा माया दर्शन की कामना, प्रलय में प्राणियों के कष्टों का दर्शन, बालमुकुन्द के दर्शन, उदर में ब्रह्माण्ड का दर्शन), १२.१०(मार्कण्डेय द्वारा शंकर का दर्शन, स्तुति, माया से मुक्ति), मत्स्य २.१३(प्रलय से सुरक्षित रहने वालों में से एक), ४७.२४२(त्रेता में दत्तात्रेय अवतार के समय में यज्ञ के पुरोहित होने का उल्लेख), ५३.२६(कार्तिक में मार्कण्डेय पुराण दान का फल), १०३.१३+ (मार्कण्डेय द्वारा युधिष्ठिर को प्रयाग माहात्म्य का कथन), १६७.१३(मार्कण्डेय द्वारा एकार्णव शायी विष्णु के उदर में प्रवेश व निष्क्रमण), १८६.३(प्रलय में भी नष्ट न होने वालों में से एक, मार्कण्डेय द्वारा नर्मदा माहात्म्य कथन), १९१.८१ (मार्कण्डेय - कथित आदित्यायतन तीर्थ का माहात्म्य), १९२.६(मार्कण्डेय द्वारा शिव से पापविनाशक तीर्थ विषयक पृच्छा, शिव द्वारा शुक्ल तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन), मार्कण्डेय ४५(मार्कण्डेय द्वारा सृष्टि का वर्णन), लिङ्ग २.६.१४( मार्कण्डेय द्वारा ज्येष्ठा / अलक्ष्मी के लिए वास स्थान का निर्धारण), वराह १३.५(मार्कण्डेय मुनि द्वारा गौरमुख के पितर सम्बन्धी प्रश्नों का समाधान, श्राद्ध विषयक उपदेश), वामन ३२(मार्कण्डेय द्वारा सरस्वती की स्तुति), वायु २८.५(मनस्विनी व मृकण्डु - पुत्र, मूर्द्धन्या - पति, वेदशिरा - पिता), २८.३६(मार्कण्डेयी : रज - पत्नी, केतुमान् - माता), ६०.२७(इन्द्रप्रमति द्वारा मार्कण्डेय को संहिता अध्यापन कराने तथा मार्कण्डेय द्वारा पुत्र सत्यश्रवा को अध्यापन कराने का उल्लेख), ९८.८८/२.३६.८८(दशम त्रेतायुग में मार्कण्डेय के पुर:सर होने पर दत्तात्रेय अवतार के आविर्भाव का उल्लेख), १०४.४/२.४२.४(मार्कण्डेय पुराण में नव सहस्र श्लोक होने का उल्लेख), विष्णु १.१०.४(मृकण्डु - पुत्र, वेदशिरा - पिता), विष्णुधर्मोत्तर १.१+ (मार्कण्डेय का वज्र से संवाद), १.७८(मार्कण्डेय द्वारा बालमुकुन्द के उदर में त्रिलोकी के दर्शन), स्कन्द १.२.७.२६+(दीर्घजीवी मार्कण्डेय द्वारा इन्द्रद्युम्न के प्रश्न का उत्तर, बक, उलूक, गृध्र, कूर्म के पास क्रमिक गमन), १.२.४६.९६(मार्कण्डेय - प्रोक्त ज्ञान बताकर बाल ब्राह्मण द्वारा नन्दभद्र वैश्य को आश्वासन), १.३.२.१+(मार्कण्डेय द्वारा क्षयरहित कैवल्य प्राप्ति हेतु शिव धर्म के विषय में नन्दी से जिज्ञासा), २.२.३(मार्कण्डेय द्वारा प्रलय में यूपसदृश वट व उस पर बालमुकुन्द के दर्शन, बालमुकुन्द के उदर में ब्रह्माण्ड के दर्शन), २.३.१.४३(मार्कण्डेय ह्रद का उल्लेख), २.३.३.४५(मार्कण्डेय द्वारा नारायण के दर्शन, बदरी क्षेत्र में मार्कण्डेय शिला का माहात्म्य), ३.२.२३.९(ब्रह्मा के सत्र में मार्कण्डेय के २आचार्यों में से एक होने का उल्लेख), ४.२.९७.१०४(मार्कण्डेय ह्रद का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.२८.३१( मार्कण्डेश्वर शिव के दर्शन का माहात्म्य : वाजपेय फल की प्राप्ति), ५.१.६३.७५(विष्णुसहस्रनाम मन्त्र के ऋषि), ५.२.१५.१४(राजा इन्द्रद्युम्न का मार्कण्डेय मुनि के समीप गमन तथा ध्रुवा कीर्ति हेतु उपाय की पृच्छा), ५.२.३६(मार्कण्डेय द्वारा पूजित मार्कण्डेयेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : मृकण्डु द्वारा पुत्र प्राप्ति), ५.२.६३.२२(मार्कण्डेय द्वारा विदूरथ राजा को कुजम्भ दैत्य के वध के उपाय का कथन), ५.३.२.४७(युधिष्ठिर व मार्कण्डेय के संवाद का आरम्भ—क्षयरहित नदी विषयक पृच्छा), ५.३.८(मार्कण्डेय का बक रूप धारी शिव से संवाद), ५.३.२०(प्रलय काल में मार्कण्डेय द्वारा पृथिवी के स्तन का पान), ५.३.२०.४८(संहार काल में मार्कण्डेय द्वारा विष्णु की स्तुति), ५.३.१००(मार्कण्डेयेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ५.३.१६७(मार्कण्डेयेश्वर तीर्थ का माहात्म्य – मार्कण्डेय द्वारा विन्ध्य पर विष्णु व शिव की प्रतिष्ठा), ५.३.२३१.५(रेवा तीरस्थ तीर्थ रूपी पुष्पों के लिए मार्कण्डेय की भ्रमर से उपमा), ५.३.२३१.११(रेवा तीर पर १० मार्कण्डेश्वर तीर्थ होने का उल्लेख), ६.४.४३(त्रिशङ्कु के साथ तीर्थों का भ्रमण करते हुए विश्वामित्र द्वारा मार्कण्डेय का दर्शन, मार्कण्डेय मुनि द्वारा हाटकेश्वर दर्शन से चण्डालत्व से मुक्ति का आश्वासन), ६.२१(मृकण्डु का अल्पायु पुत्र, सप्तर्षियों व ब्रह्मा की कृपा से चिरञ्जीविता प्राप्ति), ६.२१४+ (मार्कण्डेय द्वारा रोहिताश्व को गणपति - पूजा, श्राद्ध माहात्म्य का कथन), ६.२१५.१८(मार्कण्डेय का रोहिताश्व को अग्निहोत्रफला वेदा श्लोक का कथन), ६.२७१(इन्द्रद्युम्न का मार्कण्डेय, बक, उलूक आदि से वार्तालाप), ७.१.२०९(मार्कण्डेयेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, सप्तर्षियों व ब्रह्मा की कृपा से मार्कण्डेय द्वारा दीर्घायु की प्राप्ति), ७.१.३६०(प्रभास क्षेत्र में मार्कण्डेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.३.४१(आश्रम पद का माहात्म्य, अल्पायु मार्कण्डेय द्वारा ब्रह्म व सप्तर्षियों की कृपा से दीर्घायु की प्राप्ति), ७.४.२५(मार्कण्डेय मुनि द्वारा इन्द्रद्युम्न राजा को मथुरा, द्वारका व अयोध्या तीर्थों के माहात्म्य का प्रतिपादन), हरिवंश १.१७(मार्कण्डेय द्वारा भीष्म को पितरों सम्बन्धी उपदेश), ३.१०(मार्कण्डेय का विष्णु के उदर में विचरण, विष्णु से संवाद), लक्ष्मीनारायण १.२०६.५०(मृकण्डु व मरुद्वती – पुत्र, मृकण्डु द्वारा शिव के वरदान से अल्पायु मार्कण्डेय पुत्र प्राप्त करने तथा मार्कण्डेय द्वारा तप से चिरजीविता प्राप्त करने का वृत्तान्त), १.२५२.६२(मार्कण्डेय द्वारा हेममाली यक्ष को कुष्ठ से मुक्ति के उपाय योगिनी एकादशी का कथन), १.४११.९२(मार्कण्डेय - कन्या श्री का जन्मान्तर में अम्बरीष - कन्या श्रीमती बनकर विष्णु को पति रूप में प्राप्त करने का कथन), १.४४०.९६(धर्म के यज्ञ के आचार्य), १.४९२.३१ (मार्कण्डेय का शाण्डिल्य से तादात्म्य?), १.५१९.२६(राजा इन्द्रद्युम्न द्वारा चिरजीवी मार्कण्डेय से स्वकीर्ति के विषय में पृच्छा, मार्कण्डेय का चिरजीवी बक के पास गमन आदि), १.५६२.८९(मार्कण्डेय द्वारा व्याघ्ररूपधारी राजा को मुक्ति प्राप्ति हेतु शाकल्य के आश्रम में भेजना), १.५८२.४(मार्कण्डेय द्वारा पुरुषोत्तम क्षेत्र में प्रलय काल में कृष्ण का दर्शन, स्तुति, पर्णशाला की स्थापना, पुरुषोत्तम क्षेत्र का विस्तार आदि), द्र वंश भृगु
maarkandeya/markandeya
मार्ग ब्रह्माण्ड १.२.७.११२(दिशामार्ग, ग्राममार्ग, सीमामार्ग आदि प्रकार के मार्गों के मान), १.२.३३.१९(मार्गा : ब्रह्मवादिनी ऋषि पुत्रिकाओं में से एक), मत्स्य १३.३०(केदार पीठ में देवी की मार्गदायिनी नाम से स्थिति का उल्लेख), १९५.२०(मार्गेय : भार्गव कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक), १९५.३३(मार्गपथ : भार्गव कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक), वायु ८.११८/१.८.११३(दिशामार्ग, ग्राममार्ग, सीमामार्ग आदि प्रकार के मार्गों के मान), ५०.२१०(पितृयान व देवयान मार्गों का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१(मार्गी : सङ्गीत में २१ मूर्च्छनाओं में से एक?), स्कन्द ३.३.१२.२३(मार्गों में नीलकण्ठ से रक्षा की प्रार्थना), ५.३.१९८.६७(केदार तीर्थ में देवी का मार्गदायिनी नाम से वास), महाभारत अनुशासन ४५दाक्षिणात्य पृष्ठ ५९८१(मृत्यु पर कर्मों के अनुसार यमलोक के तीन मार्गों का कथन), लक्ष्मीनारायण २.२४५.४९(जीवरथ के लिए प्रज्ञा को मार्ग बनाने का निर्देश ) maarga
मार्गपाली भविष्य ४.१४०.४१(मार्गपाली उत्सव विधि ; दीपावली के कृत्य), स्कन्द २.४.१०.३३(कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा अपराह्न समय में करणीय मार्गपाली कृत्य का कथन ) maargapaalee/ margapali
मार्गशीर्ष भविष्य २.२.८.१२९(कान्यकुब्ज?(अयोध्या?) में महती मार्गशीर्षी पूर्णिमा के विशेष फल का उल्लेख - महती मार्गशीर्षे स्यादयोध्यायां तथोत्तरे ।।), ३.४.८.११५(मार्गशीर्ष मास के सूर्य का माहात्म्य), मत्स्य ५३.२९(मार्गशीर्ष मास में अग्नि पुराण दान का फल - लिखित्वा तच्च यो दद्याद्धेमपद्मसमन्वितम्। मार्गशीर्ष्यां विधानेन तिलधेनुसमन्वितम्॥ ), ५६.२(कृष्णाष्टमी व्रत के संदर्भ में मार्गशीर्ष में शिव की शंकर नाम से पूजा का उल्लेख), ६०.३५(सौभाग्यशयन तृतीया व्रत विधि के अन्तर्गत मार्गशीर्ष मास में गोमूत्र सेवन का निर्देश), स्कन्द २.५.१+ (मार्गशीर्ष मास का माहात्म्य), २.५.२(चार वर्णों द्वारा त्रिपुण्ड्र धारण विधि), २.५.३(ऊर्ध्वपुण्ड्र धारण की महिमा, गोपीचन्दनादिशंख चक्राद्यायुधधारणतत्तन्मुद्राधारणप्रकारकथनं), २.५.४(तुलसीकाष्ठमाला की महिमा, शंखपूजाविधि), २.५.५(शंखपूजनफलकथनं ), २.५.६ (घंटानाद की महिमा, तुलसीकाष्ठचंदनार्पणफलकथनम्), २.५.७(सहमास में पुष्पदान का महत्त्व, पुष्पों का आपेक्षिक महत्त्व, जातीपुष्प की श्रेष्ठता), २.५.८(धूप और दीपदान का महत्त्व), २.५.९(अन्न के संस्कार से नैवेद्यविधि का कथन), २.५.१०(पूजाकाल में सहस्रनामादि का महत्त्व), २.५.११( दशमीविद्धा द्वादशी की निन्दा, अतिथिसत्कार का महत्त्व), २.५.१२( अखण्डैकादशी व्रत विधि, उद्यापन विधि), २.५.१३( एकादशी जागरणकाल में करणीय कृत्य), २.५.१४(द्वादशी को मत्स्योत्सवविधि), २.५.१५(पत्नी कीर्ति सहित केशव की महिमा, कृष्णनामजप का महत्त्व), २.५.१६(मार्गशीर्षमास में भागवतपुराण पठन का महत्त्व - नित्यं भागवतं यस्तु पुराणं पठते नरः ।। प्रत्यक्षरं भवेत्तस्य कपिलादानजं फलम् ।।), २.५.१७(मार्गशीर्ष मास में मथुरा का महत्त्व), लक्ष्मीनारायण २.४०.२९(मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष में ऊर्जव्रत ऋषि द्वारा कृष्ण की स्तुति का उल्लेख ) maargasheersha/ margashirsha
मार्जन अग्नि ७७.१८(सम्मार्जनी पूजा की विधि), विष्णुधर्मोत्तर १.१६९(देवालय मार्जन का फल), स्कन्द १.१.७.४९(पतङ्गी द्वारा अनायास शिव मन्दिर का मार्जन करने से काशिराज - सुता सुन्दरी बनना ), द्र. अपामार्जन maarjana/marjana
मार्जार गणेश २.१२६.१९(चक्रपाणि द्वारा स्थापित गणेश के पञ्चायतन मन्दिर में पूर्व दिशा में मन्मथ सहित मार्जारी देवी की स्थापना), गरुड १.२१७.२५(अन्न हरण से मार्जार योनि प्राप्ति का उल्लेख), २.४६.१५(बहुतर्जक के मार्जार बनने का उल्लेख), २.४६.२५(अग्नि को पद से स्पर्श करने पर मार्जार बनने का उल्लेख), गर्ग ७.२५.५(गणेश को युद्ध - विमुख करने के लिए अनिरुद्ध द्वारा धारित रूप), पद्म ६.३०.८३(दीप प्रबोधन से मार्जार का सुधर्मा राजा बनना), ब्रह्म २.१४(केसरी की दो भार्याओं में से एक, अद्रिका का रूप, निर्ऋति से पुत्र उत्पन्न करना), ब्रह्माण्ड २.३.७.१७७(हरि व पुलह के पुत्रों के गणों में से एक), २.३.७.३०३(ऋक्षराज जाम्बवन्त के पुत्रों में से एक, मार्जार गण का पिता), २.३.७.३१९(मार्जारलौह : वानरों की ११ जातियों में से एक), भागवत ९.२२.४६(मार्जारि : सहदेव - पुत्र, श्रुतश्रवा - पिता, मगध के भविष्य के राजाओं में से एक), मार्कण्डेय १५.२०(अन्न हरण के फलस्वरूप मार्जार योनि की प्राप्ति का उल्लेख), ७६.७/७३.७(राजा अनमित्र के जातिस्मर पुत्र द्वारा स्वयं को भक्षण करने को उत्सुक मार्जारी का उल्लेख), वामन ५७.७७(कौशिकी नदी द्वारा कुमार को प्रदत्त गण), स्कन्द २.४.७(मार्जार द्वारा दीप के लिए गृध्र पर आक्रमण, मृत्यु, पूर्व जन्म में दुष्ट चरित्र देवशर्मा), ४.१.४५.४१(मार्जारी : ६४ योगिनियों में से एक), ५.३.१५९.१५(वितर्जक? को मार्जार योनि प्राप्ति का उल्लेख), ५.३.१५९.२६(पैर से अग्नि का स्पर्श करने पर मार्जार योनि प्राप्ति तथा कुपण्डित के मार्जार होने का उल्लेख), महाभारत उद्योग १६०.१६(दुर्योधन द्वारा तप का ढोंग करने वाले मार्जार द्वारा मूषकों के भक्षण के आख्यान का कथन), शान्ति १३८.१८(स्वार्थसिद्धि हेतु मार्जार व मूषक की मित्रता का वृत्तान्त), योगवासिष्ठ १.१४.१९(मूषक रूपी जीव के लिए मार्जार की मृत्यु से उपमा), १.१८.११(शरीर में जीव / आत्मा की मार्जार से उपमा), १.२२.२५(जरा मार्जारी, यौवन आखु / मूषक), १.३१.५(यम रूपी मार्जार द्वारा प्राणी रूपी मूषकों का भक्षण), ६.१.७.२१ (मार्जारी : यौवन रूपी आखु की भक्षक जरावस्था का रूप), लक्ष्मीनारायण २.२६.८८(दम्भार्थ जपादि करने वाले की मार्जार संज्ञा का कथन,आखु का भी कथन), २.९८.४२(उर्वशी द्वारा सनत्सुजात.सनत्कुमार मुनि को बिडाली होने का शाप), २.९९(नारायण द्वारा कुम्भकार की तप्त भ्राष्ट्र के नीचे मार्जारी के अपत्यों की रक्षा, मार्जारी द्वारा पूर्व जीवन की स्मृति प्राप्त करके मुक्त होना), ३.९२.८८ (मार्जारी के गुप्तता धर्म का उल्लेख), ४.६७.११(गोदुग्ध की चोरी से गोपालक का मार्जार बनना, कथा के उच्छिष्ट भक्षण से मुक्ति का वृत्तान्त), कथासरित् ३.३.१४०(इन्द्र व अहल्या आख्यान में गौतम मुनि के भय से इन्द्र द्वारा मार्जार रूप धारण), ६.७.१०७(नकुल व उलूक के भय से मूषक की मार्जार के साथ क्षणिक मित्रता की कथा), १०.६.५१(शश व कपिञ्जल द्वारा कपट वेष धारी मार्जार से न्याय हेतु प्रार्थना, मार्जार द्वारा दोनों की हत्या), १०.९.१५८(मार्जार मूर्ख की कथा में मूर्खों द्वारा ब्रह्मचारी बटु का मार्जार रूप से ग्रहण तथा चूहों के भक्षण हेतु मठ में स्थापन ) maarjaara/ marjara
मार्जालीय वायु २१.३७(१७वें कल्प का नाम), २९.२९(मार्जालीय अग्नि, व्यरत्नि उपनाम ) maarjaaleeya/marjaliya
मार्तण्ड नारद १.११६.५५(मार्तण्ड व्रत), ब्रह्म १.३०.४०(अदिति के गर्भ से मार्तण्ड की उत्पत्ति, मार्तण्ड द्वारा असुरों का पराभव), ब्रह्मवैवर्त्त ३.१९.२६(मार्तण्ड सूर्य से कर्ण की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड २.३.७.२८०(मार्तण्ड की उत्पत्ति), २.३.५९.२५(मार्तण्ड शब्द की निरुक्ति), भविष्य १.६१.२६(भोजन करते समय मार्तण्ड सूर्य के स्मरण का निर्देश), १.१०९(मार्तण्ड सप्तमी व्रत का माहात्म्य), मत्स्य २.३६(मृत अण्ड से उत्पन्न होने के कारण मार्तण्ड नाम धारण), १५.१६(मार्तण्ड मण्डल में मरीचिगर्भ नामक लोकों में हविष्मन्त पितरों की स्थिति का उल्लेख), मार्कण्डेय १०१(मार्तण्ड की उत्पत्ति), १०५(मार्तण्ड की अण्ड से उत्पत्ति), वराह २०(कश्यप - पुत्र मार्तण्ड की संज्ञा पत्नी से यम व यमुना, छाया से शनि व तपती तथा अश्व रूप धारी संज्ञा से अश्विनीकुमारों का जन्म), वायु ६१.२१(मार्तण्ड द्वारा अश्वरूप याज्ञवल्क्य हेतु यजु मन्त्र प्रदान का उल्लेख), ८४.२५/२.२२.२५(मार्तण्ड शब्द की निरुक्ति व विवस्वान् मार्तण्ड की ७ सन्तानों के नाम), स्कन्द ४.१.१७.७२(सूर्य द्वारा मार्तण्ड नाम प्राप्ति के कारण का कथन), लक्ष्मीनारायण २.१२.२४(दमनक दैत्य के प्रमुख सैनिकों में से एक ) maartanda/martanda
माल- मत्स्य १९५.२६(मालायनि : भार्गव कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक),वायु ४५.१२२(पूर्व के जनपदों में मालदा, मालवर्ती, माला आदि का उल्लेख )
मालती नारद १.६७.६१(मालती पुष्प को शिव को अर्पण करने का निषेध), पद्म ६.१०४.२५( मालती के सतोगुणी होने का उल्लेख?), ६.१०५.१(मा/लक्ष्मी से मालती की उत्पत्ति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त १.२४.१७(ब्रह्मा द्वारा नारद पुत्र को पूर्व जन्म की पत्नी मालती से विवाह का निर्देश), ३.४.५८(हास्य सौन्दर्य हेतु मालती पुष्प वृन्दावनेश को प्रदान करने का उल्लेख), ४.९४(मालती द्वारा राधा को सांत्वना), ४.१०४.८९(मालती देवी द्वारा उग्रसेन के राज्याभिषेक में हार भेंट करने का उल्लेख), भविष्य १.५७.१६(अप्सराओं हेतु मालती पुष्प की बलि का उल्लेख), २०८.१०(अश्वपति राजा की पत्नी मालती द्वारा सावित्री कन्या को जन्म देने का उल्लेख, सावित्री - सत्यवान् प्रसंग), २१३.१६(अश्वपति - पत्नी मालवी से मालव संज्ञक पुत्रों के जन्म का उल्लेख), वराह १७२.४५(पुष्प देवी मालती का गोकर्ण से वार्तालाप), स्कन्द २.२.४४.४(विष्णु के १२ रूपों की १२ मासों में भिन्न - भिन्न पुष्पों से पूजा के अन्तर्गत मालती पुष्प से सप्तम मास की पूजा का उल्लेख), २.४.२३.१(प्रक्षिप्त बीजों से तीन वनस्पतियों - धात्री, मालती व तुलसी की उत्पत्ति), २.४.३२.४५(भीष्मपञ्चक व्रत के अन्तर्गत विष्णु के शीर्ष की मालती पुष्प से पूजा का उल्लेख), ४.२.६८.६८(मालतीश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.१.१७.११२(मालती पुष्प की महिमा), वा.रामायण ०.३(शूद्र, काली - पति, रामायण श्रवण से वैभव की प्राप्ति, सुमति राजा बनना), लक्ष्मीनारायण १.३८५.३३(मालती का कार्य), १.४४१.९४(वृक्ष रूप धारी श्रीहरि के दर्शन हेतु लक्ष्मी के मालती वृक्ष बनने का उल्लेख), ३.८६.५३(राजा चित्रकेतु द्वारा स्वपत्नी मालती को स्वयं के राजा बनने के कारण का वर्णन : पूर्व जन्म में साधु सेवा आदि), ४.१०१.११५(कृष्ण व मालती के पुत्र तन्तुधृक् व पुत्री सन्तानिका का उल्लेख ) maalatee/malati
मालव गर्ग ७.६.२४(मालव नरेश जयसेन द्वारा प्रद्युम्न को भेंट), पद्म २.९१.४(इन्द्र द्वारा ब्रह्महत्या के त्याग / अभिषेक का स्थान), ६.२१८.६(मालव विप्र द्वारा धन दान, स्व भागिनेय पुण्डरीक को उपदेश), ब्रह्म २.२६(मालव देश की इन्द्र के अभिषेक से उत्पन्न मल से उत्पत्ति), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.९५(५१ वर्णों के न्यास हेतु ५१ पीठों में से एक), मत्स्य ११४.४४(प्राच्य देशों में से एक), ११४.५२(विन्ध्य पृष्ठ निवासियों के जनपदों में से एक), २१३.१६(अश्वपति - भार्या व सावित्री - माता मालवी द्वारा मालव संज्ञक पुत्रों को जन्म देने का उल्लेख), लिङ्ग २.१.१८ (कौशिक विप्र के शिष्य मालव वैश्य द्वारा हरि - गान से दिव्य लोक की प्राप्ति), वामन १७.४४(मालवा यक्ष की रम्भ - करम्भ पर कृपा ), वायु ४५.१३२ (विन्ध्यपृष्ठ निवासियों के जनपदों में से एक), स्कन्द १.१.१७.२७६(मालवा की वृत्र के शरीर से उत्पत्ति), लक्ष्मीनारायण ३.५८.१६, ३.५८.५६(भक्त कौशिक के शिष्य मालव द्वारा दीपमाला प्रस्तुत करने का उल्लेख), ३.१८८.१(अपजापक नामक राज कोषाध्यक्ष का मृत्यु पश्चात् मालव्य नगर में शङ्कुधर नामक चोर बनने तथा तापस की कृपा से शङ्कुधर के मोक्ष का वृत्तान्त), ३.१९२.४(युद्धपुर के राजा मालवसिंह व उसके मित्र धनिष्ठकोष की यज्ञ में मृत्यु से रक्षा का वृत्तान्त), ४.३५(मालव ग्राम में मालवानी चाण्डाली द्वारा दान के प्रभाव से मोक्ष प्राप्ति का वृत्तान्त), कथासरित् २.२.६(मालव देशस्थ यज्ञसेन ब्राह्मण के पौत्र श्रीदत्त की कथा), ३.६.१६८(सुन्दरक द्वारा मूलियों का विक्रय, दुष्ट राजसेवकों द्वारा मूलियों को मालवीय बताकर ग्रहण करना), ४.१.१०६(मालव देशस्थ अग्निदत्त नामक ब्राह्मण की ज्येष्ठ पुत्रवधू पिङ्गलिका की कथा), १०.२.८०(मालव देशस्थ वज्रसार - पत्नी की कथा), १०.६.१७२(मालव देशस्थ दो ब्राह्मण बन्धुओं द्वारा पैतृक धन के बंटवारे में पिता की दासी की हत्या), १०.७.६(मालव देशस्थ श्रीधर नामक ब्राह्मण के यशोधर और लक्ष्मीधर नामक पुत्रों की कथा), १०.१०.७८(मालव देशस्थ गृहस्थ की एकादशमारिका कन्या की कथा), १२.६.२३८(पद्मिष्ठा, श्रीदर्शन और मुखरक का मालव की ओर प्रस्थान), १२.११.८(मालव देश से आए हुए वीरवर नामक ब्राह्मण की राजा शूद्रक की सेवा में नियुक्ति), १२.३१.६(धर्म नामक राजा द्वारा मालव - कन्या चन्द्रावती से विवाह), १६.१.२५(मालव देशस्थ सुषेणा एवं उसके पति शूरसेन के परस्पर प्रेम की कथा ) maalava/ malava
माला अग्नि २५.१५(वनमाला पूजा हेतु बीज मन्त्र), ३२७(कामना अनुसार माला द्रव्य ; माला जप विधि), गणेश २.१०.३१(सागर द्वारा महोत्कट गणेश का मालाधर नामकरण), देवीभागवत ७.३०.२८(दक्ष द्वारा दुर्वासा - प्रदत्त दिव्य माला के तिरस्कार से सती व शिव से द्वेष की प्राप्ति), पद्म १.५९.११९(माला के लक्षण), ६.१४८.१(चित्राङ्गवदन तीर्थ में मालार्क की स्थिति का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१०.१५०(नारायण द्वारा सरस्वती को वनमाला देने का उल्लेख), ४.७२.३७(कृष्ण द्वारा मालाकार को वरदान), ब्रह्माण्ड ३.४.१५.११ (ललिता देवी द्वारा पति वरण हेतु माला को आकाश में फेंकने का उद्योग), ३.४.१५.२२(कुबेर द्वारा ललिता देवी को चिन्तामणि माला भेंट), भविष्य १.५७.१४(यम हेतु वैकङ्कत स्रज बलि का उल्लेख), दुर्गासप्तशती ५.९६(समुद्र द्वारा प्रदत्त किञ्जल्किनी माला का उल्लेख), वामन ९०.६१(वृषाकपि - पत्नी, निशाकर द्वारा पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन), वायु ३५.३८(अश्वत्थ वृक्ष के केतु पर इन्द्र - प्रदत्त माला की विराजमानता से द्वीप का केतुमाल नाम धारण), विष्णु १.९.५(दुर्वासा द्वारा विद्याधरों से दिव्य माला की याचना, विद्याधरों से प्राप्त माला इन्द्र को प्रदान करना, इन्द्र द्वारा तिरस्कार करने पर दुर्वासा द्वारा इन्द्र को श्रीहीन होने का शाप), १.२२.७२(वैजयन्ती माला : पञ्च तन्मात्राओं व पञ्च भूतों का संघात), ५.१९.१७(मथुरा में मालाकार पर कृष्ण की कृपा), शिव ७.२.१४.३७(माला जप विधान के अन्तर्गत भिन्न - भिन्न संख्या के माला जप से भिन्न - भिन्न फलों की प्राप्ति, कामना अनुसार माला के अक्षों की संख्या), स्कन्द २.२.३८.११७(दमनक दैत्य विनाश के समय भगवान् के कर स्पर्श से तृण का सुगन्धित होना, दमन के नाम से ही भगवान् द्वारा माला रूप में धारण करना), २.५.४(तुलसीकाष्ठ, तुलसीदल तथा धात्रीफल से निर्मित माला के धारण का माहात्म्य), ७.१.९.५(मुण्ड माला का रहस्य), योगवासिष्ठ १.१५.१६(तृष्णा रूपी तन्तु - प्रोत बहु जन्म परम्परा रूपी माला), वा.रामायण ४.२२.१६(वाली को पिता ऋक्षरजा से दिव्य माला की प्राप्ति, वाली द्वारा सुग्रीव को देना), लक्ष्मीनारायण १.१०६.३६(इन्द्र द्वारा दुर्वासा - प्रदत्त पारिजात पुष्प माला का तिरस्कार, माला से ऐरावत की मूर्द्धा का पवित्र होना और ऐरावत के शिर का गणेश में योजन), २.२५.९३(फाल्गुन दोला महोत्सव के संदर्भ में श्रीहरि द्वारा मीन रूप धारी सालमाल दैत्य का वध), २.७७.६७(राजा द्वारा कृष्ण माला प्रदान से क्रूर प्रच्छन्न पातक के निवर्तन का उल्लेख), २.२११.२३( श्रीहरि के राजा रायबालेश्वर के द्वैपायन द्वीप में मालावन ऋषि के साथ आगमन, उपदेश आदि का कथन), ३.१३०.५१(३ प्रकार के चक्रों में माला रूपी चक्र के महत्त्व का वर्णन), ४.१८(मालियान व मल्लिकाश्री मालाकार युगल द्वारा भगवान् की पुष्प माला आदि द्वारा अर्चना से ब्रह्म रस प्राप्ति आदि का वर्णन), कथासरित् २.१.८१(वसुनेमि नामक नाग द्वारा उदयन को स्वरक्षा के बदले में अम्लान माला, वीणा और पान लता प्रदान), ४.२.१३८(चित्राङ्गद नामक विद्याधर की पुष्पमाला का गङ्गा में गोता लगाने वाले नारद की पीठ पर गिरना, क्रुद्ध नारद द्वारा विद्याधर को शाप), ८.७.१३७(विभिन्न दिव्य मालाओं के गुण), १२.५.२७८(मालाधर नामक ब्राह्मण कुमार की धैर्यपारमिता की कथा), १२.२.१४२(हंसी द्वारा सरोवर तट पर रखी रत्नमाला की सहायता से अपने पति हंस को जाल से मुक्त करना ), द्र. कपालमालाभरण, कीर्तिमाला, कृतमाला, केतुमाला, रत्नमाला, रुद्रमाल, सालमाल, हार maalaa/ mala
मालावती देवीभागवत ९.१६.३(कुशध्वज - पत्नी, वेदवती - माता), ब्रह्मवैवर्त्त १.१३+ (उपबर्हण की ज्येष्ठ पत्नी मालावती द्वारा पति की मृत्यु पर विलाप, देवों का मालावती के पास आगमन), १.१५(मालावती का कालपुरुष से संवाद), १.१६(मालावती का ब्राह्मण से व्याधि की उत्पत्ति के हेतु के विषय में प्रश्न), १.१८(पति उपबर्हण गन्धर्व के जीवित होने पर मालावती द्वारा महापुरुष स्तोत्र का पठन), १.२४.१७(ब्रह्मा द्वारा नारद को पूर्वजन्म की पत्नी मालती से विवाह का निर्देश), २.१४.३(कुशध्वज - पत्नी, लक्ष्मी की अंशरूपा कन्या वेदवती को जन्म देना), ४.१७.११५(भनन्दन - भार्या, कलावती - माता), २.१४(कुशध्वज - पत्नी), लक्ष्मीनारायण १.२०१.५(उपबर्हण गन्धर्व द्वारा योग द्वारा प्राण त्याग देने पर गन्धर्व - पत्नी मालावती का विलाप, विप्र रूप धारी विष्णु, यम, काल आदि से वार्तालाप), १.२०२(मालावती द्वारा भगवान् से आयुर्वेद के उपदेश की प्राप्ति, पति का सञ्जीवन, कालान्तर में मालावती का सञ्जय नृप की कन्या के रूप में जन्म लेना तथा द्रुमिल राजा की भार्या कलावती बनना?), १.२१०.६(नारद की पूर्व जन्म की पत्नी मालावती का सृंजय - कन्या के रूप में उत्पन्न होना, नारद का सृंजय - कन्या से विवाह), १.४०८.२५(चित्ररथ - कन्या व उपबर्हण गन्धर्व - पत्नी मालावती द्वारा पति की मृत्यु पर देवों को शाप देने को उद्धत होना, विप्र रूप धारी विष्णु, मृत्यु - कन्या, काल आदि से संवाद, अन्त में विष्णु से पति को जीवित करने की याचना ) maalaavatee/ malavati
मालिनी अग्नि १४५(मालिनी मन्त्र नामक अध्याय), देवीभागवत ९.४६.१०(प्रियव्रत - भार्या, पुत्र प्राप्ति हेतु मुनि द्वारा चरु प्रदान, सुव्रत नामक पुत्र को जन्म देना, सुव्रत की मृत्यु, षष्ठी देवी की कृपा से सुव्रत का पुन: सञ्जीवन), नारद १.२०.२९(दुष्ट शूद्र मालिनी का अन्त समय में विष्णु मन्दिर में अर्चना से सुमति राजा बनना), पद्म ६.४३.१४(पुष्पदन्त - पुत्र माल्यवान् की मालिनी व चित्रसेन - पुत्री पुष्पदन्ती पर आसक्ति, इन्द्र द्वारा पिशाच युगल होने का शाप, जया नामक माघ एकादशी व्रत से मुक्ति), ब्रह्म १.११.४३(राजा चम्प की चम्पापुरी का पूर्व नाम), ब्रह्मवैवर्त्त २.४३.१०(प्रियव्रत - पत्नी, कश्यप द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु यज्ञ चरु प्रदान, मृत पुत्र के जन्म तथा सञ्जीवन की कथा), ब्रह्माण्ड ३.४.३६.७६ (ललिता की सेविका ८ शक्तियों में मालिनी का उल्लेख), ३.४.३६.९६(मुद्राओं में एक?), मत्स्य ४८.९७(चम्पा नगरी के पूर्व नाम मालिनी का उल्लेख), १७९.९(अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), मार्कण्डेय ९८.५/९५.५(प्रम्लोचा व पुष्कर - पुत्री, रुचि - पत्नी, रौच्य मनु को जन्म देना), वामन ५३.५१(उमा - सखी, शिव विवाह में शिव से गोत्रीय सौभाग्य मांगना), ५४.५६(उमा - सखी मालिनी का स्वेद से गणपति जन्म में सहायक होना), स्कन्द २.७.२४.२३(देवव्रत - कन्या, सत्यशील - पत्नी, दुष्ट - चरित्रा होने से शुनी बनना), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१२९(कृष्ण की पत्नियों में से एक, जिष्णुदेव व रोहिणी - माता), कथासरित् ८.२.३५२(कम्बल - कन्या, महल्लिका की १२ सखियों में से एक ) maalinee/ malini
माली ब्रह्मवैवर्त्त ३.१८.६(सूर्य द्वारा माली राक्षस का ताडन, माली द्वारा कुष्ठ रोग प्राप्ति, ब्रह्मा द्वारा प्रदत्त सूर्य कवच तथा मन्त्र जप से कुष्ठ से मुक्ति), ४.४८(माली - सुमाली द्वारा रात्रि को दिन करने के लिए दीप्ति का निर्माण, सूर्य द्वारा ताडन), ब्रह्माण्ड १.२.२०.३७(पञ्चम तल में माली के पुर की स्थिति का उल्लेख), २.३.८.४०(माली - कन्या कैकसी का संदर्भ), भागवत ८.१०.५७(देवासुर संग्राम में भगवान् द्वारा चक्र से माली व सुमाली के वध का उल्लेख), वायु ४१.२५(महामाली : कुबेर के अनुचर यक्षों में से एक), ७०.३४/२.९.३४(कैकसी - पिता), विष्णु ५.१९.१७(कृष्ण व बलराम का मालाकार के गृह में गमन, वर प्रदान), विष्णुधर्मोत्तर १.१९८.१४(सुकेश - पुत्र, सुमाली व माल्यवान् - भ्राता, केशव द्वारा वध), १.२१७(विष्णु द्वारा चक्र से माली का वध), १.२१६+ (माली - सुमाली का विष्णु सहित देवों से युद्ध), शिव ३.५.२३(जटी माली : १९वें द्वापर में शिवावतार का नाम), स्कन्द ७.१.१०५.५०(सुप्तमाली : २१वें कल्प का नाम), हरिवंश २.२७(कृष्ण द्वारा मथुरा में माली को वर देने का प्रसंग), वा.रामायण ७.५.४५(वसुदा - पति, अनल, अनिल आदि के पिता), ७.७.४३(विष्णु द्वारा माली का वध), लक्ष्मीनारायण १.१०६.११(माली - सुमाली दैत्यों द्वारा व्याधिग्रस्त होने पर सूर्य मन्त्र व कवच का पाठ करके व्याधिमुक्त होना), ४.१८(मालियान व मल्लिकाश्री मालाकार युगल द्वारा भगवान् की पुष्प माला आदि द्वारा अर्चना से ब्रह्मरस प्राप्ति आदि का वर्णन ), द्र. कन्दरमाली, काञ्चनमालिनी, कुमुदमाली, जम्बुमाली, देवमाली, धान्यमालिनी, बकुलमाली, भवमालिनी, मन्दारमालिनी, मरीचिमालिनी, यज्ञमाली, वनमाली, वसन्तमाली, विद्युन्माली, वेदमाली, सुमाली, हेममाली maalee/ mali
माल्यकेतु स्कन्द ४.१.३३.८५(पूर्व जन्म में विद्याधर, मलयकेतु - पुत्र, कलावती से विवाह), ४.१.३४(मलयकेतु - पुत्र, कलावती - पति, ज्ञानवापी तीर्थ में तारक मन्त्र की प्राप्ति, पूर्व जन्म में विद्याधर ) maalyaketu/ malyaketu
माल्यवान् गर्ग ७.३१.२(केतुमाल का सीमा पर्वत), पद्म ६.१२.२३(माल्यवान् का जालन्धर - सेनानी कोलाहल से युद्ध), ६४२, ६.४३.१४(पुष्पदन्त गन्धर्व - पुत्र माल्यवान् की मालिनी व चित्रसेन - पुत्री पुष्पदन्ती पर आसक्ति, इन्द्र द्वारा पिशाच - युगल होने का शाप, जया नामक माघ एकादशी व्रत से पिशाचत्व से मुक्ति), ब्रह्माण्ड १.२.१४.५१(माल्यवान् वर्ष भद्राश्व को प्राप्त होने का उल्लेख), १.२.१५.३८(नील व निषध के सापेक्ष माल्यवान् पर्वत की स्थिति, आयाम व विस्तार, मध्य में मेरु की स्थिति का कथन), १.२.१७.१८(नील व निषध पर्वतों के बीच माल्यवान् की स्थिति का कथन), २.३.७.९०(प्रहेति के पुत्रों में से एक?), २.३.८.३९(पुष्पोत्कटा व वाका - पिता), २.३.१३.७(अमरकण्टक पर्वत के शृङ्ग पर माल्यवान् की वह्नि सदृश स्थिति का उल्लेख), २.३.१३.१३(माल्यवान् के शिखर पर स्थित वापी के सिद्धि क्षेत्र होने का उल्लेख), भागवत ५.१६.१०(केतुमाल व भद्राश्व वर्षों की सीमा का निर्धारण करने वाले गन्धमादन व माल्यवान् पर्वतों का कथन), ५.१७.७(चक्षु नदी के माल्यवान् पर्वत के शिखर से पतन का उल्लेख), ८.१०.५७(श्रीहरि द्वारा चक्र से माल्यवान् का वध), मत्स्य ११३.३५(नील व निषध तक फैले माल्यवान् पर्वत की स्थिति का कथन), वायु ३३.४४(माल्यवान् वर्ष भद्राश्व को प्राप्त होने का उल्लेख), ३४.३३(नील व निषध तक फैले माल्यवान् पर्वत की स्थिति का कथन), ४२.१९(सीता नदी के माल्यवान् पर्वत आदि पर गिरने का उल्लेख), ६९.१२९/२.८.१२४(लङ्कु के २ पुत्रों में से एक), ७०.३४/२.७.३४(पुष्पोत्कटा व वाका - पिता), विष्णु २.२.२७(मेरु के पूर्व में स्थित केसराचलों में से एक), २.२.३९(माल्यवान् व गन्धमादन के मध्य मेरु की स्थिति का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.१९८.१४(सुकेश के तीन पुत्रों में से एक, माली व सुमाली - भ्राता, माली व सुमाली को धर्मयुक्त परामर्श, पश्चात् रावण को भी शुभ परामर्श, परामर्श उल्लङ्घन से माली - सुमाली व रावण की मृत्यु), १.२१६(माल्यवान् द्वारा माली - सुमाली को देवों से युद्ध न करने का परामर्श), स्कन्द ३.१.५(विधूम वसु का भृत्य, यौगन्धरायण रूप में अवतरण), वा.रामायण ६.३५(रावण का मातामह / नाना, रावण को सत्परामर्श, रावण द्वारा माल्यवान् का तिरस्कार), ७.५.३(सुकेश व देववती - पुत्र), ७.५.३६(सुन्दरी - पति, ७ पुत्रों के नाम), ७.८(माल्यवान् का विष्णु से युद्ध व पराजय), ७.२५.२२(सुमाली - अग्रज, रावण - माता कैकसी के तात/ताऊ, अनला - पिता, कुम्भीनसी - नाना), कथासरित् १.१.५७(पार्वती द्वारा शिवगण माल्यवान् को मनुष्य योनि में उत्पन्न होने का शाप, शापान्त का कथन), १.१.६५(माल्यवान् का गुणाढ्य रूप में उत्पन्न होना), १.५.१३०(माल्यवान् शिवगण का पार्वती शाप से गुणाढ्य रूप में उत्पन्न होना), १८.१.३१(माल्यवान् शिवगण का शिव के आदेश से उज्जयिनी में राजा महेन्द्रादित्य के पुत्र रूप में जन्म लेना, विक्रमादित्य नाम से प्रसिद्धि ) maalyavaan/ malyavan
माष पद्म ४.२१.२७(माष के दोषों का कथन), भविष्य ४.१९९.१९(विष्णु द्वारा मधु - कैटभ के हनन के कारण श्रम से उत्पन्न स्वेद से माष धान्य की उत्पत्ति), मत्स्य २००.९(माषशराव : वसिष्ठ वंश के गोत्रकार ऋषियों में से एक), २२७.७(ब्रह्मभोज पर पडौसी को भोजन न कराने पर हिरण्यमाष/माशा दण्ड का विधान), २२७.९०(कृमि कीट आदि की हिंसा पर रजतमाषक दण्ड का विधान), २२७.९९(कूप पर से रज्जु आदि चुराने आदि के लिए माष दण्ड का विधान), २२७.१०९(विभिन्न द्रव्यों के अपहरण पर पांच माषक दण्ड का विधान), २२७.१४७(वेश्या क्रय के संदर्भ में सुवर्ण माषक दण्ड का विधान), विष्णु ६.३.९(नाडिका काल का निर्धारण करने के लिए हेम माषों द्वारा किए गए छिद्रों से जल के वहन काल का निर्धारण, द्र. टीका), लक्ष्मीनारायण २.७७.५१(माष दान से राजा की गृह पीडा आदि की निवृत्ति का उल्लेख), २.७७.७०(माष दान से शनिकृत पीडा की निवृत्ति का उल्लेख), २.१६०.७०(यम हेतु माषान्न अर्पित करने का निर्देश ), द्र. मुरमाषा maasha
मास अग्नि १७५.३१(विभिन्न कार्यों में सौर व चान्द्र मासों की प्रशस्तता का कथन), १९१(भिन्न - भिन्न मासों की त्रयोदशी तिथि के व्रतों का कथन), १९६(चैत्र मास में करणीय नक्षत्र सम्बन्धी व्रत), १९८(मास व्रतों का वर्णन), २०४(मास उपवास व्रत की विधि), २१२(भिन्न - भिन्न मासों में करणीय दान तथा दान के फल का कथन), गरुड १.१२२(आश्विन् शुक्ल एकादशी से मास उपवास व्रत), १.१२८.१४(सावन व सौर मास का निरूपण ; विवाह के लिए सौर व यज्ञ के लिए सावन का निर्देश), देवीभागवत ८.२४.३६(भिन्न - भिन्न मासों में भिन्न - भिन्न नैवेद्यों द्वारा देवी का अर्चन), नारद १.१७.१४(मार्गशीर्ष मास से लेकर कार्तिक पर्यन्त करणीय शुक्ल द्वादशी व्रत का कथन), १.२२(मास उपवास व्रत की विधि व माहात्म्य), १.११०(चैत्रादि द्वादश मास गत प्रतिपद~ व्रत का निरूपण), २.६०(ज्येष्ठ मास की शुक्ल दशमी से पौर्णमासी तक राम, कृष्ण, सुभद्रा के दर्शन से महायात्रा फल प्राप्ति का कथन), पद्म १.२०(व्रतों के वर्णन के अन्तर्गत भिन्न - भिन्न मासों में करणीय नियम तथा वर्जनीय वस्तुओं का कथन), १.७८.२३(विभिन्न मासों में तपने वाले सूर्यों के नाम), ५.८०.२१(विष्णु पूजा के अन्तर्गत भिन्न - भिन्न मासों में करणीय कृत्यों का वर्णन), ६.८३+ (विष्णु पूजा के अन्तर्गत चैत्र शुक्ल एकादशी में दोला महोत्सव, चैत्र शुक्ल द्वादशी में मदन महोत्सव, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ में जलशयन महोत्सव, श्रावण में पवित्रारोपण का वर्णन), ६.८७(चैत्रादि मास क्रम से चम्पकादि पुष्पों द्वारा विष्णु पूजन का वर्णन), ७.१२(फाल्गुन से लेकर वैशाख तक विभिन्न मासों में कृष्ण पूजा की विधि), ७.१३(ज्येष्ठ से लेकर कार्तिक मास तक विभिन्न मासों में भगवत्पूजा विधि), ब्रह्माण्ड १.२.२४.१४१(मासों में माघ मास के आदि होने का उल्लेख), भविष्य २.२.६.१(चतुर्विध मासों के चान्द्र, सौर आदि ४ प्रकार, मल मास में करणीय कर्म), ४.१३.४९(विभिन्न मासों की भद्रा तिथियों में करणीय नियमादि का वर्णन), ४.२१.२७(ललिता तृतीया व्रत के अन्तर्गत १२ मासों में देवी की १२ नामों से आराधना), ४.२२.११(अवियोग तृतीया व्रत के अन्तर्गत १२ मासों में शिव - शक्ति की १२ नामों से पूजा, १२ मासों में १२ पुष्पों का विनियोग), ४.२५.२५(सौभाग्याष्टक तृतीया व्रत के अन्तर्गत १२ मासों में १२ प्रकार के प्राशन का कथन), ४.२६.५४(रस कल्याणिनी व्रत के अन्तर्गत विभिन्न मासों में वर्जनीय खाद्य तथा दान योग्य वस्तुओं का कथन), ४.२९.२(आनन्तर्य व्रत के अन्तर्गत भिन्न - भिन्न मासों में करणीय प्राशन व नैवेद्य का कथन), ४.३९.९(कमल षष्ठी व्रत के अन्तर्गत प्रत्येक मास की सप्तमी में सूर्य मन्त्र के एक - एक नाम का कीर्तन), ४.४७(उभय सप्तमी व्रत के अन्तर्गत प्रति मास की सप्तमी में करणीय कृत्य), ४.६५.३६(तारक द्वादशी व्रत के अन्तर्गत १२ मासों में १२ प्रकार के भोज्य पदार्थों से ब्राह्मणों को भोजन), ४.७७.१(संप्राप्ति द्वादशी व्रत के अन्तर्गत पौष से ज्येष्ठ तक ६ मासों में श्रीहरि का ६ नामों से पूजन), ४.१०४.१७(पूर्ण मनोरथ व्रत के अन्तर्गत १२ मासों में श्रीहरि की १२ नामों से पूजा), ४.१०६.१६(अनन्त व्रत के अन्तर्गत भिन्न - भिन्न मासों में श्रीहरि के भिन्न - भिन्न अङ्गों की पूजा), लिङ्ग १.४०.४७(त्रेता में वार्षिक, द्वापर में मासिक, कलि में आह्निक धर्म का उल्लेख), १.५९.३२(विभिन्न मासों में तपने वाले सूर्यों के नाम तथा रश्मि संख्या), वराह ४८(भाद्रपद मास की शुक्ल द्वादशी में करणीय कल्कि द्वादशी व्रत का माहात्म्य), ४९(आश्विन् मास की शुक्ल द्वादशी में करणीय पद्मनाभ द्वादशी व्रत का माहात्म्य), वामन ६१.५४(भगवान् वासुदेव की देह में १२मासों की स्थिति), विष्णुधर्मोत्तर १.१७३.५(पुत्रदायक अनन्त व्रत में अनन्त के विभिन्न अङ्गों की मास अनुसार पूजा का कथन), ३.३१७(मास अनुसार दान द्रव्य विशेष), शिव १.१६(पार्थिव पूजा विधान के अन्तर्गत भिन्न - भिन्न मासों में देवपूजन और फल प्राप्ति का वर्णन), ७.१.७२(पाशुपत व्रत के अन्तर्गत भिन्न - भिन्न मासों में भिन्न - भिन्न रत्नों से लिङ्ग निर्माण), स्कन्द २.२.४०(संवत्सर व्रत में विष्णु के १२ रूपों की १२ मासों में १२ प्रकार के पुष्पों व फलों से पूजा), ५.१.६०(मल / अधिक मास का माहात्म्य, नियम, विधि), ५.३.२६.१४५(१२ मासों के अनुसार तृतीया तिथि को देय १२ दान द्रव्य), ५.३.१४९.८ (बारह मासों में बारह नामों से केशवाराधन), योगवासिष्ठ ६.१.८१.११५टीका(अपान सोम के प्रवाह के कारण चैत्र आदि १२ मासों के घटित होने का कथन), महाभारत अनुशासन १०६.१७(विभिन्न मासों में एक समय भोजन के फल), १०९(विभिन्न मासों की द्वादशी तिथियों में विष्णु की विभिन्न नामों से अर्चना व उसके फल), लक्ष्मीनारायण १.२३८(विभिन्न मासों की एकादशी तिथि व्रतों की विधि व माहात्म्य), १.२९३+ (पुरुषोत्तम/मल मास का अर्थ; मल मास के माहात्म्य का आरम्भ), १.२९४.२७(मासों के अधिदेवताओं का कथन), १.५६८.५२(विभिन्न मासों की शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथियों में भगवान् की अर्चना की विधि), २.२७.७७(विभिन्न मासों की कृष्ण अष्टमी तिथियों में शिव पूजा विधि), २.६९.२३(मास अनुसार कृष्ण पूजा हेतु दान द्रव्य), २.१५७.२(देवायतन मूर्ति के संदर्भ में मासों का देह के विभिन्न अङ्गों में न्यास), ४.९५.४(पूर्णमास : जय नामक देवगण में से एक ), द्र. मलमास, मलिम्लुचमास maasa/ masa
माहिका स्कन्द ६.१५५+ (कुरूप मणिभद्र की पत्नी, पुष्प ब्राह्मण द्वारा मणिभद्र का रूप धारण करके माहिका की प्राप्ति, सत्य मणिभद्र को मृत्यु दण्ड),
माहित्था स्कन्द ६.६०.१(अगस्त्य द्वारा माहित्था देवता की स्थापना )
माहिष्मती गर्ग ७.६.३०(माहिष्मती पुरी के राजा इन्द्रनील द्वारा प्रद्युम्न को भेंट देना), १०.१४(माहिष्मती पुरी के नरेश इन्द्रनील का अनिरुद्ध - सेना से युद्ध), पद्म ६.४०.१६(चम्पावती पुरी के राजा माहिष्मत द्वारा लुम्पक नामक दुराचारी पुत्र का राज्य से निष्कासन, लुम्पक द्वारा अनजाने में किए गए रात्रि जागरण से राज्य प्राप्ति की कथा), ६.१८३(माहिष्मती पुरी स्थित माधव ब्राह्मण का वृत्तान्त), ६.२२०.१७(नर्मदा तीरस्थ माहिष्मती नगरी, मोहिनी वेश्या की कथा), वराह ९५(विप्रचित्ति - पुत्री, सुपार्श्व मुनि के शाप से महिषी बनना, महिषासुर के जन्म की कथा), वामन ९०.१९(माहिष्मती में विष्णु का त्रिनयन व हुताशन नाम से वास), वायु ९४.२६/२.३२.२६(कार्तवीर्य द्वारा कर्कोटक सभा को जीतकर माहिष्मती पुरी बसाने का उल्लेख), हरिवंश २.३८.१९(विन्ध्य पर मुचुकुन्द द्वारा स्थापित पुरी ) maahishmatee/ mahishmati
माहेन्द्री वामन ५६.८(माहेन्द्री मातृका की देवी के स्तनमण्डल से उत्पत्ति )
माहेश्वर शिव ७.२.२९.९(शैवों के ज्ञान यज्ञ में तथा माहेश्वरों के कर्म यज्ञ में रत होने का उल्लेख),
माहेश्वरी अग्नि १४६.१९(माहेश्वरी देवी की ८ शक्तियों के नाम), गरुड १.४०(परिवार सहित माहेश्वरी पूजा की विधि), देवीभागवत ५.२८.५१(वृषारूढा माहेश्वरी द्वारा त्रिशूल से दानवों का संहार), ७.३०.७१(महाकाल पीठ में माहेश्वरी देवी की स्थिति का उल्लेख), नारद १.९०.७६(माहेश्वरी देवी की पूजा का विधान), मत्स्य २६१.२५(माहेश्वरी मातृका की प्रतिमा का रूप), २८६.१०(माहेश्वरी देवी का स्वरूप), वामन ५६.४(असुर वधार्थ चण्डिका की सहायता हेतु ब्रह्माणी व माहेश्वरी की उत्पत्ति), शिव ७.२.३१.१७(माहेश्वरी देवी की मूर्ति का स्वरूप), स्कन्द ४.२.७०.३०(माहेश्वरी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य ) maaheshvaree/ maheshvari
मित ब्रह्माण्ड १.२.१३.९५(मितवान् : स्वायम्भुव मन्वन्तर में शक्त/दीप्तिमान्? नामक गण के देवों में से एक), २.३.५.९६(मित व समित : पांचवें गण के मरुतों में से २), २.३.७.२३९(मिताहार : वाली के सेनानायक प्रधान वानरों में से एक), ३.४.१.६०(अमित : सुधर्मा संज्ञक देवों के गण में से एक), भागवत ९.१३.१९(मितध्वज : धर्मध्वज के २ पुत्रों में से एक, खाण्डिक्य - पिता, जनक वंश ) mita
मित्र कूर्म १.४३.२२(मार्गशीर्ष मास में सूर्य का नाम तथा मित्र सूर्य की रश्मियों की संख्या), गणेश २.११३.२९(मैत्र : सिन्धुराज - मन्त्री, वीरभद्र व षडानन से युद्ध, षडानन द्वारा मैत्र का वध), गरुड २.२.७५(मित्रहन्ता के कौशिक बनने का उल्लेख), ३.८.२(मित्र द्वारा हरि स्तुति), ३.२२.२७(मित्र के १५ लक्षणों से युक्त होने का उल्लेख), ३.२२.७८(मित्र में श्रीहरि की मुकुन्द नाम से स्थिति), नारद १.५०.३६(मैत्री : पितरों की सप्त मूर्च्छनाओं में से एक), १.११६.४८(मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी को मित्र व्रत), पद्म १.२०.१२०(मित्र/मन्त्र व्रत का माहात्म्य व विधि), १.४०.९६(मरुत्वती व धर्म के मरुद् गण पुत्रों में से एक, मरुतों में से एक), ६.१७६(मित्रवान् द्वारा हेमशर्मा को गीता के द्वितीय अध्याय के माहात्म्य का कथन, अजा व व्याघ्र| का मित्र बनना), ब्रह्म १.२८(मित्र आदित्य का नारद से ब्रह्म ध्यान विषयक संवाद), ब्रह्माण्ड ३.४.३७.२९(मित्री : ४ योगनाथों में से एक), भविष्य १.५७.६(मित्र हेतु खाण्डवान्न बलि का उल्लेख), ३.४.७.५६(मित्र देव के अंश से रामानन्द की उत्पत्ति), ३.४.१८(संज्ञा विवाह के प्रसंग में मित्र का हयग्रीव असुर से युद्ध), भागवत ४.१.४१(वसिष्ठ व ऊर्जा के ७ पुत्रों में से एक), ६.६.३९(१२ आदित्यों में से एक), ६.१८.६(रेवती - पति, उत्सर्ग आदि पुत्र), ८.१०.२८(मित्र का प्रहेति असुर से युद्ध), १२.११.३५(शुक्र/ज्येष्ठ मास में मित्र नामक सूर्य के रथ का कथन), मत्स्य १०.१७(पृथिवी दोहन प्रसंग में मित्र द्वारा पृथिवी को दुहने पर इन्द्र के वत्स और क्षीर के ऊर्जस्वी बल होने का उल्लेख), ६१.२७(मित्र व वरुण में उर्वशी को प्राप्त करने की स्पर्द्धा, मित्र द्वारा उर्वशी को शाप, मित्र व वरुण के वीर्य से ऋषिद्वय की उत्पत्ति का कथन), १२६.६(ग्रीष्म ऋतु में मित्र व वरुण आदित्यों के रथ की स्थिति का कथन), १७१.५२(मरुत्वती व धर्म के मरुत् संज्ञक पुत्रों में से एक), २०१.२२(वसिष्ठ के विदेह हो जाने पर मित्रावरुण के वीर्य से जन्म लेने का कथन), वामन ५७.७२(मित्र द्वारा स्कन्द को २ गण प्रदान करना), ६९.५४(मित्र का विरूपधृक् से युद्ध), वायु ५२.६(शुचि व शुक्र मासों में मित्र व वरुण नामक सूर्यों के रथ की स्थिति), ६९.१५६/२.८.१५१(पुण्यजनी व मणिभद्र के २४ यक्ष पुत्रों में से एक), ९६.१६९/२.३४.१६९(वसुदेव व मदिरा के पुत्रों में से एक), शिव ३.५.४९(लकुली नामक शिवावतार काल में शिव के शिष्यों में से एक), स्कन्द २.१.३.१५(मित्रवर्मा : सोमकुल में उत्पन्न तुण्डीरमण्डल का राजा, मनोरमा - पति, वियत - पिता), ४.२.५७.११२(मित्र विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.२.६८.१९(ब्राह्मण का समस्त जीवों के प्रति मैत्रीभाव होने का कथन), ५.३.१९१.१४(प्रलयकाल में १२ आदित्यों द्वारा शोषण के अन्तर्गत मित्र द्वारा वायव्य दिशा के शोषण का उल्लेख), ६.८०(गरुड द्वारा अपने ब्राह्मण मित्र की कन्या हेतु वर की खोज का वृत्तान्त), ६.८१(माधवी - पिता, लक्ष्मी द्वारा माधवी को शाप देने पर मित्र द्वारा लक्ष्मी को शाप), ७.१.१३९(धर्मात्मा कायस्थ, चित्र व चित्रा - पिता, यम द्वारा चित्र की चित्रगुप्त नाम से लेखकर्म में स्थापना), महाभारत वन ३१३.६३(प्रवास में, गृह में, आतुर के लिए व मृत्यु समय में मित्र का प्रश्न व उत्तर : यक्ष - युधिष्ठिर संवाद), कर्ण ४२.३१(मित्र शब्द की निरुक्तियां), शान्ति ८०.३(मित्र के ४ प्रकारों के नाम), १६८.५(संधि करने योग्य व अयोग्य पुरुषों के लक्षण), लक्ष्मीनारायण २.१५७.२१(देवायतन मूर्ति की प्रतिष्ठा के संदर्भ में मित्र का पादों में न्यास ), द्र. देवमित्र, ब्रह्ममित्र, विश्वामित्र, सुमित्रा, स्वमित्र, हरिमित्र mitra
मित्र- ब्रह्माण्ड २.३.६८.५(मरुत की कन्या मित्रज्योति से महासत्त्व पुत्रों की उत्पत्ति का कथन), ३.४.१.९४(१२वें मनु के पुत्रों में मित्रवान्, मित्रसेन, मित्रबाहु का उल्लेख), मत्स्य २२.११(मित्रपद : पितरों हेतु प्रशस्त तीर्थों में से एक), ४४.७३(मित्रदेवी : देवक की ७ कन्याओं में से एक, वसुदेव - भार्या), १९६.५०(मित्रवर : आङ्गिरस कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक), वायु २३.२२३/१.२३.२१२(मित्रक : २८वें द्वापर में नकुली नामक अवतार के पुत्रों में से एक), वायु ९३.५/२.३१.५(राजा मरुत्त की कन्या मित्राज्योति से महासत्त्व पुत्रों की उत्पत्ति का कथन ) mitra-
मित्रजित् स्कन्द ४.२.८२.४(परपुरञ्जय उपनाम वाले विष्णु - भक्त मित्रजित् राजा द्वारा नारद के निर्देश पर मलयगन्धिनी कन्या की कंकालकेतु राक्षस से रक्षा व विवाह), ४.२.८२(मित्रजित् नृप द्वारा कङ्कालासुर को मारकर असुर - अपहृत विद्याधर - कन्या से विवाह तथा पुत्र प्राप्ति का वृत्तान्त), ४.२.८४(मित्रजित् के पुत्र द्वारा वीरेश्वर नामक शिवलिङ्ग की स्थापना, वीरेश्वर शिव द्वारा मित्रजित् - पुत्र को विभिन्न तीर्थों का कथन ) mitrajit
मित्रबाहु ब्रह्माण्ड २.३.७१.२५२(नाग्नजिती व कृष्ण के पुत्रों में से एक), ३.४.१.९५(१२वें मनु के पुत्रों में से एक), मत्स्य ४७.१९(नाग्नजिती व कृष्ण के पुत्रों में से एक )
मित्रयु ब्रह्माण्ड १.२.३५.६४(सूत के शिष्यों में से एक), २.३.१.१००(मित्रेयु : ७ भार्गव पक्षों में से एक), भागवत ९.२२.१(मित्रेयु : दिवोदास - पुत्र, च्यवन आदि ४ पुत्रों के नाम), मत्स्य ५०.१३(दिवोदास - पुत्र, मैत्रायणवर - पिता), वायु ९९.२०६/२.३७.२०१ (दिवोदास - पुत्र, च्यवन - पिता ) mitrayu
मित्रवान् पद्म ६.१७६(मित्रवान् द्वारा देवशर्मा को गीता के द्वितीय अध्याय का माहात्म्य कथन, अजा व व्याघ्र का मित्र बनना), ब्रह्माण्ड ३.४.१.९४(१२वें मनु के पुत्रों में से एक), मत्स्य ४७.१९(मित्रविन्दा व कृष्ण के पुत्रों में मित्रवान् व मित्रविन्द का उल्लेख), वायु १००.९९/२.३८.९९(१२वें मनु के पुत्रों में से एक ) mitravaan
मित्रविन्दा गरुड ३.२०.४९(मित्रविन्दा द्वारा श्रवण साधना से श्रीहरि की पति रूप में प्राप्ति का वृत्तान्त, मित्रविन्दा की निरुक्ति, सुमित्रा-पुत्री), गर्ग १.३.३८(गङ्गा द्वारा धारित नाम), ६.८.१६(अवन्ती नरेश की कन्या, कृष्ण द्वारा स्वयंवर से अपहरण), देवीभागवत ८.१२.३३(कुश द्वीप की नदियों में से एक), पद्म ६.२४९.२(कृष्ण - पत्नी, लीला का अंश - तृतीया तस्य भार्या सा लीलांशा समुपस्थिता॥ विंदानुविंदस्य सुतां मित्रविंदां शुचिस्मिताम्), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.१४४(मित्रविन्दा की रोहिणी के अंश से उत्पत्ति?), भागवत ५.२०.१५(कुश द्वीप की नदियों में से एक), १०.५८.३१(राजाधिदेवी - कन्या, विन्द व अनुविन्द - भगिनी, कृष्ण द्वारा हरण), १०.६१.१६ (कृष्ण व मित्रविन्दा के पुत्रों के नाम), १०.८३.१२(मित्रविन्दा द्वारा द्रौपदी से कृष्ण से पाणिग्रहण का कथन), मत्स्य ४७.१९(मित्रविन्दा व कृष्ण के पुत्रों के नाम), मार्कण्डेय ५१.४९(द्वेषिणी नामक कन्या की शान्ति हेतु निर्दिष्ट मित्रविन्दा इष्टि), ६९.८/७२.८(प्रतिकूल पत्नी को वश में करने के लिए मित्रविन्दा इष्टि का उल्लेख ), महाभारत वन २२०.१९(रथन्तरश्चतपसः पुत्रोऽग्निः परिपठ्यते। मित्रविन्दाय वै तस्य हविरध्वर्यवो विदुः ।। (तपसः पुत्रः रथन्तरोऽग्निः अस्ति। तस्मै दीयमाना हविः मित्रविन्ददेवस्य भागः अस्ति, एवं यजुर्विदः गणयन्ति)
) mitravindaa
मित्रशर्मा भविष्य ३.४.७.३६(मित्रशर्मा ब्राह्मण का चित्रिणी से विवाह, सूर्य के अंश रामानन्द की पुत्र रूप में प्राप्ति),
मित्रसह पद्म ६.१३६.१२(मित्रसह/सौदास द्वारा साभ्रमती में स्नान से ब्रह्महत्या से मुक्त होने का कथन), भागवत ९.९.३६(सौदास का उपनाम), वायु ८८.१७६/ २.२६.१७६ (राजा कल्माषपाद का दूसरा नाम), शिव ४.१०(मित्रसह का वसिष्ठ के शाप से कल्माषपाद होना, शक्ति का भक्षण, गोकर्ण स्नान से मुक्ति), स्कन्द ३.३.२(मित्रसह का कल्माषपाद बनना, शक्ति का भक्षण करना आदि), ६.५३.१७(राजा, सौदास - पिता), हरिवंश ३.१०४.१०(मित्रसह विप्र द्वारा तप से जनार्दन पुत्र की प्राप्ति), वा.रामायण ७.६५.१७(सुदास - पुत्र, अपर नाम वीरसह, पैरों के कल्मषयुक्त हो जाने से कल्माषपाद नाम से प्रसिद्धि ) mitrasaha
मित्रा भागवत ३.४.३६(मैत्रेय की माता के रूप में मित्रा का उल्लेख )
मित्रायु विष्णु ३.६.१७(रोमहर्षण के ६ शिष्यों में से एक), ४.१९.६९(दिवोदास - पुत्र, च्यवन - पिता )
मित्रावरुण देवीभागवत ६.१४.५६(राजा द्वारा शापित होने पर वसिष्ठ का पिता ब्रह्मा के निर्देशानुसार मित्रावरुण की देह में प्रवेश, उर्वशी दर्शन से मित्रावरुण का वीर्य स्खलित होना, वीर्य का कुम्भ में गिरना, समयानुसार अगस्त्य व वसिष्ठ का जन्म), भविष्य ४.११८.३(मित्रावरुण देवों द्वारा तप, उर्वशी द्वारा क्षोभ की उत्पत्ति, कुम्भ में वीर्य विसर्जन, वसिष्ठ और अगस्त्य की उत्पत्ति), भागवत २.१.३२(भगवान् के विराट् स्वरूप में मित्रावरुण के वृषण रूप होने का उल्लेख), ६.१८.५(मित्रावरुण व उर्वशी से अगस्त्य व वसिष्ठ की उत्पत्ति का उल्लेख), ९.१३.६(मित्रावरुण व उर्वशी से प्रपितामह/वसिष्ठ? की उत्पत्ति का उल्लेख), मत्स्य ६१.२७(मित्र व वरुण में उर्वशी को प्राप्त करने की स्पर्द्धा, मित्र द्वारा उर्वशी को शाप, मित्र व वरुण के वीर्य से ऋषिद्वय की उत्पत्ति का कथन), १४५.११०(सात वासिष्ठ ब्रह्मवादियों में से एक), १६६.८(मित्रावरुण ऋत्विज की पुरुष के पृष्ठ से उत्पत्ति का उल्लेख), महाभारत शान्ति ३१८.३९(मित्र के पुरुष तथा वरुण के प्रकृति होने का उल्लेख), मार्कण्डेय १११/१०८(सप्तम मनु द्वारा विशिष्टतर पुत्र की प्राप्ति हेतु मित्रावरुण का यज्ञ, यज्ञ दूषित होने से इला नामक कन्या की प्राप्ति, मनु द्वारा मित्रावरुण से कन्या को पुत्र रूप में परिणत करने की प्रार्थना, इला की सुद्युम्न रूप में परिणति), विष्णु ४.१.८(मनु द्वारा पुत्र कामना से की गई मित्रावरुण इष्टि से कन्या इला के जन्म का कथन), ४.५.११(मित्रावरुण व उर्वशी से वसिष्ठ के पुनर्जन्म का कथन), शिव ३.६.५१(शिलाद - पुत्र नन्दी के दर्शन हेतु मित्रावरुण संज्ञक मुनियों का शिलाद के आश्रम में आगमन, नन्दी की अल्पायु का ख्यापन), स्कन्द ४.२.८४.७२(मैत्रावरुण तीर्थ में पिण्डप्रदान का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.६०.३(मित्रावरुण - पुत्र अगस्त्य द्वारा परमेश्वरी देवी को माहित्था नाम प्रदान, नाम हेतु का कथन, अगस्त्य द्वारा शोषणी विद्या की साधना, समुद्र का शोषण ), शौ.अ. ५.२४.५(मित्रावरुण वृष्ट्याधिपती), mitraavaruna/ mitravaruna
मित्रावरुण उपरि संदर्भाः
मित्रावसु कथासरित् ४.२.४७(सिद्धराज विश्वावसु - पुत्र, जीमूतवाहन - मित्र, जीमूतवाहन को मलयवती नामक स्वसा प्रदान), ४.२.१७७(मित्रावसु द्वारा मलयवती का जीमूतवाहन से विवाह), १२.२३.३९(विश्वावसु - पुत्र, जीमूतवाहन - मित्र ) mitraavasu/ mitravasu
मित्रेयु द्र. मित्रयु, मित्रायु
मिथि देवीभागवत ६.१५.२६(निमि - पुत्र, अपर नाम जनक, अरणि मन्थन से उत्पन्न होने के कारण मिथि नाम धारण, मिथिला नगरी का निर्माण), ब्रह्माण्ड २.३.६४.४(निमि की देह के अरणि मन्थन से मिथि/जनक की उत्पत्ति का कथन), वराह २०८(निमि - पुत्र, रूपवती - पति, भोजनार्थ पत्नी के साथ कृषि उद्योग, पतिव्रता प्रभाव से सूर्य की प्रसन्नता), वायु ८९.४/२.२७.४(निमि की देह के मन्थन से मिथि/जनक की उत्पत्ति का कथन), विष्णु ४.५.२३(वही), वा.रामायण १.७१.४(निमि - पुत्र, प्रथम जनक के पिता), ७.५७.२०(निमि - पुत्र, मन्थन से उत्पन्न होने के कारण मिथि नाम धारण, अपर नाम विदेहराज जनक), लक्ष्मीनारायण १.३६२(निमि - पुत्र, रूपवती भार्या, भोजनार्थ पत्नी के साथ कृषि उद्योग, पतिव्रता प्रभाव से सूर्य की प्रसन्नता ) mithi
मिथिला गर्ग ५.१७.३१(उद्धव से कृष्ण का संदेश सुनकर मिथिलावासिनी स्त्रियों के उद्गार), ७.१६(प्रद्युम्न का मिथिलापुरी में गमन, राजा धृति द्वारा पूजन), देवीभागवत ६.१५.२९(निमि - पुत्र मिथि द्वारा मिथिला नगरी का निर्माण), ब्रह्माण्ड २.३.६४.६(मिथि के नाम पर मिथिला नाम प्रथन का उल्लेख), २.३.७१.८०(स्यमन्तक मणि न मिलने पर बलराम द्वारा मिथिला में प्रवेश करने तथा दुर्योधन को गदा की शिक्षा देने का कथन), भागवत ९.१३.१३(निमि - पुत्र मिथिल/जनक द्वारा मिथिला नगरी के निर्माण का उल्लेख, मिथिला नाम का कारण), १०.५७.२०(मिथिला के उपवन में पलायन कर रहे शतधन्वा के अश्व के पतन का उल्लेख), वायु ९६.७४/२.३४.७४(स्यमन्तक मणि न मिलने पर बलराम द्वारा मिथिला में प्रवेश करने तथा दुर्योधन को गदा की शिक्षा देने का कथन), ९९.३२४/२.३७.३१८(भविष्य में २८ मैथिलों द्वारा राज्य करने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३४७.५९(मथुरा में वैकुण्ठ तीर्थ में स्नान से मिथिलावासी ब्राह्मण की ब्रह्महत्या पाप से मुक्ति का कथन ) mithilaa
मिथु ब्रह्म २.५७.७ (मिथु दानव द्वारा यज्ञ के यजमान आर्ष्टिषेण का पुरोहित उपमन्यु सहित हरण, नन्दी द्वारा मिथु का वध, आर्ष्टिषेण आदि की रक्षा ) mithu
मिथुन ब्रह्माण्ड १.१.४.१३(ब्रह्मा के बुद्धि से मिथुन का उल्लेख), महाभारत अनुशासन ४२.१७(विपुल ब्राह्मण द्वारा वन में नर मिथुन का दर्शन व उनके वार्तालाप का श्रवण), ४३.३(मिथुन के अहोरात्र होने का कथन), लक्ष्मीनारायण २.१२१.९७(मिथुन राशि हेतु ब्रह्मा द्वारा क,छ,घ वर्ण प्रदान का उल्लेख ) mithuna
मिथ्या योगवासिष्ठ ६.१.४१(जगत् मिथ्यात्व का प्रतिपादन), ६.१.११२-११३(मायायन्त्रमय पुरुष द्वारा सीमित आकाश की रक्षा करने के उपाख्यान से मिथ्या पुरुष का प्रतिपादन ) mithyaa
मिलिन्द लक्ष्मीनारायण २.१९२.२५(श्रीहरि द्वारा अङ्गराज द्वारा पालित मिलिन्द नगरी में आगमन व प्रजा को उपेदश आदि )
मिश्र नारद २.६५.८१(मिश्र तीर्थ का माहात्म्य), पद्म ३.२६.८६(मिश्र तीर्थ का माहात्म्य), mishra
मिश्रकेशी ब्रह्मवैवर्त्त ४.६२.४४(मिश्रकेशी के शाप से बृहस्पति के हृतभार्य होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.७.६(२४ मौनेया अप्सराओं में से एक), भागवत ९.२४.४३(मिश्रकेशी अप्सरा व वत्सक से वृक आदि पुत्रों की उत्पत्ति का उल्लेख), मत्स्य १६१.७५(हिरण्यकशिपु की सेवा करने वाली अप्सराओं में से एक), वराह १०.७६(प्रहेतृ असुर - कन्या, राजा दुर्जय की भार्या बनकर सुदर्शन नामक पुत्र को उत्पन्न करने का कथन), वायु ६९.५/२.८.५(३४ मौनेया अप्सराओं में से एक ) mishrakeshee/ mishrakeshi
मिष्ट लक्ष्मीनारायण १.३१५.६१(मिष्टादेवी : गोलोक में कृष्ण के मुकुट की कल्गि का अवतार), १.३८५.५२(मिष्टा का कार्य), ४.४८(मिष्टासव नामक मद्य व्यवसायी द्वारा कथा श्रवण हेतु नगरान्तर गमन, मार्ग में उष्ट्रारोही श्रेष्ठी रूप में नारायण द्वारा मिष्टासव की रक्षा का वृत्तान्त ) mishta
मिहिर ब्रह्मवैवर्त ३.१९.२६(मिहिर सूर्य से स्कन्ध की रक्षा की प्रार्थना), भविष्य ३.४.८.११८(पूषा सूर्य के अंश व रुद्रपशु - पुत्र मिहिराचार्य द्वारा लङ्का में ज्योतिष शिक्षा प्राप्ति की कथा ) mihira
मीड द्र. प्रमीड
मीढ ब्रह्माण्ड २.३.७१.१९(मीढ~वान् : धृष्टि व माद्री के ४ पुत्रों में से एक), भागवत ३.१४.३४(शिव की मीढुष संज्ञा का प्रयोग), ४.७.६(दक्ष के कटे सिर को जोडने के संदर्भ में शिव की मीढुष्टम, मीढ~वान् संज्ञाओं का प्रयोग), ६.१८.७(मीढुष : पौलोमी व इन्द्र के ३ पुत्रों में से एक), ९.२.१९(मीढ~वान् : ऋक्ष - पुत्र, कूर्च - पिता, मनु - पुत्र नरिष्यन्त वंश ) meedha
मीन
गरुड
१.२१७.१७(विश्वासघात
के
कारण
प्राप्त
योनि),
नारद
१.६६.११५(मीनेश
की
शक्ति
शङ्खिनी
का
उल्लेख
- मीनेशः
शङिखनीयुक्तो
मेषेशस्तर्जनीयुतः॥),
ब्रह्माण्ड
३.४.४४.५३(लिपि
न्यास
प्रसंग
में
एक
व्यञ्जन
के
देवता
का
नाम),
भागवत
३.२.८(यादवों
की
मीन
से
उपमा,
चन्द्रमा/उडुप
के
जल
में
निवास
करते
हुए
मीनों
द्वारा
न
पहचानने
का
उल्लेख
- दुर्भगो
बत
लोकोऽयं
यदवो
नितरामपि
।
ये
संवसन्तो
न
विदुः
हरिं
मीना
इवोडुपम्
॥),
११.७.३४(दत्तात्रेय
के
गुरुओं
में
से
एक),
११.८.१९
(रसना
दोष
से
मीन
के
मृत्यु
का
ग्रास
बनने
का
कथन),
१३.४.१५माहात्म्य
(मीन
प्रकार
के
कथा
श्रोता
के
लक्षण
- शब्दं
नानिमिषो
जातु
करोत्यास्वादयन्
रसम्
। श्रोता
स्निग्धो
भवेन्मीनो
मीनः
क्षीरनिधौ
यथा
॥),
मार्कण्डेय
१५.७(विश्वासघाती
द्वारा
मीन
योनि
प्राप्ति
का
उल्लेख),
वायु
१०५.४६/२.४३.४४(सूर्य
के
मीन
राशि
में
होने
पर
गया
में
श्राद्ध
के
महत्त्व
का
उल्लेख),
स्कन्द
४.१.२९.१३६(चञ्चल
लोचना,
गङ्गा
सहस्रनामों
में
से
एक-
महाप्रभावा
महती
मीनचंचललोचना
।।),
७.१.३०४(गंगा
में
मत्स्यों
के
त्रिनेत्र
होने
का
कारण -
ध्यानात्त्रिलोचनस्यैव
अदृष्टे
तु
महेश्वरे
॥
त्रिनेत्रत्वमनुप्राप्तास्तपोनिष्ठास्तपोधनाः
॥),
महाभारत
शान्ति
५२.२१(ज्ञानचक्षु
से
चतुर्विध
प्रजाजाल
को
अमल
जल
में
मीन
की
भांति
देखने
का
कथन -
चतुर्विधं
प्रजाजालं
संयुक्तो
ज्ञानचक्षुषा।
भीष्म
द्रक्ष्यसि
तत्त्वेन
जले
मीन
इवामले।।),
३०१.६५(दुःख
रूपी
जल
में
व्याधि,
मृत्यु
रूप
ग्राह,
तम:
कूर्म
व
रजो
मीन
आदि
को
प्रज्ञा
से
तरने
का
कथन -
तमःकूर्मं
रजोमीनं प्रज्ञया संतरन्त्युत।
स्नेहपङ्कं जरादुर्गं
ज्ञानदीपमरिंदम।।),
लक्ष्मीनारायण
२.१०८.४८(मीनकङ्गू
नदी
के
तट
पर
ब्रह्मा
के
वैष्णव
मख
के
आयोजन
का
वृत्तान्त),
२.१२१.१०१(ब्रह्मा
द्वारा
मीन
राशि
हेतु
द,च,झ,य
वर्ण
प्रदान
करने
का
उल्लेख),
२.२०७.८१+
(श्रीहरि
का
रायरणजित्
भूप
की
नगरी
मीनार्ककृष्ण
में
आगमन
व
उपेदश
आदि
) meena/ mina
मीना ब्रह्माण्ड २.३.७.४१४(मीना व अमीना : ऋषा की ५ पुत्रियों में से २, मकर, पाठीन आदि सन्तानों के नाम), वायु ६९.२९१/२.८.२८५(ऋषा की पुत्रियों में से एक, मकरों, पाठीनों, तिमियों व रोहितों की माता ) meenaa
मीनाक्षी देवीभागवत ७.३८.११(चिदम्बरम् पीठ में मीनाक्षी देवी की स्थिति का उल्लेख), ८.६.२०(मीनाक्षी देवी के विभिन्न नाम ) meenaakshee/ meenakshi
मीमांसा देवीभागवत १.१.१४(मीमांसा के राजस होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.३५.८७(१४ विद्याओं में से एक), भविष्य ३.२.३०(यजुष् - पुत्र, चन्द्रगुप्त से ब्रह्मचर्य विषयक संवाद), मत्स्य ३.४(तपोरत ब्रह्मा के मुख से नि:सृत शास्त्रों में से एक), ५३.६(हयग्रीव अवतार द्वारा उद्धार किए गए शास्त्रों में से एक), वायु ६१.७८(१४ विद्याओं में से एक), विष्णु ३.६.२७(१४ विद्याओं में से एक), ५.१.३८(शास्त्रों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर ३.७३.४५(मीमांसा के सोम अधिदेवता होने का उल्लेख ) meemaansaa/meemaamsaa/ mimansa
मीरा भविष्य ३.४.२२.४१(मीरा भक्त के पूर्व जन्म में मानकार होने का उल्लेख ) meeraa/ mira
मुकुट गणेश २.२९.३१(विरोचन द्वारा सूर्य भक्ति से मुकुट की प्राप्ति, परस्त्री द्वारा मूर्द्धा स्पर्श से मृत्यु), गर्ग ७.२३.१८(कुबेर द्वारा उग्रसेन/प्रद्युम्न के पास दूत हेममुकुट का प्रेषण), देवीभागवत ७.३८.२९(माकोट नामक स्थान में मुकुटेश्वरी देवी के वास का उल्लेख), पद्म ५.९९.१८(विनय के रत्न मुकुट होने का उल्लेख - विनयो रत्नमुकुटः सत्यधर्मौ च कुंडले। त्यागश्च कंकणो येषां किं तेषां जडमंडनैः), ६.१३३.१२ ( मुकुट क्षेत्र में कर्कोटक तीर्थ की स्थिति का उल्लेख ), मत्स्य १३.५०(मुकुट तीर्थ में देवी का सत्यवादिनी रूप से वास), १५०.१०२(कुजम्भ से युद्ध में धनद/कुबेर के मुकुट का पतन, कुजम्भ द्वारा मुकुट का ग्रहण), १५४.४३८(शिव विवाहोत्सव के अवसर पर सौरि द्वारा अनलोल्बण मुकुट तथा भुजगाभरणों से शिव का शृङ्गार), लिङ्ग १.५०.१४(मुकुट पर्वत पर पन्नगों के वास का उल्लेख), वायु ३६.२८(सितोद सर के पश्चिम में स्थित पर्वतों में से एक), ३९.६२(मुकुट पर्वत पर पन्नगों के वास का उल्लेख), ४२.५२(मुकुटा : ऋष्यवान् पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर ३.४२.४(गन्धर्वों को मुकुट रहित दिखाने का निर्देश), स्कन्द ३.१.४४.१०(सुग्रीव द्वारा रावण का मुकुट गिराने का उल्लेख), ५.३.१९८.७०(माकोट तीर्थ में देवी की मुकुटेश्वरी नाम से स्थिति), लक्ष्मीनारायण २.१४०.३७(मुकुटोज्वल नामक प्रासाद के लक्षण- ८१ अण्डक इत्यादि), २.२२५.९२(ईशों को मुकुट दान का उल्लेख), २.२२५.९२(श्रीहरि द्वारा यज्ञ में सायंकाल दान में ईशों हेतु मुकुट व हार दान का उल्लेख), २.२९३.१०५ (बालकृष्ण व लक्ष्मी के विवाह में संकर्षण द्वारा मुकुट भेंट का उल्लेख ), द्र. प्रतापमुकुट mukuta
मुकुन्द
गणेश
२.३९.१६(मुकुन्दपुर
: भस्मासुर
के
नगर
का
नाम,
दुरासद
असुर
का
निवासस्थान
- मुकुन्दपुरमित्येव
ख्यातं
लोकेषु
सर्वतः
॥
यस्मिन्भस्मासुरो
राजा
पूर्वमासीद्बलान्वितः
।),
गरुड
१.५३.८(मुकुन्द
निधि
का
स्वरूप
- भुक्तभोगो
गायनेभ्यो
दद्याद्वेश्यादिकासु
च
॥),
३.२२.७८(मित्र
में
श्रीहरि
की
मुकुन्द
नाम
से
स्थिति
- मित्रे
मुकुन्दः
शालके
चानिरूद्धो
नारायणो
द्विजवर्ये
सदास्ति
॥),
३.२९.५५(शङ्खोदक
उद्धरण
काल
में
मुकुन्द
के
ध्यान
का
निर्देश
- शङ्खोदकस्योद्धरणे
चैव
काले
मुकुन्दरूपं
संस्मरेत्सर्वदैव
॥),
नारद
१.६६.९३(मुकुन्द
की
शक्ति
विनता
का
उल्लेख
- मुकुन्दो
विनतायुक्तो
नन्दजश्च
सुनन्दया),
ब्रह्मवैवर्त्त
३.३१.३३(मुकुन्द
से
उदर
की
रक्षा
की
प्रार्थना-
उदरं
पातु
मे
नित्यं
मुकुन्दाय
नमः
सदा।।),
४.१२.२१(मुकुन्द
से
वक्ष
की
रक्षा
की
प्रार्थना
- वक्षः
पातु
मुकुन्दश्च
जठरं
पातु
दैत्यहा
।),
४.१११.२८(मुकुन्द
की
निरुक्ति-
मुकुं
भक्तिरसप्रेमवचन
देने
वाला
- मुकुमध्ययमानं
च
निर्वाणं
मोक्षवाचकम्
।।
तद्ददाति
च
यो
देवो
मुकुंदस्तेन
कीर्तितः
।
मुकुं
भक्तिरसप्रेमवचनं
वेदसंमतम्
।।
यस्तं
ददाति
भक्तेभ्यो
मुकंदस्तेन
कीर्तितः
।),
पद्म
६.२०९.११+
(चोर
चण्ड
नापित
द्वारा
मुकुन्द
विप्र
की
हत्या,
कोशला
तीर्थ
में
अस्थि
पतन
से
मुकुन्द
की
मुक्ति,
यम
यातनाओं
का
वर्णन),
ब्रह्माण्ड
२.३.३३.१४(मुकुन्द
से
उदर
की
रक्षा
की
प्रार्थना
- उदरं
पातु
मे
नित्यं
मुकुन्दाय
नमो
मनुः
॥),
३.४.४०.७(इन्दिरा
व
मुकुन्द
के
युगल
का
उल्लेख
- इन्दिरां
योजयामास
मुकुन्देन
महेश्वरी
।),
भविष्य
३.२.५.२२(हरिदास
- पुत्र,
महादेवी
- भ्राता,
मुकुन्द
के
गुरु
द्वारा
गुरुदक्षिणा
के
रूप
में
स्व
पुत्र
हेतु
महादेवी
की
याचना),
३.३.३२.१८३(पृथ्वीराज
- सेनानी,
वामन
से
युद्ध),
३.४.२२.१२(भक्त
ब्राह्मण
मुकुन्द
द्वारा
अकबर
रूप
में
जन्म
लेना,
मुकुन्द
के
शिष्यों
का
अकबर
के
सहयोगियों
के
रूप
में
जन्म),
भागवत
१.५.१९(भगवान्
कृष्ण
के
लिए
मुकुन्द
संज्ञा
का
प्रयोग),
५.२०.१०(कुन्द
व
मुकुन्द
-- शाल्मलि
द्वीप
के
७
वर्ष
पर्वतों
में
से
दो),
८.८.२४(मुकुन्द
का
निरपेक्ष
विशेषण
- वव्रे
वरं
सर्वगुणैरपेक्षितं
रमा
मुकुन्दं
निरपेक्षमीप्सितम् ),
मार्कण्डेय
६८.५/६५.५(८
निधियों
में
से
एक
- मुकुन्दो
नंदकश्चैव
नीलः
शङ्खोऽष्टमो
निधिः
।
।),
वामन
५७.६५(धाता
द्वारा
स्कन्द
को
प्रदत्त
गण
का
नाम),
लक्ष्मीनारायण
३.१५१.८५(मुकुन्द
निधि
के
लक्षण
- उद्धृत्योद्धृत्य
वेश्यासु
नर्तकीगायिकासु
च
।।
भाण्डेषु
व्यसने
क्लेशे
व्ययं
करोति
नित्यदा
।),
३.२२६.६६(पापी
वैद्य
गदार्दनेश्वर
की
पत्नी
मुकुन्दिनी
की
भक्ति
से
प्रसन्न
होकर
श्रीहरि
द्वारा
पति
- पत्नी
को
मोक्ष
प्रदान
का
वृत्तान्त),
४.६४(कथा
श्रवण
से
पक्षाघात
से
पीडित
मुकुन्दसावित्र
नामक
न्यायाधीश
की
रोग
से
मुक्ति
का
वृत्तान्त),
४.११०.५४(श्रीहरि
के
ज्येष्ठ
पुत्र
मुकुन्दविक्रम
को
दिलावरी
नगरी
का
राजा
बनाने
का
निश्चय
- मुकुन्दविक्रमो
नाम्ना
चक्रवर्तिगुणान्वितः
।।
दक्षहस्ततले
तस्य
चक्रचिह्नं
विराजते
।),
४.१११(मुकुन्दविक्रम
के
राज्याभिषेक
की
विधि
का
वर्णन),
४.११२(मुकुन्दविक्रम
राजा
की
भगवत्परायणता
का
वर्णन
) mukunda
मुकुन्दा गणेश १.२८.१(राजा रुक्माङ्गद द्वारा ऋषि वाचक्नवि व उनकी पत्नी मुकुन्दा के दर्शन आदि), १.२८.५(ऋषि वाचक्नवि की पत्नी मुकुन्दा की राजा रुक्माङ्गद पर कामासक्ति), १.३६.१(मुकुन्दा द्वारा रुक्माङ्गद रूप धारी इन्द्र के साथ रमण), १.३६.३६(मुकुन्दा व पुत्र गृत्समद द्वारा शाप - प्रतिशाप ) mukundaa
मुकुल भविष्य ३.२.१६.९(मुकुल दैत्य का प्रह्लाद के शाप से व्याघ्र होना, चन्द्रशेखर राजा द्वारा व्याघ्र का वध ) mukula
मुक्त अग्नि १९१.३( मौक्तिकाशी द्वारा माघ में महेश्वर की अर्चना का निर्देश), ब्रह्माण्ड ३.४.१.११३(१४वें भौत्य मन्वन्तर के सप्तर्षियों में पौलह मुक्त का उल्लेख), वायु १६.२०(मुक्त पुरुष के लक्षण), १०२.७६/२.४०.७६(संसार से विनिवर्तन होने पर मुक्त के लिङ्ग से मुक्त होने का उल्लेख), १०२.१०५/ २.४०.१०५ (गुण शरीर व प्राणादि से मुक्त होने पर अन्य शरीर धारण से मुक्ति का कथन), योगवासिष्ठ ४.४६(जीवन्मुक्त स्थित पुरुष के गुणों का वर्णन), ५.१८(मोक्षोपाय के रूप में जीवन्मुक्त दशा प्राप्त करने का निर्देश), ५.७५(मोक्षोपाय में मुक्त - अमुक्त विचार नामक सर्ग में देवों, दानवों, ऋषियों, मनुष्यों में जीवन्मुक्तों के उदाहरण), ५.७७(मोक्षोपाय में जीवन्मुक्त के स्वरूप का वर्णन), ६.१.११+ (जीवन्मुक्त निश्चय योगोपदेश नामक सर्ग में जीवन्मुक्त द्वारा स्वयं को ब्रह्म के साथ एकाकार करने का वर्णन), ६.१.१०४(जीवनमुक्त व्यवहार प्रतिपादन नामक सर्ग में चूडाला व शिखिध्वज के जीवन्मुक्त की भांति व्यवहार का प्रतिपादन), लक्ष्मीनारायण १.३०५.३९(सनकादि द्वारा मुक्त के लक्षणों का वर्णन), २.२२५.९१(मुक्तों के लिए पादुका दान का निर्देश), कथासरित् १०.३.२४(मुक्तलता : भिल्ल - कन्या, राजा को चतुर्वेद धारक शुक प्रदान ) mukta
मुक्ता अग्नि १९१.३( मौक्तिकाशी द्वारा माघ में महेश्वर की अर्चना का निर्देश), गणेश २.१२६.२२(चक्रपाणि द्वारा उत्तर दिशा में मुक्ता देवी की स्थापना), गरुड २.३०.५५/२.४०.५५(मृतक के स्तनों में मौक्तिक देने का उल्लेख), गर्ग ३.६.२६(कृष्ण द्वारा कृषि द्वारा मुक्ताफलों को उगाने का कथन), देवीभागवत ११.६.४२(मुक्तावली : सुधिषणा - पत्नी, स्व पति की मृत्यु पर गुणनिधि के साथ विहार की कथा), पद्म ६.६.२६(बल असुर के दन्तों से मुक्ता की उत्पत्ति का उल्लेख), विष्णु ४.२.२८(शाल्मलि द्वीप की ७ नदियों में से एक), स्कन्द १.१.८.२२(चन्द्रमा द्वारा मुक्तामय लिङ्ग की अर्चना का उल्लेख), ५.३.१९५.११(देवतीर्थ में मुक्ता दान?), योगवासिष्ठ ३.३९.४(दिन रूपी हस्ती के वध पर तारा रूपी गजमुक्ताओं का प्राकट्य), लक्ष्मीनारायण २.७७.४६(मुक्ता दान से मुक्ता उत्पादन, लवण उत्पादन आदि के पाप से मुक्ति का उल्लेख), ३.१६२.५०(मुक्ताफलात्मक मणियों की उत्पत्ति व प्रकार आदि का वर्णन), ४.२६.५९(मुक्तानिका - पति कृष्ण की शरण से सम्पत् से मुक्ति का उल्लेख), कथासरित् ७.८.१९८(हिमालय शिखरस्थ एक नगर, इन्दीवरसेन द्वारा पूर्व जन्म का स्मरण ), द्र. गजमुक्ता, भूगोल muktaa
मुक्ताफल गरुड १.६९(मुक्ताफल की महिमा), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.३६(दन्तसौन्दर्य हेतु गोलोकनाथ को मुक्ताफल/मोती का दान), ब्रह्माण्ड ३.४.३३.५०(मुक्ताफलमय शाला की महिमा का कथन), कथासरित् ९.५.२२०(शबरों का राजा), १७.१.१५(मुक्ताफलकेतु : विद्याधरों का राजा, पद्मावती - पति), १७.२.१(मुक्ताफलकेतु द्वारा विद्युद्ध्वज के वध का वृत्तान्त), १७.२.१३२(मुक्ताफलकेतु के जन्म लेते ही आकाशवाणी द्वारा मुक्ताफलकेतु द्वारा विद्युद्ध्वज के वध का उल्लेख ) muktaafala/ muktafala
मुक्ति अग्नि १९१.३( मौक्तिकाशी द्वारा माघ में महेश्वर की अर्चना का निर्देश), नारद १.६६.९४(सात्वत विष्णु की शक्ति मुक्ति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.११(सत्य - पत्नी, प्रकृति की एक कला), ब्रह्माण्ड ३.४.५.२३(तप, यम आदि से शीघ्र मुक्ति प्राप्ति का कथन), ३.४.८.२७(प्रवृत्ति मार्ग का अनुसरण करके मुक्ति पाने का उपाय), ३.४.३६.५१(अणिमा आदि सिद्धियों में से एक), भविष्य ३.४.७.२६ (तप से सालोक्य, भक्ति से सामीप्य, ध्यान से सारूप्य व ज्ञान से सायुज्य प्राप्ति का कथन), मत्स्य १७९.३०(मुक्तिका : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), वराह १२१(जन्माभाव नामक अध्याय में मुक्ति के साधनों व कर्मों का कथन), वायु १०५.१६/२.४३.१४(४ तीर्थों में चतुर्विध मुक्ति), १०८.३७/२.४६.४०(मुक्तिवामन : गया में रवि की २? मूर्तियों में से एक), शिव १.१०.५(सृष्टि, स्थिति, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह नामक शिव के पञ्चकृत्य में अनुग्रह मुक्ति का हेतु), ४.४१(मुक्ति का निरूपण), स्कन्द ४.२.९८.८२(मुक्ति मण्डप का माहात्म्य), ५.२.२५(मुक्तीश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, मुक्ति विप्र के समक्ष व्याध व व्याघ्र| की मुक्ति), ७.४.१६.१३(मुक्तिद्वार तीर्थ का माहात्म्य, गोमती के उद्भव की कथा), योगवासिष्ठ ३.९(जीवन्मुक्त के लक्षणों का कथन), लक्ष्मीनारायण १.७६.४(मुक्ति के विविध साधनों ज्ञान, सेवा, परोपकार आदि आदि का कथन), १.३०७.१७(धर्म व भक्ति की मानसी कन्याओं प्रेयसी व श्रेयसी में से श्रेयसी द्वारा मुक्ति नाम की प्राप्ति का कारण), १.३६७.१६(जीवन्मुक्ति व ब्रह्ममुक्ति नामक २ मुक्तियों का कथन), १.५४७.३९(सालोक्य आदि ४ प्रकार की मुक्ति के अधिकारी जनों का कथन), २.२५४.५२(आत्मविवेक, हरि उपासना, योगाभ्यास, धर्ममात्रआश्रय, गुरु आश्रय मात्र से प्राप्त होने वाली मुक्तियों के विषय में प्रश्न और लोमश का उत्तर), ३.१८.१८(सालोक्य, सार्ष्टि, सारूप्य आदि मुक्तियों की क्रमश: श्रेष्ठता का कथन), ३.३०.४८(मुक्ति के तीन साधनों सन्त, हरि व शील का उल्लेख), ३.३७.११२(५२वें वत्सर में श्रीहरि व लक्ष्मी का नाम संकीर्तन आदि में रत देवों व ऋषियों के मध्य मोक्ष नारायण व मुक्तिश्री के रूप में अवतार), ३.८१.९३(शतानन्द व विनोदिनी विप्र दम्पत्ति द्वारा मुक्तिदायक पुत्र मुक्त्यायन को उत्पन्न करने का कथन), ३.१७४+ (मुक्ति धर्म का वर्णन), ३.१७६.११(मुक्तिस्रोतायन गुरु द्वारा सिद्धिवेशायन शिष्य की जिज्ञासाओं का उत्तर), ४.१०१.८८(कृष्ण की पत्नियों में से एक, सुनिर्वाण व द्युशाश्वती युगल की माता), कथासरित् ९.१.१२०(मुक्तिपुर : एक द्वीप, राजा रूपधर व हेमलता - कन्या रूपलता का वास ) mukti
मुख गरुड १.२०५.१४८(मुख में आहवनीय अग्नि के वास का उल्लेख), नारद १.५०.३५(मुखा : देवों की सप्त मूर्च्छनाओं में से एक), ब्रह्म २.९४.१२(चिच्चिक पक्षी के द्विमुख होने का कारण : पूर्व जन्म में द्विज योनि में अनृत वादन आदि), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३.२५(चतुष्पदों में पञ्चास्य की उत्कृष्टता का उल्लेख), ३.४.३०(मुख सौन्दर्य हेतु पद्म दान का निर्देश), ब्रह्माण्ड १.१.५.१६(यज्ञवराह के जुहूमुख होने का उल्लेख), भागवत ३.१२.२४(ब्रह्मा के मुख से अङ्गिरा की उत्पत्ति का उल्लेख), ४.२९.११(मुख से सम्बन्धित प्रतीकों का कथन), मत्स्य १७९.१२(मुखमण्डिका : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), १७९.२१(महामुखी : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), १७९.२१(मुखेबिला : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), वायु १००.१९/२.३८.१९(प्रथम सावर्णि मन्वन्तर में मुख संज्ञक देवों के गण के २० देवों के नाम), विष्णुधर्मोत्तर २.७९.१४(अश्व, अज के मुख शुद्ध होने तथा गौ के मुख के अशुद्ध होने का कथन), शिव १.१०.९(सृष्टि, स्थिति, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह नामक पञ्चकृत्य को धारण करने हेतु शिव की पञ्चमुखता, चार दिशाओं की चतुर्मुखता तथा पञ्चम मुख ब्रह्मा विष्णु से तप द्वारा प्राप्त), स्कन्द ४.२.५७.८२(त्रिमुख व पञ्चमुख विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.३९.२८(कपिला गौ के मुख में अग्निदेव की स्थिति), हरिवंश ३.७१.५०(वामन के विराट स्वरूप ग्रहण करने पर मुख के स्थान में अग्नि देवता की स्थिति), महाभारत सभा ३८.२७(वेदों का मुख अग्निहोत्र, छन्दों का गायत्री आदि होने का कथन), भीष्म १४.१०(भीष्म के मुख, दांत व जिह्वा की चाप, शर व असि से उपमा), योगवासिष्ठ ६.२.८०.२१(रुद्र के ५ मुख ५ ज्ञानेन्द्रियों के प्रतीक होने का उल्लेख), वा.रामायण ५.१७.१४(हनुमान द्वारा अशोकवाटिका में अजामुखी, हस्तिमुखी आदि राक्षसियों को देखना), कथासरित् १२.६.७५(मुखरक : द्यूत व्यसनी, श्रीदर्शन - मित्र), १२.६.२०२(पद्मगर्भ व शशिकला - पुत्र मुखरक द्वारा स्वभगिनी पद्मिष्ठा से अनायास मिलन व मित्र श्रीदर्शन की सहायता से पद्मिष्ठा को चोर वसुभूति से मुक्त कराने का वृत्तान्त ), द्र. कालमुख, कीर्तिमुख, कोकामुख, गौरमुख, चन्द्रमुखी, ज्वालामुखी, दधिमुख, दुर्मुख, नग्नमुखी, बगलामुखी, व्याघ्रमुख, शिलीमुख, सुमुख, सुवर्णमुखरी, सूचीमुख mukha
मुखार स्कन्द ६.१२४(मुखार तीर्थ की उत्पत्ति व माहात्म्य, लोहजङ्घ का दस्यु बनना, सप्तर्षियों के प्रभाव से वाल्मीकि बनना )
मुख्य भागवत ४.२५.४९(पुरञ्जन की पुरी में पूर्व दिशा के मुख्य संज्ञक द्वार से आपण व बहूदन विषयों को जाने का कथन), ४.२९.११(मुख्य द्वार से सम्बन्धित प्रतीकों का कथन), वायु ६.६१/१.६.५७(मुख्य/स्थावर नामक चतुर्थ सर्ग का उल्लेख), १००.१९/२.३८.१९(मुख्य संज्ञक देव गण के २० देवों के नाम), १०८.४०/२.४६.४३(नैमिषारण्य के पार्श्व में स्थित मुख्य तीर्थ के माहात्म्य का कथन), विष्णु ३.२.१५(अष्टम सावर्णि मन्वन्तर के देवों के ३ गणों में से एक), स्कन्द ५.३.२२.२( मुख्य अग्नि : ब्रह्मा का मानस पुत्र, स्वाहा - पति, दक्षिणाग्नि, गार्हपत्य तथा आहवनीय नामक तीन पुत्रों को जन्म ) mukhya
मुग्धबुद्धि कथासरित् १०.५.२(वणिक् - पुत्र, मूर्खता बोधक कथा )
मुचि पद्म १.६८(नमुचि - भ्राता, इन्द्र द्वारा वध),
मुचुकुन्द गर्ग ६.२(मुचुकुन्द द्वारा कालयवन को भस्म करने की कथा, कृष्ण की स्तुति), ७.४३.१०(मुचुकुन्द के जामाता शोभन द्वारा श्रीकृष्ण को भेंट प्रदान), देवीभागवत ७.१०.४(मान्धाता - पुत्र, पुरुकुत्स - भ्राता),पद्म ६.६०.४(मुचुकुन्द द्वारा कार्तिक कृष्ण एकादशी को व्रत करने के निर्देश के कारण जामाता के मरण आदि की कथा), ६.२४६(मुचुकुन्द का गुहा में शयन, कालयवन को भस्म करना, कृष्ण से मोक्ष प्राप्ति का वृत्तान्त), ब्रह्म १.५.९५(मान्धाता व चैत्ररथी - पुत्र, पुरुकुत्स - भ्राता), १.८९(मुचुकुन्द द्वारा कालयवन का नाश, कृष्ण की स्तुति, तप के लिए गन्धमादन पर्वत पर गमन), ब्रह्माण्ड १.२.२०.४४(मुचुकुन्द दैत्य का सप्तम पाताल तल में बलि के नगर में निवास), २.३.३६.२६(मुचुकुन्दप्रसादकृत : कृष्ण के १०८ नामों में से एक), भागवत ९.६.३८(बिन्दुमती व मान्धाता के ३ पुत्रों में से एक), १०.५१(मुचुकुन्द द्वारा देवों से निद्रा के वर की प्राप्ति, कालयवन को भस्म करना, कृष्ण की स्तुति), मत्स्य १२.३५(मान्धाता के ३ पुत्रों में से एक, पुरुकुत्स व धर्मसेन - भ्राता), वराह ३६.५(पूर्व जन्म में सुन्द राजा), १५८.२९(मथुरा के अन्तर्गत मुचुकुन्द क्षेत्र में मुचुकुन्द का शयन), वायु ५०.४२(सप्तम तल पाताल में मुचुकुन्द दैत्य के नगर की स्थिति का उल्लेख), ८८.७२/२.२६.७२(बिन्दुमती व मान्धाता के ३ पुत्रों में से एक), विष्णु ५.२३.१९(मुचुकुन्द द्वारा कालयवन को भस्म करना, कृष्ण की स्तुति), स्कन्द १.१.२०(मुचुकुन्द द्वारा देवों के तारक से युद्ध में देवों को विजयी बनाना), १.१.२९(मुचुकुन्द का तारक से युद्ध), ४.२.८३.७३(मुचुकुन्द तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), हरिवंश १.१२.९(मान्धाता व बिन्दुमती - पुत्र), २.३८.२(यदु व नागकन्या - पुत्र, पिता द्वारा विन्ध्य व ऋक्ष पर्वत के परित: २ पुरी बनाने का निर्देश), २.५७(मुचुकुन्द द्वारा देवों से वर प्राप्ति, कालयवन का वध), लक्ष्मीनारायण १.२६०.२६(इन्द्रकुन्दन नगर के एकादशी व्रत प्रिय राजा मुचुकुन्द की पुत्री चन्द्रभागा तथा उसके पति शशिसेन का वृत्तान्त), १.५६९.१२(दैत्यों के अधिपति मुचुकुन्द व राजर्षि कुवलयाश्व के विमानों में स्वर्गगमन की प्रतिस्पर्द्धा का वृत्तान्त ) muchukunda
मुञ्ज गर्ग ४.२१(मुञ्जवन में कृष्ण द्वारा गोपों की दावानल से रक्षा), पद्म ३.२६.२०(मुञ्जावट तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ब्रह्माण्ड १.२.१८.१७(मुञ्जवान् पर्वत की शोभा का कथन, मुञ्जवान दुर्ग व शैल पर धूम्रलोचन शिव का वास, शैलोद सरोवर की प्रसूति का स्थान), १.२.२०.३३(चतुर्थ रसातल में मुञ्ज के आलय का उल्लेख), मत्स्य १९५.३७( मौञ्ज : भार्गव कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक), १९६.१८( मौञ्जवृष्टि : आङ्गिरस कुल के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), १९८.१८( मौञ्जायनि : विश्वामित्र कुल के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वराह २१३(मुञ्जवान शिखर का वर्णन, मुञ्जवान पर नन्दी विप्र के तप का वृत्तान्त), वायु ५०.३२(चतुर्थ रसातल में मुञ्ज के आलय का उल्लेख), स्कन्द ६.२०८.७(सुरापायी ब्राह्मण के मौञ्जीहोम से शुद्ध होने का उल्लेख), महाभारत आश्वमेधिक १९.२३(मुञ्ज के शरीर व इषीका के आत्मा होने का कथन ) munja
मुञ्जकेश ब्रह्माण्ड १.२.३५.६१(अथर्वाचार्य सैन्धव द्वारा शिष्य मुञ्जकेश को संहिता देने तथा मुञ्जकेश द्वारा पुन: द्वैधा भिन्न करने का उल्लेख), मत्स्य १९७.७( मौञ्जकेश : अत्रि कुल के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वायु ६१.५५(अथर्वाचार्य सैन्धव द्वारा शिष्य मुञ्जकेश को संहिता देने तथा मुञ्जकेश द्वारा पुन: द्वैधा भिन्न करने का उल्लेख), विष्णु ३.६.१३(मुञ्जिकेश : अथर्वाचार्य सैन्धव द्वारा शिष्य मुञ्जिकेश को संहिता देने तथा मुञ्जिकेश द्वारा पुन: द्वैधा विभक्त करने का उल्लेख), महाभारत शान्ति ३४२.१११(शिव के शूल के प्रहार से नारायण के केशों के मुञ्जवर्ण होने का उल्लेख), कथासरित् १२.२.१७२(मुनि विजितासु - शिष्य ) munjakesha
मुण्ड गणेश २.७६.१४(विष्णु व सिन्धु के युद्ध में मुण्ड का सोम से युद्ध), देवीभागवत ५.२६.३१(चण्ड - भ्राता मुण्ड दैत्य का देवी के साथ युद्ध, देवी द्वारा वध, चण्ड - मुण्ड वध से देवी द्वारा चामुण्डा नाम धारण), ब्रह्मवैवर्त २.६.९(सरस्वती में स्नान करके मुण्डन? का निर्देश), ब्रह्माण्ड २.३.१३.११०(मुण्डपृष्ठ तीर्थ : शिव के तप का स्थान), २.३.१५.४२(वृथा मुण्डों को ब्राह्मणों की पंक्ति से बाहर रखने का निर्देश), २.३.१५.६२(मुण्डों को श्राद्ध कर्म से बाहर रखने का निर्देश), मत्स्य १९५.२१(भार्गव कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक), वायु २३.५९/१.२३.५३(अर्धमुण्ड : ३३वें कल्प में शिव के अट्टहास से जन्मे कुमारों में से एक), ४५.१२३(प्राच्य जनपदों में से एक), ६८.८/२.७.८ (मुण्डक : दनु व कश्यप के प्रधान दानव पुत्रों में से एक), ७७.१०२/२.१५.१०२(मुण्डपृष्ठ तीर्थ की महिमा), १०८.१२/२.४६.१२(मुण्डपृष्ठाद्रि के महत्त्व का कारण : शिला का दैत्य के मुण्डपृष्ठ पर स्थित होना), १०९.४५/२.४७.४५(अव्यक्त जनार्दन के मुण्डपृष्ठ पर आदि गदाधर रूप में जन्म लेने का उल्लेख), विष्णु ४.२४.५३(भविष्य के १३ मुण्ड राजाओं द्वारा राज्य करने का उल्लेख), शिव ५.४७.३२(चण्ड - भ्राता, चण्ड - मुण्ड द्वारा महिषासुर के समक्ष देवी के सौन्दर्य का वर्णन, देवी द्वारा चण्ड - मुण्ड का वध), स्कन्द ४.२.५७.७३(मुण्ड विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.६६.१५(महामुण्डा देवी का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.९७.२५(मुण्डासुरेश्वर का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.९७.६९(महामुण्डेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.२.१६(दैत्य, तुहुण्ड - पिता), ७.१.८.९(७ कुत्सितों में से एक मुण्ड द्वारा सोमनाथेश्वर से सिद्धि प्राप्ति का उल्लेख), ७.१.२४२.१९(रुरु दैत्य का वध करके देवी द्वारा दैत्य का चर्म मुण्ड धारण ) , द्र. चण्डमुण्ड, चर्ममुण्डा munda
मुण्डन स्कन्द ४.२.६६.३१(वरणा तट पर हुण्डन - मुण्डन गणद्वय का संक्षिप्त माहात्म्य ) mundana
मुण्डी नारद १.६६.१३५(मुण्डी गणेश की शक्ति सुभगा का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.१४.४०(वृथा मुण्डी को श्राद्ध में आमन्त्रण का निषेध), ३.४.४४.७०(५१ वर्णों के गणेशों में से एक), वायु २३.५९/१.२३.५३(३३वें कल्प में शिव के अट्टहास से उत्पन्न कुमारों में से एक), २३.२०९/१.२३.१९७(दण्डी मुण्डीश्वर : २५वें द्वापर में शिव अवतार की संज्ञा), शिव ३.१.३६(ईशान नामक शिवावतार में शिव के ४ पुत्रों में से एक), स्कन्द ५.३.२११.२२(मुण्डीश्वर तीर्थ का माहात्म्य : देव का कुष्ठी बनकर ब्राह्मणों से याचना, अप्राप्ति पर भोजन में कृमि के दर्शन ) mundee/ mundi
मुण्डीर स्कन्द ६.७६.२(मुण्डीर भास्कर स्थान पर द्विज की कुष्ठ से मुक्ति ) mundeera/ mundira
मुद ब्रह्माण्ड २.३.७.२३(मुदा : अप्सराओं के १४ गणों में से एक, वायु से उत्पत्ति), २.३.७.१२८(महामुद : देवजनी व मणिवर के यक्ष पुत्रों में से एक), भागवत ४.१.५०(धर्म व तुष्टि - पुत्र), लक्ष्मीनारायण १.३५१.४२(पुण्यशालियों के साथ मुदिता करने का निर्देश ) muda
मुदावती मार्कण्डेय ११६.३०/११३.३०(कुजम्भ दैत्य द्वारा मुदावती का अपहरण,मुदावती द्वारा मुसल को स्पर्श करना, वत्सप्री से विवाह), स्कन्द ५.२.६३(विदूरथ - पुत्री, कुजम्भ दैत्य द्वारा हरण व मुक्ति की कथा ) mudaavatee/ mudavati
मुद्ग स्कन्द ५.३.२६.१४६(नभस्य मास में मुद्ग दान का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.२३.१७(राजा सूर्यवर्चा की पत्नी मुद्गायनी द्वारा पति को मोक्ष प्राप्ति के लिए मन्दिर निर्माण का परामर्श ) mudga
मुद्गर अग्नि २५२.१४(मुद्गर अस्त्र के कर्म), ब्रह्माण्ड १.२.१६.५३(मुद्गरक : प्राच्य जनपदों में से एक), २.३.३९.८(परशुराम द्वारा मुद्गर से मैथिल का वध), हरिवंश २.१०६.३६(शम्बरासुर द्वारा पार्वती से प्राप्त दिव्य मुद्गर का प्रद्युम्न पर प्रयोग, मुद्गर का पुष्पमाला होना), लक्ष्मीनारायण २.१७६.२१(ज्योतिष के योगों में से एक ) mudgara
मुद्गल गणेश १.९.३३(यज्ञध्वंस से दुःखी दक्ष द्वारा मुद्गल से गणेश पुराण श्रवण का उल्लेख), १.२०.५२(मुद्गल के अङ्क में आने पर दक्ष के रोगरहित होने का उल्लेख), १.२१.४०(गणेश भक्त मुद्गल की गणेश से एकरूपता का उल्लेख), १.२६.३१(मुद्गल द्वारा राजा के चुनाव की युक्ति का कथन), १.५७.१५(मुद्गल मुनि के दर्शन से दुष्ट कैवर्त्त की बुद्धि का परिवर्तन), २.५०.१९(मुद्गल द्वारा काशीराज नृप को गणेश के स्वानन्द लोक के वैभव का वर्णन), २.८५.४०(मुद्गल द्वारा निर्मित गणेश कवच का वर्णन), गरुड २.२५.२२(मुद्गल के स्थान पर पिशाच पाठभेद), ३.१७.३०(, पद्म ६.६६(ऋषि व भीम - पुत्र मुद्गल द्वय द्वारा यमदूतों की वंचना, यम से वार्तालाप, वैतरणी व्रत की महिमा), ६.१०८.२३(चोल द्वारा वैष्णव सत्र में मुद्गल को आचार्य बनाने का उल्लेख), ६.१०९.२१(चोल नृप के यज्ञ के आचार्य, चोल की स्वर्ग प्राप्ति में असफलता पर शिखा का उत्पाटन), ब्रह्माण्ड १.२.३२.१०९(३३ मन्त्रकृत् अङ्गिरसों में से एक), १.२.३३.१८(मुद्गला : ब्रह्मवादिनी अप्सराओं में से एक), १.२.३५.२(संहिताकार शाकल्य के ५ शिष्यों में से एक), भविष्य ४.८९(मुद्गल मुनि द्वारा यम - प्रोक्त यमदर्शन त्रयोदशी व्रत के माहात्म्य का कृष्ण के प्रति कथन), ४.१५३(यम द्वारा मुद्गल को जलधेनु दान के माहात्म्य का कथन), भागवत ९.२१.३१(भर्म्याश्व के मुद्गल आदि ५ पुत्रों की पञ्चाल संज्ञा का कथन, मुद्गल के २ पुत्रों के नाम), १२.६.५७(संहिताकार शाकल्य के शिष्यों में से एक), मत्स्य ५०.३(भद्राश्व - पुत्र, पञ्चाल देश रक्षक, मौद्गल्य - पिता), १४५.१०३(३३ मन्त्रकृत् अङ्गिरसों में से एक), १९५.२२( मौद्गलायन : भार्गव कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक), १९६.४०(त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वामन ६४.४२(मुद्गल ऋषि द्वारा अञ्जन व प्रम्लोचा - कन्या नन्दयन्ती के राजरानी होने की भविष्यवाणी), ९०.२२(महर्षि, कोशकार - पिता), वायु ६०.६४(संहिताकार शाकल्य के ५ शिष्यों में से एक), ६५.१०७/ २.४.१०७(अङ्गिरस कुल के १५ पक्षों में से एक), ७०.७८/२.९.७८(अत्रि के ४ गोत्रों में से एक), ९९.१९५/२.३७.१९०(भेद? के ५ पुत्रों में से एक, पञ्चाल संज्ञा का कारण, इन्द्रसेना पत्नी से बध्यश्व पुत्र की प्राप्ति), ९९.१९८/२.३७.१९३(मुद्गल के पुत्रों की मौद्गल्य संज्ञा होने तथा क्षात्रोपेत द्विजाति होने का उल्लेख), विष्णु ४.१९.५९(हर्यश्व के मुद्गल आदि ५ पुत्रों की पाञ्चाल संज्ञा का कथन, मुद्गल से क्षत्रोपेत द्विजातियों की उत्पत्ति का कथन ; हर्यश्व - पिता), स्कन्द २.४.२६.२३ (चोल नृप के वैष्णव यज्ञ के आचार्य), ३.१.३७.१०(विष्णु द्वारा मुद्गल के लिए क्षीर सर का निर्माण), ७.३.३५(मुद्गल द्वारा स्वर्ग के दोष जानकर स्वर्ग न जाने का निश्चय, देवदूत व इन्द्र का स्तम्भन, मामु ह्रद की उत्पत्ति), हरिवंश १.३२.२६(वाह्याश्व के ५ पुत्रों में से एक, पञ्चाल वंश), २.६१.७टीका(नारायणी इन्द्रसेना के पति मुद्गल का उल्लेख), महाभारत अनुशासन ४८.१०( मौद्गल्य प्रजा की उत्पत्ति व कर्म का कथन), लक्ष्मीनारायण २.२४४.८३(शतद्युम्न द्वारा मुद्गल को निज आलय दान का उल्लेख ), द्र. मौद्गल्य mudgala
मुद्रा अग्नि २६(मुद्रा के लक्षण, बीज मन्त्रों हेतु मुद्राएं), ३१०.३४(२८ मुद्राओं के नाम), गरुड ३.२९.४९(मुद्रा धारण काल में शंखचक्रगदाधर के स्मरण का निर्देश), देवीभागवत १२.६.१२७(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.८०.२४५(विभिन्न मुद्राओं की विधि), ब्रह्माण्ड ३.४.३६.६२(द्राविणिका, आकर्षणिका, सर्ववश्या, सर्वोन्मादन मुद्राएं), ३.४.४२.२(आवाहनी महामुद्रा आदि के स्वरूप), ३.४.४२.१४(खेचरी, महांकुशा, उन्मादिनी आदि मुद्राएं), भविष्य १.२०६.८(विमुद्रा, व्योम, त्रासनी प्रभृति मुद्रा शक्तियों का वर्णन), १.२१४(पद्मिनी प्रभृति १२ मुद्राओं का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर ३.३२+ (अभिनय में अङ्गुलि मुद्रा), स्कन्द ४.१.४१.१३६(महामुद्रा, खेचरी मुद्राओं आदि का कथन), ४.१.४१.१७७(काशी में गङ्गा स्नान महामुद्रा तथा काशी की गलियों में संचार खेचरी मुद्रा होने का उल्लेख), ४.२.७९.१०४(पञ्चमुद्रा पीठ का संक्षिप्त माहात्म्य ), द्र. लोपामुद्रा, पञ्चमुद्रा mudraa
मुद्राण्ड लक्ष्मीनारायण २.१८९.७०+ (श्रीहरि का राजा मुद्राण्ड के सुपान/मद्रिटा देश में आगमन हेतु प्रस्थान, राजसभा को सम्बोधन )
मुद्रिका गणेश २.१८.४४(महोत्कट गणेश द्वारा मुद्रिका से हेमगणक रूप धारी दैत्य का वध), गरुड xxx/२.४.९(आतुर द्वारा देय ८ पदों/दान द्रव्यों में से एक), २.८.१६/२.१८.१६(आतुर द्वारा अथवा आतुर हेतु देय छत्र, उपानह आदि ७ पदों/दान द्रव्यों में से एक), २.१८.२३(मुद्रिका दान का फल), कथासरित् ८.२.३४८(देवल - कन्या, महल्लिका की १२ सखियों में से एक ) mudrikaa
मुद्रिणी ब्रह्माण्ड ३.४.१७.३४(ललिता देवी के १६ नामों में से एक), ३.४.३१.९१(मतङ्ग - पुत्र मातङ्ग द्वारा तप करके मुद्रिणी मन्त्रनायिका देवी को पुत्री रूप में प्राप्त करने का वृत्तान्त ) mudrinee/ mudrini
मुनि नारद १.६६.११४(मुनीश्वर की शक्ति उमा का उल्लेख),२.५२.१७(मुनियों में व्यास की श्रेष्ठता का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१४.२३(क्रौञ्च द्वीप के स्वामी द्युतिमान् के ७ पुत्रों में से एक, मौनि देश का स्वामी), १.२.१९.७३(अन्धकार देश से परे मुनि देश व मुनि देश से परे दुन्दुभिस्वन देश होने का उल्लेख), १.२.३६.७१(प्रसूत संज्ञक गण के देवों में से एक), २.३.३.३०(धर्म व विश्वा के विश्वेदेव संज्ञक १० देव पुत्रों में से एक), २.३.३.५६(कश्यप की १४ भार्याओं में से एक, दक्ष - कन्याओं में से एक), २.३.७.४६६(मुनि की गन्धशीला प्रकृति का उल्लेख), २.३.६४.२०(प्रद्युम्न? - पुत्र, भानुमान् - पौत्र, ऊर्जवह - पिता, मैथिल वंश), ३.४.१.१७(अमिताभ गण के २० देवों में से एक), भविष्य ३.३.२९.८(शुक व मञ्जुघोषा - पुत्र, किन्नरी नामक कन्या के पिता), भागवत ७.१५.६२(मुनि द्वारा भावाद्वैत, क्रियाद्वैत व द्रव्याद्वैत द्वारा ३ स्वप्नों को नष्ट करने का कथन), ११.१६.२५(विभूति वर्णन के अन्तर्गत श्रीहरि के मुनीश्वरों में नारायण होने का उल्लेख), मत्स्य ४०.८(मुनियों के प्रकार व चरित्र के सम्बन्ध में ययाति - अष्टक संवाद), १२२.८६(अन्धकारक देश से परे मुनि देश व मुनि देश से परे दुन्दुभिस्वन देश की स्थिति का उल्लेख), १७१.२९(दक्ष प्रजापति की १२ कन्याओं में से एक), वराह ८८.३(क्रौञ्च द्वीप के वर्षों में से एक, अपर नाम प्रकाश), वायु ३३.२१(क्रौञ्च द्वीप के स्वामी द्युतिमान् के ७ पुत्रों में से एक, मुनि देश का स्वामी), ६२.१९०/२.१.१८५(विश्वावसु गन्धर्व के मुनि - पुत्र होने का उल्लेख), ६६.५५/२.५.५५(कश्यप की १४ भार्याओं में से एक, दक्ष की कन्याओं में से एक), ६७.३४/२.६.३४(अजित संज्ञक गण के १२ देवों में से एक), ६९.३४५/२.८.xx (कश्यप - भार्या, गन्धशीला), ८४.७/२.२२.७(वैद्य के २ पुत्रों में से एक, वरुण वंश), ८९.१९/२.२७.१९(प्रद्युम्न - पुत्र, ऊर्जवह - पिता, मैथिल वंश), ९९.३१०/२.३७.३०४(मुनिक द्वारा स्व स्वामी की हत्या कर पुत्र प्रद्योत का अभिषेक करने का उल्लेख), १००.१७/२.३८.१७(अमिताभ गण के २० देवों में से एक), विष्णु १.२१.२५(कश्यप - भार्या, अप्सराओं की उत्पत्ति), ४.२४.१(मुनिक मन्त्री द्वारा स्व स्वामी रिपुञ्जय की हत्या कर पुत्र प्रद्योत का राज्याभिषेक करने का कथन), शिव ६.१२.२६(ब्रह्मचर्य से मुनियों की तृप्ति का उल्लेख), हरिवंश ३.३६.४६(दक्ष - कन्या, कश्यप - पत्नी, अलम्बुषा आदि १९ अप्सराओं की माता), वा.रामायण ३.६.२(राम द्वारा अरण्य में मुनियों के प्रकारों के दर्शन ), द्र. महामुनि muni
मुनिशर्मा पद्म ५.९४.११(मुनिशर्मा द्वारा पांच प्रेतों के दर्शन,पाप प्रणाशन स्तोत्र से प्रेतों की मुक्ति )
मुमुक्षु योगवासिष्ठ २.१- २०(मुमुक्षु व्यवहार प्रकरण का आरम्भ), ३.६(मुमुक्षु प्रयत्न विषयक उपदेश), ६.२.४७+ (संसार के संकटों से विश्रान्ति हेतु मुमुक्षु के लिए मुक्ति के क्रम का वर्णन ) mumukshu
मुर
गर्ग
२.४.२५(मुर
- पुत्र
प्रमील
का
वसिष्ठ
की
गौ
के
शाप
से
गोवत्स
बनना,
कृष्ण
द्वारा
वत्सासुर
का
उद्धार
- मुरुपुत्रो
महादैत्यः
प्रमीलो
नाम
देवजित्
।
वसिष्ठस्याश्रमे
प्राप्तो
नन्दिनीं
गां
ददर्श
ह
॥),
पद्म
६.३८.५०(तालजंघ
– पुत्र
मुर
द्वारा
विष्णु
का
पीछा,
विष्णु
की
देह
से
उत्पन्न
एकादशी
कन्या
द्वारा
मुर
का
वध),
ब्रह्म
१.९३.१८(कृष्ण
द्वारा
मुर
का
वध
- ततो
मुरः
समुत्तस्थौ
तं
जघान
च
केशवः।।
मुरोस्तु(रस्य)तनयान्सप्त
सहस्रास्तां(सा
तां)स्ततो
हरिः।),
ब्रह्माण्ड
३.४.२९.१२५(
नरकासुर/मुरासुर
के
विष्णु
रूप
का
उल्लेख,
विष्णु
द्वारा
वध
- नरकाख्यो
महावीरो
विष्णुरूपी
मुरासुरः
।
अनेके
सह
सेनाभिरुत्थिताः
शस्त्रपाणयः
॥),
भविष्य
३.४.१६.३०(तालजङ्घ
वंशोद्भूत
मुर
असुर
का
विष्णु
से
युद्ध,
विष्णु
की
पराजय,
देवी
द्वारा
मुर
व
नरकासुर
का
वध
- ब्रह्मकल्पे
पुरा
चासीत्तालजंघान्वयोद्भवः
।
मुरो
नाम
महादैत्यो
ब्रह्मणो
बलदर्पितः
।
।),
३.४.२२.७९(बलि
द्वारा
मुर
असुर
का
देव
देश
में
प्रेषण,
मुर
द्वारा
अष्टम
गुरुण्ड
राजा
वार्डिल
का
आर्यधर्म
विनाशार्थ
वशीकरण
- कलिपक्षो
बलिर्दैत्यो
मुरं
नाम
महासुरम्
।
आरुह्य
प्रेषयामास
देवदेशे
महोत्तमे
।),
भागवत
१०.५९.६(पञ्च
शीर्ष
धारी
मुर
का
कृष्ण
से
युद्ध,
मृत्यु,
पांच
मुर
- पुत्रों
का
युद्ध
व
मृत्यु
- पाञ्चजन्यध्वनिं
श्रुत्वा
युगान्तशनिभीषणम्
। मुरः
शयान
उत्तस्थौ
दैत्यः
पञ्चशिरा
जलात्
॥),
वामन
६०.२९(कश्यप
व
दनु
- पुत्र,
स्पर्श
सम्बन्धी
वर
की
प्राप्ति,
यम
से
संवाद),
६१.७३(मुर
का
विष्णु
से
संवाद
व
मृत्यु
- इत्येवमुक्तो
मधुसूदनेन
मुरुस्तदा
स्वे
हृदये
स्वहस्तम्।वकथं
क्व
कस्येति
मुहुस्तथोक्त्वा
निपातयामास
विपन्नबुद्धिः।।),
विष्णु
५.२९.१७(नरकासुर
- सेनानी,
कृष्ण
द्वारा
वध
- ताञ्चिच्छेद
हरिः
पाशान्क्षिप्त्वा
चक्रं
सुदर्शनम्
।
ततो
मुरःसमुत्तस्थौ
तं
जघान
च
केशवः
॥),
स्कन्द
१.२.५९,
१.२.६०(सालकटंकटा
कन्या
का
पिता),
हरिवंश
२.६३.१४(अलका
नामक
स्थान
के
रक्षक
मुर
का
कृष्ण
द्वारा
वध
- तासां
पुरवरं
भौमोऽकारयन्मणिपर्वतम्
।
अलकायामदीनात्मा
मुरो
स्वविषयं
प्रति
।। ),
लक्ष्मीनारायण
१.२३४.३(नाडीजङ्घ
असुर
के
पुत्र
मुरजङ्घ
द्वारा
तप
करके
ब्रह्मा
की
सृष्टि
आदि
से
अवध्यता
वर
की
प्राप्ति,
महालक्ष्मी
की
अवतार
एकादशी
कन्या
द्वारा
युद्ध
में
मुर
के
वध
का
वृत्तान्त),
२.४५.७८(मुरशेष
राक्षस
के
भ्राता
झांझीवर
के
दुष्ट
पुत्र
मात्रागस्कर
का
वृत्तान्त
) mura
मुरज कथासरित् ३.६.१७५(सुन्दरक का मुरजक नामक शिव गण होना, भोग भोगने के लिए भूतल पर आना), १८.४.१२९(राजा द्वारा देवों की सायं सन्ध्या पर मुरज/मृदङ्ग ध्वनि का श्रवण ) muraja
मुरमाषा लक्ष्मीनारायण २.१९९(श्रीहरि का तृतीया तिथि में कोलक नृप की मुरमाषा नगरी में भ्रमण, पूजन, उपदेश आदि, गाङ्गेय - कन्याओं की प्रार्थना पर उनके जलों में अनेक रूप धारण कर स्नान )
मुरला स्कन्द ६.२७४.४९(मुरला नदी तट पर दु:शील द्वारा निम्बशुच के धन का अपहरण), कथासरित् ३.५.९६(राजा उदयन द्वारा मुरला देश के राजाओं की पराजय ) muralaa
मुरारि गरुड ३.२.४४(मुरारि के अन्नाभिमानी होने का उल्लेख - अन्नाभिमानं ब्रह्म चाहुर्मुरारिं जीवाभिमानं वायुमाहुर्महान्तः ।), स्कन्द ४.१.८.१०५टीका(विष्णु का नाम व शब्दार्थ - मुरारे मुरति संवेष्टयति मूर्च्छयतीति वा मुरा अविद्या। मुर संवेष्टने। ) muraari/ murari
मुष्टि गणेश २.१३.३४(महोत्कट गणेश द्वारा एक मुष्टि से वातरूपी पतङ्ग व विद्युत दैत्यों का वध), गरुड ३.२६.२१(हिरण्याक्ष द्वारा हरित पृथिवी के उद्धार हेतु श्रीहरि के श्रीमुष्ट देश में वराह रूप में प्राकट्य का उल्लेख), गर्ग २.८.२५/२.११.२५(बलराम द्वारा मुष्टि प्रहार से धेनुकासुर की मृत्यु का उल्लेख - पुनस्तताड तं दैत्यं मुष्टिना ह्यचुताग्रजः ॥ तेन मुष्टिप्रहारेण सद्यो वै निधनं गतः ।), २.२३.४२(कृष्ण द्वारा मुष्टि से शंखचूड पर प्रहार - पुनरुत्थाय वैकुंठं मुष्टिना तं जघान ह ।), ब्रह्माण्ड २.३.३९.७(परशुराम द्वारा मुष्टि से विदर्भ का वध - बृहद्बलं च गदया विदर्भं मुष्टिना तथा ॥), वा.रामायण ६.४३.१२(वज्रमुष्टि -- रावण - सेनानी, मैन्द से युद्ध - वज्रमुष्टिस्तु मैन्देन द्विविदानशनिप्रभः । राक्षसाभ्यां सुघोराभ्यां कपिमुख्यौ समागतौ ।।),शिव २.२.३९.२३(दधीचि द्वारा कुशमुष्टि का वज्रास्थि से संयोग करके त्रिशूल बनाने का कथन - शंकरस्य प्रभावात्तु कुशमुष्टिर्मुनेर्हि सा ।। दिव्यं त्रिशूलमभवत् कालाग्निसदृशं मुने ।।), कथासरित् २.२.१९(अवन्ति देशोत्पन्न वज्र व मुष्टि से श्रीदत्त की मित्रता ), द्र. वज्रमुष्टि mushti
मुष्टिक गर्ग ५.७.४५(कंस के सहायक मुष्टिक मल्ल का बलराम द्वारा वध), ५.१२.१(उतथ्य - पुत्र, पिता के शाप से मल्ल बनना), देवीभागवत ४.२२.४५(किशोर दैत्य का अंश - वाराहश्च किशोरश्च दैत्यौ परमदारुणौ । मल्लौ तावेव सञ्जातौ ख्यातौ चाणूरमुष्टिकौ ॥), ब्रह्म १.८२.७(कंस की चाणूर व मुष्टिक के माध्यम से कृष्ण व बलराम के वध की योजना), भागवत १०.४४.२४(बलराम द्वारा मुष्टिक मल्ल का वध), विष्णु ५.२०.६५(बलराम द्वारा मुष्टिक मल्ल का वध), हरिवंश १.५४.७६(कंस के अखाडे का प्रमुख मल्ल, पूर्व जन्म में किशोर नामक दानव - वाराहश्च किशोरश्च दानवौ यो महाबलौ । मल्लौ रङ्गगतौ तौ तु जातौ चाणूरमुष्टिकौ ।।), २.२८.१७(कंस द्वारा मुष्टिक को कृष्ण व बलराम को मारने का आदेश), २.३०.५३(बलराम द्वारा मुष्टिक नामक मल्ल का वध), वा.रामायण १.५९.१९(श्व मांस भक्षक चाण्डाल जाति), कथासरित् ८.४.५८(सूर्यप्रभ - सेनानी अट्टहास द्वारा मुष्टिक का वध ) mushtika
मुसल गणेश २.६४.४(देवान्तक असुर - सेनानी, महिमा आदि सिद्धियों से युद्ध), गरुड १.१०७.३३ ( मृत पुरुष की देह के पार्श्व में उलूखल व पृष्ठ में मुसल रखने का विधान ), नारद १.६६.९२(मुसली विष्णु की शक्ति विलासिनी का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.१०.२८(गङ्गा में मौसल स्नान मात्र के फल का कथन), वामन ९०.३७(मुसलाकृष्टदानव : तल नामक लोक में विष्णु का नाम?), विष्णुधर्मोत्तर ३.४७.१४(बलराम की मुसल के मृत्यु का प्रतीक होने का उल्लेख), महाभारत अनुशासन १४.९६(४५.८१)(अनसूया द्वारा अत्रि मुनि के भय से मुसलों में सोने का उल्लेख ), द्र. मूषल musala
मुहम्मद ब्रह्माण्ड २.३.७.१२८ (महामुद : देवजनी व मणिवर के यक्ष पुत्रों में से एक), भविष्य ३.३.२.५( महामद : म्लेच्छ, भोजराज समकालिक, शिव के कथनानुसार बलि - प्रेषित त्रिपुरासुर, अयोनिज तथा दैत्य संवर्धक ), ३.३.२८.६२ (शोभा वेश्या द्वारा महामद पिशाच की आराधना व सहायता प्राप्ति का वर्णन), ३.४.२३.११९(कलि के अंश राहु के वंश में महमद नामक मत की सत्ता )
मुहूर्त्त अग्नि १८.३३(धर्म व मुहूर्ता - पुत्र), १२३.१५(मुहूर्त्त अनुसार करणीय कर्म), देवीभागवत १२.४.९(नखों में मुहूर्तों का न्यास),नारद १.५६.२२४(कार्य हेतु मुहूर्त, योग व करण विचार), ब्रह्माण्ड १.२.२१.९५(अहोरात्र में ३० मुहूर्त्त होने का उल्लेख), १.२.२१.११६(काल मान के संदर्भ में ३० कलाओं का एक मुहूर्त्त व ३० मुहूर्त्तों का अहोरात्र होने का उल्लेख ; सन्ध्या, प्रात:, संगव आदि के मुहूर्त्त मानों का कथन), १.२.२९.६(३० कलाओं का एक मुहूर्त्त व ३० मुहूर्त्तों का अहोरात्र होने का उल्लेख), २.३.३.३९(मुहूर्तों के नाम), २.३.७१.२०६(कृष्ण के जन्म काल के संदर्भ में विजय मुहूर्त्त का उल्लेख), २.३.७२.३०(मुहूर्त्त इत्यादि काल मानों के त्रिविध प्रमाण का उल्लेख), ३.४.१.७६(११वें मन्वन्तर में देवों के ३ गणों में मनोजव या मुहूर्त्त गण का उल्लेख), ३.४.१.२१६(४० कलाओं के ५ मुहूर्त्तों के बराबर? होने का उल्लेख), ३.४.१.२१९(जल परिमाण के वहन व मुहूर्त्त में सम्बन्ध), ३.४.३२.१६(पत्राब्जवासिनी देवी की १६ शक्तियों के रूप में कला, मुहूर्त्त इत्यादि काल मानों के नाम), भागवत ३.११.८(काल मानों के संदर्भ में २ नाडिकाओं का एक मुहूर्त्त होने का उल्लेख), ६.६.९(धर्म व मुहूर्त्ता से मौहूर्तिक संज्ञक देवगण की उत्पत्ति का कथन), मत्स्य ५.१८(धर्म व मुहूर्त्ता - पुत्र), १२४.८६(सन्ध्या, प्रात:, संगव आदि कालों का मुहूर्त्त मान), वायु ५०.११९(सूर्य की मौहूर्त्तिकी गति का कथन), ६६.४०/२.५.४०(मुहूर्ता व धर्म के मुहूर्त्त संज्ञक पुत्रों के नाम), विष्णु १.८.२९(भगवान् के मुहूर्त्त रूप तथा लक्ष्मी के कला रूप होने का उल्लेख), १.१५.१०५(मुहूर्त्ता : धर्म की १० पत्नियों में से एक, मुहूर्त्त गण की माता), २.८.५९(सन्ध्या, प्रात: आदि के मुहूर्त्त मान), स्कन्द १.१.११(समुद्र मन्थन से चन्द्रमा के प्रकट होने पर गोमन्त नामक मुहूर्त्त), ३.१.४४.१०७(रामेश्वर लिङ्ग स्थापित करने का मुहूर्त्त), वा.रामायण ३.६८.१२(विन्द नामक मुहूर्त्त में रावण द्वारा सीता का हरण), ६.४.३(विजय नामक मुहूर्त्त में राम की सेना का लङ्का को प्रस्थान), लक्ष्मीनारायण १.३८२.२७(विष्णु के मुहूर्त्त व लक्ष्मी के कला होने का उल्लेख), २.१७६.९१ (विभिन्न ग्रहों/वारों के बीच त्याज्य मुहूर्तों का कथन तथा तत्सम्बन्धी कुलिकादि योग), २.१७६.१०३(अभिजित् मुहूर्त्त की महिमा तथा उसमें करणीय कृत्य ) muhoorta/muhuurta/ muhurta
मूक गरुड १.२१७.३३(विद्यापहरण से मूक योनि प्राप्ति का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.५.३५(सुन्द व ताडका - पुत्र, सव्यसाची द्वारा वध), मत्स्य ११४.३६(मध्य देश के जनपदों में से एक), वायु ६७.७३/२.६.७२(सुन्द व ताडका - पुत्र, सव्यसाची द्वारा वध), शिव ३.३९.१०(अर्जुन के वधार्थ दुर्योधन द्वारा प्रेषित शूकर रूपी दैत्य का नाम), स्कन्द ७.१.२१.२७(ह्राद - पुत्र, हिरण्यकशिपु- पौत्र, सव्यसाची द्वारा वध), लक्ष्मीनारायण २.१६२.२८(शतोढु द्वारा तप से मूक पुत्र वोढु की प्राप्ति, वोढु द्वारा तप से वाणी की प्राप्ति का वृत्तान्त), २.२६४.२५(हरिणघाती शूद्र का शृङ्गधर के मूक पुत्र के रूप में जन्म, तप से मूकत्व समाप्ति का वृत्तान्त, आयुर्वेद की शार्ङ्गधर संहिता का निर्माण), ३.६२.३१(सरस्वती द्वारा स्व भगिनी शारदा के मूकत्व के निरसन का कथन ) mooka/muuka/ muka
मूढ शिव ४.७.७(मूढ नामक दैत्य द्वारा ऋषि - कन्या को पीडा, शिव द्वारा वध ) moodha/muudha/ mudha
मूत्र गरुड २.२२.६१(मूत्र में क्षीरोद की स्थिति का उल्लेख), २.३०.५०/ २.४०.५०(मृतक के मूत्र में गोमूत्र देने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.२.१४८ (मूत्राकीर्ण : नरकों में से एक), ३.४.२.१७०(मृषावादियों आदि के मूत्राकीर्ण नरक को प्राप्त होने का उल्लेख), वायु १०१.१६८/२.३९.१६८(मृषावादियों आदि के मूत्राकीर्ण नरक को प्राप्त होने का उल्लेख), स्कन्द ३.२.६.७(वेदमयी गौ के शांतिपुष्टि शकृन्मूत्र होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३७०.५२(नरक में मूत्र कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख), ३.१३२.३७(रत्न धेनु के संदर्भ में घृत धेनु के मूत्र स्वरूप होने का उल्लेख), महाभारत विराट १०.१४(कतिपय ऋषभों के मूत्र के सूंघने से वन्ध्या के प्रसूतिवति होने का कथन ) mootra/muutra/ mutra
मूर्ख भागवत ११.१९.४२(मूर्ख की परिभाषा : शरीरादि में स्वत्व रखने वाले), कथासरित् १०.५.२(गोमुख मन्त्री द्वारा नरवाहनदत्त के विनोद हेतु मूर्खों की कथाओं का कथन), १०.६.१८७(वही), १०.७.१६३(वही, मूर्ख शिष्यों की कथा), १०.९.१५८(वही, मूर्ख मार्जार की कथा ) muurkha/moorkha/ murkha
मूर्ति अग्नि ४६(शालग्राम शिला के लक्षण के अनुसार मूर्ति की देव संज्ञा का वर्णन), १६४(नव ग्रहों की मूर्ति निर्माण में रंगों का कथन), गणेश १.५०.९(गणेश की १, २, ३, ४, ५, ६ आदि मूर्तियों की पूजा का फल), नारद २.५४(भगवद् निर्देश से नरपति द्वारा सिन्धु कूल पर कृष्ण, राम, सुभद्रा की मूर्तियों की स्थापना), पद्म ५.१०३(ध्यान हेतु विष्णु के स्वरूप का वर्णन), ६.८२.१०(विष्णु की विविध वस्तुओं से निर्मित मूर्ति की पूजा के फल का वर्णन), ६.१२०.५२(शालग्राम शिला में अङ्कित वासुदेवादि की मूर्तियों के लक्षणों का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.२१(धर्म - पत्नी, प्रकृति की कला), ४.८६.१३१(धर्म - पत्नी, पति जीवन हेतु भगवान् से प्रार्थना), भविष्य १.७४.१०(द्वादश सूर्यों की मूर्तियों की १२ स्थानों में स्थिति), १.१५४.१५(सूर्य द्वारा अपनी सात्त्विकी, राजसी, तामसी रूप में ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा इनसे परे अवाच्या रूप में चतुर्मूर्ति रूपता का कथन), ४.१५०.१०(धर्म से अष्टमूर्ति अधिष्ठान? की रक्षा की प्रार्थना), भागवत २.७.६(धर्म - पत्नी, दक्ष - कन्या, धर्म व मूर्ति से भगवान् का नर - नारायण रूप अवतार), ४.१.४९(दक्ष व प्रसूति की १६ कन्याओं में से एक, धर्म की १३ पत्नियों में से एक), ८.१३.२२(१०वें मनु के काल में सप्तर्षियों में से एक), ११.१६.३२(विभूति वर्णन के अन्तर्गत श्रीहरि के नव मूर्तियों में आदि मूर्ति होने का उल्लेख), १२.११.२१(वासुदेव, संकर्षण आदि चतुर्व्यूह की मूर्तिव्यूह संज्ञा), मत्स्य ९.९(स्वारोचिष मन्वन्तर में वसिष्ठ के प्रजापति संज्ञक ७ पुत्रों में से एक), २६५.१(मूर्त्तिप/पुजारी के लक्षणों का कथन), २६५.४२(पृथिवी, अग्नि आदि ८ तत्त्वों के ८ अधिपतियों शर्व, पशुप आदि की मूर्त्तिप संज्ञा), २६६.५४(देव स्थापना के पश्चात् यजमान द्वारा मूर्त्तिप आचार्य की पूजा का निर्देश), वराह ४.२(नारायण की मत्स्य, कूर्म, वराह आदि १० मूर्तियों का उल्लेख), ४.७(नारायण देव की सात्विक, राजस, तामस, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश नामक ८ मूर्तियों का उल्लेख), ९(भगवद् मूर्ति), ३०.५( ब्रह्मा के मुख से नि:सृत वायु का मूर्तिमान् होकर धनद बनना), २६.१६(सप्तमी तिथि में सूर्य द्वारा मूर्ति अङ्गीकरण का उल्लेख), विष्णु १.२२.६८(विष्णु की मूर्ति), विष्णुधर्मोत्तर ३.४४(त्रिमूर्ति का निर्माण), ३.४६(ब्रह्मा की मूर्ति), ३.४७(विष्णु की मूर्ति), ३.४८(शिव की मूर्ति), ३.४९(नासत्य की मूर्ति), ३.५०(शक्र की मूर्ति), ३.५१(यम की मूर्ति), ३.५२(वरुण की मूर्ति), ३.५४(गरुड की मूर्ति), ३.५५(ईशान की मूर्ति), ३.५६(अग्नि की मूर्ति), ३.५७(विरूपाक्ष की मूर्ति), ३.५८(वायु की मूर्ति), ३.५९(भैरव की मूर्ति), ३.६०(विष्णु की मूर्ति), ३.६१(भूमि की मूर्ति), ३.६२(गगन की मूर्ति), ३.६३(ब्रह्मा की मूर्ति), ३.६४(सरस्वती की मूर्ति), ३.६५(अनन्त की मूर्ति), ३.६६(तुम्बुरु की मूर्ति), ३.६७(आदित्य मूर्ति), ३.६८(चन्द्रमा की मूर्ति), ३.६९(ग्रहों की मूर्तियां), ३.७०(मनु की मूर्ति), ३.७१(कुमार, भद्रकाली, ब्रह्मा, गणेश व विश्वकर्मा की मूर्तियां), ३.७२(वसुओं की मूर्तियां), ३.७३(विभिन्न देवताओं की मूर्तियां), ३.७४(लिङ्ग की मूर्ति), ३.७५(व्योम की मूर्ति), ३.७६(नर - नारायण की मूर्ति), ३.७७(धर्म की मूर्ति), ३.७८(नृसिंह की मूर्ति), ३.७९(वराह की मूर्ति), ३.८०(हयग्रीव की मूर्ति), ३.८१(पद्मनाभ की मूर्ति), ३.८२(लक्ष्मी की मूर्ति), ३.८३(विश्वरूप की मूर्ति), ३.८४(ऐडूक की मूर्ति), ३.८५(वासुदेव की मूर्ति), ३.८५.६७(पाण्डवों की मूर्तियां), ३.१३७+ (चतुर्मूर्ति, व्रत), ३.१४७(देवमूर्ति, व्रत), शिव ३.२(शिव के शर्व आदि नामों की ८ मूर्तियां), स्कन्द २.२.१८.३३(पुरुषोत्तम क्षेत्र में वाजिमेध के अन्त में प्रकट हुए दिव्य वृक्ष से विष्णु की प्रतिमा निर्मित करने का प्रश्न : चतुर्व्यूह रूपी ४ मूर्तियों का कल्पन), २.२.२८, २.५.४, ४.२.६१.२१४ (केशव, संकर्षण, अनिरुद्ध आदि मूर्तियों के २४ भेद), लक्ष्मीनारायण १.३०३(मूर्ति द्वारा तप से धर्मदेव को प्रसन्न करना, पुरुषोत्तम मास की एकादशी व्रत से जन्मान्तर में दक्ष - कन्या बनकर धर्म को पति रूप में प्राप्त करके नर, नारायण, कृष्ण व हरि की माता बनना), १.३८५.४६(मूर्ति का कार्य), १.४६६.३५(वेदशिरा मुनि व शुचि अप्सरा की कन्या धूतपापा का जन्मान्तर में दक्ष - कन्या, धर्म - पत्नी व हरि - माता मूर्ति बनने का कथन), २.११५ - १६०(देवायतन में मूर्ति प्रतिष्ठा विधि का विस्तृत वर्णन), २.२०३.४(नारायण, लक्ष्मी, हरि आदि की मूर्तियों के अङ्गुल मान), ३.१८९.४(भगवान् की चिन्तामणि मूर्ति का ध्यान करने के लाभों का वर्णन), ४.१०१.९१(कृष्ण - पत्नी मूर्ति के पुत्र अनिरुद्ध व सुता सुदर्शनेश्वरी का उल्लेख ), द्र. तपोमूर्ति, धर्ममूर्ति moorti/muurti/ murti
मूर्द्धा गरुड २.३०.५५/२.४०.५५(मृतक की मूर्द्धा में कुङ्कुम लेप देने का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.५७(मूर्द्धा सौन्दर्य हेतु छत्र दान का निर्देश), भागवत २.५.३९(मूर्द्धा में सत्यलोक की स्थिति का उल्लेख), मत्स्य १९५.१३(भृगु व दिव्या के १२ याज्ञिक देव पुत्रों में से एक), वायु २८.६(मूर्द्धन्या : मार्कण्डेय - पत्नी, वेदशिरा - माता), हरिवंश ३.१७.४७(अव्यक्त की मूर्द्धा से अथर्ववेद की उत्पत्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.२१५.६२(देह में मूर्द्धा की ब्रह्माण्ड में सत्य लोक से समता ), द्र. द्विमूर्द्धा moordhaa/muurdhaa/ murdha
मूल पद्म ६.१७४.३०( मौलिस्तान/मुलतान स्थान पर हारीत व लीलावती द्वारा तप से नृसिंह की पुत्र रूप में प्राप्ति का कथन), ब्रह्माण्ड १.२.२१.७६(अजवीथी के ३ उदय नक्षत्रों में से एक), १.२.३५.६६(४ मूल संहिताकारों के नाम), २.३.१८.१०(आरोग्य प्राप्ति हेतु मूल नक्षत्र में श्राद्ध का निर्देश), ३.४.८.२८(मूलप्रकृति द्वारा ५x५ तत्त्वों की तृप्ति हेतु पुरुष का मन्थन करने का कथन), भविष्य ४.७.९(मूलजालिक : ब्राह्मण, शकट व्रत से रम्भा की प्राप्ति), भागवत ५.२३.६(शिशुमार की देह में धनिष्ठा व मूल नक्षत्रों की कर्णों में स्थिति का उल्लेख), मत्स्य २२.३३(मूलतापी : श्राद्ध हेतु प्रशस्त नदियों में से एक), १९६.९(मूलप : आङ्गिरस कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक), १९६.१६(मूलहर : आङ्गिरस कुल के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वायु ५०.१३०(अजवीथी के ३ उदय नक्षत्रों में से एक), ६१.३७(मूलचारी : सामगाचार्य लोकाक्षि के ४ शिष्यों में से एक), ६६.५१/२.५.५१(अजवीथी के ३ नक्षत्रों में से एक), ८२.१०/२.२०.१०(आरोग्य प्राप्ति हेतु मूल नक्षत्र में श्राद्ध का निर्देश), विष्णुधर्मोत्तर २.८४(बहुफला कृषि हेतु मूलस्नान का वर्णन), ३.१२१.१२(मूल स्थान में दिवाकर की पूजा का निर्देश), स्कन्द ४.२.८३.२३(मित्रजित् व मलयगन्धिनी द्वारा मूल ऋक्ष में उत्पन्न स्व पुत्र के परित्याग का वृत्तान्त), ५.३.१९४.२४(मूलश्री : ब्राह्मी का नाम, मूलश्रीपति से विवाह), ५.३.१९७(मूल स्थान तीर्थ का माहात्म्य), ६.७६.३(हाटकेश्वर क्षेत्र में सूर्य के अस्त होने के स्थान मूल स्थान का माहात्म्य : द्विज की कुष्ठ से मुक्ति की कथा), ७.१.२७८(मूल स्थान का माहात्म्य : निम्ब मूल में सूर्य की स्थिति, वैशाख विप्र का सप्तर्षियों के प्रभाव से वाल्मीकि बनना, देविका पूजा से सिद्धि प्राप्ति), ७.१.३०८(मूलचण्डीश लिङ्ग की उत्पत्ति व माहात्म्य), ७.४.१७.३७(भगवत्परिचारक वर्ग के अन्तर्गत ईशान दिशा के रक्षकों में से एक), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.११३(मूलकर्दम : कृष्ण व पद्मिनी के पुत्र मूलकर्दम व पुत्री सलिला का उल्लेख ), द्र. देवमूल, सुमूल moola/muula/ mula
मूलक पद्म ४.२१.२५(मूलक से बल हानि होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.६.९(मूलकोदर : दनु व कश्यप के प्रधान दानव पुत्रों में से एक), २.३.६३.१७९ (अश्मक - पुत्र मूलक द्वारा नारीकवच नाम की प्राप्ति), भागवत ९.९.४०(अश्मक - पुत्र, नारीकवच उपनाम, नाम की निरुक्ति), वायु ७०.८७/२.९.८७(मूलिक : पराशर कुल के ८ पक्षों में से एक), ८८.१७७/ २.२६.१७७(अश्मक - पुत्र, शतरथ - पिता, परशुराम के भय से स्त्रियों की शरण लेने का कथन), विष्णु ४.४.७३(अश्म - पुत्र, दशरथ - पिता, इक्ष्वाकु वंश ) moolaka/muulaka/ mulaka
मूलदेव भविष्य ३.२.१३.५(मूलदेव द्विज द्वारा सुदेव द्विज को चामुण्डा बीज युक्त महामन्त्र प्रदान, चन्द्रावली की कथा का वर्णन), कथासरित् १८.५.१२९(उज्जयिनी निवासी मूलदेव द्वारा विक्रमादित्य को स्त्रियों की चतुरता विषयक कथा का कथन ) mooladeva/muuladeva
मूलवर्मा भविष्य ३.३.३१.७१(गुर्जराधिपति, प्रभावती - पिता), ३.३.३२.१६३ (गुर्जर देश के नृप मूलवर्मा की पृथ्वीराज - सेनानी पूर्णामल से युद्ध में मृत्यु )
मूलशर्मा भविष्य ३.३.१५.१०(देवी द्वारा कुण्ड भरण की परीक्षा, रक्त बीज होने का वरदान),
मूली मत्स्य ११४.३१(महेन्द्र पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक), २१८.२३(शतमूली व शङ्खमूली : नृप द्वारा संग्रहणीय ओषधियों में से २), कथासरित् ३.६.१४३(सुन्दरक द्वारा शाकवाट से उखाडी गई मूलियों द्वारा भूख शान्ति ) mooli/muuli/ muli
मूषक अग्नि २००(मूषिका द्वारा दीप प्रबोधन से राजकुमारी ललिता बनना), गणेश २.१३४.८(वामदेव द्वारा क्रौञ्च गन्धर्व को मूषक होने का शाप, मूषक का गणेश का वाहन बनना), गरुड १.२१७.१८(यव धान्य हरण के कारण मूषक योनि की प्राप्ति का उल्लेख), पद्म ४.३.१८(दीप प्रबोधन से मूषक को वैकुण्ठ की प्राप्ति की कथा), ६.३०.७५(दीप प्रबोधन से मूषिका का रूप सुन्दरी बनना), ७.२५.७३(पवित्र ब्राह्मण द्वारा मूषक का घात, तुलसी से मुक्ति), ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८७(भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में से एक), ३.४.४४.६९(मूषकवाहन : ५१ वर्णों के गणेशों में से एक), मार्कण्डेय १५.९(दुष्कृत्य के फलस्वरूप मूषक योनि प्राप्ति का उल्लेख), १५.२२(अन्न हरण से मूषक योनि की प्राप्ति का उल्लेख), वायु ४५.१२५(मूषिक : दाक्षिणात्य देशों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.१६७.२३ (मूषिका : वर्तिका हरण के प्रयत्न से दीपक के प्रज्वलित हो जाने पर मूषिका का मृत्यु - उपरान्त विदर्भराज - कन्या बनना), स्कन्द २.४.७टीका(मूषिका की पर - दीप प्रबोधन से मुक्ति की कथा), २.४.१२.५७(कार्तिक मास के माहात्म्य श्रवण से मूषक की मुक्ति का उल्लेख), २.७.२२.७२(अन्ध कूप में काल रूप मूषक द्वारा वंश रूप दूर्वा का छेदन), ५.३.१५९.२०(धान्यहर्त्ता को मूषक योनि प्राप्ति का उल्लेख), ६.१४२.२९(कार्तिकेय द्वारा गणेश को मूषक वाहन प्रदान करने का उल्लेख), योगवासिष्ठ १.१८.३२(मन की मूषक से उपमा), १.२२.२५(जरा मार्जारी, यौवनआखु), ६.१.७.२१(यौवनआखु, जरा मार्जारी), महाभारत उद्योग १६०.१६(दुर्योधन द्वारा तप का ढोंग करने वाले मूषक - भक्षक मार्जार के आख्यान का वाचन), शान्ति १३८.१८(मूषक द्वारा अपने शत्रुओं मार्जार, नकुल व उलूक से मुक्ति पाने की कथा), लक्ष्मीनारायण २.२६.८९(आखु रूप पुरुष के लक्षण : वैभव का उपभोग न करने वाले), ३.५४.१७(लीलावती द्वारा मूषिका के अपत्यों का माता से वियोजन, मूषिका के शाप से लीलावती का माता - पिता से वियोग), ३.९२.८८(मूषिका के चरित्र धर्म का उल्लेख), ४.७०.७२(चोर का मृत्यु - पश्चात् मूषक बनना, कथा के प्रसाद के उच्छिष्ट भक्षण से मुक्ति का कथन), कथासरित् १.६.३८(मृत मूषक से वित्त वृद्धि की कथा), ६.७.१०७(एक ही वट वृक्ष पर निवास करने वाले उलूक, नकुल, मूषक व मार्जार की कथा), १०.४.२३९(आखु/मूषक द्वारा लौह तुला भक्षण की कथा ) mooshaka/ muushaka/ mushaka
मूषल अग्नि ७७.१७(मूसल पूजा विधि), गरुड १.१०७.३४(अग्निहोत्र का एक उपकरण, प्रवास काल में अग्निहोत्री की मृत्यु हो जाने पर पुन: गृह में अग्निहोत्री के कुशमय शरीर का अग्निदाह, कुशमय शरीर के विभिन्न अङ्गों पर अग्निहोत्र के उपकरणों की स्थापना के अन्तर्गत पीठ की ओर मुसल की स्थापना), पद्म ६.२५२.६२(मूषल के संदर्भ में साम्ब द्वारा उदर पर मूसल धारण की कथा, मूसल द्वारा यादवों के संहार का वृत्तान्त), ब्रह्म १.१०१(स्त्री वेश धारी साम्ब से मुसल की उत्पत्ति की कथा), भागवत ११.१(स्त्री वेश धारी साम्ब से मुसल की उत्पत्ति, मुसल के अनेक रूप होना), मार्कण्डेय ११६.४९/११३.४९(कुजृम्भ असुर के आधीन सुनन्दा नामक मूसल का वृत्तान्त, मुदावती द्वारा स्पर्श से मूसल का निष्प्रभावी होना), वामन ६८.४४(कुजम्भ द्वारा मुसल से नन्दी पर प्रहार, नन्दी द्वारा मुसल से ही कुजम्भ का वध), विष्णु २.५.१८(शेषनाग के स्वरूप में हाथों में लाङ्गल व मुसल धारण का उल्लेख - लाङ्गलासक्तहस्ताग्रो बिभ्रन्मुसलमुत्तमम्), ५.३३.३०(बलराम द्वारा लाङ्गल से आकृष्ट करके मुसल से प्रहार करने का उल्लेख - आकृष्य लांगलाग्रेण मुसलेनाशु ताडितम्), ५.३७(साम्ब से मूसल की उत्पत्ति व यादवों के विनाश की कथा), विष्णुधर्मोत्तर १.२३७.६(मुसली विष्णु से उदर की रक्षा की प्रार्थना - उदरं मुसली पातु पृष्ठं पातु च लाङ्गली ), शिव ५.२.१८(अत्रि - भार्या अनसूया द्वारा मुशलों? में निराहार रहकर शिव कृपा से दत्तात्रेय आदि पुत्रों की प्राप्ति), स्कन्द २.६.१.३३(कृष्ण द्वारा देवादिकों को मौशल मार्ग से स्वाधिकारों में लगाना?), ५.२.६३.९(मुशल अस्त्र के प्रभाव से कुजम्भ दैत्य का अत्याचार, मुशल निवारण हेतु राजा विदूरथ द्वारा धनुसाहस्र तीर्थ में दिव्य धनुष की प्राप्ति, कुजम्भ का वध), ५.२.८२.३९(दक्षयज्ञ में भद्रकाली द्वारा मुशल से अष्ट वसुओं पर प्रहार), ७.४.१७.२४(मुशली : भगवत्परिचारक वर्ग के अन्तर्गत नैर्ऋत दिशा के रक्षकों में से एक), लक्ष्मीनारायण २.१७६.४३(ज्योतिष के योगों में से एक), कथासरित् १२.१८.२८(मुसल की आवाज सुनते ही रानी के हाथों में काले धब्बे होना ) mooshala/muushala/ mushala
मृकण्डु अग्नि २०.१०(विधाता - पुत्र, मार्कण्डेय - पिता, भृगु वंश), नारद १.४.५०(मृकण्डु द्वारा तप, विष्णु की स्तुति, विष्णु द्वारा पुत्र रूप में जन्म लेने पर मृकण्डु को वरदान), ब्रह्माण्ड १.२.११.६(विधाता व धाता की पत्नियों आयति व नियति से प्राण व मृकण्डु के जन्म तथा मनस्विनी व मृकण्डु से मार्कण्डेय तथा धूम्र पत्नी से वेदशिरा के जन्म का कथन), भागवत ४.१.४४(धाता व आयति - पुत्र, मार्कण्डेय - पिता), वायु २८.५(विधाता व धाता की पत्नियों आयति व नियति से पाण्डु व मृकण्डु पुत्रों के जन्म तथा मृकण्डु की पत्नियों मनस्विनी से मार्कण्डेय व मूर्द्धन्या से वेदशिरा के जन्म का कथन), विष्णु १.१०.४(नियति व विधाता - पुत्र, मार्कण्डेय - पिता), स्कन्द ४.२.८४.४९(मृकण्ड तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.२१(मार्कण्डेय - पिता), ७.१.३६०(मृकण्डु लिङ्ग का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.२०६.४६(मृगशृङ्ग ऋषि की भार्या सुवृता से मृकण्डु की उत्पत्ति, मृकण्डु के नाम का कारण, मृकण्डु द्वारा शिव के वरदान से अल्पायु पुत्र मार्कण्डेय की प्राप्ति ), द्र. वंश भृगु mrikandu
मृग कूर्म १.३२(कपर्दीश्वर लिङ्ग की सन्निधि में मृत्यु पर मृगी द्वारा दिव्य रूप की प्राप्ति), गरुड १.१०९.५४(राज्य से भ्रष्ट के लिए मृगया का विधान), देवीभागवत ८.१५.८(नक्षत्र वीथियों में से एक), नारद १.४८.१८(मृग शावक के संग से राजा भरत द्वारा तीन जन्म ग्रहण की कथा), १.५१.५४(मृगी : होम में अङ्गुलियों की एक मुद्रा), पद्म ३.२६.९६(मृगधूम तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.१३३.१९(यमुना में तीर्थ का मृग नाम), ब्रह्म २.३२.५(ब्रह्मा की स्वसुता के प्रति विकृत बुद्धि, भयभीत सुता द्वारा मृगी रूप धारण, ब्रह्मा द्वारा मृग रूप धारण करने पर शिव का मृगव्याध बनकर धर्म का संरक्षण), ब्रह्माण्ड १.२.२३.५७(चन्द्रमा के रथ के १० अश्वों में से एक), २.३.७.२३(मृग नामक अप्सरा गण की भूमि से उत्पत्ति), २.३.३४+ (मृगी द्वारा मृग से त्रिविध भक्ति का कथन, परशुराम द्वारा मृगी के वचन से भावी कार्य की शिक्षा, मृग व मृगी के पूर्व जन्म का वृत्तान्त, कृष्ण प्रेमामृत स्तोत्र श्रवण से मुक्ति), भागवत ४.२९.५३(मृग के रूपक द्वारा पुरुष की स्थिति का वर्णन), ५.८(भरत की मृग में आसक्ति, मृग योनि की प्राप्ति का वृत्तान्त), मत्स्य २५३.२५(वास्तुमण्डल के देवताओं में से एक), २६८.१४(वास्तुमण्डल के देवता मृग हेतु यावक बलि का निर्देश), मार्कण्डेय ६५.२५/६२.२५(मृग द्वारा अनेक स्त्रियों के साथ रमण कर रहे स्वरोचि की गर्हणा), ६६.१३/६३.१३(स्वरोचिष द्वारा मृगी का आलिङ्गन, मृगी का दिव्य रूप प्राप्त करना), ७४/७१(राजा स्वराष्ट} द्वारा जल में मृगी का स्पर्श करना, मृगी द्वारा पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन : सुतपा मुनि द्वारा कन्या को मृगी बनने का शाप, मृगी द्वारा राजा स्वराष्ट} से समागम कर लोल/तामस मनु को जन्म देना), वराह ४१.१८(ब्राह्मण पुत्रों द्वारा मृग की हत्या, मृग बनना, वीरधन्वा द्वारा मृगों के वध का प्रसंग), वायु ५२.५३(चन्द्रमा के रथ के १० अश्वों में से एक), ६९.२१४/२.८.२०८(दिग्गज, श्वेता से उत्पत्ति, कश्यप संतति), ९९.१९/२.३७.१९(मृगा : उशीनर की ५ पत्नियों में से एक, मृग - माता), ९९.२१/२.३७.२१(मृग की यौधेय पुरी का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.२३४(हर द्वारा दक्षयज्ञ रूपी मृग का पीछा, मृग द्वारा अभयत्व की प्राप्ति), १.२४८.२(मृगा : कश्यप व क्रोधा की १० कन्याओं में से एक, पुलह - पत्नी, मृगों की उत्पत्ति), शिव ४.४०(मृग वध हेतु उद्धत व्याध द्वारा अनजाने में तीन बार शिव लिङ्ग की अर्चना, अर्चन से ज्ञान प्राप्ति), ५.३.६२(चाक्षुष मनु के पुत्र गृत्समद का वसिष्ठ के शाप से मरुस्थल में मृग बनना, पश्चात् शिव भक्ति द्वारा शिव का मृगमुख नामक गण बनना), वा.रामायण ३.४२.१५(मारीच का सुवर्णमय मृग रूप धारण, राम के आश्रम पर गमन, सीता द्वारा मृग का दर्शन), ३.४३(कपट मृग का दर्शन कर लक्ष्मण का संदेह, मृग लाने हेतु सीता द्वारा राम को प्रेरित करना, राम के गमन का वर्णन), ३.६४.१५(मृगों द्वारा राम को सीताहरण के संकेत देना), ४.५९.९(मृगों को तीक्ष्ण भय होने का उल्लेख), स्कन्द १.१.१३.१५(चन्द्रमा के मृग वाहन का उल्लेख), ४.१.४५.४१( मृगाक्षी, मृगलोचना: ६४ योगिनियों में से दो), ५.२.२८.४(वीरधन्वा द्वारा संवर्त्त के मृग रूप धारी पांच पुत्रों को मारने आदि की कथा), ५.२.५३.४(विदूरथ राजा द्वारा मृग के भ्रम से तापस का वध, रौरव नरक की प्राप्ति), ५.३.५२.१५(ऋक्षशृङ्ग द्वारा मृग रूप धारण करने पर चित्रसेन द्वारा मृग का वध), ५.३.८३.६६(शिखण्डी राजा की जातिस्मरा कन्या द्वारा मृग जाति में वर्तमान स्वपति के उद्धार के उपाय का कथन), ५.३.८५.२९(कण्व द्वारा मृग रूप धारी द्विज के वध से ब्रह्महत्या की प्राप्ति), ५.३.१९८.७९(विन्ध्यकन्दर तीर्थ में देवी का मृगी नाम से वास), ६.१०(चमत्कार राजा द्वारा मृगी का वध, मृगी के शाप से कुष्ठ रोग की प्राप्ति), ६.२३.५(मृग तीर्थ का माहात्म्य : सरोवर में स्नान से मृगों को मानुषत्व की प्राप्ति, लुब्धकों द्वारा सौन्दर्य प्राप्ति, त्रिशङ्कु की चाण्डालत्व से मुक्ति), ६.२९(देवरात मुनि के जल में स्खलित वीर्य का सारङ्गी/मृगी द्वारा पान, सारङ्गी द्वारा मानुषी कन्या का जन्म, देवरात द्वारा मृगावती नामक उस कन्या को वत्स ऋषि को प्रदान करने का वृत्तान्त), ७.३.२९.४(सुप्रभ राजा द्वारा शिशु को स्तनपान कराने वाली मृगी का वध, मृगी द्वारा राजा को रौद्रव्याघ्र होने का शाप), हरिवंश १.२१.२४(राजा ब्रह्मदत्त आदि के पूर्व जन्म में मृग होने का वृत्तान्त), महाभारत आदि ११३(जिततन्द्री होने के पश्चात् पाण्डु द्वारा वन में मृगया आरम्भ का उल्लेख, किंदम मुनि वध प्रसंग), कर्ण ८७.४५(कर्ण - अर्जुन युद्ध में विभिन्न मृगों द्वारा अर्जुन की विजय की कामना), शान्ति १२५+ (आशा की व्याख्या के संदर्भ में राजा सुमित्र द्वारा नष्ट मृग की खोज में भग्नाशा होने का आख्यान), २७२(मृग द्वारा यज्ञ में रत ब्राह्मण को स्वबलि के लिए प्रलोभन देना, ब्राह्मण की अस्वीकृति पर मृग का धर्म के रूप में प्रकट होना), अनुशासन ८४.४७(मृगों के नागों का अंश होने का उल्लेख), ११५(अगस्त्य द्वारा सभी आरण्यक मृगों को मृगया हेतु प्रोक्षित करने का उल्लेख), योगवासिष्ठ ६.२.४४.३२(मनोमृग के संसार में विचरण और दुःख प्राप्ति का वर्णन), ६.२.१२९(विपश्चित् को मृगता प्राप्ति का वृत्तान्त), लक्ष्मीनारायण १.३८०(पतिव्रता माहात्म्य के अन्तर्गत ब्रह्मा - पुत्री हरिणी का वेदसूरि विप्र के साथ विवाह, दम्पत्ति द्वारा काम विहार हेतु मृग - मृगी रूप धारण, मृत्यु - पश्चात् मृग व मृगी बनना, पतिव्रता मृगी के प्रभाव से वन का हरित होना, दावानल का शान्त होना व हिंसक प्राणियों के विनाशार्थ शरभ रूप शिव का आगमन, परशुराम की शरण से मृग व मृगी की मुक्ति), ३.२१९.५(व्याध द्वारा मृग रूप धारी पौतिमाष्य ऋषि व उनकी पत्नी के वध का यत्न, ऋषि के प्रबोधन से व्याध की मुक्ति), १.५४४.२(राजा वीरधन्वा द्वारा संवर्त्त ऋषि के मृग रूप धारी ५० पुत्रों की हत्या, प्रायश्चित्त रूप में तप व यज्ञ, यज्ञ में मृग रूप धारी कृष्ण व लोमश का प्राकट्य तथा राजा की ब्रह्महत्या से मुक्ति), कथासरित् ४.१.२३(राजा पाण्डु द्वारा मृग रूप धारी किन्दम मुनि का वध, शाप प्राप्ति), १२.५.३७८(आतिथ्य सत्कार हेतु बोधिसत्त्व विनीतमति का मृग रूप धारण कर मृत होना, अतिथियों द्वारा मृग मांस भक्षण से क्षुधा तृप्ति), १८.२.२३५(स्व पुत्र जयन्त की क्रीडा हेतु इन्द्र द्वारा स्वर्ण रत्न से मृग शिशु का निर्माण तथा अमृत सिंचन से जीवन दान, पश्चात् मेघनाद द्वारा स्वर्णमृग को लङ्का ले जाना ), द्र. कृष्णमृग mriga
मृगाजिन वामन ८९.४५(कुम्भयोनि द्वारा वामन को मृगाजिन प्रदान का उल्लेख )
मृगया ब्रह्माण्ड २.३.५६.३(सगर - पुत्रों द्वारा यज्ञीय अश्व की मृगया/खोज का उल्लेख), मत्स्य १९९.३(मारीच कश्यप कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक ), कथासरित् ९.४(नरवाहनदत्त द्वारा मृगया के अन्त में चार दिव्य पुरुषों रूपसिद्धि, प्रमाणसिद्धि, ज्ञानसिद्धि व देवसिद्धि का दर्शन आदि), mrigayaa
मृग- ब्रह्माण्ड १.२.१८.७१(मानस सर से ज्योत्स्ना व मृगकाया नदियों की प्रसूति का उल्लेख), २.३.७.१९(मृगव : पुण्य अप्सराओं के १४ गणों में से एक), २.३.७.२३(अप्सराओं के मृगव: गण के भूमि से उत्पन्न होने का उल्लेख), २.३.७.३०२(मृगराट् : जाम्बवान् व व्याघ्री के पुत्रों में से एक), मत्स्य ४७.२३(मृगकेतन : अनिरुद्ध - पुत्र), १२१.६९(उत्तर मानसरोवर से मृग्या व मृगकान्ता नदियों की प्रसूति का उल्लेख), १२४.५९(मृगवीथि में ज्येष्ठा, विशाखा व मैत्र/अनुराधा नक्षत्र होने का उल्लेख), १९९.१७(मृगकेतु : कश्यप कुल के प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), २६९.४०(मृगराज नामक प्रासाद के लक्षण), २६९.५०(मृगराज : १२ हस्त प्रमाण वाले प्रासादों में से एक), वायु ४७.६८(उत्तरमानस सर से ज्योत्स्ना व मृगकान्ता नदियों की प्रसूति का उल्लेख ) mriga-
मृगव्याध पद्म १.४०.८३(सुरभि व ब्रह्मा - पुत्र, एकादश रुद्रों में से एक), ब्रह्म २.३२.५(ब्रह्मा की स्वसुता पर आसक्ति, भयभीत सुता द्वारा मृगी रूप धारण करने पर ब्रह्मा द्वारा भी मृग रूप धारण, शिव का मृगव्याध बनकर धर्म का संरक्षण), ब्रह्माण्ड २.३.२४.८७(परशुराम द्वारा शम्भु की मृगव्याध रूपी मूर्ति का पूजन), भविष्य ३.४.१०.३७(दुष्ट ब्राह्मण, सप्तर्षियों की कृपा से वाल्मीकि बनना ; रुद्र, दक्ष यज्ञ को छिन्नाङ्ग करना), ३.४.१४.४०(दस रुद्रों में मुख्य), मत्स्य १७१.३९(११ रुद्रों में से प्रथम), विष्णु १.१५.१२३(एकादश रुद्रों में से एक), स्कन्द ३.३.१२.२३(मृगव्याध शिव से अरण्य वास में रक्षा की प्रार्थना), हरिवंश ३.५३.१८(मृगव्याध रुद्र का वृत्रासुर - भ्राता से युद्ध), ३.५८.३०(मृगव्याध रुद्र का बलासुर के साथ युद्ध ) mrigavyaadha/ mrigavyadha
मृगशिरा
भागवत
५.२३.६(मृगशीर्ष
आदि
नक्षत्रों
की
शिशुमार
के
दक्षिण
पार्श्व
में
स्थिति
का
उल्लेख),
स्कन्द
४.१.४५.३९(मृगशीर्षा
: ६४
योगिनियों
में
से
एक),
हरिवंश
३.३२.२४(दक्ष
यज्ञ
का
रूप,
वृत्तान्त
- स
विद्धस्तेन
बाणेन
खं
समुत्पतितः
क्रतुः
।
मृगो
भूत्वा
नर्दमानो
ब्रह्माणमुपधावति
।।
) mrigashiraa
मृगशृङ्ग वराह २१५.२५(देवों द्वारा एकशृङ्ग एक चरण धारी मृग रूप में नष्ट शिव का दर्शन, मृग के शृङ्ग का ग्रहण करने पर शृङ्ग का त्रेधा विभाजित होना आदि ) mrigashringa
मृगा वायु ९९.१९/२.३७.१९(उशीनर की ५ भार्याओं में से एक, मृग - माता )
मृगाङ्क कथासरित् २.२.४५(श्रीदत्त का सिंह के साथ मल्ल युद्ध, शाप मुक्त सिंह द्वारा श्रीदत्त को खड्ग भेंट), १०.९.२१९(मृगाङ्कलेखा : शशितेज नामक विद्याधरराज की कन्या, योगिनी के सहयोग से विद्याधरेन्द्र अमृततेज से विवाह), १२.२.१७(मृगाङ्कदत्त : अमरदत्त व सुरतप्रभा - पुत्र), १२.३.८(अमरदत्त द्वारा मृगाङ्कदत्त का नगर से निर्वासन), १२.६.१(मृगाङ्कदत्त का शशाङ्कवती प्राप्ति हेतु उज्जयिनी गमन), १२.७.१२(मृगाङ्कदत्त के १० सहायकों में से एक, प्रचण्डशक्ति), १२.१८.४(मृगाङ्कवती : राजा धर्मध्वज की तीन भार्याओं में से एक), १२.१९.१०६(विद्याधरराज मृगाङ्कसेन की कन्या मृगाङ्कवती द्वारा अङ्गराज यश:केतु से गान्धर्व विवाह), १२.३३.१(मृगाङ्कदत्त की कथा), १२.३५.१(मृगाङ्कदत्त की कथा), १२.३६.५९(मृगाङ्कदत्त के शशाङ्कवती से मिलन का वृत्तान्त ) mrigaanka/ mriganka
मृगानना स्कन्द ७.२.६.२३(मृगानना का राजा भोज से मिलन, पूर्व जन्मों के वृत्तान्त का कथन, उद्दालक ऋषि के वीर्य व मृगी से मृगानना की उत्पत्ति, स्वर्णरेखा नदी में मृग मुख त्याग कर मानुष मुख की प्राप्ति, भोजराज से परिणय), लक्ष्मीनारायण १.१४९(भोज राजा की पत्नी मृगानना के ७ जन्मों का वृत्तान्त ) mrigaananaa/ mrigananaa
मृगावती देवीभागवत ७.३०.६७(यमुना पीठ में देवी की मृगावती नाम से स्थिति का उल्लेख), मत्स्य १३.४०(यमुना तीर्थ में देवी का मृगावती नाम से वास), स्कन्द ३.१.५(कृतवर्मा - पुत्री, सहस्रानीक - भार्या, उदयन - माता, अलम्बुषा का शापित रूप, मृगावती का पति से वियोग, जमदग्नि के आश्रम में निवास), ५.३.१९८.७८(यमुना पीठ में देवी का मृगावती नाम से वास), लक्ष्मीनारायण १.४३४.३१(विधूम वसु व अलम्बुषा अप्सरा का शापवश पृथिवी पर सहस्रानीक नृप व उसकी रानी मृगावती बनना, श्येन द्वारा मृगावती का अपहरण, मृगावती द्वारा उदयन को जन्म देना, जमदग्नि द्वारा मृगावती की रक्षा आदि), कथासरित् २.१.२९(अयोध्याराज कृतवर्मा की कन्या, पूर्व जन्म में अप्सरा, विवाह की कथा ) mrigaavatee/ mrigavati
मृगी ब्रह्माण्ड २.३.७.१७२(मृगी व मृगमन्दा : क्रोधा व कश्यप की १२ कन्याओं में से २, पुलह की १२ भार्याओं में से २), २.३.७.१७३(मृगी व मृगमन्दा के पुत्रों हरियों, मृग, शश, ऋक्ष आदि का कथन), वायु ६९.२०५/२.८.१९९ (वही) mrigee/ mrigi
मृडानी स्कन्द ४.२.६५.२७(पार्वती की संज्ञा?), ४.२.७२.५५(मृडानी द्वारा प्राची दिशा की रक्षा ) mridaanee/ mridani
मृणाल विष्णुधर्मोत्तर १.४२.७(बाहु की मृणाल से उपमा )
मृत ब्रह्माण्ड ३.४.१.८५(मृति : रोहित गण के १० देवों में से एक), वायु ४९.९३(मृता : शाक द्वीप की ७ प्रधान नदियों में से एक )डदiन्ष्,
मृतसञ्जीवनी अग्नि ३२३.२६(मृत सञ्जीवनी विद्या मन्त्र), ब्रह्माण्ड १.२.१९.३९(द्रोण पर्वत पर मृतसञ्जीवनी ओषधि की विद्यमानता का उल्लेख), २.३.३०.५३(भार्गव मुनि द्वारा मृतसञ्जीवनी विद्या से मृत जमदग्नि को जीवित करने का कथन), मत्स्य २४९.४(भार्गव द्वारा शिव से प्राप्त मृत सञ्जीवनी विद्या से असुरों को जीवित करने का कथन ) mritasanjeevanee/ mritasanjivani
मृतादन लक्ष्मीनारायण ३.१८७(मृतादन नामक चर्मकार द्वारा आपद~ग्रस्त गौ की रक्षा से धन प्राप्ति, मांस भक्षण जनित पाप का नाश तथा साधु समागम का वर्णन )
मृत्तिका गरुड २.४.१४१(वसा में मृत्तिका देने का उल्लेख), विष्णु ४.१३.७(भोजों के मृत्तिकापुर वासी होने का उल्लेख), द्र. मृदा
मृत्यु अग्नि ११५.५(गोगृह में मृत्यु की श्रेष्ठता का उल्लेख), १५७(मृत्यु के प्रकार व मृत्यु पर अशौच के नियम), ३२३.२४(महामृत्युञ्जय मन्त्र), ३२३.२६(मृत संजीवनी विद्या मन्त्र), ३७१(मृत्यु की प्रक्रिया का वर्णन ; नरक तथा पाप मूलक जन्म का वर्णन), गरुड १.२१.५(, १.१०६(मृत्यु पर सूतक /शौच कर्म), १.१०७.३२(मृतक के शरीर पर स्थापनीय यज्ञ पात्रों का वर्णन), १.२२५(मृत्यु अष्टक स्तोत्र का कथन, मृत्यु पर जय), २.३+ (और्ध्वदेहिक क्रिया का महत्त्व व विधि), २.५(मृतक संस्कार की विधि), २.१३(अकाल मृत्यु का कारण), २.१५(अन्त्येष्टि क्रिया विधि), २.२६(अनशन - मृत्यु, तीर्थादि में मृत्यु की महिमा व विधि), २.२८(मृत्यु - समय में चित्त की वृत्ति अनुसार फल, तीर्थों में मृत्यु का फल), २.३०(अपमृत्यु होने पर दाह संस्कार का निषेध, पुत्तलिका का निर्माण), २.३०.५०/२.४०.५० (मृतक की वसा में मृत्तिका देने का उल्लेख), २.३१.२६(मृत्यु पर प्राण वायु निर्गम के स्थान), २.३५.१७(मृतक के संस्कार हेतु निषिद्ध ५ नक्षत्र), देवीभागवत १.३.२७(षष्ठम द्वापर में व्यास), ९.२२(मृत्यु का शङ्खचूड - सेनानी भयंकर से युद्ध), नारद १.५५.३२०(ज्योतिष में मृत्यु का विचार), १.९१.७३(अघोर शिव की षष्ठम कला का रूप), पद्म १.५०.२५६(अन्तिम संस्कार विधि), २.१४(धर्मात्मा व पापी की मृत्यु के स्थान व चेष्टा), ब्रह्म २.२४(शिवोपासक श्वेत को लाने हेतु यम द्वारा पहले दूतों का, पश्चात् मृत्यु का प्रेषण, नन्दी द्वारा मृत्यु का ताडन, कार्तिकेय द्वारा यम का वध, देवों की प्रार्थना पर शिव द्वारा यम का पुनरुज्जीवन, मृत्यु के पतन स्थल की मृत्यु तीर्थ संज्ञा), २.४६(ऋषि सत्र में मृत्यु का शमिता के वश में होना, देवों द्वारा सत्र में विघ्न पर ऋषियों का देवों को शाप, मृत्यु का कृत्या वडवा से परिणय, मृत्यु द्वारा महानलेश्वर की स्थापना), २.५५(यमाग्नेय तीर्थ के अन्तर्गत कपोत व उलूकी की कथा), ब्रह्मवैवर्त्त १.१३.१३(उपबर्हण द्वारा मृत्यु के वरण के लिए १६ नाडियों का भेदन), १.१५.२१(मृत्युकन्या के स्वरूप का कथन), ३.२८.२१(जमदग्नि की मृत्यु पर प्रेत क्रिया विधि), ब्रह्माण्ड १.२.९.६५(भय व माया से मृत्यु के जन्म तथा मृत्यु से व्याधि, जरा आदि की उत्पत्ति), १.२.३५.११८(छठें द्वापर में मृत्यु के व्यास होने का उल्लेख), १.२.३६.१२७(मृत्यु - सुता सुनीथा व अङ्ग से वेन के जन्म का उल्लेख), २.३.७.२४(भीरु नामक अप्सरा गण के मृत्यु - कन्या होने का उल्लेख), ३.४.४.६०(सविता द्वारा ब्रह्माण्ड पुराण मृत्यु को सुनाने व मृत्यु द्वारा इन्द्र को सुनाने का उल्लेख), ३.४.३५.९६(रुद्र की कलाओं में से एक), भविष्य १.१८६.३०(विभिन्न सम्बन्धियों की मृत्यु पर शौच का विधान), ४.१२६(मृत्यु - पूर्व के कर्तव्य, चतुर्विध ध्यान), भागवत २.१(मृत्यु कालीन ध्यान), २.१०.२८(विराट् पुरुष के अपान से मृत्यु की उत्पत्ति का उल्लेख), ३.३१+ (मृत्यु के समय में जीव की गति), ४.८.४(दुरुक्ति व कलि से भय व मृत्यु के जन्म तथा भय व मृत्यु के मिथुन से यातना व निरय की उत्पत्ति का उल्लेख), ७.१२.२७(अन्त काल में पायु व विसर्ग को मृत्यु में लीन करने का निर्देश), मत्स्य ३.११(ब्रह्मा के नेत्रों से मृत्यु की उत्पत्ति का उल्लेख), १०.३(मृत्यु - पुत्री सुनीथा व अङ्ग से वेन के जन्म का उल्लेख), १७९.१५(अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), २१३.४(यम के मृत्यु नाम का कारण), मार्कण्डेय ४३(अरिष्टों द्वारा मृत्यु का ज्ञान), ५०.३०/४७.३०(माया व वेदना - पुत्र, मृत्यु व अलक्ष्मी के १४ पुत्रों का कथन), लिङ्ग १.२४.३१(षष्ठम द्वापर में व्यास), १.९१(मृत्यु - कालीन अरिष्ट), २.४५(जीवित श्राद्ध विधि), वराह १८७.१०१(मृत्यु - पूर्व तथा मृत्यु - पश्चात् करणीय कर्म), वायु २.६(सत्र यज्ञ में तप के गृहपति, इला के पत्नी तथा मृत्यु के शामित्र बनने का उल्लेख), १०.३९(भय व माया से मृत्यु के जन्म तथा मृत्यु से व्याधि, जरा आदि की उत्पत्ति का कथन), १९( मृत्यु कालीन अरिष्ट), २३.१३३/१.२३.१२४(छठें द्वापर में मृत्यु के व्यास होने का उल्लेख), २५.५१(मधु - कैटभ द्वारा अनावृत मरण के वरदान की प्राप्ति), ६६.६८/२.५.६८(सुरभि व कश्यप के रुद्र संज्ञक ११ पुत्रों में से एक), ६९.५७/२.८.५६(भैरव संज्ञक अप्सरा गण के मृत्यु - कन्याएं होने का उल्लेख), ७९.२२/२.१७.२२(ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि की मृत्यु पर अशौच दिवसों का विधान), १०२.८७/२.४०.८७(मृत्यु प्रक्रिया का वर्णन), १०३.६०/२.४१.६० (सविता द्वारा ब्रह्माण्ड पुराण मृत्यु को सुनाने व मृत्यु द्वारा इन्द्र को सुनाने का उल्लेख), विष्णु ३.३.१२(छठें द्वापर में मृत्यु के व्यास होने का उल्लेख), ३.१३.७(मृत्यु के कारण अशौच पर पिण्ड क्रिया का विधान), ३.१३.११(मृत्यु - कन्या सुनीथा व अङ्ग से वेन के जन्म का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर २.७६(मृत्यु - पश्चात् प्रेत हेतु करणीय कृत्य), २.११६(शुभ कर्मों वाले व्यक्तियों तथा पापियों की मृत्यु की प्रक्रिया, मृत्यु पर यम मार्ग, नरक व स्वर्ग प्रापक कर्म), ३.११९.५(मृत्यु की राज्याभिषेक काल में पूजा), ३.२३८(मृत्यु - पूर्व अरिष्ट लक्षण), शिव ५.२०.२२(काष्ठावस्था की मृतावस्था अथवा हरितावस्था संज्ञा?), ५.२५+ (योगी द्वारा मृत्यु काल का ज्ञान), ५.२५.४(मृत्यु चिह्नों से आयु प्रमाण का वर्णन), ६.२१(यति की मृत्यु पर अन्तिम क्रिया की विधि, देह के दाहकर्म का निषेध), स्कन्द १.१.२८.११(कुमार वरणार्थ मृत्यु - कन्या सेना का आगमन, सेना द्वारा कुमार का वरण), ४.१.४२(मृत्यु पूर्व के लक्षण), हरिवंश ३.८०.६५(मरण काल उपस्थित होने पर अविचल भगवद् भक्ति हेतु घण्टाकर्ण पिशाच द्वारा भगवद् स्तुति), महाभारत उद्योग ४२(मृत्यु की सत्ता होने या न होने का प्रश्न, मृत्यु को तरने के उपाय), शान्ति २५७.१५(ब्रह्मा की क्रोधाग्नि से मृत्यु नारी की उत्पत्ति का वर्णन, मृत्यु का स्वरूप), ३१७(विभिन्न अङ्गों से प्राणों के उत्क्रमण का फल, मृत्यु सूचक लक्षण, मृत्यु को जीतने का उपाय), ३२१.३५(मृत्यु पूर्व लक्षणों से बचने के उपायों का कथन), योगवासिष्ठ ३.२(मृत्यु द्वारा आकाशज ब्राह्मण पर आक्रमण में असफलता का वर्णन), ३.५२(लीलोपाख्यान के अन्तर्गत राजा पद्म की मृत्यु के पश्चात् देह की प्रतिभा वर्णन नामक सर्ग), ३.५४.३४(सुख मरण व दुःख मरण का कथन), ३.५५.११(मृत्यु पश्चात् कर्मों के अनुसार षड्विध प्रेतों का कथन), ३.५६(मृत्यु - पश्चात् के अनुभवों का कथन, यमपुरी में पंहुच कर पुन: स्वशरीर में जीव के वापस आने पर स्वदेह के भान का प्रश्न, मृतक को पिण्डदान के औचित्य का कथन), वा.रामायण ६.१११.११४(रावण के अन्तिम संस्कार की विधि), लक्ष्मीनारायण १.६४(मृत्यु पर पिण्डदान से प्रेत की देह का निर्माण), १.७०(मृत्यु पर शव संस्कार की विधि), १.७३(मरणासन्न व्यक्ति की मृत्यु से पूर्व तथा पश्चात् करणीय कृत्य), १.७५(मृत्यु - पूर्व व पश्चात् देय दान), १.७७(मृतक हेतु नारायण बलि का विधान), १.३९७.७०(आसन्नमृत्यु योगी द्वारा द्रष्ट अरिष्ट लक्षणों का कथन), २.१७६.३५(ज्योतिष में योगों में से एक), २.२५७.५(शरीर के विभिन्न अङ्गों से प्राण निकलने पर प्राप्त लोकों का वर्णन), ३.५४.३३(मृत्यु के प्रकार, विधि), ३.१४२(मृत्यु पर जय प्राप्ति के संदर्भ में विभिन्न सर्पों का विभिन्न ग्रहों से तादात्म्य, विभिन्न तिथियों में सर्प विशेष द्वारा अङ्ग विशेष में दंशन पर मृत्यु की अवश्यंभाविता का कथन), ४.२६.५२(अधोक्षज की शरण से मृत्यु से मुक्ति का उल्लेख ), द्र. व्यास mrityu
मृत्युञ्जय अग्नि ३२३.२४(महामृत्युञ्जय मन्त्र), गरुड १.१८(मृत्युञ्जय की अर्चना की विधि), नारद १.९१.१०९(मृत्युञ्जय मन्त्र का वर्णन), लिङ्ग २.५३+ (मृत्युञ्जय मन्त्र का वर्णन), स्कन्द ३.१.४९.५२(वरुण द्वारा मृत्युञ्जय की स्तुति), ३.३.१२.२०(मृत्युञ्जय से सर्वकाल में रक्षा की प्रार्थना), ७.१.७.१३(विरञ्चि नामक प्रथम ब्रह्मा के समय सोमनाथ का नाम), ७.१.९५(मृत्युञ्जय रुद्र का माहात्म्य, नन्दी द्वारा मृत्युञ्जय की पूजा ) mrityunjaya
मृदा अग्नि २१८.१२(अभिषेक में विभिन्न प्रकार की मृदाओं के उपयोग - पर्वताग्रमृदा तावन्मूर्द्धानं शोधयेन्नृपः ।। वल्मीकाग्रमृदा कर्णौ वदनं केशवालयात् ।…..), भविष्य ४.३१.११(मृदा मन्त्र), योगवासिष्ठ ६.२.१५८.१९(व्याध की देह के महामेद से मृदा की उत्पत्ति का कथन), वराह १८३(मृदा से निर्मित प्रतिमा के प्रतिष्ठापन की विधि), विष्णु ४.१४.९(मृदामृद : उपमद्गु? के पुत्रों में से एक, अनमित्र वंश), विष्णुधर्मोत्तर २.२१.२(अभिषेक में विभिन्न प्रकार की मृदाओं का उपयोग), स्कन्द ५.३.२०९.११९(मृदा ग्रहण मन्त्र ) mridaa
मृदु भागवत ९.२४.१६(मृदुर व मृदुविद् : श्वफल्क व गान्दिनी के १२ पुत्रों में से २), वायु ९६.११०/२.३४.११०(मृदुर : श्वफल्क व गान्दिनी के पुत्रों में से एक), १०६.३४/२.४४.३४(गया में ब्रह्मा के यज्ञ के मानस ऋत्विजों में से एक ) mridu
मृलिक वायु ३१.९(स्वायम्भुव मन्वन्तर में सोमपायी त्विषिमन्त गण के १२ देवों में से एक )
मृषा भागवत ४.८.१(अधर्म - पत्नी, दम्भ व माया - माता )
मृष्ट विष्णु ४.१५.२१(मार्ष्टि : सारण के पुत्रों में से एक )
मेकल पद्म २.१०५.२७(हुण्ड दैत्य की सैरन्ध्री मेकला को नहुष बालक की हत्या का आदेश, सैरन्ध्री द्वारा आदेश की गुप्त रूप से अवहेलना - मेकलां तु समाहूय सैरंध्रीं वाक्यमब्रवीत् ॥ जह्येनं बालकं दुष्टं मेकलेऽद्य महानसे।), ब्रह्माण्ड १.२.१६.६३(विन्ध्यवासियों के जनपदों में से एक), २.३.७४.१८८(मेकला में भविष्य में ७? पुष्पमित्र संज्ञक राजा होने का उल्लेख), मत्स्य ११४.५२(विन्ध्यपृष्ठ निवासियों के जनपदों में से एक), वायु ९९.३७६/२.३७.३६९(मेकला में ७? पुष्पमित्र राजा होने का उल्लेख - मेकलायां नृपाः सप्त भविष्यन्ति च सत्तमाः। कोमलायान्तु राजानो भविष्यन्ति महाबलाः ।। ) mekala
मेखला गर्ग ४.१९.२६(यमुना सहस्रनामों में से एक - मेखलाऽमेखला काञ्ची काञ्चीनी काञ्चनामयी ।), पद्म ६.१८५.१६( मेघंकर नगर में मेखला तीर्थ की महिमा - यस्मिन्पुरे महातीर्थं विद्यते मेखलाभिधम् । यत्र स्नात्वा नरैर्नित्यं प्राप्यते वैष्णवं पदम्॥.), ब्रह्माण्ड ३.४.३६.७६ (त्रैलोक्यमोहन चक्र में स्थित ८ शक्तियों में से एक - कुसुमा मेखला चैव मदना मदनातुरा । रेखा वेगिन्यङ्कुशा च मालिन्यष्टौ च शक्तयः ॥), मत्स्य २२.४१(मेघकर तीर्थ में शार्ङ्गधर विष्णु के मेखला में स्थित होने का उल्लेख - तीर्थं मेघकरं नाम स्वयमेव जनार्दनः।। यत्र शार्ङ्गधरो विष्णुर्मेखलायामवस्थितः।), वामन ८९.४५ (भरद्वाज द्वारा वामन को मेखला प्रदान का उल्लेख - यज्ञोपवीतं पुलहस्त्वहं च सितवाससी। मृगाजिनं कुम्भयोनिर्भरद्वाजस्तु मेखलाम्।। ), स्कन्द ५.२.४५.९१(शिव द्वारा गंगापन्नगों का मेखला रूप में धारण - लिंगादेव हि निर्गत्य गंगापन्नगमेखलः ।। प्रत्युवाच ततः कन्या विभुरुत्तिष्ठतेति सः ।। ), महाभारत कर्ण ४४.४४/३७.५५(महोलूखलमेखला वाली राक्षसी द्वारा आरट्ट व वाहीक देशों की निन्दा - आरट्टा नाम ते देशा बाह्लीकं नाम तद्वनम्। वसातिसिन्धुसौवीरा इति प्रायोऽतिकुत्सिताः।।), अनुशासन २३.४०(तीन वर्णों के लिए रशना/मेखला के द्रव्यों का कथन), वा.रामायण ४.३०.४९(वापियों के लिए हंसों की मेखला का उल्लेख - प्रकीर्ण हंसाकुल मेखलानाम् प्रबुद्ध पद्मोत्पल मालिनीनाम् ।), ४.३०.५४(नदियों के लिए मीन रूपी मेखला का उल्लेख - मीनोप संदर्शित मेखलानाम् नदी वधूनाम् गतयो अद्य मंदाः । ), द्र. उदूखलमेखला mekhalaa
मेघ गर्ग ३.३.२(इन्द्र की आज्ञा से संवर्तक मेघों द्वारा गोवर्धन पर्वत पर वृष्टि, मेघों के विभिन्न वर्ण), पद्म २.२२.२१(कर्म रूपी अम्बुद/मेघ की उपमा - कर्मांबुदे महति गर्जतिवर्षतीव विद्युल्लतोल्लसतिपातकसंचयैर्मे), ३.१७.३(गर्जन तीर्थ में मेघ की उपस्थिति, तीर्थ के प्रभाव से इन्द्रजित् नाम धारण- गर्जनं तु ततो गच्छेद्यत्र मेघ उपस्थितः। इंद्रजिन्नाम संप्राप्तं तस्य तीर्थप्रभावतः।।), ६.१८५.५(गीता के ११वें अध्याय के माहात्म्य के संदर्भ में मेघङ्कर नगर की शोभा का वर्णन, मेघङ्कर नगर में सुनन्द ब्राह्मण का वास), ब्रह्म १.८०(यज्ञ विनाश से कुपित इन्द्र द्वारा संवर्तक मेघों को गोकुल विनाश की आज्ञा, गोकुल रक्षार्थ कृष्ण द्वारा गोवर्धन धारण - संवर्तकं नाम गणं तोयदानामथाब्रवीत्।। भो भो मेघा निशम्यैतद्वदतो वचनं मम।), ब्रह्म २.७२.४(राहु - पुत्र मेघहास द्वारा तप द्वारा राहु को ग्रहों में प्रतिष्ठा दिलाना, स्वयं नैर्ऋत अधिपति बनना - अमृते तु समुत्पन्ने सैहिकेये च भेदिते।। तस्य पुत्रो महादैत्यो मेघहास इति श्रुतः।), ब्रह्माण्ड १.२.२०.२२(सुतल नामक द्वितीय तल में मेघ राक्षस के भवन की स्थिति का उल्लेख), १.२.२२.३१(गुण अनुसार मेघों के नाम), १.२.२२.४६(अण्ड कपाल का रूप - यस्मिन्ब्रह्मा समुत्पन्नश्चतुर्वक्त्रः स्वयंप्रभुः । तान्येवांडकपालानि सर्वे मेघाः प्रकीर्त्तिताः ।।), २.३.७४.१८९ (कोमला में ९ मेघ संज्ञक राजाओं द्वारा राज्य करने का उल्लेख), भविष्य ३.४.८.१३(मेघशर्मा द्वारा शन्तनु के राज्य में वृष्टि कराना), भागवत २.१.३४(विराट् पुरुष के केशों के मेघ रूप होने का उल्लेख - ईशस्य केशान्न् विदुरम्बुवाहान् वासस्तु सन्ध्यां कुरुवर्य भूम्नः ।), ८.१०.२१(मेघदुन्दुभि : देवासुर संग्राम में बलि के सहायक असुरों में से एक - हयग्रीवः शङ्कुशिराः कपिलो मेघदुन्दुभिः।), मत्स्य २.८(प्रलय काल उपस्थित होने पर संवर्त, भीमनाद प्रभृति ७ प्रलयकारक मेघों द्वारा घोर वृष्टि - संवर्तो भीमनादश्च द्रोणश्चण्डो बलाहकः। विद्युत्पताकः शोणस्तु सप्तैते लयवारिदाः।।), २२.४०(मेघकर तीर्थ में शार्ङ्गधर विष्णु के मेखला में स्थित होने का उल्लेख - तीर्थं मेघकरं नाम स्वयमेव जनार्दनः।। यत्र शार्ङ्गधरो विष्णुर्मेखलायामवस्थितः।), २४.५०(मेघजाति : नहुष के ७ पुत्रों में से एक), १२५.३५(मेघ शब्द की निरुक्ति - मेहनाच्च मिहेर्धातोर्मेघत्वं व्यञ्जयन्ति च। न भ्रश्यन्ते ततो ह्यापस्तस्मादभ्रस्य वै स्थितः।।), १४८.५१(मेघ असुर के रथ का प्रकार - मेघस्य द्वीपिभिर्भीमैः कुञ्जरैः कालनेमिनः।), १६३.८१(पर्वतों में से एक), लिङ्ग १.५४.३८(धूम्रों से निर्मित मेघों के प्रकार), वायु ४३.२६(मेघा : भद्राश्व वर्ष की नदियों में से एक), ५०.२२(सुतल नामक द्वितीय तल में मेघ राक्षस के भवन की स्थिति का उल्लेख), ५०.३६(महामेघ : पांचवें तल में महामेघ राक्षस के निवास का उल्लेख), ५१.२८(मेघों के प्रकारों का वर्णन), ९९.३७६/२.३७.३६९(कोमला में ९ मेघ संज्ञक राजाओं द्वारा राज्य करने का उल्लेख), विष्णु ६.३.३०(प्रलयकालिक संवर्तक मेघ के स्वरूप का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.२४८.३१(गरुडों के कुल में से एक), शिव ५.२६.४०(कांस्य प्रभृति ९ प्रकार के घोषों/नादों में से एक मेघगर्जन का उल्लेख - दुन्दुभिं ७ शंखशब्दं ८ तु नवमं मेघगर्जितम् ९ ।। नव शब्दान्परित्यज्य तुंकारं तु समभ्यसेत् ।।), ५.२६.५१(मेघनाद से योगी को विपत्ति की अप्राप्ति), स्कन्द १.२.१६.२७(शुम्भ के कालमुञ्च महामेघ वाहन का उल्लेख - कालमुंचं महामेघमारूढः शुम्भदानवः॥ ), ४.१.१३.२१(शिव के केशों के जलद होने का उल्लेख - केशास्ते जलदाः प्रभो ।), ५.२.४४.२१(नवग्रहों से मेघों को पीडा के कारण अतिवृष्टि और अनावृष्टि, उत्तर मेघ द्वारा उत्तरेश की स्थापना), ५.२.४४.१४(गज, गवय, शरभ, उत्तर आदि मेघों की पूर्वादि दिशाओं में नियुक्ति का कथन), ५.२.७४.२७(राजा रिपुञ्जय के राज्य में देवों के अमर्ष के कारण अनावृष्टि होने पर राजा का मेघ रूप होकर वृष्टि करना), ५.३.१८.२(अग्नि द्वारा जगत संहरण के पश्चात् प्रकट हुए संवर्तक मेघ के स्वरूप का कथन), ५.३.१०३.६०(ब्रह्मा के वर्षा काल रूप और मेघ रूप होने, विष्णु के हेमन्तकाल रूप तथा रुद्र के ग्रीष्मकालरूप होने का कथन - प्रावृट्कालो ह्यहं ब्रह्मा आपश्चैव प्रकीर्तिताः । मेघरूपो ह्यहं प्रोक्तो वर्षयामि च भूतले ॥), ६.२५२.२६(चातुर्मास में मेघों की जम्बू वृक्ष में स्थिति का उल्लेख - जंबूर्मेघैः परिवृतः कृष्णवर्णोऽघनाशनः ॥ कृष्णस्य सदृशो वर्णस्तेन जंबू नगोत्तमः ॥), ७.१.२२६(मेघेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), हरिवंश २.१८(गोवर्धन प्रसंग में संवर्तक मेघ द्वारा इन्द्र आज्ञा से व्रज में भारी वर्षा करना), महाभारत शान्ति २७१(कुण्डधार जलधर द्वारा स्वभक्त ब्राह्मण के लिए धन की अपेक्षा तप व धर्म की प्राप्ति की कथा), योगवासिष्ठ १.१५.१४(मन रूपी महागज की गर्जन करने वाले मेघों से तुलना - अहंकारमहाविन्ध्ये मनोमत्तमहागजः । विस्फूर्जति घनास्फोटैः स्तनितैरिव वारिदः ।।), १.१७.३३(मेघ की तृष्णा से उपमा - प्रयच्छति परं जाड्यं परमालोकरोधिनी । मोहनीहारगहना तृष्णा जलदमालिका ।।), १.३१.३(मोह रूपी मेघ- वासनावातवलिते कदाशातडिति स्फुटे । मोहोग्रमिहिकामेघे घनं स्फूर्जति गर्जति ।।), ५.१४.२४(मत्त मेघों द्वारा शरभ के नाश का उल्लेख - शरभो नाशमायाति मत्तमेघविलङ्घने ।। मेघा वातैर्विधूयन्ते वायवो गिरिभिर्जिताः ।), लक्ष्मीनारायण १.३१९.९(जोष्ट्री व ब्रह्मा की पुत्री मेघा की वृक्ष वल्लियों में स्थिति का उल्लेख - वृक्षवल्लीषु तां मेघां पुत्रीं प्रसूय सन्दधे ।), १.३१९.११४(मेघा संज्ञक पत्नी के लक्षणों का कथन - मेहति वर्षते पत्यौ प्रेम वर्षयति प्रभौ । मयि स्नेहं करोत्येव मेघा सा मत्प्रिया मता ।।), १.४४१.८७(वृक्ष रूप धारी श्रीहरि के दर्शन हेतु मेघों के जम्बू वृक्ष बनने का उल्लेख - जम्बूवृक्षास्तदा मेघा अशोका विद्युतोऽभवन् ।।), २.११५.८३(मेघों द्वारा श्रीहरि हेतु दिव्य प्रेङ्खा/दोला प्रदान करने का कथन), ३.१६.५९(कच्छप के वाहन मेघ व मेघ के वाहन वायु का उल्लेख - कच्छपा मेघवाहाश्च मेघाश्च वायुवाहनाः ।। पर्वताः पक्षवाहाश्च विद्युतो मेघवाहिताः ।), कथासरित् ८.३.९०(मेघों से गिरे हुए काले नाग के रूप में सूर्यप्रभ को धनुष - रत्न तथा धनुष डोरी की सिद्धि), १०.६.६(मेघवर्ण : काकों का राजा, काक - उलूक कथा प्रसंग), १२.४.७२(मेघमाली : विदिशा नगरी का राजा, हंसावली - पिता ), द्र. कालमेघ, जीमूत, तालमेघ, नलमेघ megha
मेघ- ब्रह्माण्ड ३.४.३२.२९(मेघयन्त्रिका : वर्षा ऋतु की १२ शक्तियों में से एक), भागवत ५.२०.२१(मेघपृष्ठ : क्रौञ्च द्वीप के स्वामी घृतपृष्ठ के ७ पुत्रों में से एक), मत्स्य ६.१८(मेघवान् : दनु व कश्यप के प्रधान दानव पुत्रों में से एक), १६२.८१(मेघवासा : हिरण्यकशिपु की सभा के असुरों में से एक), वायु ३६.३२(मेघशैल : महाभद्र सरोवर के उत्तर में स्थित पर्वतों में से एक), ६९.१५६/२.८.१५१(मेघपूर्ण : पुण्यजनी व मणिभद्र के २४ पुत्रों में से एक ) megha-
मेघनाद नारद १.६६.१३६(मेघनाद गणेश की शक्ति सुभगा का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.२९.११६(भण्डासुर के संदर्भ में लक्ष्मण द्वारा मेघनाद के वध का उल्लेख), ३.४.४४.७०(५१ वर्णों के गणेशों में से एक), मत्स्य १९०.४(मेघनाद तीर्थ में मेघनाद गण द्वारा परम गणता को प्राप्त होने का उल्लेख), वामन ५७.८५(कुटिला द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण का नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.२२२.३१(मेघनाद द्वारा शक्र का बन्धन), स्कन्द ५.२.२३(मेघों द्वारा स्थापित मेघनादेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, देवों द्वारा मेघनादेश्वर की आराधना), ५.३.३५(मन्दोदरी व रावण - पुत्र, जन्म समय में नाद की उत्पत्ति, तप से मेघनाद तीर्थ की स्थापना), ७.२.१५.२(रैवतक पर्वत पर क्षेत्रपाल का नाम), वा.रामायण ७.२५.४(मेघनाद द्वारा सात यज्ञों द्वारा सिद्धि प्राप्ति), ७.२८.७(मेघनाद का जयन्त से युद्ध), ७.२९+ (मेघनाद द्वारा इन्द्र का बन्धन करने से इन्द्रजित् नाम की प्राप्ति), लक्ष्मीनारायण १.५७४.२९(मेघनाथ द्वारा शिव की अर्चना से स्थापित मेघनाथ क्षेत्र का कथन ) meghanaada/ meghanada
मेघपाली भविष्य ४.१७(मेघपाली लता, मेघपाली तृतीया व्रत का माहात्म्य )
मेघपुष्प भविष्य ३.३.१०.४७(पपीहक व हरिणी - पुत्र मेघपुष्प अश्व का बिन्दुल रूप में अवतार), भागवत १०.५३.५(कृष्ण के रथ के ४ अश्वों में से एक), १०.८९.४९(वही) meghapushpa
मेघबल कथासरित् १२.२.१९(मृगाङ्कदत्त के १० मन्त्रियों में से एक), १२.३४.१४(मृगाङ्कदत्त के ४ सचिवों में से एक),
मेघमाली भागवत ५.२०.४(मेघमाल : प्लक्ष द्वीप के ७ मर्यादा पर्वतों में से एक), वायु ६९.१२/२.८.१२(प्रचेता व सुयशा के यक्ष गण पुत्रों में से एक), कथासरित् १२.४.७२(विदिशा नगरी का राजा, हंसावली - पिता ) meghamaalee/ meghamali
मेघवर्ण ब्रह्माण्ड २.३.७.१२४(मणिभद्र व पुण्यजनी के २४ पुत्रों में से एक), कथासरित् १०.६.६(काकों का राजा, काक - उलूक कथा ) meghavarna
मेघवाहन लिङ्ग १.३७.१७(मेघवाहन कल्प का कथन : जनार्दन द्वारा मेघ होकर शिव का वहन), २.८(धुन्धुमूक द्विज द्वारा मेघ बनकर शिव का वहन, शिव को वहन करने से अति भार के कारण मेघवाहन की खिन्नता, धुन्धुमूक के दुष्ट पुत्र का वृत्तान्त), वायु २१.५०(२२वें कल्प का नाम व लक्षण), शिव ३.४.३०(मेघवाह : सप्तम द्वापर में जैगीषव्य शिवावतार के चार पुत्रों में से एक), स्कन्द ६.९३.२६(अम्बरीष - पुत्र सुवर्चा का पूर्व जन्म में नाम, मेघवाहन द्वारा ब्राह्मण - हत्या के कारण जन्मान्तर में कुष्ठ प्राप्ति), ७.१.८४.२(मेघवाहन दैत्य द्वारा ऋषियों को पीडा, आदिनारायण विष्णु द्वारा पादुका से मेघवाहन के ह्रदय में ताडन), लक्ष्मीनारायण १.५३८.३२(मेघवाहन दैत्य का पादुका से वध का कथन ) meghavaahana/ meghavahana
मेघस्वाति भागवत १२.१.२४(चिबिलक - पुत्र, अटमान - पिता), मत्स्य २७३.५(आपीतक - पुत्र, स्वाति - पिता, १८ वर्ष राज्य करने का उल्लेख), विष्णु ४.२४.४५(पिलक - पुत्र, पटुमान् - पिता ) meghaswaati/ meghaswati
मेढी भागवत ४.१२.३९(ध्रुव की मेढी से उपमा )
मेढ्र भागवत ३.१२.२६(ब्रह्मा के मेढ्र से निर्ऋति की उत्पत्ति का उल्लेख), ८.५.३९(पुरुष/परमात्मा के मेढ्र से क:/प्रजापति की उत्पत्ति का उल्लेख ), द्र. पञ्चमेढ्र medhra
मेद पद्म ६.६.२६(बल असुर के मेद से मरकत की उत्पत्ति का उल्लेख), ६.६.२९(बल असुर के मेद से स्फटिक की उत्पत्ति का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.७.९४(मेदाश : पौरुषेय राक्षस के ५ पुत्रों में से एक), भागवत १२.१.२७(मेद:शिरा : पुरीमान् - पुत्र, शिवस्कन्द - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक), मत्स्य १८४.३३(अविमुक्त के सिवाय भूमि के मेद से लिप्त होने का उल्लेख), योगवासिष्ठ ६.२.१५८.१९(व्याध की देह के मेद का मृदा में परिवर्तन), लक्ष्मीनारायण ३.१६३.१०५(बलासुर के मेद रूप बीज से स्फटिक की उत्पत्ति का कथन ), द्र. धनमेद meda
मेदिनी वामन ९०.३८(मेदिनी में विष्णु का चक्रपाणि नाम), वायु ६३.२/२.२.२(मधु - कैटभ के मेद से लिप्त होने के कारण पृथिवी के मेदिनी नाम की सार्थकता ) medinee/ medini
मेध द्र. नरमेध, वसुमेध
मेधा गरुड १.२१.३(सद्योजात शिव की ८ कलाओं में से एक), देवीभागवत ७.३०.७७(काश्मीर पीठ में देवी की मेधा नाम से स्थिति का उल्लेख), १२.६.१२७(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.६६.८८(श्रीधर/विष्णु की शक्ति मेधा का उल्लेख – श्रीधरो मेधया युक्तो हृषीकेशश्च हर्षया ), १.९१.८४(सद्योजात शिव की पञ्चमी कला का नाम), पद्म २.१२.९२(दुर्वासा के समक्ष प्रकट मेधा का रूप), ब्रह्मवैवर्त्त १.९.३४(मङ्गल - पत्नी, घण्टेश्वर व व्रणदाता – माता - मङ्गलस्य प्रिया मेधा तस्य घण्टेश्वरो महान्।। व्रणदाताऽतितेजस्वी विष्णुतुल्यो बभूव ह ।।), २.६२+ (राजा सुरथ व समाधि वैश्य का मेधा ऋषि के पास गमन का आख्यान), ब्रह्माण्ड १.२.९.४९(दक्ष की कन्याओं में से एक, धर्म की १३ पत्नियों में से एक), १.२.९.५९(श्रुत - माता), १.२.१३.१०४(स्वायम्भुव मनु के १० पुत्रों में से एक), १.२.१४.९(प्रियव्रत व काम्या के १० पुत्रों में से एक), १.२.३६.५८(स्वारोचिष मन्वन्तर के सुमेधस नामक देवगण में मेधा, मेधातिथि, सत्यमेधा, पृश्निमेधा, अल्पमेधा, भूयोमेधा, दीप्तिमेधा आदि का उल्लेख), ३.४.३५.९४(ब्रह्मा की कलाओं में से एक), ३.४.४४.७२(५१ वर्णों के गणेशों की शक्तियों में से एक), भागवत ४.१.५१(दक्ष - पुत्री, धर्म की पत्नियों में से एक, स्मृति – माता - मेधा स्मृतिं तितिक्षा तु क्षेमं ह्रीः प्रश्रयं सुतम् ॥), मत्स्य ९.५(स्वायम्भुव मनु के १० पुत्रों में से एक), १३.४७(काश्मीर मण्डल में देवी की मेधा नाम से स्थिति का उल्लेख), २४६.६२(वामन के विराट् रूप में मेधा इत्यादि की कटि में स्थिति का उल्लेख - लक्ष्मीर्मेधाधृतिः कान्तिः सर्वविद्याश्च वै कटिः।), मार्कण्डेय ८१.९/७८.९(सुरथ - समाधि - सुमेधा आख्यान का आरम्भ), लिङ्ग १.८१.३५(कर्णिकार कुसुम पर मेधा की स्थिति का उल्लेख - कर्णिकारस्य कुसुमे मेधा साक्षाद्व्यवस्थिता।।), वायु १०.२५(धर्म की १३ पत्नियों में से एक, दक्ष - कन्या), १०.३५(श्रुत - माता), ३१.१७(स्वायम्भुव मनु के १० पुत्रों में से एक), ३३.९(प्रियव्रत व वीरा के १० पुत्रों में से एक, अपर नाम मेधातिथि), ३९.४८(सुमेध पर्वत पर आदित्यों, रुद्रों व वसुओं - गन्धर्वों आदि के वास का कथन), ५३.२१(मेध्या : सूर्य की चन्द्र रश्मियों में से एक), विष्णु १.७.२९(धर्म - पत्नी मेधा द्वारा श्रुत को जन्म - मेधा श्रुतं क्रिया दण्डं नयं विनयमेव च ॥), २.१.७(प्रियव्रत व कर्दम - कन्या के १० पुत्रों में से एक, योगपरायण व जातिस्मर होने का उल्लेख), ३.६.१०(अथर्ववेदाचार्य देवदर्श के ४ शिष्यों में से एक), शिव ५.४५.४१+ (सुरथ राजा व समाधि वैश्य के मेधा ऋषि के पास गमन का आख्यान), स्कन्द ३.३.९.९१(सुमेध : सुमेध तथा सामवन्त नामक द्विजपुत्रों का वृत्तान्त), ५.३.१९८.८४(काश्मीर मण्डल में देवी की मेधा नाम से स्थिति), लक्ष्मीनारायण ३.३१.८४(ऋषि के शाप से अश्व बने वर्मधर नृप की मुक्ति के लिए मेध नारायण तथा मेधावती लक्ष्मी का अवतार), कथासरित् ८.५.५५(मेधावर : दुन्दुभि पर्वतराज, श्रुतशर्मा नामक विद्याधर के ८ महारथियों में से एक ), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.२१टीका(सावित्री मेधा रूपा, गायत्री ज्ञानरूपा, सरस्वती प्रज्ञारूपा), द्र. दक्ष - कन्याएं, प्रमेधा, सुमेधा medhaa
मेधातिथि अग्नि १०७(प्रियव्रत के १० पुत्रों में से एक), ११९(प्लक्ष द्वीप का स्वामी, ७ पुत्रों के नाम), गरुड १.५६(प्लक्ष द्वीप का स्वामी, ७ पुत्रों के नाम), देवीभागवत १.३.३०(१७वें द्वापर में व्यास), ८.४.५(प्रियव्रत व बर्हिष्मती के १० पुत्रों में से एक, शाकद्वीप का स्वामी), ८.१३.१९(मेधातिथि के ७ पुत्रों के नाम), ब्रह्माण्ड १.२.१३.१०४(स्वायम्भुव मनु के १० पुत्रों में से एक), १.२.१४.९(प्रियव्रत व काम्या के १० पुत्रों में से एक, प्लक्ष द्वीप का अधिपति), १.२.१४.३५(प्लक्ष द्वीप के स्वामी मेधातिथि के ७ पुत्रों के नाम), १.२.३०.३९(तप से स्वर्ग प्राप्त करने वालों में से एक), १.२.३६.५८(सुमेधा गण के देवों में से एक), ३.४.१.६२ (रोहित मन्वन्तर के सप्तर्षियों में पौलस्त्य मेधातिथि का उल्लेख), भागवत ५.१.२५(प्रियव्रत व बर्हिष्मती के १० पुत्रों में से एक, अग्नि के नामों में से एक), ५.२०.२५(शाकद्वीप का स्वामी, ७ वर्षों के अधिपति ७ पुत्रों के नाम), ९.२०.७(कण्व - पुत्र, प्रस्कण्व आदि द्विजातियों के पिता), मत्स्य ९.५(स्वायम्भुव मनु के १० पुत्रों में से एक), ४९.४७(कण्व - पुत्र मेधातिथि से काण्वायन ब्राह्मणों की उत्पत्ति), १४३.३८(तप से स्वर्ग प्राप्त करने वाले राजर्षियों में से एक), वराह १८९.२६(राजा, अनुचित श्राद्ध से पितरों को कष्ट), वायु ९९.१३०/२.३७.१२७(कण्ठ - पुत्र, काण्ठायन द्विजों का मूल पुरुष), ९९.१६९/२.३७.१६५(कण्ठ - पुत्र, कण्ठायन द्विजों का मूल पुरुष), विष्णु २.१.७(प्रियव्रत के १० पुत्रों में से एक, प्लक्ष द्वीप का अधिपति), ३.२.२३(दक्ष सावर्णि संज्ञक नवम मनु के काल में सप्तर्षियों में से एक), ४.१९.६(कण्व - पुत्र, कण्वायन द्विजों का मूल पुरुष), शिव २.२.५.९(सन्ध्या द्वारा मेधातिथि - पुत्री अरुन्धती बनकर वसिष्ठ को प्राप्त करने का कथन), २.२.६.५०(सन्ध्या द्वारा मेधातिथि की यज्ञ की अग्नि में शरीर त्याग कर मेधातिथि - पुत्री बनने का कथन), २.२.७.१(सन्ध्या द्वारा मेधातिथि की यज्ञाग्नि में शरीर त्याग कर मेधातिथि की पुत्री बनने का वृत्तान्त), स्कन्द १.२.६.१११(मेधातिथि गौतम : चिरकारी - पिता, भार्या के वध के प्रयास का प्रसंग), लक्ष्मीनारायण १.१९८.६३(ब्रह्मा - पुत्री सन्ध्या द्वारा तप करके स्वतनु का त्याग, मेधातिथि की पुत्री बनकर वसिष्ठ को पति रूप में प्राप्त करने का कथन), १.३१४.१०९(कामदोष से विकृत सन्ध्या का मेधातिथि के यज्ञ की सूक्ष्म अग्नि में प्रविष्ट होकर शुद्ध होना तथा अनेक रूप धारण करना, एक रूप में मेधातिथि की पालिता पुत्री होकर वसिष्ठ - पत्नी अरुन्धती बनना), १.३५६.२८(कुपात्र को श्राद्धान्न देने के कुपरिणाम के संदर्भ में राजा मेधातिथि द्वारा पापी ब्राह्मण को श्राद्धान्न देने से पितरों के पतन का दृष्टान्त ), द्र. मन्वन्तर medhaatithi/ medhatithi
मेधावी गर्ग ६.१४.७(गौतम - पुत्र, ऋषि के शाप से श्रीशैल - पुत्र बनना, रैवतक नाम की प्राप्ति), ७.१०.१(कोङ्कण देश के राजा मेधावी का प्रद्युम्न - सेनानी गद से युद्ध व पराजय), पद्म ६.४६.९(च्यवन - पुत्र, मञ्जुघोषा अप्सरा पर आसक्ति से पाप की प्राप्ति), भविष्य ३.२.१८.१६(काश्मीरस्थ ब्राह्मण मेधावी द्वारा मोहिनी की प्रहेलिका का उत्तर देने पर मोहिनी को गर्भ प्रदान करके स्वर्ण ग्रहण), ३.४.८.५८(मेधावी मुनि व मञ्जुघोषा वेश्या से भगशर्मा की उत्पत्ति), भागवत ९.२२.४२(सुनय - पुत्र, नृपञ्जय - पिता, परीक्षित् वंश - परिप्लवः सुतस्तस्मात् मेधावी सुनयात्मजः । नृपञ्जयस्ततो दूर्वः तिमिः तस्मात् जनिष्यति ॥ ), वायु ९९.२७६/ २.३७.२७२ (सुनय - पुत्र, दण्डपाणि - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक - मेधावी सुनयस्याथ भविष्यति नराधिपः। मेधाविनः सुतश्चापि दण्डपाणिर्भविष्यति ।।), विष्णु ४.२१.१२(सुनय - पुत्र, रिपुञ्जय - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक), स्कन्द २.४.२ टीका(गौतम - शिष्य, गुरु की सेवा से अमरता की प्राप्ति ), महाभारत शान्ति २७७ (मेधावी नामक पुत्र का मेधावी पिता के साथ संसार की अनित्यता विषयक वार्तालाप), लक्ष्मीनारायण १.२४६.५३(चैत्र कृष्ण पापमोचनिका एकादशी माहात्म्य के संदर्भ में मञ्जुघोषा अप्सरा व मेधावी ऋषि का आख्यान), १.३२०.४५(श्री- सुता सुदुघा का मेधावी विप्र की कन्या के रूप में जन्म ) medhaavee/ medhavi
मेनका देवीभागवत २.८.४५(मेनका अप्सरा द्वारा विश्वावसु से धारित गर्भ का स्थूलकेश के आश्रम में विसर्जन, प्रमद्वरा नामक कन्या का जन्म, स्थूलकेश द्वारा पालन), पद्म २.३(विष्णुशर्मा के इन्द्रलोक के प्रति गमन करने पर भयभीत इन्द्र द्वारा विघ्न उपस्थित करने हेतु मेनका का प्रेषण, मेनका की पराजय), २.८१(इन्द्र द्वारा ययाति को स्वर्ग में लाने के लिए ययाति के पास मेनका का प्रेषण), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१७.३६(पितरों की तीन मानसी कन्याओं में से एक, हिमालय - भार्या, पार्वती - माता), ४.६२.४२(मेना के शाप से कुबेर के रूपहीन होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.२३.६(शुचि व शुक्र मासों में सूर्य रथ पर सहजन्या व मेनका की स्थिति का उल्लेख), २.३.७.१४(१४ ब्रह्मवादिनी अप्सराओं के गण में से एक, मेन - पुत्री), भविष्य ३.२.४.१८(मदनमञ्जरी नामक मेना/मेनका को राजा द्वारा चूडामणि शुक के साथ विवाह का परामर्श, मेनका द्वारा पुरुषों के दोषों का कथन करते हुए विवाह की अस्वीकृति), भागवत ९.२०.१३(मेनका व विश्वामित्र - कन्या शकुन्तला का प्रसंग, मेनका द्वारा त्याग पर कण्व द्वारा शकुन्तला का पालन), १२.११.३५(शुक्र/ज्येष्ठ मास में सूर्य रथ पर मेनका अप्सरा की स्थिति का उल्लेख), मत्स्य ५०.७(विन्ध्याश्व - भार्या, दिवोदास व अहल्या - माता, पूरु वंश), १२६.७(शुचि व शुक्र मासों में सूर्य रथ पर मेनका व सहजन्या अप्सराओं की स्थिति का उल्लेख), १७९.२०(अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), वायु ५२.७(शुचि व शुक्र मासों में सूर्य रथ पर मेनका व सहजन्या की स्थिति का उल्लेख), ९९.२००/२.३७.१९५(बध्यश्व व मेनका से दिवोदास व अहल्या की उत्पत्ति का उल्लेख), स्कन्द ५.१.११(विद्याधर द्वारा मेनका के नृत्य में विघ्न पर शक्र द्वारा विद्याधर को शाप), ६.४२+ (मेनका द्वारा विश्वामित्र से प्रणय की याचना, अस्वीकृति पर जरा प्राप्ति का शाप - प्रतिशाप, कुण्ड में स्नान से मुक्ति), ७.४.१७.१३(भगवत्परिचारक वर्ग के अन्तर्गत पूर्व दिशा के रक्षकों में से एक), हरिवंश १.३२.३१(वध्यश्व व मेनका से दिवोदास व अहल्या का जन्म), वा.रामायण १.६३(मेनका द्वारा पश्चिम् दिशा में तपोरत विश्वामित्र के तप में विघ्न), लक्ष्मीनारायण १.४८६.२(मृगी द्वारा नागमती नदी में प्राण त्याग से मेनका अप्सरा बनना, विश्वामित्र द्वारा मेनका को धर्मोपदेश, विश्वामित्र द्वारा मेनका की कामभोग की याचना की अस्वीकृति पर परस्पर शाप आदि), २.१११.६०(श्याम देश में गङ्गा के मेनकाङ्गा नाम से निवास का उल्लेख, पितरों की कन्याओं में से एक ?), कथासरित् २.६.७७(किसी विद्याधर व मेनका अप्सरा से प्रमद्वरा कन्या की उत्पत्ति), ६.६.१००(तपोरत मङ्कणक ऋषि द्वारा मेनका के दर्शन, वीर्यक्षरण से कदलीगर्भा नामक कन्या की उत्पत्ति), १२.२७.३३(राजा चन्द्रावलोक द्वारा कण्व व मेनका - पुत्री इन्दीवरप्रभा का दर्शन, कण्व से कन्या प्राप्ति की याचना, कण्व द्वारा प्रदान ) menakaa
मेना ब्रह्म १.३२.८१(हिमवान् द्वारा तप, ब्रह्मा द्वारा वर प्रदान, वर स्वरूप मेना में अपर्णा, एकपर्णा तथा एकपाटला की उत्पत्ति), ब्रह्मवैवर्त्त ४.३९.१४(मेना द्वारा शिव का सत्कार, शिव का सुन्दर रूप देखकर तुष्टि, यत्र तत्र मेना का मेनका नाम), ब्रह्माण्ड १.२.१३.३०(अग्निष्वात्त पितरों की मानसी कन्या, हिमवान् - पत्नी, मैनाक व गङ्गा - माता), २.३.९.२(मेना कन्या के पितरों की प्रकृति के सम्बन्ध में प्रश्न), २.३.१०.६(वैराज पितरों की कन्या मेना की ३ कन्याओं अपर्णा आदि तथा पुत्र मैनाक का प्रसंग), भविष्य ३.४.१४.३१(अर्यमा - कन्या, हिमवान् को प्रदान- अर्यमा तु तदा तुष्टो ददौ तस्मै सुता निजाम् । । मेनां मनोहरां शुद्धां स दृष्ट्वा हर्षितोऽभवत् ।।), मत्स्य १३.८(अमूर्त्त पितरों की मानसी कन्या, हिमवान् - भार्या, मैनाक तथा उमा, एकपर्णा व अपर्णा - माता), १५४.१३१(हिमवान् - भार्या, नारद मुनि का सत्कार, पार्वती के भविष्य के विषय में प्रश्न), वामन २१(अग्निष्वात्त पितरों की कन्या), ५१(हिमवान् - भार्या, रागिनी, कुटिला तथा काली/उमा नामक तीन कन्याओं और सुनाभ नामक एक पुत्र की माता), वायु ३०.२९(अग्निष्वात्त पितरों की कन्या, हिमवान् - पत्नी), ७२.७(वैराज पितरों की कन्या, हिमवान् - पत्नी ; मैनाक, अपर्णा, एकपर्णा आदि की माता), विष्णु १.१०.१९(स्वधा व पितरों की २ ब्रह्मवादिनी कन्याओं में से एक), शिव २.३.१.२४(पितरों की कन्या, हिमालय से विवाह, पार्वती की माता - मेना नाम सुता या वो ज्येष्ठा मङ्गलरूपिणी । ताम्विवाह्य च सुप्रीत्या हिमाख्येन महीभृता ।।), २.३.२.७ (मेना आदि पितर - कन्याओं को सनकादि का शाप, पुन: शाप का मोचन - मेनानाम्नी सुता ज्येष्ठा मध्या धन्या कलावती। अन्त्या एतास्सुतास्सर्वाः पितॄणाम्मानसोद्भवाः ।।), ७.१.१७.४९(, स्कन्द १.१.२०(मेना द्वारा गर्भ में गौरी को धारण करना), १.२.२२.४५(ब्रह्मा की प्रार्थना पर विभावरी देवी का मेना के नेत्रों में प्रवेश, जगदम्बा का जन्म), हरिवंश १.१८(पितरों की कन्या, हिमालय - पत्नी, तीन पुत्रियों के नाम), लक्ष्मीनारायण १.१७९.१७(पितरों व स्वधा की तीन कन्याओं में से एक, सनत्कुमार से शाप प्राप्ति, हिमालय की पत्नी बनकर काली आदि ४ सन्तानों की माता बनना), १.१८०.३२(हिमालय व मेनका द्वारा तप, मेनका द्वारा पार्वती से १०० पुत्रों तथा ३ पुत्रियों की माता बनने के वर की प्राप्ति, मैनाक आदि पुत्रों तथा काली आदि कन्याओं को जन्म देना), १.१८८.५५(शिव द्वारा विप्र रूप धारण कर हिमालय व मेना के समक्ष शिव के अवगुणों का व्याख्यान करना, अवगुण सुनकर हिमालय व मेना द्वारा पार्वती का शिव से विवाह न करने का निश्चय), १.२९८(पितरों की मेना आदि ३ कन्याओं द्वारा विष्णु को जामाता रूप में प्राप्त करने का निश्चय, मेना द्वारा शिव को जामाता रूप में प्राप्त करना), १.३७९(मेना द्वारा विवाह के पश्चात् पार्वती को पति सेवा रूपी धर्म का उपदेश ), १.३८५.४४(मेना का कार्य : कर्ण भूषण), menaa
मेरु अग्नि १०७.११(नाभि - पत्नी, ऋषभ – माता - नाधमं मध्यमन्तुल्या हिमाद्देशात्तु नाभितः ॥ ऋषभो मेरुदेव्याञ्च ऋषभाद्भरतोऽभवत् ।), १०८.३(मेरु पर्वत के विस्तार का कथन ; मेरु के परित: पर्वतों का विन्यास), २१०(दस मेरुओं के निर्माण व दान का वर्णन - धान्यद्रोणसहस्रेण उत्तमोऽर्धार्धतः परौ । उत्तमः षोडशद्रोणः कर्तव्यो लवणाचलः ॥), २१२(१२ प्रकार के मेरुओं के दान का वर्णन, मेरु के परित: पर्वतों का विन्यास - माल्यवान् पूर्वतः पूज्यस्तत्पूर्वे भद्रसञ्ज्ञितः । अश्वरक्षस्ततः प्रोक्तो निषधो मेरुदक्षिणे ॥), कूर्म १.४.४०(हिरण्यगर्भ अण्ड के उल्ब/वेष्टन का रूप), १.१३(धारिणी - पति, आयति व नियति कन्याओं का पिता), १.४५(मेरु पर्वत की जम्बू द्वीप में स्थिति, मेरु के परित: स्थित पर्वतों व वर्षों का विन्यास), देवीभागवत ८.६(मेरु - मन्दर पर्वत : सुमेरु पर्वत का एक स्तम्भ, जम्बू वृक्ष का स्थान), पद्म १.१५.३(मेरु के शिखर पर स्थित वैराज नामक भवन में विराजित ब्रह्मा का जगत्कर्त्ता तथा यज्ञ विषयक विचार), १.२१.११०(मेरु निर्माण व दान विधि), २.२६.६(दिति द्वारा कश्यप से इन्द्र वधार्थ पुत्र की प्रार्थना, दिति का कश्यप के साथ तप हेतु मेरु तपोवन में गमन), २.३१.१९(अत्रि के उपदेश से अङ्ग का इन्द्र सदृश पुत्र प्राप्ति हेतु तप करणार्थ मेरु पर्वत पर गमन), ३.३+ (मेरु पर्वत का वर्णन), ६.२३८.१०४(नृसिंह के कण्ठ में मेरु होने का उल्लेख - दंष्ट्रासु सिंहशार्दूलाः शरभाश्च महोरगाः। कंठे च दृश्यते मेरुः स्कंधेष्वपि महाद्रयः॥), ब्रह्म १.१६.१३( जम्बू द्वीप के मध्य में स्थित व भूपद्म के कर्णिकाकार रूप मेरु पर्वत के विस्तार तथा मेरु के परित: स्थित वर्ष पर्वतों व वर्षों का कथन - भूपद्मस्यास्य शैलोऽसौ कर्णिकाकारसस्थिंतः॥ ), १.१६.४५(माल्यवान् व गन्धमादन के मध्य कर्णिकाकार स्थित पर्वत - आनीलनिषधायामौ माल्यवद्गन्धमादनौ॥ तयोर्मध्यगतो मेरुः कर्णिकाकारसंस्थितः।), ब्रह्माण्ड १.१.३.२८(हिरण्मय मेरु के उत्थान का कथन : मेरु का हिरण्यगर्भ से तादात्म्य),१.२.७.१४२(सुमेरु पर्वत का पृथिवी दोहन में वत्स बनना), १.२.१३.३६(धारिणी - पति, मन्दर व ३ कन्याओं का पिता), १.२.१५.१६(मेरु पर्वत की ४ दिशाओं में ब्राह्मण आदि ४ वर्णों का समावेश, महामेरु के परित: इलावृत की स्थिति आदि का कथन - पार्श्वमुत्तरतस्तस्य रक्तवर्णः स्वभावतः ।। तेनास्य क्षत्र्रभावस्तु मेरोर्नानार्थकारणात् ।। ), १.२.१७.१४(मेरु के परित: पर्वतों के नाम), १.२.२१.१४(मेरु के मध्य से पृथिवी के मण्डल के विस्तार की गणना), भागवत ४.१.४४(मेरु ऋषि द्वारा अपनी आयति और नियति कन्याओं का क्रमश: धाता व विधाता से विवाह), मत्स्य ८३.४(मेरु पर्वत दान व मेरु के १० भेदों का वर्णन - प्रथमो धान्यशैलः स्याद् द्वितीयो लवणाचलः।। गुड़ाचलस्तृतीयस्तु चतुर्थो हेमपर्वतः।..), ११३.१३(मेरु पर्वत : चारों वर्णों का समन्वय - पर्वतः श्वेतवर्णस्तु ब्राह्मण्यं तस्य तेन वै।। पीतश्च दक्षिणेनासौ तेन वैश्यत्वमिष्यते।), मार्कण्डेय ५५(मेरु की उत्तर दिशा के नग), लिङ्ग १.४८(भारतवर्ष के मध्य में स्थित मेरु के स्वरूप का वर्णन), १.४९.२५(मेरु की चार दिशाओं में ४ पाद रूपी पर्वतों के नाम), वराह ७५(सुमेरु का वर्णन), १४१.३२(मेरु तीर्थ, मेरु धारा में स्नान का माहात्म्य), वायु २३.२२१/१.२३.२१० (२८वें द्वापर में शिव अवतार द्वारा मेरु गुहा में प्रविष्ट होकर नकुली नाम से प्रख्यात होने का कथन), ३४.१५(ब्राह्मण आदि चार वर्णों का संघात - पूर्व्वतः श्वेतवर्णोऽसौ ब्रह्मण्यस्तस्य तेन तत्। पीतश्च दक्षिणेनासौ तेन वैश्यत्वमिष्यते ।।), ५०.८७(मेरु के परित: पुरों का विन्यास), ६८.१५/२.७.१५(दनु व कश्यप के मनुष्य धर्मा दानव पुत्रों में से एक), विष्णु १.१०.३(मेरु की २ कन्याओं आयति व नियति का धाता व विधाता से विवाह, भृगु वंश), २.१.२०(आग्नीध्र - पुत्र इलावृत द्वारा मध्यम वर्ष मेरु की प्राप्ति, मेरु के परित: स्थित वर्षों की अन्य पुत्रों द्वारा प्राप्ति), २.२.३९(मेरु के परित: मर्यादा पर्वतों का विन्यास), २.८.१९(मेरु के ऊपर अमर गिरि पर ब्रह्मा की सभा की स्थिति का कथन), ५.१.१२(भार से पीडित होने पर भूमि के मेरु पर स्थित देवों के समाज में जाने का उल्लेख), शिव ७.१.१७.५१(धरणी - पति, मन्दर - पिता), ७.२.४०.३७ (दक्षिण मेरु का महत्त्व : सनत्कुमार के तप का स्थान आदि), स्कन्द २.३.८ (बदरी आश्रम में तीर्थ), ५.३.२८.१६(त्रिपुर वध हेतु तैयार शिव रथ के युगमध्य में मेरु की स्थिति - युगमध्ये स्थितो मेरुर्युगस्याधो महागिरिः ॥ ), ६.२७१.४३२ (इन्द्रद्युम्न द्वारा हेममय मेरु दान का कथन - देयो हेममयो मेरुः कैलासो रजतोद्भवः ॥ कार्प्पासेन हिमाद्रिस्तु गुडजो गंधमादनः ॥), ७.१.१७.१००(मेरु शृङ्ग पूजा के मन्त्र - महाहिवोमहायेति नानापुष्पकदंबकैः ॥ त्रातारमिंद्रमंत्रेण पूर्वशृंगं सदार्चयेत् ॥.. ), ७.१.२४.५७(प्रासाद का नाम), हरिवंश ३.१७.८(मेरु शिखर के विस्तार का वर्णन), योगवासिष्ठ १.२५.२३(नियति के कर्ण में कुण्डल का रूप - अपरे च महामेरुः कान्ता काञ्चनकर्णिका ।।), ३.८१.१०५(बिसतन्तु की महामेरु से उपमा - बिसतन्तुर्महामेरुः परमाणोरपेक्षया । दृश्यं किल विशेत्तन्तुरदृश्याक्ष्णा पराणुता ।।.. ), ६.१.१४(मेरु शिखर का वर्णन), ६.१.८१.४५(कुण्डलिनी शक्ति का पूरण करने पर मेरु के स्थैर्य की प्राप्ति का कथन - तां यदा पूरकाभ्यासादापूर्य स्थीयते समम् । तदैति मैरवं स्थैर्यं कायस्यापीनता तथा ।। ), वा.रामायण ७.५.१०(सुकेश - पुत्रों माल्यवान्, माली तथा सुमाली की मेरु पर्वत पर तपस्या, ब्रह्मा से वर प्राप्ति), लक्ष्मीनारायण १.२०९.१(मेरु तीर्थ का माहात्म्य : मेरु के शृङ्गों का सूक्ष्म रूप में श्रीहरि के वास स्थान विशाला पुरी में स्थापित होना आदि), १.२०९.२०(मेरु पर दण्डपुष्करिणी की उत्पत्ति व माहात्म्य), १.३८२.१८६(मेरु-भामिनी धरणी का उल्लेख), २.१४०.७(मेरु संज्ञक प्रासाद के लक्षण), २.१४१.२(ज्येष्ठ, मध्यम व कनिष्ठ मेरु नामक प्रासादों के लक्षणों का वर्णन - एकाऽधिकसहस्राण्डो द्वासप्ततितलान्वितः । ज्येष्ठमेर्वाख्य एवाऽसौ मतः सर्वोत्तमोत्तमः ।।), २.१४१.५०(लक्ष्मीकोटर मेरु, कैलासमेरु, विमानमेरु, गन्धमादन मेरु, तिलकमेरु, सुन्दर मेरु आदि प्रासादों के लक्षण), ३.३.३७(१४ स्तरों वाले मेरु के अतिभार से रसातल में धंसने पर मेरु के उद्धार हेतु मेरुनारायण अवतार का कथन - चतुर्दशस्तराणां वै भारेण महता तदा । आक्रान्तोऽभूत्तदा पातालाऽधो विवेश वै मनाक् ।।), ३.३३.५६( हिरण्य नामक संवत्सर में पृथिवी पर पर्वतों द्वारा मेरु के समीप स्थित होने की स्पर्द्धा के कारण पर्वतों की अस्थिरता, इन्द्र द्वारा पर्वतों में अनुशासन की स्थापना करने में असफलता, विष्णु द्वारा हिरण्य नारायण रूप में पर्वतों पर स्थित होने पर पर्वतों का स्थिर होना - अहं मेरोः सन्निधाने निवत्स्यामि न दूरतः । अहं चाऽह तथेत्येवमन्योन्येषां विवादनम् ।।), ४.२.११(राजा बदर के मेरु नामक विमान का उल्लेख), कथासरित् १७.५.९(देवसभ नगर के चक्रवर्ती सम्राट् मेरुध्वज द्वारा इन्द्र के परामर्श पर शिवाराधन के फलस्वरूप मुक्ताफलध्वज व मलयध्वज नामक पुत्रों की प्राप्ति ), द्र. वंश भृगु, सुमेरु meru
मेरु-सुवर्णमय शिखरों से सुशोभित एक दिव्य पर्वत, जो ऊपर से नीचे तक सोने का ही माना जाता है, यह तेज का महान् पुञ्ज है और अपने शिखरों से सूर्य की प्रभा को भी तिरस्कृत किये देता है । इस पर देवता और गन्धर्व निवास करते हैं । इसका कोई माप नहीं है । मेरु पर सब ओर भयंकर सर्प भरे पड़े हुए हैं। दिव्य ओषधियाँ इसे प्रकाशित करती रहती हैं । यह महान् पर्वत अपनी ऊँचाई से स्वर्गलोक को घेरकर खड़ा है। वहाँ किसी समय देवताओं ने अमृत-प्राप्ति के लिये परामर्श किया था, इस पर्वत पर भगवान् नारायण ने ब्रह्माजी से कहा था कि देवता और असुर मिलकर महासागर का मन्थन करें, इससे अमृत प्रकट होगा (आदि. १७ । ५-१३)। इसी मेरु पर्वत के पार्श्वभाग में वसिष्ठजी का आश्रम है ( आदि. ९९ । ६)। यह दिव्य पर्वत अपने चिन्मय स्वरूप से कुबेर की सभा में उपस्थित हो उनकी उपासना करता है (सभा० १०।३३) । यह पर्वत इलावृतखण्ड के मध्यभाग में स्थित है। मेरु के चारों ओर मण्डलाकार इलावृतवर्ष बसा हुआ है । दिव्य सुवर्णमय महामेरु गिरि में चार प्रकार के रंग दिखायी पड़ते हैं। यहाँ तक पहुँचना किसी के लिये भी अत्यन्त कठिन है । इसकी लंबाई एक लाख योजन है । इसके दक्षिण भाग में विशाल जम्बूवृक्ष है; जिसके कारण इस विशाल द्वीप को जम्बूद्वीप कहते हैं ( सभा० २८ । ६ के बाद दा० पाठ) पृष्ठ ७४०)। अत्यन्त प्रकाशमान महामेरु पर्वत उत्तर दिशा को उद्भासित करता हुआ खड़ा है । इस पर ब्रह्मवेत्ताओं की ही पहुँच हो सकती है । इसी पर्वत पर ब्रह्माजी की सभा है, जहाँ समस्त प्राणियों की सृष्टि करते हुए ब्रह्माजी निवास करते हैं । ब्रह्माजी के मानस पुत्रों का निवासस्थान भी मेरु पर्वत ही है । वसिष्ठ आदि सप्तर्षि भी यहीं उदित और प्रतिष्ठित होते हैं । मेरु का उत्तम शिखर रजोगुण से रहित है । इस पर आत्मतृप्त देवताओं के साथ पितामह ब्रह्मा रहते हैं । यहाँ ब्रह्मलोक से भी ऊपर भगवान् नारायण का उत्तम स्थान प्रकाशित होता है । परमात्मा विष्णु का यह धाम सूर्य और अग्नि से भी अधिक तेजस्वी है तथा अपनी ही प्रभा से प्रकाशित होता है । पूर्व दिशा में मेरु पर्वत पर ही भगवान् नारायणका स्थान सुशोभित होता है । यहाँ यत्नशील ज्ञानी महात्माओं की ही पहुँच हो सकती है । उस नारायणधाम में ब्रह्मर्षियों की भी गति नहीं है, फिर महर्षियों की तो बात ही क्या है । भक्ति के प्रभाव से ही यत्नशील महात्मा यहाँ भगवान् नारायण को प्राप्त होते हैं । यहाँ जाकर मनुष्य फिर इस लोक में नहीं लौटते हैं । यह परमेश्वर का नित्य अविनाशी और अविकारी स्थान है। नक्षत्रोंसहित सूर्य और चन्द्रमा प्रतिदिन निश्चल मेरुगिरि की प्रदक्षिणा करते रहते हैं । अस्ताचल को पहुँचकर संध्याकाल की सीमा को लाँघकर भगवान् सूर्य उत्तर दिशा का आश्रय लेते हैं। फिर मेरुपर्वत का अनुसरण करके उत्तर दिशा की सीमा तक पहुँचकर समस्त प्राणियोंके हित में तत्पर रहनेवाले सूर्य पुनः पूर्वाभिमुख होकर चलते हैं (वन० १६३ । १२-४२)। माल्यवान् और गन्धमादन - इन दोनों पर्वतों के बीच में मण्डलाकार सुवर्णमय मेरुपर्वत है। इसकी ऊँचाई चौरासी हजार योजन है। नीचे भी चौरासी हजार योजन तक पृथ्वी के भीतर घुसा हुआ है । इसके पार्श्व भाग में चार द्वीप हैं-भद्राश्व, केतुमाल, जम्बूद्वीप और उत्तरकुरु । इस पर्वत के शिखर पर ब्रह्मा, रुद्र और इन्द्र एकत्र हो नाना प्रकार के यज्ञों का अनुष्ठान करते हैं । उस समय तुम्बुरु, नारद, विश्वावसु आदि गन्धर्व यहाँ आकर इसकी स्तुति करते हैं । महात्मा सप्तर्षिगण तथा प्रजापति कश्यप प्रत्येक पर्व के दिन इस पर्वत पर पधारते हैं । दैत्योंसहित शुक्राचार्य मेरु पर्वत के ही शिखर पर निवास करते हैं। यहाँ के सब रत्न और रत्नमय पर्वत उन्हीं के अधिकार में हैं । भगवान् कुबेर उन्हीं से धन का चतुर्थ भाग प्राप्त करके उसका सदुपयोग करते हैं । सुमेरु पर्वत के उत्तर भाग में दिव्य एवं रमणीय कर्णिकार वन है । वहाँ भगवान् शंकर कनेर की दिव्य माला धारण करके भगवती उमा के साथ विहार करते हैं। इस पर्वत के शिखर से दुग्ध के समान श्वेत धारवाली पुण्यमयी भागीरथी गङ्गा बड़े वेग से चन्द्रह्रद में गिरती हैं। मेरु के पश्चिम भाग में केतुमाल वर्ष है, जहाँ जम्बूखण्ड नामक प्रदेश है । वहाँ के निवासियों की आयु दस हजार वर्षों की होती है । वहाँ के पुरुष सुवर्ण के समान कान्तिमान् और स्त्रियाँ अप्सराओं के समान सुन्दरी होती हैं। उन्हें कभी रोग-शोक नहीं होते । उनका चित्त सदा प्रसन्न रहता है ( भीष्म०६।१०-३३)। पर्वतों द्वारा पृथ्वीदोहन के समय यह मेरु पर्वत दोग्धा (दुहनेवाला ) बना था - उदयः पर्वतो वत्सो मेरुर्दोग्धा महागिरिः। रत्नान्योषधयो दुग्धं पात्रमस्तमयं तथा।। (द्रोण० ६९ । १८)। त्रिपुर-दाह के लिये जाते हुए भगवान् शिव ने मेरु पर्वत को अपने रथ की ध्वजा का दण्ड बनाया था - विद्युत्कृत्वाऽथ निश्राणं मेरुं कृत्वाऽथ वै ध्वजम्। आरुह्य स रथं दिव्यं सर्वदेवमयं शिवः।। (द्रोण. २०२ । ७८)। मेरु ने स्कन्द को काञ्चन और मेघमाली नामक दो पार्षद प्रदान किये (शल्य० ४५ । ४८-४९)। इसने पृथु को सुवर्णराशि दी थी (शान्ति० ५९ । १-९)। यह पर्वतों का राजा बनाया गया था (शान्ति० २२२ । २८)। व्यासजी अपने शिष्यों के साथ मेरु पर्वत पर निवास करते हैं (शान्ति० ३४१ । २२-२३)। स्थूलशिरा और बड़वामुख ने यहाँ तपस्या की थी (शान्ति० ३४२ । ५९-६०)।
मेरुप्रभ-द्वारकापुरी के दक्षिणवर्ती लतावेष्ट पर्वत को घेरकर सुशोमित होनेवाले तीन वनों से एक । शेष दो तालवन और पुष्पकवन थे। यह महान् वन बड़ी शोभा पाता था ( सभा० ३८ । २९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ८१३, कालम १)।
मेरुभूत-एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । ४८)।
मेरुव्रज-एक नगरी, जो राक्षसराज विरूपाक्ष की राजधानी थी (शान्ति० १७० । १९)।
मेरुसावर्णि ( मेरुसावर्ण)-एक ऋषि, जिन्होंने हिमालय पर्वत पर युधिष्ठिर को धर्म और ज्ञान का उपदेश दिया था (सभा० ७८ । १४ )। ये अत्यन्त तपस्वी, जितेन्द्रिय और तीनों लोकों में विख्यात हैं (अनु० १५० । ४४-४५)।
मेरुदेवी ब्रह्माण्ड १.२.१४.५९(नाभि व मेरुदेवी से ऋषभ पुत्र के जन्म का उल्लेख), भागवत ५.३.१(पुत्र प्राप्ति हेतु नाभि द्वारा यज्ञपुरुष के यजन का कथन), ५.३.२०(नाभि - पत्नी मेरुदेवी के भगवदवतार ऋषभदेव की माता बनने का कथन ) merudevee/ merudevi
मेरुसावर्णि ब्रह्माण्ड ३.४.१.५५(दक्ष - पुत्र मेरुसावर्णि के काल के मेरुसावर्णि - पुत्रों, देवों व सप्तर्षियों आदि के नाम), मत्स्य ९.३६(ब्रह्म - पुत्र, अन्तिम मनु), वायु १००.५९/२.३८.५९(दक्ष - पुत्र मेरुसावर्णि के मन्वन्तर काल के मेरु - पुत्रों, देवों व सप्तर्षियों आदि के नाम), वा.रामायण ४.५१.१६(हेमा के भवन की रक्षक मेरुसावर्णि - पुत्री स्वयंप्रभा का प्रसंग ) merusaavarni/ merusavarni
मेष नारद १.६६.११५(मेषेश की शक्ति तर्जनी का उल्लेख), पद्म २.३७.३६(सौत्रामणी में मेष हनन का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.१०.४८ (शंभु द्वारा स्कन्द को मेष भेंट का उल्लेख), ३.४.४४.५३(लिपि न्यास के प्रसंग में एक व्यञ्जन प? के देवता), भविष्य १.१३८.४०(पावक की मेष ध्वज का उल्लेख), ३.४.११.५८(वसुशर्मा द्विज द्वारा मेष प्रदान से रुद्र के प्रसन्न होने का कथन), ४.११८.९(इल्वल व वातापि की कथा में वातापि के मेष बनने आदि का वृत्तान्त), ४.१६३(मेषी दान विधि), मत्स्य ६.३३(ताम्रा - पुत्री सुग्रीवी से अज, अश्व, मेष, उष्ट्र व खरों की उत्पत्ति का उल्लेख), १४६.६४(तपोरत वज्राङ्ग - पत्नी वराङ्गी को भयभीत करने के लिए इन्द्र द्वारा धारित रूपों में से एक), १४८.५५(शुम्भ असुर के कालशुक्लमहामेष वाहन का कथन), १९९.२(मेषकीरिटकायन : मरीचि कश्यप कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक), १९९.७(मेषप : मरीचि कश्यप कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक), वायु ५०.१९५(मेषान्त व तुलान्त में भास्करोदय से अह व रात्रि मान १५ मुहूर्त्त होने का उल्लेख), १०५.४६/२.४३.४४(गया में पिण्ड दान के लिए सूर्य की प्रशस्त राशियों में से एक), स्कन्द १.२.१६.१९(तारक - सेनानी मेष दैत्य के राक्षस ध्वज का उल्लेख), १.२.१६.२४(मेष के रथ के द्वीपि वाहन का उल्लेख), ४.२.९८.३८(मेष कुक्कुट मण्डप : कैवल्य मण्डप का द्वापर में नाम), ७.१.२८५.१०(वातापि दैत्य द्वारा मेष रूप धारण कर द्विजों को त्रास, अगस्त्य द्वारा मेष रूप वातापि का भक्षण), महाभारत अनुशासन ८४.४७(मेष के वरुण का अंश होने का उल्लेख?), योगवासिष्ठ ५.५३.२८(अहंकार का रूप), वा.रामायण १.४९.६(इन्द्र को मेष के वृषण से युक्त करने की कथा), लक्ष्मीनारायण २.५.३३(मेषन : बालकृष्ण को मारने का प्रयास करने वाले दैत्यों में से एक, षष्ठी द्वारा वध), २.१९.४२(मेषी राशि के स्वरूप/लक्षणों का कथन), २.१२१.९६ (राशियों के संदर्भ में मेषायन महर्षि को ब्रह्मा द्वारा अ ल इ वर्ण देने का उल्लेख), ३.१०२.६६(मेष की वरुण से उत्पत्ति?), ३.१३१.८(आग्नेयी शक्ति के मेष वाहन का उल्लेख ) mesha
मेहन लक्ष्मीनारायण २.५.३२(बालकृष्ण को मारने का प्रयास करने वाले दैत्यों में से एक, षष्ठी देवी द्वारा वध )
मैत्र ब्रह्माण्ड २.३.३.३९(दिन के १५ मुहूर्त्तों में से एक), मत्स्य ५०.१३(मैत्रायण : दिवोदास के ३ पुत्रों में से एक), १९६.४९(मैत्रवर : आङ्गिरस कुल के पञ्चार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वायु ६६.४०/२.५.४०(दिन के १५ मुहूर्त्तों में से एक), स्कन्द २.७.७(श्रुतदेव - पिता, अन्न दान के अभाव में पिशाच योनि की प्राप्ति ) maitra
मैत्रावरुण ब्रह्माण्ड १.२.३२.११६(७ ब्रह्मवादी वशिष्ठों में से एक), वायु ५९.१०६(१० मन्त्रब्राह्मणकार ऋषियों में से एक ), द्र. मित्रावरुण maitraavaruna/ maitravaruna
मैत्री भागवत ४.१.४९(दक्ष - कन्या, धर्म - पत्नी, प्रसाद - माता), भागवत ११.२.४६(बौद्ध साहित्य के मैत्री, करुणा, मुदिता, उपेक्षा का भागवत में प्रतिरूप ) maitree/ maitri
मैत्रेय भागवत १.१३.१(विदुर द्वारा तीर्थयात्रा में मैत्रेय से आत्मा की गति को जानने का उल्लेख), २.१०.४९(विदुर व कौषारवि/मैत्रेय के आध्यात्मिक संवाद का प्रश्न), ३.४.३६(मित्रा - पुत्र), ३.५(मैत्रेय द्वारा विदुर को सृष्टि क्रम का वर्णन), ३.६(मैत्रेय द्वारा विदुर को विराट शरीर की उत्पत्ति का वर्णन), ३.७(मैत्रेय से विदुर के अनेकानेक प्रश्न), मत्स्य ५०.१३(दिवोदास - पुत्र, चैद्यवर - पिता, मित्रयु तथा मैत्रायण - भ्राता, पूरु वंश), विष्णु १.१+ (मैत्रेय द्वारा गुरु पराशर से जगत में सृष्टि व लय के विषय में पृच्छा), विष्णुधर्मोत्तर १.१६७.२०(सौवीर राज का पुरोहित, मूषिका द्वारा मैत्रेय के दीप की वर्ति के हरण की कथा), स्कन्द १.२.४६.१३४(व्यास के कथनानुसार बालक के भावी मैत्रेय मुनि होने का उल्लेख), ७.१.१७३.३ (एकस्थान में स्थित ४ लिङ्गों में से एक मैत्रेयेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.५७२.८४(वीरण राजर्षि के पुरोहित, विष्णु मन्दिर निर्माण से वैकुण्ठ लोक प्राप्ति का कथन ) maitreya
मैत्रेयी भविष्य ४.१०६(मैत्रेयी द्वारा शीलधना को अनन्त व्रत का उपदेश), स्कन्द ३.३.८(याज्ञवल्क्य - पत्नी, सीमन्तिनी को वैधव्य से रक्षा के लिए सोमवार व्रत का परामर्श), ६.१३०.२(याज्ञवल्क्य - पत्नी, कात्यायनी - सपत्ना ) maitreyee/ maitreyi
मैथिल देवीभागवत १२.६.१२५(मैथिली : गायत्री सहस्रनामों में से एक), ब्रह्माण्ड २.३.३९.८(परशुराम द्वारा मुद्गर से मैथिल का वध), २.३.६४.५(मैथिल वंश का वर्णन), स्कन्द २.७.६(मिथिला के अधिपति मैथिल के राजगृह में हेमाङ्गद राजा का गृहगोधिका रूप में वास, श्रुतदेव द्वारा जल दान के पुण्य से मुक्ति की प्राप्ति ) maithila
मैथुन ब्रह्मवैवर्त्त ४.७८.४८(मैथुन हेतु अगम्या स्त्रियों का कथन), लक्ष्मीनारायण ३.५३.५६(मासिक धर्म के पश्चात् दिन अनुसार मैथुन से उत्पन्न सन्तान के गुणों का कथन ) maithuna
मैनाक ब्रह्म २.३.१४(शिव विवाह में मैनाक द्वारा लाजा कर्म सम्पन्न करना), ब्रह्माण्ड १.२.१३.३५(क्रौञ्च - पिता), भागवत ५.१९.१६(भारतवर्ष के पर्वतों में से एक), मत्स्य १३.७(मेना व हिमवान् के २ पुत्रों में से एक, क्रौञ्च - अनुज), १२२.२५(आम्बिकेय पर्वत के मैनाक वर्ष का उल्लेख, अन्य नाम क्षेमक), वायु ३०.३७(मेना व हिमवान् - पुत्र, क्रौञ्च - भ्राता), ४७.७५(मैनाक प्रभृति १२ पर्वतों के इन्द्र द्वारा पक्षच्छेद के भय से लवणोदधि में प्रविष्ट होने का उल्लेख), ७१.४(मैनाक के पितरों का दौहित्र होने का उल्लेख), ७२.५(श्रेष्ठ पर्वत, मेना व हिमवान् - पुत्र, क्रौञ्च - भ्राता), शिव २.३.५.४६(मेना - पुत्र), स्कन्द ६.९.१०(हिमालय - पुत्र, नन्दिवर्धन व रक्तशृङ्ग - भ्राता, शक्र भय से समुद्र के अन्दर प्रवेश), हरिवंश ३.१७.१(मैनाक की पृथिवी के छिद्र में स्थिति), ३.४०.२०(एकमात्र पक्ष युक्त पर्वत के रूप में मैनाक का उल्लेख), वा.रामायण ४.४३.२९(उत्तर दिशा में सीता की खोज के संदर्भ में मय दानव के निवास स्थान मैनाक पर्वत का संक्षिप्त विवरण), ५.१.९१(समुद्र के आदेश से मैनाक का समुद्र से ऊपर उठना, समुद्र लङ्घन के प्रसंग में हनुमान द्वारा मैनाक का स्पर्श), ५.५७.१३(सुनाभ नाम?, हनुमान द्वारा स्पर्श), कथासरित् ९.४.१६(नारिकेल द्वीप के ४ पर्वतों में से एक ) mainaaka/ mainaka
मैन्द ब्रह्माण्ड २.३.७.२२०(अङ्गद व मैन्द - कन्या से ध्रुव के जन्म का उल्लेख), २.३.७.२३८(वाली के प्रधान सामन्त वानरों में से एक), भागवत १०.६७.२(बलराम द्वारा मैन्द - भ्राता द्विविद वानर के उद्धार का वर्णन), स्कन्द ३.१.५१.२५(प्रतीची में मैन्द का स्मरण), वा.रामायण १.१७.१४(मैन्द वानर के अश्विनौ का अंश होने का उल्लेख), ४.६५(मैन्द वानर की गमन शक्ति का कथन), ६.१७.४७(मैन्द द्वारा विभीषण शरणागति विषयक विचार व्यक्त करना, मैन्द का नय - अपनय कोविद विशेषण), ६.४१.३९(मैन्द द्वारा लङ्का के पूर्व द्वार पर नील की सहायता), ६.४३.१२(मैन्द का रावण - सेनानी वज्रमुष्टि से युद्ध), ६.७६.३५(मैन्द द्वारा यूपाक्ष का वध ) mainda
मैरेय अग्नि २००.६(मैलेय : सौवीरराज - पुरोहित, विष्णु मन्दिर का निर्माण), मत्स्य १२०.२६(अप्सराओं द्वारा मैरेय पान का उल्लेख), वायु ४५.२७(उत्तर कुरु देश की नदियों के क्षीर, मधु, मैरेय, घृत वाहिनी आदि होने का उल्लेख ) maireya
मोक्ष नारद १.३२+ (मोक्ष की आवश्यकता व उपाय), १.४५(जनक - पञ्चशिख संवाद द्वारा मोक्ष धर्म का निरूपण), १.४९(भरत मुनि व रहूगण संवाद में मोक्ष तत्त्व का निरूपण), १.५८(जनक द्वारा शुकदेव को मोक्ष विषयक ज्ञान दान, मोक्ष के लक्षण), १.६२(शुक के इतिहास द्वारा मोक्ष धर्म का निरूपण), १.१२०.५९(मोक्ष एकादशी व्रत की विधि), पद्म १.२०.१२७(मोक्ष व्रत का माहात्म्य व विधि), ब्रह्म १.१२९(मोक्ष के विज्ञान के अन्तर्गत कर्म या विद्या के मार्ग के अनुसरण का प्रश्न ; इन्द्रिय गुणों से ऊपर उठकर क्षेत्रज्ञ बनने का निर्देश), १.१३०(मोक्ष का उपाय), १.१३७.२५(ज्ञान - विज्ञान संज्ञित मोक्ष का कथन), ब्रह्माण्ड २.३.१०.११५(पंखों के बिना पक्षी के आकाश में उडने के सदृश योगैश्वर्य के बिना मोक्ष प्राप्ति की असंभाव्यता), ४३, ३.४.३.५५(ज्ञान, राग संक्षय तथा तृष्णा क्षय से मोक्ष प्राप्ति के उपायों का कथन), ३.४.३.५९(मोक्ष की विधि), ३.४.३६.५२(मोक्षसिद्धि : ८ सिद्धियों में से एक), ३.४.४४.१०८(१० सिद्धियों में से एक), भविष्य ३.४.७.२६(मोक्ष के ४ प्रकार, तप से सालोक्य, भक्ति से सामीप्य, ध्यान से सारूप्य और ज्ञान से सायुज्य), भागवत ७.१५.५५(निवृत्ति मार्ग का वर्णन), वराह ५(विप्र - लुब्धक उपाख्यान द्वारा अहं नाश रूप मोक्षोपाय का कथन), १७(प्रजापाल राजा द्वारा महातप मुनि से मोक्ष सम्बन्धी प्रश्न, समस्त देवों में जनार्दन के सर्वोत्कृष्ट प्रभाव को बताते हुए मोक्ष मार्ग का उपदेश), ३७(मोक्ष प्रापक व्रत का कथन), ५१+ (मोक्ष धर्म का निरूपण), १६४.३८(मोक्षराज तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), वायु २३.८१/१.२३.७५(धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का उल्लेख), ७९.६६/२.१७.६६(मोक्षवादी के पंक्तिदूषक/श्राद्ध के अयोग्य होने का उल्लेख), १०२.७४(मोक्ष का निरूपण), १०४.९४/२.४२.९६(मोक्ष प्राप्ति के उपाय का कथन), विष्णु ६.३.२(आत्यन्तिक प्रलय का मोक्ष नाम), शिव २.२.२३(सती प्रोक्त मोक्ष), २.५.८.१३(मोक्ष का शिव के रथ में ध्वज बनना), स्कन्द १.२.५६.११(मोक्ष लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ३.२.१५.५३(धर्मारण्य में मोक्ष तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१५५.११६(केशव से मोक्ष प्राप्ति का उल्लेख), ५.३.१६०(मोक्ष तीर्थ का माहात्म्य ), ५.३.२३१.१८(तीर्थ संख्या परिगणन के अन्तर्गत मोक्ष नामक तीन तीर्थ होने का उल्लेख), ६.२६३.२१(नगर की मोक्ष से उपमा), ७.१.१९०(मोक्ष स्वामी का माहात्म्य), महाभारत शान्ति १७४(मोक्ष धर्म पर्व का आरम्भ), २१९(जनक व पञ्चशिख का मोक्ष विषयक सांख्य तत्त्व रूपी संवाद), २७३.१२(कुशल धर्म द्वारा मोक्ष प्राप्ति का उपाय), २७४(मोक्ष मार्ग का निरूपण), आश्वमेधिक १९(अनुगीता में मोक्ष प्राप्ति के उपाय का वर्णन), २७.१५(प्रज्ञा वृक्ष पर मोक्ष फल लगने का कथन), योगवासिष्ठ २.११.५९(मोक्ष के द्वार के चार द्वारपालों का कथन), ३.६७.५९(ब्रह्म के साथ एकरूपता न होने की असंवित्ति से मोक्ष का प्रश्न व उत्तर), ३.९४(मोक्ष प्राप्ति के प्रयासों की तीव्रता के अनुसार जीवों के १४ विभाग), ५.७२(मोक्ष का स्वरूप), लक्ष्मीनारायण १.७६(मोक्ष प्राप्ति के उपाय का कथन), २.१७२.५६(मोक्षक पत्तन के राजा उरलकेतु व राजपुत्र ऊरुकीर्ति द्वारा श्रीहरि का स्वागत), ३.३७.१११(प्रवृत्ति व निवृत्ति प्रकार के कर्मों में रत ऋषियों, पितरों, देवों, मनुष्यों आदि द्वारा नाम संकीर्तन सत्र में प्रविष्ट होने पर मोक्ष नारायण के मुक्ति श्री सहित प्रकट होने का कथन ) moksha
मोक्षदा स्कन्द ४.१.२९.१३५(गङ्गा सहस्रनामों में से एक), लक्ष्मीनारायण ३.२१.२७(मेरु के पश्चिम में मोक्षदा नदी तट पर श्रीमद् अर्धश्रीश्वर नारायण के वास का कथन), कथासरित् ७.३.२३८(मोक्षदा नामक तपस्विनी की मन्त्र युक्ति से सोमस्वामी को वानररूप का परित्याग कर मनुष्य रूप की प्राप्ति ) mokshadaa
मोक्षवती लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१२८(कृष्ण की भार्याओं में से एक, शार्ङ्गधर व तलायना युगल की माता )
मोचनिका ब्रह्माण्ड ३.४.३५.९८(मोचिका : शंकर की १६ कलाओं में से एक), कथासरित् २.२.१४०(भिल्लराज द्वारा बद्ध श्रीदत्त को मोचनिका नामक दासी द्वारा बन्धन से मुक्ति के उपाय का कथन), ७.३.१५९(सोमदा योगिनी द्वारा बैल बनाए गए मनुष्य की बन्धमोचनिका योगिनी द्वारा पशु योनि से बन्धन मुक्ति ) mochanikaa
मोजम्बी विष्णुधर्मोत्तर १.१८२.६(सातवें वैवस्वत मन्वन्तर में मोजम्बी के इन्द्र होने का कथन )
मोद ब्रह्माण्ड १.२.३५.५७(अथर्व संहिताकार देवदर्श के ४ शिष्यों में से एक), ३.४.३७.४(मोदिनी : च वर्ग की मातृका के रूप में मोदिनी का उल्लेख, अन्य नाम वागीशी), वराह १४३.१९(मेरु के दक्षिण शृङ्ग पर स्थित एक तीर्थ मोदन का संक्षिप्त माहात्म्य), वायु ३३.१९(वसुमोद : हव्य के शाकद्वीप - अधिपति ७ पुत्रों में से एक, वसुमोद वर्ष का स्वामी), ६१.५१(अथर्व संहिताकार वेदस्पर्श के ४ शिष्यों में से एक), महाभारत वन ३१३.११४(क: मोदते का प्रश्न : अनृणी के मोदयुक्त होने का कथन ), द्र. आमोद, कुसुममोदिनी, मुद moda
मोदक पद्म १.६३.६(मोदक के गुणों का कथन, गणेश को मोदक की प्राप्ति), वायु ४४.१५(केतुमाल देश के जनपदों में से एक), स्कन्द ४.२.५७.८७(मोदकप्रिय गणपति का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.२६.१०७(चतुर्थी तिथि में विप्र को मोदक दान से समस्त कर्मों में विघ्नरहितता का उल्लेख), ५.३.२६.१४८(मधूक तृतीया व्रत विधान के अन्तर्गत फाल्गुनमास में मोदक पूर्ण पात्र दान का उल्लेख), कथासरित् १.६.११४(रानी द्वारा मोदक की निरुक्ति –- मा – उदक) १४.२.९८(स्त्री द्वारा स्वकामुक हेतु मोदक शब्द का प्रयोग ) modaka
मोदाक ब्रह्माण्ड १.२.१९.९३(आम्बिकेय पर्वत के साथ मोदाक का उल्लेख?), १.२.१४.१७(शाकद्वीप के अधिपति हव्य के ७ पुत्रों में से एक, मोदाक वर्ष का स्वामी), वायु ३३.१९(हव्य के शाकद्वीप - अधिपति ७ पुत्रों में से एक, मोदाक वर्ष का स्वामी), ४९.८६(आम्बिकेय पर्वत के वर्ष? के रूप में मोदाक का उल्लेख ) modaaka
मोरङ्ग गर्ग ७.२२.५४(मोरङ्ग देश के नरेश मन्दहास द्वारा प्रद्युम्न को भेंट प्रदान )
मोह अग्नि ३८१.३६(तम से प्रमाद व मोह की उत्पत्ति का उल्लेख), गरुड १.२१.५(मोहा : अघोर शिव की ८ कलाओं में से एक), देवीभागवत ९.१.१०६(दया - पति), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.११२(मोह की पत्नी रूप में दया का उल्लेख), भविष्य ३.४.२५.३६(मोह की ब्रह्माण्ड की रसना से उत्पत्ति, सावर्णि मन्वन्तर की रचना, मङ्गल ग्रह का दूसरा नाम?), मत्स्य ३.११(प्रजापति ब्रह्मा की बुद्धि से मोह का जन्म), लिङ्ग २.९.३२(अस्मिता की मोह संज्ञा का उल्लेख ; महामोह की राग संज्ञा का उल्लेख), २.९.३४(मोह के ८ तथा महामोह के १० भेदों का उल्लेख), वराह २७.३६(कौमारी मातृका का रूप), विष्णु ३.१७.४१(देवों की सहायतार्थ विष्णु द्वारा स्व शरीर से मायामोह नामक दैत्यों की उत्पत्ति), ३.१८(मायामोह द्वारा दैत्यों को वेद कर्म से विरत करना), स्कन्द ३.२.२३.४८(लोहासुर के भय से पीडित वणिजों और विप्रों को मोह प्राप्ति, अनन्तर मोह नाम से प्रसिद्धि), महाभारत वन ३१३.९३(धर्ममूढत्व के मोह होने का उल्लेख ; यक्ष - युधिष्ठिर संवाद), आश्वमेधिक ३१.२(३ तामस गुणों में से एक), योगवासिष्ठ १.३१.३(मोह की मेघ से उपमा), ६.१.६(मोह का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण २.२२३.४५(यक्ष का रूप), २.२५३.४(देह रूपी शकट में शोक - मोह के चक्र - द्वय होने का उल्लेख), २.२६८(अमोहाक्ष नृप को प्रबोध नामक गुरु से प्राप्त उपदेश का वर्णन), ३.२३४.३२(निर्मोहायन साधु द्वारा विखण्डल नामक शस्त्रधर को धर्मोपदेश ) moha
मोहन गरुड १.२९(त्रैलोक्य मोहन मन्त्र), पद्म ५.६७.४१(मोहना : कपि - पत्नी), भविष्य ३.२.२२.३(शम्भुदत्त - पुत्र मोहन द्वारा यज्ञ में हिंसा का समर्थन, तामसी देवी की संतुष्टि हेतु राजा को अष्टक प्रदान करना), मत्स्य १५४.२४४(काम द्वारा शिव पर मोहन अस्त्र के प्रयोग का उल्लेख), १६२.२१(हिरण्यकशिपु द्वारा नृसिंह पर प्रयुक्त अस्त्रों में से एक), वायु १०८.४८/२.४६.५१(गान रत गन्धर्वों में से एक), स्कन्द ५.१.४९.३०(कृष्ण द्वारा शिव के ऊपर मोहन अस्त्र का मोचन, देवमाया से शिव का मोहित होना), महाभारत आश्वमेधिक ८०.४५(उलूपी द्वारा अर्जुन की मृत्यु रूपी मोहनी माया का प्रदर्शन), कथासरित् ८.४.६१(सूर्यप्रभ - सेनानी, श्रुतशर्मा - सेनानी अट्टहास द्वारा वध ) mohana
मोहम्मद ब्रह्माण्ड २.३.७.१२८ (महामुद : देवजनी व मणिवर के यक्ष पुत्रों में से एक), भविष्य ३.३.२.५( महामद : म्लेच्छ, भोजराज समकालिक, शिव के कथनानुसार बलि - प्रेषित त्रिपुरासुर, अयोनिज तथा दैत्य संवर्धक ), ३.३.३.१७(वाहीक देशस्थ महामद की म्लेच्छ धर्म में मति), ३.३.२८.६२ (शोभा वेश्या द्वारा महामद पिशाच की आराधना व सहायता प्राप्ति का वर्णन), ३.४.२३.११९(कलि के अंश राहु के वंश में महमद नामक मत की सत्ता ) mohammada
मोहिनी अग्नि ३.१२(अमृत वितरण हेतु विष्णु द्वारा मोहिनी रूप धारण, रुद्र की मोहिनी पर आसक्ति व वीर्यपात आदि), गणेश २.३९.२०(भस्मासुर द्वारा शिव को मारने की चेष्टा पर विष्णु का मोहिनी रूप में प्रकट होना), गरुड १.२१.४(वामदेव शिव की १३ कलाओं में से एक), गर्ग १०.१७.२०(राजा नारीपाल की पत्नी, नारीपाल का वृत्तान्त), १०.१७.४६(रानी सुरूपा को पूर्व जन्म का स्मरण : मोहिनी अप्सरा द्वारा तप से सुरूपा रूप में जन्म), नारद १.६६.१२७(निरञ्जन की शक्ति मोहिनी का उल्लेख), १.९१.८०(वामदेव शिव की १२वीं कला), २.७(राजा रुक्माङ्गद को धर्मपथ से विचलित करने के लिए ब्रह्मा द्वारा मोहिनी की उत्पत्ति), २.२३(मोहिनी द्वारा रुक्माङ्गद राजा से एकादशी व्रत न करने का दुराग्रह), २.३२+ (मोहिनी द्वारा रुक्माङ्गद से पुत्र धर्माङ्गद के मस्तक की मांग), २.३५+ (देवताओं द्वारा मोहिनी को वरदान की चेष्टा, रुक्माङ्गद - पुरोहित के शाप से मोहिनी का भस्म होना, यम लोक में यातनाएं, दशमी के अन्त भाग में स्थान की प्राप्ति, पुन: शरीर प्राप्ति), २.८२(वसु ब्राह्मण के उपदेश से मोहिनी द्वारा तीर्थ यात्रा का उद्योग, दशमी तिथि के अन्त भाग में स्थित होना), पद्म २.३४.३९(सखियों द्वारा सुनीथा को पुरुष विमोहिनी विद्या का उपदेश), २.११८(विष्णु द्वारा मोहिनी रूप धारण कर विहुण्ड के विमोहन का वृत्तान्त), ४.१०(समुद्रमन्थन से अमृत उत्पन्न होने पर विष्णु का मोहिनी रूप धारण कर दैत्यों का विमोहन और देवों को अमृत प्रदान), ६.४९(वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी व्रत का माहात्म्य : धनपाल वैश्य के दुष्ट पुत्र धृष्टबुद्धि की मुक्ति), ६.२२०(मोहिनी वेश्या की प्रयाग जल से मुक्ति, जन्मान्तर में हेमाङ्गी रानी बनना), ब्रह्मवैवर्त्त ४.३१+ (मोहिनी का रम्भा से संवाद, काम स्तोत्र, ब्रह्मा से संवाद, ब्रह्मा को शाप), ब्रह्माण्ड २.३.४.१०(अमृत वितरणार्थ विष्णु द्वारा धारित मोहिनी रूप पर शिव की आसक्ति), ३.४.१०.२७(मोहिनी अवतार द्वारा देवों को अमृतपान कराने का वर्णन, मोहिनी दर्शन से शिव का वीर्यपात), ३.४.१९.६५(कामदेव की ५ बाण शक्तियों में से एक), ३.४.१९.७४ (गीतिचक्र रथेन्द्र के पञ्चम पर्व पर स्थित १६ शक्तियों में से एक), भविष्य ३.२.१८(गौरीदत्त व धनवती - पुत्री, शूली आरोपित चोर से विवाह, प्रहेलिका का अर्थ बताने वाले पण्डित से गर्भ धारण आदि), भागवत १.३.१७(विष्णु के २१ अवतारों में १३वें मोहिनी अवतार का उल्लेख), ८.८+ (मोहिनी द्वारा अमृत वितरण का आख्यान), ८.१२(मोहिनी की क्रीडा का वर्णन, मोहिनी द्वारा शिव का मोहन), मत्स्य २५१.७(मोहिनी अवतार द्वारा असुरों के मोहन व देवों को अमृत प्रदान का कथन), वायु २५.४८(मधु - कैटभ से पीडित होने पर ब्रह्मा के समक्ष मोहिनी माया के प्रकट होने का कथन, ब्रह्मा द्वारा मोहिनी माया के नामकरण, मधु - कैटभ द्वारा मोहिनी से पुत्रत्व वर की प्राप्ति), २५.५० (महाव्याहृति : ब्रह्मा द्वारा मोहिनी माया को महाव्याहृति नाम प्रदान), शिव ३.२०(मोहिनी के रूप से शिव के वीर्य की च्युति, हनुमान का जन्म), स्कन्द १.१.१२(मोहिनी रूपी विष्णु द्वारा दैत्यों की अमृतपान से वंचना), लक्ष्मीनारायण १.९२(मोहिनी रूप धारी विष्णु द्वारा अमृत के वितरण की कथा), १.१६२.४२(मधु - कैटभ वध हेतु विष्णु द्वारा महामाया की सहायता से मोहिनी रूप धारण), १.१८४.५८(शिव को समाधि से बाहर लाने के लिए कृष्ण द्वारा मोहिनी रूप धारण, मोहिनी के दर्शन से ब्रह्मा, काम आदि के वीर्य का पतन, कामदेव की सहायता से मोहिनी द्वारा शिव को मोहित करना आदि), १.१९९.१६(शिव द्वारा दानवों को मोहित करने वाली मोहिनी के रूप के दर्शन की इच्छा, मोहिनी के दर्शन से वीर्यपात आदि का वृत्तान्त), १.२८६.१५(ब्रह्मा द्वारा राजा रुक्माङ्गद के व्रत को भङ्ग करने के लिए मोहिनी का सृजन तथा रुक्माङ्गद के प्रति प्रेषण), १.२८७-२९२(रुक्माङ्गद - मोहिनी आख्यान), १.५१५.३(ब्रह्मा की मानसी कन्या मोहिनी द्वारा ब्रह्मा के सेवन का हठ, ब्रह्मा द्वारा उपेक्षा पर ब्रह्मा तथा ऋषियों को अपूज्यत्व तथा षण्ढत्व का शाप, षण्ढत्व नाश हेतु मोहिनी की अर्चना का कथन), २.५७.७८(निद्रा देवी का अपर नाम), २.२४६.९०(अज्ञानमूलक वृक्ष के रूपक में मोहिनी के रसतृष्णा होने का उल्लेख), ३.१६.८५(व्याघ्रानल असुर के वध हेतु लक्ष्मी द्वारा मोहिनी रूप धारण करना, व्याघ्रानल असुर का मोहिनी को देख जडीभूत होना आदि), ३.१७०.१९(विष्णु के ३३वें धाम के रूप में मोहिनी का उल्लेख), कथासरित् ८.३.११८(याज्ञवल्क्य ऋषि द्वारा सूर्यप्रभ को मोहिनी विद्या प्रदान करना ), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.२१टीका(रुद्र की २ आकर्षण शक्तियों में से एक), द्र. कुसुममोहिनी mohinee/ mohini
मोहेरकपुर स्कन्द ३.२.३५+ (मोहेरकपुर की धर्मारण्य में स्थिति, कुम्भीपाल द्वारा ब्राह्मणों की राम प्रदत्त वृत्ति की समाप्ति), ३.२.४०.६७(कलियुग में धर्मारण्य का नाम)
मौक्तिकेशी लक्ष्मीनारायण ३.२१८(कृष्ण द्वारा मौक्तिकेशी नामक भक्त खनित्र तथा उसके कर्मकारों की जलप्लावन से रक्षा का वृत्तान्त )
मौदाकि द्र. भूगोल
मौद्गल्य ब्रह्म २.६६(मुद्गल व भागीरथी - पुत्र, जाबाला - पति, भार्या के अनुरोध पर विष्णु से दारिद्र्य नाश का अनुरोध ), द्र. मुद्गल maudgalya
मौन अग्नि १६६.१८(प्रचार, मैथुनादि ६ क्रियाओं में मौन रखने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१४.२६( मौनि : क्रौञ्च द्वीप के ७ जनपदों में से एक, मुनि अधिपति), २.३.७४.१७३(११ मौन राजाओं द्वारा भविष्य में राज्य करने का उल्लेख), वायु ४५.१२७( मौनिक : दाक्षिणात्य देशों में से एक), ५९.४१(तप के ४ लक्षणों में से एक), ९९.३६०/२.३७.३५४(भविष्य में १८ मौन संज्ञक राजाओं के अस्तित्व का उल्लेख), विष्णु ४.२४.५३(११ मौन राजाओं द्वारा ३०० वर्ष राज्य करने का उल्लेख), स्कन्द ७.४.१७.१८( मौनप्रिय : भगवत्परिचारक वर्ग के अन्तर्गत दक्षिण द्वार के रक्षकों में से एक), महाभारत उद्योग ४३.१( मौन की परिभाषा), योगवासिष्ठ ६.१.६८(वसिष्ठ द्वारा राम को सुषुप्त मौन रूप महा मौन का उपदेश ) mauna
मौनेय ब्रह्माण्ड २.३.७.१(गन्धर्व व अप्सरा गण का नाम), वायु ६९.१/२.८.१( मौनेय गन्धर्व व अप्सरा का नाम), विष्णु ४.३.४(गन्धर्वों का नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.१२९(१० मौनेया अप्सराओं द्वारा नर - नारायण को मोहित करने का प्रयास ) mauneya
मौर्य ब्रह्माण्ड २.३.७४.१४४(चन्द्रगुप्त आदि ९ मौर्यवंशी राजाओं के नाम व राज्यकाल), भागवत १२.१.१२(नन्द वंश के पश्चात् चन्द्रगुप्त आदि १० मौर्य राजाओं के नाम, १३७ वर्ष राज्य करने का उल्लेख), मत्स्य २७२.२१(कौटिल्य के पश्चात् १० मौर्य राजाओं के नाम व राज्यकाल), वायु ९९.३३६/२.३७.३३० (चन्द्रगुप्त आदि ९ मौर्यवंशी राजाओं के नाम व राज्यकाल), विष्णु ४.२४.२७ (चन्द्रगुप्त आदि १० मौर्यवंशी राजाओं के नाम ) maurya
मौर्वी स्कन्द १.२.५९.५६(मुर - पुत्री, कामकटंकटा नाम, कृष्ण द्वारा मौर्वी को हिडिम्बा - पुत्र को पति रूप में प्राप्त करने का आश्वासन ) maurvee/ maurvi
मौलि गर्ग ७.१०.१४(कुटक देश के अधिपति मौलि को साम्ब द्वारा आधीन करना), ७.३९.४४( मौलेन्द्र : प्रद्युम्न के शंख का नाम), पद्म ६.१७४.३०( मौलिस्तान/मुलतान में हारीत ब्राह्मण द्वारा नृसिंह की पुत्र रूप में प्राप्ति), ब्रह्माण्ड १.२.१६.५८( मौलिक : दाक्षिणात्य देशों में से एक), मत्स्य १९६.३३ (आङ्गिरस वंश के त्रिप्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वायु ६९.१५६/२.८.१५१ (पुण्यजनी व मणिभद्र के २४ पुत्रों में से एक ), महाभारत आदि २०१.२८(सुन्द-निसुन्द द्वारा वर पाने के पश्चात् जटा त्याग कर मौलि /मुकुट धारण करने का उल्लेख), द्र. पार्श्व मौलि mauli
म्लेच्छ पद्म १.४७.६७ (विभिन्न दिशाओं में म्लेच्छों के लक्षण, गरुड द्वारा म्लेच्छों का भक्षण व उद्वमन), ब्रह्माण्ड १.२.१८.४३(बिन्दुसरोवर से प्रसूत ७ नदियों द्वारा म्लेच्छप्राय देशों को प्लावित करने का उल्लेख), भविष्य ३.१.३.९६(म्लेच्छों द्वारा क्षेमक का वध होने पर क्षेमक - पुत्र प्रद्योत द्वारा नारद के उपदेश से म्लेच्छ यज्ञ करके म्लेच्छों का हनन), ३.१.४.५(प्रद्योत - कृत म्लेच्छ यज्ञ का वर्णन), ३.१.४.४१(आचार, विवेक आदि से युक्त मनुष्य के म्लेच्छ होने? का कथन ; म्लेच्छ वंश का कथन), ३.३.२.२०(शालिवाहन नृप द्वारा आर्यों व म्लेच्छों की मर्यादा की स्थापना, सिन्धु स्थान की आर्यों के लिए और सिन्धु से परे म्लेच्छों के लिए स्थापना, म्लेच्छ देश में ईशामसीह की स्थापना), ३.३.३.१७(वाहीक देशस्थ महामद की म्लेच्छ धर्म में मति), भागवत ९.१६.३३(विश्वामित्र द्वारा पुत्र मधुच्छन्दा के अग्रजों को म्लेच्छ होने का शाप), ९.२०.३०(दुष्यन्त - पुत्र भरत द्वारा म्लेच्छों के हनन का उल्लेख), ९.२३.१६(द्रुह्यु के वंशज १०० प्राचेतसों के म्लेच्छाधिपति होने का उल्लेख), मत्स्य १०.७(वेन के शरीर के माता के अंश से म्लेच्छ जातियों की उत्पत्ति का कथन), १६.१६(श्राद्ध में म्लेच्छ देश के निवासियों के वर्जन का निर्देश), ३३.१४(ययाति द्वारा पुत्र तुर्वसु को पापी म्लेच्छों में जन्म? लेने का शाप), ११४.११(भारतवर्ष के अन्तों में म्लेच्छों के निवास का उल्लेख), १२१.४३(बिन्दु सरोवर से प्रसूत ७ नदियों द्वारा म्लेच्छप्राय देशों को प्लावित करने का कथन, म्लेच्छ देशों के नाम), १४४.५१(प्रमति/कल्कि अवतार द्वारा म्लेच्छों के वध का उल्लेख), १८१.१९(अविमुक्त क्षेत्र में मृत्यु पर म्लेच्छ आदियों की मुक्ति का उल्लेख), २७३.२५(आर्य व म्लेच्छ जनपदों के धार्मिक यवनों से मिश्रित होने तथा कल्कि अवतार द्वारा अधार्मिक आर्यों व म्लेच्छों को नष्ट करने का कथन), महाभारत कर्ण ४५.३६(म्लेच्छों की स्वसंज्ञानियत विशेषता का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.३७.६८(डफ्फर/दिक्फर जातीय म्लेच्छों का सौराष्ट} में उपद्रव, श्रीहरि द्वारा सुदर्शन चक्र से म्लेच्छों का निग्रह), २.५०-५४(अबि|क्त देश के म्लेच्छों द्वारा दिव्य विमान और उसमें आसीन दिव्य कन्याओं को प्राप्त करने का यत्न, विमानवासी देवों व म्लेच्छों का युद्ध, म्लेच्छों का नाश आदि ) mlechchha