विश्वकर्मा चालीसा
दोहा-
मनु मय त्वष्टा विश्वकर्मा, शिल्प कर्म आधार ।
तीन लोक चौदह भुवन, करनी का विस्तार ॥
सोरठा-
प्रत्न सुपर्ण महाराज, सनग सनातन अहिभून ।
शिल्पन के सरताज, आदि शिल्प के गुरु तुम ॥
जगत गुरु जग ईश पियारे ।
विश्वकर्मा महाराज हमारे ॥
देव दनुज सबके दुख टारे ।
दीनन के तुम हो रखवारे ॥
जल, थल, पर्वत और अकाशा ।
चान्द सूर्य नित करहिं प्रकाशा ॥
नाथ तुम्हारी अद्भुत करनी ।
महिमा अमित जाहि नहिं बरनी ॥
सृष्टि आदि कर्ता हो स्वामी ।
बार बार है तुम्हें नमामी ॥
भव निधि पड़े बहुत दुख पाये ।
सब तजि शरन तुम्हारी आये ॥
जप तप भजन न होय गोसाईम् ।
बन्धे कीट मर्कट की नाईम् ॥
बन्धन छोर हमें अपनाओ ।
निज चरणों का दास बनाओ ॥
जयति जयति विश्वकर्मा स्वामी ।
मम उर बसहु नाथ विज्ञानी ॥
सुमिरन भजन तुम्हारा भावै ।
बुरे कर्म से मन हट जावै ॥
साधु सन्त के तुम रखवारे ।
भक्त जनन के प्राण पियारे ॥
स्वारथ वश तब भक्ति बिसारी ।
नाथ पड़ा हूं शरण तुम्हारी ॥
तुमहिं भजै अक्षय सुख पावै ।
जन्म जन्म के दुःख बिनसावै ॥
पुरवहु नाथ मनोरथ मोरा ।
मन क्रम वचन दास मैं तोरा ॥
एक लालसा यही हमारी ।
केवल भक्ती चहौं तिहारी ॥
मङ्गल करन अमङ्गल हारी ।
त्रिभुवन महिमा विदित तुम्हारी ॥
आरत-हरण भक्त भय हारी ।
शरण शरण मैं शरण तिहारी ॥
तुम सबके गुरु सबके स्वामी ।
तुम सबहीं के अन्तरवामी ॥
सर्व शक्ति तुम सब आधारा ।
तुमहिं भजै सो उतरहिं पारा ॥
घट घट माहिं तुम्हारो बासा ।
सर्व ठौर जिमि दीप प्रकाशा ॥
यह विधि तुमको जानै कोई ।
भक्त अरु जानी कहिए सोई ॥
जगत पिता तुमहीं हो ईशा ।
याते हम विनवत जगदीशा ॥
नाथ कृपा अब हम पर कीजै ।
भक्ति आपनी हमको दीजै ॥
प्रेम भक्ति बिनु कृपा न होई ।
सर्व शास्त्र में देखै जोई ॥
कर्म योग कर सेवत कोई ।
ज्यों सेदै त्यों ही गति होई ॥
जो हरि ज्योति आप प्रगटाई ।
घर घर में सोई दरशाई ॥
तुम सब ठौर सबन ते न्यारे ।
को लखि सके चरित्र तुम्हारे ॥
तुम सबके प्रभु अन्तरयामी ।
जीव बिसर रहे तुमको स्वामी ॥
विश्वकर्मा को जो कोई ध्यावै ।
होय मुक्ति जीवन फल पावै ॥
डूब न जावे नाव हमारी ।
हम आये हैं शरण तुम्हारी ॥
हम सेवक हैं नाथ तुम्हारे ।
भव सागर से करौ किनारे ॥
सुत पितु मातु न कोई सङ्घाती ।
सब तजि भजन करहुं दिन राती ॥
दीनबन्धु दीनन हितकारी ।
शरण पड़ा हूं नाथ तुम्हारी ॥
विश्वकर्मा ही ब्रह्म कहावै ।
विश्वकर्मा सब सृष्टि रचावै ॥
पढ़ै जो विश्वकर्मा चालीसा ।
सुफल काज हों बीसों बीसा ॥
चालिस दिन जो ध्यान लगावै ।
राजद्रोह से मुक्ति पावै ॥
भूत प्रेत नहिं उनहिं सतावै ।
चालीसा में जो मन लावै ॥
धूप देय अरु जपै हमेशा ।
फिर नहिं पावै दुःख लवलेशा ॥
जो कोई अक्षत पुष्प चढ़ावे ।
होय मुक्त जग फिर नहिं आवै ॥
उसके जीवन का रखवारा ।
रहे नित्य विश्वकर्मा प्यारा ॥
सकल पदारथ करतल ताके ।
बसै ह्रदय विश्वकर्मा जाके ॥
दोहा-
आदि सृष्टि आधार तुम, रचना विविध प्रकार ।
नाथ तुम्हारी कृपा बिन, केहि विधि उतरूं पार ॥
हाथ जोड़ विनती करूं, धरुं चरण माथ ।
पूर्ण होय मम कामना, यह वर दीजै कर्तार ॥