सङ्क्षिप्त श्रीयन्त्रपूजा

सङ्क्षिप्त श्रीयन्त्रपूजा

जो साधक विस्तार से पूजादि नहीं कर पाएं उनके लिए आचार्यों ने अनेक प्रकार की लघु-पूजा विधियां भी बनाई हैं जिनमें कलश और शङ्ख (सामान्यार्घ्य पात्र) स्थापन करके निम्नलिखित पद्धति से अर्चन करना चाहिए -- आचम्य प्राणानायम्य देशकालौ च सङ्कीर्त्य । श्रीगुरुं महागणपतिं भगवतीं महात्रिपुरसुन्दरीं च प्रणम्य पूजयेत् । ध्यानम्- बालार्कारुण-तेजसं त्रिनयनां रक्ताम्बरोल्लासिनीं, नानालङ्कृतिराजमानवपुषं बालोडुराड्-शेखराम् । हस्तैरिक्षुधनुः सृणीसुमशरान् पाशं मुदा बिभ्रतीं, श्रीचक्रस्थितसुन्दरीं त्रिजगतामाधारभूतां भजे ॥ इति ध्यात्वा मानसोपचारैः सम्पूजयेत् ततश्च- १. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अं आं सौः चतुरस्रत्रयात्मकत्रैलोक्यमोहन- चक्राधिष्ठात्र्यै अणिमाद्यष्टाविंशतिशक्तिसहितप्रकटयोगिनीरूपायै त्रिपुरादेव्यै नमः । २. ॐ त्रिवृत्तात्मकत्रिवर्गसाधकचक्राधिष्ठात्र्यै कालरात्र्या- दिसहितमातृकायोगिनीरूपायै त्रिपुरेशिनी देव्यै नमः । ३. ॐ ऐं क्लीं सौः षोडशदलपद्मात्मकसर्वाशापरिपूरक- चक्राधिष्ठात्र्यै कामाकर्षिण्यादि षोडशशक्तिसहितगुप्तयोगिनीरूपायै त्रिपुरेश्वरीदेव्यै नमः । ४. ॐ ह्रीं क्लीं सौः अष्टदल पद्मात्मकसर्वसङ्क्षोभणचक्राधिष्ठात्र्यै अनङ्गकुसुमाद्यष्टशक्ति सहितगुप्ततरयोगिनीरूपायै त्रिपुरसुन्दरीदेव्यै नमः । ५. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं हैं हक्लीं हस्त्रीः चतुर्दशारात्मक-सर्वसौभाग्य- दायक चक्राधिष्ठात्र्यै सर्वसङ्क्षोभिण्यादि चतुर्दशशक्तिसहित- सम्प्रदाययोगिनीरूपायै त्रिपुरावासिनीदेव्यै नमः । ६. ॐ हसैं हस्कलीं हस्सौः बहिर्दशारात्मक सर्वार्थसाधकचक्रा- धिष्ठात्र्यै सर्वसिद्धिप्रदादि दशशक्तिसहितकुलोत्तीर्णयोगिनीरूपायै त्रिपुराश्रीदेव्यै नमः । ७. ॐ ह्रीं क्लीं व्लें अन्तर्दशारात्मकसर्वरक्षाकरचक्राधिष्ठात्र्यै सर्वज्ञादिदशशक्तिसहित निगर्भयोगिनीरूपायै त्रिपुरमालिनीदेव्यै नमः । ८. ॐ ह्रीं श्रीं सौः अष्टारात्मक सर्वरोगहर चक्राधिष्ठात्र्यै वशिन्याद्यष्टशक्तिसहितरहस्ययोगिनीरूपायै त्रिपुरासिद्धादेव्यै नमः । ९. ॐ हस्रैं हस्कल्रीं हस्रोः त्रिकोणात्मक सर्वसिद्धिप्रदचक्राधिष्ठात्र्यै कामेश्वर्यादि त्रिशक्तिसहितातिरहस्ययोगिनीरूपायै त्रिपुराम्बादेव्यै नमः । १०. ॐ (मूलमन्त्रः) बिन्द्वात्मकसर्वानन्दमयचक्राधिष्ठात्र्यै षडङ्गायुधदशशक्तिसहितपरापरातिरहस्ययोगिनीरूपाय महात्रिपुरसुन्दरी देव्यै नमः । इसके पश्चात् नैवेद्यादि विधि करके नित्यकृत्य पूर्ण कर लें । रुद्रयामल में तो यहां तक लिखा है कि- आराधनाऽसमर्थश्चेद् दद्यादर्चन-साधनम् । यो दातुं नैव शक्नोति कुर्यादर्चन-दर्शनम् ॥ अर्थात्-आराधना में समर्थ न होने पर पूजा की सामग्री प्रदान करे और यदि वह भी नहीं बन सके तो जहां पूजा होती हो, वहीं श्रद्धापूर्वक बैठकर पूजा का दर्शन करे । वस्तुतः यह महाविद्या ``ब्रह्म-विद्या'' है । इसकी १. स्थूल, २. सूक्ष्म और ३. परा के रूप में त्रिविध उपासना होती है । पराशक्ति ही विज्ञानानन्दघन ब्रह्म है । विज्ञानानन्दघन ब्रह्म का तत्त्व अत्यन्त सूक्ष्म एवं गुह्य होने के कारण शास्त्रों में उसे नाना प्रकार से समझाने का प्रयत्न गुआ है । इति सङ्क्षिप्त श्रीयन्त्रपूजा समाप्ता । Proofread by Aruna Narayanan
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% Proofread by          : Aruna Narayanan
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% Latest update         : December 24, 2021
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% Site access           : http://sanskritdocuments.org

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