दशमहाविद्यास्तुतिः
ॐ जय जगदीश्वरि कालि कुलेश्वरि असुर-भयङ्करि पापयुतम् ।
नाद-चलितगिरि-पूरित-कन्दरि जय शिवसुन्दरि पाहि सुतम् ॥ १॥
नीलसरस्वति तारे भगवति हर जडतापदमात्मगतम् ।
पृथुलम्बोदरि भूषणविषधरि जय शिवसुन्दरि पाहि सुतम् ॥ २॥
ईश्वर-केशव-रुद्र-कमलभव-शिरसि सदाशिवमुदवसितम् ।
हे त्रिपुरेश्वरि भवसागरतरि जय शिवसुन्दरि पाहि सुतम् ॥ ३॥
इन्द्रमुकुटवति लोहितभास्वति वेदभुजे नतमार्तरुतम् ।
हे भुवनेश्वरि सुरकुलशङ्करि जय शिवसुन्दरि पाहि सुतम् ॥ ४॥
मातर्भैरवि दुरित-तिमिर-रविरङ्घ्रि-रजस्तव गिरिशनुतम् ।
सेवकहितकरि शङ्करसहचरि जय शिवसुन्दरि पाहि सुतम् ॥ ५॥
छित्त्वा निजशिर आपिबसि रुधिरमसिहस्ता गुणमापतितम् ।
रतिकामोपरि पदमर्दनकरि जय शिवसुन्दरि पाहि सुतम् ॥ ६॥
धूमावति सति भक्षित-निजपति रथमारोहसि करटयुतम् ।
तनुरुचिधूसरि कलहप्रमदकरी जय शिवसुन्दरि पाहि सुतम् ॥ ७॥
पीतकवसने धृतरिपुरसने जहि गदयार्दिततामयुतम् ।
प्रणतदयादरि काले जित्वरि जय शिवसुन्दरि पाहि सुतम् ॥ ८॥
पाशाङ्कुशमसि-खेटं प्रवहसि हंसि रिपुं शुचि-रोषयुतम् ।
मातङ्गि कदरि-विदलन-कुञ्जरि जय शिवसुन्दरि पाहि सुतम् ॥ ९॥
द्विरद-चतुष्टय-विधृत-कनकमय-कलशैः स्नापनमाचरितम् ।
कमले गरुडे हरिधृततस्करि जय शिवसुन्दरि पाहि सुतम् ॥ १०॥
इति वामदेवशिष्य महात्मापूर्णक्ष्यापा विरचितं दशमहाविद्यास्तुतिः समाप्ता ।
Proofread by Rajani Arjun Shankar