विशाखा
टिप्पणी : पुराणों के अनुसार राधा की 8 सखियों में विशाखा सखी का स्थान पूर्व दिशा में है जबकि ललिता सखी का पश्चिम दिशा में। ललिता कृष्ण को रच-रच कर ताम्बूल/पान प्रस्तुत करती है। ताम्बूल शब्द तबि, ष्टबि आदि धातुओं के आधार पर निर्मित है। तबि, ष्टबि धातुएं मर्दन अर्थ में प्रयुक्त होती हैं – प्राण और अपान के मर्दन से व्यान का जन्म होता है, ऐसा कहा जाता है। व्यान प्राण दक्षता उत्पन्न करता है। यह मदयुक्त अवस्था है। दूसरे शब्दों में मर्दन की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है कि यह मर्त्य स्तर पर अमृत स्तर के मिश्रण से उत्पन्न स्थिति है। ताम्बूल लता का जन्म भी अमृत के भूमि पर क्षरण से हुआ है। अथर्ववेद 8.7.4 में ओषधियों का वर्गीकरण उनके तनों के अनुसार किया गया है। एक ओषधि स्तम्भ/स्कन्ध अर्थात् तने वाली है, दूसरी काण्ड वाली, तीसरी बिना तने की अर्थात् विशाखा, जिसके मूल से ही शाखाएं निकल रही हैं, तना है ही नहीं। यह स्कन्ध उद्देश्य-विशेष का प्रतीक हो सकता है। हो सकता है कि ताम्बूल भी उद्देश्य विशेष का प्रतीक हो। पुराण में उल्लेख आता है कि नाग-पुत्री ललिता ने उदयन को अम्लान ताम्बूल माला उदयन को अर्पित की। इन उद्देश्यों को रच-रच कर कृष्ण को अर्पित करना है। इसके विपरीत, विशाखा की स्थिति निरुद्देश्य है, सभी ओर किरणें फैल रही हैं। यह समाधि से व्युत्थान की स्थिति हो सकती है। गर्ग संहिता में विशाखायूथ की गोपियां कृष्ण विरह पर अपनी प्रतिक्रिया इस प्रकार व्यक्त करती हैं कि गोचारण के समय अनुचरों सहित जाते हुए मत्त हाथी जैसे कृष्ण अपने रवों से स्वपुर को प्रबोधित कर देते हैं(गोचारणायानुचरैर्व्रजंतं प्रबोधयंतं स्वपुरं विरावैः)। यहां गोचारण इन्द्रियों का नियन्त्रण हो सकता है। वामन पुराण में वामन के विराट रूप में विशाखा नक्षत्र की स्थिति भ्रूमध्य में कही गई है।
अथर्ववेद 19.7.3 में विशाखा नक्षत्र के राधा बन जाने की कामना की गई है। वैदिक साहित्य में अन्यत्र विशाखा नक्षत्र नाम न लेकर राधा कहकर ही काम चला लिया गया है क्योंकि विशाखा नक्षत्र से अगला नक्षत्र अनुराधा है।
संदर्भ
*प्र॒स्तृ॒ण॒ती स्त॒म्बिनी॒रेक॑शुङ्गाः प्रतन्व॒तीरोष॑धी॒रा व॑दामि। अं॒शु॒मतीः॑ का॒ण्डिनी॒र्या विशा॑खा॒ ह्वया॑मि ते वी॒रुधो॑ वैश्वदे॒वीरु॒ग्राः पु॑रुष॒जीव॑नीः॥ - शौ.अ. 8.7.4
*पुण्यं॒ पूर्वा॒ फाल्गु॑न्यौ॒ चात्र॒ हस्त॑श्चि॒त्रा शि॒वा स्वा॒ति सु॒खो मे॑ अस्तु। राधे॑ वि॒शाखे॑ सु॒हवा॑नुरा॒धा ज्येष्ठा॑ सु॒नक्ष॑त्र॒मरि॑ष्ट॒ मूल॑म्॥ - शौ.अ. 19.7.3
विशाखे नक्षत्रम् इन्द्राग्नी देवता अनूराधा नक्षत्रम् मित्रो देवता – तैसं ४.४.१०.२
इन्द्राग्नियोर्विशाखे । युगानि परस्तात्कृषमाणा अवस्तात् । - तैब्रा १.५.१.३
कृत्तिकाः प्रथमम् । विशाखे उत्तमम् । तानि देवनक्षत्राणि । - तैब्रा १.५.२.
चित्रा शिरः । निष्ट्या हृदयम् । ऊरू विशाखे । प्रतिष्ठानूराधाः । एष वै नक्षत्रियः प्रजापतिः । - तैब्रा १.५.२.२
तदिन्द्राग्नी कृणुतां तद्विशाखे । तन्नो देवा अनुमदन्तु यज्ञम् । पश्चात्पुरस्तादभयं नो अस्तु । नक्षत्राणामधिपत्नी विशाखे । श्रेष्ठाविन्द्राग्नी भुवनस्य गोपौ – तैब्रा ३.१.१.११
विशाखा सखी का वर्ण : विद्युत जैसा, वस्त्रों पर तारे जडे हैं। राधा व कृष्ण के बीच दूती का कार्य करती है।