स लक्ष्मीनारायण ३.१७४.८३
संन्यास लक्ष्मीनारायण २.७८.७९(श्वेताश्वतर ऋषि द्वारा शिष्य सुशील को कथित वैष्णव संन्यास विधि का वर्णन ), द्र.i sanyaasa/samnyaasa/ sanyasa
संयतक कथासरित् १७.३.९५,
संयद्वसु कूर्म १.४३.७(सूर्य रश्मि संयद्वसु द्वारा मङ्गल ग्रह का पोषण ) samyadvasu
संयम ब्रह्माण्ड ३.४.३.२४(तत्त्वों के कारण सहित संयम ) samyama/ sanyama
संयमन वराह ५, १५३, लक्ष्मीनारायण १.५२५,
संयमिनी भविष्य ३.३.६.७(जयचन्द व सुरभानवी - कन्या, स्वयंवर में पृथ्वीराज की मूर्ति का वरण), वराह २१२, विष्णु २.८.९,
संवत्सर अग्नि १३९(६० संवत्सरों में से प्रमुखों के नाम व गुण), २१८.३(राजा द्वारा संवत्सर रूप पुरोहित के वरण का निर्देश), गर्ग ७.३१.३५(केतुमाल के अधिपति व्यति संवत्सर द्वारा प्रद्युम्न को भेंट), ब्रह्माण्ड १.२.२३.१०४(संवत्सर के शिशुमार के शिश्न का रूप होने का उल्लेख), भागवत ४.२९.२१(चण्डवेग गन्धर्व का रूप), ५.१८(संवत्सर प्रजापति द्वारा काम की उपासना), ११.१६.२७(विष्णु के अनिमिषों में संवत्सर होने का उल्लेख), योगवासिष्ठ ३.९१.४३(संवत्सर का संवित्सार से तादात्म्य?), वराह ६७(संवत्सर के अवयव, आश्चर्य का वर्णन, संवत्सर के ६ शिर, द्विदेह आदि होने का कथन), वायु ३१.३०(संवत्सर के वत्सर आदि विभाग व वर्णन), ५६.२०, विष्णु २.१२.३३, विष्णुधर्मोत्तर २.१६२, ३.१५३(संवत्सर पूजा), स्कन्द ५.२.५४.३९, ६.२४२.६६(शालग्राम शिला के संवत्सर व ग्रावा रूप का कथन), लन २.१८.४०(संवत्सर पितर - कन्याओं द्वारा श्रीकृष्ण को पक्वान्न भेंट ), द्र. व्यति samvatsara
संवरण ब्रह्माण्ड २.३.१४.३५(३ संवरणों से रहित की नग्न संज्ञा- सर्वेषामेव भूतानां त्रयीसंवरणं स्मृतम् ॥तां ये त्यजन्ति संमोहात्ते वै नग्नादयो जनाः ।), भविष्य ३.१.२.६६(समुद्रजल में वृद्धि के कारण प्रलय पर संवरण द्वारा अगस्त्य की सहायता से समुद्र का शोषण - महावायुप्रभावेन सागराः शुष्कतां गताः ।।अगस्त्यतेजसा भूमिः स्थली भूत्वा प्रदृश्यते ।।), ४.१४२(संवरण राजा द्वारा उत्पात शान्ति हेतु सनत्कुमार से कोटि होम विधान का श्रवण), मत्स्य ५०.१९(ऋक्षं सा जनयामास धूमवर्णं शताग्रजम्।। ऋक्षात् संवरणो जज्ञे कुरुः संवरणात्ततः।), वराह ३६, वामन २१.२७(ऋक्ष - पुत्र, तपती से विवाह ), २१.४९(तपती – कथित संवरण के चक्रवर्तित्व लक्षण), लक्ष्मीनारायण २.३०.६५(संवरण द्वारा तपती को प्राप्त करने की कथा), samvarana
संवर्त
कूर्म
२.११.१२६(संवर्त
द्वारा
सनत्कुमार
से
ज्ञान
प्राप्ति
-
सनत्कुमारो
भगवान्
संवर्त्ताय
महामुनिः
।
दत्तवानैश्वरं
ज्ञानं
सोऽपि
सत्यव्रताय
तु
।),
ब्रह्म
२.१३.१०(भौवन
राजा
द्वारा
बृहस्पति
– अग्रज
संवर्त
से
अश्वमेधविषयक
निर्देश
प्राप्ति),
मत्स्य
२.८(७
प्रलयकारक
मेघों
में
प्रथम),
वराह
४१.१९(संवर्त
-
पुत्रों
द्वारा
मृग
-
हत्या,
पुत्रों
को
मृग
रूप
धारण
का
आदेश),
वायु
४७.७६(तत्र
संवर्त्तको
नाम
सोऽग्निः
पिबति
तज्जलम्।
नाम्ना
समुद्रपः
श्रीमानौर्वः
स
वडवामुखः
।। ),
स्कन्द
१.२.१३.१५
(वाराणसी
में
संवर्त
के
परिज्ञान
की
विधि,
संवर्त
द्वारा
नाडीजङ्घ
आदि
को
महीसागर
सङ्गम
माहात्म्य
का
कथन),
५.२.२८.४(
संवर्त
के
मृगरूपधारी
पांच
पुत्रों
का
वृत्तान्त),
५.२.७४.२८(संवर्तक
मेघ
का
उल्लेख
-
ततः
काले
तु
कस्मिंश्चिद्वर्षत्पाकशासनः
।।
संवर्त्तो
वारिदो
भूत्वा
मेघान्वै
विन्यपातयत्
।। ),
६.९(संवर्त
वायु
द्वारा
इन्द्र
के
आदेश
से
हाटक
में
नाग
बिल
भरण
की
चेष्टा,
शिव
द्वारा
गन्धवाह
होने
का
शाप
-
यस्माल्लिंगं
ममैतद्वै
त्वया
पांसुभिरावृतम्
॥
तस्मात्समानधर्मा
त्वं
गन्धवाहो
भविष्यसि
॥ ),
६.२७१.४००(
संवर्त
का
इन्द्रद्युम्न
सहित
दीर्घजीवियों
से
संवाद
-
शापभ्रष्टा
वयं
सर्वे
चत्वारोऽपि
बकादयः
॥
पक्षित्वं
चैव
संप्राप्ता
ब्रह्मशापेन
सन्मुने
॥ ),
७.१.३६४(संवर्तेश्वर
लिङ्ग
का
माहात्म्य
-
ततो
गच्छेन्महादेवि
संवर्तेश्वरमुत्तमम्
॥....दशानामश्वमेधानां
फलमाप्नोति
मानवः
॥),
वा.रामायण
७.१८(मरुत्त
के
यज्ञ
के
आचार्य,
यज्ञ
में
रावण
का
आगमन,
देवों
की
तिर्यक्
योनियों
में
छिपना
-
संवर्तो
नाम
ब्रह्मर्षिः
साक्षाद्भ्राता
बृहस्पतेः
।
याजयामास
धर्मज्ञः
सर्वैर्देवगणैर्वृतः
।। ),
७.१०१.७(भरत
द्वारा
गन्धर्वों
के
विनाश
के
लिए
प्रयुक्त
अस्त्र
-
ततो
रामानुजः
क्रुद्धः
कालस्यास्त्रं
सुदारुणम्
।
संवर्तं
नाम
भरतो
गन्धर्वेष्वभ्यचोदयत्
।।
),
लक्ष्मीनारायण
३.११३.१०५(संवर्त्तो
नाम
राजर्षिर्भूत्वा
त्यक्त्वा
वपुर्निजम्
।
ययौ
चान्ते
मम
भक्त्या
धामाऽक्षरं
परं
पदम्
।। ),
samvarta
संवर्तक ब्रह्माण्ड १.२.१२.३५(संवर्तक अग्नि : मन्युमान् - पुत्र, वडवा रूप में समुद्र के जल का पान - पुत्रस्त्वग्नेर्मन्युमतो घोरः संवर्तकः स्मृतः । पिबन्नपः स वसति समुद्रे वडवामुखः), मत्स्य ५१.३०(मन्युमान् अग्नि - पुत्र, वडवामुख द्वारा निरन्तर समुद्र के जल का पान, सहरक्ष – पिता - अग्नेर्मन्युमतः पुत्रो घोरः संवर्तकः स्मृतः ।पिबन्नपः स वसति समुद्रे वडवामुखे॥), १२१.७७(संवर्तक अग्नि के वास स्थान का कथन - तत्र संवर्तको नाम सोऽग्निः पिबति तज्जलम्। अग्निः समुद्रवासस्तु और्वोऽसौ वड़वामुखः।। ), विष्णु ६.३.३०(प्रलयकालिक संवर्तक मेघों के स्वरूप का कथन - ततो गजकुलप्रख्यास्तड़ित्वन्तो निनादिनः । उत्तिष्ठन्ति तदा व्योम्रि घोराः संवर्त्तका घनाः ।।), शिव ५.१.६९(युगांते सर्वभूतानि संवर्तक इवानलः ।। कालो भूत्वा महादेवो ग्रसमानस्स तिष्ठति ।।), ५.३.२८(साम्ब के घोरसंवर्तक आदित्य का शापित रूप होने का कथन - घोरसंवर्तकादित्यश्शप्तो मुनिभिरेव च ।। मानुषो भवितासीति स ते पुत्रो भविष्यति ।।), हरिवंश २.१८(संवर्तकं नाम गणं तोयदानामथाब्रवीत् ।।भो बलाहकमातङ्गाः श्रूयतां मम भाषितम् ।), samvartaka
संविद नारद १.८८.१६८(संवित् : राधा की ११वीं कला, स्वरूप), लिङ्ग १.७०.२४(संविद की निरुक्ति), वायु ४.४०/१.४.३८(संविद शब्द की निरुक्ति ) samvida
संसार गरुड १.२१७(संसार चक्र का वर्णन), पद्म १.१९.२५१, २.२२(वन रूपी संसार), ५८७, भविष्य ४.४(संसार के दुःखों का वर्णन), भागवत १०.२.२७(संसार की वृक्ष रूप से उपमा), ११.१२.२१(वृक्ष रूपी संसार), योगवासिष्ठ ३.४०.५१(संसार रूपी वन का वर्णन), ४.११, ४.५३(संसार नगर), ५.७१, ५.७६(संसार सागर), ६२३६, ६.२.१५९(भ्रम संसार ), महाभारत शान्ति २५०, लक्ष्मीनारायण ३.१६६संसारविष, ३.१७५.२संसार सागर, samsaara/ sansar
संसृति योगवासिष्ठ ३.६६(परम योग संसृति), ६.१.६६(भिक्षु संसृति), ६.२.१८७(जीव संसृति ) samsriti
संस्कार अग्नि ३२(निर्वाण आदि दीक्षाओं में ४८ संस्कारों के नाम), ८२.९(गर्भाधान, पुंसवन व सीमन्तोन्नयन आदि संस्कारों का दीक्षा में अर्थ), १२१.१०(पुंसवन, अन्नप्राशन हेतु नक्षत्र विचार), १५३(गर्भ हेतु संस्कार का वर्णन), १६६.९(ब्रह्मलोक प्राप्ति हेतु ४८ संस्कारों के नाम), देवीभागवत १.१८.२१(मनुष्य के ४८ संस्कारों का कथन), नारद १.२५(चतुर्वर्ण हेतु गर्भाधान, उपनयन आदि संस्कारों के काल), १.५६.३१८(गर्भाधान व परवर्ती संस्कारों हेतु ज्योतिष काल का विचार), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१३(कृष्ण का अन्नप्राशन संस्कार), ४.९९+ (कृष्ण का उपनयन संस्कार), भविष्य १.२+ (जन्म संस्कार, ब्राह्मण संस्कार, संस्कारों के नाम), १.३(गर्भ संस्कार), १.४(उपनयन संस्कार), १.४२, १.१८२(गर्भ संस्कार, जातक संस्कार), ४.५२(मृत वत्सा से जीववत्सा बनने हेतु संस्कार), भागवत १०.४५.२६(कृष्ण व बलराम का द्विज संस्कार), विष्णु ३.१०(जातकर्म, नामकरण, विवाह आदि संस्कारों की विधि), विष्णुधर्मोत्तर २.५२(बालक के संस्कार), २.८५(बालक के संस्कार), ३.११९.४(सर्व संस्कारों में दत्तात्रेय की पूजा), स्कन्द ५.३.२०.५०, लक्ष्मीनारायण १.३५,२.९+, २.२४(चौल संस्कार), २.२६(यज्ञोपवीत संस्कार), २.६५(यज्ञोपवीत संस्कार ), ३.१२६.२४, samskaara/ sanskara
संस्था भागवत १२.७.१७(प्रलय के ४ भेदों नैमित्तिक आदि की संस्था संज्ञा )
संहार देवीभागवत ९.२२(शङ्खचूड - सेनानी, यम से युद्ध), पद्म २.२३, ब्रह्माण्ड ४.३.४, ३.४.२४.४०(संहारगुप्त : गृध्र, बलाहक असुर का वाहन), स्कन्द ५.३.१४+ (कालरात्रि द्वारा संहार), ५.३.२०(संहार काल में चिह्न लक्षण ), महाभारत शान्ति ३१२, द्र. प्रलय samhaara/ sanhar
संह्राद पद्म ६.६.९१(जालन्धर - सेनानी, जयन्त से युद्ध ), भागवत ६.१८, शिव ५.३२.३८, वा.रामायण ७.५संह्रादि, samhraada
सकल अग्नि २१४.२९(देहस्थ अमृत के सकल और देहवर्जित के निष्कल होने का उल्लेख ), स्कन्द ५.१.६.६ sakala
सक्तु स्कन्द ७.३.३९(अचलेश्वर लिङ्ग को सक्तु का दान व भक्षण, सारमेय का सक्तु भक्षण से दमयन्ती - पिता भीम बनना ) saktu
सखा भागवत ११.२३.४५, महाभारत वन ३१३.७१, वा.रामायण ४.५.११(सुग्रीव द्वारा राम – लक्ष्मण से सखित्व करते समय पाणि से पाणि को ग्रहण करने का कथन), द्र. देवसखा, धर्मसख, शक्रसख, शुन:सख
सखी द्र. अष्टसखी
सगर देवीभागवत ९.११, नारद १.८(बाहु - पुत्र, और्व मुनि द्वारा पालन, शत्रुओं का विनाश, केशिनी व सुमति पत्नियों से पुत्रों की प्राप्ति, पुत्रों के विनाश की कथा), पद्म १.८, ६.२०(गर - पुत्र), ब्रह्म १.६(अश्वमेध यज्ञ में सगर के षष्टि सहस्र पुत्रों की कपिल के कोप से मृत्यु), २.८(सगर के अश्वमेध के अश्व का हरण, षष्टि सहस्र पुत्रों का कपिल द्वारा भस्म होना), ब्रह्मवैवर्त्त २.१०, ब्रह्माण्ड २.३.४७, २.३.४८+ (अन्तर्वत्नी व बाहु - पुत्र, अयोध्या से तालजङ्घ आदियों का निष्कासन, केशिनी से विवाह, पुत्र प्राप्ति हेतु और्व आश्रम में गमन, अश्वमेध का अनुष्ठान आदि), २.३.६३.१४७(सगर के षष्टि सहस्र पुत्रों का कपिल के तेज से भस्म होना, चार अवशिष्ट पुत्रों के नाम), भागवत ९.८(सगर की बाहु से उत्पत्ति, अश्वमेध में कपिल द्वारा पुत्रों के भस्म होने का वृत्तान्त), वायु ८७.१५३, ८८.१३३(बाहु - पुत्र, और्व मुनि के आश्रय में पालन, कपिल द्वारा पुत्रों को नष्ट करने की कथा), विष्णु ३.८.२०(सगर द्वारा और्व मुनि से विष्णु की आराधना विधि विषयक पृच्छा), ४.३.३६(सगर चरित्र : और्व आश्रम में जन्म, शत्रुओं का निग्रह, अश्वमेध का अनुष्ठान), विष्णुधर्मोत्तर १.१८(सगर के अश्वमेध का प्रसंग), शिव ५.३८(सगर का जन्म व चरित्र), स्कन्द १.२.१३.१६८(शतरुद्रिय प्रसंग में सगर द्वारा वंशांकुर लिङ्ग की पूजा), ४.२.८३.६४(सगर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.१७५(कपिलेश्वर तीर्थ का माहात्म्य – कपिल द्वारा सगर-पुत्रों के विनाश के पाप प्रक्षालन हेतु तप), ७.१.१२८(मृत पुत्रों के कल्याणार्थ सगर द्वारा तप, सगर के पुत्रों से सागर की उत्पत्ति, सागरादित्य की स्थापना), हरिवंश १.१४(बाहु - पुत्र, उत्पत्ति का प्रसंग, चरित्र), वा.रामायण १.३८(केशिनी व सुमति - पति, तप, भृगु से वर प्राप्ति, अश्वमेध के अनुष्ठान की कथा), २.११०.१८(असित व कालिन्दी - पुत्र, च्यवन की कृपा से जन्म), लक्ष्मीनारायण ४.२९.२(सगर जाति की विप्र कन्या कुथली का वृत्तान्त ) sagara
सङ्का भागवत ६.६, कथासरित् १०.४.१६८
सङ्कर गरुड ३.१६.७०(मणिमान् दैत्य का अवतार, कर्म), महाभारत शान्ति २१४.२४(शुक्र गति के भूतसंकरकारिका होने का उल्लेख )
सङ्कर्षण गरुड ३.१६.६(जया-पति), ३.१६.२१(संकर्षण व जया से प्रधान संज्ञक वायु की उत्पत्ति का उल्लेख), ३.२२.७९(शूद्रवर्ण में श्रीहरि की संकर्षण नाम से स्थिति), ३.२९.६४(शय्या काल में संकर्षण के ध्यान का निर्देश), गर्ग ८.१०.१६(सङ्कर्षण मन्त्र पटल का कथन), देवीभागवत ८.८(इलावृत वर्ष में रुद्र द्वारा संकर्षण की आराधना), नारद १.६६.८९(सङ्कर्षण की शक्ति सरस्वती का उल्लेख), भविष्य ३.४.११.३, भागवत ५.१७(शङ्कर द्वारा चतुर्व्यूह के अङ्ग संकर्षण की स्तुति), ५.१७.१५(इलावृत वर्ष में भगवान् संकर्षण देव की आराधना), ५.२५(सङ्कर्ष की निरुक्ति, पाताल के नीचे निवास, महिमा, नारद द्वारा स्तुति), ६.१६, १०.२(योगमाया द्वारा देवकी के गर्भ की रोहिणी के गर्भ में स्थापना), वराह १६४, विष्णु ४.१५.२९, विष्णुधर्मोत्तर १.२३७.४(सङ्कर्षण से श्रोत्र की रक्षा की प्रार्थना), ३.१०२.१३(सङ्कर्षण आवाहन मन्त्र), ३.११९.७(सङ्कर्षण की कृषि कर्म के आरम्भ में पूजा), स्कन्द ४.२.६१.२१८(सङ्कर्षण की मूर्ति के लक्षण), ५.३.१०१(सङ्कर्षण तीर्थ का माहात्म्य, बलभद्र द्वारा लिङ्ग की स्थापना), लक्ष्मीनारायण १.२६५.११(सङ्कर्षण की शक्ति सुनन्दा का उल्लेख ), २.२, २.५.७७(हिरण्यकूर्च असुर से संकर्षण का युद्ध, असुर की धातुओं से पूय, रक्त आदि की उत्पत्ति, संकर्षण द्वारा निवास स्थान प्रदान), २.१०७.६९(संकर्षण का कालप्रालेय दैत्य से युद्ध), २.२४१, २.२९३.१०५(सती विवाह में संकर्षण द्वारा मुकुट भेंट का उल्लेख), ४.१०१.९४(विरजा व कृष्ण - पुत्र, अजेश्वरी - भ्राता), samkarshana /sankarshana
सङ्कल्प
भविष्य
२.२.१७.४२(शुक्तिकांस्यादिहस्तैश्च
ताम्ररौप्यादिभिस्तथा।।
संकल्पो
नैव
कर्तव्यो
मृन्मये
च
कदाचन
।। ),
विष्णुधर्मोत्तर
३.२८६(सङ्कल्प
का
निर्वचन
-
संकल्पमूलः
कामो
वै
ज्ञानं
संकल्पबन्धनम्
।।संकल्पबन्धना
वेदा
धर्मः
सङ्कल्पबन्धनः
।।),
शिव
२.१.१६.६
(ब्रह्मा
द्वारा
संकल्प
से
धर्म
के
सृजन
का
उल्लेख
-
संकल्पादसृजं
धर्मं
सर्वसाधनसाधनम्
।।),
५.३१.२३(संकल्पायास्तु
सत्यात्मा
जज्ञे
संकल्प
एव
हि।। ),
६.६.१३(ब्रह्म
उद्यान
का
रूप
-
संकल्पवृक्षोद्यानं
च
गृहं
मणिमयं
ततः।।
रक्तपीठं
च
संपूज्य
पादेषु
प्रागुपक्रमात्
।।),
महाभारत
शान्ति
२३३.१५(प्रलयकाल
में
संकल्प
द्वारा
मन
सहित
चन्द्रमा
को
तथा
संकल्प
द्वारा
चित्त
को
ग्रसने
का
उल्लेख
-
तं
तु
कालेन
महता
संकल्पं
कुरुते
वशे।
चित्तं
ग्रसति
संकल्पस्तच्च
ज्ञानमनुत्तमम्।।),
योगवासिष्ठ
३.३.२०(ब्रह्मा
संकल्पपुरुषः
पृथ्व्यादिरहिताकृतिः
।
केवलं
चित्तमात्रात्मा
कारणं
त्रिजगत्स्थितेः
।। ),
३.४५(ये
सत्यकामाः
सन्त्येवं
संकल्पा
ब्रह्मरूपिणः
।
त्वादृशाः
सर्वमेवाशु
तेषां
सिद्ध्यत्यभीप्सितम्
।।),
३.११०.५४(यथा
क्षिप्रं
प्रति
नरः
स्वसंकल्पात्तथा
मनः
।।
संकल्पतः
प्रम्रियते
संकल्पाज्जायते
पुनः
।),
३.११०.५६
(मनो
मननसंमूढमूढवासनमाततम्
।
संकल्पाद्योनिमायाति
सुखदुःखे
भयाभये
।।)
३.११४.२४(सङ्कल्प
के
परम
बन्धु
होने
का
उल्लेख
-
नाहं
ब्रह्मेति
संकल्पात्सुदृढाद्बध्यते
मनः
।सर्वं
ब्रह्मेति
संकल्पात्सुदृढान्मुच्यते
मनः
।। ),
४.५४(सङ्कल्प
चिकित्सा
-
भावयन्ती
चितिश्चेत्यं
व्यतिरिक्तमिवात्मनः
।
संकल्पतामुपायाति
बीजमङ्कुरतामिव
।।),
६.१.३३.२९(सङ्कल्प
त्याग
पर
सङ्कल्प
से
उत्पन्न
दुःखों
के
नाश
का
वर्णन
-
न
करोमीति
संकल्पात्पुरुषस्येव
कर्तृता
।।
द्वित्वसंकल्पतो
द्वित्वमेकस्यैव
प्रवर्तते
।),
६.१.८०.७५(आकाश
वृक्षों
के
बीज
सङ्कल्प
का
कथन
-
एषामेकोऽभिसंकल्पः
परमाणुर्महीपते
।
बीजमाकाशवृक्षाणां
सर्गाणां
तेष्विमानि
तु
।।),
६.२.१२(सर्ग
एक्य
-
ख
एव
व्योम
संपन्नमिति
संकल्पनं
यथा
।
भ्रान्तिमात्रमसद्रूपं
तथाहंभावभावनम्
।।),
६.२.५०.१६(संकल्प
एव
जाग्रत्त्वं
येषां
चिरतयांशतः
।
तत्रास्तमितचेष्टानां
ते
हि
संकल्पजागराः
।।),
६.२.६८.१५(ब्राह्मं
वपुर्हि
भूतानामात्मीयं
यत्पुरातनम्
।तदेवाद्य
मनोराज्यं
संकल्प
इति
कथ्यते
।। ),
लक्ष्मीनारायण
१.३२३.४९(काम
का
नाम?
- कामः
संकल्प
इत्युक्तो
धर्मपुण्यप्रभाववान्
।
संकल्पस्य
सुतो
जातो
व्यवसायाऽभिधानकः
।।),
४.१०१.५(सङ्कल्प
द्वारा
सृष्टि
का
वर्णन
;
सत्ययुग
में
सङ्कल्प
द्वारा
सृष्टि,
सङ्कल्प
द्वारा
प्रस्तुत
सृष्टि
की
श्रेष्ठता
का
वर्णन
-
सृष्टिः
संकल्पजा
श्रेष्ठा
धामेश्वरादिलोकगा
।सृष्टिर्दर्शनजा
चान्या
देवपित्रादिलोकगा
।।
)
samkalpa/ sankalpa
सङ्कील ब्रह्माण्ड १.२.३२.१२१(३ वैश्य मन्त्रकर्ताओं में से एक )
सङ्केत वराह १६०.४५(मथुरा में सङ्केतकेश्वरी देवी के माहात्म्य का कथन ) samketa/ sanketa
सङ्क्रन्दन मार्कण्डेय १३१.९(दाक्षिणात्यः सुदुर्वृत्तः संक्रन्दनसुतो वने । वपुष्मान्स मृगान्हन्तुं ययावल्पपदानुगः । ।)
सङ्क्रम वामन ५७,
सङ्क्रान्ति अग्नि १२१.६६(वार अनुसार सङ्क्रान्ति के ७ भेद, करण अनुसार शुभाशुभ फल), १९९.६(सङ्क्रान्ति को जागरण का संक्षिप्त महत्त्व), २०९.४(सूर्य सङ्क्रान्ति में दान की पूर्त संज्ञा), २१४.१८(योग में सङ्क्रान्ति के अर्थ का कथन), देवीभागवत ९.३८.८५(आषाढ सङ्क्रान्ति को मनसा देवी की पूजा का निर्देश), नारद १.२९.१९(सङ्क्रान्ति में पुण्य काल का निर्णय), १.५६.२५०(वार अनुसार सङ्क्रान्तियों के नाम व फल, दिवस काल अनुसार फल, करण अनुसार सूर्य के वाहन व हविष्य), २.६३(मकर सङ्क्रान्ति), पद्म १.७७.४३(सङ्क्रान्तियों के भेद, नाम, माहात्म्य), ब्रह्मवैवर्त्त ४.७६.३५(उत्तरायण सङ्क्रान्ति में प्रयाग में स्नान का निर्देश), भविष्य ४.११६(सङ्क्रान्ति का उद्यापन), मत्स्य ९८(सङ्क्रान्ति उद्यापन विधि, अष्टदल कमल पर आदित्य पूजा), विष्णुधर्मोत्तर ३.१९९(देव पूजा), ३.३१९(सङ्क्रान्ति को दान), स्कन्द १.२.७.४८मकर, १.२.७.५८मकर, २.२.३६(कर्क सङ्क्रान्ति, दक्षिणायन में करणीय कृत्य), २.२.४२(मकर सङ्क्रान्ति, उत्तरायण उत्सव), ४.१.२१.३९(सङ्क्रान्ति की पर्वों में श्रेष्ठता का उल्लेख), ५.३.१५३.८(सङ्क्रान्ति को दान का आपेक्षिक फल), ६.२७१.६५(मकर सङ्क्रान्ति को बक के शिव गण बनने की कथा), योगवासिष्ठ ६.१.८१.११८(शरीर में सूर्य - सोम - अग्नि की सङ्क्रान्ति जानने का निर्देश ) samkraanti/ sankranti
सङ्ख्यामान ब्रह्माण्ड ४.२.९१, वायु १०१.९३, महाभारत विराट १०.११(गायों की संख्या में सहदेव/तन्तिपाल की विशेषता ) samkhyaa/ sankhyaa
सङ्गत कथासरित् २.२.२
सङ्गम गर्ग ६.१३(गोमती - सिन्धु सङ्गम की महिमा, राजमार्गपति वैश्य का उद्धार), नारद १.६(गङ्गा - यमुना सङ्गम), पद्म २.१९(रेवा - कपिला सङ्गम), २.९२(रेवा - कुब्जा सङ्गम), ३.१६(कावेरी - नर्मदा सङ्गम), ३.१८(इक्षु - सङ्गम), ३.१८(आयोनि), ३.२१(एरण्डी - नर्मदा सङ्गम), ३.२४(सरस्वती - सागर सङ्गम), ३.२५(कोटि - सरस्वती सङ्गम), ३.२६(कौशिकी - दृषद्वती सङ्गम), ३.२७(सरस्वती - अरुणा सङ्गम), ३.३९(शोण - ज्योतिरथ्या, शोण - नर्मदा सङ्गम), ३.३९(वेणा, वरदा सङ्गम), ३.३९(कृष्णा - वेणा, त्रिवेणी सङ्गम), ६.१३८(बकुला सङ्गम), ६.१४०(साभ्रमती - हिरण्या सङ्गम), ६.१४५(साभ्रमती - हस्तिमती सङ्गम), ६.१४५(हस्तीमती - साभ्रमती सङ्गम, कौण्डिन्य द्वारा हस्तिमती की शुष्कता का शाप), ६.१७०(साभ्रमती सङ्गम), ६.१७३(साभ्रमती - समुद्र सङ्गम), ७.५+ (गङ्गासागर सङ्गम), ब्रह्म २.१८(गणिका - गौतमी सङ्गम), २.२६(पुण्यासिक्ता - गङ्गा सङ्गम), २.३०(कद्रू- सुपर्णा सङ्गम), २.३१(सरस्वती - गङ्गा सङ्गम), २.३२(पञ्चकन्या - गङ्गा सङ्गम), २.३६(अमृता - गङ्गा सङ्गम), २.३७(वृद्धा - गङ्गा सङ्गम), २.५१(विदर्भा - रेवती सङ्गम), २.६२(यक्षिणी - गङ्गा सङ्गम), २.६५(वाणी - गङ्गा सङ्गम), २.७१(कपिला - गङ्गा सङ्गम), २.७४(परुष्णी - गङ्गा सङ्गम), २.७७(अप्सरोयुग - गङ्गा सङ्गम), २.८९(वञ्जरा - गङ्गा सङ्गम), २.१०४(गङ्गा - सागर सङ्गम), मत्स्य १८९(नर्मदा - कावेरी सङ्गम), वराह १४९, १५०, १७४(त्रिवेणी : महानाम ब्राह्मण व पांच प्रेतों के संवाद की कथा), २१५(वाग्मती - वणिवती सङ्गम), स्कन्द १.२.३+ (महीसागर सङ्गम), १.२.५८(महीसागर सङ्गम), २.१.३४(वेणा - सुवर्णमुखरी सङ्गम), २.१.३५(सुवर्णमुखी - कल्पा सङ्गम), २.८.६(सरयू - घर्घरा सङ्गम), ४.२.५९(पञ्चनदियों का सङ्गम), ४.२.८३(असि गङ्गा सङ्गम), ४.२.९७.१६(खङ्गमेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.५६(क्षाता सङ्गम), ५.१.६३(कन्थडेश्वर खगर्ता सङ्गम), ५.२.६९(खङ्गमेश्वर का माहात्म्य, मत्स्य व श्येन का खङ्गमेश्वर लिङ्ग पर कल्याण, सुबाहु राजा द्वारा शिरोव्यथा के कारण का कथन), ५.३.२३(कपिला - विशल्या सङ्गम), ५.३.२४(करा - नर्मदा सङ्गम), ५.३.२५(नीलगङ्गा सङ्गम), ५.३.२९(कावेरी सङ्गम), ५.३.१०३(एरण्डी सङ्गम), ५.३.१५८(खङ्गमेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, पुण्यतोया - नर्मदा सङ्गम), ५.३.२२०.१७,५.३.२३०(तीर्थ व सङ्गम में भेद), ५.३.२३१.७, ७.१.१८३(त्रिसङ्गम का माहात्म्य, सरस्वती - हिरण्या - समुद्र सङ्गम), ७.१.२०४(सरस्वती - सागर सङ्गम), ७.१.२४९(खङ्गमेश्वर का माहात्म्य, उद्दालक द्वारा सरस्वती - पिङ्गा सङ्गम पर तप), ७.१.३२८(खङ्गमेश्वर का माहात्म्य, ऋषियों का सङ्गम में स्नान), लक्ष्मीनारायण २.१२७.२८(सात्त्विक, राजसिक व तामस सङ्गमों का कथन ), कथासरित् ९.५.९१, ९.६.२०४, sangama/ samgama
सङ्गमर्मर लक्ष्मीनारायण २.१८३.९१
सङ्गरयादस्क लक्ष्मीनारायण ३.२२२
संङ्गाल स्कन्द ७.१.३००+ (सङ्गालेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, त्रिनेत्र मत्स्यों वाली गङ्गा का आह्वान),
सङ्गीत नारद १.५०.१५(सङ्गीत शिक्षा), ब्रह्माण्ड २.३.६१.२९(स्वर, ग्राम आदि का वर्णन), भविष्य २.२.२०.५१(राग - वाद्यं राज्याभिषेकाख्यं रागो वसंतसंज्ञकः ।। ...), वराह १३९(मन्दिर में सङ्गीत का माहात्म्य), वायु ८६.३६(स्वर, ग्राम, मूर्च्छा आदि का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८(सङ्गीत के लक्षण, ग्राम, स्वर आदि), ३.१९.१(अवनद्ध वाद्य में क्वणान्वित और करुणान्वित होने का उल्लेख - अथावनद्धं तत्र पौष्करवत्क्वणान्वितं करुणान्वितम् ।), हरिवंश २.८९.६७(कृष्ण व यादवों के समक्ष सङ्गीत - छालिक्यगेयं बहुसंनिधानं यदेव गान्धर्वमुदाहरन्ति ।।.. ), लक्ष्मीनारायण ३.१४५.४(सप्तस्वरास्त्रयो ग्रामा मूर्छनास्त्वेकविंशतिः ।।.. sangeeta/ samgeeta/ sangita
भारतीय सङ्गीत-शास्त्र का दर्शनपरक अनुशीलन पुस्तक का सार-संक्षेप
सङ्ग्रह शिव ७.२.११.४६
सङ्ग्राम अग्नि २३६, २७४(सोम व बृहस्पति का सङ्ग्राम), २७६(द्वादश सङ्ग्राम), गर्ग ७.३३.३६(सङ्ग्रामजित् : कृष्ण व भद्रा - पुत्र, भूतसन्तापन असुर का वध ), शिव ५.२१.२०, sangraama/ sangrama
सङ्ग्रामदत्त कथासरित् ७.४.१०१, १२.८.८५, १७.५.१११, १८.२.२७६,
सचिव द्र. कुमारसचिव
सच्चिदानन्द शिव ६.१६.२५(सच्चिदानन्द शब्द की निरुक्ति, सच्चिदानन्द से सृष्टि का कथन), लक्ष्मीनारायण ३.१७०, सामरहस्योपनिषद २९०:३(जीव संघ त्रिविध : सत् - संसारात्मक, चित् - ज्ञानी, आनन्द - रसानन्द रूप ‹ माया के तीन रूप - सत्, चित् , आनन्द) sachchidaananda
सज्जन योगवासिष्ठ ६.२.९८(सज्जन समागम),
सञ्चाला लक्ष्मीनारायण २.२१८.८७, २.२१९
सञ्जय गर्ग ७.२०.३३(कौरव - सेनानी, प्रद्युम्न - सेनानी सुनन्दन से युद्ध), देवीभागवत ६.२६.१२(कैकेयी - पति, दमयन्ती - पिता, पुत्री के नारद से विवाह का प्रसङ्ग), भविष्य ४.१३(सञ्जय द्वारा स्वर्णष्ठीवी पुत्र प्राप्ति की कथा, पुत्री का विवाह नारद से करने पर पर्वत द्वारा शाप), वायु २३.१७१(१६वें द्वापर में व्यास ), शिव ३.४.२६(षष्ठ द्वापर में लोकाक्षि शिव के शिष्यों में से एक), लक्ष्मीनारायण ३.२१६.१,
सञ्जय- १) गवल्गण नामक सूत के पुत्र, जो मुनियों के समान ज्ञानी और धर्मात्मा थे । ये धृतराष्ट्र के मन्त्री थे (महाभारत आदि० ६३ । ९७) । सञ्जय द्वारा महाभारत के गूढ श्लोकों के अर्थ जानना शंकास्पद होना(आदि० १.११७)। धृतराष्ट्र के द्वारा इनको अपनी विजय- विषयक निराशा का अनुभव सुनाना ( आदि० १ । १५०- २१८) । इनके द्वारा धृतराष्ट्र को आश्वासन ( आदि० १ । २२२-२५१ ) । ये युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में गये ये । इन्हें राजाओं की सेवा और सत्कार के कार्य में नियुक्त किया गया था ( सभा० ३५ । ६) । इनका धृतराष्ट्र को फटकारना ( सभा० ८१ । ५- १८) । इनका धृतराष्ट्र के आदेश से विदुरको बुलाने के लिये काम्यकवन में जाना और विदुर से संदेश कहना ( वन० ६ । ५- १७) । इनके द्वारा संताप करते हुए धृतराष्ट्र की बातों का समर्थन ( वन० ४९ । १- १३) । इनका धूतराष्ट्र से दुर्योधन के वध के लिये श्रीकृष्णादि के द्वारा काम्यकवन में की हुई प्रतिज्ञा का वर्णन करना ( वन- ५१ । १५- ४४) । धृतराष्ट्र के भेजने से युधिष्ठिर के पास जाकर उनका कुशल पूछना ( उद्योग० २३ । १-५) । युधिष्ठिर के प्रश्नों का उत्तर देना ( उद्योग० २४ अध्याय) । पाण्डवों की सभा र्मे धृतराष्ट्र का संदेश सुनाना ( उद्योग० २५ अध्याय) । युधिष्ठिर को युद्ध में दोष की सम्भावना दिखाकर शान्त रहने के लिये कहना ( उद्योग० २७ अध्याय) । युधिष्ठिर के पास से हस्तिनापुर लौटकर धृतराष्ट्र से उनका कुशलसमाचार कहना और धृतराष्ट्र के कार्यों की निन्दा करना ( उद्योग० ३२ । ११-३०) । कौरव-सभा में आगमन ( उद्योग० ४७ । १४) । कौरव सभा में अर्जुन का संदेश सुनाना ( उद्योग० ४८ अध्याय) । धृतराष्ट्र से युधिष्ठिर के प्रधान सहायकों का वर्णन करना ( उद्योग० ५० अध्याय) । धृतराष्ट्र को उनके दोष बताते हुए दुर्योधन पर शासन करने की सलाह देना ( उद्योग० ५४ अध्याय) । दुर्योधन से पाण्डवों के रथ और अश्वों का वर्णन करना ( उद्योग० ५६ । ७-१७) । पाण्डवों की युद्ध के लिये तैयारी का वर्णन ( उद्योग० ५७ । २-२५) । धृष्टद्युम्न की शक्ति एवं संदेश का कथन ( उद्योग० ५७ । ४७-६२) । धृतराष्ट्रके पूछने पर अन्तःपुर में कहे हुए श्रीकृष्ण और अर्जुन के संदेश सुनाना ( उद्योग० ५९ अध्याय) । धृतराष्ट्र को अर्जुन का संदेश सुनाना ( उद्योग० ६६ । ३-१५) । धृतराष्ट्र से श्रोकृष्ण की महिमा का वर्णन करना ( उद्योग० अध्याय ६८ से ७० तक) । धृतराष्ट्र से कर्ण और श्रीकृष्ण के वार्तालाप का वृत्तान्त बताना ( उद्योग० १४३ अध्याय) । धृतराष्ट्र को कुरुक्षेत्र में सेना का पडाव पडने के बाद का समाचार सुनाना आरम्भ करना ( उद्योग० १५९ । ८) । व्यासजी की कृपा से इन्हें दिव्यदृष्टि की प्राप्ति ( भीष्म० २ । १०) । धृतराष्ट्र के पूछने पर भूमि के गुणों का वर्णन करना (भीष्म० ४ । १० से भीष्म० ५५ । १२ तक) । सुदर्शन द्वीप का वर्णन करना ( भीष्म० ५ । १३) । धृतराष्ट्र से भीष्मजी की मृत्यु का समाचार सुनाना ( भीष्म० १३ अध्याय) । ( यहाँ से सौप्तिकपर्व के ९ वे अध्याय तक संजय ने धृतराष्ट्र से युद्ध का समाचार सुनाया है ।) धृतराष्ट्र को उपालम्भ देना ( द्रोण० ८६ अध्याय) । धृतराष्ट्र से कर्ण द्वारा अर्जुन के ऊपर शक्ति न छोडे जाने का कारण बताना ( द्रोण० १०२ अध्याय) । कौरवपक्ष के मारे गये प्रमुख वीरौ का परिचय देना ( कर्ण० ५ अध्याय) । पाण्डवपक्ष के मारे गये प्रमुख वीरों का परिचय देना ( कर्ण० ६ अध्याय) । कौरवपक्ष के जीवित योद्धाओं का वर्णन ( कर्ण० ७ अध्याय) । सात्यकि द्वारा जीते-जी इनका बंदी बनाया जाना ( शल्य० २५ । ५७-५८) । व्यासजी के अनुग्रह से सात्यकि की कैद से छुटकारा पाना ( शल्य० २९ । ३९(२०)) । इनकी दिव्यदृष्टि का चला जाना (सौप्तिक० ९ । ६२) । धृतराष्ट्र को सान्त्वना देना ( स्त्री. १ । २३- ४३) । धृतराष्ट्र से स्वजनों का मृतक कर्म करने को कहना ( स्त्री० ९ । ५-७) । युधिष्ठिर द्वारा इन्हें कृताकृत कार्यों की जांच तथा आयव्यय के निरीक्षण का कार्य सौपा जाना ( शान्ति० ४१ । ११) । धृतराष्ट्र और गान्धारी के साथ इनका वनगमन ( आश्रमः १५ । ८) । यात्रा के प्रथम दिन गङ्गातट पर धृतराष्ट्र के लिये शय्या बिछाना ( आश्रम० १८ । १९) । वनवासी महर्षियों से पाण्डवों तथा उनकी पत्नियों का परिचय देना ( आश्रम० २५ अध्याय) । ये वन में छठे समय अर्थात् दो दिन उपवास करके तीसरे दिन आहार ग्रहण करते थे ( आश्रम० ३७ । १३) । ये सदा धृतराष्ट्र के पीछे चलते और ऊँची - नीची भूमि में उन्हें सहारा देकर ले चलते थे (आश्रम० ३७ । १६-१७) । वन में दावानल प्रज्वलित हो जाने पर धृतराष्ट्र ने सञ्जय को दूर भाग जाने के लिये कहा । सञ्जय ने इस तरह दावानल में जलकर होनेवाली मृत्यु को राजा के लिये अनिष्ट बतायी किंतु उससे बचाने का कोई उपाय न देखकर अपना कर्तव्य पूछा । राजा ने कहा कि गृहत्यागियों के लिये यह मृत्यु अनिष्टकारक नहीं, उत्तम है, तुम भाग जाओ । तब सञ्जय ने राजा की परिक्रमा की और उन्हें ध्यान लगाने के लिये कहा । राजा धृतराष्ट्र, गान्धारी और कुन्ती तीर्नो दग्ध हो गये, किंतु ये दावा- नल से मुक्त हो गये । फिर गङ्गातट पर तपस्वी जनों को राजा के दग्ध होने का समाचार बताकर ये हिमालय को चले गये ( आश्रम० ३७ । १९-३४) । ( २) सौवीर देश का एक राजकुमार, जो हाथ में ध्वज लेकर जयद्रथके पीछे चलता था ( वन० २६५ । १०) । द्रौपदीहरण के समय अर्जुन द्वारा इसका वध(वन० २७१ । २७) । ( ३) सौवीर देश का एक राजकुमार, जिसकी माता विदुला थी ।एक दिन रणभूमि से भागकर आने पर माता ने इसे कडी फटकार दी और युद्ध के लिये प्रोत्साहन दिया ( उद्योग० अध्याय १३३ से १३६ । १२ तक) । माता के उपदेश से युद्ध के लिये उद्यत हो उसकी आज्ञा का यथावत् रूप से पालन किया ( उद्योग० १३६ । १३ -१६) । सञ्जयन्ती-दक्षिण भारत की एक नगरी, जिसे सहदेव ने दक्षिणदिग्विजय के समय दूतों द्वारा संदेश देकर ही अपने अधिकार में करके वहाँ से कर वसूल किया था ( सभा० ३१ । ७०) ।
सञ्जययानपर्व-उद्योगपर्व का एक अवान्तर पर्व ( अध्याय २० से ३२ तक) ।
sanjaya
सञ्जीवक कथासरित् १०.४.१३
संज्ञा अग्नि २७३, गरुड ३.२९.२६(यम-भार्या श्यामला का संज्ञा रूप में अवतरण, निरुक्ति), पद्म १.८, ब्रह्म १.४, १.३०, ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.१४५(संज्ञा का रत्नमाला रूप में अंशावतरण), ४.४५(शिव विवाह में संज्ञा द्वारा हास्य), भविष्य १.४७(रूपा उपनाम, संज्ञा - छाया - सूर्य आख्यान), ३.४.१८(विश्वकर्मा व चित्ता से संज्ञा की उत्पत्ति का प्रसंग, स्वयंवर में देवों व असुरों का आगमन, परस्पर युद्ध, विवस्वान् द्वारा संज्ञा की प्राप्ति), मत्स्य ११(त्वष्टा - पुत्री, सूर्य - पत्नी, अन्य सपत्नों के नाम, संज्ञा - छाया कथा), मार्कण्डेय ७७(संज्ञा - छाया - सूर्य आख्यान), १०६(संज्ञा - सूर्य - छाया आख्यान), वायु ८४.३२(संज्ञा - सूर्य - छाया कथा), विष्णुधर्मोत्तर १.१०६, शिव ५.३५(संज्ञा - सूर्य - छाया आख्यान, अश्विनौ का जन्म), स्कन्द ५.१.५६.१४(संज्ञा का अनुसूर्या सावित्री नाम, छाया - सूर्य - संज्ञा की कथा), ७.१.११(संज्ञा के राज्ञी, द्यौ, त्वाष्टी, प्रभा, सुरेणु आदि अन्य नाम), हरिवंश १.९(सूर्य - भार्या, उपनाम सुरेणु), १.९(संज्ञा - छाया - सूर्य आख्यान ), लक्ष्मीनारायण १.६१, १.३१०, १.३८५.५०(संज्ञा का कार्य), sanjnaa/samjnaa/ sangya
सत्, रज, तम अग्नि ३८१.३६
सती देवीभागवत ७.३०, पद्म १.५, ब्रह्म १.३२, २.३९, ब्रह्मवैवर्त्त ४.४२.८१(दक्ष यज्ञ में सती द्वारा देह त्याग), ४.४३, ४.८४.१६(सती के कर्तव्यों का कथन), भविष्य ३.३.३१.३०(४ युगों में सती की स्थिति), भागवत ४.३(सती द्वारा दक्ष यज्ञ में जाने का आग्रह), ४.४(दक्ष यज्ञ में सती का अग्नि में प्रवेश, दक्ष से शिव माहात्म्य का कथन), ६.६.१९(अङ्गिरा की २ भार्याओं में से एक, अथर्वाङ्गिरस वेद - माता), मत्स्य १३(तीर्थों में सती के १०८ नाम), ६०(दक्ष द्वारा सौभाग्य अंश के पान से सती की उत्पत्ति, ललिता उपनाम, आराधना विधि), ६४, वामन ४(दक्ष यज्ञ में सती द्वारा प्राणों का त्याग), वायु ३०.३८, शिव २.२.१(ब्रह्मा द्वारा रुद्र के मोहार्थ दक्ष से सती को उत्पन्न करना), २.२.११+ (सती जन्म के पीछे कारण), २.२.१८(सती का शिव से विवाह), २.२.२३(सती के भक्तिभाव व मोक्ष का कथन), २.२.२४+ (सती द्वारा राम की परीक्षा, सीता रूप धारण, शिव द्वारा सती का त्याग), ३.३(सती की शिव से उत्पत्ति, दक्ष - पुत्री), ७.१.१८(दक्ष से सती का जन्म), ७.१.१९(सती द्वारा देह त्याग), स्कन्द १.१.३(दक्ष के यज्ञ में सती का भस्म होना), ४.२.९३.२८(सतीश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : सती द्वारा शिव की पति रूप में प्राप्ति हेतु स्थापना), ५.३.१९८.९०, ७.१.७(१७वें कल्प में पार्वती का नाम), लक्ष्मीनारायण १.१६५.३३(महिषासुर - पत्नी कुण्ढी द्वारा शाप के कारण कात्यायनी का अवतार), १.१६९, १.१७०.९१(शिव द्वारा सती को पत्नी रूप में अस्वीकार करने पर सती का योगनिद्रा बनकर विष्णु की आंखों में वास करना), १.४३४.४९(विष्णुमती द्वारा पादाङ्गुष्ठ से वह्नि का उत्पादन कर पति सहित भस्म होना ), २.३८, २.१०१, २.२६७, २.२७१.२७, ३.१३.३७, ३.४४, satee/sati
सत्कीर्ति पद्म ५.६७.३८(सुमद - पत्नी )
सत्त्व ब्रह्माण्ड १.२.३६.७१(महासत्त्व : प्रसूतगण के देवों में से एक), महाभारत शान्ति २५३+(योगी द्वारा प्राणियों के भीतर सत्त्व रूप के दर्शन तथा स्वयं के सत्त्व पर अधिकार का वर्णन - प्रतिरूपं यथैवाप्सु तावत्सूर्यस्य लक्ष्यते। सत्ववांस्तु तथा सत्वं प्रतिरूपं स पश्यति।।), योगवासिष्ठ ६.१.१०३.२३(समाधि में सत्त्वशेष जानने की विधि ), कथासरित् १२.११.९सत्त्ववर sattva
सत्त्व
-
रज
-
तम
अग्नि
३८१.३६(सत्त्वात्सञ्जायते
ज्ञानं
रजसो
लोभ
एव
च
।
प्रमादमोहौ
तमसो
भवतो
ज्ञानमेव
च
।।),
गरुड
३.१.४३(पुराणों
का
सत्त्व-रज-तम
अनुसार
विभाजन),
३.१०.१३(सत्त्व-रज-तम
आवरणों
का
कथन
-
महत्तत्त्वानन्तरं
च
तमो
ह्यावरणं
स्मृतम्
॥
महत्तत्त्वात्पञ्चगुणैरधिकं
परिकीर्तितम्
।)..,
गर्ग
५.१८.८(कृष्ण
से
वियोग
पर
सत्त्वादि
वृत्तियों
के
उद्गार
-
पूर्वं
कष्टगतं
भक्तं
ध्रुवं
कायाधवं
च
वै
।
पश्चाद्ररक्ष
कृपया
न
पूर्वं
दीनवत्सलः
॥),
देवीभागवत
१.१.१४(वेदान्त
के
सात्त्विक,
मीमांसा
के
राजस
व
न्याय
के
तामस
होने
का
उल्लेख
-
सात्त्विकं
तत्र
वेदान्तं
मीमांसा
राजसं
मतम्
।
तामसं
न्यायशास्त्रं
च
हेतुवादाभियन्त्रितम्
॥),
ब्रह्मवैवर्त्त
२.१.६(प्रकृति
के
तीन
अक्षरों
में
सत्त्व,
रज,
तम
का
समावेश
-
गुणे
प्रकृष्टसत्त्वे
च
प्रशब्दो
वर्तते
श्रुतौ
।।
मध्यमे
कृश्च
रजसि
तिशब्दस्तमसि
स्मृतः
।। ),
भविष्य
३.४.१८.२४(सत्त्वभूता
भगिनी,
रजोभूता
पत्नी
तथा
तमोभूता
कन्या
होने
का
उल्लेख),
३.४.१८.२७(शिव
द्वारा
भगिनी
को
पत्नी?
रूप
में
स्वीकार
करने
से
श्रेष्ठता
प्राप्ति
का
उल्लेख
-
स्वकीयां
च
सुतां
ब्रह्मा
विष्णुदेवः
स्वमातरम्
।।
भगिनीं
भगवाञ्छंभुर्गृहीत्वा
श्रेष्ठतामगात्
।।),
भागवत
११.२२.१३(सत्त्वं
ज्ञानं
रजः
कर्म
तमोऽज्ञानमिहोच्यते),
११.२५.१९(
सत्त्वाज्जागरणं
विद्याद्रजसा
स्वप्नमादिशेत्।
प्रस्वापं
तमसा
जन्तोस्तुरीयं
त्रिषु
सन्ततम्॥),
मार्कण्डेय
१०२.७/९९.७(ऋचाओं
के
रजोगुणी,
यजुओं
के
सतोगुणी
आदि
होने
का
कथन
-
ऋचो
रजोगुणाः
सत्त्वं
यजुषां
च
गुणा
मुने
।
तमोगुणानि
सामानि
तमःसत्त्वमथर्वसु
।।),
महाभारत
शान्ति
३०१.४(सत्त्व,
रज
व
तम
के
गुणों
की
संख्या
व
नाम
-
सत्वं
दशगुणं
ज्ञात्वा
रजो
नवगुणं
तथा।
तमश्चाष्टगुणं
ज्ञात्वा
वृद्धिं
सप्तगुणां
तथा।।),
३१४.७(
सत्त्व,
रज,
तम
का
व्यावहारिक
पक्ष
में
निरूपण
-
अव्यक्तः
सत्त्वसंयुक्तो
देवलोकमवाप्नुयात्।
रजःसत्त्वसमायुक्तो
मनुष्येषूपपद्यते
॥..),
आश्वमेधिक
३१.१(सत्त्व,
रज,
तम
आदि
के
अनुसार
गुणों
के
९
भेद
-
हर्षः
स्तंभोतिमानश्च
त्रयस्ते
सात्विका
गुणाः।।
शोकः
क्रोधाभिसंरम्भो
राजसास्ते
गुणाः
स्मृताः।..
), लक्ष्मीनारायण
२.२५५.३३(अत्र
सत्त्वं
दशभावं
मे
निबोध
वदामि
तान्
।।
आनन्दः
प्रीतिरुद्धर्षः
प्रकाशः
पुण्यकारिता
।)..,
संगीतरत्नाकर
२.७२(सात्त्विक
के
७,
राजस
के
६
व
तामस
के
३
प्रकारों
के
नाम),
sattva - raja - tama
सत्त्वर कथासरित् ९.३.९०,
सत्वशील कथासरित् ७.१.३३, १२.१४.५,
सत्य नारद १.६६.९४(सत्य विष्णु की शक्ति भुक्ति का उल्लेख), पद्म १.५३(सत्य की प्रशंसा), २.१२(सत्य के रूप), २.१२.७४(सत्य की मूर्ति का स्वरूप), २१३, २५६, ५.८४.५८(सत्य का पुष्प रूप), ५.९९.१८(सत्य की कुण्डल से उपमा), ६.२७.१९(सत्य की महिमा), ६.१७१, ब्रह्मवैवर्त्त २.१, भागवत ११.१९.३७(सत्य की परिभाषा : समदर्शन), १२.२.२४(सत्ययुग के आरम्भ में चन्द्रमा, सूर्य व बृहस्पति के योग का कथन), वराह १५५.२९, वायु ५९.४०(सत्य के लक्षणों का कथन), विष्णुधर्मोत्तर ३.२६५(सत्य की प्रशंसा), शिव ३.४, ५.१२.२३, स्कन्द १.२.१३.१३२(जल द्वारा सत्य परीक्षा विधि), ५.३.२८.१८, ५.३.५१.३६, ५.३.५६.९८, ५.३.१९८.८८, ६.२९, महाभारत वन ३१३.७०, शान्ति १०९, १६२, १९०, योगवासिष्ठ ३.१.१२(आत्मा के ऋत व परब्रह्म के सत्य होने का उल्लेख), ६.२.३२(सत्य का अवबोधन), ६.२.१७७, लक्ष्मीनारायण ३.३३, कृष्णोपनिषद १६(अक्रूर सत्य का रूप ), द्र. ब्रह्मसत्य, मन्वन्तर satya
Vedic view of Satya(by Dr. Tomar)
सत्यक ब्रह्मवैवर्त्त ४.६३, ४.६४(कंस - पुरोहित, दु:स्वप्न नाश के लिए कंस को यज्ञ का परामर्श), द्र. मन्वन्तर
सत्यकर्ण हरिवंश ३.१.५(चन्द्रापीड के १०० पुत्रों में से ज्येष्ठ, श्वेतकर्ण - पिता )
सत्यकेतु स्कन्द २.४.२टीका (अन्न दान की गङ्गा स्नान से श्रेष्ठता की कथा), द्र. मन्वन्तर
सत्यजित् ब्रह्माण्ड १.२.२३.२३(सत्यजित् गन्धर्व की सूर्य रथ में स्थिति का कथन), २.३.५.९३(मरुतों में से एक), भागवत ८.१, स्कन्द २.४.२टीका (सत्यजित् द्वारा अन्न दान की गङ्गा स्नान से श्रेष्ठता का कथन ), द्र. रथ सूर्य satyajit
सत्यतपा पद्म ५.७२.१२(सत्यतपा मुनि का तप से कृष्ण - पत्नी भद्रा बनना), ५.७२.६६(व्यास, शुक - पिता), ६.१७८(इन्द्र - प्रेषित कन्या द्वय द्वारा सत्यतपा के तप में विघ्न, शाप से बदरी वृक्ष - द्वय बनना), ब्रह्म १.१२०(सत्यतपा ब्राह्मण का उर्वशी से संवाद, सत्यतपा द्वारा रूप तीर्थ में तप, जन्मान्तर में पुरूरवा बनकर उर्वशी का भोग करना), वराह ३८+ (दुर्वासा द्वारा व्याध का सत्यतपा नामकरण, तिथि व्रत विधान का कथन), ५१, ९८(सत्यतपा व्याध द्वारा तप, कटी अङ्गुलि से भस्म बिखरना, शूकर की व्याध से रक्षा करना), लक्ष्मीनारायण १.५४२, १.५६०.२(सत्यतपा की कटी अङ्गुलि से भस्म निकलने, इन्द्र व विष्णु द्वारा सत्यतपा के सत्य की परीक्षा लेने का वृत्तान्त ) satyatapaa
सत्यदत्त भविष्य ३.४.८.१००(सत्यदत्त राजा द्वारा दरिद्र पुरुष का क्रय करने से लक्ष्मी का निष्क्रमण, सत्य के ग्रहण से लक्ष्मी का अचल होना ) satyadatta
सत्यदेव भविष्य ३.४.८
सत्यधर कथासरित् १२.७.२५
सत्यधर्म पद्म ७.९(विजया - पति सत्यधर्म राजा द्वारा शरणागत दोष से भेकत्व प्राप्ति, गङ्गा नाम से मुक्ति),
सत्यधृति मत्स्य ५०.१०(शतानन्द - पुत्र, सरोवर में स्खलित वीर्य से कृप व कृपी का जन्म - स्कन्नं रेतः सत्यधृतेर्द्रृष्ट्वा चाप्सरसं जले। मिथुनं तत्र सम्भूतं तस्मिन् सरसि सम्भृतम्।।), हरिवंश १.३२.३२(तस्य सत्यधृते रेतो दृष्ट्वाप्सरसमग्रतः । अवस्कन्नं शरस्तम्बे मिथुनं समपद्यत ।)
उद्योग १७१.३८(पाण्डवपक्ष के महारथी योद्धा, जिन्हें भीष्मजी ने रथियों में श्रेष्ठ माना था।), आदि १८५.१०(ये द्रौपदी के स्वयंवर में पधारे थे), भीष्म ९३.१३(ये सुचित्त के पुत्र थे। इन्होंने युद्ध में हिडिम्बाकुमार घटोत्कच की सहायता की थी - तमन्वगात्सत्यधृतिः सौचित्तिर्युद्धदुर्मदः ।), द्रोण २३.३६-३९(इनके घोडों का रंग लाल था, परन्तु उनके पैर काले रंग के थे। ये सभी सुवर्णमय विचित्र कवचों से सुसज्जित थे। कुमार सत्यधृति अस्त्रों के ज्ञान, धनुर्वेद तथा ब्राह्मवेद में भी पारंगत थे - कुमारं शितिपादास्तु रुक्मचित्रैरुरश्छदैः। सौचित्तिमवहद्युद्धे यन्तुः प्रेष्यकरा हयाः।। ...... अस्त्राणां च धनुर्वेदे ब्राह्मे वेदे च पारगम्। तं सत्यधृतिमायान्तमरुणाः समुपावहन्।।), कर्ण ६.३४(द्रोणाचार्य द्वारा इनके मारे जाने की चर्चा - तथा सत्यधृतिर्वीरो मदिराश्वश्च वीर्यवान्। सूर्यदत्तश्च विक्रान्तो निहतो द्रोणसायकैः।।), द्रोण २३.५८(राजा क्षेम का पुत्र पाण्डवपक्ष का योद्धा, इसके घोडों का वर्णन - शबलास्तु बृहन्तोऽश्वा दान्ता जाम्बूनदस्रजः। युद्धे सत्यधृतिं क्षेमिमवहन्प्रांशवः शुभाः।।)।
सत्यनारायण-व्रत भविष्य ३.२.२४(सत्यनारायण व्रत विधि), ३.२.२८(कलावती द्वारा स्व पति शंखपति की रक्षा आदि ), ३.२.२६.१४+(सत्यनारायण व्रत मण्डप निर्माण विधि), लक्ष्मीनारायण ३.३३.५१ satyanaaraayana/ satyanarayana
Comments on Satyanaaraayana
सत्यनिधि भविष्य ३.४.१८(सधन के पूर्व जन्म का रूप),
सत्यनिष्ठ स्कन्द २.७.१४(दुर्वासा - शिष्य, सच्चरित्र, भक्ति में निष्ठा, तपोनिष्ठ का उद्धार करना )
सत्यनेत्र ब्रह्माण्ड १.२.११.२२(अत्रि व अनसूया - पुत्र), शिव ७.१.१७.३१,
सत्यपद स्कन्द २.३.७(बदरी क्षेत्र में स्थित सत्यपद तीर्थ में त्रिकोण की स्थिति )
सत्यप्रकाश भविष्य ३.२.११(धर्मवल्लभ का मन्त्री, लक्ष्मी - पति, पत्नी वरण में राजा की सहायता )
सत्यभामा पद्म १.२३.६७(वेदवती का अवतार ?), ६.८८, ६.८९(पूर्व जन्म में देवशर्मा - पुत्री गुणवती, कार्तिक सेवन से कृष्ण - पत्नी बनना), ६.११५, ६.२४९.१(पृथ्वी का अंश), ६.२४९(सत्यभामा के विवाह का वर्णन, स्यमन्तक मणि की कथा), ब्रह्म १.१४, १.९४, ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.१४४(वसुन्धरा का अंशावतार), भागवत १०.५६(स्यमन्तक मणि की कथा, सत्यभामा का कृष्ण से विवाह), १०.८३(सत्यभामा द्वारा द्रौपदी से स्वविवाह के प्रकार का वर्णन), मत्स्य ४७.१७(सत्यभामा के पुत्रों के नाम), वायु ९६.५५(द्वारवती व भङ्गकार - पुत्री, गुणों के कारण कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने का कथन), विष्णु ४.१३.६४, विष्णुधर्मोत्तर ३.८५.७४(सत्यभामा की मूर्ति का रूप), स्कन्द २.४.१३(पूर्व जन्म में देवशर्मा - पुत्री, चन्द्र पत्नी), ५.३.९७.३३(वसु राजा की भार्या, मत्स्यगन्धा की उत्पत्ति की कथा), ७.१.१५७(सत्यभामेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), हरिवंश १.३९(सत्राजित् - पुत्री), २.६३, २.६५, २.६६+ (पारिजात पुष्प न मिलने पर सत्यभामा का कोप), २.१०३(सत्यभामा के पुत्रों के नाम), कृष्णोपनिषद १५(धरा का रूप ) satyabhaamaa/ satyabhamaa
सत्यमन्दिर स्कन्द ३.२.१२(सत्यमन्दिर पुर की स्थापना, गणेशादि की स्थापना, नगर शोभा),
सत्यरथ मत्स्य १२, शिव ३.३१, ५.३८.१९सत्यरथा, स्कन्द ३.३.६(विदर्भ के राजा सत्यरथ द्वारा शिव प्रदोष पूजा भङ्ग के कारण शाल्व नृप से युद्ध में मरण ), हरिवंश १.१३.२४, satyaratha
सत्यलोक लक्ष्मीनारायण ४.९३,
सत्यवत् पद्म ५.३२
सत्यवती देवीभागवत १.२०, २.१+ (उपरिचर वसु के वीर्य से मत्स्य से सत्यवती की उत्पत्ति, पराशर से समागम, व्यास का जन्म आदि), पद्म १.९(अच्छोदा का अवतार, वर्णन), ५.६७.३८(सुबाहु - पत्नी), ब्रह्म १.८(सत्यवती का ऋचीक से विवाह, चरु व्यत्यय का प्रसंग, जमदग्नि की उत्पत्ति), ब्रह्माण्ड २.३.१०, २.३.६६.४५(गाधि - कन्या, ऋचीक - भार्या, चरु विपर्यास का प्रसंग), भागवत ९.१५(सत्यवती का ऋचीक से विवाह, कौशिकी नदी बनना), मत्स्य १४(उपरिचर वसु की कन्या, शन्तनु - भार्या, अच्छोदा का अवतार), वायु ७२.६५, ९०, विष्णुधर्मोत्तर १.३३(और्व - भार्या, चरु विपर्यास से पुत्रों के गुणों में विपर्यय का आख्यान), स्कन्द ४.२.९७.११३(सत्यवतीश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), हरिवंश १.१८, १.२७(गाधि - कन्या, ऋचीक - पत्नी, चरु विपर्यास का प्रसंग), वा.रामायण ०.३(सुमति राजा की पत्नी, पूर्व जन्म में निषाद - कन्या काली, रामायण श्रवण से वैभव प्राप्ति), १.३४(गाधि - पुत्री, ऋचीक - पत्नी, कौशिकी नदी बनना ) satyavatee/ satyavati
Esoteric aspect of Satyavatee
सत्यवाक् गर्ग ७.१४.१५(द्रविड देश के स्वामी सत्यवाक् द्वारा प्रद्युम्न का सत्कार),
सत्यवान् देवीभागवत ९.२७, पद्म ५.३२(सत्यवान् राजा का शत्रुघ्न से मिलन), ५.६७.३८(वीरभूषा - पति), मत्स्य २०८+ (सावित्री - पति, यम के बन्धन से मुक्ति आदि की कथा ), स्कन्द ७.१.१६६, लक्ष्मीनारायण १.३६६ satyavaan
सत्यविक्रम स्कन्द ५.२.५४(शत्रुओं द्वारा राज्य हरण पर सत्यविक्रम राजा का वसिष्ठ के परामर्श से महाकालवन में जाना, सखा द्वारा माया के दर्शन कराना, कंटकेश्वर लिङ्ग की पूजा से निष्कंटक राज्य की प्राप्ति ) satyavikrama
सत्यव्रत देवीभागवत ३.१०(उतथ्य द्वारा सत्य कथन के कारण सत्यव्रत नाम की प्राप्ति), ७.१०+ (अरुण - पुत्र, दुराचारी, त्रिशङ्कु नाम की प्राप्ति, राज्य से निष्कासन व पुन: राज्य की प्राप्ति, सशरीर स्वर्ग जाने का उद्योग), ७.१३.४६(विश्वामित्र के परिवार को भोजन देने हेतु सत्यव्रत द्वारा वसिष्ठ की गौ का वध, शाप से त्रिशङ्कु नाम की प्राप्ति), ब्रह्म १.५(त्रय्यारुण - पुत्र, दुष्टता, विश्वामित्र की पत्नी की रक्षा से गालव नाम की प्राप्ति, त्रिशङ्कु नाम प्राप्ति, विश्वामित्र की कृपा से मनुष्य रूप में स्वर्गारोहण), ब्रह्माण्ड २.३.६३.८३(सत्यव्रत द्वारा गालव नाम प्राप्ति की कथा, त्रिशङ्कु नाम प्राप्ति व स्वर्ग गमन की कथा), भागवत ८.१, ८.२४(राजा, जन्मान्तर में श्राद्धदेव, मत्स्यावतार की कथा), मत्स्य १२,वायु ८८.८१(त्रय्यारुण - पुत्र, पिता द्वारा राज्य से निष्कासन, सत्यव्रत द्वारा विश्वामित्र के परिवार की रक्षा से गालव नाम की प्राप्ति की कथा, त्रिशङ्कु नाम प्राप्ति की कथा), विष्णुधर्मोत्तर २.३६+, स्कन्द १.२.४५(नन्दभद्र वैश्य द्वारा सत्यव्रत नास्तिक के मत का खण्डन), हरिवंश १.१२+ (त्रय्यारुण - पुत्र, चरित्र, त्रिशङ्कु नाम की प्राप्ति ), लक्ष्मीनारायण १.४३१, ३.९४, ३.९४.८०, कथासरित् ५.२.३३, ५.३.१, १२.६.२५७, satyavrata
सत्यसन्ध स्कन्द ६.१२६(सत्यसन्धेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, कर्णोत्पला - पिता सत्यसन्ध का ब्रह्मलोक गमन, पुन: आगमन पर तप, लिङ्ग स्थापना, कन्या का काम से विवाह ), लक्ष्मीनारायण १.५०० satyasandha
सत्यसेन स्कन्द ६.१४१
सत्या गर्ग ६.८.१७(नग्नजित् - पुत्री, स्वयंवर में सात वृषभों का निग्रह करने पर कृष्ण का वरण), देवीभागवत ९.४३(नग्नजित् - पुत्री, कृष्ण - पत्नी, स्वाहा का रूप), नारद १.६६.९२(खड्गी विष्णु की शक्ति सत्या का उल्लेख), १.६६.१२९(लम्बोदर की शक्ति सत्या का उल्लेख), पद्म ६.२४९, ब्रह्मवैवर्त्त ४.६, भागवत १०.५८.३२(नग्नजित् - कन्या, कृष्ण द्वारा सात वृषभों को बांधकर सत्या से विवाह), १०.८३.१३(सत्या द्वारा द्रौपदी से कृष्ण के पाणिग्रहण के प्रकार का वर्णन), मत्स्य ४७.१९(कृष्ण - भार्या, पुत्रों के नाम ), वायु ९८.१११, हरिवंश २.८१.४२, लक्ष्मीनारायण ४.१०१.९१ satyaa
सत्र पद्म ३.२५, ६.१९८(शौनक का सत्र), ब्रह्म २.४६, विष्णुधर्मोत्तर १.१५५(पुरूरवा द्वारा सत्र के रूप), स्कन्द २.४.२६.२३(वैष्णव सत्र), ३.२.२३(ब्रह्म की अग्रता में हो रहे सत्र के ऋत्विजों के नाम), ५.३.१४९.६, ५.३.१५०.४४, लक्ष्मीनारायण १.३८०.७३(सत्रायण : वेदसूरि ब्राह्मण - पिता, वेदिसूरि का वृत्तान्त ), ३.३७.१०५, ३.१०६.५६सत्राशय, ३.१०६.७९, satra
सत्राजित् देवीभागवत ०.२.७९(नौ दिवसीय भागवतकथासमाप्ति के पश्चात् कृष्ण का स्यमन्तकमणि के साथ द्वारका आगमन), पद्म ६.८९.२२(पूर्व जन्म में गुणवती - पिता देवशर्मा- पिता ते देवशर्माभूत्सत्राजिदधिपो ह्ययम् ।। यश्चंद्रशर्मा सोऽक्रूरस्त्वं सा गुणवती शुभे।), ब्रह्म १.१४.११( निघ्न – पुत्र सत्राजित् द्वारा सूर्य से स्यमन्तक मणि की प्राप्ति, प्रसेन की मणि में आसक्ति, जाम्बवान् की कथा), ब्रह्माण्ड २.७१?, भविष्य १.११६(विमलवती - पति सत्राजित् राजा के पूर्व जन्म का वृत्तान्त), वायु ९५, ९६.२०/ २.३४.२०(निघ्न - पुत्र, शक्रजित् नाम, सूर्य से स्यमन्तक मणि प्राप्ति की कथा), विष्णु ४.१३(स्यमन्तक मणि की कथा), स्कन्द २.४.१३.१८(पूर्व जन्म में देवशर्मा - पिता ते देवशर्माऽभूत्सत्राजिदभिधो ह्ययम् । यश्चंद्रनामाऽसोऽक्रूरस्त्वं सा गुणवती शुभा ।।), ७.४.१७.२६(द्वारका के पश्चिम दिशा के रक्षकों में से एक - पश्चिमायां दिशि तथा पुष्पदन्तो विनायकः॥ उद्धवार्कश्च वै सूर्यः शिवः सत्राजितेश्वरः ॥), हरिवंश १.३८.१३(निघ्न - पुत्र, भ्राता प्रसेन द्वारा समुद्र से व सत्राजित द्वारा सूर्य से स्यमन्तक मणि प्राप्ति की कथा - प्रसेनो द्वारवत्यां तु निवसन्त्यां महामणिम्।। दिव्यं स्यमन्तकं नाम समुद्रादुपलब्धवान् । ), १.३९, satraajit/ satrajit
सत्वत विष्णु ४.१३.१(अंशु - पुत्र, वंश वर्णन),
सत्व - रज - तम द्र. सत्त्व - रज - तम
सत्सङ्ग भागवत ११.१२(सत्संग की महिमा), योगवासिष्ठ २.१६(मोक्ष के द्वार के ४ द्वारपालों में से एक, निरूपण ) satsanga
सदाचार देवीभागवत ११.१+ (सदाचार का वर्णन), नारद १.२४, १.२७, पद्म १.४९, ब्रह्म १.११३(आह्निक, तर्पण, सूतक आदि), भविष्य ४.२०५(सदाचार धर्म का निरूपण), मार्कण्डेय ३४(मदालसा द्वारा अलर्क को सदाचार का अनुशासन), विष्णु ३.११+ (सदाचार का वर्णन , सगर - और्व संवाद), शिव १.१३, स्कन्द १.२.४१, १.२.४५, ३.२.५+, ४.१.३५, ४.१.३८.४२(सदाचार का वर्णन), योगवासिष्ठ २.१६, २.२०, ४.३२, लक्ष्मीनारायण १.२८(विभिन्न गुणों की परिभाषा ), ३.४१+, ३.५३, sadaachaara/ sadachara
सदानन्द भविष्य ३.२.२६
सदाशिव गरुड ३.१८.१४(सदाशिव की सदा अशिव रूप में व्याख्या), नारद १.६६.१३०(सदाशिव की शक्ति कामदा का उल्लेख), १.८४.८३(सदाशिव ऋषि द्वारा वाक्/सरस्वती की आराधना), वामन ९०.१२ (विन्ध्यपाद में विष्णु का सदाशिव नाम से वास), स्कन्द ७.१.१०.३(आकाश गुण वाले तीर्थों में सदाशिव तीर्थ की स्थिति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.१२२.१०७ (सदाशिव द्वारा पुत्री व्रत से जया पुत्री प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१७०.१२, sadaashiva/ sadashiva
सद्य नारद १.६६.१०९(सद्य की शक्ति ज्वालामुखी का उल्लेख), लिङ्ग १.२४.१७(द्वितीय द्वापर में व्यास), स्कन्द ७.१.१०५.४७(नवम कल्प का नाम),
सद्योजात अग्नि ३०४.२५(सद्योजात शिव का स्वरूप : चतुर्बाहु मुख पीत), गरुड १.२१.२(सद्योजात की ८ कलाओं के नाम), नारद १.९१.८२(सद्योजात शिव की ८ कलाओं का कथन), लिङ्ग १.११(सद्योजात शिव का महत्त्व - ततोस्य पार्श्वतः श्वेताः प्रादुर्भूता महायशाः।। सुनंदो नंदनश्चैव विश्वनंदोपनंदनौ।।), २.१४.१०(मनस्तत्त्वात्मक शिव), २.१४.१५(घ्राणेन्द्रियात्मक), २.१४.२० (उपस्थेन्द्रिय रूप), २.१४.२५(गन्ध तन्मात्रात्मक, भूमि का रूप), वायु २१.३७/१.२१.३४( षड्ज स्वर का सद्योजात से तादात्म्य - यस्माज्जातैश्च तैः षडभिः सद्यो जातो महेश्वरः। तस्मात् समुत्थितः षड्जः स्वरस्तूदधिसन्निभः ।), २२.१४( ब्रह्मा तथा श्वेतवर्ण ऋषियों द्वारा सद्योजात शिव की अर्चना), २३.६६/ १.२३.६०(श्वेतकल्प में सद्योजात के प्राकट्य का कथन), शिव ६.३.२७(सद्योजात शिव की ८ कलाओं की अकार में स्थिति, वामदेव की उकार में इत्यादि - अष्टौ कलास्समाख्याता अकारे सद्यजाश्शिवे ।। उकारे वामरूपिण्यस्त्रयोदश समीरिताः ।।..), ६.६.७३(सद्योजात शिव की ८ कलाओं का नेत्रों में न्यास), ६.१२.१८(शिव का पाद), ६.१४.४४(सद्योजात शिव में मन, नासा, उपस्थ, गन्ध व भूमि की स्थिति, ब्रह्मा का रूप), ६.१६.६०(सद्योजात शिव से निवृत्ति कला की उत्पत्ति), ७.२.३.१५(सद्योजात शिव की मूर्ति में घ्राण आदि तन्मात्राओं की स्थिति का कथन), स्कन्द ३.३.१२.११(सद्योजात से प्रतीची दिशा की रक्षा की प्रार्थना ), लक्ष्मीनारायण ४.४५.२२(सनन्देन नन्दनेन विश्वनन्दनकेन च ।। उपनन्देन सहितः सद्योजाताऽभिधो हरः ।..), sadyojaata/ sadyojata
सद्विद्यायन लक्ष्मीनारायण ३.१७३
सधन भविष्य ३.४.१८.५०(मांस विक्रेता, इडस्पति नामक अश्विनीकुमार का अंश, पूर्व जन्म का वृत्तान्त ) sadhana
सनक अग्नि ३८२.१०(सनक के मत में परम पद – कामत्याग कर विज्ञान प्राप्ति), कूर्म २.११.१२९(सनक द्वारा पराशर को ज्ञान दान), गणेश २.२३.२(सनक का काशीराज के यहां आगमन, राज भोजन को अस्वीकार करना), २.२४.२७(सनक व सनन्दन द्वारा काशी में गृह - गृह में गणेश के विभिन्न रूपों में दर्शन), २.५४.३९(सनक व सनन्दन द्वारा काशी के अन्दर व बाहर सर्वत्र गणेश के दर्शन करना), २.७७.५(सिन्धु द्वारा सनक - सनन्दन के पृष्ठ देश पर आघात), गर्ग ५.१५.२४(स्मृति के कौमार सर्गियों की शक्ति होने का उल्लेख), नारद १.३(सनक द्वारा नारद को उपदेश के आरम्भ में महाविष्णु से सृष्टिक्रम का वर्णन, पाप नाश हेतु उपायों का वर्णन, विभिन्न तिथि व्रतों का वर्णन), भविष्य ४.१४२(सनक द्वारा राजा संवरण को उत्पात शान्ति हेतु कोटि होम विधि का वर्णन), स्कन्द ५.३.१९४.५५(श्री व विष्णु के विवाह यज्ञ में सनक के ब्रह्मा बनने का उल्लेख ), ७.४.१७.३४, sanaka
सनकादि कूर्म २.११.१२६(सनत्कुमार आदि से ज्ञान प्राप्त करने वालों के नाम), गर्ग ५.१५.२४(स्मृति के कौमार सर्गियों की शक्ति होने का उल्लेख), १०.६१.२३(कलियुग में सनक का निम्बार्काचार्य के रूप में जन्म), नारद १.४७.२६(सनकादि के ब्रह्मभावना से युक्त होने का कथन), १.६०, पद्म ६.१९४, ब्रह्मवैवर्त्त १.८.१२(धाता के मुख से सनकादि के प्राकट्य का उल्लेख), १.२०.१७(सनकादि में चतुर्थ द्वारा बालक नारद को कृष्ण मन्त्र प्रदान का कथन), १.२२.२९(सनकादि के नामों की निरुक्तियां- प्रथम दो आनन्दवाचक, तृतीय सनातन भक्तियुक्त, चतुर्थ सनत्कुमार नित्य), ४.९६.३०(सनकादि के स्मरण का फल – तीर्थस्नान आदि), भागवत २.७.५(सन द्वारा विविध लोक सृष्टि हेतु तप करने पर चतुःसन होने का कथन), ३.१५(सनकादि द्वारा जय - विजय को शाप की कथा), ७.१.३५(सनकादि द्वारा विष्णु – पार्षदों को आसुरी योनि में जाने का शाप), ११.१३.१७( सनकादि द्वारा पिता ब्रह्मा से चित्त को गुणों से पृथक् करने सम्बन्धी प्रश्न), मत्स्य २३.२१(चन्द्रमा के राजसूय यज्ञ में सदस्य), विष्णु १.४.३०(पृथिवी के उद्धार पर सनकादि द्वारा यज्ञवराह की स्तुति), शिव २.३.२(सनकादि द्वारा मेना आदि पितृकन्याओं को शाप व शाप निवारण), ३.४.२०(पंचम द्वापर में कंक शिव के चार पुत्रों के रूप में सनकादि का उल्लेख, सनन्दन की प्रभु व सनत्कुमार की विभु संज्ञा), ६.१२.३९(मानुष श्राद्ध में देवता रूप), स्कन्द १.३.१(सनकादि द्वारा ब्रह्मा से तैजस शिवलिङ्ग के माहात्म्य की पृच्छा), ४.२.९७.१०१(सनकादि के लिङ्गों के संक्षिप्त माहात्म्य – राजसूयफल, योगसिद्धि, ज्ञान), लक्ष्मीनारायण १.१८(सनकादि के चरित्र की महिमा), १.३०५.३(ब्रह्मा द्वारा सनकादि को जया, ललिता, पारवती व प्रभा कन्याओं को पत्नी रूप में देने का प्रस्ताव, सनकादि द्वारा अस्वीकृति ), २.१२४.१२(शिबि के यज्ञ में सनकादि के होतृगण होने का उल्लेख), sanakaadi
सनत्कुमार अग्नि १८, कूर्म १.१७.१(सनत्कुमार द्वारा विरोचन को ज्ञान दान), २.११.१२६(सनत्कुमार द्वारा संवर्त्त को ज्ञान दान), गरुड ३.२८.३३(कामावतार), देवीभागवत ४.२२.३९(सनत्कुमार का प्रद्युम्न के रूप में जन्म), नारद १.६०.३९+ (सनत्कुमार द्वारा शुकदेव को विषयों से निवृत्ति का उपदेश), १.६३+ (सनत्कुमार द्वारा नारद के प्रश्नों का उत्तर देना आरम्भ करना, तन्त्र, दीक्षा व विभिन्न देवी-देवताओं के मन्त्रों की साधना का वर्णन), पद्म ४.२५, ६.३१, ६.१९३, ब्रह्मवैवर्त्त २.५१.३(सुयज्ञ नृप द्वारा अतिथि के तिरस्कार पर सनत्कुमार की प्रतिक्रिया), ३.७.३४(सनत्कुमार पुरोहित द्वारा पार्वती से शिव को दक्षिणा में मांगने का वृत्तान्त), ३.७.८९(सनत्कुमार द्वारा शिव को दिगम्बर करके घुमाने के हठ पर कृष्ण के तेज का प्रकट होकर पार्वती - पुत्र रूप में परिणत होना), ४.३७(नैवेद्य भक्षण से सनत्कुमार का पुलकित होना), ४.८७(सनत्कुमार का कृष्ण से संवाद), ४.९४(सनत्कुमार द्वारा राधा को सांत्वना), ४.१२३(सनत्कुमार द्वारा दक्षिणा काल के बारे में वसुदेव को प्रबोध), ४.१२८(सृंजय नृप की कन्या पर मोहित नारद को सनत्कुमार द्वारा प्रबोध), ब्रह्माण्ड १.१.५.७९(२ ऊर्ध्वरेता ऋषियों में से एक, नाम निरुक्ति – यथोत्पन्न तथा), २.३.१०.८७(सनत्कुमार द्वारा योगोत्पत्ति कन्या शुक्राचार्य को पत्नी रूप में देने का उल्लेख), भागवत ४.२२(सनत्कुमार द्वारा पृथु को उपदेश), ६.८.१७(सनत्कुमार से कामदेव से रक्षा की प्रार्थना), मत्स्य ४.२७(सनत्कुमार की ब्रह्मा से उत्पत्ति), १४१.७८(प्रेतों के गमनागमन के ज्ञाता), वराह ७(सनत्कुमार का रैभ्य से संवाद, धन्य उपाधि देना, श्राद्ध की महिमा का कथन), १३४, २१३, वामन ६०(अहिंसा व धर्म - पुत्र, योग - विज्ञान के सम्बन्ध में ब्रह्मा का उपदेश), वायु २४.८३(सनत्कुमार का ऋभु से तादात्म्य?), विष्णु ३.१४.१२, शिव ३.४.२२(सनत्कुमार की विभु संज्ञा), ५.५(सनत्कुमार द्वारा व्यास को महापातकों का वर्णन), ५.२९.१८(ब्रह्मा के क्रोध से रुद्रों व सनत्कुमार के प्रकट होने का कथन), ५.४०.३८(मार्कण्डेय को पितरों के आदिसर्ग का वर्णन), ७.२.४१.१९(सनत्कुमार व ऋषियों के समक्ष नन्दी का प्राकट्य, शैव धर्म का उपदेश), स्कन्द ३.३.१६(सनत्कुमार द्वारा शिव से त्रिपुण्ड्र धारण विधि की जिज्ञासा), ५.१.१, ५.३.१९४.५४(नारायण विवाह यज्ञ में सनत्कुमार आदि के सदस्य बनने का उल्लेख), ७.१.२३.९४(सनत्कुमार आदि का चन्द्रमा के यज्ञ में सदस्य होने का उल्लेख), ७.४.१७.१३(द्वारका के पूर्व द्वार के रक्षकों में से एक), हरिवंश १.१.४४(सनत्कुमार द्वारा स्वतेज का संक्षेप करके निवास करने का उल्लेख), १.३.४३(सनत्कुमार का स्कन्द से एक्य), १.१७(सनत्कुमार द्वारा मार्कण्डेय को पितर सर्ग विषयक उपदेश), २.१०४.२(प्रद्युम्न का रूप), महाभारत शान्ति ३३९.३७(संकर्षण के जीव, प्रद्युम्न के मन व सनत्कुमार होने का कथन), स्वर्ग ५.१३(प्रद्युम्न के सनत्कुमार में लीन होने का उल्लेख), योगवासिष्ठ १.१.५९(सनत्कुमार द्वारा विष्णु की उपेक्षा पर विष्णु से शाप प्राप्ति ), लक्ष्मीनारायण १.१७९, १.२०२, १.५२७, १.५३१, २.८८, २.२७०.८७, ३.१०२.९६, ४.१०५, ४.१०६, sanatkumaara/ sanatkumara
सनत्सुजात लक्ष्मीनारायण २.९८.५, २.१००.२,
सनद्वाज ब्रह्माण्ड २.३५.११९
सनन्दन कूर्म २.११.१२७(सनन्दन द्वारा पुलह ऋषि को ज्ञान दान - सनन्दनोऽपि योगीन्द्रः पुलहाय महर्षये । प्रददौ गौतमायाथ पुलहोऽपि प्रजापतिः ।), गणेश २.२३.२(काशीराज के यहां सनन्दन का आगमन, राज भोजन बिना जाना), नारद १.४२+ (सनन्दन द्वारा नारद को उपदेश का आरम्भ, सृष्टि का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त २.५१.४३(सुयज्ञ नृप हेतु कृतघ्नता दोष का निरूपण - पुण्यं कृत्वा वदत्येव कीर्तिवर्द्धनहेतुना ।। स कृतघ्नस्तप्तसूर्म्यां वसत्येव युगत्रयम् ।।.. ), भागवत १०.८७.१२(ब्रह्मसत्र में सनन्दन के वक्ता बनने का उल्लेख, सनन्दन द्वारा प्रलय के अन्त में श्रुतियों द्वारा विष्णु को जगाने का वर्णन), शिव ३.४.२२(सनन्दन की प्रभु संज्ञा - सनकः सनातनश्चैव प्रभुर्यश्च सनन्दनः ।। विभुः सनत्कुमारश्च निर्मलो निरहंकृतिः ।। ), लक्ष्मीनारायण १.३०५.८(ब्रह्मा द्वारा सनन्दन - पत्नी हेतु ललिता की सृष्टि, सनन्दन द्वारा अस्वीकृति - सनन्दन गृहाणैनां ललितां ते प्रकल्पिताम् । सनातन गृहाणैनां दत्ता पारवतीं च ते ॥ ), द्र. सनकादि sanandana
सनाज्जात ब्रह्म २.२२(धृतव्रत व मही - पुत्र, गालव - शिष्य, माता से रति भोग से कुष्ठ प्राप्ति ) sanaajjaata
सनातन नारद १.९२.६(सनातन द्वारा पुराणों की विषयवस्तु व व्रतों का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त २.५१.४५(सनातन द्वारा सुयज्ञ नृप से कृतघ्नता दोष का निरूपण), वामन ९०.४१(शिव लोक में विष्णु का सनातन नाम), स्कन्द ४.२.७२.६३(सनातनी देवी द्वारा आयु की रक्षा), ६.१८०.३४(ब्रह्मा के यज्ञ में उन्नेता), ७.४.१७.२२(द्वारका के दक्षिण द्वार के रक्षकों में से एक), लक्ष्मीनारायण १.५१०.१६(सनातन वंश के सर्पों की उत्पत्ति का वृत्तान्त ), ३.२०.२(सनातन नामक २३वें वत्सर में जीवनारायण का प्राकट्य व भक्तिमार्ग का प्रचार), sanaatana/ sanatana
सनारु स्कन्द ४.२.९४(उपजङ्घनि - पिता, अमृतेश्वर लिङ्ग के प्रभाव से पुत्र का पुनर्जीवन),
सन्त भागवत ११.२६.३२, वायु ५९.१९(सन्त की निरुक्ति), लक्ष्मीनारायण १.५३.३५(सन्त शब्द की निरुक्ति : सत्य ब्रह्म से सायुज्य ), ३.१९.३०सन्तयोगिनी, ३.८२.१७, santa
सन्तति हरिवंश १.२३.२५(असित देवल - पुत्री, ब्रह्मदत्त - पत्नी, ब्रह्मदत्त से संवाद ), द्र. दक्ष कन्याएं, वंश क्रतु, santati
सन्तप्तक गरुड २.७.३(सन्तप्तक विप्र द्वारा ५ प्रेतों के दर्शन का वृत्तान्त), २.७.१०२(सन्तप्तक ब्राह्मण का विश्वक्सेन गण बनने का उल्लेख), २.१२/२.२२.२२(सन्तप्तक ब्राह्मण द्वारा तप, पांच प्रेतों पर्युषित आदि के दर्शन की कथा )
सन्तान गरुड २.३२.९(सन्तान प्राप्ति हेतु उपयुक्त ऋतुकाल का चयन), देवीभागवत १२.१०, ब्रह्माण्ड ३.४.३२.२४, मत्स्य १३, २७७.७, विष्णुधर्मोत्तर ३.२५९(सन्तान की प्रशंसा), स्कन्द ५.३.१९८.७१, हरिवंश २.८६.४५(सन्तान पुष्पों की मन्दराचल पर उत्पत्ति, नारद द्वारा अन्धकासुर को प्रलोभन), महाभारत अनुशासन ४८.१०(वर्णसंकर रूप में उत्पन्न हुई विभिन्न प्रकार की सन्तानों की संज्ञाएं), वा.रामायण ७.११०(राम के परमधाम गमन पर जन समूह को सन्तानक लोक की प्राप्ति ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.११५, santaana/ santana
सन्तापन लक्ष्मीनारायण २.७५.२, २.७६, द्र. भूतसन्तापन
सन्तारण लक्ष्मीनारायण २.११८.२
सन्तोष नारद २.२८.७०, पद्म १.१९, १.५३, भागवत ११.१७.१६, मार्कण्डेय ५०.२६(तुष्टि - पुत्र), विष्णु १.७.१९, १.७.२८, योगवासिष्ठ २.११.५९(मोक्ष के द्वार के ४ द्वारपालों में से एक), २.१५(सन्तोष का निरूपण), लक्ष्मीनारायण १.३८२.२०(विष्णु के सन्तोष व लक्ष्मी के तुष्टि होने का उल्लेख), २.२८३.५४(सन्तुष्टा द्वारा बालकृष्ण को चन्द्र व स्रज देने का उल्लेख ), ३.१२२.१०५, santosha
सन्धान कथासरित् ७.९.१०८
सन्धि अग्नि २४०(राजा हेतु सन्धि के १६ भेदों का वर्णन), गरुड २.३०.५३/२.४०.५३(मृतक की सन्धियों में तिलकल्क देने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.२८.३७ (पर्व सन्धियों में अन्वाधान क्रिया करने का कथन), मत्स्य १४४.५१(कलियुग के अन्त में युगों के सन्धिकाल में वेदों व प्रजा की दुर्दशा तथा प्रमति द्विज अवतार का वर्णन), वराह २०६.३० (गौ की सर्वसन्धियों में साध्यों की स्थिति का उल्लेख), स्कन्द ५.३.२८.१६ (शिव के रथ में गणों व भूतसंघों के सन्धियों में स्थित होने का उल्लेख), महाभारत वन ३१३.७५ (सन्धि के जीर्ण न होने का प्रश्न व उत्तर—सदाचारियों के साथ), शान्ति १६८.५(सन्धि करने के योग्य व अयोग्य पुरुषों के लक्षण ), द्र. जरासन्ध, जलसन्ध, ध्रुवसन्धि, यवसन्ध, सत्यसन्ध sandhi
सन्ध्य पद्म १.४०.८३(सुरभि व ब्रह्मा - पुत्र, एकादश रुद्रों में से एक),
सन्ध्या अग्नि ७२.२४(सन्ध्या कर्म की विधि, ४ सन्ध्याओं का स्वरूप), १९९, २१५(सन्ध्या विधि, गायत्री मन्त्र अक्षर न्यास), कूर्म १.७.४७(ब्रह्म के त्यक्त तनु से सन्ध्या की उत्पत्ति), गरुड १.३६(सन्ध्या विधि), १.२०५.६२(सन्ध्या कर्म का महत्त्व), १.२०९(सन्ध्या कर्म की विधि), ३.२९.५०(सन्ध्या काल में राम के स्मरण का निर्देश), देवीभागवत ५.८.६५(सन्ध्या के तेज से देवी के भ्रुवों की उत्पत्ति), ११.८, ११.१६.२(सन्ध्या कर्म के प्रकार, विधि व माहात्म्य), ११.१९(मध्याह्न काल सन्ध्या की विधि), ११.१९(सायंकाल सन्ध्या की विधि), नारद १.२७.४३(सन्ध्या विधि व स्वरूप), १.६६.७०(त्रिकाल सन्ध्या में देवी का स्वरूप), १.६६.९७(वृष विष्णु की शक्ति सन्ध्या? का उल्लेख), पद्म ६.११५, ६.१३३(कुब्जाम्रक क्षेत्र में त्रिसन्ध्य तीर्थ), ब्रह्माण्ड १.२.८.१५(ब्रह्मा द्वारा त्यक्त तनु का रूप), २.२१, ३.४.३२.९(महासन्ध्या : महाकाल की ३ शक्तियों में से एक), भागवत २.१.३४(सन्ध्या के विराट् पुरुष का वस्त्र होने का उल्लेख), ३.२०.२९(सन्ध्या की ब्रह्मा के शरीर से उत्पत्ति), मत्स्य १४४.४९(सन्धिकाल में युगों की पाद मात्र स्थिति का उल्लेख ; सन्ध्या काल पाद मात्र होने का उल्लेख), वराह १२०, १२९, वामन ५१(रागिणी का शाप से सन्ध्या में रूपान्तरण), वायु ९.१२(पितरों की सृष्टि करने वाले ब्रह्मा के तनु का सन्ध्या में रूपान्तरण), ५०.१६१(सन्ध्या समय पर लोकालोक पर्वत पर सूर्य की स्थिति, महिमा), विष्णु २.८.४८(उषा रूपी रात्रि व व्युष्टि रूपी दिन के मध्य सन्ध्या की स्थिति का कथन), शिव २.२.१(ब्रह्मा का पुत्री सन्ध्या के रूप पर मोहित होना), २.२.५+ (सन्ध्या का तप, शिव से वर प्राप्ति, मेधातिथि क्षेत्र में गमन, सूर्य लोक में गमन, अरुन्धती नाम की प्राप्ति), स्कन्द ४.१.२९.१६६(गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ४.१.३५.११०(त्रिसन्ध्या विधि व माहात्म्य), ४.२.५४.७(माध्यन्दिन संध्या काल में पिशाच के उद्धार का वृत्तान्त), ४.२.६१.१७३(त्रिसन्ध्येश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.७९.९३(शिव की तीन सन्ध्याओं के स्थान), ५.३.१९८.७५(गोदाश्रम में देवी का त्रिसन्ध्य नाम), ६.१०९(त्रिसन्ध्या तीर्थ में त्र्यम्बक लिङ्ग), ६.१३१.१२(, महाभारत शान्ति ३४७.५१(हयग्रीव की नासिका के रूप में सन्ध्या का उल्लेख ), वा.रामायण ७.४, लक्ष्मीनारायण १.१७९, १.१९८, १.३१४, कथासरित् १४.४.४०, द्र. त्रिसन्ध्या, भूगोल sandhyaa
सन्ध्यावली नारद २.८, २.१०.५०(रुक्माङ्गद - पत्नी सन्ध्यावली की महिमा), २.१६, पद्म २.२२, लक्ष्मीनारायण १.१५५.४(बलि - पत्नी, पति की रक्षा हेतु महालक्ष्मी की आराधना ), १.२९०, sandhyaavalee/ sandhyavali
सन्नति ब्रह्माण्ड १.२.९.५६(दक्ष व प्रसूति - कन्या, क्रतु - पत्नी), १.२.११.३६(क्रतु - पत्नी, वालखिल्य - माता), पद्म १.१०.७१(ब्रह्मदत्त - पत्नी, सुदेव - पुत्री), मत्स्य २०.२६(देवल - पुत्री, ब्रह्मदत्त - भार्या, पूर्व काल में कपिला), शिव ७.१.१७.२८(दक्ष - कन्या, क्रतु - पत्नी, वालखिल्य गण की माता ), हरिवंश १.२३.२५, १.२४, महाभारत शान्ति २२८.८३, sannati
सन्नादन वा.रामायण ६.२७.१८(वानर, राम - सेनानी, सारण द्वारा रावण को सन्नादन का परिचय),
सन्निधान वामन ९०.२(सन्निधान तीर्थ में विष्णु के कूर्म नाम से निवास का उल्लेख),
सन्निवेश भागवत ६.६,
सन्निहित्या पद्म ३.२७.८०(सन्निहित्या तीर्थ का माहात्म्य), स्कन्द ७.१.८५(सन्निहित्या सर का माहात्म्य, ग्रहण काल में कृष्ण की समाधि से उत्पत्ति), sannihityaa
संन्यास अग्नि १६१(संन्यासी का धर्म), कूर्म २.२८(संन्यासी के प्रकार व संन्यासी का धर्म), गणेश २.१४१.१(क्रिया योग व संन्यास में श्रेष्ठता का प्रश्न : वरेण्य व गजानन का संवाद), नारद १.२७.९१(संन्यास के नियम), १.४३.१२३(संन्यासी के धर्म का निरूपण), ब्रह्मवैवर्त्त ४.८३.८२(कृष्ण - प्रोक्त संन्यास धर्म), भागवत ११.१६.२६, ११.१७.१४, ११.१८.१२(संन्यासी का धर्म), ११.१९.३८, लिङ्ग १.२९(क्रम संन्यास विधि), शिव ६.१३(संन्यास विधान), स्कन्द ४.१.४१(संन्यास के नियम), हरिवंश ३.१०८(हंस व डिम्भक द्वारा संन्यास की निन्दा, जनार्दन द्वारा मण्डन ), महाभारत शान्ति १८, १९२, २४४+, २७८, आश्वमेधिक ४६, samnyaasa/sannyaasa/sanyasa
सप्त लक्ष्मीनारायण १.५३९.७३(सप्त गजों की अशुभता का उल्लेख ), कथासरित् १२.२७.९२, sapta
सप्तगोदावर वामन ६३.७८, ९०.२३(सप्तगोदावर तीर्थ में विष्णु का हाटकेश्वर नाम),
सप्तजन वा.रामायण ४.१३.१८(राम द्वारा वाली वध से पूर्व सप्तजन आश्रम का दर्शन),
सप्तधारा पद्म ६.१४३
सप्तमी अग्नि १४२.१(माघ शुक्ल सप्तमी व्रत : सूर्य पूजा), १८२(मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, पुत्रीया सप्तमी व्रत), गरुड १.१३०(सप्तमी व्रत, सूर्य पूजा), नारद १.११६(सप्तमी सम्बन्धी व्रत : सूर्य पूजा, गङ्गा व्रत, कमल व्रत, निम्ब सप्तमी व्रत, शर्करा सप्तमी, अव्यङ्ग व्रत, शाक सप्तमी, शुभ सप्तमी, मित्र व्रत आदि), पद्म १.२१.२६१(शर्करा सप्तमी, कमल सप्तमी, मन्दार सप्तमी, शुभ सप्तमी), १.२१(कमल सप्तमी), १.२१(मन्दार सप्तमी), १.२१(शुभ सप्तमी), १.२२(रस कल्याणिनी सप्तमी), १.२२(पापनाशिनी सप्तमी), १.२२(गौरी तृतीया सप्तमी), १.२२(सारस्वत सप्तमी), १.७७.६२(माघ सप्तमी - अर्काङ्ग सप्तमी), ५.३६.७५(वैशाख शुक्ल सप्तमी को राम का अभिषेक - सप्तम्यामभिषिक्तोऽसावयोध्यायां रघूद्वहः), ५.८५.४९( वैशाख शुक्ल सप्तमी, जह्नु द्वारा गङ्गा पान - वैशाख शुक्ल सप्तम्यां जाह्नवी जह्नुना पुरा। क्रोधात्पीता पुनस्त्यक्ता कर्णरंध्रात्तु दक्षिणात्।।), ब्रह्म १.२७.३०(विजया सप्तमी, आदित्य व्रत), भविष्य १.४७(शाक सप्तमी के संदर्भ में संज्ञा - छाया - सूर्य आख्यान), १.५०(रथ सप्तमी), १.८०+, १.१९४+, मत्स्य ५५(आदित्य शयन व्रत विधि), ६८(सप्तमी स्नपन व्रत, मृतवत्सा स्त्री का अभिषेक), ७४(कल्याण सप्तमी व्रत, अष्टदल कमल पर सूर्य की पूजा), ७५(माघ शुक्ल सप्तमी, विशोक सप्तमी व्रत, सूर्य पूजा), ७६(मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, फल सप्तमी व्रत, फलदान, सूर्य पूजा), ७७(वैशाख शुक्ल सप्तमी, शर्करा सप्तमी व्रत), ७८(वसन्त शुक्ल सप्तमी, कमल सप्तमी व्रत), ७९(माघ शुक्ल सप्तमी, मन्दार सप्तमी व्रत, अष्ट दल कमल पर सूर्य पूजा), ८०(आश्विन् शुक्ल सप्तमी, शुभ सप्तमी व्रत), वराह २६(सूर्य व १२ आदित्यों की उत्पत्ति की कथा), विष्णुधर्मोत्तर ३.१६९(सप्तमी पूजा, व्रत), ३.२२१.५५(सप्तमी को पूजनीय देवी के नाम व फल), स्कन्द १.२.४३.४६(माघ शुक्ल सप्तमी को कामरूप कुण्ड में स्नान का माहात्म्य), ४.१.४६.५०(मार्गशीर्ष सप्तमी को काशी में १२ आदित्यों की पूजा), ५.३.२६.११२(सप्तमी को सुवर्ण द्वारा सूर्य पूजा से द्द्रू, कुष्ठ आदि से मुक्ति का उल्लेख), ५.३.५१.५(माघ सप्तमी – मन्वन्तरादि तिथियों में एक), ५.३.१२५.३३(माघ सप्तमी को सूर्य पूजा विधि व महत्त्व), ६.१६२(पुरश्चरण सप्तमी, रोहिताश्व - मार्कण्डेय संवाद), ७.१.११(मार्गशीर्ष सप्तमी, सूर्य का राज्ञी, द्यौ/संज्ञा से मिलन), ७.१.२३६(माघ शुक्ल सप्तमी को दुर्वासादित्य की पूजा), ७.४.१४(माघ शुक्ल सप्तमी को ब्रह्म कुण्ड में स्नान ), हरिवंश २.८१.१(सगुण बान्धवों की प्राप्ति के लिए सप्तमी व्रत का विधान), लक्ष्मीनारायण १.२७२(वार्षिक सप्तमी व्रतों का कथन), १.३१४, २.१८८, २.२२८, २.२९८, ३.१०३.५(सप्तम्यां तु तथा दत्वा लभते क्षेत्रवाटिकाम् ।।), saptamee/ saptami
सप्तर्षि अग्नि २०.९(सप्तर्षियों की पत्नियां व पुत्र), कूर्म १.२०.३५(वसिष्ठादि १० ऋषियों द्वारा राजा वसुमना के समक्ष प्रतिक्रिया), गरुड ३.७.४६(वसिष्ठ, मरीचि आदि ऋषियों द्वारा हरि – स्तुति), पद्म १.७.८३(मन्वन्तरों के सप्तर्षि आदिकों के नाम), १.१९.२३५(हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति पर अत्रि आदि ऋषियों की प्रतिक्रिया), ३.२६.६८(ब्रह्मानुस्वर स्थान पर सप्तर्षिकुण्ड का उल्लेख), ब्रह्म २.१०२+ (गौतमी गङ्गा का सात सप्तर्षियों के नामों से विभक्त होकर समुद्र से सङ्गम करना), २.१०३.३(सप्तर्षियों द्वारा गङ्गा के सप्तधा विभाजन का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१८.७७(सप्तर्षि - पत्नियों के रूप पर अग्नि का मोहित होना), ब्रह्माण्ड १.५.७४(ब्रह्मा के विभिन्न अङ्गों से मरीच्यादि ऋषियों की उत्पत्ति), २.३.५.८०(षष्ठ मरुत गण की सप्तर्षि मण्डल में स्थिति का उल्लेख), १.२.९.२२(सप्तर्षियों की प्राणवायुओं आदि से सृष्टि), १.२.९.५५(सप्तर्षियों की पत्नियां बनी दक्ष - कन्याओं के नाम, पुत्रों के नाम), ३.४.१.१०(भविष्य के मन्वन्तर के कौशिकादि सप्तर्षियों के नाम ), भागवत ८.५, ९.१६.२४(जमदग्नि के संज्ञान रूप में पुन: जीवित होने पर सप्तर्षि मण्डल में सातवां ऋषि बनने का कथन), मत्स्य १५४.३९७(इन्द्र के दूत के रूप में सप्तर्षियों की शिव से भेंट, पार्वती से विवाह की प्रेरणा देना, हिमालय को शिव - पार्वती के विवाह की प्रेरणा), २७३.३९(सप्तर्षि मण्डल से ऊपर दिव्य काल का आरंभ, अदिव्य काल की नक्षत्र – सप्तर्षिगण योग से गणना), मार्कण्डेय ५२.१९(मरीच्यादि ऋषियों की पत्नियों व पुत्रों के नाम), वराह ७१.३६(दण्डक वन में गंगा के अवतारण पर सप्तर्षियों द्वारा गौतम को साधुवाद, ऋषियों के शाप को सीमित करना), ८१, १५१, वायु ९.१००/१.९.९४(ब्रह्मा के चक्षु आदि से मरीचि आदि ऋषियों की सृष्टि), २८.३६(वसिष्ठ व ऊर्जा के ७पुत्रों की सप्तर्षि संज्ञा), ६४.२४(वैवस्वत मन्वन्तर के कौशिक आदि सप्तर्षियों के नाम), ६५.३१(ब्रह्मा द्वारा स्व शुक्र की आहुति से सप्तर्षियों की उत्पत्ति), ६५.४३/२.४.४३(ब्रह्मा द्वारा शुक्र की आहुति से मरीच्यादि सप्तर्षियों की उत्पत्ति का वृत्तान्त), ९९.४२३/२.३७.४१७(पारिक्षित काल में सप्तर्षियों के मघा नक्षत्र में होने का कथन), १००/२.३८(विभिन्न मन्वन्तरों में सप्तर्षियों के नाम), विष्णु ३.१(मन्वन्तरानुसार सप्तर्षि), विष्णुधर्मोत्तर १.१७६+(मन्वन्तरों के सप्तर्षियों के नाम), ३.१६५(मरीच्यादि सप्तर्षि व्रत), शिव २.३.३३(शिव विवाह के संदर्भ में सप्तर्षियों द्वारा हिमवान् व मेना को सांत्वना), शिव २.३.२५.१३(शिव के अनुरोध पर सप्तर्षियों द्वारा पार्वती के प्रेम की परीक्षा), २.३.३२(शिव-पार्वती विवाहकार्य की सिद्धि हेतु सप्तर्षियों का हिमालय गृह गमन), स्कन्द १.१.२३(सप्तर्षियों द्वारा शिव विवाह में मध्यस्थता, हिमालय से संवाद), २.७.१९.१९(सप्तर्षियों की तत्त्वाभिमानी देवों व अग्नि के बीच स्थिति), ४.१.१८(सप्तर्षियों के लोक का वर्णन), ४.१.१९.८४(सप्तर्षियों का स्वरूप, मरीच्यादि सप्तर्षियों द्वारा विष्णु की महिमा का कथन, ध्रुव को मन्त्र दीक्षा), ५.३.१४२.५४( ), ५.३.१९४.४६(नारायणविवाहयज्ञ के ब्रह्मा), ६.३२(सप्तर्षि लिङ्ग का माहात्म्य, दुर्भिक्ष में मृत कुमार के भक्षण की चेष्टा, राजा वृषादर्भि के आने पर भक्षण न करना, हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति व प्रतिक्रिया, तप करके लिङ्ग स्थापना), ६.१२४(सप्तर्षियों द्वारा लोहजङ्घ विप्र - दस्यु को वन में दीक्षा, दस्यु का वाल्मीकि में रूपान्तरण), ६.२५२.२५(चातुर्मास में सप्तर्षियों की महाताल वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), ७.१.१९.६४(भृगु, अङ्गिरा आदि ८ ऋषियों का नामोल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.१८४, १.१८६.८३(सप्तर्षियों द्वारा तपोरत पार्वती की परीक्षा), १.२०६.९०(सप्तर्षियों द्वारा मार्कण्डेय को चिरजीवी बनाना ), १.३१४, १.३४२.८९(सप्तर्षिकुण्ड व सप्तधाराप्रपात का उल्लेख), १.३७४, १.४४१.८७(वृक्षरूपधारी कृष्ण के दर्शन के लिए सप्तर्षियों के महाताल बनने का उल्लेख), १.४६९, १.४७९(अग्निशर्मा दस्यु का सप्तर्षियों की कृपा से वाल्मीकि बनना), १.४८१(सप्तर्षि-पत्नियों द्वारा अग्नितापन पर शिव के वीर्य को ग्रहण करने की कथा), द्र. मन्वन्तर saptarshi
सप्तविंशतिका स्कन्द ६.८६(सप्तविंशतिका का माहात्म्य : चन्द्रमा की २७ नक्षत्र पत्नियों द्वारा चन्द्र प्रीत्यर्थ चण्डी पूजा ) saptavimshatikaa
सप्तशती ब्रह्मवैवर्त्त २.५८+ (सुरथ राजा व समाधि वैश्य की कथा), भविष्य ३.२.३३.५(दुर्गा सप्तशती के आदि, मध्यम व उत्तम चरित्रों का माहात्म्य, व्याधकर्मा का उद्धार), ३.२.३४(मध्यम चरित्र का माहात्म्य, मगधराज का कल्याण), ३.२.३५(उत्तर चरित्र, पतञ्जलि द्वारा कात्यायन की शास्त्रार्थ में पराजय की कथा), ३.३.१४.४(दुर्गा सप्तशती पाठ की महिमा, आह्लाद आदि की कथा ), शिव ५.४५+ saptashatee/ saptashati
सप्तसामुद्रिक वराह १२६(सप्तसामुद्रिक तीर्थ का वर्णन )
सप्तसारस्वत कूर्म २.३५.४४(सप्तसारस्वत तीर्थ का माहात्म्य, मङ्कणक का तप, भस्म उत्पत्ति से उत्पन्न गर्व का शिव द्वारा खण्डन), पद्म ३.२७.४(सप्तसारस्वत तीर्थ का माहात्म्य, मंकणक ऋषि की कथा), वामन ५७.९२(स्कन्द को सप्तसारस्वत गण प्रदान ) saptasaarasvata/ saptasarasvata
सप्तस्रोत पद्म ६.१३७
सप्ताश्वतिलक भविष्य १.१८७.२८
सभा अग्नि ६५.१(देवसभा स्थापना विधि), २२०(राज्य सभा), पद्म १.४५(हिरण्यकशिपु की सभा का वर्णन), मत्स्य १६१(हिरण्यकशिपु की सभा का वर्णन), भविष्य ४.६९.३६, मार्कण्डेय ५४(ब्रह्मा की सभा), वराह ७५(ब्रह्मा की सभा का वर्णन), १९७.११(यम सभा का वर्णन), वायु ३४.७२(ब्रह्मा, अग्नि, निर्ऋति आदि की सभाओं की मेरु के परित: स्थिति), ४१(कैलास पर्वत पर कुबेर की विपुला नामक सभा), स्कन्द ३.२.१(ब्रह्मा की सभा का वर्णन), ५.२.८४.१९(सभाजित् : परीक्षित् राजा का उपनाम?), ५.३.१९८.७५, ७.१.३(कैलास पर शिव की सभा का वर्णन), हरिवंश २.५८.७१(वायु द्वारा द्वारका में स्थापित सुधर्मा सभा), २.६३.२३(द्वारका में यादवों की सभा के दाशार्ही नाम का उल्लेख), ३.४१(हिरण्यकशिपु की सभा का वर्णन), ३.६६(ब्रह्मा की सभा), योगवासिष्ठ ५.३(दशरथ की सभा ) sabhaa
सभ्य गरुड १.२०५.६६(कुमार के सत्य/सभ्य? अग्नि का रूप होने का उल्लेख), देवीभागवत ३.१२.५० (यज्ञ में सभ्य अग्नि के उदान व आवसथ्य के समान वायु से तादात्म्य होने का उल्लेख), भविष्य ४.६९.३६(गौ के तालु में सभ्य अग्नि के वास का उल्लेख), वायु १११.५२/२.४९.६१(सभ्यपद तीर्थ में श्राद्ध का फल : ज्योतिष्टोम फल की प्राप्ति), लक्ष्मीनारायण ३.३२.१२(शंस्य अग्नि - पुत्र ) sabhya
सम देवीभागवत ३.१९.३६(वाराही से विषम मार्ग में रक्षा की प्रार्थना), नारद १.५०.४४, महाभारत कर्ण ४५.३५(शिबि निवासियों की विषम विशेषता का उल्लेख), भीष्म ५.३(५ महाभूतों के सम होने तथा विषमीभाव को प्राप्त होने पर परस्पर संयोग करने का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर १.२३७.८(वामन से विषमों में रक्षा की प्रार्थना), sama
समङ्ग वराह १४६
समन्तपञ्चक
वामन
२२.१६(समन्तपञ्चक
क्षेत्र
का
विस्तार,
कुरु
द्वारा
कर्षण
की
कथा
-
समन्तपञ्चकं
नाम
धर्मस्थानमनुत्तमम्।
आसमन्ताद्
योजनानि
पञ्च
पञ्च
च
सर्वतः।।),
स्कन्द
५.३.२१८.३८(समन्तपञ्चके
पञ्च
चकार
रुधिरह्रदान्
॥ ),
महाभारत
शल्य
५३.२४
(तरन्तुकारन्तुकयोर्यदन्तरं
रामह्रदानां
च
मचक्रुकस्य
च।
एतत्कुरुक्षेत्रसमन्तपञ्चकं
प्रजापतेरुत्तरवेदिरुच्यते।।,
samantapanchaka
समन्यु ब्रह्म २.३८(समा - पति समन्यु यक्ष द्वारा इल से वैर के कारण इल का उमा वन में प्रवेश कराने का आयोजन ) samanyu
समय अग्नि ८१+(समयाचार दीक्षा का वर्णन), वायु ३१.७, लक्ष्मीनारायण १.३२३.५१(धर्म व क्रिया के ३ पुत्रों में से एक),
समर कथासरित् ९.२.१७०, ९.२.३९८, ९.४.२२३, ९.४.२२४, ९.४.२२५, १२.७.४९, १२.७.२६७,
समष्टि शिव ७.२.५.१३
समाधि अग्नि ३७६(समाधि योग का वर्णन), देवीभागवत ५.३२(समाधि वैश्य द्वारा कष्ट से मुक्ति हेतु सुमेधा ऋषि से परामर्श), पद्म ६.१८६.४०(सिद्धसमाधि ब्राह्मण द्वारा गीता के १२वें अध्याय के प्रभाव से राजा बृहद्रथ को जीवित करना, चोरी गए यज्ञीय अश्व को प्राप्त करना), ब्रह्मवैवर्त्त २.६२(समाधि वैश्य - सुरथ - मेधा ऋषि का आख्यान), भागवत ७.१५.२४(समाधि से दैव को जीतने का निर्देश), मार्कण्डेय ८१, विष्णुधर्मोत्तर ३.२८४(समाधि का वर्णन), शिव ५.२८, स्कन्द १.१.२२, ३.१.२५(वत्सनाभ ऋषि की समाधि में महिष द्वारा वृष्टि से रक्षा), ४.१.४१.१२६(समाधि की परिभाषा : जीवात्मा व परमात्मा का मिलन आदि), ७.१.१०५.४९(१७वें कल्प का नाम), योगवासिष्ठ ५६२, ५८४, ६१२५, ६.१.१०३(चूडाला द्वारा राजा शिखिध्वज को निर्विकल्प समाधि से जगाने का यत्न ; सत्त्वशेष जानने की विधि ), लक्ष्मीनारायण २.११९.२, ३.१२.१, ३.१५५.८९, द्र. सिद्धसमाधि samaadhi/ samadhi
समान
अग्नि ८५.१४(प्रतिष्ठा
कला के २ प्राणों में से एक),
२१४.१०(समान
वायु के शरीर में कार्य का कथन
-
पीतभक्षितमाघ्रातं
रक्तपित्तकफानिलं । समन्नयति
गात्रेषु समानो नाम मारुतः
॥),
गरुड
३.५.४३(रूपाभिमानी
संजज्ञे
व्यानो
नाम
महान्प्रभो
॥
रसात्मक
उदानश्च
समानो
गन्धनामकः
।),
देवीभागवत
३.१२.५०
(यज्ञ
में सभ्य अग्नि के उदान व आवसथ्य
के समान वायु से तादात्म्य
होने का उल्लेख -
गार्हपत्यस्तदा
प्राणोऽपानश्चाहवनीयकः ।
दक्षिणाग्निस्तथा व्यानः
समानश्चावसथ्यकः ॥),
नारद
१.४२.७९(समान
वायु के ह्रदय में स्थित होने
का उल्लेख -
गच्छत्यपानोऽधश्चैव
समानो ह्यद्यवस्थितः ।।
उदानादुच्छ्वसितीति पञ्च
भेदाच्च भाषते ।।),
१.४२.१०१(जन्तु
के समान द्वारा पृष्ठ से स्व
गति प्राप्त करने का उल्लेख
– पृष्ठतस्तु
समानेन
स्वां
स्वां
गतिमुपाश्रितः
।। ),
ब्रह्माण्ड
१.२.९.२२(पुलस्त्यं
च
तथोदानाद्व्यानाच्च
पुलहं
पुनः
।
समानजो
वसिष्ठश्च
ह्यपानान्निर्ममे
क्रतुम्
॥),
महाभारत
शान्ति ३२८.३२/५५(साध्य
देव -
पुत्र,
उदान
-
पिता),
आश्वमेधिक
२४.४(प्राणापानाविदं
द्वन्द्वमवाक्
चोर्ध्वं
च
गच्छतः।
व्यानः
समानश्चैवोभौ
तिर्यग्द्वन्द्वत्वमुच्यते।।),
वायु
९७.५३(अपानः
पश्चिमं
कायमुदानोर्द्ध्वशरीरगः।
व्यानो
व्यानस्यते
येन
समानः
सर्व्वसन्धिषु
।।),
लक्ष्मीनारायण
२.१२७.२(भूकम्पादि
से आकस्मिक मृत्यु के कारण
मृत मनुष्यों का समान पर्वत
पर प्रेत बनना,
द्विकल
सरोवर पर कृष्ण के समीप आगमन
),
३.१७४.४(अपानात्
प्रेर्यते
शुक्रं
रजश्चाकर्षयत्यपि
।
समानस्तेन
मिश्रे
च
जायते
बीजताधरः
।।)
samaana/
samana
समावर्तन भविष्य २.१.१७.१२(षडाननश्च चूडायां व्रतादेशे समुद्भवः ।। वीतिहोत्रश्चोपनये समावर्ते धनंजयः ।।)
समास
भा १.९.२७(दानधर्मान्
राजधर्मान्
मोक्षधर्मान्
विभागशः
।
स्त्रीधर्मान्
भगवद्धर्मान्
समासव्यास
योगतः
॥),
२.७.५०(सोऽयं
तेऽभिहितस्तात
भगवान्
विश्वभावनः
।
समासेन
हरेर्नान्यद्
अन्यस्मात्
सदसच्च
यत्
॥),
भ.गी.
१३.३(
तत्क्षेत्रं
यच्च
यादृक्च
यद्विकारि
यतश्च
यत्
।
स
च
यो
यत्प्रभावश्च
तत्समासेन
मे
शृणु
॥),
१८.५०(सिद्धिं
प्राप्तो
यथा
ब्रह्म
तथाप्नोति
निबोध
मे
।
समासेनैव
कौन्तेय
निष्ठा
ज्ञानस्य
या
परा
॥),
मनुस्मृति
२.२५(एषा
धर्मस्य
वो
योनिः
समासेन
प्रकीर्तिता
।
संभवश्चास्य
सर्वस्य
वर्णधर्मान्निबोधत
।
।),
३.२०(चतुर्णां
अपि
वर्णानं
प्रेत्य
चेह
हिताहितान्
।
अष्टाविमान्समासेन
स्त्रीविवाहान्निबोधत
।
। ),
९.१०१(अन्योन्यस्याव्यभिचारो
भवेदामरणान्तिकः
।
एष
धर्मः
समासेन
ज्ञेयः
स्त्रीपुंसयोः
परः
।
। ),
१२.३९(येन
यस्तु
गुणेनैषां
संसरान्प्रतिपद्यते
।
तान्समासेन
वक्ष्यामि
सर्वस्यास्य
यथाक्रमम्
।
।),
महाभारत
आदि
६२.१(कथितं
वै
समासेन
त्वया
सर्वं
द्विजोत्तम।
महाभारतमाख्यानं
कुरूणां
चरितं
महत्।।),
९४.१४(अष्टावेव
समासेन
विवाहा
धर्मतः
स्मृताः।
ब्राह्मो
दैवस्तथैवार्षः
प्राजापत्यस्तथाऽऽसुरः।।),
वन
२१३.३१(गर्भाधानसमायुक्तं
कर्मेदं
संप्रदृश्यते।
समासेन
तु
ते
क्षिप्रं
प्रवक्ष्यामि
द्विजोत्तम
।।),
२१६.५६(यथाश्रुतमिदं
सर्वं
समासेन
द्विजोत्तम।
एतत्ते
सर्वमाख्यातं
किं
भूयः
श्रोतुमिच्छसि
।।),
भीष्म
३७.७(इच्छा
द्वेषः
सुखं
दुःखं
सङ्घातश्चेतना
धृतिः
।
एतत्क्षेत्रं
समासेन
सविकारमुदाहृतम्
।।),
शान्ति
३५.५०(एतत्ते
कथितं
सर्वं
यथावृत्तं
युधिष्ठिर।
समासेन
महद्ध्येतच्छ्रोतव्यं
नरतर्षभ।।),
अनु.
१०९.१०(कुलानां
पावनं
प्राहुर्जातरूपं
शतक्रतो।
एषा
मे
दक्षिणा
प्रोक्ता
समासेन
महाद्युते।।),
२१०.४१(पञ्चभूतार्थतत्वे
च
लोकसृष्टिविर्धनम्।
एतत्सर्वं
समासेन
तपोयोगाद्विनिर्मितम्।।),
२१२.६०
(एवमुद्देशतः
प्रोक्तमलेपत्वं
यथा
भवेत्।
एष
देवि
समासेन
राजधर्मः
प्रकीर्तितः।।),
२१६.८(वर्तमानाः
कथं
सर्वे
प्राप्नुवन्त्युत्तमां
गतिम्।
एतत्सर्वं
समासेन
वक्तुमर्हसि
मानदः।।),
२२३.७१(इति
ते
कथितं
सर्वं
कर्मपाकफलं
प्रिये।
भूयस्तव
समासेन
कथयिष्यामि
तच्छृणु।।),
२३८.३३(एष
प्रोक्तः
समासेन
पितृयज्ञः
सनातनः।
पितरस्तेन
तुष्यन्ति
कर्ता
च
फलमाप्नुयात्।।),
२३९.२०(
एतत्सर्वं
समासेन
धर्मकार्यमिति
स्मृतम्।
तत्कर्तव्यं
मनुष्येण
स्वशक्त्या
श्रद्धया
शुभे।।),
२४३.१४(शृणु
देवि
समासेन
मोक्षद्वारसमनुत्तमम्।
एतद्धि
सर्वधर्माणां
विशिष्टं
शुभमव्ययम्।।),
आश्व.
१११.९
(एतत्सर्वं
समासेन
भक्त्या
ह्युपगतस्य
मे।
वक्तुमर्हसि
सर्वज्ञ
सर्वाधिकं
नमोस्तु
ते।।),
समित् लक्ष्मीनारायण १.३११समित्पीयूष, ३.१६१.९६(बल असुर की देह का समिद् रूप होना तथा होम से रत्नों की उत्पत्ति ) samit
समिधा गरुड १.१०१(ग्रह शान्ति हेतु समिधाओं की काष्ठ के प्रकार), नारद १.६८.३७, १.७१.७८(नृसिंह होम में समिधाओं के होम फल), ब्रह्माण्ड २.३.११.१०९(समिधा हेतु वर्ज्य व अवर्ज्य काष्ठ), मत्स्य ९३(नव ग्रहों के लिए समिधा विशेष), शिव ७.२.३२.५४(शान्ति, पौष्टिक आदि कार्यों में समिधा के ७ प्रकार), स्कन्द १.२.४२.१७७(७ आध्यात्मिक व आधिभौतिक प्रकार की समिधाओं के नाम), ४.२.८७.६३( दक्ष यज्ञ में समित् व कुशों का कल्पवृक्ष द्वारा भरण), महाभारत आश्वमेधिक २०.२०, २७.१३(पांच इन्द्रियों के समिधा होने का उल्लेख), सौप्तिक ७.५३, लक्ष्मीनारायण २.१५२.६७, ३.१६१.८४(देवों को वरदान रूप में वल असुर का यज्ञ की समित् बनना, समित् का अग्नि में होम होने पर रत्नों में परिणत होना ) samidhaa
समीरण लक्ष्मीनारायण २.११६
समुज्ज्वल पद्म २.८९(कुञ्जल - पुत्र, पिता से दृष्ट आश्चर्य का वर्णन, कृष्ण हंसों के स्नान से श्वेत होने की कथा ) samujjvala
समुद्र गरुड २२२, नारद २.५८.२(समुद्र स्नान की विधि, समुद्र की क्षारता का कारण, समुद्र की प्राण से तुलना - प्राणस्त्वं सर्वभूतानां विश्वस्मिन्सरितां पते । तीर्थराज नमस्तेऽस्तु त्राहि मामच्युतप्रिय ।।), पद्म १.४०.१४२(अव्यक्तानन्द सलिल वाले समुद्र का वर्णन - अव्यक्तानंदसलिलं व्यक्ताहंकारफेनिलम्॥ महाभूतकरौघौघं ग्रहनक्षत्रबुद्बुदम्), ३.९.२(घृत, दधिमण्डोद, सुरोद, दुग्ध सागरों का कथन - घृततोयः समुद्रोथ दधिमंडोदकोपरः। सुरोदसागरश्चैव तथान्यो दुग्धसागरः), ब्रह्म २.१०२(समुद्र द्वारा गङ्गा को स्व में विलीन होने का आमन्त्रण - सा चेयं गौतमी गङ्गा सप्तधा सागरं गता।।) , ब्रह्मवैवर्त्त २.११.५१(कृष्ण द्वारा विरजा में वीर्याधान से ७ समुद्रों की उत्पत्ति का कथन), ४.३(सप्त समुद्र : विरजा के सात पुत्रों का शाप से समुद्र बनना), ब्रह्माण्ड २.३.५७.२६(राम द्वारा समुद्र पर शस्त्रसंधान), भविष्य १.२२.४१(समुद्र द्वारा सामुद्रिक शास्त्र का पुनर्निर्माण), भागवत ३.२६.६०(नद्यस्ततः समभवन् उदरं निरभिद्यत ॥ क्षुत्पिपासे ततः स्यातां समुद्रस्त्वेतयोरभूत् ।), ३.२६.६८(क्षुत्तृड्भ्यां उदरं सिन्धुः नोदतिष्ठत् तदा विराट् ।), ११.७.३३(सिन्धु - दत्तात्रेय के २४ गुरुओं में एक - ... कपोतोऽजगरः सिन्धुः पतङ्गो मधुकृद्गजः....), ११.८.६(समृद्धकामो हीनो वा नारायणपरो मुनिः । नोत्सर्पेत न शुष्येत सरिद्भिरिव सागरः ॥), मत्स्य १५४.४४७, वराह ६७.५(सप्तधा विभक्त होकर एकीभूत होने वाले पुरुष का समुद्र नाम - यः पुमान् सप्तधा जात एको भूत्वा नरेश्वर । स समुद्रस्तु विज्ञेयः सप्तधैको व्यवस्थितः ।। ), वराह ६७.२(पावक के ७ समुद्रों में विभाजित होने का कथन), वामन ५७.६८(समुद्र द्वारा स्कन्द को २ गण प्रदान करना), वायु ४९.१२४(समुद्र शब्द की निरुक्ति - अपाञ्चैव समुद्रेकात् समुद्रा इति संज्ञिताः ।।), ४९.१२६ (चन्द्रमा के अनुसार समुद्र के जल में ह्रास-वृद्धि का कथन) , विष्णुधर्मोत्तर १.६.३(जम्बू आदि द्वीपों के परितः सप्त समुद्रों का विस्तार), १.२१४.४(लवण समुद्र के स्वरूप का कथन), ३.११९.२ (पोत यात्रा आरम्भ में मत्स्य की पूजा - समुद्रपोतयात्रायां मत्स्यं संपूजयेद्विभुम् । वराहं वा महाभाग नद्युत्तारे तथैव च ।। ), ३.१६०( सप्तसमुद्र व्रत), स्कन्द ३.१.५१.१५(सेतुमूल में समुद्र पूजा विधि), ५.१.१४(जम्बू, शाक, कुश व शाल्मलि द्वीपों में क्षार, क्षीर, दधि व इक्षु समुद्रों की स्थिति, राजस्थल के समीप चार समुद्रों का एकत्र होना, स्नान माहात्म्य, सुद्युम्न व सुदर्शना को पुत्र प्राप्ति की कथा), ५.१.३४.७१ (छागश्चैवाग्निना दत्तः कुक्कुटं सरितां पतिः ।।), ६.३४ - ६.३५(प्रशोषिणी विद्या के अभ्यास से अगस्त्य द्वारा समुद्र का शोषण), ६.१४२.२०(३० समुद्रों की विद्यमानता का उल्लेख - सरितां पतयस्त्रिंशच्छंकवः सप्तसप्ततिः ॥), ६.२५२.२१(चातुर्मास में समुद्रों की वेतस वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), ७.१.२९(समुद्र स्नान विधि, समुद्र द्वारा ब्राह्मणों के कोप से देवों की रक्षा, ब्राह्मणों को मांस मिश्रित भोजन देने से शाप की प्राप्ति), ७.१.३४६(अगस्त्य द्वारा समुद्र का शोषण, भगीरथ द्वारा आहूत गङ्गा से पुन: पूरण), हरिवंश १.१४.२९(समुद्र का सगर - पुत्र बनना), २.११३(कृष्ण के रथ के मार्ग के लिए समुद्र द्वारा स्व जल का स्तम्भन), महाभारत उद्योग १५३.२७(हस्तिनापुर की चन्द्रोदय काल के समुद्र से उपमा का कथन), १६१.३९(कौरव सेना के वीरों की सागर के प्राणियों से उपमा), भीष्म ७८.३२(कौरव-पाण्डव सेना की शोणित जल वाले समुद्र से उपमा), द्रोण ११४.१३(धृतराष्ट्र द्वारा स्वसेना की समुद्र से तुलना), ११९.३(सात्यकि द्वारा द्रोणाचार्य की सेना की महासागर से तुलना), १२०.८(सात्यकि द्वारा जलसंध रूपी महार्णव को तरने का कथन), सौप्तिक १०.१७( द्रोणाचार्य की महार्णव से उपमा), शान्ति ११३.६(सरिताओँ व सागर के संवाद में वेतस द्रुम की प्रशंसा), वा.रामायण ३.३१.४८, ६.२१(लङ्का पर आक्रमण हेतु मार्ग न देने पर राम का समुद्र पर कोप, समुद्र द्वारा राम को उपाय का कथन), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८३(समुद्रों का वैतस वृक्षों के रूप में अवतरण ), कथासरित् १०.४.१६६(समुद्र द्वारा टिट्टिभ – अण्डों के हरण की कथा), १८.२.२७७, द्र. शरीर, सप्तसमुद्र samudra
समुद्रदत्त कथासरित् २.५.१६९, ५.२.३९, १२.१०.५०,
समुद्रमन्थन अग्नि ३(विष्णु के कूर्म व मोहिनी अवतारों की कथा), पद्म १.४, १.२३, १.११९, ४.८+ (इन्द्र द्वारा दुर्वासा द्वारा प्रदत्त माला का अपमान, दुर्वासा द्वारा इन्द्र को पतन का शाप, देवों द्वारा प्रतिष्ठा हेतु समुद्र मन्थन, रत्नों की उत्पत्ति), ६.५, ६.२३१+ (समुद्र मन्थन का कारण), ब्रह्म २.३६ (अमृतपान के कारण राहु की अमर देह को नष्ट करने का उपाय), ब्रह्माण्ड ३.४.९.५०(विश्वरूप के वध के कारण श्रीहीन हुए इन्द्र के कारण समुद्रमन्थन का उद्योग), भविष्य ४.११८.३२, भागवत ८.५, ८.६, मत्स्य २४९, वराह ३५, विष्णु १.९, विष्णुधर्मोत्तर १.४०, १.४२(समुद्र मन्थन के संदर्भ में राहु के शिर छेदन का आख्यान), शिव ३.१६(सुधापान से देवों का मदाक्रान्त होना, शिव का यक्षेश अवतार), स्कन्द १.१.९, १.१.११(समुद्र मन्थन से रत्नों की उत्पत्ति), ५.१.४४, ५.२.१४, ६.२१०, हरिवंश ३.३०.२७(समुद्रमन्थन से उत्पन्न रत्नों के नाम), वा.रामायण १.४५(समुद्र मन्थन की कथा, रत्नों की उत्पत्ति), लक्ष्मीनारायण १.९०, १.९१, १.१५५, ३.३६.३०(अब्धि मथन वत्सर में मधुभक्ष दैत्य के उपद्रव का वृत्तान्त ) samudramanthana
Esoteric aspect of story of Samudra Manthana
समुद्रवर्मा कथासरित् ९.२.३६५,
समुद्रशूर कथासरित् ९.४.९९,
समुद्रसेन कथासरित् ६.३.१०१
समुन्नत वा.रामायण ६.५८.२१(रावण - सेनानी, प्रहस्त - सचिव, दुर्मुख वानर द्वारा वध ) samunnata
समृद्धि नारद १.६६.९४(नरकजित् विष्णु की शक्ति समृद्धि का उल्लेख ) samriddhi
सम्पत्करी ब्रह्मवैवर्त्त ३.२२.१०(सम्पत्प्रदा लक्ष्मी से स्कन्ध की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड ३.४.१६.७(ललिता - सहचरी सम्पत्करी देवी द्वारा भण्डासुर से युद्ध हेतु प्रस्थान), ३.४.२२.६४(सम्पत्करी द्वारा दुर्मद का वध), ३.४.२६.३८(सम्पदेशी द्वारा चक्रराज रथ के पश्चिम भाग की रक्षा), ३.४.२८.३८(सम्पदीशा का भण्डासुर - सेनानी पुरुष से युद्ध ) sampatkaree/ sampatkari
सम्पत्ति देवीभागवत ९.१.१०३(ईशान - पत्नी), ब्रह्मवैवर्त्त २१, ३.४.६५(सम्पत्ति वृद्धि हेतु वाद्य दान का निर्देश), योगवासिष्ठ ६.२.१५५(भावी सम्पत्ति), लक्ष्मीनारायण ४.२६.५५९(ब्रह्मप्रियेश कृष्ण आदि की शरण से सम्पत्ति से मुक्ति का उल्लेख) sampatti
सम्पद मत्स्य १०१.२०(सम्पद व्रत),
सम्पर्क लक्ष्मीनारायण २.२३७.४१(सम्पर्क राजा व उसकी सेना का महामारी रोग से पीडित होना, दत्तात्रेय की आराधना से रोग से मुक्ति) samparka
सम्पाती गणेश २.९७.२९(सर्पों द्वारा जटायु व सम्पाति का बन्धन, गरुड द्वारा मुक्ति), २.१००.३३(गुणेश द्वारा सम्पाति व जटायु को सर्पों के बन्धन से मुक्त कराना), पद्म १.६.६६(सम्पाती – पुत्रों वभ्रु व शीघ्रग तथा जटायु – पुत्रों कर्णिकार व शतगामी का उल्लेख), ५.३६.२७(मार्गशीर्ष शुक्ल नवमी को सम्पाती द्वारा सीता का पता बताने का कथन), ५.११७.२१२(रूपक राक्षस - पुत्र), ब्रह्म २.९६(गरुड - पुत्र?, सूर्य के समीप जाने से पक्षों का दग्ध होना, गङ्गा में स्नान से ताप से मुक्ति), ब्रह्माण्ड २.३.७.३४१(सुप्रतीक गज के तीन पुत्रों में से एक), मत्स्य ६.३५(अरुण - पुत्र), वायु ६९.२१९, ६९.३१७, वा.रामायण ४.५८(सम्पाती का हनुमान आदि वानरों से मिलन, जटायु की मृत्यु का समाचार प्राप्त होना, सम्पाती के पक्ष दग्ध होने की कथा, सीता व रावण का पता बताना), ४.६२+ (सम्पाती द्वारा निशाकर मुनि के दर्शन व सांत्वना प्राप्ति, वानरों के दर्शन से पक्ष युक्त होना), ६.३७.७(विभीषण - मन्त्री, लङ्का की रक्षा व्यवस्था का दर्शन), ६.४३.७(रावण - सेनानी प्रजङ्घ से युद्ध), ७.५.४५(माली व वसुदा - पुत्र, विभीषण - मन्त्री ) sampaatee/ sampati
सम्प्रज्ञात लक्ष्मीनारायण ३.१३.१+ (प्रज्ञात नामक वत्सर में पृथिवी पर ब्रह्मचर्य की पराकाष्ठा का वर्णन, सती सुदर्शनी द्वारा ब्रह्मचर्य में विघ्नकारकों को शाप से स्त्री बनाना, श्रीहरि द्वारा स्त्रीपुं नारायण अवतार लेकर पुरुषों को स्त्रीत्व से मुक्त करना), ३.१४.४३(अप्रज्ञात वत्सर में मानवों को माकरासुर के त्रास से त्राण देने के लिए श्रीहरि के जलनारायण रूप में प्राकट्य का वर्णन ) sampragyaata/ samprajnaata
सम्बन्धी गरुड २.४५.१०(भार्या आदि के लिए श्राद्ध विधि), पद्म १.१५, ब्रह्मवैवर्त्त १.१०.१३९(श्वसुर, श्याला आदि संज्ञाओं का निरूपण), भविष्य २.१.६.२१(देवरूप ), भागवत ६.७, विष्णुधर्मोत्तर २.३७.५०, लक्ष्मीनारायण २.२४६.३१, sambandhee/ sambandhi
सम्भर लक्ष्मीनारायण ३.२१७
सम्भल गर्ग ९.७(, महाभारत वन १९०.९०(सम्भल ग्राम में कल्कि विष्णुयशा अवतार का कथन), लक्ष्मीनारायण ३.२२०.१(संभल ग्राम में पिशुन दोष वाले वाटधर भक्त की भगवान द्वारा राजदण्ड से रक्षा का वृत्तान्त), द्र. शम्भल sambhal
सम्भाव्य द्र. मन्वन्तर
सम्भूति अग्नि २०(मरीचि व सम्भूति से पौर्णमास पुत्र के जन्म का उल्लेख), गरुड १५, ब्रह्माण्ड १.२.९.५५(दक्ष व प्रसूति - कन्या, मरीचि - पत्नी), भागवत ८.५.९(वैराज - पत्नी, अजित अवतार की माता), मत्स्य १२, विष्णु १.१०.६, शिव ७.१.१७.२२(दक्ष - कन्या, मरीचि - पत्नी, पौर्णमास आदि की माता ), द्र. दक्ष कन्याएं, मन्वन्तर, वंश मरीचि sambhooti/ sambhuuti/ sambhuti
सम्भोग गरुड १.१८०(सम्भोग सुख वर्धक ओषधि योग), विष्णु ३.११.११४ (सम्भोग हेतु काल व नियम ), द्र. सुरत sambhoga
सम्भ्रम मत्स्य १८०.९९(हरिकेश गण को शिव द्वारा प्रदत्त २ गणों में से एक )
सम्मति द्र. भूगोल
सम्मार्जन नारद १.५१.२७
सम्राट् ब्रह्माण्ड १.२.१६.१७(इस लोक की सम्राट् संज्ञा), लक्ष्मीनारायण ३.४५.३०, द्र. वंश भरत
सयुग्वान् स्कन्द ३.१.२६(शकट के कारण रैक्व मुनि का उपनाम),
सर गरुड १.८१.२२(भाव शुद्धि रूपी आध्यात्मिक सरोवर), पद्म १.२७, ब्रह्माण्ड २.१८(बिन्दु सर), वराह ७८(सरोवर तटों पर पर्वतों की स्थिति), १२६(मानस सर), १४०(ब्रह्म सर), १४०(अग्नि सरोवर), १५०(ब्रह्म सर), १५०(राम सर), १५०(शक्र सर), १५१(अग्नि सरोवर), १५१(पञ्च सर), वामन २२(सन्निहित सरोवर का विस्तार, पृथूदक सरोवर का विस्तार), ४५(सन्निहित सरोवर), विष्णुधर्मोत्तर ३.२९६(सरोवर निर्माण प्रशंसा), शिव ७.२.३२.७८(सरोवर का वह्नि व वह्नि का सरोवर बनना), स्कन्द १.२.५२(अहल्या सर : गौतम व अहल्या के तप का स्थान), १.२.५३(नारदीय सरोवर का माहात्म्य), १.२.५६, २.२.३१(इन्द्रद्युम्न सरोवर में स्नान की विधि), १.२.६६(कृष्ण द्वारा भीम को लङ्का के निकट सरोवर से मृत्तिका लाने का आदेश, भीम का दर्प भङ्ग), २.१.१०(अस्थि सरोवर), ३.१.९, ३.१.११(सीता सरोवर में इन्द्र की ब्रह्महत्या से मुक्ति), ३.१.१८राम सर, ३.१.३७(विष्णु द्वारा मुद्गल के लिए क्षीर सरोवर का निर्माण), ३.२.१५(देवखात सरोवर का माहात्म्य), ३.२.१९, ४.२.५२(काशी में ब्रह्मा द्वारा अश्वमेध करने के पश्चात् रुद्र सरोवर का दशाश्वमेध नाम), ५.१.२२, ७.४.१२(मय नामक सरोवर का माहात्म्य, गोपियों द्वारा कृष्ण के दर्शन), ७.४.१४(महादेव सरोवर, गौरी सरोवर, वरुण सरोवर, यक्षाधिप सरोवर का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.५६, १.५१४.१२(३ महत्त्वपूर्ण सरों के नाम), २.३८.६९, २.१२६, २.२००, २.२७२.५७, कथासरित् ५.२.२४३, द्र. मानसरोवर, वाक्सर sara
सरक नारद २.६५.६४(सरक तीर्थ का माहात्म्य), वामन ३६(सरक तीर्थ में शरभ रूपी शिव द्वारा नृसिंह के दर्प का हरण )
सरघा भागवत ५.१५(बिन्दुमान् - पत्नी, मधु - माता ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.९५, saraghaa
सरदन भविष्य ३.३.१७, ३.३.२६.९४(परिमल - पुत्र रणजित् द्वारा सरदन का वध), ३.३.३१.८३(पृथ्वीराज - पुत्र, मदनावती से विवाह),
सरभ पद्म ६.१८९(सरभ - भेरुण्ड : नरसिंह राजा का सेनापति, मृत्यु पर अश्व बनना, गीता के १५वें अध्याय के श्रवण से मुक्ति ), वामन ६९, sarabha
सरमा देवीभागवत ८.२०.११(शक्रदूती सरमा की वाक् से पणि असुरों के सदैव भयभीत होने का उल्लेख), पद्म १.३८.९६(विभीषण-भार्या सरमा का राम के दर्शन हेतु आगमन, राम द्वारा भरत को सरमा का परिचय देना), ब्रह्म २.६१(देवशुनी सरमा की गोरक्षा में नियुक्ति पर दैत्यों द्वारा गायों का हरण, इन्द्र द्वारा सरमा का ताडन व शापन, सरमा का मानुष लोक में शुनी बनना, सरमा - पुत्रों द्वारा गङ्गा में स्नान से माता की मुक्ति कराना), ब्रह्माण्ड २.३.७.४४१(सरमा वंश का कथन), वराह १६(गायोंकी रक्षा में नियत देवशुनी द्वारा असुरों से दुग्धपान करके इन्द्र से मिथ्या कथन, इन्द्र द्वारा सरमा पर पदाघात आदि), वायु ६९.३१३(सरमा के अपत्यगण व श्याम, शबल आदि का कथन), वा.रामायण ६.३३(राम का सिर काटने की माया का सरमा द्वारा सीता के समक्ष रहस्योद्घाटन), ७.१२.२४(शैलूष गन्धर्व - कन्या, विभीषण – पत्नी, सरमा नाम धारण के हेतु का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.३६५(देवशुनी सरमा द्वारा असुरों से दुग्ध को अस्वीकार करना, असुरों द्वारा श्वा बनकर सरमा का पीछा, सरमा द्वारा पातिव्रत्य से भस्म करना), २.३२.३७(सरमा द्वारा मानुष गर्भों के भक्षण का उल्लेख), saramaa
सरयू
नारद २.४०.३८(सरयू
का विष्णु के वाम चरण से प्राकट्य,
गङ्गा
-
भगिनी,
वेणी
राज्य तीर्थ में गङ्गा से मिलन
-
वेणीराज्यं
ततस्तीर्थं
सरयूर्यत्र
गंगया
।।
सुपुण्यया
महापुण्या
स्वसा
स्वस्रेव
संगता
।।),
ब्रह्माण्ड
१.२.१८.१५(सरयू
का मानसरोवर से उद्भव,
तटवर्ती
वनों का वर्णन
-
तस्मात्प्रभवते
पुण्या
सरयूर्लोकविश्रुता
।।
तस्यास्तीरे
वनं
दिव्यं
वैभ्राजं
नाम
विश्रुतम्
।।
),
२.३.५१.६५(असमञ्जस
द्वारा बालकों के सरयू में
क्षेपण का प्रसंग
-
बालांश्च
यूनः स्थविरान्योषितश्च सदा
खलः ॥
हत्वाहत्वा
प्रचिक्षेप सरय्वामतिनिर्दयः
।),
वामन
५७.७८(सरयू
द्वारा स्कन्द को गण प्रदान),
९०.२७(सरयू
में विष्णु का अनुत्तम नाम
-
कालिञ्जरे
नीलकण्ठं सरय्वां
शंभुमुत्तमम्(सरय्वामप्यनुत्तमम्)।),
वायु
४७.१५(सरयू
की त्रैककुद अञ्जन पर्वत से
उत्पत्ति
-
तस्य
पादे सरः पुण्यं मानसं
सिद्धसेवितम् ।।
तस्मात्
प्रभवते पुण्या सरयूर्लोकभावनी।),
विष्णुधर्मोत्तर
१.२१५.४४(सरयू
का सारस वाहन
-
सारसेनापि
सरयूः शिशुमारेण गोमती ।।),
स्कन्द
२.८.१.४५(सरयू
का विष्णु चरण से उद्भव
-
दक्षिणाच्चरणांगुष्ठान्निःसृता
जाह्नवी
हरेः
।
वामांगुष्ठान्मुनिवराः
सरयूर्निर्गता
शुभा
।। ),
२.८.६.१०६(सरयू-घर्घरा
संगम का माहात्म्य -
सरयूघर्घरायोगे
वैष्णवस्थो नरः सदा ।।),
२.८.१०.२६(सरयू
का माहात्म्य),
६.१००.१७(लक्ष्मण
द्वारा सरयू तट पर प्राण त्याग
-
ततोऽसौ
सरयूं
गत्वाऽवगाह्याथ
च
तज्जलम्
॥
शुचिर्भूत्वा
निविष्टोथ
तत्तीरे
विजने
शुभे
॥),
वा.रामायण
१.२४.९(सरयू
की मानसरोवर से उत्पत्ति,
गङ्गा
से मिलन),
७.११०(सरयू
में स्नान द्वारा राम का परम
धाम गमन,
जनसमूह
को सन्तानक लोक की प्राप्ति
-
अध्यर्धयोजनं
गत्वा नदीं पश्चान्मुखाश्रिताम्
।
सरयूं
पुण्यसलिलां ददर्श रघुनन्दनः
।। ),
लक्ष्मीनारायण
१.१२३.१७(वैकुण्ठ
लोक में सरयू नदी का वर्णन,
निरुक्ति
-
हरिस्तामानन्दसरैर्युनक्त्यपि
निजात्मनि । ततः सा सरयूरूपा
सरिज्जाता विकुण्ठके ।।),
३.९.४७(मया
तथाऽस्त्विति प्रोक्ता त्वं
तदा वैश्यपुत्रिका ।
सरयूकासतीनाम्न्याः
स्त्रियाः पुत्री शुभानना
।।)
sarayoo/sarayuu/
saryu
सरल लक्ष्मीनारायण ४.८७.१२(वक्र व सरल की परिभाषा )
सरस्वती अग्नि ९१.१४(सरस्वती के बीज मन्त्र आं ह्रीं का उल्लेख), ३०२.१(सरस्वती विद्या मन्त्र), ३१९(वागीश्वरी पूजा स्वरूप व मन्त्र), गरुड १.७.८( सरस्वती पूजा मन्त्र, कवच), १.१०.६(सरस्वती अर्चना मन्त्र), १.३६.१२(सरस्वती के संध्यात्रय में कृष्ण संध्या होने का उल्लेख), १.५२.६(सरस्वती के तरंगिणी से संगम का माहात्म्य), १.८१.५(सप्त सारस्वत के परम पुण्य होने का उल्लेख), १.८३.१३(संध्या में सरस्वती की अर्चना सायंकाल करने का निर्देश), १.२१७.८(अपराह्न सरस्वती का स्वरूप), ३.६.२५(सरस्वती द्वारा हरि-स्तुति), ३.१२.५०(सरस्वती का अंशावतरण न होने का उल्लेख, सरस्वती की ज्ञान से तुलना), ३.१६.८२(सरस्वती के ३ रूप – चतुर्मुख की सावित्री भार्या, कृत में प्रद्युम्न से उत्पत्ति, वाणी - ब्रह्माणी ), गर्ग ६.१३.५(प्रभास तीर्थ के अन्तर्गत पश्चिम - वाहिनी सरस्वती की महिमा), देवीभागवत ३.६.३२(ब्रह्मा द्वारा सृष्टि हेतु महासरस्वती की प्राप्ति), ८.१२.२४ (शाल्मलि द्वीप की नदी), ९.१.३०(सरस्वती की महिमा), ९.४.१०(सरस्वती की महिमा, पूजा विधि, कवच, स्तोत्र), १२.६.१५०(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.६६.८९(सङ्कर्षण की शक्ति सरस्वती का उल्लेख), १.६६.११०(चण्डेश की शक्ति सरस्वती का उल्लेख), १.६६.१२५(विघ्नहर्ता की शक्ति सरस्वती का उल्लेख), १.८३.९२(सरस्वती की राधा से उत्पत्ति, स्वरूप व मन्त्र विधान), १.८४.७९(शुम्भ - निशुम्भ हन्त्री महासरस्वती मन्त्र विधान), पद्म १.१४.१९०(उदङ्मुखी गंगा व प्राची सरस्वती के पवित्र होने का उल्लेख), १.१८.११८(पुष्कर में प्राची सरस्वती का माहात्म्य, पांच धाराओं में विभक्ति, बडवानल का वहन), १.१८.१५०(उत्तर तट पर शरीर त्याग व प्राची तट पर जाप्यपरायण होने का निर्देश), १.१८.१८६(सरस्वती का उत्तंक के आश्रम पद में प्लक्ष वृक्ष के नीचे से उद्भूत होने का कथन), १.१८.२१८(पुष्कर में प्राची सरस्वती के ६ पर्यायवाची नाम मति, स्मृति, शुभा, प्रज्ञा, मेधा, बुद्धि, दयापरा), १.१८.२५२(सरस्वती द्वारा नन्दा नाम प्राप्ति का कारण, व्याघ्र - नन्दा गौ के संवाद की कथा), १.१९.२०(ज्येष्ठ पुष्कर में सरस्वती के प्रवेश का कथन), १.२६, १.३२(पुष्कर में सरस्वती की महिमा), १.३२.११२(ज्येष्ठ – मध्यम पुष्कर से मध्य पश्चान्मुखी सरस्वती व उदङ्मुखी गंगा का संगम होने का उल्लेख, प्राची रूप में स्थित होना), १.४९.१२(पूर्वाह्ण में रक्तवर्णा, मध्याह्न में शुक्लवर्णा व सायं कृष्णा सरस्वती के ध्यान का निर्देश), ३.१३.६(सरस्वती के कुरुक्षेत्र में पवित्र होने का उल्लेख, गंगा के कनखल में), ३.१३.७(सारस्वत तोय द्वारा तीन दिन में पवित्र करने का उल्लेख), ३.२४.१०(सरस्वती – सागर संगम का माहात्म्य – गो सहस्र फल की प्राप्ति), ३.२५.१७( विनशन तीर्थ, चमसोद्भेद तीर्थ, नागोद्भेद तीर्थ, शिवोद्भेद तीर्थ, शशयान तीर्थ का माहात्म्य), ३.२५.३२(सरस्वती सङ्गम का माहात्म्य), ३.२७.३५(पृथूदक तीर्थ का माहात्म्य), ३.२७.४१(सरस्वती – अरुणा संगम का माहात्म्य), ३.२७.९२( कुरुक्षेत्र में सरस्वती के उत्तर व दक्षिण में वास का महत्त्व), ३.२८.७(सौगंधिक वन में सरस्वती का प्लक्षा देवी नाम, वल्मीक से निःसृत जल में अभिषेक का महत्त्व), ३.३२.२(रुद्रावर्त तीर्थ में गंगा – सरस्वती संगम का माहात्म्य), ३.३८.६९( ऋषभ द्वीप में सरस्वती का माहात्म्य), ५.१०४.५६( सरस्वती देवी का स्वरूप), ६.३०.६४( सरस्वती तट पर सिद्धाश्रम में कपिल द्विज द्वारा दीप्त दीपक की रक्षा के संदर्भ में मार्जार – मूषक की कथा), ६.३२.१८(तीन अतिदानों में गावः, पृथिवी व सरस्वती का कथन), ६.३४.२५(प्राची सरस्वती तट पर त्रिस्पृशा व्रत के माहात्म्य का कथन), ६.४९.११(सरस्वती तट पर भद्रावती में धनपाल वैश्य के ५ पुत्रों की कथा), ब्रह्म २.३१(पुरूरवा से रमण करने पर ब्रह्मा द्वारा सरस्वती को नदी होने का शाप), २.३१.११(सरस्वती - गङ्गा सङ्गम), २.३५(सोम पर गन्धर्वों का अधिकार हो जाने पर देवों द्वारा सरस्वती के मूल्य पर सोम का क्रयण), २.६५(ब्रह्मा व विष्णु की श्रेष्ठता की स्पर्द्धा में वाणी का ब्रह्मा के पञ्चम मुख से अनृत कथन, शाप से नदी बनना, गङ्गा से सङ्गम से मुक्ति), २.९३.४०(शाकल्य द्विज व परशु दैत्य की कथा, सरस्वती – प्रदत्त वाक् द्वारा परशु दैत्य द्वारा जनार्द्दन की स्तुति, वांछित फल प्राप्ति, सारस्वत तीर्थ का माहात्म्य), ब्रह्मवैवर्त्त १.३.५४(सरस्वती की उत्पत्ति), २.१.३१(पांच प्रकृतिदेवियों में तृतीय सरस्वती के गुण), २.६(सरस्वती की गङ्गा व लक्ष्मी से कलह), २.६.४(सरस्वती जल के ज्ञान रूप होने का उल्लेख), २.७.१०९ (सरस्वती के तप के विशिष्ट स्थान गन्धमादन का उल्लेख), २.१३.१३(माघ मास में सरस्वती पूजा का उल्लेख), ३.७.१०२(सरस्वती द्वारा श्रीकृष्ण – तेज की संक्षिप्त स्तुति), ४.६.१४४(सरस्वती का शैब्या रूप में अंशावतरण), ४.४५.१२(शिव विवाह में सरस्वती द्वारा हास्य), ४.१०९.१९(कृष्ण व रुक्मिणी विवाह में सरस्वती द्वारा हास्य), भविष्य १.५७.६(सरस्वती हेतु त्रिमधुर बलि का उल्लेख), १.५७.१६(सरस्वती हेतु नवनीत बलि का उल्लेख), ३.१.६.६(काश्यप द्वारा काश्मीर में सरस्वती को प्रसन्न करके वर प्राप्त करने की कथा), ३.४.१०.६१( सरस्वती के दर्शन से ब्रह्मा द्वारा चतुर्वर्ण की सृष्टि का कथन), ४.३५(सरस्वती व्रत), भागवत १.७.२( सरस्वती के पश्चिम तट पर शम्यापरास आश्रम में व्यास द्वारा भागवत की रचना), १.१६.३६+(परीक्षित द्वारा सरस्वती तट पर वृष का ताडन करने वाले कलि का निग्रह), २.९.४४(नारद दवारा सरस्वती तट पर भागवत का उपदेश), ३.१.२१(विदुर द्वारा सरस्वती तीरस्थ त्रित, उशना, मनु, पृथु, अग्नि, असित, वायु, सुदास, गौ, गुह, श्राद्धदेव ११ तीर्थों का सेवन), ३.२१.३९(सरस्वती से भरे बिन्दुसरोवन के नाम का कारण – अश्रुबिन्दुओं से उत्पत्ति), ३.२३.२५(देवहूति द्वारा सरस्वती सर में स्नान पर सरोवन में १ हजार कन्याओं का दर्शन), ३.२४.९( कर्दम आश्रम के सरस्वती से परिश्रित होने का उल्लेख), ४.१६.२४(सरस्वती के प्रादुर्भाव स्थल पर पृथु द्वारा अश्वमेध करने का उल्लेख, पुरन्दर द्वारा अश्व का हरण), ४.१९.१(ब्रह्मावर्त में मनु के क्षेत्र में प्राची सरस्वती क्षेत्र में पृथु द्वारा १०० हयमेधों की दीक्षा का उल्लेख), ५.१९.१८( भारत की नदियों में से एक), ५.२०.१०( शाल्मलि द्वीप की ७ नदियों में से एक), ६.८.४०(चित्ररथ गंधर्व द्वारा ब्राह्मण की अस्थियों को प्राची सरस्वती में प्रवाहित करने का उल्लेख), ८.८.१६(सरस्वती द्वारा लक्ष्मी को हार देने का उल्लेख), ८.१३.१७(देवगुह्य - पत्नी, सार्वभौम अवतार की माता), ८.१८.१६(सरस्वती द्वारा वामन को अक्षमाला देने का उल्लेख), ९.१४.३३(पुरूरवा द्वारा कुरुक्षेत्र में सरस्वती में उर्वशी व ५ सखियों से वार्तालाप), ९.१६.२३( सरस्वती में अवभृथ स्नान के पश्चात् परशुराम का मेघरहित सूर्य के समान प्रकाशित होने का उल्लेख), १०.२.१९(ज्ञानखल की सरस्वती के प्रकाशित न होने की कारागार में बद्ध देवकी से उपमा), १०.३४.२(सरस्वती तट पर अम्बिका वन में अजगर द्वारा नन्द का निगरण, कृष्ण द्वारा उद्धार, अजगर का सुदर्शन विद्याधर बनना), १०.७८.१८(बलराम द्वारा सरस्वती तटस्थ तीर्थों पृथूदक, बिन्दुसर, त्रितकूप, सुदर्शन, विशाल, ब्रह्मतीर्थ, चक्रतीर्थ, प्राची सरस्वती के दर्शन का उल्लेख), १०.८९.१(सरस्वती तट पर ऋषियों के सत्र में भृगु द्वारा त्रिदेवों में श्रेष्ठता की परीक्षा), मत्स्य ३.३२(ब्रह्मा - पुत्री, सावित्री के शतरूपा, सरस्वती आदि उपनामों का उल्लेख), ४.८(विरिंचि के साथ सरस्वती व भारती के साथ प्रजापति की स्थिति का उल्लेख) , ७.३( दिति द्वारा स्यमन्तपञ्चक में सरस्वती तट पर आराधना) , ५३.६८(संकीर्ण /उपपुराणों में सरस्वती व पितरों का माहात्म्य होने का उल्लेख) , ६६.३( सारस्वत व्रत से सरस्वती की तुष्टि का कथन, व्रत विधि), ६६.९( सरस्वती के लक्ष्मी, मेधा आदि ८ तनुओं के नाम), १२१.६५(हेमकूट पृष्ठ पर सर्पसरोवर से ज्योतिष्मती व/ सरस्वती के निर्गम का कथन) , १३३.२४( शिव रथ में वेणुसंज्ञक स्थान पर कृत नदियों में से एक), १७१.३३(ब्रह्मा द्वारा निर्मित लक्ष्मी आदि ५ देवियों में से एक) , २२९.३( सरस्वती तट पर अत्रि व गर्ग मुनियों का अद्भुतों / उत्पातों के सम्बन्ध में वार्तालाप) , २४६.५७(वामन के विराट रूप में सरस्वती का जिह्वा स्थानिक होने का उल्लेख) , २६०.४४(ब्रहमा के वाम पार्श्व में सावित्री व दक्षिण पार्श्व में सरस्वती की प्रतिष्ठा का निर्देश), २९०.१४(संकीर्ण कल्पों / पुराणों में सरस्वती व पितरों की व्युष्टि का उल्लेख) , मार्कण्डेय २३.४९(सरस्वती द्वारा अश्वतर व कम्बल नागों को वरदान), ६९.२६ (सारस्वती इष्टि से रानी नन्दा के मूकत्व का निरसन), वराह ८५(हिमालय पाद से निःसृत नदियों में से एक), ९१(सरस्वती के पर्यायवाची नाम), वामन २२.१३(सरस्वती की प्लक्ष से उत्पत्ति, नाम), ३२+(मार्कण्डेय द्वारा सरस्वती की स्तुति, कुरुक्षेत्र में प्रवाह), ३७(ब्रह्मा के यज्ञ में सरस्वती का आह्वान, कुरुक्षेत्र में विभिन्न ऋषियों द्वारा सरस्वती का विभिन्न नामों से आह्वान), ४०(सरस्वती द्वारा वसिष्ठ के अपवहन का प्रसंग), ४२(सरस्वती के चार दिशाओं में प्रवाह रूपों का कथन), ५३.१२(गजारूढा सरस्वती, कच्छपारूढा यमुना आदि), ६२.४५(सप्त सारस्वत तीर्थ में सरस्वती का ७ नामों से निवास, मङ्कणक प्रसंग), ७२.७५(७ सरस्वतियों से ७ मरुतों का जन्म), वायु १.२३.३४(ब्रह्मा के ध्यान से महानादा सरस्वती की उत्पत्ति का उल्लेख), २३.८६/१.२३.८१(ब्रह्मा द्वारा चतुष्पदा सरस्वती के दर्शन से सब पशुओं के चतुष्पाद, चतुस्तन होने का कथन), २८.९( पूर्णमास व सरस्वती के २ पुत्रों विरज व पर्वस के नाम व गुण), ६५.९१/२.४.९१(सरस्वती व दधीचि से सारस्वत पुत्र के जन्म का उल्लेख), ९९.१२५/२.३७.१२५(रन्तिनार व सरस्वती से उत्पन्न पुत्रों के नाम), १०४.७७/२.४२.७७(देह में न्यास के संदर्भ में मध्य में सरस्वती तीर्थ की स्थिति का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५.४५(सरस्वती का मयूर वाहन, अन्य नदियों के वाहन), ३.६४(सरस्वती की मूर्ति का रूप), ३.१६४(सरस्वती व्रत), शिव १.१२.९(षष्टिमुखा सरस्वती का संक्षिप्त माहात्म्य), १.१२.१७(सरस्वती का संक्षिप्त माहात्म्य), २.५.२६.३४(सरस्वती का सुरा नाम से तमोगुणी देवी के रूप में उल्लेख?), ५.४८.५०(शुंभ – निशुंभ का वध करने वाली शक्ति की सरस्वती संज्ञा), स्कन्द २.१.८.६(सरस्वती द्वारा श्रीनिवास को चंवर डुलाने का उल्लेख), २.३.६.३६(बदरी क्षेत्र में स्थित सरस्वती की प्रशंसा), २.४.४.८५(नन्दा गौ का व्याघ्र को उपदेश के पश्चात् सरस्वती बनना?), ३.१.४०.१(गायत्री – सरस्वती तीर्थ का माहात्म्य, सरस्वती का सावित्री से तादात्म्य ), ३.२.२५(मार्कण्डेय द्वारा सरस्वती को धर्मारण्य में लाना), ४.१.७.६४(सरस्वती रजोरूप, तमोरूपा कलिंदजा, सत्वरूपा गंगा), ४.२.८९.४५(दक्ष यज्ञ में सरस्वती की नासिका का छेदन), ४.२.९२.६(सरस्वती के अथर्ववेद की मूर्ति का रूप होने का उल्लेख, गंगा ऋग्वेद, यमुना यजु, नर्मदा साम), ५.२.७१.६८(शिप्रा का प्राची सरस्वती से तादात्म्य), ५.३.९.४५(गंगा के वैष्णवी, रेवा के रौद्री व सरस्वती के ब्राह्मी मूर्ति होने का उल्लेख), ५.३.२१.५(गंगा के कनखल में, सरस्वती के कुरुक्षेत्र में व नर्मदा के सर्वत्र पुण्या होने का उल्लेख), ५.३.२१.६(सारस्वत जल द्वारा तीन दिन में, यमुना तोय द्वारा सप्ताह में, गंगा तोय द्वारा सद्यः व नर्मदा द्वारा दर्शन से ही पवित्र करने का उल्लेख), ५.३.१८०.५१(दशाश्वमेध तीर्थ में आश्विन् शुक्ल दशमी को ब्रह्मचारिणी सरस्वती में स्नान का महत्त्व), ५.३.१९८.८१(सरस्वती में देवी के वेदमाता नाम से वास का उल्लेख), ५.३.१९८.८९(ब्रह्मास्य में देवी के सरस्वती नाम से वास का उल्लेख), ५.३.२३१.१६(चार सारस्वत तीर्थ होने का उल्लेख), ६.४६(सरस्वती तीर्थ का माहात्म्य, अम्बुवीचि मूक के मूकत्व की समाप्ति, सरस्वती स्तुति), ६.१७२(वसिष्ठ को बहाकर लाने की विश्वामित्र की आज्ञा का उल्लंघन करने पर सरस्वती को शाप की प्राप्ति, रक्त वर्ण जल होना, वसिष्ठ द्वारा शाप का निवारण), ७.१.३२.५२(सुरभि गौ के मुख की अपवित्रता के आक्षेप पर सुरभि द्वारा सरस्वती को दग्ध होने का शाप), ७.१.३३.५४(ऋषियों के आह्वान पर सरस्वती का पञ्चधा विभक्त होना), ७.१.३४(सरस्वती द्वारा बडवानल को समुद्र के प्रति वहन करना, बडवानल से वर प्राप्ति, बडवानल व समुद्र की स्तुति), ७.१.३५(और्व द्वारा उत्पन्न बडवानल को पिप्पलाद आश्रम से लेकर समुद्र के प्रति गमन, यात्रा का वृत्तान्त), ७.१.३५.६५ (न्यङ्कु नदी की शिव द्वारा सरस्वती की सखी के रूप में उत्पत्ति ), ७.१.४१(वडवानल वहन प्रसंग में सरस्वती द्वारा भैरवेश्वर लिङ्ग की स्थापना), ७.१.१५३(ब्रह्मा के यज्ञ में दक्षिणा धन हेतु सरस्वती का काञ्चनवाहिनी होना), ७.१.१८५(वडवा विग्रह में पादुकासन संस्था सरस्वती की गौरी रूप में स्थिति, देवमाता नाम), ७.१.२०२.५८(प्रभास क्षेत्र में पञ्चस्रोता सरस्वती, माहात्म्य), ७.१.२०४(सरस्वती सङ्गम का माहात्म्य), ७.१.२७०(प्राची सरस्वती का माहात्म्य – मङ्कण के हाथ से शाकरस चूने की कथा), ७.१.२७३.६(प्राची सरस्वती का माहात्म्य – कृष्ण वृष का श्वेत बनना), ७.१.३३८, ७.३.१(सरस्वती द्वारा गर्त में फंसी नन्दिनी धेनु को बाहर निकालना), ७.३.२१(सरस्वती की पिण्डोदक ब्राह्मण पर कृपा), योगवासिष्ठ ३.१६+ (सरस्वती द्वारा पद्मराज - पत्नी लीला को सूक्ष्म शरीरों में प्रवेश का उपदेश), लक्ष्मीनारायण १.२३.३७(वाग्देवी सरस्वती को उत्पन्न करने का कारण ), १.२०७.५९(सारस्वत तीर्थ का माहात्म्य), १.३३२(गङ्गा व सरस्वती द्वारा परस्पर शाप से सरित् बनना), १.३८५.५६(सरस्वती का कार्य- पादों में अलक्तक लगाना), १.४४१.९४, १.४७८, १.५०७.८(विश्वामित्र के शाप से सरस्वती के रक्तजला होने तथा वसिष्ठ द्वारा प्लक्ष वृक्ष के मूल से शुद्ध जल वाली सरस्वती के नि:सारण का वृत्तान्त), १.५३७, २.१४२.२९, २.२९७.८६, ३.६२.३०(ब्रह्मा - पुत्री सरस्वती द्वारा स्वभगिनी शारदा के मूकत्व के निरसन का कथन ), ४.४५.३४, ४.१०१.८४, कथासरित् १.४.११, १.५.१८, ९.१.२०५, वास्तुसूत्रोपनिषद ६.२१टीका(सावित्री मेधारूप, गायत्री ज्ञानरूपा, सरस्वती प्रज्ञारूपा), महाभारत आदि १६.१९(गंगा की ७ धाराओं में से एक, प्लक्ष मूल से प्रकट होना), ९५.२६(राजा मतिनार द्वारा सरस्वती तट पर यज्ञ, सरस्वती द्वारा मतिनार का पतिरूप में वरण, तंसु पुत्र को जन्म देना), सभा ७.१९(ये इन्द्र की सभा में विराजमान होती हैं), ९.१९(वरुण की सभा में रहकर उनकी उपासना), वन ५.२(पाण्डवों द्वारा वनयात्रा के समय सरस्वती को पार करना, काम्यक वन में प्रवेश), १२.१४(कृष्ण द्वारा सरस्वती तट पर किए गए यज्ञानुष्ठान की चर्चा), ३६.४१(सरस्वती तट पर काम्यकवन होना), ८२.१२५(सरस्वती सङ्गम का माहात्म्य), ८३.१५१(सरस्वती – अरुणा संगम का माहात्म्य), ८४.८६(तीर्थस्वरूपा सरस्वती में पितरों का तर्पण करने पर सारस्वत लोकों की प्राप्ति), ९०.३(तीर्थों की पंक्ति से सुशोभित सरस्वती का पुण्यदायिनी होना), १००.१३(दधीचि का आश्रम सरस्वती के उस पार होना), १२९.२०(लोमश द्वारा सरस्वती के माहात्म्य का वर्णन), १३०.३(निषादों के भय से सरस्वती का विनशन तीर्थ में लुप्त होकर चमसोद्भेद में पुनः प्रकट होना), १८५(तार्क्ष्य मुनि को उनके प्रश्न के अनुसार गोदान, अग्निहोत्र आदि विविध विषयों का उपदेश), २२२.२२(अग्नि की उत्पत्ति की स्थानभूता नदियों में सरस्वती की गणना), उद्योग ११७.१४( मनु – पत्नी), भीष्म ६.४८(गंगा की सात धाराओं में से एक), ९.१४(भारतवासियों द्वारा पान किए जाने वाले जल को प्रदान करने वाली नदियों में से एक), कर्ण २६.९(त्रिपुरनाश के समय शिव के रथ में गंगा व सरस्वती का तूणी होने का उल्लेख), ३४.३४(त्रिपुरदाह के समय शिव के रथ में परिरथ्या/ आगे बढने का मार्ग होने का उल्लेख), शल्य ३५ - ५४(सरस्वती तटवर्ती तीर्थों की महिमा का विशेष वर्णन), ३५.७७(सरस्वती – सागर सङ्गम का माहात्म्य, चन्द्रमा को खोयी कान्ति की पुनः प्राप्ति), ३७.५५(सरस्वती के प्रतीचीमुखी होने का कारण), ४२.२९( ब्रह्मसर से प्रकट होना, सरस्वती द्वारा वसिष्ठ का बहाया जाना), ४२.३८( विश्वामित्र से शोणित रूप जल होने के शाप की प्राप्ति), ४३.१६(ऋषियों के प्रयत्न से शाप से मुक्ति, सरस्वती – अरुणा संगम का माहात्म्य), ५१.१३( महर्षि दधीचि के वीर्य को धारण करके पुत्र पैदा होने पर उन्हें सौंपना), ५१.१७( महर्षि दधीचि से वरदान की प्राप्ति), ५४.३८(बलराम द्वारा सरस्वती की प्रशंसा), शान्ति १२१.२४ (दण्डस्वरूपा सरस्वती के ब्रह्मा की कन्या होने का उल्लेख), ३१८.१४(महर्षि याज्ञवल्क्य के चिन्तन करने पर स्वर और व्यञ्जन वर्णों से विभूषित वाग्देवी सरस्वती का ओंकार को आगे करके उनके सामने प्रकट होना, याज्ञवल्क्य – मिथिलाधिपति संवाद), ३४७.५०(हयग्रीव की भ्रुवों/श्रोणी के रूप में गङ्गा - सरस्वती का उल्लेख), अनुशासन ८५.३१(मण्डूकों को बहुविध सरस्वती उच्चारण का वरदान), मौसल ८.७१(अर्जुन द्वारा सात्यकि – पुत्र को सरस्वती के तटवर्ती प्रदेश का अधिकारी बनाना), स्वर्गारोहण ५.२५(कृष्ण की १६ हजार पत्नियों द्वारा सरस्वती नदी में कूदकर अपने प्राण देना), द्र. महासरस्वती, सप्तसारस्वत, सारस्वत sarasvatee/ sarasvati
सरिता योगवासिष्ठ ६.१.७८.२२(बुद्धि की सरिता से उपमा का कारण ) saritaa
सरीसृप भविष्य २.१.१७.१३ (स्वर की अग्नि का नाम - उदरे जठराग्निश्च समुद्रे वडवानलः ।। शिखायां च विभुर्ज्ञेयः स्वरस्याग्निः सरीसृपः ।। )
सरोगेया स्कन्द १.२.६६(असुर गण?, त्रिकूट पर्वत की शिलाओं द्वारा शिर का पेषण, चूर्णन),
सरोज लक्ष्मीनारायण ३.१५४, ४.१०१.११०
सर्ग अग्नि २०(प्राकृत व वैकृत ८ सर्गों का वर्णन), १०७(स्वायंभुव सर्ग), कूर्म १.४(प्राकृत व वैकृत सर्गों का वर्णन), १.७(प्राकृत व वैकृत सर्गों के प्रकार), गरुड १.४(सर्गों के प्रकारों का वर्णन), पद्म १.३(ब्रह्मा द्वारा सृष्टि के प्रकार), ब्रह्माण्ड १.१.५.६०(सब भूतों में सब प्रकार के सर्गों की स्थिति का कथन), १.१.५.१०४(३ अबुद्धिपूर्वक प्राकृत सर्ग व ६ बुद्धिपूर्वक वैकृत सर्गों का वर्णन), १.२.९.६३(धर्म सर्ग), १.२.९.६७(तामस सर्ग), १.२.११(महर्षि गण सर्ग), १.२.१२(अग्नि सर्ग), १.२.३७(चाक्षुष सर्ग), १.२.३८(मारीच सर्ग), २.३.१(ऋषि सर्ग), २.३.३(धर्म सर्ग), ३.४.३(सर्ग - प्रतिसर्ग निरूपण), ३.४.४.३४(सर्ग निरूपण), भविष्य १.२(भूत सर्ग), मार्कण्डेय ४७(महत्, भूत, वैकारिक तीन प्राकृत; मुख्य, तिर्यक, देव आदि ५ वैकृत सर्ग), ५२(रुद्र सर्ग), लिङ्ग १.७०.१४१(ब्रह्मा के विभिन्न सर्गों का वर्णन), वराह २(महाभूत आदि सर्ग), १२(पितर सर्ग), ३४(पितृ सर्ग), वायु ६.३६(प्राकृत व वैकृत सर्गों के उपभेद), ६.४०, विष्णु १.५, १.७, विष्णुधर्मोत्तर १.१२८(कश्यप सर्ग), शिव २.२.१४(सर्गों में दक्ष - कन्याएं), ५.२९+ (आदि सर्ग, स्वयम्भू सर्ग), ५.२९.८, ५.३३(भूत सर्ग), ५.४१(पितर सर्ग, सप्त व्याधों की गति, श्राद्ध का माहात्म्य), ७.१.११(प्रतिसर्ग, उद्भव), ७.१.१२(भूत - पिशाच, असुर, राक्षस सर्ग, ब्रह्मा से उत्पत्ति ), महाभारत शान्ति ३१०, योगवासिष्ठ २.३, sarga
सर्ज नारद १.५६.२०८(सर्ज वृक्ष की मूल नक्षत्र से उत्पत्ति ), लक्ष्मीनारायण १.२०२.९७, २.३८.९६, sarja
सर्प
अग्नि २९५(सर्प
दंश चिकित्सा,
तार्क्ष्य
मन्त्र,
तार्क्ष्य
ध्यान),
३०९,
गणेश
१.९२.२४
(सर्पों
द्वारा धूमकेतु नाम से गणेश
की पूजा
-
सर्वैर्विषधरैरेका
स्थापिता गणनायकी ।
यस्या
हूतिः कृता तैस्तु धूमकेतुरिति
स्फुटा ॥),
गरुड
१.१९(सर्पों
के घातक दंश प्रकार,
सर्पों
का ग्रहों से तादात्म्य
-
शेषोऽर्कः
फणिपश्चन्द्रस्तक्षको भौम
ईरितः ।। कर्कोटो ज्ञो गुरुः
पद्मो महापद्मश्च भार्गवः
।।..),
१.१९७.१२(सर्पों
का महाभूतों
में विन्यास
-
वासुकिः
शङ्खपालश्च स्थितौ पार्थिवमण्डले
।
कर्कोटः
पद्मनाभश्च वारुणे तौ व्यवस्थितौ
॥),
२.२.७९(गोहारक
के सर्प बनने का उल्लेख -
सर्पो
गोहारकोऽन्नस्य हारकः
स्यादजीर्णवान् ॥),
२.४६.२०(अप्राप्त-यौवना
के सेवन से सर्प बनने का उल्लेख
-
अप्राप्तयौवनां
सेवन् भवेत्सर्प इति श्रुतिः
॥),
गर्ग
७.२६.३७(सुमति
गन्धर्व का शाप से सर्प बनना,
कृष्ण
-
पुत्रों
द्वारा उद्धार
-
सलक्ष्मणं
रामचंद्रं ध्यायतो जानकीपतिम्
॥
फूत्कारैः
सर्पवत्तस्य ध्यानभंगं चकार
ह ॥),
देवीभागवत
२.११.२१(
जनमेजय
– उत्तंक संवाद -
पिता
ते
निहतो
भूप
तक्षकेण
दुरात्मना
॥
मन्त्रिणस्त्वं
समाहूय
पृच्छ
स्वपितृनाशनम्
।),
२.१२(कद्रू
की अवज्ञा करने पर सर्पों
द्वारा शाप प्राप्ति की कथा,
आस्तीक
द्वारा जनमेजय के सर्प सत्र
में सर्पों की रक्षा),
४.७.४८(कृतस्तपस्विनः
कण्ठे
मृतसर्पो
ह्यघं
विना
।
अतस्तस्य
मुनिश्रेष्ठ
भविता
किं
ममाग्रतः
॥ ,
६.९.५३(इन्द्राणीहृतचित्तोऽसौ
सर्पेति
प्रब्रुवन्मुनिम्
।
तं
शशाप
मुनिः
क्रुद्धः
कशाघातमनुस्मरन्
॥),
८.२०.४(काद्रवेय
सर्पों का महातल में वास
-
अनेकशिरसां
विप्र
प्रधानान्कीर्तयामि
ते
।
कुहकस्तक्षकश्चैव
सुषेणः
कालियस्तथा
॥),
पद्म
१.४४.५८(आडि
द्वारा भुजंग रूप धारण -
भुजंगरूपी
रंध्रेण प्रविवेश दृशःपथम्।),
३.२६.१२(सर्पनीविं
समासाद्य नागानां तीर्थमुत्तमम्
॥
अग्निष्टोममवाप्नोति
नागलोकं च गच्छति।),
६.१८१(गीता
के सप्तम अध्याय से सर्प की
मुक्ति -
तमारोप्य
तरुस्कंधे सूनवो गृहमाययुः
ततः कालेन बहुना ततो जातः
सरीसृपः),
६.२११(चंडक
नापित का सर्प बनना,
कोशला
तीर्थ के प्रभाव से मुक्ति),
६.२२२.७(काशी
के प्रभाव से सर्प की मुक्ति,
पूर्व
जन्म में कुरण्टक ब्राह्मण),
७.९.१०५
(कालसर्प्प
उवाच-
दर्दुरौ
पापिनौ येथाः प्राप्तकालौ
युवां ततः ।),
ब्रह्म
२.४१,
२.८९(सूर्य
को प्रणाम करने हेतु सर्प का
गरुड पर आरूढ होकर आकाश में
गमन,
तेज
से दग्ध होना,
रसातल
गङ्गा जल से सिञ्चन पर पुन:
सञ्जीवन
-
कद्रुरप्याह
विनतां रसातलगतं पयः।
तेनाभिषेचितानां
मे पुत्राणां शान्तिरेष्यति।। ),
ब्रह्मवैवर्त्त
२.३०.६३(सर्प
की हत्या पर नरक में सर्पकुण्ड
प्राप्ति का कथन
-
लघुं
कूरं
महान्तं
वा
सर्पं
हन्ति
च
यो
नरः
।।स्वात्मलोमप्रमाणाब्दं
सर्पकुण्डं
प्रयाति
सः
।।),
ब्रह्माण्ड
१.२.८.३५(सर्पों
की ब्रह्मा के बालों से उत्पत्ति,
तत्सम
शब्द निरुक्ति
-
हीना
ये शिरसो बालाः पन्नाश्चैवापसर्पिणः
।
बालात्मना
स्मृता व्याला हीनत्वादहयः
स्मृताः ॥),
१.२.२३.२८(सर्पों
द्वारा सूर्य रथ के वहन का
कार्य
-
सर्पा
वहंति वै सूर्यं यातुधानास्तु
यांति च ।
वालखिल्या
नंयत्यस्तं परिवार्योदयाद्रविम्
।।),
३.४.२३.५२(नकुली
देवी द्वारा सर्पिणी माया का
नाश
-
सर्पिणीमायया
जातान्सर्पान्दृष्ट्वा
भयानकान् ।
क्रोधरक्तेक्षणं
व्यात्तं नकुली विदधे मुखम्
॥),
भविष्य
१.३३(सर्पों
के लक्षण,
स्वरूप,
जाति
-
सर्पाणां
कति रूपाणि के वर्णाः किं च
लक्षणम् ।
का
जातिस्तु भवेत्तेषां केषु
योनिकुलेषु वा । ।),
१.३४.२२(कालसर्प
द्वारा दंष्ट पुरुष के लक्षण,
तिथि,
नक्षत्र,
ग्रह
से सर्पों का सम्बन्ध-
अनन्तं
भास्करं
विद्यात्सोमं
विद्यात्तु
वासुकिम्
।
तक्षकं
भूमिपुत्रं
तु
कर्कोटं
च
बुधं
विदुः
।।..),
१.३६+
(सर्पों
के प्रकार,
जातियां,
देवों
से सर्पों की उत्पत्ति,
आयुध,
दिशा
-
स्वामित्व,
पूजा
-
कीदृशं
सर्पदष्टस्य सर्पिण्याः
कीदृशं भवेत् ।।कुमारदष्टः
कीदृक्स्यात्सूतिकादंशितस्य
च ।।),
२.१.१७.१३
(स्वर
की अग्नि का सरीसृप
नाम
-
उदरे
जठराग्निश्च समुद्रे वडवानलः
।। शिखायां च विभुर्ज्ञेयः
स्वरस्याग्निः सरीसृपः ।।
),
४.३४(विष्णु
देह में सर्पों का न्यास -
अनंतायेति
पादौ
तु
धृतराष्ट्राय
वै
कटिम्
।।
उदरं
तक्षकायेति
उरः
कर्कोटकाय
च
।।..),
भागवत
५.२४.२९(कद्रू-
पुत्र,
महातल
में निवास
-
ततोऽधस्तान्महातले
काद्रवेयाणां
सर्पाणां
नैकशिरसां
क्रोधवशो
नाम
गणः
कुहकतक्षककालियसुषेणादिप्रधाना ),
११.९.१५(दत्तात्रेय
द्वारा सर्पों से शिक्षा ग्रहण
-
गृहारम्भोऽतिदुःखाय
विफलश्चाध्रुवात्मनः
।
सर्पः
परकृतं
वेश्म
प्रविश्य
सुखमेधते
॥ ),
११.९.१५( गृहारम्भोऽतिदुःखाय
विफलश्चाध्रुवात्मनः । सर्पः
परकृतं वेश्म प्रविश्य सुखमेधते
॥),
१२.६.११(तक्षकः
प्रहितो विप्राः क्रुद्धेन
द्विजसूनुना।
हन्तुकामो
नृपं गच्छन्ददर्श पथि कश्यपम्॥ ),
मत्स्य
६.३८(प्रधानास्तेषु
विख्याताः ष़ड्विंशतिररिन्दम।।
शेषवासुकिकर्कोट
शङ्खैरावतकम्बलाः।..),
१९.८(सर्प
का भोजन वायु होने का उल्लेख
-
श्राद्धान्नं
वायुरूपेण सर्पत्त्वेप्युपतिष्ठति।
पानं
भवति यक्षत्वे गृध्रत्वेऽपि
तथामिषम्।। ),
१०४.४
(आप्रयागप्रतिष्ठानादापुराद्वासुकेर्ह्रदात्।
कम्बलाश्वतरौ
नागौ
नागश्च
बहुमूलकः॥),
१५६.२४(भुजङ्गरूपं
सन्त्यज्य बभूवाथ महासुरः।
उमारूपी
छलयितुं गिरिशं मूढ़चेतनः
।।),
महाभारत
आदि ३.१६(सोमश्रवा
की सर्पिणी से उत्पत्ति -
भो
जनमेजय
पुत्रोऽयं
मम
सर्प्यां
जातो
महातपस्वी
स्वाध्यायसंपन्नो
मत्तपोवीर्यसंभृतो
मच्छुक्रं
पीतवत्यास्तस्याः
कुक्षौ
जातः।।),
उद्योग
६२.१०(यस्ते
शरः सर्पमुखो विभाति
सदाऽग्र्यमाल्यैर्महितः
प्रयत्नात्।
स
पाण्डुपुत्राभिहतः शरौघैः
सह
त्वया यास्यति कर्ण नाशम्
।।),
मार्कण्डेय
१२६.२४(मरुत्त
के राज्य में पन्नगों का उपद्रव,
मरुत्त
– अवीक्षित संवाद -
पातालादभ्युपेतैस्तु
भुजगैर्दशशालिभिः
।दष्टा
मुनिसुताः
सप्त
दूषिताश्च
जलाशयः
।
।),
लिङ्ग
१.२२.१९(वात
-
पित्त
-
कफात्मक
सर्प :
ब्रह्मा
के अश्रुओं से उत्पत्ति
-
क्रोधाविष्टस्य
नेत्राभ्यां प्रापतन्नश्रुबिंदवः।।
ततस्तेभ्योऽश्रुबिंदुभ्यो
वातपित्तकफात्मकाः।।),
१.७०.२२८(सर्पों
की ब्रह्मा से उत्पत्ति,
निरुक्ति
-
हीनास्तच्छिरसो
बाला यस्माच्चैवावसर्पिणः।।
व्यालात्मानः
स्मृता बाला हीनत्वादहयः
स्मृताः।।),
वराह
२४.६(मारीचो
जनयामास तस्यां पुत्रान्
महाबलान् ।।
अनन्तं
वासुकिं चैव कम्बलं च महाबलम्
।),
१२६.११०(सर्पिणी
का नकुल से युद्ध,
मरण,
जन्मान्तर
में राजपुत्री बनना
-
मम
निर्माल्यपार्श्वे वै व्याली
तिष्ठति निर्भया।।
गंधमाल्योपहार्याणि
भक्षयंती यदृच्छया।।),
वामन
१.२५(ममोपवीतं
भुजगेश्वरः शुभे कर्णेऽपि
पद्मश्च तथैव पिङ्गलः।
केयूरमेकं
मम कम्बलस्त्वहिर्द्वितीयमन्यो
भुजगो धनंजयः।।..) ,
वायु
१.९.३३(तस्य
क्रोधोद्भवो योऽसावग्निगर्भस्सुदारुणः।
स
तु सर्पसहोत्पन्नानाविवेश
विषात्मिकान् ॥),
३९.६२(मुकुटे
पन्नगावासा अनेकाः पर्वतोत्तमाः।),
विष्णु
१.१७.४०(हिरण्यकशिपु
द्वारा प्रह्लाद के हनन के
उपायों का कथन -
इत्युक्तास्तेन
ते सर्पाः कुहकास्तक्षकान्धकाः
। अदशन्त समस्तेषु
गात्रेष्वतिविषोल्वणाः ।।),
१.२१.१९(सुरसायां
सहस्रं तु सर्पाणाममितौजसाम्।
अनेकशिरसां
ब्रह्मन् खेचराणां महात्मनाम्।।..),
विष्णुधर्मोत्तर
१.२४.८(पादेन
ताडयामास सोऽगस्त्यं पापनिश्चयः
।।
अगस्त्येन
तथा शप्तो भव सर्पो महीपते
।।),
स्कन्द
१.२.२९.१८(आडि
दैत्य द्वारा शिव के समीप जाने
के लिए सर्प रूप धारण,
सर्प
रूप त्याग कर उमा रूप धारण -
तं
चासौ वंचयित्वा च आडिः
सर्पशरीरभृत्॥
अवारितो
वीरकेण प्रविवेश हरांतिकम्॥ ),
२.७.२१(वैशाख
मास धर्म के श्रवण से सर्प की
मुक्ति,
पूर्व
जन्म का वृत्तान्त
-
व्यालोऽहं
तामसः क्रूरः सप्तयोजनकोटरे
।।
भूत्वा
वसामि विप्रर्षे कर्मणा बाधितः
पुरा ।।),
३.१.५.१२४(उदयन
द्वारा किन्नर नामक सर्प का
मोचन,
सर्प
द्वारा भगिनी ललिता का उदयन
से विवाह
-
किन्नराख्येन
नागेन धृतराष्ट्रसुतेन सः।।
पातालं
प्राविशत्तत्र न्यवसत्पूजितस्सुखम्
।।),
३.१.३८(कद्रू-
विनता
कथा
-
इति
शापे कृते मात्रा त्रस्तः
कर्कोटकस्तदा ।।..अहमुच्चैःश्रवोवालं
विधास्याम्यंजनप्रभम् ।।
),
३.१.४९.४३(लय
की उरग/सर्प
से उपमा -
संसारवनमध्ये
मां विनष्टनिजमार्गके ।
व्याधिचौरे क्रोधसिंहे
जन्मव्याघ्रे लयोरगे ।।),
४.१.४५.३९(सर्पास्या
:
६४
योगिनियों में से एक),
५.१.५१(नाग
लोक में शिव को भिक्षा न देने
पर शिव द्वारा अमृत कुण्ड का
पान,
सर्पों
द्वारा शिप्रा में स्नान व
शिव -
स्तुति),
५.३.२८.१७(सर्पा
यन्त्रस्थिता घोराः शम्ये
वरुणनैरृतौ ।),
५.३.३९.२८(मुखे
ह्यग्निः स्थितो देवो दन्तेषु
च भुजङ्गमाः ।धाता विधाता
ह्योष्ठौ च जिह्वायां तु
सरस्वती ॥) ,
५.३.४४.२९(शूलभेद
तीर्थ में तैलबिन्दु के असर्पण
का उल्लेख
-
द्वितीयः
प्रत्ययस्तत्र तैलबिन्दुर्न
सर्पति ॥),
५.३.९०.५९(सार्पं
चैव हृषीकेशो वायव्यस्य
प्रशान्तये ।),
५.३.९७.१७८(अस्यैव
पूजनात्सिद्धो धारासर्पो
महामतिः ॥),
५.३.१५९.२०(
अप्राप्तयौवनां
गच्छन् भवेत्सर्प इति श्रुतिः
॥),
५.३.१६१(सर्प
तीर्थ का माहात्म्य,
सर्पों
द्वारा तप करके भोग प्राप्ति
-
ततो
गच्छेन्महाराज सर्पतीर्थमनुत्तमम्
।
यत्र
सिद्धा महासर्पास्तपस्तप्त्वा
युधिष्ठिर ॥),
६.२९(वत्स
ऋषि द्वारा सर्प का हनन,
मनुष्य
में रूपान्तरित सर्प द्वारा
हिंसा -
अहिंसा
धर्म का निरूपण),
६.१८३(अहो
होतुः स्थिते प्रैषे
दीर्घसत्रसमुद्भवे ॥
स
सर्पो वेष्टयामास तस्य गात्रं
समंततः ॥) ,
६.१८५.२५(अतिथि
द्वारा सर्प से गृह निर्माण
की व्यर्थता की शिक्षा
-
सर्पः
परकृतं वेश्म प्रविश्य सुखमेधते
॥
उषित्वा
तत्र सौख्येन भूयोऽन्यत्तादृशं
व्रजेत् ॥ ),
हरिवंश
१.३.१११(गणं
क्रोधवशं विद्धि तस्य सर्वे
च दंष्ट्रिणः ।।स्थलजाः
पक्षिणोऽब्जाश्च धरायाः
प्रसवाः स्मृताः।),
३.७१.५२(विराट
विष्णु के स्वरूप का वर्णन -
उदरे
चास्य गन्धर्वा भुजगाश्च
महाबलाः ।। ),
महाभारत
आदि
३.१३९(
अहमैरावतज्येष्ठभ्रातृभ्योऽकरवं
नमः।
यस्य
वासः कुरुक्षेत्रे खाण्डवे
चाभवत्पुरा।।),
६४.६१(सोमश्रवास्तु
सर्प्यां तु अश्विनावश्विसंभवौ।।),
कर्ण
८७.४३(पुण्यवन्त
सर्पों के अर्जुन के पक्ष में
व पापवन्तों के कर्ण के पक्ष
में होने का कथन -
वासुकिश्चित्रसेनश्च
तक्षकश्चोपतक्षकः।महीवियज्जलचराः
काद्रवेयाश्च सान्वयाः।),
शान्ति
३४२.२६(अगस्त्य
द्वारा नहुष को शाप -
सर्पो
भव यावद्भूमिर्गिरयश्च
तिष्ठेयुस्तावदिति),
अनुशासन
१४.२६०(पाशुपत
अस्त्र के सर्प रूप का वर्णन
-
शरश्च
सूर्यसङ्काशो दृष्टः पाशुपताह्वयः।
सहस्रभुजजिह्वास्यो
भीषणो नागविग्रह।।),
आश्वमेधिक
२६.५(सर्पों
के द्वेष भाव का कथन -
एको
द्वेष्टा नास्ति ततो द्वितीयो
यो
हृच्छयस्तमहमनु ब्रवीमि।
तेनानुशिष्टा गुरुणा सदैव
लोके द्विष्टाः पन्नगाः सर्व
एव।।),
योगवासिष्ठ
५.१४.६३(शरीर
में मन रूपी सर्प द्वारा महान्
भय उत्पन्न करने का उल्लेख -
मनःसर्पः
शरीरस्थो यावत्तावन्महद्भयम्
। तस्मिन्नुत्सारिते
योगाद्भयस्यावसरः कुतः ।।),
वा.रामायण
७.२७.४५(सावित्र
वसु द्वारा सुमाली राक्षस के
पन्नग रथ को नष्ट करने का उल्लेख
-
निहतः
पन्नगरथः क्षणेन विनिपातितः
।। ),
लक्ष्मीनारायण
१.५७.२०(बहिषांगदनृपतिर्महासर्पं
मृतं
गले
॥
पत्नीव्रतस्य
निक्षिप्य
गतवान्
स्वपुरं
प्रति
।,
१.३७०.८९(नरक
में सर्पकुण्ड प्रापक कर्म
का उल्लेख
-
सर्पहा
सर्पकुण्डं तु याति सर्पेण
भक्षितः ।।
सर्पविड्भक्षणः
पश्चात्सर्पो वै जायते भुवि
।),
१.३७४.१६६(श्रुत्वा
क्रोधं समापन्नो दुर्वासास्त्वग्रगोऽवदत्
।
सर्पन्त्विति
प्रवक्ता त्वं सर्पस्त्वजगरो
भव ।।),
१.४६३.६(काद्रवेया
गणास्ते वै कृष्णा रक्ता
हरिद्गुणाः ।
पिशंगाः
पीतरक्ताश्च कपिशाश्चित्रकास्तथा
।। ..),
१.४६४(सूर्यताप
से रक्षा हेतु सर्पों द्वारा
राहुग्रहणकाल में अश्व का
वेष्टन -
पणीकृत्य
तथा
कद्रूः
कर्बुरं
प्राह
वाजिनम्
।
विनता
धवलं
प्राह
ततो
ययतुः
स्वालयम्
।।..
समाहूय
समर्च्याऽपि
सूर्यतापविनाशकम्
।
सुयोजनं
समादिश्य
पर्वणि
राहुणाऽऽवृतम्
।।),
१.५१०.९(ब्रह्मा
के सोमयाग में सर्प द्वारा
होता के वेष्टन का कथन-
नागतीर्थे
निवसन्तु यज्ञे येषां च दुष्टता
। विघ्नेच्छा च भवेत् तेभ्यो
रक्षणीयः क्रतुर्मम ।।),
१.५३३.७५(वासना
की भुजङ्गिका संज्ञा -
अथ
भुजंगिका या तु वासना समुवाच
सा ।
अहं
श्रेष्ठतमा मां तु विना देहं
न तिष्ठति ।।
),
१.५७१.२६(व्याल्या
दष्टो नकुलः स नकुलेनापि
सर्पिणी ।
उभौ
क्षतैस्तीव्रवरैस्तदा
पञ्चत्वमागतौ ।।..),
२.२७.६२(
दशम्यां
भुजगेन्द्राश्च स्वपन्ति
वायुभोजनाः ।।),
२.२६६.८
(सर्प
द्वारा धर्मसुमन्तु विप्र
का दंशन,
धर्मसुमन्तु
का सर्प से वार्तालाप,
धर्मसुमन्तु
विप्र के क्रोध के कारण मृत
राजा का सर्प बनना,
सर्प
द्वारा दिव्य देह प्राप्ति,
धर्मसुमन्तु
का पुन:
जीवित
होना),
३.६(
सर्पों
का भृत्यों के रूप में जन्म
आदि -
यज्ञे
तत्र
महारुद्रे
फणाध्राणा
कुलानि
वै
।।
द्वापञ्चाशत्सहस्राणि
संहतानि
तदाऽभवन्
।),
४.७४(भृत्य
द्वारा सर्पदष्ट राजा को जीवित
करने का उद्योग -
इत्युक्त्वा
बद्रिके
कालः
सर्पो
मन्त्रं
ददौ
तदा
।
'ओं
नमः
श्रीकृष्णनारायणाय
स्वामिने
स्वाहा'
।।),
कथासरित्
२.१.७७(कृत्वा
स
भुजगः
प्रीतो
जगादोदयनं
तदा
।।
वसुनेमिरिति
ख्यातो
ज्येष्ठो
भ्रातास्मि
वासुकेः
।),
८.३.७७(तत्क्षणं
प्रतिपेदे
स
भुजगस्तूणरत्नताम्
।
मूर्ध्निं
सूर्यप्रभस्यापि
पुष्पवृष्टिर्दिवोऽपतत्
।।),
१०.४.२३४(बक
द्वारा सर्प के हनन का उद्योग
-
पूर्वं
बकस्य
कस्यापि
जातं
जातमभक्षयत्
।
भुजगोऽपत्यमागत्य
स
संतेपे
ततो
बकः॥),
१०.६.१५३(सर्प
के भेकों का वाहन बनने की कथा),
१०.७.१७५(कस्याप्यहेर्द्वे
शिरसी
अभूतामग्रपुच्छयोः
।।
पौच्छं
शिरस्त्वभूदन्धं
चक्षुष्मत्प्रकृतं
पुनः
।),
१०.९.८५(
तटस्थितोऽहमद्राक्षं
त्रिफणं
सर्पमागतम्
।।),
१२.२.८७,
१२.३.५८(विन्ध्याटव्यामधश्चास्य
नागेन्द्रभवनं
महत्
।।तत्र
पारावताख्योऽस्ति
नाम्ना
नागवरो
बली
।..),
१२.८.१३(तत्रैत्य
सर्पदंशार्तो
वृद्धो
मां
ब्राह्मणोऽब्रवीत्
।..तत्राकार्षमहं
विप्रं
निर्विषं
विषविद्यया
।।),
१४.२.१०४?,
१४.३.१०४?,
१५.१.२०?,
१६.१.२०?,
१७.५.८०(पितृभ्रातृयुतं
दृष्ट्वा
तं
नभश्चरवाहनम्।
त्रैलोक्यमाली
दैत्येन्द्रः
पन्नगास्त्रं
मुमोच
सः
।।),
sarpa
Remarks on Sarpa
सर्परोमा पद्म ६.१२.४(जालन्धर - सेनानी, कूष्माण्ड से युद्ध )
सर्पि पद्म १.१६ ब्रह्माण्ड ३.१३.९२(कालसर्पि), वामन ३४, द्र. रथ सूर्य
सर्व देवीभागवत १२.१०.४(ब्रह्मलोक से ऊपर देवी के सर्व लोक या मणिद्वीप की महिमा, ब्रह्माण्डों की छाया सम), नारद १.६६.११३(सर्वेश की शक्ति नागरी का उल्लेख),१.११६.५९(सर्वकामिक व्रत का कथन – द्वैतसिद्धि आदि), पद्म ७.३.५६(सर्वग : मञ्जूकषा - पति, अहंकार के कारण गृध्र बनना), ७.१३.१४९(सर्ववेदा विप्र द्वारा निर्दयी शबर से एक पद्म मांग कर विष्णु की अर्चना का कथन), ७.१९.४९(सर्वजनि ब्राह्मण को स्वप्न में विष्णु के दर्शन, सर्वजनि द्वारा विष्णु की स्तुति, पूर्व जन्म का वृत्तान्त), वराह १२६, १४५सर्वायुध, स्कन्द १.१.७.३३(विन्ध्य में सर्वेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख), ३.१.२९(सर्व तीर्थ का माहात्म्य, जात्यन्ध सुचरित की जरादि से मुक्ति), हरिवंश १.२०.२९(सर्वसेन : ब्रह्मदत्त - पुत्र, पूजनीया पक्षिणी द्वारा चक्षु भञ्जन का प्रसंग), महाभारत वन ३१३.६६(वायु के सर्व जगत होने का उल्लेख – यक्ष-युधिष्ठिर संवाद ), शान्ति ३०६.५०(सर्व के अव्यक्त तथा असर्व के पञ्चविंशक होने का वर्णन), योगवासिष्ठ ६.१.९३.३१(चित्त के सर्व से तादात्म्य का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.३०९सर्वहुत, १.३११.५०सर्वजिता, कथासरित् १०.१०.५६सर्वस्थानगत, द्र. साल्व sarva
सर्वतोभद्र गर्ग ९.१, विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१, ३.८७(प्रासाद का नाम ), महाभारत द्रोण ८२.२३, शल्य ८.२०, लक्ष्मीनारायण २.१४०.२०, २.१५१.७७, २.१५७.८२, २.२७९, sarvatobhadra
सर्वत्रग द्र. मन्वन्तर
सर्वदमन कथासरित् ८.२.३८२, ८.७.२५,
सर्वमङ्गलिका नारद १.८८.१९७ (राधी की १४वीं कला सर्वमङ्गलिका का स्वरूप), ब्रह्माण्ड ३.४.२५.९८(ललिता - सहचरी, तीक्ष्णशृङ्ग का वध),
सर्वमेध भागवत २.६.४(त्वचा के सर्वमेध का रूप होने का उल्लेख), स्कन्द ५.३.१८२.४१(वृषखात में स्नानादि से सर्वमेध फलप्राप्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.१५७.३१, ४.८०,
सर्वहुत लक्ष्मीनारायण १.३०९(राजा सर्वहुत व उसकी पत्नी गोऋतम्भरा का अधिकमास द्वितीया व्रत से ब्रह्मा व गायत्री बनने का वर्णन)
सर्वार्थसिद्धि वा.रामायण ७.५९प्रक्षिप्त(सर्वार्थसिद्धि भिक्षु द्वारा श्वान का ताडन, राम द्वारा कुलपति बनने का दण्ड),
सर्षप भविष्य १.७०(सर्षप सप्तमी व्रत विधि), शिव १.१६.५१(सर्षप दान से अपस्मार का क्षय ), स्कन्द ५.३.९०.९८(तिल धेनु में सर्षप से रोमों की कल्पना), कथासरित् ३.४.१५५(नाभि से निर्गत सर्षपों का वेताल नियन्त्रण हेतु उपयोग), sarshapa
सलिल नारद १.४२.४५(सलिल की उत्पत्ति का कथन - ततः सलिलमुत्पन्नं तमसीव तमः परम् । तस्माच्च सलिलोत्पीडादुदतिष्ठत मारुतः ।।), पद्म १.४०.१४२ (अव्यक्तानन्द सलिल वाले समुद्र का वर्णन - अव्यक्तानंदसलिलं व्यक्ताहंकारफेनिलम्॥ महाभूतकरौघौघं ग्रहनक्षत्रबुद्बुदम्), ब्रह्माण्ड १.१.५.७(ब्रह्मा द्वारा यज्ञवाराह रूप धारण कर सलिल से पृथिवी का उद्धार- ब्रह्मा तु सलिले तस्मिन्नवाग्भूत्वा तदा चरन् । निशायामिव खद्योतः प्रावृट्काले ततस्ततः ॥), १.१.५.१३७(एकार्णव के जल की सलिल संज्ञा - तावत्कालं रजन्यां च वर्तन्त्यां सलिलात्मनः ॥ ततस्ते सलिले तस्मिन्नष्टाग्नौ पृथिवीतले ।), भागवत २.८.५(शरत् द्वारा सलिल को दोषों से मुक्त करने का उल्लेख - प्रविष्टः कर्णरन्ध्रेण स्वानां भावसरोरुहम् । धुनोति शमलं कृष्णः सलिलस्य यथा शरत् ॥ ५ ॥), ३.१३.४६(वराह द्वारा रसा में लीन पृथिवी का उद्धार : सलिल को स्वखुरों से आक्रान्त करना - इत्युपस्थीयमानस्तैः मुनिभिर्ब्रह्मवादिभिः । सलिले स्वखुराक्रान्त उपाधत्तावितावनिम् ॥ ), ३.२६.७०(चैत्य क्षेत्रज्ञ द्वारा चित्त के माध्यम से ह्रदय में प्रवेश करने पर ही विराट् पुरुष के सलिल से उठने का कथन - चित्तेन हृदयं चैत्यः क्षेत्रज्ञः प्राविशद्यदा । विराट्तदैव पुरुषः सलिलाद् उदतिष्ठत ॥ ), ११.३.१३(भूमि के सलिल में तथा सलिल के ज्योति में रूपान्तरित होने का कथन - वायुना हृतगन्धा भूः सलिलत्वाय कल्पते । सलिलं तद्धृतरसं ज्योतिष्ट्वायोपकल्पते ॥ ), महाभारत उद्योग ९८.२३(वरुण के छत्र से सोम जैसे सलिल के वर्षण का कथन - एतत्सलिलराजस्य छत्रं छत्रगृहे स्थितम् । सर्वतः सलिलं शीतं जीमूत इव वर्षति ।।), ११०.३(सलिल के गोपन के लिए कश्यप द्वारा पश्चिम में वरुण के अभिषेक का उल्लेख - यादसामत्र राज्येन सलिलस्य च गुप्तये । कश्यपो भगवान्देवो वरुणं स्माभ्यषेचयत् ।।), शल्य ३०(दुर्योधन का द्वैपायन ह्रद में सलिल में छिपना), शान्ति १६६.११(एकार्णव सलिल से ब्रह्मा द्वारा महाभूत आदि की सृष्टि का कथन - सलिलैकार्णवं तात पुरा सर्वमभूदिदम्। अप्रज्ञातमनाकाशमनिर्देश्यमहीतलम्।।), अनुशासन ५०.१३(निषादों द्वारा जल से च्यवन को खींचना - तथा मत्स्यैः परिवृतं च्यवनं भृगुनन्दनम्। आकर्षयन्महाराज जालेनाथ यदृच्छया।।), आश्वमेधिक ५५.२९(उत्तंक द्वारा मातंग से नि:सृत सलिल ग्रहण से अस्वीकृति - न युक्तं तादृशं दातुं त्वया पुरुषसत्तम। सलिलं विप्रमुख्येभ्यो मातङ्गस्रोतसा विभो।।), ६०.२७(दुर्योधन के द्वैपायन ह्रद में सलिल में छिपने का कथन), आश्रमवासिक ३३.१७(सलिलस्थ व्यास द्वारा स्त्रियों को पतिलोक में भेजना), लक्ष्मीनारायण १.३९०,२७(सलिलद्यु गन्धर्व व सात्वत – कन्या सुकन्या का परस्पर शापवश पृथिवी पर च्यवन व सुकन्या के रूप में जन्म लेना), ४.१०१.११३ (सलिला - पद्मिन्याः सलिला पुत्री पुत्रस्तु मूलकर्दमः ।) salila
Veda study on Salila
Vedic view of Salila by Dr. Tomar
सव द्र. गोसव
सवन अग्नि ११९.२२(पुष्करेणावृतः सोऽपि द्वौ पुत्रौ सवनस्य च ।), कूर्म १.४०.१३(प्रियव्रत - पुत्र, पुष्कराधिपति, धातकि व महावीति - पिता), नारद १.५०.२०(प्रात:सवन आदि का मध्यम, उच्च स्वर आदि के अनुसार विभाजन, उर, कण्ठ व शिर स्थानों का तीन सवन नाम - उरः कंठः शिरश्चैव स्थानानि त्रीणि वाङ्मये ।। सवनान्याहुरेतानि साम वाप्यर्द्धतोंऽतरम् ।।), ब्रह्माण्ड १.२.११.४१(वसिष्ठ व ऊर्जा – पुत्र - रक्षो गर्त्तोर्द्ध्वबाहुश्च सवनः पवनश्च यः।। सुतपाः शंकुरित्येते सर्वे सप्तर्षयः समृताः ।।), भागवत ४.१३.१३(प्रात:सवन आदि : पुष्पार्ण व प्रभा – पुत्र - पुष्पार्णस्य प्रभा भार्या दोषा च द्वे बभूवतुः । प्रातर्मध्यन्दिनं सायं इति ह्यासन् प्रभासुताः ॥), ५.१.२५(प्रियव्रत व बर्हिष्मती – पुत्र - .. महावीर हिरण्यरेतो घृतपृष्ठ सवन मेधातिथि-वीतिहोत्र कवय इति ), वामन ७२.४(स्वायंभुवस्य पुत्रोऽभून्मनोर्नाम प्रियव्रतः। तस्यासीत् सवनो नाम पुत्रस्त्रैलोक्यपूजितः।।) , शिव ७.१.१७.३४(रजो गात्रोर्ध्वबाहू च सवनश्चानयश्च यः ॥ सुतपाश्शुक्र इत्येते सप्त सप्तर्षयः स्मृताः ॥), लक्ष्मीनारायण २.२४८( प्रातःसवन के अवयवों प्रातरनुवाक आदि का वर्णन), ३.२८.८३(निर्वाणिका विप्राणी के गृह में सवन द्रुम से साव नारायण का प्राकट्य), ३.३२.२१(महिमान अग्नि - पुत्र, अद्भुत – पिता - महिमानसुतं चापि सवनं चाप्यभक्षयत् । सवनोत्थं चाद्भुतं च विविधिं चाद्भुतात्मजम् ।।), ३.११०.१२(साधुओं, ब्रह्मचारियों, भिक्षु आदि को अन्न प्रदान रूपी तीन सवनों का कथन - मध्यन्दिनं तु सवनं भिक्षुकेभ्योऽर्पणं सदा । देवेभ्यश्चापि पितृभ्योऽर्पणं तद्वैश्वदैविकम् ।। सवनं तु तृतीयं तद् यज्ञास्त्रयो दिवंप्रदाः । ), द्र. मन्वन्तर, वंश वसिष्ठ savana
सवर्णा अग्नि १८, मत्स्य ४, शिव ७.१.१७.५५, हरिवंश १.२.३२, द्र. वंश पृथु
सविता देवीभागवत १.३.२७(पञ्चम द्वापर में व्यास), भविष्य ३.४.९.८(सूर्य का अंश, भानुमती से विवाह, सूर्य लोक की प्राप्ति), ३.४.१८.१८(संज्ञा विवाह प्रसंग में सविता के गर्दभासुर से युद्ध का उल्लेख), भागवत ८.१०.२९(सविता का विरोचन से युद्ध), १३.२.२७(उद्धव का सविता विशेषण), लिङ्ग १.२४.२७(पञ्चम द्वापर में व्यास), शिव ३.४.२०(पञ्चम द्वापर में सविता व्यास का उल्लेख), स्कन्द २.६.२.२७(उद्धव का सविता से साम्य), ३.१.२३.८(यज्ञ में ब्रह्मा ऋत्विज बने सविता द्वारा प्राशित्र स्पर्श से छिन्नपाणि होना, हिण्यपाणि बनना), ५.३.१९१.१५(प्रलय के समय सविता द्वारा ऊर्ध्व दिशा में तथा पूषा द्वारा अधोदिशा में शोषण का उल्लेख), ७.१.१३.९(त्रेता युग में सूर्य का नाम ), ७.४.१७.३६(द्वारका के उत्तरद्वार पर यक्षेश सविता का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३१०(ब्रह्मसविता व उसकी पत्नी भूरिशृंगा का दान से सूर्य-संज्ञा बनने का वृत्तान्त), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.१८टीका(सविताराधन कुक्कुटासन में करने का उल्लेख), द्र. ब्रह्मसवितृ savitaa
सव्य ब्रह्माण्ड १.२.१२.१३( सव्यअपसव्य - अग्नि, शंस्य अग्नि - पुत्र, सभ्य? ) , पद्म ६.५.५३ (युद्धभूमि में देवों का सव्य एवं मेषोपरि अग्नि का दक्षिणतः आगमन का उल्लेख), savya
Comments on Savya
सस्य अग्नि २५७.१०(पशु द्वारा सस्य नष्ट करने पर दण्ड विधान), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.७०(सस्य वृद्धि हेतु ब्राह्मण भोजन का निर्देश), वराह ७१.१२(गौतम की सस्य प्रात: से मध्याह्न तक पकने का कथन), विष्णुधर्मोत्तर ३.३३७(सस्यहानि पर दण्ड ), लक्ष्मीनारायण ३.२८.१, sasya
सह भागवत ११.१६.३२(विष्णु के बलवानों में ओज, सह होने का उल्लेख), वराह २००.३४सहकार वन, वामन ५७.८१(प्रभावा नदी द्वारा कुमार को सह नाम गण प्रदान का उल्लेख), वायु १०८.८५(लोमहर्षण द्वारा साहस से कृष्ण वल्वा व चर्मवती नदियों के आह्वान का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.८८सहधर्म, द्र. दुःसह, मित्रसह saha
सह-(१) धृतराष्ट्रके सौ पुत्रों से एक (आदि० ११६ । २)। यह द्रौपदीके स्वयंवरमें गया था (आदि० १८५। १)। इसके द्वारा भीमसेन पर आक्रमण (कर्ण० ५१।८)। (२) एक प्रभावशाली अग्नि, जो समुद्र में छिप गये थे (वन० २२२ । ७)। देवताओं के खोज करने पर इनका अथर्वा को अग्नि के पद पर प्रतिष्ठित करके अन्यत्र गमन (वन० २२२। ८-१०)। इनके द्वारा मछलियों को शाप और अपने शरीर का त्याग (वन० २२२ । १०-१२)। इनके शरीर के अवयवों से विविध धातुओं की उत्पत्ति -आस्यात्सुगन्धि तेजश्च अस्थिभ्यो देवदारु च । श्लेष्मणः स्फटिकं तस्य पित्तान्मरकतं तथा ॥ (वन० २२२ । १४-१६) । समुद्र में छिपे हुए इनका अग्नि द्वारा पुनः प्राकट्य (वन० २२२ । २०)।
सहजन्या ब्रह्माण्ड १.२.२३.६(सहजन्या अप्सरा का सूर्य रथ में वास )
सहजा नारद १.६६.११८ (भृगु की शक्ति सहजा का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.१०७.१३सहजाश्री, ३.१०७.८७सहजाश्री
सहदेव गर्ग १०.२६.२९(गिरिव्रजपुराधीश, अनिरुद्ध की शरण में जाना), गरुड ३.१७.४१(वायु का सहदेव में नीति के रूप से प्रवेश करने का उल्लेख - नीतिरूपेण चाविष्टो सहदेवे च मारुतः । द्रौपदीं रमते नित्यं सहदेवोप्युषां खग ॥ ),ब्रह्मवैवर्त्त १.१६.१८(सहदेव द्वारा व्याधिसिन्धुविमर्दन ग्रन्थ की रचना का उल्लेख), भविष्य ३.३.१.२७(सहदेव का कलियुग में देवसिंह रूप में अवतरण), मत्स्य ४६.१६(वसुदेव व ताम्रा-पुत्र), स्कन्द ५.३.२०९.६०(सोमशर्मा वैश्य का मित्र, विश्वासघात करके सोमशर्मा को समुद्र में फेंकना, जन्मान्तर में क्षुद्र योनियों में जन्म, अन्त में भारवाहक योनि में नर्मदा स्नान से मुक्ति), लक्ष्मीनारायण १.२०२.७(१६ चिकित्सकों में से एक ) sahadeva
सहदेव-(१) पाण्डुके क्षेत्रज पुत्र, अश्विनीकुमारों के द्वारा माद्री के गर्भ से उत्पन्न दो पुत्रों में से एक । ये दोनों भाई जुड़वें उत्पन्न हुए थे। दोनों ही सुन्दर तथा गुरुजनों की सेवा में तत्पर रहने वाले थे। (आदि० १। ११४; आदि० ६३ । ११७; आदि० ९५। ६३)। अनुपम रूपशाली तथा परम मनोहर नकुल-सहदेव अश्विनीकुमारों के अंश से उत्पन्न हुए थे ( आदि० ६७ । १११-११२ )। इनकी उत्पत्ति तथा शतशृङ्गनिवासी ऋषियों द्वारा इनका नामकरण संस्कार ( आदि० १२३ । १७-२१ ) । वसुदेव के पुरोहित काश्यप द्वारा इनके उपनयन आदि संस्कार तथा राजर्षि शुक द्वारा इनका अस्त्रविद्या का अध्ययन और ढाल-तलवार चलाने की कला में निपुणता प्राप्त करना (आदि० १२३ । ३१ के बाद दा० पाठ) । पाण्डु की मृत्यु के पश्चात् माद्री का अपने पुत्रों (नकुल-सहदेव ) को कुन्ती के हाथों में सौंपकर पति के साथ चिता पर आरूढ़ होना ( आदि० १२४ अध्याय ) । शतशृङ्गनिवासी ऋषियों का सहदेव आदि पाँचों पाण्डवों को कुन्तीसहित हस्तिनापुर ले जाना और उन्हें भीष्म आदि के हार्थो में सौंपना। द्रोणाचार्य का पाण्डवों को नाना प्रकार के दिव्य एवं मानव अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा देना (आदि० १३१ । ९)। द्रुपद पर आक्रमण करते समय अर्जुन का माद्रीकुमार नकुल और सहदेव को अपना चक्ररक्षक बनाना (आदि० १३७ । २७)। द्रोण द्वारा सुशिक्षित किये गये सहदेव अपने भाइयों के अधीन ( अनुकूल ) रहते थे (आदि० १३८ । १४)। धृतराष्ट्र के आदेश से कुन्तीसहित पाण्डवों की वारणावत-यात्रा, वहाँ उनका स्वागत और लाक्षागृह में निवास (आदि० अध्याय १४२ से १४५ तक)। लाक्षागृह का दाह और पाण्डवों का सुरंग के रास्ते निकलना, भीमसेन का नकुल-सहदेव को गोद में लेकर चलना ( आदि० १४७ अध्याय )। पाण्डवों को व्यासजी का दर्शन और उनका एकचक्रानगरी में प्रवेश ( आदि० १५५ अध्याय ) । पाण्डवों की पाञ्चाल-यात्रा ( आदि० १६९ अध्याय )। इनका द्रुपद की राजधानी में जाकर कुम्हार के यहाँ रहना (आदि० १८४ अध्याय) । पाँचों पाण्डवों का द्रौपदी के साथ विवाह का विचार ( आदि० १९० अध्याय ) । पाँचों पाण्डवों का कुन्तीसहित द्रुपद के घर में जाकर सम्मानित होना ( आदि० १९३ अध्याय )। द्रौपदी के साथ इनका विधिपूर्वक विवाह ( आदि० १९७ । १३)। विदुर के साथ पाण्डवों का हस्तिनापुर में आना और आधा राज्य पाकर 'इन्द्रप्रस्थ' नगर का निर्माण करना । पाँचों भाइयों का द्रौपदी के विषय में नियम-निर्धारण ( आदि० २११ अध्याय)। सहदेव द्वारा द्रौपदी के गर्भ से श्रुतसेन ( श्रुतकर्मा ) का जन्म (आदि० २२० । ८०; आदि० ९५ । ७५)। इनका मद्रराज द्युतिमान् की पुत्री विजया से विवाह तथा इनके द्वारा उसके गर्भ से सुहोत्र का जन्म ( आदि० ९५। ८०)। इनके द्वारा दक्षिण दिशा के नरेशों पर विजय (सभा० ३१ अध्याय)। इनके द्वारा मत्स्यनरेश विराट् की पराजय ( सभा० ३१ । २)। दन्तवक्त्र की पराजय (सभा० ३१ । ३) । माहिष्मतीनरेश नील के साथ इनका घोर युद्ध (सभा० ३१ । २१ )। इनके द्वारा अग्नि की स्तुति ( सभा० ३१ । ४१ ) । अग्नि की कृपा से इनको राजा नील द्वारा कर की प्राप्ति (सभा० ३१ । ५९)। लङ्का से कर लाने के लिये इनका घटोत्कच को दूत बनाकर राक्षसराज विभीषण के पास भेजना । घटोत्कच से विभीषण की बातचीत । विभीषण का बहुत-से सुवर्ण, मणि, रत्न आदि उपहार देकर दूत को विदा करना । उन भेंट-सामग्रियों को पहुँचाने के लिये अठासी हजार राक्षस आये थे (सभा० ३१ । ७२ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ७५९ से ७६४ तक )। अन्य मन्त्रियों सहित सहदेव को यज्ञ का आवश्यक उपकरण एवं खाद्यान्न जुटाने के लिये राजा युधिष्ठिर की आज्ञा (सभा० ३३ । २७-३१) । राजसूययज्ञ के समय ये युधिष्ठिर के मन्त्री थे (सभा० ३३ । ४०)। इनके द्वारा राजसूय यज्ञ में श्रीकृष्ण की अग्रपूजा ( सभा० ३६ । ३० )। श्रीकृष्ण की अग्रपूजा के अवसर पर इनकी विरोधी राजाओं को चुनौती (सभा० ३९ । १-५)। राजसूय-यज्ञ के बाद ये आचार्य द्रोण और अश्वत्थामा को पहुँचाने के लिये उनके साथ गये थे (सभा० ४५ । ४८)। युधिष्ठिर के द्वारा ये जुए के दाँव पर रखे और हारे गये थे (सभा० ६५ । १५)। इनकी शकुनि को मारने की प्रतिज्ञा ( सभा० ७७ । २९-४२) । इस दुर्दिन में कोई मुझे पहचान न ले—यही सोचकर सहदेव अपने मुँह में मिट्टी लपेटकर वन की ओर गये थे (सभा० ८० । १७)। इनकी अर्जुन के लिये चिन्ता(वन० ८०।२७-३०)। इनका जटासुर की पकड़ से छूटकर भीमसेन को पुकारना (वन० १५७ । ११)। इनका शिष्यों सहित दुर्वासा को बुलाने के लिये नदीतट पर जाना और खोजना (वन० २६३ । ३७-३८) । द्रौपदी द्वारा जयद्रथ से इनके पराक्रम और ज्ञान आदि सद्गुणों का वर्णन (वन० २७० । १५-१९)। द्रौपदी-हरण के समय अपने घोड़ों के मारे जाने पर युधिष्ठिर का सहदेव के रथपर आना तथा धौम्य एवं द्रौपदी को भी सहदेव द्वारा उसी रथ पर चढ़वाना (वन० २७१ । १५-३४) । द्वैतवन में जल लाने के लिये जाना और सरोवर पर गिरना (वन० ३१२ । १९)। इनका विराटनगर में तन्तिपाल नाम से रहने की बात बताना (विराट० ३ । ९)। राजा विराट के यहाँ अरिष्टनेमि नामक वैश्य के रूप में अपना परिचय देकर उनसे अपने को रखने के लिये प्रार्थना करना और उनके द्वारा गोशालाध्यक्ष के पदपर नियुक्त होना (विराट १०। ५-१६)। ये ग्वाले का वेष धारण करके पाण्डवों को दूध, दही, घी दिया करते हैं ( विराट० १३ । ९)। द्रौपदी का भीमसेन से सहदेव की वर्तमान दुःखमयी परिस्थिति बताकर उनके लिये शोक प्रकट करना ( विराट० १९ । ३३-४१)। विराट की गौओं के अपहरण के समय इनका त्रिगर्तों के साथ युद्ध (विराट० ३३ । ३४ ) । संजय द्वारा धृतराष्ट्र से इनकी वीरता का वर्णन ( उद्योग० ५० । ३१-३३)। शान्ति दूत बनकर जाने के लिये उद्यत हुए श्रीकृष्ण से युद्ध की ही योजना बनाने की सम्मति देना (उद्योग० ८१। १-४)। इनका विराट को सेनापति बनाने का प्रस्ताव (उद्योग० १५१ । १०)। उलूक से दुर्योधन के संदेश का उत्तर देते हुए पुत्रसहित शकुनि को मार डालने की घोषणा करना (उद्योग० १६२।३१-३६)। उलूक से दुर्योधन के संदेश का उत्तर देना (उद्योग० १६३।३९-४०)। कवच उतारकर पैदल ही कौरवसेना की ओर जाते हुए युधिष्ठिर से प्रश्न करना (भीष्म० ४३ । १९)। प्रथम दिन के संग्राम में दुर्मुख के साथ द्वन्द्व-युद्ध (भीष्म० ४५ । २५-२७)। विकर्ण के साथ युद्ध (भीष्म० ७१ । २१)। इनके द्वारा शल्य की पराजय ( भीष्म० ८३ । ५३)। कौरवों की अश्वसेना का संहार ( भीष्म० ८९ । ३२-३४)। इनके द्वारा घुड़सवारों की सेना का संहार एवं पलायन (भीष्म० १०५।१६-२३)। इनका कृपाचार्य के साथ द्वन्द्व युद्ध (भीष्म० ११०।१२-१३; भीष्म० १११।२८-३३)। धृतराष्ट्र द्वारा इनकी वीरता का वर्णन (द्रोण० १० । ३१-३२)। शकुनि के साथ इनका युद्ध (द्रोण० १४ । २२-२५)। इनके रथ के घोड़ों का वर्णन - तथा तित्तिरिकल्माषा हया वातसमा जवे। अवहंस्तुमुले युद्धे सहदेवमुदायुधम्।। (द्रोण० २३। ९)। शकुनि के साथ युद्ध (द्रोण०९६ । २१-२५)। दुर्मुख के साथ युद्ध (द्रोण० १०६ । १३)। इनके द्वारा दुर्मुख की पराजय (द्रोण० १०७ । २१-२४)। त्रिगर्त राजकुमार निरमित्र का वध (द्रोण० १०७ । २५-२६)। कर्ण के साथ युद्ध में इनकी पराजय (द्रोण० १६७ । १५)। दुःशासन के साथ युद्ध और उसे परास्त करना (द्रोण० १८८ । २-९) । इनका धृष्टद्युम्न की रक्षा में जाना (द्रोण० १८९ । ७) । धृष्टद्युम्न को मारने के लिये झपटते हुए सात्यकि को अनुनय-विनय से शान्त करना ( द्रोण० १९८ । ५३-५९) । इनके द्वारा पुण्ड्रराज की पराजय (कर्ण० २२ । १४-१५ )। दुःशासन की पराजय ( कर्ण० २३ अध्याय)। दुर्योधन के साथ युद्ध में इनका घायल होना ( कर्ण० ५६ । ७-१८)। इनके द्वारा उलूक की पराजय (कर्ण० ६१। ४४) । कर्ण द्वारा इनकी पराजय (कर्ण० ६३ । ३३) । इनके द्वारा शल्य के पुत्र का वध (शल्य० ११ । ४३)। शल्य के साथ युद्ध (शल्य. १३ अध्याय; शल्य० १५ अध्याय)। इनके द्वारा शकुनिपुत्र उलूक का वध ( शल्य० २८ । ३२-३३)। इनके द्वारा शकुनि का वध (शल्य० २८ । ४६-६१)। युधिष्ठिर को ममता और आसक्ति से रहित होकर राज्य करने की सलाह देना (शान्ति० १३ अध्याय)। युधिष्ठिर द्वारा इन्हें सभी अवस्थाओं में अपनी रक्षा का कार्य सौंपना ( शान्ति० ४१ । १५)। युधिष्ठिर द्वारा इनके लिये दिये गये दुर्मुख के महल में इनका प्रवेश (शान्ति० ४४ । १२-१३ )। युधिष्ठिर के पूछने पर इनका त्रिवर्ग में अर्थ की प्रधानता बताना (शान्ति० १६७ । २२-२७) । इनके द्वारा शकुनि के मारे जाने की श्रीकृष्ण द्वारा चर्चा (आश्व० ६० । २५) । अभिमन्यु के बालक की रक्षा से युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव के भी जीवन की रक्षा होगी-ऐसा कुन्ती का श्रीकृष्ण के प्रति कथन (आश्व० ६६ । १९)। अश्वमेध-यज्ञ के अवसर पर व्यासजी और युधिष्ठिर के द्वारा इन्हें कुटुम्ब-पालन सम्बन्धी समस्त कार्यों की देखभाल का काम सौपा जाना । ( आश्व० ७२ । २०२६)। वन को जाती हुई कुन्ती का इन्हें युधिष्ठिर को सौंपना और इन पर सदा प्रसन्न रहने के लिये आदेश देना ( आश्रम० १६ । १० ) । नकुल और सहदेव गुरुजनों की आज्ञा के पालन में लगे रहने वाले थे, इन्हें भूख का कष्ट न उठाना पड़े, इसके लिये कुन्ती ने युधिष्ठिर को युद्ध के निमित्त उत्साह दिलाया था ( आश्रम० १७ । ८)। माता के दर्शन के लिये युधिष्ठिर के वन-गमन विषयक विचार को जानकर इनका हर्ष प्रकट करना और स्वयं भी उनके साथ जाने की उत्सुकता दिखाना (आश्रम २२ । ९-१३)। वन में माता को दूर से ही देखकर इनका दौड़ना और पास पहुँचकर उनके दोनों चरण पकड़कर फूट-फूटकर रोना, नेत्रों से आँसू बहाती हुई कुन्ती का भी इन्हें हाथों से उठाकर छाती से लगा लेना और गान्धारी को इनके आगमन की सूचना देना (आश्रम० २४ । ८-१०)। संजय का ऋषियों से सहदेव तथा इनकी पत्नी का परिचय देना (आश्रम० २५। ८-१३)। इनका अपने नेत्रों में आँसू भरकर युधिष्ठिर के समक्ष वन में रहने की इच्छा प्रकट करना, माता को छोड़कर घर जाने से अरुचि दिखाना और मातापिता की सेवा करते हुए तपस्या से शरीर को सुखा डालने का विचार व्यक्त करना । इनकी बात सुनकर कुन्ती का इन्हें छाती से लगा लेना और अपनी बात मानने के लिये कहकर घर जाने की आज्ञा देना ( आश्रम० ३६ । ३६-४३ )। माद्रीकुमार सहदेव भी जो माता कुन्ती को विशेष प्रिय रहे हैं, उन्हें आग में जलने से बचा न सके-ऐसा कहकर युधिष्ठिर का विलाप ( आश्रम० ३८ ॥ १८-१९ )। युधिष्ठिर, भीमसेन, अर्जुन, नकुल, सहदेव और द्रौपदी-ये छः व्यक्ति एक ही हृदय रखते थे (मौसल० १७ । ३)। इनका युधिष्ठिर के महाप्रस्थानविषयक निश्चय का अनुमोदन ( महाप्र० १ ।५) इनकी भाइयों के साथ महाप्रस्थान-यात्रा ( महाप्रा १। २२-२५)। उस यात्रा में ये नकुल के पीछे और द्रौपदी के आगे चलते थे (महाप्र० १ । ३१-३२)। महागिरि मेरु के पास द्रौपदी के पतन के पश्चात् मार्ग में सहदेव का भी धराशायी होना और भीमसेन के पूछने पर युधिष्ठिर का इनके पतन का कारण बताना - आत्मनः सदृशं प्राज्ञं नैषोऽमन्यत कञ्चन। तेन दोषेण पतितो विद्वानेष नृपात्मजः।। ( महाप्र० २।१०)। महाभारतमें आये हुए सहदेव के नाम-आश्विनेय, अश्विनीसुत, अश्विसुत, भरतशार्दूल, भरतश्रेष्ठ, भरतर्षभ भरतसत्तम, कौरव्य, कुरुनन्दन, माद्रीपुत्र, माद्रवतीसुत माद्रेय, माद्रीनन्दन, माद्रीनन्दनक, माद्रीनन्दकर, माद्रीतनुज, नकुलानुज, पाण्डव, पाण्डुनन्दन, पाण्डुपुत्र, पाण्डुसुत, तन्तिपाल, यम, यमज, माद्रीसुत आदि । (२) एक महर्षि, जो इन्द्र की सभा में विराजते थे ( सभा० ७ । १६ )। ( ३ ) एक प्राचीन राजा, जो यम-सभा में रहकर सूर्यपुत्र यम की उपासना करते हैं (सभा० ८ । १७) । आचार्य नीलकण्ठ के मतानुसार ये सुप्रसिद्ध राजा सृञ्जय के पुत्र थे। इन्होंने यमुना के अग्निशिर नामक तीर्थ में एक लाख स्वर्ण-मुद्राओं की दक्षिणा देकर विशाल यज्ञ का अनुष्ठान किया था (वन० ९० । ५-७)। (४) जरासंध का पुत्र । इसके दो छोटी बहिनें थीं, जो कंस को ब्याही गयी थीं। उनके नाम थे—अस्ति और प्राप्ति ( सभा० १४ । ३१)। यह द्रौपदी के स्वयंवर में आया था (आदि० १८५। ८)। जरासंध का इसके राज्याभिषेक की आज्ञा देना (सभा० २२ । ३१)। पिता के मारे जाने पर इसका भेंट लेकर भगवान् श्रीकृष्ण की शरण में जाना । श्रीकृष्ण का इसे अभयदान देकर पिताके राज्य पर अभिषिक्त करना और इसको अपना अभिन्न सुहृद् बना लेना । भीम और अर्जुन द्वारा भी इसका सत्कार होना ( सभा० २४ । ४२-४३ दाक्षिणात्य पाठसहित ) । एक अक्षौहिणी सेना के साथ इसका युधिष्ठिर की सहायता के लिये आना ( उद्योग० १९ । ८)। संजय द्वारा इसकी वीरता का वर्णन (उद्योग० १९।८)। युधिष्ठिर की सेना के सात सेनापतियों में से एक मगधराज सहदेव भी था, जिसका युधिष्ठिर ने उक्त पद पर अभिषेक किया था ( उद्योग० १५७ । ११-१४ )। इसके घोड़ों का वर्णन (द्रोण० २३ । ४८) । द्रोणाचार्य द्वारा इसका का वध (द्रोण० १२५ । ४५)।
महाभारतमें आये हुए सहदेव के नाम-जरासंधसुत, जरासंधात्मज, जारसंधि और मागध ।
सहरक्ष मत्स्य ५१.६(पावक अग्नि का पुत्र, असुरों की अग्नि), ५१.३१(संवर्तक अग्नि - पुत्र, मनुष्य गृहों में वास, कामना पूरक, क्रव्याद अग्नि - पिता), शिव ७.१.१७.३९, लक्ष्मीनारायण ३.३२.६(पावक - पुत्र), ३.३२.१९(सहरक्षा : वडवा - पुत्र, क्षाम - पिता ) saharakshaa
सहस्र गणेश १.५६.६(सहस्र नगर में राजा शूरसेन की कथा), वामन ९०.३७(सहस्र तीर्थ में विष्णु का मुसलाकृष्ट दानव नाम? ), स्कन्द ३.१.४६.७१(गङ्गा, यमुना व सरस्वती के मिलन स्थल पर स्नान से सहस्र गुणित फल प्राप्ति का उल्लेख), sahasra
सहस्रचित लक्ष्मीनारायण ३.७४.६४,
सहस्रजित् गर्ग ७.१०.३१(कर्णाटक के राजा सहस्रजित् द्वारा प्रद्युम्न को भेंट), स्कन्द १.२.२.७७( सहस्रजित् राजा द्वारा ब्राह्मण के लिए प्राणदान का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.२४४.८१(सहस्रजित् राजा द्वारा ब्राह्मण हेतु स्वप्राणों के दान का उल्लेख ) sahasrajit
सहस्रधारा स्कन्द २.८.२(शेषनाग द्वारा निर्मित तीर्थ), द्र. धारा
सहस्रनाम कूर्म १.१२.६२(हिमवान् - प्रोक्त पार्वती सहस्रनाम), गणेश १.४६.१(गणपति सहस्रनाम स्तोत्र), गरुड १.१५(विष्णु सहस्रनाम), गर्ग ४.१९(सौभरि - प्रोक्त यमुना सहस्रनाम), ८.१३(बलभद्र सहस्रनाम), १०.५९(गर्ग व उग्रसेन संवाद में कृष्ण सहस्रनाम), देवीभागवत १२.६(गायत्री सहस्रनाम), नारद १.८२(राधाकृष्ण सहस्रनाम), १.८९(ललिता सहस्रनाम), पद्म ६.७१(विष्णु सहस्रनाम), ब्रह्म १.३८(शिव सहस्रनाम), लिङ्ग १.६५(रुद्र सहस्रनाम), १.९८(विष्णु - प्रोक्त शिव सहस्रनाम), वायु ३०.१८१(यज्ञ विध्वंस के पश्चात् दक्ष - प्रोक्त शिव सहस्रनाम), शिव ४.३५(शिव सहस्रनाम), स्कन्द २.५.१०(विष्णु सहस्रनाम), ४.१.२९(गङ्गा सहस्रनाम), ५.१.६३.७५(विष्णु सहस्रनाम), महाभारत अनुशासन १७, १४९, लक्ष्मीनारायण २.२४०, ३.३८.२४(नारायण सहस्रनाम), ३.१०८(कृष्ण सहस्रनाम ) sahasranaama/ sahasranama
सहस्रनयन वामन ५८.५७(सहस्रनयन द्वारा शूल से असुर संहार), योगवासिष्ठ ३.९९.३३(सहस्रनेत्र चेतना के अनन्ताकृति का प्रतीक होने का उल्लेख ) sahasranayana
सहस्रपाद वामन ९०.३७(सहस्रचरण : तल में विष्णु का सहस्रचरण नाम), लक्ष्मीनारायण ३.८.५४(अतल के सहस्रपाद राजा सामरायधन का विष्णु से युद्ध, विष्णु द्वारा पादों का कर्तन ) sahasrapaada/ sahasrapada
सहस्रबाहु नारद १.७६, भागवत ९१५, वामन ५७.७६(सीता नदी द्वारा कुमार को सहस्रबाहु गण प्रदान का उल्लेख), स्कन्द ५.३.२१८, ६.६६, लक्ष्मीनारायण ३.८.४९(विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र से सुतल के सहस्रबाहुओं वाले राजा कपालहेतुक की भुजाओं का कर्तन ), द्र. सहस्रार्जुन, कार्तवीर्य sahasrabaahu/ sahasrabahu
सहस्रयज्ञ स्कन्द ५.३.२३१.१८,
सहस्रशिर वामन ९०.३५ (रसातल में विष्णु का नाम),
सहस्रशृङ्ग हरिवंश ३.३५.१०
सहस्राक्ष गर्ग १.१४.६१ (राजा सहस्राक्ष का दुर्वासा के शाप से तृणावर्त असुर बनना), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४०.१ (राजा पुष्कराक्ष का सहस्राक्ष रूप में उल्लेख), ४.४७.३१ (गौतम के शाप से इन्द्र का सहस्रयोनि होना, तप से सहस्रचक्षुत्व प्राप्ति), मत्स्य १३.३४ (सहस्राक्ष में देवी का उत्पलाक्षी नाम), वामन ९०.४३(शाक द्वीप में विष्णु का सहस्रांशु नाम), वायु ७.६१/१.७.५६(ब्रह्मा का सहस्राक्ष सहस्रपात् पुरुष के रूप में वर्णन), स्कन्द ४.१.१०(सहस्राक्ष की पुरी का वर्णन, सहस्राक्ष पुरी प्रापक कर्म ), ५.३.१९८.७२(सहस्राक्ष में देवी के उत्पलाक्षी नाम का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३०८, sahasraaksha
सहस्रानीक स्कन्द ३.१.५(शतानीक - पुत्र, विधूम वसु का शापित रूप, मृगावती - पति, पत्नी वियोग के शाप की प्राप्ति, उदयन - पिता ), लक्ष्मीनारायण १.४३४, कथासरित् २.१.११, ६.४.४४, sahasraaneeka/ sahasranika
सहस्रायुध कथासरित् ८.१.५८
सहस्रार्जुन पद्म १.११, भागवत ९.१५(दत्तात्रेय की कृपा से सहस्रार्जुन द्वारा सहस्रबाहुओं की प्राप्ति, जमदग्नि से कामधेनु का हरण, परशुराम द्वारा वध ), विष्णु ४.११, स्कन्द ५.३.२१८(परशुराम द्वारा सहस्रबाहु राजा की भुजाओं के कर्तन की कथा), लक्ष्मीनारायण १.२४४, १.४५७, sahasraarjuna/ sahasrarjuna
सहिष्णु लिङ्ग १.२४.११८(२६वें द्वापर में मुनि), वायु २३.२१२(२६वें द्वापर में शिव अवतार ), शिव ७.१.१७.२७, लक्ष्मीनारायण १.३८२.१८३(पुलह व क्षमा-पुत्र), द्र. मन्वन्तर, वंश पुलह sahishnu
सहोड्डीन भविष्य ३.३.३२.२३८(बलि - सेनानी, पृथ्वीराज से युद्ध में पृथ्वीराज को बन्दी बनाना, लोकप्रचलित नाम शाहबुद्दीन गौरी),
सहोद भविष्य ३.३.३१.१४०(म्लेच्छ राजा, बलि - सेनानी, विद्युन्माला पर आसक्ति, कृष्णांश से पराजय),
सह्य गर्ग ७.१४(, देवीभागवत ७.३०(सह्य पर्वत पर एकवीरा देवी के वास का उल्लेख), भविष्य ३.३.३१.१२९(सह्य गिरि पर कर्बुर राक्षस व कृष्णांश का युद्ध), मत्स्य १३, ११४.२९(सह्य पर्वत से उद्भूत नदियां), वराह ८५(सह्य पर्वत से उद्भूत नदियां), वामन ९०.११(सह्य पर्वत पर विष्णु का वैकुण्ठ नाम से वास ), स्कन्द १.२.४५.१०९, ५.३.१९८.७७, योगवासिष्ठ ५.६५, द्र. भूगोल sahya
सांवौर स्कन्द ५.३.१६४(व्याधि से मुक्ति हेतु सांवौर तीर्थ का माहात्म्य),
साकेत लक्ष्मीनारायण १.३१६
साक्षात्कृत लक्ष्मीनारायण ३.१६.१,
साक्षी अग्नि २५५(साक्षी धर्म की विवेचना), नारद १.१५.१०७(कूट साक्षी कथन पर पाप फल), भागवत ६.१.४२(देहधारियों के कर्म के साक्षियों के रूप में सूर्य, अग्नि, सं, कं आदि नाम), विष्णुधर्मोत्तर ३.३२७(साक्षी द्वारा निर्णय ) saakshee/sakshi
सागर गरुड २.२२.६२(शरीर की धातुओं में सागरों की स्थिति), २.३२.११६(देह में सागरों की स्थिति), गर्ग २.२६(विरजा के सात पुत्रों का माता के शाप से सप्त सागर बनना), ब्रह्माण्ड ३.५६(सागर की निरुक्ति), भविष्य ४.१८२(सप्त सागर दान विधि), मत्स्य १७२(नारायण का रूप, उपमा), २८७(सप्त सागर दान विधि), विष्णु ४.४.३३, विष्णुधर्मोत्तर ३.१४५(सागर व्रत),स्कन्द ४.२.६६.१७(चतु:सागर वापिका का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.८३.६५(सप्तसागर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.८३.१०७, ७.१.१२८(सगर - पुत्रों द्वारा खनन से सागर की उत्पत्ति, सगर द्वारा तप से सागरादित्य की स्थापना), योगवासिष्ठ ५.७६(संसार सागर), वा.रामायण ३.३१.४६(राम की सागर से उपमा), ६.७.२०(देव - सेना की सागर से उपमा), लक्ष्मीनारायण ३.१३२, ३.१७५.२(संसार सागर ), ३.१८३.१(, ३.२०८.१, ४.२९, ४.७१, कथासरित् ९.२.३२०, saagara/ sagara
साङ्काश्या वा.रामायण १.७०,
साङ्कृति स्कन्द ६.२३१, लक्ष्मीनारायण २.२४४.७४(साङ्कृति द्वारा शिष्यों को विद्या दान का उल्लेख ), कथासरित् २.६.७१साङ्कृत्यायनी, द्र. सङ्कृति saankriti/ sankriti/ saamkriti
साङ्ख्य कूर्म २.३९.४९(साङ्ख्य दर्शन का निरूपण), नारद १.४५(पञ्चशिख मुनि द्वारा जनक को साङ्ख्य का उपदेश), ब्रह्म १.१२८, १.१३२, भागवत ५.१८.३१(कूर्म भगवान् में संख्या के अभाव का कथन), ११.२४(साङ्ख्य पर कृष्ण - उद्धव संवाद), मत्स्य ३(तन्मात्राओं का प्राकट्य), वराह ११४, शिव २.३.१३(शिव - पार्वती विवाद), स्कन्द ४.२.८४.३०(साङ्ख्य तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.१.७.१७, ७.२.१८, महाभारत शान्ति २३६, ३००, ३०१, ३०६, ३१०, ३१९.१६(सम्यग्वध/सांख्य शास्त्र का निरूपण ) लक्ष्मीनारायण ३.१३७, saankhya/ sankhya/ samkhya
साण लक्ष्मीनारायण २.६.५४
सातवाहन कथासरित् १.६.६६, १.६.९७,
सात्यकि गर्ग १.५.२६(प्रह्लाद का अंश), १०.४९.१९(अनिरुद्ध - सेनानी, दुर्योधन से युद्ध), भागवत १०.६३(सात्यकि का बाण से युद्ध), ११.३०(सात्यकि का अनिरुद्ध से युद्ध), हरिवंश २.७३(पारिजात हरण प्रसंग में सात्यकि का प्रवर से युद्ध), ३.९५+ (सात्यकि का पौण्ड्रक - सेना व पौण्ड्रक से युद्ध), ३.११७+ (कृष्ण के दूत के रूप में सात्यकि का शाल्व नगर में हंस से संवाद ) saatyaki/ satyaki
सात्वक पद्म ५.४७(सात्वक मुनि द्वारा तप, गन्धर्व बनना?, मुनियों के शाप से राक्षस बनना, राम के यज्ञीय अश्व का स्तम्भन, मुक्ति ) saatvaka/ satvaka
सात्वत नारद १.६६.९४(सात्वत विष्णु की शक्ति मुक्ति का उल्लेख), मत्स्य ४४.४५(जन्तु व ऐक्ष्वाकी - पुत्र, कौसल्या - पति, ६ पुत्रों के नाम), वायु ९६.१(सात्वत वंश का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.३९०, saatvata/ satvata
साधक शिव १.३(साधन व साध्य, ब्रह्मकृत), १.४(मुक्ति साधक, कीर्तनादि), स्कन्द ७.१.१०६(साधना के स्तर के अनुसार साधक के भेद, नाम ) saadhaka/ sadhaka
साधु भविष्य ३.२.२८(लीलावती - पति साधु वणिक् द्वारा सत्यनारायण व्रत कथा से कलावती पुत्री की प्राप्ति), ३.२.२९(राजा द्वारा साधु वणिक् का कारागार में बन्धन, मुक्ति, गृह आगमन), लिङ्ग १.१०.८(साधुओं के प्रकार), वायु ५९.२३(साधुओं के प्रकार), लक्ष्मीनारायण १.१९(साधु पुरुष की महिमा का वर्णन), १.२८३.३९(साधु के नौकाओं में अनन्यतम होने का उल्लेख), २.२२२.२७(साधु के शरीर की पवित्रता का वर्णन, साधु की समस्त देह के पुण्य होने का वर्णन ), २.२६८.१७, ३२९, ३.४५.२०, ३.६३.४५, ३.८०.६०, ३.८३.२८, ३.८४.२१, ३.८७, ३.९८.४१, ३.१२३.९, ३.१६९.८१(साधुभावायन , ३.१८६.५५, ३.१८९.७२, ३.२०४.२०, ४.१०१.२२ saadhu/ sadhu
साध्य नारद १.१२१.५१(साध्य द्वादशी व्रत की विधि : १२ साध्यों के नाम), पद्म १.४०.८६(साध्य गण की साध्या व धर्म से उत्पत्ति, १९ साध्यों के नाम), ६.७६.१०(साध्य गण में पञ्चम साध्य के रूप में विष्णु का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.३.१७(साध्य गण में १२ नाम, तुषितगण की साध्यों से एकता), २.३.३.५८(चाक्षुष मन्वन्तर में साध्यों की वैकुण्ठ संज्ञा होने का उल्लेख), २.३.१०.८८(साध्यों द्वारा अङ्गिरस-पुत्रों के संवर्धन का उल्लेख), भविष्य १.१२५.१५(साध्यों के नाम), भागवत २.३.४(प्रजा को अनुकूल बनाने की कामना हेतु साध्यों की उपासना), ६.६.८(साध्या से साध्यगण व साध्यगण से अर्थसिद्धि के जन्म का उल्लेख), मत्स्य ४, ५, १२३.४०(पुष्करद्वीप में ब्रह्मा के साध्योंसहित निवास का उल्लेख), १७१.४२(साध्य गण की धर्म व साध्या से उत्पत्ति, नाम), २०३.१०(१२ साध्य गण के नाम), लिङ्ग २.१.५३(कौशिक - शिष्यों का हरिगान से साध्य देव बनना), वामन ६९.५९(साध्यों व मरुद्गणों के निवातकवच आदि से युद्ध का उल्लेख), वायु ६६.९(जय देवगणों का चाक्षुष मन्वन्तर में नाम, अन्य मन्वन्तरों में तुषित आदि), १०१.३०/२.३९.३०(साध्यों आदि की भुव:लोक में स्थिति का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.५६.११(विष्णु के साध्यों में नारायण होने का उल्लेख), १.१२०.३(विष्णु के अंश, अदिति के गर्भ से १२ आदित्यों के रूप में जन्म), १.१२९.१(नर – नारायण का साध्य-द्वय के रूप में उल्लेख), ३.१८१(साध्य व्रत, १२ साध्यों के नाम), ३.२२१.१८(तृतीया तिथि को १२ साध्य देवों की पूजा का निर्देश), शिव ३.५.७(१२वें द्वापर में शिव अवतार के चार पुत्रों में से एक), स्कन्द १.२.१३.१८७(शतरुद्रिय प्रसंग में साध्यों द्वारा भर्तृमय लिङ्ग की विश्वपति नाम से पूजा), १.२.१३.१७३(शतरुद्रिय प्रसंग में साध्यों द्वारा सप्तलोकमय लिङ्ग की बहुरूप नाम से पूजा का उल्लेख), ३.१.२८.८६(साध्य - अमृत तीर्थ का माहात्म्य, पुरूरवा को पुन: उर्वशी प्राप्ति की कथा), ३.१.४९.८४(साध्यों द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ५.३.८३.१०६(गौ के दन्तों में मरुद्गणों व साध्यों की स्थिति का उल्लेख), ५.३.१९२.९(साध्या व दक्ष के ४ पुत्रों के नाम), हरिवंश ३.५२.५२(देवगण, इन्द्र - सेनानी, वैभव का वर्णन), ३.५३.१७(साध्यों का एकचक्र से युद्ध), महाभारत शान्ति ३१७.२(जानुद्वय से प्राणों के उत्क्रमण पर साध्यों के लोक की प्राप्ति का उल्लेख), ३२८.३२(७ वायुमार्गों में साध्यों की स्थिति, समान-पिता), अनुशासन १७.१७८(साध्य नारायण द्वारा यम को शिवसहस्रनाम का कथन), स्वर्गारोहण १.५(मृत्यु - पश्चात् दुर्योधन का साध्यगण के बीच सुशोभित होना), वा.रामायण ६.११७.८(साध्यों में पञ्चम साध्य के सर्वश्रेष्ठ होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.२७.६३, २.२७.१०६(साध्य ह्रदय से चन्दन की उत्पत्ति ), ३.५३.१००, ३.१०१.७०, saadhya/ sadhya
साध्वी लक्ष्मीनारायण १.२७(सा†ध्वयों के भगवान् की शक्तियों का रूप होने का वर्णन), १.५४३.७३, २.१२४.८३(साध्वी के लिए यज्ञ में श्रौषट् व्याहृति का प्रयोग ) saadhvee/ sadhvi
सानन्दूर वराह १५०(सानन्दूर क्षेत्र का माहात्म्य),
सान्दीपनि गर्ग १०.२२, १०.२३(सान्दीपनि द्वारा अनिरुद्ध हेतु कृष्ण तत्त्व का निरूपण), ब्रह्मवैवर्त्त १.८६, ४.१०२(सान्दीपनि द्वारा कृष्ण को विद्या पढाना ), स्कन्द ५.१.२७, हरिवंश २.३३, saandeepani/ sandipani
सान्निध्य स्कन्द ३.१.५१.२०(सान्निध्य प्रार्थना मन्त्र)
साभ्रमती पद्म ६.१३५(साभ्रमती नदी : गङ्गा का रूप, कश्यप द्वारा तप से शिव से साभ्रमती की प्राप्ति, साभ्रमती का माहात्म्य, युगान्तर में नाम), ६.१३७(सप्त - स्रोता साभ्रमती का माहात्म्य), ६.१४५, ६.१७०(साभ्रमती - समुद्र सङ्गम तीर्थ का माहात्म्य), स्कन्द ३.२.३९,६.१७३(वसिष्ठ द्वारा प्लक्ष से साभ्रमती की उत्पत्ति की कथा ), लक्ष्मीनारायण १.५०७, saabhramatee/ sabhramati
साम गणेश १.५९.९(साम नामक अन्त्यज द्वारा अन्त समय में गणेश चतुर्थी व्रत करने से कृतवीर्य नृप बनने की कथा), पद्म १.२०(साम व्रत की विधि व माहात्म्य), ब्रह्माण्ड २.३३.३९(साम के ७ प्रकार), ३.४.१.१०८, ३.७.३३४(हस्ती), भविष्य १.२११.२२, मत्स्य १०१.२६(साम व्रत), स्कन्द ४.१.३१.२६(साम द्वारा शिव स्तुति का कथन), ४.२.९२(नर्मदा के सामवेद का रूप होने का उल्लेख), ७.१.१७.१४१(साम के प्रकार व महिमा), महाभारत वन ३१३.५३, शान्ति ३४८.४६(ज्येष्ठ साम व्रती ब्राह्मण का उल्लेख), अनुशासन १४.२८२, लक्ष्मीनारायण २.११५.१३, ३.८.५४(अतल के सहस्रपाद राजा सामरायधन के पादों का विष्णु द्वारा कर्तन), ३.११०.१०१(, ३.१११.६५(यम द्वारा दीर्घशील विप्र को पुरुषोत्तम साम जप का निर्देश ; पुरुषोत्तम साम का महत्त्व ), ३.२१९.६सामकृषि, द्र. असम, त्रिसाम saama/ sama
साम - दाम - दण्ड - भेद मत्स्य २२३+ (साम, दाम, दण्ड, भेद नीति का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर २.६७+, २.१४७,
सामग स्कन्द ५.२.४१,
सामवान् स्कन्द ३.३.९(सारस्वत - पुत्र, सीमन्तिनी के निकट स्त्री वेश में जाना, स्त्री बनना, मित्र सुमेधा से विवाह),
सामीप्य स्कन्द ३.१.५२.२०१(सेतु माहात्म्य पाठ से सामीप्य आदि प्राप्ति का कथन)
सामुद्रिक भविष्य १.२४, शिव ५.२५.३५, स्कन्द ४.१.११.५६(नारद द्वारा गृहपति बालक के सामुद्रिक लक्षणों का वर्णन), ४.१.३७(स्त्री के सामुद्रिक लक्षण ) saamudrika/ samudrika
साम्ब कूर्म १.२६(साम्ब पुत्र की प्राप्ति हेतु कृष्ण द्वारा शिव की आराधना), गणेश २.२७.२०(दुर्धर्ष राजा का जारज दुष्ट पुत्र, गणेश पूजा से जन्मान्तर में व्याध योनि में गणेश का अनुग्रह प्राप्त करना), गर्ग ७.२०.२९(प्रद्युम्न - सेनानी, बाह्लीक से युद्ध), ७.२४.४६(साम्ब द्वारा कुबेर - सेनानी कार्तिकेय से युद्ध), १०.३१.१३(साम्ब द्वारा बल्वल - सेनानी कुशाम्ब का वध), १०.३८.३२(साम्ब का शिव से युद्ध), १०.४९.१७(साम्ब का भीष्म से युद्ध), ब्रह्म १.९९(साम्ब द्वारा दुर्योधन की कन्या का हरण, कौरवों द्वारा बन्धन, बलराम द्वारा साम्ब की मुक्ति), १.१०१(स्त्री वेश धारी साम्ब से मुसल की उत्पत्ति की कथा), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.१३१(षडानन का अंशावतार), भविष्य १.४८(साम्ब का कृष्ण से मुक्ति विषयक संवाद), १.६६(साम्ब द्वारा वसिष्ठ को सूर्याराधन विधि का कथन), १.७२(साम्ब द्वारा दुर्वासा का उपहास, शाप प्राप्ति), १.७३(साम्ब द्वारा नारद का उपहास, कृष्ण से कुष्ठ शाप की प्राप्ति, सूर्याराधन), १.७५+ (नारद द्वारा साम्ब को सूर्याराधन का उपदेश), १.१२७+ (साम्ब द्वारा सूर्य उपासना का उपाख्यान), १.१३९, ४.१११, भागवत ३.१, १०.६८(साम्ब द्वारा दुर्योधन - कन्या लक्ष्मणा का हरण, कौरवों द्वारा साम्ब का बन्धन), ११.१(साम्ब द्वारा स्त्री रूप धारण, ऋषियों से पुत्र विषयक प्रश्न, शाप प्राप्ति - ते वेषयित्वा स्त्रीवेषैः साम्बं जाम्बवतीसुतम् । एषा पृच्छति वो विप्रा अन्तर्वत्न्यसितेक्षणा ॥), ११.३०(साम्ब का प्रद्युम्न से युद्ध), वराह १७७(साम्ब के रूप द्वारा कृष्ण - पत्नियों का क्षोभ, कृष्ण का साम्ब को शाप, साम्ब द्वारा कुष्ठ निवारण हेतु सूर्य की आराधना, माध्यन्दिन उपनाम), विष्णु ५.३५(साम्ब द्वारा दुर्योधन की पुत्री के हरण का प्रसंग, बलराम द्वारा साम्ब का बन्धन से मोचन का उद्योग), ५.३७(ऋषियों द्वारा स्त्री वेश धारी साम्ब को मूसल उत्पन्न करने का शाप), शिव १.१७.११३ (पुरुषस्यैव सांबस्य द्वितीयावरणं शुभम् ) ५.१, ५.३.१८, ७.२.१(पाशुपत व्रत से कृष्ण को साम्ब पुत्र की प्राप्ति), स्कन्द १.३.१.३, ४.१.४८(साम्ब के रूप पर कृष्ण - पत्नियों का मोहन, साम्ब को शाप की प्राप्ति, कुष्ठ से मुक्ति हेतु काशी में तप, स्वनाम ख्यात लिङ्ग, कुण्ड, आदित्य की स्थापना), ४.२.६४, ६.५६(साम्बादित्य का माहात्म्य, गालव द्वारा पुत्र प्राप्ति), ६.२१३(साम्ब द्वारा कृष्ण - पत्नी नन्दिनी से स्व - भार्या रूप में रति, कुष्ठ प्राप्ति, कुहरवासा तीर्थ की स्थापना), ७.१.१००+ (साम्बादित्य का माहात्म्य, साम्ब द्वारा दुर्वासा का अपमान, शाप प्राप्ति, कृष्ण से शाप प्राप्ति, साम्बादित्य पूजा से मुक्ति), ७.१.२३७(साम्ब द्वारा स्त्री रूप धारण, ऋषियों द्वारा यादव कुल के नाश के शाप की कथा - इयं स्त्री पुत्रकामस्य बभ्रोरमिततेजसः ॥ ऋषयः साधु जानीत किमियं जनयिष्यति ॥), ७.१.३०५+ (साम्ब द्वारा नारद की निन्दा, शाप - प्रतिशाप, कुष्ठ से मुक्ति हेतु साम्बादित्य की स्थापना), हरिवंश २.६२(साम्ब द्वारा दुर्योधन - पुत्री लक्ष्मणा का अपहरण, हस्तिनापुर में बन्धन में पडना), २.९४(साम्ब द्वारा गुणवती से विवाह), २.१०३.२८(काश्या - पति, सुपार्श्व पुत्र ), २.११०,
लक्ष्मीनारायण १.३५३, samba/ saamba
साम्भरायणि भविष्य ४.१०७(स्वर्ग में तपोधना नारी साम्भरायणि का इन्द्र से पूर्व इन्द्रों के विषय में संवाद, शङ्कुकर्ण दैत्य हनन का प्रसंग),
सायं लक्ष्मीनारायण १.५७०.६२(भगवान् के प्रात: गर्भ रूप, सायं सृष्टि रूप व रात्रि में प्रलय रूप होने का उल्लेख ), द्र. वंश ध्रुव saayam
सायुज्य पद्म ६.१८, भविष्य ३.४.७.२६ (तप से सालोक्य, भक्ति से सामीप्य, ध्यान से सारूप्य व ज्ञान से सायुज्य प्राप्ति का कथन), स्कन्द २.२.३७.५५ (राजा श्वेत द्वारा विष्णु के मत्स्यावतार के समय सायुज्य प्राप्ति का वर प्राप्त कर श्वेत माधव होना), ३.१.२९.५०(सुचरित द्वारा सर्व तीर्थ में सायुज्य प्राप्ति का उल्लेख), ३.१.३०.११९(अद्वैत विज्ञान बिना भी सायुज्य प्राप्ति के उपाय का कथन), लक्ष्मीनारायण १.५४७.३९(सालोक्य आदि ४ प्रकार की मुक्ति के अधिकारी जनों का कथन), saayujya/ sayujya
सार गरुड ३.१४.६(विष्णु के सारांश-भोक्ता होने का वर्णन), ३.१४.१९(भोज्य द्रव्यों के असार होने की अवधि), ३.१४.२९(तुलसी के सर्वदा सारा होने का कथन), लक्ष्मीनारायण २.११०.६७(सारकेतु)
सारङ्ग पद्म ६.२०३५१(सारङ्ग द्वारा कादम्बिनी के जल की अभीप्सा का उल्लेख), स्कन्द ५.१.४४.११ लक्ष्मीनारायण ३.८.५२(सुतल - राजा, शतमूर्द्धा, विष्णु से युद्ध में शिरों का छेदन ), ३.१६.५६, ३.२०९.१, saaranga/ saranga
सारण गर्ग १०.४९.१८(अनिरुद्ध - सेनानी, द्रोणाचार्य से युद्ध), मत्स्य ४६, वा.रामायण ६.२५(रावण - अमात्य सारण द्वारा राम की सेना का गुप्त रूप से निरीक्षण, वानरों द्वारा बन्धन व मोचन, सारण द्वारा रावण को वानर सेनापतियों का परिचय देना), ६.२९(रावण द्वारा सारण का सभा से निष्कासन ) saarana/ sarana
सारथि ब्रह्माण्ड ३.४.२०.९२(त्रिपुर भैरवी आदि रथ के सारथि), महाभारत कर्ण ३४.६३(त्रिपुर वध के संदर्भ में ब्रह्मा का शिव के रथ का सारथी बनना), योगवासिष्ठ ६.२.१३९.१३(प्राण व मन के एक दूसरे के रथ के सारथी होने का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.२४५.५०, २.२५१.५६, saarathi/ sarathi
सारमेय वामन ४७, स्कन्द २.७.८.२(सन्तों का संग न करने से सारमेयता प्राप्ति का उल्लेख), ३.३.४(सारमेय द्वारा शिव मन्दिर की प्रदक्षिणा से जन्मान्तर में विमर्दन राजा बनना), saarameya/ sarameya
सारस पद्म २.६१, ६.१२९.१५०, ६.१२९.१६१(सारस द्वारा वानर को पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन, हंस बनना, पूर्व जन्म के प्रतिग्रह दोष से सारस), मत्स्य ६.३२(धर्म व शुचि - पुत्र), हरिवंश २.३८.२७(यदु - पुत्र सारस द्वारा क्रौञ्च पुर की स्थापना), महाभारत आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृ. ६३२६, योगवासिष्ठ ६.१.७.६०(कारण का रूप ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.९७ saarasa/ sarasa
सारस्वत देवीभागवत १.३.२८(नवम द्वापर में व्यास), पद्म १.२०(सारस्वत व्रत की विधि व माहात्म्य), १.२२२.१७८(सारस्वत व्रत, सरस्वती की महिमा), ३.२७.४(सप्त सारस्वत तीर्थ का माहात्म्य, मङ्कणक के हाथ से शाक स्रवण की कथा), भविष्य ३.४.१२.६१(और्व अग्नि का कुरुक्षेत्र में सारस्वत विप्र के गृह में क्षेत्रशर्मा नाम से जन्म लेने का कथन), ४.३५(सारस्वत व्रत की विधि – सरस्वती पूजा), मत्स्य ६६(सारस्वत व्रत की विधि, सरस्वती की पूजा), १०१.१८(सारस्वत व्रत), लिङ्ग १.२४.४३(नवम द्वापर में व्यास), वराह ३.३(पूर्व जन्म में सारस्वत नामक नारद द्वारा सारस्वत सर पर केशव की आराधना का वर्णन), विष्णु १.२.९(पुरुकुत्स द्वारा सारस्वत को व सारस्वत द्वारा पराशर को विष्णुपुराण का कथन), शिव ३.४.३४(नवम द्वापर में सारस्वत नामक व्यास के काल में शिव के ऋषभ अवतार की महिमा), स्कन्द १.२.२(सारस्वत द्वारा कात्यायन को धर्म व दान के माहात्म्य का उपदेश), ३.३.९.३(वेदमित्र व उसके मित्र सारस्वत के पुत्रों द्वारा सीमन्तिनी से धन प्राप्त करने आदि का वृत्तान्त), ४.२.८४.८३(सारस्वत तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.१.१०५.४७(१२वें कल्प का नाम), ७.२.६+ (सारस्वत द्वारा राजा भोज को वस्त्रापथ क्षेत्र के माहात्म्य का कथन), महाभारत वन ८५.४६( दधीचि व सरस्वती – पुत्र सारस्वत के जन्म स्थान की सारस्वत तीर्थ नाम से प्रसिद्धि, अन्य नाम तुङ्गकारण्य), शल्य ५१.३(१२ वर्ष की अनावृष्टि पर सारस्वत द्वारा शिष्य ऋषियों को वेद का अध्यापन), ५१.७(अलम्बुषा अप्सरा के दर्शन के कारण दधीचि के स्खलित वीर्य व सरस्वती नदी के गर्भ से सारस्वत की उत्पत्ति), शान्ति ५९.१११(सारस्वत्य गण के पृथु के मन्त्री बनने का उल्लेख), २०८.३१(अत्रि – पुत्र, पश्चिम दिशा में निवास), ३४९.३९(भोः शब्द का उच्चारण आदि करने से सारस्वत अपान्तरतमा ऋषि के जन्म व चरित्र का वर्णन) , लक्ष्मीनारायण १.१४९+ (सारस्वत विप्र द्वारा राजा भोज को मृगानना का परिचय देना, फलित ज्योतिष का वर्णन ), १.४४९, १.५४०, १.५५८, द्र. व्यास saarasvata/ sarasvata
सारायण लक्ष्मीनारायण ४.३२.२८, ४.८०.१३,
सारिका मार्कण्डेय १५(दुष्कर्मों के फलस्वरूप सारिका योनि की प्राप्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.५७४.७२(सारिका तीर्थ का माहात्म्य – अश्व व शुनी का रूप परिवर्तन), ३.२०८.५४(सागर-पत्नी), कथासरित् १२.१०.८,
सारूप्य गर्ग ४.५(चम्प नगरी के राजा विमल द्वारा याज्ञवल्क्य के सुझाव से स्वपुत्रियों को कृष्ण को भेंट करना, कृष्ण से सारूप्य प्राप्त करना), पद्म ५.७५.४७(ललिता का राधा व कृष्ण से सारूप्य), द्र. सायुज्य saaroopya/ sarupya
सार्वभौम नारद १.११९.३१(सार्वभौम दशमी व्रत की विधि, पाप का दिशाओं के सापेक्ष विन्यास व नाश), भविष्य ३.४.१७.५२(दिग्गज, ध्रुव व दिशा - पुत्र), भागवत ८.१३.१७(८वें मन्वन्तर में अवतार, देवगुह्य व सरस्वती - पुत्र), वराह ६५.१(सार्वभौम व्रत विधि), स्कन्द ३.२.३६.३५(कान्यकुब्ज- अधिपति आम द्वारा सार्वभौमत्व प्राप्ति का उल्लेख), वा.रामायण ४.४३.३४(सार्वभौम गज के कुबेर का उपवाह्य होने का उल्लेख), ६.४.१९(दिग्गज, कुबेर का वाहन, अंगद की सार्वभौम से उपमा ) saarvabhauma/ sarvabhauma
साल देवीभागवत १२.१०.३४(कांस्यसालादुत्तरे तु ताम्रसालः प्रकीर्तितः । चतुरस्रसमाकार उन्नत्या सप्तयोजनः ॥), हरिवंश १.६.४३(पृथ्वी का दोग्धा - पालाशं पात्रमादाय दग्धच्छिन्नप्ररोहणम्। दुदोह पुष्पितः सालो वत्सः प्लक्षोरऽभवत्तदा ।), वा.रामायण ४.१२(राम द्वारा ७ साल वृक्षों का भेदन -स विसृष्टो बलवता बाणः स्वर्ण परिष्कृतः । भित्त्वा सालान् गिरि प्रस्थम् सप्त भूमिम् विवेश ह ॥), लक्ष्मीनारायण २.३६.३८(समुद्रोत्थं सालमालासुरपुत्रं बलाधिकम् ।।….तपत्युग्रं राज्यलब्ध्यै सालपुत्रो वराटकः ।।), saala/ sala
सालकटङ्कटा वा.रामायण ७.४.२३(सन्ध्या - पुत्री, विद्युत्केश - पत्नी, सुकेश – माता - सन्ध्यायास्तनयां लब्ध्वा विद्युत्केशो निशाचरः । रमते स्म तया सार्धं पौलोम्या मघवानिव ।। ) saalakatankataa/ salakatankataa
सालङ्कायन वराह १४४(सालङ्कायन ऋषि द्वारा तप, शिव को पुत्र रूप में प्राप्त करना, आमुष्यायण - गुरु), १४५(सालङ्कायन द्वारा शालग्राम में तप, शिव की पुत्र रूप में प्राप्ति), स्कन्द ७.१.२३.९८( चन्द्रमा के यज्ञ में शालङ्कायन के प्रस्थाता होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३४०( सालङ्कायन द्वारा शालग्राम में पुत्रार्थ तप का कथन ), १.५५९.८८(अयोध्यापति सालङ्कायन के राज्य में अनावृष्टि, ७ चाण्डालों का तप से वर्जन, यज्ञ आदि), शालङ्कायनजीवसूः, स्त्री, व्यासमाता । यथा, -- “व्यासस्याम्बा सत्यवती वासवी गन्धकालिका । योजनगन्धा दासेयी शालङ्कायनजीवसूः ॥” इति हेमचन्द्रः (शब्दकल्पद्रुमः) ॥ saalankaayana/ salankayana
सालभञ्जिका कथासरित् १८.२.१४५(कलावती का शापवश सालभञ्जिका बनना - तद्गच्छ नरसिंहेन राज्ञा नागपुरे पुरे । देवागारे कृते स्तम्भे भव त्वं सालभञ्जिका ।।), १८.४.१४०(वर्धमानपुरीयेण कृतेयं सालभञ्जिका ।।)
सालमाल लक्ष्मीनारायण २.२५.७९
सालोक्य, सारूप्य भविष्य ३.४.७.२६(मोक्ष के ४ प्रकार, तप से सालोक्य, भक्ति से सामीप्य, ध्यान से सारूप्य और ज्ञान से सायुज्य), स्कन्द ३.१.२८.८१(पुरूरवा द्वारा उर्वशी के साथ सालोक्य सिद्धि के लिए प्रयत्न करना), लक्ष्मीनारायण १.५४७.३९(सालोक्य आदि ४ प्रकार की मुक्तियों के अधिकारी जनों का कथन ), ३.१८.१९ saalokya/ salokya
साल्व विष्णुधर्मोत्तर १.३७(सिंहिका - पुत्र, परशुराम का साल्व के वधार्थ आगमन ), १.४३ saalva/ salva
सावन गरुड १.१२८.१५(यज्ञादि के लिए सावन मास का निर्देश), लक्ष्मीनारायण १.५२६.५३(सावन वर्ष का कथन ), ३.२८.८५ saavana/ savana
सावर्णि कूर्म १.२५.४१(सावर्णि द्वारा महादेvव की आराधना से ग्रन्थकारत्व प्राप्ति का उल्लेख), गरुड १.८७.३१(सावर्णि मनु के पुत्रों के नाम), देवीभागवत ९.१५, १०.१०(सावर्णि मनु : पूर्व जन्म में सुरथ राजा), १०.१३(करूष, पृषध्र, नाभाग, दिष्ट, शर्याति व त्रिशङ्कु का दक्ष सावर्णि, मेरु सावर्णि, सूर्य सावर्णि, इन्द्र सावर्णि, रुद्र सावर्णि, विष्णु सावर्णि मनु बनना), ब्रह्म १.४, ब्रह्मवैवर्त्त २.१३, ब्रह्माण्ड २.३.५९.४८(सूर्य व छाया - पुत्र श्रुतश्रवा का सावर्णि मनु बनना), ३.४.१.६५(सावर्णि मनु के पुत्रों के नाम), भविष्य १.१२५.२३, मार्कण्डेय ७७, ८१, वायु ३४.६२(सावर्णि ऋषि द्वारा मेरु रूपी पद्म की कर्णिका को अष्टाश्रि मानना), ८३.५१, १००.४२(सावर्णि मनु की दक्ष - कन्या सुव्रता से उत्पत्ति की कथा), १००.५३.२.३८.५३(४ सावर्णि मनुओं की ब्रह्मा, दक्ष, भव व धर्म से उत्पत्ति का वृत्तान्त), स्कन्द ७.१.७४(सावर्णीश लिङ्ग : शाकल्येश्वर लिङ्ग का रूप ), लक्ष्मीनारायण ३.१५५.१०७, द्र. दक्षसावर्णि, धर्मसावर्णि, नन्दसावर्णि, ब्रह्मसावर्णि, मेरुसावर्णि saavarni/ savarni
सावित्र पद्म १.४०(मरुतों में से एक का नाम), भागवत ३.१२.४२(ब्रह्मचारी की ४ वृत्तियों में से एक, द्र. टीका), मत्स्य १७१.५२, वायु २१.३१, विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१, हरिवंश ३.५३.६(मरुतों में पञ्चम, बाण से युद्ध), ३.५४, वा.रामायण ७.२७(अष्टम वसु, युद्ध में सुमाली राक्षस का वध ) saavitra/ savitra
सावित्री अग्नि १९४.४(ज्येष्ठ मास में सावित्री अमावास्या पूजा की विधि), गणेश १.७६.२(बुध - भार्या, वेश्यारत पति द्वारा हत्या, स्वर्ग प्राप्ति), २.३६.६(ब्रह्मा के यज्ञ में सावित्री को आहूत न करने पर सावित्री द्वारा देवों को जड होने का शाप), गरुड १.९४.११(प्रातःकाल गायत्री तथा सायंकाल सावित्री जप का निर्देश), १.९४.२४(सावित्री पतित की व्रात्य संज्ञा), ३.१६.८२(पुरुषसंज्ञक विरिञ्च-पत्नी), देवीभागवत ९.१.३८(५ प्रकृतियों में चतुर्थ सावित्री देवी का स्वरूप व महिमा), ९.२६(सावित्री पूजा व स्तुति विधान, पराशर द्वारा अश्वपति को कथन), ९.२७+ (सावित्री - सत्यवान् की कथा, यम से कर्म फल विषयक वार्तालाप), १२.६.१५०(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.२७.४४(मध्याह्नसन्ध्या में शुक्लवसना सावित्री के आह्वान का निर्देश), १.८३.१०९(सावित्री की राधा से उत्पत्ति, स्वरूप व मन्त्र विधान ; १०८ नाम), १.८३.१२८(सावित्री पञ्जर स्तोत्र का कथन), पद्म १.१७(ब्रह्मा के यज्ञ में सावित्री द्वारा देवों को शाप का प्रसंग), १.१७.८१(ब्रह्मा के यज्ञ में विष्णु द्वारा सावित्री की स्तुति, तीर्थों में सावित्री के नाम), १.२२, १.३४.७५(सावित्री के ब्रह्मा के यज्ञ में आगमन का वृत्तान्त, गायत्री के ब्रह्मा के वामाङ्ग में तथा सावित्री के दक्षिणाङ्ग में स्थित होकर कार्य करने का उल्लेख), १.३४.७५(पुष्कर में गायत्री के ब्रह्म के वाम पार्श्व में तथा सावित्री? के दक्षिण पार्श्व में स्थित होने का उल्लेख), ३.२१, ६.१११(स्वरा नाम, ब्रह्मा के यज्ञ में शाप देने की कथा), ६.२२८(अष्ट दल कमल में कर्णिका का रूप), ब्रह्म २.३२(ब्रह्मा द्वारा स्वसुता का अनुगमन करने पर गायत्री, सावित्री आदि पांच सुताओं का नदीभूत होकर गङ्गा से सङ्गम), ब्रह्मवैवर्त्त १.४.२(कृष्ण की रसनाग्र से सावित्री की उत्पत्ति का कथन), १.८.१(सावित्री द्वारा ब्रह्मा के वीर्य को धारण कर शास्त्रों, रागों आदि को जन्म देने का कथन), २.७.१११ (सावित्री के विशिष्ट तपस्थान मलयपर्वत का उल्लेख), २.२३(सावित्री - सत्यवान् उपाख्यान), २.२५+ (सावित्री का यम से संवाद), ३.७.१०३(तेजोरूप कृष्ण की स्तुति में सावित्री के शब्द), ४.६.१४३(सावित्री का नाग्नजिती रूप में अवतरण), ४.४५( सावित्री द्वारा शिव विवाह में हास्य), ४.१०९(सावित्री द्वारा कृष्ण व रुक्मिणी विवाह में हास्य), भविष्य १४, ४.१०२(सावित्री व्रत व सावित्री - सत्यवान् की कथा), भागवत ६.१८.१(सविता व पृश्नि - पुत्री), मत्स्य ३.३०(सावित्री की ब्रह्मा से उत्पत्ति, शतरूपा आदि अन्य नाम, ब्रह्मा द्वारा सावित्री रूप के अवलोकनार्थ मुखों की सृष्टि, सरस्वती उपनाम), ३, २०८+ (सावित्री - सत्यवान् की कथा, यम से वार्तालाप, वर प्राप्ति), वराह २.६८(नारद द्वारा वेद रूपी शरीर धारी सावित्री के दर्शन), विष्णुधर्मोत्तर १.४१.९(ओंकार पुरुष, सावित्री प्रकृति), २.३६+ (सावित्री - सत्यवान् उपाख्यान), ३.६३, स्कन्द ३.१.४०.१(सरस्वती का सावित्री से तादात्म्य), ५.१.५६.१४(अनुसूर्या सावित्री : त्वष्टा - पुत्री, सूर्य - पत्नी संज्ञा का उपनाम, वडवा रूप में शिप्रा सङ्गम पर सूर्य से मिलन), ५.१.६६(सावित्री व्रत की महिमा), ५.२.५२.१०, ५.२.५८.१३(सावित्री कन्या के दर्शन से नारद द्वारा वेदों की विस्मृति का वृत्तान्त), ५.३.१३.४२(सावित्र – १४ कल्पों में से एक), ५.३.२८.१७(शिव के रथ में गायत्री व सावित्री द्वारा रश्मिबन्धन का कार्य करने का उल्लेख), ५.३.२००(त्रिकालसन्ध्या में गायत्री व सावित्री का स्वरूप, सावित्री तीर्थ का माहात्म्य), ६.१८१(ब्रह्मा के यज्ञ में सावित्री के न आने पर गोप कन्या रूपी गायत्री द्वारा यज्ञ का अनुष्ठान), ६.१८८, ६.१९१+ (सावित्री द्वारा ब्रह्मा के यज्ञ में आए देवों को शाप, गायत्री द्वारा उत्शाप), ६.१९२(सावित्री पूजा का माहात्म्य), ६.२५२.१०(चातुर्मास में तिलों में सावित्री की स्थिति का उल्लेख), ६.२७८, ७.१.१५१(सावित्री द्वारा भैरवेश्वर लिङ्ग की स्थापना), ७.१.१६५(ब्रह्मा के यज्ञ में गायत्री की प्रतिष्ठा पर सावित्री द्वारा देवों को शाप), ७.१.१६६(सावित्री व सत्यवान की कथा), लक्ष्मीनारायण १.२००, १.२६७, १.३०४, १.३१८.३५(सती व रुद्र की मानस पुत्री वम्री के वट सावित्री आदि बनने का कथन), १.३६४.३४, १.३६६, १.३८५.४७(सावित्री का कार्य : यज्ञोपवीत), १.४४१.८२(सावित्री का तिल गुल्म के रूप में अवतार), १.५०९.६९(सावित्री के गायत्री रूप में जन्म लेने का वृत्तान्त ), १.५१२, १.५२२, ४.६४, ४.७५, ४.१०१.९३, कथासरित् १४.१.२२(अङ्गिरा द्वारा अष्टावक्र – कन्या सावित्री को भार्या रूप में प्राप्त न कर पाने का कथन), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.२१टीका(सावित्री मेधा रूपा, गायत्री ज्ञानरूपा, सरस्वती प्रज्ञारूपा), saavitree/ savitri
साहस अग्नि २५८.२६(साहस अपराध पर दण्ड का विधान),
साहसिक गर्ग २.११.३४(बलि - पुत्र, कामासक्ति के कारण दुर्वासा के शाप से गर्दभासुर बनना), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२३(बलि - पुत्र, तिलोत्तमा से संवाद, धेनुकासुर बनना ), कथासरित् ३.६.१९८, saahasika/ sahasika
सिंह अग्नि ७४.४५(शिव आसन के चार पादों में स्थित चार सिंहों का प्रतीक रूप), गणेश २.१.१७(कृतयुग में विनायक नामक गणेश का वाहन), २.१०.२९(रेणुका द्वारा महोत्कट गणेश को सिंह वाहन भेंट), गर्ग १०.२८.४५(बल्वल के मन्त्रियों में से एक), १०.३१.१(बल्वल - सेनानी, वृक से युद्ध), देवीभागवत ३.१४, पद्म १.४४.७९(वीरक को शाप के पश्चात् पार्वती के क्रोध से सिंह की उत्पत्ति, काली का वाहन बनना), ६.२०३(दिलीप द्वारा गौ सेवा के आख्यान में सिंह का गौ भक्षण को उद्धत होना, कुम्भोदर गण का रूप), ब्रह्मवैवर्त्त १.५, ब्रह्माण्ड २.३.७.४११(सिंह, व्याघ्र आदि की दंष्ट्रा से उत्पत्ति), भविष्य १.१३८.३९(दुर्गा की सिंह ध्वज का उल्लेख), २.२.२.३०(सिंह में दुर्गा के अवतरित होने का उल्लेख, व्याघ्र में त्रिपुरसुन्दरी व कालिका के), ४.१३८.८०(८ सिंहों की सन्निधि के कारण सिंहासन नाम), मत्स्य १४८.९५(सूर्य व चन्द्रमा के ध्वज पर हेमसिंह चिह्न का उल्लेख), १५७.४(पार्वती के क्रोध से सिंह की उत्पत्ति, काली का वाहन बनना), वामन ३६.२९(नृसिंह विष्णु की सिंहों में रति, शरभ रूप धारी शिव से युद्ध), वायु १०१.२९३/२.३९.२९३(सिंहों के महाभूत होने का उल्लेख), १०१.२९४/२.३९.२९४(देवी के क्रोध के सिंह बनने का कथन ; अग्निमय पाश द्वारा सिंह का बन्धन), १०१.३३३/२.३९.३३३(प्रलय काल में आदित्यों के सिंह व वैश्वानरों के व्याघ्र रूप भूत गण होने का कथन), विष्णुधर्मोत्तर ३.३८.१४(चन्द्रमा के सिंहध्वज होने का उल्लेख), शिव ७.१.२५(काली के वाहन सिंह को शिव भक्ति का वर), ७.१.२५.१०(अम्बिका की कृपा से बुभुक्षा से पीडित व्याघ्र की क्षुधा शान्त होना, व्याघ्र के देवी का भक्त बनने का कथन), ७.१.२६.२(गौरी द्वारा ब्रह्मा से स्वभक्त व्याघ्र के ऊपर कृपा करने का अनुरोध), ७.१.२७.२८(शिव द्वारा देवी के व्याघ्र को सोमनन्दी नामक गण बनाना), स्कन्द १.२.२९.३६(पार्वती के मुख से नि:सृत क्रोध का रूप, काली का वाहन बनना, पांचाल यक्ष का रूप), २.१.१३(कुबेर के मन्त्री का गौतम के शाप से सिंह बनना, ध्यानकाष्ठ मुनि से संवाद से मुक्ति), ३.१.४९.४३(क्रोध की सिंह रूप में कल्पना), ३.३.१७(पाञ्चालराज - पुत्र सिंहकेतु द्वारा शबर को लिङ्ग पूजा विधि का कथन, शबर की शिवभक्ति की पराकाष्ठा का वृत्तान्त), ४.१.४५.३४(सिंहमुखी : ६४ योगिनियों में से एक), ४.२.५७.९०(सिंह तुण्ड विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य – उपसर्ग गजों का हनन), ५.१.३७.१६(सिंहेश्वर लिङ्ग की उत्पत्ति व माहात्म्य – शिव के सिंहनाद से असुरों का मूर्च्छित होना), ५.१.५३.५२(सिंह द्वारा पिशाच का भक्षण करके अस्थियां सुन्दरकुण्ड में डालने से पिशाच का उद्धार), ५.२.५५.११ (सिंहेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, शिव के सिंहनाद से उत्पत्ति, पार्वती के क्रोध से उत्पन्न सिंह द्वारा पूजा, पार्वती का वाहन बनना), ५.२.५५.२८(क्रोध से उत्पन्न सिंह के देवी का प्रिय वाहन बनने का वृत्तान्त, देवी द्वारा सिंहिका रूप धारण, सिंहेश्वर का माहात्म्य), ५.३.२४.३५, ६.१२१(विकृतानन सिंह की वाहन रूप में प्राप्ति के पश्चात् देवी का विन्ध्य पर तप आदि), ७.२.६.१२५(कामासक्त क्रौञ्ची के वध से व्याध के सिंह बनने का कथन), हरिवंश २.१२६.८६, महाभारत कर्ण ७२.३८(कर्ण की खड्गजिह्व, धनुषमुख, शरदंष्ट्र वाले पुरुषशार्दूल से उपमा), सौप्तिक १०.१५ (वही), योगवासिष्ठ ६.१.२९.७६(अज्ञान गज को सिंह का भक्ष्य बनाने का निर्देश), वा.रामायण ३.३१.४६(राम की सिंह से उपमा), ४.४२.१६ (हेमगिरि पर पक्षयुक्त सिंहों व उनके नीडों का कथन), लक्ष्मीनारायण १.१७०, १.४३०, १.५१३, १.५४२, २.३४.७६(कृष्ण द्वारा ऋषियों के सिंह चर्म से जीवित सिंह उत्पन्न करना ), २.६१, २.१२१.९८(, २.१६३, २.२६२.१३, ३.९४.४, ३.२०९, ४.७४, कथासरित् १.६.९९(सात यक्ष के सिंह बनने की कथा), २.२.४१(श्रीदत्त द्वारा सिंह को जीतकर मृगाङ्क खड्ग प्राप्त करना), ४.२.१२५(चित्राङ्गद विद्याधर के सिंह बनने की कथा), ४.३.३२(सिंहपराक्रम द्वारा पात्र के प्रभाव से स्व तथा स्वपत्नी के पूर्व जन्म को जानना), ७.८.४७(सिंह द्वारा नरवाहनदत्त के हय का वध), ८.५.२४(सूर्यप्रभ – श्रुतशर्मा युद्ध में सिंहनाद दैत्य के वरुणशर्मा से युद्ध का उल्लेख), ९.५.२०३(विद्याधर द्वारा राजा के भक्षण को उद्धत सिंह का वध), १०.४.१८(पिङ्गलक सिंह, दमनक व करटक शृगाल व सञ्जीवक वृषभ की कथा), १०.४.९२(शश द्वारा सिंह को कूप में डालने की युक्ति की कथा), १०.४.१४५(मदोत्कट सिंह द्वारा करभ भक्षण की कथा), १०.७.१२५(गोमायु सचिव वाले सिंह द्वारा खर को भक्ष बनाने की कथा) , १०.९.५७(पिता के शाप से सिंह बने वज्रवेग के कूप से उद्धार की कथा), १०.१०.२९(सिंहाक्ष नामक राजा की भार्या द्वारा कृपणों की सेवा व उनके साथ रमण करने का वृत्तान्त), १२.२.२३(सिंह रूपी वेताल का पुरुष में रूपान्तरित होकर मृगाङ्कदत्त की भावी भार्या की सूचना देना), १२.३.१००, १२.५.१२४(वराह द्वारा क्षुधाग्रस्त सिंह परिवार को स्वमांस प्रस्तुत करने की कथा), १२.२९.४०(चार भ्राताओं द्वारा अस्थियों से सिंह को पुनर्जीवित करने पर सिंह द्वारा भ्राताओं के भक्षण की कथा), १२.३१.२५सिंहपराक्रम, १५.१.१३०, १८.३.१२, द्र. क्षत्रसिंह, देवसिंह, नरसिंह, नारसिंही, नृसिंह, नेत्रसिंह, भिल्लसिंह, लल्लसिंह, वरसिंह, हरिसिंह simha/ sinha/ singh/lion
सिंहदंष्ट} कथासरित् ८.७.३६, ९.६.२२,
सिंहबल कथासरित् ८.५.१११, १०.२.१०८,
सिंहल गरुड १.६९.२३(शुक्ति आकर स्थानों में से एक - सैंहलिकपारलौकिकसौराष्ट्रिकताम्रपर्णपारशवाः ॥ कौबेरपाण्ड्यहाटकहेमकमित्याकरास्त्वष्टौ ॥), गर्ग १०.१७.२०(नारीपाल इति ख्यातो राजा तु मंडलेश्वरः ॥ तस्यासीन्मोहिनी भार्या सिंहलद्वीपसंभवा ॥), १०.१८( सिंहलद्वीपनिकटे विचचार यदृच्छया ॥ तृषार्तस्तुरगस्तत्र दृष्ट्वा वापीं जलान्विताम् ॥), वामन ९०.३४(सिंहल द्वीप में विष्णु का उपेन्द्र नाम - उपेन्द्रं सिंहलद्वीपे शक्राह्वे कुन्दमालिनम्।।), स्कन्द १.१.७.३३(सिंहल में सिंहनाथ, विरूपाक्ष आदि लिङ्गों की स्थिति का उल्लेख - कान्त्यामल्लालनाथं च सिंहनाथं च सिंगले॥ ), लक्ष्मीनारायण २.२३२.६५(उत्तरस्यां तु काष्ठायां पञ्चाशद्योजनान्तरे । स्थितं सिंहलनामानं द्वीपं प्रापाऽब्धिमध्यगम् ।।), कथासरित् ९.६.६२(एवं क्रमेण कर्पूरसुवर्णद्वीपसिंहलान् । वणिग्भिः सह गत्वापि तं प्राप वणिजं न सः ।।), ११.१.५१, १२.५.३१९, १२.१४.३२, १८.१.८७, simhala/sinhala/ singhala
सिंहविक्रम कथासरित् १०.३.११७, १२.५.३१९,
सिंहस्थ वराह ७१.४७(गुरु के सिंहस्थ होने पर गोदावरी में स्नान )
सिंहासन भविष्य ४.१३८.८४(सिंहासन मन्त्र), लक्ष्मीनारायण १.११८(हरि सिंहासन , २.१०.५८,
सिंहिका गरुड १.६.४८(विप्रचित्ति - भार्या, पुत्रों के नाम), पद्म १.७, ब्रह्माण्ड २.६, ३.६, भविष्य ३.४.२३.१११(आभीरी - तनया, सिंह मांसाशना, राहु - माता), भागवत ६.१८(हिरण्यकशिपु व कयाधु - पुत्री, विप्रचित्ति - भार्या, राहु - माता), मत्स्य ६.२६(हिरण्यकशिपु- भगिनी, विप्रचित्ति - भार्या, पुत्रों के नाम), १७१, वायु ६८.१७(सिंहिका - पुत्रों के नाम), विष्णु १.१५.१४०, १.२१.१०(सिंहिका - पुत्रों के नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.१२८, स्कन्द ५.२.५५(स्व - पुत्र रूपी सिंह दर्शन के लिए पार्वती द्वारा धारित रूप), ५.३.१९८.८२, हरिवंश १.३.९८(विप्रचित्ति - भार्या, पुत्रों के नाम), वा.रामायण ५.१.१९०(छाया ग्राही जीव, समुद्र लङ्घन के समय हनुमान की छाया पकडना, हनुमान द्वारा वध ), लक्ष्मीनारायण २.१०, द्र. वंश दिति simhikaa/ sinhikaa
सिंहिनी भविष्य ३.३.७,
सिकता स्कन्द ३.१.४५.३(सीता द्वारा स्थापित सैकत लिङ्ग का महत्त्व, हनुमान द्वारा आपत्ति, सिकता लिङ्ग को उखाडने में असफलता आदि), ५.२.४१(?), ६.१७७.५२(५ बालुका पिण्डों से गौरी पूजा का वृत्तान्त ), कथासरित् ७.६.१३, sikataa
सित अग्नि ११५.५७(प्रेतों में सित के जनक, रक्त के पितामह तथा कृष्ण के प्रपितामह होने का उल्लेख), नारद २.४४.२६(विशाल राजा के पिता सित, असित आदि की गया में पिण्ड दान से मुक्ति), मत्स्य १३.९(सित द्वारा मेना व हिमवान - पुत्री एकपर्णा की पत्नी रूप में प्राप्ति का उल्लेख), वराह ७(विशाल राजा का पिता, पिण्डदान द्वारा नरक से मुक्ति), वायु २३.२२(सित कल्प का वर्णन ) sita
सिता नारद १.६६.१३१(प्रमोद गणेश की शक्ति सिता का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.२६२.७०(सीता का सिता नाम से उल्लेख ) sitaa
सिद्ध अग्नि १४४.१०(१६ सिद्धों के नाम), नारद १.६६.१११(पञ्चान्तक की शक्ति सिद्धगौरी का उल्लेख), २.५२.१५(सिद्धों में कपिल की श्रेष्ठता का उल्लेख), २.६९.६(सिद्धनाथ : मत्स्येन्द्रनाथ का उपनाम, चरित्र का वर्णन), पद्म २.२१.३५(सिद्धेश्वर का माहात्म्य), ६.१५९(सिद्धेश्वर का माहात्म्य, कोटराक्षी देवी की स्थिति), ६.१८६.४०(सिद्धसमाधि ब्राह्मण द्वारा गीता के १२वें अध्याय के प्रभाव से राजा बृहद्रथ को जीवित करना, चोरी गए यज्ञीय अश्व को प्राप्त करना), ६.१९६.२८(सिद्ध द्वारा आत्मदेव को पुत्र प्राप्ति हेतु फल प्रदान की कथा), ब्रह्म २.७३(सिद्धतीर्थ वर्णन, रावण द्वारा मन्त्र प्रभाव से सिद्धि प्राप्ति), ब्रह्माण्ड १.२.१७.३५(नील पर्वत पर सिद्धों - ब्रह्मर्षियों के वास का उल्लेख), भागवत ७.८.४५(सिद्धों द्वारा नृसिंह की स्तुति), मार्कण्डेय ७४.३८(सिद्धवीर्य के पुत्र लोल का प्रसंग), स्कन्द १.२.३२?, १.२.३६.१९(पाताल गङ्गा से निर्मित सिद्ध कूप, प्रलम्ब वध की कथा), १.२.५९(चण्डिल द्वारा सिद्धमाता के प्रसाद से सिद्धि प्राप्ति), ४.२.५७.६६(सिद्ध विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.७०.५६(सिद्ध लक्ष्मी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.९७.१६३(सिद्ध कूप का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.२.५९(५९वें सिद्धेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, अश्वशिरा द्वारा जैगीषव्य व कपिल मुनियों की सिद्धियों का दर्शन, सिद्धेश्वर लिङ्ग की पूजा), ५.३.१३५(सिद्धेश्वर तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१४७(सिद्धेश्वर तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१६५(सिद्धेश्वर तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१९८.८३(सिद्धवट में देवी के लक्ष्मी नाम का उल्लेख), ५.३.२३१.१२(७ सिद्धेश्वर होने का उल्लेख), ६.२९(सिद्धेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, वत्स ऋषि को सर्प द्वारा बोध की कथा), ६.३०(सिद्धेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, सिद्धाधिप हंस को पुत्र प्राप्ति), ६.२५२.२२(चातुर्मास में सिद्धों की कङ्कोल वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), ६.२६७(सिद्धेश्वर का माहात्म्य, तुलापुरुष दान का माहात्म्य), ७.१.५२(सिद्धेश्वर का माहात्म्य), ७.१.१३२.२(पीठाधिदेवता सिद्धलक्ष्मी का उल्लेख), ७.१.१७६(सिद्धेश्वर का माहात्म्य), ७.१.२६०(सिद्ध सुरों द्वारा स्थापित सिद्धेश्वर का माहात्म्य), ७.१.३०१(सिद्धेश्वर का माहात्म्य), ७.१.३४४(सिद्ध उदक तीर्थ, जरद्गवेश्वर तीर्थ का कृतयुग में नाम), ७.३.१४(सिद्धेश्वर का माहात्म्य, विश्वावसु द्वारा स्थापना), ७.३.४३(सिद्धेश्वर का माहात्म्य), ७.४.१५(सिद्धेश्वर का माहात्म्य), योगवासिष्ठ ५.८सिद्धगीता, लक्ष्मीनारायण २.१७६.३८(ज्योतिष में योग ), कथासरित् ७.२.११४सिद्धवास, siddha
सिद्धसेन स्कन्द १.२.६३(सुह्रदय का उपनाम), १.२.६४(सिद्धसेन का भीम से युद्ध, शान्ति, चण्डिल नाम प्राप्ति), ६.२०९+ (आनर्त अधिपति, कुष्ठ प्राप्ति पर राज्य से च्युति, नारद द्वारा शङ्ख तीर्थ के माहात्म्य का कथन, ताम्बूल भक्षण से लक्ष्मी का नष्ट होना ) siddhasena
सिद्धाधिप स्कन्द ६.३०(सिद्धाधिप हंस को लिङ्ग अर्चना से पुत्र की प्राप्ति),
सिद्धाम्बिका स्कन्द १.२.६४(सिद्धाम्बिका द्वारा सिद्धसेन को बोध), १.२.६५(सिद्धाम्बिका की अवज्ञा से भीम को अङ्ग वैकल्यता, स्तुति से शान्ति, एकानंशा का रूप ) siddhaambikaa/ siddhambikaa
सिद्धाश्रम गर्ग ६.१६(सिद्धाश्रम की महिमा : कृष्ण वियोग से पीडित राधा द्वारा स्नान, कृष्ण से मिलन), पद्म ६.३०, वराह १४५, वा.रामायण १.२९(विष्णु के तप का स्थान, राम व विश्वामित्र का आगमन ) siddhaashrama/ siddhashrama
सिद्धार्थ कथासरित् ८.१.१२६, ८.२.३७७
सिद्धि गणेश २.६३.१५(देवान्तक असुर की सेना से युद्ध में गणेश द्वारा अणिमा आदि अष्ट सिद्धियों का आह्वान, सिद्धियों द्वारा व्यूह निर्माण, आठ दैत्यों से युद्ध), २.६४.२९(देवान्तक से युद्ध में अष्ट सिद्धियों के विशिष्ट कार्य), २.६९.६(अष्ट सिद्धियों का देवान्तक असुर से युद्ध, सिद्धियों द्वारा देवान्तक की शक्ति अस्त्र को रोकना - ततोऽष्टसिद्धयः शोघ्रमुड्डीय बलवत्तरम् । दध्रुस्तां सहसा शक्तिमानिन्युस्तां विनायकम् ॥), २.८५.२८(सिद्धिदायक गणेश से आग्नेय दिशा की तथा बुद्धीश से प्राची दिशा की रक्षा की प्रार्थना - प्राच्यां रक्षतु बुद्धीश आग्नेय्यां सिद्धिदायकः ।।), २.१०३.१०(सिद्धि व बुद्धि द्वारा कमलासुर के रक्त बीज रूपी रक्त पान का कथन), २.१०९.१०(गणेश के सिद्धि - बुद्धि से विवाह का वृत्तान्त - ज्ञातं धात्रा सिद्धिबुद्धी तस्मै दातुमभीप्सता ।), गरुड १.२१.३(वामदेव शिव की १३ कलाओं में प्रथम - सिद्धिर्ऋद्धिर्धृतिर्लक्ष्मीर्मेधा कान्तिः स्वधा स्थितिः। ॐ हीं वामदेवायैव कलास्तस्य त्रयोदश ।।), गर्ग ५.१५.२६(कृष्ण – राधा की कपिल – सिद्धि से उपमा - कृष्णस्तु साक्षात्कपिलो महाप्रभुः सिद्धिस्त्वमेवासि च सिद्धसेविता ।), देवीभागवत ४.२२.४० (सिद्धि का कुन्ती रूप में अवतरण - कुन्तिः सिद्धिर्धृतिर्माद्री मतिर्गान्धारराजजा ॥ ), १२.६.१५१(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.९१.८२(सद्योजात शिव की प्रथम कला - सद्योजातं प्रपद्यामि सिद्धिः स्यात्प्रथमा कला ।।), ब्रह्म २.५२.९९(सिद्धेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, बृहस्पति द्वारा इन्द्र के राज्य की स्थिरता के लिए शिव की स्तुति - राज्यस्य स्थिरभावाय देवेन्द्रस्य महात्मनः। सिद्धेश्वरस्तत्र देवो लिङ्गं तु त्रिदशार्चितम्।।), ब्रह्मवैवर्त्त ४.७८.३३( २२ सिद्धियों के नाम), ब्रह्माण्ड १.१.५.६१(मनुष्यों में ब्रह्मा के सिद्धि इत्यादि द्वारा स्थित होने का उल्लेख - स्थावरेषु विपर्यासस्तिर्यग्योनिषु शक्तितः ॥ सिद्धात्मानो मनुष्यास्तु पुष्टिर्देवेषु कृत्स्नशः ।), ३.४.१९.३(अणिमादि १० सिद्धियां), ३.४.३६.५०(अणिमादि सिद्धियां), भागवत ६.१८.२ (सिद्धिर्भगस्य भार्याङ्ग महिमानं विभुं प्रभुम्। आशिषं च वरारोहां कन्यां प्रासूत सुव्रताम्।।), ११.१५ (८+ १० सिद्धियों के नाम व लक्षण), लिङ्ग १.८८.९ (८ सिद्धियों वाले ऐश्वर्य का विवेचन), २.२७.१०१(अणिमा, लघिमा आदि व्यूह), वायु १३, शिव २.४.२०(गणेश के सिद्धि व बुद्धि से विवाह, सिद्धि से क्षेम व बुद्धि से लाभ पुत्र की प्राप्ति का कथन - सिद्धेर्गणेशपत्न्यास्तु क्षेमनामा सुतोऽभवत् ।। बुद्धेर्लाभाभिधः पुत्रो ह्यासीत्परभशोभनः ।। ।।), ७.२.३८.९(विघ्नों के शान्त होने पर सिद्धिसूचक उपसर्गों का प्राकट्य - शान्तेष्वेतेषु विघ्नेषु योगासक्तस्य योगिनः ॥ उपसर्गाः प्रवर्तंते दिव्यास्ते सिद्धिसूचकाः ॥), स्कन्द ४.२.७९.१०५(सिद्धेश्वरी पीठ का संक्षिप्त माहात्म्य - तत्र सिद्धेश्वरीपीठे चंद्रेश्वर समीपतः ।। तत्र संनिधिकर्तॄणां सिद्धिः षण्मासतो भवेत् ।।), ५.२.११(सिद्धि प्राप्ति हेतु सिद्धेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, विभिन्न सिद्धियों का कथन), ५.२.५९.५३(अश्वशिरा राजा का जैगीषव्य व कपिल सिद्धद्वय से वार्तालाप), ५.२.७४.५६ (राजस्थलेश्वर के दर्शन से सिद्धियों की प्राप्ति का कथन - अणिमादिगुणाः सर्वे गुटिकासिद्धिरंजनम्॥ खड्गं च पादुकां चैव जलवासं रसायनम्॥), ५.३.१६६(पुत्र आदि प्राप्ति हेतु सिद्धेश्वरी देवी का माहात्म्य), ७.१.१४(सिद्धेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, वालखिल्य आदि ऋषियों द्वारा सिद्धि प्राप्ति), ७.१.५२(कामः क्रोधो भय लोभो रागो मत्सर एव च ॥ ईर्ष्या दंभस्तथाऽऽलस्यं निद्रा मोहस्त्वहंकृतिः ॥ एतानि विघ्नरूपाणि सिद्धेर्विघ्नकराणि तु ॥), लक्ष्मीनारायण १.१०८.२ (विश्वरूप की कन्याओं सिद्धि व बुद्धि द्वारा स्कन्द का वरण न करके गणेश का वरण करने का कथन), १.२९९(विश्वकर्मा की पुत्रीद्वय सिद्धि व बुद्धि के गृहकार्यों का विभाजन, अधिकमास सप्तमी व्रत से गणेश की पतिरूप में प्राप्ति) , १.३८५.४५ (सिद्धि का कार्य – ओष्ठप्ररंजक देना, बुद्धि द्वारा गण्डबिन्दु देना - सिद्धिस्त्वस्यै ददौ गन्धसारं चोष्ठप्ररंजनम् । ब्रुद्धिर्ददौ तु भार्गव्यै गण्डबिन्दु मनोहरम् ।।), २.१७६.६०(ज्योतिष में सिद्धि योग - मंगले शुक्रके त्रयोदशी शनौ चतुर्दशी ।।५९।।गुरौ पञ्चदशी चेत् स्यात् सिद्धियोगः शुभावहः । ), कथासरित् २.५.९१(सिद्धिकरी द्वारा धनप्राप्ति की कथा - अस्ति सिद्धिकरी नाम शिष्या मे बुद्धिशालिनी। तत्प्रसादेन संप्राप्तमसंख्यं हि धनं मया ।।), द्र. दक्ष कन्याएं siddhi
सिनीवाली अग्नि २७४.४(सिनीवाली का पति कर्दम को त्याग सोम के पास जाना), गरुड १.५.१२(स्मृति व अङ्गिरस की ४ कन्याओं में से एक), देवीभागवत ८.१२.२४(शाल्मलि द्वीप की नदी), ब्रह्माण्ड १.२.११.१७(स्मृति व अङ्गिरस - पुत्री), भागवत ४.१.३४, मत्स्य २३.२४(सिनीवाली द्वारा पति कर्दम को त्याग चन्द्रमा की सेवा में जाने का उल्लेख), १४१.४९(सिनीवाली अमावास्या की परिभाषा : सिनीवाली प्रमाण शेष चन्द्रमा का सूर्य में लय होना), लक्ष्मीनारायण ३.१३६.३७(कर्दम - पत्नी सिनीवाली द्वारा लक्ष्मी व्रत के चीर्णन से देवहूति बन कर कपिल को पुत्र रूप में प्राप्त करने का उल्लेख ), द्र. वंश अङ्गिरा sineevaalee/ sinivali
सिन्दूर गणेश २.१२७.१८(ब्रह्मा की जृम्भा से सिन्दूर की उत्पत्ति व ब्रह्मा से वरों व शाप की प्राप्ति का वर्णन), २.१२७.३४(सिन्दूर दैत्य की देह में सुरभि होने का कथन), २.१३७.१४(सिन्दूर द्वारा गजानन के विराट् रूप के दर्शन, गजानन द्वारा मर्दन से मृत्यु), गरुड २.३०.५७/२.४०.५७(मृतक के नेत्रकोणों में सिन्दूर देने का उल्लेख ) sindoora/sindura /sinduura
सिन्धु गणेश २.७३.६३(सिन्धु के जन्म की कथा : माता द्वारा सविता के तेज को धारण करना, तेज से तप्त होने पर सिन्धु तीर पर गर्भ को त्यागना), २.७४.४०(सिन्धु द्वारा तप करके सूर्य से अवध्यत्व वर व अमृत पात्र की प्राप्ति - यस्यांगुष्ठनखाग्रे स्युर्ब्रह्मांडानां हि कोटयः।। स त्वां हनिष्यति विभुरन्यस्मादभयं तव ।), २.७७.५(सिन्धु द्वारा सनक - सनन्दन के पृष्ठ देश पर आघात - पृष्ठभागेऽहनच्चैव सनकं च सनन्दनम्), २.७७.११(सिन्धु द्वारा विष्णु से युद्ध, विष्णु से वर रूप में गण्डकी नगर में बसने की याचना - गण्डकीनगरे मे त्वं परिवारयुतो हरे। सार्वकालं वस विभो नान्यं याचे वरं परम् ।), २.१११.१(गणेश द्वारा सिन्धु के पास नन्दी दूत भेजना), २.११५(सिन्धु का गणेश व उसकी सेना से युद्ध), २.१२३.३०(गुणेश द्वारा परशु से सिन्धु का वध), गर्ग ६.१३.२९(गोमती - सिन्धु संगम में मांस गिरने से दुष्ट वैश्य की मुक्ति), ६.१५.२२(सिन्धुदेश के पापी राजा दीर्घबाहु की गोपीचन्दन के कारण नरक से मुक्ति की कथा), नारद १.५६.७४३(सिन्धु देश के कूर्म के पुच्छ मण्डल होने का उल्लेख), पद्म ३.२४.३(दक्षिण सिन्धु में स्नान से अग्निष्टोम फल प्राप्ति का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१८.४१(प्रतीची गङ्गा का नाम, सिन्धु के तटवर्ती जनपदों के नाम - सीता चक्षुश्च सिन्धुश्च प्रतीचीं दिशमास्थिताः ।), भविष्य ३.२.११.११(सिन्धु द्वारा राजा हेतु दिव्य कन्या प्रस्तुत करना), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५.५०(सिन्धु नदी का गज वाहन - शशकेनापि लौहित्या नदी सिन्धुर्गजेन च ।।), १.२१५.४६(सिन्धु का व्याघ्र वाहन - सिन्धुर्व्याघ्रेण मत्स्येन वितस्ता च तथा ययौ ।।), ३.१२१.३(सिन्धुकूल में वराह की पूजा का निर्देश - सिन्धुकूले वराहं च शालिग्रामे त्रिविक्रमम् ।), शिव १.१२.२१(सिन्धु नदी का संक्षिप्त माहात्म्य), स्कन्द २.२.३०.६२(ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को सिन्धु स्नान की विधि व माहात्म्य), २.२.३०.१४७(सिन्धु स्नान का महत्त्व), ३.३.४.३३(सारमेय के द्वितीय जन्म में सैन्धव नृप बनने का उल्लेख), योगवासिष्ठ ६.२.१५६(सिन्धुसम्बोधन नामक अध्याय), वा.रामायण ७.१००.१०(सिन्धु के दोनों पार्श्वों पर गन्धर्व नगर होने तथा भरत द्वारा उन्हें जीतने का उद्योग), ७.१०१.११(भरत-पुत्र तक्ष के तक्षशिला का तथा पुष्कल के पुष्कलावती का राजा बनने का कथन), लक्ष्मीनारायण ४.८०.१८(राजा नागविक्रम के यज्ञ में सिन्धुज विप्रों के पाठक बनने का उल्लेख - सिन्धुजाः पाठकाश्चासन् सभासदास्तु पूर्वजाः ।। ), कथासरित् १८.३.४(सिन्धु देश के राजा गोपाल का उल्लेख), sindhu
Puraanic and vedic view of Sindhu
Vedic view of Sindhu(by Dr. Tomar)
सिन्धुगुप्त भविष्य ३.२.४
सिन्धुद्वीप अग्नि २१५.४१(आपोहिष्ठ इति ऋचाओं(ऋ. १०.९) के ऋषि का नाम), मत्स्य १२.४५(अम्बरीष- पुत्र, अयुतायु – पिता), वराह २८(पूर्व जन्म में नमुचि, सिन्धुद्वीप के वीर्य से वेत्रासुर का जन्म आदि), ९५(सिन्धुद्वीप के वीर्य से महिषासुर का जन्म), विष्णुधर्मोत्तर ३.१२१.३(सिन्धुकूल में वराह की पूजा का निर्देश), स्कन्द ३.१.३४३१(सिन्धुद्वीप ऋषि द्वारा शृगाल व वानर को मुक्ति हेतु धनुष्कोटि तीर्थ में स्नान का परामर्श ), महाभारत शल्य ३९.३७ (सिन्धुद्वीप द्वारा पृथूदक तीर्थ में तप करके ब्राह्मणत्व की प्राप्ति का उल्लेख - सिन्धुद्वीपश्च राजर्षिर्देवापिश्च महातपाः। ब्राह्मण्यं लब्धवान्यत्र विश्वामित्रस्तथा मुनिः।), अनुशासन ४.४ ( जह्नु – पुत्र, बलाकाश्व – पिता - सिन्धुद्वीपाच्च राजर्षिर्बलाकाश्वो महाबलः।।), sindhudweepa/ sindhudwipa
सिन्धुराज २.२.३०.१४७(सिन्धु स्नान का महत्त्व, सिन्धु की सिन्धुराज संज्ञा), योगवासिष्ठ ३.३१.१२(सिन्धुराज का राजा पद्म से युद्ध), ३.४७, ३.४८(सिन्धुराज का विदूरथ राजा से युद्ध ) sindhuraaja/ sindhuraja
सिन्धुवार वामन १७.६(सिन्धुवार की गणपति से उत्पत्ति - गणाधिपस्य कुम्भस्थो राजते सिन्धुवारकः॥)
सिन्धुसेन ब्रह्म २.९(सिन्धुसेन राक्षस द्वारा यज्ञ को रसातल में लाना, वराह द्वारा सिन्धुसेन का वध),
सीता कूर्म २.३४.११२(रावण द्वारा हरण पर सीता द्वारा आवसथ्य अग्नि की स्तुति), गरुड १.१४२(माण्डव्य ऋषि के शूली आरोपण की कथा में कौशिक ब्राह्मण की पत्नी का सीता बनना), २.१०.३३(सीता द्वारा पितरों के दर्शन का वृत्तान्त), ३.२६.९३(सीताराम शिला का माहात्म्य), देवीभागवत ७.३०(चित्रकूट पीठ में विराजमान देवी का नाम), ९.१६, नारद १.७१, २.६५.५५(सीतावन में केश प्रक्षेपण का माहात्म्य), पद्म १.३३, ५.५५(राम द्वारा सीता त्याग के कारण का कथन), ५.५७(वाल्मीकि आश्रम के पक्षियों के मुख से भावी राम कथा श्रवण, सीता द्वारा पक्षियों का बन्धन होने पर राम से वियोग का शाप), ५.६७(वाल्मीकि आश्रम से राम के अश्वमेध यज्ञ में आगमन), ६.२४३(सीता के विभिन्न रूप), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२७.१७३(सीता द्वारा पति प्राप्ति के लिए पठित गौरी स्तोत्र), ब्रह्माण्ड १.२.१८.४१(प्रतीची गङ्गा का नाम, तटवर्ती देशों के नाम), मत्स्य १२२.७१(कुश द्वीप की नदियों में से एक, अन्य नाम निशा), वराह ८१.१(सीता पर्वत पर महेन्द्र का क्रीडा स्थान व पारिजात वन की स्थिति), वामन ७५.७६(सीता नदी द्वारा स्कन्द को गण प्रदान), वायु ४२.१७(सीता नामक गङ्गा का अवतरण), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५(नन्दी, अज वाहन, जीव जीवक वाहन), १.२२१(सीता की भूमि में प्रविष्टि), शिव २.३.२, स्कन्द २.८.६(सीता कुण्ड का माहात्म्य), २.८.८.७०(सीता द्वारा कामधेनु के दुग्ध से सीताकुण्ड का निर्माण), ३.१.११.१(सीता सर का माहात्म्य : इन्द्र की ब्रह्महत्या से मुक्ति, सीता द्वारा निर्माण का विवरण), ३.१.२२(सीता की शुद्धि करने वाले अग्नि तीर्थ का माहात्म्य), ३.१.४५.३(सीता द्वारा स्थापित सिकता लिङ्ग का महत्त्व), ३.१.४९.२१(सीता द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ३.२.३५.२४(यज्ञ के अन्त में राम द्वारा सीता के आग्रह पर सीतापुर की स्थापना आदि), ५.३.१९८.७७, महाभारत द्रोण १०५.१९(शल्य के ध्वज में सौवर्णी सीता का चिह्न होने का कथन), वा.रामायण २.११८(अनसूया से स्व जन्म व विवाह प्रसंग का कथन, राम वनवास प्रसंग), ५.२०+ (हनुमान द्वारा रावण के भवन में सीता की खोज, अशोक वाटिका में सीता के दर्शन, रावण का सीता को प्रलोभन, सीता द्वारा रावण की निन्दा आदि), ५.२८+ (अशोक वाटिका में सीता का विलाप), ६.४८(सीता के शरीर के लक्षण), ६.८१(इन्द्रजित् द्वारा मायामयी सीता का वध), ६.११६(रावण वध के पश्चात् राम द्वारा अनासक्ति पर सीता की अग्नि परीक्षा), ७.४५+ (प्रजा अपवाद के कारण राम द्वारा सीता का त्याग), ७.९५+ (सीता द्वारा शुद्धि का प्रमाण देना, शपथ ग्रहण, रसातल में प्रवेश), लक्ष्मीनारायण १.१७९, १.३३४, १.३७६, १.४८०, २.२६२.७०(सीता का सिता नाम से उल्लेख ), कथासरित् ९.१७२, द्र. भूगोल seetaa/sita
Comments on Seetaa
सीमन्त भविष्य २.१.१७.१०(सीमन्त कर्म में अग्नि का पिङ्गल नाम )
सीमन्तिनी नारद २.२७.९९(सपत्ना के संदर्भ में सीमन्तिनी का उल्लेख), शिव ३.२६, स्कन्द ३.१.२२? (सीता की अग्नि शुद्धि), ३.३.८(चित्रवर्मा नृप की कन्या व चित्राङ्गद - पत्नी सीमन्तिनी द्वारा मैत्रेय से सौभाग्य वर्धन उपाय की पृच्छा, सोमवार व्रत से वैधव्य से रक्षा), ३.३.९.१४ (सोमवार व्रत प्रभाव से स्त्री वेश धारी सामवान् विप्र का स्त्री बनना ), लक्ष्मीनारायण १.४४८, १.४४९, seemantinee/ seemantini
सीमा अग्नि २५७.१(सीमा विवाद निर्णय का विवेचन), स्कन्द ४.२.६१.७५(सीमा विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य), योगवासिष्ठ ६.२.१७४.२०(सत् - असत् भाव आदि से परे की स्थिति सीमान्त होने का उल्लेख ) seemaa
सीर ब्रह्म १.७९.२०(विप्रों के मन्त्रयज्ञ शील होने, कृषकों के सीरयज्ञशील होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.५७.४७असीरक,
सीरध्वज वायु ८९.१६(ह्रस्वरोमा - पुत्र, भूमि कर्षण से सीता की प्राप्ति), स्कन्द २.२.३०(बलराम का अपर नाम, स्तुति ) seeradhwaja/ siradhwaja
सीरभद्र भविष्य ४.३(वैश्य, नारद व विष्णु का आगमन, कृषि कार्य में दोष ), ४.८२, seerabhadra/ sirabhadra
सीसा गरुड २.४०.३३(प्रेत प्रतिमा के सीसक द्रव्य का उल्लेख), वा.रामायण १.३७.२०(सीसा धातु की गङ्गा द्वारा धारित गर्भ के मल से उत्पत्ति), seesaa
सुकन्या देवीभागवत २.८, ७.२, ७.३+ (सुकन्या के च्यवन से विवाह की कथा), पद्म ५.१४(सुकन्या द्वारा च्यवन ऋषि की आंखों का भंजन), ५.१५(सुकन्या का च्यवन के साथ विमान में विहार), भविष्य १.१९, भागवत ९.३(सुकन्या के च्यवन से विवाह की कथा), मत्स्य १२, स्कन्द ७.१.२८०+ (शर्याति - पुत्री सुकन्या द्वारा च्यवन के तप में विघ्न, विवाह, अश्विनौ से संवाद), ७.१.२८४(सीता सर का माहात्म्य, अश्विनौ का सर में स्नान करके च्यवन का रूप धारण, च्यवन द्वारा स्नान से यौवन प्राप्ति ), लक्ष्मीनारायण १.३९०, sukanyaa
सुकर्ण स्कन्द ३.१.५.१३५(सुकर्णी विद्याधरी का शापवश नाग - पुत्री ललिता बनने व शाप मोचन का वृत्तान्त), ३.१.८.४०(सुकर्ण विद्याधर द्वारा कान्तिमती से बलात्कार, गालव द्वारा सुकर्ण को शाप, अशोकदत्त मनुष्य बनना, मुक्ति ) sukarna
सुकर्मा पद्म २.६१(सुकर्मा द्वारा कुण्डल ब्राह्मण को पितृभक्ति का उपदेश), २.६४+ (सुकर्मा द्वारा पिप्पल से पितृतीर्थ वर्णन के प्रसंग में पूरु द्वारा ययाति से जरा ग्रहण के प्रसंग का कथन), ६.१७६(सुकर्मा द्वारा अतिथि से गीता के द्वितीय अध्याय के माहात्म्य का श्रवण), ब्रह्माण्ड २.३५.३२?, ३.४.१.८९(सुकर्मा नामक देवगण के अन्तर्गत १० नाम), वामन ५७.७२(धाता द्वारा कुमार को प्रदत्त गण), वायु १००.९३(सुकर्मा देवगण के देवों के नाम ), द्र. मन्वन्तर sukarmaa
सुकल भविष्य ३.२.१२(सुकल गन्धर्व द्वारा हरिस्वामी की पत्नी रूपलावण्यिका का हरण), ३.३.३१.८४(सुकल गन्धर्व द्वारा कैकय नृप की कन्या मदनावती को पीडा ) sukala
सुकला पद्म २.४१(कृकल वैश्य की पतिव्रता पत्नी सुकला का इन्द्र से संवाद ), २५३, भविष्य ३.३.३१, sukalaa
सुकाली ब्रह्माण्ड २.३.१०.९६(सुकाल नामक पितरों का वृत्तान्त, सुकाल पितरों की कन्या नर्मदा का कथन), वायु ७३.४६(पितर, वसिष्ठ - पुत्र, शूद्रों द्वारा पूजित, नर्मदा कन्या), शिव २.२.३.५७(वसिष्ठ से सुकाली पितरों की उत्पत्ति का कथन), हरिवंश १.१८.५७(सुकाल : पितरों का गण, वंश वर्णन ) sukaalee/ sukali
सुकुमार नारद १.५०.४४, द्र. भूगोल
सुकृति गर्ग ७.४८.२५(लीलावती पुरी में राजा, सुन्दरी - पिता), मत्स्य १२२.३३(सुकृता : शाकद्वीप की ७ गङ्गाओं में से एक, अपर नाम गभस्ती), स्कन्द २.४.७.५२(विदर्भ का राजा, दीप दान, गृध्र व मार्जार की कथा ), द्र. भूगोल, मन्वन्तर, sukriti
सुकृष मार्कण्डेय २
सुकेतु पद्म ५.२५(सुबाहु राजा का भ्राता, क्रौञ्च व्यूह के मुख में स्थिति, शत्रुघ्न - सेनानी लक्ष्मीनिधि द्वारा वध), ५.२६, ६.२०.४०(सगर के अवशिष्ट ४ पुत्रों में से एक), शिव ५.३८.५४(, स्कन्द ४.२.६५.६(सुकेतु मुनि द्वारा स्थापित आदित्य का संक्षिप्त माहात्म्य ), वा.रामायण १.२५, suketu
सुकेतुमान् पद्म ६.४०, ६.४१(चम्पा - पति राजा सुकेतुमान् द्वारा पुत्रदा एकादशी व्रत से पुत्र प्राप्ति), मत्स्य ८(पश्चिम दिशा के दिक्पाल),
सुकेश देवीभागवत १२.६.१५३(सुकेशी : गायत्री सहस्रनामों में से एक), वराह १०, वामन ११+ (सुकेशि का ऋषियों से नरक, धर्म, सदाचार सम्बन्धी संवाद, सूर्य द्वारा सुकेशि का पतन), १५(सुकेशि के नगर का उत्थान, सूर्य द्वारा पातन), २२, ६८, स्कन्द ४.२.५३.१०६(काशी में सुकेशेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.२०९.५८, वा.रामायण ७.४.३२(विद्युत्केश व सालकटङ्कटा - पुत्र, देववती - पति, माल्यवान् आदि के पिता ), लक्ष्मीनारायण १.५३२.१४(सुकेशी - मित्रकेशी , २.२७, sukesha
सुक्षेत्र द्र. मन्वन्तर
सुख गरुड ३.१६.६३(वायु के सर्वदा सुखी व कलि के सर्वदा दुःखी होने का कथन), ब्रह्माण्ड १.२.१९.१५(नारद पर्वत के सुखोदय वर्ष का उल्लेख), २.३.७.२३३(महासुख : वाली के सामन्त प्रधान वानरों में से एक), भविष्य ३.२.१३(सुखभाविनि : धर्मध्वज वैश्य - पुत्री, चोर के शल्यारोपण काल में चोर पर आसक्ति, दुर्गा प्रसाद से चोर को जीवित करना), भागवत ११.१९.४१, मत्स्य १०१.७३(सुख व्रत), मार्कण्डेय ५०.२८(सिद्धि - पुत्र), वराह ११६.२८(संसार में अध्यात्म द्वारा सुख उत्पन्न करने वाले कर्मों का वर्णन, सुख - दुःख का कारण, सुख रूप कर्म, दुःख रूपी कर्म), विष्णु २४४सुखोदय, स्कन्द ५.१.४३.५७, महाभारत वन ३१३.६९, ३१३.७३, शान्ति २५१.१२(त्याग का उपनिषत् सुख व सुख का स्वर्ग होने का उल्लेख), ३१९.१८(सुख त्याग हेतु तप, योग का निर्देश), लक्ष्मीनारायण २.२४६.७८, ३.३०.४७(सुख के तीन साधनों धर्म, क्षमा, तितिक्षा का उल्लेख ), ३.१६८.८९, कथासरित् ७.९.७३सुखधन, द्र. महासुख sukha
Vedic view of Sukham by Dr. Tomar
सुखखानि भविष्य ३.३.९.४२(ब्राह्मी - पुत्र, पार्षद - अंश, जन्म काल का कथन), ३.३.१५.९(देवी द्वारा सुखखानि की परीक्षा, वीर होने का वर), ३.३.२०.३२(वरुण का अंश, लहर - कन्या मदनमञ्जरी से विवाह), ३.३.३१.६६ (सुखखानि द्वारा कितव दैत्य का वध ) sukhakhaani
सुखद वराह ३६.६, ११६,
सुखा ब्रह्माण्ड ३.४.१(सुखा देवगण के अन्तर्गत २० देवों के नाम), भविष्य १.३१सुखावहा, वराह ७९(सुखा नदी), वायु १००.१८(सुखा देवगण के अन्तर्गत २० देवों के नाम ), लक्ष्मीनारायण ३.१९०.१४(सुखादेवी sukhaa
सुखावती वराह ७९.२२, विष्णु २.८.९, कथासरित् ८.३.२४,
सुगण कथासरित् ८.४.८७,
सुगति मत्स्य १०१.५६(सुगति व्रत), स्कन्द ५.२.६०.२,
सुगन्ध गणेश १.५८.१३(सुगन्धा : कृतवीर्य - पत्नी), पद्म ३.२८.५(सौगन्धिक वन का संक्षिप्त माहात्म्य : पाप से मुक्ति), ३३२, वामन ९०.१२(मलय पर्वत पर विष्णु का सौगन्धि नाम से वास ), स्कन्द २.२.३८.११६, sugandha
सुग्रीव अग्नि ९३.१५(वास्तुमण्डल के देवताओं में से एक), १०५, कूर्म २.४, देवीभागवत ५.२३, ५.२४(शुम्भ - दूत, कालिका/कौशिकी देवी से वार्तालाप), पद्म १.३८(पुष्पक विमान पर आरूढ होकर राम व भरत का किष्किन्धा, लंका आदि में गमन, सुग्रीव व विभीषण आदि से मिलन), ५.१०७.३३(आठ शिर वाले भयानक दैत्य द्वारा वालि व सुग्रीव का भक्षण, वीरभद्र द्वारा राक्षस का वध करके भस्म से दोनों का संजीवन), ६.२४३(सुग्रीव द्वारा राम हेतु पूर्ण कलश का ग्रहण), ब्रह्माण्ड २.३.७.२१५(ऋक्षराज द्वारा भानु के अंश से सुग्रीव व इन्द्र के अंश से वालि पुत्रों को प्राप्त करने का कथन), भविष्य ३.३.१०.४५(पपीहक व हरिणी - पुत्र, कराल रूप में अवतरण), मत्स्य ४६.५(कृत व श्रुतदेवी - पुत्र), २५३.२६(वास्तुमण्डल के देवताओं में से एक), मार्कण्डेय ८५(दुर्गासप्तशती ५.१०२)(शुम्भ व निशुम्भ का दूत), वामन ५५(शुम्भ का विन्ध्यवासिनी देवी को दूत), वायु ३९.३९(गरुड - पुत्र, विकङ्क पर्वत पर वास), विष्णुधर्मोत्तर १.२२३(वाली – सुग्रीव आख्यान), शिव ५.४७.३२(शुम्भासुर के दूत सुग्रीव दानव द्वारा कौशिकी देवी को शुम्भासुर का संदेश देना), स्कन्द २.८.८.७५(पूर्व में सुग्रीव द्वारा स्थापित तथा पश्चिम में हनुमान व विभीषण दवारा स्थापित तीर्थों का संक्षिप्त माहात्म्य), ३.१.४२.३३(रामसेतु पर सुग्रीव तीर्थ का माहात्म्य), ३.१.४४.१९(सुग्रीव के विरूपाक्ष से युद्ध का उल्लेख), ३.१.४९.४०(सुग्रीव द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ३.१.५१.२४(सुग्रीव का प्राची दिशा में स्मरण, अन्य दिशाओं में नल, मैन्द, द्विविद आदि का), ५.१.३(विष्णु के रक्त नर का रूप), वा.रामायण १.१७.१०(सूर्य का अंश), ४.२६(सुग्रीव के राज्याभिषेक का वर्णन), ६.१७.१८(सुग्रीव द्वारा विभीषण - शरणागति विषयक विचार व्यक्त करना), ६.२४.१८(वानर सेना व्यूह में सुग्रीव की जघन प्रदेश में स्थिति), ६.२८.२८(सारण द्वारा रावण को सुग्रीव का परिचय), ६.३७.३२(लङ्का के मध्य में सुग्रीव का विरूपाक्ष से युद्ध), ६.४०(सुग्रीव का रावण से मल्ल युद्ध), ६.४३.१०(सुग्रीव का रावण - सेनानी प्रघस से युद्ध), ६.६७(युद्ध में कुम्भकर्ण द्वारा सुग्रीव का अपहरण व मुक्ति), ६.९६(सुग्रीव द्वारा रावण - सेनापति विरूपाक्ष का वध), ६.९७(सुग्रीव द्वारा महोदर का वध), ७.३४(राम द्वारा सुग्रीव को विदाई ), लक्ष्मीनारायण १.१६६, द्र. वंश ताम्रा, वास्तुमण्डल sugreeva/ sugriva
Comments on Sugreeva
सुग्रीवी मत्स्य ६.३३(कश्यप - कन्या, धर्म - भार्या, अज, अश्व आदि की माता),
सुघटक स्कन्द २.२.१६(विश्वकर्मा - पुत्र, देवशिल्पी, नृसिंह - मूर्ति व देवालय निर्माण),
सुघोष नारद १.११.१५९(सुघोष विप्र द्वारा भद्रमति से पांच हाथ भूमि दान में प्राप्त करने पर सुकृत लोक गमन), स्कन्द २.१.२०(सुघोष विप्र द्वारा भद्रमति को भूमि दान ) sughosha
सुचक्राक्ष वामन ५७.८९(चक्र तीर्थ द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण), ५८.७८(बाणासुर द्वारा सुचक्राक्ष का बन्धन ) suchakraaksha/ suchakraksha
सुचन्द्र गर्ग १.८(नृग - पुत्र, हरि का अंश, कलावती - पति, वृषभानु रूप में अवतरण), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३६(सुचन्द्र का परशुराम से युद्ध), ३.३८(परशुराम द्वारा सुचन्द्र का वध), ४.१४.४५(रम्भा - पिता), ४.१७, ब्रह्माण्ड २.३.३९(कार्तवीर्य सेनानी, परशुराम से युद्ध, आग्नेयास्त्र से मृत्यु की कथा, भद्रकाली का गण बनना ), स्कन्द ३.१.१५, लक्ष्मीनारायण १.४६७, ३.७८, suchandra
सुचरित स्कन्द ३.१.२९.१०(अन्ध सुचरित विप्र द्वारा शिव की स्तुति, सर्व तीर्थ में स्नान से जरा से मुक्ति),
सुचित्ति विष्णुधर्मोत्तर १.१७८(तीसरे मन्वन्तर में इन्द्र),
सुच्छाया द्र. वंश ध्रुव
सुजाता ब्रह्माण्ड १.२.३३.१९(ब्रह्मवादिनी अप्सराओं में से एक )
सुजिह्वा भविष्य १.१३९.३३
सुत स्कन्द ५.१.४३.५७, महाभारत शान्ति २१३.१०(सुत की कृमि संज्ञा)
सुतनु मत्स्य ४६.२१(वसुदेव - भार्या सुतनु के पुत्रों के नाम), स्कन्द १.२.५.५०(नारद द्वारा दानपात्र परीक्षा के संदर्भ में कलाप ग्राम वासी सुतनु ब्राह्मण से प्रश्न करना ) sutanu
सुतपा कूर्म १.१३.१३(वसिष्ठ व ऊर्जा - पुत्र), गर्ग १.११, ७.४२, नारद १.८३.३४(सुतपा ऋषि द्वारा राधा की आराधना), ७.४२.२५(सुतपा द्वारा स्नेह से मोक्ष प्राप्ति का उल्लेख), ब्रह्म १.१२१.३७(सुतपा द्वारा जनार्दन की भक्ति, तप, माया दर्शन की इच्छा, नारद द्वारा मायादर्शन का वृत्तान्त), ब्रह्मवैवर्त्त १.११(सुतपा द्वारा अश्विनौ को शाप), २.५०+ (, २.५३.१८(विरूप - पुत्र, सुयज्ञ व सुतपा का संवाद, विष्णु के स्वरूप का वर्णन), २.५४(सुतपा द्वारा गोलोक का वर्णन, विश्व का वर्णन, कालमान, चतुर्दश मनु, सप्त चिरञ्जीवी, प्रलय वर्णन, लोकों की स्थिति, विप्र पादोदक का माहात्म्य, राधा मन्त्र), ब्रह्माण्ड १.२.११.४१(वसिष्ठ व ऊर्जा - पुत्र), २.३.५.९२(मरुतों में से एक), ३.४.१.१५(विंशति संख्या वाले देवगण), मत्स्य ४८.२३, ४८.५८(सुतपा का विरोचन से साम्य), मार्कण्डेय ७४.२७(मृग का पिता), वायु १००.१४(सुतपा देवगण के २० देवों के नाम), शिव ७.१.१७.३४, हरिवंश १.३१.३२, लक्ष्मीनारायण १.४४२+ (राजा सुयज्ञ द्वारा उपेक्षा पर सुतपा ऋषि द्वारा शाप, सुतपा द्वारा राजा को पत्नीव्रत धर्म का उपदेश ), द्र. मन्वन्तर, वंश वसिष्ठ, sutapaa
सुतल गर्ग ५.१७.३५, वामन ९०.३६(सुतल में विष्णु का कूर्म अचल नाम),
सुतार पद्म ६.१२८+ (सुतारा : चन्द्रकान्त गन्धर्व की पुत्री सुतारा का अग्निप मुनि के शाप से पिशाची बनना, माघ स्नान से मुक्ति, परस्पर विवाह), ब्रह्माण्ड ३.४.१.९०(सुतार देवगण के १० देवों के नाम), लिङ्ग १.२४.१७(द्वितीय द्वापर में मुनि ), शिव ३.४, लक्ष्मीनारायण ३.२१४.१, ३.२२०.२सुतारसिंह sutaara/ sutara
सुतीक्ष्ण शिव ४.२०.१५(सुतीक्ष्ण द्वारा कर्कटी के माता-पिता को भस्म करने का उल्लेख), स्कन्द ३.१.१८.५(अगस्त्य - शिष्य सुतीक्ष्ण द्वारा राम कुण्ड पर तप, राम की स्तुति, सिद्धियों की प्राप्ति), ३.१.२२.१०५(सुतीक्ष्ण द्वारा दुष्पण्य पिशाच की मुक्ति हेतु उद्योग), ३.१.४९.६३(सुतीक्ष्ण द्वारा रामेश्वर की स्तुति), योगवासिष्ठ १.१.४(सुतीक्ष्ण द्वारा अगस्त्य से कर्म या ज्ञान से मोक्ष प्राप्ति उपाय की पृच्छा), वा.रामायण ३.७(सुतीक्ष्ण मुनि की राम से भेंट), ३.११.३६(सुतीक्ष्ण द्वारा राम को अगस्त्य आश्रम का पता बताना ) suteekshna/ sutikshna
Comments on Sutikshna
सुत्रामा द्र. मन्वन्तर
सुदक्ष पद्म ६.२०२.४(सुदक्षणा : दिलीप - भार्या), ब्रह्माण्ड १.२.१३.९४(अजित देवगण में से एक ), भविष्य ३.२.१८, sudaksha
सुदक्षिण पद्म ६.२०२, भागवत १०.६६(काशिराज - पुत्र सुदक्षिण द्वारा पितृ वध के प्रतिकार हेतु कृष्ण पर अग्नि रूप कृत्या का प्रयोग), शिव ३.४२, ४.१९, ४.२०(कामरूप के राजा सुदक्षिण को भीम दैत्य से त्रास, शिव द्वारा मुक्ति ), महाभारत उद्योग १६०.१२२ sudakshina
सुदत्ता हरिवंश २.१०३.११(कृष्ण - भार्या सुदत्ता के पुत्रों के नाम),
सुदर्शन
अग्नि
२५.१४(सुदर्शन
चक्र
पूजा
हेतु
बीज
मन्त्र),
६३.२(सुदर्शन
पूजा
मन्त्र),
२७०,
३०६.६(सुदर्शन
चक्र
मन्त्र
न्यास),
गरुड
१.३३(सुदर्शन
चक्र
पूजा
विधि
व
स्तोत्र),
३.२८.३१(चक्राभिमानी
काम
का
रूप),
गर्ग
४.२३(अष्टावक्र
के
शाप
से
सुदर्शन
विद्याधर
के
अजगर
बनने
की
कथा,
कृष्ण
द्वारा
उद्धार),
६.२१,
देवीभागवत
३.१४+
(ध्रुवसन्धि
व
मनोरमा
-
पुत्र,
शत्रुजित्
अनुज
द्वारा
राज्य
से
च्युति,
भरद्वाज
द्वारा
आश्रम
में
शरण,
शशिकला
से
विवाह,
राज्य
प्राप्ति),
४.११,
नारद
१.७६,
पद्म
३.३.१६(
सुदर्शन
द्वीप
के
२
अंश
पिप्पल
व
२
अंश
शश
होने
का
उल्लेख
-
यथा
हि
पुरुषः
पश्येदादर्शे
मुखमात्मनः।
एवं
सुदर्शनो
द्वीपो
दृश्यते
चक्रमंडलः।
द्विरंशे
पिप्पलस्तस्य
द्विरंशे
च
शशो
महान् ),
४.१७,
६.१००,
६.१२०.६८(सुदर्शन
से
सम्बन्धित
शालग्राम
शिला
के
लक्षणों
का
कथन),
६.२२४,
६.२४२.९६(सुदर्शन
का
शत्रुघ्न
रूप
में
अवतरण
-
अनंतांशेन
संभूतो
लक्ष्मणः
परवीरहा
।
सुदर्शनांशाच्छत्रुघ्नः
संजज्ञेऽमितविक्रमः
।),
ब्रह्म
१.९८,
२.८६,
ब्रह्मवैवर्त्त
४.१६(गन्धवाह
-
पुत्र,
कमल
हरण
से
प्रलम्ब
रूप
में
जन्म),
४.२५,
ब्रह्माण्ड
२.३.४०.६६,
भविष्य
१.१४८,
३.१.२,
३.४.७(सुदर्शन
चक्र
का
निम्बार्क
रूप
में
अवतरण),
३.४.१५.६१(सुदर्शन
का
भरत
रूप
में
अवतरण
-
सुदर्शनश्च
भरतो
हरेः
शङ्खस्ततोऽनुजः
।।),
भागवत
६.८.२३(चक्रं
युगान्तानलतिग्मनेमि
भ्रमत्समन्ताद्भगवत्प्रयुक्तम्।
दन्दग्धि
दन्दग्ध्यरिसैन्यमाशु
कक्षं
यथा
वातसखो
हुताशः।),
१०.३४.१८(सुदर्शन
विद्याधर
द्वारा
शाप
से
अजगर
योनि
की
प्राप्ति,
नन्द
का
बन्धन,
कृष्ण
द्वारा
मुक्ति
-
इत्यनुज्ञाप्य
दाशार्हं
परिक्रम्याभिवन्द्य
च
सुदर्शनो
दिवं
यातः
कृच्छ्रान्नन्दश्च
मोचितः ),
१०.८९.५०(सुदर्शन
चक्र
द्वारा
पश्चिम
दिशा
में
अनन्त
की
खोज
में
कृष्ण
व
अर्जुन
का
मार्गदर्शन-
द्वारेण
चक्रानुपथेन
तत्तमः
परं
परं
ज्योतिरनन्तपारम्।
समश्नुवानं
प्रसमीक्ष्य
फाल्गुनः
प्रताडिताक्षो
पिदधेऽक्षिणी
उभे।),
११.१६.२९(किम्पुरुषानां
हनुमान्विद्याध्राणां
सुदर्शनः
।),
मत्स्य
११४.७५(महाजम्बू
वृक्ष
का
नाम
-
सुदर्शनो
नाम
महान्
जम्बूवृक्षः
सनातनः।
नित्यपुष्पफलोपेतः
सिद्धचारणसेवितः।।),
लिङ्ग
१.२९(सुदर्शन
विप्र
द्वारा
अतिथि
सेवा
हेतु
भार्या
का
समर्पण),
१.९८.१७०(विष्णु
नेत्र
का
चक्र
बनना,
शिव
द्वारा
विष्णु
को
सुदर्शन
चक्र
प्रदान
-
ज्ञात्वा
स्वनेत्रमुद्धृत्य
सर्वसत्त्वाबलंबनम्।।
पूजयामास
भावेन
नाम्ना
तेन
जगद्गुरुम्।। ),
वराह
८८.३(क्रौञ्च
द्वीप
के
वर्षों
में
से
एक,
अपर
नाम
पावक),
वामन
४.४८(वीरभद्र
द्वारा
सुदर्शन
चक्र
का
ग्रहण
-
वीरभद्राय
चिक्षेप
चक्रं
क्रोधात्
खगध्वजः।।
तमापतन्तं
शतसूर्यकल्पं
सुदर्शनं
वीक्ष्य
गणेश्वरस्तु।),
८२.२९(विष्णु
द्वारा
शिव
से
सुदर्शन
चक्र
की
प्राप्ति,
सुदर्शन
का
स्वरूप,
सुदर्शन
द्वारा
शिव
देह
का
खण्डन,
श्रीदामा
का
वध
-
कथं
शंभो
विजानीयाममोघो
मोघ
एव
वा।।
यद्यमोघो
विभो
चक्रः
सर्वत्राप्रतिघस्तव।),
९३(सुदर्शन
चक्र
का
पाताल
में
प्रवेश,
बलि
द्वारा
स्तुति),
वायु
४६.२४(इलावृत
वर्ष
में
सुदर्शन
नामक
जम्बू
वृक्ष
की
महिमा),
विष्णु
१.१९.१९(सुदर्शन
चक्र
द्वारा
शम्बर
असुर
की
मायाओं
को
नष्ट
करके
प्रह्लाद
की
रक्षा
-
ततो
भगवता
तस्य
रक्षार्थं
चक्रमुत्तमम्
।
आजगाम
समाज्ञप्तं
ज्वालामालि
सुदर्शनम्
।),
१.२२.७१(सात्त्विक
अहंकार
रूपी
मन
का
प्रतीक
-
चलत्स्वरूपमत्यन्तं
जवेनान्तारितानिलम्
।
चक्रस्वरूपं
च
मनो
धत्ते
विष्णुकरे
स्थितम्
॥),
शिव
२.५.२४.२६(जलन्धर
वध
हेतु
शिव
द्वारा
पदाङ्गुष्ठ
से
सुदर्शन
चक्र
की
रचना
का
कथन
-
कोपं
कृत्वा
परं
शूली
पादांगुष्ठेन
लीलया।।
महांभसि
चकाराशु
रथांगं
रौद्रमद्भुतम्।।),
४.१३(दधीचि
-
पुत्र
व
दुकूला
-
पति
सुदर्शन
द्वारा
दुष्कर्म
से
जडत्व
प्राप्ति,
चण्डी
पूजा
से
मुक्ति),
४.३४.२२(दैत्य
वध
हेतु
शिव
द्वारा
विष्णु
को
सुदर्शन
चक्र
प्रदान
-
बभ्राम
सकलां
पृथ्वीं
तत्प्रीत्यै
सुदृढव्रतः
।।तदप्राप्य
विशुद्धात्मा
नेत्रमेकमुदाहरत्
।।),
स्कन्द
२.२.१९.२१(नीलाभ्रश्यामलं
विष्णुं
शंखेंदुधवलं
बलम्
।।
रक्तं
सुदर्शनं
चक्रं
सुभद्रां
कुंकुमारुणाम्
।। ,
२.२.२७.६३(ब्रह्मा
द्वारा
सुदर्शन
चक्र
की
स्तुति,
इन्द्रद्युम्न
द्वारा
व्यूह
चतुष्टय
प्रतिष्ठा
का
प्रसंग
-
सुदर्शन
महाज्वाल
कोटिसूर्यसमप्रभ।।
अज्ञानतिमिरांधानां
वैकुण्ठाध्वप्रदर्शकः।।),
२.२.२८.४५(सुदर्शन
चक्र
:
अथर्ववेद
का
स्वरूप
-
यजुर्मूर्त्तिस्त्वियं
भद्रा
चक्रमाथर्वणं
स्मृतम्
।।),
३.१.३,
३.१.४(सुदर्शन
द्वारा
दुर्दम
की
मुक्ति,
दुर्दम
द्वारा
स्तुति),
३.१.८(सुदर्शन
विद्याधर
द्वारा
कान्तिमती
से
बलात्कार,
गालव
से
शाप
की
प्राप्ति),
३.१.१६(स्वनय
राज
-
पुरोधा
सुदर्शन
द्वारा
दीर्घतमा
को
आमन्त्रित
करना),
३.१.२३,४.१.२०.७६(सुदर्शन
चक्र
द्वारा
ध्रुव
की
भूतालि
से
रक्षा),
७.१.१४८.१०(सुनन्दा
-
पति,
पूर्व
जन्म
में
चोर,
शिवरात्रि
में
अपराध
से
कपाल
छेदन),
हरिवंश
१.४८,
२.८५,
महाभारत
सौप्तिक
१२,
वा.रामायण
४.४०,
६.६९,
लक्ष्मीनारायण
१.११४,
१.४११.५०(विष्णु
द्वारा
राजा
अम्बरीष
को
सुदर्शन
चक्र
प्रदान
करना,
सुदर्शन
चक्र
द्वारा
अम्बरीष
की
अतिवृष्टि,
तम
आदि
से
रक्षा
का
वृत्तान्त),
१.४३५,
१.५३२.१५(मिश्रकेशी
व
दुर्जय
-
पुत्र
),
३.१३,
३.१३०,
कथासरित्
८.७.५५,
९.२.३०९,
sudarshana
सुदर्शना स्कन्द ५.३.३३(दुर्योधन व नर्मदा - कन्या, अग्नि द्वारा भार्या रूप में प्राप्ति की कथा), ६.२७१(भृगु - कन्या, घण्टक द्वारा बलात्कार ), लक्ष्मीनारायण ३.१३.३७सुदर्शिनी sudarshanaa
सुदाम वा.रामायण १.७०(सुदामन : जनक - मन्त्री, दशरथ को सीता विवाह में आने का आमन्त्रण), लक्ष्मीनारायण ३.२१५
सुदामा गर्ग ५.६(मथुरा में कृष्ण द्वारा सुदामा माली पर कृपा), ५.१०.१८(सुदामा माली के संदर्भ में पूर्व जन्म में हेममाली का वृत्तान्त), ६.२२(सत्या - पति सुदामा ब्राह्मण द्वारा धन प्राप्ति हेतु कृष्ण से मिलन को द्वारका गमन की कथा), देवीभागवत ९.१७, पद्म ६.२५२(सुदामा का कृष्ण से मिलन, कृष्ण द्वारा सत्कार), ब्रह्मवैवर्त्त २.१५, २.४९(राधा व सुदामा का परस्पर शाप), ४.५, भागवत १०.४१(मथुरा में सुदामा माली द्वारा कृष्ण को पुष्प भेंट, वर प्राप्ति), १०.८०+ (कृष्ण - सखा, धन के लिए द्वारका गमन, कृष्ण से वार्ता, ऐश्वर्य प्राप्ति), मार्कण्डेय ११०, वामन २२, शिव २.५.१३, लक्ष्मीनारायण १.३३५+, कृष्णोपनिषद १६(शम का रूप), २४(नारद मुनि का रूप ) sudaamaa/ sudama
सुदास पद्म ६.१३७, ब्रह्माण्ड २.३.६३.१७६(ऋतुपर्ण - पुत्र, इन्द्र - सखा, सौदास - पिता), भागवत ९.९, मत्स्य ५०.१५(चैद्यवर - पुत्र, सोमक/अजमीढ - पिता), वायु ८८.१७६(ऋतुपर्ण - पुत्र, हंसमुस नाम, सौदास - पिता), हरिवंश १.१५, वा.रामायण ०.२(गौतम - शिष्य सुदास ब्राह्मण द्वारा गुरु के अनादर से राक्षसत्व प्राप्ति, गर्ग से रामायण कथा श्रवण से उद्धार, सोमदत्त उपनाम ) sudaasa/ sudasa
सुदिन द्र. अह
सुदुघा लक्ष्मीनारायण १.३२०, १.३८५.५५(सुदुघा का कार्य- पुष्टिदायी दुग्धवटिका देना), ४.१०१.११३(सुदुघा के पुत्र पयोनिधि व सुता साध्वीव्रता का उल्लेख),
सुदेव पद्म ५.११७, भविष्य ३.२.१४(सुदेव विप्र की चन्द्रावली पर आसक्ति, भोग, मन्त्र प्रभाव से स्त्री व पुरुष रूप धारण), मार्कण्डेय ११४(राजा, नल का सखा, स्वयं को वैश्य बताना ), वामन ६३, वा.रामायण ७.७८, लक्ष्मीनारायण १.३२१, sudeva
सुदेवा .पद्म २४२, २.४६(इक्ष्वाकु - पत्नी, मरणासन्न शूकरी से पूर्व जन्म के वृत्तान्त का श्रवण), २.४७(वसुदत्त - कन्या, शिवशर्मा - पत्नी, पति वञ्चना पर पति द्वारा त्याग, जन्मान्तर में शूकरी), वामन ७२(सुनाभ - पुत्री, सवन - पत्नी, मरुत उत्पत्ति का प्रसंग), हरिवंश २.१०३.१७(कृष्ण - भार्या सुदेवा के पुत्रों के नाम ) sudevaa
सुदेवी भागवत २.७.१०(नाभि व सुदेवी से ऋषभ की उत्पत्ति का कथन), मत्स्य १७१.४८(धर्म व सुदेवी से उत्पन्न ८ वसुओं के नाम),
सुदेष्णा ब्रह्माण्ड १२७४, मत्स्य ४८.६७(बलि - पत्नी, दीर्घतमा से अङ्ग, वङ्ग आदि पुत्रों की उत्पत्ति की कथा), वायु ९९.६८(बलि - भार्या, दीर्घतमा से पुत्रों की उत्पत्ति की कथा ) sudeshnaa
सुदेहा शिव ३.४२, ४.३२,
सुद्युम्न देवीभागवत ०.३(नवरात्र में देवीभागवत श्रवण से सुद्युम्न का स्थाई रूप से पुरुष बनना), १.१०, १.१२(शिव वन में प्रवेश से सुद्युम्न के इला बनने का प्रसंग, जगदम्बा प्रसाद से मुक्ति), पद्म १.८, ब्रह्म १.५(पुरुषत्व प्राप्ति के पश्चात् इला का नाम), ब्रह्माण्ड १.५?, ३.६०, भविष्य ४.१७७(सुद्युम्न राजा द्वारा ब्रह्माण्ड दान से क्षुधा से मुक्ति), भागवत ९.१(इला के स्त्री से पुरुष, पुन: स्त्री होने की कथा), मत्स्य ४, १२, मार्कण्डेय ११३, वराह १०, ३६, वायु ८३, ८५(इडा से सुद्युम्न व पुन: इडा आदि बनने की कथा), स्कन्द ५.१.१४(सुदर्शना - पति, पुत्र प्राप्ति हेतु दाल्भ्य से परामर्श, चतु:समुद्र स्नान से पुत्र की प्राप्ति ), ५.२.७४.६२, हरिवंश १.१०, लक्ष्मीनारायण २.१८५.७१, द्र. वंश ध्रुव sudyumna
Esoteric aspect of the story of Sudyumna and Ilaa
सुधना वराह १५५(सुधन : अक्रूर तीर्थ में वैश्य, नृत्य के पुण्य दान से ब्रह्मराक्षस की मुक्ति ), लक्ष्मीनारायण १.३४५, २.७३, sudhanaa
सुधन्वा अग्नि १९, देवीभागवत ५.१६, ६.२८, मत्स्य ५०, वराह १५५, विष्णु १.२२.११, हरिवंश १.४.१८(वैराज - पुत्र, पूर्व दिशा के दिक्पाल), वा.रामायण १.७१, sudhanvaa
सुधर्मा गणेश १.१.३१, १.२.२१(राजा सोमकान्त की भार्या सुधर्मा का पति के साथ वन गमन), गर्ग ९.१, नारद १.४०(सुधर्म द्वारा इन्द्र को अतीत व भविष्य के मन्वन्तरों के देवगण, इन्द्रों व ऋषियों का वर्णन), पद्म ६.३०(रूपसुन्दरी - पति राजा सुधर्मा के पूर्व जन्म का वृत्तान्त, पूर्व जन्म में मार्जार, दीप प्रबोधन से राजा बनना), ब्रह्माण्ड ३.४.१.५९(मेरु सावर्णि मनु के १२ पुत्रों के गण का नाम), भागवत १०.७०.१७(कृष्ण की सुधर्मा सभा की महिमा), मत्स्य ८(पूर्व दिशा के स्वामी), वामन ७९(सुधर्मा वणिक् का प्रेत से संवाद, प्रेत की मुक्ति), विष्णु ५.२१.१४(कृष्ण के आदेश पर वायु द्वारा द्वारका में सुधर्मा सभा की स्थापना), शिव ४.३३(सुदेहा - पति सुधर्मा द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु घुष्मा से परिणय आदि), स्कन्द ३.३.२०(भद्रसेन - पुत्र सुधर्मा की रुद्राक्ष में रुचि, रुद्राध्याय पठन से पुन: संजीवन, पूर्व जन्म में मर्कट), हरिवंश २.५८(वायु द्वारा इन्द्र की सुधर्मा सभा की द्वारका में स्थापना), लक्ष्मीनारायण ३.१५६.९२(सुधर्मा विप्र का यज्ञादि से देवसावर्णि मनु बनना ), कथासरित् ६.३.१३, द्र. मन्वन्तर sudharmaa
सुधा नारद १.९१.८५(सद्योजात शिव की अष्टम कला), वामन ९०.२५(मगध में विष्णु का सुधापति नाम ), लक्ष्मीनारायण १.३८५.३५(सुधा का कार्य), ४.१०१.१२३, ३.३३.१८सुधाक्षी, ३.२२७.४२सुधामर, द्र. हेमसुधा sudhaa
सुधामा ब्रह्माण्ड १.२.३६.२९(तृतीय मन्वन्तर में सुधामा देवगण के १२ देवों के नाम), वायु ७०.१६(रजस - पुत्र, पूर्व दिशा के अधिपति ), विष्णु २.८.८३, शिव ३.४, लक्ष्मीनारायण ४.१०१.८३, द्र. मन्वन्तर sudhaamaa/ sudhama
सुधि द्र. मन्वन्तर
सुधूम्राक्ष हरिवंश ३.५८.७७(सुधूम्राक्ष रुद्र का केशी से युद्ध),
सुनन्द पद्म ६.१८५.१९(सुनन्द ब्राह्मण द्वारा तीर्थ यात्रा काल में गीता के ११वें अध्याय के प्रभाव से ग्रामवासी राक्षस को मुक्त करना ), मार्कण्डेय ११३.१८(सुनन्दं नाम मुशलं त्वष्ट्रा यन्निर्मितं पुरा । तज्जहार स दुष्टात्मा तेन हन्ति रणे रिपून् । ।), शिव ३.१.१०(सद्योजात शिव का माहात्म्य - सुनन्दो नन्दनश्चैव विश्वनन्दोपनन्दनौ ।। शिष्यास्तस्य महात्मानो यैस्तद्ब्रह्म समावृतम्।।), स्कन्द २.४.७.८६(सुनंदोपि महाराज आश्चर्यं समुपागतः ।। चकार विधिना मासं चंद्रशर्मोक्तमार्गतः ।।), कथासरित् १२.६.९४(सुनन्दनाभिधानाय राज्यं भूनन्दनो ददौ ।।), १८.३.४(लाटो विजयवर्मायं काश्मीरोऽयं सुनन्दनः ।।), sunanda
सुनन्दन गर्ग ७.२०.३३(प्रद्युम्न - सेनानी, सञ्जय से युद्ध - तथा हि युयुधे युद्धे संजयेन सुनंदनः ॥), १०.३६(कृष्ण - पुत्र सुनन्दन द्वारा कुनन्दन का वध), १०.३८.३(शिव के गण नन्दी द्वारा सुनन्दन का वध - त्वरं जघान शृङ्गेण संमुखस्थं सुनन्दनम् ॥ शृङ्गेण भिन्नहृदयः पपात पंचतां गतः ॥) sunandana
सुनन्दा पद्म १.४६.८१, ५.७२.६(सुनन्द - पुत्री, कृष्ण - पत्नी, पूर्व जन्म में उग्रतपा मुनि), भागवत ८.१, स्कन्द १.२.६२.४१, ५.२.३७.२१, ७.१.१६(सुनन्दा मातृका गण द्वारा श्रीमुख नामक पाताल विवर की रक्षा), ७.१.१४८, ७.३.३१(इन्द्रसेन - पत्नी, पति की मृत्यु के मिथ्या समाचार से मरण), लक्ष्मीनारायण १.२६५.११(सङ्कर्षण की शक्ति सुनन्दा का उल्लेख), २.९४.७५(संकर्षण - पत्नी ), ४.१०१.१२१, sunandaa
सुनय ब्रह्माण्ड १.२.१३.९३(अजित देवगण में एक), स्कन्द ३.३.१२.२५(पद्माकर - पुत्र व भद्रायु राजपुत्र के सखा सुनय का युद्ध में सारथी बनना - तमेव रथमास्थाय वैश्यनंदनसारथिः ।। ), ३.३.१३.५४(एष वैश्यसुतो राजन्सुनयो नाम मत्सखा ।। अहमस्य गृहे रम्ये वसामि सहमातृकः ।।) sunaya
सुनाभ वामन ५१, ५८, ७२, वायु ३९.५६(गरुड - पुत्र, श्वेतोदर पर्वत पर वास), स्कन्द ७.४.१७.८, वा.रामायण ५.५७(पर्वत, मैनाक का नाम?, हनुमान द्वारा स्पर्श ) sunaabha/ sunabha
सुनारी लक्ष्मीनारायण ४.३२
सुनीति भविष्य ४.६९.६१(अन्य नाम शुघ्नी), भागवत ४.१२.३२, मार्कण्डेय ११६, विष्णु १.१२.१४(ध्रुव - माता, माया निर्मित सुनीति द्वारा ध्रुव को तप से विरत करने का प्रयास), स्कन्द ४.१.२०.५३(मायामयी सुनीति द्वारा ध्रुव को तप से विरत करने का प्रयास ), ५.२.६३.२, suneeti
सुनीथ हरिवंश २.४८(रुक्मिणी स्वयंवर में सुनीथ द्वारा कृष्ण के प्रभाव का वर्णन ), कथासरित् ८.२.४८, ८.३.१३०, ८.७.३१, ८.७.४९, suneetha
सुनीथा पद्म २.३०(मृत्यु - कन्या सुनीथा द्वारा तपोरत सुशङ्ख का ताडन, शाप प्राप्ति, अङ्ग से परिणय ), भागवत ४.१३.१७, मत्स्य ४, द्र. वंश ध्रुव suneethaa
सुनेत्र वामन ९०.३१(सैन्धवारण्य में विष्णु की सुनेत्र नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), कथासरित् ८.५.१०८
सुन्द पद्म ६.१२६.४२(सुन्द - उपसुन्द की तिलोत्तमा पर आसक्ति, परस्पर युद्ध से मरण), ब्रह्माण्ड २.३.५.३५(ह्राद-पुत्र, ताडका –पति, मारीच व मूक – पिता), २.३.१३.४७(हयशीर्ष तीर्थ में सुन्द - निसुन्द श्राद्ध का निर्देश), वराह ३६.५(सुन्द का मुचुकुन्द के रूप में जन्म का उल्लेख), वायु ६७.७१(सुन्द-उपसुन्द का निसुन्द के पुत्रद्वय रूप में उल्लेख, ताडका से मारीच पुत्र की उत्पत्ति), स्कन्द ५.३.१५५.३०(सुन्दोपसुन्द के पुत्रद्वय का काकद्वय बनना, काकद्वय द्वारा चाणक्य का वंचन, चाणक्य द्वारा यम के पास प्रेषण आदि), ७.१.२१.२७(ह्रद-पुत्र, ताडका से मारीच पुत्र प्राप्ति का उल्लेख), वा.रामायण १.२४.२६(मलद-कारूष क्षेत्र में ताडका यक्षी व सुन्द से मारीच की उत्पत्ति), कथासरित् ३.१.१३५(पाण्डवों-द्रौपदी के संदर्भ में सुन्द-निसुन्द के तिलोत्तमा के कारण नष्ट होने का आख्यान), ८.२.३८२(सुन्द-उपसुन्द के जन्मान्तर में प्रभास के सचिव बनने का उल्लेख), द्र. निसुन्द sunda
सुन्दर गणेश १.७४.१०(शार्ङ्गधर - कन्या व चित्र - भार्या सुन्दरा की वेश्या कर्म में प्रवृत्ति, भर्ता की हत्या, जन्मान्तर में चाण्डाली बनना), गरुड १.१२४(सुन्दरसेन राजा का शिवरात्रि व्रत से शिव गण बनना), पद्म ४.२६.१८(सुन्दर पिशाच का वीर विक्रम की पुत्री से विवाह), वराह ३६, स्कन्द २.१.२४(वीरबाहु - पुत्र सुन्दर गन्धर्व का वसिष्ठ के शाप से राक्षस होना, पद्मनाभ पर आक्रमण, चक्र द्वारा मुक्ति), २.७.९(राजा, जन्मान्तर में काम), ५.१.५३.२(सुन्दर कुण्ड की उत्पत्ति, माहात्म्य, पिशाच का मोचन ), लक्ष्मीनारायण १.४०४.३८, कथासरित् ३.६.११७, ९.१.१५, ९.२.११, १२.२४.४१, sundara
सुन्दरी गर्ग २.२०(सुन्दरी गोपी द्वारा राधा को चूडामणि भेंट), ७.४८.२५(सुकृति राजा की कन्या सुन्दरी द्वारा स्वयंवर में प्रद्युम्न का वरण), पद्म १.५०.९८(राजकुमार - भार्या, अद्रोह गृहस्थ द्वारा रक्षण), वराह २१५, स्कन्द १.१.७(काशिराज - पुत्री, उद्दालक से संवाद), ५.२.८१.५९, वा.रामायण ७.५.३५(नर्मदा - पुत्री, माल्यवान् - पत्नी, ७ पुत्रों के नाम), लक्ष्मीनारायण १.२६५.१३(जनार्दन की शक्ति सुन्दरी का उल्लेख ), कथासरित् २.२.१४४, ८.२.३३६, वास्तुसूत्रोपनिषद ६.२१टीका(रुद्र की २आकर्षण शक्तियों में से एक), sundaree/sundari