श्रीसर्वेश्वरशरणदेवाचार्याष्टकं स्तोत्रम्
सर्वेश्वरस्य सुभगाऽर्चनदत्तचित्तं
निम्बार्कवीथिपथिकं बुधसेव्यमानम् ।
श्रीमज्जगद्गुरुवरं गुरुभावनिष्ठं
सर्वेश्वरस्य शरणं प्रणमामि देवम् ॥ १॥
महर्षिवर्य श्रीसनकादिकों द्वारा सेवित आचार्य-परम्परा
प्राप्त गुञ्जाफलसम सूक्ष्म दक्षिणावर्ती चक्राङ्कित शालग्राम स्वरूप श्रीसर्वेश्वर प्रभु की सुन्दरतम दैनिक सेवा में जिनका पवित्रान्तःकरण लगा हुआ है । सुदर्शनचक्रावतार-जगद्गुरुवरेण्य आद्याचार्य श्रीभगवन्निम्बार्काचार्य की सुपावन आचार्यपरम्परा के पोषक । उत्तमोत्तम विद्वज्जनों द्वारा परिसेवित । अपने सद्-गुरुदेव निम्बार्काचार्य-पीठाधीश्वर श्रीगोविन्द-शरणदेवाचार्य श्री ``श्रीजी'' महाराज के श्रीयुग्म चरणाम्बुजों में अनन्य भाव जिनका प्रतिष्ठित है ऐसे अनन्त श्रीविभूषित जगद्गुरु निम्बार्काचार्यपीठाधीश्वर श्रीसर्वेश्वर शरणदेवाचार्य श्री ``श्रीजी'' महाराज को प्रतिपल सर्वात्मना अनन्त प्रणाम समर्पित है ॥ १॥
आचार्यवर्यममलं परमं वरेण्यं
गोविन्दयुग्मचरणाम्बुजभक्तिलीनम् ।
स्तोत्रादिग्रन्थरचनासु महाप्रवीणं
सर्वेश्वरस्य शरणं प्रणमामि देवम् ॥ २॥
जिनका निर्मल परम वरेण्य पावन स्वरूप है । जगदीश्वर गोविन्द प्रभु के किंवा अपने ही गुरुवर्य श्रीगोविन्द-शरणदेवाचार्यजी महाराज के युगलचरणारविन्दों की अनन्य भक्ति में सदा तल्लीन है । स्तोत्रादि सद्ग्रन्थों की अनुपम रचना में अत्यन्त कुशल हैं ऐसे आचार्यप्रवर श्रीसर्वेश्वर-शरणदेवाचार्यजी महाराज के श्रीचरणों में मुहुर्मुहुः साष्टाङ्ग-प्रणाम निवेदित है ॥ २॥
निम्बार्कमार्गयुत-भागवतार्थकारं
दिव्यप्रभं शुभमनोज्ञविशालभालम् ।
नित्योर्दूपुण्ड्रधरमम्बुजलोचनञ्च
सर्वेश्वरस्य शरणं प्रणमामि देवम् ॥ ३॥
सुदर्शनायुधावतार श्रीभगवन्निम्बार्काचार्य के सिद्धान्तानुसार श्रीमद्भागवत पर जिन्होन्ने सर्वेश्वरी नामक सुन्दर टीका (व्याख्या) का प्रणयन किया है और जिनका मङ्गलमय अतिकमनीय विशाल ललाट है तथा दिव्यकान्ति से देदीप्यमान गोपीचन्दन से श्यामबिन्दु-युक्त उर्ध्वपुण्ड्र तिलक धारण किये हुए है । कमलसदृश दिव्य नेत्रों से अति शोभायमान श्रीसर्वेश्वरशरणदेवाचार्यजी महाराज को पुनः पुनः सश्रद्ध बद्धपाणि अनन्तकोटि प्रणाम अर्पित है ॥ ३॥
वृन्दावनेशपदकञ्जमनोज्ञभृङ्गं
राधापदाम्बुजसुगन्धरसावतृप्तम् ।
गीर्वाणगीःप्रकथने परमप्रवीणं
सर्वेश्वरस्य शरणं प्रणमामि देवम् ॥ ४॥
वृन्दावननवनिकुञ्जविहारी युगलकिशोर श्यामाश्याम श्री राधाकृष्ण भगवान् के श्रीचरणकमलों के मञ्जुल मधुकर स्वरूप । पराभक्तिप्रदायिनी सर्वेश्वरी श्रीराधिकाजी के श्रीयुगलचरणारविन्दों की परम दिव्य सुगन्धरस से अत्यन्त आह्लादित और देववाणी संस्कृत प्रवचनोपदेशामृत वर्षण में परमकौसलसम्पन्न श्रीसर्वेश्वरशरणदेवाचार्यजी महाराज के विमल पादपद्मों में प्रणति पूर्वक अभिवन्दना ॥ ४॥
निम्बार्कदेवशरणाग्रगुरुं शरण्यं
निम्बार्कपीठभुवि नित्यसुशोभमानम् ।
आचार्यरूपजयपत्तनराजमानं
सर्वेश्वरस्य शरणं प्रणमामि देवम् ॥ ५॥
जो श्रीनिम्बार्काचार्यपीठाधीश्वर श्रीनिम्बार्कशरणदेवाचार्य जी महाराज के श्रीमद्गुरुवरेण्य हैं जो परम शरण्य है । अ० भा० जगद्गुरु निम्बार्काचार्यपीठ में एवं राजस्थान में अवस्थित अतिशय प्रख्यात अति रमणीय जयपुर महानगर में भी विराजमान रहे हैं उन परमाचार्य प्रवर श्रीसर्वेश्वरशरणदेवाचार्यजी महाराज को सभक्ति अनन्त साष्टाङ्ग प्रणाम करते हैं ॥ ५॥
निम्बार्कतीर्थजलपानकरं गुणज्ञं
श्रीकृष्णभक्तिरसवारिधिगाहमानम् ।
निम्बार्ककीर्तनकरं द्विज-सद्भिः सेव्यं
सर्वेश्वरस्य शरणं प्रणमामि देवम् ॥ ६॥
``पद्मपुराण'' में वर्णित निम्बार्कतीर्थ सरोवर के निर्मल-
जल का सेवन करने वाले सद्गुणसंवलितजनों के उत्तम गुणों के ज्ञाता, श्रीराधाकृष्ण भक्तिरससुधा में अवगाहन परायण, श्रीनिम्बार्क भगवान् के दिव्य नाम सङ्कीर्तन करने में तत्पर, सद्विप्रजनों सन्त-महात्माओं से जो परिसेवित हैं ऐसे श्रीमदाचार्यवर श्रीसर्वेश्वरशरण-देवाचार्यजी महाराज के चरणकमलों में नित्यशः प्रणाम करते हैं ॥ ६॥
लोकेश-पुष्करनिवासकरं सुधीशं
श्रीयुग्मकेलिरसभक्तिभरं गरिष्ठम् ।
सौन्दर्य-सौम्यनिकषं वरणीयरूपं
सर्वेश्वरस्य शरणं प्रणमामि देवम् ॥ ७॥
विश्व के समस्त तीर्थों के गुरु पद पर अतिशय सुशोभित जगत्स्रष्टा ब्रह्मदेव के ब्रह्मपुष्कर में जिन आचार्यश्री ने निवास किया है, उत्तमोत्तम विद्वज्जनों में परम श्रेष्ठ अग्रगण्य श्रीधामवृन्दावनाधीश्वर श्रीराधामाधव प्रभु के मधुरातिमधुर दिव्यातिदिव्य लीलाविलास रसभक्ति से परिपूर्ण और परम श्रेष्ठ सुन्दरतम तथा सौम्य सारल्य के पावन स्वरूप, जिनके अनुपम स्वरूप का वर्णन अपूर्व है ऐसे आचार्य शिरोमणि श्रीसर्वेश्वरशरणदेवाचार्यजी महाराज के युग्मपदाम्बुजों मेन्दिव्यचरितप्रभा प्रतिपल कोटि-कोटि प्रणाम समर्पित है । ७॥
गोवर्धनाऽन्तिकमनोहरसुप्रसिद्ध-
निम्बार्कपत्तनतपःस्थल-वासहृद्यम् ।
निम्बार्कदर्शनविवेकविलासदक्षं
सर्वेश्वरस्य शरणं प्रणमामि देवम् ॥ ८॥
व्रजधाम में अविरल रूप से अत्यन्त शोभायमान गिरिराज श्रीगोवर्धन जिसके अतिशय समीप परम मनोहर परम सुप्रसिद्ध निम्बग्राम जहाँ श्रीभगवन्निम्बार्काचार्य की तपोभूमि (तपःस्थली) है वहाँ जिन्होन्ने अनेकों वार निवास करके आनन्द का अनुभव किया है । श्रीनिम्बार्क भगवान् के दार्शनिक स्वाभाविक द्वैताद्वैत सिद्धान्त के विवेचन करने में जो अतीव प्रवीण है ऐसे आचार्यवर श्रीसर्वेश्वर- शरणदेवाचार्य श्री ``श्रीजी'' महाराज के युग्मचरणाम्बुजों में कोटिशः प्रणामाञ्जलि अर्पित है ॥ ८॥
देवाचार्यान्त्यसर्वेशशरणस्तोत्रमिष्टदम् ।
राधासर्वेश्वराद्येन शरणान्तेन निर्मितम् ॥ ९॥
श्रीसर्वेश्वरशरणदेवाचार्याष्टक स्तोत्र जिसके पठन-मनन
करने से अपने परम प्रेमास्पद परमाराध्य श्रीसर्वेश्वर-राधामाधव प्रभु के मङ्गलमय दिव्य दर्शन कराने वाला है, जिसकी यथामति हमको निमित्त बनाकर इसकी रचना करायी गयी है यह यथार्थ में इन्हीं आचार्यश्री की कृपा का प्रसाद मात्र है ॥ ९॥
अनुवादक-श्रीराधासर्वेश्वरशरणदेवाचार्य
इति अनन्त श्रीविभूषित जगद्गुरु श्रीनिम्बार्काचार्यपीठाधीश्वर श्री ``श्रीजी'' श्रीराधासर्वेश्वरशरणदेवाचार्यजी महाराज प्रणीतं श्रीसर्वेश्वरशरणदेवाचार्याष्टकं सम्पूर्णम् ।
Proofread by Mohan Chettoor