श्रीसरस्वतीस्तोत्रम्

श्रीसरस्वतीस्तोत्रम्

ॐ अर्हन्मुखाम्भोजवासिनीं पापनाशिनीम् । सरस्वतीमहं स्तौमि श्रुतसागरपारदम् ॥ १॥ लक्ष्मीबीजाक्षरमयीं मायाबीजसमन्विताम् । त्वां नमामि जगन्मात-स्रेलोक्यैश्वर्यदायिनीम् ॥ २॥ सरस्वती वद वद वाग्वादिनि मिताक्षरैः । येनाहं वाङ्गमयं सर्व,जानामि निजनामवत् ॥ ३॥ भगवति सरस्वति ह्रीं नमोन्ध्रिद्वये प्रगेः । ये कुर्वन्ति न ते हि स्युर्जाडयाम्बुधिधराशयाः ॥ ४॥ त्वत्पादसेविहंसोऽपि विवेकीति जनश्रुतिः । ब्रवीमि किं पुनःस्तेषां येषां त्वच्चरणो हृदि ॥ ५॥ तावकीना गुणा मातः सरस्वति ! वदात्मके । ये स्मृतावपि जीवानां,स्युः सौख्यानि पदे पदे ॥ ६॥ त्वदीयचरणाम्भोजे मच्चित्तं राजहंसवत् । भविष्यति कदा मातः सरस्वति ! वद स्फुटम् ॥ ७॥ श्रेताब्जनिधिचन्द्राशमप्रसादस्थां चतुर्भुजाम् । हंसस्कन्धस्थितां चन्द्रमूर्त्युज्ज्वलतनुप्रभाम् ॥ ८॥ वामदक्षिणहस्ताभ्यां बिभ्रतीं पद्मपुस्तिकाम् । तथेतराभ्यां वीणाक्षमालिकां श्वेतवासनीम् ॥ ९॥ उद्गिरन्ती मुखाम्भोजादेनामक्षरमालिकाम् । घ्यायेच्चोग्रस्थितां देवीं,सजडोऽपि कचिर्भवेत् ॥ १०॥ श्री शारदास्तुतिमिमां हृदये निधाय । ये सुप्रभातसमये मनुजाः स्मरन्ति ! तेषां परिस्फुरति विश्चविकाशहेतु । सजज्ञानकेवलमहो महिमा निधानम् ॥ ११॥ युयेप्सया सुरव्युहसंस्तुता मयका स्तुता । तत्तां पूरयितुं देवि ! प्रसीद परमेश्वरि ॥ १२॥ ॥ इति श्री सरस्वती स्तोत्रं समाप्तम् ॥ गुजराती अर्थ - अरिहन्तना मुखकमळमां वसनारी, पापनो नाश करनारी अने श्रुतसागरना पारने आपनारी सरस्वतीनी हुं स्तुति करुं छुं. १ हे जगतनी माता! लक्ष्मीबीजना अक्षरमय, मायाबीज सहित अने त्रण लोकना ऐश्वर्यने आपनारी हुं तमने नमुं छुं. २ हे वचनने बोलनारी सरस्वती देवी ! परिमित (थोडा) अक्षरो वडे तुं कहे,के जेथी हुं पोताना नामनी जेम वाणीमय सर्व शास्त्रोने जाणुं. ३ हे भगवती (पूज्य) सरस्वती देवी ! जेओ प्रातःकाळे तारा चरणकमळने विषे ᳚ह्रीं नमः᳚ एम बोलीने नमस्कार करे छे,तेओ जडतारूपी समुद्रना तळीया जेवा (कठण) हृदयवाळा थता नथी. ४ तारा पादने सेवनार हंस पण विवेकी छे एम लोकमां सम्भळाय छे, तो पछी जेमना हृदयमां तारां चरण रहेलां छे,तेओ विवेकी होय तेमां शुं कहेवुं? ५ भाषाना स्वरूपवाळी हे सरस्वती माता ! जेओना स्मरणमां तारा गुणो छे,ते जीवोने/(गले पगले सुख प्राप्त थाय छे. ६ हे सरस्वती माता ! तारा चरण-कमळने विषे राजहंसनी/जेम मारुं मन रक्त (रागवाळुं) क्यारे थशे ? ते तुं स्कुटपणे कहे. ७ श्वेत कमळना निधिरूप चन्द्रकान्तमणिना प्रासादमां रहेली, चार भुजावाळी,हंसना स्कन्ध उपर रहेली,चन्द्रबिम्बना,जेवी उज्जवळ शरीरनी क्रान्तिवाळी, डाबा अने जमणा बे हाथ वडे कमळ अने पुस्तिकाने धारण करती, तथा बीजा बे हाथ वडे वीणा अने अक्षमाळीने धारण करती, श्वेत वस्रवाळी तथा अक्षरमलिकाने मुखकमळमान्थी बहार काढती एवी पासे रहेली आ देवीनुं जे घ्यान करे छे,ते जड होय तो पण कवि थाय छे. ८-९-१० आ श्री शारदानी स्तुतिने मनमां धारण करीने जे मनुष्यो सुप्रभातने समये स्मरण करे छे, तेओना सर्व विश्वना विकासना हेतुभूत अने महिमाना निधानरूप श्रेष्ठ केवळज्ञाननो महोत्सव स्कुरायमान थाय छे, अर्थात् केवळज्ञान प्रात थाय छे. ११ हे परमेश्वरी देवी! जे पामवानी इच्छाए करीने देवोना समूहे तारी स्तुति करी छे,ते ज इच्छाथी हुं पण तारी स्तुति करुं छुं; तेथी ते इच्छाने पूर्ण करवा माटे तुं प्रसन्न था. १२ Encoded and proofread by DPD
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