श्रीपरशुरामदशश्लोकी
निम्बार्कसम्प्रदायस्य दिव्याचार्यं जगद्गुरुम् ।
श्रीमत्परशुरामञ्च देवाचार्यं समाश्रये ॥ १॥
श्रीनिम्बार्क सम्प्रदाय के देदीप्यमान अनन्त श्रीविभूषित जगद्गुरु श्रीनिम्बार्काचार्यपीठाधीश्वर श्रीपरशुरामदेवाचार्यजी महाराज का परम मङ्गलकारी आश्रय लेते हैं ॥ १॥
श्रीहरिव्यासदेवस्य श्रेष्ठं शिष्यं नमाम्यहम् ।
असीमसिद्धिसम्पन्नं श्रीसर्वेश्वरचिन्तकम् ॥ २॥
अनन्त श्रीविभूषित जगद्गुरु निम्बार्काचार्यपीठाधीश्वर ``महावाणीकार'' रसिकराजराजेश्वर श्रीहरिव्यासदेवाचार्यजी महाराज के कृपापात्र अति श्रेष्ठ शिष्य जो श्रीसर्वेश्वर प्रभु के प्रतिपल ध्यान में अभिरत एवं परमोत्तम सिद्धियों से परिपूर्ण श्रीपरशुरामदेवाचार्यजी महाराज को कोटि-कोटि प्रणाम करते हैं ॥ २॥
वृहत्परशुरामाख्य-सागरग्रन्थलेखकम् ।
सत्सनातनधर्मस्यप्रचारे निरतं भजे ॥ ३॥
``श्रीपरशुरामसागर'' विशाल ग्रन्थ की आपश्रीने प्रेरणाप्रद
रचना से सबका हित किया है और अनादि वैदिक सनातन धर्म के प्रचुर प्रचार करने में अनवरत अभिरत रहते हैं । ऐसे परमाचार्यवर्य श्रीपरशुरामदेवाचार्यजी महाराज का भजन-ध्यान करते हैं ॥ ३॥
वैष्णवधर्मरक्षार्थं विहरन्तं मरुस्थले ।
निम्बार्कतीर्थमागत्य हवने तत्परं भजे ॥ ४॥
इसी प्रकार अनादिवैदिक श्रुति-स्मृति-सूत्र-पुराणादि प्रतिपादित लोक कल्याणकारी वैष्णवधर्म की सर्वविध सुरक्षा के लिए मारवाड़ प्रदेश में सर्वत्र परिभ्रमण करते हुए ``श्रीपद्मपुराण'' में वर्णित श्रीनिम्बार्कतीर्थ पधार कर प्रतिदिन हवन करने में तत्पर रहते हैं । आज भी हवन कुण्ड उसी का प्रतीक है, ऐसे आपश्री के मङ्गल स्वरूप का भजन-स्मरण करते हैं ॥ ४॥
यवनसिद्धिछेत्तारं हरिभक्तिप्रचारकम् ।
परशुराममाचार्यं वन्देऽहं नित्यशः सुधिम् ॥ ५॥
अपने सदुपेदशों के द्वारा उत्तम पुरुषों को श्रीराधाकृष्ण भगवान् की रसमयी भक्ति का प्रचार करने में सदा ही तत्पर और श्रीनिम्बार्कतीर्थ समीपवर्ती रहने वाला मस्तिङ्गशाह यवन फकीर जो अपनी पैशाचिक तान्त्रिक शक्ति से सन्त-महात्माओं एवं तीर्थ यात्रियों को अत्यन्त कष्ट देने वाले उस यवन फकीर की पैशाचिक सिद्धियों का निराकरण करने में परम समर्थ आचार्यवर्य श्रीपरशुरामदेवाचार्यजी महाराज का प्रतिपल स्मरण पूर्वक उनकी अभिवन्दना करते हैं ॥ ५॥
श्रीसर्वेश्वरसेवायां सर्वदा तत्परं भजे ।
ऊर्ध्वपुण्ड्रधरं चारु गोपीचन्दनचर्चितम् ॥ ६॥
गोपीचन्दन से द्वादश अतिसुन्दर ऊर्ध्वपुण्ड्र तिलक धारण करने पर अतीव शोभास्पद एवं अपने परमाराध्य श्रीसर्वेश्वर प्रभु की दिव्य सेवा में सर्वदा अभिरत श्रीनिम्बार्काचार्यपीठाधीश्वर जगद्गुरु श्रीपरशुरामदेवाचार्यजी महाराज का भजन-आराधन करते हैं ॥ ६॥
श्रीहरिवंशदेवस्य सद्गुरुं नित्यमाश्रये ।
तत्त्ववेत्तागुरं भक्त्या नमामि शास्त्रपारगम् ॥ ७॥
श्रीहरिवंशदेवाचार्यजी के हृदयाराध्य श्रीगुरुवर्य का प्रतिदिन
आश्रय ग्रहण करते हैं । श्रुति-स्मृति-सूत्र-तन्त्र-पुराणादि शास्त्रों के परम ज्ञाता और श्रीतत्त्ववेत्ताजी के गुरुवर्य श्रीपरशुरामदेवाचार्यजी महाराज को भक्तिपूर्वक अभिनमन करते हैं ॥ ७॥
श्रीपीताम्बरदेवस्य गुरुवर्यं समाश्रये ।
परशुरामदेवञ्च वैष्णवाचार्यमीदृशम् ॥ ८॥
श्रीपीताम्बरदेवजी के गुरुवर्य एवं ऐसे वैष्णवाचार्य श्रीपरशुरामदेवाचार्यजी महाराज जिनका आश्रय लेना परम हितकारी है ॥ ८॥
रामदेवगुरुं प्रेष्ठं लक्कडदेव (लावण्यदेव) गुरुं भजे ।
श्रीहरिवंशदेवञ्च पुनर्नमामि सादरम् ॥ ९॥
आपश्री के एक और शिष्य जिनका नाम श्रीरामदेवजी था अपर शिष्य श्रीलक्कडदेवजी (श्रीलावण्यदेवजी) भी थे । इस प्रकार श्रीपरशुरामदेवाचार्यजी महाराज के चार शिष्य ये थे । इनमें प्रमुख श्रीहरिवंशदेवाचार्यजी थे, जो आचार्यपीठ पर विराजे । इन सभी के परम गुरुवर्य निम्बार्काचार्यपीठाधीश्वर जगद्गुरु श्रीपरशुरामदेवाचार्यजी महाराज को सादर नमन करते हैं । इन शिष्यों का क्रमशः वर्णन इस प्रकार है । यथा-१। श्रीहरिवंशदेवाचार्यजी, श्रीनिम्बार्काचार्यपीठ पर, निम्बार्कतीर्थ (सलेमाबाद) में समासीन हुए । २। श्रीपीताम्बरदेवजी, श्रीगोपाल मन्दिर, ग्राम चला जि। सीकर में विराजे । ३।श्रीतत्त्ववेत्ताजी, श्रीगोपाल मन्दिर, जैतारण जि। नागौर में विराजे । ४। श्रीरामदेवजी, श्रीगोपाल मन्दिर, छोटा नरेना जि। अजमेर में निवास किया । ५। श्रीलक्कडदेवजी (श्री लावण्देवजी) श्रीगोपाल मन्दिर, ग्राम कालपी जि। जालोन (उ।प्र।) में निवास किया ।
पीठस्य परमाचार्यं वन्देऽहं श्रद्धया सदा ।
परशुराममाचार्य देवाचार्यं जगद्गुरुम् ॥ १०॥
अनन्त श्रीविभूषित जगद्गुरु श्रीनिम्बार्काचार्यपीठाधीश्वर श्रीपरशुरामदेवाचार्यजी महाराज की श्रद्धापूर्वक अभिवन्दना करते हैं ॥ १०॥
श्रीमत्परशुरामस्य दशश्लोकी रसप्रदा ।
राधासर्वेश्वराद्येन शरणान्तेन निर्मिता ॥ ११॥
``श्रीपरशुराम-दशश्लोकी'' जो परमानन्द को प्रदान करने
वाली है, जिसकी रचना इन्हीं श्रीआचार्यप्रवर का अनुकम्पा प्रसाद है ॥ ११॥
इति श्रीपरशुरामदशश्लोकी समाप्ता ।
Proofread by Mohan Chettoor