श्रीराधाष्टकस्तोत्रम्
श्रीराधां राधिकां वन्दे, कुञ्ज-कुञ्जेषु-शोभिताम् ।
व्रजन्तीं सह कृष्णेन, व्रज-वृन्दावने शुभाम् ॥ १॥
व्रजस्थ वृन्दावन धाम में श्रीसर्वेश्वर श्रीकृष्ण भगवान् के साथ पधारती हुई परम सुशोभित एवं कुञ्ज-निकुञ्जों में नित्य निकुञ्जेश्वरी श्रीराधिकाजी की अभिवन्दना करते हैं ॥ १॥
दिव्य-सौन्दर्य सम्पन्नां, भजेऽहं मनसा सदा ।
राधिकां करुणापूर्णां, सर्वेश्वरीञ्च सौभगाम् ॥ २॥
परम दिव्य सुन्दरता की स्वरूप एवं करुणामयी सर्वेश्वरी श्रीराधाप्रिया को अपने मन से उनकी सुभगता का सदा भजन करते हैं ॥ २॥
कृष्णहृदम्बुजां राधां, स्मरामि सततं हृदा ।
रसिकैश्च समाराध्यां, भावुकैश्च प्रपूजिताम् ॥ ३॥
अनन्य रसिकजनों के द्वारा समाराधित एवं परम भावुक
जनों से समर्चित तथा अनन्तकोटि लावण्य वृन्दावनाधीश्वरी
सर्वेश्वर श्रीकृष्ण भगवान् के अन्तर्मानस में विराजित परम लावण्यमयी श्रीनित्यनवकिशोरी का अपने अन्तर्मानस में निरन्तर स्मरण करते हैं ॥ ३॥
परमानन्दरूपां च, भजेऽहं वृषभानुजाम् ।
सखिवृन्दैश्च संसेव्यां, श्रीराधां व्रजवल्लभाम् ॥ ४॥
अपनी सखीवृन्दों के द्वारा परिसेवित परमानन्द स्वरूप
श्रीवृषभानुजा व्रजवल्लभा रासेश्वरी श्रीराधा का हम मनसा-वाचा-कर्मणा भजन-स्मरण करते हैं ॥ ४॥
कदलीचारु-कुञ्जेषु, राजितां राधिकां प्रियाम् ।
देवेन्द्राद्यैः सदाऽगम्यां, भजेऽहं परमां शुभाम् ॥ ५॥
कदली अर्थात् केला की सुन्दर कुञ्जों में विराजित एवं
विधि-शिव-इन्द्रादि सुरवृन्दों द्वारा जिनके स्वरूप का अवबोध अतीव दुष्कर है, ऐसी अतीव शोभायमान श्रीराधाप्रिया का भजन करते हैं ॥ ५॥
सनकाद्यैः सदाराध्यां, गीतां गन्धर्वकिन्नरैः ।
कुञ्जेश्वरीं भजे राधां, विपिने च सुसेविताम् ॥ ६॥
श्रीसनक सनन्दन सनातन सनतकुमारों द्वारा समाराधित
एवं गन्धर्व किन्नर आदि देवों द्वारा जिनके अनन्त गुण गणों का गान किया जाता है और श्रीवृन्दावन की नित्यनिकुञ्ज में सुशोभित नव कुञ्जेश्वरी श्रीराधा का भजन ध्यान करते हैं ॥ ६॥
कोकिला-सारिका-नादैः सुस्मितां राधिकां भजे ।
निम्ब-कुञ्जे स्थितां राधां,दिव्यकान्तियुतां प्रियाम् ॥ ७॥
निम्ब (नीम) तरुवरों की सुभग कुञ्जों में विराजमान तथा शुक-पिक-सारिका (कोयल-तोता-मैना) आदि के सुन्दर निनाद से अति प्रमुदित तथा दिव्यशोभासमन्वित श्रीराधाप्रिया का भजन अनुस्मरण करते हैं ॥ ७॥
उच्चारितां हृदा कीरैः, श्रुतिशास्त्रैर्भजे वराम् ।
दिव्यगुणान्वितां राधां, व्रजजनैश्च भाविताम् ॥ ८॥
श्रुति-तन्त्र-पुराणादि शास्त्रों द्वारा जिनके सुभग स्वरूप
का वर्णन किया जाता है, एवं व्रजवासीजनों द्वारा अपने अन्तर्मानस में जिनके स्वरूप का ध्यान किया जाता है । कीर अर्थात् तोता आदि पक्षिगणों के द्वारा अपने अन्तर्हृदय से गान किया जाता है, ऐसी परम दिव्य गुणगणों से समन्वित रासेश्वरी सर्वेश्वरी श्रीराधाप्रिया का प्रतिपल भजन करते हैं ॥
राधाष्टकञ्च सत्स्तोत्रं, युग्मभक्तिप्रदायकम् ।
राधासर्वेश्वराद्येन शरणान्तेन निर्मितम् ॥ ९।
श्रीराधामाधव भगवान् की अनन्य भक्ति प्रदायक यह राधाष्टक स्तोत्र उन्हीं आराध्य के कृपाजन्य प्रस्तुत है ॥ ९॥
इति श्रीराधाष्टकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
Proofread by Mohan Chettoor