श्रीगिरिधारिशरणाष्टकस्तोत्रम्
यशस्वी गिरिधारी च ब्रह्मचारी महाव्रती ।
वृन्दावननिवासी स जयतीह सदा भुवि ॥ १॥
जिनका सुयश सर्वत्र परिव्याप्त हैं जो प्रब्रल व्रतानुगामी
है । वृन्दावन में निवास करने वाले ब्रह्मचारी श्रीगिरिधारीशरणजी की इस जगत् में सदा ही उत्तम जय हो ॥ १॥
निम्बार्कसम्प्रदायी वै युग्माऽङ्घ्रिसमुपासकः ।
जयति सर्वदा प्रेष्ठो राधामाधवजापकः ॥ २॥
श्रीनिम्बार्क सम्प्रदाय के परम अनुयायी श्रीयुगलराधामाधव के श्रीचरणकमलों की उपासना में अभिरत और उन्हीं का सतत जाप करने वाले अतिश्रेष्ठ ब्रह्मचारी श्रीगिरिधारीशरणजी की सदा जय हो ॥ २॥
जयपुरनृपश्रेष्ठ-श्रीमाधोसिंहसद्गुरुः ।
सद्भिश्चारु सदा पूज्यो जयति व्रजभावुकः ॥ ३॥
जयपुर के महाराजा सवाई श्रीमाधवसिंहजी के जो गुरु रहे है और सन्त-महात्माओं के द्वारा भली प्रकार प्रपूजित रहे है । व्रजधाम में भावना रखने वाले ब्रह्मचारी श्रीगिरिधारीशरणजी की सदा जय हो ॥ ३॥
सङ्कल्पसिद्धमेधावी विद्वज्जनप्रपूजितः ।
ऊर्ध्वपुण्ड्रधरो विप्रो जयत्यानन्दसम्प्रदः ॥ ४॥
परम मेधावी सङ्कल्पसिद्ध विद्वजनों के द्वारा प्रपूजित
गोपीचन्दन से ऊर्ध्वपुण्ड्र तिलक धारण करने वाले सबको
आनन्द देने में तत्पर विप्रवंशोद्भव ब्रह्मचारी श्रीगिरिधारी-शरणजी की जय हो ॥ ४॥
राधाकृष्णपदाम्भोज-ध्यानलीनो वरप्रदः ।
गोपालमन्त्रराजस्य जापको जयतीह च ॥ ५॥
श्रीराधाकृष्ण भगवान् के चरणारविन्दों में ध्यानमग्न उत्तम वरदायक श्रीगोपालमन्त्रराज के जाप करने में तत्पर एवंविध ब्रह्मचारी श्रीगिरिधारीशरणजी की इस जगत् में जय-जयकार हो ॥ ५॥
यमुनाऽम्भः सदासेवी यमुनास्नानतत्परः ।
प्रपन्नरक्षको भक्तो जयति हरिचिन्तकः ॥ ६॥
श्रीयमुनाजी के निर्मल जल का पान करने वाले और श्रीयमुनाजी में ही स्नान करने में लगे हुए और शरणागत जनों की रक्षा करने वाले श्रीहरि के चिन्तन में निमग्न परमभक्त ब्रह्मचारी श्रीगिरिधारीशरणजी की सब समय जय हो ॥ ६॥
माधवमन्दिरे दिव्ये धाम्नि वृन्दावने सदा ।
मन्त्रानुष्ठानसम्पन्नो जयति खलु पावनः ॥ ७॥
दिव्यधाम वृन्दावनस्थ राधामाधव मन्दिर में सदा ही श्रीगोपालमन्त्रराज के अनुष्ठान में प्रवृत्त जिनका परम पावन स्वरूप है ऐसे ब्रह्मचारी श्रीगिरिधारीशरणजी की सदैव जय हो ॥ ७॥
कदम्ब-कदलीकुञ्जे युग्माङ्घ्रिस्मरणे रतः ।
एवञ्च ब्रह्मचारी वै जयति नित्यदा भुवि ॥ ८॥
कदम्ब कदली आदि कुञ्जों में बैठकर अपने आराध्य का स्मरण करने में अभिरत ऐसे ब्रह्मचारी श्रीगिरिधारीशरणजी की नित्यप्रति सर्वत्र जय-जय हो ॥ ८॥
राधामाधवपादाब्जभक्तिदमष्टकं प्रियम् ।
राधासर्वेश्वराद्येन शरणान्तेन निर्मितम् ॥ ९॥
श्रीराधामाधव पराभक्ति को प्रदान करने वाला रुचिकर
यह अष्टक स्तोत्र जिसकी रचना श्रीराधामाधव भगवान् की कृपा से हुई है ॥ ९॥
इति ब्रह्मचारि-श्रीगिरिधारि-शरणाष्टकं स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
Proofread by Mohan Chettoor